Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir • जातीय युद्धका प्रारम्भ । પૂર ८. जातीय युद्धका आरम्भ । ऊपरके अध्यायमें हम देख चुके हैं कि छत्रसाल किस प्रकार जातीय युद्ध के लिये सुसजित हो रहे थे । कार्य प्रारम्भ करने के लिये उनके पास पर्याप्त धन था। सिपाही भी कुछ हो गये थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि देशके अनेक स्वातंत्र्य-प्रिय सरदार इनके साथ थे और जो लोग इनसे खुलकर नहीं मिल गये थे उनमें भी बहुतसे ऐसे थे जिनको इनके साथ सच्ची हार्दिक सहानुभूति थी। इसके अतिरिक्त इनके शत्रु ओरछावाले यदि इनके मित्र नहीं हो गये थे तो कमसे कम कुछ कालके लिये तो चुप हो ही गये थे। ___ इस अवसरसे छत्रसालने लाभ उठानेका विचार किया। मुगलोसे लड़नेके पहिले इन्होंने चाहा कि उनके सहायक बँदेले सरदार अपनी ओर कर लिये जायँ । इस समय इनकी अवस्था बाइस वर्षकी थी। इस वयसमें असंख्य युवक विषयभोग करने में ही अपनेको धन्य मानते हैं। जो निर्धन या दुर्बल हैं वे तो बिचारे किसी गिनती में ही नहीं हैं, उन्होंने तो अकर्मण्यताको अपनी चिरसहचरी मान रक्खा है ही; परन्तु जो धन-बल-विद्या प्रादिसे सम्पन्न हैं वे भी प्रायः कुछ नहीं करते। क्षणिक सुखोंमें कालयापन करना ही हमसे अधिकाँशने जीवनका उद्देश्य समझ रक्खा है। यदि किसीको कभी कभी देशसेवाका ध्यान आ भी जाता है तो वह दोचार लम्बीचौड़ी बातें कहकर कृतकृत्य हो जाता है। व्याख्यान देना ही बहुतसे लोगोंके देशसेवाव्रतकी चरमसीमा है। पर कोरी बातोसे काम नहीं चला करता। आत्मसमर्पणकी प्रा. वश्यकता है। संसारमें ऐसे लोगों की सदा खोज है, जो अपने For Private And Personal

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