Book Title: Mahavira Charita Bhasha
Author(s): Lala Sitaram
Publisher: National Press Prayag

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Page 123
________________ লগুৰিণাম? शिनरीजब लाम रहै शेषसिर भरनी ! अन अकाल बीच ललि सरनी । ঘু ম ন প্রঙ্গলা। गामनुष्ठि नित लारी। दोनों प्रख थोड़ी देर यल कर बड़े बदले हैं फिर ब्राहा जाने लक-बड़े अानन्द की बात है ! राम-विभोवह इस राह पर AAP WE नहीं है विभीषण-~-महाराज देविये, मंदाकिन्नोजल सैन्न धीवत सये बिमल कपूरसे। तन भोज की धषि का हिनमिरिलिमर नजियत हरसे : तम बटन मन कर ज्ञान लहि भवसिंधु ने नहि रन है: ते नहातेजानिधान मुनि के वृन्द इस तय करना है लम-दादा यह कैसा देस है जिसे देखते टकटकी वंध जाती है पाखें फेर लेने केजी नहीं चाहता। राम--(देख के घबड़ाहट से या यह बह तपोभूमि है. जहाँ गुरु कौशिकजी दहते हैं यही यज्ञावल्यन के शिष्य वाटे विदेहराज के साथ गुरु ओ ने बैठ कर बातचीत की थी । सीता-आप ही आप छोटे बाबाजी की बात कर 44 चारों ओर देखती है। राम-( लंकेश्वर, यह उचित नहीं है कि जिस भूमि वर गुन जी के चरण पड़े है वहां हम लोग विमान पर चढ़ कर ! परदे के पीछे सुनो सुनो राम नाम, मान के शिष्य तुम को प्रामा देते हैं: रा और लन --( विमान को उंगली से हरने के बाद कर ) हम लदेव सावधान हैं। .. फिर परदे के पीछे )

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