Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान संपादक - पुरातत्त्वाचार्य, जिनविजय मुनि [सम्मान्य संचालक, राजस्थान पुरातत्व मन्दिर. जयपुर] , mmm ग्रन्थां क १३ mmmm [राजस्थानी-हिन्दी साहित्य-श्रेणी] क्या म खांरा सा -: प्रकाश क : राजस्थान राज्यसंस्थापित राज स्था न पुरा त त्त्व मन्दिर जयपुर (राजस्थान) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थ मा ला ' राजस्थानी - हिन्दी साहित्य-क्षणी' के अन्तर्गत प्राचीन राजस्थानी - गुजराती-हिन्दी भाषाके जो ग्रन्थ प्रेसोंमें छप रहे हैं उनकी नामावलि । पद्यात्मक रचनाएं - १. कान्हडदे प्रबन्ध कर्ता जालोर निवासी कवि पद्मनाभ । २. गोराबादल - पदमिणी चउपई कर्ता कवि हेमरतन । ३. वसन्तविलास - फागु काव्य । ४. कूर्मवंशयशप्रकाश अपर नाम लावारासा - कर्ता चारण कवि गोपालदान ५. क्यामखां रासा - कर्ता मुस्लिम कवि जान | गद्यात्मक रचनाएं - - B ६. बांकी दासरी ख्यात । ७. मुंहता नैणसीरी ख्यात । ८. राठोड वंसरी उत्पत्ति । ९. खींची गंगेव नींबावतरो दोपहरो, राजान राउतरो वात वणात्र आदि । १०. दाढाला एकलगिडरी बात । छपनेके लिये तैयार होनेवाले कुछ ग्रन्थ राजस्थानी सुभाषित रत्नाकर । पुरातन राजस्थानी गद्य संचय | जहांगिर यशश्चन्द्रिका - कवि केशवदास कृत । रणमल्लछन्द कवि श्रीधरव्यास कृत । - जलाल गहाणीरी वात । कुतबदी साहजादेरी वात । हितोपदेश गवालेरी भाषा बेताल पचीसीरी वात । इत्यादि-इत्यादि । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुस्लिम कवि जान रचित क्या मखारासा विस्तृत भूमिका एवं टिप्पणी आदिसे समलंकृत संपादन कर्ता डॉ. दशरथ शर्मा एम्. ए. पीएच्. डी.; अगरचंद नाहटा; भंवरलाल नाहटा प्रकाशन कर्ता राजस्थान राज्याज्ञानुसार संचालक, राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर जयपुर, (राजस्थान) [ प्रथमावृत्ति; प्रति सं० ७५० ] विक्रमाव्द २०१०] मूल्य ५-१२-० [खिस्तान्द १९५३ मुद्रक-पी. एच्. रामन्, एसोसिएटेड ए. एन्ड प्रि. लि., ५०५, आर्थर रोड, चम्बई ७ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान संपादकीय किंचित् प्रास्ताविक भूमिका - क्याम खां रासाके कर्ता कवि जान और उनके ग्रन्थ क्याम खां रासा का ऐतिहासिक कथा सार क्याम खां रासाकी प्रतिका परिचय क्याम खां रासाका महत्व परिशिष्ट नं. १ दीवान दौलत खां रचित ग्रन्थ नं. २ क्याम खांनीकी उत्पत्ति नं. ३ परवर्ती नवाव 99 " क्याम खा रासा - अनुक्रमणिका " 97 नं. ४ क्याम खांनी नवाबोंके बसाए हुए गांव नं. ५ क्याम खांनी दीवानोंका वंशवृक्ष क्याम खां रासा - मूल ग्रन्थ अलिफ खांकी पेढी क्याम खां रासाके टिप्पण *** * पृष्ठ " 19 46 "" " "" "" "7 34 " 66 " 2 १- ४ १- १३ १३- ३२ ३२- ३३ ३३- ३६ ३७- ३९ ३९- ४० ४०-४५ ४५- ४६ ४६- ४७ १- ९२ ९३-१०८ १०९-१२८ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किंचित् प्रास्ताविक 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' में प्रकागित करने के लिये, बीकानेरके जानभंटारोमैसे कुछ ग्रन्थ प्राप्त करनेकी दृष्टिसे सन् १९५२ में बीकानेर जाना हुआ, उस समय, प्रसिद्ध राजस्थानी साहित्यसेवी श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटाके पास प्रस्तुत 'क्यामखां रासा' की प्रतिलिपि देखनमें आई। ग्रन्यकी उपयोगिता एव विपनाका खयाल करके हमने इसे, इस ग्रन्थमालामें प्रकट करने का निश्चय किया और तदनुमार मुद्रित होकर अब यह, विद्वानोके हस्त सपुट में उपस्थित हो रहा है। अन्य और ग्रन्यकारके विषय में प्यालभ्य सब बाते सपादक-प्रयीने विस्तृत भूमिका और ऐतिहासिक टिप्पण जादि द्वारा उपलब्ध कर दी है जिससे पाठकोंको ग्रन्यका हार्द समझने में ययेप्ट महायता मिल सकेगी। मूल ग्रन्यकी केवल प्रतिलिपि ही हमें मिली थी जो श्री नाहटाजीने कुछ समय पहले, उन्हें प्राप्त हस्तलिखित प्राचीन प्रतिके उपरमे करवा रखी थी। प्राचीन ग्रन्थोके सपादनकी हमारी शैली यह रहती है कि किसी कृतिका सपादन कार्य जब हाथमे लिया जाता है तब उसकी अन्यान्य दो चार प्रतिया प्राप्त करनेका प्रयत्न किया जाता है। यदि कहीसे उसकी ऐमो प्रनिया मिल जाती है तो उनका परम्पर मिलान करके, भापाकी, छन्दकी, अर्थकी और वस्तुसगति आदिको दृष्टिमे, विशिष्ट स्पसे पर्यवेक्षण करके मूल पाठकी गचना तैयार की जाती है और भिन्न-भिन्न प्रतियोमें जो शाब्दिक पाठभेद प्राप्त होते है उन्हे मूलके नीचे पाटिप्पणीके रूपमें दिया जाता है। प्राचीन ग्रन्थोके सपादनकी यह पद्धति विद्वन्मान्य और सर्वविश्रुत है। परन्तु जव किसी ग्रन्यका कोई अन्य प्रत्यन्तर गक्य प्रपल करने पर भी, कहीसे नही प्राप्त होता है, तव फिर वह कृति केवल उसी प्राप्त प्रतिके आधार पर यथामति सशोधित-सपादित कर प्रकट की जाती है। प्रस्तुत 'क्यामखा रासा' भी इसी तरह, केवल जो प्रतिलिपि हमे प्राप्त हुई उसीके आधार पर, सशोधित कर प्रकाशित किया जा रहा है। जिस मूल प्रतिपरसे, श्री नाहटाजीने अपनी प्रतिलिपि करवाई थी वह मूल प्रति भी हमारे देखनेमे नही आई। इससे हमको यह ठीक विश्वास नही है कि जो वाचना प्रस्तुत मुद्रण मे दी गई है वह कहा तक ठीक है। प्रेसमेंसे आनेवाले प्रुफोका सशोधन करते समय हमें इस रचनामे भाषा और शब्द मयोजनाकी दृष्टिसे अनेक स्थान चिन्तित मालूम दिये है जिनका निराकरण मूल प्रति और एकाध प्रत्यन्तरके देखे विना नही किया जा सकता। लेकिन उसके लिये कोई अन्य उपाय न होनेसे इसको ययाप्राप्त प्रतिलिपिके अनुसार ही मुद्रित करना हमे आवश्यक हुआ है। राजस्थानके साहित्यसेवी विद्वानोसे हमारा अनुरोध है कि वे इस रचनाके कुछ प्रत्यन्तर- जो अवश्य कही-न-कही होने चाहिये - खोज निकाले, जिससे भविष्यमे इसकी एक अच्छी विशुद्ध वाचना तैयार करने-करानेका प्रयत्ल कोई उत्साही मनीपी कर सके। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्याम खां रासा कवि जान राजस्थानका एक बडा और प्रसिद्ध कवि हो गया। यद्यपि जाति और धर्मसे वह मुसलमान था लेकिन उसकी रचनाओके पढनेसे मालूम होता है कि वह भाव और भक्तिकी दृष्टिसे प्राय हिन्दु था। उसका शरीर मुस्लिम था परन्तु आत्मा हिन्दु था। यदि उसने अपनी रचनाओमे अपने व्यक्तित्वके परिचायक कोई उल्लेख न किये होते तो पाठकोको इन रचनाओका कर्ता कोई हिन्दु-इतर है ऐसी कल्पनाका होना भी असंभवसा लगता। कविकी विविध प्रकारकी और विस्तृत सख्यावाली रचनाओके विषयमे सपादक मित्रोने यथेष्ट प्रकाश डाला है। इससे ज्ञात होता है कि कवि अपने समयमे राजस्थानका एक प्रमुख साहित्यकार रहा है। शायद इतनी विविध रचनाए, उस समयके अन्य किसी हिंदु या जैन विद्वान्ने नही की है। कविका अनेक विषयो पर अच्छा अधिकार मालूम देता है। भाषा और भावो पर तो उसका बडा ही प्रभुत्व प्रतीत हो रहा है। लोक भाषाके ग्रन्थोकी प्रतिलिपि करनेवाले लेखकोकी लिखनपद्धति प्राय. शिथिल और अनियमित होती थी, इस लिये ऐसी रचनाओमें लेखनभ्रष्टताके कारण भापाभ्रष्टताका प्राचुर्य उपलब्ध होना स्वाभाविक है और इसी कारणसे किसी भाषा कविकी कृतिका पूर्णतया विशुद्ध रूपमें प्राप्त होना असभवसा रहता है। परतु यदि ऐसी प्राचीन रचनाओके दो चार भिन्न स्वरूपके अच्छे प्रत्यन्तर मिल जाते है तो उनके आधार पर विशेषज्ञ विद्वान किसी भी रचनाकी विशुद्ध वाचना ठीक तरहसे उपस्थित कर सकता है। जैसा कि हमने ऊपर सूचित किया है प्रस्तुत 'क्यामखा रासा' उक्त एक ही प्रतिलिपिके आधार पर मुद्रित किया गया है और इससे इसमें भाषा, छन्द, वर्णसयोजन आदिकी दृष्टिसे बहुतसे स्थान शिथिलता और अशुद्धताके उदाहरण स्वरूप दृष्टिगोचर होते है परतु हमारा विश्वास है कि यदि दो-एक अन्य प्रत्यन्तरोके आधार पर, इसकी विशुद्ध वाचना तैयार की जाय तो, जान कविकी यह कृति एक उत्तम कोटिकी साहित्यिक रचना सिद्ध होगी। उस समयके हिन्दु या जैन कविकी कोई रचना, शायद ही कवि जानकी रचनाकी तुलनामें स्पर्धा करने योग्य सिद्ध हो। कविका स्वभाव बहुत उदार है। वह राजपूत जातिकी वीरताका वडा प्रशसक है। अपने चरित्रनायकके विपक्षियोकी वीरताका भी वह अच्छा सहानुभूतिपूर्वक वर्णन करता है। क्यामखानी वगवाले, वास्तवमें चौहान वशीय राजपूत थे और इसलिये कवि चौहान कुलका गौरव-गान करनेमे अपना गर्व समझता है। वह चौहान कुलको राजपूत जातिमें सबसे बड़ा गौरवशाली कुल मानता है। उसके विचारमे जिसी जात रजपूत की, सगरे हिंदसतान । सबमें निहचै जानियो, बडौ गोत चहुवांन । चाहवान याते कहो चहूं कूटमें आन । सगरे जंवू दीपमें सम को गोत न मान ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान संपादकीय किंचित् प्रास्ताविक 'फूलनि मधि गुलाल, चुनियनि जैमी लाल । इनमें तैसो गोत चक्रवै चौहान को ॥ 