Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 01
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 195
________________ स्वप्न वृषभ (बैल) का देखा, अतएव ऋषभ नाम रखा । * जो आदिकाल के राजा, प्रथम यति, प्रथम साधु, प्रथम जिन, ऐश्वर्य को बढ़ाने वाले और त्रिषष्ठी श्लाका पुरुष में प्रथम आत्मविजयी, प्रथम प्रभु ऋषभदेव हुए - ऐसे श्री ऋषभदेव भगवान को मैं वंदन करता हूँ/करती हूँ । २. जब विजयमाता के गर्भ में अजितनाथ भगवान आए तब से देव द्वारा प्रदत्त पाशा के खेल में भी विजयादेवी अपने पति जितशत्रु द्वारा पराजित नहीं हुई । अतएव बालक का नाम अजित रखा गया । यही अजित कुमार राग-द्वेष को जीतकर, सब पापों पर विजय पाकर देवता और विद्वानों के द्वारा हृदय से सम्मानित हुए और मोक्ष को प्राप्त किया- उन श्री अजितनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ / करती हूँ । ३. जो अनंत सुख स्वरूप है और जिनसे अनंत सुख की प्राप्ति होती है अथवा जिनके गर्भ में आते ही राज्य में धान्यादि के अधिक संभव (उत्पत्ति) होने से दुर्भिक्ष मिटकर सुभिक्ष हो गया। ऐसे तृतीय भगवान संभवनाथ को मैं वंदन करता हूँ / करती हूँ । ४. जो भव्य जीवों को हर्षित करने वाले और गर्भ में आने पर इन्द्र ने जिनकी बार-बार स्तुति की, परम सिद्धि को संप्राप्त - ऐसे श्री अभिनदंन स्वामी को मैं वंदन करता हूँ / करती हूँ । ५. माता सुमंगला ने भी अपने गर्भ से सुन्दर बुद्धि को पाकर पुत्र के लिए लड़ती हुई दो स्त्रियों का झगड़ा मिटा दिया । इसलिए लोगों को सुबुद्धि देने वाले सुमतिनाथ भगवान को सद्बुद्धि के लिए मेरा वंदन हो । ६. पद्मकमल के समान प्रभा - कांतिवाले अथवा पद्मों-कमलों में प्रभा-किरण है जिनके वह हुआ पद्म अर्थात् सूर्य, उसके समान कांतिवाले अथवा जब वे गर्भ में आए थे तब उनकी माता को पद्मशय्या का दोहद हुआ, जिसको देवता ने पूरा किया। इस कारण पद्मप्रभ नाम वाले भगवान को मेरा वंदन हो । ७. देखने में सुडौल है पार्श्व (पसवाड़े) जिनके अथवा जब वे गर्भ में थे तब उनकी माता गर्भ के प्रभाव से सुन्दर पार्श्व वाली हुई तथा माता के स्पर्श से पिता की पसलियों का दर्द ठीक हो गया अतएव गुणानिष्पन्न नाम वाले श्री सुपार्श्वनाथ भगवान को मेरा वंदन हो । चन्द्रमा के समान कांति वाले अथवा जब वे गर्भ में थे तब उनकी माता को चन्द्रप्रभा पान का दोहद हुआ, इस कारण चन्द्रप्रभ नाम रखा गया । ऐसे गुण निष्पन्न नाम वाले स्वच्छ चन्द्रमा की तरह बहुत निर्मल, राग-द्वेष से रहित चन्द्रप्रभु को मेरा वंदन हो । * ऋषभ और वृषभ- इन दोनों शब्दों का प्राकृत में 'उसभ' रूप बनता है। ८. नाम स्मरण की महत्ता / १६६

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