Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 78
________________ प्राचीन नाटक मणिमाला हा शिव हुआ । मैं इस से बहुत बड़ाता हूँ | भैया क सीता और राम कम का छन् भर भी न छोड़ना । सगी बहन की होत मनुजहाथन सन तह गति । बंधु के नाल सबै कैले निरपति रहें निकट महसंघ त्रु कल कल अधिकारी / लकिन की है सावधान करिये रखवारी || जो समुद्र की तौर पर निकर्म कर के काननेवाले ( बाहर जाता है ) ॐ जपणे । जटायु-( उड़के) सिमित लावत व्रलय बतासा । धावत सुरत मनहुँ काला ॥ प्रलय शैल सन चति पहुंच्यो तह । मिनिट लगे हरे धन जन जह || नाम पहाड़ जनस्थान के ara में है जिस का देखो यह प्रन्त्र नीला रंग बार बार पानी के बरतने से मैला सा हो गया है और जिस की कन्दरा घने पेड़ों के अच्छे बनों के किनारे गोदावरी के हजोरों से गूँज रही है । ( देख के ) गये दूरि मृगसँग रघुनन्दन । सोर दिल जात लखन व्याकुलमन || जोगी गया कुटी मह कोई हाय हाय राधन यह होई || हा बड़ा अनर्थ हो गया । जोते लहस पिशाबमुख खच्चर निलिवराय | र सोहि बैठाय के यह पाप कह जाय || रावन ! रावन ! जो सृष्टि के लयकाल मुनिवर वेद की रक्षा करी । तुम होय तिन के वंस मई करि ओतत मनतम ह

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