Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संपादक जयंत कोठारी Wwwsamanarthi AP गह Now BRA चरसार 201 Reg sonal Use Only KUMA Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयंत कोठारी (ज. २८-१-१९३०) अमदावादनी कॉलेजोमां गुजराती भाषासाहित्यना अध्यापक तरीके वर्षो सुधी कार्य करी निवृत्त थया छे. बच्चे गुजराती साहित्य परिषदमां 'गुजराती साहित्यकोश (मध्यकालीन) 'ना संपादक तरीके ( १९८१ - १९८४) अने मानार्ह संपादक तरीके (१९८४-१९८७) कार्य कर्यु. एमनी बीजी महत्त्वनी कामगीरी ते मोहनलाल दलीचंद देशाई संयोजित 'जैन गूर्जर कविओ' नुं नवसंस्करण. एना सात भाग प्रसिद्ध थई चूक्या छे (१९८६-१९९१) अने आठमो भाग मुद्रणाधीन छे. एक ज विषयनी छ मध्यकालीन गुजराती कृतिओने समावती ने एमनो तुलनात्मक अभ्यास रजू करती 'आरामशोभा रासमाळा' (१९८९) एमनुं एक नमूनेदार संपादन छे. साहित्यना तत्त्वविचार, विवेचन, संशोधन ने आस्वादनी एमनी प्रवृत्ति 'भारतीय काव्यसिद्धांत' (नटुभाई राजपरा साथे, १९६०)थी मांडीने आज सुधी अनवरत चालती रही छे अने आ प्रकारना १५ ग्रंथो एमनी पासेथी मळ्या छे. १९९४मां पांचमी आवृत्तिमां प्रवेशेल 'भाषापरिचय अने गुजराती भाषानुं स्वरूप' (१९७४) स्नातक कक्षाना शिक्षणनी आवश्यकता पूरी पाडनार अनन्य ग्रंथ बनी रह्यो छे. शाळाकक्षानां व्याकरणोमां पण एमणे पोतीकी सूझथी काम कर्तुं छे. आ उपरात एमणे शैक्षणिक जरूरियातने अनुलक्षीने तेमज बीजां घृणां साहित्यिक संपादनो पण कर्यां छे. 2010_03 www.jalnelibrary.org Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि 2010_03 श्री हेमचन्द्राचार्य Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकः शब्दः सम्यक् ज्ञातः सम्यक् प्रयुक्तः स्वर्गे लोके च कामधुग् भवति । योग्य रीते जाणेलो अने योग्य रीते प्रयोजायेलो एक शब्द स्वर्गमां अने पृथ्वीमां इच्छित सर्व आपनार नीवडे छे. पतंजलि इदम् अन्धम् तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम् । यदि शब्दाह्वयं ज्योतिः आसंसारं न दीप्यते ॥ जो समस्त संसारमां शब्द नामे ज्योति प्रकाशे नहीं तो आ त्रिभुवन आखुं गाढ अंधकार रूपे परिणमे. दंडी 2010_03 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संपादक जयंत कोठारी प्रकाशक कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि अमदावाद 2010_03 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Madhyakālīna Gujarāfi Sabdakosa (Medieval Gujarati Dictionary), ed. Jayant Kothari, Pub. Kalikāla-Sarvajña Sri Hemcandrācārya Janma-Satābdī Smrti Samskāra Siksana Nidhi, Ahmedabad, 1995 © जयंत कोठारी, रोहित कोठारी प्रथम आवृत्ति : जून १९९५ नकल : १००० किंमत : रू. ३००.०० प्रकाशक : कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि, लालभाई दलपतभाईनो वंडो, पानकोरनाका, अमदावाद ३८०००१ विक्रेताओ : 9. गूर्जर साहित्य भवन, गांधी मार्ग, अमदावाद ३८०००१ २. आर. आर. शेठनी कंपनी, गांधी मार्ग, अमदावाद ३८०००१ तथा शामळदास गांधी मार्ग, मुंबई ४०० ००२ ३. के. बी. बुकसेलर्स, बालाहनुमान, गांधी मार्ग, अमदावाद ३८० ००१ ४. सरस्वती पुस्तक भंडार, हाथीखाना, रतनपोळ, अमदावाद ३८०००१ लेसर टाइपसेटिंग अने निर्मळा बहेन ठाकोरलाल शाह मुद्रणस्थान : शारदा मुद्रणालय जुम्मा मस्जिद सामे, गांधी मार्ग, अमदावाद ३८०००१ 2010_03 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्गत भृगुराय अंजारियाने आ काम करती वखते सतत सामे रह्या ते तमे ज, पोताथीये जलदी राजी न थनारा, विषयने संलग्न सर्व कंई खूदी वळनारा ने संपूर्णता माटे मथ्या करनारा तमे. ___ 2010_03 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्थिक सहयोग श्री प्राकृत जैन विद्याविकास फंड, अमदावाद * श्री शाहपुरी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ, कोल्हापुर श्री विश्वनंदीकर जैन संघ, पालडी, अमदावाद श्री प्रेमवर्धक घंटाकर्ण महावीरदेव ट्रस्ट, धरणीधर सोसायटी, 2010_03 अमदावाद Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय निवेदन कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यनी नवमी जन्मशताब्दीनी मंगल स्मृतिमां, पूज्यपाद आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराजनी शुभ प्रेरणाथी स्थपायेला आ ट्रस्टना माध्यमथी, भारतीय संस्कृतिना अणमोल वारसारूप अनेक ग्रन्थोना प्रकाशन रूपे सम्यग्ज्ञाननी भक्ति करवानो अवसर प्राप्त थतो रहे छे ते ट्रस्ट माटे धन्य अनुभव छे. पं. श्री शीलचन्द्रविजयजी गणिनी प्रेरणाथी आपणा साहित्यना तथा आपणी भाषाना नामांकित मूर्धन्य विद्वज्जनो द्वारा सर्जित अने संशोधित-संपादित प्रकाशनोने मुद्रित करवानुं श्रेय आ ट्रस्टने मळतुं रहे छ ते पण गौरवनी वात छे.. आपणा, मध्यकालीन गुर्जर साहित्यना प्रकांड अभ्यासी विद्वान प्रा. श्री जयंतभाई कोठारीए, वर्षोना सूझबूझभर्या परिश्रमना अंते 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश' नामे आ एक सुन्दर सन्दर्भग्रंथ तैयार कर्यो छे. “मध्यकालीन साहित्यना अध्येताओ माटे आ कोश एक मार्गदर्शक दीवादांडीरूप बनी रहे तेम छे, अने तेथी ट्रस्ट द्वारा एनुं प्रकाशन करवा योग्य छे," एवी प्रेरणा अमने पं. श्री शीलचन्द्रविजयजी द्वारा प्राप्त थतां ज, अमोए ते प्रेरणाने वधावी लीधी, अने प्रा. जयंतभाईए तथा प्राकृत जैन विद्याविकास फंडना डॉ. के. आर. चन्द्राए अमारी विनंति स्वीकारीने आ प्रकाशननो लाभ अमारा ट्रस्टने आप्यो ते बदल अमो तेओना खूब ऋणी रहीशुं. प्राकृत जैन विद्याविकास फंडे आ ग्रंथना प्रकाशनखर्चमां रू. ३०,०००४ मातबर योगदान आपेल छे तेनी पण अमे साभार नोंध लईए छीए. ____ आपणा मूर्धन्य कवि श्री उमाशंकर जोशीए “जे जन्मतां आशिष हेमचन्द्रनी पामी विरागी जिन-साधुओ तणी" एम कहीने गुर्जरी गिरानो अनुबन्ध श्री हेमचन्द्राचार्य साथे जोडी आप्यो छे ए ज गुर्जर साहित्य-गत शब्दोनो कोश श्री हेमचन्द्राचार्यना नाम साथे जोडायेला एक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित थाय त्यारे एक सुभग योगानुयोग सहजपणे रचातो अनुभवाय छे. आ प्रकाशन माटे विविध धर्मसंस्थाओए आर्थिक सहयोग आप्यो छे ते सौनो हार्दिक आभार मानीए छीए. आ कोशनो जिज्ञासुओ खूब उपयोग करे तेवी भावना साथे मार्च, १९९५ कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी लालभाई दलपतभाईनो वंडो स्मृति संस्कार शिक्षण निधिनो ट्रस्टीगण पानकोर नाका अमदावाद ३८० ००१ 2010_03 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकनुं निवेदन मध्यकालीन गुजराती साहित्यनी कृतिओ साथे काम पाडवानुं थतुं हतुं त्यारे मध्यकालीन गुजराती शब्दकोशनी खोट हमेशां सालती हती. केटलांक मध्यकालीन कृतिसंपादनोमां शब्दकोश छे एनी मदद लेवानो प्रयास हुं करतो हतो. पण एकाद शब्द माटे आम जुदाजुदा ग्रंथोना शब्दकोशो जोवानुं घणुं अगवडभर्यु हतुं. ए श्रम पछीये कशुं हाथमा न आवे एम बने. आ परथी विचार आव्यो के संपादित ग्रंथोमां रहेला शब्दकोशोने संकलित करी लेवानुं तो, ओछामा ओर्छ, थर्बु जोईए. एनी व्यवस्थित योजना करवानी तो मने अनुकूळता नहोती पण मारा अंगत रसथी अने अंगत उपयोग माटे में मध्यकालीन संपादित कृतिओना शब्दकोशोनां कार्ड कराववानुं शरू कयु. ए काम घणुं धीमुं चालतुं केमके केटलाक ग्रंथोमां 'करइ' जेवा सामान्य उच्चारभेदवाळा तेमज आजे जाणीता घणा शब्दो पण शब्दकोशमां समावाया हता ते बाद करीने कार्ड करवा आपवानुं मारे थतुं. आ काम शरू कर्या पछी एक वखत डॉ. हरिवल्लभ भायाणी साथे मारे वात थई. एमणे आने बदले कृतिओमांथी सीधा ज शब्दो लेवानुं अने प्रथम तबके चौदमी-पंदरमी सदी सुधीनी कृतिओने ज समाववानुं सूचन कर्यु; एमनी पासे आवां केटलांक कार्ड तैयार हतां ते तेओ मने आपशे एम पण कडं. मने ए काम मारी शक्ति बहार- लाग्यु. कृतिओमां तो अनेक एवा शब्दो पडेला होवाना (ने संपादके जो शब्दकोश कर्यो होय तो एमां समावेश न पामेला होवाना) जेना अर्थो निर्णीत करवानुं अत्यंत कपलं होवा. आरंभकाळनी कृतिओमां तो स्वाभाविक रीते अपभ्रंश शब्दोनुं घणुं भरणुं होय. मारा जेवा प्राकृत-अपभ्रंशथी अनभिज्ञ माणसनु एमां शुं गजुं ? अंधारामां अथडावानु ज थाय, खोवाई जवानु ज थाय. में का, “ए काम तो डॉ. भायाणी ज करी शके." तैयार शब्दकोशोमां केटलीक तकलीफो तो होवानी, पण एमां जे-ते ग्रंथना संपादके करेला श्रमनो लाभ मळे अने एने सहारे आगळ वधवानुं सुकर बने. डॉ. भायाणी मारी साथे संमत थया हता एवं तो नहीं, परंतु एमणे एमनी लाक्षणिक उदार विद्याप्रीतिथी मने मारे मार्गे जवा दीधो. एटलुं ज नहीं, हुं गुजराती साहित्य परिषदना साहित्यकोशना कार्यमांथी परवारवामां हतो त्यारे मे १९८७मां तो एमणे प्राकृत जैन विद्याविकास फंडना मंत्री डॉ. चन्द्रानो प्रस्ताव मारी समक्ष मूक्यो के हुं मारी रीतनो मध्यकालीन शब्दकोश तैयार करी आपुं. त्यां सुधीमां तो बहु ओछां पुस्तकोनां कार्ड तैयार थयां हतां ने चकासणीनुं काम तो आरंभायु ज नहोतुं, परंतु 2010_03 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [8] साहित्यकोशना कार्यमांथी हुं परवारवामां होई हवे आ योजना पाछळ वधु समय आपवानी स्थितिमां हुं हतो तेथी में ए प्रस्ताव होंशथी स्वीकारी लीधो. प्राप्त शब्दकोशोने केवळ संकलित करी लेवानो आशय तो नहोतो. एक शक्य तेटलो प्रमाणभूत कोश रचवानो आशय हतो. जे ते संपादके पोताने प्राप्त साधनो ने पोतानी सज्जता तथा समजने आधारे अर्थ आप्या होय. अनुमानथी अर्थ आपवानुं बनी गयुं होय अने क्यांक गेरसमज पण प्रवर्ती होय. आजनी आपणी समज अने आजे प्राप्त साधनथी अर्थोने चकासीए तो ज प्रमाणभूत कोश ऊभो थई शके. अर्थोने त्यारे ज चकासी शकाय ज्यारे शब्दनो ज्यां प्रयोग थयो होय ए स्थान सुधी आपणे पहोंची ए. आथी आयोजनामां एवी मर्यादा पहेलेथी ज स्वीकारी हती के आमां एवा शब्दकोशो ज संकलित करवा जेमां शब्दो वर्णानुक्रमे अपायेला होय अने शब्द कृतिमां जे स्थाने वपरायो होय तेनो निर्देश होय. बधा शब्दार्थो कई चकासी शकाय नहीं, चकासवाना होय नहीं, ज्यां शंका जाय त्यां ज चकासी शकाय. पण चकासीने सुधारवा पडे एवा शब्दार्थो धार्या करतां घणा वधारे नीकळ्या. डॉ. भायाणीने आ प्रकारना संकलन सामे जे वांधी हतो के एमां साफसूफीनी महेनत वधी पडे ने एना करतां तो कृतिमांथी ज स्वतंत्र रीते कोश करवानुं सुगम पडे एनुं वाजबीपणुं समजाय एवी परिस्थिति सामे आवी. आम छतां में जोयुं के कृतिमां तो शब्दकोशमां न समावायेला होय एवा घणा कूट शब्दो पडेला हता अने शब्दकोशोमां पण विद्वानोए घणे स्थाने, हुं सहेलाईथी ज्यां पहोंची शक्यो न होत एवा अर्थो निर्णीत करी आपेला हता. चकासवा पडे एवां घणां स्थानो मळवा छतां मने जे तैयार सामग्री मळती हती ए ओछी न हती अने स्वतंत्र रीते कोश करवानुं काम तो आथी अनेकगणुं महेनतभर्युं बनी गयुं होत, मारा गजा बहारनुं बनी गयुं होत ए प्रतीति तो मारी छेवटे रही ज. कृतिमांथी सीधा शब्दो लईने तैयार करेला शब्दकोशनुं महत्त्व स्वयंस्पष्ट छे. एनं स्थान आ संकलित कोश न ज लई शके. पण एकदाच एक व्यक्तिनुं काम न होई शके, ए एक व्यवस्थित विभाग द्वारा ज वधारे सारी रीते थई शके. एमां पण डॉ. भायाणी विचार्य हतुं म बारमी सदीथी सैकावार जवानुं ज ठीक पडे. मने तो एम लागे छे के पहेलां एक-एक कृतिना विस्तृत ने सर्वग्राही कोशो तैयार करवा जोईए. 'षडावश्यक बालावबोध' के 'विमलप्रबंध' जेवी कृतिओना केटलाबधा लाक्षणिक मध्यकालीन शब्दो त्यां आपेला शब्दकोशनी बहार रह्या छे ! आवी एक कृतिनो संपूर्ण शब्दकोश पण श्रमभर्यो प्रकल्प बनी रहे. पण आपणी पासे डॉ. भायाणीए एमनां संपादनोमां आपेला अने प्राच्य विद्यामंदिरनी . 2010_03 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [20] ग्रंथमाळामां डॉ. सांडेसराना शब्दकोशो छे ज. डॉ. भायाणीनी प्रमाणभूतता तो अनन्य जेवी छे. आधार विना के अटकळे ए कशुं न आपे. डॉ. सांडेसराए पण पोतानी सघळी सज्जता कामे लगाडीने ने प्रमाणमां विस्तृत शब्दकोशो आपेला छे. 'गुर्जर रासावली' मां मधुसूदन मोदीए पण केवो मोटो शब्दकोश आपेलो छे ! आ बधुं अंके करी लेवा जेवुं खरुं ज. आ सामग्री आमतेम वेरविखेर पडी रहे तेना करतां आवा कोश रूपे संकलित थाय त्यारे ज एनी खरी उपयोगिता सिद्ध थाय. आ कोशनी आ एक सार्थकता छे. आम आ कोश पासे केटलीक उत्तम सामग्री आवी छे अने चकासवा-सुधारवानी मोटी कामगीरी पण एने करवानी थई छे. काम करता-करतां संपादकनी नजर घडाती गई अने शंकानां स्थानो वधारे ने वधारे पकडावा लाग्यां. भेगां थयेलां घणा संदर्भो अने कोशी वगेरेमांथी चावीओ जडती गई अने डॉ. प्रबोध पंडित, डॉ. भायाणी अने डॉ. सांडेसरा जेवा आपणा प्रथम पंक्तिना विद्वानोए आपेला अर्थोने छोड़वा-सुधारवानुं पण क्यांक -क्यांक एमनाथी घणा नाना आ संपादकने हाथे बन्युं जे आ कोश-रचना माटे स्वीकारेली पद्धतिनी सार्थकतानी निशानीरूप गणाय. चकासणी अने शुद्धिनी प्रक्रिया केवी झीणवट ने तीव्रताथी चाली छे ए ए परथी समजाशे के मारा पोताना ताजा ज संपादन 'आरामशोभा रासमाळा' ना थोडाक शब्दार्थो पण अहीं सुधारवाना थया छे. आम थतां कोशनुं काम संकलन करतां वधारे तो संशोधननुं बनी गयुं. केटलीक वार तो एकएक शब्द माटे अनेक साधनो फंफोसवानां थयां. डॉ. भायाणी मने सतत थोडोक वारता रह्या. केटलाक शब्दो पाछळ महेनत करवी वृथा हती एम ए सूचवता रह्या, परंतु हाथवगां साधनोमां फरी वळवानो लोभ हुं खाळी शक्यो नहीं, भले केटलीक वार एनुं परिणाम शून्य ज आव्युं. संपादकीय कामगीरी आम विस्तरती गई तेम मारो श्रम वधतो गयो अने समय लंबातो गयो. एक वर्षमां जे कार्य करवा धार्युं हतुं ने सात वरस थयां ! केटला कलाको में आ कोशरचना पाछळ आप्या छे तेनो तो कोई हिसाब ज नथी. केटलीक वार तो दिवसना आठदश कलाक पण कोशना काम पाछळ मंड्यो रह्यो पुं. पण मने एनो थाक कदी वरतायो नथी. ऊलटुं, मध्यकालीन शब्दोनी दुनिया में आश्चर्यवत् जोई छे ने एनी गलीकूंचीओमां भटकवानो में आनंद माण्यो छे. मारे माटे तो मारा कामनुं आ ज खरुं वळतर बनी रह्युं छे. एक संशोधित ने शक्य तेटलो प्रमाणभूत कोश आपी शक्यानो मने उमंग छे. मारी जिंदगी आ एक मोटुं अने वघु टकाउ काम हुं गणुं हुं छतां मारा कामने मर्यादाओ वळगेली छे ए हुं समजुं छं. डॉ. भायाणीनी जेवी नजर पहोंचे तेवी मारी न ज पहोंचे. भ्रष्ट पाठ पकडायो न होय, अर्थ बराबर न होवानी शंका ज न गई होय के में सुधारेला 2010_03 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] अर्थोमां पण सरतचूक के गेरसमज काम करी गई होय. मारी सज्जता अने समजनी मर्यादाओ आ कोशरचनामां भाग भजवे ज. एटले आ कोशमां पण केटलुक चकासणीपात्र होवानुं अने विद्वानो एवां स्थानोनी चर्चा करशे तो आपणा मध्यकालीन शब्दार्थज्ञानमां निःशंक वधारो थशे तेमज भविष्यना आथीये सध्धर कोश माटेनो मार्ग रचातो जशे. संशोधनात्मक कोशरचना जेवू आईं मोटुं काम अनेक प्रकारनां साधन, सगवड अने समय विना न थई शके. ए पूरा पाडनार सौनो हुँ ऋणी छु. एमां सौथी मोटुं ऋण डॉ. भायाणीनुं छे. डॉ. भायाणी होय नहीं ने आ अने आवो कोश होय नहीं. एमणे प्राकृत जैन विद्याविकास फंडने आ कोशना प्रकाशनने माटे भलामण करी अने पछीथी पण सतत मार्गदर्शन-मदद पूरां पाड्यां. कोशनुं काम व्यवस्थित शरू करतां पहेला एमां कया प्रकारना शब्दो समाववा ए में एमने पूछीने ज नक्की कर्यु अने पछी मारी सघळी मथामण पछी कूट रहेला शब्दोना अर्थ माटेये वारंवार दोडी गयो एमनी पासे ज. आ छेल्लो कचरो हतो अने एमाथी सार शोधवानुं मुश्केल हतुं (आवा शब्दो एमना हाथमां आववाथी ज हुं कंईक वृथा श्रम करी रह्यो छु एम डॉ. भायाणी मानता थया हता), पण बे स्थाने पण डॉ. भायाणी पासेथी प्रकाश सांपडतो हतो ए मारे माटे घणो मूल्यवान हतो. एक शब्दनो पण निश्चित रूपे साचो अर्थ हाथमां आवे एनो मने रोमांच पण हतो. मनमां तो एवं थतुं के कोशना हजु घणा शब्दो पर डॉ. भायाणीनी नजर पडे तो केवू सारुं ! पण, एमना अत्यंत प्रेमोत्साहभर्या सहकार छतां, मने एमनो वधु समय लेवानो हमेशां संकोच रह्यो. जे शब्दो हुँ एमने तपासवा आपतो ए पण एमने एम कहीने आपतो के तमे बहु श्रम न लेशो, सहजपणे सूझे ए ज नोंधशो.. आम छतां ए घणी वार संदर्भो, आधारो पण पूरा पाडता. पाछळथी कई याद आवे के हाथमां आवे तो तरत फोनथी जणावे. हुं पण चालु कामे कई मूंझवण ऊभी थाय तो एमने फोनथी ज पूछी लउं. आ कोशकार्यमां डॉ. भायाणीनां हूंफाळो साथ ने शीळी छाया में हमेशां अनुभव्यां छे. अंते, आ ग्रंथ- प्रोत्साहक पुरोवचन लखी आपीने एमणे एमना सद्भावने जाणे शग चडावी छे. शब्दार्थ परत्वे अन्य केटलीक व्यक्तिओनी मदद पण मळी छे. मुनिश्री प्रद्युम्नविजयजीने जैन परंपराना शब्दो विशे वारंवार पूछवानुं थयुं अने मुनिश्री शीलचन्द्रविजयजी समक्ष पण पण थोडाक शब्दो मूकेला. डॉ. भोगीलाल सांडेसराने मारी 'आरामशोभा रासमाळा' जोवानी थतां एमणे केटलाक शब्दो विशे नोंध लखी मोकलेली ते आ कोशमां मने काममां आवी ! उकेल मागता शब्दो विशे जे-ते क्षेत्रना अनुभवी ने जाणकार मित्रो-स्नेहीओ साथे तक मळ्ये गोष्ठी करी छे. यज्ञविधिना बेएक शब्दो श्री शरद पंडिते आबाद खुल्ला करी आपेला एनुं सुखद स्मरण अत्यारे थाय छे. 2010_03 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] पण आवा बधा प्रसंगो कंई अत्यारे याद न आवे. टीपेटीपे सरोवर भराय एवं आ कोशरचनामां थयुं छे. आ सौ प्रत्ये हुं ऊंडी कृतज्ञता अनुभवू छु. एवी ज कृतज्ञता हुं में जे शब्दकोशो वगेरे साधनोनो आ कोश रचवा माटे उपयोग कर्यो छे एमना निर्माताओ प्रत्ये पण अनुभवू छु. आ कोशने साधार बनाववामां एमनो फाळो घणो छे. अने जेमना ग्रंथोनी शब्दार्थसामग्री अहीं लीधी छे एमने केम भुलाय ? एमना खभा पर तो हुं ऊभो छु. आ ग्रंथनां घणांखरां कार्ड अने प्रेसकॉपी दीप्ति शाहे, एक वाणिज्यना विद्यार्थी पासे सहेलाईथी आशा न राखी शकाय एवी चोकसाईथी अने एवा रसथी तैयार करी आप्यां छे. कांतिभाई शाह, कीर्तिदा जोशी, नीता कोठारी, लिपि कोठारी, गाभाजी ठाकोर वगेरे केटलाके पण प्रसंगोपात्त आ कोशना काममां हाथ बटाव्यो छे. आ प्रकारनी स्नेहभावभरी सेवा मेळववा माटे हुं मारी जातने सद्भागी गणुं छु. __आवा संदर्भग्रंथना निर्माणने ग्रंथालयो ने ग्रंथपालोनी कृपा विना केम चाले ? श्रीमती सद्गुणा सी. यु. आर्ट्स कॉलेजला आचार्यश्रीओ अने ग्रंथपालिका श्री मृदुलाबहेन महेताए ग्रंथालय मारे माटे हमेशां खुल्लं राख्यु. ने एवं ज जी. एल. एस. आर्ट्स कॉलेजना आचार्य श्री मधुसूदन बक्षी तथा ग्रंथपाल श्री भोईवालाए कर्यु. आमणे कोईए मने विरल पुस्तको आपतां पण संकोच न अनुभव्यो ने मारे जेटलो समय राखवां पडे एटलो समय राखवा दीधां. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनुं ग्रंथालय तो संशोधको-विद्वानो माटेर्नु ज ग्रंथालय छे. एनी उदार व्यवस्थानो में भरपूर लाभ उठाव्यो छे. गाभाजी ठाकोर मारफत गुजरात युनिवर्सिटीना पण अदेय विभागनां पुस्तको मने प्राप्य बन्यां. आटला लांबा समय सुधी चालेलु कोशकार्य ग्रंथालयोनी आ उदार मदद न मळी होत तो केवी रीते चाल्युं होत एवो विचार सहेजे आवे छे अने हृदय अत्यंत आभारवश बनी जाय छे. विद्याप्रीति अने विश्वासनुं आ परिणाम हतुं एम हुं समजुं . आ कोशनी योजना मने सोंपनार प्राकृत जैन विद्याविकास फंड अने एना मंत्री डॉ. के. आर. चन्द्रा, एने माटे प्रारंभिक आर्थिक जोगवाई पूरी पाडनार कस्तूरभाई लालभाई ट्रस्ट, एक तबक्के एना प्रकाशनमा रस बढावनार शारदाबहेन चीमनभाई एज्युकेशन रिसर्च सेन्टर तथा एना नियामक डॉ. जितेन्द्र शाह, अने छेवटे ए मोटी जवाबदारी पोताने माथे लेनार कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम शताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि तथा एमां प्रेरक बननार मुनिश्री शीलचन्द्रविजयगणी - आ सौनो हुँ खरे ज उपकारवश छु. एमणे मने एक उत्तम विद्याकार्य करवानी ने एने जाहेरमां 2010_03 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूकवानी तक पूरी पाडी छे. आवा ग्रंथ- छापकाम पण घणी सूझ, चीवट अने महेनत मागे. शारदा मुद्रणालय (लेसर विभाग)ना रोहित कोठारीए अंगतभावथी सघन, सुंदर टाइपसेटिंग ने ले-आउट करी आप्या ने भाग्ये ज भूल होय एवां प्रफ मारा सुधी पहोंचाइयां ए एक विरल अनुभव छे ने रोहित मारो पुत्र होवाथी हुँ एनो उल्लेख न करूं तो हुं नगुणो कहेवाउं. प्रेसने तो मारी मांदगीने कारणे, थयेनु कम्पोझ धणो समय साचवी राखवा, पण थयुं. ___आजुबाजु तैयार थयेला कार्डनां बॉक्स, जेमांथी शब्दो लेवामां आव्या होय ए पुस्तको अने शब्दकोशो तथा अन्य संदर्भग्रंथोनो पथारो करी घरमां कलाको सुधी बेसी रहेनार मने सहन करी लेनार स्वजनोना स्नेहने पण दाद आपवी ज जोईए ने ? ___आ कोशरचनाए, आम, अनेक रीतना समृद्ध अनुभवर्नु भाथु पूरुं पाड्युं छे. मारी विद्यायात्रामा - अने जीवनयात्रामा - पण ए हमेश प्रेरकपोषक बनी रहेशे - बनी रहो ! २० मार्च, १९९५ जयंत कोठारी 2010_03 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक नूतन शिखरनुं सफळ आरोहण मित्र जयंत कोठारी एक पीढ अने खडतल पर्वतारोहक छे. तेमनी अत्यारनी कृश काया अने कांईक डगमग चाल जोईने मारु आq विधान वांचतां 'तमारी मति तो ठेकाणे छे ने ?' एवो प्रश्न केटलाक जरूर करे. पण जयंतभाईए 'गुजराती साहित्यकोश (मध्यकालीन)' अने 'जैन गूर्जर कविओ'नुं नवसंस्करण - एवां बे उन्नत शिखरो सर कर्या पछी हवे आ त्रीजुं शिखर पण सर कर्यु छे – नानीमोटी ट्कोनुं तेमर्नु आरोहण तो ते साथे चालु ज होय छे - ते जोतां मारा विधाननी सार्थकता अवश्य प्रतीत थशे. मने याद छे ते प्रमाणे एक वार अमारी बच्चे जूनी गुजरातीनो शब्दकोश तैयार करवो घणो जरूरी छे एवी वात थयेली. पण सातसोएक वरसना गाळानी हजारो कृतिओमांथी शब्दसंचय करवानुं भगीरथ काम तो जो आपणी पासे जूनी गुजरातीना जाणकारोनुं तेमज कोशविज्ञानना जाणकारोनुं एक जूथ होय, अने कोई मातबर संस्था ए योजना हाथ धरे तो ज पार पडी शके ए देखीतुं हतुं. सद्गत विद्वान डॉ. भोगीलाल सांडेसरा द्वारा वडोदरा युनिवर्सिटी तरफथी जे यशस्वी प्राचीन गूर्जर ग्रंथमाळा संपादित-प्रकाशित करवामां आवी हती, तेनो एक हेतु, पछीथी, ते ग्रंथमाळामां प्रकाशित थयेली कृतिओना महत्त्वना शब्दो, संकलन करीने संक्षिप्त प्राचीन गुजराती कोश तैयार करवानो पण हतो एवो मारो ख्याल छे. ते पछी हुं ज्यारे गुजरात युनिवर्सिटीना भाषाभवन साथे संकळायेलो हतो त्यारे में पण ए दिशामां एक चाळो सद्गत उमाशंकरभाईनी प्रेरणाथी को हतो, अने वीशपचीश जूनी गुजराती कृतिओमांथी नोंधपात्र शब्दोनो संचय, प्रयोगवाक्योनां उद्धरणो साथे तैयार करवानुं आरंभ्यु हतुं. पण विविध कारणे तेमांथी कशुं नीपजी न शक्यु. जयंतभाईनी विद्याप्रीति जेटली गाढ, तेटली ज तेमनी दृष्टि पण व्यवहारु. तेमणे अमारी वातचीत दरमियान कह्यु के जूनी गुजरातीनी अनेक प्रकाशित कृतिओमां अंते महत्त्वना शब्दोनी जे ससंदर्भ, सार्थ सूचिओ आपेली होय छे ते सूचिओने संकलित करवानुं काम उपयोगी अने व्यवहारु छे. थोडाक सहायकोनी मददथी ते धार्या समयमां अवश्य पार पाडी शकाय. एटलु ज नहीं, ए कामनो पोते शुभारंभ करी दीधो होवार्नु पण तेमणे मने जणाव्यु ! आ तो थोडांक वरस पहेलांनी वात. अनेक विद्याकार्यो वच्चे तेमनुं आ काम पण चालतुं रा, डॉ. चंद्राए प्राकृत जैन विद्याविकास फंड द्वारा जयंतभाईन ए काम पुरस्कायु, अने साहित्यसंशोधन अने पांडित्य प्रत्ये सतत सक्रिय आदर सेवता अने 2010_03 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५] तेना प्रोत्साहन माटे दत्तचित्त मुनिश्री शीलचंद्रविजयगणिना अनन्य सद्भावने परिणामे हवे ए कोश अध्येताओना करकमळमां पण आवे छे. जयंतभाईए मात्र शब्दसूचिओनुं संकलन ज नथी कर्यु. एम करे तो जयंतभाई शाना ? तेमणे ज्यांज्यां अर्थ वगेरे बाबत शंकास्पद जणाई त्यांत्यां चोकसाई अने शुद्धि करी छे, अने ते माटे अनेक कोशो उथलाव्या छे, अनेक मूळ कृतिओ के संलग्न कृतिओने तपासीने यथाशक्य प्रामाण्य साधवानी मथामण करी छे. आ कोशथी मूळ कृतिओने समजवामां सहाय मळशे, ते उपरांत घणी अर्थघटननी गूंचो पण ऊकलशे, अने तुलनात्मक सामग्री गुजराती शब्दोना इतिहास माटे पण सहायभूत बनशे. स्वास्थ्य अत्यंत खखडी गयुं हतुं, कार्यशक्ति लुप्तप्राय थवानां डरामणां एंधाण वरतातां हतां, ते बधा सामे टक्कर झीलीने दृढ संकल्पबळे आवा कोशनुं परिश्रमसाध्य काम पार पाडवा माटे 'धन्यवाद' शब्द तो घणो मोळो लागे. पण शब्दप्रयोग हीरो बने के कथीर तेनो आधार तो प्रयोजकनी भावना पर ज होय छे. जयंतभाईए जे नानो छोड़ उछेर्यो छे मांथी आगळ जतां वृक्ष बने एवी आशा अने श्रद्धा आपणे केम न राखीए ? १ मार्च १९९५ हरिवल्लभ भायाणी 2010_03 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न वीसरवा जेवो वारसो बारमी सदीथी ओगणीसमी सदी पूर्वार्ध सुधीनुं गुजराती साहित्य, जेने आपणे प्राचीन के मध्यकालीन गुजराती साहित्य तरीके ओळखीए छीए ए आपणो एक न वीसरवा जेवो, मूल्यवंतो वारसो छे. आम कहेवानुं प्राप्त थाय छे ते एटला माटे के ए साहित्य आपणे माटे हवे केटलुं प्रस्तुत रह्युं छे ए विशे आपणने शंका छे अने शाळा-महाशाळाना आपणा अभ्यासक्रमोमां एनुं स्थान घटतुं जई रह्युं छे. मध्यकालीन साहित्य एटले भक्तिवैराग्यनुं गाणुं अने ऊछरती पेढीने एना पाठ भणाववानुं औचित्य केटलं एवो प्रश्न करवामां आवे छे अने महाशाळानी कक्षाए पण एना अभ्यासनी सार्थकता आपणने झाझी वरताती नथी. शाळाकक्षानां पाठ्यपुस्तकोमां मध्यकालीन कृतिओनुं प्रतिनिधित्व अत्यारे चारछ कृतिओ पूरतुं पाठ्यपुस्तकना पांचमा-छठ्ठा भाग जे थई गयुं छे अने गुजरात युनिवर्सिटीना द्वितीय वर्ष बी.ए. ना मध्यकालीन गुजराती साहित्यना प्रश्नपत्रमां हमणां ज नर्मदयुगने जोडी दईने मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासने पांखो बनावी देवामां आव्यो छे. पाश्चात्य प्रजाना संपर्क पछी, आपणने एवं लागे छे के, आपणां जीवन अने साहित्यनी दिशा एटलीबधी बदलाई गई छे के आपणे पूर्वकाळथी जाणे विच्छिन्न थ गया छीए. आपणी रहेणीकरणी, आपणां साधनसगवड, आपणां विश्वासो - मान्यताओ, आपणां ज्ञानविज्ञान, आपणां तंत्रो संस्थाओ - आ बधांमां क्रान्तिकारक परिवर्तन आव्यां छे अने आपणा साहित्ये जुदां ज आदर्शो, प्रयोजनो अने रचनारीतिओ धारण कर्यां छे. पूर्वकाळना साहित्यमां रस लेवानुं, तेथी, आपणे माटे बहु ओछु शक्य रह्युं छे अने ए साहित्यप्रणालिका आजे आपणने कई काममां आवी शके एवं पण आपणने खास देखातुं नथी. मध्यकालीन साहित्य धर्मना संकुचित वाडामां बंधायेलुं छे जीवननी विशाळता एमां व्यक्त थती जणाती नथी, ए परंपरानिष्ठ छे – एमां मौलिकतानो अनुभव आपणने खास थतो नथी, ए हेतुलक्षी छे - एमां कळासर्जननी स्वायत्तता प्रतीत थती नथी. - एवात साचीछे के मध्यकालीन साहित्य बहुधा कंईक ने कंईक धार्मिक-सांप्रदायिक संदर्भ लईने आवे छे. आनुं कारण ए छे के मध्यकाळमां धार्मिक-सांप्रदायिक संस्थाओए साहित्यने आश्रय आप्यो छे अने वधारे अगत्यनुं तो ए छे के मध्यकाळमां प्रजाजीवन धर्मसंप्रदायबद्ध हतुं. केटलीक वार जैन साहित्यने ज सांप्रदायिकतानी छाप लगाववामां आवे छे, जाणे के जैनेतर साहित्यमां सांप्रदायिकता न होय. आ यथार्थ दर्शन नथी. ब्राह्मणधर्म के हिन्दुधर्मनां तत्त्वो विशाल जनसमाजमां फेलायेलां छे अने इतर प्रजावर्गोनेये 2010_03 - Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७] एटलांबधां परिचित छे के एमां सांप्रदायिकता भासती नथी. जैनधर्मीओए पण एमांगें ... केटलुक स्वीकारी लीधुं छे. त्यारे जैन धर्मनां तत्त्वो एटलां अन्यपरिचित नथी. नवकारमंत्रनो महिमा, नवपदपूजा, दानमहिमा, कर्मवाद, दीक्षा वगेरेमां सांप्रदायिकता छे, तो अवतारवाद, अद्वैतवाद, यज्ञयागादि कर्मो, कृष्ण-शिव-शक्तिभक्ति, वर्णाश्रमधर्म वगेरेमां सांप्रदायिकता नथी एम केम-कहेवाय? शामळनी कौतुकरसप्रधान लोकवार्ताओमां पण आवी रेखाओ तो जडवानी. हिंदु संस्कार बहुमती संस्कार छे, एनाथी अलिप्त बीजा प्रजावर्गो भाग्ये ज रही शके. त्यारे जैन, मुस्लिम, ख्रिस्ती वगेरे लघुमती संस्कार छे. ए अलग पडी जवाना अने तेथी एमां सांप्रदायिकता सहेजे प्रतीत थवानी. सांप्रदायिकतानुं ओर्छवत्तुं भारण ए जुदी चीज छे अने सांप्रदायिकताने वटी जती बौद्धिक प्रतिभा अने काव्यशक्ति प्रवर्ते ए पण जुदी बाबत छे. एथी कृतिमां धार्मिक-सांप्रदायिक संस्कारनी भूमिका होवानुं मिथ्या थतुं नथी. मध्यकाळमां प्रजाजीवन धर्मसंप्रदायबद्ध हतुं एनो अर्थ एवो थतो नथी के ए समयना लोको, मुनशी कहे छे तेम, परलोकपरायण थई गया हता, भक्तिवैराग्यमय जीवन जीवता हता ने ऐहिक जीवनरसो परत्वे अनासक्त हता. प्रजाजीवनना केन्द्रमां धर्म हतो, पण एनी आजुबाजु संसार - एना सर्व रंगो साथे - विस्तरेलो हतो. मध्यकाळमां ज्ञानभक्तिवैराग्यनां गाणां ज मळे छे एवं थोडुं छे ? आख्यानो, लोकवार्ताओ, रासाओ आदिनुं साहित्य पण विपुल प्रमाणमां मळे छे, जेमा ऐहिक जीवनना घणा रसो व्यक्त थया छे, भले एमां ओछोवत्तो धार्मिक संदर्भ रहेलो होय. अने भक्तिसाहित्य - खास करीने कृष्णभक्तिनुं साहित्य लौकिक मानवभावो - सहज मानवसंवेदनोथी नथी धबकतुं शुं ? मध्यकालीन साहित्य जीवनरसथी अनभिज्ञ प्रजानुं सर्जन नथी ज, भले एना जीवनादर्शो जुदा होय. अने आपणुं जीवन पाश्चात्य संस्कृतिने रंगे | एटलुंबधुं रंगाई गयुं छे के आपणे मध्यकालीन साहित्य साथे कशो अनुबंध न अनुभवी शकीए ? आकाशवाणी वहेली सवारमा ज (अने पछीथी पण) भजनसंगीत रेलावे छे, लोकसाहित्यना डायराओमां लोको ऊमटे छे अने गुजराती फिल्म उद्योग मध्यकालीन कथावार्ता पर ज नभे छे एनुं शुं ? समाजनो एक मोटो वर्ग कया वातावरणमां श्वसे छे एनो ए संकेत नथी शुं ? हिंदी फिल्मोमां निरुपातुं परंपरागत कुटुंबजीवन अने एनी समस्याओ लोकोने पोतीकां नथी लागतां ? वस्तुतः आपणुं आधुनिक जीवन पाश्चात्य संस्कारो अने परंपरागत भारतीय संस्कारोना अजब मिश्रण समुं छे. संयोगोए आपणा कुटुंबने विभक्त कर्यु छ, पण विच्छिन्न कर्यु नथी. हजु आपणे सामाजिक प्रसंगोथी, कर्तव्योथी, अपेक्षाओथी, भावनाओथी बंधायेला रह्या छीए अने सांसारिक-सामाजिक-कौटुंबिक सुखदुःखोना Jairt Education International 2010_03 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [94] अनुभव आपणे माटे अशेष थई गया नथी. आपणी ज्ञातिसंस्थानुं अस्तित्व मट्युं नथी, एणे नवां कार्यो स्वीकारी पोतानी जातने टकावी राखी छे. धार्मिक संस्थाओ हजु मजबूत अने प्रभावक रही छे, अने धार्मिकता - आध्यात्मिकताना नवां मोजां पण लहेरातां देखाय छे. मध्यकालीन साहित्यनी दुनिया आपणे माटे सर्वांशे परायी थई गई होय एवं लागतुं नथी. एमां एवा अंशो जरूर छे जेनी साथे आपणुं चित्त अनुबंध जोडी शके. ऊलटुं आधुनिक साहित्यना केटलाक मनोभावो बहुजनसमाजने पराया जेवा लागे छे अने एमां रस लेवानुं एमनाथी थतुं नथी. मध्यकालीन साहित्यमां केटलाक जीवनप्रदेशो अनुभवक्षेत्रो बाकात रह्यां छे जरूर, पण एनी दुनिया आपणे मानी लीधी छे एटली सांकडी छे के केम ए विचारवा जेवुं छे. स्थूळ रीते ज जोईए तो ज्ञान-भक्ति-वैराग्यना विपुल पदसाहित्य उपरांत एमां फागु- बारमासा जेवां केवळ प्रकृतिवर्णन ने मनोभाववर्णननां काव्यो छे, पौराणिकलौकिक-ऐतिहासिक कथाकाव्यो छे, चरितकाव्यो छे, रूपककाव्यो छे, तत्त्वविचारात्मक ने खंडनमंडनात्मक कृतिओ छे, विवादकाव्यो छे, तथा अनेक प्रकीर्ण प्रकारनी कृतिओ छे. आपणा साहित्य - इतिहासो मध्यकाळना साहित्यना सर्व आविष्कारोनी पूरती नोंध भाग्ये ज लई शके छे. जेमके, आपणे गणतर ऐतिहासिक काव्योनी नोंध लई, ए प्रकारना साहित्यनी ओछपनी फरियाद करता होईए छीए, पण जैन कविओने हाथे श्रेष्ठीओ तथा साधुओनां चरित्र तेमज तीर्थयात्राओ वर्णवता जे अनेक रासाओ रचायेला छे एमां पडेली इतिहाससामग्री आपणा लक्ष बहार होय छे. ऋषभदासकृत 'हीरविजयसूरि रास 'मांथी मळतो मोगलकाळनो केटलोक इतिहास आनो एक दाखलो छे. समकालीन प्रजाजीवननी घणी रेखाओ पण आ रासाओमां गूंथायेली होय छे. वैष्णव आचार्योनां केटलांक चरितकाव्योमां पण आवी सामग्री छे, जेने विशे आपणे लगभग कशुं जाणता नथी. स्वामिनारायण संप्रदायमां सहजानंद स्वामी विशनां अनेक काव्योमांथी पण आ प्रकारनी सामग्रीनो अभ्यास करवानुं हजु बाकी छे. सांस्कृतिक अध्ययननी तो भरपूर सामग्री मध्यकालीन साहित्यमां वेरायेली पडी छे. वर्णकोने रूपे एवी सामग्री संचित पण थई छे. भोगीलाल सांडेसरा - संपादित 'वर्णकसमुच्चय' ना बे भागमां वर्णको ने एनो अभ्यास प्रस्तुत थयां छे ए आना नमूनारूप छे एमां आवरी लेवायेला विषयो केटलाबधा छे : भोजनसामग्री, वस्त्रो, आभूषणो अने सुशोभनो, रत्नो, विद्याकला अने मंत्र, लिपि, वाजिंत्र - वाद्य, देशप्रदेश स्थानविशेष आदि, नगररचना अने स्थापत्य, राजलोक अने पौरलोक, राजवंश, शस्त्रास्त्रो अने युद्धसामग्री, अश्वजाति, करवेरा, नौयान, रोग, व्रत, लब्धि. आ विषयोनी केटली वीगतो प्राप्त छे ए जोईए तो आशरे ३५० जेटला खाद्य पदार्थो अने वानगीओ नोंधायेल छे; पदार्थोनी जुदीजुदी जातिओ 2010_03 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [29] अने बनावट पण एमां छे, जेमके चोखानी ३० जेटली जातो, लाडुना ५० जेटला प्रकारो अने १०० जेटलां शाक. केटलीक वानगीओ केम बनावाय छे तेनी प्रक्रिया वर्णवाई छे तेमज भोजननी बेठकव्यवस्था अने पिरसणविधिनां मनोरम चित्रो आलेखायां छे. आ वर्णको उपरांतनों बीजो घणो रसिक सांस्कृतिक संभार मध्यकालीन कृतिओमां सचवायेलो छे. पण सामान्य रीते एने बाजु पर राखीने ज कृतिनो आस्वाद करवा आपणे ठेवायेला छीए तेथी घणी वीगतो आपणा लक्ष बहार रहे छे. नरसिंह महेता जेवा आपणा प्रियतम कविनां पदोमां रहेली वैष्णव परंपरानी केटलीक लाक्षणिक सांस्कृतिक रेखाओने ओळखवा आपणे प्रयास कर्यो नथी ने एथी काचां अर्धघटनो पर निर्भर अधूरा काव्यास्वादोथी आपणे रीझ पामीए छीए. मध्यकालीन गद्यसाहित्यनी समृद्धिथी तो आपणे अजाण जेवा छीए. मोटा भागनी कृतिओ तो हजु प्रकाशनी राह जोती हस्तप्रतभंडारोमां दटायेली पडी छे. एमां कथावार्ता, चरित्र, तीर्थ- इतिहास, गच्छा-परंपरा, धर्मोपदेश, आचारविधि, तत्त्वज्ञान, योग, गणित, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, शकुनशास्त्र, कोकशास्त्र, रमलतंत्र, वैदक, शिल्प, अलंकारशास्त्र, व्याकरण, कोश, संगीतविद्या आदि अनेक विषयो खेडायेला जोवा मळे छे. गद्यसाहित्य बहुधा बालावबोधो रूपे - संस्कृत - प्राकृत - गुजरातीना कोई मूल ग्रंथना विवरण रूपे - जैन साधुकविओ पाथी प्राप्त थाय छे एटले जैन शास्त्रोनी एमां प्रधानता होय ए समजाय एवं छे पण उपर नोंधेला विविध विषयोना अने 'भगवद्गीता' 'अमरुशतक' जेवी कृतिओना बालावबोधोनी पण एमां समावेश छे ए आ गद्यसाहित्य द्वारा केवी व्यापक ज्ञानोपासना थई छे अने लोकशिक्षणनो केवो मोटो उद्यम थयो छे ए बतावे छे. मध्यकालीन साहित्यनी देखीती एकविधतानी नीचे जिवाता जीवननां अने जगतज्ञाननां केवां वैविध्योने अवकाश मळ्यो छे एनुं आ दिग्दर्शनमात्र छे. हस्तप्रतभंडारोमां दटायेलुं मध्यकालीन साहित्य हजु बहार आवशे अने एनो सूक्ष्मताथी, गहनताथी अने सर्वांगीपणे अभ्यास थशे त्यारे एना वैविध्यनी आपणने कदाच वधारे प्रतीति थशे. बारमाथी ओगणीसमा सैका सुधीना सातसो वरसना गाळामां सैकावार जे विपुल साहित्य गुजराती भाषामां मळे छे ए जगतसाहित्यमां एक विरल घटना छे. भाषाविकासनुं अने भाषाभिव्यक्तिनी कलानुं एक समृद्ध चित्र एमांथी आपणने मळे छे. एनां शब्दराशि, रूढिप्रयोगो, वाक्यछटाओ, वाग्भंगिओ - सर्व कंईमां आपणा रसविषय बनवानी क्षमता छे. ए भाषाजगतनो विहार कौतुकभर्यो बने तेम छे. आपणे अखाभगत के प्रेमानंदनी वाक्शक्तिने पिछानीए छीए अने एना पर वारी जईए छीए, पण सातसो वरसना साहित्यना भाषावैभवने प्रत्यक्ष करवो आपणे बाकी छे. ए मोटो पुरुषार्थ मागे पण ए पुरुषार्थनुं पूरतुं वळतर मळी रहे तेवो ए वैभव छे. एना शब्दजगतनी कंईक झांखी अहीं रजू 2010_03 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] थयेला मध्यकालीन गुजराती शब्दकोशथी थशे, तो भाषाविकास, रूढिप्रयोगो, वाग्भंगिओ वगेरेनो एक नानकडो दस्तावेज हरिवल्लभ भायाणीना गुजराती भाषा ऐतिहासिक व्याकरण माथी सांपडशे पण अनेक प्रकाशित-अप्रकाशित कृतिओमां सावधानपणे विहरवू अने एना भाषावैभवने झीलवो ए जुदी वात छे. बालावबोधोनी गद्याभिव्यक्ति, जे वधारे जीवंत अने वास्तविक छ एनो तो आपणने अंदाज ज नथी. आपणे एम मानीने चालीए छीए के मध्यकाळमां गद्य कां तो 'पृथ्वीचंद्रचरित्र' जेवू पद्यकल्प गद्य छे, कां तो विवरण- शास्त्रीय गद्य छे. वास्तविक व्यवहारु गद्य तो जाणे पहेली वार ज 'वचनामृत मां सांपडे छे. पषा मध्यकाळमां शास्त्रीय बालावबोधोमां पण - खास करीने एमां आवती दृष्टांतकथाओमां तळपदा शब्दो ने रूढिप्रयोगो तथा बोलाती वाणीनी लढणो धरावतं जीवंत गद्य आपणने मळे ज छे. बारमाथी ओगणीसमा सैका सुधी- जे विपुल साहित्य आपणने मळे छे ते जैन संप्रदाये ऊभा करेला ज्ञानभंडारोने आभारी छे. स्वाभाविक रीते ज एमां जैन साहित्य वधारे सचवायु होय. प्राप्त मध्यकालीन साहित्यमां जैन संप्रदायनो हिस्सो घणो मोटो - लगभग ७५ टका जेटलो - छे एनुं कंईक कारण एमांथी आपणने जडी आवे छे. आ जैन साहित्यमाथी घणुं आपपी सांप्रदायिक गणीने आपणा अभ्यासनी बहार राख्यु छे. पण ते उपरांत पुष्टिसंप्रदायमा सघळा साहित्यने पण आपणे लक्षमां लीधुं नथी, भले, नरसिंह, मीरा, दयाराम जेवां कृष्णभक्तिना कविओमां आपणे घणो रस लीधो होय. स्वामिनारायण संप्रदायना साहित्यनो आपणो अभ्यास बहु थोडा साधुकविओ पूरतो मर्यादित छे तो रविसाहेब जेवा कबीरपरंपराना संतकविओ, मुस्लिम संतकविओ वगेरे अनेक धार्मिक सांप्रदायिक साहित्यप्रवाहोना कविओनो आपणे संपूर्ण अभ्यास कर्यो छे एवं कहेवाय एबुं नथी. खोजा कविओ ने अनेक रूखडिया संतकविओ अने भजनिको तरफ तो आपणे नजर पण करी नथी. प्रणामी संप्रदायना प्रवर्तक प्राणनाथ स्वामी अने एमना साहित्यिक प्रदाननी हजु हमणां ज आपणने खबर पडी छे. आवा अनेक नानामोटा धर्मसंप्रदायो अने परंपराओए मध्यकाळना गुजराती साहित्यनुं घडतर कर्य छे अने एमने ज्यारे योग्य न्याय मळशे त्यारे मध्यकालीन साहित्यनुं आपणुं दर्शन बदलाशे, परिपूर्ण बनशे अने अनेक नूतन प्राप्तिओ आपणने थशे. जयंत गाडीत घणा वखतथी मध्यकाळना धार्मिक-सांप्रदायिक साहित्यप्रवाहोनो अभ्यास करवानी अभिलाषा सेवी रह्या छे, ते एमनी अभिलाषा वहेलासर फळीभूत थाय एवं आपणे इच्छीए. - मध्यकालीन गुजराती साहित्य बहुधा परंपराग्रस्त छे अने एमां मौलिक सर्जकतानो अनुभव ओछो थाय छे ए फरियादना संदर्भमां बेत्रण बाबतो लक्षमा राखवी जोईए. एक तो ए के औपचारिक शिक्षणव्यवस्था नहींवत् हती एवा ए समयमां साहित्य पर ___ 2010_03 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१] लोकशिक्षणनी अने परंपराना सातत्यने नभाववानी जवाबदारी आवी पडी हती. आ कारणे मौलिकतानुं आजना जेवू मूल्य के महत्त्व ए वखते ऊभुं थयु नहोतुं अने अनुसर्जन, अनुकरण के ऊछीन लेवामां कशो बाध मनातो न हतो. प्रेमानंद जेवा प्रथम पंक्तिना आख्यानकार आलुं ने आलुं कडवू पुरोगामीमांथी उठावी लेवामां कशुं अनुचित न माने. सर्जकता. परंपरानो लाभ लईने आगळ वधवामां जाणे धन्यता अनुभवती हती. मौलिकता करतां परिणामनी उत्तमता एने माटे जाणे वधारे महत्त्वनी हती. छेवटे, परंपसने झीलवानां सूझ-सामर्थ्य होय छे अने परंपराना सर्जनात्मक कलात्मक विनियोग जेवी पण कोई चीज होय छे, तेथी परंपरानिष्ठता पोते कोई अपमूल्य नथी, जेम केवळ मौलिकता पण, कदाच, आपोआप कोई मूल्य नथी. 'वसंतविलास', जयवंतसूस्कृित 'शृंगारमंजरी' अने गणपतिकृत ‘माधवानलकामकंदलाप्रबंध' पर संस्कृत-प्राकृत साहित्यपरंपरानो प्रबळ प्रभाव छे, परंतु आ परंपरा तो बीजाओ पासे . पण हती. आQ परिणाम अन्य कोई सिद्ध करी शकतुं नथी ए शुं बतावे छे ? आ कृतिओना रचयिताओ पासे परंपरानी जे अभिज्ञता अने रसज्ञता छे ते कंईक अनन्य छे अने पोतानी सर्जकताने एमणे परंपरानी भूमिमां रोपी छे एम कवाय. अखाभगतमां ज्ञानमार्गी कविताधासनो तो प्रेमानंदमां आख्यानकवितानी परंपरानो उत्कर्ष छे. अने दयाराम पासे तो कृष्णभक्तिनी परंपरानो केटलो लांबो वारसो छे ! पण ए वारसाने, रामनारायण पाठक कहे छे तेम, एमणे दीपाव्यो छे, उजाळ्यो छे. मध्यकालीन साहित्ये परंपराबद्ध रहीने पण भावविचारद्रव्य, कथाघटको, वर्णनरूढिओ, पद्यबंधो, प्रास, ध्रुवा, वाग्भंगिओनी जे समृद्धि निपजावी छे ए असाधारण छे अने अखाभगत, प्रेमानंद वगेरे थोडा कविओना जेवा प्रतिभावंत सर्जको तो आज सुधीना गुजराती साहित्यमा आपणने गणतर ज सांपडे छ. गुजराती भाषा जेमने माटे हमेशां गौरव अनुभवी शके एवा ए साहित्यस्वामीओ छे.. बेशक, मध्यकालीन साहित्य बहुधा हेतुलक्षी छे - पछी ए हेतु वैचारिक मतनी स्थापनानो होय, धर्मबोधनो होय, सांप्रदायिक महिमागाननो होय के लोकशिक्षणनो होय. मध्यकाळना रचयिताओ पोताने कवि तरीके ओछु ओळखावे छे, ए भक्तो छ, ज्ञानीओ छे, संतो छ, कथा कहेनारा "भटो' छे. कविकर्मनी सभानता एमनामां केटली हशे ए कहेवू मुश्केल छे. पण ए याद राखवू जोईए के कोई पण प्रकारनी हेतुलक्षिताथी साव अलिप्त, केवळ रसलक्षी कहेवाय एवी थोडीक, 'वसंतविलास' 'माधवानलकामकंदलाप्रबंध' जेवी कृतिओ आपणने मध्यकाळमां मळे ज छे. जैन साधुकविने हाथे पण 'विराटपर्व' के 'वसंत फागु' जेवी धर्मबोधना ने सांप्रदायिकतानाये स्पर्श विनानी कृतिओ मळे छे. एवी तो अनेक कृतिओ मळे छे, जेनी भोंय चोकस धर्मसंस्कारनी 2010_03 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२] परंपरानी होय पण समग्र निरूपण रसलक्षी ज होय. राधाकृष्णविषयक बारमासा वगेरे प्रकारनी घणी कृतिओ आमां आचे, तो जयवंतसूरिना “स्थूलिभद्रकोशाप्रेमविलास फाग' जेवी कृतिमां पण वस्तु जैन परंपरानुं छे, ए बाद करीए तो ए शुद्ध विरहकाव्य ज बनी रहे छे. एमां जैनत्वनी बीजी कशी छाया पडेली नथी. अने 'धर्मोपदेशनो के एवो हेतु गौण के आनुषंगिक बनी जतो होय अने कविकौशल- प्रवर्तन ने रसदृष्टि मुख्य बनी जतां होय एवी कृतिओनो तो मध्यकाळमां तोटो नथी. आख्यानकविता अने जैन रासाओ निर्मायेला तो छे कशाक धार्मिक-सांस्कृतिक बोध माटे, एवी सामग्री 'एमां ओछीवत्ती होय छे, छतां एनी साथसाथे एमां कथारस, जनस्वभावरस, वर्णनरस अने पद्यरस पण वहे छे. शामळ भट्टमां कवित्व कई ऊंची कोटिनुं नथी, ने एमनी वारताओनो एक महत्त्वनो हेतु लोकशिक्षण छे, तेम छतां कथाकौतुकरसथी ए वार्ताओ छलकाय छे अने आस्वाद्य बने छे. कविनी प्रतिज्ञा के एना प्रगट हेतुथी आपणे भ्रान्तिमां पडी एनाथी विमुख थई जवा जेवू नथी. छेवटे, साहित्यनी शुद्धता ए कई कलात्मकतानो पर्याय नथी अने हेतुनिष्ठता कई अनिवार्यपणे कलात्मकताने अवरोधक नथी. ज्ञानवैराग्यभक्तिना भावो ने उपदेशवृत्ति सुध्धां काव्योंचित विषय होई शके छे. काव्यभावनी व्याख्या संकुचित करवानी जरूर नथी. भारतीय काव्यशास्त्रे भावो(संचारिभावो)नी लांबी यादी करी छे अने आपणे एमां उमेरो करी शकीए. भक्तिनो भाव तो मध्यकाळमां वारंवार हृदयंगम अभिव्यक्ति पाम्यो छे अने ज्ञानविचारने पण अखाभगत जेवामां केवी अद्भुत मूर्तता सांपडी छे ! हेतुनिष्ठता होवा छतां अने कविपणानो दावो न करवा छतां मध्यकालीन साहित्यना रचयिताओए जे अनेकविध प्रकारनां कविकर्मो अने काव्यसिद्धि प्रगट कर्यां छे ते काव्यरसिकोने माटे मोटी वस समान छे ने अंके करी लेवा जेवां छे. माणिक्यसुंदरना 'पृथ्वीचंद्रचरित'नी गद्यलीला, जयवंतसूरिनां भावप्रवणता अने सुभाषितकौशल, गणपतिना 'माधवानलकामकंदला प्रबंध'मो वर्णनवैभव, विश्वनाथ जानीना 'प्रेमपचीशी'नी नाट्यगीतात्मक भावाभिव्यक्ति, यशोविजयजीनु बुद्धिचातुर्य अने अलंकारचातुर्य - आईं तो केटकेटलुं, मध्यकालीन साहित्यसृष्टिमां आपणे आपणी काव्यरसिकताने मोकळी मूकीए त्यारे, आपणी सामे आवे छे ! बेशक कोई पण समयनी चोक्कस साहित्यिक परिपाटीओ होय छे अने एनो आस्वाद एनी शरतोए ज लेवानो होय छे. मध्यकाळनां प्रासचातुर्य, ध्रुवानाचीन्य, पद्यगामछटावैविध्य वगेरे केटलांक कविकौशलो पण छे अने एमां आपणे रस लई शकीए तो मध्यकालीन साहित्यनो आपणो आस्वाद वधारे समृद्ध बने. आपणे जाणीए छीए के मध्यकालीन साहित्य कई एकांतमां अंगत वाचन माटेर्नु ___ 2010_03 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३] साहित्य न हतुं. प्रत्यक्ष रजूआत अने समूहभोग्यतानी दृष्टिथी ए रचातुं हतुं अने एनो एना स्वरूपनिर्माणनां महत्त्वनो फाळो हतो. लोकोनी मध्यकालीन साहित्यना सर्जनमा परोक्ष सामेलगीरी हती. लोकोनी विविध जरूरियातो संतोषवा निर्मायेखें, सर्व प्रकारनां काव्यचातुर्योनो आश्रय लेतुं अने गानादि कळाने पण पोतानी सहायमां लेतुं मध्यकालीन साहित्य शुद्ध साहित्य नहोतुं पण, कहो के, संपूर्ण साहित्य हतुं. हा, जेम संपूर्ण रंगभूमि (टोटल थिएटर) जेवी कोई वस्तु छे, तेम संपूर्ण साहित्य (टोटल लिटरेचर) जेवी कोई वस्तु पण होई शके. मध्यकालीन साहित्यने संपूर्ण साहित्यनां धोरणोथी माणवू-नाणवू जोईए. __मध्यकाळथी आपणे आजे ठीकठीक दूर पडी गया छीए. आजे आपणे जुदी हवामां श्वसीए छीए. मध्यकाळना साहित्यनो रस माणवामां, तेथी, आपणने अवश्य केटलांक विघ्नो नडे - भाषाप्रयोगोथी मांडीने सांस्कृतिक परिवेश सुधीनां, तेम छतां आ विघ्नोनुं आपणे निवारण न करी शकीए एवं नथी, केमके ए आपणी ज पूर्व परांपरा छे. संस्कारभूमिकानी केटलीक समानता एनी साथे आपणे शोधी शकीए, एनी साथे आत्मीयता साधी शकीए तेमज एनो रस माणी शकीए. जरूर छे मात्र एना प्रत्ये भिमुख थवानी. अंग्रेजी साहित्यथी प्रभावित कवि कान्तने एक वखते प्रेमानंद मात्र पद्यजोडु लागेला, परंतु न्हानालाले एमनी पासे प्रेमानंदनां आख्यानो वांच्या पछी एमनो अभिप्राय बदलायेलो. आधुनिक बोधना गुजराती आदिकवि निरंजन भगत हमणां मध्यकालीन कविओ विशे नियमित रीते व्याख्यानो आपी एमने पोतीकी रीते प्रकाशित करा रह्या छे अने आपणा आधुनिक कवि लाभशंकर ठाकर पण प्रेमानंदना आख्यानना पठनना जाहेर कार्यक्रमो करी लोकोने एनो रसास्वाद करावो रह्या छे ने ए रीते मध्यकालीन साहित्यवारसानी मूल्यवत्ता स्थापित करी रह्या छे. सर्जको माटे तो मध्यकालीन साहित्य खरेखर एक अखूट खजानो छे. आजे आपणा सर्जको लोकभाषा, लोकजीवन अने तळपदी साहित्यप्रणालिओनो कार्यसाधक विनियोग करी पोतानां सर्जनोमां ताजगी अने नूतनता नथी आणी रहेला देखाता ? तो ए रीते मध्यकालीन साहित्यपरंपरानो पण नूतन सर्जनात्मक विनियोग जरूर थई शके. एनां शब्दराशि, रूढिप्रयोगो ने वाक्छटाओमांथी तो घणुं पुनर्जीवित करवा जेवू मळी रहे. में अखाभगतना छप्पाओना अर्थविचारना लेखो लखेला एमां आधुनिक साहित्यना सर्जक कोईकोई कविमित्रोए रस लीधार्नु में जाण्युं त्यारे पहेला तो मने आश्चर्य थयेलुं पण पछी ए स्वाभाविक लागेलं (जोके ए लेखोर्नु, १९८९ना वर्षना विवेचनविषयक सन्धान क्रिटिक्स एवॉर्डने पात्र बनेलं पुस्तक घणुं ओर्छ वेचाय छे ने एy कशे अवलोकन थयुं नथी ए पण एक वास्तविकता छे). आ संदर्भमां भृगुराय अंजारियाए युवाकवि हरीन्द्र दवेने आपेली शीख 2010_03 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याद आवे छे : "तमे नवीन कविओनुं ज वाचन करो छो. एथी बहु तो आ जमानानी काव्यप्रतिभाना अनुयायी (कॅम्प - फॉलोअर) बनी शको तमे जो नरसिंह, प्रेमानंद, अखो, दयाराम बराबर वांची शको तो सालं. अर्वाचीनमां ठाकोर, कान्त अने न्हानालाल . [२४] मध्यकालीन कविता बने तेटली काव्यदोहननां पुस्तको द्वारा वधारे वांचो. " बधा ज लोको मध्यकालीन साहित्यमां रस लेता थाय के एनो अभ्यास करता थाय एवी अपेक्षा राखवानी न ज होय. पण साहित्यना रसियाओ अने अध्येताओ पासे ए ओघुंवत्तुं रहे एवी इच्छा राखवामां कई वधु पडतुं नथी. शिक्षणमां मध्यकालीन साहित्यनुं स्थान टकी रहेवुं जोईए अलबत्त, विवेकपूर्वकनुं अने सूझबूझपूर्वकनुं. हमणां धोरण ११ अने १२नां गुजराती पाठ्यपुस्तकोना मध्यकालीन विभाग जोवानो प्रसंग ऊभो थयो हतो. धोरण ११मामां तो छापभूलो ने पाठदोषो एटलांबधां हतां के आमां भणनार भणावनारनुं शुं थाय ए प्रश्न गंभीरपणे उपस्थित थतो हतो. ते उपरांत बन्ने पाठ्यपुस्तकोमांथी बीजा महत्त्वना मुद्दा पण सामे आवता हता. आपणे मध्यकालीन साहित्यकृतिनी पसंदगी केवी रीते करीए छीए ? जूनां पाठ्यपुस्तकोमांथी कृतिओ उपाडी लईए छीए के नवेसरथी श्रम करीने योग्य कृतिओ खोळीए छीए ? हाथमां आवी ते वाचना स्वीकारी लईए छीए के शुद्ध अने उत्तम वाचनानो आग्रह राखीए छीए ? पसंद करेली कृतिओमां अर्थघटननी कोई मूंझवण नथी एनी आपणे खातरी करी होय छे ? विद्यार्थीओ अने शिक्षकोने भटकवानुं न थाय ए माटे शब्दार्थनी पर्याप्त सहाय पूरी पाडेली होय छे ? में जोयुं के कदाच संपादको पण संतोषकारक रीते अर्थ न करी शके एवी पंक्तिओ आ संपादनोमां नजरे पडती हती, शब्दार्थ ने समजूती क्यांक खोटां हतां, तो आपका जोईता घणा शब्दार्थो अपाया न हता, केटलाक शब्दोनी मध्यकाळी विशिष्ट अर्थछाया पकडी शकाई न हती. आ रीते तो आपणे मध्यकालीन साहित्य प्रत्येनी अभिमुखता नहीं विमुखता केळववामां ज फाळो आपी शकीए. - 2010_03 शाळाकक्षाए मध्यकालीन कृतिओने केवी रीते रजू करवी ए पण हवे नवेसरथी विचारवा जेवुं लागे छे. धोरण १२ना पाठ्यपुस्तकमां राजेनुं एक पद रमेश जानीना ताजेतरमां प्रसिद्ध थयेला संपादनमाथी लेवायेलुं. रमेश जानीए उक्त संपादनमां हस्तप्रतमां जे ग्राम्य उच्चारण- लेखन मळ्यां ते यथावत् राखेल छे. घणा शब्दो एमां एवे स्वरूपे मळे छे जे मध्यकाळमां पण मान्य के व्यापक हता एम न कहेवाय. एथी अवबोधमां मोटो अंतराय ऊभो थाय छे ने अभ्यासीए पण जरा विचार करवा थोभवुं पडे एवं थयुं छे. विशाळ शिक्षकवर्गनुं तो आमां शुं गजुं ? आपणे शब्दार्थनी मदद पूरी पाडीए, पण ए श्रम पछीये शुं ? मूळ कृति साथे मननो मेळ रचावो मुश्केल. आ कक्षाए तो Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतिने मान्य शब्दस्वरूपोथी ज रजू करवानुं इष्ट नहीं ? अंग्रेजी भाषामां तो शेक्स्पिअर पण शाळाकक्षाए आधुनिक लेबासमां ने संक्षिप्त रूपे रजू थाय छे. आपणे मध्यकालीन साहित्यने पण थोडा संमार्जन-संपादनपूर्वक न मूकवू जोईए ? अलबत्त, मध्यकालीन साहित्यनी मध्यकालीनता नष्ट न थाय एनी काळजी राखवी जोईए. वधारे जूनां के ग्राम्य उच्चारणरूपोने स्थाने पाछळना समयनां उच्चारणरूपो स्वाकारी शकाय, परंतु मध्यकालीन शब्दोने स्थाने अर्वाचीन शब्दो, भरणुं न करी शकाय. दुर्बोध रहेता अंशोने छोडी दई शकाय, पण अणसमजमां कंई अगत्यनुं नीकळी न जाय एनी काळजी राखवी जोईए. सरेराश शिक्षक सहेलाईथी गति करी शके अने विशाळ विद्यार्थीवर्गनुं मन जेमां लागी शके एवां मध्यकालीन कृतिओनां संपादन-रजूआत होवां जोईए. आ अधिकार गमे ते व्यक्तिने न ज होई शके, ए काम ए माटेनी सजता अने सूझ धरावती व्यक्तिने हाथे ज थवानो आग्रह राखवो जोईए. कॉलेज अने युनिवर्सिटीकक्षाए अलबत्त मध्यकालीन कृतिओनी शास्त्रीय रीते संपादित थयेली अधिकृत वाचनाओ ज नियत करवी जोईए. कॉलेजकक्षाए मध्यकालीन साहित्यना एक पूरा प्रश्नपत्रमा काप न ज मूकी शकाय. ए पगलुं तो मध्यकालीन साहित्यनी विशाळताथी आपणे बेखबर छीए एम ज बतावे. मध्यकालीन साहित्याभ्यासने सांस्कृतिक अभ्यास साथे सांकळी एने जीवंत बनाववो जोईए, अने मध्यकाळना नानामोटा सर्व साहित्यप्रवाहोनी अभिज्ञता केळवाय एवो प्रयत्न करवो जोईए. पांच-छ मोटा कविओना अभ्यासमां ज मध्यकालीन साहित्य सीमित थई जाय छे ए निवार, जोईए. आम करवा जतां कदाच एक प्रश्नपत्र पण ओछु पडे एवो संभव छे. तो ए माटे पण कंईक व्यवस्था विचारवी जोईए. पण मध्यकाल न साहित्यनी विशिष्ट तालीम पामेलो एक नानकडो वर्ग आपणे ऊभो नहीं करी शीए तो उपर सूचवेली व्यवस्थाओ पार पडवा संभव नथी. जेमनी पासे संस्कृत-प्राकृत ए पूर्वपरंपरानुं पण ज्ञान छे एवी मध्यकालीन साहित्यनी पारंगत पेढी तो हवे लुप्त वामां छे, नव-अभ्यासीओ घणा ओछा प्राप्त थई रह्या छे, एमनी सज्जता पांखी पडी रही छे - ऊणी ऊतरी रही छे ने सूंठने गांगडे गांधी गणाई जवाय एवी स्थिति प्रवर्तवा मांडी छे. विदेशोमां मध्यकालीन गुजराती साहित्यकृतिओनां संपादनो थाय छे, मध्यकालीन परंपराओ विशे परिसंवादो योजाय छे अने मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासनी सगवडो पण ऊभी थाय छे त्यारे आपणे आपणा आ समृद्ध वारसा परत्वे जाणे उदासीन छीए. हजु तो हस्तप्रतभंडारोमां अभ्यासीओनी राह जोतुं विपुल साहित्य पडेलु छे. एनो उद्धार कोण करशे ? आनो कंईक नक्कर उपाय आपणे विचारवो जोईए. 2010_03 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एम लागे छे के मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासने ज वरेली एक विद्यासंस्था जोईए अने युनिवर्सिटीओमां अनुस्नातक कक्षाए मध्यकालीन गुजराती साहित्यनो बे प्रश्नपत्रोनो - भले वैकल्पिक रूपे पण - अलायदो अभ्यासक्रम जोईए. एमां हस्तप्रतवाचन, पाठसंपादन, भाषाविकास, संस्कारपरंपराओ, पद्यबंधो अने अन्य साहित्यप्रणालिओना ऊडा झीणवटभर्या अभ्यासनो समावेश होय. मध्यकालीन कृतिओना अने एने विशेना अभ्यासोना प्रकाशननी एक मातबर व्यवस्था जोईए अने नव-अभ्यासीओना उद्यमने सत्कारतुं, नानीनानी मध्यकालीन कृतिओने तथा अभ्यासलेखोने प्रकाशित करतुं एक सामयिक पण जोईए. वडोदरानी महाराजा सयाजीराव युनिवर्सिटीमां एक वखते प्राचीन गूर्जर ग्रन्थमालानी प्रवृत्ति सध्धर रीते चाली हती ए आजे तो एक रोमांचक स्मरण अने भविष्यनुं स्वप्न बनी गयेल छे, एने पुनर्जीवन मळवू जोईए. शब्दकोशादि साधनो पण ऊभां थवां जोईए. हा, अहीं रजू करेली अपेक्षाओ शमणांओ समी भासे एम छे. पण मध्यकालीन साहित्यना समृद्ध वारसाने आपणे वीसरवा न मागता होईए तो ए शमणांओ साचां पाडवां पडशे. भले ए दिशामां एक पछी एक नानांनानां डग भरीए. आ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पण ए दिशामा एक नानकडं डग छे. ए मध्यकालीन साहित्यना अवबोधमां सहायरूप थशे अने मध्यकालीन साहित्यना आपणा अभ्यासोने वधु अर्थपूर्ण बनावशे तो एमां एनी सार्थकता हशे. १४ मार्च १९९५ जयंत कोठारी 2010_03 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय भूमिका आ कोश एक संकलित कोश छे. एमां मध्यकालीन कृतिओना अनेक संपादित ग्रंथोना शब्दकोशनी सामग्री भेगी करवामां आवी छे. पण ए सामग्री जेम मळी छे तेम मूकी देवामां नथी आवी. एमां हानोपादाननो विवेक करवामां आव्यो छे, सामग्रीने संशोधित करवामां आवी छे अने एमां पूर्ति पण करवामां आवी छे. देखीती रीते ज, आ माटे केटलीक नीतिरीतिओ पहेलेथी नक्की करवी पड़े अने सामग्रीनी रजूआतनी पण चोक्कस पद्धति निपजाववी पडे. एवं अहीं करवामां आव्युं छे पण, काम घणो लांबो समय चाल्युं अने संपादकनी मांदगीनो पण मोटो विक्षेप पाम्युं तेथी, एमां सो टका एकरूपता रही शकी नथी, जोके ए माटे शक्य सघळो प्रयास करवामां आव्यो आ कोशनी सामग्रीनी पसंदगी, शुद्धिवृद्धि वगेरेनी नीतिरीति अने रजूआतनी पद्धति एवी विशिष्ट छे के एनी वीगते अने सदृष्टांत समजूती आपवी आवश्यक छे. कोशना चार विभागो - शब्दसामग्री, आधारग्रंथो, शब्दार्थ अने शब्दमूळ -- ने अनुलक्षीने ए समजूती आपीशुं. शब्दसामग्री अहीं आरंभे घाटां बीबांमां जे शब्द छे ते आधारग्रंथना शब्दकोशमांथी प्राप्त थयेलो मध्यकालीन शब्द छे. एक नियम तरीके अहीं एवा शब्दकोशो समाध्या छे, जे वर्णानुक्रमिक होय, जेमां शब्द कृतिमां क्यां वपरायो छे एनो निर्देश होय अने शब्दनो अर्थ पण साथे ज नोंधवामां आप्यो होय. एवा संपादित ग्रंथो पण मळे छे के जेमां शब्दकोश वर्णानुक्रमिक न होय, जेमके के. का. शास्त्री अने चैतन्यबाळा ज. दिवेटिया संपादित 'प्रेमानंदनां त्रण आख्यान', शिवलाल जेसलपुरा संपादित 'प्राचीन मध्यकालीन बारमासा संग्रह' वगेरे (आमां शब्दो एमना प्रयोगना स्थानना क्रममा छे), अथवा शब्दकोश वर्णानुक्रमिक होय परंतु शब्दना प्रयोगस्थाननो निर्देश न होय, नेमके ह. चू. भायाणी, र. म. शाह अने गीताबहेन संपादित मेरुसुंदरगणिविरचित 'शालोपदेशमाला बालावबोध' वगेरे, अथवा शब्दकोश वर्णानुक्रमिक होय, स्थाननिर्देश पण होय परंतु अर्थ दर्शाववामां आव्यो न होय, एने माटे टिप्पणनो हवालो आपवामां आव्यो होय, जेमके के. ह. ध्रुव संपादित भालणकृत 'कादंबरी : उत्तर भाग', मंजुलाल मजमुदार संपादित प्रेमानंदकृत 'रणयज्ञ' वगेरे. आवा शब्दकोशो आ संकलित कोशमां समाव्या नथी अने पंक्तिक्रमे अपायेला टिप्पणोमा रहेला शब्दार्थोनो समावेश तो स्वाभाविक रीते ज न होय. आमां 2010_03 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८] एक अपवाद कर्यो छे ते 'उक्तिरत्नाकर' नो. एमां वर्णानुक्रमिक शब्दसूचि छे ने स्थाननिर्देश प्रण छे पण अर्थ तो निर्दिष्ट स्थाने आपणे जोवानो रहे छे. आ ग्रंथनो अपवाद करवानुं कारण ए हतुं के ए मध्यकाळमां ज रचायेलो शब्दकोश छे अने तेथी मध्यकाळमां आ शब्दो कया अर्थमां वपराता हता तेनी प्रमाणभूत माहिती एमांथी मळे छे. एना आ रीतना महत्त्वने अनुलक्षीने, डॉ. भायाणीना सूचनथी, आ अपवाद कर्यो छे. छेवटे, आ कोशमां पाछळ यादी आपी छे ते मुजब ६६ संपादित ग्रंथोना ७१ शब्दकोशों (चार ग्रंथोमां अलगअलग कृतिओना अलग शब्दकोशो आपेला छे) संकलित करेला छे. बे ग्रंथोनी बीजी आवृत्तिना शब्दकोशोने पण उपयोगमां लीधा छे. आ बधा शब्दकोशो एक दृष्टिथी तैयार थयेला न ज होय. ए ग्रंथोनो हवे पछी परिचय आयो छे ते मुजब केटलाक संपादकोए उदारताथी शब्दो लीधा छें - सामान्य उच्चारभेदवाळा शब्दो लीधा छे अने अत्यारे वपराशमां होय एवा थोडा शब्दो पण आववा दीधा छे, तो केटलाक संपादको शब्दपसंदगी चुस्त मध्यकालीनताना धोरणे करी छे अने सामान्य उच्चारभेदवाळा शब्दो टाळ्या छे. कोईए विभक्ति के काळ- अर्थना रूपभेदोने पण कोशमां दाखल थवा दीधा छे तो कोईए विभक्तिप्रत्ययो टाळ्या छे अने क्रियापदोनुं कोई एक ज रूप विध्यर्थ- कृदंतनुं रूप ('करवुं') के धातुरूप ('कर') - आपचानुं राख्युं छे. आनी पाछळनां प्रयोजनो जुदांजुदां पण रह्यां छे. अंग्रेजी भाषाना माध्यमथी ग्रंथो तैयार थया छे त्यां संपादकनी नजर सामे गुजराती भाषा न जाणतो होय एवो वर्ग पण होवाथी एमणे सर्वग्राही थवानी नेम राखी छे, तो बीजा केटलाके सहज उदारताथी, सर्वसंग्रहनी वृत्तिथी आम कर्तुं छे. उपयोगमा लेवायेला ग्रंथोमां भले शब्दसामग्री परत्वे एकरूपता न होय, आ शब्दकोशना संपादके तो ए निपजाववी ज रहे. एम करवा जतां केटलाक कोयडाओ ऊभा थाय एनो सामनो पण करवो रह्यो अने घटतो उकेल शोधवो रह्यो . एक नियम तरीके अहीं (१) आजना शब्दथी साव सामान्य उच्चारभेद दर्शावता ने तेथी सहेलाईथी समजाई जता शब्दो छोडी देवामां आव्या छे. जेमके, अंत्य स्थाने 'ए' 'ओ' 'औ'ने बदले 'अइ' 'अउ' वाळा शब्दो ( अनइ, घोडउ), 'श'ने स्थाने 'स' वाळा शब्दो ( निरास, प्रकासुं), 'ळ'ने स्थाने 'ल'वाळा शब्दो ( उजलउं), संयुक्त व्यंजनना विश्लेषवाळा शब्दो (निरमले), 'ह' श्रुतिवाळा शब्दो ( अह्मारु) वगेरे. आम छतां आवा एकथी वधु उच्चारभेदो एकसाथे होय के अन्य कोई शब्द साथे संभ्रम थवानी शक्यता होय के शब्द कंईक अपरिचित बनी जतो होय त्यां आवा शब्दो साचव्या पण छे. 2010_03 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९] (२) अन्य केटलाक उच्चारभेदवाळा शब्दो साचवी लीधा छे. जेमके अनंत्य स्थाने 'ए' 'ओ' 'औ' ने बदले 'अइ' 'अउ' वाळा शब्दो ( पईसइ, कउण), 'न'ने बदले 'ण'वाळा शब्दो ( अणसण, अणुसरइ), 'य' श्रुतिवाळा शब्दो ( अत्य = अति), 'इ'कारवाळा शब्दो (लिखइ, राति), 'अय' ने बदले 'ए' वाळा शब्दो (अतिशे), संयुक्त व्यंजनने बदले एकवडा व्यंजनवाळा शब्दो ( उछेद, उधार), अंत्य स्थाने अंगविस्तारवाळा शब्दो ( अमीअ) वगेरे. आधी वधारे वर्णभेदवाळा शब्दो तो स्वाभाविक रीते ज अहीं होय. (३) सहेलाईथी समजाय पण अत्यारे ए रूपे न वपराता शब्दो पण साचव्या छे. जेमके 'करतउ' शब्द नथी लीधो पण 'अकरतउ' लीधो छे. ए ज रीते 'अचींतविउ ' शब्द राख्यो छे, केमके आपणे अत्यारे 'अणचिंतव्युं' बोलीए छीए पण 'अचिंतव्युं' नहीं. सामान्य रीते जेने क्रियापद तरीके आपणे वापरता नथी तेवा 'आनंद' जेवा शब्दो पण लीधा छे. 'उजलउं' नहीं पण 'उजल' अहीं मळशे ते पण आ कारणे. (४) अत्यारे व्यापक रीते प्रचलित शब्दो तो न ज लेवाना होय पण एनो विवेक एटलोबधो सरळ नथी बन्यो. अत्यारे प्रचलित शब्दो विशिष्ट अर्थछाया धरावता देखाया छे ते साचव्या ज छे. अहीं 'अटकवुं' 'आदरवुं' 'आछउं (-आछु)' 'अखाडउ' 'अंग' 'अंत' वगेरे शब्दो जोवा मळशे ते आ कारणे. जे संस्कृत शब्दो अत्यारे काव्यमां वपराता होय पण व्यापक रीते परिचित होवानुं शंकास्पद होय ते छोडवानुं योग्य गण्युं नथी. सामे, तळपदा व्यवहारमां आ के ते प्रदेशमां अत्यारे वपराता पण शिष्ट वर्गने अजाण्या होवानो संभव जणायो तेवा शब्दोने पण छोड्या नथी. आ कारणे, अत्यारना शब्दकोशोमां जोवा मळता केटलाक शब्दो पण आ कोशमां मळशे. केटलीक वार तो एवं बन्युं छे के अत्यारनो शब्दकोश पण आ शब्द नोंधे छे ए संपादकने मोडेथी जाणवा मळेलुं. एटलेके ए शब्द हजु सुधी क्यांक टकेलो छे एवी एनेय खबर नहोती. अत्यारे प्रचलित केटलाक जैन शब्दो साचववानुं राख्युं छे समाजने ए परिचित न पण होय एवा ख्यालथी. समग्र जैनेतर (५) 'आनंदघन बावीशी' परना ज्ञानविमलसूरिना स्तबकमां जोवा मळता बौद्ध, न्याय वगेरे दर्शनोना अत्यंत पारिभाषिक शब्दो अहीं लीधा नथी केमके साहित्यमां अन्यत्र ए जीवा मळवानो संभव भाग्ये ज छे अने ए शब्दो विशिष्ट समजूती मागे एवा छे. ब्राह्मण अने जैन परंपराना केटलाक पारिभाषिक शब्दो उपयोगी जणावाथी साचव्या पण छे - जैन दर्शनना खास, केमके ए विशाळ जनसमाजने अजाण्या होवानी शक्यता छे. (६) पात्रनामो सामान्य रीते लीधां नथी. ऐतिहासिक नामो ने स्थळादिनां नामो महत्त्वनां होय ते राखवानुं वलण रह्युं छे पण एमां पूरी सुसंगतता साचवी शकाई नथी. 2010_03 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] जेमके, महीराजकृत 'नलदवदंती रास'मां आवतां बधां ज देशनामो आ कोशमा समावेश पाम्यां छे. (७) हिंदी भाषाना 'इसउं' 'इसिउं' जेवा आजे परिचित शब्दो पण मध्यकालीन भाषाना अंगभूत गणी रहेवा दीधा छे. (८) संपादित ग्रंथोमां एवी कृतिओ पण संग्रहाई छे जेनी भाषा प्राकृत के अपभ्रंश छे. एना शब्दो पण ते-ते ग्रंथना शब्दकोशमां आवेला छे. आ शब्दोने गुजराती भाषाना शब्दो केटले अंशे गणवा ए एक विचारणीय मुद्दो छे. आम छता, गुजराती भाषाने ए भाषास्वरूप साथे निकटनो संबंध छ, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशना अनुसंधानमा मध्यकालीन गुजराती विकसी छे, तेथी एवा शब्दोने आ संकलित कोशमां स्थान आपवानुं इष्ट गण्युं छे. परंतु 'प्रेमानंदनी काव्यकृतिओ'मां संग्रहायेल 'शामळदासनो विवाह' जेवी कोई कृति अर्वाचीन होवानुं निश्चित थाय छे तेना शब्दोने आ संकलित कोशमां स्थान आप्यु नथी, केमके अर्वाचीन कृतिओना शब्दो लेवानुं आ कोशनी मूळभूत कल्पनाथी विरुद्ध गणाय. (९) मूळ संपादित ग्रंथोमा जे शब्दोना अर्थ आपी शकाया न होय ने संकलित कोशना संपादक पण आपी शके तेम न होय तेवा शब्दो प्राथमिक तबके छोडी दीधा हता. पछी एम लाग्युं के आ शब्दो तो साचवी लेवा जोईए. एथी, छोडी दीधेला शब्दो पाछा दाखल करवानो श्रम कर्यो छे, पण ए काम पूरी चोकसाईथी थई शक्युं हशे के केम ते विशे शंका छे. (१०) एवं तो बने ज के जुदाजुदा ग्रंथोमांथी रूपभेदे एक ज शब्द प्राप्त थाय (कोई संपादित ग्रंथमां तो एक ज शब्दना एवा रूपभेदो अलग नोंधायेला छे). आवा रूपभेदो साचववा जतां आ संकलित कोशमां मोटुं जंगल ज ऊभुं थाय. ए रूपभेदोनुं सरलीकरण करवं अनिवार्य हतुं. ए माटे एक सामान्य रूप ज स्वीकारवानुं धोरण अहीं अपनाव्युं छे. नामिक रूपो परत्वे सामान्य रीते विभक्तिप्रत्यय विनानुं रूप आपवानु राख्युं छे. पण कोई एक ज ग्रंथमांथी, कोई एक ज विभक्तिप्रत्ययवाळु रूप आव्युं होय तो ते एम ने एम रही गयानुं पण देखाशे. उपरांत, थोडी बदलाती अर्थछाया, बीजा कोई शब्द साथे संभ्रम थवानी स्थिति के एवा कोई कारणथी विभक्तिप्रत्ययं विनानुं ने विभक्त प्रत्ययवाळु एम बन्ने रूप साचव्यां छे. जेमके 'अकाज' अने 'अकाजि'. क्रियापदोनां रूपोनो कोयडो जरा वधारे अटपटो बन्यो छे. विविध काळ-अर्थनां रूपो एमां प्राप्त थाय, जेमके 'भिलइ' 'भिलिउं' 'भिली' 'भिल्यउ'. केटलाक संपादकोए विध्यर्थकृदंतनां 'वु'वाळां रूपो (जेमके 'भिलवु') आप्यां छे, तो कोईए मूळ धातु ज ___ 2010_03 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ('भिल-') आपेल छे. आ स्थितिमा सामान्य रीते कोई एक ज रूप स्वीकारवान राख्यु छे, बहुधा 'भिलइ' ए वर्तमानकाळ, रूप, तो केटलीक वार विध्यर्थकृदंतवाढू रूप के मूळ धातु. आम छतां अहीं पण कोई एक ज रूप प्राप्त थयुं छे त्यां एम ने एम राख्यं छे अने आवश्यकता जणाई त्यां एकथी वधु रूपो पण रहेवा दीधां छे. एक ज रूप अंत्य स्वरना भेदथी पण आवी शके छे, जेमके 'पूगई' 'पूगे' 'पूर्ण'. आq बन्यु छे त्यां सामान्य रीते जूनुं 'पूगइ' ए रूप आपवा- राख्युं छे ने आवश्यकता जणाई त्यां रूपभेद साचव्या पण छे. रूपभेद के जोडणीभेदनुं आईं सरलीकरण के एकीकरण करीए एटले एक कोयडो तो ऊभो थाय. एकीकृत रूपनी सामे आधारग्रंथो तो बधा निर्देशाय, जेमां वास्तविक रीते ए एकीकृत रूप नहोतुं, जुदां रूपो हता. एथी जे-ते ग्रंथमा ए शब्द शोधवामां अगवड ऊभी थाय. 'भिल्यउ' 'भिलइ'मां समाई जाय एटले जे ग्रंथमां 'भिल्यउ' होय त्यां पण आपणे 'भिलइ' ज शोध्या करीए अने ए आपणने न मळे. आपणे याद राखवू पडे के क्रियापदरूप अन्य पण होई शके छे. आ अगवडमांथी बचवानो कोई रस्तो नहोतो ने संकलित कोशथी आगळ जनार जूज अभ्यासीओने ज आ अगवड वेठवानो वारो आवशे एवी समजण रही छे, तेथी रूपवैविध्य टाळीने कोई एक ज रूप आपवामां कशो बाध मान्यो नथी. क्रियापदोमां, अलबत्त, कर्मणि, प्रेरक ने कृदंतनां रूपो अलग साचव्यां छे. मूळभूत रीते शब्द अत्यारे वपराशमां होय त्यां पण आ रूपो अत्यारथी जुदां पडतां देखायां तो ए खास साचव्यां छे. जेमके ‘रहइ' लेवानी जरूर नहीं, पण 'रहतउ' (अत्यारे 'रहेतो'), 'रहितउं' "रहीतूं' 'रहीइ' (कर्मणि), 'रहिवउं' 'रहाविउ' ए रूपो लीधां छे. (११) ज्यां एक ज लिंग, रूप मळ्युं छे त्यां एम ने एम राख्युं छे, परंतु भिन्नभिन्न लिंगनां रूपो मळ्यां त्यां एक ज लिंगनू - सामान्य रीते नपुंसकलिंग, रूप राख्युं छे. आम छतां आवश्यकता लागी त्यां भिन्नभिन्न लिंगनां रूपो साचव्यां छे. एक नियम तरीके आq बधुं विचारेलुं छे, छतां, आरंभमां कयुं तेम, एमां सो टका एकरूपता रही हशे एवी खातरी आपी शकाय तेम नथी. थयुं छे एवं के साव प्राथमिक तबक्के मारा अंगत रसथी हुं प्राप्त शब्दकोशोमांथी कार्ड करावतो हतो त्यारे उच्चारभेदवाळा तथा संस्कृत अने अन्य घणा मने परिचित लागता शब्दो काढी नाखतो हतो. पछीथी प्राकृत जैन विद्याविकास फंडने आश्रये में विधिसर रीते योजना हाथमां लीधी त्यारे शब्दपसंदगीनी बाबतमां डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनी साथे चर्चा करी. एमणे थोडा उदार थवानी भलामण करी. खास करीने एटला माटे के आपणे त्यां मध्यकालीन भाषानुं ज्ञान घणुं ओर्छ छे ने थोडा वधु शब्दो हशे तो ए उपयोगी थशे ज. आम जे ___ 2010_03 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३२] पुस्तकोनां कार्ड थई गयां हतां एमां केटलाक शब्दो फरीने दाखल करवानी स्थिति आवी. एनो प्रयत्न तो कर्यो छे, पण ए प्रयत्न पूरो सफळ थयो हशे, एकसरखो नियम प्रवर्त्यो हशे एम कहेवुं मुश्केल छे. संपादित ग्रंथोमांथी शब्दो लेवा जतां सौथी वधु मूंझवनारी बाबत तो ए बनी छे के एमां कृतिपाठना भूलभरेला वाचनने कारणे अथवा पाठनी भ्रष्टताने कार केटलाक खोटा शब्दो आवी गया छे. शब्द ज खोटो होय तो आ संकलित कोशमां केवी रीते आवी शके ? एटले आरंभमां तो आवा शब्दो छोडी देवानुं राख्युं हतुं. पण पछी देखायुं के केटलेक स्थाने पाठदोष के वाचनदोष तो पकडाय छे, पाठांतरनी मददथी के तर्कथी पाठने सुधारी शकाय छे, ने परिणामे मध्यकाळनो एक लाक्षणिक शब्द हाथमां आवे छे. ए शब्द केटलीक वार अन्यत्रथी भाग्ये ज मळतो होय. आवा शब्दने जतो करवानुं जिगर केम चाले ? पण आ रीते हाथमां आवेलो शब्द कई मूळ संपादित ग्रंथमां न होय. तो एने आ संकलित कोशमां मूळ ग्रंथनो आधार आपीने केवी रीते मूकी शकाय ? मथामण करतां आ गूंचनो मार्ग मळ्यो. मूळ ग्रंथनो शब्द तो राखवो ज ने कौंसमां साचो शब्द मूकवो. ए साचा शब्दने पाछो एना वर्णक्रममां मूकवो अने त्यां मूळ ग्रंथना शब्दनो प्रतिनिर्देश करवो. दखलाओथी आवात बराबर समजाशे. मूळ आधारग्रंथमां 'उथउ' शब्द नोंधायेलो छे. पण संदर्भमां 'ओघो', जैन मुनिनुं रजोहरण' ए अर्थ स्पष्ट छे तेथी पाठ 'उघउ' ज होवो जोईए. 'उथउ' ए हस्तप्रतनो भ्रष्ट पाठ होय के संपादकनो वाचनदोष होय. आ हकीकत आ संकलित कोशमां आ रीते रजू करी छे : उघउ जुओ उथ * उघउ [उघउ ] * उपबा. [ ओघो, जैन मुनिनुं रजोहरण ] शब्दनी पूर्व मूकेली फूदडी * ते पाठ खोटो के शंकास्पद होवानी निशानी छे. ] चोरस कौंसमां मूकेल छे ते पाठ आ संकलित कोशना संपादके विचारेलो [ छे. संकलित कोशना संपादकने पोते विचारेला पाठनी खातरी न होय एवं पण बने. पण मूळ पाठ संगत न लागतां एक तर्क रूपे बीजो पाठ मूक्यो होय. त्यां एनी पूर्वे पण फूदडी की छे. जेमके, * आणि [*आराडि] *उपवी ["उपची] केटलीक वार पाठांतरमांथी ज साचो पाठ सांपड्यो छे. ते ( ज मूकेल छे. 2010_03 ) गोळ कौंसमां Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेमके, करमि (करमइता) घाडि सईनी (घाडि सईनी) खोटा वाचनमा केटलीक वार खोटो शब्दभंग रहेलो होय छे. जेमके, 'अनुभाव' ते खरेखर 'अनु भाव' (अने भाव) छे. 'घडी अरध घडी आल ज करे' ए पंक्तिमां संपादके 'आल' शब्द वांच्यो छे ते खरेखर 'घडीआल' (=समय दर्शाववा वगाडवामां आवती झालर) वांचवानो छे. अहीं पण खरं वाचन ( ) गोळ कौंसमां आपेल छे: अनुभाव (अनु भाव) आल (घडीआल) कोई वार खोटो शब्दभंग बे शब्दोने स्पर्शे छे. 'तपि उतारीउ अचट' एम वांची संपादके 'अचट' शब्द शब्दकोशमां लीधो होय, परंतु 'तपि उतारी उअचट' एम 'उअचट' शब्द वांचवो वधु योग्य होय. 'दीवटी आकडिइ' एम संपादके वांच्युं होय अने ए बे शब्दोने शब्दकोशमां दाखल कर्या होय, परंतु 'दीवटीआ कडिइ' एम वांचq योग्य होय तेथी बन्ने शब्दो बदलाई जाय. आ छेल्ला दाखलामां शब्दो आ रीते आपवाना थया छे : आकडिइ (दीवटीआ कडिइ) कडइ जुओ आकडिइ दीवटी (दीवटीआ) केटलीक वार एवं बन्युं छे के मूळ ग्रंथना संपादके आपेलो शब्द आम बराबर होय परंतु एटलाथी अर्थ बराबर न थतो होय के खोटो थतो होय ने मूळमांथी वधारे संदर्भ लेवो जरूरी होय. 'इक आछण पामी छांडती'मां संपादके 'इक आछण'ने शब्दकोशमां लीधेल होय पण 'आछण'नो संबंध 'इक' साथे नहीं, 'पाणी' साथे वास्तविक रीते होय, 'आछण पाणी' एटले 'नितरामण- पाणी' एवो अर्थ होय. त्यां 'इक आछण'ने स्थाने 'इक आछण पाणी छांडती' पूरी उक्ति आपवानी जरूर पडे. केटलीक वार शब्दने अलग जोवा करतां रूढिप्रयोगना भाग रूपे जोवानुं वधारे अर्थपूर्ण होय छे. त्यां एम करवानुं पण आ संकलित कोशमां इष्ट गण्युं छे. जेमके, अउले (अउले खाले वहे) अधर (अधर किया) अलजो (अलजो जाय) अहीं नोंधq जोईए के कोई वार कौंसमा उक्तिनो वधारानो अंश मूकवानुं के 2010_03 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ सुधारवानुं मूळ संपादके पण कर्यु होय छे. जोके झाझे ठेकाणे तो आई आ संकलित कोशना संपादके ज करवानुं थयुं छे. प्राथमिक तबक्के छोडी देवायेला खोटा शब्दो बधा ज चोकसाईथी पाछा दाखल नहीं थई शक्या होय. ते उपरांत जेनां पाठांतरो कशो प्रकाश पाडनारां नहोतां के जेनो कोई अर्थ बेसाडी शकातो नहोतो एवा भ्रष्ट जणायेला केटलाक शब्दो तो आ संकलित कोशमा छोड्या ज छे. ज्यां भ्रष्ट पाठने सुधारतां हाथमा आवतो शब्द अत्यारे परिचित होय त्यां ए पण न ज लेवानो होय. जेमके 'सीगरिने स्थाने 'सागरि' पाठ नक्की थतो होय, तो ‘सीगरि' शब्द अहीं लेवानी जरूर होय नहीं. मूळ आधारग्रंथोना शब्दकोशोमां केटलीक छापभूलो ने सरतचूको पण पकडाई छे. शब्दकोशमां 'अखर', 'उतरीअ', 'कडक' ने 'जटाजूटी' होय पण कृतिपाठमां 'अखेर', 'उत्तरीअ', 'कटुक' ने 'जटाजूटा' होय. आवां स्थानोए केटलीक वार शब्द आ संकलित कोशमां सीधो सुधारीने ज मूक्यो छे; तो केटलीक वार मूळ शब्द राखी सुधारेलो शब्द बाजुमां ( ) कौंसमां मूक्यो छे. ज्यां शब्द सीधो सुधारी लेवामां आव्यो छे त्यां मूळ ग्रंथमां शब्द ए रूपे न मळे ए देखीतुं छे. पण अभ्यासीने मूळ शब्द पकडी पाडतां मुश्केली नहीं पडे. ज्यां संभ्रमनी शक्यता होय त्यां मूळ शब्द ने सुधारेलो शब्द बन्ने आप्या ज छे. ___मध्यकालीन लेखनपद्धतिमां 'ख' 'ष' तरीके लखातो, 'ज'ने स्थाने 'य' लखातो अने 'ब'-'व' वच्चे अभेद जेवू हतुं. 'वीसळदेव रासो'ना संपादके 'ख' उच्चारणवाळा शब्दो 'ष'मां ज आप्या छे, तो 'उक्तिरलाकर'मां एवा शब्दो 'ख'मां तेमज 'ष'मां पण अपायेला छे. अलबत्त, मोटा भागना कोशो आवा शब्दो 'ख' मां ज बतावे छे. आ संकलित कोशमां आवा शब्दो 'ख'मां लई लीधा छे, सिवाय के 'ष' उच्चारण ज ज्यां अभिप्रेत होय. आ संकलित कोशमां 'ख' थी आरंभाता शब्दो मूळ ग्रंथमां शोधती वखते आ स्थिति लक्षमा राखवानी रहेशे. 'व'ने स्थाने 'ब' के 'ब'ने स्थाने 'व' मूकवाथी शब्द वधारे स्पष्ट थतो होय तो अहीं एवं कर्यु छे, मूळ शब्दनी बाजुमां सुधारेलो शब्द मूक्यो छे ने सुधारेलो शब्द एना वर्णक्रममां मूकी प्रतिनिर्देश कर्यो छे. जेमके, अबंझ [अवंझ अवंझ जुओ अबंझ 'ज'ने स्थाने 'य' लखायो होय त्यां पण आबु कयुं छे. जेमके, जमिवउं जुओ यमिवउं जसउ जुओ यसउ ___ 2010_03 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३५] यमिक्उं [जमिवउं] यसउ [जस] छेल्ले, आ संकलित कोशमां शब्दोनो जे वर्णानुक्रम गोठववामां आव्यो छे ते विशे थोडी स्पष्टता जरूरी छे. एक महत्त्वनो फेरफार करवामां आव्यो छे ते 'ळ'ना स्थान परत्वे. गुजरातीमां 'ळ' वर्णमाळामा छेल्ले मुकाय छे. परंतु घणा शब्दोमां 'ल' 'ळ' वैकल्पिक छे. जेमके कल - कळ, कलियुग - कळियुग, घडियाल - घडियाळ. उपरांत, मध्यकाळनी लिपिमां तो 'ल' ज हतो ने 'ळ' पण 'ल' चिह्नथी दर्शावातो. केटलाक संपादकोए 'ल'नो 'ळ' को होय, केटलाके न कर्यो होय. 'वीसळदेव रासो'मां तो राजस्थानी उच्चारने अनुलक्षीने सर्वत्र 'ळ' ज छे, 'ल' नहीं. 'ल'-'ळ'ना भेदे शब्दोने अलग राखीए तो वस्तुतः एक ज छे ते शब्द बे ठेकाणे नोंधाय. एने कारणे एक ज शब्दना संदर्भो पण बे ठेकाणे वहेंचाई जाय अने शब्द तेमज शब्दार्थनुं समग्र चित्र ऊपसवामां अंतराय ऊभो थाय. आथी, आ संकलित कोशमां 'ळ'ने 'ल'नी साथे ज मूक्यो छे. आथी नीचेना जेवो शब्दक्रम नजरे पडशे. - अतलिबळ, अतलीबल, अतुलीबल - अमल, अमळ -- आगलिथु आगळो आगल्यो - आलति, आलती आळपंपाळ आलरां मध्यकाळनी गुजराती कृतिओनी हस्तप्रतो जोडणीनी एकरूपता दर्शावती नथी. केटलीक वार अल्पशिक्षित, अणघड लहियाओने हाथे लखायेली हस्तप्रतो जोडणीनी अराजकता प्रगट करे छे. मध्यकालीन कृतिओना संपादको पण जोडणीनी एकरूपता भाग्ये ज ऊभी करे छे. सामान्य रीते आपणे त्यां हस्तप्रत मुजब ज जोडणी राखवानुं स्वीकारायं छे. एमां फेरफार करवा जतां अनेक कोयडाओनो सामनो करवानो आवे. आथी एवं बने छे के एक ग्रंथमा जे शब्द इस्व 'इ' के 'उ'वाळो होय ते बीजा ग्रंथमां दीर्घ 'ई' के 'ऊ'वाळो होय; एक ग्रंथमां सानुस्वार शब्द होय ते बीजामां निरनुस्वार होय; एक ग्रंथमांनो 'श'वाळो शब्द बीजा ग्रंथमा 'स'वाळो होय, वगेरे. आवा शब्दो वेरविखेर ज रहे तो एमना विशेनी माहिती पण वेरविखेर रहे, जे कोई वार शब्दार्थनी प्रमाणभूतता प्रगट करवामां बाधक बने. आवा शब्दोने कोई पण रीते सांकळी शकाय 2010_03 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए जरूरी हतुं. एक रस्तो जेम 'ल'-'ळ'नो भेद अवगण्यो हतो तेम 'इ'-'ई' वगेरेनो भेद अवगणी एमने एक ज वर्णक्रममां मूकवानो हतो. परंतु आ कोशमां आq वारेवारे करवानुं थाय तो एथी एनो उपयोग करनारना मनमां गूंच ऊभी थाय अने एमनी अगवडमां खास्सो वधारो थाय. एथी जे शब्दो आवा जोडणीभेदथी आव्या होय तेमने एक स्थाने भेगा करी, बीजे स्थाने प्रतिनिर्देश करवो एवी पद्धति स्वीकारी. जेमके, आलिंघन, आलीघन, आलीघन आलीधन जुओ आलिंघन आलीपन जुओ आलिंघन आम भेगा करवानु सळंगसूत्र रूपे थयुं नथी ने बन्ने ठेकाणे प्रतिनिर्देश करी बे शब्दोने सांकळवारों पण कर्यु छे. 'श'-'स'ना भेद परत्वे तो एम ज कर्यु छे. आ बेमांथी एकेय प्रक्रिया न थई होय एवा शब्दो पण रही गया हशे. परंतु विरलपणे मळता के अर्थदृष्टिए ध्यान खेचता शब्दो ज्यारे उच्चारणभेदथी आव्या होय त्यारे एमने कोई ने कोई रीते सांकळी लेवानी काळजी राखी छे. पूर्वे अनुनासिक व्यंजनवाळो जोडाक्षर गुजरातीमां अनुस्वारथी दर्शाववानी व्यापक रूढि छ – 'अङ्क'ने स्थाने 'अंक', 'अन्त'ने स्थाने 'अंत'. मध्यकाळमां पण व्यापक रीते सानुस्वार रूप ज मळ्युं छे. तेथी बन्ने रूपो मळ्यां छे त्यां एक ठेकाणे एकठां करी बीजा रूपने एने स्थाने मूकी प्रतिनिर्देश कर्यो छे. जेमके, अन्तरि जुओ अंतरि अंतरि, अन्तरि ज्यां एकलुं अनुनासिक व्यंजनवाळु रूप मळ्युं है त्यां पण अनुस्वारवाळा रूपमा एने दर्शावी प्रतिनिर्देश करवानुं वलण राख्युं छे, जेथी अनुस्वारवाळा रूपे तो आवा शब्दो बधा मळे ज. जेमके, चन्द्रोदय चंद्रोदय जुओ चन्द्रोदय आम छतां, जे शब्दो एना अनुनासिक व्यंजनवाळा रूपमां सहेलाईथी समजी शकाय तेवा होय ने एनुं सानुस्वार रूप अन्यत्रथी मळतुं ज होय त्यां बे रूपोने जोडवानो के प्रतिनिर्देश करवानो हमेशां आग्रह राख्यो नथी. आ संकलित कोशमा समावायेला शब्दकोशो जे कृतिओने आवरे छे ते बारमाथी अढारमा सैका सुधीमां रचायेली छे. आटला लांबा समयगाळामां भाषास्वरूप खास्सुं परिवर्तन पाम्युं होय अने ए परिवर्तनने झीलता शब्दो आ कोशमां दाखल थया होय. एटलेके एक ज शब्द भिन्नभिन्न स्वरूप प्राप्त थयो होय. जेमके, अउखध, उखध, 2010_03 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] ओखध; अउलवइ, उलवइ, ओलवइ, खइडां, खेडं, कइलि, कयलि, केलि; किण, केण; उपनउं, उपन्युं उब्भइ, ऊभइ वगेरे. 'ह', स्वार्थिक 'ल', 'इ', 'उ'ना प्रक्षेपो के लोपथी शब्दस्वरूप बदलायुं होय, के बीजां केटलांक ध्वनिपरिवर्तनो पण थयां होय. जेमके, उशंकल, ओशंकल, ओशिंकळ; ऊलखउ, ऊलिखउ; उमाहउ, उमाहलउ; कउतिग, कुतम, कुतिक, कुहुतग, कौतग, कौतिक, कौतुक; कियारइ, किवारइ, किहारि, किहारे, किहिवारि वगेरे. आवा शब्दो अहीं जुदीजुदी रीते रजू थयेला देखाशे. केटलीक वार आवा शब्दोने एक स्थाने एकठा करी लेवामां आव्या छे ने पछी दरेक शब्दने एने स्थाने पण मूक्यो छे ने प्रतिनिर्देश कर्यो छे. केटलीक वार आवा शब्दोने अलग ज राखी प्रतिनिर्देश कर्यो छे. तो केटलीक वार शब्दोने अलग राख्या छ ने प्रतिनिर्देश पण कर्यो नथी. खास करीने जे शब्दस्वरूप अने अर्थ परत्वे कशी भ्रान्तिने अवकाश न होय ते परत्वे प्रतिनिर्देश करवानु अनिवार्य लेख्युं नथी. अने ज्यां शब्दस्वरूपोर्नु मळतापणुं जलदी ख्यालमां आवे एवं न होय के ज्यां अर्थनी लाक्षणिक छायाओ विकसी होय के लीधेला. अर्थने घणा आधारोथी पुष्ट करवानो होय त्यां ए शब्दस्वरूपोने भेगा करवानुं अथवा जुदा राखी प्रतिनिर्देश करवानु आवश्यक लेख्युं छे. अहीं ए नोंधवू जोईए के केटलीक वार आवां शब्दस्वरूपो मूळ ग्रंथना संपादके ज भेगां करेलां होय छे. आधारग्रंथो __आ शब्दकोशमां दरेक मूळ शब्दो पछी तरत ए ज्यांथी प्राप्त थयो छे ते सघळा आधारग्रंथोनो निर्देश त्रांसां (इटॅलिक) बीबांथी करवामां आव्यो छे. ए माटे आधारग्रंथोना नियत करेला संक्षेपाक्षरो वापरवामां आव्या छे (जे संक्षेपाक्षरो पाछळ मूकेली आधारग्रंथोनी सूचि साथे जोडवामां आव्या छे). केटलीक वार एq बन्युं छे के मूळ आधारग्रंथना शब्दकोशमां शब्दनो जे अर्थ आपवामां आव्यो होय ते पछी शुद्धिपत्रकमां सुधारवामां आव्यो होय. आ संकलित कोशमां ए शुद्धिपत्रकनो अर्थ आमेज करवामां आव्यो छे अने तेथी आधारग्रंथना संक्षेपाक्षरने 'शु' जोडीने दर्शाववामां आवेल छे. जेमके, आरारा-शु. केटलीक वार मूळ आधारग्रंथमां शब्दकोश उपरांत टिप्पण के अनुवाद पण होय छे. शब्दकोशमां अर्थ आपवामां न आव्यो होय ते टिप्पण के अनुवादमांथी मळे अथवा शब्दकोशना अर्थ करतां टिप्पण के अनुवादमां कईक जुदो अर्थ होय अने ए वधारे बंधबेसतो होय एवं पण बन्युं छे. आ स्थितिमां टिप्पण के अनुवादनो आधार लेवानुं थयुं छे अने ए 'टि' के 'अनु' जोडीने दर्शाव्युं छे. जेमके, गुर्जरा-टि., हरिवि-अनु. ___ आधारग्रंथना निर्देश पूर्वे * निशानी आवे छे ते एम सूचवे छे के ए आधारग्रंथमां नोंधायेलो अर्थ यथायोग्य नहीं होई अहीं छोडी देवामां आव्यो छे. जेमके, 2010_03 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३८] अणगाल "अभिऊ. [अकाल, खराब समय] चोरस कौंसमांना अर्थो संकलित कोशना संपादके आपेला अर्थ छे. अचव्युं अखाका. अखाछ. अखेगी. "नरका. न कहेलु, अवर्णनीय आ दाखलामां नरका.नो अर्थ छोडवामां आव्यो छे पण बाकीना त्रण ग्रंथोमां तो शब्दनो अहीं नोंघेलो साचो अर्थ ज मळे छ एम समजवानुं छे. अजमाल *अखाका. "अखाछ. चित्तसं. ?, ["उजमाळ, "उज्ज्वल, *प्रकाशमान, *प्रकाशित आ दाखलामां अखाका. अने अखाछ.ना अर्थो छोडवामां आव्या छे, ज्यारे चित्तसं.मां अर्थने स्थाने "?' छे एम समजवानुं छे. चोरस कौंसमां संकलित कोशना संपादके आपेला अर्थो पण केवळ तर्करूप ने तेथी संदेहास्पद छे एम फूदडीनी निशानी बतावे छे. आधारग्रंथमां शब्द जे स्थाने होवानु निर्देशायुं होय त्यां ए घणी वार मळ्यो नथी. आनुं कारण, अलबत्त, पृष्ठ के कडी-पंक्तिना अंकोमा थयेली छापभूल होय छे. आ कोशना संपादके साचो स्थाननिर्देश शोधवा प्रयत्न कर्यो छे अने घणी वार मळी पण गयो छे. तो स्थाननिर्देश घणा प्रयलो पछी पण न मळ्यो होय एव॒ये बन्युं छे. केटलीक वार आधारग्रंथना संपादकधी स्थाननिर्देश करवानुं चुकाई गयुं होय छे. स्थाननिर्देश न जड्यो होय त्यां शब्दार्थनी चकासणी न थई शकी होय ए स्वाभाविक छे. आ स्थितिने दर्शाववा आधारग्रंथना संक्षेपाक्षर पूर्वे ० मींडानी निशानी करेल छे. जेमके, किलिछु ०ऐतिका. क्लिष्ट अहीं एम समजवान छे के ऐतिका.मां आ शब्दनो स्थाननिर्देश नथी अथवा खोटो छे ने साचो स्थाननर्देश मेळवी शकायो नथी. अर्थ, अलबत्त, स्वीकार्य ज लाग्यो डुडी कामा(त्रि). ०कामा(शा). दांडी, ढंढेरो अहीं एम समजवानुं छे के आपेलो अर्थ तो कामा(शा).माथी मळ्यो छे, परंतु एमां स्थाननिर्देश नथी अथवा साचो नथी. ए ध्यानमा राखवानुं छे के आ संकलित कोशना संपादके घणे स्थाने साचो स्थाननिर्देश शोधी लीधो छे पण ए कई आ कोशमां आपी न शकाय. एटले मूळ आधारग्रंथ सुधी जनारने अहीं ० निशानी न होय तेवा ग्रंथमां पण निर्दिष्ट स्थाने शब्द न जडे एवू बनशे. ते उपरांत जे शब्दनो अर्थ चकासवानी जरूर पडी होय तेनुं स्थान ज आ संकलित कोशना संपादके शोध्यु होय. अन्य शब्दो परत्वे खोटा स्थाननिर्देशो 2010_03 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होय तोपण अहीं ० निशानी न होय. आ संकलित कोशमां अमुक प्रकारना उच्चारभेदोथी आवेला शब्दो केटलीक वार साथे लई लीधा छे ने बधा आधारग्रंथोने एकसाथे मूकी दीधा छे. त्यां कया उच्चारभेदवाळो शब्द कया आधारग्रंथमाथी छे एनी स्पष्टता नथी थती. तेथी मूळ ग्रंथ सुधी जनारने ए बधा विकल्पोनो प्रयल करी जोवानो रहेशे. जेमके, अधकेरु, अधिके उपबा. प्रबोप्र. षडाबा. आ दाखलामां निर्दिष्ट ग्रंथोमांथी कोईमां अधकेरु ने कोईमां अधिकेरु हशे, कोईमां बन्ने पण होई शके. ए हकीकतने लक्षमा राखीने मूळ ग्रंथ सुधी जनारे एमां शब्द शोधवानो रहेशे. केटलीक वार उच्चारभेदोने लुप्त करी शब्दनुं कोई सामान्य रूप स्वीकार्यु छे त्यां मूळ ग्रंथमां शब्द शोधवानुं थोडुं वधारे मुश्केल बनवा- ए वात आगळ करी छे. एनो दाखलो लईए तो आ संकलित कोशमां पडखइ उक्तिर. कादं(शा). "गुर्जरा. जिनरा. नलरा. नलाख्या. प्रेमाका. विराप. शृंगामं. राह जुए, थोभे; "अखाका. [थोभे, विचारे] आम मळे छे, तेमां निर्दिष्ट आधारग्रंथोमां वस्तुतः पडख-, पडखइ, पडखतउ, पडखि, पडखी, पडखीने, पडखे एम जुदाजुदा शब्दो छे. (पडिखइ, अलबत्त, अलग राखेल छे.) मूळ आधारग्रंथमां शब्द शोधनारे आ स्थिति लक्षमा राखवानी रहेशे. ___'ख'वाळो शब्द मूळ आधारग्रंथमा 'ष'मां होय एवं पण बनवानुं ते वात पण आपणे आगळ करी गया छीए. उक्तिर. उपबा. देवरा. वीसरा. ए ग्रंथोमां 'ख'वाळा शब्द 'ष'मां मुकायेला छे. उपरांत, जुदाजुदा ग्रंथनी शब्दक्रमनी थोडी जुदीजुदी पद्धति जोवा मळी छे. जेमके, प्रबोप्र.मां 'क्ष' वर्णमाळाने छेडे छे, 'क'ना जोडाक्षरना स्थाने नहीं. ऐतिरा.मां अनुस्वारवाळा शब्दो अनुस्वार वगरना शब्दो पूर्वे मुकाया छे, जेमके 'आ' पूर्वे 'आं'. (जोके 'अं’मां आ नियम जळवायो नथी.) षडाबा.मां अनुस्वारवाळा शब्दो जे-ते वर्णना सर्व स्वरांत रूपो पूरा थया पछी आवे छे. जेमके, 'का', 'कि', 'कु' वगेरे पछी 'कां' 'किं' 'कुं' वगेरे. मूळ आधारग्रंथोनी वर्णक्रमनी आवी भिन्नभिन्न रीतने कारणे पण एमां शब्द शोधवामां थोडी महेनत पडवानी. छल्ले, मूळ आधारग्रंथोमां अवारनवार सरतचूकथी वर्णक्रमभंग पण थयो छे, कोई वार तो मोटो. ए स्थिति पण आ संकलित कोशनो शब्द आधारग्रंथोमां शोधवामां आडे आववानी. पण आ संकलित कोशनो उपयोग करनारे एटली खातरी राखवानी छे के अहीं 2010_03 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] नोंधायेलो शब्द आधारग्रंथमा उच्चारभेदथी, क्रमभेदथी के क्रमभंगथी पण जरूर मळवानो. तेथी ए माटे ए जरा आमतेम खांखांखोळां करे ए जरूरी छे. आधारग्रंथोनी केटलीक खासियतो आ पछी ए ग्रंथोनो संक्षिप्त परिचय आप्यो छे एमांथी जाणवा मळी शकशे. शब्दार्थ आधारग्रंथोना निर्देश पछी शब्दार्थ सादां अने सीधां बीबांमां आपेल छे. केटलाक आधारग्रंथोमां शब्दार्थ अंग्रेजीमा छ – जेमके उपबा., गुर्जरा., वसंवि(ब्रा)., वीसरा. अने षडाबा.मां; केटलाकमां हिंदीमां छे - जेमके ऐतिका. तथा जिनरा.मां; तथा कोईकमां संस्कृतमा - जेमके उक्तिर. अने प्राचीसं.मां. अहीं आ शब्दार्थोनो गुजरातीमां अनुवाद करी लीधो छे, सिवाय के हिंदी के संस्कृत शब्द गुजरातीमां पण वपरातो होय. आ एक संकलित कोश होई एनो मुख्य आशय तो शब्दो तेमज शब्दार्थो बन्ने मूळ आधारग्रंथोमां होय ते ज आपवानो होय. परंतु मूळ आधारग्रंथमां जेम खोटा पाठवाचनने कारणे के भ्रष्ट पाठने कारणे खोटा शब्द आवी गया छे एम एने लीधे के संपादकनी समजफेरने लीधे खोटा शब्दार्थ पण आवी गया छे. आ कोशने मात्र संकलित कोश नहीं पण संशोधित कोश बनाववानो आशय रह्यो होवाथी जेम पाठसुधारणा करवानी थई तेम शब्दार्थसुधारणा पण करवानी थई छे. पाठसुधारणा करतां मूळ ग्रंथनो शब्द बदलायो, छतां मूळ ग्रंथनो शब्द राखीने ज सुधारेलो शब्द आप्यो, केमके मूळ ग्रंथमां शब्द जेम होय तेम राखवो अनिवार्य हतो. ए द्वारा ज मूळ ग्रंथना प्रयोग सुधी पहोंची शकाय. पण शब्दार्थ बदलातो होय त्यां मूळ शब्दार्थ साचववो अनिवार्य न हतो केमके एथी मूळ ग्रंथ सुधी पहोंचवामां कोई बाधा ऊभी थती नहोती. ने मूळ शब्दार्थ | हतो ए जाणवा इच्छनार मूळ ग्रंथ सुधी पहोंचीने ए सहेलाईथी मेळवी शके तेम हतुं. बीजी बाजुथी खोटा शब्दार्थोथी आ कोशने भरी देवाथी एनो उपयोग करनार मोटा भागना वर्ग उपर निरर्थक बोजो पडे ने एने निरर्थक गूंचवावा- थाय एबुं बनतुं हतुं. वळी, शब्दार्थ साचो होवा विशे शंका जाय पण ए खोटो होवानुं खात्रीपूर्वक कही न शकाय अथवा तो ए अपर्याप्त होय अने एनी पूर्ति ज करवानी जरूर होय एवू पण केटलाक दाखलाओमां देखातुं हतुं. आम शब्दार्थनी कंईक संकुल परिस्थिति सामे आवी अने शब्दार्थने केम रजू करवा ते जरा कोयडारूप बन्यु. उपरांत, मूळ ग्रंथना शब्दार्थ छोडवाना थाय के ए शंकास्पद लागे के एमां पूर्ति करवानी थाय त्यारे कोशना संपादक पोताना अर्थ आपी शके के न आपी शके, के ___ 2010_03 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खातरीपूर्वक न आपी शके - केवळ तर्क रूपे ज आपी शके, आम विविध स्थितिओ संभवती हती. आ बधी स्थितिओमां शुं करवू अने शब्दार्थने केम रजू करवा ए विशे चोक्कस नीतिनियम नक्की करवा जरूरी हता. केटलीक मथामणने अंते शब्दार्थ रजू करवानी नीचे प्रमाणेनी पद्धति नीपजी आवी : (१) मूळ ग्रंथमा स्पष्ट रीते खोटो शब्दार्थ होय ते आ शब्दकोशमां न ज लेवो. आ कोशना संपादक पोताना तरफथी अर्थ आपी शके तेम होय त्यां ए [ ] चोरस कौंसमां मूकवो, एणे आपेलो अर्थ खातरीपूर्वकनो न होय, तर्करूप होय त्यां एनी आगळ * फूदडी करीने ए स्थिति दर्शाववी अने ए कोई प्रकारनो अर्थ आपी शके तेम न होय त्यां प्रश्नार्थ ज मूकवो. कोई एक ग्रंथमांथी एक शब्दनो खोटो अर्थ छोडवानो थाय अने बीजा ग्रंथोमांथी एनो साचो अर्थ मळी रहेतो होय त्यां, देखीती रीते ज, आ कोशना संपादके कई करवानुं न रहे. एणे जे ग्रंथनो अर्थ छोड्यो होय तेना संक्षेपाक्षरनी पूर्वे * फूदडी मूकीने परिस्थितिनो निर्देश मात्र करवानो रहे. थोडा दाखला जोईए : पड (पड पितराई) * प्रेमाका. [पितराईना पितराई, वधु एक पेढी दूरना पितराई] पड-पितराई * नरका. [दूरना पितराई] प्रेमाका.मां ‘पड' शब्द छे ने एनो अर्थ आप्यो छे 'रणपट, युद्धनुं मेदान'. कृतिमां शब्दनो प्रयोग आम मळे छे - मेल मेल रे पड, पितराई ! दुर्योधनपुत्र लक्ष्मण अभिमन्युना सकंजामां आवतां ए आंखमां आंसु साथे आ उक्ति बोले छे. मूळ ग्रंथना संपादके आपेलो अर्थ पहेली दृष्टिए बेसतो लागे, पण जरा विचार करतां आपणने शंका थाय छे के लक्ष्मण अभिमन्युने युद्धमेदान छोडवायूँ कहे के पोताने छोडवान कहे ? आ ज कृतिमा अन्यत्र थयेलो 'पड पितराई' प्रयोग पण आपणी नजर सामे आवे छे : मस्तक छेदवा आवतो दीठो ज्यारे पड-पितराई पड्यां पड्यां अभिमन्युने क्रोध आव्यो भराई. दुःशासनपुत्र काळकेतु अभिमन्यु सामे आवे छे तेनो अहीं उल्लेख छे. देखीती रीते अहीं काळकेतुने ज 'पड-पितराई' कह्यो छे. हिंदीमां प्रपौत्र माटे परपोता, पडपोता एवा शब्दो छे ते जोतां 'पडपितराई मां ‘पड' 'प्र'मांथी आवेलो छे एनी शंका रहेती नथी. प्रपौत्र, परपोता के पडपोता एटले पौत्रनो पुत्र, तो 'पडपितराई' एटले पितराईनो पितराई, वंधु एक पेढी दूरनो पितराई. अर्जुन ने दुर्योधन के दुःशासन ए पितराई, तेथी अभिमन्यु अने लक्ष्मण के काळकेतु ए पडपितराई. तेथी ‘मेलमेल रे, पड-पितराई' एम पाठ सुधारी लक्ष्मण पोताना पडपितराई अभिमन्युने पोताने छोडी देवा वीनवे छ 2010_03 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४२ ] एम अर्थ लेवानो थाय. परिणामे मूळ ग्रंथनो अर्थ छोडी आ कोशना संपादकने पोतानो अर्थ मूकवानो थयो छे. मूळ ग्रंथना संक्षेपाक्षर पूर्वे * फूदडी करीने अने कोशना संपादकनो अर्थ चोरस कौंसमां मूकीने आ दर्शाववामां आव्युं छे. नरका.मां ‘पडपितराई’नो 'पितराई ओनो समुदाय' एवो अर्थ आपवामां आव्यो छे, पण कृतिमांनी पंक्ति आ प्रमाणे छे : पड- पितराई भोजाई वहेवाईनां शोधी शोधी दीघां वस्त्र पोती. कुंवरबाईना मामेराप्रसंगे थती पहेरामणीनुं आ वर्णन छे. भगवान पहेरामणी करवा बेठा एटले कुंवरबाईनां सासरियांने केटलो लोभ लाग्यो ते दर्शावती आ पंक्ति छे. एटले एमां 'पितराईओनो समुदाय' नहीं, 'दूरना पितराई' एवो अर्थ ज घटित गणाय, अने उपर जोयुं तेम ए अर्थने ज भाषादृष्टिए टेको मळे तेम छे. 'समुदाय' नो अर्थ आपनार आ शब्दमां कशुं नथी. एटले ए अर्थ छोडवो ज पडे. अहीं पण मूळ ग्रंथना संक्षेपाक्षर पूर्वे * फूदडी करी अने कोशना संपादकनो अर्थ [ ] चोरस कौंसमां मूकीने आ स्थितिनो निर्देश कर्यो छे. पडोचा * उषाह. [* अपेक्षा ] [ प्रा. पडुच्चा, सं. प्रतीत्य ] उषाह.मां आ शब्दनो अर्थ 'विलाप' आप्यो छे. करी पडोचा कुंवरी रडइ ए पंक्तिमां ए अर्थ बेसी जाय छे माटे अनुमानथी ए आपवामां आव्यो जणाय छे पण आ शब्दनो ए अर्थ लेवा माटे कशो आधार नथी. 'विलाप करीने रडे छे' एम आमां पुनरुक्ति पण थाय छे. तेथी संकलित कोशना संपादके प्राकृत कोशना शब्दने आधारे 'अपेक्षा' एवा अर्थनो तर्क कर्यो छे. स्वप्नमांथी जागेली अने अनिरुद्धनो संग गुमाव्यो छे एवी उषानी आ उक्ति होई "अनिरुद्धनी अपेक्षा करीने रडे छे" एम कदाच अर्थ होई शके. आ अर्थ खातरीपूर्वकनो नहीं, पण एक अटकळ रूपे होई एना पूर्वे फूदडी मूकी छे. * परगड आरारा. * ऐतिका. ऐतिरा. प्राचीफा. प्रकट, प्रसिद्ध अहीं एम समजवानुं छे के ऐतिका. मां आपेलो अर्थ छोडवानो थयो छे अने साचो अर्थ अन्य निर्दिष्ट ग्रंथोमांथी मळ्यो छे ते ज छे. (२). मूळ ग्रंथनो अर्थ खातरीपूर्वक साचो के खोटो कही शकाय तेवुं न होय एटलेके शंकास्पद लागतो होय त्यां ए अर्थ आपी एनी पूर्वे * फूदडी करवी. संकलित कोशना संपादक अर्थ उमेरी शके त्यां उमेरे - खातरीपूर्वक के अटकळे. जेमके, परजियो नरका. * परजियो सोनी, [* कोई अलंकार ] अहीं नरका. नो ' पर जियो सोनी' ए अर्थ शंकास्पद लाग्यो छे, ते साथै संकलित कोशना संपादके आपेलो 'कोई अलंकार' ए अर्थ पण अटकळरूप छे एम समजवानुं छे. 2010_03 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पराभव गुर्जरा. अपमान, तिरस्कार] (सं.); लावल. *पराजय, [तिरस्कार, अनादर] अहीं लावल.नो 'पराजय' अर्थ शंकास्पद छे, पण 'तिरस्कार, अनादर' ए अर्थ संदर्भमां बराबर बेसे छे एम समजवानुं छे. ___ *पराले [पडाळे] नरप. *राते, [परसाळे] अहीं मूळ ग्रंथनो 'परालें' पाठ अने तेनो 'राते' ए अर्थ बन्ने शंकास्पद छे तेमज 'पडाळे' पाठ अने एनो 'परसाळे' अर्थ लेतां संदर्भमां बराबर बेसे छे एम समजवान (३) मूळ ग्रंथमा ज आपेला अर्थ सामे प्रश्नार्थ मूकी संशय व्यक्त कर्यो होय त्यारे जो अर्थ साधार ठरतो होय तो प्रश्नार्थ रद करवो; ए अर्थ साव खोटो ज साबित थतो होय तो छोडी देवो; अन्यथा एम ने एम राखी संकलित कोशना संपादकथी खातरीपूर्वकनो के अटकळे अर्थ आपी शकातो होय तो आपवो. जेमके, परीकरी प्रेमप. वींटाळी ? अहीं मूळ ग्रंथना संपादके ज पोते आपेला अर्थ परत्वे संशय व्यक्त कर्यो छे ने संकलित कोशना संपादकने एमां कंई सुधारवा जेवू लाग्युं नथी एम समजवानुं छे. परीभव कामा(त्रि). हार, अपमान ?, [कष्ट, पीडा] अहीं मूळ ग्रंथना संपादके संशयपूर्वक आपेला अर्थ खोटा छे एम खातरीपूर्वक कही शकातुं नथी, पण 'कष्ट, पीडा' ए अर्थ योग्य रीते बेसी जाय छे एम समजवानुं रहे छे. पुंछ सिंहा(शा). झडपी ?, [*पहोंच, *गति] अहीं मूळ ग्रंथनो अर्थ तो शंकास्पद रह्यो ज छे ते साथे संकलित कोशना संपादके आपेला अर्थ पण अटकळपूर्वकना ज छे एम समजवानुं छे. (४) मूळ ग्रंथना संपादकने शब्दार्थ बेठो न होय तेथी एणे कोई शब्दार्थ आप्यो ज न होय के केवळ प्रश्नार्थ मूकी चलाव्यु होय एम पण जोवा मळे छे. मूळ ग्रंथमां शब्दार्थ न होय त्यां -' गुरुरेखा मूकी ए स्थिति दर्शातवी अने प्रश्नार्थ होय त्यां एम ने एम राखवो तथा संकलित कोशना संपादकथी अर्थ आपी शकाय तो आपवो. (जो के आरंभमां '_' के '?' मूकवाने बदले मूळ ग्रंथनो अर्थ छोड्यानी निशानी करी हती जे पछी सुधारी लीधुं छे, पण क्यांक सुधारवानु रही गयुं पण हशे.) दाखला तरीके. अरंण (अरंण मूके) मदमो. -, [*अरण्यमां मूके, *दूर राखे, *छोडे] अहीं मूळ ग्रंथना संपादके अर्थ आप्यो नथी अने संकलित कोशना संपादके ___ 2010_03 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थनी अटकळ करी छे एम समजवान छे. पांडर प्राचीसं. ?, ["फिक्कु अहीं मूळ ग्रंथमां शब्दार्थने स्थाने केवळ प्रश्नचिह्न छे. संकलित कोशना संपादकने 'फिक्कुं' ए अर्थनी शक्यता जणाई छे एम समजवान छे. पिहिति आरारा. ?, [रांधेली दाळ, लचको] अहीं पण मूळ ग्रंथना संपादके कोई शब्दार्थ न आपतां प्रश्नचिह्न मूक्युं छे, पण संकलित कोशना संपादकने 'रांधेली दाळ, लचको' ए निश्चित अर्थ जणायो छे एम समजवानुं छे. उक्तिर.ना शब्दार्थ आ संकलित कोशमां रजू करवामां जरा जुदी रीत अपनाववानी थई छ ए तरफ खास ध्यान दोर, जोईए. उक्तिर.मां संस्कृत पर्यायो आपवामां आव्या छे, एनो अहीं गुजराती अनुवाद करी लेवानु राख्युं छे, पण एमां मूंझवणभरी परिस्थितिओ सामे आवी छे. केटलाक संस्कृत शब्द एकथी वधारे अर्थ धरावता होय, केटलाक शब्द संस्कृत शब्दकोशोमां मळे नहीं अने प्राकृत के देश्य शब्दने संस्कृत रूप अपायु होवानो संभव लागे, केटलीक वार मूळ शब्दनु ज कृत्रिम संस्कृतीकरण करी नाखवामां आव्यु होय. आथी उक्तिर.ने कयो अर्थ अभिप्रेत हशे ते नक्की करवानुं मुश्केल बनी जाय. उक्तिर.मां जूज अपवादो बाद करतां शब्द वाक्यमां वपरायेलो नथी. तेथी ए चावी तो अहीं आपणा हाथमां नथी. उक्तिर.ना जे शब्दो अन्य ग्रंथोमां पण वपरायेला मळे छे त्यां एना अर्थ पण आपोआप मळी जाय छे. ते उपरांत, उक्तिर.ना घणा शब्दो अमुकअमुक जूथमां नोंधायेला छे, जेमके खाद्यपदार्थने लगता शब्दो, जीवजंतुओने लगता शब्दो, घरवखरीने लगता शब्दो, विविध प्रकारनी स्थितिओने लगता शब्दो वगेरे. आमांथी केटलीक वार सूचन मळे छे ने अर्थनिर्णय थई शके छे. पण बधी वखते एम थई शकतुं नथी. अने जूथमां न गोठवाता होय, छूटा रही जता होय एवा शब्दो पण घणा होय छे ज. आथी उक्तिर.ना शब्दार्थ रजू करवामां आवी पद्धति अपनाववी पड़ी (१) ज्यां अपायेलो संस्कृत शब्द परिचित ज होय त्यां ए ने एम ज राखी देवो. जेमके, अउध उक्तिर. अयोध्या (२) ज्यां संस्कृत शब्दनो एक अर्थ निश्चित थई 'शकतो होय त्यां ए मूकवो अने गुजराती शब्दनी व्युत्पत्तिनी के एवी कोई दृष्टिए आवश्यक होय तो संस्कृत शब्द कौंसमां बताववो. जेमके, अउधारि उक्तिर. अवधार, ध्यानमा लेवू 2010_03 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४५] अउलवइ उक्तिर. ओळवे, कपटथी पडावी ले (सं. अपलपति) ३. ज्यां एक अर्थनी अटकळ ज थई शकती होय के एकथी वधु अर्थनी शक्यता देखाती होय त्यां एवा अर्थो संपादकना [ ] चोरस कौंसमां फूदडी करीने ज दर्शाववा. जेमके, पाटलउ उक्तिर. [*पाटले बेसाडी करातो सत्कार ] (सं. पाटाचारः ) बको उक्तिर. [*शोर, हांसी ] (सं. बर्करिका) [दे. बक्कर ] (४) ज्यां अपायेला पर्यायनो कोई अर्थ पकड़ी ज न शकाय त्यां संकलित कोशना संपादक तरफथी [ ] चोरस कौंसमां ?' मूकवो आ संयोगोमां पर्यायशब्द कृत्रिम संस्कृतीकरणवाळो होय तोपण कौंसमां मूकी साचववो. जेमके, ऊसलसीधुं उक्तिर. [?] ( सं . उल्लासित - संधिकम् / उत शलंध्रं ) जुदाजुदा ग्रंथोमांथी एक ज शब्दना अर्थ एकथी वधु पर्यायो रूपे मळ्या होय त्यारे अहीं एने संकलित करी लीधा छे. ने जरूर लागी त्यां पर्यायोमांथी पसंदगी करी लीधी छे तेमज क्यांक शाब्दिक फेरफार करी लीधो छे. आथी निर्दिष्ट ग्रंथोमांथी कोईमां शब्दनो अहीं अपायेलो अर्थ बराबर ए ज शब्दरूपमां न मळे एम बने, पण ए त्यां तत्त्वतः तो जोई ज शकाशे. तत्त्वतः एक ज अर्थ जुदाजुदा पर्यायशब्दोथी दर्शावातो होय त्यारे ए पर्यायशब्दो अल्पविराम-चिह्नथी जुदा पाडी एकसाथे लीधा छे; पण जे अर्थो के अर्थछायाओ तत्त्वतः भिन्न छे तेमनी वच्चे अर्धविरामचिह्न मूक्युं छे. आमां ज्यां जुदाजुदा आधारग्रंथो जुदाजुदा अर्थो आपता होय त्यां एमने पण जुदा पाड्या छे. जेमके, उफराटु, उफरा, ऊफराहूं, ऊफरांतुं दशस्कं ( 9). प्रेमाका. ऊंचुं करेलुं, उलाळेलुं; *कादं (शा). *नलाख्या. "प्रबोप. *प्रेमाका. [पराङ्मुख, अवकुं, पीठ फेरवेलूं ]; शृंगामं, सिंहा (शा). अवकुं, [प्रतिकूळ]; शृंगामं. आडुं, अवलुं [ऊलटी दिशामां] ; [ अवळो भाग, पूंछडुं ] अर्धविरामचिह्न ';' थी जुदी पाडेली आ शब्दनी पांच अर्थछायाओ अहीं नोंधायेली छे एम कहेवाय. बीजी रीते जोईए तो आ शब्द प्रेमाका. मां बे अर्थछायाओमां अने शृंगामं. मां त्रण अर्थछायाओमां वपरायेलो मळ्यो छे. आ संकलित कोशमां घणा अर्थनिर्णयो करवाना थया छे एमां मुख्य परिबळ अने चावी तो शब्दोना कृतिओमां थयेला वास्तविक प्रयोगो छे. प्राप्त अर्थ, शब्द कृतिमां जे ते वपरायो होय ए जोतां असंगत के शंकास्पद लागे एटले साचो अर्थ शोधवा तरफ वळवानुं थाय. केटलीक वार तो शब्दना घणा प्रयोगो एकठा थवाथी एमांथी ज खरा अर्थनो संकेत थयो छे पछी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, देशी, फारसी, उर्दू, हिंदी, 2010_03 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४६ ] राजस्थानी अने गुजराती कोशोनी भरपूर मदद लीधी छे. आ कोशोए कोई वार शब्दना अर्थने आबाद उघाडी आप्यो छे. अलबत्त, शब्द त्यां उच्चारभेदथी पडेलो होय ने एना सुधी पहोंचवा मथामण करवी पडी होय एवं बन्युं छे. डॉ. भायाणीनी शब्दचर्चाओ-शब्दकथाओ, डॉ. सांडेसरानां लेक्सिकोग्रेफिकल स्टडिझ इन जैन संस्कृत ने वर्णकसमुच्चय जेवां संपादनो, वनस्पतिकोशी, जैनधर्मविचारना ग्रंथो वगेरे प्रकारनां केलांक इतर साधनोनो पण वारंवार उपयोग कर्यो छे अने ए उपयोग सार्थक पण थयो छे. डॉ. भायाणीना परामर्शननो लाभ वारंवार लीधो छे ते उपरांत जुदाजुदा विषयना केटलाक जाणकारोने पूछवानुं पण अवारनवार बन्युं छे. आ संपादकनी पोतानी मध्यकालीन भाषासाहित्यनी जाणकारी पण केटलेक स्थाने काम आवी होय. एक ज शब्द माटे अनेक साधनोमां खांखांखोळां करवा पड्या छे ने अंते संपादके पोतानां सूझ अने विवेक वापरवा पड्यां छे एवं पण बन्युं छे. आ आखी प्रक्रिया अहीं बतावी न शकाय तेमज आ संकलित कोशमां मूळना अर्थो ज्यां बदल्या छे त्यां कया आधारे एम कर्तुं छे ए पण कोशमां न दर्शावी शकाय. पण संपादके ज्यां अर्थ बदल्या छे त्यां आधारपूर्वक ज एम कर्तुं छे एनी खातरी जरूर आपी शकाय. ज्यां नवा अर्थ विशे पूरी खातरी थई शकी नथी त्यां शंकाचिह्न मूकवानी पण काळजी राखी छे. आम छतां संपादकनी सरतचूक के गेरसमज काम नहीं करी गई होय एवं तो साव न कही शकाय. आ कोशमां अर्थनिर्णयनी प्रक्रिया केवी रीते चाली छे एनो थोडो अंदाज आ ग्रंथमां पाछळ थोडीक शब्दार्थचर्चा मूकी छे तेना परथी आवशे. कोशमां अर्थनिर्णय माटे उपयोगमां लीला ग्रंथोनी यादी पण पाछळ जोडवामां आवी छे. शब्दमूळ शब्दार्थ आप्या पछी कौंसमां शब्दमूळ एटलेके व्युत्पत्ति आपवामां आवेल छे. गोळ कौंस ( ) मां छे ते मूळ ग्रंथमांथी प्राप्त थयेल शब्दमूळ छे, चोरस कौंसमां छे ते आ संकलित कोशना संपादके आपेल छे. आ विशे आरंभे ज स्पष्टता करवी जोईए के कौंसमां बधे चुस्त रीते व्युत्पत्ति अभिप्रेत नथी. केटलेक स्थाने मळतापणुं ज अभिप्रेत छे. एटले मध्यकालीन गुजराती शब्दने मळतो शब्द अन्यत्र प्राप्त थतो होय तो ए पण नोध्यो छे. कौंसमां भीली, कच्छी, हिंदी, मराठी, पंजाबी, पालि वगेरे भाषाना शब्दो नोध्या छे त्यां समान्तरता ज समजवानी छे. आम तो, डॉ. भायाणीनो अभिप्राय एवो हतो के व्युत्पत्तिना विषयमां बहु पडवा जेवुं नथी. आपणे त्यां घणी वार व्युत्पत्ति अपाय छे ते आधारभूत होती नथी, ए ग 2010_03 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] तेम बेसाडी देवामां आवेली होय छे के अटकळे मुकायेली होय छे. छतां व्युत्पत्ति आपवी ज होय तो अत्यंत प्रमाणभूत होय तेवी ज आपवी. खोटी व्युत्पत्तिना प्रसार-प्रचारमा आपणे साधनरूप न थq. खरी वात छे के व्युत्पत्ति ए एक स्वतंत्र ने अलायदु विषयक्षेत्र छे अने ए जुदी ज सज्जता ने जुदो प्रयास मागे. आ कोश मुख्यत्वे शब्दार्थकोश छे, ए ने माटे व्युत्पत्ति आपवी अनिवार्य नथी. एटले डॉ. भायाणीनी ए सलाह योग्य ज हती के व्युत्पत्ति मर्यादित रूपे ने एकदम प्रमाणभूत होय ते ज आपवी. परंतु प्राप्त व्युत्पत्तिनी प्रमाणभूतता चकासवानी आ कोशना संपादकमां पूरी योग्यता नहोती अने हानोपादाननो विवेक करवो एने माटे मुश्केल हतो. बीजी बाजुथी एम जोवा मळतुं हतुं के निर्दिष्ट व्युत्पत्तिओ के समान्तरताओथी घणी वार शब्दने वधारे सारी रीते ओळखी शकातो हतो ने एना अर्थने टेको प्राप्त थतो हतो. घणी वार शब्दना अर्थनो निर्णय करवानी प्रक्रियामां संस्कृतादि भाषाना शब्दो मळी आव्या छे. एम पण लाग्युं के शब्दमूळ अंगेनी जे कंई सामग्री प्राप्त थती होय ए एक वखत संकलित थई जाय तो एमां कई खोटुं नथी. मूळ संपादित ग्रंथो सिवायनां साधनोमांथी एवी सामग्री मळती होय तो एनेये, आ दृष्टिए, आमेज करवी जोईए. आम, आ कोशमां शब्दना स्वरूप अने प्रयोग पर प्रकाश पाडनार व्युत्पत्तिनी के एवी सामग्री आपवामां संकोच राख्यो नथी. पण साथेसाथे डॉ. भायाणीनी प्रमाणभूतता माटेनी जिकरने अवगणी पण नथी. मूळ ग्रंथोमां के अन्यत्रथी प्राप्त व्युत्पत्तिओ पोताना मर्यादित ज्ञानथी पण संपादकने निराधार जणाई त्यां ए छोडी ज दीधी छे. ज्यां संपादकथी निर्णय थई शक्यो नथी त्यां फूदडी मूकी शंका दर्शावी छे. मूळ ग्रंथमांनी अने अन्यत्रथी प्राप्त के संपादके विचारेली एम बन्ने व्युत्पत्तिओ साथे मूकवानुं पण घणी वार बन्युं छे. संस्कृतनां कल्पित रूपो पण एना संकेत साथे साचवी लीधा छे - ए मान्य प्रणालिका होवाथी. उक्तिर.ना संस्कृत शब्दो तो व्युत्पत्तिनी दृष्टिए टकी शके तेम न होय त्यां पण, अर्थप्रकाशक होवाने कारणे साचवी लेवानुं बन्युं छे. ए हकीकत ध्यानमा राखवानी छे के मध्यकालीन शब्दनी व्युत्पत्ति दर्शावती वखते ए ज विभक्तिरूप के क्रियापदरूप आपवानो आग्रह राख्यो नथी. शब्द- मूळ कोई पण रीते सूचवाय ए ज पर्याप्त लेख्युं छे. ज्यां शब्दार्थ रूपे ज संस्कृतादि भाषानो मूळ शब्द आवी जतो होय त्यां पछी व्युत्पत्तिना विभागमा ए शब्द फरी बताववान राख्युं नथी, केमके आ कई व्युत्पत्तिकोश नथी ने अहीं तो गमे ते रीते मूळ शब्द दर्शावाय ते चाली शके. थोडाक दाखलाओथी आ बधा मुद्दा समजीए : 2010_03 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४८ ] अक्खड़ षष्टिप्र. कहे छे (सं. आख्याति) अहीं गोळ कौंसमानी व्युत्पत्ति मूळ ग्रंथमांथी छे एम समजवानुं छे. अजवि ऐतिका. आज पण [ सं . अद्यापि ] अहीं चोरस कौंसमांनी व्युत्पत्ति संपादके पूरी पाडेली छे एम समजवानुं छे. अउगनाइ उक्तिर. ध्यानमां न ले (सं. अपकर्णयति) [सं. अवकर्णयति ] गोळ कौंसमां आपेली व्युत्पत्ति मूळ ग्रंथमांथी छे पण एने माटे पूरो आधार नथी एम फूदडी करीने दर्शाव्युं छे. चोरस कौंसमां मूकेली व्युत्पत्तिने माटे आधार छे एम समजवानुं छे. अत षडावा. "अहीं, [*आ बाबतमां] (सं. अत्र), [*कदाच, संभवतः ] [सं. उत] आ दाखलामां मूळ ग्रंथमां अतने सं. 'अत्र' मांथी व्युत्पन्न करी अर्थ आपवामां आव्यो छे, जे शंकास्पद जणायो छे. आथी संपादके एनी सं. 'उत' मांथी व्युत्पत्ति साधी बीजा अर्थनो तर्क कर्यो छे. अतांड प्रेमाका. खूब ऊंचेथी [*सं.उत्तान ] अहीं मूळ ग्रंथमां व्युत्पत्ति आपवामां आवी नथी, ने आ कोशना संपादके पण तर्क कर्यो छे. आफरिउ गुर्जरा. विराप. आफरो चडेलुं, [उन्माद चडेलूं]; प्रद्युचु. आफरोचडेलूं, फूलेलुं (सं. आ + स्फुर्) [सं. आ+स्फर्] अहीं मूळ ग्रंथमां अपायेली व्युत्पत्ति उपरांत संपादके उमेरेली व्युत्पत्ति पण शक्य छे एम समजवानुं छे. वस्तुतः संस्कृतमां ज ' आ + स्फुर्' परथी 'आ+स्फर्' थयेल छे. आ ते एक करतां वधु ग्रंथोमांथी शब्द मळेलो होय त्यां व्युत्पत्ति एमांना कोई एक के वधु ग्रंथमां अपायेली समजवानी छे, एनी तरत पूर्वे निर्दिष्ट ग्रंथमांथी ज छे एम समजवानुं नथी. आखडे प्रचु. ठोकर खाय; * अखाका. कादं (शा). नेमिछं. * प्रेमाका. लथडी पडे; "नरका. [लडे] (सं. आस्खलति ) [सं. * आक्षुटति ] अहीं मूळ ग्रंथमां अपायेली व्युत्पत्ति सामान्य रीते स्वीकृत व्युत्पत्ति छे सं. 'आक्षुटति' मांथी शब्द वधारे सारी रीते व्युत्पन्न थई शके तेम होवाथी संपादके ए व्युत्पत्ति उमेरी छे, पण 'आक्षुटति' ए संस्कृतमां प्रयोजातुं रूप नहीं पण कल्पित रूप छे एम एनी पूर्वे फूदडी करी छे ते परथी समजवानुं छे. संस्कृतमां 'क्षुट्' शब्द मळे छे, 'आक्षुट्' शब्द मळतो नथी. आमलीय तरका. आंबळो (सं. *आमलिका, अप. आमलीय) अहीं एम अभिप्रेत छे के संस्कृतमां 'आमलिका' शब्द मळतो नथी, पण एवा 2010_03 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४९ ] शब्द परथी ज अपभ्रंशमां मळतो 'आमलीय' शब्द आवी शके. आमोडउ प्राचीसं. अंबोडो (सं. आम्रमुकुट) [दे. आमोडो] मूळ ग्रंथमां व्युत्पत्ति आपी छे ते बराबर छे, पण साथे 'आमोडो' शब्द देश्य शब्द तरीके पण नोंधायेलो मळे छे ए संपादकना उमेरणनुं तात्पर्य छे. अजमाण नरका. अजमो [हिं. अजवाइन ] अहीं संपादके हिंदी शब्दनी समान्तरता दर्शावी छे एम समजवानुं छे एटलेके 'सरखावो हिं. अजवाइन' ए तात्पर्य छे. अडसीला "नेमिछं [हठीला] [रा.अडसाला ] अहीं राजस्थानीमां 'अडसाला' शब्द आ अर्थमां प्राप्त थाय छे एटलुं ज तात्पर्य छे. अडसीलामां पाउदोष जोई शकाय एवं नथी तेथी बन्ने शब्दो एम ज राख्या छे. कण आरारा. कन्या, पुत्री (रा. ; सं. कनी ) अहीं एम दर्शाववामां आव्युं छे के कणिनुं मूळ सं. 'कनी' मां छे, पण राजस्थानीमां पण कणि शब्द नोंधायेलो छे. आ साथै ज ए स्पष्टता करवी जोईए के ज्यां शब्दने राजस्थानी, हिंदी वगेरे कह्यो छे त्यां ए केवळ राजस्थानी के हिंदी छे एम हंमेशां तात्पर्य नथी, भगवद्गोमंडल जेवो कोश पण घणी वार ए शब्द आपतो होय छे अने घणी गुजराती कृतिओमां ए प्राप्त थतो होय छे, परंतु राजस्थानी के हिंदी कोशमांथी ए शब्दने समर्थन मळे छे ए ताववानुं तात्पर्य होय छे. आराडि षडाबा. आक्रंद, चीस, बराडा (सं.आरटते) अहीं, जोई शकाय छे के, संज्ञारूपना मूळ तरीके क्रियापदरूप अपायेलुं छे. संस्कृतमां संज्ञारूप मळतुं न होवाथी क्रियापदरूप परथी ए सधायुं होवानी धारणा एनी पाछळ छे. अकयत्थ आरारा. एके; ऐतिका. अकृतार्थ, [जेनुं जीवन सार्थक नथी एवो ] अहीं अकयत्थनुं मूळ सं. 'अकृतार्थ' छे, जे शब्दार्थ तरीके ज आवेल छे तेथी व्युत्पत्ति-विभागमां एने दर्शावेल नथी. अणगाल * अभिऊ. [ अकाल, खराब समय ] [प्रा. ] अणगाल सं. 'अकाल' मांथी आवेल छे, जे शब्दार्थमां आवी गयेल छे. पण प्राकृतमां 'अणगाल' मळे छे ते अहीं दर्शाववामां आव्युं छे. अशाबो नरप असबाब, सरसामान, अलंकार अहीं अशाबोनुं मूळ अरबी / फारसी 'असबाब ' शब्दार्थमां आवी गयेल छे. तेथी अलग दर्शावेल नथी. 2010_03 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५०] संपादके व्युत्पत्ति के समान्तरता दर्शावी छे एमां अन्य साधनोनी घणी मदद लेवामां आवी छे. व्युत्पत्तिनी बाबतमां, सामान्य रीते, डॉ. भायाणीए एमना ग्रंथोमां आपेली व्युत्पत्तिओ वधु साधार लेखवानुं वलण रमु छे. छतां संपादक पोताना आ प्रयासनी अधूरपथी सभान छे ज. एथी ज एवी विनंती करवानी छे के अभ्यासीओ अहीं अपायेली व्युत्पत्तिओने कामचलाउ रीते अपायेली लेखे अने प्रमाणभूत व्युत्पत्ति माटे मान्य लेखातां साधनोनो आश्रय ले. हवे तो डॉ. हरिवल्लभ भायाणीना गुजराती भाषानो लघु व्युत्पत्तिकोशमां घणी व्युत्पत्तिओ हाथवगी पण थई छे. अलबत्त, ए अर्वाचीन गुजराती शब्दोनो व्युत्पत्तिकोश छे, तेथी केवळ मध्यकाळमां प्रचलित शब्दोनी व्युत्पत्ति एमांथी नहीं जडे. जेवी छे तेवी आ संकलित कोशमां अपायेली व्युत्पत्तिओ थोडी पण काम आवशे तो संपादके ए माटे करेलो श्रम लेखे लागशे. आधारग्रंथो (शब्दसामग्री माटे उपयोगमां लीधेला संपादित ग्रंथोनो परिचय, एमना संक्षेपाक्षरोने क्रमे) अखाका. अखानी काव्यकृतिओ खंड २, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. साहित्य संशोधन प्रकाशन, अमदावाद, १९८८. __ आ संपादन अखाभगतनां पदो उपरांत बीजी केटलीक कृतिओने समावे छे. कोई कृति रचनावर्ष धरावती नथी, परंतु अखाभगतनो कवनकाळ सत्तरमी सदी मध्यभाग निश्चित छे. आमां आशरे १५०० शब्दोने समावतो कोश छे. एमां संस्कृत शब्दो अने रूढिप्रयोगो पण नोंधवामां आव्या छे. 'शुद्धि अने वृद्धि'मां पण शब्दकोशने लगती शुद्धिवृद्धि छे. अखाछ. अखाना छप्पा, संपा. उमाशंकर जोशी, प्रका. वोरा, अमदावाद, त्रीजी आवृत्ति १९७७. आ कृतिने पण रचनावर्ष नथी, परंतु अखाभगतनो कवनकाळ सत्तरमी सदी मध्यभाग सुनिश्चित छे. ___आमां ४५०० जेटला शब्दोंने समावती शब्दसूचि छे ते उपरांत छप्पाओनी साथे टिप्पण रूपे पण अर्थ ने समजूती आपेला छे, टिप्पणमां अपायेला शब्दार्थोमांथी केटलाक शब्दसूचिमां आव्या न होय एबुं देखाय छे. शब्दकोशमां शब्दो परत्वे एकधी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे. अखेगी. अखेगीता, संपा. उमाशंकर जोशी अने रमणलाल जोशी, प्रका. गुजरात युनिवर्सिटी, अमदावाद, बीजी आवृत्ति १९७८. 2010_03 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ कृतिनुं रचनावर्ष १६४९ (सं.१७०५) मळे छे. २०० उपरांत महत्त्वना शब्दोनो कोश आमां छे. आमां पण शब्दो परत्वे एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे. शब्दकोश उपरांत विस्तृत टिप्पण पण छे. अभिऊ. दिहलकृत) अभिवन-ऊझj, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. पोते, अमदावाद, १९६२. कृतिनो रचनासमय नथी, पण एनी हस्तप्रतनुं लेखनवर्ष १६२४ मळे छे. कर्ता १५०० आसपास हयात होवार्नु अनुमान थयुं छे. शब्दकोशमां ४०० उपरांत शब्दो छे. शब्दोना व्याकरणी पदप्रकार दर्शावेल छे अने घणा शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे. अंगवि. (कीकु वसहीकृत) अंगद-विष्टि, संपा. हरिनारायण आचार्य. जुओ कृष्णबा. अंबरा. (वाचक मंगलमाणिक्य विरचित) अंबड विद्याधर रास, संपा. बलवंतराय क. ठाकोर, प्रका. एन. एम. त्रिपाठी लिमिटेड, मुंबई, १९५३. कृतिनुं रचनावर्ष १५८३ (सं.१६३९) मळे छे. कृतिनो मूळ पाठ छपाया पछी बलवंतराय ठाकोरनुं अवसान थयेखें. एमनी आंखनी तकलीफने कारणे प्रफवाचननी घणी भूलो रही जतां भोगीलाल सांडेसराए विस्तृत पाठशोधन आप्युं छे अने शब्दकोश पण उमेर्यो छे. एमां २५० जेटला शब्दो नोधायेला छे. केटलाक शब्दो परत्वे एकथी वधु स्थाननिर्देश करेल छे. 'ष'ने 'ख'ना क्रममा मकेल छे. जेमके 'षासर' (-खासर). आनंस्त. 'आनंदघन बावीसी' पर ज्ञानविमलसूरिकृत स्तबक, संपा. कुमारपाळ देसाई, प्रका. कौशल प्रकाशन, अमदावाद, १९८०. स्तबकनुं रचनावर्ष नथी, परंतु सौथी जूनी हस्तप्रत १७१३ (सं.१७६९)नी लखायेली मळे छे जे ज्ञानविमलसूरिना जीवनकाळ (१७२६ सुधी हयात)नी छे. एटले ए वर्षे के एनी पूर्वेनां थोडां वर्षोमां स्तबक रचायो हशे एम अनुमान थई शके. ___ आशरे ७०० शब्दोने समावतो विस्तृत शब्दकोश आमां छे. 'नीपजइ' 'पदार्थनई' जेवा अंत्य स्थानना सामान्य उच्चारणभेदवाळा घणा शब्दो ने 'अकस्मात भय' जेवा चालु शब्दो नोंधाया छे, जे आ संकलित शब्दकोशमां छोडी दीधा छे. ते उपरांत, जैन, बौद्ध, न्याय वगेरे दर्शनोना घणा पारिभाषिक शब्दोनी समजूती पण एमां छे. ए शब्दो पण चालु भाषाना 2010_03 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न होई अने दार्शनिक संदर्भ धरावता होई सामान्य रीते छोडी दीधा छे. आम छतां जैन दर्शनना केटलाक शब्दो अन्य मध्यकालीन कृतिओमां सामान्यपणे वपराता जणाया ते साचववानुं पण बन्युं छे. शब्दो परत्वे एकथी वधारे स्थानोनो निर्देश थयो छे.. संपादके शब्दकोशमा मात्र स्तबक-अंतर्गत शब्दो ज समाव्या छ, स्तवनोमा रहेला शब्दो लीधा नथी पण स्तबकोमा मूळ शब्द आपी एनो अर्थ नोंधवानी एक रूढि छे तेथी स्तवनना केटलाक शब्दोने स्थान मळ्यु छे. जेमके स्तबकमां गंजी जीति न सकइ एम छे त्यां 'गंजी' मूळ स्तवननो शब्द छे ने एनो स्तबककारे 'जीति' अर्थ आप्यो छे. पण स्तबकमां मूळना बधा शब्दो आव्या नथी अने तेथी केटलाक लाक्षणिक मध्यकालीन शब्दो स्तवनोमां ज रह्या छे, एमने शब्दकोशमां स्थान मळ्युं नथी. स्तबककारे पोते शब्दना अर्थ कर्या छे ने क्यारेक पर्याये कथन कर्यु छे तेथी मध्यकालीन शब्दार्थ के कर्ताने अभिप्रेत शब्दार्थ प्रमाणभूत रीते आपणा हाथमां आवे एवं अहीं बन्युं छे. जोके संपादक एनो लाभ न लई शक्या होय एवां स्थानो पण देखाय छे. जेमके 'वृष'नो अर्थ संपादक 'श्रेष्ठ' आपे छे, परंतु 'ऋषभ' (वृषभ) शब्द समजावतां स्तबककारे आम लखेतुं छे : "वृष कहेतां आत्मभावरूप धर्म... भ कहेतां शोभइ..." संस्कृत कोशो पण 'वृष'ना 'धर्म, नीति, सत्कर्म' वगेरे अर्थो नोंधे छे. आरामशोभा रासमाळा, संपा. जयंत कोठारी, प्रका. प्राकृत जैन विद्याविकास फंड, अमदावाद, १९८९. अहीं समाविष्ट आरामशोभा कथानकने वर्णवती छ कृतिओ १४७९थी १७०५ सुधीनां रचनावर्षों धरावे छे. शब्दकोश २००० उपरांत शब्दोने समावे छे. एकथी वधारे स्थानोनो निर्देश पण छे. शुद्धिपत्रकमां थोडाक शब्दोना अर्थ सुधारवामां आव्या छे, जेनो अहीं लाभ लेवायो छे. शब्दकोशमां क्यांक क्रमभंग छे. आरारा (व). उपर्युक्त ग्रंथनो वनस्पतिकोश. एमां आशरे २५० शब्दो छे. उक्तिर. (साधुसुन्दरगणी विरचित) उक्तिरलाकर, संपा. जिनविजय मुनि, प्रका. राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर, १९५७. कृति, रचनावर्ष नथी, परंतु कर्तानो सर्जनकाळ १६२४थी १६२७ जाणवा मळे छे. ग्रंथमां आ कृति उपरांत अन्य बे अज्ञातकर्तृक औक्तिको पण छे. आरारा. ___ 2010_03 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपबा. आ कृतिओ गुजराती भाषानां शब्दो, व्याकरणरूपो अने वाक्योने संस्कृत पर्यायो आपीने समजावे छे. छेल्ले सर्व सामग्रीने आवरी लेतो विस्तृत शब्दानुक्रम छे, जेमां ४००० उपरांत शब्दो ने शब्दसमूहो नोंधाया छे. आ केवळ शब्दानुक्रम छे, त्यां अर्थ नोंघेल नथी, पण निर्दिष्ट स्थाने अर्थ - अलबत्त संस्कृतमा - मळे छे. सत्तरमी सदीना शब्दार्थोना एक प्रमाणभूत दस्तावेज तरीके आ ग्रंथनी सामग्री, मोटुं मूल्य छे. तेथी संस्कृतना आधारे गुजराती अर्थ करीने आ ग्रंथना शब्दकोशनो लाभ लेवानुं इष्ट मण्युं छे. सत्तरमी सदीमां वपराता शब्दोमां आजे वपराता शब्दो पण होय ज. ए अहीं लेवाना न होय ए स्पष्ट छे. मध्यकाळमां 'ख' माटेर्नु लिपिचिह्न पण 'ष' हतुं. आ पुस्तकना शब्दानुक्रममां 'ख'थी आरंभाता शब्दो 'ख'मां तेमज 'ष'मां एम बन्ने स्थाने मुकायेला छे. 'ष'मा 'ष(ख)ईई' एम करीने शब्दो नोंध्या छे. आ संकलित शब्दकोशमां बधा शब्दो 'ख'ना क्रममा ज लीधा छे. . अ स्टडी ऑव् ध गुजराती लैंग्विज इन ध सिक्स्टिन्थ सेन्च्युरी (वी.एस.) विथ स्पेशिअल रेफरन्स टु ध एमएस. बालावबोध टु उपदेशमाला, त्रिंबकलाल एन. दवे, ध रॉयल अॅशिआटिक सोसायटी, लन्डन, १९३५. आमां नन्नसूरिचित बालावबोध समाविष्ट छे. ए १४८७मां रचायेलो छे. बालावबोधना लगभग १६०० शब्दोने समावतो शब्दकोश आमां छे. कृतिपाठ, शब्दकोश वगेरे सघळु रोमन लिपिमां छे. शब्दो परत्वे लगभग अशेषपणे स्थाननिर्देश करवानो प्रयल देखाय छे अने दरेक स्थाने वपरायेला शब्दना व्याकरणी रूपने पण ओळखाव्युं छे. शब्दोना अर्थ अंग्रेजीमां छे, जेनो अहीं गुजराती अनुवाद करवामां आव्यो छे. शब्दोनी व्युत्पत्ति दर्शाववामां आवी छे. 'ख' 'ष' रूपे लखायेलो होवाथी एनाथी आरंभाता शब्दो (जेमके 'खउरउ') 'ष'ना क्रममा ज मूकेला छे, जे आ कोशमां 'ख'ना क्रममां लई लीधा छे. (वीरसिंहकृतं) उषाहरण, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९३८.. कृतिनुं रचनावर्ष नथी पण प्राप्त प्रतनुं लेखनवर्ष १५१३ (सं.१५६९) छे ने एनो रचनाकाळ पंदरमी सदीनुं त्रीजुं चरण होवानुं अनुमान थयुं छे. शब्दकोशमां आशरे ४०० शब्दो छे. मूळ संस्कृत-प्राकृत-देश्य शब्दो उषाह. 2010_03 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथा समांतर हिंदी, मराठी, आधुनिक गुजराती शब्दो पण नोंध्या छे. ऐतिका. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह, संपा. अगरचंद नाहटा, भंवरलाल नाहटा, प्रका. शंकरदान शुभैराज नाहटा, कलकत्ता, सं.१९९४. आमां बास्मी सदी पूर्वार्धथी ओगणीसमी सदी पूर्वार्ध सुधीनी कृतिओ संघरायेली छे. शब्दकोशमां लगभग १३०० शब्दो छे. अत्यारे गुजरातीमां अत्यंत अपरिचित एवा 'अढळक दान' जेवा कोईक शब्दो पण नोंधाया छे, ते राजस्थानी प्रदेशमां अत्यारे वपराशमां नहीं होय ते कारणे हशे. आ ग्रंथमां अर्थ हिंदी भाषामां आपवामां आव्या छे, तेनो आ कोशमां सामान्य रीते अनुवाद करी लीधो छे. ऐतिरा. ऐतिहासिक राससंग्रह, भाग पहेलो, संपा. विजयधर्मसूरि, 'प्रका. यशोविजय ग्रंथमाळा, भावनगर, सं.१९७२. ग्रंथमां पंदरमी सदी उत्तरार्धथी सत्तरमी सदी पूर्वार्ध सुधीनी कृतिओ संगृहीत थई छे. शब्दकोशमां आशरे ३५० शब्दो छे. प्रथमाक्षरमां “अं' कारवाळा शब्दो ('भंति') जुदाजुदा क्रमे मुकाया छे पण 'ओ'कारवाळा शब्दो 'आ'कारनी पूर्वे ज मुकाया छे. 'ख'थी आरंभाता शब्दो 'ष'मां छे, जे आ कोशमां 'ख'मां लई लीधा छे. (मतिसारकृत) कर्पूरमंजरी, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९४१. कृति १५४९ (सं.१६०५)मां रचायेल छे. शब्दकोश आशरे १०० शब्दोंने समावे छे. संस्कृत-प्राकृत-देश्य ने क्वचित फारसी शब्दमूळ तेमज हिंदी, मराठी, अर्वाचीन गुजराती, प्रादेशिक गुजराती वगैरे प्रकास्नां समान्तर रूपो दर्शाव्यां छे. 'ए' 'नि' बगेरे प्रत्ययो लीधा छे ते आ संकलित कोशमां छोडी दीधा छे.. कस्तुवा. (शामळ भट्ट कृत) कस्तुरचंदनी वारता. जुओ नंदब. कादं (धु). (कविश्री भालणकृत) कादंबरी, पूर्व भाग, संपा. केशवलाल ह. ध्रुव, प्रका. पोते, अमदावाद, १९.१६. कृतिनो रचनासमय मळतो नथी. पण भालणनो जीवनकाळ सोळमी सदी पूर्वार्ध आसपासनो होवानुं अनुमान थयुं छे. 'केटलाक असाधारण शब्दो' ए शीर्षक नीचे २०० उपरांत शब्दोना । कर्पूमं. 2010_03 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५५ ] अर्थ आपवामां आव्या छे. शब्दों परत्वे काव्यपंक्तिनो तेमज टिप्पणना पृष्ठनो संदर्भ आपेल छे. आथी, क्यांक अर्थ नोंध्या नथी ('पोतृ' 'प्रणीता' जेवा खास शब्दोना) त्यां टिप्पणमांथी मेळवी शकाय छे ते उपरांत केटलाक शब्दोनी विशेष समजूती पण त्यांथी मेळवी शकाय छे. कादं (शा). (कवि भालणकृत) कादंबरी, पूर्व भाग, संपा. केशवराम का. शास्त्री, प्रका. भारत प्रकाशन, अमदावाद, बीजुं संस्करण १९६९; (कवि भालणकृत) कादंबरी, उत्तर भाग, संपा. प्रका. ए ज, प्रथम संस्करण १९६९. बने ग्रंथोमां बन्ने भागोने आवरी लेतो समान शब्दकोश आपवामां आव्यो छे. ए शब्दकोशमां आशरे ६०० शब्दो छे. थोडा शब्दो परत्वे एकथी वधु स्थाननिर्देशो छे. व्युत्पत्तिविषयक ने व्याकरणविषयक नोंधो बधा शब्दमां आपी छे. कामा (त्रि). (लोकवार्ताकार शिवदासकृत ) कामावती, संपा. भूपेन्द्र बा. त्रिवेदी, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९७२. कृतिनुं रचनावर्ष १५१७ (सं. १५७३) मळे छे. कृष्णच. कृष्णबा. शब्दकोशमां आशरे २०० शब्दो छे. उच्चारणभेदथी आवता शब्दो साथै ज लई लीधा छे. जेमके, 'ओहोलास, होलास [ ५९० व.] - उल्लास'. आधी थोडाक शब्दो एमना वर्णानुक्रमथी अलग स्थाने नोंधाया होवानी स्थिति ऊभी थाय छे. कामा (शा). कामावतीनी कथानो विकास अने कवि शिवदासकृत 'कामावतीनी वार्ता', प्रवीण अ. शाह, प्रका. पोते, विरमगाम, १९७६. शब्दकोशमां २०० उपरांत शब्दो छे. अहीं पण उच्चारभेदवाळा शब्दो साथे लीधा छे. थोडाक शब्दो परत्वे स्थानिर्देश आपवानो चुकाई गयो छे. ( अज्ञात कविकृत) कृष्णचरित्र. जुओ कृष्णबा. (कीकु वसहीकृत) कृष्ण - बालचरित तथा अन्य मध्यकालीन रचनाओ, संपा. हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९९२. अन्य मध्यकालीन रचनाओमां कीकु वसहीकृत अंगदविष्टि, अज्ञात कविकृत कृष्णचरित्र अने अज्ञात कविकृत रावणचरितनो समावेश छे. एकेय कृति रचनावर्ष धरावती नथी. परंतु कीकु वसही पंदरमी सदीना अंते के सोळमी सदीना आरंभे हयात होवानुं अनुमान थयुं छे अने अज्ञातकर्तृक बे कृतिओ अनुक्रमे पंदरमी सदी अंतभाग अने तेरमी 2010_03 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शताब्दी लगभगनी होवानुं अनुमान थयुं छे. रावणचरित सिवायनी त्रणे कृतिओना अलग शब्दकोश आपवामां आव्या छे, जे अनुक्रमे १००, ५० अने १०० शब्दोने समावे छे. अंगदविष्टिना शब्दकोशने मथाळे भूलथी कृष्णविष्टि छपायुं छे. गुर्जरा. गुर्जररासावली, संपा. बी. के. ठाकोर, एम. डी. देसाई, एम. सी. मोदी, प्रका. ऑरिएन्टल इन्स्टिट्यूट, बरोडा, पुनर्मुद्रण १९८१. आ ग्रंथमां १३५४(सं.१४१०)थी १४२९ (सं.१४८५) सुधीनी कृतिओ संघरायेली छे. २२६ पानांमां विस्तरता शब्दकोशमां ३५०० जेटला शब्दो छे. शब्दोनां विविध विभक्तिओ के काळ-अर्थनां रूपो नोंध्यां छे, एमनां प्रयोगस्थानो प्रचुरताथी निर्देश्यां छे अने दरेक शब्द परत्वे व्युत्पत्तिविषयक, व्याकरणविषयक, अर्थविषयक नोंध वीगते आधारो साथे आपी छे. केटलाक शब्दोना अर्थ टिप्पणमां सुधार्या छे, जेनो आ संकलित कोशमां उपयोग करी लीधो छे. शब्दकोशमां सर्वग्राही बनवानो हेतु होवाथी 'द्रौपदीअ' 'धणियाणी' 'नागिणी' 'नाचई' जेवा शब्दो पण आप्या छे, जे आ संकलित कोशमां छोडी दीधा छे. ग्रंथमां अर्थो अंग्रेजीमां आपेला छे तेनुं अहीं गुजराती करी लीधुं छे. चतुचा. (विश्वनाथ जानीरचित) चतुरचालीसी, संपा. महेन्द्र अ. दवे, प्रका. क. ला. स्वाध्यायमंदिर, अमदावाद, १९८६. आ कृति रचनावर्ष धरावती नथी, पण विश्वनाथ जानी, १६५२नी अन्य रचनाओ मळे छे. क शब्दसूचिमा २५० उपरांत शब्दो छे. चंद्रवा. (शामळ भट्टकृत) चंद्र-चंद्रावती वारता, संपा. हीरा रा. पाठक, प्रका. गूर्जर ग्रंथरन कार्यालय, अमदावाद, १९६८. कृतिनुं रचनावर्ष नथी, परंतु शामळनी अन्य कृतिओ १७१८थी १७६५नां रचनावर्षो बतावे छे.. शब्दकोशमा ३०० जेटला शब्दो छे. एकथी वधु स्थाननिर्देशो थया छे ने उच्चारभेदवाळा शब्दो एकसाथे लई लीधा छे. अर्थ निश्चित न थई शक्यो होय तेवां स्थानोए प्रश्नार्थ मूक्यो छे. शब्दकोशने मथाळे “पहेलो क्रम पृष्ठनो छे, बीजो कडीनो छे' एम कह्यु छे ते भूल छे. पहेलो अंक कडीनो ने बीजो चरणनो छे. चारफा. पंदरमा शतकनां चार फागुकाव्यो, संपा. कान्तिलाल ब. व्यास, प्रका. ___ 2010_03 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. [५७]. चित्तसं. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९५५. संगृहीत कृतिओ रचनावर्ष धरावती नथी, पण ए १४००थी १४७५ना आसपासना गाळामां रचायेली होवानुं नक्की थई शके छे. शब्दकोशमां १५० जेटला शब्दो छे. शब्दोना संस्कृत-प्राकृत-देश्य मूळ दाव्यां छे. (अखाजीकृत) चित्तविचारसंवाद, संपा. कीर्तिदा जोशी, प्रका. पोते, अमदावाद, १९९२. ___ कृति रचनावर्ष धरावती नथी, परंतु अखाभगतनो कवनकाळ सत्तरमी सदी मध्यभाग नक्की थई शके छे. शब्दकोश बे विभागमां वहेंचायेलो छे - सामान्य शब्दकोश तथा पारिभाषिक अने पौराणिक कोश. आ संकलित शब्दकोशमां सामान्य शब्दकोशना शब्दो ज लीधा छे, परंतु एमां पारिभाषिक कोशनो हवालो आप्यो छे त्यां पारिभाषिक कोशने आधारे आ संकलित कोशमां अर्थ आप्यो छे. सामान्य शब्दकोशमां ६०० उपरांत शब्दो छे. शब्दो परत्वे प्राप्त बधा संदर्भो नोंध्या छे. थोडाक शब्दो वर्णक्रमभंगथी मुकाया छे. जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि, संपा. अगरचन्द नाहटा, प्रका. सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टिट्यूट, बिकानेर, सं.२०१७. ___ आमां समाविष्ट बे दीर्घ कृतिओ १६०८ अने १६२२नां रचनावर्षों धरावे छे, पण बीजी घणीबधी लघु कृतिओ रचनावर्षो धरावती नथी. ते उपरांत जयकीर्तिगणिनो जिनराजसरि रास पण आमां समावायो छे. जिनराजसूरिनो जीवनकाळ १५९१थी १६४३ अने कवनकाळ १६०८थी १६४३ प्राप्त छे. जिनराजसूरि रास एमनी हयातीमां ज रचायो छे. शब्दकोशमां आशरे ५०० शब्दो छे. संगृहीत कृतिओमां कोईक प्राकृत छे ने घणा जैन पारिभाषिक शब्दो धरावे छे तेना शब्दो पण आ कोशमां छे. एकथी वधु स्थानो निर्देशायां छे, पण केटलाक शब्दोना अर्थ आपवाना रही गया छे. अर्थ हिंदी भाषामां आप्या छे तेनुं आ संकलित कोशमां, जरूर लागी त्यां, गुजराती करी लीधुं छे. शब्दो क्वचित वर्णक्रमभंगथी मुकाया छे. तेरमा-चौदमा शतकनां त्रण प्राचीन गुजराती काव्यो, संपा. हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९५५. संगृहीत कृतिओ जिनरा. तेरका. ___ 2010_03 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५८] तेरमी सदी पूर्वार्धथी चौदमी सदी पूर्वार्धना गाळानी छे. शब्दकोशमां आशरे १२५० शब्दो छे. लगभग अशेषपणे शब्दो नोंधवानुं वलण जणाय छे, तेथी 'आसो' 'आहार' 'इंद्रमंडप' जेवा शब्दो जोवा मळे छे, जेना अर्थो आपवानी संपादकने जरूर जणाई नथी. बधा शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे ने सघळा स्थाननिर्देश कर्या छे. क्रियापदो मूळ धातु रूपे ज दर्शाव्या छे, जेमके 'अवगन्न्'. ग्रंथपाठ शंकास्पद लाग्यो छे त्यां प्रश्नार्थ मूक्यो छे. ते ज रीते ज्यां अर्थ आपी शकायो नथी त्यां पण प्रश्नार्थ मूक्यो छे. त्रणे कृतिओना अनुवाद आपवामां आव्या छे त्यां आवां स्थानोनो अर्थ बेसाडवानी कोशिश करी छे, जेनो आ संकलित कोशमां लई शकायो त्यां आधार लीधो छे. दशस्क(१). दशमस्कंध-१, संपा. उमाशंकर जोशी अने हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. गुजरात युनिवर्सिटी, अमदावाद, १९६६. प्रेमानंदनी आ कृतिमां रचनावर्ष नथी, पण आ अधूरी रहेली कृति एमनी छेल्ली कृति होवानुं समजाय छे तेथी एनो रचनासमय सत्तरमी सदीनुं बीजं चरण गणाय. शब्दसूचिमां ५०० उपरांत शब्दो छे. केटलाक शब्दो परत्वे एकथी वधु स्थाननिर्देश छे. आ शब्दसूचि उपरांत कृतिनां पंक्तिवार टिप्पणो करेलां छ तेमां पण शब्दार्थो आपेला छे. आ संकलित कोशमां एनी क्वचित् मदद लीधी छे. दशस्क(२). दशमस्कंध-२, संपा. उमाशंकर जोशी अने हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. गुजरात युनिवर्सिटी, अमदावाद, १९७१. आ ग्रंथनी शब्दसूचिमां आशरे २५० शब्दो छे. अहीं पण टिप्पणो देवरा. (अज्ञात कविकृत) देवकीजी छ भायारो रास, संपा. बिपिनचंद्र जी. झवेरी, प्रका. गूर्जर ग्रंथरत्न कार्यालय, अमदावाद, १९५८. कृतिमां रचनावर्ष नथी पण एनी रचना अढारमी सदी पूर्वार्धनी अनुमानवामां आवी छे. शब्दसूचिमां आशरे ७०० शब्दो छे. काव्यनी शरूआतनी बेत्रण ढाळोमांथी प्रत्येक शब्द नोंध्यो छे, तेथी जेनो अर्थ आपवानी जरूर नथी लागी तेवा 'अचरज' जेवा शब्दो पण सूचिमां जोवा मळे छे. उच्चारभेदथी आवेला शब्दोने एमना क्रममा ज मूक्या छे, पण आ एक ज शब्दना ____ 2010_03 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्चारभेदो छ ए दर्शावती निशानी करी छे. 'ख'थी आरंभाता शब्दो 'ख'ना तेम 'ष'ना क्रममां पण मुकाया छे. शब्दोनी व्युत्पत्ति संस्कृत, अरबीफारसी वगेरेमांथी नोंधी छे. विस्तृत टिप्पणो छे तेमां पण शब्दार्थो नोंधाया छे. शुद्धिपत्रकमां शब्दसूचिना कोई शब्दार्थनो ने केटलीक व्युत्पत्तिओनो सुधारो नोंधायो छे. नरका. नरसिंह महेतानी काव्यकृतिओ, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. साहित्य संशोधन प्रकाशन, अमदावाद, १९८१. नरसिंह महेतानी कोई कृतिमां रचनावर्ष मळतुं नथी, पण नरसिंह महेतानो समय पंदरमी सदी मानवामां आव्यो छे. जोके नरसिंहने नामे पाछळथी घj उमेरायुं होवानी शक्यता छे तेथी आ ग्रंथनो शब्दकोश पंदरमी सदीनो ज छ एम कहेवू मुश्केल छे. शब्दकोश आशरे १३०० शब्दोने समावे छे. क्वचित पाठांतरमाथी पण शब्द लीधेल छे. 'अंतराय' "आभरण' जेवा अत्यारे वपराता थोडा शब्दो पण एमां जोवा मळे छे. नरका-२. नरसिंह महेतानी काव्यकृतिओ, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. साहित्य संशोधन प्रकाशन, अमदावाद, बीजी संशोधित आवृत्ति, १९८९. आ आवृत्तिमा पहेली आवृत्तिमां लीधेली केटलीक कृतिओ छोडी देवामां आवी छे ने तेथी शब्दकोशमां पण केटलोक फेरफार थयो छे. पहेली आवृत्तिना थोडा शब्दो आमा नथी, थोडाक नवा संदर्भो दाखल थया छे ने क्यांक अर्थनो फेरफार पण जोवा मळे छे. आ फेरफारो पूरतो, आवश्यकता जणाई सेटलो, आ बीजी आवृत्तिना शब्दकोशनो आ संकलित कोशमा उपयोग कर्यो छे. शब्दकोशनी शब्दसंख्या पहेली आवृत्तिथी खास फरक बतावती नथी. नरसैं महेताना पद, संपा. केशवराम का. शास्त्री, प्रका. गुजरात साहित्य सभा, अमदावाद, १९६४. ___ आ ग्रंथमां आशरे १६५० सुधीनी बे हस्तप्रतोमांथी ज पदो लेवामां आव्यां छे. शब्दकोश नानकडो - आशरे ७५ शब्दोनो छे. शब्दोनी व्युत्पत्ति आपेली छे. कोईक शब्द क्रमभंगथी मुकाया छे. 'ज्योवन नाडा' शब्द छेक "धेडी पछी आवे छे ! 'चाउखने बदले 'उख' छपायुं छे. ___ 2010_03 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नलरा. नरप(द). नरसिंह महेतानां पद (अप्रकाशित), संपा. रतिलाल वि. दवे, प्रका. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९८३. आ संग्रहनां घणां पदोनुं भाषास्वरूप ए घणा मोडा समयनी रचनाओ होवानो संकेत करे छे. __ शब्दकोशमां आशरे १५० शब्दो छे. (महीराजकृत) नलदवदंती-रास, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९५४, बीजी आवृत्ति, १९७७. __ कृति १५५६(सं.१६१२)मां रचायेली छे. एनी साथे जोडवामां आवेल अज्ञात कविकृत नलदवदंती-चरित्रमुं रचनावर्ष नथी. पण एनी एकप्रतनुं लेखनवर्ष १४८३ (सं.१५३९) छे. ए कृति पंदरमा शतकना त्रीजा चरणमां रचायेली होवानुं अनुमान थयुं छे. बन्ने कतिओने आवरी लेता शब्दकोशमां लगभग १२०० शब्दो छे. शब्दो विशे व्युत्पत्तिविषयक तेमज अर्थविषयक नोंधो आपवामां आवी छे अने मध्यकालीन गुजराती वगेरेना प्रयोगोना आधारो पण घणा शब्दो परत्वे दर्शाव्या छे. उच्चारभेदथी आवेला शब्दो एक मुख्य शब्दना पेटामां दर्शाव्या छे. जेमके 'परिष'नो अर्थ आपी पछी एना पेटामा ‘परिषी' 'परीखडी' नोंध्या छे. आथी, देखीती रीते ज, वर्णक्रमभंग थाय. 'ख' उच्चारवाळा पण 'ष'नी जोडणीवाळा शब्दो 'ख'ना क्रममां ज मूक्या छे. नलाख्या.: (भालणकृत) नलाख्यान, संपा. केशवराम का. शास्त्री, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, आवृत्ति बीजी १९६५. आ कृति रचनावर्ष धरावती नथी, परंतु भालणनो जीवनकाळ सोळमी सदी पूर्वार्ध आसपासनो होवानुं अनुमान थयुं छे. . ११० पानां सुधी विस्तरता शब्दकोशमां आशरे ९०० शब्दो छे.. लगभग अशेषपणे शब्दकोश आपवानुं धार्यु जणाय छे, केमके एमां 'अजगर', 'अढार', 'अधमुआ', 'अपार', 'अभिराम' जेवा आजे जाणीता घणा शब्दो जोवा मळे छ (जे आ संकलित कोशमां लीधा नथी). शब्दो विशे व्युत्पत्तिदर्शक, व्याकरणविषयक अने अर्थविषयक वीगते नोंध छे. नंदब. (शामळ भटकृत) नंदबत्रीसी अने कस्तुरचंदनी वारता, संपा. इंदिरा मरचंट, रमेश जानी, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई १९६७. बेमांथी एकेय कृति रचनावर्ष धरावती नथी पण कस्तुरचंदनी वारता, 2010_03 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिछं. पंचवा. प्रधुचु. [ ६१] सिंहासन बत्रीसीनी २३मी वार्ता होई ए १७२९थी १७४५ सुधीमां रचायेली गणाय. शामळनी अन्य कृतिओ १७१८थी १७६५नां रचनावर्षो बतावे छे. बन्ने कृतिओना अलग शब्दकोशो छे. नंदबत्रीसीना शब्दकोशमां आशरे ९० तथा कस्तुरचंदनी वारताना शब्दकोशमां आशरे ७५ शब्दो छे. ( कवि लावण्यसमयविरचित) नेमि रंगरत्नाकर छंद, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९६५. कृति १४९० (सं. १५४६) मां रचायेली छे. शब्दकोशमां ९०० जेटला शब्दो छे. 'अणावइ' 'करि' (=करमां, कर वडे) जेवा केवळ मध्यकालीन अंत्य प्रत्ययवाळा शब्दोनो समावेश छे अने 'गयणंगण' 'गयणंगणं' 'गयणंगणि' ए जुदां विभक्तिरूपोवाळा शब्दो पण अलग नोंध्या छे. शब्दोनां व्याकरणी रूपो घणे स्थाने ओळखाव्यां छे ने व्युत्पत्ति पण दर्शावी छे. ( अज्ञात गुजराती गद्यकार विरचित) पंचदंडनी वार्ता, संपा. सोमाभाई धू. पारेख, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७४. कृतिनुं रचनावर्ष नथी, परंतु एनी हस्तप्रतनुं लेखनवर्ष १६८२ (सं. १७३८) मळे छे. शब्दकोशमां आशरे २०० शब्दो छे. '०का' जेवा कोई प्रत्ययनो पण एमां समावेश छे. शब्दो विशे व्युत्पत्तिदर्शक विस्तृत नोंध छे ते उपरांत केटलाक शब्दोना अर्थने पूर्वपरंपरा आपीने वीगतथी समजाव्या छे. लेखनमां 'ष' पण उच्चारमां 'ख' थी आरंभाता शब्दो 'ख'ना क्रममां ज लीधा छे. 'उणे' (= एणे), 'उवा' (=९), 'क' (=के), 'कणे' (=कोणे), 'क्यु' (क) वगेरे शब्दो बतावे छे के कृतिनी हस्तप्रत तद्दन लौकिक, ग्राम्य उच्चारणोने अनुसरे छे. (वाचक कमलशेखरकृत) प्रद्युम्नकुमार चुपई, संपा. महेन्द्र बा. शाह, अमदावाद, १९७८. कृतिनुं रचनावर्ष १५५० (सं. १६२६) छे. शब्दकोश आशरे २०० शब्दोने समावे छे. घणा शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे अने केटलाक शब्दोना अर्थो माटे आधारो आप्या छे. 2010_03 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबोप्र. प्राचीका. (भीमकृत) प्रबोधप्रकाश, संपा. केशवराम का. शास्त्री, प्रका. मुजरात विद्यासभा, अमदावाद, १९३६. कृतिनुं रचनावर्ष १४९० (सं.१५४६) छे. शब्दकोश आशरे २५० शब्दोने समावे छे. शब्दमूळ दविल छे ने क्वचित् शब्दनुं व्याकरणी रूप ओळखावेल छे. मध्यकाळमां 'ज'ने स्थाने केटलीक वार 'य' लखातो. अहीं एवा शब्दो 'य'मां ज रहेवा दीधा छे. जेमके, "यिशु' (=जिशु) 'यीव' (=जीक), “यीवता' (=जीवतां). 'क्ष'ने 'क'ना जोडाक्षरना क्रममां नहीं, पण अंते 'ह' पछी मूकेल छे. सत्तरमा शतकनां प्राचीन गूर्जर काव्य, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. गुजरात विद्यासभा, अमदावाद, १९४८. समाविष्ट कृतिओ १६०४ (सं.१६६०)थी १६९८(सं.१७५४)नां रचनावर्षो बतावे छे. शब्दकोशमां आशरे ४०० शब्दो छे. शब्दोनां संस्कृत-प्राकृतादि मूळ दर्शवेल छे, समांतर हिंदी, बंगाळी, मराठी, अर्वाचीन गुजराती, प्रादेशिक गुजराती शब्दरूपो नोंध्यां छे ने क्वचित् अन्य प्रयोग पण आपेल छे. प्राचीन फागुसंग्रह, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, सोमाभाई धू. पारेख, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, बीजी आवृत्ति १९६०. संग्रह १२८५ आसपासथी १६८२ आसपासनी कृतिओने समावे प्राचीफा. प्राचीसं. शब्दकोशमां आशरे ६०० शब्दो छे. एमां '०चई' जेवा केटलाक प्रत्ययोनो पण समावेश छे. शब्दो विशे पंचवा.ने धोरणे नोंधो थयेली छे. प्राचीन गूर्जर काव्यसंचय, संपा. ह. चू. भायाणी, अगरचंद नाहटा, प्रका. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९७५. संगृहीत कृतिओ बारमीथी चौदमी सदी सुधीमां रचायेली छे. जूना समयनी केटलीक कृतिओनी भाषा अपभ्रंशप्रधान छे. शब्दकोशमां आशरे ८०० शब्दो छे. शब्दोना अर्थ संस्कृतमा आप्या छे. ते पछी घणे स्थाने गुजराती, हिंदी, मराठी वगेरेना मळता आवता शब्दो नोंध्या छे. आ संकलित कोशमां संस्कृतनुं गुजराती करी लीधुं छे. क्रियापदो धातु रूपे ज नोंध्या छे – 'खिज' वगेरे. उच्चारभेदवाळा शब्दो साथे लई लीधा छे - 'वछ' 'वाछ' 'वाछडउ' - तेथी वर्णक्रमभंग थाय छे. शब्दोनी व्युत्पत्ति पण आपी शकाई त्यां आपी छे. ____ 2010_03 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेमप. (विश्वनाथ जानीरचित) प्रेमपचीसी, संपा. महेन्द्र अ. दवे, प्रका. गूर्जर ग्रंथरल कार्यालय, अमदावाद, १९९२. कृति रचनावर्ष धरावती नथी, परंतु कविनी अन्य बे कृतिओ १६५२ (सं.१७०८)मां रचायेली मळे छे. शब्दकोश १५० जेटला शब्दोनो छे. एमां क्यांक वर्णक्रमभंग थयो प्रेमाका. प्रेमानंदनी काव्यकृतिओ खंड १ अने २, संपा. केशवराम का. शास्त्री, शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. साहित्य-संशोधन प्रकाशन, अमदावाद, १९७८ अने १९७९. प्रेमानंदनी कृतिओ १६६७ (संभवतः) के १६७१थी १६९०नां रचनावर्षों दर्शावे छे. आ संग्रहमां शामळशानो विवाह प्रेमानंदनी अधिकृत रचना नथी, ए अर्वाचीन समयनी सरजत होय एवं ज जणाय छे. श्राद्ध पण प्रेमानंदनी कृति नथी पण ए मध्यकालीन तो छ ज, प्रेमानंद पछीना समयनी. ऋक्मिणीहरण, सप्तमस्कंध जेवी बीजी थोडीक कृतिओ पण प्रेमानंदनी होवा विशे शंका छे. ए पण पाछळना समयनी होवा संभव छे. आ ग्रंथमां आशरे ३२०० शब्दोने अने रूढिप्रयोगोने समावतो मोटो कोश छे. एमां 'आणे' (=लावे), 'आदरूं' (शरू करू), 'आणु जेवा अत्यारे प्रचलित थोडा शब्दो छे ते आ संकलित कोशमां छोडी दीधा छ, ते उपरांत शामळशानो विवाह मध्यकालीन कृति न होई एना शब्दो पण छोडी दीधा छे. मदमो. (शामळ भटकृत) मदनमोहना, संपा. हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई, १९५५. कृतिमां रचनावर्ष नथी. परंतु शामळनी अन्य कृतिओ १७१८थी १७६५नां रचनावर्षों बतावे छे. ग्रंथमां ५०० उपरांत शब्दोने समावतो शब्दकोश छे. केटलाक शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे. मदमो-२. (शामळ भटकृत) मदनमोहना, संपा. हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. पार्श्व प्रकाशन, अमदावाद, १९८९. पहेली आवृत्ति तरीके ओळखायेली आ वस्तुतः बीजी आवृत्ति छे. आ आवृत्तिनो शब्दकोश एकबे स्थाने अर्थनो सुधारो बतावे छे तेटला ___ 2010_03 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६४] पूरतो अहीं एनो उपयोग कर्यो छे. मोसाच. (विश्वनाथ जानीरचित) मोसाळाचरित्र, संपा. महेन्द्र अ. दवे, प्रका. परिमाण प्रकाशन, अमदावाद, १९८७.. आ कृतिनुं रचनावर्ष १६५२ (सं.१७०८) छे. शब्दकोशमां आशरे ८० शब्दो छे. (शिवदासकृत) रूपसेन चतुष्पदिका, संपा. कनुभाई, व्र. शेठ, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९६८. कृतिमां रचनावर्ष नथी, परंतु कवि शिवदास सोळमी सदीना अंतमां के सत्तरमी सदीना आरंभमां थया होवानुं अनुमान थयुं छे. शब्दकोशमा ७० जेटला शब्दो छे. एमां क्वचित् वर्णक्रमभंग देखाय रूपच. रूस्तस. ललिरा. (कवि शामळ भट्टरचित) रूस्तमनो सलोको, संपा. हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९५६. कृतिनी रचना १७२५ (सं.१७८१)मां थयेली छे. शब्दकोशमा ८० जेटला शब्दो छे. एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे. परिशिष्ट रूपे एक प्रतमांनी टिप्पणीओ नोंधी छे तेमां केटलाक शब्दार्थो छे ते शब्दकोशना शब्दो परत्वे पण क्यांक मार्गदर्शक बने छे. (क्षमाकलशकृत) ललितांगकुमार रास, संपा, कनुभाई व्र. शेठ, धनवंत ति. शाह, प्रका. समता प्रकाशन, अमदावाद, १९८२. कृतिनुं रचनावर्ष १४९७ (सं.१५५३) छे. शब्दकोशमां आशरे ८० शब्दो छ. एमां छापभूलो छ ने स्थाननिर्देशमां पण क्यांक भूल थयेली छे. कवि लावण्यसमयनी लघु काव्यकृतिओ, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. पोते, विरमगाम, १९६९. संगृहीत कृतिओ १४९७(सं.१५५३)थी १५३१ (सं.१५८७) आसपासनां रचनावर्षो दर्शावे छे. शब्दकोशमा १४०० उपरांत शब्दो छे. एमां 'गढ' 'दोट' जेवा अत्यारे जाणीता कोई शब्दो छ, 'नई' 'नवउ' 'नडइ' जेवा अत्यारना शब्दथी केवळ अंत्य स्वरनो ज उच्चारभेद दर्शावता शब्दो छे, ने 'पइठउ' 'पइठा' जेवा केवळ व्याकरणी रूपे करीने जुदा पडता शब्दो पण छे. लावल. 2010_03 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६५ ] शब्दोनां व्याकरणी रूपो ओळखाव्यां छे अने क्वचित् शब्दमूळ दर्शावेल छे. स्थाननिर्देश एकथी वधु करेल छे. वसंफा., वसंतविलास फागु, संपा. मधुसूदन मोदी, प्रका. राजस्थान प्राच्य विद्या वसंफा (ल). प्रतिष्ठान, जोधपुर, १९६०. वसंवि. कृतिनुं रचनावर्ष नथी, पण एना रचनासमय विशे १२५०थी १३५० सुधीनां अनुमानो थयां छे. आ संग्रहमां वसंतविलासनी बृहद् वाचना तथा लघु वाचना बन्ने आपवामां आवेल छे अने बन्नेना अलग शब्दकोश आपवामां आवेल छे. लघु वाचनाना शब्दकोशमां आशरे ५०० अने बृहद् वाचनाना शब्दकोशमां आशरे ८०० शब्दों छे. एमां 'अति' 'अपार' 'अवतार' 'उदर' जेवा अत्यारे प्रचलित शब्दो पण छे ते बतावे छे के शब्दकोश लगभग अशेषपणे करवानी नेम छे. शब्दोनी व्युत्पत्ति दर्शाववामां आवी छे. अर्थो अंग्रेजीमां छे, जेनो आ संकलित कोशमां अनुवाद करी लेवामां आव्यो छे. शुद्धिपत्रकमां शब्दकोशविषयक शुद्धिओ पण छे ने कृति विशे टिप्पणी छे तेमां पण शब्दार्थ समजूती छे. वसंतविलास, संपा. कान्तिलाल ब. व्यास, प्रका. एन. एम. त्रिपाठी प्रा. लि., मुंबई, पुनर्मुद्रण १९६९. आमां पण बृहद् अने लघु बन्ने वाचना समाविष्ट छे. शब्दकोश बन्ने वाचनाने आवरी लेतो भेगो ज छे. एमां ९०० जेटला शब्दों छे. 'अंग' 'अधीर' 'अनइ' जेवा शब्दो बतावे छे के शब्दकोश लगभग अशेषपणे आपवानी नेम राखी छे. शब्दोनां व्याकरणी रूप ओळखाव्यां छे, एकथी वधु व्याकरणी रूप नोंध्यां छे अने व्युत्पत्ति पण आपी छे. अर्थ गुजराती तेमज अंग्रेजी बन्ने भाषामां आप्या छे, जेनो आ संकलित कोशमां लाभ लीधो छे. कृतिनां टिप्पण अने अनुवाद आपेलां छे ते पण मददरूप थई शके. कोईक उपयोगी शब्दो पेटामा जता रह्या छे तेथी शब्दकोशमां सीधा जोवान मळे एवं बन्युं छे. जेमके 'अलि'ना पेटामा 'अलिजन' 'अलिराज’ शब्दो छे, 'नवी 'ना पेटामां 'नवनेह' 'नवरंग' वगेरे शब्दो छे. वसंवि (ब्रा). ध वसंतविलास, संपा. डबल्यू. नॉर्मन ब्राउन, प्रका. अमेरिकन ऑरिएन्टल, न्यूहेवन, १९६२. आमां पण बन्ने वाचना छे. शब्दकोश बन्नेनो भेगो ज छे. अन्य 2010_03 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाग्भवा. विक्रच. विक्ररा. विमप्र. विराप. [ ६६ ] संपादनोमां पाठांतर रूपे ज रहेलां पद्योना शब्दो पण अहीं शब्दकोशमां स्थान पाम्या छे. शब्दकोश सर्वग्राही छे अने १००० जेटला शब्दोने समावे छे. शब्दोनां व्याकरणी रूप ओळखाव्यां छे अने शब्दमूळ दर्शावेल छे. समासात्मक शब्दो समास रूपे नोंधाया छे, ते उपरांत पाछळनो शब्द घणी वार अलग पण आप्यो छे. 'वंदरवाल' जेवो शब्द तो बे टुकडे 'वंदर' अने 'वाल' एम ज मळे छे. (मेरुसुन्दर उपाध्याय कृत) वाग्भटालंकार बालावबोध, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७५. बालावबोधनी रचना १४७९ (सं. १५३५) मां थयेल छे. शब्दकोशमां १३० जेटला शब्दो छे. '०तु' जेवा प्रत्ययोनो पण एमां समावेश छे. स्थाननिर्देश एकथी वधु - क्यांक बधा ज – करेला छे. मूळ संस्कृत कृति पण आपेल होई अर्थोने चकासवानी एक सगवड मळे छे. (राजशीलकृत) विक्रमखापराचरित्र, संपा. कनुभाई व्र. शेठ, धनवंत ति. शाह, प्रका. समता प्रकाशन, अमदावाद, १९८२. कृति १५०७ (सं. १५६३) मां रचायेली छे. शब्दकोशमां १२० जेटला शब्दो छे. केटलाक शब्दो परत्वे शब्दमूळ दर्शावेल छे. (उदयभानुकृत) विक्रमचरित्र रास, संपा. बलवंतराय ठाकोर, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९५७. कृति १५०९ (सं. १५६५ ) मां रचायेली छे. बलवंतराय ठाकोरना आ मरणोत्तर प्रकाशननो शब्दकोश रणजित पटेले तैयार कर्यो छे. एमां आशरे ३०० शब्दो छे. उच्चारभेदवाळा शब्दो एक मुख्य शब्दना पेटामां नोंध्या छे. तेथी 'भारोट' ना पेटामां 'भारवट्टि' मळे छे. (लावण्यसमयविरचित) विमलप्रबंध, संपा. धीरजलाल धनजीभाई शाह, प्रका. गुजरात साहित्य सभा, अमदावाद, १९६५. कृति १५१२ (सं. १५६८ ) मां रचायेली छे. शब्दकोशमां ७०० उपरांत शब्दो छे. एमां '०हि' वगेरे केटलाक प्रत्ययोनो पण समावेश थाय छे. (शालिसूरिविरचित) विराटपर्व, संपा. चिमनलाल त्रिवेदी, कनुभाई शेठ, 2010_03 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसरा. प्रका. गूर्जर ग्रंथरल कार्यालय, अमदावाद, १९६९. कृति पंदरमी सदीमा १४२२ पूर्वे रचाई झैवानुं नक्की थाय छे. शब्दकोशमा ४५० जेटला शब्दों छे. 'रखे "रडवडइ' रूपई' 'रूड' जेवा सामान्य उच्चारभेदथी अत्यारे प्रचलित शब्दों पण नोंधाया छे. शब्दोनां व्याकरणी रूपो ओळखाव्यां छे ने व्युत्पत्ति दर्शावी छे. ध वीसळदेव रास, ए रेस्टोरेशन ऑब्ध टेंकस्ट, ज्हॉन डी. स्मिथ, प्रका. केम्ब्रिज युनिवर्सिटि प्रेस, केम्ब्रिज, १९७६. कृतिमा रचनावर्ष नथी, पण एनी रचना १४५० आसपासमां थई होवानु अनुमानवामां आव्युं छे. शब्दकोश आशरे १४५० शब्दोने समावे छे. एकेएक शब्द अने एकेएक प्रयोग नोंधवामां आव्यो छे.. एमां अत्यारे प्रचलित घणा शब्दो पण होय ज. देखीती रीते ज आ बधा शब्दोने आ संकलित कोशमां स्थान न होय. शब्दोना व्याकरणी पदप्रकार दर्शाववामां आव्या छे. क्रियापदो धातु रूपे ज नोंध्यां छे. शब्दमूळ दर्शाव्यां छे अने शब्दोनी विशेष समजूती माटे टिप्पणनो हवालो आप्यो छे. कृतिनो अनुवाद छे ते पण अर्थने स्पष्ट करवामां काम आवे तेम छे. अर्थो अंग्रेजीमा छे तेनो आ संकलित कोशमां गुजराती अनुवाद करी लीयो छे. राजस्थानी भाषानी एक लाक्षणिकता तरीके अहीं सर्वत्र 'ळ' राखवामां आव्यो छे, 'ल' नहीं, जोके वर्णक्रममा ए 'ल'ने स्थाने ज छे. 'ख' उच्चारवाळा शब्दो 'ष' लिपिचिह्नथी अने 'ष'ना ज क्रममां मुकाया छे. आ संकलित कोशमां एने 'ख'ना क्रममा लई लीधा छे. (शामळ भट्टकृत) वेतालपचीसी, संपा. अंबालाल स. पटेल, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई, १९६२. कृतिनुं रचनावर्ष १७४५ (सं.१८०१) छे. शब्दकोशमां आशरे १७५ शब्दो छे. शब्दकोश हरिवल्लभ भायाणीए तैयार करेलो छे. (उदयकलशकृत) शीलवती कथा, संपा. कनुभाई व्र. शेठ, धनवंत ति. शाह, प्रका. समता प्रकाशन, अमदावाद, १९८२. कृतिनुं रचनावर्ष १५५२ (सं.१६१८) छे. शब्दकोशमां आशरे १०० शब्दो छे. थोडा शब्दोमां व्युत्पत्ति दर्शावी छे. कोईक शब्दो वर्णक्रमभंगथी मुकाया छे. वेताप. शीलक. 2010_03 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ac] शृंगामं. षडाबा. (जयवंतसूरिकृत) शृंगारमंजरी (शीलवतीचरित्र रास), संपा. कनुभाई व्र. शेठ, प्रका. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९७८. कृति १५५८ (सं.१६१४)मां रचायेली छे. शब्दकोशमा ५०० उपरांत शब्दो छे. केटलाक शब्दोमां व्युत्पत्ति दर्शावी छे. शब्दकोशमा केटलीक छापभूलो रही गई छे. असंगत शब्द अने अर्थ पण एक स्थाने आवी गयेल छे ने वर्णक्रमभंग पण थयो छे. (तरुणप्रभाचार्यकृत) षडावश्यक बालावबोध, संपा. प्रबोध बे. पंडित, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई, १९७६. कृति १३५५ (सं.१४११)मां रचायेली छे. शब्दकोशमा आशरे २३०० शब्दो छे. शब्दकोश सर्वग्राही करवानो आशय जणाय छे तेथी 'अमुक' 'अरण्य' 'आदित्यु' 'आकर्षइ' जेवा शब्दो जोवा मळे छे, जोके छतां कृतिमांना अनेक मध्यकालीन शब्दो कोशमां आवी शक्या नथी. शब्दोना अर्थ अंग्रेजीमां छे ने एमने विशे व्याकरण तथा व्युत्पत्तिविषयक वीगते नोंध छे, अन्यत्र मळता समांतर प्रयोगो पण नोंध्या छे. अनुस्वारवाळा शब्दो जेते वर्णमां छेल्ले लीधा छे, जेमके 'कौशाम्बी' पछी 'कंपावतउ' 'कांगुण' वगेरे आवे छे, जोके 'कृमि' ए पछी छे. शब्दोना रूपभेदो पेटामां मूक्या छे ने एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे. (नेमिचन्द्र भंडारीविरचित) षष्टिशतक प्रकरण (त्रण बालावबोध सहित), संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९४३. मूळ प्राकृत कृति परना त्रण बालावबोधो १४४०(सं.१४९६)थी १४६९ (सं.१५२५)नां रचनावर्षों बतावे छे. शब्दकोश स्वाभाविक रीते जत्रण गुजराती बालावबोधोनो छे. एमां २७५ जेटला शब्दो छे. शब्दोनां व्याकरणी रूपो ओळखाव्यां छे, व्युत्पत्ति आपी छे अने अर्थविषयक विस्तृत नोंधो करी छे. स्थाननिर्देश बधा ज करवानी नेम जणाय छे. 'रुलइ' पछी 'कुटकई' अने 'इ' आवे एटलो मोटो वर्णक्रमभंग पण थयेल छे. उच्चारभेदवाळां शब्दो एक मुख्य शब्दना पेटामां दर्शाव्या छे. त्रण बालावबोधो लगभग समांतर चालता होई, एक बालावबोधना शब्दनो खुलासो बीजा बालावबोधमांथी मळे एवं बने छे. षष्टिप्र. 2010_03 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यचो. (यशोविजयजीविरचित) सम्यक्त्व षट्रस्थान चउपइ (स्वोपज्ञ बालावबोध सहित), संपा. प्रद्युम्नविजयजी गणि, प्रका. अंधेरी गुजराती जैन संघ, मुंबई, सं.२०४६. __कृति तथा बालावबोध बन्ने मुजरातीमां छे. बालावबोध १६८५ (सं.१७४१)मां रचायो होय एम समजाय छे. यशोविजयजीनी अन्य कृतिओ १६५५थी १६८३नां रचनावर्षों बतावे छे. शब्दकोश नानकडो - ३३ शब्दोनो ज - छे, जेमा स्वाभाविक रीते ज घणा मध्यकालीन शब्दो बाकात रह्या छे. अहीं लाभ ए छ के मूळ गाथाना शब्दनो स्वोपज्ञ वृत्तिमां ज अर्थ करेलो छे. तेथी तत्कालीन शब्दार्थनी सीधी माहिती मळे छे.. सिंहा(म). (मलयचन्द्रकृत) सिंहासनबत्रीसी, संपा. रणजित मो. पटेल ('अनामी') प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७०. कृति १४६३ (सं.१५१९)मां रचायेली छे. शब्दकोशमा १२० जेटला शब्दो छे. घणा शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे, एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे अने अर्थविषयक नोंधो पण छे. क्रियापदो धातु रूपे आपी पछी कृतिमांगें एनुं व्याकरणी रूप पण आप्यु छे. क्वचित् उच्चारभेदवाळो शब्द पेटामां मुकायो छे, जेमके 'अखत्र'ना पेटामां 'अखंत्र'. सिंहा(शा). (शामळ भट्टकृत) सिंहासनबत्रीशी, संपा. हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई, १९६०. आमां संघरायेली सिंहासन-बत्रीशीनी वार्ताओ १७२९थी १७४५ना गाळामां रचायेली छे. शब्दकोशमा २५० जेटला शब्दों छे. स्थाननिर्देश बधा कर्या होय एवं जणाय छे. केटलाक शब्दोनी व्युत्पत्ति दर्शावी छे. स्थूलिफा. (हलराजकृत) स्थूलिभद्र फागु - एक परिचय, संपा. कनुभाई व्र. शेठ, स्वाध्याय पु.८ अं.३, एप्रिल १९७१. कृति १३५३ (सं.१४०९)मां रचायेली छे. शब्दकोशमां आशरे ७० शब्दो छे. क्वचित् वर्णक्रमभंग थयो छे. हम्मीप्र. (अमृतकलशकृत) हम्मीरप्रबंध, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, सोमाभाई धू. पारेख, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७३. कृति १५१८(सं.१५७५)मां रचायेली छे. 2010_03 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिख्या. हरिवि. [00] शब्दकोशमां २०० उपरांत शब्दो छे. उच्चारभेदवाळा शब्दो पेटामां मूक्या छे. केटलाक शब्दोमां स्थाननिर्देश एकथी वधु कर्या छे. (रलदासकृत) हरिश्चन्द्राख्यान, संपा. केशवलाल ह. ध्रुव, प्रका. गुजरात विधासभा, अमदावाद, १९२७. कृति १६४८ (सं. १७०४) मां रचायेली छे. शब्दकोशमां आशरे २७५ शब्दों छे 'दारिद्र्य' 'दिनकर' जेवा घणा जाणीता संस्कृत शब्दो एमां छे. शब्दमूळ दर्शावल छे. ( अज्ञातकर्तृक) हरिविलास : रासलीला, संपा. हरिवल्लभ भायाणी अने अन्य, प्रका. पोते, अमदावाद, १९८८. कृतिनुं रचनावर्ष नथी, पण एनो रचनासमय १४५०थी १५५० (विक्रमनी सोळमी शताब्दी) अनुमानवामां आव्यो छे. संग्रहमां बीजी कृतिओ पण छे, परंतु शब्दार्थ हरिविलासना ज आपवामां आव्या छे. एमां ९० जेटला शब्दी छे. थोडा शब्दमां व्युत्पत्ति आपी छे. कृतिनो अनुवाद आपवामां आव्यो छे तेमांथी केटलाक शब्दार्थनी चावी मळे छे. शब्दकोश माटे उपयोगमां लेवायेला ग्रंथोनी समयानुक्रमणी आम तो, केटलाक ग्रंथो समयना लांबा गाळाने आवरे छे, छतां भाषाना विकासइतिहासनो अभ्यास करनारने आ समयानुक्रमणीमांथी केटलोक आधार अवश्य सांपडी रहेशे. ग्रंथ के कृति प्राचीन गूर्जर काव्यसंचय ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह तेरमा-चौदमा शतकनां त्रण प्राचीन- गुजराती काव्यो वसंतविलास (फागु) समय १२मीथी १४मी सदी १२ मी पूर्वार्धथी १४ मी पूर्वार्ध १३मी पूर्वार्धथी १४ मी पूर्वार्ध १२५०थी १३५० दरम्यान १२८५ आसपासथी १६८२ १३५३ १३५४थी १४२९ १३५५ १४००थी १४७५ आसपास १५मी सदी 2010_03 प्राचीन फागुसंग्रह स्थूलिभद्र फागु गुर्जर रासावली षडावश्यक बालावबोध पंदरमां शतकनां चार फागुकाव्यो • नरसिंहनी काव्यकृतिओ, नस्सैं महेतानां पद, नरसिंह महेतानां पद Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७१] १५मी पहेलुं चरण १४४०थी १४९० १४५० आसपास १४५०थी १५५० दरम्यान १५मी त्रीजुं चरण १५मी उत्तरार्धथी १७मी पूर्वार्ध १४६३ १४७९ १४७९थी १७०५ १४८७ १४९० १४९७ १४९७थी १५३१ १५मी अंतभाग १५मी अंत के १६मी आरंभ १५०० आसपास १६मी पूर्वार्ध आसपास १५०७ १५०९ १५१२ १५१७ १५१८ १५४९ विराटपर्व 'षष्टिशतक प्रकरण'ना त्रण बालावबोध वीसळदेव रास हरिविलास उषाहरण ऐतिहासिक राससंग्रह सिंहासनबत्रीसी (मलयचंद्र) वाग्भटालंकार बालावबोध आरामशोभा रासमाळा उपदेशमाला बालावबोध नेमिरंगरलाकर छंद, प्रबोधप्रकाश ललितांगकुमार रास लावण्यसमयनी लघु काव्यकृतिओ कृष्णचरित्र अंगदविष्टि, कृष्ण-बालचरित अभिवन-ऊझj कादंबरी, नलाख्यान विक्रमखापराचरित्र विक्रमचरित्र रास विमलप्रबंध कामावती हम्मीरप्रबन्ध कर्पूरमंजरी प्रद्युम्नकुमार चुपई शीलवती कथा नल-दवदंती रास शृंगारमंजरी अंबड विद्याधर रास रूपसेन चतुष्पदिका उक्तिरलाकर, जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि सत्तरमा शतकनां प्राचीन गुर्जर काव्य १५५० १५५२ १५५६ १५५८ १५८३ १६मी अंत के १७मी आरंभ । १७मी पूर्वार्ध १६०४थी १६९८ ___ 2010_03 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७२] १७मी मध्यभाम अखानी काव्यकृतिओ, अखाना छप्पा, चित्तविचार संवाद, चतुरचालीशी, प्रेमपचीसी १६४८ हरिश्चन्द्राख्यान १६४९ अखेगीता १७मी उत्तरार्ध प्रेमानंदनी काव्यकृतिओ १६५२ मोसाळाचरित्र १७मी चोथु चरण दशमस्कंध १६८२ पहेलां पंचदंडनी वार्ता १६८५ के १७मी उत्तरार्ध सम्यक्त्व षट्स्थान चउपइ १८मी पूर्वार्ध देवकीजी छ भायारो रास १७१३ के ते पूर्वे आनंदघन बावीसी स्तबक १७१८थी १७६५ आसपास चंद्र-चंद्रावती वारता, नंदबत्रीसी, मदनमोहना १७२५ रूस्तमनो सलोको १७२९थी १७४५ दरम्यान कस्तुरचंदनी वारता, सिंहासनबत्रीशी (शामळ) १७४५ वेतालपचीसी संदर्भग्रंथो (शब्दार्थनिर्णय तथा व्युत्पत्तिना विषयमा सहायरूप थयेला महत्त्वना ग्रंथोनो परिचय) अनुशीलनो, हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. धी पॉप्युलर पब्लिशिंग हाउस, सूरत, १९६५. आ ग्रंथमां पृ.७८-९२ पर प्राकृत-अपभ्रंश अने प्राचीन गुजरातीना २५ जेटला शब्दोनी प्रयोगोनी नोंधपूर्वक चर्चा छे ते अहीं उपयोगी थई छे. अभिधान चिन्तामणि कोश (हेमचन्द्रचार्यविरचित), अनु. संपा. विजयकस्तूरसूरिजी, प्रका. जसवंतलाल गिरधरलाल शाह, अमदावाद, वि.सं.२०१३. आ नामकोश छे. नामो जुदाजुदा वर्गोमां रजू थयां छे, जेमके देवाधिदेवो, देवो, मनुष्यो, तिर्यंचो, नारकी, साधारण पदार्थो वगेरे. एमां घणा पेटावर्गो पण पडे छे जेमके तिर्यंचोमां पृथ्वीकाय, वनस्पतिकाय, कृमिओ, स्थलचारो, खेचर, जलचर, वगेरे; साधारण पदार्थोमां चीजवस्तुओ, भावो, गुणो, क्रियाओ वगेरे. वळी नामोना सघळा पर्यायो पण आपवामां आव्या छे. आ रीते, आ कोश संस्कृत भाषानां सर्व नामोने अशेषपणे संघरे छे. तेम प्राकृत-अपभ्रंश-देश्य भाषाथी प्रभावित नामो पण एमां छे. कुल १५००० जेटलां नामो एमां छे. अनुवादमां एना गुजराती पर्यायो नोंधाया छे. पाछळ संस्कृत शब्दोनी तेमज गुजराती शब्दोनी एम बे वर्णानुक्रमिकसूचिओ छे. केटलाक विरल शब्दार्थोमां आ कोश चावीरूप बन्यो छे. 2010_03 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७३] उर्दू-हिन्दी शब्दकोश, संपा. मुहम्मद मुस्तफां खां 'मद्दाह', प्रका. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, १९८९ (षष्ठ संस्करण) सानुस्वार वर्णो पहेलां अने निरनुस्वार पछी ए वर्णक्रम अहीं छे. एटलेके 'कं' पहेलां अने 'क' पछी. मध्यकालीन गुजरातीमां वपरायेला केटलाक फारसी-अरबी शब्दो माटे तेमज केटलाक शब्दोनी एमनी आजे अपरिचित अर्थछाया माटे आ कोश काममां आव्यो छे. आ कोशमां ३५००० उपरांत शब्दों छे. गुजराती भाषानो लघु व्युत्पत्तिकोश संपा. हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर, १९९४. अत्यारे प्रचलित गुजराती शब्दोनी व्युत्पत्ति आमां आवी छे. व्युत्पत्तिमां प्राकृत अने संस्कृत भूमिकानां शब्दरूपी नोंध्यां छे. टर्नरने अनुसरी संस्कृत - प्राकृतनां कल्पित रूपोनो पण आश्रय लीधो छे. आशरे ३००० शब्दो आमां समावेश पाम्या छे. पाछळ केटलाक शब्दो विशे व्युत्पत्ति तथा प्रयोगविषयक ट्रंकी नोंध आपी छे तेमां मूळ शब्दकोशमां नहीं आवेला प्राचीन शब्दो पण जोवा मळे छे. आ कोशना ठीकठीक शब्दो उच्चारभेदे मध्यकाळमां मळे छे एटले व्युत्पत्तिना विषयमा आ ग्रंथ घणो मार्गदर्शक बन्यो छे. गुजरातीमां प्रचलित फारसी शब्दोनो सार्थ व्युत्पत्ति कोश, भाग १थी ४, संपा. छोटुभाई रणछोडजी नायक, प्रका. गुजरात युनिवर्सिटी, अमदावाद, १९७२ - १९८८. आ कोशमां गुजरातीमां प्रचलित शब्दोनां मूळ अरबी-फारसी रूप तेमज अर्थ दर्शाववामां आव्यां छे अने गुजरातीमां शब्द जे अर्थ के अर्थोमां प्रचलित होय ते पण आपवामां आवेल छे. केटलेक ठेकाणे शब्दना प्रयोग दर्शावती पंक्तिओ पण उद्धृत थई छे. कोशमां आशरे छ हजार शब्दों छे. उद्धृत थयेली केटलीक पंक्तिओ मध्यकालीन कृतिओमांथी छे, ते उपरांत पण मध्यकाळमां वपरायेला केटलाक फारसी शब्दो अहीं जडे छे, तेथी अर्थनिर्णयमां आ कोश पण उपयोगी थयो छे. देशी शब्दकोश, संपा. मुनि दुलहराज, प्रका. जैन विश्वभारती, लाडनूं, १९८८. आ ग्रंथमां देशी शब्दो एना अर्थ ने प्रयोगना स्थाननिर्देश साथे आपवामां आवेल छे. केटलेक स्थाने उक्ति पण उद्धृत थई छे. अर्थ हिंदी भाषामां आपवामां आव्या छे. आशरे ११००० शब्दोनो एमां समावेश छे. परिशिष्ट रूपे उत्तरकालीन प्राकृत ग्रंथोमां एमना संपादकोए आपेला शब्दकोशोने संकलित करी लेतो एक कोश आपवामां आव्यो छे, जेमां आशरे ३००० शब्दो छे. बीजा परिशिष्टमां देशी धातुओनो अर्थ सानो अने केटलेक स्थाने आधार पण निर्देशतो कोश छे, जेमां १६०० 2010_03 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७४] जेटला धातुशब्दो छे. परिशिष्टना बन्ने कोशोना घणा शब्दो, स्वाभाविक रीते ज, मूळ कोशमां मळे छे. वर्णक्रम आ पछीना प्राकृत कोश प्रमाणे छे. मध्यकाळमां वपराशमां रहेला देशी शब्दो परत्वे आ कोश घणो उपयोगी थयो छे. पाइअसद्दमहण्णवो, पंडित हरगोविंदास त्रि. शेठ, प्रका. प्राकृत ग्रंथ परिषद्, वाराणसी, १९६३ (द्वितीय संस्करण). प्राकृत भाषाना आ कोशमां शब्दार्थ आधारग्रंथना निर्देश साथे आपवामां आव्या छे. क्वचित् पंक्ति पण उद्धृत थई छे. अर्थ हिन्दी भाषामां छे. समाविष्ट शब्दोमां संस्कृतमाथी ऊतरी आवेला तेमज देश्य भाषाना शब्दो पण छे. सानुस्वार वर्णो निरनुस्वार वर्णोनी पूर्वे छे, पण पाछळ स्वरवाळा वर्णो पहेलां मुकाया छे. जेमके, क, कइ वगेरे, पछी कं, कंइ वगैरे, पछी कंक, कंकड वगेरे, पछी ककाणि, कडुध वगेरे. कोशमां आशरे ५७००० शब्दो छे. प्राचीन गुजराती भाषानो प्राकृत भाषा साथेनो संबंध घणो गाढ होई केटलाक शब्दोनी चावी उकेलवामां आ कोश खास काममां आव्यो छे. बृहद् गुजराती कोश खंड १-२, केशवराम का. शास्त्री, प्रका. युनिवर्सिटी ग्रंथनिर्माण बॉर्ड, अमदावाद, १९७६ अने १९८१. सार्थ गुजराती जोडणीकोश उपरांत भगवद्गोमंडल आदि कोशोनी सहाय लईने रचायेला आ कोशमा ७५०००थी ८०००० शब्दो समाविष्ट छे. जोके संस्कृत तत्सम शब्दोने बाद करतां आ कोश सार्थ गुजराती जोडणीकोशथी खास विशेष सामग्री आपतो जणातो नथी. शब्दना अर्थ नोंधवा उपरांत शक्य बन्युं त्यां, शब्दनां मूळ पण दर्शावेल छे. साधित अने सामासिक शब्दो स्वतंत्र राख्या छे, पण रूढिप्रयोगो शब्दना पेटामां मूक्या छे. बृहद् हिन्दी कोश, संपा. कालिकाप्रसाद वगेरे, प्रका. ज्ञानमंडल लि., वाराणसी, १९८४ (पंचम संस्करण). आ कोशमां हिन्दी शब्दो एना हिन्दी पर्याय साथे आपवामां आव्या छे. क्वचित् शब्दनो प्रयोग दर्शावती पंक्ति टांकवामां आवी छे. सामासिक शब्दो अने रूढिप्रयोगो शब्दना पेटामा लीधा छे. आमां संस्कृत शब्दो मोटा प्रमाणमां समावी लेवाया छे. अने केटलाक मध्यकालीन शब्दो पण जोवा मळे छे. सानुस्वार वर्णो पहेला अने निरनुस्वार वर्णों पछी एवो वर्णक्रम छै. कुल शब्दसंख्या १,४०,३०० छे. नोंधायेला केटलाक जूना हिन्दी शब्दो, केटलाक फारबी-अरबी मूळना शब्दो अने केटलाक संस्कृत शब्दोना आ कोशना अर्थो मध्यकालीन गुजराती शब्दोना 2010_03 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थनिर्णयमा उपयोगी थया छे. भगवद्गोमंडल मग थी ९, भगवतसिंहजी, प्रका. प्रवीण प्रकाशन, राजकोट, १९८६ (पुनर्मुद्रण). अनेक संस्कृत शब्दो, मध्यकालीन शब्दो, विविध विद्याशाखाना पारिभाषिक शब्दो, ऐतिहासिक नामो- व्यक्तिओ वगैरेनां - ने समावतो आ कोश मात्र शब्दार्थकोश नहीं पण कंईक अंशे सर्वसंग्रह बनवा ताके छे. जोके एमां पूरी अधिकृतता साधी शकाई नथी. शब्दोना अनेक अर्थो नोंधाय छे ते घणी वार तो काचांपाका साधनोमांधी भेगा करेला जणाय छे. मध्यकालीन शब्दो परत्वे घणी वार एता प्रयोग दर्शावती पंक्ति उद्धृत करवामां आवी छे. परंतु करवामां आवेलो अर्थ एमां बंध बेसती न होय एवू पण कोईकोई वार जोवा मळ्युं छे. तेम छतां काळजीपूर्वक उपयोग करीए तो आ ग्रंथमांथी काची सामग्री अवश्य मळी रहे छे. आ ग्रंथमां २,८१,००० उपरांत शब्दो छे. राजस्थानी सबद कोस खंड १थी ४ ग्रंथ १थी ९, सीताराम लालस, प्रका. राजस्थानी शोध संस्थान, (पछीथी) उपसमिति, राजस्थानी सबद कोस, जोधपुर, १९६२-१९७८. आ कोश राजस्थानी शब्दोना अर्थ हिंदी भाषामां आपे छे. सानुस्वार वर्णो निरनुस्वार वर्णोनी पूर्वे मुकायेला छे ते उपरांत वर्णक्रमनी एक ध्यान खेंचती लाक्षणिकता ए छे के एमां ल-ळने एकरूप गणी 'ल'ना क्रममा साथे ज राखेल छे. 'श' ने 'ष' नथी, एकल्मे 'स' छे. एटले 'श'वाळा शब्दो 'स'मां ज शोधवाना रहे छे. शब्दार्थोनी साथे घणी वार उदाहरणरूप पंक्तिओ - एकथी वधु पण - टांकी छे. चारणी भाषाना घणा शब्दोनो समावेश छे, ते उपरांत घणा उच्चारभेदोने समावी लेवाया छे. अपायेला अर्थो सो टका प्रमाणभूत नथी, पण कदाच भगवद्ग्रोमंडल करतां आ कोशनी प्रमाणभूतता वधारे छे. आ कोशमां आशरे २,००,००० शब्दो मध्यकालीन गुजरातना जैन साधुकविओ राजस्थान-गुजरातमा विहार करनारा हता. तेथी राजस्थानीमां टकेला अने गुजरात लुप्त थयेला घणा शब्दार्थों एमनी कृतिओमां जोवा मळे छे. एवा शब्दार्थों परत्वे आ कोश खूब उपयोगी थयो छे. एम पण कही शकाय के मध्यकालीन गुजराती शब्दकोशने सौथी वधु उपयोगी थयेलो आ कोश छे. लेक्सिकोग्रॅफिकल स्टडिझ इन जैन संस्कृत, बी. जे. सांडेसरा अने जे. पी. ठाकर, प्रका. ऑरिएन्टल इन्स्टिट्यूट, बरोडा, १९६२. आमां त्रण जैन प्रबंधोना शब्दो, कृतिवार अलगअलग आपवामां आवेल छे. 2010_03 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रही गयेला शब्दो पूर्ति रूपे आपवामां आवेल छे. संस्कृत शब्दोना अंग्रेजीमा अर्थ आपवामां आव्या छे अने घणे स्थाने शब्दनो प्रयोग दर्शावती मूळनी पंक्तिओ उद्धृत करी छे. शब्दो नागरी लिपिमा अने संस्कृत कोशना वर्णक्रममा छे. बधी कृतिओना थईने कुल ४००० जेटला शब्दो नोंधायेला छे, परंतु एक शब्द एकथी वधु कृतिओमां मळतो होय एवा दाखला पण घणा छे. जैन संस्कृत देशी शब्दोना संस्कृतीकरण माटे जाणीतुं छे. केटलाक शब्दोमां विशिष्ट अर्थछायाओ पण विकसी छे. मध्यकालीन गुजरातीमां पण आमांना केटलाक शब्दोनुं अनुसंधान देखाय छे ने तेथी केटलाक लाक्षणिक शब्दप्रयोगोमां आ कोश मार्गदर्शक बन्यो छे. वनौषधिकोश, संपा. केशवराम का. शास्त्री, प्रका. प्राच्यविद्या मंदिर, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९८२. आ ग्रंथनो मुख्य भाग ते वनस्पतिओनां संस्कृत नामोनो कोश छे. मूळ शब्द, एना एक के वधु गुजराती पर्यायो मूळ शब्दना अन्य संस्कृत पर्यायो, लॅटिन पारिभाषिक पर्याय अने मळी शक्या ते मराठी, हिंदी, पंजाबी, बंगाळी, तामिळ अने अंग्रेजी पर्याय - ए रीते बधां वनस्पतिनामो अकादिक्रमे आपवामां आव्यां छे. आ कोशमां आशरे ४५०० वनस्पतिनामो छे. चार परिशिष्टोमांथी पहेलामां कच्छी नामो गुजराती पर्याय साथे, बीजामां लॅटिन नामो संस्कृत पर्याय साथे, जीजामां गुजराती नामो संस्कृत पर्यायो साथे अने चोथामां 'सोढल-निघंटु'मां मळतां नवां वनस्पतिनामो समावायां छे. मध्यकालीन गुजराती वनस्पतिनामोने उकेलवामां आ कोश उपयोगी थयो वर्णकसमुच्चय भाग १ अने २, (भाग १) संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, (भाग २) भोगीलाल ज. सांडेसरा अने रमणलाल ना. महेता, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९५७ अने १९५९. ___ पहेला भागमां वर्णको छे अने बीजा भागमां एने आधारे करवामां आवेखें सांस्कृतिक अध्ययन अने शब्दसूचिओ छे. शब्दसूचिओ बे प्रकारे छे - विषयवार अने सामान्य. विषयवार शब्दसूचिमां भोजनसामग्री, वस्त्र, अलंकार, देशप्रदेश, नगररचना अने स्थापत्य, राजलोक अने पौरलोक, शस्त्रास्त्रो, अश्वजाति वगेरेनां नामोनी सूचिओ छे अने सामान्य शब्दसूचिमा ए सिवायना सर्व शब्दोनी सूचि छे. शब्दसूचिमा पहेला भागनो स्थाननिर्देश मात्र छे, अर्थो नथी, परंतु जुदाजुदा विषयोना जे शब्दो छे तेनी समजूती ए विषयोना सांस्कृतिक अध्ययनोमांथी मोटे भागे मळे 2010_03 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७७] छे, जोके आ शब्दो परत्वे आ बीजा भागना सांस्कृतिक अध्ययननो पृष्ठांक आपी शकायो नथी ए अगवड रही गई छे. सामान्य शब्दोना अर्थ माटे तो ए ज्यां वपरायो छे ते स्थान जोतां संदर्भ परथी घणी वार अर्थ ऊकले छे. पहेला भागमां परिशिष्ट २ तरीके मुकायेल क्रयाणक-वस्त्र आभरण नामावलिना शब्दो सूचिमां आव्या नथी.. विषयवार शब्दसूचिमां आववा जोईता थोडा शब्दो सामान्य शब्दसूचिमां रही गया छे. विषयवार शब्दसूचिमां ३५०० जेटला अने सामान्य शब्दसूचिमां २८०० जेटला शब्दो ठे. मध्यकालीन गुजरातीना केटलाक शब्दोना उक्तिप्रयोगो आ ग्रंथमांथी मळे छे ए रीते एणे अर्थनिर्णयमा घणी वार मदद करी छे. व्युत्पत्तिविचार, हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. युनिवर्सिटी ग्रंथनिर्माण बॉर्ड, अमदावाद, १९७५. आ ग्रंथना बीजा खंडमां संस्कृतथी अर्वाचीन गुजराती सुधीना ध्वनिविकासमां जोवा मळता नियमो उदाहरण सहित आपवामां आव्या छे अने त्रीजा खंडमां केटलाक शब्दो विशे व्युत्पत्ति ने अर्थविषयक नोंधो छे बन्नेमां आवता गुजराती शब्दोनी अकारादि सूचि पाछळ पृष्ठांकनिर्देश साथे आपी छे. ते द्वारा शब्दनां व्युत्पत्ति ने अर्थ सुधी पहोंची शकाय छे. शब्दसूचिमां १४०० उपरांत शब्दो छे. आमांनी घणी व्युत्पत्तिओ तो 'गुजराती भाषा लघु व्युत्पत्तिकोश' मां हवे अकारादिक्रमे प्राप्त थई छे, पण शब्दार्थ-विषयक नोंधोनी पोतानी जुदी उपयोगिता छे, जेनो लाभ आ संकलित कोशमां लेवामां आव्यो छे. शब्दकथा, हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. क. ला. स्वाध्याय मंदिर, गुजराती साहित्य परिषद, अमदावाद, १९८३. आ पुस्तकमां शब्दोनां स्वरूप, इतिहास अने अर्थछायाविषयक नोंधो छे. एमां संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिंदी, मराठी वगेरे भाषाओमां जोवा मळता शब्दार्थरूपोने आवरी लेवायां छे. १५० जेटली नोंधो छे पण एक नोंधमां एकथी वधु शब्दो विशे पण चर्चा थई छे. पाछळ आपेली शब्दोनी सूचिमां उल्लेखायेला सघळा शब्दो छे ने ए २८०० जेटला छे जेमां एक शब्दना उच्चारभेदोनो पण समावेश छे. आमां अपायेलो शब्दना स्वरूप अने अर्थनो इतिहास आ संकलित कोशमां अवारनवार सहायरूप थयो छे. शब्दपरिशीलन, हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. गूर्जर ग्रंथरन कार्यालय, अमदावाद, १९७३. आ पुस्तकना विभाग बीजामां केटलाक प्राचीन शब्दप्रयोगो विशे नोंधो छे. नोंधो १२ छे पण एमां समाविष्ट शब्दप्रयोगो २२ जेटला छे. ए नोंधो आ संकलित 2010_03 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] कोशमां अर्थनिर्णय परत्वे मददरूप थई छे. संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी,सर मॉनिएर-विलिअम्झ, प्रका. मारवाह पब्लिकेशन्स, न्यू दिल्ही, १९६६ (पुनर्मुद्रण). आ कोशमां संस्कृत शब्दो नागरी तेमज रोमन लिपिमां आपेला छे, जोके मुख्य शब्दना पेटामां आवता सामासिक शब्दो केवळ रोमन लिपिमा आपेला छे. अर्थो अंग्रेजी भाषामां छे. शब्द जे-ते अर्थमा ज्यां वपरायो छे ते कृतिओ पण निर्देशी छे. उपरांत, अन्य शब्दकोशो वगेरेमाथी मळता शब्दो पण समावी लीधा छे. आम आ कोश सर्वग्राही थवा जाय छे. आ कोशना शब्दक्रमनी एक लाक्षणिकता खास ध्यानमा राखवा जेवी छे के एमां मूळ धातु परथी साधित थयेला शब्दो, एना वर्णानुक्रमने बदले, धातु पछी तरत आपवामां आव्या छे. जेमके कृपछी करण, कर्तृ वगैरे. आ संवर्धित आवृत्तिमां आशरे १,८०,००० शब्दो छे. थोडा शब्दो पूर्ति रूपे छे. सर्वग्राही कोश होवाने कारणे केटलाक विरल शब्दोनां स्वरूप अने अर्थनी चावी एमांथी मळी छे. संस्कृत साहित्यमां वनस्पति, बापालाल ग. वैद्य, गुजरात विद्यासभा, अमदावाद, १९५३. आम तो, आमां जुदीजुदी वनस्पतिओ संस्कृत साहित्यमा क्यांक्यां निर्देशाई छ ए पंक्तिओ उद्धृत करीने दर्शाव्युं छे. साथे ए वनस्पतिनी लाक्षणिकताओ वर्णवी छे, एनां संस्कृत नामान्तरो नोंध्यां छे अने गुजराती वगेरे भाषाओणां ए वनस्पति कये नामे ओळखाय छे ते पण बताव्युं छे. अनुक्रम अकारादि क्रमे छे तेमां १९० वनस्पतिओ उल्लेखाय छे, परंतु पाछळनी शब्दसूचिमा संस्कृत उपरांत गुजराती वगैरेनां वनस्पतिनामो आवरी लेवायां छे. एमां १८०० उपरांत शब्दो छे, जेमां थोडा ग्रंथ, व्यक्ति वगैरेनां नामो छे. __ वर्णनात्मक होवाने कारणे आ ग्रंथ केटलांक वनस्पतिनामोने ओळखवामां विशेष उपयोगी थयो छे. संस्कृत-हिन्दी कोश, (छात्र-संस्करण), वामन शिवराम आप्टे, प्रका. नाग प्रकाशक, दिल्ली, १९८८ (पुनः मुद्रित संस्करण) __ आ कोशमां संस्कृत शब्दोनु घडतर दर्शाववामां आव्युं छे, एना हिन्दी अर्थो आपवामां आव्या छे अने शब्दो ज्यां वपराया छे ए कृतिओना निर्देशो पण छे. केटलीक वार पंक्ति पण उद्धृत थई छे. कोशमां आशरे २५,००० शब्दो छे. शब्दना पेटामां मुकायेला सामासिक वगेरे शब्दो जुदा. परिशिष्ट रूपे ५००० शब्दो पाछळथी उमेरायेला छे. खास करीने संस्कृत मूळना मध्यकालीन शब्दोना योग्य आधुनिक पर्यायो ___ 2010_03 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७९] मेळववामां आ कोश उपयोगी थयो छे. सार्थ गूजराती जोडणीकोश, प्रका. गूजरात विद्यापीठ, अमदावाद, १९६७ (पांचमी आवृत्ति). शब्दोना गुजराती पर्यायो आपवा उपरांत एना संस्कृतादि मूळनो शक्य होय त्यां निर्देश कर्यों छे. साधित शब्दो मूळ शब्दोना पेटामां लीधा छे ने रूढिप्रयोगो पण त्यां लई लीधा छे. कोशनी आ पांचमी आवृत्तिमा ६८४६७ शब्दो छे. ___आ कोशना केटलाक तळपदा शब्दो मध्यकाळ साथे समान छे, तेथी अर्थ निश्चित करवामां आ कोशनो उपयोग थयो छे. आ उपरांत, शब्द अने अर्थ (भोगीलाल सांडेसरा), लोकसाहित्य शब्दकोश तथा संतसाहित्य शब्दकोश (जेठालाल त्रिवेदी), डिक्शनरी ऑव् इन्डो-आर्यन लैंग्वेजीझ, अन्य केटलाक कोशो तेमज केटलाक जैनधर्मविषयक ग्रंथोनो प्रसंगोपात्त उपयोग करवानो थयो छे. सांकेतिक चिह्नो अने सामान्य संक्षेपाक्षरो [ ] आ कौंस सर्वत्र संपादकीय नोंधने निर्देशे छे. (१) आ कौंसमां मुकायेला मध्यकालीन शब्द मूळ कृतिमां पाठांतर रूपे मळे छे एम समजवान छे. (२) आ कौंसमां मुकायेली व्युत्पत्तिओ मूळ आधारग्रंथमा छे एम समजवानुं छे. फूदडीनी निशानी (9) मध्यकालीन शब्दनी पूर्वे होय त्यारे ए शब्दनु ए रूप शंकास्पद होवानुं दर्शाये छे; (२) आधारग्रंथना संक्षेपाक्षरनी पूर्वे होय त्यारे ए आधारग्रंथनो अर्थ छोडवामां आव्यो छे एम दर्शवे छे; (३) आपेला अर्थनी पूर्वे होय त्यारे ए अर्थ विशेनो संशय दर्शावे छे अने (४) अपायेली व्युत्पत्तिनी पूर्वे होय त्यारे ए व्युत्पत्तिनी प्रमाणभूतता शंकास्पद होवार्नु दर्शावे छे, पण संस्कृत शब्दरूपनी तरत पूर्वे होय त्यारे ए कल्पित रूप छ एम दर्शावे छे. मींडानी निशानी आधारग्रंथना संक्षेपाक्षरनी पूर्वे ज आवे छे अने मध्यकालीन शब्द ए आधारग्रंथमां निर्दिष्ट पृष्ठ पर मळतो नथी, अथवा तो एमां पृष्ठांकनो निर्देश नथी एम दर्शावे छे. अरबी अपभ्रंश उर्दू कनड 2010_03 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] काठियावाडी गुजराती देश्य ## पंजाबी पाली प्राकृत फारसी बहुवचन भीली मराठी सरखावो संस्कृत # 2010_03 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रम प्रकाशकीय निवेदन • [७] संपादक निवेदन • [८] एक नूतन शिखर- सफळ आरोहण • हरिवल्लभ भायाणी • [१४] न वीसरवा जेवो वारसो • जयंत कोठारी • [१६] संपादकीय भूमिका • [२७] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश • १-५६४ थोडी शब्दार्थचर्चा • ५६५-६२७ १. अउले खाले वहै • ५६८; २. अउल्हाइ • ५६८; ३. अउगनाइ • ५६८, ४. अउगउ, उगउ • ५६९; ५. अखाडो • ५६९; ६. अछूतउ • ५७०; ७. अकज, अकाज • ५७१; ८. अखत्र, अखंत्र, अखतर, खत्र • ५७२, ९. अगम, निगम . ५७३; १०. अगाज • ५७५; ११. अघाट (आघाट) ऊभो • ५७५; १२. अच्छउं, आर्छ • ५७६; १३. अज उभां• ५७६; १४. अजंण • ५७७; १५. अडसाला/अडसीला • ५७७; १६. अणगाल/अगाल • ५७७; १७. अणाथ, अणाथि, आथ, आथि, आथ्य • ५७८; १८. अणिख • ५७९; १९. अणिअ/अणीय आखइ • ५७९; २०. अणीसर • ५७९; २१. अणूरूं, अणूरति • ५८०; २२. अत • ५८१; २३. अतिधज • ५८२, २४. अतिसंता • ५८२, २५. अधरास, ओलव, ऊलवयूँ • ५८२; २६. अनिवड, निवड • ५८४; २७. अनुभाव, अनु भाव • ५८६; २८. अप्रमाण • ५८६; २९. अबाह • ५८७; ३०. अभोखउ, आभोखउ, अभोखण, अभोखj, अंबोषण, अबोखण • ५८७; ३१. अमलीमाण, अमलीमान • ५८९, ३२. अमाइ, अमामो, अमाj, अमान, अमानी • ५८९; ३३. अनिआउ, अन्या, अंना, अन्नयो, अन्याई . ५९०, ३४. अरज • ५९३; ३५. अलगुं, अलगेरी • ५९३; ३६. अंक भरवो • ५९५; ३७. आधु, आघेलं • ५९६; ३८. आडइ, आडौ • ५९७; ३९. आदर, आदरQ • ५९८; ४०. करो • ६०१, ४१. खगां, खगमंडल, खगाकार • ६०१, ४२. खराप • ६०२, ४३. गान, किण गानइ • ६०२, ४४. उशंकल, उसंकल, उसीकल, उसींकल, ओशिंगळ, ओशींकल, ओशींगल, ओसंकल, ओसीकल • ६०३, ४५. काण, काणि, काणी, कांणि, कुलकाणि, मुहकाणि • ६१३ 2010_03 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग्रेज, फ्रेन्च वगेरे पाश्चात्य प्रजाओए पोताना वापरमांथी के शब्दकोशोमांथी जुनवाणी शब्दो के रूढिप्रयोगो पर ढांकण दईने भाषाना कलेवरने शोषावा न देतां तेमने जीवता राख्या अने तेमां नवा अने नरवा अर्थभाव (कन्टेन्ट)नां टॉनिक पूरीने भाषाना हाडने पुष्ट राख्युं छे, ज्यारे आपणे त्यां आजनो आपणो शिष्ट वर्ग एवी सामग्रीना वापर सामे मों मचकोडे छे. ___ भाषा ए धरती परनो पाणीवीरडो छे. जनवाणी ए एनी अखूट सरवाणी छे. घडा पाणीना वीरडाने वाडकी के छालियाथी उलेच्ये जाओ ने सो बेडा पाणी भरी ल्यो. न उलेचो तो वीरडानुं पाणी घडो ज रहेशे. एम वाडकी-छालियाथी एने उलेचवानी प्रक्रिया पण जनवाणी ज छे. एनाथी रोजेरोज उलेचाया वगर वीरडो मेलो ने बंधियार बनी जशे. भाषारूपी वीरडा, पाणी जनवाणीने वाटके चडे त्यारे ज ए फिल्टर अने क्लॉरिनेट थईने प्रजाना वापर माटे नरवू थयुं गणाय. स्वामी आनंद 2010_03 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शब्द थकी चित्त पंखाकुं बनी जाय छे. ॲरिस्टॉफनीझ 2010_03 . Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जूनी वस्तुओ वेचनार एक दुकानदारने त्यां में एक टेबल जोयेलं. लागतुं हतुं तो सामान्य पण एनी किंमत हजारो रूपियामां अंकाई हती. एनुं कारण पूछतां एणे का : "जूनुं छे एटले मोंधू छे. एना उपर घणा हाथ बेठा छे, एन काष्ठ घणी आंगळीओना स्पर्शथी सुंवाळु बन्युं छे... आ टेबल उपर पेढीओनो इतिहास बेठो छे एटले मूल्यवान छे. जाणकार घराक ए बराबर जाणे छे." भाषा ए पुराणी चीजवस्तुओनो भंडार. दरेक शब्द ज्ञाननो रत्नजडित नानकडो कोश छे. ज्ञानी घराकनी जेम एनी कदर करतां शीखीशुं तो एनो पहेलो लाभ आपणने ज मळशे. फाधर वालेस 2010_03 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अ षष्टिप्र. निश्चयार्थ अव्यय, [ज] (सं.च) अइ तेरा. अि अइठि लावल. एंठ, उच्छिष्ट [सं. * आचष्ट] अइरावण तेरका. ऐरावण, [ इंद्रनो हाथी ] अइसा नरप आवा (सं. ईदृश) [ हिं . ] अइसिउं नलरा. एवं (सं. ईदृश) अइहवि गुर्जरा-टि. सौभाग्यवती स्त्री (सं. अकयत्थ आरारा. एके; ऐतिका. अकृतार्थ, [जेनुं जीवन सार्थक नथी एवो] अकरणि षडाबा. नहीं करवामां अकरतउ षडाबा. नहीं करतो अकलि ऐतिरा नहीं कळातुं, नहीं समजातुं अकह प्राचीफा. अकथ्य, अवर्णनीय (सं. अकथ ) अविधवा) अउ उक्तिर. आ (सं. अयम्) अउआरणे कर्पूमं. ओवारणे [सं. अपवारण] अउखध प्राचीसं. औषध अउगनाइ उक्तिर. ध्यानमां न ले (*सं. अपकर्णयति) [सं. अवकर्णयति ] अउगनिया जुओ अडगनिया, अवगनियां, उगनियुं अउगी * तेरका. प्राचीसं. मूगी; जुओ उगउ अउज उक्तिर. अयोध्या अउठ, अऊठ अंबरा. उक्तिर. नलरा. स्थूलिफा. साडा त्रण (सं. अर्धचतुर्थ) आउत मदमो. अयुत, दश हजार अउधाखिं उक्तिर. अवधारवुं, ध्यानमां लेवुं अडलवइ उक्तिर. ओळवे, कपटथी पडावी ले (सं. अपलपति); जुओ ओलवइ अउले (अउले खाले वहे) * जिनरा. [ अवळी खाळे वहे, ऊभराय, छलकाय ] अउलेवेवरं षडाबा. ओळववुं (सं. अपलपू) अउल्हाइ जिनरा. * संकुचित थाय, [ पार्छु पडे, खिन्न धाय] [द. ओहुल्ल] अहटइ जिनरा. दूर थाय, [आधुं खसे] अउंगउ-मुगउ उक्तिर. ऊगोमूगो, मूगो 2010_03 अ / अकेकलां (सं. अवाङ्मूक); जुओ उगउमुगउ अऊठ जुओ अउठ अकज अखाका. न करवा जेवुं काम, [न थवा जेवुं, अघटित] दशस्कं (२). प्रेमाका. सिंहा (शा). नकामुं, व्यर्थ (सं. अकार्य) अकाचीन सिंहा (शा). ? [*अकिंचन, * कर्मशून्य] अकाज अखाछ. आरारा. शीलक. नकामुं, व्यर्थ, खोटुं; अखाका. अकार्य, न करवा जेवुं काम, [हानि]; उपबा. चतुचा. * रूपच. अघटित कार्य अकाजि गुर्जरा. विराप. अकारण, [खोटी रीते, खराब रीते, खोटुं करीने] (सं. अकार्य) अकाम अखीका. निष्काम [अपयश अकारिम प्राचीफा. अकृत्रिम, स्वाभाविक (सं.अ + कार्मिक ?) अकित्ती जिनरा. अकीर्ति, अपावनार नामकर्मभेद] [जै. ] अकीधइ षडाबा. वणकीधे, वणकर्ये अकुप्य वाग्भबा. सोनं-चांदी [सं.] अकुळीणउ वीसरा. अकुलीन [रा. ] अकेकलां कादं (शा). एकेक, प्रत्येक Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकोटडो/अखेवपणइ २ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश .. स्पा (सं.एकैक) अखंच विमप्र. खचकाया विना अकोटडो, अकोटी नरका. प्रेमाका. स्त्रीओ- अखंज अभिऊ. अक्षय, [अखंड] [सं.अ+ नुं कानमा पहेरवानुं एक घरेणुं [सं. खंज] अर्कपत्रिका]; जुओ अखूटी अखंत्र जुओ अखत्र अक्खइ षटिप्र. कहे छे (सं.आख्याति) अखंप अभिऊ. [खांप - खामी वगर], अक्खरु षटिप. अक्षर पुष्कळ, [पूरेपूरुं] [सं.] अक्खीण षडाबा. अक्षीण, अनश्वर अखा उषाह. ओखा (सं.उषा) अक्रत्य देवरा. अकृत्य, [दुष्कृत्य] अखाडउ उक्तिर. *गुर्जरा. "विराप. [शौर्यअक्रित प्रेमाका. अकृत्य, दुष्कृत्य स्पर्धा], शौर्यस्पर्धा- मेदान (सं.अक्षअक्षर प्रेमाका. विधिना लेख, भाग्यलेख पाटक) अक्षुरस विमप्र. शेरडीनो रस [सं.इक्षुरस] अखाडामंडप * षडाबा. [क्रीडाभूमि, रमतर्नु अक्षाणुं आरारा. शुभ कार्यमां भरवामां मेदान] (सं.अक्षपाट+मंडप) आवतुं चोखा वगेरे अखंड अनाजनुं अखाडे अखाका. अथडावे, अफळावे पात्र, पूजानो उपहार (सं.अक्षतवायन) अखियात जिनरा. आख्यात, यश, [सं.अक्षतदान]; जुओ अख्या' प्रसिद्धि]; ऐतिका. [प्रसिद्ध, यशस्वी अक्षोद कादं (शा). अखोडना वृक्षनुं लाकडु अखी जिनरा. अक्षय, [अमर] (सं.) ___ अखीऊ गुर्जरा. कडं (सं.आख्यातम्) अखइ ललिरा. अक्षय, *अखूट, [अनश्वर, अखीणमहाणस ऐतिका. लई आवनार पोते हानिरहित] न जमे त्यां सुधी भिक्षान्न खूटे नहीं अखउन आरारा. पूजानी सामग्री (सं.. एवी शक्ति [सं.अक्षीण+महानस], अक्षतपात्र) अखूटइ गुर्जरा. प्रद्युचु. आयुष्य खूट्या अखडाय प्रेमाका. अथडाय, अफळाय. वगर अखडावखडी उपबा. खाडाखबडावाळी अखूटी नेमिछं. अकोटी, कान- एक अखत जुओ झखत ___ आभूषण; जुओ अकोटडो अखत्र, अखंत्र आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. अखे अखाछ. दशस्कं(१). प्रेमाका. अक्षय, *सिंहा(म). "हरिख्या. अयोग्य, निंद्य, न खूटे एबुं खराब, अनिष्ट (सं.अक्षात्र); जुओ खत्र अखेतरिया उतरावो * नरका. [दाणा अखय नेमिछं. लावल. अक्षय जोवडावी शुं वळग्युं छे ते नक्की करावो] अखयवान आनंस्त. अक्षयदान, [अभय- अखेदपणइ आनंस्त. अखेदपणे, [तकलीफ दान] विना, सहजपणे 2010_03 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अखेपद चित्तसं. अक्षयपद, ब्रह्मपद अखेपात्र अखेगी. अक्षयपात्र अखेर कामा (त्रि). कामा (शा). चंद्रवा. अक्षर अखेला अखाका. खेल्या वगर ऐतिका. अखोड आरारा (व). उक्तिर. अखरोटनुं वृक्ष (सं.अक्षोटक) अख्याणां प्रेमाका. मंगळ प्रसंगे भरवामां आवतुं अखंड अनाजनुं पात्र [सं. अक्षतवायन, अक्षतदान]; जुओ अक्षाणुं अगड नरका. प्रेमाका प्रतिज्ञा, बाधा [* अ. अक्द] अगड नलरा. साठमारीनुं मेदान अगडी ऐतिका अभिग्रह, [ व्रत, बाधा ] [अ. अक्द] अगत्य दशस्कं ( १ ). अगम्य गति अगथीउ आरारा (व). वृक्षविशेष, अगथियो, सेगरो (सं. अगस्ति) अनि-झाला लावल. अग्निनी ज्वाळा अनि साधी जुओ साधी अगम दशस्कं (२). अमंगळ भाविना संकेत, * अखाका. * नरका. [आगम, मूळ शास्त्र वेद]; जुओ अगंम, आगम अगर आऱारा (व). उक्तिर. ऋषिरा. कामा (शा). तेरका. नरका. नलरा. वसंवि (ब्रा). अगुरु, एक जातनुं सुगंधी लाकडुं अगरज वसंवि. अगुरुवृक्ष, अगरजा अगररस नरका. अगुरु (सुगंधी लाकडुं)नो रस 2010_03 अखेपद / अगुरुलहु अगरु प्रेमाका. ए नामना वृक्षनी छालनो भूको अगरु उखेव- प्राचीसं. अगर उखेवयुं अगरनो धूप उडाडवो; जुओ उखेवे अगवाणि वीसरा. आगेवान, अग्रणी (सं. अग्रयावन्) अगस्ति विराप. अगत्स्य ऋषि अगंजिउ ऐतिका. अपराजित [सं. अगंजित ] अगंजी नेमिछं. गांज्यो न जाय तेवो अगंम मदमो. आगम, * शैव शास्त्रो, [ परंपरा प्राप्त मूळ शास्त्रो - वेद]; जुओ अगम अगाज आरारा. दुष्कर, शृंगामं. अग्राह्य, [अस्वीकार्य ]; प्रेमाका. अग्राह्य, अगाध, [ पार न पामी शकाय एवं ]; * विमप्र. [*अग्राह्य - मोटो उत्सव ]; जुओ अघराज अगाध सम्यचो. निस्तरंग, [स्थिर ] अगाल प्रबोप्र. प्राचीफा. अकाळ, अयोग्य समय, कवखत आगावती चंद्रवा . वृक्षवाळी (सं. अग परथी ) अगाश, अगास गुर्जरा. विमप्र. विराप. आकाश अगाहा आरारा. अगाध, ऊंडी अगि गुर्जरा. आग (सं. अग्नि) अगिअर, अगियर नलाख्या. प्रेमाका. अजगर अगिया प्रेमाका. आगिया अगिलउ वीसरा. अग्रणी, महान ( सं . अग्र) अगुण तेरका. एक वनस्पति अगुरुलहु जिनरा. अगुरुलघुपर्याय, [शरीर Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगेवाण/अचिरज ४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नी अगुरु (स्थूळ के भारे नहीं) तथा अघराज नरका. अग्राह्य, ग्रहण न करी अलघु (कृश के हळवी नहीं) स्थिति, शकाय एटलोबधो, अगाध; जुओ सप्रमाणता, ए प्राप्त करावनार नामकर्म- अगाज भेद] [जै.] अघाट (उभो अघाट) * नंदब. [चारे आघाट अगेवाण उक्तिर. आगेवान (सं.अग्र परथी) - सीमा वच्चे ऊभो रहीने, जाहेरमां, अगेवाणु उक्तिर. आगळ रहेनार, मोखरानु खुल्लेखुल्लं]; जुओ आघाट गुर्जरा. नेतृत्व अघाती आनंस्त. अघाती कर्म, जीवना मूळ अगोचरनी गत्य प्रेमाका. अदृश्य रहेवानी गुणोनो घात नथी करतुं ते कर्म [जै.] शक्ति अघोरा ऐतिका. जे घोर नथी होतुं ते, अगोप दशस्कं(१). प्रेमाका. गोप्य, गुप्त सौम्य, सुंदर]; जुओ उअचट अग्गलि तेरका. आगळ, [पासे, समक्ष] *अचट ("उअचट) * चारफा. [गर्व] (सं.अग्र परथी) [सं.उच्चटा]; जुओ उअचट अग्गली नलरा. आगळ पडती, विशिष्ट, अचरत मदमो. अचरज आगली अचरिज, अचरिज, अचरीज आरारा. अग्गि प्राचीसं. अग्नि, आग उक्तिर. ऋषिरा. देवरा. नरका. प्रद्युचु. अग्गिम उक्तिर आगल रहे अगिम प्राचीफा. विक्ररा. अचरज, आश्चर्य अग्गेवाणि आरारा. आगळ चालनार. अचल जुओं अवल अग्रेसर अचव्युं अखाका. अखाछ. अखेगी. *नरका. अग्गेवाणु उक्तिर. आगळ रहेनार, मोखरानुं न कहेलु, अवर्णनीय; अखाछ. ब्रह्म अग्यर चतुचा. अगुरु, अगर अचंभ आरारा. आश्चर्यकारक, नवतर अघ नरका. हरिख्या. पाप [सं.] (सं.अत्यद्भुत); जुओ असंभि अघउ विमप्र. शोभ्यो अचंभउ, अचंभू ऋषिरा. प्रद्युचु. प्राचीसं. अघ-ओघ प्रेमाका. पापसमह [सं.] अचबी (स.अत्यद्भुत) अघ-ओघ-दहन दशस्कं(१). पापसमहने अचालनिउ षडाबा. अडग, दृढ (सं. बाळे ते, [सं.] __ अचालनीय) अघगम सिंहा(शा). आगम ने निगम साथे अचाले नंदब. अनिवार्यपणे, [न चालतां] गणावेलो एक शास्त्रप्रकार, [*अघमर्षण अचित्त कादं (ध). बावरूं मंत्र (सं.अघ+गम पापविनाशक) अचिरज, अचिरत, अचीरीज आनंस्त. अघमर्षण कादं (शा). पापनो नाश करनार प्राचीफा. वेताप. सिंहा(शा). अचरज, मंत्र के मंत्रविधि (सं.) आश्चर्य ___ 2010_03 For Private &Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अचिरेण शृंगामं. तरत (सं.) अचिंतु गुर्जरा. अणचिंतव्युं, ओचिंतुं (सं. अचिंतित) अचीरीज जुओ अचिरज अचींतबिउ गुर्जरा. अणचिंतव्युं अचोरिडं षडाबा. वणचोरेलुं * अछरायण अच्यंत चित्तसं. अचिंत्य, घणुं अच्छरी जुओ अच्छर अच्छेरा षष्टिप्र. अचरज (सं. आश्चर्य) अच्यंत चित्तसं. अचिंत्य, घणुं अछइ जुओ अच्छइ अछतउ उक्तिर. होतो, रहेतो अछतो अखाका, अखाछ. जिनरा. प्रबोप्र. जेनुं अस्तित्व नथी तेवो, असत्, मिथ्या अभु गुर्जरा. अत्यंत विस्मयकारक (सं. अछि जुओ अच्छइ अछिवउं उक्तिर. होवुं, रहेवुं अत्यद्भुत) अञ्चभुय प्राचीसं. अति आश्चर्यकारक (सं. अछीउं उक्तिर. रखातुं अत्यद्भुत) अच्छइ, अछइ अछि आरारा. उक्तिर. उषाह. गुर्जरा. तेरका. नलरा. नेमिछं. प्रबोप्र.. प्राचीफा. प्राचीसं. विराप. हरिवि. छे (सं.आक्षेति); प्राचीसं. रहे * अच्छक (उच्छक) जिनरा. उत्सुक अच्छय तेरका. आछु, [सुंदर ] (सं. अच्छ) अच्छर, अच्छरा, अच्छरी तेरका. प्राचीसं. अप्सरा; जुओ कइच्छरी अच्छरक हम्मीप्र. आज्ञाभंग अच्छरा जुओ अच्छर अच्छरायण चाफा. [नृत्य]; जुओ अज (अजउभां) सिंहा (शा). ?, [* अत्यारे Jain Cation International 2010 03 अचिरेण / अजयणावंत (सं. अछरायण प्राचीफा. नृत्य अप्सरायन ?); जुओ अच्छरायण अछं आरारा. कुं अछा दशकं (१). पछाडवुं (द. अच्छोड ) अछाणि षडाबा. गाळ्या वगरनुं (सं.क्षण् परथी); जुओ अणछाणियां अछूतउ उक्तिर. स्पर्शदोषना अभाववाळु, निर्मल (सं. अच्छुप्त) अछेद आनंस्त. अछेद्य अछेप जिनरा. अस्पृश्य अछेरुं षष्टिप्र. अचरज [भरी घटना], [अपूर्व घटना ] (सं. आश्चर्य) अछेह आरारा. छेडा वगरनुं, पार वगरनुं, खूब [सं. अ+छेद ] अछोपादि * षडाबा. [अस्पृश्यता वगेरे ] अज अखाका. अखेगी. नरका. ब्रह्मा [ सं . ]; प्रेमाका. बकरुं [सं.] ज, ऊभाऊभ] अजइ वीसरा. हजी, हवे (सं. अद्यैव ) अजमाण नरका. अजमो [हिं. अजवाइन ] अजमाल * अखाका. *अखाछ: चित्तसं. ?, उज्ज्वल, प्रकाशमान, [* उजमाळ, * प्रकाशित ] अजयणाइ उपबा. [जीवरक्षानी] जतन संभाळ विना अजयणावंत षष्टिप्र. जयणा विनाना, [हिंसा - Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजर / अजिउ टाळवानी काळजी विनाना ] अजर अभिऊ. कस्तुवा. चंद्रवा. प्रेमाका. मदमो. सिंहा (शा). ढील, विलंब (अ. अजू) [सं. अद्यापि] अजिर कादं (शा). आंगणुं (सं.) अजी आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. हजी (सं. अद्यापि ) अजर अखाका. प्रेमाका. जरा अजीउ गुर्जरा. हजी (सं. अद्यापि ); जुओ अज विनानुं, जीर्ण न थाय तेवुं पच्युं नथी एवं [टक्युं नथी एवं मालुं नष्ट] [सं.] अजरण-जरण अखाका. अजीर्णता अने अजुआली शृंगामं. अजवाळी, [शुक्ल अजीय गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). हजीये, हजी पण (सं. अद्यापि ) जीर्णता पक्षनी]; ऐतिका. उज्ज्वल [करी] - वृद्धत्व नरका. अजस उपबा. गुर्जरा. अपयश अजस्र नरका. सतत, [निरंतर ] [ सं . ] अजंण मदमो. अजंपो, [अस्वस्थता, वलोवाट] [अ.अज्न] अजा अखाका. अखेगी. प्रेमाका. माया [सं.]; प्रेमाका. माया, [जोगमाया ]; बकरी [सं.] अजाचिक आरारा. अयाचक, अजाचक, न मागवुं पडे वा अजाणतो उपबा. विराप. षडाबा. नहीं जाणतो, अजाण (सं. अ + ज्ञान परथी ) अजाणि वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). अज्ञान, मूर्ख (स्त्री) अजाणिवउं उपबा. षष्टिप्र. [न जाणवुं ते], अज्ञान अजापति अखाका. अखेगी. मायानो पति, ब्रह्म [सं.] अजारो नंदब. इजारो 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अजूआलउं ऋषिरा. षष्टिप्र. अजवाळुं (सं.उज्ज्वालयितम्) (सं. उज्ज्वालकम् ) अजूआले लावल. अजवाळे, प्रकाशित करे अजूटुं दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. अजीठं, एटुं [*सं. आजुष्ट] अजूयालउं विराप. *अजवाळु, गुर्जरा. [उजाळायेलुं] (सं.उज्वलयितम्) अजोगी जिनरा. अयोगी [केवली ], सर्वव्यापाररहित केवल - शुद्ध ज्ञाननी आत्मावस्था] [जै.] अज्ज तेरका. आर्य [आदरवाचक] अज-कल प्राचीसं. आजकालमां, [ थोडा समयमां] [सं. अद्य+कल्य] अजवसाण जिनरा. अध्यवसाय, [आत्मानो] परिणामविशेष, [भावोत्कर्ष] [जै.] अजवि ऐतिका. आज पण [ सं . अद्यापि ] अज्जा नेमिछं. आर्या, साध्वीओ अजिउ तेरका. हजी (सं. अद्यापि + खलु); अजिउ, अज्जिय, अजिउ, अजीय, अजीउ प्राचीसं. हजु, हजी, [सं. अद्यापि ] जुओ अजिउ अजिय वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). हजी अजीउ गुर्जरा. हजी (सं. अद्यापि ) Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ७ अजो/अडगनिया सप्ततिः ) अज्जो प्रबोप्र. महानुभाव (सं.आर्यः) अट्ठोतरु सउ गुर्जरा. षडाबा. एकसो आठ अटकण अखाका. अंतराय; नरका. न (सं.अष्टोत्तरशत) बोली शकाय एवं, [आकुंतेडु, मनफावतुं अट्ठोत्तरु सहस्सु षडाबा. एक हजार आठ (वचन)] (सं.अष्टोत्तर-सहस्र) अटकली आरारा. अनुमान करी, विचारी, अठ आरारा. गुर्जरा. तेरका. आठ (सं.अष्ट) नक्की करी अठतालीस उक्तिर. अडतालीस (सं.अष्टअटकवू दशस्कं(१). युद्ध करवा बाथ चत्वारिंशत्) । भीडवी; प्रेमाका. अटकी जवं, चोंटवू, अठत्रीस उक्तिर. आडत्रीस (सं.अष्टात्रिंशत्) लुब्ध बनवू अठम आरारा. सळंग त्रण दिवसना उपवास अटकाणउ जिनरा. अटकी रह्यो, [थंभी अठमि, अमि आरारा. आठमनो (सं. गयो] अष्टमी) अटणाता प्राचीका. अथडाता (सं.अ) अठसट्ठि षडाबा. अडसठ (सं.अष्टाषष्टिः) अटाट अखाका. अखाछ. नकामुं, फोगट; अठहत्तरि उक्तिर. अठ्योतेर (सं.अष्ट नकामी प्रवृत्ति अटारडं, अटारुं नरप(द). नरका. प्रेमप. अठंगी प्रेमाका. अढेली, टेको दई प्राचीका. शृंगाम. वांकुं, अटकचाळु अठार उक्तिर. अढार (सं.अष्टादश) [*सं.अट्ट] अठाही उक्तिर. अठाई, आठ दिवसनु तप अटाल, अटालि, अटाळी दशस्कं(२). [सं.अष्टाह्निका] प्राचीफा. प्रेमाका. रूपच. अटारी, बारी, अठितालीस षडाबा. अडतालीस (सं.अष्टाझरूखो (सं.अट्टालिका) चत्वारिंशत्) अट्ठ तेरका. नेमिछं. आठ (सं.अष्ट) अठील षडाबा. बेडी अट्ठम तप जिनरा. एक साथे त्रण दिवसना अकृमि जुओ अठमि उपवास [सं.अष्टम+तपस्] असष्ठा विमप्र. अडसठ [सं.अष्टाषष्टिः] अट्ठमि, अट्ठमी गुर्जरा. नेमिछं. आठम अठोतेर सो प्रेमाका. एकसो ने आठ [सं. (सं.अष्टमी) ___अष्टोत्तरशत अट्ठाणऊ सउ षडाबा. एकसो अठ्ठाणुं अष्टोत्तर सो आनंस्त. एकसो ने आठ (सं.अष्टानवति+शत) अड ऐतिका. जिनरा. प्राचीसं. अष्ट, आठ अट्ठावय गुर्जरा. तेरका. अष्टापद [पर्वत] अडकवडक प्रेमाका. दडी जवाय – गबडी अद्वैतालीस षडाबा. अडतालीस (सं.अष्ट- पडाय तेवी चत्वारिंशत्) *अडगनिया [अउगनिया] ऐतिका. काननुं 2010_03 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अडनउय सयं / अणखाइय एक आभूषण अडे चित्तसं, नडे अनय सयं षडाबा. एकसो अठाणुं (सं. अडोली जिनरा. आभरणहीन, [अडवी ] अड्डिय प्राचीसं. आडी [सं. अड्ड]. अष्टानवतिशत) अडयाला षडाबा. अडतालीस [सं. अष्ट- अड्यं राखे प्रेमाका. विनानुं राखे, अटकावी चत्वारिंशत् ] राखे अडवडे उक्तिर. कादं (शा). गुर्जरा. नेमिछं. प्रेमाका. डगडगतो पडी जाय, लथडियां खाय, गोथां खाय (दे.) अडवण प्रेमाका. जोडा वगरना, उघाडा (सं. अनुपानह); जुओ अणवण अडवन जिनरा. अठ्ठावन [ सं . अटानवति ] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अडवुं दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. अथडामणमां अण *जिनरा. [अनंतानुबंधी, अनंतकाळ भ्रमण आववुं लडवुं चंद्रवा. सिंहा (शा). वळगवुं, चोंटवुं; चंद्रवा. नरका. मदमो. अटकवुं, अटकीने रहेवुं, थया विना रहेवुं; मदमो. रूस्तस. लावल. पहोंच, थवुं; प्रेमाका. अटकाववुं; मदमो. नडवुं अडसीला * नेमिछं. [हठीला] [रा. अडसाला ] अडागर अंबरा. प्राचीफा. नागरवेलनां पान अडागर पान वसंवि (ब्रा). नागरवेलनां पान अडाणा विमप्र. [गीरवे लीला ], भाडेथी ] अडुयो वेताप. अडवो, [आभूषण वगरनो अडुयो- पडुयो वेताप. अडवो- पडवो, साव अडवो, [आभूषण वगरनो ] संसारमां सुधी आत्माने करावनार ] [ प्रा.] [जै.] अणआधारिइं उपबा. आधार मदद विना अणआलोई ऋषिरा. आलोचना विना, समक्ष दोषनो स्वीकार कर्या विना अणआलोची * षडाबा. [विचार्या विना ] (सं. आलोच्) गुरु अडाया लावल. लगाड्या अणऊगिइ उपबा. वणऊग्ये, ऊग्या पहेलां अणऊठी षडाबा. ऊठ्या विना, बरखास्त थया विना अडीअल मदमो. छंदविशेष अडी बेसवुं प्रेमाका. हठ, जीद करवी; अणकरतउ उपबा. वाग्भबा. नहीं करतो अणकहिउं उपबा. गुर्जरा. वणकां जुओ अणकीधइ उपबा. वणकर्ये, कर्या विना अणख वीसरा. रोष [दे. अणक्ख; सं. अनीक्षा ] अणखलिउ उपबा. न चूके एवो (सं. अन्+ स्खलित) अणखाइय प्राचीसं. अप्रसन्न, रुष्ट अडूई विमप्र. अडवे (खाली), [आभूषण वगरना ] अड्धुं रहेतुं चित्तसं. अटकी रहे छे अढाई षडाबा. अढी (सं. अर्धत्रियः) अढार भार आरारा. प्रेमाका. अढार जातनी, बधी जातनी (वनस्पति) अढारोतरु सउ षडाबा. एकसो अढार [सं. अष्टोत्तरशत ] 2010_03 आश्रय Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ९ - अणखि/अणमj अणखि, अणखी नरका. नेमिछं. क्रोध, अणत्थिई नेमिछं. अनर्थथी, [अनिष्टताथी, रोष, अणगमो (द.