Book Title: Mahabharat Samhita Part 01
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 4. 19. 1] विराटपर्व [4. 20.2 स्थितं पूर्वं जलं यत्र पुनस्तत्रैव तिष्ठति / / इदं तु दुःखं कौन्तेय ममासा निबोध तत् // 21 इति पर्यायमिच्छन्ती प्रतीक्षाम्युदयं पुनः॥ 7 या न जातु स्वयं पिंपे गात्रोद्वर्तनमात्मनः / दैवेन किल यस्यार्थः सुनीतोऽपि विपद्यते / अन्यत्र कुन्त्या भद्रं ते साद्य पिंषामि चन्दनम् / दैवस्य चागमे यत्नस्तेन कार्यो विजानता // 8 . पश्य कौन्तेय पाणी मे नैवं यौ भवतः पुरा॥२२ यत्तु मे वचनस्यास्य कथितस्य प्रयोजनम् / वैशंपायन उवाच / पृच्छ मां दुःखितां तत्त्वमपृष्टा वा ब्रवीमि ते // 9 इत्यस्य दर्शयामास किणबद्धौ करावुभौ / / 23 महिषी पाण्डुपुत्राणां दुहिता द्रुपदस्य च / द्रौपद्युवाच / इमामवस्थां संप्राप्ता का मदन्या जिजीविषेत् // 10 बिभेमि कुन्त्या या नाहं युष्माकं वा कदाचन / कुरून्परिभवन्सर्वान्पाञ्चालानपि भारत / . साधाग्रतो विराटस्य भीता तिष्ठामि किंकरी // 24 पाण्डवेयांश्च संप्राप्तो मम क्लेशो ह्यरिंदम // 11 किं नु वक्ष्यति सम्राण्मां वर्णकः सुकृतो न वा। भ्रातृभिः श्वशुरैः पुत्रैर्बहुभिः परवीरहन् / नान्यपिष्टं हि मत्स्यस्य चन्दनं किल रोचते // 25 एवं समुदिता नारी का न्वन्या दुःखिता भवेत् / / वैशंपायन उवाच / नूनं हि बालया धातुर्मया वै विप्रियं कृतम् / सा कीर्तयन्ती दुःखानि भीमसेनस्य भामिनी / यस्य प्रसादाहुर्नीतं प्राप्तास्मि भरतर्षभ // 13 सरोद शनकैः कृष्णा भीमसेनमुदीक्षती // 26 वर्णावकाशमपि मे पश्य पाण्डव यादृशम् / सा बाष्पकलया वाचा निःश्वसन्ती पुनः पुनः / यादृशो मे न तत्रासीदुःखे परमके तदा // 14 हृदयं भीमसेनस्य घट्टयन्तीदमब्रवीत् // 27 त्वमेव भीम जानीषे यन्मे पार्थ सुखं पुरा / नाल्पं कृतं मया भीम देवानां किल्बिषं पुरा / साहं दासत्वमापन्ना न शान्तिमवशा लभे // 15 अभाग्या यत्तु जीवामि मर्तव्ये सति पाण्डव // 28 नादैविकमिदं मन्ये यत्र पार्थो धनंजयः / ततस्तस्याः करौ शूनौ किणबद्धौ वृकोदरः / भीमधन्वा महाबाहुरास्ते शान्त इवानलः // 16 मुखमानीय वेपन्या सरोद परवीरहा // 29 अशक्या वेदितुं पार्थ प्राणिनां वै गतिनरैः / तौ गृहीत्वा च कौन्तेयो बाष्पमुत्सृज्य वीर्यवान् / विनिपातमिमं मन्ये युष्माकमविचिन्तितम् // 17 ततः परमदुःखात इदं वचनमब्रवीत् // 30 यस्या मम मुखप्रेक्षा यूयमिन्द्रसमाः सदा / इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि सा प्रेक्षे मुखमन्यासामवराणां वरा सती // 18 एकोनविंशोऽध्यायः // 19 // पश्य पाण्डव मेऽवस्थां यथा नार्हामि वै तथा / 20 युष्मासु ध्रियमाणेषु पश्य कालस्य पर्ययम् // 19 भीमसेन उवाच / यस्याः सागरपर्यन्ता पृथिवी वशवर्तिनी / धिगस्तु मे बाहुबलं गाण्डीवं फल्गुनस्य च / आसीत्साद्य सुदेष्णाया भीताहं वशवर्तिनी // 20 / यत्ते रक्तौ पुरा भूत्वा पाणी कृतकिणावुभौ // 1 यस्याः पुरःसरा आसन्पृष्ठतश्चानुगामिनः / सभायां स्म विराटस्य करोमि कदनं महत् / साहमद्य सुदेष्णायाः पुरः पश्चाच गामिनी। तत्र मां धर्मराजस्तु कटाक्षेण न्यवारयत् / - 821 -
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