95 ७ इसलिये अपने चरितनायक अलिफखानका, इस चौहान गोतमे उत्पन्न होना कविके मनमे बडे गौरवकी बात है और वह प्रारभहीमे वडे गर्वके साथ इसका उल्लेख करता हुआ कहता है कि 'अटिफखांनु दीवानको बहुत बडौ है गोत । चाहुवांनकी जोरको और न जगमें होत 11 66 33 चौहानकुलकी उत्पत्ति की जो कथा इस कविने दी है वह शायद अन्य किसी ग्रन्थ मे नही है और इस दृष्टिसे यह एक नूतन अन्वेषणीय वस्तु है । कवि पृथ्वीराज चौहान ( प्रथम के ? ) द्वारा काबूलसे दूब मगा कर, दिल्ली के मैदानोको हराभरा कर देनेका जो उल्लेख करता है (पृ. ६, पद्य ६५ ) वह भी एक ऐतिहासिकोके लिये गवेषणीय विचार है | afant वर्णनशैली स्वाभाविक और सरल है । न इसमे कोई शब्दाडबर है न अत्युक्तिका अतिरेक है । उक्तिपद्धति अच्छी ओजस्भरी हुई और रचना प्रवाहबद्ध एव रसप्रद है । भाषाविद्या ( फाइलोलॉजी) की दृष्टिसे यह ग्रन्थ और भी अधिक महत्त्वका है । इसमे डीगलकी वह कृत्रिम शब्दावलि बहुत ही कम दिखाई देती है जो बादकी शताब्दीमे बनी हुई चारणोकी रचनाओमे भरपूर दृष्टिगोचर होती है। इसकी गव्दावलि पर शौरसेनी अपभ्र शकी बहुत कुछ छाया दिखाई देती है और साथमे प्राचीन राजस्थानीका पुट भी अच्छे प्रमाणमे उपलब्ध होता है । हमारा अभिमत है कि किसी उत्साही और परिश्रमी विद्वान्‌को या विद्यार्थीको चाहिये कि किसी युनिवर्सिटीकी पीएच डी की डीग्रीके लिये इस कविकी रचनाओका भाषाविज्ञानको दृष्टिसे गंभीर अध्ययन कर, तुलनात्मक निबन्ध उपस्थित करनेका प्रयत्न करें। इस भाषाविद्या विचारका उल्लेख करते समय, प्रस्तुत प्रकरणमे जो एक कथन हमे प्राप्त हुआ है वह विद्वानोके लिये और भी विशेष विचारणीय है । बीकानेरकी अनूपसस्कृत लाइब्रेरीके, एक हस्तलिखित प्राचीन गुटकेमें, रूपावली नामक आख्यान लिखा हुआ है जिसका थोडा सा परिचय सपादकोने अपनी भूमिकाके पृ ११ पर दिय है । यह रूपावली आख्यान प्रस्तुत कवि जान ही की कृति है या अन्य किसीकी यह इस परिचय से ज्ञात नही हो सकता। इस आख्यानकी पहली चौपाई में कहा गया है कि फतहपुर नगर जहां बसा है उस देश या भूमिका नाम बागर* है और वहाके आसपास जो भाषा बोली जाती है वह भली प्रकार की सोरठ-मारू है जिसमें सुन्दर रूपसे भाव प्रकट किये जाते है । हमारे लिये * ग्रन्थकारने वर्तमानमें शेखावाटी कहलानेवाले प्रदेशका नाम - जिसमें फतहपुर और झूझनु आदि नगर बसे हुए हैं-वागढ लिखा है - यह भी भौगोलिक दृष्टिसे अन्वेषणीय है। राजस्थानका वह प्रदेश, जिसमें डूगरपुर, बासवाडा, प्रतापगढ आदि नगर बसे हुए हैं प्राचीन कालसे वा गढ नामसे प्रसिद्ध है। इसी तरह राजस्थानकी दक्षिणी सीमा पर आया हुआ कच्छ और उत्तर गुजरातके बीचमें जो छोटा रण कहलाता है उसके आसपास के प्रदेशका नाम भी वा गट है और जो प्राय कच्छचागढके नामसे प्रसिद्ध है । कवि जानके समकालीन साहित्यमें फतहपुर आटिका होना भी वागर या बाग प्रदेशमें बताया गया है। यों राजस्थानके सीमा प्रान्तों पर तीन वागढी प्रदेशों का उल्लेख मिल रहा है। इस वागढ शब्दका वास्तविक अर्थ क्या है यह भी एक विचारणीय वस्तु है । जेन ग्रन्थों में वागड विषयके बहुतसे उल्लेख प्राप्त होते हैं । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्याम खां रासा भाषाका यह सोरठ-मारू नाम विल्कुल नया और विचारणीय है। मारू का अर्थ तो स्पष्ट ही है कि जिसका सम्बन्ध मरूभूमिसे हो वह मारू है, पर इसके साथ सोरठ शब्दका क्या सबन्ध है? हमारा खयाल है कि कविको सोरठ शब्दसे वह भाषाप्रदेश अभिप्रेत है जिसे वर्तमानमें गुजराती भाषा-भाषी प्रान्त कहा जाता है। जिस प्रकार भौगोलिक दृष्टिसे सोरठका प्रदेश प्राचीन कालसे सर्वत्र विश्रुत रहा है इसी तरह वहाकी जनभाषा भी, जो कि वर्तमानमे तो वह गुजरातीके नामसे ही सर्वत्र प्रसिद्ध हो रही है, उस समय, सोरठके नामसे प्रसिद्धिमे रही हो और फतहपुरके प्रदेशके लोगोकी जो बोली रही हो उसमे मारू और सोरठ की वोलीका विशिष्ट समिश्रण रहा हुआ होनेसे कविने उसे इस नामसे उल्लिखित किया हो। ___ आधुनिक राजस्थानी और गुजराती दोनो भापायें मूलमें एक थी। मुगलोके शासन कालके मध्य समयसे धीरे-धीरे इनमे कुछ पार्थक्य होने लगा। भाषावैज्ञानिकोने प्राचीन राजस्थानी एव गुजरातीको एकरूप मान कर उसके लिये प्राचीन पश्चिमीय राजस्थानी ऐसा शास्त्रीय नाम निश्चित किया है। लेकिन इस नामनिर्देशमें बहुतसे विद्वानोको सन्तोष नही है। अत. वे कोई ऐसा नाम निर्देश करना-कराना चाहते है जिससे राजस्थान और गुजरातकी भौगोलिक, सास्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सयुक्तता और सहकारिताका स्पष्ट बोध हो सके। गुजरातके एक विशिष्ट कवि, लेखक, विचारक और विवेचक विद्वान् श्रीयुत उमाशकर जोशीने इसके लिये मारू-गर्जर शब्दका प्रयोग करना पसद किया है। उक्त रूपमती आख्यानके कर्ता द्वारा किया गया सोरठ मारू शब्दका प्रयोग देख कर हमे इस विषयमे विशेष प्रेरणा मिली है और हमारी कल्पनामे कवि उमाशकरजी द्वारा सूचित राजस्थान और गुजरात की सास्कृतिक एकताका सारसूचक मारूनगर्जर शब्द प्रयोग ठीक उपयुक्त लगता है। राजस्थान और गुजरातके विशिष्ट भाषाविद् विद्वान् इस पर अवश्य विचार करे। इस विषयमें हम अपने कुछ विशेष विचार किसी अन्य अवसर पर प्रकट करना चाहते है। हमारी कामना है कि कवि जानकी अन्य रचनाए भी इसी तरह सुसपादित हो कर प्रकाशमें आनी चाहिये। सर्वोदय साधना आश्रम, -जिनविजय मुनि चदेरीया ता. १०-३-५३ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासाके कर्ता कविवर जान और उनके ग्रन्थ हिन्दी साहित्यमें जान कविके क्यामखां रासो आदि ग्रन्योका सबसे पहला उल्लेख राजस्थान विवदरत्न परम साहित्यनुरागी व संत साहित्यके अद्वितीय संग्राहक स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायणजीने, १५ वर्ष हुए अपनी "सुन्दर ग्रन्थावली" में किया था । सन्तकवि सुन्दरदास सं० १६८२ में फतहपुर पधारे, और अधिकतर यहीं रहने लगे । अत. फतहपुरके विद्यानुरागी नवाबोका आपके सम्पर्कमें श्राना स्वाभाविक था। इसी प्रसंगसे पुरोहितजीने अलफखां व उनके रचित चार ग्रंथ, फतहपुरके नवाबोंके नाम एवं क्यासरासोका उल्लेख किया था । यथा ___ "सुन्दरदासजी फतहपुरमें नवाब अलफखा के समयमें आगये थे । सम्भव है यहां उस वीर और कवि नवाबसे इनका मिलना हुआ हो, क्योकि नवाब सम्वत् विक्रमी १६९३ (सन् हिजरी १०५३ रमजान की २८ ता. को) तलवाडेके युद्ध में बडी वीरतासे वीरगतिको प्राप्त हुआ था। यह महामहिम नवाव अलफखाँ प्रायः शाही खिदमतमें रहा करता था। यह बडी-बढी मुहिमों और युद्धोंमे भेजा जाता था और प्रायः सदा विजयी रहा करता था । परन्तु शूरवीर होकर भी कहते हैं कि यह एक अच्छा कवि भी था, और हिन्दी काव्यमें कई ग्रन्थ भी बनाये हैं जो प्रायः शेखावटीके अन्दर प्रसिद्ध हैं।" आपने टिप्पणीमे लिखा है कि अलफखाँ-काव्योपनाम जान कविके बनाये हुए चार ग्रन्थ १. रतनावली, २. सतवंतीसत, ३. मदनविनोद, ४. कविवल्लभ हैं, जो हमारे संग्रहमे हैं। (पृष्ठ ३६-३७) पृष्ठ चालीसकी टिप्पणीमें उपयुक्त टिप्पणीकी बातको पुनः दुहराते हुए क्यामरासा के रचियताका नाम 'नेडमतखाँ बतलाया था। यथा - "अलफखाँ फतहपुरके नवाबोंमें नामी वीर और कवि हुश्रा । यही जान कवि था, जिसने कई ग्रन्थ रचे थे। उनमेंसे चार ग्रन्थ हमारे संग्रहमें भी विद्यमान हैं। इसके छोटे बेटे "नेड़तमतखाँ" ने कायमरासा वनाया । इसहीके अनुसार नजमुद्दीन पीरजादे मुझणूं फतहपुरने "शजतुल मुसलमीन"फारसीमें तवारीख लिखी, जिसकी नकल झूम)में हमने करवायी थी परन्तु वह मांगकर कोई ले गया था लो अबतक लौटाई नहीं। इसीके आधारपर "तारीख जिहानी" हैदराबाददक्षिणमें बनी है । नवाब नं. १२ कामयावखाँके समयमें शेखावत वीर शिवसिंहजीने सं. वि. १७८८ में फतहपुरको तलवारके जोरसे छीन लिया । तबसे शेखावतोंके अधिकारमें है । (वाकियात कौम काइम खानी" "फरू त्तवारीख" तथा "शिखर वंशोत्पत्ति पीढ़ी वार्तिक" एवं सीकरका इतिहास ।) पुरोहितजीके पश्चात् धूमकेतुके सम्पादक पं. शिवशेखर द्विवेदीने धूमकेतुके तीसरे अंक (अगस्त सन् १९३८) में तीन ग्रन्थोंका परिचय प्रकाशित करते हुए जानका नाम अलफखाँ १. फतहपुर परिचयके पृष्ट १३६ मे भी इसी भ्रान्त परम्परा को अपनाया गया है। २. फतहपुर परिचय ग्रन्थमें नियामतखों लिखा है। