Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 30
________________ २२ क्यामखाँ रासा - भूमिका भला चाहते हो तो शीघ्र हमसे पा कर मिलो, या सहायता भेजो। दौलतखाने क्रुद्ध हो कर चिट्ठी पर पेशाय किया और दूतके अंचल में रेती वाँध कर कहा कि तुम्हारा स्वामी यदि चढ़ कर न आया तो उसके सिर पर धूल है । प्रधानोंको धक्के दे कर उसने निकाल दिया। प्रधानोंके जाने पर लोगोंको चिंतातुर देख कर दौलतखाने भविष्यवाणी की कि लूणकरन जीवित नहीं बचेगा। प्रधान अपमानित हो कर राव लूणकरनके पास गए । वृत्तांत सुन कर उसने क्रुद्ध हो कर कहा कि पहले ढोसी जीत कर फिर आते समय दौलतखांकी खबर लेंगे । राव अपार सैन्य शक्तिके साथ दोसी गए परंतु वहां तुरकमानकी मददसे पठान लोग खूब लड़े, और लूणकरनको मार कर उसके साथियोंको लूट लिया । दौलतखांका वचन सत्य हुआ। एक बार कावुलसे दिल्ली देखने के लिए वावर कलंदरके वेपमें वाधको साथ लेकर चला। मार्गमें फतहपुर ठहर कर दीवान दौलतखांसे मिल कर बाघके लिए एक गाय मँगा देनेको कहा। दीवानने तुरंत गाय मगाई और कहा कि मैं देखता हूँ कि बाघ कैसे गायको मारता है ? जब बाघ गायके समक्ष श्राया तो दौलतखाने सिंहनाद कर वाधको फटकारा । वह उस गायको खानेको असमर्थ हो कर स्तंभितकी भाँति खढा रहा । सत्य सुभट पुरुषोंके वयनका सिंह भी उल्लंघन नहीं कर सकते । गजेंद्रका मद भी उनके सामने सूख जाता है। फिर बाघरने अलवरमें मेवाती हसनखांके कटकको और दिल्लीपति बादशाह सिकंदरशाहको विस्मित हो कर देखा। जब बाबर हिंदुस्तान देख कर काबुल लौटा तो लोगोंने इधरकी बातें पूछी । उसने कहासारे हिंदमें तीन श्रादमी देखे-सिकंदरशाह, हसनखां और दौलतखां । इस प्रकार बाबरने दीवान दौलतखांकी बड़ी प्रशंसा की। एक यार दौलतखाने सुना कि गौर निरवाण व नागौरके गावोंको लुट कर जा रहे हैं उसने ससैन्य जा कर उन्हें घेर लिया और उन्हें हरा कर लूटका सारा माल छीन लिया। एक दिन दौलतखां शिकार खेलने चला । बाज, कुही, बहरी श्रादि बहुतसे उसके साथ थे। उसने बहरीको कुंजके लिए छोडा । वह आकाशमें ऊँची उड़ गई, फिर अदृश्य हो गई । दीवानजी उसको छोड़ कर चले आए। बहरी उड़ती-उड़ती हिसार जा पहुँची, वहां मीरने पकड़ कर सिकंदरको सौंपा । दौलतखां यह ज्ञात कर ससैन्य हिसार पहुँचा। हिसारका सिकदार मुहब्बतखां साराखानी पठान सेना-सहित लडनेको श्राया । नासौमें दोनों सेनाएं मिलीं । दूरसे दीवान दौलतखांका मुंह उतर गया । मुहब्बतखां भयभीत हो भागा । दौलतखांने विजयके नगाड़े बजाए । दौलतखां अपने सिद्धांतोंका पक्का था। स्वगोत्रीय पर घाव न करना, परमात्माको एक मानना, न्याय-मार्ग पर निश्चल रहना चाहे लाखों विरोधी हों, न्यायके समय निष्पक्ष रहना, आदि उसके विचार मँजे हुए थे। वादशाह बहलोल लोदीके मरने पर सिकंदर उत्तराधिकारी हुआ, पर दौलतखां उसके दरबारमें भी न गया। . मुबारक साहके बड़े पुत्र कमालखांको झंझएका राज्य मिला और दूसरे पुत्र साहबखांको नौहाका । वह जब तक जिया भाईके अधीन रहा। कमालखांका पुत्र भीखनखां मुझएका स्वामी

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