अणक्ख) [सं. बुराईथी] अनीक्षा] अणदीघउं उपबा. षडाबा. वणदीg, न अणखूटि अंगवि. आयुष्य खूटे ते पहेलां दीधेनुं अणगमी गुर्जरा. न गमी (अण+सं.गम्यते) अणदेवउं उपबा. न देवा जेवं, [न देवू ते] अणगल अभिऊ. पुष्कळ (सं.अनर्गल) अणनमतउ उपबा. नहीं नमतो अणगार आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. देवरा. अणपडिहिं जि षडाबा. न पड्यु [न नाख्यं] घर विनाना, परिव्राजक, साधु (सं. होय त्यारे ज । अनागार) 'अण परी गर्जरा. आ रीते अणगाल *अभिऊ. [अकाल, खराब अणपरीछिउं उपबा. [वणपारख्यु], बराबर समय [प्रा.] न जाणेलु [सं.अन्+परीक्ष] अणगुक उक्तिर. अणगो, रांध्या विनानुं अणपलोट प्रेमाका. पलोट्या विनाना भोजन(सं.अनग्निपक्वः) अणपामिउ उपबा. वणपाम्यं, नहीं पामेलु अणघातिइ षडाबा. नाख्या विना अणपगड षडाबा. आवी पहोंच्या वगर, अणचव्युं अखाका. अखाछ. अखेगी. न [(प्रहर) चड्या वगर, थया वगर] कहेलुं, अवर्णनीय, ब्रह्म अणपूछिउ उपबा. षडाबा. वणपूछ्युं अणछतुं अखाका. अखाछ. अखेगी. अणपूंजतउ उपबा. न वाळनारो, साफसफ चित्तसं.जेनुं अस्तित्व नथी तेवू, असत्, न करनारो मिथ्या; उपबा. न होय तेवू अणप्रीछिई, अणप्रीछविइं नेमिछं. लावल. अणछाणियां षडाबा. गाळ्या विनानां, . प्रीया के जाण्या वगर जुओ अछाणिइ अणबीह जिनरा. निर्भय अणछाडीई उपबा. वणछाड्ये, छाड्या विना अणबीहतउ गर्जरा विरापन बीतो निर्भय अणछेदिउं उपबा. वणछेद्यु, छेद्या विना- (अण+सं.बिभेति) अणजस उपबा. अपयश अणभिडिउ ऐतिका. सामे नहीं आवेलो, अणजाणवू उपबा. गुर्जस. न जाणवू ___ मुकाबलो कर्या विना अणझूझतउ गुर्जरा. युद्ध न करतो अणभोगवता उपबा. नहीं भोगवता अणडही गुर्जरा. गाय (सं.अनडुही) अणमणतां नरका. मन वगर [उदास - अणतेडिउं गुर्जरा. वणतेड्यु, वणनोतर्यु खिन्न – अस्वस्थ थतां] अणतोछडकं उपबा. तोछडुं नहीं तेवू (सं. अणमणुं नरका. प्राचीफा. मोसाच. मन अन्+तुच्छ) विनानु, उदास (सं.अन्+मनस्) ___ 2010_03 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणमवी/ अहूं अणमवी अखाछ. अणमापी, अमित अणमारे गुर्जरा. विराप. वणमार्ये अणमिलतुं कादं (धु). अजुगतुंः उपबा. अणसरखुं, [मळतुं न आवतुं ] अणमूउ गुर्जरा. वणमूउं, न मूएलुं अणरमिवउं उपबा. आनंद न पड़वो ते १० अणरस प्राचीफा. अरसिक (सं. अन् + रस ) अणरहिवउं उपबा. न रहेवुं ते अणरागिय गुर्जरा. अनुरागी षडाबा. अनशन, उपवास अणलहतउ षष्टिप्र. नहीं मेळवतो (सं. अन् + अणसणीआ उपबा. उपवासी लभ्) अणलंग अखेगी. अणलिंगी, [ ब्रह्मज्ञानी] अणलागइ उपबा. न लागेलुं होतां, लाग्या विना अणलाजमणउं उपबा. लज्जा नहीं करावनारुं अणलाधउ षष्टिप्र. अणलाध्यो, [वण मेळव्यो] अणलिंग अखेगी. लिंग वगरनुं, ब्रह्म चित्तसं. अणलिंगी, ज्ञान, ब्रह्मस्वरूप अणलिंगी अखाका. देहभावधी मुक्त, ब्रह्मज्ञानी अणलेखे प्रेमाका हिसाब वगरनो, घणो अणलेहेतुं प्राचीका. मोसाच. अणसमजु, बाळकबुद्धि मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अणवाणे चंद्रवा. अडवाणे, खुल्ले, जोडा वर [सं. अन् + उपानह् ] अणवांछत उपबा. न इच्छतो अणविमासिउं गुर्जरा. वणविचार्य (अण+ सं. विमर्शितम्) अणविहरतां षडाबा. विहार न करतां अणवूठि शृंगामं. वरस्या वगर अणसण आरारा. ऋषिरा. नलरा. प्रधुचु. अणवट अभिऊ. दशस्कं (१). नरका. प्राचीफा. प्रेमाका. स्त्रीना पगना अंगूठानुं एक घरेणुं अणवण वेताप. सिंहा (शा). अडवाणुं, [पगरखां विनानुं] (सं. अन्+उपानह) अणवरी नरका. वर्या विनानी, अपरिणीत 2010_03 अणसन्न नलरा. आहारत्याग, उपवास (सं. अनशन) अणसरइ, अणिसरइ नलरा. प्रबोप्र. पाछळ जाय; अभिऊ. प्रबोप्र. अनुसरे, अनुयायी थाय, [-नुं पालन करे ]; ऋषिरा. अनुसरे, [-नी प्रमाणे करे ] ; नलाख्या. अनुसरे, [-नी दिशा ले ] अणसंदहितु शृंगामं. अश्रद्धावान, अंदेशो करतो अणसार, अणसारो दशस्कं (१). प्रेमाका. इशारो निशानी [सं. अनुसार ] अणसीझतइ उपबा. असिद्ध थतां, पार न पडतां अणहारउ उक्तिर. अनुकरणरूप (सं. अनुहारः); जुओ अणुहार अणहितूआ उपबा. अहित करनारा अणहुति * ऐतिरा. [न होवा छतां ] अणहुंणी आरारा. न थनार अणहूतु अखेगी. जे थयुं नथी ते अणहूतुं षडाबा. नथी तेवुं Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अणहूंतीइ/अणुहाण अणहूंतीइ उपबा. न होतां अणु प्राचीसं. अने [सं.अन्यद्] अणंगु गुर्जरा. वसंफा (ल). अनंग, कामदेव अणुआंणे वेताप. अडवाणे, [जोडा वगरने, अणंत गुर्जरा. अनंत खुल्ले] [सं.अन्+उपानह्] अणंतकाई *गुर्जरा. [जेमां अनंत जीवो छे अणुक्कमि ऐतिका. अनुक्रमे, [एक पछी तेवी (वनस्पति)] (सं.अनंतकायिक) एक] अणंतर तेरका. पछी (सं.अनंतरम्) अणुजणावइ उपबा. अनुज्ञा – रजा आपे अणाथ, अणाथि, अणाय्य दशस्कं(१). अणुठाणु षडाबा. अनुष्ठान दशस्कं(२). प्रेमाका. ललिरा. अणुत्तरि गुर्जरा. अनुत्तर, जैनोना पांच सिंहा(शा). दारिद्र्य, गरीबी; आरारा. देवलोकमान एक नंदब. दरिद्र, गरीब (सं.अन्+अस्ति) अणुदिण गुर्जरा. दररोज (सं.अनुदिन) अणादि गुर्जरा. अनादि अणुपुब्बि जिनरा. आनुपूर्वी, [नामकर्मनो अणावण आरारा. अणावq ते, तेडावq ते एक भेद, वर्तमान शरीर मूक्या पछी एने अणाह आरारा. उषाह. प्राचीका. अनाथ, ऊपजवाना स्थळ तरफ खेंची जनार रंक, गरीबडु, दीन; गुर्जरा. विराप. कर्म] [जै.] अनाथ, असहाय अणुरत्तउ प्राचीफा. अनुरक्त, आसक्त अणिअ आखइ लावल. आखी अणीए, अणुराउ नलरा. अनुराग, प्रेम अणीशुद्ध, [अखंड] [सं.अनीक+ अणुरागु तेरका. अनुराग अक्षत; जुओ अणीय आंखइ अणुवाइ षडाबा. अभ्यास करनार (सं. अणिख *अभिऊ. [*सुंदर, *अद्भुत, अनुवाचिन) *भयानक, "तेजस्वी] [अ.अनीक; रा. अणुवाणो मदमो. अडवाणो पिगरखां अणीख] विनानो] (सं.अनुपानह्) . अणि परि गुर्जरा. आ रीते अणुसरइ आरारा. अनुपालन करे; ऐतिका. अणिमा शृंगामं. सूक्ष्मता, [पातळापणुं] गुर्जरा. अनुसरण करे, [अनुपालन करे, _(सं.) सेवे] अणिसरइ जुओ अणसरइ *अणुहण (अणुहाण) विमप्र. अडवाणुं, अणीइं अभिऊ. सेनामां (सं.अनीक) उघाडु, [पगरखां विनानुं] [सं. *अणीय आंखइ [अणीय आखइ] * लावल. अनुपान) [अखंडपणे, संपूर्णपणे] [सं.अनीक+ अणुहर- तेरका. अनुसरवू (सं.अनु+हर्) अक्षत]; जुओ अणिअ आखइ अणुहाण, अणुहाणुं प्राचीका. लावल. अणीसर * विक्ररा. [आरपार] हरिख्या. अडवाणुं, उघाडु, पगरखां 2010_03 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुहार/अतिसय ज्ञानी १२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विनानु (सं.अनुपान); जुओ अणुहण अतिकुंअल, अतिकुंअलि, अतिकूवली अणुहार, अणुहारि, अणुंहार आरारा. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). अतिजिनरा. देवरा. अनुकरणरूप, -ना जेवां; कोमळ । जुओ अनुहार अतिक्रम्यु आरारा. वटाव्यु, छोड्यु अणूर आरारा. नलरा. विमप्र. न्यून, ओछु, अतिक्रमावइ षडाबा. वितावे, पसार करे अधूरुं (सं.अन्+पूर); * नेमिछं. गुर्जरा. अतिखूत ऋषिरा. अत्यंत खूपी गयेलो [ओछपवाळु], वणपुरायेली आशावाळ, अतिघण अभिऊ. गुर्जरा. अतिघणुं (सं. असंतुष्ट अतिघन) अणूरति आरारा. अधूरापणुं, ओछापणुं, अतिचरित्रं षडाबा. भंग कर्यो (सं.अतिचर) न्यूनता, खोट] (अण+स.पूर्ति) अतिचार उपबा. व्रित के नियमनो] भंग अणूवांणे देवरा. अडवाणे, जोडा विना (सं.) (सं.अनुपान) अतिजाण गुर्जरा. घj जाणनार अणूहाण नलरा. पगे जोडा पहेर्या विना, अतिधज "विक्ररा. [भारे मोटो, भव्य अडवाणा (सं.अनुपान) (सं.अतिध्वज) अणूहार, अणूंहार देवरा. -ना जेवा (सं. अतिलाल अतिलील ऋषिरा. अतिसुंदर अनुहार) अतिवंकुड वसंवि(ब्रा). घणी वांकी (सं. अणूंअर नलरा. अणवर (सं.अनुवर) _ अतिवक्र) अणोसरूं उषाह. उदास अतिविस उक्तिर. अतिवख, एक वनौषधि अत चतुचा. अति (सं.अतिविषा) अत षडाबा. *अहीं, [*आ बाबतमा] (सं. अतिशि, अतिसि नलाख्या. घणं, खब __ अत्र), [*कदाच, *संभवतः] [सं.उत] (सं.अतिशय) अतयान शृंगाम. अतिजाण, समजु अतिशे चित्तसं. अतिशय अतलिबळ, अतलीबल, अतुलीबल नरका. अतिसउ, अतिसय षडाबा. अतिशय वधारे मदमो. प्रेमाका. सिंहा(शा). अतुलित- प्रमाण; [चमत्कारिक प्रभाव; देवरा. बल, अतुल - अपार बळवाळो महिमा, प्रभाव [प्रभावक चमत्कारिक अतंतर देवरा. बेकाबू, पार विनानो (सं. लक्षण] (सं.अतिशय); जुओ यतिसय अतंत्र) अतिसयवंत नलरा. महिमावंत, प्रभावशाळी अतांड प्रेमाका. खूब ऊंचेथी, जेमतेम, अतिसय ज्ञानी आरारा. विशिष्ट ज्ञान [खुल्लेखुल्लं] [*सं.उत्तान धरावता, खास करीने अन्य काळy अतिकाळ प्रेमाका. मोडं ज्ञान धरावता ज्ञानी 2010_03 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अतिसंता * ऋषिरा. [विश्रांत, अत्यंत आराम पामेल] (सं. अतिश्रान्ता) अतिसंमदा ऋषिरा. घणो हर्ष [सं. अतिसंमुदा] अतिसि जुओ अतिशि अतिसी षडाबा. अळसी (सं. अतसी) अतिहि, अतिहिं उपबा. गुर्जरा. विराप. खूब ज अतीत अखाका. पर थयेलो, अलिप्त [सं.] अतीत अखाछ. प्रेमाका. अतिथि, भिक्षुक, साधु-संन्यासी अतुल्य अत्तागम आनंस्त. आत्मागम, [भगवान महावीर पासेथी प्राप्त थयेलो सिद्धांत ] [जै.] १३ अत्थ जिनरा. अर्थ, [तात्पर्य] अत्थत्थ ऐतिका. अर्थ-अर्थ, [विभिन्न अर्थ ] अत्थमण शृंगामं. आथमवुं ते ( सं . अस्तमन) अत्थि ऐतिका. छे (सं.अस्ति) अत्य चंद्रवा. चित्तसं, प्रेमप. मदमो. अति अत्यारताइ पंचवा. अत्यार सुधी (सं. अत्र + वार) अतिसंता / अद्देसउ अथगी ऋषिरा. अटक्या विना, [ थाक्या विना ] [ दे.अत्थक्क ] अत्र - अमुत्र परलोकमां [सं.] अतुली आरारा. अतुल्य, अमाप अतुलीबल जुओ अतलीबल अतोल अखाका. कस्तुवा. प्रेमाका. अतुल, अथा अखाछ. अथाग, [ अत्यंत] [सं. अस्थाघ ] 2010_03 अथाह उक्तिर. अगाध, ऊंडुं (सं. अस्थाघ) अथिर जिनरा. अस्थिर, [ नामकर्मनो एक भेद, जेना उदयथी कान, पांपण, जीभ वगेरे अवयवो चपळ होय] [सं.] अथिर, अधीर अभिऊ. ऐतिरा. देवरा. अस्थिर अथिरता आनंस्त. अस्थिरता अथीर जुओ अथिर अदपडियाळी प्रेमाका. अडधी मींचेली; जुओ अधपडियाळ अखाछ. अदबद, अदबदा अखाका. अखेगी. चित्तसं. नरका. अद्भुत, अलौकिक, परम तत्त्व अदबुद, अदभुद प्राचीफा. प्राचीसं. आश्चर्यजनक, अद्भुत अदभूय गुर्जरा. अद्भुत अदंसण शृंगामं. अदर्शन, [न देखावुं ते] अदाप दशस्कं ( 9). प्रेमाका दुःख, वेदना, ऋषिरा. आ लोकमां अने अदृष्टायका कृष्णच. अधिष्टात्री अदेखता षडाबा. नहीं देखता त्रास अदिकेरूं रूस्तस. अदकेरुं, अधिकतर अदीण आरारा. अदीन, गौरववाळो अत्रिसुत प्रेमाका. सूर्य [सं.] अदेखवा प्रेमाका. अदेखा, ईर्षाळु अथ किंवा दशस्कं (२). तो शी गणना ? अद्देसउ उक्तिर. उपदेशक, मार्गदर्शक (सं. [सं.] उद्देशक) Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्यकु/अनइरुं १४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रहीने अबकु मदमो. अधिक अघसस्ता प्रेमाका. अधमूआ [सं.अर्ध+ अद्याप अखाका. अद्यापि, हजु सुधी श्वस्) अयापिक प्रेमाका. अद्यापि, हजु सुधी अधार वीसरा. आधार अद्रि चित्तसं. पर्वत अधाशण प्रद्युचु. अर्धासन, उभडक बेसबुं अद्वीत दशस्कं(२). अद्वैत, अनन्य अधकी चतुचा. वधारे [सं.अधिक अघांध नरप(द). "पुष्कळ अधकेरडी *मदमो. अदकेरी, घणीबधी] अधिकरी उक्तिर. अधिष्ठित करीने, -मां (सं.अधिकतर+डी) अधकेरु, अधिकरउँ उपबा. प्रबोप्र. षडाबा. अधिकार उपबा. ऐतिरा. नलरा. लावल. अदकेलं, वधारे (सं.अधिकतर) वृत्तान्त, विषय, विभाग- (सं.) अधन्न आरारा. अधन्य, पापी अधिकेरउं जुओ अधकेलं अधपडियाळी दशस्कं(१). प्रेमाका. अडधी अधिरातिइ आरारा. अधराते, अर्धी रात्रे बीडेली; जुओ अदपडियाळी अधिवधिरा जुओ अधवधरा अधर अखाका-शु. धारण न करी शकाय अधिवासियां षडाबा. [धूप आपी अा] __एवं; ०अखाका-शु. निरालंब; चित्तसं. (सं.अधिवासित)। अध्धर, ऊंचे अधिष्टत आरारा. अधिष्ठित, -मां रहेलो अधर वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि(ब्रा). नीचुं अधीकार कामा(त्रि.) कामा(शा). अधिक अधर (अधर किया) वसंवि. नीचे (उतारी संख्यामां पाड्यां) अधुर कामा(त्रि). चतुरा. नरका. मदमो. अधरइ गुर्जरा. धारण करे छे (सं.आधरति) अधर, नीचलो होठ, होठ अधरवटे प्रेमाका. ऊर्ध्व वाटे, [स्वर्गे] अधेन देवरा. अधन्य, [खराब] (कार्य) अधरास * नरका. *नरप. [अधरासव, अघोपचार अखाका. अधकचरा उपचार के __ अधरामृत] उपाय अधलउं, अधरौँ उपबा. नलरा. अधुं अध्यारु नलरा. प्रेमाका. सिंहा(शा). अधवधरा, अधिवधिरा आरारा. नरका. अध्यापक, शिक्षक, गुरु (सं.अध्वर्यु) __ अधकचरा, ओछी समजवाळा अध्यास चित्तसं. वस्तुनुं अन्य रूपे भासवं अधवारुं *अखाका. [भागीदारी, सहियारा- ते ___ पणुं, समकक्षता] [सं.अर्ध+वारक] अन चतुचा. अन्य अधविचि उपबा. अधवच्चे [सं.अर्ध+ अन वीसरा. अन्न *व्यच्य] अनइकै वाग्भबा. अनेरुं, बीजुं [सं. 2010_03 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १५ अनकुळ/अनीठ अन्यतर] अनाम नलरा. हम्मीप्र. इनाम, बक्षिस अनकुळ *प्रेमाका. [प्रतिकूळ] अनामिक हरिख्या. चंडाळ (सं.अनामक) अनख नरप(द). ईर्षा, [रोष]; जुओ अनारिज गुर्जरा. अनार्य अणखी अनाधिष्णि कृष्णच. अनाधृष्टि [एक नाम] अनडां ऐतिका. अनम्र, [उदंड, निबंध] अनाशातना आनंस्त. आशातना न करवी अनडुही विराप. गायो (सं.) ते, विनय अनपत्य कादं(शा). अपत्य -- संतान विनानुं अनाशंसा आनंस्त. निष्काम भाव, (सं.) कामनाथी अलिप्तपणुं] [सं.] अनपुरांण सिंहा(शा). अन्नपूर्णा अनाहूत प्रेमाका. पूछ्या विनानु, [वणअनभे अखाका. प्रेमाका. अभय, निर्भयता बोलाव्युं] [सं.] अ-नमणा प्रेमाका. असुंदर, न गमे तेवा अनिआउ * उषाह. [दोष]; जुओ अन्या, अनमान आरारा. अपमान अन्याय अनमिष आरारा. अनिमेष, अपलक . अनिक अभिऊ. अनेक अनमी कस्तुवा. प्रेमाका. अणनम अनिमिष ऐतिरा. [जेने आंखनो पलकारो *अनय गुर्जरा. अने [सं.अन्य] नथी तेवा], देव [सं.] अनरत सिंहा(शा). अनृत, असत्य अनिमेषी गुर्जरा. विराप. जेनी आंखमां अनल अखाका. अखाछ. अगनपंखी, एक पलकारा नथी थता ते, देवी । पंखी, जे पोतानी मेळे बळी मरे छे अने अनियट जिनरा. अनिवृत्ति, [जीवोनी तेनी भस्ममाथी बीजं अनलपंखी उत्पन्न विशुद्धिमां तारतम्य न होय एवी थाय छे . आत्मावस्था] [जै.] अनहात * उषाह. [असंभव - वधारे पडती अनिर्वाची नरका. वर्णवी न शकाय एवो, वात] [*रा.अणहोतो; *हिं.अनहोता] [अनिर्वचनीय] अनंतर जुओ घनंतर अनिवड *आरारा. "जिनरा. [निःस्नेही, अनंतरागम आनंस्त. भगवाने पोताना अ रागी] [सं.अ+निकट/निबिड] शिष्यने सीधुं शीखवेलु शास्त्र [जै.] अनिवार आरारा. अनिवारित, अपार; अनाघात प्रेमाका. *ताजु, *सबळ नेमिछं. *सतत, [खूब] अनाड उक्तिर. जार, उपपति ("सं.अनाट) अनी गुर्जरा. अने (सं.अन्य परथी) दि.अणाड] अनीठ, अनीठउं *अखाछ. लावल. वसंफा. अनाणी प्राचीका. अज्ञानी वसंवि. वसंवि(ब्रा). शृंगामं. अनंत, अनादेय जुओ नादेय अपार, अखूट (सं.अनिष्ठित) ____ 2010_03 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चंद्रवा. नलाख्या. प्रेमाका: अनुपम, उत्तम; जुओ अनुप अनेकप गुर्जरा. हाथी (सं.) अनेकि परि गुर्जरा. अनेक रीते अनेतइ, अनेति उक्तिर. अन्यत्र अनेथइ, अनेथि, अन्येथि उक्तिर. ऐतिरा. जिनरा. नलरा. वाग्भबा. *विमप्र. षष्टिप्र. बजे स्थाने, बीजे स्थळे [सं. अन्यत्र ] अखाका. [अनुक्रमे, -ना अनेरडं आनंस्त. आरारा. उपबा. ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. चित्तसं. तेरका. देवरा. नलरा. प्राचीसं. लावल. वाग्भबा. विमप्र. षष्टिप्र. षडाबा. बीजुं; जुदुं (सं. अन्यतरक); उक्तिर. बीजुं, वळी अनेरडउ जिनरा. बीजो अनीत / अन्या साप अनीत प्रेमाका. अनीतििभर्यु अनीरा षष्टिप्र. बीजा (सं. अन्यतर) अनीलभ्रखक चंद्रवा. पवननो भक्षक, अनु गुर्जरा. चारफा. तेरका. प्राचीफा. अने (सं. अन्यत्); जुओ अनुभाव अनुकार आरारा. जेवा [ सं . ] अनुक्रमी प्रेमाका. [ एक पछी एक] पसार करी * अनुक्रम्ये अनुक्रममां, वगेरे ] १६ * अनुखळ प्रेमाका. खांडणियो; जुओ ऊखल अनुग्रह प्रेमाका. हरिख्या. शाप पाछो खंचवानी कृपा के ए माटेनो उपाय, दंडनुं निवारण, माफी (सं.) अनुचार प्रेमाका. सेवक, नोकर ( प्रास माटे अनेरि परि उक्तिर. बीजी रीते 'अनुचर' नुं रूप) अनुदिन लावल. दरेक दिवसे, हंमेशां [सं.] अनुप चित्तसं. अनुपम, जुदुंजुदुं, जुदुं: जुओ 2010_03 अनेरिसिउ उक्तिर. अनोखुं, (सं. अन्यादृशः) अनेरी वार, अन्येरी वार उक्तिर. बीजी वखते अनेसउ उक्तिर. प्राचीसं. अनोखो (सं. अन्यादृशः ) अनूप अनुभाव गुर्जरा. प्रताप, [गौरव, महिमा ] अनोपम नलाख्या. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). अनुपम अनुभाव [अनुभाव ] * आनंस्त. [अने भाव] "अनोहक गुर्जरा. वृक्ष (सं. अनोकह) अनुमत देवरा. अनुमति (सं.) अन्तरि जुओ अंतरि अनुमन षडाबा. माने (सं. अनुमन्यते) अन्तेउर जुओ अंतेउर अन्न जुओ अंन अनुमिणइ षडाबा. अनुमान करे, अनुमानपूर्वक जाणे (सं. अनुमिमान) अनुसारि आरारा. जेवती अनुहार देवरा. -ना जेवा (सं.) अनुंध कृष्णच. अमर्याद, अत्यंत [रा. अनंतौ] अनूप * अखाका-शु. आरारा. कादं (शा). अन्न गुर्जरा. अने (सं. अन्य परथी) अन्नति गढिउ ऐतिका. अन्नल राजानो गढ अन्नैयो नरका. * वांकाबोलो, अणचियो, [अळवीतरी, तोफानी ] अन्या, अन्याय * कस्तुवा. चतुचा. *नलरा. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १७ अन्याइ/अप्पाण प्रेमाका. "वेताप. दोष, वांक, दुष्कर्म; [सं.अपवर्ग] जुओ अन्ना अपवाद नरका. आळ, आक्षेप, दोषारोपण अन्याइ नलाख्या. अन्यायी, अन्याय [सं.] करनार, [खोटुं करनार] अपसोस आरारा. अफसोस, विषाद अन्येथि जुओ अनेथि अपहरइ षडाबा. लई ले, लूंटी ले; गुर्जरा. अन्येरी वार जुओ अनेरी वार .. .. अपहरण करे, उपाडी जाय (सं. अप चित्तसं. पाणी अपहरति) अपघात देवरा. मुश्केली (सं.उपघात) अपाइ षडाबा. दुःखमां, मुश्केलीमां (सं. अपाय) अपछर, अपछरा आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. अपान आनंस्त. गुदा [सं.] दशस्कं(१). प्रद्युचु. "विमप्र. वीसरा. अपाय कāमं. उपाय अप्सरा अपाया ऋषिरा. संकटो (सं.अपाय) अपजत जिनरा. अपर्याप्त, [नामकर्मनो एक अपारि कादं (शा). हुं पार पाडु छु (सं. प्रकार, स्वयोग्य पुद्गळोनो संचय पूरो न थयो होय एवी जीवदशा, कर्मदशा] आपारये), हुकम बजावी लवाय छे (सं.आपार्यते) [जै.] अपारि कादं(शा). अपार, घj अपणउ अभिऊ. वीसरा. आपणो, पोतानो अपांगरंग कादं(धू). कटाक्षलीला [सं.] (सं.आत्मनक) अपुणीक नलरा. पुण्य विनाना (सं. अपत्थिय जिनरा. वणमाग्यु [मोत], (सं. *अपुण्यिक) अप्रार्थित) अपूरणु षडाबा. परिपालन न करवू अपत्य चित्तसं. बाळक, संतान [सं.] अपूरब वीसरा. अपूर्व, असाधारण अपभ्राजना कृष्णच. निंदा [सं.] अपूरव आरारा. नवं अपमत्त जिनरा.अप्रमत्त [विरत], [अप्रमाद- अपोपा *अभिऊ. पोते. जओ आपोपं पूर्वकनी विरति जेमां होय एवी अप्प आरारा. आपणी. पोतानी (सं.आत्म) आत्मावस्था] [जै.] अप्पउ आरारा. पोताने अपर पाख प्राचीसं. अपर पक्ष, [कृष्ण अप्पण तेरका. आपणुं; पोताने (सं.आत्मनः) पक्ष, वद], [अहीं] श्राद्ध पक्ष अप्पणउं प्राचीसं. आपणुं, पोतानुं (सं. अपराधइ उक्तिर. -नो अपराध करे, [-ने आत्मनः) हानि करे] (सं.अपराध्यति) अप्पथुइ षडाबा. पोतानी जातनी प्रशंसा अपराठी विराप. विमुख; जुओ उपराठी (सं.आत्मस्तुति) अपवरग, अपवर्ग आरारा. चित्तसं. मोक्ष अप्पाण प्राचीसं. ललिरा. पोताने (सं. 2010_03 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पियउं/अभिध्यान १८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आत्मानम्) ___ अबुह ऐतिका. अबोध, [अज्ञानी] अप्पियउं ऐतिका. नेमिछं. आप्यु [सं. अबूके [हबूके] नरप. धबकारा करे, अर्पित] _[धडके] अप्रमाण, अप्रमाण आरारा. असिद्ध, [नहीं अबूझ, अबूझणा, अबूझ्या अभिऊ. बननारी हकीकत]; *गुर्जरा. [असिद्ध, आरारा. लावल. शीलक. अज्ञानी, नकामुं] (सं.) समज विनाना (सं.अ+बुध् परथी) अप्रार्थक आनंस्त. इच्छारहित [सं.] अबूझी आरारा. अज्ञानी (स्त्री) अ-प्रोजन कादं (शा). कारण विना (सं. अबोखण सिंहा(शा). अपोशण, [भोजन __ अप्रयोजन) __वखते आचमन करवूते] (सं.आपोशान) अफराटां चतुचा. पीठ फेरवेलु, [अवळु] अब्बुय प्राचीसं. अर्बुद, आबू पर्वत अफू अंबरा. अफीण अभव्य षष्टिप्र. मोक्षनो अनधिकारी (जै.) अफेडणु षडाबा. नष्ट न थq ते अभराख नेमिछं. अभरखो, [अभिलाषा, अबछरा मदमो. अप्सरा तृष्णा] [रा.अभलाष] अबद मदमो. वरस (सं.अब्द) अभरे भर्यु प्रेमाका. पुष्कळ [भरेलु] अबल वसंफा. वसंफा(ल). अबळा, स्त्री अभंड विमप्र. असभ्य, [अशोभनीय] [सं. अबलख, अबलखा मदमो. हम्मीप्र. घोडानी उभांड; दे.उब्भंड एक जात, काबरचीतरो (घोडो) अभावडि षष्टिप्र. अभाव, अणगमो अबलिय * ऐतिका. [अबळा] अभिख प्राचीफा. अभक्ष्य, नहीं खावा जेवू अबंझ [अवंझ] ऐतिरा. अवंध्य, सफळ अभिगम देवरा. [जिनदेवने वांदवा जतां अबाह *गुर्जरा. [अबाध, अन्तराय विना, पाळवाना] शुद्धि ने विनयना नियमो __खूब] अबाहु गुर्जरा. अबाध, अंतराय विना, अभिग्गह, अभिग्रह ऐतिका. तेरका. नलरा. खूब; [जेने कशी अंतराय नडतो नथी प्राचीफा. प्रतिज्ञा, धार्मिक नियम (सं. एवो वीर पुरुष अभिग्रह) अबांधतउ षडाबा. न बांधतो, बांध्या वगर अभिचार कादं (शा). तांत्रिक-मांत्रिक अबीर नलरा. नेमिछं. एक प्रकार- सुगंधी- धमात्र दार सफेद चर्ण अबील (अ) अभि-दान देवरा. अभयदान, जीवतदान अबीह, अबीहो अखाका. ऋषिरा. जिनरा. अभिषा ऐतिका. नाम विमप्र. स्थूलिफा. बीक विनानु, निर्भय अभिध्यान अंबरा. अभिधान, नाम (सं.अ+भी); (जुओ अविह) अभिध्यान सम्यचो. अभिमुख ध्यान, 2010_03 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अभिनवेरउ/अमरतां [चिंतन (अनुभव्या) विनानो अभिनवेरउ ऐतिका. [साव] नवं अभ्यसइ उक्तिर. ऋषिरा. कादं(शा). अभिप्राउ षडाबा. अभिप्राय, मत, विचार अभ्यास करे, तालीम ले, शीखे; षडाबा. अभिमान-तन दशस्कं(१). अभिमन्यपत्र अभ्यास करे, प्रयोग करे, करे; चित्तसं. परीक्षित सेवन करे अभिवनु गुर्जरा. अभिमन्यु अभ्यंतर प्रेमप. अंतरमा [सं.] अभिषेचन प्रेमाका. अभिषेक, स्नान [सं.] अभ्याख्यान ऋषिरा. ऐतिका. आळ. खोटं अभिसिंचावइ षडाबा. अभिषेक करावडावे तहोमत, अढार पापस्थानकमांनुं एक अभिहाण ऐतिका. नाम (सं.अभिधान) (जै.) अभीतर, अभीतर कामा(शा). कामा(त्रि). ___ अभ्यास आरारा. हमेशां बनती क्रिया; गुर्जरा. पुनरावर्तन (सं.) अभ्यंतर, अंदर, अंतरमा अमकइ षष्टिप्र. अमुकमां (सं.अमुके); अभीयांन, 'अवीघांम कामा(शा). नाम । जुओ उमकु अभीरांम कामा(त्रि). कामा(शा). आनंद अमग्गउ ऐतिका. कुमार्ग, मिथ्यात्व [जै.] [सं.अभिराम] अमथु *अखाका. दशस्कं(१). एमर्नु एम; अभीरु षडाबा. निर्भय (सं.) प्रेमाका. [एम ने एम ज], कारण वगर अभीतर जुओ अभीतर अमथां नाखीए प्रेमाका. नकामां गणीए, अभूमीयउ *वीसरा. [अ-भोमियो, मार्ग । [नकामां गणी एम ने एम राखीए] नहीं जाणनारो] अमथो रह्यो प्रेमाका. [एम ने एम रह्यो], अभूल अखाछ. भूलचूक वगर नकामो थई पड्यो अभेदान नरका. अभयनुं दान अमन, अमन अखाका. अखाछ. एषणा अभेपद नरका. अभयपद के इच्छा विनानुं मन; मननी पारनी अभोखउ, अभोखु उक्तिर. "विक्रच. (अतिमनस) स्थिति; एवी स्थितिए [सत्कार रूपे पाणी- सिंचन, छंटकाव पहोंचेलु (सं.अभ्युक्षण); जुओ आभोखइ अममा देवरा. अममदेव, आवती चोवीसीना अभोखण, अभोखणुं उक्तिर. "विमप्र. एक तीर्थंकर *लावल. [सत्कार रूपे पाणी- सिंचन, अमया उषाह. उमिया छंटकाव (सं.अभ्युक्षणम्) जुओ अमरख नलरा. विमप्र. अदेखाई (सं.अमष) अंबोषण अमरख अखाछ.*व्यर्थ, मिथ्या] [सं.*मृषा अभोखु जुओ अभोखउ परथी]; *खरेखर [सं.अ+मृषा] अभोगत अखाछ. चित्तसं. भोगव्या अमरतां उपबा. न मरतां 2010_03 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्ग अमरविमाण/अमूझ २० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अमरविमाण आरारा. देवविमान, देवलोक, सरळ] अमारि, अमारी आरारा. उपबा. ऐतिका. अमरसाल गुर्जरा. देवलोक, [स्वर्ग] (सं. गुर्जरा. विक्ररा. अहिंसा, हिंसानिषेध, अमरशाला) जीवितदान (सं.) अमराउरि गुर्जरा. अमरापुरी, देवनगरी, अमावस, अमावसि उक्तिर. अमास (अं. [स्वर्ग] ___अमावास्या) अमरिख प्रबोप्र. क्रोध (सं.अमष) अमिअ-वाणी चारफा. अमृत समी वाणीअमरी प्रद्युचु. प्राचीफा. विक्ररा. देवांगना वाळा __ (सं.अमर परथी) __अमित चित्तसं. अमाप, ऊंडो [सं.] अमरी प्राचीफा. कसबी वस्त्र (सं.अंबर) अमिय, अमीय ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. देवरा. अमरेसर तेरका. अमरेश्वर, दिवोनो प्राचीफा. वसंफा (ल). अमी, अमृत अधिपति इन्द्र] अमिय-कलश, अमीय-कलसा वसंवि. अमल, अमळ अखाका. अखेगी. नरका. वसंवि(ब्रा). अमृतभर्या कळश प्रेमाका. मल वगरनु, निर्मळ, पवित्र अमिय वूठ प्राचीसं. अमृत-वृष्टि अमल *अखाका. अखाका-श. अफीण, अमीअ लावल. अमृत । केफी पदार्थ अमीउ विराप. अमी, अमृत अमल करे चित्तसं. वर्ते, वर्तन करे अमीकंदा * लावल. [अमृतनो कंद, अमृतअमलीमाण * ऐतिका. जिनरा. [अमर्दित मय मूळियु ___ मानवाळो], अपराजित अमीछंटा नांखी प्रेमाका. कृपा करी अमंदो लावल. अमंद, तेजस्वी अमीनिधि प्रेमाका. अमृतनो भंडार, चंद्र अमन जुओ अमन अमीय जुओ अमिय अमाइ तेरका.?, [ऊभराय] [सं.अ+मा] अमीयकलसा जुओ अमिय-कलश अमाणुं *अखाका. [मान - माप वगरनु, अमीसारणी प्राचीफा. अमृतनो प्रवाह (सं. अनंत] ___ अमृतसारणी) अमान *अखाका. [मान - माप वगरनु, अमुजावू वेताप. अकळावू [सं.*आमुह्यति] अनंत] अमुत्र कादं(शा). परलोकमां (सं.); जुओ अमानी अखाका. [मान – माप वगरनी, अत्र-अमुत्र अनंत] अमुनित षष्टिप्र. अज्ञात (प्रा.मुण परथी) अमामो *जिनरा. [अमाप, पुष्कळ] अमुलीक जुओ अमूलक अमाय आनंस्त. माया विनानु, निष्कपट, अमूझ नलरा. विकला, आकळो (सं.मुह्य 2010_03 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २१ . अमूलक/अरणि परथी) चारित्रमोहनीय कर्मनो प्रभेद] [जै.] अमूलक, अमूलिक, अमुलीक अभिऊ. अरइंपरई आरारा. आजुबाजु [सं.आरात् आरारा. ऐतिका. नलाख्या. प्रेमाका. परात्] रूपच. षडाबा. सिंहा(शा). अमूल्य, अरगचा ऐतिका. अरगजा कीमती (सं.अमूल्यक) अरगजा, अरघजा कामा(शा). नरका. अमृतकुंडली प्रेमाका. एक वाद्य प्रेमाका. मदमो. एक सुगंधी भूकी अमेहतउ षडाबा. न छोडतो, छोड्या वगर *अरघल ["परघल] प्राचीफा. पुष्कळ, अमोघ चित्तसं. निष्फळ के अफळ न थाय जुओ परघल तेवू, कायमी अरचइ उक्तिर. लावल. वसंफा. वसंफा(ल). अमोरी आरारा. कोईक वस्त्रप्रकार वसंवि. वसंवि(ब्रा). अर्चे, पूजे अम्ब प्रबोप्र. आंबानुं वृक्ष . अरचनियाण नरका. अर्चना - पूजाने योग्य अम्मा-पिइ, अम्मा-पिउ प्राचीसं. मातापिता [*सं.अर्चनीयानाम् परथी] (सं.अम्बा-पित) . अरचा आरारा. पूजा; ऐतिका. [अंगलेप]; अम्मीणा शृंगामं. अमारा प्रेमाका. अर्चा, कपाळे चंदनादि अम्ह नेमिछं. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). लगाडवा त अमारा गुर्जरा. षडाबा. अमे (सं.अस्मद्) अरची लावल. अर्चेली, सुसज्ज, [शोभित] अम्हासिउ गुर्जरा. अमारा जेवा (सं. अरज * मदमो. [निवेदन, रजूआत] [अ. अस्मादृश) ___ अज] अम्हासित उक्तिर. अमारा जेवा (सं. अरजना प्रेमाका. कमाणी (सं.अर्जन) अस्मादृश) अरड *विमप्र. [हठ] अय शृंगाम. लोढुं (सं.अयस्) . अरडक-मल्ल उक्तिर. ऐतिरा. प्राचीका. अयरावइ ऐतिका. ऐरावत, [इंद्रना] हाथी अजेय मल्ल, शूरवीर अयाण आरारा. जिनरा. ऐतिका. प्रबोप्र. अरडावू दशस्क(१). प्रेमाका. आरडबुं वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). अरडी पंचवा. भेकडो ताणीने (सं.आ+रट्) विक्ररा. षष्टिप्र. अज्ञानी, अजाण, मूर्ख; अरडूसउ, अरडूंसु उक्तिर. आरारा(व). जुओ एआण अरडूसो, एक वनस्पति (सं.अटरूष) अयुत प्रेमाका. दश हजार [सं.] अरणइ, अरणए उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. अर पंचवा. वीसरा. अने (सं.अपर) वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). अरइ जिनरा. अरति, [इन्द्रियोने प्रतिकूळ अरति, असुख, पीडा, शोक, चिंता विषय मळे त्यारे चित्तमां थतो उद्वेग, अरणि ऋषिरा. *जिनरा. दशस्कं(२). Jaiमध्य.vation International 2010_03 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरणी/अरीरम २२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अरणिर्नु जंगली वृक्ष, इंधण (सं.); अर्वाचीनो, [पाछळना समयना] अखाका. सूर्य [सं.] अरस * अखाका. [रसनो अभाव, स्वादनो अरणी ऋषिरा. घसवाथी अग्नि पेदा करनार अभाव] काष्ठ (सं.) अरसविरस आरारा. लूखुंसूकुं अरणेटउ षडाबा. एक प्रकारनी धोळी माटी अरहट उक्तिर. गुर्जरा. नलरा. रहेंट (सं. अरणोदय आरारा. अरुणोदय अरघट्ट) अरत-परत उक्तिर. आकृतिए-प्रकृतिए, अरहु उक्तिर. विमप्र. नजीक [सं.आरात्]; [*आमथी-तेमथी, *बधी रीते] [सं. जुओ उरहउं आरात्-परात्] अरहु-परहु अंबरा. ऋषिरा. आमतेम, ____ आगळ- पाछळ [सं.आरात्-परात्] अरति गुर्जरा. नेमिछं. लावल. विराप. अरंण मदमो. अरण्य दुःख, वेदना, [असुख] (सं.) अरंण (अरंण मूके) मदमो. -, [*अरण्यमां अरथइ उक्तिर. मागे, विनंती करे (सं. ___ मूके, *दूर राखे, *जतुं करे] अर्थयति) अराति प्रबोप्र. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. अरथिया अखाका. अर्थ - उद्देशवाळा, वसंवि(ब्रा). शत्रु (सं.)। [इच्छुक, अभिलाषी] [सं.अर्थिन् अरापरी सिंहा(शा). आधीपाछी (प्रा. "अरद कामा(त्रि). अर्ध अरहुपरहु); जुओ अरुंपलं अरदास आनंस्त. देवरा. वीसरा. हम्मीप्र. अरियण, अरीअण, अरीयण ऐतिरा.. प्रार्थना, अरजी, विनंती (फा.अर्जदास्त) गुर्जरा. जिनरा. अरिजन, शत्रु अरध-ऊरध नरका. अधः अने ऊर्ध्व, अरिरम, अरीरम उक्तिर. बीजे दिवसे (*सं. पाताळथी आकाश अपरेयुः); जुओ अरीम अरधंगी नरप(द). अर्धांगना अरिष्ट दशस्कं(१). प्रेमाका. अनिष्ट, पीडा; अरन तेरका. अरण्य कादं(ध्रु). लीमडो [सं.] अरबद चित्तसं मांसनो लोचो. काचो गर्भ अरिष्या प्रेमप. ईर्ष्या अरीअण जुओ अरियण (सं.अर्बुद) अरीगंजण चंद्रवा. शत्रुविनाशक [सं. अरभ मदमो. बालक (सं.अर्भक) अरिगंजन] अरभक चित्तसं. अर्भक, बाळक अरीठा लावल. अरिष्ट, पाप अररि ऐतिका. अरेरे [सं.अरेअरे] अरीम उक्तिर. बीजे दिवसे (*सं.अपरेयुः); अरलू आरारा (व). अरडूसो, अरलवो, एक जुओ अरिरम वनस्पति (सं.अरलु) अरीयण जुओ अरियण अरवाकी, अर्वाकी *अखाका. अखेगी. अरीरम जुओ अरिरम 2010_03 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २३ अरु/अलज अरु आरारा. चारफा. प्राचीसं. वीसरा. के, अर्जुन चित्तसं. मोर [सं.] बीजा, अने (सं.अपर) अर्ण वेताप. अरण्य, वन अरु, अरुं अखेगी. विमप्र. पासे, नजीक अर्थतु वाग्भबा. अर्थात् [सं.आरात्]; जुओ अहरु अर्थी हरिख्या. गरजु (सं.) अरुणपण आरारा. लालाश अर्द्धासिनि शृंगामं. अडधे आसने अरुणी ऋषिरा. ज्वाला, लालिमा, लालाश अर्धचंद्र बाण पंचवा. बीजना चंद्रनो आकार (सं.अरुण) जेनो होय छे ते बाण (सं.) अपरुहु कादं (शा). आसपास, आमतेम, *अर्यपादार्थ [अर्धपादाघी पंचवा. फिल (सं.आरात्-परात्) वगेरे अर्पवा अने पग धोवारूपी सत्कार] असं जुओ अरु [सं.अर्घपाद्यार्घ] अरुंपलं कामा(त्रि). कामा(शा). दशस्कं(१). अर्वसी प्राचीफा. उर्वशी, एक अप्सरा दशस्कं(२). *नरप (द). प्रेमाका. मदमो. अर्वाकी जुओ अरवाकी आधुपाडूं, आकुंअवळु, अहींतहीं, अर्वाक्ये अखाछ. अर्वाकीए, अर्वाचीनोए, आगळपाछळ (सं.आरात्-परात्, प्रा. [पछी आवनाराओए] अरहु-परहु); जुओ अहरुपरु *अरू कामा(त्रि). उर, स्तन अर्वाची अखाछ. वाचाथी पर । अरूठ प्रेमाका. अप्रसन्न [सं.आरुष्ट] अर्हपद गुर्जरा. मुक्तिपद (सं.अर्हत्+पद) अरोग अखाका. आरोग्य अलका ऋषिरा. वाळनी लट (सं.अलक) अर्क अखेगी. नरका. सूर्य (सं.); प्रेमाका. अलक्ष आनंस्त. अलक्ष्य, [संसारीथी कळी सूर्यना प्रकाशमां, दिवसे; हरिख्या. न शकाय एवो] आकडो (सं.) अलखत, अलखत्य कस्तुवा. चंद्रवा. मदमो. *अर्खेको अर्खेपूर्खे] * अखाछ. [आगळ रूस्तस. सिंहा(शा). धनदोलत, समृद्धि के पाछळ] अलग विमप्र. दू, [वेगळा]; वसंवि. अगो, अर्घ हरिख्या. पुष्प-चंदनवाळी अंजलि वेगळो] (अं.अलग्न) ___ आपी सत्कार करवो ते [सं.] अलगुं आरारा. *कादं(शा). *नलाख्या. अर्धपाद ऋषिरा. पग धोवा वगेरे सत्कार- नेमिछं. लावल. दूर, आधु, वेगळु सामग्री [सं.] अलगेरी उषाह. अळगी, [वधारे आघी] अर्घपादार्थ जुओ अर्धपादार्ध (सं.अलग्नतर) अर्चिमारग अखाका. तेजनो - उगत्मज्ञाननो अलछ मोसाच. फूवड स्त्री [सं.अलक्ष्मी अलज, अलजउ, अलज्यो आरारा. उक्तिर. मार्ग 2010_03 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलजईआं / अलूणिय ऐतिका. *कादं (शा). * गुर्जरा. चतुचा. नरका. प्रेमाका. लावल. विमप्र. शृंगामं. आतुर, उत्कंठ; आतुरता, उत्कंठा अलजईआं * विमप्र. [उत्कंठापूर्वक ] २४ थवाय अलज्यउ जिनरा. नरका. प्रेमाका. विराप. शृंगामं. उत्कंठित थयो, तलस्यो, ओरतो थयो अल जुओ अलज अलजो (अलजो जाय) ऐतिका. उत्कंठित अलंगक्रत मदमो. अलंकृत अलपाइ, अळपाये अखाका ढंकाय, वीटाय; चित्तसं. लपाय, छुपाय, लुप्त थाय, समाय अल पूरीउ जुओ पूरीउ अलव नरप (द.) * अटकचाळु, *अडपलं, [* लीला, नखरां] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अलवइ अखाका. ऋषिरा. कर्पूमं. जिनरा. दशस्कं (र). नरका. नरप नरप ( द ). नेमिछं. प्रेमाका. लावल. वसंफा. वसंवि. * वसंवि (ब्रा). *विमप्र. वेताप. शृंगामं. सिंहा (म). अनायासे, सहजभावे, लीलापूर्वक, रमतमां, हळवेथी, सुंदर रीते अलबेसर गुर्जरा. *जिनरा. नलरा. प्राचीफा. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. * वसंवि (ब्रा). हम्मीप्र. अलबेलो, सुंदर, वरणागियो, रसीलो अतसीतैलम्) अलस्यां नरका. शिथिल, मदभर्यां, [आळस भर्यां] अलंकरिउ उक्तिर. वाग्भबा. अलंकृत कर्यु, शणगार्यं अलाप अखाका. आलाप, वाणी अलज्यो जुओ अलज अलाबु कादं (शा). तूंबडुं (सं.) अलझी नरका. *नरप. अलजी, आंतुर थई अलाभइ ऋषिरा. न मळतां, [प्राप्त न थतां ] अलप मदमो. गुप्त, लुप्त [सं. अलब्ध] अलिअ ऐतिका. अप्रिय, [अनिष्ट] (सं. अलीक); जुओ अलीय अलिअल, अलीअल, अलीयल प्राचीफा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). भमरो, (सं. अलिकुल) अलियरपणुं अखाका. भ्रमरवृत्ति अलीअल जुओ अलिअल अलीअल-आण * वसंवि (ब्रा). [ भमराओनी सत्ता 2010_03 अलाघो जुओ अलाधो * अलाधो [अलाघो] सम्यचो. अळगो, जुदो [रा. अलागौ ] अलीक जिनरा. शृंगामं. मिथ्या, [खोटुं] (सं.) अलीय * ऐतिका. [अप्रिय, अनिष्ट ] (सं. अलीक); जुओ अलिअ अलीयल हरिवि. भ्रमर [सं. अलिकुल]; ओ अलिअ अलीयल हरिवि. मिथ्या वचन ? अलसाणउ जिनरा. आळस्यो अलूक अंबरा. ऊलूक, घुवड अलसिवेल उक्तिर. अळसीनुं तेल (सं. अलूणिय गुर्जरा. असुंदर (सं. अलवणिका) Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लूर] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २५ - अलूणुं/अवधि अलूणुं कादं (शा). असुंदर, वरवू (सं.अलव- [अवगाहन करे] णकम्) अवछरा मदमो. अप्सरा अलू कृष्णबा. अळवीतराई करवी, अवज्झा, अवझा प्राचीफा. प्राचीसं. [परेशान करवू, हानि करवी] [प्रा. अयोध्या अवटाडिउ *शृंगाम. [{झव्यु, दुःखी कर्यु अलेल *अखाछ. [नियमरहित, निराळु] [सं.आव] दि.अल्लिलह] अवटाय ऋषिरा. [भमे, आथडे]; ऋषिरा. अलेहेती प्रेमाका. अज्ञान, अणसमजु नरका. "प्रेमाका. मूंझाय, दुःखी थाय, अलोकित वेताप. सिंहा(शा). अलौकिक [पीडा अनुभवे] [सं.आवर्त]; प्रेमाका. अलौकि प्राचीका. अलौकिक ऊछळे जुओ आवटे अल्पार्थीउ उपबा. दरिद्र अवटावि * नलाख्या. [पीडे, दुःखी करे अल्यावि प्रधुचु. अलावो, अपावो (सं.अप+वृत्) [सं.आवत्] अल्ल- प्राचीसं. आलवू, [आपq] अवडा ऐतिका. अयोध्या अवकर वीसरा. अपमान, निंदा[युक्त अवतंस कादं (शा). कान, घरेणुं (सं.) वचन], [अपशब्द] [सं.अपकृ-; प्रा.) अवतारीइं *आनंस्त. [संशोधीए, घटावीए] अवगत्य अखाछ. अवगतिए गयेलो अवतारीक मदमो. जन्मथी; अवतारी, अवगनियां जिनरा. काननुं एक आभूषण; अवतार धारण करेलो जुओ अउगनिया अवस्था आरारा. अवस्था अवगन- तेरका. अवगणवू (सं.अव+गण) अवदात *ऐतिका. ऋषिरा. नलरा. वृत्तान्त; ऐतिका. ऐतिरा. *गुर्जरा. जिनरा. अवगाह कादं(शा). स्नान (सं.) यशस्वी वृत्तान्त, चरित्र; यश; गुण; अवगाहइ * ऐतिका. अवगाहन करे, [ऊंडे सम्यचो. चरित्र; प्रकट; विक्ररा. सुधी जाय]; *कादं(धू). वसंफा. दुश्चरित, [करतूत]; अंबरा. वृत्तान्त; वसंवि. वसंवि(ब्रा). डूबकी मारे, स्नान । [करतूत] (सं.). करे (सं.अवगाहति) अवधारइ, अविधारइ अखाका. अभिऊ. अवगाहनारूपइ *आनंस्त. [अंगभूत रीते] आनंस्त. आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. अवगुणउं * ऋषिरा. [अवगणुं, छोडी दउं] गुर्जरा. तेरका. देवरा. नरका. प्रेमाका. अवग्रह गुर्जरा. केदखानुं (सं.) ध्यानमा ले, विचारे, धारे; नक्की माने; अवघट शृंगामं. मुश्केल, [विकट, दुर्गम]; धारण करे, सांभळे . जुओ ऊघड, ओघट अवधि आरारा. अवधिज्ञान, दूर रहेला अवधाय अखाका. चित्तसं. डूबी जाय, पदार्थ- इन्द्रियोनी मदद विना ज्ञान 2010_03 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवधिज्ञान / अवहरइ अवधिज्ञान, अवधीगिनांन देवरा. नलरा. अतीन्द्रिय ज्ञानविशेष, दिशा या कालनी अमुक सीमा सुधीनी घणी या सर्व बाबतो जोई शकवानी शक्ति [सं.] अवधू हम्मीप्र. अवधूत, वेरागी अवध्य प्रेमाका अवधि, मर्यादा, हद अवधूत नलरा. मस्त, [ उन्मत्त ]; * ऋषिरा [ उन्मत्त, घेलो, क्षुब्ध ] अवन आनंस्त. जतन करवुं [सं.] अवनी चित्तसं. पार्थिव तत्त्व [ सं . ] अवने चतुचा. अविनय अवभंगिहिं, अविभंगिहिं वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). अंतराय विना, (सं. अविभंगेन) अवरल विक्ररा. पुष्कळ [सं. अविरल ] अवराउं * प्रेमाका. [ओवारणां लउं, ओवारी जाउं ] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अवरोध गुर्जरा. विरोध विना, [मेळपूर्वक ] (सं. अविरोधम् ) अवरोह " ऐतिका. [आग्रह, अनुरोध] [सं. उपरोध ] अवल प्राचीफा. "मुख्य, [उत्तम] (अ. अव्वल) अवरि * नलाख्या. [वळी] (सं. अपरे) अवरी आरारा. बीजी २६ अवयरिउ ऐतिका. अवतर्यो अवयार तेरका अवतार अवयारिय तेरका. उतार्यु ( सं . अवतारित) अवर वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). बीजुं, अथवा वळी, [अने, वळी] (सं. अपर) आवरतउ प्राचीसं. अभिलाष, ओरतो [सं. आतुरत्व] अवरथा प्रेमाका. व्यर्थ, नकामुं [सं. वृथा अवसमेव जुओ अवशमिव परथी] 2010_03 अवल प्रेमाका अवळ, अवळां, ऊंधां [ सं . उवल] * "अवल [ अचल ] " ऐतिका. [निश्चल, स्थिर ] अवलवणु * षडाबा. [द्रोह ] (सं. अपलप) अवलसवल चित्तसं. अवळी अने सवळी बाजु, पाछळनी अने आगळनी बाजु [ सं . उद्धलसुवल ] अवलासवला आंक चंद्रवा. समस्या वगेरे जेवो एक रचनाप्रकार अवलोइंयइ ऐतिरा. तेरका अवलोकीए जोईए अवलोण तेरका. अवलोकन अवशमिव, अवशमेव, अवसमेव कादं (शा). नलाख्या. अवश्यमेव, जरूर अवसप्पिणि गुर्जरा. अवसर्पिणी, एक अवनतिकारक काळविभाग [जै. ] अवराह, अवराहु गुर्जरा. शृंगामं. अपराध, अवस्ता वेताप. माठी दशा [ सं . अवस्था ] दोष अवहथइ उक्तिर: त्याग करे (सं. अपहस्तयति) अवहरइ आरारा. ऐतिका. हरी ले, लई अवसर प्राचीफा. समारंभ, [ उत्सव ], सभा अवसाण जिनरा. मोको, तक अवसोयण प्राचीसं. अवस्वापिनी, [ऊंघाड़ी देनारी विद्या ] Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २७ अवहित/अविहड ले, दूर करे अवांछतउ षडाबा. न वांछतो, न इच्छतो अवहित चित्तसं. अविहित, शास्त्रमा जेनुं अवि उपबा. वळी (सं.अपि) विधान नथी तेवू (कम), अनुचित (कम) अविकत्थना ऋषिरा. बडाश न मारवी ते अवहील, अवहीला आरारा. लावल. [सं.] अवहेलना, अवगणना, तिरस्कार अविकल विराप. संपूर्ण, [अखंड] (सं.) अवहेल उपबा. अपमान, तिरस्कार [सं.] अविकुल गुर्जरा. अविकल, अखंड अवहेलइ उपबा. गुर्जरा. षडाबा. अवहेलना अविगत, अविगति, अविगती, अविगत्य __ करे, तिरस्कार करे, अपमान करे अखाका. दशस्कं(१). दशस्क(२). अवंझ जुओ अबंझ नरका. नरप. प्रेमाका. अव्यक्त अवाच्यक चित्तसं. अवाचक, मूंगा अविघन विक्रच. अविघ्न, [निर्विघ्नता] अवाच्यवीय॑ चित्तसं. अवाच्यवीर्य, अवाच्य अविछन्न आरारा. अविछिन्न, अखंड एटले ब्रह्म - तेनी शक्ति जेनामां छे ते अविणउ गुर्जरा. अविनय अवाठी गुर्जरा. विराप. स्थान पामेली, अविणासी शृंगाम. अविनाशी वसेली (सं.उपस्थिता) [सं.अवस्थिता] अस्तिथ आनंस्त. साचुं [सं.] अवाडूउ उक्तिर. प्रतिकूल; जुओ उवडु अवितधन्दामा नलाख्या. यथार्थनामा (सं.) अवाणगू जिनरा. गुमसुम, निस्तेज] [*अ+ अवित्त कादं (शा). निर्धन, बापडु [सं.] रा.वाणक] अविधारइ जुओ अवधारइ अवारिय सत्त प्राचीसं. अवारित सत्र, अविनि कादं(शा). अविनय [अणअटकाव्यु - अविरत चालतुं - अविभंगिहिं जुओ अवभंगिहिं अन्नसत्र अवियुगतूं गुर्जरा. अवियुक्त, छुटुं न पडेलु अवारी, अवारीय, अवेरी मदमो. *विमप्र. अविरति लावल. अविरक्ति; आनंस्त. व्रतनो सिंहा(शा). अविरत, निरंतर (सं. अभाव, असंयम, अविरक्ति सं.] अवार्य); जुओ आवारी अविलोक, अविलोकन दशस्कं(१). अवारी-स्थंभ प्रेमाका. यूप, यज्ञस्तंभ, दशस्क(२). प्रेमाका. अवलोकन [अश्वमेध यज्ञनो (*अप्रतिरोधसूचक) अविलोकवू दशस्कं(१). अवलोकवू स्तंभ] अविह (अबीह) देवरा. न बीधेलु, निर्भय अवारीय जुओ अवारी (सं.अ+भी) अवाली जुओ सवाली अविहड ऐतिका. ऐतिरा. कर्पूम. *गुर्जरा. अवाश, अवास गुर्जरा. कादं(शा). जिनरा. नलरा. विक्ररा. अभग्न, सातत्यनलाख्या. वीसरा. आवास युक्त, अतूट, अखंड (सं.अविघट) 2010_03 • Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवीघांन/असदारंभ २८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश "अवीधांन, 'अवीधाम, 'अवीघांम (सं.ईदृश) कामा(त्रि).अभिधान, नाम; कामा(शा). अश्या प्रबोप्र. आवा प्रकारना जुओ अभीधांन अब्रज, असरज, अस्रज कामा(त्रि) अवीससिवउ उपबा. अविश्वासपात्र आश्चर्य अवीसास उपबा. अविश्वास अश्वत्थळ दशस्क(१). अश्वत्थ- स्थळ, अवेरी जुओ अवारी पीपळवृक्ष अवेला, अवेलां, अवेली, अवेलु अभिऊ. अश्वबंध, अस्वबंधु गुर्जरा. विराप. उपबा. कवेळा; *गुर्जरा. देवरा. *विराप. अश्वपाल (सं.) मोडुं अश्वमुख कादं(शा). किन्नर, [एक देवकल्प अवेव, अव्येव अखाका. अखेगी. कादं(शा). योनि] (एनां मोढां घोडानां जेवां होय चित्तसं. दशस्कं(१). नरप(शा). प्रेमाका. छे) [सं.] अवयव ___ अश्वमेव दशस्क(१). प्रेमाका. हरिख्या. अव्येर चंद्रवा. अवर, अधम अवश्यमेव, अवश्य अव्येव जुओ अवेव अश्ववार गुर्जरा. विराप. असवार (सं.) अशकटा षडाबा. जेनी पासे गाडु नथी तेवा अष्ट कर्म विक्ररा. [जीवने वळगतां] आठ अशलु षडाबा. प्रामाणिक, सज्जन प्रकारनां कर्मपुद्गल (जै.) अशनपणे, असनपणे नरका. नरप. अष्ट कुल कृष्णबा. आठ कुलपर्वत प्राचीका. प्रेमप. *निर्दोषताथी, अज्ञान- अष्ट मासीध चंद्रवा. आठ प्रकारनी महाथी, अजाणतां, अणसमजमां; अंगवि. सिद्धिओ मूर्छा - बेभानदशामां (सं.असंज्ञ-) अष्टादश भार दशस्क(9). अढार प्रकारनी अशतरी कामा(त्रि). स्त्री वनस्पति अशमेव कामा(शा). चोकस (सं.अवश्य- अष्टापद नलरा. एक पौराणिक पर्वत (सं.) मेव) असउण गुर्जरा. खराब शुकन (सं.अशकुन) अशाशर्ण दशस्कं(१). अशरणर्नु शरण असक्ता षडाबा. अशक्त अशंमरथे मदमो. असामर्थ्य असगाह प्राचीसं. दुराग्रहथी, [हठपूर्वक, अशाबो नरप. असबाब, सरसामान, अटक्या वगर, खूब ज] (सं.असद्ग्राह) अलंकार असगां विमप्र. सगां न तेवां अशिम उषाह. बेधारूं खड्ग असथान गुर्जरा. सभाखंड (सं.आस्थान); अशुकुनु षडाबा. अपशुकन (सं.अ+शकुन) जुओ अस्थान अशुं अखाका. चित्तसं. आवृं, एवं असदारंभ *आनंस्त. [आरंभनो अभाव, 2010_03 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २९ असद्ग्रही/असंभि व्यवहारक्रियामांथी निवर्तन] [सं.] असराल, असरालउ आरारा. "ऐतिका. असद्ग्रही आनंस्त. असद् ग्रहण करनार, जोरावर, भयंकर, भारे (रा.); आरारा. [दुष्टजन] [सं.] *देवरा. प्रद्युचु. प्राचीफा. हम्मीप्र. असन, असन, असंन ०अखाका-शु. पुष्कळ, अत्यंत, मोटुं, विशाळ; जुओ अखाछ. प्रेमाका. हरिख्या. अज्ञानी, सरालउ अबूझ, मूढ (सं.असंज्ञ); चतुचा. भोलूं, असरीखउं गुर्जरा. अणसरखं, असमान निर्दोष; * नरका. शृंगाम. शून्यमनस्क; (सं.अ+सदृक्ष) जुओ आसनउं असलेष, असलेस उक्तिर. प्राचीसं. असनपणे जुओ अशनपणे आश्लेषा नक्षत्र असनादिक आरारा. खावापीवान (सं.अश- असंकल कृष्णबा. ऋणमुक्त; जुओ उशंकल नादिक) असंकलेस आनंस्त. क्लेश विनानी स्थिति, असन्न जुओ असन [समाधि - शुद्धिनी अवस्था] असन्नी षडाबा. जेने मननी इन्द्रिय नथी असंक्षात चित्तसं. असंख्य तेवो (जीव) (जै.) (सं.असंज्ञी) असंख आरारा. गुर्जरा. वसंफा (ल). बसवि. असपख हम्मीप्र. तंबु माटे उपयोगमा लेवातु वसंवि(जा), असंख्य एक प्रकारनु कापड असंख्यात उपबा. प्रेमाका. असंख्य असबाब पंचवा. सरसामान, [मालमिल्कत]. असंघउ गुर्जरा. अश्वपालक; जुओ [अ.] अश्वबंध असमत्थु षष्टिप्र. असमर्थ असंन जुओ असन असमाधि, असमाध्य गुर्जरा. प्रेमाका. शृंगामं. षष्टिप्र. चितनी अस्थिरता, असंबो सिंहा(शा). अचंबो; जुओ असंभि अस्वस्थता, अशांति [सं.] असंभम अंबरा. आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. असमाधियो आरारा. आकुल, अस्वस्थ, । नलरा. सिंहा(म). सिंहा(शा). असंभव, अशक्य, हेरतभर्यु [दुःखी] असमाध्य जुओ असमाधि असंभवि नलाख्या. असंभाव्य, असंभवित असमान, असमानि, असमानौ अभिऊ. असंभावना, असंभाव्य चित्तसं. जीव अने आरारा. "ऐतिका. अद्वितीय, ब्रह्मनी एकता विशे संशय होवो ते [सं.] असाधारण, मोटुं, भारे असंभावि जुओ असम्भावि असम्भावि प्रबोप्र. न कळी [धारी, विचारी] असंभाव्य जुओ असंभावना शकाय तेवू (सं.असंभाव्य) असंभि प्राचीका. आश्चर्यजनक (*सं. असरज जुओ अश्रज असंभव) [*सं.अत्यद्भुत]; जुओ ___ 2010_03 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 असाबु / अहनसि अचंभ, असंबो असाबु * नेमिछं. [आंगळीओ] [अ. असाबे] असाय जिनरा. अशाता, [शारीरिक, मानसिक पीडा, व्याधि, वेदनीयकर्मनो एक प्रकार ] [ जै. ] असारइ * नेमिछं. [निःसार - निर्बळ थईने] असांभरताई षडाबा. न सांभरतां पण असिउं नलरा. लावल. एवं (सं. ईदृश) असिणि ऐतिका. अश्विनी (नक्षत्र) असिपद अखाका. ब्रह्मपद, [* तत्त्वमसिपद, - ते ब्रह्म हुं हुं एवी स्थिति ] असिपत्र नेमिछं जैन धर्मनी मान्यता अनुसार नर्कमां आवेलुं, तरवार जेवां पांदडांवालुं एक वृक्ष के एनुं पांदडुं, पापीओने शिक्षा करवा जेनो उपयोग थाय छे [सं.] ३० असिय ऐतिका. भक्षित ( सं . अशित) असिव ऐतिका. गुर्जरा. अकल्याण, अमंगल (सं. अशिव) कुनिक) असुर-मळतो प्रेमाका. असुरोनो मळतियो असुह ऐतिरा. असुख असुहाणी आरारा. अणशोभती के असुख आपनारी, अणगमती मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश असुं आरारा. एवं, आम [ सं . ईदृश ] असूझतां उपबा. अशुद्ध असूत्र प्रेमाका. शास्त्र विरुद्ध असूर ऋषिरा. सांज, [सूर्य आथम्या पछीनो समय, रात] (सं. उत्सूर, अ-सूर); नरका. नलाख्या. प्रेमाका. मोडुं असेस आरारा. गुर्जरा. वीसरा. अशेष, संपूर्ण, खूब असोई उक्तिर. उपश्रुति, [श्रवण; वचन; संमति ] अस्थ प्रेमाका. अस्थि अस्थर * हम्मी. [ चामडी] [सं. आस्तर ] असी उक्तिर. प्राचीसं. वीसरा. एंसी अस्थान * सिंहा (म ). [ सभामंडप ] [सं. आस्थान ]; जुओ असथान (सं. अशीति) असीमउ उपबा. एंसीमो अस्मेव प्राचीका. जरूर ( सं . अवश्यमेव ) असी-स - सउ षडाबा. एकसो एंसी (सं. अशीति अत्रज जुओ अश्रज 2010_03 असोय तेरका. अशोक वृक्ष असौच शीलक. अशुद्ध [ सं . अशौच अस्त, अस्ति अखाछ. दशस्कं (२). नंदब. * वेताप. सिंहा (म). अस्थि, हाडकां अस्तीरज कर्पूमं. स्त्रीराज्य, त्रियाराज अस्त्री अभिऊ. आरारा. नलरा. विक्ररा. वीसरा. स्त्री + शतम्) अस्वबंधु जुओ अश्वबंध असुणिउ उक्तिर. अपशुकनियाळ (सं. अश- अह गुर्जरा. प्राचीफा. हवे (सं. अथ); तेरका. गेय पंक्तिने आरंभे आवतो एक अलंकारार्थ उद्गार (सं. अथ) अहडि विक्ररा. हेड, पगमो नाखवानी लाकडानी बेडी अहनसि, अहनिशि, अहनिसि आरारा. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चंद्रवा. नेमिछं. गुर्जरा. लावल. अहर्निश, दिवस अने रात, रोजेरोज अहमति गुर्जरा. अहंभाव (सं. अहं + मति) अहमेव अखाका. दशस्कं (२). प्रेमाका. हरिख्या. अहंभाव, अहंकार अहर उषाह. गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. वीसरा. शृंगाम. अधर, होठ अहरूपरु, अहरूपहरू चतुरा. नंदब. आमतेन [सं. आरात् + परात्]; जुओ अरुपरं अह अखाका. *अखाछ. चित्तसं. ओरुं, नजीक, पासे, [ अह ], [सं. आरात्]: जुओ अ अहरेरु "अखाछ. [अहीं, नजीक, पासे] अहिउं उपबा. अहित करनारुं [सं. आत ३१ अर्धणी अखेगी. सूर्य [सं. अहः + गु. धणी ] अहली, अहल्यउ अहिलज आरारा. जिनरा. व्यर्थ, एळे (सं. अफल) अहल तेरा. एक वनस्पति, [संभवतः झाबूक ] अफल, अह गुर्जरा. प्राचीका. प्राचीफा. अथवा अहवहव आरारा. अविधवा अने सधवा - सौभाग्यवती स्त्रीओ (द्विरुक्त प्रयोग); जुआ इहिविहिव अहवा जरारा. अथवा अहवालन अभिऊ, अहेवातण, सौभाग्य (सं. अविधवा+त्वन) अहवि चाफा. * प्राचीफा. * अथवा, * के अहवि, अहिवि प्रधुचु. प्राचीफा. प्राचीसं. विक्ररा अविधवा, सौभाग्यवती स्त्री अहंकार कादं (धु) - टि. ब्रह्मभाव, (अहं 2010_03 अहमति / अहिरु ब्रह्मास्मि रूपे अहंपणुं) अहंकृत्य अखेगी. अहंकृति, अहंकार अहार देवरा. आहार * अहारम (आहारग) जिनरा. आहारक शरीर, [ योगबळे प्राप्त अन्य सूक्ष्म शरीर ]; जुओ आहारग अहां उक्तिर. उपबा. अहीं अहिडी, अहेडी नलाख्या, पंचवा. वीसरा. शिकारी (सं.आखेटिक) अहिठाण ऋषिरा. ऐतिका. विक्ररा. विमत्र. शृंगाम. अधिष्ठान, स्थान अणिव आरारा. तेरका. अभिनव, नूतन * अहिधर [ " अहिवर] * शृंगामं [सर्प ] अहिनशे, अहिनसि, अहेनश कादं (शा). नाख्या. विमप्र. अहर्निश, रातदहाडी, दररोज अहिनाण, अहिनाणि, 'अहिनाणी, अहिनांण आसरा. उक्तिर. ऋषिरा. ऐतिका. कृष्णच. गुर्जरा. जिनरा. नलरा. प्रधुचु. प्राचीसं. विमप्र. विराप. वीसरा. शीतक. शृंगामं षष्टिप्र. पंधाणी, निशानी (सं. अभिज्ञान) एंधाण, असि शृंगामं रात अने दिवस [अहर्निश ] 黃 * अहियासने [अहियासे] ऐतिका. अनुभव करे, सहन करें [सं. अधि + आस् ]; जुओ अही आसइ अहिराणी प्राचीका. सर्पिणी (सं. अहिराज्ञी) अहिरु प्राचीफा. होठ (सं. अधर) Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिलउ / अंगरेची अहिल जुओ अहलौ अहिलास शृंगामं. अभिलाष, इच्छा अहिलोक सिंहा (म). जगत, इहलोक अहिवर जुओ अहिधर अहिवा उक्तिर. विधवा, (सं. अधवा) अहिवि जुओ अहव अही चित्तसं. सर्प ३२ 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं. आरात्-परतः) अंक कादं (धु). चिह्न, अभिज्ञान [सं.] अंक भरतां * नरका. [आलिंगन लेतां] [हिं.] अंकुरियइ गुर्जरा. अंकुरित थाय अंकुल तेरका. अंकोलवृक्ष अंके * नरका. [निश्चित, खरेखर ] अंकोर अखाका. अखेगी. दशस्कं (9). नरका. प्रेमाका.अंकुर; नंदब. सिंहा (शा). अंकुर, मूळ, मर्म, रहस्य, भेद अंकोल उक्तिर. ए नामनुं वृक्ष, अंकोठ अंखि गुर्जरा. आंख (सं. अक्षि) अंख लावल. जोईने [सं. अक्ष] अंग आरारा. ऐतिका. जैन अंग- शास्त्रो; आरारा. प्रकारो; उक्तिर. अंगदेश अंगउ वीसरा. अंग, भाग अंगउवंग ऐतिरा. अंग अने उपांग [नामनां जैन शास्त्रो]; जुओ अंगोवंग अंगओलगूं नलरा. * अंगरक्षक, [अंगसेवको] अहीअं वाग्भबा. अहीं [सं. अस्मिन् ] अही आसइ * उपवा. ऋषिरा. सहन करे (सं. अधि+आस्); जुओ अहियासने अही आसणहार * उपबा. [सहन करनार] अहीणुं उक्तिर. गाय वगरनुं (सं. अधेनुकम् ) अहींकणि कादं (शा.) *अहीं नजीकमां, [ अहींयां] (सं. अस्मिन् + "कर्णस्मिन्) अहुण, अहुंण, अहूण उक्तिर. वेताप. हमणां; आ काळे, ओण (सं. अधुना ) अहरणी कस्तुवा. वेताप. सिंहा (शा). ऋणमुक्त, (सं. उत् + ऋण) अहंण जुओ अहुण अहूठ गुर्जरा. चारफा. प्राचीफा. प्रेमाका. षडाबा. ऊंठ, साडा त्रण (सं. अर्धचतुर्थ) आहूण जुओ अण आहे प्राचीफा. हवे (सं. अथ) अहेडइ गुर्जरा. शिकारमां (सं. आखेटक ) अहेडी जुओ अहिडी अहेनश जुओ अहिनशे अहेंली सिंहा (शा). हेली, [निरंतर वर्षा ] अ लावल. वसंवि. अमारुं; गुर्जरा. अमे (सं. अस्मद् ) अह्रुपहरु कादं (शा). आसपास, आमतेम अंगरेची रूस्तस अंग्रेज अंगचेन कामा (शा). अंग उपरनां लक्षणो [सं. अंग+चिह्न] अंगण तेरका. लावल. आंगणुं [सं.] अंगद वसंफा. बाजुबंध, कांडा परनुं कडुं (सं.) अंगन्यास प्रेमाका. शरीरनां जुदांजुदां अंगोने हाथथी स्पर्शी ते-ते अंगमां मंत्रनुं आरोपण करवानो विधि [सं.] • अंगरखी उक्तिर. प्रेमाका. हम्मीप्र. अंगनुं शरीरनुं रक्षण करनार, बख्तर (सं. अंगरक्षिका) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अंगलूहणउं षडाबा. शरीर लूछवानुं वस्त्र (सं. अंग+लूष) अंगा ललिरा. एक प्रकारनुं बख्तर अंगारसगडी उक्तिर. सगडी (सं. अंगारशक टिका) ३३ अंगारूड नलरा. अंगारारूप, [दाहक ] अंगारो अखाका. जुवार इत्यादि अनाजनो एक रोग, तेथी बीज-दाणा बळी जाय छे अंगित ऋषिरा. नलरा. संकेत, इशारो, चेष्टा (सं. इंगित ) अंगीकरे, अंगेंकरे ऋषिरा. गुर्जरा. देवरा. प्रेमाका. षडाबा. अंगीकार करे, स्वीकारे; अखाका. अंगीकार करे, * पकडे, [ले, धारण करे ] अंगीठउ, अंगीठडी, अंगीठी उक्तिर. ऋषिरा. प्रेमाका. सगडी (सं. अग्निष्ठिका) अंगुल गुर्जरा. आंगळ (माप) (सं.) अंगुलफरस नलरा. आंगळीनो स्पर्श अंगुल मोड्या आरारा. टाचका फोड्या, निंदा करी अंगूठी प्रेमाका. हाथनी आंगळीए पहेरवानी वीं [सं. अंगुष्ठ+इका ] अंगूथली * रूपच. [आंगळी] अंगेंकरे जुओ अंगीकरे अंगोल ऐतिका. पुत्र अंगोवंग जिनरा. [ शरीरनां] अंगोपांग, [ए निर्णित करतो नामकर्मभेद] [जै. ]; 2010_03 अंगलूहणउ / अंतरउ जुओ अंगउवंग. अंगोहल विमप्र. अंघोळ, स्नान [सं. अंगहोल] अंघोल, अंघोळ, अंघोलि कृष्णच. प्रेमाका. विमप्र. स्नान, नाहवुं ते, मायुं पलाळ्या विनानुं स्नान [ सं . अंगहोल] अंघोळवुं आनंस्त. दशस्कं (१). * प्रेमाका. नाहवुं अंडय षडाबा. हथोडो अंगूल * कृष्णबा. [आंगळी ओ] [सं. अंगुल- अंत कादं (धु). वसंवि. भाग, छेडो; लावल. स्थल] अणी, कादं (धु). सुधी, [अंते] अंच * अखाका. [अग्निनी आंच]; गुर्जरा. दुःख, बळतरा (सं. अर्चिष्) अंच- * ऋषिरा. प्राचीसं. अर्चयुं, पूजवुं * प्राचीफा. [अर्च, कपाळे लगाडवुं] अंचल उषाह. आंचळ, [स्तन, छाती] [सं.] अंज- तेरका. आंजवुं (सं.) अंजण आरारा (व). तेरका. अंजनवृक्ष अंजत प्राचीफा. काजळ आंजेल (सं. अञ्जित) अंजल, अंजळ आरारा. वीसरा. अंजलि, प्रणाम अंजुलि अंबरा. अंजलि, [हाथजोड, प्रणाम ] अंड अखाका. ईंडुं [सं.] अंडुउ षडाबा. जेना हाथमां हथोडो छे ते, [ हथोडाथी काम करनार व्यवसायीनुं नाम] अंतक्षर गुर्जरा. अंत्य अक्षर अंतगड प्राचीफा. ए ज जन्ममां मुक्ति पामनार (सं. अंतकृत्) अंतर विमप्र. भेदभाव अंतरउ गुर्जरा. आंतरो, फरक (सं. अंतरक) Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतर करी/अंधकूप ३४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अंतर करी कामा(शा). वच्चे पडदो राखी प्रद्युचु. प्राचीका. प्राचीफा. - लावल. अंतरगत, अंतर्गत दशक(२). अंतःकरण; विमप्र. वीसरा. सिंहा(म). हम्मीप्र. प्रेमाका. अंतरमां अंतःपुर, राणीवास; राणीओ अंतरगति नलाख्या. मनमां (सं.अंतर+गत) अंतेउरि, अंतेउरी, अंतेवरी अंगवि. अंबरा. अंतरघट नरप(द). मनमा आरारा. उक्तिर. उपबा. उषाह. अंतरबार चित्तसं. मर्म, रहस्य कादं(5). लावल. विक्ररा. हम्मीप्र. अंतरपथ तेरका. वच्चेनो मार्ग राणीओ (सं.अंतःपुर उपरथी) अंतरपुर दशस्कं(२). अंतःपुर अंतेवारा * नेमिछं. [राणीओ] | अंतरभूत चित्तसं. अंदर समायेनुं अंत्यावरी मदमो. राणी (सं.अंतःपुर+इका) अंतरमांहां चित्तसं. अंदर अंत्रस प्रेमाका. आंतरो, जुदाई अंतराइ ऋषिरा. नरका. अंतराय, अडचण, अंथ अखाछ. चित्तसं. प्रेमाका. सहेज पण, विघ्न]: प्रेमाका. अंतराय, जदाई. लेश पण, [साव, बिलकुल]; * मदमो. तफावत [साव, बिलकुल, पूरेपूरुं] अंतराइ, अंतराय आनंस्त. गुर्जरा. नलरा. अदर देवरा. इद्र अंतरायकर्म, जे शुभ कार्योमां विघ्नरूप अंदोह आरारा. *गुर्जरा. जिनरा. नलरा. थाय छे (जै.) प्रद्युचु. विक्रच. *विनप्र. शृंगामं. अंतराल गर्जरा. विराप. *मध्य भाग. सिंहा(म). चिंता, विमासण, खेद [अंतरीक्ष] (सं.) अंद्र उषाह. प्राचीका. इन्द्र अंतरालि ऋषिरा. बच्चे अंद्रगोप प्राचीका. चोमासाम थतुं एक अंतरि, अन्तरि गुर्जरा. *प्रबोप्र. विराप. जीवडुं (सं.इन्द्रगोप) [अंतरमां], अंदर, वचमां अंद्रजाल प्राचीका. इंद्रजाल, एक प्रकारअंतरे तेरका. वच्चेवच्चे (सं.) जादु अंतर्गत जुओ अंतरगत अंद्रासन प्राचीका. इन्द्रनुं आसन (सं. अंतर्गृह कादं(ध्रु). अंतःपुर इन्द्रासन) अंतर्ध्यान दशस्क(१). अंतर्धान, [अदृश्य] अंद्री प्राचीका. इन्द्रिय अंतर्य चित्तसं. अंदर अंद्रीव्रत्य प्राचीका. इन्द्रियवृत्ति, [इंद्रियअंतस्कर्ण दशस्कं(१). अंतःकरण ___ व्यापार, इंद्रियसुख] अंति आरारा. अंदर, -मां अंध लावल. *अंधारी, *काळी, [*अर्ध] अंतेउर अंबरा. आरारा. उक्तिर. ऐतिरा. अंधकार कादं(धु). अंधापो कादं (शा). गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. अंधकूप *विक्रच. [न देखाय तेवो, 2010_03 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३५ अंधण/आउ कशाकथी ढांकेलो, छानो कूवो] अंबिक तेरका. नलरा. अंबिका देवी अंधण षष्टिप्र. अंधापो अंबिकि गुर्जरा. अंबिका देवी अंघ-धंध जुओ धंध, धंध-धुवारी अंबिल तेरका. आंबेल, [एक जैन तपअंघल सम्यचो. आंधळो प्रकार, जेमा छ प्रकारना विकृतिजनक अंधमूंधपणइ उक्तिर. ऊधमूंधपणे, ऊधे आहारनो त्याग होय छे] (सं.आचाम्ल) माथे, बेभानपणे [सं.अवमूर्धा+मूर्धा] अंबिलीय तेरका. आमली (सं.अम्लिका) अंधेर चित्तसं. अंधकार [सं.अंधकर] *अंबोषण [अभोखण] *अभिऊ. [सत्कार अंध्य नलरा. आन्ध्रप्रदेश रूपे पाणी सींचq ते]; जुओ अभोखण अंन, अन्न आरारा. गुर्जरा. चतुचा. तेरका. अंस कादं(धु). "कादं(शा). "लगार अन्य, बीजूं __ अंसु तेरका. अश्रु अनमी चंद्रवा. न नमे तेवो, अणनम अंत्रा, अन्या चंद्रवा. दोष, वांक, खोड- आइ प्रबोप्र. आयु खांपण आइ, आई कादं(शा). प्राचीका. माता, अंब उषाह. चित्तसं. पाणी (सं.अम्बु) (*सं.आय) [सं.*आप्पिका] अंब आरारा. अंबा, माता आइ गुर्जरा. आ वडे अंब, अंबउ अभिऊ. आरारा(व). तेरका. आइ आरारा. आवीने प्राचीफा. लावल. वीसरा. षडाबा. आंबो आइखइ आरारा. कहे (सं.आचक्षते) (सं.आम्र) आइम जिनरा. आदिम, [पहेलुं] [प्रा.] अंबर कामा(शा). *नरका. वस्त्र [सं.] । आइईं आरारा. आवद्यु अंबर तेरका. एक वनस्पति आइस गुर्जरा. प्रबोप्र. वसंफा. वसंफा(ल). अंबवण तेरका. प्राचीफा. आंबावाडियुं (सं. वसंवि. वसंवि(वा). स्थूलिफा. आदेश, आम्रवन) आज्ञा अंबा मोसाच. माता [सं. आइसु वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). अंबाइय प्राचीसं. अंबामाता, अंबाई __ आq (सं.एतादृश) अंबाएवि ऐतिका. अंबादेवी आई जुओ आइ अंबाड्य तेरका. एक वनस्पति, अंबाडो आउ जिनरा. आयु [नामनां कर्मपुद्गल], (सं.आम्रातक) [कई गतिमां केटलो काळ गाळवो एनुं अंबार मोसाच. शृंगाम. हरिख्या. ढगलो, निर्माण करतां कर्म] [जै.] आउ, आऊ गुर्जरा. मदमो. चिमप्र. आयुष्य अंबाविउ प्राचीसं. प्रचलित कर्यो, प्रवर्ताव्यो (सं.आयु) भंडार 2010_03 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आउकार/आखडी ३६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आउकार जिनरा. आवकार, स्वागत ताणे आउख, आउखउ, आऊखउ उक्तिर. आकरो चित्तसं. न छूटे तेवो, दृढ उपबा. ऐतिका. कामा(शा). गुर्जरा. आकलइ उक्तिर. गुर्जरा. *नलाख्या. समजे, जिनरा. प्राचीसं. विमप्र. आयुष्य जुए (सं.आकलयति) आउज गुर्जरा. प्राचीसं. आतोद्य, एक वाद्य आकलूं कादं(धू). गीच (सं.आकुलम्) आउध नलाख्या. नेमिछं. आयुध, शस्त्र आकंप गुर्जरा. कंप, ध्रुजारी (सं.) आउधशालां नेमिछं. शस्त्रशाळामां आकंपियउ गुर्जरा. स्थूलिफा. कंप्यो आउलि आरारा (व). शृंगाम. आवळ (सं. आकारण प्रद्युचु. नोतरुं, तेढुं, कहेण, आहुल्य) संदेशो (सं.) आउव जुओ वुजोय आकुड्य षडाबा. दीवालने अढेलीने बेसबुं आउवुञ्जोय जुओ वुज्जोय ते (सं.कुड्य परथी) आऊ जुओ आउ आकुलउ, आकुळउ उपबा. व्याकुळ, आऊखउ जुओ आउखउ [घेरायेलो]; वीसरा. आकळो, रोषीलो, (सं.आकुल); गुर्जरा. व्याकुळ, [व्यस्त, अनुज्ञा लीन]; विराप. व्याकुळ, अस्वस्थ आक अखाका. अखेगी. आरारा(व). उक्तिर. आक्रमइ, आक्रमिइ उक्तिर. उपबा. नरका. वीसरा. आकडो (सं.अक) षडाबा. आक्रमण करे, हल्लो करे, चढी आक-इंधण ऋषिरा. आकडा- बळतण आवे (सं.अर्क+इन्धन) आक्रंदइ उक्तिर. गुर्जरा. विराप. आनंद आकडिइ (दीवटीआ कडिइ) *विमप्र. [गोळाकारे वीटळायेला मशालची] आरास उक्तर. आक्रुसिउ उक्तिर. निंदित, शापित (सं. [सं.दीपवर्तिक + सं.कटकित, प्रा. आक्रुष्टः) कडइअ] आक्षर जुओ ए आक्षर आकमदार आरारा(व). आकडो ए ज आक्षान चंद्रवा. मदमो. आख्यान ___ मदार के मंदार (सं.अर्कमदार) आक्षेप चित्तसं. विस्तार [सं.] आकरखवू चतुचा. आकर्ष, [पासे आखइ उक्तिर. ऐतिरा. बोले (सं.आख्याति) खेंचवें]; दशस्कं(१). आकर्षq, [खेंची आखउ उक्तिर. वीसरा. चोखा (सं.अक्षत) लेवू, लई लेवू] _ *आखउंडली [आंखउडली] उक्तिर. पोपचुं आकरसी ऋषिरा. आकर्षीने, खेंचीने (सं.अक्षिपटलिका) आकर्षइ उक्तिर. प्रेमाका. षडाबा. खेंचे, आखडी आरारा. ऋषिरा. ऐतिरा. जिनरा. 2010_03 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३७ वाखदेवापति आज्ञा नेमिछं. प्रेमाका. विक्रच. विमप्र. शृंगाम. वसंफा. वसंफा(ल). वसवि. वसवि(बा). जिनरा. व्रत, नियम, बाधा, मानता विक्ररा. शृंगाम. आणळ, अगाउ, पूर्वे, आखडे प्रद्युचु. ठोकर खाय; *अखाका. पहेलां, अगाउथी (सं.अग्रे); लावल. कादं(शा). नेमिछं. "प्रेमाका. लथडी पडे; *अग्रिमपणे, [पूर्वेथी]; गुर्जरा. विराप. * नरका. [लडे] (सं.आस्खलति) [सं. षडाबा.आगळ, समक्षा; षडाबा.आगळ, *आक्षुटति] हवे पछी; विराप. पूर्वेनु आखपाखनो नेह जुओ आंखपांखनो नेह *आगउ (आयओ) चित्तसं. अग्रयायी, आखर षडाबा. अक्षर; वीसरा. पत्र आगळ चालनार [सं. अग्रगू आखंडल विमप्र. समग्र भूमंडळ आगन्या आरारा. काद(शा). नलाख्या. आखा *प्रद्युचु. [नाम, ओळखाण] [सं. आख्या आगम आरारा. आगमना, प्रेमाका. भविष्यआखा उक्तिर. चोखा (सं.अक्षताः) नुं दर्शन, [थनार वस्तुनी एंधाणी]; __ *ऋषिरा. विकरा. शास्त्र; जुओ अगम आखा तीज, आखा त्रीज उक्तिर. ऐतिका. आगमायुं प्रेमाका. अवायु अक्षयतृतीया, [अखा त्रीज] आगमिचि उषाह. आगाम्मच, आगळथी; आखा पाणी प्रद्युचु, चोखा अने पाणी [तरत ज, एकाएक (सं.अक्षत) [+सं.पानीय] आगमो अभिऊ. मोबाडी (सं.अग्रिम) आखी अणी प्रेमाका. अक्षत अणीए, संपूर्ण | आगर आनंत. उक्तिर. उपबा. ऐतिरा. सलामत; जुओ अणिअ आखइ तेरका. भंडार, समूह (सं.आकर); आखुडइ उक्तिर. आखडे, ठोकर खाय अखाका. सागार, [पाणीनो] भंडार (सं.आस्खलति) [सं. आक्षुटति] ____ आगर 'ऋषिरा. ऐतिका. देवरा, नेमिछं. आखे प्रेमाका. अक्षत, चोखा मकान, घर, निवास (सं.आगार) आखेट पंचवा. प्राचीफा. हरिख्या. शिकार, आगरउ उक्तिर. आग्रा नगर (सं. मृगया (सं.) __ अर्गलापुरम्) आखेप जिनरा. प्रबोप्र. आक्षेप, [नाखवू आगल उक्तिर. आगाळो (सं.अर्गला) ते; आळ, आरोप, [टीका]; ऐतिरा. आगल. बागलान, आपलो आरारा. ऐतिरा. आक्षेप, [परिश्रम, यत्न] [रा.] गुर्जरा. चंद्रवा. नलरा. प्राचीफा. प्राचीसं. आख्यपाख्य नरप.. आसपास, फरते प्रेमाका. मदमो. वीसरा.आगळ, आगळ (सं.पाश्व); जुओ आंखपांखनो नेह पडतो, अग्रणी, चाडियातो, श्रेष्ठ (सं.अग्र आख्यान कादं(शा). वात, कथा (सं.) परथी) आगइ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नरका. नेमिछं. आगलि, आगति आनंस्त. उक्तिर. उपबा. Jain मध्य.३ion International 2010_03 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगलिय/बाचारी कादं (शा). गुर्जरा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. "विराप. वीसरा. आगळ, पासे, समक्ष (सं. अग्र+ल); उपबा. रूपच. लावल. शीलक. आगळ, [अग्रस्थाने]; वसंफा. वसंवि. वर्सावि (ब्रा). आगळ, समय, [नी तुलनामा]: उपबा. गुर्जरा. पहेलां, पूर्वे, आनंस्त. लावल. आगळ, [हवे पछी ३८ आमलित "गुर्जरा. [अग्रज, मोटो] जागरिषु शृंगाणं. आगळथी, पहेलांथी आपको जुओ आगल आगत्यो अखाका. आगळनो, *भूतभविष्यनो, [* प्रत्यक्ष पदार्थनो ] आगामिरं षडाबा. आगामी, आवनाएं आगार अखाका. प्रेमाका निवासस्थान, रहेठाण, [ मकान] [सं.] आभास उक्तिर आकाश आगारायामिनी षडाबा. आकाशगामिनी विद्या मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आगी जुओ आगि आगुओ जुओ आगउ आगुनी नरका. अगाउनी, पहेलांनी • आगुं [आंगुं ] नलरा. एक प्रकारनुं बख्तर (सं. अंग परथी) आगे चित्तसं. आगळ, आगेवाणि * विक्रच. [आगेवान, अग्रणी, पहेलां आगळ चालनार]; जुओ अगेवाणि आघ * विक्रच. [पासे, नजीक ] (सं. अग्र) आघउ * अभिऊ. *नलाख्या. प्रद्युचु. षडाबा. [पोताना स्थळथी] आगळ; आरारा. उक्तिर. [पोताना स्थळथी] आगळ, [बीजानी नजीक ]; नरप ( द ). गुर्जरा. विराप. * षडाबा. आगळ, नजीक, पासे], समक्ष (सं. अग्र परथी) अमित प्रक्तिर अग्रेसर आनितरं आणित्वरं उक्तिर. आगळ, आगळनुं (सं. अग्र): जनंस्त. हवे पछीनुं; उपबा. बडाबा. आगळनुं, पूर्वेनुं, आगळ रहें आनिवाच प्राचीसं. आगेवान 2010_03 * आ घी [* आधी] गुर्जरा-शु. आ विचार आणि अभिउ नलाख्या. अगाउ, पूर्वे आधुं, आघेरुं अखाका. नलाख्या. (सं. अग्र) आणि आयी उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. षडाबा. षटिप्र. आग (सं. अग्नि) आनिनेव गुर्जरा. अग्निमय (बाण) (सं. [ आगळ], * दूर; चित्तसं. आगळ, आगळनुं, आगळनी स्थिति आचमइ उक्तिर. आचमन करे (सं. आचामति) आग्नेय) आघलउ विमप्र. नजदीक (सं. अग्र) आघाट * नलरा. [ सीमा, चारे सीमा, चारे सीमा साथे ] [ सं . ]; जुओ अघाट आचरणी हरिख्या. धार्मिक क्रिया आचरतुं, आचार पाळतुं आचाम्ल षष्टिप्र. व्रतविशेष, जेमां लूखुसूकुं खावानुं होय छे, आंबेल [ सं . ] (जै.) आचारज, आचारिज अखाका. अखेगी. आरारा. उक्तिर. प्रेमाका. आचार्य आचारी हरिख्या. आचार पाळनार (सं.) Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आचार्यांस उक्तिर. आचार्यवर (सं. आचार्य - आटीने चतुचा. ? मिश्राः) आठकाठ अखाछ. आटकाठ, कमठाण आछिंबइ उक्तिर. आंचके, झंटवी ले आठगुणउं गुर्जरा. आठ गणुं (सं. अष्ट(सं.आ+छिद्) गुणकम् ) # आछइ आरारा. जिनरा. प्राचीसं. छे आठमि उक्तिर. उपबा. आठम (सं. अष्टमी ) [ सं . आक्षेति) आठवइ उषाह. स्थापित करे, विचारे; * गुर्जरा. "विराप. योजे, विचारे, गोठवे; लावल. मूके, गोठवे (सं. आस्थापयति ) आठु मदमो. वेताप. आठेय (सं. अष्ट+खलु) आठोठ अखाछ. व्यापेलुं आठोड * अखाका. [खंखेरवुं] आछउ * गुर्जरा. [भले रह्युं, पडतुं रह्युं] आछउं प्राचीफा. "झीणुं, [सुंदर ]; उक्तिर. वीसरा. सुंदर, सरस (सं. अच्छ) आछटे दशस्कं (२). प्रेमाका पछाडे, झापटे; हरिख्या. पछाड़ा खाय आछडतां प्रेमाका पछाडतां ३९ आछण ऐतिरा. *नलरा. लावल. षडाबा. नीतरामण, आछरेलुं पाणी; जुओ इक आछण आछणची (आछण चीनउ भात) * जिनरा. [चीणा भात एक प्रकारना जंगली चोखा - नुं नितरामण, धोवण] आछाई प्रधुचु. आच्छादन करी (सं. आच्छादित) - आछोटई उक्तिर. पछाडे (सं. आछोट्यति) आजतां जुओ जतां - आजतां आजूणउं, आजूनुं उक्तिर. कृष्णच. जिनरा. * षडाबा. आजनुं, अद्यतन, हमणांनुं [सं. अद्य + खलु+गु. नउं] आज्य अखेगी. प्रेमाका. घी (सं.) आटारणमां गई रूस्तस. अटामणमां गई, धूळधाणी थई आटारेहण जाय आरारा. अटामणमां जाय, नकामुं नीवडे 2010_03 आचार्यांस / आडि आड, आज्य अखाका. अंतराय, विघ्न आड चंद्रवा. * हठ [करीने] आडइ * नेमिछं. [हठे, आडाइए ]; * जिनरा. [शरणमां] [रा. ]; प्रेमाका. वच्चे, [मददे] [रा. ]; जुओ आडौ आडउ जिनरा. हठ, [आडाई, अडपलं] आडण उक्तिर. अंगमंडन, अंगशोभा आडणी गुर्जरा. लावल. जमती वखते थाळी मूकवानो पाटलो; विमप्र. अढेलीने बेसवा माटेनुं आसन, [* थाळी टेकववा माटेनो पाटलो ] आडल मदमो. छंदविशेष, [ अडिल्ल] आडाखोडी लावल. * अनादर, [आडखीली, विघ्न ] आडाबंग उक्तिर. अडबंग, ढंगधडा विनानुं, विलक्षण, अटपटुं आडांत्रेडां उपबा. प्राचीसं. आडांअवळां, वांकां आडि ऋषिरा. आड, [कपाळमां करवामां Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आडि / आथि . आवती रेखा ] आडि उक्तिर. एक पक्षीनुं नाम (सं. आटिः) आडि शृंगामं. जीद, हठ (द. अड्ड) आडी लीट बळी जुओ वळी आडी लीट ४० आडे जुओ सीध्यां आडे भरायो] आडे चड्यो प्रेमाका. तोफाने चड्यो, [हठे आणी वार दशस्कं(१). आ वारे, आ वखते आणे आरारा. चतुचा. प्रेमाका. आ आणेश कान अखाका. सांभळीश आतपत्र आनंस्त. छत्र [सं.] आतमलक्ष चित्तसं. आत्मबोध आता कादं (धु). कादं (शा). दशस्कं (१). नरप (द). प्राचीका. प्रेमप. प्रेमाका. पुत्रने लाडमां करातुं 'बापा' ना प्रकारनुं संबोधन [ सं . * अत] आती प्रेमाका. आटली आतुरी प्रेमाका. आतुरताभर्यो, [कामातुर ] आतुंपोतुं * विमप्र. [ मूडी, थापण ] आत्थि हम्मीप्र. धन, साधनसामग्री [सं. अस्ति]; जुओ आथ, आथि आत्मनिष्टित आनंस्त. आत्मनिष्ठ, [आत्मभावमां स्थित ] आडौ [आडौ आसै] जिनरा काममां आवशे, [मददरूप थशे] [रा. ]; जुओ आइइ आय जुओ आड आढउ उक्तिर. अनाजनुं एक माप (सं. आढकः) आढवइ उक्तिर. आरंभे [.] आण, आंण अखाका. आरारा. उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. देवरा. नेमिछं. प्रेमाका लावल. वसंफा वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). षडाबा. आज्ञा, सत्ता; चतुचा. वीसरा. आज्ञा, गंद, मनाई मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आणि अभिऊ. आणा माटे, [तेडुं करवा ] (सं. आ+नयू) आणि, आणी आरारा. चित्तसं. प्रेमाका. आ आणीतउं उक्तिर. अणातुं, लवातुं (सं. आनीयमानम्) आणइ आरारा. कादं (शा). लावल. आ (मां), आ (वडे) आणनहार उक्तिर. आणनार ( सं . आनयू) आणंद वसंवि. आनंद आपे; वीसरा. आनंद करे 2010_03 आथ अखाका. अखाछ. अंबरा. जिनरा. देवरा. सिंहा (शा). धन, पूंजी, समृद्धि [सं.अस्ति]; जुओ आथ, आथि आथडी नलाख्या. अथडाई, [ भटकाई पडी ] आणंदिण ऐतिका. वसंफा. वसंवि. आथमण षडाबा. आथमवुं ते (सं. अस्तमन) वसंवि (ब्रा). आनंदजनक आणा ऐतिका. ऐतिरा. आज्ञा आणावी आरारा. बोलावीने [सं. आनय् ] आणि नलाख्या. आण, शपथ [ सं . आज्ञा ] आथर अभिऊ. उक्तिर. आच्छादन, पाथरणुं, पशुनी पीठ उपर नाखवामां आवती डळी (सं. आस्तरः) आथि आरारा. छे (सं. अस्ति) Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४१ आथि/आनुपूरवी 1 आथि, आथ्य अखाका. अंबरा. आरारा. आदेशकार ऐतिका. आज्ञाकारी, [आज्ञा कस्तुवा. नंदब. प्राचीका. मदमो. विक्रच. नुवर्ती, आज्ञा पाळनार] विमप्र. वेताप. हम्मीप्र. पूंजी, धनवैभव, आवेसडइ लावल. आदेशथी, आज्ञाथी साधनसंपत्ति (सं.अस्ति); जुओ आत्थि आय चित्तसं. -थी मांडीने आयो * देवरा. [पूंजी, संपत्ति, (प्रास माटे आये देई जुओ देई 'आथ'नुं 'आथो')] आद्रहणु उक्तिर. आंधण, उकाळवू ते [सं. आध्य जुओ आथि आदहन] आवउ उक्तिर. आदु (सं.आर्द्रकम्) आध, आध्य अखाका. अखाछ. कामा(त्रि). आवक्षण (आ वक्षण)*शृंगाम. [आ साचुं] कामा(शा).आधि, मानसिकपीडा, चिंता आव पुरुष प्रेमप. आदिपुरुष विष्णु आघउ उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. अर्धा आदर *अखाका. [आश्रय]; अखाछ. आधरण उक्तिर. आंधण, उकाळवू ते [सं. अखेगी. प्रयत्न । आदृह्] आवरण जिनरा. स्वीकार आधाकर्मी षष्टिप्र. साधु माटे खास तैयार . आव अखाछ. अखेगी. *प्रेमाका. प्रयत्न- करेलुं भोजन, जे जैन साध माटे लेवानं शील थर्बु, [प्रवृत्त थर्बु, करदुं]; आरारा. निषिद्ध छे (प्रा.आहाकम्मिय) (जै.) उक्तिर. गुर्जरा. *आनंस्त. आरारा. आधानु गुर्जरा. गर्भाधान *नरका. लावल.स्वीकारवू,आश्रय लेवो, आधावेध प्रेमाका. हूंसातूंसी, अंदरोअंदरनो पामधू; आरारा. गुर्जरा. विवाह करवो, विरोध सगपण करईं उपबा. नलाख्या. *शरू आधीन चित्तसं. परवश, गौण, ऊतरतुं करवू, [मांडवू, करवं] . आधेन मदमो-२. अध्ययन आदरी *गुर्जरा. [आदरपूर्वक] आधोरण कादं(शा). गुर्जरा. हाथीनो आदानभय आनंस्त. मागणी मुजब मळशे महावत (सं.)। के नहीं तेवो भय आध्य जुओ आध आदिक्षर गुर्जरा. आदि अक्षर आध्यार अंबरा. आधार आदित, आदीत कामा(त्रि). कामा(शा). आध्ये-व्याध्ये नरका. आधि अने व्याधिऐ आदित्य, सूर्य आनपान षडाबा. श्वासोच्छ्वास (सं.आन+ आदिशबु उक्तिर. आदेश आपवो प्राण) आविस देवरा. आदेश, आज्ञा आनंदए वसंफा. आनंद आपे आदीत जुओ आदित आनुपूरवी ऐतिका. [नाम] कर्मनो एक भेद, आदीतवार कामा(त्रि). रविवार [वर्तमान शरीर मूक्यापछी एने ऊपजवाआवे देवरा. आदि, [वगेरे] ना स्थळ तरफ लई जनार कर्म] [जै.] 2010_03 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आन्या/आपोह ४२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आन्या आरारा. आज्ञा आपणीहीज आनंस्त. आपोआप ज, आप आनंस्त. कादं(ध). कादं(शा). गुर्जरा. [पोतानी मेळे] दशस्क(१). नलाख्या. प्रेमाका. लावल. आप-नैवेदी प्रेमाका. पोतानी रसोई पोते वीसरा. पोतानी जात, पोते (सं.आत्मा); बनावी जमनारो, स्वयंपाकी कादं(ध). दशस्कं(२). प्रेमाका. शरीर, आपन्या अखेगी. शाता, [तृप्ति] स्वरूप; अखाका.चित्तसं.आत्मा, आत्म- आपहणी आरारा. उपबा. *विक्रच. स्वरूप,आत्मभाव; अहंभाव;जुओआपो आपमेळे, आफणिये, जाते आप अखाका. पाणी (सं.अप्) आपहे षडाबा. जाते . आपइणी उक्तिर. जाते, पोतानी मेळे आपापणा, आप्पपणा आनंस्त. आरारा. आपडइ उक्तिर. आवी पडे (सं.आपतति) " चंद्रवा. चित्तसं. नलाख्या. प्रेमाका. आपडियइ षडाबा. आवी पडे विक्रच. पोतपोताना, एमना पोताना, आपण षष्टिप्र. पोतानु, वसंफा. वसंवि. __ पोताना, आपणा वसंवि(ब्रा). आपणुं, आपणे, आपणी आपापर अखाका. अखेगी. पोते अने अन्य वच्चे (सं.आत्मन्) आपुण प्राचीफा. पोतानी (सं.आत्मन्) आपणइ आरारा. लावल. पोताने आपुलउ चारफा. नरका. नेमिछं. प्राचीसं. आपणउं आरारा. उक्तिर. उपबा.. पोतानुं (सं.आत्म परथी) दशस्क(२). नलरा. नलाख्या. प्रेमाका. विराप. वीसरा. षडाबा. पोता- (सं. - आपुं अखाछ. पोतापणुं; जुओ आपोपुं आत्मनः); चित्तसं. पोतापणान, आत्म- आपे वीसरा. आपणे तत्त्वन . आपेथ्य चंद्रवा. *आप्येथी, [आपे] [प्रासार्थे आपणडइ जिनरा. आपणे, पोताने 'आपे'नुं आपेथ्य] आपणपइ आरारा. आपणाथी, आपणे, आपो अखाका. अहंभाव; आत्मा; जुओ पोते; जुओ आपोपे आप आपणपउं, आपणपुं आरारा. उपबा. आपोपुं अखेगी. ऐतिरा. "नरका. पोतापणुं, कृष्णच. गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. स्वरूपत्व; अखाका. आत्मतत्त्व; चित्तसं. षडाबा. षष्टिप्र. पोतानी जात, पोते (सं. पोतापणुं, अहंभाव, हुंपणुं; अखाका. आत्मन्+त्व); कादं(शा). आत्मत्व, . *अखेगी. अहंभाव, देहभाव; जुओ स्वत्व; जुओ आपो' आपणपउं, आपुं आपणहार गुर्जरा. आपनार आपोपे दशस्कं(२). नरप(द). मदमो. आपे, आपणी पायउ उक्तिर. आत्मसंतुष्ट जाते, पोते; जुओ आपणपइ (सं.आत्मना ध्रातः) आपोह ऋषिरा. विचारणा, [तक] (सं. ____ 2010_03 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४३ बामपनायामलाउ अपोह) आभिडइ उक्तिर. -नी तरफ जाय, मळे, आप्पपणा जुओ आपापणा भेगु थाय; गुर्जरा. अथडाय, स्पर्श (प्रा. आप्यायमान कादं(शा). पोषित थतुं, भराव- अमिड्) दार थतुं (सं.) आमिओगिक बाबा. देवोनो एक प्रकार आप्लवन कादं (शा). कूदq ते (सं.) (जै.) (सं.आभियोगिक) आफणी, आफणिये, आफणीए अखाका. आभीर नलरा. देशविशेष, आभीरोनो - अखेगी. अंबरा. उषाह. कादं(शा). आहीरोनो देश कामा(त्रि). कामा(शा). चतुचा. चित्तसं. *आभीषी ['बागानी] "बडावा. [कही] दशस्क(१). नरका. प्राचीका. प्रेमप. आभुक्षण मदमो. आभूषण प्रेमाका. सिंहा(म). हरिख्या. हरिवि. आभूउं जुओ आमउं पोतानी मेळे, आपमेळे, आपोआप आभयान उक्तिर. प्रस्फुटित यतुं, संकुरित आफरिउ गुर्जरा. विराप. आफरो चडेलु, थतुं (सं.उद्भिद्यमानम्) [उन्माद चडेलु ; प्रधुचु. आफरो चडेलु, आभोखड आरारा. सत्कार रूपे पाणीनं फूलेलं (सं.आ+स्फुर) [सं.आस्फर] सिंचन करवामां (सं.अभ्युषण); जुओ आफलइ, आफळइ गुर्जरा. चित्तसं. अभोखउ प्रेमाका. *शृंगाम. अथडाय, [भटकाय] आभोखो *जिनरा. [ उपभोग] आफाणी जिनरा. पोते, जाते ज आभ्यंतर चित्तसं. अभ्यंतर, संदर आम दशस्क(२). आभा आभ्र दशस्क(१). अभ्र, [आकाश, वादळ] आभ अधारी प्राचीफा. कांचळी माटेगें एक आभ्रण अखाका. आभरण, शणगार कीमती काळु वस्त्र आम उषाह. कर्पूमं. अमारा, मारा (सं. आभलं, आभूउं उक्तिर. नलरा. वादळु अस्मद, प्रा.अम्हअ); नलरा. अमे; (सं.अभ्र) पोताना; मारा आभडछोत अखाछ. आभडछेट, छूताछूत आमखि *विमप्र. [भक्ष्य] (सं.आमिष) आभडवू अखाका. हरिख्या. अडकवू आमण चतुचा. गूंधणी? आभर्ण नलाख्या. आभरण, घरेणुं . आमणदूमणी आरारा. जिनरा. प्रधुचु. आमले कादं(शा). आकाशमां (सं.अभ्र निराश, उदास, सर्चित (सं.अमनदुर्मन); परथी) जुओ ऊमणदूमणउ आमसे चतुचा. वारंवार करे (सं.अभ्यस्) आमय अखेगी. प्रबोप. रोग (सं.) आमा ऋषिरा. वादळ (सं.अभ्र) आमलउ, आमक आरारा. "जिनरा. आभाषी जुओ आभीषी नरका. *प्रबोप्र. ललिरा. वळ, द्वेष, ___ 2010_03 For Private &Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमलवेत्ततावातियां ४४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खार; रीस; विमान pच, मर्म, [*वळ, आयरिय ऐतिका. आचार्य *चर्तुळाकार विस्तार] आयरिस प्राचीफा. आरीसो (सं.आदश) आपलवेत्तम उक्तिर. रसोईमां खटाश माटे आयस अभिऊ. उषाह. कर्पूमं. कृष्णबा. वपरता आंबली, कोकम जेवा पदार्थ गुर्जरा. प्राचीफा. वसंफा. वसंवि(ब्रा). (सं.जाप्लकेतस), अमलबेत - एक आदेश, आज्ञा लताफळ [रा.] आयसइ आरारा. उक्तिर. आदेश आपे आमलसारत उक्तिर. वैरका. आमलक, आयास चतुचा. चित्तसं. कष्ट, तकलीफ, मंदिरशिखरना कलश नीचेनो भाग श्रम मामलाममाय *पंचका. [आमळा जेवडा, आयासी प्रेमाका. कष्ट सहन करनार, मोयी (तपनो) श्रम करनार] आपलीव तेरका. आंबळो, एक वनस्पति आर नंदब. आहार (सं. आम्मल्लिका, अफ.आमलिय) आरउ गुर्जरा. नियत काळविभाग (सं. सामान, सामान्य प्राचु. प्रेमाका. रांध्या आरक); जुओ आरा विनानु, काचुंअन्लाजा, सीधुं[सं.आमान्न] आरखे ऐतिका. प्रकारे, [समान] [रा.] बामे अखाका. आम्माया, पीडा, रोग आरठी आरारा. अरीठी, एक वनस्पति यामोडठ प्राचीसं. अबोडो (सं.आम्रमकट) (सं.अरिष्ट) दि.आमोड] आरडे गुर्जरा. जिनरा. विराप. आनंद करे, अनाव ऐतिका. शास्त्रापरंपरा, संप्रदाय रडे (सं.आरटति); उपबा. प्रेमाका. बराडा पाडे आमाबवंत आनंस्त. शास्त्र परंपरानो *आरणि [आरेणि] *अभिऊ. [सेनानी जाणकार प्रथम हरोळ, युद्धनो मोखरो] याम्बित जुओ आबिला आरत, आरति अखेगी. आरारा. उक्तिर. चतुचा. “चारफा. नलाख्या. नेमिछं. बाब कस्तुवा. आई, मा [सं. आप्पिका] प्रेमाका. हरिख्या.दुःख, पीडा (सं.आति) बाब अखाका. नेमिछ. "विमप्र. आयुष्य आरतवंत * हरिख्या. [दुःखी] (सं.आयु) आरति जुओ आरत जापटिय प्राचीसं. आकृष्ट, खेंचेलु आरति ध्यान आरारा. इष्टवियोग वगेरेथी अाक्त कादं (शा). पोळु (सं.) उत्पन्न थती दुःखभरी मनस्थिति [सं. आलु उक्तिर. ने अधीन [सं.आयत्त] आर्तध्यान] बाबपद उपना. आबक, पिदाश, लाभ] आरतियां शृंगामं. आतुर, [कामातुर (सं. ___ आत) ___ 2010_03 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४५ । आरतीक/आलउ दि.] आरतीक दशक(२). प्रेमाका. आरती ओनो] (सं.) (सं.आरात्रिक) आरुहइ उक्तिर. ऐतिका. प्रद्युचु. आरोहे, आरतीयासरु . उक्तिर. आरतीनो ओरडो चडे (सं.आरात्रिकावसरः) *आरेणि ['आराडि] अभिऊ. त्राड, आरत्ति तेरका. आरती (सं.आरात्रिक) चित्कार, नाद] दि.आराडी] आरंभ उषाह. [उत्सव], आनंद; आरारा. आरेणि, आरेणी *अभिऊ. "प्रबोप्र. [सेनाप्रयत्न [सं.] नी प्रथम हरोळ, युद्धनो मोखरो]; जुओ आरा "ऐतिका. [नियत कालावधि, काळ- आराणि विभाग] [जै.]; जुओ आरउ आरोग आरारा. आरोग्य आराडि षडाबा. आनंद. चीस. बराडा (सं. आरोग्य प्रेमाका. तंदुरस्ती, सलामती. आरटते); जुओ आरेणि [क्षेमकुशळता] आराधण्हार षष्टिप्र. आराधना करनार, आरोट *विमप्र. [पराक्रमी] [रा.आरोड] सेवनार, श्रद्धापूर्वक करनार] . आरोडइं गुर्जरा. *अवरोधे (*सं.आरुणद्धि) आराम *अखाका. चतचा. सखशांति. [आक्रमण करे, आक्रमक शब्दो बोले] प्रसन्नता [फा.] आराम, आराम आरारा. गुर्जरा. तेरका. आरोपीनई आनंस्त. आरोपीने, [रोपीने, नलरा. वाग्भबा. विक्ररा. बगीचो, सर्जीने, ऊभी करीने], चित्तसं. रूपक सजा उपवन (सं.) वगेरेमां थती आरोपणनी क्रिया करीने आरामी उषाह. माळी (सं.आराम परथी) आरोविय तेरका. मूक्युं (सं.आरोपित) आरासणउं प्राचीसं. आरासणुं, एक गाम आल, आळ चतुचा. नरका. अटकचालू, अडपलं; अभिऊ. *उपबा. तेरका. आराहइ आरारा. आराधे प्राचीसं. *वीसरा. वेताप. हरिख्या. आराहण ऐतिका. आराधना, [पूजा] असत्य, मिथ्यावचन, नकामु वेण (द.); आरांम जुओ आराम जिनरा. प्राचीसं. प्रेमाका. लावल. आरिज ऐतिका. आर्य, [महानुभाव] विमप्र. आळ, मिथ्यारोप, आक्षेप दि.]; ऐतिका. गुर्जरा. शीलक. आर्यदिश] *गुर्जरा. देवरा. एळे, [व्यर्थ, नकामुं]; आरिमकारिम आरारा. ? [*दानादि जुओ आलि अद्भुत कार्यो] आल (घडीआल) *कामा(त्रि). [समय आरीसउ उक्तिर. उपबा. प्रबोप्र. लावल. ' दर्शाववा वगाडवामां आवती झालर] षडाबा. अरीसो, दर्पण (सं.आदश) आलइ शृंगाम. निष्फळ, [एळे] आरुत शृंगामं. अवाज [खास करीने पंखी- आलउ षडाबा. घर (सं.आलय) ___ 2010_03 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलउनीलउ/आलूजइ ४६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आलउनीलउ आरारा. लीलुंछम (सं. (सं.आलानस्तंभः) । __ आर्द्रनील) आलालंबु चित्तसं. शृंगामं. तृष्णा, लालसा, आलउं, आलूं उक्तिर. प्रद्युचु. आर्द्र, लीलु, लालच भीनुं आलाटुंबे लाय अखाका. [तृष्णाने वळगे] आलजाल, आळजाळ उक्तिर. असंगत, आलावउ उक्तिर. षडाबा. पाठ, परिच्छेद, अर्थहीन; अखाका. उपाधि, खोटी ग्रंथांश (सं.आलापकः) जंजाळ दि.] आलि विमप्र. हरिवि. आप, दे, लगाड आलतउ प्राचीफा. अळतो (सं.अलक्तकः) [सं.आ+ली-] आलति, आलती लावल. हरिख्या. आलाप आलि, आळि * चारफा. "नेमिछं. प्राचीसं. [सं.आलप्ति] लावल. वीसरा. तोफान, मजाक, मस्ती, आळपंपाल अखाका. मिथ्या वस्तुओ; आळवीतराई, [अटकचाळो]; उषाह. प्रेमाकां. आडुअवळु, [कालुंघेलं, झघडो, [लडाई]; *प्रबोप्र. मिथ्या, पटामणुं, खुशामतभरेलुं] खोटुं]; ऐतिका. *नलरा. लावल. विराप. आलरां सिंहा(शा). ? प्राचीसं. एळे, व्यर्थ, नकामुं: जुओ आल आलवइ कृष्णबा. गुर्जरा. नलरा. प्राच. आलि, आली कादं(शा). प्राचीसं. वसंफा. वसंफा. वसंवि. सिंहा(शा). *स्थूफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). हरिवि. हरिख्या. आलाप करे, गाय, वगाडे सखी, सहियर (सं.)। (सं.आलपति) आलिजा जुओ आलीजा, जालिजा आलवणी प्रद्युचु. वीणा (सं.आलापिनी) अलिंघन, आलीघन, आलींघन चतुचा. आलवाल कादं(शा). क्यारो (सं.) दशस्क(२). नलाख्या. नंदब. सिंहा(शा). आलस आरारा. आळसु (सं.); वसंवि(ब्रा). आलिंगन आळसभर्यु, सुस्त (सं.) आली जुओ आलि आलसियां वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. आलीगारउ उक्तिर. "चतुचा. नरका. प्रद्युचु. वसंवि(ब्रा). अलस बन्यां, [सुस्त बन्यां] अटकचाळो, तोफानी, मस्तीखोर (सं.आलसित) आलीघन जुओ आलिंघन आलंगन कामा(शा). आलिंगन आलीजा *ऐतिका. [उत्कंठा]; जुओ आलंगिउ ऐतिका.आलिंगनआप्युं, [भेट्यो] आलिजा आलंघन * कादं(धु). [आलिंगन]; जुओ आलीमाली प्रद्युचु. आलीलीली, लीलीछम आल्यघंन आलींघन जुओ आलिंघन आलंबडु शृंगाम. आलंबन, आधार आलु * नरप(द). [अटकचाळा] (ब.व.) आलाणथंभ उक्तिर. हाथीने बांधवानो स्तंभ आलूजइ उक्तिर. मूंझाय [रा.] ___ 2010_03 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४७ आलूं/आवस आलूं जुओ आलउं आवटे (वढी आवटे) *अखाछ. [वढी पडे, आले, आळे अखाका. दशस्कं(१). वढी मरे] दशस्क(२). प्रेमाका. एळे, फोगट, आवट्टिय * प्राचीसं. [आथडी रहेला, खदबदी निरर्थक; चित्तसं. तोफाने रहेला] आले अखाका. आलय, रहेठाण आवडली नेमिछं. [आवडीक] आळे चडवू दशस्कं(१). तोफाने चडवू आवण आरारा. आवq ते आलोअण, आलोयण आरारा. ऐतिका. आवणहार उक्तिर. षडाबा. आवनार स्थूलिफा. गुरु पासे पोताना दोषो बतावी आवतिया ऐतिरा. आवे छे प्रायश्चित्त लेवू ते (सं.आलोचना) आवरजइ, आवर्जइ विक्ररा. प्रसन्न करे. आलोइ आरारा. प्राचीसं. षष्टिप्र. षडाबा. (सं.आवर्जयति) आलोचे, प्रायश्चित्त करे . आवरत ऐतिरा. लहेर, तरंग [सं.आवर्त] आलोच स्थूलिफा. मनन, चिंतन [सं.] आवरिया, आवरीआ वसंफा. वसंफा (ल). आलोचइ आरारा. उक्तिर. *षडाबा. विचारे वसंवि. वसंवि(ब्रा). आवर्या, ढांक्या, . आलोडइ कादं(घ). कादं(शा). हलावे, गोपन कर्यु (सं.आवृत) ____डखोळी नाखे (सं.आलोडयति) आवरो नरका. आवक लखवानो हिसाबनो आलोयण जुओ आलोअण चोपडो आलोवू जिनरा. आलोचना करूं, [प्रायश्चित्त आवर्जइ जुओ आवरजई करूं आवर्जन विक्ररा. प्रसन्न करवू ते आल्य, आळ्य नरप(द). आळ, [आक्षेप]; आवर्जितु षडाबा. प्रसन्न, राजी (सं. जुओ आल आवर्जित) आल्यघंन, आल्यंघन कादं(शा). मदमो. आवर्जिया उपबा. प्रसन्न (सं.आवर्जित) आलिंगन; जुओ आलंघन . आवर्त ऐतिका. [वंदन करतां पूर्वे जोडेला आवइ कादं(धु). गुर्जरा. षडाबा. आवडे, हाथने गोळाकारे फेरववा ते, एक जाणे (*सं.आवर्तते) [सं.आपयति] प्रकारनी उत्कृष्ट वंदनक्रिया] [जै.] आवटे *अखाछ. कामा(शा). "दशस्क(१). आवला चतुचा. *विमप्र. उतावळा (सं. "दशस्कं(२). नलरा. प्रबोप्र. प्रेमाका. आकुल) शृंगामं. मूंझाय, दुःखी थाय; अंगवि. आवली षडाबा. जैन परंपरा मुजबर्नु एक "ऊकळे, ऊछळे [सं.आवर्तयति]; जुओ सूक्ष्म कालपरिमाण (सं.आवलिका) अवटाय ___ आवस ऋषिरा. घर, [आवास] [सं. आवटे (जई आवटे) *अखाछ. [जई पहोंचे] आवसथ] 2010_03 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवसत/आसदु ४८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आवागम आवसत, आवसव कस्तुवा. प्रेमाका. (सं.आशिष्) अग्निशाळा, वेदी, घरमां अखंड आशी अखाका. *आशयवाळा, [आशा - प्रज्वलित राखवामां आवतो अग्नि, पांच झंखनावाळा) अग्निप्रकारोमांनो एक (सं.आवसथ्य) आशे अखाका. अखाछ. अखेगी. आशय आवसही जिनरा. निवृत्तिमांथी आवश्यक आश्या कादं(शा). आशा प्रवृत्तिमां जq (धर्मस्थानमांथी नीकळती आश्रद्ध उक्तिर. उपबा. आश्रय ले (सं. वखते बोलातो शब्द) [जै.] आश्रयति) आश्रज कामा(त्रि). कादं(शा). दशस्कं(१). प्रेमाका. प्राचीसं. आवQ अने जर्बु, जयु दशस्कं(२). नलाख्या. प्रेमाका. आश्चर्य जन्म अने मरणना फेरा आश्रयउ उक्तिर. आश्रय करनार, आश्रये आवाठउं गुर्जरा. उपस्थित थयुं, आवी रहेनार पहोंच्यु (सं.उपस्थितकम्) आश्रयी *षडाबा. [-ने आश्रय करीने, आ वारकी दशस्कं(१). आ वारे, आ अनुलक्षीने] वखते *आवारी [अवारी] *प्रेमाका. [अवारित, आश्रव प्राचीका. कर्मोनुं प्रवेशद्वार, [कर्म बंधनुं कारण] [जै. अटक्या विना]; जुओ अवारी आवीतउं उक्तिर. अवातुं [*सं.आ+या आश्री आनंस्त. आश्रयी [ने आश्रये परथी रहेनार] आवीस चंद्रवा. मदमो. आयुष्य आश्रीनइ आनंस्त. आश्रय करीने आव्रण अखाका. आवरण आश्वास प्रेमाका. आश्वासन, [आसनाआशरो *प्रेमाका. [गजु] वासना] आशवासना, आसवासना कामा(शा). आश्लेषिउ उक्तिर. भेट्यो दशस्कं(१). प्रेमाका. वेताप. आष्या नलरा. आशा, इच्छा आश्वासना, आसनावासना आस *अभिऊ. उपबा. गुर्जरा. देवरा. आशंक उक्तिर. प्रेमाका. आशंका, विक्ररा. वीसरा. आशा [अंदेशो, “खटको, “संकोच] आस प्राचीसं. अश्व आशंशा षडाबा. इच्छा, अभिलाष (सं. आस आरारा. मुख, धार, छेडो (सं.आस्य) आशंसा) आस नलाख्या. आनु, [एने] (सं.अस्य) आशिका विमप्र. आशीर्वाद आसउज प्राचीसं. षडाबा. आसो मास (सं. आशिखा प्रबोप्र. आशीर्वाद (सं.आशिष्) आश्वयुज) आशी नरका. प्रबोप्र. मोसाच. आशीर्वाद आसदु आसरा (व). आसद, अश्वत्थ, 2010_03 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४९ आसडी/आस्फोटन आ पींपळो ? आसोंद, अश्वगंधा ? (सं.अश्वगंधा) आसडी ऋषिरा. आशा आसंजू जुओ आसनउं आसण उपबा. आसन; गुर्जरा. योगासन आसंस देवरा. इच्छावाळो, आसक्त [सं. आसन आरारा. पासेनी (सं.आसन्न) आशंसु आसनउं विमप्र. अजाणतां, [अज्ञानपूर्वक] आसंसादि आनंस्त. कामना वगेरे [सं. (सं.असंज्ञक); जुओ असन आशंसादि] आसनउं, आसंन्नं गर्जरा.पूर्ण, समाप्त. नष्ट] आसा प्राचीफा. दिशा (सं.आशा) (सं.आसन्न); आरारा. ऐतिरा. कृष्णच. आसात प्रेमाका. आशातना, पीडा, व्यथा लावल. पासे, पासेनं (सं.आसन्नः आसातन गुर्जरा. [दुःख लगाडq ते], आरारा. *विमप्र. रहेलु (सं.आसन्न) आशातना, अविवेक, अनादर [जै.] आसन्नसिद्धि ऐतिका. नजीकना समयमां आसासिउ गुर्जरा. तेरका. आश्वासन आप्यु मुक्ति पामी शके एवा (सं.आश्वासित) आसमुह गुर्जरा. समुद्र सुधी (सं.आसमुद्र) आसांचरीजि गुर्जरा. संचर्या, गया आसरज, आम्रज कामा(शा). आश्चर्य आसि आरारा. छे (सं.अस्ति) आसयु आरारा. सामे थयो (द.आसरिअ) ला आसि देवरा. आवशे आसवामता गुर्जरा. अश्वत्थामा आसि तेरका. हतुं (सं.आसीत्) आसवासना जुओ आशवासना आसि गुर्जरा. आशा आसी आनंस्त. आशाभरेली, आशायुक्त आसं आरारा. आशा आसू उक्तिर. आसो मास (सं.आश्विन) आसकी *नरका. [संभावना - कल्पना आसेविवउ षडाबा. आचरवं. करवं करी] [सं.आशंक आसोज वीसरा. आसो मास (सं.अश्वयुज) आसंखु कादं (शा). विश्वास, भरोसो (दे. आसोजी षष्टिप्र. आसो मासनी (सं. आसंघ) आश्वयुज) आसंग, आसंगा *जिनरा. [आसक्ति, आसोय प्राचीसं.आसो मास (सं.आश्वयुज) अनुराग, *भरोसो] [रा.] आस्ता शीलक. षष्टिप्र. आस्था, श्रद्धा आसंगायत ऐतिका. जिनरा. *आश्रित, आस्त्य अखाछ. अखेगी. अस्ति (छ) एवो "आधान, [अनुरागवश, आसक्त भाव, अस्तित्व, होवू ते आसंगो नरका. आसक्ति आस्त्य-नास्त्य अखाका. अस्तित्व अने तेनो आसंजिका कादं(शा). नानी बेठकवाळी अभाव पाटली (सं.आसंदिका) आस्फोटन *प्रेमाका. [ठोक लगाववी ते] आसंघि आरारा(व). आसोंद, एक वनस्पति [सं.] 2010_03 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आस्वागत / आंखुडी आस्वागत नंदब. स्वागत आस्या आरारा. आशा आज जुओ आसरज आस्वासइ उक्तिर. आश्वासन आपे आह गुर्जरा. हवे आह, आहि आरारा. आ आह, आहि, आह्य अंबरा. कर्पूमं. नलरा. प्रद्युचु. प्रेमाका. लावल. हरिवि. शक्ति, हिंमत (सं.आय) आहण प्राचीफा. प्रहार (सं. आ+हन्) आहणइ उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. कृष्णच. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. प्राचीफा. लावल. षष्टिप्र. षडाबा. प्रहार करे, मारे, कूटे, फटकारे, ठपकारे (सं. आ+हन्) आहरइ उपबा. षडाबा. खाय (सं. आहरति ) आहर-जाहर, आहार-जउहार आरारा. उक्तिर. शृंगामं. आवजा, आवरोजावरो आहब गुर्जरा. विराप. युद्ध (सं.) आहवु नलरा. आवो, आ प्रकारनो आहारग जिनरा. आहारक शरीर, [योगबळे प्राप्त सूक्ष्म शरीर ]; जुओ अहारग आहारजउहार जुओ आहर - जाहर आहि जुओ आह आहिडी, आहेडी अंबरा. उक्तिर. गुर्जरा. दशस्कं (र). नरका. नलाख्या. प्रेमाका. रूस्तस वाग्भबा. विमप्र. षडाबा. सम्यचो. शिकारी, पारधी (सं. आखेटकः) आहठाण जिनरा. अधिस्थान, [ ठेकाणुं ] आहीरडि अभिऊ. आहीरोना, [आभीर . 2010_03 ५० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रदेशना ] आहुकार कस्तुवा. आवकार आहुला अखाका. आवलां, फांफां, मिथ्या प्रयत्न आहेss गुर्जरा. शिकारे (सं. आखेटक) आहेडउ उक्तिर. नलरा. विमप्र. षडाबा. शिकार, मृगया (सं. आखेटकः) आहेडी जुओ आहिडी, आहेरडी आहेरडी, आहेडी चंद्रवा. शिकारी, पारधी आाजुओ आह आं कर्पूमं. आंय, अहीं आंकडीआ विमप्र. एक प्रकारनुं घरेणुं आंकडो आनंस्त. [अंदाज, निश्चय ] आंकणी गुर्जरा. प्राचीफा. प्राचीसं. ध्रुवपंक्ति, टेकनी पंक्ति (सं. अंकनिका ) आंकिलु गुर्जरा. अंकित, निश्चित (सं. अंक परथी) * आंकुडी वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). आंकडी, छेडेथी वांकुं वाळेलुं शस्त्र (सं. अंकुट) आंकुरीइं विराप. अंकुरित थाय, [ऊभा थाय] आंकुस उक्तिर. अंकुश आंखउडली जुओ आखउंडली *आंख - पांखनो [आखपाखनो ] नेह * * नरका. [आसपास - पासेपासे होवानो - निकटतानो स्नेह ] ; जुओ आख्यपाख्य आंखि उक्तिर. उपबा. वीसरा. विराप. आंख (सं. अक्षि) आंखुडी [आंटडी] गुर्जरा. [गूंच, Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मुश्केली] आंखुडी विराप. आंख आंग षडाबा. षडाबा. शरीरनो अवयव (सं.अंग); षष्टिप्र. षडाबा. अंग, जैन आगमसाहित्यनो एक विभाग; षष्टिप्र. अंग, [भाग ] आंगा विक्ररा. हम्मीप्र. एक प्रकारनां बख्तर आंगी प्राचीफा. जैन मूर्तिनो शणगार आंगीगमइ आरारा. षष्टिप्र. स्वीकारे, ले, ५१ आंटीयो * चंद्रवा [आंटी, कोयडो] आंटे * नरका. [आंट आंटो अखाका. गूंच, मुश्केली आंड उक्तिर. ईंडुं (सं. अण्डम् ) आंण जुओ आण आंतर आरारा. वच्चे, मां, आश्रये; आंतरे, आंगडणु उक्तिर. अंगमंडन पछी आंगमइ षष्टिप्र. स्वीकारे, [पामे] (सं. अंग + आंतरणी * षडाबा. [तुटकपणुं, खंडितपणुं] गम्) आंगलु प्राचीका. प्रेमप. प्रेमाका. झभलुं, अंगरखुं (सं. अंग उपरथी) आंतरुं " ऋषिरा. [वहेरो, भेदभाव ]; आनंस्त. अंतर, छेटापणुं, [जुदाई] आंतरो अखाका भेद, जुदाई, अंतर, प्रेमाका. अंतर, समयगाळो आंतलूहण, आंत्रलूहण जिनरा. आत्मज, [संतान] आंत्र उक्तिर. षडाबा. आंतरडां (सं. अन्त्र) आंत्रण जुओ आंतलूहण आंदोल थया प्रेमाका. हली ऊठ्या आंधउ, आंधो आनंस्त. गुर्जरा. आंधळो (सं. अंध) आंब अभिऊ. नलरा. आंबानुं झाड (सं. आम्र) आंबइरा उक्तिर. आंबाना आंबर प्राचीफा. कीमती वस्त्र, (सं. अंबर) आंबळी प्रेमाका. मरडी आंबलू, आंबुलु वसंफा-शु. वसंवि. वसंवि (ब्रा). पति, प्रियतम 2010_03 आंखुडी / आंबलो - [पाने] (सं. अंग+ गम् ) आंगुं जुओ आगुं आंगुलि षडाबा. आंगळी (सं. अंगुलि ) आंगळियउ वीसरा. आंगळी (सं. अंगुलि ) आंगुली, आंगुळी, आंगूळी उक्तिर. उपबा. नलरा. वीसरा. आंगळी (सं. अंगुलि); * वीसरा. [* वींटी] [सं. अंगुलीयक] आंच (आंच दीधी) मदमो. धमकी [ दीधी आंचलि, आंचली प्राचीफा. लावल. टेकनी पंक्ति, ध्रुवपद (सं. अंचल परथी ) आंचो प्रेमाका. [हरकत, आफत] [सं. ] * अर्चिः] आंजणी वीसरा. #स्त्री आंटडी जुओ आंखुडी . आंटलीए वले चतुचा. आडा फरे आंटि (आंटि देतां ) * कादं (धु). [ पग आंबलो, आंबळो नरका. वेताप. आमळो, भरावतां, पग लगाडतां] अमळाट, खार, [रीस ] हठ के टेकथी] आंबलू, आंबुलु प्राचीसं. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). आंबलो, आंबो (सं. आम्र) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आंबिल/इगु आंबिल, आम्बिल उक्तिर. ऐतिका. षडाबा. आयंबिल, आंबेल, जैन तपप्रकार [जेमां विकृतजनक आहारनो त्याग होय छे] (सं. आचाम्ल) आंबिलवर्धमानु गुर्जरा. एक प्रकारनुं तप, एक आंबेलनी साधे वधता जता उपवासना दिवसो [के एक उपवासनी साथे वधता जता आंबेलना दिवसो] (सं.आचाम्लवर्धमान) आंबिली उक्तिर. गुर्जरा. जिनरा. वसंफा. वसंवि. विराप. आमलीनुं झाड (सं. अम्लिका) आंबुलउ वसंवि (ब्रा). आंबानुं आंबुलु जुओ आंबलु आम तात कृष्णच. आदरणीय वडील, [ आप वडील ] अमला गुर्जरा. विनाशक (सं. आ + मृद्) आंहां प्रेमाका. अहीं, अहींयां ५२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वसंफा(ल). वसंवि. एक; गुर्जरा. कोईएक, केटलाक; *विराप. [केटलाक ] इक आछण ( इक आछण पाणी छांडती) * विमप्र. [ एक नितरामणनो पण त्याग करती] 2010_03 इकलास जिनरा. प्रीति [ फा . इखलास ] इकबीस उक्तिर. एकवीस ( सं . एकविंशत्) इक-संथ प्राचीसं. एक वखत सांभळवाथी जेने बराबर याद रही जाय ते (सं. एकसंस्थ) इकावन उक्तिर. एकावन (सं. एकपंचाशत् ) कि षष्टिप्र. एक ज इक्क गुर्जरा. तेरका. षष्टिप्र. एक इक्कक्कह ऐतिका. एकेक, [दरेक] [सं. एकैक ] इकारस तेरका. अगियार (सं. एकादश ) इक्किई गुर्जरा. एकएक वडे [सं. एकैकेन] इक्षरस लावल. इक्षुरस, शेरडीनो रस इक्षुक प्रेमाका. शेलडी इक्ष्वाकुळ दशस्कं (२). इक्ष्वाकु कुळ इखू शृंगामं. शेरडी (सं. इक्षु) इग, इगु उक्तिर. नेमिछं. प्राचीफा. एक इगतालीस उक्तिर. एकतालीस (सं. एकचत्वारिंशत्) इ, इं, ई * षष्टिप्र. [पण, छतां] [सं. अपि ]; उपबा. गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. * षष्टिप्र. [ अंतर्भावात्मक] पण, य (सं. अपि) इ, ई, ई * उपबा. गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. षष्टिप्र. निश्चयार्थ अव्यय, ज (सं.च) इ, ई, ई, ईं अभिऊ. उक्तिर. नरप (द). नलरा. नेमिछं. वसंफा. वसंवि (ब्रा). आ, ए (सं. इदम् एतत् ) इउ षडाबा. अहीं, आ तरफ ( सं . इतः ) इउ, यउ तेरका षडाबा. आ, आम (सं. इदम्) इक ऐतिरा. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. इगु जुओ इग इगसठि उक्तिर. प्राचीसं. एकसठ (सं. एकषष्टि) इसय जिनरा. एक सो [सं. एकशत] इगहत्तरि उक्तिर. एकोतेर ( सं . एकसप्ततिः ) इगार षडाबा. अगियार (सं. एकादश ) इगारमउ षडाबा. अगियारमो Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इगुणचालीस / इमइ देवरा. नेमिछं. प्रबोप्र. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. ए., आ (सं. एतेन ) इण ताल आरारा. अत्यारे इण परि, इणि परि, ईण परि उक्तिर. गुर्जरा. वसंफा. आ प्रकारे, आ रीते इणि, ईणि आनंस्त. आरारा. ऋषिरा गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. लावल. विराप. षडाबा. आ (-ए थी, ने, मां), ए (-ए, थी, ने, मां) (सं. एनेन) इणि उपाइ आरारा. एने ली इगुणवीस उक्तिर. षडाबा. ओगणीस ( सं . एकोनविंशतिः) इगुणसठि उक्तिर. ओगणसाठ (सं. एकोन - इणि परि जुओ इण परि इतर षडाबा. थी, वडे, पूर्वक इगुणहत्तरि उक्तिर. गुर्जरा. ओगणोसित्तेर इतराइ कृष्णच. आछकलापणुं, [ गर्वनो देखाडो, फुलाश, बडाश] [हिं. ईतराना ] इगुणीसमउ उक्तिर. ओगणीसमो (सं. एकोन- इतस्तत अखाका. आमतेम षष्टिः) (सं. एकोनसप्ततिः) विंशतितमः ) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश इगुणचालीस उक्तिर. ओगणचालीस ( सं . एकोनचत्वारिंशत् ) इगुणतीस, इगुणत्रीस उक्तिर. रूपच. षडाबा. ओगणत्रीस ( सं . एकोनत्रिंशत् ) इगुणनवs षडाबा. नेव्यासी (सं. एकोननवतिः) इगुणपचास, इगुणपंचास उक्तिर. षडाबा. ओगणपचास (सं. एकोनपंचाशत्) ५३ इति अंबरा. अति इगुण्यासी उत्तिर. ओगणाएंसी (सं. एकोना - इत्तलउ प्राचीसं. एटलं [ सं . इयत् + तुल्य] शीतिः) इत्विवेय जुओ इच्छेवेय इग्यार उपबा. गुर्जरा. अगियार (सं. एकादश) इथी उषाह. स्त्री [प्रा. इत्थि ] इग्यारमउ आनंस्त. उक्तिर. गुर्जरा. वीसरा. अगियारमुं (सं. एकादशम) *इच्छे-वेय [इत्विवेय] जिनरा स्त्रीवेद, [ स्त्रीने पुरुष साथै कामभोगनी इच्छा थाय ते] [प्रा.] [जै.] इधाण कादं (शा). नलाख्या. एंघाण, निशान, चिह्न (सं. अभिज्ञान) इधूणि प्राचीका. एंघाणी (सं. अभिज्ञान) इभ्य आरारा. ऋषिरा. धनवान, धनाढ्य शेठ (सं.) इजि उपबा. केवळ, मात्र, [ज] इटाल, इंटाल ऐतिका. लावल. ईंट, ईंटाळा, [पथ्थरना रोडा ] [ सं . इष्टा] इठ शृंगामं. इष्ट इठिया लावल. एंठा [सं. * आचष्ट] इण, ईण आनंस्त. आरारा. गुर्जरा. तेरका इम, इंम, ईम अभिउ. उक्तिर. उपबा ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. देवरा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. षडाबा. आम, आ प्रमाणे, एम (सं. एवम्) इमइ, इमै, ईमहंइ तेरका. एम ने एम Jainमध्यavation International 2010_03 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इमेवइ/इंद (सं. एवम् +अपि); उक्तिर. आम ज, एम ज इमेबइ नेमिछं. आज रीते (सं. एवमेव ) इमै जुओ इमइ इव तेरका. आटलं, आयुं, आम ( सं . इति) इव, इक्ठं चारफा. षडाबा. आ, (सं. इयम्) आवुं वगेरे इरिवावही वडावा. हलन चलन शारीरिक चेथ ( थी नीपजतां कर्म) (सं. ईर्यापथिकी) [जै.] इति ऐतिका. पृथ्वी पर [ सं . इला] इतिका, इली आनंस्त. इयळ [सं.] इबडे जिनरा. आवा, आवडा इसी, इसी आरारा. कादं (शा). तेरका. आवी, एवी (सं. ईदृशिका) इस लावल. ईश, ईश्वर इस गुर्जरा. आवुं (सं. ईदृश) इस उक्तिर. गुर्जरा. वसंफा (ल). वसंवि. वीसरा. षडाबा. आ, आवुं, आ प्रकारनुं, आम (सं. ईदृश) इस ऐतिका. एवा (हिं. ऐसा ) इसर, ईसर गुर्जरा. विमप्र. शृंगामं. महादेव, शिव (सं. ईश्वर ) इसारति शृंगामं. ईर्षा अने अरति - अरुचि इति उपना. नेमिछं. लावल. आवुं, एवं (सं. ईदृशम्) इती जुओ इशी इसी षडाबा. एंशी (सं. अशीतिः) इस्त्री प्राचीका. स्त्री इस्क्उ उक्तिर. उषाह. लावल. वसंफा. षष्टिप्र. 2010_03 ५४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आ प्रकारनो, आवो, एवो, (सं. ईदृश) इह, इहु, ईह, ईंह, ईंह आरारा. गुर्जरा. तेरका. षडाबा. ए, आ (सं. एषः) इह आरारा. ऐतिरा. गुर्जरा. अहीं (सं.); तेरका आ, अहनुं (सं.) इहकार प्रबोप्र. अहंकार ( पात्रनुं नाम) इहरति प्राचीसं. आ लोकमां [सं. इहत्र, प्रा. *इहरत्त ] इहां, ईहां, इहां आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नरका. पंचवा. विराप. षडाबा. अहीं, अहींयां इहां किणइ आरारा. अहींयां इहि, ईही प्रबोप्र. षडाबा. अहीं, [आ लोकमां ] ( सं . इह) इहिनाणि आरारा. एंधाण, निशानी (सं. अभिज्ञान) इहिनिश प्रबोप्र. अहर्निश, दिनरात इहिबातन कृष्णबा. हेवातन, [ सौभाग्यवतीपणुं] [सं. अविधवात्वन] इहिविहिवि जुओ विसू इहीणइ ० उपबा. एणे इहु जुओ इह इहे आनंस्त. आवा, [आ] इं जुओ इ इंगटि * लावल. [तबलाना तालसूचक ध्वनिशब्द ] इंटाल जुओ इटाल इंद नरका. नलाख्या. इन्दु, चंद्र इंद, इंदा ऐतिका. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. इन्द्र Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५५ . इंदियाल/ईई चड्यु इंदियाल प्राचीसं. इन्द्रजाल, [जादु ईणि जुओ इणि इंदिरा ऋषिरा. लक्ष्मी (सं.) ईतर-स्युं लावल. बनेथी, बंने वडे इंदु गुर्जरा. इन्द्र ईति ऐतिका. धान्यादिकने हानि इंदु निदान प्रेमाका. नक्की चंद्र ___ पहोंचाडनार उंदर वगेरे प्राणी [सं.] इंद्रजाल, इंग्रजाळ अखेगी. प्रेमाका. जादु ईघण उक्तिर. ईंधण (सं.इन्धनम्) ईभ मदमो. हाथी (सं.इभ) इंद्रजिमलवेला आरारा. इन्द्रयमलवेला, ईम जुओ इम [कोई ज्योतिषयोग] ईमहइ जुओ इमइ इंग्रवारणो प्रेमाका. कडवा पण सोनेरी रंगना ईयाहु अखाछ. पोतानी इच्छाथी बळी जनारुं इंद्रवारुणीना फळ जेवो, सोनेरी अने स्वाति नक्षत्रमा वर्षाबिंदुथी फरी इंग्रवारुणी प्रेमाका. देखावे सुंदर पण झेरी सजीवन थतुं (काल्पनिक) पंखी फळवाळो एक छोड [सं.] ईरजा-सुमति, ईर्या-सुमति ऐतिका. देवरा. इंब्राइसि गुर्जरा. इंद्रना आदेशथी चालवामां संयम, विवेक (सं.ईर्याइंद्रिलोक गुर्जरा. इंद्रलोक समिति) [जै.] इंद्री नलाख्या. इन्द्रियो ईरजादी देवरा. चालवामां जीवादि प्रत्ये इंम जुओ इम संयम वगेरे (सं.ईर्यादि) [जै.] इंहिकू षडाबा. आ लोक, ऐहिक ईर्या-सुमति जुओ ईरजा-सुमति ईश ऋषिरा. महादेव, शंकर ईष जुओ हलरी ईष ई जुओ इ ईस उक्तिर. धरी, धूंसरी (सं.ईषा) ईछाइ कादं(धु). यथेच्छ ईसउ उक्तिर. आवो (सं.ईदृशः) ईछाचारी आनंस्त. स्वेच्छाचारी, [स्वेच्छाथी ईसर जुओ इसर वर्तनार] ईह जुओ इह ईट उक्तिर. ईंट (सं.इष्टिका) ईहइ प्राचीसं. षष्टिप्र. इच्छे (सं.ईह्) ईड नलरा. ईंडु (सं.अंड) ईहणां जिनरा. इच्छुक, [याचक] [सं.ईह् ईण जुओ इण परथी] [रा.] ईणइ उपबा. वसंफा. वसंवि(ब्रा). एणे ईहां जुओ इहां (सं.एतेन) ईही जुओ इहि ईण परि जुओ इण परि ई जुओ ई ईणं *षटिप. [एनाथी (सं.एतेन) ईडं चड्युं प्रेमाका. शिखर चड्यु, विजय ईणं लाजीइ उक्तिर. आनाथी शरमाय थयो, नामना थई 2010_03 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ई९ राख्यं उगरतउ ५६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ईईं राख्युं नरका. श्रेष्ठता सिद्ध करी उखांगे दशरक(१). दशस्कं(२). आरडे ईंह, ईं जुओ इह . उखुडइ उक्तिर. ऊखडे, तूटे [प्रा.; सं. ईंहां जुओ इहां उत्स्कृत] उखेलइ, ऊखेलइ उक्तिर. षष्टिप्र. उखाडे, उ आरारा. ए; कृष्णबा. हरिवि. ओ उखेडे (सं.उत्कीलयति) दि.उक्खिल]; उअचट प्राचीफा. अभिमान सिं.उच्चटा: आरारा. खोले (रा.) जुओ अचट उखेवे, ऊखेवे ऐतिका. कादं(शा). प्रेमाका. उअर, उयर ऐतिका. नेमिछं. उदर छांटे, ऊंचे उडाडे, धूप करे (सं.उत्क्षेप्); उअहाणउ गुर्जरा. उखाणं, कहेवत (सं. जुओ अगरु उखेव-, उवेखे उपाख्यान) उगउ * षडाबा. [मूगो]; जुओ अउगी उआरणां अभिऊ. ओवारणां [सं. उगउमुगउ, उगमुगउ उक्तिर. मूगो; जुओ अपवारण] अउंगउ-मुगउ उइखहु ऐतिका. उपेक्षा करो उगट, उगटण, उगटी, ऊगट, ऊगटि उइलउ उक्तिर. ओलं, पेठे [सं.अवर+प्रा. अभिऊ. आरारा. तेरका. दशस्कं(१). दशस्क(२). नेमिछं. प्राचीका. प्राचीफा. उइसइ उक्तिर. बेसे (सं.उपविशति) . प्राचीसं. प्रेमाका. लावल. स्थूलिफा. उकडच्छी *गुर्जरा. [उभडक आसन करी] हरिवि. सुगंधी पदार्थोनो लेप, अंगराग [सं.उत्कटुक+आसनिक]; जुओ उत्कडु (सं.उद्वर्तन) उकसइ, ऊकसइ जिनरा. उन्नत बने, ऊंचुं। उगणत्रीस उपबा. ओगणत्रीस (सं.एकोन.. थाय (सं.उत्कर्ष) त्रिंशत्) उकांटउ, ऊकांटउ *ऋषिरा. कादं(धू). उगणीस उक्तिर. ओगणीस (सं.एकोनकादं(शा). *चतुचा. * नलाख्या. षष्टिप्र. विंशति) रोमांच, कंप, ध्रुजारी; रोमांचित, कंपाय- उगणीसमा आनंस्त. ओगणीसमा मान (सं.उत्कंटक) उगत्त आरारा. उक्त, कह्यु उकंठिउ ऐतिका. उत्कंठित थयो उगनिउं *अभिउ. नरका. नलरा. स्त्रीउक्षा नलाख्या. बळद (सं.) काने पहेरवानुं एक घरेणुं; जुओ उखध, उखधी, ऊखध कस्तुवा. वीसरा. अउगानया शीलक. औषध, औषधि उगमइ विक्ररा. ऊगे [सं.उद्+गम्) उखाणउ, ऊखाणउ अंबरा. जिनरा. षष्टिप्र. उगमुगउ जुओ उगउमुगउ कहेवत (सं.उपाख्यानकम्) उगरतउ उपबा. नरका. षडाबा. बचेलो, 2010_03 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५७ उगाल/उछव बाकी रहेतो, वधेलो [*सं.उद्+] उचेल, ऊचेल *अखाका. *कादं(शा). उगाल प्रद्युचु. पाननो चावेलो कूचो [द. [खोळो, गोद] उग्गाल] उच्छक, उछक आरारा. कादं(शा). जिनरा. उगाह पंचवा. साक्षी ["फा.गवाह] नलरा. प्रबोप्र. विमप्र. उत्सुक, आतुर; जुओ अच्छक उम्ग- तेरका. ऊगq (सं.उद्+गा) उगमणे ऐतिका. उदित थतां, ऊगतां [सं. उच्छरंग, उछरंग आरारा. ऐतिका. देवरा. उत्साह, [उमंग], आनंद उद्गमने] उच्छव, उछव आरारा. उक्तिर. कादं(शा). उग्रबुद्धि अखाका. *कुशाग्र के सूक्ष्म बुद्धि, गर्जरा. देवरा. प्रेमप. षडाबा. उत्सव [अग्रबुद्धि, आगळ जनारी - दूरदशी उच्छंग, उछंग अखाका. आरारा. उक्तिर. बुद्धि] ऋषिरा. ऐतिका. कादं(शा). चतुचा. उग्रह- वीसरा. ऊभराय, उत्पन्न थाय, तेरका. नरका. नेमिछं. प्रेमाका. खोळो [बहार नीकळे] (सं.उद्ग्रह) (सं.उत्संगः) उग्रहणी उक्तिर. उघराणी, चूकवणी माटे उच्छाह, उछाह, उछाहो, ऊछाह आरारा. तकादो (सं.उद्ग्रहणिका) उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. कृष्णच. गुर्जरा. उघउ नलरा. जैन साधुन रजोहरण, ओघो देवरा. नरका. नलाख्या. पंचवा. प्रेमाका. (सं.अवग्रह); जुओ उथउ । * वीसरा. उत्साह, उमंग; प्राचीसं. उघरेटी नरका. नरप. ऊंघरेटी, निद्राळु, उत्साह, गीतकाव्यनो एक प्रकार __ ऊंघथी भरेली उच्छाहिवउं उक्तिर. उत्साह आपवो, प्रेरकुं उधेला जुओ उधेला उच्छांछली आरारा. चंचळ, तरल, थरकती उच्छुकपणउ उक्तिर. उत्सुकता उचरन पंचवा. बोलवा (सं.उच्चर) उच्छेद घातबुं दशस्कं(१). सत्यानाश करवो उचलवं, ऊचलवं, ऊचळवू, ऊंचलवु उछउं. ऊछउं अभिऊ: अंबरा. उपबा. नलरा. दशस्कं(१). प्रेमाका. ऊंचकवू, उपाडवू नेमिछं. विमप्र. ओछु, अधूरूं, ऊणुं (दे. [सं.उच्चल]; उचाळा भरवा; कादं(शा). उच्छ) [*सं.ओच्छ]; जुओ उर्छ ऊपडी नीकळवू, चाली नीकळवू उछक जुओ उच्छक उचाल्या आमऊ. विनाशक बन्या] (स. उछकपणइ नलरा. आतुरपणे (सं.उत्सुक) उच्चाट्); जुओ ऊचाटइ उछरंग जुओ उच्छरंग उचितबोलु नलरा. प्रसंगानुसार उचित वाणी उछराण कर्पमं. आनंद, [हर्षोल्लास] बोली. राजानुं मनरंजन करनार उछलइ, ऊछलइ अंबरा. जिनरा. फरफरे, उचीतु अभिऊ. ओचिंतुं (सं.अचिंत्य) ऊडे [सं.उच्छलति] उचेर्या प्राचीका. छंछेड्या उछव जुओ उच्छव 2010_03 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उछहामण/उट मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उछहामणउ जिनरा. तरवरियो, [मस्त, कादं(शा). कृष्णबा. “गुर्जरा. नेमिछं. उन्मत्त, नटखट] [रा.] प्राचीफा. विक्ररा. शृंगाम. दोडे, दोडीने उछं कर्पूम. ओर्छ, जुओ उछउँ जाय, धसमसे (सं.उद्+याति) .. उछंक ०कामा(शा). उच्छृखल उजागरता आनंस्त. उजागरो [सं.उज्जागर+ उछंकल, उछंगल दशस्क(१). प्रेमाका. ता] उच्छृखल, स्वच्छंदी उजाडि शृंगामं. उज्जडपणुं (द.उज्जड) उछंग जुओ उच्छंग उजाडो जुओ लोक उजाडो उछंग गुर्जरा. होश, उमंग, उमळको उजाणी, ऊजाणी आरारा. नरका.*नलाख्या. [सं.उत्संग] ___ *नेमिछं. धसमसी, दोडी, चाली नीकळी उछंगल जुओ उछंकल (सं.उद्+या); जुओ उजाणउ उछाह, उछाहो जुओ उच्छाह उजाती नरका. * नरप. दोडती (सं.उद्या ) उछाइ प्रधुचु. उत्साहथी उजेणी दशस्क(१). उजाणी [सं.उद्यानिका] उछांइयो अखेगी. ओछायो [सं.अपच्छाया] उजेणी, ऊजेणी कस्तुवा. गुर्जरा. उज्जयिनी उछांग अखाका. उछाळो, पिरस्करण. उजेशकार प्रेमाका. [उजाश, ऊजळू काम] विस्तरण] [*दे.उच्छंगिय] उछलो गुर्जरा. ऊजळो (सं.उज्ज्वल) उछेद चित्तसं. दर करवं ते. नाश उखाणउ प्राचीसं. दोडतो (सं.उद्+या); उछेरइ जिनरा. रमाडे, लालन करे] जुओ उजाणी उछेरडउ नलरा. वधारे प्रमाणमां ओळु उजिल तेरका. गिरनार (सं.ऊर्जयंत परथी) (प्रा.उच्छ) [सं. ओच्छ] उछित तेरका. गिरनार (सं.ऊर्जयंत) उजम, उजम, ऊजम अंबरा. उपबा. कर्पमं. उनोइउ ऐतिका. प्रकाशित कर्यु [सं. उद्यम, प्रयत्न; कामा(त्रि). कामा(शा). उद्योतित प्रेमाका. हरिख्या. उमंग, उत्साह उज्जोय जिनरा. उद्योत, [नामकर्मनो एक उजमदार प्रेमाका. उद्यम करनार, [श्रम प्रकार, जेना उदयथीजीव-शरीर शीतल करनार, कामवाळो] प्रकाश आपे] [जै.]; जुओ वुज्जेय] उजल नंदब. उज्ज्वल उखोयकरु षष्टिप. प्रकाश करनार (सं. उजवालण ऐतिका. अजवाळनार (सं.उज्ज्वल उद्योतकर) परथी) .. उझल प्रधुचु. ओझल, पडदो, बुरखो उजम जुओ उजम उभेडो प्रेमाका. उझरडी नाखो उजाइ, ऊजाइ अखाका. अभिऊ. अंगवि. उझित जिनरा. [शुष्क, लूखं दि.उज्झिअ] अंबरा. उक्तिर. कर्पूमं. कादं(ध). उट सिंहा(शा). ओट [सं.अवघट्ट] उयम, प्रयत्न या. उमंग, उत्साह श्रम प्रकार आप] [ज.]; 2010_03 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उट्ठीय गुर्जरा. ऊठी, [(आग) लागी] (सं. उत्थित) उठंभ उपबा. आधार, टेको [ सं . उपष्टम्भ ]; जुओ ओठभ उठां मेली जुओ ठांमेली उठींगणि, उठ्ठीगणि लावल. विमप्र. ओठींगणे, अढेलवा माटे उठ्ठवणी, ऊठवणी * गुर्जरा. * विमप्र. [आक्रमण, हल्लो] (सं.उत्थापनिका) [रा.]; जुओ ऊटवणिय उगणि जुओ उठींगणि उडगण चित्तसं. उडुगण, ताराओनो समूह उणम सिंहा (शा). खामी (सं. ऊन+म) उणमण सिंहा (शा). खामी उडद विक्रच. अडद [.] उडपति चित्तसं. उडुपति, ताराओनो राजा, चंद्र उडल सिंहा (शा). बाथ; जुओ उंडल उडवउं अंबरा. ऋषिरा. गुर्जरा. पर्णशाला, झुंपडुं (सं. उटज) ५९ उडवुं, उढवुं ऐतिरा. सिंहा (म). सिंहा (शा). ओडवुं, आगळ धरयुं, मागवा माटे हाथ लंबाववो; नलाख्या. ओडवुं, होडमां मूकवुं (दे. हुड); जुओ ओडइ • उडीस, उडीसउ नलरा. वीसरा. ओरिस्सा (सं. ओड्रदेश) उट्ठीय/ उत्तराणम् उ नलरा. वर्तमान ओरिस्सा प्रान्तनो प्रदेश [सं. ओड्र] उढण प्राचीसं. परिधान, [पहेरवेश] उढणउं, ऊम्यूं आरारा. उपबा. उषाह कादं (शा). विमप्र. ओढणुं, [ओढवानुं वस्त्र] (द.ओढण) उडुकारकरणु षडाबा. ओडकार खावो ते उडुगण नरका. तारा [सं.] * उडु [उदु] "विमप्र. [उदय हो]; जुओ उदो उड्डमर प्राचीसं. उग्र भय, [विप्लव वगेरेनी स्थिति] [सं. उत् + डमर ] 2010_03 उबुं जुओ उडवुं उब्वुं, ऊब्बुं उपबा. उषाह. कादं (शा). विमप्र. ओढनुं उण ऐतिका. पंचवा. वीसरा. ए (सं. एन परथी) उणहार वीसरा. मुखाकृति, [ अणसार] (सं. अनुहार ) (रा.) उणि, उणी आरारा. पंचवा. ए (स्त्री) (सं. एन परथी) उतई गुर्जरा. आ बाजु, आम उतपत देवरा. उत्पत्ति उतपति गुर्जरा. उत्पत्ति, जन्म उतलीबल प्रद्युचु. अतलीबल, अतुल्य बळ वाळो उतापड़ शृंगामं. संतापे [ सं . उत्तापयति ] उत्कडु * षडाबा. [ उभडक, लपाईने] (सं. उत्कटुक); जुओ उकडच्छी, ऊकडू उत्तर- उत्तर आरारा. एक पछी एक, क्रमश: (सं.) उत्तरगोग्रह * गुर्जरा. [उत्तर दिशामां गायोने वाळी जवानी प्रसंग] (सं.) *उत्तराणम् उक्तिर. ऋणमुक्त; जुओ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरासण/उदीपक ६० . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ऊतरिण्यु उदपात चंद्रवा. उत्पात उत्तरासण आनंस्त. नलरा. उत्तरासंग, वंदन उदभीज दशस्क(१). उद्भिज्ज, वनस्पति करती वखते उत्तरीय वस्त्रने शरीर उपर उदभुत नलरा. अद्भुत; जुओ उद्भुत अमुक रीते राखq ते [जै.] उदमाद दशस्कं(१). प्रेमाका. उधपात, उत्तरी, उत्तरीब ऋषिरा. कादं(शा). उपर तोफान-मस्ती ओढवानुवस्त्र,पछेडी,खेस (सं.उत्तरीय) उदयो, उदियो, ऊदीओ दशस्कं(१). उतंग आरारा. ऊंची कोटिनु, मोटुं आरारा. प्रेमाका. मदमो. उदित थयो, ऊग्यो ऐतिका. उत्तुंग, ऊंचुं उदवस, उदवस्त दशस्क(१). सिंहा(शा). *उत्तंभ, [स्तंम] ऋषिरा. "चेन न पडवू, उजड (सं.उद्ध्वस्त) खिन्न, उद्विग्न [प्रा.उत्तम्म] उदंत आरारा. ऋषिरा. समाचार, वृत्तांत उत्तीरण हरिख्या. पार ऊतरेलं. मुक्त थयेलं (स.; रा.) (सं.उत्तीणी ° उदंप, ऊदंप वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. उत्यपिय, उथप्पिय ऐतिका. उथापी [सं. वसंवि(ब्रा). गर्विष्ठ, हर्षाविष्ट, मदमत्त उत्स्था -] (सं.उद्दृप्त) उत्पत्य प्रेमाका. उत्पत्ति उदार आरारा. विशाळ (सं.) उदारथ, उदारय सिंहा(म). उदारता (सं. उत्पात चित्तसं. मुश्केली औदाय) उत्सूत्राविधि ऐतिकर. उत्सूत्र [सूत्रविरुद्ध] , उदालइ, ऊदालइ अखाछ. अंबरा. आरारा. तथा अविधि विधिविरुद्ध गुर्जरा. नरका. प्रद्युचु. प्राचीफा. ललिरा. *उवउ [उपन] "उपबा. [ओघो, जैन विराप. झूटवे, छीनवे, बलात्कारे पडावी साधुनुं रजोहरण] [सं.उपग्रह] ले, खेंची ले (दे.उद्दाल); जुओ ओदाली उपप्पिय जुओ उत्थपिय उदास चित्तसं. उदासीन, तटस्थ उचल पाए मदमो. ऊथली पडे [सं.उत्थल्] उदासन षष्टिप्र. तटस्थ (सं.उदासीन) उचाप अखाछ. उथापq ते [सं.उत्स्थाप] उदाहरणतु वाग्भबा. उदाहरण आपतां उवापतां चंद्रवा. [अवगणतां, टाळतां] उदाहरी षडाबा. उदाहरण आप्यु (सं.उदाह) उदइ आरारा. उदय; गुर्जरा. ०षडाबा. उदियो जुओ उदयो उदयमां, उदये उदी, ऊदी कामा(त्रि). कामा(शा). आछा उदक, ओक्क कामा(शा). पाणी [सं.] वादळी रंगनी [फा.ऊदू] उदक दशरक(१). (आवेशथी) ऊछळवू, उदीओ जुओ उदयो [सफाळा ऊमा थq, चोंकी ऊठQ]; उदीपक, ऊदीपक वसंफा. वसंफा(ल). जुओ उघडकवू __ वसंवि(ब्रा). अजवाळतो (सं.उद्दीपक) ___ 2010_03 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१ . उदीरनै/उधाऱ्या उदीरनै जिनरा. प्रयत्नपूर्वक निपजावीने उद्यम आरारा. नलाख्या. ऊजम, खंत, उदीसइ शृंगामं. उदय थशे, ऊगशे [सं. उत्साह, उमंग [सं.] उदिश्यति] उद्यमइ उक्तिर. उद्यम करे उनु जुओ उडुय उद्यमभरे आरारा. प्रयलपूर्वक उदुंबर हरिख्या. उमरडानुं झाड (सं.) उबस कादं(शा). उज्जड, नष्ट (सं.); जुओ उदे अखाका. देवरा. नरका. प्रेमाका. उदय ऊवस, उध्वस उद्वेग, ऊवेग आरारा. उपबा. ऐतिका. उद्वेग *उबसी उद्धसी] गुर्जरा. (रूवाडां) ऊभां उदेगइ उक्तिर. उद्वेग पामे, दुःखी थाय थई गयां (सं.उद्+हर्षित) उदेगामणउं, ऊगामणउं उक्तिर. उद्वेग- उबस्त हरिख्या. उज्जड [सं.उद्ध्वस्त] जनक उघडकवू नरका. प्रेमाका. चोंकी ऊठवू, उदेही, ऊदेही उक्तिर. षडाबा. ऊधई [द. [आवेशथी ऊछळवू]; जुओ उदक, उद्देही उधरकवू उदो उदो आरारा. उदय हो, जय हो; उधन नेमिछं. ओधान, गर्भधारण जुओ उदु उधमाद प्रेमाका. उन्माद, धमपछाडा उद्गता ऐतिका. उदित थतो, ऊगतो उधस्कवू, उधक, ऊधरकQ उक्तिर. उहिसी षडाबा. उद्देशीने दशस्क(१). नरका. प्रेमाका. धडक, उद्धरड प्रेमाका. उद्धार करे. [ऊंचे लई (आवेशथी) ऊछळवू, जुओ उधडकवू जाय, तारे]; तेरका. उद्धार करे, समरावे उधरी * लावल. [उतारवामां आवे, लखवाउद्धरियलि प्राचीसं. उद्धार कर्यो, [तार्या] मां आवे] (सं.उद्धृत) उधरूं लावल. उद्धारुं उद्धसइ, ऊद्धसइ, ऊधसइ विराप. शृंगामं. उघसई कृष्णच. झडपथी धसे; जुओ षडाबा. (रूंवाडा) ऊभां थाय (सं.उद्+ उद्धसइ हर्षति); *गुर्जरा. [रोमांचित थाय, उधाण, ऊधाण, ऊधाणह अखाका. उल्लास पामे]; जुओ उधसई, ऊध्रसइ ऋषिरा. दशस्कं(१). प्रेमाका. विमप्र. उद्धसी जुओ उद्वसी समुद्रनी मोटी भरती . उद्धसिवा गुर्जरा. नाश करवा (सं.उद्ध्वस्) उधाणी नरका. उधाण - मोटी भरती उद्भिज, उद्भीज अखेगी. प्रेमाका. पामी, [वृद्धि पामी] वनस्पति [सं.] उधार उक्तिर. उद्धार, [उगार, बचाव] उद्भुत, उद्भत नलरा. नेमिछं. शृंगामं. उधार, ऊधातुं आरारा. वीसरा. उद्धारवं, अद्भुत; जुओ उदभुत बचावq हषाला. (संवाडा) ऊमा थाय मि.ग्राम. उधसई कृष्णच. 2010_03 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उधारो/उपविशा ६२ . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उधारो प्रेमाका. उधार, बाकी, मुलतवी उपइ, ऊपइ उषाह. ऐतरा. कर्पूमं. नेमिछं. राखq ए, [विलंब]; प्रेमप. ओछप, ओपे, शोभे, दि.ओप्प] [खोट] उपकरइ, उपगरइ उक्तिर. उपकार करे उधि गुर्जरा. अवधि, सीमा; जुओ ओधि (सं.उपकरोति) उधेला [ उघेला] ऐतिरा. खर्च, [उछाळ, उपकंठ अखाका. कामा(शा). प्रेमाका. ते, वापरतुं ते]; जुओ ऊघलq किनारो [सं.] उनकबुं जुओ उधरक उपकीर्ति प्रेमाका. अपकीर्ति उम्पन्भूय शृंगामं. ऊंचा हाथ राखीने (सं. उपखाणा नरप. उखाणां, [कहेवत] (सं. उर्वभुज) उपाख्यान) उपस, उध्वस्त दशस्क(१). प्रेमाका. उज्जड उपगरइ जुओ उपकरइ [सं.उद्ध्वस्त]; जुओ उद्वस, उद्वस्त उपगरण आरारा. *उपबा. देवरा. साधन उनइओ शंगाम. आकाशमां झळंबी रहेलो (सं.उपकरण) [सं.उन्नत] उपगार आरारा. उपबा. गुर्जरा. नलरा. उनपचासं नरका. ओगणपचास [सं.एकोन- प्राचीफा. उपकार पंचास] उपधात कामा(त्रि). कामा(शा). ईजा, हानि उनमे, ऊनमे प्रेमाका. ऊमटे, [ऊंचे चडे] (सं.) [सं.उन्नमति]; जुओ ऊनविउ उपचईई उक्तिर. उपचय पामे, वृद्धि पामे उनमेख शृंगामं. आंखनो पलकारो (सं. (सं.उपचीयते) उन्मेष) उपचार अभिउ. आचार, रीत, व्यवहार] . उन्नयउं, ऊनयउ, ऊअयउ अंगवि. आरारा. . (सं.) ऋषिरा. प्राचीफा. स्थूलिफा. उन्नत, ऊंचे उपची जुओ उपवी रहेलो, ऊंचे चढी आवेलो, उपर छवायेलो उपजण्य चित्तसं. उत्पन्न थयेलु तत्त्व उन्मनी नरका. योगीना चित्तनी अंतिम उपतृष्ट्यो अखाका. [तृष्णाविहीन थयेलो] अवस्था, [मननी पारनी अवस्था] [सं.अप+तृष्ट उन्माद दशस्क(२). उत्पात, तोफान उपतृष्णा चित्तसं. तृष्णा विना (सं.अपतृष्ण) उन्मारग, उन्मार्ग उपबा. प्रेमाका. खोटो उपतेज चित्तसं.अपतेज, तेजहीनता, अंधारूं के अवळो मार्ग उपविशइ, उपदिसइ उपबा. ऐतिका. उन्मूलइ उक्तिर. उन्मूलन करे, उखेडी नाखे षडाबा. उपदेश आपे उन्हालडइ लावल. उनाळामां [सं.उष्णकाल] उपविशा नलरा. खराब दशा, अवदशा उप गुर्जरा. पाणी (सं.अपस्) (सं.अपदशा) 2010_03 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६३ उपदिसइ/उपशमावइ उपदिसइ जुओ उपदिशइ उपरवट्ट प्राचीसं. अधिक, [चडियातो] उपदेश * नरका. [चिह्न, ठेकाणुं] [सं. उपरवाड, ऊपरवाड नरका. षडाबा. गामनी अपदेश नजीकनो [बहारनो] भाग; जिनरा. उपधान ऐतिका.तपविशेष, [जेमां नियमानु- उपरनो मार्ग, [उपरनो भाग – प्रदेश] सार उपवास अने एकासणां करवानां उपराजन शृंगाम. उपार्जन, [प्राप्ति होय छे] [जै.] उपराजइ, ऊपराजइ ऋषिरा. दशस्कं(). उपनऊ, उपनळ, ऊपन्युं अखाका. आनंस्त. सिंहा(शा). उपार्जन करे, प्राप्त करे, आरारा. उक्तिर. उपबा. कादं(शा). कमाय गुर्जरा. चित्तसं. दशस्कं(१). देवरा. उपराठउ, ऊपराठउ उक्तिर. गुर्जरा. विराप. नरका. नलाख्या. नेमिछं. प्रेमाका. पराङ्मुख, अवढं, पीठ करीने; उपबा. शृंगामं. षडाबा. उत्पन्न थयुं, उत्पन्न थयेनुं विमुख, ऊलटुं, विरुद्ध] उपनय आनंस्त. *वस्तुनो उपसंहार करीने उपरि, ऊपरि उक्तिर. उपबा. कादं(शा). __ कहे, ते, [दृष्टांतना अर्थने प्रस्तुत वात तेरका. नेमिछं. उपर (सं.); वीसरा. साथे जोडवो ते] [सं.] उपरनु गुर्जरा. पंडाबा. उपर, [तरफ] उपनले ऐतिका. उत्पन्न थया उपरि ठाइ उक्तिर. उपर रहेतुं (सं.उपरि उपम, उपमा, ऊपम उपबा. गुर्जरा. उपमा; स्थायी) वसंफा. सरखं होवू ते [सं.औपम्य]; उपरियामणुं उक्तिर. व्याकुळता, खेद; जुओ *उपबा. हरिख्या. वडाई, [महिमा, उफरियामणु गौरव]; नरका. [शोभा]; जुओ ओपम उपरेण वेताप. उपरनुपाथरपुं, ओछाड [सर. उपम जाइ वसंवि. उपमा आपी शकाय, उपरणं] [सरखावी शकाय] उपरोध *गुर्जरा. [आग्रह, अनुरोध] (सं.) उपमा जुओ उपम उपलभी षडाबा. प्राप्त करी उपमाण तेरका. उपमान उपवाव, ऊपवाद कामा(त्रि). कामा(शा). उपमानतुं कृष्णबा. अपमान, सिंहा(म). निंदा (सं.अपवाद) उपमांन सिंहा(शा). अपमान *उपवी [ उपची] *रूपच. [पुष्ट करी, उपरछखें अखाका. उपरउपर, [बाह्य]; एकत्र करी, पिंड रूपे बांधी]; जुओ अखाछ. उपर थईने, [-थी उपर, उपचई उपरवट - उपशम उपबा. शांत थर्बु ते, शमन (सं.); उपरणा प्रेमाका. खेस ऐतिका. [कषायादि] शांत थवा ते, उपरम *कादं(शा). [मृत्यु (सं.) [इन्द्रियनिग्रह, वैराग्य] [जै.] [सं.] उपरमिउ षडाबा. विलीन थयो [सं.उपरम्] उपशमावइ उपबा. शांत करे, शमन करे ___ 2010_03 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपशमि/उफरूं मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उपशमिउं षडाबा. उपशम पाम्, शांत उखाडी (सं.उत्पाट); गुर्जरा. विराप. थयु, [नष्ट थयु] उगामी उपशहीअर प्राचीका. संकेली ले, (सं. उपाध्यायांस उक्तिर. उपाध्यायवर (सं. उपसंहर) उपाध्यायमिश्राः) उपसमण ऐतिका. उपशमन, [कषायो, उपान, उपानह आनंस्त. कादं(शा). शमन] [जै.] प्रेमाका. जोडां, पगरखां उपसमवासी ऋषिरा. कषायोने शांत करनार उपायउं, ऊपायु .अखाका. अखाछ. आरारा. कादं(धु). कादं(शा). प्रद्युचु. उपसमी आरारा. उपशमी, शांत थई, दूर प्रगट्युः उत्पन्न कर्यु, उपजाव्युं (सं. उत्पादित), उपसर्ग उपबा. नलरा. विघ्न, अंतराय (खास उपायनां षष्टिप्र. मानता, आखडी (सं. करीने तपश्चर्यामा) (सं.) [जै.] उपायन) उपसंहरतउ षडाबा. पूरुं करतो उपारजइ, उपार्जई उक्तिर. प्रेमाका. षडाबा. उपस्ती प्रेमाका. सेवक, अनुचर [सं.उपस्ति उपार्जन करे, मेळवे के उपास्ति]; जुओ उवस्ती उपासी जुओ कुंभकर्णना उपासी उपस्थगुह्य आनंस्त. लिंग, जननेंद्रिय] [सं.] उपांगे प्रेमाका. उपाये उपहरूं, ऊपहरउं, ऊपहिरु सिंहा(म). उपोषितु षडाबा. उपवासी (सं.उपोषित) उपर; उषाह.-थी उपर, [ऊंचे]; उपबा. उप्पलु ऐतिका. उत्पल, कमल -थी उपरांतन, [-ना सिवाय]; विमप्र. उफराटं. उफराळ, ऊफराटुं, ऊफरंटुं षडाबा. उपरांतनु, [वधु समय के दशस्क(१). प्रेमाका. ऊंचुं करेलु, अंतर-]; * षष्टिप्र. [-थी उपरवट, -थी उलाळेलु; *कादं(शा). *नलाख्या. आगळ जईने]; जुओ उफरूं *प्रबोप्र. *प्रेमाका. [पराङ्मुख, अवछं, उपंग कादं(शा). दशस्कं(१). दशस्कं(२). पीठ फेरवेलुं]; शृंगामं. सिंहा(शा). प्रेमाका. एक प्रकारचें वाद्य अवळु, [प्रतिकूळ]; शृंगाम. आडु, उपाइ गुर्जरा. प्रबोप्र. उपाय; विराप. अवळ, [ऊलटी दिशामां]; [अवळो *उपाये, [कारणे] भाग, पूंछडु] उपाइ, ऊपाइ ऐतिरा. ऋषिरा. गुर्जरा. उफळं, ऊफरूं कादं(शा). ऊंचु, [ऊंचुं कादं(धु). नलाख्या. उपजावे, उत्पन्न करेलुं]; अखाका. उपर, [उपरवट, पर]; करे (सं.उत्+पद्) अलग [थईने]; चित्तसं.उपरवट, अलग; उपाउ उषाह.उपाय; गुर्जरा.उपाय; कारण] कर्पू, [उपरांत], विशेष; कामा(त्रि). उपाडी, ऊपाडी गुर्जरा. हरिवि. उखेडी, दशस्कं(१). दशस्कं(२). नलरा. प्रेमाका. 2010_03 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उपरवट, ऊंचुं, चडियातुं जुओ उपहरूं उबकी प्रचु. ऊलटीथी [ सं . *उब्बक्क] उबटणुं, ऊवटणउ उक्तिर. नरप (द). खुशबोदार मर्दन, अंगलेप ( सं . उद्वर्तन) उबरन ऐतिका. ऊंबरानुं वृक्ष (सं. उदुम्बर) उबाड, उंबाडु, ऊंबाडु गुर्जरा. वडाबा. उंबाडियुं, सळगतुं लाकडुं ("दे. उम्माडिय); जुओ उमाड उबारी * नरका. [ऊभराती, छलकाती, आवेशभरी ] उबार्या नरका. उभरायेलां, [आवेशभ] उबीठउ, उबीठउ, ऊबीठ, ऊबीठलं आरारा. अरुचिवाळो, अनुराग वगरनो (सं.उद्+द्विष्); नेमिछं. * प्राचीफा. * वसंफा (ल). वसंवि. षडाबा. अरुचिभर्यु, अकारुं, अणगमतुं; जुओ ऊभीठउ उन्भ- प्राचीसं. ऊभुं करवुं (सं. ऊर्ध्व); जुओ ऊभइ उभगइ, ऊभगइ ऐतिका. जिनरा. शृंगामं. उद्विग्न थाय, निर्वेद अनुभवे, अरुचि थाय (सं. उद्भग्न); जुओ उभाजणी उभजइ, ऊभजइ * ऋषिरा. शृंगामं. उद्वेग करे, [अरुचि अनुभवे, कंटाळे] (सं.उद् + भंज); जुओ ओभजउं उभाखरु * विमप्र. [भटकतो] [रा. ] उभाजणी जुओ गुभाजणी ६५ उभात अखाछ. भात मटी जवी ते, [भात छाप विनानी स्थिति]; जुओ ऊभति - उभे प्रेमाका. उभय, बे 2010_03 अमकइ उमगवुं, ऊमगवुं नरका. [ उत्साहथी ] ऊछळवु; नरका. नरप. ऊभरावुं, ऊलटवुं (सं. उन्मग्न); अखाका. * ऊभरावुं, [उल्लसवुं]; चित्तसं. प्रसरी रहेवुं, स्फुरी रहेवुं, फेलावुं उमग्गु षष्टिप्र. आडो मार्ग, [खोटो मार्ग ] (सं. उन्मार्ग) उमता हम्मीप्र. उन्मत्त उमाइ देवरा. उमंगथी [द. उम्माहिअ ] उमागि प्राचीसं. उन्मार्गे उबकी / उम्माहियउ उमाड उक्तिर. उंबाडियं [द. उम्माडिय]; जुओ उबाड उमाह- वीसरा. ऊभरांवुं, विकस, फेला ( रा. उमहणी); प्राचीफा. उत्साहित थj; जुओ उम्माहियउ उमाह, उमाहउ, उमाहलउ, ऊमाह, ऊमाहउ, ऊमाहलउ अंबरा. आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. ऐतिरा. नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. वीसरा. शृंगामं. उमंग, उत्साह, होंश (दे. उम्माह) उमाहलुं प्रद्युचु. आतुर, उत्सुक (सं. उन्माथ, प्रा. उम्माह) गुर्जरा. गरम थईने, तपीने (सं. ऊष्माइत ) उमी उमेहि आरारा. उमंगथी, उत्साहथी, इच्छाथी (दै.उम्माहिअ ) उमकु षडाबा. अमुक (सं. अमुक); जुओ उम्माहियउ, ऊमाहिउ * गुर्जरा. तेरका. उमेल * कृष्णबा. [ उखेडी नाखे]; * गुर्जरा. [प्रकाशमान थाय, उल्लसे] (सं. उन्मील् परथी); जुओ ऊमेल्यां Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्मूलिय/उलट मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उअर नलाख्या. प्राचीसं. विराप. उत्कंठित, आम; आरारा. आपणी पासे, पार्छ [उत्साहसभर, आनंदपूर्ण] (सं. जुओ अरहु, उहरउं, ओरहुउं उन्माथित); जुओ उमाह उहभरि उषाह. छाती वडे, छातीभेर [सं. उम्मूलिय, उम्मूलेवि कृष्णच. ऐतिका. उरस्] उन्मूलित करी, उखेडी उरहां परहां जुओ परहां उयर जुओ उअर उरंगी शृंगाम. नागिणी [सं.] उयारउ षडाबा. ओवारो (सं.अवतारक) उरा प्रद्युचु. ओरडा, कोठडी (सं.अपवरक); उयारि आरारा. उतारी ? पार उतारी? जुओ ओरि । उर (वरि) वसंवि. उदर (उपरनी); जुओ उराउर प्रेमाका. सामी छातीए उरि लादल. उदरमां; जुओ उअर उरग तेरका. प्रेमाका. नाग [सं.] उरि वीसरा. छाती (सं.उरस्) उज अखाका का(शा) नरका प्रेमाका उरि, उरै जिनरा. *रूपच. अही, |आ। स्तन (सं.उरोज) बाजु [रा.]; जुओ ओरइ उरख्यां नरप. अलज्यां आतर थयां: जओ उलखइ, ऊलखइ, ऊळखइ आभऊ. अलज्यउ आनंस्त. आरारा. उपबा. उषाह. उरडउ अंबरा. नेमिछं. प्राचीफा. शृंगाम. कादं(शा). नलरा. नलाख्या. प्रबोप्र. ओरडो (सं.अपवरक) वीसरा. शृंगाम. षष्टिप्र. ओळखे (सं. उपलक्षति) उरणी (परणी-उरणी) वीसरा. निरर्थ प्रतिध्वनि शब्द, [परणी करीने उलग, ऊलग अंबरा. नंदब. सेवक, दास; अंबरा. उषाह. कर्पूमं. गुर्जरा. प्राचीफा. उरतउ, ऊरतु कर्पूम.कस्तुवा. गुर्जरा. विमप्र. विमप्र. सिंहा(शा). हम्मीप्र. ओळग, विराप. शृंगामं. ओरतो, अभिलाष सेवा, चाकरी; वीसरा. परदेशमां (सं.आतुरत्वम्) राजसेवा (दे.ओलग्गा) (क.ऊळिग); उरथ, ऊरघ कादं(शा). दशस्कं(२). नलरा. जओ ओलग ऊर्ध्व, ऊंचं, ऊंचे उलगइ, ऊलगइ नलरा. लावल. हम्मीप्र. उरलिउं उक्तिर.ओलु, पिलुं] [प्रा.अवरिल्ल] सेवा करे; वीसरा. परदेशमा राजसेवा उरवा नरका. छानी स्तन] करे; जुओ ओलगइ उरवसी, उरवंशी नेमिछ. वेताप. उर्वशी, उलगाण, उळगाण जिनरा. सेवक; वीसरा. ए नामनी अप्सरा परदेशी राजसेवक; जुओ ओलगाणउ उरहउँ उक्तिर. षडाबा. अहीं, आ बाजु, उलझण अखाका. गूंच, [मूझवण, मुश्केली] पासे; आरारा. *उपबा. आ तरफ, उलट, उल्लट, ऊलट अभिऊ. ऋषिरा. 2010_03 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६७ उलट-भाव/उल्लाद ऐतिका. कादं(शा). गुर्जरा. तेरका. उलंभउ, ऊलंभु अभिऊ. अंबरा. आरारा. जिनरा. नरका. नलाख्या. प्राचीसं. कादं(शा). जिनरा. नलरा. प्राचीफा. प्रेमाका. लावल. विमप्र. उत्साह, होंश, शृंगाम. उपालंभ, ठपको, कहेणी, उमंग (द.उल्लट्ट) [महेणुं]; जुओ उलभउ, ओलंभउ । उलट-भाव देवरा. उल्लास - उमंगनो भाव उलंभडउ, ऊलंभाउ वीसरा. शृंगाम. उलपट वीसरा. *छाती पर राखवानुं वस्त्र, ठपको, महेणुं (सं.उपालंभ) [एक वस्त्रप्रकार उलाण नलाख्या. ओलाण, शांति उलपति अंबरा. गुप्तता, [छुपावतुं ते] [सं. दि.ओल्हव) अप+लप्] उलाव, उल्लाद मदमो. वेताप. सिंहा(शा). उलभउ आरारा. ओलंभो, ठपको, टीका आह्लाद, उल्लास (सं.उपालंभ); जुओ उलंभउ उलालो, उलाळो, उल्लाळ अखाका. अखेगी. उललियै, ऊललियइ जिनरा. ऊधुं पडी उछाळो, उदय, [उल्लसतुं प्रगट थएँ] जाय, [ऊलाळ ले, पाछळ ढळी जाय] उलावी अभिऊ. अवलंबन आपी [सं.उल्ललयति]; उक्तिर. उलाळे (सं. उलास, ओलाश, ओहोलाश कामा(शा). उल्लालयति) उल्लास उलवइ, ऊलवइ उपबा. नलरा. ओळवे, उलि, उली ऐतिरा. नेमिछं. विमप्र. हम्मीप्र. पचावी पाडे; अंबरा. सिंहा(म). छुपावे, हार, पंक्ति [सं.आवलि]; जुओ ओल, संताडे, आनंस्त. उपबा. लोप करे, द्रोह ओली करे (सं.अपलपति); जुओ ओलवइ उलिइ षष्टिप्र. पेलामां, ओल्यामां उलविवापूर्वक वाग्भबा. अपह्नुतिपूर्वक, उलिउं *षडाबा. (पली तरफ] [प्रा. ढांकवा साथे अवरिल्ल]; जुओ ओलिउं उली हरिवि. संताई, [छेतरी] उलूरइ उक्तिर. तूटे [प्रा.] उलवे, ऊलवे प्राचीका. *गुप्त स्थानमां, उलोच गूर्जरा. चंदरवो (सं.उल्लोच) [आडशमां, पडछे]; वेताप. ओळवेथी, उल्लट जुओ उलट [आडशमाथी, गुप्त रीते, संताईने] [सं.. उल्लसइ शृंगामं. उल्लास पामे; तेरका. शोभे; अपलप्]; जुओ ओलवे दिदीप्यमान बने, विस्तीर्ण बने]; उलश-बालस वेताप. आकळविकळ, ऊंची- षडाबा. प्रकाशित थाय, प्रगट थाय; नीचो गुर्जरा. प्रकाशे [शोभे]; चित्तसं. चाले, उलसतइ जिनरा. प्रकाशित थतां गति करे, प्रवृत्त थाय, प्रगटे उलंच, ऊलंच कादं(धु). कादं(शा). चंदरवो उल्लसे चित्तसं. उल्लासथी, प्रगटीकरणथी (सं.उल्लोच) उल्लाद जुओ उलाद 2010_03 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लाळ/उवास ६८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उल्लाळ जुओ उलालो उडु *शृंगाम. [अवछं, प्रतिकूळ]; जुओ उल्लावइ उक्तिर. मोटेथी पोकारे, बकवाद अवाडूउ करे (सं.उल्लापयति) उवर प्राचीसं. उदर उल्लीचइ उक्तिर. उलेचे, खाली करे [सं. उवरि, ऊवरि तेरका. उपर, उपरवट (सं. ___उद्+रिच्] उपरि) उल्लोच ऋषिरा. चंदरवो (सं.) उवरे पंचवा. बचे, बाकी रहे (सं.उद्वरति); उल्लोय आरारा. चंदरवो (सं.उल्लोच) जुओ ऊवर्यउ उल्हव नलरा. प्रद्युचु. शृंगाम. ओलववं, उवलक्ख प्राचीसं. ओ ळखवु (सं .उपलक्ष् ) (द.उल्हव) [सं.उद्र परथी] । उवली *गुर्जरा. [पाछी फरी] (सं.उद्वलिता); उल्हारो *प्राचीसं. [ऊमटवू ते, छलका, जुओ ऊवलइ ते] [रा.] उपसग्ग ऐतिका. उपसर्ग, विघ्न उल्हावइ शृंगाम. ओलवे, [बुझावे] (प्रा. उवसम तेरका. उपशम, विराग्य] ओल्हव) उवसमघोडां चारफा. इन्द्रियनिग्रहरूपी घोडां उवइसइ जिनरा. उपदेश आपे (सं.उपशम+गु.घोडा) उवएस आरारा. उपकेश, ए नामनो गच्छ उवसंत जिनरा. उपशांत[मोह], [मोहनीय - साधुसमुदाय [जै.] कर्म ज्यां उपशांत – ढंकायेलां रहे छे उवएस आरारा. गुर्जरा. चारफा. तेरका. तेवी आत्मावस्था] [जै.] विक्ररा. उपदेश उवसिमिग जिनरा. औपशमिक, [उपशम उवघाइ जिनरा. उपघात, [नामकर्मनो एक पामेला, शांत थयेला प्रकार, जेना उदयथी शरीरना अवयवो- उवस्ती *प्रेमाका. [साथीदार, सहायक थी पीडा थाय] [जै.] [सं.उपस्ति, उपास्ति]; जुओ उपस्ती उक्झाय, उवझाय ऐतिका. नलरा. प्रद्युचु. उवा पंचवा. ए (स्त्री) (सं.एषा) प्राचीसं. उपाध्याय, जैन साधुनी एक उवाट अखाका. कृष्णबा. प्रेमाका. उन्मार्ग, पदवी अवळो मार्ग, आडो मार्ग (सं.उद्+वत्म) उवट, ऊवट उक्तिर. उपबा. जिनरा. नलरा. उवाणउ ठाण उक्तिर. चूलो (सं.उद्वानं प्रद्युचु. प्राचीका. प्राचीफा. *सम्यचो. स्थानम्) आडो रस्तो, अवळो रस्तो, खोटो रस्तो उवारणइ आरारा. ओवारणे, सामानुं दुःख (सं.उद्वत्म); जुओ ऊवट्टहं लई लेवा माटे थती विधिमां [सं. उवठाणसाल *देवरा. [सभामंडप, विश्राम- अपवारण] मंडप] [सं.उपस्थानशाला] उवारु शृंगामं. उगारो, बचाव 2010_03 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उवास/उसीकल उवास प्राचीसं. उपवास (सं.अप+स); सिंहा(शा). -थी दूर उवीठउ जुओ उबीठउ भागवू, शरमाईं अखाछ. *अंबरा. उवीली कादं(ध). यज्ञनुं कोई पात्र के साधन, ओसरे, पूरुं थाय; जुओ ओसरे [यज्ञनुं एक साधन, मंथन-दंडनो उपलो उसर्या वेताप. 'रोया', 'रड्या' के 'मुआ' भाग जेमां घूमे ते] [सं.ओवीली उवेख जिनरा. उपेक्षा; चित्तसं. उपेक्षा, उसवि आरारा. ऊंची धरीने (अप.ऊसविय) इन्कार उससइ, ऊससइ उक्तिर. नलरा. खीले, उवेखे ऐतिरा. [उखेवे], पार्छ हठावे, विकास पामे (सं.उत्+श्वस्) [प्रा.]; [फेंके]; दशस्क(२). "नरका. प्रेमाका. *गुर्जरा. *वीसरा. [आवेश अनुभवे, उछाळे, प्रसरावे (सं.उद्+क्षिप); जओ उल्लसे, उमंगथी ऊछळे] उखेवे उसह षडाबा. औषधि उशंकल, उसंकल, ओशंकल, ओशिंकळ उसंकल जुओ उशंकल *कस्तुवा. *वेताप. [ऋणमुक्त; बदलो उसंख- नलरा. संकोच पामवो, ओशंकावू वाळवो ते]; उपबा. सिंहा(शा). ऋण (सं.उत्+शंक) चूकवेल, ऋणमुक्त (सं.उत्+शृंखल); उसाई लावल. ओसावीने [सं.अवना] जुओ गुणउसंकल, उसीकल, ओशिंगळ उसारण अखाछ. उसरडी लेवू ते, ओसरवू उशीर कादं(शा). सुगंधी वाळो (सं.) ते [सं.उत्+सार, उषधि प्राचीका. दवा (सं.औषधि) उसास, ऊसास उपबा. श्वास लेवो ते; उषर, ऊषर अखाका. प्रेमाका. खारवाळी गुजरा. षडाबा. उच्छ्वास; जिनरा. जमीन (सं.) उच्छ्वास, [एक नामकर्म, जेना उदयथी उष्ट्र अखाका. ऊंट. [सं.] श्वासोश्वासनी तकलीफ न थाय [जै.] उसनई उपबा. आचारभ्रष्ट साधुवर्गमां (सं. स. उसासे जुओ सासे उसासे उत्सन्न) [जै.] उसिणीस प्राचीसं. पाघडी, साफो, मुगट उसनापणउं उपबा. शिथिलाचारीपणुं [जै.] उसप्पिणि गुर्जरा. उत्सर्पिणी, उन्नतिकारक उसिरि कादं(शा). *-ने निमित्ते कालविभाग [जै. उसीआलु उक्तिर. [*ओशियाळू] (*सं. उसभ ऐतिका. ऋषभदेव . अस्पृष्टालयम्) [सं.अवशी परथी] उसर, ऊसर *अंबरा. उषाह. गुर्जरा. नृत्य उसीकल *नलरा. *सिंहा(म). [ऋणमुक्त, (*सं.अप्सरस् परथी) [सं.अवसर] बदलो वाळवो ते] [सं.उत्+शृंखल]; उसरइ, ऊसरइ प्रद्युचु. * शृंगामं. पाछा हठवू शृंगामं. *ऋणमुक्त, [(वचन) पाळवू माणसाशाजापा (स उशीष) 2010_03 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसीस/ऊखध ७० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ते]; जुओ उशंकल ___उंडल, उंडळ, ऊंडल, ऊंडळ अंगवि. उसीसउं, ऊसीस उक्तिर. प्राचीसं. वीसरा. कस्तुवा. दशस्क(२). नरका. प्रेमाका. ओशीकुं (सं.उच्छीर्षकम्) वेताप. बाथ, आलिंगन; जुओ उडल उसूर उक्तिर. प्राचीसं. असूरुं, मोडु (सं. उंण सिंहा(शा). अत्यारे (सं.अधुना) उंदिर, ऊंदिर उक्तिर. उपबा. षडाबा. उंदर उस्सासहि ऐतिका. आनंदित थाय, (सं.उन्दुर) उत्साहित थाय उंबर, ऊंबर आरारा(व). उक्तिर. उपबा. उहरउं, उहुरचं अभिऊ. उक्तिर. ओलं, तेरका. विक्रच. उंबरो, उमरो, एक वृक्ष अहीं, पासे; जुओ उरहठं (सं.उदुम्बर) उहना आरारा. एना उंबर-पाट शृंगाम. उंबराना लाकडानी पाट, उहलाइ, ऊहोलाइ नलाख्या. शंगाम. [(घरना) उंबरानो पट्टो] ओलवाय, बुझाय (द.ओल्हव) उंबरा चित्तसं. उंबराना वृक्षनां फळ उहलि(?) तेरका.? उंबरा, ऊंबरा ऐतिका. हम्मीप्र. उमराव उहां पंचवा. त्यां (सं.अमुष्मात्) उंबाड जुओ उबाड उहि गुर्जरा. त्यां उहुण गुर्जरा. ओण, आ वरसे (सं.अधुना) ऊअरसरि चारफा. उदररूपी सरोवर उहुरडं जुओ उहरउं ऊआरणउं नलरा. ओवारj [सं.अपवारण] उहाद नलाख्या. आह्लद, आनंद ऊआस प्राचीसं. उपवास • उहास नलाख्या. उल्लास, उमंग ऊकडू, ऊकूडउ उक्तिर. उभडक (सं. उंकार चंद्रवा. ओमकार उत्कुटुक); जुओ उत्कडु 'उंघांवता आरारा. ऊंघ आवतां ऊकदइ उक्तिर. ऊंचे कूदे, ऊछळे, उंछ शृंगाम. वीणी लीधेली वेरायेली वस्तु । (*सं.उत्कूदते) (सं.) ऊकलंबई गुर्जरा. जकडीने लटकावे, उंजइ उक्तिर. ऊंजे, तेल सींचे (सं. फांसीए लटकावे (प्रा.उक्कलंब-) उदंजयति) ऊकसइ जुओ उकसइ उंजणी नाखवी वैताप. मंत्र भणीने कपडं ऊकास अखेगी. अवकाश, खाली जग्या मोरपीछ, सावरणी इत्यादिना छेडाथी ऊकांटउ जुओ उकांटउ रोगने काढवानी क्रिया करवी ऊकुडउ जुओ ऊकडू उंझलं अभिऊ. आणुं (प्रास माटे 'ऊझj'र्नु ऊखडि आरारा. भार लाये (रा.उखणौ) 'उंझरुं'); जुआ ऊझणूं ऊखध जुओ उखध 2010_03 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ऊखल, ऊखळ, ऊखलउ उक्तिर. दशस्कं ( 9). नरका. प्राचीफा. प्रेमाका. षड़ाबा. खांडणियो (सं.उदूखलः) ऊखाणउ जुओ उखाणउ खेल जुओ उखेलइ खेवे जुओ उखेवे ऊगट जुओ उगट ऊगरतउ जुओ उगरतउ उगवियां कादं (शा). सुकव्यां ऊगाइ नलाख्या. प्राचीफा. सुकाय ऊगाह ऐतिका. लई जाओ, चढावो ऊघड जुओ ऊधड ७१ ऊगटइ आरारा. उक्तिर. कृष्णबा. * जिनरा. * अखाछ. अंगलेप करे (सं. उद्वर्तयति); [आगळ जाय, उपरवट थाय] [सं. ऊजमवंत उपबा. उद्यमवंत, प्रयत्नशील ऊजमाल उपबा. उद्यमशील उद्वर्तयति] ऊगटि जुओ उगट ऊघडदूघडउ उक्तिर.गूंचवायेलुं (*सं. उद्घटदुर्घटम्) [पं.अघडादुघडा] ऊघलबुं अखेगी. मर्यादा मूकवी, [छलकावुं]; *प्रेमाका. [विदाय थवुं] [सं. उद्घल्]; जुओ उघेला ऊचट- वीसरा. नष्ट थवुं (सं. उच्चटयते) ऊचल, ऊचळवुं जुओ उचलबुं ऊचाटइ उक्तिर. नाश करे (सं. उच्चाट्यति); जुओ उचाट्यो ऊचालडा शृंगाम. उचाळा [ सं . उच्चाल] ऊचेल जुओ उचेल ऊछउं जुओ उछ ऊछलइ जुओ उछलइ 2010_03 ऊखल / ऊटाटीयुं ऊछब जुओ उच्छव ऊछाह जुओ उच्छाह ऊजउ-उधारउ आरारा. उछीउधारुं ऊजड वाळवुं दशस्कं (9). पायमाल करवुं, ठेकाणे करी नाखवं [दे. उज्जड ] ऊजडे प्रेमाका. उज्जड थाय ऊजम जुओ उजम ऊजमणा आरारा. उजवणा, उत्सव (सं. उद्यापन) ऊजलि गुर्जरा. उर्जयंत गिरनार पर; ओ ऊजिल ऊजलिगिरि चारफा. ऊर्जयंत गिरि, गिरनार पर्वत - जाइ जुओ उजाइ ऊजाणां * नलाख्या. [धसमसतां, दोडतां] (सं.उद्+या) ऊजाणी जुओ उजाणी ऊजिल तेरका. प्राचीसं. ऊर्जयन्त गिरि, ऊजल गिरि, गिरनार; जुओ ऊजलि ऊजेणी जुओ उजेणी ऊझणूं अभिऊ. कन्याने सासरे विदाय करवी ते, आणुं (सं. उज्झन) ऊझरा देवरा. ऊछर्या ऊटवणिय * प्राचीसं. [आक्रमण, हुमलो ] [रा. ] ( सं . उत्थापनिका); जुओ उठ्ठवणी ऊटंटइ उक्तिर. [* उन्मुक्त बने, उन्मत्त बने] (*सं.उद्बन्धयति) [दे. उहेंट ] ऊटाटीयुं उक्तिर. [*मोटी उधरस] [*सं. उट्टीकनम् ] Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊठ/ऊधरक ७२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ऊठ अखाका. नरका. प्रेमाका. साडा त्रण ऊथड्या अखाछ. खोटे मार्गे टिचाता, [सं.अर्धचतुर्थ] [आथड्या] ऊठमण उपबा. [दीक्षानी] अंतिम विधि, ऊयानदशा चित्तसं. उन्नत दशा [वडी दीक्षा] [सं.उपस्थापना] ऊथापणी ऋषिरा. स्थानभ्रष्ट करवू, घर ऊठवणी जुओ उठ्वणी बहार काढी मूकवू ते (सं.उत्थापन) ऊड षडाबा. ओड, खोदकाम करनारी एक ऊदलइ उक्तिर. आंचके, झूटवी ले जाति दि.ओड्ड] ऊदंप जुओ उदंप ऊड उक्तिर. ओरिस्सा (सं.उड्) ऊवारिक आनंस्त. औदारिक, स्थूळ, ऊडण गुर्जरा. ढाल (द.अड्डण) [मनुष्य के तिर्यंचन] (शरीर) [जै.] ऊडण-पीपळी, ऊउन-पीपळी दशस्कं(१). ऊदालइ जुओ उदालइ प्रेमाका. एक बाळरमत ऊवालिवउं *उपबा. [छीनवी ले] दि. ऊडी अखाछ. कूदको [म.] - उद्दाल] ऊडपति अखाका.ताराओनोपति, चंद्र [सं.] ऊदी जुओ उदी ऊढणि उषाह. ओढवामां, पहेरवामां ऊदीपक जुओ उदीपक ऊढणी, ऊंढणी दशस्क(१). प्रेमाका. ऊवेग जुओ उदेग ईंढोणी; जुओ ऊंडहणुं ऊदेगामण जुओ उदेगामणउं ऊढणूं जुओ उढणउं ऊदेगियइ षडाबा. उद्वेग पामे ऊढवू जुओ उढवू ऊदेही जुओ उदेही ऊणीझूणी जिनरा. उदास ऊदोत देवरा. भपको, [शोभा] (सं.उद्योत) ऊणोदरी आरारा. ओर्छ खावू ते, एक तप ऊद्धसइ जुओ उद्धसइ (सं.ऊन+उदर) ___ ऊध(मुखि) गुर्जरा. नीचे [मुखे], ऊंधे - ऊतजिइ गुर्जरा. तजाय (सं.उत्त्यज्यते) ऊलटे [मुखे] ऊतरिण्यु उक्तिर. ऋणमुक्त (*सं.उत्तारित- *ऊधड [*ऊघड] अखाका. *अटकळ, ऋणम्) [हिं.उतरिन]; जुओ उत्तराण *मननी कल्पनाओ, [मुश्केली] [सं. ऊतारणउं उक्तिर. षष्टिप्र. उतारj, उतारीने अवघट]; जुओ अवघट, ओघट फेंकी देवू ते, [वारी जq ते] (सं. ऊधरइ अखाका. उपबा. गुर्जरा. लावल. उत्तारणम्, अवतारणम्) ऊंचके, उपाडे, उपर काढे, बहार लावे ऊतारु विमप्र. उतारो, [ऊतरवार्नु स्थळ] [सं.उद्धरति]; प्रेमाका. *उत्कर्ष पामे, ऊत्रेवडि नेमिछ. उतरेड, एक पर एक मकेलां [ऊछरे]; वीसरा. उद्धार पामे वासण के माटलांनी हार (द.उत्तिरिविडि) ऊघरक, जुओ उधरकवू 2010_03 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ७३ ऊधसइ/ऊभइ ऊधसइ जुओ उद्धसइ ऊपरि जुओ उपरि ऊधंधलु, उधांधलु उक्तिर. झांखू (*सं. ऊपरिनु उक्तिर. उपर रहेतुं, उपरनुं .. उद्धृलिकम्) ऊपरूं उक्तिर. उपरनु, उपरांत ऊधाण, ऊधाणह जुओ उधाण | ऊपवाद जुओ उपवाद ऊधारइ उक्तिर. उधारे, उधार, बाकी (सं. ऊपहरउं, ऊपहिरु जुओ उपहरु उद्धारके) ऊपाइ जुओ उपाइ ऊधालुं जुओ उधार ऊपाडणहार ललिरा. उपाडनार ऊधांधलु जुओ ऊधंधलु ऊपाडी षडाबा. प्राप्त करी [*सं.उत्पातम्] ऊधि षडाबा.गाडानोधोरियो, बहार ताणेलां ऊपाडी जुओ उपाडी बे लाकडांनी मांडणी [सं.उद्धि] ऊपातु कादं(शा). प्राचीका, प्रेमप. उत्पन्न ऊप्रसइं गुर्जरा. (संवाडा) ऊभां थाय (सं. थतुं, उत्पन्न करतुं (सं.उत्पादित परथी) उद्+हष); जुओ उद्धसइ ऊपाय कादं(धू). हरिख्या. उपजावीने (सं. ऊनयां (उनथां) ऐतिका. उदंड [सं.उन्नद्ध/ उत्पाद्य) उद्+नाथ] ऊपायु जुओ उपायउं ऊनमे जुओ उनमे ऊपावेवा आरारा. उपार्जन करवा, मेळववा ऊनयउ जुओ उनयउ (सं.उत्पादय्) ऊनवा प्रेमाका. पेशाबनी बळतरा [सं.उष्ण ऊपेला षडाबा. उपर, उपरांत (प्रा. +वात उप्पेलिअ) ऊनविउ ऐतिका. ऊमट्या; जुओ उनमे ऊफरभु प्रेमाका. [उपरांत]; जुओ उफरुं ऊपइ जुओ उपइ ऊफराटुं, ऊफरांडं जुओ उफराटुं ऊपज- हरिख्या. [मनमा उत्पन्न थ], सूझबुं ऊफरूं जुओ उफळं, ऊफरडु [सं.उत्पद्यते ऊफरे अखाका. उपर, [उपरवट] ऊपज्य चित्तसं. उत्पत्ति, परिणाम ऊफिरीयामण उक्तिर. व्याकळता, खेद: ऊपणइ उक्तिर. झाटके, साफ करे (सं. जुओ उपरियामणु उत्पुनाति) ऊबर्यउ [उवर्यउ] जिनरा. बची गयो, ऊपनउं, उपनळ, ऊपन्युं जुओ उपनउं ऊगरी गयो]; जुओ उवरे ऊपम जुओ उपम ऊबाहुल तेरका. प्राचीसं. उत्कंठित (दे. ऊपरवाड जुओ उपरवाड उव्वाहुल) ऊपराजइ जुओ उपराजइ ऊबीठ, ऊबीठउं जुओ उबीठउ, उभीठउ ऊपराठउ जुओ उपराठउ ऊभइ "विक्ररा. [ऊंचुं करे, (बीडु) जाहेर ___ 2010_03 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊभगइ/ऊलखउ . ७४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश करे, फेरवे]; * उषाह. [ऊंचो करे]; (सं.उन्मन-दुर्मन); जुओ आमगदूमणी, [सं.ऊर्ध्व परथी]; जुओ उब्म- ऊमणदूमणुं ऊभगइ जुओ उभगइ ऊमहइ ऐतिरा. होंश राखे (द.उम्माहिअ) ऊभगउ, ऊभंगउ आरारा. *उपबा. उद्विग्न ऊमही आरारा. उमंगथी, [उमंग राखी] (सं.उद्भग्न) दि.उम्माहिअ) ऊभजइ जुओ उभजइ ऊमाह, ऊमाहउ, ऊमाहलउ जुओ उमाह ऊभड आरारा. उद्धत (प्रा.उब्मड) ऊमाह कृष्णबा. ऊत्कंठित थर्बु ऊभडू षडाबा. उभडक (सं.ऊर्ध्व-) ऊमाहिउ जुओ उम्माहियउ *ऊभति [कुभति षष्टिप्र. खराब भात - ऊमाहे आरारा. फेलाय, छवाय (रा.ऊमहणौ चित्रामण (सं.उद् +भक्ति); जुओ उभात = ऊमडवू, ऊभरावं) . जुओ कुभति ऊमेल्यां कादं(शा). उखेडी नाख्यां (सं. ऊभलूंखी षडाबा. [(तेल चोपडेली पण) उन्मेलितानि); जुओ उमेलि अर्धी लूखी - तेल वगरनी], ओछा तेल- ऊयेणी ललिरा. उज्जयिनी वाळी (तावी) ऊर कादं(घ). गुर्जरा. ऊरु, साथळ ऊभविय ऐतिका. [ऊभी करी], ऊंची करी ऊरण, ऊरिण अंबरा. ऋषिरा. गुर्जरा. प्रद्युचु. ऊभंगउ जुओ ऊभगउ प्राचीसं. लावल. विक्ररा. ऋणमुक्त (सं. ऊभारा नेमिछं. ऊभरा, [उत्साह, आवेश] उद्+ऋण) (सं.उद्भारः) ऊरणा अखेगी. ऊन, [करोळियानी] लाळ ऊभार्यु *अभिऊ. [(बीडु) धर्यु, राख्यं] [सं.ऊण] (सं.उद्+भृ.) ऊरतु जुओ उरतउ ऊभांभली ऋषिरा. *मूंझायेली, “ऊंचा ऊरय जुओ उरध मनवाळी, [अत्यंत अरुचिवाळी] ऊरहि चारफा. [छाती साथे], छाती वडे ऊभीठउ *गुर्जरा. [अणगमतो] [सं.उद्+ ऊरिण जुओ ऊरण द्विष्]; जुओ उबीठउ ऊर्णनाभ, ऊर्णनाभि अखाका. अखेगी. ऊमगर्बु जुओ उमगq करोळियो [सं.] जमदचित्तताथाय, आवा पड[स.उन्मृष्ट ऊलखइ, ऊळखइ जुओ उलखइ ऊमटे (ऊमडे) अखाका. ऊखडी पडे ऊलखउ, ऊलिखउ, ओलखउ उक्तिर. ऊमडे चित्तसं. नष्ट थाय, (सं.उन्मई, प्रा. उपबा. खास करीने हाजते जती वखते उम्मड); जुओ ऊमटे वपरातुं पाणी नानुं वासण, जैन साधुनुं ऊमणदूमणउ गुर्जरा. चिंतातुर, [उदास] एक उपकरण 2010_03 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ७५ ऊलग/ऊहाडउ ऊलग जुओ उलग ऊवस शृंगामं. उज्जड (द.उव्वस) [सं. ऊलगइ जुओ उलगइ उद्ध्वस]; जुओ उद्वस ऊलट जुओ उलट ऊवेजइ प्रबोप्र. उद्वेग करे (सं.उद्वेजयति) ऊलटभेद अखाका. [मनना उमळकारूपी ऊवेढइ उक्तिर. छोडे, जुएं करे (सं.उद्वेष्टते) __ मर्म - युक्ति] ऊषध, ऊसध उपबा. प्रबोप्र. विक्ररा. . ऊलटमान कादं(शा). ऊभरातुं षडाबा. औषध ऊलतुं नरका. [उत्साहित थर्बु, आनंदित ऊपर जुओ उपर थवं]; वीसरा. ऊभरावू [प्रा.उल्लट्ट] ऊस गुर्जरा. बळद (सं.ऋषभ) ऊलडइ उक्तिर. फेंकी दे, नष्ट करे (द.उल्लुड) ऊसघ जुओ ऊषध ऊलतु कादं(शा) अळतो, लाखनो रंग (सं. ऊसनउ उपबा. विनष्ट; क्षीण; भ्रष्ट (सं. अलक्तकः) उत्सन्न); *गुर्जरा. [ क्षीण, "खिन्न] ऊललियइ जुओ उललियै ["सं.अवसन्न]; नलरा. विमप्र. क्षीण ऊलवइ जुओ उलवइ • थयेल, बरबाद थयेल ऊलवें जुओ उलवे ऊसर जुओ उसर ऊलसो देवरा. उल्लस्यो, ऊछळ्यो, ऊभरायो ऊसरइ जुओ उसरइ ऊलंच जुओ उलंच ऊसरीइ अभिऊ. ओसरे, खसी जाय ऊलंभडउ जुओ उलंभडउ (सं.अप+स) ऊलंभु जुओ उलंभउ ऊसलसीधु उक्तिर. [?] (सं.उल्लासितऊलिखउ जुओ ऊलखउ संधिकम् के उत शलंध्र) ऊवट जुओ उवट ऊससइ जुओ उससइ ऊवटइ उक्तिर. अंगलेप करे (सं.उद्वर्त्तयति) ऊसारइ लावल. उपाडे, [दूर करे] (सं.उत् ऊवटणउ जुओ उबटणुं +.) ऊवट्टहं कृष्णच. आडवाटे; जुओ उवट ऊसास जुओ उसास ऊवरथइ नलरा. व्यर्थ करे, [खोटुं पाडे, ऊसिय प्राचीसं. [थी व्याप्त, -मां रोकायेलु] __ उथापे] (*सं.उद्+व्यथ) [सं.उत्सृत] ऊवरि जुओ उवरि ऊसीसउं जुओ उसीसउं ऊवर्यउ जुओ ऊबर्यउ ऊसु षडाबा. ओस, झाकळ (सं.अवश्या, ऊवलइ अंबरा. [पार्छ वळे], दूर थांय अवश्याय) [सं.उद्वलति]; जुओ उवली ऊहटइ अंबरा. दूर जाय [सं.अपघट्ट] ऊवलतउ उक्तिर. पाछो वळतो (सं.उद्वलन्) ऊहाडउ उक्तिर. आंचळ (*सं.ऊधस) 2010_03 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊहोलाइ/एकलमल्ल ऊहोलाइ जुओ उहलाइ ऊंचलबुं जुओ उचलवं ऊंठां "अंबरा. [ओठां, दृष्टांतरूप कहेवत ] [*सं. अवष्टंभ] ऊंडल, ऊंडळ दशस्कं (र). नरका. प्रेमाका. बाथ, आलिंगन ऊंडळगूंडळ प्रेमाका. जेमतेम वींटेली, [घाटघूट वगरनी, बेडोळ] ऊंडह उक्तिर. उढाणुं, ईंढोणी दि.ऊंड + सं. धा] ७६ जोडतो भाग ऊंबर जुओ उंबर जंबरा जुओ उंबरा ऊंबाडु जुओ बाड ॐमणदूमणुं कृष्णच. ऊचक मनवाळुं व्याकुळ, उन्मनस्क; जुओ ऊमणदूमणउ ऋतुदान प्रेमाका. गर्भ रखाववो ते, संभोग ऋदइ, ऋदय आरारा. हृदय, हृदयमां ऋषिमती ऐतिका. तपगच्छवाळाओनुं एक उपनाम [जै . ] ऊंढणी जुओ ऊढणी ऊंदिर, ऊंदिरउ उक्तिर. उपबा. उंदर (सं.उन्दुर) एकण जिनरा. देवरा. एक ज ऊँघ प्रेमाका. गाडानी धूंसरी अने मांचडाने एकण बार जिनरा. एक ज वार ए गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. आ (सं. एषः ) एअ गुर्जरा. आ ए आक्षर गुर्जरा. आ शब्दो, [वेण, 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चिठ्ठी] एआण, ऐआण, ऐयाण प्रबोप्र. अज्ञानी; जुओ अयाण एउ उक्तिर. वसंफा. विराप. षडाबा. आ, ए (सं. एषः) एक गुर्जरा. वसंफा . * वसंवि. षडाबा. कोई, केटलाक (सं.) एकउड उक्तिर. एकवडुं वस्त्र (सं. एकपटिकः) एकएकने चित्तसं. दरेकने एकचोई हम्मीप्र. [एक थांभलावाळो, नानकडो] एक प्रकारनो तंबु एकताई प्रेमाका. कीमती [ एक पनावाळो बारीक ] उपरणो एकपखी आनंस्त. एकपक्षी, एक बाजुनी एकपत्य * अखाका. [ एकाधिपत्यवाळु, चक्रवर्ती] एक परि उक्तिर. एक प्रकारे एकभवी अखाछ. एक भवमां साक्षात्कार मेळवनार, [पुनर्जन्ममांथी मुक्ति मेळवनार] एकमनल, एकमंनउ * अखाका. उपबा. ऋषिरा. नरका. एक मनवाळो, दृढ मनवाळो, स्थिर मननो; कादं (शा). गुर्जरा. एकमन, [ एकचित्त, एकाग्र ] एकरस्यो ऐतिका. जिनरा. एक वार एकलमल्ल चित्तसं. मस्त, एकलविहारी ब्रह्मज्ञानी Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ७७ एकवटाह/एत एकवटाह जुओ वटाह एकुसउ सतेतालु षडाबा.एकसो सुडतालीस एकवारकु दशस्कं(१). एक वार (सं.एकशत+सप्तचत्वारिंशत्) एकवायुं अखाछ. एक मारगे जतुं; [एक एके चित्तसं. दरेक तरफ ढळतुं, एकपक्षी] एको प्रेमाका. एके, एकेय एकसरा, एकसरां गुर्जरा. एकी वखते, एकोई अभिऊ. एक पण (सं.एकः अपि) [एकी साथे] (*सं.एकसरक); वीसरा. एकोत्तर सउ उक्तिर. एकसो एक (सं. सीधेसीधा, तरत ज (द.एक्कसरिस) एकोत्तरं शतम्) एकसाटिक आनंस्त. एक वस्त्रवाळु [सं. एख शृंगामं. आ (सं.एष) एकशाटिक] एखटा, एखठा कादं(शा). नलाख्या. एकही अखाछ. एक हाथे एकठा, साथे, एकत्रित थयेल (सं. एकहु आनंस्त. एक ज एकस्थकाः) एकहुत्तरि षडाबा. एकोतेर (सं.एक-सप्तति) एखलो दशस्क(१). दशस्क(२). एकलो एकंत आरारा. एक बाजु, आरारा. गुर्जरा. एग आरारा. जिनरा. षडाबा. एक एकांत; ऐतिरा. लावल. एकलो एगारमि जिनरा. अगियारमे [सं.एकादशम एकाउलि नलरा. एक सेरनो (हार), एगावलि देवरा. एकसेरो (हार) (सं. ___ एकावळ (हार) (सं.एकावलि) एकावलि) एकाएक आरारा. एकेएक, दरेक एगासण तेरका. एकासगुं, एकटाणुं (सं. एकातीत अखाका. एक अने [सर्वथी] एकासना) अतीत - [पर], परब्रह्म एज सिंहा(शा). गरम ?, [*एज्य, *पूज्य, एकारो प्रेमप. गर्वभों उद्गार, वर्तन . पवित्र [सं.अहंकार]; जुओ एंकार एणं वाग्भबा. एणे, ए वडे, [आणे, आ एकावलहार आरारा. एक सेरनो हार (सं. वडे] [सं.एतेन] एकावलि) एणि लावल. ए(मां) (सं.एनेन) एकाशनी विक्ररा. दिवसमां एक वार एणी आनंस्त. चित्तसं. नलाख्या. ए, [आ] जमनार [सं.] (सं.एतेन) एकांत चित्तसं. संपूर्णपणे, हमेशां [सं.] एणी आरारा. नलाख्या. हरणी (काळा एकीभाव आनंस्त. एकभाव, [एकरूप थर्बु रंगनी एक जात) (सं.) एणीनयणी ऋषिरा. हरिणी जेवी आंखोएकु अखाका. उपबा. दशस्कं(१). प्रेमाका. वाळी, मृगाक्षी एकेय [सं.एक+खलु] एत [ए ति] *विराप. [ए ते] , 2010_03 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतइ/एंकार .. ७८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश एतइ गुर्जरा. एटलामां; नेमिछं. एटलाथी पदार्थ] (सं.एलेयम्) (सं.एतद् परथी) एळे अखाछ. वगर महेनते, फोगटमां, एतलं, एतु आरारा. गुर्जरा. पंचवा. मदमो. [अनायास] [सं.अफल] लावल. शृंगामं. एटलुं, एवडु (सं.एतद् एवड, एवडउं आरारा. उक्तिर. जिनरा. परथी) (सं.एतावत्) . नलरा. प्राचीसं. *वसंफा. वसंवि. एतलइ अभिऊ. आनंस्त. उपबा. गुर्जरा. वसंवि(ब्रा). एटलु, एवं, आटलुं (सं. नलरा. नेमिछं. विराप. एटला वडे; एतावत्) एटले, माटे; एटलामां एवंविह गुर्जरा. आ प्रकारचं, आq (सं. एतलडं अनंस्त. उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. एवंविध) .. रूपच. षडाबा. आटलुं, एटलुं [सं.इयत् एवातण नरका. प्रेमाका. सौभाग्यवतीपणुं +तुल्य] (सं.अविधवा+त्वन) एतलं गुर्जरा. एटलामां. एवाल उक्तिर. बकरा चरावनार [सं. ए ति जुओ एत अजापाल] [रा. एतुं जुओ एतउं एषणासुमति ऐतिका. एषणासमिति, निर्दोष ए-थां कादं(शा). एनाथी आहारनुं ग्रहण, [साधुनो भिक्षाचर्याएघाण नलाख्या. एंधाण. निशान. चिह्न विषयक विवेक] [जै. (सं.अभिज्ञान) एषा आरारा. आ (स्त्री) (सं.) एन अखाका. *मदमो. *वेताप. असल, एस अखाका. ओसरतां, दूर थतांथतां, खलं, [खरेखरुं] (अ.ऐन); जुओ येन विनाश] [*अ.ऐस] एम-यो नरका. एम ने एम, एवो ने एवो एस, एसु गुर्जरा. विराप. आ (सं.एष) एमंतो देवरा. अतिमुक्त, [एक मुनिनुं नाम] एह आनंस्त. उक्तिर. गुर्जरा. देवरा. नलाख्या. एय, एयु उक्तिर. गुर्जरा. आ (सं.एतद) वीसरा. षडाबा. ए, आ (सं.एषः) एरसउ गुर्जरा. आवो (सं.ईदृश) एह भणी उपबा. एथी एरावण आरारा. कष्णबा. षडाबा. इंद्रनो एहवू नलाख्या. एवु हाथी (सं.ऐरावण) . . एही ज आनंस्त. ए ज एरिस, एरिसु ऐतिका. तेरका. विराप. एहु गुर्जरा. आq, आ; तेरका. ए (सं.एषः) आवं, एवं (सं.एतादृश) . एहे उपबा. आनाथी, एनाथी (सं.एषः) एला ऋषिरा. इलायची (सं.) एहेवो स्यो चित्तसं. एवा प्रकारनो एलियउ उक्तिर. एळियो, एक प्रकारचं एहेशी रूस्तस. एंशी [सं.अशीति] गंधद्रव्य, [कुंवारपाठाना रसमांथी थतो एंकार नरका. अहंकार, अभिमान; जुओ 2010_03 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश एकार ऐआण, ऐयाण जुओ एआण ..ऐरावण ऐतिका. हाथी [सं.] ऐश्वर्ण्य चित्तसं. ऐश्वर्य ऐंद्र प्राचीका. इन्द्र ऐंद्री प्राचीका. इन्द्रिय ओकली गुर्जरा. षडाबा. ओकळी, तरंग, तरंगनी भात (सं. उत्कलिका) ७९ औखणं प्रेमाका. विमप्र. खांडवुं, छडवुं [द.उक्खण][सं.उत्क्षण्] ऐआण/ओठे सामान्य अवस्था, [लोकबुद्धि, चीलाचालु समज] [सं.] ओचरे नलाख्या. प्रेमाका. उच्चरे ओखणो प्रेमाका. खांडणियो ओखद, औखद दशस्कं (२). प्रेमाका. ओझड नरका. झपट वेताप. औषध, ओसड ओझा जुओ ओझउ ओघ अखाका. दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. जथ्यो, भंडार, समूह (सं.) ओघउ उक्तिर. षडाबा. ओघो, जैन साधुओ नुं रजोहरण ( सं . अवग्रह ) ओच्छव नरका. प्रेमाका. उत्सव ओठरंग कामा (त्रि). कामा (शा). उछंग, खोळो [ सं . उत्संग ] ओठंग कामा (शा). दशस्कं (१). प्रेमाका. उत्संग, खोळो ओछावणु षडाबा. ढांकवुं ते (सं. अवच्छादन) ओझउ, ओझा उक्तिर. जिनरा. उपाध्याय, शिक्षक [आडश, अंतराय ]; * कादं (शा). [ओठं, दवा ४ * आडश, "अंतरपट] [सं. अपवृत्ति ] ओटइ नेमिछं. लावल. विमप्र. ओटला उपर ओखध, ओखधी * कादं (शा). प्राचीका. ओट अखाका. अखाछ. पडदो, आवरण, औषधि, ओखर विमप्र. विष्ठानुं भोजन [सं. अवस्कर ] ओखांगे प्रेमाका. बराडा पाडे ओगालइ उक्तिर. फरीफरीने चाववुं, वागोळवुं [प्रा. ओग्गाल ] ओगुणीस षडाबा. ओगणीस [सं. एकोन - ओटहिया षडाबा. (धूळमां) रगड्या ओठंभ * जिनरा. षष्टिप्र. आलंबन, [सहारो] (सं. अवष्टम्भ); जुओ उठंभ ओठभइ उक्तिर. षडाबा. टेको आपे, अढेले (सं. अवष्टम्भते) ओटइ उक्तिर. ढांके [द. ओहट्ट ] विंशति] 2010_03 ओठी उक्तिर. ऊंटसवार (सं. औष्ट्रिकः) [रा. ] ओघट अखाछ मुश्केली [सं. अवघट्]; ओठीडा ऐतिका. ऊंटसवार जुओ अवघट, ऊघड ओघराळा प्रेमाका. लपेडा, रेला ओघसंज्ञा आनंस्त. * चित्तनी विचारशून्य ओढुं प्रेमाका. पडदो, अंतराय लावल. समर्थन माटे दृष्टांत ओठे अखाका. ओथे, -नी पाछळ, [आडशे] Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओड/ओरस ८० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ओड उक्तिर. ओरिस्सा (सं.ओः) ओधार प्रेमाका. उद्धार ओडइ * षडाबा. [प्रतिरूप-समान आकार- ओधारि षडाबा. उधार, उछीनुं (सं.उद्धार) ने लीधे] दि.अवडअ-चाडियो] ओधाहूली उक्तिर.ऊंधाफूली, एक वनस्पति ओडइ नलाख्या. होडमां मूके (द.हुड); (सं.अधःपुष्पी) जुओ उडवू ओधि गुर्जरा. विराप. मर्यादा, अवधि, ओडइ, ओढे अभिऊ. ऐतिरा. चतुचा. जुओ उधि नरका. नलाख्या. प्रेमाका. मोसाच. ओपटी *प्रेमाका. [मुश्केली, संकडामण लावल. वेताप. सिंहा(शा). (हाथ) ओपम उषाह. मदमो. औपम्य, उपमा, • लंबावे, धरे; जुओ उडवू सरखामणी; जुओ उपम ओडक उक्तिर. अटक, शाख, अवटक ओपमा अखेगी. देवरा. नलाख्या. उपमा, ओडणु विराप. ढाल (प्रा.अड्डण) [सरखामणी] (सं.औपम्य) ओडव गुर्जरा. प्राचीसं. विराप. सामे धरतुं, ओपरी विमप्र. उपर तैयार करवू ओपाए चतुचा. उपाये ओडावयु कृष्णबा. लंबाव ओपाणुं अखाछ. [घसाईने] ओप (चळकाट) ओडियां नलाख्या. शरतमा - होडमा मूक्यां पाम्यु दि.हुड्ड) ओभजउं *विमप्र. [पाछो हळु, नासुं] [सं. ओडो (ओडो बांध्यो) नरका. अंतराय, जी. जो उभज अटकायत [करी], [आंतर्या] ओयणु गुर्जरा. बगीचो (सं.उपवन) ओढे जुओ ओडइ ओयरइ षडाबा. ओरे, रांधवा नाखे [सं. ओतराहुं प्रेमाका. उत्तरार्दु, उत्तर दिशानुं पता कोतळी अखाका. सरी जई, [आघो जई] ओर आनंस्त. बीजं [हिं.] ओतावलु विमप्र. उतावळो - ओर अखाका. पट, असर ओथार *प्रेमाका. दुःस्वप्न ओरइ षडाबा. नजीकमां, ओरुंवहेलु ओवओ ऐतिरा. ऊग्यो (सं.उदित) (सं.अवरः) [सं.आरात्]; जुओ उरि ।। ओवक जुओ उदक ओरणी अखाका. [ओरण, खेतरमा अनाज ओदाली षडाबा. झूटवी दि.उद्दाल]; जुओ ओरवानुं साधन] उदालइ ओरस, ओरसीउ, ओरसु उक्तिर. गुर्जरा. ओबम नलाख्या. उद्यम, [प्रयल] विमप्र.ओरसियो, चंदन घसवानो पथ्थर ओघरे कामा(त्रि). कामा(शा). उद्धार पामे (सं.अवघर्षक) दि.ओहरिस]; जुओ ओघाण प्रेमाका. उधाण, मोटी भरती ओरीसउ 2010_03 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओरहुउं/ ओलि ओलग्गा) [सं. अवलग्यति ]; जुओ उलगइ ओरि * प्राचीका. [ओरडी, स्थान ] ; [रा. ओलगाणउ पंचवा. प्राचीसं. सेवक (क. [सं. अपवारिका]] जुओ उरा ऊळिग परथी); जुओ उलगाण ओलजो * जिनरा. [क्लेश अनुभवो] ओलण * षडाबा. [ ओसामण, आर्द्र कर ते द्रवरूप] [. उल्लण] ओलतु कादं (शा). अळतो, लाखनो रंग (सं.अलक्तकः) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ओरहुउं उक्तिर. * षडाबा. अहीं, आ बाजु; ज़ुओ उरहउं, ओहरी ओरिओ, ओरियो कादं (शा). प्रेमाका. ओरतो, अभिलाष, लहावो ओरिया वीतवा दशस्कं ( १ ). ओरता पूरा थवा ओरी प्रेमाका. सुधीमां, [लगभग ] ओरीसउ उक्तिर. ओरसियो, चंदन घसवानो पथ्थर (सं. अवघर्ष) [दे. ओहरिस ] ; जुओ ओरस ओर्वशी नलाख्या. उर्वशी ओल रूस्तस. जामीन [ हिं . ] ओल, ओळ *, अखाछ. रेखा, लीटी]; अखाका. पंक्ति, [वर्ग, प्रकार] [सं. आवलि]; जुओ उलि ८१ ओलग, ओलिग उक्तिर. गुर्जरा. चंद्रवा. नरका. नरप. विक्ररा. * विमप्र. विराप. सेवा (दे. ओलग्गा); जुओ उलग ओलगाइ, ओळगइ उक्तिर. ऐतिका. जिनरा. नरका. षडाबा. हरिख्या. सेवा करे (दे. 2010_03 ओळपाणां नरका. झांखां पाड्यां, [सर. अळपाणां ] * ' ओळ [ओर] अखाका. गर्भ ओलउ उक्तिर. ओलो, चूलानी पाछळनो उलवे ओलंघन प्रेमाका. उल्लंघन नानो चूलो ओलंडं उक्तिर. वेताप. ओळंगवुं (सं. ओलंडयति) [दे. ओलंड] ओलख जुओ ऊलखउ ओलखाणउ उक्तिर. परिचय, प्रसिद्धि [सं. ओलंभइ उक्तिर. ठपको आपे, टोणो मारे (सं. उपालभते) उपलक्षण] ओलखियउ आरारा स्वीकार्यो, बनाव्यो ओलंभउ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. (सं. उपलक्षित) कादं (शा). गुर्जरा. नरका. नरप (द). प्रेमप. उपालंभ, ठपको, मर्मप्रहार, जुओ उलंभउ ओलवइ, ओळवइ उक्तिर. * गुर्जरा. विराप. छुपावे, संताडे (सं. अपलपति); नरका. *नरप. * पचावी पाडे, [चोरी ले, झंटवी ले]; जुओ अउलवइ, उलवइ ओलवडे नरका. * नरप . [ आडशे ], ओथे ओलवा *नलाख्या. [आडश, पडदो, ओथ] ओलवे अखाछ. ओथे, [आडशे]; जुओ ओलाश जुओ उलास ओलां चतुचा. भोळां ओलि कृष्णबा. [आडशे], गुप्त स्थाने Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओलिउ / ओही ओलिउ जुओ दधि ओलिउ ओलिउं, ओल्यउं उक्तिर. विक्ररा. ओल्युं, पेलूं, [आ] [सं.अवरिल्ल]; जुओ उलिउं ओलिंग जुओ ओलग ओली उक्तिर. ऋषिरा. पंक्ति, श्रेणी (सं. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ओस अखाका. उक्तिर झाकळ (सं. अवश्यायः) ओसउ ऐतिका. औषध ओसप्पिणिसप्पिणि गुर्जरा. अवसर्पिणी उत्सर्पिणी, ए नामना काळविभागो [जै.] ओसरे नरका. * प्रेमाका. सिंहा (शा). पाछा हठे, -थी दूर भागे, शरमाय; उषाह दूर जाय (सं. अपसरति); जुओ उसरइ ओसह षडाबा. औषध ओसंकल जुओ ओशंकल ओसंके जुओ ओशंके ओळोसोळो * प्रेमाका. [ उत्सव - अवसर ] ओसाण * दशस्कं (२). प्रेमाका. [स्वत्व, [गु. सोहलो परथी ] ओल्यउं जुओ ओलिउं पोतापणुं ], हिंमत, जुस्सो; प्रेमाका. ओळखनी निशानी, स्मरण ओसामणु * षडाबा. [ आर्द्र करवुं ते, द्रवरूप] [सं. अवस्रावण] ओल्हाणी रूपच. ओलायेली आग ओवउ [ओवरउ ] उक्तिर. ओरडो (सं. अपवरकः) ८२ आवली); जुओ उलि ओलीजे "जिनरा. [क्लेश अनुभवीए]; जुओ ओलजो ओले नरका. ओथे, [आडशे] ओळे चढ्युं अखाका. बराबर तैयार थयुं [वावेतरनी डूंडानी हार थई ] ओशंकल, ओसंकल * विक्ररा. [ऋणमुक्त] [सं. उत्+शृंखल]; जुओ उसंकल ओशंके, ओसंके नरका. प्रेमाका. शरम के संकोच अनुभवे (सं. अपशंक) ओशिकळ जुओ उशंकल ओशिंगळ, ओशीकल, ओशींकल, ओसीकळ ओशींगल, ओसीकल, दशस्कं (१). दशस्कं (२). * नलाख्या. प्रेमाका. मदमो. ऋण के भारमांथी मुक्त, [बदलो वाळवो ते]; (सं.उत् + शृंखल); * रूस्तस. [ऋणमुक्त, बदलो वाळनार ]; जुओ उशंकल ओषधी चित्तसं. मादक पदार्थ 2010_03 ओसार प्रेमाका. पीछेहठ [ सं . अप-सार ] ओसीकल, ओसीकळ जुओ ओशिंगळ ओसीसउं आरारा. नलरा. प्राचीफा. प्रेमाका. ओशीकुं (सं.उत्शीर्षक); जुओ उसीसउं ओहट्ट - तेरका. घटवुं, ओटुं थवुं (सं. अव+ * घट्ट) ओहड * तेरका. [ रुकावट] [रा. ओहडणौ ] [सं. अवघट] * षडाबा. [रोकवुं ते, रुकावट ] ओहडणु [रा.] ओहरी विक्ररा. [ओरी], नजीक; जुओ ओरहुउं ओली * षडाबा. [घसीने ] [ प्रा. ओहलिय] ओही * षडाबा. [साधुनां वस्त्ररूप उपकरणो] Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ८३ ओही वीट/कउसीसउ [सं.उपधि] कइरीय हरिवि. केरी (फळ) ओही वीट उक्तिर. साधुना वस्त्ररूप कइलि प्राचीफा. केळ (सं.कदली) .. उपकरणोनो वीटो (सं.उपधिवेष्टिका) कइवार वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). "विमप्र. ओहो[का प्रेमाका. आ सालना, आ वर्षना, शृंगाम. सिंहा(म). प्रशंसा; जुओ कयवार चालु समयना [सं.अधुना परथी] कइसा लावल. केवा [सं.किदृशकम्] ओहोलाई प्रेमाका. ओलाई, शांत थई कउ आरारा. कहो ओहोलावीए अखाका. ठंडूं करीए दि. कउ वीसरा. केरु, -नुं ओल्हव] [सं.उद्र परथी] । कउगला जिनरा. कोगळा ओहोलाश, ओहोलास कामावि प्रेमाका कउछ उक्तिर. कौवच, ए नामनी वनस्पति उल्लास; जुओ उलास (सं.कपिकच्छू:) ओहलाद कादं(शा). आनंद (सं.आहाद) कउठ आरारा (व). उक्तिर. षडाबा. कोठं. ए नामनी वनस्पति (सं.कपित्थ) औखद जुओ ओखद कउडां, कउडी उक्तिर. उपबा. प्राचीसं. औलिखि उषाह. ओळख, ओळखाण कर काडि-जक्ख तेरका. कपर्दियक्ष, एक यक्ष षडाबा. कोडी (सं.कपर्दिका) कउण गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. कोण (सं.कः क गुर्जरा. पंचवा. के, अथवा (फा.के) पुनः) कई गर्जरा. वसंफा. वसंवि. केटलीये, कउतिग गर्जरा. षटिप्र. कौतुक, आश्चर्य, केटलीक (सं.कापि) [सं.केऽपि]; जुओ [नवाईभयु]; आरारा. तेरका. प्राचीफा. कौतुक, आश्चर्य; लावल. षडाबा. कइ आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. वीसरा. कौतक, विनोद, गम्मता: *वीसरा. ___ कां [तो], अथवा, के [अभिवादन]; जुओ कुतगि, कुतिक, कइ ऐतिका. कृत, [कर्यु कुहुतग, कौतग कइच्छरी गुर्जरा. कोई अप्सरा; जुओ अच्छर कउतिगामणी उपबा. कौतुक उपजावनारी, कइजिनइ षष्टिप्र. कोईकना ज [मनोरंजक, रसभरी] कइय गुर्जरा.क्यारे, [क्यारे पण] (सं.कदा+ कउमुदि भेर देवरा. भेरीनो एक प्रकार अपि) कउरव गुर्जरा. कौरव कइयइ जिनरा. क्यारेय; ऐतिका.क्यारेक, कउल गुर्जरा. विराप. कोळियो (सं.कवल) कोई वार कउलिउ, कउली प्राचीफा. प्राचीसं. "पंजो, कइर विक्ररा. शृंगामं. स्थूलिफा. केरडो, [मूठी] (सं.कवल) वृक्षविशेष [सं.करीर] ___कउसीसउ उक्तिर.प्राचीसं. कोसीसां, कांगरां 2010_03 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कए/कट ८४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.कपिशीर्षकम्); जुओ कोसीस कचुंडली विमप्र. कचोळु, [(फूल माटेनु) कए ऐतिका. करातां [सं.कृते पात्र] [प्रा.कच्चोलय] ककाण नलरा. बलूचिस्तान पासेनो देश, कचूर आरारा(व). कचूरो, एक वनस्पति कयकाण, केकाण (सं.कर्चर) ककाह आरारा (व). एक प्रकारनो कपास कचूंबरि ['कचूवरि] गुर्जरा. कच - (हिं.ककही) ? वाळनी उपर कक्षापुट प्रेमाका. काख, बगल (सं.) कचोल, कचोळ ऐतिका. वीसरा. कचोर्चा *कखर(खर) विमप्र. खर कर्म, [कठोर जुओ कचुंडली, कंचोला कर्म], [जेमां अनेक जीवोनी हानि थाय कचोलडी जिनरा. कचोळु छे एवां काम - धंधा]; जुओ खंतिक्खर कचोल्ड, कचोलय तेरका, नलरा. प्यालो, कखा अखाछ. कषाय, मेल, विकार [कचोळ] [प्रा.कच्चोलय] कखांवर सिंहा(शा). काषाय वस्त्र, [भगवां कचोली, कचोलीय वसंवि. वसंवि(ब्रा). वस्त्र]; जुओ काषांबर कचोळु (प्रा.कच्चोलय) कच नलरा. कच्छ देश; जुओ काछ करोलक षडाबा. कचोळु (प्रा.कच्चोलय) कचकडउ ऐतिका.वस्तुविशेष, [ कचकडा- कच्छ प्रेमाका. काचबो (सं.कच्छप) आभूषण के रमका कछोटी नलरा. लंगोटी (प्रा.कच्छोटी) [सं. कचको नरका.*कचकचाट, "नकामी माथा- कक्षापट्रिका] फोड, [मरडाट] कठ्यो प्रेमाका. कस्यो, बांध्यो; जुओ काछ कचकोल *चंद्रवा. [भिक्षापात्र] [फा. कळतो . कच्कूल] कज अंबरा. *प्राचीका. कमळ (सं.) कचनारि आरारा (व). कचनार, एक वृक्ष कजा *अखाछ. हिकम, फैसलो, निर्माण (सं.कांचनार) (फा.) कचपच, कचपिचि प्राचीफा. [कचकच], कजाकजीया सिंहा(शा). कलहटंटा (अ.) ककळाट, [नकामी माथाफोड, तकरार]; कजामणु (तिलक जामणु) * विमप्र. [जमणे नलरा. न समजाय तेवो अवाज, ___ अंगे टीलुं] [*ककळाट] कच-भूषण प्रेमाका. वाळनं भषण, कज आरारा. कार्य; काजे, माटे चोटलानो गोफणो (सं.) कजल तेरका. -, [काजळ] (सं.) कचि आरारा (व). एक वनस्पति, कचियुं कजारंभ ऐतिका. कार्यारंभ, कार्यप्रवृत्ति के काचकुं? कजि उषाह. गुर्जरा. काजे, माटे (सं.कार्य) कचित्र नलाख्या. कुचित्र, कद्रपुं कट प्रेमाका. कटि, केड; जुओ केसरी-कटे 2010_03 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ८५ कटक/कडाजूड कटक चित्तसं. कडु [सं.] कड उषाह. ऐतिरा. नेमिछं. केड (सं.कटि) कटकाइ मदमो. रूस्तस. पराक्रम, बहादुरी कड तेरका. एक वनस्पति, [एक प्रकारनु [सं.कटक परथी घास, खस] कटरि ऐतिका. आश्चर्य अने प्रशंसासूचक कडउ उक्तिर. कडु, [आभूषण, (सं.कटक) __ अव्यय [अप.] कडकडइ उक्तिर. [*चकळवकळ थाय] कटले देवरा. केटले [सं.कियत्+तुल्य] (सं.कटकटायते) [*दे.कडयडिअ] कटा *नलरा. विमप्र. कट्टा, कट्टर, [दृढ, कडकडता *षष्टिप्र. [शुद्ध कियावंत, दृढ अणनम (योध्दा)] आचारशील कटाभेद * अखाका. [*आवरणभंग]; जुओ कडक्ख तेरका. प्राचीफा. कटाक्ष, प्रेमभरी कटाह वांकी दृष्टि कटारूं लावल. कटार [सं.करिक] कड़खइ प्राचीफा. आंखनो कटाक्ष करे कटाव प्रेमाका. रंगीन कापडना वेलबुट्टा कउखु शृंगाम. आंखनो कटाक्ष जेना पर सीवेला होय तेवू कापड कडग देवरा. कडु, [हाथर्नु आभूषण] (सं. कटाह *अखाका. [*आवरण] [सं.]; जुओ कटक) कटाभेद कडछिऊ नलरा. [कसीने पहेर्यो] कटिक कादं(शा). लश्कर, सेना (सं.कटक) कडडेरा (?) तेरका. वधु करडा? [*कठोर, कटिमेखला प्रेमाका. कमर पर बांधवानो *रुक्ष] घूघरीवाळो कंदोरो [सं.] कडण, कडणि उक्तिर. तेरका. [पर्वतनो] कटिलंक कशस्कं(१). केडनो वळांक चडाव, ट्रंक कटीरक गुर्जरा. पोलो भाग, खाडो(सं.) कडथले प्रेमाका. केड मांडीने, [केड कटुक षडाबा. कडवू (सं.) ___ लंबावीने] [सं.कटिस्थल] कट्ट प्राचीसं. कापq (सं.कृन्त) कड़नौ *जिनरा. [केडनो, पासे छे ते] कठ्ठ ऐतिका. कष्ट, [कष्टकारक कर्म], कडब उक्तिर. विमप्र. सूकी चार, (सांठा) [पापकर्म] कडली नेमिछं. हाथना कांडामुंएक आभूषण कठिणुं प्रेमाका. कठण[पणे], घj, [भारे] (सं.कटक-अप.इल्ल) कठूबरि आरारा(व). कोठींबडी, कोठीमडी कडवउ वीसरा. कडी, [पद्यनो एकम] (सं. [सं.कपित्थ परथी) कडवक) कठोदर आरारा. कबजियात (सं.कष्टोदर) कडहटउ उक्तिर. [*कटासणुं - साधुओर्नु कठ्ठ (कठ्ठ लेसउं) शीलक. काष्टभक्षण ऊननु पाथर[] (*सं.कटाहकम्) करीश, चिता सळगावी बळी मरीश कडाजूड प्रेमाका. भींसोभींस, [परस्पर मध्य.६ 2010_03 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कडाह/कणय .८६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ठरुं] भिडायेला ___कडे कीयां नरका. *जीत्यां, [प्रभुत्व मेळव्यं] कडाह आरारा (व). तेरका. वृक्षविशेष कडेवर आनंस्त. प्राचीसं. कलेवर, शरीर (प्रा.) (सं.कटाह) कडै जिनरा. केडे, पाछळ कडाह, कडाउह गुर्जरा. षडाबा. कडाई, कड्ढीय गुर्जरा. काढी, खेंची (सं.कष्) कडायो (सं.कटाहः) कड्ये अखाछ. कटिए, केड पर कडि नलरा. [पाछलो भाग] कळा अखाका. प्रेमाका. मदमो. वेताप. कडि उक्तिर. उपबा. उषाह. ऋषिरा. गुर्जरा. कडाई (सं.कटाहिका) "विराप. वीसरा. केड, कमर (स. कढावं लीह * लावल. हद वाळू, शिरमोर कटि); विक्ररा. केड उपर कडिइ जुओ आकडिइ कण "नलरा. [अनाजना दाणा, भिक्षान्न] कडिचीरु गुर्जरा. केड पर पहेरेलुं अधोवस्त्र [सं.] कडिवोरउ उक्तिर. कंदोरो [सं.कटि+दे.दोर] कणअर विमप्र.करेणनां फूल सं.कर्णिकार कडियाली * षडाबा. [लगाम] [रा.] कणइअर प्राचीफा. करेणनुं झाड, (सं. कडिलंक जुओ कंडिलंक कर्णिकार) कडीआरा कामा(त्रि). एक जातना सोनी कणइर-कंब प्राचीसं. करणनी सोटी (सं. कडीउ जुओ कंडीउ कर्णिकारकम्बा) कडु, कडु, कडू आरारा(व). उक्तिर. नरका. कणउज उक्तिर. कनोज (नगर) (सं.कन्य कडो, अंदरजो (सं.कटुक, कुटज) कुब्जम्) कडु (कूड) *अखाका. [भारे कपट, कणग देवरा. सोनुं (सं.कनक) कूडकपट कणगावलि गुर्जरा. तपनो एक प्रकार, जेमां कडुआवीया शृंगामं. दुभाव्या, [पीडित, उपवासोनी हारमाळा होय छे [जै.] .. संतप्त] (द.कडुयाविय) (सं.कनकावलि) कडउं कादं(शा). गुर्जरा. कडवू (सं.कटुक) कणदियो नरका. स्त्रीओना हाथना कांडा कडुछउ उक्तिर. कडछो [दे.कडुच्छय] उपर पहेरवानु एक घरेणुं कडुछी उक्तिर. कडछी दि.कडुच्छय] कणदोरो ऐतिरा. दशस्कं(१). दशस्क(२). कडुय तेरका. कडवु (सं.कटुक) प्रेमाका. कंदोरो (सं.कनकदोर) कडुवउ वीसरा. कडवू, कठोर (सं.कटुक) कणब चारफा. कुटुंब कडं, कडू नरका. जुओ कडु कणमणवू शृंगाम. [कणकणवं], त्रास, कडूउं उपबा. नलरा. वाग्भबा. शृंगाम. दुःखी थर्बु कडवू (सं.कटुक) कल्य ऐतिका. गुर्जरा. विक्रच. सोनुं ___ 2010_03 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं. कनक) कणयर आरारा (व). उक्तिर. ऋषिरा. करेणनुं झाड (सं. कर्णिकार) कणयाचल ऐतिका. विक्ररा. कनकाचल, मेरु पर्वत कणवटिया प्रेमाका. कण - दाणानी भिक्षा मागनारा ब्राह्मण (सं.कणवृत्ति परथी ) कणवार * नलरा. "सिंहा (म). [ सारसंभाळ ] कणहतउ उक्तिर. "विमप्र. रोजी तरीके ८७ कतूहल नलरा. [कुतूहल], कौतुक, [विनोद, विनोदक्रीडा ] कब अखाका. * किताब, "ग्रंथो, [इस्लामी धर्मग्रंथ ], कुरान [हिं.; रा. ] 2010_03 अपातुं अनाज (सं. कणभक्तम्) कहू वाग्भबा. कोईक [सं. कः परथी ] कणि आरारा. कन्या, पुत्री (रा./सं. कनी) कणि कर्पूमं. कोणे (सं. केन) कणि दशस्कं ( २ ). नलाख्या. कने, पासे कदर्य दशस्कं (२). कृश, [ कदरूपुं] (सं.); [सं. कर्णे] जुओ कदर्ज कणि [तीहां कणि] सिंहा (म). पासे, कने, [त्यां] (सं. कर्णे); जुओ तिहां किणइ कणिक " षडाबा. [कणेक, पाणीथी बांधेलो लोट] [सं. कणिका; दे. कणिक्का] कणियार उक्तिर. करेण (सं. कर्णिकार ) कणे पंचवा. कोईए [सं. कः परथी ] कणेर- काम, कणेरकांब दशस्कं ( १ ). प्रेमाका करेणनी सोटी [सं. कर्णिकारकम्बा ] कतीफा * हम्मीप्र. [ मखमलनुं कपडुं] [अ.; कदही, कदिहिं ऋषिरा. प्राचीसं. क्यारेय रा. ]; जुओ कथीपा पण [सं. कदा+हि, किं+दिवि + हि ] कदाचि कादं (शा). नलाख्या. कदाच (सं. कदाचित् ) कणयर/कवज कत्तिग, कत्तिय तेरका. प्राचीसं. कारतक (सं. कार्तिक) कथलो कीजे मोसाच. कूचो करवो, गावो कथातां प्रेमप. कथतां, कहेतां कथीपा ऐतिका. वस्त्रविशेष; जुओ कतीफा कथीर गुर्जरा. एक हलकी धातु कदघस ( कदघ स ) सिंहा (म). संकट ?, [*ते संकट] [*सं.कद्+अघ] कदर्ज प्रेमाका. कदरूप (सं. कदर्य); जुओ कदर्य, कद्र कदर्थिवउं उपबा. * अपमान करवुं ते, [सतावदुं ते] [सं. कदर्थय् ] कवलि, कवली आरारा (व). तेरका. प्रेमाका. केळ (सं.); जुओ कंदली कदलीदल आरारा. केळनो गर्भ कदलीथंभा लावल. केळना स्तंभ कदलीपत्र प्रेमाका. केळनुं पांदडुं, [तेना जेवो वांसो] कदलीहर वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). सिंहा (म). कदलीगृह, केळनो मंडप कव्रज प्रेमाका. कदरूप; अखाका. मेल (सं. कदर्य); जुओ कदर्ज Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कब्रु-जात/कबाडी ८८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कटु-जात, कछ-सुत दशस्क(१). प्रेमाका. कपर्दक षडाबा. कोडी (सं.) कद्रुनां संतान, नाग कपाट नरका. प्रेमाका. षडाबा.कमाड, बार| कनक अंबरा. आरारा(व). धंतूरो (सं.) (सं.) कनककेलबंध प्रेमाका. सोनेरी के सुवर्णना कपिला, कपिलावर्णी अखाका. प्रेमाका. चूनाथी बद्ध - युक्त घेरा बदामी रंगनी (सं.) कनककेवडी आरारा(व). केवडानी मादा कपीलउ उक्तिर. कंपीलो, एक वनस्पति जात (सं.कनककेतकी) (सं.काम्पिल्यम्) कनकफल जिनरा. धतूरा नां बी] (सं.) कपीलकृत मदमो. केशपाश- उपमान, *कनकवजी (कनवजी) हम्मीप्र. उत्तम काळा रंग ] घोडानी एक जात, [*कनोजी, कनोज कपीवार *कामा(त्रि). [रविवार] [सं. प्रदेशना] कपिवार कनात नरका. तंबुनी कपडांनी भीत, कपोल आरारा. लावल. वसंफा. वसंवि(ब्रा). कापडनो पडदो गाल (सं.) कनेउर गुर्जरा. काननुंएक घरेणुं (सं.कर्णपूर) कपोले कर दइ प्रेमाका. [गाले हाथ मूकी], कन्त जुओ कंत निराश थई कन्ध गुर्जरा. प्रबोप्र. खांध, खभो (सं.स्कन्ध) कप्पड ऐतिका. कपडां, वस्त्र [सं.कर्पट] कन्न उषाह. तेरका. कान (सं.कण) कप्पतरो ऐतिका. कल्पतरु, कल्पवृक्ष का गुर्जरा. तेरका. कन्या कप्पयरु ऐतिका. कल्पतरु, कल्पवृक्ष कम गुर्जरा. कर्ण (सारथिपुत्र) कप्पिय तेरका. काप्युं (सं.कर्तित) कन्यो दशस्क(२). अत्यंत प्रचंड कदनी कफ चित्तसं. कप, चकमकना तणखा कन्या झीलवानुं रू, जामगरी कन्ह गुर्जरा. प्राचीसं. कृष्ण कबची हम्मीप्र. *एक प्रकारचं बख्तर, कन्हइ उक्तिर. उषाह. ऋषिरा. गुर्जरा. नलरा. [*कवच धारण करनार सैनिक] विराप. षडाबा. षष्टिप्र. कने, पासे कबधी विमप्र. कुबुद्धि, कमअक्कल (सं.कणे) कबरी ऋषिरा. दशस्कं(१). प्रेमाका. चोटलो कन्हड गुर्जरा. कृष्ण कन्हलि उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. विक्ररा. कबही आरारा. क्यारेय (हिं.) [सं.क्व+हि] कने, पासे (सं.कर्ण) कबंध गुर्जरा. प्रेमाका. धड (सं.) कन्हा जिनरा. पासे [सं.कर्णे]. कबाइ वीसरा. जामो, झम्भो (फा.कबा) कन्हेली प्राचीफा. कने, पासे (सं.कणे) कबाडी सिंहा(म). कठियारो (सं.) 2010_03 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ८९. कबाड्या/कमाइ कबाड्या पंचवा. कदरूपा, खराब, पुनः] [खवायेला, सडेला, भांग्यातूट्या ("सं. कमल वेताप. मस्तक, ब्रह्मरंध्र; अभिऊ. कर्बट); जुओ कवाड्यउ शीश [सं.] कबाडी अभिऊ. शिकारी; *लुच्ची, प्रपंची, कमलउ उक्तिर. *कमळो (सं.कामलकः) , “जूठी कमलणी आरारा. कमलिनी कबाहि विक्रच. जरीनो जामो, वाघो (फा. कमलनहीणे प्रेमप. कमलनयने कृष्णे कबाह); जुओ कुलह कबाइ कमलभाखणी चतुचा. कमलतंतुनो आहार कबांन प्राचीफा. मदमो. कामर्छ, धनुष्य करनार हंस, हंसिणी [सं.कमल+भक्ष्] (फा.कमान) कमलभू अखाका. कमळमांथी उत्पन्न थयेला कबुएक मदमो. क्यारेक (हिं.कबहु+क) ब्रह्मा [सं.] [सं.क्व+खलु+क] कमलभू-तन दशस्क(१). ब्रह्माना पुत्र नारद कबुध सिंहा(शा). कुबुद्धि कमल-भृणाल वसंवि. वसंवि(ब्रा). कमलकबुयक सिंहा(शा). कदीक; जुओ कबुएक नाळ, कमलदंड (सं.) कबुल करो मदमो. [अपनावो], पोताना कमलंतरि गुर्जरा. कमळनी अंदर । तरीके स्वीकारो कमल-सकुंअला लावल. कमळ जेवा कभाअ, कभाय कामा(त्रि). दशस्कं(२). सुकोमळ, सुंवाळा प्रेमाका. अंगर, झम्भो, कसबी वाघो कमला आरारा. लक्ष्मी, श्री, वैभव; ऐतिका. [फा.कबाह लक्ष्मी [सं.] कम चतुचा. क्यम, केम कमलाइ आरारा. कामा(त्रि). करमाय [सं. कमकेहे चंद्रवा. कमखे (फा.कम्खा ) कलाम्] कमग्ग प्राचीसं. चरणाग्र (सं.क्रमाग्र) कमलागेह गुर्जरा. लक्ष्मीना निवास समान, कमठ *प्रधुचु. [ज्ञानावरणीय आदि आठ [धनसमृद्ध] (सं.) कर्मबंधनो] (सं.कर्म+अष्ट); जुओ कमलाणी आरारा. करमाणी [सं.कलाम्] कमढ कमलिणि गुर्जरा. कमळनो छोड (सं. कमठाय प्राचीसं. कमठाण, [वांस वगेरेथी कमलिनी) ऊ, करेलु काचुं माळखं] [सं.कमठ कमली, कवली उक्तिर. वांसनी पट्टी अने परथी कपडानुं बनेलु पोथीओनुं एक प्रकारकमढ [कमठ] *प्राचीसं. [ज्ञानावरणीय बंधन ["दे.कवलिआ] आदि आठ कर्मबंधनो]; जुओ कमठ कमाइ आरारा. नेमिछं. करे, कामकाज कमण गुर्जरा. विक्ररा. कोण, कयुं [सं.कः करे, (तैयार) करे, [बनावे] (सं.कर्म 2010_03 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमाण/करणढ ९० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश परथी) [सं.कर्मापय]; जुओ कुडकमाइ कयुं पंचवा. कयुं (सं.कथित) कमाण आरारा. [धनुष्यनी] कमान करअल *गुर्जरा. [हाथ] (सं.करतल) कमायुं आरारा. लावल. कर्यु (सं.कर्म करकडा वेताप. ककडा, कटका परथी); आरारा. कामकाज कर्यु करकडा प्रेमाका. कागारोळ, [दुःखना कमावइ आरारा. तैयार करे, [चढवे, रांधे] चित्कार] [हिं.करकना] [सं.कर्मापय्] करकरो * नरका. प्रेमाका. [खरबचडो], कमावीइं आरारा. -नी तैयारी थाय घसाया विनानो [सिक्को]; अखाका. कमेडी वीसरा. एक जातनुं कबूतर *कठण, [करडो, आकरा स्वभावनो] कमोवनी दशस्क(२). कुमुदिनी करकस, करकसु * वसंफा. "वसंफा(ल). कमूहरति हम्मीप्र. खराब मुहूर्तमां *वसंवि. वसंवि(ब्रा). विमप्र. आकरा, कम्म उपबा. कर्म; तेरका. नेमिछं. कर्म- [दृढ, कसीने] (सं.कर्कश) (बंधन) करखे नरप. खेंचे, [*उत्तेजित थाय] (सं. . कम्म *जिनरा. [कार्मण शरीर - जे जीवने कृष्) [हिं.] वळगेलां कर्मोनुं बनेलं होय छे, आ करगर *अखाका. "कर्पूमं. विक्ररा. "विमप्र. शरीरनी प्राप्ति करावनार नामक [जै.] कचकच, [ककळाट]; जुओ किरगिरइ कम्मपयडि ऐतिका. कर्मप्रकृति, [कर्म- करजडो अभिऊ. [कणजी], कणेजरो, एक बंधनना प्रकार] प्रकारनो छोड [सं.करंज] कय * नलरा. प्राचीसं. अथवा, के करजाळी दशस्क(२). कजराळी, काजळनी कयत्व तेरका. कृतार्थ दाबडी कयर आरारा. उक्तिर. नलरा. एक वृक्ष- करट ऐतिका. हाथी गंडस्थळ, लमj [सं.] विशेष, केरडो (सं.करीर) करटि ऐतिका. हाथी [सं.] कयलि प्राचीसं. केळ (सं.कदली) करडउ जुओ सरडउ कयवन्नउ प्राचीसं. कयवन्नो, कृतपुण्य, एक करडि प्राचीसं. वाद्यविशेष दि.करटी] श्रावक नाम करण आरारा. लावल. कर्ण, कान कयवार प्राचीफा. "विमप्र. प्रशस्ति; जुओ करणइ *गुर्जरा. नेमिछं. विमप्र. रडे, आनंद कइवार करे, [कणसे] कयंब तेरका. कदंब करणकतूहल *गुर्जरा. [ज्योतिषविषयक कया कृष्णबा. काया (छंद खातर 'कया') एक ग्रंथ, ज्योतिषशास्त्र] (सं.करणकयाणउं प्राचीसं. करियाणु (सं.क्रयाणकम्) कुतूहल) कयावि जिनरा. कदापि, [क्यारेय] करणढ चंद्रवा. करणाट नामे एक वाध; 2010_03 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश करणहार/करल जुओ करणाट करपी नंदब. प्रेमाका. *मदमो. कृपण, करणहार, करणहारु उक्तिर. उपबा. नलरा. कंजूस; मदमो. -, [कृपण] जुओ करनार (सं.करण+कार) . क्यरपी, क्रपी करणाट रूस्तस. एक वाजूं; जुओ करणढ करब तेरका. एक वनस्पति करणाहरु उक्तिर. करनार, करवा इच्छनार करबक गुर्जरा. कुरबक, [कांटासेरियो], करणी ऋषिरा.हस्तिनी, हाथणी (सं.करिणी) एक वृक्ष करणी विमप्र. काज, वरा करबुज दशस्क(२). कुब्जा, [कूबडी] करणी, करणीम नेमिछं. वसंफा. करभ आरारा. ऋषिरा. ऊंट (सं.) वसंवि(ब्रा). करेण (सं.कर्णिकार) करमा जुओ करपा करणीकर आरारा. हाथणीनी सूंढ (सं. करम प्रेमाका. कर्म, भाग्य; विमप्र. कर्म, करिणीकर) [भाग्यनिर्माण]; तेरका. कर्म[बंधन] करणीकर आरारा (व). गरमाळो (सं. करम प्रेमाका. डगला, पगलां (सं.क्रम) कर्णिकार) करमइता जुओ करमि करतम्य, करतव्य चित्तसं. कर्तव्य, कर्म, करम काढवां प्रेमाका. फळ पामवां, परिणाम क्रियाकारित्व मेळवq, [पराक्रम बताव, करताकारता अखेगी. कर्ता अने कारयिता, करता-कारवता करमना भोग प्रेमाका. नसीबनी माठी दशा करतार गर्जरा. प्राचीसं. सष्टिकर्ता, किरतार. करमने पार प्रेमाका. कर्म - भाग्य पण [ईश्वर] [सं.कर्ता न बनावी शके तेवू, असाधारण करतारथ आरारा. कृतार्थ करमपासो लावल. कर्मनां बंधन [सं. करतारि आरारा. *करतलमां, "हथेळीमां. कर्मपाश] [हाथमां] करमलो नरका. दहींमिश्रित भात [सं.करंभ] करतुत, करतुं, कत्रुत प्रेमाका. वेताप. करमा-धरमा प्रेमाका. करेलां कर्म अने धर्म सिंहा(शा). करतूक, [कार्य, कृत्य], प्रमाणेना, [कर्मधर्म अनुसार] आचरणरूप प्रवृत्ति करमि (करमिता, करमइता) लावल. कर्मी, करपट, करपटि आरारा(व). तेरका. कार्य- कुशळ करपटी, कांकडनुं झाड करमो दशस्क(१). नरप(द). प्रेमाका. दहींकरपण आरारा. कृपण, लोभी भात (सं.करंभ) करपा लावल. करपडी, “कापवानुं एक करयल गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. हथेळी, ओजार, [*दांता] हाथ (सं.करतल) 'करपा ['करभा] * लावल. [मदनियां] करल आरारा. प्राचीफा. वाळ, वाळनो ___ 2010_03 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश करसणु उक्तिर. खेती ( सं . कर्षण) करसाण * अखाका. [अग्नि] [सं. कृशानु ] करही * उषाह. [करेढी, गढ के महेल परनी रक्षको माटेनी ओटली के पाळ] करह, करहउ, करहु उक्तिर. प्राचीफा. वीसरा. षडाबा. ऊंट (सं.करभ); अभिऊ. ऊंट, [सांढणी ] करहला आरारा. ऊंट (सं. करभ) लोटो. करहा विमप्र. करा ( बरफना) [सं. करक] करवतुं * हरिख्या. [डंगोरी, नानी डांग ] करहा, करहां उषाह. विमप्र. ऊंट (सं. [सं. करवेत्रक] करभ) करवर तेरका. एक वनस्पति, [* करवीर, करहु जुओ करह "करेण] करलकेस / कराडा बांधेल गुच्छो (सं. कुरुल); जुओ कुरुल करलकेस रूपच. वांकडिया वाळ (दे. कुरुल+ सं. केश) करलीइ ऐतिरा. कचवाय, [ककळाट करे ]; जुओ कुरलइ करवउ गुर्जरा. विराप. करवडो, [नाळचा - वाळो लोटो] (सं.करक) करast दशस्कं ( 9). प्रेमाका. नाळचावाळो करवरु * विमप्र. [मृत्यु ] करवंदी तेरका. करमदी ( सं . करमर्दिका) ९२ करवाल आरारा. गुर्जरा. विक्रच. विक्ररा. शीलक. तलवार (सं.) कर्षण) करणी मदमो. खेडूत ( सं . कर्षण + ई) करसउ उक्तिर. खेडूत ( सं . कर्षक) करसण अखाछ. अखेगी. ऐतिरा. कृष्णबा. * लावल. खेती, वावेतर [सं. कर्षण ] करसणी अखाछ. अखेगी. उपबा. सम्यचो. खेडूत (सं.कर्षण + इ) 2010_03 करंक ऋषिरा. कस्तुवा. हाडपिंजर, हाडकां करवालुं प्रेमाका. देवाकुं करवी लावल. करवडी, नाळचावाळी लोटी करंबउ उक्तिर. दहींमिश्रित भात (सं. [सं. करक] करवीर तेरका. एक वनस्पति, [करेण] (सं.) करशंपुट करी कामा (शा). हाथ जोडी करशण सिंहा (शा). खेती, ऊभो मोल (सं. (सं.) करंकइ प्रचु. ( कागडो) ककळे करंगी प्राचीफा. हरणी (सं. कुरंगी) करंड ऋषिरा. कादं (शा). विक्रच. करंडियो (सं.) करंभः) करंबक गुर्जरा. दहींमिश्रित भात (सं. करंभक) करंबला, करंबा नेमिछं. लावल. दहींमिश्रित भात ( सं . करंभक) करंबु, करंबुलउ आरारा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). दहींमिश्रित भात करंम मदमो. कपाळे; जुओ कर्म कराअइ उक्तिर. कराय कराड नरका. भेखड कराडा दशस्कं ( २ ). भेखडो Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ९३ कराडी/कर्बुज कराडी आरारा. करावीने करीमि कादं(शा). हाथीमय, हाथीथी भरपूर करार, करारु आरारा. मदमो. शांति, शाता (सं.करिमय) *करी लंकनी ["केसरी-लंकनी] करालिउ, करालिय, करालियन, करालीय सिंहा(शा). [सिंह जेवी कमरवाळी] उक्तिर. गुर्जरा. वसंफा. वसंफा(ल). करीस उक्तिर. छाणुं (सं.करीषः) वसंवि(ब्रा.) पीडित (सं.करालित) करुण *गुर्जरा. तेरका. एक वनस्पति, करावणहार षडाबा. करावनार [करुणी] करावणु षडाबा. करावq ते करुण पलाव चारफा. करुण प्रलाप, आनंद करा मोसाच. करे; पंचवा. करीशं. किरुं] करुणी, करुणीअ *वसंफा(ल). "वसंवि. करांबला, करांबुला *वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). एक पुष्पवृक्ष (सं.) वसंवि(ब्रा). एक वक्ष [बिजोरी के करुंडइ आरारा. करंडियामां (सं.करंड) करमदी (सं.कराम्लक) करूंबु उषाह. दहीमिश्रित भात (सं.करंभ) करांबुलु वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा.)करंबो. करूप नलाख्या. कुरूप, कद्रपुं [दहींमिश्रित भात] (सं.करम्भक) करेळी प्रेमाका. *कमकमाटी, [रोषनी झाळ] करि आरारा. विमप्र. जाणे के (सं.किल) करेवउ आरारा-शु. कागडो (रा.) करि देवरा. -थी, थकी करो *नंदब. [खेडूत] [रा.करौ] करिअल *गुर्जरा. [हाथ] (सं.करतल) करोट, करोटक, करोटी षडाबा. एक वासण, कटोरो (सं.) करिकुंभा ऋषिरा. हाथीनां कुंभस्थळ " करोडि गुर्जरा. करोड [संख्या] (सं.कोटि) [- लमणां] (सं.करिकुम्भ) करोत चंद्रवा. करत करि जाणे उषाह. जाणे के करोस प्रबोप्र. करीश करियल कृष्णच. चारफा. स्थूलिफा. हाथ कर्णाटो प्रेमाका. कनातो, तंबुनी कपडांनी (सं.करतल) करिवलं उक्तिर. करवू कर्णिके विमप्र. कानमा [सं.कर्णके] करिवाल प्राचीफा. तलवार (सं.करवाल) माका कर करिंदो गुर्जरा. करीन्द्र, उत्तम हाथी कर्तुमकर्तुम् दशस्कं(१). प्रेमाका. करवाने करी प्रेमाका. हाथी [सं.करिन्] अने न करवाने, सर्जवाने अने नष्ट करी नरका. परहेजी, चरी करवाने करी आरारा. देवरा. -ने लईने, -थी वडे कर्ष प्रेमाका. कृप, कृपाचार्य करी (तीणि करी) "विराप. [तेने लीधे, कासनां वस्त्र उक्तिर. सुतराउ वस्त्र तेवी रीते] कर्बुज प्रेमाका. कूबडी भीत 2010_03 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्म/कलम ९४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कर्म आरारा. नरका. प्रेमाका. भाग्य; (सं.) दशस्क(२). प्रेमाका. कपाळ, ललाट; कलगलीय गुर्जरा. कोलाहल करी (सं. जुओ करंम कलकल्) कर्मइजिनइ षष्टिप्र. कर्मने ज कलगेर प्रेमाका. एक प्रकार- रेशमी वस्त्र कर्मक्षयावाप्त आनंस्त. कर्मक्षय करीने प्राप्त के रेशमी साडी करेलु [सं.] कल छूटवी चित्तसं. कळ वळवी, मूर्जा दूर कर्मडा प्रेमाका. "तुच्छ कर्मो, “चेनचाळा, थवी [*भाग्य] कलण अखाछ. चित्तसं. कलन, कळवू कर्मनिकाय ऋषिरा. कर्मसमूह(सं.) (समजवू) ते कर्मलडो मोसाच. [दहींमिश्रित भात], कळण अखाका. खूची जवाय एवो कादव [करमानो] कोळियो [सं.करंभ] कलणा अखाछ. कलना, कळवू ते कर्मविपाक आनंस्त. आरारा. कर्मनो कलतरु सिंहा(शा). [खेतरमा पाकेतुं] धान्य परिपाक, परिणाम [सं.] कळनार, [अंदाज काढनार] [सं.कल् . कर्मी नेमिछं. (मोटा) कर्म करनारो, परथी ?] [पराक्रमी; भाग्यशाळी] [सं.] कळतो अखाका. [कादवमा] खूची जतो काइ विमप्र. करमाय, चिमोडाय कलत्र आरारा. नरका. प्रेमाका. स्त्री, पली [सं.कूर्मायते] (सं.) कोस ललिस. करीश, [*करशो, “करशे] कलत्रुक वेताप. खेतरमा पाकेतुं धान कल प्राचीसं. कादव [प्रा.; सं.कल्क] कळनार, [अंदाज काढनार] [सं.कल् कल षडाबा. [स्थळन] अंतर, [योजननो परथी ?] एक अंश] [जै.] क्लपइ आरारा. देवलोकमां (सं.कल्प) कल चतुचा. कळियुग [सं.कलि] कलपतरो गुर्जरा. कल्पतरु कलक वेताप. औषधनो छंदो, [चूर्ण] (सं. कलपना * नरका. [दुःख, पीडा] . कल्क) कळपना अखाका. नरका. प्रेमाका. कल्पांत, कलकलइ गुर्जरा. विराप. कोलाहल करे, दुःख, वलोपात गाजे; कादं(शा). ककळाट करे; कळपावो प्रेमाका. दुःखी करो *चित्तसं. "नेमिछं. [तपे, धगे, दाझे] कलपांत गुर्जरा. प्रलय (सं.कल्पान्त); जुओ कलकलतउं षडाबा. कळकळतुं, ऊकळतुं, कल्पांत दाझतुं (सं.कलकल्) . कलपे उक्तिर. प्रेमाका. कळपे, कल्पांत करे कलकंठी ऋषिरा. [मधुर कंठवाळी स्त्री] कलम ऋषिरा. चोखानी एक उत्तम जात 2010_03 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.) कळाकर प्रेमाका. मोर कलमाधुरी नरका. अवाजनी सुंदरता, [स्वर- कळा पाडी नरका. प्रेमाका. [शरीरनी कांति झांखी पाडी], स्वरूप ढांकी, नवुं स्वरूप माधुर्य] करी कलमे शरीख अखाछ. कलामे शरीफ, कुरान कलयल गुर्जरा. तेरका. प्रद्युचु. कोलाहल कलामीय वसंफा. क्लान्त, थाकेल (सं. क्लामित) (सं. कलकल) कळवकळ अखाछ. युक्ति अने विशेष युक्ति, कळा मूके प्रेमाका. क्षीण थाय, [कांति [युक्तिप्रयुक्ति ] ओछी करे ] कलायु लावल. कळायो, समजायो, ओळखायो कळवकळिया प्रेमाका. युक्तिबाज, विचक्षण कळविकळ * नरका. [युक्तिप्रयुक्ति ] कलवो प्रेमाका. वरने जानीवासेथी नीकळतां पहेलां कन्यापक्ष तरफथी मोकलवामां आवतुं हळवुं भोजन, [सं.कल्यवर्त]; जुओ कलुवो; कलेवउ कलाल उक्तिर. विक्रच. मद्य दारून वेपारी ( सं . कल्यपाल ) कलावी शृंगामं. कलापी, मोर कलश नेमिछं. समाप्तिनी कडीओ (सं.) कलस, कलसा तेरका. वसंफा. वसंवि (ब्रा). षडाबा. कळश, घडो कलहंसा ऋषिरा. हंस, [एक हंसजाति] (सं.) कलही चित्तसं. कलाई, सीसानो ढोळ कलंकिय, कलंकीय वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). कलंकित, जेनामां डाघ छे ते · ९५ कुटुंबी) कला, कळा हरिख्या. मुखकळा, मुखमुद्रा, [शरीरकांति ]; वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). (चंद्रनो) अंश, भाग कलाई उक्तिर. कोणीथी कांडा सुधीनो हाथनो भाग [प्रा. कलाइआ ] कलाउ प्राचीफा. [ मोरनो ] कलाप 2010_03 कलमाधुरी / कलिय कलंबी नलरा. ललिरा. कणबी, खेडूत (सं. कलिउ कादं (शा). नेमिछं. प्रेमप. जाण्यो, ओळखयो [सं. कलितः ]; * कादं (शा). नलाख्या. नेमिछं. प्रेमाका. डूब्यो, खूंप्यो, [गरकाव थयो] (सं. कलितः) कलि-कुरंग * लावल. [पापबुद्धिनो खराब रंग] कलांण कामा (शा). चंद्रवा. कल्याण कलि ऐतिरा. कळवामां, समजवामां कलि आराम. काळे (सं. काल) कलि तेरका कलियुग कलि, कळि आरारा. वीसरा. कजियो, झघडो (सं.) कलिट्टु * षष्टिप्र. [कठिन, क्लेशजनक ] (सं. क्लिष्ट) कलि ज विराप समज ज, मान ज कलिय, कलीय वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). (फूलनी) कळी; * वसंफा. वसंवि (ब्रा). Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलुवो/कवाड्यउ ९६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (दीवानी) शग (सं.कलिका) कल्पांत गुर्जरा. अखाका. विराप. युगनो कलुवो नरका. कलवो, परणवा आवनार अंत, प्रलय (सं.); दशस्क(१). कल्पांत वरने म्राटे कन्यापक्ष तरफथी मोकलवामां कारी, भयंकर; जुओ कलपांत आवतुं जमण- भाj [सं.कल्यवर्त]; कल्मष हरिख्या. पाप, मळ (सं.) जुओ क़लवो कल्याणय तेरका. कल्याणक, जिन कलुस तेरका. कलुष, मिल] __ भगवानना जीवनना मंगल अवसर] कतुहु प्रबोप्र. कजियो (सं.कलह); जुओ कल्यावंत अंबरा. कलावंत कलवो कल्लाणवल्ली लावल. कल्याणरूपी वेली कलेवउ उक्तिर. कलवो, कन्यापक्ष तरफथी कल्लाळ *वीसरा. [शराब वेचनार] (सं. वरने अपातुं प्रारंभिक हळवू भोजन कल्यपाल) (सं.कल्यवत) कल्लां प्रेमाका. कडलां, स्त्रीओना पगनांकांडां कलो नंदब. जाणो पर पहेरवानां घरेणां [सं.कटक+लां] कलो अखाका. अखाछ. नरप(द). कलह, कल्लोल प्रेमाका. छोळ, मोजां कजियो कल्हार आरारा (व). धोढुं सुगंधी कमळ कलोडी दशस्कं(१). प्रेमाका. एके वेतर न (सं.कलार) थयेली गाय, [वाछडी] (द.कल्होडी) कल्होडउ उक्तिर. वाछडो (द.) कलोल ऋषिरा. प्रेमाका. विमप्र. कल्लोल, कवडउ उक्तिर. कोडो (सं.कपर्दकः) आनंद; चित्तसं. कल्लोल, [सागरनां] कवडप्रपंच गुर्जरा. कपटजाळ मोजां कवडि-जक्खप्राचीसं. एक यक्ष, कपर्दियक्ष कल्प प्रेमाका. चार युग जेटलो समय कवण आरारा. गुर्जरा. तेरका. दशस्कं(१). कल्प अखाका. *-ने योग्य; [*कामकला, नरका. प्रेमाका. रूपच. लावल. कोण, *कामोपभोग] केवो, कयो, शो (सं.कः पुनः) कल्पद्रम गुर्जरा. कल्पवृक्ष कवरघु प्रेमाका. वधु पडतुं खराब, [वांकुं, कल्परस *अखाका. [*कामरस, *कामोप- अघटित] भोग] कवराव ऐतिका. कविराज [रा. कल्पवरखी चतुचा. कल्पवृक्ष समी कवर्ते अखाका. खराब रीते वर्ते कल्पवेलि आनंस्त. इच्छित फळ आपनार कवली जुओ कमली वेल [सं.] कवाड उक्तिंर. कमाड (सं.कपाटम) कल्पा गुर्जरा. [धारेला], निश्चित करेला कवाड्यउ * वीसरा. [खवायेखें, भांग्युंतूट्यु, (सं.कल्पिता) सडेलु] जुओ कबाड्या 2010_03 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ९७ कवि/कसा कवि लावल. केटलाये (सं.के अपि, प्रा. मान, माया, लोभ ए चार संसारहेतुओ केवि) __ कषायां नलाख्या. खराब, गंदा (सं.कषाय) कवि आरारा. कवे, वर्णवे (सं.कवति) कषियइ षडाबा. खेंचाय, घसडाय (सं.कष्) कवित, कवित्त गुर्जरा. प्राचीसं. विराप. कष्टइ नलाख्या. प्रेमाका. कष्ट आपे, दुःखी काव्य (सं.कवित्व) करे कविता, कवीता अखाछ. अखेगी. कर्पू. कस लावल. कोई (हिं.किस) कामा(शा). प्राचीका. प्रेमाका. मदमो. कस जुओ कसप्रहार कवयिता, कवन करनार, कवि कसउटउ उपबा. कसोटी करवानो पथ्थर कवियण आरारा. नेमिछं. विक्ररा. कविजन तिना समो. परीक्षा करनारो] (सं. कवियणजण नेमिछं. कविजनोनो समूह कषपट्टक) कविलउ, कविळउ उक्तिर. वीसरा. घेरा कसकसी नरका. खेंची, ताणी, [कसीने, बदामी रंगनुं (सं.कपिलः) तंग करीने] [सं.कष्] कविळास वीसरा. कैलास पर्वत (प्रा.) कसण अखाका. "अभिऊ. कादं(शा). कविसमय वाग्भबा. काव्यरचना अंगेनी नरका. नरप(द). प्रेमाका. "स्थूलिफा. प्रचलित संकेतपरंपरा, [काव्यरूढि] __ हरिवि. कस, चोळी के कापडाने कवीता जुओ कविता बांधवानी दोरी [सं.कशा] कवीयण जुओ कवियण कसतां *प्रेमाका. [कसकसतां, कूदतां] कव्व ऐतिका. काव्य कसत्तुरीय गुर्जरा. कस्तूरी (सं.कस्तूरिका) कव्वट्ठ ऐतिका. कवित्त, काव्य कसथूरिय प्राचीफा. कस्तूरी (सं.कस्तूरिका) कशकशतो * मदमो. [थनगनतो] कसपहार आरारा. चाबुकना प्रहार (सं.कशकशण नरप. कापडानी कस - दोरी [सं. प्रहार) कशा] कसमस, कसमसतु प्राचीसं. प्रेमाका. कशिम, कसिम प्राचीका. कुसुम, फूल लावल. खेंचातुं, तणातुं, [कसकसतुं], कशुं चित्तसं. केटलुं [सं.कीदृशकम्] तंग कश्चपी मदमो. कश्यपनी, आसुरी कसमसे नरका. खूब खेचाय, [तंग रहे] कश्यपसुत, कस्यपसुत कामा(वि). कसमीर उक्तिर. तेरका. काश्मीर देश (सं. कामा(शा). सूर्य कश्मीराः) कष देवरा. कष्ट कसवट्टउ प्राचीसं. कसोटीनो पथ्थर (सं. कषाय अखाका. आनंस्त. आरारा. उपबा. कषपट्टकः) ऐतिका. चित्तविकार, दुर्वृत्ति; क्रोध, कसा लावल. कोई (हिं.किस्या) __ 2010_03 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कसार/कहीइ ९८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कसार प्राचीसं. कंसार दि.] झाड (सं.कोशाम्र) ? कसि नलरा. कसोटी (सोनानी), [कस, कहइ आरारा. क्याय आंक] (सं.कष) कहण आरारा. ऋषिरा. नलरा. पंचवा. कसिउं नलरा. शुं, [कोई]; [कम, शा वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). कहेवू ते (सं. माटे] (सं.कीदृशकम्); लावल. शुं, केवु कथ्) कसिण नेमिछं. काळी (सं.कृष्ण) कहणहार उपबा. कडेनार कसिम जुओ कशिम कहने चतुचा. क्यां कसिया प्रेमाका. कसेला [सं.कषित] कहर ऐतिका. "मोत, दैवी आफत] [अ. कसी उक्तिर. चाबुक (सं.कशिका) कह] कसी आरारा. लावल. केवी [हिं.कैसी] कहरा कस्तुवा. करा, [वरसादी बरफना कसीदो कामा(शा). जरीनुं भरतकाम [फा. कणो] [सं.करक] ___ कशीदो]; जुओ हाथकसीदो कहं षष्टिप्र. तुं कहे (छे) कसुटी विमप्र. कसोटी [सं.कषपट्टिका] कहा ऋषिरा. कथा कसुं मदमो. शुं [प्रश्नार्थक (सं.कीदृशकम्) कहाणउ जिनरा. कहेवायो कसुबो नरका. कसुंबनां फूल [जे केसरी कहाणी उक्तिर. प्राचीफा. वात, वृत्तान्त, - लाल रंगनां होय छे] घटना] (सं. *कथानिका) कसुंभउ आरारा(व). कसुबो (सं.कुसुम्भ) कहाणी लावल. कहेवाई कसूंबिया नरका. कसुंबाना रंगना - लाल कहां * षडाबा. [कहे छे] रंगना कहि नलरा. वाग्भबा. कोई (सं.कापि);) कसे प्रेमाका. पीडे, दुःख दे [सं.कष्] उपबा. षडाबा. कोण; जुओ कही कसै जिनरा. कष्ट आपे कहि न चारफा. कहे ने कस्मली गुर्जरा. विराप. श्याम - धूंधळी कहियइ उक्तिरक्यारे,क्यारेक (सं.कश्मलित) कहि, कहीं षडाबा. क्यारेक, कोई वखते; कस्यउ लावल. कसेलो, [*खेंचीनेबांधेलो], प्रेमाका. क्यांक; [क्यारेय]; नरका. [*केवो, *केवो सुंदर] क्यांय, कोई स्थळे; चित्तसं. क्यां; शुं कस्यपसुत कामा(त्रि). सूर्य; जुओ कश्यप- कही चतुचा. कई; षडाबा. कोई (सं. सुत कस्यापि); आरारा. क्यांय, कदी; तेरका. कस्युं प्रेमाका. कशें, केवू, शी गणनामां [सं. क्यांय (सं.कस्मिन्); जुओ कहि, क्यहीं कीदृशकम्]; चित्तसं. कडे कहीअं गुर्जरा. क्यां (सं.कस्मिन्+चित्) कह-अंब आरारा(व). कोसंबो - लाखनुं कहीइ आरारा. कादं(शा).क्यारे (सं.कस्मात् 2010_03 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (सं.) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ९९ कहीइ/कंठ परथी); आरारा. क्यांय; उपबा.क्यांय; कंचल उषाह. कांचळी [सं.कंचुक] क्यां; उक्तिर. क्यारेय; जुओ कंहीए. कंचवो नरका. कांचळी, कमखो [सं.कंचुक] कहीइ उपबा. एटलेके जा एटलेके कंचु नरका. कंचवो, कमखो (सं.कंचुक) कही चाहीजइ आरारा. कहेवी जोईए कंचुक वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). कांचळी कहीं जुओ कहिं कहींइ कादं(शा).क्यारे पण, [क्यारेय] कंचुकिउ विराप. [मुंबख्तर पहेयुं छे एवो, कहींए प्रेमाका. क्यारे; चित्तसं. क्याय -ना आवरणवाळो]; जुओ कुंचुकिउ कहींएक प्रेमाका. क्यारेक कंचुकी प्रेमाका. कांचळी, कमखो [सं.] कहींय उक्तिर. क्यारे, क्यारेय कंचुयउ वीसरा. कांचळी (सं.कंचुक) कहींये *प्रेमाका. [क्यारे] कंचुलिय, कंचुली अखेगी. तेरका. कांचळी कहूआलउ उक्तिर. कोलाहल (सं.कंचुलिका) कहइ कादं(शा). नलाख्या. प्रबोप्र. कने, कंचुवा देवरा. कांचळी (सं.कंचुककः) [नी पासे] [कर्णे कंचू प्राचीसं. वीसरा. कांचळी (सं.कंचुक) कहलि वाग्भबा. कने, पासे [सं.कर्णे] ___ कंचूअउ ऐतिका. कंचवो, कांचळी . कंक ऋषिरा. बगलो (सं.) कंचूअडउ लावल. कंचवो, कांचळी [सं. कंकण प्राचीका कंकर, कांकरो (सं.कर्कर) कंकणी चतूचा. घूघरी [सं.किंकिणी] कंचउं प्राचीफा. कांचळी (सं.कंचुक) कंकरी प्राचीका. दासी (सं.किंकरी) कंचोला प्राचीफा. कचोळां, प्याला (प्रा. कंकुम नलरा. कंकु (सं.कुंकुम) कच्चोलअ); जुओ कचोल कंकोडउ उक्तिर. कंकोडानुं झाड (सं. __ कंझार (लीलां कंझार) सिंहा(शा). (लीलां)कर्कोटक) दि.कंकोड] छम (कणझर उपरथी) कंकोडी अखाछ. अखाछ-टि. एक जातनी कठण माटी, एक वनस्पति, जे गठ्ठा कट गुजरा. कांटो (सं.कंटक) जेवी होय छे; आरारा(व). कंकोडा - कंटकसंकट वसंवि. कंटकोथी भरेला (सं. कंटोलानुं झाड (दे.कंकोड) कंटक+संकट) कंख * ऐतिका. [शंका] [सं.कांक्षा] कंटेलइ आरारा. ऊंटने प्रिय वनस्पति, कंचकी चतुचा. कंचुकी, कांचळी ___कंटोली, कंकोडी, ऊंटकंटो कंचण गुर्जरा. तेरका. लावल.कंचन, [सोनुं] कंठ आरारा. कंठमाळ, ए नामनो रोग कंचनवनि गुर्जरा. कांचनवर्णी, सोना जेवा कंठ अखाका. किनारे, कांठे; जुओ कूआवाननी कंठ 2010_03 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंठमां (कंठे) कांटा पडवा/कसाल १०० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.) कंठमां (कठे) कांटा पडवा अखाका. कदली); जुओ कदलि, कदली प्रेमाका. खूब तरस लागवी, शोष पडवो कंदुक ऋषिरा. प्रेमाका. दडो (सं.) कंठीर (कंठीरव) ऐतिका. सिंह [सं.] कंदू चारफा. कुंदनां फूलो "कंडिलंक [कडिलंक] स्थूलिफा. केडनो कंद्रप नरका. कामदेव [सं.