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यांस खां रासां - भूमिका लिखनेके साथ-साथ उसे मुगल सम्राट शाहजहाँका साला बतलाया । इसका प्राधार अज्ञात हैं। इसके पश्चात् पं. झावरमलजी शर्माने सन् १९४० मे हमारे द्वारा सम्पादित “राजस्थानी" त्रैमासिक (वर्ष ३ अंक ४)मे “कायमखानी नवाब अलफखॉ और उसकी हिन्दी कविता" नामक लेख छपवाया जिसमें कायमखानी वंशकी पूर्व-परम्पराके साथ सतवंतीसत, मदनविनोद एवं कविवल्लभका रचयिता अलफखौंको बतलाया । इस लेखमें पण्डितजीने पुरोहित हरिनारायणजीके अलफखॉकी मृत्यु सं. १६६३ (तलवाडे युद्ध) मे होनेके कथनपर सन्देह प्रकट किया क्योंकि कविवल्लभका रचनाकाल स्वयं ग्रन्थमें ही सं १७०४ दिया गया है । पुरोहितजीके कथनानुसार इन्होंने कायमरासाके रचयिता अलफखाँके छोटे बेटे नेढमतखॉको ही बतलाया है एवं हिन्दी साहित्यमें प्रसिद्ध ताजको कायमखानी नवाव फदनखाँकी पुत्री एवं अलफखाँ के पिता ताजखाँ (द्वितीय) की वहिन होना बतलाया है। जब मैंने इस लेखको पढा, मनमें विचार हुया कि सभी व्यक्ति जान कविको अलफखाँ बतला रहे हैं। पर ग्रन्थकारने कहीं भी इसका सूचन नहीं किया । अतः वास्तविकताकी शोध करनी चाहिए। इसी समय बीकानेर राज्यकी अनूप संस्कृत लाइब्रेरीका पुनरुद्धार कार्य प्रारंभ हुआ और उसमे जान कविके कई प्रन्थोंकी हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त हुई । फलतः ब्रजभारतीमें प्रकाशित (सं १९४२ में) अपने लेग्वमें मैंने जान कविके 8-१० ग्रन्थोंका उल्लेख किया था। अनूप संस्कृत लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन श्री रावत सरस्वत बी. ए. से जान कविके सम्बन्धमें बातचीत होने पर इन्होने शेखावाटीके किसी स्थानमे जान कधि के ७० ग्रन्थोंकी संग्रह प्रतिकी जानकारी दी। उनकी दी हुई ७० ग्रन्थोंकी सूची देते हुए मैंने एक लेख भी तैयार करके रखा, और उपयुक्त संग्रह प्रतिके खरीदनेकी वात चल रही थी। इसी बीच वह प्रति मेरी सहायतासे जुलाई सन् १९४४में हिन्दुस्तानी अकडेमीने खरीद ली । सन् १९४५ में रावत सारस्वतने सरस्वती (जनवरी) एवं विश्ववाणी (मई) में जान कविके अन्योंके परिचायक दो लेख प्रकाशित किये, पर जान कविका वास्तविक नाम व परिचय वे भी प्राप्त नहीं कर सके उन्होंने नाम मुहम्मद जान होनेकी संभावना प्रगट की । श्रेकडेमीकी प्रतिके आधारसे श्रीकमल कुलश्रेष्टने हिन्दुस्तानीके जनवरी-मार्च सन् १९४५ के अंकमे उक्त प्रतिके ६८ ग्रन्थोंका ज्ञातव्य परिचय प्रकाशित किया। ___ जान कविके ग्रन्थोंमें बुद्धिसागर नामक ग्रन्थ भी था । उसकी एक प्रति दिल्लीके कूचे दिगम्बर जैन मन्दिरमें ज्ञात हुई । वहाँकै सरस्वती भण्डारको सूची अनेकान्त व० ४ २०७८ में प्रकाशित हुई । उसमें बुद्धिसागरके ग्रन्थ रचियताका नाम "न्यामतखाँ" बतलाया था। अतः दिल्ली जानेपर मैंने इस प्रतिको देखनेका प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली। उसी बीच जैनाचार्य श्रीजिन १. वास्तवमें यह सम्वत्' भी सही नहीं है । यहाँ सम्वत् १६८३ चाहिए । श्रीयुत मोतीलाल मेनारिया और कमलकुलश्रेष्ठने भी इसीका अनुकरण किया है, क्योंकि कविनें क्याम रासोके अतिरिक्त किसी अन्यमे अपना वास्तविक नाम नहीं दिया है। हिन्दुस्तानी, भाग १५ अंक १. ३. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविवर जान और उनके ग्रन्थ ऋदिसूरिजी महाराजके दर्शनार्थ चुरूम मेरा और भंवरलालका जाना हुश्रा, और वहाँसे विदुषी साध्वी श्री विचक्षणश्रीजीके वन्दनार्थ अॅझणू भी गये । वहांके जैन उपाश्रयमें स्थित यतिजीके संग्रह के खंड में हमें जान कविके तीन अन्यों (कायम रासो, अलफखाकी पैडी, बुद्धिसागर ) की उपलब्धि हुई, जिनमेसे कायमरासो एवं अलफखांकी पेंढी दोनों ऐतहासिक काव्य थे, पुर्व अलफखांके सम्बन्धमें रचे गये थे। उसकी प्रारंभिक पंक्तियोंको पढ़ते ही यह तो निश्चय हो गया कि जान कवि अलफखां नहीं, पर उसका पुत्र था। फिर सूचमतासे विचार करनेपर उसका नाम उपयुक्त बुद्धिसागर अन्यकी लेखन प्रशस्तिम उल्लिखित न्यामतखां हो, जो कि अलफखांके पांच पुत्रोंमे द्वितीय थे, सिद्ध हुया । इसकी सूचना सर्वप्रथम हमने हिन्दुस्तानीके अप्रेल, जून १९४५ के अंकमें कायमरासोका परिचय प्रकाशित करते हुए दी । वैसे "कविवर जान और उनके ग्रन्थ" नामक लेख इस सम्बन्धमें पहले लिखा जा चुका था, पर कागजको दुष्प्राप्यनादिके कारण वह बादमें १९४९ की 'राजस्थान भारती' में प्रकाशित हुया । इस लेख में मैंने जान कविके ६ ग्रन्थ अपने संग्रहमें एवं अन्य ग्रन्थोंको प्रतियां अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, सरस्वती भंडार (उदयपुर) एवं एशियाटिक सोसाइटीमें प्राप्त होनेका उल्लेख करते हुए रावत सारस्वतसे प्राप्त ७० ग्रन्धोंकी सूची दी। उपर्युक्त १७ ग्रन्योंमेसे बारह ग्रन्थोंके नाम तो इन ७० ग्रन्थोंमें मिल जाते हैं, पर ५ ग्रन्थ उनसे अतिरिक्त मिले । अतः जान कविक्री कुल ७५ रचनाओंका परिचय इस लेखमें मैंने दिया था। पीछेसे हमारे संग्रहके बुद्धिसागर ग्रन्यके सम्बन्धमें अनुसन्धान करनेपर वह ७० ग्रन्योकी सूचीमे उल्लिखित बुद्धिसागरसे भिन्न ही सिन्छ हुआ, अतः रचनाओंकी संख्या ७६ हो जाती है। इन अन्योंके रचना-कालपर विचार करनेसे कविकी संवतोल्लेख वाली सर्व प्रथम रचना शतकत्रय प्रतीत होती है, जिसकी रचना १६७१ में हुई है, और अन्तिम संवतोल्लेख वाली रचना जाफरनामा पदनामा है जो सं० १७२१ में रचित है। अतः कविने ५० वर्पतक निरन्तर साहित्यकी सेवा की और इस तरह ७० वर्षकी श्रायु अवश्य पाई सिद्ध होता है। उपलब्ध ग्रन्थों में सबसे बडा ग्रन्थ बुद्धिसागर है जो कि ३५०० श्लोक परिमाण का है । उसके बाद परिमाणमें कविवल्लभ एवं कायमरासोका स्थान प्राता है । कविकी भाषा और शैली सुन्दर है । वह श्राशु कवि था। उसने कई ग्रन्थोंके २, ३, ८ प्रहरमें व १-२-३ दिनोंमें रचे जानेका उल्लेख स्वयं किया है। रसतरंगिणी, बुद्धिसागर अादि ग्रन्थोंसे स्पष्ट है फि कवि संस्कृत एवं फारसीका भी अच्छा ज्ञाता था। प्रथम ग्रन्थका अाधार संस्कृत ग्रन्थ है, दूसरेका फारसी ग्रन्थ । कविका अध्ययन भी बहुत विशाल था । हिन्दी भाषापर तो इसका विशेष अधिकार था ही । अलंकार-रस, काव्य-शास्त्र, वैद्यक एवं इतिहास संवन्धी ग्रन्थोंकी रचना करनेके अतिरिक्त आख्यानक प्रेम काव्य लिखना उसका प्रिय विषय रहा प्रतीत होता है। [टिप्पणी-सूफी काव्य संग्रहमें श्रीयुतपरशुरामजी चतुर्वेदीभी लिखते हैं कि इस कविकी विशेषता इसकी रचनाओंकी पंक्तियोंकी द्रुतगामितामें देखी जा सकती है । जान पडता है कि इसकी प्रत्येक पंक्ति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्याम खां रासा- भूमिका तत्क्षण अपने श्राप बनती चली जाती है, न तो इसे उसके लिए कुछ सोचना पडा है और न कोई परिश्रम ही करना पड़ा है। कथानककी रूप रेखा इस कविके केवल संकेत मात्रसे ही भरती चली जाती है और कुछ कालमे एक प्रेमगाथा प्रस्तुत हो जाती है । फिर भी इसकी रचनाएँ केवल तुक बन्दियां नहीं कही जा सकतीं । उनके बीच २ में कुछ ऐसी सरस पंक्तियाँ आ जाती हैं जो किसी भी प्रौढ़ एवं सुन्दर काव्यका अङ्ग बन सकती हैं, और उनकी संख्या किसी प्रकार भी कम नहीं कही जासकती। इस कविने पात्रोंके चरित्र-चित्रण तथा घटना-विधानमें भी कभी-कभी अपना काव्य कौशल दिखलाया है और कोई न कोई नवीनता ला दी है। ] रावत सारस्वत द्वारा प्राप्त सूचीमें 'रस कोष' का रचनाकाल सं० १६६७ लिखा हुआ था, उसी आधारसे राजस्थान भारतीमे प्रकाशित अपने लेखमें, मैंने उसे सर्वप्रथम रचना बतलाई थी। श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदीने सूफी काव्य संग्रहके पृष्ठ १३९-४०में उसीका अनुकरण किया है। पर मेरे लेख छपनेके पश्चात् सं० १६८४ जेष्ठ वदीमे कवि भीखजनके फतहपुरमे लिखित प्रति अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें अवलोकनमें श्राई । जिससे इस ग्रन्थका वास्तविक रचनाकाल १६७६ सिद्ध होता है । यथा "जहांगीरके राज्यमें हिरन चित्त को दोष।। सोलहसै षट हुतरै, कियो जान रस कोष ॥"१४१। चौ. ५० प्रस्तुत ग्रन्थ, रसमंजरीकी भाँति नायक नायिकाके वर्णन वाला है। "अबहि बखानौ नाइका नाइक कहि कवि जान । मयूं कy रसमंजरी सुनो सवे धर कान ॥३॥ ग्रन्थका परिमाण ३०० श्लोकोंका है। कविका गुरु कविने हाँसीके शेखमोहम्मद चिस्तीको अपना गुरु बताया है । शेखमुहम्मद मेरो पोर, हाँसी ठाम गुनीन गंभीर । शेखमुहम्मद पीर हमारो, जाको नाम जगत उजियारो । रहन गाँव जानहु तिहँ हॉसी, देखत कटे चित्त की फांसी । कविवल्लभ एवं बुद्धिसागर प्रन्यमे पीर मुहम्मदके ४ पूर्वज कुतवाँ १. जमाल २. बुरहान ३. अनवर एवं ४. नूरदीके भी नाम दिए हैं । यथा "कुतव भय न इनके कुलचार, तिनको जानत सव संसार। पहले जानहुँ कुतव जमाल, जिहि तन तक्यो सु भयौ निहाल ॥३॥ दूजै भयौ कुतुब बुरहान, प्रगट्यो जाको नाम जहान । कुतव अनवर दादौं भयो, जिनकी छत्रपति नयौँ । कुतब नूरदी नूरजहान, प्रगट भयौ जग जैसे भान । हाँसीमें इनको विसराम, जियारत करे सरै मन काम । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविवर जान और उनके ग्रन्थ हांसी ऐसी और है, उत जो रावत जाई । इच्छा पूजे सूखित द्वै, हँसत खेलत घर श्राई । सेखमोहम्मद पीर हमारी, जाको नाम जगत उजियारौ। रोजो अपर बरसत नूर, करामात जग भई हजूर । ज्यारत करत फिरसते श्रावत, मनुपनुकी को बात सुनावत । नई नाही कछु होति आई, इनके कुलमें श्रादि बढ़ाइ । ७० ग्रन्थोंकी संग्रह प्रति श्री कमलकुल श्रेष्ठके लेखानुसार इस प्रतिके पृष्ठोंकी लम्बाई-चौड़ाई ६४४ है । प्रारंभिक कुछ अंश प्राप्त नहीं हैं। बीच-बीचमें भी एकाध पृष्ठ गायव है । प्रति सं० १७७७-७८ में फतहचन्द ताराचन्द ढोढवाणिया द्वारा लिखित है । लिखावट स्पष्ट है । कहीं-कहीं कीडोंके खाने आदि कारणोंसे पढ़नेमें कठिनाई होती है । पहले यह एक जिल्दमे होगी अब सब पन्ने अलग-अलग हैं। कमल कुलश्रेष्ठकी वर्गीकृत ग्रन्थ सूची १. छोटे-छोटे चरित्र काव्य २. मुक्तक शृङ्गारवर्णन काव्य ३. उपदेशात्मक काव्य ४. कोष ५. मिश्रित इनमें छोटे छोटे चरित्र काव्योंको दो भागोंमें विभक्त किया गया है-प्रेम कहानियाँ क. स्वतन्त्र कहानियां । प्रेम कहानियाँ दो उपभागोंमें विभाजित की जा सकती हैं। १. अविवाहिता नायिकासे प्रेम होने और प्रायः विवाहमें समाप्त होने वाली कहानियाँ। २. परकीया-प्रेम-मूलक कहानियाँ । पहले उपवर्गमें निम्न काव्य है १. रतनावली, रचना संवत १६९१, मि. व. ७ (हि. सं. १०४४) छंद दोहा-चौपाई, विस्तार १७५ दोहे। , (प्रायः ७ चौपाइयोंके बाद १ दोहा आता है । इस प्रकार दोहोंकी संख्या दी गई है, उसके साथ चौपाइयोंकी संख्या भी जान लेनी चाहिए) __ यह अन्य ९ दिन में रचित है, प्रारंभिक ४४ दोहे इस प्रतिमें नहीं हैं। २. लैला मजन, र. सं.