Book Title: Mahajan Sangh Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 13
________________ ( १३ ) रहे हैं। इनमें आप किसको ठीक समझते हैं ? मैंने तो यह वर्त्तमान व्यवस्था का एक उदाहरण दिया है, पर पहिले जमाने के महाजनों का इतिहास तो कुछ और ही वीरता से श्रोत प्रोत है । देखिये ! पूर्व आदि प्रान्तों में लाखों करोड़ों जैनधर्मोपासक थे, पर वहाँ ऐसी कोई संगठित संस्था न होने से वे जैन धर्म से हाथ धो बैठे और मांस मदिरादि सेवन करने लग गए । किन्तु " महाजन संघ" आज भी उन दुर्व्यसनों को घृणा की दृष्टि से देखता है और पवित्र जैन धर्म का यथाशक्ति आराधन करता है । क्या यह महाजनों का काम महत्व का नहीं है ? क्या उन आचारपतित क्षत्रियों से महाजन हलके समझे जा सकते हैं ? ( नहीं कभी नहीं ) महाजनों की बराबरी तो वे आचार- पतित क्षत्रिय आज भी नहीं कर सकते हैं। हाँ, महाजन लोग अपने रीत रिवाज चार और धर्म से पतित हो गये हों, उनकी तो बात ही दूसरी है । " महाजन संघ" बनाने से न तो उन क्षत्रियों की बहादुरी गई थी और न उनका पतन ही हुआ था । महाजन संघ ने जो २ बहादुरी के काम किये हैं वे शायद ही किन्हीं औरों ने किये हों ! महाजन संघ में वीरता के साथ उदारता भी कम नहीं थी और इस विषय के उल्लेखों से सारा इतिहास भरा पड़ा है। फिर भी समझ में नहीं आता है कि अज्ञ लोग उन पूज्याचार्यों के उपकार के स्थान में उनका अपकार क्यों मानते हैं ? क्या महाजनों के पतन का प्रधान कारण यह कृतघ्नता ही तो नहीं है ? महाजन संघ में कायरता श्राना एवं उसका पतन होना, इसका कारण "महाजन संघ" बनाना नहीं पर इसका कारण कुछ और ही है, जिसके लिए मैंने " वर्तमान जैन समाज की परिस्थिति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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