कंदप]; चित्तसं. लांक - वळांक [सं.कटि+दे.लंक] कामवासना *कंडीउ [कडीउ] नलरा. कडियो (द. कंध जुओ कन्ध कडइअ) कंधरा अखाका. कादं(शा). गरदन, डोक कंडक दशस्कं(२). कंदुक, दडो कंत, कन्त आरारा. गुर्जरा. तेरका. नलरा. कंपवाय प्रेमाका. कंपवायु, कंपारी, धुजारी प्रबोप्र. लावल. पति, कंथ (सं.कान्त); कंपीर तेरका. एक वनस्पति ("कंपिल्ल, आरारा. प्यारा (सं.कान्त); जुओ कंन कपीलो) *कंन [कंत] *प्राचीफा. [कान्त, प्रियतम] कंब, कंव नलरा. प्राचीफा. सोटी, छडी कंता आरारा. लावल. कान्ता, पली; पति, (सं.कम्बा) कंथ (सं.कान्त) कंबलि उषाह. आभूषणविशेष, कांबडी, कंति, कंती ऐतिरा. तेरका. नेमिछं. कान्ति, बंगडी] प्रकाश, रूप कंबु प्रेमाका. शंख (सं.) कंथा ऋषिरा. गोदडी, [चीथरानुं वस्त्र, साधु- कंबुवत दशस्कं(१). शंख जेवो वस्त्र (सं.) ___ कंबोज नलरा.एक देशनाम, अफघानिस्तान कथेर आरारा(व). मदमो. एक हलकी (सं.कांबोज) कांटाळी वनस्पति (सं.) कंभ प्राचीफा. घडो (सं.कुम्भ) कंद "अखाका. गुर्जरा. नरका. लावल. कंमिण ऐतिका. कर्मथी, कृत्यथी मूळ, गांठ (सं.); चित्तसं. मूळ, मूळ कंव जुओ कंब स्थिति . कंवल *षडाबा. [गायझेस वगेरेने गळामां कंदए वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). खांडे, नीचे लटकती चामडी] [सं.कंबल]; चूरो करे (सं.कंडयति) जुओ गलकंवल कंदर्प-दर्प-तर्प प्रेमाका. कामदेवना गर्वने कंस नलाख्या. पात्र, वासण, (लक्षणार्थ) तृप्त करे तेवा विचार, आत्मा, [जात, प्रकृति] कंदल " नेमिछं. प्रद्युचु. लडाई, [झघडो], कंसाल आरारा. उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. _वादविवाद (सं.) तेरका. प्राचीसं. स्थूलिफा. एक वाद्यकंदली दशस्कं(१). दशस्कं(२). केळ (सं. विशेष - कांसीजोडना प्रकारचं (सं. 2010_03 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कांइ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १०१ कंहीए/काछली . कांस्यताल, कांस्याल) कागलउ, कागुलउ वसंफा. वसंफा (ल). कंहीए चतुचा.क्यांये, क्यारेय; जुओ कहीइं वसंवि. वसंवि(ब्रा). कागडो (सं.काकः) का षडाबा. कोई (सं.) कागळ चढशे लेखे प्रेमाका. भणतर लेखे काअ कामा(त्रि). कोई पण [सं.काऽपि]; लागशे, सफळ थशे काइ आरारा. कोई [सं.काऽपि] काग-वांझ प्रेमाका. एक ज वार फळनार काइ तेरका. शं (सं.किम. अप.काई), जओ वनस्पति [सं.काकवध्या] ___ कागिणी *उपबा. [कोडी, एक मूल्य काइ चित्तसं.काया, शरीर; षडाबा. कायाथी तरीके] (सं.काकिनी) काइया षडाबा. शारीरिक (सं.कायिका) कागु उक्तिर. कागडो (सं.काक) काइर प्रबोप्र. बायलो (सं.कातर) कागुलउ जुओ कागलउ काई गुर्जरा. तेरका. वीसरा. षडाबा. केम, काचकी बाझवी प्रेमाका. शोष पडवो, गर्छ शा माटे (सं.कानि; अप.काई) सुकाई जर्बु काई गुर्जरा. कांई, कंईक; षडाबा. कांई, काचली जिनरा. लाकडानु नानकडु पात्र, कंई (सं.कानिचित्) [नाळियेरनुं भांगेलुं कोचलु]; जुओ काउसग, काउसम्ग आरारा. उक्तिर. काछली ऐतिका. देवरा. षडाबा.कायोत्सर्ग, देहथी काचसकल जिनरा. काचना टुकडा [सं. पर थर्बु ते, एक जैन ध्यानक्रिया काचशकल] काकडासींगी उक्तिर. एक वनस्पति (सं. काछ नलरा. कच्छ देश कर्कटशृंगिका) काछ नरका. प्रेमाका. कच्छ, कछोटो; जुओ काकबउ षडाबा. शेरडीनो अर्धो काढेलो वाच-काछ काछउ उक्तिर. कछोटो (सं.कच्छः) काकर, काकरउ, कांकर अखाका. अंबरा. काछ कछवो दशस्कं(१). कच्छो मारवो, उक्तिर. विमप्र. कांकरो (सं.कर्कर) कछोटो बांधवो] काकीडउ उक्तिर. काचंडो (दे.कलिंड) काण्ड नलरा. काछडो, कछोटो (सं.कक्ष काकूबर उपबा. वृक्षविशेष, [एक जातनो +ड)] उंबरो] [सं.काकोदुम्बर] काछडा (काछडा करवा) *अभिऊ. [*पेंतरा काख बजाई जिनरा. काखली कूटीने, करवा] . आनंदमां आवीने काछबा उपबा. काचबा (सं.कच्छप) कागभु प्रेमाका. "रथ उपर फरकती धजानो काछली जिनरा. लाकडा- नानकडु पात्र, दंडो, [*रथनु अडा आगळy लाकडु] [भिक्षापात्र]; जुओ काचली रस ___Jainमध्य.७tion International 2010_03 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काछवज/काणि . १०२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश काछवउ उक्तिर. षडाबा. काचबो (सं. काटयउ उपबा. काट लागेलो, [मार कच्छप) मरायेलो, हणायेलो] काछ वाच निकलंक जिनरा. चारित्र्यमां काटल लावल. वजन करवानां काटलां अने वाणीमां निष्कलंक काटी उक्तिर. लोखंडनो काट दि.कट्ट; काछे वेश *अखाका. [वस्त्र पहेरे]; जुओ रा.] काछ कछवो काट्ठ कर्पूमं. लाकडु (सं.काष्ठ) काज उपबा. गुर्जरा. देवरा. कार्य, काम; काठ उक्तिर. मदमो. वीसरा. लाकडु ___ *उपबा. गुर्जरा. प्रयोजन, कारण काठउ उक्तिर. जिनरा. नेमिछं. कठोर, पाकं, काजइ आनंस्त. गुर्जरा. प्रबोप्र. माटे [सं. मजबूत [सं.कष्ट] कार्ये काठ खावं, काष्ट मुख दे, काष्ट लेवं काजउ * षडाबा. [कचरो, पूंजो] दि.कज्ज] पंचवा. चितामा प्रवेशी बळी मरवू काजगरउ *अखाका. उपबा. चित्तसं. काठिमी, कांठिमी उषाह. काष्ठमय, उपयोगी, काममां आवे एवं, [फायदा- लाकडानी]; काष्ठ- बळतण कारक] (सं.कार्यकारक) काठिया, काठीआ, काठीया उक्तिर. काजल हरिवि. काळी गाय ? [जेनी *गुर्जरा. प्राचीफा. लावल. जे कारणोथी आंखना चारे बाजुना भाग काळा होय जीव हितकारी ज्ञान प्राप्त न करी शके एवी गाय] [हिं.काजरी] ते आळस वगेरे तत्त्वो (जै.) (सं. काजळराणी * नरका. [काजळिया त्रीज, *कष्टिक) श्रावण वद त्रीज] काठीहारउ उक्तिर. कठियारो (सं.काष्ठकाजलवाइ *गुर्जरा. [काजळभरी] (सं. हारकः) कजल-) काढउ वीसरा. काढो, उकाळो (सं.क्वाथ) काजळी नरका. वीसरा. [काजळिया त्रीज, काण आरारा. जिनरा. *हरिख्या. संकोच, श्रावण वद त्रीज], एनो उत्सव शरम (रा.); *अखाका. संकोच जुओ काजु विराप. कार्य; षडाबा.काम; [उपयोग] काणि काट- अखाका. कापy वीसरा. (दिवस) काणण गुर्जरा. कानन, जंगल निरर्थक पसार करवा (सं.कर्तति) [हिं. काणि, काणी, कांणी *अंबरा. आरारा. काटना प्रद्युचु. *प्राचीसं. हरिवि. शरम, संकोच काट *अखाछ. दांतथी कापीने, कटकट (रा.); *कर्पूमं. [संकोच, खटक, शल्य]; करीने]. *नलाख्या. [संकोच, खटक, वसवसो] काटका गुर्जरा. प्रेमाका. कडाका, मोटा *प्राचीका. [कष्ट] [हिं.कानि]; * वीसरा. सिंकोच, कुलमर्यादा, लोकलज्जा; कष्ट, अवाज 2010_03 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दुःख ]; * गुर्जरा. [संकोच, खटक, वसवसो]; सम्यचो. खोट, हानि, जुओ काण, कुलकाणि, मुहकाणि १०३ कातुं प्रेमाका. मोटी छरी [सं. कर्तक ] काथ नेमिछं. वीसरा. [ पानमां वपरातो ] काथो [सं. क्वाथ] काणीकथा चतुचा. कहाणीकथा काणेतर मोसाच. विचित्र दृश्य ?, [*कौतुक - कान्हड प्राचीफा. कृष्ण भर्यो बनाव, *विघ्नरूप घटना] काततउ उक्तिर. षडाबा. कांततो (सं. कृत्) कातरणी उक्तिर. ऋषिरा. कातर (सं. कर्तरी) कातरि उक्तिर. कातर ( सं . कर्तरी) कातरो अखाछ. केळांनी लूम कातळो अखाका. कातरो, केळांनी लूम कातिग वीसरा. कारतक ( सं . कार्तिक) काती उत्तिरं. प्रद्युचु. कारतक (सं. कार्तिक) काती अखाका. कामा (त्रि). प्रेमाका . छरी [सं. कर्तकी ] काणीकथा / कामदुधा कान्ह गुर्जरा. नेमिछं. वीसरा. कृष्ण कान्हअडा लावल. कृष्ण कान्हइ प्राचीसं. समीपे, कने [सं. कर्णे ] कान्हजी उषाह. कृष्ण 2010_03 काप उक्तिर. प्रक्षालन, धोवुं ते ( सं . कल्प) कापड षडाबा. कपडां, वस्त्र (सं. कर्पट) कापडी उक्तिर. कामा (त्रि). कामा (शा). *गुर्जरा. नलरा. विक्ररा. विमप्र. सिंहा (म). साधु, तापस ( सं . कार्पटिक) कापुरिस ऐतिरा. कायर पुरुष [सं. कापुरुष ] काबरउ षडाबा. काबरचीतरो, विविधरंगी [सं. कर्बुर] काम वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). कामदेव काम, कामइ आरारा. कामे, काजे, माटे, अर्थे कामकुंभोपम ऐतिका. कामकुंभ [ इच्छित वस्तु आपनार कुंभनी समान ] नी समान [सं.] कादम उक्तिर. प्राचीफा. षडाबा. षष्टिप्र. कादव (सं. कर्दम) कादी हम्मीप्र. काजी, इस्लामी विद्वान ( फा . ) कामगवी ऐतिका. जिनरा. कामधेनु कामण जिनरा. कामिनी कान आणेश जुओ आणेश कान कानडे लावल. कानमां [सं. कर्ण] * कानन पंचवा. काननां काना लगी प्रेमाका. [वासणनी] उपरनी किनारी - टोच - [धार ] सुधी कानिथी कादं (शा). कनेथी, पासेथी (सं. कर्णे) कामणगारिउ नलरा. कामण करनार, कामणगारो (सं. कार्मणकारक) कामणि, कामणी आरारा. वीसरा. कामिनी कामणियां नरका. कामण [सं. कार्मण ] कामणी नरका. कामण कर्यु, वश करी कामणी जुओ कामणि कानी उक्तिर. [*कमलनो बीजकोश, फळ- कामदुघा अखाका. कामधेनु, [इच्छित वस्तु नी डांखळी] [सं. कर्णिका ] आपनारी गाय] [सं.] Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामदुरघा/कारण १०४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आसन कामदुरघा दशस्क(२). मदमो. इच्छित काया हरिख्या. जात वस्तुओ आपनारी गाय, कामधेनु (सं. कायाकल्प अखाका. शरीरनुं रूपांतर, कामदुधा) [औषधिओनाउपयोगथीजर्जरितशरीरकामदुर्गा प्रेमाका. इच्छित वस्तुओ आपनारी ने नवु बनावq ते, एक सिद्धि] [सं.] गाय, कामधेनु (सं.कामदुघा) कायि प्रबोप्र. काजे, माटे (सं.काय) कामना क्रोड प्रेमाका. [जाणे] करोडो कायोच्छर्ग आरारा. देहथी पर थq ते, एक कामदेव प्रकारनीजैनध्यानक्रिया; जुओकाउसग्ग कामाक्षा नलरा. नलरा. कामाख्या देवीचं कार *कस्तुवा. देवरा. प्रेमाका. मदमो. पीठ ज्यां आवेलुं छे एवो प्रदेश, कामरूप शीलक. वक्कर, शाख, आबरू, अर्थात् आसाम [कुलवट] कामासण शीलक. कामशास्त्रमा वर्णवायेलां कार नलरा. एक प्रदेश (सं.कारा) कारग तेरका. करनारुं (सं.कारक) कामालय *गुर्जरा. [कामदेव- मंदिर] कारग *जिनरा. [शास्त्रानुसार शुद्ध क्रिया कामिणि गुर्जरा. विराप. कामिनी, स्त्री प्रा.] कामिय तेरका. कामी, प्रिमी] कारज अखाका. अखाछ. देवरा. नरका. कामिय गुर्जरा.अभिलाषावार्छ, [अभिलाषा- प्रेमाका. कार्य, काम, [प्रयोजन] ___ओमुं] कारज्य चित्तसं. कार्य कामी अखाका. कामनावाळो, इच्छावाळो कारज्यवादी चित्तसं. कार्यवादी, परिणामकामीक नलाख्या. काम्यक वन वादी कामीय वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). कामी- कारटउ उक्तिर. कायटुं, मरनारना जन, प्रेमीजन अगियारमा दिवसे करवामां आवती कामु, कांमु गुर्जरा. इच्छा; कामभाव, क्रिया के जमण रतिभाव; कामदेव कारटियो उक्तिर. प्रद्युचु. कायटियो, मरनारकामुक वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. ना अगियारमाने दिवसे करवामां आवती वसंवि(ब्रा). कामीजन, प्रेमीजन क्रिया करावनार ब्राह्मण, [हलको कामुरडां प्रेमाका. बाळको, नानां छोकरां ब्राह्मण] (सं.करट; दे.करट्ट) काम्य आनंस्त. इच्छित, [इष्ट, प्रिय, मन- कारण कामा(त्रि). [न बनवा जे], अकस्मात, उपाधि, संकट; कृष्णबा. काम्यउ * ऐतिरा. [इच्छ्युं, कामना करी] चमत्कार; दशस्कं(२). चमत्कारी, काय गुर्जरा. कांई (सं.कानिचित्) (दिव्य] कायउ वीसरा. शो, केवो (सं.किम् परथी ?) कारण (कारणरूप) कामा(त्रि).[चमत्कारी, गमता 2010_03 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १०५ कारण-अवतार/कालाखरिउ अवतार दिव्य]; जुओ कारणरूप कारीय वसंफा. करवामां आवी, [करीने, कारण-अवतार नरका. चमत्कारी [दिव्य] करावीने] . कारीया * हम्मीप्र. [करनार] [सं.कार] कारणइ आरारा. माटे, तरफ, उपर, -ने- कारु, कारू उक्तिर. नलरा. विक्ररा. विमप्र. उपायथी ___ गांछा, छीपा, लुहार, मोची, दरजी ए कारणपणइं उपबा. कारण तरीके, कारण पांच कारीगरजाति (सं.) कारुण्ण *ऋषिरा. [करुण, शोकभयु कारणरूप दशस्कं(१). प्रेमाका. अगम्य कारू जओ कारु शक्ति के परचों धरावनार, चमत्कारी, कार्तस्वर ऐतिका. सवर्ण [सं.] दैिवी, अद्भुत काल लावल. *काळ, "विनाश, ["विलंब, कारमुक नरका. ओचिंतुं *आवती काल] कारमुं आरारा. वेताप. कृत्रिम, बनावटी , कालक, काळक वेताप. काळप; अखाछ. दि.कारिम); मदमो. अद्भुत; प्रेमाका. काळप, कलंक; जुओ कालीक *अजुगतुं, [असाधारण, अद्भुत]; नवाईभयु, [आश्चर्यचकित]; [कोमळ, कालट, काळट दशस्कं(१). प्रेमाका. निर्बळ] नरका. [कारमुक], ओचिंतुं; काळप, काळाश; जुओ कालिटि *देवरा. खोटं, मिथ्या: जओ कारिमउं कालपराण ऋषिरा. काळबळ, कालदेवता कारमोक नरका. ओचिंतो - यमदेवर्नु सामर्थ्य] (सं.कालप्राण) कारयं प्रेमाका. आकारनां काळभायी प्रेमाका. काळ जेवो योद्धो कारवइ ऐतिका. करावे कालभुयंगम ऋषिरा. काळरूपी सर्प, काराग्रह प्रेमाका. कारागृह, केदखानुं [मृत्युदेवरूपी सर्प] (सं.कालभुजंगम) काराभवन प्रेमका. कारागह, केदखानं कालमुहउ *उपबा. "गुर्जरा. [काळा पडी कारिम आरारा. अद्भुत दि.] गयेला मुखवार्छ, शोकमग्न, निराश] कारिम चारफा. जिनरा. "नलरा. "लावल. (स.कालमुखक) "सिंहा(म). व्यर्थ, खोटुं, मिथ्या]; कालवन आरारा. काळा वर्णनुं आरारा. कमं. कृत्रिम, बनावटी; कालंद्री प्रेमाका. कालिंदी, यमुना नदी सिंहा(शा). अद्भुत (द.कारिम); काला प्रेमाका. अणसमजु, [भोळा, लाडका, *प्राचीसं. निर्बळ, नश्वर]; जुओ कारमुं प्रेमभीना] [सं.कल्य] कारिय तेरका. कराव्युं (सं.कारित) कालाखरिउ उक्तिर. धीमेथी अक्षर कारी आरारा. करावीने शीखनार, वांचतां शीखवानुं शरू ज कारी प्रेमाका. कारमां, भयंकर कर्यु होय तेवो (सं.कालाक्षरिक) मुत दि.] 2010_03 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काळाग्रह/कासळ १०६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश काळाग्रह, काळाह दशस्क(१). काल्लि, काल्हे उक्तिर. वीसरा. षडाबा. दशस्क(२). कारागृह काले (सं.कल्ये) काळानी कच *अखाका. [*काला - काल्हूणउं उक्तिर. कालजें, गई काल साथे अणसमजुनो निरर्थक बबडाट] संबंध धरावतुं (सं.कल्यतनम्); जुओ काळाभोवन दशस्क(१). काराभवन, कारा- कालूनूं गृह __ काल्हे वीसरा. जुओ काल्हि कालिज उक्तिर. वसंवि. काळजुं (सं. काल्ले वाल्हे *जिनरा. [कालावाला करीने] कालेय) कावडि उक्तिर. कावड दि.] कालिटि अंबरा. काळाश; जुओ कालट कावडीया ऋषिरा.कपटकरनारा, [मायावी] कालियु उक्तिर. सारस; बगलो (सं. (सं.कार्पटिक) कालिकः); क्रौंच पक्षी (हिं.) कावजि उक्तिर. [?] (सं.कायाटनी, कायाकालिंद्री दशस्कं(१). कालिंदी, यमुना वालिनी वा) काली मदमो. कालिदास [कवि] का वलि जिनरा. कोण वळी काळी प्रेमाका. कोयल कावली प्राचीफा. बंगडी, चूडी कालीउं नलरा. स्त्रीनो एक अलंकार, काश्मीरमुद्रा ऋषिरा. केसरनी कानसळा, [काळा पारानी कंठी] योगीओनुं एक आभूषण] कालीक वेताप. काळप; जुओ कालक काषांबर प्रेमाका. भगवां वस्त्र [सं. कालीरोली मदमो. रोळीकोळी, सांजनी कषायांबर]; जुओ कखांबर (वेळा) काष्ट गुर्जरा. विराप. काष्ठ, लाकडं कालुंबरि आरारा(व). एक करियाणुं; काळो काष्ट मुख देवू, काष्ट लेबु जुओ काठ उंबरो, घुरडो (सं.काकोदुम्बर) ? खावू कालूनूं उक्तिर. काल, गई काल साथे काष्ठा उक्तिर. अवधि, छेल्ली हद (सं.) संबंध धरावतुं (सं.कल्यतनम्); जुओ कास विमप्र. नानी नहेर, [नीक] काल्हनउं, काल्हूणउं कासग गुर्जरा. नलरा. प्राचीसं. एक प्रकारनी कालेयक षडाबा. काळजुं (सं.) जैन ध्यानक्रिया (सं.कायोत्सर्ग); जुओ काल्यु (?) नलाख्या. काळो काउसग काल्हनउँ उक्तिर. कालजें, गई कालने लगतुं कासडली नरका. कासळ, नडतर, पीडा (सं.कल्यतन); जुओ कालू- कासर नलरा. जंगली पाडो (सं.) काल्हा जिनरा. कालो, भोळो, अज्ञानी कासळ अखाका. अखाछ. आडखीली, [*दे.काहल [नडतर, पीडारूप वस्तु] [सं.काश]; ___ 2010_03 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १०७ कासंधर/कांत्य जुओ कांसलि कांकड्डु प्रेमाका. [कांगडु, चड्या वगरनो, कासंघरउ आरारा(व). कासूंदरो (सं. करडु, दि.कंकडुअ] .. काशमद); जुओ कासुंदउ कांकण उपबा. कंकण, बंगडी कासी आरारा. कांसी, एक वाद्य कांकणिया नरका. हाथना कांडे पहेरवानां कासुंदउ उक्तिर. कासूंदरो, एक वनस्पति आभूषण, कांगरावाळी चूडी (सं.काशमद); जुओ कांसधरउ] कांकणी मदमो. कंकण कासू आनंस्त. केम, शा माटे कांकर जुओ काकर काहणी विक्ररा. [कहाणी], कथनी [सं. कांकसी उक्तिर. कांसकी दि.कंकसी] __कथा परथी] कांकसीआ "विमप्र. [एक वनस्पति, काहरि अभिऊ. क्यारे कांकचियो] काहल, काहली गुर्जरा. [ढोल के भेरीना कांकिमपणउंनलरा हांकी काढवानी प्रवत्ति प्रकारच्] एक वाद्य (सं.); जुओ " कांकोल नरका. कांटावाळी एक वनस्पति र रणकाहल [सं.कंकोल]; जुओ कंटेलइ काहला आरारा. काला, घेला कांगउ उक्तिर. कांग, एक हलकुं धान्य काहली जुओ काहल [सं.कंगु] काहवा(?) *नलाख्या. [*कंटाळावाळु, - कांगवा * नरका. *प्रेमाका. [एक हलकुं *श्रमित, “दुःखी] __धान्य] काहाणी नलाख्या. कथनी (सं.कथनिका) काहाली ऋषिरा. कादं(शा). ढोल के भेरी- १ . कांगुण षडाबा. एक वेल, [मालकांगण] ना प्रकार- वाद्य (सं.काहल) कांचलडी, कांचू लावल. हरिवि. कांचळी, काहावी नलाख्या. कहेवडावीने (सं. स्त्रीओ, छाती उपर पहेरवानुं वस्त्र, *कथापय्) कापडं [सं.कंचुलिका] काहू आरारा. कोईने कांठलि जिनरा. कंठमां, गळामां काह्यरपणुं मदमो. कायरपणुं [सं.कातर-] काठिमी जुओं काठिमी कां गुर्जरा. नरप(द). नलाख्या. नेमिछं. कांडी उक्तिर. ["एक वनस्पति, *तणखलं, ___*सळी] (सं.काण्डी) लावल. विराप. केम, शा माटे काइ ऋषिरा. कयां (सं.क्व) कांणि जुओ काणि कांई उक्तिर. उपबा. कादं(शा). लावल. कांत चतुचा. कान्ति, प्रकाश . वीसरा. केम, शा माटे (सं.किम् परथी); कांतिमत्ता वाग्भबा. कान्तिमत्व, [कांतिमय जुओ काइ होवू ते] कांइजइ जुओ जइ कांत्य अखाका. कांति, शोभा 2010_03 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कात्युं थाय कपास/किमइ १०८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कात्युं थाय कपास अखाका. हतुं तेवू थाय, कादं(शा). गुर्जरा. नलाख्या. नेमिछं. [करेलो श्रम एळे जाय] षडाबा. के, अथवा (सं.किम्); तेरका. कांदमी जाइ आरारा(व). जाईनी कोई जात वीसरा. शुं (सं.किम्) (सं.कर्दमी जाति ?) किअ* नेमिछं. ['सारूं', 'खरे' जेवो उद्गार] कावे वाग्भबा. कंद [एक वनस्पति, जंगली किइ आरारा. कां, अथवा; आरारा. जाणे ___ कांदो] वडे कांपे प्रेमाका. कादव के कीचड वडे किउ, कीउ आरारा. प्रबोप्र. विमप्र. कर्यो कांब चतुचा. नरका. प्राचीफा. छडी, सोटी (सं.कृत+क) (सं.कम्बि ) किउ, किउं, क्यउं, क्युं वीसरा. केम, शा कांबडी उक्तिर. छडी, सोटी (सं.कंबि) माटे, केवी रीते (सं.किम्+एवम्) कांबी उक्तिर. सोटी, छडी (सं.कम्बिः), किछउँ प्राचीसं. केवू, शानुं (सं.कीदृक्षकम्) नरका. स्त्रीना पगर्नु घरेणुं किडउ उक्तिर. चटाई (सं.कट:) कांबु नेमिछं. कांब, छडी (सं.कम्बा) किण आनंस्त. आरारा. गुर्जरा. तेरका. काम कामा(त्रि). कामदेव; मदमो. कामिनी मिनी देवरा. लावल. वीसरा. षडाबा. कयुं, कांमकोट *कामा(शा). [कोटि - करोडो केकोण, कोई (सं.केन परथी) किणइ जुओ तिहां किणइ कामदेव समान] किण गानइ आरारा. कई विसातमां; जुओ कांमु जुओ कामु केणइ गान, गाने काम्य मदमो. कामिनी, स्त्री किण परि आरारा. केवी रीते, कोई रीते, काम्यी मदमो. कामी गमे तेम कांस गुर्जरा. कंस किण मेलि आरारा. कोई मेळथी, कोई कांसलि आनंस्त. खटक, वसवसो; जुओ संयोगथी कासळ कित्ति ऐतिका. कीर्ति कांसीवाजउ उक्तिर. कांसीजोड, झांझ (सं. किन्न ऐतिका. कृष्ण कांस्यवाद्यम्) किन्नरकंठि, किंनरकंठि वसंफा. वसंवि. कांहनासोरी ऐतिरा. छानी वात कानमां वसंवि(ब्रा). किन्नर [एक देवकल्प कहेवी ते, [कानफूसी] योनि]ना जेवा मधुर कंठवाळी स्त्री कांहां प्रेमाका.क्यां, केम, शा माटे; नलाख्या. किम, कीम उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका. क्यां, कये स्थळे (सं.कस्मात्) देवरा. नलाख्या. पंचवा. लावल. वीसरा. कि *वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. षडाबा. केम, शा माटे; केवी रीते वसंवि(ब्रा). जाणे के, जाणे, जेवू के; किमइ आनंस्त. कादं(शा). "गुर्जरा. तेरका. 2010_03 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १०९ किमइय/किवहर केमेय, मुश्केलीए (सं.कथमपि) [अप.]; किरतारथ देवरा. कृतार्थ उक्तिर. नरका. नेमिछं. केमे, कोई पण किरवाण वीसरा. किरपाण, तरवार (सं. रीते; वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. कृपाण) वसंवि(ब्रा). केमेय, कोई पण रीते, किराण प्राचीसं. करियाणुं (सं.क्रयानक) मुश्केलीए किरातउ उक्तिर. करियातानो छोड (सं. किमइय, किमए गुर्जरा. मुश्केलीए पण; किरातः) कोई पण रीते किरि उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. वसंफा. किमकिम उपबा. केवीकेवी रीते, कईकई वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). रीते वाग्भबा. षडाबा. खरेखर, जाणे के (सं. किमहि, किमही आनंस्त. कादं(शा). केमेय किल); जुओ किर (सं.कथम्+हि परथी) किरिया आरारा. क्रिया किमाड वीसरा-अनु. कमाड, बार[ (सं. किरुण प्राचीफा. करुण कपाट) किलकइ प्रद्युचु. किलकारी, करे [सं. किम्हइ उक्तिर. केमे, कोई पण रीते (सं. किलकिल परथी; रा.] कथमपि) किलबिलाटु विराप. किलकिलाट, [कलकिय तेरका. लावल. कर्यु (सं.कृत) बलाट, शोर] (सं.किलकिल परथी) कियउ, कीयउ उक्तिर. नरका. लावल. किलामण जिनरा. कष्ट, [थाक, खेद] [सं. वीसरा. कर्यो (सं.कृत) __ क्लमना] कियय तेरका. कर्यु (सं.कृत+क) किलिठ्ठ ०ऐतिका. क्लिष्ट किया आरारा. क्रिया किलूबीउ, किल्विषीआ उपबा. [चांडाळना किया प्रबोप्र. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. प्रकारनां हलकां कार्यों करनार एक वसंवि(ब्रा). कर्या (सं.कृत) देवजाति] [जै.] (सं.किल्विष) कियारइ * विमप्र. [*कोई वार] किलेश आनंस्त. क्लेश किर, किरि उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. किलेस आरारा. क्लेश प्राचीफा. खरेखर, समजो के, मानो के, किलोळ वीसरा. किल्लोल, आनंदप्रमोद जाणे के (सं.किल); जुओ किरि किल्मिष, कीलमीश अखाका. दशस्कं(१). किरगिरइ उक्तिर. कचकच करे, ककळाट पाप (सं.) __ करे; जुओ करगर किल्विषीआ जुओ किलूषीउ किरडा नलाख्या. केरडानो छोड (सं.करीर) किव गुर्जरा. कृपाचार्य, पांडवोना गुरु किरणी अखाका. अखेगी. सूर्य (सं.) किवहर गुर्जरा. कृपाचार्य, घर (सं.कृपगृह) 2010_03 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किवाड/किहि ११० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश किवाड प्राचीसं. कमाड (सं.कपाट) किसल वसंवि(ब्रा). कुंपळ किवाडी उक्तिर. कमाड, झांपली (सं. किसलय * वसंफा. [कुंपळ] [सं.] कपाटिका) किसले अखाका. किसलय, कुंपळ किवाण ऐतिका. कृपाण, [तलवार] किसा वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). शा माटे कि वार आरारा. क्यारेय [सं.किं वारम्] किसान आरारा. कशानी किवारइं उपबा. "नेमिछं. क्यारेय, कोई वार किसिई नेमिछं. शाथी (सं.कीदृश परथी) (सं.किं वारम्) किसिउं आरारा. उपबा. नेमिछं. लावल. किवाहरई * वाग्भबा. [क्यारेक] वाग्भबा. केवं, , कयुं, कई (सं. किवि गुर्जरा. केटलांक (सं.केऽपि) कीदृश) किव्हारि अंबरा. क्यारे, [कोई वार, थोडी किसोयरी प्राचीफा. पातळी कमरवाळी (सं. वार] [सं.कस्मिन् वारे] कृशोदरी) किशइ प्रबोप्र. केवी रीते (सं.कीदृश) किसोर हम्मीप्र. *वछेरो, [घोडानी एक किशल *वसंफा. वसंवि. वसंवि(बा). जात, किसोयरा] ["सं.कृशोदर] किसलय, कुंपळ . किसोर तेरका. किशोर, बच्चुं किशलकृपाण वसंवि. वसंवि(ब्रा). कुंपळ- किस्युं ऋषिरा. नरका. लावल. वसंफा. रूपी तरवार वसंवि. केवु, शुं, केम (सं.कीदृश) किशलसंतान वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). किस्योई आनंस्त. कशोय कुंपळोनी हार किह, किहइं, कीहं आरारा. "ऐतिरा. किशलय * वसंफा. [कुंपळ] ___गुर्जरा. क्यां, क्यांय (सं.कस्मिन्) किशलयकोमल वसंवि. वसंवि(ब्रा). कुंपळ किहाडा अभिऊ. एक जातना घोडा जेवू कूणुं किहारि, किहारे, किहिवारि कादं(शा). किशा वसंफा. वसंवि(ब्रा). शा माटे; नलाख्या. क्यारे (सं.कस्मिन् वारे) अखाका. कादं (शा). नरका. नलाख्या. किहां, कीहां आनंस्त. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. केवा, शा (सं.कीदृश) नलरा. नलाख्या. प्रेमाका. लावल. किशुं वाग्भबा. शुं (प्रश्नार्थक) वीसरा. षडाबा. क्यां (सं.कस्मात्) किशोर वसंफा. वसंवि(ब्रा). यवान (सं.) किहाई गुर्जरा. क्यांय किसउं आनंस्त. उक्तिर. गर्जरा. वीसरा. किहांतउ उपबा. वाग्भवा. क्याथी षडाबा. शं, केवं, केटलं, कशं, केम (सं. किहां हूतउ उक्तिर. क्याथी, कये स्थळेथी कीदृश) किहि कादं (शा). गुर्जरा. क्याय(सं.कस्मिन्) किसण ऐतिका. जिनरा. कृष्ण पक्ष किहि प्रबोप्र. कहे (सं.कथय) 2010_03 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १११ किहिण/कीध किहिण नलाख्या. कहेण, [कहेती, लोक- की पंचवा. केवी रीते (सं.कथं) प्रसिद्ध कथनी] (सं.कथनी) की पंचवा. क्यां (सं.कुत्र) किहिवारि जुओ किहारि की नरका.केवी, शी; वीसरा. शुं (प्रश्नार्थक) किहिं गुर्जरा. क्यांय ___(सं.किम्) किही गुर्जरा. कोई [सं.कति, प्रा.कइ परथी] कीउ जुओ किउ किही नलाख्या. *क्यांय, कोई स्थळे क्यां] कीकर मदमो. किंकर किहीं कादं (शा). नलाख्या.क्यां, कये स्थळे, कीकीयउ जिनरा. कीकलो, बाळक क्यांक (सं.कस्मिन्) कीगरी कामा(शा). सारंगी [सं.किंनरी]; किहु उषाह. (सं.कीदृश) जुओ कीनरी किहो नरका. कयो, शो [सं.कीदृश] कीच अखाका. कीचड, कादव कियां *गुर्जरा. [क्यां] (सं.कस्मात्) कीजइ आनंस्त. उपबा. कराय, करवामां किं प्रेमाका. तेथी शं. [शुं थयुं जो आवे [सं.क्रियते] किंकणी प्रेमाका. झीणी घूधरी [सं. कीजउ उक्तिर. तेरका. करायुं किंकिणी] कीजतउं उक्तिर. षडाबा. करातुं (सं.क्रियकिंकिणि, किंकिणी तेरका. नरका. घूघरी, माणम्) कीजिसिइ उक्तिर. कराशे किंगाई ऋषिरा. केकारव करे [सं.केकायते] कीटउं षडाबा. कीटुं, घीमां जमा थतो मेल किंचूण षडाबा. थोडुक ओछु, [लगभग (सं.किट्टम्) पूरुं] (सं.किंचित्+ऊनम्) कीटिका षडाबा. कीडी (सं.) किंनर, कीनर कामा(शा). नेमिछं. एक कीटी उक्तिर. रूमां वळगेलुं कस्तर के तेल देवकल्प योनि, [व्यंतरदेवनी एक घी- कीटुं (सं.किट्टिका) जाति] [सं.] कीडीउं नलरा. नानो काचनो मणको, [एनो किंनरकंठि जुओ किन्नरकंठि टगीनो] (द.चीड) किंनरय तेरका. किन्नर, [व्यंतरदेवनो एक कीडी-नगरी आरारी. कीडियारां, कीडीनां प्रकार] (सं.किन्नरक) किंपि आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. नेमिछं. कीड्य वेताप. खजवाळ, चळ *विराप. कई पण (सं.किमपि) कीणइ उपबा. कोनाथी (सं.केन) किंवा दशस्क(१). दशस्कं(२). प्रेमाका. कीघ, कीधउं आनंस्त. उपबा. ऋषिरा. पण, तोपण; अथवा; शुं थयुं जो, तेथी नलाख्या. लावल. वीसरा. षडाबा. कर्यु शुं, छोने (सं.) (सं.कृतम्) विकिणि घटली [सं.] करे सिकेकाय दर 2010_03 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीन / कुछनउ कीन आरारा. कर्यु, कीधुं, प्रवर्ताव्युं (रा.) कीहो प्रेमाका. कयो कीनर जुओ किंनर कींगरी जुओ कीनरी कीनरी, कींगरी कामा (त्रि). सारंगी [सं. कींगाइ, कींगायइ उक्तिर. शृंगामं. केकारव करे ( सं . केकयते) किंनरी]; जुओ कीगरी कीम जुओ कि कीउ जुओ कि उ कीर अखाका. कामा (त्रि). पोपट (सं.) की प्रचु. देशविशेष, [काश्मीर ] (सं.) कीर - आनन प्रेमाका. पोपटनी चांच कीरत नरप ( द ). कीर्तन, [ भक्तिगान ] कीरत अखाका. कामा (शा). कीर्ति कीरत्य अखेगी. कीर्ति कीरपी वेताप. सिंहा (शा). कृपण कीर्त्तइ उक्तिर. षडाबा. स्तुति करे, गाय (सं. कीर्तयति) यश कीलइ * ऐतिका. [डामर वडे ] कीलमीश जुओ किल्मिष कीव गुर्जरा. पावैयो ( सं . क्लीव ) कीवाचारु गुर्जरा. पावैयाओनो आचार्य (सं. क्लीवाचार्य) कीसी गुर्जरा. कोई पण ( सं . कीदृशानि ) कीहं जुओ किह कीहा चतुचा. प्रेमाका. कयां [सं. कीदृश ] कीहा पंचवा. क्या (सं. कस्मात्) ११२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कहां जुओ किहां कीहि कादं (शा). कये की रूस्तस. कयुं कीहूं कादं (धु). कादं (शा). कयुं की * अखाछ. दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. कये; कया 2010_03 कु नेमिछं. कोई, कोईक; गुर्जरा. तेरका. कोण (सं. कः); जुओ कु जि कुई उषाह. तेरका कोई ( सं . कोऽपि ) कुउ, कुयु, कूउ आरारा. उक्तिर. वाग्भबा. कूवो ( सं . कूप) कुण षष्टिप्र. कोण (सं. कः पुनः ) एक नलाख्या. कोईएक, कोक (सं. कोऽपि एकः) कुकतु वाग्भबा. ग्रहण करतो, लेतो, [उच्चार करतो] ["सं.कु. प्रा. कुक्क]; जुओ कूकर कुगला आरारा. कादं (शा). कोगळा कुग्गह ऐतिका. कुग्रह, दुष्ट ग्रह कुघाट उक्तिर. [?] (सं.) कुच वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). स्तन (सं.) कुचभर * वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). स्तननी परिपूर्णता, [पुष्टता] (सं.) कुचभरभार वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). स्तननी पुष्टतानो भार (सं.) कुचेल उक्तिर. एक वनस्पति, काळी पाठ (सं.कुचेला) कुच्छि ऐतिका. कुक्षि, कूख कुच्छित, कुछित, कुछित्र उक्तिर. निंद्य, नीच, गंदो ( सं . कुत्सितः ) ; नलाख्या. नलरा. *निंद्य, [गंदु, कद्रूप, मेलुं] कुछनउ वीसरा. फूवड, [ हलका ] [सं. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ११३ कुछोभी/कुतबी कुत्स परथी] कुटुंबउ गुर्जरा. कुटुंब कुछोभी मदमो. निर्लज्ज ?, [*कलंकिनी, कुटुंबी उक्तिर. कुटुंबी, [*कणबी]. कुड्मल कादं(शा). कुंपळ (सं.) कुजकोइ जिनरा. हरएक, सर्व कुढार दशक(२). कुहाडो [सं.कुठार] . "कुजर [कुंजर] कामा(त्रि). हाथी . कुटि उक्तिर. कोढियो, कोढवाळो (सं. कु जि उक्तिर. [*कोई ज, "कई ज]; कुष्ठी) ... जुओ कु कुण, कुंण, कूण, कूण आरारा. उक्तिर. कुटकई षष्टिप्र. टुकडो पण उपबा. गुर्जरा. नलाख्या. लावल. कुटम देवरा. कुटुंब वाग्भबा. वीसरा. कया, कोण, कोई (सं. कुटल आरारा. कुटिल, कपटी कः पुनः) कुटंब गुर्जरा. कुटुंब कुणइ *षडाबा. [कोणे] (सं.कः पुनः) कुटी ऋषिरा. कुटणी, वेश्यानी दलाली कुणउं आरारा. कूगुं, निर्बळ ___ करनार स्त्री (सं.कुट्टिनी) कुणएक उपबा. कोईएक, कोईक कुटीरडउ * गुर्जरा. "विराप. [एक छोड] [सं. कुणओ चारफा. [बाळक], अधूरो, [काचो] कुटीर] (द.कूणि?) [सं.कुणक] कुटुंबी षडाबा. कुटुंबवाळो, गृहस्थ कुणप ऋषिरा. मड, (सं.) कुटो मदमो. भंगार [सं.कुट्ट-] कुणबी सिंहा(म). खेडूत (सं.कुटुंबी) कुट्टि उक्तिर. कोंटियो, खूधो (*सं.कुट्टी) कुणबु आरारा. गुर्जरा. कुटुंब कुट्टिम कादं(शा). फरसबंधी (जमीन) (सं.) कुणहइ, कुणहि गुर्जरा. वाग्भबा. कोई कुठ आरारा(व). कोठी, कोठु (सं.कपित्थ) पण, कोईक कुडंबउ आरारा. कुटुंब कुणंति ऐतिका. कहे, [गणगणे] [सं.कुण्] कुडा तेरका. वाग्भवा. कुटज, वृक्षविशेष कुणिकि कादं (शा). कोईके (सं.कः पुनः) कुडि प्राचीसं. शरीर (सं.कुटि) कुणे मदमो. खूणे [सं.कोण] कुडि नलरा. कोडी, शंखतुं (सं.कपर्दिका) कुणेक *नलाख्या. [कोईएक, कोईक] कुड़ी (कूडी) उक्तिर. चामडानी कुप्पी (*सं. कुण्डी उक्तिर. कमंडळ (सं.) कुतूः); जुओ कूडी कुतकुं, कुतको सिंहा(शा). दंडूको; दस्तो कुडीरउं प्राचीसं. कुटीर, झुपडी (फा.कुत्कः) कुडुछी षडाबा. कडछी दि.कडच्छु] कुतगि नेमिछं. आश्चर्यथी, [कुतूहलथी], कुडं ऐतिका. देवरा. मिथ्या, खोटी; जुओ [विनोदमां] (सं.कौतुक); जुओ कउतिग कूड़े कुतबी हम्मीप्र. कुत्बुद्दीने पडावेली (महोर) 2010_03 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिक/करलइ . ११४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वास कुतिक, कुतिग कर्पूमं. विक्ररा. शीलक. कुमलाइ अंबरा. करमाय [सं.क्लाम्यति] कुतूहल, इंतेजारी; आरारा. विक्ररा. कुमळाणउ वीसरा. करमायेलो सिंहा(म). नवाई, नवाईभरी घटना - कुमाग ऐतिरा. कुमार्ग बाबत]; गुर्जरा. नलरा. कौतुक, [गम्मत, कुमाणस उपबा. खराब माणस (सं.कु+ विनोद]; नेमिछं. आश्चर्य, [मनोरंजन]; मानुष) नेमिछं. *आश्चर्यकारक हावभाव कुमारीपुर कादं (शा). कुमारीओने रहेवानो [विनोदात्मक चेष्टा]; गुर्जरा. विराप.. कौतुक, इच्छा, [उमंग]; *प्रद्युचु. कमाली कुमास प्राचीसं. अडद, अडदना बाकळा [तमाशो]; जुओ कउतिग (सं.कुल्माष) कुतिगीउ उक्तिर. विमप्र. हम्मीप्र. - कुयु जुओ कुउ कौतुकयुक्त, [कुतूहलवाळो] (सं. . कौतुकिकः) कुर, कूर आरारा. ऐतिरा. नरका. नेमिछं. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. कुतूहल सम्यचो. कौतुक, गम्मत, विनोद, वसंवि(ब्रा). भात, [रांधेला चोखा] कल्पनाविलास, मनोरंजन] [सं.] [सं.कूर] कुतोहल, कुतोहळ कादं(शा). कौतुक, का कुरकट मदमो. कूकडो (सं.कुक्कुट) र [उत्कंठा] (सं.कुतूहल); दशस्क(१). कुरडबरडादिकनी आनंस्त. कुरंड, बरुड कौतुक, [कौतुकभरी, नवाईभरी] ___ (मनुष्यनी हलकी जातिनां नाम) आदिनी कुथ कादं(शा). सादडी (सं.कुथा) कुरणी प्राचीफां. करेण (सं.करेणु) कुद्दल षडाबा. कोदाळी (सं.) कुरबक, कुरुबक ऋषिरा. कादं(शा). कुधातु आनंस्त. हलकी के उपेक्षणीय धातु तेरका. एक प्रकारनं झाड, [कांटाकुपइ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. कोपे, गुस्से शेरियो] (सं.)। थाय (सं.कुप्यते) कुरमाणी गुर्जरा. शीलक. करमाई, खिन्न कुबेर हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात थई (सं.क्लाम्यति परथी) [सं.कूर्मायते कुभति षष्टिप्र. खराब भात - चितरामण परथी] (सं.कुभक्ति); जुओ ऊभति कुररी अखेगी. विराप. टिटोडी (सं.); जुओ कुमर गुर्जरा. तेरका. देवरा. विक्ररा. कुमार, कुरुरी कुंवर कुरलइ, कुरळइ प्राचीफा. वसंफा. कुमर-सरोवर तेरका. कुमारी सरोवर, [एक वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. सरोवरनुं नाम] हम्मीप्र. टहुके, चीसो पाडे, आनंद करे, कुमार, कुमरी आरारा. कुमारिका; गुर्जरा. का का करे, बोले, [अवाज करे] वीसरा. दीकरी, राजकुंवरी दि.कुरुल) 2010_03 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कुब गुर्जरा. कौरव कुरवदल अभिऊ. कौरवोनुं सैन्य कुरंग वसंफा. कमळ (सं.); वसंवि. वसंवि (ब्रा). कुरंग, [ मोगरा के जूई-जाईनी जातिनो ] छोड (सं.) कुरंग, कुरंगो ऋषिरा. गुर्जरा. नरका. प्रेमाका. हरण (सं.) ११५ कुरांण सिंहा (शा). करुणा, [कृपा, दया] कुरुखेत, कुरुक्षेत्र उक्तिर. गुर्जरा. कुरुक्षेत्र कुरुटतउ उक्तिर. खोतरतो, कातरतो कुरुत अखाका. कृत्य, कर्म कुरुवल गुर्जरा. विराप. कौरवोनुं सैन्य कुरु - नरिंदु गुर्जरा. कुरुराज ( सं . कुरुनरेन्द्र ) कुलकाणि कादं (धु). कादं (शा). कुलनी मर्यादा, प्रतिष्ठा [रा. ]; जुओ काणि कुलखंपण प्रबोप्र. विक्ररा. कुलकलंक, [कुळनी खांपण, एब] कुलख्यणा आरारा. कुलक्षणवाळा कुलथ, कुलथी उक्तिर. कळथी, एक अनाज (सं. कुलत्थ) कुलदेवति लावल. कुलदेवता 2010_03 कुरव / कुली कुलदेवलि गुर्जरा. कुळदेवी कुलबाला ऋषिरा. खानदान कुटुंबनी स्त्रीओ [सं.] कुछ बेडो प्रेमाका. कुळने तारनार [नाव ] [सं. कुल+दे. बेड ] कुलबोई गुर्जरा. विराप. कुळने बोळनार कुलमंडण गुर्जरा. विक्ररा. कुलमंडन, कुलना आभूषणरूप कुलवट आनंस्त. गुर्जरा. कुलाचार, कुळनी रूढि; जुओ कुलिवट कुरुक जुओ कुरबक कुरुरी गुर्जरा. टिटोडी (सं. कुररी) कुरुल प्राचीफा. वांकडिया ( सं . कुरल) कुरुविंद शृंगामं. हींगळो [सं.] कुरुंआइय तेरका. करमाव्यं (सं. कूर्मायित) कुल तेरका समूह [ सं . ]; कादं (धु). समूह, जथ्यो; [ (गुरु) गृह ] कुळह वीसरा. टोपी (फा. कुलाह) कुलह कबाइ, कुलह कबाहि हम्मीप्र. प्रीतिदान तरीके अपातां वस्त्रालंकार, [ टोपी-झभ्भो, अमीरोनो एक पोषाक ] [फा. कुलाह+कबा ]; जुओ कबाहि कुलकरणी ऋषिरा. कुलना आचार के कुलंछणु गुर्जरा. खराब लांछन, [एब] (सं. रिवाज (सं.) कुलांछन ) कुलाचल नेमिछं. लावल. ए नामनो पौराणिक पर्वत [सं.] कुळ- वत्रेक प्रेमाका. कुळथी विरुद्ध, [कुळथी जुदो ], [* कुलश्रेष्ठ] [सं. कुलव्यतिरेक] कुलसिणगारी गुर्जरा. कुळना शणगाररूप (स्त्री) कुलाहल दशस्कं ( 9). रूस्तस. कोलाहल कुलिवट अभिऊ. कुळवट, कुलीनता (सं. कुल+वम); जुओ कुलवट कुली अभिऊ. आरारा. गुर्जरा. *विमप्र. हरिवि. कळी ( सं . कलिका) कुली *वसंवि (ब्रा). [* कूला, "नितंब, Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुळी/कुंअलउं ११६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश *थापा] [द.कुल्ल]; जुओ कूलीय कुसुमायुध वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. कुळी वीसरा. कुळ, वंश . वसंवि(ब्रा). कुसुम जेनां शस्त्र छे ते कुलीक * जिनरा. [कलंक, लांछन] कामदेव (सं.) कुल्हडउ वीसरा. कूलडी, नानु वासण (द. कुसुंब प्रेमाका. कसुबो, [*पीतांबर - नीचे वस्त्र कुश-अग्र ऋषिरा. डाभ - एक घास - कुसुंभ कांद(शा). कसुंबल - राता रंगर्नु नी अणी (सं.) (सं.कौसुंभ) कुशम प्राचीफा. फूल (सं.कुसुम) कुसूत वीसरा.खराब गोठवण, खराब रचना कुशलीखेम कामा(शा). क्षेमकुशळ (सं.कुसूत्र) कुशोभो नलरा. शोभानो अभाव, अपकीर्ति कुहइ उक्तिर. कोहे, सडी जाय, नाश पामे कुष्ट कादं(धु). उपलेट, [कोठं, एक (स.कुथ्यात) करियाणु]; [कोढ]; [श्लिष्ट शब्द] कुहका आरारा. कुहु कुहु अवाज [सं.कुष्ठ कुहणी उक्तिर. वीसरा. षडाबा. कोणी कुष्टी ऋषिरा. पंचवा. कोढियो (सं.कुष्ठिन्) (सं.कफोणि) कुस आरारा. कुश, एक प्रकारचं घास कुहरिया *वसंफा. *वसंवि. वसंवि(ब्रा). कुसइ उक्तिर. रुए, आनंद करे (सं. कोयलना अवाजथी गुंजी ऊठ्या (प्रा. क्रोशति) कुहुरिअ) कुसका प्रेमाका. फोतरां दि.कक्कस] कुहाडि (मत्थइ भागी कुहाडि) नेमिछं. माथे कुसणइ उक्तिर. कसणे, दाळभात वगेरे अतिशय दुःख नाख्यां । चोळे दि.कुसण परथी] कुहिउँ उक्तिर. शीलक. षडाबा. कोहेलु, कुसलखेमि आरारा. क्षेमकुशळ सडी गयेखें, वासी (सं.कुथितम्) कुसहिज सिंहा(म). अनुदारता, कृपणताः कुहु नलाख्या. कहो (सं.कथय) जुओ सहिज कुहुतग कर्पूमं. आश्चर्य, [मनोविनोद] (सं. कुसा षडाबा. नाना सळिया जेवा टुकडाओ कौतुक); जुओ कउतिग कुसाटि आरारा. खोटो सोदो कुहुने कादं(शा). कोने कुसि उक्तिर. दोरडी, लगाम (सं.कुशा) कुहुंनइ ऋषिरा. कोईने कुसुधउ गुर्जरा. अमंगल (सं.कु+शुद्ध) कुहे नलाख्या. कोई (सं.कः अपि) कुसुमचय लावल. पुष्पोनो समूह [सं.] कुहिन नलाख्या. कोने कुसुमबाण तेरका. [कुसुम जेनां बाण छे कुंअर उक्तिर. गुर्जरा. कुमार, राजकुमार ते] कामदेव (सं.) कुंअलउँ उक्तिर. प्राचीफा. लावल. कोमल, 2010_03 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नाजुक, विमप्र. कोमळ, नम्र कुंअर उक्तिर. कुमारी कुंआरि आरारा (व). कुंवार, कुंवारपाठं (सं. कुमारी) कुंआरि, कुआरी उक्तिर. गुर्जरा. कुमारी कुंकउती ऐतिका. कुंकुमपत्रिका कुंकण नलरा. नेमिछं. एक देश, कोंकण; केळानी एक जात सूचवतुं विशेषण [कोंकणना ? ] कुंकण आरारा (व). रातुं कमळ (दे.) कुंकणा हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात, [कोंकणना] ११७ कुंकमरोल ऋषिरा. विमप्र, मंगल माटे ज्यां कंकु रेलावेलुं होय ते, [कंकुनो छंटकाव] कुंकावटी दशस्कं (१) कंकावटी कुंकुमघोल वसंवि. वसंवि (ब्रा). केसर [कंकु] घोळेलुं पाणी, कंकुनो रगडो [सं. कुंकुम + प्रा. घोल] कुंकू उक्तिर. कंकु (सं. कुंकुम); जुओ कूंकम कुंच, कूंच अंबरा. प्राचीसं. *विमप्र. दाढी; दाढी - मूछ [सं. कूर्च]; जुओ मूछकूछ कुंचकी प्राचीफा. कांचळी (सं. कंचुकी) कुंचुकिउ (कंचुकिउ ) * गुर्जरा. [-नुं बख्तर पहेर्युं छे एवो, -ना आवरणवाळो ]; जुओ कंचुकिउ कुंजर नरका. प्रेमाका. वीसरा. हाथी ( सं .); जुओ कुजर कुंजर - शौचपणुं अखाका. ( हाथी नहावाना शोखीन होय छे, छतां मेला देखाय छे 2010_03 मध्य.८ कुंअर / कुंवकुसुम ते परथी) मिथ्या बाह्याचार कुंझीबाल अखाका. फ्लेमिंगो के बगला जेवा एक पक्षीनां बच्चां [कुंजडीनां बच्चां ] कुंठसस्त्र उक्तिर. कुंठित - बूटुं शस्त्र (सं. कुंठं शस्त्रम्) कुंडल, कुंडळ तेरका. नरका-२. प्रेमाका. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). हम्मीप्र. काननुं आभूषण कुंडळी दशस्कं ( २ ). प्रेमाका. कुंडाकुं गूंचकुं वळेलां शींगडांवाळी कुंडलूं नलाख्या. कूंडाकुं, [गूंचकुं] (सं. कुंडलकम्) कुंडी जुओ कुण्डी कुंडे चडवं [कूडे चडवुं] प्रेमाका. लडाईमां दावपेच खेलवा; जुओ कूडे चडवुं कुंडे फरे [कूडे फरे] प्रेमाका. दावपेच खेले कुंढ उक्तिर. मंद, मूर्ख, आळसु (सं. कुंठम् ) कुंढगोठि उक्तिर. मूर्खाओनी मंडळी (सं.कुंठगोष्ठी) ― कुंढली जुओ ढूंढली कुंण जुओ कुण कुंतल रूस्तस घोडा (उ.कोतल ) [तु. कुतल]; जुओ कोतल कुंतार दशस्कं ( २ ). प्रेमाका. महावत [सं. कुन्त परथी ] कुंथुया षडाबा. एक नानकडुं जीवडुं [प्रा. कुंथु ] कुंद तेरका. मोगरी (सं.) कुंवकुसुम वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). कस्तूरी मोगरी (सं.) Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंदण/कुटुं कुंदण नलाख्या. कुंदन, सोनुं कुंब हरिवि. कंबु, शंख कुंभकर्णना उपासी प्रेमाका. [कुंभकर्णना उपासक], कुंभकर्ण जेवा ऊंघणशी कुंभी उक्तिर. घडो - धान्यनुं एक माप (सं.) कुंभीय गुर्जरा. हाथी ( सं . कुंभिन्) कुंमख रूस्तस. कुमक, [ मदद ], [सहायता अर्थे मोकलेली सेना ] ११८ कुंमारउ ( कुंमार सोनउ ) उक्तिर. शुद्ध सोनुं (सं. कुमारं सुवर्णम्) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रा. कुक्क]; जुओ कूकइ कूखडी नेमिछं. कूख, उदर ( सं . कुक्षि) कुछ जुओ मूछकूछ कूट अखाछ. कूड़ी, [भूंडी, खोटी ] (सं.) कूटज्ञानी अखाछ. कूडभर्यो ज्ञानी, [मिथ्याज्ञानी] कूटणउ उक्तिर. कूटणुं, कूटवुं ते (सं. कुट्टनम्) कूवाथंभ (सं. कूप) कूकइ उक्तिर. बोलावे [सं. कु. प्रा. कुक्क] ; जुओ कुकतु, कूकूइ, कोक कूकट अखाका. दंभ, [कपट, जूठ, मिथ्या ] कूकर उक्तिर. विक्रच. षष्टिप्र. कूतरो (सं. कुक्कुर) कूकस अखाका. अखाछ. नलरा. वीसरा. सिंहा (म). कुशका, फोतरां (दे. कुक्कुस ) कूका उक्तिर. तीव्र स्पृहा, उत्कंठा कूकू प्रधुचु. कू कू एम अवाज करे, [बडबडे, दुःखनो अवाज करे] [सं. कु 2010_03 कूटणी वीसरा. वेश्यानी दूती ( सं . कुट्टिनी) कुंयर विक्ररा. कुंवर, कुमार कुंयरि गुर्जरा. कुंवरी, राजकुंवरी कुंयारी आरारा. कुंवारी कूअडा हम्मीप्र. कूवा [सं. कूप] कूआकंठइ उक्तिर. कूवाकांठे (सं. कूपकंठे) कूइ, कूए अभिऊ. उपबा. गुर्जरा. कूवामां कूड जुओ कु कूओ प्राचीफा. वहाणनो एक भाग, कूडउं उपबा. षडाबा. असत्यमय, जूटुं कूडकमाइ (कूड कमाई ) * नेमिछं. [कपट करे]; जुओ कमाइ कूडकला आरारा. छळकपटनी कळा (सं. कूटकला) कूडछी उक्तिर. कडछी [दे. कच्छु ] कूडाबोलउ उपबा. खोटाबोलो कूडी षडाबा. चामडानी कुप्पी; जुओ कुडी कूडीउ गुर्जरा. कपट करनार (सं. कूटिक) कूडी कूडी नरका. * खोटी, [*नकामी, "अमथी] कू आरारा. कपटी, बनावटी (सं. कूट); - कूटतारूढ षडाबा. खोटां वजनियां मूकवां कूटिवइ उपबा. कूटवामां, मारवामां (सं. कुट्टू) दलाल • कूड अखाका. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नरका. नलाख्या. नेमिछं. लावल. विराप. *वीसरा. कपट, छळ, प्रपंच (सं. कूट); जिनरा. * मिथ्या, [*खोटुं], [* कपट] Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश '११९ कूड़े चबुं/कुंभी अभिऊ. प्रेमाका. कपटयुक्त, [खोटुं, कूलेरा जुओ वेलाकूले खराब]; * नलाख्या. [खोटुं]; जुओ कुर्ल्ड कूल्ह उक्तिर. नहेर, खाई (सं.कुल्या) बडा दशका. लडाइमा दावपच कूव गुर्जरा. कृपाचार्य खेलवा; जुओ कुंडे चडवू कूवडउ उक्तिर. गाडा वगेरेनो आगळनो कूड़े फरे जुओ कुंडे फरे भाग, धूसरीनुं लाकडं (सं.कूवरः) कूण उपबा. कोण; जुओ कुण कूवडिय तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. नानो कूति * षडाबा. [एक प्रकारनी मधमाखी] कूवो, कूई (सं.कूपिका) दि.कुत्तिका] कूशके नरका. फोतरामां कूतिर, कूतिरउ आनंस्त. विक्रच. षडाबा. कंअर नलाख्या. राजपुत्र कुंवर, दीकरो] षष्टिप्र. कूतरो (सं.कुक्कुर; प्रा. कुतुर) (सं.कुमार); नेमिछं. कुंवर दि.कुत्ती] कुंअलङ उक्तिर. वसंवि. कूर्च्छ, सुकुमार कूपइ उक्तिर. कोपे, गुस्सो करे (सं.कुप्यति) (सं.कोमल) कूपचक्र अखेगी. कूवानो रेट [सं.] कंकम, कुंकू वीसरा. कंकु (सं.कुंकुम); कूपल, कूपळ गुर्जरा. वीसरा. कुंपळ जुओ कुंकु __ (सं.कुड्मल) कुंकूय गुर्जरा. कुंकुम कूभार गुर्जरा. कुंभार (सं.कुंभकार) कूच जुओ कुंच कूया आरारा. षडाबा. कूवा (सं.कूप) टली कंठली) उक्तिर.वर्तळाकार शिंगडाकूर गुर्जरा. क्रूर, [निर्दय] ___ वाळी (सं.कुंडलितशृङ्गी) कूर जुओ कुर कूण गुर्जरा. कोण (सं.कः पुनः); जुओ कूरी प्रेमाका. कूर, भात, रांधेला भात कुण कूर्म आरारा. काचबो (सं.) कुंपली प्रेमप. कुप्पी, [चामडानी शीशी] कूलउँ उपबा. [कूळ], अविकसित, [पोचुं] कूपी वीसरा. शीशी, चामडानुं सांकडा मोंर्नु (सं.कोमलकम्) पात्र [सं.कुतुप] कूल-झरो चंद्रवा. ?, [*कुळना प्रवाहरूप, *कूपुखूप] *अभिऊ. [माथा परनो फूलनो "कुळने आगळ लई जनार] एक शणगार, शहेरो] दि.खुंपा] कूलिरि सिंहा(म). घी-गोळ साथे चोळेलो कुंभट उक्तिर. कुब्जकंटक, [*गोरडियो बाजरीना लोट, कुलेर (द.कुल्लुरी) बावळ, "एक कांटाळी वनस्पति जेनां कूलीय *गुर्जरा. [*कूला, "नितंब, *थापा] फळनां बी शाकमां वपराय छे] [रा. दि.कुल्ल]; जुओ कुली कूभटौ] कूलु गुर्जरा. कांठो (सं.कूल) कुंभी उक्तिर. थांभला नीचेनी पथ्थर अथवा 2010_03 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लाकडानी बेसणी (सं. कुम्भी) कृपाणी लावल. तरवार [सं. कृपाण + ई] कुंभी गुर्जरा. षडाबा. नानो घडो (सं. कृशतणुं ऋषिरा. दुर्बळ, सूकुं शरीर [जेनुं छे एवी स्त्री] (सं.कृशतनु) कुम्भिका ) कूंपर ऐतिरा. गुर्जरा. कुंवर, राजकुंवर (सं. कृशि-कटी कादं (शा). पातळी केडवाळी (सं. कृश -कटी) कुमार) कुंभी /केड १२० कूंयर गुर्जरा. विराप. कुंवरी, राजकुंवरी कृष्ण-भर्गा अभिऊ. कृष्णथी भागेलां [के (सं. कुमारिका) पराजित] [सं. कृष्ण+भग्न ] कूंपरपणई नेमिछं. कुमारावस्थामां, [युव- कृष्णागर, कृष्णागुरु आरारा (व). ऋषिरा राजपद पहेलांनी अवस्थामां] नरका. नरप (द). नेमिछं. प्रेमाका. काळुं अगरु कूंयार गुर्जरा. राजकुंवर (सं. कुमार) कूंयारि गुर्जरा. राजकुंवरी (सं. कुमारिका) कूंयारी गुर्जरा. कुंवारी (सं. कुमारिका) कूंली ऋषिरा. कुमळी, सुंवाळी (सं.कोमल) कुंबळउ वीसरा. कणुं, नाजुक ( सं . कोमल) कृतमअकृतम दशस्कं(१). कर्तुम् अकर्तुम्, करवानुं ने नष्ट करवानुं कृत श्येन कांद (शा) . ऊजळो सत्ययुग (सं.) कृतांत आरारा. प्रेमाका. यमदेव, काळदेवता (सं.) कृत्या गुर्जरा. मारणकर्म माटे आराधाती देवी (सं.) केई जुओ केइ केई केई प्रेमाका. कईकई, केटली केउर गुर्जरा. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). केयूर, बाजुबंध, कडां केकणो (कींकणो) मदमो. छंदविशेष केकाण, केकांण गुर्जरा. नलरा, प्राचीसं. प्रेमाका. मदमो. रूस्तस. ललिरा. विक्ररा. वीसरा. कयकान प्रदेशना घोडा केकि, केकिय ऋषिरा. गुर्जरा. केका करे ते मोर ( सं . केकिन् ) कृपागुर गुर्जरा. गुरु कृपाचार्य कृपाण वसंफा. वसंवि(ब्रा). तरवार (सं.); केटिलि नलाख्या. केटलेक (सं. कियत्+ जुओ किशलकृपाण तुल्यकम् ) कृपाणपाणि गुर्जरा. हाथमां तलवार धारण केड जिनरा. नरका. प्रेमाका. केडो, पीछो, करनार (सं.) [केडे, पाछळ] [सं. कटि] कृपणाई आरारा. कृपणता, लोभ लावल. कृपणपणुं, कंजूसाई, [दरिद्रता, लघुता ] कृपागरु प्राचीफा. कृपानिधान ( सं . कृपाकर) 2010_03 के उषाह. नरप (द). नलरा. विमप्र. षडाबा. कोई, केटलाक, कया (सं. कः, के) के (जदुपतिके) चतुचा. (जदुपति) पासे; जुओ तमके, माहावके, राधाजीके केइ, केई आनंस्त. आरारा. गुर्जरा. *देवरा. केटलाय (सं. के अपि) Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . १२१ केडइ/केलीशुक केडइ गुर्जरा. जिनरा. रूपच. षडाबा. पाछळ धूमकेतु (सं.) (सं.कटि); गुर्जरा. पछीथी केतुकि वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). केडउ करइ प्राचीसं. पीछो करे केतकीनो छोड केडाइतपणउं षष्टिप्र. अनुयायीपणुं केतुं अभिऊ. आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. केडावेड वेताप. वाराफरती, [*केडाकेड, नेमिछं. प्रद्युचु. मदमो. लावल. केटलु, *पाछळपाछळ] केटलुक [सं.कैयत्तिक] केडि नलाख्या. केड, पूंठ, [पछी] (सं. केथउं गुर्जरा. *क्यांय [अप.केत्यु], कटि); अंबरा. नेमिछं. प्रबोप्र. केडो, [*निरर्थक, *मिथ्या] [सं.कदर्थ, प्रा. [पीछो]; ललिरा. केडे, पाछळ कयत्थ] - केडिलु षष्टिप्र. पाछळनो - केथि आरारा. *क्यां, [क्यांय] [अप.केत्यु केण कामा(त्रि). कहेवापणुं, [लोकापवाद] केदार उक्तिर. क्यारो (सं.) [सं.कथन, प्रा.कहण] केनी नरका. कोईनी केण आरारा. शा माटे, [कया कारणथी] केर दशस्क(१). प्रेमाका. केरडां, केरडांगें [सं.केन] अथाj [सं.करीर] केणइ आरारा. कया; ऐतिरा. कोईए; केरडं अखाका. ऋषिरा. लावल. केरुं, तणुं लावल. कोणे; कोईए केल, केलि अखाका. नरका. प्रेमक्रीडा, केणइ गान आरारा. कई विसातमां; जुओ कामक्रीडा [सं.केलि] किण गानइ केलवइ *अंबरा. आरारा. ऋषिरा. "नलरा. केणी आरारा. कई प्राचीफा. "विक्ररा. करे, बनावे, [उत्पन्न केत उक्तिर. हरिवि. केतु, एक ग्रह; करे, तैयार करे, घडे, सज्ज करे, रचे, कादं(शा). भूतप्रेत (सं.केतु) सर्जन करे] [दे.केलाय] केतइ ऋषिरा. केटलेक [सं.कैयत्तिक] केलवण * नलरा. [रचना, उत्पत्ति] केतन गुर्जरा. चिह्न (सं.); वसंफा. वसंवि. केलि नरका-२. गुर्जरा. वसंफा. वसंवि(ब्रा). वसंवि(ब्रा). ध्वज, चिह्न (सं.) रतिक्रीडा (सं.); जुओ केल केतलउं आनंस्त. उक्तिर. उपबा. जिनरा. केलि, केळि आरारा. उक्तिर. नलरा. केळ नलरा. षडाबा. केटलुं [सं.कियत्+ (सं.कदली); वीसरा. केळ, केळु तुल्यम् केलिहरां विक्ररा. कदलीगृह, [केळनो रचेलो केतलाएक आनंस्त. उपबा. केटलाक मंडप]; जुओ केलीहर केती वार षडाबा. केटलीये वार, वारंवार केली नरका. प्रेमक्रीडा [सं.] (सं.कैयत्तिक वार) केलीशुक ऋषिरा. रमतनो [मनोविनोद केतु *वसंफा. वसंवि(ल). वसंवि(ब्रा). माटे पाळेलो] पोपट (सं.) 2010_03 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केलीहर/केहर. १२२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश केलीहर गुर्जरा. केळनो रचेंलो मंडप (सं. केशु दशस्कं(१). प्रेमाका. केसूडां (सं. कदलीगृह); जुओ केलिहरां किंशुक) [सं.कैंशुक] केले आखाका. केलिमा, क्रीडामां] केशुं प्रेमाका. केवु [सं.कीदृश] केव * नलाख्या. [केमेय] [अप.केन्व] के-शुं नरका. कोनी साथे केवओ चारफा. केमेय (अप.केव) केसर आरारा. केसरी, सिंह केवड आरारा (व). केवडो (सं.केतकी) केसर वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. केवडियालउ प्राचीसं. केतकीयक्त, केवडा- वसंवि(ब्रा). पुष्परज, फूलनां तंतु ना फूलनो बनेलो केसर गुर्जरा. वसंफा, वसंफा(ल). केवडी आरारा(व). गुर्जरा. केवडो (सं. वसंवि(ब्रा). बकुलवृक्ष (सं.) केतकी) केसरमुकुल वसंवि. वसंवि(ब्रा). बकुलनी केवडी * चारफा. [केटली, केवी] कळीओ (सं.) केवडीआलउ गुर्जरा. केवडाना फूलनुं बनेनुं । केसरयालां गुर्जरा. केसररंगी, [केसर केवल नलरा. प्राचीफा. सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, ' छांटेलां - युद्धनी तैयारी रूपे] ' केसर-लंक, केसर-लंकी हम्मीप्र. सिंह जेवी सर्वज्ञता, केवलज्ञान पातळी कमरवाळी [सं.केसरि+दे.लंका केवल उपबा. मात्र, कशा विशेष अर्थ - केसर-सटा लावल. केसरीना जेवी विना]; वृथा केशवाळी जेनी छे ते केवलकमला लावल. केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी र मा केसरी-कटे प्रेमाका. केसरी - सिंह जेवी [सं.] पातळी कटिए - कमर उपर केवलग्यान, केवलज्ञान ऋषिरा. गुजरा. केसरी-लंकी नरका. सिंहना जेवी पातळी प्राचाका. सच पदाचा शान, सपा कमरवाळी; जुओ करी-लंकनी केवलनाणी गुर्जरा. केवळज्ञानी, [सर्वज्ञ] केस, केसुअ, केसुय, केसू, केसूअ, केसूय केवलनाणुं गुर्जरा. प्राचीफा. केवळज्ञान, आरारा (व). उक्तिर. केसूडो, केसूडानां [सर्वज्ञता] फूल (सं.किंशुक) [सं.कैंशुक] केवललच्छी नेमिछं. केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी केसु-वरणा देवरा. केसूडाना रंगना केवलि, केवली गुर्जरा. नलरा. प्राचीफा. केह गुर्जरा. केटलाक, कोई (सं.के खलु); केवळज्ञानी, सर्वज्ञ . अभिऊ. आरारा. कोण केवि, केवी उषाह. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. केहइ ऋषिरा. [कया]; गुर्जरा. कोईक प्राचीफा. कोई, केटलाक (सं.के अपि) केहउ आरारा. विमप्र. केवो केशी *प्रेमाका. [केशवाळीवाळा, घोडा] केहर, केहरि जिनरा. प्राचीफा. सिंह (सं. केसरी) (सं.). ___ 2010_03 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १२३ केहवी/कोटि केहवी ऋषिरा. केवी (*सं.कीदृशी) कोक आरारा. देडकी (सं.); हरिवि. केहि नलाख्या. कहे (सं.कथय) चक्रवाक (सं.); मदमो. कोकशास्त्र केहिई आरारा. कया कोक- वीसरा. बोलाव, (सं. कुकति; प्रा. केही चित्तसं. कई कोक्क-); जुओ कूकइ केही चित्तसं. कहे कोककला नरका. प्रेमशास्त्र, [कामकळा] केहुं अखाका. अभिऊ. आनंस्त. आरारा. . [सं.] कादं(शा). जिनरा. नरका. नलाख्या. कोक-गत नरका. प्रेमनी रीत, [कामभोगनी प्रबोप्र. प्राचीसं. प्रेमाका. विमप्र. रात] शीलक. कयं, केवं ("सं.कीदश/किम) कोकील मदमो. एक लुटारु जातिनो पुरुष केहे चित्तसं. मदमो. के. [अथवा कोकोला (कोकोला "बिणि) [कोकोलाकेहेने चित्तसं. शेने; कोईने गिणि] *प्राचीफा. [अडायानो अग्नि केहेने चित्तसं. कने, पासे, साक्षात् ।। [सं.कुकूलाग्नि केहेनो अखाका. प्रेमाका. [केनो], कोनो का २ कोट *नरका. [*मुश्केलीए, *मांडमांड] दि.कोट्टी-स्खलना, भूल] केह्या वाग्भबा. कया केंगार प्राचीफा. मोरनो केकारव कोट अभिऊ. कादं(शा). गुर्जरा. डोक, गरदन (सं.) कैट *प्रबोप्र. [कीटस्थान, गंदुं - अपवित्र कोट. कोट्य अखाका. कामा(त्रि). स्थान] (सं.) कामा(शा). चतुचा. नरका. प्रेमाका. कैतव प्रेमाका. कपटी, जुगारी (सं.) कोटि, करोड, [असंख्य]; जुओ कैही मदमो. क्यहीं, क्यांय कांमकोट कैहीइ नलाख्या. क्यांय पण कोटडउं उक्तिर. कोट, किल्लो (सं.कोट्ट) कैंद्रव्य जुओ द्रव्य कोटडी ० नरका. डोकमां पहेरवानुं एक कोइयउ वीसरा. (आंखनो) खूणो, [डोळो] आभूषण कोइल, कोइला, कोइलि, कोइली आरारा. कोटवाल उक्तिर. पंचवा. कोटनो - शहेर ऐतिरा. उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. नलरा. के गामनो बंदोबस्त राखनार अमलदार, प्राचीफा. लावल. वसंफा. वसंफा(ल). नगररक्षक (सं.कोट्ट+पाल) . वसंवि. वसंवि(ब्रा). विराप. कोयल कोटानकोट, कोटनकोटी नरका. प्रेमाका. (नर/मादा) (सं.कोकिल) करोडो, [असंख्य कोउ दशस्क(१). कोई [सं.कः] कोटान्तर कामा(शा). [कोटकोटान्तर], कोउ शृंगामं. (अडायानो) अग्नि (द. करोडो, [असंख्य कोउआ) कोटि प्रेमाका. प्रकार (सं.) 2010_03 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोटिइं/कोडी . १२४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कोटिइं आरारा. कोटे, गळे (द.कोट्टा) कोठीवाल प्रेमाका. पेढीनो मालिक [सं. कोटिक कामा(त्रि). उत्तम, अपूर्व (सं.); कोष्ठिका+पाल] दशस्क(१). नरका. करोड जेटला, कोड देवरा. हरिख्या. करोड, [असंख्य [असंख्य] (सं.कोटि) कोटिध्वज, कोटीधज, कोटीध्वज अंबरा. कोड *अखाका. [*कूड, “मिथ्या, नरका. प्रेमाका. विक्ररा. करोडपति, अभिलाषा (करोडाधिपतिनी निशानी तरीके मकान कोडणु प्रबोध. धनुष, कामठु (सं.कोदंड) उपर धजा फरकती); "अंबरा. [करोडा- कोडाकोडि अंबरा. उपबा. गुर्जरा. तेरका. धिपतिनी निशानीरूप धजावाळो करोड गुण्या करोड, [असंख्य] (सं. (महेल)] [सं.] कोटाकोटि) कोटिया नरका. करोडो, [असंख्य] कोडि अभिऊ. आरारा. ऐतिरा. उक्तिर. कोटिं ऐतिरा. कोटे, गळे उपबा. उषाह. कादं(धु). कादं(शा). कोटी *अखाका. [विकल्प, जोड, समान] गुर्जरा. नलरा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. विक्ररा. विराप. वीसरा. शृंगामं. कोटी नेमिछं. करोड, [विपुल] षडाबा. षष्टिप्र. कोटि, करोड, कोटीक मदमो. कोटि, करोड [असंख्य] कोटीधज, कोटीध्वज जुओ कोटिध्वज कोडि * ऐतिका. [कोड, होश, अभिलाष]; कोटीर आनंस्त. ऐतिका. मुगट समान, गुर्जरा. कोडपूर्वक, होशपूर्वक (*सं. __ अग्रणी, श्रेष्ठ (सं.) __ कौतुक, दे.कुडु) .कोटीलउ उक्तिर. हथोडो, मोगरी (सं.कुट्ट कोडि(कोडि सिला) * नेमिछं. [कोटिशिला, परथी) दि.कोटिल्ल] कोटि लोकोथी उपाडाय तेवी - भारे कोट्ट षडाबा. कोट, गढ दि.] - शिला]; जुओ कोडिसिला कोट्य जुओ कोट कोडिगुणउ उपबा. करोड गणो कोट्य कोटा अखाका. अनेक प्रकारना, कोडिमउ उक्तिर. करोडमो (सं.कोटितमः) [असंख्य] कोडिसिला लावल. जैन श्रुति अनुसार कोठउ उक्तिर. [*कोठो - धान्य भरवान सिद्धोए जेना उपर बेसीने तप करी मोटुं पात्र, *ओरडो, “अटारी, "पेट] मुक्ति मेळवी हती एवी शिला, [(अहीं) (सं.कोष्ठकः) कोटि लोकोथी उपाडाय तेवी - भारे कोठी प्रेमाका. पेढी [सं.कोष्ठिका] - शिला]; जुओ कोडि कोठीभडउ उक्तिर. कोठींबद्दु [सं.कपित्थ कोडी प्रेमाका. वीसनी संख्या परथी] कोडी चतुचा. कोटि, अनेक 2010_03 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १२५ कोडी/कोसंब कोडी (कोडी तणु चतुचा. [कोडी जेटलुं], कोरण आरारा. कोरवू ते, कोतरणी, शिल्प जरा जेटलु कोरण अखाका. दशस्कं(१). दशस्कं(२). कोडीधज, कोडीध्वज ऐतिका. रूपच.करोड- प्राचीफा. प्रेमाका. धूळनी आंधी, पति, [कोटि धननी निशानी तरीके जेना वंटोळियो निवास पर धजा फरके छे ते] [सं.कोटि- कोरण पाई जुओ रणवाई ध्वज] कोरंग कामा(त्रि). दशक(२). प्रेमाका. कोडो लावल. कोड, [अभिलाष], होश करंग, हरण कोरिउ वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). कोर्यो, कोड्य अखाका. करोड, [असंख्य] छेद्यो, भेद्यो (सं.कोरित) कोढ आरारा. कपट कोरियउ उक्तिर. कंडारेखें, चीतरेलु (सं. कोणे (कोणे करी) षडाबा. खूणो काढीने कोतर नलाख्या. दर (सं. कोटर) कोतल प्राचीका. प्रेमप. सवारी माटेनो खास " कोरिवउ उक्तिर. कोरवं ते, कोतरतुं ते, ____कापवू ते घोडो [उ.; तु.कुतल]; जुओ कुंतल कोलंबो, कोळंबो नरका. वृक्षनी डाळीनो कोतिल ऐतिका. कोतल, [खास सवारीनो घोडो] __ नमेलो अग्र भाग, [डाळी] कोदंड गुर्जरा. प्रेमाका. धनुष (सं.) कोलिक सम्यचो. करोळियो कोदिरा ऋषिरा. कोदरा, [एक हलकुं कालका * कोलिका-जालक षडाबा. करोळियानुं जाळु अनाज] (सं.कोद्रव) (सं.कौलिक+जाल) कोपति * प्रबोप्र. कोपते, कोप्या त्यारे] कोली, कोळी दशस्कं(१). दशस्क(२). कोपातर देवरा. क्रोधायमान (सं.कोपातर) प्रेमाका. कवली, कपिला, [बदामी कोपीन प्रेमाका. कौपीन, लंगोटी: जओ रंगनी], वाछडु बताव्या विना दोहवा कौपीन देती गाय कोमास षडाबा. अडद (सं.कुल्माष) कोविलडी प्राचीसं. कोकिला, कोयल] कोयलडा प्रेमाका. कोलसा (द.कोइला) कोश प्रेमाका. म्यान (सं.) कोरक गुर्जरा. कुंपळ (सं.) कोशीशां दशस्कं(२). कांगरा [सं.कपिकोरडी अभिऊ. [वीसनीकेकरोडनीसंख्या] शीर्षक कोरडइ लावल. कोरा (मन) वडे कोस उक्तिर. प्रेमाका. एक गाउ(त्रण कोरडं चित्तसं. प्रेमाका. कोरु, भीजाया किलोमिटर)नुं अंतर (सं.क्रोश) विनानुं कोसंब प्रेमाका. कसुंबानो लाल रंग [सं. कोरडु विमप्र. न चड्या होय तेवा दाणा कौसंभ 2010_03 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोसीरीआ/क्रोडि १२६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कोसीरीआ मदमो. करकसरिया क्यही प्रेमाका. क्यां; जुओ कही कोसीस, कोसीसां ऐतिरा. प्रद्युचु. प्राचीफा. क्यनर-मिथुनकादं (शा). किंनर पति-पत्नीनुं प्रेमाका. विक्ररा. कोट उपरना कांगरा जोडु (सं.किंनर-मिथुन) (सं.कपिशीर्षक); जुओ कउसीसउ क्याहई गुर्जरा. क्याय कोसीटउ उक्तिर. रेशमनो कीडो, एनुं क्याहारि कादं(शा). क्यारेक कोकडं [*सं.कोशस्थः] क्याहार्य रूस्तस. क्यारे कोसेर कस्तुवा. करकसर क्यांथो प्रेमाका. क्याथी कोसेरीआ मदमो. करकसरिया क्युं आरारा. कई; केम कोह प्रधुचु. क्रोध क्रडा सिंहा(म). क्रीडा कोहग्गि गुर्जरा. क्रोधाग्निथी क्रत मदमो. कृत्य कोहलउ उक्तिर. कोळु (सं.कूष्माण्ड) क्रतव्य प्रेमाका. कर्तव्य, कार्य कोहलं वेताप. सिंहा(शा). ढाल क्रत्य चित्तसं. क्रियाकारिता, प्रवृत्ति कोहली उक्तिर. कोळी, कोळानी वेल क्रपी मदमो. कृपण; जुओ करपी कोहाइय जिनरा. क्रोधादिक क्रम चित्तसं. कर्म कोही चित्तसं. सडीने क्रमइ उक्तिर.चाले (सं.क्रामति) [सं.क्रमते कोहो चित्तसं. कोण क्रमि * ऐतिका. [पदवीए] कौअचि ऋषिरा. कौवच नामनी वनस्पति क्रमु गुर्जरा. कर्म[बंधन], [भाग्य] कौतग मदमो. कौतुक, [कुतूहल]; जुओ क्रयाणउं उक्तिर. षडाबा. करियाणुं, लेकउतिग वेचनी वस्तु कौतिक, कौतीक दशस्क(१). दशस्कं(२). क्रश्न देवरा. श्रीकृष्ण प्रेमाका. कौतुक, आश्चर्यकारक वर्तन; क्रसाण अखेगी. अग्नि (सं.कृशानु) मजाक, विनोद क्रंम अंबरा. चरण (सं.क्रम) कौतुक प्रेमाका. आश्चर्य, मजाक, विनोद क्रिपाण प्रेमाका. किरपाण, नानी तलवार कौपीन (कोपीन) कादं(धु). लंगोट] [सं.] जेवु हथियार [सं.कृपाण] कौमोदी मदमो. सिद्धांतकौमुदी [ए नामनो क्रिया-उधार ऐतिका. शुद्ध मार्ग- प्रवर्तन व्याकरणग्रंथ] क्रियाणा हम्मीप्र. करियाणां, वेचवानो माल क्यउं जुओ किउ (सं.क्रयानक) क्यरपी मदमो. कृपण; जुओ करपी क्रीडइ उक्तिर. रमे, खेले (सं.क्रीडति) क्यर्ण चित्तसं. किरण क्रोड प्रेमाका. करोड क्यवराज ऐतिरा. कविराज, कवि क्रोडि षडाबा. करोड (सं.कोटि) 2010_03 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश क्रोडय/क्षोहणी क्रोड्य नरका. करोड, [असंख्य वार] क्षालन प्रेमाका. प्रक्षालन, धोवुं ते [सं.] क्रोध्या दशस्कं (२). कोप्या क्षि कादं (शा). क्षय, नाश क्रोश कादं (शा). बे माइल [त्रण किलो- क्षिइ षडाबा. क्षय पाने, नाश पाने (सं. मिटर]नुं अंतर (सं.) क्षयति) १२७ * क्षित्तित्र (कित्तिग? ) तेरका प्राचीसं. कृतिका नक्षत्र क्षिपइ * उपबा. [- नो ड्रास करे, नाश करे ] [सं. क्षप्]; जुओ क्षपइ क्ष षडाबा. क्षय, नाश (सं.) क्षणदा कादं (शा). रात्रि (सं.) क्षण नलरा. पर्वदिवसनी कथा के व्याख्यान क्षिमि षडाबा. क्षमा आपो (सं.क्षम् ) क्षीणमोह आनंस्त. ए नामनुं गुणस्थानक, जेमां मोहनीय कर्मनो क्षय थई गयो होय एवी आत्मावस्था [जै.] [सं.] क्षीरहरो गुर्जरा. क्षीर सरोवर ( सं . क्षीरह्रद ) क्षणु, क्षणुं मदमो क्षण पण, जरा पण (सं.क्षण+खलु) क्षणक्षणुए दशस्कं (१). क्षणेक्षणे, थोडीथोडी क्षुद्र नलरा. छिद्र, दोष क्षुभाय आरारा. क्षुब्ध बने वारे क्षत्रीनंदन प्रेमाका. क्षत्रियनो पुत्र प षष्टि. श्रम, [प्रयत्न ] (सं.क्षप् परथी) क्षप षष्टिप्र. खपावे, दूर करे, [नाश करे] [सं. क्षप्]; जुओ क्षिपइ क्षुभि कादं (धु). आकळविकळ थाय [सं. क्षुभ् ] क्लीब अखाका. नपुंसक (सं.). क्लीव विराप. [ नपुंसक, पावैयो ] ( सं . क्लीब) क्षपक श्रेणि आनंस्त. मोहनीय कर्मनो क्षय करनारी गुणस्थाननी [आत्मावस्थानी] श्रेणी [जै.] [सं.] क्षपणक कादं (शा). बौद्ध के जैन साधु (सं.) क्षमिउ उक्तिर. क्षमा आपी [सं. क्षम् ] क्षयकारणाहरु वाग्भबा. नाश करनार ers उक्तिर. वाग्भबा. झरे ( सं . क्षरति) क्षात चतुचा. ख्याति क्षामोदर ऋषिरा. कृशोदरी, [पेटनो भाग कृश होय तेवी स्त्री] [सं.] क्षालण प्रबोप्र. धोनार ( सं . क्षालन ) 2010_03 क्षुर अभिऊ. खरी (सं. क्षुरा) क्षुरी कादं (शा). खरी, डाबलो (सं.) क्षेत्र, क्षेत्रु, खेत्र उपबा. प्रदेश, स्थान (सं.); उक्तिर. खेतर (सं.); नलरा. धन वापरवानुं स्थान (जै.) क्षेद नलरा. खेद, क्लेश; जुओ खेद क्षे-ले अखाका. क्षय अने लय क्षोणि ताल (क्षोणि तलि कीध) * लावल. [पृथ्वी तळे करी, कबजे करी] क्षोभन वसंफा. वसंवि (ब्रा). क्षुब्ध व्याकुल करनार (सं.) क्षोभिवि उपबा. हलावी, चलित करी क्षोहणी दशस्कं ( 9). प्रेमाका. अक्षौहिणी, - Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खइ/खट वरिशण - १२८ . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चोक्कस संख्यानां रथ, हाथी, अश्व अने (सं.खर्ज, प्रा.खज्ज ?) लडवैयानो समावेश करतुं सेनादळ खजमति, खजिमति, खिजमति, खिजमती ऐतिका. हम्मीप्र. खिदमत, सेवाचाकरी खइ गुर्जरा. क्षय रोग] खजिनो, खजीनो देवरा. हम्मीप्र. खजानो खइडां ऐतिका. खड्ग, तलवार; जुओ खेडु (फा.खजिन) खइर प्राचीसं. शृंगामं. षष्टिप्र. खेर, एक खजिमति जुओ खजमति झाड (सं.खदिर) खजीनो जुओ खजिनो खईई उक्तिर. क्षय पामे, नाश पामे (सं. खजुअउ, खजूअउ उक्तिर. वाग्भबा. क्षीयते) खद्योत, आगियो खउरउ *उपबा. [खोरु, कलुषित] (द. खजूरउ उक्तिर. [*खजूरनो कोई प्रकार, खउर) ___ "खलेलं, *खारेक] (सं.खर्जुरकः) खउळि वीसरा. चांल्लो, तिलक, त्रिपुंड्र खज- तेरका. खवावु (सं.खाद्य-) (हिं.खौर) खट अखाका. आरारा. चित्तसं. दशस्कं(१). खउली अंबरा. खोळी, [तपासी] दशस्कं(२). नरका. नलाख्या. छ (सं. खग-जन दशस्कं(१) पक्षी (सं.) षट्) खगपती कामा(त्रि). पक्षीराज गरुड खटकइ लावल. खट खट एवो अवाज खग-मंडल वेताप. गगनमंडळ; जुओ खगां करे खगाकार *अखाका. [आकाशना जेवू, खटकर्म आरारा. प्रेमाका. ब्राह्मणे करवानां शून्यवत् छ कर्म; प्रेमाका. सवारे करवानां छ खगां *प्रेमाका. [आकाश] दि.खग]; जुओ नित्यकर्म खगमंडल खटकाय आरारा. देवरा. छ प्रकारना जीव, खग्ग ऐतिका. कर्पूमं. तेरका. प्राचीफा. छकायना जीव (सं.षट्काय) [जै.] 'तलवार (सं.खड्ग) खटकुइ शृंगामं. खटके खचकउ लावल. खचको, क्षति, [अटकाव, खटचक्र प्रेमाका. योगदर्शन प्रमाणे मनुष्यनां अंतराय]; नरका. अंतराय, अटकायत; शरीरनां छ चक्रो [संकोच] खटण ऐतिका. प्राप्त करनार खचकी प्रेमाका. रोकाई, अटकी खट तस्कर प्रेमाका. छ चोर : काम, क्रोध, खचखची प्रेमाका. खीचोखीच __ लोभ, मोह, मद अने मत्सर खचर षडाबा. आकाशमां ऊडता (सं.) खट दरिशण, खट वर्शन अखेगी. विक्ररा. खजड आरारा(व). वृक्षविशेष, [*खीजडो] छ दर्शन[शास्त्रो] साकर्म प 2010_03 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १२९ खटदश रूप/खणावइ खटदश रूप नरका. सोळ शणगार खडहडी नेमिछं. [कोपरुं, सूका नाळियेरनी खटपट प्रेमाका. चिंता, [उचाट]; अखाका. काचली] वादविवाद, [झघडो] खडहली चारफा. कडकडीने, [तीव्र] (द.) खडहला चारफा. कडकडान खटपद् दशस्क(१). प्रेमाका. षट्पद, भमरा खडियो, खडीउ जिनरा. प्रेमाका. "विमप्र. 'खटमल उक्तिर. मांकड (सं.खट्वामल्ल) थेलो, झोळी, खलतो खटमुखवाहन दशस्कं(१). प्रेमाका. षण्मुख खडी नेमिछं. लावल. ऊभी • - कार्तिकेयर्नु वाहन एटलेके मोर खडी उक्तिर. नेमिछं. षडाबा. धोळी माटी खटमे प्रेमाका. छठे (सं.खटिका) खटवू अखाछ. खाटवू, फावतुं खडीउ जुओ खडियो खटी * दशस्कं(9). "प्रेमाका. [*खटखटती, खडी घसी प्रबोप्र. स्पष्ट स्वरूपमा जणावी ___ *खखडती] खड्डु आरारा. चाखडी (हिं.खडाउ) खटूके नरका. [खटकखटक] अवाज करे खड्डु खाबडां प्रेमाका. खाडा-खाबोचियां खडइ आरारा. खडो रहेजे, ऊभो रहेजे खडोकळी दशस्कं(१). कुंड, होज खडकी नेमिछं. प्राचीफा. घर आगळनी खडोखडी उषाह. नानो कंड बांधेली बारणावाळी छूटी जगा, डेली, खडोखली, खड्डोखलिय, खंडोखलि अंबरा. [डलीनो] दरवाजो (दे.खडक्की) उक्तिर. कादं(शा). गुर्जरा. चारफा. खडके लावल. ढगले जिनरा. नलरा. नेमिछं. प्राचीफा. लावल. खडग उक्तिर. गुर्जरा. नलाख्या. प्रेमाका. क्रीडा माटेनी नानी वाव, कुंड, होज खांडं. तलवार (सं.खडग): कादं(शा). दे.खड्ड+ओखली]; जुओ खलोखली गेंडो; तलवार (सं.खड्ग) खढहढ विमप्र. खळखळ करतां खडग्ग तेरका. प्राचीफा. तलवार (सं.खडग) खण उक्तिर. मजला, माळ [रा.]; खंड, खडताले मदमो. [खरीना प्रहारपूर्वक. चट ओरडो (सं.क्षण) दईने, [वेगपूर्वक खण उक्तिर. [?] (सं.क्षणः) खडधान प्रेमाका. हलकी जातनुं अनाज - खण, खणु कामा(त्रि). गुर्जरा. प्रबोप्र. राजगरो, मोरैयो वगेरे क्षण, पळ खडभड्य नरप(द). *गडभांज, [खटखट, खणइ अखाका. उक्तिर. गुर्जरा. प्रबोप्र. धांधल, पीडा] प्रेमाका. सिंहा(म). खोदे (सं.खनति) खडहडइ उक्तिर. "नेमिछं. प्रद्युचु. प्राचीसं. खणण षडाबा. खनन, खोदq ते [कडकडाट करे, खळभळे, लडथडे, खणश प्रेमाका. शंका, अंटस, वेरझेर खखडी पडे, तूटी पडे खणावइ आरारा. खोदावे 2010_03 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खणीतउ / खरजे खणीत षडाबा. खोदातो (सं.खन् ) (सं. क्षम् ); उपबा. सहन करे खमण गुर्जरा. उपवास ( सं . क्षपण ) खणु जुओ खण खणेत्रउ उक्तिर. कोदाळी, खुरपी (सं. खमण * अखाका. [ अभिवादन] [रा.] खमणउ विक्रच. श्रमण, साधु [सं. क्षपण ] खमा प्रो. जैन [साधु] [सं. क्षपणक ] खमयो ऋषिरा. क्षमा करजो १३० खनित्रम्) खत उक्तिर. घा ( सं . क्षत) खत्ती अभिऊ. क्षत्रिय जुओ अख खद्ध प्रबोप्र. खाधेलुं, [करडेलुं (सं. खादित) खद्योत अखाका. अखेगी. प्रेमाका. आगियो (सं.) खत्र गुर्जरा. सारुं, [उचित] [सं. क्षात्र]; खमनुं * अखाका. [* धारण करवुं, "उपाडवुं] खमाया ऐतिका. खमाव्या, क्षमा मागी खमावीउ शीलक. शृंगामं. क्षमा मागी खमासण, खमासणु उक्तिर. षडाबा. एक जैन वंदनक्रिया ( सं . क्षमाश्रमण ) खमि गुर्जरा. क्षमामां (सं.क्षम् ) खय तेरका क्षय, [ क्षीण थवुं ते] खयडउ उक्तिर. खेडुं, गाम (सं. खेटक) खयन आरारा. क्षयं खनक षडाबा. खोदनार (सं.) खप अखाका. अखेगी. *उपबा. प्रेमाका. षष्टिप्र. श्रम, प्रयत्न, [उद्यम] (सं.क्षप्); आरारा. नरका. नलरा. उपयोग (सं. क्षप्(); अंबरा. इच्छा; जुओ हेत- खप खपड़ अखाका. गुर्जरा. वपराय, उपयोगी थाय (सं.क्षप्यते); अखाका. गुर्जरा. पूरां थाय, नाश पामे; अखाछ. जोईए खप करी दशस्कं (२). खंतथी, [ प्रयत्न करी] खपरियो * चंद्रवा. [*हळधारी, खेडूत ] खपाया ऐतिका पूरां कर्यां, नाश कर्यो खपावइ षडाबा. पूरा करे, नाश करे खपुआं, खपुवा दशस्कं (२). प्रेमाका. शस्त्र विशेष मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश माटे 'खबर' नुं रूप) खभेडइ * विमप्र. [धांधलधमालपूर्वक ] खमइ * उपबा. गुर्जरा. षडाबा. क्षमा करे 2010_03 खबेर प्रेमाका. समाचार, ( प्रास मेळववा खर- छूच प्राचीसं. ?, [*टूंका बरछट वाळ, * वाळना खूंपरा ] खरजे प्रेमाका. खरजवाथी, खूजलीथी [सं. खर्जू] खयर आरारा (व). खेर, खेरियो बावळ (सं. खदिर) खयरवडी उक्तिर. खदिरनी गोळी (सं. खदिरवटिका) खया ऋषिरा. क्षय, नाश खर अखाका. क्षर, नाशवंत खर जुओ कखर खर जुओ खंतिक्खर खरखशो " चतुचा. [झंझट, उपाधि, "चिंता] खरच खूटण प्रेमाका. * खर्चमां पडती तूट, [ परचुरण खर्च, हाथखर्ची ] Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खरड षष्टिप्र. हलकी मनुष्यजाति (प्रा.) खरदूखर अंगवि. खरदूषण, [ए नामना बे राक्षसयोद्धा] खरमां" लावल. [एक फळमेवो, खजूर] [फा. खुर्मा ]; जुओ खुरमा खरवलतउ षडाबा. खणतो, खोतरतो खरसणीउ आरारा (व). एक वनस्पति, खरसण, खरसाणी खरसांडी, के खरसाणी - एक थोर ? १३१ खरसिल प्राचीसं. खरशिला, आधारशिला खरहडी उक्तिर. कोपरुं, सूका नाळियेरनी काचली (* सं. खरकाष्ठिका) खरहर * गुर्जरा. लावल. करकरा खरंटितु षडाबा. खरडायेलुं, अशुद्ध थयेलुं (प्रा. खरंट) खराप अखाका. बरबादी ] ( अ. खराब) खरारे, खरार्य अखाछ. चित्तसं. खरेखर खरीअ लावल. खरी, सुंदर, मोटी [सं. खर - ] खरीदार सिंहा (शा). खरीददार, [खरीदनार ] (फा.) खरेरो प्रेमाका. घोडाना शरीर उपरनी धूळ साफ करवानुं साधन [हिं. खरहरा ] खल उक्तिर. षडाबा. तल वगेरेनो खोळ; खळु (सं.) खळ प्रेमाका. खल, कपटी, लुच्चुं खलइ आरारा. स्खलित थाय चूके कादं (शा). पडे (सं.स्खलति) खलइ षडाबा. खळामां खलउ उक्तिर. खकुं (सं. खलम्) 2010_03 खरड / खवाखाज खलका उपबा. खणखणाट, रणकार खलके, खळके ऋषिरा. गुर्जरा. प्रेमाका. लावल. * खळखळ अवाज करे, खखडे, रणके खलखल कादं (धु). खणखण, [सांकळनो अवाज ] *खराब, [विनाश, खलीता * प्रेमाका. [थेला ] [फा. खरीतो ] खलूकि अभिऊ. खळके, अवाज करे खलेलुं हरिख्या. खजूरीनुं फळ खलोखली प्रेमाका. खडोखली, क्रीडावाव; जुओ खोखली खल्या लावल. खाळ्या, [रोक्या ], पाछा वाळ्या खल्ली उक्तिर. वायुप्रकोपने कारणे चडती खाली (सं.) खब - * प्राचीफा. [झबक, चमकवुं] [सं. क्षिप्]; जुओ खिवइ खवा विमप्र. खभा (दे. खवय); जुओ खवे खवा (खवा काठी) * विमप्र. [*खभे उचाळा ई खवाखाजि गुर्जरा. विराप. [खभानी] # खलबत मदमो. खानगी बेठक, [मुग्ध एकांत गोष्ठि ] [ फा .खलाबत ] खलहल, खळहळ तेरका. प्राचीसं. वीसरा. खळखळ खळहाण उक्तिर. खलुं (सं. खलधान्यम्) [हिं. खलिहान ] खलहिउ * गुर्जरा. [दुष्टताभर्यु आचरण कर्यु खलाया शृंगामं. स्खलितथया, [ठोकरखाधी] खली उक्तिर. तैली धान्यनो खोळ (सं. खलिः) Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खवु खोटी कृष्णा दि.खवय); जुओ खवा करवा खवास/खंध्य १३२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खंजवाळ, चळ (द.खवय+सं.खजू) खांडे, तोडे (सं.खंडयति) खवास प्रेमाका. सेवक, [हजूरियो] (फा.) खंडउ, खंडू उषाह. वीसरा. खांडं, तरवार खवासी नरका. सेवा (सं.खड्ग) खवु खोटी कृष्णच. खभो ठोकीने खंडण तेरका. खंडन करनार (सं.खंडन) खवे गुर्जरा. खभे दि.खवय]; जुओ खवा खंडणा, खंडना अखाछ. प्रेमाका. टुकडा खशबोई, खसबोई मदमो. वेताप. खुशबो करवा ते खसइ उक्तिर. [*ईजा करे, *खसेडे, “खसे] खंडविखंड जुओ विखंड (सं.खषति) दि.] खंडायितु उक्तिर. तलवारधारी खसर *विमप्र. [घसारो, उझरडो] खंडी उक्तिर. खंडित, खांडी, तूटेली बं अखाका. आकाश, [आकाश समुं ब्रह्म] खंडू जुओ खंडउ [सं.ख खंडोखलि जुओ खडोखलि खंखर शृंगामं. ढूढु, [हाडपिंजर] खंडोखंड ऋषिरा. टुकडेटुकडा खंखोळी प्रेमांका. खोळीखोळी, शोधीशोधी खंति आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. शीलक. खंच विमप्र. खचको, खचकाट [प्रा.] शृंगाम. खांत, होश, उमंग (सं.क्षान्ति) खंचइ नरका. प्राचीसं. खेंचे, [ताणे]; नंदब. खंति *ऐतिका. [क्षमा, शमभाव] प्राचीफा. खेंचे, [पकडे, ग्रहण करे], खंतिक्खर (खंति खर खग्गु) * ऐतिका. राखे; ऋषिरा. [पाडू खेंचे], रोके शांतिरूपी - उपशमरूपी कठोर वीसरा. खेंचे, घसडे (प्रा.) खड्ग] खंचइ(दृष्टि न खंचइ धार) विक्ररा. रोके, खंध आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. खांध, खभो [नजरनो प्रवाह रोकाय नहीं, नजर (सं.स्कंध) एकटश बने] खंधवालि गुर्जरा. केशवाळी (सं.स्कंध+ खंचि करि प्राचीसं. खेंचीने, [ताणीने, वाल); जुओ खंधावलि लंबावीने] खंधागलि गुर्जरा. खभा पर चडवानी क्रीडा खंजन ऋषिरा. प्रेमाका. एनामर्नु पक्षी (सं.); (सं.स्कंधकेली) [गालना] खाडा; नरका. चपळता- खंधार उक्तिर. प्रद्युचु. "विमप्र. हम्मीप्र. (वाळां), चंचळता(वाळां) सैन्यनो पडाव, छावणी, शिबिर (सं. खंड आरारा. प्रदेश (सं.); षडाबा. खांड स्कन्धावार) खंधावलि *विमप्र. [केशवाळी]; जुओ खंड तेरका. खांडु, [तरवार] (सं.खड्ग) खंधवालि खंडइ आरारा. उक्तिर. षष्टिप्र. खंडन करे, खंध्ये चित्तसं. खंधे, खभे सन्चना १ (सं.) 2010.03 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १३३ खंपण/खाय हाय खंपण आरारा. ऋषिरा. प्राचीसं. "रूपच. भंडार (सं.खनि) विमप्र. खांपण, क्षति, दोष, कलंक, खाणी (वाणी-खाणी) अखाछ. [बोलवा ना] ढंग, [बोलचाल] [हिं.खानि; खंभ, खंभा गुर्जरा. प्रेमाका. स्तंभ, थांभला रा.खाणि] खंभायत प्राचीसं. खंभात [सं.स्कंभादित्य] खाणीकणउं उक्तिर. खाउधरूं, भोजनप्रिय खाखत्य *नरप. [खेधे, केडे, पाछळ]; (सं.खादन परथी) [रा.खांणखंडौ] जुओ खांखते खाण्य जुओ खाण खाखर नरका. खाखरो, केसूडानुं वृक्ष खात आरारा. खातां खाखसि *गुर्जरा. [*सफाचट] खात प्राचीका. कीर्ति (सं.ख्याति) खाग्य ऐतिरा. खड्ग, खडग वापरवामां, खात्र उक्तिर. (खेतरमा नाखवा ) खातर [शूरवीरतामां] दि.खत्त खाज उक्तिर. खंजवाळ, खूजली (सं.खर्जूः) खात्र उक्तिर. लावल. विक्ररा. खातर, चोरी खाजइ उक्तिर. खंजवाळे ___ करवा माटे घरमा प्रवेशवा भीतमां खाजइ उक्तिर. विराप. खवाय (सं.खाद्यते) पाडवामां आवतुं कार्यु (दि.खत्त) खाजल. खाजहलउ उक्तिर. खाद्यपदार्थ (सं. खाप प्रेमाका. दर्पण, अरीसा; आमला, खाद्यफलम्) [काच, अबरख वगेरेनी पतरी, चीप] खाट उक्तिर. नेमिछं. लावल. खाटलो. खाप *कस्तुवा. [खांपण, कलंक] [पलंग] [सं.खट्वा] खापड्यो चोर पंचवा. खापरो चोर खाटइ ऐतिका. जिनरा. प्राप्त करे खापण, खांपण गुर्जरा. चंद्रवा. प्रेमाका. खाटकडी नरका. सूवा माटेनी खाट खोट, खामी, क्षति खाटि उक्तिर. खाट, खाटलो, पलंग (सं. खापर, खापरउ, खापरलं उपबा. "विक्रच. खट्वा ) भीखनुं शकोठं (सं.कपर); उक्तिर. खाण, खाण्य अखाका. अखाछ. चित्तसं. शकोलं, ठीबडु (सं.खपरः) नरका-२. उत्पत्तिस्थान, जीवयोनिः खामणउं उक्तिर. षडाबा. क्षमा मागवानी चित्तसं. नलाख्या. खाडो (सं.खनि) एक जैन क्रिया खाण विमप्र. घोडाओने खावानुं जोगाण खामणुं अखाका. वासण मूकवानी बेसणी [सं.खादन] -बेठक; प्रेमाका. *कद, [बांधो, काठु] खाणहार षष्टिप्र. खानार (सं.खादन+कार) खामे अखेगी. खामणामां, [खाडामा] खाणि, खाणी, खांणि आरारा. उक्तिर. खामो ऐतिका. कमी, त्रुटि, [खामी, चूक गुर्जरा. नेमिछं. वीसरा. षडाबा. खाण, खाय हाडा अखाका. फोगट फांफां मारे, ___ 2010_03 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खायिक/खांपी नाख्यो खांगुं अभिऊ, त्रांसुं, [आई] [दोडादोडी करे ] खायिक आनंस्त. क्षायिक, कर्मनो क्षय खांचइ आरारा. प्रेमाका. खेंचे (रा.) [प्रा. थवाथी उत्पन्न थतुं [जै.] खंच] खांचियां षडाबा. खेंचवामां आवे, नाखवा - मां आवे (प्रा. खंच) १३४ खार उक्तिर. क्षार, मीठं खारा प्रेमाका. खार - ईर्षाथी भरेला, [वेरझेरवाळा, अकारा]; प्रेमप. अकारा, दुःखी खारिक, खारिक आरारा (व). उक्तिर. लावल. खारेक (दे. खारिक्क) खारेख आरारा (व). खारेक (दे. खारिक्क) खाल, खाळ गुर्जरा. प्राचीसं. शीलक. खाळ, [नीक, मोरी]; वीसरा. जळप्रवाह (दे.) खाल चंद्रवा. छाल, [चामडी ] (दे. खल्ला) खालि आरारा. [खाळ], नालिका, नीक (दे.) खालि * उपबा. [*खाडामां] (अप. खयाल) खाळी (खाळी लीध) नरका. पडावी [लीधा] खाले पड्यो प्रेमाका. पाछळ पड्यो खास आरारा. उक्तिर. खांसी ( सं . कास) खासइ उक्तिर. खांसी खाय ( सं . कासते ) खासर, खासरूं अंबरा. गुर्जरा. खासडुं खासा उषाह. प्रेमाका. खास प्रकारना, सारा, [उत्तम, सुंदर]; प्राचीफा. एक कीमती वस्त्र, ["उत्तम, सुंदर] [फा. खास ] खासी प्रेमाका. ('खवासी' नुं प्रास मेळववा माटेनुं रूप), सेविका, दासी 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खांडउ उक्तिर. तूटेला शींगडावाळो (आखलो) (सं. खंडित) खांडणां कृष्णबा. खांडतां गवातां गीत, खायणां खांडमी प्रेमाका. भोजननी एक [फरसी ] वानी, [खांडवडी ] खांडासरमु गुर्जराः तलवार चलाववी ते (सं. खड्गश्रम) खांडी दशस्कं ( १ ). दशस्कं (२). * प्रेमाका. खांडां [ - तूटेलां] शींगडांवाळी [गाय ]; जिनरा. खंडित, भांगेली खांडु अखाका. उक्तिर. प्रेमाका लावल. शृंगामं. खड्ग, तलवार खांडो प्रेमाका. खंडित खाणि जुओखाण खांत, खांति अखाका लावल. काळजी; गुर्जरा. "धैर्य, [काळजी, उद्यम, उत्साह ]; आरारा. होंश; चतुचा. नरका. नलाख्या. विक्रच. होंश, इच्छा; नरका. लालसा, [तृष्णा ] ( सं . क्षान्ति) खांखते नरका. केडे, पाछळ, [खेधे]; जुओ खांधउ उक्तिर. खांध, खभो (सं. स्कंध ) खाखत्य खांखल वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). खखडी गयेला, हाडपिंजर समा खांखलपांखल जुओ छांछलपांछल खांध्य ( खांध्य भागवी) अखाका. खांध गरदन [ मारवी], [नाश करवो] खांपण जुओ खापण खांपी नाख्य प्रेमाका. तोडी नाख्यो, [सोरी Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खांम/खटलिया नाख्यो, उझेडी नाख्यो] खिरइ उक्तिर. नेमिछं. खरे (सं.क्षरति) खांमइ ऋषिरा. खमावे, क्षमा मागे (सं. क्षम् खिल. तेरका खेल, क्रीडा करवी (सं. खेल) खिल्ल- प्राचीसं. खेले, [जुगारमां होडमां परथी) खावंन नंदब. खाविंद, [मालिक ] मूके] खांसकरणु षडाबा. खांसी खावी ते (सं. खिवइ, खिवाइ प्राचीसं. वीसरा. चमके, झबकारा करे (सं.क्षिपति); जुओ खव-, खींबें कास) खिजमति, खिजमती जुओ खजमति खिज्ज- प्राचीसं. खेद पामवो, क्लेश थवो (सं. खिद्यते) १३५ खिडियं आरारा. रचायेलूं, पर ऊभेलुं (रा.) खिण आरारा. ०कामा (त्रि). ऋषिरा. गुर्जरा. देवरा. नरका. नैमिछं. प्राचीफा. लावल. क्षण, पळ, अत्यंत अल्प समय; विक्ररा. [पर्वदिवसनुं] व्याख्यान; जुओ क्षण खिणमात देवरा. क्षणमात्र खिणि आरारा. क्षणे, समये खिणिखिणि लावल. क्षणेक्षणे खिणु नरका. क्षण, पळ खिति प्रबोप्र. पृथ्वी (सं. क्षिति) खित्तवाल ऐतिका. क्षेत्रपाल, [ क्षेत्ररक्षक [देव] खित्री आरारा. क्षत्रिय खिप गुर्जरा. खपे, नाश पामे; जुओ खपइ खिपक श्रेणि * देवरा. [मोहनीय कर्मनो जेमां क्षय थाय छे एवी गुणस्थानकनी श्रेणी ] [सं. क्षपकश्रेणि] [जै.] खि आरारा. उतावळ; तरत (सं. क्षिप्र ) खिमा, खीमा आरारा. देवरा. प्राचीफा. सिंहा (शा). क्षमा खिर नलाख्या. खेरनुं झाड (सं. खदिर) खिसइ उक्तिर. लावल. खसे, [सरके, बाजु पर जाय]; आरारा. षडाबा. खसे, जतुं रहे; ऐतिका. हटे, [आघा जाय, अटके]; जिनरा. सरके, [जाय, आगळ जाय ] (प्रा.) खिसरहंडी उक्तिर. [?] (सं. क्षिप्रसरहिंडिका) खिहाला ऐतिका. खाद्य वस्तुविशेष, [*कंदविशेष ], [ "दे. खिल्लहल] खिंगाल * अभिऊ. [ प्रलयाग्नि] [सं. क्षयांगार] खीच, खीचु उक्तिर. खीचडी; * गुर्जरा. विराप. लोचो (दे. खिच्च) खीज अखाका. क्रोध, [[खिन्नता ] खीजइ उक्तिर. गुर्जरा. खिन्न थाय; लावल. * खिजाय - गुस्से थाय; खिन्न थाय, (सं. खिद्यते); प्रेमाका. गुस्से थाय खीजविय प्राचीसं. खीजवी, दुःखी करी, पजवी खीजवे नरका. चीडवे, [परेशान करे ] खीटलां अभिऊ. [काने] पहेरवानुं घरेणुं खीटलिया, खीटलियाळा, खींटळियाळा दशस्कं ( 9). प्रेमप. प्रेमाका. वांकडिया, गूंचळावाळा 2010_03 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीटली/खंटियइ १३६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खीटली, खींटली नरका. नलरा. "नेमिछं. उक्तिर. विनाश (सं.क्षिति); जुओ खींव प्राचीफा. लावल. विमप्र. स्त्रीओनुं खींचाताणि आरारा. खेंचताण, आनाकानी काननुं घरेणुं खींचे नस्का. खेंचे खीण आरारा. उपबा. गुर्जरा. चित्तसं. खींटळियाला जुओ खीटलियाळा जिनरा. क्षीण, दुर्बल; मदमो. खोट खींटली जुओ खीटली खीणइ गुर्जरा. क्षीण थाय खींबें जिनरा. चमके, कडाका करे; जुओ खीणपण कृष्णबा. क्षीणता खिवइ खीणा जिनरा. क्षीण[मोह], [मोहनीय कर्म खींव [*खींख] कर्पूमं. नुकसान [रा. ज्यां क्षीण - नष्ट थयां होय एवी खीखां]; जुओ खींख आत्मावस्था] [जै.] खुटकइ गुर्जरा. खटके (द.खुडुक्क) खीन, खीमा तेरका. प्राचीसं. खिन्न . खुडत गुर्जरा. आखडता दि.खुडिय] खीमा जुओ खिमा खुत्तउ, खुतउ गुर्जरा. प्राचीसं. खूत्यो, खीर कादं (धु). "गुर्जरा. नलरा. मदमो. खूप्यो, गरकाव थयेलो] दि.] विराप. दूध (सं.क्षीर) खुवालिम, ख़ुदालिम हम्मीप्र. शहेनशाह खीरणा, खीरणी आरारा(व). उक्तिर. (फा.) खीरण, खीरवेल, एक वनस्पति . खुभइ उक्तिर. गुर्जरा. क्षुब्ध थाय खीरवास अभिऊ. बारीक सफेद रेशमी (सं.क्षोभते) । वस्त्र (सं.क्षीर+वासस्) खुर, खुरउ उक्तिर. उषाह. गुर्जरा. प्रेमाका. खीरह ऐतिका. क्षीर, दूध पगनी खरी (सं.क्षुर) खीरि उक्तिर. षडाबा. खीर (सं.क्षैरेयी) खुरमा नेमिछं. [एक फळमेवो, खजूर] खीरोदक अभिऊ. ऐतिरा. *गुर्जरा. नरका. [फा.खुर्मा]; जुओ खरमां पंचवा. प्रेमाका. विमप्र. एक जातनुंधोळु *खुरुणा [*परुणा] नंदब. ?, परोणो, रेशमी वस्त्र (सं.क्षीरोदक); "विमप्र. महेमान] [क्षीरसागर] खुलु अभिऊ. नलाख्या. खोळो (द.खोलखीलइ उक्तिर. चारफा. हरिख्या. रोके, वस्त्रनो एक भाग, ते परथी) [स्तंभित करे, बांधे] (सं.कीलयति) खुसई *गुर्जरा. [खोसे, अंदर धकेले, घाले] खीलउ उक्तिर. खूटो, स्तंभ (सं.कीलकः) [रा.; दे.खुसिय] ("सं.कुष्यति) खीसउ उक्तिर. थेली, पाकिट, गजवू [अ. खहे नंदब. खूए । कीसः] खुंट षष्टिप्र. निरंकुश माणस खींख अंबरा. हरकत, [हानि] [रा.खीखां]; आंटियइ गुर्जरा. खेंची कढाय, . तोडाय 2010_03 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बुंदकार/खेत दि.खुट्टइ) खेचर चित्तसं. आकाशमां ऊडनारा [सं.] खंदकार हम्मीप्र. खूनी, [खूखार, जालिम, खेचरी प्रेमाका. पक्षिणी क्रूर] (फा. ख्वार) खेचरु गुर्जरा. आकाशमां ऊडनार (दव के दालिम जुओ खुदालिम देवकल्प योनि) प, खूप, खूप उषाह. कादं (शा). गुर्जरा. खेचित *देवरा. [(रलो वगेरे) जडेली] तेरका. नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. [सं.खचित] प्रेमाका. लावल. वसंफा. वसंवि. खेजडी गुर्जरा. विराप. खीजडो, शमीवृक्ष वसंवि(ब्रा). विमप्र. स्थूलिफा: माथा खेटक प्रेमाका खेडनार हांकनार उपरनो पुष्पनो एक शणगार, शहेरो टेको लेकर दि.खुंपा) खेड उक्तिर. गाम (सं.खेट) खूटवइ गुर्जरा. खुटाडे, दूर करे (द.खुट्ट) 1 खेडइ लावल. ढाल वडे (सं.खेटक) खूण हरिवि. *कलंक, "लांछन, [अपराध, ' खेडइ उक्तिर. गुर्जरा. नलाख्या. प्राचीफा. पाप] दि.) प्रेमाका. विक्ररा. विराप. हांके, चलावे, खूणालउ लावल. खूणावाळो [सं.कोण-] आगळ लई जय, (प्रा.खेड); *ललिरा. खूतउ जुओ खुत्तउ [धसे खूप जुओ खुंप खेडउं उक्तिर. उपबा. लावल. "विमप्र. खूपइ उक्तिर. षडाबा. खूपे, ऊर्दू पेसे ढाल (सं.खेटक) खूह जिनरा. *खभो, [कूवो] [रा.] खेड खेड करंता मदमो. दडमजल करतां बूंखारी प्रेमाका. खोखारो करी खेडावि नलाख्या. हंकावे, [चलावडावे] खूट अखाका. माप, हद, सीमा; खूटी, खेड अखाका. ढाल (सं.खेटक) __ अवरोध दि.खुंट] खेडु दशस्क(१). कापवा एक ओजार खूटइ गुर्जरा. खेंची काढे, तोडे (द.खुट्टइ) खेई अखाछ. मदमो. गामडु [सं.खेट]; खूटीइ विराप. *खोतरीए, [खेंची काढीए] प्रेमात प्रेमाका. रूस्तस. लावल. *विमप्र. ढाल खूधा प्रेमाका. खूधवाळा [सं.खेटक खूप जुओ खूप खेडं दशस्क(२). खड्ग, तलवार; जुओ पु जुओ कूपु खइडां खेअ मदमो. क्षय खेडू, खेडू कादं(च). कादं(शा). षड्ज स्वर, खेउ गुर्जरा. खेद [खरज, संगीतनो स्वरविशेष] "खेकट [खेटक] विक्रच. ढाल [सं.खेटक] *खेण नरप(द). क्षण खेकारि देवरा. क्षयकारी, [विनाशकारी] खेत अखाका. क्षेत्र, रणक्षेत्र ___ 2010_03 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेतरपाल / खेह मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश खेतरपाल ऐतिका क्षेत्रपाल, [ क्षेत्ररक्षक खेलणड उक्तिर. खेलवुं ते, क्रीडा, रमकडुं (सं. खेलनकम् ) [हिं. खिलौना ] देव] खेतल उषाह. प्राचीसं. क्षेत्रपाल, [खेतरनो खेलणा ०जिनरा. क्रीडा रक्षक देव] खेतलवीर विमप्र. क्षेत्रपाळ, [एक प्रकारना नीचली कोटिना देव ] १३८ जुओ क्षेद खेदवुं * अखाका. नंदब. प्रेमाका. मदमो. वेताप सिंहा (शा). छेदवुं, [कापी नाखवूं ]; कृष्णच. थकववुं, [पीडवुं] खेप आरारा. नाखवुं ते ( सं . क्षेप) खेप अखेगी. "सफर, #मुसाफरी, ["खांत, *उद्यम] खेत्र आरारा. गुर्जरा. लावल. क्षेत्र, स्थान, प्रदेश; जुओ क्षेत्र खेत्रपाल पंचवा. क्षेत्रदेवता, खेतरनो रक्षक खेली * अंबरा. [नर्तकी, नटी] खेलो मदमो. [*खेळ, "आर, "कांजी] देव [सं. क्षेत्रपाल ] खेद हरिख्या. *क्रोध, [रंज, अप्रसन्नता ]; खेलो नरका. संघरो, संग्रह खेपई शृंगामं षष्टिप्र. फेंके, नाखे (सं.क्षेप) खेपन अखाछ.. गाळवुं ते, [व्यय करवो ते] (सं. क्षेपन) खेपावुं ऐतिरा. नखावुं [सं. क्षिप्] खेम आरारा. कादं (शा). गुर्जरा. प्रेमप. कुशळपणुं, सुख (सं. क्षेम) खेमा कामा (त्रि). क्षमा खेय रूस्तस. धूळ (दि.खेह) खेरी अखेगी. घेटो खेल * नलरा. विक्रच. लीला, रंगराग, [क्रीडा, आनंदप्रमोद] [सं.] खेल प्राचीसं. रमनारा, [नर्तक ] 2010_03 खेलन वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). क्रीडा माटे (सं.) खेला * अंबरा. तेरका. * प्राचीफा. रमनारा, खेलाडी, [ नट, नर्तक ] (सं. खेलकाः) खेलाखेली " प्राचीसं. [रमनारा-रमनारी] खेव प्रबोप्र. [फेंकवुं ते, दूर करयुं ते, नाश] [सं. क्षेप] खेव आरारा. ऋषिरा. कृष्णच. वार, विलंब (सं.क्षेप) खेव उषाह. ऋषिरा. कांद (धु). कादं (शा). चित्तसं. नलाख्या. प्रेमाका. हरिख्या. जलदी, तरत ज (सं. क्षिप्र); * कामा (शा). [तरत तो, हमणां] खेव सिंहा (शा). जलदी (के खेवनाथी ? काळजीथी ? ) खेवइ आरारा. नाखे, प्रसारे (सं.क्षेपू); ऋषिरा. नाखे, फेंके खेव प्राचीसं. [ अगरनो ] उछाळ (सं.क्षेप) खेवि (इणि खेवि) कृष्णच. आ क्षणे, अत्यारे खेस ऋषिरा. नलरा. *विमप्र. खार, द्वेष; * ऐतिरा. प्राचीफा. क्षति, ऊणप ("दे. खस = खसवुं उपरथी ) [ रा. खेसौ] खेह प्राचीफा. ?, [* पक्षी] [रा. खे] खेह, खेहा अंगवि. आरारा. गुर्जरा. Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १३९ खेहाडंबर/गउख दशंस्कं(१). दशस्कं(२). प्रद्युचु. प्राचीसं. कच्छप प्रेमाका. रूस्तस. वीसरा. शृंगाम. खोवलउ नलरा. खोबो, खोबलो. सिंहा(शा). हम्मीप्र. धूळ, रज दि.] खोसइ आरारा. लई ले, लूंटी ले (रा.); खेहाडंबर वीसरा. धूळनी डमरी *गुर्जरा. *विराप. [नष्ट करे] खेंम चंद्रवा. क्षेम, [कुशळपणुं, सुख] खोह ऋषिरा. "नरप(द). नलरा. प्रेमाका. खोई प्रेमाका. [बाळकने सुवाडवा माटेनी] शृंगामं. खो, खीण, कोतर झोळी खोही चितसं. प्रेमाका. खोई, गुम करी, खोटारा प्रेमाका. खोटा, जूठा, [खोटाबोला] दूर करी खोटि गुर्जरा. सीमा, मर्यादा (द.खोड); खोही बाहे प्रेमाका. बाह्यमां - बाहुमां ___ आनंस्त. नलाख्या. खोट, खामी, ऊणप खोसीने - घालीने खोटियइ षडाबा. खोडीए, साथे जोडीए ख्यात प्रेमाका. ख्याति खोड नलरा. प्रेमाका. थडियुं, लाकडं (दे.; ख्याल *अखाका. [कल्पना, तरंग, तरंग __ *सं.क्ष्वोट) लीला]; * नरका. [गम्मत, क्रीडा] खोड प्रेमाका. आफत, [दुःख, पीडा] ख्याली *अखाका. [कल्पनाक्रीडा करनार] खोड- प्राचीसं. खंडित करे, फोडे खोडउ उक्तिर. लंगडो [दे.; खारेक, खोटक] गइ अभिऊ. हाथी (सं.गज, प्रा.गय) खोडायइ उक्तिर. लंगडाय [रा.] गइ जिनरा. तेरका. गति, जन्मयोनि खोडि, खोडी अभिऊ. उपबा. जिनरा. गइल वीसरा. [गमन, जq ते, प्रवास]; नलाख्या. नेमिछं. प्राचीसं. लावल. जुओ गजगेली, गेली, गैला विमप्र. क्षति, खामी, खोड, [दोष] (द.) गइला नरका-२. गयो (म.) खोडी उक्तिर. फोल्ली (*सं.स्फोटिका) [*दे. गइवर, गइंवर गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. खोडी] उत्तम गज, उत्तम हाथी (सं.गजवर) खोडी नरका-२. खोडवाळी; प्रेमप. गइंडउ उक्तिर. गेंडो (सं.गण्डकः) __ खोडवाळी स्त्री, कुब्जा गइंद प्राचीफा. वीसरा. हाथी (सं.गजेन्द्र) खोणि ऐतिका. क्षोणी, पृथ्वी गइंवर जुओ गइवर खोभइ उक्तिर. क्षुब्ध करे (सं.क्षोभयति) गईमर उषाह. हाथी [सं.गजवर] खोल उक्तिर. माथे बांधवानुं वस्त्र (दे. गउ अभिऊ. गुर्जरा. नेमिछं. वाग्भबा. खोल्ला) वीसरा. गयो (सं.गत) खोलइ आरारा. बंधन छोडे गउख, गउखु उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. गुर्जरा. खोळबी प्रेमाका. खोळवारों, काचबो - प्राचीफा. वसंवि. वीसरा. शीलक. गोख, 2010_03 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उंपाबाबहती १४० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश झरूखो (सं.गवाक्ष) हारमाळा (सं.गजस्तरः) मउंछण उक्तिर. पात्र वगेरे साफ करवानुं गजथाट ऐतिका. हाथीओनो समूह, [हाथी कपडु दि.गोच्छ जेवा गौरववंत पुरुषोनो समूह]; जुओ गउड ऐतिका. गौडी रागणी थाट मलडीय आरारा. गोडी - एक तीर्थ [जै.] गजधर लावल. सुथार; [कडियो, स्थपति; करण जिनरा. गमन, [चाल्या जq ते]; दरजी] ___ आरारा. जतां रहेवू ते (सं.गमन; हिं. गजमुक्ता प्रेमाका. हाथीना मस्तकमांथी गवन, गौना); जुओ गवन नीकळतां मनातां मोती [सं.] "कज्यहइ [मडबड ऐतिका. गडगडे, गजयज (गजवज) ["गजक्य] विमप्र. हाथी [ढळी पडे]; जुओ गडमडत [*सं.गजपति] बउर उक्तिर. गौर, ऊजळो गजवड, गजवडि गुर्जरा. प्राचीसं. एक परस्त प्राचीफा.वरनं सम्मान करवा कन्या- जातनुं रेशमी कापड - गजचित्रयुक्त पक्ष तरफथी अपातुं जमण (सं.गौरव); (सं.गजपटी) जुओ गोवु गजवय जुओ गजयज गउरी ऐतिका. गौरी [राग] गजवाड प्रेमाका. हाथीखानु कउरी वीसरा. पार्वती (सं.गौरी); गुर्जरा. गजा *विमप्र. [हाथीओ] गाय (स.गौरी); जुओ गावरी गजार प्रेमाका. रसोडा के भंडार तरीके मछ ऐतिका. समुदाय [जै.] वपराय एवो नानो खंड कछ विक्ररा. जा [सं.] गजियाणी प्रेमाका. एक प्रकारचं रेशमी कछी सिंहा(शा). चूनागच्छी, धाबो, कापड - [गजना मापन] कज नेमिछं. हाथी गजियां प्रेमाका. गज पनानां कापड कब नेमिछं. वे फूट [साठ सेन्टिमिटर] अंतर गज तेरका. गाज, (मेघ)गर्जना (सं.गर्ज-) मजकोठा चित्तसं. गजकपित्थन्याय, हाथीए गजइ गुर्जर. तेरका. लावल. गर्जना करे, गळेला कोठानो न्याय गाजे (सं.गर्जति) मनगाह ऐतिका. [वीर पुरुष] [रा.; गजु विजु प्राचीसं. गाजवीज (सं.गर्जितम् "सं.गज+ग्राह विद्युत्) बजगेली आरारा. गजगामिनी स्त्री (प्रा. गड उक्तिर. ढीमर्दू, फोल्लो (सं.गडुः) गजगइली) गड कामा(वि). *हाथी ब-युक्ती नरका. हाथणी गडगडती प्रेमाका. [गाजती, जगजाहेर], बजयर उक्तिर. मंदिरमा हाथीओना शिल्पनी जाणीती 2010_03 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन मुगुजराती शब्दकोश १४१ गडदउ/गफा गडदउ अंबरा. गडदो, [मूठीनो] प्रहार (सं.गणिमिश्रः) गडमडत गुर्जरा. *गडगडतुं, *गडगडाट गणीस विमप्र. ओगणीस [सं.एकोन करतुं [*गबडी पडतुं]; जुओ गडयडइ विंशति] गडयडइ जुओ गउयडइ गणेश आरारा-शु. तेतर गडार, गडारउ " उषाह. "प्राचीसं. [मकानना गत आरारा. गति, [झडप]; *अखाछ. पायानी ऊभणी, प्लिन्थ कामा(शा). नरका. प्रेमाका. गति, दशा, गडिया शंगामं. बख्तर वगेरेथी सज्ज थयेल स्थिति; अखाका. प्रेमाका. मदमो. गति, दि.गुडिअ) चाल, रीत; नरका. गति, [समज, बुद्धि, गडलु *षडाबा. [चोखा वगेरेनुं धोवण] भान; चित्तसं. गति, शक्ति गडरि प्रवाह आनंस्त. गाडरियो प्रवाह गतभंग कामा(शा). बेभान गढरोहउ *उपबा. [गढने घेरो घालवामां गति आरारा. जq ते, गमन; जीवयोनि; ___ आवे ते] (द.गढ+सं.रोधक) उपबा. स्थिति, [जीवस्थिति, जीवनी गठिउ जुओ अन्नलि गढिउ अवस्था]; वीसरा. बाबत, [अवस्था, गण कर्पूमं. प्राचीफा. गुण; अभिऊ. [धनुष्य हालत] (सं.) नी] दोरी, [पणछ] [सं.गुण] गतिमागु *गुर्जरा. [पंचम गति एटले मोक्षनो गणक कांद(शा). जोशी (सं.) मार्ग] गणधर कादं(धु). कादं(शा). गंधर्व, गानारा पत्य चित्तस. गात, [स्थात, दशा] गणधर ऋषिरा. तीर्थंकरना प्रधान शिष्य पर गत्यमत्य नरका. गति अने मति, [सानगणधार गुर्जरा. चारफा. लावल. जिनदेवना भान] प्रधान शिष्य, अनुपम ज्ञानादि गुणयुक्त गत्य थाए चित्तसं. गत थाय, दूर थाय __जैन साधु के आचार्य (सं.गणधर) गद प्रेमाका. [गद्य], कहेलां गणहर ऐतिका. गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीसं. गदकलां नरका. गतकडां, टोळ, मश्करी षष्टिप्र. गणधर; जुओ गणधार गदहिला उक्तिर. बळद वगेरेने चलाववा गणि उपबा. गुर्जरा. साधुओना एक समूहना माटे वपराती आर (दे.गद्दहिला) अधिपति (सं.गणिन्) [सं.] गहहउ उक्तिर. गधेडो (सं.गर्दभ) गणित नरका. गणी शकाय एवं, [हिसाब गप प्रेमाका. सीधांसादां वचन, [शब्दोमां थई शके एवं, पार पामी शकाय एवं] कही शकाय एवं] गणीअल प्राचीका. गुणियल, गुणवान] गनीम रूस्तस. मराठा गणीउ नलरा. ज्योतिषी (सं.गणक) गहउ विक्ररा. गुनो गणीस उक्तिर. गणीवर, गणाधिपति गफा दशस्कं(१). दशस्कं(२). गुफा 2010_03 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गन्भ / गयवर १४२ गन्म तेरका. गर्भ गरु अखाका. [बच्चुं], वाछरडुं गभार, गभारा, गंभारउ उक्तिर. ऋषिरा. षडाबा. गभारो, गर्भगृह, दिवालयनो अंदरनो भाग) (सं. गर्भागार) दिशा, तरफ गमांतरुं सिंहा (शा). गामतरुं [ सं . ग्रामान्तर] गमीआं ऋषिरा. गुमाव्यां गमीजइ विराप. (दिवसो) पसार करीए . वितावीए (सं. गम्यते) गभु गुर्जरा. गर्भ गमे नेमिछं. विमप्र. बाजुए, दिशाए, [तरफ ] गमेल " गुर्जरा. [ नौकानो चाकर ] (दि. गमेइ आरारा. गुर्जरा. विराप. (समय) पसार करे, वितावे (सं. गमयति) गमें आनंस्त. प्रकारे गब्मेल्लग) * गम्य चित्तसं. प्रेमाका. गम, सूझ गय जिनरा. गति, [जीवयोनि ] गय अंबरा. आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. दैवरा. मिछं. विराप. हाथी (सं. गज) गयगत प्रधुचु. [ नष्ट ] [ सं . गतगात्र ] गयगमणी आरारा. कृष्णच. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). हाथीना जेवी चालवाळी (सं. गजगमनी) गयण ऐतिका. ऐतिरा. ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका, नेमिछं. लावल. हरिवि. गगन, आकाश गम अखाका. अखाछ. गुर्जरा. प्रेमाका. सूझ, दृष्टि, समज; अखाका. स्वरने कंपावीने गावुं ते, [एक प्रकारनो स्वरबंध] गम "उषाह. [गम्य, मनमां लाववुं ते ]; दिशा, [युक्ति, मार्ग ]; वीसरा. गमन गमइ आरारा. गुर्जरा. लावल. निर्गमन करे, पसार करे, वितावे [सं. गमयति ]; गुर्जरा. सूझे गमइ, गमई * प्रद्युचु. [तरफ, माटे ]; उक्तिर नेमिछं. लावल. *विमप्र. षडाबा. बाजुए, [दिशामां, तरफ] (सं. गम्य ) गमण गुर्जरा. तेरका. लावल. गमन गमणागमणु षड़ाबा. गमनागमन, आव-जा गमती आरारा. पसार करती गमा उक्तिर. बाजु गमाणि उक्तिर. गमाण (सं. गवादनी) गमाया नेमिछं. लावल. वीसरा गुमाव्या, नाश कर्यो मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश 2010_03 गयणगंग तेरका. गगनगंगा, [ आकाशगंगा ] गयणंगण गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. शृंगामं. गगननुं आंगणुं (सं. गगनांगन) गयदूषण नेमिछं. जेमनां दूषण गयेलां छे तेवा, दोष विनाना, [खामी विनाना] गयमर उषाह. गुर्जरा. नलरा. हाथी (सं. गजवर) गमारि वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). गमार गयय तेरका गयुं (सं. गत+क) स्त्री (दे. गामार ) गयराय तेरका. गजराज गमां कामा (शा). चंद्रवा नरका. बाजु, गयवर आरारा. गुर्जरा. विक्ररा. शृंगामं. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हाथी (सं. गजवर) गयंद अभिऊ. अंगवि. नरका. नंदब. प्राचीफा. मदमो. शृंगामं. हम्मीप्र. हरिवि. हाथी (सं. गजेन्द्र) गयंद / गरुड गरब, गरबु वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. गर्व, अभिमान गरम " वीसरा. [गर, अंदरनो मावो] (सं. गर्भ) गरभु प्राचीफा. गर्व, अभिमान गयंवर जुओ गयंधर गरवी लावल. गर्ववाळी गयंदवय प्राचीसं. गजेन्द्रपद, [गिरनारनुं गरसली नलरा. स्त्रीनुं एक घरेणुं, [गलसिरी, गळानुं घरेणुं ] १४३ एक जलती * गयंधर [ गयंदर ] विराप. सुंदर हाथी, गरहइ उक्तिर. निंदा करे (सं. गर्हति) [उत्तम हाथी] [सं. गजेन्द्र ] गरहणइ विक्ररा. शृंगामं. हम्मीप्र. घराणे, गीरो तरीके [ सं . ग्रहणक; दे. गहण ] गराण * विमप्र. [भारे, वजनरूप, अप्रिय ] [फा.गिरां; हिं. गरां] गरिट्ठ, गरिठ आरारा. गरिष्ठ, महान, महिमावंत गरइ प्रबोप्र. गळी जाय, [ क्षीण थई जाय ] (सं. गिरति); जुओ गरी पडे गरकलुं (गरफलुं) सिंहा (शा). गळचटुं ?, ["फरसं] गरका प्रेमाका. टुकडा गरकाव्य अखाका. गरकाव, [संकोडाईने गरिहउं * षडाबा. [निंदु] [सं.] चालते] गरजण चंद्रवा. [गरजाण], गीधण, [ गीध ] गरठि ऐतिका. गरिष्ठ, मोटो गरढउ आरारा. उक्तिर. ऐतिका. कर्पूम. नलरा. प्रद्युचु. प्रेमाका. वाग्भबा. विक्ररा. घडो, वृद्ध (सं. जरठ) गढपणि प्रबोप्र. घडपणमां गरणां-गोर वेताप. गणागौर, गणगौरी, [ पार्वतीनुं प्रतीक रूप, जेनुं आ व्रतमां पूजन करवामां आवे छे ] गरत ( घरत ) देवरा. घी (सं. घृत) गरथ कामा (शा). नरका. प्रेमाका. वीसरा. नाणुं, धन गरधव मदमो. गर्दभ, गधेडो गरफलुं जुओ गरकलुं 2010_03 गरी पडे प्रेमाका. खरी पडे, गबडी पडे; जुओ गरइ, गिरी पडवुं गरीठो ऐतिका. लावल. गरिष्ठ, महान, श्रेष्ठ गरीधर प्राचीका. कृष्ण (सं. गिरिधर ) गरुअओ वसंफा मोटो (सं. गुरुक) गरुई आरारा. षडाबा. मोटी (सं. गुरु +ई) गरुड, गरूउ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वाग्भबा. षष्टिप्र. गरवो, मोटो, महान ( सं . गुरुक) गरुज हम्मीप्र. गुरज, [ गदा जेवुं] एक हथियार (फा. गुर्ज) गरुयउ उक्तिर. चंद्रवा. तेरका. षडाबा. मोटुं, गरवुं (सं. गुरुक) गरुड * ऐतिका. [मोटाई, महत्ता ] Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरुयडि/गलोढां १४४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गरुयडि, गरूयडि शृंगामं. षष्टिप्र. मोटाई; तेवी गोठवण] ___ आरारा. गौरवपूर्वक गलशिथिल जुओ शिथिल गरुवो नरका. गौरवशाळी गलसरण षडाबा. हीबकां (सं.गलस्वर) गरूअडी नलरा. मोटाई, माहास्य गळस्थळ नरका. प्रेमाका. गाल गरूई षडाबा. मोटी (सं.गुरु परथी) गलहथउ उक्तिर. बोची पकडवी ते, पराजित गरूउ जुओ गरुउ करवू ते (सं.गलहस्तः) गरूयडि जुओ गरुयडि गलहथियउ उक्तिर. जेनी बोची पकडायेली गरेणे कामा(त्रि). गीरवे [सं.ग्रहणक, छे ते, पराजय पामेल (सं.गलहस्तितः) दे.गहण]; जुओ ग्रहण गलान्य चित्तसं. ग्लानि गई प्रेमाका. पैसा, धन गळा मांग पग घालुं जुओ पग घालुं गळा गर्धव दशस्कं(१). गर्दभासुर __ माह्य गर्भकमल चित्तसं. अंदर रहेल कमलरूपी गलाल प्राचीफा. गुलाल __ अवयव [सं.] गलित अखाछ. अखेगी. प्रेमप. गळेखें, नम्र, गळ वीसरा. गळू (सं.गल-) आर्द्र[सं.] गलअलइ उक्तिर. गळगळे, आर्द्र थाय । गलितपणे अखेगी. नम्रताथी गलउ आरारा. गळ्युं, मीठं गलियार उक्तिर. गळियो बळद, हृष्टपुष्ट गळउ वीसरा. गर्छ (सं.गल-) गलकंवल षडाबा. गाय वगैरेनी गळा नीचे पण सुस्त बळद (सं.गलिः) [सं.गलित-] नी लटकती चामडी (सं.गलकंबल) गळियो प्रेमाका. चालवाने अशक्त, [चालवा गलकी वेताप. गंडकी नदी ' न मागतो, सुस्त] [सं.गलित] गल गरजत ऐतिरा. गाल गजावता, [गाल गलि साहै जिनरा. गळामांथी पकडीने थी गर्जना करता] गली नेमिछं. ढीला थईने गलगलीया गुर्जरा. गर्जना करी ऊठ्या गलीउ नेमिछं. गळ्यो, [मीठो] [सं.गुल्य] (प्रा.गुलगुलइ) गलीया आरारा. बेळु ऊठे नहीं तेवू, [सुस्त, गलगांठी उक्तिर. गळानी ग्रंथिओ (सं. आळसु] [सं.गलित] गलग्रन्थयः) गळुबंध दशस्कं(१). प्रेमाका. गळामां गलचामीकर सम्यचो. [कंठनी शोभारूप] पहेरवानुं आभूषण गळानो सोनानो हार [सं.] गलेलq सिंहा(शा). ढीलाथर्बु, [गळिया थएँ] गलणउ उक्तिर. विक्ररा. गळj, गरj (सं. गलोलु दशस्कं(१). प्रेमाका. गलोटियु दि. गलनकम्) गलत्थिअ] गलतडी "उषाह. [गळती, पाणी गळतुं रहे गलोढां प्रेमाका. गलोफां 2010_03 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १४५ गलोला/गहूली गलोलां नरप(द). [टींडोरां] पामती, हर्षभरी (द.) गल्ल कादं (शा). प्राचीसं. वसंफा. वसंवि. गहइली, गहेली लावल. घेली [सं.ग्रह+इल्ल] वसंवि(ब्रा). गाल (सं.) गहगहवं, गहगहिवं आरारा. ऋषिरा. गवन दशस्कं(१). गमन; जुओ गउण ऐतिका. ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. गवन-धवन अखाका. जवं ते. दोडधाम] प्राचीफा. लावल. विक्ररा. विराप. (सं.गमनधावन) आनंद पामवं, हर्षथी भराई जवू; नलरा. गवरी विराप. गायो; जुओ गउरी, गौरी सुगंधथी महेकवू वसंफा. वसंफा (ल). गवाणि उक्तिर. गमाण, ढोरने ज्यां घास वसंवि. वसंवि(ब्रा). वृद्धि पामवं, नाखवामां आवे छे ते स्थान (सं... विस्तरवु (दे.) गवादनी) गहगाट, गहिगाट आरारा. ऐतिका. आनंद, गवानिक प्रेमाका दररोज काढवामां आनदनी आभव्यक्ति, आनदाकल्लाल] आवतो] गोग्रास; जुओ गवांनक गहण तेरका. वगडो (सं.गहन); ऊंडाण गवालु अंबरा. गवाळो, सरसामाननो जथ्थो (स.गहन) गवालो प्रेमाका. वस्त्र के सरसामाननो गहबरइ प्रद्युचु. प्राचीफा. गभराय जथ्यो गहलो विक्ररा. घेलो [सं.ग्रह+इल्ल] गवाही प्रेमाका. साक्षी [फा.] गहवरिउ प्राचीसं. व्याकुळ थयु गवानक, गवांनीक सिंहा(शा). गोग्रास, गहिगाट जुओ गहगाट [रोज अपातो चारो] (सं.गवाहिक); गहिबर शृंगाम. गभरु, व्याकुळ] जुओ गवानिक गहिबरिउ आरारा. ऋषिरा. नेमिछं. शृंगाम. गविल आरारा. गुर्जरा. दूधनुं बनेलु (सं. गभरायु, [व्याकुळ थयु] गव्य+इल्ल) गहिर प्राचीफा. ऊंडु (सं.गभीर); ऐतिका. गविल लावल. "जंगली पाडो [प्रा.गवल], घेरूं [दूर कर्यां] [हिं.गैल-जवं] गहिलउ, गहिलउ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. गवेषीइं आनंस्त. गवेषणा करीए, शोध उपमा. गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. करीए रूपच. वीसरा. शीलक. सिंहा(म).घेलो, गव्यूति कादं(शा). गाउ, [त्रण किलोमिटर] गांडो, मूर्ख, [उन्मत्त (सं.ग्रह+इल्ल) (सं.) - गहीय गुर्जरा. ग्रही गशाव्यो मदमो. ग्रस्त थयो, वश थयो गहूं उक्तिर. घउं (सं.गोधूम) गह आरारा. ऋषिरा. तेरका. ग्रह गईली ऐतिका. घउंनी ढगली, [गुरुना गहइगिहिती, गहगहती आरारा. आनंद स्वागतार्थे करवामां आवती घउं आदिनी ___ 2010_03 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जात गहेली/गंध्रव १४६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आकृतिओ] वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. गहेली वसंफा. वीसरा. गांडी, घेली [सं. षडाबा. गांठ (सं.ग्रन्थि) ग्रह+इल]; जुओ गहइली गंठाला आरारा(व). गंठोडा, पीपरीमूळ ? गंगजमन अभिऊ. गंगाजमनी प्रकारचं गठि जुओ गंठ । वस्त्र, पछेडी, [बरंगी वस्त्र, आगळ- गंठोडा जिनरा. काननुं आभरण पाछळ जुदा रंगनुं वस्त्र] गंडस्थल प्रेमाका. लमj (सं.) गंगरे उषाह. गांगरे, [ऊंट अवाज करे] गंडूआ जुओ सेजगंडूआ दि.गग्गर] गंडोल षडाबा. एक प्रकारचें जंतु [जे पेटमां गंगलि नेमिछं. आनन्द उत्पन्न थाय छे] (सं.गंडुल) गंगवणे गुर्जरा. गंगातटना वनमां गंत्री आरारा. पेटी (सं.) गंगाजलु प्राचीफा. हम्मीप्र. घोडानी एक गंधकारी जुओ गंधारी । गंधमायण गुर्जरा. गंधमादन पर्वत गंगाधार कामा(त्रि). शिव गंधरव जुओ गंधृव गंगानंदणु गुर्जरा. गंगानो दीकरो गंधर्व (गंधर्व गोरी) *सिंहा(म). [गंधर्व स्त्री, गंगेटी उक्तिर. एक वनस्पति, जीतेली (सं. गानारी] गंगेष्टिका) ___ गंधलेण विक्रच. गंध लेवी ते, [थोडोक स्वाद गंगेर आरारा(व). एक औषधीय वनस्पति, लेवो ते, चाखवू ते] गंगेडु (रा.गंगेरण; सं.गांगेरुकी); गंगेटी, गंधव (गंधव गोरी) *प्राचीफा. [गंधर्व स्त्री, बाजोलियु, नागबला ? गानारी] गंछी, गांछी पंचवा. वांसफोडानी पत्नी; गंधाअइ, गंधाइ उक्तिर. षडाबा. गंधाय, .. जुओ वंशफोड नी गंध आवे, वास आवे गंजण तेरका. कलंक (सं.गंजन); ऐतिका. गंधारि गुर्जरा. राणी गांधारी ___ मर्दन करनार, हरावनार; जुओ गंजन गंधारी, गंधकारी गर्जरा, विराप. स्वामीनी गंजणहार गुर्जरा. पराभव करनार पाछळ सुगंधी द्रव्यो लईने चालनारी गंजन *ऋषिरा. [मर्दन करनार, चूरो दासी (सं.गंधहारिका, गंधकारी) करनार (सं.); जुओ गंजण गंधव (गंध्रवविवा), गंधरव (गंधरवविवा) गंजिउ प्रद्युचु. गर्यो चंद्रवा. गंधर्वविवाह, [स्त्रीपुरुषनी] गंजिउ आनंस्त. जीत्यो [सं.गंजित] इच्छाथी थतो, उत्सवरहित विवाह गंजिउ जुओ गंय्यिउ गध्रप जिनरा. गंधर्व, गवैया गंठ, गंठि अखाका. तेरका. प्रेमाका. गंध्रुव लावल. गंधर्व, दिवगायक] 2010_03 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वसंफा (ल). वसंवि. गंभारउ जुओ गभार गंभीर * वसंफा. वसंवि (ब्रा) . ऊंडुं; वीसरा. गाढ, भारे; हरिख्या. प्रौढ, मोटुं [सं.] गंभीरिम ऋषिरा. नलरा. गंभीरता, ऊंडाण (सं. गंभीरिमा) गंय्यिउ [ गंजिउ ], गांय्यिउ [ गांजिउ ] प्रबोप्र. गांज्यो, हराव्यो [सं. गंजित ] गाइ वीसरा. गाय (सं. गावी) गाइण विक्ररा. गायन १४७ गाउ चतुचा. गाणं गागरी उक्तिर. गागर (सं. गर्गरी) गाजंण मदमो. गाजतो गाठडी वीसरा. गांठडी (सं. ग्रन्थि) गाउ जुओ गाढ गाठा * नरका. "नरप. प्रेमाका. छेतराया, जिताया गाओ अखाछ. प्रेमाका. गठियो, [छेतरनार] गाडं प्रेमाका. वीसरा. वेताप. दाटवुं (दि. गड्डु परथी ); अखाका. रोपवुं [खोडj] गाडीत चंद्रवा. गाडाग्रळो गाडूडा उषाह. गागर, गाडवा [द. गडुक ] "गाढउ [*गाठउ] लावल. "बळवान, "मोटो, 2010_03 गंभारउ / गामांतर [*छेतरायो; वंचित थयो] गाढउं आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. खूब मोटुं, भारे, सबळ, दृढ, आरारा. आग्रहपूर्वक, भारपूर्वक (रा.) गामि " विमप्र. [गौरव, गौरवपूर्वक ] गात कामा (त्रि). गात्र, [जात], मन, नरका. गात्र, अंग, [शरीर ] गातडी प्रेमाका. छाती अने बरडो ढंकाय एम गांठ वाळी वस्त्र ओढवु ते [सं. गात्रिका] गाडी उक्तिर. ग्रीवा, गरदन गाडर, गाडरि आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. साभरू उक्तिर. [* बच्चुं, *गभरु] (सं. गर्भ षडाबा. घेंटी (दे. गडुरी) रूप) गाडलउं उपबा. गाडुं (द. गड ) गाभरो प्रेमाका. गभरायेलो, त्रस्त गडुक, गडुअय] गाडवा प्रेमाका. घडा जेवा वासण द. गामट, गामटि लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). गामडानी, गामडियण (सं. ग्रामटिका परथी ? ) गामंतरउ वीसरा. परगाम जवुं ते (सं. ग्राम + अन्तर) गात्री उक्तिर. गातडी, गांठ मारी लपेटेलुं वस्त्र (सं. गात्रिका) गादह षडाबा. गधेडा (सं. गर्दभ ) # गादी ( गादी हाट ) कामा (त्रि). गांधीनी दुकान गाने * जिनरा. [गणनामां, संख्यामां ] [ प्रा. गण]; जुओ किणगानइ गामां कामा (त्रि). कामा (शा). गाम, गामडां [सं. ग्राम ] गामांतर दशस्कं ( 9). प्रेमाका. बीजे गाम Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामि/गांठि १४८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जवानी क्रिया, गामतरुं गाल मारे अखाछ. बडाश हांके गामी लावल. [विषय] दूर करी गाला अभिऊ. नेमिछं. गाळा, (गळानु) बंधन गामी * लावल. [(सिद्धिए) पहोंचनार] गालि उपबा. गाळ [सं.] गामीत्रा रूपच. परगाम [जq ते गालिमसूरा तेरका. प्राचीसं. गालमसूरिया, गामेचउ उक्तिर. गामडानं, गामडियं (सं. गाल तळे राखवानां मशरूनां के अन्य ग्रामेयः) ओशीकां] (सं.गल्ल+मसूरक) गायण *गुर्जरा. प्राचीसं. गायक [सं. गाह उक्तिर. नलरा. ०षडाबा. षष्टिप्र. गायन]; गुर्जरा. गायन, गान . स्थूलिफा. गाथा, गीत गायतउ षडाबा. गातो गाह *गुर्जरा. [विध्वंस, नाश] [रा.] गायत्री, गायत्रीय गर्जरा. विराप. गायो गाह- उक्तिर. गुर्जरा. प्रद्युचु. अवगाहन (म.; सं.गायत्री साथे भेळसेळ) करवू, प्रवेशq (सं.) गार अखाछ. गारो, गेरो, वहेर; प्रेमाका. गाह वीसरा. पकडमां लेबुं (सं.ग्राह्) लींपण, [माटीनो केल] गाहाहुं प्रेमाका. गाईं, ऊंडु गारउ प्राचीसं. अभिमान (सं.गौरव): जओ गाहां षडाबा. गाथाए, गाथा वडे गारव, गारो गाहिंइ उपबा. गाथामां गार काढे अखाछ. नाश करे ? गाहो मदमो. छंदविशेष (सं.गाथः); वेताप. गारडी अखेगी. अंबरा. आरारा. प्राचीफा. गाथा, छद गारुडी, मदारी, साप उतारवानो मंत्र गांग प्राचीसं. गंगा जाणनार (सं.गारुडिक) गांगडु प्रेमाका. चड्या वगरनो, करडु गारव, गारवउ, गारखो उक्तिर. उपबा. गांगेउ विराप. गांगेय, भीष्म वैताप. अभिमान, अहंकार [सं.गौरव]; गांगेव दशस्कं(२). गांगेय, भीष्म जुओ गारउ गांछउ नलरा. वांसफोडो; जुओ वंशफोड गारुडविद्या आरारा. सर्पवशीकरणनी मंत्र- गांछी जुओ गंछी विद्या [सं.] गांजबुं प्रेमाका. हरावq, [पराजय पाम,] गारुडिक, गारुडी नरका. प्रेमाका. वीसरा. (सं.गंज) षडाबा. मदारी, सर्पने रमाडनार [सं.] गांजे नरका-२. [जीतीने, हरावीने] गारो चतुचा. गौरव, अभिमान; जुओ गारउ गांजिउ जुओ गांय्यिउ गाल, गाळ, अखाछ. महेj, [कलंक, गांठइ उक्तिर. कादं(शा). गंठे, गूंथे । दूषण]; ०कामा(त्रि). दोष [सं.गालि] (सं.ग्रंथयति) गालडा विमप्र. गाल [सं.गल्ल] गांठि उक्तिर. ग्रंथि, गांठ 2010_03 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गांठीउ नलरा. स्त्रीनुं एक घरेणुं (सं. ग्रंथिक) गांधव कामा (त्रि). गंधर्व, ए नामना देव; मोसाच. गायक गांवी प्रेमाका. गंधर्वनी गांउ जुओ गंय्यिउ गिउ जुओ गउ गिडगिडी ऐतिका. वाद्यविशेष गिणइ उक्तिर. गुर्जरा. वसंवि. वीसरा. नलाख्या. गणे (सं. गणयति) गिण्ह- तेरका ग्रहण करवुं (सं. गृह) गिर उक्तिर. गर, अंदरनो मावो (द.) गिर तेरका. गिरि १४९ गिरइ उक्तिर. कादं (शा). पडे, झरे, टपके (सं. गिरति) गिरट्ठ प्राचीफा. महान ( सं . गरिष्ठ) गिरठि उक्तिर. एक वार वियायेली गाय (सं. गृष्टिः) गिरिमालुं आरारा (व). गरमाळी (सं. कृतमालक) गिरिसंधि गुर्जरा. गिरनार पासे गिरी पडवुं दशस्कं ( १ ). प्रद्युचु. दडी पडवुं, पडी जवुं; जुओ गरी पडे गिरुउ अभिऊ. उषाह. ऐतिका. गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. हम्मीप्र. गरवुं, गौरववंतुं, महान, मोटुं (सं.गुरुक) गिरुयु, गिरूयु आरारा. प्रधुचु. शृंगामं. गरवो, गौरववंतो, मोटो, [महान] (सं. गुरु) गिरे तेरका. गिरि गांठीउ/गुजरी नलाख्या. वाग्भबा. षडाबा. गळे, गळे उतारे, ग्रास करे (सं. गलति, गिलति) गिलगिली उक्तिर. गलगलियां, गलीपची गिलानि षडाबा. ग्लानि गिलो उक्तिर. गळो, एक वनस्पति (सं. गुडूची) Jain मध्यron International 2010 03 गिलोई उक्तिर. षडाबा. गरोळी, घिलोडी (द. गिरोलिया, गिलोइ) गिल्यां आरारा. गळ्यां, मीठां [सं. गुल्य ] गिवरी कर्पूमं. पार्वती (सं. गौरी) गिहिन कादं (शा) . ऊंडा, [गाढ] (सं. गहन) गिहिलं आरारा. नलाख्या. घेलुं (सं. ग्रथ+ इल्ल के ग्रह + इल्ल) गीणी दशस्कं ( २ ). प्रेमाका. ठींगणी गीतारथ, गीतार्थ आरारा. विद्वान, ज्ञानी, धर्मतत्त्व जाणनार गीय शृंगामं. गीत गीत वेताप. सिंहा (शा). निष्फळ, फोगट (फा. जिस्त) गुख, गूख आरारा. उषाह. कादं (शा). नेमिछं. वसंफा. वसंवि (ब्रा). विक्ररा. विमप्र. गोख, झरूखो (सं. गवाक्ष ) गुज, गुज्य, गूज, गूज्य कामा (त्रि). कामा (शा). नरप (द). प्राचीका. प्राचीफा. सिंहा (शा). छानी वात (सं. गुह्य); दशस्कं ( 9). गुह्य, [मार्मिक, ऊंडु]; शीलक. गुप्त, [ एकांतमां] गुजर, गूजर नलाख्या. गुजरोने लगतुं, गुजराती; उक्तिर. गूर्जर, एक जाति गिलइ, गिळइ उक्तिर. वीसरा. गळे, टपके; गुजरी, गूजरी नरप (द). "नरका. गोवालणी; Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरी/गुणउ उक्तिर. गूर्जर जातिनी स्त्री गुजरी ऐतिका. रागनुं नाम बुखार (देश) तेरका. गुर्जर (देश), [गुजरात] बुझना पडावा. यक्ष, एक अर्धदेवजाति (सं. गुह्यक) १५० कुज्यग्राम जुओ गुंज्यग्राम कुज्यर भाख्य मदमो. गुर्जर भाषाए गुज्यराति रूस्तस. गुजराती बुझ, सुश्य, सूझ अखाका. ऐतिरा. नरका. प्राचीफा. मदमो. विक्रच. विक्ररा. सिंहा (शा). छूपुं, छानी वात, मर्म, रहस्य (सं.गुह्य) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गुडि उषाह. धजा गुडिउ, गुडियउ, गुडीय उक्तिर. गुर्जरा. स्थूलिफा. कवच वगेरेथी सज्ज करेला (सं. गुडितः) 2010_03 गुडी, गूडी आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. कादं (धु). *जिनरा. प्रधुचु. प्राचीफा. नलरा. ललिरा. विक्ररा. विमप्र. वीसरा. हम्मीप्र. हरिख्या. नानी धजा, पताका गुडीय जुओ गुडिउ गुड्डु षडाबा. गोळ (सं. गुड) गुड शृंगामं. रहस्य [ रा. गुढौ; सं. गूढ ] गुहुउ, गोडउ प्राचीसं. गूडो, पग [ दे. गोड ] गुड़िया प्राचीसं. गूडी, धजा खुशबी प्राचीफा. [गजब करनार ], जुलमगार, [ त्रासदायक] [अ. गदबी] कुठ चंद्रवा. गोठडी [सं. गोष्ठि ] गुड गुर्जरा. विराप. हाथीनो बख्तर वगेरे गुढउं उक्तिर. [?] (सं. गुदगूढम् ) साज (सं.) गुड्या *विराप. [कवच वगेरेथी सज्ज कर्या] [सं. गुडिताः] गुण गुर्जरा. नरका. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). (धनुष्यनी) दोरी, पणछ (सं.) गुड उक्तिर. गोळ (सं.) गुडइ * नलरा. [भांगी नाखे ] बुड्ड् आरारा. *हम्मीप्र. झूमे, झूमता चाले गुण सिंहा (शा). गण ( शंकरनो); मदमो. हरिवि. समूह (सं. गण ) (रा.) युड प्रचु. (हाथीने) कवच वगेरेथी सज्ज गुण वसंफा. छिद्र (सं.) करे [सं. गुड ] बुडर नलरा. गुडो, पग [द. गोड्ड] ; जुओ गूझ सुडही षडाबा. घडो, गाडवो [द. गडुक ] गुडा ऊंचा बाल अखाका. ऊंधा पग घालीने जलदी ऊभा थवानी तैयारी राखीने, [उभडक, निरांत विना, कष्टपूर्वक ] गुडि गुर्जरा. हाथीनो साज (सं. गुडा) गुण (गुणबनाएक) प्राचीका. गणनायक, गणपति गुणअन प्राचीका. गुणवान व्यक्ति (सं. गुणिजन) गुणइ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. *नलरा. षडाबा. षष्टिप्र. पुनरावर्तन करे, अभ्यास करे (सं. गुणयति) गुणउ (कोडि गुणउ ) उपबा. ( करोड) गणो Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १५१ . गुणउसंकल/गुरजर-धर गुणाकर) गुणउसंकल ऐतिरा. गुणनी भरपाई, [गुण गुणागर वसंफा. वसंवि. गुणोनो भंडार (सं. __ - उपकारनो बदलो] गुणका, गुंणका मदमो. गणिका गुणिअन कादं(धु). कादं(शा). गुणिजनो, गुणगेह ऋषिरा. गुणोनुंघर, [गुणोनुं निवास- [प्रशस्तिगायको], भाट, चारण वगेरे स्थान (सं.गुणगृह) गुणिउ उक्तिर. पुनरावर्तन कर्यु, अभ्यास गुणठाण आनंस्त. जिनरा. षडाबा. गुण- कर्यो (सं.गुणितम्) स्थानक, आत्मानी आध्यात्मिक उन्नति- गुद प्रेमाका. गुदा [सं.] नी उत्तरोत्तर अवस्थाओ [जै.] गुवराणी ऐतिका. निवेदित करी, निवेदित गुणणी उक्तिर. पुनरावर्तन, अध्ययन (*सं. थई, जाणी] [फा.गुजर] गुणनिका) गुदराव, सिंहा(शा). मोकलावQ (हिं. गुणत्तम आरारा. गुणोत्तम, उत्तम गुणवाळा गुदराना) [फा.गुजार परथी] गुणनाएक मदमो. गणनायक, [गणपति] गुदरे मदमो. दरगुजर थाय, [माफ थाय] गुणनिलउ आरारा. ऐतिका. नलरा. गुणोनुं गुदारे जुओ हसीय गुदारे स्थान, [गुणोना आवास समान], गुपति आरारा. ऐतिका. चारफा. मन, वचन, गुणवान (सं.गुणनिलय) कायानी अशुभ वृत्ति-प्रवृत्ति टाळवी ते गुणनिहाण ऐतिका. गुणनिधान, [गुणोनो [जै.]; वीसरा. खानगी (सं.गुप्त) भंडार गुप्ती प्रेमाका. लाकडीना पोलाणमां छुपावी गुणपंचासि प्राचीफा. ओगणपचास (सं. शकाय तेवू एक प्रकार, शस्त्र एकोनपंचाशत्) गुप्ते * उपबा. [मन, वचन, कायानी अशुभ गुणभूरि आरारा. घणा गुणवाळा (सं.) वृत्ति टाळवारूप गुप्ति वडे] [जै.] गुणवेध *शृंगाम. [गुणचतुर, गुणरसिक] गुबडं सिंहा(शा). गुमडुं [सं.गुल्मः] [सं.गुणविदग्ध]; वसंफा. वसंवि(ब्रा). *गुभाजणी [उभाजणी] *गुर्जरा. [उद्वेग, गुणचतुर, गुणरसिक (सं.गुणविदग्ध) उत्साहभंग]; जुओ उभगइ गुणवेध वसंफा. काणुं पाडनार [सं.गुण+ गुमार, गुंमार मदमो. गमार दि.गवार] वेधक] गुर आरारा. कर्पूमं. कादं(शा). प्राचीफा. गुणसिल आरारा. गुणशिलक नामनु षडाबा. गुरु जिनमंदिर गुरज, गुरुज, गुर्ज प्रेमाका. हम्मीप्र. [गदा गुणह वसंवि. वसंवि(ब्रा). पणछ (सं.गुण) जेवं] एक शस्त्र (फा.गुझ); जुओ गरुज गुणाकरो ऋषिरा. गुणनों आकर - खाण गुरुजर-घर तेरका. गुर्जरधरा, गुर्जरभूमि, [- भंडार] [गुजरात] 2010_03 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरव / गुहवर गुरव प्रचु. प्राचीफा. गौरव, [वरना सत्कार रूपे अपातुं भोजन ] गुरां षष्टिप्र. गुरुओने गरि कृष्णबा गोर, गणगोर, गौरी गुरी * उषा. [ पार्वती, पार्वतीनां अन्य देवी रूपो] (सं.गौरी) गुलणी उक्तिर. लतागृह [द गुलिणी] गुरुअडि * विमप्र. शृंगामं, मोटाई, [ महत्ता ] गुलधाणी उक्तिर. गोळ-धाणी (सं. गुडधानाः) गुलपापडी उक्तिर. गोळपापडी (सं. गुडपपटिका) (सं. गुरु परथी ) गुरुज जुओ गुरज गुरुड अंबरा. गुर्जरा. गरुड गुरुडासण गुर्जरा. गरुडासन गुरुनंवणु गुर्जरा. गुरुनो पुत्र १५२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विक्रच. षडाबा. गोळ (सं. गुड, गुल) गुलगुल- * प्राचीसं. [हर्षनो अवाज करे ]; जुओ गूगलीउ गुरुभाग * अखाका. [गुरु पासेथी मळतो हिस्सो, गुरुनुं ऐश्वर्य के एनी शक्ति ] गुरुया गुर्जरा. मोसाच. महान, गरवा, सुंदर (सं. गुरुक) * गुरुलहुपणउ [ अगुरुलहुपणउ] *जिनरा. [अगुरु लघुपर्याय, शरीरनी अगुरु (स्थूळ के भारे नहीं) तथा अलघु (कृश के हळवी नहीं) स्थिति, समप्रमाणता] [जै. ]; जुओ अगुरुलहु गुरुपसाये ऐतिका. गुरुनी कृपाथी; जुओ गुलाल आरार (व). "कृष्णबा. गुलाला गुलाल्ला, लाल फूलनो छोड (रा.) [फा. गुले लाल ] ? पसाय 2010_03 गुलगुलायइ उक्तिर (हाथी) गर्जना करे [द] गुलमंडा उक्तिर. गोळमांडा, मीठा मांडा (सं. गुडमण्डकाः); जुओ मांडा गुलर दशस्कं ( २ ) ऊमरो (वृक्ष) [हिं. गूलर ] गुलांठ दशस्कं (२). गुलांट गुलियउ उक्तिर. प्राचीसं. गळ्युं, मधुर (सं. गुल्यः) गुली नेमिछं. गळी, [मीठी ] गुली (गुली कठिलउ ) ऐतिका. नजर न लागे एटला माटे बांधवामां आवे छे [ते गळानो कांठलो ] गुल्म प्रेमाका. [वृक्ष] घटा, [झाडी] (सं.) गुरुव प्राचीसं. गोरव, विवाहभोजन [सं. गुवालरी मदमो. रागिणीविशेष # गौरव ] गुरू * वाग्भबा. [मोटुं, लांबु, प्रशस्त ] गुरूआपणइ उपबा. अभिमानथी, [ मोटाई - ना भावथी ] गुर्ज जुओ गुरज गुह तेरका ?, [*हृदय ] [ सं . ] गुल अभिऊ. आरारा. उक्तिर. नलरा. नेमिछं. गुहवर सिंहा (म). गुफा (सं. गह्वर) गुसाइड प्राचीका. स्वामी, पति (सं. गोस्वामिन्) गुसाही पंचवा. [ गोसांई] धर्मगुरु, साधु (सं.गोस्वामिन्) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गुहरी हम्मीप्र. घेरी [सं. गभीर] गुहिर, गुहिरउ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. जिनरा. तेरका प्राचीफा. ललिरा. लावल. वीसरा. हम्मीप्र. गंभीर, ऊंडुं, घेरुं, गाढ, गूढ गुहिर सादि स्थूलिफा. गंभीर अवाजे गुहाक * शृंगामं [यक्ष ] गुंजा नरका. प्रेमप. प्रेमाका. चणोठी [सं.] गुंजातु लावल. गर्जना करतो गुंजे घाली ० प्रेमाका. गुप्त रीते गुंज्यग्राम [ गुज्यग्राम ] "चंद्रवा. [गुह्येन्द्रियो] गुंण जुओ गउण गुणकाजुओ गुणका गुंणधार देवरा. [साधुना छत्रीस ] गुणोने धारण करनार १५३ गुंमार जुओ गुमार गुहुं विमप्र. घरं [सं. गोधूम ] गूख जुओ गुख गूगलि आरारा (व). गूगळ (सं. गुग्गुलु) गूगळी प्रेमाका. ब्राह्मणनी एक जात (खास करीने द्वारकाना तीर्थगोर) गूगलीउ * नलरा. [हर्षथी अवाज करता ] [सं. गुलगुल्] ; जुओ गुलगुलगूगूलिया प्राचीसं. गूगळी, ब्राह्मण जातिविशेष गूज जुओ गुज गूजर उक्तिर. गूर्जर, एक जाति; जुओ 2010_03 गुहरी /गृथल गूजर - देस प्राचीसं. गुर्जरदेश गूजर-बाइ शृंगामं. गतिमान वायराथी ? गूजरी उक्तिर. गूर्जर जातिनी स्त्री; जुओ गुजरी गूज्झ नलरा. छानी वात (सं. गुह्य ) गूज्य जुओ गुज गूझ, गूझ्य अखाका. अभिऊ. अंबरा. उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. गुर्जरा. नरका. नरप. प्रेमाका. सिंहा (म). हम्मीप्र. छानुं, छानी वात, रहस्य (सं. गुह्य); जुओ गुझ गूडा उक्तिर. गोठण; जुओ गुडउ गूडिय ऐतिका. पताका, [धजा] गूडिय गुर्जरा. सज्ज कर्या, पाखर्या, पलाण्या (सं. गुडित) गूडी जुओ गुडी गूढ गुर्जरा. घेरुं, ऊंडुं (सं.) गूढी नरका. गाढी, घेरी, घेरा रंगनी गूणी उक्तिर. गूण, कोथळो (सं. गोणी) गूतउ * अखाका. *नलाख्या. *प्राचीसं. [ फसायो, गूंचायो] (सं.गुप्त) गूध * प्रेमाका. [ लोभी, लालचु ] [ सं . गृध्र ] गूयाडलनगर सिंहा (म). गोंडलनगर गूरज दशस्कं ( २ ). शस्त्रविशेष [फा. गुर्झ] गूह उक्तिर. गू, विष्टा (सं. गूथम्) गूड विमप्र . घूवड गूंडां * अखाका. [ धरोनां धूमडां, नकामा घासनां मूळ ] गुजर गूंफइ उक्तिर. गूंथे (सं. गुम्फति) गूजरडी प्राचीफा. गुजरातनी स्त्री, गुजरातण गूंहली उक्तिर. [*गरोळी] (सं. गोमुखा ) गृथल, ग्रथल अखाछ. आरारा. चित्तसं. (सं. गुर्जर) Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गृहदीर्घिका / गोटको १५४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वळगाड लाग्यो होय तेवुं, गांडुं, घेलुं गोआडइ उक्तिर. गायोना वाडामां (सं. [सं. ग्रथ+ इल्ल, ग्रह + इल्ल ] गृहदीर्घिका कादं (शा). घर पासेनी पगथियांवाळी वाव, कुंड के होज (सं.) मेरो प्रेमाका. खेरो, भूको, रज गेलि कादं (धु). चारफा. नलरा. आनंद, आनंदभरी क्रीडा (सं.केलि); * गुर्जरा. *विमप्र. [आनंदथी]; जुओ गेल्हि गेलि लावल. आनंद कर, [क्रीडा कर] गेली जुओ गजगेली गेलो लावल. आनंद, आनंदभरी क्रीडा [सं. गेलि ] [ प्रासमां 'गेलि' नुं 'गेलो' ] गेल्हि ऐतिरा. गेल, गम्मत, [आनंद] [सं. केलि]; जुओ गेलि गेसु (घेसु) प्रेमाका. धूळ गेह आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. नैमिछं. प्रेमाका. शीलक. घर (सं.) गेहरु कृष्णबा. घेरुं [सं. गभीर ] गेहेन अखाका. अखेगी. घेन गोखर अखाछ. गोरखर, जंगली गधेडानी एक जात [फा. गोरखर] गोगवेश विक्ररा. गोग नामनी वेश्या गेहणे पंचवा. घरेणे, [गीरवे ] (द.गहण ) गोगिडउ, गोगीडउ उक्तिर. * षडाबा. [ सं . ग्रहणी]; जुओ ग्रहण गेहली चतुचा. घेली [सं. ग्रथ के ग्रह् +इल ] ग्रह+इल्ल] हिणि षडाबा. गृहिणी गींगोडो, गाय वगेरेने वळयतुं जन्तु (*सं. गोकीटः) हेर बेसो चित्तसं. घेर बेसो, शांतिथी बेसो गेहेल नरका. घेलूं [सं. ग्रह+ इल्ल] गेहेलडी प्रेमाका. घेलडी, घेली गैला नरका. गयो (म.) गोअम गुर्जरा. गौतम, [महावीरना गणधर ] गोअंगे प्रेमाका. [गगनांगणे ], आकाशना चोकमा [सं. गो] गोवाटक) गोड़ पंचवा. सुंदर स्त्री (सं. गोपी ? ) गोइक ऐतिका. गाय अने आकड़ो गोई गोसली उक्तिर. [?] (सं. गोप्य - शिलाका) 2010_03 गोउल उक्तिर. गोकुल, [गायोनो समूह ] गोकल प्राचीफा. गोकुल, ए प्रदेश गोकलि हरिव-अनु. गोकुळे गोकुल लावल. गायोनां कुळ, धण (सं.) गोकुलिस्थान कादं (शा). गायोनुं गोठडुं [- वाडो] (सं. गोकुलस्थान) गोख रूपच. प्रेमाका. गवाक्ष, झरूखो गोखलो, गोग्रास हरिख्या. रांधेली रसोईमांथी गायने माटे काढेलो भाग (सं.) गोधर अभिऊ. गोग्रहण, [विराटपर्वमांनो गायने पकडवानो प्रसंग ] [ सं . गोग्रह ] गोचर होय चित्तसं. अनुभवगम्य बनशे, समजाशे [सं. गोचर ] गोचरि देवरा. साधुनी भिक्षा (सं. गौचरी) गोछउ उक्तिर. पात्र वगेरे साफ करवानी वस्त्रनो टुकडो (सं. गोच्छकम्) गोटको, गोटिको अखाका. अखेगी. चंद्रघा. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीत मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १५५ मोटी गोयम पंचवा. *गुटको, गोटी, गोळी (सं. गोधउ उक्तिर. आखलो [सं.गोधव.] गुटिका) गोधलु नलाख्या. आखलो गोटी अखाछ.गोटीलांजेवांस्तन?, [*गोठी, गोधीका मदमो. घो (सं.गोधिका) *पूजारी, *भक्त]; जुओ गोठिय गोनुं अखाका. पृथ्वीनु, [जगतन [सं.गो] गोट्यका चित्तसं. गोटी, गोळी गोपाविवा (पग गोपाविवा) षडाबा. [पगेरु] गोठ * प्रेमाका. [पहेरामणी करवा माटे ज्ञाति- छुपाववा समुदायने एकठो करवो ते, मिजलस, गोपिविउ उक्तिर. गोपव्यो, गुप्त राख्यो मिजबानी] गोप्य नरका. मदमो. गुप्त, छू' (सं.) गोठ, गोठि नरका. नलरा. विक्रच. विक्ररा. *वीसरा. शृंगाम. गोष्ठि, गोठडी. वात- गोफण अखाका. पथ्थर भरावीने एनो घा ___ करवानुं एक साधन दि.गोफणा] गोफण, गोफणउ, गोफणियो अभिऊ गोठिय प्राचीसं. गोठी, [पजारी] (सं गोष्ठिक) उषाह. ऋषिरा. दशक(१), नरका. नलरा. नेमिछं. प्रेमाका. लावल. विकरा. गोठिसे * जिनरा. [भाव धरशे] विमप्र. वेणी साथे गूंथवामां आवतुं के गोडउ जुओ गुडुउ अंबोडे लटकाववामां आवतुं एक गोडा षडाबा. गुडा, बूंटण, [पग] (दे.गोड्ड) घूघरियाळू आभूषण (सं.गुंफन)। गोडिहिलियां षडाबा. भुंटण जमीनने अडके गोफणि उक्तिर. पथ्थर फेंकवान साधन एवी रीते वंदन करवू दि.गोफणा) गोडी * नरप. [*मूकी] गोफणियो जुओ गोफण गोति हरिवि. कारागार (सं.गुप्ति) गोबरे विमप्र. गंदा (द.) गोतिहर, गोतिहिरउ * उपबा. *विमप्र. गोमट कर्पूमं. घूमट; "अभिऊ. [धूमटवाळी [केदखानु] [सं.गुप्तिगृह देवडीओ, चोकीओ] गोती प्राचीसं. कुटुंबी, स्वजन (सं.गोत्री) गोमती नलरा. स्त्रीओनुं एक घरेणुं [ सं. गोतीहर आरारा. केदखानु (सं.गुप्तिगृह) गोमूत्रिका] गोत्र आनंस्त. गोत्रकर्म, जीव- उच्च के गोमय प्रेमाका. गायनुं छाण (सं.) नीच गोत्र नक्की करनार कर्मबंधन [जै.] गोमुख प्रेमाका. फूंकीने वगाडवानुं एक गोत्रज प्रेमाका. कुळदेवी वाद्य [सं.] गोत्रिय षडाबा. सगां, कुटुंबीओ (सं.गोत्रिक) गोमूत्री उक्तिर. एक प्रकारचं घास (सं. गोदी नरका. नरप. गोदा मारी गोमूत्रिका) . गोदोहण आरारा. गाय दोहवी ते गोयम आरारा. प्राचीसं. गौतम, महावीरना 2010_03 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयर/गोह १५६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गणधर गोवालणी, गोपी (सं.गोपाल परथी) गोयरउ उक्तिर. गोचरनी जमीन गोलांटां प्रेमाका. गलोटियां, गुलांट दि. गोयल प्राचीसं.?, ["सिपाईडा] दि.गोह+ गलस्थिअ] गोलि नरप(द). (महीनी) गोळी; जुओ गोयुत आरारा. गाय साथे (सं.) गोरस गोली गोर आरारा. गौर, उज्ज्वल *गोली, गोहली पंचवा. गूहली, एक गोर अखाछ. गुरु प्रकारनी तान्त्रिक आकृति गोरखं दशस्कं(१). दशस्क(२). प्रेमाका. गोलीडां, गोळीडां दशस्कं(२). प्रेमाका. गोरुं [सं.गौर+ट] रवैया, वलोणां गोरड आरारा(व). गोरडियो बावळ, खेर गोल्ह आरारा. टिंडोरुं (द.) गोरड प्राचीसं. गौरी, [पार्वती] गोल्ही आरारा (व). गिलोडा, टिंडोळानो वेलो गोरडी ऋषिरा. गुर्जरा. लावल. वीसरा. (द.गोल्हा) सुंदर स्त्री, स्त्री (सं.गौर-) गोव- *प्राचीफा. [व्याकुल करे, कृश करे] गोखु प्राचीफा. वरनुं संमान करवा कन्या दे.गुव्व; रा.गोवणौ] तरफथी अपातुं भोजन; जुओ गउरउ गोवळ वीसरा. गोकुळ गाम गोरस गोली लावल. [दूध] दहीं भरवानी गोवांदरे दशस्क(१). प्रेमाका. गोंदरे, पादरगोळी ___ मां, भागोळे [सं.गोवृंद] गोरंभउ गुर्जरा. गूचवण, [मुश्केली, गोव्यंद प्राचीका. गोविंद आपत्ति गोशपेच प्रेमाका. कानने ढांकी दे तेवू गोरुचंदन *प्रेमाका. [गोरोचन, गायना (पाघडी के फेंटो) (फा.) पित्तमांथी मळतो सुगंधी पदार्थ]; जुओ गोष्ट प्रेमप. गोष्ठि, वार्तालाप गोसीर्ष गोष्ठ दशस्कं(१). प्रेमाका. वात (सं.गोष्ठि) गोरू आरारा. गुर्जरा. नलरा. वेताप. ढोर, गोष्ठा षडाबा. गायोनो वाडो (सं.गोष्ठ) गायो (सं.गोरूप) गोसामी वीसरा. स्वामी, प्रियतम (सं. गोरे *प्रेमाका. [पासे] [म.गोडे] गोस्वामिन्) गोलउ षडाबा. आंखनो डोळो (सं.गोलक) गोसीर्ष आरारा(व). गोरुचंदन, चंदननो गोलउ उक्तिर. गोलो, विधवानो जारज एक प्रकार (सं.गोशीष); जुओ पुत्र (सं.गोलकः) गोरुचंदन गोलओ जुओ पर गोलओ गोह, घोह आरारा. उक्तिर. प्रेमाका. मदमो. गोलणी कृष्णबा. प्राचीका. ललिरा. घो (सं.गोधा) ___ 2010_03 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गोहडिय प्राचीसं. घो (सं. गोधा ) ग्रहेश प्रेमाका. सूर्य गोहर्य रूस्तस. घोर, कबर (फा. गुर के गोर) ग्रंथ आरारा. बांधेलुं, बांधीने [सं.] गोहली जुओ गोली ग्राम आरारा. समूह (सं.) गोहीरउ उक्तिर. घो (सं. गोधेरः ) गोहूं, गोहू आरारा. उक्तिर. घउं (सं. गोधूम) गौधेन दशस्कं ( 9). गोधन, गायोनुं धण गौपद * अखाका. [गायना पगला जेवडुं ग्रास गुर्जरा. विमप्र. गरास, जमीन वगेरेनो भोगवटो, भाग, हिस्सो (सं.) ; नरका. कोळियो नानक] [सं. गोष्पद] गौरी, गवरी अखाका. सिंहा (शा). गाय गौव आरारा. गाय (सं. गौः ) म्य षष्टिप्र. गयेलो (सं. गतः ) ग्यरूआपण मदमो. गरवापणुं म्यरूवो कस्तुवा. गरवी [सं. गुरुक] ग्रत नंदब. मदमो. घृत, [घी] ग्रथ मोसाच. गर्थ, संपत्ति, धन थल जुओ गृथल ग्रधवी मदमो. गर्दभी, [गधेडी ] ग्रभ चंद्रवा. गर्भ प्रभवेदना चतुचा. गर्भवेदना, [गर्भमां आववानी, जन्म लेवानी वेदना ] * ग्रव, ग्रभ प्राचीका. गर्भ १५७ ग्रशामांहि नलाख्या. ग्रस्यो [ - गळी गयो ] घइरि विक्ररा. घरे [सं. गृह] तेटलामां इस अंबरा. घेंसथी ग्रहणा आरारा. आभूषण (दे. गहणय; हिं. गहना) [सं. ग्रहण] [रा. ]; जुओ ग्रहिणु ग्रहिणु सिंहा (म). घरेणुं, दागीनो (दे. गहणय); जुओ ग्रहणा ग्रहिस्त प्रेमाका. गृहस्थ 2010_03 ग्रासवुं दशस्कं (१). दशस्कं (२). ग्रसवुं, [गळj]; ० प्रेमाका. खावुं ग्रासीआ विमप्र. गराशिया, जागीरदार ग्राह प्रेमाका. मगर [सं.] ग्रिहवानि नलाख्या. ग्रहवाने, पकडवाने ग्रेह दशस्कं ( 9). प्रेमाका. गृह, घर; अखाका. घर, ( घरबार ) ग्रैवेक प्राचीफा. ए नामनुं देवविमान (सं. ग्रैवेयक) ग्वाल गुर्जरा. विराप. गोवाळ (हिं.; सं. गोपाल) वाणी प्रेमप. गोवालणी ग्वालेर उक्तिर. वीसरा. ग्वालियर (सं. गोपालगिरि) ग्रहण विक्ररा. षष्टिप्र. घराणुं, गीरो (सं.); घडला प्रेमाका. एक जातनो सुगंधी पदार्थ घग्घरि प्राचीफा. घूघरी (सं. घर्घरी ) घघरणुं प्रेमाका. नातरुं, [ अन्यत्रथी छूटी थली स्त्री साधेनुं लग्न ] जुओ गरेणे, गेहण गोहडिय / घट घट अखाका. चित्तसं. दशस्कं (१). दशस्कं (२). वीसरा. शरीर; चित्तसं. पात्र; प्रेमप. घडो (सं.) Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटइ/घन १५८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश घटइ उक्तिर. वीसरा. बने (सं.घटयति); ते दरम्यान (सं.घटिका) गुर्जरा. शक्य – संभवित होय घडिया (घडियाजोयणी) षडाबा. एक घडीमां घट-जुअल शृंगामं. घटयुगल, [बे घडा] एक जोजन [-तेर किलोमिटर] कापती घटपट गुर्जरा. खडखडाट, (रवानुकारी घडियालउ, घडियाळू अखाका. उक्तिर. शब्द) चंद्रवा. प्रेमाका. समय सूचववा अमुक घट पड़ी चित्तसं. बंधाई ? अंतरे वागती झालर, सपाट घंट घट-पुत्र शृंगामं. अगत्स्य घडी आरारा. घडी वार, [थोडी वार]; घणेरडउ नलरा. वधारे (सं.घनतर) __ जुओ घटिका घटमट, घटमट्य कादं शा). गडमथल. घडीआल लावल.घडियाळू, [समयदर्शाववा चित्तसं.चित्तमांचालताविचारो.विकल्पो वगाडवामा आवती झालर; जुओ आल] घटमठ, घटमढ अखाका. घडोअने ओरडो घडीयाल सिंहा(शा). कांसानो गोळ सपाट वगेरे, (लक्षणाथी) भौतिक जगत घट, झालर घटमान आनंस्त. घटित, योग्य घडुउ गुर्जरा. भीमपुत्र घडोत्कच घटमां विचातुं दशस्कं(१). पंडे विचारवं, घण नलरा. षडाबा. मोटो हथोडो; गुर्जरा. पोते विचार तेरका. वादळ (सं.घन); आनंस्त. घटिका, घडी प्रेमाका चोवीस मिनिटनो आरारा. उक्तिर. तरका. नीमछ. लावल. समय [सं.] घj, गाढुं (सं.घन) घटोरा आरारा(व). गट-बोरडी, घटबोरडी घण अखेगी. काष्ठनो कीडो (सं.धुण) __ (सं.घुट्टा, घोट्टा) ? घणतूर ऐतिका. घणां *वाजां, [घणी *घट्टि (थट्टि) ऐतिका. ठाठ, सिमह] शरणाईओ, गाढी वागती शरणाई] घड कस्तुवा. नलरा. नंदब. सिंहा(शा). धणदीहु उक्तिर. घणा दिवसनु, पुराणुं ___ गढ, किल्लो घणनामी अखाका. घणां नामवाळो घड *गुर्जरा. [टोळी, समुदाय] [सं.घटा] घण-मुली कस्तुवा. घणो मूल्यवान घडणुं षडाबा. घडवू ते (सं.घटनम्) घणवास विक्ररा. घणां सुगंधीदार घडनाल शृंगामं. गरनाळा घणहठी विमप्र. धणे हठे, हठपूर्वक घडला आरारा. घडा [सं.घट] घणाला नेमिछं. घणा, पुष्कळ घडवी सिंहा(शा). गढवी घणी (पंनर धणी) मदमो. [पंदर] गणी घडांमंची, घडामांची उक्तिर. पाणीनो घडो घणी परि गुर्जरा. घणी रीते राखवानी घोडी (सं.घटमंचिका) घद्धा उपबा. गधेडा, [मूर्ख] (सं.गर्दभ) घडियइ षडाबा. घडी - समयनुं माप - धन आरारा. वादळ; कादं(ध). कादं(शा). 2010_03 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १५९ घनसार/घंघोलियां घj (सं.) घर-रातुं नरका. घरमां रक्त - डूबेलु, [घरधनसार अखेगी. आरारा(व). शृंगामं. कपूर, ना अनुरागवाळु] कपूरनुं झाड (सं.) घर वसइ आरारा. घर वसाय, नुकसान *धनंतर ["अनंतर] अभिऊ. *वधारे घन, थाय ... *घणुं भयंकर, [*तरत ज] घर-सारू आरारा. घरने अनुसार, अनुरूप, घबक- प्राचीसं. गंध फेलाववी ? [*दे. शोभतुं, जुओ सारू घवघव] घरसुत्र, घरसूत, घरसूत्र चंद्रवा. घय आरारा. प्राचीसं. घी (सं.घृत) दशस्कं(१). प्राचीफा. प्रेमाका. मदमो. घरक- नलरा. घूरक, (दे.घुरुक्क) सिंहा(शा). घरनो वहेवार, घरसंसार घरकज आरारा. घरनां कामकाज (सं.गृहसूत्र) घर-घरणी अभिऊ. प्राचीसं. विमप्र. घर- घरंण मदमो. ग्रहण, [एक ग्रह बीजाथी धणियाणी (सं.गृह+गृहिणी) गळाय ते] घर घायु प्रेमाका. घर पायमाल कर्यु, नाश घराणुं वेताप. घरेणुं [सं.ग्रहणक कर्यो; जुओ घातइ घरि आनंस्त. घर घर घाल्युं दशरक(१). प्रेमाका. घर पायमाल घरिसूतु (घरि सूत्तु) * गुर्जरा. [(राजाने) कर्यु, नुकसान कर्यु ___ घेर सारथि] घरट उक्तिर. घंटलो (सं.घरट्टः) घरिसूत्र गुर्जरा. घरनी व्यवस्था (सं.गृहसूत्र) घरटी उक्तिर. षडाबा. घंटी (सं.घरट्ट) घरुणी, घरूणी दशस्क(१). देवरा. प्रेमाका. घरट्ट, घर? अंबरा. उक्तिर. प्राचीसं. घंटी मदमो. गृहिणी, पत्नी (सं.) घरेणे कामा(शा). गीरवे [सं.ग्रहणक; दे. घरडे * अखाका. [घसे, वलूरे] गहण] घरणि, घरणी आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. धर्मबाधा आरारा. गरमीथी पडती मुश्केली गुर्जरा. जिनरा. नलरा. प्रद्युचु. लावल. स.] गृहिणी, पत्नी घर इल प्राचीसं. प्रभूत, पुष्कळ घरत जुओ गरत घलावइ उक्तेिर. फेंकावे, नखावे घरबारि, घरबारी गुर्जरा. लावल. घरना घल्लइ गुर्जरा. घाले, नाखे [दे.घल्ल द्वारे [सं.गृहद्वारि] घल्ली लावल. [घलायेली], डूबेली घर बेसबुं प्रेमाका. [घर पायमाल थर्बु घस- वीसरा. घसाईं, नष्ट थर्बु (सं.घृष्) घरमइ आरारा. गरमी, घाम [सं.घम] घस्त प्राचीफा. गृहस्थ घरमाटी विमप्र. [घरनो मर्द - पुरुष], पति घंघोलियां अखेगी. नानां घर दि.घंघ+उल्ल] ___ 2010_03 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घंटवल्य/घाडी घंटवल्य "नरप. [घांटरवाल, जंतर ]; जुओ घांटलवाल १६० घंटोरणि आरारा (व). घूघरो (सं. घंटारवा ) ? घाइ गुर्जरा. प्राचीफा. हरिख्या. उतावळ [द. घत्ति ]; जुओ घायिंसउं घाइ जिनरा. विराप. घा (सं. घात) घाइ (* पणधाइ) [पराघाइ] * जिनरा [पराघात, नामकर्मनो एक प्रकार जेना उदयथी सामा पर विजय मळे] [जै.] घाइत * विमप्र. [मोको, लाग] [ रा.घात ]; जुओघात घाले घाउ वीसरा. घा; गुर्जरा. हत्या (सं. घात) घाघर नदी उक्तिर. घर्घरिका, गोग्रा नदी घाघर, घाघरिय, घाघरी उक्तिर. तेरका प्राचीसं. घूघरी (सं. घर्घरिका) घाघली नरप. विह्वळ [दे. घंघलिय]; जुओ घांघली घाट जिनरा न्यून, [ ओछी] [हिं.] घाट प्रेमाका. हालत, स्थिति, योजना, युक्ति घाट उषाह. नरका. नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. प्रेमाका. विक्ररा. घाटडी, स्त्रीओनुं रेशमी वस्त्र; रातुं वस्त्र; चारफा. *घाटडी, * लाल रंगनी बांधणीनी भातनी चूंदडी, [* चणियो] (दे.घट्ट) घाट अखाछ. [घडेली वस्तु ], घरेणुं घाट नलरा. नलाख्या. वीसरा. पहाडी मार्ग, खीणनो मार्ग (सं.घट्ट); चतुचा. स्थळ, स्थान; नेमिछं. * रस्ता, *सीमाडा, [*प्रदेश] 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लई ] ; जुओ घाली घाट चाले चित्तसं. नीवडे घाटडी गुर्जरा. लावल. लाल बांधणीनी ओढणी [दे. घट्ट ] घाट बेसे अखाका. चित्तसं. मनमां घड बेसे, समजाय, मेळ बेसे घाटरवाल्य * नरप. [जंतर ]; जुओ घांटल वाल “घाटा [घाठा ] * गुर्जरा. [छतराया, जिताया, हार्या ]; * अखाछ. [ धूर्त, शठ ]; जुओ घाउ, गाठा घाटी मोसाच. गाढी, वधारे घाटु जुओ घाहु घाटे घात्य चित्तसं. समजणमां नाख, समजाव घाटे घाले, घाट्ये घाले अखाका. बराबर समजी शके, स्वीकारे; चित्तसं. समजमां नाख, समजाव; समजमां नाख, समज घाउ प्राचीसं. "विराप. छैतरायो, [जितायो, हार्यो ]; नेमिछं. * नुकसान पाम्यो, [छतरायो] ; नरका. घसाई गयो (सं. घृष्ट) घाठऊउ नलरा. गठियो, [ छेतरनार ] घाठा जुओ घाटा घाटुओ प्रेमाका. गठियो, छेतरनारो घाटुं नरका. गातुं, गाढ संबंध; प्रेमाका. [गादु], मुश्केल, कठण घाड अभिऊ. गाढ, [दुर्गम ] घाडि सईनी [ धाडि सईनी ] * ऋषिरा [दरजीओनी धाड, आक्रमण (जे निष्फळ होय छे ) ] घाट ( घाट घाली ) * नरका - २. [लागमां घाडी नरप (द). गाढ, घनिष्ठ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १६१ घाणु/घांघली घाणु षडाबा. घाणो, तळवा माटे एक साथे घायो अखाका. घायल थयेलो, [थी नाखवामां आवतो जथ्यो; नेमिछं. टेवायेलो, रसियो] षडाबा. घाणी घार सिंहा(शा). घारण, [घोरवू ते] घात प्रेमाका. घा; अखाका. वेताप. शीलक. घारडां षडाबा. एक मीठाई, घारी (दे.घारंट, मोत, हत्या (सं.घाति) घारिया) घात प्रेमाका. *शृंगामं. रीत पारण *प्रेमाका. [घेन] घातइ उक्तिर. उपबा. कादं(धु. जिनरा. घारिउ, घार्यउ अंबरा. आनंस्त. ऋषिरा. दशस्कं(२). नेमिछं. प्रेमाका. षडाबा. नलरा. प्राचीसं. -नुं घारण - घेन चडेलु षष्टिप्र. घाले, नाखे (दे.घत्त); जुओ घर होय एवो, -थी घेरायेलो, मस्त; गुर्जरा. घात्यु मदमस्त, मदीलो (सं.घारित) दि. घातकू उक्तिर.घातकी, हत्यारो (सं.घातुकः) घारिअ]; जुओ विषघारिय घात घाले अखाका. [कार्यसिद्धिनो मोको घार्यां जुओ धार्यां मेळवे, लाग ले] [रा.; हिं.]; जुओ घाइत. धाल प्रेमाका. जमवा बेठेलाओनी पंगत घातण ऐतिका. नाखवू ते घालइ (विसारी घालइ) जिनरा. [विसारी धाति-करम देवरा. आत्माना स्वाभाविक नाखे गुणोनो घात करनारां कर्मो [जै.] घालि अभिऊ. घालीने, [परोवीने] (दे.घल्ल) घाती प्रेमाका. घातक, हिंसक, कपटी [सं. घालिउ उक्तिर.फेंक्युं, नाख्युं, राख्युं (दे.घल्ल) घातिन्] घाती आरारा. नेमिछं. घाली, नाखी (द.घत्त) घाली (घाट घाली) "नरका-२. [लागमां लई]; जुओ घाट घातीकर्म आनंस्त. ऋषिरा. आत्माना घासइ जिनरा. घसाय; नेमिछं. घसाय, गुणोनो नाश करनार कर्म बंधन] [जै.] [घसारो - नुकसान वेठे] (सं.घृष्) धात्य चित्तसं. घाल, नाख दे.घत्त] पाहड सिंहा(शा). जुओ घायड घाय *उपबा. गुर्जरा. तेरका. घा, प्रहार (सं.घात) घाहाढे चतुचा. गाढे, [अत्यंत घायक अखाछ. चित्तसं. घातक, नुकसान “घाहु [घाटु] गुर्जरा. [दळ], सैन्य [रा.] करनार घाहो कस्तुवा. चतुचा. गाथा घायड, घाहड वेताप. सिंहा(शा). बलिष्ठ, घांइसिऊं विक्ररा. उतावळे; जुओ घायिसउं शूरवीर; [प्रबळ, भारे, विकट]; शूरत्व; घांघ चित्तसं. गभरामण; अखाका. गभराट; जोस [(आकाशन) घनघोरपणुं] दि.घंघल] घायिंस उक्तिर. उतावळे; जुओ घाइ, घांघली नरका. गभरायेली, विह्वळ दि. घांइसिंऊं घंघलिअ]; जुओ घाघली ____ 2010_03 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घांचण/पूंट १६२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश घांचण *गुर्जरा. [घसड, कचडवू ते] [द. आंधी] घच्चण] घुरइ आरारा. ऐतिका. घमघमे, वागे घांट उक्तिर. उपबा. घंट (सं.घंटा) पुराया ऐतिका. वगाड्या, [घमघमाव्या] घांटलवाल *नरका. [जंतर]; जुओ घंट- घुलर वेताप. गूलर, ऊमरो वल्य, घाटरवाल्य घुलरउं ऐतिरा. हारडो, [बाळको, एक घांटली उपबा. घंटडी ___ कंठ-आभूषण] घांटी अखाका. पर्वत बच्चेनो सांकडो रस्तो घुसण, घुसिण प्राचीसं. केसर, कुंकुम ए घांटी उक्तिर. पडजीभ (सं.घंटिका) सुगंधित द्रव्य (सं.घुसृण) घिर कादं(शा). नलाख्या. घर (सं.गृह) चुंगा गुर्जरा. रवसूचक शब्द घिरई जिनरा. पाछा फरे [रा.] धुंटीइ *गुर्जरा. विराप. चूंटीए, [घसीए, धिर्य प्राचीका. घरमां (सं.गृहे) चोपडीए] (सं.घृष्ट) घिसि उक्तिर. [*घीस, *खांचो] (सं.घृष्टि) धूक ऋषिरा. घूवड (सं.) घिविणि प्राचीसं. रास-नृत्य-विशेष घुग्घर जुओ घुग्घर घीई उषाह. घी (सं.घृत) घूघटिउ उक्तिर. चूंघटो, घूमटो घीउ उक्तिर. घी (सं.घृत) घूधरी अखाछ. बाफेली जारबाजरी [नी धीरत कामा(शा). घी [सं.घृत वानगी घीवेलि उक्तिर. घिमेल, कीडीमंकोडाना घूघुरउ उक्तिर. घूघरो (सं.घुर्घरकः) प्रकार- लाल जंतु घूधुरी उक्तिर. घूघरी (सं.घुघुरिका) घीसलं प्रेमाका. वजन खेंचवा माटेनं घूघू उक्तिर. घुबड (सं.घूकः) बळदथी चालतुं पैडां वगरनु एक साधन घूघूइ ऋषिरा. घूघवे, [घोर अवाज करे] घीहटी विमप्र. घीनी दुकानो, घीनां हाट, घूट, चूंट प्रेमाका. “धूंटायेला, *कसायेला, [घीबजार घोडानो एक प्रकार घुग्घर, घग्घर नेमिछं. घूघरी, [नानी घूतकार नलरा. घुवडनो अवाज ___घंटडीओ] (सं.घुघुरी) घूनकार दशस्क(२). घमकार घुग्घुर गुर्जरा. घूघरा (सं.घर्घर) घूमई उक्तिर. गुर्जरा. विराप. "घोरे, [झोकां घुघराबु दशस्क(१). प्रेमाका. गुस्साथी मोढुं खाय] दि.घुम्म] फुलावq घूमण घाले नरका. हींचोळे घुटण दशस्क(२). घोडानी एक जात धूमणी प्रेमाका. घुमरडी, फुदरडी [दे.घुम्म घुडुक्काइ प्राचीसं. गर्जे (द.) घूलर प्रेमाका. ऊमराठे वृक्ष, [गूलर] *घुमारण [घुमरण] *प्रेमाका. [धूळनी बूंट जुओ घूट 2010_03 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश घूंट आरारा (व). वृक्षविशेष (हिं.; सं. घोंटा); गटबोरडी ? घूंट उक्तिर, रगड़ो (* सं. घट्टक) घृतपूर आरारा. घेबर [सं.] घेउर प्राचीसं. घेबर (दे.) [सं. घृतपूर] घेघाट मदमो. आनंद ( अप. गहगह + आट) घेयंवर सिंहा (शा). हाथी; जुओ घेंमर घेर कामा (त्रि). प्रेमाका घेरुं (सं. गभीर) घेर सिंहा (शा). घेरीने घेरण * अखाका. [धारण, ऊंघ, घेन] घेर्य रहे चित्तसं. समजणनी स्थितिमां रहे घेही चतुचा. घेली [ सं . ग्रह + इल्ल ] घेंमर सिंहा (शा). हाथी (सं. गजवर) घोडाहाड उक्तिर. घोडार, अश्वशाळा घोडिल वीसरा. अश्विनी नक्षत्र (सं. घोट + इल्ल) घोरोपसर्ग ऋषिरा. देव, दानव के मानवकृत कठोर विघ्न, आपदा [सं.] १६३ घोल ऐतिका. गुर्जरा. जिनरा देवरा. नेमिछं. प्राचीसं. लावल. दहींनुं घोळवूं, [वलोवेलुं दहीं] ; वसंफा. वसंवि (ब्रा). विमप्र. षडाबा. [कोई पण प्रकारनुं घोळवूं, [रगडो, घट्ट प्रवाही ] (सं.) घोलण गुर्जरा. घूमडवुं ते, [मर्दन करवुं, रगडवुं ते] ! घोलिर शृंगामं. चकळवकळ [.] ] घोळी * नरका. [ओळघोळ करी, ओवारी [सं. घोल] घोळी जाउं नरका. वारी जाउं घोलीडां नरका. वलोणां, रवैया; जुओ 2010_03 घूंट / चउगठि गोलीडां घोळीश नरका. घुमावीश घोश, घोष दशस्कं ( 9). प्रेमाका . ( घोडानो) वाडो, घोडार (सं. घोष ) घोष कादं (शा). अवाज; नेसडो, [गायोनो वाडो] (सं.) घोषविउ उपबा. जाहेर कर्तुं (सं. घोष) घोसइ उक्तिर. जाहेर करे (सं. घोषति ) घोह जुओ गोह ब्राइड उक्तिर. सूंघ्युं (सं. घ्रा-) -च, चइ, चउ, -ची, चु प्राचीफा. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). -नुं, संबंध विभक्तिन प्रत्यय ( सं .त्यक, प्रा. च्चअ ); जुओ हृदय- चइ चउ जिनरा. तेरका. चार (सं. चतुर् ) चउक गुर्जरा. प्राचीफा. साथियो (सं. चतुष्क); जुओ चुक्क चउकडी लावल. लोक, [भुवन] [तुच्छकारमां] (सं.चतुष्क) चउकीवटु उक्तिर. बाजोठ, बेसवानी पाट (सं.चतुष्कपट्टः) चउखंडी नेमिछं. लावल. चोखंडी, [चार बाजुवाळी) (सं. चतुष्खंड); [*चार बाजुवाळी देवडी प्रकारनी रचना ]; वीसरा. एक स्थापत्यरचना, [देवडी प्रकारनी] चउगठ्ठि उक्तिर. चोकरूं, [बारीबारणानो के • बीजो कोई, लाकडां सालवी करेलो चोखंडो घाट] (सं.चतुष्ककाष्ठिका) Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउगति / चउरसउ चउगति आनंस्त. नरक, तिर्यंच, मनुष्य अने देव ए चार गति, [जीवयोनि ] [सं.चतुः+गति] चउगुणउ उक्तिर. चोगणुं (सं. चतुर्गुणम् ) चउग्गइ षष्टिप्र. देव, मानव, नरक अने तिर्यंच ए प्रमाणे चार प्रकारनी गति, [जीवयोनि ] (सं. चतुर्गति) चउघडिउ उक्तिर. चोघडियुं (सं.चतुर्घटिकम्) चडचपट प्रद्युचु. सफाचट [ दे. चप्पडय] चउडोत्तरसउ उक्तिर. एकसो चार चतुरुत्तरं शतम्) (सं. १६४ चउत्थ, चउथ उपबा. नलरा. (चोथे टंके जमाय तेवो, त्रण टंकनो एटले) एक दिवसनो उपवास (सं. चतुर्थ) चउत्रीस उक्तिर. षडाबा. चोत्रीस (सं. चतुस्त्रिंशत् ) चउथ जुओ चउत्थ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चउपउ उक्तिर. चोपगुं (सं. चतुष्पदम्) चउपखेर विक्ररा. चारे बाजु [सं. चतु: + पक्ष ]; जुओ चुपखेर चउपन्नह नेमिछं. चोपन चउतरइ जिनरा. चोतरे चउपर्वी ऐतिका. चार पर्वतिथी चउतालिस षडाबा. चुमालीस (सं. चतुः चउबारउ * वीसरा. [ अगाशी परनी चारे बाजु + चत्वारिंशत्) खुल्ली स्थापत्यरचना, ग्रीष्मभवन ] (सं. चतुर्द्वार-); ऋषिरा. चार बाजु बारणांवाळो; जुओ चौवार चउमालीस उक्तिर. चुमालीस ( सं . चतुश्चत्वा रिंशत्) चउथउ, चूथउ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नलरा. षडाबा. चोथुं (सं. चतुर्थकः) चउथि उक्तिर. वीसरा. चोथ ( सं . चतुर्थी) चउद उक्तिर. चौद (सं. चतुर्दश) 2010_03 चउपट प्रद्युचु. चोगान [ जेवुं साफ ], [खेदानमेदान, विनष्ट]; चारफा. *चारे बाजुथी, [ संपूर्ण नाश पामे एवी रीते ]; लावल. मोटुं; [संपूर्ण; संपूर्णपणे] ; [रवसूचक शब्द ]; जुओ चुपट चउपद उपबा. चोपगुं (सं. चतुष्पद) चउपन उक्तिर. चोपन (सं. चतुष्पंचाशत् ) चउपनामइ ऐतिरा. चोपनमे चउमासउ उक्तिर. उपबा. तेरका. नेमिछं. प्राचीका. प्राचीसं. लावल. षडाबा. चोमासुं, [जैन मुनिओने एक स्थळे रहेवानो समय] (सं.चतुर्मासकम् ) चउमुख प्राचीफा. चारे बाजु मुखवाणुं, चारे बाजु दरवाजावालुं (सं.चतुर्मुख) चउमुखतारूपु षडाबा. चार मुखवालुं रूप ares गुर्जरा. चौदेय चउदसि उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. चौदश चउ-मुहि मिछं. चार मुखे (सं. चतुर्दशी) चउनाणी आरारा. जिनरा. चार प्रकारना ज्ञानवाळा (सं. चतुर्ज्ञानी) चउरउ " वीसरा. [चोरो, खुल्लो चोतरी, सभास्थान ] (सं. चतुर ) [द. चउरय ] चउरसउ उक्तिर. [* पथ्थरनो चोरस टुकडो ] Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १६५ चउराणू चकचोला (सं.चतुरस्रः) . (सं.चतुर्विंशति) चउराणू उक्तिर. चोराणुं (सं.चतुर्नवति) चउवीसीइं *उपबा. [चोवीस तीर्थंकरना चउरासी उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. रूपच. काळ दरम्यान] [सं.चतुर्विंशतिका] षडाबा. चोर्यासी (सं.चतुरशीति) चउसट्ठि, चउसठि आरारा. उक्तिर. चउरासी चउवीसी लावल. [तीर्थंकरोनी] ऐतिका. लावल. षडाबा. चोसठ (सं. चोरासी चोवीसी [थाय एटलो समय], चतुःषष्टि) [अत्यंत दीर्घ काळ] चउसाल आरारा. *ऐतिका. "जिनरा. नेमिछं. चउरासीयउ वीसरा. *प्रादेशिक [चोरासी _ विमप्र. विशाळ, विस्तृत, मोटुं, खूब गामना] अधिपति; [*चोरासी नातनो (सं.चतुःशाला); जुओचओसाल, चुसाल ब्राह्मणसमुदाय चउसालउ उक्तिर. चारे बाजु खुल्ली परसाळचउरिय तेरका. [लग्नमंडपनी] चोरी (सं. वाळु मकान (सं.चतुःशालम्) ___ *चतुरिका) [सं.चत्वरिका] चउहटुं रूपच. लावल. विमप्र. चौटुं, बजार चउरिदि, चउरिंदी आनंस्त. जिनरा. स्पर्श, (सं.चतुर्हट्टक); जुओ चुहटुं रसना, घ्राण अने चक्षु ए चार इंद्रियवाळा चउहत्तरि उक्तिर. चुंमोतेर (सं.चतुःसप्ततिः) जीवो [सं.चतुरिन्द्रिय चहुं दिसि षडाबा. चारे दिशामां (सं.चतुः+ चउरी, चउरी आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. दिशा) नलरा. नेमिछं. वीसरा. चोरी, लग्न चउंप *जिनरा. [चोंप, खंत, चीवट मंडपमां चार खूणे थती वासणोनी उतरेडनी गोठवणीवाळु लग्नस्थान (द.) चउरी जुओ चउरी चऊकी ऋषिरा. चार खूणावाळी चोकी, चउलइ आरारा. चोळाथी नानो चोक - सभा-स्थाननो] (सं. चउवट्ट विक्ररा. चौटुं, [चार रस्ता भेगा थाय ते स्थळ] [सं.चर्तुहट्टक] *चउवडी (चडवडी) *विमप्र झडपथी चऊद गुर्जरा. चौद चउवाह प्राचीसं.चोपास, [प्रचुरपणे, अत्यंत] चऊद वहात्तर गुजरा. चादसा दश (*सं.चतुःपार्श्वम्) चओसाल प्राचीफा. विशाळ (सं.चतु:चउविह, चउविहि आरारा. गुर्जरा. तेरका. शाला); जुओ चउसाल नेमिछं. चतुर्विध, चार प्रकारनो चक प्रेमाका. पडदो चउविहार * उपबा. [चोविहार, चार प्रकारना चकचूर आरारा. प्रेमाका. चूरेचूरा आहारनो त्याग] [सं.चतुर्व्याहार] चकचूंध अखाछ. अंजावू ते, [-मां आंधळा . चउविहि जुओ चउविह . थई जq ते, अंधता, जडता] चउवीस उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. चोवीस चकचोला नरका. मस्ती, आनंद, [क्रीडा] चतुष्की ) 2010_03 य.११ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चकडोल/चडी मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गांठ वाळेली दर्भनी सळी चकडोल प्राचीफा. संकल्प-विकल्प, [मननी चट प्रेमाका. हठ, जीद, आदत] अस्थिरता, व्याकुळता] (सं.चक्रदोला) चटक षडाबा. चकली (सं.) चकसि अभिऊ. लडशे, [सामसामे आवशे] चटक प्रेमाका. उश्केराटनी लागणी, चकिछिक कादं(शा). वैद्य (सं.चिकित्सक) [चानक]; अखाका. लालसा, झंखना चकित आरारा. भयकंपित, गभरायेली (सं.) चटकनी भटक प्रेमाका. चटकानी [डंख चकीछा वेताप. चिकित्सा लागवानी] भडक, बीक चकघरो ऐतिका. चक्रधर, चक्रवर्ती राजा चटको नरका. *आंखमां वसी जाय एवी चक्कवइ अंबरा.चक्रवर्ती, [सम्राट] [सं.चक्र- शोभा, [लगनी, मोह] पति चटडा जिनरा. प्राचीफा. विद्यार्थीओ दि. चकवट्टि गुर्जरा. चक्रवर्ती चट्ट चकवृत्ति गुर्जरा. चक्रवर्ती चटपट अखाका. प्रेमाका. झटपट, जलदी, चक्षु जुओ वक्कु [एकाएक] चक्नु आनंस्त. चक्षु चट्ट गुर्जरा. विद्यार्थी (द.) चक्यउ उक्तिर. चकित चडकली दशस्क(२). चरकली, चकली चक्रगत *चतुचा. [चक्रगतिए, आजुबाजु [सं.चटक] बधे] चडकी कर्पूमं. [चडवू ते], सवारी [हिं. चक्रचाल उषाह. चिन्ता, [व्याकुळता] चड्ढी] चक्ष अखाका. चित्तसं. प्रेमाका. चक्षु चडचड नेमिछं. [चडचड एवोअवाज करतुं, चक्षु भरवां प्रेमाका. आंसुथी आंख भरवी, करकरुं] रुदन कर, चडबडावउ षडाबा. ठपको आपो (सं. चखार प्रेमाका. विमप्र. धुतारा; जुओ चोर- चटपटति) दे.चडप्फड] चिखार चडवड, चडवडी लावल. [चटपटीथी], चगवगतां कादं(घ). कादं(शा). चकचक उत्साहथी, [आतुरताथी], झडपथी (दे. करतां, ची ची करतां चडपट); जुओ चउवडी चचपट, चचपट्ट गुर्जरा. "लावल. तालध्वनि चडवाईजिनी षष्टिप्र. चढवानी माटेनो रवानुकारी शब्द चडावल्लि प्राचीसं. चन्द्रावती क्चूकडइ आरारा. चांच बोळवा जतां चडि-उत्तरिय तेरका.प्राचीसं.वडचड, उक्तिचचर विक्ररा. चाचर, चोगान [सं.चत्वर] प्रत्युक्ति (दे.चड+सं.उत्तर) चट प्रेमाका. श्राद्धमां देवने स्थाने मुकाती चडी आरारा. चिडी, पक्षी ___ 2010_03 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १६७ चणउ/चरडाहुंति चणउ उक्तिर. चणो (सं.चणक) चपला मदमो. वीजळी (सं.) चणक षडाबा. चणा (सं.) चपेट गुर्जरा. तमाचो (सं.) चण काजि ऐतिरा. [चणवा], वीणी खावा चबक प्रेमाका. [चप करीने], झडपथी चणहडीउ उक्तिर. [*कोई प्राणीनाम] (सं. चबका * उषाह. [काप, घा]; जुओ चमक्कउ चणकवर्तकः) चबोला कामा(त्रि). ठपकानां वचन, चणियारां प्रेमाका. जे खाडामां टेकावाथी [महेणां, चाबखा]; जुओ चोबोला बार[ फरे छे ते चमक चित्तसं. प्रकाश; "प्रेमाका. [चोंक, वणारो * प्रेमाका. [चण] ध्रासको] [सं.चमत्कृ- परथी] चणिसुत प्राचीका. चणिकनो पुत्र, चाणक्य चमकउ लावल. [चमकवू ते, चोंकवु ते], चतुरवंति नलरा. चतुर [सं.चातुर्यवंती] आश्चर्य [सं.चमत्कृ-] चतुरसुजांण कामा(शा). चतुर अने समजु चमकीअलि विमप्र. चमक्या, [भय पाम्या - ज्ञानी [सं.चमत्कृत चतुरंग ऋषिरा. चार अंगवाळी (सेना) चमक्कउ प्राचीसं. डंख, [चबको]; जुओ चतुरंगिणी प्रेमाका. चार अंगवाळी (सेना) चबका चतुरंगी * वीसरा. [सुंदर अंगोवाळी] [प्रा. चमन अखाका. बगीचो (फा.) चउर/चतुर+अंग] चमर आनंस्त. तेरका. नलरा. लावल. चामर चतुरात प्राचीका. प्रेमप. चतुराई चमरात नलरा. चामरो चतुरिम, चतुरिमा प्राचीफा. शृंगामं. चतुराई चय- प्राचीसं. छोडवू, त्याग करवो (द.) (सं.) चर * आरारा. [दूत, सेवक]; गुर्जरा. विराप. चतुष्ट (दुष्ट चतुष्ट) प्रेमाका. चारनो समूह, (सं.); मोसाच. हरिख्या. [अनुचर], - [चंडाळ] चोकडी सेवक चत्तारिसई षडाबा. चारसो (सं.चत्वारि चरउ उक्तिर. चरवू ते (सं.चर) शतानि) चरकतुं नरका. प्रेमाका. चकलुं (पक्षी) चत्ति गुर्जरा. चित्तमां चरचे उक्तिर. नरका.प्रेमाका. वीसरा. शृंगाम. चतुचपाट दशस्कं(१). चत्तुपाट लेप करे, लगाडे, चोपडे (सं.चच्) चत्रक कामा(शा). चातक चरड गुर्जरा. जिनरा. प्रद्युचु. प्राचीफा. चत्रुभुज दशस्कं(१). चतुर्भुज शीलक. शृंगाम. चोर, लूंटारो (सं.चर+ चत्रुवाक नंदब. चक्रवाक ट) (दे.चरड); जुओ चोरचरड चन्द्रोदय जिनरा. चंदरवो [सं.] चरडाहुँति उषाह. चिढाती, [अकळाती, चपलक षडाबा. चोळा दुःखी थती] 2010_03 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरण/चल्लइ १६८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चरण हरिख्या. डगलुं (सं.) चरु गुर्जरा. धननां पात्र (सं.) चरण आरारा. संयम, चारित्र (सं.) चरु हरिख्या. अग्निमां बलिदान आपवा चरणकज आस्त. चरणपंकज, चरणकमळ रांधेलो भात (सं.) चरे चित्तसं. भक्षण करे चरण-करण आरारा. ऋषिरा. आचार अने चर्म अखाछ. चित्तसं. चामडान] शरीर; क्रियाकांडनो परामर्श, संयमधर्मनी पुष्टि प्रेमाका. चामडानी बनावेली ढाल माटेनां नियमो, संयमना मूल अने चर्वडी प्रेमाका. चडभडी, [गुस्से थईने] उत्तरगुणो [जै.] चलचीत गुर्जरा. चंचळ चित्तवाळो चरण-त्राण नलाख्या. शृंगाम. मोजडी, चलण कर्पमं. गुर्जरा. तेरका. लावल. पगरखं (सं.) वसंफा. वसंवि. पग (सं.चरण) चरणो चंद्रवा. दशस्क(१). प्रेमाका. मदमो. चलणडे लावल. चरणमां, पगमां ___ लावल. चणियो, घाघरो । चलणवलण अखाछ. अखेगी. चालवूवळवू चरबोटउ नेमिछं. एक प्राकृत छंद ते, हलनचलन, प्रवर्तन] (प्रा.चरपट) चलणी उक्तिर. कटिवस्त्र (सं.चलनी) चरंट मदमो. छंदविशेष चलवउं लावल. चालवू [सं.चालवू] चरंणा मदमो. चणिया चळवळे अखाछ. अखेगी. हालेचाले, प्रवर्ते चरि आरारा. कथनी (सं.चरित) चलाणउ आरारा. चालवू ते, प्रयाण (रा.) चरिअ नेमिछं. चरित्र [सं.चरित] चलाणां, चलाणी अभिऊ. वाटकी, वाटका चरिय गुर्जरा. चरित्र, जीवनकथा (सं. चलाविसु आरारा. रवाना करीशं, मोकलीशु चरित) चली नेमिछं. चलित थई, [हलमली] । अबरा. आरारा. गुजरा. चारत, जावन- चलू उक्तिर. षष्टिप्र. चळु, हथेळीभर पाणी; __ कथनी आरारा. नरप. लावल. विमप्र. चळु, चरी अखाका. परहेजी [सं.चर्या] जम्या पछी हथेळीमां पाणी लई मों चरीअइ *वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). चोख्वु कर, ते (सं.चुलुक) चराय छे, भोगवाय छे (सं.चर्यते) चले चित्तसं. चळे, चलित थाय; वीसरा. चरीइ गुर्जरा. चरित, जीवनकथा चाले [सं.चल्] चरीउ आरारा. गुर्जरा. चरित्र, जीवनकथनी चलेवळे अखाछ. चालेहाले, हिलचाल करे, (सं:चरित) प्रवर्ते] [सं.चल्+वल्] चरीत्र मदमो. पंचवा. कूट युक्ति; ठगारी चल्लइ गुर्जरा. चाले; लावल. चाले, चलित वातो; कपट[भयुं वर्तन] (सं.चरित्र) थाय (सं.चल्यते) 2010_03 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १६९ ... चवदइ/चंदनि चवदइ उक्तिर. चौद (सं.चतुर्दश) मोसाच. एक प्रकारचं वाद्य [फा.] चवला आरारा. उक्तिर. चोळा चंग अखाका. आरारा. ऐतिका. तेरका. चववं. च्यववं *अखाका. प्राचीका. च्यत नरका. नलरा. प्रेमाका. लावल. वसंफा. थq, भ्रष्ट थर्बुआरारा. देवरा. प्राचीफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). षडाबा. देवमांथी मनुष्य के तिर्यक् विक्ररा. सुंदर, सरस (द.) अवतारमा जर्बु, स्वर्गमांथी पडवू (सं. चंगा गुर्जरा. नेमिछं. लावल. सुन्दर, सरस च्यवते) ___ चंगिम, चंगिमा प्राचीसं. शृंगाम. सुन्दरता चव, अखाका. अखाछ. प्राचीसं. कहेवं, चंगी लावल. सुंदर वर्णवq दि.चव-) चंचल लावल. अश्व [सं.] चवीयला गुर्जरा. स्वर्गमांथी पडेला (सं.च्यु चंचंतु वाग्भबा. देदीप्यमान, प्रकाशमान परथी) [सं.चंच्] चवेड प्राचीसं. थप्पड, तमाचो (सं.चपेटा) चंड आरारा. खूब (सं.) चहइ नलरा. इच्छे (द.चाह्) चंत अखेगी. चतुचा. चंद्रवा. प्रेमाका. चित्त चहट *उषाह. [चोंटेला] (द.चहुट्ट) चंत मदमो. आभक, [स्वामी] चहि कर्पूमं. जिनरा. चेह, चिता, अग्नि चंतनी चतचा. चंद्रवा. दशस्क(२). मदमो. चहुटउं, चुवटउं आरारा. नलरा. नेमिछं. चित्रिणी, सुंदरी, नारी; जुओ चिंतनी प्रद्युचु. विक्ररा. चौटुं, बजार (सं.चतुर्+ चंतवे देवरा. चिंतवे, विचारे] हट्ट) चंता देवरा. चिंता चहड नेमिचं. चौटामां, बजारमां चं तामण चंद्रवा. चिंतामणि, चिंतवेलु आप चहुटा *शीलक. (चोंट्या] [दे.चहुट्ट तेवो मणि] चहुडी, (चुहुडी) उषाह. चोडी, पहोळी, चंद गुर्जरा. तेरका. नरका. नेमिछं. लावल. . (विस्तृत वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). चहुढीउ लावल. चोड्यो वीसरा. चन्द्र चहु पाखलि जुओ पाखलि चंदण, चंदणु गुर्जरा. तेरका. चंदन चहुंटी उक्तिर. चूंटी, चीमटी दि.चहुंतिया] चंदन गोह शीलक. *पाटला घो, [चंदन चहेन अखेगी. चिह्न घो] चहेरो चतुचा. बदनामी चंदन वाळवू दशस्कं(१). जडमूळथी उखेड, चहोडी आरारा. चडावी; वीसरा. [पूजा] [घाण वाळवो, रगडो करी नाखवो चडावी, अी (रा.) ___ चंदनसीपा लावल. चंदनथी भरेली छीपो चंग. दशस्क(१) दशस्क(२). प्रेमाका. चंदनि (चंदनि देहु) गुर्जरा. चांदनी (जेवो र चतुर्क वा चित्रिणी, सुंदरी,मा दशकार) मदम, 2010_03 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदलडउ / चाचरि शुभ्र देह) चंदलड लावल. चांल्लो चंदलावयणी लावल. चंद्रना जेवा वदनवाळी चंदसूर नैमिछं. लावल. चन्द्र अने सूर्य चंदा प्राचीसं. चन्द्रादित्य चंदानी चारफा. चंद्रमुखी (सं. चंद्रानना) चंदिम प्राचीसं. चन्द्रिका चंदु शृंगामं. चंद्र चंदूआ ऋषिरा. चंदरवो [सं. चन्द्रोदय ] चंदौउ उक्तिर. चंदरवो ( सं . चंद्रोदय ) चंद्रवा प्रेमाका. चंदरवा चंद्राअण मदमो. चांद्रायण [ व्रत] चंद्राउली * नैमिछं. लावल. चंद्रावली, कृष्णनी एक राणी चंद्रवा लावल. चंदरवा चंद्रउ कादं (शा). नरका. नलरा. विमप्र. चंदरवो [सं. चन्द्रोदय ] १७० चंपइ लावल. वीसरा. चांपे, दबावे [दे. ] चंपइविल्लि तेरका. चमेली (सं. चंपक + वल्ली) चंपकवन्नी गुर्जरा. चंपकवर्णी चंपय प्राचीसं. चंपक, चंपो चंपलु प्राचीफा. चंपानो छोड (सं. चंपक) चंपावत्री, तेरका. चंपावरणी (सं. चंपक वर्णिका) चंद विमप्र. चामडी [सं. चर्म] चंबक ऋषिरा. लोहचुंबक (सं. चुम्बक ) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चंबुकगिरि चित्तसं. लोहचुंबक धरावतो पर्वत चंमकपांहांण मदमो. लोहचुंबक 2010_03 चाकल लावल. चाकळा, [नानी गादी ] [द. चक्कल ] चंद्रयउ उक्तिर. चंदरवो (सं. चन्द्रोदय) चंद्रोदय जुओ चंद्रोदय चाकवो * पंचवा. [जोवो] [सं. चक्ष्-] चंद्रोय तेरका. चंदरंवो (सं. चन्द्रातप, जै.सं. चाकुलउ अंबरा. गुर्जरा. नेमिछं. चाकळो, चन्द्रोपक) [सं. चन्द्रोदय ] [गोळ नानी गादी] (सं. चक्र+उल्ल) दि. चक्कल] चाख आरारा. जिनरा. नजर, दृष्टिदोष (सं. चाउ प्रद्युचु चाप, धनुष्य चाउआ * चतुचा. [चोवा, विविध गंधद्रव्योथी बनावेलुं सुगंधित द्रव्य ] चाउचियाविउ विमप्र. "उश्केरायेलो, [* आवेशमां आव्यो] [*रा. चूंचावणो] चाउरि, चाउरी अंगवि. आरारा. * गुर्जरा. *नंदब. "नेमिछं. "विमप्र. गादी (दे.) चाउल विमप्र. चोखा (दे.) चाउंडा उक्तिर. चामुंडा चाक अभिऊ. उक्तिर. प्रेमाका. [चाकडो ], चक्रावो, गोळ भ्रमण (सं. चक्र) चाक नलरा. अंबोडामां खोसवानुं स्त्रीनुं एक चक्राकार घरेणुं (सं. चक्र) चक्षु) चाखिवउ जिनरा. चाखवोक * चाखी गुर्जरा. विराप. चाखी, भोगवी (दे. चक्खिआ) चाचर उक्तिर. नलरा. नेमिछं. शृंगामं. चोगान, चोक (सं. चत्वर) चाचरि उक्तिर. प्राचीसं. चर्चरी, Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [गीतविशेष ] चाट नेमिछं. खुशामत करनार (सं. चाटु) चाटको नरका. चटको, आघात चाटवो प्रेमाका. लाकडानो कडछो [दे. चाबख प्रेमाका. चाबुक चापकि प्रेमाका. चाबुक चट्टुअ ] घा] चाटिकु विमप्र. चटाको, [ चटको, झीणो चाबण उक्तिर. चावीने खावानो शेकेलो खाद्य पदार्थ, चवाणुं (सं. चर्बण) [रा. ] चाटू अंबरा. चाटवो, [लाकडानो कडछो] चाम अखाछ. [चामडानुं ] शरीर; जिनरा. चामडी [द. चहुअ ] चाटुकारिया वचन उक्तिर. मीठां वचन चामडुं अखाछ. [चामडानुं] शरीर; जुओ ( सं . चाटुकारिकानि वचनानि) चाड षष्टिप्र. दुर्जन, कपटी (दे. चाड ) ; चाड, चाडि आरारा. प्रयोजन, जरूर (रा.) उषाह. प्राचीसं. * शीलक. सेवा, भक्ति, [ सहायता, मदद ] १७१ चाढीनइ आरारा. चडावीने चाणउरि प्राचीसं. चाणूर, [ एक मल्ल ] चातरइ लावल. चलित थाय, [ खसे] चातारिणी आरारा. मीठाई वगेरेनी भेट (रा.) चाट / चारित्र * चापइ [चांपs] वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). चंपाना फूलमां (सं.चम्पक) चापकि कादं (शा). चाबुकथी चाडूउ नलरा. एकनी वात बीजाने कही चामीकर नलाख्या. सुंदर (सं.) देना चाडियो [. चाडय] चाय देवरा. चाह, इच्छा चारण * गुर्जरा. [आकाशगमन करी शकता साधुन प्रकार ] चातुक नरका. चातक पक्षी चातुर मदमो. चतुर चातुरिम नलरा. चतुराई (सं. चतुरिमा ) चात्र सिंहा (शा). चातरीने, गुप्त, संयत चात्रुक दशस्कं ( १ ). दशस्कं (२). नरका. प्रेमाका. चातक पक्षी चाथरि उक्तिर. हास्य [दे. चत्थरि ] चाप प्रेमाका लावल. धनुष (सं.) 2010_03 चांमड चामर * विमप्र. [चमार जेवा हलका लोक ] चामरहारी प्राचीफा. चामरधारिणी स्त्री चामाचेड उक्तिर. चामाचीडियुं [दि.चम्म - चिडअ ] चारण आरारा. (गाय) चारवी ते चारणी आरारा. हालत चालती (रा. चारिणी) चाखी आरारा. चरावीने चारंणी मदमो. चाळणी चारि गुर्जरा. घास, [चारो] चारि * प्रबोप्र. [ उपाय, लाग] [.] चारि उक्तिर. चार (सं. चत्वारि) चारित आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. व्रतमय जीवन, संयम, दीक्षा (सं. चारित्र) चारित्तु षडाबा. संयमधर्म (सं. चारित्र) चारित्र आनंस्त. देवरा. नलरा. लावल. Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारित्री/चांत्रिणी १७२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संयमधर्म, त्यागधर्म, दीक्षा [सं.] चावळ वीसरा. चोखा चारित्री आनंस्त. संयमी, [संयमधर्मी] चावी * नरका. [बदनाम] [हिं.] चारित्रीआ उपबा. चारित्र - जैन दीक्षाव्रत चावे अखाछ. कहे (दे.चव) पाळनारा चास उक्तिर. प्रेमाका. मदमो. कुंजडु, एक चारिहिं गुर्जरा. विराप. चालवाथी, चालथी पक्षी (सं.चाषः) (सं.चार) चासणी विमप्र. [घोडाने आपवामां आवतुं चारीय हरिवि. नृत्यना गतिविशेषमां (सं. जोगाण, चंदी] चारी) चासंघ अखाछ. जाहेर, उघाडे छोगे चारुवाक अखेगी. चार्वाक दर्शन] चाहहु उषाह. नरका. नेमिछं. *प्राचीफा. चारो *अखाका. चतुचा. प्रेमप. उपाय प्राचीसं. विक्ररा. *विमप्र. जुए, नीरखे, चाल, चालो चित्तसं. प्रवर्तन प्रिमभरी दृष्टिथी जुए] (अप. चाह) चाळ प्रेमाका. चादर दि.चाह]; *अंबरा. [राह जुए, प्रतीक्षा चालइ लावल. [चाले, काम थाय] करे]; उषाह. प्रबोप्र. इच्छे, [याचे] चालइ वसंवि. चळे, [चलित थाय] (सं. चाहन वेताप. उघाडु, जाहेर चल्यते). चाहीजइ जुओ कही चाहीजइ चाळ ओढवी प्रेमाका. देवाळू काढQ चाहेक चंद्रवा. मनगमतां चालणी उक्तिर. चाळणी (सं.चालनी) चांचूड षडाबा. चांचड दि.चंचट] चालवि कादं(शा). चालवाथी चांदरणी दशस्क(२). प्राचीफा. चंद्रनो चालवे चित्तसं. चलित करे; नरका. चळावे, प्रकाश, चांदनी चलित करे; चलावे, हलावे [सं.चाल्] चांदलु गुर्जरा. चंद्र चाला आरारा. चेष्टा; नेमिछं. *गति, [चेष्टा, चांदुलउ गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. चंद्र . प्रवृत्ति] चांदुलडउ गुर्जरा. चंद्र चालि प्राचीफा. चाल, रूढि चांदुला वसंफा. वसंवि(ब्रा). चंद्र चाले नरका. चलावे, चलित करे चांद्र प्राचीफा. चन्द्र चालेव्या चंद्रवा. चालवा[मां चांद्रणउ प्राचीसं. चन्द्रिका, [चंद्रप्रकाश] चालो जुओ चाल चांदणी कादं(शा). विमप्र. चांदरणी, ताराचाळो अखाका. चेष्टा मंडळ; दशस्कं(२). चांदनी, [चंद्रचाल्युं जाइ चित्तसं. प्रवत्र्यु जाय प्रकाश]; नरका. चांदनी, ["तारामंडळ] चावइ *जिनरा. [स्वेच्छाए] चांद्रिणी प्राचीफा. चांदनी, चंद्रप्रकाशचावडी प्रेमाका. [चोकी], पोलीसथाणुं युक्त]; लावल. चांदनी, [चंद्रप्रकाश] 2010_03 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चांद्रिणु उक्तिर. चंद्रप्रकाश चांप उक्तिर. चंपानगरी वसंवि. चांपइ वसंफा वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). चंपामां (सं. चंपक); जुओ चापइ १७३ चांपs अखाछ, उक्तिर. जिनरा. वसंफा. वसंफा (ल). विराप. वीसरा. षडाबा. चांपे, दबावे [द.चंप] चांद्रिणु/चित्राम चिणइ उक्तिर. वीणे, एकत्रित करे (सं. चिनोति) चिणय तेरका. चणो (सं. चणक), (* चीणो, एक धान्य) [दे.चीण]; जुओ चीणउ चिणिउ उक्तिर. वीणेलुं, एकत्रित करेलुं चिणी षष्टिप्र. चणेली, [चणतर थयेली] (सं. चिनोति परथी ) चिणोठी उक्तिर. चणोठी (द. चिणोट्ठी) चितवी देवरा. चिंतवी, विचारी 2010_03 चित लाई आरारा. चित्त लगाडीने, ध्यानथी; जुओ लाइ चांपउ उक्तिर. चंपक, [चंपो] चांपला - तरुअर वसंवि (ब्रा). चंपक वृक्ष चांपी * नरका. [चांपीने, दबावीने, कडकाईथी] चांपुला वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). चंपो (सं. चंपक) चांपेल लावल. विमप्र. चंपानुं तेल [सं. चंपकतैल्य ] वसंवि. चित्त चोरी नरका-२. कसर राखी, झांखो पडी, [संकोच पामी] चित्तप्रसत्ति आनंस्त. चित्तने जोड [सं. चित्तप्रसक्ति] चांपे शुं प्रेमाका. [काळजीथी, खंतथी ] चांबडउ उक्तिर. चामडुं (सं. चर्म-) चांबलि हम्मीप्र. चंबल नदी चांबिल वीसरा. चंबल नदी चित्तमास प्राचीसं. चैत्र मास चित्रउ षडाबा. चित्तो (सं. चित्रक) चित्रकारीऊं वाग्भबा. आश्चर्यकारक चित्र - लखिया प्रेमाका. चित्रमां चीतर्या होर तेवा, स्थिर, मूढ [सं. चित्रलिखित] चित्र-लंक प्रेमाका. चित्ताना जेवो केडनो वळांक; जुओ लंक चांगड चंद्रवा . ?, [* चामडानुं शरीर ]; जुओ चामडुं चांहीन अखेगी. चिह्न चिऊआलीस नलरा. चुंवाळीस (सं.चतु- चित्रशाली, चित्रशाळी, चित्रसाली * गुर्जरा. श्चत्वारिंशत् ) "प्रेमाका. विराप. [सुंदरी ] * चिगचिगतउ उपबा. चकचकतुं चिचि प्रद्यु [त्याज्य ] [ दे. चिच्च ] चिटक प्रेमाका. वळगाड, [मेली विद्या ] चिडउ उक्तिर. नलरा. चकलो (सं. चटकः) चिडी अंबरा. उक्तिर. चकली (सं. चटका); वीसरा पक्षी, [चकली] (सं. "चिटक) चित्रसालि, चित्रसाली * उषाह. तेरका. लावल. पंचवा. प्राचीफा. ज्यां चित्रो गोठयां होय एवं दीवानखानुं, रंगभवन (सं. चित्रशाला) चित्रसाली जुओ चित्रशाली चित्राम कादं (धु). कादं (शा). गुर्जरा. नलरा. Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रालंकी / चीणउ (चिहुं+सं. घटि) केडवाळी; जुओ लंक चित्रावेलि, चीत्रावेल ऐतिरा. उक्तिर. इच्छित फळ आपनारी वेली, [अक्षयनिधिनी सिद्धिवाळी वेली] [सं. चित्रकवल्ली ]; जुओ चित्रावेल * विमप्र. चितरामण, चित्रो चित्रालंकी नरका. चित्ताना जेवी पातळी चिहुँ दिसि ऋषिरा. चारे दिशामां चिहुं परि उक्तिर. चार प्रकारे चिंचूड षडाबा. चांचड [दे. चंचट ] चिंत, चींत उषाह. नलरा. लावल. चित्त; गुर्जरा. वीसरा. चिंता, विचार चिंतइ नेमिछं. लावल. विचारे चिंतनी, चींतनी *अखाका. मदमो. सिंहा (शा). चित्रिणी, सुंदरी जुओ चंतनी चित्रांम प्राचीफा. चितरामण चिपुट ऋषिरा. चपटुं बेसी गयेलुं (सं. चिपिट) चिबुक अखाका. प्रेमाका. हडपची (सं.) चिमिचिमि ऋषिरा. चमचम अवाज १७४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चियवास ऐतिका. चैत्यवास चियारि षडाबा. चार (सं. चत्वारि ) चियालीस षडाबा. चालीस ( सं . चत्वारिंशत्) चिरास * शृंगामं. [चिरकालीन, चिरंजीव ] [सं. चिरस्य, प्रा. चिरस्स] चिवियां शृंगामं कह्यां [द. चव] चिह गुर्जरा. विराप. सिंहा (म). चिता, चेह चिहउं विराप. चार [सं. चतुर्+खलु] चिहारई शृंगामं. चारेय चिहिन प्रेमाका. चिह्न, लक्षण चिह्न लावल. चार (सं. चतुर्+खलु) चिपखी विमप्र. चारे बाजु चिहर शृंगामं. केश, चाळ (सं. चिकुर ) चिहुं आरारा. गुर्जरा. नरका. नेमिछं. लावल. वीसरा. चार, चारेय (सं. चतुर्+खलु) चिहुंघडियउ वीसरा. चोघडियुं, सुमुहूर्त 2010_03 चितवs देवरा. जिनरा. चिंतवे, विचारे चिंति नेमिछं. चित्त चिय प्राचीसं. चिता चिंतु गुर्जरा. चित्त चिब गुर्जरा. भारवाचक अव्यय (सं. चैव) चिंत्य कादं (शा). चित्तमां * चिंघ गुर्जरा. प्राचीफा. निशानी, धजा (सं. चिह्न) ची नलरा. प्राचीफा. षष्ठीनो प्रत्यय, [-नी] (सं.-त्य); जुओ -च चीकण वेताप. एक जातनी काकडी चीखल उक्तिर. ऐतिरा. नलरा. प्राचीफा. कादव (दे. चिक्खल्ल) चीखलालुं उक्तिर. कादवियुं चीखली शृंगामं. चीकणी, कादवयुक्त (दे. चिक्खल्ल) चीगट नंदब. चीकाश चीगराई आरारा (व). चिकाखाई ? चीचू अइ उक्तिर. चींचीं अवाज करे, चीस पाडे चीणउ उक्तिर. चीणो, एक धान्य [द. चीण]; जुओ चिय Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १७५ चीणीकबावा/चुटां चीणीकबावा आरारा (व). चण-कबाब, एक वस्त्र, उत्तम के रेशमी वस्त्र (सं.) वनस्पति (फा.चिनिकबाला) चीरी प्रधुच. वीसरा. चिठ्ठी। चीत प्राचीसं. चैत्र चील्ह उक्तिर. समडी (सं.चिल्लः) चीतनी मदमो. सुंदरी (सं.चित्रिणी); जुओ चील्हडां शृंगाम. समडी (दे.चिल्ल) चींतनी चील्हसाग उक्तिर. चील, एक पांदडावाळी चीतरा प्रेमाका. चित्ता वनस्पति जेनुं शाक बने छे (द.चिल्ली+ चीतराव्यउ जिनरा. याद कराव्या सं.शाक) चीतवइ, चीतवइ अखेगी. उपबा. नलाख्या. चीवर आरारा. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. *प्रेमप. षडाबा. चिंतन करे, विचारे वसंवि(ब्रा). वस्त्र (सं.) (सं.चिन्तयति) चींचूए प्रेमाका. चूं चूं एवो अवाज करे चीती विमप्र. चिंतव्या मुजब, इच्छा मुजब चीत आरारा. गुर्जरा. चित्त; जुओ चिंत चीतु वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. चीत- गुर्जरा. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). चित्त वसंवि(ब्रा). विचार करवो (सं.चिन्तय) चीत्रइ उक्तिर. चीतरे (सं.चित्रयति) चीतनी जुओ चिंतनी, चीतनी चीत्रउ उक्तिर. चित्तो (सं.चित्रकः) चीतवइ जुओ चीतवइ चीत्राम कामा(त्रि). कामा(शा). चितरामण चीतारउ नलरा. चित्रकार, चीतारो चीत्रावेल जुओ चित्रावेलि चीनविउ कृष्णच. ओळखाव्यो चीनउं गुर्जरा-टि. "विराप. चीरेलु, विदारेखें चुआ * नरका. [विविध गंधद्रव्योना मिश्रण(सं.चीर्णम्) वाळु एक गंधद्रव्य]; जुओ चुवा चंदन, चीनी नरका. ओळखी [सं.चिह्न परथी] चूआ, चूया, चोआ, चोवउ चीन्यो नरका. ओळख्यो, जाण्यो [सं. चुक विक्ररा. चोक [सं.चतुष्क] चिह्नितम्] चुकडई विमप्र. चारचार; जुओ चोकड चीपडी विमप्र. [चीबी, बूची, चपटा नाक- चुकडउ नलरा. काननुं एक घरेणुं, चोकडा वाळी चुकडं कादं (शा). विमप्र. चोकडं (घोडानु) चीपडीउ, चीपिडउ उक्तिर. एक झेरी जीवडुं चुकसि रूपच. चूकीश, [खोईश] (सं.चिपिटक) चुक अभिऊ. चोक, [साथियानी आकृति] चीफाड उक्तिर. [?] (सं.चित्तस्फोटक) (सं.चतुष्क); जुओ चउक चीर कादं (घ). जथ्यो, जूडो चुक्क- तेरका. चूक, (सं.च्यु+क्क) चीर गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. पंचवा. प्रेमाका. चुकवि गुर्जरा. चूकी जईने वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(बा). वीसरा. चुटां कर्पूमं. चौटां [सं.चतुर+हट्ट] 2010_03 Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुणणि/चूआ चुणणि गुर्जरा. चणवा माटे (सं. चिनोति ) चुणिवानइ सिंहा (म). चणवा वखते चुथउ आरारा. नलरा. नलाख्या. चोथुं (सं. चतुर्थक) १७६ चुविह आरारा. चार प्रकारना ( सं . चतुर्विध) चुपखेर हम्मीप्र. चारे बाजु; जुओ चउपखेर चुसठि नलरा. लावल. चोसठ (सं. चतुःषष्टि) चुसाल नलरा. *प्रद्युचु. *पहोळी, [विशाळ ] (सं. चतुःशाला); जुओ चउसाल चुहटुं प्राचीफा. विक्ररा. चौटुं, बजार (सं. चतुर् + हट्ट); जुओ चउहटुं मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चुवा चंदन *मदमो. [चुवा - एक मिश्रण - युक्त गंधद्रव्य अने चंदन ]; जुओ चुआ, चोवा け चुपाखर चुपट * नलरा. [चारे बाजु खुल्ला ]; उषाह चारे तरफथी, [*विनाशक] (सं. चतुः + पट्ट) [हिं. चौपटा ]; जुओ चउपट चुपट्ट * विमप्र. [खुल्ली रीते, मुक्तपणे ] चुपाखर नलरा. चारे बाजु (सं. चतुः + पक्ष ); जुओ चुपखेर 2010_03 चुहडियां लावल. चोड्यां [दे. चुहुट्ट ] चुहि नलख्या. चारे, चारेय (सं. चतुर् + खलु) चुहु कादं (शा). चार (सं. चतुर् + खलु) चुहुटइ विक्ररा. चौटे, [बजारमां] [सं. चतुर् + हट्ट ] चुफला उषाह. कदावर, [पुष्ट ] चुमासुं नलरा. विमप्र. चोमासुं, [जैन साधुनुं चातुर्मास ] चुहुडी जुओ चहुडी चुयो वेताप. कोई वस्तु बाळी उकाळीने चुहुवटां अभिऊ. चौटां, बजार ( सं . चतुर् + हट्ट) [सं. चतुर्वत्म ] काढेलो सत्त्वरूप रस चुर विक्ररा. चोरामां चुं प्रद्युचु चार [ सं . चतुर् ] चुरंग अभिऊ. चारे अंगनी, [गाढ] चुरी लावल. नलख्या. चोरी, लग्नमंडपना चार खूणे करवामां आवती माटलीनी रचना चुलसी प्राचीफा. प्राचीसं. चोराशी (सं. चतुरशीति) चुले आरारा. चोळाथी [दे. चवलय ] चुबटउं जुओ चहुटउं चुवटि, चूवटि कादं (धु). कादं (शा). चोवाटमां, चकलामां, [चार रस्ता भेगा थाय त्यां] (सं. चतुर्वत्म); जुओ चहुटउं चुवण अखाका. चूवेलुं द्रव्य चुंकलाइ उक्तिर. धारदार वस्तु घोंचवी [*दे. चंछ ] चुंकार प्राचीका. आश्चर्य [कारक] (सं. चमत्कार) चुंचुता * नरप ( द ). [ चमचमता, फळफळता, गरम, ताजा ] चुंदिवं उक्तिर. चंट, वीणवं [सं. चंटू ] चुंबइ उक्तिर. गुर्जरा. विराप. चुंबन करे (सं. चुम्बति) चूआ * अभिऊ. * प्रेमाका. [विविध गंधद्रव्योना 'मिश्रणवाकुं एक गंधद्रव्य ] ; जुओ चुआ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १७७ चूक/चेत्र चूक उक्तिर. आमली (सं.चुक्रम्) चूरइ गुर्जरा. प्रेमाका. चूरो करे (सं. चूटिवा वांछइ उक्तिर. चूंटवा इच्छे चूरयति) चूड प्रेमाका. [वीटळाईने करवामां आवती] चूरी नेमिछं. चूरो, भूको __ पक्कड, भींस दि.] चूरीइ, चूरीयइ उपबा. नेमिछं. चूरो कराय चूडकरण कादं(शा).बाळमोवाळा उतराववा- चूरी पूरी * नरका. [चूरमुं अने पूरी] नो विधि (सं.चूडाकरण) चूरीयइ जुओ चूरीइ चूडाली कादं(शा). चूडावाळी, सौभाग्यवती चूर्यु आरारा. ऋषिरा. दळी नाख्यु, चूरेचूरा स्त्री करी नाख्यु चूडावयंसु ऐतिका. चूडावतंस, [शिरमोर] चूल्हउ आरारा. प्रद्युचु. चूलो (सं.चुल्लिः) चूढीयिइ कादं(शा). चोढवामां आवे (द. चूल्लि, चूल्ही उक्तिर. षडाबा. चूल (सं. चउट्ट) चुल्लिः ) चूणि उक्तिर. चूरो (सं.चूणि) चूवटि जुओ चुवटि चूतांकर जुओ नूतांकुर चूंथा नरका. प्रेमाका. चीथरा चूति उक्तिर. स्त्रीयोनि; गुदा (सं.च्युति) चूंबणी वीसरा. चुंबन करवां ते चूथउ जुओ चउथउ चे * विमप्र. [चणतर] दि.चेच्च] चून उक्तिर. लोट (सं.चूर्णम्) [हिं.] चेनुं * विमप्र. *लावल. [चणतर] दि.चेच्च चूनउ गुर्जरा. चूरो (सं.चूर्ण+क); उक्तिर. चेट ऋषिरा. दास (सं.) चूरो, भूसुं चेटक कस्तुवा. चित्तसं. प्रेमाका. जादु, चूनडि, चूनडी ऐतिका. वीसरा. स्थूलिफा. मेली विद्या वस्त्रविशेष, चूंदडी चेटक (चेटक लाग्यु) नरका. घेखें [लाग्युं] चूनडीअ स्थूलिफा. चूंदडी, स्त्रीवें एक चेटी अखाका. आरारा. दासी (सं.) जातनुं भातीगर रेशमी वस्त्र चेडी नेमिछं. षडाबा. दासी (सं.चेटिका) चूनलडी नरका. चूंदडी चेत आरारा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). चूनी नरका. प्रेमाका. हीरानो के रत्ननो चित्त (सं.चेतस्); आरारा. ऋषिरा. नानो टुकडो, स्त्रीओने नाकमां पहेरवानी नेमिछं.भान [सं.चेतस् चंद्रवा.सावचेती टीपकी राखीने, काळजीपूर्वक, [विचारीने] चूब *गुर्जरा. [भोंकवु ते] [हिं.चुभना] चेत उक्तिर. चैत्र मास चूया लावल. विविध गंधद्रव्यना मिश्रण- चेतिउ अखाका. उपबा. चेत्यो, जागृत वाळु एक गंधद्रव्य]; जुओ चुआ थयो, सभान बन्यो (सं.चेतयति) चूर नेमिछं. चूरो चेत्र वीसरा. चैत्र मास 2010_03 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १७८ चेत्रड/चोपां मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चेत्रड मदमो. गांडी, दाधारंगी स्त्री उपर थतुं लींपण, अबोट । चेन जुओ अंगचेन चोखभंडि *विमप्र. [साव हलकी, असती, चेरी दशस्कं(२). प्रेमाका. दासी (सं.चेटी) कुलटा] दे.चोक्ख+भंडी] चेलुकां प्राचीसं. बाळको दि.चेल्लय] चोखरो मदमो. छंदविशेष चेलुखेप प्राचीफा. आकाशमांथी वस्त्रोनी चोखालणि नेमिछं. चोख्य॒ करवा माटे दि. __ वृष्टि थवी ते (सं.चेलोत्क्षेप) चोक्ख] चेहेन अखाका. अखेगी. चंद्रवा. चित्तसं. चोखाला लावल. चोख्खा, स्वच्छ दि. मदमो. चिह्न, लक्षण चोक्ख] चेहेबचो प्रेमाका. शेवाळ अने वनस्पतिवालो चोखी आरारा. सरस, सरस रीते (रा.); होज [फा.चहबच्च] नेमिछं. चोख्खी, [स्वच्छ, निर्मळ चेन सिंहा(शा). चिह्न चोखुट, चोखुंट चंद्रवा. मदमो. चारे दिशा, चैतन्यमे चित्तसं. चैतन्यमय ___ चारे सीमा, सर्वत्र [सं.चतुर+दे.खुंट] चैत्य आरोरा. जिनमंदिर (सं.) चोगमा चंद्रवा. चारे बाजु चैत्यपरवाडि प्राचीफा. क्रमपूर्वक मन्दिरोनी. चोज अखाका. अखाछ. *अखेगी. उक्तिर. यात्रा (सं.चैत्यपरिपाटी) आश्चर्य, चमत्कार, [चमत्कारपूर्ण चैत्यमाला ऋषिरा. जैन देरासरोनी हार अनुभव]; अखेगी. *शृंगाम. व्यंग्य[भरी चैद दशस्कं२). चेदि देश; नलाख्या. चेदि उक्ति], चमत्कारपूर्ण उक्ति (सं.चोद्य) देशने लगतुं चोट प्रेमाका. चीवट, [काळजी; झडप] चो ऐतिका. -नो; जुओ -च चोड (चोड वायु) प्रेमाका. नाश [कर्यो] चोआ विमप्र. हम्मीप्र. [विविध गंधद्रव्यो- चोडो प्रेमाका. पहोळो वाळो]. एक सुगंधीदार पदार्थ; जुओ चोनाणी शृंगाम. चार प्रकारना ज्ञानवाळा चुआ [सं.चतुर्ज्ञानी चोक नरका. नरप. स्त्रीओनुं मस्तक- एक चोप, चोंप प्रेमाका. झडप, उतावळ, घरेणुं (सं.चतुष्क) उत्साह, चपळता, [चानक] चोकड "नरका. [चार सेरनी]; जुओ चुकडइ चोपडणु षडाबा. चोपडवानी क्रिया (दे. चोकडी प्रेमाका. चारनी संख्या; [*चोकडी- चोप्पड) नी भातवाळा चोपडा घरांसे एलु नरका. चोपडेलाने भरोसे चोकी नरका. स्त्रीओनुं माथा एक घरेणुं एलु (उच्छिष्ट), [कंईक लाभ माटे हलकी चोकु आनंस्त. चारगणुं ___वस्तुनो स्वीकार करवो ते] चोको प्रेमाका. रसोई वगेरे माटे जमीन चोपां वेताप. सिंहा(शा). ढोर (सं.चतुष्पद) 2010_03 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १७९ चोफेर/चौवार चकलामां चोफेर प्रेमाका. चारे बाजु चोवउ आरारा. वीसरा. विविध गंधद्रव्योना चोबदार प्रेमाका. छडीदार [फा.] मिश्रणवाळु एक गंधद्रव्य; जुओ चुआ, चोबोला कामा(शा). टोणा, [चाबखा); चुवा, चोवा __ जुओ चबोला चोवट वाव्युं दशस्क(२). ध्वस्त कर्या, चोमाल कस्तुवा. चोथे माळे [नष्ट कर्या] चोरचरड ललिरा. चोरलूंटारा [सं.चौर+ चोवटि अखाछ. कादं(शा). चौटामां, चरट]; जुओ चरड चोरचिखार दशस्क(२). चोर-धुतारा; जुओ चोवा आरारा. ऐतिका. विविध गंधद्रव्योथी चखार बनावेलु एक सुगंधी द्रव्य; जुओ चोवउ चोरडउ उक्तिर. चोरटो [सं.चौर परथी] चोविहार आनंस्त. खान-पान आदि चार चोरारि लावल. चोर अने अरि - शत्र प्रकारना आहारनो त्याग [सं.चतुर+ चोरासी अखाका. नरका. जीवना चोरासी . व्याहार] लाख अवतार चोसर देवरा. प्रेमाका. चार सेरनी (माळा) चोरासी खाण प्रेमाका. चोरासी लाख जन्म- चोहटे पंचवा. बजारमां, चौटे (सं.चतुर्हट्ट) योनि चोहो चंद्रवा. दशस्कं(१). प्रेमाका. मदमो. चोरी अखाछ.?, [कोईक धार्मिक आचार] चार (सं.चतुर्+खलु) चोल ऐतिका. नरका. नलरा. नलाख्या. चोहोवटे मदमो. चौटे, [चार रस्ता भेगा शीलक. मजीठ, घेरा लाल रंगनी थाय ते स्थळे] (सं.चतुर्वर्त्मन्) वनस्पति; घेरो रातो रंग; *शृंगाम. [वस्त्र- चोप जुओ चोप । विशेष, लाल रंगनुं वस्त्र] चौतुं अखाका. अखाछ. चौदवल्लं, सोळ चोलक ऐतिरा. चौलुक्य वंश भागमांथी चौद भाग सोनाना होय एवं, चोलणा जिनरा. वेश, [झम्भा] [हिं.चोलना] चोख्खं सोनुं चोलपट्टउ षडाबा. कटिवस्त्र (सं.चोलपट्ट) चौनाणी जिनरा. चार प्रकारना ज्ञानवाळा चोलमजीठा प्राचीफा. लावल. वसंवि. [सं.चतुर्ज्ञानी] वसंवि(ब्रा). मजीठ जेवा लाल; जुओ चौरज्य चित्तसं. चौर्य चोल चौवट नरप(द). चौटुं, [चार रस्ता भेगा चोलवटउ उक्तिर. कटिवस्त्र (सं.चोलपट्टः) थाय ते स्थळ, जाहेर स्थान] [सं.चतुचोलीय वसंवि. चोळी (सं.चोलिका) वर्क्सन् चोळो प्रेमाका. मूंझवण, [गभराट, भय, चौवार *जिनरा. [अगाशी परनी चार बाजु चिंता] खुल्ली स्थापत्यरचना]; जुओ चउबारउ 2010_03 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च्यतुरंगी/छडे पीआणे १८० . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश च्यतुरंगी रूस्तस. चतुरंगी [चार अंगवाळी] अवस्था]; जुओ छद्मस्थ (सेना) छए ऐतिरा. छे च्यवई उपबा. नीचला अवतारमां पड़े छकाइ नरप(द). बहेकी गई, [उन्मत्त थई] [सं.च्यु] जुओ चवq छग जिनरा. छ च्यहु परि उक्तिर. चार प्रकारे छगणक षडाबा. छाणुं दि.छगण] च्यंत अखाका. अखेगी. चित्त छगल्यानो आनंस्त. चगळ्यानो च्यंता उषाह. चिंता छगवीस जिनरा. छवीस च्यार कादं (शा): दूत, [सेवक (सं.चार) छछउंदिरी ऋषिरा. छडूंदर दि.छच्छंदर] च्यारसयां ऐतिरा. चार सो [सं.चत्वारि *छछेरा [छछोरा प्रेमाका. छीछरा, शतानि [आछकला] च्यारि आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. छछोरी प्रेमाका. छीछरी, [छोकरमतवाळी] नलाख्या. नेमिछं. प्राचीसं. लावल. छछोहा जिनरा. [स्फूर्तिवाळू, उत्साहयुक्त; वीसरा. चार (सं.चत्वारि) जलदीथी] च्यालि (च्यारि) नेमिछं. चालीस, [सं.चत्वा- छटकी ऋषिरा. छांटी [गु.छडकवू; हिं. रिंशत्] छिडकना] च्युहु उक्तिर. चार [सं.चतुर्+खलु] छडइ गुर्जरा. छठे [वरसे] च्येहेन मदमो. लक्षण, चेन (सं.चिह्न) छडउ गुर्जरा. छंटकावतो [हिं.छडना] छडउ पयाणउ प्राचीसं. एकाकी प्रयाण; छ नलरा. छे जुओ छडे पीआणे छइ उक्तिर. गुर्जरा. नलरा. वसंफा (ल). छडपडु जुओ छुडिपुडि वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. छडा ऐतिका. नरका. छंटा, छंटकाव, थापा छे (सं.आक्षेति) छडा (छडा छाबडा) लावल. छंटकाव (अने छइ षडाबा. देखाव, आकृति (सं.छवि) थापा) छइतालीस षडाबा. छेतालीस (सं.षट्चत्वा- छडी पंचवा. राजचिह्न तरीके राजा आगळ रिंशत्) रखातो दंड (सं.छत्रिका) छइल, छइल नलरा. नेमिछं. लावल. वसंवि. छडी(छडी ता) *जिनरा. [छडतां] छेल, रसिक, [चतुर] (सं.छवि+इल्ल; छडीदार * प्रेमाका. [राजादि आगळ एमनां दे.छइल्ल); जुओ छयल स्तुतिवचन बोली मार्ग करनार] छउगाला जिनरा. छोगावाळा, [छेलछबीला] छडे पीआणे विमप्र. चडी सवारीए, [रसाला छउमत्य नेमिछं. छद्मस्थ, केवलज्ञान प्राप्त वगरनी ने तेथी झडपी सवारीए]; जुओ कर्या पहेलांनी अवस्था, [असर्वज्ञ छडउपयाणउ 2010_03 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . १८१ छडोत्तर/छयालपण छडोत्तरइ [सोल छडोत्तरइ] ऐतिरा. छप्पन उपर भेर [वागवी] प्रेमाका. खूब [सोळसो] उपर छ श्रीमंत होवु (जूना समयमां छप्पन लाख छतराल मदमो. छतरायु, जाणीतुं के करोडनी मिलकतवाळाने आंगणे भेर • छति, छते कर्पूमं. विराप. होता, होवा छतां वागती) (सं.सति) छप्पय शृंगाम. भमरो (सं.षट्पद) छतु, (रहित) उक्तिर. रहेतो, होतो छब नरका. सुंदरता (सं.छवि) छतुं अखाका. सत्, सत्यसनातन, छब प्रेमाका. [पृथ्वीस्पर्शनो] अवाज पारमार्थिक अस्तित्व धरावतूं]; चित्तसं. छबक्कइ प्राचीफा. धारण करे, [शोभे] [रा.] उपस्थित; अस्तित्व धरावतुं, छबवू अखाछ. अटकवू, पहोंचकुं, "अंबरा. कामा(शा). जीवतुं [पहोंचकुं]; अभिऊ. गुर्जरा. नलाख्या. छते जुओ छति ललिरा. विक्ररा. सिंहा(शा). स्पर्श करवो छत्ती कāमं. छत, [होवू ते, हयाती] (सं. दि.छिव) स्थिति) छमकलडो. नरका. अटकचाळो छत्तु षडाबा. छत्र छमकलां नरका. अडपला छत्य मदमो. [होवू ते], अस्तित्व; चंद्रवा. छत, *पूर्ण, [होशियारी, कौशल] छमकलो नरका. अटकचाळो, अडपला छत्ये थई मदमो. पारंगत [आवडतवाळी] - छमछर अभिऊ. वर्ष (सं.संवत्सर) छत्रसिल तेरका.छत्रशिला, गिरनारनी एक छम्मास गुर्जरा. षडाबा. छ महिना (सं. षण्मास) छदम आरारा. कपट (सं.छद्म) छय अंबरा. छे छद्मस्थ आनंस्त. षष्टिप्र. अ-सर्वज्ञ, सावरण *छयकारु [बयकारु] उक्तिर. गानार ("सं. ज्ञानवाळु, जुओ छउमस्थ गेयकारु) [सं.वाग्+गेयकार, प्रा. छ नोकषाय आनंस्त. छ मंद कषाय - वइकार]; जुओ वेकार हास्य, रति वगेरे छयल विमप्र. [*वरणागी, "चतुर], ["छल, छन्नवइ प्राचीसं. षडाबा. छन्न (सं.षण्णवति) *बहानुं] छपदा ऐतिका. षट्पद, छप्पा छयल, छयल्ल ऐतिका. ऐतिरा. प्राचीफा. छपवू अंबरा. दशस्क(१). छुपाईं शीलक. शृंगाम. वरणागी, दक्ष, रसिक; छपती नरका. छूपी जुओ छइल्ल छपाइ आरारा. छुपाव छयलपणइ गुर्जरा. वसंफा. कुशळताथी, छप्पई उक्तिर. चोपाई छंद (सं.षट्पदी) चतुराईथी, [रसिकताथी] करनारो थई टुंक] Jaitez osation International 2010_03 Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छबलाज - १८२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश छबल जुओ छ्यल छवरंगी प्रेमाका. "वस्त्रविशेष, [*वेपारख्यातीत उक्तिर. छेतालीस (सं.षट्चत्वा- वणजनुं कोई साधन] रिंशत) छविह ऐतिका. छ प्रकार छर प्रेमाका. अस्त्रा (सं.क्षुर) छवी प्रेमाका. छाईने, ढांकीने छालउ प्राचीफा. मस्त, [मदीलो] छ सि नलाख्या. छ सो (सं.षट्श्तानि); छळ 'विमप्र. [ हाथ, "पंजो] [सं.त्सर] जुओ सइ या पंचवा. [तूटयां, भंगायां] [हिं.; सं. छह आरारा. तेरका. प्राचीसं. छ (सं.षष्) छहत्तर, छहतरि उक्तिर. षडाबा. छोतेर छलकतीउ नलरा. आछकलो, [सहेलाईथी (सं.षट्सप्ततिः) छलकाई जतो] छह विगइ स्थूलिफा. छ प्रकारनी विकृति छतमेह रूपच. छळकपट (सं.छलभेद) - विकारकारक आहार छळसे प्रेमाका. छळी ऊठशे, भयथी चमकी छं वाग्भबा. छे ऊठशे छंछेरो मदमो. छंछेड्यो छति लावत. [बहाने, रूपे] छंडइ अखाका. आरारा. गुर्जरा. जिनरा. छति "विराप. [नो द्रोह करीने], [*रक्षा- तेरका. लावल. वीसरा. छांडे, छोडे (सं. . प्रसंगे] [रा.] छ छलिबद्द ऐतिका. छळी शकाय, [परास्त छंद चतुचा. चाळा, [स्वच्छंद वर्तन] । करी शकाय] छंदा *विमप्र. [खुशामत]; जुओ छांदो छती प्रेमाका. ऊछळी छंदिहिं चारफा. इच्छा के अभिलाषाथी, छती आरारा. गुर्जरा. छेतरी, कपट करी [मननी रुचिथी] (सं.छल्) छाइ आरारा. छांयामा छतीया, छतीया 'लावल. [छतराया, छाइउ, छाईउ गुर्जरा. विराप. छाई दीधो पराभव पाम्या]; शृंगाम. छेतराया (सं.छादित) छती आरारा(व). एक करियाणु, छडीलो, छाइयइ षडाबा. छायेलामां, ढांकेलामां __ शिलापुष्प ? छाक * नरका. नरप(द). गंध, वास; जिनरा. तुं अभिऊ. छेतलं नशो, [केफ] छलो मदमो. *घूघरीवाळी वीटी, [सोनानी छाका छाकाछोल] "जिनरा. [छाकमछोळ] चीपवाळो चूडो] छाकिउ षडाबा. जेणे नशो करेल छे ते, छर (छानुंछवाल) विमप्र. [छानी छपनुं मदीलो छवपण्इ चतुचा. निर्दोषतामां, बालभावथी छाज, छाजउ उक्तिर. प्रेमाका. विमप्र. 2010_03 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [छापरामां] घास, पाटियां के वांसनुं आच्छादन; छापरुं [सं. छाद्यकम् ) छाजावलि षडाबा. छजांनी हार (सं. छाद्य + छावपणुं प्राचीका. प्रेमप. बालपण (सं. आवलि) शाक्त्वन) सं. आवलि छातिया ऐतिका. छाती, वक्षस्थल छात्र प्राचीसं. छत्र छाणावलि उक्तिर. छाणांनी हार [दे. छगण + छावी प्राचीफा. युवती (सं. शाव + ई) छावीस उक्तिर. छवीस ( सं . षड्विंशतिः ) छासठि उक्तिर. छासठ (सं. षट्षष्टिः) छासि, छासी अभिऊ. षडाबा. छास [.] छाह आरारा. छाया, शोभा; ऋषिरा. छाया [रंग]; रूपच. छाया, [छांयडो] छाहडी गुर्जरा. छांयडो; वीसरा. छांयो, पडछायो (सं. छाया) छाना छल * विमप्र. [छानांछपनां स्थानो] छानुंछवनाउं जुओ छवनउं छान्यनुं मोसाच. छाणनुं छाबडा जुओ छडा छाबडा छामखेडुं अखाछ. चित्तसं. चामखेडुं चामडानी आकृतिओ, [ एनाथी थतो ] पूतळीखेल १८३ ] छालउ उक्तिर. छाल (*सं.छल्ली) [दे.छल्ली छाली अंबरा. उक्तिर.. उपबा. गुर्जरा. षडाबा. बकरी (सं. छागल) छाजावलि / छांह छावति उक्तिर. घरनी छत के छापरुं (सं. छदिः) छायइ उक्तिर. गुर्जरा. छाय, ढांके (सं. छाहिउ, छाहिय आरारा. तेरका. प्रद्युचु. छवायेलो, छायेलो, ढांकेलो (सं. छाहित ) छाही नरका. छाई, ढांकी छादयति) छार आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. देवरा. प्रधुचु प्रेमाका. रूपच. वीसरा. शृंगामं. राख, धूळ (सं. क्षार) छाहु विमप्र. छायो, ढांक्यो, [ढंकायो] छां प्राचीका. प्रेमाका. (तुं) छे छारड प्राचीसं. भस्म,[राख] ( सं . क्षार+ड) * छांछलपांछल [*खांखलपांखल] अखाका. छार्य मदमो. राख अखाछ. *जेवोतेवो, काचोपोचो, [* तुच्छ, *सारहीन ]; जुओ खांखल छांडिजे कादं (शा). छांडी देजे (दे. छड्ड) छांदुआं प्राचीका. प्रेमप. अळवीतरां, अडपलां छा अखाका. [छाल ] ; [छालवालुं] वृक्ष [द. छल्ली ] छावउ प्राचीफा. युवान ( सं . शावक) छाass उक्तिर. कृष्णबा. बच्चुं, बाळक, छोकरडुं (सं. शावक) 2010_03 छाहा सिंहा (शा). पडछायो (सं. छाया) छाहार ऋषिरा. छार, राख [सं. क्षार ] छाहि आरारा. छांयो [सं. छाया ] छांतु राखइ शृंगामं. खुशामतथी राजी राखे छांदो पंचवा. खुशामत; जुओ छंदा छांह आरारा. उक्तिर. छांयो, पडछायो (सं. छाया) Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छांहडी/छूटे दोरयं १८४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश छांहडी आनंस्त. आरारा. मदमो. वीसरा. (*सं.छिद्राटिनी) ___ छाया, छायो, पडछायो छीतर उक्तिर. सूपडं दि.छित्तरय] छांहा आरारा. छांयो, पडछायो [सं.छाया] छीति आरारा. क्षति, कलंक छांहिया आरारा.छांयो, पडछायो [सं.छाया] छीपइ गुर्जरा. जिनरा. स्पर्शाय, स्पर्श करे; छि, छिइ कादं (शा). नलाख्या. छे (पा. जुओ छिपइ ___ अच्छति) [सं.आक्षेति] छीपउ उक्तिर. कपडां रंगनारो, छीपो दि. छिकारडां प्रेमाका. [नानी जातन] हरण छिपय]; जुओ छींपउ छिछइ, छिपइ उक्तिर. स्पर्श [सं.स्पृशति] छीप, सिंहा(शा). लांगरवू छिडु नलाख्या. छेडो, [वस्त्रनो भाग] (सं. छीपां मदमो. लांगर्या छेद) छीपुं (छीपुं हु) कृष्णच. *मने स्पर्श थाय, छिदमर (छि दमर सुकी) प्राचीफा. ?, [मारे संता, पडे छे] [हिं.छीपना] [दोरडी जेवी सुकायेली] छीलर नरका. प्राचीफा. शृंगामं. स्थूलिफा. छिदूं नलाख्या. छेथु (सं.छिद्) खाबोचियुं, [छीछरा पाणीनुं तलाव] छिद्द तेरका. छिद्र, लाग (द.छिल्लर) छिनु उक्तिर. छन्नु (सं.षण्णवति) छीलोजी * नंदब. [पलाश, खाखरो] छिपइ जुओ छिछइ, छीपइ छींडणि जुओ छीडणि छिपायउ वीसरा. छुपाव्यो छींडी नरका. सांकडी गली, [छींडु, वाडछिरिका प्राचीसं. ?, [कोई शस्त्रविशेष] मांथी करेलो रस्तो]; उक्तिर. प्राचीसं. छिल्लरूं गुर्जरा. [नानुं] सरोवर, [छीछरा छीडु पाणीनुं तळाव] दि.छिल्लर छीपउ नलरा. कपडां छापनार, छीपो दि. छिवइ उक्तिर. षडाबा. स्पर्शे (सं.स्पृशति) . छिपय); जुओ छीपउ . छिंडीपंथ सम्यचो. [केडीमार्ग, सांकडो मार्ग] छुड आरारा(व). छड - एक करियाणुं, छी चतुचा. छे छुर, गोखरु ? छीकउं उक्तिर. षडाबा.शीकं (सं.शिक्यम) छुडि विक्रच. छोडियां छीकणी उक्तिर. छींक, छींक खावी ते छुडिपुडि, छुडुपुड, छडपडु तेरका. प्राचीसं. (सं.छिक्किका) झटपट दि.छुड्डु परथी] छीछि वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). छुरउ उक्तिर. छरो [सं.क्षुरकः] निर्भर्त्सना करे, तिरस्कार करे (द.छिछि छुरी गुर्जरा. षडाबा. छरी (सं.क्षुरिका) = धिकधिक् परथी ?) छुहिय तेरका. प्राचीसं. भूख्यो (सं.क्षुधित) छीडणि, छींडणि उक्तिर. छींडी, वाडनु छींईं छूटे दोरयं प्रेमाका. छूटे दोर, पुष्कळ 2010_03 Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १८५ छेए/छोहलउ छेए मदमो. छये विक्ररा. छेडो, अंत (सं.छेद+ड) छेक अभिऊ. दशरक(१). नरका. प्रेमाका. छेहल्यो आनंस्त. छेल्लो छेडो, अंत; अखाका. चित्तसं. अंत, छेहा विमप्र. दगो, [त्याग] छेडो; साव, [जराय] [सं.छेद+क] छेहि उक्तिर. छेडे, अंते छेकडि उक्तिर. ["छेकवानुं साधन के *छिद्र छेहिलं उक्तिर. उपबा. छेल्लु पाडवानुं साधन] (*सं.छिद्रकरी) छेहु नेमिछं. छेह, दगो छेकि आरारा. छेक सुधी, पुष्कळ, पूरेपूरुं छेहे मदमो. छ छेड नरका. छेडती छोई चतुचा. स्पर्शी छेदि ०षडाबा. छेडो, हद छोकलडां प्रेमाका. छोगां, वस्त्रना टुकडा, छेबकै जिनरा. [छिद्र वाटे], छुपाईने [अंगूछा] छेय प्राचीसं. अंत, छेडो सिं.छेद] छोछ प्रेमाका. अशुद्धि, अपवित्रता छेल अखाका. चतुचा. पंचवा. रसिक, चतुर छोडूं सिंहा(शा). ओर्छ, चंद्रवा. हलकुं छेवष्टि जिनरा. छेवट्टा संस्थान, पाटा, प्रेमाका. *नमालु, असहाय, एकलुं (सं. खीली वगेरे विना हाडकां अरसपरस तुच्छ, प्रा.छुच्छ) .एम ज वळगेला होय तेवो शरीरबंध] छोड-भलाई दशस्कं(१). प्रेमाका. [जै.] [सं.छेद+पट्ट] छोडाववानी भलाई, एनो जश छेवेट (लीधा छे वेट) *प्रेमाका. [वींटी छोति उक्तिर. छोत, अस्पृश्यनो स्पर्श, लीधा छे] स्पर्शदोष, मलिनता दि.छुत्ति] छेह आराम. छेद, भंग; अंबरा. षष्टिप्र. छोबन प्राचीका. छोबंध, छोवाळां (सं. खोट, [हानि]; अभिऊ. आरारा. सुधा+बद्ध) ऋषिरा. उपबा. कादं(शा). कामा(शा). छोयो * नरका. स्पर्यो गुर्जरा. दशस्कं(१). प्राचीसं. विमप्र. छोवरावियां प्रेमाका. चूनाथी धोळाव्यां वीसरा. सिंहा(शा). षडाबा. छेडो; अंत; छोवाय प्रेमाका. अभडाय, अपवित्र थाय उषाह. कपडानो छेडो, आरारा. उषाह. छोह प्राचीसं. क्षोभ, [रोष]; अभिऊ. क्षोभ, तेरका. नलरा. नलाख्या. .प्रेमाका. [आघात, दुःख] हम्मीप्र. प्रक्षोभ, हरिख्या. विश्वासभंग, दगो, छोडी देवू शूरातन ते, त्याग; हरिख्या. घा, दुःख (सं.छेद) छोह उक्तिर. षडाबा. षष्टिप्र. चूनानी छो छेह शृंगाम. [धूळ] [रा.] (सं.सुधा) छेहडइ आनंस्त. उपबा. छेडे, अंते छोहरी उषाह. छोकरी, छोरी दि.] छेहडउ प्रद्युचु. वस्त्रनो छेडो; आरारा. छोहलउ [? सोहलउ] प्राचीसं. उत्सव 2010_03 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ्याचा/जघन १८६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश छ्याया कादं(शा). छायडो (सं.छाया) जीवडु, [*आगियो] [*दे.जोईय] जकर *कस्तुवा. [नर, पुरुष] [अ.] ज तेरका. षडाबा. जे (सं.यद्) । जकला कामा(त्रि). जकीला, "हठीला जइ आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका. बुद्धिमान, कुशळ] [उ.जकी] नेमिछं. लावल. वीसरा, षडाबा. जो ज के विमप्र. जे कोई, [जे कंई] (सं.यदि) जक्ख तेरका. यक्ष जइ (कांइजइ) उषाह. लगाम [नी दोरीमां] जक्त चित्तसं. मदमो. वेताप. जगत [अ.कायजा] जक्ष चित्तसं. यक्ष जइ किमइ उक्तिर. *उपबा. जो केमे, कोई जमणि चंद्रवा. फसावनारी, लोभावनारी, रीते (सं.यदि किमपि) अर्धदेव जातिनी स्त्री, [भूतडी] जइणा ऐतिका. यतना, [जीवहिंसा न थाय जगडइ गुर्जरा. पीडे (द.जगड-) तेनी काळजी] जगत्र आनंस्त. ऐतिका. नेमिछं. लावल. जइतवाद नलरा. विजय [त्रण] जगत [सं.] जइतवादी नलरा. जय मेळवनार जगत्र-वदीतु हरिवि. त्रण जगतमां प्रख्यात; जइ पुण उपबा. *पण जो, [जो वळी] जुओ वदीतउ (सं.यदि पुनः) जगदीसरू आरारा. जगदीश्वर, भगवान जइलच्छि, जइ-लच्छी गुर्जरा. *नेमिछं.जय- जगनाह गर्जरा. जगन्नाथ (सं.जगत+नाथ) ___ लक्ष्मी, [विजयरूपी लक्ष्मी] जगनि चंद्रवा.? [बाज पक्षी], [उ.जगन] जईतउं, जईतुं उक्तिर. जवातुं जगवंच गुर्जरा. जगतने छेतरनार, [भ्रामक, जईसर ऐतिका. यतीश्वर . खोटी] जईसु ऐतिका. यतीश, [मोटा यति] जगाति हम्मीप्र. जकात, दाण जउ गुर्जरा. जे (सं.यः) जगाती पंचवा. जकात लेनार जउ उपबा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. लावल. जगीश, जगीस अभिऊ. आरारा. ऐतिका. वीसरा. षडाबा. जो (यतः); उपबा. ऐतिरा. ऋषिरा. कृष्णच. जिनरा. नलरा. तेरका. षडाबा.ज्यारे (सं.यतः); वीसरा. प्रधुच. प्राचीफा. वीसरा. शृंगामं. हम्मीप्र. __ एम के, ए रीते के, केमके (सं.यतः) इच्छा, अभिलाषा, होश (सं.जिगीषा); जउख ऐतिका. आनंद, विश्राम; जुओ जोख। विमप्र. "प्रसन्नता, [अभिलाषा(पूर्ति)]; जउणा उक्तिर. यमुना जुओ सुजगीश जउराणउ उक्तिर. यमराज जग्न दशस्कं(१). प्रेमाका. मदमो. यज्ञ जऊया षडाबा. [त्रण इन्द्रियवाळु] एक जघन, जघनु आरारा. वसंफा (ल). 2010_03 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १८७ बा-पुरुषांजवारव प्रकार वसंवि(ब्रा). थापानो भाग जडीमूळी प्रेमाका. [औषधिना गुणवाकुं जज्ञ-पुरुष नरका. भगवान विष्णु [सं. चमत्कारिक] वनस्पतिर्नु मूळियु यज्ञपुरुष] जडीया पंचवा. हीरामाणेक वगेरे जडवान जट प्रेमाका. जड, [मंदबुद्धि], जुओ जट्ट काम करनार जटा प्रेमाका. वेदना मंत्रोना पाठनो एक जडं लावल. जड्यु -जण तेरका. बहुत्ववाचक प्रत्यय (सं.