१६९१, छन्द वही, पद्य ६५९ (बीकानेर अनूप सं. ला. प्रतिके अनुसार) ३. रतनमंजरी, र. सं. १६८६, छन्द वही, २६४ दोहे, प्रारंभके पचास (५०) दोहे अनुपलब्ध है। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्याम खां रासा-भूमिका ४. नल-दमयंती, र. सं. १७१६, छन्द वही, विस्तार, १४६ दोहे । ५. पुहुप वरिषा. र. सं. १६७८, छन्द वही, पृष्ठ २७ (१७२ चौ.) राजकुमार पुरुषोत्तम व सुकेसीके प्रेम और विवाह से सम्बन्धित है। ६. कलावती, र. सं. १६९६, छन्द वही, दोहे २०४ (१२ दिनमें रचित) (रावत सारस्वतके लेखानुसार चौ. २०७) ७. छवि-सागर, रचना सम्वत् १७०६, छन्द वही, दोहा १६ (राजा जैत एवं राजकुमारी छविसागरकी प्रेमकहानी) ८, कामलता, र. सं. १६७८, छन्द वही, दोहा ३२ (हंसपुरीके राजा तथा कामलताको प्रेम कथा है ) हिन्दुस्तानीमें पूर्ण और कुछ अंश सूफी काव्य संग्रहमें प्रकाशित । ९. कलावती, र. अस्पष्टता, छन्द वही, दोहा ३६ (पुरन्दर और कलावतो प्रेमकथा) (रावत सारस्वतानुसार दोहा ३६, चौपाई ३६, छन्द १२, सोरठा २, र. सं. १६७६, दो प्रहरमें रचित) १०. छीता, र. सं. १६९३, कार्तिक सुदी ६, छन्द वही, दोहा ३७ । कुछ अंश सूफी काव्य संग्रहमें प्रकाशित । ११. रूपमंजरी, र. सं. १६९४ छन्द वही, दोहा १२२, ज्ञान एवं रूपमजरीकी प्रेमकथा। १२, मोहिनी, र. सं. १६९४, मि. सु. ४, छन्द वही, पद्य १२२, ३ प्रहर में रचित । १३. चन्द्रसेन शीलनिधान, र.सं. १६९१, छन्द चौपाई, दो. १८, प्रहर में (रावत सारस्वतानुसार ढाई प्रहर में) रचित ।। १४. कामरानी पीतमदास, र. सं. १६९१, छन्द वही, दोहा १२, सवा दो प्रहर में रचित । १५. कलन्दर, र. सं. १७०२, छन्द वही,पृ. २. १६. देवलदेवी खिजखां, र. सं. १६९४, छन्द वही, दोहा ८५, प्रसिद्ध उपाख्यान । १०. कनकावती, र. सं. १६७५, छन्द वही, दोहा ८१, राजा भरतके पुत्र परमरूप और कनकावतीकी प्रेमकहानी, ३ दिन में रचित । १८. कौतूहली, र. सं. १६७५, छन्द विविध, पृष्ठ ३३ (चन्द्रसेन एवं कौतूहलीकी प्रेमकथा) १९. सुभटराई, र. सं. १७२०, छन्द दोहा चौपाई, दोहा ६० (सूरजमलके पुत्र सुभटराई एवं राजकुमारीकी प्रेमकहानी) २०. मधुकरमालती, र. सं. १६९१, फा. व. १. छन्द वही, पृष्ठ २६, कुछ अंश सूफीकाव्य संग्रहमें प्रकाशित । २१. बांदी नामा, रचनाकाल अज्ञात, छन्द वही, पृष्ठ ४, (किसी मियांका क्रीतदासीसे अनुचित प्रेम, प्रेमकथाके ढांचेसे भिन्न । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविवर जान और उनके ग्रन्थ दूसरे उपवर्गकी रचनाएं - १. निर्मल, र. सं. १७०४ माघ, छन्द वही, दोहा १३, निर्मलको सतीत्व रक्षाकी कहानी । २. सतवंती, र. सं. १६७८, छन्द वहीं, दोहा ५२, सतवंतीकी रक्षाकी कहानी । ३. तमीमअनसारी, र. सं. १७०२, चौपाई १५०, तमीम अनसारीके पत्नीकी सतीत्व रक्षाको कहानी। ४. शीलवती, र. सं. १६८४, छन्द वहीं, दोहा २५, शीलवतीको सतीत्व रक्षाकी कहानी २ दिनमें रचित । ५. कुलवंती, सं. १६९३ पौष, छन्द वही, दोहा ४७ कुलवंतीकी सतीत्व रक्षाकी कहानी । स्वतन्त्र कहानियां१. वसृकिया विरही, र. सं. १६८६, चौपाई १२८, एक दिन में रचित, ईश्वर-प्रेममें पागल घकिया विरहीके एक लोभीके उद्धारकी कहानी । २. भरदेसरकी कहानी, र. सं. १६९०, दोहा-चौपाई, दोहा २३, दो प्रहरमें रचित । मुक्तक शृगार वर्णन, १. वर्णनात्मक, २. रीति काव्य वर्णनात्मक - १. यारहमासा, र. सं. अज्ञात, सवैया १५, वियोग श्रृंगारका बारहमासा । २. ग्रन्थ बरवा, र. सं. अज्ञात, बरवा ७०, संयोग-वियोग षट् ऋतु वर्णन । ३. पट् ऋतु बरवा, र. सं. अज्ञात, बरवा २२, पेट ऋतु वर्णन । ४. पट् ऋतु पवंगम, र. सं. अज्ञात, पवंगम पृ. २. षट् ऋतु वर्णन । (विशेषता-अंत पदोंको श्रेकवरण जौ मारि। तौं वरवा सब है हैं मढे विचारिश्रे) ५ धुंघटनामा, र. सं. अज्ञात, दोहा चौपाई ४, पृष्ठ, यौवन व धंघटका वर्णन । ६. सिंगार-सत, र. स. १६७१, दोहा १०१, स्त्रियोंके श्रृंगारका वर्णन, ३ दिनमें रचित । ७. भावसत, र. सं. १६७१, पृष्ठ ६, श्रृंगार रस, २ दिनमें रचित । ८. विरहसत, र. सं. १६७१ दोहा, १००, वियोग शृंगार, ५ दिनमें रचित । ९. दरसनामा, र. सं. अज्ञात, चौपाई २१ "घूघट खोल दरस परसाब"। १० अलोक नामा, र. सं. अज्ञात, चौपाई २३, अलकोंके सौंदर्यका वर्णन । ११. दरसन नामा, र. सं. अज्ञात, चौपाई ३३।। १२. बारहमासा, र. सं. अज्ञात, पृष्ठ २, फुन्निग छन्द । १३. प्रेमसागर, र.सं. १६६४, दोहा २६४, प्रेममहिमा। १४. वियोगसार, र. स. १७१४, दोहा, सवैया, पृष्ठ १६, विरह-वर्णन । १५. कन्द्रफकलोल, र. सं. अज्ञात, कवित्त सवैया, पृ० ३२, शृंगाररस मुक्तक छन्द । प्रतिमें Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्याम खां रासा- भूमिका अन्त नहीं है। १६. भावकलोल, र. सं. १७१३, छन्द विविध, पृ. २० मुक्तक छन्द । १७. विरहीको मनोरथ, र. सं. १६९४, दोहा ४४। १८. मानविनोद, र. सं. अज्ञात, छन्द विविध, पृष्ठ ४, मान वर्णन । १९. प्रेमनामा, र. सं. १६७५, दोहा-चौपाई, दोहा २१ ।। शृंगार रस-रीति ग्रन्थ १. रसकोष, र.सं. १६७६, दोहा चौपाई, दोहा १४१, नायक-नायिका, दूत-दूती भेद वर्णन । २. शृंगार तिलक, र. सं. १७१०, चौपाई पृ. ३५, नायक-नायिका वर्णन । ३. रसतरंगिणी, र. सं. १७११ माघ, विविध छन्द ३२७, (संस्कृत रसतरंगिणीकी भाषा, सं. १७२४ लिखित प्रति प्राचार्य शाखाभण्डार बीकानेरमें।) उपदेशात्मक काव्य १. चेतननामा, र. सं. अज्ञात, चौपाई ३५ । २. सीख ग्रन्थ, र. सं. अज्ञात, चौपाई २२ (छन्द पारसी मति)। ३. सुधा सिख, र. सं. अज्ञात, छन्द अस्पष्ट, पृष्ठ ४ । ४. सत्तनामा, र. सं. १६९३, दोहा चौपाई, दोहा १९ । ५. वर्णनामा, र. सं. अज्ञात, दोहा ३२, अक्षरोंपर दोहे । ६. बुद्धिदायक, र. सं. अज्ञात, छन्द अस्पष्ट, पृष्ठ ४, मोदक छन्द । ७. बुद्धिदीप, र. सं. अज्ञात, छन्द अस्पष्ट, पृष्ठ । ८. उत्तम शब्द, र. सं. अज्ञात, दोहा ३५, अली, उसमान एवं बीबी फातिमाका संवाद । ९. सिखसागर, र. सं. १६९५, दोहा २४६ । १०. पदनामा, र. सं. १७३१, दोहा ८०.(लुकमान) ११. जफरनामा, र. सं. १७२१, चौपाई १३५ । कोष ग्रन्थ १. नाम-माला अनेकार्थी, र. सं. अज्ञात, पृष्ठ २४, दोहा । मिश्रित काव्य १. बाजनामा, र. सं. अज्ञात, दोहा, पृष्ठ ३, बाजकी चिकित्सा । २. कबूतरनामा, र. सं. अज्ञात, दोहा, पृष्ठं ४, कबूतरकी चिकित्सा । ३. गूढग्रन्थ, र. सं. अज्ञात, दोहा ९० ।। ४. देसावली, र. सं. अज्ञात, दोहा-चौपाई, दोहा, ४७, पृथ्वीके विस्तारका वर्णन । ५. वेदक सिखनामा. र. सं. १६९५ दोहा, १०१ वैद्यक अन्य । ६. पाहन परीक्षा, र. सं. अज्ञात, दोहा, चौपाई, पद्य ४७।११ रन पत्थरोंका वर्णन । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविवर जान और उनके ग्रन्थ m कुल अन्य २१, ५, २, १९, ३, ११, १,६,६८ । श्री रावत सारस्वतसे प्राप्त सूचीके अनुसार १ - सुधासागर और २ - स्वास संग्रह, दो और होने चाहिए, अतः कुल मिलाकर ७० होते हैं। अन्य ग्रन्थ १. कवि वल्लभ, र. सं. १७०४, शाहजहाँके समय । काव्य शास्त्रका महत्वपूर्ण ग्रन्थ । २. मदनविनोद, र. सं. १६९० का.सु. २, कोक, पंचसायक, अनंगरंग, शृङ्गारतिलकके आधारसे रचित । ३. बुद्धिसागर, र. सं. १६९५ मि. सु. १३, पंचतंत्रका अनुवाद, शाहजहाँको भेंट किया। इस प्रन्थ के संबंधमें विशेप जाननेके लिए 'कविजानका सबसे बड़ा ग्रन्थ' शीर्षक लेख देखना चाहिए, जो कि हिन्दुस्तानी, भाग १६, अङ्क ५ में प्रकाशित है। ४. ज्ञानदीप, पथ ८६०८ कथाएँ, सं. १६८६ वै. व. १२, १० दिनमें रचित । (जयचन्दजी संग्रह, श्री पूज्यजी संग्रह, बीकानेर) देखें ब्रजभारती, वर्ष १, अङ्क ११। ५. रसमंजरी, र. सं. १७०६ का, पत्र ४६, सरस्वती भण्डार, उदयपुर । ६. अलफखाँकी पैडी, - प्रस्तुत ग्रन्थके परिशिष्टमें प्रकाशित हो रही है। ७. कायम रासा -प्रस्तुत क्यामखां रासा। उपर्युक्त अन्योंमेंसे बीकानेरके संग्रहालयोंमें जान कविके निम्नांक अन्योंकी प्रतियाँ प्राप्त हैं। सम्पादनादिमें उपयोगी समझ सूचना दी जा रही है अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें १. सतवंतीसत, र. सं. १६७८, सम्वत् १७२६ व १७२९ की लिखित दो प्रतियाँ प्राप्त हैं। २. लैला मजनू , सं. १६९१, (सम्वत् १७५४ को लिखित संग्रह प्रतिमें )। ३. कथामोहनी, र. सं. १६९४ मि. सु. ४ (सं. १७२९।३० लि. संग्रह-प्रतिमें)। ४. कविवल्लभ, र. सं. १७०४ पत्र, ८६ । महत्वपूर्ण काव्य ग्रन्थ, चित्र काव्य भी है। ५. रसकोष, र. सं. १६७६, पत्र ३७ (सं. १६८४ फतहपुरमें लिखित प्रति) ६ मदनविनोद, र. सं. १६९० का. सु. २ पत्र २७ (सं. १७४३ मे लि. प्रति) हमारे अभयजैन ग्रन्थालयमें १. बुद्धिसागर, सं. १६६५ पत्र १८६ (सं. १७१६ लिखित)। २. क्यामरासो, सं० १६९१ (प्रति सं. १७११में की गई )। ३. अलफखांकी पैड़ी, पद्य १००, सं. १६८४ लगभग (सं. १७१६ लि.)। ४. वैदक मति, सं. १६९५ । