Book Title: Mahavira ka Sarvodaya Tirth
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ सर्वोदय-तीर्थ विक्रमकी प्राय: दूसरी शताब्दीके महान् विद्वान आचार्य स्वामी समन्तभद्र अपने 'युक्त्यनुशासन' प्रन्थ में, जोकि आप्त कहे जानेवाले समस्त तीर्थप्रवर्तकोंकी परीक्षा करके और उस परीक्षाद्वारा श्री महावीर जिनको सत्यार्थ प्राप्तके रूपमें निश्चित करके तदनन्तर उनकी स्तुतिके रूपमें लिखा गया है, महावीर भगवान्को (मोहनीय ज्ञानावरण दर्शनावरण और अन्तराय नामके चार घातिया कर्मोंका अभाव हो जानेसे ) अतुलित शान्तिके साथ शुद्धि और शक्तिके उदयकी पराकाष्ठाको प्राप्त हुआ एवं ब्रह्मपथका नेता लिखा है और इसीलिये उन्हें "महान" बतलाया है। साथ ही उनके अनेकान्त शासन ( मत ) के विपयमें लिखा है कि 'वह दया (अहिंसा), दम (संयम ), त्याग ( परिग्रह - त्यजन ) और समाधि ( प्रशस्त ध्यान ) की निष्ठा - तत्परता को लिये हुए हैं, नयों तथा प्रमाणोंके द्वारा वस्तुतत्त्वको बिल्कुल स्पष्ट सुनिश्चित करने वाला है और ( अनेकान्तवाद से भिन्न ) दूसरे सभी वादोंके द्वारा अबाध्य है - कोई भी उसके विपयको खण्डित अथवा दूषित करनेमें समर्थ नहीं है | यही सब उसकी विशेषता है और इसीलिये वह अद्वितीय है ।' जैसा कि ग्रन्थकी निम्न दो कारिकाओं म प्रकट है त्वं शुद्धि - शक्त्योरुदयस्य काष्ठां तुला- व्यतीतां जिन ! शान्तिरूपाम वापि ब्रह्मपथस्य नेता महानितीयत्प्रतिवक्तुमीशाः ॥ ४ ॥

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