जन) जटाजूटा ऋषिरा. जटा रूपे बांधेला (सं. जणणि, जणणी आरारा. गुर्जरा. तेरका. जटाजूट) विराप. षडाबा. जननी जट्ट उक्तिर. जदिशनो वासी, [जाट, जणमेलुं गुर्जरा. विराप. जनसमुदाय (सं. अनाडी माणस]; जुओ जट, जाट जन+मेल) जट्टपणइ उपबा. जडपणे, [हठपूर्वक, जणवइ गुर्जरा. राजा (सं.जनपति) अनाडीपणाथी] जणसाल विक्ररा. [उत्तम प्रकारच्] एक जड * नेमिछं. [नाकनुं घरेणुं, चूनी] प्रकारनुं बख्तर (फा.जीन); जुओ जीण जड *अखाका. उक्तिर. मळ, मळियं [सं. जणाविवई उपबा. जणाववाथी जटा] जणु नलाख्या. जण्यो (सं.जनितः) जडइ गुर्जरा. विराप. जोडाई जाय. [साथे जणु तेरका. जाणे के थाय] (दे.जङ-) जतन, जतन, जल अखाका. अखाछ. आरारा. प्रेमाका. *वीसरा. रक्षण, जडाया लावल. जडेला काळजी, [संभाळ] (सं.यल); अखाका. जडाव चतुचा. प्रेमाका. पट्टीथी - चीपथी अखाछ. आरारा. नरका.प्रबोप्र.प्रेमाका. जडेलो [चूडलो] प्रयल, महेनत, आचरण, [पुरुषार्थ]; जडिति शृंगामं. झट, झडपथी [सं.झटिति] जुओ यतन जडी उक्तिर. एक वृक्ष, [पींपळो, गूलर के जतना जुओ यतना पाकड] (सं.जटी) जतां-आजतां सम्यचो. जतां आवतां जडी आरारा. उक्तिर. प्रेमाका. रूपच. जतियारउ उक्तिर. यतिओनुं जडीबुट्टी, औषधिना गुणवाळु मूळियुं जन जुओ जतन जडी लावल. जडाईने जत्थ ऐतिका. तेरका. ज्यां (सं.यत्र) जडीउ नलरा. दागीनामां हीरामाणेक जडवा- जथाबध अखेगी. अकबंध, [एकठा]; जुओ नुं काम करनार, जडियो (सं.जडितः) [*सं.जटिकः] जथारथ अखेगी. दशस्क(२). नरका. जडीत्र मदमो. सिंहा(शा). जडित, [जडेलु] प्रेमाका. मदमो. यथार्थ, जेवू होय तेवू, 2010_03 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बरे/जम्म १८८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश साचुं: दशरक(१). जेवी रीते . तरंग जये अखेगी. *अकबंध, [*एकरूप, जमर दशस्क(२). वाद्यविशेष; जुओ झमरु "एकग], ["यथा, "यथास्थाने, “यथा- जमल, जमलउ अखाका. अखाछ. अभिऊ. रूपे]; जुओ जथाबध अंबरा. आरारा. उपबा. उषाह. जवपि षडाबा. जो के (सं.यद् अपि) कामा(शा). कृष्णबा. नरका. प्रबोप्र. बदाकाति षडावा. ज्यारे (सं.यदाकाल) प्राचीफा. प्रेमाका. विमप्र. लावल. षष्टिप्र. चवीप चतुचा. जो (सं.यद्यपि) सिंहा(म).जोडमां, संगाथे, साथे; समान; वन अखाछ. हरिजन, संत पासे (सं.यमल); जुओ जवल क्न वीसरा. जान (सं.जन्या) जमला-अर्जुन दशस्क(१). यमलार्जुन अनिता, अनीता उषाह. प्रेमाका. जनेता, जमलासी आरारा(व). एक वनस्पति, माता (सं.जनयित्री) जटामासी ? अनुनी दशकार). प्रेमाका. मदमो. जननी जमल्य, ज्यमलो प्राचीका. पासे, साथे (सं. बनूजा अखेगी. जन, मनुष्य यमल) जात प्राचीसं. जान (सं.जन्या-यात्रा) जमवारउ उक्तिर. जन्मारो, जीवनकाल (सं. जन्मंतरि शृंगाम. जन्मांतरमां, बीजा जन्ममां वन्य प्राचीसं. यज्ञ जमहर हम्मीप्र. यमगृह, जौहर, [युद्धमां जयमाली उक्तिर. वीसरा. जप करवानी __ पराजय निश्चित थतां रजपूत स्त्रीओनो माळा (सं.जपमालिका) चिताप्रवेश] अप- वीसरा. जप __ जमा अखाछ. जाम, जवाब अखाका. जवाब जमाणो अखाका. जमावेलो, घन, [स्थूल जबाब, चबाधि वेताप. हरिवि. एक सुगंधी जमार, जमारउ उपबा. जिनरा. षष्टिप्र. जम चतुचा. ज्यम, जैम; जुओ यम जन्मारो, भव (सं.जन्म+कार) जमा समय सम्यचो. एकसाथे, [सामटां] " जमिवउं जुओ यमिवउं बम-वाचना प्रेमाका. यमनी याचना, जमनुं जमीत जुओ यमीतउं तेडु _जमुण प्राचीफा. यमुना नदी जमहाड वीसरा. कटार (सं.यमदंष्ट्रा) [रा.] जम्पइ ऐतिका. कहे छे । जमण गुर्जर. यमुना नदी जम्बुय ऐतिका. शियाळ [सं.जंबुक जमणतरंग वसंवि. वसंवि(ब्रा). यमुनानो जम्म आरारा. जन्म, अवतार रूप] ___ 2010_03 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १८९ जम्मक्खण/जरे जम्मक्खण ऐतिका. जन्मक्षण मेवो ? जम्मण तेरका. जन्म (सं.जन्मन्) जरजरी प्रेमाका. जर्जरित जम्मंती आरारा. जन्मती जरजडण सिंहा(शा). द्रव्यप्राप्ति ? जम्मे आरारा. जमे जरठ कादं (शा). घरडो (सं.) जम्मु ऐतिका. जन्म जरण जुओ अजरण-जरण जय- तेरका. जय थवो जरती ऋषिरा. डोशी, वृद्धा, [वडील स्त्री] जयकरियां प्रेमाका. जय सूचवतां [जयकार (सं.) थतां] जरद गुर्जरा. विक्ररा. एक प्रकारनां बख्तर जय-ठक नलरा. विजयसूचक पडघम (सं. उ.जदे] जयढक्का) जरवबंध विमप्र. जेरबंद, घोडाने पिटे] जयणा उक्तिर. *उपबा. देवरा. विमप्र. बांधवानो सामान-[पटो] [फा.झेरबंद रक्षण, [जीवरक्षा], जीवहिंसा न थाय जरदोजी सिंहा(शा). कसबी भरतकामवाळु तेनी काळजी (सं.यतना) . (फा.); जुओ जरदोरनी जयणारहित षष्टिप्र. हिंसा टाळवाना प्रयल- *जरदोरनी [जरदोजी] * नरका. [भरतकाम थी रहित (सं.यतनारहित) - कसबीकामवाळी] जयतवाद नलरा. विजय जरबाफ जिनरा. वस्त्रविशेष, [जरी अने जयतसिरी ऐतिका. [जयतिश्री], रागनु नाम रेशमना वणाटवाळु वस्त्र] (फा.) जयपत्तु ऐतिका. जयपत्र, [विजयलेख] जरह ललिरा. विक्ररा. हम्मीप्र. एक जातनुं जयलछी विक्ररा. जयलक्ष्मी, [विजयरूपी का लक्ष्मी] जरह जिण *अंगवि. [बख्तरना प्रकारो] जयवरलो, जवरलो, जवलो सिंहा(शा). जराह "विक्ररा. (एक प्रकारनु बखतर! जवल्लो, विरलो, विरल (सं.जगति जराजूरण कादं(धू). खळीखळी गयेलो, विरलकः, प्रा.जए विरलओ); जुओ खखडी गयेलो] (सं.जरा+जूण) जेवरलो, ज्यवरलो जरायुज अखेगी. ओरमांथी जन्मेलु, [प्राणीजरकशी, जरकसी नरका. प्रेमाका. सोना- ओनो एक प्रकार] [सं.] रूपाना - जरीना तार भरेली, कसबी जरासिंघ, जरासिंधु गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. जरासंध, [एक राजा] जरगो आरारा(व). एक प्रकारचें घास (हिं. जरि वसंवि. जो (सं.यदि+रि के यहि) जरिउ उक्तिर. जीर्ण थयुं [सं.जरित] जरगोजी आरारा (व). जरगोजां - एक जरे अखाका. नलाख्या. पचे (सं.ज) जरगा) 2010_03 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जल - / जसवास जल- तेरका. बाळवुं (सं.ज्वल) जळजळां प्रेमाका. पाणी झमतां जलजलियउं प्राचीसं. भीनुं थयुं जलजंत प्रेमाका. जळनां जंतु जलण आरारा. तेरका. देवरा. लावल. जवणि प्राचीफा. यमुना नदी जवन अखेगी. यवन, खाटकी अग्नि (सं. ज्वलन) १९० जल+स्थल) जलद अखाका. तेरका. वादळु [सं.] जलदहि देवरा. जलसमुद्र (सं. जल + उदधि) जलद्धि विमप्र. पाणीनी ऋद्धि [- प्रचुरता ] जलप - नलाख्या. हरिवि. बोलवुं, रटवुं (सं. जल्पू) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जल्पना अखेगी. बडबडाट [सं.] जब आरारा. ऐतिरा. कामा (त्रि), नेमिछं. लावल. ज्यारे जलतरी विमप्र. तरवानी विद्या जवमात्र चतुचा. जराक जलथळ* वीसरा. [जलस्थान, जळाशय ] (सं. जवरलो अखाका. नरका. विरलो, कोईक जळशायी प्रेमाका. जळमां शयन करवानी क्रिया, [जळमां डूबी जवुं ते] जलशिंगी * प्रेमाका. [एक जातनी माछली, मादा मगरमच्छ] [सं. जल+शृंगी ] जलसइं, जलसयउ * वसंफा. वसंवि. *वसंवि (ब्रा). कमळ (सं.जलशय के (जलेशय) जलसप अंबरा. जलसर्प जलसयउ जुओ जलसई जलहर अभिऊ. *लावल. हरिवि. वादळ (सं. जलधर) जवखार उक्तिर. जवनो खार (सं. यवक्षार) जलपूरी आरारा. आंसुभरी जळ मथी प्रेमाका. पाणी वलोवी, मिथ्या जवारें जुओ यवारें प्रयास करी 2010_03 ज; जुओ जयवरलो जबराइ अंबरा. जवाय जवल, जवलि प्राचीफा. प्राचीसं. सदृस [ जेवुं ] (सं. यमल); जुओ जमल जवलो सिंहा (शा). पासे [ सं . यमल ] जवहरी नलरा. विमप्र. झवेरातनो वेपार करनार, झवेरी [फा. जौहरी ] जवासा अखाका. अखेगी. उनाळामां थतो - कांटाळो छोड [सं. यवास] जशुं प्रेमाका. मदमो. जेवुं [सं. यादृश ]; जुओ यशूं जस आरारा. नरप. नंदब. नेमिछं. लावल. जेवुं [सं. यस्य ] जसउ जुओ यसउ जस-जीत मदमो. जशने जीतनारो, यशस्वी जसनि * लावल. [उत्सव, सुख] [फा. जश्न ] जसवाउ गुर्जरा. विमप्र. यशोवाद, कीर्ति - गाथा जसवाय लावल. कीर्तिगाथा (सं. यशोवाद) जळाखउ (जाळजळांखी) *वीसरा. [* जळ- जसवास आरारा. यशोवाद, यश बोलावो जळ आंखोवाळी] Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १९१ जसिइं/जपउ जसिइं आरारा. ज्यां, ज्यारे . जंगोटो दशस्कं(१). प्रेमाका. जांघ ढांकतो जसु आरारा. ऐतिका. तेरका. जेनी (सं. लंगोट . यस्य) जंघ आरारा. *वीसरा. साथळ (सं.जंघा) जसु गुर्जरा. यश जंघा-जुअली, जंघाजूअली लावल. जांघ जसु, जसुंकामा(शा). गुर्जर. नरका. नेमिछं. [साथळ]नी जोड मदमो. लावल. जेवू (सं.यादृशक) जंत अखाका. अभिऊ. आरारा. चित्तसं. जस्यउं आरारा. प्रेमाका. लावल. जेवू (सं. प्रेमाका. जंतु, जीव, प्राणी यादृशकम्). जंति आरारा. ऋषिरा. जाय छे जस्यउं ऋषिरा. जईशुं जंति(?) [ संति] तेरका-अनु. शांति जहर आरारा. झेर [फा.] *जंत्ये चंद्रवा. जाते जहिइ उषाह. ज्यारे जंत्र अखाछ. यंत्र; चतुचा. ?, [ओजार]; जहियइ उक्तिर. ज्यारे कामा(शा). प्रेमाका. एक तंतुवाद्य, जहिं ० षडाबा. ज्यां (सं.यस्मिन्) [जंतर]; चित्तसं. प्रेमाका. यंत्र, तांत्रिक जही तेरका. ज्यां (सं.यस्मिन्) आकृति, अक्षर ने आंकडावाळी आकृति जहींइ,जहीय उक्तिर. ज्यारे जेमां देवताओनो वास मानवामां आवे जहे उषाह. ज्यारे छे; चित्तसं. व्यवस्था, युक्ति, पद्धति उक्तिर *उपबा तेरका नेमिठं लावल जत्रभेद चित्तस. रचनानो भेद एटलेक रचायेला पदार्थनी क्रिया । वाग्भबा. जे (सं.यद्) जं उपबा. जो (सं.यतः) जंत्र-मध्याह्न दशस्क(१). प्रेमाका. भरजंखजाल, जंखजाळ कामात्रिकामा(शा) बपोर, छायायंत्र प्रमाणेनो भरमध्याह्न प्रेमाका. झांखरांनी जाळ, झाडी दि. जंत्री अखाका. जंत्र (वाजिंत्र) वगाडनार झंखर+सं.जाल] जंथ अखाछ. जंत्र, तूत(?), [प्रपंच, जंखर शृंगाम. झांखरा जेवू, [सुकायेलुं] तरखड, दि.झंखर] जन अखाछ. हरिजन, [भक्तजन] जंखंणी मदमो. जक्षणी, [खराब स्त्री] (सं. जंप नेमिछं. शांति यक्षिणी) जंपइ अभिऊ. आरारा. उषाह. ऋषिरा. जंग नेमिछं. प्राचीफा. विमप्र. समारंभ, गुर्जरा. जिनरा. तेरका. नेमिछं. प्रद्युचु. __ आनंदोत्सव (फा.) लावल. विक्ररा. हरिवि. बोले, कहे (सं. जंगाली *कामा(त्रि), [काटना जेवा राता जल्पति) रंगनुं] [फा.] जंपउ गुर्जरा. अशांति, अजंपो, [क्षुब्धता, 2010_03 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंपावq/जाचना १९२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आघात (प्रा.दे.झंप) जाइसर, जाईसर प्राचीसं. शृंगामं. पूर्वभवजंपावq दशक(१). जंपापात करवो, कूदी स्मरण (सं.जातिस्मर) पडवू जाई उक्तिर. जईने जंब आरारा(व). तेरका. जांबु (सं.जंबू) जाई आरारा. जन्मी जंबीर, जंबीरि आरारा (व). नरका. नरप. जाई गुर्जरा. विराप. पली (सं.जाया) जंबीरी, लींबुडी; लीबुं जेवू एक फळ जाईसर जुओ जाइसर (सं.) . जाउ गुर्जरा. जन्मेलो (सं.जात) जंबु, जंबू आरारा(व). ऋषिरा. जंबुनुं वृक्ष जाउ *गुर्जरा. [ज्यारे] , (सं.) जाउलि कृष्णच. जव [के अन्य हलका जंबुक अखाका. शियाळ [सं.] अनाज]नी राब, [कांजी] [सं.यवागु+ जंबू जुओ जंबु ली] जंबूक नरका. प्रेमाका. शियाळ [सं.जंबुक] जाओ *षडाबा. [उत्पन्न थयु, थयु] जंभा कादं (घ). कादं(शा). शृंगाम. बगासुं (सं.जातः) (सं.जृम्भा ) ___ जाकी(?) *नलाख्या. [जोवू ते] [हिं. जंभाआइ उक्तिर. बगासु खाय (सं.जृम्भते) झांकी] जंम गुर्जरा. जन्म जाख प्राचीसं. यक्ष जंम नरप(द). यम जाखल आरारा. षष्टिप्र. यक्ष : जमण गुर्जरा. जन्म (सं.जन्मन्) जाग अखाछ. पंचवा. जग्या, स्थळ, ठेकाj जंवारड शृंगाम. जन्म, अवतार [सं.जन्म+ (फा.जायगाह) .. कार के वार] जाग गुर्जरा. प्रेमाका. यज्ञ (सं.याग) जंवारि अभिऊ. ज्यारे [सं.यत्+वारे] . जागर ऐतिका. जामरण जा वीसरा. जे; जुओ या जागरता आनंस्त. जाग्रति जा तेरका. ज्यां सुधी (सं.यावत्) जागवइ नेमिछं. जगाडाय, उत्पन्न कराय जाइ प्रबोप्र. *जेवी, [जे] जागणो अखाका. जागृति, [जागता होवू जाइग,जाइगा ऐतिका. ऐतिरा. जगा, स्थान ते] जाइव तेरका. यादव जागीइ उक्तिर. जगाय जाइवउं अभिऊ. उक्तिर. कर्पूमं. जq (सं. जाग्य अखाका. चंद्रवा. चित्तसं. जग्या यातव्यम्) *जाघडी [जांघडी] वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). जाइवा-गति हरिवि. जादवानी गति, कृष्ण- जांघ (सं.जंघा) नी गति जाचना प्रेमाका. याचना, मागणी 2010_03 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १९३ जाचंध/जातायात जाचंध प्राचीसं. ललिरा. जन्मांध (सं. लावल. ज्ञान, जाणकारी, खबर जात्यन्ध) जाण वाग्भबा. यावत्, सुधी; जुओ याण जाचा नेमिछं. जातवाळा, ऊंची जातना, जाणउं गुर्जरा. जq ते [रा.] [साचा] (सं.जात्य, प्रा.जच्च) जाणणा आनंस्त. जाणवू ते जाचियं जुओ जावियं जाणणहार, जाणनहारो उक्तिर. अखेगी. जाची अभिऊ. याचेली वाग्भबा. षडाबा. जाणनारो .. जाचीक मदमो. सिंहा(शा). याचक जाणहारु उक्तिर. जनारो जाजर दशस्कं(२). वाद्यविशेष जाणं षष्टिप्र. (तुं) जाणे छे जाजर अखाछ. अंबरा. आनंस्त. उक्तिर. जाणां छां चतुचा. समजे छे, माने छे *उपबा. कादं(शा). गुर्जरा. वाग्भबा. जाणि वसंवि. जाणे, [जाणे के] (सं.जाने) जर्जरित, जीर्ण, क्षीण, [दुर्बळ] जाणि कि वीसरा. जाणे के जाजि आरारा. झाझुं, घj जाणिवउ षटिप्र. जाणवो जाजीवा उपबा. जीवनभर, आजीवन (सं. जाणी आरारा. ज्ञानी, जाणकार यावज्जीवम्) जाणीइ कादं(शा). वाग्भबा. जाणे के जाजुल प्रेमाका. जाज्वल्यमान, प्रतापी, जाणीतउं उक्तिर. जणातुं (सं.ज्ञायमानम्) [उग्र] जाणो-वाणो नरका. प्रेमाका. फजेतो, जाजुलता दशस्क(२). जाज्वल्यमानता, फजेती . दीप्ति जाण्य चित्तसं. ज्ञान, इन्द्रियज्ञान जाजल्यमान अखेगी. प्रेमाका. जाज्वल्य- जात प्राचीसं. यात्रा __मान, प्रकाशथी झळहळतो जात कामा(त्रि). [जन्मेलुं, संतान,] दीकरो, जाट चतुचा. "नेमिछं. अजड, [अनाडी]; दीकरी [सं.] जुओ जट्ट जातइ हुतई (क्षय जातइ हुतई) *आनंस्त. जाडेरो अखेगी. वधु जाडो, हृष्टपुष्ट . [क्षय पामे छे] जाडो देह चित्तसं. पुष्ट शरीर, पुष्टता जातक आरारा.जन्मेलो (पुत्र) [सं.]; गुर्जरा. जाड्य अखाका. चित्तसं. जडता, अज्ञान जन्मफळविषयक ज्योतिष (सं.) जात नीवडी प्रेमाका. हलकी जात नक्की जाण अखाका. अखाछ. उपबा. गुर्जरा. थई चतुचा. चंद्रवा. प्राचीसं. ललिरा. षष्टिप्र. जातमात्र आरारा. गुर्जरा. जन्मतां ज (सं.) ज्ञानी, जाणकार (सं.जानन्) जातायात अखेगी. अवरजवर [सं. जाण अखाका. अखाछ. अखेगी. नलाख्या. यातायात] [सं.] 2010_03 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाति/जामइ १९४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [सं.] जाति *आनंस्त. [वर्ग, प्रकार, श्रेणी, रूप] जाद्रणी विमप्र. जानरणी, जानडी; जुओ जातिसर विक्ररा. जातिस्मरण, [पूर्वजन्मनुं जांद्रणी स्मरण] [सं.जातिस्मर] जान अखाका. अखेगी. दशस्क(१). नरका. जातिस्मरण आरारा. पूर्वजन्मनु स्मरण प्रेमाका. नुकसान (फा.झियान) जान षष्टिप. वाहन (सं.यान) जाती वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). जाईनो जानउत्र ऐतिका. प्राचीसं. जान (सं. फूलछोड (सं.जाति) जन्यायात्रा) दि.जन्नत्ता] जातीइं उपबा. जन्मथी, [कुलथी] जानणीइ प्रद्युचु. जांदरणी, जानरणी जातीफल आरारा(व). जायफळ (सं.) जानत्र "चारफा. प्राचीफा. जान [सं. जातीसमरण विक्ररा. जातिस्मरण, पूर्व- जन्यायात्रा] [दे.जन्नत्ता] जन्मनु स्मरण जानावासउ उक्तिर. जानीवासो दि. जातीस्मर गुर्जरा. पूर्वजन्मनु स्मरण (सं. जन्नावास] जातिस्मर) जानी उक्तिर. जान (सं.जन्या) दि.जन्ना] जातु *नेमिछं. [निंदावाचक उद्गार], जानीवासउ उक्तिर. जाननो उतारो (सं. [*खरेखर, *नक्की] [सं.] ___ जन्यावासकः) जात्य * आनंस्त. [उत्पन्न थाय छ, थाय छे, जानु आरारा. कामा(शा). प्रेमाका. गोठण, नीवडे छे] [सं.जायते] यूंटण, ढींचण [सं.] जात्र प्रेमाका. विक्ररा. तीर्थयात्रा; *गुर्जरा. जानुत्र उक्तिर. जान कि.जन्नत्ता] [रा.] प्राचीफा. देवपूजानो उत्सव (सं.यात्रा) जाबतउ जिनरा. *यत्न, [जाप्तो, रक्षा, जात्र हरिख्या. *उत्सव (सं.यात्रा), [*जात संभाळ ___ - प्रास अर्थे जात्र जाम आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. चारफा. जात्र विमप्र. धांधल, धमाल, [तमासो]; तेरका. नलरा. नेमिछं. विक्ररा. ज्यारे, जुओ जोयणजात्र ज्यां सुधी, जेटलामा (सं.यावत्) जात्रणि प्राचीफा. यात्रिक स्त्री (सं.यात्रिणी) जाम चतुचा. नरका. प्रेमाका. प्रहर, त्रण जात्रि विक्ररा. *सभामां, [उत्सवार्थे, भेगा कलाकनो समय, रात्रिनो प्रहर (सं.याम) थईने] __ जामइ * षडाबा. [ज्यारे] [सं.यावत्, प्रा. जात्रिगु प्राचीफा. यात्रिक जाव जावर * ऐतिरा. गुर्जरा. चारफा. प्राचीफा. जामइ उक्तिर. जन्मे [सं.जन्मते] प्राचीसं. एक प्रकारचं सफेद रेशमी *जामइ (धरणउ) [जावइ धरणउ] *तेरका. कापड दि.जद्दर] *प्राचीसं. [पकडी शकाय] ____ 2010_03 Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जामण अखाछ. मेळवण जुओ ज्यामण जामण जिनरा. प्रबोप्र. जन्म (सं. जन्मन् ) जामण ऐतिका. यामिनी, रात्रि जामण-जाया जिनरा. [ एक मातानुं संतान ], भाई जामणि जिनरा. माता; जुओ जांमण जाणु जुओ कजामणु जामनी चतुचा. प्रेमाका. रात्रि ( सं . यामिनी) जामलि गुर्जरा. नलरा. प्राचीसं. ललिरा. लावल. विमप्र. जोडमां; जेवुं, समान, पासे; साथे, एकठा (सं. यमल) जामा प्रेमाका, घेरवाळा मोटा अंगरखा, [झभ्भा] [फा.जामः] १९५ जामु चतुचा. जामेलुं जामुक वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). बेलडी, जोडी (सं.यामक); जुओ यामुक जाय आरारा. आरारा (व). प्रेमाका. जाईनो फूलछोड (सं. जाति) जामिनी चित्तसं. नरका. प्रेमाका. रात्रि जाल (सं. यामिनी) जामिनी - जीवन अखाका. यामिनी (रात्रि ) नो पति, चंद्र जामी आरारा. जन्मी जाय अभिऊ. जायो, पुत्र [सं. जातः ]; तेरका. जाया, दीकरी ( सं . जाता ) जायउ उक्तिर. गुर्जरा. जिनरा. जन्म्यो, जन्म आप्यो जायगाई आनंस्त. जग्याए जायणहार षडाबा. जनार जायव तेरका. यादव · जामण / जालमजोर जायवउ ऋषिरा. देवरा. जावुं, जवानुं जायो अखाका. अभिऊ. गुर्जरा. देवरा. प्रेमाका. जन्म्यो, जन्म आप्यो (सं. जातः); नरका. जन्म्यो, [पुत्र]; प्रेमाका. पुत्र जायो (जस जायो ) लावल. [ (यश) उत्पन्न थयो, (यश) थयो] [सं. जातः ] जार प्रेमाका. यार, परस्त्री साथै प्रीति करनार [सं.] जारी -वजारी * प्रेमाका. व्यभिचार करी संताडवो ते ] - जारे #शृंगामं. [जार - उपपति – परपुरुष प्रेमीओ 2010_03 वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). जाळी, माथा पर परवानुं घरेणुं (सं. जालक); प्रेमाका. *झाल, * स्त्रीओनुं काननुं एक घरेणुं, [माथा पर पहेरवानुं घरेणुं]; जुओ सिरि जाल जाल * विमप्र. [झाड़ी] [सं.] जालउर उक्तिर. प्राचीसं. जाबालिपुर, जालोर [जारकौशल्य, जालरउ प्राचीसं. जालोरनो वासी जालक शृंगामं. जाळु, झुंड [ सं . ]; तथा जुओ कोलका जालक जालगवक्ख चारफा. जाळीवाळो गोख, झरूखो (सं. जालक - गवाक्ष) जाळजळांखी जुओ जळाखउ जाल ने माल अखेगी. जाळु [जाळियुं, गोख] अने घरनो माळ (?) जालमजोर प्रेमाका. जोरदार जालीम, भारे Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जालवइ/जांद्रणी १९६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रबाश जुल्म करनार जासु तेरका. वसंफा. वसंवि. जेनुं (सं. जालवइ ऐतिका. जलावे, बाळे (रा.); यस्य); आरारा. लावल. जेने (सं.यस्य) आरारा. जलावे, दुःखमां काढे . जासूल आरारा (व). नेमिछं. जासूद, जासूदजालां षडाबा. छिद्र, [भीतमांनी जाळी] नां फूल (सं.जालक) जासो लावल. जेनो [सं.यस्य] जालि अभिऊ. भेदप्रपंच, [दगो] (सं.जाल) जाह ऐतिका. जेनुं *जालिजा, [आलिजा] *गुर्जरा. [मोटा जाहउ उक्तिर. शाहूडी (सं.जाहकः) दरज्जावाळा, महामान्य] [अ. जाहरे मदमो. जाहेर आलीजाह], [अलबेलो, रसिक] [रा. जाहारी चंद्रवा. जाहेर, प्रगट आलिजौ] जाहो * पंचवा. जाओ जालिय गुर्जरा. *गळामां पहेरवानुं घरेणुं जाति जुओ याहि (सं.जालिकः), [*जालक - माथा पर जां उक्तिर. उपबा. उषाह. गुर्जरा. नेमिछं. पहेरवानुं घरेणुं] प्रबोप्र. षडाबा. ज्यां, ज्यां सुधी, ज्यारे जालिवी विमप्र. जाळवीने, [संभाळी लईन, (सं.यावत्) बचावीने] जांगडीआं मदमो. जांगिया ढोल, [मोटा जाली लावल. सळगावी (सं.ज्वल्) लश्करी ढोल] जालीय-गुख वसंवि(ब्रा). जाळीवाळो गोख जांगि विमप्र. ढोलनो एक प्रकार [मोटा, - बारी (सं.जालिकगवाक्ष) लश्करी ढोल जाव तेरका. त्यां सुधी (सं.यावत्) जांगी ढोल हम्मीप्र. युद्धनां पडघम जावक मदमो. अळतो (सं.यावक) जांगी वाय नरका. जांगियो ढोल वगाडे, जावजिव, जावजीव देवरा. आजीवन, जीव जोरथी चेतवणी आपे छे त्यां सुधी (सं.यावज्जीव) जांघडी वसंवि. जंघा, [जांघ]; जुओ जाघडी *जावियं [ जाचियं] तेरका. ?, [*श्रेष्ठ] जांण देवरा. जाणनार [सं.जानन्] [सं.जात्यम् जांणह *ऋषिरा. [ज्ञान] जावू लहइ आरारा. जवानुं छे जांणिकि वीसरा. जाणे के " जावेल उक्तिर. जाईनुं तेल (सं.जात्यतैलम्) जांणीतल वेताप. जाणीती जास आरारा. कृष्णच, प्राचीका. लावल. जांदरणी प्रेमाका. जानरडी, वरनी जानमां जेनुं (सं. यस्य) आवेली स्त्री जासक गुर्जरा. *नेमिछं. प्रेमाका. लावल. जांबणी दशस्कं(२). प्रेमाका. लावल.जानमां पुष्कळ, सारी पेठे, खूब; जुओ झासक आवेली स्त्रीओ, जानरडी; जुओ जाद्रणी ___ 2010_03 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जांबुआ नका. जांबु - एक फळ [सं. जंबू] जांबुक कामा (त्रि). जंबूक, शियाळ जांमण देवरा जणनार, जन्म आपनार, [माता ] (सं. जन्मन्); जुओ जामणि जांमलि आरारा. जोडमां, समान; जोडमां, बन्ने; कर्पूमं. साथे, पासे (सं. यमल) जांमीइ शृंगामं. (डूमो) जामे जां लगइ उपबा. ज्यां सुधी जांह जुओ यांह जाहरि अभिऊ. ज्यारे जहां मदमो. ज्यां (सं. यस्मात्) जांहे * चंद्रवा. [बरबाद, नष्ट] [फा. झांहे ] जि उपबा. तेरका. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). वाग्भबा. षडाबा. ज (सं. चैव) १९७ जांबुआ / जनता जिणइ उक्तिर. जय पामे, हरावे [सं. जि-, प्रा. जिण] जिउ प्राचीसं. जीव जिउ, जिऊं आरारा. वीसरा. जेम जिके आरारा. प्राचीसं. जे (रा.; सं. ये के) जिको गुर्जरा. विमप्र. विराप. जे कोई (सं. यः + कोऽपि ) जिगमिगए स्थूलिफा. झगमगे जिट्ठ तेरका. जेठ मास ( सं . ज्येष्ठ) जिण जुओ जरह जिण, जीण जिण आरारा. देवरा. वीसरा. जे जिण तेरका. जिन भगवान; जुओ जिणु जिण तेरका. जाणे के; जुओ जिणु Jainमध्य.१३ education International 2010_03 जिण कारणि आरारा. कारणके जिणवय ऐतिका. जिनपति जिणसाली ( ? ) [सजेला ] जिणहर आरारा. प्राचीफा. प्राचीसं. लावल. जिनमंदिर ( सं . जिनगृह) जिणंद आरारा. तेरका देवरा. लावल. जिनेन्द्र, रागद्वेष आदिने जीतेला तीर्थंकर जिणि तेरका. नेमिछं. षडाबा. जेणे (सं. येन) जि. उसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. षडाबा. जिणिउ गुर्जरा. षडाबा. षष्टिप्र. जीत्यो (सं. जि, प्रा. जिण) जे (सं.); जुओ जिइकार कादं (शा). जयजयकार (सं. जय- जिणिदु ऐतिका. जिनेश्वर देव कार) जिणई करी आनंस्त. जेने कारणे, जेना वडे विमप्र. चामडानुं बख्तर जिणु गुर्जरा. जिन भगवान; जुओ जिण जिणु तेरका. जाणे के; जुओ जिण जिणेसर आनंस्त. तेरका. लावल. जिनेश्वर, तीर्थंकर जिण्यउ उक्तिर. जीत्यो, हराव्यो ( सं . जि-, प्रा. जिण) जित्त मिछं. जितायेला, [जीत्या ] जिन देवरा. जे जिनाउं षडाबा. जेनुं जिनकल्पी नलरा. जैन मुनिओ माटेना आचारोवाळो (सं.) जिनता उषाह. जनेता (सं. जनयित्री) Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11111 nililin 111 जिपही/जीणं १९८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जिपही आरारा. जीत, [जय मेळव] जिसिइ नेमिछं. जेवा, [ज्यां,ज्यारे]; गुर्जरा. जिन्भेय शृंगाम. [बगासां खाय], *आळस विराप. जेथी खाय (सं.जृम्भते) जिसिउं आरारा. उपबा. नेमिछं. लावल. जिभ्या दशस्कं(१). जिह्वा, जीभ जेवू (सं.यादृशकम्) जिम गुर्जरा. लावल. यम जिसे *देवरा. [ज्यां, ज्यारे] जिम उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका. जिस्यउ ऋषिरा. नेमिछं. लावल. वसंफा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. वसंफा. वसंवि. जेवो (सं.यादृशक) वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. जिहवारि अंबरा. जे वारे, ज्यारे जेम, जेवू (अप.जेवं); जुओ यिम जिहाज देवरा. जहाज जिमइ आरारा. उपबा. गुर्जरा. नमिछ. जिहां आनंस्त. आरारा. उक्तिर. कादं(शा). लावल. वीसरा. षष्टिप्र. जमे (दे.जिम्म-) 17 गुर्जरा. लावल. वसंवि. वीसरा. षडाबा. . जिमइ *ऋषिरा. [जेवा, जे वखते] ज्यां (सं.यस्मिन्); जुओ यिहां जिमघर ऋषिरा. यमनुं घर (सं.यमगृह) जिहां कणि जुओ यिहां कणि जिमण उषाह. जमण [सं.जेमन] जिहां किणि ऐतिरा. ज्यां, जे ठेकाणे जिमणउ आरारा. उक्तिर. उपबा. वीसरा. जिह्वारइ आनंस्त. ज्यारे जमणो जिमणवार नलरा. जमणवार जी वसंफा. वसंवि. जे (सं.ये); तेरका. जे जिम ते उपबा. दाखला तरीके, जेमके स्त्री (सं.या) जिमवार देवरा. ज्यारे जी- (जीयइ) वीसरा. जीवे (सं.जीवति) जिमाडइ उक्तिर. वीसरा. जमाडे जीउ गुर्जरा. जीवन जिमिबुं उक्तिर. जम, दि.जिम्म-] जीजंब आरारा(व). जीजवो - एक घासजिमी आरारा. जमीन छोड ? जिमी उक्तिर. नेमिछं. वाग्भबा. जमीने जीण उक्तिर. जे जिमीतूं उक्तिर. जमातुं जीण, जीणि, जीण *गुर्जरा. "विक्ररा. जिमु गुर्जरा. जेम "विराप. [चामडामुंबख्तर] [फा.जीन]; जिवारई अभिऊ. आनंस्त. उपबा. ज्यारे आरारा. घोडानो साज, पलाण; जुओ [सं.यद्वारे] जरह जिण, जिण जिशउं, जिश्यउं जुओ यिशउं, यिश्यउं जीण आरारा. घोडानो साज, पलाण [फा. जिसइ आरारा. जे वखते, ज्यां झीण) जिसउ उक्तिर. वसंफा (ल). वीसरा. षडाबा. जीणइं उपबा. नेमिछं. जेणे (सं.येन) जेवू (सं.यादृशकम्) जीणं उक्तिर. जे ___ 2010_03 Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जीणंग / जीहां जीणंग शृंगामं. जीर्ण अंगवाळु, कृशांग जीण्यउ उक्तिर. जीत्यो, हराव्यो (सं.जि-, जीतां शृंगामं, जलक्रीडा करतां (दे. झिल्ल) जीव सिंहा (शा). जीभ प्रा. जिण) जीव खूतवो प्रेमाका. चित्त चोंटवुं जीतूं-फलूं "अभिऊ. [जीतेलुं अने फळेलुं जीवत मदमो. जीवित, [जीवन ] जीवरखी प्रेमाका, विक्ररा. एक प्रकारनुं • सिद्ध थयेलूं] जीन प्रेमाका. पलाण [फा. झीण] - बख्तर जीनस पंचवा. [ जणस], वस्तु, चीज, माल जीवापोता उक्तिर. एरंडाना वर्गनुं एक वृक्ष (अ. जिन्स) [जैनां फळनी माळा पहेराववाथी पुत्र जीवे छे एवी मान्यता छे ] [ सं . पुत्रजीवकः] १९९ जीपइ अंबरा. आरारा. उक्तिर. उपबा. उषाह. ऋषिरा. ऐतिका, गुर्जरा. चारफा. नंदब. प्राचीका. प्राचीफा. प्राचीसं. वसंफा. वसंवि. शृंगामं. षडाबा. जीते ( सं . जि-, प्रा. जित्त, जिप्प); जुओ यीपइ जीपक आनंस्त. जीतनार जीपण अंबरा. जीत जीपणहार अंबरा. उपबा. जीतनार जीपिवं ऐतिरा. ऋषिरा. जीतवुं जीभ जुओ जीम जीभाहा प्रेमप. जीभ वडे जीम वीसरा. जेम * जीम, [जीभ ] * अभिऊ. [मंगल समाचार लावनारने अपाती सोनानी जीभ ] जीमइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. जमे [ दे. जिम ]. जीमणउ जिनरा. षडाबा. जमणो जीमणवार प्राचीसं. जमणवार जीमाइ आरारा. जमाडे जीमूत ऋषिरा. मेघ [सं.] जीइ जुओ जीजीयूं देवरा. जेम, जे रीते (हिं. ज्यूं) 2010_03 जीवारे देवरा. ज्यारे जीवांतक प्रेमाका. जीवोनो अंत लावनार, पारधी [सं.] जीवित्व दशस्कं ( 9 ) जीवितव्य, जीवित, [जीवन] जीविय गुर्जरा. तेरका. जीवित, जिंदगी जीवी अभिऊ. आरारा. उषाह. नलरा. नेमिछं. लावल. वीसरा. जीवन (सं. जीवित); जुओ यीवी जीवी विमप्र. जिवाई, भरणपोषण [सं. जीविका ] दान प्र. जीवितदान, [जीवनदान ] जीवू आरारा. जीवन जीसे देवरा. जेने (हिं. जिसे) जीह गुर्जरा. ज्यां जीह ऐतिका. जिनरा. नेमिछं. प्राचीसं. जीभ (सं.जिह्वा) जीहडी लावल. जीभ ( सं . जिह्वा) जीहा लावल. जीभ ( सं . जिह्वा) जीहां उपबा. ज्यां Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुजुग्गविओ २०० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जुदा जु उक्तिर. कादं(ध). कादं(शा). गुर्जरा. जुगताइ मदमो. मेळ - तेरका. *प्रधुचु. षडाबा. जे (सं.यः) जुगताजुगति आरारा. योग्यता अनुसार जु गुर्जरा. तेरका. षडाबा. ज; जुओ जि जुगता ते जुगति प्रेमाका. योग्य करामत जु आरारा. उक्तिर. कादं(शा). गुर्जरा. [- युक्ति, चातुर्य] नेमिछं. वाग्भबा. षडाबा. जो (सं.यतः) जुगति लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). जु नलाख्या. जुओ (सं.द्योतयत) योजना, युक्ति, बुद्धिचातुर्य; जुओ जुगत जुअलई गुर्जरा. जोडीमां, [साथे] (सं. जुगती नरका. योग्य, सरखी युगल); जुओ जूंली जुगतुं नरका. युक्त-योग्य स्थिति], [लाग, जुआ उक्तिर. दशस्कं(१). प्रबोप्र. प्रेमाका. मोको]; जुओ युगतुं जुगते अखेगी. नरका. प्रेमाका. युक्तिपूर्वक, जुआरि उक्तिर. बळद (सं.युगन्धरी) औचित्यथी, [सुंदर रीते] जुइ कादं(शा). तेरका. जुए (सं.द्योतते) जुगत्य अखाका. युक्ति, [योजना, मर्म] जुइ प्रधुचु. जुगार (सं.चूत) जुगदाधार दशस्कं(१). जगदाधार जुक्त अखाका. प्रेमाका. युक्त, योग्य; जुगदीश दशस्क(१). मदमो. जगदीश चित्तसं. विचारपूर्वक जुगदीश्वरी जुओ युगदीश्वरी जुक्ति चित्तसं. विचारणा, तर्क, दलील, जुगपवरु ऐतिका. युगप्रवर विचारप्रक्रिया, युक्ति, योजना जुगपहाणु ऐतिका. युगप्रधान जुक्ल षडाबा. युक्त, जोडायेखें। जुगम अखेगी. कामा(शा). दशस्क(१). जुक्त्य चित्तसं. मर्म, विचारणा, विचार मदमो. जोडकुं, जोड (सं.युग्म) सरणी [सं.युक्ति] जुग आरारा. जोड, बे (सं.युग) जुगल वीसरा. जोड (सं.युगल) जुग चंद्रवा. जगत, जग; जुओ युग जुगलाधरम *गुर्जरा. [युगल रूपे जन्मेला स्त्रीपुरुष पतिपत्नी बने ते जातनो जुगत, जुगुतु षडाबा. योग्य [संबद्ध, संगत, ____ आचार]; जुओ जुगलाधर्म्म बंधबेसतुं] (सं.युक्त) जुगत, जुगति नरका. रचना, [गोठवण] जगात नरका रचना. गोठवणी जुगवर ऐतिका. युगमा श्रेष्ठ, उत्तम (सं.युक्ति) जुगिजुगता जुओ युगियुगता जुगतउ अखाका. आरारा. गुर्जरा. नरका. जुगांण, जूंगाण रूस्तस. ?, [धुमाडो] [उ. ललिरा. योग्य (सं.युक्त); नरका. योग्य, दुखान] सर, [बंधबेसतुं] जुगुतु जुओ जुगत जुगता नरका. युक्ति, करामत, रीत जुग्गविओ षडाबा. (व्यायामना) अभ्यास (स.युग) 2010_03 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २०१ जुग्म/जूउ वाळो (सं.योग्य परथी प्रा.) जुब्बण गुर्जरा. तेरका. यौवन जुग्म अखाका. दशस्कं(१). प्रेमाका. जोड, जुहर हम्मीप्र. जौहर, [पराजय निश्चित थतां बे (सं.युग्म) रजपूत स्त्रीओनो अग्निप्रवेश] (सं. जुग्म तुरि प्रेमाका. अश्वनी जोडी, अश्विनी- यमगृह) कुमार; जुओ तुरी जुहार आरारा. उक्तिर. कादं(शा). गुर्जरा. जुजवा देवरा. जुदा जिनरा. नरका. "प्रबोप्र. प्राचीसं. जुजाल्य मदमो. -, [योद्धा] [हिं.जुझार; प्रेमाका. विक्ररा. "विमप्र. वीसरा. रा. झुज्झमल] नमस्कार, प्रणाम दि.जोहार] जुजुआ, जुजुया, जुजुवा चंद्रवा. चित्तसं. जुहारइ अंगवि. लावल. वीसरा. प्रणाम ___ नरप(द). सिंहा(शा). जुदाजुदा करे जुठ चंद्रवा. एलु [सं.जुष्ट] जुहारड शृंगामं. जुहार, नमस्कार (दे.जोहार) जुडइ वीसरा. जोडाय द.] जुहारि उषाह. नमस्कार जुडता उपबा. यथायोग्य, बंधबेसता जुहिय गुर्जरा. जूई (सं.यूथिका) जुडियां गुर्जरा. [लडवा माटे] सामसामे जुं आरारा. जेम, जेवां (हिं.ज्यू) __ आव्यां दि.जुडिअ जुंजनकरण आनंस्त. युंजनकरण, संयोगीजुत्त आरारा. युक्त, -वाळु करण, जेने लईने कर्मनो आत्मा साथे जुध कामा(शा). युद्ध संबंध थाय ते युंजनकरण [सं.] जुन्ह प्राचीसं. ज्योत्स्ना, [चांदनी] जू नलरा. ललिरा. लावल. जुगार (सं.द्युत) जुमना मदमो. यमुना जूअ नलरा. जुगार (सं.द्युत) जुय तेरका. युगल (सं.युग-) जूअली विमप्र. बे [सं.युगल जुयउं जिनरा. नंदब. षडाबा. जुएं (सं.युतः) जूआ विमप्र. जुदा [सं.युत] जुयल तेरका. युगल जूआ प्रेमाका. ढोरना शरीर पर चोंटतुं एक जुयारी षडाबा. जुगारी (सं.द्युतकारी) जीवडुं जुलहो अखाका. वणकर (हिं.) जूआरउ उक्तिर. जुगारी (सं.द्यूतकारकः) "जुलि [दुलि] *अंबरा. [काचबो दि.] जूआरी नलरा. जुगारी (सं.द्युतकारिन्) जुवटुं मदमो. रूपच. जुगार (सं.द्युत परथी) जूइ कादं(शा). जुए; नलाख्या. जोई; जुओ जुवट्ट विक्ररा. जुगार, जुगटुं जुवा अखाछ. जुदा जूई आरारा. वाग्भबा. जुदी जुवारी वीसरा. जुगारी (सं.द्युतकारिन्) जूउ उक्तिर. कादं (शा). द्युत, जुगार जुवां पंचवा. जुगार, द्युत जूउ, जूउं उक्तिर. कर्पूमं. प्रबोप्र. सिंहा(म). 2010_03 Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जूऊउ/जेतलउं २०२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जयेष्ठ) जुदु (सं.युत) जुअलई जूऊउ उपबा. जुहूँ (सं.युतः) जूंसलं उक्तिर. प्रेमाका. झूसरुं, धूंसरुं जूका षडाबा. जू (सं.यूका) जे वसंवि. वसंवि(ब्रा). षडाबा. जो (सं. जूक्त्य अखेगी. जुक्ति, [मर्म] (सं.युक्ति) यदि) जूगांण जुओ जुगांण जे कसि ऋषिरा. जे कोई जूजवू दशस्क(१). नरका. प्रेमाका. जुदुंजुएं, जेठ, जेठउ आरारा. प्राचीसं. मोटु (सं. जातजातनुं जूजूउं अखेगी. आरारा. उपबा. उषाह. जेठी कृष्णच. प्राचीफा. मोटा मल्ल, जेठीमल्ल गुर्जरा. जिनरा. नलाख्या. प्रधुचु. प्रबोप्र. (सं.ज्येष्ठिन्) विमप्र. वाग्भबा. जुदुंजुएं, जातजातनुं जेठीमल चंद्रवा. ज्येष्ठमल्ल, जोद्धो (सं.युतयुत) जेड *सिंहा(शा.) [जे, समान] [रा.; जूठिलु गुर्जरा. युधिष्ठिर कच्छी जूडी नरका. नानो झूडो, [लट] [सं.जूट] जेड, जेडि, जेड्य नेमिछं. प्राचीका. लावल. जूतउ अखाका. अखाछ. प्राचीसं. जोडायो, विक्ररा. वेताप. विलंब; आरारा. जोडेलो (सं.युक्त) विलंबपूर्वक, छेवटे जूत्तीय आरारा. युक्त, -वाळी जेड, जेडिवू अंबरा. प्राचीफा. विलंब करवो जूपइ उक्तिर. जोडे [सं.युक्त, प्रा.जुत्त, जेण तेरका. जाणे के जेण-तेण कृष्णबा. -, [जेनाथी-तेनाथी, जूरी नलरा. *सतामणी, “जोराई (फा.जोर), जेणे- तेणे] [खिन्न, दुःखी] दि.जुरिय] जेणं वाग्भबा. जेमां जूवउ आरारा. जुदो जेणि कादं(धु). *केमके, [जेथी, जे कारणे] जूवटउ गुर्जरा. ललिरा. जुगार (सं.द्युत) जेणी दशस्क(२). जे स्त्री जूवणु गुर्जरा. यौवन जेतइ आरारा. ज्यारे जूवनु षडाबा. यौवन जेतउ आरारा. गुर्जरा. प्राचीसं. लावल. जूवां प्रेमाका. जुदां जेटलुं (सं.यावत्, प्रा.जेत्त) जूसर षडाबा. झूसरुं, धूंसहं (सं.युगशर) जेतल आरारा. जेटलुं जूह विमप्र. धुत, जुगार जेतलइ अभिऊ. गुर्जरा. जेटले, ज्यारे (प्रा. जूही आरारा(व). प्राचीफा. जूईनो छोड जेत्तुल) (सं.यूथिका) जेतलउं आनंस्त. उक्तिर. उपबा. जिनरा. जूंली ऋषिरा. जोडी (सं.युगल); जुओ षडाबा. जेटलुं (प्रा.जेत्तुल) जुप्प] 2010_03 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २०३ जेती वार/जोगखेम जेती वार षडाबा. जेटली वार, [ज्यारे] जोइउ उक्तिर. जोयु जेतुं-तेतुं कृष्णबा. जेटलु-तेटतुं जोइणि ऐतिका. योगिनी जेत्र ऐतिका. जयसूचक [सं.जैत्र] जोइलि वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. जेथि आरारा. ज्यां कोयल- नो अवाज, कलरव . जेमणवार षडाबा. जमणवार जोइq उक्तिर. रूपच. वाग्भबा. जोवू जेव तेरका. जेम (अप.) जोइस आरारा. ज्योतिष, जोश जेवड तेरका. जेवईं (अप.) जोइसिइं नेमिछं. जोशे, [अनुभव - जेवडइ जिनरा. रस्सीथी, दोरडाथी आस्वाद लेशे] जेवरलो मदमो. विरलो (सं.जगति+ जोइसी वीसरा. षडाबा. जोशी, जोश विरलकः, प्रा.जए विरलओ परथी ?); जोनार (सं.ज्यौतिषिक); षडाबा. [सूर्य, जुओ जयवरलो चन्द्र वगेरे] ज्योतिष्क देव (सं. जेष्टिका कामा(त्रि). प्रेमाका. लाकडी, दंड ज्योतिषिक) [सं.यष्टिका] जोइजइ आरारा. जोईये जेष्टिकादार प्रेमाका. छडीदार जोउ नेमिछं. लावल. जुओ जेह उक्तिर. ऋषिरा. "विमप्र. वीसरा. जे, जोओ आनंस्त. जुओ जेने; जुओ येह जोक्षम प्रबोप्र. जोखम [सं.योगक्षेम] जेहउं गुर्जरा. जेवू जोख मदमो. सिंहा(शा). सुख, आनंद जेह कही उपबा. जे कंई; जुओ कही। (सं.जोष); जुओ जउख जेह भणी आरारा. उपबा. कारणके जोखमां * चंद्रवा. [जोखवानी क्रियामां] जेहरफल पंचवा. झेरी फळ (फा.झहर+ जोखिम षडाबा. जोखम (सं.योगक्षेम) सं.फल) जेहवइ आरारा. ज्यारे जोग चित्तसं. योग, संयोग; योग, स्थिति; जेहारि जुओ येहारि वीसरा. ग्रहयोग; षडाबा. योग [मन, जो उक्तिर. तेरका. वीसरा. जे (सं.यः, . वचन, कायानो], जैन पारिभाषिक संज्ञा ' जोग, जोगउ उपबा. योग्य, लायक जोअण ऐतिरा. उक्तिर. कृष्णबा. गुर्जरा. जोगइ आनंस्त. आरारा. योगथी, संपर्कथी, नलरा. लावल. चार गाउ, आठ माइल संबंधी, साधनी [तेर किलोमिटर] जेटलुं अंतर (सं. जोगउ जुओ जोग योजन) जोगखेम चित्तसं. योगक्षेम, पालनपोषण, जोइ *अभिऊ. [जो, मान] कल्याण यो) 2010_03 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोगवइ/जोबनमंद २०४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जोगवइ आरारा. चंद्रवा. व्यवस्था करे, जोडि लावल. *जोड, "बेनो समूह, [समूह [संभाळे], साचवे; अखेगी. [योग करे], [रा.]; जोड, समानता मेळवे, चलावे, [-मां नाखे] जोडिव षडाबा. जोडवू (सं.जुटति परथी) जोगवटउ उक्तिर. भावसमाधि वखते जोडुआं मदमो. जोडका, एक जोडनां संन्यासीओ द्वारा पहेरातो लांबो झम्भो जोडो चंद्रवा. जोडीनो, जोडनो, बरो(सं.योगपट्टः) बरियो]; मोसाच. जोटो, बे जोगा लावल. योग, [संबंध]; योग, जोत देवरा. जोतरुं, बळदने धूसरीए वैिराग्य] जोडवानो पटो [सं.योक्त्र] जोगिणि वीसरा. योगिनी, संन्यासिनी जोतर अखाका. बळदने धूसरी साथे जोगिणी * षडाबा. [जोगणी, एक चीकणो जोडवानो पटो [सं.योक्त्र] पदार्थ, लाख] [*सं.योगिनी] जोतरड अखाका. प्रेमाका. शंगाम. जोडे, जोगिनी वीसरा. ज्योतिषनो कोई योग] नलाख्या. (घोडा) जोतरे, बांधे, जोडे जोगिनउ वीसरा. योगी (सं.योक्त परथी) जोगियउ नरका. वीसरा. योगी जोतरुं प्रेमाका. धूसरीनी साथे बळदने जोगी जंगम *प्रेमाका. हरताफरता संन्यासी, जोडवानो बे छेडे दोरीवाळो पटो [सं. रखडता साधुबावा जोगीसरा लावल. योगीश्वर, श्रेष्ठ योगी जोति आरारा. प्रकाश (सं.ज्योति) जोग्य आरारा. योग्य, लायक जोतिक, जोतीक दशस्कं(२). मदमो. जोग्ये चित्तसं. योगे, अनुसार __ ज्योतिष (सं.ज्यौतिष-) जोजन प्रेमाका. चार गाउ तिर किलो- जोतिकजाण जुओ योतिकजाण मिटर]नुं अंतर [सं.योजन] जोतीय वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. जोतां, जोजि * विमप्र. [पत्नीए, स्त्रीए (रा.जोजे; दृष्टिपात वडे, [दृष्टिथी, आंखथी] अ.जोज) जोत्य चित्तसं. ज्योति जोड अखाछ. संबंध; जोटो, जोडी; जोडवू जोत्र, जोत्रु उक्तिर. जोतरुं (सं.योत्र, ते, यमक (पद्य)नी रचना करवी ते; योक्त्र) मदमो. *विमप्र. जेवू, [समान] जोत्र्या गुर्जरा. जोतर्या, जोड्या (सं.योत्र, जोडउ उक्तिर. जोटो, वे समान वस्तु (सं. योक्त्र) यौटकम्) दि.जोड] जोनि प्राचीसं. *षडाबा. अवतार, [जीवजोडावाडइ नेमिछं. सरखेसरखी, जोडी, योनि] [बराबरीमां] जोबनमंद प्रेमाका. जोबनवाळी ___ योक्त्र] ____ 2010_03 For Private &Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २०५ जोयइ/ज्योछना जोयइ उक्तिर. षडाबा. जुए (सं.द्योतते) ज्य (एज्य) तेरका. ?, [पूजा] [सं.इज्य] जोयण अभिऊ. आरारा. गुर्जरा. शंगाम. ज्य रूस्तस. ज षडाबा.जोजन, आउ माइल [तेर किलो- ज्यां वीसरा. जेम __ मिटर नुं अंतर (सं.योजन) ज्यथारथ चित्तसं. यथार्थ जोयणजात्र सिंहा(शा). जोवा जेवी बाबत ज्यदा चित्तसं. यदा, ज्यारे [जोवा जेवो तमासो]; जुओ जात्र ज्यदिप नरप. जोके (सं.यद्यपि) जोरावर मदमो. जोरावरी, बळजोरी ज्यदी प्रेमप. जो [सं.यदि] जोरी ऋषिरा. जोरजुलम ज्यम छे त्यम चित्तसं. वस्तुतः, वस्तुस्थितिमां जोरो प्राचीफा. दोर, जुलम (फा.जोर) ज्यमणी रूस्तस. जमणी जोवण तेरका. यौवन ज्यमलो प्रेमप. नजीक; जुओ जमल्य जोवणभरि गुर्जरा. यौवननो भार [यौवननो ज्यवरलो वेताप. सिंहा(शा). जवल्लो, __ जथ्यो ] विरलो, कोईक ज; जुओ जयवरलो जोवतां देवरा. जोतां (सं.द्योत्) यंत्र मदमो. वाजिंत्र (सं.यंत्र) जोवन उक्तिर. गुर्जरा. लावल. वीसरा. ज्याच्यु नलाख्या. जाच्यो, माग्यो, [नी यौवन पासे याचना करी] जोव्वण तेरका. यौवन ज्यान चित्तसं. दशरक(१). विमप्र. नुकसान जोशीता चतुचा. नारी (सं.योषिता) [फा.जान] जोसी आरारा. ब्राह्मण (रा.) ज्याम कादं(शा). पहोर (सं.याम) जोसीयउ वीसरा. जोशी (सं.ज्यौतिषिकः) ज्यामण प्राचीका. प्रेमप. दूध जमाववा जोहरी पंचवा. झवेरी, झवेरातनो वेपारी माटेर्नु मेळवण; जुओ जामण (फा.जौहरी) ज्यारताइ पंचवा. ज्यां सुधी (सं.यद्+वार) जोहार उक्तिर. प्राचीसं. नमस्कार दि.] ज्यांहांकण प्रेमप. ज्यां ज्ञाइ षष्टिप्र. न्याय वडे (सं.न्यायेन) ज्युइ नलाख्या. जुए ज्ञात प्रेमप. ज्ञान ज्युध्य रूस्तस. युद्ध ज्ञानखल चित्तसं. खलज्ञानी ज्यू वीसरा. जेम ज्ञान विक्ररा. [ज्ञानयुक्त] पुस्तक ज्येष्टिका कामा(शा). दशस्कं(१). लाकडी ज्ञानहेत प्रेमाका. *ज्ञान अने हेत, [ज्ञान [सं.यष्टिका] माटे हेत – उमळको] ज्योग चित्तसं. जोग, योग ज्ञापित विक्ररा. नापित, [हजाम] ज्योग्य मदमो. योग्य ज्ञायक आनंस्त. जाणनार [सं.] ज्योछना कादं(शा). ज्योत्स्ना, चांदनी 2010_03 Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्योतिक / झलकण ज्योतिक प्रेमाका. ज्योतिष ज्योवन - नाडा नरप. जुवानीना चाळा खेल (सं. यौवन-नाटक) ज्वलइ उक्तिर. विराप. षडाबा. सळगे, प्रकाशे ज्वाजुलमान दशस्कं ( १ ). जाज्वल्यमान २०६ झकोल, झकोळ * कस्तुवा. प्रेमाका. आनंद, [ आनंदनी ऊभरो, मोज ] झकोलवं, झकोळवुं प्राचीसं. झबोळवुं, नाहवुं, डूबवुं; जुओ झंकोल - झखइ * कृष्णच. गुर्जरा. तेरका नेमिछं. प्राचीसं. लावल. *विराप. प्रलाप करे, बडाट करे, [बोलबोल करे ]; उक्तिर. संताप पामे (द. झंख); जुओ झंख, झंख झsess ऐतिका. पडे, नासे छेल, [रंगरेल ] झकझोळ दशस्कं (१). रेलंछेल; नरका. रेलं झण नरका. झणकार, [झणझण ध्वनि ] झति नलरा. झट, जलदी ( सं . झटिति ) झकर कामा (शा). वातचीत, [चर्चा] ( फा. झबके नरका. चमकी जवाय ए रीते, जिकर) ओचिंता, [झब दईने, झडपथी ]; जुओ * झखत [* अखत] नरप ( द ). * मंत्रतंत्रनो जाणकार, [* मंत्रेला दाणा ] झखोलिय प्राचीसं. [पाणीथी] छलकाया, भराया 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश - झटे अखाछ. झंटवे झड आरारा. झोड, पिशाच झड नरका. लगनी, [झडी, लगातार थ [ते] ; प्राचीसं. झडी, जोरदार वृष्टि [द. झडी] झाबक झमर * प्रेमाका. [कोलाहल, विक्षोभ ]; जुओ झंमर झमरु प्रेमाका. एक वाद्य; जुओ जमर झमाल गुर्जरा. विराप. डंख मारनारुं जीवडुं घिमेल, [राती कीडी] झगर कामा (शा). चंद्रवा वेताप, उज्जड, झरहठी हम्मीप्र. चढाण [* झाडी, जंगल] खेदान मेदान झरेळी प्रेमाका. [तावनी] धुजारी, कंपारी, झगारै जाय ० नरका. प्रकाशित देखाय असर एक झझणण गुर्जरा. झणझण अवाज झझणणी आरारा (व). झिंझिणी प्रकारनी लता के वृक्ष ? (द. झिंझिणी ) झटकइ उक्तिर. झडपथी ( सं . झटिति ) झल प्राचीसं. ज्वाला, [बळवुं ते] झलकण चित्तसं. ज्योति, झबकार, प्रकाश; अखाका. *चळकाट, [* आभास, * झांखी] * प्रकाश, प्रकाश झमाला गुर्जरा. लावल. झाकझमाळ, झरमर नरका. * डोकनुं गळानुं एक आभूषण, [झीणी] झरलाणी अखाछ. [झळळाणी], झळकी, ज्वलित थई ( ? ) झरवाळियुं नरका. लूछ्वानुं कपडुं, [जीर्ण वस्त्र] Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २०७ झलझल-/झाडी झलझल- *देवरा. [क्षुब्ध थq]; प्राचीसं. झंझेडी प्रेमाका. खंखेरी ऊछळवू, [खळभळy, छलकवू] • झंटी, झांटि, झूटा प्रद्युचु. [झटिया], नाना झलझलि *देवरा. [झळझळियां आव्यां] ऊभा वाळ (दे.झंटी) झलझांखसउ उक्तिर. भळभांखळु, मळसकुं झंप, झांप अभिऊ. कूदको (सं.झम्पा) (*सं.चलद्ध्वांक्षम्) झंप- * कादं(धु). कादं(शा). कूद, [ठक झलम-टोप सिंहा(शा). एक प्रकार- शिर- मारवी] स्त्राण झंपापात प्रेमाका. कूदको, [कूदी पडवू ते] झळमळइ वीसरा. प्रकाशे झंपावइ उक्तिर. गुर्जरा. दशस्कं(१). झलमलानंद सिंहा(शा). खूब आनंद नलाख्या. कूदी पडे झलमलीय गुर्जरा. *प्रकाशथी चमकती, झंफ- वीसरा. कूदी पडवू [सं.झम्पा] [*परिपूर्ण, *छवायेली] दि.झल्लमल्ल] झंभा कादं(शा). चतुचा. बगासु (सं.जृम्भ) झलहालिय तेरका. झळहळतुं करेलु झूम रूस्तस. ज्यम, जेम झल्लइ नेमिछं. झीले, सहन करी शके झंमर चंद्रवा.?, [*डोळ, * आडंबर]; जुओ झल्लरि, झल्लरी ऋषिरा. गुर्जरा. नेमिछं. एक झमर वाद्य, झालर (सं.) झाउ दशस्कं(२). झांखप झवार कामा(शा). जुहार, नमस्कार झाक हरिवि. खिन्न, [करमाई - सुकावू झंक नलरा. संताप (दे.झंख); जुओ झखइ ते] [रा.झाकणौ] झंकोल- प्राचीसं. झबोळावू, डूबवू, जुओ झाकइ उक्तिर. झगमगे, प्रकाश करे झकोलवू झाकझमाली चारफा. देदीप्यमान झंखइ * वीसरा. हम्मीप्र. बोले, [बोलबोल झाकमझोळ प्रेमाका. रेलंछेल; अखाछ. करे, बकवाद करे] दि.]; जुओ झखइ नरका. प्रेमाका. लहेर, आनंद झंखजाळ प्रेमाका. झाडी झाकळ उतारीश प्रेमाका. सीधा करीश, झंखर शृंगाम. झांखरा जेवू दि.] *अभिमान उतारीश, [खोखरा करीश, झंखिउ गुर्जरा. झांखुं थयु खबर लई नाखीश] झंघडीआं मदमो. जंघडिया, चोघडियांवाळा, झालो ऐतिका. झांखी, आभास, ढोली [प्रकाशित थर्बु ते]; जुओ झांख झंजीर प्राचीफा. बेडी (फा.जंजीर) झागड गुर्जरा. ध्वनिसूचक शब्द झंझ तेरका. "प्राचीसं. व्याकुळ ? (दे.झंझा= झाटक गुर्जरा. प्रहार, झाटको ___ व्याकुळता) झाडाया (झाडायाला) ऐतिका. छोडाव्या झंझ उपबा. कजियो (द.) झाडी नरका. झपटाणी, झपटमां आवी, 2010_03 Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झाण/ झांटा [झपटमां लीधी ] झाण ऐतिका. जिनरा. तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. ध्यान (प्रा.) झातकार अखेगी. कादं (शा). चित्तसं. दशस्कं (9). प्रेमाका. झबकार, प्रकाश, प्रकाशमान, झळांहळां झाबउ जिनरा. पहेरण, झब्बो [फा. जामः ] झाबक विमप्र. जलदी, [ एकाएक ] [ रा . ]; जुओ झबके २०८ झाबल विमप्र. खाबडुं, खाबोचियुं झामरझोळे अखाछ. आडंबरथी ?, [ डोळ अने चंचळता, अस्थिरता, डामाडोल वृत्तिथी] झामर माटि चारफा. * झामरी अने माठी आभूषण - विशेषो, [* माथे झामर ए आभूषण] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश झालइ नेमिछं. (विरहनी ) ज्वाळा जेवी, [ज्वाळा तरीके ] झालइ आरारा. हाथमां ले, उपाडी ले (दे. झिल - ) झार मदमो. जार, [व्यभिचारी] झारिउ वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). रेड्यु, छांट्युं झारी मदमो. जारी, [व्यभिचार ] झाल अभिऊ. नरका. प्राचीफा. कानमां पहेरवानुं एक आभूषण; जुओ झालि झाल ऋषिरा. अंतरनी बळतरा; गुर्जरा. झाळ; (सं. ज्वाला) क्रोध; देवरा. प्राचीसं. लावल. झाळ (सं. ज्वाला) 2010_03 झालर, झालरि उक्तिर. वाद्य, गोळ सपाट घंट झालरी षडाबा. एक वाद्य, [गोळ सपाट घंट] (सं.झल्लरी) स्वीकारो] झाल्य अभिऊ. जुओ झाला झाळ्युं प्रेमाका. झार्यु, सांध्यं झामल प्राचीसं. निस्तेज [दे. ] झासक दशस्कं ( 9). पुष्कळ; जुओ जासक झामलउ उक्तिर. निस्तेज दृष्टिवाळु (सं. झासा प्रेमाका. काकलूदी, आजीजी, ध्यामलम्) [झावां, व्यर्थ प्रयत्नो] झायइ ऐतिका. गुर्जरा. प्राचीसं. विचार करे, ध्यान करे (सं. ध्यायति) झाला, झाल्य अभिऊ. [क्रोधनी] ज्वाळा; जुओ अनि-झाला "ऐतिका. एक (सं. झल्लरिका ) झालि चारफा. नेमिछं. लावल. विमप्र. हरिवि. काननुं आभूषण; जुओ झाल झालिहि ऐतिका. संभाळो, [ ग्रहण करो, झांउ प्रेमाका. झांखप झांउआ प्रेमप. झांखरां झांख अखाछ. * झांखी, [दृष्टि नजर ]; जुओ झाखो झांझ नरका. प्रेमाका. एक प्रकारनुं वाद्य, कांसी जोड झांझ * अखाका. [क्लेश, व्याकुळता ] [दे. झंझा] झांझवां प्रेमाका. आंखमां पाणी आववाथी पडती झांखप झांटा ऋषिरा. डाभनी अणीओ, [बारीक Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सळीओ] [दे. झंटी] पडकार झांप उक्तिर. गुर्जरा. विराप. कूदको (सं. झांटि उषाह. झटियां, वाळ (दे. झंटी); झुणा, झुना, झूना "मोसाच. हरिख्या. एक जुओ झंटी प्रकारनी साडी, [एक वस्त्रप्रकार ]; वीसरा. मलमल, [ बारीक कापड ] झुणि ऐतिका. ध्वनि झम्पा); जुओ झंप झांप "गुर्जरा. "विराप. [आच्छादित करे, झुणि प्राचीफा. अवाज करे, [बोले] (सं. आवृत्त करे] [. झंप] ध्वनि परथी ) झांपडो हरिख्या. चंडाळ, भंगियो २०९ गुणित नरका. झणझण एवो अवाज करतां [सं. ध्वनित] झुंझारा विक्ररा. योद्धा; जुओ झूझार झिज-, झिज्झ- तेरका. प्राचीसं. क्षीण थवुं झुंबख ऋषिरा. झूमखो (सं. युग्मक, प्रा. जुम्मय) [दे. झुंबक ] झांपे * प्रेमाका. [ढांके, आवरी ले, ग्रसे] झिगमग वीसरा. झगमगवुं झिझिउ तेरका. क्षीण [द. झिज्झ] झिझिम गुर्जरा. ध्वनिसूचक शब्द झिर प्रबोप्र. झरे [सं. क्षरति, झरति ] झिरिमिरि तेरका. प्राचीसं. झरमर झीणउ उक्तिर. दुर्बल, कृश (सं. क्षीणम्) झीलण नेमिछं. षडाबा. स्नान, नहावण [. झिल्ल] झीलवुं अखाका. ऋषिरा. ऐतिका. कादं (शा). नरका. नेमिछं. प्रेमाका. मदमो. ०वसंवि (ब्रा). हरिवि. नहावुं (दे. झिल्ल) झींझ आरारा (व). एक वनस्पति, झींझी, आसोंदरो झांटि / झूमणुं भराई झटाय प्रेमाका. भराय, [वळगे ] झुझ, झूझ अभिऊ. उपबा. गुर्जरा. प्राचीसं. लावल. विक्रच. विराप. षडाबा. युद्ध (सं. युध्य- परथी ) झुझकाखं दशस्कं (१). प्रेमाका. युद्ध माटे 2010_03 झूझारि प्रोप्र. योद्धो झींटी नरका. प्रेमाका. वळगी, वींटळाई, झूझाला * विमप्र. [शूरवीर, बहादुर ] झूझि कादं (शा.) कंपे ( सं . युध्यते) झूना जुओ झुणा झुंबवुं नरका. झूम, झूकवुं (दि.) झूकड * प्रेमाका. [मेदनी, समुदाय] [फा. झूक ] झूज्झ नलरा. युद्ध (सं. युध्य- परथी ) झूझ जुओ झुझ झूझणि विमप्र. युद्ध करवा माटे झूझार गुर्जरा. नलरा. नैमिछं. प्रेमाका. रूस्तस. विमप्र. विराप. झूझनार, युद्ध करनार योद्धो (सं. युद्धकार); जुओ झुंझार झूबकडे आरारा. झूमखे [ दे. झुंबक ] झूबकु नलरा. लूमखं, झूमखं, [द. झुंबक ] झूमणुं दशस्कं ( 9). नरका. प्राचीफा. प्रेमाका. लावल. काननुं एक झूलतुं घरेणुं Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झूरइ / टलीउ झूरइ उपबा. ऋषिरा. पस्तावो करे, खेद करे (दे.) * झूलरइ [झूलर ] जिनरा. झुंड, समूह झुंटइ गुर्जरा. एकाएक आक्रमण करे [आंचको मारी पकडे]; नरका. पडावे, आंचके झूटा जुओझंटी यूंना जुओ झुणा झुंबई गुर्जरा. लटके, लबडे, संघर्ष करे, सकंजामां ले, [ माथे पडे, लपटमां ले] झुंबखां लावल. झूमखां, समूह [दे. झुंबक ] झुंसर, झुंसरा उपबा. प्रेमाका. झुंसरी, धूंसरी झेण प्रेमाका. झीणी धार, [झरमर] झेर कस्तुवा. वेताप. झेवर, घरेणुं झेली दशस्कं ( २ ). हेली ?, [तरंग, धारा ] टळ अखाछ. टके (नाश पामे) एवी [ नश्वर ] [द. झिल्ली ] वस्तु, संसार झोट वेताप. चोट, झपट झोटडी विमप्र. * [जुवान] भेंश झोटावियु अभिऊ. झुंटाव्यो झोटी (मोटीझोटी) * विमप्र तुच्छ] [हिं.] झोडवायो प्रेमाका भूतप्रेतनी अडफेटमां आवेलो, वळगाड पामेलो २१० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मश्करीनो प्रसंग ], तमासो टग टग जोती प्रेमाका. आश्चर्यथी मूढ बनीने जोई रहेती, [टगरटगर जोती ] टचकउ लावल. टचको, [टचाको, टपाको ] [द.च्चक] झोल विक्ररा. खीण झोल ऐतिका. झोळी, [थेलो] झोटे अखाका. नरका. प्रेमाका. झंटवे, पडावी ले 2010_03 टकोल चारफा. विमप्र. मर्मोक्ति, मर्मप्रहार, टोळ, विनोद (सर. टकोर) अंबरा. [टोळ, चांगुली कृष्णबा. विमप्र. टचली आंगळी car विमप्र. नगारांनो अवाज कई लावल. टपके टबामात्र * विक्ररा. [टिप्पण - नोंध रूपे मात्र ] टमक उषाह. टमको, [टम एवो अवाज ] टमटमी प्रेमाका. आतुर थई टमटमी रह्युं जुओ रह्युं टमटमी टमंक उषाह. टमको, [टम एवो अवाज ] [मामूली, टलक्कड़ * गुर्जरा. [कंपे, डगमगे] टलके, टळके कांदं (धु). नरका. प्रेमाका. चलित थाय, [मोहित थाय ] ; कादं (शा). * आनंद पाने टलटलइ गुर्जरा. प्राचीसं. *विराप. धूजे, [डगेमगे] टलती विमप्र. विनानी, [[सिवाय ]; जुओ टाली टलबलीक नेमिछं. *टळवळ्या, [क्षुभित थया, वेरविखेर थया] टलक्स नलरा. टळवळवुं (दे.टलवल) टलहटी उषाह. तळेटी [द. तलहट्टिया ] टलिअ लावल. टाळी, दूर करी टलीउ नेमिछं. टळ्यो, [आघो रह्यो ] Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश · २११ . टसर/टीसी टसर उक्तिर. वणकरनो कांठलो (सं.तसर) टाली, टाळी उक्तिर. छोडीने, विना; नरका. टहकय तेरका. टहुको (दे.*टहक्क) प्रेमाका. सिवाय, विना; लावल. पसंद टंक प्रेमाका. वीसरा. एक सिक्को (सं.) करीने, [चूंटीने]; जुओ टलती प्रेमाका. टांक, कलमनी अणी टाहाहुं प्रेमाका. टाढुं, ठंडु टंकउ अखाका. उक्तिर. कामा(त्रि). टांक अखाका. अखाछ. उक्तिर. चतुचा. कामा(शा). नलरा. पंचवा. टंको, एक नरका. नरप(द). नवटांकनुं वजनियु, · सिक्को - रूपियाना प्रकारनो (सं.टंक) (ए उपरथी) थोडंक, तलमात्र, सहेज टंकाउलि प्राचीफा. एक प्रकारनो हार (सं. पण (सं.टंकः) टंका+आवलि) टांकुलउ उक्तिर. छीणी, टांक' (सं.टंकः) टंकिय तेरका. टांकेलं, चिह्नित करेलुं (सं. टांडी नलरा. शोभायुक्त, सौभाग्ययुक्त (सं. टंकित) तुण्डकम् परथी ?) टंपावइ गुर्जरा. विराप. कुदावे, [दोडावे] टांडो प्रेमाका. वणझारानी पोठ, [पोठनो (प्रा.टप्पइ) मुकाम (हि.टांडा) टंबक प्राचीसं. वाद्यविशेष (द.तंबुक्क) टिचांगली प्राचीफा. टचली आंगळी, सौथी टाक नलरा. टक्क देश, सिन्धु अने बियास नानी आंगळी नदीओ वच्चेनो प्रदेश (सं.टक्क) दिटुडी प्रेमाका. टिटोडी [सं.टिट्टिभ] टाकर *अखाछ. [टकरो] [रा.टाकरौ] टिंट प्राचीसं. धुतस्थान दि.] टाकर विक्रच. शीलक. टपली, [प्रहार] टिंटउ प्राचीसं. टेंटुं, निःसत्त्व, [निर्माल्य] (दे.टक्कर) टीके चतुचा. बिन्दी, चांदलो ? [*(साज) टाट प्रेमाका. शण- जाडु कपडं सज] टाटर दशस्कं(१). प्रद्युचु. प्रेमाका. गरदन- टीको काढी प्रेमाका. तिलक करी रक्षण करतो धातुनो टोप टीप * षडाबा. [चूनानी पूरणी, थाबडी, टाटुयां प्रेमाका. टायडां, [नाना हलकी जात- टीपणी]; वीसरा. दबावq ते, [भींस, ना घोडा] आलिंगन] टार उक्तिर. हलकी जातनो घोडो, टायडो टीपारे पंचवा. जीवता साप पूरी राखवा घोडो (सं.) दि.] वपरातो वांसनो करंडियो टालउ नलरा. टाळो, [जुदाई राखवी ते] टीबी जिनरा. टीकी, [टबकुं टालक आनंस्त. टाळनारो टीम दशस्कं(१). टीबो टालणहार उपबा. टाळनार टीला * षडाबा. [कपाळे टीलां] टाला चित्तसं. भेद, जुदाई, वाडा टीसी जिनरा. नाकनी दांडी 2010_03 Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टींटोहडी/ठरावीक २१२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश टीटोहडी उक्तिर. टिटोडी (सं.टिट्टिभः) टोल गुर्जरा. नलरा. मकान, घर टींडूरी आरारा(व). टीडोरानो वेलो (सं. टोल चित्तसं. टोळु, समुदाय तुण्डीकेरी) टोलइ थाय आरारा. टोळे वळे छे टुक मदमो. टुकडा टोलां प्रेमप. मकान, घर टूटी प्रेमप. तूटेलां, वांकां अंगवाळी कुब्जा टोहवू सिंहा(म). टोg, बूम पाडीने खेतरढूंकडं दशस्क(१). ट्रॅकुं मांथी पक्षी उडाडवां ट्रॅटि कृष्णच. टांटियेथी टोहण तेरका. प्राचीसं. टोयो करवो, हाकलो ढूंटुउ प्राचीसं. ठूठो दि.टुंट] करी पक्षी उडाडवा (द.टोह+अण) ढूंपावी प्रेमाका. चूंटावी, खेंचावी टोहिआ ऐतिरा. चोकीदार, रक्षक टेक- *वीसरा. टिकवq, टेको लेवो] टोहो दशस्क(१). टोयो, खेतरनां पंखी टेक अखाछ. कोई वस्तुने पकडी बेसवं उडाडनारों ते, जीद, अभिनिवेश, [नियम] ट्ठिय जुओ भवणि ट्ठिय टेक मेळीने *प्रेमाका. प्रतिज्ञा - निश्चय ट्ठियउ ऐतिका. स्थित, रह्यो करीने] टेढा प्रेमाका. वांका ठउडवा षष्टिप्र. अपमान करवा माटे टेरो चतुचा. अंतरपट ठकरालो मदमो. ठाकोर, [गामधणी] टेव आरारा. अभिलाषा; गुर्जरा. *आदत, ठकुराई उपबा. ठाकोरपणुं, [सत्ता ने [*अभिलाषा वैभवनी मोटाई] टेहेलियो प्रेमाका. टहेलियो, सुभाषित बोली ठकुराला जिनरा. मोटाईना रोफवाळा भिक्षा मागनार, [वारंवार बोली फरनार] ठग अखाका. अखाछ. ठगाई, छेतरपिंडी टोटम आरारा(व). महूडो (दे.टोलंब)? ठणक नरका. रणको, अवाज टोडर अभिऊ. उषाह. "प्रेमाका. लावल. ठणहारी विमप्र. पुस्तक के बीजो पदार्थ, शृंगामं. [डमरो], (डमरानी) [के अन्य] जेमां गुरुनो संकेत करवामां आव्यो मंजरी, कलगी, छोगुं (दे.तोडर) होय [सं.स्थापनाचार्य]; जुओ ठवणारी टोडे लावल. बारणाना टोडला पासे उपकावे नरका. ठपको आपे टोडो नरप(द). [तोडो], पगर्नु घरेणुं ठबकु उषाह. ठपको, दोष, कलंक]; टोप नलरा. विक्ररा. युद्धमा पहेरवान शिर- *विमप्र. [दोष] [रा.] स्त्राण (फा.) ठमकाळी नरका. ठमको - लटको करती टोयो प्रेमाका. पाकनुं रक्षण करवा खेतरमा ठमठमती नरका. भपकावाळी पंखी उडाडनारो ठरावीक चंद्रवा. ठरावेल, निश्चित, चोक्कस] ___ 2010_03 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २१३ व्व वालझार ठवइ अखाछ. आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. ठाकुर उपबा. गुर्जरा. नलरा. मालिक, जिनरा. तेरका. देवरा. नलरा. प्राचीसं. अधिपति, राजा वीसरा. मालिक, नाथ; *लावल. विमप्र. वीसरा. शीलक. उषाह. *महाराजा, [गामधणी] (सं. शृंगामं. षडाबा. स्थूलिफा. स्थापे, मूके, ठक्कुर) राखे, रहे (सं.स्थापयति, *स्थपयति) ठागो कामात्रि). कामा(शा). नरका. ठवणादिक ऐतिका. स्थापनादि चार निक्षेप कपट, ठगाई [प्रतिमा आदिमां देवनुं आरोपण] ठाठ नरका. शोभा, भपको; *अखाका. ठवणारी उक्तिर. स्थापनाचार्य,जेमांआचार्य- अखाछ. साज, [रचना, प्रपंच); चित्तसं. नो संकेत करवामां आव्यो होय एवी वैभव, विस्तार, साज वस्तु [सं.स्थापनाचार्य]; जुओ ठणहारी ठाठमी वेताप. ठाठमय, ठाठवाळी ठवणी उक्तिर. पुस्तक मूकवानी नानी घोडी ठाण आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं.स्थान, (सं.स्थापनिका) ठेकाj ठवणुछव (पय ठवणुछव) ऐतिका. पद- ठाणउ उक्तिर. स्थानक स्थापनोत्सव ठाणा आरारा. ठाणांग [स्थानांग] नामे ठवल प्राचीसं. जुगारमा होडमां मूकवू ते जैन ग्रंथ ठविउ ऐतिका. स्थापित कर्यु ठाणांग उक्तिर. स्थानाङ्गनामे जैन शास्त्रग्रंथ ठसकउ वीसरा. ठमको, लटको, नखरुं ठाम आतूं जुओ डालूं ठठेर जुओ ठेर ठाम फेडवो प्रेमाका. समूळगो नाश करवो; ठहराणे अखाका. स्थिर थये ___ जुओ ठाय फेडी ठंठार वीसरा. ठंडी ठाय अभिऊ. ऋषिरा. नेमिछं. वसवि(ब्रा). ठंठोळी प्रेमाका. मश्करी विक्रच. विमप्र. स्थान, ठेकाj, जम्या ठंभीजइ उक्तिर. रोकाय, स्थिर थाय (सं. ठाय फेडी विमप्र. मारी नाखी; जुओ ठाम स्तभ्यते) फेडवो ठाइ, ठाई आरारा. उक्तिर. तेरका. नेमिछं. ठार चतुचा. देवरा. नलाख्या. प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ना.) विमप्र. ठेकाj, जम्या ("सं.स्तार); चित्तसं. शृंगामं. ठाम, स्थान, ठेकाणं; स्थाने, स्थान, स्थिति, अवकाश ठेकाणे (सं.स्थाम) ठारण प्रेमाका. शांति, दिलासो ठाइ देवरा. स्थापी, [रची, -मां स्थिर थई ठारणपाट प्रेमप. विसामो ठाउ कृष्णच. गुर्जरा. प्रद्युचु. प्राचीसं. रूपच. तारणहार ऋषिरा. परनार, [शांति पमाडविक्रच. स्थान, ठाम, जग्या (सं.स्थाम) नार] काण (स.त्याम) Jail HEZ. 9Xon International 2010_03 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठारवण/डसण २१४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . ठारवण शृंगाम. [ठार, ते; ठारनार], वसवायो] [हिं.ठठेरा] आश्वासनस्थान ठेराव अखाछ. निश्चय ठार्य बेसशे चित्तसं. ठेकाणे आवशे, ठेर अखाछ. नक्की थq समाधान थशे ठेरावq अखाछ. निश्चय करवो, नक्की करवू ठाव प्राचीसं. स्थान, ठाम ठेलइ आनंस्त. हीणा करे, [हीणा पाडे] ठाव- नलरा. मुकाम करवो (सं.स्थापयति) ठेस्या दश्स्क(२). प्रेमाका. पगनी ठेस - ठावउ *जिनरा. [मुख्य, अग्रणी] [रा.] ठोकर मारी, ठेल्या ठाह आरारा. नलरा. नेमिछं. स्थान, ठाम ठेहेराव्या अखाका. चित्तसं. ठराव्या, नक्की (सं.स्थामन्) कर्या ठाहउ षडाबा. नीचे बेठेलो कचरो, रगडो ठोठ प्रेमाका. थप्पड, लपडाक ठाहारि "ऋषिरा. [स्थळे] ठोठि हरिवि. ?, [आग्रह] ठाहि अभिऊ. उषाह. विमप्र. ठेकाणुं, स्थान ठोर अखाका. नरका. मदमो. सिंहा(शा). दि.थाह) स्थान, जग्या, ठेकाj ठां, ठाइ अभिऊ. वीसरा. स्थान, स्थाने, *ठो [ढो] *विमप्र. [मांगलिक प्रसंगे त्यां (सं.स्थामन्) धरवामां आवती वस्तु, भेट] [हिं.] ठाणई ऋषिरा. स्थाने, ठेकाणे ठांमेली (उठां मेली) * नेमिछ. [दृष्टांतो डउंब विराप. चांडाल (दे.डुंब) जोडीने] डकावइ वीसरा. कुदावे [रा.] ठांह वीसरा. स्थान (सं.स्थामन्) डगर * नरका. [मार्ग, रस्तो ठिय तेरका. थयु (सं.स्थित) डगां प्रेमाका. डगलां ठीठोळी प्रेमाका. मश्करी डटियो प्रेमाका. दाट्यो ढूंबर नरका. जार- भरडकुं डबोल- प्राचीसं. झबकोळवू ठेऊइ विमप्र. ठेबेथी डमकीअल विमप्र. डमक्या, डमडम अवाज ठेकबुं प्रद्युचु. लाठीनो आधार लेवो, थयो; जुओ ढमकीअल [लाकडीनो टेको लेवो] [हिं.ठेकना] डमडोलइ ऐतिका. चंचल बने ठेठ अखाछ. अंत, मुकाम, [अंतिम मंजिल] डमर ऐतिका. उपद्रव [सं.]; जुओ डंबर ठेठु सिंहा(शा). चोरनो मळतियो, वाटपाडु डरपाणी ऋषिरा. डरी गई ठेबलं उषाह. चीबु ___डली षष्टिप्र. लचको (द.) *ठेर [ ठठेरमदमो. (=ठार ?) सुतार, उसकां अखाका. डूसकां [धातुना वासण बनावनार कारीगर, डसण उषाह. प्राचीफा. दांत (सं.दशन) 2010_03 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २१५ इसण-डंक/डाहापण डसण-डंक नरका. दांतना डंख (सं.दशन- डंस आरारा. ऋषिरा. दंश दंश) दि.डंक] डाक प्रेमाका. एक प्रकारचें चर्मवाद्य, डाकखें डसिवा उपबा. डसवा (सं.दश्) डाकडमाल *आरारा. ऐतिका. विमप्र. डहइकई हरिवि. डहेके, डचकां खाय धमाल, आडंबर, [ठाठमाठ, तमासा] डहर उक्तिर. पाणी भराई रहेतुं होय एवी डाकर उक्तिर. गर्जना, जोशीलो अवाज भूमि, खाबोचियुं (सं.दहरः) (सं.डात्कार) डहरउ उक्तिर. बच्चु (सं.दहरः) डाढि कादं(शा). डाढमां, [दाढमां] (सं.दंष्ट्रा) डहेकाय अखाका. छेतराय, भ्रममां पड़े; डाभ आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. दर्भ, एक __ जुओ डेहेकाणा प्रकारचें घास डहोलाई प्रेमाका. खूब चोळाई डाभडो मदमो. दाबडो डंक नरका. मदमो. वीसरा. षडाबा. डंख डामा मदमो. रूस्तस. डाबा डामर गुर्जरा. शोभा, ठाठमाठ (सं.डम्बर); डंक प्रेमाका. डंका जुओ डंबर डंकणु अभिऊ. डंख (सं.दश् परथी) डारइ गुर्जरा. डरावे, [पाछा पाडे]; विमप्र. दि.डंक] डरावे डंके अखाका. अभिऊ. डंखे, दंश दे। डारइ *गुर्जरा. [चीरे] [हिं.दारना] डंगुरउ प्राचीसं. डंगोरो, [ढंढेरो] डाला नरका. पहोळा मोढाना टोपला हुंड उषाह. मेरुदंड (सं.दंड) डालि शृंगामं. सूंडली, [टोपली] डंड्डु शृंगामं. दंड, शिक्षा डाव देवरा. दाभ, डाभ (सं.दभ) डंडवृत्त सिंहा(शा). दंडवत् (प्रणाम) डावउ उक्तिर. जिनरा. लावल. विक्ररा. डंडव्रत मदमो. वेताप. दंडवत् (प्रणाम) विमप्र. वीसरा. डाबो [दे.] टुडेरो चंद्रवा. वेताप. ढंढेरो डावडी आरारा. वीसरा. दीकरी, कन्या (रा.) डंडो आरारा. दंड (भरवानो - करियावर डाविय गुर्जरा-टि. डाबे रूपे) डाहउ उपबा. गुर्जरा. वाग्भबा. विमप्र. डंभ ० उषाह. बाळक (सं.डिम्भ) षष्टिप्र. डाह्यो (सं.दक्ष/दक्षिण) डंबर, डंमर अभिऊ. धूळनी आंधी (सं.); डाहरो मदमो. सिंहा(शा). वधारे डाह्यो चंद्रवा. आडंबर, [फटाटोप, विस्तार]; डाहा गुर्जरा. डाह्या शृंगाम.आडंबर, बाह्य भपको, दिखाव]; डाहाकण नंदब. डाकण जुओ डमर, डामर डाहापण, डाहापणपणुं नलरा. डहापण (सं. डंश दशस्कं(१). मननो डंख [सं.दंश] दक्षत्वन) 2010_03 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डाहिम / डोडी डाहिम आरारा. लावल. विमप्र. डहापण डाही ऋषिरा. डाबी तरफ डाहीयार विक्ररा. षष्टिप्र. डाह्या (सं. दक्ष + कार) डाहु नलरा. डाह्यो, समजु (सं. दक्ष ) डांग आरारा (व). डाग (द. डाग ) भाजी ? डांगरुं रूपच. ढंढेरो, [दांडी] डांण ऐतिका. तेज, [गर्व, मान] siभइ उक्तिर. ऋषिरा. डाम दे, (सं. दघ्नाति) २१६ एक [रा. ] दझाडे 2010_03 डांश, डांस उक्तिर. षडाबा. मच्छर (सं. दंशः) डांगरडां आरारा (व). डांगर डिगइ आरारा. जिनरा. डगे, विचलित थाय डिंब प्राचीसं. विप्लव, [तोफान] डीबु शृंगामं इमो; जुओ डींबउ डीलरखी आरारा. शरीरने साचवनारी डीलि षष्टिप्र. जात वडे (द. डिल्ल) डींगल वेताप. गपाटो, डिंग डींबउ उपबा. डूमो; जुओ डीबु डुडी कामा (त्रि). ०कामा (शा). दांडी, ढंढेरो; जुओ डुंडी फेरवी, डोडी डुढ विमप्र दोढ [ सं . द्वयध] डुढ प्राचीका. मजबूत (सं. दृढ ) डुल्लए लावल. डोले मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश डुहुलउं * उपबा. [डोळु, मेलुं] डुंडी फेरवी मदमो. दांडी पिटावी; जुओ डुडी डुहलपणउं * उपबा. [लालसायुक्त होवुं ते, रागवशता] [सं. दोहद, प्रा. डोहल] डुलूं नलरा. कचरावाकुं, डहोकुं (प्रा. डोह) डेहरे मदमो. दहेरे [सं. देवगृह ] डेहली उक्तिर. डेली (सं. देहली) siलवड ( दादरsi लवs) प्राचीफा. देडकां डेहेकाणा अखाछ. ठगायेला अवाज करे डुंब प्रचु. प्राचीसं. चांडाल (द.) डुंबाल * लावल. [चांडाल, तुच्छ व्यक्ति ] डूंब अंबरा. गुर्जरा. अंत्यज डेरो नरका. तोफानी ढोरने गळे बांधवामां आवतुं लाकडुं पडाव, [ पडाव माटेनी बिस्तर वगेरे सामग्री] डोइलउ उक्तिर. डोयो, लाकडानी कडछी [द. डोअ ] डोकर, डोकरउ उक्तिर. गुर्जरा. जिनरा. वृद्ध, घरडो माणस [द. डोक्कर ] डोकरपणि ऐतिका. वृद्धावस्थामां डोकरि, डोकरी गुर्जरा. पंचवा. प्राचीसं. विक्ररा. षडाबा. वृद्धा, घरडी स्त्री (द. डोक्करी) डोझा प्रेमाका. बखोल डोट प्रेमाका. दोट, दोड डोटी आरारा. एक प्रकारनुं जाडुं वस्त्र; जुओ दोटी डोड नरका. गुमान डोडी नलरा. एक अलंकार, हाथे पहेरवानुं मादळियु डोडी उक्तिर. नानुं डूंडुं; एक वनस्पति (सं. दोडी) डोडी कामा (त्रि). दांडी, ढंढेरो; जुओ डुडी Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २१७ डोलाय/ढीकडी डोलायउ जिनरा. डोलाव्यो ढंढार *शृंगाम. [हाइपिंजर] [रा.ढंढेर] डोलिय *गुर्जरा. [डोळी, पालखी] (सं. ढंढोलइ उक्तिर. खोळे, शोधे दोलिका) ढंढोळी नरका-२. शोधी, [तपासी] डोळिया अखाका. बळद ढाउ गुर्जरा. तीव्र इच्छा, आग्रह (दे.ढाव) डोली नलरा. झूलती झोळी, मांदा के मक गुर्जरा. विराप. ढोलक (सं.ढक्का); अशक्तने उपाडीने लई जवानी मांची जुओ ढक्क (सं.दोला) डाकबूक चारफा. डंकानिशान (सं.ढक्का+ डोहइ अभिऊ. उषाह. मिश्रण करे, डहोळे, दे.बुक्क); जुओ ढक्कबुक्क [हलावे]; प्राचीसं. डहोळे, [क्षुब्ध करे]; अडइ (पउढाडइ) *गुर्जरा. [पोढाडे, सुवाडे] ऐतिका. "ढोळे, [डहोळे] अढसी *विक्ररा. [आनंद करशे, रडशे] डोहलउ उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. जिनरा. [हिं.ढाडना; रा.डाडणौ] दोहद, गर्भवतीनी इच्छा; उषाह. इच्छा द्वापला प्रेमप. वहालनी चेष्टाओ मळ अखाछ. ढोळाव, रीत, [मार्ग] ढक गुर्जरा. ढोल (सं.ढक्का); जुओ ढाक बालवीय नाव ढकाबुक्क ऐतिका. वाद्यविशेषो; जुओ ढालं (ठाम ढालू) *प्रबोप्र. [ठेकाणे पाडु, ढाकबूक नाश करुं]; जुओ ठाम फेडवो ढक्कारविण ऐतिका. ढोलना अवाजथी ढांढणि आरारा(व). एक घास; कौंचानो ठणकउ अंबरा. ऊंघ- झोकुं वेलो (द.ढंढणी) ढणहण ऐतिका. प्राचीसं. झरझर, ध्वनि- ढांढी जिनरा. भमती, घूमती, [भ्रमित थती] सूचक शब्द, [धसाराबंध] दि.ढंढल्लिअ] ढमकीअल विमप्र. [ढमक्या], ढम ढम ठिग उपबा. षष्टिप्र. ढग, ढगलो (द.) अवाज थयो; जुओ डमकीअल ढिगा "कृष्णच. [*पासे, "रस्ताना किनारा ढल उक्तिर. लाकडं (सं.दलिः) . [रा.; हिं.] टळकणो नरका. ढळतो, नमतो, [नमन- डिंक, ढींक ऋषिरा. शंगाम. षडाबा. ढेंक शील] बगलो, एक पक्षी (दे.ढंक) [सं.ढेंक] ठळकतुं नरका. [ढळतुं], नम्र, [रीझतुं] डीक विमप्र. हथेळीथी वागतुं वाद्य, [थापो, ब्लावइ लावल. ढळावे, ढोळे मुष्टिप्रहार - एक वाधरीति] ढळियो नरका. प्रेमाका. रीझ्यो ठीक (रांकढीक) ऐतिका. गरीब[गुरबां] उसकडं प्रेमाका. ढसडवानी - घसडवानी ढीकडी षडाबा. ?, [मोढेथी अवाज करी क्रिया, [लंबावq ते] कोईने बोलावq ते] 2010_03 Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठीकली / तउ ढीकली हम्मीप्र. पथ्थर फेंकवानुं यंत्र ढीठ कादं (शा). धीट, निर्लज्ज (सं. धृष्ट) ढीम * नरका. [चोसलां ] ढोल लावल. *ढोळाव, [ ओप] ढीमा प्रेमाका. लोहीनुं जामी जवुं अने एथी ढोली आरारा. नीचे नाखी, फेंकी आवता सोजा, [ढीमचां] ढोळे नरका. प्रेमाका. गबडावे ढोवुं जुओ ठो ढोस उषाह. [धोंस], हुमलो ढोहि उवाह. धूए ढील सनाह विमप्र. ढीलुं बख्तर डीलिणि प्राचीफा. दिल्हीनी रहेवासी स्त्री ढीली विमप्र. दिल्ही ढींक जुओ ढिंक ढींकूओ विक्ररा. ढींकवो, खेतीने पाणी पावानी विशेष व्यवस्थानुं साधन, [ कूवा मांथी पाणी काढवानी व्यवस्था] ढींबडुं आरारा (व). ढींबडो – एक भाजी ढुकडी प्राचीसं. ढूंकवं ते, नजीक आववुं ते २१८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ढोकइ उक्तिर. धरे, पासे मूके (सं. ढौकयति) ढोय- प्राचीसं. अर्पण करे [सं. ढौक्] i ठुलइ, कुळइ आरारा. वीसरा. ढळे, ढोळाय दूकइ जिनरा. नलरा. प्राचीसं. षडाबा. नजीक जाय, पहोंचे 2010_03 ण गुर्जरा. न, नहीं णटोल आरारा. निटोल, उद्दंड, घमंडी, बेशरम (रा.); जुओ निटोल णत्थदंड प्राचीसं. अनर्थदण्ड, [निष्कारण हिंसा] णाह गुर्जरा. नाथ, मालिक त आरारा. तेरका. तो (सं. ततः); आरारा. तेथी (सं. ततः ) क्या प्रेमाका. नजीक त पंचवा. त्यां ढूंकडाथा शृंगामं. ढूंकडां - नजीक होवा त- तेरका. ते (सं. तद् ) छतां (सं.ढौक) ढुंढवड * षडाबा. [खोळीने, बीजेथी मागी तइ, तई आरारा. तारे; तुं; उक्तिर. तेरका. नैमिछं. लावल. वीसरा. तें, ताराथी (सं.त्वया) लावीने] ढेइ आरारा (व). हिंग (रा. ढे) ? ढेकी, तउ, तऊ षष्टिप्र. -थी, मांथी; उपबा. वरखली, कृष्णतमाल ? ढेग प्रेमाका. ढग, ढगला तोपण; उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका . नेमिछं. वीसरा. षडाबा. तो, तेथी (सं. ततः) डेढि * विमप्र. [ढेड जेवी, हलकी स्त्री ] ढोइ आरारा. प्राचीफा. शृंगामं. लई जाय, धरे, भेट धरे, अर्पण करे (सं. ढौक) ढोइली षडाबा. लोटी तउ तेरका. तुं (अप तुहुँ) तउतारुं (सं.तव) तर उक्तिर. ते (सं.तत्) Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तउणी गुर्जरा. कडाई, लोढी (सं. तपनी) [द.तवणी] तह उपबा. तोपण [ सं . ततः + हि ] त उपबा. गुर्जरा. तेरका षडाबा. तुं (सं. त्वम्, अप. तुहुं) तऊ जुओ त २१९ तको जुओ क तक ऐतिका. तर्क [विद्या] तक्खण, तक्खणि तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. तत्काळ, तेज समये, त्यारे (सं. तत्क्षणे ) तक, (तको) उक्तिर. ते [रा. ] तक प्रेमाका. * अभिलाषा, [टक, ताकी तडई हम्मीप्र. झूझे, लडे [ सं . तड्] रहेवुं ते, एकीटश ] तकर नरप ( द ). छास ( सं . तक्र) तक्ष्) तज्जय प्रबोप्र. छोडी दे (सं.तर्जय ) तज्ञ अखाछ. तज्ज्ञ, निष्णात तटिनी आनंस्त. नदी तठइ वीसरा. त्यां (सं. [ सं . ] त + स्थामन् ) तड तेरका. ढोळाव ? तखर * विमप्र. [* विनाश, * बरबादी] [* अ. तीब] तउणी /तणी चडाव ] [ दे. तठ परथी ] तका उक्तिर. ते (स्त्रीलिंगमां ) [ रा . ] तकारि आरारा (व). अरणीनी एक जात (सं. तर्कारी) तकीआ अखेगी. आश्रयस्थान, विसामो तडा गुर्जरा. तट, कांठा [फा. तकिया] तडाग आरारा. तळाव (सं.) as गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. पासे, बाजुमां (सं.तटे) ( सं . तट), [ चडाण, 2010_03 तडकस प्राचीफा. तंग, [ कसीने बांधेल ] तडक्क- प्राचीफा. चमकवुं (प्रा.) तडतडुं आरारा. तडतड अवाज तडतडवुं लावल. तडतड अवाज करवो; * प्रेमाका. [फाटफाट थवुं ] # तडित अखाका. वीजळी (सं. तडित् ) तक्रा अखाछ. तक्र, छाश तखणि प्राचीसं. त्यारे (सं. तत्क्षणे ) तक्षण गुर्जरा. ते वखते ज (सं. तत्क्षणम् ) तडिंग ऋषिरा. पखाली; जुओ तणंग तडूकुं प्राचीफा. स्त्रीना काननुं आभूषण ( सं . ताटंक ? ) तडतड प्रेमाका. उपराउपरी तडिच्छड प्राचीसं. वीजळीनो चमकारो [सं. तडित् + छटा ] तगतागु चारफा. प्राचीफा. शोभा, सुन्दरता, तणइ, तणि, तणी आरारा. ते, तेणे [कांति, तेज] तणय- तेरका. तणुं, नुं (सं. तनय -) तणंग अखाछ. पखाली; जुओ तडिंग तगन अखाछ. तज्ज्ञ, निष्णात तगर आरारा (व). ऋषिरा. प्रेमाका वृक्ष- तणायता आरारा. तणाता विशेष (सं.) तणि, तणी जुओतणइ तच्छाविय प्राचीसं. छोलवामां आवेलो (सं. तणी * षडाबा. [ दोरीनुं बंधन ] [ हिं . तनी ] Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बधु आरारा. तेरका. प्राचीसं. तनु, शरीर तपण आरारा. सूर्य, ताप (सं.तपन) ततकाल आरारा. त्यारे, ते वखते तपनतेज प्रेमाका. सूर्य- तेज तसाच, तखिन, ततलिपि, ततख्यण तपला ऐतिका. तपागच्छीय [जै.] आरारा. गुर्जरा. देवरा. नलरा. तपसंजम उपबा. तप अने संयम नलाख्या. प्रेमाका. वीसरा. ते ब समये, तपसा देवरा. तपस्या तरत ज, बोद्ध वखतमांज (सं.तत्क्षण) तपासी प्रेमाका. तपस्वी, [दीन, दयनीय कतखेव अखाका. ऋषिरा. कामा(त्रि). तपी वीसरा. तपस्वी (सं.तपिन) दशरक). नरका. नलाख्या. हरिख्या. तप्पड वीसरा. तपे, प्रकाशे] तत्काल, तरत ज (सं.ततिक्षण) तबक कामा(त्रि). कामा(शा). तासक [अ. नया जुओ स्तखण तबाक] ततवर चंद्रवा. मदमो. सिंहाशा). तत्पर, तबक ऋषिरा. गच्छ (सं.स्तबक) तैयार तम चतुचा. त्यम, तेम तलाउ तेरका. प्राचीसं. तेटलुं (सं.तद्+ तमक उक्तिर. आवेश, क्रोध (सं.) तुल्य) तमके चतुचा. तमारी पासे; जुओ के सतार हमीप्र. तातार देशना (घोडा), उत्तम तमचर अखाका. अंधारामां (अज्ञानमां) घोडानी एक जात फरनारा तति जुओ हंस-तति तमरा पंचवा. तमारा तरखेव प्रेमाका. तुरत ब [सं.तक्षिण] तमाल आरारा (व). नरका. एक वृक्ष (सं.) क्तवतु ऐतिका. तत्त्वज्ञान, तत्वना जाण- तमाहि वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). दुःख कार] पामशे (सं.ताम्यसि) ततुत्य प्रेमाका. तेना जेवो तमी गुर्जरा. विराप. रात्रि (सं.) तत्त्वाबोध अखाछ. तत्त्वबोध तय तेरका. त्रय तत्व आरारा. ऐतिका. तेरका. त्यां (सं.तत्र) तयणंतरु ऐतिका. तेरका. ते पछी (सं. तसक्द देवरा. बराबर, सर (सं.तद्वत) तदनन्तरम्) तवंत अखाका. त्यार पछी, त्यारे तयणु ऐतिका. ते पछी [सं.तदनु] सनक सिंह(शा). साव नानुं तर तेरका. तरु तनि आरारा. शरीरमांची तर नंदब. तरवा पडेलो, [तरनारो] नुहानि शंगाम. शरीरनी हानि, नुकसान तरउ आरारा. तरु, वृक्ष उनैया मदमो. तनया, [पुत्री] तरकस प्रेमाका. मदमो. *वसंफा (ल). वसंवि. बन्नुअउ उक्तिर. तन्तु तांतपो वसंवि(ब्रा). विमप्र. वीसरा. (तीर 2010_03 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जराना air मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २२१ तरजात/तर्जई भरवान) भाथु (फा.तर्कस) तरस आनंस्त. प्रेमाका. तलस, [सं.तृष्] तरजात नरका. हलकी (बदतर) जात तरसालूआं शृंगामं. तरस्यां, तृषालु तरण प्राचीका. *तरुण, तारनार] तरंगिणी अखाका. नदी [सं.] तरण-तारण देवरा. होडीरूप बनीने तारनारुं तरंड ऐतिका. नौका [सं.] तरणागार अखाका. घासनो ढगलो, तरांश प्रेमाका. त्राजवां [*उकरडो] [सं.तृणागार] तरि षडाबा. तर (सं.तरी) तरणि अखाका. ऐतिका. गुर्जरा. नरका. तरियां तोरण नरका. प्रेमाका. पांदडां, सूर्य (सं.) जरीना तार के वरख अने कापडना तरणि-तनया नरका. प्रेमाका. सूर्यनी पुत्री, टुकडा वपरायां होय तेवू तोरण __यमुना नदी तरियो प्रेमाका. त्रण दिवसे आवतो तरणी अखेगी. सूर्य [सं.तरणि] तरिवा नेमिछं. तरवा तरतर गुर्जरा. तडतड अवाज साथे तरी उक्तिर. तर (सं.तरिका) तरतीब चंद्रवा. मदमो. वेताप. सिंहा(शा). तरी हम्मीप्र. स्त्री रीत; रीतभात; व्यवस्था संभाळ; तरुअर वसंफा. वृक्ष [सं.तरुवर] गोठवणीनी खूबी (अ.) तरुआर, तरुआरि चंद्रवा. नलरा. प्रबोप्र. तरतीबतर मदमो. पूरेपूरी रीतभातवाळु, तरवार [युक्तिपूर्ण]; पूरेपूरी व्यवस्था तरुण, तरुणावंत, तृणावंत दशस्कं(१). तरतीबवंत चंद्रवा. मदमो. रीतवाळू, पूरती दशस्क(२). तृणावर्त, [एक राक्षस] रीतभातवाळु, [कौशलपूर्ण] तरुयर गुर्जरा. तरुवर, वृक्ष तरफोडां दशस्कं(१). प्रेमाका. तरफड़ियां तरूअर आरारा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). तरुवर तरभाणी प्रेमाका. संध्या वगेरे धर्मविधिमां तरूआं उपबा. "सीसं, कलाई, टीन] (सं. वपराती तांबानी तासक - थाळी त्रपुक); जुओ तर . तरूण मदमो. सूर्य (सं.तरणि, 'अरुण'ना तरखर अभिऊ. आरारा. वृक्ष (सं.तरुवर) सादृश्ये) तरवखं प्रेमाका. सिंहा(शा). टोळे मळवू, तरेरो प्रेमाका. आवेशभर्यो, क्रोधाविष्ट, ऊभरावू [धुजारीवाळो] (अ.तर्रार) तरवर्यु दशस्कं(१). तरवरियु तरेवो अखाका. लावल. तरवो तरवारि आनंस्त. तरवार तरोवड अखाछ. सरखाई त अखाछ. धोळा रंगनी हळवी धातु, तर्जई उक्तिर. *षडाबा. धमकावे, बिवडावे, [टीन, कलाई]; जुओ तरूआं तिरस्कार करे (सं.तर्जति) 2010_03 Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तर्प/तव २२२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश थ, तर्प दशस्कं(२). तीने, तृप्त करीने वीसरा. (पग) दबाववा, चोळवा (सं. तर्पत प्रेमाका. तृप्त तलघष) तल प्रेमप. लेशमात्र तलि (तलि कीध) जुओ क्षोणि तलि तलखवू अखाका. दशस्क(१). *प्रेमाका. तलिआं, तलीआ (तलिआं/तलीआ तोरण) व्याकुळ थर्बु, प्रेमाका. तलस,, झंख, ऋषिरा. *गुर्जरा. तोरणनो एक प्रकार; तलपे प्रेमाका. तराप के छलांग मारे. हिलो जुओ तलिया तोरण करे] तलिण प्राचीसं. बारीक [सं.तलिन] तलमल दशस्क(१). प्रेमाका. टळवळता, तलियातोरण, तलीआतोरण, तलीयातोरण व्याकुळ, तालावेलीभर्या दि.तल्लोविल्लि]; ___ आरारा. नलरा.प्राचीफा. लावल. वसंफा. जुओ तालावेली वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). विक्ररा.विमप्र.बारणे लटकाववानांखास तलवट प्राचीसं. तळेटी दि.तलहट्टिया] प्रकारनां तोरण, पांदडां के फल साथे तलवा वेताप. घसाराथी तळियांनु आलु। कसबी तार, जरियान कापडना टुकडा के वरख वपराया होय तेवू तोरण; जुओ तळवां प्रेमाका. पगनां तळियां तालीआ तोरण तलहटी उषाह. तळेटी दि.तलहट्टिया] तलीआ (तलीआ तोरण) जुओ तलिआं तलाउ उक्तिर. तळाव (सं.तटाकः) तलीआ तोरण जुओ तलिया तोरण, तलाउलिय प्राचीसं. तळावडी (सं.तडाग-) तालीआ तोरण तलागु उक्तिर. तळाव (सं.तडाग) तलीआं *उपबा. [जोडा] दि.तलिया तलार अंबरा. उक्तिर. उषाह. ऋषिरा. तलीया (तलीया तोरण) *ऐतिका. [एक चारफा. नलरा. विक्ररा. विमप्र. षडाबा. . प्रकारनां तोरण]; जुओ तलिया तोरण नगररक्षक, कोटवाल (द.तलवर) तळुए दशस्कं(१). प्रेमाका. तळिये [सं. तलार लावल. प्राचीसं. नगररक्षण, कोट- तल-] वाळपणुं तळुवां दशस्कं(१). प्रेमाका. पगनां तळियां तलावली प्राचीफा. नानु तळाव, तळावडी [सं.तल-] (सं.तडाग) तलेंटी कस्तुवा. तळे, नीचे तळावा प्रेमाका. गाडानी धरीने मजबूत तल्लिच्छय प्राचीसं. इच्छुक (सं.तल्लिप्स) टेकवी राखनार अने बेठकनी किनारीमां तलो *अखाका. [मुखी, अग्रणी] दि.तल]; लगाडेल लाकडाना ककडा अखाछ. तळियुं ?, [*मोटाई, "गुरुता] तळासवू, तलांसवं, तळांस, कादं(शा). तव आरारा. कादं(शा). गुर्जरा. देवरा. कामा(शा). चतुचा. नरका. प्रेमाका. नलाख्या. वीसरा. त्यारे (सं.ततः) 2010_03 Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरका. त्यां "खा के गण में जन तहिय मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २२३ तव/तंबाळू तव ऐतिका. तप तेम ज, बराबर (सं.तथा+इति) तव- उषाह. सिंहा(म). स्तुति करवी, स्तवन तहवि तेरका. तोय (सं.तथापि) करवू (सं.स्तव) तहाविह जिनरा. तथाविध, ते प्रमाणे] तव- वीसरा. तप, तहि गुर्जरा. तेरका. त्यां (सं.तस्मिन्) तवगच्छ चारफा. तपागच्छ नामनी जैन तहियइ उक्तिर. त्यारे मुनिओनी एक शाखा के गण (सं.तपस् तहिं वसंवि. वसंवि(ब्रा). तेनां (सं.तस्याः) +गच्छ) तहिं तेरका. त्यां (सं.तस्मिन्) तवगणवर (तवगणवरकाननि) चारफा. तहींनो प्रेमाका. त्यारनो तपागच्छ[रूपी उत्तम वनमा] (सं. तहींय उक्तिर. त्यारे [सं.उस्मिन् तपस्+गण) तहु ऐतिका. तेना तवण, तवणु तेरका. प्राचीफा. सूर्य (सं. तहुणा साह चारफा. त्रिभुवन शाह, [एक तपन) श्रेष्ठी, नाम] तवन अंबरा. आनंस्त. स्तवन तं उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. वाग्भबा. ते (सं. तवन उषाह. स्तुति (सं.स्तवन) तद्) तवसज्झाई चारफा. तपश्चर्या अने तंगोटी उक्तिर. नानो तंब रा.] शास्त्राध्ययन वडे (सं.तपस्+स्वाध्याय) तंट सिंहा(शा). ?, [*मोटो अवाज] दि. तविल अभिऊ. एक प्रकारचं मुखवाद्य तंडा तस वसंवि. तेना (सं.तस्य); देवरा. तेने तंत अखाछ. तंत्र; [शास्त्र; मूळ]; तांतणो; (सं.तस्य) [खरेखर, खरी वात]; अखाका. अखेगी. तस पटे ऐतिका. तेनी पाटे दशस्कं(१). नरका. तंतु, तांतणो; तसिइं आरारा. त्यां, त्यारे आरारा. चित्तसं. खरी वात तसु आरारा. तेरका. लावल. तेनुं (सं. तंत (मंततंत) जिनरा. तंत्र, [मंत्रतंत्र, तस्य); लावल. तेने (सं.तस्य); आरारा. जादुटोणा] . ते, तेथी तंतवेणा अखाका. तंतुवीणा - एक वाजिंत्र तसीआ, तसीया, तसैहा *रूस्तस. तंतु-ते प्रेमप. तंतु वडे [(घोडेसवारनी) हाजरी] [अ.तसहीहा] तंन कामा(त्रि). संतान, दीकरी, दीकरो तस्करइ उक्तिर. चोरी करे (सं.तस्करयति) (सं.तन) तस्यु आरारा. तेवो (सं.तादृशकम्) तंन कामा(त्रि). मदमो. शरीर (सं.तनु) तह ऐतिका. तेरका. तथा तनक मदमो. तनीक, जराक तहति, तहत्ति आरारा. ऐतिका. जिनरा. तंबाळू * वीसरा. [जलपात्र दि.तंबालुय] 2010_03 Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तंबोल/ताड . २२४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तंबोल ऋषिरा. नेमिछं. लावल. षडाबा. ताचा * नरका. *नरप. [तारा (उपर)] खावानुं नागरवेलर्नु पान (सं.तांबूल) ताछइ उपबा. प्राचीसं. कापे, छोले (सं. तंबोलरी थई उक्तिर. पानदानी (सं. तक्षति) ताम्बूलस्य स्थगी) ताजइ आरारा. ताजा, नवा तंबोलिया षडाबा. नागरवेलना पानमां थतो ताजइ गुर्जरा. "विराप. अवगणना करे, एक कीडो [उपहास करे, धमकी आपे] (सं. ता चंद्रवा. ते तर्जयति); जुओ ताजिउ ता अखाछ. ताप ताजण, ताजणउ *उपबा. "नंदब. पंचवा. ताइ आरारा. तात, पिता वीसरा. वेताप. चाबुक (फा.ताजियान) ताइ प्रबोप्र. ते [ज] ताजा चारफा. प्राचीफा. तुरत, [हमणां] ताई नलरा. वणकर (फा.ताजह्) ताएलां नरका-२. तारां ताजिउ *गुर्जरा. *नेमिछं. [धमकाव्यो, ताक अखाछ. [ताकवू ते, ध्यान राखवू ठपको आप्यो] [सं.त); जुओ ताजइ ते], लाग ताजिम प्राचीफा. मान आपवानी क्रिया, ताकई आरारा. नेमिछं. ताके, [लक्षित अदब, [कुर्निश] (अ.तअजीम) करे], विचारे (सं.तकी ताजी कर्पूमं. हम्मीप्र. अरबी घोडो, उत्तम ताखणि गुर्जरा. प्राचीसं. त्यारे (सं.तत्क्षणे) प्रकारनो घोडो (फा.) ताखिणि प्राचीसं. त्यारे (सं.तत्क्षणे) ताज्य मदमो. त्याज्य ताग अखाका. पार; अखाछ. छेडो, [पार] ताज्य करवाने मदमो. तजवा ताग काढवो चित्तसं. रस्तो काढवो, उपाय ताठउ उक्तिर. त्रस्त, [त्रासेलो] करवो ताडइ प्राचीफा. प्राचीसं. प्रसारे, पहेरे दि. ताग (ताग लीजिये) प्रेमाका. छेडो, [पार तड्ड] लो, परीक्षा करो] ताडइ आरारा. उक्तिर. उपबा. षडाबा. तागीर रूस्तस. बरतरफ, [सजा, दंड मारे, पीटे (सं.ताडयति) करवो] [अ.ताजीर] ताडंक प्राचीफा. शृंगाम. काननुं आभूषण, ताग्य ऐतिरा. त्याग, दान कुंडळ (सं.ताटक) ताच सिंहा(शा). साथ आपनारी मंडळी ताडीइ * नेमिछं. [नाखवामां आवे छे] दि. [उ.ताश] तड्ड]; जुओ ताडइ ताच मदमो. ताछ, शोभा, [ठाठ]; शोभतुं, ताडु, ताडो प्रेमाका.. हठ, [आग्रह]; [ठाठभयु [*ताडूको]; शृंगाम. ताण, आग्रह ताडक भाषा 2010_03 Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २२५ ताडो/ताल ताडो चंद्रवा. ततडाट, [खेंचाण] विक्ररा. त्यारे, तो, एटले, पछी (सं. ताढि आरारा. उपबा. टाढ (*सं.स्तब्धिः) तावत्) तालु आरारा. लावल. टाढुं तामइ आरारा. त्यां ताण उक्तिर. त्यारे ताम-रस शृंगामं. कमल (सं.)। ताणउ आरारा. खेंची लावो तामस प्रेमाका. तामसी, रोषवाळु ताणती नरका. तरफेण करती, [अनुराग ताय आरारा. गुर्जरा. शृंगामं. पिता, तात बतावती] ताय आरारा. ताप, संताप ताणही आरारा. ताणे, आग्रह करे तायक नलरा. एक देश, ज्यां नलराजाए तात आरारा. चित्तसं. बाळक, संतानने विजय कर्यो हतो 'बापा' जेवू संबोधन तार आरारा. वसंफा(ल). वसंवि. देदीप्यतात जिनरा. निन्दा दि.तत्ति]; जुओ तातडी, मान, उत्तम, मनोहर ताति, परताति तार गुर्जरा. चित्तसं. आकाशनो तारो (सं. तातउं उपबा. गुर्जरा. प्रेमाका. गरम; मदमो. तारकः) लालचोळ; तीक्ष्ण, धारदार; आकएं, तार आव्यां अखाका. योग्य के तैयार थयां, उग्र; चंद्रवा. तेजीखें, तीखं (सं.तप्त) [उत्कर्ष पाम्यां, फळ्यां] तातडी प्राचीसं. *चिन्ता, [निंदा]; जुओ तारणउं आनंस्त. षडाबा. तारनार तात . तारण-तरण देवरा. तारनारी होडीरूप तातपरज प्रेमप. तात्पर्य तारतखानु सिंहा(शा). पायखा, [शौचताति * विमप्र. [निंदा]; जुओ तात कूप] [अ.तहारतखाना] ताथे सिंहा(शा). साचे (सं.तथ्य?) तारा प्रेमाका. आंखनी कीकी [सं.] तान चंद्रवा. रटण, रढ तारायण स्थूलिफा. तारागण तानें तान (तानें तान मिलइ) आनंस्त. तारु अखाका. तरनारा तानथी तान [मळे], [संपूर्ण मेळ थाय] तारुण वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). तारुण्य तानो प्रेमाका. तान, लगनी, आतुरता तारुणी नरका. मदमो. प्रेमाका. तरुणी, तापजो प्रेमाका. तप करजो युवान स्त्री तपिस्यइ आरारा. तपावशे, बाळशे तारे देवरा. त्यारे, ते वखते तापुं प्रेमाका. तप करूं तारोतार प्रेमाका. छिन्नभिन्न, अस्तव्यस्त तापेस प्राचीका. प्रेमप. तपस्वी (सं.तापस) ताल उक्तिर. खाबोचियुं (सं.तल्लः) ताम आरारा. ऋषिरा. कादं(शा). गुर्जरा. ताल हरिख्या. काननू घरेणुं (सं.) [प्रा. तेरका. देवरा. नलरा. नेमिछं. लावल. तालक; हिं.तार] 2010_03 Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ताल / तासतु ताल शीलक. ताळु (सं. तालक) थशे] ताल आरारा. समय, वेळा (रा.); जुओ तालीय वसंवि. ताळी दईने, ताल सा इण ताल, तिणि ताल (सं. तालिका) ताल आरारा (व). ताडनुं वृक्ष (सं.) ताली लागवी नरका. प्रेमाका. लगनी लागवी ताल, ताळ आरारा. नरका. प्राचीसं. तालु गुर्जरा. ताळ, कांसीजोड प्रेमाका. लावल. एक प्रकारनुं वाद्य, करताल, कांसीजोड तालुयउ उक्तिर. ताळवुं (सं. तालुकम् ) ताल - प्राचीसं. ताळाथी बंध करयुं (सं. तालोवीली प्राचीफा. व्याकुळता, (दे. तल्लोतालक परथी ) विल्ल); जुओ तालावेली तालउ उक्तिर. ताळुं (सं. तालकम् ) तालक शृंगामं. ताडनुं झाड (सं.) ताल - कांसी प्रेमाका. कांसानी धातुनुं बनावेल वाद्य, झांझ तालमेल नेमिछं. प्रेमाका. संगीतना ताल अने मेळ तालपट, तालपट्ट, तालपुट आरारा. एक तावड, तावडउ अंबरा. आरारा. जिनरा. तीव्र विष दशस्कं (१). दशस्कं (२). नलरा. प्रेमाका. वीसरा. वेताप. सिंहा (शा). ताप, तडको (सं. ताप +क) ताला लावल. एक प्रकारनं वाद्य, [ताळ] तालाचर नलरा. *नृत्यनो व्यवसाय करनार एक जाति, [ताल वगाडनार ] (सं. तालचर) तालावेली प्रबोप्र. धालावेली, आतुरता, [व्याकुळता ] [द. तल्लोविल्ल]; जुओ तलमल, तालोवीली मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तालिमखानुं हम्मीप्र. नृत्यशाला तालिय तेरका ताडित, [ प्रहार पामेल ] * तालीआ तोरण (तलीआ तोरण) विमप्र. बारणे लटकाववानां खास प्रकारनां तोरण; जुओ तलिया तोरण ताळी पडशे प्रेमाका. मश्करी थशे, [फजेती 2010_03 ताव तेरका. त्यां सुधी (सं. तावत् ) ताव गुर्जरा. ताप ताव (?) वीसरा. * चादर, [* कोई वस्त्रप्रकार ] तावडी प्रेमाका. नानो तावडो, कढाई, पेणी [सं. तापक] तावी षडाबा. कढाई, पेणी (सं. तापक) तावीने * नरका. [कसीने, पारखीने] तावोगल अभिऊ. *वैद्य तास आरारा. कृष्णच. चंद्रवा. तेरका. नेमिछं. तेनुं (सं. तस्य); आरारा. देवरा. तेने (सं.तस्य); आरारा. ते तास प्रेमाका. [रेशमी ] कसबी कापड [फा.] तास ( तेणे तास) कामा (शा). *कलाक, [* ते स्थळे, *त्यां] तासतु प्राचीफा. एक प्रकारनुं चकचकित Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तासी/तिणि रेशमी कापड ( फा . ताफ्तह ) तिनलाख्या. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). तासी * नरप [तेनाथी, तेणे ] वसंवि. विमप्र . षडाबा. ते (सं. ते) तासु मिछं. लावल. स्थूलिफा. तेनुं (सं. ति अभिऊ नलाख्या. तें, तारा वडे (सं. तस्य) त्वया) ताहारा अखाका. त्यारे ताहारि नलाख्या. त्यारे तिइ, तिई कादं (शा). लावल. तें [ सं . त्वया ] तिउणउ उक्तिर. तमणुं (सं. त्रिगुणम्) ताहारे चंद्रवा. त्यारे तिली प्राचीसं. वाद्यविशेष; जुओ तिवलि ताहि आरारा. तेरका. त्यां (सं. तस्मिन्); तिऊं वीसरा. तेम, तेवुं [प्रा. तेम्व] वीसरा. ते तिके आरारा. तेने २२७ तां अखाछ. अभिउ उक्तिर. उपबा. कादं (शा). नलाख्या. प्रबोप्र. प्रेमाका. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. षडाबा. त्यां, त्यां सुधी, तो, एटलामां (सं. तावत्) तां उक्तिर. * कृष्णच. [ तो ], तोपण तांगणी उक्तिर. मळविसर्जन करवुं ते (*सं. तनुगमनिका) तांडऊ गुर्जरा. माथु (सं. तुण्डकम् ) ताणतांणि लावल. ताणाताणी, खेंचाखेंची, वादविवाद तांत अखाछ. तार, तांतणो [सं. तंतु] तांतण प्राचीसं. तांतणो (सं. तंतु) तांदुल अखाका. नरका. [छडेला ] चोखा, [ फोतरां काढी नाखतां रहेता अनाजना दाणा ] तांम आरारा. त्यारे तां लगइ उपबा. त्यां सुधी; जुओ लग तह नलाख्या. त्यां (सं. तस्मात्) तांहाकण चतुचा. त्यां, तो तांहि प्रबोप्र. त्यां 2010_03 तिग जिनरा. त्रण [सं. त्रिक] तिज प्राचीका. तेज तिजइ, तिजई उक्तिर. नलरा. वीसरा. तजे, छोडी दे(सं. त्यजति) तिजक प्राचीका. पशुपक्षी, तिर्यंच (सं. तिर्यक्) तिजहि वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा) . छोडी दे (सं. त्यजति) तिजीइ गुर्जरा. तजाय, छोडी देवाय (सं. त्यज्यते) तिडकउ उक्तिर. तडको तिडावे ऐतिका. बोलावे, आमंत्रित करे, [तेडावे ] तिडोत्तर सउ उक्तिर. एकसो त्रण (सं. त्र्युत्तरं शतम्) तिण देवरा. वीसरा. ते (सं. तेन) तिई आनंस्त. तेणे तिणउ तेरका. तेनुं तिणं प्रबोप्र. तेणे तिणि आरारा. तेरका, नेमिछं. लावल. वीसरा. षडाबा. ते, तेणे, तेनाथी (सं. Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिणि तालइ/तिवार . २२८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तेन); आरारा. तेमां; तेथी । तिरी वीसरा. स्त्री तिणि तालइ आरारा. ते वेळा, त्यारे; जुओ तिरेह प्राचीफा. त्रण रेखावाळो (सं.त्रिरेख) ताल तिर्यलोक गुर्जरा. तिर्यक्लोक, मृत्युलोक तित्थ ऐतिका. गुर्जरा. तेरका. तीर्थ तिल अखाका. उक्तिर. प्रेमाका. षडाबा. तित्थयर प्राचीफा. तीर्थंकर तल (सं.); नलाख्या. तलमात्र तित्थेसर तेरका. तीर्थेश्वर तिलउ, तिलो उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. तिथ प्राचीसं. त्यां ज (सं.तत्र) प्राचीफा. तिलक, टीखें; जुओ सिरतिलौ तिथ वीसरा. तिथि तिळउ *वीसरा. [आंखनी कीकी] (सं. तिनि गुर्जरा. विराप. त्रणे (सं.त्रीणि) तिलक) तिन्नि आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. त्रणे (सं. तिलकुशम ऋषिरा. तलना छोडनु फूल (सं. त्रीणि) तिलकुसुम) तिबल प्रबोप्र. वाद्यविशेष; जुओ तिविल तिलकुसुमोपम वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. तिम आनंस्त. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. वसंवि(ब्रा). तलना छोडना फूल जेवू तेरका. देवरा. नेमिछं. लावल. वीसरा. तिलग आरारा (व). तिलकवृक्ष, रतावला षडाबा. तेम (अप.तेम्व) तिलतार प्राचीसं. स्नेह तिमइ उक्तिर. तरत ज तिल-तुस जुओ तुस तिम जि उपबा. तेम ज तिल-तुस-मित्त शृंगामं. तलना फोतरा तिमर गुर्जरा. अंधकार (सं.तिमिर) जेटलु, स्वल्प [सं.तिलतुषमित] तिमि उपबा. तेम ज, ते ज रीते तिलय तेरका. तिलक तिय ऐतिका. त्रिया, स्त्री तिलवटि षडाबा. तलवट तियस ऐतिका. त्रिदश, देव तिलिमा प्राचीसं. वाद्यविशेष दि.] तियाग जुओ प्राण-तियाग तिली उक्तिर. तिलक तिरषा अखाका. तृषा, तरस तिलो जुओ तिलउ तिरसीयउ आरारा. तरस्यो [स.तृषित] तिवरारि चारफा. प्राचीफा. त्रिपुरारि, शंकर तिरिअ प्राचीका. प्राचीफा. पशुपक्षी वगेरे तिवल प्राचीफा. पेट उपर पडती त्रण रेखा; प्राणीओ (सं.तिर्यक); जुओ तिरिय जुओ त्रिवलि तिरिछउ उक्तिर. षडाबा. तीरछु (सं.तिरश्च) तिवल प्रद्युचु. प्राचीफा. लावल. वाद्यविशेष, तिरिय आरारा. मर्त्यलोक (सं.तिर्यक्) संभवतः ढोलक (अ.तब्ल के तब्लह्); जुओ तिरिअ जुओ तिविल, त्रिवली तिरिस आरारा. तृषा, तरस तिवार, तिवारइ आनंस्त. आरारा. ऐतिरा. 2010_03 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २२९ तिवाहरई/तीसि देवरा. नरका. नलाख्या. लावल. त्यारे त्यार पछी तिवाहरई वाग्भबा. त्यारे तिं ऐतिरा. तें तिविर अभिऊ. तीव्र, [कठोर] ती आरारा. तेना तिविल नेमिछं. विक्ररा. एक वाद्य, संभवतः ती वसंफा. वसंवि. ते (सं.ते) तबलुं, ढोल; जुओ तिवल तीखालि, तीखाली नेमिछं. लावल. तीक्ष्ण, तिसइ आरारा. त्यारे, त्यां ___ अणीदार तिसउ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. तीडू आरारा (व). तिमिर वृक्ष (दे.तिरिड)? तेवू (सं.तादृशकम्) तीण वसंवि. ते(थी) (सं.तेन) तिसर देवरा. त्रिसेरो, त्रण सेरवाळो (हार) तीतर प्रेमाका. तेतर, एक जातनुं पक्षी तिसंझ ऐतिका. त्रिसंध्या, [त्रण संध्या- तीतिर उक्तिर. तेतर (सं.तित्तिरि) __काळ] तीथ गुर्जरा. प्राचीसं. तीर्थ तिसिउ नेमिछं. तेवो तीथंकर गुर्जरा. तीर्थंकर तिसेर हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात तीने ऋषिरा. तेणीए तिस्युं आरारा. तेवू (सं.तादृशकम्) तीन्हउँ उक्तिर. तीक्ष्ण तिह आरारा. त्यां तीमइ उक्तिर. खाद्य पदार्थने उकाळीने तिह वसंवि. वसंवि(ब्रा). तेनो (तस्य) प्रवाही रूप आपवू, कढी करवी दि. तिहा किणइ आरारा. त्यां [सं.तस्मिन्+ तिम्म __ करें]; जुओ कणि तीमण उक्तिर. ओसामण, कढी [दे. तिहारइ, तिहारि अभिऊ. त्यारे तिम्मण] तिहां अभिऊ. आनंस्त. आरारा. उक्तिर. तीमन शृंगामं. एक प्रवाही भोजन वानगी, ऋषिरा. कादं(शा.) नलाख्या. वसंफा. ओसामण (दे.तिम्मण) वसंवि. वसंवि(ब्रा). षडाबा. त्यां (सं. तीमर चित्तसं. तिमिर, अंधकार तस्मात्/तस्मिन्) । तीयं षडाबा. ते तिहि वीसरा. ते (मां) तीयारी देवरा. तैयारी तिहुअण ऐतिका. गुर्जरा. शृंगाम. त्रिभुवन तीर, तीरइं, तीरि अभिऊ. गुर्जरा. नजीक, तिहुयण ऐतिका. जिनरा. तेरका. प्राचीसं. पासे; [*ते समये ज, *त्यां ज] त्रिभुवन, त्रण लोक तीरइ शृंगामं. शके, [शक्तिमान थाय] (दे. तिहूण तेरका. त्रिभुवन तीरइ) तिहूयण आरारा. त्रिभुवन तीरई, तीरि जुओ तीर तिहार, तिहारइ आनंस्त. कादं(शा). त्यारे, तीसि नेमिछं. ए, [एवा] तह वासरा. त(मा) Jain mation International 2010_03 Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीहचु/तुरीया ती वसंवि. मनो तीहं वसंवि. तेनां तीहां उपबा. तेओ तींछे गुर्जरा. त्यां, त्यारे (सं. * तत्था ) तींहं षडाबा. तेओ (सं. तेषाम् ) तु अभिऊ. उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). वाग्भबा. तो, वळी (सं.ततः ) तुख प्राचीका. फोतरां (सं. तुष) तुखार कादंम (शा). प्रेमाका. वीसरा. हम्मीप्र. तोखारिस्तानना घोडा, तोखार, घोडा तुखारा ऋषिरा. तुखार देशनो वेगीलो घोडो, [घोडो] २३० तुट्ठ, तुट्ठउ तेरका. तुष्ट तुठो ऐतिरा. संतुष्ट थयो [ सं . तुष्ट ] तुडि ऐतिरा. नलरा. प्रचु. प्राचीसं. विक्ररा. स्पर्धा, बराबरी, जोटो; जुओ तोडि तुडि - वसिण प्राचीसं. अकस्मात् तुडीय देवरा (पगनो) तोडो, आभूषण] तुणि नेमिछं. झडपथी ( सं . तूर्णम् ) तुत जुओ तुंत तुबल विराप. तबलां (अ.तब्ल / तब्लह् ) सुमन पंचवा. तमने तुम्ह लावल. तमारा; तने; वीसरा. तमे तुम्हचु जिनरा. नेमिछं. तमारो 2010_03 . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तुम्हारउ आनंस्त. लावल. वीसरा. तमारो तुम्हासित उक्तिर. तमारा जेवो तु तेरका. तुं ? ( अप. तुहुँ) तु उक्तिर. ते तुरजता अखाका. ऊंचाई (सं. तुर्यता ) तुरणी प्राचीफा. तरुणी -तु आरारा. गुर्जरा. नलरा. वाग्भबा. -थी, तुरयरी विराप. तूरी, एक वाद्य (सं. तूर्य) -मांथी, करतां (सं.तः ) तुररी गुर्जरा. रणशिंगानो एक प्रकार (सं. तूर्य) तुरंग प्राचीफा. हरिवि. तरंग, लहेर तुरंगम नेमिछं. घोडो [सं.] तुरिउ नलरा. घोडो (सं.तुरग) तुरिय, तुरिया ऐतिरा. कृष्णच. गुर्जरा. जिनरा. विराप. घोडाओ (सं. तुरग) तुरिया शृंगामं त्वरित नरका. तुरी कामा (त्रि). कामा (शा). लावल. वीसरा. घोडों (सं. तुरग) तुरी रूपच. * वाजूं, *एक संगीतमय ध्वनिवाळु वाजिंत्र, [शरणाईना जेवुं वाद्य ] [सं. तूरी] तुरीय प्रद्युचु. ललिरा. विमप्र. घोडो तुरीया अखाका. नरका. [ जागृति, स्वप्न, सुषुप्तिथी उपरनी चोथी अवस्था ], बधा भेद दूर थतां आत्मा अने परमात्मानी एकतानी व्यवस्था, [ अखाजीनी दृष्टिए ब्रह्म तुरीयातीत ] [एक तुम्हे आनंस्त. उपबा. लावल. वीसरा. तमे तुम्ही आनंस्त. तमे तुर शृंगामं. ?, [जलदी, उतावळ करीने ] [सं.] तुर कादं (शा). घोडो (सं.तुरग) तुरक गुर्जरा. घोडो (सं. तुरग) Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश तुरुणी ऋषिरा. तरुणी, युवती तुम्हासित तुर्यलोक * विराप. [पृथ्वीलोक ] ( सं . तिर्यक् + तुंग ऐतिरा. मोटी [सं.] लोक २३१ तुंगत्तणि ऐतिका. ऊंचाई [ सं . तुंगत्वन] तुलइ गुर्जरा. विराप. तोळी शकाय, समान तुंगा लावल. उच्च, उत्तम प्रकारना, [मोटा ] थाय (सं. तुलयति) तुंगी ऐतिका. रात्रि (सं.) तुंठे देवरा. प्रसन्न थाय (सं. तुष्ट) तुंत (तुत ?) आरारा (व). फळझाड शेतूर (फा. तूत; सं.तूद) ? तुळची वीसरा. तुलसीनो छोड तुलडी प्रद्युचु. [तोलडी], दोणी, [नानी हांडली] तुलाई उक्तिर. तळाई, गादलुं (सं. तूलिका) तुल्ल आरारा. तेरका. तुल्य, -ने योग्य तुल्लइ नेमिछं, " तुलनामां, [तोले, समान (सं. तौल्यके) ] तुष अखाछ. नरका. फोतरां [सं.] तुस ( तिलतुस) जिनरा. [तलना फोतरा जेटलुं], लेशमात्र, (जराय) [रा. ] तुसार तेरका. झाकळ (सं. तुषार) तुह नलाख्या. तो ( सं . ततः खलु) तुह तेरका. तारुं ( सं . तव) तुइ उक्तिर. नेमिछं. लावल. विमप्र. शृंगामं. तोपण (सं. ततः परथी) हाइजिनरा. तमारा तुहि कादं (शा). तोपण, तोय (सं. ततः परथी) तुहि गुर्जरा. तुं पण तुहितउ * गुर्जरा. [तो तो, तो पछी ] तुहीन शृंगामं. झाकळ (सं.) हुने प्रेमाका. त तुहुँजि गुर्जरा. त्यारे ज, तो ज तुझची शृंगामं. तमारी तुह्यासित * विमप्र. [तमारा 'जेवो]; जुओ 2010_03 तुरुणी/ तूर तुंब भड थाट हम्मीप्र. योद्धाओनी एवी ठठ के तुंबडुं मूक्युं होय तो भोंय पडे नहीं; जुओ थाट भड तुंब तुंबर लावल. ए नामनो गंधर्व तुंबर, तुंबरू प्रेमाका तंबूर, एक तंतुवाद्य कुंबरु प्रेमाका. ए नामनो एक गंधर्व तुंबलि देवरा. माथु (सं.तुम्ब ) तुंबीफल कामा (त्रि). कामा (शा). तुंबडुं [सं.] तूटउ आरारा. तूट्यो, ओछो थयो तूठइ अभिऊ. आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. लावल. वीसरा. शृंगामं षडाबा. तुष्ट थाय, प्रसन्न थाय तूण जुओ पाडल-तूण तूणि विमप्र. तारुं तूणियउ उक्तिर. तूणेलुं - रफू करेलुं (सं. तुणितम्) तूप अखेगी. प्रेमाका. घी [सं.] तूर अभीऊ. ऋषिरा. ऐतिका. कादं (धु). गुर्जश. तेरका. नेमिछं. प्रेमाका. एक वाद्य, शरणाई, रणशिंगु (सं. तूर्य) Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तूर/तेवडवुं तूर अखाका. रू [सं. तूल] तूरि ऐतिरा. [बुद्धिना ] चारे प्रकारे तूरि उक्तिर. * षडाबा. एक प्रकारनी माटी; गोपीचंदन [G.; हिं. तुवरिका ] तूली उक्तिर. पींछी (सं. तूलिः) तूसइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. विक्ररा. षडाबा. तुष्ट थाय, संतोष पामे, प्रसन्न थाय (सं. तुष्यति ) तूंअरि उक्तिर. एक धान्य, [" तुवरी सरसवनी एक जात, *तुवेर] (सं. तुंबरी) तूंछीइ गुर्जरा. तरस्यो थाय (सं. तृष्यति) तूंबु गुर्जरा. तूंबडुं, एक वनस्पति (सं.तुम्ब, तुम्बक) २३२ - हर वाग्भबा. तारे, तारी पासे तृणकर्म ऋषिरा. तरणा समान हळवां कर्म तृणवारि षडाबा. सावरणी (सं.) तृणावंत जुओ तरुण तृपति आनंस्त. तृप्ति तृशूल गुर्जरा. त्रिशूल तृस षडाबा. तरस (स. तृषा) तृसिउ षडाबा. तरस्यो (सं. तृषित) तूहु परि उक्तिर. त्रणे रीते ते जुओ तंतु-ते तेउ लावल. तेओ तेउ उपबा. गुर्जरा. तेज, प्रकाश तेऊकाय आनंस्त. तेजस्काय, अग्निकाय, अग्निरूप जीव 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ते मदमो. कटार तेगवार ऐतिका. तलवारवाळो तेजग्गलि * विमप्र. [तेजीला - तेजगतिए चालनारा अश्व उपर] तेजपणुं चित्तसं. ताप तेजिउं उक्तिर. उत्तेजित तेजी अभिऊ. नरका. प्रेमाका. वीसरा. पाणीदार घोडो, घोडो [फा. तेझी/ताजी ] तेजे चित्तसं. तापने कारणे तेण चंद्रवा . तेना वडे तेतइ आरारा. त्यारे, तेटलामां, त्यां तेतउ आरारा. गुर्जरा. प्राचीसं. तेटलुं (अप. तेत्तीउ) तेतलउं आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नलरा. षडाबा. तेटलुं (अप. तेत्तुल ) [सं. तद् + तुल्य] तेतीवार षडाबा. तेटलामां, त्यारे तेथ आरारा. त्यां ते भणी आनंस्त. ते माटे; जुओ भणी तेय ऐतिका. जिनरा. प्राचीफा. तेज तेय * जिनरा. [तैजस शरीर - जे गरमी अने पाचनशक्तिनुं कारण होय छे, आवुं शरीर प्राप्त करावनार नामकर्मभेद ] [जै.] तेरइ उक्तिर. तेर ( सं . त्रयोदश) तेरसि उक्तिर. तेरस (सं. त्रयोदशी) तेरिमूं गुर्जरा. तेरमुं ख नरका. प्रेमाका. शृंगामं रोष, क्रोध; तेलंगिया प्रेमाका. तैलंग देशना विमप्र, तीखाश, [उग्रता ] तेखतु हरिवि. खोटो गर्व करतो तेवडवुं, शेवडवुं दशस्कं (२). त्रेवड करवी, गण, [लेखj] Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २३३ तेवडेतेवडी/त्याग तेवडेतेवडी आरारा. सरखेसरखी तोय प्रेमप. पाणी तेवली विमप्र. वनस्पतिविशेष, [कंदविशेष] तोय देवरा. तने तेसट्ठि प्राचीसं. तेसठ (सं.त्रिषष्टि) तोयज प्रेमाका. कमळ [सं.] तेह भणी उपबा. "ऋषिरा. [ते कारणे], तोर आरारा. वाद्यध्वनि (सं.तीय) तेथी; जुओ भणी तोरडइ शृंगाम. तारे तेहव, तेहवइ, तेहवि आरारा. नलाख्या. तोरंग दशस्क(१). तरंग त्यारे, ते समये तोरां कृष्णच. तारां तेहविइ आरारा. तेथी, तेनाथी तोरिय वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). तेहे आरारा. तेणे तारी . तेहें आनंस्त. ते तोरी चंद्रवा. घोडी [सं.तुरग] तेंदी आनंस्त. त्रीन्द्रिय - स्पर्श, रसना अने तोरीय वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). तारी घ्राण ए त्रण इंद्रियवाळा जीव तोरो नरका. नरप(द). प्रेमाका. कलगी, तेंद्रिय उपबा.त्रणइंद्रियवाळा जीव (सं.त्रय+ छोपे, [फेंटो] [अ.तु] इंद्रिय) तोलओ *चारफा. [तोळेलो, तुलनामां तैब पंचवा. त्यारे (हिं.तब) मुकाय एटलो, समान] (सं.तोलित) तो आरारा. देवरा. पंचवा. तारी (सं.तव) तोलीआ मदमो. तोळनारा तो आरारा. देवरा. वीसरा. तुं तोळी नरका. तोली, सरखावी, [मूल्य तोइ चित्तसं. तोय, पाणी ___ आंकी] तोखार अभिऊ. दशस्कं(१). प्रधुच. प्रेमाका. तोले चित्तसं. तोळे, उडाडे __ तोखारिस्तानना पाणीदार घोडा, घोडा तोहि आरारा. तोपण तोडा प्रेमाका. टोडला तोहि आरारा. तारा तोडि विक्ररा. स्पर्धा; जुओ तुडि तोहि ज आनंस्त. तो ज तोडे लावल. बारणाना टोडला नजीक तोहे, तोहें आनंस्त. तो; अखाका. चित्तसं. तोतर प्राचीसं. एक देवी, तोतला देवी प्रेमाका. तोपण तोतलु प्राचीसं. तोतळो त्ति तेरका. एम (सं.इति) तोबर विमप्र. तोबरो, [घोडाने चंदी त्यक्तभूरि आरारा. घणो त्याग कर्यो होय खवडाववानी चामडानी कोथळी] [फा. एवा साधु (सं.) तोबरो] त्यजन आनंस्त. त्याग तोमर नरका. प्रेमाका. भाला जेवू एक त्याग कादं(धु). स्वाहा आदि बलिदान शस्त्र [सं.] आपवाना बोल 2010_03 Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्याग माड्यो/त्रागउ २३४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश यति) त्याग माड्यो पंचवा. दान कर्य, धर्मादा त्रय-यामा कादं(शा). रात्रि (सं.त्रियामा) अन्नवस्त्र आयां, सदाव्रत मांड्युं त्रवली कादं(शा). नाभि नजीकनी त्रण त्याज नरका. प्रेमाका. त्याज्य, तजेलं रेखा (सं.त्रिवली) त्यारताइ पंचवा. त्यां सुधी त्रवेली विमप्र. त्रण वार [सं.त्रि+वेला] त्यांहांथु नरका. त्यांथी त्रस अंबरा. तरस [सं.तृषा] त्येम चंद्रवा. तेम, तेवी रीते त्रस (त्रस जीव) आनंस्त. आरारा. प्राचीफा. तइसठइ विमप्र. त्रेसठेय [सं.त्रिषष्टि] हलनचलनवाळां, एकेन्द्रिय सिवायनां बउअउ उक्तिर. सीसुं (सं.त्रपुक) जीवो ते त्रस जीवो [जै.] चठि विकरा ज्यां त्रण रस्ता भेगा थता त्रसई विमप्र. त्रिशती गणितपाटी (ग्रथ) होय एवे स्थळे (सं.त्रिक) प्रसको बोडियो प्रेमाका. निसासो नाख्यो त्रट कृष्णबा. कामा(त्रि). दशस्क(१). सरी प्राचीफा. त्रण सेर - रेखावाळी दशस्क(२). प्राचीका. प्रेमाका. मदमो. साडिया षडाबा. त्रास आप्यो (सं.त्राससिंहा(शा). तट, कांठो ब्रटकइ, अटकी ऐतिका. देवरा. विमप्र. हकति चारफा. लचकावती • तटाक दईने; जुओ त्राटक बहत्रही अखाका. संपूर्ण, गाढ, [फाटुंफाटुं त्रटके गुर्जरा. नखरांथी, [चमकधमक, थई, गाढ थई] तडक- भडकथी बहेकता प्रेमाका. धसमसता, थनगनता ऋठ कामा(त्रि). चंद्रवा. नरप(द). तट, त्रंण चित्तसं. मदमो. तृण, सूकुं घास किनारो . त्रंबक, त्रंबक्क अभिऊ. गुर्जरा. प्राचीसं. बटुके रूस्तस. तडूके __एक वाद्य (दे.तंबक्क) अणि अंबरा. त्रणेय [सं.त्रीणि] बाळु प्रेमाका. एक जातनुं [त्रांबा-] प्रतालीस उक्तिर. तेंताळीस (सं.त्रिचत्वा- नगारा जेवू वाद्य रिंशत्) बासुत शृंगामं. गायनो पुत्र, वृषभ दि. त्रपत कस्तुवा. नरका. प्रेमाका. तप्त; तंबा+सं.सुत] कामा(शा). चतुचा. नरका. प्रेमाका. वालु सिंहा(शा). त्रांबानो ढोल - तृप्ति, संतोष त्राकडी कादं(शा). तकली [सं.तद्दुः] त्रपति नरका. तृप्ति त्राकडीवेलउ उक्तिर. त्राजवू (*सं.तुलाप्रभोइइ कृष्णबा. *तरभोये, *छजे, [त्रीजे वेलक) ___ माळे]; जुओ त्रिभोयु त्राकलउ उक्तिर. ताक, तकली (सं.तधैः) अम्बा प्रबोप्र. तांबु (सं.ताम्र) त्रागउ, बागलउं आरारा. त्रागुं, मागणी 2010_03 Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २३५ त्रागु/त्रिजंच भरेली] माटे आत्मघातनी तैयारी त्रासइ उक्तिर. गुर्जरा. त्रास पामे (सं. बागु विक्रच. तांतणो, [त्रागडो, दोरो] दि. त्रस्यति) तग्ग] त्रासकडो * नरका. [त्रास, परेशानी - प्रेमत्राजवू, बाजुडं नरका. डूंदणुं बाजूई विमप्र. वाजवू त्रासवइ उक्तिर. उपबा. त्रास आपे, त्राट गुर्जरा. त्रांस, थाळी बिवडावे (सं.त्रासयति) त्राट नेमिछं. [पडदो - वासनी पट्टीओनो] त्राहि नलाख्या. रक्षण कर (सं.) दि.तट्टी]; जुओ त्राटी बाहु वाग्भबा. त्रस्त, दुःखी त्राटक * नेमिछं. [तडाक दईने, एकदम]; त्राहे त्राहे प्रेमाका. बचावो बचावो, तोबा ___ जुओ त्रटकइ ___ तोबा (सं.त्राहि त्राहि) त्राटी नलरा. शृंगामं. कामडा (वांसनी त्रिऊ षडाबा. त्रणनो समूह (सं.त्रिक) चीप)नी भींत के पडदो (दे.तट्टी वाड, त्रिकरण * ऐतिका. [मन, वचन, काया ए आवरण); जुओ त्राट त्रण करण] त्राटीहर नलरा. कामडानुं घर [दे.तट्टा+ त्रिकरणशद्धि, त्रिकरणसुद्धि ऋषिरा. नलरा. सं.गृह मन, वचन अने काया ए त्रणे करणनी बाठउ आरारा. उक्तिर. कादं(ध). कादं (शा). गुर्जरा. नरका. नेमिछं. प्रेमाका. लावल. षडाबा. त्रास पाम्यो, त्रिकशां तोरण विमप्र. त्रण फळवाळां [त्रण हेरान थयो, भयभीत थयो (सं.त्रस्त) ___ प्रकारनां पान वगेरे गूंथेलां] तोरण त्राडणी अभिऊ. त्राड पाडवी ते. भयथी त्रिख कृष्णबा. तृषा अवाज करवो ते त्रिखलां तोरण विमप्र. *त्रण धारवाळां बाड दशस्क(१). प्रेमाका. ताडवं, मारवं; तोरण, [त्रण प्रकारनां पान वगेरे गूंथेलां नेमिछं. त्राड पाडवी, मोटो अवाज तोरण] करवो त्रिखा जिनरा. तरस (सं.तृषा) बाडूकइ ऐतिका. ताडूके, मोटे अवाजे बोले त्रिगडू उक्तिर. त्रिकटु, [एक औषध, सूंठ, वाटूके रूस्तस. ताके मरी अने पीपरनुं मिश्रण] त्रापउ उक्तिर. तरापो दि.तप्पक त्रिगवि गुर्जरा. त्रण फळांवाचुं (बाण) [*सं. बापड अखाछ. तापडु, [गूणपाट] त्रि+गो] बापड्या आरारा. ढसडाया ? गभराया त्रिगुणु उक्तिर. तमणुं (सं.त्रिगुणम्) (सं.त्रप्) ? त्रिजंच गुर्जरा. नानां जीवडां (सं.तिर्यच्) ___ 2010_63 For Private & Personal use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिण/त्रीया २३६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश त्रिणउ आरारा. उक्तिर. तृण, तरj त्रियामा कादं(शा). रात्रि (सं.) त्रिणि अभिऊ. उक्तिर. त्रण, त्रण वडे [सं. त्रियोग *आनंस्त. [(मननो) त्रण प्रकारनो त्रीणि ___ योग – स्थिति] त्रिष्णि उपबा. गुर्जरा. त्रण (सं.त्रीणि) त्रिवलि, त्रिवली ऋषिरा. वसंफा. त्रिण्य आनंस्त. त्रण वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). शरीरत्रिह उक्तिर. त्रण (सं.त्रीणि) नी सुन्दरतासूचक पेट पर पडती त्रण त्रिदिसि आनंस्त. त्रण दिशाए वळी (सं.) त्रिनि आरारा. त्रण (सं.त्रीणि) त्रिवली ऐतिका. वाद्यविशेष; जुओ तिवल त्रिन्हि षडाबा. त्रण (सं.त्रीणि) त्रिवायउ उक्तिर. [*चित्रक, *सिन्दूर, त्रिन्हिसई षडाबा. त्रण सो _*हिंगो] [सं.त्रिपाद] त्रिपउं षडाबा. कलाई, सीसु (सं.त्रपु) त्रिवेलीयां लावल. त्रणे वेळाए त्रिपणउ उक्तिर. जैन मुनिनुं पात्रविशेष, A त्रिस आरारा. वीसरा. तरस (सं.तृषा) तरपणी (सं.तर्पणकम) दि.तप्पणग]: त्रिसट्ठ, त्रिसठि लावल. षडाबा. त्रेसठ जुओ त्रेपणउं . (सं.त्रिषष्टिः) त्रिपत नरका. तृप्त त्रिसिउ गुर्जरा. तरस्यो (सं.तृषित) त्रिपन उक्तिर. त्रेपन (सं.त्रिपंचाशत) त्रिसियउ आरारा. उक्तिर.तरस्यो (सं.तृषित) त्रिप्त ऋषिरा. धरायेल (सं.तृप्त) त्रिसेंथियां प्रेमाका. त्रण लटना सेंथानी त्रिभंगी ऋषिरा. देहना त्रण मरोड (सं.) गूंथणीमां पहेरवानुं एक घरेणुं - दामणी त्रिभुवनचीतु वसंवि(ब्रा). त्रणे भुवन- हृदय त्रिह जिनरा. त्रण [- चित्त] बिहउं गुर्जरा. त्रण त्रिभुवनातिसायियां षडाबा. त्रणे जगतमां त्रिहत्तरि उक्तिर. तोतेर (सं.त्रिसप्ततिः) असाधारण (सं.त्रिभुवन+अतिशयिन्) बिहु, त्रिहुं उपबा. तेरका. शृंगामं. त्रणे त्रिभोयं प्रेमाका.त्रीजो माळ, मजलो: जओ (स.त्रि+खलु) त्रभोइइ त्रिलं परि उक्तिर. त्रण रीते . त्रिमणइ उक्तिर. उपबा. तमj, त्रण गणं त्री वीसरा. स्त्री (सं.त्रिगुण) श्रीखउ प्राचीसं. तीक्ष्ण, [धारदार] त्रिय प्राचीफा. स्त्री त्रीछि अभिऊ. तीरछे (सं.तिरश्चकम्) त्रिया अखाका. प्रेमाका. स्त्री त्रीठ नरका. पीडा, दुःख त्रियाकांड अखाका. स्त्री- प्रकरण, वृत्तांत, त्रीय आरारा. स्त्री [प्रसंग त्रीया वीसरा. स्त्री वृत्त) 2010_03 Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २३७ त्रीहो/थउ त्रीहो सिंहा(शा). त्रणे [*गोठवे छे, “जोगवे छे] त्रुटवि नेमिछं. तूटी जईने त्रेसठि उक्तिर. त्रेसठ' (सं.त्रिषष्टिः) .. त्रुटी उक्तिर. [*कोई तहेवार] (सं.त्रिपुटी) त्रेह *अखाका. "जिनरा. नलरा. शृंगामं. त्रुठो कामा(त्रि). प्रसन्न थयो [सं.तुष्ट] भेज, भीनाश त्रुह कादं (ध). त्रण त्रेहेके प्रेमाका. थनगने, [धसमसे] त्रुहे कादं (शा). त्रण नोटउ जिनरा. देवरा. तोटो वट अखाछ. तोटो नोटउ आरारा. खूट्यु, गयुं [सं.त्रुटित] बेटी उपबा. देवरा. तूटी [सं.त्रुटित] बाटडी लावल. स्त्रीआना कानमा पहेरवानु ठो चंद्रवा. नरका. प्रेमाका. तुष्ट थयो, . स एक आभूषण [सं.त्रपुपुटिका] - प्रसन्न थयो पा, प्रोटि *गुर्जरा. [संख्याविशेष दि.तुडिय] गति (गडि) उक्तिर. हाथीने पगे ज.] बांधवानी लाकडानी बेडी (सं. त्रोटी कृष्णबा. "नलरा. काननुं एक घरेणुं त्रिकाष्ठिका) त्रेडउं नेमिछं. [आईं]तेडु, वांकुं (सं.तिर्यक्) निको ब्रोडइ गुर्जरा. देवरा. नलरा. नेमिछं. तोडे ब्रेडवQ (बेडवी दृष्टि) *कृष्णबा. [*नजर .. (सं.त्रोटयति). चुकावी, *नजर त्रेवडी – गोठवी] बोडियई षडाबा. तोड्ये (सं.त्रुटति परथी) त्रेपण * षडाबा. [जैन मुनिनुं पात्रविशेष] 7 रोडी *गुर्जरा. [तोडीने] त्रोहवीय मदमो. विविध त्रेपनमो अखाछ. शब्दातीत परमात्मा बोहो चंद्रवा. त्रणे त्रेलियुं प्रेमाका. तरीखें, [खंचनार वधारे थाणू उक्तिर. त्राणु (सं.त्रिनवतिः) पशु होय त्यारे] वाहनने वधारानु नखातुं हुमचउ अंबरा. तमारो वेपनमा मणग); जुओ पिन पात्रविशेष] बोडी, धूंसहं बेवड आरारा. नरका. नेमिछं. प्रेमाका. थई जुओ तंबोलरी थई तेवड, शक्ति, पहोंच; आरारा. प्रेमाका. थईधर नलरा. राजानो तांबूलवाहक (सं. तजवीज, गोठवण स्थगीधर) त्रेवडइ आरारा. संभाळ राखे; जिनरा. थईयर अंबरा. राजाने तांबूल आपनारी प्रेमाका. गणनामां - लेखामां ले, माने; (सं.स्थगीधर) जुओ तेवडवू थईयातु हम्मीप्र. एक राज्यसेवक, ताम्बूलवडी *विमप्र. [शक्तिमान थई, जोगवाई वाहक (सं.स्थगीवत्) करी]; गुर्जरा. *योग्य गोठवणीथी, थउ गुर्जरा. थयो (सं.स्थित) ____ 2010_03 Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थक-थाकइ २३८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश थक- वीसरा. होवू (सं.*स्थम्) दि.थक्क] ऊगतुं कमळ] थकउ आनंस्त. आरारा. उपबा. चित्तसं. थलचर गुर्जरा. स्थलचर, जमीन परनां प्राणी नलाख्या. प्रेमाका. वसंफा (ल). वीसरा. बलवट ऐतिरा. निर्जल भूमि, रणप्रदेश थईने, होईने, होतां, होवाथी; थी, थलाश्रय आरारा. स्थलाश्रय, [गामनुं नाम] -मांथी (सं. स्थक्) (दे.थक्क) थलि आरारा. ऋषिरा. स्थळमां, जमीनमां थके चित्तसं. थाके [सं. स्था] पली उक्तिर. मरुस्थल, निर्जल प्रदेश [रा.] थक्क- प्राचीसं. "शृंगाम. होवू, थर्बु (प्रा. (सं.स्थली) थक्क-, सं.स्थग) थवइ उक्तिर. होय, छे (सं.स्थगयति) थटी उषाह. रहेठाण (सं.स्थिति) दि.थत्ति] धवक तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. झूम, स नी थट्ट *जिनरा. प्राचीफा. प्राचीसं. "विमप्र. जथ्थो (सं.स्तबक) ___ठठ, समुदाय [दे.]; जुओं थाट वणी प्रेमाका थापण. बीजाने त्यां थट्टि जुओ घट्टि मूकवामां आवेली वस्तु]; गुर्जरा. थडइ षटिप. थडा उपर, दुकानना अग्रभाग [थापण], स्मृति रूपे मूकेली वस्तु; उपर दि.थुड) जुओ थमणी, थाj थडइ उक्तिर. झाडर्नु थड [*दे.थुड] थवना ऐतिरा. स्तवना, स्तुति थडि, थडी जिनरा. *देवरा. ऊभा रहेवू ते थविर आरारा. स्थविर, साधु थडुं कर्पूमं. स्थान दि.थुड] थविसु षडाबा. स्तवीश थण उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. स्तन थंडिल ठाम जिनरा. शद्ध भूमि.(सं.स्थंडिल) थणहर कर्पूमं. प्राचीसं. स्तन (सं.स्तनभर) थंदिल * उषाह. [यज्ञनी वेदी (सं.स्थंडिल) थपोली प्रेमाका. थेपली थंभ आरारा. गर्जरा. तेरका. विक्ररा. थप्पिउ गुर्जरा. तेरका. स्थाप्युं, मूक्युं षडाबा. स्तंभ, थांभलो; आरारा. स्तंभ थमणी दशस्कं(१).थापण [सं.स्थापनिका]; जेवी मजबूत जुओ थवणी थंभण वसंफा. वसंवि. *वसंवि(ब्रा). थंभवू थम्भ प्रबोप्र. थांभलो (सं.स्तम्भ) ते, [टकी रहेवू ते] (सं.स्तम्भन) थरके नरका-२. थरथरे धंभाणा जिनरा. स्तब्ध - चकित थया; थरमा नरका. प्रेमाका. एक जातनुं कापड स्थिर थई गया [सं.स्तम्भ थरहर तेरका. प्राचीसं. थरथर दि.] थाइवा उक्तिर. थवा, स्थितिमा रहेवा थरिहरि *विमप्र. [थरथर] [द.थरहर] थाइ सिउं उपबा. कोई रीते, [गमे ते थाय] थल नरका-२. स्थळ थाकइ उक्तिर. स्थित थाय, स्थान करे, थलकमल तेरका. स्थलकमल, [जमीनमा रहे [सं.*स्थक्; दे.थक्क] 2010_03 Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २३९ थाकइ/थाह थाकइ अंबरा. बाकी दि.थक्क्य थान उपबा. दूध, धावण (सं.स्तन्य) थाकउं उक्तिर. स्थित, रहेखें थानक आरारा. उपबा. ऐतिका. गुर्जरा. थाकतउ उपबा. जिनरा. वाग्भबा. षडाबा. नेमिछं. रूपच. लावल. षडाबा. स्थानक, षष्टिप्र. बाकीन, बचेखें, [बाकी रहेढुं] स्थान, ठेकाणुं (सं.*स्थक्ति) दि.थक्कय] थाप आरारा. स्थपावू ते, रोकाईने रहेQ थाकणे ऐतिका. अटक, ते, रोकाण ते; अखाका. अखाछ. चतुचा. चित्तसं. थाकि * गुर्जरा. थकी, वती] (सं.*स्थकित) *प्रेमाका. स्थापना, ठराव, निर्णय दि.थक्कय थाप अखाछ. भूलथाप थाकिवा उक्तिर. स्थित थवा, रहेवा थाप प्रेमाका. थपाट, पंजानो प्रहार थाको षष्टिप्र. रही, [बाकी रही, अटकी, थाप-उथाप अखाका. स्थापना अने खंडन नष्ट थई] (सं. स्थक्किता) दि.थक्कय] थापणि, थापिणि प्राचीफा. वसंफा. थाकीरीणी आरारा. थाकीपाकी (रा.); वसंफाल). वसंवि. थापण, अनामत जुओ रीणउ (सं.स्थापनिका) थाग ऋषिरा. वीसरा. ताग, तळियुं, ऊंडाण थापणिमोसु शृंगामं. थापण ओळवी ते (सं. (सं.स्ताघ) स्थापनिका+मोष) थाट आरारा. *गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीफा. थापन अध्यात्म आनंस्त. स्थापन अध्यात्म, प्राचीसं. विक्ररा. समुदाय, ठठ (दे.थट्ट); मूर्त पदार्थ - प्रतीकनो आश्रय करनार जुओ गजथाट, थट्ट अध्यात्म] थाट भड तुंब हम्मीप्र. योद्धाओनी एवी थापना ऐतिका. स्थापना ठठ के तुंबडु मूक्युं होय तो भोंय पडे थापिणि नलाख्या. थापण, न्यास; लावल. . नहीं; जुओ तुा भड थाट थापणमां, मालमिलकतमां; जुओथापणि थाण उपबा. धावण (सं.स्तन्य) थारउ वीसरा. तारुं [रा.] थाण आनंस्त. लावल. स्थान थारणहार चतुचा. ठारणहार, ठारनार थाणुं * नरका. [बहाना रूपे वस्तु] [सं. थाळ प्रेमाका. देवने नैवेद्य धरावती वखते सत्यापन, प्रा.थावण]; जुओ थवणी गवातुं गीत के पद थाथरि विमप्र. थथरे, [बीए] थाली *कामा(त्रि). [*विषयो, *विषय थान प्रेमाका. ताका _ विभागो] [सं.स्थल], [*समूह दि.] थान अभिऊ. स्तन थावर आनंस्त. उपबा. शृंगामं. स्थावर, जेने थान आरारा. नलाख्या. षडाबा. स्थान, हलनचलन नथी तेवा एकेन्द्रिय जीवो ठेका' थाह अखाका. प्रेमाका. ताग, पार, छेडो स्थान 2010_03 Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाहर/थुहर २४० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [सं.स्ताघ] थिय वसंवि. रहेनार (सं.स्थित); तेरका. थाहर अंबरा. गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीसं. थयु (सं.स्थित) "विक्ररा. षडाबा. स्थान (सं.स्थावर) थिर आनंस्त. आरारा. तेरका. लावल. दि.थाह); लावल. स्थिर, स्थावर, हलन- षडाबा. स्थिर चलन वगरनुं विरत आनंस्त. स्थिरता थाहरइ उक्तिर. होय, थाय, रहे, स्थान करे थिरता लावल. स्थिरता थाहरावी षडाबा. रोकी (सं.स्थावर परथी) थिवर ऐतिका. जिनरा. स्थविर, वृद्ध साधु थाहरी गुर्जरा. षडाबा. तारी [रा.] थी आरारा. हती -यां प्राचीका.पंचमीनो प्रत्यय, -थी, मांथी; थीअह जुओ धीअह जुओ ओ-थां थी नलाख्या. *-थी, [-मां रहेलां] (सं. थांण वीसरा. मंदिर, देवस्थान [सं.स्थान] स्थित) थांन वेताप. स्तन्य, दूध थीणधी जिनरा. [एक प्रकारनी] निद्रा थांपणि उक्तिर. उपबा. षडाबा. थापण [जेमां दिवसे चिंतवेलु काम रात्रे थई (सं.स्थापनिका) जाय] [सं.स्त्यानगृद्धि] [जै. . थांभ आरारा. विक्ररा. थांभलो [सं.स्तम्भ] थीर अखाका. स्थिर थांभइ उक्तिर. स्थिर करे, स्तब्ध करे (सं. धीरथावर चंद्रवा. स्थिरस्थावर, [दृढ, स्तभ्नाति) ____ अचल, नित्य] थांभउ उक्तिर. उपबा. नलरा. थांभलो (सं. थीवलि प्राचीफा. पेट उपर पडती त्रण स्तम्भः) रेखा (सं.त्रिवलि) थिउ अभिऊ. गुर्जरा. लावल. विराप. थयुं थुइ ऐतिका. षष्टिप्र. स्तुति (सं.स्थित); नेमिछं. -थी (सं.स्थित) धुड उक्तिर. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. थिकउ गुर्जरा. वसंफा(ल). "वसंवि. वसंवि(ब्रा). हरिवि. थड (द.) षडाबा.थतां, रहेता, थईने, रहीने (सं.स्था थुण- आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. प्राचीफा. परथी) दि.थक्क] प्राचीसं. स्तुति करवी, स्तवन करवू थिकउ अभिऊ. उपबा. नैमिछं. लावल. (सं.स्तुनोति) शृंगाम. षष्टिप्र. -थी, -थकी, वडे, -मांथी थुणवि ऐतिका. स्तुति करी (द.थक्कअ) (सं.*स्थकित) थुणस्सामि ऐतिका. स्तुति करीश थिति आनंस्त. आरारा. स्थिति, नियम, रूढि धुणहि ऐतिका. स्तुति करे छे थिनिगिनी लावल. थनगनी थुति आनंस्त. स्तुति थिपि देवरा. स्थापी, थापी धुहर वेताप. थुवेर, [थोर] दि.थोहर] ___ 2010_03 Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २४१ -धुंदखणावंत -धुं गुर्जरा. -थी होय तेवो वंदननो लघु प्रकार] [जै.] धुंभ ऐतिका. स्तूप, [स्मृति-स्तंभ] थोर उषाह. गोळ, [सुडोळ]; तेरका. स्थूल थूणी उक्तिर. थांभली - ज्यां वलोववा. (सं.स्थौर) (द.) माटेनी राश बांधवामां आवे छे (सं. थोरो नरप(द). ढंग, रीत स्थूणी) थोल उषाह. थोडं (सं.स्तोक) थूथउ उक्तिर. [*कचरो, रूंछु] (सं.तुच्छम्) थोहर आरारा(व). थोर (द.) थूप विक्ररा. स्तूप, [स्मृति-स्तम्भ] थोहरी ललिरा. ए नामनी पछात कोमनो थूभ उक्तिर. ऐतिका. स्तूप, [स्मृति-स्तम्भ] पुरुष धूकविउं उपबा. धुंकवु (सं.थुत्कृ) थे चतुचा. थये दइडा उपबा. दडा (*सं.दृतिः) थे वीसरा. तमे [रा.] दई वीसरा. दैव (*सं.दैषिय-) थेग आरारा (व). थेगी, एक भाजी के कंद दउड सउ षडाबा. दोढसो (सं.द्ध्यर्ध+शत) वउढ उक्तिर. दोढ (सं.द्ध्यर्थः) थेट आरारा. छेक (रा.) दक्ख प्राचीफा. दुःख -थो प्राचीका. पंचमीनो प्रत्यय, [-थी, दक्खिण उक्तिर. दक्षिण दिशा __-मांथी]; जुओ अम-थो दक्षण नलरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). थो पंचवा. हतो दक्षिण दिशा (y); *गुर्जरा. नलरा. थोक आरारा. "ऐतिका. वैभव रा.: नेमिछं. लावल. जमणुं (सं.दक्षिण); ऋषिरा. नरका. प्रेमाका.थोकडो, समूह; गुर्जरा. होशियार, चतुर; जुओ आदक्षण विमप्र. थोकेथोक, खुब [सं.स्तबक दक्षणा लावल. दक्षिणा, दान दि.थवक वक्षणावंत मदमो. दक्षिणावर्त, [जमणी बाजु थोडिलउ प्राचीसं. थोडं (सं.स्तोकम्) वळतुं थो\ आनंस्त. पोलुं, बोखं; नरका. [फोफु], दक्षणावंत अखाछ. दक्षिण (जमणी) बाजु ___ फोतलं, पोलो सडेलो दाणो] [सं.तस्त] वळेल, [शंखनो एक विशिष्ट प्रकार] थोभ आरारा. प्रशंसा (सं.स्तोभ); नलाख्या. दक्षिण लावल. जमणुं लावल. थोभवू ए, स्थिति (सं.स्तोभ); दक्षिणावरतिइं ऐतिरा. दक्षिणावर्त, जमणा विमप्र. अटकायत, [रुकावट] वळवाळा योभण प्रेमाका. टेको ___दक्षीणावंत मदमो. दक्षिणावर्त (शंख) थोभवांदणां षडाबा. वंदननो एक प्रकार, दख नेमिछं. दुःख [जेमां मात्र हाथ जोडवामां आवता दखणावंत नंदब. दक्षिणावर्त 2010_03 Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वखणी/वरिद्र २४२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वखणी ० नंदब. दुखणी वन प्रते चतुचा. प्रतिदिन वखी गुर्जरा. देखी (सं.दृक्ष) वनंतर अभिऊ. [बीजा दिवसो], वधु दिवस दख्यण लावल. जमणो [सं.दक्षिण]; चित्तसं. (सं.दिन+अंतर) जमणो; साचो, योग्य वनी प्राचीफा. दुनिया [फा.दुन्या] वग-रय प्राचीसं. जल-कण (सं.उदक-रजस्) वन्य प्रेमाका. दिन, दिवस वठूण ऐतिका. जोईने दप्पण प्राचीफा. शृंगामं. दर्पण, अरीसो बडकरमणु षडाबा. दडा साथे रमवू ते दभ्र प्रेमाका. दर्भ, दाभडो, एक घास बडवडी गुर्जरा. एक प्रकार- ढोलक; जुओ दमणु ऐतिका. चारफा. नेमिछं. वसंफा. दडवडी, दुडुदुडी वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). एक दडबडाइउ उक्तिर. दडवड्यो, दोड्यो दि. वनस्पति, डमरो (सं.दमनक) दडवड] दमणो नरका. दमन करनारो, दुःख देनारो *बडवडी [*दडदडी] * चारफा. [“एक वाद्य] दमनक गुर्जरा. डमरो (सं.) दडवडु प्राचीसं. शीघ्रताथी दि.]; जुओ दमर जुओ छिदमर, दवर दुडवडी दमामो प्रधुचु. प्राचीफा. विक्ररा. एक दड्ढीय, दढी गुर्जरा. बळीने, दाझीने रणवाद्य, नोबत (फा.दमामह्) । (सं.*दग्धित) दमे अखाका. चित्तसं. दुःख दे, हेरान करे; वणयरू ऐतिरा. दिनकर, सूर्य उपबा. दमन करे, नियंत्रे वदामा, ददामा अभिऊ. ऐतिरा. कामा(शा). क्य तरका. दया नरका. नंदब. ललिरा. नगारुं फा. दयदयकार जिनरा. (दान) दीधा करवू ते दमामः] दयी गुर्जरा. दया करीने ददामी प्रेमाका. युद्धमा ददामुं - मोटुं दरख वेताप. झाड (फा.दिरख्त) नगारुं वगाडनार दरगील कामा(त्रि). दिलगीर बद्ध प्रबोप्र. दाझेलु (सं.दग्ध) दरब वीसरा. द्रव्य, संपत्ति वधा अखाछ. चित्तसं. दुग्धा, पीडा वरवडे कामा(त्रि). दोड [दे.दडवड] वधि-ओदन कादं (शा). दहीभात (सं.) दरवेश ऋषिरा. इस्लामी फकीर [फा.] वधि ओलिउ षडाबा. दहीं साथे मेळवेल वरश अखाछ. जोवू; देखावू [सं.दृश्] (सं.दधि+अव+ली) दरशंन मदमो. स्वरूप वधिसुत नरका. सागरनो पुत्र चंद्र [सं.उदधि- वरसणियां ऐतिका. दर्शनी, दर्शनशास्त्री सुत वरसिन विमप्र. दर्शन दधिसुता नरका. सागरनी पुत्री लक्ष्मी दरिद्र आरारा. गुर्जरा. दारिद्र्य; गरीबी 2010_03 Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २४३ दरियाई/वसूटूठण दरियाई जिनरा. प्रेमाका. एक प्रकारचं देवच्चण [प्रा.] कीमती कापड दशधा नरका. दशमो प्रकार दरिसण आरारा. दर्शन दशन नरका. प्रेमाका. दांत [सं.] दरीदरीज वेताप. दारिद्र्य दशमुं द्वार प्रेमाका. [शरीरनां नव द्वार दरीद्र मदमो. दारिद्र्य, दळदर उपरातनुं ताळवानुं द्वार दर्शनी ऋषिरा. तत्त्वज्ञानी, दार्शनिक वशारण नलाख्या. दशार्ण देश दल जुओ कुरुदल दशैयां प्रेमाका. लग्न पछी नवदंपतीने पितृदल चित्तसं. दिल पक्ष तरफथी अपातां दश जमण; जुओ वलगिर देवरा. दिलगीर, उदास दसाइआ वलधीर जुओ दलधीर दशो अखाका. दिशावाळो, दिशामां दलणि नेमिछं. दळवामां, नाश करवामां (सं. दशो दिशे अखाका. दशे दिशामां दलन) *दशोरो चंद्रवा. दशेरो, दश शेरनुं मापियुं *दलधीर [दलधीर] ऐतिरा. दिलगीर *दश्व वेताप. दिशा वलवइ गुर्जरा. सेनापति (सं.दलपति) दसग जिनरा. दश[नो समुदाय] [सं.दशक दलवादल कामा(त्रि). *शत्रु पर चढी जवाने दस गुणउ उपबा. दश गणो सज्ज, [घणी मोटी] (सेना) वसन ऋषिरा. दांत (सं.दशन) दलावल (कमलदलावल) ऐतिका. (कमल)- दसाइआ नलरा. लग्न पछी वरवहने श्वसर दलनी पंक्ति - हार . पक्ष तरफथी अपातां दस जमण, दसैयां दलिक आनंस्त. दळ, समूह (सं.दश+अहानि);जुओदशैयां,दसाहीइं दलीद्र आरारा. दारिद्र्य वसार गुर्जरा. चारफा. तेरका. देवरा. दवदवाए उपबा. उतावळथी (सं.*द्रवद्रवक) नेमिछं. प्राचीफा. लावल. एक कुळ, ववर षडाबा. दोरी; जुओ दमर यादवकुळ (सं.दशाह) ववाजो प्राचीफा. [शोभा]; जुओ दिवाजउ वसाहीई अंबरा. दसैयामां, लग्न पछी दवाडे प्रेमाका. दवाग्निमां जमाईने सासरे जमवा तेडे तेमां; जुओ दवालीबंध सिंहा(शा). तलवार लटकाववा टकाववा- दसाइआ नो आडो पट्टो जेणे पहेर्यो छे तेवो दसि आरारा. दिशाए, मळत्याग माटे सिपाई [फा.दुवालबंद] दसी उक्तिर. दीवानी वाट (सं.दशा) वविण शृंगाम. पैसा, धन (सं.द्रविण) [प्रा.] वसुंदी, दसूंदी कस्तुवा. वेताप. दसमो भाग वव्व आरारा. ऐतिका. द्रव्य [प्रा.] उघरावनार भाट के बारोट [सं.दशबंध] दव्वचण आरारा. द्रव्यार्चन, द्रव्यपूजा; जुओ दसूटूठण, वसूठण ऐतिका. जिनरा. 2010_03 Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसूंदी /दाओ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सोटण, जन्मथी दसमा दिवसनो उत्सव दंतधावन प्रेमाका दांत साफ करवानी क्रिया वसूंदी जुओ दसुंदी दसो पंचवा. देशवटो २४४ दंतवणु षडाबा. दातण (सं. दंतपवन ) दस्त चंद्रवा. सारुं, [चमत्कारक, अद्भुत ] वंतसूकट उक्तिर. [?] (सं. दन्तशकट) दंति मिछं. प्रकाशे छे, [प्रकाशमां ] [सं. दस्त्र]; जुओ दस्त्र वस्तूर * प्राचीफा. [वहाणमां सढ माटेना दंती गुर्जरा. हाथी (सं.) लाकडानो एक भाग ] दंतूसल उक्तिर. हाथीनो दांत (सं. दंतमुसल) वस्त्र वेताप. "सिंहा (शा). सुंदर, [अद्भुत, बंद ऋषिरा. उपाधि, क्लेश (सं. द्वन्द्व); आनंस्त. द्वंद्व, [समुदाय ] भारे] [सं.]; जुओ दस्त वह गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. प्राचीसं. लावल. बंदडियउ प्राचीसं. * पलायन करी गया, वसंफा. वसंवि. दश [दोड्या, घूमी वळ्या ] वहदिसि वसंवि (ब्रा). दशे दिशाओ दहाडला लीजे प्रेमाका. दिवस लईए, दिवस वितावीए, पसार करीए दहि, दही वीसरा. षडाबा. दहीं (सं. दधि) दंभइ उक्तिर. पाखंड, आडंबर, ढोंग करे (सं. दभ्नोति ) दहिवा उक्तिर. बाळवा ( सं . दह ) दही जुओ दंसण आरारा. ऐतिका. दर्शन; तेरका. दर्शन करनार बहुर उषाह. दहेरुं, [मंदिर, भवन ] (सं. देवगृह) दहैवट जवं वेताप. सिंहा (शा). फनाफातिया थवुं, जडमूळथी नाश थवो; जुओ देहेवट वालो दंगडउ प्राचीसं. गाम ( सं . द्रङ्गः ) दंगणु ऐतिका. बाळवं दंडवत जुओ डंडवृत्त दंडाउँछणउ उक्तिर. षडाबा. जैन मुनिओनुं रजोहरण (सं. दंडक + प्रोंछन) दंडासणउं उपबा. दंड अने आसनियं दंडाहिव तेरका. दंडनायक (सं. दंडाधिप ) वंत देखाडे जुओ देखाडे दंत 2010_03 दंदोल ऋषिरा. तोफान, धांधल, [ उपद्रव ]; हम्मीप्र. कोलाहल, [ उत्पात]; विमप्र. संशय, [iझवण, द्विधा ] दंसण आरारा. दंश, डंख (सं. दशन) दंसण आवरणी जिनरा. दर्शनावरणीय कर्म [ वस्तुना सामान्यबोधने कुंठित करनार कर्म] [जै.] दाइ, दाय आरारा. लाग, उपाय; मरजी, मन, ध्यान दाइजउ प्राचीफा. लग्न वखते वरकन्याने अपातुं द्रव्य (प्रा. दइज्जय) [ सं . दायाद्य ] दाउ स्थूलिफा. लाग, [ मोको]; जुओ दाव दाउ ( दाउ देवो ) * गुर्जरा. [लाग जोवो, मोको मेळववो]; जुओ दाव दाओ मदमो लाग [नो], [पात्र] 9 Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २४५ दाक्षायणी/दापु दाक्षायणी प्रेमाका. दक्षनी पुत्री, चंद्रनी दाढ षडाबा. पर्वतशिखर (सं.दंष्ट्रा) पत्नी [सं.] दाढी सिंहा(शा). दहाडी, दररोज दाक्षिणि कादं(शा). चतुराई (सं.दाक्षिण्य) दाढो मदमो. रूस्तस. वेताप. दहाडो दाक्षिनि लावल. विचार करवामां, स्त्री वाण उपबा. शृंगामं. षडाबा. कर, वेरो, प्रत्येनी सहानुभूतिमां [दाक्षिण्यमां] (सं. जकात (सं.दान); तेरका. दान दाक्षिण्य) दाणउ उक्तिर. दाणो [फा.दानह्] दाखइ आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. कादं(शा). दाणमंडही उक्तिर. अनाजनी मंडी, बजार गुर्जरा. नलाख्या. प्रेमाका. विमप्र. [फा.दानह सं.मंडपिका] बतावे, कहे (सं.*द्रक्षयति); नरका. जुए दाणी (घंणी) (दाणीगणि) ऋषिरा. देवादार, दाखव्युं प्रेमाका. दर्शावायु, [प्रगट थयु] [करजदार] दाखिजे नेमिछं. दाखवजे, [बतावजे] वाति षडाबा. अर्पण करातो भाग], [एक दाखियउ नेमिछं. बताव्यो वारनो जथ्थो; आरारा. दहेज, दाखीणी सिंहा(शा). दाक्षिण्य ?, [चतुराई] करियावर [सं.दत्ति दाख्य *चंद्रवा. मदमो. देखाय; चंद्रवा. दातुर्य दशस्कं(२). प्रेमाका. दातार [सं.दात] चित्तसं. जाण, बताव दात्रउ उक्तिर. दातरडु (सं.दात्रम्) दाख्युं प्रेमाका. जोयु दादइ ऐतिका. दादा[पार्श्वनाथ]ए दाघ अंबरा. गुर्जरा. नलरा. दाह, बळतरा; दादर उक्तिर. [*घणुं; *प्रहार दे.दद्दर] __ हम्मीप्र. अग्निदाह दादर (दादरडां) प्राचीफा. देडकां (सं. दाझ चतुचा. झंखना, इच्छा; प्रेमप. दुःख, दादुर); जुओ डांलवइ दादुर अखाका. प्रेमाका. मदमो. सिंहा(शा). वाझणो अखाका. दझाडे एवो देडको (सं.दर्दुर) दाट आरारा. दाटो, अंकुश दादुरडी लावल. देडकी दाडिम वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). दाडम दादूरा हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात दाधउ उक्तिर. गुर्जरा. जिनरा. दशस्कं(१). वाडिमकुली लावल. दाडमनी कळी नरका. नलरा. नलाख्या. प्रबोप्र. दाडिमहूला प्राचीफा. स्थूलिफा. एक प्रकारचं प्रेमाका. विक्रच. वीसरा. शृंगामं. दाझ्यु, कीमती वस्त्र बळ्युं (सं.दग्ध) दाडु विमप्र. दादा, आदीश्वर, ऋषभदेव दानरस नरका. (दहींनां) दाण मागवानो (प्रथम तीर्थंकर) रस दाडुर शृंगामं. देडको [सं.दर्दुर] दापु प्राचीसं. दापुं, [दक्षिणा] [सं.दाप्य] गुस्सो Jaiमध्य gation International 2010_03 Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सबडयोतिला २४६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश घास बाबड उक्तिर. दावडुं, पाणी खेंचवानो वालिद तेरका. प्राचीसं. दारिद्र्य रेंट वालिद्र, वाळिद्र दशस्क(१). नलरा. बम प्रेमाका. दर्भ, अणीदार धारवाळु एक सिंहा(म). दरिद्रता, गरीबाई (सं. दारिद्र्य) साथ उक्तिर. पंचवा. पैसा, नाणुं (सं.द्रम्म) वालिद्रीया शीलक. दरिद्र, गरीब समय, बामक अभिऊ. उक्तिर. उपबा. वालिंद अंबरा. दारिद्र्य दशस्क(१). प्रेमाका. दोरडु [ढोरने वाळीदर प्रेमाका. दारिद्र्य, दळदर बांधवान] (सं.दामन्) दाव- तेरका. देखाडवू (प्रा.) समबी नरका. स्त्रीओना कपाळy एक दाव आनंस्त. नरका. अवसर, तक, मोको, घरेणुं लाग; नरका. उपाय; जुओ दाउ । समयो दशक(२). प्रेमाका. मदमो. दाव (दाव देवो) * गुर्जरा. [अवसर मेळववो, दयामणो मोको मेळववो]; जुओ दाउ यामी लावल. दमन करीने, दबावीने वावडीए मदमो. लाग [वारो] आवतां (?) दाय ऋषिरा. दाव, [लाग] (सं.); जुओ दावादल मदमो. वेताप. सिंहा(शा). दाइ दावानल वायो नंदब. सिंहा(शा). दाव, लाग (सं. दावो अखाका. ममत, आग्रह, [वाद, __मताग्रह]; नरका. हक्क, [आग्रहपूर्वकनी सारि विक्रस. बारणे [सं.द्वारे] ___ मागणी, विनंती] [फा.दावा] सारिका कादं(शा). छोकरी (सं.) दावो करे मदमो. लाग साधे दारिद आरारा. दारिद्र्य वाशेर कादं(शा). ऊंट (सं.) दाखि गुर्जरा. गरीबी (सं.दारिद्र्य) वाहा नलरा. रमतमां पडता दाणा, दा (फा. सरिखिउ पडाबा. दरिद्र बारीबाडउ उक्तिर. वेश्याओनुं निवासस्थान वाहाटी चतुचा. दररोज (सं.दारिकावाटकः) वाहिण, दाहिणउं तेरका. दक्षिण (दिशा); सल, वारुक अखाका. लाकडं [सं.] उक्तिर. गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. दारुकर्म काद(शा). लाकड-काम, सुतार- वसंवि(ब्रा). वीसरा. जमणुं (सं. . काम (सं.) दक्षिणकम्) बालि गुर्जरा. लावल. दाळ ("सं.दलति दाही चंद्रवा. दाई, दायण परथी) [*सं.दाल] वांडइ षडाबा. रस्ते, [पगदंडीए] (सं.दंड) बलिद ऐतिरा. शृंगाम. दारिद्र्य, निर्धनता दांतिलउ उक्तिर. मोटा दांतवाळु, आगळ दाय) दाव) 2010_03 Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २४७ दांते दश आगळी लेवी/दिवांन नीकळता दांतवाळु (सं.दन्तुरः) दिणंद आरारा. नलरा. लावल. शृंगामं. दांते दश आगळी लेवी लावल. शरणागत दिनेन्द्र, सूर्य स्वीकारवी दिणाहिव शृंगामं. सूर्य (सं.दिनाधिप) वामि कस्तुवा. [दमन करे, संयत करे, दिणियर प्राचीसं. दिनकर, सूर्य ढांके] दिणिहारि ऋषिरा. देनारी दि उक्तिर. दे, आपे; नलाख्या. दे, आप विणू गुर्जरा. दिवस (सं.दिन) (सं.देहि) विदार प्राचीफा. चहेरो, स्वरूप (फा.) दिइ आनंस्त. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका. दिन दिन प्रत्ये चंद्रवा. दिनप्रतिदिन __लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). दिननाह ऐतिरा. सर्य सिं.दिननाथ] दे, आपे (सं.ददति, प्रा.दे.) दिनरेणी चतुचा. दिवसरात; जुओ रेणी दिक्ख, दिक्खा ऐतिका. तेरका. दीक्षा दिनिदिनि उपबा. दररोज दिक्खाड-तेरका. देखाडवू (सं.दृक्ष+प्रेक्ष) दिमसु प्राचीफा. दिवस दिक्खिया षडाबा. दीक्षित थया दियइ उक्तिर. वसंफा (ब). षडाबा. दे, आपे दिक्षणडी प्राचीफा. दक्षिणनी स्त्री दियउ वीसरा. दीधुं (सं.*दित-) दिख देवरा. दीक्षा दिव प्राचीफा.चमत्कार, [चमत्कारभरी दिव्य दिखसा देवरा. दीक्षा ___ घटना] (सं.दिव्य); जुओ दिव्य, दिव्व दिखाडइ गुर्जरा. लावल. वसंफा. वसंवि. दिव वीसरा. दिव्य, दीवो (सं.दीप) __ वसंवि(ब्रा). बतावे (सं.*दृक्षति) दिवरावइ उक्तिर. देवडावे दिखाल- प्राचीसं. देखाडवु (हिं.दिखलाना) दिवस नाखवा प्रेमाका. दिवस विताववा दिगिदिगि गुर्जरा. ढोलकनो धिगधिग दिवसंतरि आरारा. अन्य दिवसे [सं. अवाज दिवसान्तर] दिजराज आरारा. द्विजराज, ब्राह्मण दिवा प्रेमाका. दिवसे [सं.] दिट्ठउं गुर्जरा. दीर्छ (सं.दृष्ट) दिवाजउ ऐतिका. नेमिछं. शोभा; जुओ दिळंत, दिलंत आरारा. गुर्जरा. दृष्टांत दवाजो दिढ तेरका. दृढ दिवाड- वीसरा. देवडावq दिण आरारा. ऐतिका. दिन, दिवस दिवानडी आरारा. दीवानी, गांडी दिणनाह शृंगाम. सूर्य (सं.दिननाथ) दिवायर ऐतिका. नेमिछं. सूर्य (सं.दिवाकर) दिणयर अभिऊ. उषाह. गुर्जरा. जिनरा. दिवारइ आरारा. गुर्जरा. देवडावे; विक्ररा. तेरका. नेमिछं. लावल. शंगाम. सूर्य (सं. बंध करावे दिनकर) दिवांन ऐतिका. दरबार ____ 2010_03 Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवि/दीपति २४८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दीको दिव्यौषधि) दीव्य दिवि गुर्जरा. तेरका. “वीसरा. देवी दीइ लावल. दे, आपे दिविय गुर्जरा. दीवी (सं.दीपिका) दीकिरउ षडाबा. दीकरो दि.दिक्करअ] दिविस(?) तेरका. दिवस ? दीकिरी कादं(शा). षडाबा. दीकरी दि. दिवेश अखाका. सूर्य दिक्करअ] दिवोसही तेरका. दिव्य वनस्पति (सं. दीकोडी प्राचीफा. दासी दीकोला * विमप्र. [चाकर] दिव्य जुओ पंच दिव्य दीक्षिउ उपबा. दीक्षा लीधेल (सं.दीक्षित) दिव्व ऋषिरा. अग्निमां पडवू वगेरे एक दीख आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. दीक्षा प्रकारनी कसोटी (सं.दिव्य); जुओ दिव, दीखइ उक्तिर. दीक्षा ले (सं.दीक्षते) दीख्या * नेमिछं. दीक्षा दिशपति नलाख्या. दिक्पति, देव दीजइ उक्तिर. देवाय (सं.दीयते) दिशा नलाख्या. दशा, हालत, स्थिति दीजउ उक्तिर. देवायुं दिशाचर-काम प्रेमाका. दिवसे फरनारा - दीजतउं, दीजतूं उक्तिर. देवातुं (सं.दीयते सज्जन लोकोनुं काम परथी) दिशाकर्ण दशस्कं(१). दिशानो दर्शक दीजिसिइ उक्तिर. देवाशे दिशि वसंवि. दिशा दीठ अखाका. *देखाव, [*कथन, "दृष्टांत]; दिसउ वीसरा. दिशा [*दीठा विसा गुर्जरा. दीक्षा दीठी वीसरा. दृष्टि दिसि उपबा. गुर्जरा. तेरका. लावल. दीण आरारा. गुर्जरा. लावल. दीन, गरीबडु वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वीसरा. दीदार * ऐतिका. [रूप]; आनंस्त. दर्शन दिशा दिसि-अंत वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). दिधति गुर्जरा. विराप. किरणो (सं.दीधिति) दिशाओना छेडा, दिगन्त दीधलु कृष्णच. दीधो दिसोदिसि आरारा. बधी दिशाओमां दीन आरारा. धर्म (फा.) दिह प्राचीसं. दिशा दीनार उपबा. पंचवा. प्राचीफा. सिंहा(म). दिह नलाख्या. देह, शरीर एक प्राचीन चलणी सिक्को (सं.) दिह सिंहा(शा). दिवस दीनीश मदमो. दिनेश, सूर्य दिहाडउ उक्तिर. देवरा. नलरा. नेमिछं. दीन्हउ प्राचीसं. वीसरा. दीधुं (रा.) वीसरा. दिवस दीपति *वसंफा. वसंवि. "वसंवि(ब्रा). दीआं लावल. दीधां प्रताप (सं.दीप्ति) 2010_03 Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २४९ दीपधाम/दुक्करकार दीपधाम चित्तसं. दीवानो प्रकाश [सं.] दशस्क(१). नलरा. प्राचीफा. प्राचीसं. दीपविसाम ऐतिरा. दीवादांडी (सं.दीप- विमप्र. दिवस विश्राम) वीस गुर्जरा. दिशा दीयडी ०षडाबा. [कपडा के चामडानी] दीस ऐतिरा. देश पाणी भरवानी थेली (सं.दृति) । दीह अभिऊ. आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. दीर्घनउं उक्तिर. लांबू जिनरा. नलरा. प्रबोप्र. प्राचीसं. वसंफा. दीर्घिका नलाख्या. पगथियांवाळी वाव (सं.): वसंवि. वसंवि(ब्रा). विमप्र. षडाबा. जुओ गृहदीर्घिका दिवस दीव गुर्जरा. द्वीप दीह प्राचीसं. दीर्घ दीवटीउ उक्तिर. नलरा. मशालची (सं. दीहडउ कृष्णच. नेमिछं. प्राचीसं. दिवस दीपवर्तिक) दीहर गुर्जरा. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. दीवटी (वीवटीआ) * विमप्र. [मशालचीओ] दीर्घ दीवमंदिर उक्तिर. दीपमंदिर, [*दीवादांडी] दीहर-मंडप-माल वसंवि(ब्रा). दीर्घ मंडपदीवलोटी * षडाबा. "नाह्या पछी- अंगमेलनुं माला पाणी दीहराति वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). दिवसदीवंमि ऐतिका. दीपक [सातमी विभक्ति] [प्रा.दीवम्यि-दीपे] दीहा आनंस्त. लावल. शृंगामं. दिवसो दीवसिखा आरारा. दीपशिखा दीहाडा उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. दिवसो दीवाण वीसरा. दरबार, राजसभा (फा. दीहु गुर्जरा. दिवस दीवान) दुअंगम, दूअंगम विमप्र. शृंगामं. दुर्गम, दीवाकाणउ उक्तिर. काणो, एक आंखवाळो. मुश्केल . दुआर, दूआर उषाह. वीसरा. द्वार दीवीदार प्रेमाका. मशालची दुआरी गुर्जरा. द्वार दीव्य चतुचा. माणस अपराधी छे के नहीं दुकर, दूकर देवरा. कपलं, अघ6 (सं. ते नक्की करवा माटे योजाती पाणी, दुष्कर) अग्नि वगेरेनी कसोटी [सं.दिव्य]; जुओ दुकुर स्थूलिफा. दुष्कर, मुश्केल दिव्व, धीज्य दुकृत अखाका. दुष्कृत्य दीवो थाशे प्रेमाका. देवाळु काढवू पडशे दुक्कर आरारा. ऐतिका. तेरका. जिनरा. दीश प्रेमाका. दिवस लावल. षष्टिप्र. दुष्कर, कठिन दीस आरारा. ऐतिका. उपबा. तेरका. दुक्करकार ऐतिका. दुष्कर, करिन (सं. रात 2010_03 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुक्ख/दुभर दुष्करकारक) दुक्ख आनंस्त. गुर्जरा. तेरका दुःख दुक्रित, दुक्रीत अखाका. नरका. दुष्कृत्य, पाप २५० दुखाउ नरका. दुःख पामुं दुखायु नलाख्या. दुःखित (सं. दुःख परथी ) दुग आनंस्त. जिनरा. बे प्रेमाका. स्त्रीओना दुगणुं प्रेमाका. बे गणुं, बमणुं दुगडुगी दशस्कं ( १ ). काननुं के गळानुं एक घरेणुं दुगंछा जिनरा. घृणा, जुगुप्सा [दे. दुगुंछा ] दुगुंछइ उक्तिर. घृणा करे (सं. जुगुप्सते) दुग्गतेरका. दुर्ग दुग्गय ऐतिका. दुर्गति दुग्धा नरका. आपदा, जंजाळ दुचती पंचवा. बे चित्तवाळी, गभरायेली, [खिन्न, उदास, चिंतित ] (सं. द्वि+चित्ता) दुच्छिय आरारा. जुगुप्सित (अप. दुउच्छिअ) दुखतेरा. दुर्जन खोहण गुर्जरा. दुर्योधन वुट्ठ गुर्जरा. दुष्ट मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दुणउ, दूणउ पंचवा. वीसरा. सिंहा (शा). बे गणुं, बेवडुं (सं.द्विगुण) 2010_03 दुणी नरप ( द ). [ दोणी], दूध दोहवानुं पात्र [सं. दोहिनी] तर, दूतर प्रधुचु. शृंगामं. तरवाने मुश्केल (सं.दुस्तर) प्राचीसं दुःख [ सं . दौःस्थ्य ] ; नलरा. दुःखी (सं. दुःस्थ ) दुत्तरि ऐतिका दुस्तार, [तरवो मुश्केल ] दुत्तारो ऐतिका. दुस्तार, [तरवो मुश्केल ] दुदर शृंगामं. देडको (सं. दर्दुर) आरारा. दूध [सं. दुग्ध] दुध लावल. जेमनो सानो करवो मुश्केल होय एवा (सं. दुर्धर) दुनी आरारा. चित्तसं. जिनरा. हम्मीप्र. दुनिया, लोक, संसार (हिं.) दुनी चतुचा. ? दुनीठउ वसंफा(ल) वसंवि. वसंवि(ब्रा). केमेय नीठे नहीं अंत आवे नहीं वुं (सं. दुर्निष्ठितकम्) दुनि गुर्जरा. बे ( सं . * द्वीनि) ठुत्तण गुर्जरा. दुष्टत्व (सं. दुष्टत्वन) तुट्ठवल ऐतिका. दुष्ट दल, [दुर्जनोनो समूह ] दुप्रापु षडाबा. दुष्प्राप्य वुट्ठमणु गुर्जरा. दुष्ट मनवाळु डुडबडी ऐतिका. जलदी जुओ दडवडु तुडवडी वीसरा. वाद्यविशेष; जुओ दुडुदुडी डी आरारा. बीजी डी वेताप. डूंडी दुडुदुडी विराप. एक प्रकारनुं वाद्य; जुओ दडदडी, दुडदुडी, दुडवडी, दुंडवडी - दुप्पसउ विमप्र. दुःप्रसह नामे आचार्य दुभग जिनरा दुर्भाग्य, [नामकर्मनो एक प्रकार, जेना उदयथी जीव काम करे तोपण हडहड थाय, अवगुण न कर्यो होय तोपण अपमान पामे] [जै.] भण मदमो. दुभव, दुखाववुं ?, [दुःख] तुभर अभिऊ. दुर्भर, [मुश्केलीथी पोषण थाय एवं गरीब] Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २५१ कुमणोदुमका दुमणो आरारा(व). दमणो, एक वृक्ष (सं. शकाय एq [सं.] दमनक) दुर्वा प्रेमाका. एक घास, घरों दुमनी * शीलक. [उदास] [सं.दुर्मनस्] दुर्वाइक अभिऊ. दुर्वाक्य दुमाम, दुमांम हम्मीप्र. दमाम, दबदबो, दुर्वासना दशक(१). प्रेमाका. दुर्गध भपको दुलंभ आरारा. दुर्लभ दुमास अखाछ. दमास्कस, कापड दुलारा नरप. मनगमतां, वहालां दुमेलो मदमो. छंदविशेष (सं.दुर्मिला) दुलि जुओ जुलि दुयार तेरका. द्वार दुल्लभ गुर्जरा. दुर्लभ दुरग वीसरा. दुर्ग, गढ दुल्लह ऐतिका. गुर्जरा. प्राचीका. दुर्लभ दुरगा आरारा. दुर्गा, देवी, देवचकली दुवार वीसरा. द्वार दुरनीवारी चतुचा. दुर्निवार्य, निवारी न दुवारांमति जुओ वारांमति शकाय तेवी दुवि तेरका. बेय (सं.डौ+अपि) दुरन्त * प्रबोप्र. [भारे, दुष्परिमाणी] [सं.] दुविस्सह 'ऐतिका. कठिन, अशक्य *दुरबुद्धि आरारा. दुर्बुद्धि, दुष्ट दुषमाआरउ उक्तिर. दुषम आरो, [जैन दुरभव आनंस्त. खराब भव - अवतार- कालगणनामां एक दुःखमय युम] (सं. वाळो, [भारे संसारभाववादो] (सं. दुषम+आरकः) दुर्भव्य) दुषमा समइ ऐतिरा. माठा वखतमा दुरमतियां नरका. दुर्मति धरावनारां दुष्ट चतुष्ट जुओ चतुष्ट दुरंग * ऐतिका. [दुर्गम, कठिन]; गुर्जरा. दुसम ऐतिका. कठिन, खराब खराब, कठण, आप्रिय, कडबु। दूसर जिनरा. दःस्वर, नामकर्मनी एक * लावल. [कठिन, भारे] प्रकार जेना उदयथी जीवने खराब दुरिजन नरका. प्रेमाका. दुर्जन अवाज मळे] [जै. दुरियण आरारा. दुर्जन दुसार वीसरा. बेधारी तलवार दुरिया * ऋषिरा. [पापमय] (सं.दुरिता) दुह आरारा. बे दुरी हम्मीप्र. दुरित, पाप दुह तेरका. -, [दुःख दुरीउ गुर्जरा. पाप (सं.दुरित) दुहरासि ऐतिरा. दुःखराशि दुरीय गुर्जरा. पापी (सं.दुरित) दुहवण, दूहवण उपबा. उषाह. पडाबा. दुरोदर कादं(शा). नलाख्या. जुगार (सं.) दूभव, ते, दुभवणी, पीडा (सं.दुःख दुर्भगत्वं आरारा. दुर्भाग्य [सं.] परथी) दुर्भर प्रेमाका. महामुसीबते भरी के पोषी दुहवावं चतुचा. नरका. दुभावु, दुःखी क्यूँ ___ 2010_03 Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुहवियउ/दूमइ २५२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दुहवियउ आरारा. कामा(शा). दशस्कं(१). दूआड उषाह. ?, ["तोफानी, *वकर्यो] षडाबा. दूभव्यो (सं.दुःख परथी) दुहाइ, दुहाई नरका. *पंचवा. प्रेमाका. दूआर जुओ दुआर आण, सत्ता, मनाई दुइ, दुई तेरका. प्राचीसं. वीसरा. बे दुहातुं कामा(त्रि). दूभवतुं (सं.द्व-); द्वैत दुहिलि कादं(शा). मुश्केलीथी [सं.दुःख दूउ गुर्जरा. संदेशो, [तेढुं] (सं.दौत्य) परथी] दूउ आरारा. बन्ने दुहु अभिऊ. बे (सं.द्वि+खलु) दूउ *विमप्र. [*दूत दुहुलू नलाख्या. दुःखी अवस्था (सं.दुःख+ दूकर जुओ दुकर इल्ल) दूखणि देवरा. दुःखी स्त्री (सं.दुःखिनी) बुडं वीसरा. बन्ने दूखल पास हरिवि. खांडणिया साथेनां दुहुवो कामा(त्रि). दुभवो [सं.दुःखापय्] बंधन (सं.उदूखलपाश) दुहुवावु नरका. प्रेमाका. दुभाजु, दुःख पाम्युं दूघडउ उक्तिर. मुश्केल (सं.दुर्घटम्) दुहे रे पाडा अखाका. पाडाने दोहे, मिथ्या दूजई विराप. दूझे छे (सं.दुह्यति) प्रयास करे दूजउ दशस्क(१). देवरा. प्रेमाका. वीसरा. दुहेलउं आरारा. ऐतिका. नेमिछं. प्राचीसं. शृंगामं. बीजो [सं.द्वितीय; हिं.] लावल. षडाबा. दुष्कर, दोह्यलु; आपत्ति दूजण गुर्जरा. जिनरा. दुर्जन (सं.दुःख परथी) *दुजी कादं(शा). दूती दुंडदुडी गुर्जरा. एक प्रकारनी ढोलकी; जुओ दूणउ जुओ दुणउ दुडुदुडी दूत अखाछ. धूत, जूगटुं दुंडी मदमो. दांडी, ढंढेरो दूतपालक नलरा. एक राज्याधिकारी दुंदुभि अखाका. नरका. प्रेमाका. मोटुं नगारुं दूतर जुओ दुतर दुंदुहि गुर्जरा. नेमिछं. मोटुं नगारुं (सं. दूदु नलरा. दडियो, पडियो दुंदुभि) दूदर विमप्र. दुर्धर, दुर्जेय] दूअ गुर्जरा. दूत दूध ने दहीं प्रेमाका. जे गणो ते, [सर्व दूअउ आरारा. बीजा - पछीना ___कंई, सर्वस्व] दूअडी लावल. दूती, नोकरडी, दासी दूधे वरस्या मेह प्रेमाका. खूब आनंद फेलायो दूअंगम जुओ दुअंगम दूभता प्रेमप्र. नाराज करता दूआ * विमप्र. [दूत, संदेशो लई जनार] दूमइ उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. दुभवे (सं. दूआइति उषाह. आण, दुहाई दूयते) 2010_03 Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दूमण नरका. उदासीनता (सं. दुर्मनस् ) मणी प्राचीसं. दुःखी, सचिंत (सं. दुर्मनस् ) दूयभावि गुर्जरा. दूत तरीके (सं. दूतभाव ) दूयारिका अभिऊ. द्वारिका दूरी अखाछ. आघो वूलहा देवरा. दुर्लभ दूव्वय प्राचीफा. द्रौपदी, पांडवोनी पत्नी दूषइ उक्तिर. दोष लगाडे, खराब करे (सं. दूषयति) सम उपबा. खराब समय; गुर्जरा. तेरका. [जैन कालगणनामां] पांचमो आरो, [ कठिन आरो] (सं. दुःषम) दूहउ कर्पूमं. आज्ञा, दुहाई दूहती ऋषिरा. दूभती [सं. दुःख परथी ] दूहवइ रक्तिर. कादं (शा). जिनरा. दशस्कं ( 9). नलरा. प्रधुचु. प्राचीफा. लावल. दुःख आपे (सं. दुःखापयति) दूहविइ गुर्जरा. दुभवे (सं. दुःखापयति ) दूहवण जुओ दुहवण दूहवाइ ललिरा. दुभाय, दुःखी थाय दूहबाणउ विमप्र. दुभायो दूहविउ, दूहव्यु [दुभायेलो ], दुःख पामेलो २५३ आरारा. उपबा.. दूहुववुं अखाछ. दूभववुं दृढाव प्रेमाका दृढता, स्थिरता दृष्ट नरका. प्रेमप. प्रेमाका दृष्टि, नजर दृष्टि त्रेडवी जुओ डववुं 2010_03 दृष्टि न खंचइ. धार जुओ खंचइ दृष्टि पदारथ दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. दृष्ट पदार्थ, नजरे पंडता पदार्थ दृष्टि-रक्षण प्रेमाका. नजरनी चोकी दृष्टि-रक्षा दशस्कं ( 9). नजरकैद दृष्टिवेध शृंगामं दृष्टिथी वींधायेलुं -दे गुर्जरा. देव, [आदरवाचक] देअंत शृंगामं. [देतां ], आपतां वेई (आद्ये वेई ) * चित्तसं. [ वगेरे ] देई उक्तिर. नलाख्या. दई, आपी देउ गुर्जरा. देव देउ गुर्जरा. देवानी वस्तु ( सं . देयम् ) देउर गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. प्राचीफा. दियर (सं.देवर) देउल आरारा. उषाह. कादं (शा). गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. प्रबोप्र. विमप्र. सिंहा (शा). शीलक. देवळ (सं. देवकुल) देउली उक्तिर. नानुं देवळ (सं. देवकुलिका) देखतुं दशस्कं (१) देखीतुं देखणहार उपबा. षडाबा. देखनार दूहाइ आरारा. दोहे दुहि उषाह. दोह्यलं, [मुश्केल] [सं. दुःख देखि-न आरारा. देख ने परथी] देखिवउँ उक्तिर. देख डूमण/देठे देखणं चित्तसं. दृश्य, [तमाशो, खेल ] देखाडे दंत अखाका. दांतिया करे, मश्करी करे, [गुस्सो करे, चिडाय ] देखावख उक्तिर. देखादेखी [ दे. प्रा. देख + पेक्ख] देखी आरारा. द्वेषी देखेतुं दशस्कं ( 9). देखतुं देठि आरारा. शीलक. दृष्टि देठे चतुचा. दीठे Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेडी/वेसणभारी २५४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश देडी वेताप. देवडी, [चोकीदारनुं चोकीनुं वेवादेवी गुर्जरा. देवदेवीओ स्थळ] देवानुप्रिओ आनंस्त. देवोने प्रिय देण आरारा. देवाने । देवारी अंबरा. देवरावी देणहार आनंस्त. षडाबा. देनार, देवा इच्छुक देवालइ उपबा. देवालयमां देणाहरु उक्तिर. देवा इच्छनार देवालि उक्तिर. एक वेल, देवताडी, देवदेमइ कृष्णच. देवकी दाली, कूकडवेल (सं.देवताडक, देवदेयु नंदब. दउं तालक) देरीय विक्ररा. विलंब (फा.देरी) देवि विमप्र. चीबरी, भेरव पक्षी देव आरारा. देवलोक; दैव, भाग्य देविइं आरारा. देवे देवकपट्टण अंबरा. प्रभासपाटण वेबुलोइ जुओ लोइ देवकउं नाम पतन अंबरा. देव- पाटण, देव्या प्रेमाका. मदमो. वेताप. देवी, देवता प्रभासपाटण देश चतुचा. दिशा देवकापट्टण अंबरा. प्रभासपाटण देशघाती आनंस्त. आंशिक घात करनार देवकां षडाबा. देवो ज्यां क्रीडा करे ते (कम) [जै. [सं.] [पर्वत] [सं.देवक देशन, देशना ऐतिका. प्राचीफा. उपदेश, *देवचण ["दव्वचण] आरारा. द्रव्य-अर्चन, [उपदेशात्मक व्याख्यान [सं.] द्रव्यपूजा देशांतरी उक्तिर. विदेशी (सं.देशान्तरिक); देवत चंद्रवा. देवता जुओ देसंतरी देवति विमप्र. देवता, देवी देशोटो वेताप. देशवटो देवप्रकार आरारा. दैवी, अद्भुत घटना देशोत वेताप. देशपति, [राजा]; नरप(द). देवर गुर्जरा. दियर (सं.) गरासियो, जागीरदार] [*सं.देशपुत्र] देवलवाडउ प्राचीसं. देलवाडा (सं.देवकुल- वेस जिनरा. देशविरति, [सम्यक्त्वना पाटक) स्वीकारपूर्वक मर्यादित त्याग, जैन देवसिउ षडाबा. दिवसने लगतुं (सं. परंपरानी एक आत्मावस्था] दैवसिक) देसईबंध * जिनरा. दिशविरति नामना गुणदेवसी उषाह. [*देवेशे - रामे]; जुओ सी स्थानकमां थता कर्मबंध] [जै.] देवहर प्राचीफा. देवमन्दिर (सं.देवगृह) देसडु शृंगाम. देश देवंगह आरारा. देवोनां अंगने देसण नेमिछं. षष्टिप्र. उपदेश, उपदेशात्मक देवाणुप्रिय ऐतिका. देवोने प्रिय (सं.देवानां व्याख्यान (सं.देशना) - प्रिय) देसणभारी चारफा. उपदेशादिथी गौरवयुक्त ____ 2010_03 Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २५५ . देसन/दोगंधिक (सं.देशना+भारित) देही चित्तसं. नरका-२. देह जेने छे ते, देसन ऐतिरा. देशना, उपदेश ___ आत्मा [सं.] वेसना देवरा. षडाबा. उपदेश [सं.देशना] देही प्रेमाका. देह, शरीर देसपट आरारा. देशवटो देहीना चोर प्रेमाका. देहना चोर, अदृश्य देसवदीतु चारफा. देशभरमा प्रख्यात [सं. देहवाळा देशविदित] देहु आरारा. दो, आपो देसवरति प्राचीफा. श्रावकनां व्रत, अणुव्रत, देहुं पंचवा. आपीश [सं.दा, प्रा.देय] हिंसा आदिनो आंशिक त्याग (सं.देश- देहेन प्रेमाका. बाळवानी क्रिया, अग्निविरति) __संस्कार [सं.दहन] वेसंतर आरारा. तेरका. देशांतर, [अन्य देहेवट चंद्रवा. जडमूळथी नाश देश], देशवटो देहेवट वालो रूस्तस. खेदानमेदान करी देसंतरी चारफा. विदेशी (सं.देशान्तरिक); नाख्युं, जुओ दहेंवट जर्बु जुओ देशांतरी दैवजोग षडाबा. दैवयोग, भाग्ययोग देसाउर नेमिछं. सिंहा(शा). देशावर, अन्य दैवडा प्रेमाका. दैव, भाग्य, नसीब देश, परदेश दैवत गुर्जरा. देवताओ देसाउरी आरारा. शृंगाम. अन्य देशमां दो गर्जरा. लावल. बे (सं.द्वौ) फरनार, परदेशी (सं.देशावरी) दोअंगमो उषाह. दुर्गम देसानी उक्तिर. छायाकर, [*छायो करनार दोड ऋषिरा. प्रबोप्र. लावल. वीसरा. बे, साधन, *छत्र लईने चालनार] बन्ने सं.द्वौ+अपि] देसोटुं नलरा. देशवटो, देशनिकाल दोख दशस्कं(१). नलाख्या. प्रेमाका. दोष देह वसंफा. *शरीर; वसंवि. *दर्शन (सं. दोखी आरारा.. मदमो. वेताप. अपराधी, दृश्यते, प्रा.देहइ?); वसंवि(ब्रा). तकः पापी (सं.दोषी); आरारा. दोष – दूषण देहचिंता प्राचीफा. कुदरती हाजत (सं.) उत्पन्न करनारो; जुओ दोषी देहरउं उक्तिर. नलरा. दहेरुं (सं.देवगृह) दोखीसोखी आरारा. दुःखी अने *शोकदेहरासरु उक्तिर. देरासर (सं.देवतावसरः) वाळो, [*सुखीदुःखी] देहली आरारा. तेरका. उंबर (सं.) दोखे अखाका. दुःख आपे देह-सुचिंत आरारा. देहचिंता, मळत्याग दोगंदक ऐतिका. एक देवजाति [सं. देहारामी चित्तसं. देहर्नु सुख माणे छे ते, दोगुंदक] [जै.] देहमां विश्रांत छे ते दोगंधिक देवरा. एक विशिष्ट देवलोकनुं वेहांतर कामा(शा). मृत्यु [सं.] नाम [सं.दोगुंदक] [जै.] 2010_03 Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वोगुण/दोहोली २५६ . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दोगुण देवरा. बेवड (सं.द्विगुण) दोषी वो(ग)छइ उक्तिर. घृणा करे दोहग आरारा. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. दोटावे अखाका. दोडावे, गबडावे वसंवि(ब्रा). षष्टिप्र.दुर्भाग्य (सं.दौर्भाग्य) दोटी उक्तिर. ऐतिरा. पहेरवानुं वस्त्र, [एक वोहगपणु शृंगामं. दुर्भाग्य कापड] (सं.द्विपटी); जुओ डोटी दोहग्गु ऐतिका. दुर्भाग्य (सं.दौर्भाग्य) वोठ आरारा. प्रहार, चोट (रा.दोट) दोहडउ उक्तिर. [*कोई जीवडु] (सं.द्रोहाटः) वोत प्रेमाका. शाहीनो खडियो (अ.दवात) दोहणी उक्तिर. दोणी (सं.दोहिनी) वोतडि उक्तिर. नदी, दुर्गम किनारावाळी बोहलङ आनंस्त. चतुचा. मुश्केल - नदी (सं.दुस्तटी) वोहला ऐतिरा. प्राचीसं. षडाबा. दोहद, दोभागपणउं नलरा. दुर्भाग्य (सं.दौर्भाग्य- गर्भिणीना मनोरथ त्वन) दोहवट प्रेमाका. दश वाटे, दशे दिशामां दोभागिणि जिनरा. दुर्भागिनी दोहिल आरारा. उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. दोभागीया आरारा. दुर्भागी ऐतिका. कादं(शा). गुर्जरा. नेमिछं. दोरक अखाका. दोरो (सं.) प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). दोरियां प्रेमाका. [दोरानी भात ऊपसती। विमप्र. शीलक. दोह्यलु, दुःख आपनालं, देखाय तेवू] एक जात, कापड । कपरुं, मुश्केलीभर्यु, मुश्केली, संकट दोरियो नरका. गळामां पहेरवान घरेणुं (सं.दुःख+इल्ल) आरारा. जिनरा. वोल वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). हिंडोळा प्रेमाका. दुर्लभ, मेळवq मुश्केल (सं.दोला) दोहिलम आरारा. दोह्यलापणुं, मुश्केली दोवट *नरप. [रफेदफे, विनाश]; जुओ दोहिल्लय तेरका. दोह्यलु, कठिन दोहोवट दोहिल्या विमप्र. मुश्केलीथी दोवड वीसरा. बमणं. बेवडं. खब (सं. दोहिवा उक्तिर. दोहवा __ *दुपुटक/दुवृत्त) दोही पंचवा. बन्नेय (सं.द्वौ) दोवारिक विक्ररा. दरवान [सं.दौवारिक दोहीत्रउ उक्तिर. दौहित्र, [दीकरीनो दीकरो] दोषी दशस्कं(१). अपराधी; जुओ दोखी, दोहेलुं नरका. दुःखदायक; [मुसीबत]; दोसी देवरा. दोह्यलुं, कपरूं वोशी प्रेमाका. कापडियो [सं.दौष्यिक] दोहो प्रेमाका. दश दोसी उक्तिर. नलरा. विमप्र. कापडनो दोहो दस कामा(त्रि). दशे दिशामां । वेपारी (सं.दौष्यिक) दोहोल अखाछ. दोह्यलुं होवू ते, मुश्केली दोसी आनंस्त. दोषवाळो [सं.दोषी]; जुओ दोहोली अखाका. दुर्लभ 2010_03 Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २५७ दोहोवट/मंडल दोहोवट अखाका. [खेदानमैदान, विनाश]; द्रष्ट्यमुष्ट्य चित्तसं. दृष्टिथी अने मुष्टिथी जुओ दोवट ग्रही शकाय एवा अनुभववाळु, प्रत्यक्ष दोंकार ऐतिका. तबलानो अवाज अनुभववाळु दौ सिंहा(शा). बे [सं.द्वौ] द्रष्ट्ये पड्यु चित्तसं. समजमां आव्यु, दौगंधक शृंगामं. जैन शास्त्र प्रमाणेनी एक ख्यालमां आव्यु देवजाति (सं.दोगुंदक) व्रसुका विमप्र. *ध्रासका, [युद्धना मोटा यल मदमो. दिले, हृदयमां अवाज याढि कादं(शा). नलाख्या. दहाडे (सं. द्रह वाग्भबा. धरो [सं.हृद]; लावल. दिवस-) तळाव, सरोवर चामणुं नलाख्या. प्रेमाका. दयामणुं ब्रहद्रहवार उक्तिर. संध्यासमय पाहाडी रूस्तस. दहाडी, दररोज ब्रहद्रहीय गुर्जरा. [धमधमी], अवाज करी याहाडो रूस्तस. दहाडो द्रहो अखाछ. धरो [सं.हृद] द्योती प्रेमाका. प्रकाशी बंग ऐतिका. दुर्ग, [नगर] [सं.] यौ अखाका. आकाश [सं.] . द्राख आरारा (व). उक्तिर. गुर्जरा. लावल. व्रउडइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. दोडे (सं. वीसरा. षडाबा. द्राक्ष (सं.द्राक्षा) द्रवति, द्राति) द्राम अंबरा. उक्तिर. प्राचीका. प्रेमाका. द्रम गुर्जरा. वृक्ष (सं.द्रुम) __मोसाच. दाम, पैसा (सं.दम्म) द्रमक उपबा. चलणनुं नाम (सं.) ब्राहि नरप. दृष्टि, नजर व्रमकी गुर्जरा. विराप. [धमधम] अवाज तु *लावल. [ध्रुवनो तारो] करी द्रुउ प्राचीका. ध्रुवनो तारो द्रमद्रमइ उक्तिर. गुर्जरा. धमधमे द्रुडि कादं (शा). दोडे द्रम्मामु उक्तिर. दमाम; जुओ द्रुमाम द्रुमचोला (विद्रुमचोला) * लावल. [परवाळा द्रव अभिऊ. द्रव्य ___ जेवा राता] द्रवडिउ षडाबा. दोड्यो (सं.द्रवते) द्रुमंडल प्राचीका. ध्रुवमंडल, [ध्रुवप्रदेश] द्रव्य(?) (केंद्रव्य) मदमो. -, [*निर्धन] द्रुमाम हम्मीप्र. दमाम, दबदबो; जुओ द्रम्मामु द्रव्य अध्यातम *आनंस्त. [द्रव्याश्रयी - दू कृष्णबा. हरिवि. ध्रुव [हिरण्यकशिपुनो द्रव्य एटले पदार्थ, मूर्त के अमूर्त, तेनो पुत्र]; हरिवि. ध्रुव, [अचल, स्थिर] आश्रय करनार अध्यात्म] [जै.] द्रूपद नलरा. प्राचीफा. ध्रुवपद, पद्यमां दरेक द्रव्व आरारा. द्रव्य कडीने अंते पुनरुक्त थती पंक्ति, टेक पष्ट नरप(द). [दृष्टि], आंख मंडल कृष्णच. ध्रुवमंडल, [ध्रुवनो तारो] ___ 2010_03 Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्र्य / धणीप य "नेमिछं. "लावल. [ध्रुवनो तारो ] द्रूयमणि * ऐतिका. [ध्रुवनो तारो ] ब्रेठि आरारा. उषाह. गुर्जरा. नलरा. प्राचींफा. प्राचीसं. विराप. वीसरा हम्मीप्र. दृष्टि, नजर श्रेष्ठी विक्रच. दृष्टि, नजर हे चित्तसं. धरो, जलाशय (सं. हृद् ) ब्रो वेताप. दरो, दुर्वा ब्रोई दशस्कं ( 9) दरो, दुर्वा २५८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश धउल- वीसरा. धोळवुं (सं. धवल-) धउलउ आरारा. उपबा. गुर्जरा. वीसरा. धोकुं (सं. धवल) धखी आरारा. गुस्से थई [सं. धिक्ष ] धगड हम्मीप्र. मुस्लिम योद्धो धगडमल नरका. जोरावर के खडतल पुरुष धज वीसरा. धजा (सं. ध्वज) धजबंध मदमो. खुल्लेखुल्लुं 2010_03 uses गुर्जरा. धडधड धsess उक्तिर. गुर्जरा. धडधडे (प्रा. धडधडिय) धडु (धडु प्रीछउ ) * विमप्र. [अंदाज जाण्यो, केटलामां छे ते जाण्युं, परीक्षा करी लीधी] धतु विराप. धड, शरीर ब्रोडइ आनंस्त. कादं (शा). दशस्कं ( 9). दोडे धढूक्या ललिरा. [ धडूक्या ], धडधडाट (सं. द्रु परथी ) करता आव्या द्रोण प्रेमाका. एक माप; हरिख्या. हांडो धण अभिऊ. आरारा. गुर्जरा. देवरा. धन, (सं.) पैसो धडू धरि अंगवि. * स्थिर टकी रहे, [तोले आवे] द्रोह आरारा. अपराध धण आरारा. धन्य द्वादश वाटे. प्रेमाका बारे वाटे, बधी रीते धण चतुचा. जिनरा. प्राचीसं. वीसरा. स्त्री, द्वारा चित्तसं. साधन, मार्ग प्रिया (सं. धनिका) [ सं . धन्या ] धणउ विक्रच. धनुष्य, कामठु धणकणकंचणिई ऐतिरा. धनधान्यसुवर्ण द्विगुण प्रेमाका. बमणुं, बे गणुं [सं.] द्विज प्रेमाका. बे वखत जन्मनारा, दांत [सं.] वडे द्वीपायन अखेगी. द्वैपायन, व्यास बीब आरारा. द्वीप धणचर नेमिछं. पशु, धणमां फरनार धणवs प्रचु. कुबेर (सं. धनपति) धणि प्राचीफा. पति (सं. धनिन्); प्राचीसं. प्रिया; जुओ धण धणहर * कृष्णच. [बाणावळी] [सं. धनुर्धर] धणिउ उक्तिर. धणधण्यं धणिउ गुर्जरा. धन्य, भाग्यशाळी धणिया उक्तिर. [* धाणाभाजी, कोथमरी] (सं. धनिका) धणीप षष्टिप्र. स्वामित्व, स्वामीपणुं (सं. धनित्व) Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ? मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश धणीवर उक्तिर. [?] (सं. धन्यवयाः) धणु तेरका. नेमिछं. धनुष धणुह अंगवि. गुर्जरा. वसंफा. वसंवि वसंवि (ब्रा). विक्रच. षडाबा. धनुष्य (सं.धनुष्) धणुहर, धणुहरु ऐतिका. "विक्रच. धनुर्धर धणुहीय वसंफा. वसंवि. धनुष्य (सं. धनुष्) धणुं प्राचीका. धनुष्य (सं. धनुष्) धतूरियउ उक्तिर. जेणे धतूरानो नशो कर्यो छे एवो (सं. धत्तरित) २५९ धत्तुर, धत्तुरउ आनंस्त. उक्तिर. धतूरो (सं. धत्तूरक) धन गुर्जरा. तेरका. देवरा. नैमिछं. लावल. वीसरा. धन्य धनाद आरारा. गुर्जरा. चंद्रवा. कुबेर [सं.] धनदाण ऐतिका. धनसंपत्ति आपनार धन धन वसंवि. धन्य धन्य धनागरउ उक्तिर. [?] ( सं . धान्यनागरम् ) धनि वीसरा. धन्य धनुहडी प्राचीफा. धनुष्य (सं. धनुष) धन्न आरारा. तेरका. लावल. धन्य धणीवउ / धर-चरमनी धम्ममइ ऐतिका. धर्ममति, [ धर्मबुद्धिवाळो ] धम्मलाभु तेरका. धर्मलाभ धम्मिय तेरका धर्मिष्ठ जन, समान धर्म पाळनार (सं. धार्मिक) 2010_03 धम्युं प्रेमाका. धमणथी तपावेलुं धम्युंधूयुं अखाका. धमणथी धमावेलुं अने तपावेलुं धधू वा खूप चित्तसं. श्रमथी मेळवेलुं सहेजमा गुमावे धम्युंधूप्युं वाये जाय, धम्युंधूप्युं वाये वटे अखाका. धम्युंधूप्युं फोगट जाय, [तपावेलुं वायुथी ठरी जाय, श्रम एके जाय]; जुओ वाये जाय, वाये वटे धय ऐतिका. तेरका. ध्वज धयरठू गुर्जरा. धृतराष्ट्र धयराठ गुर्जरा. धृतराष्ट्र धयवड ऐतिका. गुर्जरा. प्राचीफा. धजा, पताका (सं. ध्वजपट) धर गुर्जरा. विराप. वीसरा. पृथ्वी, धरती (सं. धरा); तेरका भूमि, जमीन-जायदाद धर प्रेमाका. पर्वत [सं.] धोई प्रेमाका. खूब मारी, धोई नाखी धबक गुर्जरा. प्रहार, [थाप] धबल प्रेमाका. *बेवकूफ, [*मंदिर ]; जुओ घरइ आरारा. स्थापित करे; आरारा. तेरका. धमल- घर, धवल tear विमप्र. धबधब धमइ उक्तिर. तपावे (सं. धमति) धमल-घर हम्मीप्र. धवलगृह, महालय धमील प्रेमाका. धम्मिल, चोटलो धम्म गुर्जरा. तेरका. धर्म धर अखाका. ललिरा. #हरिख्या. मूळ, आदि [ तत्त्व], आरंभ [ सं . धुर्] वीसरा राखे, मूके; उपबा. उषाह गुर्जरा. तेरका. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. षडाबा. धारण करे, राखे (सं. धरति ) धर- चरमनी नरका. [ पहेलेथी छेल्ले सुधीनी, संपूर्ण], उत्तम कोटिनी Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धरणइ/धंध २६० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश धरणइ उक्तिर. गीरवी (सं.धरणके) [रा. धर्म-खंडे प्रेमाका. धर्मना खंडनथी धर[] धर्मधोरिंधर प्रेमाका. धर्मधुरंधर, धर्मनी धुरा धरणउ जावइ जुओ जामइ धारण करनार धरणहार आनंस्त. उपबा. धरनार, धारण धर्य *उषाह. [मूळथी, मांडीने] करनार घलहर उषाह. सिंहा(म). हम्मीप्र. हवेली, धरणीधर नेमिछं. पृथ्वीने धारण करनारा, महालय (सं.धवलगृह) पर्वतो [सं.] घव आरारा (व). नलाख्या. धावडो, एक घर थकी कादं (शा). मूळथी, प्रथमथी (सं.धुरा झाड (सं.) परथी) धवन जुओ गवन-धवन धरथी धुर लगे अखाका. *आदिथी धुरा धवल अंगवि. महेल [सं.] - अंत सुधी, [मूळथी आगळना भाग धवल अभिऊ. आरारा. गुर्जरा. नलरा. सुधी, संपूर्णपणे विमप्र. धोळ, एक प्रकारचें मंगलगीत घरधीश मदमो. पृथ्वीपति (सं.धरा+ (सं.) अधीश) धवलइ उक्तिर. तेरका. धोळे (सं.धवलधरम-पडो दशस्कं(२). धरमनो ढोल (सं. यति) धर्मपटह) धवलक तेरका. धोळकुं [गाम] (सं.) घरमंडलि गुर्जरा. पृथ्वीमंडल (सं.धरा+ धवलग्रह पंचवा. महेल (सं.धवलगृह) मंडल) धवलमंगल ऐतिका. चारफा. विक्ररा. धरहडी गुर्जरा. [धणधणी], धूजी मंगलगीत, धोळ धराधर दशस्क(१). प्रेमाका. पृथ्वीने धारण धवलहर गुर्जरा. नेमिछं. प्राच. प्राचीसं. करनार शेषनाग [सं.] सिंहा(म). हवेली, महेल (सं.धवलगृह) धरि प्रांचीफा. प्रारंभमां (सं.धुर्) धवाल आरारा (व). ?, [कोई वनस्पति] धरि विक्ररा. पकडी, [स्वीकारी]; नलाख्या. धसक्कइ गुर्जरा. ध्रजी ऊठे; विमप्र. ध्रासको धरे, धारण करे, विचारे (सं.धरति) - भय अनुभवे दि.] धरि उक्तिर. धरवू, पकड, धारण करवू घंखना प्रेमाका. झंखना, तालावेली धरी कामा(शा). (बदलामां) आपी, [गीरवे धंग(?) मदमो. दिंग करे तेवा, छक करे __ मूकी] तेवा, [अद्भुत] [*हिं.दंगह] घरेवि आरारा. धीरज बंधावे छे, हिंमत धंध अखाका. अखाछ. चित्तसं. धांधल, आपे छे जंजाळ, उपाधि, आपत्ति; प्रेमाका. घरेवि ऐतिरा. धरीने धांधल, घमसाण; मदमो. धांधल, ___ 2010_03 Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश घमसाण; [गरबड, उपाधि]; * सिंहा (शा). [ जंजाळ, गूंचवण ]; चंद्रवा. सम्यचो. मिथ्या प्रवृत्ति [ - मान्यता, विचार]; *गुर्जरा. [ जंजाळ ]; आरारा. कामकाज धंध ( अंध-धंध) * अखेगी. [ अंधाधूंधी, अंधेर ] २६१ धंघउ, धंधु * प्राचीसं. [ जंजाळ, मिथ्या प्रवृत्ति ] धंघ-धुवारी ( अंघ ने धंध-धुवारी) अखाका. * धांधल अने धुमाडी, [अंधाधूंधी - अंधेर अने धुमाडाभरी स्थिति ] धं नरप ( द ). * द्वंद्वनी उपाधि, स्थिति], [ मिथ्या स्थिति ] धंधु जुओ धंधउ [द्वन्द्वनी धंधोड नरका. ढंढोळ, हलाव धंधोडी अभिऊ. रमवानुं कोई साधन, [*दंडूको ] घंघोळ, घंघोलवु कादं (शा). गुर्जरा. दशस्कं (१). नरका. प्रेमाका लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). सिंहा (शा). ढंढोळवुं, हलबलाववुं, ध्रुजाववुं, व्यग्र करवुं, हानि करवी (दे. धंधोलिय) धंधोलियय तेरका. जंजाळमां सपडायेलुं [ क्षुभित, व्यग्र ] ( अप. धंध+ओल्ल+य) धंनु गुर्जरा. धन्य घा अखाका. अखाछ. दोडादोड, धांधल, प्रवृत्ति, [हायवोय, तालावेली, लालसा ] धाइ आरारा. धाव, आया [ सं . धात्री ] धाई नरप ( द ). दोडी [सं. धावति] 2010_03 नध्य. १७ धंध /धात्रीफल घाईक * मदमो. [ धारण करनार ] घाओडी नलाख्या. धव नामनुं झाड, एनी नानी जात " धाड- जिनरा. प्राचीसं. आक्रमण करवुं, विनाश करवो [.] धाडि उक्तिर. ऐतिका. प्राचीफा. षडाबा. आक्रमण, धाड (सं. घाटी) [दे.] घाडि सईनी जुओ घाडि सईनी धाणक *विराप. धनुष्य चलावनार, धनुर्धारी (सं. धानुष्क) धाणि अभिऊ. धावण धाणुक गुर्जरा. बाणावळी (सं. धानुष्क) धात आरारा. प्रकृति, अवस्था, दशा (सं. धातु); नलरा. प्रेमप. प्रकृति, स्वभाव; आरारा. चित्तसं. नलरा. हरिख्या. धातु, पदार्थ; अखाका. * अखाछ. मूळ, आत्मस्वरूप; अखाका. अखाछ. नलरा. हरिख्या. प्रकार, [भेद], रीत [सं. धातु] धातइ उक्तिर. रागथी (सं.धातुना ) धात मेलइ आरारा. प्रकृतिनो मेळ करे, संबंध जोडे घातनुं अखाछ. फाववुं, अनुकूल आवकुं धातस्वायु उक्तिर. [?] [सं. धातुस्वादकः ] धाता चतुचा. विधाता, ब्रह्मा [सं.] धातु अखाका. वीर्य [सं.] धातुकर * प्रेमाका. [* पर्वत] [सं.] धातुवादी चंद्रवा. सुवर्णसिद्धिनो प्रयोग करनार [सं.] धात्री आरारा. धावमाता, आया [ सं . ] धात्रीफल कादं (शा). आंबळु (सं.) Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाधूप/धिन २६२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भटका धाधूप *प्रेमाका. [(शोधवा माटेनी) करवू दोडादोड, दोडधाम] धारह नेमिछं. धारण करनार (न) धाम चित्तसं. वैभव, प्रताप; स्थिति, स्वरूप धारावउं (पाउ धारावर्ड) षडाबा. [पग] [सं.धामन्] धरावू, रखावडावं, [पधरामणी करावं] धामण आरारा(व). उक्तिर. धामण, एक (सं.धारयति) वनस्पति (द.धम्मण्ण) धार्यां घायर्या नरका.[धारण-घेनंवाळां] धा-मायुं *अखाका. [दोट, हायवोय, धाव प्रेमाका. धवडावनारी दाया [सं.धात्री] लालसाथी] धावइ उक्तिर. दशस्कं(१). दोडे (सं.धावति) धामिय गुर्जरा. धर्मी (सं.धार्मिक) धावू-धूपयूँ अखाछ. दोडवू, [दोडादोड धामी लावल. *धार्मिक, *धर्मिष्ठ; [*स्वर्ग- करवी, दोडधाम करवी, (तीर्थोमां) मां रहेनार, *देव]; [*पराक्रमी] धाय आरारा. धावमाता [सं.धात्री धास्यइ आरारा. चडी आवशे ? उत्पन्न धायइ ऋषिरा. धराइ जाय (सं.धै) - थशे ? घायउ उक्तिर. धरायो (सं.ध्रातः); जुओ धाह आरारा. कृष्णच. वीसरा. (मदद आपणी धायउ माटेनी) धा, पोकार, रुदन, क्रंदन दि. धायेधूपे जुओ धूपे, धाधुंधूपq धाहा] धार नलरा. मध्य भारतमां आवेल धारप्रदेश धाहडी आरारा(व). उक्तिर. धावडी, एक धार अणी अटके नहीं अखाका. तलवार वनस्पति (सं.धातकी) के भालानी धार अडे नहीं, [कशी हानि धाहुडी षडाबा. कोईक प्रकारनो पथ्थर [के न थई शके] ___ माटी] धारइं आनंस्त. धारण करे, [राखे] धांख अखाका. उक्तिर. कादं(शा). नलाख्या. धार खंचइ जुओ खंचइ धखना, झंखना, आतुरता धारण प्रेमाका. धरी राखनार, टेको. धामधुमाडे धाय *चंद्रवा. [धामधूमथी, [थांभलो] धमधमतुं, धसमसतुं दोडे] धारण अखाका. प्रेमाका. धीरज, ["हिंमत]; घिकावू नरका. धिखावू, खूब गरम करूं हरिख्या. *मननी दृढता, [हिंमत]; घिग गुर्जरा. धिक् [*धारण करवू- राखवूते] (सं.धारणा) धिगु धिगु तेरका. धिक् धिक् धारण *गुर्जरा. [ग्रहण, स्वीकार] घिधिकट, घिधिकट्टि गुर्जरा. लावल. धारणा आनंस्त. ग्रहणपटुता मृदंगना अवाजसूचक शब्दो, – बोल धालुं कादं(धु). चतुचा. पकडवू, ग्रहण घिन, घिन नलरा. प्राचीफा. शाबाश, धन्य 2010_03 Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश धिष्ट आरारा. धृष्ट, निर्लज्ज धीर प्रेमाका. धीरज, धैर्य धिंगडमाल जिनरा. जबरदस्त, [समर्थ वीर] धीरट्ठ नलरा धैर्य; धैर्यवान ( सं . धृष्ट); धी जुओ आघी, सारधी षष्टिप्र. धीट, निर्लज्ज धीअ कृष्णच. विक्ररा. पुत्री [सं. दुहिता ] धीरठपणउ सिंहा (म). धैर्य (स. धृष्टत्वन) धीरणा ऋषिरा. धीरज [ आपवी ते ], [सांत्वना] *धी अह [ थी अह ] विक्ररा. [स्त्री] धीरं शृंगामं. बुद्धिथी, [स्वेच्छाथी, मरजी मुजब] २६३ धीट दशस्कं(१). प्रेमाका. हिंमतवाणुं, दृढ धीठ अखाका. आरारा. पक्तुं, नफ्फट, लुच्चुं ures प्रेमाका. शृंगामं धगधगे, सळगे धीकis पंचवा. चिता, धीकणी (सं. धिक्ष ) धीज जिनरा. नरका. प्रेमाका लावल. विमप्र. पाप माटेनी दिव्य [ चमत्कार - भरेली] परीक्षा, कसोटी [अग्निमां हाथ नाखवो वगेरे] (सं. दिव्य); जुओ धीज्य धीज आरारा. द्विज, ब्राह्मण धीरिम आरारा. तेरका. प्राचीफा. धैर्य, धीरज (सं.) धीर्ज दशस्कं ( २ ). धीरज, धैर्य धीवर ऐतिरा. गुर्जरा. माछीमार (सं.) धीजी आरारा. ब्राह्मणी (सं.द्विज + ई); जुओ धीश दशस्कं (१). दशस्कं(२). मदमो. दीव्य, धेजी वेताप. हरिख्या. अधीश, राजा धीज्य नरप ( द ). [ दिव्य ] आकरी कसोटी; जुओ दीव्य, धीज धीस कामा (शा). राजा, अधिपति [सं. अधीश ] धींग आनंस्त. धींगो, समर्थ धींगड ऐतिका. मोटो, जबरदस्त, मजबूत, घीठी प्राचीफा. कपटी (सं. धृष्टा); ऋषिरा निर्लज्ज, बेशरम धिष्ट / धुमाय धीमर प्रेमाका. माछीमार [ सं . धीवर ] धीय गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं पुत्री (सं. दुहिता) धीरय नलाख्या. धीरज ( सं . धैर्य) धीरवइ उक्तिर. आश्वासन आपवुं, हिंमत आपवी (सं. धीरयति) (सं. धृष्ट) पुष्ट धीठाइ आनंस्त. धीठताथी, [दृढताथी, हठ- धींगडमल नंदब. धींगा मल्ल जेवो पूर्वक] 2010_03 धीखुं चतुचा. * दशस्कं (१). नरका. प्रेमाका. विश्वास मूकवो धींगा ऐतिका. मोटो, जबरदस्त, मजबूत, पुष्ट धुणह गुर्जरा. धनुष घुतारे नरका. धूती ले, [ छतरीने लई ले] धुत मदमो. धूर्त धुनइ आरारा. ध्वनिथी धीयडी नरका. नरप दीकरी (सं. दुहिता ) धुनि हरिख्या. घोष, अवाज (सं. ध्वनि) धीया उक्तिर. पुत्री [सं. दुहिता ] धुमाय प्रेमाका. धुमाडो करे [सं. धूम - ] Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धुय/धून य प्राचसं. ध्रुवनो तारो घुयरय ऐतिका निष्पाप, दोषरहित, कर्मदोषहीन ( सं . धूतरजस्) घुर आरारा. ऋषिरा. ऐतिरा. विमप्र. वीसरा. * षडाबा. आरंभ, पहेलुं मूळ (सं. धुर्); ऋषिरा. तेरका अग्र स्थान, मुख्यता (सं. धुरा); * अखाका. [ आगळनो भाग ]; जुओ धरथी धुर लगे घुरहि ऐतिका. आरंभमां, प्रथम स्थाने घुरि आनंस्त. आरारा. गुर्जरा. "नेमिछं. प्राचीसं. *लावल. *विराप. शृंगामं. मूळ, पहेलुं, पहेलां, आरंभमां, पहेलेथी, मूळमांथी (सं.धुर्); कर्पूमं. गुर्जरा. प्रबोप्र. लावल. आगळ, अग्रभागमां, मोखरे, लावल. धुरामां, धूंसरीमां धुरिधर प्रबोप्र. मोवडी, अग्रणी धुरी आरारा. बळद (सं. धुरिन्) धुरीन जिनंरा. धुरंधर धुलहडी उक्तिर. प्राचीफा. फागण मासनी शुक्ल प्रतिपदा, धुळेटी [सं. धूलि परथी] धुलही विमप्र. धोळ गानारी घुली वाग्भबा. धोळी [सं. धवल] ध्रुव प्राचीफा. स्थिर, निश्चल (सं. ध्रुव) धुवारी जुओ धंध-धुवारी धुवुल जुओ धवल धुवेष देवरा. द्वेष २६४ घुसइ गुर्जरा. धसे घुसट, घुंसट विमप्र. साडलानो छेडो ओढाडवानी [प्रसारवानी] क्रिया; नेमिछं. *विमप्र. [ पाथरj]; जुओ धुंसर 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश घुसळ प्रेमाका. (लग्न बखते वरने पोंखवा माटे वपराती सांठीकडानी ) धूंसरी घुंबड, धूंबड प्रचुचु मोटा मल्ल; गुर्जरा. विराप. जंगली, उग्र, [जुलमी, अनाडी पुरुष ]: जुओ धूबडि, धूमड घुंसट जुओ धुसट, धुंसर * घुंसर (घुंसट) * लावल. [ पाथरशुं ] धू उषाह. प्राचीसं. पुत्री (सं. दुहितृ) धूअ गुर्जरा. प्राचीफा. प्राचीसं. पुत्री (सं. दुहिता) धूअउ उक्तिर. धुमाडो (सं.धूम) घूअडड शृंगामं घुमाडाथी धूअरि उक्तिर झाकळ (द. धूमरी); जुओ धूयरि धूआ अंबरा. उषाह. पुत्री (सं. दुहिता ) धूआ उक्तिर ध्रुवा, [* पद्यनी टेकनी पंक्ति, "यज्ञनुं घृतपात्र] धूआडु वाग्भबा. धुमाडो धूजइ ऋषिरा. गुर्जरा. नलाख्या. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). षडाबा. धूजे (सं. धूयते) धूटस धात आरारा. धूसट धात ? नश्वर तुच्छ पदार्थ ? धूता अखाछ. * धूर्त, * धुतारा, [* धूत्या, *छेतर्या] धूतारिवउं उपबा. धूतयुं छेतरवुं (सं. धूर्तकार-) घूघूइ प्रद्युचु. (धुमाडाथी ) धूंधवाय [सं. धूमान्ध] धून नरका. ध्वनि, अवाज Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश धूनि, धूनी अंबरा. ध्वनि; जुओ शंखधूनी धूप आरारा. तडको [हिं.] [*सं.] धूपइ उक्तिर. धूप करें (सं. धूपयति ) धूपघटी नलरा. धूपदानी (सं.) धूपघाण उक्तिर. विमप्र. धूपदानी धूपायण विक्ररा. धूपदानी धू पे [ धाये धू पे ] ( ध्याये अमेका. "तप करे, [दोडादोड करे, (तीर्थोमां) भटके ] धूबडि (धूंबडि) विमप्र. [ अनाडी, जंगली स्त्री] २६५ धूम वसंफा. वसंफा (ल). धुमाडो धूमविराल वसंवि. वसंवि(ब्रा). धूमवराळ ( काढतां अस्त्रो) धूमड * नरप. [अनाडी, जंगली पुरुष ] ; जुओ घृड, धृढ सिंहा (शा). दृढ धुंबड धे जुओ मानेश घे, शधे धूम्रपान अखाका. नरका. प्रेमाका. हठयोग- धेडी नरप धेनु, गाय नी क्रिया, हाथ ऊंचा राखी, चारे घेण प्रेमाका. धेनु, गाय दिशामां अग्नि अने उपर सूर्य एम घेणू उक्तिर. धेनु, गाय पंचाग्नि सेववानी एक उग्र तपश्चर्या, [धूणी पर ऊंघे माथे रही करातुं तप] धूम्रमारग अखाका. यज्ञनो, क्रियाकांडनो मार्ग धूळकट प्रेमाका. धूळनो कोट, वंटोळियो धूळकोट प्रेमाका. धूळनो कोट, वंटोळियो 2010_03 धूलहडी नलरा. धूळेटी (सं. धूलि परथी ) धूले पलहरे विमप्र. धोळां धवलगृहेधूव प्राचीसं. दुहिता, कन्या धूसर ऋषिरा. भूखरा रंगनुं (सं.) धूहलइ शृंगामं धूंधळों, [अंधकारभर्यो, घनघोर ] घूंखल, धूंखलुं अखेगी. चित्तसं. वाग्भबा. धुंवाडियुं, धूसर, धूंधकुं धूंधूंकार चित्तसं. अंधकार धूंधूतो अखेगी. धूंधवातो [सं. धूमान्ध-] धूंबड जुओ धुंबड धूंबडि जुओ धूबडि घूंसह उक्तिर. नाश पामे (सं. ध्वंसते ) धूय, धूया आरारा. तेरका. प्राचीसं. पुत्री धेय सिंहा (शा). दीक (सं. दुहिता); जुओ मद्रधूय धूयरि षडाबा. अप्कायनो एक प्रकार, झाकळ [दे. धुमरी ]; जुओ धूअरि धूरई गुर्जरा. उद्विग्न थाय, [* पहोंचे], [*पहेलां ज] धूनि / घोअड़ G घेण्य प्राचीका. सीमंतवाळी स्त्री ( सं . धन्या) घेजी आरारा. ब्राह्मणी (सं. द्विज + इ); जुओ धीजी न आरारा. प्रेमाका. धेनु, गाय धेर अखाका. अखाछ. धरमूळ, मूळ धेर्य चित्तसं. धरमूळ, मूळ, मूळथी, मूळमांथी, संपूर्णपणे धेंण सिंहा (शा). नायिका, प्रियतमा [सं. धन्या] धैनड जिनरा. पुत्र [ रा . ] घोआइ उक्तिर. धूए (सं. धावति) [सं. धौवति] Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु) घोक/धू २६६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश धोक ऐतिका. साष्टांग प्रणाम धोख जिनरा. *नमस्कार, [*वंदनीय, ध्याता नरका. ध्यान करनार __ *प्रशस्त] ध्यातु अंबरा. धातु, [खनिज पदार्थ धोखो प्रेमाका. दुःख, शोक; *अखाका. ध्यायइ उपबा. देखाय, जणाय; [(ध्यान) [आपदा, क्लेश धराय] कादं(धु). [एकाग्रताथी] घोटा जिनरा. पुत्र [रा. निहाळे, जुए धोती चित्तसं. शरीरनां आंतरडां वगेरे स्वच्छ ध्या, आनंस्त. नरका. प्रेमाका. लावल. करवा माटेनी हठयोगनी षट्कर्मविधि ध्यान धरवू पैकीनी एक [सं.धौल] ध्ये चित्तसं. ध्येय घोप, धोपा रूस्तस. एक जातनी बंदुक ध्रड रूस्तस. धड घोयण उक्तिर. धोवू ते, धोण (सं.धावनम्) ध्रडता मदमो. दृढता [सं.धौत परथी प्रट मदमो. दृढ धोयती षडाबा. धोती, धोतियुं ध्रम प्राचीफा. धर्म घोरणि, धोरणी गुर्जरा. *विमप्र. विराप. प्रसकइ जिनरा. प्राचीसं. भयथी छळे, श्रेणी (सं.) ध्रासको खाय घोरंधर चंद्रवा. मदमो. धुरंधर, अग्रणी, ध्रसकाइ जिनरा. भयथी छळावे, ध्रासको आगळ पडतो पडावे घोरिउ गुर्जरा. बळद (सं.धौरेय) ध्रसकइ, ध्रसूकइ गुर्जरा. भयथी छळे, घोरी अभिऊ. विमप्र. धुरा धारण करनार, ध्रासको खाय (प्रा.ध्रसक्किय) मुख्य, मोटो, मोखरे रहेनार; आरारा. प्रसुङ- नलरा. हांकी काढवू, [खसेडवू, दूर उक्तिर. प्रेमाका. लावल. धुराने धारण करवू] करनार, बळद (सं.धौरेय) ध्रसूकइ जुओ ध्रसक्कइ घोलो प्रेमाका. थप्पड, लपडाक ध्रा- उक्तिर. कादं(शा). तेरका. नलाख्या. धोवणी उक्तिर. एक वनस्पति, [*भोरीगणी] प्रद्युचु. प्राचीसं. धरावं, तृप्त थर्बु (सं.धावनिका) (सं.ध्रायते) धोवति प्राचीसं. धोती, [धोतियुं] ध्राय अखाछ. अधरके, जमावे घोंकार विक्ररा. [धों एवो] अवाज ध्रावड मदमो. द्राविड घोंसा रूस्तस. नगारा [रा.; हिं.] ध्रास अभिऊ. धासको ध्याडि विमप्र. धाड, [आक्रमण, हल्लो] ध्रुवउ उक्तिर. स्तंभ, खूटो (सं.ध्रुवकः) ध्यात अंबरा. प्रकृति, [स्वभाव, जात] (सं. 5 उक्तिर. ध्रुव, [*स्थाणु, *स्तंभ, *खूटो] 2010_03 Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २६७ धेठउ/नटवो धेठउ उक्तिर. धृष्ट नक्र कादं (शा). मगर (सं.) ध्रोई प्रेमाका. धरो, दूर्वा, एक घास नक्षत्रपति प्रेमाका. चंद्र [सं.] ध्रोब उक्तिर. दुर्वा . न-क्षात प्रेमाका. क्षत्रियहीन, [योद्धा वगरनुं ध्रौव्य आनंस्त. वस्तुनी स्थिरता, जैन दर्शन- नखयात प्रेमाका. नखना घा [सं.] नी त्रिभंगीमांनो एक भंग [सं.] नख्यैत्र ऐतिरा. नक्षत्र ध्वजवड हम्मीप्र. ध्वजपट, धजानुं वस्त्र नग चित्तसं. नरका-२. पर्वत [सं.] विज नलाख्या. ध्वज, वावटो नगयुग हरिवि. वृक्षयुगल [सं.] नगरगोयर पंचवा. नगरनो दरवाजो (सं.नगर न अभिऊ. उषाह. गुर्जरा. तेरका. नलरा. +गोपुर) वसंवि. वसंवि(ब्रा). सिंहा(म). षडाबा. नगरनायिका कादं(ध). गणिका षष्टिप्र. ने (भारवाचक) (सं.ननु के नु) नगरां आरारा. रहेठाण, दर (द.णगर); (प्रा.णाइ) जुओ कीडी-नगरां नअंणे मदमो. नयणे नगशृंग हरिवि. पर्वतशृंग [सं.] -नइ आरारा. गुर्जरा. नलरा. माटे नगीनो ऐतिका. प्रेमाका. रत्न, झवेरात नइ वीसरा. ने (भारवाचक) नगुरो अखाका. गुरु वगरनो, [गुरुभावथी नइ उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. पर थयेलो, केवल आत्मनिष्ठ हम्मीप्र. नदी नगोदर नरका. प्राचीफा. कंठ- एक नइडउ वीसरा. नजीक (सं.निकट) आभूषण; जुओ हार नगोदर नइण वीसरा. नयन, आंख नघट नफेरी कृष्णबा. वाजिंत्रना प्रकार नइतरु *शृंगाम. [नदी तथा वृक्ष] नघरो मदमो. नघरोळ, बेफिकरो नइहर प्राचीसं. पियर (सं.ज्ञातिगृह; हिं.नेहर) नघात अखाछ. घात न थाय ए रीतनी नई नलरा. नदी नघूष अंबरा. नहुषराजा नउकार आरारा. नवकार, नमस्कारमंत्र नचित नरप(द). निश्चित, चोक्कस, नक्की नउतन'चतुचा. [नूतन], सुंदर नच्चइ गुर्जरा. तेरका. नाचे (सं.नृत्यति) नउद उक्तिर. पींज्या विनाना ऊनथी बनावेलुं नजिम शृंगामं.?, [*जोशी] [*फा.नजुमी] एक प्रकार पाथरपुं दि.णवतय] नजिरिं आनंस्त. नजरे । नउल आरारा. उक्तिर. नोळियो (सं.नकुल) नटन आनंस्त. नृत्य (पूजा) नक-वेसर नरका. नाकनी वाळी नट माझि अंबरा. नटोनी वचमां नकाळजो नरका. प्रेमाका. काळजी नटवो नरप(द). उत्तम नट, [नाचनार (सं. [दरकार] वगरनो, चीवट वगरनो नट+वर) 2010_03 Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नटावउ/नमंस २६८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नफेट प्रमाका. नक्क नटावउ अंबरा. उपबा. नटवो, नृत्य करनार नथ नरप(द). प्रेमाका. नाकमा पहेरवानी नटावी अंबरा. नर्तिका कडी, वाळी [सं.नस्ता] नटीए (नाटक नटीए) नरका. वेश भजवीए, न-दोसी अभिऊ. दोष विनानी दिखाव करीए] नह गुर्जरा. लावल. नाद (सं.नद) नदुई सम्यचो. नटडी, नर्तकी नधि आरारा. नलरा. निधि, भंडार, समृद्धि नटुओ प्रेमाका. नट, नर्तक ननु नलाख्या. नन्नो, नकार (सं.न-न) नटे नलरा. दुःख पामे (द.णड); *प्रेमाका. नन्दइ प्रबोप्र. निन्दा करे [पीडे]; जुओ नडइ नन्दी प्रबोप्र. नाटकना आरंभ-मंगल, नान्दी नहरसि स्थूलिफा. नृत्यना रसमां नपुंस अंबरा. नपुंसक नदारंभ गुर्जरा. नृत्य करवू ते (सं.नाट्य+ नपुंसक चित्तसं. पुरुषत्व विनानु, आरंभ) - सामर्थ्यहीन नट्ठ(नट्ठ सल्ल) शृंगाम. शरीरमां घूसी नफर आरारा. *जिनरा. पंचवा. चाकर, गयेलो [ने भांगीने एमां रही गयेलो गुलाम (फा.)। कांटो] (सं.नष्टशल्य) नफेट प्रेमाका. नफ्फट, निर्लज्ज नट्ठा नेमिछं. नाठा], नासी गया [सं.नष्ट] नफेरी आरारा. कामा(शा). रूस्तस. शीलक. नड गुर्जरा. नट, [नर्तक] शृंगाम.. नानो ढोल; नरका. नेमिछं. नडइ उपबा. गुर्जरा. तेरका. नलाख्या. प्रेमाका. शरणाईना प्रकारचें मुखवाद्य प्राचीसं. मदमो. लावल. व्याकुळ थाय, (फा.नफीरी) हेरान थाय, कष्ट पामे; व्याकुळ करे, नबाप रूस्तस. नवाब दुःखी करे (प्रा.णडिअ) [सं.नटति]; नभव- नलरा. निभाव, (सं.निर्वह्) जुओ नटे नमण अखाका. नमन, वंदन नड-पिक्खण प्राचीसं. नटखेल (सं. नमणड. नमणीय वसंफा. वसंवि. नटप्रेक्षणकम्) __ *वसंवि(ब्रा). नमतुं, नमणुं, सुंदर (सं. नडाया लावल. "झांखा पाड्या, [नडतर नमन-क) कराया, व्याकुळ कराया] नमणि वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). नमन, नडिया जुओ सहु नडिया नमवू ते, [झूकवू ते] नणदर यिमप्र. नणंद [सं.ननान्द] नमणीय जुओ नमणइ नणंदर नलरा. नणंद [सं.ननान्दृ] नमस्करइ उक्तिर. षडाबा. नमस्कार करे नति अंबरा. नित्य (सं.नमस्करोति) नत्थी तेरका. ललिरा. नथी (सं.नास्ति) नमस- तेरका. नमस्कार करवा (सं.नमस्य) 2010_03 Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २६९ . नमाया/नरवइ नमाया लावल. नमाव्या नरकनी शिक्षा जेने भोगववानी नथी नमि तेरका. नेमिनाथ एवा [सं.] नमीचा चतुचा. नम्र नरखइ आरारा. प्राचीफा. जुए, नीरखे (सं. नमेरो मदमो. निर्दय निरीक्षते) नमेवी ऐतिका. नमीने, नमस्कार करीने नरखक चंद्रवा. निरीक्षक नमेंरी सिंहा(शा). निर्दय नरखाय चित्तसं. नीरखाय नम्य कादं(शा). नमीने नरग गुर्जरा. जिनरा. विक्ररा. नरक नम्रीभूत अखाका. नम्र थयेलो नरत अखाका. प्रेमाका. नृत्य नय जिनरा. नलरा. प्राचीफा. नदी; जुओ नरत प्रेमाका. निवृत्ति, अंत, [छेडो] नइ __ नरत * पंचवा. [खबर]; *अखाछ. [तपास; नयडउ उक्तिर. नजीक, पासे (सं.निकटम्) स्पष्टता]; जुओ नर्त्य, निरत, निरति, नयण गुर्जरा. तेरका. वसंफा. वसंवि. नीरति, नृत वसंवि(ब्रा). वीसरा. नयन नरत पडें वेताप. खबर पडे नयणकडक्खे चारफा. [नयन] कटाक्ष नरति आरारा. ऐतिरा. नलाख्या. तपास, नयणकुरंग नरका. हरण जेवी आंखो भाळ, खबर (रा.) (सं.निरुक्ति); जुओ नयणलां विराप. नयनो, आंखो नयणां चोरवां नरकां. नजर चकाववी. न नतुं अखाका. चंद्रवा. प्रेमाका. सिंहा(शा). देखे तेम करवू नरसुं, खराब नयणुले चारफा. नयन । नरते चंद्रवा. नक्की, निश्चित करीने, [स्पष्ट नयणसुरंगु वसंवि(ब्रा). नयनने आनंद- करीने] नरनरइ उक्तिर. गुर्जरा. नरका. गर्जना करे, नयनिमल ऐतिका. नीतिमां [ – न्यायमां गाजे] - तर्कमां निर्मल [सं.] नरनाह आरारा. गुजरा. नरनाथ, राजा नयर आरारा. कृष्णबा. गुर्जरा. तेरका. नरपवरु गुर्जरा. नरोमां उत्तम (सं.नरप्रवर) वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). विक्ररा. नरबद चित्तसं. ?, [*गर्भनी प्राथमिक विराप. नगर स्थिति] [*सं.नर्दबुद] नयरलोय विक्रच. नगरलोक नरम नरका. नर्म, विनोदलीला नयरि, नयरी ऐतिका. गुर्जरा. नेमिछं. नगरी नरय आरारा. गुर्जरा. प्राचीका. लावल. नरउत्त सिंहा(शा). नरपुत्र नरकातीत प्रेमाका. नरकने वटी गयेला, नरवइ आरारा. गुर्जरा. नरपति, राजा निरति जनक नरक 2010_03 Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरवय/नवयनिहाण नरवय ऐतिका. नरपति नरवर - विंदा नेमिछं. राजाओ [ सं . नरवरेन्द्र ] नरवाणि आरारा. चोक्कस (सं. निर्वाण ) नरविंदो प्राचीफा. राजा (सं. नर + इन्द्रः ) नरहिणि शृंगामं. नेरणी, नख कापवानुं ओजार (दे. णहरणी); जुओ नहरणी नरंद आरारा. नरेन्द्र नराला कादं (शा). निराळां, जुदा ज प्रकारनां (सं. निरालय परथी) २७० नराहिवु गुर्जरा. राजा (सं. नराधिप ) नरियां सिंहा (शा) नारीओ नरिंद गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. लावल. वीसरा. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नवकारसी उक्तिर. सूर्योदय थया पछी बे घडीए एटले ४८ मिनिटे नवकार गणी पारणुं करवानुं जैन व्रत ( सं . नमस्कार - सहित) नरेन्द्र, राजा नरेडाट प्रेमाका. खेदानमेदान नरेणी * अखाका. [?] नवं नरेसर गुर्जरा. देवरा. नेमिछं. लावल. नवनिध प्रेमाका नवनिधि, धनना देव नरेश्वर, राजा कुबेरना नव भंडार नव-नीमालीय वसंवि (ब्रा). नवी ताजी कूंणी नवमालिका नलाट उषाह. कपाळ लाड अखाका. अखाछ. अभिऊ. कपाळ नलिआर, नलीआर हम्मीप्र. नलिकाकार, तोपची नर्तकी सम्यचो. नाटिकणी, [नटी] नर्ति, नर्त्त प्राचीका. नृत्य नर्त्य * अखाछ. [भाळ, पत्तो]; जुओ नरत नव-नेह वसंवि (ब्रा). नवा दशस्कं (२). नृप वाळी नावट उषाह. कादं (शा). प्राचीफा. कपाळ [सं. निटलपट्ट] नाव- तेरका. नमवुं (सं.नम्) [जै.] नवकारवाली उक्तिर. नवकार जपवानी माळा (सं. नमस्कारमालिका) 2010_03 नवगर, नवघर अभिऊ. नव ग्रहनां रत्नोवाळु आभूषण (सं. नवग्रह ) नवगीय ऐतिका. नव ग्रैवेयक [नामनुं विमान स्वर्ग नवघड नरका - २. * नवा अने गडीबद्ध, *नवांनक्कोर, [*नवीन प्रकारनां] नवण वीसरा. नमन, [नमवुं ते] नवतेरी (नगरी) सिंहा (शा). नवतर [ नगरी ] नव नइ दो ( गणवुं) हम्मीप्र. नव ने बे एटले अगियारा गणवा, नासी जवुं नवनवउं गुर्जरा. साव नवुं; उपबा. हमेश ― ताजा स्नेह नवपद आरारा. अरिहंत आदि ध्याननां नव स्थान [जै. ] नवभंगिहि वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). नवीनवी रीते, वैचित्र्यपूर्वक नवमइ गुर्जरा. नवमो, [नवमो रस - शम, निर्वेद] नवमई ( न वमई) * गुर्जरा. [न छोडे, न जे नवयनिहाण आरारा. नव प्रकारना निधि, Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भंडार [सं.नव+निधान] नवरंग * वसंवि (ब्रा). [ नूतन छटाथी] (सं.) नवलखउ लावल. वीसरा हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात, अति कीमती घोडा (सं. नव+लक्ष) नवल्लिय प्राचीफा. नवी, नवली, नवेली (सं. नव+ल्ली) नवविछित्ति आरारा. नूतन शोभायुक्त (सं. नव्याणु ऐतिका. नवाणु नशावे अखाका. नसाडे नवविच्छित्ति) नवसई षडाबा. नव सो ( सं . नवशत) नव-सत्त नरका. प्रेमाका नव अने सात, सोळ २७१ नवसर गुर्जरा. नलरा. प्रेमाका लावल. नव सेरनो (हार ) नवाण चित्तसं. प्रेमाका. बहोळा पाणीवाळां स्थान, जळाशय [सं. निपान] नवाणवs षडाबा. नवाणुं (सं. नवनवति) नवारसउ उक्तिर. लोहना नव भाग धरावतुं एक औषध (सं. नवायसम् ) नवरंग / नही नवेण प्रेमाका. नाह्याधोया विना ज्यां जई न शकाय तेवी जगा, जेमके रसोडुं नवेण चोको अखाका. रसोईनी जग्याने पीने शुद्ध करवी नवेरडं नेमिछं नवं नवं आवेलुं [ माणस ] (सं. नवतर ); नेमिछं. प्राचीफा. नवतर, [ नवीन जातनुं, अद्भुत ] निर्विण्ण) ० नवी संदो सिंहा (शा). कारकुन, लहियो [फा. नवीसंदः ] नपुंसक अंबरा. नपुंसक 2010_03 न - वि अभिऊ. गुर्जरा. तेरका. नलाख्या. नेमिछं. वसंफा. वसंवि (ब्रा). वीसरा. लावल. नहीं (सं. न+अपि) ताजा नविलि लावल. नवल, नवी प्राचीका. स्त्रीना अधोवस्त्रनी गांठ, [नाडी] (सं. नीवि ) नवीनउ षडाबा. निर्वेदप्राप्त, खिन्न (सं. नह षष्टिप्र. नहीं नशि विमप्र. [ निशाए ], रात्रे नशिहर उषाह. राक्षस (सं. निशाचर ) नष्टचर्या * प्रेमाका. [निशाचर्या, गुप्तचर्या, छूपी रीते रहेवुं ते]; जुओ नाटचर्या नष्टपणे मोसाच. नठारापणे नासले * विमप्र. [?] नसंक अखाछ. नि:शंकपणे, चोक प्रेमाका नसोनी [सं. स्नसाजाल] नसा-जाळ नसावइ उक्तिर. नसाडे ( सं . नशू परथी ) नसावणहार उपबा. नसाडनार नसि प्राचीफा. रात्रि (सं. निशा ) नसें, नशे प्राचीका. निश्चय, [ नक्की ] नस्तर- नलरा. खूटयुं, [पसार थवुं ] (सं. { तरति ) नह तेरका. प्राचीफा. वीसरा. नख जाळ नहपलव जुओ नीहपलव नहरणी उक्तिर. नेरणी, नख कापवानुं ओजार (सं. नखहरणी); जुओ नरहिणि नही उक्तिर. [?] (सं.नखिका) Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं / नाटक नहींत उक्तिर नहीं तो, नहींतर नहु आरारा. गुर्जरा. विराप. वीसरा. नहीं ज (सं. न+खलु) नहुतखुं, नहुंतखं उक्तिर. प्रधुचु. विराप. शृंगामं. नोतरयुं, निमंत्रण आपवुं नहुरा कृष्णबा. कालावाला नहू ऐतिरा नहीं नहेरी प्रेमाका. माथामां नाखवानुं तेल नंग * विमप्र. [ चीज, बाबत ] नंदण गुर्जरा. तेरका. पुत्र ( सं . नन्दन ) नंदणी गुर्जरा. पुत्री ( सं . नन्दिनी) नंदन वीसरा. पुत्र (सं.) नंद तेरका आनंद पामवुं नंदवुं अखाका. निंदवुं, निंदा करवी नंदिक नरका. आनंद [ मंगल] नंदीसर तेरका. नंदीश्वर द्वीप [जै. ] नदेवी नेमिछं. निंदा करीने नंमण्य मदमो. नम्रता ना नंदब. वेताप. न्याय नाअता * विमप्र. [नायता वेपारी जाति] [. णाईत्त ] नाइ सक्या ऐतिका. न आवी शक्या नाई कामा (त्रि). वीसरा. हजाम (सं. नापित) नाउं तेरका नाम ( अप.) २७२ - 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नागउर ऐतिरा. नागपुर, [राजस्थाननुं नागोर गाम ] नागड सिंहा (शा). चारण, भाटविशेष (दे. नग्गुडि) नागरथ नलरा. स्त्रीनो एक अलंकार नागिंद विक्ररा. नागेन्द्र, शेषनाग नागेंद नेमिछं. नागेन्द्र, [शेषनाग ] नागोदर स्थूलिफा. कंठनुं एक आभूषण नाच सम्यचो. नाटक नाचणि प्राचीफा. नर्तिका (सं. नृत्य परथी) नाट अखाका. *अखाछ. चित्तसं. प्रेमाका. विमप्र. नेट, नक्की, चोक्कस, खरेखर नाट प्रेमाका. एक प्रकारनी सुतराउ साडी [के वस्त्र] नाकनमणि जिनरा. शिर नमाववुं ते, [वंदन नाटईउ नलरा. रेशमना वाणानुं वस्त्र करवाते ] नाकसोरां अंगवि. नसकोरां नाकोटडे मोसाच. चडावेला नाके नाटक अंबरा. नलरा. विक्ररा. नृत्य, नृत्यसमारंभ, नाटक, [नटखेल ]; चंद्रवा. आख्यान, [साहित्यरचना, काव्य ] नाटकरस अंबरा. नृत्यरस नाटकि अंबरा. नाटक करनार, नट, [ नर्तक ] सामुद्रिक नाग आरारा (व). नागकेसर, नागचंपो (सं.) नाग नरका. लावल. स्त्रीओनुं काननुं घरेणुं नागड गुर्जरा. एक वाद्य नागदमन * आरारा. [सर्पने वश करनार एक वनस्पति] [सं. नागदमनी ] नागफूली नलरा. स्त्रीनो एक अलंकार, [नाकफूली, नाकफळी] नागलडो नरका. स्त्रीओनुं काननुं एक घरेणुं नागलु विमप्र. हरिवि. स्त्रीओनुं काननुं एक आभूषण नागवेल आरारा (व). नागरवेल (सं. नागवल्ली) Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २७३. नाटकिणी/नानावासी . नाटकिणी अंबरा. नटी, [नर्तकी] नातरउं जिनरा. [सगा तरीकेनो] संबंध; नाटचर्या पंचवा. [गुप्तवेशे फरवू], "छूपी नेमिछं. लग्नसंबंध; जुओ नात्र .. रीते युक्तिथी नगरलोकनी चर्चा जोवी; नाति विक्ररा. ज्ञाति जुओ नष्टचर्या, नेष्टचरज्या नातुं अखाका. सगपण, [संबंध] नाटारंग चंद्रवा. नृत्यनो रंगराग के उत्सव तव नात्र प्रबोप्र. अत्र नहीं, अहीं नहीं (सं.) नाठी (हिआनी नाठी) नेमिछं. नष्ट थयेली, नात्र गुर्जरा. लग्नसंबंध (सं.*ज्ञात्रक); जुओ हैयाफूटी] नातरउं नाठीइं उपवा. नष्ट थतां, गुमावतां (सं.नष्टः) नात्रा षष्टिप्र. संबंध, ज्ञातिसंबंध] (सं. नातु कादं(च). "संतायो, [दोडी गयो, नासी गयो] ज्ञात्र); उक्तिर. ज्ञातिओ नाडा जुओ ज्योवन-नाडा नात्रा-संबंधि आरारा. सगपण बांधवा माटे नाड्य ऐतिका. नाट्य, नाटक नाथ अखाका. नरका. नाकमां परोवेली नाण आरारा. ऐतिका.ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. पारसना नलरा. प्राचीफा. प्राचीसं. शंगामं. ज्ञान नाचणा ऐतिका. नाथवू, वश करवं नाणइ आनंस्त. कादं(शा). जिनरा. नरका. नावउद्रि गुर्जरा. नांदोद (गाम) । न आणे, न लावे नाव-बिंदु प्रेमाका. [योगानुभवनां बे तत्त्वो नाणउ उक्तिर. नाणुं (सं.नाणकम) - कुंडलिनी जाग्रत थतां संभळातो नाण सण शंगामं. ज्ञान अने दर्शन अनाहत नाद अने ए नाद- प्रकाशमय नाणधारा लावल. ज्ञाननी धारा व्यक्त रूप नाणवंत ऐतिका. ज्ञानी नादभेद लावल. संगीतना प्रकार नाणिवउ उक्तिर. नणंदनो दीकरो [सं. नादर- * नलरा. [न आदरवू, न करवू] नानान्द्र; रा.नांणदौ] नादु *गुर्जरा. [ग] [*सं.नाद] नाणिहिं (नाणिहिं जलि) ऐतिका. ज्ञानरूपी *नादेय अनादेय जिनरा. [नामकर्मनो एक (जळथी) प्रकार, जेना उदयथी जीवनू हितकारक नाणी आरारा. ज्ञानी वचन पण] अनादरणीय [बने छे] [जै.] नाणी आनंस्त. नेमिछं. न आणी, न लावी नाना अखाका. चतुचा. चित्तसं. नरका. नाणुट्ट विक्ररा. नाणावटी .प्रेमाका. हरिख्या. अनेक, विविध, तरेहनाणुं आनंस्त. न आणूं, लावू नहीं तरेहनु (सं.) नातणउ उक्तिर. रूमाल, गमछो (*सं. नानावासी नेमिछं. विविध प्रकारनी सुगन्धनक्तकः) दि. रा.] थी भरेली 2010_03 Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानाविध/नालि २७४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नानाविध चित्तसं. प्रेमप. प्रेमाका. जुदाजुदा नायल प्राचीसं. ?, [*गर्विष्ठ] दि.णाय] प्रकारना, अनेक प्रकारना [सं.] नायल तेरका. नागेन्द्र (जैन साधुओनो एक नानाविधि नलाख्या. नानाविध, अनेक गच्छ) (सं.नाग+इल्ल) प्रकारनुं नायो चंद्रवा. न्याय नानाविह गुर्जरा. विविध प्रकारचें (सं. नारकिइं उपबा. नरकमां नानाविध) नारकी उपबा. षडाबा. नरकवासी (सं.) नापइ अभिऊ. आरारा. नलरा. नलाख्या. नारगी गुर्जरा. नरकवासी (सं.नारकिन्) नेमिछं. मोसाच. षष्टिप्र. न आपे नारंग गुर्जरा. नारंगीनुं वृक्ष नापजे चंद्रवा. मापजे नारंगडं * नरका. [स्तन] नापिक अखाका. प्रेमाका. हजाम, वाळंद नारंगफळ नरका. [नारंगीना जेवां] स्तन (सं.नापित) नाराधइ षष्टिप्र. न आराधे नापी विक्ररा. वाळंद नारिंग ऐतिका. नारिंग, नारंगी नापीक मदमो. सिंहा(शा). नावी, हजाम, नारिय-कुंजरु, नारीकुंजर प्राचीसं. नारीमय वाळंद (सं.नापित) कुंजर, [नारीमा विहरतो कुंजर, नापीणी सिंहा(शा). हजामडी __ नारीविलासी], कामदेव-बिरुदविशेष नाम अध्यात्म *आनंस्त. [नामाश्रयी नारिंग आरारा(व). उक्तिर. नारंगी, वृक्ष अध्यात्म] [जै.] (सं.नारंग) नामइ उक्तिर. ऐतिरा. गुर्जरा. नरका. नारीकुंजर नरका. प्रेमाका. हाथीनी आकृति प्रेमाका. लावल. नमावे (सं.नामयति); मां सर्वत्र स्त्रीओनी आकृति होय तेवी * आरारा. कादं(शा). रेडे भात नाम सारे चतुचा. ?, (ना सारे = ना नारीकुंजर जुओ नारियकुंजरु कहे ?) नारु विक्ररा. विमप्र. कंदोई, काछिया वगेरे नामउ ऐतिका. नाम नव कारीगर वर्ण नामकम्म जिनरा. नामकर्म, [कर्मनो एक नाल देवरा. गर्भनाळ; अखाका. कमळनी प्रकार, जे जीवनी गति, जाति, देखाव दांडी; देवरा. हम्मीप्र. तोप वगेरेने निर्णीत करे छे] [जै.] नालकेर आरारा(व). नाळियेर (सं.नालिकेर) नामणउ (नामणउ) जिनरा. नम्युं जाय, नालगोला, नाळगोळा कस्तुवा. "प्रेमाका. [नमन थाय] तोपगोळा नामी आनंस्त. नमावनारा नाला लावल. नाळ, दांडली नामीनइ जुओ शिर नामीनइ नालि हम्मीप्र. तोप 2010_03 Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नालय प्राचीसं. मूढ [.] नाली हम्मीप्र. तोप नालीअर आरारा (व). नाळियेर (सं. नालिकेर) नालेर, नाळेर उक्तिर. वीसरा. नाळियेर (सं. नारिकेल) नालेरी आरारा (व). नाळियेरी (सं. नालिकेर) नावइ आरारा. उपबा. कादं (शा). जिनरा. नरका. नलरा. नलाख्या. प्रबोप्र. लावल. षष्टिप्र. न आवे (सं. न + आयाति) नाबट चंद्रवा. न्यायवट, न्यायवृत्ति; जुओ न्यावट नावडियो चंद्रवा नाविक २७५ नावा चतुचा. न आव्या नावी उक्तिर. ललिरा. विक्ररा. षडाबा. हजाम (सं. नापित) नाशा विमप्र. लावल. नाक [सं. नासा ] नाशादंड आरारा. नाकनी दांडी (सं. नासादंड) नाहलउ आरारा. नलरा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). पति (सं. नाथ+ल) नाहलीयौ जिनरा. नाथ नाहवी विक्ररा. हजाम; जुओ नावी नाहाठां रूस्तस. नाठां नाहारुं आरारा. न आहारुं, न खाउं नाहालवा नंदब. न्याळवा, निहाळवा नाहासे रूस्तस. नासे नाहि प्राचीफा. षडाबा. दूंटी (सं. नाभि ) नाहि लावल. नाथे, [नाथ - स्वामी मालिक होवाथी, बनवाथी ] नाक (सं. नासिका) नाशिका, नाशीका सिंहा (शा). षडाबा. नाहिय तेरका सुंदर नाभि (सं. नाभिका) नाहितुं उक्तिर. नाहवुं (सं. स्नातव्यम्) नवसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). नाथ नाहोलीओ नरप ( द ). पति नाहोलो अखाका. मदमो. नावलियो, प्रेमी, नाथ (सं. नाथ+ प्रा. उल्लय) नांखवा (दहाडा नांखवा) हरिख्या. [दिवस ] गाळवा नांगर उक्तिर. वहाणनुं लंगर [दे. गंगर] नांखणहार उपबा. नाखनार नांणेश चंद्रवा न आणीश नास तेरका. नाक (सं. नासा) नासरडुं दशस्कं (२). प्रेमाका नासी जवुं ते; नासीने लीधेलो आश्रय के गुप्तवास नासिक वसंवि (ब्रा). नासिका, नाक नासिवउं उक्तिर. उपबा. नासवुं ते (सं. नश्यति) नालिय/नांणेश नाह आरारा. उषाह. कृष्णबा. गुर्जरा. चारफा. जिनरा. तेरका. नलरा. नेमिछं. प्रधुचु. प्राचीका. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). विक्ररा. विराप. वीसरा. नाथ, स्वामी, पति नास्त, नास्त्य अखाछ. अखेगी. नास्ति (नथी) एवो भाव, न होवुं ते; जुओ आस्त्य - नास्त्य 2010_03 नाहर उक्तिर. वीसरा. वाघ (* सं. नाखर) नाहर * विमप्र. [पथ्थर खेंचवाना दोरडा ] [रा. ] Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नांदिया / निगम २७६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नांदिया षडाबा. आनंदित थया, रांजी थया निकाचित कर्म षष्टिप्र. अत्यंत निबिड कर्म, [चोंटीने वज्ररूप बनी गयेलां, छूटी न शके तेवां कर्म] [जै.] [सं.] (सं.