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ५. शिक्षासागर, सं. १६६५ । (एक साथ सं. १७०१ में मरोटमें लिखित ) । ६. पदनामा । ७- ८. सतवंतीसत व मदन विनोदकी पूर्ण प्रतियाँ हैं । आचार्य शाखा भण्डार १. रसतरंगिणी, सं. १७११ माघ (सं. १७२४ लि. परिमाण ग्रन्थ १०५४ पद्य ३२७ ) । श्रीपूज्य संग्रह १. ज्ञानदीप, र. सं. १६८६ । जयचन्दजी संग्रह १. ज्ञानदीप $3 33 २. रसमंजरी (अपूर्ण प्रति ) । १. पाहन परीक्षा । क्यामखां रासा - भूमिका बड़ा भण्डार प्रकाशित ग्रन्थ व ग्रन्थोंके विवरण जान कविके प्रेमाख्यानोंमेंसे कामलता 'हिन्दुस्तानी' भाग १५, अङ्क ३ में प्रकाशित हो चुका है | हिन्दी साहित्य सम्मेलनसे प्रकाशित सूफी काव्य संग्रहमें १. कनकावती, २. कामलता ३. मधुकर मालती, ४. रतनावली ५, छीता इन पाँचोंकी कथा एवं कथाओंके कुछ अंश प्रकाशित हुए हैं। अतः उनके संबन्धमें विशेष जाननेकी इच्छा वालोंको उक्त ग्रन्थ देख लेना चाहिए । कविके अन्य ग्रन्थोंमेंसे १. सतवन्तीसत, २. मदनविनोद और ३. कविवल्लभके श्रादि अन्त, राजस्थानी, भाग ३, अंक ४ में प्रकाशित हैं । एवं १. कविवल्लभ, २. रसतरंगिनी, ३. रसकोष, ४. वैदकमति, ५, पाहनपरीक्षा, ६. कथामोहिनी, ७. बुद्धिसागर, ८. लैलामजन्, ९. ज्ञानदीप, १० कायमरासा, और ११, अलफखांकी पैड़ीका श्रादि श्रन्त, मेरे सम्पादित "राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज" के द्वितीय भागमें प्रकाशित है । रसमन्जरीका श्रादि श्रन्त सह विवरण मोतीलालजी मेनारिया द्वारा सम्पादित इसी प्रन्थ के प्रथम भागमें है । क्यामखानी दीवानोंके समय में रचित ग्रन्थ start frफख़ाँ व दौलतखांके समय में रचित कई हिन्दी ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं, जिनमें इम दीवान सम्बन्धमें निम्नोक उल्लेख प्राप्त हैं Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविवर जान और उनके ग्रन्थ १. बीकानेरकी राजकीय अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें(सं. १७५४ लि. गुटकेमें)प्राप्त सं. १६५७ फतहपुरमें रचित रूपावतो नामक अख्यानकके प्रारंभमें निम्नोक्त महत्वपूर्ण उल्लेख है - जंबुद्वीप देश तहाँ बागर, नगर फतेपुर नगरां नागर । श्रासि पासि तहाँ सोरठ-मारू, भाषा भल्ली भाव पुनि सारू । राजा वहाँ अलफखाँ जानहु, चहवान हठीका पहिचानहु । ताकर कटक न आवै पारा, समद हिलोरनि स्यों अधिकारा। तुरक तमंकि चढ़े केकाना, नगर नगर भू परे भगाना । राजपूत असि चढ़ि करि कौपह, रविरथ थकै गिमनिकौं लोपह । दोहा ता घरि पत सुलछना, मनमोहन सुर ज्ञान । चिरंजीव दिनपति उदो, दूलह दौलतिखांन । चौपाई अलफखान चहुवानकी सरभरी, कौं करि सके न देख्यो कर भरी। इह विधि कीयो श्राप वखार, करम जोति स्यौं दिपै लिलार । इन्द्रकी सभा सुनी हम कांनि, परतकि देखी इन्ह पहचानि । जास्यों रस सो नो निधि पावै, जाहिस्यों रिशि सो मूल गंवावै । दीनदार दया असि कीनु, हजरति कह्यो सु शिर धरि लीनु । ता दिगि सेरखांन नित्य सोहे, दीनदार अर सभात विमोहै। सारदुल अर संघ विराजै, गुजै साल शिवाली भाजै । दोहा ताहि वजीर साहिबखां, औदखांन उकील । एक ही एक समलंग, बैठे करह सवोल ॥ (राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, पृ० ८३ से) २. बीकानेर के स्व. श्री पूज्य जिन चारित्र सूरिके संग्रहमें कवि भिखजन रचित भारती नाममालाकी प्रति है । यह ग्रन्थ सं. १६८५ में फतहपुरमें रचा गया है। कविने दौलतखाँ व उनके पुत्र ताहरखाँनका उल्लेख इन पधोंमें किया है - बागर मधि गुन ागरो, सुबस फतेहपुर गांव । चक्रवर्ती चहुबॉन निरप, राज करत तिहाँ ठांव ॥१०॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा - भूमिका राज करत रससों भयौं, ज्यो जगतिपति इन्द्र । अलिफखांन नन्दन नवल, दौलतिखान नरिंद ॥११॥ दान क्रिपान सुजान पन, सकल कला सम्पूर । रवि पिरंचि ऐसौ रच्यो, वचन रचन सति सूर ॥१२॥ ता नन्दन बन्दन जगत, गुन छंदनह निधान । कवि पंछी छाया रहे, तरवर ताहरखान ॥१३॥ अजा सिंघ नित एकठा, धर्म रीति अानन्द । सकल लोक छाया रहे, विनैराज हरिचन्द ॥१४॥ तहाँ सुभग शोभा सरस, यसै बरन छत्तीस । तहाँ भीखजनु जानिकै, इह मनि भई जगीस ॥१५॥ (उपर्युक्त ग्रन्थ के पृ० ६, पद्य १० से १५) ३. उपर्युक्त भीखजनकी लिखित कवि जान रचित रसकोष व आनन्द रचित कोकसारकी सं. १६४८-८५ में लिखित प्रति, अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें है। भीखजन रचित बावनी छप चुकी है। ४. सुन्दर ग्रन्थावलीमें राघवदासजीके भक्तमालसे संत कवि सुन्दरदासजीके नवाबके चमस्कार दिखानेका उल्लेख वाला पद्य उद्धृत है । पद्यमें यद्यपि नवाबका नाम नहीं है पर सुन्दरदासजीके समय पर विचार करने पर दौलतखां होना सम्भव है । पद्य इस प्रकार है - "आयो है नवाब फतहपुरमें लग्यौ है पाई, अजमति देहु तुम गुसइयाँ रिझायौ है। पलौ जो दुलीचाको उठाइ करि देख्यौ तव, फतहपुर यसै नीचे प्रगट दिखायौ है ।। येक नीचे सर येक नीचे लसकर बड, येक नीचे गैर बन देखि भय आयौ है । राधा धारे राखि लीये दयते नबाय केर, सुन्दर ग्यानीको कोई पार नहीं पायौ है ॥ इस घटना और चमत्कारों के लिए कहते हैं कि नवाब स्वयं सुन्दरदासजीसे मिलनेको उनके स्थल पर कभी कभी पा जाते थे और कभी कभी सुन्दरदासजो नवाबके यहाँ चले जाते थे । नवाब उनके उपदेशोंसे लाभ उठाते थे। एक समय करामात दिखानेकी प्रार्थना की तो सुन्दरदासजीने नवाबसे कहा कि ईश्वर समर्थ है संसार सारा ही करामात है । नवाबने बहुत नम्रतासे आग्रह और हठ किया तो सुन्दरदासजीने उस गलीचेके किनारोंको, जिस पर दोनों बैठे थे, उठा कर देखनेको नवाबसे कहा । देखा तो एक कुंटके नीचे फतहपुर नगर बसता हुआ दिखाई दिया । दूसरेके नीचे फतहपुरका सर (जोहडा, तालाब) दिखाई दिया। तीसरेके नीचे नवाबकी फौज और रिसाले, तोपखाने श्रादि सारी सेना दिखाई दी और चौथेके नीचे फतहपुरका बड़ा भारी बीड़ (बीहड़, घासका मैदान ) दिखाई दिया। यह अजमत (करामात) देख कर नवाबको मनमें यह भय हुआ कि कहीं यह फकीर मेरे आग्रहसे रुष्ट तो नहीं हो गये हैं और यह भी कि ये बडे करामाती Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका ऐतिहासिक कथा - सार साधु हैं इनसे डरते ही रहना चाहिए और इनकी सेवा और भक्ति करके इनको रिझाना और प्रसन्न रखना चाहिए। पुरोहित हरनारायणजीने उपरोक्त घटनाके अतिरिक्त एक अन्य चमत्कारी घटनाका भी उल्लेख किया है । यथा - "एक और समयकी बात है कि स्वामी सुन्दरदासजी फतहपुरके गढ़में नवाबके पास बैठे थे। बातों ही बातोंमें स्वामीजीने तुरन्त फुर्तीसे नवाबको सावधान किया कि तवेलेमेंसे सब घोड़े वाहर निकलवानो और असबाबको फौरन तवेलेमेंसे बाहर निकाल कर गढ़से बाहर ले जाओ। हुक्म होते ही वहां देर क्या थी। सैकड़ों सईस और सवार और सिपाही लग गये । घोड़ों और सामानका बाहर निकालना था कि तबेला 'धरर' धर्राट करके गिर पड़ा। यों स्वामोजीने नवाबके घोड़ोंको रक्षा की । नवाबने स्वामीजीके कदम पकड़ लिए और बहुत भक्ति की । इस प्रकार कई चमरकार अनेक समयोंमें दिखाये थे।" सुन्दरदासजीसे नवाबोंका अच्छा सम्बन्ध तो था ही, इन्होंने फतहपुरमें रह कर बहुतसे ग्रन्थ इन नवाबोंके समयमें रचे । __ क्यामखां रासाका ऐतिहासिक कथा - सार रासाका प्रारंभ करते हुए कवि जान सर्व प्रथम सृष्टिकर्ता व मुहम्मदको स्मरण कर अपने पिता दीवान अलफखां और उसके वंशका सत्य इतिहास लिखता है । पहले पौराणिक ढंगले सृष्टिकी उत्पत्ति और चौहान वंशका विवरण इस प्रकार लिखा है - सृष्टिकर्त्ताने पहले मुहम्मदके नूरको रचा, और उससे स्वर्ग, फरिश्ते, चंद्र, तारे, देव, दानव, गिरि, समुद्रादि निर्माण किए । मनुष्योंकी उत्पत्तिमें प्रथम आदम हुए जिनसे आदमी हुए। हिंदु और मुसलमान दोनों एक ही पिंडसे उत्पन्न हैं, रक्त चर्मादिका कोई भेद नहीं, करनीसे अलगअलग नाम हुए । पैगंयर आदम एक हजार वर्ष जीवित रहे, उनका पुत्र सीस ९१२ वर्ष, सीसका पुत्र उनूस ९६५ वर्ष, उसके पुत्र कीनानने ९६२ वर्षके जीवनकालमें सुन्दर आवास, कोट, गढ़ आदि बनवाए । कीनानका पुत्र महलाइल, उसका पुत्र यजद हुश्रा । यजदका पुत्र इदरीस पैगंबर हुआ जो ३६५ वर्ष पृथ्वी पर रहा । उसका पुत्र मसतूस हुआ जिसने धर्म छोड दिया । उसका नंदन नामक हुआ। फिर नूह नयी हुश्रा जो १५० वर्ष जीवित रहा और जिसने संसारमें धर्मका पथ प्रकट किया। नूहके तीन पुत्र थे साम, हाम और यासफ । सामके अरबी, रूमी, ईराक, खुरासान इत्यादि हुए। चौहान, पठान आदि सामके वंशज हैं । हामके उजयक, हिंदी, बबरी, हबसी, कुबती हुए। और यासफके फिरंगी, रूसी, यूनानी, तुर्क और चीनी हुए। सामका पुत्र इमन, उसका पुत्र उज और उसका पुत्र समूद हुअा। समूदका पुत्र राजा पाद हुआ, उसका अनाद, फिर जुगाद, प्रमाद, मेर, मंदिर, कैलास, समुद्र, फैन, वासिग, राह, रावन, Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ । क्यामखां रासा- भूमिका धुंधुमार, मारीच, जमदग्नि, परशुराम, सूर, वच्छ, चाइ और चाहुवान क्रमशः हुए । चक्रवर्ती चाहुवानकी श्रान चारों दिशाओं में है, उनके साँभरका नमक सब लोग खाते हैं। उसी चौहानके कल्पवृक्ष रूपी वंशमैकी निम्नोक्त शाखाएं हैं--क्यामखानी, देवड़े, सीसोदिये, भदौरिये, चित्तोरिये, वाधौर, मलखीची, निरवान, चाहिल, मोहिल, माहौ, दूगट, बलिसे, जौर, सोनगरे, गिलखोर, मांदलेचे, गुहिलौत, उमट, साचोरे, गोधे, राकसिये, हाले, झाले, दाहिमे, गूदल, बालौत, हाडे, छोकर, धंधेरे, खैल, बारौरिये, धुकारने, चीचे, गोवलवाल, हुलतावर, ढलोहोर