Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
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जैन जगत के इतिहास में अनेक उज्जवल नक्षत्र के रुप में ऋषि, मुनि और युग प्रभावक संत पुरुष हुए हैं जिन्होंने समय समय पर धर्म क्रांती का शंखनाद कर
धर्मोद्योत किया है। आज के इस भौतिकवाद में भी जल कमलवत् जीवनयापन कर संत पुरुष स्वआत्म उत्कर्ष के साथ ही समाज विकास में योगदान प्रदान कर रहे हैं। "कॉकण केशरी" पूज्य प्रवर मुनिराज श्री लेवेन्द्रविजयजी का जीवन
COM भी सूर्य की भाँति है। जो अज्ञान अंधकार को ज्ञान रुपी प्रकाश के माध्यम
से प्रकाशित कर रहे हैं। वे एक कर्म युदा पुरुष है जो निरन्तर तेजस्वी कार्य शक्ति से प्रगतिशील है। कर्म ही जिनकी पूजा है। सेवा ही जिनकी सुवास है, निष्काम भाव ही जिनका लक्ष्य है। ऐसे पूज्य मुनिप्रवर के आत्मिय गुण सदा अभिनन्दनीय है।
ऐसे पूज्य गुरुवर्य का अभिनन्दन वन्य समर्पण समारोह करने का आदेश १० मार्च १९९१ चैत्र वदि ९ को भायंदर पूर्व में प्राप्त हो रहा है। यह हमारी प्रबल पुण्याई का प्रतीक है।
सौधर्म बृहत् तपोगच्छीय में सर्व प्रथम अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है श्रमण सूर्य परम पूज्य मुनिराज श्री लक्ष्मणविजयजी म.सा. की सप्तमं पुण्य तिथि एवं अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण समारोह हमारे लिए मणि कांचन का योग बन गया है। अभिनन्दन वन्थ प्रकाशन पर हमारी अनंत अनंत शुभ कामनाएँ। यह वान्थ जन जन को धर्म क्रांति की ओर प्रेरित करें। इसी मंगल भावनाओं के साथ।
श्री वर्धमान राजेन्द्रसूरी जैन चेरीटेबल ट्रस्ट
भायंदर (पूर्व) भीमराज जैन, अध्यक्ष
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पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. को "कोंकण केशरी' पद प्रदान समारोह पर हमारी ओर से हार्दिक अभिवंदना।
भभूतमल आर. जैन टिपटुर (कर्नाटक)
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साधु, साधक या सज्जन व्यक्ति वैर भास नही रखना चाहिए, इस संस्कृति का वही आदर्श है। फिर भी मानव जब ईर्ष्या २१ Jain Education Intemationalऔर वैर विरोध के घर में प्रवेश करता है तब उसका हृदय संस्कृति के प्रकाश को छू भी नहीं सकता।
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