नन्दिताः) . नांदी - कर्म प्रेमाका. कुटुंबना कल्याण माटे देवना आशीर्वाद मेळववानो एक धार्मिक विधि [सं.] नांदीवृक्ष आरारा (व). नांदरूखी वड (सं. निकाम कादं (शा). खूब नन्दिवृक्ष) नांधडियो, नांधडीओ नरका. नरप (द). प्राचीका. प्रेमप. नानडियो, नानो (सं. श्लक्ष्ण) नभ कामा (शा). नाभि नांहांनंहीओ मदमो . नानैयो, नानडियो नि अभिऊ. (भारवाचक) ने (सं.नु) नि अभिऊ. अने (सं. अन्यदपि ) नि वीसरा नहीं निअ गुर्जरा. निज, पोतानुं निअर नेमछं. नजीकनो, [नजीक रहीने ] (सं. निकट) vिs लावल. विमप्र. अने [ सं . अन्यदपि ] निऊ उक्तिर. नेवुं (संख्या) [सं. नवति ] निउजइ उक्तिर. नियोजे, जोडे, काममां ले (सं. नियोजयति) निउंत्री गुर्जरा. निमंत्रण आप्युं निकट्टि विक्ररा. नकटी, नाक वगरनी निकर, निकरउ उक्तिर. * नरका. वसंवि (ब्रा). राशि, जथ्यो [सं.] निकरू नलरा कर विनानो, [करमुक्त ] (सं. निष्कर निकर्मण विक्रच. काम वगरनो, [नवरो] निकंद कखं दशस्कं ( १ ). निकंदन करवुं 2010_03 निकाचिय ऐतिका. निबिड गाढपणे बंधायेल [सं. निकाचित ] निकाय " ऋषिरा. [समूह ] [ सं . ] निकालिजा * गुर्जरा. *विराप. [* लागणी वगरनो, "निर्दय, "साहसिक ] निकांमु गुर्जरा. खूब (सं. निकामम्) निकोलिया उक्तिर फोलवा [सं. निष्कुल; दे. णिक्कोर ]; जुओ नीकोलइ निक्कारण विमप्र. निष्कारण निक्षिपाविसु षडाबा. फेंकावीश, नखावी दईश (सं. निक्षिपू) निखरा आरारा. खराब (रा.) ; जुओ राछनिखर निखूंती निमग्न [थईने ], * * नलरा. — [*कुशळता] निखेपा आनंस्त. निक्षेप, नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाव एवा चार भेदथी वस्तुने ओळखवानो व्यवहार (जै.) निखेवा अभिऊ. निक्षिप्त, नाखेला, [ स्थापना, न्यास ] (सं. निक्षेप) निगड हरिख्या बेडी (सं.) निगड - कटक * कादं (शा). [ बेडी] निगडबंधन * कादं (शा). [ बेडीनुं बंधन ] निगध नलरा. निषध राजा निगम * अखाका. [वेदना परवर्ती शास्त्रग्रंथो] नरका. प्रेमाका. वेदग्रंथो, Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश निगमबुंनिति [शास्त्रो]; जुओ नीगम निछीछि वसंफा. वसंवि. वंसवि(ब्रा). निगम, अखाछ. काढवं, जिनरा. गुमावतुं निर्भर्त्सना करे, तुच्छकारे (सं. देवरा. प्रेमाका. पसार करवू, वितावq निस्तुच्छयति; दे.छिछि ?) निगळ- * वीसरा. [गळी जवं] निजज्ञान प्रेमाका. आत्मज्ञान निगहिय गुर्जरा. संयमित करी (सं.निगृहीत) निजघन अखाका. ब्रह्म[आत्मा रूपी घन निगुडी आरारा(व). नगोड, एक वनस्पति [वादळ] (सं.निर्गुडी) निजर, निजरि आनंस्त. प्राचीफा. नजर, निगुण आरारा. वीसरा. नगुणा (सं.निर्गुण) दृष्टि निगोद ऐतिका. गुर्जरा. नलरा. प्राचीफा. निजंत्रइ उक्तिर. नियंत्रण करे (सं. अनंत जीवोनं एक साधारण शरीर- नियन्त्रयति) विशेष. साधारण वनस्पति (सं.) [जै.] निजाणवि ऐतिका. जीतीने, [नष्ट करीने निगोदर *गुर्जरा. प्राचीफा. कंठ- एक निजिणिउ ऐतिका.जीत्या, [नष्ट कर्या] [सं. __ आभूषण निर्जित, प्रा.निजण]; जुओ निर्जिणइ निग्रहाविउ षडाबा. पकडाव्यो (सं.निग्रह) निज्मर तेरका. निर्झर, [झर| निग्रंथ ऐतिका. परिग्रहरहित, साधु सं. निटोल अभिऊ. निठोर; आरारा. सम्यचो. निग्रंथ] उदंड, घमंडी, निर्लज्ज, नठोर (रा.); जुओ निघणु गुर्जरा. दयाहीन (सं.निघृण) हाटोल निघुख नलाख्या. नहुष राजा निटोल अंबरा. आरारा. उपबा. “ऐतिका. निचंतउ शीलक. निश्चित, चिंता वगर "ऐतिरा. नेमिछं. लावल. विक्ररा. विमप्र. निचितु लावल. नक्की (सं.निश्चित) षडाबा. नक्की, अवश्यपणे, संपूर्णपणे, निचु प्राचीसं. नित्य साव (सं.निस्तुल्य) दि.णित्तुलिय] निचोर्ड नलाख्या. निचोवी (द.णिच्चुड; सं. निटठरपणय तेरका. निष्ठुरपणुं __ *निश्चावयति) [सं. निश्चोतयति] निठुर अखाका. आरारा. उपबा. नेमिछं. निचल तेरका. निश्चल ___ लावल. निष्ठुर, निर्दय निघलु तेरका. निश्चे, [चोक्कस] (सं.. निठोर नरका. निष्ठुर, दयाहीन निश्चलम्) नित प्रत्ये नरका. रोजेरोज, हमेशा निचं आरारा. नित्य निचु ऐतिका. नित्य नितर अभिऊ. नेत्र, आंख निच्छणु तेरका. ? नितंबन * नरका. नितंब, कूलो, थापो] निछमाली गुर्जरा. पांपणना पलकारावाळी नितंबिनी आरारा. स्त्री (सं.निमिष+आली) निति उषाह. नित्य 2010_03 मध्य.१८ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नितु/निपायुं नितु गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. लावल. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. षडाबा. नित्य, हमेशां नित्तुल- प्राचीसं. उठाव, [मूकवुं, छोड़वुं] निघणा आरारा. निर्धन स्थितिमां [सं. निस+तुल्] निधाड - तेरका. प्राचीफा. ध्वंस करवो, नित्य नलाख्या. नित्यकर्म परास्त कर (सं. निर्+ धाट्) नित्य प्रत्ये दशस्कं (9). नित्य क्रमे, निधान अखाका. गुर्जरा. नरका. प्रेमाका. [रोजेरोज] निव देवरा. निद्रा, ऊंघ निधि, भंडार; अखाछ. निधिरूप परमात्मा; * प्रेमाका. [भंडाररूप, आश्रयरूप व्यक्ति]; अखाका. मूळ, [आश्रयरूप] (सं.) निदान चित्तसं. कारण, मूळ कारणरूप तत्त्व; परिणाम; अंतिम लक्ष्य; चिकित्सा, परीक्षा; छेवटे, चोक्कस, ज; अखाका. आदि कारण, मूळ तत्त्व अखाछ. चिकित्सा, [परीक्षा, निर्णय ]; छेवट, अवश्य; नलरा. अंत, परिणाम, [छेवट ] ; अखाका. कादं (शा). नलाख्या. प्रेमाका. नक्की; जुओ इंदु निदान निदानी शृंगामं. चोक्कस निदेश नलाख्या. आज्ञा, सूचन, [* सामीप्य, *पासे होवुं ते] (सं.) निद्दलउं गुर्जरा. दळु, चूरी करूं (सं. निर्दलयति) निद्दा जिनरा. [सुखे सहेलाईथी जागी शके तेवी] निद्रा, [दर्शनावरणीय कर्मनो एक प्रभेद] [जै.] निass ऐतिका. परास्त करे; जुओ निर्धाट निघस उक्तिर. अकृत्य करनार, निर्दय, निर्लज्ज [.] २७८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश निधत्त कर्म षष्टिप्र. एक प्रकारनुं बंधायेलुं कर्म, [ कालांतरे गाढ प्रयत्नथी फीटे तेवां कर्म] [सं.] [जै.] निद्रालखउ उक्तिर. निद्राळु (सं. निद्रालक्षः) नि अखाछ, निधि, भंडार (रूप परमात्मा); नरका. निधि, भंडार 2010_03 निधि दशस्कं ( २ ). समुद्र [सं.] निधि संख्या दशस्कं ( २ ). प्रेमाका. समुद्र जेटली संख्यामां एटलेके सात निधुवन वसंफा. सुरतक्रीडा, संभोग (सं.) निधुवनकेलिकलामीय वसंवि. वसंवि (ब्रा). सुरतकेलिथी क्लान्त बनेलां (सं. निधुवन +केलि+क्लामित) निध्य अखाका. निधि, भंडार निपट नरका. प्रेमाका. तद्दन, घणो (दे. णिपट) निपाई नरका. वीसरा. निपजावी, उत्पन्न करी, तैयार करी (सं. निष्पादित) निपात दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. पाडवुं ते, नाश [सं.] निपातन वुं दशस्कं ( 9). नष्ट थवुं निपातु प्रबोप्र. पाड्यो, [जीत्यो, नाश कर्यो] (सं. निपातित) निपायुं उपबा. प्रेमाका. निपजाव्युं (सं. निष्पादित) Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश निष्फल तेरका. निष्फल निबलउं आरारा. नबकुं, ऊतरतुं, काचुं, खामीवाकुं, नठारुं [सं. निर्बल ] निबंध * वसंफा. *वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). नियम, [धारों] (सं.); गुर्जरा. स्थिति, [संयोग] (सं.) निबीजइ उक्तिर. निर्वेद पामे, विरक्त थाय [सं. निर्विद्यते] निब्भर तेरका निर्भर, [भरेलुं] निब्भंत ऐतिका. निर्भ्रान्त निभ ऋषिरा. सरखा, [-ना जेवा] (सं.) निभालइ ऋषिरा. निहाळे छे (सं. निभालयति) ' 2010_03 निअंछइ अंबरा. कादं (शा). प्रेमाका. निंदा करे, तिरस्कारे (सं. निर्भत्स्) . निअंत आरारा. निर्भ्रान्ति, निःशंकता निमख नरप पळ, क्षण, आंखनुं मटकुं मारवा जेटलो समय (सं. निमिष) निमजां आरारा (व). एक मेवो; चिलगोजा ( फा . ) ; सनोबर के चीड निमाजइ जुओ निमोजइ निमालीय वसंवि. नवमालिका निमि तेरका. नेमिनाथ निमित्ती उक्तिर, ज्योतिषी (सं. नैमित्तिकः) निमिष नरका. आंखनो पलकारो [सं.] निमील अखाका. पळवारमां (सं. निमीलनम् ) निमूल * वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). अमूल्य (सं. निर्मूल्य) निमेख, निमेष दशस्कं ( २ ). पांपण (सं. निमेष); दशस्कं ( १ ). नरका. प्रेमाका. २७९ निष्फल / निरक्षिय निमेष, [पांपणनी] पलक, [मटकं ]; मटकुं मारवा जेटलो समय, पळ, क्षण "निमोजइ [ निमाज ] हम्मीप्र. नमाज माटे निम्मल गुर्जरा. तेरका. निर्मल निम्मविय तेरका निर्मित कराव्युं रचेलुं (सं. निर्मापित) निम्माण जिनरा. निर्माण, [नामकर्मनी एक प्रकार, जेना उदयथी सर्व अवयवो यथायोग्य स्थाने अने सारा आकारे थाय छे] [जै.] निम्मिय तेरका निर्मित कर्यु निय ऐतिका. ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. वसंफा (ल). वसंवि. निज, पोतानं नियगुण वसंवि (ब्रा). पोताना गुण निट जिनरा. निवृत्ति, [जीवो वच्चे विशुद्धिनुं तारतम्य होय एवी आत्मावस्था ] [जै.] नियडा आरारा. उषाह. निकट, नजीक निय मणि ऐतिका. पोताना मनमां निय मन ऐतिका. निज मन नियय गुर्जरा. पोतानुं (सं. निजक) नियर नलरा. नगर नियरु ऐतिका. निकर, समूह नियाणउं गुर्जरा. षडाबा. मृत्यु पहेलां तपनुं इच्छित फळ मागवुं ते (सं. निदान) नियुंज्या गुर्जरा. विराप. गोठव्या (सं. नियुनक्ति) नियोजितुं उक्तिर, नियोजवुं (सं. नियोजितव्यम्) निरक्षिय गुर्जरा. निरीक्षण करीने, जोईने Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरघोष / निर-माय (सं. निरीक्षते) निरघोष नरका. मोटा अवाज [सं. निर्घोष ] निरजणी *ऐतिरा. [जीती, परास्त करी] जुओ निर्जणइ, रजणी ; निरजल, निरजळ आरारा. वीसरा. निर्जळ, २८० निरति निरदलुं अभिऊ. गुर्जरा. दळी नाख्युं, नष्ट कर्यु (सं. निर्दलित) निरदावो, निर्दावो अखाछ. अखेगी. दावानो अभाव, [मताग्रहनो अभाव ] निरदूषण आनंस्त. दूषण विनानुं पाणी वगर नरत निरत " विमप्र. [निश्चित, साव]; जुओ निरदे प्रेमाका निर्दय, हृदय वगरनो निरधार आरारा. तेरका. निराधार, असहाय निरत * अखाका. [निवृत्ति - बाह्य प्रवृत्ति- निरधार चित्तसं. निश्चय, निश्चित करेल मांथी] मत; नक्की कर; निश्चित; खरी; गुर्जरा. चित्तसं. नरका. प्रेमाका. नक्की, ज (सं. निर्धार) निरधारा अखाका. नक्की निरधारी लावल. आधारविनानी, [असहाय ] निरधारूं आरारा. आधार विना, अध्धर निरघुम ऐतिरा. धुमाडा वगरनो निरनामा आरारा. नाम वगरनी निरनुबंध आनंस्त. अनुबंध विनानुं, राग विनानुं, [आकांक्षा विनानुं ] निरपाय आरारा निर्विघ्न, मुश्केली वगरनुं (सं.) निरबह - वीसरा. सेवा करवी ( सं . निर्वह) निरभरछइ उक्तिर. निंदा करे, तिरस्कार करे (सं. निर्भर्त्सयति) निरतइ * विमप्र. [* लगावे, *लटकावे ] निरतई * सिंहा (म). [ मग्न थईने] ; जुओ निरतु निरति, निरती, निरतीय " विमप्र. [निश्चित पणे ]; * अखाका. नेमिछं. प्राचीफा. * वसंवि (ब्रा). विक्रच. स्पष्ट, निश्चित, नक्की, [चोख्खु, साव, पूरुं] (सं. निरुक्ति); जुओनरत, निरतु, निरत्त, निरुतउ, नीरती निरति ऋषिरा. पत्तो, [भाळ]; जुओ नरति निरतिचार, निरतीचार * उपबा. चारफा जिनरा. देव अतिचार विना, दूषण के दोष दिना (जै.) [सं.] निरती जुओ निरति निरतीचार जुओ निरतिचार निरतीय जुओ निरति निरतु नलरा. आसक्त, [मग्न ] (सं. निरत); जुओ निरत मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश 2010_03 निरभी * प्रेमाका. [नभावडावी, सहेवडावी, भोगवावी] निर अखाका. नरका. प्रेमाका. निर्भय * नितु " नलरा. [चोख्खु, निश्चित ]; जुओ निरममउ वीसरा. क्रूर, हृदयहीन (सं. निर्मम ) निरमल चित्तसं. नीरोगी निरति निरत्त कृष्णच. निश्चित, [ चोखुं ]; जुओ निर-माय देवरा. मायारहित; जुओ निर्मायी Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश निरमुख, नीरमुख सिंहा (शा). विमुख, [ पाछा फरेला ]; जुओ निर्मुख निरय प्राचीका. नरक निरवहवुं नेमिछं. लावल. निभाववुं; अखाका. करवानी जवाबदारी लेवी; आरारा निभाव थवो; चित्तसं. निर्वाह करवो, उकेल आणवो; समजाववुं २८१. विनानुं निरवाण, निरवाण्य, निर्वाण कादं (शा). चित्तसं. नक्की, खरेखर (सं.); * अखाका गुर्जरा. निर्वाणपद, मोक्ष निरवाणि अभिऊ. * ऋषिरा. नलाख्या. ललिरा. विमप्र. नक्की (सं. निर्वाण ) निरवाणी * अखाका. [निर्वाणदशाने मुक्तिने पामेला ] निरवाण्य जुओ निरवाण निरवाहइ आनंस्त. गुर्जरा. नेमिछं. वीसरा. नभावे, [ पालन करे ] (सं. निर्वाहय्) निरवाह कर्यो चित्तसं. चलाव्युं, समजाव्युं निरवाहिवउं उपबा नभाववुं राखवुं प्रवर्ताव निरवाट प्रेमाका निर्वाट, मार्गनी निशानी निराल, निराळ अखाका. निराकुं, न्यारुं, अलग, अलिप्त [सं. निरालय ] निराको चित्तसं. नवो, मौलिक निराशंस आनंस्त. निष्काम, [कामना अपेक्षा विनानुं] [सं.] 2010_03 निरमुख / निरोप निराकरइ आनंस्त. उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. वाग्भबा. षडाबा. निराकरण करे, निवारण करे, दूर करे, निषेध करे (सं. निराकरोति) - निरवाहु गुर्जरा. निभाव, पालन निरवू गुर्जरा. प्रसन्न, नरवो [सं. नीरुज ] निरव्यंजन ऋषिरा. निर्जन [सं. निर्+विजन ] निरंजन अखेगी. निर्लेप, दोषरहित, निर्गुण ब्रह्म [सं.] निरंतर तेरका. गीचोगीच; [सदंतर, साव] निरंध नरका. वधु आंधळा, [साव आंधळा ] [सं. निः+अंध] निराट अखाका. केवळ, मात्र, [ एकमात्र, शुद्ध ]; चित्तसं. एकलो ? स्वतंत्रपणे ? सीधे सीधो ? निश्चितपणे ? निराशि, निराशी अखाका. आनंस्त. आशा के इच्छा वगर निरांस चित्तसं. निरसन, दूर करवुं ते [सं.] निरीक्षण ( निरीक्षण) * गुर्जरा. [जोवा माटे] निरीहो ऐतिका. अनासक्त, [ इच्छारहित] [सं. नरीह ] अखाछ. निरुच्छव * कादं (धु ). [ उत्सव आनंदप्रमोद वगरनुं ] निरुतउ, निरूतउ ऐतिका. गुर्जरा. विराप. चोक्कस, निश्चित (सं. निरुक्त); जुओ निरति निरुपमी, निरूपमी गुर्जरा. विराप. उपमा आपी न शकाय तेवुं (सं. निरुपम परथी) निरूप कृष्णबा. आदेश; जुओ निरोप निसंघ षडाबा. रोके (सं. निरुणद्धि) निरेहणा गुर्जरा. विराप. इच्छातृप्ति विना, [इच्छा विना ज] (सं. निरेषण) निरोप अंगवि. कृष्णबा. प्राचीसं. आदेश; Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरोपई / निलड जुओ निरूप निरोपई वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). फरमावे, आज्ञा करे (सं. निरूपयति, निरोपयति); वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). ठरावे, ना जेवं गणे, माने (सं. निरोपयति) निरोपम गुर्जरा. निरुपम निरोल " गुर्जरा. "नेमिछं. "विमप्र . [ " तैयारी] निर्गमे अखाका. दूर करे; प्रेमाका. वितावे, पसार करे २८२. निर्गुणगारु नरका. नलरा. अधगुण करनार, नगुणो (सं. निर्गुण+कारक) निर्घोख नलाख्या. निर्घोष, अवाज निर्घोष नरका. अतिशय घोषवाळा, मोटा (सं.) निर्जण गुर्जरा. *प्रबोप्र. जीते, परास्त करे, विनाश करे [सं. निर्जित, प्रा. निजिण ]; जुओ निरजणी, निर्जिणइ निर्जर प्रेमाका. वृद्धत्व विनाना, देव [सं.] निर्जरा आनंस्त. प्राचीका. तप वगेरेथी कर्मनो क्षय करवो ते [जै.] निर्जिण विराप. षडाबा. जीते, परास्त • करे [सं. निर्जित, प्रा. निजण]; जुओ निजिणिउ, निर्जणइ निर्वाबो जुओ निरदावो निर्वृषण शृंगामं. दूषण वगरनुं [सं.] निर्दे प्रेमाका निर्दय निर्धाटइ उक्तिर. षडाबा. हांकी काढे (सं. [दे. णिद्धाड ]; जुओ निर्धाटयति) निद्धाss, निधाड 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश निर्धार प्रेमाका. नक्की, अवश्य [सं.] निर्धार आनंस्त. निर्धार, [ नक्की ] निब्बंध आरारा. संबंधविच्छेद निर्भर्छिवउं उपबा. तिरस्कार करवो, ठपको आपवो (सं. निर्भर्त्सयति) निर्मछर कादं (शा). अदेखाई विनानुं (सं. निर्मत्सर) निर्मदा नलरा. नर्मदा नदी निर्माण दशस्कं (२). प्रेमाका. माप, प्रमाण निर्मायी आनंस्त. माया विनानुं [राग विनानुं ]; जुओ निरमाय निर्मुख दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. विमुख, मों फेरवीने, खाली हाथे पाछा; जुओ निरमुख, नीरमुख निर्मोक कादं (शा). सर्पनी कांचळी (सं.) निर्यास आनंस्त. निश्चय निर्लोभपणउं उपबा. निर्लोभीपणुं . निर्वत्य प्रेमाका निर्वृति, आनंद, संतोष निर्बहइ * लावल. हरिख्या. पार पाडे, [उपाय करे ]; उपबा. परिपालन करे, ने प्रमाणे चाले (सं. निर्वहति) निर्वाण अखाछ, दशस्कं. नरका. प्रेमाका. अवश्य, नक्की; जुओ निरवाण निर्वाण उक्तिर. पितॄने अनुलक्षीने करेलुं दान (सं.) निर्वृत्ति कादं (शा). आनंद, [निरांत] (सं.) निर्वेद अखेगी. वैराग्य [सं.] निर्देबी अखाछ, निरवयवी, अवयव विनानुं निलड *आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. गुर्जरा. जिनरा स्थान, वासस्थान, घर Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २८३. . निलखण/निशाण (सं.निलय) निवात आरारा. वीसरा. खांड, साकर (रा.) निलखणउ उक्तिर. लक्षणहीन, गुणहीन (अ.नबात) (सं.निर्लक्षणः) निवायउ उक्तिर. वायु वगरनो (सं.नितिः ) निलग अखाछ. अलग, [असंगपणे, मुक्त- निवार्यउ आरारा.आघो कर्यो [सं.निवारित] पणे] निवालिय प्राचीसं. नवमालिका निलवट ऐतिका. नरका. प्राचीफा. लावल. निवासी नेमिछं. वसावी; -मां राखी हरिख्या. ललाट, कपाळ [सं.निटलपट्ट] निवांण ऋषिरा. नवाण, जिलाशय निलाटपट्टि कृष्णच. ललाटपट्टे निविरइ गुर्जरा. प्रसन्नताथी, विश्रान्तिनिलाड आरारा. उक्तिर. ऐतिरा. गुर्जरा. पूर्वक, सहजताथी] (सं.निवृत) तेरका. देवरा. नरका. वीसरा. कपाळ निवी उक्तिर. गोळ, घी वगैरे विकार उत्पन्न [सं.निटलपट्ट] करनार पदार्थोना त्यागपूर्वकनुं एक जैन निलुक्क प्राचीसं. गुप्त, तिरोहित दि.] व्रत (सं.निर्विकृतिक); जुओ नीवी निव गुर्जरा. राजा (सं.नृप) निवेडो अखाका. निकाल, अंत निवड ऐतिका. नलरा. सज्जड, [मजबूत], निवेदन (नित्य निवेदन) अखाछ. रोज घनिष्ठ; षडाबा. दृढ, [भरपूर] निवेदित (रजू) थतुं आत्मतत्त्व _(सं.निबिड) . . ___ निवेदिवं उक्तिर. जणाव, (सं.निवेदयित्वम्) निवडियउ उक्तिर. नीवड्यु, पार पड्युं [सं. निवेद्यु कादं(शा). निवेदन कयु, जाण करी निवर्तितम्] (सं.निवेदितः) निवत्तइ षडाबा. पाछो फरे (सं.नि+वृत्) निवेस आरारा. आवास; ऐतिका. गुर्जरा. निवलं अंबरा. [उपयोग वगरनुं], खाली स्थान (सं.निवेश) __ (घर); कामकाज वगर, नवलं निवेसइं गुर्जरा. मूके छ (सं.निवेशयति) निवर्ते प्रेमाका. निवृत्त थाय, दूर थाय निबइ प्राचीसं. निर्वृति, [परम आनंदनी निवर्तन आनंस्त. निषेध, [-मांथी हठवू शांत दशा ते] [सं.] निबाण हम्मीप्र. नवाण, तळाव, [जळाशय] निवल प्राचीसं. बेडी (सं.निगड) दि.णिअल] [सं.निपान] - निवसइ ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. निवास निवाण तेरका. निर्वाण, [मोक्षदशा] . करे, रहे (सं.निवसति) निशाचरी प्रेमाका. रात्रे फरनारा, चोरडाकु निवही आरारा. निर्वहण करी, उपाडी निशाण मोसाच. प्रेमाका. नोबत, सैन्य के निवाण आरारा. नवाण, जळाशय (सं. सवारीनी आगळ फरकती धजानी साथे निपान) वागतुं मोटुं नगारुं [सं.निःस्वान] ___ 2010_03 Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशाण/निसीही २८४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश निशाण (निशाण वीघा) *प्रेमाका. [नोबत निसम्ये ऐतिका. सांभळ [सं.नि+समय] वगडावी, जवानी तैयारी करी] निसरावउ उक्तिर. ओसामण (सं.निश्राव) निशाणी चित्तसं. निशानी, लक्षण निसर्ग सभ्यचो. स्वभाव [सं.] निशान नरका.धजा, [झंडो, वावटो] [फा.] निसही विमप्र. अन्य व्यापारनो निषेध निशाने चडीए अखाका. [युद्धनो] वावटो सूचवतो, जैन मंदिरमा प्रवेशतां त्रण फरकावीए, "विजय मेळवीए वार उच्चारातो शब्द; जुओ निसीही निशानो दशक(२). निशान, लक्ष्य निःसंपन्नता “आनंस्त. [निसबत, संबंध निशि नलाख्या. हरिख्या. निश्चयपूर्वक, जोडवो ते] नक्की निसंबला गुर्जरा. खोराक (भाता) विनाना निशि प्रबोप. हरिख्या. निशामां, रात्रिमा (सं.निस्+शंबल) निशे चित्तसं. निश्चे, निश्चितपणे, चोक्कस, निसाण नरका. पंचवा. वीसरा. नोबत, निश्चयपूर्वकनो, खरो डंको (सं.निःस्वान) निश्चइ आनंस्त. उपबा. षडाबा. चोक्कस, निसाण प्रेमाका. सवारीनी आगळ फरकतो निश्चित रीते, नक्की वावटो [फा.निशान निश्चय भणि आरारा. निश्चयपूर्वक निसालगरणां नंदब. निशाळे बेसाड, ते निशे अखाका. नरका. निश्चय [सं.लेखशाला+*करण] निषधिपणइ, निषिधिपणइ वसंफा(ल). निसांण देवरा. डंको (सं.निःस्वान) वसंवि. वसंवि(ब्रा). [सर्व उपमानोना] निसांणी आरारा(व). निसाणी, मसाडी, निषेधपूर्वक एक वनस्पति । निषेधइ उक्तिर. उपबा. षडाबा. निषेध निसि अभिऊ. वीसरा. रात्रि (सं.निशा) करे (सं.निषेधयति) निसिदीस ऐतिरा. गुर्जरा. विमप्र. रातदिवस निदे, नीष्टे दशस्कं(१): निश्चे, [चोक्कस] "निसि परति निसि परनि] *कादं(शा). निस आरारा. निशा, रात्रि [चोक्कस बीजाने निसचइ आरारा. निश्चय, खातरी निसिभरी गुर्जरा. आखी रात (सं. निशाभरे) निसणेइ नलरा. सांभळे (सं.नि+श्रुणोति) निसिया ऐतिका. निशाचर, राक्षस निसन नरका. खिन्न (सं.निषण्ण), [अचेतन, निसिहरि उषाह. [भर निशाए], मध्यरात्रे सानभान विनानु] [सं. निःसंज्ञ] निसिव ऐतिरा. झरो [सं.निस्पंद] निसनेह आरारा. निःस्नेह, स्नेह वगरनुं निसीही आनंस्त. [अन्य व्यापारोनो] निषेध निसपति अभिऊ.निष्पत्ति, [उत्पत्ति, पेदाश] थाब' तेम कहे ते (सं.नषेधिका); जुओ निसप्रेह जुओ प्रेहनिसप्रेह निसही 2010_03 Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २८५ . । निसुणइ/नीगb निसुणइ आरारा. ऋषिरा. ऐतिरा. कृष्णच. न होय एवी स्त्री (सं.निन्दु) लावल. विराप. सांभळे (सं.निश्रुणोति) निंब लावल. लीमडो [सं.] . निसुणवि ऐतिका. सांभळीने निंबू आरारा(व). कागदी लींबु (सं.) निसुणेवि ऐतिका. सांभळीने नीअंता चित्तसं. नियंता, स्रष्टा निसूग उक्तिर. निर्दय (सं.निःशूक) नीआवि *जिनरा. [नियमन करे, नियम निसे चतुचा. निश्चे, चोक्कस करे] निसेज निसेजा उक्तिर. षडाबा. [कपडान] नीक उक्तिर. पाणी जवानो मार्ग (सं.) आसन (सं. निषद्या). [कपडा ] आसन नीक उक्तिर. हाथपग दुखवानो के खंजवाळ (सं. निषद्या) आववानो रोग (सं.नीरक्ता) निसोत उक्तिर. एक वनस्पति, नसोतर नीकउ ऐतिका. प्राचीफा. वीसरा. सुंदर, [सं.निसृता] मजानो, सरस (सं.निक्त) (द.णिक्क) निस्तर्यउ उक्तिर. तर्यो (सं.निस्+त) नीकउ उक्तिर. [*एक सिक्को, "सुवर्ण, निस्तारो अखाका. अखाछ. पार ऊतरवू सुवर्णपात्र] (सं.निष्कः) ते, उद्धार, मुक्ति [सं.निस्तार] नीका नेमिछं. नीक, प्रवाह निस्प्रेह अखाछ. निःस्पृह नीका नेमिछं. चोख्खी, [सरस] निस्प्रेही अखाका. निस्पृही, स्पृहा वगरनो नीकोलइ, नींकोलइ उक्तिर. फोले [सं. निस्यि, निस्ये अंगवि. दशस्कं(२). निश्चे, निष्कल; दे.णिक्कोर]; जुओ निकोलिवा नक्की ... नीखणियामउ उक्तिर. *लणणी करनार] निस्संगा ऋषिरा. संग - राग वगरनी (सं.) [सं.निःक्षणकर्मा] निहणीय गुर्जरा. हणीने (सं.निहन्) नीखणी प्रेमप. गरीबडी (प्रा.णिक्कण) निहतरइ ऐतिका. नोतरे, आमंत्रित करे नीगम चतचा. वेदशास्त्र, [शास्त्रो]; जुओ [सं.निमंत्र] निगम निहाई गुर्जरा. प्रहार (सं.निघात) नीगमइ आरारा. कांद(धू). कादं(शा). निहाण आरारा. खजानो (सं.निधान) गुर्जरा. जिनरा. नरका. प्रबोप्र. प्रेमप. निहार चंद्रवा. बहार काढवू ते, [मलोत्सर्ग] प्रेमाका. शृंगाम. षडाबा. पसार करे, (सं.); जुओ नीहार गाळे, वितावे (सं.निर्गमयति); उपबा. निहि प्राचीका. समुद्र (सं.निधि) ऐतिका. गुमावे, वेडफे; चित्तसं. नरका. निहुँतरीउ आरारा. नोतर्यो [सं.निमंत्रित] निर्गमे, [दूर करे], न राखे । निहुंत्रीता उपबा. [निमंत्रित] नीगमणहार उपबा. गुमावनार (सं.निर्गमन) निंदुव प्राचीसं. जेनां बाळक जीवी शकतां नीगवू नलाख्या. निर्गमुं, पसार करुं 2010_03 Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीगुण/नीम २८६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नीगुण वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). नीवाणकरण षडाबा. खेतरमांथी नकामुं गुणहीन (सं.निर्गुण) घास काढी नाखवू [सं.नि+दायति] नीचोयु कादं(शा). निचोव्यो (सं.निश्चय- नीव्र गुर्जरा. निद्रा वितकः) निभरि गुर्जरा. ऊंघना भारथी, [भरनीछोडिउ *विमप्र. [बहार काढ्यो] दि. ऊंघमां] णिच्छोड नीव्रलडी गुर्जरा. विराप. नींदलडी नीजर देवरा. नजर, दृष्टिपात नीबालूखउ उक्तिर. निद्रा वगरनो (सं.निद्रानीजांमा शृंगाम. सुकानी, [मुख्य खलासी] रुक्षक) (सं.निर्यामक) नीष मदमो. निधि, (रूप)निधि नीझणी गुर्जरा. अवाज वगरनुं (सं.निर्ध्वनि) नीघांन कामा(शा). भंडार [सं.निधान नीझर गुर्जरा. झरणुं (सं.निर्झर) नीध्य मदमो. समृद्ध, [भर्योभर्यो] नीझरण तेरका. वसंवि(ब्रा). निर्झरण, झरणुं नीपट दशस्क(२). प्रेमाका. घणां, अत्यंत नीझामता ऐतिका. [चिंतन करता] [सं.नि (द.निप्पट) +ध्यायत] नीपनऊ, नीपन्यउं कामा(त्रि). कामा(शा). नीठ उक्तिर. जिनरा. मुश्केलीए (सं. पेदा थयु, जम्युं गुर्जरा. चित्तसं. निष्ठ्या); प्रधुचु. नक्की दशस्कं(१). प्रेमाका. षडाबा. नीपज्यु, नीठइ आरारा. उक्तिर. कामा(त्रि). चारफा. उत्पन्न थयुं (सं.निष्पन्न) नेमिछं. प्रेमाका. हरिवि. समाप्त थाय, नीपात कामा(त्रि). कामा(शा). निपात, नष्ट थाय, खूटी जाय (सं.निष्ठा-) विनाश नीठर ऐतिरा. गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. नीपायउं अभिऊ. उपबा. ऋषिरा. विक्ररा. स्थूलिफा. निष्ठुर, दयाहीन, कादं(ध). कादं(शा). नरका. नलाख्या. [नठोर] नेमिछं. मोसाच. लावल. शृंगामं. नीठि उक्तिर. निष्ठा, [*मुश्केली] षडाबा. निपजावेलु, निपजाव्युं, तैयार नीठियउ उक्तिर. पूरुं करेलु (सं.निष्ठितम्) कर्यु, उत्पन्न कर्यु (सं.निष्पादित) नीठुर उक्तिर. उपबा. तेरका. निष्ठुर, नठोर नीपावडं आरारा. नेमिछं. नीपजावू, उत्पन्न नीत, नीत्य अखाका. अखेगी. नीति, [रीति, करुं, बनायूँ (सं.निष्पादय्) रूढि] नीभर प्राचीफा. गाढ (सं.निर्भर) नीति कादं (शा). नित्य, दररोज *नीभेडी ["नीमेडी] ऋषिरा.?, [*निवेडी, नीत्य जुओ नीत *उकेली] [हिं.निबेडना]; जुओ निमेडि नीद वीसरा. निद्रा नीम जिनरा. नियम, त्याग[नुं व्रत]; चतुचा. __ 201003 Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २८७ नीमडइ/नीवडइ नरका. नलाख्या. प्रेमाका. नियम, नीरद गुर्जरा. नरका. विराप. वादळ (सं.) प्रतिज्ञा, [व्रत]; नेमिछं. नक्की नीरदोषण चंद्रवा. निर्दोष?, [दूषण विना-] नीमडइ अखाका. अखाछ. अखेगी. अंबरा. नीरधार कामा(त्रि). निर्धार, नक्की चित्तसं. प्रेमाका. नीवडे, पाकी बने; नीरफळ दशस्क(२). निष्फळ *अखेगी. [समाप्त थाय, नष्ट थाय] नीरमाल कामा(शा). निर्माल्य, [त्याज्य] रा.नामडणा] शुजा नामाड, नावड६ नीरमुख चंद्रवा. मदमो. विमुख, पाछी नीमाला विमप्र. मोवाळा, [वाळ] (सं.निर्मुख); जुओ निर्मुख नीमालिय, नीमालीय वसंफा. वसंवि. नीरलालची वेताप. लालचु नहीं तेवो वसंवि(ब्रा). नंवमालिका नीरवाण, नीरवांण कामा(त्रि). कामा(शा). नीमी आरारा. . उक्तिर. मूलधन, मूडी नक्की, जरूर [सं.निर्वाण] (सं.नीवी); उक्तिर. नाडु, अधोवस्त्रनी नीरंग गुर्जरा. रंग के आसक्ति वगरनुं गांठ (सं.नीवी) (सं.नीरंग) नीमेखमां मदमो. निमेषमां, पलकमां नीलउ आरारा. लीलुं [सं.नील नीमेडि * विमप्र. [नष्ट करी]; शृंगाम. ?, नीलक जिनरा. वस्त्रविशेष [*छूटा करी] [रा.] [हिं.निबेडना]; नीलचास आरारा. चास पंखी जेवू लीलुंछम जुओ निवेडो, नीभेडी, नीमडइ . नीलज आरारा. कादं(शा). कामा(शा). की नीय आरारा. गुर्जरा. निज, पोतानुं गर्जरा. जिनरा. दशस्क(१). नलाख्या. नीय गोय जिनरा. नीच गोत्र, [नामकर्मनो निर्लज्ज एक प्रकार जेना उदयथी प्राणी हलका नीलडउ प्राचीफा. हम्मीप्र. उत्तम घोडानी कुळमां जन्मे] [जै.] एक जात नीयांण आरारा. निदान, चोक्कस नीलवट कामा(शा).प्रेमाका. मदमो. कपाळ, नीर आरारा. कांति, दीप्ति (रा.) ललाट (प्रा.निडल-+-वट्ट-) नीरघोख मदमो. निर्घोष, [अवाज] नीलवण, नीलवणि ऐतिका. प्राचीफा. लीखें नीरज गुर्जरा. प्रेमाका. नीरमा जन्मेलं, शाक, लीलोतरी कमळ (सं.) नीलु उपबा. लीलुं, आर्द्र, [आलु (चामडु)] नीरज गुर्जरा. रजोगुण - आवेग विनानु, (सं.नील); गुर्जरा. लीलु, ताजुं [राग विनानुं] (सं.निस्+रजस्) नीलाट अभिऊ. कपाळ [सं.निटलपट्ट] नीरती *जिनरा. [चोख्खी, स्पष्ट] [सं. नीलाड आरारा. ललाट [सं.निटलपट्ट] निरुक्ति]; जुओ निरति नीलेरी विक्रच. वादळी रंगनी नीरत्य *अखाका. [चोख्] नीवडइ उक्तिर. स्पष्ट थाय [सं.निवर्तयति]; 2010_03 Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीवाणो/नुल २८८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जुओ निमडइ नीस्वत कामा(त्रि). निश्चित नीवाणो “ऐतिका. [नवाण, जळाशय] नीस्यां सिंहा(शा). खातरी ? (सं. [सं.निपान निश्चितम् ?) *नीवारि लावल. [नवडावे] . *नीहपलव ["नहपलव] "चंद्रवा. [नवनीवी तेरका. तपविशेष; जुओ निवी पल्लव, पल्लवित] नीवेल(?) तेरका.? 'नीहा चंद्रवा. वाटवानी निशा, [वाटवानो नीशाण नलाख्या. निशान, सवारीने मोखरे पथ्थर दे.णीसा]; जुओ नीसा __ वागतुं वाद्य, [नोबत] (सं.निःस्वानम्) नीहार शीलक. मलत्याग [सं.]; जुओ निहार नीशां, नीसां मदमो. निश्चय नींक लावल. धार, प्रवाह, [पाणी जवानो नीशांण मदमो. वावटा [फा.निशान] रस्तो] [सं.नीक नीशांण कामा(शा). नोबत नींकोलइ जुओ नीकोलइ नीशे कामा(त्रि). चंद्रवा. दशस्क(१). मदमो. नीख- नलरा. नाखी देवू (सं.निक्षिप्) [रा.] निश्चे, नक्की नींगमइ उपबा. ऋषिरा. दूर करे, खुए (सं. नीष्टर विक्ररा. निष्ठुर, नीच निर्गमयति); उक्तिर. ऋषिरा. वितावे नीटे जुओ निष्टे नींगलि कादं(शा). टपके (सं.निर्गलति) नीस कामा(त्रि). निशा, रात्रि नींगुण वसंफा. वसंवि(ब्रा). निर्गुण नीसत ०ऋषिरा. गुर्जरा. नलरा. नेमिछं नीठर जुओ नीठर लावल.विमप्र. शंगाम. निःसत्त्व. निर्बळ. नीद्र षडाबा. ऊंघ (सं.निद्रा) कायर नींब आरारा(व). लीमडो (सं.निम्ब) नीसतपणउं उपबा. निर्बळपणुं नींबू आरारा. उक्तिर. कागदी लींबु (सं. नीससइ उक्तिर. निश्वास नाखे (सं.निःश्व- निबू) सिति) नीमीउ गुर्जरा. निर्मित थयु नीसंक गुर्जरा. निःशंक, [निर्भय नींशाण नलरा. निशानडंका (सं.निःस्वान) नीसा उक्तिर. वाटवानो पथ्थर दि.णीसा]; नींसाण ऋषिरा. निशान, [नोबत] जुओ नीहा नुखसान आनंस्त. नुकसान, [दोष, एब, नीसाण आरारा. उक्तिर. कादं(धु). कलंक] कादं(शा). गुर्जरा. नेमिछं. विमप्र. नुतलं पंचवा. नोतरुं (सं.निमंत्रणम्) विराप. नोबत, नगारुं (सं.निःस्वान) नुमाह जुओ सीतनुमाह नीसास उपबा. षडाबा. निःश्वास नुमु नलरा. नवमो (सं.नवम) नीसां जुओ नीशां नुल उषाह. सिंहा(म). नोळियो (सं.नकुल) 2010_03 Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २८९ नुहई/नेम नुहइ पतन होय (सं.नामदेवा माटे नेकाका. नेह, नुहइ ऐतिरा. कादं (शा). नलरा. नलाख्या. नेक, नेकी चंद्रवा. सारुं, उत्तम, श्रेष्ठ, विमप्र. न होय (सं.न+भवति) पवित्र] [फा.] नुहत्रणइ अंबरा. नोतरामां, नोतरुं देवा माटे नेके *चंद्रवा. [नक्की] नुहरा आरारा. हम्मीप्र. आजीजी, काला- नेग प्रेमाका. नेह, स्नेहसंबंध वाला नेजउं अखाका. ऐतिका. प्रेमाका. वीसरा. नूगि अभिऊ. न ऊगे वावटो, वावटावाळी लाठी के भालो, "नूतांकुर [चूतांकुर कादं(शा). आंबाना भालो (फा.नेझ) __ अंकुर [सं.] नेट अखाका. अखाछ. अखेगी. कामा(त्रि). नून नलाख्या. ओर्छ, ऊणुं (सं.न्यून) कामा(शा). चंद्रवा. जिनरा. नून्य अखाका. न्यन, खामी, ऊणप द शस्कं(१). दशस्कं(२). नरका. नंदब. पूँजडी हरिवि. नोंजणुं, नोंझणं, [दोहती प्रेमाका. मदमो. हरिख्या. नक्की, जरूर वखते गायभेसने पगे बांधवानुं दोरडु] नेट्य चित्तसं. नक्की, निश्चितपणे, ज [सं.निबध्यते परथी] नेठ मदमो. नक्की नूंपर गुर्जरा. नूपुर, झांझर नेठाउ गुर्जरा-टि. निर्णय [सं.निष्ठा नृत अखाका. खबर, जाण; जुओ नरत नेठो अखाका. चित्तसं. छेडो, अंत नृत मदमो. नाच (सं.नृत्य) नेडउ जिनरा. वीसरा. नजीक (सं.निकटम्) नृति कादं(शा). नृत्य करे (सं.नृत्यति) नेडे अखाका. चित्तसं. जिनरा. नजीक, नृत्त अखाका. नृत्य, [खेल] . निकट; अखाका. अंते, छेडे नृत्ति कादं(शा). नाचे (सं.नृत्त परथी) [सं. नेडो *अखाका. [?] नृत्यति] नेडो आणजे चित्तसं. परीक्षा करजे ? नृत्यकारी विराप. नर्तिका विवेक करजे ? नृपतइं गुर्जरा. राजाए (सं.नृपति) नेतनेत चतुचा. नेतिनेति, [अवर्णनीय] नृम चंद्रवा. नरम नेती मदमो. अवर्णनीय (सं.न इति) ने- तेरका. दोरवू, लई जर्बु (सं.नय) नेत्र प्रेमाका. बरु, [नेतर] नेअर प्राचीफा. नूपुर, झांझर नेत्र हरिवि. झीणुं रेशमी वस्त्र [सं.] नेउर उषाह. गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. नेत्रउ उक्तिर. [*नेतरुं] (सं.नेत्रम्) प्राचीफा. प्राचीसं. वसंफा. वसंवि. नेत्रवेली आरारा(व). नेतर (सं.वेत्रलता) वसंवि(ब्रा). सिंहा(शा). नूपुर, झांझर नेफेरी जुओ नफेरी नेउरी ऋषिरा. लावल. विक्ररा. विमप्र. नेम अखाका. कामा(त्रि). प्रेमाका. नियम, शृंगाम. नूपुर, झांझर प्रतिज्ञा, [व्रत]; अखाका. निश्चय; 2010_03 Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेपाल/नैरस नेरयण सिंहा (म). निर्णय नेरांति आरारा. निरांत २९० चित्तसं. नियम, नियमपूर्वक नेसेक सिंहा (शा). निःशंक, नक्की नेमाल अखाका. * लक्ष्य, * निशान ( *सं. नेस्ती प्रेमाका ललिरा. मोदी, [खोराकनी नियम > नेम), [*जाळ ] वस्तु वेचनार ] (देणेसत्थि) नेमिसर विक्ररा. नेमीश्वर नेमि गुर्जरा. विराप. नेम, लक्ष्य (सं. नियम) नेह आरारा. गुर्जरा. तेरका. नलाख्या. मदमो. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). स्नेह नेव जिनरा. प्रेमाका. नेवां, छापरा उपरनां नीचेनी किनारी उपरनां नळियां; जिनरा. नलियां [सं. नीव्र ] नेवज जिनरा. विमप्र. नैवेद्य नेवत्थ प्राचीसं. नेपथ्य, [वेशभूषा ] नेविज शृंगामं. नैवेद्य नेवेला जुओ वेला शाल विक्ररा. निशाळ [सं. लेखशाला ] नेष्ट नरका. प्रेमाका. नठारा, खराब, हलका (सं. न+इष्ट) नेष्टचरज्या "प्रेमाका. [गुप्तचर्या, छूपा वेशे रहेवुं ते] [सं. निशाचर्या]; जुओ नष्टचर्या नेष्टा चित्तसं. निष्ठा नेष्टिक चित्तसं. नैष्ठिक, निष्ठावंत, साचा नेसडू नलरा. भरवाडोनुं जंगलमां आवेलुं निवासस्थान, नेसडो (सं. निवेश +डू) नेसाल अंबरा. गुर्जरा. नलरा. निशाळ, पाठशाळा (सं.लेखशाला ) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शालिका) नेसालीआ, नेसालीया उपबा. गुर्जरा. निशाळिया नेसालीयउ जुओ वडो नेसालीयउ 2010_03 नेहगहेलउ वसंवि. वसंवि (ब्रा). प्रेमघेलुं (सं. स्नेह+दे.गहिल्ल) [सं.स्नेह+ग्रह + इल्ल] नेह चुको पंचवा. "निशान चूक्यो (देणेम परथी), [* रस्तो चूक्यो, *आखड्यो] नेहझड नरका. स्नेहनी झडी नेess आरारा. स्नेहथी नेहलु नलरा. स्नेह, नेह नेहपराणउ, नेहपरायण वसंवि. वसंवि (ब्रा). स्नेहपरायण नेहा नेमिछं. स्नेह नेहाला नेमछं. स्नेहयुक्त नेहिय गुर्जरा. स्नेह करीने नेहर सिंहा (शा). नूपुर नेहेमेरो मदमो. नमेरो, निर्दय नैअर * कृष्णबा. [नगर, गाम]; जुओ नैयर नैअरलोक "कृष्णवा. [ नगरनां गामनां लोको] नेसाली कादं (शा). निशाळ (सं. लेख- नैयर प्राचीका. नगर, जुओ नैअर नैयायक चित्तसं नैयायिक दर्शन, न्याय दर्शन नैअर-पुर * कृष्णबा. [नगर, गाम] नैअंणे मदमो. नयणे नैरत विमप्र. नैर्ऋत्य खूणो नैरस चतुचा. नीरस Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २९१ नैराशी/न्हवण नैराशी अखाका. चित्तसं.आशा-आसक्ति- इन्द्रधनुष्य बन्ने न होय, [ए बन्नेथी पर थी रहित एवी, केवल आकाशरूप स्थिति] नैव गुर्जरा. चंद्रवा. नहीं ज नोहोतरां नंदब. नोतरां [सं.निमंत्रण] नैवेत चित्तसं. निवेदन, समर्पण न्यरवयं चित्तसं. निरवद्यु, चलाव्यु नैवेदन अखाछ. निवेदन, प्रार्थना, समर्पण- न्यर्त्य चित्तसं. निवृत्ति, परिणाम भाव] न्यवहुं नरप. छु, [थाउं, करुं] (सं.नि-वह्) नैंणे मदमो. नयणे न्यहालि नलाख्या. निहाळे, नीरखे (सं. नोइंद्रिय आनंस्त. [इन्द्रिय जेवं] मन [ज.] निभाल्) नोउत्तम, नौउत्तम चंद्रवा. नवं, नवतम, न्याइ प्रबोप्र. न्याययुक्त, विवेकयुक्त, ज्ञान[सुंदर] युक्त] (सं.न्याय्य) नोकषाय जुओ छ नोकषाय न्याइ प्राचीसं. न्यायमां, [खराखोटानी नोछावरी अखाका. न्योच्छावरी, आत्म न्यान आरारा. प्राचीफा. ज्ञान समर्पण नोडि अभिऊ. न ओडे, न लंबावे न्यानी आरारा. ज्ञानी न्यास आनंस्त. स्थापना [सं.] नोमाली उक्तिर. नवमालिका न्यापित ऋषिरा. हजाम (सं.नापित) . नोलखीइं गुर्जरा. ओळखाय नहीं । न्यावट मदमो. न्यायवट, न्यायवृत्ति; जुओ नोलमुंही अभिऊ. नोळिया जेवा मुखवाळी । नावट (सं.नकुलमुखी) न्यावांण मदमो. नवाण, [जळाशय] [सं. नोली चित्तसं.नौली, पेट हलाववानी विधि, निपान] __हठयोगनी षट्कर्मविधि पैकीनी एक न्यछणउ उक्तिर. लछणं. ओवारणं (सं. नोळीकर्म प्रेमाका. पेटनां नळ - आंतरडा न्युञ्छनकम्) हलाववानी योगनी एक क्रिया . न्युंजणउं उक्तिर. दोहती वखते गायभेसने नोहरा नरका. नहोरा, कालावाला, आजीजी पाछले पगे बांधवामां आवतुं दोरडु, नोहली उक्तिर. ताजी फळी (सं.नव- नोंजणुं [सं.निबध्यते परथी] फलिका) न्यून नरका. अधूरप, खामी [सं.] नोहोरानुं मदमो. ?, [उपकारनुं] [हिं. न्यून्य प्रेमाका. खामी, खोट निहोरा] न्येट कादं (शा). नक्की (सं.निवृत्ति परथी नोहे अखाका. दशस्कं(१). नरका. प्रेमाका.. शक्यता); जुओ नेट न होय व्रतकी मदमो. नर्तकी नोहे घन ने चाप अखाका. वरसाद अने न्हवण आनंस्त. तेरका. प्राचीफा. नवडावq 2010_03 Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवारइ/पक्खाल २९२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पद) ते, स्नान (सं.स्नपन) पइंत्रीस उक्तिर. पांत्रीस (सं.पंचत्रिंशत्) हवारइ उक्तिर. नवडावे (सं.स्नपयति) पइंपइ प्रद्युचु. बोले [सं.प्रजल्पति] न्हाउ उक्तिर. नाहेलु (सं.स्नात) पइंसठि उक्तिर. पांसठ (सं.पंचषष्टिः) न्हाण आरारा. वीसरा. स्नान पई अखाछ. महेमान [सं.पथिक] पईट्ठ, पईठ वसंफा. वसंवि. पेठो (सं. पअ मदमो. दूध (सं.पयस्) प्रविष्टः) पइ *उषाह. प्राचीफा. वसंफा(ल). पग (सं. पईडा अंबरा. पड्या पईमई अंबरा. प्रेमथी पइआल अभिऊ. नेमिछं. प्राचीका. पाताळ पईव तेरका. प्रदीप पइठ जुओ पर्य पउठउ लावल. पोढो, सूओ पइठउ उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. नेमिछं. पउढाडइ जुओ ढाडइ लावल. वसंफा. वसंवि. पेठो, प्रवेश पउढी नेमिछं. मोटी (सं.प्रौढ) कर्यो (सं.प्रविष्ट) पउण षडाबा. पोj (सं.पादोन) पइदिणि गुर्जरा. रोज (सं.प्रतिदिने) पउतीयां गुर्जरा. पोतियां, धोतियां (सं.प्रोत) पइर नलरा. विक्ररा. पेर, [स्थिति, दशा; दि.पोत-] वात] (सं.प्रकार) पउम ऐतिका. पद्म पइलउ उक्तिर. पेलो पउमएवि ऐतिका. पद्मादेवी पइसइ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. वसंफा. पउमप्पह ऐतिका. पद्मप्रभ जिन वसंवि. वसंवि(ब्रा). विराप. षडाबा. -पउळि वीसरा. दरवाजो (सं.प्रतोलि) पेसे, प्रवेशे (सं.प्रविशति) पउहउचावीयउ आरारा. पहोंचाड्यो पइसठि ऐतिरा. पांसठ [सं.पंचषष्टिः] पउंजणी उक्तिर. पोंजणी, सूतर के भींडीनी घइसण जिनरा. प्रवेश करवो ते नानी सावरणी (सं.प्रमार्जनिका) पइसणहार षडाबा. पेसनार, प्रवेशनार । पउंजी षडाबा. साफ करीने, लूछीने [सं. पइसरइ ऐतिका. प्रवेशना समये प्रमा] पइसार अंबरा. उषाह. प्राचीसं. प्रवेश पऊतार षडाबा. नियमन करनार, पइसारउ *गुर्जरा. [प्रवेश थवो ते] [महावत] (सं.प्रयोक्त) पइसिवा उक्तिर. पेसवा, प्रवेशवा पक्खर गुर्जरा. पाखर, घोडानो साज (दे. पई षडाबा. पैडां (सं.प्रधिः) पक्खरा) पई "उषाह. [पद - शब्द वडे] . पक्खाउज गुर्जरा. पखवाज (सं.पक्षातोद्य) पई षष्टिप्र. ना करतां (सं.प्रति) पक्खाल- तेरका. पखाळवू, धोवू (सं.प्र+। 2010_03 Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २९३ पक्खि /पगार शाल्) पखीइ नलरा. विना (सं.*पक्षस्मिन्) पक्खि गुर्जरा. पक्षे, पक्षमा पखं उषाह. कुल (सं.पक्ष); अखाछ. पडद्य, पक्खिया गुर्जरा. पंखी (सं. पक्षिका) बाजु]; पक्ष, [वाडो] पक्वान्नु षडाबा. तेल-घीमां तळेली विशिष्ट पखे अखाका. चंद्रवा. चित्तसं. मदमो. . वानगी (सं.) लावल. विना पक्ष दशस्कं(१). "प्रेमाका. पांख, छत्रछाया पखे अखाछ. पक्षमां, बाबतमां पक्षीया गुर्जरा. पंखी (सं.पक्षिन्+क) पखें सिंहा(शा). विना पख गुर्जरा. पक्ष, बाजु; नरका. पक्ष, पखै जिनरा. विना पखवाडियुं पखोडणि षडाबा.खोडवू, चोंटाडवू, लगाव, पखइ उपबा. "गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. ते (दे .पक्खो ड) प्रद्युचु. प्राचीसं. विराप. सिंहा(म). विना पखोडी कादं(धु). कादं(शा). खंखेरीने दि. (सं.पक्षस्मिन्) पक्खोड) पखइ लावल. पक्षे, बाजुए पख्य चित्तसं. पखे, विना पखरिय ऐतिका. पाखरेल, साज चडावेल पग गोपाविवा जुओ गोपाविवा (सं.प्रक्षरितः) पग घालुं गळा माह्य प्रेमाका. मुश्केल पखवाडं उपबा. नरका. नेमिछं. पखवाडियुं स्थितिमां मूकुं (सं.पक्ष+पाट) पगठ विमप्र. पग नीचे राखवानो बाजोठियो पखाज जुओ पखाल पगपान प्रेमाका. स्त्रीओनुं पगना पोंचानुं *पखाल [पखाज] आरारा. पखवाज एक आभूषण [हिं.] पखाल, पखाळ चंद्रवा. प्रेमाका. षडाबा. पगपडण नलरा. पहेली वार सासरे आव्या प्रक्षालन, धोवानी क्रिया (सं.प्रक्षाल्) पछी वहु वडीलोने पगे लागे ए क्रिया पखालण आरारा. धोनार (सं.प्रक्षाल्) पगर आरारा. ऋषिरा. नेमिछं. वीसरा. पखालण क दशस्कं(१). पखाळवं, समूह, गुच्छ (सं.प्रकर); जुओ फूलपगर प्रक्षालन करवू, [धोवू पगरण नरका. (शुभ) प्रसंग, [तेनुं मंडाण] पखां जुए चित्तसं. पडखां जुए, जातने (सं.प्रकरण); जुओ वीवाहपगरण तपासे पगवट उषाह. पगवाट (सं.पदवत्म) [सं. पखि उषाह. सिवाय (सं.पक्षके); नेमिछं. पदाग्र+वर्म] प्राचीसं. लावल. पक्षे, बाजुए, [तरफ]; पगार अंबरा. आरारा. "उषाह. गुर्जरा. अभिऊ. पक्षे, [कुले] प्राचीफा. रूपच. *लावल. विक्ररा. कोट, पखी आनंस्त. बाजुनी, [तरफनी] किल्लो (सं.प्राकार) Jain Teug pon International 2010_03 Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पगिपगइ/पटउलडी २९४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अखाका. नलरा. पछिता- वीस पगिपगइ आरारा. पगलेपगले, पाछळ- [सं.पश्चिमगृहे पाछळ; प्राचीसं. पदेपदे, [डगले ने पच्छेवडी षडाबा. पछेडी [सं.प्रच्छदपट] पगले, बधे ज समये]; गुर्जरा. पगलं- पच्छेवाणु गुर्जरा. पाछलो भाग, [पाछळ पगले, दरेक पगले ____ रहेवू ते] (*सं. पश्चादनीक) पघवाह प्रद्युचु. पांगोठं, पेंगडुं पच्छोकड उक्तिर. पाछळनो भाग (सं.पश्च पचइ उक्तिर. षडाबा. रंधाय (सं.पच्यते); परथी): जओ पछोकडउ अखाका. अखाछ. मग्न थाय, रच्या- पछताविय प्राचीसं. पस्ताईने, पिस्तावो पच्या रहे __ पामीने] (सं.पश्चात्तापिता) पचखाण आरारा. उक्तिर. ऐतिका. नलरा. पछिता- वीसरा. पस्तावो करवो (सं. कोई वस्तुनो त्याग करवानी प्रतिज्ञा (सं. पश्चात्ताप) प्रत्याख्यान) पचखुं आरारा. ऐतिका. त्यागनो नियम पछिम आरारा. पश्चिम, पाछलो करूं पछेवडउ अंबरा. उक्तिर. ऐतिरा. पछेडो पचतालीस उक्तिर. पिस्ताळीस (सं.पना- (स. प्रच्छदपट) चत्वारिंशत्) पछोकडउ उक्तिर. पाछळनो भाग (सं.पश्च पचवी चतुचा. दळेली?, [*परिपक्व परथी); जुओ पच्छोकडु पचव्यूं नलाख्या. पकवेलुं, रांधेलु (सं.पच) पजावो प्रेमाका. भट्ठी, [निभाडो] पचारड उक्तिर. नेमिछं. प्रद्यच. महेणं मारे. पजुन्न तरका. प्राचास. प्रद्युम्न [उपालंभ आपे, टोणा रूपे कही बतावे] पजून प्रधुचु. प्रद्युम्न (अप.पच्चार); अंगवि. महेणां देतां पजूसण उक्तिर. उपबा. ऐतिका. पर्युषण आह्वान आपे पर्व [जै.] [सं.पर्युपवसन] पचिवउं उपबा. ऊकळवू, [शेकावू] (सं. पजोडी (पंजेठी) मदमो. पंजेटी, खंपाळी पच्यते); उक्तिर. रांधवू पधंगि ऐतिका. पांच अंगर्नु पञ्चक्खाण जिनरा. त्याग(नुं व्रत) (सं. पट कामा(त्रि). चित्तसं. चित्रनो कागळ के प्रत्याख्यान) पडदो; अखाका. नरका-२. प्रेमप. वस्त्र पचक्खु ऐतिका. प्रत्यक्ष पटउ उक्तिर. राजगादी (सं.पट्टः) पञ्चल प्राचीसं. समर्थ दि.] पटउलउं गुर्जरा. नलरा. विराप. उत्तम पच्छलु तेरका. पाछळ [सं.पश्च+ल] रेशमी वस्त्र, पटोळु (सं.पट्टदुकूल) पच्छिम उक्तिर. पाछळ; तेरका. पश्चिम दिशा पटउलडी प्राचीफा. उत्तम रेशमी वस्त्र, पच्छिमहरए प्राचीसं. घरना पाछळना भागे पटोळी, पटोळु 2010_03 Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २९५ . पटउलां/पडखइ पटउलां विराप. पटोळां वारस पटउली गुर्जरा. प्राचीसं. लावल. पटोळी, पटोळी नरका. भातीगळ कीमती साडी के रेशमी साडी ओढणी, रिशमी वस्त्र पटकूल नंदब. विक्ररा. पटोळू, रेशमी वस्त्र पट्ट आरारा. मुख्य; पाट, गादी (सं.) पटको प्रेमाका. [कमरे बांधवानो कपडानो पट्टकूल अंबरा. उत्तम रिशमी] वस्त्र टुकडो पट्टण षष्टिप्र. नगर [सं.पत्तन पट पाथरी प्रेमप. खोळो पाथरी पट्टी प्रेमाका. एक शस्त्र, [*धनुर्यष्टि] पटभूषण कामा(शा). वस्त्र अने आभूषण पटुंतरू * ऐतिका. भेद पटरांगीणी वेताप. पटराणी [सं.पटराज्ञी] पठणहार, पठणहारु उक्तिर. वांचनार पटल मोसाच. पटेल पठतु उक्तिर. वाचतो पटल *गुर्जरा. "विराप. [(तेजनो) समूह, पठवी नलाख्या. पाठवी, मोकली (सं. वर्तुळ] (सं.) प्रस्थापिता) पटह कादं(शा). मोटो ढोल (सं.) पठाणी विमप्र. पीठ पर बांधवामां आवता पटंतर नरका. विक्ररा. सिंहा(शा). पडदो; (पटा); [*प्रतिष्ठानपुरना मशहूर छू रहस्य, भेद (पटा)]; हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक पटतरे अखाका. पडदा पाछळ; नंदब. जात मदमो. गुप्त रीते, [संकेतथी, समस्याथी] पठायउ आरारा. ऋषिरा. वीसरा. मोकल्यु पटतरो चतुचा. अंतराय, पडदो; सिंहा(शा). (सं.प्रस्थापित) __ अंतर, [भेद] पठावियउ उक्तिर. ऋषिरा. ऐतिरा. मोकल्यो पटंबर वीसरा. रेशमी वस्त्र (सं.पट्ट+अंबर) (सं.प्रस्थापित) पटा हम्मीप्र. एक प्रकारनी तलवार पड चित्तसं. शरीर पटाट विमप्र. पटो, [घोडानो तंग] पड (पड पितराई) *प्रेमाका. [पितराईना पटायुध विक्ररा. तलवारथी खेलातुं युद्ध पितराई, वधु एक पेढी दूरना पितराई]; पटांतलं उक्तिर. पडदो, अंतराय, भेद जुओ पड-पितराई पटुलडी विमप्र. पट्टकुळ, पटोळु, रिशमी पडउतर ऐतिरा. नरका. प्रतिउत्तर, सामो वस्त्र] [सं.पट्टदुकूळ] जवाब पटूल विमप्र. पटोळु, रिशमी वस्त्र] पडखइ ऊक्तिर. कादं(शा). गुर्जरा. जिनरा. पटेरो जुओ परेरो नलरा. नलाख्या.प्रेमाका. विराप. शृंगामं. पटोघर प्रेमाका. पाटवी, युवराज; विमप्र. राह जुए, थोभे (सं.प्रतीक्षते); *अखाका. गादीनशीन; ऐतिका. पाट - गुरुगादीना [थोभे, विचारे]; जुओ पडिखइ 2010_03 Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडखीजइ/पडा - २९६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पडखीजइ ऐतिका. प्रतीक्षा करवामां आवे, (सं.पटलकम्) राह जोवामां आवे पडली जुओ पुप्फपडली पडगमि *कादं(धु). कादं(शा). -ना तरफ पडलो अभिऊ. पल्लु, लग्न वखते कन्याने जाय, [ने पहोंचे] (सं.प्रतिगम्) वरपक्ष तरफथी आपवामां आवती पडघउ उक्तिर. दान लेवा माटेरों के धुंकवानुं पहेरामणी [सं.पट+ल] पात्र (सं.पतद्ग्रहम्) [सं.प्रतिग्रह] पडवजिउं अंबरा. स्वीकारेलु, [कबूल करेलुं] पडघी प्रेमाका. प्रतिघोष, [जमीन पर वाहन [सं.प्रतिपद्]; जुओ पडिवजिउं वगेरे चालवानो अवाज] पडवडइ गुर्जरा. *षडाबा. जाणे, समजे, (सं. पडघाइ *कादं(शा). [आघातथी, ना प्रतिपद्य-) लागवाथी] (सं.प्रतिघात) पडवडु अंबरा. लावल. सज्ज, [उद्यत]; पडघात कादं(ध). कादं(शा). आघात, नलरा. *विमप्र. स्पष्ट, उचित; ऐतिरा. [अथडावू ते] (सं.प्रतिघात) प्रसिद्ध, जाहेर [सं.प्रतिपद्] पडच्च प्राचीसं. धनुष्यनी पणछ (सं.प्रत्यंचा) पडवंड प्राचीफा. सज्ज, [उद्यत] (सं.प्रतिपद्) पडजीभी उक्तिर. पडजीभ, गळानो काकडो पडवाडे दशस्क(२). पलवाडे, वाडमां, (सं.प्रतिजिह्वा) पाछली वाडे]; जुओ पडाळे पडछंदा अखाका. कामा(त्रि). चित्तसं. पडवास उक्तिर. कंकु वगेरेनुं सुगंधी चूर्ण प्रेमाका. पडघा [सं.प्रतिच्छन्दस् (सं.पटवासक) पडताळ्या प्रेमाका. पछाड्या, [पीट्या] पडसहे कृष्णच. प्रतिशब्दथी, पडघाथी पडतुं अखाछ. घडी न शकाय एवं, [बरड, पडह आरारा. उपबा. ऐतिका. कादं(ध). हलकुं] (सोनुं), जुओ पड्यु कादं (शा). गुर्जरा. विक्रच. विक्ररा. पडपंच अखाका. संसार, संसारनी जंजाळ सिंहा(शा). पडो, ढोल (सं.पटह) । [सं.प्रपंच] पडहउ उक्तिर. उषाह. पडो, ढोल (सं.पटह) पड-पितराई नरका.[दूरना पितराई]; जुओ पडहू उक्तिर. जामीन, जामीनदार (सं. प्रतिभूः); जुओ पदू पडपूछ प्रेमाका. वधारे पडती पूछपरछ पडाई उक्तिर. चंद्रवा. नानी पतंग (सं. [सं.प्रतिपृच्छा] पताकिका) पडमा देवरा. प्रतिम्ग पड़ाग ऐतिका. पताका, धजा पडल उक्तिर. टोपली, पोटली (सं.पटल) पडाया लावल. पाडी देवामां आव्या पडलउ उक्तिर. जैन साधु वहोरवा जाय पडाळे नरका. परसाळे, ओसरीमां; जुओ त्यारे पात्रने ढांकवा वपरातुं वस्त्र पडवाडे, परालें [सं.पटलालि] पड 2010_03 Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २९७ पडिइ/पडीसारउ पडिइ कादं(शा). पडियामां (सं.पुटक) आपी (सं.प्रतिलाभ) पडिक्रमइ उपबा. प्रतिक्रमण [जैन धर्म- पडिलेहइ उपबा. जिनरा. सूक्ष्म निरीक्षण क्रिया] करे (सं.प्रतिक्रमति) करे, तपासे (जै.) (सं.प्रतिलेखयति) पडिकमणउं, पडिक्कमणउं उक्तिर. ऐतिका. पडिलेहण उक्तिर. सूक्ष्म निरीक्षण, तपास षडाबा. दोषोना प्रायश्चित्त अर्थे थती (सं.प्रतिलेखना) जैन धार्मिक क्रिया, प्रार्थना (सं.प्रति- पडिवजिउं गुर्जरा. *नेमिछं. शृंगामं. स्वीकार्यु क्रमणम्) [सं.प्रतिपद्]; जुओ पडवजिउं पडिकार ऐतिका. प्रतिकार पडिवन्नऊ आरारा. तेरका. प्राचीसं. स्वीकृत, पडिक्कमइ षडाबा -नुं प्रायश्चित्त करे, थी अंगीकृत, स्वीकृत वचन (सं.प्रतिपन्नम्) निवृत्त थाय (सं.प्रतिक्रमति) पडिवा उक्तिर. पडवो (सं.प्रतिपदा) पडिक्कमणउं जुओ पडिकमणउं पडिवू उक्तिर. पडवू (सं.पतितव्यम्) पडिखइ तेरका. प्राचीसं. स्थूलिफा. प्रतीक्षा पडिसूधा आरारा. मेंदो (*सं.परिशुद्ध) करे, वाट जुए; जुओ पडखइ ["सं.प्रतिशुद्ध] पडिगारिउ उक्तिर. इलाज करायेल, सचेत पडिहाइ गुर्जरा. शोभे (सं.प्रतिभाति) करायेल [सं.प्रतिकारित] पडिहार गुर्जरा. प्रद्युचु. षडाबा. दरवान, पडिगाहिं स्थूलिफा. [अनुग्रह अर्थे] (सं. द्वारपाल (सं.प्रतिहार) प्रति+ग्रह) पडिहारि अंबरा. प्रतिहारी, [द्वारपाळ स्त्री] पडिछंदा प्राचीसं. पडघा (सं.प्रतिच्छन्दस्) पडीआर उक्तिर.म्यान (सं.प्रत्याकारः); जुओ पडिपुन ऐतिका. पूरा थया [सं.प्रतिपूर्ण] पडियार पडिबिम्ब ऐतिका. प्रतिबिम्ब *पडीगइ [पडीगरइ] उक्तिर. सारवार करे पडिबोह- तेरका. प्रतिबोध करवो, [उपदेश (सं.प्रतीकरोति) आपवो पडीगणउं ["पडीगरणउँ] उपबा. सारवार पडिबोह ऐतिका. प्रतिबोध, [उपदेश] (सं.प्रतीकरण) । पडिबोहग जिनरा. प्रतिबोधक, [उपदेश पडीगरइ उक्तिर. सारवार करे [सं.प्रती__ आपनार] करोति]; जुओ पडीगइ पडिबोहणओ ऐतिरा. प्रतिबोधक पडीगरणउं जुओ पडीगणउं पडियार सम्यचो. म्यान [सं.प्रत्याकार]; पडीघ प्रेमाका. पडो वगाडनार, ढोल जुओ पडीआर वगाडीने जाहेरात करनार [सं.प्रतिघा-] पडिरवण ऐतिका.प्रतिरव, प्रतिध्वनि, पडघो पडीमा ऐतिका. प्रतिमा पडिलाभी आरारा. जिनरा. वहोरावी, दान पडीसारउ उक्तिर. [*सजावट] (सं. 2010_03 Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडूछइ / पतंग प्रतीसारक ) [ प्रा. पडिसार ] पडूछइ उक्तिर. सामुं पूछे, वारंवार पूछे, पूछीने चाले (सं. प्रतिपृच्छति) पडूर आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. जिनरा प्रचुर, खूब ( रा . ) पडूंच उक्तिर. जामीनगीरीमां मूकेली वस्तु; जुओ पढूचउं पडोचा * उषाह. [* पूछपूछ ]; जुओ पडूछइ पड्युं अखाछ. हताश थयेलुं, [भांगी गयेलुं ( मन ) ] ; जुओ पडतुं पड्ये पिंड्ये चित्तसं. शरीरनो नाश थतां पढs षडाबा. भणे (सं. पठति) पढणहारु उक्तिर, भणनार २९८ पढम गुर्जरा. जिनरा. तेरका. प्रथम पढमाली उक्तिर. सवारनो नास्तो दि. पढमालिआ ] पढि उक्तिर. भणj (सं. पठितव्यम्) पढीत उक्तिर. पढातुं भणातुं (सं. पठ्य ) पढू उक्तिर. जामीनगीरी आपनार (सं. प्रतिभूः); जुओ पडहू पटूच, पढूवूं उक्तिर. जामीनगीरीमां मूकेली वस्तु; जुओ पडूंचउ पण जिनरा. प्राचीसं. पांच (सं. पञ्च) पण उपबा. नलाख्या. होड, दाव (सं.) पणच प्राचीफा. धनुषनी दोरी, [पणछ] [सं. प्रत्यंचा ] पणनाणी जिनरा. [केवळज्ञान सुधीनां पांचे ज्ञान धरावनार], केवळी [सं. पंचज्ञानी] पणमइ गुर्जरा. तेरका. नलरा. विक्ररा. प्रणाम करे ( सं . प्रणमति) 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पणवीस जिनरा. प्राचीसं. पचीस ( सं. पञ्चविंशति) पणास शीलक. नाश [सं. प्र+नाश ] पणासइ आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. शृंगामं. नाश पामे, नाश करे (सं. प्रनश्यते) [सं. प्रनाशयति ] पणासणु ऐतिका नाश करनार [सं. प्रनाशन] पणांगना षडाबा. वारांगना (सं.) पणि आनंस्त. उपबा. गुर्जरा. नेमिछं. वसंफा. वसंवि. षष्टिप्र. पण, वळी, तो, [] (सं. पुनः अपि) पणि कादं (शा). दुकानमां (सं. पण्य) पणिदिय जिनरा. पंचेन्द्रिय, [जेने पांच इन्द्रिय छे तेवी] पणीहार, पणीहारि उक्तिर. पनिहारी, पाणी भरनारी (सं. पानीय + हारी) पण्ण "कादं (धु). [ दुकान] [सं. पण्य] आबरू पत नरका. प्रेमाका. टेक, पतगरड़ उषाह. सिंहा (म). स्वीकार करे [सं. प्रतिकरोति] पतडउ जिनरा. वीसरा. पंचांग, टीपणुं, [तिथिपत्र ] (सं. पत्र) पतत्य चंद्रवा. पडतां पतन्य चित्तसं. पतन पतल मिछं. ढीला पडे, [स्खलित थाय] पतंग उक्तिर. कामा (त्रि). चित्तसं. षडाबा. पतंगियुं (सं.) पतंग आरारा (व). पतंगनुं झाड; चंदननी एक जात (सं.) Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश २९९ पति/पनउता पति(?) तेरका. प्रति स्त्रीओना कपाळमां चोडवाने माटेनुं पतियावं अखाका. अखाछ. प्रतीति करवी. भोजपत्र वगेरेनुं कोतरामण (सं. विश्वास करवो, मान, [सं.प्रत्ययति पत्रच्छेद्य) पतियावq अखाछ. प्रतीति कराववी [सं. पत्रछेद्य जुओ पत्रछेद प्रत्याययति पत्री अखाछ. वृक्ष; पंखी [सं.पत्रिन्] पतिसाह आरारा. पातशाह, बादशाह, पत्री प्रेमाका. पत्र, चिठ्ठी [सं.पत्रिका] अग्रणी पथक ऐतिरा. तालुको, [पंथक, विस्तार पतीज नरका. नलरा. विश्वास (सं.प्रत्यय) पथरणउँ उक्तिर. पाथरपुं (सं.प्रस्तरणम्) पतीजइ उक्तिर. तेरका. नरका. प्राचीसं. पथिकपराण वसंवि. वसंवि(ब्रा). पथिकनां लावल. वीसरा. शृंगाम. विश्वास राखे प्राण (सं.प्रत्याययते) पदगर कर्पूमं. स्वीकारेनु, वचन; जुओ पतीजउ प्राचीसं. प्रतीति, [खातरी] [सं. पतगरइ प्रत्यय पदठवण जिनरा. पदस्थापना पतीठिय प्राचीसं. मूर्तिस्थापना करी (सं. पदम ऐतिका. वीसरा. कमळ [सं.पद्म]; प्रतिष्ठित) *कामा(त्रि). [पद्मनुं सामुद्रिक चिह्न] पतीठी ऐतिका. प्रतिष्ठित करी, [स्थापित पदमख आरारा(व). कमळकाकडी (सं. करी _पद्माक्ष) पतीनां ऐतिका. प्रतीति थई । पदमी कामा(त्रि). चंद्रवा. प्रेमाका. मदमो. पत्त आरारा. पहोंच्यो, पाछो गयो; ऐतिका. पदवी पहोंच्यो [सं.प्राप्त पदिमनी नलाख्या. पद्मिनी, चार प्रकारनी पत्तन नलरा. नगर (सं.) स्त्रीओमा प्रथम प्रकारनी सुलक्षण स्त्री पत्तलि अभिऊ. पत्ती, वनस्पतिनी पातरी, पर्यु चित्तसं. आचरुं [पांदडी] [सं.पत्र+ल] पद्म प्रेमाका. सो करोडनी संख्या [सं.] पत्ति ऐतिका. पांदडे [सं.पत्र] पद्मनी गुर्जरा. पद्मिनी, एक उत्तम स्त्रीजाति पत्ति षडाबा. पगपाळो सैनिक, [सेनाना पय चित्तसं. पद, स्थान, स्थिति __ सौथी नाना विभागनो अधिकारी] (सं.) पधरावीउ आरारा. लाव्यो, प्रवेश कराव्यो पत्तु ऐतिका. पहोंच्या [सं.प्राप्त [सं.पादौ+धार] पत्थरूं नेमिछं. पाथरूं (सं.प्रस्तर) पधोर अखाका. [पाधलं, सीधुं, अनुकूळ] पत्यु गुर्जरा. पार्थ, अर्जुन पनई नरका. *नरप. मोजडी (सं.उपानह्) पत्रछेव, पत्रछेय कादं(घ). कादं(शा). पनउता लावल. [पनोता], पवित्र, भाग्य 2010_03 Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनर/पयडिय ३०० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शाळी [सं.पुण्यवंत पमावइ उक्तिर. जिनरा. [पोमाय], गर्व करे, पनर उक्तिर. उपबा. प्राचीसं. षडाबा. पंदर [फुलाय] (सं.प्रमापयति) (सं.पंचदश) [अप.पन्नरह] पमासन सिंहा(म). पद्मासन पनरमा आनंस्त. पंदरमा पमुह ऐतिका. गुर्जरा. तेरका. प्रमुख, आदि, पनरस षडाबा. पंदर (प्रा.पण्णरस) [सं. वगेरे पंचदश] पमुहाणं ऐतिका. वगेरेनां (सं.प्रमुखानां) पनरह षडाबा. पंदर (अप.पन्नरह) पमोउ ऐतिका. प्रमोद पनरागति कर्पूमं. *गोटाळो [*पुनरागति, पमोडी उक्तिर. पद्मबीन, कमळकाकडी (सं. *पुनरा- वर्तन] पद्मकर्कटी) पनही हरिख्या. मोजडी (सं.उपानह्) पय आरारा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. प्राचीफा. पनुतुं प्रेमाका. विमप्र. शुकन देनारं, लावल. वीसरा. पग (सं.पद); नेमिछं. भाग्यशाळी, पुण्यवंतु, [शुभ, मंगल, स्थान; वसंवि(ब्रा). पद, [काव्यर्नु पवित्र चरण], [शब्द] पनुहुतु नलाख्या. पनोतो, [पुण्यवंत] पयउहर वीसरा. स्तन (सं.पयोधर) पन्न तेरका. पांदडु (सं.पण) पयकमल ऐतिरा. पदकमल, पग पन्नग अखाका. आरारा. प्रेमाका. लावल. पयठउ गुर्जरा. विराप. पेठो (सं.प्रविष्ट) नाग, साप (सं.) पयठाण प्रद्युचु. नगरविशेष (सं.प्रतिष्ठान) पन्नाग आरारा (व). ऊंडी, रक्तकेसर (सं.पुं- पयठ, पइठ प्राचीसं. प्रतिष्ठा, [मूर्ति स्थापना] पन्नाला * विमप्र. [पर्णकुटि] पयड शृंगामं. प्रकट, [खुल्लु, अनावृत्त]; पपील अखाका. पीपिलिका, कीडी ऐतिका. गुर्जरा. प्रकट, प्रगट; प्राचीफा. पपोटा उपबा. परपोटा (सं.प्रस्फोटक); प्रसिद्ध जुओ पंपोटा __पयड वसंफा(ल). वसंवि. प्राकृत पभणइ आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. गुर्जरा. पयड-पय-बंध वसंवि(ब्रा). "स्पष्ट पदबंध चारफा. जिनरा. तेरका. नलरा. (सं.प्रकट+पदबंध), [प्राकृत पदबंध] स्थूलिफा. बोले, कहे (सं.प्रभणति) पयडि उषाह. प्रकटे पमजणा जिनरा. प्रमार्जन, [झाडु काढवू पयडि जिनरा. प्रकृति, [स्वभाव, स्वरूप, प्रकार] पमार उक्तिर. परमार पयडिय *ऐतिका. [प्रगट थयेल] [सं. •पमारी वीसरा. परमार स्त्री प्रकटित] नाग) ते] 2010_03 Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३०१ पयतलि/परघलतउ पयतलि ऐतिका. पग तळे, पगमां स्तन (सं.पयोधर) पयन्ना दस ऐतिका. प्रकरण [नामना] दश पर तेरका. परम शास्त्रग्रंथ] पर प्रबोप्र. विक्ररा. पेर, प्रकार, [रीत]; पयबंधिहि वसंफा (ल). वसंवि. पदबंधमां जुओ पेर पयमाल प्राचीफा. खुवार (फा.पायमाल) पर अखाछ. पीछु, (पांख) [फा.]; पयला जिनरा. प्रचला. निद्रानो प्रकार दशस्क(१). प्रेमाका. पीछु जेमां बेठांबेठां ऊंघ आवे, दर्शनावरणीय परइ नेमिछं. उपर कर्मनो एक प्रभेद] [जै. परइ आनंस्त. आरारा. ऋषिरा. प्रबोप्र. पयलु उक्तिर. पेलु पेरे, रीते, पेठे, जेम (सं.प्रकार) पयसारउ जिनरा. प्रवेशोत्सव; जुओ पेसारो, पर-उपगार दशस्कं(१). परोपकार पैसारे परऊत नलाख्या.?, [*परायत्त, *पराधीन, पयसारु विमप्र. प्रवेश *परवश] पदिति निका प्रखरतापी प्रचंड परकर *कादं(धु). [ढगला] [सं.प्रकर] पयंडु ऐतिका. गुर्जरा. प्रचंड परकल चतुचा. कंदोरो [सं.परिकर] पयंतरउ उक्तिर. पटतर, पडदो (सं. परखक चंद्रवा. परीक्षक प्रत्यन्तरम्) परगडउ आरारा. “ऐतिका. ऐतिरा. प्राचीफा. प्रकट, प्रसिद्ध पयंपइ आरारा. प्राचीफा. कडे, बोले (सं. प्रजल्पति) परगति कादं (शा). स्वभाव (सं.प्रकृति) परगास- वीसरा. जाहेर करवू, प्रगट करवू पयाणउ आरारा. प्रयाण; वीसरा. प्रवास (प्रा.) [सं.प्रकाश्] पयार ऐतिका. प्रकार पर गोलओ चारफा. उपर घोळी दीधो, पयाल आरारा. गुर्जरा. पाताल ओवारी नाख्यो (सं.परि+घूर्णित) पयावि * ऐतिका. [प्रतापथी] परघ सिंहा(म). घेरावो (सं.परिघ); जुओ पयासइ ऐतिका. प्रकाशित करे छे परिघउ पयासणु ऐतिका. प्रकाशित करनार परघउ *आरारा. [राज्याधिकारी] (सं. पयासिउ गुर्जरा. तेरका. प्रकाशित कर्यु परिग्रह); जुओ परघ, परिघउ, परिघा पयोदु गुर्जरा. विराप. वादळ (सं.पयोद) परघल अभिऊ. ऐतिका. कृष्णच. नेमिछं. पयोधरी प्रेमाका. नदी [सं.] विमप्र. पुष्कळ, अतिशय, भरपूर; जुओ पयोहकी नलाख्या. पयोष्णी नामनी नदी अरघल पयोहर गुर्जरा. तेरका. लावल. वसंफा. परघलतउ जिनरा. पीगळतो, [नीतरतो] वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. शीलक. [सं.प्र+गल्] 2010_03 Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परघलि मनि/परतउ ३०२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश परधलि मनि आरारा. मोकळे मने, पूरा परठवू अखाका. अखाछ. अखेगी. __ मनथी (रा.) कादं(शा). गुर्जरा. चित्तसं. नलाख्या. परपालि आरारा. सवारे (रा.परगाळ; सं. प्रेमाका. सिंहा(शा). स्थापित करवं, प्रहकाल) ठराव, नक्की करवू, निश्चित करवू परघु प्राचीका. राजकर्मचारी, (सं. (राज)- (सं.परिस्थाप); अभिऊ. चंद्रवा. रूपच. परिग्रह); जुओ परघउ लावल. स्थापवू, मूकवू *लावल. परचक्र आरारा. पारकानुं शासन (सं.) [स्थिति करवी]; चंद्रवा. मदमो. मूकवू, परचरी नरप. प्रचरी, प्रसरी, फेलाई मोकलवू, चंद्रवा. राखवू, [धारण परचावइ *जिनरा. [परिचय - प्रतीति करवं]; स्थापवू, [बनावीने मूकबुं] " परठि जुओ परठ करावे] परचाएं *जिनरा. [उपयोगमां लाएँ] परठवइ उपबा. नाखे, फेंके (सं.प्रतिपरचि, परचो कादं (शा).परिचय, ओळखाण; स्थापयति) अखाका. परिचय, [ओळखाण], परठणहार अखेगी. नक्की करनार [प्रताप परड मदमो. सापोलियु परचूरणि उक्तिर. परचूरण (सं.प्रचूणि) परणण, परणन आरारा. परणवू ते (सं. परचो जुओ परचि परिणयन) परछंडा कामा(शा). पडघा [सं.प्रतिच्छन्दस] परणाल प्राचीफा. नेवानुं पाणी झीलवा परछांये मदमो. पडछायामां (सं.प्रतिच्छाया) माटना नाक, परनाळ (स.प्रणाल) परजलइ, परजळइ आरारा. जिनरा. वीसरा. परणालियां ऐतिका. परनाळ, [नेवांनुं पाणी प्रजळे, बळे झीलवा माटेनी नीक] परजंग प्रेमाका. पर्यंक, पलंग परणेवइ नेमिछं. परणवामां (सं.परि+नय्) परजंत चित्तसं. मदमो. पर्यंत, सुधी परत (रक्खी) ऐतिका. पडती [राखी] परजंन प्रेमाका. पर्जन्य, वरसाद परत प्राचीसं. परत्र, परलोक परजालि जिनरा. प्रजाळीने, बाळीने परत जुओ अरतपरत परजियो नरका. *परजियो सोनी, [*कोई परत हरिख्या. प्रत्ये, तरफ (सं.प्रति) अलंकार] परतइ उक्तिर. परिवर्तन पामे, बदलाय परजीओ मदमो. रागविशेष (सं.परिवर्तयति) परठ, परठि दशस्कं(१). नलाख्या. प्रेमाका. परतइ * वसंफा(ल). "वसंवि. “वसंवि(ब्रा). शरत; *जिनरा. [ठराव, निश्चय, नक्की [समान] [सं.प्रति] करेलुं] [सं.परि+स्थाप्] परतउ जिनरा. नेमिछं. परचो, परिचय; ___ 2010_03 For Private & Personal Use only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३०३ . परतक्ष/परम ताति जुओ परता, परतो झीलवा माटेनी नीक, परनाळ (सं. परतक्ष कादं(शा). नलाख्या. नजरोनजर, प्रणाल) साक्षात् (सं.प्रत्यक्ष) परनालि, परनाली उक्तिर. ऋषिरा. परनाळ, परतख, परतखि ऐतिरा. ऋषिरा. नेमिछं. पाणी जवानो मार्ग (सं.प्रणाली) प्रबोप्र. लावल. प्रत्यक्ष, आंख सामे परनालीउ विमप्र. परनाळ, [पाणीनी नीक *परतग (परतप) प्रद्युचु. *परचो, [प्रताप] परपंच अखाका. संसार, संसारनी जंजाळ; परता नैमिछं. *सामे (सं.प्रति), [चारे बाजु] कादं (घ). वाणीनो विस्तार, [माथाकूट [सं.परितः] पर-पाग अखाका. पीछा अने पग (फा.पर) परता प्राचीसं. ?, [*परचा]; जुओ परतउ [सं.पदाग्र] परताजि विमप्र. परित्यागीने, छोडीने परपूठ जिनरा. पीठ पाछळ, [पछवाडे, परताति उक्तिर. जिनरा. परनिंदा; जुओ गेरहाजरीमां] परबत वीसरा. पर्वत परतापीक मदमो. सिंहा(शा). प्रतापी परबंध आरारा. प्रबंध, काव्यरचना परतालु चंद्रवा. पत्राळु परभव गुर्जरा. अपमान, परेशानी (सं. परति अभिऊ. कादं(शा). तरफ (सं.प्रति) परिभव); जुओ परिभव, परीभव परतिखि उषाह. जिनरा. प्रत्यक्ष परभवइ अखाका. अखाछ. नरका. प्रेमाका. परतिख्य वीसरा. प्रत्यक्ष कष्ट दे, हेरान करे, दुःखी करे (सं.परिभू); परतीठ जिनरा. प्रतिष्ठा, [मूर्तिस्थापना] गुर्जरा. विराप.अपमानित करे, [पजवे]; परतीत अखाका. अखाछ. नरका. प्रतीति, प्रेमाका. पराभव करे, [पजवे]; जुओ खातरी परिभवे परतीय हरिवि. लसोटीने लगाडी (सर. परभव्या चंद्रवा. संबंध राख्यो, [संग कर्यो] म.परतणे) [सं.परि+भू] परतो नंदब. परचो; जुओ परता परभा अखाका. प्रकाश, [आभा, आभास] परत्थी ऐतिका. परस्त्री [सं.प्रभा] परत्र ऐतिका. परलोकमां [सं.] परभाय अखाछ. प्रवाह; जुओ प्रभा परथवी विक्ररा. पृथ्वी परभायु प्रेमाका. बारोबार परवखणा देवरा. प्रदक्षिणा परभावइ आरारा. गुर्जरा. प्रभावथी परदळ वीसरा. समूह परभुइं वीसरा. पारकी भूमि (सं.परभूमि) परधि आरारा. परिधि, विस्तार परम दशस्क(१). पर्व परनाल आरारा. नलरा. नेवांनुं पाणी परम उक्तिर. परम दिवस, त्रीजो दिवस 2010_03 Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमप्पय/परवाहिक (सं. परद्यवि) परमप्पय प्राचीसं. परमात्मा परमल प्राचीफा. सुगंध (सं. परिमल ) परमत्थ विक्रच. परम अर्थ [वाळुं], [साचुं] परमाण अखाका. प्रमाण, माप, [निश्चय, खातरी]; * देवरा. [चरितार्थ, सिद्ध]; नरका. समान; चित्तसं. प्रमाण, हेतुसाधक, सार्थक, उपयोगी परमाण राखे चित्तसं. प्रमाणभूत गणे, खरुं माने, स्वीकारे ३०४ परमाणुं प्रेमाका. प्रमाण, माप परमाणे चित्तसं. मापे, [-ना मापमां] परमाण्य चित्तसं. स्वीकार परमाण्यो नरका. प्रमाण्यो, [प्रतीत कर्यो, मान्यो] परमाधामी गुर्जरा. नेमिछं. जैन धर्म अनुसार, नरकवासीओने शिक्षा करनार देवयोनि (सं. परम + अधार्मिक) परमारथ आरारा. परमार्थपणे, खरेखर, साचेसाच; अखाका. परम अर्थ, परम ध्येय, [ सारतत्त्व ] परमावधि प्रेमाका. जेनी अवधि नथी तेलुं बधुं [ खूब ] हद 2010_03 दिवसीयम्) परमेठि गुर्जरा. परमेष्ठी परमेसरु गुर्जरा. परमेश्वर परमोधे अखेगी. प्रबोधे, उपदेश आपे परभाग कादं (शा). शेषभाग (सं.); जुओ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश परिभाग परयचि सिंहा (म). पडदो [*सं. परिकक्षी, प्रा. परियच्छी; *सं. परिच्छद्]; जुओ परिअच परयाणइ आरारा. प्रयाणे परलउ उक्तिर. पेलुं परलोइ आरारा. परलोके परव उक्तिर. तेरका. हरिख्या. परब (सं.प्रपा) परवडतुं नरका-२. अनुकूळ, फावतुं [सं. परिपत्] परवरिउ आरारा. ऋषिरा. कादं (धु). कादं (शा). वींटळायेलो, घेरायेलो (सं. परिवृत); लावल. पारंगत थयो, [ आवृत थयो, -थी युक्त थयो] आरारा. दशस्कं ( 9). नलाख्या. गयो परवरी ऐतिरा. प्रवर, महान् परवरे चित्तसं. जाय, आवे, फरे, रहे, परिणमे परवाडे प्रेमाका. वाडना पाछला भागमां परवार ऋषिरा. चंद्रवा. नलरा. परिवार, कुटुंब, रसालो परमुहा देवरा. पराङ्मुख परमूणउ उक्तिर. परम दिवसनुं (सं. परम- परवाल, परवालउं, परवाली उत्तिर. गुर्जरा. वसंफा. वसंवि (ब्रा). षडाबा. परवाळु (सं. प्रवाल) परवार कृष्णच. नरका. फुरसद, नवराश परवारइ उक्तिर. पार पाडे, आटोपे, आटोपी नवरो थाय (सं.प्रपारयति ); जुओ परिवारइ परवाह आरारा. दरकार, गरज ( फा . ) परवाहिक चित्तसं. प्रवाहिक, प्रवाह रूपे वनार, अवशपणे तणानारा Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३०५ परवी/पराणउ परवी हरिख्या. परबियो, [परबवाळो] परस्मिन्) परवृत्ति *प्रेमाका. [बीजानी आजीविका] परहंसिउ *षडाबा. [दुःखना आवेगमां आवी गयो]; जुओ परहुसीउ, परहुंस परवे नरका. नरप. परवश, पराधीन, विवश परहां [उरहांपरहां] *उपबा. [आमतेम] परवेस आरारा. प्रवेश; मदमो. प्रवास, परही कृष्णच. पाछी [संक्रमण, जq ते]; जुओ प्रवेश परहु आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. विमप्र. विराप. परशीनि उषाह. स्पर्श करीने दूर (सं.परस्मिन्); आरारा. पछी (रा.) परशेवी कादं (शा). परसेवो पामी (सं.प्रस्वेद परहु आरारा. चोक्कस (रा.परौ) परथी) परहुसीउ *विमप्र. [दुःखनी लागणीना परषद ऐतिका. ऐतिरा. नेमिछं. परिषद, आवेगवाळो थयो]; जुओ परहंसिउ, सभा परहुंस पर समय जिनरा. पारकुं शास्त्र, [अन्य परहुंस * विमप्र. [दुःखनी लागणीना आवेगधर्मीना सिद्धांत] [सं.] वाळा]; जुओ परहंसिउ, परहुसीउ, परसरइ * जिनरा. [नजीकमां, तरफ] [सं. प्रहुसु परिसर परहूणि प्रबोप्र. स्त्री-महेमान (सं.प्राघूर्णिका) परसशे नरका. स्पर्शशे परहूणउ अभिऊ. ललिरा. विक्ररा. विमप्र. परसवतां चित्तसं. प्रसवतां, जन्मतां परोणो, महेमान (सं.प्राघूर्णक) परसंग चित्तसं. प्रसंग, संदर्भ परहो मोसाच. आघो, वेगळो [सं.परस्मिन्] परसाखि षडाबा. बीजानी साक्षीए (सं.पर+ परहोडि विमप्र. परोढमां साक्ष्य) परा आरारा, पंचवा. दूर (सं.) [सं.पर परसादि आरारा. कृपाथी (सं.प्रसाद) पराए गुर्जरा. दूर (सं.*परकस्मिन्) परसिरि आरारा. परिसरमां, पासे पराइय तेरका. पहोंच्युं (सं.प्राप्+इत) परसी चित्तसं. स्पर्शी, स्वीकारी पराकाष्टा चित्तसं. छेक सुधीनी परसीधो आरारा. प्रसिद्ध पराघउ * गुर्जरा. *विराप. [मोंधू] [सं.परार्घ परसु उक्तिर. परम दिवसे (सं.परश्चः) । पराधाइ जुओ घाइ परसे अखाका. चित्तसं. स्पर्श पराण गुर्जरा. प्रबोप्र. वसंफा. वसंवि(ब्रा). परसेवी कादं(धु)-टि. परसेवो छूटेलो होय प्राण, जीव; विक्ररा. *विमप्र. बळ, बळ एवी परस्पेरे दशस्कं(२). परस्पर पराणउ वसंफा. वसंवि(ब्रा). -मां डूबेलो, परहउ उक्तिर. षडाबा. षष्टिप्र. दूर (सं. परायण VT. पश जबरी ___ 2010_03 Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पराणी/परिचय ३०६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पराणी उक्तिर. बळदने हांकवा माटेनी परिअच अभिऊ. पडदो (सं.परिच्छद); लाकडी (सं.प्राजनिका) जुओ परीअच पराणो प्रेमाका. परोणो, जाडी लाकडी [सं. परिई उपबा. नेमिछं. वाग्भबा. प्रकारे, रीते, प्राजनकः] जेम परात्पर प्रेमाका. सर्वश्रेष्ठ [सं.] परिकर आनंस्त. ऐतिका. परिवार, पराभव गुर्जरा. अपमान, तिरस्कार (सं.); परिजन, साथीगण] [सं.] लावल.*पराजय, तिरस्कार, अनादर]; परिकर कादं (शा). ढगलो (सं.प्रकर) चित्तसं. नाश परिकसी आरारा. परीक्षा, कसोटी पराभवइ आरारा. उपबा. जिनरा. षडाबा. परिकम *प्राचीफा. [परिक्रमण, प्रसरण] पराभव, तिरस्कार, अनादर पामे, हारे (सं.परिक्रम); *प्राचीसं. परिक्रमण, पराभव्या आनंस्त. पराभव पामेला, हारेला . प्रदक्षिणा परायण प्रेमाका. परम गतिरूप, परम परिक्खइ गुर्जरा. तपासे (सं.परीक्षते) लक्ष्य] परिक्खिवि *ऐतिका. [परीक्षा करीने, परालु उक्तिर. पराळ, डांगर वगैरेना पारखीने] खरसलां, घास (सं.पलालम्) परिखइ आनंस्त. नलरा. परीक्षा करे, पारखे *परालें पडाळे] नरप. *राते, [परसाळे]; (सं.परीक्षते) जुओ पडाळे परिगर प्राचीफा. मूर्तिनी आसपासनो परां प्रेमाका. दूर, अलग कोतरणीवाळो परिवेश (सं.परिकर) परांण वीसरा. जीव; बळ (सं.प्राण) परिघ प्रेमाका. भोगळ जेवू एक शस्त्र [सं.] परांमुख प्रेमाका. विमुख परिघउ अंबरा. हम्मीप्र. राजसेवक, राज्यापरांहां विमप्र. परां, दूर धिकारी [सं.परिग्रह]; जुओ परघउ परि आरारा. परंतु (सं.परम्); तेरका-अनु. परिघल ऐतिका. ऐतिरा. नेमिछं. विमप्र. पण, [-ये] पुष्कळ, अतिशय परिघा *अभिऊ. [राजसेवक, राज्यापरि अभिऊ. आरारा. उक्तिर. उषाह. ऐतिका. कर्पूमं. कादं(शा). गुर्जरा.. धिकारी] [सं.परिग्रह]; जुओ परिघउ तेरका. नलरा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. परिचउ उक्तिर. परिचय वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). विमप्र. परिचत्त प्राचीफा. त्यजायेल (सं.परित्यक्त) वीसरा. षडाबा. प्रकार, रीत; प्रकारे, *परिचय (परियच) अखाछ. पडदो; जुओ रीते, पेठे; जुओ पर परिअच परि आरारा. गुर्जरा. मोसाच.उपर (सं.उपरि) परिचय- तेरका. प्राचीसं. तज, (सं. . 2010_03 Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३०७ परिछइ/परिवेषण परित्यज्) परिबंध आरारा. प्रबंध, [काव्यरचना] परिछइ षडाबा. तपासे, परखे (सं.परीक्षते) परिब्रह्म दशस्क(१). परब्रह्म परिजलइ गुर्जरा. प्रजळे (सं.परिज्वलति) परिभव गुर्जरा. हरिख्या. सतावणी, अपमान परिट्ट विक्ररा. धोबी दि.परिअ] (सं.); जुओ परभव, परीभव परिठवइ *षडाबा. [पदार्थोनो परित्याग करे, परिभवे *गुर्जरा. [संताप पामे] (सं.परि+ मूके, नाखी दे] (सं.परिस्थापयति) भू); * नरका. [सतावे]; जुओ परभवइ परिठिउं ऐतिरा.धर्यु, [मूक्युसं.परि+स्था] परिभाग कादं (शा). शेषभाग; जुओ परभाग परिणइ उक्तिर. गुर्जरा. चारफा. तेरका. परिमाण देवरा. प्रमाणे षडाबा. परणे (सं.परिणयति) परिभ्रमी षडाबा. परिभ्रमण करीने, फरीने परिणमावीइं आनंस्त. परिणाम पमाडीए, परियच जुओ परिचय [निष्पन्न करीए] परियट उषाह. प्रेमाका. विक्ररा. धोबी दि. परिणय जुओ परियण परिअ]; जुओ परीअट परिणयण तेरका. प्राचीफा. परणवू ते, लग्न *परियण ["परिणय] *गुर्जरा. [विवाह, (सं.परिणयन) लग्न परिणावइ उक्तिर. लावल. वीसरा. परणावे परियंक नरका. पलंग, (सं.पर्यंक) (सं.परिणापयति) परिया कस्तुवा. वंशज [सं.पर्याय] परिणिउ षडाबा. परण्यो (सं.परिणीत) परियागति जिनरा. परंपरागत, [वंशगत] परिणिति ऐतिका. [परिणमन, परिणाम, [सं.पर्यायागत]; जुओ परीआगत फळ] [सं.परिणति परियां चंद्रवा. वंशजो, पेढी [सं.पर्याय] परितिषि विक्ररा. प्रत्यक्ष, हाजराहजूर परिरंभण नरका. आलिंगन [सं.] परिथल विमप्र. पुष्कळ [सं.पृथुल; रा.] परिवरइ उपबा. ऋषिरा. ऐतिका. वीटळाय परिदलि गुर्जरा. शत्रुसैन्यमां (सं.परदले) (सं.परिवृ., प्रा.परिवरइ) परिदेवन ऋषिरा. दुःख, शोक (सं.) परिवर्जकि षडाबा. त्याग करनार (सं.परिपरिदेस वीसरा. परदेश वर्जक) परि परि अभिऊ. उषाह. ऋषिरा. प्रकारे- परिवाडी गुर्जरा. परिपाटी, रीत, शैली प्रकारे, जुदीजुदी रीते, फरीफरी परिवारइ आरारा. उक्तिर. परवारे, पूरा करे परिपलव- तेरका. फरी पल्लववं. पिल्लवित (सं.प्रपारयति); जुओ परवारइ करवं] (सं.प्रतिपल्लव्) परिवारइ गुर्जरा. वीटळाय (सं.परिवारयति) परिपंथीय वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). परिवारि स्युं चारफा. परिवार साथे मार्गरोधक, शत्रु (सं.परिपंथिन्) परिवेषण गुर्जरा. पीरसण (सं.) 2010_03 Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ परिशोध/परीसिव्ह्यु ३०८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश परिशोध दशस्क(१). वावड, समाचार, परियच, परीअंचि, परीयचि, प्रीअछि [पत्तो]; प्रेमाका. चारे बाजु तपास, परीअट कृष्णबा. दशस्कं(२). धोबी दि. [खूब शोध] परिअट्ट]; जुओ परियट, परीयटु, परीहट परिसरि ऐतिरा. "नेमिछं. पादरे, [नजीक- परीचि ऋषिरा. पडदो; जुओ परीअच मां] [सं.परिसर परीआगत प्राचीका. वंश, [वंशपरंपरा] [सं. परिसर्पण आनंस्त. खस, ते, जq ते, पर्यायागत]; जुओ परियागति दूर थर्बु ते] [सं.परिसर्पण] परीकरी प्रेमप. वींटाळी ? परिसह आनंस्त. "देवरा. परीषह, कर्मनी परीखइ उक्तिर. ऋषिरा. षडाबा. षष्टिप्र. निर्जरा अर्थे स्वेच्छाथी भोगववानां कष्टो पारखे, परीक्षा करे (सं.परीक्षते) [जै.]; जुओ परीसह परीखा अखाका. [परीक्षा, समज] परिसाट आनंस्त. क्षय करवो ते, [अलग परीछइ उक्तिर. विक्ररा. षडाबा. षष्टिप्र.प्रीछे, करवू ते] [सं.परिशाट जाणे, समजे [सं.परिप्सते] परिसाडि *षडाबा. [नीचे पडवू ते] [सं. परीठ जिनरा. वृत्तांत; जुओ परेठ परिशाट] परीठवीउ गुर्जरा. आश्वासन आप्यु [सं.परि+ परिसीजइ उक्तिर. परसेवो थाय (स. स्थापित] परिस्विद्यति) परीभव कामा(त्रि). हार, अपमान ? [कष्ट, परिसीनउ उक्तिर. परसेवो थयेल (सं. पीडा]; जुओ परभव परिस्विन्नः) . परीयचि अंबरा. पडदो [सं.परिच्छद]; जुओ .. परिस्तरण, परिस्तर्ण दशक(१). प्रेमाका. परिअच .. पाथरवू ते [सं.] परीयच्छि उक्तिर. पडदो [सं.परिच्छद] परिहरइ लावल. षडाबा. परहरे, तजे परीयटु उक्तिर. धोबी दि.परिअट्ट]; जुओ परिहरवि ऐतिका. छोडीने, तजीने परीअट परिहरउ गुर्जरा. लो, धारण करो, राखो, परीयण, परीयणि आरारा. गुर्जरा. परिवार, . [पकडो, स्वीकारो] [सं.परि+ह] सेवकगण (सं.परिजन) परिहारी लावल. तजीने परीसइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. जिनरा. परि आनंस्त. ऐतिरा. पेठे, जेम [सं.प्रकारे] षडाबा. पीरसे (सं.परिवेषति) परी आरारा. ऋषिरा. नरका. प्रेमाका. दूर; परीसह ऋषिरा. *देवरा. नलरा. [कर्मक्षय जुओ पहरी माटे] श्रमणोए सहवानां टाढ, तडको परीअच, परीअचि, चतुचा. नलरा. ललिरा. वगेरे कष्टो [जै.]; जुओ परिसह पडदो (सं.परिच्छद); जुओ परिअच, परीसियुं उक्तिर. पीरसवु (सं.परिवेष 2010_03 Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३०९ परीवेद/पलवट यितव्यम्) परोणो अखाका. प्रेमाका. बळदने हांकवा परीस्वेद मदमो. प्रस्वेद माटेनी लाकडी [सं.प्रतोदन] . परीहट दशस्कं(२). धोबी दि.परिअट्ट]; परोणो-रास प्रेमाका. लाकडी अने लगाम जुओ परीअट परोहित विक्ररा. सिंहा(म). पुरोहित, गोर. परी प्रबोप्र. प्रकारे, [पेठे, जेम] पर्जन्य प्रेमाका. वरसाद, मेघ [सं.] परु नंदब. दूर; जुओ पहउ पर्पट विराप. पापड [सं.] परु षडाबा. अन्य, बीजी व्यक्ति (सं.परः) पर्यंक अखाका. पलंग (सं.) परुणा जुओ खुरुणा पर्याण कादं(शा). घोडानुपलाण, जीन (सं.) परुप्पर, परुप्यरु ऐतिका. शृंगामं. परस्पर पर्व *ऐतिरा. [(आंगळीनां) वेढां] पलं प्रेमाका. आईं, [बीजी बाजु]; अखाछ. पर्व प्रेमाका. परब [पाणीनी] प्रद्युचु. दूर, अळगुं पर्वणी प्रेमाका. [पर्वनो दिवस, पवित्र परुस- नलरा. *क्रोध करवो (सं.प्र+रुष), दिवस]; आठम, चौदश, पूनम अने ["दुःखनी लागणी अनुभववी]; जुओ अमास - एमांनी कोई एक तिथि प्रहुसु पर्षद आरारा. सभा (सं.) परूवइ उक्तिर. प्रतिपादन करे (सं.प्ररूप- पल प्रबोप्र. मास (सं.) यति) पळ प्रेमाका. पलक, पापण [फा.पल्क] परूहणुं उषाह. परोणो (सं.प्राघूर्णक) पलइ आरारा. षडाबा. पळाय, पालन थाय परे ऐतिका. देवरा. नेमिछं. प्रकारे, पेरे, रीते [सं.पाल् परथी] परेठ प्रेमाका. रीत, [व्यवहार, रूढि]; जुओ पलक शुं पलक प्रेमाका. आंखनी पांपण परीठ साथे पांपण, [नजरेनजर] परेरी अखाका. प्रेरी, प्रेरेली; [वधु दूर, पळका प्रेमाका. झंखना[वाळा], [लालसु] वधु आगळ]; जुओ पहरेरी पळको नरका.छटकीजाओ, [चाल्याजाओ] परेरे अखाछ. प्रेरे पलक्ये चित्तसं. पलकमां, पलकारामां परेरो अखाछ. दूर [फा.पल्क] परेरो (पारेवो/पटेरो) मदमो. अश्वनुं पलखंड विक्ररा. मांस [सं.] विशेषण, [एक अश्वजाति]; जुओ पलणावो अभिऊ. -ना उपर पलाण मूको, पाटर [सज्ज करो] (सं.पर्याण परथी) परो अखाका. प्रेमाका. मदमो. दूर, अलग पळता नरका. (पगमा) पडता, [जता] परोणाचार प्रेमाका. महेमानगत, आतिथ्य [सं.पलायते] [सं.प्राघूर्णक आचार] पलवट कामा(शा). "चतुचा. नरका. 2010_03 मध्य.२० Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलवटि/पवर ३१० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नरप(द). भेट, दुपट्टाथी केड बांधवी ते पलेवणूं *अभिऊ. [अग्नि, बळतरा] [सं. पलवटि उक्तिर. कादं(शा). पलवट, खेस, प्रदीपनकम्] केड उपर खेस बांधवी ते (सं.पल्लवा- पलेवलउं उक्तिर. अग्निनुं बळवू ते (सं. वृत्ति ) - प्रदीपनकम्) पलवट वाळवी दशस्कं(१). रूस्तस. भेट पलोइ गुर्जरा. तेरका. जुए (सं.प्रलोकयति) बांधवी पल्यंग आरारा. पलंग (सं.पर्यंक) पलवाड सिंहा(शा). वाड पल्यु नलरा. सफेद वाळ, पळियु (सं.पलित) पलंतु अभिऊ. पळतो, दोडतो (सं.पलायत्) पळ्युं दशस्कं(१). प्रेमाका. पळियां - धोळा पलाय, पळाय कामा(त्रि). कामा(शा). वाळवाळु थयु देवरा. प्रेमाका. हरिख्या. जाय, भागे (सं. पल्योपम ऐतिका. गुर्जरा. एक काळगणना पलाय्) जै.] . पलाति गुर्जरा. पलायन (सं. पलायिति). पल्हणाय विमप्र. पलाणाय, [सज्ज करवामां पलाव प्राचीफा. आनंद (सं.प्रलाप); जुओ आवे] [सं.पर्याण परथी] करुणपलाव पल्हाणो अभिऊ. -ना उपर पलाण मूको, पलाश, पलास, पळास प्रेमाका. वसंवि. [सज्ज करो] शृंगाम. खाखरो, केसूडानु वृक्ष पल्हालइ उक्तिर. “उपबा. पलाळे, आर्द्र पलासि गुर्जरा. मांसभक्षी, राक्षस (सं.पल+ करे (*सं.पर्यायति) [सं.प्रह्लाध्यति] अशिन्) पव तेरका. परब (सं.प्रपा) । पलि नलाख्या. पळे, जाय (सं.पलायते) पवजंति ऐतिका. प्रवृत्त थाय छे, [गति - पलित कादं(शा). नरका. पळियां आव्यां गमन करे छे] [सं.प्रव्रजति] , तेवो माणस, वृद्ध [सं.] पवट्ठरत्ति * ऐतिका. [वर्षाऋतुमां] [सं. पलित्त' प्राचीसं. प्रदीप्त प्रावृषऋतु] पलिया नेमिछं. पळ्या, गया [सं.पलाय] पवण गुर्जरा. तेरका. विराप. पवन पलिंग वीसरा. पलंग (सं.पल्यंक) [<सं. पवतणि ऐतिका. प्रवर्तिनी (जैन साध्वीओनुं पर्यंक] पद) पली लावल. विमप्र. पळी (माप) पवन अखाका. श्वास, प्राण; प्रेमाका. पली, पळी उक्तिर. प्रेमाका. पळियां, धोळा "मिजाज, [*शरीरनो वायु, *श्वास] वाळ [सं.पलित] पवन बांधी जुओ बांधी पवन पलीवणउं उक्तिर. प्राचीसं. पलेवj, [अग्नि- पवनाश कादं(शा). सर्प (सं.) नुं बळवू ते] (सं.प्रदीपनकम्) पवर ऐतिका. तेरका. नेमिछं. प्रवर, उत्तम, 2010_03 Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश .३११ पवरपुरि/पसीजइ प्रसृति) श्रेष्ठ, प्रधान पवरपुरि ऐतिका. प्रवर [उत्तम नगरीमां पसर गुर्जरा. प्रसर, फेलावो पवरिख प्रद्युचु. पौरुष पसरइ उपबा. गुर्जरा. चित्तसं. वसंफा. पवाई अखाका. पावैयो, नपुंसक वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). विराप. पवाडइ जिनरा. *पमाडे, *अपावे, [*प्रताप षडाबा. प्रसरे, फेलाय - दैवी चमत्कार वडे] पसवइ उक्तिर. जन्म आपे (सं.प्रसवति) पवाडउ अभिऊ. "उषाह. प्रधुचु. हम्मीप्र. पसंस- तेरका. प्रशंसा करवी (सं.प्रशंस) पराक्रम; हम्मीप्र. पराक्रमवर्णन- काव्य पसंसिजइ ऐतिका. प्रशंसा थाय छे [सं.प्रवोद] पसाइ आरारा. -ने लीधे (सं.प्रसाद); पवालउ प्राचीफा. परवाळु, एक रन (सं. आरारा. उषाह. कृष्णच. जिनरा. प्रबोप्र. प्रवाल) रूपच. विक्ररा. विराप. कृपा, कृपाथी; पवित्तिण ऐतिका. पवित्र (नामग्रहण) वडे अभिऊ. आरारा. बक्षिस पवित्तीय स्थूलिफा. दर्भनी वींटी पसाउ ऐतिका. चारफा. शीलक. *षडाबा. [सं.पवित्रिका] (प्रा.पवित्तय) स्थूलिफा. प्रसाद, कृपा पवित्तु षडाबा. पवित्र पसाउलइ कर्पूमं. गुर्जरा. विक्ररा. शृंगामं. पवित्रिइ, पवीत्रइ उक्तिर. पवित्र करे (सं. कृपाथी (सं.प्रसाद) . पवित्रयति) पसाय आरारा. ऐतिका. नलरा. *शृंगाम. पवित्री उक्तिर. प्रेमाका. दर्भनी वींटी (सं. कृपादान, बक्षिस; अखेगी. ऐतिरा. पवित्रकम्) दशस्क(१). तेरका. नरका. प्रेमाका. पवेडो दशस्कं(१). प्रेमाका. लाकडी, डंगोरो, । विक्ररा. प्रसाद, कृपा; अखाछ. प्रसादएनो छूटो घा रूप, प्रसन्न, [कृपावंत]; जुओ पशाअ पव्वय ऐतिका. तेरका. पर्वत पसायलु ऐतिका. प्रसाद, [कृपा] पशाअ, पसाय मदमो. बक्षिस (सं.प्रसाद) पसायो चंद्रवा. भेटसोगाद पशु-अरि प्रेमाका. सिंह [सं.] पसार कादं(शा). फेलावो (सं.प्रसार) पशुवां दशस्कं(२). ढोरां पसारिय गुर्जरा. प्रसारीने, फेलावीने पश्चिमीउ उक्तिर. पश्चिम दिशानुं पसाव आरारा. कृपा, प्रसाद पश्यम कादं(शा). पश्चिम दिशानुं जुओ पसिद्ध ऐतिका. प्रसिद्ध पस्यम पसी ऐतिरा. पछी पस लावल. खोबो (सं.प्रसृति) पसीअइ उक्तिर. प्रसन्न थाय (सं.प्रसीदति) पसइ प्राचीफा. खोबो, पोश, पसली (सं. पसीजइ उक्तिर. परसेवो थाय (सं. ___ 2010_03 Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पसु / पहिलेर प्रस्विद्यते) पसु कामा (त्रि). बच्चां, बाळक पसूआडे अखेगी. पडखे, पासा पर पसूय शृंगामं. पशु पस्ता शीलक. पिस्ता एक मेवो पस्यमु विमप्र. पश्चिमनो देश; जुओ पश्यम यह उक्तिर मार्ग (सं. पथः) पहइडिउ * लावल. [दूर हट्यो, धोखो दीधो, विश्वासभंग कर्यो] [रा. पहिडणौ ] पहइलउ लावल. पहेलो, प्रथम [ सं . प्रथिल्ल] पहईं कृष्णच. करतां पहचs गुर्जरा. पहोंचे, जाय; जुओ पहुतइ पहडइ * जिनरा. [ दूर हटे, धोखो दे, विश्वासभंग करे] [रा. पहिडणौ ] पहती गुर्जरा. पहोंची; जुओ पहुतइ पहर उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. षडाबा. प्रहर पहरणि गुर्जरा. पहेरवेशमां; जुओ पहिरण पहराउत प्राचीफा. पहेरो भरनार, चोकीदार (सं. प्राहरिक) — ३१२ पहरी * ऋषिरा. [दूर, अळगी ]; जुओ परी पहरेरी चित्तसं. दूरनी, पारनी स्थिति; जुओ परेरी घोडा पहल आरारा. पहेलो [ सं . प्रथिल्ल] पहलाण ऋषिरा. कादं (शा). पलाण, नी पीठ परनुं जीन (सं. पर्याण) पहवइ आरारा. थाय, करी शके (सं. प्रभव) पहाण अखाछ. पथ्थर [ सं . पाषाण ] पहाण, पहाणु ऐतिका. जिनरा. तेरका. 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्राचीफा. प्रधान, मुख्य पहाणको दशस्कं ( १ ). पहाणो पहारिं गुर्जरा. प्रहारथी पहि विमप्र. पथिक, मुसाफर पहि प्रद्युचु. पासे; शृंगामं. -ना करतां; * हम्मीप्र. [पण] [रा. ] पहिचाणि प्राचीफा. ओळखाण, परिचय (सं. प्रत्यभिज्ञान) पहिट- नलरा. पलटवु, [बदलावुं] [रा. ] पहिति लावल. रांधेली दाळ [हिं.]; जुओ पिहिति पहिय प्राचीफा. प्रवासी (सं. पथिक) पहिरइ उक्तिर. उपबा. तैरका. लावल. षडाबा. पहेरे (सं. परिधा - ) पहिरावउं ऐतिरा. पहेरामणी आयुं पहरो अखाका. दूर, अलग; दशस्कं ( २ ). पहिरावणी वीसरा. पहेरामणी (सं. आघो परिधापन) पहिरण, पहिरणउं उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. षडाबा. पहेरवुं ते, पहेरवेश (सं. परिधा+ अन) पहिरावइ उक्तिर लावल. पहेरावे (सं. परिधापयति) पहिलउं आनंस्त. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. षडाबा. पहेलुं, पहेलां (सं. प्रथ+ इल्ल) पहिलेरउं षडाबा. -नी पहेलां; गुर्जरा. पहेला, आगला (सं. प्रथिल्ल+तर) Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३१३ पहिल्ली/पंचगव्य . पहिल्ली तेरका. प्राचीफा. पहेली (सं.प्रथ+ पहूतउ ऐतिका. ऐतिरा. प्रबोप्र. वीसरा. . इल्ल+इका) - पहोंच्यो (सं.प्रभूत) पही उक्तिर. पथिक पहेधी मदमो. पेधी पही परहणु विमप्र. पइ-परोणो, पथिक अने पहेरण प्रेमाका. पोशाक [सं.परिधान] परोणो. पहेली उक्तिर. समस्या, कोयडो (सं. पहु ऐतिका. प्रभु प्रहेलिका) पहुआ प्रेमाका. पौआ [सं.पृथुकाः] . पहोत, दशस्कं(१). प्रेमाका. पहोंचq [सं. पहुच्चइ गुर्जरा. पहोंचे, जाय (सं.प्रभूत, प्रभूत] प्रा.पहुत्त) पहूउ अंबरा. गुर्जरा. दूर (सं.परस्मिन्); पहुडसि उषाह. पोढशे [सं.प्रवधु जुओ परु पहुतइ आरारा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. पहाण कादं (शा). पलाण, घोडानी पीठ प्राचीफा. प्राचीसं. लावल. वसंफा. परनं जीन (सं.पर्याण) वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. पंकय ऐतिका. तेरका. पंकज, [कमळ] पहोंचे, आवी पहोंचे, जाय (सं.प्रभूतः) पंख गुर्जरा. पंखी (सं.पक्षी) पहतणी ऐतिका. प्रवर्तिनी, जैन साध्वीआनु पंख गर्जरा. पांख (सं.पक्ष) ..... एक पद पंख वेताप. रजकण, केसर पत्त, पहुत्तउ उपबा. ऐतिका. पहोंच्यु, पंखना प्रेमाका. पांखवाळां, [पंखी] जई पहोंच्यु (सं.प्रभूत-) पहत्तणी आरारा. प्रवर्तिनी, जैन साध्वीओने पंखुडिय प्राचीसं. पांखडी [सं.पक्ष] अपातुं पद पंखीउ उपबा. पंखी (सं.पक्षी) पहुनुहता नेमिछं. पनोता, पुण्यशाळी [सं. पंखुडीय स्थूलिफा. पांखडी पुण्यवंताः] पंग प्राचीफा. ढोलक जेवू एक वाजिंत्र पहुरइ उक्तिर. प्रहरे (सं.उपांग) पहुरु (पहरु पाडता) *शृंगाम. [पहेरो - पंगखु कृष्णबा. पहेरवू, [ओढवू] [सं.प्र+ चोकी राखता] [सं.प्रहर] . अंकुर-, प्रा.पंगुर-]; जुओ पांगुरइ पहुल *वसंवि(ब्रा). [पहोळ] [सं.पृथुल] पंगुर- तैरका. प्राचीसं. पांगर, (सं.प्र+ पहुली *वसंवि(ब्रा). [पहोळी] . अंकुर-) : पहुवइ * ऐतिका. [पृथ्वीमां] पंच ईटाली चंद्रवा. विमप्र. शिक्षा करवा पहुवीनाह नलरा. पृथ्वीनो अधिपति (सं. माटे पंच भेगुं थई ईंट मारे ते, ईंट पृथ्वीनाथ) मारीने मारी नाखवानी सजा .. पहुआ उक्तिर. पौआ (सं.पृथुकाः) पंचगव्य प्रेमाका. गायनां दूध, दही, घी, 2010_03 Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचग्गलउं / पंचुंबरि मूत्र अने छाण [सं.] पंचग्गलउं गुर्जरा. पांचने आगळ करीने, (सं.पंच + अग्रिलकम्) पंच दिव्य सिंहा (म). जैन परंपरा मुजब तीर्थंकरादिना महत्त्वपूर्ण प्रसंगोए थता पांच चमत्कार; जुओ दिव पंचद्रीपणु शृंगामं. पांच इंद्रियो धराववानो गुण पंच पद नलरा. पंच नमस्कार [नां पद], नवकार मंत्र [जै. ] पंचपरवा अखेगी. पांच पर्व (पर)वाळी, पांच सांधावाळी, [पांच भाग अविद्या, अहंकार, राग, द्वेष अने मरणभय वाळी ( माया ) ] पंचबाण प्रेमाका. [कामदेवनां पांच बाण ], अरविंद, अशोक, नवमालिका, आम्रमंजरी अने नीलोत्पल; गुर्जरा. पांच बाणवाळो देव, कामदेव (सं.) पंचभद्र हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात पंचम नरका. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). पंचम सूर - ३१४ - पंचमगति गुर्जरा. पांचमी गति, मोक्ष पंचमासी प्रेमाका. मोसाच. सगर्भावस्थाना पांचमा महिने थती राखडी बांधवानी विधि 2010_03 पंचमु वसंफा. वसंवि. पंचम सूर पंच मेर स्थूलिफा. पांच मेरु, पांच मर्यादा[व्रत] रूपी मेरु पंचवीस उक्तिर. पचीस ( सं . पंचविंशति ) पंचशबद, पंचशब्द, पंचसबद आरारा. * कामा (शा). नरका. नलरा. प्राचीफा. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रेमाका. पांच वाद्यनो मंगलसूचक ध्वनि; जुओ सद पंचसयां आरारा. पांचसो (सं. पंचशत) पंचहत्तरि उक्तिर. पंचोतेर (सं. पंचसप्तति) पंचहतर, पंचहुतरी ऐतिरा. लावल. षडाबा. पंचोतेर (सं. पंचसप्ततिः) पंचाइण लावल. सिंह (सं. पंचानन ) पंचाक्षरियां प्रेमाका. *मेली विद्या द्वारा भूतप्रेतने काढनार, [ मंत्रविद् ] पंचाणणु ऐतिका. पंचानन, सिंह पंचातीत अखाका. पंचभूतथी पर एवं पंचानन नेमिछं. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). सिंह (सं.) पंचाभिगम आरारा. चैत्यादिकमां प्रवेश करवाना पांच नियम [जै.] पंचायण दशस्कं (२). नरका. प्रेमाका. सिंह (सं. पंचानन ) पंचाली जिनरा. प्राचीसं. पूतळी (सं. पांचालिका) पंचाश्रव आरारा. कर्मनां पांच प्रवेशद्वार [जै. ] पंचास नलाख्या. वीसरा. षडाबा. पचास (सं. पंचाशत्) पंचासम ऐतिका. पचासमुं पंचां अंग प्रसाद विक्ररा. पांचे अंगे पहेरवाना पोषाकनी बक्षिस पंचुत्तर ऐतिका. पांच अनुत्तर विमान [दवलोक] [जै.] पंचुंबरि षडाबा. उंबरो वगेरे पांच अखाद्य फल (सं. पंच + उदुम्बर) - Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश .३१५ पंचेटौ/पाउंछण पंचेटौ जिनरा. [पांच लखोटीओथी रमाती] पा नरका. तरफ बाळकोनी एक रमत [रा.पचेटौ] पा उषाह. पग (सं.पाद) पंचेतालीस षडाबा. पिस्ताळीस (सं.पंच- पाअती अखाका. पाती, पिवडावती चत्वारिंशत्) पाइ प्रबोप्र. वसंफा. वसंवि. वीसरा. पग पंचेंद्री गुर्जरा. पंचेन्द्रिय, पांच इन्द्रिय (सं.पाद) पंजर आरारा. वीसरा. शृंगामं. हाडपिंजर पाइ आरारा. वीसरा. पामे (सं.); गुर्जरा. पांजरुं (सं.) पाइउ लावल. पायेलो, पिवडावेलो पंजेठी जुओ पजोडी पाइक आरारा. उक्तिर. नलरा. षडाबा. पंड अखेगी. पिंड, देह-पुद्गल पगे चालनार सैनिक (सं.पादातिक) पंडत चतुचा. पंडित, डाह्या पाइकी अंगवि. सुभटता, वीरता पंडिय ऐतिका. पंडित पाइणि उक्तिर. पोयणी (सं.पद्मिनी) पंडियउ जिनरा. वीसरा. पंडित पाइदलां प्रबोप्र. प्यादां, [पायदळ, पदाति पंडु षडाबा. फिक्कुं, [लोहीनी ओछपवाळु] । सैनिको] (सं.पाददल) (सं.पांडु) पाइली उक्तिर. पाली, अनाज मापवा माटेर्नु पंडुरउ वीसरा. धोळो, फिक्को (सं.पांडुर) । वासण (सं.पल्ली) पंड्य चित्तसं. पिंड, शरीर, पदार्थ पाइसि आरारा. पामशे पंड्यउ वीसरा. पंडित पाइं कादं(शा). -ना करतां (सं.पक्षे) . पंड्यांस उक्तिर. पंडितवर (सं.पण्डित - पाईइ लावल. पायामां मिश्रः) पंति ऋषिरा. जिनरा. प्राचीफा. लावल. १७ पत्र पाउ चंद्रवा. पाम्यो श्रेणी; पंगत (सं.पंक्ति) पाउ गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. पग (सं.पादु) पंथकशाला ऋषिरा. मार्गमांनी धर्मशाळा, पाउधारउ गुर्जरा. प्राचीका. षडाबा. पधारो [पथिकशाळा] (सं.) (सं.पाद+) पंनरपि प्राचीफा. फरी वार (सं.पुनरपि) पाउध्यारु अंबरा. पधारो पंपाल आरारा. खोटुं, व्यर्थ, मिथ्या (रा.); पाउल उक्तिर. पाटल पुष्पछोड (सं.पाटला) प्रपंच, कपट (रा.) पाउल नरका, पग; प्रधुचु. *सिंहा(म). पंपोटा *उपबा. [बहुबीजवाळी एक नर्तक वनस्पति पाउँछणउ उक्तिर. प्राचीसं. षडाबा. पायपंपोटा उषाह. सम्यचो. परपोटा; जुओ लूछणुं, जैन मुनिओ भोंय साफ करवा पपोटा वापरे छे ते पोंछणुं (सं.पादपोंछनक) . 2010_03 Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाक अन्न/पागरण पाक अन्न कादं (धु). पकवान, [घी- तेलमां तळेली स्वादिष्ठ वानगी] [सं. पक्व ] पाकउ षडाबा. पकवेलूं, चूले चडावी मीठाई रूप बनावेलुं (सं.पाक) पाखइ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. नलरा. नेमिछं. लावल. वाग्भबा. षष्टिप्र. विना (सं. पक्षे, पक्षस्मिन्); उक्तिर लावल. पासे, आजुबाजु लावल. पखवाडियामां ३१६ पाखखमण उक्तिर. पंदर दिवसना उपवास पाखियउ प्राचीसं. पक्षी (सं.पक्षक्षपणम्) पाखतियां षडाबा. पाछळ रहेला, [आजुबाजु रहेला ] (सं. पक्ष परथी) पाखती * ऋषिरा. गुर्जरा. जिनरा. विराप. हम्मी. आजुबाजु, बाजुमां, पासे (सं. पक्षती) पाखर आरारा. उक्तिर. ऐतिका. कस्तुवा. कृष्णबा. नरका. प्रेमाका लावल. वीसरा हाथीघोडानो साज, जीन, बख्तर, पलाण (* सं. पक्षर) [सं. उपस्कर]; ]; प्रद्युचु. घोडानी एक जात पाखरिया अंगवि. ऐतिका. गुर्जरा. चारफा. नरका. प्रचु. प्रेमाका. *विराप. वीसरा. जीन, बख्तर, आदिथी सज्ज कर्या (*सं. प्रक्षर; दे.पक्खर) [सं. उपस्कर ]; प्रेमप. घोडा मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उषाह. कादं (धु). कादं (शा). *जिनरा. नरका. नरप ( द ). नलाख्या. नेमि ं. प्राचीसं. ललिरा. शृंगामं. हरिवि. आसपास, चारे तरफ, फरता (सं. पक्ष - ) पाखलि (चहु पाखलि) कृष्णबा. चोपास पाखलीआ कृष्णच. फरता, आसपास पाखाण उपबा. दशस्कं ( १ ). षडाबा. पाषाण पाखि अंगवि. कादं (शा). प्राचीका. प्रेमप. रूस्त स. विना (सं. पक्षे ) पाखरीआ ऋषिरा. *विमप्र. पाखर - बख्तर वगेरेथी सज्ज थयेला (दे. पक्खरिअ) पाखल वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). पडखुं (सं. पक्ष) पाखलइ, पाखलि अंबरा. आरारा. उक्तिर. 2010_03 पाखी अखाका. चंद्रवा. नंदब. प्रेमाका. मदमो. वेताप. सिंहा (शा). विना (सं. पक्ष) पाखी उपबा. षडाबा. पखवाडिक दिवस, [चौदश] (सं. पाक्षिक) पाखे अखाका. कामा (शा). चतुचा. चित्तसं. दशस्कं (१). दशस्कं (२). देवरा. नरका. प्रबोप्र. * प्राचीसं. मदमो. मोसाच. षडाबा. हरिख्या. विना ( सं . पक्ष ) पाग तेरका. पाज, सोपानपंक्ति पाग अखाछ. कर्पूमं. कादं (शा). गुर्जरा. चंद्रवा. दशस्कं ( १ ). नलरा. नलाख्या. प्राचीफा. प्राचीसं. प्रेमप. प्रेमाका. मदमो. लावल. पग (सं. पादाग्र) पाग जिनरा. पाघडी पाग छबे अखाका. पग स्पर्शे, [पग मूके], सुधी पागडि अभिऊ. पेंगडामां (सं. पादाग्र> पाग+ड); जुओ पाघडे पागरण अभिऊ. चंद्रवा. हरिख्या. ओढणुं [दे. पंगुरण]; जुओ पागरण Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३१७ पागरुण/पाटवट उ पागरुण कस्तुवा. *पाघडु, [ओढणुं]; जुओ (सं.पश्चादनीकम्) पागरण पाछोपउ प्राचीसं.?, [(वंशना) पाछला क्रमे] पागोहरी उषाह. पगी, [पगपाळो सिपाई, पाज अंगवि. आनंस्त. "नरका. "प्रेमाका. चोकीदार "लावल. पगदंडी, सेतु (सं.पद्या); पाग्य मदमो. पग [सं.पादाग्र] *अखाका. जिनरा. तेरका. सोपानपंक्ति, पाघडला लावल. स्त्रीओना पगना कांडा सीडी । उपर पहेरवानां घरेणां दि.पागडा] पाजणी उक्तिर. पीj, पेयपदार्थ, कांजी पाघडे रूस्तस. पेंगडे; जुओ पागडि (सं.पर्यायणिका) पाचइ प्राचीफा.परिपक्वथाय, पाके; उक्तिर. पाट उषाह. दशस्कं(१). प्रेमाका. वीसरा. कादं(घ). कादं(शा). प्राचीसं. रंधाय, कीमती वस्त्र, रेशमी वस्त्र (सं.पट्ट) शेकाय (सं.पव्यते) पाट वीसरा. मदमो. [राज]गादी, सिंहासन; पाछइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. पाछळ, बाजोठ (सं.पट्ट); *वीसरा.. [पाटवी, पार्छ, प्राचीसं. पछी (सं.पश्चात्) मुख्य] पाछणो सिंहा(शा). सजायो [रा.; दे.] पाटउ उक्तिर. पाटो (सं.पट्ट); वीसरा. पाछपीलि गुर्जरा. पाछळथी (सं.पश्चात्त्व) पाटियुं (सं.पट्ट) पाछिलउ षडाबा. [पाछ, पछी-], पाटघायो सिंहा(शा). राजवी उपर घा [सं. छेवटन; उक्तिर. उपबा. पाछो, पट्ट+घात] पाछळ, अगाउनुं (सं.पश्च परथी) पाटण नलरा. पंचवा. प्राचीफा. षष्टिप्र. नगर पाछलि उक्तिर. उपबा. कादं(शा). गुर्जरा. (सं.पत्तन); वीसरा. पाटण नामर्नु नगर पाछळ पाटणपोळ अखाका. मुख्य पोळ, [नगरनो पाछिर्नु उक्तिर. उपबा. षडाबा. पाछखें (सं. दरवाजो] पश्च परथी) पाटर प्रद्युचु. ?, [*घोडानी कोई जात]; पार्छ कर्यु चित्तसं. छोड्यु जुओ पटेरो पार्छ रहा चित्तसं. बाकी रह्यं पाटल नलरा. एक देश ज्यां नलराजाए पार्छ नलाख्या. [-थी, पाछळ, पूर्वी. सधी विजय को हतो (सं.पश्चात) - पाटलउ उक्तिर. [*पाटले बेसाड़ी करातो पाडूं कहाव्यानी शंका कादं(ध). तिरस्कार- सत्कार] (सं.पाटाचारः) नी बीक पाटलीउतार हम्मीप्र. पाटियाउतार, उत्तम पाछेर षडाबा. पाछोतलं, पछीथी थतुं घोडानुं एक विशेषण पाछेवाणु, पाछेवाणूं उक्तिर. पाछळ तरफनुं पाटवट मदमो. गादीनो अधिकार 2010_03 Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाटा / पाणीरसउ पाटा गुर्जरा. पाटला; राजगादी (सं. पट्ट) पाटा चहे * अखाका. [घा करवा मागे ] पाटि उपबा. पाट (सं. पट्ट) ३१८ पाटू ऐतिका. पट्ट, सुन्दर वस्त्र, [रेशमी वस्त्र] पाटूआली उक्तिर. पादप्रहारिणी, पाटु मारती पाटोतरी चंद्रवा. पाटवी (सं. पाटल) पाडल लावल. पाटलिपुत्र नगर पाडल - तूण हरिवि. पाटलपुष्परूपी भाथो पाटियाको * प्रेमाका. [घणी सेरनी गूंथणी- पाडलपुर आरारा. पाटलिपुर नगर वाळो ] पाडलिय, पाडलीय आरारा. तेरका. प्राचीफा. पाटलिपुत्र, मगधनुं प्राचीन पाटनगर पाडा दुहे जुओ दुहे रे पाडा 1 पाडि षडाबा. विस्तार, अधिकारक्षेत्र (सं. पाट, पाटक); जुओ पाडउ पाडिहारू उक्तिर. साधुथी अमुक समय राखी गृहस्थने पाछी आपी शकाय तेवी वस्तु (सं. प्रातिहारिकम् ) [जै.] पाडुउं, पाहूउं दशस्कं (१). "प्रेमाका. खराब, कडवुं; उपबा. "उषाह. कादं (शा). नलरा. शृंगामं. खराब, हलकुं, नठारुं; * ऋषिरा. कर्पूमं षष्टिप्र. खराब, अशुभ, अनिष्ट (सं. * पातुक) पाढ * प्रेमाका. वेताप. पहाड पाढ उक्तिर. मांचडो पाड प्रेमाका. शृंगामं. उपकार पडोशनी पाड सिंहा (शा). समीपमां, [पासे ]; वीसरा. पाण अखाका. दशस्कं (9). नरका. प्रेमाका. हरिख्या. हाथ (सं. पाणि); जुओ पान पाण आरारा. पाणी [सं. पानीयम् ] पाण उक्तिर. पीणुं (सं. पानम्) पा'ण अखाछ. शिला, पथ्थर [ सं . पाषाण ] पाणहि, पाणही वीसरा. जोडा (सं. उपानह् ) पाणिवेत्र कादं (शा). वेत्रपाणि, हाथमां वांसछडीवाळु [सं.] पाणिहारि विमप्र. पनिहारी [सं. पानीयहारी ] पाणीरसउ उपबा. एक प्रकारनो रोग (सं. पानीय+रस) पाटोघर प्रेमाका. पाटवी; ऐतिका. पदधारक, [पाट - गुरुगादीना अधिकारी ] पाठग प्राचीका. ब्राह्मणनी अटक (सं.पाठक) पाठविउ आरारा. षड़ाबा. गुर्जरा. वीसरा. मोकल्यो (सं. प्रस्थापू) पाठी प्रेमाका. पाठ करनारा पाठी अभिऊ. [निशाळियानी] पाटी, स्लेट पाठीन ऋषिरा. ते नामनुं जलचर प्राणी, [एक जातनुं माछलुं] पाठे आवडे प्रेमाका. मोढे आवडे पाड गुर्जरा. पडो, नगारुं (सं. पटह) . पाडइ (लेखे, पाडइ) जिनरा. हिसाबमां नाखे, [खाते मांडे, उधारी नाखे] पाडउ उक्तिर. चंद्रवा. कामा (त्रि). जिनरा. देवरा. प्रेमाका. पाडो, महोल्लो (सं. पाटकः); जुओ पाडि पाडल आरारा (व). ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). शृंगामं. राता रंगनुं एक फूल के फूलझाड 2010_03 1 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पाणीवल * जिनरा. [क्षणेक, ट्रंको समय ] पाण्य, पांण चतुचा. चंद्रवा. चित्तसं, प्रेमप. पाणि, हाथ " नाश पडवुं पातगी प्राचीसं. पातकी, [पापी] ३१९ पातरां, पांतरां देवरा. [जैन साधु वापरे छे ते] लाकडानां वासण ( सं . पात्र ) पातरिसि आरारा. छेतरीश (सं. प्रतार् ) पातरी नरका. हरिख्या. पांदडामां वाळेलो फूलन बीडो (सं. पत्री) पातलि प्राचीसं. पातळ पात आरारा. निष्फळता (सं.); हरिख्या पादु अखाका. चित्तसं. पग [सं.] पातिक, पातीक दशस्कं ( १ ). देवरा. नरका. मदमो. सिंहा (शा). पातक, पाप पात्र अभिऊ. अंबरा. *आरारा. ऋषिरा. नलरा. प्राचीका. प्राचीसं. विक्ररा. सिंहा (म). हम्मीप्र. नर्तकी पात्रउ उक्तिर. पात्र [* (हीरानी) कोथळी ] पाथू ऐतिका. पथिक 2010_03 — पाणीवल / पानडी पावरियउ उक्तिर. गामडियो ( सं . पाद्रिकः) पादुपाणि अखेगी. पग अने हाथ [सं.] पाद्य प्रेमाका. हरिख्या सत्कार रूपे पग धोवा ए [सं.] पातळिया प्रेमाका. सुंदर, देखावडा पातंजली दशस्कं ( 9). प्रेमाका पातंजल योगसूत्र पातांजली चित्तसं. पतंजलिनुं, पतंजलिए पाधरपट प्रेमाका. उज्जड मेदान रचेतुं शास्त्र पात्र उक्तिर. गामडुं (सं.पद्र) पाघर चतुचा. सीधो, [सरल]; * गुर्जरा. [*खुल्लंखुल्ला, पादर] (दै.पद्धर) [सं. प्राध्वर ] पाधर नरका. [ पादर], भागोळ, गामनी नजीक सीमा [सं.] पाघर (पाधरसीह) गुर्जरा. सीधोसट, भलोभोळो; जुओ पाधरसी पाधरसी * जिनरा. [सीधोसट, सरल, भलोभोळो ] पात्रां उपबा. पात्र, वासण पात्रांरउ काप उक्तिर. पात्र वासणनुं प्रक्षालन (सं. पात्राणां कल्पः ) पारु अखाका. उक्तिर. उपबा. कादं (शा). नरका. नलाख्या. नेमिछं. प्रेमाका. षडाबा. सीधुं, सरल (दे. पद्धर ) [सं. प्राध्वर ]; षष्टिप्र. सामान्य कोटिनुंः सीधुं, (अवकुं नहीं ते); सीधुं, [शुद्ध ] पाधारउ गुर्जरा. पधारो; जुओ पाउधारो *पान (पाण) * हरिख्या. [हाथमां] (सं. पाणि) पानडा उपबा. पांदडां [सं. पर्ण] पाथउ उक्तिर. एक माप, परिमाण (सं. प्रस्थः) पाथर उक्तिर. ऋषिरा. प्राचीफा. लावल. पथ्थर (सं. प्रस्तर) पाथरी वीसरा. * (कीमती) पथ्थर (सं. प्रस्तर), पानडी अभिऊ. पांदडी, वनस्पतिनी पातरी पाधरसीह जुओ पाधर पाधरि उषाह. खुल्ला मैदानमां; [सीधेसीधुं ] (द.पद्धर) [सं. प्राध्वर] Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाननो बीडलो गळवो/पारथिया ३२० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.पर्णिका); नरका. पाननी भातवाळी विक्ररा. वीसरा. पग (सं.पाद) पाननो बीडलो गळवो अखाका. चाव्या पायउ ऋषिरा. देवरा. प्राप्त कर्यु विना पान खावू, [सार विनानी क्रिया पायक आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. प्रद्युचु. करवी]; जुओ बीड्यां पान ज गळवां लावल. विमप्र. विराप. पगपाळा सैनिक पान-बीड प्राचीसं.पानबीडु [सं.पर्ण+वीटि:] (सं.पादातिक) पानही आरारा. पगरखां (सं.उपानह) पायकी गुर्जरा. पातकी, पापी पानेत्र, पानेत्री लावल. विमप्र. पानेतर, पायकेसरी उक्तिर. वासण लूछवानो कपडा लग्नविधि वखते पहेरवामां आवती नो टुकडो (सं.पात्रकेशरिका) [जै.] ओढणी [सं.पारिणेत्र] पायठवणउ उक्तिर. पात्र मूकवानुं ऊनपानोठ अखाछ जारबाजरीनां लांबां पांदडां, वस्त्र (सं.पात्रस्थापनकम्) [जै.] पानठ पायडीउ गुर्जरा. *प्रकट कर्यु (सं.प्रकटित), पान्हउ आरारा. उक्तिर. विमप्र. पानो, [*कोई वाद्य] छातीमां धावण भरावं ते (सं.प्रस्नव) पायसान दशस्क(१). पायसान्न, खीर पान्ही उक्तिर. षडाबा. पगनी पानी (सं. पायसान प्रेमाका. दूधमां रांधेलुं अन्न, खीर पाणि) पापइजिनइ षष्टिप्र. पापने ज (विशे) पाया आरारा. वाग्भबा. पाय, पग [सं.पाद] पापण चतुचा. पापिणी, तिरस्कारवाचक पायाल अंबरा. आरारा. गुर्जरा. पाताळ पाये चंद्रवा. पामतां [सं.प्राप्] शब्द पापपणास विक्ररा. पापनो नाश (सं.पाप+ पायो लावल. पाम्यो, मेळव्यो पार आरारा. उपर, आगळ, चडियातुं [सं.] प्रणाश) पार काव्य चित्तसं. अंत आण, छेडो आण पापांतिक नलरा. एक प्रदेश ज्यां नलराजाए पारखि नेमिछं. विक्रस. पारखनार, पारेख विजय कर्यो हतो (सं.परीक्षक) पामणहार आनंस्त. पामनारा पारखो मदमो. परखनारो (सं.पारीक्षक; प्रा. पाषणहारो अखेगी. पामनारो __पारिक्खय) । पामरी नरका. प्रेमप. प्रेमाका. बारीक पारख्या अखाछ. परख, परीक्षा . रंगबेरंगी वस्त्र, दुपट्टा के खेस तरीके पारजातीक नंदब. पारिजातक वपरातुं वस्त्र, ऊन, वस्त्र पारणेत्र उषाह. "परणेतर, [लग्न] पामि उक्तिर. पामतुं (सं.प्राप्तव्यम्) पारता षडाबा. पूर्ण करता (सं.पारयति) पाम्विउ प्राचीसं. पाम्यो (सं.प्राप्) पारती चारफा. ओ नामनां फूलो (द.पारत्ति) पाय गुर्जरा. तेरका. देवरा. नलाख्या. पारयिया जिनरा. प्रार्थना करवावाळा, 2010_03 Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३२१ पारद/पालठीकरणु [मागवावाळा] पारि उक्तिर. षडाबा. पार, पेली बाजु, पारद चित्तसं. पारो [सं.] __ पछी (सं.पारे) पारधि वसंफा. "वसंफा (ब्रा). एक फूलनु पारिखइ आनंस्त. पारखे [सं.परीक्षते नाम पारिखउ आरारा. ऋषिरा. पारखं (सं.परीक्ष) पारघि नलरा. शिकार, मृगया (सं.पापद्धि) पारिखा विमप्र. परीक्षक पारधि-रंगु *वसंवि(ब्रा). [पारधि नामना पारेख नरका. पारखं-परीक्षा करी जाणनार फूल साथे आनंदक्रीडा पारेवो जुओ परेरो पारधिवसणु गुर्जरा. शिकारनुं व्यसन (सं. पार्यउ आरारा. पूरो कर्यो, समाप्त कर्यो पापर्द्धिव्यसन) . [सं.पारितः] पारधिसंगु वसंवि. “वसंवि(ब्रा). पारधिपुष्प- पालइ प्रबोप्र. पाळा [सैनिक] साथे नो संग पालउ, पाळउ उक्तिर. नलरा. प्राचीसं. पारधी गुर्जरा. शिकार (सं.पापद्धि) ललिरा. वीसरा. पगे चालतो, पाळो पारधीउ गुर्जरा. शिकारी (सं.पापर्धीक) [*सं.पाद+चल] पारशी चंद्रवा. गुप्त बोली पालउ अखाका. अखाछ. अखेगी. उक्तिर. पारशीकर कादं(शा). ईरान(देश), पारसी- बरफ, करो (सं.प्रालेयम्) ओनो प्रदेश (सं.पारसीक+र) पालक नलरा. एक देवविमान, [देवलोक] पारशी-भेद कादं(शा). पारसी, चोक्कस करेला (सं.) खानगी अर्थवाळा शब्दोना प्रयोगवाळी पालकी प्राचीसं. पालखी (सं.पर्यंकिका) बोली पालटइ उक्तिर. प्रबोप्र. प्रेमाका. वीसरा. पारश्ववर्ती कादं(शा). नजीक रहेलु (सं. शृंगामं. बदलाय, पलटाय, [मां पार्श्ववर्ती) परिवर्तन पामे]; पलटावे, बदलावे दि. पारस प्रेमाका. पारसमणि; स्पर्शथी लोढाने पल्लट्ट; सं.पर्यस्त] सुवर्ण बनावनार मणि पालटउ अखेगी. उक्तिर. वाग्भबा. पलटो, पारस पाखाण आनंस्त. पारसमणि परिवर्तन पारस पाहाण उक्तिर. पारसमणि (सं. स्पर्श- पालटणां प्रबोप्र. बदलाववानां पाषाण) पालटिआ उपबा. वारंवार बदलावनार (दे. पारसी प्रेमाका. न समजाय तेवी, सांकेतिक पल्लट्ट) [सं.पर्यस्त] भाषा - पालठी विमप्र. [पलांठी] [सं.पर्यस्तिका] पारासुर मदमो. पराशर ऋषि] पालठीकरणु षडाबा. ऊभडक पगे के पारांगत अखाका. संसारनी पार [जवू ते] साथळ पर पग चडावी बेसबुं 2010_03 Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पालथी/पाषाणभेद ३२२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.पर्यस्तिका, प्रा.पल्हत्थिय) पापकर्म, अशुभ कर्म पालथी उक्तिर. पाथरपुं (सं.पर्यस्तिका) पावइ अखाका. आरारा. उक्तिर. ऐतिरा. पालवइ आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. पल्लवित गुर्जरा. देवरा. नरका. पामे (सं.प्राप्) थाय, पल्लवित करे पावइ अभिऊ. पावैयो, हीजडो पालवियां प्रेमाका. साडीना पालव, छेडा पावटउ उक्तिर. जलाशयनो घाट, आरो [सं.पल्लव] (सं.पादावत) सिं.पादवा] पाला, पाळा कादं (शा). *गुर्जरा. नरका. पावडिए जिनरा. पगथिये [सं.पाद परथी] प्रेमाका. विमप्र. पगे चालनार, पगपाळा पावठ *प्रेमाका. [पगथियां (वाळु)] सैनिको [*सं.पाद+चल] पावडी प्रबोप्र. चाखडी (सं.पादुका) पालाट- तेरका. प्रसरवू (सं.पर्यस्, प्रा.पल्लट्ट) पावडीआरं उपबा. ऋषिरा. पगथियां (सं. पालि आरारा. पंक्ति, हार (सं.;रा.) पाद+पटिक+कार) पालि उक्तिर. नानुं गाम; झुपडं (सं.पल्लिः) पावति ऋषिरा. पामे पालि लावल. षडाबा. पाळ [सं.] पाव रोर ऐतिका. भयानक पाप, [भारे पालिडी शृंगाम. पाळी, [पाळ] (सं.पालि) पाप] [सं.रौरव 'पाप] पालित-सूरि प्राचीसं. पादलिप्त-सूरि पावलि गुर्जरा. *पगथियामां, [*पगमां] पालिq उक्तिर. पाळवू (सं.पालयितव्यम्) पावलियो दशस्कं(१). . दशस्कं(२). पालिस्यइ आरारा. पळाशे नरका-२. प्रेमाका. पग [सं.पादु] पाली, पाळी आरारा. *ऋषिरा. प्रेमाका. पावले नरका. रूस्तस. पगे, पगमां __ छरी ("दे.पालिआ) पावस अखाका. अंबरा. तेरका. दशस्कं(१). पाली मदमो. *पांदडां, [*गरोळी] [सं.पल्लि] प्राचीफा. प्रेमाका. लावल. वरसाद, पालुइ उक्तिर. वाग्भबा. पल्लवित थाय (सं. वर्षाऋतु (सं.प्रावृष्) पल्लवयति) पावसकाल प्राचीसं. वर्षाऋतु पालूं नलाख्या. पगपाळु, [पगपाळा सैनिक] पावसि-कालि शृंगाम. चोमासाना समयमां [*सं.पाद+चल] *पाव-सिरसि (पावसि रिति) *लावल. पाल्यक मदमो. पालक [वर्षाऋतुमां] [सं.प्रावृष् ऋतु] पाल्यां लाड प्रेमप. लाड कर्यां, [लाड पूरां पाविसु विक्ररा. पीवडावीशुं [सं.पायय] कर्या]; जुओ लाड पालवा पाश नलाख्या. पासे (सं.पार्श्वे) पाल्हव्युं आरारा. पल्लवित थयुं . पाश अखाका. प्रेमाका. हरिख्या. फांसो, पाव लावल. वीसरा. पग (सं.पादु) बंधन (सं.) पाव ऐतिका. ऐतिरा. गुर्जरा. चारफा. पाषाणभेद कादं(शा). पथ्थरफोडी नामनी 2010_03 Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३२३ पास/पाहि वनस्पति, शंखावलीनी भाजी (सं.) पासिथु अंबरा. पासेथी पास चित्तसं. स्पर्श पासी उक्तिर. बांधवानी रस्सी (सं.पाशिका) पास गुर्जरा. नेमिछं. *विमप्र. पाश, बन्धन, पासी मदमो. पासे फांसो पासु * ऐतिका. [पाश, बंधन] पासा(?) तेरका. [पासे, समक्ष, नी तुलना- पासुं नरका. पक्ष, [तरफेण]; नलाख्या. . मां], करतां (सं.पाश्व); जुओ पासे प्रेमाका. पडद्य, सहाय, हूंफ (सं. पासइ लावल. बाजुए (सं.पाश्व); [पडखे, पार्श्वकम्) बाजुमां]; पासे, नजीक पासेस ऐतिका. पार्श्वनाथ [सं.पार्श्वेश] पासइ षष्टिप्र. बंधनमां (सं.पाश) पासो अभिऊ. पासुं, पडद्म, मदद (सं. । पासउ उक्तिर. गुर्जरा. बंधन, फांसो (सं. पार्श्वक) । पाशकः) पास्तुं अखाका. पस्तुं, उपराणुं, पक्ष (फा.) पासउ उक्तिर. प्रेमाका. पडद्म (सं.पार्श्वम्) [फा.पुश्त] पासउ अभिऊ. पासो [सं.पाशक] *पास्यां (वास्यां) * लावल. [वासित कर्यां] पासछउ उक्तिर. शिथिलाचारी साधु (जै.) पाह तेरका. पाश, [बंधन, फांसो] [सं.पार्श्वस्थ, प्रा. पासत्थ] पाहइ षडाबा.पासे, द्वारा; षष्टिप्र.-ना करतां; पासनाह विक्ररा. पार्श्वनाथ ___ *उपबा. [-ना करतां; द्वारा, वडे] पासहरा गुर्जरा. पाशवाळा, बांधवाना दोरडा- (सं.पार्वेन); जुओ पासे वाळा (सं.पाशधर) पाहण गुर्जरा. षडाबा. पाषाण, पथ्थर; पासंग वेताप. प्रपंच, कपट उक्तिर. घंटीनो पथ्थर पासाइय तेरका. प्रासाद, दहेरुं (सं.प्रासाद पाहणिया उषाह. पथ्थरियां (सं.पाषाण +क) उपरथी) पासाकेवली उक्तिर. पासा फेंकी ज्योतिष पाहरी उक्तिर. गुर्जरा. विराप. रक्षक; जोवानुं शास्त्र (सं.पाशककेवली) [चोकीदार, पहेरेगीर] (सं.प्राहरिकः) पासाथी पंचवा. पासेथी, [तरफथी, बाजुए- पाहरी उक्तिर. पहोरे [सं.प्रहर] थी] (सं.पाश्व) पाहरू उक्तिर. चोकीदार, पहेरेगीर (सं. पासि देवरा. पामशे प्राहरिकः) पासि तेरका. -नी करतां (सं.पाश्वे); जुओ पाहंति षष्टिप्र. [-थी, वडे]; पासे; द्वारा; पास, पाहइ [-ना करतां] (सं.पक्षतः) पासिक तेरका. पासे रहेलो, [साथी, पाहाण उक्तिर. उपबा. पाषाण, पथ्थर पक्षपाती] (सं.पार्श्विक) पाहि, पाहि गुर्जरा. द्वारा, पासेथी; ० उषाह. 2010_03 Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाहिइ/पालणे ३२४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नेमिछं. विक्ररा. पें, -थी, ना करतां पांचली प्राचीफा. पूतळी (सं.पांचाली) (सं.पावें); जुओ लोक पाहिं, शिष्य पांच शब्द सिंहा(म). पांच वाद्योनो मंगलपाहिं सूचक ध्वनि (सं.पंचशब्द) पाहिइ नलरा. -ना करता; पासे [सं.पार्श्वे] पांचाली कादं(शा). ढींगली, [पूतळी] (सं.) पाहिं जुओ पाहि पांजरी प्राचीफा. [पीजरिया, वहाणना खूवा पाहुणा शृंगामं. हम्मीप्र. परोणा (सं. उपर बेसी तपास करनार] (सं.पञ्जर प्राघूर्णक) परथी) पाहुणी ऋषिरा. महेमान (स्त्री) (सं. पांडर प्राचीसं. ?, [*फिक्कुं] प्राघूर्णिकी) पांडरउ उक्तिर. कादं(धु). धोठे, फिक्कुं (सं. पाहे पंचवा. पासे (सं.पार्श्वस्मिन्) पांडुर) पां प्रेमाका. -पें, -ना करतां पांडव उषाह. अश्वपाल पांइ प्रबोप्र. [पास, द्वारा]; -ना करतां (सं. पांडुरा नरका. धोळा, फिक्का पावें) पांडुरोग नरका. कमळो [सं.] पांउ प्रेमाका. पग [सं.पादु] पांण मदमो. हाथ (सं.पाणि); जुओ पाण्य पांके अखाका. *अखाछ. पंकाय, वखणाय; पाणही वेताप. पाणवी, पथरी, (अहीं) अखाका. *पहोंचे, प्रसिद्ध थाय, प्रगट पेटमां बंधातो गठ्ठो [सं.पाषाण] थाय] पांतरइ जिनरा. ठगाय, छेतराय; ठगे, छतरे; पांखिया षडाबा. पक्षी [छेतरामणीथी, भूलथी] [सं.प्रतार] पांखु दशस्कं(१). प्रेमाका. पासे, पडखेनुं पांतरउ जिनरा. प्रमाद, भूल, [छेतरामणी] पांखुडी वसंवि. पांख (सं.पक्ष) पांतरा जुओ पातरा पांखोटुं दशस्क(१). प्रेमाका. पांगोळू, बावडुं पांति उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. पंक्ति, पांगरउ ऐतिका. विहार करवो, [जवं] हार, पंगत; लावल. पंक्ति, लीटी पांगरण प्राचीसं. [पागरण, ओढj, पछेडी] पांति, पांती नरका. नरप(द). प्रकार, बाजु दि.पंगुरण]; जुओ पागरण (सं.पंक्ति) पांगरो *प्रेमाका. [चोटलानी सेर, लट] पांते प्रेमाका. बाजुए, [समुदायमां]. पांगुरइ उक्तिर. ओढणुं ओढे दि.पंगुर] पानहियां जिनरा. पगरखां [सं.उपानह्] पांगुरणउ उक्तिर.ओढणुं, पछेडी दि.पेंगुरण]. पांभडी उक्तिर. पामरी, उपरणो पांगुरावइ उक्तिर. ओढाडे पांभरी ऐतिका. वस्त्रविशेष, [पामरी, पांचयज्ञ प्राचीफा. श्रीकृष्णना शंखनुं नाम उपरणो] (सं.पाञ्चजन्य) पांलंणे चंद्रवा. पालणामां, [झूलामां] [सं. 2010_03 Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३२५ पांशु/पिरायु. पालन] पाव थयो (सं.प्रविष्टकः) पांशु कादं(शा). धूळ (सं.) पिडार वीसरा. गोवाळ (सं.पिंडार) . पांसउ वीसरा. पासो (सं.पाश-) पिडाविसिइ षडाबा. पीडा आपशे पांसुली उक्तिर. पांसळी दि.पंसुलिया; पिण, पिणि आरारा. ऐतिका. प्राचीफा. वीसरा. पण (सं.पुनः, पुनः अपि) पाहण ऋषिरा. पाषाण, पथ्थर पिण्डखजूर उक्तिर. एक जातनी मीठी खजूर पाहनी ऋषिरा. पगनी पानी (सं.पाणि) (सं.पिण्डीखर्जूरम्) पाहि, पाहिइ आरारा. ऋषिरा. प्रधुच. ना पिण्डत प्रबोप्र. विद्वान (सं.पंडित) करतां, -थी [सं.पार्वे]; अखाका. पितर उक्तिर. माबाप (सं.पितरः) ऐतिरा. पासे पित्राण दशस्कं(१). पितराई पिअबंध उषाह. पद्यबंध पित्री प्रेमाका. पितृ पिअ-हर प्राचीसं. पियर (सं.पितृगृह) . पित्रेण प्रेमाका. पितराई पिआल अभिऊ. प्राचीका. पाताळ पिपील अखाका. कीडी (सं.पिपीलिका) पिउ प्राचीसं. पिता पिपीलिका प्रेमाका. कीडी [सं.] पिकवयणी कादं(शा). कोयलनां जेवां मीठा पिम्म ऐतिका. शृंगाम. प्रेम वचनवाळी, (सं.पिकवचना) . पिय गुर्जरा. प्रिय; पिता पिका वसंफा. वसंवि. कोयल (सं.पिक) पियर प्राचीसं. पिता [सं.पित] . . पिकारव वसंवि(ब्रा). कोयलनो अवाज पियरपनोती प्रेमाका. भाग्यशाळी पियरपिक्क प्राचीसं. थूकवू ते, पिचकारी; जुओ वाळी पीक पिया आरारा. पिता (प्रा.) पिक्खइ तेरका. नेमिछं. प्राचीफा. पेखे, जुए पियाण कर्पूमं. "चारफा. प्राचीसं. प्रयाण, (सं.प्रेक्ष) पिक्खहु ऐतिका. पिखो], जुओ, देखो पियामह गुर्जरा. पितामह पिक्खिवि, पिक्खेवि ऐतिका. कृष्णबा. पियारउ वीसरा. प्यारुं [सं.प्रियतर] जोईने पियारी अखाछ. नरका. प्रेमाका. पराई पिखणय ऐतिका. दृश्य, [तमाशो] [सं. पियुला नरका. पीधा (म.) प्रेक्षणक] पिर प्राचीका. पेर, पिठे] (सं.प्रकार) पिखेवि ऐतिका. जोईने पिराणउ उक्तिर. षडाबा. ढोरने हांकवा पिछोडी प्रेमाका. पछेडी, ओढवानुं वस्त्र माटेनो परोणो (सं.प्राजन) पिठउ कादं(शा). नलाख्या. पेठो, दाखल पिरायु उपबा. प्राचीसं. परायो, पारको 2010_03 मध्य Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिरि/पीटणउ ___३२६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पिरि आरारा. नलाख्या. प्राचीका. प्रकारे, पिंगल प्रेमाका. पीळा रंगनी, भूखरी [सं.] पेरे, रीते पिंगाणी उक्तिर. प्रेमाका. कंकावटी (सं. पिरिथिम प्राचीसं. पृथ्वी पिंगाणिका) पिरु षडाबा. परु पिंजरिय तेरका. रातुं बनावेलु (सं.पिञ्जरित) पिरोजा प्रेमप. एक प्रकार- तेजस्वी रत्न पिंडखजूर जुओ पिण्डखजूर [फा.पीरोजः] पिंडत जुओ पिण्डत पिल्ल- प्राचीसं. नाखी देवू (सं.प्रेर) दि.पल्ल] पिंडल कादं (शा). पिंडाकार, फीडलु, वीटो पिशी प्रबोप्र. प्रवेश करी (सं.प्र+विश्) पिंडार प्रेमाका. गोवाळ [सं.] पिशु प्राचीफा. पशु, प्राणी पिंडारणी प्रेमाका. गोवाळण पिशुनता *प्रेमाका. [निंदा, चुगली, द्रोह, पिंडारुं नरका. गोवाळियो, भरवाड दुष्टता(सं.) पिंडित आरारा. पंडित पिष्ट हरिख्या. लोट (सं.) पिंड्य चित्तसं. पिंड, शरीर, रूप पिसी अभिऊ. पेसी (सं.प्रविश्य) पिंड्यांणी आरारा. पंड्याणी, ब्राह्मणी पिसुन ऐतिका. दुष्ट [सं.पिशुन] पीअली लावल. पीयळ, कपाळमां लगाडवापिहाण प्राचीसं. आच्छादन, ढांकण (सं. मां आवती अर्चा [सं.पीत परथी] पिधान) पीआणउँ नलरा. विमप्र. प्रयाण, कूच पिहिति आरारा. ?, [रांधेली दाळ, पीआरडी नलरा. बीजानी, पराई (सं. लचको]; जुओ पहिति पराक ?) पिहिरइ नलाख्या. पहेरे (सं.परिधा-) पीआरु कादं (शा). चतुचा. नरका. मदमो. पिहिरण कादं(ध). "कादं (शा). *नलाख्या. विमप्र. पारकुं, परायुं __ पोशाक, पहेरवेश (सं.परिधान) पीआंण ऋषिरा. प्रयाण पिहिरामणी नलाख्या. पहेरामणी, [भेट] पीउ मदमो. प्रियतम (सं.प्रिय) (सं.परिधापन) पीउला नरका. पीधुं (म.) पिहिरावीया आरारा. पहेरामणी- भेट आपी पीक नरका-२. कोयल [सं.पिक] पिहिलूं नलाख्या. पहेलु, प्रथम (सं. प्रथ+ पीक वीसरा. पान - तांबूलनो रस, पिचकारी]; जुओ पिक्क पिहिल्युं आरारा. पहेलां (सं.प्रथिल्ल) *पीखल (पीलख) उपबा. वृक्षविशेषतुं नाम पिहुलउँ उक्तिर. षडाबा. पहोळु (सं.पृथुल) पीछोकडि आरारा. पछवाडे, पाछळने भागे पिहुलपणि षडाबा. पहोळाईमां पीजहलउ उक्तिर. पेय, पीj (सं.पेयफलम्) पिहेर, पीहर प्रेमाका. पियर (सं.पितृगृह) पीटणउ उक्तिर. पीटर्बु ते (सं.पिट्टनम्) - 2010_03 Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३२७ . पीठ/पीहल पीठ प्राचीसं. बजार [सं.] पीय गुर्जरा. प्रद्युचु. पिता पीठमर्दक * नलरा. [राजाने प्रसन्न राखनार पीयगण हम्मीप्र. प्रियना गुण सहायक मित्र] (सं.) पीयल प्राचीसं. पीळ नरका. स्थूलिफा. पीड कामा(त्रि). पिंड, शरीर कपाळमां करवामां आवती अर्चा (सं. पीडि उपबा. चतुचा. कचडे, दबावे, दुःख पीत) __ आपे, [रिबावे, सतावे] (सं.पीडयति) पीयाण, पीयाणउं अंबरा. कृष्णच. गुर्जरा. पीढी उक्तिर. पीढियुं, मेडाना टेकानुं आईं ललिरा. विक्ररा. विराप. षडाबा. प्रयाण, लाकडु (सं.पीठिका) कूच पीण गुर्जरा. पुष्ट (सं.पीन) पीयामहु गुर्जरा. पितामह पीतकार विक्ररा. सोनी [सं.] पीयाकै अखाका. लावल. पारकुं पीतपटोली ऋषिरा. पीळा रंगनुं नानु पटोढुं पीयावो नंदब. पाणी पावानो कर (सं.पीतपटदुकूली) पीराआ मदमो. परायां पीतरांण वेताप. पितराई पीरीयख गुर्जरा. परीक्षित पीतरियउ, पीतरीउ उक्तिर. लावल. पितराई पीरोजी हम्मीप्र. पिरोजशाहे पडावेली (महोर) (सं.पितृव्य) पीळक दशकं(१). प्रेमाका. पीळाश, पीत्राणी उक्तिर. पितराईनी पत्नी (सं.पितृ- फिकाश, पांडुता व्यपत्नी) पीलख जुओ पीखल . पीत्री मदमो. पितृ पीलुक षडाबा. पीलुनुं झाड पीत्रीयउ उक्तिर. गुर्जरा. पितराई (सं.पितृ- पीळ्या प्रेमाका. पियलनी - कंकुनी अर्चाव्यक) वाळां कर्यां पीन आरारा. नरका. पुष्ट, भरावदार (सं.) पीव अखाका. प्रिय, स्वामी पीपलरी पीपी उक्तिर. पीपळाना पाननी पीवर ऐतिरा. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. भुंगळी, पिपूडी वसंवि(ब्रा). पुष्ट (सं.) पीपलि उक्तिर. पीपर, औषधि तरीके पीष्ट मदमो. [लोटन] पीठं [सं.पिष्ट] वपराती वनस्पति (सं.पिप्पली) पीहर आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. नलरा. पीपलीमूल उक्तिर. पीपरीमूळ (सं. पिप्पली- नलाख्या. नेमिछं. पंचवा. प्राचीफा. प्राचीसं. विक्ररा. वीसरा. षडाबा. पियर पीपी जुओ पीपलरी पीपी (सं.पितृगृह); सिंहा(शा).पियर, आश्रयपीमळ प्रेमाका. परिमल, सुगंध स्थान पीमळे नरका. सुगंध फेलावे (सं.परिमल्) पीहल मोसाच. कंकु - चंदननी अर्चा; 2010_03 Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीहो/पुनरपि ३२८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जुओ पीयल पुडउ उक्तिर. पडो (सं.पुटकः) पीहो वेताप. पीयो, जळोदर पुढ कादं(घ). मोटुं [सं.प्रौढ पींगाणउ उक्तिर. हरताल, गोरोचन के कंकु पुढइ नलरा. नलाख्या. पोढे, सूए (सं.प्रवर्धते; __ (सं.पिंगाणम्) दे.पवड्ढ) पीछ उक्तिर. पीएं (सं.पिच्छम्) पुण आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. पुण्य पीजणउ उक्तिर. पींजवान यंत्र (सं. पुण आरारा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. लावल. पिञ्जनम्) वाग्भबा. विमप्र. षष्टिप्र. पण, परंतु, पीजणी प्रेमाका. गाडाना पैडा उपरनुं ढांकण वळी, [तो] (सं.पुनः) पीडार उक्तिर. दशस्कं(१). नरका. गोवाळ, पुणइ, पूणइ *गुर्जरा. "विराप. [फूलेफाले; • भरवाड (सं.पिंडार) ___ अनिष्ट करे] [रा.पूणणौ; सं.पृणाति] पीडारडा गुर्जरा. विराप. गोवाळिया [सं. पुणति ऐतिका. पवित्र करे छे [सं.पुनाति] पिंडार] पुण पुण उक्तिर. वारंवार [सं.पुनः पुनः] पुकार विक्ररा. ढंढेरो, [जाहेरात पुणा उपबा. पण (सं.पुनः) पुख कस्तुवा. पोंक [सं.पुथुक पुणि आरारा. पण; वळी (सं.पुनः); षडाबा. पुख वीसरा. पुष्य नक्षत्र वळी पुखणां विक्ररा. पोखवू ते [सं.प्रोक्षन] पुणु तेरका. वळी, (सं.पुनः) पुखराग सिंहा(शा). पुष्करराज, पोखराज, पुण्य पर्वणी प्रेमाका. पवित्र, पर्वनो - एक किंमती पथ्थर, रत्न तहेवारनो दिवस पुखाधन * सिंहा(शा). [मळ ज्यां भेगो थाय पुण्यसिलोक सिंहा(म). उत्तम कीर्तिवाळो ते खाडो] [तु.पुख-मल] ___ (सं.पुण्यश्लोक) पुगा आरारा. पहोंच्या, पूरा थया पुतलिका अखाका. पूतळी [सं.पुत्र] पुग्गल जिनरा. पुद्गल, [रूपादिविशिष्ट पुतार नलरा. सिंहा(म). हाथीनो महावत; द्रव्य, भौतिक पदार्थ [.] जुओ पुहुतार पुग्या अंबरा. पहोंच्या [सं.पूर्यते] पुत्त गुर्जरा. देवरा. तेरका. षडाबा. पुत्र पुछदंड गुर्जरा. दंड जेवा पूंछडा साथे, [ऊभी पुत्तपुत्तेहिं लावल. पुत्र अने पौत्रो वडे पूंछडीए] (सं.पुच्छदंड) पुत्तलिअ तेरका. पूतळी (सं.पुत्र+ल+इका) पुजनीक दशस्क(२). पूजनीय पुद मदमो. कूला [सं.पुत, पूत]; जुओ पूंद पुट्टलिका षडाबा. पोटली (सं.पुट परथी) पुदगल *गुर्जरा. देवरा. शरीर (सं.पुद्गल) पुठ बोले मदमो. पीठ पाछळ निंदा करे पुद्गल * ऐतिका. [शरीर] पुडइनि प्राचीसं. कमलिनी (सं.पुटकिनी) पुनरपि अखाका. अखाछ. फरीफरी, तहेवारो दिवस व 2010_03 Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनरपे/पुलाइ पुरस अभिऊ. कामा (त्रि). पुरुष पुरसरि आरारा. परिसरमां, पासे, [पादरे] पुरहूत ऋषिरा. इन्द्र (सं. पुरुहूत) पुरंजन अखाका. अखेगी. जीव [सं.] पुरंद्री विराप. परणेली स्त्री, [पत्नी] (सं. पुनवंत तेरका. पुण्यवंत पुरन्ध्री) पुन्नाग आरारा. (व). ऊंडी, रक्तकेसर (सं. पुं- पुरंधिय ऐतिका. स्त्रीओ (सं. पुरन्ध्री ) पुराय ( शंख पुराय) प्रेमाका. [ शंख फूंकाय], वागे; जुओ पूर्यो शंख पुरिस तेरका पुरुष नाग) पुन्निम, पुन्निमा तेरका. लावल. पूनम (सं. पूर्णिमा) पुरिसादानी जिनरा. * पुरुषोमां प्रधान, पुन्य- पसाय दशस्कं ( २ ). पुण्यनी कृपाथी, पुण्य प्रतापे [ सं . पुण्यप्रसाद ] पुप्फ आरारा. कर्पूमं. विक्ररा. पुष्प पुप्फपडली उक्तिर. पुष्पसमूह, फूलनो नानो करंडियो ( सं . पुष्पपटली) पुप्फरास आनंस्त. पुष्पराशि पुफ प्राचीफा. फूल (सं.पुष्प) पुमान अखाका. पुरुष, नर [ सं . पुमान् ] पुर मदमो. पूरो पुरुषपण आनंस्त. पुरुषपणुं, पुरुषातन पुरुषरयण ऐतिरा. पुरुषरत्न पुरअहे उक्तिर. पर्वने दिवसे पुरख कामा (त्रि). दशस्कं (२). देवरा. वीसरा. पुरुषाक्रम प्रद्युचु. पुरुषार्थ अने पराक्रम पुरुसल प्राचीसं. पुरुष पुरुहुणा अभिऊ. महेमान, अतिथि (सं. प्राघूर्णक) पुरमांण रूस्तस फरमान पुरेंद्र गुर्जरा. वडील परिणीत स्त्री (सं. पुरन्ध्री) (सं. पुरराज) पुरराउ गुर्जरा. नगरना अधिपति, राजा पुरोकउं उक्तिर. पुराणुं, पहेलांना समयनुं पुर्ख अखाछ. दशस्कं ( १ ). पुरुष पुल- प्रद्युचु. प्राचीफा. जवुं, पळवुं [सं. पलाय्] पुलकी नेमिछं. आनन्द पामी [सं. पुलक] पुलाइ आरारा. गुर्जरा. प्राचीसं. पळे, जाय, मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जन्ममरणना फेरा पुनरपे प्रेमाका. पुनरपि, फरी वार पुनिम षडाबा. पूनम (सं. पूर्णिमा) पुत्र आरारा. गुर्जरा. पुण्य पुत्र गुर्जरा. पूर्ण, परिपूर्ण पुरुष पुरजन्म चंद्रवा. पूर्वजन्म पुरण मदमो. पूर्णिमा ? ३२९ पुरवछाओ मदमो. [ पूर्वछाया ], छंदविशेष पुरस उक्तिर. एक पुरुष जेटलुं [ऊंडाई के ऊंचाई ] माप (सं. पौरुषम् ) 2010_03 [ आदरणीय पुरुष ] पुरीसादाणी ऐतिका. "पुरुषोमां प्रधान, प्रसिद्ध, [उपादेय पुरुष, आप्त पुरुष ] [सं. पुरुषादानी] रिसु हेम सिंहा (म). हेमपुरुष, सुवर्णपुरुष पुरु उक्तिर. पोर, आगलुं के पछीनुं वर्ष (सं. परुत्) Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वी पुलाण/पूगइ ३३० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दूर थाय, नासी जाय (सं.पलायते) तेरका. नलरा. नेमिछं. प्रद्युचु. हम्मीप्र. पुलाण हम्मीप्र. पलाण [सं.पर्याण] पुळाणउ वीसरा. पलायन थयेलो (सं. पुहवीसर तेरका. पृथ्वीश्वर पलायते) पुहुचाडी नेमिछं. पहोंचाडी, पूरी करी पुलाय आनंस्त. पलायन करे, [नासी जाय] पुहुतु आरारा. कृष्णबा. नलरा. प्रबोप्र. पुलिन नरका. हरिख्या. किनारो, भीनो रेताळ शीलक. पहोंच्यो [सं.प्रभूत] कांठो (सं.) पुहुतार, पुतार *प्रबोप्र. [हाथीनो महावत] पुलिया ऐतिका. पळ्या, चाल्या पुहुर अभिऊ. उक्तिर. पहोर (सं.प्रहर) पुवभवि गुर्जरा. पूर्वभवमां पुहुलउँ उक्तिर. लावल. पहोळु [सं.पृथुल] पुबुक्किउ ऐतिका. पूर्वकृत पुहुवि, पुहुवी अभिऊ, नेमिछं. प्रबोप्र. पृथ्वी पुशप चतुचा. पुष्प पुहुंक उक्तिर. षडाबा. पोंक (सं.पृथुक) पुष्टुं विमप्र. पुष्ट पुंआङ उक्तिर. चक्रमर्द, कुवाडियानो छोड पुष्ट्य चित्तसं. पुष्टि, पोषण,जामतुं ते, पुष्ट (सं.प्रपुन्नाट:) थर्बु ते पुंछ सिंहा(शा). झडपी?, [*पहोंच, गति] पुष्पित अखाछ. शणगारेली, उपरथी मीठी. पुंजी षडाबा. साफ करी, लूछी [सं.प्रोंछ् । ___मलावी-मलावीने रजू थती [सं.] पंतार अंबरा. कष्णबा. विमप्र. हम्मीप्र. पुसागो मदमो. पोशाक हाथीनो महावत [सं.प्रयोक्त] पुस्तग चंद्रवा. पुस्तक पुंयरा षडाबा. पोरा, पाणीमां थता बारीक पुस्तककर्म कादं(शा). पुस्तक लखवानी जीव [सं.पूतर] कळा के पूतळां बनाववानी कळा (सं.) पंश्चली, पंश्चळी चंद्रवा. प्रेमाका. छिनाळ, पुहचइ ऋषिरा. विराप. पहोंचे [सं.प्रभूत] वंठेल स्त्री [सं.] (प्रा.पहुत्त); आरारा. परिपूर्ण थाय हक अंबरा. पोंक [सं.पृथुक] पुहचतु नलरा. मोटो, शक्तिशाळी, पहोंचतो पूअरउ उक्तिर. पोरो, पाणी, जंतु पुहचि उषाह. पोंचा उपर (सं.पूतरकः) पुहतउ उपबा. गुर्जरा. नेमिछं. पहोंच्यो; पूग कादं(शा). सोपारी (सं.) ऋषिरा. परिपूर्ण थयो [सं.प्रभूत, प्रा. पूगइ अखाका. गुर्जरा. सुधी पहोंचे, [प्राप्ति पहुत्त] थाय], [पार ऊतरे]; गुर्जरा. प्रेमाका. पुहर, पुहरा उषाह. वीसरा. पहेरा (सं.प्रहर आवी पहोंचे, जई पहोंचे; अंबरा. उपरथी) आरारा. कर्पूमं. गुर्जरा. नलरा. प्राचीफा. पुहवि, पुहवी आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. लावल. *षडाबा. सिंहा(म). पहोंचे, पूरुं 2010_03 Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३३१ . पूगीफल/पूरी थाय, परिपूर्ण थाय, संतोषाय (सं.पूर्यते) पूण्या नरका-२. फळ्या [सं.पूर्ण] पूगीफल कादं(शा). सोपारी (सं.) पूतना हरिवि-अनु. गात्रवाळी पूगीफाड उक्तिर. सोपारीनो कटको (सं. पूतरी प्रेमाका. पुत्री पूगी+फालित) पूतली, पूतळी पंचवा. बत्रीश पूतळीनी पूगै आनंस्त. सोपारीथी वार्ता; प्रेमाका. आंखनी कीकी [सं.पुत्र] पूछ नरका. [ज्योतिषविषयक] प्रश्न, पूत्त गुर्जरा. पुत्र । _ [जोश] [सं.पृच्छा]; जुओ प्रश्न पू।लउ उक्तिर. पूतळु (सं.पुत्रकः) पूछिवउ उक्तिर. पूछवू पूनिम उक्तिर. वीसरा. पूर्णिमा, पूनम पूछीतउं उक्तिर. पूछातुं (सं.पृच्छ्) पूय ऐतिका. प्राचीसं. पूजा पूज अखाछ. पूज्य; आरारा. वीसरा. पूजा पूयडा षडाबा. पूडा (सं.पूप) पूजइ प्रद्युचु. [सुधी] पहोंचे, [-नी तोले पूर आरारा. वीसरा. पूर्ण, पूरुं, पूरेपूरुं (सं. आवे]; षष्टिप्र. पहोंचे, शक्तिमान थाय; पर); आरारा. पर्ति, परावं ते. भरावं आरारा. गुर्जरा. जिनरा. वसंफा. वसंवि. ते वसंवि(ब्रा). पूरुं थाय, परिपूर्ण थाय पूरह अहम पुंठि लावल. अमारुं समर्थन (सं.पूर्यते) ___ करे छे, [अमारी मददमां रहे छे] पूजनिक प्रेमाका. पूजनीय पूरणी ऋषिरा. [दीवालना रक्षण के आधार पूजनी कादं (धु). पूज्य ___ माटे, बांधकाम] [रा. पूजनीक दशस्कं(१). पूजनीय पूरब वीसरा. पूर्व दिशानुं पूजारउ षडाबा. पूजारी (सं.पूजाकर) पूरव लावल. जैन मान्यता अनुसार एक पूजावई आरारा. पूजा करे छे ___ काळपरिमाण [सं.पूर्व पूजिवा उक्तिर. पूजवा पूरवइ आरारा. लावल. पूरुं करे, परिपूर्ण पूट्ठि लावल. पीठ उपर [सं.पृष्ठि] करे, [संतोषे]; अखाका. परवडे, [पूरु पूठउ उक्तिर. पीठ, पूंठ, शरीरनो पाछळनो पडे, परिपूर्ण थाय, यथेष्ठ थाय] भाग (सं.पृष्ठम्) __ पूरवलउ आरारा. लावल. पहेलांनो, पाछलो पूठि, पूठी आरारा. लावल. वीसरा. पीठ; (स.पूर्व) उक्तिर. उपबा. *नलाख्या. पाछळ; पूरविलउं गुर्जरा. नेमिछं. पहेलांनु, आगलुं उपबा. प्रेमप. पछी (सं.पृष्टि) (सं.पूर्व+इल्ल) पूणइ (? पूगइ) प्राचीसं. जीते, पहोंचे, [नष्ट पूरिय गुर्जरा. नगर (सं.पुरिक) करे] [रा.पूणणौ]; जुओ पुणइ पूरी (आसन पूरी) जिनरा. (आसन) जमावी पूठ्य चित्तसं. पेठे, जेम; पूठ, पाछळ पूरी (सभा पूरी) षडाबा. [सभा] भरी 2010_03 Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूरीउ / पेलावेलि (सं. पूरयति) पूरीउ ( अल पूरिउ ) * वाग्भबा. [हवे बस एवो भाव पूर्यो] पूरो पाड्यो चित्तसं. पहोंचाड्यो, लई गयो पूर्यो शंख प्रेमाका. शंख वगाड्यो, [शंख फूंक्यो ]; जुओ पुराय पूर्व नलरा. षष्टिप्र. जैन शास्त्रोनो एक विभाग [ सं . ] ३३२ पेचे पेचे प्रेमाका. कपटथी, दावपेचथी पेड * अखाका. [* पीड; *परड; *लप ] पूर्वभवंतरि शृंगामं. पूर्वभवमां पूर्विलउ * षडाबा. [ पूर्वेनो, आगलो ] (सं. पूर्व) पैड अखाका. वृक्ष, [छोड, वेल] [हिं.] पूर्वीयु उक्तिर. पूर्व दिशानुं पूलउ उक्तिर. पूळो (सं. पूलकः) पेणामां प्रेमाका. कडायामां, मोटी कडाईमां पेदs * पंचवा. [पग, मूळियां] (सं. पद +दल) पेध्यारु अंबरा. पधारो [सं. पाद + धार्] पेम तेरका. प्रेम पूंख प्रेमाका. तीरनो आगलो पींछावाळो भाग [सं. पुंख मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पेख तेरका. नरका. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). जुए (सं. प्रेक्षते) पेखणउं अंबरा. चित्तसं. पेखणुं, तमासो, [जलसो, उत्सव ] [सं. प्रेक्षनक ] पेच अखाका. युक्ति, जोडाण, [ प्रपंच ] पेचेतालीस षडाबा. पिस्ताळीस ( सं. पंचचत्वारिंशत्) पूंख नलरा. वरकन्याने वधाववां ते, पोंखवुं पेमासव शृंगामं. प्रेमनो अर्क [सं. प्रेमासव] ते (सं. प्रोक्ष) पूंछ- वीसरा. पूछवुं (सं. पृच्छ) पूंछली अखाछ. पूछियल, थाकीने बेसी पडेली पूंछे आरारा. पूंठे, [पूंछडे, पाछळ ] पूंजइ उक्तिर. षडाबा. कचरो वाळे, साफ करे [सं. प्रों] पूंठि * नलाख्या. विमप्र. पाछळ (सं. पृष्टिः) पूंठि पूरइ जुओ पूरइ अझ पूंठि पूंब उक्तिर. कूला (सं. पुतौ); जुओ पुद पे, पें नेमिछं. उपर; हरिख्या. पासे, पासेथी; नरका. प्रेमाका. हरिख्या. नी सरखा मणीमां, -ना करतां [सं. प्रति] पेअ कामा (त्रि). दूध [सं. पेय ] पेई अभिऊ. पेटी 2010_03 पेर अखाका. अखाछ. प्रेमाका. प्रकार, रीत; कामा (त्रि). कामा (शा). प्रकार, रीत गोठवण; मोसाच. रीत, रिवाज; नरका. रीत, प्रकार, युक्ति, उपाय, [ "आवडत] पेरपेर प्रेमप. जुदीजुदी रीते पेराई कामा (शा). सांठानी गांठ वच्चेनो भाग पेरेपेरना चतुचा. भिन्नभिन्न प्रकारना पेर्य चित्तसं. प्रकार, रीत, मार्ग, गोठवण, जोगवाई पेर्ये चित्तसं. प्रकारे, रीते, पेठे पेलाइ गुर्जरा. दशस्कं (२). प्रेरे, धक्केले पेलाडि प्राचीफा. * शृंगामं. पीडा, वेदना पेलावेलि पेलावेली उक्तिर. खेंचाखेंची, Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३३३ पेशकसी/पोते धक्कामुक्की; गुर्जरा. तालावेली (सं. पोखइ दशस्कं(२). प्रेमाका. "नेमिछं. पोषे, *प्रेराप्रेरि) [संतोषे, संवर्धे, जतन करे पेशकसी मदमो. खंडणी [फा.पीश-कशी] पोखी * नेमिछं. [पोषेली, -थी भरेली] पेशल कादं(ध). सुंदर (सं.); *वसंफा(ब्रा). पोगर अखाछ. पुद्गल, [परमाणुपिंड, कोमळ] भौतिक पिंड]; चित्तसं. परमाणु पेस आरारा. उद्योग, श्रम (फा.) पोटलिया उक्तिर. पोटली (द.पोट्टलिय) पेसकशी चंद्रवा. खंडणी [फा.पीश-कशी] पोठी नलाख्या. प्रेमाका. पोठियो, बळद (सं. पेसरां हम्मीप्र. युवान सैनिको, युवको (फा. पृष्ठिः परधी) । पिसर-पुत्र) पोठीउ, पोठियउ उक्तिर. पोठियो (सं.पृष्ठि पेसारो ऐतिका. प्रवेश[नो उत्सव]; जुओ परथी) पइसारउ पोढउं अभिऊ. "ऋषिरा. चतुचा. चंद्रवा. पेहे नंदब. पहो, सवार [सं.प्रभात] नलरा. रूपच. लावल. वीसरा. प्रौढ, पेहेली मदमो. प्रहेलिका, [समस्या मोटुं, महान; विशाळ; बळवान पें जुओ पे पोढेरो चित्तसं. प्रौढ, मोटो, विस्तृत पेंड सिंहा(शा). पिंड, पंड, शरीर पोण कामा(त्रि). कामा(शा). दशस्कं(१). पेंडार मोसाच. भरवाड [सं.पिंडार] नरका. प्रेमाका. पण, प्रतिज्ञा; प्रेमाका. पैआल, पैआळ, पैयाल अंगवि. उषाह... शरत, दाव; जुओ वर्णनपोण कृष्णबा. दशस्कं(१). प्रबोप्र. प्रेमाका. मा पोत कादं(शा). बच्चु (सं.) पाताळ पोत अखाका. मूळ रूप, [पोतापणुं] पैब्रह्म प्राचीका. परिब्रह्म (सं.परब्रह्म) पोतइ आरारा. *उपबा. भंडारमां, सिलकमां पैयाल जुओ पैआल पोतउ आरारा. भंडार [*सं.पोत] पैयुं दशस्क(१). प्रेमाका. रमतमां नक्की पोतन उषाह. पूतना राक्षसी ___ करेलु अमुक अंतर [सं.पदिक] पोतापणुं चित्तसं. आत्मस्वरूप पैशुन * ऐतिका. [चाडी, चुगली] [सं.] पोतावट हरिख्या. पोतापणुं, अत्यंत घरवट पैसण जिनरा. प्रवेश करवो ते पोति आरारा. पोतुं करे, लीपे पैसारे ऐतिका. प्रवेश[ना उत्सवपूर्वक]; पोति कामा(त्रि). देवरा. नरप(द). नलाख्या. . जुओ पइसारउ पहोंचे, आवी मळे (सं.प्रभूत) पो- वीसरा. परोवq (सं.प्रवयति) [सं.प्रोत-] पोती * नरका. [पोतियां, वस्त्र] पोईस उक्तिर. [*वाटमाथी खसो एम पोतूं लावल. भंगर जणावतो उद्गार] [सं.पूतिकेशः] पोते अखेगी. पोतथी, [आत्मस्वरूपथी]; 2010_03 Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोत्रउ/पोस्त ३३४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश चित्तसं. पोतापणुं, अहंभाव; पोतापणुं, [फा.पोश] आत्मस्वरूप पोशो प्रेमाका. खोबो [सं.प्रसृति] पोत्रउ उक्तिर. उषाह. पौत्र, पोतरो पोष आनंस्त. ऐतिरा. पुष्टि, पोषण पोथउ प्राचीसं. पुस्तक, पोथु पोषक चित्तसं. पोषनार, पुष्ट करनार, पोर कामा(शा). नरप(द). प्रहर अस्तित्वना आधाररूप [सं.] पोरसि, पोरसी, पोरिसि उक्तिर. जिनरा. पोषण चित्तसं. अस्तित्वनो आधार [सं.] षडाबा. एक प्रकारचें जैन तप, [एक पोषणो आनंस्त. पोषण [करनार], [पुष्ट पहोर दिवस चडे त्यां सुधी भोजन करनार] वगेरेनो त्याग] (सं.पौरुषी) - पोषधसाल देवरा. सामायिक, पौषध आदि पोरुयाड तेरका. पोरवाड वंश (सं.पौर+ करवानुं स्थळ [सं.उपवसथ+शाला; वाट ?) जै.; सं.पौषधशाला] पोलइआ प्राचीसं पोळिया, [दरवान] (सं. पोषाइ चित्तसं. पोषण आपे छे _प्रतोलि परथी) पोस उक्तिर. पोष महिनो (सं.पौष) पोळ, पोल देवरा. प्रेमाका. शीलक. पोस प्रेमाका. खोबो सिं.प्रसति] हरिख्या. दरवाजो, द्वार (सं.प्रतोलि) पोसउ ऐतिका. पौषध, [श्रावकोए उपाश्रयपोलि आरारा. उषाह. *ऋषिरा. कादं(धु). मां साधुनी जेम रहेवानुं एक जैन व्रत काद(शा). गुजरा. नलरा. नलाख्या. पोसहथउ उक्तिर पौषधमां बेठेलो (सं. नेमिछं. प्राचीसं. रूपच. लावल. विक्ररा. पौषधस्थः) विमप्र. दरवाजो (सं.प्रतोलि) पोसहसाल लावल. पौषधशाळा पोलिका षडाबा. पोळी (सं.) पोसहा ऐतिका.पौषध, [श्रावकोए उपाश्रयपोलिदुयार आरारा. तोरणद्वार (रा.) मां रही साधुनी जेम रहेवानुं जैन व्रत] पोलियउ, पोळियउ आरारा. उषाह. चंद्रवा. पोसह षडाबा. एक जैन तपप्रकार, [पौषध, जिनरा. नरका-२. प्रभाका. दरवान, चोवीस कलाक माटे उपाश्रयमा रही द्वारपाळ उपवासपूर्वक धार्मिक क्रियाओ करवी पोली उक्तिर. पोळ, दरवाजो (सं.प्रतोली) ते (सं.उपोसथ) [सं.उपवसथ] पोली नरप(द). [पोळी], रोटली पोसाल उक्तिर. जिनरा. विमप्र. शीलक. पोलीई विक्ररा. पोळियाए, [दरवाने] . पौषधशाला पोलीया विक्ररा. दरवान पोसीजइ आरारा. पोषाय, कंईकई आपवापोवइ षडाबा.परोवे (सं.प्रवयति) [सं.प्रोत-] मां आवे पोशाअ * मदमो. [पलंगनी चादर, बिछान] पोस्त आरारा(व). अफीण-खसखसनो 2010_03 Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथुल मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३३५ . पोहचावइ/प्रतिपाल डोडो, [पोसनो डोडो] (फा.) प्रजुंजइ आरारा. उक्तिर. प्रयुक्त करे, योजे पोहचावइ आनंस्त. पहोंचाडे [सं.प्रभूत-] प्रजूंजन जिनरा. योजq ते [सं.प्रयुंजन] पोहाल पंचवा. परसाळ (सं.पृथु+शाला) प्रठवुअखेगी.परठवू, नक्की करवू [सं.प्रस्था-] पोहोतुं अखाछ. ऐतिका. कामा(त्रि). देवरा. प्रणिपत नरका. हरिख्या. प्रणाम, नमन; नरका. प्रेमप. प्रेमाका. मदमो. मोसाच. प्रेमाका.विनंती, आजीजी (सं.प्रणिपत्ति) पहोंच्यु (सं.प्रभूत); दशक(१). प्रणीता कादं(धु)-टि. यज्ञमां वपरातुं एक सिंहा(शा). पहोंच्यु, पूरुं थयु, [परिपूर्ण पात्र थयु] [सं.प्रभूत-] प्रत कामा(त्रि). लखाण, टीपणुं [सं.प्रति] पोहोर कामा(शा). प्रहर प्रतइ, प्रतई ऋषिरा. ऐतिका. प्रत्ये, तरफ पोहोलु कामा(त्रि). विशाळ, मोटुं [सं. (सं.प्रति) प्रतख जुओ परतख • पोंकी प्रेमाका. पोंखी, वधावी [सं.प्रोस्] प्रतपु गुर्जरा. प्रकाशो (सं.प्रतप्) पौर्णमासी प्रेमाका. पूर्णिमा, पूनम [सं.] प्रति अखाछ. जोड, सरखं, समोवडियुं प्पहु ऐतिका. प्रभु [सं.]; जुओ प्रत्ये प्यादा * प्रेमाका. [शतरंजनां पैदल सिपाहीनां प्रतिकार * अखाछ. [उपाय] [सं.] महोरां] [फा.पियाद] प्रतिकूलि आरारा. अवळू प्रकार मोसाच. गढ (सं.प्राकार) प्रतिक्ष आरारा. प्रत्यक्ष प्रखोडी उषाह. पखोडीने, [फेलावीने, प्रतिख प्रबोप्र. रूबरू (सं.प्रत्यक्ष) लंबावीने [प्रा.पक्खोड प्रतिखि अंबरा. प्रतीक्षा प्रग प्राचीका. प्रभात (सं.) प्रतिग्रह प्रेमाका. दाननो स्वीकार [सं.] प्रगत्य चतुचा. ? प्रतिघाउ षडाबा. रुकावट, अंतराय (सं. प्रगन्यावंत चित्तसं. प्रज्ञावंत, ज्ञानी _प्रतिघात) प्रगल (प्रगलचित्त) * नरका. [मोकळे मने] प्रतिचारिका आरारा. दासी, सेविका (सं.) प्रघल ऐतिका. नरका. नरप(द). पुष्कळ, प्रतिउं नेमिछं. प्रतिज्ञा करेलु, अत्यंत स्वीकारेलुं]; जुओ पडिवन्नयउं प्रछन आरारा. प्रछन्न, छानी प्रतीपाल मदमो. संभाळ, रक्षण, [पालन, प्रछा कादं (शा). पृच्छा, पडपूछ आचरण] प्रज गुर्जरा. प्रजा प्रतिपाल, प्रतिपाळ ऋषिरा. नरका-२. प्रजंत दशस्क(२). मदमो. सिंहा(शा). पर्यंत, पालनपोषण करनार], पाळनार, रक्षक [सुधी 2010_03 Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिपालइ/प्रभा ३३६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रतिपालइ षडाबा. पालन करे, आचरे (सं. प्रत्यमा अखाका. प्रतिमा, मूर्ति प्रतिपाल्) . प्रत्यय आरारा. शृंगामं. विश्वास, खातरी प्रतिपालना प्रेमाका. हरिख्या. पालनपोषण, (सं.) रक्षण (सं.) प्रत्ये नरका. *सामे, [मुकाबलामां, जोडमां, प्रतिषु विमप्र. [प्रकाशो] [सं.प्र+तप्] साथे]; जुओ प्रति प्रतिबाध दशस्क(१). प्रेमाका. वांधो, हरकत प्रत्येकबुद्ध प्राचीका. अनित्यादि भावनानी प्रतिबुझइ षडाबा. परमज्ञान - आत्मज्ञान कारणभूत कोई वस्तुथी जेने परमार्थप्राप्त करे (सं.प्रति+बुध्यते) ज्ञान प्राप्त थयुं छे एवो पुरुष (सं.) [जै.] प्रतिबोध चित्तसं. प्रत्युत्तर, समजूती [सं.] प्रदक्षण नलरा. वसंफा (ब्रा). प्रदक्षिणा प्रतिबोधीयो ऐतिका. ज्ञान आप्युं, [उपदेश प्रदेश प्राचीफा. परदेश, बीजो देश आप्यो] [सं.प्रतिबोधित प्रधान आरारा. मुख्य, महत्त्वनो माणस; प्रतिमल्ल गुर्जरा. विराप. प्रतिस्पर्धी, योद्धो उत्तम, प्रसिद्ध (रा.) (सं.) प्रध्यान अंबरा. प्रधान प्रतिमा नलरा. ध्यान माटे शरीरने निश्चल प्रपंच अखाका. चित्तसं.विस्तार; कादं (शा). राखवू ते, कायोत्सर्ग (सं.) "नरका. प्रेमप. मायाप्रपंच, जगतप्रपंच: प्रतिलाभइ आरारा. देवरा. प्राचीफा. साधु कादं(५). तजवीज, [खटपट, युक्ति, आदिने दान आपे, भिक्षा वहोरावे उपाय] (सं.प्रतिलाभयति) प्रपंचभेद चित्तसं. संसारनो विविध प्रकारनो प्रतिवाय प्रेमाका. प्रत्यवाय, [अंतराय, दोष] विस्तार [सं.] प्रतिवास आरारा. सुगंधी (सं.) प्रबळ दशस्कं(१). प्रकृष्ट बळ, प्राबल्य प्रतीकार चित्तसं. उपाय [सं.] प्रबाल वसंवि(ब्रा). परवाळां [सं.प्रवाल] प्रतीठ उक्तिर. प्रतिष्ठा, [मूर्तिस्थापना] प्रभ गुर्जरा. षष्टिप्र. प्रभु, स्वामी प्रतीठिउ गुर्जरा. स्थाप्यु (सं.प्रतिष्ठित) प्रभव, दशस्कं(१). दशस्क(२). प्रेमाका. प्रतीत अखाका. नरका. प्रेमाका. खातरी, हेरान करवं, दूभवतुं (सं.पराभव के विश्वास (सं.प्रतीति) परिभव) प्रतुसकाल कामा(त्रि). प्रातःकाळ प्रभवतुं प्रेमाका. उत्पन्न थतुं (सं.प्रभव्); प्रते चतुचा. प्रति, तरफ *षडाबा. [प्रभावकर्ता थर्बु, -नी असर प्रतेकिइ नेमिछं. प्रत्येकने, दरेकने थवी] (सं.प्रभव्) प्रतें देवरा. प्रत्ये प्रभा वेताप. परवा प्रत्यन्या उषाह. प्रतिज्ञा, पण प्रभा अखाका. अखाछ. मदमो. प्रवाह; 2010_03 Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३३७ प्रभा-जळ/प्रस्तानुं . जुओ परभाय प्रवर्द्धइ षडाबा. वधे (सं.प्रवधु) प्रभा-जळ प्रेमाका. प्रवाहजळ, जळनो प्रवाह प्रवहण ऐतिरा. गुर्जरा. वहाण (सं.). प्रभावना आरारा. ऐतिका. माहात्म्य, गौरव; प्रवाद कादं(ध). वजावणी, [वगाडवू ते] एने अर्थे करवामां आवती लहाणी वगेरे प्रवादी आनंस्त. जैनथी अन्य वाद[ - क्रिया [जै.] __ मत वाळा प्रमा अखाका. *माप, [प्रमाण, यथार्थ ज्ञान] प्रवाल ऋषिरा. कामा(शा). वसंवि. परवाळु (सं.) प्रमाण आरारा. गुर्जरा. प्रतीति, खातरी, प्रवाली, प्रवाळी उक्तिर. वीसरा. परवाळां परावो (सं.); आरारा. हरिख्या. सिद्ध, (सं.प्रवाल) खरुं, मान्य, नक्की; आरारा. "ऋषिरा. प्रवासाविउ *षडाबा. दशनिकाल कर्यो] ने लीधे [सं.प्रवास परथी] प्रमाणि प्रमाणि चडिउं] लावल. प्रमाणे, प्रवाहिउ गुर्जरा. वहेवडाव्युं (सं.प्रवाहित) सत्ये [चड्यु], [सिद्ध थयु, साचुं पड्यु] प्रवेश मदमो. प्रवास, [संक्रमण, जq ते]; प्रमार प्राचीसं. परमार ___ जुओ परवेश प्रमीला लावल. मोहनिद्रा [सं.] प्रशंस मदमो. जाहेरात ? (सं.प्रशंसा) प्रमुख आरारा. षडाबा. आदि, वगेरे (सं.) प्रश्ण चित्तसं. प्रश्न, कोयडो प्रयंड विक्रच. प्रचंड प्रश्न प्रेमाका. *भेद, "रहस्य, ज्योतिष - प्रयुंजइ उक्तिर. गुर्जरा. प्रयोजे, प्रयोग करे भाविविषयक पृच्छा]; हरिख्या. प्रस्ताव, (सं.प्र+युज्) बाबत, [जिज्ञासानो मुद्दो]; जुओ पूछ प्ररूपणा ऐतिका. कथन, वक्तव्य, निरूपण, प्रश्न कर्व्या प्रेमाका. भविष्य - ज्योतिष जोवू प्रतिपादन] [सं.] प्रसव्यो ऐतिका. जन्म आप्यो प्ररूपीयो ऐतिका. कह्यो, [प्रतिपादित कर्यो, प्रसंग आनंस्त. भेट, मिलन [सं.] निरूप्यो] [सं.प्ररूपित प्रसंगी आनंस्त. प्रसंग पाडनारो, [प्रगाढ प्रलउ गुर्जरा. प्रलय मिलन करनारो] [सं.] प्रल' सिंहा(शा). खंडणी ?, [*ऊपजनो प्रसाउ गुर्जरा. प्रसाद, कृपा हिस्सो] [सं.प्रलवण प्रसाद आरारा. कादं(धु). प्रासाद, मंदिर प्रले अखाका. प्रेमाका. प्रलय प्रसिद्ध चित्तसं. अगुप्त, बाह्य प्रवत्तिनी आरारा. प्रवर्तिनी, जैन साध्वी- प्रसुत आरारा. बाळक, दीकरो (सं.) ___ओएक पद प्रस्तानुं मदमो. प्रयाणे नीकळवू ते (सं. प्रवरु ऐतिका. प्रवर, [श्रेष्ठ] प्रस्थानकम्) ___ 2010_03 Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्ताव / प्रातिक प्रस्ताव आरारा. गुर्जरा. *मिछं. प्रसंग, कथाप्रसंग (सं.) प्रस्थानं विक्ररा. मंगलप्रयाण प्रस्थाव पंचवा. प्रसंग, तक, लाग, [बाबत ] (सं. प्रस्ताव ) प्रस्नव कादं (शा). स्तनोमांथी दूधनुं झरवुं (सं.) ३३८ प्रहसमि ऐतिका. प्रभात समये प्रहुणु सिंहा (शा). परोणो ( सं . प्राघूर्णक) प्रहुसु * नलरा. [दुःखनी लागणीनो आवेग ] (सं. प्रहर्ष); जुओ पर हुंस प्रह अभिऊ. आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीसं. विमप्र. वेताप. स्थूलिफा. हम्मीप्र. व्हो, सवार, प्रभात ग्रह फाटी ऐतिका. व्हो फाटी, [ प्रभात थयुं] प्राणपीड प्रेमप. अंतरनी व्यथा प्रहवइ *प्राचीसं. [आधिपत्य मेळवे ] (सं. प्राणि उषाह. कादं (शा). गुर्जरा. नरका. प्रभवति) नेमिछं. प्राचीसं. विराप. पराणे, जोरथी, बळजबरीथी प्रहोणा दशस्कं (२). प्रेमाका. परोणा, , महेमान [सं. प्राघूर्णक] प्रोणाचार दशस्कं ( २ ). परोणागत माइजुओ प्रा प्राइहिं षडाबा. सामान्य रीते ( सं . प्रायेण ) प्राजुओ प्रा प्राकार हरिख्या. शृंगामं. गढ़, कोट (सं.) प्राक्रम चित्तसं. पराक्रम प्राग कामा (शा). प्रेमाका. मदमो. प्रयाग प्रागुण, प्राघुण मदमो. परोणी (सं. प्राघूर्णक) प्राघुणुक षडाबा. महेमान ( सं . प्राचूर्णक) प्राछीत मदमो. जेने कारणे प्रायश्चित्त कर 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पडे ते, पाप प्राणि कादं (शा). प्रेमाका पराजय प्राजे करी मदमो पराजय करी, पराजित करी, विसर्जित करी, नष्ट करी प्राण अंगवि. उषाह. ऐतिरा. कामा (त्रि). नलरा. लावल. बळ, जबराई (सं.) प्राणइ नेमिछं. पराणे, मांडमांड, आग्रह करीने प्राण- तियाग प्राचीसं. प्राणत्याग प्राणथी नरका. पराणे, बळपूर्वक, आग्रह करीने प्राणि उपबा. पराणे, बळपूर्वक प्राणिपत दशस्कं ( 9). आसनावासना, [आजीजी] (सं. प्रणिपत्ति) प्राणी अखाका. चतुचा. दशस्कं (१). दशस्कं (२). नलाख्या. प्रेमप. प्रेमाका. हरिख्या. प्राण, जीव, आत्मा प्राणीपत दशस्कं ( २ ). प्रणिपात, प्रणाम, [आजीजी, कालावाला ] [ सं . प्रणिपत्ति ] प्राणीयल अंबरा. प्राणिकुल, प्राणीओनो समूह प्राणे- प्राणे नरका. पराणे-पराणे, आग्रह करीकरीने प्रातुकाळ प्रेमाका. प्रातःकाळ, परोढ प्रातिक, प्रातीक दशस्कं ( १ ). दशस्कं (२). पातक, पाप Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३३९ प्रातुस्काल/पीछवइ पीडा] प्रातुस्काल मदमो. प्रातःकाल प्राहिं ऐतिका. प्रायः, [सामान्य रीते, बहुधा] प्रादोषिक आरारा. सांज- (सं.) पाहुण, प्राहुणउ उक्तिर. दशस्क(२). प्रापक आनंस्त. प्राप्त करावनारा [सं.] प्रेमाका. रूपच. विक्रच. षडाबा. परोणो, प्रापति कृष्णबा. [भाग्य [सं.प्राप्ति] महेमान (सं.प्राघूर्णक) प्रापत्ति चित्तसं. प्राप्ति प्रांजळ प्रेमाका. ऋजु, सरळ [सं.प्रांजल] प्रापत्य, प्राप्तय अखाका. चित्तसं. प्राप्ति प्रांण कामा(शा). मरजी विरुद्ध, पराणे प्रापिवा षडाबा. प्राप्त करवा (सं.प्राप) प्रिउ षडाबा. प्रिय प्राप्तय जुओ प्रापत्य प्रियमेलउ गुर्जरा. प्रियमिलन (सं.प्रियप्राभव अखाका. अखेगी. पराभव, [हानि, मेलक) प्रिया हम्मीप्र. परियां, वंशज [सं.पर्याय प्रामइ गुर्जरा. षडाबा. पामे (सं.प्राप्नोति) प्रियागत षष्टिप्र. वंशपरंपरागत [सं.पर्यायाप्रायछत आरारा. प्रायश्चित्त गत प्रायिहिं षडाबा. सामान्य रीते (सं.प्रायेण) प्रियाण प्रेमाका. प्रयाण प्राये अखाका. चित्तसं. प्रायः, खरेखर, प्रियाल ऋषिरा. रायणर्नु वृक्ष [सं.] साचे ज, निश्चितपणे, चोक्कस; प्रेमाका. प्री उषाह. वीसरा. प्रिय; प्रेमी प्रायः, घणुं करीने, [*खरेखर] प्रीअछि विमप्र. पडदो [सं.परिच्छद]; जुओ - प्रारथिउ आरारा. इच्छेखें (सं.प्रार्थित) परीअच प्रावृट कादं(शा). वर्षाऋतु (सं.प्रावृट्) प्रीअंगु ऋषिरा. घउंलाचं झाड, कांगनो प्राशन प्रेमाका. खावु ए [सं.] छोड (सं.प्रियंगु) प्राशुक जिनरा. पुत्र [*सं.प्राशक-खानार] प्रीउ नलाख्या. वीसरा. प्रिय, पति, प्रेमी प्राशे अखाका. नरका. खाय, आरोगे प्रीउ स्यउं ऋषिरा. प्रियतम साथे प्राश्यां नरका.आरोग्यां, खाधां [सं.प्राशित] प्रीक्षा प्राचीका. परीक्षा प्रासंति लावल. भक्षी जाय प्रीछ अखेगी. प्रेमाका. ओळख, जाण, ज्ञान प्रासुकेषणिउ षडाबा. अचित्त - जीवरहित प्रीछइ उपबा. चित्तसं. नरका. "नलाख्या. । होवाथी जैन मुनिओए लेवा लायक प्रेमाका. हरिख्या. जाणे, ओळखे, समजे ___ (खाद्य) (सं.प्रासुक+एषणीय) [सं.परीप्सति) प्राहइं षष्टिप्र. घणुं करीने, मोटे भागे (सं. प्रीछवइ अखाका. आनंस्त. ऋषिरा. प्रायः). कामा(त्रि). कामा(शा). नरका. नेमिछं. पाहणकु षडाबा. महेमान (सं.प्राघूर्णक) प्रेमाका. हरिख्या. ओळखावे, समजावे, प्राहार दशस्क(१). दशस्कं(२). प्रहार जणावे 2010_03 Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रीछवण / फटके प्रीछवण अखाका. ओळख, ज्ञान, समज प्रीणइ उक्तिर. तुष्ट करे, (सं. प्रीणयति) प्रीणी नेमिछं. प्रसन्न, [तुष्ट ] (सं. प्रीणित) प्रीतदान आरारा. राजी थईने आपेलुं दान सुगंध प्रीभुत नंदब. प्रभूत, पुष्कळ प्रीमळ दशस्कं ( 9). प्रेमाका. परिमल, प्रीमि गुर्जरा. प्रेमथी (सं. प्रेमन्) प्रीयमेलक ऋषिरा. प्रियने मेळवी आपनार प्रीयाण दशस्कं ( १ ). प्रयाण प्रीयंग आरारा (व). घउंलो (सं. प्रियंगु ) प्रयाणूं अभिऊ. प्रयाण प्रीयां आरारा. परियां, पेढी, वंश [सं. पर्याय ] प्रीसइ जिनरा. नलरा. नेमिछं, प्रेमाका. प्रोहण पंचवा. वहाण (सं. प्रवहणम्) प्रोहोणो नरका. प्रेमाका. परो णो, महे मान [सं. प्राघूर्णक] लावल. पीरसे (सं. परिविष्) प्रूढ कादं (धु). चित्तसं. नलाख्या. प्रौढ, मोटुं प्रौगड- अवस्था दशस्कं(१). बाळवय (सं. भव्य, विशाळ पौगंडावस्था) प्रौगंड प्रेमाका. बाळकनी किशोर अवस्था प्रौढ दशस्कं ( 9). जबर प्लीह उक्तिर बरोळ (सं. प्लीहा ) हो नरका. प्रभात प्रेत हरिख्या. मडदुं (सं.) प्रेतम प्राचीफा. प्रीतम ( सं . प्रेयतम) प्रेतस्वामी आरारा. यमदेव (सं.) प्रेमभाग कादं (धु). स्नेहकृत्य, [स्नेहनो हिस्सो, प्रदेश, पक्ष] [सं.] ३४० प्रेमल, प्रेमळ दशस्कं ( 9). नरका. नरप. नंदब. प्राचीका. मदमो. वेताप. सिंहा (शा). परिमल, सुगंध प्रेम-सुहातिउ, प्रेम- सुहांतीय वसंवि. वसंवि (ब्रा). प्रेमे शोभती (सं. प्रेम+ शोभमाना) प्रेरियउ आरारा. मोकल्यो [ सं . प्रेरित ] प्रेकाल मदमो. प्रलयकाळ प्रेह निसप्रेह अखेगी. स्पृहावाळो अने निस्पृह 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रोअइ उक्तिर. परोवे (सं. प्रवयति) [सं. प्रोत- ] प्रोखित शृंगामं. प्रोषितभर्तृका, जेनो पति प्रवासे गयेलो छे तेवी स्त्री प्रोजना * अखाका. [प्रयोजन, हेतु, उपयोग, प्रसंग ] प्रोजी प्रेमप. परोवी [सं. प्रोत- ] प्रोढाशन प्रेमाका. प्रौढ अशन, सारी रीते खावुं ते प्रोयुं प्रेमाका. वीसरा. परोव्युं (सं. प्रवयति ) प्रोल ऐतिका. दरवाजो (सं. प्रतोली) प्रोलि, प्रोळि अभिऊ. वीसरा दरवाजो (सं. प्रतोलि) फगर नरका. * नरप ( द ). पगर, ढगलो [सं. प्रकर] फगवुं अखाका. आडाअवळा थयुं, [सीधा न जवुं, आडुं फंटावुं ]; प्रेमाका. [आडा थ, वांका थवं, नियंत्रणमां न रहेवुं ], छकवूं फटक प्राचीका. प्रेमप. काच (सं. स्फटिक) फटके प्रेमाका. उश्केराय; फटक एवो अवाज करीने [*सं. स्फट् ] Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३४१ फटाएं/फलहुलि फटाणु दशस्क(१). दशस्क(२). प्रेमाका. फरस षडाबा. सिंहा(म). स्पर्श फाट्युं, पहोळु थयेनु, साव उघाडु फरसइ आनंस्त. उक्तिर. ऋषिरा. देवरा. फटाळ्या प्रेमाका. फाटेलां, तद्दन उघाडां नलरा. षडाबा. स्पर्श फटिक ऋषिरा. स्फटिक रत्न; [काच] फरसण प्राचीफा. स्पर्श, [स्पर्शq ते] (सं. फडसूआं अखेगी. फाडियां [सं.स्फट्] स्पर्शन) फडीया ललिरा. कणिया, [अनाजना वेपारी] फरसणा आरारा(व). फालसां (सं. फण गुर्जरा. फेण (सं.फणा) . परुषक) ? फणगट (फणगट दीइ) *विमप्र. [फूदरडी फरसन षडाबा. स्पर्शेन्द्रिय (सं.स्पर्शन) फरे, आमतेम घूमे, वांकुं चाले]; जुओ फरसनरूप * षडाबा. [स्पर्शेन्द्रियवाळु] (सं. फरंगट स्पर्शन+रूप) फणगर नलरा. लावल. साप, फणिधर (सं. फरसुरामु विराप. परशुराम फणाकर) फरसो वेताप. [पुरुष], पुरुषाकार ढाळो फणपति ऋषिरा. नाग [सं.] फरहर * ऐतिका. [फरफर, फरकवानो फणमंडप गुर्जरा. विराप. फेणनो मंडप - अवाज] (सं.फणामंडप) फरहर- वीसरा. फरकरवू [सं.स्फुर् परथी] फण-शरि हरिवि. फणाने माथे, फणा उपर फरंगट (फरंगट दिइ) लावल. फूदरडी फणि वसंफा. वसंफा(ल). सर्प (सं.फणिन्) [फरे], [आमतेम घूमे, वांकुं चाले]; फणिमणि वसंवि. वसंवि(ब्रा). नागमणि जुओ फणगट। (सं.) फरिसइ उक्तिर. उपबा. स्पर्श फणी आरारा. सूतरफेणी (रा.) फरुकइ ऋषिरा. प्राचीसं.फरके (सं.स्फुरति) फणी ऋषिरा. साप [सं.] फळ प्रेमाका. फळं, अणीवाळो के धारवाळो फणीदु विराप. फेणवाळो साप (सं.फणीन्द्र) भाग, पार्नु [सं.फल] फर प्राचीसं. ढाल (सं.फल, फलक) दि.] फलदायन षष्टिप्र. फलदायक [सं.] फर मदमो. फरी फलहउ उक्तिर. फलक, पाटियुं (सं. फरक प्रेमाका. फडक, बीक [सं.स्फुर] फलिहकः) दि.फलिह] फरजा कामा(त्रि).सुख, [शांति [अ.फरज] फलहलि, फलहूलि आरारा. *गुर्जरा. प्रद्युचु. फरव अंगवि. कोईक खाद्यपदार्थ ?, [उत्तम] [लीलांसूकां] फळमेवादि [अ.फरीद] *फलहुरि प्रेमाका. भोजनमां पीरसातां फळ फरलउ उक्तिर. काणो (द.फरल) [मेवा]; जुओ फलहुलि फरशुराम उपबा. परशुराम फलहुलि, फलहूलि आरारा. नेमिछं. लावल. 2010_03 मा० Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलावई छई / फाली ३४२ भोजनमां पीरसातां [लीलांसूकां] फळमेवा, जुओ फलहलि फलावई छई उपबा. * दलील विस्तारे छे, [ तात्पर्य प्रगट करे छे] [* सं. फलाय् ] फलित वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). फलवती, विकसित, विकास पामेली (सं.) फली उक्तिर लावल. शिंग (* सं. फल्यः ) फलीआ विक्ररा. फडिया, [कणिया, अनाजना वेपारी] फहरेरे चित्तसं. फरफरे फंद अखाका. प्रेमाका. जाळ, बंधन; प्रेमाका. ढोंग, [ कपट, छळ ] ( फा . ) फंदइ उक्तिर. फंदामां पडे, फसाय फंदी ० नरका - २. फसायेली फंदीउ आनंस्त. फसायेलो, [बंधनग्रस्त ] फंदो आरारा. जाळ; जुओ फांडो * फाक नरप ( द ). [ फोक], व्यर्थ फाग चारफा. नलरा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). फागु, वसंतमां गावानुं गीत, काव्यरचनानो एक प्रकार (सं. फल्गु ) फागु तेरका. प्राचीसं. ए नामनो काव्यप्रकार फागुण उक्तिर. तेरका. वीसरा. फागणमास (सं. फाल्गुन) फाट उक्तिर. फाडो, चीरो (सं. स्फाटितम् ) फाटी प्रेमाका. चोंकी ऊठी, हेबताई गई फाटुं चित्तसं. छकेलु, उद्धत, असभ्य [सं. स्फाटित] फाड गुर्जरा. फाळियुं; जुओ फाली फाड- (संथउ फाड - ) तेरका. प्राचीफा. 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश थाना बे भाग करवा, सेंथो पाडवो (सं. स्फाट) फाडिवा उक्तिर. फाडवा फाडी उक्तिर. विस्तरेला शिंगडावाळी फाडो * कामा (त्रि). [फाडियां, भाग ] फार अंबरा. आरारा. ऋषिरा. तेरका. नेमिछं. प्राचीफा, लावल.. विमप्र. घणुं, खूब, पुष्कळ, विशाळ, [ मोटुं] (सं. स्फार); ओ फाल फारक अखाका. फारेग, मुक्त फारक गुर्जरा. स्फारक शस्त्र धरावनार सैनिक (* सं. स्फारक) [दे. फारक्क] फारकी उषाह. * पथ्थर फेंकवानुं यंत्र [ स्फारक अस्त्र फेंकवा माटेनी जग्या ] फारक्क प्राचीसं. फलकधारी, ढालधारी, [ शस्त्रधारी सैनिक ] [ दे.] फाल, फाळ आरारा. उक्तिर. प्रेमाका. लावल. छलांग, फलंग, कूदको (सं. स्फाल) फाल * अखाका. [* शुभ ] फाल [फार] " गुर्जरा. [पुष्कळ ] फालडी गुर्जरा. साडी, [ओढणी] [द. फालिय] फालरउ परिधान उक्तिर. ओढणुं ओढवुं ते फाला नेनिछं. फाळ, [छलांग ] फालि शृंगामं. साडी (*सं. फालिक) दि. फालिअ ] फाली, फाळी, फालीय गुर्जरा. *चतुचा. चारफा. नरका. नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. प्रेमाका. मोसाच. वसंफा. वसंवि. Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३४३ . फालु/फुलिंग स्थूलिफा. हरिवि. उपरनुं वस्त्र, ओढणी, फिराद हम्मीप्र. फरियाद साडी (द.फालिय); नलरा. [सादुं वस्त्र, फिरिओ कादं(शा). फरतो आवेलो सामान्य ओढणुं] फिरिका प्राचीसं. ?, [शस्त्रविशेष] फोलु प्रेमाका. लोंकडी, एक वनपशु, [एक फिरिवा उक्तिर. फरवा जातनुं शियाळ] फिरी, फिरीनइं आनंस्त. आरारा. कादं(शा). फावइ चारफा. नलरा. लाभ मेळवे, [प्राप्त फरी, फरीने; फरी वार करे, सिद्ध करे] [.फव्व] फिरीफिरी ऋषिरा. फरीफरी, वारंवार फासू प्राचीफा. *विमप्र. षडाबा. निर्जीव, फीटणकाळ दशस्कं(१). प्रेमाका. विनाश ___ अचित्त पदार्थ (सं.प्रासुक) [जै.] काळ [सं.स्फिट+काल] फासूय ऐतिका. अचित्त, जीवरहित (सं. फीणली, फीणी, फीनी आरारा. सूतरफेणी प्रासुक) दि.फेणक] (रा.); जुओ फीण्यां। फांकड़ा अखाछ. [फांकडी रीते, सरसरीते] फीणोटा कादं(शा). फीणनां गूंचळां - फांडउ गुर्जरा. प्राचीसं. विमप्र. पाश, बंधन, गोटा, [फीणनो समूह (सं.फेनावत) फांदो, सकंजो [फा.फंद]; जुओ फंदो फीण्यां *प्रेमाका. एक मीठाई] दि. फांदि नेमिछं. फांद फीणिया]; जुओ फीणली फांसी * नरका. [फांस, खटको] फीतउ *प्राचीफा. [समृद्ध, भरपूर, प्राचुर्यफांसु अखाका. नरका. प्रेमाका. फोगट, युक्त (सं.स्फीत) ___ व्यर्थ, मिथ्या [प्रा.फंस-] फीनी जुओ फीणली. फिटि आरारा. फिटकार फुईहाई उक्तिर. फोईयाई, फोईयात दि.पुप्फी फिटिकडी षडाबा. फटकडी परथी] फिरइ आनंस्त. उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. फुट- तेरका. फूटवू, फाटq (सं.स्फुट्) तेरका. देवरा. प्राचीसं. लावल. षडाबा. फुड गुर्जरा. स्फुट, स्पष्ट, [विस्तृत] फरे (सं.*स्फिर्) [*स्फुर्, स्फर]; वीसरा. फुडवि ऐतिका. स्पष्ट, व्यक्त, विशद [रीते] फरे, घूमे, [भटके, चाले] फुणंग अखेगी. फेणवाळो साप फिरक उक्तिर.फिरकी (*सं.स्फुरित चक्रिका) फुणिंदु गुर्जरा. मोटो सर्प (सं.फणीन्द्र) फिरकडी जिनरा. लाकडानी चकरी, एक फुरइ उक्तिर. तेरका. स्फुरे रमकडं फुरकइ गुर्जरा. लावल. वसंवि. वसंवि(ब्रा). फिरणु षडाबा. फरवू ते, भ्रमण फरके (सं.स्फुर) फिरति गुर्जरा. फेरो, चक्कर फुरसराम, फुरिसराम गुर्जरा. परशुराम फिरती उषाह. फरती, [आजुबाजु]- फुलिंग उक्तिर. स्फुल्लिंग, तणखो ____ 2010_03 Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुल्ल/फेली ३४४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश फुल्ल तेरका. फूल फेकारइ ऋषिरा. (शियाळ) अवाज करे फुल्ली तेरका. लावल. फूलेली, खीलेली (सं. [सं.फेत्कार] फुल्लित) फेकारी विक्ररा. शियाळ फूटउ उक्तिर. परिहसित, परिहास पामेल फेट “गुर्जस. [ मेळाप (माटे)] [रा.] (सं.स्फुटित); लावल. [स्पष्ट, चोख्खो] फेटि (फेटि पाडिउ) प्रद्युचु. ?, [*मेळाप (सं.स्फुट) थयो, “मळ्यो, "लागमां आव्यो] फूटरउ उक्तिर. फूटडो, सुंदर (सं.स्फुटतरः) फेडइ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा.जिनरा. मोसाच. . फूट; उषाह. ?, [*चोख्खेचोख] विराप. वीसरा. दूर करे, नष्ट करे, छोडे फूढ *प्रधुचु. [*फूवड, *गंदो, "अभद्र (सं.स्फेटयति) फूरकिय गुर्जरा. फरकी; जुओ फुरकीय फेडइ (फेडि) *विमप्र. [हानि, नाश] फूल अखाछ. फुलाश, पतराजी फेण दशस्क(१). फीण (सं.फेन) फूल चित्तसं. तणखा (अग्निना) [सं.फुल्ल] फेणा आरारा. सूतरफेणी (रा.) दि.फेणक] फूलपगर ऋषिरा. फूलोनो जथ्यो, ढगलो; फेणाधर-राय दशस्क(१). फणाधरोनो जुओ पगर राजा, नागराज फूलबडू अंबरा. फूल चूंटनार 'बटुक; जुओ फेरि षडाबा. छाशमिश्रित दूध बूडउ _ *फेफार (फेकार) प्रद्युचु. शियाळ फूलविसेखि आरारा. फूलविशेषवाळी, फूल- फेर अखाका. चक्कर, भ्रान्ति, [*फेरा]; भरी विमप्र. भिन्नभाव, [फरक, भेदभाव]; फूली नरका. सेंथानुं घरेणुं; नरप. नरप(द). गुर्जरा. चक्कर, फेरा नाक, घरेणुं, फूलना आकारनी चूनी फेरइ नरका. नरका-२. वीसरा. षडाबा. फूलेलं (फूलेल) *नरका-२. [सुगंधीदार हरिख्या. फेरवे दि.] __ तेल] [सं.फुल्लतैल्य] फेरि गुर्जरा. विराप. फर्यु फूसण षडाबा. स्पर्श थवो ते (सं.स्पृश् फेरी *गुर्जरा. "विराप. फेरवी; आनंस्त. परथी) ___ फेरवी, [चलावी] फूंकी जाय जुओ फूफी ___फेरु ऋषिरा. शृंगामं. शियाळ (सं.फेरव) फूडउ वीसरा. गुच्छो, छोगुं [हिं.फूंद] फेरे चित्तसं. फेरफारथी, [जुदी रीते] फूफवे प्रेमाका. फूफाडा मारे फेल अखाका. *खोटो देखाव, [खटपट, *फूफी (जाय) [फूकी जाय] "प्रेमाका. खोटी महेनत]; नरका. नरप(द). *ढोंग, [शाता पामे] [सं.फूत्करोति] चेनचाळा, [तोफानमस्ती] फेकार जुओ फेफार फेली नरका. फेलाई 2010_03 Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश फेडिय / बगाई फेसंडिय प्राचीसं. फेनपिंड, [ फीणनो बइसइ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. विराप. वीसरा. षडाबा. बेसे ( सं . उपविशति ) बइसण ललिरा. बेसवा माटे, [बेठक, आसन ] ३४५ फिसोटो]. फेसांणु चतुचा. छिन्नभिन्न थयुं, [रोळायुं] फोक अखाछ. कामा (त्रि). विमप्र. फोगट [द. फुक्का ]; जुओ फाक फोकई सम्यचो. फोगट - फोडउ उक्तिर. उपबा. फोल्लो (सं. स्फोटकः) फोडणु षडावा. फोडवुं ते, तोडवुं ते (सं. स्फोटन) फोडी उक्तिर. फोल्ली (सं. स्फोटिका ) फोफल, फोफळ आरारा (व). उक्तिर. * ऐतिका. कामा (शा). नरका. प्रेमाका. मदमो. लावल. विमप्र. सोपारी (सं. पूगफल) फोफलपान जिनरा. लावल. पानसोपारी फोफलीआ विक्ररा. सोपारीना वेपारी फोन अखाकां. समज, सान [ अ. फहम ] फोरण प्राचीसं. ?, [निरंतर प्रवर्तन ] [ प्रा.; सं.स्फोरण] इ विक्ररा. बे [सं.] बइटूट्ठउ, बइठउ उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. वसंवि (ब्रा). वीसरा. बेठो (सं. उपविष्ट) बइतालीस उपबा. गुर्जरा. षडाबा. बेताळीस (सं.द्विचत्वारिंशत्) बइरी उक्तिर. कैरी 2010_03 बइस विमप्र. आसन; लावल. वीसरा. बेसणुं, राजगादी बइसणडां आरारा. बेसणां, बेसवुं ते; आसन बइसार- वीसरा. बेसाडवुं बउल तेरका. वसंफा. वसंवि. बकुलवृक्ष, जुओ वउल बउलसिरी वसंवि. बोरसली (सं. बकुलश्री); जुओ वउलसिरि बकवा मदमो. बकवाद बकसि, बकसु आरारा. माफ करो (फा. बक्ष) फोरवता हुंता आनंस्त. स्फुरावतां [प्रगट बकणि आरारा (व). बकानलीमडो, एक करतां] वृक्ष (सं. वृक्का) फोसरी पंचवा. ढीली, नबळी बकी दशस्कं ( १ ). पूतना बके कादं (धु). चित्तसं. कहे, बोले; लावल. स्पर्धा करे, [शरत - होड करे ] बकोर उक्तिर. [*शोर, "हांसी] (सं. बर्करिका) [दे. बक्कर ] बगतर, बगरी हम्मीप्र. बख्तर, [बख्तरिया ] बगस्यउ आरारा. बक्ष्यो, आप्यो (फा. बक्ष) बगाई उक्तिर. कादं (धु). कादं (शा).. काण नलरा. एक देश ज्यां नलराजाए विजय कर्यो हतो बकारु * अंबरा. [बकवाद, बकवाद करनार ] [द. बुक्कार, बक्कर ] Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बगाईकरणु/ बरघू ____ ३४६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दशस्कं(१). प्रेमाका. बगासुं बदरी नरका. प्रेमाका. बोर, बोरडी [सं.] बगाईकरणु षडाबा. बगासुं खावं ते बदिरा विमप्र. एक प्रकारचें नाणुं; जुओ बचको कामा(त्रि). कामा(शा). पोटलुं बदरा बजडाव्या ऐतिका. वगडाव्या बदें वेताप. गांठे बजरइ उक्तिर. कहे दि.वज्जर-] बद्ध प्रेमाका. बधी, [आखी बजाज प्रेमाका. कापडियो [अ.बजाज] बनया *प्रेमाका. [सज्जित] [हिं.] [सं.]; बटींग षष्टिप्र. मूर्ख जुओ वनियां बड आरु ऐतिका. *वडनुं फळ . बनी नरका. सज्ज थई, [शोभित, शृंगारयुक्त] बडइल षष्टिप्र. गाडानी धरीनी अंदरनो बन्नउला ऐतिका. शुभ प्रसंगे कराववामां खीलो; जुओ बडहिल आवतुं भोजन; जुओ वरनोला बडवखती ऐतिरा. भाग्यशाळी [हिं.बडा बन्यो प्राचीका. बन्ने +फा.बख्त]; जुओ वडवखती बपूकार विक्ररा. बापोकार, [उत्साहपूर्ण बडाला जिनरा. महान, [मोटा] अवाज] बहु जुओ फूलबडु बप्प प्राचीसं. बाप द.] बडुया गुर्जरा. बडवा, ब्राह्मण छोकरा बप्पीहउ गुर्जरा. चातक पक्षी, बपैयो (दे. (सं.बटुक) बप्पीह); हम्मीप्र. घोडानी एक जात बहुं जिनरा. विमप्र. वडुं (खाद्य पदार्थ) बप्पीहडा शृंगामं. बपैया [सं.वटक] बपुडउ, बापुडउ प्राचीसं. बापडो दि.बप्प-] बडूउ नलरा. बडवो, ब्राह्मण (सं.बटुक) बब्बर आरारा. बाबर, [मोगल शहेनशाह बणाबंध *अभिऊ. [सुगंधी चूर्ण, एनो बयकारु जुओ छयकारु अंगराग] [दे.वण्णय+बंध] बयठउ गुर्जरा. बेठो; जुओ बइठ्ठउ बणाया आरारा. बनाव्या [सं.वनित] बयसियइ, बयसीयइ गुर्जरा. विराप. बेसाय बणावि देवरा. बनावीने, [सजीने] बयालीस उक्तिर. बेतालीस (सं.द्विचत्वा बत्रीशी *प्रेमाका. [बत्रीस जातनी स्वादिष्ठ रिंशत्) वानगीनो समूह] [सं.द्वात्रिंशिका] बरक- नलरा. गर्जना करवी (दे.बुक्कर; म. बथोडां अखाका. बाथ, आलिंगन, [बथ्थं- बरकणे) बथ्था, धिंगाणां] [सं. द्वाहस्त-] बरकां प्रेमाका. बूमो । बदगो मदमो. बदबो बरगुं आरारा. हम्मीप्र. बणगुं, रणशिंगुं, बदरा, बदिरा " हम्मीप्र. [एक प्रकारचं जुओ वरगां सोनानाj]; जुओ बदिरा बरघू वीसरा. बणगुं, रणशिंगुं 2010_03 Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३४७ बरज/बहन । बरज हम्मीप्र. बुरज, [किल्ला उपर तोप बलबंधु *गुर्जरा. [कृष्ण] [सं.बलिबंधन वगेरे राखवा माटेनुं चणतर] [अ.बुर्ज] बल-बाकल, बल-बाकुल वेताप. बलि ने बरटी नलरा. एक हलकुं धान्य, बंटी (दे. बाकळां, [बलिरूपे बाकळां, बाकळांनो बरट्ट) ___ बलि] बरड * मदमो. [*डांड माणस] बलबांकी प्रेमाका. बळबंका, बहादुर अने बरद चतुचा. टेक; मदमो. बिरुद, [टक; साहसिक [कृष्ण] [सं.बल+वक्र] नाम, ख्याति] [सं.विरुद] बलवंड जुओ बलबंड बरदार मदमो. [भार] ऊंचकनार?, [समर्थ] बलराउ कस्तुवा. "बळवान राजा, [बलि (फा.) राजा] बरले अखाछ. बबडे बलहार रह्या अखाका. वारी गया, बरवइ, बरखी * विमप्र. लावल. अभिमानथी न्योछावर करी गया] [गु.बरो] बलहि उक्तिर. बळी, वियाया पछीना तरतना बरास अखाका. ऐतिका. कपूर[नी एक दूधनीबनावट (*सं.बालदधि,बालहिता) जात बलाणा विमप्र. मंडपनो एक प्रकार; जुओ बरासकपूर चित्तसं. एक प्रकार, कपूर चलाणय बरीस ऐतिका. वर्ष; जुओ वरीस बला लेउँ प्रेमप. दुःखडां लउं बरेलीया वेताप. फीण, पाणीना परपोटा] बलाहक *शृंगामं. [एक प्रकारनो बगलो] [हिं.बलूला; दे.बुलंबुला बलि हम्मीप्र. बिलमां, दरमां बल मदमो. बलिराजा बलि किन-, बलि कीज- प्राचीसं. वारी बलगाइ जिनरा. वळगाडीने [सं.विलग] जq *बलचंड (बलबंड) विराप. बळवान, बलि छडि नेमिछं. बळवान स्त्रीए छडेला [पराक्रमी]; जुओ बलबंड बलि जाय नरका. वारी जाय बल जाय नरका. वारी जाय बलियां जिनरा. देवरा. बलैया, चूडी (सं. बल छोड्यउ आरारा.?, [*कमजोर बनेलो वलय) बलद्द प्राचीसं. बळद (सं.बलिवर्द) बलिवा उक्तिर. बळवा (सं.ज्वल्) बलबलीउ उक्तिर. बडबडियो, वधु पडतुं बसवसइ उक्तिर. [जमीन] खूब पाणी स्रवे, बोलनार दि.बडबड]; जुओ वलवलइ पाणीथी लथपथ होय बलबंड, बलवंड कष्णच. गर्जरा. *प्राचीसं. बहकइ प्राचीसं. वसंवि. बहेके, प्रसरी रहे हम्मीप्र. बळवान, [पराक्रमी, प्रतापी] बहत्तरि गुर्जरा. बोतेर (सं.द्विसप्तति) [रा.]; जुओ बलचंड बहन प्रबोप्र. बहेन (सं.भगिनी) ___ 2010_03 Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहरखा / बंदिखाणो बहरखा ऐतिका. बाहुनुं घरेणुं, [बेरखां] [सं. बाहुरक्षकाः ] बहारवटे * नरका. [बहार चाल्या जवुं, प्रदेश बहुयर-भंग, छोड़वो] ३४८ बहिकइ नेमिछं. वसंफा. वसंवि (ब्रा). बहेके, विस्तरे (अप. बहिक्कइ) बहिरखु नलरा. नेमिछं. प्राचीफा. लावल. कांडानुं एक घरेणुं, [बाजुबंध ] (सं. बाहुरक्ष) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश *वसंवि (ब्रा). विधविध प्रकारे बहुयर वसंफा. घणीबधी ( सं . बहुतर) 2010_03 बहुयर-भंगि वसंवि. *वसंवि (ब्रा). विधविध पेरे (सं. बहुतर+ भंगि) बहुरा षडाबा. मोटुं झाडु, मोटी सावरणी (* सं. व्यवहारिन्); जुओ बुहारइ बहिsi आरारा (व). बहेडां (सं. बिभीतक ) बहिणि, बहिणी उक्तिर. प्राचीफा. भगिनी, बहेन बहिन उक्तिर. गुर्जरा. वसंवि (ब्रा). वीसरा. बहुलपणि नेमिछं. अधिकताथी, घणी बहुलु आरारा. नेमिछं. बहोकुं, घणुं बहिनडी, बहिनडीय गुर्जरा. लावल. वीसरा. बहुवल्लभ चतुचा. बहु स्त्रीने जे प्रिय छे ते बहेन (सं. भगिनी) [पुरुष] [सं.] बहिनर अंबरा. नलरा. प्राचीफा. लावल. बहूत विमप्र. बहु [ हिं . ] षडाबा. बहेन (सं. भगिनी) विमप्र. बहेन ( सं . भगिनी) बहिनी वीसरा. बहेन ( सं . भगिनी) बहूंतेर देवरा. बोंतेर [सं. द्विसप्ततिः ] बहेनड, बहेनर दशस्कं (२). प्रेमाका. बहेडी [सं. भगिनी] बहिरउ उक्तिर. बहेरो (सं. बधिरः ) बहिरखादिक उपंबा. बहेरखां वगेरे (सं. बंग उक्तिर. बंगाळ देश (सं. बंगाः) बंग हम्मीप्र. बांग, नमाजनो समय सूचववा मुल्ला करेलो पोकार बाहु + रक्षक + आदिक) बहुरखउ उक्तिर. बहेरखो, बाजुबंध (सं. बाहुरक्षकः) बंगला कामा (त्रि ). [ सौथी उपरना माळनी हवादार ] नानी ओरडीओ बहुअर जिनरा वहुवर [ सं . वधूवर ] * बहुकइ विमप्र. बहेके बहु ढंग प्रेमाका. घणा प्रकारे बहुत्तरि आरारा. नेमिछं, षडाबा. बोंतेर (सं. *बंदई (बंदी) ऋषिरा. भाटचारण [सं. द्वासप्ततिः) बन्दिन् ] बंद आनंस्त. *बंधन, [*मद - रागवशता] बंद प्राचीका. टीपुं (सं.बिन्दु) बंद हम्मीप्र. बंदी, केदी बहुमानता आनंस्त. बहुमान होवापणुं बंदणी प्रेमाका. प्रशस्ति गानारी स्त्रीओ [आदर होवाप] [सं. बंदिन् परथी] बहुभंग, बहुभंगि वसंफा (ल). वसंवि. बंदिखाणो प्राचीका. केदखानुं (सं. बंदि Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश + फा. खाना) बंदिण वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). विक्रच. बंटीजन, भाटचारण (सं.बंदिन्) ३४९ बंदी जुओ बंदई बंदीजन आरारा. कामा (त्रि). स्तुतिगान बन्यो प्रेमाका. बने करनारा (सं. बंदिजन) बंदीजन आरारा. केदीओ (सं./ फा. बंदी + सं . जन) बंदीयण गुर्जरा. प्रशस्ति गानार भाटचारण (सं. बन्दिजन ) बंदोर षष्टिप्र. बंदीवान, केदी ( सं . बन्दी + कार ?) बंध आरारा. संबंधनी गांठ, [मेळ ]; कादं (शा). तेरका. बांधणी, रचनाप्रकार; * कामा (त्रि). * कामा (शा). [बाध, अंतराय ] बंध तेरका बंधु, [भाई] बंध- वीसरा. बांध (सं. बंधू) बंधकर कादं (शा). गर्भने बांधना ( उपाय ) बंदि / बाउल बंधुर ऋषिरा. गुर्जरा. सुंदर (सं.) बंधूक शृंगामं. बपौरियानो छोड़ (सं.) बंधेगरी प्रेमाका. बंधननी स्थिति, [बंदीवानी स्थिति ] बंधाण ऋषिरा. चित्तसं. बंधन, बंधावुं ते, रचना, ग्रथन, [जोडाण, संबंध ] बंधाई * आनंस्त. [बंध, बंधावं ते, जोडा, संबंध- तेने] बंधालग प्राचीफा. एक कीमती वस्त्र बंधी प्रेमाका. स्त्रीओनं कपाळ पर परवानुं एक आभूषण 2010_03 बंबारव अभिऊ. बूमना अवाज, बूमबराडा, [कोलाहल] [दे. बुंबा + सं . रव] बंबाल * गुर्जरा. हम्मीप्र. प्रचंड, विशाळ [ रा ] (देवमाल ) बंबालिय, बंबाली तेरका षडाबा, व्याप्त (द.वमाल परथी ) बंभ नलरा. प्राचीका. प्रेमांका. विक्रच. विक्ररा. ब्राह्मण ( सं . ब्रह्म) बंभ ऐतिका. शृंगामं. ब्रह्मा बंभण आरारा. गुर्जरा. लावल. विराप. वीसरा. ब्राह्मण बंध जुओ बांधण बंभंड गुर्जरा. ब्रह्मांड बंधव गुर्जरा. तेरका. देवरा. लावल. बांधव, बंभी लावल. ब्राह्मी, ऋषभदेवनी ए नामनी भाई गुर्जरा. स्वजन पुत्री बंध साधे चित्तसं. नियमन करे. बाउची उक्तिर. बावची, तकमरियांनो छोड (सं. बाकुची) बाउल प्राचीफा. प्राचीसं. रमणी [दे. बाउलिय]; जुओ वाउलि बंभणी गुर्जरा. ब्राह्मणी बंभसूया शृंगामं ब्रह्मानी पुत्री सरस्वती (सं. ब्रह्मसूता) बाउल, बाउलि आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. कादं (शा). नलरा. बावळनुं झाड (दि. बब्बूल) बाउलउ ( वाउलउ ) उक्तिर. वातोडियो Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाउलीआ/बाढवा ३५० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.वार्तालयः); [*वातरोगी, “पागल] बाछडं देवरा. वाछरडु (सं.वत्सकक) [सं.वातूल बाज अखाछ. बाह्य करणी; दशस्कं(२). बाउलीआ नलरा. बावळ, बावळी (द. प्रेमाका. बाह्य, बहार, मर्यादानी बहार, बब्बुल) खुल्लेखुल्ली (सं.बाह्य) बाओलियु नलाख्या. बावळनुं झाड दि. बाज प्रेमाका. (जमवानां) पतराळां बब्बूल] बाजवट उपबा. बाजोठ; जुओ बाजुट बाकरउ उक्तिर. बकरो (सं.बर्कर) दि. बाजी प्राचीफा. रमत, खेल [फा.] बक्करय] बाजीगर महोर जुओ महोर बाकरि, बाकरी चंद्रवा. मदमो. ममत पर बाजूट कादं(शा). बाजोठ (सं. पाद्यपृष्ठ) चडी सामे थएँ, ममतभर्यु वेर बाजुबंध, बाजूबंध अभिऊ. नरका. प्रेमाका. बाकरी (बाकरी वाई) अंगवि. कृष्णबा. बावडामां पहेरवानुं आभूषण [फा. होड होडे चड्या], [चडसे चड्या बाझबंद] बाकरी बांधवी प्रेमाका. चडसे भरावू, [वर बाजूबंधन ऐतिका. अलंकारविशेष, [बाजुबांधकुं] ___ बंध, बावडा- आभूषण] बाकरी वाई जुओ बाकरी, वाई बाकरी बाझ प्रेमप. संबंध, मेळ बाकळा प्रेमाका. बाफेलां कठोळ, आसुरी बाझड कादं(ध). नरका. मन फावे. मेिळ अथवा मेला देव-देवीओने अपाता हुत- जामे]; नरका. वळगे द्रव्य बाझ्य प्रेमाका. मर्यादा बहारनु, अणघटतुं बाकुल षडाबा. बाफेलां कठोळ __(सं.बाध्य) बाकुला ऐतिका. बाकळा, [आखां बाफेलां बाटडी ऐतिका. वाट, राह, प्रतीक्षा [सं. कठोळ] . वत्मा] बाखडी दशस्क(२). प्रेमाका. पारेठ, वाछरडुं 'बाठ [बांठ] नंदब.?, ठगाईभयु, जुठं] मोटुं थई ओछु धावतुं होवाथी घट दूध दि.वंठ] आपती गाय (सं.बष्कयिणी) *बाडिमा [बाढिमा] चारफा. वृद्धि, बाग रूस्तस. वाग, लगाम [सं.वल्गा] समृद्धि] [सं.वृद्धिमन्] *बागड विमप्र. तोछडु, [असभ्य]; जुओ बाडुआं, बाडुवां, बाडूआ कृष्णबा. बांगड दशस्कं(१). प्रेमाका. भलांभोळां बाचका अखाका. पोटला (बाळक) बाचडां कादं(शा). नानां बच्चां (सं.अपत्य- बाढवा, बाढुआं दशस्कं(१). प्राचीका. प्रेमप. कानि) [भलाभोळां, निर्दोष] बाळक (*सं. 2010_03 Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बटुक) बाढिमा जुओ बाडिमा बाहुआं जुओ बाढवा बाण अखाका. वाजिंत्र वगाडवानो गज बाणभेद दशस्कं (१). बाण वागवुं, बाण भेदा, [दुःख थ] ३५१ बापीया ऐतिरा. बपैया (पक्षी) बापीहउ नलरा. बपयो (द. बप्पीह) बाजुओ बys बापूकारया जिनरा. पडकार थतां बापैयो नरका. बपैयो पक्षी बाफ (श्रीबाफ ) * विमप्र. [ऊंची जातनुं बाणवई जुओ वाणव मलमल ] बाती प्रेमाका. बत्ती, दीप, [वाटवाळो बाबत बाबत्य मदमो. प्रस्तुत, [जातदीवो] (सं. वर्तिका) जातनुं, वीगते] [फा.] बावर गुर्जरा. शृंगामं. स्थूल, [आंखे देखाय बाबत - बाबतना चंद्रवा. जुदा-जुदा विषयना तेवा जीव] बाबर गुर्जरा. वाग्भबा. बर्बर, जंगली जाति बाबरु वाग्भबा. बाबरो, बर्बरक नामे राक्षस बाबहियउ वीसरा. बपैयो, चातक पक्षी बाबीहउ उक्तिर. ऐतिका. बपैयो, (दे. बप्पीह) बार आरारा. उक्तिर. कामा (त्रि). गुर्जरा. जिनरा. वीसरा. षडाबा. बारणुं (सं. द्वार) बादरनिगोद आनंस्त. साधारण वनस्पतिकाय नामनी जीवराशि [जै. ]; जुओ निगोद बाध प्रेमाका दोष; दशस्कं ( 9). प्रेमाका. बाधित, दोषित बाघ गुर्जरा. षडाबा. बांध्यं, बंधायेलुं (सं. बद्ध) बाध कादं (शा). बाधा करे, अडचण करे, [ उपद्रव करे ] (सं. बाध्यते) • बाधी चित्तसं. नरका. आखी, अखंड, * बधी बाघुर चंद्रवा . रूस्तस. सिंहा (शा). बहादुर बांधुं अखाका. अखाछ. चंद्रवा नरका. प्रेमाका. मदमो. बधुं, [आखुं, समग्र] बाधे नरका. बधे, बधामां, [आखामां] बाध्यो अखाका. बाइयो, वळग्यो (सं. बद्ध) बानु अखाछ. वचन, बांध बापी अडउ, बापीडु, बापीयडु ऐतिका. नेमिछं, शृंगामं बपैयो, [चातक] [द. बप्पीह ] 2010_03 बाढिमा / बारवई बार देवरा. नरप ( द ). बहार (सं. बहिर् ) बार जिनरा वार, [वखत, आवृत्ति ] बारकस कस्तुवा. मालवाहक जहाज [फा. बार-कश] बार बारे वाट प्रेमाका. बधी दिशामां, छिन्न-भिन्न, [अस्तव्यस्त थईने] [ सं . द्वादश+वल ] हईं, बारगहै हम्मीप्र. एक प्रकारनो तंबु, [जाहेर मुलाकात माटेनी जगा, कचेरी, दरबार] [फा. बारगाह ] बारगरी हम्मी. [पगार पर काम करता अने मालिक पाथी घोडा वगेरे मेळवता] घोडसवार सैनिक [फा. बारगीर ] बारवई प्राचीसं. द्वारका (सं. द्वारावती) Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारवट/बाहर . ३५२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बारवट उक्तिर. बारणा- कमाड के पडदो बाल्हेसर ऐतिका. वालेसर, प्यारा [सं. (सं.द्वारपट्टः) वल्लभ+ईश्वर]; जुओ वाल्हेसर बारसि उक्तिर. बारश (सं.द्वादशी) बावन अखाछ. बावन मूळाक्षरनी शब्दलीला बारह गुर्जरा. तेरका. वीसरा. षडाबा. बार [सं.रापंचाशत्] (सं.द्वादश) बावनचंदन, बावनउ चंदन उक्तिर. प्राचीफा. बारह मास प्राचीसं.बारमासा काव्यप्रकार] लावल. विमप्र. एक प्रकारचें चंदन (क. बारां वीसरा. बार (सं.द्वादश) | बावन+सं.चंदन) बाळ अखाछ. बाळबुद्धि, अबूझ बावन बाहेरो अखाका. बावन अक्षरोनी बाल तेरका. विक्ररा. उषाह. बाला बनेली वाणीथी पर बाल उषाह. वाळ [हिं.] बावनवीर प्राचीफा. पराक्रमी; "चतुर; बालउ उक्तिर. सुगंधी वाळो, खस (सं.बालक [समर्थ] वालक) बावना चंदन, बावनां चंदन प्रेमाका. सुखड; बालचन्द्र चतुचा. नखनां अर्धचन्द्रकार चिह्न अखेगी. मदमो. ऊंची जात, चंदन बाळ पलं *नरका. [(तिरस्कारपूर्वक) दर बावना आरारा. एक जातनुं सुखड, [चंदन] कर, फेंकी दे]; जुओ परं बावन्नचंदन लावल. बावनाचंदन, एक · बालरंडि सिंहा(म). बालविधवा प्रकारचं चंदन [क.बावन+सं.चंदन बालही आरारा. बालकी बावन्ना सिरखंड स्थूलिफा. उत्तम प्रकारबाला * नेमिछं. [पशुबच्चां] चंदन [क.बावना+सं.श्रीखंड बालाणए ऐतिका. बालपणमा बावला आरारा. व्याकुळ, बहावरा बालापण प्राचीसं यौवन यिवान स्त्रीपणं] बाताल अक्तर. बासठ (स.द्विषाष्ट) (सं.बालात्वन) - बासत्था विमप्र. बास्ता नामर्नु [मुलायम बालिय, बालीय गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वणाटनुं सफेद] कापड [फा.बाफ्तह्] वसंवि(ब्रा). बाळा (सं.बालिका) बासथे प्रेमप. वासथी बाली आरारा. गुर्जरा. चतुचा. नरका. बाह अभिऊ. बांय; (लक्ष्यार्थ) चूडी; नलाख्या. प्रेमाका. लावल. बाला, मुग्धा, आरारा. गुजरा. देवरा. लावल. बाहु, तरुणी हाथ, बाक्डु बालीवेस आरारा. बाळवयवाळी (सं.बाल- बाह प्राचीसं. बाष्प, [आंस] वयस्); जुओ वेस बाह (बाहु) [वाह] *गुर्जरा. [घोडो] [सं. बाळे वेशे चंद्रवा. तरुण अवस्थाए, [नानी वाह] उंमरमां] बाहर जिनरा. सहाय, [वहार]; जुओ बूंब हा 2010_03 Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश न बाहिर, वाहर जूठी ]; जुओ बाठ बाहरि गुर्जरा. देवरा. नलाख्या. बहार (सं. बांदि षष्टिप्र. केदमां [फा. बंद ] बहिर् ) बांदी वीसरा. दासी बाहरी प्रेमाका. बहार बांध वाग्भबा. रचना करे, [योजे, वर्णवे ] बांधण [बंध]] उपबा. बंधन बाहाज्य चित्तसं. बाह्य बाहिर, बाहिरि आनंस्त. तेरका षडाबा. बांधणी बा. गूंथणी, [ रचना ] ; [बंधन, बहार (सं. बहिः) ३५३ बाहिरल्युं उक्तिर. बहारनुं [सं. बहिर् परथी] बाहिरि उक्तिर. उपबा. बहार (सं. बहिर् ) बाहिरंग आनंस्त. बहिरंग बाही वाग्भबा. बाधित, [रोकायेल, ग्रस्त, नियंत्रण पामेल ] बाहु जुओ बाह बाहुड - वीसरा. पाछा फरवुं (सं. *व्याघुटति) [रा.; सं. व्यावृत्त; दे. वाहुड ] बाहुंडली लावल. बांह्य, [ हाथ ] बाहेर अखाका. प्रेमाका. बहार बाहोडी नरका. बाहु, हाथ बाह्यरुं अखाका. *बहारनुं, परायापणुं, अळगापणुं] बांई नरप ( द ). [ बांय], हाथ * बांक ( फाडइ) [बांकउ फाटइ ] * नेमिछं. [वांको फाटे, आडो फाटे, ना पांडे] बांगड * नेमिछं. विमप्र. तोछडुं; लावल. वक्र, कटाक्षयुक्त, [तोछडुं]; जुओ बागड, वांगड बांझडी जिनरा. वांझणी [सं. वंध्या ] बांझणि जिनरा. वांझणी बांठ चंद्रवा. चतुर ?, [चतुराईनी, कपटनी] [. वंठ ]; मदमो. वरवी ?, [ ठगाईभरी, 2010_03 बाहर / बांहोडी नियम ] बांधी प्रेमाका. बद्ध थई, सिद्ध थई बांधीतुं वाग्भबा. बंधातुं, रोकातुं बांधी पवन प्रेमाका. प्राणायाम करी, [ श्वास संधी] बांधीव उक्तिर. बांधवो बांध्योरुध्यो अखाछ. आखो, समग्र, [ हस्तगत अने आत्मवश ] बांनणउं षडाबा. वंदवुं ते, वांदणुं (सं. वंदन) बांभ आरारा. उक्तिर. वीसरा. ब्राह्मण बांभणायतुं उक्तिर. ब्राह्मणने आपी दीधे लुं [सं. ब्राह्मणायत्त ] [बाह्यपणुं, बांभणी उक्तिर. ब्राह्मणी बांह अभिऊ. आरारा. उपबा. मदमो. लावल. वीसरा. बाहु, बांह्य, हाथ बांहड लावल. सहाय बांहडियाई, बांहडीआईं वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. बाहुओ उपर बांहबलि ऐतिरा. बाहुना बळथी बांह हावी नरका. बांय पकड़वी, मदद करवी बांहि सिंहा (शा). बावडुं ( प्रा. बाहा ) बांहे नरका. सहाये, मददथी बांहेधर प्रेमाका. जामीन, बांहेधरी आपनार बांहोडी प्रेमप. प्रेमाका. बांय, बावडुं, हाथ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बि/बिहिनी बि आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा. उषाह. गुर्जरा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. वसंवि. वाग्भबा. विक्ररा. षडाबा. बे (सं.द्वे) बिइसइ कादं (धु). लावल. बेसे (सं. उपविशति ) बिउणउं उक्तिर. बमणुं (सं. द्विगुणम्) बिगुणउं षडाबा. बमणुं (सं. द्वे+गुण) बिचार, बिच्यार, बिच्यारि आरारा. लावल. वंसंफा. वसंवि (ब्रा). बेचार (सं. द्विचत्वारि) बिजोर वीसरा. बिजोरुं (सं. बीजपुर ) बिजोरडी वीसरा. . बिजोरानां फळ बिठी मूंठि लावल. *बेठी मूठीए *मूठी वाळीवाळीने, उश्केराईने ३५४ बिदूं नलाख्या. बहेडानुं झाड (सं. बिभीतकम्) बिणी (बिमणी) कादं (शा.) बमणी [सं. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बियासी षडाबा. ब्यासी (सं. द्वयशीतिः) बिरखि अभिऊ. बेरखामां [सं. बाहुरक्ष] बिरद अखाका. * अखाछ. * अखेगी. नरका. * प्रेमाका. हरिख्या. बिरुद, प्रतिष्ठा, ख्याति, [नाम, आबरू, महत्ता ] बिर्व अखाका. बिरुद, पद [सं. विरुद] बिल आरारा. प्रेमाका. दर (सं.) बिल्लं बिल्ला प्राचीसं. ? बिवहर सिंहा (म). बपोर [सं. द्विप्रहर] बिवुहर ललिरा. बे पहोर बिशइ कादं (शा). नलाख्या. बेसे (सं. उपविशति) बिठु कादं (शा). नलाख्या. बेठो (सं. उप- बिशलय शृंगामं. कमळनो छोड़ (सं. विष्टकः) द्विगुणी] बि-ति जिनरा. बेत्रण बिनास हम्मीप्र. बनास नदी बिन्हइ रूपच. शीलक. बन्ने बिन्हें जुओ विन्हें बिपहर शृंगामं. बे पहोर [सं. द्विप्रहर] बिपुहुर आरारा. रूपच. बपोर बिमणउं उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. जिनरा नेमिछं. वाग्भबा. बमणुं (सं. द्विगुण) बिमणी जुओ बिणी बिसलता) (सं.द्वि+उत्तर+शत) बिडोत्तर सउ उक्तिर. *षडाबा. एकसो बे बिसइ नलाख्या. लावल. बेसे [सं. उपविशति ] बिसरा सरा विमप्र. बे हार [सेर ] ना त्रण हार [सेर] ना बिहइ उपबा. बेय बिहत्तर उक्तिर. बोंतेर ( सं . द्विसप्ततिः ) बिहनेवी रूपच. बनेवी [ सं . भगिनीपति ] बिहंगमा जुओ बिहु गमा बिहाव्या प्रेमाका. डराव्या [सं. बिभी - ] बिहि, बिहु, बिहुं वाग्भबा. बेय [सं. द्विखलु ] बिहिडु नलाख्या. बहेडानुं झाड (सं. बिभीतकम्) 2010_03 बिश- माल कादं (शा). कमळनां तंतुओनी माला (सं. बिस - माला) बिहितु नलाख्या. बीतो (सं. बिभीते) बिहिन नलाख्या. बहेन ( सं . भगिनी) बिहिनी प्रबोप्र. बहेन ( सं . भगिनी) Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३५५ ।। बिहिरखा/बीहइ बिहिरखा अभिऊ. [बेरखां], कांडा उपर बीजाबोल उक्तिर. [*बीजबल के बलबीज, __ पहेरवानां आभूषण [सं.बाहुरक्षकाः] एक करियाणुं] (*सं.बीजक बोल). बिहु, बिहुं अभिऊ. आनंस्त. आरारा. बीजू आरारा (व). बीयो, असन के उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. लावल. वसंफा. विजयसार वृक्ष (सं.बीजक); जुओ बीउ वसंफा (ल). वसंवि(ब्रा). वीसरा. बे, बीजेरां कृष्णच. अन्यतर, बीजां [सं. बेउ (सं.द्वे+खलु); जुओ बिहि द्वितीयतर] बिहु गमां, बिहं गमां उक्तिर. कादं(शा). बीजोर, बीजोरउ, बीजोरी आरारा(व). ___ बेउ बाजु उक्तिर. बिजोरुं (सं.बीजपूरक) बिहु परि, बिडं परि उक्तिर. बन्ने रीते बीझउंगुर्जरा.बीउं, भय पामुं (सं.*बिभ्यामि) बिहुँ नेमिछं. बीजुं (सं.द्वे+खलु); जुओ बीझ्या ऐतिका. वींझ्या, हवा नाखी __ बिहि, बिहु बीट पंचवा. बेट, द्वीप बिहू, बिहूं लावल. बंने बीडली शीलक. बीईं, पान- बीडुं बिंद अखाका. नलरा. बिंदु, टीपुं बीडी चतुचा. नरप(द). पान- बीडुं बिंदुने नाद [बिंदु ने नाव] अखाका. बीडं विमप्र. पानबीडु [सं.वीटि:] *नादबिंदु (=नादब्रह्मनुं अनुसंधान बीडो (बीडो लियो) जिनरा. [बीडु करवा बिंदु) वडे, [नाद अने बिंदु स्वीकार्य], जवाबदारी लीधी वडे, योगसाधना वडे]; जुओ नादबिंदु बीड्यां पान ज गळवां अखाका. चाव्या बिंब आरारा(व).टींडोरानो वेलो (सं.बिंबी); विना पान खावं. आखो बीडो गळी तेरका. प्रेमाका. पाकुं टीडोरुं (सं.) जवो]; जुओ पाननो बीडलो गळवो बिंब तेरका. प्रतिमा (सं.) बीड्लाई पंचवा. बिलाडी (सं.बिडालिका) बीउ आरारा(व). बीयो, असन के बीधा प्रेमाका. डर्या, भय पाम्या विजयसार वृक्ष (सं.बीजक); जुओ बीजू बीन्या प्रेमाका. डर्या बीकाण ऐतिका. बीकानेर बीबां चित्तसं. आकृति ढाळवानां चोकठां बीछाई देवरा. बिछावी, (सं.वि+छादय) [सं.बिम्ब बीज अखाका. बीजनी तिथि; [श्लेषथी] बीय आरारा. बीजी (सं.द्वितीय) जुदापणुं, द्वैतभावना] [सं.द्वितीया] बीय-चंद शृंगाम. बीजनो चंद्र बीज जिनरा. वीजळी [सं.विद्युत्] बील उक्तिर. बीली- झाड (सं.बिल्वः) बीजउरा षडाबा. बिजोरां (सं.बीजपूरक-) बीह उक्तिर. तेरका. बीक (सं.भिः परथी) बीजपूरादि आनंस्त. बिजोरुं वगेरे बीहइ आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. प्रबोप्र. बीजल प्राचीफा. वीजळी (सं.विद्युत् परथी) विराप. शृंगामं. षडाबा.बीए (सं.बिभेति) 2010_03 Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहकण / बूचा बहकण उपबा. बीकण बीहाने अखाछ. बीधेलाने बहाव उक्तिर. गुर्जरा. नलाख्या. बिवडावे (सं. बिभीते परथी ) बीहिवा उक्तिर. बीवा बीजीसs शृंगामं. बीशे बीवी प्रेमाका. बिवडावेली, डरावेली बीट ऋषिरा. फूलनां दींट, [डांखळां] [सं. वृन्त]; जुओ वींट बींटानी ऐतिका. वींटळाई गयुं [सं. वेष्ट्] बुक, बूक ऐतिका. प्राचीसं. वाद्यविशेष; जुओ ढक्कबुक, बूक, वुक्क बुगचइ जिनरा. कपडानुं पोटलुं [रा. ] बुज्झषडाबा. जाण, जागृत था (सं. बुध्य-) बुझइ उक्तिर चतुचा. देवरा. शीलक. समजे, बोध पामे (सं. बुध्यते) बुदबुदा चित्तसं. परपोटा [सं. दुबुद] बुद्धिमान नलाख्या. बुद्धिनुं माप (सं.) बुद्धियाल आरारा. बुद्धिवान बुद्धे प्रेमाका. बुद्धि बुध प्रेमाका. बुद्धिं बुंबाण दशस्कं (२). प्रेमाका. बुमराण प्रमाणे बुधने मान प्रेमाका. बुद्धिने मापे, बुद्धि बुंबारव कादं (शा). कृष्णच. प्राचीसं. बुमराण, पोकार (दे. बुंबा+सं. रव) बुधि आरारा. नलाख्या. नेमिछं. बुद्धि, बुंहतेरा विमप्र. बहु, घणुं [ सं . बहुतर ] बूअ आरारा (व). मोगरानी एक जात (सं. बूक) ? विचार बूक गुर्जरा. एक वाद्य (दे. बुक्का); जुओ बुक (सं. बूकी नरका. नानो फाकडो - बूकडो बूचा प्रेमाकी बेठेला के कपाई गयेला बुधिडी लावल. बुद्धि बुध्य अखाका. अखेगी. बुद्धि बुध्यवणठो जुओ वणठो बुलसिरी आरारा (व). बोरसली बकुलश्री); जुओ वुलसरी 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बुला - वीसरा. बोलाववुं [सं. ब्रू परथी ] बुल्लइ गुर्जरा. नेमिछं. लावल. बोले (सं. ब्रू, प्रा. बोल्ल) [द. बोल्ल ] बुल्लति ऐतिका. बोले छे ३५६ बुल्लावर गुर्जरा. बोलावे बुसटियो प्रेमाका. सीमंतनी विधि वखते सीमंतिनीना गाले कंकुवाळा हाथ मारनार बुहारइ आरारा. उक्तिर. उषाह. पंचवा. प्राचीसं. प्रेमाका. वीसरा. वाळे, साफ करे [द. बोहारी परथी ]; जुओ बहुरा, * वुहारी बुहि, बुहे नलाख्या. बेउथी (सं. द्वे+खलु ) बुंगण उषाह, अनाज बांधवा माटेनो मोटो चोफाळ बुंब उषाह. गुर्जरा. नलाख्या. प्रेमाका. मदमो. बूम, पोकार, बुंबारव, शोरबकोर (दे. बुंबा) बुंब सिंहा (शा). बंब, पोली चीज ?, [मोटु, भारे] Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला . समजावे, कारका पडावा. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . ३५७ बूजर/बेलाड नाकवाळा; ढूंका कानवाळा बेकाम आरारा. निरर्थक बूजर नलरा. एक देश ज्यां नलराजाए बेखास (वखास) जिनरा. विचार; [प्रयल]; विजय को हतो जुओ वेखास बूझ अखाका. अखेगी. ओळख, समज बेट कादं(धू). कादं(शा). नागें। बूझइ आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. बेडली जिनरा. नौका प्राचीसं. विराप. जाणे, समजे, ज्ञान बेडी, बेडुलडी उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. पामे (सं.बुध्यति) प्राचीसं. नौका (सं.बेडा) बूझवइ अभिऊ. ऋषिरा. चारफा. षडाबा. बेडी आरारा(व). ? "स्थूलिफा. समजावे, ज्ञान करावे जागृत बेडीवाहागुर्जरा.नाविक (द.बेडा+सं.वाहक) करे (सं.बुध्य परथी) बेडुलडी जुओ बेडी बूठा ऐतिका. जिनरा. वरस्या; जुओ वूठइ बेडो कामा(त्रि). कामा(शा). होडी, वहाण बूडण प्रद्युचु. बूडवू ते [दे.बुड्ड-] बेबाकळी प्रेमाका. बेबाकळी [सं.भय बूढ अंबरा. *मूर्ख, [*वही जाय छे, “लई व्याकुल] जाय छे]; जुओ बूढुं बेमना अखाछ. *द्विधा, *संकल्पविकल्प, बूधुं प्रेमाका. दंडो [*उदासी] बूसट उषाह. विक्रच. तमाचो बेर * चंद्रवा. [नाव] [हिं.बेरी] बूही जिनरा. चाली [रा.] बेरडो दशस्कं(२). नरका.प्रेमाका. "रूस्तस. बूंब आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. नलाख्या. बूम अनाड़ी, उद्धत, हठीलो (दे.बुबा) बेरखा नरका. प्रेमाका. बावडा- आभूषण बूंब न बाहिर जिनरा. न पोकार, न [सं.बाहुरक्षकाः] सहायता; जुओ बाहर बेल उषाह. दशस्कं(१). प्रेमाका. जोडी, बूंबारव विक्ररा. बूमराण दि.बुबा+सं.रव] बेलडी [सं.द्वे परथी] बृहन्नडा गुर्जरा. विराटने त्यां गुप्त वेशे रहेला बेल उक्तिर. [*मोगरो] [हिं.बेला];[*बीली] अर्जुननुं नाम (सं.बृहन्नला) . [सं.बिल्व]; [*वावडिंग] [सं.वेल्लक बृहन्नला प्रेमाका. व्यंडळ, पावैयो, बेलइ आरारा. जोड, समान विराटराजाने त्यां अर्जुने लीधेलो वेश बेल बेल * नरका. वेळाएवेळाए, वारेवारे] बेइसणां शीलक. आसनो [हिं.बेरबेर] बेउल वसंवि. विचकिल, एक पुष्पवृक्ष; बेला देवरा. बे उपवासनुं व्रत जुओ वेउल बेलाउल आरारा. बिलावल (राग) बेक दशस्क(१). जराक, थोडंक बेलाडु ऐतिका. बिलाडा गाम ___ Jain Education international 2010_03 ' . Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेलि/बोंकार ३५८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बेलि आरारा. मददगार बोधिलाभ गुर्जरा. ज्ञानप्राप्ति (सं.) बेलि कादं(शा). बेलडी, बेनो समूह (सं.दै) बोधीउ गुर्जरा. उपदेश आप्यो, [समजाव्यो] बेवि आरारा. ऐतिका. बन्ने (सं.द्वे+अपि) (सं.बोधित) बेवे जिनरा. बन्ने बोमांनी कस्तुवा. बहुमानी, [आदरणीयता] बेश कादं(शा). उत्तम, सुंदर [फा.] बोर हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात बेसण प्रेमाका. बेसवाने माटे बोरफूल दशस्कं(१). एक घरेणुं बेह नलाख्या. प्रेमाका. बेउ (सं.द्वे+खलु) बोरि उक्तिर. बोरडी (सं.बदरी) बेहडउं आरारा. बेडुं बोरियावडि तेरका. प्राचीफा. बोरनी भातर्नु बेहनर दशस्कं(१). बहेनडी [सं.भगिनी] [बूटीनी भात ] एक कीमती वस्त्र बेहि नलाख्या. बेउ (सं.द्वे+खल) (सं.बदरिका+पटी?) . बेह, बेहु, बेहू आनंस्त. गुर्जरा. नरप(द). बोल उपबा. बाबतो (दे.बोल्ल) नलाख्या. नेमिर्छ. बन्ने (सं.द्वे+खलु) बोलइ गुर्जरा. विराप. बोळे, डुबाडे, [कलंक बेहेक मदमो. बहेकतुं, सुगंधी लगाडे; नाश करे] दि.] बेंदी आनंस्त. स्पर्श अने रसना ए बे बोलणहार उक्तिर. बोलनार .... इंद्रियवाळा बोलण लावल. बोल, वचन, [बोलवू ते, बेंद्रिय उपबा. बे इंद्रियवाळा जीव वाले गिवाला जीव वाणी] [सं.ब्रू, प्रा.बोल्ल बैताल जुओ वैताल बोलबंध आरारा. प्रेमाका. वचनथी बंधावू बैसाणी जिनरा. बेसाडी ते, कोलकरार, [प्रतिज्ञा] बोक अखाछ. [बोख], [पाणी काढ़वानी बालिवउ उक्तिर. बालवु चामडा के शणियानी] डोल. कोस] बोलीत उक्तिर. बोलातुं बोकड गुर्जरा. बोकडो (दे.बोक्कड) बोवो अखाका. पेटाववो बोडलां प्रेमाका. बोडां, वाळ वगरनां बोहइ ऐतिका. प्राचीफा. स्थूलिफा. बोध बोध आरारा. ज्ञान [सं.] बोध कादं (शा). बौद्ध धर्मना संस्थापक बोहयंतो ऐतिका. बोध देता सिं.बहल] बुद्ध, [बौद्ध संप्रदाय] (सं.बुद्ध) बोहो मदमो. बहु बोधि आरारा. शुद्ध धर्मप्रकाशनी बोहोर अखाका. फरीथी, पाछु] [हिं. आध्यात्मिक स्थिति, [आत्मज्ञान, बहोर सम्यग्दर्शन] (सं.) - बोहोला चित्तसं. [बहोळा], अनेक जातना बोधि बीज आरारा. शुद्ध धर्मप्रकाशनुं बोहोलांशी प्राचीका. *बडाश बीजरूप तत्त्व, सम्यक्त्व [जै.] बोंकार नलरा. गर्जना (रवानुकारी) नोकरी करे ___ 2010_03 Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ब्य प्राचीका. बे (सं.द्वि.) वीसरा. षडाबा. भेंस (सं. महिषी) भई ऋषिरा. नंदब. थई [सं. भू-] ब्यहु परि जुओ व्यहु परि ब्यासण उक्तिर. बेसणुं (सं. द्व्यासनकम् ); भउजाई, भउजाई उक्तिर. लावल. भोजाई, भाभी (सं.भ्रातृजाया) जुओ व्यासण ३५९ ब्रखारते मदमो. वर्षाऋतुए; जुओ व्रखारत भउंभू- वीसरा. "व्याकुळ थयुं, [रुदन करवं] [दे. भंन्भभूय परथी ] ब्रच्छ चित्तसं. वृक्ष ब्रह्मपुरी हरिख्या. ब्राह्मणोने वासमां आपेलो भए ऋषिरा. थया [सं. भू-] भर्या घरनो समूह [सं.] ब्रह्मस्व प्रेमाका. ब्राह्मणोनी मालमिलकत [सं.] ब्रह्माध स्थूलिफा. ब्रह्मचर्यरूपी आयुध ब्रह्माणी मोसाच. ब्रह्मानी पुत्री, सरस्वती ब्रह्मांड दशस्कं ( 9). ब्रह्मरंध्र, ताळवानुं मर्मस्थान व्हो ऐतिका. बहु, खूब भइ गुर्जरा. लावल. भय, डर भइरव प्राचीफा. वीसरा. एक कीमती वस्त्र भखली (सं. भैरव) भइरव उक्तिर. शंकर (सं. भैरवः) भइरव उक्तिर. चीबरी (सं. भैरवी); जुओ भैरव भइरवी ऐतिका. भैरवी, ["देवी, "पार्वती] भइरवी आरारा. भैरवी, चीबरी भइसि उक्तिर. भेंस (सं. महिषी) भइसु ऋषिरा. पाडो [सं. महिषः ] भई प्रबोप्र. भयथी भक्त आरारा. सज्ज, धरावनार (सं.) भक्ष आरारा. गुर्जरा. भक्ष्य खाद्य; दशस्कं ( 9). भक्षण भक्षि नलाख्या. भक्ष्य, खोराकरूप भइ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. चंद्रवा. चित्तसं. वीसरा. षडाबा. खाय (सं. भक्षयति); चित्तसं. भोग करे, पामे भखर (?) विमप्र. * सूको पहाड, [* पहाड] [ रा. भक्खर ] भखळ प्रेमाका. भ्रष्ट, [अपवित्र] उषाह. * भयंकर, [* अपवित्र, छूटा मोंनी] 2010_03 ब्य / भगत्य भगतवछल दशस्कं ( १ ). भक्तवत्सल भइसाइत नलरा. भेंसो राखनार (सं. महिष भगताविडं आरारा. गुर्जरा. खवडाव्यं (सं. परथी) भव्य चित्तसं. भक्ष भग हरिख्या. छिद्र (सं.) ; चित्तसं. स्त्रीयोनि भगता ऋषिरा. भक्तिथी भगतडी शृंगामं. भक्ति, सेवा भइंस, भइंसि गुर्जरा. नेमिछं. विराप. भगत्य मदमो. भक्ति * सख्त, *भुक्तापयति) भगति आरारा. गुर्जरा. भक्ति, सेवा, नैमिछं. लावल. भक्ति भगति -युगति आरारा. भक्ति/आदरपूर्वक Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगनी / भणतला भगनी आरारा. भगिनी, बहेन भगळ अखाछ. *भोपाळां, [दंभ, कपट] भगळविद्या अखाका. दंभ, ठगाइ, [कपटविद्या ] भगवी पंचवा. भगवती, देवी, [विधात्री] भगंन प्रेमाका. भग्न, भांगेला भगां जुओ कृष्ण भगां भग्ग विमप्र . [ स्त्री] योनि, [सं. भग] भग्गय तेरका. भाग्युं, [नासी गयुं] (सं. भग्न+क) ३६० भग्गड प्राचीसं. नासी गयेलो (सं. भग्नः) भचरडायां प्रेमाका. कचडायां दबायां भजइ * नलाख्या. आश्रय करे; चित्तसं. आश्रय ले स्वीकारे, पामे, धरे, आनंस्त. पामे; प्रेमाका. हरिख्या. धारण करे; प्रेमाका. * झंखे, [भक्ति करे, आदर बतावे ] [ सं . भजते ] भज ऋषिरा. प्रेमाका. शोभे (सं. भ्राजू) भजना आनंस्त. अंश, [विभाग ], विकल्प [सं.] भजा ऐतिका. भार्या, पत्नी भजी शृंगामं. भांगी जाय [सं. भज् परथी] भज्य चित्तसं. [भज ], स्वीकार, आश्रय ले भट. अखाछ. कथा कहेनार भटके प्रेमाका. भटकाय, अथडाय भटित नेमिछं. उत्साहप्रेरक [ वचनो ], [ भटवाद, प्रशस्ति ] (सं.) भट्ट ऐतिरा. गुर्जरा. प्राचीफा. विक्ररा. षष्टिप्र. भाट, स्तुतिपाठक (सं.) भठ मदमो. धिक् 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भव्ये (भव्ये पाडे) * अखाछ. [तिरस्कारे ] भड कामा (त्रि). गुर्जरा. चंद्रवा. तेरका. हरिख्या. सुभट, योद्धो, समर्थ पुरुष (सं. भट) भडइ अखाका. गुर्जरा. लावल. विराप. झूझे, लडे, मुकाबलो करे; आरारा. * प्रेमाका. सामे आवे, [लागु थाय, जोडाय] भडिय गुर्जरा. उखेडी (सं. * भ्रष्टिता) भडत्य गुर्जरा. भडथुं (*सं. भृष्ट) [सं. भटित्र ] भडवाउ, भडवाय कर्पूमं. प्राचीफा. हम्मीप्र. भटवाद, पराक्रमनी ख्याति भडवाउ, भडवाय ऐतिरा. "प्रद्युचु. विक्रच. विमप्र. *हम्मीप्र. [सुकीर्तित पराक्रमी, वीर ], बहादुर योद्धा (सं. भटवाद परथी); जुओ भडिवाउ भsess उक्तिर. भडभडे * भंडावली विराप. भडपणुं, शूरातन भडांबली गुर्जरा. [ शूरातन ] भडिथ उक्तिर. भडथुं (सं. भटित्रम्) भडिवाउ "गुर्जरा. [सुकीर्तित वीर पुरुष ] (सं.भट+वाद); जुओ भडवाउ भणइ अखाका. आरारा. ऐतिरा. उक्तिर. उपबा. कादं (शा). गुर्जरा. चंद्रवा. तेरका. नलाख्या. नेमिछं. प्रबोप्र. प्रेमाका लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. षडाबा. षष्टिप्र. कहे, बोले, वर्णवे (सं. भणति ) भणणहार आनंस्त. भणनार भणतला विमप्र. बोलता Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भणि, भणी आरारा. उक्तिर. कादं (धु). * कादं (शा). चारफा. जिनरा. देवरा. नलरा. नलाख्या. प्रबोप्र. प्रेमाका. षष्टिप्र. सिंहा (म). हरिख्या. प्रति ने ने अनुलक्षीने, माटे; तरफ; लीधे, -थी; [गणीने, जाणीने ], ने बदले, ने स्थाने, तरीके; जुओ ते भणी, तेह भणी, सापु भणी भणिवं उक्तिर. भणवुं; कहेवुं (सं. भणते) भणीनि कृष्णबा. गणीने, मानीने भण्डारउ ऐतिका. भंडार भतार, भतारो, भत्तार गुर्जरा. तेरका. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). विराप. भरथार, पति (सं. भर्ता) भत्ति आरारा. कर्पूमं. नेमिछं. प्राचीफा. भक्ति, आदर भत्तिवंतु ऐतिका. भक्तिवन्त भत्य प्राचीका. भक्ति ३६१ भधायितु उक्तिर. भाथाधारी (सं. भस्त्रा परथी) भद्र दशस्कं(१). प्रेमाका. भद्र जातिनो हाथी भद्रक आरारा. भलो, भोळी [सं.] भद्रा वीसरा. अशुभ काळयोग (सं.) भवु * गुर्जरा. [?] (सं. भद्र) भद्रे आरारा. भली बाई (संबोधन) भधर रूस्तस. भदर, [भद्र, मोटा कोटनी अंदरनो नानो कोट ] भणि/भमाडइ भमती उक्तिर. उषाह. मंदिरमां चक्राकारे फरवानो मार्ग (सं.