श्रादि । पंडसूर, श्रासोप, पीपारे, गौतम, दागी, मरिल श्रादि सवका मूल चौहान है। श्रव चौहान वंशके छत्रपति राजाओंका विवरण लिखते हैं - दिल्ली में मानिकदे चौहानने २ वर्ष ६ मास १७ दिन राज्य किया, रावलदेने ९ वर्ष ७ दिन, देवसिहने ६ वर्ष ३ मास; स्योंदेवने १० वर्ष, १ मास २२ दिन, बलदेवने ५ वर्ष ११ दिन, पृथ्वीराजने २२ वर्ष ११ दिन तक दिल्लीका शासन किया। इसने बहुत युद्ध किए, काबुलसे दूब मँगा कर घोड़ोंको चराया । चौहान वंश सवमें सिरमौर है जिसमें बीसल, पाना, हमीर जैसे वीर राजा हुए। चहुवानके पुत्र मुनि, परिमुनि, मनिक और जैपाल थे जिनमें एक योगी हुश्रा बाकी राजा हुए । मानिकके कुलमें सोमेश्वरका पुत्र पृथ्वीराज हुआ, आठ चौहान अरि मुनिके वंशज हैं। चहुवानके बाद मुनि हुआ उसने कूचौरेमें राज्य किया। फिर भोपालराय, कहकलंग, घंघराय हुश्रा, जिसने घांघू गॉव वसाया। एक बार घंघराय शिकार खेलने गया। उसके हरिनका पीछा करते हुए बहुत दूर चले जाने पर सेवक लोग व्याकुल हो कर उसे खोजने लगे । इधर राजा मृगके पीछे लोहगिरि तक पहुँचा । यहां आते ही मृग अदृश्य हो गया। राजाने चिंतातुर हो कर सजल नेत्रोंसे एक वृक्षकी छायामें विश्राम लिया। निकट ही एक जल-कुंड था जिसमे स्नान करनेके लिए चार महान सुंदरी अप्सराएं पाई। वस्त्र उतार कर उन्होंने कुंडमे प्रवेश किया। राजाने कौतूहलसे उनके वस्त्रोंको उठाकर अपने कब्जेमें कर लिया। अप्सराओंके मांगने पर राजाने क्हा चारोमेंसे यदि एक मेरे साथ शादी करे तो वस्त्र दे सकता हूँ। अप्सराोंने बहुत कुछ समझाया, पर न मानने पर अाखिर एक जो सबसे छोटी थी, उसे राजाको देनेका वचन दिया । तब राजाने वस्त्र दिये और वे सुसज्जित हो कर बाहर श्राई। राजाने एक अप्सराके साथ विवाह किया अर्थात् हरिणका पीछा करते हुए हरिणाक्षीकी प्राप्ति की। अप्सराके गर्भसे तीन पुत्र हुए-कन्ह, चंद और इंद । चंदने चंदवार, इंदने इंदौर बसाया। कन्हरदेव पिताका राज्याधिकारी हुआ । उसके चार पुत्र थे अमरा, अजरा, सिघरा और बजरा। अजरासे चाहिल, बछरासे मोहिल, अमराके वंशज चौहान हुए । अमराका पुत्र जेवर राज्याधिकारी हुा । उसके गूगा, वैरसी, सेस और धरह, यह चार पुत्र थे । गूगाके नागिन, घरहके भोपर और Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका ऐतिहासिक कथा - सार भरह और वैरसोके उदैराज, उसके जसराज फिर कैसोराइ और उसके पुत्र विजयराज और हरराज हुए । हरराजके केसो और नंद हुए, उसके पृथ्वीराज, फिर लालचंद, अजयचंद, गोपाल, जैतसी, पुनपाल क्रमशः हुए । जैतसीके मूलराज, असरथ, दौंका, साँगा, रातू, पातू, महियल पुत्र थे। पण्यपालके रूप, फिर रावन और उसका पुत्र तिहुँपाल हुआ । उसका पुत्र मोटेराय हुश्रा, जो ददरेवेंमें राज्य करता था। मोटेरायके पुत्र करमचंदको वादशाहने तुर्क बना कर "क्यामखां" नाम रक्खा । मोटेरायके चार पुत्रोंके नाम - क्यामखां, जैनदी, सदरदी और जगमाल थे। इनमें चौथा, जगमाल' हिंदू रहा । दीवान क्मामखांके पाँच पुत्र ताजखां, महमदखां, कुतुबखां, इख्तियारखां और मोमनखां थे। अय क्यामखां (करमचन्द) तुर्क कैसे हुआ इसका विवरण लिखते हैं - एक बार कुंवर करमचंद शिकार खेलता हुआ थक कर एक वृक्षके नीचे विश्राम करने लगा और उसे नींद आ गई । दिल्लीपति वादशाह पेरोसाह (फिरोजशाह) हिसारसे शिकार खेलता हा इधर पा पहुँचा, कुँवरको सोते देख कर वढा हर्ष और कौतूहल हुआ, क्योंकि सब वृक्षोंकी छाया ढल जाने पर भी जिस वृक्षके नीचे करमचंद सोया था, छाया नहीं ढली थी। वादशाहने सैयद नासिरसे पूछा । उसने कहा कि कोई महापुरुष होगा, जगावें । हिंदू देख कर विस्मय हुश्रा और उसे तुर्क बनानेकी ठानी। बादशाहने उसे जगा कर परिचय पूछा और प्यारसे गले लगा कर बहुत सम्मानित किया । बादशाहने उसका नाम क्यामखां रक्खा और अपने साथ हिसार ले गया। उसे पढ़ानेके लिए सैयद नासिरको सौंप दिया। इधर करमचन्दके लौटने पर ददरेमें हाहाकार मच गया। सैयदके द्वारा खबर पाकर मोटेराय हिसार गया। बादशाहने बड़ा सम्मान किया और कहा कि इसके तुर्क होनेकी चिन्ता न करो। मैं इसे अपने पुत्रकी तरह रक्खूगा; इसे पाँच हजारी पदवी मिलेगी। इस प्रकार समझावुझा कर सिरोपाव दे कर मोटेरायको विदा कर बादशाह दिल्ली गया। क्यामखां सैयदके पास पढ़ने लगा। मीराके १२ पुत्रोंके साथ खेल-कूदमें उसके दिन बीतते थे, भोलेपनसे श्रापसमे लड़ते-झगड़ते भी थे । एक बार हाँसीसे कुतव नूरदी, नूरजहान पाए । क्यामखांको उदास देख कर उसे राजी किया और नींबू व गिदोड़े दिए । उसने पहले नींबू और फिर गिंदोड़े लिए तो पीरने कहा कि इनके गोत्रमे पहले खट्टे हो कर फिर मीठे होनेकी रीति होगी। जब क्यामखांकी पढ़ाई हो चुकी, तो सैयदने कहा अब नमाज पढ़ो, सुन्नत करो, और दीनमें आयो। क्यामखांने कहा और तो ठीक है, शादी कैसे होगी, सैयदने कहा- बड़े-बड़े राजा महाराजाओंके डोले श्रावेंगे, दिल्लीपति बहलोल अपनी पुत्री देगा। क्यामखां मुसलमान हो गया, मीर उसे १ फतहपुर परिचयमें जेउद्दीन व जबरुद्दीन नाम लिखा है। इनके वंशज भी क्यामखांनी कहलाते हैं। क्यामसांके मुसलमान होनेका समय इस प्रन्यमें सं. १४४० लिखा है। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ क्यामखा रासा भूमिका दिल्ली ले गया । मीरको बादशाहने सम्मान दे कर मनसब बढ़ाया । मीरांके साथ बादशाहका बहुत प्रेम था, जब वह बीमार हुश्रा तो बादशाह मिलने श्राया । मीरांने कहा कि मेरे पुत्रोंमें कोई सपूत नहीं है, इस क्यामखांको मनसब देना, यह तुम्हारी सेवा करेगा । बादशाह जब चला गया तो मीरांने अपने पुत्रों को बुला कर क्यामखांकी श्राज्ञामें रहनेकी व क्यामखांको इन्हें प्यारसे रखनेकी शिक्षा दे कर परलोक गमन किया । बादशाहने क्यामखांको मनसय, सरपाव, और यावनी दे कर उमराव किया । एक बार बादशाह क्यामखांको दिल्लीका फौजदार बना कर स्वयं ठटा विजय करनेके लिए गया । मुगलोंने बादशाहकी अनुपस्थितिका लाभ उठा कर दिल्ली पर चढ़ाई कर दी । चौहान क्यामखांने मुगलोंसे इस प्रकार युद्ध किया कि लड़े सो मरे और बचे सो भाग गए। लूटमें जो बहुत-सा माल - खजाना हाथ लगा, क्यामखांने उसे बादशाह के सुपुर्द कर दिया । बादशाहने उसे सरपाव दे कर सम्मानित किया और मनसब बढ़ा कर खानजहां नाम रक्खा । पेरोसाह (फिरोजशाह ) बादशाहने और उसके पीछे उसके पुत्र महमूदने फिर नजीरखांने बादशाह हो कर क्यामखांका बहुत सम्मान किया। जब बादशाह नसीरखां बीमार हुआ तो उसके पास मलूखां नामक गुलाम ( जिसे बादशाह पेरोसाहने पाल-पोस कर बड़ा किया था ) प्रधान पद पा कर बादशाहके पास रहता था । लोगोंने यही निश्चय किया कि इसीने तख्तके लोभसे बादशाहको मारा है । यादशाह नसीरखांके कोई पुत्र नहीं था, खुशामदी कामदारोंने मलूखांको बादशाह बन बैठनेकी राय दी । जब क्यामखांने सुना तो कहा कि जो नौकर है वह बादशाह कैसे होगा ? गुलामको बादशाह बनानेमें शोभा नहीं है । प्रधानने गढ़की चाबियां ला कर दीवान क्यामखांके सम्मुख रखीं, और दिल्लीके तख्त पर बैठनेका श्राग्रह करते हुए कहा कि " श्राप ही दिल्लीका तहत लीजिए, श्रापके पूर्वज दिल्लीपति थे, श्रापके लिए यह कुछ नई बात नहीं है !” क्यामखांने कहा- "मुझे दिल्लीपति बनने की बिल्कुल इच्छा नहीं है, कौन भावी संतति के लिए आफत मोल ले ?" प्रधानने तब कहा – “यदि श्राप बादशाह नहीं होते तो फिर हम मलूखांको तख्त पर बिठाते हैं।” ऐसा कह कर मलूखांको बादशाह बना दिया । क्यासखांने वहांसे निकल कर अपने घरकी राह ली । जव मलूखांको यह ज्ञात हुआ तो वह ससैन्य क्यामखांको मारनेके लिए चल पड़ा । २० कोसके फासलेमें जब क्यामखांको मालूम हुआ तो वह मलूखांसे युद्ध करनेके लिए पीछे लौट आया और दोनोंमें परस्पर घमासान युद्ध हुआ । मलूखांके पैर उखड़ गए, वह दिल्ली में आ कर छिप गया । क्यामखांने भागते हुएका पीछा किया परन्तु हाथी, घोड़े, द्रव्य आदि जो लूटमें हाथ लगे ले कर हिसार में आ बिराजा । देश-देशसे पेशकश आने लगी । कमधज, कछवाहे, बैरिया, भट्टी, तँवर, गोरी, जाटू, तावनी, सरोवे, नारू, खोखर, चंदेले, हुसैन कलीम सा, साह महमद, ममरेजखां, इदरिस, मौजदी, मुगल, आदि सब सेवा करने श्राए । तूनपुर, रिणी, भटनेर, भादरा, गरानौ, कोठी, Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका ऐतिहासिक कथा - सार बजवारा, कालपी, एटावा, उज्जैन, धार श्रादि सब क्यामखांके अधीन हो गए। मलूखां और क्यामखांका फिर कभी मिलाप न हुआ । उस समय काबुलमें बादशाह तैमूर राज्य करता था जिसने आठों दिशाओं में अपनी धाक जमा ली थी और जिसने रूम, ईराक और खुरासान आदि जीत लिए थे। हिन्दुस्तान लेनेके लिए वह चढ़ पाया । मलूखां तैमूरसे जा भिडा, परन्तु तैमूर लंग जैसे जबरदस्त शक्तिशालीके सामने वह क्षण भर भी न ठहर सका । दिल्लीको तैमूरने खूब लूटा और तख्त पर आ बैठा । कुछ दिन रह कर खिदरखांको पचास हजार पठानोंके साथ दिल्ली छोड़ कर वह स्वयं काबुल लौट गया । जय मलूखांने तैमूरलंगके जानेकी बात सुनी तो उसने दलवल-सहित श्रा कर दिल्लीको घेर लिया। खिदरखांके साथ युद्धमें मलूखां मारा गया और तैमूरके दलकी जीत हुई। मलूखांकी श्रोरसे निश्चिन्त होकर खिदरखांने सब भोमियों, जमीनदारोंको वशमें कर लिया और क्यामखां चौहान पर फरमान दे कर मौजदीनको भेजा । मौजदीन लाहौरका शक्तिशाली फौजदार था । उसने क्यामखांको फरमान दे कर बादशाह खिदरखांकी सेवा करनेके लिए बहुत समझाया, किन्तु वह अपने निश्चय पर अटल रहा और युद्ध करनेके लिए तैयार हो.