Book Title: Mahavira ka Sarvodaya Tirth
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 34
________________ सर्वादयतीर्थ के कुछ मूल सूत्र इस पर चलने से ही होगा, विकसित स्वात्म- प्रदेश । . आत्म-ज्योति जगेगी ऐसे, जैसे उदित दिनेश || ११|| यह है महावीर - सन्देश, विपुलाः । ३१ सर्वोदयतीर्थ के कुछ मूलसूत्र भगवान् महावीरकं सर्वोदयतीर्थ सम्बन्धी कुछ मूल सूत्र इस प्रकार हैं, जिनसे उस तीर्थ-शासनको बहुत कुछ जाना-पहचाना जा सकता तथा अपने हित के लिये उपयोग में लाया जा सकता है:१ सब जीव द्रव्य-दृष्टिसे परस्पर समान हैं । २ तब जीवोंका वास्तविक गुण-स्वभाव एक ही है। ३ प्रत्येक जीव स्वभावसे ही अनन्तदर्शन, श्रनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्यादि अनन्त शक्तियों का आधार अथवा पिण्ड हैं । ४ अनादिकाल से जीवोंके साथ कर्ममल लगा हुआ है, जिसकी मूल प्रकृतियाँ आठ, उत्तर प्रकृतियाँ एक सौ अड़तालीस और उत्तरोत्तर प्रकृतियाँ असंख्य हैं। ५ इस कर्ममलके कारण जीवोंका असली स्वभाव अच्छादित है, उनकी वे शक्तियाँ अविकसित हैं और वे परतन्त्र हुए नाना प्रकार की पर्यायें धारण करते हुए नजर आते हैं । ६ अनेक अवस्थाओं को लिये हुए संसारका जितना भी प्राणि वर्ग है वह सब उसी कर्ममलका परिणाम है । ७ कर्ममलके भेद से ही यह सब जीव जगत भेदरूप है । जविको इस कर्ममल से मलिनावस्थाको 'विभाव-परिणति' कहते हैं। ६. जब तक किसी जीवकी यह विभावपरिणति बनी रहती है तब तक वह 'संसारा' कहलाता है। और तभी तक उसे संसार

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