भ्रम् परथी ) भमर प्रेमाका. [भमरी], स्त्रीओनुं सेंथामां, [माथामां, अंबोडामां] खोसवानुं एक घरेणुं गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. भमरो (सं. भ्रमर ) भमरडउ गुर्जरा. प्राचीसं. विराप. भमरो (सं. भ्रमर); उक्तिर. जलावर्त, पाणीनो खाडो (सं. भ्रमरकः) 2010_03 भमरला वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). भमरो (सं. भ्रमर+ला) भमरी * प्रेमाका. [गाडानो एक भाग ]; नरका. फुदरडी; नलरा. स्त्रीओनुं एक घरेणुं (सं. भ्रमरी) भमलि उक्तिर. चक्कर आववाना रोगवाळो, बेहोशीना रोगवाळी (सं. भृमलः) भ्रमह ऐतिरा. भ्रमर, [भ] [सं. भ्रूमुख ] भमहडी, भुमहिय, भुंयडियह, भूमहीय प्राचीफा. हरिवि. भ्रू, भम्मर, [भवां] (सं. भ्रमुख) भमहि, भ्रमही अभिऊ. अंबरा. नलरा. नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वाग्भबा भम्मर, भ भमहि-भंगई लावल. भ्रूभंग वडे, भम्मरना वळांक वडे भ्रमही जुओ भमहि भमंडल पंचवा. आखी पृथ्वी (सं. भूमण्डल) भमड- प्राचीसं. भमवुं, आथडवुं [सं. भ्रम् ] भमाडइ ऋषिरा. गुर्जरा. नेमिछं. प्रेमाका. भ्रमण तेरका भ्रमण लावल. विराप. भमावे, फेरवे, घुमावे, रखडावे (सं.भ्रम्परथी ) भमण प्राचीफा. भवन, मन्दिर • Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भमाया/भर्म-मेगळ भमाया लावल. भमाव्या, [घुमाव्या] [अज्ञान-बुद्धिवाळो] भमिऊण ऐतिका. भमीने, फरीने भमुह प्राचीफा. भम्मर, [भ] ; [सं. भ्रमुख ] भमुहि, भमुहिं अभिऊ. ऋषिरा. वसंफा (ल). भमि कादं (शा). भवां (सं. धू) [सं. भ्रूमुख ] भरमे चित्तसं. भरमाय [सं. भ्रम् ] भरह गुर्जरा. प्राचीफा. नाट्य-नृत्य-संगीत आदि (सं. भरत) वसंवि (ब्रा). भवां [सं. भ्रूमुख ] भयडि प्राचीफा. भमर, भवं (सं. भृकुटि ) भयणा जिनरा. भजना, [विकल्प, होवुं या न होवुं ते] [जै.] ३६२ भयणि गुर्जरा. प्राचीसं. भगिनी, बहेन भयं नैमिछं. वीत्युं, थयुं (सं. भूत) भयु अभिऊ. थयो (सं. भूत) भर आरारा. गुर्जरा. तेरका. वसंवि (ब्रा). भार, जथ्थो, पूर्णता, प्रचुरता, अतिशय (सं.); अखाका. पूर्णता; उपबा. तेरका. भरेलुं, [पूरेपूरुं] भरड, भरडक, भरडू, भरडो अभिऊ. * उषाह. प्रधुचु. मदमो. विमप्र. शिवनो पुजारी, हलको ब्राह्मण; ब्राह्मण भरणी ऋषिरा. भरणी नक्षत्र (सं.) भरणी उक्तिर. बरणी, भरवानुं पात्र (सं. भरणिका) भरवेश्वर प्राचीफा. भरत चक्रवर्ती, प्रथम तीर्थंकर आदिनाथना पुत्र (सं. भरतेश्वर) भरवेसर प्राचीसं. भरतेश्वर भरपूर चित्तसं. बधे भरेलो, भरम-धी अखाका. भ्रमित बुद्धिवाळो, व्याप्त 2010 03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भरहखंड गुर्जरा. भरतखंड भरहभावि प्रधुचु. भरतनाट्यना भाव अनुसार भरह - भुंगल लावल. एक जातनी भुंगळ भरहभेद विमप्र भरतना नाट्यशास्त्रमां आपेला [ नाट्य - ] नृत्यना प्रकार भरहरी उषाह. गुर्जरा. विराप. भरभर अवाज कर्यो भरव आरारा. भरतक्षेत्र; प्राचीसं. भरत भरूआडी प्राचीफा. भरवाडी, भरवाडनी चक्रवर्ती स्त्री, गोपी भरूंसे चित्तसं. विश्वासपूर्वक भर्तु प्रेमाका. भर्तृ, भर्ता, पति भरहेसर प्राचीसं. भरतेश्वर भराई आरारा. भरावं ते [सं.भृ-] भरि (नीर भरि ) नलाख्या. [नीर ] भेर, [नीर ] मात्रथी भरियउ ( भरियउ मास) आरारा. (महिना) रह्या, [गर्भ रह्यो ] [ सं . भरित] भखिं उक्तिर. भरवुं भरुअच्छ उक्तिर. भरूच ( सं . भृगुकच्छ) भरुआडि अभिऊ. [भाराडी], माथाभारे भरुयछ प्राचीसं. भरूच (सं. भृगुकच्छ) भरूअच वेताप. भरूच भर्म आरारा. कादं (शा). नरका. नलाख्या. प्रेमाका. भ्रम, भ्रांति, अज्ञान भर्म-मेगळ अखाका. भ्रम [ अज्ञान ] रूपी हाथी जुओ मेगल Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३६३ भल/भवीय भल, भलु अखाका. अखाछ. "उषाह. भव गुर्जरा. तेरका. नरका-२. प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). भलु, सारु, लावल. वीसरा.जन्मारो, अवतार (सं.); [श्रेष्ठ] (सं.भद्र) चित्तसं. लावल. संसार (सं.); नरका. भलउ ऋषिरा. चित्तसं. लावल. सम्यचो. *प्रेमाका. शंकर, महादेव (सं.) भलो, सारो, उत्तम (सं.भद्र); आरारा. भवण तेरका. भवन, दहेरासर सारो, सुखी भवणि ट्ठिय (जिण भवणि ट्ठिय) ऐतिका. भलके ऐतिका. चमके, [झळके] जिनभवनमां जिनमंदिरमां] रहीने भलको अखाका. प्रेमाका. मदमो. भालो भवदोहग आनंस्त. भवनां [संसारनां, भलको वाग्यो भालडे प्रेमाका. "एकाएक जन्मारानां] दुर्भाग्य । गुस्सो आव्यो, [आघात लाग्यो] भवविपाकी आनंस्त. जे कर्मनो विपाक भलखंड गुर्जरा. भालानो टुकडो (सं. परिणाम] आ भवमां मळे ते भल्ल खंड) _भवसउ गुर्जरा. जन्मशत, सेंकडो जन्मारा भलती भेलि ललिरा. परस्पर आखडती (सं.भव+शत) भलपण अखाछ. नरका. भलाई, मोटाई भवतर तेरका. शृंगाम. जन्मांतर, अन्य भव सारापj, श्रेष्ठता] [सं.भद्रत्वन (सं.भवान्तर) भल-भूली अखाका. *भली अने भान- भवाड् नरका. नरप. षष्टिप्र. बनाववं. भाती भली-भोली परी बतावधू, (शोभा) देखाडवी खाधी भवि तेरका. प्राचीका. भव्य, मुक्तियोग्य भलहलीयो ऐतिका. चमक्यो, [झळक्यो] जीव [जै.] भलाई आरारा. भळावी भवि कादं(शा). भवां (*सं.भ्र) [सं.भ्रमुख भविक गुर्जरा. देवरा. नलरा. प्राचीका. भलि प्राचीसं. हठ, दुराग्रह दि.] लावल. षडाबा. मोक्षने योग्य जीव भलु जुओ भल (सं.) [जै.] भले जिनरा. विद्यार्थीने आरंभमां भविय गुर्जरा. तेरका. नलरा. भव्य, मोक्षने शिखवाडातो शुभ] अक्षर, स्वरव्यंजन योग्य जीव (सं.भविक, भव्य) भलेरउं प्राचीसं. सुन्दरतर, भलेलं (सं. भवियण आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. तेरका. भद्रतर) नेमिछं. प्राचीफा. मोक्षने योग्य जीव भल्ल चित्तसं. दशस्क(२). प्रेमाका. भलु, (सं.भव्यजन, भविकजन) सारुं; प्रेमाका. सारी रीते [सं.भद्र] भवी आनंस्त. आरारा. भव्य, मुक्तिनी भल्ली गुर्जरा. भालो, [बरछी] [सं.] योग्यतावाळा जीव भल्ली लावल. उत्तम, श्रेष्ठ (सं.भद्रिका) भवीय नलरा. मोक्षने योग्य जीव (सं. 2010_03 Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवीयण/भाक्ष ३६४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लसूतकम् भविक) शाला) भवीयण शृंगाम. भव्यजन, [मुक्तिनी भंडारउ जुओ भण्डारउ योग्यतावाळा जीव] भंडाली प्राचीसं. पात्रसमूह (सं.भाण्डावलि) भव्य *उपबा. देवरा. नलरा. मोक्षने योग्य भंति ऐतिरा. भाते, [प्रकारे] [सं.भक्ति जीव (सं.) भंभर-भोलिया जुओ मुंभर-भोली भशंण मदमो. भसतो भंभरभोली, भंभलभोलिय, भामरभोली, भषइ उक्तिर. भसे (सं.भषति) भांभरभोलवी प्राचीफा. साव भोळी, भस "विमप्र. [*मोटुं, "विशाळ] मुग्ध (सं.विह्वल+*भ्रमुल्लक) दि.मुंभुरभसम आरारा. उक्तिर. वीसरा. भस्म, राख भोलिया]; जुओ भंमरभोलिय भसलु वसंफा. वसंवि. भ्रमर, [भमरो दि.] भंभल *विमप्र. [विह्वळ, मत्त भस्मसूत उक्तिर. पारानी भस्म (सं. भंभलभोलिय जुओ भंभरभोली भंभली विक्ररा. विह्वल, हांफळीफांफळी भंग आरारा. भेद, प्रकार, वर्ग (सं.); वसंफा. भंभी ऐतिका. वाद्यविशेष . वसंवि. "वसंवि(ब्रा). प्रकार, रीत भंभोला प्रेमाका. फोल्ला भंगि गुर्जरा. तेरका. लावल. प्रकार, रीत, भंमरभोलिय गुर्जरा. साव भोळी (सं.विह्वल+ ढंग भ्रमुल्लक); जुओ भंभरभोली भंगि ऋषिरा. भांग [सं.भंगा] भंय्यिउ [मंजिउ] प्रबोप्र. भांगी गयो भंग्यांतर (भंग्यंतर) आनंस्त. बीजो प्रकार [सं.भंजति] (सं.भंगी-अंतर) भाअग, भाग कामा(त्रि). भाग्य भंजइ गुर्जरा. नेमिछं. प्रबोप्र. भांगे (सं.भंज्) भाइ आरारा. भावीने, विचारीने; भावे, भंजणहार शृंगामं. भांगनार __गमे [सं.भावयति भंजवाड उक्तिर. नुकसान, विनाश (सं. भाइगु गुर्जरा. भाग्य भंज्+पात) भाउ गुर्जरा. भाई (सं.भ्रात) भंजिउ जुओ भंय्यिउ भाउ-बीज उक्तिर. भाईबीज (सं.भ्रातृभंड सिंहा(शा). ?, [*भांड, “निर्लज्ज, द्वितीया) . *विदूषक]; षडाबा. [भांडभवायानी] भाउलइ आरारा. भावथी कुचेष्टा (सं.) भाऊ तेरका. प्राचीसं. भाई (सं.भ्रात) भंडरूआं उषाह. भांडरां, [भाईभांडु] भाऊ गुर्जरा. भाव, लागणी [सं.भांडरूप] भाकसी अखाका. केदखानु, जुओ भाखसी भंडसाल प्राचीसं. कोठार, भंडार (सं.भाण्ड- भाक्ष मदमो. भाख, कहे 2010_03 Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३६५ भाख/भाथी भाख आरारा. ऐतिरा. उषाह. गुर्जरा. भाषा, (सं.भज्); प्रेमाका. नासे वाणी, वचन भाजन उपबा. प्रेमाका. पात्र, वासण (सं.) भाखइ आरारा. उपबा. जिनरा. देवरा. भाजनहार देवरा. भांगनार (सं.मंजनकार) नलाख्या. प्रेमाका. लावल. भाखे, बोले, भाटी षडाबा. रोजी [-खास करीने वेश्याकहे (सं.भाषति) नी] (सं.) भाखडी नलरा. वाणी (सं.भाषा) भाठ उक्तिर. शेकवा-उकाळवा-तळवा माटेभाखणा आनंस्त. कहेवू ते, [कथन] नुं पात्र, कडाई (सं.भ्राष्ट्रा) भाखाबंध कादं(च). पोतानी भाषामां उतारो भाठी *प्रधुचु. [कडाई] (सं.भ्राष्ट्रा) भाखसी ऐतिका. केदखानु; जुओ भाकसी भालु षडाबा. कडाई (सं.प्राष्ट्र) भाख्या मदमो. भाषा भाडउं उक्तिर. षडाबा. भाईं, [वस्तु वापरवा भाग आरारा. ऋषिरा. भाग्य; जुओ भाअग माटे अपातुं नाणुं, माणस पासे काम भाग चित्तसं. अंश, भेद, प्रकार; जओ कराववा माटे अपातुं नाणुं - भांगउ पारिश्रमिक] (सं.भाटकम्) भागइ आनंस्त. भांगे, विकल्पे, [प्रकारभेदे] भाडूल आरारा. ? भागइ नलाख्या. भाग पडे, टुकडा थाय भाण अखाका. अखेगी. आरारा. ऐतिका. (सं.भग्न); भागे, दूर थाय गुर्जरा. चित्तसं. प्रेमाका. विमप्र. वीसरा. भागडउ षडाबा. लावल. [निराशा. भानु, सूप विक्षुब्ध, भोळियो भाणिजी वीसरा. भाणेज (सं.भागिनेय) भागळ प्रेमाका. भागोळ, पादर भाणु तेरका. भानु, [सूर्य] भागलउ वसंफा. वसंवि. वसंविब्रा). भात आरारा. थाय छे (सं.भाति) भाग्यो, नाश पाम्यो, चाल्यो गयो भात उक्तिर. उपबा. नलाख्या. प्रेमाका. (सं.भग्न+ल) भातुं, खोराक, अन्न (सं.भक्तम्) भागाथी चित्तसं. भाग्याथी भाति आरारा. ऋषिरा. रीत, भांति, प्रकार; भागि नलाख्या. भाग्य, नसीब आरारा. भात, आकृति [सं.भक्ति] भागी आरारा. भांगी (सं.भग्न), चित्तसं भाति भाति प्रेमाका. भातभातनां, भांगी, नष्ट थई जुदा-जुदा प्रकारनां भाजइ अखाछ. आनंस्त. आरारा. उक्तिर. भात्रीजउ उक्तिर. भत्रीजो (सं.भ्रात्रीयः) गुर्जरा. चंद्रवा. लावल. विराप. शृंगामं. भाथडी उक्तिर. धमण (सं.भस्त्रा) षडाबा. भागे, तूटी जाय, नष्ट थाय, भाथी अखाछ. चंद्रवा. प्रेमाका. भाथावाळो, दूर थाय; तोडे, नष्ट करे, दूर करे' योद्धो, बहादुर लडवैयो [सं.भस्त्रा 2010_03 Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावव/भारिंग ३६६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भार परथी]; जुओ काळभाथी भाग्य भावव प्राचीफा. भादरवो महिनो (सं. भार प्रेमाका. [सोनानो एक मोटो तोल], भाद्रपद) वीस तोला के बार मण- वजन भाववउ प्राचीसं. भाद्रपद, [भादरवो] भार दशक(१). उपकारनो के ऋणनो भावव तेरका. भादरवो (सं.भाद्रपद) भार; प्रेमाका. प्रभाव, सत्ता; आबरू; भाद्रवउ उक्तिर. वीसरा. भादरवो महिनो मान, [गौरव]; चित्तसं. महत्त्व [सं.] (सं.भाद्रपद) भार अढार अखाका. प्रेमाका. बधा ज भानुसुता दशस्कं(१). प्रेमाका. सूर्यपुत्री प्रकारनी, [अढार वर्गनी]; जुओ अढार यमुना भामणइ जिनरा. ओवारणांथी भारई चारफा. लावल. भार भरावे, [भार भामण अखाका. अभिऊ. अंबरा. नलरा. लादे], बोजाथी भरे (सं.भारयति) विमप्र. ओवारणां (सं.प्रामण) भारउट उक्तिर. मोभ, पाटडो, आडसर भामणडइ आरारा. भामणां करीने, भमाडीने (सं.भारपट्टः); जुओ भारोट भामणडां, भामणा नरका. ओवारणां भारट सिंहा(म). मोभ, पाटडो, [आडसर] . भामणि जिनरा. भामिनी भारणि आरारा. भारणरूप, भाररूप भामणे नवं दशस्कं(१). प्रेमाका. ओवारी भारथ चंद्रवा. भारत – महाभारत - जवू, न्योच्छावर करवू भारथी दशस्क(२). प्राचीफा. *मदमो. भामरभोली चतुचा. घेली, साव भोळी; भारती, सरस्वती जुओ भंभरभोली भार भागवो, भार भांगवो ० नरका. *संशय भामंडल आरारा. तेजवर्तुळ (सं.) दूर थवो; प्रेमाका. "अभिमान दूर थQ भामा अखाका. प्रेमाका. भामिनी, सुंदर प्रतिष्ठा जवी, लाजशरम जवी] युवती भारमाली गुर्जरा. भार उपाडनार (सं.भार+ भामा प्रेमाका. *फांफा, [*पाखंड; "देखाडा; मालिन्) खेल; तोफानी चेष्टाओ] भार राखवो नरका. मान राखवू, शरम भामिणि गुर्जरा. भामिनी, स्त्री राखवी, [शाख राखवी, मोभोजाळववो] भामे अखाका. अखेगी. प्रेमाका. भ्रममां, भारवट्ट जुओ भारोट भ्रमणामां भारिउ विमप्र. *भारमा राख्यो, [भार कर्यो भामो अखाका. भ्रम, [भ्रमणा] छे, वजन वधार्यु छे] भाय गुर्जरा. तेरका. भाई (सं.भात) भारिज्या आरारा. भार्या, पली भायेग दशस्क(१). दशस्क(२). प्रेमाका. भारिंग आरारा(व). भारंगी, एक वनस्पति 2010_03 Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३६७. भारेवत/भांगरउ (सं.भागी) अर्थिन्) भारेवत (भारेवन) चंद्रवा. महत्तावाळो, भावठी आरारा. दरिद्र मोटो भावन प्रेमाका. स्तुति, [गुणगान]; भावे भारो अखाछ. भारवाळो, भारेखम - गमे तेवो, सुंदर [सं.] भारोट, भारवट्ट विक्ररा. पाटडो, मोभ [सं. भावांतर अखाका. बीजो भाव [सं.] भारपट्ट]; जुओ भारउट भाविक प्रेमाका. भविष्यमा थनारी [सं.] भार्या नरका. [भारथी] भरेलां, [लादेलां] भाषइ उक्तिर. बोले, कहे (सं.भाषति) भाल ऋषिरा. चित्तसं. भाळ, शोध, भास आरारा. भाषा; गुर्जरा. *नलरा. समाचार, पत्तो [सं.भाल्] प्राचीफा. वसंफा (ल). वसंवि. भालडी *गुर्जरा. "विराप. बाण, तीर (सं. "वसंवि(ब्रा). पद्यखंड, काव्यनो एक भल्ली+ड) भाग, [काव्यप्रकार] (सं.भाषा) भालडे प्रेमाका. भालमां, कपाळमां भासइ आरारा. गुर्जरा. जिनरा. बोले, कहे भाळवद् ऋषिरा. नरका. प्रेमाका. भळाव, (सं.भाषते) सोंपवू, -ने माथे नाखवू [सं.भालय] भासकशक्ति चित्तसं. प्रकाशित करवानी भालि उक्तिर. बरछी, बाण, तीर (सं. शक्ति, प्रतिबिंब पाडवानी शक्ति भल्लिः ) भासडी देवरा. वाणी, शब्दो (सं.भाषा) भाळी नरका. [भळावीने], बतावीने भासरु प्राचीफा. प्रकाशमान, तेजस्वी भालोडे विमप्र. लावल. बाणथी, तीरथी (सं.भास्वर) [सं.*भल्लकूट भासुर वसंवि. वसंवि(ब्रा). तेजस्वी (सं.) भावइ जिसी आरारा. गमे तेवी भासुरह ऐतिका. चमकतुं, प्रकाशमान भावइ तिम करी कृष्णच. गमे तेम करी भांकार नलरा. भेरनो अवाज, (रवानुभावचण आरारा. भावार्चन, भावपूजा करी), [भां-भां एवो अवाज] भावज वीसरा. भाभी (सं.भ्रातुर्जाया) भांखडी उक्तिर. भांकडी, गोखरुने मळती भावट नरका. प्रेमाका. उपाधि, जंजाळ, एक वनस्पति, (सं.भक्षटः) दुःख भांगउ उपबा. षडाबा. भेद, विभाग, प्रकार भावठ चंद्रवा. नरप(द). प्रेमाका. मदमो. (सं.भंग); जुओ भाग उपाधि, पीडा, भीड, मुश्केली भांगर अभिऊ. "एक जातना घोडा, [एक भावठि अंबरा. ऋषिरा. ऐतिका. नलरा. जातनी सांढणी] नेमिछं. "विमप्र. मानसिक दुःख, भांगरउ उक्तिर. आरारा (व). भांगरो (सं. उपाधि, मुसीबत, जंजाळ (*सं.भाव+ शृंगराज) '2010_03 Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भांजइ / भीखु भांजइ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. चित्तसं. हरिख्या. भांगे, भांगी नाखे; भांगी जाय (सं. भंजू) भांजवं उक्तिर. भांगवुं भांड अखाका. पात्र, वासण [ सं . ] भांड उक्तिर. आनंस्त. भवैया जेवी एक जाति (सं. भंड) भांडइ उक्तिर. [* गाळ दे; "संग्रह करे ] (सं. भण्डयति) ३६८ भांत्य जुओ भांत भांपणि षडाबा. पांपण भांभरभोलवी जुओ भंभरभोली भांभरभोळी नरका. प्रेमाका. घणी भोळी, मुग्ध [सं. विहवल + "मिल्लक] भांभल (भांभलभोली ) ऐतिका. [ घणी ] भांडशाला षडाबा. कोठार, भंडार (सं.) भांडी षडाबा. हजामनी अस्तरा - पेटी (सं. भाण्डि ) [ दे.भंड परथी ] भांण आरारा. भानु, सूर्य; मदमो. (सूर्य =) भिया दशस्कं (१). भाई - अजाण्या पुरुषनो निर्देश करवा वपराती संज्ञा भिराडी गुर्जरा. विराप. भाराडी, हिंमतवान भिलइ अंबरा. जिनरा. भळे, मळे, हळेमळे; राजा भांत, भांत्य चित्तसं. भात, प्रकार भांति आरारा. प्रकारे, ऋषिरा. साइला वगेरेनी भात (सं. भक्ति) अंबरा. आरारा. गुर्जरा. भळे, मिश्रित थाय, [जोडाय] (दे.) मिलु, भीलु प्रेमाका. भेरु, साथी; जुओ भीरु भ्रामण] मि कादं (शा). भय, बीक भिसि आरारा. भेंस ( सं . महिषी) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भिखया प्रबोप्र. बौद्ध साधु (सं. भिक्षु+क) भिख्या प्रबोप्र. भीख ( सं . भिक्षा) भिग्गह प्राचीफा. प्रतिज्ञा, धार्मिक नियम ( सं . अभिग्रह) भिउड गुर्जरा. भ्रमर, भवां (सं. भृकुटि ) भिउडी उक्तिर. विराप. भृकुटि, भवां भिंइसु लावल. भेंसो, पाडो [ सं . महिषः ] भिंगार उक्तिर. तेरका. झारी (सं. भृंगार) भिंडिमाळ, भिंडीमाळ दशस्कं (१). प्रेमाका. गोफण के तेना जेवुं पथ्थर फेंकवानुं यंत्र भिंतर प्रबोप्र. प्राचीफा. अंदर (सं. अभ्यंतर) भांमणां चंद्रवा. ओवारणां, दुखणां [सं. भिंभल, भिंभलउ कृष्णबा. प्राचीसं. वसंफा. भोळी वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा.) शृंगामं. विह्वळ, मदमत्त; जुओ भीमर, भींभल 2010_03 भिछ ऐतिका. भिक्षा भिज्ज- तेरका. प्राचीसं. भींजावुं (सं. भिद्य ) Pass गुर्जरा. निकट आवे, लडे, [भीडे, मुकाबलो करे ] (सं. *भिटति) [दे.] भिडइ विराप. उखेडे (सं. भ्रष्ट परथी ) भित्ति कादं (शा). भींत, दीवाल (सं.) भिदि नलाख्या. भेदथी, [रहस्यप्रकटनपूर्वक] भीकर प्रबोप्र. भयंकर (सं. भयकर) भीखसा देवरा. भिक्षा भीखु देवरा. भिक्षु Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३६९ ।। भीजइ/भुल्लइ भीजइ गुर्जरा. तेरका. नलाख्या. लावल. जमीन पर (सं.भूमि); षडाबा. जमीन वीसरा. भीजाय, [आर्द्र थाय] [सं. परनुं अंतर अभ्यज्यते] भुइफोड उक्तिर. भोंयफोडा, एक वनस्पति भीडइ गुर्जरा. भीडे, [सकंजामां ले] [सं. (सं.भूमिस्फोट) अभ्यटति] भुइं जुओ भुइ "भीडी [भीडी] प्रेमाका. *बीडेली, भुए, भुये प्रबोप्र. भयथी *चोटेली, [शणिया रेसा] [सं.भिंडा] भुगत देवरा. भोगववा निर्णीत भोग भीति अभिऊ. उक्तिर. उपबा. षडाबा. भीत भुगतारि सिंहा(शा). भोक्ता [सं.भोक्तार (सं.भित्ति) भुजन प्राचीका. भोजन भीमर अभिऊ. [मदथी] विह्वल; जुओ भुजंग विक्ररा. विलासी पुरुष [सं.]; नरका. भिंभल नाग], शेषनाग [सं.] भीर वेताप. ?, [भयंकर, भारे मोटो] भजाइ उक्तिर. वाग्भबा. भोजाई (सं.भातभीरु दशस्कं(१). भेरु, भीलु, [साथी]; या) जुओ भिलु भुदर दशस्कं(१). भूधर, कृष्ण भीलिम आरारा(व).भिलामो (सं.भल्लातक) भुधणी शृंगाम. राजा भीलु जुओ भिलु भुमहिया जुओ भमहडी भीडी जुओ भीडी भुय गुर्जरा. भुज, हाथ भीतर प्राचीका. भीतर (सं.अभ्यंतर) भुयण गुर्जरा. भुवन, लोक]; तेरका. भीभल वसंवि(ब्रा). प्रेमघेलु (सं.विह्वल); [भुवन, लोक]; दहेरासर; जुओ भुअण जुओ भिंभल भुयंग, भुयंगु आरारा. वसंफा (ल). भीभली प्राचीफा. मुग्धा, [प्रेमघेली] (सं. वसंवि(ब्रा). शृंगाम. भुजंग, नाग विह्वला) भुयंगम ऋषिरा. नरका. प्रेमाका. हरिवि. भीमली गुर्जरा. विराप. [मदथी] विह्वळ, साप (सं.भुजंगम) प्रिमघेली] [सं.विह्वल-] भुये जुओ भुए भुअण, भुयण उषाह. भुवन, [लोक] भुर वेताप. गमार भुअंग रूपच. वसंफा (ल). विक्ररा. भुजंग, भुरशी, भुरसी दशस्क(१). प्रेमाका. विवाहसाप प्रसंगनी बांधेली दक्षिणा [सं.भूयसी] भुअंगम लावल. नाग (सं.भुजंगम) भुलउ गुर्जरा. भूलभरेलो (प्रा.भुल्लइ) भुइ, भुइं आरारा. उपबा. गुर्जरा. नलरा. भुलइ उक्तिर. भ्रष्ट थाय, च्युत थाय, भूले नेमिछं. वीसरा. षडाबा. पृथ्वी, जमीन; दि.] 2010_03 Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवण/भूरचां मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भुवण तेरका. वीसरा. भुवन, लोक, जगत भूजि आरारा (व). भोजपत्रनुं झाड (सं. भूज) भूत चित्तसं. पंचमहाभूत, भौतिक तत्त्व भुवि शृंगामं. पृथ्वीमां भुहरा पंचवा. जमीनमां करेलुं घर (सं. भूमि भूतिक चित्तसं. भौतिक +गृह) भूतो अखाका. थया भुहि गुर्जरा. भूमि भूतोलिउ षडाबा. एक प्रकारनो वंटोळ भुंइ जिनरा. भूमि भूवर, भूवरो दशस्कं (१): भूधर, कृष्ण भुंखर विमप्र. "गांडानी माफक उश्केरायेलो, भूष थवा हींडो चित्तसं. ऊंचं स्थान मेळववानी इच्छा राखो [*करडो] [*दे. भुक्ख] भुंगलभेर जुओ मुगलभेर भुंज- तेरका भोगववुं (सं.) झुंड - निलाडि प्राचीसं. अशुभ ललाटवाळी, [निर्भागी]. भुंद वेताप. ? भूमहीय जुओ भमहडी भुंभर- भोली, भंभर- भोलिया प्राचीसं. भूमंड अखाछ. "भूमंडल, "पृथ्वी, ["ब्रह्मांड ] अतिशय मुग्धा मुंहडियह जुओ भुमहडी भूमिहर ऋषिरा. षडाबा. भोंयरुं (सं. भूमिगृह ) भुंहरा आरारा. भोयरा ( सं . भूमिगृह ) भूअबलिहि कृष्णच. भुजाबळे भूयण अंबरा. गुर्जरा. भुवन, जगत; गुर्जरा. तेरका. महालय, दहेरुं (सं. भुवन) भूयपाल आरारा. भूपाल, राजा भूयबल गुर्जरा. भुजबळ भूयाल ऋषिरा. पृथ्वीपालक, राजा (सं. भूपाल) भूअंग कृष्णच. भुजंग, [सर्प] भूअंगम कृष्णबा. भुजंगम, नाग भूअंगु वसंफा. भुजंग, सर्प भूइ उक्तिर. जमीन, पृथ्वी (सं. भूः) भूआळ वीसरा. राजा (सं. भूपाल) भूइं विराप. भूमि ३७० भूखालू षडाबा. भूखाळवो (सं. बुभुक्षा परथी) भूचर चित्तसं. पृथ्वी पर चालनारा; गुर्जरा. पृथ्वी पर रहेनार, माणस (सं.) भूजपत्र कादं (धु). भूर्जवृक्षनी छाल, जेना पर लखवामां आवतुं हतुं (सं. भूर्जपत्र ) भूजाल जिनरा. मोटी भुजाओवाळो वीर 2010_03 भूभंग अखाका. पृथ्वीनो नाश भूभाग आरारा. जमीन पर चालवा मांड ? भू-भूतो "अखाका. [ पर्वत] [सं. भूभृत] भूमहइ प्राचीसं. भवां भूर अखाका. अखाछ. अखेगी. कृष्णच. कृष्णबा. दशस्कं ( 9). नरका. प्रेमाका. गमार, गांडो, मूरख, अबुध भूर दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. अतिशय, घणुं (सं.भूरि) भूरइ * गुर्जरा. [खूब मोटी संख्यामां] [सं. भूरि] भूरचां नरका. *मूर्ख, अणसमजु, [* पृथ्वी Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३७१ भूरसी/भेदियउ (सं.) लोकनां] [सं.भुर ___ वाळवाळी (सं.) भूरसी जुओ भुरशी भे, भेए अखाका. अखाछ. कामा(त्रि). भूरि आरारा. कादं(शा). लावल. खूब, घणा नरका. प्रेमाका. भय भेइणी जुओ भेउणी भूलउ लावल. भूली गयेलो, [गुमावेलुं होय भेउ गुर्जरा. प्रद्युचु. प्राचीफा. विक्ररा. एवो], भूलो पडेलो; विराप-अनु. हम्मीप्र. भेद, रहस्य; वसंफा. वसंवि. भूलभरेलो वसंवि(ब्रा). भेद, भिन्नता भूलवण अखेगी. भूल भेउणी (=भेइणी ?) तेरका. भेदायेली, भूलवाई चंद्रवा. भोळवाई मिश्रित, [भीजायेली, तरबतर थयेली] भूवलए ऐतिका. पृथ्वीमंडळमां [रा.भेवणौ भूशेणां चंद्रवा. शोभीतां भेए जुओ भे भूसा(?) शृंगाम. इच्छा भेक ऐतिका. देडको भूहडी आरारा. भमर, भवां (सं.भृकुटि) भेख अखाका. प्रेमाका. वेश भूहिरउ उक्तिर. भोयरुं (सं.भूमिगृहम्) भेट गुर्जरा. भेटो, मेळाप yइ अंबरा. विराप. शृंगाम. पृथ्वी, जमीन; भेटण आरारा. विमप्र. भेट, [बक्षिस भूमिमां, भूमि उपर भेटमलणुं प्रेमाका. मळती वखते आपवानी मूंछ विमप्र. *मूर्ख, *भोट, *गांडो, [*रण- भेट प्रदेश] [रा.] भेटि गुर्जरा. विमप्र. भेट, बक्षिस; *आनंस्त. yथल उषाह. जगा, [भूमिपट] (सं. भूमि- वीसरा. भेटवू ते, भेट, मिलन (सं*भेट्ट) स्थल) भेडउ गुर्जरा. भेटो, मेळाप, [मुकाबलो] भूय जिनरा. *भूमि, [*माळ, *मजलो] भेड्यउ आरारा. मळ्यो; गुर्जरा. भेट्यो, भूयरइ आरारा. भोयरामां (सं.भूमिगृह) मुकाबलो थयो] मुँहडी शृंगाम. भूमि, जमीन भेडवइ अखेगी. गुर्जरा. भीडवे, जोडे, भूहिरइ अंबरा. भोयरामां ___ टकरावे 'भृख्य सिंहा(शा). वृष, बळद भेडि *गुर्जरा. [मुकाबलो] भृष्ट आरारा. भ्रष्ट, बगडी गयेखें भ्रष्ट, छूटुं भेदाणी *जिनरा. [भेदाई, वींधाई; आर्द्र पडेलु बनी] गली ऐतिका. वाद्यविशेष भेदाभेद चित्तसं. भेद अने भेद, विविध गार अभिऊ. कादं(शा). कळश (सं.) प्रकारना भेद गालिनी आरारा. भमराओनी हार जेवा भेदियउ चारफा. भेदायो, [भांजायो] 2010_03 Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भेय/भोयंगम ३७२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं.भेदित) भोअणनंदन गुर्जरा. पृथ्वीपुत्र मंगळ भेय आरारा. ऐतिका. ऐतिरा. भेद, रहस्य, (सं.भुवननंदन) मर्म; चित्तसं. जिनरा. भेद, [प्रकार], भोअला "उषाह. [भोळा] तफावत] भोअंगम उषाह. प्राचीका. सर्प (सं.भुजंगम) भेर प्रेमाका. लावल. भेरी, शरणाईना जेवू भोगतारीक वेताप. भोगवनार [सं.भोक्तार मुखवाद्य भोगल, भोगळ उक्तिर. गुर्जरा. नरका-२. भेरवझंप कामा(शा). मनवांछितनी प्राप्ति प्रेमाका. आगळो; अखाका. [आगळो; अर्थे जप करतांकरतां पर्वतनी कोई आड, अंतराय], बंधन (सं.भुजार्गला) ऊंची टूक उपरथी पडतुं मूकवू ते [सं. भोगवउ आरारा. भोगवटो भैरवझम्पा] भोगवणी चित्तसं. अनुभव भेरि, भेरी *गुर्जरा. नरका. नेमिछं. प्रेमाका. भोगिक *शंगामं. सिप [सं.] विराप. *वीसरा. शरणाईना प्रकार भोगिनि ऋषिरा. सर्पिणी [सं.भोगिनी] एक मुखवाद्य (सं.) भोगीसरा लावल. भोगीश्वर, श्रेष्ठ भोगी भेल सिंहा(शा). भेद, शंका भोजक् षडाबा. उपभोग करनार [सं.] भेळ नरका. भंगाण भोजपतर, भोजपत्र कामा(त्रि). कामा(शा). भेलइ, भेळइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. नरका. भर्ज वक्षनं पत्र नेमिछं. "लावल. भेगुं करे, भेळवे दे.]; भोजिग ऐतिका. विमप्र. भोजक (त्रागाळा), गजरा. प्रेमाका. विराप. भांगे, भंगाण शिस्ति गाना] पाडे, छिन्नभिन्न करे भोपागाला वेताप. बोपागाळा, दुख पड्यानो भेळाभेळ हरिख्या. अत्यंत विनाश, वणसाड ___ढोंग ने रोदणां भेली आनंस्त. नलाख्या. भेळी, भेगी, साथे भोपालु उषाह. महान, [अधिपति] (सं. मळेली भूपाल) भेली आरारा. (गोळनो) रवो (रा.) भोम अखाका. प्रेमाका. भूमि, पृथ्वी, भेव अखाका. अखाछ. अखेगी. जिनरा. जमीन]; प्रेमाका. माळ, मजला नलाख्या. मदमो. भेद, रहस्य, [मर्म]; भोमी अखाका. भूमि, [जग्या] अखाछ. भेद, [भिन्नता] भोय तेरका. भोग भेष प्राचीफा. वेश, पहेरवेश भोयण ऐतिका. शीलक. भोजन भैरव प्रेमाका. चीबरी; जुओ भइरव भोयंग अखाका. दशस्कं(१). नरका. भुजंग, भो प्रेमाका. भय नाग . भोअण विक्रच. भोजन भोयंगम दशस्क(१). भुजंगम, शेषनाग 2010_03 Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३७३ भोर/मइलु भोर ऋषिरा. नरका. प्रेमाका. प्रभात, प्राजि कादं(शा). शोभे (सं.भ्राज्) परोढियु प्रांत, प्रांत्य प्रेमाका. भ्रांति, भ्रमणा; भोल ऐतिरा. भूल __ मोसाच. अंदेशो; मदमो. भ्रान्ति, मोह, . . भोलउ प्राचीसं. भोळो द.] [{झवण, शंका] भोळउ वीसरा. भूल, भ्रम, [भोळपण] भिखभान दशस्क(१). वृषभानु, [राधाना भोलविउ, भोलिउ प्राचीसं. भोळव्यो पिता] भोलाटी गुर्जरा. *छेतराई, “भोळवाई, भ्रूअ नलाख्या. भवां (सं.घ) [भूली पडी] भ्रूसो अभिऊ. भरोसो भोलावा लावल. भोळववा भोलिउ जुओ भोलविउ म उपबा. उषाह. तेरका. नरप(द). नलरा. भोलिम ऐतिका. भोळपण, अज्ञान नेमिछं. प्रेमाका. लावल. वसंफा. वसंवि. भोलुव- नलरा. भोळवq (सं.*भ्रमुल्लक) वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. हरिख्या. दि.] ना, नहीं (सं.मा) भोलुयारी प्राचीसं. साव भोळी मइ गुर्जरा. तेरका. जिनरा. वीसरा. में भोवन दशस्क(१). भवन, [आवास] (अप.मई, प्रा.मया); गुर्जरा. तेरका. मने भ्रमरोग चित्तसं. गांडपण, चित्तभ्रमनो रोग मइगल वीसरा. षष्टिप्र. हाथी (सं.मदकल); भ्रमस्त सिंहा(शा). ब्रह्मस्व. ब्राह्मणनं धन. जुआ माहिगल ब्रह्मार्पण करेलु द्रव्य मइडी ऐतिका. मिडी] भ्रमहइ प्राचीसं. भ्रू, भवां [सं.भ्रूमुख] मइण गुर्जरा. मदन, कामदेव; वीसरा. मीण भ्रमि-आकार प्रेमाका. गोळ, चकरडाना (सं.मदन); जुओ मयण आकारनां, [*आवर्त-वमळ जेवां, मइता (करमइता) *विमप्र. [कार्यकुशळ]; *चंचल जुओ करमइता भ्रष्ट षडाबा. रांधेला (सं.भृष्ट) मइदु आरारा. मेंदो भंग नलाख्या. भमरो (सं.शृंग) . मइमत वीसरा. मदमत्त भंति गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीसं. भ्रान्ति, मइलउ आरारा. मेलु, दुष्ट; उक्तिर. उपबा. भ्रमणा; आरारा. भ्रान्ति, मूंझवण; शंका, वीसरा. मेलुं, गंदु (सं.मलिल-) शंकाभर्यो विचार मइलप उषाह. मेलप, [मेलापणुं] [सं.मलिल्ल अंम मदमो. ब्राह्मण (सं.ब्रह्मन्) +त्व अंमचरज कामा(त्रि). ब्रह्मचर्य मइलु "वसंफा. वसंवि(ब्रा). रोष; जुओ भ्रंमचारज वरत कामा(शा). ब्रह्मचर्य- व्रत मयलु 2010_03 मध्य.२४ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलापण / मग मइलापणउं उपबा. मेलापणुं मइवट्ट जुओ महिवटु मई वीसरा. -मां मई आनंस्त. उक्तिर. उपबा में (सं. मया); मकनउ उक्तिर. प्रेमाका. दंतूशळ वगरनी, ठींगणो, भरावदार, तोफानी (हाथी) (सं. मत्कुण) उक्तिर. मने (सं. माम् ) मकर अखाका. अखेगी. माछलुं; मगरमच्छ (सं.) मइंगल आरारा. हाथी ( सं . मदकल) मई उक्तिर. पटेलो, खेडेला खेतरने सपाट द. करवानुं साधन (सं. मत्य / मदि) मतिय, मइय] ३७४ मउठ उक्तिर. मठ (सं. मकुष्ठ) मउड उक्तिर. उपबा. ऐतिका. गुर्जरा. चारफा. जिनरा. प्राचीफा. वीसरा. षडाबा. मुकुट, मोड मउडउ जिनरा. वीसरा. मोडुं [सं. मृदु ] ; आरारा. उक्तिर. धीमुं; जुओ मोडे मोडे मउडउधा गुर्जरा. मुकुटधारी, [ सामंतो] (सं. मुकुटबद्धा); जुओ मुडुधा मउडबद्ध, मउडबधा प्राचीसं. सामंत (सं. मुकुटबद्ध) मउडेरउं षडाबा. वधारे मोडुं [सं. मृदु-] * मउणि [* मणिउ ] उक्तिर. घडो, माटलं (सं. मणिकः) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (सं. मार्गोका; मुक्तौका) मओलीआं गुर्जरा. मोळियां, मुकुट (सं. मौलिकानि) मउर उक्तिर. अरीसो (सं. मुकुरम्) मउरा उक्तिर. (आंबानी) मोर [सं. मुकुल ] मउरियउ, मुरियउ प्राचीसं. महोर्यो ( सं. मुकुलित) मउरी गुर्जरा. महोरी (सं. मुकुलिता) मउलउं प्राचीसं. धीमुं [सं. मृदु परथी ] मउसाल जिनरा. मोसाळ [ सं . मातुःशाल ] मऊ, मौ उक्तिर. रखडती, गरीबडी (गाय) 2010_03 मकर अखेगी. मुकुर, दर्पण मकरनिकेतन वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). मकरध्वज, कामदेव (सं. मकरकेतन परथी) मकर- मीट नरका. माछलीनी आंखना जेवा आकारनी मकराकृत प्रेमाका. माछलाना आकारनां मकरंद * नरका. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). पुष्पमधु (सं.) मकलाय अखाछ, मलकाय, हरखाय मकायंत * विमप्र. [इजारे] [अ.मकातिअ] मखवट्टउ विमप्र. मुखपट, मोढुं, [चहेरो ]; जुओ मुखवट मखांतर अखाका. बहानुं, निमित्त; दशस्कं (२). प्रेमाका. बहानुं [सं. मिषांतर ] मखि प्राचीका. मुखमां मखियारडो प्रेमाका. [ माखीओथी रक्षण करवा ] घोडाना मुख उपर बांधवामां आवती पट्टी [सं. * मक्षिका+आवरण] मग * जिनरा. [ मार्ग ] * मग [नग] चंद्रवा. *मार्ग, [ पर्वत ] Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३७५ मगति-निधांन/मजीलै मगति-निधान हरिवि. मुक्तिनिधान मछु ऐतिका. मृत्यु . मगडी विक्ररा. रणक्षेत्रमा वगाडवानो राग- मच्छइ गुर्जरा. माछली प्रत्ये (सं.मत्स्य) विशेष मच्छर षडाबा. ईर्षा, [अभिमान]; ऋषिरा. मगमद आरारा. कस्तुरी (सं.मृगमद) [इंख, गुमान]; नरका. प्रेमाका. गर्व, *मगरप(चारी) [मगरपचीसे] *नंदब. अभिमान (सं.मत्सर) [भरपूर जुवानीमां] [रा.] मच्छेदराय ऋषिरा. मत्स्यदेशनो राजेश्वर मगरी मोसाच. मगमाथी बनावेली मीठाई ? मछण नरप(द). चळु, जम्या पछी मों साफ मगरो नरप. डुंगर (भी.) करवू; जुओ माछन लेवू, मुहछण मगसा *षडाबा. [माखी] (फा.मगस) मछर नरका. नरप(द). "विमप्र. मत्सर, मगसिर तेरका. मागशर (से.मार्गशिरस्) गर्व; चित्तसं. ईर्ष्या मगसिरनखत्र उक्तिर. मृगशीर्ष नक्षत्र मछरा सिंहा(शा). मदभरी (सं.मत्सर) मगसिरियउ वीसरा. मागशर (सं.मार्ग- मछराल, मछराळ कस्तुवा. नरका. शिरस्) मत्सरवाळा, गुमानी; जिनरा. विक्ररा. मगह आरारा. मग [सं.मुद्ग] मत्सरवाळा, गुमानी, जोरावर, [बहादुर, मगियां प्रेमाका. मगना जेवी छांटवाळां रोषीला]; कृष्णबा. “द्वेषीला, [गुमानी, वस्त्रो, [रंगीन दोरियानां वस्त्र] जोरावर]; प्रेमाका. ईर्ष्यावाळा, मग्ग गुर्जरा. तेरका. मार्ग रोषीला, गुमानी] मग्गइ गुर्जरा. मागे (सं.मार्गयति) मछाकार मदमो. मत्स्याकार *मघ ["मेघ] * वसंवि(ब्रा). [वादळ] मच्छर नेमिछं. मत्सर, [ईर्ष्या, रोष] मचकउ लावल. मचको, आंखनो मिचकारो, मज प्रेमप. मुज [चाळो]; नरका. लटको, लहेको, मज मदमो. -, [*नकी] [*अ.मज्जुन] [चाळो]; गर्व ___मजिल वीसरा. मजल, मुसाफरीनो [एक मचकंद आरारा. चारफा. मुचुकुन्द नामनां साथे के एक दिवसमां] कपातो हिस्सो पुष्पवृक्ष (फा.मंजिल) भचका- वीसरा. मारवू, प्रहार करवो (*प्रा. मजीठ उक्तिर. वसंफा. वसंवि(ब्रा). जेमांथी मच्च) लाल रंग नीकळे छे ते वनस्पति (सं. मचकुंद आरारा. मुचुकुंद नामनुं पुष्पवृक्ष मंजिष्ठा) मचरडी प्रेमाका. आमळी, मरडी मजीठियां प्रेमाका. मजीठना राता रंगनां मचरालि नरप(द). मत्सरवाळी, गुमानी मजीठं अभिऊ. जिनरा. मजीठ जेवू रातुं मच्चई गुर्जरा. मत्त थाय (सं.माद्यति) (सं.मंजिष्ठा) 2010_03 Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मजीण / मणीडां भजीण प्राचीसं. ?, [कोई वस्त्रप्रकार ] मज्झ गुर्जरा. मने; तेरका. मारुं, मुज (सं. मह्यम्) ३७६ मटकउ * ऋषिरा. प्रेमाका. हावभाव, चेष्टा, [चाळो, नखरु] मटि नलाख्या. माटे, काजे मट्टी प्राचीसं. माटी (सं. मृत्तिका) मठ प्रेमप. ओरडो [सं.] मज्झ आरारा. मध्ये, मां मज्झन प्राचीसं. मध्याह्न मज्झारि गुर्जरा. मध्ये, मां (सं. * मध्यकार्ये) मढपति ऐतिका. मठाधीश मज्झि गुर्जरा. मध्ये, मां मझ आरारा. गुर्जरा. कर्पूम. मुज, मारुं; गुर्जरा. नलरा. प्रबोप्र. मने (सं. माम्) मझइ आरारा. मध्ये, मां मझार, मझारि आरारा. देवरा. नलरा. नेमिछं. प्राचीसं. रूपच. विक्ररा. मध्ये, मां, अंदर (सं. * मध्यकार्ये, मध्य+ कार); उषाह. मध्यमां, [वच्चे] मझार, माघ, मुझार, मोझार कामा (त्रि). मध्ये, मां मठ- प्राचीफा. दबाव, [भांगवुं, मारवुं] (सं. मथ्), [* चूर्ण करवुं, "कचडवुं] [*सं मृष्ट] मठवासणि विक्ररा. मठवासिनी, साध्वी मडप्फर तेरका. "प्राचीफा. प्राचीसं. दर्प (दे.) मडि उक्तिर. [* आघात पामेली - घवायेली स्त्री ] (सं. मडिका) [द. महुिआ ] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नलरा. नेमिछं. विक्ररा. मठ, मकान, निवासस्थान; वेताप. मठ, [संन्यासीनुं निवासस्थान ] 2010_03 मढ दशस्कं ( २ ). सती थवा माटे खडकेली चिता, [[चितारूपी घर ] मण आरारा. तेरका. मन; जुओ मणि मणची सिंहा (शा). एक खडधान मणछिउ ऐतिका. मनवांछित मणमणउ उक्तिर. अस्फुट उद्गार, गूसपूस ध्वनि (सं. मन्मनः ) मणमणा ऐतिका. बालकनी भाषा, [ कालाघेला अस्फुट ( उद्गार)] मणमय प्राचीफा. मणिनां (सं. मणिमय) मणयतु ऐतिका. मनुष्यत्व मणशिलशिला कादं (शा). मनसील नामक धातुनां चोसलां [ पथ्थर ] (सं. मन:शिला-शिला)) मणसमाधि गुर्जरा. मनसमाधि, मननुं सांत्वन, मननी शांति मणसिल उक्तिर. ए नामनो खनिज पदार्थ (सं. मनःशिला) मणहर तेरका. मनहर मणि गुर्जरा. मनमां (सं. मनस्); जुओ मण मणि जुओ मणि मणिबिंब तेरका. मणिमय प्रतिमा मणिमइ गुर्जरा. मणिमय मणिमथ ऐतिका. शिरोमणि मणियउ उक्तिर. मणको (सं. मणिकः) मडिउ प्रचु. मडदुं [सं. मृतक] मढ उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. तेरका. देवरा. मणीडां प्रेमाका. माळाना मणका Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश म ऐतिका. मन रोसीला ] मणुय आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. मनुष्य मत्स्य * प्रेमाका. [ माछलानी आकृति ] ( सं . मनुज) मणूअ गुर्जरा. मनुष्य (सं. मनुज) मणूय विराप. माणस (सं. मनुज) मणूय- भवि शृंगामं. माणसना भवमां मणू गुर्जरा. मनुष्य मणोर वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). मनोरथ मथाला नेमिछं. माथां मनोरथ गुर्जरा. मनोरथ मणोरहु गुर्जरा. मनोरथ ३७७ मणीहर गुर्जरा. तेरका. वसंफा. मनोहर मत अखाका. *मति, [ मान्यता, धार्मिक सिद्धान्त, पंथ ]; मोसाच. मति मतवारणउ उक्तिर. *विक्ररा. झरुखो, अटारी (सं. मत्तवारण) मतवाळउ वीसरा. नशाखोर (सं. *मत्तपाल) मतिजीवी उक्तिर. बुद्धिजीवी (प्राणी), मनुष्य (सं. मतिजीविनः ) मतुं विमप्र. अभिप्राय, मत मतो अखेगी. मत, [विचार, समजण]; अखाछ. मतमतांतर, सिद्धान्त, [मताग्रह, मतप्रभाव, विचारनी पकड ]; प्रेमाका. "कबूलात, करार, [अरसपरस समजण, ठराव ] 2010_03 मणु/मदल मथ- अखाका. घसवुं; अखाका. नरका-२. प्रेमाका. वलोववुं, मंथन करवुं वसंफा. वसंवि. वलोववुं, व्याकुळ करवुं मथ जुओ मणिमथ मथ ( मोटर मथ) * अंबरा. [बहु मोटो ] मथिला नलरा. मिथिला नगरी मथोमथ नरका. माथा सुधी, पूरेपूरी मध्यामति आरारा. मिथ्यामति, अन्य मिथ्या दर्शनमां माननार, जैन धर्ममां अश्रद्धा वान मतु प्राचीफा. मत (निषेधार्थ), [मा, नहीं] मदनमेषला प्राचीफा. एक प्रकारनी हीरा जडित मेखला (सं.) मद उक्तिर. मद्य, शराब [रा. ] मदगळ प्रेमाका. (मद गळता) हाथी मद - नमाया लावल. मद मातो नथी एवा मदनभेर प्रेमाका. हम्मीप्र. एक प्रकारनुं मुखवाद्य, रणशिंगं मदनशाल ऋषिरा. मेना दि.मयणसाल; सं.] मदफू विमप्र. किंमती कापड, [* छापेल कापड] [*अ.मत्बुअ] · मदभिंभल नलरा. मदविह्वल, [ मदमस्त ] मदभभल वसंवि. वसंवि (ब्रा). आसक्तिथी व्याकुल बनेलो (सं. मदविह्वल) मदमिगल अभिऊ. मदथी मत्त हाथी (सं. मद + मदकल) मत्कुण ऋषिरा. मांकड [सं.] मत्थइ भागी कुहाड जुओ कुहाडि मत्थई, मत्थिई नैमिछं, माथे (सं. मस्तक) मत्य नलाख्या. मति, बुद्धि मत्सराल विक्ररा. मत्सरवाळा, [शूरवीर, मदल आरारा. ढोलना प्रकारनुं वाद्य, Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मदार/मनशा सुध ३७८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [मृदंग] (सं.मर्दल) ओमां मध्यनायिका मदार आरारा(व). मंदार, आकडो (सं.) मध्यमान प्रेमाका. मध्यनुं [वच्चेनुं] माप [सं.] मदालस वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). मध्यानि आरारा. मध्याह्ने यौवनमदथी आळसभरेलां (सं.) म-न कृष्णबा. गुर्जरा. तेरका. नंदब. मवि मातउ वसंफा. वसंवि. मदमत्त बनेलो प्राचीफा. प्राचीसं. मा, नहीं (सं.मा+न) (सं.मदेन+मत्तक) मनइ षडाबा. माने (सं.मन्यते) . मदूउ आरारा. मदीलो, नशामां छे ते मन करवा भेद कादं(ध). [मननो] पार महल ऐतिका. तेरका. लावल. मृदंग (सं. जाणवा मर्दल), वाद्यविशेष मनखो अखाका. मनुष्यनो अवतार; जन्मारो मद्धि कादं(शा). नलाख्या. लावल. मध्यमां, मनछा अभिऊ. मननी वात, इच्छा [सं. वच्चे, [-मां, अंदर मनीषा] मधूय गुर्जरा. मद्रदेशना राजानी कुंवरी मन-था * प्रेमाका. [मनमांथी] (सं.मद्र+दुहिता) मन बहोलू कवू प्रेमाका. मन मोटुं करवू, मध प्राकासं. चैत्र मास (सं.मधु) . उदार थर्बु मध (मधमाधव) * नरप(द). [चैत्र-वैशाख, मनभिंतरि ऐतिका. मननी अंदर वसंत ऋतु] [सं.मधुमाधव]; जुओ मधु- मनमथ-धणुहिय वसंवि(ब्रा). कामदेवर्नु माधव धनुष्य मधर प्राचीफा. मीठु, कर्णप्रिय (सं.मधुर) मनरखती अखाछ. मन साचवती. [मनने मधु वसंफा(ल). वसंत (सं.) फोसलावती, भ्रामक] मधुकर वेद प्रेमाका. चार भमरा [वेद=चार] मनरली आरारा. ऐतिका. मनना आनंद मधुप वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). भमरो साथे, मनना उमंगथी (सं.) । मन रहे, प्रेमाका. मन स्थिर रहे, धीरज मधुमाधवइ . * ऐतिका. [चैत्र-वैशाखमां, रहेवी वसंतऋतुमां]; जुओ मध मनरंगि गुर्जरा. लावल. मनना आनंदथी, मधुरां हरिवि. मीठु दहीं . __मनना उमंगथी मधुवनरंगु वसंवि. वसंवि(ब्रा). वसंतना मन लेवा प्रेमाका. *मनने जीती लेवा, - वननी शोभा (सं.) [मनने जाणी लेवा] मध्यत्रीया चतुचा. मध्यस्थी स्त्री, दूती मनशा कामा(शा). दशस्कं(१). दशस्कं(२). मध्यनायका चतुचा. मुग्धा, मध्या अने मनीषा, इच्छा; मननी कल्पना प्रगल्भा - आ त्रण प्रकारनी नायिका- मनशा सुध कामा(शा). मननी [शुद्ध, 2010_03 Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३७९ मनसा/मयण खरी] इच्छाए आग्रह [आर्जव, प्रार्थना] मनसा * उपबा. कामा(शा). दशस्कं(१). मनुहार्य प्राचीका. आग्रह, [मनामणी, नरका. प्रेमाका. मनीषा, इच्छा आजीजी, कालावाला]; जुओ मनुहार मनसिधि कृष्णबा. मनगमतुं, [मनने मनुवार नरप(द). विनंती; प्रेमाग्रह परिपूर्ण करनारुं] मने आरारा. माने मनसुधि आरारा. मननी शुद्धिथी मनोन्य वाग्भबा. मनोज्ञ, मनोहर मनाया लावल. मनाव्या, तैयार कर्या, मनोहार ऐतिरा. प्रेमाका. परोणागत; [स्वीकार कराव्यो] . खातरबरदास्त; जुओ मनुहार मनावइ उक्तिर. मनावे, राजी करे; * लावल. मनोहार वसंफा. वसंवि(ब्रा). मनोहर (सं. [माने - स्वीकारे एवं करे] मनोहारिन्); जुओ मनुहार मनाविq उक्तिर. मनावq, राजी करवू मन्नइ (विमन्नइ) गुर्जरा. माने, गणे, लेखे मनां चंद्रवा. मनमां [सं.विमन्यते] म-नि प्राचीफा. नहीं (सं.मा+न) मन्मथ-चरिचन कादं (शा). [कामोद्दीपक मनिख प्रेमाका. मनुष्य लेप] (सं.मन्मथ-चर्चन) मनिशउ गुर्जरा. मनीषा, मननो विचार, मपधुनि गुर्जरा. ढोलना अवाजसूचक शब्दो तर्क मम विराप. नहीं (सं.म+म) मनिसी विराप. मनीषा, इच्छा, [मननो ममकार आनंस्त. ममता, अहंकार विचार] ममांणी कर्पूमं. आरसनी जात, [राजस्थानमनीश चित्तसं. मनुष्य ना मकरान-प्रदेशनी खाणना] मनीष अखाछ. मनुष्य *मयगयल [मयगल] सिंहा (म). हाथी मनीषित ऋषिरा. मनमा इच्छेखें (सं.) (सं.मदकल) मनुक्ष गुर्जरा. मनुष्य मयगल, मयगलु उक्तिर. ऋषिरा. ऐतिका. मनुहार प्राचीफा. *मन- हरण करवू ते, ऐतिरा. कृष्णच. गुर्जरा. नेमिछं. प्रद्युचु. [मनोहर]; जुओ मनोहार प्राचीका. प्राचीसं. लावल. विक्ररा. जेना मनुहार, मनुहार्य दशस्कं(१). नरका. प्रेमप. माथामांथी मद झरतो होय ते, हाथी प्रेमाका. परोणागत, [खातर बरदास्त, (सं.मदकल) आदरसत्कार, आग्रह]; *प्राचीका. मयगल-जित्त नेमिछं. हाथीने जीती लेती [प्रार्थना; आदरसत्कार] मयच्छिय प्राचीसं. मृगाक्षी, [मृगनयनी] मनुहारि, मनुहारी दशस्कं(१). प्रेमाका. मयण उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. तेरका. आजीजी, प्रार्थना; प्राचीका. प्रमभो] लावल. वसंवि. वसंवि(ब्रा). हरिवि. 2010_03 Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मवणसापर मरतकवत ३८० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . पसमध] मदन, कामदेव; प्राचीसं. मीण [सं. मरकलडं ऋषिरा. प्रेमाका. शृंगाम. मरकाट, मदन] जुओ मइण . स्मित, मलकाट, आर्छ हास्य . मयणसागर लावल. मदन कामभाव]नो मरकलडे मुख नरका-२. हसता मोंए सागर मरकलडो चतुचा. नरप(द). मरकवू ते, मयकाल उक्तिर. मीढळ (सं.मदनफल) मंद हास्य मवणातुर गुर्जरा. कामातुर (सं.मदनातुर) मरकतुं अखाका. नरका. शृंगामं. स्मित, ममता नेमिछं. विमप्र. मदमत्त आर्छ हास्य मयमत्त कृष्णच. हाथी [सं.मदमत्त]; जुओ मरकलावू दशक(१). मरकर्बु मियमत्त मरकले अखाका. आर्छ हसे मयरहर ऐतिका. प्राचीसं. सागर (सं.मकर- मरकलो सिंहा(शा). मरकतुं, [आर्छ हास्य] मरकी आरारा. एक मिष्टान्न, धोळी जलेबी मयरंद तेरका. मकरंद, [पुष्पमधु] दि.मुरुक्कि मवलउ तेरका. विमप्र. मेलं, मेनुं बनेलं मरगय तेरका. मरकत, [एक रत्न, नीलम (सं.मल+इल्ल) मरगयजावर प्राचीफा. मरकत जेवा लीला मयतु वसंवि. क्रोध, [रोष]; जुओ मइलु रंगनुं जादर वस्त्र (सं.मरकत+दे.जद्दर) मयवट जुओ महिवटु मरगी उषाह. मरकी मयंक, मयंका, मयंक उषाह. नरका. मरजन, मरजंन चतुचा. दशस्कं(१). नैमिछं. प्रेमाका. वसंफा(ल). वसंवि. "प्रेमाका. मर्जन, स्नान वसंवि(ब्रा). चंद्र (सं.मृगांक) मरजाद प्राचीसं. मर्यादा, [सीमा] मयंद दशस्क(१). प्रेमाका. मृगेंद्र, सिंह मरट्ट प्राचीसं. गर्व, [मरड दि.] मया आरारा. माया, कपट, अखाछ. मरड *अखाछ. [ग]; नरका-२. रीस, अभिऊ. आरारा. ऋषिरा.. कामा(त्रि). [ग] चंद्रवा. दशस्कं(१). देवरा. प्रेमाका. मरण लगि आरारा. प्राणान्तक प्रयत्नथी विमप्र. दया, कृपा मरणीक दशस्कं(२). प्रेमाका. मरणियो मयाला लावल. कृपाळु: नेमिछं. मायाळु, मरत, प्रत प्रेमाका. मदमो. कामा(त्रि). प्रेमाळ मृत्यु मयूरसिखा आरारा (व). मयूरशिखा, एक मरतक अखाछ. अखेगी. देवरा. मृत्यु वनस्पति ____पामेल, मरेलु (सं.मृत+क) मर वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). मरे, हेरान मरतकवत चित्तसं. मृतकवत, मृत्यु पामेला थाय (सं.म.) जेवो 2010_03 Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३८१ . मरत-वछा/मलीआगिरी मरत-वछा देवरा. जेने मरेलां छोकरां अवतरे गर्म कादं(घ). गुह्य विधि, उपाय [सं.] छे तेवी (सं.मृत-वत्सा) मल लावल. मल्ल, योद्धो; [वीर] . मरत्ये अखाछ. मृत्युए मलइ उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. प्रद्युचु. वीसरा. मरमरसबद उक्तिर. मर्मरशब्द मर्दन करे, [मसळी नाखे] (द.मल-) मरषा आरारा. मृषा, खोटु मल-जेठी नरका. जेठीमल, मोटो मल्ल [सं. मरहठ उक्तिर. लावल. महाराष्ट्र ज्येष्ठ+मल्ल मरहठी प्राचीफा. महाराष्ट्रनी स्त्री मलण तेरका. मर्दन करवू ते (द.) मरहुंडीया "विक्ररा. [तल वगेरेना लाडु मलण नरका. मिलन वेचनार] दि.मोरंडक] मलतयं प्रेमाका. [महाले छे]; जुओ मल्हमराली शृंगामं. हंसी [सं.] मळतो दशस्क(२). मळतियो; जुओ असुरमरिच षडाबा. मरी (सं.) मळतो मरिवा वांछइ उक्तिर. मरवा इच्छे मलपिया ऐतिका. [उमंगमा, गौरवपूर्वक, मरीइ उक्तिर. मरी जवाय धीमेधीमे चाल्या मरुअउ, मरुउ आरारा(व). प्राचीसं. मरवो मलयगिरी आरारा (व). मलयागिरं; पीढुं (सं.मरुबक) ___चंदन - तेनुं वृक्ष मरू चंद्रवा. मरवो मलयागर हरिख्या. मलय पर्वत उपर थतुं मरूअउ उक्तिर. मरवो (सं.मरुबक) चंदनवृक्ष मरूउ *गुर्जरा. आरारा(व). नलरा. नेमिछं. मळस्नान प्रेमाका.शरीर खूब चोळीने करवामरवो, डमरो (सं.मरुवक) मां आवतुं स्नान मलउओ वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). मरवो मलहपतउ * ऐतिका. [उमंग, ठाठ, गर्विष्ठ (सं.मरुबक) छटावाळो] मरूबक शृंगाम. डमरो, मरवो (सं.मरुबक) मलाखी नलरा. *अज्ञान, [*रमवाना, मरेहेठा रूस्तस. मरेठा, [मराठा] *रमकडाना] [*अ.मलाही] मरोडी * नरका. [फेरवी, बदली] मलाणा हम्मीप्र. मौलाना, मोलवी मरोत चंद्रवा. मरत, [मृत्यु पामत] मलार प्राचीफा. आनंद करावनार (दे. मर्जन अखाका. कृष्णबा. दशस्क(१). मल्ह-); जुओ मल्लार, मल्हार प्रेमाका. मज्जन, स्नान [सं.] मलियागर प्रेमाका. चंदन, सुखड मर्दई उक्तिर. प्रेमाका. चोळी नाखे, [मसळी मलीअल चतुचा. मसळेलु, लगाडेलु नाखे] [सं.मृद्] [चोळेलु] मी षडाबा. घसी माखी, चोळी नाखी मलीआगिरी विक्ररा. चंदन[वृक्ष] 2010_03 Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलीदा/मसीत ३८२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश , मालवी मलीदा हम्मीप्र. मलीदो, खाद्यविशेष, मसउ उक्तिर. मच्छर (सं.मशकः, मषः) [चूरमुं] मसकीन आरारा. गरीब (फा.मिस्कीन) मले चित्तसं. मळतुं आवे, बेसतुं आवे, मसग (मसगति) *प्राचीफा. [महेनत, श्रम] बेसी जाय, निवेडो आवे [अ.मशक्कत]; जुओ मसाकति मळो अखाछ. मेल, [कचरो] [सं.मल] मसजर जिनरा. वस्त्रविशेष मल्लाणा हम्मीप्र. मौलाना, मौलवी मसतग देवरा. मस्तक, माधु मल्लार प्राचीसं. आनन्दजनक दि.मल्ह-]; मसमसता "नरका. [होशपूर्वक लचकाती जुओ मलार, मल्हार __चाले चालता] मल्लि आरारा (व). मोगरो (सं.मल्लिका) मसलई आरारा. मसळे [सं.मष] . मल्ली आनंस्त. *मल्लयुद्ध करनार, [मर्दन मसवाडउ आरारा. उक्तिर. कस्तुवा. नेमिछं. करनार] मदमो. रूस्तस. वाग्भबा. मास, महिनो; मल्ह- प्राचीफा. महालवू, [आनंद करवो] गुर्जरा. मासिक वेतन (*सं.मासवृत्तक) दि.] [सं.मास+पाटक/वाटक] मल्हार, मल्हारु *ऐतिका. प्राचीफा. आनंद मसवासी अंबरा. *कृष्णच. *प्रबोप्र. एक __ करावनार दि.मल्ह-); जुओ मलार प्रकारनी तापसी [*एक स्थळे - एक मल्हावइ जिनरा. लाड लडावे; चारफा. महिनो रहेनारी] शोभावे, [दीपावे] मसवासिणी अंबरा. एक प्रकारनी तापसी, मवइ अखाछ. उक्तिर. मापे (सं.मा-, मि-) [*एक स्थळे एक महिनो रहेनारी तापसी मवावि ऋषिरा. मपावे, गणे मसा गुर्जरा. विराप. मच्छर (सं.मशक) मशक प्रेमाका. मच्छर [सं.] मसाकति जिनरा. परिश्रम, [कष्ट, तपस्या] मशकलो अखाछ. पालीस करवानुं साधन, अ.मशक्कत]; जुओ मसगति [ओपणी] [अ.मिसकल] मसाहणी उक्तिर.प्रेमाका.सेनापति (सं.महामशारां रूस्तस. सुलेह [अ.मश्वुर] साधनिक) मशे दशस्क(२). नरका. प्रेमप. मिथे, मसि उक्तिर. गुर्जरा. मेश, [काजळ] (सं. बहाने, [निमित्ते] मषी) मश्र विमप्र. एक प्रकारनं कापड, मशरू मसि आरारा. विक्ररा. मिषे, बहाने, रूपे [अ.मश्रूअ] मसी प्रेमाका. मेश मषी ऋषिरा. मेश (सं.) मसीजणउ (मसीभाजणउ) उक्तिर. शाहीनो मस अखाछ. कादं(शा). नरका. प्रेमाका. खडियो (सं.मषीभाजनम्) बहानु; आरारा. कारण (सं.मिष) मसीत हम्मीप्र. मस्जिद 2010_03 Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३८३ मसीभाजणउ/महांत मसीभाजणउ जुओ मसीजणउ तेरका. शोभतुं (प्रा., सं.महान्त) मसीयारो कस्तुवा. वेताप. मुसारो, मासिक महंतपणुं अखाका. मोटाई, [महत्ता] पगार महाकारण अखाछ. ब्रह्म [सं.] मसु नलरा. मच्छर (सं.मशक) महाणसि, महाणसी ऐतिका. षडाबा. मसे मसे प्रेमाका. जुदीजुदी रीते, वारंवार, रसोडु, [रांधवानां वासणो], तेने लगती [*लालित्यपूर्वक, *धीमेधीमे] | (सं.महानस) मह गुर्जरा. तेरका. मारु (अप.; सं.मम) महातम अखेगी. माहात्म्य, महिमा महइला लावल. महिला महाविक अखाका. मादक [द्रव्य]; जुओ महइषी लावल. भेंस (प्रा.महिषी) मादक महउ लावल. महा महादिशा दशस्कं(१). महादशा महऋषि षडाबा. महा ऋषि महादे वीसरा. राणी (सं.महादेवी) महतउ उक्तिर. *प्राचीसं. *षडाबा. महा- महानिधि, महानिध्य अखाका. अखाछ. मात्य, मंत्री, महेतो (सं.महांत) चित्तसं. महाभंडाररूप परब्रह्म [सं.] महतउ, महितु, महुतउ गुर्जरा. मंत्री महाभाग प्रेमाका. महाभाग्यशाळी [सं.] (सं.महत् परथी) ___महामुंडा प्राचीसं. ?, दिवालयना स्थापत्यनुं महतार प्राचीसं. पिता (म.महतारा) कोई अंग] महती गुर्जरा. मंत्रीनी पत्नी _____महारंभ प्रेमाका. *महान आरंभ, [*मोटुं महमयण प्रद्युचु. कृष्ण (सं.मधुमथन) युद्ध] महमहहु आरारा. उक्तिर. गर्जरा, तेरका. महाििख विराप. महाऋषि नेमिछं. प्राचीफा. वसंफा. वसंवि. महारिसि गुर्जरा. महाऋषि वसंवि(ब्रा). मघमघे, महेके (द.) महारुख आरारा (व). थोर (सं.महावृक्ष) महराब हम्मीप्र. महेराब, (मस्जिदमां) कमान- महालणा (महालणादे) * मोसाच. [एक ना आकार- चणतर __ स्त्रीनाम] महलावइए * ऐतिका. [आनंद पमाडे, रंजन महाव अखेगी. माधव करे]; जुओ मल्हावइ महासईय गुर्जरा. महासती महला आरारा. महेल . महासति वीसरा. [जेनुं शकुन लेवामां आवे महलुउ, मुहलु प्रद्युचु. मोवडी, [मोटेरा] छे तेवू] एक पक्षी, [भैरवी के रूपारेल] दि.महल्लय] महासत्तु षडाबा. महात्मा (सं.महासत्त्व) महब्बय ऐतिका. महाव्रत महाहव गुर्जरा. मोटुं युद्ध (सं.) महंत आरारा. हरिख्या. उत्तम, श्रेष्ठ, मोटुं महांत नरका. वाग्भबा. महान, उत्कृष्ट [सं.] 2010_03 Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महिकार/ महुआल महिकार आरारा. महेकवुं ते महिखी शीलक. भेंस [ सं . महिषी ] महिगल हाथी (सं. मदकल); जुओ मइगल महिण उषाह. समुद्र [ सं . महार्णव; हिं . ]; जुओ महिणारंभ महिणउ जिनरा. महेणुं, [कलंक ] महिणारंभ उषाह. समुद्रमंथन; जुओ महिण महितउ आरारा. उषाह. विक्ररा. विमप्र. सिंहा (म). महतो, मंत्री, प्रधान ( सं . महत् परथी), जुओ महतउ ૧૮૪ महिरां अभिऊ. माह्यरामां (सं. मातृगृह) महिरांण प्राचीफा. महासागर; जुओ महिराण महिला विमप्र. मांह्यला, अंदरना महिलि उषाह. [महिला ], दासी 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मेल्ल) महिम गुर्जरा. महिमा महिमहि आरारा. मघमघे महिमानिलउ ऐतिरा. महिमावंत [सं. महिमानिलय] महिमूर ऐतिरा. अतिशय [ " दे. महप्पुर ] महियल ऐतिका. तेरका. प्राचीफा. वीसरा पृथ्वीतल, पृथ्वी, भूमि ( सं . महीतल) महियारां दशस्कं ( 9). गोवाळां महियां गुर्जरा. मही, दहीं (सं. मथित) महिर आनंस्त. आरारा. ऐतिका. प्राचीफा. शृंगामं. महेर, दया, कृपा महिराण ऐतिका. समुद्र, जुओ महिरांण, महेरांण महिरामण कादं (शा). महासागर (सं. महीयां * विमप्र. [मूर्ख, अज्ञानी] [रा. ] महार्णव) महुअर दशस्कं (१). वसंवि. मधुकर, भमरो महुअर, महुअरि, महुवर, महूअरि अखेगी. कृष्णच. कृष्णबा. दशस्कं (9). दशस्कं (२). नरका. नलरा. प्रेमाका. वांसळी, मोरली, मौवर महुआल उक्तिर. मधपूडो ( सं . मधुजाल); महिलि नलाख्या. मूके (प्रा. मिल्ल, महिली गुर्जरा. महिला महिवदु, महिवट्ट, मयवट, मइवट्ट प्राचीफा. * प्राचीसं. स्थूलिफा. सुगंधी पदार्थ वडे कपाळ उपर कराती आड; जुओ मावटी महिषी अखाका. नरका. प्रेमाका. भेंस [सं.] महिषीना कुंवरनं नरका. पाडानुं महिषु उक्तिर. पाडो (सं. महिषः) महिसि षडाबा. भेंस (सं. महिषी) मही अभिऊ. अखाका. पृथ्वी [सं.] मही अखाका. *वसंफा (ल). वसंवि. दहीं (सं. मथित) महीअल, महीयल ऐतिरा. गुर्जरा. विक्ररा. पृथ्वीपट, पृथ्वी [सं. महीतल] महीचा नरका. दहींनं महीडारो नरका. महीनुं, दहींनुं महीमंथन मदमो. माखण (सं. मथित+ मथन) महीय वसंफा. दहीं (सं. मथित) महीयल आरारा. ऐतिका. नेमिछं. लावल. सिंहा (म). स्थूलिफा. महीतल, पृथ्वी, धरती; जुओ महीअल Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जुओ महूआल महुकम नलरा. समर्थ (अ. मुहकम) महूता षष्टिप्र. मंत्री, महेता मला प्रेमाका. महिला; जुओ महेली महुत नलरा. विमप्र. मोटाई (सं. महत्त्व ) महुतउ जुओ महतउ महेलि प्राचीफा. स्त्री (सं. महिला ) महेली, मेहेला प्राचीका. स्त्री (सं. महिला) महेलीय गुर्जरा. महिला म षडाबा. महूडो [सं. मधुक] महुयर तेरका. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). महेलीयां ऋषिरा. महिलाओ, स्त्रीओ ३८५ मधुकर, भमरो महुर ऐतिका. गुर्जरा. तेरका. मधुर . महुरउ आरारा. झेर (सं. मधुर); उक्तिर. मधुरुं महुरप्पणु शृंगामं. मधुरपणुं महुलु जुओ महलुउ महुलेठी उक्तिर. जेठीमध (सं. मधुयष्टिः ) महुवर जुओ महुअर महूआ, महूयडा आरारा (व). महूडो (सं. मधूक) महूअउ उक्तिर. महूडो (सं. मधूकः) महूअर ऐतिका. वसंवि. वसंवि (ब्रा). मधुकर, भमरो 2010_03 महुकम / मंच महेंद्र वेताप. [ महेन्द्र पर्वत जेटलो ] अतिशय, प्रचंड, जुओ मेंद्र महोच्छव आरारा. गुर्जरा. महोत्सव; कादं (धु ). [ महोत्सव ], नाट्य महोछव जुओ महूछव महोम दशस्कं ( १ ). मोटम, मोटाई महोर (बाजीगर महोर) * अखाछ. [शेतरंजना पासा चलावनार (खेलाडी)], [कपटी, धूर्त ] महा पंचवा. मने ( सं . महाम्) मं उषाह. मने (सं. माम् ) मंख ऐतिका. [ राजदरबारी भाट ], भिक्षुक जाति [सं.] महूअरि जुओ महुअर मंग- तेरका मागवुं (सं. मार्ग) महूआल अंबरा. मधपूडो [सं. मधुजाल ] ; मंगल लावल. वीसरा. मंगल गीतो जुओ महुआल महूछव, महोछव आरारा. महोत्सव महूय ऐतिका. मधूक, महूडो एक मंगलचार, मंगलच्यारि प्राचीसं. विमप्र. मंगलाचार, मांगलिक क्रिया मंगलाच्यार वीसरा. [मांगलिक क्रिया ], मांगलिक गीत (सं. मंगलाचार) महूयडा जुओ महूअ महूयर, महूयरि प्रद्युचु. प्राचीफा. हरिवि. मंगलेवउ उक्तिर मांगलिक दीवो ७ महुवर वाटनी आरती पछी १ वाटना दीवानी महूरत विमप्र. शृंगामं. मुहूर्त वांसळी, आरती (सं.मंगलदीपक) [जै.] महेरांण, मेहेरांण मदमो. महेरामण, सागर मंच गुर्जरा. मांचडो, ऊंचे ऊभुं करेलुं जुओ महिराण आसन (सं.); विक्ररा. खाटलो Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंचक/मंत्रेइ मंचक प्रेमाका. विक्ररा. खाटलो, पलंग मंजन प्रेमाका. स्नान [सं. मजन] मंजार उक्तिर. बिलाडो (सं. मार्जार) मंजारि, मंजारी आरारा. कामा (त्रि). बिलाडी (सं. मार्जार) ३८६ मंजीठ नलरा. मजीठ, [लाल रंग आपती वनस्पति]; लाल रंग (सं. मंजिष्ठा) मंजीर प्राचीफा. झांझर (सं.) मंजूस उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. पेटी (सं.मंजूषा) मंजूसडी शृंगामं. पटारो (सं. मंजूषा) मंझार, मंझारि अखाका. आरारा. वीसरा. मध्ये, मां, अंदर [* सं. मध्य+कार ] मंड अखाका. अखाछ. अखेगी. मांडणी, रचना मंडइ अभिऊ. उषाह. ऋषिरा. ऐतिका. ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. नैमिछं. लावल. वीसरा. मांडे, आरंभे, करे, मूके; उक्तिर. गुर्जरा. शणगारे, शोभावे (सं. मंडयति ) मंडक लावल. * षडाबा. एक प्रकारनी रोटली, [मांडा, पूडा ] (सं.) मंडण आरारा. गुर्जरा. तेरका विराप. मंडन, शणगार सजवा ते, [शोभा ] मंडणउ तेरका. प्राचीफा. अलंकार, शोभा [करार], विभूषक (सं. मंडनक) मंडणि, मंडणी ऐतिरा. नेमिछं. शोभा (सं.मंडन - ) मंडल तेरका. मंडळ, समूह; [ प्रदेश ] मंडली, मंडलीक उषाह. विक्ररा. मांडलिक, खंडियो राजा, [प्रादेशिक अधिपति ] 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मंडव गुर्जरा. प्रेमाका. मंडप मंडा जुओ गुलमंडा मंडाण आरारा. साजसरंजाम; आरारा. चारफा. नेमिछं. तैयारी, योजना, व्यवस्था; नेमिछं. रचना, [घटना], ऋषिरा. * आरंभ, [मांडवुं ते, करवुं ते ]; प्रेमाका. आरंभ; गुर्जरा. देवरा. विमप्र. मांडणी, रचना, [फेलावो]; हरिख्या. पायो, [रचनानो मूळ आधार ] मंडावर गुर्जरा. नैमिछं. करावे; प्रेमप. लखावे मंडावी आरारा (व). मांडवी, मगफळी ? मंडि तेरका. मांड, पराणे ( अप; सं. * मर्देन) मंडी कादं (शा). "शोभित, [थई] (सं. मंडित) मंड्य अखाका. चित्तसं. मांडणी, रचना, सृष्टि मणीपुर मदमो. मणिबंध, कांडुं मंत जिनरा. मंत्र मंति तेरका. मंत्री मंत्र हरिख्या. खानगी मसलत (सं.) मंत्रइ उक्तिर. मंत्रणा करे, परामर्श करे (सं. मन्त्रयते) मंत्रवी आरारा. प्रधानमंत्री (सं. मंत्रिपति) मंत्रासरू उक्तिर. मंत्रणाखंड (सं.मंत्रावसरः) मंत्रींदु षडाबा. मुख्य मंत्री (सं.मंत्रीन्द्र) मंत्रीसर गुर्जरा. लावल. मंत्रीश्वर मंत्रीस्वर आरारा. मंत्रीश्वर मंत्रेइ आरारा. ओरमान (माता) (रा.); जुओ माई Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३८७. मंथाणउ/माछिली मंथाणउ उक्तिर. रवैयो (सं.मन्थानक) मातृशाला] मंदधी अखाका. मंद बुद्धिवाळा माउलाणि जुओ मुलाणि मंदर कामा(त्रि). चतुचा. देवरा. घर, मकान मा(उ)लाही उक्तिर. मोळाई, मामानुं (सं.मंदिर) (सं.मातुल परथी) मंदरसा हम्मीप्र. मदरेसा, निशाळ माकडी दशस्क(२). मांकडाना वाननी, मंदिर प्रेमप. घर [भूरा रंगनी मंदोवरी मदमो. मंदोदरी माकण उक्तिर. मांकड, एक जंतु (सं. मन-धारण प्रेमाका. दिलासो, आश्वासन मत्कुणः) मंमाणी प्राचीफा. एक राजस्थानना मकरान माकंद *ऐतिका. [आम्रवृक्ष] [सं.] प्रदेशनी] खाण, ज्यांथी उत्तम आरसना माग आरारा.मार्ग, रीति, प्रणालिका; लावल. पथ्थर नीकळता हता "वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). मार्ग माइ चित्तसं. माया माग, माघ प्राचीफा. हरिवि. सेंथो (सं.माग) माइ, माई उक्तिर. गुर्जरा. चित्तसं. तेरका. माग तुं मान प्रेमाका. विनंती कर; जुओ लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). मान मागवू वीसरा. माता ___ मागध ऋषिरा. स्तुतिपाठक, भाटचारणो माइघरिहि आरारा. मारामां (सं.मातृगृह) [सं.] माइणी आरारा (व). इंद्रामणी (सं. मागी लावि आरारा. मागी ले मृगादनी) ?, आंबळानुं वृक्ष (दे. माघ मदमो. माघकाव्य, शिशुपालवध माइंदा) ? माघ जुओ माग माई *उपबा, विमप्र. 'अकारादि वर्णमाळा माचइ आनंस्त. उक्तिर. नरका. नलरा. ___ (सं.मातृका) नेमिछं. *राचे, *आनंदित थाय, [गर्व माई जुओ माइ धरे, फुलाय, मत्त बने]; गुर्जरा. तेरका. माईय (माईयहायी) उक्तिर. मासियाई "देवरा. माते, गर्व धरे, [फुलाय] (सं.मातृष्वस्रीय); जुओ मासिहाई (सं.माद्यति) माउणो पंचवा. मनुष्य (सं.मानुष) माछ, माछा उक्तिर. उपबा. वीसरा. माछली *माउल उषाह. माळा (सं.माला) (सं.मत्स्य) माउलउ उक्तिर. गुर्जरा. विमप्र. षडाबा. माछन लेवू दशस्क(१). मछन लेवू, . मामो (सं.मातुल) आचमन लेवू, जुओ मछण । माउलाणि जुओ मुलाणि माछा जुओ माछ माउसाल प्राचीसं. मोसाळ, मातुलगृह [सं. माछिली गुर्जरा. नलरा. माछली (सं.मत्स्य 2010_03 Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माछी /माणिणि परथी) माछी आरारा. लावल. माछली भाजणउ उक्तिर. स्नान (सं. मज्जन ) माजन कृष्णबा. अंदाज, अटकळ; जुओ माझ ३८८ माजम सिंहा (शा). भांगना सत्त्वमां बीजां वसाणां नाखी बनावेलो केफी पदार्थ (अ. मअजून; म. माजूम) माजा मदमो. प्रमाण, [ माप ] ( सं . मर्यादा) माझि गुर्जरा. मध्ये, मां (सं. मध्यमे ) माझ उक्तिर. चतुचा. मध्य माझ ( माझन ) नलरा. अंदाज, [माप, सीमा ] [ अ.मवाजीन]; जुओ माजन माझारी गुर्जरा. मां (सं. मध्य परधी) माझि अंबरा. तेरका. प्राचीसं. मध्ये, मां, मांहि, अंदर, वच्चे माझिला गुर्जरा. अंदरना (सं. मध्य + इल्ल) माझीम रात्य सिंहा (शा). मधरात माट नरप ( द ). प्रेमाका लावल. माटलुं माडी लावल. माटली (सं. मृत्तिका) माटी अखाका. चतुचा. नरका. "विमप्र मरद, पुरुष, बहादुर माटीडा प्रेमाका. बहादुर, मरद माटीपणउं विक्ररा. मर्दाई माउं • 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मायुं हीं दशस्कं ( 9). प्रेमाका. खोटुं आचरण कर माड विक्ररा. माळ; उषाह. मेडी [ वाळु घर] (द. माडिअ ) माइ गुर्जरा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). आरंभे, मांडे, [करे ] (सं.मंडयति) माडली पंचवा. पोची, [शिथिल, सडी गयेली] [सं. मर्दित] माडिय प्राचीसं. माता, माडी M माडी * अखाछ. [ मांडीने, स्थापीने]; जुओ माडइ माडो पंचवा. मोटो, [जबरदस्त, भयंकर ] [रा. माठौ] माण कादं (धु). कादं (शा). थोडुं, जराक (सं. मनाक् ) माणइ वीसरा. माने, स्वीकारे (सं. मानयति) माणणि तेरका मानिनी माणस वहोणो प्रेमप. मानवसहज विवेक विनानो माटो लावल. माटलां [प्रास माटे 'माट'नुं माणसामउ उक्तिर. [?] (सं. मनुष्यात्मकः) माटो ] माण अभिऊ. गुर्जरा. चारफा. तेरका. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). मान, गर्व, अभिमान; आरारा. मान, [आदर ] माइ नलरा. नलाख्या. म आणे, न लावे (सं.मा+आनयति) · विमप्र. षडाबा. ढीलुं, प्रधुचु. [सुस्त], ओछु माठी सिंहा (शा). माठेलुं, घडेलुं (सं. मृष्ट), माणिण ऐतिका. गर्वथी [* घडेलो पथ्थर के ईंट ] माणिणि वसंफा (ल). मानिनी माणिक गुर्जरा. पंचवा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. माणेक (सं. माणिक्य) Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश माणिणी-माण / मानमुहुत माणिणी-माण वसंवि (ब्रा). मानिनीनो दर्प माथे थवं * प्रेमाका. [चडी आववुं ] (सं. मानिनीमान) माणिस नलाख्या. माणस ( सं . मानुष) माणी उक्तिर. पंचवा. बार मणनुं तोल, [एटलुं समावे एवं पात्र ] (सं. माणिका); जुओ मांणीक मादक, मादिक अखाछ. चित्तसं. मद केफ चडावनार; मद केफ चड्यो होय एवी व्यक्ति; चित्तसं. मदीलापणुं जुओ महादिक माणुस गुर्जरा. षडाबा. माणस ( सं . मानुष) माणुसहाणि गुर्जरा. माणसनी गंध (सं. मानुषघ्राणिका) माण्य अखाका. माण, गागर मातपण उपबा. मदीलापणुं [सं. मत्तत्वन] मातम अखाछ. माहात्म्य, मोटाई मातर सात लावल. सात मातृका [शक्तिदेवी] ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, आज्ञेयी अने इन्द्राणी - ३८९ मातरा चंद्रवा सामग्री, [ मालमत्ता, धन] [सं. मात्रा ] मात ं आनंस्त. प्रेमाका. हृष्टपुष्ट, प्रेमाका. उदार, मोटुं; अखाका. उपबा. गुर्जरा. तेरका. नरका. वसंवि. वसंवि (ब्रा). विराप.मत्त, [घेलुंबनेलुं], [सघन बनेलुं] मातंग अखाका. नरका. प्रेमाका. हाथी [सं.] मातुल प्रेमाका. मामा [सं.] मात्रा विना उक्तिर. पात्र (सं. मात्रकं विना ) - 2010_03 मध्य. २५ वासण विना मादकवान चित्तसं. मदीली [ नशीली ] व्यक्ति - मादल उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. नरका. प्रचु. प्राचीफा. सिंहा (शा). एक वाद्य, मृदंग (सं. मर्दल) मादळियुं, मादलीउं नलरा. प्रेमाका. लावल. [ डोकनुं ] एक घरेणुं (सं. मर्दल) मादिक जुओ मादक माघ जुओ मझार माघुगरी प्राचीका. भिक्षा (सं. माधुकरी) मान अखाका. ऐतिरा. * गुर्जरा. लावल. प्रमाण, माप [ सं . ]; चित्तसं. माप, धोरण, मोभो, स्थान, परिमाण, जथ्यो; जुओ मोहन मान मान प्रेमाका. ताल [नो एक विराम] [सं.] मान अखाका. गुर्जरा. प्रेमाका लावल. अभिमान; नरका. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). अभिमान, रीस, प्रणयप्रकोप (सं.) मानअं षष्टिप्र. (तुं) माने छे मानइ आरारा. उक्तिर. लावल. वीसरा. मान आपे ( सं . मन्यते ) मात्रेई आरारा. ओरमान (माता) (रा.) [ सं . मातृका]; जुओ मंत्रेइ माथासरुं चित्तसं. मथाळु, माथेनो आधार मानमुहुत जुओ मुहुत मान मागवुं दशस्कं ( 9). नरका. प्रेमप. प्रेमाका. विनंती, आजीजी के. कालावाला करवा; जुओ माग तुं मान Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानरस/ मारू आडि मानरस नरका. "मानिनी गोपीओनां अभिमान तजाववानो रस, [ गोपीओनी प्रणयरीसना प्रसंगनो रस ] मानवी गुर्जरा. [ मानव ] स्त्री मान- शुकन दशस्कं (१). अपशुकन; जुओ मुहुत मानसी प्रेमाका. मनना, [हृदयना] मानी प्रेमाका मानीती, [मान आपेली ] मानीनता अखाका. अखाछ. मानीपणुं, अहंभाव मानुख दशस्कं ( १ ). मनुष्य मानुस कामा (त्रि). मनुष्य मानेश घे जुओ श माप नंदब. रूस्तस. माफ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मायंद प्राचीसं. आम्रवृक्ष (सं. माकन्द) माया नेमिछं. लावल. शृंगामं. माता माया आरारा. कपट; चमत्कार; जुओ माया मांडे प्रेमाका. मायामउ षडाबा. मायावी, बनावटी (सं. मायामय) माया मांडे ० प्रेमाका. कावतरां करे, [कपट करे ]: जुओ माया - ३९० माम अखाका. आरारा. उषाह. चतुचा प्रचु. प्रेमप. प्रेमाकां. मोसाच. ललिरा. लावल. विमप्र. वीसरा. मोटाई, गौरव, स्वमान, प्रतिष्ठा, मोभो, "टेक, * ममत (सं. माहात्म्य) (सं. ममत्व) मामणा वचन जिनरा. बाळकोनी कालीघेली, तोतडी वाणी [दे.मम्मण] माहरु विमप्र. मामेरुं [ गु. मामा + सं . गृह ] 2010_03 माय अखाका. माया माय गुर्जरा. षडाबा. मा (सं. माता); विक्ररा. स्त्रीने संबोधन, मा मायताय ऐतिरा. ऋषिरा. मातापिता [सं. माततात] मायड देवरा. माडी (सं. माता+डी) लावल. मायंड, मायंडू ऐतिका. प्राचीसं. मार्तंड, सूर्य मायावी " हरिख्या. [कपटवेश धारण करनार ] मायावी उपबा. कपटी (सं. मायावी ) मायी आनंस्त. मायावाकुं, [रागवाळु ] मायुंगोयुं उपबा. वाकुंचूकूं, [आडुंअवकुं, छळकपटभ (सं. मायित+गोपित) मार उषाह. सख्त मारनी घांटी, [ अडचण ] मार तेरका. प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). कामदेव (सं.) मारगु प्रेमाका. वेताप. वटेमार्ग, मुसाफर मारणहार उक्तिर. प्राचीसं मारनार मारणी आरारा. हत्या मारमारगउदीपक वसंवि. वसंवि (ब्रा). कामना मार्गने प्रकाशित करती (सं. मार+मार्ग+उद्दीपक) मारविकार लावल. मार (काम) ना विकार, विषयवासना मारिबउ उक्तिर, मावुं मारीतउं उक्तिर. मरातुं, हणातुं मारुआड अखाछ. मारवाड मारुआडि नलाख्या. मारवाड, मरुभूमि सूको प्रदेश Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालीन गुजराती शब्दकोश ३९१ मारुणि/माहव नारणि ऐतिका. मारवाडनी महाले, आनंद करे, आनंदमस्तीथी घूमे त चित्तसं. मरुत, पवन मावटी प्राचीफा. "स्त्रीनी सेंथी उपरनो एक भारुपी ऋषिरा. मारवाड देशनी स्त्री अलंकार, [*कपाळ पर कराती सुगंधी मारू उक्तिर. वीसरा. मारवाड पदार्थनी आड]; जुओ महिवटु भारो गुर्जरा. कामदेव (सं.मार) मावीत जिनरा. मातापिता, मावतर मारोमारि प्राचीसं. मारामारी मावीत्र षडाबा. मातापिता (सं.मातृपित) मार्गण गुर्जरा. विराप. तीर (सं.मार्गण) मावीत्रह गुर्जरा. मावतर (सं.मातृ+पित) मार्जन प्रेमाका. साफ करवानी क्रिया [सं.] मासउ उक्तिर. आठ रतीनुं वजन (सं. माल अखाका. "विसात, [आनंद]; जुओ माषकः) मालणो, म्हाल मासकल्प "उपबा. एक स्थाने एक मास माल तेरका. माळियुं, मांचडो (द.) रहेवानो जैन साधुनो आचार (सं.) माल गुर्जरा. नलरा. प्राचीफा. पहेलवान मासमउ उक्तिर. महिनानो गाळो पूरी करतो (सं.मल्ल) (दिवस) माळ वीसरा. वनप्रदेश मासिक कर्म प्रेमाका. जन्म पछी एक महिने माळ वीसरा. एक पक्षी करवानो संस्कार - धार्मिक विधि मालणो नरका. महालनार; जुओ माल मासिहाई उक्तिर. मासियाई (सं.मातृमालवराउ गुर्जरा. मालवदेशनो राजा ध्वस्रीयः); जुओ माईय मालविणी ऋषिरा. मालवदेशनी स्त्री मासीष जुओ अष्ट मासीध मालविया उषाह. मल्लविद्या मास्याही उक्तिर. मासियाई (सं.मातृ मालाखाड उषाह. दशस्क(२). नलरा. ___ष्वस्रीय) नेमिछं. प्राचीफा. लावल. मल्लोनो अखाडो, व्यायामशाळा (सं.मल्ल+ माह (सीत-नुमाह) *लावल. ["सीताने जोवा आवनार, "सीतानी भाळ लेवा अक्षवाट) मालिया ऐतिका. [माळवाळा] महेल आवनार] [सं.सीता+फा.नुमा] मालीउं अभिऊ. नलाख्या. माळ, मजलो; * *लावल. [माळवाळां मकान दि. माहण आरारा. जिनरा. ब्राह्मण (सं.माहन) माल] माहणी आरारा. ब्राह्मणी मालुकार मदमो. वणकर, ढेड माहरि विमप्र. माहारामां मालोवम ऐतिका. मालोपम.... . माय कृष्णवा. दशस्क(२). नेमिछं. माधव, मालाइ गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. प्राचीफा. कृष्ण __ 2010_03 _ For Private & Personal use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहंत/मांडण . . ३९२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश माहंत अखाछ. अखेगी. कादं(शा). महंत, (सं.मर्कटी) महापुरुष, महात्मा [सं.] मांकुण उक्तिर. षडाबा. मांकड (सं.मत्कुणः) माहा नलाख्या. रूस्तस. महा, मोटुं मांग नरका. मदमो. सिंहा(शा). सेंथो (सं. माहाअग्नि चित्तसं. विश्वाग्नि, विश्वमा माग) व्याप्त अग्नि मांचउ उक्तिर. खाटलो (सं.मंचकः); माहाजम मदमो. माझम, [मध्य] नलाख्या.मांचडो, ऊंची बेठकोनीमांडणी माहानिध्य चित्तसं. महानिधि, [महाभंडार- मांची आरारा. उक्तिर. नरका. प्रेमाका. रूप] ब्रह्म खाटली (सं.मंचिका) माहाले नलाख्या. महाले, माणे, [आनंदथी मांजर आरारा. प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. फरे] मंजरी माहाव अभिऊ. दशस्कं(२). माधव, कृष्ण मांजरि उक्तिर. मंजरी माहावके चतुचा. माधव पासेथी मांजार दशस्कं(२). मांजर, मंजरी माहावर नरप. लाखनोरंग,जेनाथी स्त्रीओ मांजार, मांझार प्रेमाका.बिलाडो [सं.मार्जार] पानी रंगे छ] [हिं.महावर] मांझ प्रेमाका. मांहे, मध्ये माहि, माहिं उपबा. गुर्जरा. तेरका. मांझार जुओ मांजार नलाख्या. वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). मांटिय प्राचीसं. सुभट, [मद] वीसरा. षडाबा. अंदर, -मां (स.मध्य) मांटी आरारा. मर्द, पति; ललिरा. मरद, माहि थिकी उपबा. -मांथी पुरुष; उषाह. मरद, [बहादुर पुरुष] माहिलउ उपबा. नलरा. वीसरा. षडाबा. मांड उक्तिर. वीसरा. चोखानुं ओसामण __ अंदरनुं (सं.मध्य+ल) (सं.मंड) माहिल्युं उक्तिर. मांहिलं, अंदरनुं मांड अखाका. उपबा. गुर्जरा. प्राचीसं. माहि जुओ माहि मदमो. विराप. बळपूर्वक, पराणे (दे. माहे, माहें वीसरा. -मां (सं.मध्य) मड्डा); प्राचीफा.*मुश्केलीए, *मांडमांड, माहेरुं प्रेमाका. [माह्यरुं], लग्ननी विधि [पराणे] करवानो मंडप मांडइ गुर्जरा. आरंभे, शणगारे, [रचे, करे]; माहि नलाख्या. मारे तेरका. मांडे, [शरू करे]; हरिवि. मंडित मांकड नलरा. रूपच. मांकडं, वानर करे; अभिऊ. मांडे, मूके; आरारा. [सं.मर्कट] गोठवे; उपबा. लखे, [मूके] (सं.मंड्) मांकडी षडाबा. घंटी, लोढा के लाकडानुं मांडइ गुर्जरा. बळपूर्वक, [पराणे] चोकळु [जेमां घंटीनो खीलो रहे छे] मांडण चतुचा. नलरा. शणगार (सं.मंडन) ___ 2010_03 Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मांडणउ उक्तिर. शृंगार, सजावट, जिनरा. [ मांगलिक प्रसंगे घर-आंगणे करवामां आवतां] चित्रांकन मांडलउं * षडाबा. [ चोक्कस परिस्थितिमां करवामां आवती हाथ हलावीने थती जैन क्रिया]; उपबा. हरिवि. मंडळ, ३९३ समूह मांडवीआ विमप्र. जकातना नाकेदारो मांडहर वीसरा. मांडवो (सं.मंडप ) मांडहिय उक्तिर. बळपूर्वक, पराणे मांडा अभिऊ. उक्तिर. पूरणपोळी जेवी एक प्रकारनी रोटली, [पूडा ] [दे. मंडक] मांडी आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. पूरणपोळी जेवी रोटली, [पूडा] मांडो मोसाच. एक गायक जाति, [चारण जाति] मांडो नरका. ? मांणउ ऋषिरा. न लावशो (सं.मा+आनय) मांणीक चंद्रवा. बार मणनी माणी; जुओ माणी मांणे चंद्रवा. माने मांतरा सिंहा (शा). महामात्र, मांन लावल. अभिमान मांनुनी मदमो. मानिनी मां आनंस्त. ऋषिरा. कामा (शा). गुर्जरा. विराप. वीसरा. [ महत्त्व ], गौरव, टेक (सं. माहाल्य) "वीसरा. [गौरवपूर्वक, आदरपूर्वक ] महाख्या. मांह्यलो, अंदरनो (सं. मध्य परथी) 2010_03 महेताजी मांहां नलाख्या. मां, अंदर मांहारू मदमो. माह्यरुं, [लग्नमंडप ] मि अभिऊ. कादं (शा). नलाख्या. में (सं. मया) मिई लावल. में मिगल जुओ मदमिगल मांडणउ / मित्तडी मिच्छत्त जिनरा. मिथ्यात्व (गुणस्थान) [ज्यां सत्य तत्त्व पर मुख्यत्वे अश्रद्धा छे एवी आत्मावस्था] [जै.] मिच्छात जिनरा. मिथ्यात्व [ सत्य तत्त्व पर अश्रद्धा ] [ जै. ] मिच्छादुक्कडं ऋषिरा. मारुं दुष्कृत्य मिथ्या थाओ [जै.] मिछत ऐतिका. मिथ्यात्व [सत्य तत्त्व पर अश्रद्धा] [जै.] मिछी * विमप्र. [* मिथ्यात्वी, * अन्यमती; * म्लेच्छ] [जै,] मिटाई आरारा. मीठाई मिणा देवरा. मीण [जेवा कोमळ] (सं. मदन) मिणाय दशस्कं ( 9). प्रेमाका. वटके, पानो चोरे, दूध चोरे मित अखाका. माप [ वाळुं], [सीमित ] मिताक्षरा * प्रेमाका. [ याज्ञवल्क्य स्मृति उपरनी विज्ञानेश्वरनी टीका, जे एक मान्य धर्मशास्त्र छे] मिताचार प्राचीसं. मित्राचार, मैत्री मित्त " अभिऊ. [मैत्री, स्नेहसंबंध ] ; गुर्जरा. तेरका. षडाबा. मित्र मित्तडी शृंगामं. मित्रता Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मितुवि/मिहिj ३९४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मिनुवि ऐतिका. मित्र पण (सं.मित्र+अपि) मिलातु आनंस्त. [मळातुं, भेगा थवातुं। मित्राई उक्तिर. मैत्री मिलायइ उक्तिर. म्लान थाय, निस्तेज थाय मित्रेइ आरारा. ओस्मान (माता) (रा.) (सं.म्लायति) [सं.मातृका] मिलियागिरि प्राचीफा. मलयगिरि, दक्षिणमां मिया इलाख्या. मिथ्या, 'फोगट __ आवेलो एक पर्वत मिष्यात आनंस्त. मिथ्यात्व नामनुप्रथम गुण- मिली आगरा. भेगुं, साथे स्थान, आत्मानी निकृष्ट अवस्था [जै. मिलीआनील प्राचीफा. मलयगिरि उपरथी मिथ्यात्वशल्य ऐतिका. मिथ्यात्व सत्य तत्त्व आवतो पवन, दक्षिणानिल (सं.मलया पर अश्रद्धा] रूपी शल्य [जै. निल) मिवाणव अभिऊ. मयदानव, एक असूर, मिल्हइ गुर्जरा. तैरका. प्राचीसं. मेले, मूके, दानवोनो स्थपति छोडे दि.मेल्ल) मिमासण अंबरा. विमासण मिशइ कादं(शा). बहाने (सं.मिष); प्रबोप्र. मिय-कुंड प्राचीसं. अमृतकुंड __ बहाने, [रूपे] मियमत्त [मयमत्त] प्रद्युचु. मदमत्त मित्र कादं(ध). द्विअर्थी मियमय "शृंगाम. [मृगयुक्त मिष्टाण देवरा. मिष्टान्न मिरगानेणी आरारा. मृगनयनी मिस ऐतिका. मिश्र, युक्त । मिरांत प्रेमाका. दोलत [अ.मिरास, मिस उपबा. ऋषिरा. काद(शा). गुजरा. ___ अमीरात] विराप. बहानु (सं.मिष) मिरिय तेरका. प्राचीसं. मरी (सं.मिरिच) मिसरी आनंस्त. साकर [अ.मिस्री] मिरी जिनरा. नेमिछं.मरी, तीखां (सं.मिरिच) मिसरु ऐतिका. [मशरू], वस्त्रविशेष [अ. मिल नलाख्या. मेल, शरीर पर जामतो आछो गंदो थर मिसि विराप. मेश, राख; शृंगाम. शाही मिलइ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. गर्जरा. (स.मषा) तेरका. देवरा. लावल. वसंफा. वसंवि. मिसि क्संफा(ल). बहाने, [रूपे] (सं.मिष) वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. मळे, मिसिवान अंबरा. मषीवर्ण, मेशना रंगनुं एकठा थाय, संग करे (सं.मिल्) काळु मिलडी, मिहिलडी अभिऊ. मेलडी माता मिसेण शृंगाम. [ना बहाने] [सं.मिषेन] मिलयाचल सिंहा(शा). मलय पर्वत (सं. मिहर गुर्जरा. सूर्य (सं.मिहिर) मलयाचल) मिहरि आरारा. महेर, कृपा मिळा- वीसरा. मेळवावु, मेळाप करावु मिहिणुं प्रेमाका. महे| 2010_03 Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३९५ - मिहितो/मुक्खहलि मिहितो जुओ मुहितो .. मीसरी नरप(द). खांड मिहिलडी जुओ मिलडी मीसा जिनरा. मिश्र, [सम्यक्त्व अने मिहिली, मेहिली, मेहेली नलाख्या. मेली. मिथ्यात्वना मिश्रणवाळी आत्मावस्था मूकी, छोडी दीधी (प्रा.मिल्ल, मेल्ल) [जै.] मीच पंचवा. मृत्यु मोहनति ऋषिरा. महेनत वडे मीजी जिनरा. मज्जा, [मर्मभाग] मीजी उक्तिर. मज्जा, हाडमांसनो मावो मीटमेळावो नरका-२. दृष्टिनुं मिलन मीडां प्रेमाका. वांकडी शींगडीओवाळां मीटि. नलाख्या. मीट, मांडेली नजर मीडी दशस्क(१). दशस्क(२). प्रेमाका. मीठडां नरका. नरप(द). ओवारणां __वांकडियां शींगडांवाळी; जुओ मीढी मीडाक, मेंडक चंद्रवा. देडको मीडहुल विक्ररा. मीढळ [सं.मदनफल] जीतां जिस्म तुलना करतां [रा.] मीढउ अखेगी. उक्तिर. मेंढो, घेटो (सं. मीढा सस्तम. मेंढा, [घेटां] मेंढक) मोढी उक्तिर. वांकां शिंगडांवाळी; जुओ मीठइ उक्तिर. मींडे, मींडु होवानी स्थितिमां मीढी * मीढल आरारा (व). मीढळy झाड (सं. मीढीआउलि आरारा(व). मीढियावळ मदनफल) मीत जिनरा. वसंफा. वसंवि. वसंविबा). मीढी उक्तिर. वाका शीगडावाळी; जुओं मित्र; वीसरा. मित्र, प्रेमी; नरका... मीढी, मींडी प्रेमाका. मैत्री, प्रीति मींत्री कामा(शा). मंत्री; जुओ मीतर मीतर, मीत्र, मीत्री, मीत्री कामा(त्रि). मु चतुचा. मारुं, मारे मंत्री, वजीर, प्रधान मु कादं(शा). प्रबोप्र. मोढुं, [मो] (सं.मुख) मीनति अंबरा. जिनरा. प्राचीफा. विमप्र. मुआला रूस्तस. मोवाळो, [वाळ] शृंगामं. विनंति (सं.विज्ञप्ति; हिं.मिन्नत) मुकतुं अखाछ. मोकळु, छूटुं, निरंकुश .. मीयांइ शृंगाम. मृगने [सं.मुक्त] मीलाण पंचवा. मेलाण, मुकाम, पडाव मुकरी कस्तुवा. नामुक्कर जवू, कहीने फरी मीली कादं(शा). [बंध करी, बीडी] जवु [सं.मिल्] मुकलावइ, मोकलावइ "गुर्जरा. तेरका. मीस मोहनि जिनरा. मिश्र मोहनीय शुद्ध प्राचीसं. रजा मांगे, विदाय ले (सं.मुक्त दर्शन तरफ रुचि पण न थाय अने परथी) अरुचि पण न थाय एवी कर्मदशा] मुक्क- तेरका. मूक्युं (सं.मुक्त) [जै. ___ मुक्खाहलि ऐतिका. मोक्षस्थले ___ 2010_03 Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ मुक्ता/मुझार मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मुक्ता अखाका. मुक्त [जीवो] करती वखते पहेरवानां रिशमी वस्त्र मुक्ताफळ अखाका. मोती मुगतई आरारा. मुक्तिमां, मोक्षमा मुक्तावलि गुर्जरा. [चोक्कस प्रकारनी चडती मुगताफल लावल. मोती (सं.मुक्ताफल) उपवास-श्रेणीवाळो] एक तपप्रकार मुगतां अभिऊ. ऐतिरा. उघाडां, (मरजीमां (सं.) [जै.] ___आवे ते लई लेवा माटे खुल्ला) मुक्ताशिला कादं(ध). धोळो आरस मुगतांवलि देवरा. मोतीनो हार (सं. मुक्त्य अखेगी. मुक्ति मुक्तावलि) मुक्ष चित्तसं. मुख; जुओ मुज मुक्ष मुगतिशिला प्राचीफा. सर्वार्थसिद्ध स्वर्गनी मुख चंद्रवा. मुख्य उपर बार जोजने आवेलु मुक्त जीवोनुं मुख ऊडी जर्बु प्रेमाका. फिक्का पडी जवं, स्थान (सं.मुक्तिशिला) (जै.) ढीला थई जर्बु मुगधा आरारा. भोळी; *ऋषिरा. मुग्धा, मुखक विक्ररा. मूषक, [उंदर] भोळी, सरल स्त्री मुखकोसु षडाबा. कपडाथी मोंने ढांक ते मुगनी (मुगनी फली) लावल. मगनी [सींग]; (सं.मुखकोश) जुओ मूंगफली मुखटाळो प्रेमाका. मुख जोवानुं टाळवू ते, मुगरबी यंत्र, मुगरवी यंत्र हम्मीप्र. मगरबी [-थी दूर रहेवू ते] . __ यंत्र, गोळा फेंकवा, यंत्र मुखमल जिनरा. मखमल [अ.] *मुगलभेर [भुंगलभेर चंद्रवा. एक प्रकारचें मुखरेखा आरारा. मोंफाड, होठ ? वाद्य, [भुंगळ अने भेरी] मुखवटउ विमप्र. मोंनो विस्तार, [मुखप्रदेश] मुग्ध आरारा. भोळो [सं.मुखपट]; जुओ मखवट्टउ मुहवटा मुचकोडी गुर्जरा.मचकोडी (सं.*मुचत्कृतति) मुखामुखि उक्तिर. [*मुखोमुख होवू ते] मुच्छाइ शृंगामं. *मूर्छाथी, [मूर्छा पामे] (सं.मुखामुख्यता) मुज चित्तसं. मने [सं.मह्यम् मुखास उक्तिर. जडबां (सं.मुखास्याः) मुज मुक्ष चित्तसं. मारे मोढे, मने · मुखी मदमो. मुख्य मुजरो प्रेमाका. प्रणाम मुखे वश आंगळी *प्रेमाका. [शरणागतिना मुजल उक्तिर. [?] (सं.मुखजलम्) __ भावथी मुज्झ षडाबा. मूंझा, भ्रमित था (सं.मुह्य-) मुख्य आरारा. आदि, वगेरे मुझ नेमिछं. भारु, मने लावल. मने [सं. मुख्य चित्तसं. मुख मह्यम् मुग उक्तिर. मग (सं.मुद्गाः ) मुझार, मोझार कामा(शा). देवरा. मध्ये, मुगटा प्रेमाका. अबोटियां, जमती के पूजा [-मां]; जुओ मझार 2010_03 Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३९७ मुझारि/मुरकतउ मुझारि कादं(शा). नलाख्या. प्राचीका. मां, मुद्ग षडाबा. मग (सं.) . .. __ अंदर (सं.मध्य परथी) मुद्गळ प्रेमाका. एक प्रकारy [गदाना जेवं] मुझु तेरका. मारुं (सं.मह्यम्) शस्त्र [सं.मुद्गर] मुडइ उक्तिर. धीमेधीमे; जुओ मोडे-मोडे मुद्दा तेरका. मुद्रा, छाप .. मुडाधा हम्मीप्र. मुकुटबद्ध (राजा), सामंत मुद्धि तेरका. हे मुग्धा (राजाओ); जुओ मुडुधा मुद्रडउ वीसरा. वींटी (सं.मुद्रा) मुडामां कस्तुवा. मोढामां मुद्रडी चारफा. दशस्कं(१). प्रेमाका. मुडुधा, मुडध्या नलरा. विक्ररा. सामंत राजा विक्रच. मुद्रिका, वींटी (सं.मुकुटबद्ध); जुओ मउडउध, मुडाधा मुद्रा आरारा. सील, बंधन (सं.); गुर्जरा. मुणइ आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. जाणे (प्रा.) महोर [वाळी वीटी]; लावल. वींटी; मुणंद देवरा. महान मुनि (सं.मुनींद्र) *अखाका. [योगमुद्रा, योगविहित मुणि तेरका. मुनि . अंगविन्यास]; प्रेमाका. [शंखचक्रादिनी मुणिवइ तेरका. मुनिराज (सं.मुनिपति) वैष्णवी] छाप । मुणिवर गुर्जरा. लावल. मुनिवर मुद्राव्यापार विक्ररा. शराफी मुणिद ऐतिका. गुर्जरा. लावल. मनीन्द्र मुद्रेिश्वर प्राचीका. मद्र देशनो राजा, शल्य श्रेष्ठ मुनि (सं.मद्रेश्वर) मुणिवि * ऐतिका. [जाणीने] मुधरु प्राचीफा. मधुर . मुणीस तेरका. मुनिराज (सं.मुनीश) मुया अबरा. फोकट (स.मुधा) मणीसर तेरका. लावल. मनीश्वर: श्रेष्ठ मुन दवरा. मूगा (स.मान) मुनि मुनियपय ऐतिका. मुनिनुं पद मुतार *सिंहा(शा). [दंडूको] मुनिसर देवरा. मुनीश्वर मुत्ताहल आरारा. मोती (सं.मुक्ताफल) मुनुस सिंहा(शा). मनुष्य मुत्ताहलमाल, मुत्ताहलमाल वसंवि. मुन्य *अखाका. प्रेमाका. मौन वसंवि(ब्रा).मोतीनीमाळा (सं.मुक्ताफल- मुन्य क, मुन्य घटुं दशस्क(१). मौन माला) धरवू, मूगा रहेQ मुत्ताहलहार वसंफा. मोतीनो हार (सं.मुक्ता- मुमत मदमो. ममत फलहार) मुयालो वेताप. मोवाळो, [वाळ] [सं.मुख+ मुद्गुर ललिरा. गदाना प्रकारचं हथियार वाल (सं.मुद्गर) मुर कादं(शा). (आंबानो) मोर (सं.मुकुर) . मुवा अखाका. प्रेमाका. आनंद [सं.] मुरकतउ जिनरा. मरकतो 2010_03 Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुरकलई/मह ३९८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मुरकलई वसका. नरके वाली मुरकलडइ लावल. मंद हास्य वडे, मलकाट- मुशल, मु लेपाका षडाबा. सांबेलु __मुषित) मुरकिउं हरिवि. मरक्युं, मरकलुं कर्यु मुष्ट अखाका. प्रेमाका. मूठी [सं.मुष्टि मुरकी, मुरकीय गुर्जरा. नेमिछं. लावल. मुष्टि आरारा. चूप, खामोश (रा.मुस्ट; सं. जलेबी घाटनी मीठाई (द.मुरुक्कि) मुष्ट) मुस्कुलई वसंवि. मंद स्मितमां मुसइ उक्तिर. विक्रच, षडाबा. चोरी ले मुरखणि देवरा. मूर्थी (सं.मूष) मुरजाव नंदब. मर्यादा, [अदब]; मदमो. मुसकउ वीसरा. स्मित मर्यादा, [सीमा] मुसमूरण प्राचीफा. नाश करनार (द. मुरजादा चंद्रवा. मर्यादा, [सीमा] मुसुमूरप्प) मुरडइ जिनरा. वीसरा. मरडे मुसल-स्नान प्रेमाका. जेवंतेवू स्नान, *मुरति (मुरडि) विमप्र. मरडीने विधिरहित, निरर्थक स्लान] मुरमंडल ऐतिका. मरुमंडल, [मारवाड] मुसाल चंद्रवा. मोसाळ [सं.मातृशाला] "मुरंगी ["सुरंगी] * ऐतिका. [रंगमां - मुसिया आरारा. छेतरायेल, लूंटायेल (सं. ___ आनंदमां आवेल] मुरियउ जुओ मउरियउ मु सुं पंचवा. मने, मारी साथे मुरी लावल. महोर्यां, खील्यां मुस्तक चंद्रवा. मदमो. मस्तक, माथु मुरुकुलइ वसंफा (ल). मरके मुस्तग चंद्रवा. वेताप. मस्तक मुर्मुरू षडाबा. "बळतो कोलसो, [भूसीनो मुस्यउ उक्तिर. लूटायेल; पंचवा. लूंट्यो __ अग्नि (सं.मुर्मुर) (सं.मुषित) मुलक वीसरा. मलकवू मुह उपबा. गुर्जरा. तेरका. वसंफा. वीसरा. मुलताणी हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात मुख; आरारा. घडामुं मोढुं सोईनां मुलाजइं सम्यचो. वशमा, मर्यादामां, नाकां (सं.मुख) __ [अंकुशमां] मुह गुर्जरा. मारी (सं. मह्य) मुलाणा हम्मीप्र. मौलाना, मौलवी मुहकाणि *गुर्जरा. [शरम, लज्जा, दुःख, मुलाणि [माउलाणि ?] उक्तिर. मामी वसवसो]; जुओ काणि (सं.मातुल परथी) मुहछण उक्तिर. आचमन ("सं.मुखक्षण) मुली विक्ररा. मूळ, जडीबुट्टी [रा.मूछण]; जुओ मछण मुवाल पंचवा. [मोवाळा], वाळ (सं.मुख+ मुहडउं उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नलरा. 2010_03 Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ३९९ - मुहत/मुंझि परथी) वीसरा. मोढुं (सं.मुख+ड) मुहितो, मिहितो, मेंहितो प्राचीका. महेतो मुहत प्राचीफा. मंत्री; महेतो (सं.महत) (सं.महत् परथी) मुहत विमप्र. महत्त्व, [गौरव मुहिया, मुहीयां उक्तिर. व्यर्थ, निरर्थक मुहतउ गुर्जरा. प्राचीफा. मंत्री, महेतो (सं. (सं.मुधा) महत् परथी) मुहु विमप्र. खोटी रीते, [मिथ्याभावे] (सं. मुहतानंदन गुर्जरा. मंत्रीपुत्र __मुधा) मुहपती उक्तिर. जैनोमां मुखे बांधवामां मुहुखाई, मुहुखायी उक्तिर. परोक्षवादी, आवतो लूगडानो ककडो (सं.मुखपत्री) [ पाछळथी बोलनार, “निंदक] . मुहबारि षडाबा. मोढे (सं.मुखद्वारे) मुहुडइ शृंगाम. मोढे [सं.मुख परथी] मुहरई गुर्जरा. मोर, आगळना भागे (सं.मुख मुहुत (मानमुहत) शंगाम. मुहूर्त, [शुकन], [अपशुकन]: जुओ मान-शुकन मुहरां गुर्जरा. महोरां, [आकृति, रूप] [फा. मुहत नलरा. विमप्र. मंत्री, महेतो मुहः] मुहुभरियां कादं(शा). मों-भेर (सं.मुख+ मुहरिया वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). ___भरित) __ गुंजारव करे (सं.मुखरिताः) महर प्राचीफा. शंगामं. मीठी (सं.मधुर) मुहरी प्राचीसं. मधुरी मुहुसरि * कादं(शा). [मूछ] (सं मुखश्री) मुहलु जुओ महलउ महवटा विमप्र. एक प्रकारनं वस्त्र: जओ मुहुइ प्रधुचु. मुख मुखवटउ मुहुंडाइं जुओ मुहंडाई मुहवडि प्राचीफा. लावल. विमप्र. मोवडे, मुहंती षडाबा. मुहपत्ती, जैनोमां मों पर आगळ, मोखरे (सं.मुखपट); जओ राखवामां आवतो कपडानो टुकडो (सं. मुंहुंवडि मुखपत्री) मुहवि अभिऊ. "महुडानां वृक्ष (सं.मधूक) मुंआल आरारा. मोवाळा, वाळ [सं.मुख+ मुहंडाई (मुहुंडाई) उपबा. मुख वडे वाल] मुहंतउ उपबा. मंत्री (सं.महान, प्रा.महंत) मुंक आनंस्त. मूके, छोडे, तजे [सं.मुक्त-] मुहा गुर्जरा. खोटेखोटे, मिथ्याभावे (सं. मुंच- तेरका. मुकावं, [छूटवू] (सं.मुच्य-) मुधा); देवरा. व्यर्थ, फोकट मुंजवयण वसंफा. वसंवि(ब्रा.) मीठां वचन मुहाडि तेरका. प्राचीसं. साम्मुख्य, मुखोमुख, (सं.मंजुवचन); वसंवि. मंजु (के मुंज___ रूबरू होवू ते नां) वचनो (सं.मंजु के मुंज+वचन) मुड़ियां उक्तिर. नेमिछं. षटिप. निरर्थक, मुंझि जिनरा. मुग्ध थईने, मोह पामीने [सं. व्यर्थ (सं.मुधा) मुह्य-] 2010_03 Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० मुंठि/मूली ४०० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मुंठि वसंवि(ब्रा). मूठी (सं.मुष्टि) मूझइ अभिऊ. उक्तिर. *गुर्जरा. देवरा. मुंड ० नलरा. धान्यनुं एक मोटुं माप, मूडो प्राचीसं. विराप. मूंझाय (सं.मुह्यति) दि.मूड]; जुओ मूडा मूटक षडाबा. टोपली, [पोटलुं] (सं.मुटक) मुंढी प्राचीसं. मुखे, मोढे मूठ अखाका. *पकड, [*एकतांत्रिक प्रयोग] मुंदडी उक्तिर. वीटी (सं.मुद्रिका) मूठउ उक्तिर. नाश पाम्युं (सं.मुष्टः) [हिं. *मुंद्र [सुंब्र गुर्जरा. समुद्र; जुओ सुद्रह मूठना] मुंबडी लावल. वींटी [सं.मुद्रिका] मूल्य अखाका. मूठी [जेटलुं], थोडुक मुंबडीयउ स्थूलिफा. मुद्रिका, वींटी मूडउ लावल. मूडो, नेतर के बरुनी बेठक, मुंघ आरारा. मुग्धा, स्त्री (अप.); वीसरा. ओठींगण माटेगें कोई साधन] __ मूर्ख (सं.मुग्ध) मूडा, मूहडा अभिऊ. [अन्ननुं एक मुंधि ऋषिरा. प्राचीफा. भोळी स्त्री, मुग्धा. परिमाण], "सोळ के वीस मण- वजन मुग्ध कन्या; वीसरा. मूर्ख स्त्री (सं.मुग्ध) [सं.मूटक; दे.मूड] मुंमत सिंहा(शा). ममत मूधि शृंगाम. मुग्धा मुं सी नरका-२. मारा जेवी मून प्राचीसं. मौन मुंहतउ आरारा. महेतो, मंत्री मूने-मूने प्रेमाका. मौने-मौने, [मूंगा{गा] मुंहपत्ति ०ऐतिका. मुखवस्त्रिका, [मों मूरखचट्ट गुर्जरा. मूर्ख शिष्य - आगळ राखवामां आवती वस्त्रपट्टी] मूरछाइ चित्तसं. मूर्छित थाय, निष्क्रिय थाय मुंहुंना मांग्या आरारा. मोंमाग्या, इच्छा मुजब मूरत, मूरत्य अखाका. नरका. मूर्ति मुंहुंवडि प्रधुचु. मोखरे; जुओ मुहवडि मूर्खाणी ऋषिरा. मूर्छित थई गई, बेभान मू, मूं आरारा. गुर्जरा. तेरका. वसंफा. थई गई वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). षडाबा. मूल चित्तसं. तळियुं मारु, मने मूळको प्रेमाका. मूळनो, पहेलांनो मूकइ आरारा. जिनरा. मोकले [सं.मुक्त-] मूळगुं अखाछ. अखेगी. उपबा. चित्तसं. मूकिवू उक्तिर. मूकवू, छोडवू (सं.मोक्त- प्रेमाका. मूळनु, मूळ, [मूळ हतुं ते, व्यम्) असल]; उपबा. गुर्जरा. नलरा. मूक्युं वाग्भबा. मुक्त, [विनानु, रहित] प्राचीफा. षष्टिप्र. मुख्य (सं.मूलगत) मूछ तेरका. प्राचीसं. मूर्जा मूलि आरारा. मूळमांथी, जरा पण मूछकूछ प्रेमाका. मूछ अने दाढी [सं.श्मश्रु+ मूलि षडाबा. [मूल्यथी], वेचातुं कूर्ची; जुओ कुंच मूलिगउ षडाबा. मुख्य (सं.मूलगत) मूछी तेरका. प्राचीसं. मूर्छित, मूर्छा पामेली मूली उक्तिर. मूळो (सं.मूलिका) "वसंफाल सिंमुक्त-] मूळमाका. मूळ, 'गुर्जरा. नला 2010_03 Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४०१ मूली/मृत्यु-समतुल्य मूली *गुर्जरा. [मूळ साथे, मूळमाथी] मूंद वीसरा. सील, महोरबंध (सं.मुद्रा) मूल्ये चित्तसं. मूळे, मूळमां मूंदडउ वीसरा. वींटी (सं.मुद्रा) मूषकगामी दशस्कं(१). मूषकवाहन, मूंदडी उक्तिर. वीटी (सं.मुद्रिका) [गणेश मुंद्रप्रभावि गुर्जरा. मुद्रा(वींटी)ना प्रभावथी मूस उक्तिर. कुलडी (सं.मूषा) मूंहनइ लावल. मने; जुओ मुहनि मूसउ आरारा. उक्तिर. उंदर (सं.मूषक) मूं हरइ गुर्जरा. मारे, माटे मूसल उक्तिर. सांबेलुं (सं.मुशल) मूं इइ उक्तिर. मने मूह *अभिऊ. [मुख मृगडउ प्राचीसं. मृग मूहडा जुओ मूडा मृगनाभि गुर्जरा. नेमिछं. कस्तूरी (सं.) मूहनि, मूहूने, मूंहनि अभिऊ. नलाख्या. मृगनाभिज चारफा. कस्तूरी मने (अप.महु) मृगमद अखाका. कामा(त्रि). चतुचा. मूं प्रबोप्र. लावल. हुं; ऐतिका. तेरका. दशस्कं(२). नरका. प्रेमाका. वसंफा. __ मने; जुओ मू हरिवि. कस्तूरी (सं.) मूंकइ आरारा. मोकले; उपबा. गुर्जरा. मृगमदपूर वसंवि. वसंवि(ब्रा). कस्तूरीनुं मूके, छोडे, राखे (सं.मुंचति) [सं.मुक्त-] पूर (सं.) मूंकावणहार उपबा. छोडावनार (सं.मुंच् मृगलोअणि गुर्जरा. मृगलोचनी .. परथी) [सं.मुक्त परथी] । मृगलोयणी आरारा. वीसरा. मृगलोचनी मूंग उक्तिर. षडाबा. मग (सं.मुद्गः) मृग वसावू प्रेमाका. हरण वसे के चरे एवं मूंगफली वीसरा. [मगनी सींग] (सं.मुद्ग जंगल बनाएं, खेदानमैदान करूं ___ +फली); जुओ मुगनी मृणाल *वसंफा. वसंवि(ब्रा). कमळदंड मूंधी नरका. मोंघी, कीमती [सं.महाघ] (सं.) मूंछीयई गुर्जरा. मूर्छा पामे (सं.मूर्छति) मृत अखाछ. चंद्रवा. सिंहा(शा). मृत्यु मूंजडी हरिवि. मोढे काळी अने शरीरे धोळी मृतक अखाका. प्रेमाका. शब, मड, मृतग कादं(शा). मृतक, शब, मड, मूंजी विमप्र. कृपण मृत्य नलाख्या. मृत्यु मूंझइ आरारा. मूंझाय, भूली पडे, मूढ थाय; मृत्यक पंचवा. मडदूं, मृतदेह (सं.मृतक) __ *गुर्जरा. [मूंझाय, मूढ थाय] (सं.मुह्यति) मृत्यका कादं(शा). माटी (सं.मृत्तिका) मूंठि वसंवि. मूठीमां (सं.मुष्टि); षडाबा. मृत्यु-तुल्य दशस्क(२). मृत समो मूठी (सं.मुष्टि:). मृत्यु-समतुल्य दशस्कं(२). मृतवत्, मरणमूंढ गुर्जरा. मूढ, मूर्ख तोल गाय 2010_03 Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृद/मेरायीयं ४०२ मध्यकालीन गुल राळकोश मृद अखाका. माटी [सं.मृद्ध "मेचु [मेद] "गुर्जरा. [*वादळ], [सं. मूदुर प्रेमप. मृदुल, [कोमळ] मेचक], [*बळ], [सं.मेद] मृषा अखाका. [असत्य, मिथ्या] (सं.) मेट (मेटजे) "अखेगी. [मिटावजे, दूर मेउणी मेइणी) तेरका. भूमि (सं.मेदनी) करजे] मेकडा (रमेकडा) विमप्र. ?, रमकडां, मेटइ अखाका. अखाछ. आरारा. देवरा. ___ क्रीडानां साधनो] मिटावे, फिटाडे, नाबूद करे (द.मिट) मेख मदमो. मेष राशि मेटजे जुओ मेट मेखल, मेखला, मेखली ऋषिरा. मेट-मेलाको नरका. मीटनो मेळाप, दृष्टिनु कामा(शा). लावल. (घुघरीवाळो) मिलन कंदोरो [सं.मेखला मेडक प्रेमाका. देडका मेखां (मखां कीयां) सिंहा(शा). मेख जेवा, मेढी उक्तिर. खळामां अनाजने झूडवा माटे खीला जेवा सजड का ?. जिडी बळदने जेनी साथे बांधी गोळ फेरववामां दीधा, *मेखला - सांकळ रची] आवे छे ते स्तंभ (सं.मेथि) मेखांतर अखाका. दशरक(१). दशक(२). मेण नरका. मीण [जेवू नरम [सं.मदन] बहानुं (सं.मिषांतर) मेणानुं नरका. महेj मेखे प्राचीका. बहाने (सं.मिष) मेद मदमो. मजबूत, नक्कर?, [*चरबीयुक्त, मेखोन्मेख शंगामं. आंख उघाड-बंध करवी *मांसमज्जायुक्त, “जीव्रतीजागतो] (सं.मेषोन्मेष) मेवनी, मेदिनी अखाका. वीसरा. पृथ्वी मेगल अखाका. उषाह. कृष्णबा. गुर्जरा. मेवपाट ऐतिरा. मेवाड दशस्क(२). नरका. प्रबोप्र. प्रेमाका. मेदिनी जुओ मेदनी हाथी (सं.मदकल) , मेदु जुओ मेचु मेघनाद विमप्र. मंडपनो एक प्रकार मेर अखाका. आय. कृष्णा प्राचीफा. मेघनिशा चित्तसं. वादळ घेरायेला होय. प्रेमाका. विमप्र. मेरा मदमो. एवी घनघोर रात्रि लावल. श्रेष्ठ, चिडियाता] मेघवनी प्राचीफा. मेघवर्णा नामे कीमती मेर अलगी मोसाच. आधी मर, आधी जा वस्त्रनी बनावेली गेरउ ऐतका. मरो मेषवाल मदमो. ढेड मेरडा लागल. लारा मेघाडंबर *गुर्जरा. तेरका. *प्राचीका वीसरा. मेराईउ उक्तिर. हाथमा झालवाना डोया एक प्रकार- [उत्तम] छत्र । वाळो दीवो मेचक कादं (शा). घेरा वादळी रंगर्नु (सं.) मेरायीयु उक्तिर. हाथमा झालवाना डोया 2010_03 Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४०३ मे राण/मेषोनमेष वाळो दीवो मेलावडो जिनरा. मेळाप मेराण चंद्रवा. महेरामण, [समुद्र] मेळावे नरका. मिलावे मेरु मदमो. श्रेष्ठ मेलि नेमिछं. मेळ (सं.मिल् परथी) मेरु सनंदणो चारफा. नंदनवनयुक्त मेरु मेलिइ नेमिछ. मेळपूर्वक, मेळ जोईन पर्वत (सं.मेरुः सनंदनः) मेलिय ऐतिका. मळीने, [भेगा थईने] मेल मदमो. नक्की, निश्चे मेली, मेळीने जुओ उठां मेली, टेक मेळीने मेळ वीसरा. *जान जवा पूर्वे वरपक्षातरफ- मेळो अखाका. मेळाप थी अपातुं जमण, स्विजनसमुदायर्नु मेल्हाण नलरा. विमप्र. वीसरा. मुकाम, भेगा थर्बु ते] (सं.मेल-) .. छावणी (प्रा.मेल्ल) मेलइ आनंस्त. मेळे, जाते मेल्हावणइ गुर्जरा. मेळाप प्रसंगे । मेलइ आरारा. मोकले [प्रा.मेल] . मेल्हइ चारफा. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. मेलइ, मेळइ उपबा. जोडे; आरारा. विराप. वीसरा. षडाबा. मूके, छोडे, "लावल. मेळवे, नक्की करे, [योजे]; तजे (प्रा.मेल्ल) दशस्क(१). जोडे, बंध करे; प्रेमाका. मेहणी (मल्हणी जाय) जिनरा. छोडी मेळवे, [योजे], अखाका. मेळवे, [शकाय] [मळतुं करे]; अखाछ. आरारा. मेळाप मेल्हविय तेरका. मेलावी, मुकावी करे; आरारा. ऐतिरा. उक्तिर. उपबा. मेल्हाविउ गुर्जरा. मुकाव्यो, छोडाव्यो गुर्जरा. चारफा. तेरका. नरका. नेमिछं. मेलि हरिवि-अनु. ना विना, [छोडीने] प्रेमाका. लावल. विराप. हरिख्या. मेल्हिवा उक्तिर. मेलवा, मूकवा, छोडवा मेळवे, भेगुं करे [सं.मिल्] मेवडा ऐतिका. दूत [रा.] मेलउ आनंस्त. जिनरा. मेळो, मेळाप मेवार नरका. नरप(द). मेवास – महीवास मेलउ आरारा. मळ्यो, मेळाप थयो प्रदेशनो रहेवासी, चोर-लूटारु, शिरजोरी मेलाण, मेहलाण अखाका. अखाछ. करनार अभिऊ. उषाह. पडाव, मुकाम (प्रा.मेल्ल मेवास अखाछ. [महीकांठानो प्रदेश], परथी) धाडपाडवाळो जंगली प्रदेश, [भयग्रस्त मेळापक नरका. प्रेमाका. मेळाप, मिलन अंतरायरूप प्रदेश] मेलापी * नरका. [जेनी साथे मेळ होय तेवू मेवासी जिनरा. प्रेमाका. महीवासी – मही माणस, मित्र नदीना किनाराना प्रदेशनो; (जूना मेलावउ शका. उपबा. उषाह. गुर्जरा. वखतमा त्यांना लूंटारु प्रख्यात होवाथी) प्राचीस... विमप्र. षडाबा. मेळाप, चोर छंटा, डाकु मिलन, समूहः जन (से.मेलापक) मेषोनमेष ऐतिरा. [आंखनो] पलकारो 2010_03 Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेस/मोगरी ४०४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [सं.मेषोन्मेष ___मिषे [सं.मिषेन मिषेन] मेस कामा(त्रि). मसी, शाही [सं.मषी] मेंहितो जुओ मुहीतो मेह आरारा. उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. मेहेंवास वेताप. *मेवास; जुओ मेवास तेरका. देवरा. नेमिछं. वीसरा. षडाबा. मैथल दशक(२). मिथिला मेघ, वादळ, वरसाद मैल्य वेस आरारा. मेंलो साधुवेश मेहरू उक्तिर. मुखी, नायक; भंगी (सं. मैहीमाये चंद्रवा. महिमाए, महिमा वडे ___ महत्तरः) दि.; फा.मिहतर] मो आरारा. मने; देवरा. मारूं; वीसरा. हुं, मेहल गुर्जरा. मेखला, कंदोरो मने; माझं मेहलइ आरारा. ऋषिरा. नेमिछं. लावल. मोबी निशा अ मा ) मूके, छोडे (प्रा.मेल्ह); विक्ररा. मोकले मोकलइ गुर्जरा. मोकले; नलरा. विदाय मेहलाण जुओ मेलाण आपे, रजा आपे मेहलीब सिंहा(शा). ? मोकलउँ उक्तिर. लावल. मोकळाशवाळु, मेहलु नलरा. मेघ खुल्लु, विस्तृत; नलरा. शिथिल, ढीलुं मेहिली जुओ मिहिली अभिऊ. उपबा. जिनरा. षडाबा. मेहेर कामा(त्रि). "कामा(शा). सद्भाव, मोकळं, छूटुं (सं.मुक्त) दि.मोक्कल] _कृपा, दयामाया, प्रिम] [फा.महेर] मोकलकरण पडाबा. मोकलं. छटं करवं मेहेर चंद्रवा. स्त्री दि.मेहरिया] . मेहेरांण जुओ महेरांण मोकलावइ अंबरा. उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. मेहेरांण मदमो. महाराणो "शृंगामं. विदाय ले (सं.मुक्त परथी); मेहेरि, मेहेरियो चंद्रवा. स्त्री; दि.मेहरिया] जुओ मुकलावइ मेहेरी मदमो. स्त्री दि.मेहरिया] मोकुलमोकलु नलरा. तद्दन मोकळु, खुल्लु मेहेलइ आनंस्त. नलाख्या. प्रेमाका. मूके, मोख अखाका. *मुक्ति (*सं.मोक्ष), [मोको, __ छोडे (प्रा.मेल्ल) अवसर, प्रसंग]; नरका. नलाख्या. · मेहेला, मेहेलां मदमो. महिला; जुओ महेली अनुकूळता, मोको, [अवसर] [अ. मेहेली प्रेमाका. महिला मौका] मेंडक जुओ मीडाक मोगर अभिऊ. *मोटुं, बळवान (सं.मुद्गर मेंद्र सिंहा(शा). महेंद्र ?, [*मोटा]; जुओ परथी); [*मुद्गर नामना शस्त्रथी सज्ज] महेन्द्र मोगर, मोगरउ उक्तिर. नलरा. हथोडाना मेंशे मेंशे वेताप. [जुदाजुदा बहाने], जेवू नानुं ओजार, मोगरी (सं.मुद्गर) कळेकळे, वातवातमां, वात करवाने मोगरी अभिऊ. वृक्षविशेष (सं.मुद्गर) 2010_03 Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४०५ मोगा/मोदकचूरकादिकु मोगा लावल. व्यंतरविशेष (दै.मोग्गड) मरड, मरडाट, गर्व; प्रेमाका. मचकोड, मोचना नरका-२. मुक्ति [अपावनार] वळांक मोछव देवरा. प्राचीफा. महोत्सव मोड नरका. प्रेमाका. मोडियो, [मोळियो मोजां प्रेमाका. मोजडी, पगरखां (सं.मुकुट) मोजां सिंहा(शा). "इच्छित वस्त. आनंद. मोडइ उक्तिर.. कादं(शा). कृष्णबा. गुर्जरा. सुख] [अ.मौज] चतुचा. दशरक(१). नरका. नेमिछं. मोझार दशस्क(१). देवरा. प्रेमाका. मध्ये, वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. मांहे (सं.मध्य+कार); जुओ मझार, मचकोडे, मरडे, वाळे, लचकावे, तोडे, चूरे (सं.मोटयति) मुझार मोट मदमो. वेताप. गांसडी [सं.] मोडबंध नरका. मुकुटबद्ध, [छोगाळाओ] मोट (मोट बांधवा) नंदब. [पोटलुं बांधवा, मोडामोड प्रेमाका. मरडाट, [अंग लचकाववां ते] दोलत भेगी करवा मोडमोडि ऋषिरा. कादं(शा). आम मरडवू मोटउ मथ जुओ मथ तेम मरडवू ते, लटका करवा ते, [अंग मोटकउं आरारा. मोटुं . लचकाववां ते] माटण उषाह. [दबाव, घसवुत[स. मोडे *प्रेमाका. [मरड, लचक के छटा ..मोटन] उपर] मोटम, मोटम्य अखेगी. चंद्रवा. चित्तसं. सो तत. मोडे-मोडे दशस्क(१). प्रेमाका. धीमेधीमे प्रेमाका. मोटप, मोटाई [सं.मृदु] जुओ मउडउ, मुडइ मोटं मोसाच. मोटप, महत्ता मोणे-मोणे प्रेमाका. धीमेधीमे मोटंम मदमो. मोठे मोतीन ऋषिरा. मोती (सं.मौक्तिक) [हिं.] मोटिम, मोटिम्म ऐतिका. सिंहा(शा). मोतीलग षडाबा. मोतीभरेलुं (आभरण) मोटाई, गौरव (सं.मौक्तिक+लग्यति) मोटी-झोटी जुओ झोटी मोतीसरी, मोतीसिरी नरका. नलरा. मोटुं मुख चतुचा. चढावेलुं, रीसभरेलु मुख लावल. मोतीनी सेर, [मोतीनी माळा मोटेम नरप(द). मोटप . मोथ उक्तिर. नागरमोथ, एक प्रकारचें घास, मोट्य अखाका. *मोटाई, [मोटा होवापणुं] एनो कंद (सं.मुस्ता) मोठउ नलरा. मोटो (सं.महत् परथी) मोद सिंहा(शा).?, [*पेशाब, "मूत्र] [*दे. मोठी दशस्क(१). प्रेमाका. ज्याफत, उजाणी मोअ; सं.] मोड * अखाका. [मरडावं, तूटवू ते, नाश]; मोवकचूरकादिकु षडाबा. मोदक, चूरमुं अखाछ. अखेगी. मदमो. "लावल. वगेरे For Private & Personal Use only ___ 2010_03 माध्य २६ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोदिक/मोहइ ४०६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश मोदिक, मोदीक गुर्जरा. मदमो. मोदक, आभूषण] लाडु मोरे अखेगी. पूर्वे, आगळ मोदिक-चाल देवरा. लाडुनो थाळ (सं. मोयें चित्तसं. तरफ, बाजु मोदक-स्थाल) मोल अखाका. आरारा. पंचवा. मूल्य मोदीक जुओ मोदक मोल, मोळ नरका. "प्रेमाका. मोळियुं, माथे मोनइ आरारा. मने . बांधवानुं कपडु, [फेंटो] [सं.मौलि] मोभी *गुर्जरा. [ज्येष्ठ, अग्रणी] (.मुब्म मोलइ उक्तिर. मोळे, कातरे, समारे परथी) मोलि आरारा. ? मोमण जिनरा. मोटी, ज्येष्ठ मोलि, मोलीयडउं नलरा. फेंटो (सं. मोय देवरा. मने मौलिक) मोर हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात मोलियां गुर्जरा. प्रेमाका. साफा, फेंटा (सं. मोर अखाका. आगळ, संमुख मौलिक) मोरउ ऋषिरा. ऐतिका. देवरा. नलरा. मदमो. मोलीउ उक्तिर. साफो, फेंटो मारो (अप.महु+रउ) मोलीकं नरका. मोळियुं, [फेंटो] . मोर-चंद्रनो प्रेमाका. मोरना पीछांनी टीलडी- मोलीयडउं जुओ मोलि ओनो - चांदलियानो मोलीयां विराप. फेंटाओ (सं.मौलिकानि) मोरहो प्रेमाका. पशुने मोढे बांधवानुं गांठो मोवड नरका. आगळ, संमुख; जुओ पाडेलुं दोरई ___ मोहोवटे मोरथी अखाछ. चित्तसं. तरफथी, द्वारा, मोसंधीयं उक्तिर. फेंटो, साफो ने कारणे मोस ऐतिका. मृषा, मिथ्या]; विमप्र. मोरनां अखाका. तरफनां खोटुं, [असत्य] मोरल प्रेमप. मारली मोसउ शृंगामं, असत्य; [सं.मृषा, प्रा.मुसा] मोरवी प्रेमाका. मोरनी छापवाळी मोसउ लावल. सिंहा(म). चोरी, [ओळव, मोरसिखा उक्तिर. मयूरशिखा, एक ते] (सं.मोषः) वनस्पति ___ मो-सु देवरा. माराथी मोरंगी उपबा. मोरपीछनो बनावेलो पट्टो मोह, मोहु वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). (सं.मयुरांगिका) . मूढता, भ्रांति (सं.) मोरा नेमिछं. मोर (सं.मयूर) मोहइ उपबा. ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. मोरियो नरका. महोर्यो, खील्यो वसंफा. वसंवि. *वसंवि(ब्रा). मोहित मोरी "प्रेमाका. हाथर्नु कडली जेवू करे, मोह पामे 2010_03 Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करण] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४०७ मोहकम/म्हाकउ मोहकम सिंहा(शा). खूब, सखत (अ. छेतरामणी, फोसलामणी]; जुओ मोहो मुकम; म.मोहोकम); जुओ मोहोकम रखती मोहण लावल. मोहवश करवू ते, [वशी- मोहोल कामा(त्रि). महेल मोहोवटे मदमो. मोवडे, अग्र भागे, [आगळमोहणवेलि ऋषिरा. ऐतिका. मोह पमाडे ना भागमां]; जुओ मोवड एवी वेल, मनोहर वेल मोझ रैयाजी ऐतिका. मोही रह्या छ, [मोह मोहनमंत्र चतुचा. मोहित करवा माटेनो पमाडी रह्या छ] मंत्र, [वशीकरणमंत्र] मोंघु-दव प्रेमाका. मनमां आग (दव) उत्पन्न मोहनसारा ऋषिरा. मोह पमाडनारी, थाय एटलुं मोंधू, मोशृंदाट [श्रेष्ठ] मों-बोली प्रेमाका. मोढेथी कहेवाती मोहनी गुर्जरा. मोहनीय, कर्मनो प्रकार मोमां घाले हाथ अखाका. आजीजी करे, जेमां योग्यायोग्यतानो विवेक रहेतो दीनता दर्शावे] नथी (सं.मोहनीय) [जै.] मोरखा अखाछ. मों साचववा पूरता, मोह-माग्या देवरा. मों-माग्या [जूठा]; जुओ मोहो-रखती मोहन मांन मदमो. अत्यंत मोहक; जुओ मोहो-टाळो प्रेमाका. मों बताववानु टाळवू मान - ए, मळवानो इनकार मोहि आरारा. मने; मारु मोहोरखती अखाका. मात्र कहेवा पूरती, मो हूंती आरारा. माराथी [फोसलामणी]; जुओ मोहो-राखती; मोहो चित्तसं. नलाख्या. मोह मोरखा मोहोकम, मोहोकंम अखाछ. चंद्रवा. मौ उक्तिर. जुओ मऊ मदमो. दृढ, सखत, [भारे]; जुओ मौन करु आरारा. शांत थाओ मोहकम मौहर्य * नरप. [मोळियो, फेंटो] मोहोटंम मदमो. मोटाई . म्यलि नलाख्या. मळे, [भेगुं थाय] मोहोटा रूस्तस. मोटा म्यलिउ कादं(धु). घेरायेलो, [-नी साथे मोहोतां अखाका. मोहतां, मोह पामतां रहेलो] मोहोथी चतुचा. मोंथी, मोढे प्रगमद कामा(त्रि). कस्तूरी (सं.मृगमद) मोहोर पंचवा. सोनानो सिक्को, सोनामहोर उघडो मदमो. मृगलो मोहोरवी सिंहा(शा). मोखरानु, आगळ प्रत सिंहा(शा). मृत्युः जुओ मरत पडतुं म्हा, म्हां वीसरा. हुं, माझं मोहो-राखती प्रेमाका. भ्रममां नाखे तेवी, म्हाकउ, म्हांकउ वीसरा. मारुं ____ 2010_03 Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म्हाल/यात्र ४०८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश म्हाल *अखाका. [आनंद]; जुओ माल दि.जिम] म्हां जुओ म्हा यमणुं [जमगुं] उक्तिर. जमणुं म्हांकउ जुओ म्हाकउ यमिवउ [जमिवउ] उक्तिर. जमवू म्हे वीसरा. में यमीत [जमीत] उक्तिर. जमातुं यव [जव] कादं(शा). ज्यारे (सं.यतः) य तेरका. वळी (सं.च) यवारें [जवारें] प्राचीका. जे समये (सं. यउ जुओ इउ यद्वारे) यका प्रबोप्र. जू (सं.यूका) यशनामिक ऐतिका. यशस्वी यक्षकर्दम प्रेमाका. केसर, कस्तूरी, चंदन, यशवा प्राचीसं. यशनी वायका, [यश कपूर अने अगरुनो सुगंधी लेप [सं.] बोलावो ते] *यच चतुचा. ? यशुं [जशृं] नलाख्या. जेवू (सं.यादृशकम्) यज लावल. रेशमी वस्त्र यसउ [जसउ] उक्तिर. जेवू यजन अखाका. सेवा, [पूजा] [सं.] यसिइं ऐतिरा. यश वडे यणियु [जणियु] कादं(शा). नलाख्या. यसु जसु] तेरका. [जेनुं जण्यो, जन्म आप्यो (सं.जनितकः) यसूं उषाह. एबुं (सं.इदृश; हिं.ऐसा) यतन आरारा. जतन, काळजी [सं.]; जुओ यहां [जहां] उक्तिर. ज्यां जतन यहु प्राचीसं. ए (सं.एषः; हिं.यह) यतना [जतना] आनंस्त. अप्रमाद [सं.] यं प्राचीसं. तृतीयानो प्रत्यय [-थी, वडे, यतन्नो आरारा. प्रबंध, व्यवस्था (रा.) ए] यतंन अखाछ. यत्न यंत्र मुगरबी हम्मीप्र. मगरबी यंत्र, गोळा *यतिसय (अतिसय) देवरा. प्रभाव, फेंकवानुं यंत्र; जुओ मुगरबी यंत्र [महिमा] [सं.अतिशय यंत्री कादं(शा). तंतुवाद्य, वीणा यतिपती ऋषिरा. यतिओना पति, स्वामी, या [*जा] आरारा. जेने ? आने ? आचार्य (सं.यतिपति) ___ या पंचवा. ए (सं.एषा); जुओ यउ यल कादं(शा). साचवण, जतन (सं.यतन) याग प्रेमाका. यज्ञ यथाबद्ध अखाछ. जेवो बंधनमा छे तेवो, याण [जाण] उक्तिर. ज्यां सुधी (सं. [जे-ते अवस्थामां बंधायेल] यावत्) यम [जम] कादं(शा). "गुर्जरा. नलाख्या. यातायात अखाका. आवागमन, जन्ममरण यात्र अंबरा. प्राचीका. नाटारंभ, नृत्य; यमइ [जमइ] उक्तिर. नलाख्या. जमे जुओ जात्र 2010_03 Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश यात्राहारु विक्ररा. यात्राळु यामिनीकर ऋषिरा. चंद्र (सं.) यामुक वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). जोडीमां, बेलडीए (सं. यमकपरथी); जुओ जामुक यारी प्राचीफा. मैत्री (फा.) याहि [जाह्नि] कादं (शा). ज्यारे यां आरारा. अहीं ४०९ यात्राहारु / योगि [जै. ]; जुओ जुगला धरम युगलिया, युगलीआ नलरा. षडाबा. जोडियां भाईबहन, जे प्राचीन काळमां पतिपत्नी बनतां (जै.); जुओ जुगलिया युगवर ऐतिका. युगमां प्रधान, [मुख्य, श्रेष्ठ ] युगयुगता [जुगजुगता ] मिछं. झगमगता यह [जांह] नलाख्या. ज्यां (सं. यस्मात्) युद्धशत्र, युद्धसत्र गुर्जरा. विराप. युद्धरूपी यज्ञ (सं. युद्धसत्र) यि [ज] नलाख्या. जे यम [जिम ] उक्तिर. नलाख्या. जेम विशउं, विश्व [जिशउं, जिश्यउ ] प्रबोप्र. जेवुं (सं. यादृश) यिहां [जिहां] नलाख्या. ज्यां विहांकणि [जिहांकणि] कादं (शा). ज्यां यीतु [जीतु] प्रबोप्र. जीत्यो ( सं . जित+कः) यीus [जीus] प्रबोप्र. जीते (सं.जि-) यीव [ जीव] प्रबोप्र. जीवात्मा यवतां [जीवतां] प्रबोप्र. जीवतां यीवन [जीवन] प्रबोप्र. जीवतर यीवित [ जीवित] प्रबोप्र. जीवतर यीवी [जीवी] प्रबोप्र. जीवी (सं. जीविता) युग [ग] नलाख्या. जग (सं. जगत् ) युगतुं कादं (शा). नलाख्या. विमप्र. युक्त, बंधबेसतुं, योग्य, जुओ जुगतुं युगति मिछं. युक्ति युगदीश्वरी [जुगदीश्वरी] प्रबोप्र. जगदम्बा (सं.जगदीश्वरी) युगला धर्म्म लावल. जोडियां भाईबहन युगल ( पति अने पत्नी) तरीके जीवन वितावतां एवो धर्म [ - जूनी रूढि] 2010_03 युवई आरारा. युवती (प्रा.) युवति - मनोर वसंवि (ब्रा). युवतीना मनोरथ ये [जे] उक्तिर. उषाह. नलाख्या. जे (सं.) येक चंद्रवा. एक येटलि [ जेटलि] नलाख्या. जेटले (सं. यत्तुल्य) येन, न [एन] चंद्रवा. [खरेखरुं ], खरेखर [अ. ऐन] ये [जे] कादं (शा). जेम येलफेल [ एलफेल ] नरप (द). अविचारी, गांडुंघेलुं येह [ जेह] प्रबोप्र. जे (सं.यः ) येहारि [जेहारि] कादं (शा). ज्यारे यो उक्तिर. जे (सं.यः) यो पंचवा. ए ( सं . एषः ) योगपादुका सिंहा (म). एवी पादुका जे पहेरीयोगी आकाशमां ऊडी शके (सं.) योगपावडी सिंहा (म). एवी पादुका जे पहेरीने योगी आकाशमां ऊडी शके (सं.योग+पाद) योगि आरारा. योग्य, लायक Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योजित/रचंति ४१० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश योजित आरारा. जोडेला [सं.] रखेवाळ, चोकीदार (सं.रक्षापाल); योतिक-जाण [जोतिकजाण] प्रबोप्र. प्रेमाका. *रखेवाळी, *रक्षा, [*रखेवाळ] ज्योतिषी (सं.ज्योतिष् गु.जाण) रखवालउ उक्तिर. प्रेमाका. लावल. रखेवाळ योध लावल. वसंफा. वसंफा (ल). (सं.रक्षापालः) __ वसंवि(ब्रा). योद्धा (सं.) रखवालुं गुर्जरा. रक्षण करवू ते योधर वसंवि. योद्धाओ (सं.योद्धारः) रखि आरारा. नक्षत्र (सं.ऋक्ष) योवन-मदि लावल. यौवनना मदे रखि *गुर्जरा. [राखे] [सं.रक्ष] यौवनमि *कादं(शा). [जुवानीथी भरेलुं] रखि, रखी कादं(शा). नलाख्या. ऋषि, (सं.यौवनमय) मुनि य्या पंचवा. अहीं (सं.अत्र) रख्या आरारा. रक्षा, रक्षण रख्यो प्रेमप्र. रक्ष्यो ह गुर्जरा. रति, कामदेवनी पत्नी; उपबा. रगइ अखाका. नैमिछं. करगरे, आजीजी तेरका. रति, प्रीति, प्रेम करे; जुओ रगे इ वाग्भबा. चतुर्थी अने षष्ठीनो प्रत्यय, रगझग सिंहा(शा). रकझक [माटे]; जुओ रइं, रहइ, हरई, ह्र, रगत वीसरा. लाल (सं.रक्त) रगतनेत्र चतुरा. लाल आंखो [वाळो] रइय तेरका. रच्युः गुर्जरा. रचित रगत-लोचन नलाख्या. रातां लोचन करीने] डबल्लह तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. कामदेव रगरगे नरका. कालावाला करे (सं.रतिवल्लभ) रगाउलि, रंगाउलि, रंगावलि नलरा. डहीण गर्जरा. रति वगरनो, रतिवियोगी. हम्मीप्र. बख्तरनो एक प्रकार (सं.रंग+ आवलि ?) रई वाग्भबा. षष्टिप्र. चतुर्थी अने षष्ठीनो रगिया प्रेमाका. जक्की, हठीला प्रत्यय, [-ने, माटे]; जुओ रइ रगे अखाछ. [रग्ये], रगवा(कालावाला -रउ वीसरा. नो [रा.] करवा)थी; रग(हठ)ने लीधे; जुओ रगइ रक्ख- तेरका. रक्षण करवु (सं.रक्ष) रघवघो अखाका. रघवायो, उतावळो, रक्खसि तेरका. राक्षसी गभरायेलो रक्तहेम प्रेमाका. राता रंग, सोनुं [सं.] वाणुं *अखाछ. [रचायुं, रचना रूपे रक्षागृह कादं(धु). पांजरुं, केदखा- [सं.] परिणम्यु, विस्तएँ] रखत *विमप्र. [मालमिलकत] [रा.] रचंति ऐतिका. अनुराग करे छे दि.]; रखवाल, रखवाळ गुर्जरा. नलाख्या. प्राचीसं. जुओ रंच्यति । 2010_03 For Private & Persona! Use Only हई रगतना प मृहीण गुजहान ने षष्ठीनो एगिया प्रमा स्य], रगवाजुओ रगइ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४११ स्व/रति रज चित्तसं. (स्त्रीन) आर्तव [सं.रजस्] रणरण तेरका. रणझण एवो ध्वनि रजक प्रेमाका. धोबी [सं.] रणरंग आनंस्त. युद्धनो रंग, युद्धनो उत्साह रजणी (निरजणी) * नेमिछं. [क्षीण करीने] रणवट *अभिऊ. [क्षात्रधर्म, युद्धनी टेक]; रजमति(?) तेरका. राजिमती . प्रेमाका. रणक्षेत्र[नो मार्ग] रजिनी आरारा. रजनी रणवणीयां गुर्जरा. रणवण अवाज कर्यो रज उषाह. ऐतिका. राज्य रणवाइं (कोरण वाई) *गुर्जरा. [आंधी रडयड गुर्जरा. रडवड अवाज करतो फेलाय] रडवडइ ऋषिरा. गुर्जरा. विराप. रवडे, रणवावला जिनरा. युद्धातुर (सं.रणअथडाय, रखडे व्याकुला] . रडविडियउ प्राचीसं. रडवड्यो, [अथडायो- रणसंड हम्मीप्र. रणमां सांढ जेवो, महाकुटायो पराक्रमी [सं.रणपंढ] रढ उषाह. *हठ, लगनी]; चंद्रवा. प्रेमाका. रणस्थंभ रोप्यो प्रेमाका. युद्ध शरू कर्य, रटण, लगनी; नरका. हठ, जिद्द; जुओ [युद्धना मंडाण रूपे स्तंभ रोप्यो] रंढ मांडि रणिझडि * विमप्र. रिणु - धूळनी झडीथी] रढई *गुर्जरा. [ढळे, डोले दि.रड्ड] रणियु अखाका. नलाख्या. ऋणी, देवादार रढि अभिऊ. रढ, [लगनी] (सं.ऋणिककः) रण प्रेमप. ऋण रणीउ ऋषिरा. ऋणवाळो, देवादार (सं. रण, रांन सिंहा(शा). अरण्य __ ऋणिन्) रणइ ऐतिका. वागे छे, [रणके छे] रणे प्रेमाका. ऋणमां रणकाहल अंगवि. रणदुंदुभि [के रणभेरी] रत नरका. नरप(द). नलरा. प्रेमाका. ऋतु रणझणे ऐतिरा. [झणझणाट थाय], सचेत रतनखंभ प्रेमाका. रलथी जडेलो थांभलो थई जाय, उश्केराय [सं.रणत्+ध्वनि] रतनदोषी आरारा. रलमा दोष मूकनार; रणतूर लावल. युद्धना मेदानमां वगाडातां जुओ रलदोषी मुखवाद्य, [रणशिंगुं] [सं.] रतनानी वीसरा. [रलमय] रणदेव्या प्रेमाका. रणदेवीओ, युद्धनी रत-मावठं नरका. कसमये वरसतो वरसाद, देवीओ [मावठानी ऋतु, मावठानो समय] रणभाष हम्मीप्र. रणभाषा, *तोपनो अवाज रतांजणी आरारा(व). उक्तिर. रक्तचंदन, रणमाल अभिऊ. रणमाळा, युद्धमा जनारने एक वृक्ष पहेराववामां आवती विजयमाळा रति, रिति आरारा. प्राचीफा. लावल. रणरण- तेरका. प्राचीसं. रणझणवू, रणकवू वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). ऋतु 2010_03 Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रति / रम्माउल रति, रत्य अखाका. प्रेमाका लावल. अनुराग, आसक्ति; प्रेमाका. वसंवि (ब्रा). प्रेम, प्रेमक्रीडा, कामक्रीडा; आरारा. मिछं. आनंद ४१२ रथी ति *विराप. [रथीओ योद्धाओ ते ] रथ्या जुओ रथा रवि नलाख्या. हृदये रतिवर चारफा. कामदेव रतिपति सूर वसंवि (ब्रा). शूरवीर कामदेव खुं चित्तसं. हृदय, हृदयनी वृत्ति, वलण वे चित्तसं. मदमो. हृदय; हृदये, हृदयमां रधि आरारा. रिद्धि रन्न प्राचीसं. अरण्य, रान रतिवाउ * गुर्जरा. [रात्रे करेलो हुमलो ] रती उक्तिर. चणोठी (सं. रक्तिका); अखाका. आरारा. प्रेमाका. नरका. रतीभार, तद्दन थोडुं बाब नरका. एक तंतुवाद्य [फा.] रभस नेमिछं. वेग, उत्साह (सं. रभस् ) रमझोल * ऐतिका. [रमझट] रमण तेरका. -, [[प्रयतम] [सं.]; नरका. प्रेमक्रीडा [सं.] संभोग ] रतउं आरारा. तेरका. अनुरक्त, अनुरक्त रमणशाळा अखाका. कामक्रीडानुं स्थळ थयुं [सं. रक्त] रमणिक प्रेमाका. रमणीय, सुंदर रत्नकंबल अखाका. ऊननी रत्नजडित रमति, रमत्य अखाका. ऐतिका. रमत कीमती कामळी [सं.] रमलि आरारा. ० कृष्णच. गुर्जरा. चारफा. प्राचीफा. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). विमप्र. स्थूलिफा. रमत, क्रीडा (सं.रम्परथी) तु मदमो. रत, ऋतु; ऋतुस्राव खुदान प्राचीका. ऋतुदान, [ऋतुकाळे रत्नजटित नलरा. रत्नजडित [ सं . ] रत्नत्रय प्रद्युचु. सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान, सम्यग् चारित्र [जै.] [सं.] रत्नदोषी आरारा. रत्नोमा दोष मूकनार; जुओ रतनदोषी रत्नपारक्ष नलरा. रत्ननी परख करनार मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रत्य अखाका. ऋतु रत्य जुओ रति रत्येबो रुस्तस ?, [* पद, *होद्दो; *इज्जत, * कदर] [अ.रुत्व] 2010_03 रथ-अंग, रथंग वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). रम्म ऐतिका. रम्य चक्र, रथनुं पैडुं (सं.) रथा (? रथ्या) शृंगामं. शेरी दूषण रमाउल, रमालउ प्राचीसं. सुन्दर, रमणीय, [समृद्ध, व्याप्त ] (सं. रमा+आकुल); जुओ रमाउल रमिज ऐतिका. रमण [-क्रीडा ] करीए रमझिम ऋषिरा. रूमझूम अवाजथी रमितुं उक्तिर. रमवुं रमेकडा जुओ मेकडा, रामेकडउ -- रथारूढ रम्माउल तेरका सुंदर, रमणीय, समृद्ध, व्याप्त; जुओ रमाउल Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुश मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४१३ रयण/रलीआयत रयण आरारा. गुर्जरा. तेरका. "देवरा. गयुं होय एवं, "दरिद्र] नेमिछं. लावल. रत्न रलइ, रळइ अखाका. आनंस्त. ऋषिरा. रयण, रयणी चतुचा. प्रेमाका. सिंहा(शा). कादं(शा). गुर्जरा. देवरा. नेमिछं. रजनी, रात्रि शृंगामं. रडवडे, भमे, भटके, आजुबाजु रयणउर गुर्जरा. रत्नपुर, गामनुं नाम फरे, अटवाय, [घसडाय] (द.रुल); रयणप्यह आरारा. रत्नप्रभ (ए नाम) जुओ रुलइ रयणमए गुर्जरा. रत्नमय रलि नलाख्या. लावल. खुशी, आनंद रयणमणि नेमिछं. रत्नमणि ["दे.रलि] [*सं.रति+ल]; जुओ रुलि रलिआतो ऐतिका. आनन्द[युक्त, रयणागरा ०ऐतिका. रत्नाकर [रळियात, प्रसन्न रयणायर अंबरा. ऐतिका. कृष्णच. गुर्जरा. , रलिआयत, रलिआयति, रलियाति नेमिछं. स्थूलिफा. रलाकर, सागर कादं(शा). विमप्र. रळियात, प्रसन्न, रयणावलो गुर्जरा. [चोक्कस प्रकारनी । उपवासनी चडती श्रेणीवाळु] एक रलिय ऐतिका. प्राचीफा. आनंद, उमंग प्रकारचं तप (सं.रत्नावली) [जै.] (सं.रति+ल) रयणाह ऐतिका. रत्नोमां रलियहि चारफा. आनंदथी रयणां आरारा. रत्नो रलियाति जुओ रलिआयत रयणि उषाह. कर्पूमं. जिनरा. तेरका. रूपच. रलियायतु षडाबा. रळियात, प्रसन्न वीसरा. हरिवि. रात्रि (सं.रजनी) रलियावणउ ऐतिका. रळियामणुं; चारफा. रयणा अखगा. कृष्णबा. दशक(२). प्राचीफा. रळियामj, आनंददायक; नरका. विक्ररा. हरिख्या. रजनी, रात; जुओ रुलियामणउ जुओ रयण रली, रळी आरारा. ऐतिका. कामा(त्रि). रयणीय गुर्जराः रात्रि (सं.रजनी) कामा(शा). गुर्जरा. तेरका. नरका. रयणीदंन अखेगी. रजनीदिन, [रातदिवस] नलाख्या. नेमिछं. प्रद्युचु. प्राचीका. रयणीयर प्राचीसं. चंद्र (सं.रजनीकर) प्रेमप. प्रेमाका. विक्रच. विराप. स्यहरण देवरा. [रजोहरण], धूळ खसेडवा- सिंहा(शा). आनंद, प्रसन्नता, होंश (दे.; नी ऊननी मोटी पींछी, ओघो [जै. सं.रति परथी/लल् परथी); जुओ रुली रयताणउ उक्तिर. रजोहरण, जैन मुनिनु रलीआइति प्रबोप्र. आनंदयुक्त एक साधन (सं.रजस्त्राणम्) रलीआत कामा(शा). राजी, खुश रयवाडिय जुओ वाडिय रलीआति शृंगामं. आनंदित रल गुर्जरा. *तुच्छ वस्तु, [*सघळु लूंटाई रलीआयत ऋषिरा. आनंदित 2010_03 Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रलीयात्य/रहइ ४१४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रलीयात्य चंद्रवा. रळियात, [खुश] रसना अखाका. ऋषिरा. कामा(त्रि). रलीयायत नलरा. प्रद्युचु. आनंदित गुर्जरा. चित्तसं. विराप. जीभ (सं.) रलीयाली प्राचीसं. सुन्दर रसना डंसी प्रेमाका. जीभ कचरी, वचन रळी रसे प्रेमाका. आनंदथी अने रसथी आप्यु रख अखाका. तान, उमंग, [उत्साह] रसनिविउ षडाबा. रसनेंद्रिय, जिह्वेन्द्रिय रखाडी, रवाडी, रिवाडी अंबरा. ऋषिरा. रसपात नरका. रसना धोध, [रसना प्रवाह नलरा. प्राचीफा. विमप्र. राजसवारी [सं.] (सं.राजपाटिका); जुओ राइवाडी रसरंग वसंवि(ब्रा). भोगानंद, [रसानंद, रविनंदन गुर्जरा. सूर्यपुत्र बुध, [डाह्यो] (सं.) आस्वादानंद] [सं.] रविसुत नरका. यमराज, मृत्युनो देव; रसवती ऐतिरा. गुर्जरा. विराप. रसोई (सं.) प्रेमाका. अश्विनी कुमारो [सं.] रसवेद नेमिछं. रस छ, वेद चार एटले ४६रवीरजो प्राचीका. रवैयो नी संख्या रवेउ प्रेमाका. रविवार रसंत गुर्जरा. अवाज करतुं, चीस पाडतुं रवैयो नरका. प्रेमाका. दहीं वलोववानुं (सं.रसति); जुओ रसिर लाकडा, साधन, वलोj रसाइण वीसरा. [रसभरी के रसायण जेवी रव्य मदमो. रवि नवजीवन बक्षती रचना] रवाडी जुओ रवाडी रसाउलु गुर्जरा. रसपूर्ण, रसाळ (सं.रसाकुल) रशी प्रेमप. रसिक रसाल आरारा. रसाळपणे, रसपूर्वक, रशे चित्तसं. *दूर करशे (*सं.रह परथी आनंदपूर्वक; शृंगाम. आंबो (सं.) *सं.रिश परथी: जओ रिहिश रसिर तेरका. किकियारी करतुं (सं.रस); रश्म कादं(शा). किरण (सं.रश्मि) जुओ रसंत रस चित्तसं. आथो लाववा माटे मेळवण रसो *कर्पूमं. नलरा. रसोई (सं.रसवती) तरीके नखातुं द्रव्य रसोई दशस्क(२). रसोडुं रस चित्तसं. पारानुं सौथी असरकारक रसोयि उक्तिर. रसोडुं (सं.रसवती) स्वरूप; एकरस, एकरूप रह ऐतिका. गुर्जरा. रथ रसक (रसकसवेध) *प्राचीफा. [रस, कस रहइ गुर्जरा. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. (परीक्षा) अने वेध (चातुय)]; जुओ वेध वसंवि(ब्रा). अटके (सं.रहति) दि.]; रसडा पंचवा. रस्सो, दोरडं (सं.रश्मि) चित्तसं. अटके, मटे रसणीया विक्ररा. रस - प्रवाही चीजोनो रहइ, रहइं अंबरा. उपबा. गुर्जरा. नलरा. वेपार करनार वाग्भबा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). ___ 2010_03 Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश षडाबा. षष्टिप्र. चतुर्थी अने षष्ठीनो अनुग, -ने, -ने माटे, नुं (सं. अपरस्मिन्); जुओ रइ, रहि, हूइ रहण गुर्जरा. रहेवुं ते; * प्रबोप्र. [रहेणी, रीत, व्यवहार ] रहणहार उपबा रहेनार रहत उक्तिर. रहेतो रहवइ गुर्जरा. रथपति, [रथी, रथारूढ योद्वो ] रहावइ उक्तिर. गुर्जरा. राखे, स्थापे (सं.* रक्षापयति) [सं./दे. रह्] रहि, रहिं वसंफा. वसंवि (ब्रा). चतुर्थी अने षष्ठी विभक्तिनो अनुग, ने, माटे, नुं जुओ रहइ रहित उक्तिर. रहेतुं रहितु जुओ छतु रहिवउं उक्तिर. रहेवुं रहीइ उक्तिर. रहेवाय रहीतुं उक्तिर रहेवातुं रखातुं रहीवा उक्तिर. रहेवा रहेण प्रेमाका. [रेण], धातुने सांधवानुं रंजवियउ ऐतिका. प्रसन्न कर्या रंज्या ऐतिका. प्रसन्न कर्या झारण रहेण चित्तसं. रहेवुं ते रह्युं टमटमी प्रेमाका. घणुं उत्सुक थयुं कण प्रेमाका. रणकतो, रणकार करतो रंग चित्तसं. अनुभव: स्नेह, प्रीति, आसक्ति; आरारा. गुर्जरा. तेरका. लावल. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. आनंद, उल्लास; [लगाव], प्रेम वसंवि (ब्रा). विलास, लावल. विभ्रम, सौन्दर्यछटा 2010_03 ४१५ रहण /रंभ रंगराड * नरप ( द ). [ आनंदभरी तकरार, प्रेमकलह ] [ सं . रंग + राटि ] रंगभूमि, रंगभूमी अंबरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). रंगमंच, क्रीडाभूमि (सं.) रंगगणि गुर्जरा. रंगभूमिमां (सं. रंग + अंगन) रंगाउलइ, रंगाउलि, रंगावलि विमप्र. हम्म. बख्तरनो एक प्रकार; जुओ रगाउलि रंच अखाका. *अखेगी. चित्तसं. नरका. मोसाच. सहेज, थोडुं, लगार रंच्यति (? रचंति) शृंगामं राचे छे; जुओ रच्चंति रंजण गुर्जरा. तेरका. रंजन करनार रंजवइ उपबा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). रंजन करे (सं. रंजयति) रंजवणहार उपबा. राजी करनार रंज गुर्जरा. आनंद आपे रंजिउ आरारा. (सं. रंजित) रंड, रंडा वेताप. स्त्री [सं. रंडा ] रंडमाल विक्रच. [रुंडमाळा, खोपरीओनी * षडाबा. राजी थयो माळा ] रंडा शृंगामं. विधवा स्त्री (सं. रण्डा); जुओ रंड रंडुओ मदमो. रांडवो, रांडेलो, विधुर रंढ मांडि जिनरा. जीद पकडीने; जुओ रढ रंढाला जिनरा. रणवीर, [टेकीला वीर] रंभ, रंभा गुर्जरा. नेमिछं. लावल. ए नामनी Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंभ-खंभ/राखणहारु ४१६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अप्सरा [सं.रंभा] राउताई उक्तिर. राजपूतपणुं, वीरत्व (सं. रंभ-खंभ मदमो. कदलीस्तंभ, [केळनो राजपुत्र परथी) थांभलो] (सं.रंभा+स्कंभ) राउल अंबरा. आरारा. नेमिछं. प्रद्युचु. रंभण प्रेमाका. आलिंगन, भेटवू ए [सं.] लावल. वीसरा. स्थूलिफा. [राजगृह, रंभा आरारा. स्त्री स्वर्गनी अप्सरानं नाम राजमंदिर, राजदरबार (सं.राजकुल) [सं.]; जुओ रंभ राउलउ उक्तिर. राजगृह (सं.राजकुलम्) रंभा ऋषिरा. प्रेमाका. केळ [सं.] रंमण मदमो. रमणी राउलु प्रद्युचु. राजा, [रजवाडी] (सं.राजरंह वाग्भबा. वेग [सं.रभस्] रा अभिऊ. कांद(ध). नलरा. पंचवा. राउली नेमिछं. राजकुटुंबनी; हरिवि. राजलावल. राजा कुळने लगती, राजानी राड, राय, रायि नलाख्या. लावल. वीसरा राका आरारा. पूणमा (स.) राजा (सं.राजन्) राक्षिसि गुर्जरा. राक्षसे राइ षडाबा. रात्रि राखइ आरारा. उक्तिर. उपबा. तेरका. नरका. प्रेमाका. लावल. वाग्भबा. राइउ षडाबा. रात्रिने लगतुं वीसरा. रक्षण करे, संभाळे (सं.रक्षति); राइको वेताप. रबारी; जुओ रायको गुर्जरा. राखे, मूके, [स्वीकारे, अटकावे, राइण, राइणि आरारा (व). उक्तिर. रायण- .. बचावे]; आरारा. उषाह. नेमिछं. झाड (सं.राजादनी) प्रेमाका. राखे, अटके, बंध राखे, राइतउ उक्तिर. रायतुं (सं.राजिका परथी) अटकावे राइमइ तेरका. राजिमती राख प्राचीसं. रक्षा, [रक्षण] राइवाडी शृंगाम. राजसवारी (सं.राज राखडी, राखलड़ी अभिऊ. उक्तिर. *गुर्जरा. पाटिक); जुओ रयवाडिय, रवाडी नरका. "नेमिछं. प्रेमाका. ललिरा. राई (राई पडी) * जिनरा. [रीसे - रोषे वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). *वीसरा. स्त्रीओना माथा उपर पहेरवानुं राउ आरारा. उक्तिर. उषाह. कस्तवा. एक घरेणु गुर्जरा. लावल. वसंफा. वसंवि. राखडी उपबा. राख वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. राजा राखण उषाह. रखेवाळ (सं.रक्ष् परथी) राउत उक्तिर. उषाह. गुर्जरा. प्रद्युचु. प्रबोप्र. राखणहारु उपबा. रक्षण करनार; प्राचीफा. विराप. राजा [राजकुमार], [राखनार, साचवनार]; वसंफा. रजपूत, योद्धो (सं.राजपुत्र) "वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). - भरायु] 2010_03 Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४१७ राखसपुरी/राड रक्षणहार राजबीज अखाका. राजानुं संतान [सं.] राखसपुरी गुर्जरा. राक्षसोनी नगरी राजविया आनंस्त. राजवीओ राखसि गुर्जरा. राक्षसी राजवेठि आनंस्त. राजवेठ, [राज्यनी वेठ, राखसु गुर्जरा. राक्षस दरबारी वेठ] राखिवं उक्तिर. राखg, रक्षण करवू राजस अखाका. रजोगुणी [सं.]; *चंद्रवा. राखिस लावल. राक्षस [रजवाडी, वैभवी, दमामयुक्त]; मदमो. राखे प्राचीसं. रखे [सं.रक्षते] रजवाडी राख्यस चित्तसं. राक्षस राजस-रूप मदमो. राजाना जेवा रूपवाळो राग तेरका. *आनंद, [भक्ति] [सं.] राजसिरी आरारा. राज्यश्री, राज्यलक्ष्मी रागवसिइं ऐतिरा. रागवशे, प्रेमथी राजसीआं मदमो. रजवाडी माणसो रागिनी आरारा. राज्ञी, [राणी] राजान उक्तिर. वनस्पतिविशेष (*सं. राचवें वेताप. रीझवे [सं.रज्यते] राजानक) राछ विमप्र. राचरचीखें, [गृहसामग्री] राजि कादं(शा). नलाख्या. राज्य राछनिखर (राछ निखर निरखीइ) *विमप्र. राजियो देवरा. राजा [साधनसामग्री हलकी - खराब देखाय राजीइं आनंस्त. राजी थईए [सं.रज्यते] छे]; जुओ निखरा राजीउ आरारा. राजा राछपीछ विमप्र. राचरचीखें, [गृहसामग्री] राजीव प्रेमाका. भूरा - वादळी रंगनुं कमळ राज सिंहा(शा). आप [मानार्थे]; जुओ राज्य [सं.] राज आरारा. वीसरा. राजा राजीवलोचन अखाका. कमळ जेवी आंखोराजइ जुओ रिजइ वाळी [सं.] राजकुली दशस्कं(१). प्रेमाका. हरिख्या. राज्य मदमो. आप [मानार्थे]; जुओ राज राजकुळ, राजवंश राटी नलरा. हलकी स्त्री, [कजियाळी स्त्री] राजकुंअरि गुर्जरा. राजकुंवरी [सं.राटि परथी राजगुरिई विक्ररा. राजगुरुए राठउड उक्तिर. राठोड, एक क्षत्रिय जाति राजगुल उक्तिर. [?] (सं.राजत्कुलम्) (सं.राष्ट्रकूट) राजगुह्य अखाका. [श्रेष्ठ ज्ञान, ब्रह्मविद्या, राठी प्राचीसं. ब्राह्मण-जाति-विशेष [सं. अध्यात्मज्ञान] [सं.] राष्ट्रिक] राजदुआर वीसरा. राजमहेलनुं द्वार राड *अखाका. *चंद्रवा. दशस्कं(२). राजधान, राजध्यान दशस्क(१). दशस्क(२). प्रेमाका.लडाई, तकरार, संघर्ष [सं.राटि; प्रेमाका. *राजधानी, राज्य, राज्यशासन दे.राडि]; जुओ रंगराड, राढ 2010_03 Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राडि/रायउ ४१८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश राडि नेमिछं. फरियाद; उक्तिर. *गुर्जरा. रातु नलरा. आसक्त (सं.रक्त) जिनरा. "विराप. लडाई, झघडो, तकरार रातुउ विराप. रागी, [आसक्त] (सं.रक्त) (द.) [सं.राटि]; जुओ राढ, राढि रातूंबर प्रबोप्र. लाल वस्त्र, लाल वस्त्रवाळी राडो चंद्रवा. ? स्त्री (सं.रक्तांबर) राढ कस्तुवा. प्रेमाका. मदमो. वेताप. राथ प्रेमाका. रथ (प्रास खातर 'राथ') सिंहा(शा). कजियो, तकरार [सं.राटि; राधा षडाबा. रांध्यां (सं.रध्यति) दे.राडि]; नरका. *रढ, "जिद्द; राधाजीके चतुचा. राधाजी पासे [*तोफानमस्ती]; आसक्ति, [रढ, राधावेध अभिऊ. गुर्जरा. [ऊंचे घूमती लगनी]; जुओ राड पूतळी [नी आंख] ने वींधवी ते [सं.] राढि विमप्र. राड, तकरार; नलाख्या. राड, . झगडो, [*खोटी वात] (दे.राडि) [सं. ' __रान अखाका. उक्तिर. कामा(त्रि). नरका. प्रेमाका. रूपच. लावल. वीसरा. अरण्य, राटि]; जुओ राडि, राहाडि जंगल; जुओ रांन राणिम आरारा. गुर्जरा. विमप्र. राजत्व, राबड अखाछ. राबडी जेवू, रगडो राजपद राणोराण आरारा. समस्त (रा.) रामघरणि लावल. रामनी गृहिणी, सीता राणोराणि अभिऊ राजाओनो मोटा रामति, रामत्य भिऊ. अखेगी. आरारा. योद्धाओनो] समूह (सं.राजन्नो विकास) उपबा. उषाह. कृष्णबा. गुर्जरा. जिनरा. [प्रा.राण, सं.राजानक] नरका. नलरा. प्राचीफा. प्राचीसं. रातउ ऐतिरा. *राजी, [आसक्त]; गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). विमप्र. षडाबा. षष्टिप्र. सिंहा(शा). रमत, क्रीडा तेरका. प्राचीफा. नरका. लावल. वसंफा. (सं.रम् परथी) वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). आसक्त, अनुरक्त (सं.रक्त) राम थया नरका. पूर्ण थया रातडि उपबा. कादं(ध्र). कादं(शा). रताश, रामदासियाँ प्रेमाका. गरीब, कंगाल, लालाश (सं.रक्त) दीनदुःखी रातवासे "नरका-२. [रातवासा माटे, रात रामलि गुर्जरा. रमत, क्रीडा (सं. रम्य+लि) रहेवा माटे] रामिणी अंबरा. रमणी रातांबर अखेगी. सूर्य [सं.रक्तांबर] रामेकडउ जिनराः रमकडु, [आनंदनुं राति उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. वसंवि(ब्रा). साधन]; जुओ रमेकडा वीसरा. षडाबा. रात (सं.रात्रि) राय उपबा. गुर्जरा. तेरका. वीसरा. राजा; रातीजगा ऐतिरा. [उत्सव प्रसंगे मांगलिक जुओ राइ गीतो साथेनुं सामूहिक रात्रे जागरण रायउ * वीसरा. [रात्रि] [सं.रात्र, प्रा.राय] 2010_03 Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रायकूंपर गुर्जरा. राजकुंवर ( सं . राजकुमार ) रायको चंद्रवा. प्रेमाका. गोवाळ, रबारी; जुओ राईको, राया रायणि गुर्जरा. रायणनुं झाड (सं. राजादनी) रायपुत्ति नेमिछं. राजकुंवरी (सं. राजपुत्री) रायविहार विक्ररा. राजविहार, मोटां मंदिर राया "अभिऊ. [ रायका, रबारी]; जुओ (सं.) ४१९ राश चतुचा. हरिख्या राशि, ढगलो राश प्रेमाका लगाम, दोरडुं [सं. रश्मि ] राशि कादं (शा). नलाख्या. [ राश], घोडाबळदनुं दोरडुं, [लगाम] (सं. रश्मि ) रायका राय जुओ राइ राल आरारा (व). राळ, सालवृक्षनो रस राष्ट ["रुष्ट, "रिष्ट] प्रेमाका. "कष्टरूप, [* उग्र], [* अरिष्ट, *अनिष्ट, उत्पात करनार ]; जुओ रिष्ट रास अखाछ, मेळ रालइ * लावल. वीसरा. फेंके, नाखी दे, दूर करे (सं. *रल्ल ? ) [ रा . ] राळे होठ अखाका. होठ भीडे, गुस्से थाय, झघडो के वादविवाद करे, [* बकवाद करे ] राव वीसरा. राजा (सं. राजन्) राव, रावडली अभिउ. उषाह. * गुर्जरा. नरका. प्राचीसं. प्रेमाका ललिरा. विमप्र. विराप. शृंगामं. फरियाद (सं.) रावटउ उक्तिर. कोई करियाणुं (*सं. राजावर्तः) रावटी कामा (शा). प्रेमाका. गोळ छजु, अगाशी वडली जुओ राव रावडी नलरा. फरियाद (सं. राव + डी) रावत प्रेमाका. मदमो. राजपुत्र, रजपूत, [वीर पुरुष ] रायकूंबर / राहाडि राजमंदिर, राजदरबार (सं. राजकुल) रावली मदमो. रजवाडी (सं. राजकुल) रावल्य चंद्रवा. राजदरबार; जुओ रावल राश प्राचीसं. रास, गोळाकारे नृत्य करतां गीत गावं ते रावल, रावळ, रावल्य अभिऊ. नरका. *नरप. मदमो. वीसरा. [ राजगृह], 2010_03 रास अखाछ, राशि, भंडार रास गुर्जरा. तेरका. नलरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. गोळाकारे नृत्य करतां गीत गावुं ते (सं.); ए हेतुथी थली साहित्यरचना रासह तेरका गधेडो (सं. रासभ) रासि आरारा. तेरका राशि, मोटुं प्रमाण, समूह रासिया प्रेमाका. रास - लगाम पकडनारा, [ रथारोही योद्धा के सारथि ] रासुलउ, रासुलडउ प्राचीसं. रास, [नृत्यप्रकार, साहित्यप्रकार] राह उक्तिर. नलरा. वीसरा. राहु राहवउ प्राचीसं. राघव, [राम ] राहवउ गुर्जरा. रक्षण करो, [साचवो, संभाळो] (सं. * रक्षापयति) [*सं. रह्] राहाडि कृष्णबा. रढ, हठ; जुओ राढ, राढि Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राहावी/रिसहेसर ४२० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश राहावी उषाह. अटकावी रिखसा देवरा. [रक्षा], रक्षण राहावेहु गुर्जरा. राधावेध, गोळ घूमती रिच कादं(शा). ऋग्वेद (सं.ऋच्) पूतळीनी डाबी आंख वींधवी ते रिजइ [राजइ] उक्तिर. शोभे (सं.राजते) राहि अभिऊ. मार्गमां रिजइ (रोवइ रिजइ) प्राचीफा. *काकलूदी राहि अभिऊ. राहु - नव ग्रहमांनो एक करे, [*रुए-विलपे] __ ग्रह, राहुथी ___ "रिडि [रिधि] उषाह. समृद्धि, विभूति राही *प्रेमाका. [राधाए मोकलेली एक रिण गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. रण, युद्ध गोपीनुं नाम] रिण वीसरा. ऋण, देवू राही, राहीय कर्पूमं. नेमिछं. लावल. हरिवि. रिणउ उक्तिर. ऋण, देवू राधिका रिणतूर प्राचीसं. रणतूर, [रणशिंगुं] राहीवरा नरका. राधिकावर, कृष्ण रिणवास वीसरा. रणवास, राणीवास (सं. राहु अभिऊ. राहदारी, वटेमागु राज्ञीवास) राहे चित्तसं. राहुए रिति जुओ रति रांकढीक जुओ ढीक रिति उषाह. ऋतुमां रांघलू सिंहा(शा). रांगुं, नबलु (सं.रंग-) रितु आरारा. तेरका. नलरा. वसंफा. वसंवि. [सं.रंघ-] ___ वसंवि(ब्रा). वीसरा. षडाबा. ऋतु रांटा प्रेमाका. त्रांसा, [वांका, वळेला] रितुपति गुर्जरा. वसंफा(ल). ऋतुपति, वसंत रांडी गुर्जरा. विधवा (सं.रंडा) रितुपति-राउ वसंवि(ब्रा). ऋतुपतिराज रांदू षडाबा. रांढवू, दोरडु रिदय आरारा. हृदयमां रांण नंदब. अरण्य रिदि कादं (शा). हैयुंनलाख्या. हृदये रांधणउ उक्तिर. रसोई. रांध, ते (सं.रंधनम्) रिधि जुओ रिडि रांधिवउ उक्तिर. रांधवू रिध्य अखाका. रिद्धि, समृद्धि रांन ऋषिरा. अरण्य; जुओ रण, रान रिमिझिमि गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. रूमझूम रांपी उक्तिर. चामडुं छोलवा- मोची- रिवाडी जुओ रवाडी __ ओजार दि.रंप परथी] रिषि गुर्जरा. लावल. ऋषि रांमा कामा(त्रि). स्त्री रिष्ट प्रेमाका. [अनिष्ट योग], अमंगळ R गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. वसंफा. संकट [सं.]; जुओ राष्ट ___ वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). रे (अप.) रिसह गुर्जरा. प्राचीसं. ऋषभदेव रिउ गुर्जरा. तेरका. रिपु, दुश्मन रिसहेसर, रिसहेसरो गुर्जरा. तेरका. ऋषभरिक्षा ऐतिका. रक्षा देव (सं.ऋषभेश्वर) 2010_03 Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४२१ रिसावइ/रुणझुणइ रिसावइ प्रेमाका. रिसाय, रिसाई [सं.रिष्] रीव जिनरा. *नलरा. नेमिछं. विमप्र. रिसि उपबा. तेरका. ऋषि विक्रच. चीस, पोकार रिहिशि कादं(शा). रहेंसे, क्रूरताथी खूब रीस उपबा. गुर्जरा. नलाख्या. प्राचीसं. पीडा करे [सं.रिश्]; जुओ रशे षडाबा. रोष, गुस्सो (सं.रुष्) [सं.रिष्] रीखतु कादं (घ). भांखडिये चालतो (सं. रीसइं गुर्जरा. गुस्से थाय (सं.रुष्) रिंख्) रीसाल उपबा. रोषीलो; उक्तिर. ईर्ष्यालु रीछ उक्तिर. रीछ (सं.ऋक्ष) रीसालाभुं आनंस्त. रसालानी भूमि, रीझ चंद्रवा. प्रेमाका. राजीपो, प्रसन्नता, घोडासार आनंद [सं.ऋध्यति] रीसावइ आनंस्त. उपबा. रीस करे, गुस्से रीझवट चंद्रवा. राजीपो, प्रसन्नता थाय [सं.रुष परथी] रीडिया काढवा दशस्कं(१). हडी काढवी, रीखइ आरारा. रुए, विलाप करे (रा.रीकणौ) दोडादोड करवी रीझ आरारा. रीझ, खुशी रीणउ आरारा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). रुअडो मदमो. रूडो (सं.रूप परथी) थाकेलो, पीडित (दे.रीण); जुओ थाकी- रुक्खडउ जुओ रुंख रीणी रुख अभिऊ. आरारा. वृक्ष; जुओ रुख, रीत नरका. प्रेमाका. रिवाज मुजबनो कर रूख रीतभात प्रेमाका. रिवाज प्रमाणे पहेरामणी, रुखी कामा(त्रि). ऋषि, ब्राह्मण; दशस्कं(१). [करकरियावर] रीति आरारा. स्थिति, अवस्था (रा.) रुचित दशस्कं(१). रुचिकर . रीतुसंग कामा(त्रि). [ऋतुकाळे] संभोग । रुचे प्रेमाका. रुचिए, मरजीथी रीते चित्तसं. मार्गे रुच्च- तेरका. रुचवू (सं.रुच्) रीद चित्तसं. रिद्धि रुच्य अखेगी. रुचि रीदि कादं(शा). हैयु रुडेइ गुर्जरा. दडदडे दि.रड्ड] रीध, रीध्य कामा(त्रि). कामा(शा). प्रेमाका. रुढ प्राचीका. रढ, हठ मदमो. सिद्धि, समृद्धि, ठाठ (सं.ऋद्धि) रुणऊणइ रुणझुणइ] * ऐतिका. रणझणे, रीध्यवीध्य सिंहा(शा). ऋद्धिवृद्धि, [समृद्धि गुंजारव करे] अने वृद्धि] रुणझणिरि [रुणझुणिर] तेरका. रणरीयए * उपबा. [जाय] [प्रा.रीयइ] झणती, रूमझूमती रीर अभिऊ. दशस्क(२). प्रेमाका. चीस रुणझुणइ गुर्जरा. तेरका. स्थूलिफा. रीरी गुर्जरा. पित्तळ (सं.रिरी) रणझणे; गणगणे, गुंजे; जुओ रुणऊणइ ऋषि 2010_03 Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुणझुणकार/रूगयजुसाम ४२२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रुणझुणकार वीसरा. रणझणकार रुववंत तेरका. रूपवंत रुणझुणिर जुओ रुणझणिरि रुष्ट जुओ राष्ट रुवया दशस्क(१). हृदय रुसल्य चित्तसं. भ्रांतिभर्युः जुओ रूसल रुवे अखाका. हृदय; प्रेमाका. हृदयमा रुसी नरका. षडाबा. रिसाइ, गुस्से थई "रुद्ध [रुद्ध] गुर्जरा. संध्यो, [*मसळी (सं.रुष्) नाख्यो रुहाडि आरारा. प्राचीफा. लावल. "शृंगामं. रुद्धि ऐतिका. ऋद्धि, धन, [संपत्ति] इच्छा, अभिलाषा, मनोकामना [रा.] रुयड आरारा. शृंगाम. रूईं, सुंदर (सं.रूप) (द.रुहरुहय); जुओ रूहाडि रुयरि प्राचीफा. वहाणनो कोई भाग रुहिरिइ विक्ररा. रुधिर वडे रुलइ "आरारा. उपबा. ऋषिरा. ऐतिका. रुआंझ्यु [ रुंसाड्यु] उषाह. क्रुद्ध थयो; गुर्जरा. प्राचीसं. षष्टिप्र. भटके, आथडे, जुओ रुंसाडइ रगदोळाय दि.]; जुओ रलइ रुख, रुक्खडउ प्राचीसं. लावल. विक्रच. रुति सिंहा(म). आनंद (सं.रति+ली) [दे. वृक्ष; जुओ रुख, रूख रली]; जुओ रलि संखडउ आरारा. नलरा. वृक्ष रुलिआउति गुर्जरा. रळियात, आनंदित रुंढमाळ प्रेमाका. खोपरीनी माळा रुलिआयत हम्मीप्र. रळियात, आनंदित रुंबता अभिऊ. कुस्ती करता रुलियउ उक्तिर. आनंदित थयो (*सं. रुंसाडइ गुर्जरा. गुस्से करे रुलितः) दि.रली परथी] रुंसाड्यु जुओ रुंआंछ्यु रुलियामणउ, रलियावणउ प्राचीसं. रू. ऐतिका. रूप रळियामणुं, सुन्दर, आनन्दोत्साहजनक रूअडउ नलरा. लावल. सिंहा(शा). रूडो, रुलियायितु षडाबा. आनंदित सुंदर (सं.रूप) रुली, रली नलरा. प्राचीसं. लावल. विक्ररा. रूआ उपबा. रूपिया (सं.रूपक) विमप्र. आनंद, आनंदपूर्वक (सं.रति+ रूउ नलरा. चांदीनो एक सिक्को (सं.रूपक) ली) दि.रली] रूउ गुर्जरा. गायनुं धण (सं.रूप) रुलीआयुत विमप्र. रळियात रूइ नलाख्या. [रुए], रडे (सं.रोदिति) रुलीयाइति अंबरा. हर्षित रूख आरारा. जिनरा. वीसरा. वृक्ष; जुओ रुलीयात सिंहा(म). आनंदित रुख रुलीयामणउं उक्तिर. आनंदजनक (सं.रति रूखउ उक्तिर. लूटुं (सं.रुक्षम्) [रा.] परथी) दि.रली परथी] रूगयजुसाम चतुचा. ऋग्वेद, यजुर्वेद अने रुलीयायित उक्तिर. प्रसन्न करायेल सामवेद 2010_03 Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४२३ रूटेरिण रूढे अखाका. अखाछ. रूढिए, रढिने वश रुविण ऐतिका. रूपथी थईने रूसइ उक्तिर. गुर्जरा. गुस्से थाय (सं. रूणझुणि गुर्जरा. रणझण अवाज (सं.रणत् रुष्यति) +ध्वनि) रूसण ऐतिका. [रिसावू ते, रूठवू ते], रूतउ उक्तिर. क्षुभित, पीडित (सं.रुप्तः) गुस्से थर्बु ते रूदआ मदमो. हृदय रूसणियुं नरका. रिसावानी क्रिया, [रूस[] रूदराणी कामा(त्रि). रुद्राणी, पार्वती रूसल अखाछ. रोष, रिसायेलापणुं ?, रूदीआ कामा(त्रि). हृदये, छाती पर [ अज्ञानयुक्त - रागयुक्त भ्रान्त रूदे कामा(त्रि). हृदयमां मनोदशा]; अखाका. *रोष, “अभिमान *रूधि संधि कादं(शा). रोकवामां आवी [*अज्ञान, "अज्ञानपूर्वक]; जुओ (सं.रुद्ध-) रुसल्य, रूस रूनउ वीसरा. रड्यु रूहाडि जिनरा. अभिलाषा; जुओ रुहाडि रूपक चढे अखाका. देखादेखी करे, 5 उक्तिर. रू, रोम [दाखलो ले, अनुकरण करे] संख उक्तिर. गुर्जरा. वृक्ष (सं.*रुक्ष); जुओ रूपके अखाका. *खेलमां, (*कामक्रीडामां) रूख रूपणि प्रद्युचु. रुक्मिणी (प्रा.रुप्पिणी) संखडं नलरा. प्रेमाका. वृक्ष रूपम *वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. संगुं अभिऊ. * नलाख्या. रुदन, [रोवू ते वसंवि(ब्रा). रूपानी (सं.रौप्यमय) संध अखाका. अखाछ. रूंधामण, बंधन रूपरेह गुर्जरा. रूपरेखा, [आकृतिसौंदर्य] रूस चित्तसं. रागयुक्त भ्रमित मनोदशा; रूपारेल अखाका. रूपानी रेल जेवू, रेलंछेल, जुओ रूसल अति समृद्ध रेख, रेखा अखाका. पुर्जरा. चतुचा. रूपिणि प्राचीफा. हरिवि. रुक्मिणी (प्रा. रेखामात्र, लेशमात्र, थोडं चतुचा. रुप्पिणी) नलरा. परिसीमा, हद (सं.रेखा) रूय गुर्जरा. प्राचीसं. रूप रेखीय हरिवि. रेखांकित करीने, [लिसोटो रूयउ प्राचीसं. रूपियो (सं.रूपक) करीने] रूयवंत गुर्जरा. रूपवंत रेटइ प्राचीफा. "वसंवि(ब्रा). पहेरे [रा.] रूलिआमणां लावल. रळियामणां, सुंदर रेड लावल. [धन] पवाह, [*घन - मूर्त रूव ऐतिका. रूप स्थिति, *अतिशयतानी स्थिति] रूवडउं प्राचीसं. रूढुं रेण गुर्जरा. नरका, धूळ, रज (सं.रेणु) रूवय ऐतिका. रूपक रेण अखाका. सांधवानो पदार्थ के ते माटेनी 2010_03 Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेण/रोझ ४२४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश क्रिया, सांधेलां, एक थयेलां, [जोडाण, रेह आरारा. ऐतिरा. वीसरा. रेखा, लीटी; आश्लेष] नलरा. परिसीमा (सं.रेखा); * गुर्जरा. रेण अखाका. नरका. रात्री (सं.रजनी) प्राचीसं. कीर्तिरेखा, [प्रतिष्ठा] रेणी अखाका. कामा(त्रि). दशस्कं(र). रेहइ उषाह. तेरका. प्राचीफा. शोभे (द.) नरका. प्रेमप. प्रेमाका. रजनी, रात; रेहा ऋषिरा. रेखा, लीटी, [हद, सीमा] जुओ रेंयणी रेहिणी * ऐतिका. [शोभती दि.] रेत दशस्क(१). प्रेमाका. वीर्य [सं.रेतस्] रेहेकले रूस्तस. रेंकडामां [*सं.रथकल] रेल, रेलि विमप्र. प्रवाह, [छोळ]; * लावल. रेहेणी प्रेमप. वर्तन, व्यवहार विमप्र. *बहेक, "सौरभ, [शीतल वायु- रेयणी, रेणी प्राचीका. रात्रि (सं.रजनी) प्रवाह] [रा.रेली] रेणी-रमण अखाका. रजनीपति, चंद्र रेवइयागिरि चारफा. गिरनार पर्वत [सं. रैवत गुर्जरा. गिरनार (सं.रैवतक) रैवतगिरि] रो चतुचा. रह्यो; नंदब. रहो; रह्यो रेवणी ऋषिरा. प्रद्युचु. विमप्र. रेवडी रोअती गुर्जरा. विराप. रोती (सं.रोदिति) - दाणादाण, खेदानमेदान, अस्तव्यस्त, रोडवउं उपबा. रोवं ते (सं.रोदिति). हेरान करवू ते, [खंडखंड करवु त, रोक आरारा. *चंद्रवा. नरका. प्रेमाका. फजेती, दुर्दशा रोकडु, नगद दि.रोक्क] रेवति गुर्जरा. गिरनार (सं.रैवतक) रोकंत प्रेमाका. रोक, [रोकड] रेवय आरारा. रेवती, एक प्रसिद्ध श्राविका रोकारोक अखाका. रोकडेरोकडं, हाजरारेवय प्राचीसं. रैवतक, [गिरनार] हजूर]; अखाछ. रोकडं, नगद] रेवंत कृष्णबा. नरका. प्रेमाका. हरिख्या. रोक्क प्राचीसं. रोकडु दि.] ___ अश्व, घोडो रोख चंद्रवा. शीलक. दमाम, रोफ, [गौरव], रेवंत तेरका. गिरनार (सं.रैवत) [स्थान-माननो ख्याल रेश अखाछ. रहीश, रहेशे रोख * चंद्रवा. [रोकडु, साचेसाच, प्रत्यक्ष] रेशि उषाह. प्रबोप्र. चतुर्थीनो प्रत्यय, माटे रोखमां मदमो. वटमां, [गौरवभेर, वास्तव(अप.रेसि) मां, प्रत्यक्ष रेसि अंबरा. आरारा. उषाह. कृष्णच. गुर्जरा. रोचना *अखाछ. [राजी करवापणुं] [सं.] तेरका. नेमिछं. प्राचीफा. वसंफा. वसंवि. रोज आरारा. एक दिवस (फा.) वसंवि(ब्रा). विमप्र. चतुर्थीनो प्रत्यय, ने, रोझ, रोझडी उक्तिर. गुर्जरा. प्रेमाका. ने माटे, प्रत्ये (अप.) वीसरा. ए नामर्नु प्राणी, नील गाय रेसि उषाह. शोभे (*प्रा.रेह) 2010_03 Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रोड गुर्जरा. गबडावुं [अवरुद्ध करूं, हेरान करूं] [.रा. ] रोडी प्रेमाका. हडी, दोट; जुओ रोढा रोडुं चतुचा. ईंटनो टुकडो, तुच्छ वस्तु रोढा दशस्कं(१). प्रेमाका. दोट, जुओ रोडी रोदना आनंस्त. रुदन [सं.] रोध चित्तसं. अवरोध, अंतराय [सं.] रोयुं चित्तसं. रूंधायेलुं [सं. रोधित] रोपणा आनंस्त. [रोपणुं ते], स्थापना [सं.] रोमकूप प्रेमाका. संवाडांनां छिद्र [सं.] रोमराइ हरिवि. रोमराजी, [रूंवाडां] रोमंच्यउ ऋषिरा. गुर्जरा. रोमांचित थयो रोमाउली वसंवि (ब्रा). रोमावलि, [रूंवाडां] रोयइ उक्तिर. गुर्जरा. तेरका षडाबा. रुए (सं. रोदिति) रोयिवा उक्तिर. रोवा रोस गुर्जरा. तेरका. वीसरा. रोष, गुस्सो रोसारुणु गुर्जरा. क्रोधथी रातुं (सं. रोषारुण) रोर वाग्भबा. दरिद्रता; ऋषिरा. शृंगामं. रोह अखाका. * रोष, * अभिमान, [रोध, रांक, गरीब (दे.) * बंधन ]; गुर्जरा. विराप. घेरो (सं. रोध) रोहिणी गाज अखाका. रोहिणी नक्षत्रमां वरसादनी गाजवीज (ते थाय तो वरस मोळं आवे पाक बराबर न थाय) रोहीडउ उक्तिर. रोहीडो, एक वनस्पति (सं. रोहीतकः) रोहीस उक्तिर. एक प्रकारनुं सुगंधी घास, रोयडो, रोस, रोहीडो (सं. रोहिषः) ऐसा रूस्तस ? रौरव मदमो. भयंकर [सं.] ४२५ रोर जुओ पाव रोर रोल, प्राचीसं. कोलाहल [.]; जुओ रोलि रोळ प्रेमाका. विनाश [दे. रुल परथी ] रोल, रोळ नेमिछं. प्रेमाका. वीसरा. प्रवाही मिश्रण, लेप; * नरका. [आनंदमस्ती; मस्ती, छोळ]; जुओ रोला रोल स्थूलिफा. कंकु (हिं. रोरी, रोली); विमप्र. [कंकु जेवुं ] रातुं 2010_03 रोडउं / लइय [लपेडे] लव आरारा. लावल. रोळे, भांगी नाखे, [ नष्ट करे ] रोलंब शृंगामं भमरो (सं.) रोला, रोळा * लावल. [लेप, घट्ट प्रवाही ]; नरका. रेलंछेल; जुओ रोल रोलि * गुर्जरा. [कोलाहल, विवाद ] (दे. रोल); जुओ रोल रोबइ ऋषिरा. गुर्जरा. देवरा. रुए [सं. रोदिति ] रोवइ रिजइ जुओ रिजइ रोश मदमी. खोड रोशि प्रबोप्र. रोषे, [ क्रोधथी] रोशि विमप्र. [आवेशमां आवे मारेकापे] * [रा. रोसणी] - रोलाइ, रोळइ अभिऊ. विमप्र. रगदोळे, [ नष्ट करे ] (दे. रुल परथी); गुर्जरा. गडावे, [रगदोळे, नष्ट करे; आच्छादित करे ]; नरका - २. रोळवानी क्रिया करे, लइय तेरका. लीधुं (सं. 'नयू' तथा 'ला') Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लउडउ/लगाडी देवू ४२६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गुणधर्म प, अत लउडउ उक्तिर. षष्टिप्र. लाकडी (सं.लकुट) लखा विमप्र. लाख (संख्या) (सं.लक्ष) लकडी उक्तिर. लोंकडी दि.लुंकडी] लखाणी, लखी चित्तसं. आलेखी, वर्णवाई लउंग उक्तिर. लविंग (सं.लवंग) [सं.लिख्] लक्ख तेरका. नेमिछं. लाखनी संख्या लखि (लखि परि) विमप्र. लाख [प्रकारे] (सं.लक्ष) लखी जुओ लखाणी लक्खणिण ऐतिका. लक्षणोना ज्ञाता [सं. लखु गुर्जरा. लक्ष्य लक्षणिन् लखे चंद्रवा. ?, [जणाय, ओळखाय]; लक्ष चित्तसं. लक्ष्य, दृष्टिबिंदु ___ चित्तसं. लक्षे, ध्यानमा ले, जुए लक्षण आरारा. शुभ चिह्नो (सं.); चित्तसं. लखेण कामा(त्रि). लक्षण लख्य प्रबोप्र. मदमो. लाख (संख्या) (सं. लक्षे चित्तसं. लक्ष्ये, छेवटे, अंते लक्ष) लक्षेलक्ष प्रेमाका. लाखो, [लाखंलाख] लख्य मदमो. लक्ष्मी लक्ष्मी वाग्भबा. शोभा [सं.] लख्यणहीण लावल.लक्षणहीन, गुण विनानो लख वसंफा. लक्ष्य लग, लगइ, लगि, लगिइ, लगी, लगे, लख नेमिछं. मोसाच. लावल. वीसरा. लगें अखाका. उपबा. उषाह. गुर्जरा. शृंगामं. लाखनी संख्या (सं.लक्ष) नरका. नरप. लावल. लगी, सुधी; लखइ अखाका. अखाछ. आरारा. उक्तिर. आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. प्राचीका. जुए, पामे, ओळखे, पारखे, समजे (सं. *लावल. *षडाबा. -थी, -थी मांडीने; लक्ष्) अखाछ. उपबा. "उषाह. गुर्जरा. लखइ कामा(शा). प्रेमाका. आलेखे, चीतरे चित्तसं. नलरा. प्राचीफा. षडाबा. -थी, [सं.लिखति] ने कारणे, तेथी, [पूर्वक लखण ऐतिका. लक्षण लगउं गुर्जरा. भेगुं थयुं, जोडायु (सं.लग्न) लखणवन्तो ऐतिका. लक्षणवंत लगण प्रेमाका. सुधी लख प्रकारे मोसाच. लाख रीते लगतो प्रेमाका. नजीक लखलख करती प्रेमप. बोलबोल करती लगन लावल. ज्योतिषविद्या प्रमाणे मुहूर्तनी लखलखती प्रेमाका. बबडाट करती कुंडळी, [मुहूर्त] (सं.लग्न); जुओ लग्न लखलाघवी वसंवि. वसंवि(ब्रा). लक्ष्यवेधनुं लगडु षडाबा. वांकुं लाकडु दि.] कौशल (सं.लक्ष+लाघव); जुओ लघु- लगाडणि षडाबा. लगाडवामां लाघवी लगाडी देवु दशस्कं(१). प्रेमाका. आग लख वार शृंगामं. लक्ष वार, लाख वखत लगाडी बाळी देवू जुओ लागी 2010_03 Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लगामी वीसरा. लगाम लगि, लगिड़, लगी, लगे, लगें जुओ लग लग्गइ गुर्जरा. तेरका. नेमिछं लागे (सं. लग्यति) लग्न प्रेमाका. पृथ्वी एक राशिमां रहे तेटलो समय [सं.]; मुहूर्त; जुओ लगन लघवs अभिऊ. लघुवय [वाळो] लघु आरारा. धीमा लघुकरमी ऋषिरा. जेनां कर्मों हळवां छे ते, [ थोडां कर्म रह्यां छे तेवी, तरत मुक्ति पामनारो] [जै. ] ४२७ 9.1 लघुलाघजी अखाका, चतुराई, [ लक्ष्यवेध करवानी कुशळता ]; जुओ लखलाघवी, लाघव लघु-वि कृष्णबा. लघु वय लघु- वे दशस्कं ( 9). लघु वय लच्छि, लच्छी, लछि, लछी, लंछी, लाछि आरारा. ऐतिरा. प्राचीका. प्राचीसं. सिंहा (म). लक्ष्मी, [धन ]; प्राचीसं. लक्ष्मी [देवी ] गुर्जरा लछमछ * नेमिछं. [*सुंदर, लटकाळी] लछि ऐतिका. लक्ष्मी, [धनसंपत्ति ] ; [वैभव, महिमा ] ; विराप. लक्ष्मी [देवी ]; जुओ लच्छि 2010_03 लघुनीत दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. लघुशंका, लट्टा षडाबा. कसुंबो, करडीनो छोड (दे.; मूत्रनो परित्याग सं. लट्वा) लगामी/लद्धिवर लछी जुओ लच्छि लछूछी लावल. लक्ष्मी, [समृद्धि] लंछी जुओ लच्छि लज्या दशस्कं ( 9). मदमो. लज्जा, लाज लटका करे चित्तसं. व्यवहार करे, रमण करे लटके प्रेमाका. सहेलाईथी, [रमतमां] लटपट प्रेमाका. खुशामत, चालाकी; जुओ लाटेपाटे लटपटी दशस्कं (१). प्रेमाका. लपेटी, वींटीं, घेरी लsess, नलाख्या. नेमिछं. जिनरा. लथडे लघुलाघवी विद्या * प्रेमाका. [ लक्ष्यवेध लडसडइ नरका. प्राचीफा. लहेरमां के मदमां करवानी कुशलता ] चाले लडहि प्राचीफा. सुन्दर (सं. लटभ) दि. लटह] लडहियतण प्राचीफा. सुन्दरता (सं. *लटभिकत्वन) लडा विमप्र. शोभीता [ दे. लडह ] लडाक दशस्कं ( 9). प्रेमाका. लडकणो लछ प्राचीका. वेताप सिंहा (शा). लक्ष्मी, लडावइ गुर्जरा. नेमिछं. लाड लडावे, [स्नेह [धनवैभव ] करे ] [द.लड्डिय] लड्डाविय प्राचीसं. प्रशंसित लट्टू उक्तिर. कसुंबो, करडी (सं. लट्वा) [द. लट्टा ] लद्धउ गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. लीधुं प्राप्त कर्यं (सं. लब्ध) द्विवर ऐतिका. * उत्तम लब्धि, [योगादिथी Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपन्न लघ/लहइ . ४२८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्राप्त शक्तिविशेषनुं वरदान धरावनार] तजी लध आरारा. मळी (सं.लब्ध) - ललिय तेरका. ललित – सुंदर रीते लपनश्री षडाबा. लापसी (सं.लप्सिका) दि. ललि, ललि देवरा. लळीलळी, नीचा वळी लप्पसिया] [सं.लल्] लपि नलरा. लिपि, लेखनविद्या ललीता मदमो. सुंदरी [सं.ललिता] लबधि ऐतिरा. लब्धि, सिद्धि ललीय गुर्जरा. ऊडी, ऊछळी, [घूमराईने, लबधिवन्त ऐतिका. लब्धि(शक्तिविशेष)- चकराईने] (सं.लल-) लव कामा(त्रि). रटण, [धून] [हिं.लौ]; लबधी आरारा. आसक्त रही (सं.लुब्ध) नरका.प्रेमाका.लवरी, बकवाद [सं.लप्] लबरका * उषाह. [लपकारा] लवइ आरारा. शृंगामं. बोले [सं.लपति]; लबांनीयो कस्तुवा. वणजारो जुओ डांलवइ लबशी पडे प्रेमप. लपसी पडे लवइ नलाख्या. फरके लबे अखाछ. होठे [फा.] लवणि आरारा. लावण्य लब्धि लावल. योगथी प्राप्त थती विशिष्ट लवणिम, लवणिमा गुर्जरा. जिनरा. तेरका. शक्ति, [सिद्धि प्राचीफा. शृंगामं. लावण्य, सौंदर्य (सं. लयलीण आरारा. रच्योपच्यो लवण+इमन्) लयउ उषाह. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). लवधुलउ प्राचीफा. लुब्ध, आसक्त लीधो (सं.ला-) लवलि तेरका. लवली, एक पुष्पलता लया आरारा. लता लवंड ऐतिका. दीवालनी पोपडी लयेत उक्तिर. लई लेत, हरी लेत लवासी आनंस्त. [बकवाद करनार] [हिं.] ललचे प्रेमाका. ललचाय ० लवि जुओ लिव ललत प्राचीफा. रम्य (सं.ललित) लवि लागी हरिवि. लववा लागी ललवटे कामा(त्रि). ललाटे, कपाळमां लस- तेरका. प्रकाशq (सं.) ललवल * वसंफा. *वसंवि. वसंवि(ब्रा). लहइ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा. लचकपूर्वक, लटकमटक (सं.ललत्+ उषाह. ऋषिरा. ऐतिरा. गुर्जरा. चित्तसं. वलत्) तेरका. देवरा. नेमिछं. लावल. वसंफा. ललवलउ प्राचीफा. [लटकाळु], सुंदर वसंवि. वसंवि(ब्रा). विराप. वीसरा. ललवलती वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). षडाबा. मेळवे, पामे, प्राप्त करे (सं. लळती, लचकाती लभते); प्रेमाका. लावल. धारण करे; ललाट लोही अखाका. कपाळ लूछी, आशा अखाका. आनंस्त. कादं(शा). ___ 2010_03 Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४२९ लहकइ/लंक कामा(त्रि). कामा(शा). चित्तसं. नरका. वीसरा. शीलक. षडाबा. हम्मीप्र. नलाख्या. नेमिछं. प्रेमप. प्रेमाका. लघुक, नानु; जुओ लहूउं लावल. ओळखे, समजे, जाणे; जुओ लहुपण जुओ लहुअपण जावू लहइ . लहुयडउं आरारा. नानु, नाजुक (सं.लघु); लहकइ ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. वसंफा. विक्ररा. नानू । वसंवि. वसंवि(ब्रा). लहेके, लळे (सं. लहु वयि ऐतिरा. लघु वये लसत्+कृत) (दे.लहक्क); प्रेमप. झूले, भूल, लहूअडउं चारफा. ना, मनोहर; नलरा. शोभे प्राचीफा. नानुं (सं.लघुको लहका नेमिछ. [लळीने], लहेकाथी, था, लहूउं कृष्णबा. देवरा. नलरा. नानुं (सं. सहेलाईथी लघुक) लहकुडलउ प्राचीफा. लहेको, [लटक], लहूयडउ प्रद्युचु. नानो, लघुवयस्क (सं. कटाक्ष (सं.लसत्+कृत) लघुक) लहरीयउ स्थूलिफा. [स्त्रीओना कंठy] एक . एक लहेकावतां (लींबु लहेकावतां) नरका. __ आभूषण; जुओ लहेरियु [लीबु] उछाळतां, (सहेलाईथी) लहलह- तेरका. प्राचीसं. हलवू, धीमेथी लहेर दशस्क(१). प्रेमाका. मूर्छा आंदोलित थर्बु, लसलसवू लहेरियुं प्रेमाका. गळानुं एक घरेणुं; जुओ लहलह तेरका. सळवळाट करतुं __ लहरीयउ लहवाउ जिनरा. अस्वस्थ थयुं, लेवाई गयुं] नही लहेरी नरका. फुदरडी लहिका (लाहेका देइ) विमप्र. लटको लहेवाशे प्रेमाका. जणाशे, समजाशे, [खबर - [करे], [आनंद बतावे पडशे] लहिणु प्रद्युचु. लहेj लहेवू नरका. प्रेमाका. ग्रहण करवू, समजवू; लहिq उक्तिर. मेळवQ __वसंफा. प्राप्त कर लहिवासइ शृंगामं. लेवाशे लंक विमप्र. (अक्षरोना) वळांक, मरोड लही चित्तसं. समजाई, ओळखाई लंक सिंहा(शा).?, [अत्यंत, साव]; * मदमो. लहु गुर्जरा. लघु [अत्यंत] लहुअ (लहुअ लगइ) लावल. लघु वय[थी], लंक लावल. लंकानगरी बाळपण थी लंक, लंका अभिऊ. कृष्णबा. नरका. लहुअपण, लहुपण प्राचीका. लघुता, मदमो. लावल. वीसरा. शृंगामं. कमर, नानापणुं (सं.लघुकत्वन) कमरनो वळांक, मरोड; जुओ कंडिलंक, लहुडउं उक्तिर. उपबा. कृष्णच. रूपच. चित्रलंक, शहीलंकी 2010_03 Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लंक- केसरी / लाखाराम लंक -केसरी अखाका. सिंहना जेवा कमरना वळांकवाळी; जुओ हरिलंकी लंक लूट्युं जुओ लूंट्युं लंक काजुओ क लंकाल दशस्कं (२). वळांकवाळा (सर्प) लंकालि, लंकाली आरारा. शृंगामं. लांक - वळांकवाळी लंकित विमप्र. लांक वळांकवाळी लंकीली ऋषिरा. [लांकवाळी], मरोडवाळी लेख ऐतिका. * मोटा वांस पर खेलनारी नटजाति [सं.], [* गायक] [दे.लंखक ] लेखइ कर्पूमं. प्राचीसं. नाखे लंखण प्राचीसं. प्रक्षेप, नाखवुं ते लंखनु षडाबा. नाख ते लंग प्राचीका. लिंग, [मृत्यु पछी पण फळनो भोग करवा रहेतुं] जीवात्मानुं सूक्ष्म शरीर - ४३० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लंडीयो चंद्रवा. लुच्चो, [ लांठ, धूर्त ] ive star. एक देवलोकनुं नाम (जै.) [स.लांतक ] लंपटपणुं " षडाबा. [लोलुपता ] (सं. लंपट - ) लंब चित्तसं. लांबुं, दूर सुधी पहोंचतुं विशाळ लंबिय तेरका. फेलायेला, व्याप्त (सं. लंबित) लाइ आरारा. नेमिछं. वीसरा. लगाडे (सं. लागयति); नलाख्या. लगाडे, जगावे (सं.ला-); * गुर्जरा. [लगाडे, अर्पे]; नरका लागी 2010_03 लाइ अभिऊ लावे (सं.ला-) लाइ चित्तसं. ल्हाय, अग्नि लाइक ऐतिका. लायक लाई जुओ चित्त लाई लाई उक्तिर. [* बिचारा, गरीब ] (सं. लम्पकः ) [ रा. ] लंगर * प्रेमाका [हाथीना पगनी जंजीर ] लाउ आरारा प्रद्युचु लगाडो ( प्रा. लाय) [फा.] [सं. लागय्] लंगर कस्तुवा. सदाव्रत [फा.] लाएइ * शृंगामं. [लागे] लंघs गुर्जरा. तेरका शृंगामं. ओळंगे (सं. लाख गमें आनंस्त. लाख प्रकारे लंघति) लंघाविय प्राचीसं. लांघण करावी लंचा कस्तुवा. लांच (सं.) लंची * लावल. [लांचियुं ] लंछण वीसरा. शृंगामं. लांछन लंठ नरका. प्रेमाका. लुच्चो, [धूर्त, लांठ, दांड ]; जुओ लांठ लाखगुणउ उपबा. लाख गणुं (सं. लक्षगुण-) लाखपसाव ऐतिका एक दानविशेष, [कीमती भेट, मोटो सरपाव] [सं. लक्षप्रसाद] लाखहरु गुर्जरा. लाक्षागृह, लाखनुं बनावेलुं घर लाखाग्रेह प्रेमाका लाक्षागृह लंड चंद्रवा. मदमो. वेताप शृंगामं लुच्चो, लाखाराम गुर्जरा. तेरका लाक्षाराम (ए लांठ, [धूर्त ] नामनो उद्यान) Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लाखां-करोडी प्रेमाका. लाखो अने करोडो लाखिवा उक्तिर. नाखवा [ सं . नंक्ष] लाखी प्रेमाका. लाख [पदार्थ][सं. लाक्षा ] लाखीणउ अंबरा. लाख रूपियाना मालिक; चंद्रवा. जिनरा. लावल. "विमप्र. लाखेणो, कीमती, महामूलो [ सं . लक्ष - ] लाखेणा दीपक प्रेमाका. लक्षाधिपतिनी निशानी तरीके एने त्यां सळगावाता दीवा ४३१ लाखेणी नरका - २. प्रेमाका. कीमती लाखे लेखां थाय अखाका. अतिशय समृद्धि मळे लाग कादं (शा). [ संबंध ], कारण, [औचित्य ] ; * नलाख्या. [ अवसर, तक युक्ति] [सं. लग्न ] लाग, लागु आरारा. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). संबंध, स्नेह, अनुराग (सं. लग्न) लाग- वीसरा. शरू थवुं (सं. लग्न) लागठउ प्राचीसं ?, [ संबंध होवो ते] लागणा * प्रधुचु. [ आघात आपे एवं ] लागि उषाह. लागो, [कर ], खर्च लाखां-करोडी / लाइ (सं.); जुओ लघुलाघवी लाल लावल. लक्ष्मी [नाम ] लाछवर नरका. लक्ष्मीनो पति, कृष्ण लाछा उतारवा वेताप. चिकित्सा तरीके गरम तवेथा के लोढा पर लींबडो ने छाश छांटी दरदीनां तळां शेकवां के डावां लाछि अंबरा. प्राचीका. लक्ष्मी, [धननी देवी]; नेमिछं. लावल. लक्ष्मी [नाम ]; गुर्जरा. नेमिछं. लावल. धन; जुओ लच्छि लाक्ष्य मदमो. लक्ष्मी, [धनसंपत्ति ] लाजइडी लावल. लाज, शरम (सं. लज्जा) लाज काढी प्रेमाका. आबरू गुमावी लाज लागे अखाका. [शरमावा जेवुं थाय], लांछन लागे, प्रतिष्ठा जाय लाजवी जिनरा लजाईने [सं. लज्रति] लाजा कादं (शा). शाळ, आखा फोतरावाळा चोखा, [भूंजेली डांगर] [सं.] लाजिवा उक्तिर शरमावा लाजी नलरा. एक प्रदेश या नलराजाए विजय कर्यो हतो लागि आरारा. माटे लाजीइ उक्तिर. लजवाय, शरमाय लागी प्रेमाका. सळगी, [ नष्ट थई); जुओ ला अखाका. झांखं पडे [सं. लज्जति] लगाडी दे लागु जुओ लाग लाटेपाटे प्रेमप. कोई पण प्रकारना उपाये ?, [लटूडापटूडाथी, खुशामदथी ]; जुओ लागू आरारा. पाछळ लागेला लाघ- वीसरा. ओळंगवुं (सं. लंघू) लाघव, लाघव अखाका. *सार, [सरळता, सहेलापणुं]; वसंफा. वसंवि (ब्रा). कौशल लटपट लाठी षडाबा. रेवडी (सं. लष्टि) [द. लट्ठिय परथी ] लाडइ उक्तिर. लडावे, प्यार करे [दे.लड्डिय 2010_03 Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाडगहिली/लालि ४३२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश परथी] लाबर विराप. लावरां, वडचकां, तिरस्कारलाडगहिली ऋषिरा. लाडघेली युक्त कटु वचनो (सं.लवित); जुओ लावर लाडण गुर्जरा. [लाडीली] कन्या लाबरहुं नरका. नरप. [शिथिल], अत्यंत लाडण, लाडणु गुर्जरा. नलरा. प्राचीसं. ढीली, लोथपोथ वर, प्रियतम लाभइ आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. लाड पालवा मोसाच. *राजी राखवा. [लाड नरका. षडाबा. मळे, प्राप्त थाय; मेळवे, पूरा करवा]; जुओ पाल्यां लाड पामे (सं.लभ्यते) लाडिकू नलाख्या. लाडीलु, लाडकुं] लाम * चतुचा. [श्रेष्ठ] (सं.ललाम) लाडिय, लाडी गुर्जरा. कन्या, नववधू; लामा ललिरा. खराब प्राचीफा. सुन्दर नायिका (प्रा.लड्डिय) लामी प्राचीफा. प्राचीसं. हलकी, नरसी, लाइकलहहिय तेरका. ए नामनी ओरडी. अभद्रा, प्रतिकूला, विषम लाडुनो नास्तो जेमां रखाय छे ते लाय अखाका. आग, अग्नि ओरडी] लायइ ऋषिरा. लागे; *गुर्जरा. [लगाडे]; लाडूआ आरारा. लाडवा देवरा. लावे लाडो ऐतिका. [लाडको, प्यारो लावण्ण तेरका. लावण्य लाण (लाणे लेजाशे) प्रेमाका. लहाण, लाभ, लार अखाका. आरारा. संबंध, साथ (रा.); लहावो, [*भार वेठवानो आवशे, आरारा. *(आपणी) साथे, [साथ, *मुसीबतमां मुकाशे] संग]; *अखाका. [हार, परंपरा; लादा विकरा. गांसडीओ. पोटलां] रा.] *देवरा. [पाछळ]; जुओ लाहार लाध गुर्जरा. लाभ, प्राप्ति (सं.लब्धि) लाल उक्तिर. गुर्जरा. लाल (सं.लाला), लाघउं अभिक आरारा उक्तिर उपता नलाख्या. लालसा ऋषिरा. गुर्जरा. चित्तसं. जिनरा. लाळ वीसरा. घंटनी अंदरनुं धातुनुं लोलक नलाख्या. प्रेमाका. लावल. विराप. लालइ उक्तिर. लावल. लालन कर, लडावे, वीसरा. मळ्यं, प्राप्त थयं; मेळव्यं, कर्यं स्नेहपूर्वक पाळे (सं.लालयति) (सं.लब्ध) लाळच वीसरा. लालच लान्हउ प्राचीसं. नानो [सं.श्लक्षणं] लालडा विमप्र. लाल, रातां लापसिय प्राचीसं. लापसी दि.लप्पसिया] लालडीआ विमप्र. नानुं वहालुं बाळक लाफालोल * नरप(द). [पैसा उडाववानी लालरी *गुर्जरा. [करचली] मजा) लालास कादं (शा). लालचु (सं.लालस) लाबर नरका. ढीलुं, नरम, [शिथिल] लालि जुओ सुहलालि 2010_03 Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४३३ लालि/लांबपणि लालि उक्तिर. [*लाळी, "शियाळ आदिनो जुओ लार, ल्हार अवाज] (सं.लल्लि) लाहिण ऐतिका. लहाणी (सं.लभनिका) लाली * विक्ररा. विमप्र. शियाळ लाहु आरारा. नलरा. ललिरा. विक्रच. लालीय वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). लहावो, आनंदनो उपभोग (सं.लाभ) लळीने, ललित रीते, लीलापूर्वक (सं. लाहूर अभिऊ. कोई लांबा दांतवाळु पशु, लालयित्वा) [एक प्रकार- शिकारी कूतरुं] [रा. लालू नलरा. छंदमां पादपूरक तरीके, [लाल लाहोरी] - ध्रुवा तरीके लाहो मदमो. वेताप. लगाडो (सं.लागय्) लावइ आरारा. लावल. लगाडे; गुर्जरा. लाहो नरका. मदमो. लहावो (सं.लाभ) (बूम) मारे लाहोले (लाहो ले) * नरप. [लहावो ले] लावि जुओ मागी लावि लांक दशस्कं(१). नेमिछं. प्राचीसं. (कमरलावणि आरारा. लावण्य नो) वळांक लावणो सिंहा(शा). सुंदर (सं.लावण्य) लांकु वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). कमर लावन आरारा. जिनरा. लावण्य; वसंवि- लांखइ उपबा. गुर्जरा. कृष्णबा. नेमिछं. (ब्रा). सुंदर (सं.लावण्य) वाग्भबा. षडाबा. षष्टिप्र. नाखे (सं. लावनि वसंफा. लावण्य[युक्त] नंक्षति) लावनिसयरि वसंवि. लावण्ययुक्त शरीरे लांगर्या प्रेमाका. (सांकळथी खीले) लावर गुर्जरा. वडचकां, तिरस्कारयुक्त कटु बंधायेला शब्दो; जुओ लाबर लांघइ आरारा. उक्तिर. षडाबा. उल्लंघे, लावंन मदमो. लावण्य ओळंगे, पसार करे (सं.लंघयति) लास, लासि अभिऊ. प्रेमाका. *विमप्र. लांघी आरारा. लंघनवाळो, उपवासी, भूख्यो (घोडाओनो) समूह लांछु नेमिछं. लांछन लाह अंबरा. ऐतिरा. चारफा. प्राचीका. लांठ चंद्रवा. प्रेमाका. लोंठकुं, गांठे नहीं लावल. *विमप्र. लाभ, लहावो तेवू, तोफानी; जुओ लंठ । लाहइ आरारा. जिनरा. वहेंचे, लहाणी करे लांठीआ कामा(त्रि). शठ, [धूर्त] (रा.); प्रेमाका. मदमो. मेळवे, पामे लांप उक्तिर. आसक्ति, इच्छा (सं.लिप्सा) (सं.लाभ-) लापडं *अखाका. [लूनु, दम विनानुं लाहउर उक्तिर. लाहोर (सं.लाभपुरम्) लांपा हरिवि. लंपट ?, [*लालसा, लाहणउ उक्तिर. उत्सवादि प्रसंगे थतुं लहाणुं *आसक्ति] लाहार मदमो. रूस्तस. हार, लांबी हार; लांबपणि षडाबा. लंबाईमां (सं.लंब-) 2010_03 Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लांभुयां / लीजइ लांयां वेताप. लांभवां के लांभां, भाग वहेंचवा नाखवामां आवती चिठ्ठीओ लि, लिअइ, लिइ अभिऊ. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. तेरका. नरका. नलाख्या. लावल. वसंफा. वसंवि. वीसरा. ले, *लिव [ "लवि] * नेमिछं. [बोले] [ ग्रहण करे ], लई जाय लिवरावइ उक्तिर. लेवडावे · ૪૪ लिक - प्राचीसं. संतावुं [दे.] लिखइ आनंस्त. उक्तिर. कादं(शा). गुर्जरा. लावल. विराप. षडाबा. लखे (सं. लिखति) लिखाइ * वीसरा. [लखाय, लखवामां आवे ] लिखे * विमप्र . [ लक्ष - ध्यान राखे, , काळजी राखे लिखावइ उक्तिर. लखावे [सं. लिखापयति ] लिखिवा उक्तिर लखवा मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लियइ उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. देवरा. वीसरा. षडाबा. ले, स्वीकारे (सं. ला, नी-) लियाय देवरा लयावी, [लावी ] 2010_03 लियावइ शृंगामं. लई आवे लिलवट नरप ( द ). ललाट; जुओ लीलवट लिल्लर, लिल्लिर प्राचीसं. लीरो, चीवर, [साधुवेश ] [.] लिवंग नेमिछं. प्राचीफा. लविंग (सं. लवङ्ग) लिविउं गुर्जरा. चीतरेलुं (सं.*लिपित, लिप्त) लिहालु नलरा. कोलसो, लहाळो लिहावइ तेरका. विराप. लखावे (सं. लिखू परथी) लिखे शृंगामं. आलेखीने लिख्मी आरारा. लक्ष्मी, [लक्ष्मीदेवी; धनसंपत्ति ] लिख्यउ * वीसरा. [लख्यो] लिगार ऋषिरा. ऐनिका. देवरा लगार, थोडुं लिट्टु प्राचीस. ईंट के पथ्थरनो टुकडो, लिंहगटउं षडाबा. एक प्रकारनी मीठाई, [ ढीली लापसी, चाटण लापसी, शीरा लापसी] रोडुं (सं. लेष्टुक) लिद्ध ऐतिका. गुर्जरा. लीधुं, मेळव्युं लिपसणउं उक्तिर. [*लपसणुं] (सं. लिप्स्यायनम्) लीइ, लेइ गुर्जरा. वसंफा (ल) ले (सं. ला-) लीक वेताप. लीटी, मर्यादारेखा, [ गणना ] लीछ आरारा (व). लीची, पूर्व हिंदनुं फळझाड ? लिहीजइ गुर्जरा. लखावीए (सं. लिख परथी) लिहीती षडाबा. चटातां, चाटवामां आवतां (सं. लिह) लिंग चतुष्टय अखाका. [ वेदांतमत मुजब चैतन्यनी जुदीजुदी अवस्था दर्शावता] चार प्रकारना देह : स्थूळ, सूक्ष्म, कारण अने महाकारण लिंगभंग अखाका. अखेगी. [चारे प्रकारना लिंगथी पर थवं ते], देहभावनो नाश, ब्रह्मभावनी प्राप्ति लीजइ उक्तिर. तेरका. * लावल. वसंफा. लेवाय (सं.ला - ); लावल. लेजो, लो Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४३५ लीजतउं/लुणावइ लीजतउं उक्तिर. लेवातुं (सं.लीयमानम्) *विराप. आडो आंक, हद, पराकाष्ठा लीजीइं आनंस्त. लईए [सं.लेखा लीट वळी जुओ वळी आडी लीट लीह कढाईं जुओ कढावू लीह लीण, लीणउ आनंस्त. आरारा. चारफा. लोहडी ऋषिरा. रेखा, लीटी नेमिछं. प्रबोप्र. वसंफा. वसंवि. लीह वळी नरका. हद आवी, अंतिम कक्षाए वसंवि(ब्रा). लीन, मग्न, डूबेलु पहोंच्यु [पराकाष्ठा आवी]; जुओ वळी लीणउ तेरका. लीन थयुं (सं.लीन+क) आडी लीट लीण्यो आनंस्त. लीन थयेलो लीहा शृंगाम. लीटी (सं.लेखा) लीघउं अखाका. नरका. पकडेलु, लीहाला * उपबा. [संयमधर्मनी मर्यादा] [झलायेखें, वशमां लेवायेलुं] लीही अखाका. नंदब. दशस्क(१). रेखा, लीब षष्टिप्र. लींबु (सं.निम्बु) लीटी; हद, मर्यादा लीयउ गुर्जरा. वीसरा. लीधुं लीही वळवी दशस्कं(१). हद थवी, लील लावल. सुंदर, [आनंदभरी, मंगल] पराकाष्ठा आववी लीलज नरप. निर्लज्ज, बेशरम लींबु लहेकावतां जुओ लहेकावतां लीलवट मदमो. ललाट (सं. निललवट्ट, लींबूई आरारा (व). लींबुडी (सं.निंबूक) प्रा.निडल+वट्ट); जुओ लिलवट लुकइ अंबरा. उक्तिर. छुपाय; वीसरा. लीलाट, लेलाट चंद्रवा. ललाट छुपाय, ढंकाय; * प्राचीफा. [अदृश्य लीलावती विमप्र. ए नामनो गणितग्रंथ थाय, शमी जाय] (दे.लुक्क) [रा.]; लीलावपु अखेगी. लीला माटे धारण करेलु जुओ लूकी शरीर [सं.] * लुकी आरारा. सूतेली (द.लुंक) लीला कादं(शा). नेमिछं. वाग्भबा. लीला- लुखस अखाका. खजवाळ आवे एवो पूर्वक, रमतमां, शोभापूर्वक, [सुंदर चामडाना एक रोग रीते लुबुं चित्तसं. निस्तेज; सार विनानुं [सं.रूक्ष] लीला लिहिर कादं(शा). लीलालहेरथी, लुठइ उक्तिर. आळोटे, झूले, ढळे (सं. [रमतमा अने लहेरथी] (सं.लीलया+ लुठात) लहरी) लुणइ अंखरा. उक्तिर. कापे (सं.लुनाति); लीह आरारा. ऊक्तिर. शंगाम. रेखा, लीटी, जिनरा. वीसरा. कापे, लणे लकीर]; कृष्णबा. रेखा, मर्यादा; प्राचीसं. लुणाइ उक्तिर. गुर्जरा. विराप. फपाय, हरिख्या. मर्यादा, [मलाजो]; *गुर्जरा. लणाय, लणवामां आवे (सं.लुनाति) नेमिछं. प्रेमाका. *लावल. विमप्र. लुणावइ उक्तिर. कपावे 2010_03 Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुबधउ/लेखण ४३६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लूह लुबधउ आरारा. ऋषिरा. लुब्ध, लूय प्राचीसं. गरम हवा, लू ललचायेलो, लोभायेलो लूलता प्रेमाका. ललुता, लोलुपता लुललुल ऐतिका. झूकीझूकीने, [लळीलळी- लूसइ गुर्जरा. नलरा. विक्ररा. *षडाबा. ने] ____ हम्मीप्र. लूंटे (सं.लूषयति) लुकडि उक्तिर. लोंकडी दि.लुंकडी] लूसड प्राचीसं. लूटारु लुंकडी (लुंडी) शृंगाम. *लोंकडी लूहइ कादं (शा). गुर्जरा. जिनरा. लावल. लुंचइ उक्तिर. पंचवा. तोडे, चूंटे (सं. लूछे (द.) ___ हुँचति); जुओ लोच लूहनु षडाबा. लूछ, ते (दे.लुह) लुंचन नरका. तोडवानी के चूंटवानी क्रिया लूंछणडा *विमप्र. [ओवारणां] [रा.] [सं. लुंडण लावल. [ओवारवानी क्रिया] [रा.] न्युच्छन] लुंछणडइ गुर्जरा. माथे उतारीने नाखवू ते, लूंछणा ऐतिका. न्योछावर थर्बु ते, न्योछावर करवू ते (सं.न्युच्छनक) [ओवारणां] लुंडिणी वाग्भबा. कूतरी लूंट्युं लंक अखाका. लंका लूंटी, घणो लुंडी जुओ लुंकडी __ फायदो मेळव्यो लुंडीमुहा विमप्र. *दासीना मोढा जेवा लूंठ अभिऊ. नकामी, मोटी, [अतिशय __ मोढावाळा [रा.लूंठौ लुविय प्राचीसं. लूम, [झूमखुं] [सं.लुम्ब] लूंठाइ प्रेमाका. जबरदस्ती लूअडी लावल. [लू, गरम हवा], *वराळ, लूंसइ गुर्जरा. लूंटे (सं.लूषयति) गरमी लूंसाविया कृष्णबा. लूटाव्यां लूकी प्रद्युचु. छुपाईने (दे.लुक्क); जुओ लुकइ ले *अखाका. अखाछ. लय, विलय] लूगड गुर्जरा. विकरा लूगडां ले नरका. प्रेमाका. लेह, लगनी लूणकयरा उक्तिर. मीठायुक्त केरडां (सं. लेइ जुओ लीइ लवण-करीराणि) लेइ आनंस्त. उक्तिर. देवरा. नलाख्या. लूणिवा उक्तिर. लणवा, कापवा [सं. लईने लुनाति] लेउ बलिहारडी नरका. बलिहारी जाउं, लूध अंबरा. लुब्ध वारी जाउं लूधडी प्राचीसं. लुब्ध, आसक्त लेख अखाका. अखाछ. लेखुं, गणतरी लूधी जिनरा. लुब्ध, आसक्त लेखइ ऐतिका. हिसाबमां लूमे ने झूमे * नरका. [लालित्यपूर्वक लेखण, लेखणि उक्तिर. जिनरा. लावल. ___ झळूबता रहे, छवायेला रहे] लखवानी कलम (सं.लेखिनी) ___ 2010_03 Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लेखवइ आरारा. लखे, लखी आपे; उपबा. लेखवे, गणे (सं. लेख्य- परथी ) लेखसाला प्राचीफा. निशाळ (सं. लेखशाला ) लेखा मांहे चित्तसं. लक्षमां लक्ष्य रूपे लेखा बनुं मदमो. लेखा विनानुं, असंख्य लेखुं नरका. लेखामां लउं, सफळ मानुं लेखूं ये चित्तसं. समजाय लेखे पाडइ जुओ पाडइ लेखे लड्या अखाका. गणतरीमां लीधा, [गणनायोग्य – मर्यादायुक्त जणाया ] लेख्यउ * वीसरा. [लखेलूं] लेणहार, लेणहारू उक्तिर. उपबा. नलरा. लोइ जिनरा. लोही लेनार ४३७ लेयइ कादं (शा). गुर्जरा. ले (सं.ला-) लाट दशस्कं (२). प्रेमाका. ललाट, कपाळ; जुओ लीलाट लेलीन अखाका. अखेगी. लयलीन, एकाग्र लेव उक्तिर. लेप; प्राचीफा. स्पर्श, [लेप, लागते; डाघ] लेढ * प्राचीफा. [लगाडेला, पहेरेला] [सं. लोई उषाह. ऋषिरा. लोकमां, [भुवनमां, लढ] जगतमां] dasdas विमप्र. लेवडदेवडमां लेवमय तेरका. लेप्यमय, [माटी आदिथी ढाळेली (मूर्ति)] लेवि आरारा. लईने [सं. ला - ] लेशाल, लेसाल अंबरा. उक्तिर. जिनरा. प्राचीसं. षडाबा. निशाळ (सं. लेखशाला) लेसालीउ, लेसालीयउ प्राचीफा. प्राचीसं. निशाळियो 2010_03 मध्य.२८ लेखवर / लोट शाटक) [रा. ] लेह अखाका. लगनी लेहइ आरारा. देवरा. ले, मेळवे, प्राप्त करे; आरारा. लई जाय लेहउ उक्तिर. लेखक, [लहियो] लेहां उषाह. गणतरी, [गजुं] (सं. लिख् परथी) लोई प्रेमाका. लुओ, पींडो लोक उजाडो प्रेमाका. लोकोनी पायमाली लोकट लावल. * लोको लोकडां प्रेमाका. लोको लोकणरओ *ऐतिका. [जोवानो] [सं. लोकन ]; जुओ हीयालोकणी लोक पाहि उक्तिर. लोको पासे लोकसंज्ञा आनंस्त. विचार्या विना लोकाचारनुं अंध अनुसरण लोकिक उपबा. सामान्य (सं. लौकिक ) लोग वीसरा. लोक लोच उपबा. गुर्जरा. वाळ खेंची काढवा ते (सं. लुंच); जुओ लुंचइ * लोचउं " षडाबा. [ प्रकट करूं] [सं. लोच्] लेसूडउ उक्तिर. गूंदानुं झाड (सं. लेख- लोट आरारा. लोटवुं ते, आळोटवुं ते; लेहेर कामा (शा). लहेरी (समुद्रनी) लेंची मोसाच. बेवडा पडवाळी रोटली लोअणां ऋषिरा. आंख ( सं . लोचन ) लोइ आरारा. नलरा. प्रधुचु. लोक, [लोको] लोइ (दवुलोइ) * ऐतिका. [देवलोकमां ] Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोटइ/लोहडळ ४३८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वसचिवला. वसंफा. 'वसमालो. लोमस पंचवा. एक ऋषि, दशस्क(१). लावल. आळोटता, लोट- हरिख्या. ओळंगे [सं.लोपयति] पोट, लोथपोथ लोबरडी नरका. लोबडी, बारीक ऊननी लोटइ उक्तिर. लेटे, सूवे; आळोटे; नेमिछं. ओढणी (सं.लोमपट्टी) लावल. आमतेम फरे; गुर्जरा. आळोटे लोबरी दशस्क(१). प्रेमाका. लोबडी, (सं.लोटति) . कामळी (सं.लोमपटी); जुओ लोवडी लोट कीघो प्रेमाका. [लोटपोट को], लोभे नरका. लोभ पामे, लोभाय, ___ जमीनदोस्त कर्यो, [विनाश को] आकर्षाय] लोटण विमप्र. लोडण नामनुं स्थळ लोमस पंचवा. एक ऋषि, पुष्कळ मोटा लोडड लावल. "वसंफा. वसंफा (ल). लोम(वाळ)वाळा (सं.लोमश)। लोमंश अखाका. एक ऋषि [सं.लोमश] फरे (सं.लुट्); *उषाह. [नमे, नमन करें]; कादं(शा). हलावे (सं.लोटयति); लोय *अखाका. तेरका. लोक * लावल. प्राप्त करे [रा.] लोयण आरारा. तेरका. जिनरा. नरका. लोडाभाई पंचवा. नानो भाई (सं.लघुक); प्राचीफा. लोचन, आंख जुओ लोढीओ लोयेण चंद्रवा. लोचन, आंख लोडावइ शृंगामं. हम्मीप्र. हलावे लोलक-लोल मदमो. लोलकनी जेम लोढ अखाका लावल. दरियानी भरतीनां लटकता - [झूलता] मोजां] लोला कादं(शा). लोचा; षष्टिप्र. समज लोढउ उक्तिर. वाटवानो पथ्थर, लोढणियो विनाना, अज्ञानी (सं.लोल) (सं.लोष्टकः) लोवडी उक्तिर. वीसरा. एक वस्त्र, कामळी लोढतउ षडाबा. लोढतो, कपासिया अने (सं.लोमपटी); जुओ लोबरी रू जुदां पाडतो (सं.लोष्टते) लोह जिनरा. लोभ लोटी वेताप. नानी [सं.लघुक+डी] लोह हम्मीप्र. तलवार [के अन्य लोढार्नु लोटीओ, लोढीयो मदमो. लोटियो, हथियार] बोडो?, [कृश, ठीगुजी]; वेताप. लोह (लोहरक्षा) दशस्क(१). लोढार्नु नानो; जुओ लोडाभाई हथियार; [लोढाना हथियारथी रक्षनार लोय प्रेमाका. शब मादळियु *लोव नरप(द). लोंदो, लचको लोहकट सिंहा(शा). लोढानो सामान लोधीई अंबरा. पारधिए (सं.लुब्धक) लोहकार विक्ररा. लुहार [सं.] लोपइ चारफा. विनाश करे, मिटावे]; लोहडउं उपबा. जिनरा. लोढुं (सं.लोह-) 2010_03 Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लोह न ऐतिका. लोभ नहीं लोहिमू उक्तिर. लोढानुं (सं. लोहमयम्) लोहरक्षा * प्रेमाका. [लोढाना हथियारथी रक्षनारुं मादळियुं]; जुओ लोह लोहसांगल शृंगामं. लोढानी सांकळ लोहार उक्तिर. लुहार (सं. लोहकारः ) लोहो * अखाका. चित्तसं. लोढुं लौहडां उषाह. नानां (सं. लघुक) ल्यख्याव्यो रूस्तस. लखाव्यो ल्यावर कादं (शा). नलरा. नाख्या. नेमिछं. रूस्तस. लावे, लई आवे [सं. लाति ] ये चतुचा. लईने ४३९ हसण उक्तिर. लसण (सं. लशुनः) ल्हार नरका. लार, हार, पंक्ति; जुओ लाहार व आरारा. अने वइ जुओ लघु-वइ as ( वइ गया ) * वीसरा. [ चाल्या गया ] वइगरणा अंबरा. नलरा. व्यय उपर देखरेख राखनार राज्यनो अधिकारी (सं. व्ययकरण); जुओ वयगरणउ वइघालि नेमिछं. * वघारीने बइद विक्ररा. वाळंद, नापित वइण वीसरा. वचन, वेण वइर वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वेर (सं. वैर) वइरागे देवरा. वैराग्ये बइरागर, वयरागर * प्राचीफा. [हीरानी खाण ] (सं. वज्राकर); * अंबरा. प्राचीफा. * विमप्र. रत्नविशेष, हीरो 2010_03 लोह न / व वइरि, वइरी उक्तिर. उपबा. षडाबा. वेरी (सं.वैरी); जुओ बइरी वइरीया, वइरीअडा लावल. वेरी, दुश्मन वइसदेउ प्राचीसं. वैश्वदेव, [विश्वदेवने बलि अर्पवते] इसाख उक्तिर, वैशाख वइसाह तेरका. वैशाख वइसाही तेरका. वैशाखी, [वैशाख मासनी] बइंगण उक्तिर. उपबा. षडाबा. वेंगण, गण (दे.) वउल गुर्जरा. वसंवि (ब्रा). बकुल वृक्ष, बोरसली; जुओ बउल बउलइ जिनरा. वीते, पसार थाय बउलसिरि * वसंवि (ब्रा). हरिवि. बोरसली (सं. बकुलश्री); जुओ बउलसिरी वउलाऊ जिनरा. [सुरक्षित रीते ] पहोंचाडनार, [वोळावो] वउला - ( वउलाव - ) वीसरा. विदाय आपवी वउलावइ आरारा. गुर्जरा. नलरा. वळावे, विदाय आपे (दे. वोलाव) वउलीया आरारा. वळ्या, पसार थया वकार * प्रेमाका. [विकार, विकृति, व्याधि ] वकारे अखाका. प्रेमाका. मदमो. उश्केरे, पडकारे; जुओ वीकारे बकृति नलरा. विकार (सं. विकृति ) वक्कतण षष्टिप्र. वक्रता, वांकापणुं (सं. वक्रत्वन) "वक्कु [च] ऐतिका. चक्र, मंडल, [शासनप्रदेश ] Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्खाण / वच्छनाग मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वक्खाण- प्राचीसं वर्णन करवुं विवरण वगूए अखाका. दुःखी करे; * प्रेमाका. [वगोवे, अपमानित करें]; जुओ चिगुआणा करवुं 4 वक्खाण प्राचीसं. . व्याख्यान, [धार्मिक वगूतुं *नलाख्या. [दुःखी थयुं ]; नरका. दुःखभर्यु [थयुं]; जुओ वगुता वगतो ( बगतो, व्यगतो) "अखेगी. [जुदो, प्रवचन ] वक्त मदमो. वक्त्र, मुख क्क्ती प्रेमाका. वखत दर्शाववा माटे वागती, अळगो] [समयसमयनी] [अ.] वखतवन्त ऐतिका. भाग्यवान [ फा . बख्त ]; जुओ वडवखती ४४० वखाण आरारा. उक्तिर. कामा (त्रि). वीसरा. व्याख्यान, वर्णन, कथन; नलरा. धार्मिक प्रवचन; षडाबा. विवरण, समजूती; गुर्जरा. प्रशंसा [धार्मिक प्रवचन; सविस्तर वर्णन; विवरण] वखाणइ आरारा. चारफा. षडाबा. विवरण परथी); [वर्णवे, करे, समजावे (सं. व्याख्यान उपबा. गुर्जरा. प्रशंसा करे; विस्तारथी कहे, विवरण अखाका. आरारा. उक्तिर. प्रेमाका. कहे, वर्णवे करे ]; वखारीआ विमप्र. वखार राखनारा वेपारीओ [. वक्खार परथी ] बखेरा जुओ वछेरा वगतो अखाका. जुदो; जुओ वगूतो वगत्य - वjचण * अखाका. उत्पन्न थती गूंच] बगियो प्रेमाका. [पक्षपाती], हितेच्छु बगूचे अखाका. गूंचवाय, [हरान थाय ] [सं. विगुप्त परथी ]; जुओ विगूचइ बगुता * नरप ( द ). [ दुःखी थया ]; जुओ वगूतुं, विगुता * 2010_03 [भिन्नत्वथी वगत्यो * नरका. [*वगोवायो, *गूंचवायो, *लपटायो ]; जुओ विगूतो वगे चित्तसं, ठेकाणे बगोयुं प्रेमाका. दुःखी कर्यु; वगोव्युं, बदनाम कर्युः वगोवायुं, बदनाम थयुं बगोरइ * गुर्जरा. *विराप. बगाडे, हानि पहोंचाडे, नष्ट करे (सं. विकुर्वति) बघ विमप्र, वाघ घरडुं सिंहा (शा). वांधो, विघ्न वघरां प्रेमाका. विघ्न, वांधा बघेला प्राचीसं. वाघेला वचखण विमप्र. विचक्षण वचनगस्त (वचन गस्त जाशे नही) मदमो. -, [वचन फरशे नही] [फा. गश्त =फरवु ते, भ्रमण ] वचनगोचरें आनंस्त. वचनप्रत्यक्ष रीते, वचन द्वारा बचाइ गुर्जरा. पंचाय ( सं . वाचयति ) वचीक्षण कामा (शा). विचक्षण वचीत्र कमा (शा). विचित्र बच्चइ गुर्जरा. प्राचीसं. जाय ( सं . व्रजति) वच्छ जिनरा. तेरका. देवरा. षडाबा. वत्स, पुत्र, बेटो, प्रेमाका. वाछरडुं (सं. वत्स ) वच्छ नाग उक्तिर. ए नामनो एक झेरी छोड Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४४१ क्च्छर/वटवृं (सं.वत्सनाग) - वछि नेमिछं. वहाली, [लाडकी] [सं.वत्स] वच्छर आरारा. गुर्जरा. तेरका. वर्ष, संवत्सर वज उक्तिर. ए नामनी एक औषधीय (सं.वत्सर) वनस्पति (सं.वचा) क्च्छरुव प्राचीसं. वाछरू (सं.वत्सरूप) वज वीसरा. वज्र वच्छल आरारा. तेरका. षडाबा. वत्सल, वजरमे कामा(शा). वज्रमय, [वज्र जेवो, स्नेह राखनार कठोर] बच्छे, वछि, बछे आरारा. वत्से, दीकरी वजा "अखाछ. रीति; दशा]; मदमो.' (संबोधन) व्यवस्था, [गोठवण, रचना] [अ.वजअ] वछ ऐतिका. ऐतिरा. प्रद्युचु. विक्ररा. वत्स, वजाडइ जिनरा. लावल. वगाडे, बजावे दीकरो वजे अखाछ. मळतर, [लाभ, वळतर] [अ. वछ, वाछ प्राचीसं. वाछडो (सं.वत्स) वजअ वछडउ वीसरा. वाछडो (सं.वत्स-) वजड गर्जरा. तेरका. नेमिछं. लावल. वागे, वछर ऐतिका. जिनरा. वत्सर, वर्ष अवाज करे (सं.वाद्यते) वछि अंबरा. उषाह. गुर्जरा. विक्ररा. वत्से, वजमओ गुर्जरा. वज्रमय दीकरी, बेटी (संबोधन); जुओ वच्छे .. वजरइ तेरका. प्राचीसं. कहे, वर्णवे (द.) वछीआत विमप्र. बहारगामथी खरीदवा वज्झि (?) तेरका. ? आवनार खातेदार, [आडतियो] वछीयायित उक्तिर. वछियात, आडतियो पाई विक्ररा. वज्रमय (*सं.वस्तुवित्तः) क्स रीरु गुर्जरा. वज्र जेवू शरीर वछे जुओ वच्छे वझडइ प्रद्युचु. ? वछेदि गुर्जरा. *विमप्र. उतावळे, जलदीथी; वटउ विमप्र. वट्यो, -ना करतां वधी गयो जुओ विछेदि वटक मा नरका. रीस करीश नहीं, [छेडाईश बछेरा (वखेरा) "प्रेमाका. [बखेडा, धांधल- नहीं] __ धमाल] वटकवू अखाका. छटकवू, [दूर थर्बु, वछेडे *कामा(शा). *प्रेमाका. [छोडावे] प्रतिकूळ थQ] वछोडइ गुर्जरा. छोडे, छूटां करे [सं.वि+छद्] वटलोय उपबा. एक धातुपात्र, [तांबडी] वछोयां प्रेमाका. वछोड्यां, अळगां कर्यां (*सं.वर्तलोह) वछोह * कामा(शा). सिंहा(शा). वियोग दि. वटवाल- उक्तिर. [*वोळावियापणुं] (सं. विच्छोह] वर्मपालन]; जुओ वाटवालणुं वछोडं गुर्जरा. प्रेमाका. छुटुं पडेलु, विखुटुं बवू अखाछ. ओळंगवू, [आगळ जवं]; पडेलु दि.विच्छोह [जवू, जतुं रहेQ]; प्रेमाका. जवू, चाल्या व 2010_03 Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वटंबे/वणवासु ४४२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जवू, अखाका. ओळंगी जवू, [जवू, वडीआं लावल. खाद्यविशेष, वडी आगळ जवू] वडी वार चतुचा. विक्रच. घणी वार वटंबे अखाका. विडंबे, संतापे वडी वारनी प्रेमाका.क्यारनी, घणा वखतथी वटाह (एकवटाह) "जिनरा. टिक, व्रत, वडु लावल. वडो, मोटो दि.वड्ड] नियम] वहुउ वीसरा. वडो, मोटो दि.वडु] वटेवाहू गुर्जरा. वटेमागु, प्रवासी (सं. वढिया जुओ वुट्टिया वर्मकवाहकः) वढारा प्रेमाका. वढकणा, झघडाळु बटेसारु प्रेमाका. वटेमार्ग, मुसाफर वढी गुर्जरा. झघडो करी, लडी (*प्रा.विढइ) वट्ट ऐतिरा. प्राचीसं. विमप्र. वाट, मार्ग वण जिनरा. [शरीरनो] वर्ण, [एने नक्की (सं.वत्म) ___करतो नामकर्मनो एक प्रभेद] [जै.] वटुंतउ जिनरा. वर्ततो, रहेतो वण आरारा. गुर्जरा. तेरका. वन वट्यो चित्तसं. नीकळी गयो, [चाल्यो] वण तेरका. एक वनस्पति, कपास] बड आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. मोटुं (प्रा.वुण); जुओ gण ___ हरिख्या. मोटुं, वृद्ध (द.वड्ड) वणखंडु आरारा. वनखंड, वनप्रदेश .. वडइ वीसरा. -नी बराबर; थी, वडे [-ना वणचर गुर्जरा. वनवासी (सं.वनचर) बदलामां] वणज नरका. प्रेमाका. वेपार (सं.वाणिज्य) वडउ नेसालीयउ प्राचीसं. वडो निशाळियो वणजारडी, वणजारी, वणिजारी प्राचीफा. वडभागी देवरा. मोटा भाग्यवाळो (हिं. वणिकनी - वेपारीनी स्त्री (सं. बडभागी) वाणिज्यकारक) वडवखती ऐतिरा. विख्यात, [महाभाग्य- वणनियां चित्तसं. वणनिर्मेला, [मिथ्या] शाळी]; जुओ बडवखती, वखतवन्त वणफल षडाबा. वनफल वड वेगि गुर्जरा. विराप. मोटा वेगे वणमेल्युं चित्तसं. वणमेळव्यु, मेळववानो वडहय सिंहा(शा). आजानुबाहु, [मोटा प्रयत्न न करवो पड्यो होय ऐर्बु __ हाथवाळो वणराइ गुर्जरा. तेरका. वनराजि बडाउ चंद्रवा. दादो वणठो (बुध्यवणठो) अखाका. [बुद्धि] नाश बडाउओ वेताप. वडील, वडवो, [दादो], पामी छे एवो [सं.विनष्ट] - [मोटो] वणराय आरारा. वनराजि बडायु दशस्कं(१). शेखीखोर, झघडाळु वणवउ उक्तिर. वणवू ते, वणाटकाम दे. बड़ी उक्तिर. दडी (सं.वटिका, वटी) . वुण परथी] बडी आई विमप्र. मानी मा वणवासु गुर्जरा. वनवास ___ 2010_03 Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४४३ वणसइ/वधाअइ वणसइ तेरका. प्राचीफा. प्राचीसं. वतागरो अखाछ. अंगवि. वैतरो, [वतीथी वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). काम करनार, सेवक], मजूरियो वनस्पति वतांगरां प्राचीसं. काम करनारां (*सं.वस्तु) . वणसमारी अखाका. साफ कर्या वगरनी वती आरारा. ने लीधे, -थी वणसे अखाका. चित्तसं. नरका. नाश पामे वतीत आरारा. व्यतीत [सं.विनश्] वतुं कर्पूमं. कामा(त्रि). नरका. नरप. वणसाड्युं प्रेमाका. नाश पमाड्यु प्रेमाका. विक्ररा. हरिख्या. चींधेलां वणस्सइ गुर्जरा. वनस्पति काम, सेवा वणहडीउ [चणहडीउ] उक्तिर. [*कोई क्त्त आरारा. उषाह. वात (सं.वाता) प्राणीनाम] [सं.चणकवर्तकः] वत्तंति आरारा. वृत्तांत वणारिस उक्तिर. प्रद्युचु. वाचनाचार्य, [जैन वत्ता आरारा. वात (सं.वाता) साधुनी एक पदवी] वत्थु ऐतिका. वस्तु वणांतरि षडाबा. अन्य वनमां (सं.वनांतरे) वत्सलभगतइ आरारा. स्नेहभक्तिथी वणिउत्त प्राचीसं. वणिक-पुत्र वत्रेक प्रेमाका. श्रेष्ठ, विरुद्ध [सं. वणिग आरारा. वणिक (सं.वणिज्) व्यतिरेक]; जुओ विवेक वणिज आरारा. उक्तिर. वाणिज्य, वेपार वथूअउ उक्तिर. चील, टांका के बथवानी वणिज- प्राचीसं. वेपार करवो भाजी (सं.वास्तुकम्) वणिजारउ गुर्जरा. प्राचीसं. वणजारो (सं. वदीत ऐतिका. प्रसिद्ध [सं.वदित] वाणिज्यकारक) वदीतउ गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. वणिजारी जुओ वणजारडी लावल. प्रसिद्ध, प्रख्यात (सं.विदितक) वणियर दशस्कं(१). प्रेमाका. एक वनचर वदहिं * लावल. [अवाज, ध्वनि - कोई प्राणी वाद्यना - वडे] [सं.वाद] | वणी उक्तिर. नानु वन, वाटिका (सं.वनी) वद्धऐ ऐतिका. वृद्धि पामे वणीमग उक्तिर. मागण, भिखारी (सं. बद्धावणउ प्राचीफा. वधामणुं, वधाई, वनीपक) ____ अभिनंदन] (सं.वर्धापन) वत आरारा. वात वद्धावइ गुर्जरा. वधावे, स्वागत करे (सं. वतपति विमप्र. व्युत्पत्ति, [कलाकौशल] वर्धापयति) वतपतीआला * विमप्र. [कलाकौशलयुक्त]; बद्धावउ चारफा. वधाइ लावनार, बधैयो जुओ वितपतिआला. (सं.वर्धापक) वतंस प्राचीसं. अवतंस, [आभूषण] वधाअइ उक्तिर. वधाववामां आवे, स्वागत 2010_03 Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वधामण/वमइ ___ ४४४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश करवामां आवे (सं.वर्ध्यते) (सं.वन+संपद्) वधामणउं *गुर्जरा. [आनंद - खुशीना वनंतरि, वनांतरि *गुर्जरा. [वनमां] [सं. समाचार] (सं.वर्धापन) वनान्तरे]; जुओ वनांति वधारइ, वध्यारइ आरारा. वधामणी आपे वना जुओ वनो (अप.वद्धार); प्राचीफा. अभ्युदय करे बनास वीसरा. बनास नदी (सं.वर्ध+कार); नलाख्या. कापे (सं.वर्ध वनांति (वनांतरि) *विराप. [वनमां] [सं. उपरथी) वनान्ते]; जुओ वनंतरि वधावी तेरका. वधावनारी, वधामणी वनि आरारा. वर्णे, रंगे आपनारी (अप.वद्धविय, प्रा.वद्धविया, वनियां ऐतिका. *आभूषणविशेष, [*बन्यां, सं.वर्ध+आप+इका) ___*शोभ्यां, सज्यां] [सं.वन्]; जुओबनया वधावु नेमिछं. लावल. वधामणी - शुभ बनी गुर्जरा. नानुं वन (सं.) समाचार आपनार, वधामणियो वनीता प्रबोप्र. लई जवाई (सं.अपनीता) वधि आरारा. विधि, प्रकारे [सं.विनीता] वधेसिई नेमिछं. वध करशे बने चतुचा. विनय वध्यारइ जुओ वधारइ वनो अखाछ. वर्ण, [रंग वनकल कादं(शा). वल्कल (*सं.वनकुल) वनो नंदब. विनय, प्रेमाका. विनंती, [सं.वन+दुकूल] [अनुनय, आदरभक्ति] वनकुळ, वनकूळ दशस्क(१). प्रेमाका. वन उषाह. तेरका. वान, वर्ण, रंग सिंहा(शा). वल्कल, वनमा पहेरवानां वन्न आरारा. वन वृक्षनी छालनां वस्त्र [सं.वनदुकूल वन्नरमाल, वनरवाल, वनरवालि अंबरा. बनखंड आरारा. वीसरा. वनप्रदेश [सं.] आरारा. शंगाम. द्वार पर लगाडातां वनचर गुर्जरा. वनवासी, शिकारी] (सं.) पांदडांनां मंगलसूचक तोरण (सं.वंदनवनदेव्या प्रेमाका. वननी देवी माला, वंदनमालिका); जुओ वनरवालि वनपाल आरारा. वननो रक्षक [सं.] वनिजह ऐतिका. वर्णन कराय छे वनरवालि, बंदरवाल गुर्जरा. [मंगल प्रसंगे बनी आरारा. वर्णी, वर्णवाळी घरना बारणे लटकावातुं] पांदडांगें तोरण वनीयए गुर्जरा. वर्णवाय छे (सं.वर्ण्यते) (सं.वन्दनमालिका); जुओ वन्नरमाल वपन नरका. प्रेमाका. हजामत, [मुंडन वनराज आरारा. वनराजि, वनराई [सं.] वनवीथी प्रेमप. वननो मार्ग [सं.] वारीत चंद्रवा. विपरीत वनसंपइ वसंवि. वसंवि(ब्रा). वनसमृद्धि वमइ अखाछ. उक्तिर. काढी नाखे (सं. 2010_03 Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४४५ वमाल/वरत वमति) वयस शृंगामं. पंखी (सं.वयस) वमाल तेरका. कोलाहल, खळभळाट (द.) वयसारि जिनरा. बेसाडी [सं.उपविश्] वम्मह प्राचीसं. मन्मथ, [कामदेव वयेण दशस्क(२.) वेण, वचन वय- प्राचीसं. जवु [सं.वज्र] वर प्रेमाका. वीसरा. हरिख्या. वरदान (सं.) वय तेरका. समूह (सं.व्रज) वर तेरका. नरका. नेमिछं. प्रेमाका. लावल. वय प्राचीसं. व्रत वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वयगरणउ उक्तिर. खर्च खातुं संभाळनार षडाबा. उत्तम, सुंदर, श्रेष्ठ राज्याधिकारी (सं.व्ययकरणक); जुओ वरअंगि वसंफा. वसंवि(ब्रा). संदर वइगरणा शरीरवाळी स्त्री (सं.वरांगी) | वयण अखाका. उषाह. गुर्जरा. जिनरा. वरइ (वरइ पडइ) *आनंस्त. "लावल. तेरका. नरका. प्रबोप्र. प्रेमाका. हरिवि. [सफळ थाय, पार पडे] .. वचन, वेण; वसंफा. वसंफा (ल). वरइ पडइ जिनरा. सफळ थाय; जुओ वरय वसंवि. वसंवि(ब्रा). वचन, आदेश न पडस्ये वयण आरारा. उषाह. कृष्णबा. गुर्जरा. वरउ * वीसरा. [वरो, जमणवार, खर्चनो नेमिछं.प्रबोप्र. लावल. हरिवि. वदन, मुख प्रसंग] वयणरयणखाणी लावल. वचनरूपी रलोनी वरख, व्रख कामा(त्रि). वृक्ष खाण जेवी वरखति प्रबोध. वरसते वयणलां नेमिछं. लावल. वचनो वरखा अखाका. प्रेमाका. वर्षा, [वरसाद] वयणि, वयणी आरारा. वचनवाळी वरग आरारा. वर्ग, समूह वयणी आरारा. वदनी, वदनवाळी वरगडु उक्तिर. [*सिंह के चित्तो] (सं. वयणी चतुचा. चोटलो (सं.वेणी) वराकर्षक) [रा.बरगडौ वयर उपबा. ऋषिरा. गुर्जरा. लावल. वरगां विक्ररा. एक प्रकारचं वाजिंत्र, बणगां; वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). विराप. वेर जुओ बरगुं (सं.वैर) वरचीउं गुर्जरा. विरच्युं, रचना करी वयरणी आरारा. वैरिणी (सं.विरचित) वयरागइ आरारा. वैराग्यथी वरजात्रा दशस्क(२). बरात, जान वयरागर जुओ वइरागर वरटा-पति नलाख्या. हंस [सं.] वयरि, वयरी उक्तिर. उपबा. वेरी (सं.वैरी) वरठ्या दशस्कं(२). वरस्या [सं.वृष्ट] वयरी आरारा. गुर्जरा. लावल. वेरी, दुश्मन वरढ (वरढ वणउ) विक्ररा. वरेडं, [वरत, (सं.वैरिन्) दोरडु], [*वात गूंथो, “योजना करो] ___ 2010_03 Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरण/वरसात ४४६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रा.) वरण तेरका. एक वनस्पति, [वरणो, साधु] [सं.व्रती] वायवरणो] [सं.वरुण] वरतीयि कादं(शा). वरताय, थाय (सं.वृत्) वरणइ नेमिछं. प्रेमाका. वसंफा. वसंफा (ल). वरते अखाका. रहे, [होय, अस्तित्व धरावे] वसंवि. वसंवि(बा). वर्णवे (सं. वरत्ये अखाका. वृत्तिए [व्यापारे, उद्यमे] वर्णयति) वरदलि *गुर्जरा. [वर, पति] (सं.वरदल; वरणक आरारा. वर्णन वरणी* नरका. *प्रेमाका. [स्त्री] [सं.वर्णिनी; वरधारु आरारा(व). वरधारो, समदरशोष रा.] (सं.वृद्धदारु) वरत *मदमो. [व्रत बननोला ऐतिका. जिनरा. विवाहार्थी के वरत * मदमो. [वरते, थाय] दीक्षार्थीनुं भोजनादि द्वारा थतुं स्वागत वरत चंद्रवा. [कोस खेंचवानु] दोरडु [सं. ते माटेनो वरघोडो, फूलेकुं]; जुओ वरत्रा] बन्नउला वरतइ आनंस्त. ऐतिका. गुर्जरा. प्रवर्ते, वरमाल वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). होय, रहे (सं.वत्) मनोहर माळा (सं.वर+माला) . वरतण अखाका. *अखाछ. चित्तसं. [वरतवं वरमित्त ऐतिरा. उत्तम मित्र ते], वर्तन, प्रवृत्ति, [आचरण, व्यवहार] वरय गुर्जरा. वरद, कल्याणकारी, [अनुकूळ, वरतणां ऐतिरा. लेखण, [कलम, वतरणां] योग्य] [रा.वरे] वरतणु, वरतनु वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). वरय न पडस्ये जिनरा. सफळ नहीं थाय; सुंदर शरीरवाळी स्त्री [सं.वरतनु] जुओ वरइ पडइ वरतर काटिवउ उक्तिर. वरत - दोरडं वरलु नलरा. विरलो काप, ते (सं.वरत्राकर्तनम्) वरवर्णिनी *आरारा. [सुंदर स्त्री (सं.) वरता उक्तिर. दोरडु, रांढवू (सं.वरत्रा) वरव्येष चंद्रवा. सुंदर वेश वरतारा * विमप्र. [कार्य करवू ते, प्रयोग- वरशात दशस्कं(१). दशस्कं(२). वरसाद ___ कर्म] [रा.] [सं.वर्षारात्र] वरतांत आरारा. वृत्तांत वरशोध्य दशस्कं(१). वार्षिक लागो, वरति अखाका. वृत्ति, [उद्यम, आचार, वरसूंद] व्यापार] वरशोंत प्रेमाका. वार्षिक लागो, [वरसूंद] वरति (निवरति) *देवरा. [निवृत्ति, विरक्ति] वरसवियारणि उक्तिर. दर वर्षे वियानारी वरतीओ मदमो. जैन यति; जुओ वर्तियो वरसंति गुर्जरा. वरसने अंते (सं.वर्षान्ते) वरतीक, वर्तिक वेताप. वरतियो, [जोगी, वरसात उक्तिर. उपबा. नलरा. नलाख्या. 2010_03 Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४४७ वरसाल/वरुणि विमप्र. सिंहा(शा). वरसाद (सं.*वर्षाद्रवरासीयइ उक्तिर. भ्रांतिमां पडे, भूल करे (सं.वर्षारात्र) (सं.विपर्यस्यते) वरसाल नलरा. वरसाद (सं.वर्षाकाल) वरां चंद्रवा. मदमो. सिंहा(शा). वार, वरसालउ अभिऊ. उक्तिर. ऐतिरा. प्राचीफा. [आवृत्ति] षडाबा. वर्षाऋतु (सं.वर्षाकाल) वरांसइ जुओ वरासइ वरसाळो नरका. प्रेमाका. वर्षकाळ, वरस वरांसउ, वीरांसउ कामा(त्रि). कामा(शा). जेटलो समय *व्याकुळता, विमासण; जुओ वरासउ वरसिउ प्राचीफा. वर्षपर्यंतनुं (सं.*वर्षिक) वरांसडु * शृंगाम. [भ्रान्ति, भूल] वरसोला उक्तिर. वरसादनी साथे पडतां वरि आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. प्राचीफा. हिमखंड, करा (सं.वर्षोपल) लावल. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वरसोलां नेमिछं. लावल. खाद्यविशेष, वसंवि(ब्रा). उपर (सं.उपरि) [साकरनी मीठाई] वरि तेरका. भले (सं.वरम्) वरसोळी दशस्कं(२). रसोळी [खूध] वरिट्ठ आरारा. वरिष्ठ, उत्तम वरियाम *जिनरा. [श्रेष्ठ, *खरेखीं] वरह नलरा. वियोग (सं.विरह) वरिस- तेरका. वरसg (सं.वष्) वरहलि ऊक्तिर. वसूकी गयेली; जुओ वहलि वरिस आरारा. तेरका. वीसरा. वर्ष वरह वरो आनंस्त. इच्छित लो, यथेच्छ लो वरिसालय तेरका. वर्षाकाल, चोमासुं वराक प्रबोप्र. बापडो, बिचारो [सं.] वरीजइ लावल. वरीए, मेळवीए, मेळवो वराकी कादं (शा). बापडी, बिचारी (सं.) वरीय ऐतिका. अंगीकार – स्वीकार करी वराटिका कादं(शा). कोडी (सं.) वरीस विक्ररा. वरस; जुओ बरीस वरासइ, वरांसइ, विरांसइ अखाका. वरु गुर्जरा. षडाबा. वरदान (सं.वरः) अभिऊ. उक्तिर. *ऋषिरा. प्रेमाका. वरु विमप्र. वरो, भोजननो उत्सव, एनं *हरिख्या. भ्रांतिमां पडे, भूल करे (सं. खर्च] विपर्यस्यति); नरका. [खोटा] भरोसे वरुआयती उक्तिर. प्रणयी - विवाहार्थी रहे, भ्रांतिमां रहे द्वारा (सं.वरित्रा) वरासउ, वरांसउ, विरांसउं, वीरांसउ आरारा. वरुठी विमप्र. लग्न बाद वर तरफथी उक्तिर. कादं(शा). चतुचा. दशस्कं(१). . आपवामां आवतुं जमण, [वरोठी] प्रेमाका. वसंवि. वसंवि(ब्रा). "विमग्र. [*सं.वरजुष्टि] भ्रांति, भूल; नरका. [खोटो] भरोसो, वरुणाअशी प्रबोप्र.?, [(काशी पासे गंगाने भ्रान्ति; * प्राचीसं. [भ्रान्ति, मिथ्या] [सं. मळती) वरुणा नदीथी] विपर्यास वरुणि प्रेमाका. *क्रियाकर्म कराववा माटे 2010_03 Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरुयो / वाणय पसंदगी, [क्रियाकर्म कराववा माटे पुरोहितोनुं संमान] [सं.वरणी]; जुओ वरूण वरुयो चंद्रवा. विरूप, वरवो वरुवो प्रेमाका. वरवो, बेडोळ वरू, वरूड, वरूडं गुर्जरा. चतुचा. षडाबा. वरयुं, कदरूपुं, वांकुं (सं. विरूप) वरुण मदमो. पाणी [सं. वरुण] वरूण नलाख्या. वरोणी, [वरुणी, ब्राह्मणोनुं संमान, एमने भेट ] ( सं . वरणी); जुओ वरुण वरेण चंद्रवा. वरेण्य, वरवा योग्य बर्ख प्राचीका. वर्ष वर्ख, वृख, ब्रख चंद्रवा. वृक्ष वर्णन - पोण प्रेमाका. वर्णन करवानी प्रतिज्ञा वर्णव चंद्रवा. वर्णन वर्णावर्ण आरारा. जातजातना वर्ण [नालोको ] वर्णिका विमप्र. रंग [सं.] धरावे छे [ सं . वर्तते ] ૪૪૮ वर्तिक जुओ वरतीक बर्तिवर उक्तिर वर्तवुं वर्त्तइ षडाबा. छे, रहे छे ( सं . वर्तते ) बर्त्तिए ( पाछइ बर्त्तिए) षडाबा. [ पाछां] मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश 2010_03 वर्षण आनंस्त. वरसाद वर्षभारूढ चंद्रवा . वृषभ आरूढ वलत अखाका. चित्तसं. जिनरा. नलाख्या. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वळतो, सामो, जवाबमां, - ना बदलामां (सं. वलयत्); प्रेमप. *डाबा. फरीने, [पाछो, पछी थी] वलतुं फेरी आरारा. बीजी वार, [फरी वार] वर्त चंद्रवा. व्रत बर्तइ उपबा. चित्तसं. छे, होय छे, अस्तित्व बलबलाइ प्राचीसं. अवाज करे; बकबक करे; आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. प्रेमाका. विराप. वलोपात करे, विलाप करे; जुओ बलबलीउ - बलई लावल. वलय, गोळाकार, [* कांडुं] बलउ उक्तिर. छापराना टेका माटेनो आडो स्तंभ (सं. वलक); जुओ वला बलखी आरारा. विमप्र. गभरायेली (सं. विलक्षित) आखला उपर वलग्गि ऐतिका. वळगीने, पकडीने [सं. विलग्न] वळण * अखाका. अखाछ. रस्तो, [दिशा, बाजु] [सं. वलग्न] बलण अभिऊ. पाछां वळवुं ते वळण करे नरका. पाछो फरे वळतां [पाछां होतां] वला लावल. बाजु, तरफ वर्त्तयो चंद्रवा . जैन यति [सं. व्रती ] ; जुओ बलाई नरका. वळगी वरतीओ वर्त्ती आनंस्त. -मां रहेनारो वर्त्य अखाछ. वृत्ति, [वृत्तिमां रहेवुं ते] वला उक्तिर. छापराना टेकारूप आडां लाकडां [सं. वलक]; जुओ वलउ वलाणय तेरका. देवालयमांनुं स्थानविशेष, [ एक प्रकारनो मंडप] [दे.बलाणय ]; जुओ बाणा Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४४९ वलायु/वश्य वलायु विमप्र. वळाव्यो वलोतां नरका. वलोवतां वलाल्ये अखाछ. लालन करे, रमाडे वल्गुली षडाबा. एक रोग (सं.) . वळावा अखाका. वळाविया, मुसाफरीमां वल्लउ प्राचीका. वहालो (सं.वल्लभ) साथे जता रक्षको के चोकियात वल्लकी हरिवि. वीणाविशेष [सं.] वलि उक्तिर. चामडी पर पडतो वळ, तेनी वल्लभ, वल्लभु गुर्जरा. विराप. [वल्लव], रेखा (सं.) विराट नगरीमां भीमनुं नाम (सं.बल्लव) वलि वलि प्राचीसं. वारंवार, वळीवळी वल्लभी प्राचीका. गोवालणी, (सं.