गया। दोनों ओरसे घमासान युद्ध हुआ । अगवान मौजदीन और क्यामखां चौहान भिड़ पड़े। मौजदीनकी फेंकी हुई बरछीसे वच कर क्यामखाने बाणके द्वारा उसका काम तमाम कर दिया। मौजदीनके मर जाने पर खिदरखांकी सेना तितर-बितर हो गई। ___ अपनी हारसे खिदरखां बहुत रुष्ट हुआ । क्यामखांने भी दिल्लीका शासक बदल डालनेका निश्चय किया और अपने पूर्व-परिचित बोझरीवाल लकब वॉल अन्य खिदरखांको पत्र लिखा कि-"मैं तुम्हें दिल्लीका राज्य देता हूं, यदि इच्छा हो तो प्रायो।" उसने पत्र पाते ही तुरन्त दलवल-सहित तैयार हो कर क्यामखांको पत्रोत्तरमें अपनी तैयारीका समाचार दे कर उसे भी तैयार होनेको लिखा । क्यामखां सेना सहित मुलतानमें खिदरखांसे जा मिला और पहले नागौरमें राठौड़ोंसे युद्ध कर फिर दिल्ली लेनेकी ठानी । नागौरमें उस समय राव चूंढा था, उसकी मृत्यु हुई और राठौर सेनाकी पराजय हुई। ____ क्यामखां और खिदरखां दोनों नागौरको वशमें कर पठान खिदरखांको जीतनेके लिए दिल्ली चले । पठान भी अपनी सेना ले कर लड़ने पाया परन्तु क्यामखांके साथ युद्ध करता हुश्रा हार कर भाग गया। क्यामखांने अपने मित्र खिदरखांको दिल्लीका सुलतान बनाया और दोनों सुख-पूर्वक रहने लगे। खिदरखांने सोचा कि क्यामखां सबल है, इसकी इच्छानुकूल शासन होगा; अतः इसे मार डालना ही श्रेष्ठ है। इन कुत्सित विचारोंसे उसके उपकारको भूल कर एक दिन बादशाह खिदरखांने क्यामखांको धक्का दे कर नदीमें गिरा दिया । क्यामखां नदीमेंसे निकल पाया और खिदरखांकी बदनीतोको जानते हुए भी बादशाहसे लड़ना धर्म-विरुद्ध समम कर संतोष किया। अपने जीवनमें क्यामखाने पड़े-बड़े युर किए थे। ९५ वर्षकी उनमें उसके शरीरका अन्त हुआ। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा - भूमिका क्यामखांके पाँच पुत्र थे ताजखां, श्रहमदखां, कुतबखां, इख्तयारखां, और मौनखां, ये पाँचों यदे वीर और मनस्वी थे । खिदरखांके बार-बार बुलाने पर भी ये सलाम करने नहीं गए। हिसार में सुखसे बैठे रहे । दीवान ताजखांके छः पुत्र थे - फतहखां, रुका, फखरदी, मोजन, इकलीमखां, और पहाड़ा | कृतघ्नी बादशाह खिदरखांके निःसंतान मरने पर मुवारक, महमदफरीद, श्रलावदी और मुबारक बादशाहका पुत्र अमानतखां क्रमशः बादशाह हुए। फिर बहलोल लोदीने अपने भुजबलसे दिल्लीका तख्त प्राप्त किया । उस समय ढोसी पर श्रखनका राज्य था । एक बार बादशाह बहलोलने ईराकसे बहुतसे घोड़े मँगाए । मार्ग में खनने उसमेंसे नौ चुन कर रख लिए। बादशाहने कुपित हो कर घोड़े वापिस न देने पर चढ़ाई करनेकी धमकी दी। उसने उत्तरमें लिखा कि मेरे लाख घोड़े हैं, परन्तु तुमसे युद्ध करनेकी इच्छासे ही मैंने घोडे रक्खे | तुम निस्संकोच था जाथो मैं ढोसोमें पर्वतकी तरह स्थिर बैठा हूँ । बादशाह इस उत्तरसे रुष्ट तो श्रवश्य हुथा परन्तु वह उसका कुछ भी न बिगाड़ सका । श्रखनने मेवातियोंको बहुत तंग किया, पहाढ़ के पास उसने श्रखन-कोट बसाया । श्रास - पासके सब भोमिया उसे दंड देते थे । श्रांबेर वाले वार्षिक १२ लाख और श्रमरसर वाले ८ लाख भरते थे । तुब खां जो क्यामखांका चौथा पुत्र था, बारु जा बसा और पाँचवां' पुत्र मौनखां बगरमें बसने लगा । श्रास - पासके भोमियों से वह कर उगाहता था, और कछवाहोंमे उस चौहानकी धाक जमी हुई थी । १८ क्यामखांके दोनों बड़े पुत्र हिसार में प्रीति पूर्वक रहते थे । नागौरके फिरोजखांके बुलाने पर दोनों भ्राता वहां गए | खांने बड़े श्रादरके साथ इन्हें रखा और कहा कि मैं भी दिल्लीपतिको सलाम नहीं करता । श्रच्छा हुआ जो एकसे तीन हुए। एक बार चित्तोडके स्वामी रागा मोकल पराक्रमण करनेका विचार कर वे दलबल सहित चले; राणा भी लडनेके लिए मोरचे पर श्रा पहुँचा । राणा मोकलसी और फिरोजखा में परस्पर युद्ध होने लगा । ताजखां और महमदखां खडे - खड़े देखते रहे । राणा मोकलने खांके पैर उखाड दिए । वह नागौरकी ओर मुंह करके भागा । राणाने चार कोस तक उसका पीछा किया और नेजा - निसान छीन कर चित्तोडकी राह ली । दोनों चौहान भ्राता ताजखां, मुहम्मदखां अवसर देख कर राणासे जा भिडे, और युद्धमें राणाको परास्त कर नागौरके नेजे निसान वापिस ले लिए। उन्होंने भागते हुए राणाके हाथी-घोड़े द्रव्यादि लूट लिए और नागौर ले श्राए । जिन नेजे-निसानों को हार कर फिरोजखां दे श्राया था, उन्हें चौहान - बंधुओं के वापस लाने पर खां उन्हें लज्जाके मारे मुँह न दिखा सका । स्वामीके भागने पर भी सेवक लडे अर्थात् जड * जमीनदार । १. फतहपुर परिचयमे ७ स्त्रियोंसे ६ पुत्र दिया है । क्यामखाके स्वर्गवासका समय इस ग्रन्थमे सं० रासामें भी आता है ।. ¿ होनेका बतलाते हुए मुहम्मदखा नाम अधिक १४७५ लिखा है । मुहम्मदखांका नाम श्रागे Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ रासाका ऐतिहासिक कथा- सार उखड जाने पर भी वक्ष स्थिर रहा, यह एक विचित्र बात हुई। फिरोजखाने लज्जासे ऐसा रुख बदला कि वह इनसे हँस-बोल कर बात भी न करता था। ताजखां और मुहम्मदखांने अपने घर जानेका इरादा किया और दमामे वजाए । खाने रुष्ट हो कर सेवकोंको श्राज्ञा दी कि क्यामखानी चौहान बंधुओको मत जाने दो । स्वयं दलबल-सहित युद्धके लिए तैयार हुआ। दोनों भ्राता बड़ी वीरता-पूर्वक लडे । ताजखां युद्ध करता हुआ घायल हो कर गिर पडा । महमदखांको युद्धसे ही कब फुरसत थी कि भाईकी खबर लेते । राठौड लोग घायलोंको उठाते हुए पाए । उन्होंने ताजखांको उठा कर देख-भाल की और घाव अच्छा होने पर उसे हिसार भेज दिया। ताजखाने युद्ध भी किया और जीवित भी रह गया। इससे इसका बडा सुयश हुआ। फिरोजखां तो इससे बडा भय खाता था। इसने खेतढ़ी, खरकश, चवौहाना, पाटनको जीता। पाटन और रेवासे मिल कर उसने प्रांवेरको वशमें किया । कछवाहे, निरवान, तंवर और पंवार श्रादिसे पेशकश ली। ताजखां हिसारमें और महमदखां हाँसीमें रहा । ताजांकी' मृत्युके बाद बड़ा पुत्र फतहखां हिसारमें पिताका उत्तराधिकारी हुआ। फतहखांक दस पुत्र थे-जलालखां; हैवतसाह, महमद साह, असदखां, दरिया साह, साह मनसूर, सेख सलह; वला, वंखामसूर और हेसम । फतहखां बढ़ा प्रवल और वीर था। उसने एक ही मुहूर्तमें छः कोटको नींव डाली । सं० १५०८ चैत्र शुक्ला ५ के दिन अपने नामसे उसने फतहपुर शहर वसाया । उस दिन हिजरी सन् ८५७ सफ़र महीनेकी २० तारीख थी। आस-पासके भोमिये पल्हू, सहेवा भादरा, भारंग, वाइले श्रादिके स्वामी जुहार करने पाए। जव कोट तैयार हो रहा था वह रनाउमें रहा और कोट तैयार होने पर फतहपुर पा गया । एक बार बादशाह बहलोल लोदी रणथंभोर लेनेके लिए चढ़ कर पा रहा था। जब फतहखांने सुना तो वह भी सदल-बल बादशाहसे जा मिला। बादशाहने उसका बड़ा सम्मान किया और फतहखांके श्रागमनको अपनी फतहका चिन्ह समझा। उधर रणथंभौरकी सहायताके लिए मांडका सुलतान हिसामदी आ पहुँचा । परन्तु बादशाहसे लड़नेमें असमर्थ हो कर फाटक बंद कर बैठा रहा । फतहखांने मांडके सुलतानके साथ घमासान युद्ध किया और उसका सर काट कर बादशाहके पास भेजा । फतहखांका बड़ा नाम हुआ और बादशाहने उसे मनसब दे कर सम्मानित किया। बादशाहसे जय-पत्र ले कर फतहखां स्वदेश लौटा और सुख-पूर्वक रहने . लगा। नारनौलसे अखनने कहलाया कि मेवाती लोग मिल कर बग़ावत करने पर उद्यत है। तुम स्वयं प्रानो, या सेना भेजो। फतहखांने अपनी सेना भेजी जिसने मेवातियोंको ढोसीकी १. फतहपुर परिचयानुसार सं०१४७७ से १५०३ तक २६ वर्ष राज्य किया। २. फतहपुर परिचयमें मुहम्मदखाके झूमा नाटकी सलाहसे बसानेका उल्लेख है पर मूलतः यह शहर १४वीं सदीके पहलेका बसा है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० क्यामखां रासा - भूमिका तरफ भगा दिया। इधर इख्तारखांने सामनेसे श्राक्रमण किया। दोनों श्रोरसे मार पड़नेसे मेवाती लोग निर्बल हो कर हार गए । विजयी फतहखान लौट कर फतहेपुर श्राया । फतहखाने अपनी वीरता से बड़ी प्रसिद्धि पाई । कांधल और रिणमल, राणा साँगा, श्रजा साँखला श्रादिके साथ रणक्षेत्र में उसको सेनाने शत्रु दलका संहार कर विजय प्राप्तकी थी । फतहखांके यहां वीर बहुगुन तो ऐसा था कि सिर कट जाने पर भी युद्ध करता रहा । ( इसकी कब्र व For a तक मौजूद है ) । मुसarai नामक किर्रानी पठान फतहखां चौहानसे युद्ध करनेके लिए श्राया और सरसेके पास दोनों को मुठभेड़ हुई। फतहखाने मुसकीखां किर्रानीको मार कर विजय प्राप्त की । फिर बेर पर चढ़ाई करके वहांके भोमियोंको भगा कर बेरको लूट लिया । भिवानीको घेर कर जादू जावलोंसे युद्ध किया और उन्हें हराया । भिवानीको लूट कर बहुतों को बंदी बना कर लाया । राव जोधाने सोचा कि यदि फतहखांसे संबन्ध हो जाय तो उधरका खटका मिट जाय, इस लिए उसने नारियल भेजा । काँधलने बहुगुनको मारा था, इस वैरसे फतहखाने नारियल लेना अस्वीकार कर दिया । महमदखांका बेटा समसखां उस समय मूंझणूमें था 'उसके पास भी नारियल