Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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थोडी शब्दार्थचर्चा
मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
समजाय छे. आ रीते विचारीए त्यारे 'गान'नी सामे 'काण्य' एटले 'रोककळ' एवो अर्थ ज बेसे. मध्यकाळमां आ अर्थमां 'काण्य' शब्दनो आ विरल प्रयोग जणाय छे. (२६) छेल्ले एक प्राचीन दुही जोईए :
गुण मोटा, दिन नान्हडा, राति अंधारि जाणि,
कागल तेहू सांकडा, तिणि लखतां हुइ कांणि.
अहीं 'काणि'नो 'लज्जा' ए अर्थ अत्यंत स्पष्ट छे – “तारा गुण मोटा, ज्यारे दिवस ट्का छे; वळी अंधारी रात के अने कागळ सांकडो छे तेथी लखतां मने लज्जा आवे छे – लखतां हुं लागँ छु एम तुं जाणजे."
जोई शकाय छे के गुजरातीमां 'काणि'ना 'शरम, संकोच' ए अर्थनी घणी व्यापक अने दीर्घ परंपरा छे - एनो दाखलो तो आपणने छेक अपभ्रंश-काळमां जड्यो छे. परंतु गुजरातीमांये तेरमी सदीथी सत्तरमी सदी सुधीना दाखला जडे छे. पछी पण एना दाखला हशे ज, पण आपणी पासे एनी नोंध नथी. जैन कविओनी कृतिओमां तो 'काणि' शब्द आ अर्थमां ज जोवा मळे छे ने राजस्थानी कोश एनी घणी अर्थछाया नोंधे छे, तेथी गुजराती-राजस्थानीनो ए सहियारो वारसो होवामुं, राजस्थानमा एनी सविशेष व्यापकता होवानुं समजाय छे.
आपणे त्यां 'काणि' शब्दना बीजा अर्थो लेवाया छे त्यां केटलेक ठेकाणे 'शरम, संकोच'नो अर्थ सरळताथी बेसे छे अने लेवायेला अर्थो छोडावाना थाय छे. 'चिंता', 'शंका' ए अर्थो संदर्भमां नभे छे, परंतु 'शरम, संकोच'नो अर्थ बेसतो होवाथी ए अर्थो : पण छोडवा जेवा लेखाय. 'कष्ट, पीडा, दुःख' ए अर्थने अवकाश आपे एवां बेत्रण उदाहरणो सांपडे छे, पण ए अर्थने हजु विशेष समर्थननी आवश्यकता छे एम लागे छे. अखानी पंक्ति जेवा कोई प्रयोग हजु विशेषपणे कोयडारूप रहे छे. अत्यारना अर्थमां 'काण' शब्दनो प्रयोग आ नोंधमां आव्यो नथी, पण ए तो नोंध माटे जे जातना सूचीकरणनी मदद लेवाई छे तेनी मर्यादा होई शके. ए सूचीकरणमा अत्यारना अर्थना प्रयोगो नोंधाया नथी. अपभ्रंशनो 'वेर' के 'झघडो' ए अर्थ गुजराती सुधी पहोंच्यो
नथी.
व्युत्पत्ति
'काण' के 'काणि' शब्दनी व्युत्पत्ति शामांथी ते विशे कशो ज प्रकाश पडतो नथी. उक्तिर.ए एनो 'कानिः' एवो संस्कृत पर्याय आपेलो, परंतु संस्कृतमां आवो कोई शब्द ज नथी, एटले ए कृत्रिम संस्कृतीकरण होवानुं नक्की थाय छे. आ उपरांत 'कथानिका' के 'कदनी'मांथी 'काणि'नी व्युत्पत्ति केटलाक विद्वानोए सूचवी छे, पण दाखल ., पर्शसंगति वगैरेनी दृष्टिए एमां भाग्ये ज कंई प्रतीतिकर छे. आथी हाल
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