बल्लवी) वलि नीसांणे घाय कृष्णबा. नगारा पर वल्लव प्रेमाका. वल्लभ, पति दांडीना प्रहारो थाय छे. वल्लव हरिवि. गोप (सं.बल्लव) वलीआ, वली नेमिछं. लावल. एक वल्लवी हरिवि. गोपी [सं.बल्लवी] आभूषण, बंगडी, [बलोयां] वल्लहउ गुर्जरा. वल्लभ, स्वामी, [प्रिय]; वळी आडी लीट प्रेमाका. पराकाष्ठा आवी नरका. वहालो __ गई, [हद वळी गई]; जुओ लीह वळी वल्लही गुर्जरा. नरका. वहाली (सं.वल्लभा) वलुधी देवरा. लुब्ध, [मग्न] [सं.विलुब्ध] ववराणी * कादं (शा). [वपराणी, नष्ट वलुरी आरारा. खणी, खोदी काढी; जुओ थयेली] (सं.व्यापार परथी) ववहर- प्राचीसं. वहोरवू, खरीदQ (सं. वलुंधइ, वळुधइ मदमो. हळे, [आसक्त व्यवहर्) थाय] (सं.विलुब्ध); अखाका. वळगे; ववहाररासि गुर्जरा. जीवोनो एक प्रकार अखाछ. वळगे, [मग्न थाय] [जे जगतना व्यवहारमां आवे छे] [जै.] वलूति चंद्रवा. वळती, पछी ववेक आरारा. विवेक, विचार वलूरे प्रेमाका. उतरडे, उझरडे; जुओ वलुरी वव्येक, व्यवेक चंद्रवा. विवेक, [विनय; वळूधी नरका. वळगी, [चोंटी] (सं. विलुब्ध); परीक्षा; विवरण, समजूती] नरका-२. घेरायेली, [-मां मग्न, डूबेली]; वव्येत्र, वावेत्र चंद्रवा. वावेतर जुओ विरहवळूधी वशइतउ षडाबा. -ने लीधे (सं.वशतः) वले नरका-२. प्रेमाका. हालत, दशा, वशीहर कृष्णबा. प्राचीका. नाग, वशियर स्थिति; उपाय (सं.विषधर) वलो अखाछ. माखण न बंधावू ते, [छास- वशेके अखाका. "विशेषे, "वधुमा; [*मुख्य मांथी माखण वीखराई जq ते] पणे, "तत्त्वतः] वलोटउ *उपबा. [केड कपर वींटाळातुं वश्य विराप. *बच्ची, "बेटी, [*वाज्ञाधीन - वस्त्र स्त्री, *दासी] (*सं.वत्सा) [*स.वश्या] वलूरे 2010_03 Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वश्य/वहलि ४५० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वश्य गुर्जरा. -ने वश थईने पृथिवी वस विमप्र. वसा, [(ग्रहयोगना) अंश, भाग] वसुं चित्तसं. वस्युं वस तेरका. वश वसू (इहिविसूहिवि) *ऋषिरा. [सौभाग्यवसणाहर गुर्जरा. विराप. वसनार वती स्त्री [सं.अविधवा-सुधवा]; जुओ वसणु गुर्जरा. व्यसन अहवसुहव वसत प्रेमाका. वस्तु, चीज वसेक सिंहा(शा). विशेष वसन अखाका. आनंस्त. गुर्जरा. नरका. वस्त अखेगी. वस्तु, [वस्तुब्रह्म]; अभिऊ. प्रेमाका. विराप. वस्त्र (सं.) पंचवा. प्रेमाका. रूपच. वस्तु, चीज वसह कृष्णच. वृषभ वस्तरी आरारा. विस्तरी वसहि ऐतिका. वसती वस्तु चित्तसं. नरका-२. [मूल तत्त्व], ब्रह्म वसंतिइं लावल. चमेलीथी, [जूईथी] [सं. [सं.] वासंती] . वस्तुगते अखाका. वस्तुतः, खरेखर तो वसा षडाबा. चरबी, मेद (सं.वसा) वस्तुपणइं आनंस्त. वस्तुपणे, यथार्थ रीते वसा सोइ चित्तसं. सो वसा, सो टका, वस्ते अखाका. वस्तुमां (ब्रह्ममा); वस्तु ___ संपूर्ण; जुओ विश्वा, वीस वसा, व्यसा (चीज) वडे वसि आरारा. वशमां वह * उपबा. [मार्ग] [दे.विह] वसिहर विमप्र. विषधर, नाग वहइ आरारा. गुर्जरा. वहन करे, लई जाय, वसीआन कामा(त्रि). वसवाट उपाडे, उठावे; *कामा(त्रि). नलाख्या. वसीट्ठी ऐतिका. *दूर, [*अळगा, "भिन्न, वीसरा. *षडाबा. चाले, गति करे, __ *विसर्जित चाल्युं जाय; चतुचा. जाय, खेंचाय; वसीठ हम्मीप्र. संदेशवाहक, राजदूत (सं. उपबा. ऐतिरा. गुर्जरा. चतुचा. षडाबा. विशिष्ट) वहन करे, धारण करे, [धरावे], राखे; वसुधा दे वहेर, बसुभा दे वेर प्रेमाका. षडाबा. वहन करे, [चलावे, करे]; पृथ्वीमां चिराड पडे, पिथ्वी मार्ग आपे. . हरिख्या. निर्वाह करे, पार पाडे; वसंफा. पृथ्वी फाटी पडे, न बनवा जेवं बने: वसंवि. वसंवि(ब्रा). वहन करे, जुओ वहेर [भोगवे, अनुभवे] (सं.वह्) वसुधारा प्राचीफा. आकाशमांथी देवकृत वहडी गई प्रबोप्र. चाली गई, [नष्ट थई] सुवर्णवृष्टि, [जिनदेवना पांच दिव्योनुं वहन्ति ऐतिका. [धारण करे छे, उपाडे छे] एक] (सं.) [जै.] वहल (?) तेरका.?, [*बहुल, *खूब] वसुहा ऐतिरा. विमप्र. सिंहा(म). वसुधा, वहलि उक्तिर. वसूकी गयेली; जुओ वरहलि 2010_03 Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४५१ . वहली/वंकनी जात वहली जुओ वहिली वहिसी *ऋषिरा. [(सवार) प्रगट थई] वहल्ली शीलक. जलदी [सं.विकस-]; जुओ विहसइ . वहवाईं प्रेमाका. छेतरा वहिसीय हरिवि. विकसित (प्रा.विहसिय) वहंग हम्मीप्र. विहंग, उत्तम घोडानी एक वही, विहि अभिऊ. विधि, (विधात्री) वही प्रेमाका. लावल. हिसाबनो - नामानो वहाडि जिनरा. वहन करावी, [करावी] चोपडो; उक्तिर. रोजिंदी नोंधनी चोपडी वहाणीअ शृंगामं. मोजडी (सं.उपानह) (सं.वहिका) वहावु नरका. प्रेमाका. वावं, वगाड, वहीनी कामा(त्रि). वह्नि, अग्नि वहाबुं अखाका. नरका. *छतर, बहु आरारा. वह्यु, [चाल्यु] [फोसलावq, मन मनाव]; नरका. बहुआरी प्राचीसं. वधू, वहुवारु छेतरवू, [भ्रमणामां नाखवू]; प्रेमाका. बहुडि प्राचीसं. वधू, वहु पटावq [सं.वाहयति] बहुराव्यो ऐतिका. वहोराव्या, साधुने प्रदान वहावो *प्रेमाका. [वहाव्यो, छेतरायो] कर्यु [जै.] [सं.व्यवह] . वहि आरारा. वहीमां, विधाताना चोपडामां बहुरिवा ऐतिका. जैन साधुए दान [रूपे] लेवा वहिकती हरिवि. बहेकती बहुव प्राचीसं. वधू, बहु वहिचइ * विमप्र. [वच्चे] बहूअर, वहूयर नेमिछं. प्रद्युचु. बहु (सं. वहिच्यी विमप्र. हेंची, भाग पाडी [सं. वधूक) . विभज्यते वहेर प्रेमाका. [पृथ्वीमांनी] चिराड, मार्ग; वहिडइ ०शृंगामं. विघटित थयां, अलग जुओ वसुधा दे वहेर थयां वहेरो प्रेमाका. भेदभाव, [जुदो भाव]; . वहिरमाण ऐतिका. महाविदेह क्षेत्रना विहर- मदमो. अंतरटाळो; अखाका. भेद, मान तीर्थंकर जुदाई; नरका. प्रेमप. तफावत, [फरक] वहिरउ ऐतिका. बहेरुं [सं.बधिर] वहेल नरका. प्रेमाका. उपरथी ढांकेलं, वहिराव- नलरा. जैन साधुने कोई वस्तु शणगारेलुं गाडु दानमां आपवी, वहोरावq [सं.व्यवह-] वढेकळो अखेगी. नानो वहेळो वहिरोडी उषाह. समाधान ? वहोर्खा नरका. खरीद, [सं.व्यवह-] वहिली, वहली उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. बंक आरारा. खोट, कसर (रा.); मदमो. ___ वहेली, जलदी - खोड, [वांक, दोष] [सं.वक्र] वहिल शीलक. जलदी बकनी सिंहा(शा). [गर्विली, छलछबीली] वहिवू उक्तिर. वहेवू, [उपाडवू] [सं.वह्] स्त्री 2010_03 Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंका/वनरवाल ४५२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वंका कादं(शा). वांकां, [मर्मभरेलां] (सं. खराब दशाने पामेली भोमका] वक्र) वंटु जुओ वंठ वंकडं आरारा. बांको, अद्भुत; प्राचीफा. वंठ्यो मदमो. वकर्यो, [हद बहार गयो] __ वांकुं (सं.वक्र) (सं.विनष्ट) बंकिम शृंगामं. वक्रता, [मर्मयुक्तता] वणारशी मदमो. वाराणसी नगरी वंकुड प्राचीसं. वांकुं (सं.वक्र) वंतर आरारा. नरका. व्यंतर, हलकी वंग तैरका. एक वनस्पति [सं.] कोटिना देव, भूत-प्रेत; जुओ वांतर वंचइ आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. विराप. छतरे वंतरां प्रेमप. [व्यंतर], भूतप्रेतादि (सं.वंचयति) वंतोल अखेगी. अभिऊ. चित्तसं. वंटोळ वंचिवउं उपबा. छेतर वंदणय-मालिया प्राचीसं. वंदनमालिका, वंचक अखाछ. वाचक, कथा वांचनार द्वार पर लटकावातां तोरण]; जुओ वंचक प्रेमाका. धूर्त, शठ, [छेतरनार] [सं.] वनरवालि वंचाइ आनंस्त. ठगाय, छेतराय वंदनीक अखेगी. वंदनीय, पूज्य वंचित अंबरा. वांछित वंदर, वंदुर (वंदरवाल, वंदुरवालि) वंचित (वंचित जाय) प्रेमाका. विमुख वसंवि(ब्रा). [द्वार पर लटकाववामां [जाय], [अवलृ पडे, निष्फळ जाय] आवती] मानार्थ, सत्कारार्थ, [मंगलवंछ तेरका. वांछा (प्रा.वंछा) सूचक [माळा] (सं.वंद् परथी) वंछइ अभिऊ. उक्तिर. ऋषिरा. तेरका. वंदरवाल, वंदरवालि, वंदुरवाल कृष्णच. लावल. वांछे, इच्छे वसंवि. वंदनमाला, [द्वार परन] वंछित आनंस्त. तेरका. लावल. वांछित. आसोपालव आदिनुं तोरण; जुओ इच्छित; वांछा वनरवालि, वंदर, वाल वंजल तेरका. वंजुल, एक वनस्पति वंदु चारफा. समूह (सं.वृन्द) वंझा, वंझि अखाका. गुर्जरा. दशस्क(१). वदुर जुओ वंदर प्रेमाका. मदमो. संतान थयां न होय वंदुरकाल, वंदुरवालि प्राचीफा. वसंफा. तेवी स्त्री, वांझणी (सं.वंध्या) वसंफा (ल). द्वार परनां आसोपालव वंठ, बंटु शीलक. वंठेली, [भ्रष्ट, पतित]; आदिनां तोरण (सं.वंदनमालिका); . षडाबा. सेवक, चाकर दि.]; शृंगाम. जुओ वंदरवाल वंठेल, बगडेल, [खराब, दुष्ट] [सं. बनरमाला नेमिछं. [द्वार परना] आसोपालव विनष्ट __ आदिनां लीलां तोरण [सं.वंदनमाला वंठी भोमि कृष्णबा. अभागणी [भ्रष्ट थयेली, बनरवाल प्रद्युचु. हम्मीप्र. आसोपालव 2010_03 Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आदिनां लीलां तोरण (सं. वंदनमाला); जुओ वनरवाल बाल तेरका. *व्याप्त, [समूह ] ( देवमाल) वंश, वंस कृष्णबा. चतुचा. नरका. लावल. स्थूलिफा. वांसळी; आरारा. वांसळीना प्रकार वाद्य वंशफोड पंचवा. वांसमांथी टोपली आदि जुदीजुदी वस्तुओ बनावनार ४५३ वंस आरारा (व). वसंवि. वसंवि (ब्रा). वांस (सं. वंश) वंशली अंबरा. वांसळी वंशी प्रेमप. वांसळी [सं.] बंस प्रेमप. [वांसळी], पावो; जुओ वंश, बाउ उक्तिर. उपबा. उषाह. कामा (शा). गुर्जरा. चारफा. तेरका. लावल. वायु, वंसी पवन वंसमंडण ऐतिरा. वंशने शोभावनार [सं. वंशमंडन ] वंसियालि तेरका. वांस- जाळ, [वांसनी झाडी] (सं. वंशजाली ) बंसी आरारा. बंसी, वांसळी वाअ नरप ( द ). [ वाय], वगाडे बाल / वाके [ गांडपण आव्युं, घेलछा लागी ] वाइक ऐतिका. कथन, प्रशंसात्मक काव्य [के उक्ति] [सं. वाक्य] वाइणि षडाबा. पठन, सूत्रपाठ (सं. वाचना) वाइमल्ल ऐतिका. वादीओमां मल्ल बाइलउ उक्तिर. वायडो, वायु करनार (सं. वातलः) वादयति) बाइ उक्तिर. गुर्जरा. चारफा. नरका. प्रेमाका. लावल. वगाडे (सं. वादयति ) बाइ वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). षडाबा. वाय छे, वहे छे (सं. वाति) बाइ लावल. [ई] जाय छे बाइ ऐतिका. वादी, [वाद करनार प्रतिस्पर्धी] बाइ नलाख्या. वीसरा. वायु (सं. वात, वायु) बाइ (वाइ लागी) वीसरा. वायु [भरायो ], 2010_03 मध्य. २९ बाइ उक्तिर. वगाड (सं. वादयितव्यम् ) बाई बाकरी विमप्र. होड बकी, [वेर बांध्युं ]; ओ बाक बाअइ अखाका. उक्तिर. वगाडे (सं. बाउला वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वायु, वायुलहरीओ वाउलि उक्तिर. प्राचीफा. स्थूलिफा. हरिवि. वंटोळ, वायुलहरी वाउकाई गुर्जरा. वायुनी काया धरावनार जीव (सं. वायुकाय ) वाउल उक्तिर. वातरोगी, उन्मत्त (सं. वातूलः) वाउलउ * उपबा. "गुर्जरा. "विराप. [ उन्मत्त] (सं. वातूलः) [रा. ]; वीसरा. मूर्ख; हरिवि. व्याकुळ, बावरुं; जुओ बाउलउ बाउलि प्राचीफा. सुन्दर स्त्री; जुओ बाउल बाए चित्तसं. वायु वाएसरि प्राचीसं वागीश्वरी वाक प्रेमाका. मदमो. वाक्य वाकलां उपबा. वल्कल वाके अखाका. * तेना, [*वाचामां, Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाक्यरहित/वाछा ४५४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश *वाणीमां] वाघलउ प्राचीफा. वाघ (सं.व्याघ्र) वाक्यरहित चित्तसं. वाक - सत्त्व - कस वाघा प्रेमाका. डगला, अंगरखां विनानुं वाघिणि गुर्जरा. विराप. वाघण (सं. वाग अभिऊ. उक्तिर. प्रद्युचु. प्रेमाका. लगाम व्याघ्रिणी) (सं.वल्गा ) वाच लावल. जीभ (सं.वाचा); वाणी, वाग गुर्जरा. वाणी, बोलवू ते (सं.वाच्) [कहेवू वागइ जिनरा. वाघो, मोटो डगलो, पोशाक वाच-काछ नरका. वाणी अने काछ - तेनी साथे [कछोटो] – चारित्र्य [सं.वाचा+कच्छ] वागउ जिनरा. दशस्कं(१). नरका. वाघो, वाचणहारु उक्तिर. वांचनार डगलो, पोशाक वाच राखी नरका. वचन पाळ्युं वागतीता अखाका. वाणीथी पर [सं.] वाचा वीसरा. वचन, [वायदो, कोल] (सं. वागदोर * विमप्र. [लगाम] [रा., हिं.बाग- वाच्य) डोर; सं.वल्गा+दोर] वाचाट नेमिछं. वाचाळ [सं.] वागरइ आरारा. गारुडिकोथी, [शिकारीथी] वाचारंभण *अखाका. [मात्र वाणीमां ज़ (सं.वागुरिक) रहेनु, वाणी ज जेनुं अवलंबन छे ते वागरी जिनरा. प्रेमाका. शिकारी, वाघरी, [सं.] प्राणीओने पकडवानुं काम करनार वाचाला ऋषिरा. वाचाळ, [वाक्पटु, मीठु जंगली जाति] बोलनार] [सं.वाचाल] वागरीआ ०विमप्र. जाळ नाखनारा, वाघरी वाचि_ उक्तिर. वांचq वागला प्रेमाका. फांफां वाची आरारा. कह्यु [सं.वच्] वागविछोह जुओ विच्छोह वाच्छल प्रेमाका. वात्सल्य, हेत बागा प्रेमप. वाघा, वस्त्रो वाछल्यु षडाबा. [खानपानवस्त्रद्रव्यादिनुं] वागि अभिऊ. वाघाथी, [पोशाकथी] दान (सं.वात्सल्य); जुओ वाछल्य, वागुर उक्तिर. कादं(शा). पक्षी वगेरे साहमीअ-वच्छल पकडवानी जाळ (सं.वागुरा) वाछ जुओ वछ वागुरी, वागुरीय उक्तिर. गुर्जरा. जाळ वाछरू उक्तिर. षडाबा. वाछरडां (सं. नाखीने पशुपंखीने पकडनार जाति (सं. वत्सरूप) वागुरिक) वाछल दशस्कं(२). वात्सल्य वागुलि उक्तिर. वागोळ, एक रात्रिचर पंखी वाछल्य आरारा. वात्सल्य, भक्ति (सं.वल्गुलिका) वाछा आरारा. वाछरडां (सं.वत्स) 2010_03 Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४५५ वाजइ/वाणउत्र । वाजइ अखाछ. आनंस्त. आरारा. उक्तिर. *वाटपाल [*वाटपाड] नरप(द). *मोहमां गुर्जरा. तेरका. प्रेमाका. लावल. विराप. फसावनार, [लूंटारा, डाकु . . वीसरा. शृंगाम. वागे, [बजे] (सं. वाट मुकाववी प्रेमाका. पराजित करवा, वाद्यते) पाछा हठाववा वाज (वाज करसु) कामा(शा). त्रास वाटल, वाटलां नेमिछं. लावल. विमप्र. आपीy, [थकवीशुं] . वाटका दि.वट्टय+ल; सं.वर्त, वर्तु वाज आव्यो नरका. प्रेमाका. तद्दन त्रासी वाटली उक्तिर. "नेमिछं. "लावल. वाटकी गयो दि.वट्ट, वट्टय; सं.वर्त, वर्तु] [रा.] वाजउ उक्तिर. गुर्जरा. वाद्य, वाजुं .. वाट वहे छे घणी *प्रेमाका. [राह जुए छे] वाजणां नरका. वागनारां, वागतां वाटवालणू उक्तिर. [*वोळावियापणुं] (सं. वाजिब उक्तिर. गुर्जरा. वाजिंत्र (सं.वादित्र) वर्मपालन); वटवालनु वाजिन प्रेमाका. अश्व, घोडो (सं.वाजिन्) वाटि उक्तिर. (दीवानी) वाट (सं.वर्तिः) वाजि-विद्या प्रेमाका. अश्वविद्या [सं.] वाटेवाहु उपबा. वटेमार्गु (सं.वर्मवाहक) वाजी प्रेमाका. अश्व, घोडी [सं.] वाटो लावल. कोई खाद्य के पेय पदार्थ, वाजे घणा अखाका. बडाई मारे *कंसार] वाट चित्तसं. रस्तो [सं.वर्मा] वाड तेरका. नेमिछं. षडाबा. वाडो (सं.वाट, वाट मदमो. व्यर्थ, हलकुं, [हानि, दोष] पाट); अखाका. अंतराय, [आडश]; [हिं.बट्टा; दे.वट्ट] हद, [मर्यादा] वाट उठाडी अखाका. व्यर्थ बनावी, वाडव अखाका. प्रेमाका. हरिख्या. ब्राह्मण [वणसाड्यु] (सं.) वाट ऊठी चित्तसं. निरर्थक गयुं, एळे गयुं वाडि उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. षडाबा. वाड वाटकढापणउं उपबा. भोमियापणुं (सं.वृत्ति, वाटि) वाट नाखी जq प्रेमाका. रस्तो छोडी दईने वाडिय (*रथवाडिय) [रयवाडिय]* गुर्जरा. ___ जता रहेवू [सवारीमां फरवू ते]; जुओ रवाडी वाट पडवी अखाछ. लूटा वाढ्या मोसाच. ?, [*कपाता, “पराजित वाटपाड जुओ वाटपाल थता, *पाछा पडता] [सं.वर्ध वाट पाडवी अखाका. आरारा. चित्तसं. वाण नरका. वाणी नरका. लूंटी लेवं, खातर पाड़वी वाण प्रधुचु. काथी, दोरडुं वाटपाडा अखाका. लूंटारा वाणउत्र अंबरा. षडाबा. वाणोतर, गुमास्ता वाटपाडी प्रेमाका. मार्गमां लूंटी लेनार (सं.वाणिजपुत्र) 2010_03 Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणवर/वानुं मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वाणवs [बाणवई ] " षडाबा. [बाणुं] [सं. बादाई नरका. वायदो [आपवो ते], [मुदत द्वानवति] पाडवी ते] [अ.वादः ] वाणही अभिऊ. उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. नलरा. लावल. वाणी, मोजडी (सं. उपानह); जुओ वांणही वादी ऐतिका. प्रेमाका. वाद करनार [सं.]; आरारा. मंत्रतंत्रना उपाय करनार; * अखाका. [कीमियागर, शास्त्रज्ञ ] वादीसर प्राचीफा. वाद करनाराओमां मुख्य (सं. वादीश्वर) ४५६ बाणारसी उत्तिर. वाराणसी, [बनारस ] वाणारिस, वाणारीस ऐतिका. वाचक, वाचनाचार्य, [जैन साधुओनी एक पदवी] वाणां "नेमिछं. ["प्याला] [सं. पान] वाणि उक्तिर. [ वणवानी क्रिया ] (सं. वाणिः) वाणिक नलाख्या. वाणियो ( सं . वाणिजक) वाणी आरारा. बांधी, रची ? (रा. बावणौ, वाणी) बाणीखाणी जुओ खाणी वाणुत्र अंबरा. विमप्र. वाणोतर, [गुमास्ता] [सं. वाणिजपुत्र ] बातां अभिऊ. नरका. वगाडतां, बजावतां (सं. वादयत् परथी) बाद प्रेमाका. झघडो, [युद्ध] [सं.] बादलउ उक्तिर. वादळ [द. वद्दल ] 2010_03 * बाघइ अखाका. आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. देवरा. नलाख्या. नेमिछं. प्रेमाका. षडाबा. वधे, वृद्धि पामे (सं.वर्धते) वान जिनरा. *विमप्र. मान, इज्जत [ रा . ]; जुओ वांन वान * प्रेमाका. [गौरव, आदर, खातरबरदास्त]; [वर्ण, आकृति, बांधो] वाणोतर नरका. प्रेमाका. गुमास्तो (सं. वान (वानउ ) * ऐतिरा. [मान, इज्जत] [रा.; वाणिजपुत्र) वाण्यो पंचवा. वाणियो, वेपारी (सं. वाणिजक) बात कामा (त्रि). गुर्जरा. षडाबा. खबर, समाचार (सं.वार्ता) वान वाघइ आरारा. जश वधे [ रा . ] बातिकर सिंहा (म). प्रसंग, [ आपत्तिनो वानां अभिऊ. वस्तु, [वानगी]; प्रयत्न, प्रसंग ] ( सं . व्यतिकर) [कार्य] (सं.वर्णक); प्रेमाका. विवेक, [खातरबरदास्त ] बाधरी प्रेमाका. चामडानी दोरी के पट्टी [लगाम माटे ] [ सं . वर्ध] वाघ्र उपबा. कादं (शा). चामडानी पट्टी, दोरी (सं.वर्ध) सं.वर्ण]; जुओ वानउ वान, बानो अखाका. वर्ण, रंग, शोभा वानउ * लावल. [मान, प्रतिष्ठा ] [ रा . ]; जुओ वान, वांनउ वानु नेमिछं. प्रयत्न, [ चाल, चेष्टा ]; [प्रतिष्ठा ] वानुं प्रेमाका. वस्तु, [बाबत ] Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४५७ वानी/वारइ वानी अखाछ. प्रकार; लावल. वानगी [सं. (सं.वा.) वर्णिका वायइ नरका-२. षडाबा. वगाडे, [बजावे] वानो जुओ वान (सं.वादयति); नरका-२. वागे, [स्वर वापरइ गुर्जरा. *उपभोग करे; [फेलाय, करें] [सं.वादति] प्रचलित रहे]; षडाबा. योजे, योजाय वायक नरका. प्रेमाका. शीलक. वाक्य, (सं.व्यापारयति) वचन वाम अखाका. उक्तिर. वांभ, पहोळा करेला "वाय जाय ('धम्युं धूप्युं वाय जाय) बे हाथ वच्चेनुं अंतर (सं.व्याम) [धम्युंधूप्युंवाये जाय] अखाका. [करेलो वाम आरारा. चतुचा. प्रतिकूळ, विरुद्ध, श्रम] फोगट जाय; जुओ धम्युंधूप्युं भिन्न, वांकुं, अवळू (सं.); नेमिछं. वाये जाय लावल. डाबू, प्रेमाका. वामा, स्त्री वायण विमप्र. वायगुं, स्वस्तिवाचन, वाम (वाम अंगे) चित्तसं. डाबे अंगे] [आशीर्वादात्मक उद्गारो] [सं.उपायन] खोटे मार्गे वायम आरारा(व). कोईक फळमेवो वामइ अखाका. उपबा. कादं(शा). चतुचा. पाप वायस अभिऊ. कामा(त्रि). नरका-२. नरका. नलाख्या. प्रेमाका. वसंफा. प्रेमाका. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि. वसंवि(ब्रा). दूर करे, टाळे, वसंवि(ब्रा). कागडो (सं.) काढी नाखे, पार करे (सं.वामयति) वायस कस्तुवा. “वायु, [*कागडो] वामउ वीसरा. डाबी बाजु (सं.वाम) वायसात्र हरिख्या. रांधेली रसोईमाथी वामज्ञानी चित्तसं. जेने डाबे अंगे ज्ञान .. कागडाने माटे जुदो काढेलो भाग (सं.) आवे छे तेवो, ऊलटुं, प्रतिकूळ, अधम वायंभ तेरका. ?, [स्थापत्य- कोई अंग] ज्ञान धरावनार [सं.] वायिवा उक्तिर. वावा, पवन फूंकवा, पवन नाखवा [सं.वा-] वामणडी लावल. नीची, ठींगणी (सं.वामन) वाये *अखाका. [वियाय, जन्म आपे]; वामा अखाका. कादं(शा). कामा(त्रि). स्त्री, सुंदर स्त्री (सं.) वाये बटे (धम्युंधूप्युं वाये वटे) अखाका. वामां-टामा प्रेमाका. गल्लांतल्लां, [अनिश्चय करेलो श्रम फोगट जाय; धम्युंधूप्यु के आळसमां काम टाळवू ते] वाय अखाका. तेरका. वायु, वा (सं.वात) वायो अखाका. वाह्यो, छेतरायो, [जितायो] वाय देवरा. वाणी, [वचन] [रा.; सं.वाच] बार अखाछ. आरारा. कामा(शा). प्रेमाका. वाय अखाछ. वगाडे, [बजावे] [सं.वाद्] वेताप. वारि, पाणी वायइ उक्तिर. तेरका. (पवन) वाय, वहे वारइ अंबरा. समयमां, वारामां [सं.वार] वाये वटे 2010_03 Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वारकी/वाल ४५८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वारकी *प्रेमाका. [प्रतीकार करनार दुश्मन, नीकळेली, लक्ष्मी [सं.] द्रोही] [सं.]. वारिलग्ग कृष्णबा. वाराफरती वारकुं नरका. वार, समये, फेरा; प्रेमाका. वारिवू उक्तिर. वारवू, रोकवू समयनुं, वखतर्नु, [वेळाए] वारिहारि ऋषिरा. समय बतावनारुं सछिद्र वारगहै हम्मीप्र. एक प्रकारनो तंबु, जुओ घटिकायंत्र बारगइ वारीजिती जिनरा. [वारवामां आवी हती], वारण गुर्जरा. हाथी (सं.) मनाई करायेली वारणां अखाका. दशस्कं(२). नरका. वारी वरे नरका. अटकावी अटके ओवारणां [सं.अपवारण] वारु चतुचा. मोसाच. वायुं, ना कही वारणे कीजे (सोनानो मेरु कीजे वारणे) वारु, वारू अखाका. नलाख्या. प्रेमाका. प्रेमाका. *ओवारणां लईए, [ओवारी लावल. विक्ररा. हरिख्या. ठीक, योग्य, नाखवा माटे सोनानो मेरु करीए] सारूं, सुंदर, उत्तम; सारी रीते (सं. वारणे जर्बु दशकं(१). प्रेमाका. ओवारणां वारुक) लेवां; नरका. [वारी जवं], कुरबान वारुणी प्रेमाका. मद्य, दारू [सं.] ... थवू वारुं शृंगाम. सारु, उत्तम (सं.वारुक) वार-योषा कादं(शा). वारांगना, गणिका वारू उपबा. जिनरा. नेमिछं. प्रेमप. मदमो. (सं.) विमप्र. सारु, सुंदर, उत्तम; सारी रीते वारवधू गुर्जरा. वेश्या (सं.) [सं.वारुक]; जुओ वारू वारही (वारही नाखे) * नरप. [*वारी जाय, वारूआ ऐतिरा. उत्तम *ओवारी नाखे, *न्यौछावर करी दे] वारूगा (वारू गारूडीकला) *नलरा. वाराइति, वाराति, वारायत, वारायति [गारुडीनी सुंदर कला] ... विक्ररा. सिंहा(शा). [गीतनृत्यादिमां वारू परि ऐतिरा. सारी पेठे कुशळ] दासी, [गणिका वारूं कामा(शा). उत्तम [सं.वारुक वारासोरी नरका. वाराफरती . वारोध चतुचा. अवरोध, विरोध, वांधो वारांमति (दुवारांमति) देवरा. द्वारिका [सं. वारोवारि ऋषिरा. नलाख्या. वारंवार द्वारामती] वायु करे अखाका. [ना पाडवामां आवी वारि आरारा. वारे, दिवसे होय ते माने], रोक्युं रोकाय वारिका कादं(धु). आड, [सीमा दर्शावती] वार्योस ललिरा. वारीश, अटकावीश वारिज अखाका. कमळ [सं.] वाल नरप(द). वहाल [सं.वल्लभ परथी वारिजा प्रेमाका. वारि - समुद्रमांथी वाल, वालि, (वरवाल, वंदरवालि) 2010_03 Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वसंवि (ब्रा). [ द्वार पर लटकावाती सत्कारार्थ मंगलसूचक ] माळा; जुओ वंदरवाल वालउ आरारा (व). *ऋषिरा. नेमिछं. ०शृंगामं. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). सुगंधी वाको, एनां फूल (सं. वालक) ४५९ बालउ षडाबा. वाळो, तंतु जेवुं एक जंतु (सं. वालक) वालण आरारा. पाठुं वाळवूं ते; नेमिछं. वाळवं ते, [मरडवुं ते] (सं.वालय्) वाळणी प्रेमाका. पाछां वाळवानी क्रिया, [रोकवुं ते, प्रतीकार ] वालर काकडी उक्तिर. काकडीनो एक प्रकार (सं. वल्लरकर्कटी) बालहउ वीसरा. वहालो ( सं . वल्लभ - ) वालहली उक्तिर. वालनी सींग (सं. वल्ल - फलिका) वालहि, वालही आनंस्त. आरारा. गुर्जरा. विराप. वहाली वालंभ आरारा. गुर्जरा. जिनरा. प्राचीसं. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). वहालम, प्रियतम (सं. वल्लभ) वाला लावल. सुगंधी वाळो [सं. वालक] *वालाकुली (वालाकूची) विमप्र. वाळा कूंची, [साफसूफी करवा माटेनी पींछी] वालामोई * नरका. [जेनां वहालां मरी गयां होय ते, अभागणी] वालि जुओ वाल वालउ / वाशे वालिभ प्राचीफा. प्रियतम, वहालम (सं. वल्लभ) वालिय गुर्जरा. वाळी, [ मस्तके पहेरवानी कडी (सं. वालिका) 2010_03 वालिंभ नलरा. नेमिछं. प्रियतम (सं. वल्लभ) वालिंग आनंस्त. प्रीतम वाळी वाळी अखाका. नरका. प्रेमाका. वळीवळी, फरीफरी बाहो आरारा. वहालो बालू आरारा. वाळु, सांजनुं भोजन [सं. विकाल-] वाल्हउ उपबा. वहालो ( सं . वल्लभ ) वाल्हेसर आरारा. खूब वहाला; जुओ बाल्हेसर वावड़ो नरका. वायु, पवन वावण जिनरा. वाववुं ते, [उगाडवुं ते] [सं. वापना ] वावर उपबा. प्रेमाका. वापरे, उपयोगमां ले; आरारा. ऐतिका. जिनरा. वापरे, खर्चे, व्यय करे; आरारा. उपबा प्राचीफा. वापरे, [खावाना उपयोगमां ले], खाय (सं. व्यापारयति ) बावि उक्तिर. गुर्जरा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वाव (सं. वापी) वाविय ऐतिका. वापी, वाव बावुं प्रेमाका. वागवुं ते, [बजवुं ते] वावुं ऐतिका व्यय करूं, [वापरूं] वावेत्र जुओ वव्येत्र बाशी नरका. बोली [सं. वाश्] वालिभ नलरा. एक देश ज्यां नलराजाए वाशे प्रेमप. वगाडशे विजय कर्यो हतो वाशे (वाहाशे) * प्रेमप. [*छेतरशे, "वंचना Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वास/वासुग ४६० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश करशे] वासगृह, निवासभवन (सं.) वास जिनरा. नेमिछं. वासक्षेप, जैन साधुओ वासपूरण अखाका. [वास करी रहेला), वंदवा आवनारना मस्तके सुगंधी अर्पे सर्वावास, सर्वव्यापी छे ते [सं.] वासर गुर्जरा. तेरका. दिवस (सं.) बस आरारा. वस्त्र (रा.; सं.वासक) वासव चित्तसं. इन्द्र [सं.] बास जुओ जसवास वासंग नरका. वासुकि (नाग), [ए नामनो बासइ उक्तिर. ऐतिरा. नरका. नेमिछं. नाग] प्राचीफा. वसंफन. वसंफा (ल). वसंवि. वासंति चारफा. टहुकता हता त्यारे (सं. वसंवि(ब्रा). बोले, अवाज करे (सं. वाश) वाथ); लावल. कहे वासंती तेरका. एक वनस्पति, [जुई, माधवी वासइ आरारा. नरका. वास करे, वसे; वगेरे आ नामथी ओळखाय छे] [सं.] प्रेमाका. वसावे, [मां वास करे]; वासा अभिऊ. "कादं(शा). वच्चेवच्चे आवतां आनंस्त. वसावे, राखे, [धारण करे] विश्रांतिस्थान, [पडाव, मजल]; जुओ बासइ अभिऊ. आनंस्त. ऐतिरा. गुर्जरा. वासउ तेरका. नेमिछं. प्रेमाका. लावल. वासाज पंचवा. वाजिंत्र (सं.वाद्यसाज) गंधयक्त - सुवासित - सुगंधित करे वासि वसंफा वसंफाली वसंवि. (सं.वासयति); प्रेमाका. सुवासित थाय वसंवि(ब्रा). कागवास, कागडाने वासह उपबा. स्थिर थाय, दृढताथी जामे अपातो पिंड (सं.वायसिका) (सं.वस् परथी) [रा.] वासिइं, वासीइं सिंहा(शा). वासमां बासउ उक्तिर. वासो, निवासस्थान, पडाव [*वसतीमां, "गाममा]; लावल. वासमां, (सं.वासकः); जुओ वासा, वासु निवासमां वासक प्राचीका. वासुकि, नाग | वासिक जुओ वासग, वेण-वासिक वासग, वासिक, वालिग आरारा. नेमिछं. वासिग अंबरा. लावल. वासुकि, सर्प, नाग; लावल. वासुकि, सर्प, नाग जुओ वासग पासण चतुचा. वस्त्र [रा.] (सं.वासन) बासित हारेख्या. वासवाळु, खुशबोदार (सं.) बासणि "गुर्जरा. ["एक प्रकारचें आसन वासीइं जुओ वासिइं - बेसवानी रीत].["दे.वस्सासण] वासीधउ आरारा. वासीदूं वासणीया अभिऊ. बोल्या (सं.वाश) वासु विमप्र. वास, वासो, [मुकाम, रहेवं पासना दशक(१). प्रेमाका. वास, सुगंध ते]; जुओ वासउ बासनिकेतन वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). वासुग आरारा. वासुकि, नाग 2010_03 Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অফীন সহী মাক্ষা ২ वासे/वांकडउ पात्र हासे नरका-२. दिवसमां (सं.बासर) वाहलङ नलरा. वहालुं, प्रिय (सं.वल्लभ) धास्तव्य षडाबा. रहेकासी (सं.) वाहवइ षडाबा. बूम पाडे, बोलावे शास्तुविधा कादं (शा). स्थापत्यविद्या (सं.) बाहाडी उषाह. घीनी वाढी, [नाळचावाळु वास्यां जुओ पास्यां वाह नलरा. सवारी (सं.) बाहाणकुमार, वाहाणपुत्र कामा(त्रि). वाह नलरा. प्रवाह (सं.) वाणियो वाहइ उषाह. प्रबोप्र. वहन करे, यहे, चाले; वाहार, वाहर नलाख्या. पंचवा. वहार, गुर्जरा. वहेवडावे; नेमिछं. लायल. वहे, मदद, सहाय (सं.व्याह-) धारण करे; अभिऊ. अफ्राि. विमप्र. वाहाला नलाख्या. वहाला, प्रिय (सं. लावल. उपाडे, चलावे, ताणे, खेंचे। वल्लभकः) गुर्जरा. नेमिछं. "विराप. लई जाय, .. चला, दोडावे (सं.वाहयति) वाहावी चतुचा. वगाडवी वाहइ अरसाका. उपाह. *ऋषिरा. कादं(शा). वाहाशे अखाका. *छेतरशे, [*वळगी *गर्जरा. दशस्की). दशस्क(२). रहेश]; जुआ वाश नलास्या. मदमो. विकरा. वेताप. वाहांग चंद्रवा. ? सिंहा(शा). छेतरे; नरका. प्रेमाका. “वाहि ['चाहि] अभिऊ. जुए. लावल.छेतरे, [फोसलावे] (सं.वाहयति) वाहिउ अखाका. नरका. प्रेमाका. छेतरायो; वाहइ कामा(शा). नरका. प्रेमाका. मदमो. *उपबा. ऋषिरा. तणायो, खेंचायो [सं. वगाडे, [बजावे] वाहित] वाहण गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). वाहिणि विमप्र. षडाबा. वाहिनी, रथ, वाहन वाहर आरारा. बोलावq ते (सं.व्याह) बाहिय गिउ हरिवि. छेतरी गयो बाहर अंबरा. उक्तिर. आरारा. जिनरा. वाहु गुर्जरा. घोडो (सं.वाह); जुओ बाह वहार, मदद, सहाय; षडाबा. सहायक - वाह्या वीना चतुचा. [धर्या विना], मूक्या दळ; जुओ वाहार, बाहर वाहइ लावल. वाळे छे, साफ करे छे (हिं. बुहारन) वाझो जाशे चतुचा. छेतराई जशे वाहरू उक्तिर. सहायक, रक्षक (सं. वांक आरारा. खोट, कसर (रा.) व्याहारक) वांकडउ लावल. वांको, [बंकडो, वीर, वाहलउ तेरका. षडाबा. वहेळो (दे.; सं. गर्वीलो] (सं.वक्र); चित्तसं. वांकुं, वाह+ल?) वांधो, मुश्केली वेलडु वगर 2010_03 Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वांकडी/विकराल ४६२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वांकडी लावल. [वांकी, आडाई करती] वधावी वांकुं कामा(त्रि). अटपटुं, [दुर्गम]; चित्तसं. वान देवरा. [उत्साह, उमंग] [रा.]; जुओ — मुश्केली, मुश्केलीभर्यु वान वांकुडी वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि(ब्रा). वांनउ *ऐतिरा. [मान, प्रतिष्ठा] [रा.]; वांकी (सं.वक्र) जुओ वानउ वांके लाकडे वेह अखाका. [वांका लाकडा- वांनी वेताप. राख मां वींध], मुश्केलीथी भरेलु [काम] वांम, वांमा कामा(शा). गुर्जरा. लावल. वांगड *ऐतिरा. [वीर, बहादुर] [रा.]; डाबु (सं.वाम) जुओ बांगड वांस नरप(द). वांसळी [सं.वंश] वांच, दशस्क(१). बचq [सं.वंच्यते] वांसलउ उपबा. प्रेमाका. लाकडां छोलवानुं वांचवू नरका. वांछवू, इच्छ एक आडा पानानुं ओजार [सं.वारत] वांछणहार उपबा. वांछनार, इच्छनार वांसळी नरका. रूपिया भरवानी लांबी वांछा उपबा. इच्छा (सं.) सांकडी कोथळी वांसोली उक्तिर. वांसलो (सं.दासी) वांछियूँ उक्तिर. वांछवू, इच्छयूँ वि गुर्जरा. तेरका. य, पण (प्रा.; सं.अपि) वांझ उक्तिर. प्रेमप. वीसरा. वंध्या, वांझणी वि कादं (शा). वय, उमर; जुओ लघु-वि वांटइ उक्तिर. भाग पाडे, वहेंचे (सं. विअक्खण गुर्जरा. विचक्षण, चतुर वण्टयति) [रा.; हिं.बांटना] विआरड उक्तिर. छतरे (सं.विप्रतारयति) वाण देवरा. वाणी विइ कादं(शा). वय, उमर वांणही कृष्णबा. प्राचीफा. मोजडी (सं. विउड गर्जरा. विराप. विकट, भयंकर उपानह्); जुओ वाणही विउल तेरका. शृंगामं. विपुल वांणोतर मदमो. चाकर (सं.वाणिज+पुत्र) विउलसिरी चारफा. प्रद्युचु. वसंफा (ल). वांतर, वांतरु गुर्जरा. विराप. व्यन्तर, [भूत, वसंवि(ब्रा). बकुल वृक्ष, बोरसली (सं. भूत जेवो]; जुओ वंतर बकुलश्री) वांदइ आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा. विओग तेरका. वियोग ऐतिका. गुर्जरा. देवरा. प्रेमाका. विकथा उपबा. [स्त्री आदिनी] गंदी वातो, वाग्भबा. षडाबा. वंदे, वंदन करे शास्त्रविरुद्ध वातो] (सं.) वांदणउं उक्तिर. उपबा. षडाबा. वंदन करवू विक *अखाछ. [विकार पामवो] [सं. ते, पूज्यभाव दर्शाववो ते (सं.वंदनक) विकृ-] वांदिq उक्तिर. वंदवू विकराल आरारा. विक्षुब्ध, व्याकुल (रा.); वांदी (महूरत वांदी) प्रेमाका. वंदी, [मुहूर्त] विक्षुब्ध, क्रोधित (रा.); गुर्जरा. भयंकर 2010_03 Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४६३ विकर्म/विगुता [सं.] विखाणइ दशस्क(१). दशस्क(२). विकर्म, विकर्म लावल. हरिख्या. खोटु नलाख्या. प्रेमाका. रूस्तस. वखाणे (सं. काम, खराब कर्म (सं.) व्याख्यान परथी) विकल, विकळ आनंस्त. रहित; गुर्जरा. विखास *गुर्जरा. "विराप. शृंगामं. ?, व्याकुळ, दुःखी; वीसरा. अस्वस्थ (सं.) [*विरूप - अवळी दशा, "मूझवण, विकलेंद्रिय आनंस्त. [ओछी इन्द्रियवाळा], विचार] [*दे.विक्खास]; जुओ वेखास एकेन्द्रियथी चतुरिन्द्रिय सुधीना जीवो विखांण रूस्तस. वखाण [सं.व्याख्यान] [सं.] विखिइ नलाख्या. विशे (सं.विषये) विकासिइं उपबा. उघाडे (सं.विकासति) विखे अखाछ. विषय विकुर्वइ, विकुब्बइ उक्तिर. षडाबा. दिव्य विखोडइ वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). वखोडे, सामर्थ्यथी उत्पन्न करे (सं.विकुर्वति) निंदा करे, हलकुं पाडे (प्रा.विक्खोड) [जै.]; जुओ वेउब्विय, वेखर्यु विख्यात आरारा. "कादं(धु). प्रगट, प्रसिद्ध विक्ख शृंगामं. ? रूपे; जाहेर, जाणीतुं विख्याति, प्रसिद्धि विक्खंभ तेरका. आडसर, [मोभ] (सं. विगइ * उपबा. *जिनरा. [विकारजनक घी विष्कंभ) वगेरे खाद्य पदार्थ] (सं.विकृति); जुओ विक्ति (विक्ति करी) प्रेमाका. [जगा करी], वेगै खास गोठवण [करी] विगत अखाका. व्यक्त, [प्रकाशित]; विक्रम अखाछ. विकर्म, [हलकुं काम] *गुर्जरा. भिन्नता] विख आरारा. दशस्कं(१). विष विगत, विगति आरारा. वीगत, स्पष्टता विख, वेख प्राचीका. पहेरवेश (सं.वेश) विगति कादं (शा). वीगते, जुदुंजुएं, [स्पष्ट] विखइ अखाछ. आरारा. कादं(शा). (सं.व्यक्ति); नरका. विस्तार, विवरण, दशस्कं(१). प्रेमाका. विशे, अंदर, [-मां] . समजण]; नेमिछं. वीगत, [विस्तार] (सं.विषये) विगती * वीसरा. [स्पष्ट विखम रूपच. दारुण (सं.विषम) विगतुं अखेगी. व्यक्त, [स्पष्ट, विस्तृत] विखवाव आरारा. दुःख, अफसोस (रा.); विगत्य अखाका. भेद, [जुदाजुदापणुं] जुओ विषवाद विगन्यान आरारा. विज्ञान, आवडत विखंड (खंडविखंड) गुर्जरा. खंडित, टुकडे- विगर आनंस्त. देवरा. वगर, विना टुकडा (सं.) विगुआणा ऐतिका. वगोवाया; जुओ वगूए विखंडिउ गुर्जरा. खंडित कर्यु, तोड्युं विगुता* शीलक. [दुःखी कर्या] [सं.विगुप्त]; (सं.विखंडित) जुओ वगुता, वीगुता ____ 2010_03 Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विगुत्तउ/विछाइयो ४६४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विगुत्तउ प्राचीसं. व्याकुळ थयो दि.विच्च] विगुवाये प्रेमाका. दुःखी थाय विचमां आनंस्त. वचमां विगूचइ प्रद्युचु. व्याकुळ थाय, [दुःखी थाय] विचरेवउ ऐतिका. [विचर], विहार करवो, (प्रा.विगुत्त) [सं.विगुप्त]; जुओ वगुचे, चालवू विगूंचु विचारिखं उक्तिर. विचार विगूतउ *अखाछ. गुर्जरा. नलाख्या. विचालउं उक्तिर. उपबा. बच्चेनुं (द.विच्च प्राचीफा. "विराप. व्याकुल थयो, संकट- परथी) । मां आव्यो, [दुःखी थयो] (सं.विगुप्त) विचालि, विचाली गुर्जरा. वसंफा. विगूतु प्रबोप्र. *व्यभिचार कर्यो, [*लपटायो, वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वच्चे, "वगोवायो]; जुओ वगूत्यो वचाळे (सं.वर्म; दे.विच्च); विक्ररा. विगूयइ उक्तिर. वगोवाय, दुःखी थाय (सं. वचगाळे, वच्चे थईने विगुप्यति) विचालिलउ वीसरा. वचलो (प्रा.विच्च) विगूंचु नलाख्या. दुःख भोगवो (सं.विगुप्त) विचाली जुओ विचालि विगोइ अंगवि. अंबरा. *उपबा. "गुर्जरा. विचि, विचिइ, विचिई उक्तिर. उपबा. उषाह. नरका. प्रद्युचु. विराप. शृंगाम. पीडा कादं(शा). षडाबा. वच्चे (सं.वर्म; दे. करे, व्याकुळ करे, दुःखी करे (सं.. विच्च) विगोपयति) विचित्र चित्तसं.जातजातना, जुदाजुदा [सं.] विगोई प्राचीसं. वगोवी विचिल उपबा. उषाह. विमप्र. वचतुं विगोणउं *अंबरा. [वीतक, पीडा] विचिहिं ऐतिरा. वच्चे विगोणहार उपबा. वगोवनार (सं.विगोपन) विच- प्राचीसं. वेच, [सं.व्यय] विगोयां प्रेमाका. वगोवायां विच्छा प्राचीसं.आडम्बर, [ठाठमाठ] दि.] विगोवइ उक्तिर. व्याकुल करे, तिरस्कृत विच्छाय आरारा. निस्तेज, झांलुं (सं.) करे (सं.विगोपयति); चित्तसं. लावल. विच्छेदे * उषाह. [जलदी]; जुओ विछेदि दुःखी करे, व्याकुल करे (द.विग्गोव) विछोह (वागविच्छोह) गुर्जरा. [वाणीनो] विग्यत्त (विग्ध तु) ऐतिका. विघ्नोने तो अभाव, भंग, [अबोला]; जुओ विच्छोह विग्रे प्रेमाका. हरिख्या. व्यग्र, व्याकुळ विछर्यु अखेगी. विमुक्त थयुं, [अळगुं थयुं] विघटइ आरारा. संबंध तोडे; ऋषिरा. नाश (हिं.बिछुडा, बिछुरा) करे; ऐतिरा. नष्ट थाय; जिनरा. षडाबा. विछाइउ विराप. तेजहीन, [फीकुं] (सं. विघटित थाय, खोटु पडे (सं.विघटते) . विच्छाय) विचइ आनंस्त. ऋषिरा. नरका. वच्चे विछाइयो आरारा. विस्तरीने, छवाईने रह्यो 2010_03 Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४६५ विछाई/विडारी विछाई जुओ हांच विछाई ___ अर्धदेव जाति विछाहइ नेमिछं. छाय, ढांके; विमप्र. विजाहरी उक्तिर. गढ पर योद्धाओने रक्षण बिछावे, [पाथरे] __ आपती कोटडी (*सं.विजयगृही) विछाहिउ गुर्जरा. तेजहीन, झांखु (सं. विजु तेरका. विद्युत्, वीज विच्छाय) विज्ञान आरारा. आवडत [सं.] विछिति जिनरा. शोभा विट ऐतिका. कादं(शा). भांड, व्यभिचारी विछुवा दशस्क(१). पगर्नु एक घरेणुं पुरुष, लंपट] (सं.) विछेदि, विछेदि नेमिछं. "विक्ररा. सत्वर, विटल वेताप. वटलेलं [सं.विट+ल] जलदी; जुओ वछेदि, विच्छेदे विटलता अखाछ. भ्रष्टता विछोयउं आरारा. दशस्कं(२). देवरा. अलग विटंड जओ वेदविटंड कर्यु, वियोग कराव्यो (दे.विच्छोय) विटंब आरारा. विटंबणा, दुःख [सं.विडंब] विछोह आरारा. कर्पू. प्राचीसं. वियोग, : विटंबन आरारा. विडंबन, छेतरामणी, विरह (दे.विच्छोह) तिरस्कार विछोहउ आरारा. वियुक्त, वियोगी, छोडनार (द.विच्छोह); नरका. नलाख्या वियोगी विटंबी प्रद्युचु. हेरान करी, दःख दीधं] विनानी; विमप्र. विनानु, छूटुं करेखें, ' (सं.विडंब्) [वियोग कराव्यो] . विट्टालइ उक्तिर. वटाळे, वटलावे, भ्रष्ट करे विछोहि शृंगामं. वियोग, जुदाई, [भंग] [.] विछोहिउँ अभिऊ. प्रद्युचु. लावल.वछोड्यं, विट्ठि प्राचीसं. वेठ, [सेवा] (सं.विष्टि) विखुटुंकयुं, विरहित कर्यु (सं.विक्षोभित) विडलूण उक्तिर. एक प्रकारचें मीठु, काळु दि.विच्छोह] मीठु (सं.विडलवण) विछोहीउ गुर्जरा. छूटुं पडेलु, वियोगी विडंग आरारा(व). तेरका. एक वनस्पति, विजयखंभ तेरका. विजयस्तंभ, विजयसूचक वावडिंग (सं.) खांभो, कीर्तिस्तंभ (सं.विजय+स्कंभ) विडंबइ कादं (शा). शरमावे, उपहास करे; विजाणइ आरारा. न जाणे, भूली जाय; [नी समान होय]; गुर्जरा. *छुपावे, जुओ विनाण [(वेश) बदलावे] (सं.विडम्बयति) विजावलीय ऐतिका. विद्याओनो समूह [सं. विडारइ अखाका. गुर्जरा. दशस्क(१). __विद्यावलि] प्रेमाका. लावल. विराप. विदारे, कापे, विजे अखाका. अखाछा. चित्तसं. विजय नाश करे [सं.विदारयति] विजा ऐतिका. विद्या विडारी नरका. ईजा पामेली, [(नख विजाहर गुर्जरा. तेरका. विद्याधर, एक वगेरेना) क्षत पामेली] [सं.विदारित] 2010_03 Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विडारण/वितिपति ४६६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विडारण *प्रेमाका. [हणनार, विनाशक] विणसइ वसंफा. वसंवि. वनस्पति [सं.विदारण] विणसाडइ आरारा. जिनरा. वणसाडे, विड अंबरा. वडु, मोटुं बगाडे, नष्ट करे (सं.विनश्) विडूला उषाह. ? विणा उक्तिर. विना विठ्इ उक्तिर. गुर्जरा. वढे, लडे; षडाबा. विणास उपबा. आरारा. गुर्जरा. वीसरा. वढे, ठपको आपे, [लडे, झघडो करे] विनाश दि.वड्] विणासइ गुर्जरा. लावल. वसंफा. वसंवि. विढत्तउ प्राचीसं. प्राप्त कर्यु दि.] षडाबा. नाश करे (सं.विनाशयति) विढवइ उक्तिर. उपार्जन करे, पेदा करे दि.] विणासगर कृष्णच. विनाशकारी [सं. विण गुर्जरा. लावल. वसंफा(ल). वसंवि. विनाशकर वसंवि(ब्रा). वीसरा. विना, सिवाय विणासणहार उपबा. नाश करनार (सं. विणओ आनंस्त. विनय, [भक्ति] विनाशन+हार) विण-कह्यो देवरा. वणकडं, कह्या वगर विणि नलाख्या. विना विणग विमप्र. वणिक विणी-तु आरारा. वेणीमांथी, चोटलामांथी ... विणज आरारा. नलाख्या. शंगामं. वाणिज्य, विणु तेरका. वसंफा. विना वेपार विणोद गुर्जरा. विनोद, आनंद विणज- वीसरा. वेपार करे वित चित्तसं. वित्त, संपत्ति विणजार, विणजारा जिनरा. नलाख्या. वितनु चंद्रवा. अंग वगरनो एवो अनंग, वणजारो, [पोठ लईने फरतो] वेपारी कामदेव] [सं.] (सं.वाणिज्यकारः) वितपतिआला *लावल. [कलाकौशलविणठइ उपबा. उषाह. जिनरा. तेरका. युक्त; जुओ वतपतिआला, वितिपति प्रद्युचु. प्राचीसं. नष्ट थाय, बगडे [सं. वितपत्र प्राचीफा. संपूर्ण ज्ञाता (सं.व्युत्पन्न) विनष्ट] वितरूप आरारा. वित – सत्त्व अने रूप विणठउ षडाबा. नाश पाम्यो, [मृत्यु पाम्यो] वितंड, वितंडा अखाछ. खोटो बकवाद (सं.विनष्ट) करनार, पोताने पक्ष न होय ने मात्र विणय गुर्जरा. विनय सामा पक्षनुं खंडन कर्या करनार, विणसइ अभिऊ. उक्तिर. उपबा. जिनरा. ज्ञानीनो एक प्रकार] [सं.] वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वितिकर ऋषिरा. वृत्तांत, हकीकत (सं. शीलक. शृंगामं. नष्ट थाय, वणसे (सं. व्यतिकर) विनश्यति) वितिपति विमप्र. व्युत्पत्ति, खिलावट, 2010_03 Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४६७ वितीत/विधे [कलाकौशल, कलासौन्दर्य]; जुओ विदेही अखाका. देह विनानी वितपतिआलां विदोषी प्रेमाका. दोष वगरनो वितीत, वितीता आरारा. व्यतीत विध गुर्जरा. विद्या वितुं उषाह. कार्य, सेवा, [काम]; जुओ विद्यप्पह आरारा. विद्युत्प्रभा, [एक नाम] वतुं विद्योत प्रेमाका. विद्युत्, वीजळी वित्त काद(छु. खुल्छ [प्रासद्ध] [स.. विद्राव कादं(शा). दोडधाम, नासानास वित्ति तेरका. वृत्ति, [मनोवृत्ति, विचार- (सं.) वलण] विद्रुम ऐतिरा. नरका. रूपच. परवाळु, एक वित्तिकरु ऐतिका. वृत्तिकर्ता, [विवरण - " जात- [लाल रंगनुं] रल [सं.] करनार, भाष्य रचनार] विद्रुमचोला जुओ द्रुमचोला वित्त प्राचीफा. गोळ, वर्तुलाकार (स.वृत्त) विध हरिख्या. रीत (सं.विधा) वित्थर ऐतिका. गुर्जरा. विस्तार विधओ, विधु, वीधु वसंफा (ल). वसंवि. वित्रेक अखेगी. व्यतिरेक, [भिन्नता]; वसंवि(ब्रा). विद्ध थयेलो, परवश प्रेमाका. श्रेष्ठ; जुओ वत्रेक बनेलो, [विदग्ध, रसियो] वित्रोडीयां शृंगामं. तोड्यां, [भंग थयेलां] विधविध्ये अखाका. विविध रीते [सं.वित्रोटित] विथळ दशस्कं(२). प्रेमाका. विखरायेली, विधात प्रेमाका. विधाता, विधात्री, भाग्यनी देवी अस्तव्यस्त विथारउ ऐतिरा. विस्तारो विधि दशस्कं(१). नरका. प्रेमाका. वसंफा. विद, विदि प्राचीका. वेदशास्त्र वसंवि. वसंवि(ब्रा). ब्रह्मा, स्रष्टा (सं.) विदा आरारा. विदाय विधि नलाख्या. विधा, प्रकार विदाघ शृंगामं. बळतरा (सं.) विधिना आंक प्रेमाका. [विधिए लखेलुं], विदाणउ उक्तिर. चंदरवो (सं.वितानक) भाग्यनुं निर्माण विदान आरारा. विद्वान विधि-सउं षडाबा. विधिपूर्वक विदारिउ उक्तिर. विदार्यु, नष्ट कर्यु विधि सजी आरारा. गोठवण करी, तैयारी विदाह गुर्जरा. विराप. ऊंडी बळतरा, वेदना करी विधु जुओ विधओ विदि जुओ विद विधुर वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). पीडित, विदिस उक्तिर. उपदिशा, बे दिशा वच्चेनो व्याकुळ] (सं.) खूणो (सं.विदिश्) विधुरी ऋषिरा. आकुळव्याकुळ, [संतप्त] विदेह आरारा. महाविदेह क्षेत्रमा विधे अखाछ. नरका. प्रकारे, रीते, रीतथी 2010_03 Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधोगत/विप्रणी ४६८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विधोगत, विधोगति, विधोगते अभिऊ. विनाणगार प्राचीफा. युक्तिबाज, धूर्त (सं. दशस्क(१). नरका. प्रेमाका. विधि विज्ञान+कार) प्रमाणे (सं.विधि+गति); जुओ वीधोगत विनाणुं प्राचीसं. जाणकारी (सं.विज्ञानम्) विष्य नलाख्या. विधि, ब्रह्मा विनांण जुओ विनाण विध्याता अंबरा. नलाख्या. विधाता, ब्रह्मा विनु प्राचीफा. विनय विध्ये अखाका. रीते विनेउ षडाबा. शिष्य (सं.विनेय) बिनडइ ऐतिका. जिनरा. विडंबना करे, विनेजुक्त दशस्कं(१). विनययुक्त, सविनय नमावे, पराभव करे, [व्याकुळ करे]; विनाण नेमिछं. समज, [युक्ति]; गुर्जरा. अंगवि. गुर्जरा. प्राचीसं. "सिंहा(म). ज्ञान, [कौशल्य] [सं.विज्ञान] षडाबा. दुःख आपे, अकळावे, हेरान- विनाणी ऐतिका. विज्ञानी, [विशेष ज्ञानी] परेशान करे (सं.विनट्यति) विनांणी ऋषिरा. विशेष जाणकार (सं. विनइ षडाबा. विनयमां ' विज्ञानी) विनता अखाका. नरका. प्रेमप. प्रेमाका. विनिफल तेरका. एक वनस्पति वनिता, स्त्री विन्यानी उक्तिर. ज्ञानी (सं.विज्ञानी) विनई- * प्राचीफा. [कष्ट आपy] (सं.विनत) विन्हें [बिन्हें] ऐतिका. बन्ने [सं.द्वि-] विनाण, विनांण आरारा. कादं(धु). गुर्जरा. विपर अभिऊ. ब्राह्मण (सं.विप्र) विक्रच. ज्ञान, आवडत, कौशल, विद्या विपरावि_ उक्तिर. वपराव, उपयोगमां (सं.विज्ञान); आरारा. *कर्पूमं. "नेमिछं. लेवडावq (सं.व्यापारयितव्यम्) "विक्ररा. *ज्ञान, विज्ञान, चातुर्य, विपरीत आरारा. दूर चाली गई; हरिख्या. [पटुता]; *आरारा. रहस्य, भेद, बदलायेखें, कारमुं, (बनावटी, जूठं]; [*कार्यकारिता]; अभिऊ. ज्ञान, समज, वसमुं, [प्रतिकूळ] (सं.) [पिछाण]; ऐतिका. विज्ञान, [ज्ञान, विपरीत भावना चित्तसं. आत्मा देहादिरूप सबोध]: ऐतिरा. विज्ञान, [कला- छे अथवा जगत सत्य छे एम मान, कौशल्य]; आरारा. शृंगाम. युक्ति; ते, मिथ्या ज्ञान * नलाख्या. [सरतचूक, भूल, विस्मरण] विपाक आरारा. परिणाम, फळ (सं.) (सं.वि+ज्ञान); जुओ विजाणइ, वीद्यांण विष्प आरारा. विप्र, ब्राह्मण विनाणइ प्राचीफा. छेतरे, धूते (सं.विज्ञान); विप्पा शृंगाम. विप्रिय, [अप्रिय, अणगमतुं] शृंगाम. *जाणे [युक्ति करे, पटावे]; विष्फुरइ ऐतिका. स्फुरे, प्रगट थाय; जुओ षडाबा. जाणे, [आवडत बतावे]; जुओ विस्फुरइ वीनाणीने विप्रणी आरारा. ब्राह्मणी 2010_03 Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४६९ विप्रतारइ/विस्तर विप्रतारइ आरारा. षडाबा. छेतरे (सं. विचारवं ते [सं.विमर्शन] विप्रतारयति) विमासणीइं* उपबा. [विचारणाथी, विचारीविप्रीत्य चित्तसं. विपरीत भावना; जुओ ने] (सं.विमर्शन) विपरीत भावना ___ विमासरण प्राचीका. विमासण, [विचारणा] 'विन्भमि शृंगामं. विभ्रमथी, [विलासथी] (सं.विमर्शन) । विभचार कादं(शा). व्यभिचार विमासिवु उक्तिर. विचार, (सं.विमश) विभाग कादं(शा). [प्रकरण, प्रसंग] [सं.] विमांण वीसरा. विमान विभाड्यूँ अंगवि. कृष्णबा. फाडवं, नाश विमांशी, विमांसी नलाख्या. विचारी (सं. करवो विमशी विभाडिळ विक्रच. [तोड्यु]; हरिवि. विनष्ट विम्मास- तेरका. विचारवं (सं.विमश) कर्यु (सं.वि+स्फा) दि.] विम्हिउ गुर्जरा. आश्चर्य पाम्यो (सं.विस्मित) विभांति * हम्मीप्र. [विविध रीते] [रा.; विय कादं (शा). वय, उमर हिं.] [सं.वि+भक्ति वियरी कर्पूमं. वैरी विभिचारणी दशस्क(१). व्यभिचारिणी वियारणि जुओ वरसवियारणि विभूति आरारा. साधनसंपत्ति (सं.); नरका. वियारियउ उक्तिर. ठगायो (सं.विप्रतारितः) वीसरा. भभूती, राखोडी, राख वियाल प्राचीसं. सायंकाल (सं.विकाल) विभूसीय ऐतिका. विभूषित, [शोभीतुं] विरउ षष्टिप्र. हलको, वरवो, [अनिष्ट] (सं. विमन प्राचीफा. ऊलटी (सं.वमन) विरूप) विमन्नइ जुओ मन्नइ विरचइ जिनरा. विरत थाय, [अटके] [रा.]; विमर कृष्णच. विवर, खाडो गुर्जरा. आयोजे [सं.विरचयति] विमरसइ षडाबा. विचारे (सं.विमर्शति) विरज प्रेमाका. रज विनानां विमाण आरारा. गुर्जरा. विमान, [आकाश- विरतउ उक्तिर. गुर्जरा. विरक्त यान]; गुर्जरा. उच्चलोक, दिवलोक]; विरतंत, विरतांत आरारा. गुर्जरा. देवरा. महालय (सं.विमान) प्राचीफा. वृत्तांत, हकीकत विमासइ आरारा. उक्तिर. उपबा. उषाह. विरति वाग्भबा. यति, छंदमां आवतो विराम ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. जिनरा. रूपच. विरती तेरका. विरक्त थई; *लावल. विक्रच. विराप. शीलक. षडाबा. विचारे [विरमी (सं.विमशति) विरती लावल. वृत्ति .. विमासउ उक्तिर. विचारेलु (सं.विमृष्टम्) विरते अखाका. वृत्तिथी, [वरत्ये, होवाथी] विमासण गुर्जरा. शीलक. विचारणा, विस्तउ प्राचीफा. विरक्त, पराङ्मुख . 2010_03 मध्य.३० Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस्ती/विलगइ ४७० ४७० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विस्ती आरारा. विरक्त थई, एना वगरनी खोटुं] थई विरुदेत ऐतिका. बिरुद धरावनार विरय प्राचीसं. वृद्ध विरुद्ध आरारा. विरोधी भाव विरमइ अखाका. उपबा. तजी दे, -थी विठवां नरका. वरवां, नठारां, नरसां (सं. मुक्त रहे [सं.विरमति] विरूप) विरह तेरका. एक वनस्पति दि.विरहि] विरू हम्मीप्र. वरवं, अनिष्ट, प्रतिकळ] विरहकरालीय वसंवि. वसंवि(ब्रा). विरहथी (सं.विरूप) त्रस्त (सं.विरह+करालित) विरूअउ, विरूउ, विरूयउ उक्तिर. उपबा. विरहणि गुर्जरा. विरहिणी उषाह. *कर्पूमं. गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. विरा-बदूंगी नरका.विरहमग्न जुओविधूंधी प्रधुचु. लावल. वरवू, jई, खराब, विरहिणीसाधु वसंवि. विरहिणीओनो साथ, अनिष्ट] [समुदाय] [सं.विरहिणी+साथ] विरोध्यो प्रेमाका. विरोधी - प्रतिकूळ - विरंग, विरंगू गुर्जरा. शृंगामं. दुःखी, अप्रसन्न दुःखरूप बनाव्यो [सं.] विरोलइ उक्तिर. नरप. वसंफा. वसंफा (ल). विरंचि अखेगी. नरका. ब्रह्मा [सं.] वसंवि. वसंवि(ब्रा). वलोवे (द.विरोल); विराडिउ *गुर्जरा. विराप. उश्केरायो, गुर्जरा. विराप. वलोवे, ढंढोळे, [हल[आवेशमां आव्यो] मलावे, पजवे] विराधइ उपबा. भंग करे; गुर्जरा. अटकावे, विलइ षडाबा. विलय अवरुद्ध करे; आरारा. *उपबा. षडाबा. विलउ गुर्जरा. नाश (सं.विलय) नो अपराध करे, कष्ट आपे (सं. बिलकतउ जिनरा. विलक्ष [व्याकुळ] थतो, विराध्यति) रड़तो] [रा.] विराधि हम्मीप्र. व्याधि विलक्खिय गुर्जरा. व्याकुळ थई, दुःखी थई विराम आरारा. कष्ट, उपद्रव, पीडा (रा.) (सं.विलक्षिता) विराल वसंफा. वसंवि(ब्रा). वराळ विलखउ उक्तिर. ऋषिरा. प्राचीफा. [उदास, विराब अखाका. कलबलाट [सं.] करमाई गयेखें, फिक्कुं] (सं.विलक्ष) विरांसइ जुओ वरासइ विलखाणउं आरारा. गभरायु [खिन्न थ]]; विरांसउ जुओ वरासउ "प्रधुचु. "विक्रच. [करमाई गयुं झांऱ्या चिरी अभिऊ. कादं(शा). नलाख्या. प्रबोप्र. पडी गयु] (सं.विलक्ष) शत्रु, दुश्मन (सं.वैरी) विलखित आरारा. गभरायेलु (सं.विलक्षित) विठठ अभिऊ. विराप. विरूप, [खराब, विलगइ गुर्जरा. रूपच. वळगे (सं.विलगति) 2010_03 Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन कुजराती शवकोश ४७१ विलगाय/विवर्यउ विल्माय देवरा. वळगाडी (सं.विलग विलुब्ध, आसक्त, लोभायेला, वळुधेला विलनाडी आरारा. लावल. वळगाडी बिलूरद जिनरा. प्रधुचु. प्राचीफा. उतरडी विसपी विलुपी] "ऋषिरा. [-मां मम्न, नाखे, [खणे] (प्रा.) फसायेली, आकृष्ट] [सं.विलुब्ध] विलूंपठ अभिऊ. वळगेलुं, [-मां मग्न] विलय प्राचीसं. वनिता दि.] (सं.विलुब्ध) विललाइ आरारा. उदास थईन (रा.) विले अखाका. अखाछ. विलय बिललाबइ आरारा. विलाप करे (रा.) विलेछु गुर्जरा. विराप. म्लेच्छ, [अनार्य] विलबइ आरारा. उक्तिर. कर्पूमं. गुर्जरा. विलेवण आनंस्त. तेरका. विलेपन तेरका. विलाप करे (सं.विलपति) विलोइउ उक्तिर. वलोव्युं, हलमलाव्युं (सं. बिलबलतां देवरा. विलाप करतां विलोडित) विलविल देवरा. विलाप विलोकीत षडाबा. विलोकातुं, जोवातुं विलविलइ नरका. प्रघच. प्राचीफा. रूपच. (सं.विलोक) विलाप करे, वलवले विलोणउं विमप्र. वलोj विलंबह उक्तिर. विलंब करे (सं.विलम्बते) विलोम प्रेमाका. ऊलटो, [क्रमविरुद्ध] [सं.] विलंबा- (विलंबाव-) वीसरा. मोडुं कराव, विलोल "ऋषिरा. गुर्जरा. अति चंचळ, विलाई नरका-२. वळगी क्षुब्ध) (सं.)। बिलामी कादं(घ). कादं(शा). नरका. विलोलतां नरका. “वलोवतां, ["हालतां__ वळगी (सं.विलग्न) झूलतां, "चंचळ] [सं.विलोड्] बिलाति *शंगाम. दिश, वतन] [फा. विलोक्तां "गुर्जरा. [हलावता] (प्रा. विलायत] विलोडइ) [सं.विलोड् विलाया लावल.वीटळाया, विळग्या], (सं. विवचार्या नरप. व्यभिचार करनारां (सं. वि+लग्न) ___ व्यभिचरित) विलिविलि आरारा. वलवल, वलवलाट, विवध देवरा. विविध [रुदन, क्रंदन] विवनउ गुर्जरा. मर्यो (सं.विपन्न) विलिसियां षडाबा. विलास कों, [आनंद विवर शृंगाम. खाडो, छिद्र [सं.]; आनंस्त. माण्यो] (सं.विलस्) वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. विलुघउ, विलूधउ अंबरा. जिनरा. विलुब्ध वसंवि(ब्रा). छिद्र, प्रवेशद्वार थयेल, [-मां मग्न]; जुओ विलधी विवरीय तेरका. विपरीत, [प्रतिकूळ] विलूघडा शृंगामं. विलुब्ध, आसक्त विवर्जइ षडावा. त्याग करे (सं.विवर्जयति) विलूपला वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). विवर्यउ जिनरा. विवेचन कर्यु, विवरण 2010_03 Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवसाइउ/विषवाद ४७२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कर्यु] [सं.वि+] विशाखी कादं(शा). लोखंडनी आंकडीवाळी विवसाइउ नलरा. वेपारी, व्यवसाय करनार, नानी लाकडी - बावा साधु राखे छे [धंधादारी] (सं.व्यवसायिक) तेवी (सं.विशाखिका) विवसाय जुओ विवाय विशेक चंद्रवा. विशेष विवह (विहव) तेरका. वैभव विशेख हरिवि. विशेष विवहपरइ, विवहप्परि ऐतिका. गुर्जरा. विश्रमे *प्रेमाका. [विश्राम पामे छे, -मां प्रद्युचु. विविध प्रकारे विरमे छे, ठरे छे] [सं.विश्रमति] विवहार ऋषिरा. वीसरा. व्यवहार, [आदान- विश्राम पाम्यो चित्तसं. शांति पाम्यो, संतोष प्रदान, संबंध]; गुर्जरा. व्यवहार, रूढि, पाम्यो रिवाज वित्राल नलरा. [नष्ट], शांत; शृंगामं. नष्ट, विवहारियउ, विवहारी, विवहारीयउ विछिन्न, [खंडित]; जुओ विसराल आरारा. नलरा. प्राचीफा. विक्ररा. विश्वा आरारा. संभवतः विश्वदेवने संबोधन वेपारी (सं.व्यवहारिन्) विश्वा ऐतिरा. वसा, [गुणांक, दोकडा]; विवागइ ऋषिरा. (कर्मना) विपाकथी, जुओ वसा सोइ, विसा विसाही [परिणामथी] विश्वाध्यार अंबरा. विश्वाधार "विवाय ["विवसाय] चंद्रवा.?, [व्यवसाय] विश्वानर ऐतिका. वैश्वानर, अग्नि विवाहलु ऐतिका. ऐतिरा. विवाह- काव्य, विश्वानल दशस्क(१). वैश्वानर, अग्नि [विवाहलो, प्रशस्तिमूलक चरित्रकाव्य, विश्वा वीसइ ऐतिरा. वीश वसा, [संपूर्णदीक्षादि उत्सवप्रसंगर्नु काव्य]; जुओ पणे]; जुओ वीस वसा वीवाहलउ विष पंचवा. विशे, -मां (सं.विषये) विविह ऐतिका. नेमिछं. विविध, जुदाजुदा विषडया, विषईआ उपबा. षडाबा. विषयक विवीशाल उषाह. वेशवाळ, [वविशाळ विषकन्या पंचवा. जेना देहमां विष व्यापेखें विवीहउ प्राचीसं. पपीहा, बपैयो छे तेवी कन्या, [अमुक प्रकारनां विवेक आरारा. विचार, निश्चय (सं.); सामुद्रिक लक्षणो धरावनार कन्या, जेने लावल. सारानरसानो भेद, [विचार, कारणे एनी साथे संभोग करनार मृत्यु भेदज्ञान] . पामे] विवेकीउ उपबा. सारासारनो भेद करनार, विषन्न ऋषिरा. खिन्न (सं.विषण्ण) [ज्ञानी] (सं.विवेकी) विषमायुध वसंवि. वसंवि(ब्रा). कामदेव विरामे चित्तसं. शमे, विरमे । (सं.) विशा *षडाबा. [वसा, अंश, भाग] विषवाद *ऐतिका. [अफसोस, दुःख]; 2010_03 Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४७३ विषयारसि/विसु जुओ विखवाद विसराल ["विसाल] देवरा. विशाळ विषयारसि लावल. विषयना रसमां - बिसराह- वीसरा. उतारी पाडवू, निंदा शृंगाररसमां करवी (सं. विश्लाघते) विवे चित्तसं. विषय विसहर अंबरा. उक्तिर. उषाह. ऐतिका. विषेभोग चित्तसं. विषयोनो उपभोग प्राचीसं. लावल. वीसरा. स्थूलिफा. विसघारिय प्राचीफा. "विषथी बेचेन, [विष- विषधर, साप । नुं घेन चड्युं होय एवी, मदभरी] (सं. विसंठुल उक्तिर. अस्थिर, विह्वल (सं. विष+घारिय); जुओ घारिउ विसंस्थुलः) विस-दमणि शृंगामं. विषy दमन करनार, विसंतुलिय प्राचीसं. व्याकुळ, (आवेशभयु) [विषने दूर करनार] विसा विमप्र. वसा, [अंश, गुणांक] विसन कादं(शा). दुःख (सं.व्यसन) विसा (वीस विसानुं माणस) कृष्णच. वीस विसनरु, विसनिरु उक्तिर. गुर्जरा. अग्नि वसा[पूरा अंशानुं माणस, सोनार्नु (सं.वैश्वानर) ___माणस, [मूल्यवान माणस] विसनी ऋषिरा. विक्रच. व्यसनी, [लते विसात प्रेमाका. पूंजी, मिल्कत [फा.बिसात चडेलो] विसारी घालइ जुओ घालइ विसम, विसमु गुर्जरा. नलाख्या. विराप. विसाय शृंगामं. विषाद, खेद आकरुं, [कठोर], वसमुं, भयंकर (सं. विसा विसाही विमप्र. वीस वसाऐ, विषम) निश्चितपणे]; जुओ विश्वा वीसइ, विसमसि *षष्टिप्र. [होड, स्पर्धा, वाद]; वीसवा वीसई जुओ विसिमिसि विसाहइ उक्तिर. उपबा. विनिमय करे, वेचे विसमायुध वसंफा. कामदेव (सं.विषमा- (सं.विसाधयति) युध) विसाहणउं षडाबा. वसाj, [गांधीने त्यांथी विसमिउं *गुर्जरा. [विस्मय पाम्युं] मळती] वस्तुओ (सं.विसाधन) विसमु जुओ विसम विसाहिवू उक्तिर. विनिमय करवो, वेचq विसमे मोसाच. विषम, विपरीत], विचित्र, (सं.विसाध्) [अद्भुत, अनोखं] विसिम (विसमसि) *हरिवि. [होड, स्पर्धा, विसरामीनइ आनंस्त. विश्राम आपीने, वाद] [स्थापीने, राखीने] विसिमिसि उक्तिर. होड, स्पर्धा, वाद विसराल ऐतिरा. ऋषिरा. "लावल. "विमप्र. विसीटु प्राचीसं. विशिष्ट, [मुख्य] विसर्जित, [नष्ट]; जुओ विशाल विसु विमप्र. “विषम, [*विष] 2010_03 Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसूचिका / विहाणउ विसूचिका उपवा. कोलेरा (सं. विषूचिका) विसूरह उक्तिर. खेद करे [दे.] बिसेकी अखाका. विशेष [ता धरावनार ], [ अन्यथी जुदो पडनार, विशिष्ट ] विसोबा उक्तिर. कोडीनो वीसमो भाग (सं. विंशोपका) विसोधि आरारा. विशुद्धि विसोधिकरणु षडाबा. विशुद्धीकरण विस्तरि षडाबा. विस्तारथी विस्फुरइ षडाबा. [आवी चडे], * आक्रमण करे, (सं. विस्फुरति); जुओ विप्फुरइ विस्मउ षडाबा. विस्मय विस्मयउं विराप. विस्मय, आश्चर्य [पार्म्यु] विस्मि, विस्मिय नलाख्या. विस्मय, आश्चर्य बिस्मे अखाका. विस्मय, विस्मित; प्रेमाका विस्मय ४७४ विह तेरका प्रकार (सं. विध) विहइ लावल. वहे छे, धरावे छे [सं. वह ] विहचण प्राचीसं. विभाजन, वहेंचणी विहची आरारा. रूपच. व्हेंची (सं. विभक्त) विहss ऋषिरा. विनाश पामे (सं. वि+घटू); अंबरा. *उपबा. शृंगामं. विखूटुं पडे, छूटुं पडे, ललिरा. छोडे विहडाइ प्रद्युचु. वियुक्त थाय विश्व जुओ विवह विहस उक्तिर. चारफा. तेरका. वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. *क्संवि (ब्रा). * षडाबा. विकसे, खीले (सं. विकसति); विहसाब- तेरका विकसावयुं (सं.वि+हस् गुर्जरा. प्रगटे, उगे परथी) विहंगमी दशस्कं (२). प्रेमाका. पंखिणी, [सं.] विस्र प्राचीफा. शब्दायमान, [कोलाहलभर्युं विहंगल तेरका प्राचीसं विह्वळ (दे. (सं. विस्वर) विहथि उक्तिर. वेंत, बार आंगळ जेटलुं माप (सं. वितस्ति) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश विहर उक्तिर. "गुर्जरा. प्राचीफ़ा. बहेरी, आंतरी, तफावत ( *सं. व्यतिकर) [सं. व्यवहार] बिहरs उपबा. वहोरे, अन्न स्वीकारे ( "सं. विहरति ) [ सं . व्याहरति ] Jain Education' International 2010_03 विहलउ आनंस्त. ऐतिका. वहेलो, जलदी [द. वहिल्ल] विहलंघल प्राचीफा. विह्नळ [.] बिहलिय प्राचीसं. दुर्गति पामेला [सं. विकलित ] विहलंघल) विहंच- प्राचीसं. वहेंचवुं [सं. विभज्यते ] विहंडण तेरका. विनाशक (सं. विखंडन ) विहंसक गुर्जरा. विध्वंसक बिहाइ आरारा. *तेरका अंत पाने, पूरी थाय (सं. विघात) बिहाइ उक्तिर. शोले (सं. विभाति) बिहाड तेरका वियोग (सं. वि + घट्य ) विहाण जिनरा. विधान, [रचना, निर्माण, घटना, थवुं ते] विहाण आरारा. उपबा. उषाह. गुर्जरा. वीसरा वहाणुं, सवार (सं. विभान) विहाणउ उक्तिर. सवार (सं. विभानक) Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४७५ विहाणी/वीखे विहाणी, विहांणी, वीहांणी आरारा. विनानु, विहोणुं (सं. विधून) "कृष्णच. नरका. प्रेमाका. "वेताप. विंग आनंस्त. व्यंग्य, [सूचित सिंहा(शा). नष्ट थई, वीती (सं.विघात); विजनउ प्राचीसं. व्यंजन, [रसयुक्त खाद्य जुओ वेहांणी · पदार्थो] विहाणु (सुविहाणु) *ऐतिका. [योग्य विंझ शृंगाम. विंध्याचळ पर्वत विधिपूर्वक विठी नलाख्या. नष्ट थई (सं.विनष्ट) विहाती आरारा. वीती (सं.विघात) वितर आरारा. नलरा. व्यंतर, हलकी कोटिविहार देवरा. साधनो प्रवास: नलरा. ना देव, एक प्रकारनी भूतयोनि देवमन्दिर (सं.) विंद वीसरा. वर [रा.]; जुओ वींद विहांणी जुओ विहाणी विंद, विंदु गुर्जरा. प्राचीफा. वृन्द, समुदाय विहि ऐतिका. प्राचीसं. वीसरा. विधि, विहचइ उक्तिर. वहेंचे (सं.विभक्त परथी) _ विधाता, [स्रष्टा, भाग्यदेवता]; जुओवही वीआलि अभिऊ. विकाले, कसमये, विहिचिणि विमप्र. व्हेंचणीमां [मोडेथी] विडिली माता की * वीकइ उक्तिर. नलरा. षडाबा. हरिवि. वेचे विहिच्चिअ) [सं.विभज्यते] (सं.वि+क्री) विहिमम्ग ऐतिका. विधिमार्ग, [आचार वीकण- प्राचीसं. वेचQ (सं.विक्रीणीते) वीकाइ विमप्र. वेचाय विहिरु नलाख्या. वहेरो, तफावत (*सं. वीकारे दशस्कं(२). पडकारीने उश्केरे; जुओ वकारे __व्यभिचारः) [सं.व्यवहार] वीकिणिवत्रं षडाबा. वेचq (सं.विक्रीणीते) विहिलु नलाख्या. वहेलो (दे.वहिल्ल) वीकोदर चंद्रवा. वृकोदर, भीम विहिवळ प्रेमाका. विह्वळ वीक्षणा आनंस्त. जोवू ते [सं.] विहिवा नरका. नलाख्या. प्रेमाका. विवाह, वीक्षात मदमो. विख्यात लग्न वीख वीसरा. कदम, डगलुं (सं.वीखा) विहिवार काद(शा). प्रबोप्र. नलाख्या. बीखरड उक्तिर. वेरे. विखेरे (सं.विकिरति) व्यवहार, [आचरण, चालचलन, काम- सं.विष्किरति] काज, वहीवट] वीखात कामा(शा). विख्यात विहिसियां कृष्णच. विकस्यां वीखांण मदमो. रूस्तसं. वखाण; वर्णन विहिहत्थडा नेमिछं. विधि[विधाता] ना हाथ (सं.व्याख्यान) विहुण जुओ हुण वीखांणे मदमो. वखाणे विहूणउ उक्तिर. ऐतिका. वीसरा. रहित, वीखे मदमो. विषे माग] 2010_03 Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीगताला/वीधोगत ४७६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वीगताला जिनरा. व्यक्तित्व धरावता, वीट वीटाइ विमप्र. वींटी वळ्या, [धेरो [प्रभावशाळी पुरुष] [रा.] नाख्यो] वीगुता नरका. दुःखी; जुओ विगुता वीटंबि प्राचीका. विटंबणा करे (सं.विडंब्) वीन कामा(शा). व्यग्र, [अस्वस्थ] वीटू प्राचीका. हलका, [लंपटताभर्या] [सं. बीघरा वीना मदमो. ओगळ्या विना विट] बीघरे अखाछ. ओगळे [*सं.विग्रह] बीठ उक्तिर. विष्टा, मेनु वीघल कामा(त्रि). विकल, [अस्वस्थ] वीडारू चतुचा. विदाएँ, काप्यु [सं.विदार] बीच उक्तिर. मध्यभाग, गाळो (सं.वर्त्म वीण आरारा. वेणी, चोटलो; जुओ सीरवीण परथी) [हिं.बीच] वीण गुर्जरा. वसंवि(ब्रा). वीसरा. वीणा बीचमां वेताप. वचमां वीणठां मोसाच. वंठेला, दुष्ट [सं.विनष्ट] बीचे चंद्रवा. वचमां वीणि वसंफा. वसंवि. वीणा वीचेवीचपणुं चित्तसं. वच्चेवच्चपणुं ? ओत वीणि उक्तिर. उषाह. वसंफा. वसंवि. प्रोतपणुं ? वसंवि(ब्रा). वेणी, चोटलो वीछड्यो आरारा. पंचवा. प्रद्युचु. विछडेलो, जुदो पडेलो, वियोग पामेलो [सं. वीणिवा उक्तिर. वीणवा [सं.विचिनोति] विच्छर्दित] वीणो दशस्कं(१). प्रेमाका. वेणु, वांसळी वीछवो. कामा(त्रि). "निस्तेज रूप]. वीत चित्तसं. वित्त, सत्त्व [*जोगीरूप] बीतग आरारा. मदमो. वीतक वीछू उक्तिर. वींछी (सं.वृश्चिकः) वीतरागइजिनुं षष्टिप्र. वीतरागर्नु ज बीछोअ कामा(त्रि). विछोह, वियोग वीतो गुर्जरा. बन्यु (सं.वृत्त) वीजनउ *वसंफा. *वसंवि(ब्रा). [वींजणो, वीनेक दशस्कं(२). सौथी विशेष के पंखो] (सं.व्यजनक) चडियातुं [सं.व्यतिरेक]; चित्तसं. वीजावणु षडाबा. वीझवू ते, ढोळवू ते (सं. व्यतिरेक, भेद . वीज) वीथि, वीथी *कादं(शा). [सामसामी बे बीजुलिय तेरका. वीजळी (सं.विद्युत् परथी) हार, कतार]; नरका. [सामसामी हार, वीझाई उक्तिर. बुझाई (सं.विध्यातः) कतार], [ते वच्चेनो] मार्ग; हरिख्या. बीझायइ उक्तिर. बुझाय (*सं.विध्यायति) शेरी (सं.) [सं.विमायति] वीयांण सिंहा(शा). पाखंड, कपट, चातुर्य, वीझावइ उक्तिर. बुझावे (*सं.विध्यापयति) पटुता] [सं.विज्ञान]; जुओ विनाण [सं.विमापयति] वीधु जुओ विधओ वीटली विमप्र. वींटी, अंगूठी [सं.वेष्टिका] वीधोगत *कामा(त्रि). कामा(शा). विधि 2010_03 Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४७७ वीनता/वीसहर प्रमाणे; जुओ विधोगत वीर्ण्य चित्तसं. (पुरुषर्नु) वीर्य, शुक्र वीनता चतुचा. मदमो. वनिता वीले दशस्क(१). वले, [दशा] वीनवि, उक्तिर. वीनवq (सं.विज्ञप- वीलो प्रेमाका. छूटो, [बेदरकारीथी रहेवा यितव्यम्) दीधेलो] वीनाणीने नरका. नरप. धंतर-मंतर करीने, वीलोम कस्तुवा. विपरीत, ऊलटी, [वक्रता- . जादु करीने, [युक्ति करीने] (सं. भरी] विज्ञान); जुओ विनाणइ वीवधचार चतुचा. विविध उपाय ? वीने चतुचा. विनय वीवाहइ उक्तिर. परणे, परणावे (सं.विवाहवीभल नंदब. सिंहा(शा). विह्वळ यति) वीभलपणूं कादं (धू). बावरापणूं, [विह्वळ- वीवाहपगरण उक्तिर. विवाहप्रसंग, तेनुं पणुं] ___ मंडाण (सं.विवाहप्रकरण); जुओ पगरण बीभीचार मदमो. व्यभिचार वीवाहलउ ऐतिका. विवाहलो, [चरित्रात्मक वीमाण चतुचा. अपमान (सं.विमान) प्रशस्तिकाव्य]; जुओ विवाहलु वीमासीउ ललिरा. विचार्यु [सं.विमर्शित] वीवीशाळ दशस्कं(२). वेविशाळ वीयखणा आरारा. विचक्षण वीशंभर दशस्कं(१). विश्वंभर, [विश्वनुं वीरमदल हम्मीप्र. वीरमर्दल, युद्ध प्रसंगे पोषण करनार परमात्मा वगाडवानुं मर्दल, मादल, एक प्रकारचें वीषअर मदमो. विषधर वीसउ ऐतिरा. वीसो, [ए नामनी ज्ञाति] वीरवट्ट प्राचीसं. कपाळे पहेरवा- एक वीसमी *गुर्जरा. [विश्राम करीने] [सं. ___ सैनिक वस्त्र (सं.वीरपट्ट) विश्रम्] वीरवलय प्राचीफा. पुरुषना हाथर्नु एक वीस वसा अखाका. प्रेमप. मदमो. संपूर्णघरेणुं, [कडु] (सं.) पणे, सो टका, निश्चे; जुओ वसा, वीराचार *गुर्जरा. [वीरने योग्य आचरण, विश्वा वीसइ वीरत्व, पराक्रम (सं.) वीसवा वीसई *ऋषिरा. [वीस वसा, वीरासे चतुचा. भूलमां निश्चितपणे, खरेखर]; जुओ विसा वीरांसउ जुओ वरासउ विसाही वीरिणि तेरका. एक वनस्पति, खस, वीस विसानुं माणस जुओ विसा वाळो] [सं.वीरण, वीरिण] वीससइ उक्तिर. नलरा. विश्वास करे (सं. वीरुवो कस्तुवा. सिंहा(शा). वरवो, खराब, विश्वसिति) हलको] (सं.विरूप) वीसहर अभिऊ. साप (सं.विषधर) ढोल 2010_03 Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीसास/वूठह ४७८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश बीसास उपबा. विक्रच. विक्ररा. विश्वास बुट्ठि तेरका. वृष्टि बीसासिणि शृंगाम. विश्वासपात्र (स्त्री)] बुट्ठीय गुर्जरा. वरसीने (सं.वृष्ट) बीसासीक शृंगाम. विश्वासु बुठा देवरा. नंदब. मदमो. वेताप. वरस्या बीसातु विमप्र. "वीस; [“वीस जेटलु] (सं.वृष्ट) . बीसिसउं गुर्जरा. विश्वास राखं (सं. बुष्टि प्राचीफा. वरसाद (सं.वृष्टि) विश्वस) बुबुद्धा खु षडाबा. बुडबुड अवाज बीहांणी चंद्रवा. विहोणी, विनानी बुढिया जुओ वुट्टिया , वीडांणी जुओ विहाणी बुटऐ आरारा. वधे छे (सं.वृ५); जुओ बूढुं बीडीवा मदमो. विवाह खुल वसंवि(ब्रा). बकुल, बोरसली वीडीआ, वींछुआ अभिऊ. नरका. प्रेमाका. बुलसरी, बुलसिरी आरारा(व). नलरा. लावल. स्त्रीओनुं पगनी आंगळीओए शृंगाम. बोरसली (सं.बकुलश्री) पहेरवानुं आभूषण (सं.वृश्चिक परथी) बुलइ विमप्र. [वटावे]; *अभिऊ. प्रद्युचु. बीट उक्तिर. दींटु (सं.वृन्त) प्रा.विंट]; पसार थाय दि.वोल्]; जुओ वोलइ जुओ बीट दुलावइ आरारा. कादं (शा). नलरा. वीट उक्तिर. वींटो; जुओ ओही वीट नलाख्या. वळावे, विदाय आपे वीटली लावल.स्त्रीओनुं हाथ उपर पहेरवान बुहरइ नलरा. शीलक. वहोरे, खरीदे [सं. घरेणुं, [वींटीना प्रकार व्यवहरयति] वींटलो दशस्कं(१). स्त्रीओनुं एक घरेणुं दुहरति शृंगामं. वहोरत, लई जq ते, वीद आरारा. वर (रा.); जुओ विंद खरीदी • वींधणां प्रेमाका. वींध - काणं पाडवानं दुहरउ उक्तिर. धीरधार करनार, वहोरो एक ओजार (सं.व्यवहर्ता) [रा.] बुछ ऐतिका. वाद्य-विशेष; जुओ बुक्क वुहारी षडाबा. झाडु, सावरणी (*सं. बुजोय (आउखुजोय) जिनरा. [आतप, व्यवहारिन्) दे.वोहार-]; जुओ बुहारइ नामकर्मनो एक प्रकार, जेना उदयथी हु(?) तेरका. बहु ?, [*वहेता] [रा.दुह जीव पोते ठंडो होवा छतां सामाने बुंढा * नरप(द). [वध्या, वह्या, चाल्या]; प्रकाश अने गरमी आपे तथा] उद्योत, जुओ बूढुं [नामकर्मनो एक प्रकार, जेना उदयथी वुण सिंहा(शा). वण, [कपास दि.बउणी]; जीवनुं शरीर शीतल प्रकाश आपे] जुओ वण, व्यूणा [जै.]; जुओ उज्जय वूठ जुओ अमिय वूठ . बुट्टिया (? बुढिया) शृंगाम. वृद्धि पाम्या यूठइ अंगवि. आरारा. उक्तिर. उषाह. 2010_03 Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन मुजराती शब्दकोश ४७९ कू विवयु ऋषिरा. चारफा. नरका. नेमिछं. प्रधुचु. वृष *आनंस्त. [धर्म] [सं.] प्राचीसं. शृंगाम. षडाबा. वरसे (सं.वृष्ट वृन्दारक ऐतिका. देवता [सं.] - परथी); जुओ बूठा कृषभान-तनया, वृषभानुतनया अखाका. चूद्धं नरका. विमप्र. वध्यु, वा चाल्थु (सं. नरका. वृषभानु राजानी पुत्री, राधा वृध); जुओ वुढऐ, बूढ वह नंदब. सिंहा(शा). विरह बूसट उक्तिर. बूसट, तमाचो वृहाड गुर्जरा. विराप. बृहन्नला, विराटने बूहरीइ अभिऊ. व्यवहार करीए (सं.व्यवह) त्यां रहेल अर्जुननुं नाम [सं.] चूहा जिनरा. वह्या, [उपाड्या, कर्या हंव अंबरा. बृहन्नला, नपुंसक वृक *प्रेमाका. [वरु] [सं.] वृंदल प्रेमाका. नपुंसक, व्यंढळ वृख जुओ वर्ख वृंदा नरका-२. तुलसी (वनस्पति) [सं.] वृख्य आरारा. वृक्ष वृंदारवाटिका प्रेमप. तुलसीनी वाडी [सं.] वृतंतू गुर्जरा. वृत्तांत वे अखाका. ते, तेओ कृत चंद्रवा. व्रत; [वरत, कोयडो] वे चतुचा. प्राचीका. प्रेमप. वय, उंमर; वृत्तिइं उपजा. नी जेम जुओ लघु-वे वृत्तिसंखेप आरारा. वृत्तिसंक्षेप, बाह्य तपनो वे आरारा. वचन, वाणी (सं.वचस्) एक प्रकार, खावू-पीयूँ वगेरे भोग ओछा वेअण नेमिछं. वेदना करता जवा ते [जै.] वेइ षडाबा. अनुभवे, भोगवे; ऋषिरा. वृत्त्य, वृत्य अखाका. अखेगी. चित्तसं. शृंगामं. जाणे (सं.वेद) , सिंहा(शा). वृत्ति, [मनोवृत्ति, चित्त- बेउल उक्तिर. गुर्जरा. चारफा. वसंफा. वृत्ति]; अखेगी. वृत्ति, व्यवहार]; वसंफाल). वसंवि(ब्रा). हरिवि. प्रेमाका. वृत्ति, आजीविका विचकिल लता; जुओ बेउल वृथा (प्रथा) सिंहा(शा). व्यथा वेउब्बिय ऐतिका. विकुर्वना करी, [दिव्य वृद्धतह कादं (शा). घडपणनो (सं.वृद्धत्व) सामर्थ्यथी उत्पन्न करी]; जुओ विकुर्वई वृद्धि शांतिक नरका. कुळनी वृद्धि अने बेकार प्रद्युचु. संगीतकार, [गायक]; जुओ शांति माटे करवामां आवतो धार्मिक ख्यकारु विधि देख दशस्क(१). वेष; अखाछ. मदमो. वेष, वृद्धि-श्राद्ध प्रेमाका. [पुत्रजन्म जेवा मंगळ भेख; हरिवि. वेष, [रूप]; जुओ विख प्रसंगे] कुळनी वृद्धि माटे करवामां देखयुं प्रेमाका. ["चमत्कारिक शक्तिथी आवतुं श्राद्ध [सं.] रूपरिवर्तन कयु, विस्तृत कर्यु; जुओ वृष चंद्रवा. वृद्धि विकुर्वई 2010_03 Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेखास/वेढि ___४८० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वेखास जुओ बेखास, विखास वेझ उक्तिर. "तेरका. *प्राचीसं. [बाण-] वेगउ उक्तिर. वीसरा. जलदी (सं.वेग) निशान, (सं.वेध्य) . वेगड ऐतिका. एक बिरुद अने [जैन वेझा अखेगी. वेद्य, ज्ञेय साधुसमुदायतुं] नाम वेद्यं अखाछ. विमप्र. बाण- निशान [सं. वेगड उक्तिर. सीधा, खुल्ला, मोटा शिंगडा- वेध्य] वाळो बळद, उत्तम प्रकारनो बळद (सं. वेठि उक्तिर. वेठ, फरजियात सेवा (सं. विकट परथी) विष्टि); "जिनरा. निरर्थक श्रम]; वेगडि, वेगडी उक्तिर. सीधा, खल्ला, मोटा शीलक. वैतरूं, [सेवा] शिंगडावाळी गाय, उत्तम प्रकारनी गाय वेडस आरारा (व). तेरका. वेतस, पाणीमां (सं.विकट परथी) थतो नेतरना प्रकारनो छोड (प्रा.) वेगडो ऐतिरा. बेगडो वेडांग, वेडांगण कस्तुवा. मदमो. वेताप. वेगलउ उक्तिर. जलदी; *जिनरा. [दूर] घोडो; वेताप. [घोडा जेवो] प्रचंड वेगलाथा शृंगामं. दूरथी, [वेगळां - दूर वेडि आरारा. “वीडी, "बीड, “घासवाळी __ होईने, दूर छतां जमीन, [वगडो]; *उपबा. गुर्जरा. वेगा मदमो. वहेलां, [जलदी] "नेमिछं. "विराप. वन, रान [रा.] वेगि थइ आरारा. जलदीथी वेडि वीसरा. बेडी वेगी हुइ आरारा. जलदी करो वेडू धान विमप्र. पोतानी मेळे ऊगेलां वेगुलइ आरारा. वेगळे, दर: चारफा. अनाज, [वगडाउ अनाज] वेगपूर्वक, [जलदीथी] वेडे अखाका. प्रेमाका. तोडे, नीचे पाडे वेगै प्राचीफा. घत आदि विकारजनक वस्तु वेढ अभिऊ. "ऐतिका. जिनरा. आंगळीए (सं.विकृति) (जै.); जुओ विगइ पहेरवानी एक प्रकारनी मोटी वीटी वेचइ नलरा. प्राचीसं. षडाबा. षष्टिप्र. (सं.वेष्टित परथी) ___ व्यय करे, [वापरे, खर्चे] (प्रा.वेच्च) वेढ षडाबा. पाश, बंधन (सं.वेष्ट) वेचायूं मदमो. वेताप. सिंहा(शा). वेचातुं, वेढला विमप्र. कान, घरेणुं [वेचाणथी, खरीदीने] वेढq कृष्णबा. घेर, [सं.वेष्ट] *वेचालिक वितालिक] सिंहा(म). बंदिजन, वेढालगु विमप्र. लडवा सज्ज थयेल, [युद्ध [कीर्तिगान करनार (सं.वैतालिक) प्रिय] वेचिq उक्तिर. वेचवू दि.वेच्च] वेढाली ऋषिरा. कजियाखोर वेज अखाका. "तेरका. *प्राचीसं. (बाणन) वेढि अंबरा. "उषाह. जिनरा. "ललिरा. निशान (सं.वेध्य) विमप्र. युद्ध, लडाई; लडवाड, [झघडो] 2010_03 Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वेढि षडाबा. वींटी वळ्यो, घेरो घाल्यो (सं. वेष्टितः) वेढिमी उक्तिर. वेढमी, पूरणपोळी (सं. वेष्टिमा ) वेण * अखाका. नरका-२. वचन, [वाणी] वेण नरका. प्रेमाका. वेणु, वांसळी के ऐने तुं वाद्य वेण नरका. नरप. नैमिछं. वेणी, [चोटलो] वेण-वासिक प्रेमाका. वासुकि नागना जेवी वेणी, [ चोटलो] वेणा कामा (शा). चंद्रवा दशस्कं ( १ ). दशस्कं (२). "नरप (द). लावल. वीणा वेणि ऋषिरा. *वचन वडे, [* वेणी चोटलाथी ] ४८१ - वेणि, वेणी आरारा. तेरका. लावल. वसंफा (ल). वसंवि (ब्रा). चोटलो (सं.) वेणि, वेणी उषाह. लावल. वीणा वेणी नरका-२. वचनवाळी वेणीदंड आरारा. विक्रच. चोटलो (सं.) वेणु दशस्कं ( २ ). प्रेमाका. पावो, वांसळी 2010_03 वेढिउ / वेपार वेदना, पीडा वेदनी आनंस्त. वेदनीय (कर्म), जे कर्म आत्माने सुख-दुःख आपे ते [जै. ]; कादं (शा). वेदनायुक्त, दुःखी वेदवाणी नरका. प्रेमाका. नक्की, चोक्कस वेद-वायक नरका. प्रेमाका. वेदवाक्य, नक्की, चोक्कस हकीकत वेदविटंड अखेगी. वेदनी वितंडा करनारो, [वेदनी ब्रह्मविद्यानुं अणसमजभर्यु खंडन करनार ] वेद्यज्ञान आनंस्त. विषयनुं ज्ञान [ सं . ] वेध अंबरा. *गुर्जरा. नलरा. शृंगामं. आकर्षण, [आसक्ति], मर्म, रस; जुओ सवेध, सुवेध du गुर्जरा. छिद्र, [ जखम] (सं.वेध) वेध (विघउ) वसंफा. वसंवि (ब्रा). चतुर, विदग्धः वींधायेलो वेधक * ऐतिरा. [विदग्ध, चतुर] वेधवं कृष्णबा. [वींध, घायल करवुं ], व्याकुळ करवुं [सं. वेधित ] [सं.] वेत जिनरा. [ बेत], विधान, [ योजना ] वेद जुओ मधुकर वेद, रसवेद वेद, ब्येद अखाछ. कादं (शा). चतुचा चंद्रवा चित्तसं. मदमो. सिंहा (शा). हखिया निश्चित, नक्की, खरेखर, [निश्चित वात, खरी बात] (सं.); * अखाका. [ वेदशास्त्र] वेदमणि चारफा. वेदमंत्रनो ध्वनि ( सं . वेद- वेध्या नलाख्या. ब्रह्मा (सं.वेधा) ध्वनि) वेपथ हरिवि. वेपथु, ध्रुजारी वेदन गुर्जरा. नलाख्या. लावल. वीसरा. बेपार प्रेमाका. व्यापार, प्रवृत्ति वेद्या कादं (शा). ब्रह्मा, प्रजापति (सं.) वेधां प्रेमप. वींधायेलां, [अनुरागवश थलां] [सं. वेधित] वेधीय प्राचीफा. [विदग्ध], रसिक, संस्कारी वेधीला नरका. वींधायेलां [ सं . वेधित ] वेध्यउं अखेगी. ऋषिरा. वींधायेलुं; प्राचीफा. प्रेमासक्त [ सं . वेधित ] Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्य) बेमानवशाखिका ४८२ मध्यकालीन मुजराती शबकोश बेमान दशक(१). विमान वेला गाते चतुचा. वेळा गाळे, समय पसार देव (इच्छेवेय) [इत्विवेय] जिनरा. वेद, करे । [स्त्रीवेद, मोहनीय कर्मनो एक प्रकार, वेळा पडी प्रेमाका. मुश्केली आवी; जुओ जेना उदयथी स्त्रीने पुरुष साथे मैयुननी वेला इच्छा थाय छे] [जै.]; जुओ इच्छेवेय बेलि आरारा(व). विचकिल (प्रा.वेइल)?; वेयइ उक्तिर. जाणे (सं.वेदय) निद्राप्रेरक लता दि.वेली)? वेयण जिनरा. वेदन, वेदनीय कर्म; गुर्जरा. बेलियां नरका. प्रेमाका. हाथनी आंगळीए वेदना पहेरवानां एक जातनां आभूषण वेवल तेरका. एक वनस्पति, विचकिल बेलु, वेलू उक्तिर. ऋषिरा. प्रेमाका. रेती । (प्रा.वेइल) (सं.वालुका) वेयावच आरारा. सेवा, शुश्रूषा (सं.वैया- वेल्यो लावल. वेल, वेलीओ देवलां 'अखाका. विव नामनी वेलनां वेयाक्यसार ऐतिका. [उत्तम] सेवा डाळखां, पांदडां] वेयुं अखाका. जाण्यु (सं.विद्) देवलां वीणवां प्रेमाका. फांफां के वलखां बेर जुओ वसुधा दे वेहेर मारवां बेरा उक्तिर. वीरडो, नानो कूवो (सं. क्व सानो को देवा प्रेमाका. विवाह . वाहिणि आरारा. वेवाण वेरागर "अखाका. नरका. प्राचीका. एक वेवाहिय गुर्जरा. वेवाई; [संबंधी] (सं. __ प्रकारचें रत्न, [हीरो] (सं.वज्र+आकर) वैवाहिक) वेरीनइ आरारा. वलोवीने वेवाही जिनरा. सगांसंबंधी (सं.वैवाहिक) वेरो अखाका. [वहेरो], भेद, द्वैत] वेविरु षडाबा. धूजतुं माणस (सं.वेपित) वेल. बेळ अखाका. वेळा. समय: नरका. वे अखाका. वेदवू, जाणवू (सं.विद्) भरती [सं.वेला); "प्रेमाका. [लहेर] वेश जुओ गोगवेश (वायुनी) वेश, वेस मदमो. वेताप. वय (सं.वयस); बेला "नलरा. [संकट, आपत्ति] (सं.); जुओ वेष जुओ वेळा पडी वेशवाळ प्रेमाका. सगपण बेला ("नेवेला) अखाछ. कोई मादक वेशंती नरका. नरप. वेश्या, गणिका पदार्थ ?, [*कोई रोग, *आपत्ति] वेशा विक्ररा. वेश्या वेलाकूल विला कूलेरा) "नलरा. [काकडीना वेशाखिका विशाषिका) ऐतिका. वैशेषिक . . वेला] [सं.वेल्ली+कुलीरा] दर्शन[वाळा] बेरा उक्तिर, दवियरय; रागा. एक बेवाडियाहक) 2010_03 Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश देशि जुओ वेसा "वेशोक (वा शोक) * चंद्रवा. [अथवा शोक] वेष आरारा. उमर, युवानी (रा.) (सं. वयस्); जुओ वेश ૪૮૩ बेस तेरका. प्राचीफा. विक्ररा. वेश्या, देहेपार मदमो. वेपार गणिका; जुओ वेसा बेस वीसरा. वेश, रूप (सं.वेष) बेस आरारा. चतुचा. "वीसरा. सिंहा (शा). वय, उंमर (सं.वयस्); जुओ बालीवेस, वेश वेशि/बैरोट वेही करी गुर्जरा. वींधी ("सं. विध्यति) [सं. वेधित ] बेहेर चित्तसं. जुदापणुं *नंदब. [ चिराड, मार्ग ]; जुओ वसुधा दे वहेर, वहेर बेहेरी मदमो. वेरी, [दुश्मन ] बेहेरे प्रेमाका. वेरे, साधे, [साथेना प्रसंगे] बेहेरेशे चतुचा. वहेरी नाखशे बेसर दशस्कं ( 9). प्रेमाका. नाकनी वाळी, बेहेरो प्राचीका. प्रेमाका. भेद, तफावत केवल कामा (शा). विह्नळ वैखरी अखेगी. प्रेमाका. वाणी; कादं (शा). मानव - वाणी (सं.) dare आरारा. जिनरा. वीसरा विश्वास सासी षडाबा. विश्वास आपी, विश्वासमां लई (सं. विश्वसयति) वह अखाका. प्रेमाका. वींध, छिद्र (सं. वेध) वेहणउ उक्तिर. वींधवानुं ओजार, सोयो (सं.वेधनकम् ) बेहेणु नरका. वहाणुं, प्रभात [सं. विभानक ] बेहेनी कामा (शा). अग्नि [सं. वहि] नथ बेसर, बेसरु अंगवि. उक्तिर. शृंगामं षडाबा. खच्चर (सं.); जुओ वेसह बेसा, वेस, बेशि गुर्जरा. तेरका वेश्या बेसबार उक्तिर. राई, जीरुं वगेरेनां चूर्ण मेळवीने करवामां आवेलो गरम मसालो (सं.) वैगुन्य चित्तसं. गुण वगरनी स्थिति, निर्गुण स्थिति [सं. वैगुण्य] वैताडि अंबरा. वैताढ्य पर्वत उपर बैताल, बैताल पंचवा. [ वेताळ ], वेताली सिद्धिनो जाणकार, [मडदामां प्रवेश करवानी सिद्धि धरावनार एक भूतयोनि ] * बेसह [ "बेसर ] * उषाह. [ खच्चर ] (सं. वृषभ) बेसावाडउ उक्तिर. वेश्यावाडो (सं. वेश्या- वैदर्भी दशस्कं (२). वैदर्भी, रुक्मिणी पाटकः) वैदूर्य नरका - २. नील रंगनुं एक रत्न [सं.] वैदेसिक आरारा. परदेशी (सं. वैदेशिक) वैद्य-बइद (वैद्य विद) विमप्र. वैद्यविद्यावाळा, [वैद्य अने विद्वान ] वेहलि ऐतिका. [वहेली ], शीघ्र हांणी चित्तसं. वीती गई; जुओ विहाणी 2010_03 वैद्रभादेश दशस्कं (२). विदर्भ देश वैद्रभी दशस्कं (२). वैदर्भी, रुक्मिणी वैनतेय शृंगामं. गरुड (सं. वैनतेय) वैरोट नलरा. एक देश ज्यां नलराजाए विजय कर्यो हतो, वैराट Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैसंया/व्यंस ४८४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वैसंया नलाख्या. वैशंपायन ऋषि, महा- व्यक्तइं आनंस्त. व्यक्त थाय भारतना वक्ता व्यक्तउं उपबा. स्पष्ट, समजावीने बैंस प्राचीका. वंश, [कुळ] व्यक्तभेद चित्तसं. व्यक्त सृष्टिना भेद वोरण देवरा. वहोरवू ते, भिक्षा लेवी ते व्यगति अखाछ. [भिन्नत्व, जुदाजुदापणुं]; [सं.व्यवहरू] जुओ विगत्य वोरावे देवरा. वहोरावे, [भिक्षा आपे] व्यगतुं अखाका. व्यक्त, स्पष्ट वोरी देवरा. वहोरी, [भिक्षा लई] [सं.व्यवह] व्यगतो जुओ वगूतो बोलइ, बोळइ षडाबा. पसार करे, व्यतीत व्यजन *प्रेमाका. [(वायु) ढोळवो ते] करे दि.]; रूपच. वीते, [व्यतीत थाय]; व्यत अखाछ. वित्त, धन, माल, [सार] अखाका. वटावे, ओळंगे; *कस्तुवा. व्यत्त चित्तसं. वित्त, सार, साररूप तत्त्व [(रस्तो) वटावे]; जुओ वुलइ ध्यध्य चित्तसं. विधि, प्रकार बोलाव्वु, वोळावयूँ दशस्क(१). नरका. व्यपरीत मदमो. विपरीत प्रेमाका. मदमो. हरिख्या. वळाववू, व्यर्त्य चित्तसं. वृत्ति, वर्तन, स्थिति, व्यवहार विदाय आपवी व्यवसाइया विमप्र. धंधादारी माणसो, वोळावा अखाका. मुसाफरीमा साथे रहेता वेपारी [सं.व्यवसायिक] चोकियात व्यवहारि सिंहा(म). वेपारी (सं.व्यवहारिन्) बोळाविया अखाका. वोळावा, प्रवासमा व्यवहारीउ आरारा. नलरा. लावल. विमप्र. साथे जई रक्षण करनार वेपारी (सं.व्यावहारिक) वोळावी अखाका. वोळावा, मुसाफरीमां व्यवेक जुओ वव्येक साथे रहेता चोकियात व्यवहारा पंचवा. वेपारी (सं.व्यवहारकः) वोळे आवे अखाका. ठेकाणे आवे, बराबर व्यसनि लावल. व्यसन[मां], [आपत्तिमा समजाय, [पार पडे] व्यसा चित्तसं. वसा, [अंश], टका; जुओ वोहोणुं दशस्कं(१). विहोणुं, विनानुं वसा सोइ वोहोरतिया अखाछ. वहोरनार, [खरीदनार] व्यह परि व्यह परि] उक्तिर. बेय रीते बोहोरती प्रेमाका. वहोरतियो, वहोरवा- [सं.द्वि+खलु+प्रकार] (खरीदवान) काम करनार [सं.व्यवह] व्यंजन करे नरका. पवन नाखे, [वायु वोहोरावें देवरा. वहोरावे, [भिक्षा आपे] ढोळे] बौढाउर नलरा. एक नगर ज्यां नलराजाए व्यंढूं नलाख्या. वंठ्युं, बगड्युं (सं.विनष्ट) विजय को हतो ___व्यंण मदमो. विना व्यक्त चित्तसं. व्यक्ति, प्रगटीकरण व्यंस हम्मीप्र. वंश ____ 2010_03 Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४८५ व्या-/ब्रह व्या- (व्याव-) वीसरा. वियाय, जन्म आपे व्यास विक्ररा. कथाकार [सं.] (सं.विजायते) व्यासणउ [व्यासणउ] उक्तिर. बेसणुं, बे व्याइ शृंगामं. प्रसूताने वखत आसने बेसी जमवानुं व्रत (सं. व्याऊ उक्तिर. वाउ, चामडीमां फाट पडवी द्वयासनकम्) ते, वाढिया (सं.विपादिका) व्याह वीसरा. विवाह, लग्न व्याख्यान चित्तसं. वर्णन, कोई विषय- व्याहणउ गुर्जरा. वहाणुं, सवार (सं. विस्तारथी करेलु प्रतिपादन [सं.] विमानकम्) *व्याघ ["व्याध] मदमो. ढेड; जुओ व्याध, यिंतर ललिरा. व्यंतर, भूत व्याधी व्युतरे प्राचीका. ऊतरे (सं.व्युत्तरति) व्याध अखाका. प्रेमाका. व्याधि, पीडा व्युत्सृजउ षडाबा. छोडु, विसर्जु (सं.व्युत्सृज्) व्याध प्रेमाका. शिकारी; जुओ व्याघ व्यूणा चंद्रवा. कपास [द.वउणी]; जुओ व्याधी प्रेमाका. व्याध, पारधी gण व्याध्य अखाका. व्याधि व्येद जुओ वेद व्याध्यू *कादं(शा). वध्यु, [गाईं थयुं] व्येष जुओ वरव्येष (सं.वर्धितम्) व्रख कामा(शा). वृक्ष; जुओ वरख, वर्ख व्याध्यं * कादं(शा). [भेद्यं] [सं.व्याधित] व्रखा मदमो. वर्षा व्याप ऐतिरा. फेलावो [सं.] वखारत प्राचीका. वर्षाऋतु, जुओ ब्रखारते. व्यापति गुर्जरा. व्यापार, व्यवसाय, कर्म, व्रज आरारा. समुदाय (सं.) प्रवृत्ति] [सं.व्यापृति] . व्रणव- सिंहा(म). वर्णव, व्यापार आरारा. लावल. कामकाज, प्रवृत्ति, व्रत मदमो. *नक्की, [*स्थिति, "होवू ते] ___ कामगीरी; विमप्र. वेपार (सं.) व्रत्युं *दशस्क(२). [आजीविका] [सं. व्यापारी कांद(शा). विमप्र. वेपारी (सं.) वृत्ति व्यापारण षडाबा. वापरतुं ते (सं.) वथ मदमो. वृथा व्याप्तमान दशस्क(१). व्याप्त व्रथा जुओ वृथा व्यारीउ उक्तिर. छेतर्यो (सं.विप्रतारितः) वध अखाछ. मदमो. वृद्धि, वधारो व्याळ दशस्क(१). प्रेमाका. सर्प [सं.व्याल] बध प्रेमाका. वृद्ध, [वडील, मोटेरो] व्यालउ प्राचीफा. प्राचीसं. सांज- भोजन, आधा चंद्रवा. वृद्ध । . वाळु (सं.विकालिक) व्रय- प्राचीसं. वापर, खर्चq (सं.व्यय) व्याव- जुओ व्या ब्रह नंदब. प्राचीफा. सिंह(शा). विरह, व्यावर जिनरा. प्रसूति [रा.] वियोग 2010_03 मध्य ३१ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रहेणी / शबरली ब्रहेणी मदमो. विरहिणी ब्रहेनी चतुचा. विरहनी ब्राध अखाका. अखाछ. व्याधि वासिउ नलरा. अयोग्य मार्गे गयो, [भूल करी, खोटुं कर्तुं [सं. विपर्यास परथी ]; जुओ वरासइ, ब्रांसियउ ४८६ अखाका. अखेगी. कामा (त्रि). कामा (शा). नरका. प्रेमाका. विरह व्रासु, ब्रांसु अंगवि. कृष्णबा. *नलाख्या. शनि प्राचीका. उतावळे (सं. शीघ्र ) भ्रम, [भूल] मदमो. सज ब्रांसियउ प्राचीसं. विश्वस्त ?, [* भ्रान्ति करी, * गुमाव्j]; जुओ वरासइ, ब्रासिउ व्रांसु जुओ वासु ब्रिष्टय चित्तसं. वृष्टि ब्रेह शकदार ऐतिरा. * हुकमदार, [* शक्कादार, *रूआबदार, "प्रभावशाळी] [अ. सिक्कः ] शकट अखाका. आनंस्त. नरका. प्रेमाका. गाडु, गालुं [सं.] शकल कादं (शा). टुकडो (सं.) शकार मदमो. शिकार मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शके दशस्कं (१). दशस्कं (२). प्रेमाका. जाणे के; मदमो. संभव छे के; नलाख्या. जाणे के, [संभव छे के] शक्त नरका. सशक्त, बळवान, [सक्षम, धनाढ्य ] [सं.] 2010_03 शक्ति प्रेमाका. एक शस्त्र शक्र नरका. इन्द्र [सं.] शग उषाह. दीवानी ज्योत (सं. शिखा ); नरका. प्रेमाका. शंकु आकारनो ढगलो शगत्य, सगत सिंहा (शा). शक्ति [देवी रूपे] ब्रेहुणी अखाका. विरहिणी ब्रेहे कामा (त्रि). चित्तसं. प्रेमप. मदमी. शत्रुकार, शत्रूकार अखाछ. ऐतिरा. नलरा. विरह ब्रेहेणी मदमो. विरहिणी प्राचीफा. रूपच. विक्ररा. सदाव्रत, अन्नदानशाला (प्रा.सत्तुक+सं. अगार); जुओ सकार शज्या आरारा. शय्या, सेज शणगट नरका. घूमटो शणगार चतुचा. शृंगार [रस ]; नलाख्या. शृंगार, शोभा शतफणा प्रेमाका. सो फेणवाळो नाग [ सं . ] शत्र सिंहा (म). दुश्मन (सं. शत्रु); जुओ शत्रो शत्रो, शत्र गुर्जरा. शत्रु शथल नलरा. मदमो. शिथिल, ढीलुं शधे ( मानेश धे) अखाछ. [ध्येयरूप मानीश ] * शनि कादं (शा). धीमे (सं. शनैः ) शनिशनि, शनीशनी वेताप. सिंहा (शा). धीमे धीमे (सं. शनैः शनैः ) शपइ उक्तिर. शाप आपे (सं. शपते) शपरांणू नरप ( द ). जबरुं, [जोरावर ] [सं. सप्राण]; जुओ सपराणउ शबरली शृंगामं. शबरी, भीलडी Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शबल, शबलुं कामा (शा). अत्यंत शबल स्वभाव सम्यचो. मिश्र स्वभाव शबला नलाख्या. *शंबल, * भातुं, * अन्न (सं. शम्बल), [ खूब प्रचुर] [सं.] शबिका नलाख्या. पालखी (सं. शिबिका) शब्द चित्तसं. संज्ञा, नाम शब्दनी वृत्य चित्तसं. शब्दनी वृत्ति ४८७ शब्दे मारे चित्तसं. उपदेशवचन संभळावे शमशाननी अधिकारिणी हरिख्या. शमशानमां सूळीनी सजाने लायक, [मृत्युदंडने पात्र ] शयर विमप्र. शरीर; जुओ सयर शर चतुचा. वसंफा. शिर शरकड उक्तिर. शर नामना घासनी सळी, बाना तीर तरीके वपराती (सं. शर: शरिखूं नलाख्या. सरखुं, जेवुं (सं. व्यापार सदृक्षकम् ) शब्दप्रकाश चित्तसं. शब्द - ध्वनि प्रकाशित शरीख कादं (शा). शिरीषनुं फूल थवो ते, उत्पन्न थवो ते - शरडी नरका. काचिंडा [नी मादा] जेवी - जुदाजुदा रंग बदलती (सं. शरटी) शरत, शरति प्राचीका. * मदमो. संगीतनी एक संज्ञा, [श्रुति]; जुओ शुरतकार, सरत शरपाव नरप ( द ). [ सरपाव], माथाथी पग सुधीनो पोषाक ( फा. सरोपा ) शरवन कादं (शा). शर नामनी वनस्पति जेमां फूल आवे, फळ न आवे - तेनुं 2010_03 वन (सं.) शरशति विमप्र सरस्वती शरा * दशस्कं ( २ ). [ बाण ]; जुओ सरा शराडुं चित्तसं. अंत, छेडो; जुओ सरुं शरासन प्रेमाका. शर तीरनुं आसन, धनुष [सं.] शबल / शलाय - सरमु काण्डः ) शर्म नरका. शरम, लज्जा [फा.] शरखंड प्राचीफा. साडी माटेनुं एक कीमती शर्म आरारा. सुख, आनंद (सं.); जुओ स वस्त्र (सं. श्रीखण्ड) शरुया नंदब. [ सरवा], मोटेथी बोलायला, [खुल्ला ] शरे (शरे वाते) "मदमो. [चोखखी, खरी (वाते)] [फा. सरह ] शर्त अखाका. शरत, करार, [ ठराव] [फा.] शर्णागत जनुं चंद्रवा . शरणे जयुं, शरणागत थवुं शर्म नलाख्या. प्रेमाका. श्रम, प्रयत्न; जुओ शम्मी * नेमिछं. [ व्यायाम करी, वापरी] [सं. श्रम]; जुओ सरमइ शर्युं (शर्युं घृत) दशस्कं (१). प्रेमाका. ताजगीनी सुगंधवाळु [घी] शर्वरी अखाका. नरका. रात्रि [सं.] शला अखाछ. शिला शलाटु उक्तिर. सलाट, शिला घडनारो (सं. शिलाघटकः); जुओ सिलावटउ शलाय नरका. *नरप. शिला, पथ्थरनी Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शली/शाश ४८८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पाट, [*अचळ] शंभ, शंभु अखाका. अखाछ. चित्तसं. शली प्राचीका. एक प्रकारनो साल्लो (द. कल्याणकारी [अवस्था], ब्रह्म [सं.शंभु] छल्ली ) शवछर कामा(शा). संवत्सर, [वर्ष] शल्य नरका. शल्या, शिला, मोटो पथ्थर शंवरामंडप मदमो. स्वयंवरमंडप शल्या अखाका. दशस्क(१). प्रेमाका. शंहीआर प्राचीका. संहार शिला, मोटो पथ्थर शाकट *अखाछ. [अज्ञानी, अवळे मार्गे शव विक्ररा. शिवना [सं.शैव] गयेला, दुर्जन] [सं.शाक्त] शव उषाह. महादेव (सं.शिव) शाकिनी अखाका. एक प्रकारचें स्त्रीप्रेत, शवरी हरिख्या. कोळण [सं.शबरी] [डाकण] शशक प्रेमाका. ससतुं [सं.] शाखामृग प्रेमाका. वांदरा [सं.] शशि गुर्जरा. ससलु (सं.शश) शात पमाड्या *प्रेमाका. [नाश पमाड्या] शशिवयणी आरारा. चंद्रवदनी [सं.शात] शशिहर, शसिहर नेमिछं. प्रबोप्र. विमप्र. शाध्यंणी मदमो. संगिनी हरिवि. शशियर, चंद्र (सं.शशधर) शान उषाह. सान, समजण (सं.संज्ञा) शशीहर कृष्णबा. शशधर, चंद्र शापिणी कादं(घ). शापित बनावती शहियल *नरप. [*शैल, *पर्वत]; जुओ शा भणी चतुचा. शाने लीधे, शा माटे सैयल शाम नलाख्या. काळु (सं.श्याम) शहीलंकी कामा(शा). सिंहना जेवा केडना शामी जुओ शांम वळांकवाळा; जुओ लंक शायन प्रबोप्र. पथारी (सं.शयन) शंकरी कादं(शा). कल्याण करनारी (सं.) शारद अखाका. नरका. शारदा, सरस्वती शंकवू नरका. शंका करवी, [गभरावू, लज्जित थQ]; वसंफा. वसंवि. शार्दूल प्रेमाका. वाघ [सं.] *वसंवि(ब्रा). संशय करवो. धारवं. *शाल गुर्जरा. शियाळ (सं.शगाल) नो भय राखवो] (सं.शंक्यते); जुओ शाळ प्रेमाका. चोखा [सं.शालि] संकइ शालक लावल. साळा, पत्नीना भाई शंकेप प्राचीका. संक्षेप [सं.श्यालक] शंखधूनी प्रेमाका. शंखनो ध्वनि शालि लावल. चोखा, [डांगर] [सं.] शंघ प्रबोप्र. सिंह; जुओ शिंघ शावट चंद्रवा. शहावट, शराफीवृत्ति शंपत्य मदमो. संपत्ति शाश (शाश काढे) मदमो. श्वास [काढे], शंबल नलरा. भातुं [सं.] [बोले] 2010_03 Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४८९ शासना धरे शिशुकुमारचक्र शासना घरे चित्तसं. आश्वासन आपे, शिखि, शिखी नलाख्या. शृंगाम. मोर प्रोत्साहन आपे, प्रवृत्त थाय ? (सं.शिखिन्) शाह *अखाका. अखाछ. [शाहुकार], शिणगार वसंवि(ब्रा). शणगार, आभूषण प्रामाणिक माणस; जुओ साह (सं.शृंगार) शाहानि कादं(शा). नलाख्या. शा माटे शित्र प्रबोप्र. दुश्मन (सं.शत्रु) शाहानो प्रेमाका. शानो शिथळ दशस्कं(१). दशस्क(२). नरका. शाहास्त्र मदमो. शास्त्र प्रेमाका. शिथिल, ढीली, विखरायेली शाहि नलाख्या. साहे, पकडे (सं.साहयति) शिथिल (गलशिथिल) नरप. [गल स्थल, शांझी वेळा नरका. सांज - संध्या वखते [गाल] शांणा * नेमिछं. [अनाजनी कोठीमांथी शिय्या नलरा. पथारी (सं.शय्या) ___ अनाज काढवान छिद्र] [रा.] शिर गुर्जरा. विराप. शर, तीर शांत प्रेमाका. संपूर्ण शीत, मृत्युने वश . शिर नामीनई आनंस्त. मस्तक नमावीने शांतिक-पुष्टि प्रेमाका. ग्रहादिक- अमंगल शिरावq नरका. सवारमा नास्तो के भोजन दूर करवा तथा धनदोलतनी वृद्धि कर, अर्थे] करवामां आवतो धार्मिक विधि शिरिह कमं. सरे, [पार पडे] (सं.स शांत्य चित्तसं. शांति उपरथी) शांत्यमा चित्तसं. शांतपणुं शिरीसु विमप्र. साथे; जुओ सरिस शांत्यो प्राचीका. संताड्यो शिरूम उषाह. [धारा] [सं.शिरा]; जुओ शांम, शामी, सांमी कामा(शा). स्वामी, शिहिर, सीर [पति] शिलाका ऋषिरा. सळियो (सं.शलाका) शांमद मदमो. सामंत, वीर, सुभट; जुओ शिलावट विमप्र. सलाट, [पथ्थर घडनार]; सांमद जुओ सिलावटउ शांमा ऋषिरा. सुंदर स्त्री (सं.श्यामा) शिवरति वसंफा. वसंवि(ब्रा). शिवरात्रि शांशो मदमो. संशय; जुओ सांसो शिवरमणी ऋषिरा- मुक्तिरूपी रमणी (सं.) शिक्षा चंद्रवा. शिखामण [सं.] शिवा विक्रच. शियाळवी [सं.] शिक्षापण दशस्कं(१). शिखामण शिषर अंबरा. सुषिर, पोलुं - फूंकथी शिक्षारूपपणे आनंस्त. उपदेशरूपे वगाडवानुं वाजिंत्र शिख नरका. शिखामण [सं.शिक्षा] शिशुकुमारचक्र *अखाका. [मगरना प्रकारशिख हरिख्या. माथानी टोच (सं.शिखा) ना शिशुकुमार नामना प्राणीना आकारशिखंड प्रेमाका. मोर नक्षत्रमंडार] [सं.] 2010_03 Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्य पाहि/शुरतकार ४९० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वडे शिष्य पाहिं उक्तिर. शिष्य पासे, शिष्य शीधु कादं(शा). मदिरा (सं.सीधु) शीप्ये चित्तसं. छीप शिहिनि नलाख्या. सहेजमां (सं.सह्य, प्रा. शीम नलाख्या. सीमा, हद सहिज) शीमलि कादं(शा). शीमळानुं वृक्ष, मोटो शिहिर *अखाका. [सेर, सरवाणी, स्रोत]; रूखड़ो (सं.शाल्मलि) जुओ शिरूअ शीमाढा कादं (शा). सीमा परना खंडिया शिंगी प्रेमाका. शिंगडा- बनावेलुं फूंकीने राजाओ (सं. सीमावृत); जुओ सीमाढा वगाडवानु एक वाजिंत्र [सं.शृंगी] शीला लावल. शीळा, सौम्य [सं.शीतल] शिंघ प्रबोप्र. सिंह; जुओ शंघ, शीघ शीवालखीत (शीवालखीत लग्न) मदमो. शीकारी प्रेमाका. स्वीकारी -, [*घडियां लग्न शीकिरि अंबरा. मोटुं छत्र, धजावाळु छत्र; शीश मदमो. शिष्या जुओ सिकिरि शीशफूल दशस्कं(१). प्रेमाका. माथानु एक शीकुं * चतुचा. प्रेमाका. षडाबा. वस्तुओ घरेणुं राखवा माटे अध्धर लटकाववामां शीशव, सीसव वेताप. सीसम [सं.शिंशपा] आवती छाबडी के झोळी (सं.शिक्य) शीश लोधुं नरका. [माथे चडाव्यु], स्वीकार्यु शीकोतरी नलाख्या. [डाकण, पिशाचिनी] शीस मदमो. शिष्या शीख अखाका. चतुचा. प्रेमाका. शिखामण; शीकुं नरका. वस्तुओ राखवा माटे अध्धर भेट, [बक्षिस] [सं.शिक्षा]; कादं(शा). लटकाववामां आवती छाबडी के टोपली चतुचा. नरका. नलाख्या. मदमो. विदाय, (सं.शिक्य) रजा, [जवानी आज्ञा] (सं.शिक्षा) शुकलाद प्रेमप. पीळू मखमली वस्त्र (फा. शीखडी शृंगामं. विदाय सकलात); जुओ सकलात शीखा कादं(शा). विदाय (सं.शिक्षा) शुणु चतुचा. सोj, स्वप्नुं शीघ मदमो. सिंह; जुओ शिंघ शुद्ध प्रेमाका. शुद्धि, भान शीजु(?) *नरप(द). [*सिद्ध थयेलुं] . शुद्धि हम्मीप्र. समाचार [सं.]; जुओ सुधि शीजे देवरा. सीझे, सिद्ध थाय] [सं. शुध चतुचा. भान [सं.शुद्धि] सिध्यति] शुभवयणी नलाख्या. शुभ वचनवाळी शीझतूं नलाख्या. सिद्ध थ], [फावतुं] (सं. शुभाई चतुचा. ? सिध्य-) शुभेरी चतुचा. सुंदर, शुभ शीवाइ कादं(शा). "नलाख्या. प्रबोप्र. दुःख शुरतकार नरप. स्वर, सूर [सं.श्रुति]; जुओ पामे, पीडाय (सं.सीद्यते) शरत ___ 2010_03 Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४९१ शुं/श्यंदन शुं चित्तसं. प्रेमाका. -मां, प्रत्ये, साथे [सं. शेखरकः); जुओ सेहरउ ___ सहित]; प्रेमाका. जाणे [सं.कीदृशकम्] शेहे, सेहे रूस्तस. सो [सं.शत] . शुंब वेताप. सूम, कृपण; जुओ शोम, सुंब शोकवू उषाह. दशस्कं(१). प्राचीफा. चूसी शूकर गुर्जरा. प्रेमाका. सूवर (सं.) लेवं, शोषी ले, (सं.शोष) शूक्त अखाका. शुक्ति, छीप शोगणी प्रेमप. शोकयुक्त शूध नरका. शुद्धि, भान शोच चतुचा. विमासण, [विचार] [सं.] शून्य चित्तसं. छिद्र [सं.] शोचइ उपबा. षडाबा. शोक करे, दुःखी शूराशूर नरका. अति शूरवीर थाय (सं.शोचति) छू कादं (शा). नलाख्या. साथे, [-मां] (सं. शोचना अखाछ. प्रेमाका. शोक, दुःख; - सहितम्) नरका. विचार [सं.] छू कादं(शा). -ना जेवू (सं.सदृशकम्) । शो चार प्रेमप. चार सो, अनेक शृंगारदुं अखाछ. गुर्जरा. शणगारवू शोण गुर्जरा. रातुं (सं.) शोणुं प्रेमप. स्वप्न शेख अखाछ. कादं(शा). शेष, बाकी, शोध्ये अखाका. शुद्ध कर्ये, [शोधन कर्ये], बाकीनो भाग तपास करवाथी, विवेक करवाथी] शेख दशस्कं(१). नरका. शेषनाग शोपु षडाबा. सोजो (सं.शोफ) शेडि कादं(शा). दूधनी सेड, धार [सं.श्रेढि] शोभ लावल. शोभा, सुंदरता; विमप्र. मान, शेन प्रबोप्र. लश्कर (सं.सैन्य) [गौरव शेबास मदमो. शाबाश शोभन वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). मनोहर शेय्या नलाख्या. शय्या, पथारी (सं.) शेरडी नरका. प्रेमाका. शेरी, महोल्लो, मारग शोम मदमो. शुंब, कंजूस; जुओ शुंब, सुम शेरडो दशस्कं(१). दशस्कं(२). मार्ग; जुओ शोवत प्रेमप. सूतां सेरडे शोष आनंस्त. सूकवी देवां, नाश करवो शेलं प्रेमाका. कसबी वणानुं वस्त्र - ते [सं.] पुरुषो माटे खेस, स्त्रीओ माटे साडी शोषिक अखाका. शोषी लेनार, [सूकवी शेव नलाख्या. सेवा ___ नाखनार] [सं.शोषक] शेवास चंद्रवा. सहवास शौंड प्रेमाका. कुशळ, [आसक्त, लगनशेश प्रेमाका. वरकन्या अने सीमंतिनी वाळा] [सं.] स्त्रीना खोळामां अपातां नाळियेर, पान, श्यं उषाह. सहित, शुं (सं.समम्); जुओ सोपारी अने रूपियो स्यउं शेहरु कादं(शा). फूलनी पाघ (सं. श्यंदन शृंगाम. रथ [सं.] ___ 2010_03 Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यालक/श्रेष्ट श्यालक प्रेमाका. साळो [सं.] श्यालाहेली प्रेमाका. साळावेली, साळानी पत्नी ४५% श्यांइ नरप ( द ). आलिंगन; जुओ सांई श्रथल कादं (शा). शिथिल, ढीलुं श्रव जिनरा. सर्व श्रवइ उपबा. सांभळे (सं.श्रवति) श्रवइ ऐतिका. कादं (शा). स्रवे, टपके, [झरे] श्ररणाको वख्य पंचवा. पीपी के तिलकनुं वृक्ष (सं. श्रीमत् ) [ गोरखमुंडीनुं वृक्ष ] " [सं. श्रवणवृक्ष ] श्रीखंड नरका. चंदन [सं.]; जुओ सिरिखंड श्रीगरण अंबरा. उक्तिर. नलरा. खजानानी 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश देखरेख चखनार अधिकारी [सं. श्रीकरण] श्रीगरणु उक्तिर. धनवृद्धि करवी आवकखातुं (सं. श्रीकरणम् ) श्रीजुग चतुचा. श्री लक्ष्मी साथे श्रीथल दशस्कं ( 9). शिथिल श्रीनंदन वसंवि (ब्रा). श्रीनो पुत्र, कामदेव (सं.) श्रीपतजी चतुचा. लक्ष्मीपति, विष्णु श्रीपात चंद्रवा. प्रेमाका. सिंहा (शा). (त्यागी, संन्यासी श्रीबाफ जुओ बाफ श्रष्ट दशस्कं ( 9). मदमो. सिंहा (शा). सृष्टि श्रीमंडळ दशस्कं ( २ ). प्रेमाका. सुरमंडल, श्रष्टी जुओ श्रीष्टी एक तंतुवाद्य श्राप दशस्कं ( १ ). शाप श्रीमंत मदमो. सीमंत श्रीमुख मदभो. पोते श्रीमुख आरारा. पोताने मुखे, [पोते ] श्रीयनंदन वसंफा. लक्ष्मीपुत्र प्रद्युम्न, कामदेव [सं. श्रीनंदन ] श्राप दशस्कं ( 9). शाप आपवो श्रावलं शृंगामं शको श्रावक * अंबरा. [* श्रावक समा अहिंसक ] श्रावणी नरका. बळेव, [ श्रावण शुद] पूनम श्रिय कादं (शा). कल्याण ( सं . श्रेयस् ) श्री अनंदन वसंवि. लक्ष्मीनो पुत्र, कामदेव (सं. श्रीनन्दन) श्रीकंता प्रेमाका. लक्ष्मीना पति विष्णु, कृष्ण श्रीष्टी, श्रष्टी चंद्रवा . सृष्टि श्रुतज्ञान ऐतिका. शास्त्रज्ञान [ सं . ] श्रीवच्छ उक्तिर. लक्ष्मीने प्रिय, विष्णु (सं. श्रीवत्सः) श्रीवंत चंद्रवा. मदमो. श्रीमंत, धनिक [सं. श्रीकान्त ] श्रीकार ऐतिका. *दशस्कं ( १ ). प्रेमाका. श्रुति चित्तसं. वेद वगेरे पवित्र शास्त्रो [सं.] श्रृष्ट वेताप. सृष्टि श्रीकाष्ट नलरा. एक प्रदेश ज्यां नलराजाए श्रेण्य चित्तसं. श्रेणि सुंदर, उत्कृष्ट, उत्तम विजय कर्यो हतो श्रेयोत्र (छउं श्रेयोत्र ) शृंगामं अहीं श्रेय छे, [ अहीं हुं क्षेमकुशळ छं] श्रेष्ट, श्रेष्टि आरारा. श्रेष्ठी, शेठ - Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन राती शब्दकोश का प्रेमप, स्वप्नमां ओणम श्रणित दशकं ( १ ). दशस्कं (२). प्रेमाका. शोणित, लोही ** षटुकाया ऐतिका छ [ प्रकारना] शरीर, [ एकारना जीव] Y षडंगई आनंस्त, छ अंगे चत्वारिंशत्) श्रोणित वर्ण दशस्कं (9) शोणितवर्ण, सइथउ, सईंथउ, सयथलउ प्रद्युचु. प्राचीफा. प्राचीसं. विमप्र. स्थूलिफा. सेंथो (सं. सीमन्तकः) लोहीना रंगनुं श्रोत्र गुर्जरा. प्रवाह (सं. सोतरा ) मलाइ उक्तिर. वखाण करे (सं. लाघते ) सइथु नलरा. सेंथा उपर पहेरवानी स्त्रीनो अलंकार ( सं . सीमंतक: ) श्लाघि उक्तिर. प्रशंसा कर श्वपच अखाका. चांडाल [सं.] सइफलउं हम्मीप्र. *मरणांतिक युद्ध, [युद्ध ] [ अ. सैफ = तलवार ]; जुओ सयफलि सइमुख जिनरा. पोताने मुखे, रूबरू ( सं . स्वयं+मुख) पडावश्यक ऐतिका सामायकादि छ कार्य [जै. ] - पंचवा साथे, बडे, [ थी, ने] षोडश आहेत. सोळ [सं.] घोडससिंगार पंचवा. स्त्रीए सजवाना सोळ शणगार [ सं . षोडशशृंगार ] सइयणि नलरा. दरजण (सं. सूचिक +णी) सइर गुर्जरा. प्राचीफा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). शरीर सइ-हथि शृंगामं पोताना हाथे; जुओ सहथ, सय-हाथ सई गुर्जरा. हम्मीप्र. पोते, पोतानी मेळे (सं. स्वयम्); जुओ सइ (सं.सः) स गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. षडाबा. ते सई नेमिछं. सो [सं.शत]; जुओ सइ संइत्रीस उक्तिर. साडत्रीस ( सं . सप्तत्रिंशत् ) संइथड, सिंधु तेरका प्राचीसं. लावल. वसंवि. वसंवि(ब्रा). सेंथो (सं. सीमंतक); जुओ इथ सभरिवाळ वीसरा. सांभरदेशनो सइ आरारा. गुर्जरा. तेरका विराप. वीसरा. षष्टिप्र. सो (सं. शत); जुओ सई, स, सि, सें सइ गुर्जरा. बधा (सं. सर्वे) सइ, सई कर्पूमं. प्राचीफा. विक्ररा. स्वयं पोते; आपोआप, पोतानी मेळे सइगू जिनरा साथी [रा.] [*सं.स्वक] सइजल उषाह. पाणी [थी भरपूर ] सण आरारा. स्वजन; जुओ सयण 2010_03 श्रीणामां/ सई सड़त प्राचीसं. सहित, साथे सतानीस उक्तिर. सुडतालीस ( सं . सप्त सइंबर गुर्जरा. स्वयंवर सबसि जिनरा. स्ववश सहथ ऐतिका. पोताना हाथे; जुओ सइ - हथि सई आरारा. सही, खरेखर, जरूर Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सई/सखो ४९४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सई विमप्र. दरजी [सं.सूचिक] शक्ति) सईन अभिऊ. सेना (सं.सैन्य) सकन्ह हर शृंगामं. कृष्ण सहित महादेव सईनी धाडि जुओ घाडि सईनी सकपण चतुचा. सगपण सईयाणी अंबरा. सुयाणी सकयत्थो षष्टिप्र. कृतार्थ, [सफळ] (सं. सउ तेरका. ? सकृताथ) सउ तेरका. नलरा. बधुं, सौ (सं.सर्व+खलु) सकलात नरका. एक जातनुं ऊन- कापड, सउ आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. नलरा. बनात, [जाडा तंतु, पण मुलायम वीसरा, सो (सं.शत) कापड, मखमल]; जुओ शुकलाद सउकि, सउकी ऋषिरा. शोक्य; आरारा. सकार प्राचीफा. शिकार, मृगया; शृंगामं.?, षडाबा. सावकी (सं.सपत्नी) [शिकार, भक्ष, भोग] सउगडउ उक्तिर. गोळ पेटी (सं.समुद्गकः) सकाल गुर्जरा. वेताप. सिंहा(शा). सवार सउड वीसरा. रजाई, दि.सउडि] (सं.सुकाल) सउडउ (ताणि) प्राचीफा. मों ढांकीने सूई सकुट नरप. दुष्टजन, [अधर्मी]; जुओ रहेवं ते, सोड ताणीने, रजाई खेंचीने. साकट ओढीने] सकुनवी पंचवा. शकुन जोनार (सं.शकुनसउडि उक्तिर. रजाई (*सं.संवत्तपटी. वित्) संवृतिः) [दे.] सकुंअला जुओ कमल-सकुंअला सउण उक्तिर. पक्षी, [*गीध] (सं.शकुन); सकोमल, सकोमळ दशस्कं(१). वेताप. प्राचीसं. पक्षी (सं.शकुन) सिंहा(शा). सुकोमल सउण वीसरा. शकुन, शुकन सक्खि गुर्जरा. मैत्री (सं.सख्य) सउणी उक्तिर. शकुन जोनार (सं.शकुनिक) सख प्राचीका. सुख सउन्नउ * ऐतिका. [पुण्यवंत, पुण्यशाली] सखर, सखरउ आरारा. ऐतिका. जिनरा. [सं.सपुण्य] __ *प्राचीसं. सरस, सुंदर (रा.) सउं गुर्जरा. प्राचीसं. वीसरा. षडाबा. साथे, सखाई, सखाईउ, सखाईय अंबरा. आरारा. [प्रत्ये] (सं.सहितम्) - ऐतिरा. "नेमिछं. प्राचीफा. प्राचीसं. सउँ * वीसरा. [जेवू] [सं.समम्] लावल. सहायक, साथीदार, मित्र; सउंपइ ऐतिरा. वीसरा. सोंपे (सं.समर्प- ऐतिका. मित्रता, सहायकता सखाएं *उषाह. [साक्षी अपाएँ] सकज, सकजउ जिनरा. समर्थ [रा.] सखी चंद्रवा. सुखी, [आनंदित, प्रसन्न सकति गुर्जरा. एक प्रकारनुं शस्त्र (सं. सखो सिंहा(शा). शालिग्रामनुं नाम (सक्को= यति) ___ 2010_03 Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४९५ सग/सज्य [रा.] पथ्थरनी लखोटी) सघण गुर्जरा. विराप. वधारे जाडु, घट्ट सग शृंगामं. दीवानी ज्योत [सं.शिखा] (सं.सुघन) सगणी प्रद्युचु. आयुधविशेष ? सघन ऐतिरा. [घाटा, गाढ, निबिड [सं.] सगत जुओ शगत्य सघाडै जिनरा. समुदायमां (सं.शृंगाटक); सगति आरारा. देवरा. शक्ति जुओ संघाडउ सगबग ऋषिरा. [शिथिल, ढीलं], वेरविखेर सचांण * ऐतिका. [यथार्थ] [रा.] सचित आरारा. सचेत, [सावधान, जाग्रत]; सगर गुर्जरा. खोदकाम करनार जाति सजीव (वस्तु) सगळं अखाका. हाथमां अग्नि राखवो वगेरे सचित्रला (सक्तिला) शृंगाम. चित्रवाळा; द्वारा करवामां आवती साचजूठनी सचेत, सावधान परीक्षा, [कसोटी रूपे करवामां आवतो सच्च गुर्जरा. साचुं (सं.सत्य) चमत्कार, दिव्य], [*वचननी खातरी] सच्छाइ आरारा. छायावाढू [*सं.संगर]; * सिंहा(शा). [*वचन, सछाय आरारा. छायावाढू *प्रतिज्ञा] , सज अभिऊ. देवरा. सज्ज सगलइ उक्तिर. सधळे, बधे [सं.सकल सजकारिउ वसंवि. वसंवि(ब्रा). सज्ज कर्यु परथी (सं.सज्ज+कृ) सगलउ, सगळउ आरारा. ऐतिका. वीसरा. सजडीयु आरारा(व). साजडियो, सादडो, षडाबा. सघळो, बधो (सं.सकल) आंजणो, अर्जुनवृक्ष (सं.सज) सगसणीजु सिंहा(म). सगुवहालुं (सं.स्वक+ सजन आरारा. गुर्जरा. देवरा. स्वजन, सगां स्निह्यक); जुओ सणीजां सर्जन कामा(त्रि). स्वजन सगाल विक्ररा. सुकाळ सजवाल चारफा. मनोहर, [रूपवंत] (सं. सगासणीजा विक्रच. सगांवहालां । सज्जित परथी ? सर. हिं.सजीला) ["हिं. सगासिइ नेमिछं. पासे (सं.सकाशे) सज+वाल] सगांसणीजा शीलक. सगां-स्नेही [सं. सजाई, सजाही, सजी कांद(शा). गुर्जरा. स्वक+] (सं.स्निह्, प्रा.सिणिज्झ-) नंदब. लावल: सजाई, तैयारी (सं. सगुण, सगुणउ वीसरा. गुणवान [सं.] सज्जता) सगुर आरारा. सुगुरु सञ्जइ गुर्जरा. सजे, तैयार करे (सं.सज्ज-) सगुरखां अभिऊ. गौरव साथे सजन आरारा. सजन, स्वजन सग्ग ऐतिका. प्राचीफा. स्वर्ग, देवलोक सज्झाय उक्तिर. स्वाध्याय सघढां विमप्र. घाटां सज्य मदमो. सजाई, गोठवण आगरा. ऐतिका. वीसरा...(सं.सज्ज को ___ 2010_03 Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सज्यउर / सत्य सज्यउर प्राचीसं. सत्यपुर, साचोर सज्या शीलक. शय्या, पथारी सझ सिंहाशा. सज्ज, तैयार ? सझाय आरारा. स्वाध्याय, धर्मचिंतन सटा लावल. केशवाळी [सं.] सटी अखाछ. सटकी सट्ठी नेमिछं. साठ [ सं . षष्टि ] सद्गुवि ऐतिका. सुष्ठु श्रेष्ठ, [सुंदर रीते] सठ अखाछ. * सीधो, "सहेलो सट, [* शठ ]; आनंस्त. शठ, [शाठ्य, धूर्तता ] सठामे अखाछ. सारे (साचे) ठेकाणे सडका प्रेमाका. नाकमां वायु खेंचीने करवामां आवता अवाज सढाणा गुर्जरा. बख्तरथी सज्ज (सं. संनद्ध) सण कर्पूमं सुणो [सं. श्रुणोति ] सणकारा नरका. सणका, शूळ भोंकाती होय एवी पीडा सणग * कस्तुवा. शृंगामं. सुरंग, भोंयरुं सणगट प्रेमाका. घूंघट ४९६ सणमणु नलाख्या. सूनमून ( *सं. शून्यमौनकः) [सं. शून्यमनस्] सणसर प्राचीफा. हीलचाल, [ अणसारो, मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सत कहो नरका. सत्य कहो, चोक्कस कहो, [ बराबर कहो ] सतपीढिया जिनरा. परंपरागत, [सात पेढीथी वसता ] [ सं . सप्त+पीठ ] सतरभेदी ऐतिका. सत्तर प्रकारनी सतर सेंस ऐतिरा. सत्तर हजार [सं. सप्तदश+सहस्र] सतसटि, सतसठि उक्तिर. जिनरा. सडसठ [सं. सप्तषष्टिः ] 2010_03 सतहत्तरि, सतहुत्तर, सतहुत्तरि उक्तिर. उपबा. षडाबा. सत्योतेर (सं. सप्तसप्ततिः) सतंतर अखेगी. स्वतंत्र सताब चंद्रवा. ?, [ उतावळ]; देवरा. उतावळ ( फा . शिताब ) सति कादं (शा). छते, छतां सतेतालउ जुओ एक सउ सतेतालउ सत्त गुर्जरा. नेमिछं. सात (सं. सप्त) सत्तरि उक्तिर. सत्तर; सित्तेर ( सं . सप्तदशः वा सप्ततिः) सत्तवंति शृंगामं. सत्यवंती सत्तसई नेमिछं. सात सो [सं.सप्तशत] सत्ता अखेगी. हस्ती ; चित्तसं. प्रभाव [ सं . ] *पगरव]; जुओ सणसार सणसार दशस्कं ( २ ). प्रेमाका गुप्त सान, सत्ताणवइ षडाबा. सत्ताणुं (सं. सप्तनवतिः) सत्तु ऐतिका. सत्त्व, [* ब्रह्म, ईश्वर, देव] सत्तूकार गुर्जरा. सदाव्रत (प्रा. सत्तूक + इशारो; जुओ सणसर सणीजां अंबरा. ऐतिरा. षष्टिप्र. स्नेहीओ (सं. स्निह्यक); जुओ सगसणीजु, संगासणीजा, सगांसणीजा, सुणीजउ सत मिछं. सत्त्व, [दैवत, कौवत ] सत आरारा. साचुं [सं. सत्य ] सं. अगार); जुओ सत्रकार, शत्रुकार सत्तर सय षडाबा. एक सो सात (सं. सप्तोत्तरशत) सत्य * ऐतिका. [ शास्त्र ] [ प्रा. ] Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४९७ सत्थवाह/सनमन्या ढीलुं सत्थवाह गुर्जरा. सार्थवाह, वणझारो सदोदित अखेगी. हमेशां प्रकाशमय [सं.] सत्थि गुर्जरा. साथे (सं.साथ) सद्द गुर्जरा. प्राचीफा. "लावल. साद, अवाज सत्थु गुर्जरा. समुदाय (सं.साथ) (सं.शब्द) सत्यारथ प्रेमाका. साचा अर्थवाळु, साचेसाचुं सद्दहइ आनंस्त. उक्तिर. उपबा. नलरा. सत्र ०नंदब. अन्नसत्र [सं.] श्रद्धा राखे (सं.श्रद्धते) सत्रिहा षडाबा.? सहहण ऐतिरा. श्रद्धा, आस्था सत्रुकार, सत्कार अंबरा. विक्ररा. सहहणा आनंस्त. ऐतिका. श्रद्धा सिंहा(म). सदाव्रत (सं.सकतुक+ सद्दहे ऐतिका. श्रद्धा राखे [सं.श्रद्धते] अगार); जुओ सत्तूकार सहाविय- तेरका. बोलावायेखें (सं.शब्द सथल चतुचा. प्रबोप्र. मदमो. शिथिल, परथी) सहि ऐतिका. शब्दथी, [संज्ञाथी, नामथी] सद वीसरा. सदा, हमेशां सद्ध प्राचीसं. श्रद्धावाळो (सं.श्राद्ध) सदइ अंबरा. स्वादथी खवाय, सदे, [अनुकूळ सद्धार प्राचीसं. सहायरूप [सं.संधार] आवे] [सं.स्वदति सधर कर्पूमं. सलामत, सध्धर सदभाय आरारा. साचेसाच, खरेखर सधरे सिंहा(शा). सुधरे सदभाव आरारा. राग ?, [जगतना सधव आरारा. पतिवाळी, सौभाग्यवती [सं.] पदार्थोने] सत्य मानवा ते ? सधारइ लावल. सहाय करे (सं.संधारयति) सदनु नेमिछं. "विमप्र. दळवाळु, [पुष्ट] सधारइ आरारा. नभावे, चलावे, पार पाडे सदाफल आरारा(व). ऊंबरो, नाळियेरी (रा.सधाणौ); प्रेमप. प्रेमाका. सिधावे, वगेरे केटलांक वृक्ष सदाफल कहेवाय पधारे छे, परंतु संभवतः वर्णकोमा फळ तरीके सधारण प्राचीसं. सहायरूप, [उद्धाररूप, उल्लेखातुं नाळियेर [सं.] सदासव प्राचीका. महादेव (सं.सदाशिव) सधारी लावल. सहाय करनार सदि कादं(धु). "हमेश (सं.सदैव) सधावइ आरारा. सिधावे, जाय; प्रेमाका. सदि कादं(शा). जलदी (सं.सद्यस्) सिद्ध करावे सदीव आरारा. ऐतिका. सदैव, हमेशां सधि अभिऊ. फत्तेह (सं.सिद्धि) सदुतरां, उषाह. विशिष्ट समजावट, [त्वरित सनकारे कृष्णच. नरका. नेमिछं. लावल. योग्य उत्तर] [सं.सद्योत्तर] सान करे, इशारो करे, संकेत करे सदूतरु नलरा. तुरत उत्तर आपनार, हाजर- सनबंध आरारा. संबंध (रा.) जवाबी (सं.सद्योत्तर) सनमन्या प्रेमाका. शून्य मनवाळा, शून्य 2010_03 Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनमन्यो / सपीआरा ४९८ मनस्क सनमन्यो प्रेमाका. शून्य मननो थयो सनसतपणा * प्रचु. [ कीर्तिथी दीपता ] [रा. ] * सनहो (दूत) [सुन हो दूत] * पंचवा. [ह सपत्नप्रभु जुओ संपतप्रभु दूत, सांभळ] सनादु * उषाह. [सज्ज, कटिबद्ध]; नेमिछं. छांटे, [ थी भरपूर ] (सं. सन्नद्ध) सनाह देवरा. ललिरा. कवच, बख्तर [सं. संनाह] सनाहीयां अभिऊ. सन्नाह कर्यां, [सज्ज था ] सनि सनि कादं (शा). धीरेधीरे (सं. शनैः शनैः) सनीचर उक्तिरः शनिनो ग्रह (सं. शनैश्चर) सनूर, सनूरउ आरारा. ऐतिका. सुंदर, सुरूप (रा.); आरारा. जोशभर्युं, उमंगभर्युं (रा.) सनेठा षडाबा. संनिष्ठ सनेपातक विमप्र. संनिपात, सनेपात सनेवट नरप . स्नेहसंबंध (सं. स्नेहवृत्ति ) सनेहल तेरका. स्नेहाळ ( सं . स्नेहल ) -सन्नाणह ऐतिका. सद्ज्ञान सन्नाह प्रबोप्र. वसंफा. विक्ररा. बख्तर (सं.) सन्निया आनंस्त. संज्ञी जीवो, मनवाळा जीवो 2010_03 मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश जकडी सन्नी षडाबा. मनवाळा जीवो (सं. संज्ञी) सन्या देवरा. संज्ञा, [चिह्न ] सन्यान ललिरा. शाणो, चतुर (सं. सज्ञान ) सपइ उक्तिर. शाप आपे (सं. शपति) सपटावता प्रेमाका. [लगावी देता], देता, बंध करता सपत चतुचा. प्रबोप्र. शपथ, सपत अभिऊ. सात (सं. सप्त) बख्तर धारण सपरस सिंहा (शा). स्पर्श सपद चारफा. * स्वपद, [ ( पोताना ) समान पद ] सपदि गुर्जरा. तरत ज (सं.) सप धात मोसाच. सात धातु सपरवार आरारा. सपरिवार प्रतिज्ञा सपराण प्रबोप्र. श्रेष्ठ; [सबळ, जबरुं; घणुं - धुं] [सं. सप्राण ] सपराणउ आरारा. सबळ, भारे; उषाह. ऋषिरा. गुर्जरा. नरका. नलरा. नलाख्या. लावल. *विमप्र. शूरवीर, बळवान, जबरुं (सं. सप्राण); जुओ शपरांणूं, सपरुं सपरि आरारा. सुपेरे, सारी रीते सपर्क ( सपराणुं) हरिख्या. जबरुं, जोरावर सपर्णकुमार आरारा. सुपर्णकुमार, गरुड सपल्हाणु लावल. पलाण साथेनो, सवारी माटे सज्ज करेलो [सं. स+पर्याण] सपसन्न तेरका. सुप्रसन्न सपाखर मदमो. छंदविशेष सपाय आरारा. हानिकारक (सं. सापाय ) सपारस मदमो. *फरियाद, [ माफी, सहाय वगेरे माटे भलामण ] ( फा. सिफारश) सपीआरा ऋषिरा. * प्यारवाळा, [ अत्यंत प्यारा ] [ सं . सुप्रियतर] Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ४९९ . सपुरिस/समतुल्य सपुरिस आरारा. सुपुरुष समये सप्तक्षेत्र विक्ररा. धन वापरवा माटेनां सात समउ आरारा. साथे (सं.समम्) . क्षेत्र, सात बाबतो (जै.) समउ जिनरा. नरका. प्रेमाका. समय सप्त मीयां ऐतिरा. सात माळना समकाल गुर्जरा. साथसाथे, ए समये ज सप्तभूमि विक्ररा. सप्त माळ, [सात माळ- (सं.) वाढू समकति आनंस्त. ऐतिका. गुर्जरा. नलरा. सप्फुर प्राचीसं. स्फूर्ति सहित नेमिछं. विमप्र. सम्यक्त्व, सत्य तत्त्व सफार अखाका. घणो, [खूब ज] [सं.सु+ पर श्रद्धा [जै.] स्फार] समक्ष कादं(ध). सामे बेठेलु, [सामे सबद (पंच सबद) वीसरा. ध्वनि, [पांच उपस्थित]; उघाडी रीते, [प्रगटपणे] प्रकारनां वाजिंत्र]; जुओ पंचशबद समग्ग, समग्गउ आरारा. ऐतिका. तेरका. सबद आरारा. अवाज (सं.शब्द) समग्र, संपूर्ण सबधी प्रेमाका. मजबूत बांधानी, सुबद्ध, समग्गलय प्राचीसं. समग्र, सहित बळवान समछरी प्रेमाका. संवत्सरी, मृत सगांओनी सबल, सबळ आरारा. कामा(त्रि). चतुचा. मृत्यु-तिथिए कराववामां आवतुं भोजन नरका. प्रेमाका. अत्यंत, घj, भारे के दानादि क्रिया], [वर्षी] सबळउं अखाछ. पुष्कळ, [मजबूत, दृढ]; समण प्राचीफा. स्वप्न, शमj * लावल. [मोटेथी, जोरथी] समणड नलरा. स्वप्न, शमणुं । सबूधी अखाका. सद्बुद्धिवाळो, [मरमी] समण-पाणी नरका. गरम पाणीने माफक ___ [सं.सबुद्धि के सुबुद्धि] __ आवे एवं करवा माटे उमेरवामां आवतुं सब्दभेदी पंचवा. अवाजने आधारे धार्यु ठंडं पाणी बाण मारनार (सं.शब्दभेदो) समणह ऐतिका. श्रमण, [जैन साधु सभट प्रबोप्र. योद्धो (सं.सुभट) समता * नेमिछं. [समत्व, इष्टानिष्ट परत्वे सभाइ, सभाय आरारा. खरेखर, साचेसाच तटस्थता, रागद्वेषमांथी मुक्ति] सभाव आरारा. गुर्जरा. प्रबोप्र. स्वभाव, समति-गुपति ऋषिरा. उपयोगपूर्वक गमन, प्रकृति; विमप्र. स्वभाव, [सहजपणुं] भाषण वगेरे पांच प्रकारनी समिति सभाशृंगार विक्ररा. सभानो शणगार [सं.] [सम्यक् प्रवृत्ति] अने त्रण प्रकारनी सम तेरका. वडे ?, [*सर्वत्र, "संपूर्ण, ___गुप्ति एटले मन, वचन अने कायाने *बराबर काबूमा राखवा ते [जै.]; जुओ समिति सम, समइ आरारा. लावल. षडाबा. समे, समतुल्य दशस्कं(२). समान समय 2010_03 Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समतोल/समाचरण ५०० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश समतोल प्रेमाका. समतुल्य, बरोबर, समान मुद्रा (सं.समृत्युमुद्रा); जुओ समृत्यमुद्रा समय जुओ सुसमथ समर्थाई उपबा. समर्थता समव- *वीसरा. [भेट आपवी, उपहार समल(?) नरप.*स्थळ, ["युद्ध] [*सं.संमर्द करवो] [हिं.] समल प्राचीसं. ?, [*पापी, "दुर्जन] समदाए नरप. समूहमां (सं.समुदाय) समलंकिय तेरका. सुशोभित (सं.समलंकृत) समदाय गुर्जरा. समुदाय समलित अखेगी. शबलित, -ना रंगे समदृष्ट प्रेमाका. समान दृष्टि राखनारा रंगायेखें, [-थी युक्त] समधात उक्तिर. समान प्रकृतिनुं - प्रकारनुं समली अभिऊ. समडी (सं.समधातुः) समवडि *अंबरा. आरारा. ऐतिका. कृष्णबा. समय वाग्भबा. परंपरा, रूढि [सं.] विमप्र. समोवड, सरखं समोवडमां, समयउ आरारा. भेळव्यं, नाख्यं (सं.सम+ सरखामणीमां]; उषाह. साथे अय्) ___ समवसरण आरारा. लावल. तीर्थंकरनी समर अखाका. "रतिक्रीडा, [रतिसंग्राम देशना माटेनुं सभास्थान [जै.] [सं.] [सं.] समवसर्या आरारा. पधार्या (सं.समवस.) समरणी ऐतिका. दशस्कं. प्रेमाका. स्मरणी, समवाय ऐतिका. समूह [सं.] २७ मणकानी जपमाळा समश्या दशस्क(१). सान, इशारो; जुओ समरति वसंफा-शु. वसंवि. वसंवि(ब्रा). समस्या समरात्रि, दिवसरात्रि सरखां होय एवु समसरिस प्राचीसं. समसदृश, जेवू समरपंथी ऋषिरा. एक प्रकारना बावाओ समस्या दशस्कं(२). सान, गुप्त संज्ञा [सं.]; [योगीओ] जुओ समश्या समरसइ प्रबोप्र. बरोबर रीते, [मेळपूर्वक] समहर, समहरि गुर्जरा. प्राचीसं. संग्राम, समरंगण गुर्जरा. तेरका. समरांगण, रणमेदान युद्धभूमि समहूरति आरारा. सुमुहूर्ते, सारे मुहूर्ते समरा-मंडप कृष्णच. स्वयंवरमंडप समंध कादं(शा). दशस्कं(१). दशस्क(२). समरावता * षडाबा. [करावता] (सं.समार- प्रबोध. प्रेमाका. संबंध, संपर्क चयति) समंधी दशस्कं(१). देवरा. सिंहा(१). समरि समरि थाइ चारफा. याद करीने संबंधी युद्धमां थवा दे, [याद करीने युद्ध समाचरइ षडाबा. आचरण करे, करे (सं. लडवा आव] समाचरति) समर्त्यमुद्रा विराप. मृत्युना जेवी [निद्रानी] समाचरण आनंस्त. सम्यग् आचरण [सं.] 2010_03 Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५०१ समाण/समृत्य समाण, समाणउ नरका. प्रेमाका. लावल. समाहि * ऐतिरा. [समाधि, शांति] वीसरा. समान, समान (वयनु), जेवू समांणउ ऋषिरा. सरखो (सं.समान) समाणइ उक्तिर. समाप्त करे ("सं.समाप- समांणसां कस्तुवा. सज्जनो [सं.सु+मानुषः] यति) [दे.]; *स्थूलिफा. [भोगवे] दि.] समि तेरका. एक वनस्पति, समडी, खीजडी समाणही आरारा. सरखेसरखी (सं.शमी) समाणी नरका. [समोवणयुक्त], गरम समि कियउ उक्तिर. सरखुं कर्यु पाणीने माफक आवे एवं करवा थता समिणडउं प्राचीफा. स्वप्न ठंडा पाणीना उमेरणवाळु समिति आरारा. चारफा. सम्यक् प्रवृत्ति, समाधइ आरारा. समाधिपूर्वक ___ उपयोगपूर्वक गमन-भाषण वगेरे [जै.]; समाधि विक्ररा. विमप्र. शाता, शांति, दुःख- जुओं समति-गुपति नुं निवारण समिद्ध ऐतिका. ऐतिरा. प्रद्युचु. समृद्ध समाध्ये नरका. समाधिए, समाधिमां, [ध्यान समिध आरारा. समृद्धि करवामां समी आरारा. साथे [सं.समम् समापइ आरारा. ऐतिका. जिनरा. आपे, समीस सिंहा(शा). ? समर्पित करे (सं.समप) समुक्ष जुओ समूह समापत्ति आनंस्त. ध्यान [नो एक प्रकार], समुज्जल तेरका. समुज्ज्वल [चोक्कस प्रकारनी चित्तस्थिति थवी ते] समुद्द गुर्जरा. समुद्र [सं.] समुद्रात नलरा. सागरो [सं.समुद्र+अ.आत] समारइ उक्तिर. उपबा. सर करे, साफ समुधो अखाका. संपूर्ण; जुओ समूधी करे, [कापीकूपीने व्यवस्थित करे]; समुहतु * लावल. विमप्र. समोतुं, महत्त्व*उपबा. [समुं करे, आखं करे]; वाळू, [गौरववंत] [सं.समहत्त्व नरका-२. सरखं करे; *अखाका. समुंद वीसरा. समुद्र चतुचा. नरका. प्रेमाका. वीसरा. सजे, समुं पडे चित्तसं. सीधुं ऊतरे, समजाय शणगार; नामछ. सुधार [स.समारच् समूधी *अखाछ. [समस्त, आखेआखी]; समारथ * सिंहा(शा). [शिव, महादेव] जुओ समुधी समारथी * सिंहा(शा). [शिवभक्त] समूलकाष आनंस्त. मूळथी लईने [सीमा, समा उक्तिर. समार परिधि सुधी], [समग्रपणे] [सं.स+मूल समावस्था आनंस्त. त्रण गुणोनी तर-तम +कक्ष] भाव विनानी साम्यावस्था समूह (समुक्ष) ललिरा. समक्ष समास प्रेमप. समावेश [सं.संवास] समृत्य दशस्कं(१). स्मृति 2010_03 मध्य.३२ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समृत्यमुद्रा/सयंबर ५०२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश समृत्यमुद्रा गुर्जरा. मृत्युना जेवी [निद्रानी] सम्मल तेरका. शामठे (सं.श्यामल) मुद्रा (सं.समृत्युमुद्रा); जुओ समर्त्यमुद्रा सम्माण- प्राचीसं. उपभोग करवो [सं.सं+ समे अखाका. नरका. नरका-२. प्रेमाका. मानय्] समय, समये; चतुचा. समय, संकेत सम्यक्त आनंस्त. सम्यक्व, सम्यग्दर्शन, समे मान प्रेमाका. समय- माप, आयुष्यनुं सत्यधर्मतत्त्वमां श्रद्धा] [जै.] प्रमाण सय गुर्जरा. तेरका. जिनरा. षडाबा. शत, समेय तेरका. समेत(शिखर) तीर्थ सो; जुओ सइ समो नरका. समय सयगुण, सयगुणउ उपबा. ऋषिरा. सो समोगुण चित्तसं. शमगुण, सत्त्वगुण गणुं (सं.शतगुण) समोतुं नरका. प्रेमाका. महत्तावाढू, [गौरव- सयण आरारा. स्वजन; जुआ सइण वंतु] (सं.स+महत्ता) सयणाचार उक्तिर. स्वजन-व्यवहार (सं.समोपम आरारा. समान उपमा जेने आपी स्वजनाचार) शकाय तेवू [सं.] सयथलउ जुओ सइथउ सयफलि हम्मीप्र. *मरणान्तिक युद्धमां, समोपइ आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. समर्पे, ' [युद्धमां]; जुओ सइफलउं आपे; शृंगाम. सोपे (सं.समप) १ सयर आरारा. उक्तिर. उपबा. *कर्पूमं. समोप्रम ऐतिका. *संभ्रम, [*पुत्र, *तुल्य] गुर्जरा. प्रद्युचु. प्राचीसं. रूपच. वसंफा. समोवण प्रेमाका. गरम पाणीने माफकसरनु वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). विराप. षष्टिप्र. करवा माटे नाखवामां आवतुं ठंडु पाणी शरीर. जओ शयर समोसरण गुर्जरा. नेमिछं. तीर्थंकर के एवी सयल, सयळ अभिऊ. आरारा. ऐतिका. महान विभूतिना आगमन प्रसंगे रचवामा ऐतिरा. कृष्णच. गर्जरा. जिनरा. तेरका. आवती सभा के परिषद [सं.समव- लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). सरण] [जै.] वीसरा. शीलक. स्थूलिफा. सकल, सर्व समोसरे आरारा. ऐतिका. देवरा. षडाबा. सयवत्ति तेरका. शतपत्री, एक वनस्पति, आगमन थाय, पधारे (सं.समवस) [सेवती, सफेद गुलाब]; जुओ सेवंत समोह प्रबोप्र. समूह सयवर प्राचीफा. स्वयंवर समोहोले चित्तसं. संमुखे, हजराहजूर सय-हाणि शृंगामं. पोतानुं नुकशान सम्म जिनरा. सम्यक्त्व मोहनीय], [एक सय-हाथि शृंगाम. पोताना हाथे; जुओ कर्मप्रकार, जेमां मिथ्यात्वनां कर्मदळो सइ-हथि दबाई रह्यां होय अने व्यवहारमा सयंतउ गुर्जरा-टि. आनंदित (दे.सयत्त) सत्यधर्मनो स्वीकार होय] [जै.] सयंबर गुर्जरा. श्वेत वस्त्रधारी (सं. 2010_03 Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५०३ . सयंवरु/सरमकला श्वेताम्बर) शरणागत) सयंवरु गुर्जरा. स्वयंवर सरणि गुर्जरा. शरण आपनार (सं.शरण्य) सया (सया धरि) आरारा. ?, [*विश्रान्त सरत, सति प्राचीका. संगीतनी एक संज्ञा, था] [*सं.शय] [श्रुति]; जुओ शरत सयाण *अखेगी. [विद्वत्ता, पंडिताई] (सं. सरतरि सार चारफा. चंदन[के कल्पवृक्ष]ना सज्ञान उपरथी) सत्त्व के चूर्ण वडे (सं.सुरोत्तर चंदन सयाणउं, सियाणउं अखेगी. "प्राचीका. उपरथी?) [*सं.सुरतरु] प्राचीसं. शाj सरतरी आरारा(व). सुरतरु, कल्पवृक्ष (रा. सयाणी (सहियाणी) आनंस्त. सखी सरतर)? सयांन अखेगी. संज्ञा, [संकेत (सं.संज्ञान सरतरू ऐतिरा. कल्पवृक्ष उपरथी) सरदइ [सरदहइ] देवरा. श्रद्धा राखे (सं. सर गुर्जरा. वसंफा. षडाबा. शर, बाण श्रद्धा ) सर आरारा. तेरका. गुर्जरा. जिनरा. नेमिछं. सरदहइ आरारा. माने (सं.श्रद्धते); जुओ __ वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). स्वर सरदइ सर-आरारा. ऐतिरा. उषाह. गुर्जरा. नेमिछं. सरदहिवउ आरारा. श्रद्धा राखो लावल. शिर, माथु सरनिकर वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. वसंविसर- नलरा. चालवू, व्यवहार थवो], [सिद्ध (ब्रा). बाणनो समूह [सं.शरनिकर] थएँ [सं.स] सरपण नरका. प्रेमाका. बळतण, लाकडां सरखडी आरारा(व). सरकड, सरखड, मुंज सरपा लावल. सर्प, साप घास (सं.शर) सरपाल आरारा. सरोवरनी पाळ सरखं चित्तसं. मळतुं, अनुरूप, योग्य सरब वीसरा. सर्व, बधुं सरग प्रेमप. स्वर्ग सरभ ऋषिरा. एक जंगली पशु (सं.शरभ) सरघा शृंगाम. मधमाखी (सं.) सरभरि ऐतिका. *बराबरी, [*दंड के सजा सरघू अभिऊ. सरगवानां वृक्ष (सं.शिग्रु) करवानो भाव] [रा.] *सरडउ ['करडउ] *विमप्र. [*कठोर, सरभि प्राचीफा. सुगंधी, [सुगंधयुक्त] (सं. __ *करडकणो] सरण तेरका. शरण सरमइ *विमप्र. [(शस्त्र)व्यायाम करी, सरणाइपंजर, सरणाइपंजर हम्मीप्र. वापरी] [सं.श्रम्]; जुओ शर्मी शरणागतना रक्षण माटे पिंजर समान सरमकला कृष्णच. शस्त्रकळानो अभ्यास, सरणाति प्राचीका. शरणे आवेली (सं. [शस्त्र चलाववानी विद्या] सुरभि) 2010_03 Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरमंडल/सरसीय ५०४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश उल दि.) सरमंडल आरारा. एक वाद्य, स्वरमंडल वीसरा. षडाबा. साथे (सं.सदृश); सरमां आरारा(व). एक करिया| प्रेमाका. पासे, नजीक, [साथे जोडायेल, समुं *गुर्जरा. [व्यायाम, प्रयोग] (सं.श्रम); । लिप्त जुओ शर्म सरसति, सरसती उक्तिर. गुर्जरा. नेमिछं. सरल आरारा(व). तेरका. चीडनं झाड लावल. वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. सरस्वती सरलउ उक्तिर. दीर्घ, प्रलंब; तेरका. सीधं सरसद प्रेमप. स्वर अने शब्द ? (सं.सरल+क) सरस-मणु अखाका. सरस [प्रेमरसयुक्त सरलियां नरका. हाथनां कांडांनां आभूषण मनवाळू सरवइ उक्तिर. गुर्जरा. टपके, चूवे, वहे सरसरी उषाह. आकाशगंगा (सं.सुरसरित); (सं.स्रवति) जुओ सरि सरवण अभिऊ. कामा(त्रि). कामा(शा). सरसवेल उक्तिर. सरसव- तेल (सं.सर्षप तेरका. प्राचीसं. श्रवण, कान तैलम्) सरववरति प्राचीसं. संपूर्ण संयमधर्म, जैन सरसा *प्रबोप्र. [शिर वडे, माधुं नमावीने] साधुव्रत (सं.सर्वविरति) . [सं.शिरसा] सरवस, सरवसु वसंफा. वसंफा (ल). सरसि नेमिछं. सरशे, पार पडशे [सं.स] वसंवि. वसंवि(ब्रा). सर्वस्व सरसिउं नेमिछं. सरसुं, साथे [सं.सदृश] सरवस्त दशस्कं(१). मदमो. रूस्तस. सर्वस्व सरसिय वसंफा. साथे (स.सदृशक); जुओ सरवी प्रेमाका. सरवानी, सिद्ध थवानी, सरसीय पार पडवानी [सं.] सरसिय वसंफा(ल). सुरसिक, [रसपूर्ण सरवो-सरविं अभिऊ. सौ (सं.सर्व) सरसिव गुर्जरा. सरसव (सं.सर्षप) सरशी कादं(शा). [वावनो तळावडी जेवो सरसी गुर्जरा. सरोवर, जळाशय (सं.); कोठो] [सं.सरसी]; जुओ सरसी सरशी चतुचा. साथे [सं.सदृश] सरसी आरारा. गुर्जरा. तेरका. "नेमिछं. सरस आरारा (व). सरसडो (सं.शिरीष)? प्रेमाका. साथे (सं.सदृशिका); आरारा. सरसछाल – एक करिया| जेवी; साथे, तरफ सरसइ तेरका. प्राचीफा. सरस्वती सरसीय, सरसिय वसंवि. वसंवि(ब्रा). सरसउपाटण उक्तिर. सरस्वती पाटण, सरसी, साथे (सं.सदृश) सिद्धपुर पाटण, अणहिलवाड पाटण सरसीय गुर्जरा. *कमळ (सं.सरसिज), सरस अखाका. जेवं चित्तसं. एकरूप; [*साथे] 2010 03 Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५०५ सरसे/सरीरिचिंता सरसे (सरसेज) *गुर्जरा. [शरशय्यामां] — सराहे अखेगी. *प्रशंसा करे, [आनंद पामे] सरसेलि जुओ सेलि [सं.श्लाघ्]; जुओ सहराये सरस्युं आरारा. साथे [सं.सदृश] सराहो अखेगी. *प्रशंसा, *वधामणी, सरहे आरारा. गर्जरा. सुगंधी, सुगंधयक्त *आनंदोत्सव, [प्रशंसा करो, स्तुति (रा.); अभिऊ. सुगंधी पदार्थ (सं. करो] [सं.श्लाघ्] सुरभि) सरां प्रेमाका. सरोवर [सं.सरस्] सरंगट अखाछ. घूमटो, घूमटो वाळेली; सरि तेरका. नदी (सं.सरित); जुओ सरसरी लावल. विमप्र. बूंघट सरि *मुर्जरा. [शरथी, बाणथी] सरा *प्रेमाका. [बाण]; जुओ शरा सरि प्राचीफा. सैर, माळा (सं.सर); आड, सराइ *पंचवा. [प्रशंसा करी] [सं.श्लाघ्, शोभा माटेनी रेखा हिं.सराह-]; चित्तसं. सहराय, खुश सरि उषाह. प्रसरे (सं.स.) थाय, आनंद पामे; जुओ शराय, सराय सरि, सरिई ऐतिका. नेमिछं. स्वरे, स्वरथी सराख * नेमिछं. [*चूर्ण] [*प्रा.सरक्ख] सरिकेश उषाह. श्रीकेशव, लक्ष्मीपति [सं. सराजम *अखाछ. प्रबंध, बंदोबस्त, श्रीका+इश] तैयारी] (फा.सरंजाम) सरिखा लावल. सरखा, समान (सं.सदृक्षक) सराडे अखाका. अखाछ. सीधा मार्गे सरिस, सरिसउ, सरिसिउ आरारा. कर्पूमं. सराध उक्तिर. श्राद्ध, [पितओने पिंडदान गर्जरा. तेरका. नेमिछं. प्रबोप्र. लावल. वगेरे] वीसरा. साथे; ऋषिरा. ऐतिरा. जिनरा. सरापु गुर्जरा. शाप सर, जेवं उषाह. वडे (सं.सदृश) सराय, सराये *दशस्क(२). "प्रेमाका. दि.सरिस]; जुओ शिरीसु [आनंद पामे]; जुओ सराइ, सहराये सरिसव उक्तिर. सरसव (सं.सर्षपः) सरालउ [असरालउ] गुर्जरा. पुष्कळ, सरिसिउ जुओ सरिस पूरेपूरुं; जुओ असराल सरिसीय वसंफा. साथे [सं.सदृश] सरा लगी नरका. छेडा सुधी, संपूर्ण सरीआ, सरीईआ * कामा(त्रि). कामा(शा). सराविय प्राचीसं. श्राविका __ सरैया, सुगंधीदार वस्तुओ वेचनार [सं. सरास * ऋषिरा. [?] सुरभि परथी] सरासर कर्पूमं. "नरका. पुष्कळ, पूरेपूरुं सरीखउ उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. प्राचीसं. (फा.) षडाबा. जेवू, सरखं (सं.सदृक्ष) सराह आरारा. प्रशंसा (सं.श्लाघा, प्रा. सरीरिचिंता आरारा. शरीरचिंता, मळत्याग- . सलाहा) नी वृत्ति 2010_03 Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीसउ / सलहीजइ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सरीस प्रबोप्र. साथे (सं. सदृश ) सर्व आरारा. आनंद, सुख (सं. शर्म); जुओ शर्म, सुखसर्मा सरु वसंफा (ल). स्वर, अवाज सरुओ, सरुवो प्रेमाका. चाटवो, कडछीना सरुइ कर्पूमं. सरवे (सादे), [ खुल्ले (सादे ) ] सर्वघाती आनंस्त. आत्माना मूळ गुणनो (*सं. सरुज); जुओ सरुवे सर्वांशे घात करनार कर्म (जै.) सर्वथा, सर्वथी प्रेमाका. हरिख्या. हरकोई रीते, [पूर्णतया ], जरूर, खचीत (सं.) सर्वस गुर्जरा. दशस्कं ( 9). नरका. प्रबोप्र. सर्वस्व, बधुं ५०६ जेवुं लाकडानुं एक साधन सरुदे प्रेमाका. सहृदय, हृदयवाळो [लागणी वाळी, दयालु] सरुवे नरका. सूरीला, मीठा, [ खुल्ला, मोटा ]; सर्वस्त प्रेमाका. सिंहा (शा). सर्वस्व सर्वेश चित्तसं. सर्वनो ईश, चैतन्य के ब्रह्मस्वरूप जुओ सरुइ सरुवो जुओ सरुओ सरूं अखाछ. छेडों, अंत, [ छेवट ]; जुओ सर्वोसरु शराडुं सरू कस्तुवा चरु ('च'नो 'स' उच्चार) सरूआ * चारफा. [ सरळ, सीधा, तरत असर करे तेवा ] सरूप आरारा. चित्तसं. स्वरूप सरूप आरारा. हकीकत, वृत्तांत (रा.) सरे अखाका. अखेगी. चित्तसं. अंते; अखाका. सराडे, मार्गे सरे ऐतिका. स्वरथी सरेण चंद्रवा . ? सरेणीआ कामा (त्रि). सराणिया ? सरेस उषाह. साथै [सं. सदृश ] सरोडां अखाछ. ०दशस्कं (१). प्रेमाका. राडां, [सूकां, रसकस वगरनां मलोखां] सर्खप शृंगामं. सरसव (सं. सर्षप) सर्त्ति जुओसरत सर्पण दशस्कं ( 9). सरपण, बळतणनां लाकडां 2010_03 उक्तिर. सामान्य सभाखंड, दीवाने - आम (सं. सर्वावसरः) सळ प्रेमाका. सोळ, मारनी लीटीओ सलइ * विमप्र. [सळवळे ] सळका प्रेमाका. प्रबळ इच्छा लक्खण गुर्जरा. सुलक्षण, सारां लक्षणोवाळी सलग चित्तसं. संलग्न, जोडायेलुं, सळंग, एकरूप सलग कृष्णबा. सणगो, कोंटो सळ बेसे अखाका. मेळ पडे, सरळ बने, [समजण पडे ] सलसलीआ लावल. सळवळ्या, [हलमल्या] सलहइ प्राचीसं. प्रशंसा करे (सं. श्लाघ; हिं. सराहना सलहियइ ऐतिका. प्रशंसा करवामां आवे छे सलहीजइ, सलहीज्जइ, सलहीयइ गुर्जरा. Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५०७ सलाख/सवाली जिनरा. वखणाय, प्रशंसा थाय (सं. सब प्राचीका. शिव, महादेव श्लाघ्यते) सवइ विक्ररा. सर्वे सलाख (सलाख करी) नरका. *चलाखो, सवइ वार उक्तिर. सर्वदा, सदा; जुओ सवि *गांसडी, [*पोटली बांधी वार सलावइ शृंगामं. सालवे, [खूचाडे] [सं. सवकि आरारा. सावकी (सं.सपत्ली) शल्य-] सवच्छी, सवछी दशस्क(१). प्रेमाका. सलाह उक्तिर. श्लाघा सिंहा(शा). सवत्सा, वाछरडावाळी, सलि* गुर्जरा. [*बंधनमां, *सकंजामां] [रा.] वाछडा साथे सलिउं प्रधुचु. ('सल्लिउं'ने स्थाने) साल्युं सवट्ठसिद्धि (सबट्ठसिद्धि) ऐतिका. (सं.शल्य परथी); जुओ सल्लइ सर्वार्थसिद्ध (अनुत्तर विमानो), दिवसलिता, सलीता अखाका. अखाछ. लोकनुं नाम] [जै.] चित्तसं. नंदब. प्रेमाका. सरिता, नदी सवडि प्राचीसं. सोड, [रजाई, ओढण] दि. सलील वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. सउडि] वसंवि(ब्रा). लीलायुक्त, सुंदर (सं.) सवण गुर्जरा. कान (सं.श्रवण) . सलुणो नरप(द). मनोहर, सुंदर [सं.सलवण] सक्त्ती शृंगामं. सपली, शोक्य सलूझ अखाछ. समजवू, [जाणवू] सवन्न आरारा(व). शीवण, सवननुं झाड सलूणउं ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. (सं.श्रीपर्णी) प्राचीसं. प्रेमाका. वीसरा. सलोj, सुंदर सवलह- प्राचीसं. विलेपन करवू दि.] (सं.सलवणक) सवा *विमप्र. [सवायो लाभ ए अर्थनो सलूणडा ऐतिका. सुंदर उद्गार] सले बख्तर *प्रेमाका. [सले (एक प्रकार- सवाडूउ उक्तिर. सानुकूल; जुओ सावडू बखर) तथा बख्तर] [अ.सिलह; रा.] सवाणो अखाछ. आरामथी, [साजोसमो] सल्ल गुर्जरा. तेरका. शल्य, साल, पीडारूप सवार उक्तिर. सवेळा, शीघ्र सल्लक्षण आनंस्त. सारा लक्षणवाळी [सं.] सवारा, सवारां नरका. प्रेमाका. लावल. सल्लइ नेमिछं. साले, [खूचे (सं.शल्य); सवेळा, शीघ्र, वहेलां जुओ सलिउं सवारी अखाका. प्रेमाका. सवेळा, जलदी; सलुद्धात षटिप. (अधर्मरूपी) शल्य दूर जुओ संवारी करवू ते (सं.शल्योद्धार) सवारुं, सहवाळं दशस्क(१). प्रेमाका. सव गुर्जरा. नलाख्या. षडाबा. बधा (सं. सवेळा, वहेलु, जलदी सर्वे); जुओ सेव सवाली [अवाली] 'शृंगाम. [अवाळु, 2010_03 Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहड सवां/सहड ५०८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश दांतनां पेढां] [द.अवालुआ] ससउ नलरा. ससलो (सं.शशक) सवां गुर्जरा. सोनानुं (सं.सुवर्ण-) ससमय जिनरा. स्वशास्त्र, [स्वमत] [सं.] सवि आरारा. ऐतिका. कादं(ध). कादं(शा). ससहरु ऐतिका. शशधर, चंद्र गुर्जरा. तेरका. नलरा. नेमिछं. प्रद्युचु. ससा गुर्जरा. नेमिछं. ससलां [सं.शशक] प्राचीसं. लावल. वसंफा. वसंफा(ल). ससिया अखाका. श्वसिया, श्वास लीधो वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. सौ (सं.सर्वे) ससिर ऋषिरा. ठंडु (सं.शिशिर) सविकहि ऋषिरा. नलरा. सौ कोई ससिवयणि, ससिवयणी ऐतिरा. शशिसवियारां शृंगामं. सविकारा, विकारयुक्त वदनी, चंद्र जेवा मुखवाळी सविलक्ख कृष्णच. झंखवाणो [सं.सविलक्ष] ससिहर प्राचीसं. लावल. शशियर, चंद्र सवि वार गुर्जरा. चारफा. तेरका. हमेशा (सं.शशधर) (सं.सर्वे+वारा); जुओ सवइ वार ससीअर कामा(शा). चंद्र [सं.शशधर] सविसविहूं लावल. सर्वथी, बधांथी ससुधा नेमिछं. सुधा - अमृत सहित सविहु नलरा. सर्वे ससुर अंगवि. कृष्णबा. प्राचीफा. सुस्वर, सविहूं गमा उक्तिर. बधी बाजु मधुर स्वरवाळु सवील जिनरा. युक्ति, [उपाय, रस्तो] [अ. ससुर, ससुरउ प्राचीसं. षडाबा. ससरो सबील (सं.श्वशुर) सवे लावल. सर्वे ससूग उक्तिर. दयाळु (सं.सशूक); उपबा. सवेकंहुनू कृष्णबा. सौनो, [सौ कोईनो] सूगवाळो सवेध (रसकसवेध) "प्राचीफा. [रस, कस सह गुर्जरा. बधा (सं.सह) (परीक्षा) अने विदग्धता सहइकार हरिवि. आंबो (सं.सहकार) सवेलीय हरिवि. *सवेळा (के सवेली, वेली सहकार गर्जरा. प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. साथे ?) वसंवि(ब्रा). आंबो (सं.) सवो जुओ सुवो सहगुरु आरारा. प्राचीफा. लावल. शुभगुरु सब ऐतिका. सर्व सहजि सलूणओ चारफा. सहजसुंदर, सबरिय ऐतिका. रातमां [सं.शरी] स्वाभाविक रीते ज मनोहर (सं.सहज+ सबसिद्धि जुओ सवट्ठसिद्धि सलवणकः) सश्रुषा आरारा. शुश्रूषा, सेवाचाकरी, सार- सहजोगी जिनरा. सयोगी [केवली], [जेमां संभाळ शरीरादिना व्यापारो होय छे एवी केवल सस उषाह. *ससणी, [*शोष] - शुद्ध ज्ञाननी आत्मावस्था] [जै.] ससइ उक्तिर. श्वास ले (सं.श्वसिति) सहड गुर्जरा. योद्धो (सं.सुभट) 2010_03 Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५०९ सहण/सहिसातकार सहण वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). सहन समुदाय करवू ते सहार प्राचीसं. आंबो (सं.सहकार) सहमो चतुचा. समय, समो सहावो आरारा. स्वभाववाळो सहराये अखाका. अखेगी. प्रशंसा करे, सहि तेरका. सखी; जुओ सही आनंद पामे; जुओ सराय, सराहे सहि * वसंवि(ब्रा). [*साथे, *सखी] सहलउ *ऐतिका. [सफळ, सार्थक] सहि, सहिउ, सहीय गुर्जरा. साथे (सं. सहवायो प्रेमाका. पकडायो __ सहित); [*खरेखर] सहवाळं जुओ सवारुं सहि ए ऐतिका. हे सखी सहस, सहिस उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. सहिकार आरारा. आंबो (सं.सहकार) नेमिछं. लावल. वीसरा. सहस्र, हजार सहिकार विमप्र. [जयजयकार] [सं. सहसकूट ऐतिका. हजार शिखरवाळु मन्दिर साधुकार] सहसकरु ऐतिका. सूर्य, हजार किरणवाळो सहिगुरु नलरा. नेमिछं. लावल. विमप्र. सहसफूल नलरा. स्त्रीचं एक घरेणुं हम्मीप्र. कल्याणकरी गुरु [सं.शुभगुरु सहसरसनि ऐतिरा. हजार जीभ वडे सहिज सिंहा(म). उदारता; जुओ कुसहिज, सहसंबवण चारका. प्राचीफा. अनेक सेहज आंबानां वृक्षोवाळु (सं.सहस्राम्रवन) सहिजइ ऋषिरा. सहजभावे, स्वाभाविक रीते सहसा चित्तसं. एकाएक सहिथउ, सहिथिउ उषाह. सेंथो [सं. सहसाराम तेरका. सहस्राराम, [अनेक सीमंत-] आंबावाळु उद्यान] सहिनाण गुर्जरा. जिनस. वीसरा. लक्षण, सहस्र-कमळ प्रेमाका. कमळ जेवी हजार चिह्न, ओळख (सं.*साभिज्ञान) आंखवाळा इन्द्र सहिय वसंफा (ल). *संखी; वसंवि(ब्रा). सहस्स षडाबा. सहस्र, हजार खरेखर सहाई ऋषिरा. सहाय, मददगार, [मित्र] सहिय तेरका. सहित सहाजो प्रेमाका. "सहाय करजो, [*छाजो, सहियर ऐतिका. सखी *शोभजो] सहियाणी जुओ सयाणी सहाय आरारा. साथोसाथ ? सहियारी दशस्कं(२). शाकणनी सहियर सहाय अखाका. साहे, पकडे, ग्रहण करे डाकण?, [*कोई अधम देवजाति]; [सं.साध्] प्रेमाका. सखी, सहियर सहायी *आनंस्त. [बंधुजन, मित्र] [सं.] सहिस विक्ररा. सहस्र; जुओ सहस सहायीयांनउ समूहु उक्तिर. बंधुजनोनो सहिसातकार सिंहा(म). एकाएक, [वगर 2010_03 Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिसिउ / संका विचार्यापणुं ] सहिसिउ विमप्र . सहन करशो [ सं . सह] सहि नरप सिंह सही चित्तसं. खरी, साची, चोक्कस; ज, भारवाचक अव्यय सही कृष्णबा. दशस्कं ( 9). प्रेमाका. सिंह सही अखाका. आरारा. *कादं (शा). कामा (त्रि). गुर्जरा. दशस्कं ( १ ). नरका. नेमिछं. प्रेमाका. लावल. विराप. नक्की, खरेखर, साचुं ५१० सहीअ ऋषिरा. विमप्र. सहियर, साहेली, सखी सहीआरु ऋषिरा. मित्रता सही वसंवि. हे सखी सही वसंवि. सहन करी शकाय [सं. सह] सहीजन प्रेमाका. सखीजन, सहियरो सहीतुं अखाका साथेनुं, साथे रहेलुं सहीय तेरका सहित; जुओ सहि सहीय आरारा. सखी, सहियर सं प्राचीका. शाथी, केम (सं. किदृशं ) सही, सहि गुर्जरा. नरका. वसंफा. वीसरा. संक विक्रच. शरम, लाज [सं. शंका ] सखी मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सहीस्युं आरारा. जरूर (रा. ) सहीं प्रेमाका. मदमो. सिंह सहु-कां अभिऊ. सहु कोई (सं. सर्व + खलु+ कानिचित्) सहु नडिया ऐतिका. बधा नष्ट थया 2010_03 सहू चंद्रा. हु सहे प्रेमाका. सहा थाय, माफक आवे, [ अनुकूळ आवे ] सहेटि प्रचुचु. ? सहेसां चित्तसं. सहसा, एकाएक, आकस्मिक सहो जुओ सीहो सहौ उषाह, सौ सं पंचवा. ने सहीयारणी सिंहा (शा). संहारणी, [संहार संकल प्राचीफा. सांकळ (सं. शृंखला) संकलेस आनंस्त. क्लेशवाकुं, [दुःखरूप] [सं. संक्लेश] करनार ] सहीलंकी कामा (त्रि). सिंहना जेवी पातळी केडवाळी संकइ * अभिऊ. [गभराय, भयभीत थाय ]; उक्तिर. वसंफा (ल). *वसंवि (ब्रा). संशय करे, [धारे, नो भय राखे ]; वीसरा. भयभीत थाय, संशय धरे, [लज्जित थाय] (सं. शंकते); जुओ शंकवुं संकट * वसंफा. *वसंवि (ब्रा). [-थी भरेला ]; जुओ कंटकसंकट संकटाव्या * प्रेमाका. [ दबावीने, बच्चे जग्या राख्या वगर गोठव्या ] संकरम्यो प्रेमाका. संक्रम्यो, गयो, पेठो संकष्ट दशस्कं ( १ ). संकट संकंदिण प्राचीसं . इन्द्र ( सं . संक्रन्दन) काण उपा. शंका धरावतो, [भीति धरावतो] संकात उपबा. शंका पामतो, [भय पामतो] Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५११ संकारिय/संच संकारिय प्राचीसं. अंत्येष्टि क्रिया करी संग्रइ आरारा. ग्रहण करे, ले (रा.) [सं.संस्कारिता] संग्रही आरारा. ग्रहण करीने, लईने, धरीने संकाश ०ऋषिरा. सरखो [सं.] (रा.) [सं.संग्रह्] संकीर्ण दशस्क(१). प्रेमाका. सांकडु [सं.] संघ उषाह. देवरा. सिंह संकुचइ उक्तिर. संकोचाय, लज्जित थाय संघकेसरा आरारा. सिंहकेसरा, लाडुनी एक (सं.संकुचति) जात; जुओ सिंघकेसरा संकुल तेरका. व्याप्त, युक्त (सं.) संघयण जिनरा. शरीरनुं संगठन, [हाडकांसंकोडी नरका. खेंची, [ओर्छ करी, हरी] ना सांधाओनो मेळ, ए निर्णीत करतुं (सं.संकृष्ट); षडाबा. संकोची, ओछु नामकर्म] [सं.संहनन] [जै.] करी, समेटी संघवइ ऐतिका. संघपति, संघनायक संक्रमइ आनंस्त. संक्रमण करे संघवाछल्य आरारा. पोताना धर्मना लोको संक्रमाविया षडाबा. खसेड्या, एक स्थानेथी प्रत्ये अनुराग [सं.संघवात्सल्य बीजे स्थाने मूक्या (सं.संक्रम् परथी) संघाडउ जिनरा. देवरा. *षडाबा. (साधुओसंक्रोश प्रेमाका. विलाप, [दुःखनो चित्कार] नो) समुदाय (सं.संघाटक); जुओ साधुसंक्षा चित्तसं. संख्या, (अहीं) वजनियानां संघाडउ संघात ऋषिरा. समूह (सं.) संक्षेपइ उक्तिर. ढूंकावे (सं.संक्षिपति) संघात, संघाति अखाका. आरारा. ऐतिका. संख अभिऊ. ऐतिरा. संख्या चतुचा. जिनरा. ललिरा. संगाथ, साथ; संख गुर्जरा. तेरका. वसंफा. वसंफा(ल). सगाथ, साथ [स.] शंख संघाथे रूस्तस. सिंहा(शा). संघाते, साथे संखारा (संखारा ऊलटिया) पाणी गाळ्या संधार अखाका. कामा(त्रि). कामा(शा). पछीनो [कपडामांनो] कचरो [गमे त्यां दशस्क(१). दशस्कं(२). प्रेमाका. संहार नाख्यो] संघारण चित्तसं. संहार संखाहोली उक्तिर. शंखावली, एक वनस्पति संघार चंद्रवा. दशस्कं(१). संहार, (सं.शंखपुष्पी) संघारो प्राचीफा. नाश, हिंसा (सं.संहार) संखेपइ शीलक. संक्षेपमां, ढूंकमां संघासन कृष्णबा. सिंहासन संखेव आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. गुर्जरा. संघाहिव तेरका. संघाधिप, [संघपति] सिंहा(म). संक्षेप,, ढूंकाण संच अखाका. चतुचा. नलाख्या. नंदब. संगर गुर्जरा. युद्ध (सं.) प्रेमाका. मदमो. शीलक. शंगाम. युक्ति, संगहणइं आरारा. ग्रहण, लेवू ते (रा.) उपाय; अखाछ. अंदरनी करामत, माप 2010_03 Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संच/संडासा ५१२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [रचना; युक्ति, उपाय]; कादं(धु)-टि. संजलनउ जिनरा. संज्वलनवाळो, कषायनो जुक्ति, साचवट, [काळजी]; रचना; एक प्रकार, तद्दन सादा, ट्रॅक समय *चाळो, [युक्ति, उपाय]; *ताल, [युक्ति, रहेनारा मनोविकारो] [जै.] करामत]; चित्तसं. करामत, युक्ति, संजा कामा(त्रि). संध्या, सांज रचना, गोठवण, आंटीयूंटी; तंत्र, विधि; संजिम प्राचीफा. दीक्षा, संसारत्याग (सं. चंद्रवा. भेद, रहस्य; [युक्ति; व्यवहार] संयम) संच आरारा. संचय, संग्रह; प्रेमाका. संजुउ जिनरा. संयुक्त मोसाच. सामग्री, सरसामान संजुत्त आरारा. ऐतिका. संयुक्त, मिश्रित, संचइ उपबा. गुर्जरा. प्राचीसं. वीसरा. भेगुं सहित करे, संघरे; प्रेमाका. [मनमां गोठवाय, , संजोडि जिनरा. साथेसाथे, एकसाथे बेसे, गोठे], रुचे (सं.संचि.) संजोव- प्राचीसं. एकत्र करवू, संचित करवू संचकार उक्तिर. वस्तुनी लेवडदेवडमां (सं.संयोज्; हिं.संजोना) अपातुं बानु, (सं.सत्यङ्कार); ऋषिरा. . [बानारूप वस्तु], [निश्चित] संकेत रूप संज्ञा आरारा. समानता, सचेतता (सं.) वस्तु]; *गुर्जरा. विराप-अनु. [बान], संज्यम चित्तसं. संयम [आगोतरी] जोगवाई संझ तेरका. सन्ध्या, सांज; ऐतिका. षष्टिप्र. संचर विक्रच. हिलचाल, संचार संध्या, [संधिकाळ, दिवसना भाग] संचरे चित्तसं. जाय, गति करे, पहोंचे संझेरण * विमप्र. [साफसूफी, व्यवस्थित संचलिते आरारा. हलनचलनथी करवू ते] संचवण्य आरारा. मिश्रित थयेल. तैयार संझ्याकाल देवरा. संध्याकाळ थयेल (रा.) संठ- वीसरा. मूकवू, जोडवू (सं.संस्था-) संचा देवरा. संचित करेला संठवइ ऐतिका. शृंगामं. स्थापे, मूके संचारि आरारा. नाखे [सं.संचारयति] संठाविउ ऐतिका. तेरका. स्थाप्यो, नीम्यो संचे * नरका. [संचमां, लागमां] . (सं.संस्थापित) संचेत मदमो. सचेत, [जाग्रत, काळजी- संठिउ ऐतिका. स्थापित थया (सं.संस्थित) वाळो] संठिवउ *ऐतिका. [स्थाप्या] [सं. संजत वीसरा. तैयारी, सजावट दि.संजत्ति] संस्थापित] संजम आरारा. उपबा. ऐतिका. गुर्जरा. संड * उषाह. नलरा. विक्रच. हम्मीप्र. सांढ तेरका. देवरा. षडाबा. संयम; जैन (सं.षण्ड) साधुदीक्षा संडासा षडाबा. [साथळ, पग वगेरेनां संधिसंजमसिरीय जुओ सिरीय स्थानो] [प्रा.संडास, सं.संदंश] 2010_03 Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५१३ संत/संधे संत आरारा. निर्मल, चोख्खां, सारां (रा.) (सं.संस्तुनोति) संता ऋषिरा. [संतप्त, दुःखी] संद उक्तिर. तणछनुं झाड, [*एनो गुंद] संतान वसंवि(ब्रा). श्रेणी (सं.); जुओ (सं.स्यन्दन) किशलसंतान संदरी प्राचीफा. सुंदरी संतानीअ षष्टिप्र. वंशज (सं.संतानिक) संदिसइ उक्तिर. आज्ञा - रजा आपे (सं. संतापण वसंफा. वसंवि(ब्रा). संताप सन्दिशति) आपनार [सं.संतापन संदिसावउं षडाबा. अनुज्ञा मागुं संतावइ गुर्जरा. तेरका. षडाबा. संतापे, संघ अखाका. संधु, बधुं तपावे, पीडे [सं.संतापयति] संधाण गुर्जरा. प्रेमाका. बाण पर तीर संतावण गुर्जरा. संताप आपनार (सं. मूकबुं ते, ताकवानी क्रिया, निशान संतापन) (सं.संधान) संतावियउ आरारा. संतप्त, थाकेल; तेरका. संधि ललिरा. फाट [सं., प्रा.] संतापित संधि नेमिछं. सांधा; प्राचीसं. -, [काव्यनो संति जुओ जंति रचनाप्रकार] [सं.] संति आरारा. छे संधि-बंध प्राचीसं.-, [संधि नामनो काव्यसंतिकरउ गुर्जरा. शांति आपनार नो रचनाप्रकार] [सं.] संतु गुर्जरा. शांत, भलो संधियउ उक्तिर. धनुष्य पर बाण चडाव्यु संतुट्ठ ऐतिका. संतुष्ट (सं.सन्धितः) संतोक मदमो. संतोष संधियमक वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). संतोख नरका. संतोष आंतर्यमक (सं.) संत्रुष्ट दशस्कं(२). संतुष्ट संघिरेहु नलरा. संधिना दस्तावेज लखनार संथउ प्राचीफा. सेंथो (सं.सीमन्तकः); जुओ (सं.संधिलेखक) संधी सोरी प्रेमाका. संधी – बधी सोरी - संथव ऐतिरा. संस्तव, स्तुति __उझरडीने, [संपूर्णपणे] . संथारउ उक्तिर. उपबा. देवरा. षडाबा. संधू अभिऊ. सिंदुवार, नगोडनां वृक्ष साथरो, साधुओनी शय्या; ऐतिका. संधूखइ उक्तिर. उत्तेजित करे, प्रज्वलित [माया-ममता, खानपान तजी मरण- करे (सं.संधुक्षते) पथारी करवी] (सं.संस्तारक) संधूखण, संधूषण उक्तिर. षडाबा. अग्नि संथुउ जिनरा. स्तुति करी (सं.संस्तुतः) पेटाववो ते (सं.संधुक्षण) संथुणइ ऐतिका. षष्टिप्र. स्तवे, स्तुति करे संधे कामा(त्रि). कामा(शा). मदमो. संदेह फाड 2010_03 Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संनाह/संभवइ ५१४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संनाह गुर्जरा. प्रेमाका. वसंफा. वसंवि. संपुत्त प्राचीफा. उपस्थित, आवी पहोंच्यो वसंवि(ब्रा). बख्तर (सं.) (सं.संप्राप्त) संनिवेस षडाबा. घर (सं.संनिवेश) संपुनी तेरका. भरेली (सं.संपूर्ण+इका) संनेह आरारा. स्नेह संपुष्ट दशस्कं(१). दशस्क(२). संपुट संपइ आरारा. संप्रति, हालमां, अत्यारे संपूरिय गुर्जरा. भरेली (सं.संपूरिता) संपइ आरारा. प्राप्ति थाय (सं.संपद्यते) संपेखि ०जिनरा. जोईने [सं.सं.+प्रेक्ष] संपइ आरारा. संपत्ति (सं.संपद्); वसंफा. संप्रदा अखाका. संप्रदाय वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). संपत्ति, शोभा; संप्रेडिउ आरारा. ललिरा. विक्ररा. वळाव्यु, जुओ वनसंपइ मोकल्यु संपचूड गुर्जरा. सर्पचूड नामनुं शस्त्र संफोडतउ उपबा. वेडफतो, नष्ट करतो (सं. संपजइ उक्तिर. सांपडे, प्राप्त थाय (सं. स्फोट) [सं.सं+स्फोट] संपद्यते); आनंस्त. "जिनरा. षडाबा. संबर गुर्जरा. साबर (सं.शंबर) सांपडे, नीपजे, सिद्ध थाय; कृष्णच. संबल, संबलउ आरारा. ऐतिरा. विमप्र. छे; थाय वीसरा. भातुं (रा.) [सं.शंबल] संपड- प्राचीसं. सांपड, [सं.संपत्] संबंध आरारा. नलरा. हम्मीप्र. कथाप्रकरण, संपडावीए प्रेमाका. प्राप्त करीए । वृत्तान्त (सं.) संपतउ (=संपत्तउ) प्रद्युचु. आवी पहोंच्यो संबंधिउ षडाबा. संबंधी, स्नेही; -ने लगतुं __(सं.संप्राप्त) संबंधिवउ षडाबा. जोडवू *संपत-प्रभु (सपत्नप्रभु) *प्रेमाका. [वैरीओ संबाहइ आरारा. उक्तिर. निभावे, संभाळे पर प्रभुत्व मेळवनार] [सं.] (सं.संवाहयति) संपत्त आरारा. संप्राप्त, पहोंच्यो संबि विमप्र. श्यामिका, काळाश संपत्तउ जुओ संपतउ संभम प्राचीफा. [-थी जन्मेल], संतति (सं. संपत्तु ऐतिका. पहोंच्या संभव) संपनउ आरारा. मळ्युं, प्राप्त थयु (सं.संपन्न) संभराणीव्रत गुर्जरा. *एक प्रकारनुं व्रत संपन्नउ उक्तिर. गुर्जरा. सज्ज संभरिउ गुर्जरा. सांभर्यु (सं.संस्मरति) संपय ऐतिका. संप्रति, [हालमां] संभलइ गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. सांभळे संपाडी कादं(ध्रु). मेळवी [सं.संपात् (सं.सम्+भल्) संपादq प्रेमाका. स्वीकार, [सं.संपाद] संभव तेरका. जन्म (सं.) संपुटि आरारा. माटीनां कोडियांनी जोड संभवइ *प्रेमाका. षडाबा. थई शके, होई पग मूकी भांगी नाखवानी विधि शके, थाय, होय [सं.संभवति] 2010 03 Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५१५ संभाग/संसृत्य संभाग *नलरा. [भोजनमांथी हिस्सो संवच्छर प्राचीसं. संवत्सर, [वार्षिक आपवो ते] (सं.) कालगणना] संभार आरारा. षडाबा. सामग्री, मसालो संवच्छरदाणूं प्राचीफा. [तीर्थंकर दीक्षा ले (सं.); आरारा. तेरका. समुदाय, समूह ते पूर्वे] एक वर्ष पर्यंत अपातुं दान (सं.) (सं.संवत्सरदान) संभारीयइ आरारा. बतावीए (रा.) संवच्छरिय षडाबा. वार्षिक, [संवत्सरीनुं] संभाल- प्राचीसं. सांभळवू [सं.] (सं.सांवत्सरिक) संभावइ गुर्जरा. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). संवछर नंदब. संवत्सर, [वर्ष] नो भाव धरे, संभावना करे, माने, धारे संवखं अखाका. उक्तिर. दशस्कं(१). [सं.संभावयति]; प्रबोप्र. माने, [आदर प्रेमाका. विक्ररा. संवरण करवू, संकेली करे] लेवू, समेटवू, बरखास्त करवू, [नाश संभावना दशस्क(२). सार-संभाळ; प्रेमाका. करवो] [सं.संवृणोति] खबर-अंतर, [सारसंभाळ] [सं.] संवरवे *आनंस्त. [रोकवा वडे] संभावियउ ऐतिरा. संभावित, [-थी युक्त] संवरगुण गुर्जरा. *संयभगुण, [कर्मनिरोधनो संभावीइ उपबा. गणाय, [थाय, होय] गुण] [जै.] संभूषी षडाबा. शणगारी (सं.संभूष) संवाद प्रेमाका. वादविवाद संमच्छर तेरका. संवत्सर, [वर्ष] संवाय प्रेमाका. समूह, समुदाय [सं.समदाय] संमतुल मदमो. समतुल्य, [तेना जेवो] संवारी नरका. सत्वरे, जलदी; जुओ सवारी संमदा ऋषिरा. हर्ष [सं.]: कृष्णच. *तैयारी, संवास जिनरा. शृंगामं. सहवास [सं.] ["हर्ष, *सुख संवेग आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. वैराग्य, संमर्द कादं(शा). भीड, गिरदी (सं.) मोक्षनी अभिलाषा (सं.) संमंध अखाका. कृष्णच. चित्तसं. संबंध संवेगिणी ऋषिरा. वैरागिणी संमार्जनी प्रेमाका. सावरणी [सं.] संवेगी आरारा. ऐतिका. वैरागी, मुमुक्षु 'संमिणी तेरका. स्वामिनी, अधिष्ठात्री] संशे अखाका. चित्तसं. संशय संमेयशिहर तेरका. समेतशिखर संसइ, संसउ आरारा. संशय संयमनी प्रेमाका. यमपुरी; *गुर्जरा. [*यम- संसह्या स्थूलिफा. सह्या; जुओ सांसता __ पुरी, *कारावास, बंधननी स्थिति] (सं.) संसारीउ उपबा. संसारी मनोभाववाळो संयुगत रूपच. संयुक्त, साथे संसालणे *गुर्जरा. [पंपाळ्ये, चंचवाळ्ये] संलेहण आरारा. संलेखना, अनशनव्रतनुं संसाळ्ये अखाछ. चचवाळ्ये अनुष्ठान [जै. संसृत्य अखेगी. संसृति, संसार 2010_03 Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसो/साख्यात ५१६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . संसो जिनरा. संशय भिन्न नथी)] संस्कार हरिख्या. अग्निसंस्कार साकुली उक्तिर. एक प्रकारनी पूरी, एक संस्तवउं षडाबा. स्तुति करूं, वंदु, [कहुं] मीठाई (सं.शष्कुली) संम्रत्य चित्तसं. संसार (सं.संसृति) साख नरका. नरका-२. “लावल. *पाकी संहट गुर्जरा. मळवू ते (सं.संघट) केरी, [झाड उपर] पाकेतुं फळ संहरी वाग्भबा. (धूळ) हेठे बेसाडी, भिगी साख आरारा. शाखा, डाळी करी] [सं.संह-]; षडाबा. दूर करी, साख, साख्य अखाका. आनंस्त. उपबा. नष्ट करी प्रेमाका. नरका. साक्षी, साक्ष्य, साहेदी संहारि देवरा.करीने, [लावीने] [सं.संहारय] साखइ आरारा. साक्ष्यमां, हाजरीमां, समक्ष सा आरारा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. लावल. साख गळवी नरका-२. फळ पाकुं थQ वीसरा. ते (स्त्री); तेवी (सं.) साखात कामा(त्रि). साक्षात्, [रूबरू] साअ कामा(शा). सहाय साखि आरारा. साक्ष्य, प्रमाण, पुरावारूप सार, साहेर कामा(त्रि). सागर कथन; प्राचीका. गुर्जरा. षडाबा. साक्ष्य, साइ आरारा. साही, पकडी साख, साहेदी; आरारा. षडाबा. साक्ष्यसाइउ, सांइ प्राचीफा. आलिंगन (सं.स्वंज् । मां, साक्षीपणामां, जाणपूर्वक, सान्निध्यअथवा स्वागत) मां, समक्ष साइणि उक्तिर. प्राचीसं. शाकिनी, साखि अभिऊ. झाड पर पाक उपर चडेलु [पिशाचिनी फळ साइरधर कृष्णबा. सागर धरनार, सागरने साखियउ वीसरा. साक्षी, साहेद साखी उक्तिर. कामा(त्रि). कामा(शा). साई देवरा. सांइ, आलिंगन __ नरका. ०प्रेमाका. साक्षी, [साहेद] साउकि आरारा. सावकी (सं.सपत्नी) साखीउ आनंस्त. *साक्षी, [सहायक] साएक मदमो. सहायक साखीओ मदमो. साक्षी, [साहेद] साकउ *जिनरा. *सिंहा(शा). [रोफ, साखीया लावल. साक्षी, [साहेद] दमाम, वट, प्रभाव] [अ.सिक्कः]; जुओ साखे * चतुचा. ["संबंध जोडे] [रा.] साखो साखो *मोसाच. [रोफ, दमाम, वट, साकण आरारा. चूडेल (सं.शाकिनी) प्रभाव]; जुओ साकउ साकत आरारा. बहुमूल्य, सजावटयुक्त (रा.) साख्य चित्तसं. साख, साक्षी; जुओ साख साकरतुं नालकेल *अखाका. [साकर वडे साख्य मदमो. साखी, [ए नामनो पद्यबंध] बनावेलुं नाळियेर (जे साकरथी तत्त्वतः साख्यात चित्तसं. साक्षात्, साक्षात् स्वरूप, पीनार 2010_03 Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५१७ साग/साता साक्षात्कार, साक्षात्पर्यु साटकडे नरका. नरप(द). चाबुक वडे साग प्राचीसं. स्वर्ग साटका प्रेमाका. सोटीनो मार ...। सागडी, सागडीत उक्तिर. नलरा. रथ साटिका शृंगाम. साडी हांकनार (सं.शाकटिक) साटिकु विमप्र. साटको, [घा] सागमटे प्रेमाका. सहकुटुंब साटे नरका. साटामां, बदलामा, गणतरीमां, सागर, सागरोपम गुर्जरा. एक काळविभाग लेखामां (सं.) [जै.] साटौ जिनरा. सोदो *सागरि (सांगरि) * विमप्र. [शमी वृक्षनी साठि गुर्जरा. साठ (सं.षष्टि) सींग, जेनुं शाक बने छे] दि.संगरिया; साठि उक्तिर. उपबा. विमप्र. विराप. रा.सांगरी षडाबा. साठ (सं.षष्टिः) सागरोपम जुओ सागर साठिसउ षष्टिप्र. एकसो साठ (सं.षष्टिशत) सागवंन मदमो. सहगमन, [पतिनी साथे साठी उक्तिर. साठ वर्षनी उंमरनो (सं. स्त्रीए बळी मरवू ते] षष्टिकः); नरका. साठनी संख्या[वाळां सागोटियो हरिख्या. सागनो वेपारी वर्षों - उमरनां] साचणां उषाह. साचां, [खरेखरां, विधि- साड प्रेमाका. विनाश, [विखंडन, विदारण] पूर्वकनां] (सं.सत्य उपरथी) [सं.शाट] साज (साह्य) देवरा. मदद (सं.साहाय्य) साडूल आरारा. शार्दूल, सिंह साज सिंहा(शा). साधन [सं.सज्य] साढा (पांच/नव) आरारा. उक्तिर. नेमिछं. साजइ तेरका. प्राचीसं. प्रेमाका. मोसाच. साडा[पांच, नव इत्यादि] (सं.स+अध) सज्ज करे, तैयार करे; वीसरा. सजे, साण * जिनरा. [गाढ] [सं.श्यान] धारण करे [सं.सज्जति] सात अखाछ. "सत्य, [*सारी पेठे, *घj, साजण * ऋषिरा. गुर्जरा. स्वजन, [प्रिय *खरेखर] व्यक्ति सातइ धात ऋषिरा. शरीरमा रहेली सातेय साजनउं नेमिछं. साजणुं, स्वजनोनो समूह धातु साजि * कादं (शा). [साह्य, सहाय] सातगारव षडाबा. सुखनुं अभिमान (सं. साज्य चंद्रवा. सज्ज ?, [*साह्य, मददगार] सात+गौरव) साट * गुर्जरा. [चामडानो पट्टो, चाबुक; सातपरिया उक्तिर. [?] (सं.सप्तपर्याया) विमप्र. पट्टो सातभूमि आरारा. सप्तभूमि, सात माळवाळू साटइ-पालटइ विमप्र. अदलाबदलीथी, सातमि उक्तिर. सातम (सं.सप्तमी) [वस्तुविनिमयथी] साता आरारा. ऐतिका. देवरा. शांति, सुख, 2010_03 Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात/सान ५१८. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश आनंद, कुशळता [सं.] सादूल उक्तिर. शार्दूल, सिंह सातां उपबा. कस्तुवा. सातनो समुदाय साध अखाका. उक्तिर. देवरा. नरका. (सं.सप्तकानि) प्रेमाका. साधु, संत, सज्जन सातिउं *गुर्जरा. विक्रच. विराप. षष्टिप्र. साध प्राचीसं. श्राद्ध ढांक्युं, संताङ्यु*षडाबा. [साचव्यु, साधइ आनंस्त. आरारा. उपबा. गुर्जरा. संभाळ्यु] [सं.सत्यापित जिनरा. सिद्ध करे, पार पाडे, जीते सात उक्तिर. षडाबा. साथवो, शेकेलो लोट (स.साधयति) (सं.सक्तु) साधन आरारा. साधना सात्थरीआ हम्मीप्र. साथरो - गोदडुं । के साघम्मिय षष्टिप्र. समान धर्मना अनुयायी बनावनार कारीगर सिं.सस्तर परथी]. (स.साधामन्) साधर पहोती प्रेमाका. [गर्भवतीनी] इच्छा साथ उक्तिर. प्राचीसं. प्रवास करता वेपारी ___ पूरी थई [सं.श्रद्धा]; जुओ सादर, साध्र ओनो समुदाय; वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि(ब्रा). समुदाय (सं.सार्थः) साधवी चंद्रवा. नंदब. [साधुतावाळो], साधु पुरुष [सं.] साथर, साथरउ आरारा. उक्तिर. काद(शा). साधारण जिनरा वनस्पतिकाय जेमां एक गुर्जरा. नलरा. प्रेमाका. लावल. विराप. शरीरमां अनंत जीव होय, [जेना साथरो, पथारी, घासनी पथारी (सं. उदयथी साधारणशरीरी जीवपणं मळे ते नाम- कर्मनो प्रकार] [जै.] साथरी विमप्र. आसनियुं, बिसवानी चटाई] साधारा नेमिछं. आधाररूप, [आश्रय देनार साथलि उक्तिर. साथळ (सं.सक्थि) साधां आरारा. साधुओ साथि आरारा. साथ [सं.सार्थ] । साधी (अगनि साधी) ऋषिरा. [अग्निमां] साथीउ विमप्र. स्वस्तिक, साथियो प्रवेश करी; जुओ साधइ साथु जुओ विरहिणीसाथु साधुकार *आनंस्त. [भलो, सद्गुणी] साथेयो नरका. साथ थकी, साथे थई । साधुवाद आरारा. प्रशंसा (सं.) साव चारफा. वसंफा. अवाज (सं.शब्द) साधुसंघाडउ उक्तिर. साधुसमुदाय (सं.साधु संघाटकः) साव करावं प्रेमप. कहेवरा साघ्र कादं(धू). कादं(शा). गर्भिणीना मननी साव वइ आरारा. जवाब आपे, स्पर्धा करे इच्छा, दोहद [सं.श्राद्ध]; जुओ साधर साद (साव देसइ) प्राचीसं. जवाब आपशे सान कादं(शा). गुर्जरा. चतुचा. संज्ञा, भान, सादर *प्रेमाका. [सगर्भा स्त्रीनी अभिलाषा, समज; अखाका. प्राचीफा. निशानी, दोहद] [सं.श्रद्धा]; जुओ साधर पहोती संकेत, इशारो; *अखाका. [संकेत, स्रस्तर) 2010_03 Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५१९ सानधि/सामाउं तात्पर्य] सामटि वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. सानधि आरारा. विक्रच. *शृंगाम. सहाय "वसंवि(ब्रा). समेटी ले, पार्छ खेंची ले (सं.सान्निध्य); जुओ सानिध (सं.*समाप्तयति) [सं.संवेष्टयति] सानन (सा न-न) *शृंगाम. [ते नहीं नहीं] सामठउं जिनरा. एक साथे, [सामटुं, खूब] सानबाफ प्राचीफा. एक कीमती वस्त्र (फा. सामणि आरारा. स्वामिनी, [मालिकण]; शाना+बाफ) नलरा. स्वामिनी, [अधिष्ठात्री]; वीसरा. सानिध ऐतिका. सान्निध्य, [सहाय]; जुओ स्वामिनी, [प्रियतमा] सानधि - सामद, सामंद चंद्रवा. मदमो. सिंहा(शा). सानिधइ ऋषिरा. पासे, [*सहायथी] (सं. सामंत, वीर, सुभट सान्निध्य) सामरती अखाका. सामर्थ्यवान्, समर्थ सानिधि, सानिद्ध आरारा. *गुर्जरा. प्राचीसं. सामरा नलाख्या. साबर नामना पशु (सं. सहाय (सं.सान्निध्य) शम्बर) साप आरारा. शाप सामर्थ्या कादं(शा). समर्थता, [प्रभाव, सापतउ जिनरा. पूरूं, अखंड, [साजुसमुं, परिणाम] (सं.सामथ्य) साबूत] [अ.साबित] सामल, सामलउ उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. सापु भणी उक्तिर. साप तरीके शामळु (सं.श्यामल) साबरि वीसरा. हरणना चामडा[मांथी सामलवन नेमिछं. लावल. श्याम वर्णना बनावेली] (सं.शबर-) सामलु प्राचीफा. घोडानी एक जात (सं. साबल गुर्जरा. एक प्रकारनो भालो (सं. श्यामल) सर्वला) सामली गुर्जरा. शामळी, [घेरा रंगनी] (सं. साबलीयो चंद्रवा. [साबरियो], दूध वेचनार श्यामल) साबाण, साबान विमप्र. हम्मीप्र. एक सामसाल सिंहा(म). अधिपति, मालिक प्रकारनो (छजावाळो) तंबु [फा. (सं.स्वामिन्+सार); जुओ सामिसाल सायबान]; जुओ सावाण सामहउँ उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. सामुं साभरमती उक्तिर. साबरमती नदी __(सं.संमुख) साभिज्ञान कृष्णच. एंधाण [सं.] सामहि उषाह. सामे (सं.संमुख) साम आरारा. श्याम, काळो सामहणी आरारा. विमप्र. शृंगामं. तैयारी; साम ऋषिरा. श्यामा, सुंदरी जुओ सांमहणी सामउ उक्तिर. सामो, एक खडधान, मोरैयो सामहीयुं आरारा. सामैयुं (सं.श्यामाक) सामाउं गुर्जरा. तैयारी करी, सज्ज थयु - 2010_03 Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामंद/सार . ५२० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सज्ज कर्यु (सं.*समाधाति-समाध्याति); सामुद्रलख्यण पंचवा. देह परनां चिह्न परथी आरारा. तैयार थयुं, ऊमट्युं (रा.); नक्की थतां लक्षण (सं.सामुद्र+लक्षण) जुओ सांमहिउं सामुद्रिक नरका. लावल. शरीरनां अंगो सामंद नंदब. सामंत; जुओ सामद उपरनां चिह्नो उपरथी भाग्य जोवानुं सामाइक ऐतिका. सामायिक, [जैन ध्यान- शास्त्र क्रिया सामुहु उक्तिर. सामु (सं.सन्मुखः) सामाई उक्तिर. सामायिक, जैन धर्मध्यान- सामथ्य चित्तसं. सामर्थ्य क्रिया सामैयां नरका. सामे जईने स्वागत करनारां सामाचारी *उपबा. [साधुनो आचार, सामोj प्रेमाका. सामैयुं, स्वागत के तेनी क्रियाकांड] [सं.] सामग्री सामानि विमप्र. सामान्य, साधारण साम्रथ अखाका. सामर्थ्य, बळ सामायक नलरा. समतापूर्वक एकाग्र साम्हउ उक्तिर. उपबा. जिनरा. रूपच. बेसवानुं जैन धार्मिक नित्यकर्म (सं. विमप्र. वीसरा. सामो (सं.संमुख) सामायिक) साम्हेले ऐतिका. सामैयुं करवा सामि ऐतिका. तेरका. नेमिछं. लावल. स्वामी, [अधिष्ठाता]; प्रियतम साय आरारा (व).?, [*स्वाद] [प्रा.] सामिणि, सामिनी ऐतिरा. तेरका. नलरा. सायक कादं (शा). गुर्जरा. विराप. तीर, नमिछ. लावल. विराप. स्थलिफा. पाण (स.) स्वामिनी, [अधिष्ठात्री, मालिकण]: सायण शीलक. साकण, [पिशाचिनी] (सं. जुओ सामीणी शाकिनी) सामिसाल प्राचीफा. अधिपति, मालिक सायर आरारा. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. (सं.स्वामिन्+सार); जुओ सामसाल लावल. वीसरा. हरिख्या. सागर सामिय, सामी, सामीया गुर्जरा. तेरका. सायर-सूत शृंगामं. सागरनो पुत्र, चंद्र लावल. वीसरा. स्वामी, [अधिष्ठाता]; सायलं (साह्यरु) सिंहा(शा). ?, [*साथ प्रियतम __ आपवो ते] सामीणी, सामिणी गुर्जरा. स्वामिनी, साया ऐतिरा. छाया [फा.सायः] [मालिकण] सार अखाका. अखाछ. अंबरा. आरारा. सामुद्रक विमप्र. सामुद्रिक विद्यानोजाणकार; उषाह. ऋषिरा. गुर्जरा. नरका. नलरा. सामुद्रिक विद्या; [शरीरनां चिह्नो परथी प्रेमाका. लावल. विक्रच. विराप. शुभाशुभ जाणवानुं शास्त्र, एनो हरिख्या. सहाय, सारसंभाळ; गुर्जरा. जाणकार भाळ ___ 2010_03 For Private &Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५२१ सार/सारी सार अखाछ. अभिऊ.आरारा.गुर्जरा. तेरका. नरका. आंजर्बु (सं.सारयति) *देवरा. नरका-२. नेमिछं. प्रेमाका. सारस *गुर्जरा. [*रसपूर्वक, “साथे] लावल. वीसरा. श्रेष्ठ, सुंदर, सरस, सारं सारसापारस मोसाच.?, [कोई वस्त्रप्रकार] (सं.); आरारा. सत्यरूप, साधु सारसी अभिऊ. आरारा. उषाह. गुर्जरा. सार अखाका. चतुचा. माखण प्रबोप्र. लावल. विराप. हम्मीप्र. मत्त सार कामा(त्रि). सोगठांबाजी [सं.सारि] हाथीनी चीस, हाथीनी गर्जना [सं. सार लावल. परिणाम संरसिका] सार उक्तिर. [?] (सं.सारा) सारसी आरारा. साथे [सं.सदृश] सार (सारउद्धार) *अखाछ. [सार काढवो सारंग कामा(त्रि). दीवो; चंद्रवा. प्रेमाका. ते, तात्पर्यग्रहण, संक्षेप]; जुओ सार- मृग; दशस्कं(१).प्रेमाका. कमळ; चंद्रवा. उद्धार सारंगी सारइ आरारा. चारफा. लावल. सिद्ध करे, सारंग, सारिंग गुर्जरा. प्रेमाका. धनुष्य पार पाडे, करे खास करीने विष्णुनु] (सं.शाङ्ग) सारइ-वारइ आरारा. सारसंभाळ राखे सारंगणी प्रेमाका. सारंगी - एक तंतुवाद्य सार-उद्धार अखाका. तारवणी, [सारग्रहण, सारंगभख चंद्रवा. ?, [*कमळनो चारो संक्षेप]; जुओ सार, सारोद्धार करनार हंस] सारखि देवरा. सरखी, [जेवी] [सं.सदृक्ष] सारंगी अखाका. *हरिणी, *हरिणी जेवी सारखू उषाह. सरखं, [जेएँ] सारणि अंबरा. शारडी, [दुःखथी वींधावू सारा प्राचीसं. सार, सहाय ते]; जुओ हीइ सारणि सारि प्राचीफा. लावल. षडाबा. सोगठांसारथ प्रेमाका. सार्थ, सार्थक्य बाजी. चोपारनी बाजी, चोपाटनी रमत; सोगठां (सं.) सारद उक्तिर. वीसरा. शारदा, सरस्वती; सारिखउ ऋषिरा. वीसरा. षडाबा. सरखें, ऐतिरा. शरदऋतुना समान [सं.सदृक्ष सारधी अखाछ. सार (अंतस्तत्त्व, रहस्य) सारिसुं अभिऊ. गुर्जरा. सिद्ध करीशुं (सं. समजनारी बुद्धिवाळो [सं.] सारयिष्यामः) सारपासु ललिरा. सिंहा(म). चोपाट अने सारिंग जुओ सारंग पासा (सं.सारि+पाश) सारिंगलोचना सिंहा(म). मृगनयना (सं. सारवियइ षडाबा. पार पाडवामां आवे (सं. सारंगलोचना) स परथी) सारी कादं(धू). कादं(शा). चौपाटनी रमत सावू चारफा. तारण काढवू, तारवयु (सं.सारि) स्त्री 2010_03 Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारी/सावण मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सालणउ उक्तिर. [?] ( सं . शालनकम् ) सारी उक्तिर. मेना (सं.सारिका) सारीखउ उक्तिर. सरखुं, समान (सं. सालर, सालरि *आरारा. आरारा (व). * विमप्र. सल्लकी, सालेडी, [ हाथीने प्रिय वृक्ष ] सदृक्षम् ) सज्ज सारीय वसंवि. वसंवि (ब्रा). सारीने, करीने, सजीने (सं. सारयि) सारु विमप्र. सारुं, [श्रेष्ठ ]; वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). सरस, मजानुं, आनंदजनक (सं. सार) ५२२ सारू चित्तसं. -ने लीधे, थी; तरफ सारू आरारा. अनुसरतुं, जेवुंः अनुसरतुं, छाजतुं, योग्य; जुओ घर - सारू साल आरारा. सार, प्रकर्ष, उत्तम (प्रा.) साल आरारा. शाळा, धर्मशाळा; तेरका शाळा, [खंड, गृह] सालि आरारा. शल्य, कांटो, नडतर सारूं विमप्र बधुं [सं. सार] सालूरडउ शृंगामं. देडको (सं. शालूर) सारोद्धार हरिख्या. संक्षेप (सं.); जुओ सार, सावकर्ण पंचवा. काळा कानवाळा (सं. सार-उद्धार श्यामकर्ण) सारोधार चित्तसं. सारोद्धार, सार रूपे सावकाश प्रेमाका अवकाश, समय तारववुं ते सावकेत कर्पूमं. सावचेत सावगी वेताप. सावकी [सं. सापल-] सावज मदमो. छंदविशेष सावज गुर्जरा. पशु (सं.श्वापद); कृष्णबा. पंखी सालवी उक्तिर. वणकर (सं. शालापतिः) सालहि, सालही अंबरा. ऋषिरा. प्राचीफा. विमप्र. मेना (दे.) साला आरारा. धर्मशाळा सालि आरारा. नेमिछं. लावल. डांगर (सं. शालि) साल जुओ साहल शालि) साल, साळ देवरा. प्रेमाका. चोखा (सं. साबजडुं हरिख्या. शिकारी [जंगली] प्राणी सावजां नरका. * प्रेमाका. पक्षी सावजि विक्ररा. वनपशु [सं. श्वापद्य ] सावज नलरा. पापयुक्त [कर्म] (सं. सावद्य) सावटु, सावटुयां, सावटू अभिऊ. अंगवि. प्राचीका. प्राचीफा. मदमो. विमप्र. वीसरा. रेशमी जरियान वस्त्र साबडू शृंगामं. सवलुं [ अनुकूल ]; जुओ सवाडूउ सावण उक्तिर. श्रावण साल अखाका. उक्तिर. नरका - २. लावल. शृंगामं. शल्य, शूळ, पीडारूप, आडखीली, विघ्न, संकट सालइ वाग्भबा. सल्लकी, [सालेडी], वृक्षविशेष सालणउं अभिऊ. "गुर्जरा. नैमिछं. प्रद्युचु. प्राचीका. प्रेमप. लावल. अथाणुं, कचुंबर वगेरे 2010_03 Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५२३ सावत्त/साहमउं सावत्त प्रद्युचु. स्वागत ? सासाण जिनरा. सास्वादन, [जेमां सम्यक्त्वसावध आरारा. निंद्य कर्मो, पापकर्मो [सं.] नो थोडो आस्वाद रहेतो होय एवी आत्मासावध्यान अंबरा. सावधान वस्था] [जै.] सावय ऐतिका. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. सासु गुर्जरा. शृंगाम. श्वास श्रावक सासुतउ प्राचीसं. शाश्वत सावलियुं दशस्कं(१). प्रेमाका. झीणा पोतनुं सासुर आरारा. श्वसुर वस्त्र सासुरय प्राचीसं. श्वशुरगृह, सासरूं सावसलखण चारफा. सर्व शुभ लक्षणोथी सासुव देवरा. प्राचीसं. सासु (सं.श्वश्र) युक्त (सं.सर्व+सुलक्षण) सासे उसासे अखाका. श्वासे अने उच्छ्वासे सावाण विमप्र. [एक प्रकारनो, छजावाळो] सासो देवरा. संशय तंबु [फा.सायबान]; जुओ साबाण । साह, साहा विक्ररा. वेपारी, [वणिक]; साविज अभिऊ. कादं(धु). कादं(शा). प्रतिष्ठित प्रामाणिक व्यक्ति]; मदमो. नरप. पक्षी [सं.श्वापद]; *काद(शा). विमप्र. शाह, शेठ. वेपारी, वणिक (सं. [पशु] साधु); जुओ शाह, साहु साविजडां अंगवि. पशु साहइ अखाका. आरारा. उक्तिर. उपबा. सास आरारा. उक्तिर. तेरका. नरका. प्रेमप.. ऋषिरा. गुर्जरा. जिनरा. तेरका. प्रेमाका. षडाबा. श्वास दशस्क(१). नरका. नेमिछं. प्राचीसं. सासइसासइ (सासइ ससइ) *ऋषिरा. प्रेमाका. मोसाच. लावल. विराप. पकडे (प्रियतमना) श्वासे श्वास ले छे] (सं.साध्) सासडियां नरका-२. श्वासोश्वास साहजी पंचवा. शाह, वाणियो (सं.साधु) सासण ऐतिका. तेरका. लावल. धर्मशासन साहण आरारा. साधन, सुखसामग्री; ऐतिरा. सासण जिनरा. सास्वादन, [जेमां गुर्जरा. लावलश्कर, वाहनो, [*सैन्य]; सम्यक्त्वनो थोडो आस्वाद रहेतो होय हमीप्र. *सैन्य, [*घोडा] [रा.] एवी आत्मावस्था, एक गुणस्थान] [जै.] साहणी वीसरा. अश्वपाल (सं.साधनिक) सासणदेवि गुर्जरा. शासनदेवी, धर्म- साहपत्य चंद्रवा. [मोटा] सोदागर संप्रदायनी अधिष्ठात्री देवी साहबाला *विमप्र. सांबेला, वरघोडामां सासतउ आरारा. उक्तिर. शाश्वत, कायमी वरनी आगळ घोडा पर बेसाडवामां सासननायक आरारा.जैन शासनना अग्रणी आवता शणगारायेला छोकरा [फा. सासन्न ऋषिरा. *आज्ञा, [धर्मशासन] शहबाला सासरवेड दशस्कं(२). सासरवेल साहमउं शीलक. सामैयुं: आनंस्त. गुर्जरा. 2010_03 Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहमणि सांकली ५२४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सामु साहिज आरारा. सहाय (सं.साहाय्य) साहमणि आरारा. समान धर्मवाळी (सं. साहिब प्राचीफा. मालिक, परमेश्वर (अ.) साधर्मिणी) साहिय * ऐतिका. [सिद्ध करी, पामी] [सं. साहमी आरारा. ऐतिका. नलरा. साधर्मिक, साध्] एक धर्मना अनुयायी साहीस विक्ररा. साहस, [विकट काम साहमीअवच्छल, साहमीवत्सल, साहभी- हाथमा लेवानी शक्ति] बच्छल, साहमीवाछत्य साधर्मिक साहु गुर्जरा. भलुं, सारूं; सज्जन, [शाह] वात्सल्य, पोताना धर्मना लोको प्रत्ये (सं.साधु); प्राचीफा. वणिक, शाह (सं. अनुराग, सेवाभाव; जुओ वाच्छल्यु साधु); जुओ साह साहम्मिय ऐतिका. साधर्मिक, एक धर्मना साहुणि ऐतिका. गुर्जरा. साध्वी अनुयायी . साहू तेरका. साधु साहम्मी षष्टिप्र. समान धर्मना अनुयायी साहे दशस्कं(१). साह्य, मदद; चित्तसं. (सं.साधर्मिन्) सहाय, मददगार साइड उक्तिर. ढांके (सं.संवृणोति) [दे.); साहेर कामा(शा). दशस्कं(१). सागर; जिनरा.सहारोआपे; [ रोके, अटकावे] जुओ साअर साहत (साल) ऋषिरा. शालवृक्ष ' साह्य जुओ साज साहलाद ऐतिरा. खुश थईने [सं.साह्लाद साह्यरुं जुओ सायरुं साहस आरारा. साहसिक, [हिंमतवाढू, सां (सांक) *गुर्जरा. [भय, संकोच [सं.शंका]; जुओ सांक साहसी आरारा. साहसिक, [हिंमतवाढू, सां (सांचिला) * लावल. [साचां, खरां] धृष्ट] [सं.] सांई दशस्क(२). नलाख्या. प्राचीका. प्रेमप. साहा जुओ साह प्रेमाका. षडाबा. आलिंगन, भेटवू ते साहाअ कामा(त्रि). सहायक, मददगार (सं.स्वंज्); जुओ श्यांइ, साइउ साहाणा अखाका. शाणा [सं.सजान] सांईडं नरका. हरिख्या. आलिंगन साहामुं जुए चित्तसं. लक्षमा राखे सांक जिनरा. शंका, [संकोच]; जुओ सां साहामो थयो प्रेमप. सामे आव्यो सांकलउ उक्तिर. नलरा. सांकळु, एक घरेणुं साहार प्राचीसं. सहायक (सं.शृंखला) साहार तेरका. आंबो (सं.सहकार) सांकलडी आरारा. सांकळी, एक खाद्यपदार्थ . साहास चित्तसं. साहस, हिंमत, धैर्य सांकली नलरा. एक खाद्यपदार्थ (सं. साहास्त्र मदमो. शास्त्र शष्कुलि) ____ 2010_03 Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५२५ सांकली/सांबेलडा सांकली अक्तर. प्राचीफा. हाथर्नु एक घरेणुं, (सं.षंड) सांकळी (सं.शृंखला) सांढि षडाबा. सांढणी दि.संढी] सांकल्यउ ऋषिरा. बंधायेलो (सं.शृंखलित) सांठीउ शृंगाम. गोधो, आखलो (सं.षण्ड) सांकुळी वीसरा. सांकळ (सं.शृंखला) सांण मदमो. शान, छटा सांक्ष्य चित्तसं. सांख्य, सांख्यशास्त्र सांत चित्तसं. अंतवाळु, विरमी गयेलु [सं.] साक्ष्यजोग चित्तसं. सांख्ययोग, ज्ञानयोग, सांतइ *अंबरा. नरका. प्रेमाका. विक्ररा. विवेकज्ञान संताडे, छुपावे; विक्रच. [ढांके], सांख * उपबा. जिनरा. शंख (तरवार) संकेले, म्यान करे; जुओ सांखडि उक्तिर. विवाहादि प्रसंगे थतो सांथिउ ___ जमणवार (द.संखडि) सांतक प्रेमाका. ग्रहोने शंत करवानी एक सांख्य मदमो. सांखी, [सहन करी] धार्मिक विधि सांग अखाका. आखू, संपूर्ण [सं.] सांतलं सिंहा(शा). तैयार, सज्ज ?; सांग प्रेमाका. बरछी जेवू एक हथियार - दशस्कं(१). प्रेमाका. तैयार, सज्ज; सांगरि जुओ सागरि प्रेमाका. स्वस्थ सांगलतुं प्राचीका. प्रेमप. गमतं सांती९ अखाका. हळ सांगि अभिऊ. बरछी जेवं हथियार सांत्य नरका. साता, सुख, [तृप्ति] (प्रा.सात) सांगि कादं(शा). संगे, संगथी, सोबतथी सांथारु प्रद्युचु. संथारो, मरण नजीक सांगी प्रेमाका. गाईं हांकनारनी बेठक, आवतां ममता तजी मरणपथारी पर [धरी अने उतारुबेठक वञ्चेनो भाग सूq ते (जै.) [सं.सस्त्रातरक] सांचइ उक्तिर. दशस्कं(१). प्रेमाका. संचित सांथिउं अंबरा. साचवी राख्युः जुओ सांतइ करे, एकळु करे [सं.सं+ची सांधइ उक्तिर. सांधे, जोडे; वसंफा. बांधे; सांचउ वीसरा. साचो (सं.सत्य) षडाबा. जोडे, निशान ले [सं.सं+धा] सांचरइ आरारा. गुर्जरा. षडाबा. संचरे, सांधि प्राचीफा. समय (सं.सन्धि) __ जाय (सं.संचरति) सांधो चंद्रवा. [लक्ष्य करी रह्यो], तत्पर सांचळी चंद्रवा. *संचरी, [*भरेली] थयो । सांचिलां जुओ सां सांनधि आरारा. सान्निध्य सांजउ उक्तिर. संयमी, साधु (सं.संयत) सांबर गुर्जरा. साबर, एक हरणजाति (सं. सांझूणउं उक्तिर. सांजना समय- [सं.संध्या शंबर) सांबलउं उपबा. भातुं (सं.शम्बलम्) सांड उक्तिर. वीसरा. सांढ, आखलो सांबेलडा प्रेमाका. *शणगारेला जानैया, परथी] 2010_03 Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांबेला/सिउं ५२६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [वरनी आगळ घोडा पर बेसाडेला सांस वीसरा. श्वास शणगारेला छोकरा] सांसता अंबरा. नरका. "नलाख्या. प्रेमाका. सांबेला नरका. *जानमां घोडा उपर बेठेला सहन करावाळा, सबूरी के धीरज जानैया, [वरनी आगळ घोडा पर राखता; जुओ संसह्या बेसाडेला शणगारेला छोकरा] सांसहइ उपबा. *उषाह. ऋषिरा. कृष्णच. सांभरो अखाछ. भेगुं करो [सं.सं+] गुर्जरा. जिनरा. प्रबोप्र. विक्रच. विराप. सांभलिवा उक्तिर. सांभळवा [सं.सं+भल्] शृंगामं. सहन करे, सांखे (सं.सह्); सांभलीयि उक्तिर. सांभाळाय सांभळवा- ललिरा. सहन करे, धैर्य राखे; आरारा. योग्य 'गुर्जरा. *प्रद्युचु. स्वीकारी ले सांभलेव्यु उक्तिर. सांभळवू सांसि, सांसे अखाका. अभिऊ. प्रेमाका. सांमद मदमो. रूस्तस. सामंत, वीर. सभटा सशयमा । जुओ शांमद, सामद सांसो चंद्रवा. दशस्कं(१). देवरा. नरका. सांमलमली आरारा(व). शीमळो (सं. प्रेमप. प्रेमाका. संशय; जुओ शांशो, शाल्मली)?, काळा मरी (सं.श्यामल ___ सांस मरिच के मलिन) ? सांसोट प्रेमाका. सणसणाटी, [सोंसरो सांमहणी प्रद्युचु. [जवानी तैयारी; जओ मारो]; सोसरो, सणसणाट सामरणी सि जुओ छ सि सांमहिउ *प्रद्युचु. [तैयार थ]; जुओ सि कादं (शा). साथे (सं.सहित) सामाउं सि षडाबा. ते सांमांहि लावल. शा लेखामां? शी विसात- सिम ऐतिरा. शीत, ठंडी सिंइ नेमिछं. शें, शा कारणथी सांमि देवरा. स्वामी, [अधिष्ठाता देव] सिउ जुओ सिउं सांमिणि आरारा. स्वामिनी, [अधिष्ठात्री सिउं *अभिऊ. आरारा. उपबा. गुर्जरा. देवी] तेरका. नेमिछं. लावल. वसंफा. वसंवि. सांमी देवरा. स्वामी, [पूज्य व्यक्ति]; जुओ वसंवि(ब्रा). साथे (सं.समम्); वीसरा. शांम *साथे, *-थी, [*-नी] सांमो मदमो. विरोधी ?, [*सामो बोल] सिउं उपबा. गुर्जरा. नेमिछं. लावल. सालणां आरारा. मीठामा आथेली वस्तु, विक्ररा. शुं, केवू, नैमिछं. लावल. अथाणां; जुओ सालणउं वसंफा. शा माटे, शुं (सं.कीदृशकम्) सांस प्रेमाका. संशयमां; जुओ सांसो सिउं हरिवि. ('सिउ'ने बदले) सहु मां? 2010_03 Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सिउंएक उपबा. शुं-शुं सिकट विमप्र. गाडुं [सं. शकट] सिकलि [सिकरि] * देवरा [धजावालुं छत्र] सिकिरि प्राचीफा. धजावाकुं छत्र (सं. श्रीकरी) [. सिक्किरि]; जुओ शीकिरि, सीकरि सिखराउल प्राचीफा. शिखरवाळी, अणीदार, ऊंचो ५२७ सिख्या गुर्जरा. शिखामण ( सं . शिक्षा) सिगडी जिनरा. सगडी [सं. शकटिका ] सिगला जिनरा. सघळा [ सं . सकल ] सिगु तेरका. सरगवो (सं. शिग्रु) सिग्ध षष्टिप्र. जलदी (सं. शीघ्र ) सिघ उक्तिर. [तुलसी, वज के जटामासी] (सं. शिखा) सिलु प्रचु. सघलुं, बधुं [सं. सकल ] सिजवाला ऐतिका. पालखी [ खास करीने परदावाळी ] सिज्जाहर कृष्णच. शय्यागृह, शयनखंड सिज्झइ ऐतिका. गुर्जरा. तेरका सिद्ध थाय (सं. सिध्यति ) सिज्झाय आरारा. स्वाध्याय, धर्मचिंतन सिज्या सिंहा (म). पथारी (सं. शय्या ) सिझंत ऐतिका. सिद्ध थाय छे सिझाय ऐतिका. स्वाध्याय सिढिल उक्तिर. शिथिल सिणगार उपबा. गुर्जरा. जिनरा. तेरका प्राचीसं. वसंफा. शणगार (सं. शृंगार ) सिणगारीय गुर्जरा. वसंफा. शणगारी (सं. शृंगारित) 2010_03 सिउंएक / सियउं सिणदंड तेरका. शणनो छोड ( सं . क्षणदंड) सिणमिणइ उक्तिर. सणसणे, गति करे सिणिगि-तरउ आरारा (व). काकडासिंगीनुं झाड (सं. शृंगी) [ + सं . तरु] सित्र कर्पूमं. शत्रु सिद्धशिला गुर्जरा. मुक्तात्माओनुं निवासस्थान (सं.) (जै.) सिद्धि गुर्जरा. सिद्धि, प्राप्ति; [मोक्ष ]; चारफा. तेरका. षडाबा . मोक्ष, निर्वाण (सं.); नलरा. समाचार, शोध ( *सं.) सिद्धी तेरका सिद्ध थई, सिद्धि पामी सिद्धिपुरी आरारा. मुक्तिपुरी सिद्धो समान * जिनरा. [वर्णमाळानो अभ्यास] [सं. सिद्धा+सामाम्ना ] सिद्ध्य अखाका. सिद्धि सिधारथ वीसरा. जेना हेतुओ सिद्ध थाय छे एवं, कृतार्थ, सफळ (सं. सिद्धार्थ) सिघि अभिऊ खबर, [ समाचार ] [ *सं. शुद्धि] सिधि लावल. सिद्धि सिधे अखाछ सिद्धे, [सिद्ध पुरुषे] सिध्याइं षष्टिप्र. स्वाध्यायपूर्वक सिबलि आरारा (व). शाल्मलि, शीमळो, (दे. सिंबलि); जुओ सिंबलि, सीबलि सिमकियड उक्तिर. एक जीवडुं (सं. सिमीकः) सिमथउ उक्तिर. सेंथो (सं. सीमंतक) सिय प्राचीसं. सफेद (सं. सित); ऐतिका. शुक्ल [पक्ष], [द] सियउं देवरा. शुं, कयुं (सं. कीदृश) Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सियाण/सिलावटउ . ५२८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सियाणउं जुओ सयाणउं सिरावलइ शृंगामं. शकोरामां [सं.शराव] सिय्या आरारा. शय्या सिरि आरारा. ऋषिरा. लावल. वसंफा. सिर गुर्जरा. मस्तक, टोच; तेरका. मस्तक, वसंफा(ल). वसंवि. शिरे, माथा पर, शिर, माथे, उपर; वसंवि(ब्रा). वीसरा. माथे मस्तक (सं.शिरस) सिरि तेरका. लावल. श्री, सुंदर, श्रेष्ठ, सिर (सिरकि) *गुर्जरा. [शिरस्त्राण, माथा- [आदरवाचक] गुर्जरा. श्री, शोभायुक्त, ना टोप] [आदरवाचक]; [लक्ष्मीदेवी] जुओ सिरे सिर (सिरस) तेरका. सरसडो (सं.शिरीष) सिरि (सिरिभेरिअ) *गुर्जरा. [श्रीभेरी - सिरखंड तेरका. चंदनवृक्ष (सं.श्रीखंड) एक वाद्य] सिरखं गुर्जरा. लावल. सरखं (सं.सदृक्ष) सिरिखउ आरारा. सरखो, जेवो (सं. सिरवू आरारा(व). उक्तिर. सरगवो (सं. सदृक्षक) शिग्रु) सिरिखंड चारफा. चंदन (सं.श्रीखंड) सिरज- वीसरा. सरजर्बु (सं.सृज) सिरिजइ गुर्जरा. वीसरा. सर्जे (सं.सृज) सिरजणहार गर्जरा. वीसरा. सर्जनहार सिरि-जाल वसंवि(ब्रा). माथा पर पहेरेली सिरतिलौ ऐतिका. शिरमोर [सं.शिरस+ जाळी, एक अलंकार (सं.शिरोजाल) तिलक - सिरिभेरिअ जुओ सिरि सिरदार प्राचीफा. नायक, आगेवान (फा. सिरिमा *प्राचीसं. [श्रीमाता, एक देवी] सरदार) सिरिमाल तेरका. श्रीमाल [कुल] सिरवीण आरारा. शिरनी वेणी, चोटलो सिरिवछ नेमिछं. [जिनदेव वगेरेमां जोवा सिरशव प्राचीफा. सरसवनो दाणो (सं. मळतुं छाती परनुं एक शुभ चिह्न [सं. सर्षप) श्रीवत्स] सिरस जुओ सिर सिरी तेरका. श्री [आदरसूचक] सिरसिज प्राचीफा. कमळ (सं.सरसिज) सिरीय (संजमसिरीय) ऐतिका. [संयमरूपी सिरसे (सिरसेजइ) *गुर्जरा. "विराप. शर- लक्ष्मी] शय्यामां सिरीस उक्तिर. शिरीष सिरहाणइं आरारा. ओसीके (सं.शिरस्थान) सिरे (सिरि) तेरका. श्री [आदरसूचक सिराचा हम्मीप्र. एक प्रकारनो तंबु; जुओ सिलवट्ट तेरका. शिला (सं.शिलापट्ट) सिंराचा सिलापट उक्तिर. शिला (सं.शिलापट्टः) सिराडइ (सिराडइ चडइ) आरारा. विमप्र. सिलावटउ उक्तिर. सलाट (सं.शिला सराडे चडे, [सफळ थाय] .. . वर्तकः); जुओ शलाटु, शिलावट .. 2010_03 Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५२९ सिलावट्ट/सिंदुवार सिलावट्ट विमप्र. सलाट, कडियो सिहिकार प्राचीफा. आंबो (सं.सहकार) सिली उक्तिर. नेमिछं. लावल. सळी (सं. सिहिज कादं(शा). सहेजे, स्वाभाविक रीते शलाका) [सं.शल] ज, [स्वभावथी ज] (सं.सहजेन) सिव तेरका. मुक्ति (सं.शिवा) सिहियइ प्रबोप्र. सहेजे (सं.सहज) सिवपंथि गुर्जरा. कल्याणमार्गे, मुक्तिमार्ग] सिं ऐतिरा. छे सिवपुरी गुर्जरा. कल्याणनी नगरी, [मुक्ति- सिंख हम्मीप्र. शंख नगरी] सिंग तेरका. शृंग, [शिखर] सिवरति वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). सिंगल नलरा. एक देश ज्यां नलराजाए शिवरात्रि विजय कर्यो हतो (सं.सिंहल) सिवराति प्राचीफा. शिवरात्रि सिंगा गुर्जरा. पिचकारी (सं.शृंगिका); जुओ सिवसासणी हम्मीप्र. शिवशासनी, शिवना सिंगासबद, सिंगिय शासनमा माननार, शैवधर्मी सिंगार उक्तिर. तेरका. नेमिछं. लावल. सिवसुख आरारा. आत्मकल्याण- सुख, वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. शणगार [मुक्तिनुं सुख] (सं.शृंगार); वीसरा. शणगार; शोभा सिवि कर्पूमं. प्राचीफा. लावल. सर्वे सिंगासबद चारफा. बंसीनो शब्द, [बंसीनो सिविय प्राचीसं. शिबिका, पालखी __ अवाज] [सं.शृंगिका+शब्द] सिविहि गुर्जरा. बधा ज सिंगिणि स्थूलिफा. धनुष्य (सं.शृंगिणी) सिष देवरा. शिष्य सिंगिय, सिंगीय चारफा. प्राचीफा. सिसर प्राचीफा. शियाळो (सं.शिशिर) पिचकारी (सं.शृंगिका); जुओ सिंगा सिसलउ उक्तिर. ससलो (सं.शशः) सिंघ अखाका. नलरा. वीसरा. सिंह सिसि आरारा. माथे (सं.शीर्षे) सिंघकेसरा आरारा. सिंहकेसरा, लाडुनी सिसि आरारा. शशी, चंद्र एक जात; जुओ संघकेसरा सिसिहर प्राचीफा. शशियर, चंद्र (सं. सिंघगत्य अखाका. सिंहनी गति, रीत शशधर) सिंघा नरका. सिंह सिसी आरारा. शीर्षे, नायक तरीके सिंघाण उक्तिर. लोढानो काट (सं.सिंहान) सिसो देवरा. *शीर्ष, [*शशी, "चन्द्र] सिंघासण, सिंघासन आरारा. नरका. सिह देवरा. शुं, शुंय प्रेमाका. लावल. सिंहासन सिहण प्राचीफा. प्राचीसं. स्तन (द.) सिंधु जुओ सइंथउ सिहर तेरका. स्थूलिफा. शिखर; गुर्जरा. सिंदुवार तेरका. एक वनस्पति, [नगोड] शिखर, मथाळु [सं.] 2010_03 Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंघव/सीझवी ५३० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सिंधव *अखाका. "प्रेमाका. [मीठं] [सं. सीकारा उक्तिर. सीत्कार, सीसकारो सैंधव सीकिरि जुओ सीकरि सिंघा, सिंधु अभिऊ. सर्व सीकुं नेमिछं. प्रेमप. वस्तुओ राखवा माटे सिंधुया ऐतिका. "सिन्धु राग, ["सिंधु प्रदेश- अध्धर लटकाववामां आवती छाबडी ना लोको] (सं.शिक्य) किर गर्जग हाथी (सं.) सीकोतरी ऋषिरा. ते नामनी [हलकी कोटिसिंधुवारि तेरका. एक वनस्पति, [नगोड] नी] देवी (सं.सिन्धुवार) सीख आरारा. ऋषिरा. विदाय [सं.शिक्षा] सिंधू हम्मीप्र. सिन्ध देशना (घोडा), उत्तम सीख करी आरारा. विदाय लई घोडानी एक जात; जुओ संधूआ सीखाडि लावल. शिखामण आप [सं.शिक्ष] सिंबल कर्पूमं. भातुं (सं.संबल) सीगिणि, सीगिणी प्रद्युचु. रूपच. धनुष्य सिंबलि तेरका. शीमळो (सं.शाल्मलि); (सं.शृंगिणी) जुओ सिबलि सीघासण कामा(त्रि). सिंहासन सिराचा हम्मीप्र. एक प्रकारनो तंबुः जुओ सीचाणू अभिऊ. बाज पक्षी (दे.सिंचाण) सिराचा सीचिवा उक्तिर. सींचवा सिंहनिकीलिउ गुर्जरा. [उपवासनी चोक्कस सीजइ नरका. प्रेमाका. शृंगाम. सिद्ध थाय, प्रकारनी श्रेणीवाळु] एक तप (सं.सिंह पार पडे निक्रीडित) सीज्य चंद्रवा. *साध्य, "सिद्ध करवा योग्य, सिंहार प्राचीसं. संहार [*-ने सिद्ध करनार, *पार पाडनार] सिंहिकासुत प्रेमाका. सिंहिकानो पुत्र राहु सीझइ अखाका. अखाछ. अखेगी. अभिऊ. सी दिवसी) "उषाह. दिवेशे, रामे] आरारा. उक्तिर. ऐतिका. *कर्पूमं. सीअल उक्तिर. पाणीमां थनारो कोई छोड, चित्तसं. जिनरा. दशस्कं(१). नरका. सफेद कमळ, वाळो के पाटल (सं.शीत प्राचीसं. प्रेमाका. विक्ररा. शीलक. सिद्ध . लिका) थाय, पार पडे; प्रधुचु. सीझे, रिंधाय] सीअली लावल. शीतळ (सं.सिध्यते) सीअह "विक्ररा. लक्ष्मी, संपत्ति] [सं.श्री] सीझवी वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). सीइंथु वसंफा. सेंथो (सं.सीमंत) जीती लईन; "जिताडीने; *सिद्ध करीने; सीकरि, सीकरी, सीकिरि *उषाह. गुर्जरा. [शांत करीने] *विमप्र. एक प्रकारचें छत्र, धजावाढू सीझवी प्रेमाका. *धीमे तापे बराबर बाफीने छत्र; जुओ सिकिरि - बीजांने दुःख दईने, [*लाग मेळवीने, 2010_03 Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५३१ सीत/सीलसनाह *युक्ति करीने] ऋषिरा. गुर्जरा. सीमा, हद, सीमाडा सीत आरारा. ठंडी, शरदी; लावल. ठंडी; सीमति गुर्जरा. सुंदर (सं.श्रीमती) षडाबा. ठंडु (सं.शीत) सीमंत ऋषिरा. माथानी पांथी, सेंथो [सं.] सीत-काल लावल. शियाळो सीमाडउ "ऋषिरा. *गुर्जरा. नलरा. विमप्र. सीतनुमाह जुओ माह सीमाप्रदेश उपरनो राजा, पडोशी राजा सीथ *अंबरा. [(अन्ननां) कण, पिंड] [सं. सीमाढा कादं(धु). खंडिया राजा; जुओ सिक्थ]; उक्तिर. मीण (सं.सिक्थ) शीमाढा सीथल मोसाच. शिथिल सीमालु षडाबा. सीमाडाना राजा सीदाइ उक्तिर. षडाबा. हरिख्या. पीडाय सीमाहडा विक्ररा. सीमाडाना राजा, सीदाती आरारा. सुकाती (सं.सद्, सीद्) मांडलिको । सीदुल सिंहा(शा). सिंधुल, [भोजराजाना सीय तेरका. ठंडी (सं.शीत) - पिता] सीय प्राचीसं. सीता (सती) सीध दशस्कं(१). शीद, शाने सीयल आरारा. गुर्जरा. तेरका. लावल. सीधउं अभिउं. आरारा. उक्तिर. गुर्जरा. स्थूलिफा. शीतल . चतुचा. प्रेमाका. विराप. षडाबा. सिद्ध सीर उक्तिर. चित्तसं. जलस्रोत (सं.सिरा), सेर; जुओ शिरूअ, सीहीर सीधवू अभिऊ. सिद्ध करावं, [पार पाडुं] सीरख, सीरष उक्तिर. रजाई, गोदडी (सं.सिद्ध परथी) (सं.शीतरक्षिका) [रा.] सीध्य चंद्रवा. सिद्धि सीरणी आरारा. [गोळमिश्रित दहींनी] सीध्यां कादं(शा). सीधां, सीधेसीधां (सं. मीठाई (रा.) सिद्धकानि) सीरवी उक्तिर. [*बलराम, *खेडूत सीध्यां आडे प्रेमाका. सिद्ध थयं छे तेने (सं.सीरपति) माटे, [सिद्ध थयुं छे तेने आधारे, ओथे] सीरष जुओ सीरख सीयु अखाका. अखाछ. नरका. प्रेमाका. सीरष आरारा. शीर्ष, माथु सिद्ध थयु सीरामण आरारा. भातुंः उक्तिर. सवारनो सीप आरारा. उक्तिर. वीसरा. छीप (सं. नास्तो शुक्ति) सील आरारा. ऐतिका. गुर्जरा. नेमिछं. सीबलि आरारा(व). शीमळो (सं.शाल्मलि, लावल. वीसरा. शील, चारित्र्य दे.सिंबलि); जुओ सिबलि सीलउ उक्तिर. वीसरा. शीतल सीम आरारा. सीमा, हद, मर्यादा; अभिऊ. सीलसनाह ऐतिरा. शीलरूपी बख्तर [सं. थयु 2010_03 Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलावट/सुई ५३२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शील+सन्नाह सींगा गुर्जरा. पिचकारी (सं.शृंग परथी) सीलावट पंचवा. सलाट, [कडियो] [सं. सीगिणि ऋषिरा. गुर्जरा. धनुष (सं. शिलावर्तक]; जुओ सिलावट्ट शृंगिणी) सीव मदमो. शुभ [सं.शिव] सींगी अखाका. फूंकीने वगाडवा शिंगडानुं सीविवउ उक्तिर. सीवq [सं.सि] बनावेलु एक वाद्य; उपबा. एक प्रकारचें सीस आरारा. ऋषिरा. ऐतिका. चारफा. झेर (सं.शृंगिन्); वीसरा. शिंगडावाळी शिष्य सींघ पंचवा. सिंह सीसव जुओ शीशव सींघासण आरारा. सिंहासन सीसवि आरारा(व). प्राचीफा. सीसमर्नु सींचागुं, सींचाणो गुर्जरा. प्रेमाका. बाज झाड (सं.शिंशपा) दि.). सीसो प्रेमाका. काच [फा.शीशः] सीथा अभिऊ. सेंथा (सं.सीमन्तक) सीह आरारा. उक्तिर. उपबा. ऐतिका. सींदूरीउ आरारा(व). सिंदूरी, एक वृक्ष (सं. ___ गुर्जरा. तेरका. सिंह सिन्दूर) सीहदार उक्तिर. मुख्य द्वार (सं.सिंहद्वार) सींधव उक्तिर. षडाबा. सिंधालूण (सं. सीहला नेमिछं. सिंह सैन्धव) सीहीअ गुर्जरा. अग्नि (सं.शिखिन) सीधु मदमो. निर्णयसिंधु ? सीहीर अखाछ. सेर, सिरवाणी, प्रवाह]; सीधूआ हम्मीप्र. सिंधदेशना घोडा, घोडानी जुओ सीर ___ एक उत्तम जात; जुओ सिंधू सीहीलंकी चंद्रवा. सिंहना जेवा केडना सीभ उक्तिर. कफ, सळेखम (सं.श्लेष्मा) वळांकवाळी सींसमि तेरका. सीसम (सं.शिंशपा) सीहो (सहो) "ऐतिका. [समर्थ, शक्तिमान] सु उक्तिर. गुर्जरा. तेरका. नेमिछं. षडाबा. सींग उक्तिर. शिंगडं (सं.शृंगम) ते (सं.सो) सींगउ उक्तिर. [*शिंगडाना आकारनो सु नरप(द). साथे [सं.समम्] दंडो] (सं.शृंगकम्) सु नेमिछं. लावल. सो [सं.शत] सींगडी उक्तिर. [*वाद्यविशेष, वनस्पति- सु लावल. सारी रीते [सं.] विशेष, पिचकारी] (सं.शृंगिका) सुअर गुर्जरा. सूवर, वराह, एक जंगली सींगणि, सींगणी प्राचीफा. विक्ररा. शृंगामं. प्राणी (सं.शूकर) धनुष (सं.शृङ्गिणी) सुआसणी उक्तिर. सुवासिनी सींगा *प्रद्युचु. [शिंगडामाथी बनावेलुं वाद्य, *सुइ (सुह) "ऐतिका. [सुख, तूरी] [सं.शृंग परथी] सुई उक्तिर. सोय (सं.सूची); जुओ सूइ 2010_03 Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५३३ सुई/सुखरि सुई नलरा. दरजी, सई (सं.सूचिक) सुकिय ऐतिका. सुकृत, [सत्कर्म, पुण्यकर्म] सुईउ उक्तिर. सई, दरजी (सं.सौचिकः); सुकिल प्राचीफा. शुक्ल पक्ष, [सुद] जुओ सूईउ सुकिवा उक्तिर. सूकववा (सं.शुष् परथी) सुकठ चंद्रवा. सुखड सुकुमारिका षडाबा. सुंवाळी, एक प्रकारनी सुकड, सुकिड ऐतिका. पंचवा. मदमो. पूरी सुखड (सं.शुष्क+क) सुकुमाल उपबा. गुर्जरा. तेरका. नलरा. सुकडि आरारा. ऐतिका. शृंगाम. सुखड लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). सुकतइ शृंगाम. सुकातां [सं.शुष्क-] सुकुमार, कोमळ; वसंफा(ल). जुओ सुकमाल, सुकुमाल आरारा. ऋषिरा. सुकमाल; जुओ सुखमाल देवरा. नेमिछं. प्राचीफा. वसंफा (ल). सुकुलीणी ऋषिरा. नेमिछं. सारा कुळनी, *वसंवि. वसंवि(ब्रा). सुकुमार, कोमळ; कुळवान (सं.सुकुलीन) जुओ सुखमाल सुकुंअलीय स्थूलिफा. सुकोमळ सुकयत्थ आरारा. ऐतिका. जिनरा. सफळ सकेड हरिख्या. सखड (सं.सुकृतार्थ) सुक्खासण, सुखासण प्राचीसं. शिबिका, सुकल ध्यान देवरा. शुद्ध, पवित्र ध्याननो ना पालखी(सं.सुखासन) एक प्रकार, [ध्यान अने ध्येयना विकल्परहितपणे शुद्ध आत्मामां एकाग्रता] [जै.] . | सुक्रित प्रेमाका. सुकृत्य सुकल लेस्या देवरा. जेना वडे जीव शुभ में सुखडी आरारा. भातुं प्रेमप. मिष्ट वानगी; कर्म बांधे छे ते ऊंची मानसिक अवस्था, चतुचा. भेट, पुरस्कार; जुओ सुंखडी, [कषायो जेमां मंद होय एवं आत्मपरिणाम, आत्मवृत्ति] (सं.शुक्ल लेश्या) सुखण मोसाच. सुखिनी ? शंखिनी ? शोक्यण ? [शोक्य – गाळ रूपे] [रा.]; सुकलाणी आरारा. ऐतिका. सकलीन जुओ सुंखिणि, सोखण सुखदेव चंद्रवा. शुकदेव सकल्लाणवल्ली लावल. सुंदर कल्याणवेली सुखपाल कामा(त्रि). कामा(शा). नरका. सुकुंतई सुकंति ऋषिरा. उत्तम कांति के प्रेमाका. मदमो. पालखी शोभावाळु सुखम जिनरा. सूक्ष्म, [इंद्रियथी ग्रही न सकि आरारा. सावकी (माता) (सं.सपत्नी): शकाय तेवू शरीर प्राप्त करावनाएं कादं (शा). प्रद्युचु. प्रबोप्र. शोक्य (सं. नामकर्म] [जै.] सपत्नी) सुखमाल [सुकमाल] देवरा. सुकुमार सुकिड जुओ सुकड सुखरि स्थूलिफा. उत्तम (रा.सखरा) [जै.] [स्त्री] 2010_03 Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखलापी/सुणह ५३४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [सं.] सुखलापी वाग्भबा. "सुखपूर्वक आलाप आवती होय एवो] [सं.शूक-] करनार, [सुखदायक, मधूरुं बोलनार] सुगुणी ऋषिरा. सो गणी सुखवट्टउ "विमप्र. [सुखथी रहेतो, सुखी] सुमेह ऋषिरा. सारुं घर [सं.] [सं.सुखवर्तक सुचंग "अखाछ. गुर्जरा. चित्तसं. नलरा. सुखशिजा नलरा. सुखशय्या, [सुखाकारी नलाख्या. नेमिछं. प्रधुचु. खूब सुंदर शय्या __ (सं.सु+दे.चंग) सुखसम्माण चारफा. सुख अने सन्मान - सुचंगि आरारा. सुंदर गौरव (सं.सौख्य+संमान) सुचालणउ वीसरा. झडपथी चालनारो सुखाननी चतुचा. सुख आपे एवा मुखवाळी सुचिंत आरारा. सचिंत, अस्वस्थ सुजगीश ऐतिका. सुन्दर इच्छा; जुओ जगीश सुखामो मोसाच. शोभायमान (सं.सुषम परथी) ? सुखमय ? सुजवणउ शृंगाम. शुद्धि, [प्रक्षालन] [सं. सुखालीय “वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). शुध् परथी] सुस्वच्छ (सं.सुक्षालित) सुजाण गुर्जरा. चतुचा. चंद्रवा. वीसरा. सुखासण जुओ सुक्खासण षडाबा. ज्ञानी, समजदार, डाह्यो (सं.सु+ ज्ञान) सुखासन प्रेमप. पालखी; गुर्जरा. आरामभर्यु आसन (सं.) सुजीवी (सु जीवी) *विमप्र. [सो जेवी] सख-साता "देवरा सिख अने सख. खब सुझाळा अखाछ. सूझवाळी, [ज्ञानी। सुख] (सं.सुख+सात) [सं.शुध्यति परथी] सुखासुण विमप्र. [आरामदायक आसना, सुट्ठी नेमिछं. *उत्तम, *श्रेष्ठ (सं.सुष्ठ), __ *नानी पालखी [*सुस्थित] [प्रा.सुट्ठिअ] सुख्य आरारा. सुख (सं.सौख्य) सुढवं, सुंढवू मदमो. ऊपडवू, चालवू, जुओ सुगत "कादं(शा). [बुद्ध भगवान] (सं.) सुवु सुगति उपबा. सारी गति [अवस्था, सुण उक्तिर. शकुन; विक्रच. पशुपक्षीना परिणाम]; [मुक्ति] (सं.) अवाज ओळखवानी विद्या सुगंधिका शृंगाम. सुगंध लई जनारी स्त्री, सुणउँ जुओ सणउं [एक प्रकारनी राजपरिचारिका] सुणय ऐतिका. नीतिमान, सदाचारी, सुगाल अंबरा. उपबा. जिनरा. लावल. [सुनीतिवाळी] [सं.सुनय] सुकाळ, सारो समय, [वरसाद थयो सुणवइ *विमंप्र. [पक्षीना अवाज परथी होय तेवो समय] संकेतो जाणनार] [सं.शकुनविद्] सुगाळ "प्रेमाका. [सुगाळवो, जेने सूग सुणह, सुणहउ प्राचीसं. विक्ररा. कूतरो 2010_03 Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५३५ सुणिहर/सुपसाउनु (सं.शुनक) सुधे मन चतुचा. शुद्ध मनथी सुणिहर प्राचीफा. शयनगृह सुधो चित्तसं. सुधी सुणीजउ वीसरा. स्नेहीजन (सं.स्निह्यति सुध्या अंबरा. सुधा, अमृत ___ परथी); जुओ सणीजां सुन कामा(त्रि). शून्य, [सूनुं] सुतर अखाछ. [सुतरुं], सहेलु, समुं सुन हो दूत जुओ सनहो सुतली सिंहा(शा). पातळी, सीधी ? सुनानुं प्रेमाका. सोनानु, सुवर्णतुं. सुत वेलां आरारा. सुवावडमां सुनिछउ "ऐतिका. [सुनिश्चयवाळा, शुभ सुतहार प्राचीसं. सूत्रधार, शिल्पी ___ संकल्पवाळा] सुति आरारा. पुत्री सुनु विमप्र. शून्य मननो, [भान वगरनो] सुनुं मोसाच. सोनुं [सं.सुवर्ण] सुतिइ कादं(शा). पूरुं थतां (सं.समाप्ते); सुनैये मोसाच. सोनाना सिक्का वडे [सं. जुओ सूतूं सौवर्णिक] . सुत्र मदमो. नियम [सं.सूत्र] सुपइ आरारा. चतुचा. सोंपे (सं.समप) सुदेव आरारा. ? सुपइ कादं(शा). समाप्त थाय सुद्धि आरारा. गुर्जरा. तेरका. प्राचीसं. सुपएस तेरका. सुंदर प्रदेशवाळां हम्मीप्र. समाचार, खबर (सं.शुद्धि) (सं.सुप्रदेश) सुधु कादं(शा). स्पष्ट, [खरो] सुपच्चल प्राचीसं. सुसमर्थ [सं.सु+दे.पच्चल] सुद्रह गुर्जरा. समुद्र; जुओ सुंद्र सुपन ऐतिका. नैमिछं. स्वप्न सुध आरारा. शुद्ध, निर्मळ; शुद्ध, बराबर, सुपनाध्याय ऐतिका. स्वप्नाध्याय, [स्वप्ननो पूरेपूरी ___ अभ्यास के विचार रजू करता ग्रंथ] सुध प्रेमप. भान; कामा(त्रि). समाचार (सं. सुपरपरि ऐतिका. सारी रीते, सुंदर रीते शुद्धि); जुओ सुधि सुपरि गुर्जरा. लावल. सारी पेरे, सारी रीते सुघउ ललिरा. सीधो, [साचो]; "नरप(द). [सं.सु+प्रकार] [पूरेपूरो, साव]; नरका. शुद्ध, साचो सुपरिकर "नेमिछं. [पोतानो परिजनवर्ग] सुध वार नंदब. शुद्ध पाणीवाळु [सं.स्व+परिकर] सुधाचार आरारा. शुद्ध आचारवाळो सुपरिस विक्ररा. शीलक. सुपुरुष, सज्जन सुधि आरारा. खबर, तपास; शीलक. क्षेम- सुपवित्तिण ऐतिका. सुपवित्र [वडे] कुशळ; नेमिछं. शुद्धि; जुओ शुद्धि, सुध सुपसंसिय ऐतिका. सुप्रशंसित, [सारी रीते सुधिई नेमिछं. शुद्धिथी प्रशंसा पामेल] सुधी चतुचा. सीधी, सरळ; देवरा. साची सुपसाउ ऐतिका. गुर्जरा. सुप्रसाद, कृपा (सं.शुद्ध) सुपसाउनु नलरा. कृपा (सं.सु+प्रसाद) 2010_03 Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुपसाप/सुरत-नूरत ५३६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सुपसाय आरारा. कृपां (सं.सुप्रसाद) सुयण गुर्जरा. सुजन, [*स्वजन] सुप्रमाण आरारा. प्रतीतिपूर्वक, योग्यता- सुयदेवि ऐतिका. श्रुतदेवी, [शास्त्रज्ञानरूप पूर्वक देवी] सुप्रसाह (सुप्रसाद) ऐतिका. शोभन कृपा- सुयार विराप. रसोयो (सं.सूपकार) [वाळा] सुर वीसरा. स्वर, अवाज सुबस “वीसरा. [सारी रीते वसेतुं] सुर अखाछ. सूरदास, आंधळो सुभम नलरा. सुकाळ (सं.सुभिक्ष) सुरग वीसरा. स्वर्ग सुभचरी आरारा. जेनुं चरित शुभ छ एवो पा सुरगइ जिनरा. देवगति, दिव तरीकेनो सुभवती आरारा. कल्याणवती जन्म] [सं.सुरगति] सुभ सर्मा चंद्रवा. कल्याण [अने सुखथी सुरगवि ऐतिका. कामधेनु [सं.] भरेल] [सं.शुभशर्मा]; जुओ सर्म - सुरगुर गुर्जरा. देवोना गुरु, [बृहस्पति] सुभा आरारा. सभा (सं.सुरगुरु) सुभाव, सुभाव्य ऋषिरा. चित्तसं. स्वभाव का विक बहरपति पण] सुम कस्तुवा. चंद्रवा. कृपण; जुओ सुंब सुरगो ऐतिरा. कामधेनु [सं.] सुमति ऐतिका. ईर्यासमिति आदि, [हलन सुरघट ऐतिरा. दैवी घडो, मनवांछित आपे चलन वगेरे विषयक विवेक] [जै.] __ तेवो घडो [सं.] सुमर- तेरका. स्मरवू (सं.स्म) सुरठ तेरका. सुराष्ट्र प्रदेश सुमरण प्रेमप. स्मरण सुरठाण विक्ररा. सुरस्थान, स्वर्ग सुमरिजंत ऐतिका. स्मरण करवाथी सुमरेवि ऐतिका. याद करीने सुरत, सुरता अखाका. कामक्रीडा [सं.]; लगनी, [ध्यान, सरत, एकाग्रता]; सुमाणस वीसरा. सारो माणस (सं.सु+ अखेगी. ध्यान, लगनी; [मनोवृत्ति]; मानुष) चतुचा. देखाव, रूप; नरका. कामक्रीडा; सुमिण, सुमिणउ उक्तिर. ऐतिका. गुर्जरा. लगनी, ध्यान; [*रूप]; प्रेमाका. ध्यान, प्राचीफा. स्वप्न [सरत, भान]; सिंहा(शा). सूध, भान, सुमीठ वीसरा. घणुं मीठु (सं.सु+मिष्ट) सतेजपणुं, एकाग्रता, ध्यानमग्नता]; सुमुहुर शृंगाम. सुमधुर जुओ सुरति, सूरत सुम्म- तेरका. संभळावू (प्रा.; सं.श्रूय) दि.] सुरत-नूरत *अखाका. [योगसाधनानी बे सुयई आरारा. सूए अवस्थाओ, लक्ष्यमां लीन थर्बु ते (अंतसुयण विक्रच. पशुपक्षीना अवाजना संकेतो मुख वृत्ति)अने बाह्य प्रवृत्तिमांथी निवृत्त [सं.शकुन थर्बु ते (बहिर्मुखी वृत्ति)] 2010_03 Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५३७. सुरतर/सुरी सुरतर, सुरतरु आरारा. ऋषिरा. कल्पवृक्ष सुरवइ गुर्जरा. देवेन्द्र (सं.सुरपति) सुरतसंग्राम वसंफा. वसंफा (ल). वसंवि. सुरखर ऐतिका. उत्तम देव, इन्द्र वसंवि(ब्रा). कामक्रीडारूपी संग्राम (सं.) सुरसरी अखेगी. दशस्कं(१). सुरसरिता, सुरतसुरंग वसंफा. वसंवि(ब्रा). काम- आकाशगंगा क्रीडानो आनंद (सं.) सुरसाल गुर्जरा. आंबानुं सरस वृक्ष (सं.सु+ सुरता जुओ सुरत ___ रसाल); ऐतिका. *उत्तम, [सुंदर, सरस] सुरता-खरा अखाका. सुरतामां खरा, पूरेपूरा सुरसुत ऐतिरा. देवपुत्र । लीन थयेला, [खरा सुरतावस्थावाळा - सुरह वीसरा. *गाय, [*मनोहर, "उत्तम, लक्ष्यमां लीन थयेला] । “पवित्र] [रा.; सं.सुरभि] सुरतांत कादं(शा). सुरतक्रियाना अंत सुरहा, सुरहां आरारा. ऐतिरा. गुर्जरा. समय- (सं.) सुगंधित (सं.सुरभीणि) सुरति चित्तसं. वृत्ति; लगनी; सुरतक्रीडा, सुरहि आरारा. गाय (सं.सुरभि); तेरका. कामक्रीडा प्राचीफा. सुगंधयुक्त (सं.सुरभि) सुरति, सुरत्य अखाका. लगनी, [ध्यान, सुरहिय प्राचीफा. सुरभित एकाग्रता]; [लक्ष्यमां एकाग्र थवारूप सुरही आरारा(व). रास्ना, तुलसी, चंदन, वृत्ति]; नरका. लगनी, [ध्यान, सह. सालेड आदि वक्षोमांथी कोई एकाग्रता]; जुओ सुरत (सं.सुरभि); एक करिया| सुरतुर प्राचीफा. कल्पवृक्ष (सं.सुरतरु) सुरंग गुर्जरा. मजानू, सरस रंगवाळ; सुरत्य, सुर्त चित्तसं. वृत्ति; जुओ सुरति वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. सुखम ऐतिका. सुरद्रुम, कल्पवृक्ष वसंवि(ब्रा). आनंदपूर्ण, मनोहर, सुंदर सुरपति लावल. देवोना पति इन्द्र (सं.) सुरभ आरारा. सुरभि, सुगंध सुरंग उक्तिर. भोयरूं (सं.) सुरभि दशस्कं(१). प्रेमाका. हरिख्या. गाय सुरंगी ऐतिका. सुंदर रंगवाळी, [सुंदर]; (सं.) जुओ मुरंगी सुरभि-सुत प्रेमाका. *वाछरडो, [बळदियो] सुरिई आरारा. देवे सुरभि-हिम-लक्षण वसंवि(ब्रा). सुगंधित सुरिताण प्राचीसं. सुलतान __ अने शीतल (सं.) सुरि-नर देवरा. देव अने मानव सुरभी आरारा. गाय (सं.सुरभि) सुरिंदो लावल. सुरेन्द्र, इंद्र सुरमहिल तेरका. अप्सरा (सं.सुरमहिला) सुरी प्राचीफा. सिंहा(म). देवांगना, देवी सुरलित आरारा. आनंदभरी (सं.सुर परथी) 2010_03 Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सु/सुहण मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सुरीसु उषाह. सरखो, [जेवो] (सं. सदृश) सुबिहुं विमप्र. बधांने [सं. सर्वे + खलु ] सुरूव ऐतिका. सुरूप, [सुंदर ] सुवेध नलरा. रसिक, विदग्ध, [चतुर] [सं. सु+विदग्ध] सुर्त जुओ सुरत्य ५३८ सुल कस्तुवा. मुश्केली के झघडानो निकाल, [बचाव, रक्षा]; मदमो. भावनी खेंचताण, [किंमत नक्की करवी ते] (अ. सुल्ह); जुओ सूले = सुलताण ऐतिका. सुलतान सुलप प्राचीका. सहेलो (सं. सुलभ ) सुलहलादिक षडाबा. सुलहल ( एक जंतु ) वगेरे, [* शाहूडी वगेरे] [*सं. शलल] सुलभ षष्टिप्र. सुलभ सुल्यु आरारा. नीवड्युं (रा.) [*अ. सुल्ह] सुवन्नरेह तेरका. सुवर्णरेखा (नदी) सुवरणी जुओ सुविणी सुवर्णजटित नलरा. सुवर्णजडित [सं.] सुवंस आरारा. वांसळीना प्रकारनुं वाद्य सुवान कादं (शा). सारा रंगवालुं (सं. सुवर्ण) सुवास कादं (धु). पोतानुं रहेठाण [सं. स्व + सुसतउ "गुर्जरा. वीसरा. [ स्वस्थ, शांत] सुसमथ आरारा. सुसमर्थ सुसर प्राचीफा. मीठा स्वरवाळी सुसरउ आरारा. उक्तिर. ससरो (सं. श्वसुर ) सुसुरउ षडाबा. ससरो (सं. श्वसुरः) सुसेर अखाका. सोंसरुं, [सीधुं, अविकृत] सुस्थपणउं उपबा. स्वस्थता, स्थिरता वास] सुवासणिय प्राचीफा. सुवासिनी, सौभाग्य- सुह गुर्जरा. तेरका. प्राचीफा. षडाबा. सुख; वती स्त्री सुवो, सवो, सुहो पंचवा. पोपट ( सं . शुक) सुशंभु कादं (धु). बहु सुख आपनार, [ परम मंगळकारी] [सं.] सुशिर विराप. काणां (सं. सुषिर); जुओ सुंसिर सुविहाणु जुओ विहाणु सुविहित ऋषिरा. [सुंदर आचारोवाळा साधुओ] [सं.] जुओ सुइ सुवि लावल. सर्व सुहकर, सुहकरो नेमिछं. सुख आपनार सुविणी (सुवरणी) * ऋषिरा. [विख्यात, सुहगुरु उक्तिर. चारफा. प्राचीफा. शुभगुरु, यशस्वी कल्याणकारक प्रशस्त गुरुवर्य, सद्गुरु सुहड ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. विक्ररा. विमप्र. सुभट, योद्धो 2010_03 सुषमा अरउ उक्तिर. जेमां सुख वधारे एवो एक काळविभाग [जै.] सुषोपती चित्तसं. सुषुप्ति, निद्रावस्था सुसइ उक्तिर. तेरका षडाबा. सुकाय, सोसाय (सं. शुष्यति) सुहण आरारा. शकुन सुविहिय ऐतिका. सुविहित, [सुंदर आचारण- सुहणउं उपबा. उषाह. जिनरा. नलरा. शीलक. शृंगामं. सम्यचो. स्वप्न, सोनुं वाळा, सदाचारी] Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सुहबोलु नलरा. राजानी तहेनातमां रहीने मीठां वचन बोलनार, सुखबोलो सुहम जिनरा. सूक्ष्म [ संपराय], [जेमां लोभ - ना सूक्ष्म अंश सिवाय मोहनीय कर्मो उपशान्त के क्षीण थया होय एवी आत्मवास्था] [जै.] ५३९ [मनोहर ] सुहाय नरका. गमे, सुख आपे (सं. सुखापयति); नरका. लावल. शोभे सुहायइ उक्तिर. सुख आपे (सं. सुखायति) सुहार मदमो. रसोइयो (सं. सुपकार) सुहालडी आरारा. सुंवाळी, [मुलायम ] भगवानना गणधर सुहम-स्वामि शृंगामं सुधर्मास्वामी, महावीर सुहाली तेरका. प्राचीसं. सुंवाळी, पूरी (सं. सुकुमारिका); जुओ सुहली सुहर नलाख्या. वराह, [जंगली ] डुक्कर (सं. सुहावउ "गुर्जरा. [शोभावो, सुंदर रीते शूकरः) धरो] [सं. शोभू] सुहासणि ऋषिरा सौभाग्यवंती (सं. सुवासिनी) सुहालि “प्रचु [सुखनी लालसावाळी] सुहली पंचवा. * घी - गोळमां घउंनो लोट शेकी बनावेली खाद्यवानगी, [सुंवाळी, एक जातनी पूरी ]; जुओ सुहाली सुहब, सुहवि आरारा. विक्ररा. सधवा, सौभाग्यवती स्त्री [सं. सुधवा ] सुहंम ऐतिका. सुधर्मास्वामी, [ भगवान महावीरना गणधर ] सुहाइ उपबा. ऋषिरा. गुर्जरा. वीसरा. सुख आपे, गमे (सं.सुखापयति); "गुर्जरा. तेरका सुख पामे (सं. सुखा-); वसंवि. वसंवि(ब्रा). सुख पामे, सुख आपे सुहाग आरारा. शोभा, प्रशंसा, कीर्ति (रा.) (सं. सौभाग्य); गुर्जरा. सद्भाग्य [युक्त ]; [प्रशस्त ] सुहागी नरका. * भाग्यशाळी, [सुंदर ] सुहाउं गुर्जरा. सुख थयुं, गम्युं सुहाणी "नेमिछं. [सुख आपनारी थई, गमी] सुहामण गुर्जरा. सुखजनक, आनंदजनक, 2010_03 सुहबोलु / सुहेल सुहांत वसंवि (ब्रा). *उज्जवल, *प्रकाशित, [शोभतुं ]; जुओ प्रेमसुहांतीय सुहिणइ ऐतिका. स्वप्नमां, [सोणामां] सुहिणो जिनरा. स्वप्न सुहु ( सुहु गुरु ) गुर्जरा. शुभ [गुरु], [सद्गुरु] सुहुड अभिऊ. सुभट, योद्धो सुहुणउं अखाका प्रबोप्र. स्वप्न सुहुम निगोद आनंस्त. साधारण वनस्पतिकाय नामनी सूक्ष्म जीवराशि [जै. ] सुहुलूं नलाख्या. सुलभ, सोहलुं, [सरळ; सुखकारक ] [ सं . सुख परथी ] सुहुंणइ ऐतिरा. स्वप्ने सुहेज लावल. सारं हेत, घणो स्नेह * सुहेतलउं ["सुहेलउं] षष्टिप्र. सहेलुं [सं. सुखपरथी] सुहेल नेमिछं. ०षष्टिप्र. सहेलुं (सं. सुख परथी) Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहो/सूईउ . ५४० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सुहो जुओ सुवो सुंसरियां (सुं सरियां) *गुर्जरा. [-नी साथे सुं आरारा. वडे, -थी; गुर्जरा. हरिख्या. चाल्या, धस्या] साथे, सहित (सं.समम्) सुंसिर गुर्जरा. छिद्र (सं.सुषिर); जुओ सुशिर सुंआल प्राचीसं. सुकुमार, सुंवाळो सुसेर अखाछ. सोंसरो सुंक उक्तिर. जकात, महेसुल (सं.शुल्कः) सुंहालउं नरका. नेमिछं. विमप्र. सुंवाळू, सुंखडी ऐतिका. मीठाई; जुओ सुखडी कोमळ (सं.सुकुमार) सुंखिणि विमप्र.शंखणी, [कर्कशा, कंकासि- सुंहाली लावल. सुंवाळी, [एक जातनी यण स्त्री] [सं.शंखिनी]; जुओ सुखण पूरी] (सं.सुकुमारिका) सुषिवा उक्तिर. सूंघवा सू (सूअ) गुर्जरा. दीकरो (सं.सुत) सुंचल उक्तिर. संचळ, खार, काळु मीठु सूअ, सूया प्रद्युचु. प्राचीफा. पोपट (सं.शुक) (सं.सौवर्चलम्) सूअडउ गुर्जरा. पोपट (सं.शुक+ड) संछिणि विमप्र. "चूंची, “छूछी सूअण विमप्र. "सज्जन, स्वजन]; जुओ सुंजु गुर्जरा. [ सूझतुं, "देखातुं, “थतुं] सूयण संडल नेमिछं. विमप्र. सुंडलो, टोपलो सूअर उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. सूवर, [जंगलो सुंडादंड गुर्जरा. चित्तसं. सूंढ (सं.शुंड+दंड) डुक्कर] (सं.शूकर) सुंदबुं वेताप. सिंहा(शा). सज्ज थकुं, ऊपड, सूआ आरारा. सूता, सुवावडी स्त्री जवू जुओ सुढवू, सूडबुं, सूंढिया, सूआ उक्तिर. [?] (सं.सूचकाः) सोडाडो, सोंड सूआडि उक्तिर. प्रसूतिखंड (सं.सूतिकासुंदर-वंदर-वालि, सुंदर-बंदुर-बाल वसंवि- गृहम्) (ब्रा). सुंदर वंदनमाला, [स्वागत माटेनुं सूआर उक्तिर. गुर्जरा. नलरा. रसोयो (सं. एक तोरण] सूपकार) सुंदादंड वाग्भवा. सूंढरूपी दंड [सं.शुंड+ सूआरइ लावल. सुवाडे [सं.स्वप्] दंड सूआरोग आरारा. ऋषिरा. स्त्रीओने प्रसूति सुंद्र जुओ मुंद्र पठी थतो रोग [सं.सूता+रोग] सुनि प्राचीका. सोनामां (सं.सुवण) सूआवडि विमप्र. सुवावड; आरारा. सुवावड सुंपी अखाका. कादं(शा). लावल. सोंपी, दरम्यान सेवाचाकरी .. सुप्रत करी (सं.समप्य) सूइ, सूई आरारा. नेमिछं. सोई (सं.सूचि); सुंब सिंहा(शा). कृपण; जुओ शुंब, सूंब जुओ सुई मुंमला प्राचीका. कंजूस, बखील सूईउ उक्तिर. सई, दरजी (सं.सौचिकः); सुंस आरारा. श्वास, सूंघq ते (रा.) जुओ सुईउ 2010_03 Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सूक अखाछ. शुष्क सूजइ उक्तिर. सूजी जाय ( सं . श्वयति ) सूकइ उक्तिर. "गुर्जरा. षडाबा. सुकाय सूजवइ उक्तिर. सोजो आणे [सं. श्वाययति ] (सं. शुष्क परथी ) M [समेटी सूकट (सूकट लिया ) *वीसरा. धा, भीडी लीधा] सूकड अभिऊ. वीसरा. सुखड (सं. शुष्क + डी) ५४१ सूकडि अभिऊ. उपबा. कृष्णबा. गुर्जरा. नलरा. प्राचीफा. विमप्र. सुखड (सं. शुष्क परथी) सूकवणु षडाबा. सूकववानी क्रिया सूखडां विमप्र. सुखडी, एक प्रकारनी मीठाई, जुओ सुखडी, सूंखडी सूखडी कादं (शा). मिछं. पाणी नथी पड्यु तेवी सूकी मीठाई; पछी सर्वसामान्य मीठाई (सं. शुष्कपुटिका) सूचि अखाका. सोय [सं.] सूचि, सूची " प्रेमाका. [यज्ञमां घी होमवा माटेनी लाकडानी कडछी] [सं. स्रुच्] सूचि षडाबा. सूचव्युं, कह्युं (सं. सूच्यते) सूची जुओ सूचि 2010_03 सूझइ उक्तिर. गुर्जरा. प्राचीसं. षडाबा. शुद्ध थाय (सं. शुध्यते); उपबा. विमप्र. सूक/ सूतूं शुद्ध - साधुओने माटे वापरवा योग्य - होय सूकडी आरारा (व). सुखड, चंदन सूड जिनरा. नाश (सं. सूदन) सूकर अखाका. सूवर, [जंगली डुक्कर] [सं. सूडउ उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. प्रेमाका. शूकर ] लावल. पोपट (सं. शुक) सूडलो नरका. पोपट सूडवुं प्रेमाका. कापवुं, नाश करवो [सं. सूद्] सूडबुं (सूढावबुं) चंद्रवा. मोकलाववुं, [ रवाना करवुं, चलाववुं ]; जुओ सूंढवं सूडावसुं विमप्र. साफ कराववुं सूडो, सूडी नरका. पोपट, मेना सूढावुं जुओ सूडावुं सूखिम ऐतिरा. सूक्ष्म, [ लघु] सूगडांग उक्तिर. सूत्रकृतांग नामनो जैन सूणहरउं उक्तिर. शयनगृह शास्त्रग्रंथ सूगण देवरा. सु-गुणयुक्त सूगामणउ उक्तिर. उपबा. सूग उपजावनारुं घृणास्पद (सं. शूक परथी ) , सूझवइ उक्तिर. शुद्ध करे (सं. शुध्य परथी) सूझीइ * कर्पूमं. [शुद्ध थईए, पवित्र थईए] [सं. शुध्य परथी] - सूणी षडाबा. सूजी गई [सं. शून] सूतकी * नरका. [ अशुद्ध, अपवित्र] सूतहार उपबा. सुथार (सं. सूत्रधार) सूतिका आरारा सुवावडी स्त्री [ सं . ]; सुवावडी स्त्रीनी परिचारिका सूतिकाभवन कादं (शा). सुवावडीनो ओरडो (सं.) सूतूं कादं (शा). पूरुं [थयुं] (सं. समाप्तकम्); जुओ सुतिइ, सोंत Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूतु / सूरियांपान सूतु जुओ घरिसूत्तु सूयण गुर्जरा. स्वजन; जुओ सूअण सूत्र हरिख्या. तंत्र, [व्यवस्था, शासन] [सं.] सूयर सिंहा (म). सुवर, [जंगली डुक्कर ] सूत्र आरारा. सूत्रग्रंथ, शास्त्र (सं. शूकर) सूया जुओ सूअ ५४२ सूत्रधार, सूत्रध्यार, सूत्रहार उक्तिर. नलरा. विक्ररा. षडाबा. सुथार (सं.) सूत्रहीया शीलक. सूतरिया, सूतरना वेपारी [सं. सूत्र परथी] सूथ * नलरा. [सुख] [सं. सुस्थ ] सूथल * गुर्जरा. [शिथिल, श्रान्त ] सूदनकरण षडाबा. सूडवुं ते, कापवुं (सं.) सूध नरका. संभाळ [सं. शुद्धि] सूधउं अखाका. अखाछ. अखेगी. अभिऊ. अंबरा. आरारा. उपबा. ऋषिरा. कादं (शा). गुर्जरा. चित्तसं. दशस्कं ( १ ). दशस्कं (२). नरका. नलरा. नलाख्या. प्रबोप्र. प्रेमाका. विमप्र. शुद्ध, निर्मळ, चोख्खु, सारुं, स्पष्ट, सीधुं, पूरुं, साधुं सूक्ष्य प्रेमाका खबर, [भाळ] (सं. शुद्धि) सून अखाका. शून्य, ब्रह्म सूनक चंद्रवा. सनक ऋषि सूनु आरारा. पुत्र (सं.) सून्य गुर्जरा. सूनो (सं. शून्य) सूप दशस्कं ( 9). प्रेमाका. सूपडुं [सं. शूर्प] सूब नंदब. सूम, उदास, [मूजी ] [ अ. शूम ]; जुओ सुम, सुंब मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश * सूमू [सूसमु] तेरका. सुषम [काळ], [जेमां सुख छे एवो काळविभाग] [जै.] सूयडउ षडाबा. सूडो, पोपट ( सं . शुक) 2010_03 सूयारइ आरारा. सुवाडे [ सं . स्वापयति ] सूयारपणइ गुर्जरा. रसोया तरीके [सं. सूपकारत्वन] सूयारुख आरारा (व). सुवानुं वृक्ष (सं. शताह्वा) सूयारोग आरारा. सुवावडमां थतो रोग सूयावडि आरारा. सुवावड सूयांणी आरारा सुवावडी परिचारिकाओ [सं. * सूतिजानि] सूयिवा उक्तिर. सूवा [ सं . स्वप्] सूर अखाका. आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका. नरका. प्रेमाका. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). वीसरा. सूर्य (सं.) सूरई * वसंफा. *वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि (ब्रा). शूरवीरे सूरउ * गुर्जरा. [शूरो] सूरत अखाछ. * सुरता, लगनी, [वृत्ति ]; जुओ सुरत, सूर्त सूरता षडाबा. शूरपणुं (सं. शूरता ) सूरयोपम ऐतिका. सूर्य समान सूरा उपबा. सूवर, डुक्कर (सं. शूकर) सूमडो दशस्कं (२). प्रेमाका. "कंजूस, जड, सूरज उक्तिर. गुर्जरा. वीसरा. सूर्य [[मूजी ] सूरिम प्राचीसं. शौर्य स्त्रीनी सूरिमंतु ऐतिका. सूरिमन्त्र, [सूरि ए पदवी माटेनो मंत्र ] सूरियांपान प्रेमाका. * कसबजरीना तारवाळां Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५४३ सूरीसरा/सेएद्री पान, [कोई वनस्पतिनां पांदडां] सूंआलउँ उक्तिर. उपबा. सुकुमार, कूमळु सूरीसरा लावल. सूरीश्वर, श्रेष्ठ सूरि - सूंखडी आरारा. उक्तिर. मीठाई, जुओ आचार्य सूखडां सूर्ण्य चित्तसं. सूरज सूंगो "विमप्र. [छत्रनो एक प्रकार दि.सुंग] सूर्त अखाका. अखाछ. लगनी, [वृत्ति]; सूंचलू षडाबा. संचळ (द.संचलू) [सं. जुओ सूरत सौवर्चल] सूल उपबा. "जिनरा. पीडा (सं.शूल) सूंठी षडाबा. सूंठ (सं.शुंठिः) सूले चंद्रवा. ?, ["किंमत करवामां, *उकेल- सूंड उक्तिर. सूंढ (सं.शुण्डा) ___ मां]; जुओ सुल सूंढिया प्रेमाका. सज्ज, तैयार थया; जुओ सूवा आरारा. पोपट (सं.शुक) ___ सुंढवू सूसणां विमप्र. *मीठाशभर्यु वर्तन खून चित्तसं. शून्य सूसम गुर्जरा. जेमां सुख छे एवो काल- सूंपाडी कादं(शा). संपादित करी, मेळवी विभाग (सं.सूषम) [जै.]; जुओ सूमू (सं.समर्पितक) [सं.संपात् परथी] सूसमदूसम गुर्जरा. जेमा पहेलां सुख अने . सूंघु प्रेमाका. सोंप्यु [सं.समर्पित] पछी दुःख छे एवो कालविभाग (सं. सूंब अंबरा. सूम, कंजूस [अ.शूम]; जुओ सूषमदुःषम) [जै.] शुंब, सुंब, सूब सूसमसूसम गुर्जरा. जेमां सुख ने सुख ज सूंब उक्तिर. दोरी (सं.शुंब) __ छे एवो कालविभाग [जै.] संहाली उक्तिर. सुंवाळी, एक प्रकारनी पूरी सूहणूं उषाह. स्वप्न, सोj ___ (सं.सुकुमारिका) सूहर कादं(शा). [सुवर], डुक्कर (सं.शूकर) सृग *चंद्रवा. [स्वर्ग] सूहव प्राचीफा. सुंदर (सं.सुभग) सृज प्राचीफा. माळा (सं.स्रज) सूहव, सूहवि, सूहवी उक्तिर. ऐतिका. सृष्टि विना प्रेमाका. [उत्पत्ति विना], जन्म जिनरा. प्रद्युचु. प्राचीसं. सौभाग्यवती, विना सधवा स्त्री (सं. सुधवा) सेइंद्री नलाख्या. [अंतःपुरनी] दासी (सं. सूहाली नलरा. लीसी, सुंवाळी; पूरी जेवो सैरिन्ध्री) एक खाद्य पदार्थ, सुंवाळी (सं. सेई उक्तिर. अनाजनुं एक मापियुं (सं. सुकुमारिका) सेतिका); जुओ सेतिका सूहांलडी शृंगाम. सुंवाळी, [नाजुक] सेउ [सेय तेरका. षडाबा. परसेवो (सं. सूं गुर्जरा. जेवू [सं.समम्] स्वेद) सूं वीसरा. साथे (सं.सहित) सेएव्री मदमो. सैरंध्री, [अंतःपुरनी दासी, 2010_03 Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेकिवा वांछइ/सेवइ. ५४४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (अहीं) विराटनगरमां ए रूपे रहेली सेर कामा(त्रि). शहेर द्रौपदी] सेर मदमो. ? सेकिवा वांछइ उक्तिर. [*शेकवा इच्छे, सेरडे दशस्क(२). प्रेमाका. रस्ते, मार्गे; ___ "सिंचन करवा इच्छे] (सं.सिसिक्षति) जुओ शेरडो सेखल आरारा. षष्टिप्र. शेषनाग, नागदेवता सेराहडा कृष्णच. [एक अश्वजाति दि. सेज रूपच. पथारी, शय्या . सेराह] सेजगंडूआ उक्तिर. ओशीकां (सं.शय्या- सेर्य चित्तसं. सरवाणी गण्डकाः) सेल उक्तिर. प्रद्युचु. प्राचीसं. हम्मीप्र. शल्य, सेजा चतुचा. नरका. शय्या, पथारी एक प्रकारनो भालो (प्रा.सेल्ल) सेजि कादं (शा). *सहेजे, *स्वाभाविक रीते, सेलडी *विमप्र. [?] पथारीमा] सेलहुत, सेलुत, सेलुहत, सेलुहुत विक्ररा. सेजु मदमो. ढबछब, लक्षण . एक राज्याधिकारी, शेलत [सं.सेलभृत्, सेज्या मदमो. शय्या शल्यहस्त] सेट पंचवा. शेठ (सं.श्रेष्ठिन्) सेलि (सरसेलि) गुर्जरा. [बाण चलाववानी] सेठि अंबरा. उक्तिर. गुर्जरा. षडाबा. शैली, रीत, कळा, कुशळता सिंहा(म). शेठ (सं.श्रेष्ठि) सेली चंद्रवा. [सहेली, सखी] सेण नरका. नरप(द). स्नेही, स्वजन सेली *नरप(द). सहेली, [सरळ] सेत गुर्जरा. प्राचीसं. लावल. वसंफा. सेलु प्राचीफा. कसबी उपरणो वसंवि. श्वेत, सफेद सेलुत, सेलुहत, सेलुहुत जुओ सेलहुत सेतिका षडाबा. अनाजनुं एक माप; जुओ सेलो प्रेमाका. दोरडाथी ढोरना पाछला पगने बांधवा ते सेतुज, सेतुजउ, सेत्तुंजय, सेत्रज गुर्जरा. सेलो वाळे दशस्क(२). दोहवा वखते पगे प्राचीसं. शत्रुजय ___ दोरडी बांधे *सेत्र [सेत्त] गुर्जरा. श्वेत सेव(सव) तेरका. सर्व सेत्रज जुओ सेतुज सेव अखाका. आरारा. गुर्जरा. चंद्रवा. सेधांण मदमो. --, [लक्षण] [सं.*साभि- देवरा. प्रेमाका. लावल. षडाबा. सेवा, __ ज्ञान]; जुओ सहिनाण, सेंधाण उपासना, पूजन सेन नरका. सान, आंखनो इशारो [हिं.सैन] सेव चंद्रवा. सेव्य, सेववा योग्य सेबास मदमो. शाबाश सेवइ आनंस्त. सेवे, [सेवा करे]; [सान्निध्य सेय जुओ सेउ करे]; [पालन करे]; आरारा. आराधना सई 2010_03 Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५४५ सेवडो/सोई करे, अभिलाषा राखे; उपबा. आचरे, कलगी]; जुओ शेहरु [सेवा करे, सान्निध्य करे]; ऋषिरा. सेहला * उषाह. [सलाह, शिखामण] [उ. सेवे, [आश्रय ले]; तेरका. सेवे, [सेवा सिलाह करे], [आश्रय ले, सान्निध्य करे]; सेहे मदमो. सो; जुओ शेहे *प्रेमाका. [उपभोग करे, लगाडे]; सेहेज चित्तसं. सहज, सहजपणे, मूलभूत लावल. सेवे, सेवा करे, [आश्रय ले]; . रीते वीसरा. सेवा करे; वसे; षडाबा. सेवे, सेहेस देवरा. हजार (सं.सहस्र) आचरे सेहेसा मदमो. सहसा, [वगरविचार्य] सेवडो वेताप. जैन यति (सं.श्वेतपट) सें, सेहे दशस्कं(१). प्रेमाका. एक सो सेवना आनंस्त. सेवा, [उपासना] . सेंगीया कस्तुवा. गुटिका ? [शिंग] सेवंत, सेवंती, सेवंत्री आरारा(व). उक्तिर... सेंथो प्रेमाका. स्त्रीओ- सेंथामां पहेरवानुं एक फूलझाड, [सफेद गुलाब] (सं.शतपत्रिका); जुओ सयवत्ति ___ एक घरेणुं सेवंत्रा *चंद्रवा. नरका. प्रेमाका. "मदमो. सेंधाण वेताप. चिह्न [सं.*साभिज्ञान]; एक फूलवेलनां फूल, [सफेद गुलाब] जुओ सहिनाण, सेधांण सेवंत्री जुओ सेवंत सेवास कस्तुवा. सहवास सेस उक्तिर. देवने चडाव्या पछीनो प्रसाद सेंस जुओ सतरसेंस (सं.शेषा) सेहे जुओ में सेस गुर्जरा. शेषनाग सैघपण नलरा. शीघ्रपणुं, उतावळ सेसफूल चतुचा. शीशफूल, एक आभूषण सस सैयल अखाका. शैल, पर्वत; जुओ सहीअल सेह प्रेमाका. *मदद, *सहाय, शिक्षा, सैरंध्री प्रेमाका. [अंतःपुरनी] दासी उपदेश] [प्रा.] सैवसि जिनरा. पोताने वश सेहज चतुचा. ?, [*श्रेष्ठता, "उत्तमता]; सो गुर्जरा. तेरका. मदमो. वीसरा. ते (सं. जुओ सहिज सः, सो) सेहर तेरका. शिखर सोइ अभिऊ. ऋषिरा. गुर्जरा. नेमिछं. सेहर आरारा. मुगट (सं.शेखर); तेरका. लावल. वसंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). ते शेखर, अवतंस, [मुगट, शिरमोर ज (स. सः अपि) प्राचीफा. माथा उपरनो पुष्पनो अलंकार, सोइ आरारा. सुखसगवड शेखर सोइ *शृंगाम. [] सेहरउ उक्तिर. जिनरा. मुकुट (सं.शेखर); सोई उक्तिर. [*सांभळेली वात, "किंवदंती] देवरा. जरीनो पटको, [फूलनी (सं.श्रुतिर्वाता) 2010_03 Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोई/सोभाग ५४६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सोई कामा(त्रि). दशस्कं(२). प्रेमाका. सई, सोडि ऐतिरा. छोड़ी दरजी [सं.सौचिकः] सोडो मदमो. साडलो ? सोईकार दशस्कं(२). प्रेमाका. सई सोढाडो जुओ सोडाडो सोउ गुर्जरा. ते (सं.सः खलु) सोढो मोसाच. तैयार थईने आवो सोउं आरारा. सूउं [सं.स्वप्] सोढी * नरप(द). [तैयार थई] सोकलडी नरप(द). शोक्य सोण गांठ बांधी * नरका-२. [शकुन चाल्युं सोकं नरप. शोक्यो (सं.सपत्नी) न जाय ते माटे वस्त्रने छेडे गांठ बांधी] सोकि आरारा. सावकी, [ओरमान] (सं. सोध कामा(त्रि). शुद्धि, खबर सपत्नी) सोधइ विक्रच. शोधे, “खोळे, [जुएतपासे]; सोखण चतुचा. शोक्यण, सपत्नी (गाळ उपबा. शुद्ध करे; [जुएतपासे] रूपे); जुओ सुखण सोधण आरारा. शोध, ते सोखी आरारा. *शोकवाळो, [*सुखी] सोधर्मी सिंहा(म). सौधर्म देवलोकनी सोखे जुओ हरख-सोखे सोधावीउ आरारा. शोधाव्युं, जोवडाव्यु सोग नेमिछं. शोक, [पीडा] सोनइउ नलरा. विमप्र. वीसरा. सोनैयो, सोगत ऐतिका. सुगत, बौद्ध सोनामहोर (सं.सौवर्णिक) . सोच चित्तसं. विचार [सं.शोच] सोनडी जाई आरारा(व). पीळा फूलवाळी सोजां प्रेमाका. उत्तम [सं.शोध्य] जाई (सं.सौवर्णजाति) सोझावीउ आरारा. शोधाव्यो. खबर कढावी सोनमखी अखाछ. सुवर्णमाक्षिक (एक (सं.शुध्य-) धातु), [मोटे भागे गंधकमिश्रित लोखंड] सोझाल्या विमप्र. *रंग्या, [*चीता] सोना-पुरिसु, सोना-पुरुसु सिंहा (म). सुवर्णसोटा प्रेमाका. [गाडाना बेठकभागना पुरुष; जुओं पुरिसु हेम लाकडाना] दांडा सोना-पोरिस प्राचीसं. सुवर्ण-पुरुष सोडनो घा (सोडनो घा थयो सहोदर) सोनार अखाका. उक्तिर. सोनी (सं.सुवर्ण*प्रेमाका. [एक कूखमां जन्मेलाने - कार) भाईने हणनार भाई ज थयो] सोनीया देवरा. सोनैया, [सोनामहोर] सोडपालखी पंचवा. *क्रीडा माटेनी शय्या सोनैयो प्रेमाका. शीलक. सोनामहोर, [*सोडमांभेटवू-वळगqते] [गु.सोड+ सोनानो सिक्को [सं.सौवर्णिक] सं.पर्यख सोपा देवरा. सोंप्या (सं.समप्) सोडाडो (सोढाडो) नंदब. सोंढाडो, [सज्ज सोभाग आरारा. शोभा, कीर्ति (रा.) करी लई जाव]; जुओ सूंढवू (सं.सौभाग्य); लावल. भाग्यशाळी 2010_03 Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश [पणुं ] ; उपबा. सुंदरता (सं. सौभाग्य) सोभाग्य चित्तसं. सौभाग्य, शोभा सोभागी प्रेमाका. * सौभाग्यवती, [शोभती, सुंदर ] सोम आरारा. सौम्य सोम (सोमसिद्धान्त) * प्रबोप्र. [एक तांत्रिक दर्शन के ग्रंथ ] ५४७ सोय अखाका. आरारा. कादं (शा). नरका. प्रेमाका. ते [ज] (सं. सोऽपि ) सोयर शृंगामं. सहोदर भाई सोर नरका. सोळ, शरीर उपरनो आंको सोर विमप्र. *पडकार, [ अवाज] [फा. शोर ]; ऋषिरा. कादं (शा). शोर, अवाज सोर * नरका. [शूर ] सोरंगी मदमो. * सिंहा (शा). ए नामनी वनस्पतिनां मूळ जेवां गूंछळांवाळा [वाळ] सोरी नेमिछं. सोरीपुर (गाम) सोवन (सोवन शालि) नेमिछं. *सारा वर्णना - रंगना, ऊजळा, [चोखानी एक जात] सोळहउ * वीसरा. [सोळवलुं, शुद्ध (सोनुं)] (सं. षोडशक) सोळां प्रेमाका. एक प्रकारनां अबोटियां सोवण तेरका. सुवर्ण (सं. सौवर्ण) सोवन, सोविन जिनरा. सोनुं; * उषाह नेमिछं. सोनामहोर; आरारा. गुर्जरा. नेमिछं. रूपच. लावल. वसंफा (ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वीसरा. सोनानुं; आरारा. नेमिछं. *वसंफा (ल). *वसंवि. वसंवि (ब्रा). सोनेरी (सं. सौवर्ण) 2010_03 सोभाग्य / सोह सोवनवान वसंवि (ब्रा). सोनेरी रंग (सं. सौवर्णवर्ण) सोवन्न, सोव्रन तेरका लावल. वसंफा. सुवर्ण, सुवर्णनुं (सं. सौवर्ण) सोवन्नमइ तेरका. सुवर्णमयी (सं. सौवर्णमयी) सोवनीकांबज गुर्जरा. सोनानुं कमळ (सं. सौवर्णिकांबुज) सोवर्णागर अखाछ. सोनीने खप लागतो एक जाणीतो पथ्थर, [सोनागेरुनो पथ्थर ] सोवा उक्तिर. सुवा (सं. शतपुष्पा) सोवासण प्रेमाका. सौभाग्यवती स्त्री [सं. सुवासिनी ] सोविन ऋषिरा. कर्पूमं. सोनानुं (सं. सौवर्ण); जुओ सोवन सोव्रण अखाका. प्रेमाका. सोनुं नरका. सोनानी; कामा (शा). सुंदर रंगनुं, [सोनेरी ]; प्रेमाका. सोनेरी सोव्रन * वसंवि. [ सोनेरी ]; वसंवि(ब्रा). सोनुं (सं. सौवर्ण); वसंफा. जुओ सोवन्न सोब्रनवान वसंफा. वसंवि (ब्रा). सोनेरी रंग (सं. सौवर्णवर्ण) सोस ऐतिका. अफसोस, खेद; ० जिनरा. *चिंता, [अफसोस, खेद ] गुर्जरा. सूकवे, कृश करे (सं. शोषयति) सोसियकाय षडाबा. सोसी सूकवी नाखेली कायावाळा (सं. शोषित + काय ) सोह आरारा. जिनरा. नेमिछं. लावल. शोभा - Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोहइ / सौवीर सोहइ ऋषिरा. गुर्जरा. तेरका लावल. वसंफा. वसंवि. शोभे [सं. शोभते ] सोहकरी ऋषिरा. शोभा करनारी सोहग, सोहग्ग आरारा. ऐतिरा. गुर्जरा. तेरका. सौभाग्य, [भाग्यशाळीपणुं], [ मांगलिकता ] ; जिनरा. सौभाग्य [रूप] सोहगी आरारा. टंकणखार सोहग्ग जुओ सोहग सोहजी अभिऊ. सोजी, "निरुपद्रवी, [उत्तम ]; जुओ सोजां सोहण प्रबोप्र. स्वप्नमां 2010_03 ५४८ - मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सोहिलउं आनंस्त. आरारा. उक्तिर. उपबा षष्टिप्र. सहेलुं, सरळ, सुगम [सं. सुख परथी]; गुर्जरा. सुंदर, [सुखभर्युं ]; [सहेलुं] सोहम्माइव इंद ऐतिका. देवलोक सौधर्मना सोंढियुं प्रेमाका. सोंढ्युं, तैयार थयुं, [तैयार थई चाल्युं] अधिपति इन्द्र सोहल जुओ छोहलउ सोहबातुं प्रेमाका. सुख आपतुं सोहंग अखाका. सोहम्, (ते हुं हुं तेवो भाव ) सोहा कृष्णच. शोभा सोहाकर ऋषिरा. शोभानी खाण (सं. शोभा- सौक्ष आरारा. सुख (सं. सौख्य) कर) सौगत * प्रबोप्र. [ बौद्ध] (सं.) सोहामी गुर्जरा. शोभामयी, सुंदर सोहाय नरका. सुख आपे, गमे; [शोभे]; प्रेमाका. सुख आपे; शोभे सौध ऐतिका. कादं (शा). महेल, प्रासाद [सं.] सौधरम, सौधर्म आरारा. सौधर्म नामनो देवलोक सोहावइ आरारा. * प्रेमाका. सुख आपे, [गमे] (सं. सुखापय्) सोहावइ लावल. शोभावे सोहावु आरारा. सोहामणुं, [मनगमतुं ] (सं. शोभा) [सं. सुखापय् परथी ] सोहासप, सोहासणि नरका. विमप्र. [सुवासिनी], सौभाग्यवती [गमतुं] परमात्मा सोहेलां प्रेमाका. सुखदायक, [सुखभरी स्थितिओ] सोहोणुं अखाका प्रबोप्र. स्वप्न सोहोतो प्रेमाका. *शोभीतो, सुंदर, [सोंतो समाप्त थयेलो]; जुओ सोंतसोंडवुं दशस्कं ( 9). सज्ज थईने जवुं; जुओ सुंढ सोत- हरिख्या. पूरुं थवुं, समाप्त थj; जुओ सोहोतो, सूंतूं सोतुं प्रेमाका साथे, सहित सोंधो दशस्कं ( २ ). नरका. प्रेमाका. सुगंधी पदार्थ सौरसेन नलरा. शूरसेन प्रदेश ज्यां नलराजाए विजय कर्यो हतो, मथुरानी आसपासनो प्रदेश (सं.) सौवर्ण अखेगी. सुवर्ण [सं.] सौवीर नलरा. एक प्रदेश ज्यां नलराजाए विजय कर्यो हतो (सं.) Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सौवीर / स्वरमंडल सौवीर अभिऊ. *कलाई, [सुरमो, एक स्फटिक *अखाका. [स्फटिकमणि]; प्रेमप. खनिजद्रव्य ] काच [सं.] सौहू, सौहु चंद्रवा. सहु स्मर अखाका. कामदेव [सं.] स्कल - नलरा. खसी पडवुं पडी जवुं (सं. स्मरणी मोसाच. माळा [सं.] स्खल्) ५४९ स्कंद आनंस्त. स्कंध, [समुदाय, वर्ग ] स्कंधावार कादं (शा). नलाख्या. छावणी (सं.) स्खलित थई * प्रेमाका. [ कामावेगजन्य स्खलन थ] स्तकी प्राचीका. थकी, [-थी] (प्रा. थक्किअ परथी) स्तविवा उक्तिर. स्तववा, स्तुति करवा स्तंभ- पूतळी न्याय अखाका. थांभलो एक होय पण पूतळी अनेक, एवी रीते अनेकतामा एकता स्तुप ऐतिका. स्तूप, थूभ, [ स्मरणस्तंभ ] स्त्रीण गुर्जरा. स्त्रैण, बायलो स्त्रीमि कादं (शा). * स्त्रीओथी भरेलुं, [स्त्रीओ वडे रचायुं होय एवं] (सं. स्त्रीमय) स्त्रीरजि विक्रच. स्त्रीराज्यमां स्त्रीराज्य नलरा. एक प्रदेश ज्यां नलराजाए विजय कर्यो हतो (सं.) स्थकी दशस्कं ( 9). -थी, [वडे] स्थविर आरारा. वृद्ध (सं.) स्थित्य अखाका. स्थिति स्थिर चित्तसं. स्थावर, [ अगतिशील पदार्थ ] स्थूलपणुं चित्तसं. मोटापणुं, प्रौढत्व स्नात कादं (धु). स्नान स्नेह चित्तसं. तेल [सं.] Jain Edqention International 2010_03 स्मरिवा उक्तिर. स्मरवा, स्मरण करवा स्मृति प्रबोप्र. संमति, [समर्थन] स्थउं आनंस्त. गुर्जरा. नेमिछं. वसंफा (ल). शुं (सं. कीदृशकम् ); वसंवि (ब्रा). शा माटे स्य आरारा. गुर्जरा. लावल. वसंफा. वसंवि (ब्रा). साधे (सं. समम्); वीसरा. साधे, वडे, [प्रत्ये]; जुओ श्यं स्य कृष्णच. सिंह स्याथो चित्तसं. शामांथी स्यादवाद आनंस्त. अनेकांतवाद, वस्तुनां अनेकविध पासां - धर्मोना स्वीकारनो वाद स्वामी नलरा. प्रभु, स्वामी स्याल उक्तिर. पंचवा. शियाळ (सं. शृगाल) स्युं ऐतिका. [शुं, केवं] [सं. कीदृशकम् ] स्लोक मदमो. शलोको, गौरवगाथा (सं. श्लोक) * स्वअंबर मदमो. स्वयंवर स्वदइ वसंवि. वसंवि (ब्रा). स्वाद आवे, रुचे (सं. स्वदति ) स्वयंवर कादं (धु). गांधर्वविवाह, [स्वजनोनी संमति के सहायनी अपेक्षा वगर केवळ वरकन्यानी परस्परनी प्रीतिथी थतां लग्न] [सं.] स्वरमंडल नेमिछं. एक प्रकारनी वीणा [सं.] Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वसमय/हटी ५५० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश स्वसमय आनंस्त. पोतानो सिद्धांत [सं.] हउ वसंफा (ल). वसंवि(ब्रा). हुं (सं.अहं) स्वस्तानि उषाह. पोताना स्थानमा हउओ, हुओ, हूओ कादं(शा). नलाख्या. स्वा पंचवा. सौ (सं.सव) ___थयो (सं.भूतकः) स्वाटिक मदमो. स्फाटिकमणि हउणहार आरारा. उपबा. होनार स्वाटीकमणि मदमो. स्काटिकमणि हए, हे कामा(त्रि). हय, घोडो स्वातबुंद अखाछ. स्वातिबिंदु, [स्वाति हकलावतां नरका. धमकावतां नक्षत्रमा पडतुं वरसाद- टीपू] हकाइ उक्तिर. उषाह. नरका. प्राचीफा. स्वाति-बिंदु प्रेमाका. [स्वाति नक्षत्रमा पडता षडाबा. बोलावे, निमंत्रे (सं./दे.हक्कार); जलबिंदुथी जन्मतुं] मोती *ललिरा. [कहे,जणावे]; अखाका. स्वाध्याउ षडाबा. स्वाध्याय, धर्मचिंतन प्रद्युचु. प्रेमाका. हाकल करी उश्केरे, स्वामि लावल. कार्तिकस्वामी, कार्तिकेय पडकारे, ललकारे स्वांम, स्वाम्य मदमो. स्वामी हकीगत्य चंद्रवा. हकीकत स्विइ कादं(शा). पोतानी मेळे (सं.स्वयं) हकोम चतुचा. हुकम स्खे अखाका. स्वयं, पोते हकिं * विमप्र. [हाकथी, पडकारथी] [दि.; स्वेपद अखाका. स्वयंपद, आत्मपद, ब्रह्मपद रा.] स्खेव-लव कादं(शा). परसेवानां टीपां (सं.) हगइ उक्तिर. मळत्याग करे (सं.हदते) स्हावो नरका. पकडवो [सं.साध्] हचरके जाय जुओ हीचरके स्होतो नरका. सोतो, साथे [सं.सहित] हच्चेर आरारा(व). एक वनस्पति, कई ते अस्पष्ट ह कादं(धु). नक्की [ज] [सं.हि] हजीरा हम्मीप्र. मिनारावाळो रोजो [अ. - उषाह. प्रबोप्र. प्राचीका. संबंधार्थ प्रत्यय, हझीरः] [-मुं] (सं.स्य) हजूर अखाका. आरारा. प्रत्यक्ष, सामे हाजर हुइ गुर्जरा. नेमिछं. वीसरा. छे (सं.भवति) (फा.). हइ नलाख्या. हैयुं, हृदय हटकइ जिनरा. प्रेमाका. धमकावे, भय हुइइ, हुईइ आरारा. कादं(शा). गुर्जरा. उपजावे; जुओ हटकी हृदयमां हटकण जिनरा. धमकावq ते हुइमयण (हुइ हइ मयण) ऐतिका. मदन हटकी *जिनरा. [-ने छोडीने, सिवाय, कामदेव हणाय छे [सं.हतः मदनः] विना]; * ऋषिरा. [अळगी रही]; जुओ हइशे नरका. होईश, [हशे] हटकइ हुईई जुओ हइइ हटी विमप्र. हाट, दुकानो, [बजार, पीठ] 2010_03 Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५५१ हटे हनवटी [सं./दे.हट्टी]; जुओ घी हटी हणवइ आनंस्त. हणवे, हणवाथी, हिणवाहटे प्रेमाका. हठे, हठथी ___ मां] [सं.हन्] हट्ट विक्ररा. हाट दि.] हणिवं उक्तिर. हणवू, हत्या करवी (सं.हन्) हट्ट-उलि शृंगामं. दुकाननी हार (द.हट्टा हतउ गुर्जरा. *विराप. बिचारो (सं.हतकः) सं.आवलि) हत-उछाह प्रेमाका.जेनो उत्साह नाश पाम्यो हट्टश्रेणि विक्ररा. हाटनी हार, बजार छे एवो हठाई आनंस्त. हठपूर्वक -हता विमप्र. थी , [-मांथी, द्वारा] हठिउ गुर्जरा. विराप. हठे चड्यो, -हतु विमप्र. -थी (अनुग) [अडगपणे तत्पर थयो] (सं.हठ परथी) हुत्य आरारा. ऋषिरा. गुर्जरा. जिनरा. हठियो प्रेमाका. हठीलो, जीदवाळो नेमिछं. शृंगामं. हाथ (सं.हस्त) हठी आरारा. हठपूर्वक, पराणे हत्यि तेरका. हाथी (सं.हस्ती) हम्य चित्तसं. हठे, बळपूर्वक हत्थियार प्राचीसं. हथियार दि.] हडकोलावq नरप(द). तिरस्कार करवो, हथनालि हम्मीप्र. हस्तनालि, हाथमा राखीने हडबडाव, फोडवानी नानकडी तोप हड़बची दशस्क(२). हडपची हथलेवउ, हथळेवउ ऐतिका. प्रद्युचु. वीसरा. हूडबडइ अखाका. ऋषिरा. गभराय, पाणिग्रहण संस्कार, हस्तमेळाप, कमकमी ऊठे; जुओ हरबर हथेवाळो] (सं.हस्त परथी) हडबडावी प्रेमाका. गभरावी; जुओ हथवासी प्रेमाका. "हाथमां वसेतुं, आवेखें, हरबडाव, [*हाथमां राखीने], [*हथवासाथी - हडबाइ उषाह. पकडाय, हडफाय (ढालना) हाथाथी] हुडहड उपबा. मोटेथी हसवानो ध्वनि (द.) हथसाल उक्तिर. हस्तिशाला हुडहडइ उक्तिर. जोरथी हसे दि.] हथि गुर्जरा. हाथथी (सं.हस्त); जुओ हडि विक्ररा. षडाबा. हेड, पगे बांधवामां सइ-हथि ___ आवती लाकडानी बेडी (सं.) हथिणाउर उक्तिर. गुर्जरा. हस्तिनापुर हडी प्रेमाका. दोट हyडू षडाबा. हथोडो (सं.हस्त परथी) हूडी चित्तसं. अडी, मुश्केली हद चूकी चित्तसं. सीमा - भेदरेखा लुप्त हडीयाटी प्रेमाका. हडी [दईने], दोट [दईने] थई हडोले मदमो. रूस्तस. हरोळे, [सेनाना अग्र हय प्रेमाका. हद (प्रासार्थे 'हद्य') भागे] [तु.हरावल हनवटी कादं (शा). दाढीनी हडपची (सं.हनुहणणहार उपबा. हणनार पट्टिका). ___ 2010_03 Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हफ्तह/हरिखा ५५२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हफ्तह आरारा. सप्ताहमां (फा.) हरण करनारा एक देव, [इन्द्रना पदातिहबक प्रेमाका. बीक, फाळ सैन्यना एक अधिपति] (सं.हरिनैगहबकी गुर्जरा. हबक, फाळ (अ.हयब?) मेषि) [जै.] हबूके नरका. फाळ अनुभवे, [ध्रासको हरणी नरका. मृगशीर्ष नक्षत्र खाय]; जुओ अबूके हरणी दशस्कं(२). हरण जेवा वाननी हम लावल. अमने हरदे मदमो. हृदय हमची नरका. लावल. क्रीडा के नृत्य साथे हरनिश दशस्कं(२). अहर्निश, रातंदहाडो गावानो काव्यप्रकार हरबडावयूँ दशस्कं(१). गभरावईं; जुओ हमची नरका. अमारी (म.) हडबडावी हमाल जिनरा. मजदूर [अ.हम्माल] हरबर सिंहा(शा). *गभराट, [उतावळ]; हमेलो प्रेमाका. पट्टो, [गळामां पहेरवानुं जुओ हडबडइ एक आभूषण] [अ.हमाईल हरम चंद्रवा. हर्म्य, महेल हय आरारा. ऋषिरा. प्रेमाका. देवरा. घोडा हरवइ वाग्भबा. हरवानी क्रियामां, [हरवा(सं.) थी] [सं.ह] हयगयरहवर चारफा. अश्व, हाथी अने हरस तेरका. हर्ष । सुंदर रथो (सं.हयगजरथवर) हरस-वस तेरका. हर्षवश हयडुं देवरा. हैडु (सं.हृदयकम्) हरसीय वसंवि(ब्रा). हर्ष पामीने हयवर लावल. श्रेष्ठ अश्व [सं.] हर-हार शृंगामं. महादेवनो हार, नाग [सं.] हयास शृंगाम. हताशा हराण ऐतिरा. कर्पूमं. विक्ररा. विमप्र. हयासु ऐतिका. हताश आश्चर्यचकित, [स्तब्ध] [अ.हैरान] यासुं * ऐतिका. [हृदयथी] हरालउ *गुर्जरा. [प्रबळ आकांक्षावाळो] -हर वसंवि. घर (सं.गृह) हरावतउ *गुर्जरा. विराप. हरी लावतो हरइ वाग्भबा. चतुर्थी अने षष्ठीनो अनुग, हरि * कादं(घ). कादं(शा). घोडो [सं.]; [-ने]; जुओ रइं, रहई, हई लावल. सिंह [सं.]; ऐतिका. सूर्य [सं.]; हरख-सोखे अखाका. [हर्ष अने सुखथी] नेमिछं. वांदरो [सं.] [सं.हर्ष+सौख्य] हरि-आननी प्रेमाका. चंद्र जेवा मुखवाळी हरखीयला प्राचीफा. हरख्या [सं.] हरडूआं आरारा(व). हरडां, मोटी हरडे ? हरिख नलाख्या. हर्ष हरण तेरका. नरका. हरनार (सं.) हरिखा [हरिखी] लावल. हर्षित थई, हरणकमेषि, हरणगमेषि देवरा. गर्भादिनुं आनंदित थई 2010_03 Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५५३ हरिपर्वणी/हलुआपणुं हरिपर्वणी प्रेमाका. बारसनी तिथि [सं.] हलकारो प्रेमाका. खेपियो, संदेशवाहक हरियाल उक्तिर. षडाबा. हरताल, एक हलकार्या प्रेमाका. हंकार्या, प्रस्थान कराव्यु उपधातु (सं.हरिताल); जुओ हरीयाल हलके प्रेमाका. ऊमटे, [आनंदथी डोले] हरिलंकी ऋषिरा. सिंहना जेवी पातळी हलके-हलके दशस्क(१). हळवेहळवे, कमरवाळी; जुओ लंक-केसरी [हलक - लचकपूर्वक हरिलोचनी चतुचा. कमललोचनी [सं.] हलद आरारा. आरारा (व). उक्तिर. हळदर हरिवदनी मोसाच. चन्द्रमुखी [सं.] (सं.हरिद्रा) हरिवासर कृष्णबा. एकादशी [सं.] हलवूआं वडां उक्तिर. हळदरयुक्त वडां हरिस ऐतिका. तेरका. हर्ष (सं.हरिद्राणि वटकानि) हरिसीय वसंफा. हरखीने (सं.हष) हलफलुं हरिख्या. हांफतुं, हांफळुफांफळु हरी उक्तिर. लीलु घास, भाजी (सं. हलमल प्रेमाका. हलचल, [बूमाबूम, - हरितकम्) ताकीद] हरीअडा *विमप्र. [एक अश्वजाति - हलयउ [हलुयउ] षडाबा. हळवो (सं. लीलाश पडता रंगनी]; जुओ हरीयडु लघुक) हरीआली विमप्र. अनेक अर्थवाळो पद्य- हलरी ईष उक्तिर. हळनो दांडो (सं.हलस्य प्रकार ईषा) हरीयडु प्राचीफा. घोडानी एक जात - हलवई प्रेमाका. मीठाई वेचनार, कंदोई [लीलाश पडता रंगनी]; जुओ हरीअडा हलवाई आरारा. हलकापणुं, अगौरव, हरीयाल वसंवि. वसंवि(ब्रा). हरताल, एक [*कंदोई]; जुओ हलूंआइ उपधातु (सं.हरिताल); जुओ हरियाल *हल साइ, हल साहि *तेरका. प्राचीसं. हरी राखइ आरारा. लई जईने सखे हले सखि, [अली सखी] हरीला नरका. हरी लीधेला [म.] [सं.ह] हलहर प्राचीसं. हलधर, [बलराम] हरीवदनी चतुचा. चन्द्रवदनी हलहल अभिऊ. कर्पूमं. उतावळ दि.] हरीसूत चतुचा. कामदेव [सं.हरिसूत] हला नरप(द). पुरुषवाचक संबोधन, हरीहरी चित्तसं. लीलीछम [सं.हरित्] [अल्या] हर्षइ आनंस्त. उक्तिर. खुश थाय (सं.हष) हलाहल चित्तसं. हळाहळ विष [सं.] हल असंफा. वसंवि. वसंवि(ब्रा). अली, हलाण नरप(द). *देदार, [चालचलगत] खीने संबोधन (सं.हला) हलाहल मदमो. उतावळ लकार * नरप(द). [*हलक, *हळवापणुं, हलुअउ उक्तिर. हळवू (सं.लघुक) *चंचलता हलुआपणु नलाख्या. हळवापणुं, लघुता 2010_03 Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलुइ / हसमस (सं. लघुक + त्वन) हलुइ नलरा. हळवे, धीरे (सं. लघुकेन) हलुइ नलरा. हळवी, हलकी, [ अगौरव पामेली] (सं. लघुका) हलुए चतुचा. हळवे [सं. लघुकेन] हळु-हळुए प्रेमाका. हळवेहळवे, धीमे धीमे हलुओ मदमो. हळवी (सं. लघुक+क) हलुयउ कस्तुवा. हळवो, [धीमो ]; जुओ हलयउ हलुअकर्मउ षष्टिप्र. जेनां अल्प कर्म अवशिष्ट रह्यां होय एवो, शीघ्र मुक्तिगामी (सं. लघु+कर्मी) हवडा, हवडां आरारा. उक्तिर. कादं (शा). नलरा. नलाख्या. प्रद्युचु. प्रेमाका. मदमो. षडाबा. हमणां (सं. अधुना, प्रा. हउणा) हवणां आनंस्त. पंचवा. हमणां (सं. अधुना ) हलूआइ उपबा. हलकापणुं, [ अगौरव ] (सं. हवं उक्तिर. हवे ( आरंभवाचक) (सं.अथ); लघु परथी); जुओ हलवाई जुओ हव हवाल प्रेमाका. हालत [ अ. अहवाल ] हवालइ ऐतिका. हवाले, सुपरत हवासी *जिनरा. [* टिप्पण, * ( गुण) चर्चा] हवां दशस्कं ( १ ). हमणां; प्रेमाका. हवे हवि दशस्कं ( २ ). अग्नि [ सं . हविष ] हलूउ सिंहा (म). हळवुं, हलकुं, [ भार विना- हवि, हविइ अभिऊ. कादं (शा). नलाख्या. नुं] (सं. लघुक) हवे (सं. अथवा ); जुओ हव, हिव हलूकर्मा उपबा. हळवा '[ – ओछा] कर्मों- बुं अखाका. ऋषिरा. चित्तसं. नरका. वाळु [ शीघ्र मुक्तिगामी] प्रेमाका. थयुं (सं. भू - भव् परथी ) हलूपण षष्टिप्र. हळवापणुं, [अगौरव ] (सं. हशारथ मदमो. हसवुं, हांसी, जुओ हसारथ लघुत्वन) · ५५४ हलू आपणउं नलरा. हळवापणुं, हलकाई, [लघुता, अगौरव ] (सं. लघुक+त्वन) हलूइ कादं (शा). प्रबोप्र. शृंगामं. हळवे, [ धीमे ] (सं. लघुकेन); उपबा. हळवा - पणाथी, ओछा होवापणाथी हलूया विमप्र. हळवा हलूर अभिऊ. हाल, [हार], टोलुं हल्लइ गुर्जरा. प्राचीसं. लावल. हले, हाले, [डगे, सळवळे, धूजे] [दे.] हल्लकलोल प्राचीसं. प्रक्षोभ, हालकडोलक मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हल्लाव- प्राचीसं. हलाववुं हल्ली लावल. हे सखी हलुष्फल प्राचीसं. हांफळा, [ उतावळा ] हव, हवं, ऋवि उषाह. गुर्जरा. प्राचीफा. वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). षडाबा. हवे (सं. अथ+या ) [ अप. अहवइ] हवइ उक्तिर. ऋषिरा. गुर्जरा. थाय छे (सं. भवति) 2010_03 हसइ गुर्जरा. वसंफ़ा. वसंवि. हसे (सं. हसवि); हसी काढे, मश्करी करे; जुओ हंस इसमस प्राचीफा. *हालवुं ते, [धसवुं ते, उत्साहथी आगळ पडवुं ते] ; * प्रद्युचु. [जुस्सो, जोश] Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५५५ हसमसता/हाकोट्यो हसमसता गुर्जरा. धसमसता हरिवि. जीव, प्राण [सं.] हसारथ अंगवि. "ऋषिरा. प्रेमाका. नरका. हंस- वीसरा. हसवू, मजाक करवी (सं. शृंगाम. हास्यास्पद स्थिति, हांसी, हस्); जुओ हसइ मश्करी; जुओ हशारथ, हीसारथ हंसक हरिवि. पगर्नु आभूषणविशेष . हसारथि विमप्र. हास्यजनक स्थिति, हंसगमण गुर्जरा. हंसना जेवी चालवाळी [उपहास] (सं.हंसगमना) हसिउ, हसीउ लावल. हास्य के मश्करीने हंसगमणि वीसरा. हंसना जेवी चालवाळी पात्र कर्यो [सं.हसित । ___ (सं.हंसगामिनी) हसिय तेरका. हसी रहेतुं (सं.हसित) हंसगामिणि वसंफा(ल). वसंवि. हंस जेवी हसिवा उक्तिर. हसवा ____ गतिवाळी (सं.हंसगामिनी) हसीउ जुओ हसिउ हंस-तति कादं(शा). हंसोनी पंक्ति (सं.) हसीय गुदारे जिनरा. हसीने टाळी दे, [जतुं हंसलागमणी लावल. हंसना जेवी चालवाळी करे, माफ करे] [सं.हस्+फा.गुजर] हसलो कामा(वि). घोडो हसु, हसुं ऋषिरा. नरका. मोसाच. हसवू, हा तेरका. - अरेरे] (सं.) हांसी, मश्करी हाउ प्राचीसं.हा [संमतिसूचक] (सं.आमम्) हसू, हसू आरारा. मश्करी; कादं (शा). हाकड उक्तिर. *वसंफा. "वसंफा(ल). नंदब. हास्य, मलकाट "वसंवि. वसंवि(ब्रा). निवारे, दूर करे; हसे पंचवा. थशे (सं.भविष्यति) गुर्जरा. मदमो. विक्ररा. हाक मारे, हस्तभूत *आनंस्त. [हस्तरूप, हस्त समा] पोकारे, आह्वान दे; षडाबा. काढी मूके, हस्तमुखी ०नलरा. हसता मुखवाळी (सं. [*पडकारे] (दे.); प्रेमाका. धमकावे हसितमुखा) हाकलणुं उषाह. हांकीने, उश्केरीने लाववाहस्तमेलापक प्रेमाका. हस्तमेलाप, लग्न मां आवेलु टोळु, कटक, हाकला[करावनार] पडकारा करतो मोरचो के एवू टोळु] हस्तामलकर्त्य चित्तसं. हस्तामलकवत्, स्पष्ट हाकलशो प्रेमाका. धमकावशो हंकार दशस्कं(१). अहंकार हाकी ऊठ्यो प्रेमाका. हाक - मोटो अवाज हंकारी दशस्कं(१). अहंकारी ___ करीने ऊठ्यो, सामनो करवा तैयार हंबोडा सिंहा(शा). ?, ['हंबो' ए उच्चार थयो, [पडकार कर्यो] साथेनो ताल] __ हाकेटवं, हांकेटवू दशरक(१). प्रेमाका. हंश ज हरूं कामा(शा). जीव – प्राण लउं हाक मारी धमकावq हंस कामा(त्रि). कृष्णच. प्रभाका. मदमो. हाकोट्यो प्रेमाका. हाक मारीने धमकाव्यो ___ 2010_03 Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाटक/हालकहोल . ५५६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हाटक गुर्जरा. दुकान [सं.हट्ट हाथल हरिवि. हाथर्नु आभूषणविशेष हाटक आनंस्त. गुर्जरा-टि. प्रेमाका. सुवर्ण हाथ साहे अखाका. सहाय करे; जुओ साहइ ___हाथा दशस्कं(१). प्रेमाका. कंकुवाळा हाथहाटक-रूप प्रेमाका. *सोनेरी रूप, [सुवर्ण- नां छापां मय रूप], [सोनानां अंग] [सं.] हाथा-तोरण जुओ हाथीतोरण हाड उपबा. हाडकां; नलाख्या. शरीर (दे. हाथाल जिनरा. शक्तिशाळी, लांबा हाथ हड्ड); दशस्क(१). "प्रेमाका. [घणुं ज] वाळा, [आजानबाहु] हाड-छेड नरका. तिरस्कार हाथियो उक्तिर. गुर्जरा. नरका. षडाबा. हाड जवं, हाडे जq दशस्क(१). प्रेमाका. विराप. हाथी (सं.हस्ति) छेल्ली हद सुधी जवू हाथीउ उपबा. हाथी (सं.हस्ती) हाडफूटि उक्तिर. हाडकामां थती पीडा, दर्द "हाथीतोरण [हाथा-तोरण] प्रेमाका. कंकु(द.हड्ड+सं.स्फोटि) [रा.] वाळा थापा अने तोरण हाडा खाय जुओ खाय हाडा हाथुलि प्राचीफा. हाथे पहेरवानो एक हाडिया प्रेमाका. कागडा अलंकार हाडु नरप(द). ?, [*हाडो, “शूर] हाथेवाळो प्रेमाका. वरकन्यानो हस्तमेळाप, हाडु षडाबा. हाडकुं (दे.हड्ड) लग्न हाडे जर्बु जुओ हाड जवू हाम जिनरा. हरिख्या. इच्छा, उमेद हाण अखेगी. हानि, लय, [नाश] हामघाले चतुचा. हिंमत राखे, [धीरज राखे] हाणि उपबा. नलरा. वीसरा. शीलक. हामण उषाह. *चिन्ता, ["हाम, *हिंमत] शृंगामं. हानि, नुकसान हार * नंदब. [हारमां, समान] हाथ करडे अखाका. उतावळ करे हारव अखाका. चित्तसं. हार्द, रहस्य, मर्म, हाथकसीदो कामा(त्रि). [हाथथी करेलु] तात्पर्य; अखेगी. हार्द, [मर्म, ऊंडो जरीनुं भरतकाम [सं.हस्त+अ.कशीदः] अभिप्राय]; प्रेमाका. हार्द, रहस्य, [मनहाथ कंकण तर्त अखाका. हाथना कंकणनी नी वात जेम तरत ज प्रत्यक्ष हार नगोदर चारफा. एक प्रकारनो हार . हाथ घसे अखाका. प्रेमाका. निरुपाय - हारि नलाख्या. हार, पंक्ति ("सं.धारिका) निराश थाय, [हारी जाय]; नरका. हारी ऋषिरा. पकडीने, ऊंचकीने, [लई पस्तावो करे जईने] [सं.हारय] हाथ भोय पडवा प्रेमाका. निरुपाय बनवू हार्य चित्तसं. प्राप्तव्य [सं.] ... हाथमेल्हामणि ललिरा. हस्तमेळापमा हालकहोल रूस्तस. हालकहुलक, [धमाल, 2010_03 Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५५७ हालकहोलक/हिइ हलचल उपहास, हांसी; जुओ हाश, हासि हालकहोलक प्रेमाका. धमाल, [हलचल] हासे अखाका. हसे, मश्करी करे; हास्यमां हालर सिंहा(शा). ?, [*हार, *हरोळ] हा हा तेरका. अरेरे (सं.) हालरियउ जिनरा. देवरा. हालरडुं हांकेटर्बु जुओ हाकेट, हालरु प्रेमाका. हालरडुं हांद विछाई जिनरा. पालव पाथरीने हाललं सिंहा(शा). कण छूटा पाडवा खळामां हांडी षडाबा. हांडली (सं.हंडिका) बळद फेरववा ते हांडुली षडाबा. हांडली हालरो जिनरा. देवरा. हालरडु, [बाळकने हाथी कामा(त्रि). अहींथी सुवडावती वखते गवातुं गीत] हांफल्या प्रेमाका. हांफळा हालिरउ *जिनरा. [हालरडु, बाळकने हाम-कांम, हाम-काम्य * मदमो. [कामना सुवडावती वखते गवातुं गीत] आवेग के अभिलाषवाळी] [रा. हाली नलरा. असंस्कारी, जड, गामडियो हांस कामा(त्रि). उत्साह, आशा (सं.हालिक) हांस देवरा. हांसी हावर्ड * गुर्जरा. [होउं, थाउं] हांस नलरा. गळामां पहेरवानुं एक घरेणुं, हावज्यो नरप. होजो (सं.भूयास्त) हांसडी (सं.अंस) हा वलि उक्तिर. बल्के, तोपण हांस अभिऊ. हंस हावां नरका-२. प्रेमाका. हवे हांसला लावल. हंस जेवा, [एक अश्वहावे प्रेमाका. हवे हावु नरका. हवे हांसली लावल. हंसली हाश, हासूं नलाख्या. हास्य, मश्करी हांसलु वसंफा. हंसलो हास *कामा(शा). [हास्य हांसी प्राचीफा. हंसनी मादा (सं.हंसी) हासना मोसाच. मश्करी हांसु नरका. हांसी हासइ लावल. हास्य वडे, हसतांहसतां, हि नलाख्या. हय, घोडो [सहजमा ___-हि विमप्र. -मां, त्रीजी अने सातमी हासउं गुर्जरा. षडाबा. हास्य; गुर्जरा. विभक्तिनो प्रत्यय उपहास . हिअइ वसंफा. हैये (सं.हृदय) हासा, हासां उपबा. लावल. हास्य, मजाक हिअडइ खोटउ ऐतिरा. खोटा मननो, मेला हासि, हासुं आरारा. मश्करी, उपहास हृदयनो हासी उक्तिर. हांसी, मजाक हिअटुं लावल. हैयुं, हृदय हासुं, हालूं अभिऊ. ऋषिरा. नरका. हिइ कादं (शा). घोडो (सं.हय); जुओ हिय जाति] 2010_03 Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिखार/हिंसारो . ५५८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हिखार कादं(शा). हणहणाट (सं.हेषारव) हिया षडाबा. हृदय हिट्ठि प्राचीसं. हेठे दि.] [सं.अधस्तात्] हियाविउं उक्तिर. लगाववाळु, हिंमतवाळु हिडकी उक्तिर. हेडकी (सं.हिक्का) (सं.हृदयार्पितम्) [रा.; हिं.] हित आरारा. हेत, प्रेम हियुं गुर्जरा. हैयुं (सं.हृदय) हितकार *देवरा. [हित करनार] . हिरणी वीसरा. हरिणी हितूर, हितूउं उपबा. हितस्वी; कल्याण हिरवे अखाका. हृदय करनार; [अर्थी, इच्छनार; अर्थे, माटे; हिलियइ ऐतिका. निन्दा करे छे अर्थेनु, माटेनें] (सं.हित); उक्तिर. हिली नेमिछं. (हे) सखी (सं.हला, अप. अर्थेनू, माटेर्नु हित्वाभास आनंस्त. हेत्वाभास, असद् हेतु हिल्लि तेरका. प्राचीसं. हे सखी, एली (अप. अर्थात् मिथ्या हेतु, जेथी साध्य सिद्ध हेल्लि) थाय नहीं ते हिव आरारा. उपबा. ऐतिका. गुर्जरा. *हिम [हिव] जिनरा. हवे; जुओ हिव जिनरा. तेरका. नेमिछं. लावल. हिम तेरका. हिम, झाकळ; "वसंफा. वसंफा(ल). वसंवि. वसंवि(ब्रा). वसंवि(ब्रा). ठंडक (सं.) वीसरा. षडाबा. हवे (सं.एवं, प्रा.हेवं); हिमलक्षण वसंवि. शीतल (सं.) जुओ हव, हिम हिमवंत, हिमवंति वसंफा. वसंवि. हिवइ आनंस्त. जिनरा. नेमिछं. हरिवि. वसंवि(ब्रा). हेमंतऋतु (सं.हिमवत) हवे (सं.अथवा) हिमात्य अखाछ. हिमायत, तरफदारी हिदइणा आरारा. हवे हिमालउ उक्तिर. हिमालय हिवडां आरारा. उक्तिर. उपबा. गुर्जरा. हिय कादं (शा). घोडो (सं.हय); जुओ हिइ तेरका. प्राचीसं. षडाबा. हमणां (सं. हियउ आरारा. लावल. वसंफा. वसंवि(ब्रा). अधुना) हैयुं (सं.हृदय) हिवणा जिनरा. हमणां हियडउ आरारा. गुर्जरा. तेरका. देवरा. नेमिछ. वसंफा. वसंवि(ब्रा). वीसरा. हिविडा उक्तिर. हमणां (सं.अधुना) हैडु (सं.हृदय+ड) हिसारा करे प्रेमाका. भांभरे; जुओ हिंसारो हियडला गुर्जरा. हैडु (सं.हृदय) हिं षडाबा. भारवाचक अव्यय, [ज] (सं.हि) हियय तेरका. हृदय, हैयुं हिंडोलय तेरका. हीडोळो (सं.हिन्दोल+क) हियवरणि गुर्जरा. *गमता वर्णनी (सं.हित- हिंसा-रव प्राचीसं. हेषारव, हणहणाटी वर्णिका) हिंसारो दशस्क(२). गायनुं भांभरवू, जुओ Jain Education.International 2010_03 Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश. ५५९ ही/हीरक हिसारा करे हीडइ, हीडइ आनंस्त. गुर्जरा. हेडे, चाले, ही वीसरा. ज (सं.हि) [जाय, ने माटे प्रवृत्त थाय] (द.हिंड) हीअउ उक्तिर. वसंवि. हृदयम् हीडोलाट प्राचीफा.हींचोळो (सं.हिन्दोला+ट) हीअडइ लावल. हैया उपर, छाती उपर, हीडोलिय गुर्जरा. हीचोळी, झुलावी (सं. हिये] हिंदोल) हीआदुबलउ उपबा. हैयादूबळो (सं.हृदय- हीण गुर्जरा. हीन, हलको दुर्बल हीणपणउं उपबा. अगौरव, अपयश होआलि आरारा(व). ताडनी एक जात होणेरइ उपबा. वधारे हलका (जन्म)मां (सं. (सं.हिन्तात) ? हीनतर) होइ आरारा. लावल. हदयमां, हैया उपर, हीत, हेत कामा (वि). माटे छाती पर - होम उक्तिर. हिम, झाकळ होई सारणि शृंगामं या-शारडी, हियाने हीय तेरका. वसंफा. हैयुं (सं.हृदय) सारना, भेदी नाखनारी] ; जुओ सारणि हीयइ विराप. हैयामां ही उपला. हेयु (सं.हृदय) हीयई गुर्जरा. *हृदयथी, *सहेलाईथी, हीक दशक भाका. हेडकी, डचकां [*छाती वडे] हीयउ वसंवि(ब्रा). वीसरा. हैयुं (सं.हृदय) हीकइ उक्तिर. हेडकी आवे, डचकां खाय हीयडउ गुर्जरा. लावल. वसंवि(ब्रा). हैई (सं हिमाति); अखाछ. खोंखारे, दम (सं.हृदय) । हीयरइ प्रद्युचु. ? हीको प्रभाका. हीबकां, डचकां हीयालि, हीयाली नलरा. कोयडो, उखाणुं हीकां आश्वां दशस्क(१). डचकां आववां (सं.हृदय परथी?); * गुर्जरा. विराप. *हीगलाट पंचवा. हीचको, हीडोळो (सं. प्रयुक्ति, [प्रयत्न, कुचेष्टा, हिंमत] [रा.]; हिंदोला+ट) जुओ हैयाली हीचइ * एंतिका. [हींचे] हीयालोकपी प्रद्युचु. अन्यना मननी वात हीचरके (हवरके जाई) शृंगामं. खचरको, एननारी विद्या [सं.हृदय+लोकन) [आंचको खाय, आघात पामे] हीयां गुर्जरा. हैयां हीचोलाखाट मदमो. हिंडोळाखाट हीयुडउ रूपच. हैयुं (सं.हृदयक) हीजइ तेरका.?, [*त्याज्य - हीन गणाय] हीर नेमिछं. रेशम; * विमप्र. (सत्त्व, साररूप हीजाडी * नेमिछ. [*उपाडी, "लई प्रा. अंश, मूल्यवान अंश] हिज हीरक गुर्जरा. हीरो (सं.) ___ 2010_03 Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरडु/हुज हीरडु प्राचीफा हैयुं (सं. हृदय; हिं. हिरद) हीखुंणि आरारा (क). हिरवणी नामनी कपासनी जात हीरागळ प्रेमाका. रेशमी, [ एक वस्त्रप्रकार ] हीरालग षडाबा. हीराखचित (आभूषण ) (सं. हीरक + लग्यति) - ५६० हीलई उक्तिर. अवज्ञा हेलयू, प्रा. हील) हीला ऐतिका. अवहेला, [अनादर, हीँडि उक्तिर. परिभ्रमण, पर्यटन (सं. हिण्डि) हडिया उक्तिर. [?] (सं. हिण्डिका) हींडोलइ उक्तिर. लावल. हींडोळे, झुलावे (सं. हिंदोलयति) तिरस्कार ] अनादर करे (सं. हींडतो आखडे चित्तसं. चालतां पडी जाय, गति न करी शके हीला प्रेमाका. * धक्का, ठेला, [*द्वार] [रा.] हीलितु षडाबा. अनादर करतो (सं. हेला परथी, प्रा. हीलई ) aras नेमिछं. हवे ( सं . अथवा ) ही प्रचु. घोडानी हणहणाटी (सं. हेषारव) हीसइ आरारा. उक्तिर. हेसारव करे, हणणे; दशस्कं (१). प्रेमाका. भांभरे हीस अखाका. कादं (धु). चतुचा. चंद्रवा. दशस्कं ( 9). नरका. नंदब. प्रेमाका. हर्ष पामे, आनंद पाने हीसला हम्मीप्र. उत्तम घोडानी एक जात हीसार कादं (धु). हणहणाट [ सं . हेषारव ] हीसारथ ललिरा. हांसी; जुओ हसारथ हीसारव प्रेमाका. सिंहा (म). घोडानो हणहणाट (सं. हेषारव); कादं (धु). दशस्कं (१). बांघाटवुं, भांभरवानो अवाज हीसोरा प्रेमाका. भांभरवानी क्रिया हस्ती वाग्भबा. हस्ती, हाथी मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हींगू आणि आरारा (व). इंगुदीनुं वृक्ष (रा. हिंगण) [सं. हिंगुपर्णी] वणि उक्तिर. इंगुदीनुं वृक्ष (सं. हिंगुपर्णी) 2010_03 iss अखाछ. *इच्छे, [जाय, ने माटे प्रवृत्त थाय ]; अखेगी. उपबा. षडाबा. चाले, प्रवृत्त थाय (दे. हिंडइ); जुओ ess fies अखाछ. आरारा. हर्ष पाने; प्रेमाका. लावल. हणहणे [सं. हेषति] हींसलणा उषाह. हेषारव करता (घोडा) हींसार दशस्कं ( 9). हेषारव, भांभर ते हु उक्तिर. हुं (सं. अहम् ) हुइ उक्तिर. उपबा. ऋषिरा. कादं (शा). गुर्जरा. तेरका. देवरा. नरका. नलाख्या. नेमछं. प्रेमाका लावल. वीसरा. होय, थाय (सं. भवति) हुइगउ ऐतिका. थशे [ हिं . होगा ] हुइवा उक्तिर. होवा हुईइ उक्तिर. थवाय, थाय (सं. भूयते) हुओ जुओ हउओ हुकलइ * जिनरा. [वागे, ध्वनि करे]; जुओ हूकळी हुकळावी प्रेमाका. *उश्केरीने कोलाहल करता, [प्रिरी, हांकी] हुआ शृंगामं होत Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हुटहुटाड * गुर्जरा. [कोलाहल ] करवाते (सं. उच्छः) प्रकारनुं ढोल] [दे. हुडुक्की] हुडकी * गुर्जरा. *विराप. [ वाद्यविशेष, एक हुंडा जिनरा. हुंडिक संस्थान, [अंगो लक्षण वगरनां वांकांचूंका अने आडांअवळां होय तेवो शरीरबंध] [जै.] हुंडा अवसप्पणि ऐतिका. हुंडावसर्पिणी, वर्तमान हीन समय [जै.] हुंडीपत्री मोसाच. हूंडीनो कागळ हुंणी आरारा. थनार हुडुक, हुडुक्क उक्तिर. प्राचीसं. वाद्यविशेष (दे.) हुंबइ आनंस्त. ऐतिरा. थतां, [होतां ] * हुण [विण] * जिनरा. [विना ] हुणहार आरारा. होनार णार कादं (शा). होनार (सं. भू परथी ) हुत आनंस्त. थतां [होतां ] -हुती विमप्र. -थी, [-मांथी] ५६१ तुं अखाका. आनंस्त. नरका-२. प्रेमाका. थतुं, हतुं; चित्तसं. होतां हुयउ आनंस्त. प्रेमाका लावल. वीसरा. थयो हुयणहार षडाबा. होनार, थनार हुरे हुरे विक्ररा. हरियो, [फजेती] हुलरावे जिनरा. नरका. हींचोळे, झुलावे; [लाड लडावे ] हुलावे नरका. प्रेमाका. विमप्र. लाड लडावे हुलरमाळा प्रेमाका. गळानुं एक आभूषण हुबइ आरारा. नरका-२. पंचवा. प्रेमाका. वीसरा. होय, थाय (सं. भवति) वह प्राचीसं. अग्नि ( सं . हुतवह् ) समदमो. सिंहा (शा). होंश, [उमळको], रुचि, [ अभिलाष ]; जुओ हुंस हुसिइ नेमिछं. थशे, थवानी हुसेनी ऐतिका. रागविशेष - कर्पूमं. संबंधार्थ प्रत्यय, [-] हुंकारो नरका - २. अहंकार, [हुंपणुं ] हुंछउ उक्तिर. खेतरमां पडेला दाणा भेगा 2010_03 हुटहुटाड/हूकळी * आनंस्त. आरारा. उक्तिर. ऐतिका. -थी, मांथी, [होतां] हुति ऐतिका. -नी अपेक्षाए, -ना करतां, [थी] ती अभिऊ. हती (सं. भूत); मिछं. हती, [ होय छे] हुंशनाएक * मदमो. [ ओजस्वी, प्रभावशाळी] [फा. हुस्न परथी] [रा. ] हुँस, हूंस चित्तसं. अहंभाव, हूंपणुं हुंस आरारा. गुर्जरा. होंश, * उत्साह [अ. हवस ]; जुओ हुस हू वसंवि (ब्रा). हुं (सं. अहं) हूअ लावल. थया हूअवह वसंफा. वसंवि. वसंवि (ब्रा). अग्नि ( सं . हुतवह) " हूइ उक्तिर. गुर्जरा. देवरा. नलाख्या. नेमिछं. लावल. वीसरा. होय, थाय छे (सं. भवति) हूओ जुओ हउओ हूकळी प्रेमाका. होंकारा - पडकारा करी; ओ हुकल Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेडी] हूके हेमर ५६२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश हूके प्रेमाका. बराडा पाडे, [हूकाहूक करे]; (सं.हृद्य) जुओ हूंकी हेज *अखाका. [तेज, बळ] हूतउ गुर्जरा. -मांथी (अप.होतउ) हेजु करइ उक्तिर. हेत करे हूतुं अखाका. कादं(शा). प्रेमाका. हतुं (सं. हेठलि उक्तिर. नलाख्या. हेठळ, नीचे भू परथी) (सं.अधस्तात्, प्रा.अहट्ठा) दि.हेट्ठ] हूयउ तेरका. लावल. वीसरा. थयुं (सं.भूत) हेठिनु उक्तिर. हेठळy, नीचे-हूल प्राचीसं. पुष्प (सं.फुल्ल) हेड अखाका. विक्ररा. गुनेगारना पगने हूंकी नेमिछ. हाक मारी, गर्जना करी; जकडी राखनारुं लाकडानुं एक साधन __ जुओ हूके हेडबेडी नरका. हेडरूपी बेडी, पगनी बेडी, हूंडियात प्रेमाका. हूंडी लखी आफ्नार हेड अने बेडी, पगनी अने हाथनी हूंतउ जुओ किहां हूंतउ हूंता कृष्णच. -थी, [मांथी] हेडाऊ उक्तिर. वीसरा. घोडानो वेपारी, हूंती आरारा. प्रद्युचु. -थी, (पासे)थी . सोदागर (सं.हेडावुक) हूंफई गुर्जरा. [रोषमां] हांफे (सं.उष्मायते) हेत अखाका. अखाछ. कादं(शा). हेतु, हूंस अखाछ. *चडसाचडसी, स्पर्धा. कारण, मूळ, [रहस्य]; देवरा.सिंहा(शा). ममत, अहंभाव, हूंपणं; जओ हंस हेतुथी, कारणे, -थी; जुओ हीत हूंस जुओ परहुसीउ, परहूंस हेत प्रेमाका. हित, भलु हृदय-कपाट प्रेमाका. हृदयरूपी बारणुं । हेत नलाख्या. [मूळ मुद्दो], सारमात्र हृदयचइ वसंवि. हृदयना हेतइ आरारा. हेतुथी, कारणथी, माटे हदि नलाख्या. हृदयमां हेतक सिंहा(शा). हितु, हितस्वी हे कामा(शा). हय, घोडो; जुओ हए. हेत-खप प्रेमाका. हेत अने श्रम, हित अने हेसाला __खंत] हेखि, हेखी *गुर्जरा. "विराप. [गुस्से थईने] हेतबाद प्राचीका. हेतुवाद, कुतर्कमूलक [सं.हेष्] वादविवाद हेज अखाका. अखाछ. आरारा. "ऋषिरा. हेतुवाव अखाछ. कुतर्क, [खोटी दलील] ऐतिरा. कस्तुवा. कादं(धु). कादं(शा). हेम अखाका. हिम, हिमालय पर्वत; कामा(शा). चारफा. जिनरा. दशस्क(२). हिम, [झाकळ]; मदमो. दशस्क(१). नरका. नलरा. प्रेमाका. शीतळ मदमो. लावल. विमप्र. वेताप. शृंगामं. हेमर अंगवि. कामा(त्रि). घोडो [सं.हयवर]; सिंहा(शा). हेत, प्रीत, राग, आसक्ति जुओ हेमर 2010_03 Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५६३ हेमसुता/हेसमी हेमसुता प्रेमाका. हिमालयनी पुत्री, पार्वती वेग, झडप; * ऐतिका. गुर्जरा. प्रेमाका. हेमाती मदमो. पक्षकार, स्वजन [अ. विराप. रूस्तस. रमतमात्रमां, लीलाहिमायती] पूर्वक, सरळताथी, तुरत ज (सं.हेला) हेमाळो *नरका-२. [शियाळो] [सं.हिम- हेलामां अखाका. प्रेमाका. सहेज वारमां, काल] सहेलाईथी, तुरत ज हेयपणे आनंस्त. हेयपणाथी, त्याज्य रूपे हेलां अंबरा. ऋषिरा. ऐतिरा. नरप(द). हेर अखाछ. हरि प्राचीका. प्राचीफा. प्रेमाका. लावल. हेरइ अखाका. उक्तिर. नेमिछं. प्रेमाका. वाग्भबा. रमतमात्रमां, अनायास, जुए, नीरखे दि.] - सहेलाईथी, क्षणवारमा (सं.हेला) हेरकांनि अभिऊ. संदेशवाहकोने (सं.हेरक) हेलि जिनरा. विक्रच.रमतमात्रमां, सहेलाईथी हेरणां (हरणां हेरे) नरप(द). छूपी रीते हाल ने हेलि लावल. *हेले चडी छे, [ घूमे], जोवं ते. छिपी नजरो कर्या करे] ["अला] हेरा विमप्र. चिक्कर. फेरा. आंटा हेलि, हेली नरका. लावल. हे सखी, (अली) हेरावे नरका. *ललकारीने बोलावे, सखी .[*खोळीने भेगुं करे] हेलिई ऐतिरा. सहजमां, [तरत ज] हेरु उक्तिर. प्रेमाका. गुप्तचर (सं.हैरिक) हेली जुओ हेलि हेरूं उषाह. छूपी तपास, [चोरी दि.] हेलो चित्तसं. सरळताथी [सं.हेला] हेर्यु *नरका. लिई लीधं, वश कय हेव आरारा. उषाह. मदमो. शृंगामं. हवे, हेल नरप-२. *नरप(द). माथे उपाडेली] अत्यारे (सं.अथ+वा) [अप.अहवा] गागर हेव गुर्जरा. *रूपच. खरेखर, जरूर, [ज] हेल नरका. हेलारो, धक्को हेलइ आरारा. जलदी, तरत ज (द.); हेवउ उक्तिर. हेवा, प्रबळ इच्छा, आदत जिनरा. सहजपणे, सरळताथी, [तरत (सं.हेवाकः) हेवातण नरका. सौभाग्यावस्था (सं. हेलडी नरका. नरप. हेल, पाणी लाववाना अविधवा+त्वन) वासणनी मांडणी हेवि आरारा. हवे हेलडी रूस्तस. रमतमां, घडीमां [सं.हेला] हेतुं मदमो. एवू हेलवे, हेळवे चित्तसं. नरका. मन मळे, हेषारव नेमिछं. हणहणाट [सं.] मन मेळवे हेषारा ऋषिरा. हणहणाट (सं.हेषारव) हेला दशस्कं(१). हरिख्या. रमत, लीला; हेसमी नेमिछं. एक जातनुं पकवान (सं.एव) ___ 2010_03 Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेसारव/हिइ ५६४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वाद हेसारव कादं(शा). हणहणाट (सं.हेषारव) ते हेसाला कामा(त्रि). घोडार [सं.हयशाला]; होडाहोड *प्रेमाका. [चडसाचडसी, परस्पर . जुओ हे हेमर ऐतिरा. उत्तम घोडा [सं.हयवर]; होडि अभिऊ. होडमां, शरतमां जुओ हेमर होडि जिनरा. तुलना, [समानता, बराबरी] है उषाह. नलाख्या. केवलप्रयोगी अव्यय, होती प्रेमाका. थती होहो नरका. हाथीनी पीठ उपर मूकेली हैई प्रबोप्र. हृदयमां __ बेठक, अंबाडी [सं.हवदज] हैय गुर्जरा. हाय होमिनु उक्तिर. होमवू (सं.हु परथी) हैयड प्रबोप्र. है (सं.हृदय+क) होयजे आरारा. होजे, थजे टैयाली उषाह. कोयडो, उखाणुं जुओ होयो ऋषिरा. होजो, थजो (सं.भवत) हीयाल होयो प्रेमाका. थयो (सं.भूत) • हैयुं (हयुं काढ) *अखाछ. [प्राण अी दे] होला षडाबा. ओळो, चणा आदि धान्यना होइ गुर्जरा. वीसरा. षडाबा. छे, थाय लीला शेकेला दाणा (सं.भवति) होलावदुं दशस्क(१). 'होलोलो' करीने होइला नरका. थया (म.) बाळकने बहेलाव, होइसिई नेमिछं. हशे (सं.भविष्यति) होलास कामा(त्रि). उल्लास होइहो *पंचवा. [2] होशी मदमो. होंशथी तैयार करेला, [होंशहोईए प्रेमाका. थईए, थजो होउ उक्तिर. उद्गारवाचक, हो (सं.अवम्) होसिइ, होस्यइ ऋषिरा. लावल. हशे, थशे होउ उक्तिर. थयु (सं.भू परथी) (सं.भविष्यति) होऐ पंचवा. होई, होय (सं.भवति) होंकार * प्रबोप्र. [पडकार, बूम] होठ राळे जुओ राळे होठ हौउ, हौउओ, हौओ उषाह. कादं(शा). होठे पडी नरका-२. लोकोनी चर्चा पामी, नलाख्या. थयो (सं.भूतकः) . [बोलाती थई] इ, ड्रिइ उपबा. गुर्जरा. वाग्भबा. विराप. होड नरका. स्पर्धा, बराबरी; *प्रेमाका. षष्टिप्र. द्वितीय, चतुर्थी, षष्ठीनो अनुग, [स्पर्धा, वाद, चडसाचडसी] -ने, माटे; जुओ रई, रहइ, हरई होड [होड पाडइ] विमप्र. हरीफाई, [शरत इव प्रेमाका. धरो; नदीमांनो पाणीनो ऊंडो लगावे, दाव लगावे] पहोळो लांबो खाडो [सं.] होडपातनु षडाबा. होड करवी, शरत मारवी हिइ जुओ इइ भा] 2010_03 Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा 2010_03 Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५६६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संपादकीय भूमिकामां दर्शाव्युं छे ते मुजब आ संकलित कोशमां शब्दार्थना जे सुधारावधारा थया छे ते कयां कारणोथी अने केवी रीते थया छे एनो ख्याल आवे ते हेतुथी अहीं नमूना रूपे थोडी शब्दार्थचर्चा आपी छे. जुदांजुदां सामयिकोमां अलग लेखो रूपे आ शब्दार्थचर्चा प्रसिद्ध थई छे, अने ए ज लेखो थोडा फेरफार ने उमेरण साथै, अहीं मूक्या छे तेथी स्वाभाविक रीते एमां अकारादिक्रम तूटे छे. पण चर्चायेला शब्दो नीचे अकारादि क्रममां गोठव्या छे अने एमनी चर्चा कया स्थाने थई छे ते खंडक-क्रमांक अने पृष्ठांकथी दर्शाव्युं छे. अउले खाले वहै, १ - ५६८ अउल्हाइ २ ५६८ अउगनाइ, ३ - ५६८ अउगउ, ४ अकज, ७ अकाज, ७ अखतर, ८ अखत्र, ८ ५७२ अखंत्र, ८ ५७२ अखाडो, ५ - ५६९ ५७३ अगम, ९ अगाज, १० ५७५ अघाट ऊभो, ११ - ५७७५ अच्छउं, १२ ५७६ अछूतउ, ६ - ५७० अज उभा, १३ - ५७६ अजंण, १४ ५७७ -- - - ५७१ - ५६९ - ५७१ ५७२ अडसाला, १५ - ५७७ अडसीला, १५ - ५७७ अगाल, १६ ५७७ अणगाल, १६ अणाथ, १७ अणथि, १७ अणिअ आखइ, १९ ५७९ ५७८ अणिख, १८ ५७९ ---- ―― ५७७ ५७८ - 2010_03 अणीय आखइ, अणीसर, २० अणूरत, २१ अणूरुं, २१ - - de - १९ ५८० अत, २२ - ५८१ अतिधज, २३ ५८२ अतिसंता, २४ - ५८२ - ५७९ ५८० अधरास, २५ - ५८२ अनिआउ, ३३ - ५९० अनिवड, २६ ५८४ अनु भाव, २७- ५८६ अनुभाव, २७ - ५८६ अन्नैयो, ३३ ५९० - ५७९ अन्या, ३३ - ५९० अन्याई, ३३ - ५९० अन्ना, ३३ ५९० अप्रमाण, २८ अबाह, २९ ५८७ अबोखण, ३० - ५८७ अभोख, ३० ५८७ अभोखण, ३० ५८७ अभोखणुं, ३० ५८७ अमलीमाण, ३१ - ५८९ अमलीमान, ३१ ५८९ अमाइ, ३२ ५८९ . ५८६ Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अमाणुं, ३२ ५८९ अमान, ३२ ५८९ अमानी, ३२ - ५८९ अमामो, ३२ - ५८९ अरज, ३४ - ५९३ अलगुं, ३५ ५९३ ५९३ अलगेरी, ३५ अंक भरवो, ३६ - ५९५ आघाट ऊभो, ११ ५७५ आघ, ३७ ५९६ आघलउ, ३७ - ५९६ आघुं, ३७ – ५९६ आघेरुं, ३७ - ५९६ आर्छु, १२ ५७६ आडइ, ३८ ५९७ आडौ, ३८ - ५९७ आथ, १७ ५७८ ५७८ आथि, १७ आथ्य, १७ ५७८ आदर, ३९ ५९८ आदर, ३९ ५९८ आभोखउ, ३० ---- — --- - - - -- - ५८७ उगउ, ४ उशंकल, ४४ ६०३ उसंकल, ४४ ६०३ ५६९ - - 2010_03 ५६७ उसीकल, ४४ उसकल, ४४ ऊलववुं, २५ ओलव, २५ ओशिंगळ, ४४ - - - - ओशींकळ, ४४ ओशींगल, ४४ ओसंकल, ४४ ओसीकल, ४३ करो, ४० काण, ४५ काणि, ४५ काणी, ४५ • ६१३ कांणि, ४५ ६१३ - किण गानइ, ४३ - ६०२ - A ५८२ ५८२ - - - ६०१ ६०३ ६०३ ५७२ ६०३ • ६०३ ६०३ ६०३ ६१३ ६१३ कुलकाणि, ४५ खगमंडल, ४१ ६०१ खगाकार, ४१ • ६०१ खगां, ४१ ६०१ खत्र, ८ खराप, ४२ ६०२ गान, ४२ - ६०२ ५७३ निगम, ९ निवड, २६ मुहकाणि, ४५ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१३ ६०३ — ५८४ ६१३* Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा . ५६८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १. अउले खाले वहै जिनरा.मां शालिभद्रनी रिद्धिना वर्णनमां नीचेनी पंक्ति आवे छे : जीहो अउले खाले वहै, जीहो कस्तूरी घनसार. ४,११ संपादक 'अउले'ना 'तरल, अवलेह' एवा अर्थो आपे छे, जे अहीं कोई रीते बेसता नथी. 'अउले खाले वहै' ए रूढिप्रयोग होवानुं समजाय छे. अवळी खाळे वहे, एटले ऊभरावू, छलकावू. शालिभद्रने घरे कस्तूरी अने कपूर अंगलेपमा एटलां वपराय छे ने धोवाईने खाळमां एटलां वहे छे के खाळ एनाथी ऊभराय छे. ए नोंधपात्र छे के आवो रूढिप्रयोग राजस्थानी शब्दकोश के रूढिप्रयोगकोशमां नोंधायेलो नथी. २. अउल्हाइ जिनरा.अंतर्गत 'गोडी पार्श्वनाथ स्तवन'मां नीचेनी पंक्तिओ आवे छे : देव पणाइ देवले, गउडेचा राय, दीठा ते न सुहाइ रे, गउडेचा राय, इक दीठा मन हुलसइ, गउडेचा राय, ___ इक दीठा अउल्हाइ, रे गउडेचा राय, 'ओलावु' शब्द 'बुझाएँ, ठरवु' एवा अर्थमां जाणीतो छे. पण ए अर्थ अहीं नथी ए स्पष्ट छे. 'हुलसइ' (उल्लास पामे)ना विरोधी अर्थनो ज ए शब्द होई शके. नाहटा 'संकुचित थ' एवो अर्थ ले छे. पण 'उल्लास पामे'ना बराबर विरोधी अर्थमां आ शब्द नोंधायेलो मळे छे. 'देशीशब्दसंग्रह' 'ओहुल्लि' एटले 'खिन्न' अने 'ओहुल्लिय' एटले 'म्लान' अर्थ आपे छे. तो अहीं पण "एक देवने जोतां मन उल्लास पामे, एक देवने जोतां मन खिन्न थाय" एम अर्थ बराबर बेसे. ३. अउगनाइ उक्तिर.मां 'अउगनाइ' शब्द नोंधायेलो छे ते ध्यान खेंचे छे. एनो संस्कृत पर्याय एमां 'अपकर्णयति' अपायेलो छे. आ 'अउगनाइ' ते 'अवगणे' ? उक्तिर.मां संस्कृत पर्यायो घडी काढेला मळे छे अने संस्कृत कोशो 'अपकर्णयति' शब्द नोंधता नथी. पण उक्तिर.ने 'अवगणे' ज अभिप्रेत होय तो संस्कृत 'अवगणयति' ए न आपी शके एम मानवं मुश्केल छे. बीजी बाजुथी, 'अवगणे'नुं जूनुं रूप 'अउगणइ' होय अने ए ज 'अवगणयति' परथी आवे, 'अउगनाइ' नहीं. एटले 'अउगनाइ' ए 'अउगणइ'थी जुदो शब्द होवानो संभव रहे छे. एनो 'अपकर्णयति' ए पर्याय आपवामां आव्यो छे तो तेनो अर्थ 'सांभळे नहीं, ध्यानमां न ले' एवो अभिप्रेत होवानु संभवित छे.२ 2010_03 Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५६९ थोडी शब्दार्थचर्चा ४. अउगउ, उगउ उक्तिर.मां 'अउगउ-मुगउ' अने 'उगउमुगउ' ए शब्दो नोंधायेला छे अने एनो पर्याय अवाङ्मुकः आपवामां आव्यो छे. देखीती रीते ज 'ऊगोमूगो' ए द्विरुक्त शब्द छे. एनो अर्थ तो 'मूगो' ज. 'ऊगो' ने 'अवाङ्' परथी व्युत्पन्न करी शकाय ? ___'अउगउ' के 'उगउ' शब्द एकलो पण 'मूगो'ना अर्थमां वपरायो छे. जेमके, प्राचीसं.-अंतर्गत 'नेमिनाथ-चतुष्पदिका'मां - अउगी अच्छि, सखि झखि मन आल, षडाबा.मां - गुरे भणिउं - 'म वच्छ ! उगा रहि को कांइ नहीं कहइं.' बीजा उदाहरण परत्वे संपादके 'agitated, alarmed' (क्षुब्ध, भयभीत) एवो अर्थ आप्यो छे. पण त्यां बीजा साधुए दडबडावतां चेलो लागणीना आवेशमां आवी ध्रुसकां भरे छे त्यारे गुरु एने 'वत्स, रड नहीं. मूगो रहे' एम कहे छे तेवो अर्थ लेवानो छे. ५. अखाडो 'अखाडो' शब्द कुस्ती, व्यायाम के स्पर्धा माटेनी जग्याना अर्थमां जाणीतो छे. सं. अक्षपाटक' परथी ए ऊतरी आव्यो छे. उक्तिर. 'अक्षपाटक' एवो पर्याय आपी 'अखाडउ' शब्द नोंधे छे. मध्यकालीन गुजरातीना बेत्रण प्रयोगो आ संदर्भमां नोंधपात्र गुर्जरा. तथा विराप.मां - पार्छ एक दल कोडि विहाडइ, इणि स्यउं कोइ मिलइन अखाडइ. २.५३ विराप.ना संपादको 'अखाडइ'नो अर्थ 'मल्लयुद्धमां' अने गुर्जरा.ना संपादको 'a wrestling ground' एम अर्थ आपे छे. आमां कुस्ती के कुस्तीनु मेदान एवो अर्थ अभिप्रेत होय तो ते योग्य नथी. सर्व प्रकारनी शौर्यस्पर्धामां पार्थनी तोले कोई न आवे एम ज अर्थ होई शके. पार्थ कुस्तीबाज नथी, बाणावळी छे. गुर्जरा.-अंतर्गत 'पंचपांडवचरित्ररास'मां अन्य त्रणेक स्थाने आ शब्द वपरायेलो तुम्हि मंडावउ नवउ अखाडउ, नवनव भंगि पुत्र रमाडउ. ४:१ राधावेधु करीउ दिखाडइ, तिसउ न कोई तीण अखाडइ. ४.८ इम परीक्षा हुई अखाडइ, तीछे अरजुनु चडीउ पवाडइ ४.२० अहीं प्रसंग कौरव-पांडवोनी शस्त्रविद्यानी परीक्षानो छे. तेथी 'अखाडउ' एटले 2010_03 Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५७० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश 'शौर्यस्पर्धा' एवो अर्थ बधे स्पष्ट छै. 'शौर्यस्पर्धानुं स्थान' एवो अर्थ पण लई शकाय. वधारे रसप्रद छे ते तो 'अखाडउ'ना बीजा बे प्रयोगो. षडाबा.मां चैत्यवर्णनना प्रसंगे द्वारेद्वारे अखाडामंडप साथे प्रेक्षामंडप होवानो उल्लेख आवे छे. संपादके 'अखाडामंडप'नो अर्थ 'pavilion' आप्यो छे ते तो देखीती रीते ज भूलभरेलो छे. पण अहीं 'अखाडामंडप' एटले 'शौर्यस्पर्धानुं स्थान' एवो अर्थ होवा करतां 'रमतनुं स्थान, क्रीडाभूमि' एवो होवा वधारे संभव छे. चैत्यमां शौर्यस्पर्धा होई शके ? नरप.ना एक पदमांनो 'अखाडो' शब्दनो प्रयोग आ संदर्भमां उपयोगी नीवडे तेवो छ : वृंदावनमां रच्यो अखाडो, नाचे गोपी गोवाल. ५४.१ 'अखाडो' शब्द अहीं 'शौर्यस्पर्धा'ना अर्थमां नथी ते स्पष्ट छे. गोपी-गोपाल नृत्य करे छे. एटले 'क्रीडाभूमि' एवो अर्थ ज लेवानो रहे. षडाबा.मां पण 'नृत्यादि क्रीडाओर्नु स्थान' एवो अर्थ बंध बेसे. आ 'अखाडो' शब्दनो जरा जुदो पडतो प्रयोग गणाय.४ ६. अछूतउ 'अछूत' शब्द 'अस्पृश्य, हलकी जातिनो माणस' ए अर्थमां खूब जाणीतो छे. उक्तिर.मां 'अछूतउ' शब्द जुदा अर्थमां होय एम समजाय छे. एमां पर्याय 'अछुप्त' अपायेलो छ, जेनो अर्थ 'अस्पृष्ट' थाय. पण 'मइलउ', 'छोति', 'अछूतउ' एम शब्दक्रम छे ने उक्तिर.मां शब्द कया जूथमां मुकायो छे तेमांथी केटलीक वार एना अर्थनी चावी मळे छे. अहीं 'मइलउ'नो विरुद्धार्थी शब्द 'अछूतउ' समजीए तो एनो अर्थ 'स्पर्शदोषना अभाववाळो, निर्मल' एम करवो जोईए. 'छोति'नो अर्थ 'स्पर्शदोष' थाय ज छ.५ पूरक नोंध १. 'मों करमा!' जेवामां 'करमावु' जेम, 'ओलादुनो लाक्षणिक अर्थ निस्तेज थर्बु लईए तो अर्थ कदाच बेसे. 'ओहुल्ल'ने मूळ तरीके लेतां पण अर्थ घटे छे. 'ओहुल्ल'ना मूळमां 'अव+फुल्ल' (करमा) छे. अपभ्रंश साहित्यमां ते वपरायो छे. जेमके स्वयंभूकृत 'पउमचरिउ'मां, पुष्पदंतकृत 'महापुराण'मां. त्यां 'मुख'नं ते विशेषण छे. टीकाकारे 'म्लान', 'सुकायेलु' अर्थ करेल छे. 'ओहल्ल्-' एवो पाठ लिपिदोष जणाय छे. 'ओहुर-' पण मळे छे. विशेष माटे जुओ रत्ना श्रीयन्, Des'ya and Rare Words, पृ.६१, ६२. २. नामधातु 'अवकर्णय' – 'ध्यानमां न लेवु' बाणनी 'कादंबरी'मां वपरायानुं मोनिअर-विलिअम्झे नोंध्यु छे. ___३. में 'अनुशीलनो' (१९६५, पृ.९३-९५)मां 'अउगउ', 'उगा' विशे नोंध आपेली छे. तेमां प्राकृत, जूनी तथा मध्यकालीन गुजरातीना ११मीथी १७मी शताब्दीमां मळता प्रयोगो, तथा मराठी प्रयोगनी नोंध लीधी छे. 'अनुसंधान'ना प्रस्तुत अंकमां ज ___ 2010_03 Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५७१ थोडी शब्दार्थचर्चा कनुभाई शेठ संपादित 'सुभद्रासति-चतुष्पदिका' (१३मी सदी)मां पण आ शब्दनो प्रयोग मळे छे: "अउगी आछु न बोलिसि माए.' (कडी ३४). ४. पुष्टिमार्गीय वैष्णव कवि हरिदासना मुख-परंपरामां पण मळता एक धोळमां 'क्रीडाभूमि' (रासक्रीडा माटेनी रंगभूमि) एवा अर्थमां 'अखाडो'नो प्रयोग मळे छ : एक रच्यो अखाडो रे, सज्ज थया पोते. (संदर्भ कृष्ण-गोपीओनी रासलीलानो : जुओ 'हरि वेण वाय छे रे हो वनमां', पृ.७४, कडी २). ५. सं.'छुप्त-', प्रा.'छुत्त-' = 'स्पृष्ट', पछीथी, 'दूषित स्पर्शवाळु'. प्राकृतमां पण 'छुत्ति' 'अशौच' एवा अर्थमां वपरायेलो छ, जेना परथी जू. गुज. 'छोति', हिं. 'छूत' थया छे. 'अछूत' शब्द 'अस्पृष्ट' (हिं.अछूता), तेमज 'अस्पृश्य' (हिं. 'अछूत') बंने अर्थमां रूढ छे. 'छूताछूत'मां धात्वर्थ जळवायो छे. प्रस्तुत नोंध क्रमांक ७मां पण 'अछूतउ' 'अस्पृश्य' ए अर्थमां होवानी शक्यता छे. - ह. भायाणी [अनुसंधान-१] ७. अकज, अकाज 'अकज' के 'अकाज' एटले 'अकार्य, न करवा जेवू कार्य, अघटित के निंद्य कार्य'. मध्यकाळमां आ शब्द 'नकामुं, व्यर्थ, खोटुं' एवा अर्थमां पण व्यापक रीते प्रयोजायो छे. अखाका.मां एक सोरठो नीचे मुजब मळे छ : राजस केरी रज आवी पेठी आंखमां, तेणे थयुं अकज शुद्ध वस्तु अविलोकवा. संपादके 'अकज'नो 'अकार्य, न करवा जेवू काम' एवो अर्थ लीधो छे. पण वधारे योग्य रीते 'न थवा जेवू, अघटित' एवो अर्थ लेवो जाईए : 'शुद्ध वस्तु अवोलकवा माटे अघटित थयुं.' 'अकाज'नो एक प्रयोग एमां आ प्रमाणे छे : अलवे-शुं आले ज जातां, घसाये गजराज, तेणे ग्रहस्थनां घर गडगडे, वाहाला ! त्यम अडे थाय अकाज. संपादके आनो पण 'अकार्य, न करवा जेवू काम' एवो अर्थ आपेलो छे. अहीं पण 'न करवा जेवू' नहीं, पण 'न थवा जेवू काम' एम अर्थ करवो वधारे योग्य छे. 2010_03 Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश 'हानि' के 'नुकसान' एवो अर्थ पण लई शकाय : 'मार्गे चालतां गजराज जराक घसाय तेनाथी गृहस्थनां घर खखडी पडे छे, तेम वहाला ! तमारा अडवाथी हानि / नुकसान थाय छे.' आगळ कृष्ण नेत्र नाखे त्यां प्राण हरे छे एवी वात छे. तेम एनो हाथ अडवाथी पण हानि थवानुं ज अभिप्रेत होय. हाथीनुं दृष्टांत पण ए ज सूचवे छे. रूपच. मां संपादके 'अकाज' नो अर्थ 'व्यर्थ' आप्यो छे. पण ए अर्थ संदर्भमां बंधबेसतो नथी. संदर्भ एवो छे के कुंवरी भोगमग्न होवानी वात राजा पासे आवे छे त्यारे ए गुस्से थईने बोले छे के रे रे किसिउ अकाज ? देखीती रीते ज अहीं 'अघटित कार्य, निंद्य कार्य' एवो अर्थ छे : 'आ केवुं अघटित कार्य ?' ५७२ विराप. मां 'अकाजिनो अर्थ संपादकोए 'अकारण' आप्यो छे. गुर्जरा. मां पण आकृति छपायेली छे अने त्यां पण 'अकाजि' नो अर्थ ' without any purpose ' आपेलो छे. बन्नेमां लेवायेलो अर्थ शंकास्पद लागे छे. संदर्भ एवो छे के कीचके वर्तावला त्रास पछी द्रौपदी विराट राजाने फरियाद करतां कहे छे के ईई हउं इम अकाजि पीडी / विगोइ. कीचके द्रौपदीने त्रास आप्यो ते अकारण, कोई हेतु विना के अघटित कार्यथी, अघटित रीते, खराब रीते, खोटुं करीने ? "एणे मने आम खोटी रीते, खराब रीते पजवी" एम अर्थ होवानो वधारे संभव छे. ८. अखत्र, अखंत्र, अखतर, खत्र मध्यकाळमां आ शब्द निंद्य, खराब, अयोग्य, अनिष्ट' एवा अर्थोमां वपरायेलो देखाय छे. प्राकृत कोश 'अखत्त (अक्षात्र) ' 'क्षत्रियधर्मथी विरुद्ध, जुलम' एवा अर्थमां नोंघे छे. पण 'क्षत्रियधर्मथी विरुद्ध'मांथी 'निंद्य, खराब' एवो अर्थ विकसी शके. ए पात्र छे के मध्यकालीन गुजरातीमां 'अखत्र' के 'अखंत्र' क्षात्रधर्मना संदर्भमां ज नहीं, व्यापक, सर्वसामान्य संदर्भमां वपरायो छे. गुर्जरा. अंतर्गत वस्तिगकृत 'चिहुंगति चोपाई' मां एक पंक्ति आम मळे छे : खत्रअत्र कीधां सवि वार, डोकरनी कोइ न करइ सार. वृद्धावस्थानी स्थितिना वर्णननी आ पंक्ति छे. देखीती रीते, माणसे जिंदगीमां करेला सारांनरसां कार्योंनो अहीं उल्लेख छे. 'खत्र' एटले 'सारं, योग्य', 'अखत्र' एटले 'खराब, अयोग्य'. संपादकोए अनुक्रमे 'good' अने ' improper' अर्थो आप्या छे ते बराबर छे. सिंहा (म). मां संपादके 'अखत्र, अखंत्र'नो 'क्षत्रियने न छाजे एवं कार्य' एवो स्थूळ शब्दार्थ कर्यो छे, तेमां ए वात वीसरी जवाई छे के आ शब्द अहीं क्षत्रिय नहीं, ब्राह्मणने संदर्भे वपरायो छे. लोभ लगइ अखंत्र ज किउं तथा परीक्षा जोई, नवि करूं अवत्र बन्नेमा 'निंद्य, खराब कर्म' एवो सामान्य अर्थ स्पष्ट छे : "लोभने लीधे 2010_03 Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . ५७३ थोडी शब्दार्थचर्चा निंद्य कर्म कर्यु', "आ तो परीक्षा करी. हुं कदी निंद्य कर्म करूं नहीं." हरिख्या.मां संपादके 'अखत्र'नो 'गंदं' एवो अर्थ आप्यो छे ते पण बराबर नथी. बाग उजाडी नाखवामां आव्यो तेना संदर्भमां एवी पंक्ति आवे छे के जात न रही पुष्प केरी, थयुं परम अखत्र. अहीं 'घणुं खराब – खोटु कार्य थयु | अनिष्ट थयु | नुकसान थयु' एम अर्थ करवो ज योग्य छे. आरारा.-अंतर्गत राजसिंहकृत 'आरामशोभाचारित्र'मां दीकरीनी अवदशा थयेली छे तेने अनुलक्षीने माता बोले छे के अणचीत्यु ए अखत्र सूं दीसइ ? संपादके आपेलो 'अनिष्ट' अर्थ अहीं बराबर बंध बेसे छे. भगवद्गोमंडल ‘अखत्र' = 'अखतर'नो 'गंदूं, मेखें, नठारुं' एवो अर्थ नोंधे छे तेमां 'गं,, मेलुं'ना अर्थनो आधार कदाच हरिख्या. होय. बीजा '१. मळ, विष्टा, २. घj, बहु' एवा अर्थो पण नोंधाया छे, पण एना कोई आधारो अपाया नथी. 'पोतानी जातने डाझुं मानतुं मनावतुं' एवो अर्थ आपी निष्कुळानंदनी आ पंक्ति टांकी छे - अति अखतर नर नरसा घणा रे. परंतु एमां 'निंद्य' एवो अर्थ ज होवा संभव छे, पाछळ 'नरसा' (=खराब) शब्द आवतो होवा छतां. आने अर्थनी द्विरुक्ति लेखी शकाय. ९. अगम, निगम - 'अगम' ने 'निगम'नुं जोडकुं घणी वार वपराय छे. एमां ए बे शब्दो खरेखर शुं दर्शावे छे ते विचारवा जेवू छे. एना केटलाक प्रयोगो जोईए. अखाका.मां - निगम अगम कहे, पार को नव लहे. नरका.मां - * न लहे जोगिया, मुनिवर कोटिया, निगम ने अगम ते हुने थापी. ** अगम गुरु थकी निगम शिष्य निपना, ब्रह्मनी वातनो भेद जाणे. मदमो.मां - * शाहास्त्र भणावो एहने सार, अगंम-नीगंम जे अपरंपार. * अगंमनीगम जोतीक-जनीन न्याअ-वात पर नेह.. 'निगम' शब्द एकलो वपरायेलो पण मळे छे. पण एनो बधे एकसमान प्रयोग छे. जेमके, चतुचा.मां - नीगम नेतनेत करी भाखे. 2010_03 Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा . ५७४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नरका.मां - नेतिनेति करी निगम भाखे प्रेमाका.मां - जेने निगम नेतिनेति गाय. अखाका.मां 'अगम'नो अर्थ 'अगम्य' आपवामां आव्यो छे. नरका.मां पहेली पंक्ति परत्वे 'अगम्य, कळी न शकाय एवं' ए अर्थ तथा बीजी पंक्ति परत्वे 'गूढ शक्ति धरावनार, भविष्यनो विचार करी शकनार' ए अर्थ आपवामां आव्यो छे. आ बीजो अर्थ 'अगम' शब्द गुरुनुं विशेषण होवाने कारणे अपायो छे पण ए अर्थ लेवा माटे शो आधार छे ते स्पष्ट थतुं नथी. आ पंक्ति परत्वे 'निगम'नो अर्थ तो अपायो ज नथी. एम लागे छे के अन्यत्र बधे 'अगमनिगम' ए शास्त्रग्रंथोने दर्शावतुं जोडकुं होय तो अहीं पण एम ज मान, जोईए अने 'गुरु' 'शिष्य' ए शब्दोने जुदी रीते घटाववा जोईए. 'अगम' ने 'निगम' एम बन्ने छूटां पाडीने उल्लेखवामां आवे छे ते परथी ए बंने शास्त्रग्रंथोना प्रकारो होवानुं स्पष्ट छे तेथी 'अगम'नो 'अगम्य, न कळी शकाय एवु' ए अर्थ पण योग्य नथी. मदमो.मां 'अगंम'नो अर्थ 'आगम, शैव शास्त्रो' आपवामां आव्यो छे. संस्कृत कोश 'आगम'नो एक आवो अर्थ नोंधे छे पण बीजा 'परंपरागत पवित्र शास्त्रग्रंथो' 'ब्राह्मणग्रंथो' 'वेद' एवा अर्थो पण नोंधे छे. अहीं 'शैव शास्त्रो' एवो संकुचित विशिष्ट अर्थ लेवा माटे शुं कारण छे ए समजातुं नथी. 'अगंम'नो ए अर्थ करीए तो एनी साथे आवेला 'नीगम' शब्दनो शो अर्थ करवो ? मदमो.मां 'नीगम'नो अर्थ अपायो ज नथी. _ 'निगम' शब्दनो सर्वत्र 'वेदग्रंथो' एवो अर्थ करवामां आव्यो छे. एने संस्कृत कोशनो आधार छे, परंतु संस्कृत कोश 'वेदनी समजूती आपतो परवर्ती ग्रंथ' एवो पण अर्थ आपे छे. _ 'अगम' ने 'निगम' द्वारा मूळ ग्रंथ - वेद अने एना परवर्ती ग्रंथोनो उल्लेख होय ए ज तर्कगम्य लागे छे. कया शब्दनो कयो अर्थ करवो एनो थोडो कोयडो छ ने कदाच मध्यकाळमां संस्कृतमा छे तेवी अस्पष्ट स्थिति ज होय. छतां वधारे संभवित ए लागे छे के 'अगम' द्वारा मूलग्रंथो - वेदग्रंथो अभिप्रेत होय अने 'निगम' द्वारा एना परवर्ती ग्रंथो. नरसिंहनी कृतिमां 'अगम' गुरु अने 'निगम'ने शिष्य कहेल छे ते आ संदर्भमां सूचक बने. 'नेति नेति' कहेनार मात्र वेदग्रंथो ज शा माटे ? त्यां पण 'शास्त्रग्रंथो' एवो सामान्य ने व्यापक अर्थ लेवो जोईए एम लागे छे. 2010_03 Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५७५ थोडी शब्दार्थचर्चा १०. अगाज 'अगाज' एटले अग्राह्य. मध्यकालीन गुजरातीमां एनी केटलीक भिन्नभिन्न अर्थछायाओ विकसेली देखाय छे. शृंगामं.मां आ मुजब पंक्ति मळे छ : साची प्रीति न जां मिलइ, तां मनि हुइ अगाज. संपादके 'अग्राह्य' अर्थ आप्यो छे, ए अहीं 'अस्वीकार्य ना अर्थमां छे एम समजाय छे : “साची प्रीति ज्यां न मळे त्यां ए मनमा अग्राह्य - अस्वीकार्य बने छे - मन एने स्वीकारी शकतुं नथी." प्रेमाका.मां आ प्रमाणे पंक्ति मळे छे : द्राविडदल सागर अगाज. संपादके 'अग्राह्य, अगाध' एवो अर्थ आप्यो छे. 'अग्राह्य' एटले 'जेनो पार न पामी शकाय एवो, विशाळ' एवी अर्थछाया एमां जोई शकाय. आरारा.-अंतर्गत समयप्रमोदकृत ‘आरामशोभाचोपाई मां नीचे मुजबनी पंक्ति मळे छे: आरामसोभा सुं लीधउ संजम राजीयइ रे ते गुरु पासि अगाज. 'अगाज' अहीं 'संजम'नुं विशेषण छे. एनो संपादके 'दुष्कर' अर्थ आप्यो छे ते एम बेसाडी शकाय के 'जेने सहेलाईथी ग्रहण न करी शकाय ते, जेने सहेलाईथी आचरी न शकाय ते.' 'अगाज'नो कोयडारूप प्रयोग तो विमप्र.मां छ : वीरपुत्र बोलाविवा, ए तु आविवा, राउ करइ तु अगाज तु. संपादके 'अगाज'नो 'वगर हरकते' एवो अर्थ आप्यो छे ते केवी रीते आवी शके ते तो प्रश्न छे ज, ते उपरांत संदर्भमां ए बंधबेसतो थतो नथी. संदर्भ तो वीर वणिकने त्यां पुत्र विमल जम्यो एनो छे. विमलना जन्मने अनुलक्षीने राजा 'अगाज' करे छे. आ 'अगाज' एटले शुं? पछी वर्णन तो जन्मोत्सव- आवे छे. 'अगाज' एटले 'अग्राह्य, घणुं मोटुं' एवो अर्थ थई शके. आगळ आपणे 'विशाळ' अर्थ कर्यो जछे तो अहीं 'अगाज' एटले 'मोटो उत्सव' एवो अर्थ करी शकाय ? ११. अघाट (आघाट) ऊभो नंदब.मां आ प्रमाणेनी उक्ति आवे छे : साचं बोल उभो आघाट, राजा तें मारो शा माट ? ___ 2010_03 Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५७६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संपादके 'अघाट' नो अर्थे 'पूरेपूरुं' आप्यो छे ते संदर्भमां बेसाडी शकातो नथी. उपरांत 'अघाट' आवो अर्थ केवी रीते आपी शके ते प्रश्न छे. आपणे त्यां 'आघाट' चतुःसीमा माटे वपरातो शब्द छे. मकान 'आघाट' एटले एनी चार सीमा साथे वेचाण आप्यानुं लखातुं होय छे. अहीं 'उभो आघाट' नो अर्थ 'चारे आघाट - सीमा वच्चे ऊभो रहीने' एटले 'जाहेरमां, खुल्लेखुल्लुं' एम होवानुं समजाय छे: "राजाने तें केम मार्यो ए जाहेरमां, खुल्लेखुल्लुं साचुं बोली दे." ए नोंधपात्र छे के 'अघाट'नुं 'आघाट' एवं पाठांतर मळे छे. १२. अच्छउं आ 'आछु' शब्द अत्यारे गुजरातीमां 'झीणुं, बारीक' एवा अर्थमां प्रयोजाय छे, पण संस्कृत-प्राकृतमां ' अच्छ' एटले 'सुंदर, निर्मल' एवा अर्थो छे. हिंदीमां ' अच्छु' शब्द 'सुंदर, सरस' एवा अर्थमां छे ए जाणीतुं छे अने राजस्थानी कोश पण 'आछौ' ना 'अच्छा, सुंदर, भला, उत्तम' एवा अर्थो नोंघे छे, 'बारीक, झीणुं' एवो अर्थ नहीं. मध्यकालीन गुजरातीमां पण आ शब्द 'सरस, सुंदर' ना अर्थमां होय एवं जणाय छे. नरपतिकृत 'वीसलदेव रास' (संपा. ज्हॉन डी. स्मिथ) मां 'आछउ' शब्दनो 'good, fine' (सरस, सुंदर) एवो अर्थ ज लेवायेलो छे. त्यां आछि गोरी, आछा चावल एवा प्रयोगो मळे छे ते आ अर्थनुं समर्थन करे छे. परंतु तेरका. (संपा. हरिवल्लभ भायाणी) मां 'अच्छय' शब्दनो 'आछु' अर्थ अपायेलो छे. अति अच्छउं सुकुमाल चीरु एवी उक्तिने संदर्भे अपायो छे एटले 'आछु' नो अत्यारे प्रचलित 'बारीक, झीगुं' ए अर्थ ज अभिप्रेत होवानुं मानी शकाय . प्राचीफा. मां पण 'आछउं 'नो 'झीणुं' अर्थ अपायेलो छे. एमां पण आ वस्त्रनुं विशेषण ज छे अतिआछउ सुकमाल चीरु, आछां अंबर. म लागे छे के मध्यकालीन गुजरातीमां वस्त्र संदर्भे पण 'आछु'नो 'सरस, सुंदर' एमज अर्थ होवो जोईए. उपरना संदर्भोमां बारीक वस्त्रनी कोई प्रस्तुतता नथी. 'वर्णकसमुच्चय' (संपा. भोगीलाल सांडेसरा ) मां सामान्य सूचना रूपे अच्छा कपड़ा पहरियइ एवी उक्ति मळे छे तेमां 'सुंदर, सरस' अर्थ ज लेवानो रहे छे. 'माल निगद' (कोई खाद्य पदार्थ) ने आछु कहेल छे त्यां पण 'बारीक' अर्थने अवकाश नथी, 'सुंदर' अर्थ ज लेवो जोईए. [कंकावटी] १३. अज उभां सिंहा (शा). मां एक पंक्ति आ प्रमाणे मळे छे : अज उभां लें जे दान, मागण जांणि नवी द्ये मान. 2010_03 Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश . ५७७ . थोडी शब्दार्थचर्चा संपादके शब्दकोशमा 'अज' शब्द आपी एनी सामे प्रश्नार्थ मूक्यो छे. भगवद्गोमंडलमा 'अज केडे' शब्द मळे छे, जेनो अर्थ हे 'हवे पछी'. ते बतावे छे के 'अज' शब्द 'आज' माटे वपराय छे. 'आज'चें मूळ 'अद्य' एटले 'अत्यारे, 'हमणां'. तो 'अज उभां' एटले 'अत्यारे ज' 'ऊभाऊभ' एम अर्थ न होई शके ? पापयादीना वर्णनमां आ पंक्ति आवे छे एटले 'अत्यारे ज' 'ऊभाऊभ'नुं तात्पर्य 'हठ करीने' एवं घटावी शकाय : "जे ऊभाऊभ, हठ करीने दान ले ते पाप अने दान आपनार लेनारने मागण समजीने मान न आपे ते पण पाप." १४. अजंण मदमो.मां एक पंक्ति आ प्रमाणे मळे छ : अंन, नीर, नीद्रा नहीं, अजण आठु जांम. संपादके 'अजंण'नो अर्थ 'अजीर्ण, अजंपो' आप्यो छे. जेने रक्तपित्त थयो छे एवा माणसनी मनोवेदनानु आ वर्णन छे, एटले 'अजीर्ण' एवा अर्थने तो अवकाश ज नथी. कदाच 'अजंण' शब्द 'अजीर्ण माथी आव्यो होवानी संभावना लेखे ज ए नोंध्यो होय, केमके 'अजंपो' अर्थ तो संदर्भमां बराबर बेसी जाय छे. उर्दू कोश अरबी 'अज्न' शब्द 'गूंदवू, खमीर करवु' एवा अर्थमां नोंधे छे. 'अजंण' शब्द एना परथी आव्यो होवानी संभावना छे. 'अजंण' एटले 'वलोवाट, अस्वस्थता, अजंपो' : आठे पहोर अजंपो, वलवाट. १५. अडसाला/अडसीला नेमिछं.मां नीचे प्रमाणे पंक्ति मळे छ : हिवइ थाउ ढीला, अति अडसीला किम न थईई देव. संपादके 'अडसीला'नो अर्थ 'आडा शीलवाळा' आप्यो छो जे भाग्ये ज संतोषकारक गणाय. 'राजस्थानी सबदकोस' 'अडसाला' शब्द 'हठीला'ना अर्थमां नोंधे छे. अहीं 'अडसीला'नो 'हठीला' ए अर्थ बराबर बंधबेसतो आवे छे. 'अडी बेसबुं' एटले 'हठ करवी, जीद करवी' ए जाणीतो शब्दप्रयोग छे. नेमिछं.नी प्रस्तुत पंक्तिमा प्रास ‘अडसीला' शब्द ज मागे, 'अडसाला' नहीं, अने 'सील' (शील) एक सार्थक घटक बने छे, तेथी 'अडसीला'ने भ्रष्ट पाठ मानी शकाय तेम नथी. एटले 'अडसाला' (जो ए शब्दमां भूल न थई होय तो) उपरांत 'अडसीला' शब्द 'हठीला'ना अर्थमां आपणे स्वीकारवानो रहे : "देव, बहु हठीला न थईए." १६. अणगाल/अगाल देहलकृत अभिऊ.मां नीचे प्रमाणे पंक्ति मळे छ : जेहनि घरि भाजि अणगाल, तेहना सामि विना सूनो संसार. ___ 2010_03 Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५७८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश संपादके 'अणगाल'नो अर्थ 'पुष्कळ' आप्यो छे अने सं. 'अनर्गल'मांथी एनी व्युत्पत्ति बतावी छे. 'अनर्गल'मांथी 'अणगाल' न आवी शके एटले 'अणगाल'ना 'पुष्कळ' एवा अर्थने माटे आधार रहेतो नथी. प्राकृत कोश 'अणगाल' शब्द 'दुर्भिक्ष, अकाल'ना अर्थमां नोंधे छे ते ज अहीं होवानो संभव छे. अलबत्त, अहीं 'अकाल' एटले 'खराब समय, माठी दशा' एवो कंईक अर्थ करवो पडे : "जेना घरे खराब समये बधु नष्ट कयुं छे, तेनो स्वामी विना सूनो संसार छे. " मध्यकाळमां 'अगाल' शब्द अकाल, अयोग्य समय, कवखत एवा अर्थोमां वपरायेलो मळे ज छे. जेमके प्राचीफा. अंतर्गत 'विरह देसाउरी फागु'मां फागुणि घरि प्रीय मेल्हए, यौवन पहलिइ अगालि. (फागणमां प्रियतमे मने घरमा एकली छोडी दीधी, कवखते, ताजी युवावस्थामां.) 'अगाल'मां 'अ+काल' छे, 'अणगाल'मां 'अन्+काल' छे. १७. अणाथ, अणाथि, आथ, आथि, आथ्य ललिरा.मां नीचे मुजब पंक्ति आवे छे : जु हुइ अणायि घरि, तु जईई परदेसि. संपादकोए 'अणाथि'नो अर्थ 'अनाथ' आप्यो छे, जे खोटो छे. 'अनाथ' परथी तो 'अणाह' आवे, 'थ' पण टके नहीं. मध्यकाळमां 'अणाह' शब्द वपरायेलो मळे ज छे. 'अणाथि' शब्द तो 'अन्+अस्ति' परथी आव्यो छे, अर्थ छे 'कई न होवू ते, दारित्र्य, गरीबी'. उपर्युक्त पंक्तिमा ए अर्थ स्पष्ट छ : जो घरमां दारिद्र्य होय तो परदेशे जईए. 'अणाथ', 'अणाथि' ए शब्दो 'दारिद्र्य, गरीबी के दरिद्र, गरीब' एवा अर्थमां अने 'आथ', 'आथि', 'आथ्य' ए शब्दो 'पूंजी, समृद्धि, धनसंपत्ति' एवा अर्थमां मध्यकाळमां व्यापक रीते प्रयोजायेल मळे छे. जेमके, दशस्कं-१.मां - घरमां अणाव व्यापी सर्वत्र. (घरमां बधे दारिद्र्य व्यापेखें हतुं.) नंदब.मां - अणाथने शी आथ्य (दरिद्रने शी संपत्ति ?) गुण माटइ आय सहू लहइ. (गुणने कारणे सहु समृद्धि पामे छे.) आ छेल्ला ग्रंथमां 'आय'नो 'अर्थ, समृद्धि' एम अर्थ आप्यो छे तेमां 'आथ' शब्द 'अर्थ' परथी आव्यो होवानुं मनायुं लागे छे, जे साचुं नथी. 2010_03 Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश. ५७९ थोडी शब्दार्थचर्चा १८. अणिख देहलकृत अभिऊ.मां सांढणीना वर्णनमां नीचे प्रमाणे उक्ति आवे छे : . __ अणिख तणखा कानि. संपादके अणिखनो अर्थ 'दोडती वखते आंख बंध करी होय तेवी' एम आपे छे अने एनी व्युत्पत्ति सं. 'अनीक्ष्'माथी बतावे छे. अर्थ अने व्युत्पत्ति बन्ने शंकास्पद लागे छे. अहीं आंखनुं नहीं पण केवळ काननुं वर्णन होय एवं लागे छे. 'कानमां अणिख तणखा छे' एवो अन्वय जणाय छे. अरबीमां 'अनीक' शब्द छ जेनो अर्थ छे 'सुंदर, अद्भुत'; राजस्थानीमां 'अणिख' शब्द छे जेनो अर्थ छे 'भयानक, तेजस्वी'. अहीं आवो कोईक अर्थ होवानी संभावना छे: काने सुंदर/तेजस्वी तणखा छे. 'तणखा' एटले शुं ए पण कोयडो छे. संपादके ए शब्दने अग्निना तणखाना अर्थमां लीधो छ, पण ए भाग्ये ज बंध बेसे. काननी ए कोईक लाक्षणिकता होवानो संभव छे. छेवटे आ वर्णन अस्पष्ट ज रहे छे एम कहेवू पडे. १९. अणिअ/अणीय आखइ लावल.-अंतर्गत 'स्थूलिभद्र एकवीसो'मां नीचे मुजब पंक्ति आवे छे : मझ अणीय आंखइ प्रीय पाखइ, विरहि दाझइ देहडउ. संपादके 'अणीय आंखइ'नो अर्थ 'अणियाळी आंखे' एवो आप्यो छे, पण ए 'अणीआलि आखइ' एवा पाठांतरथी दोरवाया लागे छे. विरहिणी कोशानी आ उक्ति छे अने विरहभावनी अभिव्यक्तिमा अणियाळी आंखनुं कई प्रयोजन नथी. खरेखर तो 'आंखइ'ने स्थाने 'आखइ' एटलुं ज पाठांतर लेवा जे, हतुं. 'अणीय आखइ' एटले आखी अणीए, अखंडपणे, संपूर्णपणे. उपर्युक्त पंक्तिनो अर्थ आवो कईक थाय : "प्रियतम विना मारो देह संपूर्णपणे/अखंडपणे विरहथी दाझे छे." .. ए नोंधपात्र छे के आ ज ग्रंथमां एक बीजी कृति 'चोवीस जिन स्तवन'मां 'अणिय आखइ' एवो शब्दप्रयोग मळे छे अने संपादके एनो अर्थ 'आखी अणीए, अंणीशुद्ध' एवो आप्यो छे. 'अखंडपणे, पूरेपूरा' एवो अर्थ बराबर बेसे छे : पुरुष अणिअ आखइ, सौख्य ते चंग चाखइ, (पुरुष ए सुंदर सुखो अखंडपणे चाखे छे.) २०. अणीसर विक्ररा.मां युद्धवर्णनमां आ प्रमाणे पंक्ति मळे छे : फोडी अणीसर जरह जरद सवि तन तीर जडंती. संपादके 'अणीसर'नो अर्थ 'अणीदार' आप्यो छे. ए रीते ए जरह, जरद - जे बख्तरनां नामो छे - तेनुं विशेषण बने. पण बख्तरने अणीदार केवी रीते कही शकाय 2010_03 Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५८० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ? तीरने कही शकाय पण ए शब्द तो पंक्तिमां घणो दूर छे अने एनी साथे 'अणीसर' नो अन्वय करवो मुश्केल छे. वस्तुतः भगवद्गोमंडल 'अणीसर' नो अर्थ 'आरपार' आपे छे ने एना समर्थनमां नीचेनुं उदाहरण 'बुद्धिप्रकाश' मांथी आपे छे : कंठ [कठ] चंदण कोर्यां भमार पड्यां अणीसर एह. (चंदनकाष्ठ कोर्यां अने एनी आरपार काणां पड्यां.) विक्ररा.मांनी पंक्तिमा आ अर्थ बंधबेसतो थाय छे : जरह जरद ए बख्तरोने आरपार वींधीने तीर शरीर साथे जडाय छे. गुर्जरा. - अंतर्गत हीराणंदकृत 'विद्याविलास पवाडउ 'मां पण आ शब्द वपरायेलो छे : फोडइ पक्खर जरद अणीसर तीरइ तीर पडंति. (पाखर अने जरदने आरपार वींधे छे अने तीर उपर तीर पडे छे.) २१. अणू, अणूरति नेमिछं. मां नीचे प्रमाणे पंक्ति मळे छे : हुं सदा अणूरी, एक न पूरी तई पुहुचाडी आस. संपादके 'अणूरी' नो अर्थ 'दासी, पत्नी' एवो आप्यो छे, अने एना मूळमां सं 'अनुचरी' शब्द मान्यो छे. पण मध्यकाळमां 'अणूरुं' शब्द व्यापक रीते 'अधूरुं, ओछु, न्यून' एवा अर्थमां वपरायेलो मळे छे अने भगवद्गोमंडले आ अर्थमां आ शब्द नोंध्यो पण छे. त्यां ‘कान्हडदेप्रबंध' मांथी पंक्ति पण उद्धृत थई छे. अन्यत्र आ शब्द वपरायेलो छे. तेनां उदाहरण जुओ : आरारा. अंतर्गत पूंजाऋषिकृत 'आरामशोभाचरित्र' मां पीहरनी वांछा करइ, नही अणूं तांह. (पियरमांथी कई इच्छे एवं त्यां कई ओछु नथी.) विमप्र.मां - किसिउं अणूंरूं ताहरइ स्वामि . (तारा स्वामीने शुं ओखुं छे ?) गुर्जरा. - अंतर्गत शालिसूरिकृत 'विराटपर्व' मां एतलई अति पराभव पूरी, एक दासपण चित्त अणूरी. (एक तो दासपणाने लीधे जेने मनमां ओटुं आव्युं हतुं / जे असंतुष्ट हती एवी ए हती, तेमां अति अपमानथी ए भराई . ) गुर्जरा. ना संपादकोए 'अणूरी'नो' अर्थ 'unfulfilled, unsatisfied’ (वणपुरायेली इच्छाओवाळी, असंतुष्ट ) एवो अर्थ आप्यो छे ए संदर्भमां अत्यंत उचित 2010_03 Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश थोडी शब्दार्थचर्चा छे. ए ज अर्थ नेमिछं.नी उपर्युक्त पंक्तिमां बंध बेसे छे : "हुं सदा वणपुरायेली इच्छावाळी रही. तें मारी एक पण आशा पूरी न करी." असंतुष्ट, कर्कशा स्त्रीनो ज आ उद्गार छे. भगवद्गोमंडलमां उद्धृत थयेली पद्मनाभकृत 'कान्हडदेप्रबंध मांनी पंक्ति आ प्रमाणे छे : लागुं वली अणूरुं मानि, जोतां आवइ मरण निदानि. वीरमदेवनुं कपायेलुं मस्तक अल्लाउद्दीननी पुत्री पिरोजा समक्ष आवे छे त्यारे एना रूप पर ए वारी जाय छे। अने पछी आ उद्गार करे छे. कान्तिलाल ब. व्यासे पोताना संपादनमां आ पंक्तिनो अर्थ आम कर्यो छे : " (एने जोतां) वळी मनमां (कांईक) जुदो ज (अणूरुं; सर. अणु-अन्यत्, प्रा.गु.का.सं.) भास थाय छे (लागु) के (जो) तेने (तां) (वीरमदेने ) ( सर. पाठान्तर जे तां) खरेखर (निदानि) मरण आप्युं छे ( के केम) ! (एटलुं तेज अने ताजगी मुख पर हती ! ) " - व्यासना अनुवादनी मुश्केलीओ स्पष्ट छे 'मानि'ने 'मनि' तरीके लेवुं पड्युं छे, 'अणूरुं' ने स्थाने 'अणु'नी कल्पना करवी पडी छे वगेरे. संदर्भमां पंक्ति कंईक अस्पष्ट तो रहे ज छे, छतां 'अणूरुं' शब्द तो एना प्रचलित अर्थमां ज अहीं छे एमां शंका नथी. वीरमदेवे पिरोजानुं मोढुं जोवा इनकार कर्यो हतो ते याद करी पिरोजा अत्यारे, आ उद्गार पछी टोणो मारे छे के “वीर पुरुषे जे वचन लीधुं हतुं के कुंवरीनुं मोढुं नहीं जोउं तेनो ते भंग करी रह्या छे. जे सुकुलीन साहसिक पुरुष होय छे ते मरण समये पण पोतानुं मान मूकता नथी." ए जोतां आ पंक्तिनो अर्थ आम होवानो संभव लागे छे : “पण (ए मस्तक) मान परत्वे ऊणुं लाग्युं. ए जोतां मरण नक्की आव्युं छे.” आ अर्थ दुराकृष्ट लागे तो "वळी ओष्टुं आव्युं छे एम माने छे" एदी कंईक अर्थ लेवो जोईए. ५८१ 'अणूरुं'ना मूळमां सं. 'अन्+ पूर्' छे. आनुं संज्ञारूप 'अणूरति' (सं. 'अन्+ पूर्ति') पण समयप्रमोदकृत ‘आरामशोभा चोपाई' मां वपरायेलुं मळे छे : किसीय अणूरति तास. (एने शी न्यूनता / खोट छे ? ) 2010_03 षडाबा. मां नीचे प्रमाणेना एकथी वधु प्रश्नोत्तर मळे छे : " छम्मास उत्कृष्टु तपु रे जीव ! करी सकइ ?" "अत न सकुं. संपादक प्रबोध पंडिते 'अत'ना 'now, here' एवा अर्थो आप्या छे ने आ "} २२. अत Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घोडी शब्दार्थचर्चा ५८२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश शब्द सं. अत्र' परथी आवेलो मान्यो छे. 'अहीं' अर्थ लईए तोपण एर्नु तात्पर्य 'आ बाबतमां' एम छे एवं समजवू जोईए. पण 'अत' सं.'अत्र' परथी आवेलो मानवो योग्य छे के केम ते प्रश्न छे. संस्कृतमां 'उत' संदेहवाचक, अनिश्चिततावाचक छे तेना परथी पण 'अत' आवी शके अने ए अर्थ आ संदर्भमां बराबर बंधबेसतो आवे छे : "कदाच न करी शकुं." एम लागे छे के 'कदाच' अर्थ ज लेवो जोईए. २३. अतिधज विक्ररा.मां नीचे प्रमाणे पंक्ति मळे छे : अतिषय मांडइ शत्रुकार. संपादके 'अतिधज'नो 'पैसादार' एवो अर्थ आप्यो छे. ए 'कोटिध्वज' शब्दथी दोरवाया लागे छे. पण 'शत्रुकार' (सदाव्रत, अन्नदानशाला) पैसादार केवी रीते होई शके ? 'ध्वज' शब्द उत्तुंगतानुं सूचन करे, कदाच समृद्धि- पण. परंतु अहीं 'अतिधज' एटले 'भारे मोटो, भव्य एवो ज कंईक अर्थ लेवो जोईए. २४. अतिसंता ऋषिरा.मां नीचे मुजब पंक्तिओ मळे छ : निज करइ जे तरू रोपीया, पीऊ साथि आवंतां, ते तरू दीग नयणले, नव सा थई अतिसंता. संपादके 'अतिसंता'नो अर्थ 'अत्यंत थाकेल' आप्यो छे ने एनी व्युत्पत्ति सं. 'अतिश्रान्त'मांथी बतावी छे. व्युत्पत्ति तो बराबर छे, पण अर्थ संदर्भमां संगत थतो नथी. जे वृक्षोने पोते रोप्या हता तेने जोतां ऋषिदत्ताने थाक लागे ? के सारुं लागे ? 'अतिसंता' (अतिश्रान्त) एटले 'विश्रांत, अत्यंत आराम पामेल' एवो अर्थ ज लेवो जोईए. २५. अधरास, ओलव, ऊलवq नरसिंहना एक पदमां नीचे मुजबनी पंक्ति मळे छे : कालिंदीने कांठडे वाले ओलवियो अघरास रे. नरका.ना संपादके 'अधरस'ना बे अर्थो आप्या छे - (१) नीचेनो भाग (सं. अधःअंश) अने (२) अधरनो भाग; अने 'ओलवियो'नो 'पचावी पाड्यो, संताड्यो' एवो अर्थ आप्यो छे. नरप.ना संपादके 'अधरास'नो 'रासलीलामां' एवो अर्थ आप्यो छे अने एमां सं.'अधिरास' शब्द होवानुं मान्युं छे. तथा 'ओलवियो'नो 'कह्यु' एवो अर्थ आपी एनी व्युत्पत्ति सं. उद्लप्'मांथी बतावी छे. देखीती रीते ज 'ओलवियो अधरास' ए वर्णन आ बन्ने अर्थघटनोमां अस्पष्ट ज रहे छे. "नीचेनो भाग/अधरनो भाग पचावी पाड्यो/संताड्यो' ए अर्थ घणो कढंगो छे अने 'रासलीलामां कह्यु' ए 2010_03 Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५८३ अर्थने प्रस्तुत वर्णनमां केवी रीते स्थान आपवुं ते कोयडो रहे छे. वस्तुतः आ कालिंदीने कांठडे कृष्णे गोपीनी करेली छेडछाडनुं, शृंगारक्रीडानुं वर्णन छे. तेथी 'अधरास' ए 'अधरासव' ने स्थाने आवेलो शब्द होवानो संभव छे एवं डॉ. भायाणीए मने सूचन कर्यं ते वाजबी लागे छे. 'ओलववुं' शब्द मध्यकाळमां 'छुपावुं, संताडवुं' एवा अर्थमां जोवा मळे छे ते उपरांत 'ओळववुं' शब्द 'पचावी पाडवुं, लई लेवुं, चोरी लेवुं' एवा अर्थमां अत्यारे पण प्रचलित छे. सं. 'अपलप्' एटले 'छुपाववुं', मांथी 'चोरीछूपीथी लई लेवुं' एवो अर्थ आवी शके. आ रीते 'ओलवियो अधरास 'नो अर्थ आम थई शके : अधरासव एटले के अधररस चोरी लीधो / बळात्कारे लीधो / झुंटवी लीधो. 'ऊलववुं' / 'ओलववुं' शब्द वधारे तो 'छुपाववुं, संताडवं'ना अर्थमां मध्यकाळमां वपरायो छे. जेमके, अंबरा. मां (१) सइयाणी आगलि तूं पेट सिउ उलवइ. (२) अलूक परइ ऊलवइ आप. संपादके ‘संताडे, छुपावे' एवो अर्थ आप्यो छे ते बराबर बेसी जाय छे : (१) सुयाणी आगळ तुं पेट शुं छुपावे छे ? (२) घूवडनी पेटे पोतानी जातने संताडे छे. सिंहा (म).मां देवदत्त मनि सुप्रमाण, मनशुधिइ करइ वखाण. कइ कारिमु परीक्षा भणी, राजकुयर उलवीउ मति घणी. संपादके 'छुपाववुं, संताडवं' एवो अर्थ आप्यो छे ते योग्य छे : "देवदत्ते मनमां विचार्य के राजा खरा मनथी वखाण करे छे के खोटेखोटा ? एनी परीक्षा करवाए घणी बुद्धिथी राजकुंवरने संताडी दीधो. " वाग्भबा.मां - थोडी शब्दार्थचर्चा - जिहां सादृश्य शरखाइतु अपह्नव उलविवापूर्वक इंसिउं बोलीइ. संपादक भोगीलाल सांडेसराए 'अपह्नुतिपूर्वक, ढांकवा साथे' एवो अर्थ आप्यो छे ते मूळमां ज छे एम कहेवाय : "ज्यां सादृश्यने कारणे अपह्नवपूर्वक एटले ढांकीने आम कहेवामां आवे . " गुर्जरा. - अंतर्गत शालिसूरिकृत 'विराटपर्व' मां मरण नई भइ गिउ मझ भोलवी, किस्यूं किह्यां उरतु हिव ओलवी. संपादकोए 'assuage, cool down' (शांत करवुं, ठारवुं) एवो अर्थ आप्यो छे पण आ भ्रष्ट पाठनुं परिणाम छे. संपादकोने पाठ 'उर' मळ्यो छे तेनुं तेमणे 'उरतु' 2010_03 Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५८४ ५८४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश कर्यु छे. विराप.मां पाठ आ प्रमाणे छे : किसउं क्यांह रिाउ अह ओलवी. संपादकोए 'छुपावी' अर्थ आप्यो छे ते बराबर बेसे छे : "हवे शुं क्यांक पोतानी जातने छुपावीने रह्यो छे ?" मध्यकाळमां आ शब्द 'पचावी पाडवू, चोरीथी लई लेवु' एवा अर्थमां पण अन्यत्र वपरायो छे ज. जेमके, नलरा.मां - कहिनी वस्तु न जाय उलवी. संपादके 'खोटी रीते पचावी पाडवु एवो अर्थ आप्यो छे ते यथायोग्य छ : "(नळना राज्यमां) कोईनी वस्तु ओळवी/पचावी पाडी शकाती नथी." आ शब्द 'लोप करवो, द्रोह करवो' एवी जरा .जुदी अर्थछायामां पण वपरायो छे ए खास नोंधपात्र छे. जेमके आनंस्त.मां शासनमार्गनइ उलवइ एम उक्ति छे त्यां शासनमार्गनो लोप | द्रोह करवानो अर्थ छे. संपादके 'लोप करे' एवो अर्थ आप्यो ज छे. उपबा.मां साधुमार्गने तथा गुरुने ओळववानी वात छे त्यां पण ए ज अर्थ छे, अने संपादके ए अर्थ लीधो छे. हरिफा.मां गिउ हरि उलवी एवी उक्ति आवे छे तेमां संपादके आपेलो 'संताई' ए अर्थ शंकास्पद लागे छे, केमके मध्यकाळमां 'ऊलवq' / 'ओलवधू' एटले 'संतावु' नहीं, पण 'संताडवु' एवो अर्थ व्यापकपणे छे. अहीं द्रोह करवो एटलेके छेतरवू एवो अर्थ होवा संभव छ : "हरि अमारो द्रोह करी / अमने छेतरीने चाल्यो गयो." [एतद्, एप्रिल-जून, १९९४] २६. अनिवड, निवड आरारा.मां 'अनिवड' शब्द आ प्रमाणे वपरायेलो मळे छ : मत घउ कोई पासे अनिवड आईवा रे.. संपादके सं. 'अनिवर्तमांथी व्युत्पत्ति सूचवी ‘अनिवड'नो अर्थ 'साव? एकदम ?' एम नोंध्यो छे. देखीती रीते ज, संदर्भमां कंईक बेसी शके तेवा अर्थनो तर्क करवामां आव्यो छे. मूळ तरीके दर्शावेल सं. अनिवर्त' आवो अर्थ भाग्ये ज आपी शके. जिनरा.मां 'अनिवड' शब्द अनेक वार वपरायो मळे छे. जेमके, (१) अनिवड थातां वार न लागइ जे सगा.. (२) न कहइ फेरि वचन जउ किसा, तई अनिवड जाणी तो दिसा, 2010_03 Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५८५ थोडी शब्दार्थचर्चा दीसउ वड वयरागि जिसा, ए वइराग कहउ किण मिसा. (३) पलकमांहि अनिवड हुअउ रे, तिण तुझनइ साबासि रे. (४) सीख करै वाटै मिल्या रे, वीछडवानी वार, ते तो अह्म सुं सीख न का करी रे, अनिवड जेम विचार. संपादके 'अनिवड' शब्द शब्दकोशमां नोंध्यो छे, पण एनो अर्थ आप्यो नथी. जिनरा.मां 'निवड' शब्द पण वपरायो छ : (१) वात कहइ जे पापनी, तिण साथइ हो करुं निवड सनेह. (२) बगसि गुनह ए बापजी, हिव मो सुं हो धरि निवड सनेह. (३) जेह सुं निवड सनेह ते तउ वीसार्या नवि वीसरइ. एम लागे छे के 'निवड'ना प्रयोगो ज चावीरूप बने तेवा छे. बधे 'निवड' 'स्नेह'नुं विशेषण छे. त्रीजं दृष्टांत 'गाढ, ऊंडो' एवो अर्थ स्पष्ट रीते आपे छ : "जेना प्रत्ये गाढ/ऊंडो स्नेह होय ते विसार्या वीसरता नथी." पहेलां बे दृष्टांतोमां पण ए अर्थ निर्विघ्ने लई शकाय छे. ए बन्ने पंक्तिओ प्रभुप्रार्थनाना पदमांथी छे. पहेली पंक्तिमा पोते पाप साथे ऊंडो स्नेह कर्यो हतो तेनो उल्लेख छे, बीजी पंक्तिमा तीर्थंकरदेवनो ऊंडो स्नेह पार्यो छे. _ 'निवड' शब्द 'निकट'मांथी आव्यो होवानो तर्क थई शके. प्राकृत कोश 'णिअड (निकट)' शब्द 'पासे, पासेनु' एवा अर्थमां नोंधे छे. जो आ बराबर होय तो 'निवड' एटले 'निकटनो, आत्मीय, गाढ' एवो अर्थ लेवानुं खोटुं न कहेवाय. अने 'अनिवड'नो 'दूरनु, अनात्मीय' एवो अर्थ थाय. ए नोंधपात्र छे के 'निवड'नी पेठे 'अनिवड' स्नेहना विशेषण तरीके क्यांय वपरायेलो नथी. ए एकलो ज वपरायो छे. एथी एमां 'अनात्मीय' उपरांत 'पराया' 'निःस्नेही' एवा अर्थने पण अवकाश जणाय छे. जेमके, (१) जे सगा छे तेमने अनात्मीय / पराया थतां वार लागती नथी. (३) पलकमां अनात्मीय / परायो | निःस्नेही थई गयो छे ते माटे तने शाबाशी घटे छे. (मातानुं दीक्षा लेवा तैयार थयेल पुत्र प्रत्येनुं आ व्यंगवचन छे.) (४) जुदा थवाने प्रसंगे रस्ते मळी गयेला लोको पण विदाय मागे छे । रजा मागे छे तो अमारी केम विदाय / रजा न मागी अने आम पराया | निःस्नेहनी जेम विचार कर्यो ? बीजा उदाहरणना अन्वयो बराबर स्पष्ट थता नथी, पण एमां ‘अनिवड'नो आवो ज अर्थ लेवानो रहे. [डॉ. भायाणीए, पछी, 'निवड'नी व्युत्पत्ति सं. 'निबिड'माथी दर्शावी. पण 2010_03 Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५८६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अर्थघटन तो एमनुं एम ज रहे छे.] २७. अनुभाव, अनु भाव गुर्जरा.मां 'अनुभाव' शब्द आ प्रमाणे वपरायो छ : वाजइ तूर अनाहत, नाह तणइ अनुभावि, आणइ एक अनेकप, एक पलाणइं वाहु. संपादकोए 'अनुभाव'नो 'by the dignity, by the authority' (गौरवथी, अधिकारथी/सत्ताथी) एवो अर्थ आप्यो छे. प्रसंग नेमिनाथना वरघोडानो छे. एमां 'अधिकार के सत्ता'नो अर्थ प्रस्तुत जणातो नथी, केमके नेमिनाथ राजवी नथी, राजकुमार छे. एना करतां 'गौरव, महिमा' एवो अर्थ वधु प्रस्तुत बने तेवो छे. त्यां पण 'गौरवथी' नहीं पण 'गौरवमां, गौरव अर्थे' एम अन्वय वधु उचित लागे छ : "नाथना गौरव के महिमाने अर्थे शरणाइ वागे छे" वगेरे. आनंस्त.मां पण 'अनुभाव' शब्द मळे छ : भवोभवथी अभिनव ए द्रव्यथी अनुभाक्थी ते कहीइ छइ. संपादके 'अनुभाव'नो 'कर्मनो विपाक' एवो अर्थ आप्यो छे, पण अहीं पाठy वाचन ज दोषयुक्त होय एवु लागे छे. स्तवननी जे पंक्तिनी समजूती तरीके आ वाक्य आवे छे ते पंक्ति आ प्रमाणे छे : । भविभवि रे द्रव्य भावथी भाखीइ रे.. जोई शकाय छे के मूळमां 'अनुभाव' नथी, 'द्रव्य' अने 'भाव' छे, एटले विवरणना 'अनुभाव' शब्दने 'अनु भाव' तरीके वांचवो जोईए. 'अनु' एटले 'अने'. 'अनु' आ अर्थमां मध्यकालीन साहित्यमा वारंवार वपरायो छे. जेमके, गुर्जरा.मां - पणमीउ सामीउ नेमिनाहु अनु अंबिकि माडी सवे सलक्खण रूयवंत अनु कंचणवन्नि * सीसि चमर बंबाल अनु कंठि कुसुमह माल. २८. अप्रमाण गुर्जरा.मां आ शब्द आ रीते वपरायेलो मळे छ : तिमि खिण मेल्हिउं वणचरि बाणुं, ऊडिउं गयणि हूउं अप्रमाणु. संपादकोए 'अप्रमाण'नो अर्थ 'unknowable, invisible' (अज्ञेय, अदृश्य) एवो आप्यो छे. बाण आकाशमां गयुं तेथी अदृश्य थई गयुं एम तेमणे घटाव्यु लागे छे. पण 'अप्रमाण'नो आवो अर्थ लेवा माटे कोई आधार जणातो नथी. 'अप्रमाण' एटले 'असिद्ध', अहीं 'निष्फळ, नकामुं' : "ते क्षणे वनचरे बाण छोड्यु. ते आकाशमां गयुं ने तेथी निष्फळ नीवड्युं." ___ 2010_03 Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५८७ . घोडी शब्दार्थों आरारा.मां पण आ शब्द वपरायेलो मळे छे: __ वहिली नावि तु तुं जाणि, मइ तुझ दीठउ अप्रमाण. संपादके 'अप्रमाण'नो 'असिद्ध' एवो अर्थ आप्यो छे. अहीं 'असिद्ध' एटले 'अशक्य, असंभवित' : "वहेली न आवे तो तने हुं जोई शकुंते तुं अशक्य/असंभवित जाणजे (एटले के हुं-तुं मळी शकीशुं नहीं)." २९. अबाह गुर्जरा.मां 'अबाह' शब्द आ प्रमाणे वपरायेलो छे : - तापिइं पीडिउ विलवइ अवाह. संपादकोए 'अबाह'ना मूळमां 'बाह' शब्द मानी एनो अर्थ 'without hands' (हाथ विना) एवो आप्यो छे. आ अर्थ अहीं असंगत छे ते सहेलाईथी समजाय एवं छे. रडवानुं वळी बाहु विनानुं केQ ? ए स्पष्ट छे के 'अबाध परथी 'अबाह' आवेलो छे ने एनो अर्थ थाय 'अंतराय विना, अत्यंत, खूब' : "तापथी पीडवामां आवेलो ते खूब विलपे छे." ए नवाईनी वात छे के अन्यत्र ‘अबाहु' शब्द वपरायेलो छे त्यां संपादकोए एने 'अबाध'मांथी व्युत्पन्न करी एनो 'without obstacle, freely' (अन्तराय विना, विघ्न विना, मुक्तपणे) एवो अर्थ आप्यो छे. निर्दिष्ट प्रयोगो आ प्रमाणे छ : (१) पांचि पंचाले लिउ सनाहु, आविउ घडूउ कूयरु अबाहु. (२) धाइं धसई ते ऊधसई, विलसइं हसइं अबाहु. बीजा उदाहरणमां 'मुक्तपणे' अर्थ चाली शके तेम छे पण 'अन्तराय विना' एटले 'खूब' ए अर्थ पण करी शकाय : "मुक्तपणे/खूब हसे छे." पण पहेला उदाहरणमां ए अर्थ योग्य रीते बंध बेसशे नहीं. त्यां 'अबाहु' कुंवर घटोत्कचनुं विशेषण छे. एटले 'जेने कशी अंतराय नडतो नथी एवो वीरपुरुष, अप्रतिरोध्य' एवो कंईक अर्थ लेवो जोईए एम लागे छे : "अप्रतिरोध्य घटोत्कच कुंवर आव्यो." ३०. अभोखउ, आभोखउ, अभोखण, अभोखj, अंबोषण, अबोखण विक्रच.मां 'अभोखु' शब्द आम वपरायेलो छ : खापरउ जाम पहुतु बारि, दीयउ अभोतु पाणीधारि. संपादके 'अभोखुनो 'अपोषण' अर्थ आप्यो छे. 'अपोषण' (सं.आपोशान) एटले जमती वखते, आरंभे के अंते आचमन लेवू ते. अहीं ए अर्थ केवी रीते संगत बने? भोजन प्रसंग तो अहीं छे ज नहीं. खापरो बारणे आवे छे त्यारे तेना करवामां आवता सत्कार- अहीं वर्णन छे, जेमां पाणीनी धाराथी 'अभोखु' आपवामां आव्यु एम कहेवामां आव्युं छे. ए वर्णन आचमन साथे बंध बेसे नहीं. ____ 2010_03 Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ए नोंधपात्र छे के उक्तिर. 'अभोखउ' (तेमज 'अभोखणं') शब्दनो अर्थ 'अभ्युक्षणम्' आपे छे, जेनो अर्थ थाय छे 'सिंचन, छंटकाव'. वणी अन्य कृतिओमां 'अभोखण' शब्द वपरायेलो मळे छे त्यां बधे सत्कारनो प्रसंगसंदर्भ छे. सत्कारमां पाणीथी पण धोवानी प्रणालिका जूना समयमां हती. तेथी अहीं 'अभोखुं' एटले 'सत्कार रूपे पाणीनुं सिंचन' एवो अर्थ ज लेवो जोईए. अन्य प्रयोगो आ प्रमाणे छे ; विमप्र.मां -- सोवन करवी दीइ अभोखण, साजण हरखि भरिया. संपादके 'आवकार' अर्थ आप्यो छे, पण "सुवर्णनी झारीथी पाणी सींचे छे” एवो अर्थ स्पष्ट छे. - लावल.मां - ५८८ मनि विण अयोजन दि घणां, वीरमती मेल्हइ बेसणां. संपादके 'अभोखण' नुं मूळ सं. 'अम्भोष्ण' मानी 'गरम पाणी' एवो अर्थ क छे. पण सत्कार रूपे सींचवामां आवता पाणीनो अर्थ स्पष्ट छे. बेसणां आपवानुं पछी आवे छे ते पण सूचक छे. आरारा. मां -- संपुटि मिल्या बारि ए, आभोखइ आपउ वारि ए. लग्न वेळाए वरने पोंखवामां आवे छे ते प्रसंगनो अहीं संदर्भ छे एटले संपादके 'अभोखइ' नो लीघेलो 'सत्कार रूपे पाणीनुं सिंचन करवामां' ए अर्थ यथायोग्य छे. अभिऊ. मां 'अंबोषण' शब्द मळे छे : राणी सुदर्शना दीघलां भृंगार रे, अंबोषण सहूनि मानिं हवा. संपादके 'अंबोषण'नो 'कीगळा' अर्थ आप्यो छे, जे भाग्ये ज प्रस्तुत गणाय. प्रसंग महेमानोना स्वागतनो के एटले 'अंबोषण' ते 'अभोखण' ने स्थाने आवेलो होय एम लागे छे. "बधांने मान रूपे पाणीनुं सिंचन करवामां आव्युं" एवो अर्थ लई शकाय छे. 'अबोखण', अलबत्त, सिंहा (शा). मां 'अपोशण' एटले 'भोजन वेळाना आचमन' ना अर्थमां वपरायेलो मळे छे : अबोट अबोखण अति घणां, को भिक्षावश थाय. ब्राह्मणना व्यवहारोना वर्णनमां आ आवे छे तेथी अबोट करवा, आचमन लेवुं, भिक्षा मागवी वगेरेने ब्राह्मणना व्यवहारो तरीके समजी शकाय छे. आथी संपादके आपेलो 'अपोशण' अर्थ योग्य छे. पण 'अभिवन-ऊझणुं 'मां 'अंबोषण' ए 'अभोखण' नो 2010_03 Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भ्रष्ट पाठ होवानी शक्यता ज बळवान छे. ५८९ ३१. अमलीमाण, अमलीमान ऐतिका. मां 'अमलीमान' शब्द आ प्रमाणे वपरायेलो मळे छे : जग मांहे अमलीमान सूरि ज तेज समान. संपादके 'निर्मल मानवाला' एवो अर्थ आप्यो छे ते भूलभरेलो छे. 'अमली' ए शब्द सं. 'अमर्दित' परथी आवेलो छे. 'अमलीमान' एटले 'जेनुं मान अमार्दित, अखंडित रह्युं छे एवो. जिनरा. मां पंक्ति छे : थोडी शब्दार्थचर्चा बंधव अमलीमाण. 'अमलीमाण' नो अर्थ 'अगंजित ' ( अपराजित) आप्यो छे ते चाली शके. मान मर्दित न थवुं एटले अपराजित रहेवुं. ३२. अमाइ, अमामो, अमाणुं, अमान, अमानी तेरका. मां 'अमाइ' शब्द आ प्रमाणे वपरायेलो छे : लहिय छिद्दं सवि दुख अमाइ. संपादके शब्दकोशमां 'अमा-' सामे प्रश्नार्थ मूक्यो छे, परंतु एमणे आ पंक्तिनो अनुवाद " लाग मळतां सौ दुःख आवी पडे छे" एवो आप्यो छे. 'अमाइ'नो 'आवी पडे छे' एवो अर्थ संदर्भथी बेसाडेलो छे ए स्पष्ट छे. 'भाइ' एटले 'माय, समाय'. 'अमाइ' एनो विरोधी शब्द होवानुं समजाय छे. 'अमाइ' एटले 'न माय' एटलेके 'ऊभराय'. 'छिद्र / लाग मळतां सौ दुःख ऊभराय छे' एम ए अर्थ बराबर बंध बेसी जाय छे. ए नोंधवं जोईए के राजस्थानी कोश 'अमाइ' शब्दनो 'अप्रमाण, बहुत, अधिक' एवो अर्थ आपे छे. त्यां 'अमाइ' क्रियापद नहीं पण विशेषण छे. 'अमा- ' परथी बनेलो बीजो एक विशेषणशब्द छे 'अमामो'. 'जिनराज - कृतिकुसुमांजलि' मां ए वपरायेलो छे : 2010_03 (१) एकण दूध अमामो दीयो, घृतनो बीडो बीजी लीयो. (२) चरणकरण धन माल, अमामो लूटिसी. पहेली पंक्तिने संदर्भे संपादके 'अमूल्य' अर्थ आप्यो छे तेमां कंईक भ्रान्ति थयेली जणाय छे. 'अमामो' शब्दना मूळमां 'अमा-' होवानुं स्पष्ट छे, आथी एनो अर्थ 'न माय तेटलुं, अमाप, पुष्कळ' एम ज लेवो जोईए. दूधने अमूल्य कहेवामां कई स्वारस्य नथी, घणुं दूध आप्युं एम ज अभिप्रेत होई शके. बीजी पंक्तिमां पण 'पुष्कळ' नो अर्थ बराबर बेसी जाय छे. राजस्थानी कोश 'अमाव' शब्द 'खूब, बेहद' ना अर्थमां नोंधे छे Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ते 'अमाप' साथे तेम 'अमामो' साथै संबद्ध गणाय. भगवद्गोमंडल तथा बृहद् गुजराती शब्दकोश 'अमामो' शब्दनो 'अमूल्य' अर्थ आपे छे ते पण भ्रान्त गणवुं जोईए. भगवद्गोमंडले 'आनंदकाव्यमहौदधि'मांथी पण साटुं बाझे नहीं, कहे अमामो माल ते उदाहरण आप्युं छे तेमां पहेली दृष्टिए 'अमूल्य' अर्थ बेसी जाय, पण समग्र प्रयोगपरंपरा जोतां 'अमाप, पुष्कळ' ए अर्थ ज लेवो जोईए. प्रसंगसंदर्भ मळे तो आ वात वधारे सारी रीते स्थापित करी शकाय . अखाका. मां 'अमाणुं', 'अमान', 'अमानी' मळे छे ते पण 'अमा-' साथै संकळायेला ज मानवा जोईए : भाईओ ! भव संताप, भात देखीने भूलवुं, अक्षर अमाणुं आप, आठे पहोर अखो कहे. संपादके 'अमाणु' ना मूळमां अरबी 'अमान' शब्द मानी 'रक्षण' एवो अर्थ आप्यो छेतेने संदर्भमां केवी रीते बेसाडवो ते कोयडो ज छे. 'अमाणुं' एटले 'मान - माप वगरनुं, अनंत' एवो अर्थ लेतां वाक्यार्थ बराबर बेसी जाय छे : “आत्मतत्त्व अक्षर अने अनंत छे.' ए अनुभव अद्भुत अमान. 17 संपादके 'अमान' शब्दना बे अर्थ आप्या छे : सं. 'अ-मान' एटले 'अहंभाव विनानो' अने अरबी 'अमान' एटले 'निर्भयतानो, अमरत्वनो'. 'मान' शब्द संस्कृतमां 'माप' ना अर्थमां पण छे ए संपादकने स्मरणमां आव्युं नथी तेथी ज आवा अर्थोमां खैंचाई जवानुं बन्युं छे. अहीं पण पंक्तिनो अर्थ स्पष्ट छे: “ए अनुभव अद्भुत अने अमाप, अनंत छे." ५९० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश पिंड-ब्रह्मांड ते काच ज स्थानी, तेहेनुं पोषण वस्तु सदा अमानी. संपादके 'अमानी' नो 'मानी शकाय नहीं तेवो' एवो अर्थ आप्यो छे त्यां वळी, एमां 'मान' शब्द रहेलो होवानुं वीसराई जवाथी त्रीजा ज भळता अर्थ तरफ खेंचाई जवानुं बन्युं छे. अहीं 'वस्तु' शब्द स्त्रीलिंगनो होवाथी 'अमान'नुं 'अमानी' थयुं छे. 'आप' अमान, पण 'वस्तु' अमानी. अर्थ तो एक ज छे. वस्तु एटले ब्रह्मने 'अमाप, अनंत' कहेवामां आवेल छे. [ अनुसंधान-२ ] 2010_03 ३३. अनिआउ, अन्या, अंन्ना, अन्नैयो, अन्याई 'अन्याय' शब्द आजे आपणे बीजाओ प्रत्येना अणछाजता, हानिकर्ता ने जुलमी वर्तन माटे वापरीए छीए. मध्यकाळमां आ शब्द 'दोष', 'वांक', 'गुनो', 'अटकचाळु', 'तोफान' एवा अर्थोमां तथा 'अन्यायी' शब्द 'अटकचाळो' 'तोफानी' एवा अर्थोमां Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वपरातो देखाय छे. जेमके, उषाह. मां अनिआउ अह्मे सवि कीधा, सांसहि देव मुरारि. संपादके 'अनिआउ'नो 'अन्याय' एवो अर्थ आप्यो छे. पण आ बाणासुरना मंत्री कुंभ अने महादेवनी उक्ति छे. कृष्णने शरणे आवतां तेओ आम बोले छे. कुंभ महेता अने महादेवे वळी कया अन्याय कर्या हता ? कृष्णनी सामे थवानो दोष, गुनो एमणे कर्यो ए ज. एथी आ पंक्तिनो अर्थ आम ज करवो योग्य छे : “अमे घणा वांकगुना कर्या छे मुरारि देव, ए आप सही लो. " नलरा. मां कूबर दुष्टमां मूलगु, सेवइ व्यसन सात रे, अन्या मारगि ते हींडइ, नवि जाणइ पुण्य वात रे. चतुचा. मां ५९१ संपादके 'अन्या’नो 'अन्याय' एटलो ज अर्थ आप्यो छे. पण अहीं पुण्यमार्गनी सामे अन्यायमार्ग मुकायेलो छे, तेथी अन्यायमार्ग एटले दुष्कर्मनो, पापनो मार्ग एवो अर्थ वधारे उचित छे : "कुबेर दुष्टोनो अग्रणी छे. ए सात व्यसनो सेवे छे ने दुष्कर्म, पापकर्मने मार्गे चाले छे. पुण्यनी चात ए समजतो नथी. " एहवो अन्या मनमां धरी, वढशो वहालाने साथ. गोपी साथे क्रीडा करतां कृष्णथी राधानुं नाम लेवाई गयुं ए संदर्भमां बोलायेलुं आ वाक्य छे. संपादके योग्य रीते ज 'अन्या'नो 'दोष, वांक' एवो अर्थ आप्यो छे : " वहालानो ए दोष मनमां राखीने एनी साथे झघडो करशो ?" प्रेमाका. - अंतर्गत 'दशमस्कंध' मां एज कृतिमां अमो आचर्या अन्या कैं लक्ष. संपादकोए ‘अन्या’नो ‘अन्याय, दोष' एवो अर्थ आप्यो छे, परंतु वृक्षनो अवतार पामेला कुबेरना बे पुत्रो नलकुबेर अने मणिग्रीव मद्यपान, विषयलंपटता वगेरे पोतानां निंद्य कर्मोंनो स्वीकार करतां आ वाक्य बोले छे तेथी 'अन्या'नो 'दोष, दुष्कर्म' एवो अर्थ ज योग्य गणाय. - थोडी शब्दार्थचर्चा स्वभाव छे स्त्री तणो रे, नग्न सर्वथा नाह्य, 2010_03 एवं जाणी अमे पेठा जळमां, ए थई आव्यो अन्याय. संपादके अहीं 'दोष' अर्थ आप्यो छे ए यथायोग्य छे. गोपीओ पोते नदीमां नग्न थईने नाही एने पोतानो दोष गणावे छे. Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५९२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश प्रेमानंदकृत 'नळाख्यान'मां पण 'अन्या' शब्द वपरायेलो छ : नळ छ कुंवारो, नथी कन्या, छे ब्रह्मानो मोटो अन्या. नळने माटे कन्या नथी सर्जी ए ब्रह्मा एटलेके विधातानो मोटो दोष छे एम अहीं अभिप्रेत छे. कस्तुवा.मां - लोभे लक्षण जाय, अन्या अति अधर्मे. संपादके 'अन्या'नो 'अन्याय' एवो अर्थ आप्यो छे, पण अहीं लोभनां परिणामो वर्णव्यां छे. तेथी 'दोष'नो अर्थ लेवो ज वाजबी छ : "लोभ करवाथी सारां लक्षण नष्ट थाय छे, अधर्मनो दोष थई जाय छे." वेताप.मां - पारवती बोल्या मावडी, 'अरे शीव, अन्या आवडी, जीव ए सहु कोना जाय छे, ए पाप आपरणे थाय छे.' संपादके 'अन्याय' अर्थ आप्यो छे ते देखीती रीते चाले, पण पांच पुरुषो मरवा तैयार थया छे ते संदर्भमां आ वाक्य बोलायुं छे तेथी 'खोटुं कर्म' एवो अर्थ ज वधारे उचित गणाय : “अरे शिव, आ केटलुं खोटुं थाय छे ! आ सहुना जीव जाय छे एर्नु पाप आपणने लागे छे." चंद्रवा.मां - जुए सौ को जगत, कोये केहे नहि अंबा. निशा विशेनी समस्यामां आ पंक्ति आवे छे तेथी संपादके आपेलो अर्थ 'दोष, वांक, खोडखांपण' यथायोग्य छे : "आखं जगत एने जुए छे अने कोई एमां कशी खोडखांपण होवानुं कहेतुं नथी." ..एमां ज - कीधो पितानो काळ, एह पण मोटो अन्या. छास विशेनी आ समस्या छे तेथी संपादके आपेलो 'दोष' ए अर्थ बराबर छ : "एणे पोताना पितानी हत्या करी छे, ए एनो मोटो दोष / मोटुं दुष्कृत्य छे." नरका.मां - ___ओ पेलो ओशियाळो आवे, अजैयो अपार. अहीं 'अन्नैयो' ए 'अन्यायी'ने स्थाने छे. संपादके एना 'वांकाबोलो, अणचियो' एवा अर्थो आप्या छे, एमांथी 'वांकाबोलो' ए अर्थ माटे कोई आधार जणातो नथी. नटखट कृष्णने अनुलक्षीने आ उद्गार छे एटले 'अणचियो' अर्थ चाले, पण वधारे योग्य अर्थ 'अटकचाळो, तोफानी, मस्तीखोर' ए गणाय. __ 2010_03 Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ५९३ थोडी शब्दार्थचर्चा नलाख्या.मां - राजाइ सा माटि मेहेली, एहेवु नही अन्याई. अहीं 'अन्याई' ए 'अन्यायी'ने स्थाने छे. संपादके 'अन्याय करनार' एवो एनो अर्थ आप्यो छे ते चाले तेम छे. 'खोटुं करनार' पण चाली शके : “राजाए शा माटे तने तजी ? ए एवो अन्याय करे तेवो, खोटुं करे तेवो नथी." ३४. अरज 'अरज' शब्द आपणे 'विनंती, प्रार्थना' एवा अर्थमां वापरीए छीए. मदमो.मां एनो प्रयोग कंईक जुदा अर्थमां होय एवं जणाय छ : पापपुन्यनी ए शी अरज, आपणे तो विद्यानी गरज. मोहनाने पंडित पासे भणाववा मूकती वखते पंडित कोढियो छे, केवांकेवां पाप करवाथी माणस कोढियो थाय अने एनुं मों जोवाथी केवु पाप लागे ए बधुं राजा मोहनाने समजावे छे त्यारे मोहना आ वाक्य बोले छे. देखीती रीते ज अहीं 'अरज'नो 'प्रार्थना, विनंती' ए अर्थ बंध न बेसे. संपादके 'फरियाद' एवो अर्थ आप्यो छे एनो कशो आधार जणातो नथी, ते उपरांत संदर्भमां ए अर्थ पण भाग्ये ज संतोषकारक गणाय. वस्तुतः अरबी 'अर्ज' शब्दनो 'प्रार्थना' उपरांत 'निवेदन, रजूआत, दरखास्त' एवो अर्थ पण छे अने एवा ज कोईक अर्थमां ए शब्द अहीं प्रयोजायेलो जणाय छे : "पापपुण्यनी आ शी रजूआत ? (पापपुण्यनी आवी वात शा माटे कहो छो ?) आपणे तो विद्या साथे ज काम छे." ३५. अलगुं, अलगेरी 'अळगुं' शब्दने आजे आपणे बहुधा 'जुना अर्थमां वापरीए छीए. पण एनो एक अर्थ 'वेगळं, दूर, आधु' पण छे अने मध्यकाळमां ‘अळगुं' शब्द सामान्य रीते ए अर्थमां ज वपरायेलो जोवा मळे छे. जेमके, आरारा.मां - वाडी मांही दीठउ कूउ.... जोवा लागी अलगी थाई... (वाडीमां कूवो जोयो. आधी जईने एमां जीवा लागी.) राइ अणावइ अलगी गई, कन्या आवइ हरखित थई. (दूर गयेली ए कन्याने राजा बोलावे छे. ए हर्षित थईने आवे छे.) ____ अलगांची पाणी रे आणतां, मत तुझ विससंका होइ रे. (दूरथी पाणी लावीने तने विषनी शंका थाय एवं करवू न हतुं.) संपादके पण 'अलगुंनो 'दूर, आधु' एवो अर्थ ज आप्यो छे. 2010_03 Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५९४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नेमिछं.मां अलगी नांखइ सोवनत्रोटी. (सोनानी त्रोटी दूर फेंकी दे छे.) जइ मझ सरिखी नारि थूक जिम अलगी लांखइ. (मारा जेवी स्त्रीओने यूंकनी जेम वेगळी करी नाखे छे | तजी दे छे.) संपादके 'अळगी, जुदी, दूर' एम अर्थो नोंध्या छे तेमां 'जुदी'नी जरूर नथी. 'वेगळु, दूर' ए अर्थ स्पष्ट ज छे. कादं (शा).मां - रा आगली महेली ग्यु अलगु अंत्यज एहq भाखी. ((पोपटने) राजानी पासे मूकी, आq कहीने अंत्यज आघो जतो रह्यो.) कां रही अलगी ? एटला माहां शुं थाकी ? (केम वेगळी - आघी थई गई ? एटलामा थाकी गई ?) राजाने नवडाववानुं बंध करनार दासी प्रत्येनी आ उक्ति छे. संपादके 'जुईं अर्थ आप्यो छे ए योग्य नथी. बीजा उदाहरण परत्वे केशवलाल ध्रुवे पण 'वेगळी' एवो अर्थ ज कर्यो छे. नलाख्या.मां - ....कोएक नर आ मंदिर रही, हवडां मुझने स्पर्स ज थयु, झालूं एटलि अलगू थयु. - (कोई एक पुरुष आ महेलमां छे. हमणां मने एनो स्पर्श थयो, पण एने पकडं एटलामां तो ए दूर जतो रह्यो.) संपादके 'जुदु' अर्थ आप्यो छे ते संदर्भमां योग्य रीते बंधबेसतो थतो नथी. उषाह.मां - अधमाधम अलगेरी थटी. संपादके 'अळगी' अर्थ आप्यो छे तेमां एनो आजनो 'जुदी' ए अर्थ अभिप्रेत जणाय छे. देखीती रीते तो ए बेसे. द्वारकामां जुदाजुदा लोकोना वासना वर्णननी आ पंक्ति छे. तेथी सौथी हलका वर्णना लोकोनुं निवासस्थान जु, छे एवो आ पंक्तिनो अर्थ लई शकाय. पण निवासस्थान जुर्दु ज नहीं, दूर - सौथी दूर - छेल्ले होवानो अर्थ अभिप्रेत होवानो संभव छे. विमप्र.मां - भड भडवाय हता घणा, ते तु आपणा अलग लेई जीव तु. (पराक्रमी वीर पुरुषो हता ते पण पोताना जीवने वेगळा लई जाय छे | नासीने 2010_03 Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश थोडी शब्दार्थचर्चा बचावी ले छे.) संपादके पण 'अलग'नो अर्थ 'दूर' आप्यो छे. ३६. अंक भरवो संस्कृतमांथी आवेलो 'अंक' शब्द 'खोळो' ए अर्थमां आपणे त्यां जाणीतो छे. सार्थ गुजराती जोडणीकोश दे. 'अंकिअ' परथी आवेलो बीजो 'अंक' पण नोंधे छे अने एनो 'आलिंगन' एवो अर्थ आपे छे. परंतु आ अर्थमां आ शब्द अत्यारे जाणीतो नथी. मध्यकाळमां 'अंक' शब्दना 'आलिंगन' ए अर्थना प्रयोग मळे छे, पण ए कृतिओना संपादके 'खोळो' एवो अर्थ ज लीधो छे. जेमके, नरका.मां - ताहरु चलण दीसे घj घर विशे, समुद्रतनया हीडे अंक भरतां. संपादके 'अंक भरतां'नो अर्थ 'खोळो भरतां, आजीजी करतां' एवो आप्यो छे. आ उक्ति राधाने उद्देशीने कहेवायेली छे. राधानुं जो घरमां चलण होय, तो लक्ष्मीनुं स्थान ऊतरतुं बताववानो उद्देश ज होय एम मानी संपादक 'खोळो भरतां' एटले 'आजीजी करतां' एवा अर्थ तरफ गया जणाय छे. पण एमां एक मुश्केली छे. 'खोळो भरवो'नो 'आजीजी करवी' एवो अर्थ लेवा माटे कोई आधार नथी. हा, 'खोळो पाथरवो' एटले 'आजीजी करवी' एम अर्थ थाय छे खरो. पण 'अंक भरवो' एटले 'आलिंगन ले,' एवो अर्थ अन्य घणे स्थाने जोवा मळे छे. तेथी उपरना दाखलामां पण ए ज अर्थ लेवो जोईए. राधिकानुं घरमां चलण छे अने लक्ष्मीजी पण आलिंगन लेतां फरे छे ए जातनो वाक्यान्वय थई शके. नरसिंह महेतानी ज बीजी पंक्तिओमां 'अंक भरवो'नो 'आलिंगन ले,' एवो अर्थ बराबर बेसे छे : प्रेमदा प्रेमसुं पान अधिक रे, अंक भरि नाथ उरमांहे राखे. -(प्रेमदा अधिक प्रेमपान करे छे अने नाथने अलिंगन आपी पोताना हृदयमा राखे ____ अंक भरी आशवाश दईने लई मंदिरमां पधराव्या रे. (आलिंगन लई, आसनावासना करी लई जईने महेलमां पधराव्या.) भगवद्गोमंडल पण दयारामनी नीचेनी पंक्ति उद्धृत करी 'अंक भरवो'नो 'बाथ भीडवी' एवो अर्थ आपे छ : हा ना करतां रे भरी अंक, अधर उठावी रे लाव्या कुंज निःशंक. (गोपी हा-ना करती रही अने कृष्ण एने बाथमां लई, ऊंचे उठावी कुंजभवनमां 2010_03 Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५९६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश लाव्या.) ए नोंधपात्र छे के संस्कृत कोश 'अंक' एटले 'बगल' अने 'अंकपालिका' एटले 'आलिंगन' एवा अर्थो आपे छे. ३७. आधु, आघेलं 'आधु' शब्द अत्यारे सामान्य रीते 'दूर'ना अर्थमां वपराय छे. 'आघो आव' एटले 'पासे आव' एवो प्रयोग विरल छे. परंतु मध्यकाळमां 'आधु' शब्द 'आगळ, पासे, नजीक' एवा अर्थमां ज मोटे भागे वपरातो जोवा मळे छे. जेमके, विक्रच.मां - थरहर कंपइ नावइ आष. (थरथर कंपे छे अने नजीक आवतो नथी.) संपादके 'आघा, दूर' एवो अर्थ आप्यो छे ते खोटो छे. आरारा.मां - जेतलि जोई आधु थई, आराम उपरे मीट ज गई. (आगळ / पासे जईने जुए छे त्यां बगीचा उपर नजर.गई.) तव जोवइ ते आधी थाइ, उणि हत्यारी लाधउ दाइ. (त्यारे आगळ / पासे जईने ते जुए छे. पेली हत्यारीने लाग मळी गयो.) संपादके 'आगळ' अर्थ आप्यो छे ते चाले तेम छे. नलाख्या.मां - एहवू कही रथ आषु खेड्यु. (एवं कहीने एणे रथ आगळ चलाव्यो.) आधेत जईनि चीतवि. (आगळ जईने विचार करे छे.) संपादके 'दूर' एवो अर्थ आप्यो छे, ते बीजा उदाहरणमां बंधबेसतो लागे, पण 'आगळ' अर्थ लेवो ज उचित छे. पहेला उदाहरणमां 'आगळ' ए अर्थर्नु औचित्य स्पष्ट नरप(द).मां - नासी जाए, आषो आवे, सुंदर सांम. (सुंदरश्याम घडीक नासी जाय छे, घडीक पासे / नजीक आवे छे.) संपादके 'नजीक' अर्थ आप्यो छे ए बराबर छे. नरसिंह महेताना एक बीजा पदमां पण आवी पंक्ति मळे छ : __ आषा आवीने आलिंगन मागे. 2010_03 Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ( पासे / नजीक आवीने आलिंगन मागे छे.) षडाबा.मां आघडं पियाणउं न करइ. ( आगळ प्रयाण करता नथी . ) संपादके पण 'आगळ' अर्थ आप्यो छे. अखाका. मां - ५९७ आकाशथी आघेरुं चालवुं, शुं बेठा छो हारी. अहीं संपादके आपेलो 'दूर' अर्थ बेसे तेम छे, पण वस्तुतः एना मूळमां 'आगळ' एवो अर्थ ज रहेलो छे : "आकाशथीये आगळ चालवानुं छे. हारी शुं बेठा छो ?" चित्तसं.मां आघो न चाले मारो लक्ष. (मारुं ध्यान आथी आगळ जतुं नथी. ) निज रूपे थई आघो वट्यो. ( आत्मरूप थईने ए आगळ वध्यो . ) आघो उकेल जो न होइ कशो. (जो आनाथी आगळ कोई उकेल न होय.) संपादके पण 'आगळ' अर्थ ज आपेल छे. विराप.मां. - थोडी शब्दार्थचर्चा कुण मुर्ख जि आवइ आघउ . संपादके 'समक्ष' अर्थ आप्यो छे ते चाले, पण 'पासे, नजीक' ए अर्थ वधारे योग्य छे : “पासे आवे एवो कोण मूर्ख छे ?" विमप्र.मां चाउचीयाविउ वाघलु ए तु, आघलउ कोई न थाइ तु. (बाघ रोषे भरायो. कोई एनी आगळ / पासे आवतुं नथी.) संपादके आपेलो 'नजदीक अर्थ बराबर छे. 'आधुं'ना मूळमां सं. 'अग्र' छे तेथी 'आगळ' ए एनो मूळभूत अर्थ होवानुं समजाय एवं छे. 2010_03 अध्य.३८ ३८. आडइ, आडौ सार्थ जोडणीकोश 'आडे आववुं'नो 'वच्चे (विघ्न के राहत तरीके) पडवुं' एवो अथ आपे छे. एटलेके विघ्नरूप थवुं के राहतरूप थवुं ए संदर्भ पर आधारित छे. पण राजस्थानी कोश 'आड' ना 'रक्षा, शरण, सहायता, मदद, आश्रय, आधार' एवा अर्थो Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ५९८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अने 'आडौ आणो/आवणो'नो 'मदद करवी' एवो अर्थ आपे छे. मध्यकालीन गुजरातीमां 'शरण' के 'मदद'ना अर्थना प्रयोगो मळे छे. जेमके, प्रेमाका.मां - सर्व बेठां मूळ वाढे, तम विना कोण आवे आडे. संपादके 'आडे'नो 'वच्चे' एवो अर्थ आप्यो छे ते सीधा शब्दार्थनी दृष्टिए बराबर छे, पण अहीं राहत रूपे वच्चे आववानी वात छे एटले 'आडे आवे'नो 'मददे आवे' एवो अर्थ वधारे सुभग छे : "बधां मूळ वाढी रह्यां छे त्यारे कोण मददे आवशे ?" जिनरा.मां - श्री जिनराज सुविधि साहिब सुं किम पहुंचीजइ आडइ. (जिनराज सुविधिनाथना शरणमां केम पहोंचीए ?) संपादके 'आडइ'नो 'हठ करीने' एवो अर्थ आप्यो छे ते खोटो छे ए स्पष्ट छे. एमां ज - प्रहसम थास्यै मुझ वारी, इम चिंतवि चउथी नारी, आडौ तब कोई न आसै... (चोथी स्त्री विचारे छे के सवारे मारो वारो आवशे, त्यारे कोई मारी मददमां नहीं आवे.) संपादके 'काममां आवशे' एवो अर्थ आप्यो छे ते पण चाले. ३९. आदर, आवखं 'आदर' शब्द 'मान-संमान'ना अर्थमां अने 'आदर' शब्द 'आरंभ करवो'ना अर्थमां आपणे वापरीए छीए. जोडणीकोश 'आदरयु' शब्दनो 'स्वीकार करवो' एवो अर्थ पण आपे छे. ____ मध्यकाळमां ‘आदर' शब्द 'प्रयत्न'ना अर्थमां पण वपरातो देखाय छे. अखाछ.मां आ अर्थ लेवामां आव्यो छे. जेमके, ते अल्प आदरे आवे हाथ - (अल्प प्रयलथी ए हाथमां आवे.) जेवे आवरे करीने ग्रहे, तेवू मुक्ता जामी रहे. (जेवा प्रयत्लथी / जेवी निष्ठाथी स्वीकारे तेवू मोती बने.) शुद्ध पारसने जे जे अडे, ते ते कंचन थई नीमडे पण ते आदर केनो नव करे. (पण ते कशाने माटे प्रयत्न करतो नथी.) 'आदर' शब्द 'आश्रय, स्वीकार'ना अर्थमां पण मळे छे. जेमके अखाका.मां - 2010_03 Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश सद्गुरु केरा चरण आदर करी..... (सद्गुरुना चरणनो आश्रय लईने ....) संपादके 'प्रयत्न' अर्थ आप्यो छे ते अहीं चाले तेम नथी. छे. ५९९ आज रीते, 'आदरयुं' पण 'प्रयत्नशील थवं प्रवृत्त थयुं, करवुं' एवा अर्थमां वपराय छे. अखाछ. मां 'प्रयत्न करवो' एवो अर्थ लेवायों छे. जेमके, भूचरनी कांई बीजी पेर, एम जाणी अखा आदेर. (भूचरनी कोई बीजी ज रीत छे एम समजीने तुं प्रयत्नशील था . ) एणे रसे जीव करें आदरी. ( आ रसथी जीव प्रवृत्त थाय छे.) - डाह्या पंडित थइ जे आवरे, ते अखा वायु केम करे ? (डाह्या पंडित थईने जे प्रवृत्त थाय छे ते वायु केम करे ?) प्रेमाका. मां थोडी शब्दार्थचर्चा जे वेळा आदरिया द्रोण, त्यारे कुंवरने राखे कोण (द्रोण ज्यारे प्रवृत्त थया, त्यारे कुंवरनी रक्षा कोण करे ?) जो आदर्स तो असुरकुळने त्रेवडुं तृणमात्र. (जो हुं प्रवृत्त थाउं तो असुरकुळने तणखला समुं लेखु.) संपादके 'आरंभ करवो' एवो अर्थ लीधो छे पण उपरनो अर्थ वधारे योग्य छे. अखेगी.मां अणजाण्ये जे आदरे..... ( समज्या विना जे ( भक्ति) करे...) संपादकोए 'आरंभ' अर्थ लीधो छे ते देखीती रीते चाले पण ' ने माटे प्रवृत्त थाय' 'करे' एवो अर्थ अभिप्रेम जणाय छे. भक्ति उपरे आदर्यो. (भक्ति विशे प्रवृत्त थयो.) संपादको अहीं 'प्रयत्नशील थयो' एवो अर्थ लीधो छे ते बराबर छे. नलाख्या. मां 2010_03 मंद हास्य करी रा उच्चरि: 'नारी, मूरखता आदरि. ' (मंद हास्य करीने राजा बोल्यो : नारी, तुं मूर्खाई करे छे.) संपादके 'शरू करे छे; मान आपे छे' एवा अर्थो आप्या छे ते अहीं अप्रस्तुत 'आदरयुं' शब्द 'स्वीकारयुं, सत्कार, आश्रय लेवो, पामवुं' एवा अर्थोमां पण Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६०० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वपरायेलो मळे छे. जेमके, गुर्जरा.मां - रिसहि राज्यकला धुरि आवरी. (ऋषभे प्रथम राज्यकला स्वीकारी.) संपादकोए 'to receive respectfully' (सत्कार एवो अर्थ आप्यो छ ते चाले तेवो छे. आरारा.मां - मइ पिणि तुझनइ आवर्यउ हो, जाणी आंबानी डालि. (में आंबानी डाळ जाणीने तारो आश्रय कर्यो हतो.) तेहनइ जाइ बेटी एक, यौवनवय आवरीय. (तेने एक पुत्री जन्मी. ते यौवनवयने पामी.) संपादके 'आश्रय लीधो' एवो अर्थ आप्यो छे ते पण चाले. लावल.मां - केवलकमला आवरी. (केवळज्ञानरूपी लक्ष्मी पाम्या.) संपादके ‘आदर करी, स्वीकारी' एवा अर्थ आप्या छे तेमांथी 'स्वीकारी' अर्थ नभी शके. नरका.मां - ए रस शुकसनकादिके, वळी शिव-शिवाए आवर्यो. (शुकसनकादिक अने शिव-शिवाए ए रसनो स्वीकार कर्यो | तेओ ए रस पाम्या.) ऊंघ, आहार ने आळस में आवर्या. (में ऊंघ, आहार ने आळसनो आश्रय लीधो.) भूल्या भमता फरे, अन्यने आवरे. (भूल्या भटके छे अने अन्यनो आश्रय ले छे.) संपादके 'आवकारवू, सत्कारतुं' एवा अर्थो लीधा छे ते आ संदर्भमां सुभग लागता नथी. आनंस्त.मां - परम चरणधर्म ते धर्म तुह्मरो जाणीइ आवरीइ. (परम चारित्रधर्मनो, ते तमारो धर्म जाणीने, आश्रय करीए.) संपादके 'आदरीए' एवो पर्याय आप्यो छे ते 'शरू करीए' एवा अर्थमां ज अभिप्रेत गणाय, ए अर्थ अहीं उपयुक्त जणातो नथी. सार्थ जोडणीकोश 'आदरयुनो 'संवनन कर' ने 'अदरावू'नो 'विवाह के सगपण ___ 2010_03 Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६०१ थोडी शब्दार्थचर्चा थ' एवा अर्थो नोंधे छे. खास करीने पारसीओमां 'अदरावू' शब्द आ अर्थमां प्रचलित छे. मध्यकाळमां 'आदरवु' शब्द ज 'विवाह के सगपण करतुं' एवा अर्थमां प्रयोजायेलो मळे छे. जेमके, आरारा.मां - कुलधर, आदरि म था गमार, (कुलधर, (पुत्रीनो) विवाह कर, गमार न था.) संपादके पण 'सगपण कर' ए अर्थ ज आप्यो छे. गुर्जरा.मां - __ हुं नवि देखी आदरी, आदरी यादवराइ. (यादवराये मारी साथे विवाह करी मने आदरथी जोई नहीं.) संपादकोए योग्य रीते 'betrothed' एवो अर्थ आप्यो छे. चित्तसं.मां 'आदरयु'नो एक विलक्षण प्रयोग मळे छ : जेम चंबुकगिरिनी सत्ताए करी लोहोनौका आवे आवरी. संपादके 'खंचाईने' अर्थ आप्यो छे ते ज आ संदर्भमां बंध बेसे एवो छे. “जेम लोहचुंबकवाळा पर्वतना प्रभावथी लोढानी नौका खेंचाईने आवे...." ४०. करो 'करो' शब्दनो अर्थ 'घरनी बाजुनी दीवाल' एवो सार्थ जोडणीकोश नोंधे छे अने ए अर्थमां ए शब्द प्रचलित छे. नंदब.मां आ शब्द वपरायो छे अने संपादके एनो ए अर्थ ज आप्यो छे. पंक्ति आ प्रमाणे छ : वणीक ते जे नही आकरो, गांम ते जेहमां होये करो. देखीती रीते ज 'करो' शब्दनो उपर्युक्त अर्थ अहीं बंधबेसतो थतो नथी. करो घरने होय, गामने नहीं; अने घरने करो होय ज, पछी करो के करावाळु घर होय तेने ज गाम कहेवाय एम कहेवानो कई अर्थ खरो ? वस्तुतः राजस्थानी कोश 'करौ' शब्द 'किसान'ना अर्थमां नोंधे छे. अहीं ए अर्थ बराबर बंध बेसे छे : "जेमां खेडूत वसतो होय ते ज गाम." ४१. खगां, खगमंडल, खगाकार 'खग' शब्द आपणे 'पंखी'ना अर्थमां ज लईए छीए. 'ख' एटले आकाश, एमां गति करे ते 'खग'. पण देश्य 'खग' शब्द 'आकाश'ना अर्थमां छे अने ए मध्यकालीन गुजरातीमां प्रचलित होवानु जणाय छे. जेमके, वेताप.मां - डोले खगमंडल चित.... 2010_03 Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६०२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (कदाचित आकाशमंडळ डोले...) संपादके पण 'गगनमंडळ' ए अर्थ ज आप्यो छे. प्रेमाका.मां - ___ मा भर रे ओहरु डगां, तूझ-पे त्रूटी पडशे खगां. (आगळ डगलां न भरतो, नहीं तो तारा पर आकाश तूटी पडशे.) संपादके आपेलो 'पक्षीओ' अर्थ देखीती रीते ज खोटो छे. संतो, मन रे मारीने मज्जन करे, परम ज्योतमां भळे, खगाकार ए तो थई रहे... (मनने मारीने ब्रह्मभावमां डूबे ने परम ज्योतमां लीन थाय ते आकाशवत् । शून्यवत् थईने रहे....) संपादके 'पंखीना जेवू, आकाशमां (ब्रह्ममा) मुक्त रीते विहरनार' एवो अर्थ आप्यो छे ते बराबर नथी. ४२. खराप जोडणीकोश 'खराब'ना 'नठारूं, अनीतिमान, भ्रष्ट' एवा अर्थो नोंधे छे अने ए ज प्रचलित अर्थो छे. पण अरबी 'खराब' शब्द 'विनाश, बरबादी' एवो अर्थ पण धरावे छे अने मध्यकाळमां ए अर्थमां आ शब्द वपरायेलो मळे छे. जेमके, अखाका.मां -- __ मध्य अहंता करे खराप. 'खराप' अहीं 'खराब'ने स्थाने छे अने संपादके ए पर्याय मूकीने ज काम चलाव्यु छे. पण जोई शकाय छे के 'खराब'नो चालु अर्थ अहीं कथयित्वने बराबर प्रगट करतो नथी, “मध्ये अहंता विनाश / बरबादी करे छे" एवो अर्थ लेवाथी ज कथयित्व बराबर ऊघडे छे. ४३. गान, किण गानइ 'गान' शब्द 'गीत, गायन' एवा अर्थमां जाणीतो छे. पण मध्यकाळमां ए ‘गणना, विसात' एवा अर्थमां पण मळे छे, जेमके, आरारा.मां - कहइ ब्राह्मण, "मुझ प्राण, तेह पणि रायना जाण, तु कन्या किण गानइ...." (ब्राह्मण कहे छे - मारा प्राण पण राजाना छे, तो मारी कन्या शी विसातमा ?) संपादके 'कई विसातमां' एवो ज अर्थ आप्यो छे. जिनरा.मां - इम विचार करता मन माहे लाखे गाने लोको रे... 2010_03 Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६०३ थोडी शब्दार्थचर्चा थाडा शब्दावरचा (आम मनमां विचारता लाखोनी गणतरी / संख्यामां लोको....) संपादके ‘गाने'नो 'ज्ञाने' अर्थ आप्यो छे ते खोटो छे. सं.'गणना' प्रा. गण्णा' परथी 'गान' शब्द आव्यो जणाय छे. [गुजरात दीपोत्सवी अंक, सं. २०५०] ४४. उशंकल, उसंकल, उसीकल, उसींकल, ओशिंगळ, ओशीकळ, ओशींगल, ओसंकल, ओसीकल बोलीकक्षाए वपरातो 'ओशिंगण' शब्द आपणने परिचित छे. ए शब्द आपणे 'आभारी, ऋणी, उपकृत, अहेसानमंद' एवा अर्थमा योजीए छीए अने शब्दकोशो पण ए शब्दने ए अर्थमां ज नोंधे छे. भगवद्गोमंडले एनो एक वधारानो अर्थ 'बदलो वाळी आपनारूं' नोंध्यो छे ते विरल अपवाद छे. कोशो 'ओशिंकळ/ओशिंगळ' ए शब्द पण नोंधे छे अने आ ज अर्थमां नोंधे छे. एक ज शब्दना आ बे उच्चारभेदो होय एवी एमनी समज जणाय छे. भगवद्गोमंडले 'उसंकल, उसीकल' वगेरे घणा उच्चारभेदो नोंध्या छे, पण एणे पण त्यां बधे 'आभारी, ऋणी' एवो ज अर्थ दर्शाव्यो छे. .. मध्यकालीन साहित्यमा ‘ओशिंगण' एवं 'ण'कारवाळु रूप जोवा मळ्युं नथी, 'ल'कारवाळु रूप ज जोवा मळे छे-- उशंकल, उसंकल, उसीकल, उसींकल, ओशिंगळ, ओशीकल, ओशींकळ, ओशींगल, ओसंकल, ओसीकल वगेरे. स्वाभाविक रीते ज मध्यकालीन साहित्यना आपणा घणा संपादको-अभ्यासीओ आ मध्यकालीन प्रयोगने 'ओशिंगण' ना अत्यारना अर्थमां – 'आभारी, उपकृत' एवा अर्थमां - वांचवा ललचाया छे, जे आपणा कोशोए पण कर्यु छे. पण मध्यकालीन 'उसींकल' वगेरे शब्द, 'ओशिंगण' थी ऊलटा ज अर्थमां, 'ऋणी' नहीं पण 'ऋणमुक्त', ने एमांथी विकसेला केटलाक अर्थोमां वपरातो होवानुं स्पष्टपणे देखाय छे. ए नोंधपात्र छे के ऐतिरा.(१९१६)ए सौप्रथम 'गुण-उसंकल'नो 'गुणनी भरपाई' (=गुण/उपकारनो बदलो) एवो अर्थ आप्यो छे. ते पछी उपबा.(१९३५)मां 'उसंकल'नो 'fulfilling the obligation' (ऋण चूकवq ते) एवो अर्थ अपायो छे. आ पछी मदमो.(१९५५)मां 'ओशीकल/ओशींगल'नो 'ऋणमुक्त' एवो अर्थ अपायो छ ने एना अर्थ- भारतीय विद्याभवननां प्रकाशनोमां अने अन्यत्र क्यांक-क्यांक अनुसरण थयेलुं छे, पण आ शब्दने 'ओशिंगण, आभारी, ऋणी' एवा अर्थमां लेवानुं पण व्यापकपणे जोवा मळे छे. ___ 'उसींकल थर्बु | करवु' एटले 'ऋण, उपकार के एना भारमांथी मुक्त थवू.' एमांथी 'बदलो वाळवो' 'वचन पाळ' वगेरे अर्थोनो पण विकास थयो छे. आ विविध अर्थोने अनुलक्षीने 'उसींकल' वगेरेना मध्यकालीन प्रयोगो आपणे जोईए. ___ 2010_03 Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६०४ मुक्त के क ॠण, उपकार के एना भारमांधी (१) सिंहा (म).मां राजा उपर एक वखते उपकार करनार ब्राह्मण वांकमां आवे छेने राजसभा एने शूळीए देवानुं सूचवे छे त्यारे राजा कहे छे - एह उपगार उसीकल केम, पसाउ करी पुहचाडो खेम. ( ११४ ) ( एना उपकारना भारमांथी मुक्त केम थवाय ? भेटसोगाद आपी एने क्षेमकुशळ घेर पहोंचाडो . ) मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश - संपादके 'आभारी, ओशिंगण' अर्थ लई अनुवाद आप्यो छे – “एना उपकारनो हुं ओशिंगण छु,” एमां 'केम' शब्द बाकात रह्यो छे. उपरांत, संदर्भमां पण ए अर्थ टकी शके तेम नथी. (२) नलाख्या. मां हंस नळने कहे छे प्राणदान ति मूझने दीधुं ते ओशीकल थांउं, प्रत्युपकार करेवा, राजा, कुंडिनपुरि हूं जांउं. (६, १९) (तें मने प्राणदान कर्तुं छे तेना ऋणमांथी मुक्त थाउं . ) संपादके 'ओवारणा लीधेल, वारी जवायेलुं, उपकृत' एवा अर्थो नोंध्या छे. रा. चू. मोदीए एमना संपादनमां 'आभारी' अर्थ आप्यो छे. आ अर्थो योग्य नथी. (३) विक्ररा.मां मां - - माता कही गंग समान, अड़सठि तीरथ मांहिं प्रध्यान, निशिदिन धोई पीइ पाय, तुहि ओसंकल पुत्र न थाय. (४७६) ( माताना पग धोईने रोज पीए तोये पुत्र एना ऋणमांथी मुक्त न थाय.) संपादके 'ओशिंगण, आभारी' ए अर्थ आप्यो छे, जे टकी शकतो नथी. (४) नलरा.मां ताहरी दृष्टि संपनु, जीवी दीधू माय, तूझ उसीकल नवि थाउं, प्रणमउ तारा पाय. (६९०) (तारी नजरे चड्यो अने माता ! तें मने जीवतदान आप्युं. तारा ऋणमांथी हुं मुक्त नहीं थाउं.) (५) ए ज कृतिमां पोताने आश्रय आपनार दधिपर्णने नल कहे छे मित्र सहोदर भाई माहरु, उसीकल नही थाउं ताहरु. ( १०२१ ) (तुं मारो मित्र, सहोदर, भाई छे. तारा ऋणमांथी हुं मुक्त नहीं थाउं . ) ने परत्वे संपादके 'आभारी, ओशिंगण' अर्थ आप्यो छे, जे खोटो छे. (६) रत्नसूरिशिष्यकृत 'रत्नचूडरास' (१६५३) (संपा. ह. चू. भायाणी, १९७७) 2010_03 Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश थोडी शब्दार्थचर्चा यमघंटा समजावे छे के शेठे तमने कईक आपवानुं कह्युं छे तेथी ए घडामां देsको मूकी हाथ नाखवानुं तमने कहेशे अने पछी "घडा-माहि कांइ छइ सही", "ओसींकल हूया अम्हे भई.” (२२९) (तमे कहेशो के घडामां कांईक छे एटले ए कहेशे के अमे ऋणमुक्त थया.) संपादके शब्दकोश आप्यो छे पण अर्थो आप्या नथी. (७) ए कृतिमां ज, माळी ज्यारे 'कांईक'नी मागणी करे छे त्यारे शेठ कहे छे www ६०५ सउ पंचास लिउ तुम्हे सही, ओसीकल तुम्हे करउ सही. (३०२ ) ( पचास - सो रूपिया लई लो अने अमने ऋणमुक्त करो . ) (८) एमां ज सुतारने राजी करवानुं वचन आपेलुं. एने समाचार आपवामां आवे छे के राजाने त्यां दीकरो अवतर्यो छे पछी "रुलियाइत अम्हे थया छउं सही", "ओसीकल अम्हे हूआ भई." (३०७) (सुतार कहे छे के अमे राजी थया. एटले शेठे कह्युं के अमे ऋणमांथी छूट्या.) (९) प्रेमाका. अंतर्गत 'अभिमन्यु - आख्यान' मां पांडवोने पोते दास तरीके राख्या एनो अफसोस व्यक्त करी विराट राजा कहे छे ते भार ओशींकळ करो, उत्तराकुंवरी मारी वरो. (२२, ८) (ते भारमांथी मने मुक्त करो.) संपादके 'ओशिंगळ; हळवो, ऋममुक्त; आभारी' एवा अर्थो नोंध्या छे, जेमां संपादक अर्थ परत्वे अनिश्चित होवानुं देखाय छे. चिमनलाल त्रिवेदी वगेरेए तथा विनोद अध्वर्यु वगेरेए एमनां संपादनोमां 'आभारी, उपकृत' एवो अर्थ लीधो छे, जे खोटो ज छे. (१०) दशस्कं ( २ ). मां शत कल्प सेवा करवा रहीए, पण माना ओशीकळ नव थईए. - 2010_03 (सेंकडो कल्पो सेवा करीए, तोये माना ऋणमांथी मुक्त न थवाय.) संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे. (११) ए कृतिमां ज, नंदजी प्रत्ये कृष्ण कहे छे अमो ओशंकळ केम थईए रे, गोकुळ - स्वामी ? एवं कहीने आंसु भरियां अंतरजामी. (१२२, पद ७, १) (ह गोकुळना मालिक, तमारा ऋणमांथी अमे केम मुक्त थईए ? ) संपादके शब्दकोशमां आ संदर्भ नोंध्यो नथी. (१०९, ४६ ) Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६०६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भगवद्गोमंडले आ पंक्तिओ उद्धृत करी 'ओशियालु, गरजु' एवो अर्थ आप्यो छे, जे टकी शके एम नथी. (१२) सिंहा(शा).मां - बहु द्रव्य खरच्यो बापनो, आपी उशंकल थायु. (२०, १३४) (पितानु घणुं द्रव्य में वापर्यु छे, हवे पाईं आपीने ऋणमुक्त बनु.) संपादकना शब्दकोशमां आ पंक्तिनो संदर्भ नथी. (१३) वेताप.मां विदाय लेता सिद्धने विक्रम कहे छे - ताहरो भार माथे मुनें, कष्ट एटलु काप्य, कांईक मागो मुझ-कने, ते उशंकल थाउं. (१, ४३७-३८) (मारी पासे कंईक मागो, जेथी तमारा ऋण-भारमांथी मुक्त थाउं.) संपादके आ अने पछीना उदाहरण परत्वे 'ऋणमुक्त' अर्थ आपेल छे. (१४) एमां ज, वड परथी शबने लावी आपवानुं वचन न पाळी शकेलो विक्रम सिद्धने कहे छे - महाराज आज रात्ये जाउं छु, अरुणोदये उशंकल थाउंछु. (११, ७) (सवार पडतां ज, वचन आप्युं छे तेना भारमाथी मुक्त थाउं छु.) (१५) कस्तुवा.मां कूड़ करनार गणिकाने विक्रम हरावे छे तेथी मुलताननो राजा पोतानी धन्यता प्रगट करे छे अने - उसंकल अमने करो, घणुं वांक विवेक, देहें शुभ छे दीकरी, आपुं तमने एक. (७१७) (तमने ओळख्या नहीं ए अमारा विवेकनो दोष थयो. हवे तमे करेला उपकारना भारमाथी अमने मुक्त करो. मारी सुंदर दीकरी छे ते हुं तमने आपुं.) संपादके 'आभारी' अर्थ आप्यो छे. भगवद्गोमंडले पण आ उदाहरण संदर्भे 'आभारी, उपकार नीचे दबायेखें, अहेसानमंद' एवा अर्थ नोंध्या छे. आ अर्थो उपयुक्त नथी. (१६) रूस्तस.मां असदखान रूरतमखानने कहे छे - लूण-ओसीकल तमारो थाउ, डाभे मोरचे एकलो जाउ. (१२७) (तमारु लुण खाधुं छे तेना ऋणमांथी मुक्त थाउं. युद्धना डाबे मोरचे हुं एकलो जईश.) संपादके 'ओशिंगण' अर्थ आप्यो छे, जे योग्य नथी. (१७) वस्ताकृत पद (भगवद्गोमंडलमां उद्धृत)मा - त्यां लगण सौ रहे एकठां, ज्यां लगी ओशिंगण थाय रे. 2010_03 Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६०७ . थोडी शब्दार्थचर्चा (ऋणमुक्त थाय - ऋणानुबंधनथी मुक्त थाय - त्यां सुधी सौ एकठां रहे छे.) भगवद्गोमंडले 'बदलो वाळी आपनारुं' एवो अर्थ नोंध्यो छे ते पण बेसे अने आ प्रकारना अर्थने टेको छे ते हवे पछी आपणे जोईशं. __ अहीं 'ण'कारवाळो 'ओशिंगण' शब्द छेते ध्यान खेंचे छे. मध्यकाळना 'ल'कारवाळा प्रयोगथी ए एकमात्र अपवाद छे अने तेथी भ्रष्ट पाठ होवानो वहेम जाय छे. ए आजनो 'ओशिंगण' शब्द तो नथी ज, केमके आजना अर्थमां 'ओशिंगण थाय त्यां सुधी सौ एकठां रहे छे' एवी रचना न थई शके, 'ओशिंगण होय त्यां सुधी सौ एकठां रहे छे' एवो प्रयोग थई शके. बदलो वाळदो 'ऋणमुक्त थq एटले 'ऋण चूकववू, बदलो वाळवो'. 'उसींकल करवु' एटले तो, सामान्य रीते, 'ऋणमुक्त करतुं' ज; पण 'उसींकल थर्बु' एटले 'बदलो वाळवो' एवा अर्थने अवकाश रहे छे. आ पहेला आपणे जे उदाहरणो जोयां तेमांथी क्रमांक (७), (९) अने (१५)मा 'उसींकल' 'करवानी विनंती छे त्यां ऋण के भारमाथी मुक्त करवानो, ऋण के भार उतारवानो अर्थ ज लई शकाय छे ए जोई शकाय छे. बाकीनां उदाहरणोमां 'उसीकल' 'थवा नी वात छे त्यां बधे ज 'बदलो वाळवो' एवा अर्थन अवकाश रहे छे. जेमके (१)मां एह उपगार उसीकल केम (थवाय) एटले "एना उपकारना भारमांथी मुक्त केम थवाय" तेम 'एना उपकारनो बदलो केम वाळी शकाय?" एवो अर्थ लीधो ज छे ए आपणे आगळ जोयुं छे. आ पूर्वे आपणे नोंधेला उदाहरणोमां 'ना उसींकल थर्बु' एवी रचनाओनो समावेश थयो छे, पण ते उपरांत '-ने उसींकल थर्बु' एवी रचना पण मळे छे अने त्यां 'बदलो वाळवो' ए अर्थ वधु स्वाभाविक लागे छे. अपकारना पण उसींकल थवानी वात आवे छे त्यां तो ए अर्थ लेवो अनिवार्य लागे छे. आ अर्थ 'उसींकल करवुना प्रयोगमा प्रवेश्यानुं पण एक उदाहरण मळे छे ए बतावे छे के मध्यकाळमां 'उसींकल' शब्द घणा संदर्भोमां वपरातां एनो 'मुक्त थवा'नो चोक्कस अर्थ न रहेतां 'बदलो वाळवो' जेवा व्यापक अर्थाने स्थान मळ्युं छे. आ अर्थनां केटलांक उदाहरणो हवे जोईए: (१८) उपबा.मां - समकितना देणहार गुरुनई घणे भवे बिमणीतिमणी जां लगइ अनंतगुणी इम सघले गुणाकारे मेली उपगारना सहस्रनी कोडे उसंकल थाई न सकइं (२६९) (सम्यक्त्वना दातार गुरुने घणां जन्मोमां बमणा-तमणाथी मांडीने अनंतगणा सुधीना सर्व प्रकारना गुणाकार करीने हजारो उपकारथी पण बदलो न वाळी शकाय.) 2010_03 Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६०८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश अहीं ' ने उसंकल थर्बु' एवो प्रयोग छे ते नोंधपात्र छे. संपादके 'ऋण चूकवq ते' एवो अर्थ आप्यो छे, जे बराबर छे. (१९) नलरा.मां पोताना हाथने डसनार नागने नल कहे छे - दूधदायकनइ डसीइ किम ?, उसीकल थयु मझ करी इम ! (७५८) (जेणे दूध पायें एने केम इसाय ? तें मने आवी रीते बदलो वाळ्यो !) 'ऋणमुक्त थयो' करतां 'बदलो वाळ्यो' ए वधारे संगत लागे छे. संपादके 'आभारी' अर्थ आप्यो छे, जे खोटो छे. (२०) ऐतिरा. अंतर्गत कीर्तिसागरशिष्यकृत 'भीम चोपाई मां - - सोवन बराबर तोलइ जोय, खंधि करी करै तीरथ कोय, इंद्रमाल पहेरावे माय, गुणउसंकल तोइ न थाय. (१५२) (माताने इंद्रमाळ पहेरावे तोये एना गुण-उपकारना भारमाथी मुक्त न थवाय / एना गुण-उपकारनो बदलो न वळे.) संपादके 'गुणनी भरपाई' एवो अर्थ आप्यो छे. आ संदर्भमां जुओ आ पूर्व (१) 'उपकार-उसीकल' तथा (१६) 'लूंण-ओसीकल'. (२१) दशस्कं(१).मां कृष्ण तरीके अवतार लई रहेला विष्णु शेषने पोताना ज्येष्ठ भ्राता - बलराम - तरीके अवतरवा कहे छे - विष्णु कहे, “रामा-अवतारे तमो कीधी सेवा सबळ रे; आ वारे कनिष्ठ थई सेवू, थाउं तमने ओसींगळ रे" (८, २२) (रामावतारमा तमे - नाना भाई लक्ष्मण बनी - मारी घणी सेवा करी हती. आ वखते हुं नानो भाई बनी तमारी सेवा करुं अने तमने बदलो वाळू / तमारा ऋणमांथी मुक्त थाउं.) संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे. २२. सिंहा(शा).मां ब्राह्मण पुत्र मेळववा माटे शिवनी अपार भक्ति करे छे, पछी - - शिव तो थया अति आकला, "एहमें सुअ अपाय, पांचसे पुत्र ज आपतां, उशंकल न थाय." (२०, ३०) (एने शुं आपq ? पांचसो पुत्र आपतांये एनी भक्तिनो बदलो न वळे.) संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे, एने थोडो खेंचीने बेसाडी शकाय, पण 'बदलो वळवा'नो अर्थ साहजिक रीते बेसे छे. . (२३) एमां ज, पापोनी यादी वर्णवतां - नीवांण पुरावें, विष-स्युं वेर, पाडोसी उपर राखें झहेर, गोडे वाडी लीली घणी, उसंकल न करे विद्या भणी. (१९, ४७२) ___ 2010_03 Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६०९।। थोडी शब्दार्थचर्चा (विद्या भणीने एनो बदलो न वाळे.) संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे, पण अहीं तो 'करे'वाळो प्रयोग छ ने 'ऋममुक्त करे' ए अर्थ अभिप्रेत नथी ज. तेथी 'बदलो वाळे' ए अर्थ ज उपयुक्त छे. (२४) नंदब.मां - गुण के अवगुण ओसींकल थाये, पीत्री पंड तारे तो साहे. (२४१) (गुण के अवगुण - उपकार के अपकारनो बदले वाळीए त्यारे ज पितृ पंड ले.) अपकारना संदर्भमां 'ऋणमुक्ति' नहीं पण 'बदलो'नो अर्थ ज बेसे. संपादकना शब्दकोशमां आ शब्द नोंधायो नथी. (२५) कस्तुवा.मां हंसहसणीनी वातमाथी कस्तुरचंद शुभ रात्रि-योग जाणे छे ने पोते पोतानी पत्नीथी दूर छे एनो अफसोस करे छे. हंसना पूछवाथी कारण कहे छे. पछी - हंसनी कहें रे, "हंस, सुमि, पुछे उशंकल थावो, आ वेला तम्यो एहनें मंदिर मध्ये लेइ जावो." (४१६) (हंसणी कहे छे के "हंस, सांभळो. एने पूछ्यानो बदलो वाळो.") संपादके 'आभारी' अर्थ आप्यो छे. (२६) वेताप.मां लक्ष्मीजी विष्णुने कहे छे - भली भगत्य करें भांमीनि, ते आपणनें भार, कीजें उशंकल एहनें, तुं नोधारां-आधार. (२३, २५) (आ स्त्रीओ आपणी खूब भक्ति करे छे. एनो आपणने भार चडे. तो एमने बदलो वाळो.) संपादके आ अने पछीनां उदाहरणो परत्वे 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे, पण अहीं पण (२३)ना जेवो 'उशंकल कीजे' प्रयोग छे एटले 'बदलो वाळो' ए अर्थ ज लेवानो रहेशे. (२७) एमां ज, गरीब माबाप चार पुत्रोमां पोतानी जेवी-तेवी मिलकत वहेंची दे छे. पछी - माबाप कहें, "सपूत छो तम्यो, किम जीवीशुं करमां अम्यो" “जेहनें शीवजीनि क्रीपा हशें, ते तमने उशंकल थशे. नहीतर वारा फरती वार, च्यार पुत्र में दाढा च्यार.” (२४, १३-१८) (माबाप कहे छे के तमे तो सपूत छो पण आ मुश्केल वखतमां अमे केम जीवीशुं ? दीकरा उत्तर आपे छे के जेना उपर शिवजीनी कृपा हशे ते तमने बदलो 2010_03 Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश वाळशे/तमारा ऋणमांथी मुक्त थशे.) अहीं ‘ने उशंकल थर्बु' ए प्रयोग छे ए नोंधपात्र छे. (२८) एमां ज, रोगिष्ठ राजानो उपचार करवा आवनार वैद्य कहे छे - नव नाडी कोठा बोहोतर तणी वखाणी जाणुं वात, ___ओशंकल थायुं एटलुं रोग-परिख्या ख्यात. (६, २८) (तमे जे कई पुरस्कार आपवाना छो एनो बदलो वाळी शकुंएटलुं मारुं रोगपरीक्षार्नु ज्ञान छे.) राजाए पुरस्कार जाहेर कर्यो छे पण उपचार थयो नथी एथी ए मळ्यो तो नथी. माटे 'ऋणमुक्त अर्थ लेवार्नु अगवडभर्यु छे. (२९) मदमो.मां काबुलीने गयेली गंगनी पत्नी दूधां, गंग अने काबुली वच्चे युद्ध थाय छे त्यारे, काबुलीने गंगना कमरनी कटार लई एनो घात करवा कहे छे, जे काबुली समजी शकतो नथी. ए वखते गंग कहे छे - ए सुं समजे मुरखो, तु जोजे माहारा हाथ. खाधु-पीधुं माहरू, ते ओशींगल कीध, एने कहं ते में लहं, रूडी शीक्षा दीध. (६९१-९२) (ए मूर्ख शुं समजवानो छे. हवे तुं मारो हाथ जोजे. आज सुधी तें मारुं खाधुं-पीधुं तेनो आज बदलो वाळी आप्यो. तें जे एने कह्यं ते हुं समजी गयो. तें सारी शिखामण आपी.) __संपादके आ अने पछीनां उदाहरणो परत्वे 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे पण अहीं 'ओशींगल कीध' एवी रचना छे. 'तारी जातने ऋणमुक्त करी' एम अर्थ लई शकाय, पण 'बदलो वाळ्यो' ए अर्थ वधु स्वाभाविक लागे छे. अनंतराय रावळे एमना संपादनमां आ अर्थ लीधो छे. (३०) एमां ज, गुणकाना पंजामां सपडायेली मोहना एमांथी छटकी नासी जवा तत्पर थई होय छे त्यारे विचारे छे - ___ गुणका गुण दीधो मुने, कांईक ओशीकल थाउ. (१०१६) (गुणकाए मने गुण-उपकार कर्यो छे, ते तेना ऋणमांथी कंईक मुक्त थाउं । एनो बदलो वाळु.) वस्तुतः अहीं 'गुण दीधो' ए कटाक्षमां बोलायेखें वचन छे. गुणकाए तो अपकार कर्यो छे. एटले 'ऋणमुक्त थवा' करतां 'बदलो वाळवो'नो अर्थ वधु उपयुक्त गणाय. आ उद्गार पछी जेणे जेवू कर्यु होय तेवू सामुं करीए तेवी मतलबनो छप्पो आवे छे ते पण 'बदलो वाळवो'ना अर्थ, ज समर्थन करे. मोहना जाय छे पण गुणकाना 2010_03 Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६११ थोडी शब्दार्थचर्चा नाककान कापीने. (वचन) पाळवं __ 'वचन' जेवा शब्दना संदर्भे 'उसींकल' शब्द आवे त्यारे 'वचनना भारमांथी मुक्त थर्बु' एवो अर्थ थाय. एमांथी 'वचननी पूर्ति करवी, वचन पाळवू' एवा सामान्य अर्थ पण विकसी शके. मध्यकाळमां एवो प्रयोग पण सांपडे छे जेमां वचननी पूर्ति करीने एमांथी छूटी जवानुं अभिप्रेत नथी, वचन- अनुवर्तन - अनुपालन करवानो अर्थ छे. एटलेके (वचन) पाळवुनी व्यापक अर्थछाया आपणे लेवानी रहे छे. अगाउना (२५)मा उदाहरणमा पुछे उशंकल थावो एटले "पूछ्युं छे तो ए मुजब वर्तो - करो" एवो अर्थ अभिप्रेत होवानी पण शक्यता गणाय. 'वचन' जेवा शब्दो साथे आवता 'उसींकल' शब्दना अन्य प्रयोगो हवे आपणे जोईए. (३१) पद्मनाभकृत 'कान्हडदे-प्रबंध' (१४५६) (भा.३-४, संपा. कांतिलाल ब. व्यास, १९७७)मां विष्णुनो अवतार लेखायेल कान्हडदे कहे छे - राउल भणइ, "व्यास कुण साखि, ताहरउ धूम न जोसिउं आंखि, थ्या उसंकल अवसर भलइ, दीधउं वचन जनमि आगिलइ." (४,२९१) (राजा कहे छे - व्यास, कोण साक्षी बनशे? तुं जौहरनो जे अग्नि पेटावीश तेनो धुमाडो हुं मारी आंखथी जोईश नहीं. आगला जन्ममां अमे जे वचन आप्युं हतुं तेना भारमाथी आ शुभ अवसरे अमे मुक्त थया / ते वचन आ शुभ अवसरे अमे पाळ्यु.) आ पछी अल्खानना स्कंध भांगीने रुद्रने छोडाव्यानो तथा वालिवध ने शिशुपालवधनो कान्हडदेने मुखे उल्लेख थयो छे. ते पछी देव कलियुगमां अवतार लई, पोतानुं वचन पाळी स्वस्थाने गया एम वर्णन छे. संपादके संबंधित पंक्तिनो "अमे आवा (धमीयुद्धमा वीरगति पामवानो मंगल अवसर मळतां (ईश्वरना) बहु ओशिंगण थया छीए" एवो अनुवाद कर्यो छे. एटलेके 'उसंकल' शब्दने एमणे 'उपकृत'ना अर्थमां लीधो छे. भगवद्गोमंडले पण आ पंक्तिने संदर्भे 'आभारी, उपकृत' अर्थ आप्यो छे, जे योग्य नथी. (३२) शृंगाम.मां युद्ध माटे प्रयाण करती वखते अजितसेन पोतानी पत्नी शीलवतीने कहे छे - वचन उसीकल आपणा, हवइ म विसारसि चित्ति, दिन दिन अधिक वधारयो, वहाली आपणी प्रीति रे (८६६) (पोतानां वचन- पालन करजे अने हवे मने चित्तमांथी विसारती नहीं.) संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे, परंतु 'मुक्ति'नी वात अहीं संगत बने तेम 2010_03 Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नथी. (३३) मदमो.मां पुरुषवेशे एक स्त्रीने परण्या पछी विदाय लेतां मोहना कहे छे - जरूर जातरा माहारे जावू, इष्ट देवने ओशीकल था. (१०५०) (मारे अवश्य जात्राए जवानुं छे अने इष्टदेवना ऋणमांथी मुक्त थवानुं छे । इष्टदेवने बदलो वाळवानो छ । इष्टदेवनी मानता पूरी करवानी छे.) ____ अहीं ' ने ओशीकल थ' एवो प्रयोग छे तेथी 'बदलो वाळवा'नो अर्थ वधारे साहजिक रीते बेसे. संदर्भ तो जात्रानी मानता (वचन) मानेली होय अने एनुं पालन करवानुं छे एवो समजाय छे. तेथी 'पाळवू, पूर्ति करवी'नो अर्थ पण होवानो संभव रहे छे. संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे. अनंतराय रावळे पण एमना संपादननां ए ज अर्थ आप्यो छे. आभारी, ऋणी 'ल'कारवाळु रूप वपरायुं होय अने 'आभारी, ऋणी' एवो अर्थ - ने एवो ज अर्थ - थतो एवं एक विरल उदाहरण मळे छे ए खास नोंधपात्र छे. आमां बे शक्यता छे : (१) 'ओशिंगण' अने 'ओसिंकल' जुदा ज शब्दो होय अने अहीं 'ओशिंगण'ने स्थाने 'ओसिंकल' कोईक भूलथी आवी गयो होय; (२) 'ल'कारवाळा रूपनो ज अर्थविकास थयो होय - ऋणमुक्त करवू, 'ऋणमुक्त थवानी तक आपवी, ऋणमुक्त थवानी तक आपी आभारी करवू. ने पछी 'ल'कारवाळु रूप 'ण'कारवाळा रूपमा परिवर्तन पाम्युं होय. प्राप्त उदाहरण कमलविजयकृत 'चंद्रलेखा रास' (जैन गूर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति, भा.६, पृ.४७०)मा छ : गुरुपदयुग युगतस्युं, वलि वंदु बहु वार, ओसिकल बहु एहना, ग्यानदानदातार. (५) (गुरुना पदयुग्मने योग्य रीते अनेक वार वंदुं छु. गुरु ज्ञानदान आपनार छे ने अमे एमना खूब ऋणी छीए.) १९६४ जेटलो वहेलो आ प्रयोग मळे छे ते खास नोंधपात्र छे. व्युत्पत्ति ___ 'उसींकल' शब्दनी जुदीजुदी व्युत्पत्तिओ सूचववामां आवी छ : (१) त्रंबकलाल एन. दवे (ए स्टडी ऑव् गुजराती लँग्विज, १९३५) सं. उत्संकलित, प्रा.उस्संकलिअ एवी व्युत्पत्ति सूचवे छे. (२) हरिवल्लभ भायाणी (मदनमोहना, १९५५) सं.उत्+शृंखला, प्रा.ओ+सिंखला ___ 2010_03 Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१३ थोडी शब्दार्थचर्चा एवी व्युत्पत्ति सूचवे छे. (३) के. का. शास्त्री (नळाख्यान, १९५६) सं.अप-शृंखल परथी 'उसींकल' आव्यो होवानी शक्यता दर्शावे छे. (४) कांतिलाल ब. व्यास (कान्हडदे प्रबंध, भा.३-४, १९७७) सं.उपसंग्रह, प्रा.उव-संग्रह साथे 'उसींकल'ने सरखाववानुं सूचवे छे. आमांथी बीजी व्युत्पत्ति वधारे प्रतीतिकर जणाय छे. सं.उत्+शृंखल परथी आवेलो बीजो एक शब्द 'उच्छंखल' (मध्यकाळनो 'उछंकल') आपणने जाणीतो छे. एमां नियमनी शृंखला छोडी देवानो अर्थ छे त्यारे 'उसींकल'मां ऋण के भारनी शृंखला. एकमां अ-पालननो अर्थ छे, बीजामां पालननो अर्थ विकसे छे अने आम एक ज मूळमांथी आवेला बन्ने शब्दो, अंते, अर्थना बे विरुद्ध छेडा व्यक्त करता देखाय छे. शब्दार्थना इतिहासनो आ कौतुकमय दाखलो छे. [फार्बस गुजराती सभा त्रैमासिक, जान्यु.-मार्च, १९९०] ४५. काण, काणि, काणी, कांणि, कुलकाणि, मुहकाणि 'काण' शब्द अत्यारे 'मरण पाछळनी रोककळ, खरखरो, दिलसोजी' ए अर्थमां जाणीतो छे. 'काणे जवु' 'काण मांडवी' 'मोंकाण’ ‘काण-मोंकाण' वगेरे प्रयोगो आपणने मळे छे. आपणा कोशो 'काण' शब्दनो आ अर्थ ज नोंधे छे; भगवद्गोमंडल बीजा घणा अर्थो नोंधे छे, पण तेमांथी केटलाक संस्कृत शब्दकोशने आधारे मुकायेला जणाय छे, तो बीजा केटलाक अर्थोनी प्रमाणभूतता शंकास्पद जणाय छे. ___'एना घरमां तो रोज आम काण मंडाय छे', 'ए दुखियाराए मारी पासे मोंकाण मांडी' जेवा 'काण'ना लाक्षणिक प्रयोगो पण व्यवहारमा सांभळवा मळे छे, जेमा 'दुःख के झघडानु वातावरण', 'दुःखभरी कथनी' ए अर्थो विकस्या छे. पण आपणा कोशोए व्यवहारना आ प्रयोगोनी नोंध नथी लीधी, भगवद्गोमंडले पण नहीं. . ____ 'काण' शब्दनो पूर्व-इतिहास तो आपणने थोडो मूझवे एवो छे. छेक अपभ्रंश-काळथी आ शब्द वपरातो आव्यो छे अने एमां विभिन्न अर्थछायाओ जोवा मळे छे. अहीं, आजे जाणीता अर्थथी जुदा अर्थोमां आ शब्द प्रयोजायो छे तेनी नोंध लेवानो उपक्रम छे. अपभ्रंशना अने गुजरातीना 'काण' शब्दना प्रयोगो बहुधा जुदी अर्थपरंपरा दर्शावे छे तेथी ए बन्नेने अलग पाडीने आपणे वात करीशुं. (अपभ्रंशना प्रयोगो डॉ. हरिवल्लभ भायाणी पासेथी मने प्राप्त थया छे, अनुवाद साथे.) अपभ्रंशना प्रयोगो (१) स्वयंभूकृत 'पउमचरिय' (नवमी सदीनु चोथु चरण) (संपा. हरिवल्लभ चू, Jain E.97.3 international 2010_03 .. Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भायाणी, १९५३)मां - आएं समापुं फिर कवण खत्तु, घाइज्जइ नासतो वि सत्तु जं फिट्टइ जम्म-सयाहं काणि किर जाम पधावइ सूल-पाणि. (१०, १२, १-२) रावण साथेना युद्धमा हारीने नासी जता वैश्रवणने मारी नाखवा माटे कुंभकर्ण तेनी पाछळ जवा करे छे त्यारे बोलायेली आ उक्ति छे. एनो अनुवाद आ प्रमाणे थाय : "आनी साथे वळी क्षात्रधर्म (पाळवानी) ते वात होय ? (आवा) नासता शत्रुने पण हणवानो ज होय, जेथी सेंकडो जन्मनी 'काणि' फीटे - एयू कहेतो ज्यां ते हाथमां शूल पकडीने दोडवा जाय छे, त्यां....." संपादके आ अने पछीना उदाहरणने अनुलक्षीने 'वैर ?' एम अर्थ नोंध्यो छे. वस्तुतः आ संदर्भमां अहीं 'सेंकडो जन्मनुं वैर', 'सेंकडो जन्मनो झघडो', 'सेंकडो जन्मथी मने लागेलुं कलंक' एम 'वैर', 'झघडो', 'कलंक' त्रणे अर्थो बेसे छे. 'कलंक' अर्थ पछीथी राजस्थानी-गुजरातीमां विकसेला 'लज्जा'ना अर्थ साथे संबंध व्यक्त करे, परंतु अपभ्रंशनी 'काणि'ना प्रयोगनी परंपरा 'झघडा'ना अर्थने वधारे टेको आपे छे, जे आपणे हवे पछी जोईशुं. 'वैर'नो अर्थ 'झघडा' साथे संकळायेलो ज गणाय. देशी शब्दसंग्रहे 'काणि' शब्दनो 'वैर' एवो अर्थ नोंध्यो छे ते आवा कोईक प्रयोगने अनुलक्षीने हशे. (२) ए ज कृतिमां - सहुं सालएहिं किर कवण काणि, जई घाइय तो तुम्हहुं जि हाणि. (१३, ११, ९) मय राक्षस रावणने एना साळाओ खरदूषणने न मारवानी सलाह आपे छे ते प्रसंगनी आ उक्ति छे. एनो अनुवाद आम थाय : “साळानी साथे ते 'काणि' करवानी होय ? तेने मार्यो होय तो तेथी तने ज हानि थाय." अहीं 'वैर' के 'झघडो' ए अर्थ बेसी शकशे, पण 'कलंक' ए अर्थ बेसी नहीं शके. (३) साधारण कविकृत 'विलासवइ कहा' (१०३७) (संपा. र. म. शाह, १९७७)मां - - एहु चोरु समप्पि, म करहि काणि. (१, १०, ७) नायक पोताना आश्रये आवनार चोरने रक्षण आपे छे त्यारे एने पकडवा मागनार नायकने आ शब्दो कहे छे - "आ चोर सोंपी दे. 'काणि' न कर." अहीं स्पष्ट रीते -टाना 2010_03 Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१५ . थोडी शब्दार्थचर्चा तो 'झघडो' अर्थ बेसे छे. “अमारी साथे दुश्मनावट न कर / वेर न बांध" एम अर्थ पण लई शकाय. (४) रत्नप्रभसूरिकृत 'रिसह-पारण-संधि' (११८२) (संधिकाव्यसमुच्चय, संपा. र. म. शाह, १९८०)मा - धणवंत दित न हु करहि काणि. (३, ३) "धनवान लोको दान देवामां 'काणि' करता नथी" ए वाक्यमां 'काणि'नो 'वेर', 'झघडो' के 'कलंक' अर्थ न ज बेसे, 'संकोच' एवो अर्थ ज बेसे. राजस्थानी-गुजरातीमां 'शरम, संकोच' एवा अर्थमां 'काणि' शब्द वापरवानी दीर्घ परंपरा मळे छे पण ए शब्द आटलो वहेलो आ अर्थमां वपरायेलो मळे छे ए खास नोंधपात्र छे. अपभ्रंशमां 'झघडो' ए अर्थनी व्यापक परंपरानी साथे आ अर्थ- अस्तित्व सविशेष नोंधपात्र बने. (५) मेरुतुंगाचार्यकृत 'प्रबंधचिंतामणि' (१३०५) (संपा. जिनविजय मुनि, १९३३)मां - लच्छि-वाणि मुहकाणि, सा पइं भागी मुह मरउं, हेमसूरि-अत्याणि, जे ईसर ते पंडिया. (पृ.९२, पद्य २०२) हेमचंद्राचार्यनी प्रशस्ति करवानी स्पर्धामां ऊतरेला बे चारणोमांनो एक एमने आवता जोईने आ प्रमाणे कहे छे – “लक्ष्मी अने सरस्वती वच्चे जे 'मुहकाणि' छे, ते तें मिटावी. हुं तारा मों पर ओळघोळ थाउं छं. हेमसूरिनी सभामां जेओ श्रीमंत छे तेओ पंडित पण छे." लक्ष्मी अने सरस्वती एक स्थाने रहेतां नथी, ए रीते एमनी वच्चे 'वेर' के 'झघडो' होवानी वात जाणीती छे. एटले अहीं 'मुहकाणि'नो एवो कोई अर्थ लेवानो थाय. 'मुह' शब्दने लक्षमां लईए एटले 'बोलचालनो झघडो' एम करवानु थाय. 'कलंक' के 'शरम, संकोच' ए अर्थने अहीं अवकाश जणातो नथी. आम, अपभ्रंशनां चार उदाहरणोमां 'काणि' शब्दनो जे एक अर्थ सुसंगत अने सरळ रीते बेसे छे ते 'झघडो' छे. एथी एनी प्रमाणभूतता सौथी वधारे गणाय. ए चार उदाहरणोमांथी त्रणेकमां 'वेर' ए अर्थने अवकाश रहे छे, पण 'शरम, संकोच' ए अर्थने लगभग अवकाश नथी. एक उदाहरणमां 'वेर', 'झघडो' ए अर्थाने बिलकुल अवकाश नथी ने निर्विवाद रीते 'संकोच'नो अर्थ बेसे छे, जे अर्थने पछीनी परंपरानो टेको छे. आ परथी 'झघडो'ना अर्थमां 'काणि' ए अपभ्रंशमां जूनो प्रयोग होवानु समजाय. 'लज्जा, संकोच'ना अर्थमा 'काणि'नो प्रयोग ए पाछळनो फणगो समजाय. पछीथी लंने प्रयोगो साथे चालता होवा, पण आ उदाहरणो बतावे छे. 2010_03 Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गुजरातीना प्रयोगो . (१) प्राचीसं.-अंतर्गत पाल्हणकृत 'आबूरास' (१२३३)मां - त करिज मंदिर तिजपाल तुहूं, हियइ म धरिजहु काणि. (२३) राजा सोम तेजपालने आबु पर मंदिर बांधवा माटे जग्या आपे छे त्यारे बोलायेली आ उक्ति छे. संपादकोए अहीं 'काणि'नो अर्थ 'चिंता' को छे. ए अर्थ संदर्भमां बेसे छे. पण गुजरातीना जे अन्य प्रयोगो मळे छे तेमां 'चिंता' अर्थ भाग्ये ज जोवा मळे छे, 'लज्जा, शरम, संकोच' ए अर्थ अत्यंत व्यापक छे. एमांथी 'संकोच' ए अर्थ अहीं सरस रीते बेसी जाय छे : "मनमां संकोच न राखतो". अने राजस्थानी शब्दकोश 'काण' 'काणि' ए शब्दोना अनेक अर्थो नोंधे छे तेमां 'मान, प्रतिष्ठा, इज्जत; लोकलज्जा, मर्यादा; संकोच; हद, सीमा' ए अर्थो छे, पण 'चिंता' ए अर्थ नथी. एटले चिंता ए अर्थने आ पद्यना संदर्भ सिवाय बीजो टेको नथी एम कहेवाय. आ रीते अहीं 'संकोच' ए अर्थ लेवो ज इष्ट कहेवाय. ('चिंता' ए अर्थ माटे जुओ हवे पछी क्रमांक ११). (२क) गुर्जरा.-अंतर्गत वस्तिगकृत 'चिहुंगति चोपाई' (१४मी सदी पूर्वाध)मां - पुद्गल तणीय संख्या जाणि फिरतई जीवि न कीधी काणि (४९) संपादके 'a visit of condolence' (खरखरो) ए अर्थ आप्यो छे, जे ए शब्दनो अत्यारे प्रचलित अर्थ छे. पण अहीं ए कोई रीते बंधबेसतो थतो नथी. 'संकोच' ए अर्थ ज संगत बने तेम छ - "पुद्गलनी घणी संख्या छे. एमां भटकवामां जीवे कशो संकोच राख्यो नथी." मतलब के जीव अनेक पुद्गलोमां भन्यो छे. (२ख) गुर्जरा.-अंतर्गत शालिभद्रसूरिकृत 'पंच पांडव चरित रास' (१३५४)मां - मई मुरखि अजाणि अविणउ कीधउ तुम्हा रहइं, मूं मोटि मुहकाणि तुम्हं खमु अवराहु मुह. (८,१२) वनवास पामेला पांडवोने पुरोचन द्वारा आ शब्दो कहेवडावी दुर्योधन एमने वारणावत जवा विनंती करे छे. संपादकोए अहीं 'मुहकाणि'नो अर्थ 'a visit of condolence' (खरखरो) आप्यो छे, जे 'मोंकाण' शब्दनो अत्यारे प्रचलित अर्थ छे. परंतु ए स्पष्ट छे के आ संदर्भमां ए अर्थ तद्दन असंगत छे. अपभ्रंशनो 'वेर' 'झघडो' ए अर्थ पण बेसी शके तेम नथी. गुजराती परंपरामां व्यापक रीते जोवा मळतो 'लज्जा, शरम'नो अर्थ बेसी शके खरो – “में मूरखाए अजाणपणे तमारो अविनय कर्यो. मने एनी खूब शरम आवे छे. तमे मारा अपराधनी क्षमा करो" - परंतु 'दुःख' 'वसवसो' 'अफसोस' एवो अर्थ कदाच वधु उपयुक्त लागे - "मने एनुं भारे दुःख छे, मने एनो भारे वसवसो | अफसोस छे." तो, 'काणि' शब्दना आ प्रकारना अर्थनो 2010_03 Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१७ थोडी शब्दार्थचर्चा संभव केटलांक उदाहरणोमां आपणने देखायो छे (जुओ आ पूर्वे ६, १४, १९ अने २० तथा हवे पछी २१) एनुं अहीं समर्थन सांपडे छे एम कहेवाय. 'मुहकाणि'नो आ उदाहरणमां तो 'काणि' थी कई विशेष अर्थ होय एम जणातुं नथी. (२) मेरुसुन्दरगणिकृत 'शीलोपदेशमाला' (१४६९) संपा. ह. च. भायाणी वगेरे, १९८०]मां शब्दकोशमां 'काणि-मर्यादा, दाक्षिण्य, लाज (काणिइं पाडी = शरममां नाखी, शरमावी)' एवी नोंध मळे छे, परंतु प्रयोगस्थान दर्शाव्युं नथी तेथी आ अर्थाने प्रयोगनो खरेखर केटलो टेको छे ते नक्की थई शकतुं नथी. 'काणिइं पाडी' एम ज प्रयोग होय तो 'मर्यादा, दाक्षिण्य' ए अर्थाने अवकाश केटलो रहे ए प्रश्न छे. 'दाक्षिण्य' ए अर्थने तो परंपरानो के कोशोनो टेको पण जणातो नथी. ए अर्थ शाने आधारे अपायो हशे ते स्पष्ट थतुं नथी. (३) आरारा.अंतर्गत राजकीर्तिकृत 'आरामशोभारास' (१४७९)मां - जे थांनकथी आवीयां कहिता मं करिसि कांणि. (६४) __ माथे बगीचावाळी विद्युत्प्रभा तरफ राजा आकर्षाय छे. मंत्री ए कन्याने तेनो परिचय पूछे छे त्यारे आ वाक्य बोले छे. अहीं 'कांणि' शब्द 'शरम, लज्जा, संकोच'ना अर्थमां छे ए स्पष्ट छ : "तुं क्यांनी छो वगेरे कहे, लजवाती नहीं." (४) हरिवि. (संभवतः १५मी सदी)मां - वयरीय विरहीय मारतु मार तु न करि कांणि. (५२) कृष्णना कामबाणथी वींधायेली विरहिणी गोपीनी आ उक्ति छे. संपादके 'कांणि'नो अर्थ 'लज्जा' नोंध्यो छे अने आ प्रमाणे अनुवाद आप्यो छे - “कामदेव पोताना वेरी विरहीने मारी नाखतां पण लाजतो नथी." 'लज्जा' ए अर्थ, आम, अहीं यथायोग्य छे. ए नोंधपात्र छे के गुजराती संपादन-प्रकाशनमा 'काणि' शब्दनो 'लज्जा' एवो अर्थ सौ प्रथम अहीं नोंधायो छे - १९६५मां. (५) नलाख्या. (१५मी सदी)मां - विहिची मेरु महागिरि नाप्यु पात्र तणि तां पाणि, . तु शृं दान कर्यु मि महीमांहां, मनि मोटी ए काणि. (४, ८). नळना मननो विचार अहीं व्यक्त थयो छे. संपादके 'काणि' शब्दनो 'खरखरानी कथनी, मरेला पाछळनी रोककळ' एवो अर्थ आप्यो छे ते 'काण' शब्दना अत्यारे प्रचलित प्रयोगनो अर्थ छे, पण आ संदर्भमां ए केम लागु पडे ए कोयडो छे. अहीं 'संकोच' ए अर्थ बंध बेसे छे – “सुपात्रना हाथमां मेरु पर्वत वहेंची न आप्यो तो में आ पृथ्वीमां शुं दान कर्यु कहेवाय एनो नळना मनमां भारे संकोच हतो." कदाच, 'खटक' 'वसवसो' ए अर्थ वधारे सारी रीते बंध बेसे : "नळना मनमां 2010_03 Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भारे वसवसो हतो." ('खटक' 'वसवसो' ए अर्थ माटे जुओ हवे पछी क्रमांक १७क अने २१) (५क) कादं(च). तथा कादं (शा). (१५मी सदी)मां - इतर कन्यानी पिरि जु मेहेलीइ कुल-काणि. ध्रुवे शब्दकोशमां 'प्रतिष्ठा' अने टिप्पणमां 'कुळनी ख्याति, प्रतिष्ठा' एम अर्थ आप्यो छे अने हिंदी 'कुलकानी' शब्दनो हवालो आप्यो छे. शास्त्रीए 'कुलनी मर्यादा' अर्थ आप्यो छे, जे संदर्भमां बराबर वधारे बंध बेसे छे : "अन्य कन्याओनी पेठे जे कुलमर्यादाने छोडे छे.". (६) वीसरा. (१४५० के पछी)मां - .. हम तुम्ह बार वरसकी कांणि. (२९) राजमती वीसलदेवने टोणो मारे छे के तारा देशमा मीठाना खडको छे, पण ओरिस्साना धणीने त्यां तो हीरानी खाणो छे, त्यारे वीसलदेव ओरिस्साना राजदरबारमां जवान मनथी नक्की करी ले छे अने आ उक्ति बोले छे. 'कांणि' शब्द आ कृतिमां आ उपरांत बीजां बे स्थाने वपरायो छे, ते बधां स्थानोने अनुलक्षीने संपादक एनो अर्थ 'agreement, convention' (समजूती, रूढि) एवो आपे छे. प्रस्तुत स्थाने ए अनुवाद आम करे छे - 'You and I (must undertake) an agreement (to remain separate) for twelve years.' (तारे अने मारे बार वरस सुधी जुदां रहेवानी समजूती करवी जोईए.) संपादक स्वीकारे छे के 'कांणि'नो अर्थ कोयडारूप छे. पूर्वे माताप्रसाद गुप्ताए आपेला 'सोगंद', 'प्रतिज्ञा' ए अर्थ माटे कोई प्रमाण न जडवाथी राजस्थानी शब्दकोशे आपेला 'behavioural convention' मांथी 'behavioural constraint, convention' एवो अर्थ विकस्यो होय एq ए अनुमान करे छे. संपादक अहीं 'behavioural constraint, convention' एवा शब्द वापरे छे ते परथी समजाय छे के एमने 'व्रत, नियम, लोकाचार'नो अर्थ अभिप्रेत छे, जे 'agreement' शब्द व्यक्त न ज करी शके अने 'convention' पण एने माटे पूरतो शब्द न गणाय. राजस्थानी शब्दकोशे 'कांणि'ना आपेला अर्थ (जे आ पूर्वे आपणे नोंध्या छे)मांथी कयो अर्थ 'behavioural convention' द्वारा संपादकने अभिप्रेत हशे ते समजातुं नथी. कोशमां 'लोकलज्जा, मर्यादा' अर्थ छे, पण एमां 'अदब' 'आमन्या'नी अर्थछाया छे, 'व्रत, नियम, लोकाचार'ना अर्थने अवकाश आपे एवं कशुं नथी. समग्र परंपरामां पण अन्यत्र क्यांय आ शब्द आ अर्थमां वपरायेलो देखातो नथी. आ कृतिमांनां बीजां ____ 2010_03 Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६१९ थोडी शब्दार्थचर्चा बे स्थानोए तो ए अर्थने भाग्ये ज अवकाश छे ने 'लज्जा, संकोच'ना अर्थने पूरो अवकाश छे एम हवे पछी आपणे जोईशुं. एटले 'व्रत, नियम, लोकाचार' ए अर्थने कोई टेको होय एवं जणातुं नथी. आ संदर्भमां ए केटलो उपयुक्त छे ए पण विचारवा जेवू छे. राजस्थानी-गजराती परंपरामां व्यापक रीते मळतो 'लज्जा, संकोच'नो अर्थ तो अहीं बेसतो नथी ज, अपभ्रंशनो 'झघडो, वेर' ए अर्थ पण नहीं. बृहहिन्दीकोशे सूरदासनी एक पंक्तिना टेका साथे आपेलो 'कानि, कानी' ए शब्दनो 'कष्ट, दुःख' ए अर्थ अहीं बराबर बेसी जाय छे - "मारे ने तारे (हवे) बार वरसनुं (वियोगन) कष्ट (उठाववान)." परंतु आ अर्थने राजस्थानी-गुजराती परंपरामांथी बहु ओछो टेको मळे छे. ('कष्ट ना अर्थ माटे जुओ हवे पछी क्रमांक १९). तेम छतां अन्य प्रमाणभूत अर्थ न सांपडे त्यां सुधी आ अर्थने स्वीकारवा- विचारी शकाय. गुप्ताने संपादकना अर्थो तो स्वीकार्य जणाता नथी. (७) ए ज कृतिमा बोलइ भावज छंडीय काणि. (५०) राजमतीने छोडी परदेश खेडवा तैयार थयेला वीसलदेवने भाभी ठपको आपे छे ते प्रसंगनी आ पंक्ति छे. संपादके अहीं अनुवाद आम आप्यो छे – 'His brother's wife spoke, abandoning convention' (भाभी रूढि, लोकाचारनो त्याग करी बोली). आ अनुवाद नभे तेम छे, पण परंपरामां मळता 'लज्जा, संकोच, लोकलज्जा, मर्यादा' ए अर्थोथी आगळ जवानी जरूर नसी -- "भाभी संकोच छोडीने, मर्यादा छोडीने बोली." (८) ए ज कृतिमां - चालियउ ऊलग छंडी(य) काणि. (५३) वीसलदेव नीकळवानी तैयारी करे छे त्यारे आ पंक्ति आवे छे. संपादके अनुवाद 3114 311217 – "he (wanted to) go into service as a courtier, abandoning convention" (रूदि तजीने ए राजसेवा माटे जवा तैयार थयो). अहीं पण 'रूढि' करतां 'लोकलज्जा, कुलमर्यादा' ए अर्थो ज वधु उपयुक्त गणाय. (९) आरारा.-अंतर्गत विनयसमुद्रकृत 'आरामशोभा चोपाई' (१५२७)मां - - मागि मागि हिव म करिसि काणि. (६२) पोताना उपर उपकार करनार विद्युप्रभा प्रत्ये बोलायेली आ नागनी उक्ति छे. अहीं 'काणि'नो 'संकोच' ए अर्थ अत्यंत स्पष्ट छ - "माग, माग, हवे संकोच न राखती." 2010_03 Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६२० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (१०) नाकरकृत 'आरण्यक-पर्व' (१६मी सदी मध्यभाग) (महाभारत भा.२, संपा. केशवराम का. शास्त्री, १९३४) : विद्या न भणि, लोपि निजकर्म, अवसर आवि नवि करि धर्म, त्रिया तणी जे आणइ काणि, तेह तु आलशी चोथु जाणि. (१०६, ४१) कृतिमां चार प्रकारना आळसुओ, वर्णन थयेलुं छे, तेमां आ आखी कडीमां चोथा प्रकारना आळसुनुं वर्णन छे. संपादके अहीं 'काणि'ने अर्वाचीन गुजराती 'काण'ना अर्थने आधारे घटाव्यो छे अने "स्त्री मरी जतां जे रडतो आवे" एवो अर्थ कर्यो छे. विशेष समजूती पण आपी छे के "मुद्दे तेम न करतां तेणे सत्ताथी बीजी स्त्री करवी, तो ते आळसु न गणाय." देखाई आवे छे के वाक्यान्वय साथे घणी छूट लईने अर्थ करवामां आव्यो छे अने समजूती पण साहसिक छे. अहीं 'लाज, शरम, संकोच' ए अर्थ बेसाडवामां कशी मुश्केली लागती नथी - "स्त्रीनी जे लाज-शरम राखे, एने कहेवा योग्य कही न शके ए चोथो आळसु." (११) अंबरा.(१५८३)मां - देवादित्य राणी प्रति कहइ, लज्जा कारण मुझ मनि दहइ, अपयश एक धर्मनी हाणि, कहु साईं म करु मनि काणि. (१०७-०८) राजाराणी वनवासमां छे. राणीने पहेलेथी पेट रह्यं हतुं ते हवे गर्भ वधतां राजाने एनी जाण थाय छे. ए प्रसंगे राजा राणीने खरी हकीकत पूछतां आ शब्दो बोले छे. संपादके 'काणि' शब्दनो अर्थ 'चिंता' आप्यो छे, जे पहेली दृष्टिए बेसी जाय, परंतु 'चिंता' अर्थने परंपरानो टेको नथी अने क्रमांक १नी पेठे 'लज्जा, संकोच' ए अर्थ वधारे योग्य रीते बंध बेसे छे : "राजा देवादित्य राणीने कहे छे के (वानप्रस्थमां पुत्रजन्मनो अवसर आवतां) मने लज्जा थाय छे ने तेथी मनमां बळे छे. धर्मभंगनो अपयश आमां रहेलो छे. खरेखर हकीकत शुं छे ते कहो, मनमां कशो संकोच न राखो." (१२) आरारा.अंतगर्त समयप्रमोदकृत 'आरामशोभा चोपाई (१५९५)मां - आव्यउ पीहरि तुम्ह तणइ, खोलउ छंडी काणो रे. (१०५) पोतानो पिता लाडुनो घडो लाव्यो छे ते खोलवा राणी राजाने विनंती करे छे, त्यारे राजा द्वारा बोलायेली आ उक्ति छे. अहीं 'काण' (प्रास-अर्थे 'काणो')नो 'संकोच' ए अर्थ स्पष्ट छ - "तारा पियरथी ए आव्यो छे, माटे तुं ज संकोच छोडीने एने खोल." ___ 2010_03 Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (१३) आरारा. - अंतर्गत पूजाऋषिकृत 'आरामशोभा रास' (१५९६) मां - राजा बोलइ, 'म करु काणि, जोसी जंपइ मधुरी वांणि, 'करउ सजाई वीवाह तणी, जिम सुख हुवइ राजा भणी.' (७२-७३) प्रधान विद्युत्प्रभाना पिताने राजा पासे लावे छे ते प्रसंगनुं आ वर्णन छे. अहीं पण 'काणि'नो 'लज्जा, संकोच' ए अर्थ स्पष्ट छे. राजाना शब्दोनुं तात्पर्य एम छे के लज्जा, संकोच राख्या विना तारी शी इच्छा छे ते कहे, जेना जवाबमां ए ब्राह्मण (जोशी) विवाहनी तैयारी करवानुं सूचवे छे. (१४) कर्पूमं. (१६१९ ) मां - ६२१ थोडी शब्दार्थचर्चा उलग करतुतु, प्रभु, ताहरी, कसी काणि म आणेस माहरी. (३१६) प्रधान राजकुमारना शयनगृहमां छुपाईने सर्पने मारीने राजाने चोथी घातमांथी बचावे छे ने राणीना स्तन पर पडेला लोहीना छांटाने लूछवा जाय छे, त्यारे राजकुमार जागी जाय छे. प्रधानना हाथमां तलवार जोईने ए चमके छे, चिंतातुर बने छे अने पूछे छे "आ ते तारी रीत ? निर्लज थईने हाथमां खड्ग लंईने जोतो हतो ?" जवाबमां प्रधान उपरनी उक्ति बोले छे. संपादके, अलबत्त संदर्भने आधारे ज, अहीं 'काण' नो अर्थ 'शंका' कर्यो छे. ए अर्थ लेतां पंक्तिनो अनुवाद आम थाय "स्वामी, हुं तमारी सेवा करतो हतो, मारा पर कशी शंका न लावशो." 'शंका' ए अर्थ आ संदर्भमा बराबर बेसी जाय छे. राजकुमार तरत प्रधानने शिक्षा कराववानुं मनमां विचारी पण ले छे, परंतु परंपरामांथी ए अर्थने टेको मळतो नथी ने आगळनी पंक्तिमा 'निर्लज' शब्द वपरायो छे ते जोतां अहीं 'लज्जा, संकोच' नो अर्थ रहेलो मानवो (मारी कशी शरम न राखशो, मारो कशो संकोच न राखशो) के 'शरम, संकोच' ए अर्थमांथी 'शंका' नो अर्थ विकस्यो छे एम मानवुं के पछी 'खटको / (शंकानुं) शल्य' एवो अर्थ लेवो ते कोयडो छे. ('खटको' ए अर्थ माटे जुओ क्रमांक १४ अने २० . ) (१५) जिनरा. - अंतर्गत जिनराजसूरिकृत 'वइरकुमार गीत' (१७मी सदीनुं पहेलुं चरण)मां - जउ तइ कही अवगणी, धोटा, करि लोगणकी काण, धोटा, तउ परदेशी मीत ज्युं, धोटा, ऊठि चलेसी प्राण, धोटा. 2010_03 (४, पृ.७१-७२ ) दीक्षा लई संयममार्गे पळेला वज्रस्वामीनी मातानी पुत्रवात्सल्यनी लागणी व्यक्त करता गीतनी आ कडी छे. संपादके 'काण' शब्दनो 'लिहाज' (लज्जा, संकोच, अदब, मलाजो) अर्थ आप्यो छे ते यथायोग्य छे. माता अहीं कहे छे के लोकलाजने कारणे जो तुं मने अवगणीश तो हे पुत्र, मारा प्राण परदेशी मित्रनी पेठे चाली नीकळशे. Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६२२ . मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (राजस्थानी 'धोटा' एटले पुत्र.) (१६) उक्तिर.(१७मी सदीनुं पहेलुं चरण)मां - साधुसुन्दरगणिए 'काणि' शब्द नोंध्यो छे अने एनो संस्कृत पर्याय 'कानिः' आप्यो छे, परंतु आ तो मूळ शब्दनुं संस्कृतीकरण जणाय छे. तेथी 'काणि' शब्दना अर्थ पर कशो प्रकाश पडतो नथी. नहीं तो ते समयनी ज अर्थनी नोंध घणी मार्गदर्शक बनी होत. (१७) प्रद्युचु.(१६२६)मां - तुम्हे केहनी म करु कांणि, हारइ ते शिर मूंडी आणि. (१२०) सत्यभामा अने ऋक्मिणीने गर्भ छे अने बन्ने वच्चे शरत थाय छे के पुत्रजन्ममां जे पाछळ रहे ते हारी गणाय. आ संदर्भमां बोलायेली आ उक्ति छे. संपादके 'काणि' शब्दनो 'लज्जा' एवो अर्थ आप्यो छे अने ए यथायोग्य छे. आ पंक्तिमां एम कहेवायु • छे के तमारे कोईनी शरम राखवानी जरूर नथी, जे हारे ते माथु मूंडावे. (१७क) एमां ज - ऊपनु कोप थई चिचि काणि. (५४८) आ पंक्तिनो शब्दकोशमां संदर्भ नथी. अहीं 'संकोच, खटको' एवो अर्थ संदर्भमां बराबर बंध बेसे छे : “(कृष्णे प्रद्युम्नकुमार साथे लडवानो) संकोच के खटको छोडी दीधो अने ए क्रोधाविष्ट थया." ('खटको' ए अर्थ माटे जुओ क्र.५ अने २०) (१७ख) एमां ज - छांडी हापा शेठनी कांणि, धूरत एक घरि घालिउ आंणि. (३२७) आ पंक्तिनो पण आपेला शब्दकोशमां संदर्भ नथी. अहीं 'लाज, शरम'नो अर्थ स्पष्ट छे : "हापा शेठनी लाज छोडीने एणे एक धूर्तने बोलावी घरमां घाल्यो." । (१७ग) पुण्यसागरकृत 'अंजनासुंदरी रास' (१६५३) (जैन गूर्जर कविओ, भा.३, पृ.२२ पर उद्धृत अंश)मा - सेवकनि सानिधि करी, देवो अविरल वाणि, जेम वेगे सिद्धि चढइ, काइ म राखिस काणि. सरस्वतीदेवीनी आ स्तुतिमा 'काणि'नो 'संकोच' अर्थ स्पष्ट छ : 'सेवकने सहाय करीने, अविरल वाणी आपजो, जेथी जलदी सिद्धि मळे. जरा पण संकोच न करशो.' (१८) हरिख्या.(१६४८)मां - ___ तेडी लावो कन्याने ए वर सहित, भगवान ! साथे जनेता तेडजो, तमे रखे करता काण. (११, ७) . एक ब्राह्मणनी कन्यानो विवाह करावी आपवानुं हरिश्चन्द्र माथे ले छे त्यारे ए ____ 2010_03 Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६२३ . थोडी शब्दार्थचर्चा ब्राह्मण प्रत्ये बोलायेला आ हरिश्चन्द्रना शब्दो छे. संपादके 'ठपकापात्र वर्तणूक' एवो अर्थ लीधो छे (जे भगवद्गोमंडलें समावी लीधी छे !), जे संदर्भमां, जरा कढंगी रीते पण बेसे छे - "कन्यानी माताने पण साथे लावजो, (न लाववानी) ठपकापात्र वर्तणूक (भूल) न करशो." परंतु आ अर्थने परंपरानो टेको नथी अने परंपरानो जाणीतो 'संकोच' ए अर्थ अहीं आबाद रीते बेसी जाय छे - "माताने साथे लावजो, संकोच करशो नहीं." आ स्थितिमां, अहीं 'संकोच' ए अर्थ ज रहेलो होवानुं मानवू जोईए. (१८क) एमां ज - ज्यम होय त्यम कहो, ऋषिजी ! रखे करता काण. अहीं 'संकोच'नो अर्थ स्पष्ट छ : “जे होय तेवू कहेशो, रखे कई संकोच करता." (१९) प्राचीका.-अंतर्गत अज्ञात कविकृत 'माधवानल कथा' (अनुमाने १७मी सदी पूर्वाधीमा - सुणी वात काम्यन्य तणी, मन मांहि उपनी काणि, जेणि परि राजा दशरथ मूउ, तेणि पिरि माधव जाणि. (४१७) कामकंदलाना मृत्युना समाचार मळतां एना आघातथी माधव मृत्यू पामे छे ते प्रसंगर्नु वर्णन करती आ पंक्तिओ छे. संपादके 'काणि' शब्दनो 'विचार, चिंता, वात' एवा अर्थोनो तर्क कर्यो छे अने गुजराती 'कहाणी, काण' ए शब्दो तरफ ध्यान दोर्यु छे, पण अहीं 'काणि' शब्दनो प्रयोग थोडो कोयडारूप छे. 'लज्जा, संकोच' ए जाणीतो अर्थ अहीं उपयुक्त नथी; 'चिंता' ए अर्थने परंपरानो टेको नथी (जुओ आ पूर्वे क्रमांक १ अने ११) ते उपरांत अहीं 'चिंता' करतां आघातनी लागणीनो निर्देश वधु संभवित गणाय. तो पछी अहीं ए हिंदी 'कानि' (कष्ट, दुःख) शब्द रहेलो मानवो ? के पछी 'काणि'ना 'संकोच' अर्थमांथी 'खटको, शल्य' एवो अर्थ विकस्यो होवान अने अहीं अर्थ होवानुं मानवू ? ('कष्ट, शल्य' ए अर्थो माटे जुओ क्रमांक ६, १४ अने २१) (२०) अखाका.-अंतर्गत 'सोरठा' (१७मी सदी मध्यभाग)मां - सहुय तारो साज, तुं स्वामी सर्वे तणो. (२१७) बहु पग, बहु पाण, बहु नासा ने नेत्र बहु, कर्ता न करे काण, अंग-विचरण अळगां अखा. (२१८) नीचथी अतिशे नीच, आचरतुं नव ओसरे, (पाठां. सहुए तोरां काज) कर्म असंख्यनो कीच, तुंने न लागे, त्रीकमा ! (२१९) आ सृष्टि ब्रह्मनो विस्तार छे, पण ब्रह्म एनाथी अलिप्त छे ए वेदांतना तत्त्वविचारने ___ 2010_03 Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६२४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश रजू करती आ पंक्तिओ छे. संपादके 'काण' शब्दनो 'कहाण, कथन' एवो अर्थ आप्यो छे, पण ते संदर्भमां अस्पष्ट ज रहे छे. अहीं पण ‘काण' शब्दनो प्रयोग थोडो कोयडारूप छे, पण 'संकोच'नो अर्थ ज वधु प्रतीतिकर छे : ब्रह्म अनेक रूपे विस्तरे छे, एमां ए कर्ता कशो संकोच राखतो नथी, पण एनां ए अंगोनुं प्रवर्तन कर्ताथी जुदं ज होय छे. (२१) आनंदघनकृत 'बावीसी' (१७मी सदी उत्तराध)मां - ज्ञानस्वरूप अनादि तुह्मारुं ते लीधुं तुझे तांणी, जुओ अज्ञानदशा रीसावी, जातां काणि न आंणी हो. (१९, १) आ मल्लिजिनने संबोधायेली स्तुतिरूप उक्ति छे. एमांना 'काणि' शब्दना प्रयोगर्नु सविशेष महत्त्व छे, ते एटला माटे के एनो ज्ञानविमलसूरिए करेलो (१७१३) अर्थ आपणने प्राप्त थाय छे. ज्ञानविमलसूरि आ कडीनी समजूती आ प्रमाणे आपे छे : 'हे नाथ ! तुह्मारुं अनादि ज्ञानस्वरूप निरूपाधिक ज्ञान ते तुह्मारुं तुझे ताणी लीधुं - निरावरणी थई संग्रझुं. ते देखी अज्ञानदशा अनादिनी हती ते रीसावी गई. ते जाती जाणी देखीनइं काई मनमा शंका कांसलि नाणी, मनावी पणि नहीं.' ___ए स्पष्ट छ के ज्ञानविमले 'काणि' शब्दना 'शंका' 'कांसलि' ए अर्थो कर्या छे. 'जातां काणि न आणी' ए वाक्य एमणे मल्लिनाथने संदर्भ घटाव्या छे ने अज्ञानदशाने चाली जतां जोईने मल्लिनाथना मनमां कशी 'शंका' के 'कांसलि' न थई एम एमनुं कहेवानुं छे. 'कांसलि' शब्दनो संपादके 'खटक, वसवसो' एवो अर्थ आप्यो छे (ए अर्थ शब्दकोशोमां नोंधायेलो मने मळ्यो नथी के कोई बीजो प्रयोग पण मळ्यो नथी; ए 'कासळ' एटले 'नडतर'नुं ज अन्य रूप ?) 'खटक' ए अर्थ अहीं बराबर बेसी जाय छे. 'शंका' शब्दने अहीं 'अचकाट, द्विद्या' एवा अर्थमां आपणे लेवानो रहे, 'वहेम'ना अर्थमां नहीं. आ अर्थो 'संकोच'ना अर्थनी नजीक आवी जाय छे. गमे तेम, मध्यकाळमां 'काणि' शब्द 'शंका' 'खटक' 'वसवसो' एवी अर्थछायामां समजवामां. आवतो हतो एनो पाको पुरावो ज्ञानविमलसूरिना आ विवरणमांथी प्राप्त थाय छे अने आ पूर्वे आ अर्थोनो संभव देखायो छे (शंका - १४; कष्ट, दुःख, खटक - ६, १४, १९, २०, २२) तेने आथी टेको मळे छे. . 'जातां काणि न आणी' ए वाक्यने ज्ञानविमले मल्लिनाथ साथे जोड्यं छे तेने पछीनी कडीओनुं समर्थन छे. पछीथी निद्रा ने स्वप्नदशा रिसाई गई ने नाथे मनावी नहीं, मिथ्यामतिने अपराधिनी जाणी नाथे घरथी बहार काढी ए प्रकारनी उक्तिओ मळे छे. पहेली दृष्टिए तो आपणे अज्ञानदशानी साथे वाक्य जोडी दईए अने अज्ञानदशाए जातां कई 'काणि' (संकोच, वसवसो) न करी एम अर्थ करी बेसीए. परंतु पछीनी कडीओनी उक्तिलढणो जोतां ज्ञानविमलसूरिना अर्थघटनने न स्वीकारवा कारण जणातुं 2010_03 Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नथी. ६२५ (२२) सम्यचो. (१७मी उत्तरार्ध) मां थया अने थास्ये जे सिद्ध अंश निगोद अनंत प्रसिद्ध, तो जिनशासन सी भयहाणि, बिंदु गयै जलधि सी काणि. (९२) संपादके 'काणि 'नो 'हानि, खोट' एवो अर्थ आप्यो छे ते संदर्भ जोतां यथायोग्य लागे छे. स्वोपज्ञ बालावबोधमां पण 'काणि' शब्द एम ने एम रह्यो छे पण कथयितव्य स्पष्ट छे : "जे जीवो सिद्ध थया छे अने थशे ए तो निगोदना अनंतमा भाग समान छे, एथी प्रतिपक्षी माने छे तेम जिनमतमां संसारने कशो भय, कशी हानि नथी संसार चाल्या ज करवानो छे, जेम सागरमांथी एक बिंदु ओछु थये सागरने कोई हानि के खोट नथी." आ, वळी, 'काणी' शब्दनी एक विशिष्ट अर्थछाया छे, जोके 'संकोच' एअर्थमांथी 'ओछप, खोट' एवा अर्थ सुधी जई शकाय. (आ अर्थ माटे जुओ हवे पछी क्र. २४.) थोड़ी शब्दार्थचर्चा (२३) जगन्नाथकृत 'सुदामो' (१७०० आसपास ) ( महाकवि प्रेमानंद अने बीजा आठ कविओना सुदामाचरित्र, संपा. मंजुलाल र. मजमुदार, १९२२) रखे काण्य (?) करता किशी तो मागतां मन मांहे. (१९) संपादके ' काण्य' विशे प्रश्नार्थ कर्यो छे, तेथी एमने ए शब्द बेठो नथी एम समजाय छे. परंतु अहीं एनो 'संकोच' अर्थ स्पष्ट छे : "मागतां मनमां जराये संकोच न राखशो.” छापाना थापा करूं, गान करूं केम काण्य ?, गीतानां बतां करूं, हरिकीर्तनमां हाण्य. - (२४) प्रीतमदासकृत 'दाणलीला' (१८मी सदी) (प्रीतमदासनां कृष्णभक्तिनां पदो, संपा. अश्विनभाई पटेल, १९८९, प्रस्ता. पृ. २९ तथा ७५ पर उद्धृत अंश ) मां - दूध दहींनी काण चलावे, छास दुर्लभ छे ब्रिजवासी. अहीं क्र. २४नो 'हानि, नुकसान' ए अर्थ ज संभवित लागे छे : “ (कृष्ण) दहीं दूधनुं घणुं नुकसान करे छे. तेथी व्रजवासीओने छास पण दुर्लभ थई गई छे." (२५) शामळकृत 'सूडाबहोतेरी' (१७६५) मां 2010_03 कुलटा भगतने पोतानो संग करवा कहे छे तेनो उत्तर आपतां भगत आ प्रमाणे कहे छे. आमां 'काय' शब्दनो शो अर्थ करवो ते जरा कोयडो छे. ए तो स्पष्ट छे के कुलटानुं सूचन भगतने हरिकीर्तनमां हानि समान लागे छे एमां 'छापा 'ना 'थापा', 'गान' नी ' काण्य', 'गीता' नां 'बतां' करवा जेवुं एमने लागे छे. 'थापा' 'बतां' ए शब्दो द्वारा अहीं शुं अभिप्रेत छे ते स्पष्ट नथी, पण कंईक विपरीत स्थिति उद्दिष्ट छे ए तो Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोडी शब्दार्थचर्चा मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश समजाय छे. आ रीते विचारीए त्यारे 'गान'नी सामे 'काण्य' एटले 'रोककळ' एवो अर्थ ज बेसे. मध्यकाळमां आ अर्थमां 'काण्य' शब्दनो आ विरल प्रयोग जणाय छे. (२६) छेल्ले एक प्राचीन दुही जोईए : गुण मोटा, दिन नान्हडा, राति अंधारि जाणि, कागल तेहू सांकडा, तिणि लखतां हुइ कांणि. अहीं 'काणि'नो 'लज्जा' ए अर्थ अत्यंत स्पष्ट छे – “तारा गुण मोटा, ज्यारे दिवस ट्का छे; वळी अंधारी रात के अने कागळ सांकडो छे तेथी लखतां मने लज्जा आवे छे – लखतां हुं लागँ छु एम तुं जाणजे." जोई शकाय छे के गुजरातीमां 'काणि'ना 'शरम, संकोच' ए अर्थनी घणी व्यापक अने दीर्घ परंपरा छे - एनो दाखलो तो आपणने छेक अपभ्रंश-काळमां जड्यो छे. परंतु गुजरातीमांये तेरमी सदीथी सत्तरमी सदी सुधीना दाखला जडे छे. पछी पण एना दाखला हशे ज, पण आपणी पासे एनी नोंध नथी. जैन कविओनी कृतिओमां तो 'काणि' शब्द आ अर्थमां ज जोवा मळे छे ने राजस्थानी कोश एनी घणी अर्थछाया नोंधे छे, तेथी गुजराती-राजस्थानीनो ए सहियारो वारसो होवामुं, राजस्थानमा एनी सविशेष व्यापकता होवानुं समजाय छे. आपणे त्यां 'काणि' शब्दना बीजा अर्थो लेवाया छे त्यां केटलेक ठेकाणे 'शरम, संकोच'नो अर्थ सरळताथी बेसे छे अने लेवायेला अर्थो छोडावाना थाय छे. 'चिंता', 'शंका' ए अर्थो संदर्भमां नभे छे, परंतु 'शरम, संकोच'नो अर्थ बेसतो होवाथी ए अर्थो : पण छोडवा जेवा लेखाय. 'कष्ट, पीडा, दुःख' ए अर्थने अवकाश आपे एवां बेत्रण उदाहरणो सांपडे छे, पण ए अर्थने हजु विशेष समर्थननी आवश्यकता छे एम लागे छे. अखानी पंक्ति जेवा कोई प्रयोग हजु विशेषपणे कोयडारूप रहे छे. अत्यारना अर्थमां 'काण' शब्दनो प्रयोग आ नोंधमां आव्यो नथी, पण ए तो नोंध माटे जे जातना सूचीकरणनी मदद लेवाई छे तेनी मर्यादा होई शके. ए सूचीकरणमा अत्यारना अर्थना प्रयोगो नोंधाया नथी. अपभ्रंशनो 'वेर' के 'झघडो' ए अर्थ गुजराती सुधी पहोंच्यो नथी. व्युत्पत्ति 'काण' के 'काणि' शब्दनी व्युत्पत्ति शामांथी ते विशे कशो ज प्रकाश पडतो नथी. उक्तिर.ए एनो 'कानिः' एवो संस्कृत पर्याय आपेलो, परंतु संस्कृतमां आवो कोई शब्द ज नथी, एटले ए कृत्रिम संस्कृतीकरण होवानुं नक्की थाय छे. आ उपरांत 'कथानिका' के 'कदनी'मांथी 'काणि'नी व्युत्पत्ति केटलाक विद्वानोए सूचवी छे, पण दाखल ., पर्शसंगति वगैरेनी दृष्टिए एमां भाग्ये ज कंई प्रतीतिकर छे. आथी हाल ___ 2010_03 Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६२७ थोडी शब्दार्थचर्चा तो 'काणि' शब्दने, केटलाक विद्वामोए कह्यो छे तेम, 'देश्य' शब्द -- अज्ञात मूळनो शब्द ज लेखवो रह्यो. 'वेर' के 'झघडा'ना अर्थनो, 'शरम, संकोच'ना अर्थनो अने 'पीडा, कष्ट' तथा 'रोककळ' (आ बंने अर्थो संकळायेला हशे ?)ना अर्थनो - त्रणे 'काणि', 'काण' जुदा हशे के एक ज अने एक ज होय तो आ अर्थविकास केम समजाववो ए बधो कोयडो ज छे. गुजरात, दीपोत्सवी अंक, सं.२०४५] 2010_03 Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधिनां प्रकाशनो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्य-ग्रंथ १ ग्रंथ २ (पुनर्मुद्रण) Studies in Desya Prakrit हैमसमीक्षा (पुनर्मुद्रण) हैम स्वाध्यायपोथी (डायरी) हेमचन्द्राचार्यकृत अपभ्रंश व्याकरण (सिद्ध हैमगत ) (द्वितीय संस्करण) विजयपालकृत द्रौपदीस्वयंवर (पुनर्मुद्रण) कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य स्मरणिका अनुसंधान - १ (अनियतकालिक) अनुसंधान-२-३ अनुसंधान-४ अपभ्रंश व्याकरण (हिन्दी अनुवाद) प्रबंधचतुष्टय हैम संगोष्ठी आवश्यक-चूर्णि अलंकारनेमि हेमचन्द्रावार्यकृत महादेवबत्रीशी -स्तोत्र श्रीजीवसमास-प्रकरण टीकाकार मलधारी हेमचन्द्रसूरि हेमचन्द्रसूरि (गुजराती अनुवाद) सूरीश्वर अने सम्राट (पुनर्मुद्रण) संपा. मुनि चरणविजयजी १९८७ संपा. मुनि चरणविजयजी १९८७ 2010_03 H. C. Bhayani 1988 १९८९ १९८९ १९९३ मधुसूदन मोदी संपा. मुनि शीलचन्द्रविजय संपा. हरिवल्लभ भायाणी नेमिनंदन ग्रंथमालानां हमणांनां प्रकाशन आद्य संपा. जिनविजयजी मुनि १९९३ संपा. शान्तिप्रसाद पंड्या १९९३ १९९३ १९९४ १९९५ १९९४ १९९४ प्रा. बिन्दु भट्ट संपा. रमणीक शाह संपा. मुनि शीलचन्द्रविजय १९९५ संपा. मुनि पुण्यविजयजी मुद्रणाधीन सहायक रूपेन्द्रकुमार पगारिया मुनि शीलचन्द्रविजय १९८९ संपा. मुनि शीलचन्द्रविजय १९८९ संपा. मुनि शीलचन्द्रविजय १९९४ चं. ना. शिनोरवाला १९९४ मुनि विद्याविजयजी १९९४ Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 F or Private & Personal Use Only Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ कोशनी विशिष्टताओ * एमां मध्यकालीन गुजराती कृतिओना 66 संपादनग्रंथोमां अपायेला 71 शब्दकोशो संकलित करेला छे. आशरे 20,000 जेटला शब्दो एमां समाविष्ट छे.. * शब्दो साथे ए ज्यांथी लेवामां आव्या छे ए आधारग्रंथोनो निर्देश करवामां आव्यो ____छे, जेथी अभ्यासीओने मूळ शब्दप्रयोग सुधी पहोंचवानी सगवड मळे छे. * मूळ ग्रंथमां अपायेला शब्दार्थो एम ने एम स्वीकारी लेवामां नथी आव्या पण जरूर जणाई त्यां शब्दना प्रयोगस्थान सुधी जई शब्दार्थोने चकास्या छे ने एमां आवश्यक शुद्धि करी छे. आ शुद्धि माटे संपादके संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, देशी, गुजराती, राजस्थानी, हिंदी, फारसी, उर्दू शब्दकोशो तेमज अन्य संदर्भग्रंथोनी सहाय लीधी छे. ए रीते आ मात्र संकलित कोश नथी, संशोधित कोश छे. एने प्रमाणभूत बनाववानी सर्व कोशिश करवामां आवी छे. * कोई वार मूळना भ्रष्ट पाठ सुधारीने नवा शब्दने प्रकाशमां लाववानुं पण बन्युं छे. * संस्कृतादि भाषामांथी शब्दमूळ दर्शाववामां आव्युं छे ते उपरांत राजस्थानी-हिंदी-मराठी ___ वगेरे भाषाओना शब्दोनी समान्तरता दर्शाववामां आवी छे. * आ ग्रंथ मध्यकालीन गुजराती भाषाना ज नहीं पण मध्यकालीन राजस्थानी अने हिंदी भाषाना अभ्यासमां पण उपकारक बनी शके एम छे. त्रणे भाषानो केटलोक समान शब्दवारसो छे ज. एक नूतन शिखर आरोहण मित्र जयंत कोठारी एक पीढ अने खडतल पर्वतारोहक छे... जयंतभाईए 'गुजराती साहित्यकोश (मध्यकालीन)' अने 'जैन गूर्जर कविओ'नुं नवसंस्करण - एवां बे उन्नत शिखरो सर कर्या पछी हवे आ त्रीजुं शिखर पण सर कर्यु छे. जयंतभाईए मात्र शब्दसूचिओ, संकलन ज नथी कर्यु. एम करे तो जयंतभाई शाना? तेमणे ज्यांज्यां अर्थ वगेरे बाबत शंकास्पद जणाई त्यांत्यां चोकसाई अने शुद्धि करी छे, अने ते माटे अनेक कोशो उथलाव्या छे, अनेक मूळ कृतिओ के संलग्न कृतिओने तपासीने यथाशक्य प्रामाण्य साधवानी मथामण करी छे. आ कोशथी मूळ कृतिओने समजवामां जे सहाय मळशे, ते उपरांत घणी अर्थघटननी गूंचो पण ऊकलशे, अने तुलनात्मक सामग्री गुजराती शब्दोना इतिहास माटे पण सहायभूत बनशे... दृढ संकल्पबळे आवा कोशनुं परिश्रमसाध्य काम पार पाडवा माटे 'धन्यवाद' शब्द तो घणो मोळो लागे... जयंतभाईए जे नानो छोड उछेर्यो छे तेमांथी आगळ जतां वृक्ष बने एवी आशा अने श्रद्धा आपणे केम न राखीए ? हरिवल्लभ भायाणी 2010_03