भेजा गया' उसने कहा, वहां व्याहने कौन जाय ? यहीं ढोला भेज दो । जोधाने डोला भेजा। मीरां - जीने जो भविष्यवाणी की थी वह सफल हुई । बादशाह बहलोलखां लोदीने फतहखांको बुला कर अपने पास रक्खा । परस्पर बड़ी प्रीति थी । एक दिन बादशाहने कहा कि अपने थापसमें अदल-बदलका विवाह संबंध करो जिससे पारस्परिक प्रीति बढ़े । फतहखांने कहा श्रव मेरे तो कोई पुत्री अविवाहित नहीं है । बादशाहने इसे बुरा माना । तब फतहखां रुष्ट हो कर फतहपुर था गया और फिर दिल्ली नहीं गया । बादशाहने समसखां चौहानके पास अदल-बदल संबंधके लिए कहलाया । उसने प्रसन्न हो कर शाहजादी अपने पुत्रको ब्याही और अपनी बहिन बादशाहको दी । फतहखां श्राजीवन दिल्लीपतिको सलाम करने जलाल खां फतहपुरका स्वामी हुआ न गया । फतहखांकी' मृत्युके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र दीवान जलालखांके दस पुत्र थे दौलतखां, श्रमदखां, नूरखां, फरीदखां, निजामखने पहाड़खां, दाऊदखां, लाडखां, श्रखन, और महमदशाह | 1 जलालखांने' पिताके बनाए हुए कोटको बढ़ाया और जबरदस्त पोल ( दरवाजा ) बनाई । जलालखां बड़ा शूर-वीर था । वह भी पिताकी तरह दिल्लीपतिके कदमोंमें सलाम करने नहीं जाता था। नागौरके खानका माल लूट लूटकर जलालखां उसे तंग करने लगा । उसने रुष्ट हो कर जलालखांके १. फतहपुर परिचयमें इनका राज्य सं० १५०५ से १३५१ लिखा है । मृत्यु १५३१ में हुई थी । २. फतहपुर परिचयमें इनका राज्य सं० १५३१ से १५४६ तक लिखा है । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका ऐतिहासिक कथा - सार ऊपर आक्रमण करनेके लिये अगणित सैन्य एकत्र किया और बीड़ा फेर। । मुगल चौपानांने बीड़ा उठाया और जगीर कटराथलके पास दलबल-साहित श्रा पहुँचा । जलालखां भी तैयार हो कर युद्धमें उतरा । उसने शत्रुके छक्के छुड़ा दिए । चौपानखांको पकड़ कर उसके नितंब पर दाग लगाया और उसके हाथी, घोड़े, इत्यादि लूट कर छोड दिया। फिर जलालखांने छोपौरी पर चढ़ाई की और विजय प्राप्त कर अांबेरको जा घेरा । वहाँके भौमिए बड़ी वीरतासे लडे । मिल कर उन्होंने जलालखांके हाथीको श्रा घेरा । साथी लोग सब लूटमें लगे थे, तो भी अकेले दीवान जलालखाने बाणोंसे शत्रुदलको भगा दिया। चौहान समसखांके मर जाने पर उसका पुत्र और बादशाह बहलोल लोदीका जमाई, फतहखां उत्तराधिकारी हुआ। अपने अभिमानमें मस्त हो कर अपने भाई मुबारकशाह और विमाताको बटवारा न दे कर झूमणुकी समस्त श्राय वह स्वयं खाने लगा। मुबारकसाहने अपने नाना राव जोधाके पास जा कर शिकायत की। राव जोधाने कहा कि तुम्हारे मामा बीका और बीदा तुम्हारे निकट हैं, उनसे कहो । मुवारकशाह मामाके पास श्राया, किंतु वहांसे निराश हो कर लौटा, और फतहपुरमें जलालखांके पास थाया । मुबारकशाहको उसने आश्वासन देते हुए कहा कि मुझे बादशाहका कोई खौफ नहीं, मेरे पिता भी उससे नहीं ढरे तो डर कर क्यों कलंक लूं ? जलालखांने ससैन्य झूझा पर चढ़ाई की । फतहखांकी सेना भाग गई, तब उसने मुबारकशाहको झूमणूका राज्य दिया। फतहखां मर गया । महमदखांको राज्य न मिला । मुवारकशाह ही राज्यका मालिक रहा। ____ जलालखां लोहागर जा कर रहने लगा । वहां पहाडकी भोट ग्रहण कर नागौरी खानको तंग किया करता था । इधर फतहपुरको सूना सुन कर उसके लिए बीदाका मन ललचाया और वह सदलबल नरहरमें दिलावरखांसे जा मिला। दस हजार रुपया और एक बेटी देनेको बात कर पठानको भी ससैन्य फतहपुर ले आया । लोहागरमें जलालखांको खबर मिली तो उसने तुरंत अपने पुत्र दौलतखांको भेजा। उसने फतहपुरके गढमे प्रवेश कर अपनी जय-पताका फहराई। बीदा और दिलावरखां व्याकुल हो कर लौट गए। जलालखांके मरने पर उसका पुत्र दौलतखां उत्तराधिकारी हुा । उसके तीन पुत्र थेनाहरखां, होवनखां, और वाजिदखां । दीवान दौलतखां चौहान महान् तेजस्वी और जबरदस्त • वीर था, उसकी ऐसी धाक जमी हुई थी कि शत्रु लोग भयसे मुँह छिपाते फिरते थे। वह अनीतिके लाख-करोड़को भी कौड़ीके समान गिनता था। किसीको अपनी अंगुल-मात्र भूमि भी नहीं देता और न किसीकी लेता था। सात सुलतान भी यदि उसके प्रतिस्पर्धी हो तो भी वह संग्राममें पीठ नहीं दिखाता था। उसमें वचनसिद्धिकी भी विशेषता थी। राव बीका ढोसीसे अफसल लौटा था, अतः लूणकरनने सदलबल तैयार हो कर पाटौधैमें डेरा किया, और पत्र देकर प्रधानको दौलतखांके पास भेजा। पत्रमें लिखा था कि-दौलतखां, यदि Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ क्यामखाँ रासा - भूमिका भला चाहते हो तो शीघ्र हमसे पा कर मिलो, या सहायता भेजो। दौलतखाने क्रुद्ध हो कर चिट्ठी पर पेशाय किया और दूतके अंचल में रेती वाँध कर कहा कि तुम्हारा स्वामी यदि चढ़ कर न आया तो उसके सिर पर धूल है । प्रधानोंको धक्के दे कर उसने निकाल दिया। प्रधानोंके जाने पर लोगोंको चिंतातुर देख कर दौलतखाने भविष्यवाणी की कि लूणकरन जीवित नहीं बचेगा। प्रधान अपमानित हो कर राव लूणकरनके पास गए । वृत्तांत सुन कर उसने क्रुद्ध हो कर कहा कि पहले ढोसी जीत कर फिर आते समय दौलतखांकी खबर लेंगे । राव अपार सैन्य शक्तिके साथ दोसी गए परंतु वहां तुरकमानकी मददसे पठान लोग खूब लड़े, और लूणकरनको मार कर उसके साथियोंको लूट लिया । दौलतखांका वचन सत्य हुआ। एक बार कावुलसे दिल्ली देखने के लिए वावर कलंदरके वेपमें वाधको साथ लेकर चला। मार्गमें फतहपुर ठहर कर दीवान दौलतखांसे मिल कर बाघके लिए एक गाय मँगा देनेको कहा। दीवानने तुरंत गाय मगाई और कहा कि मैं देखता हूँ कि बाघ कैसे गायको मारता है ? जब बाघ गायके समक्ष श्राया तो दौलतखाने सिंहनाद कर वाधको फटकारा । वह उस गायको खानेको असमर्थ हो कर स्तंभितकी भाँति खढा रहा । सत्य सुभट पुरुषोंके वयनका सिंह भी उल्लंघन नहीं कर सकते । गजेंद्रका मद भी उनके सामने सूख जाता है। फिर बाघरने अलवरमें मेवाती हसनखांके कटकको और दिल्लीपति बादशाह सिकंदरशाहको विस्मित हो कर देखा। जब बाबर हिंदुस्तान देख कर काबुल लौटा तो लोगोंने इधरकी बातें पूछी । उसने कहासारे हिंदमें तीन श्रादमी देखे-सिकंदरशाह, हसनखां और दौलतखां । इस प्रकार बाबरने दीवान दौलतखांकी बड़ी प्रशंसा की। एक यार दौलतखाने सुना कि गौर निरवाण व नागौरके गावोंको लुट कर जा रहे हैं उसने ससैन्य जा कर उन्हें घेर लिया और उन्हें हरा कर लूटका सारा माल छीन लिया। एक दिन दौलतखां शिकार खेलने चला । बाज, कुही, बहरी श्रादि बहुतसे उसके साथ थे। उसने बहरीको कुंजके लिए छोडा । वह आकाशमें ऊँची उड़ गई, फिर अदृश्य हो गई । दीवानजी उसको छोड़ कर चले आए। बहरी उड़ती-उड़ती हिसार जा पहुँची, वहां मीरने पकड़ कर सिकंदरको सौंपा । दौलतखां यह ज्ञात कर ससैन्य हिसार पहुँचा। हिसारका सिकदार मुहब्बतखां साराखानी पठान सेना-सहित लडनेको श्राया । नासौमें दोनों सेनाएं मिलीं । दूरसे दीवान दौलतखांका मुंह उतर गया । मुहब्बतखां भयभीत हो भागा । दौलतखांने विजयके नगाड़े बजाए । दौलतखां अपने सिद्धांतोंका पक्का था। स्वगोत्रीय पर घाव न करना, परमात्माको एक मानना, न्याय-मार्ग पर निश्चल रहना चाहे लाखों विरोधी हों, न्यायके समय निष्पक्ष रहना, आदि उसके विचार मँजे हुए थे। वादशाह बहलोल लोदीके मरने पर सिकंदर उत्तराधिकारी हुआ, पर दौलतखां उसके दरबारमें भी न गया। . मुबारक साहके बड़े पुत्र कमालखांको झंझएका राज्य मिला और दूसरे पुत्र साहबखांको नौहाका । वह जब तक जिया भाईके अधीन रहा। कमालखांका पुत्र भीखनखां मुझएका स्वामी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ रोसाका ऐतिहासिक कथा- सार हुआ और साहबखांका पुत्र मुहब्बतखां उसे प्रतिदिन सलाम करता था। एक बार परस्पर चित्तकालुष्य हो जानेसे मुहब्बतखां नौहा छोड कर दौलतखांके पास फतहपुर चला गया। उसने दौलतखांके पौत्र फदनखांको पुत्री दी और उसकी सेवा करने लगा। मुहब्बतखांके निवेदन करने पर दौलतखांने कहा-नौहा तुम्हारा है, तुम वहां जाकर रहो । तुम्हें कौन निकालने वाला है ? यदि भीखनखां कुछ गड़बड करे तो मुझे खबर देना । मुहब्बतखां नौहा जा कर रहने लगा। भीखनखां तत्काल सेना ले कर चढ़ पाया । मुहब्बतखांके फतहपुर कहलाने पर दौलतखांका बड़ा पुत्र नाहरखां भी सहायतार्थ श्रा पहुँचा । श्राभूसरके ताल पर घमासान युद्ध होने लगा ! नाहरखांको देखते ही भीखनखां युद्ध क्षेत्र छोड़ कर भाग गया। नाहरखां जीत कर घर आया । पिताने प्यारसे गले लगा लिया । दौलतखांके मरने पर उसका पुत्र नाहरखां फतहपुरकी राजगद्दी पर बैठा। दीवान नाहरखांके तीन पुत्र थे-फदनखां, यहादुरखां, और दिलावरखां । नाहरखां बड़ा चोर और विलास प्रिय भी था । घरमें धन बहुत था, उसने बहुत सी पातरियां रख ली और नाचगानका अखाड़ा रात-दिन जमा रहता था। आस-पासके भोमिए जमीदार भय खाते थे। बीकानेर के राव लूणकरनके मरने पर पूर्व निश्चयानुसार वजीरोंने प्रेम संबंध स्थापित करनेके लिए राजकन्या दी। दिल्लीपति सिकंदरके मरने पर इब्राहीम बादशाह हुआ । उसे मार कर वाबर और फिर उसका पुत्र हुमायूं बादशाह हुश्रा । नाहरखांके समय शेरशाह दिल्लीका बादशाह था । वह नाहरखांको यहुत मानता था और उसे मामा कह कर पुकारता था। उसने हुक्म दिया कि फतहपुरकी पेशकश घर बैठे मज़ेसे खायो। नाहरखांने सं० १५९३ भाद्र सुदी ८ सोमवारके दिन फतहपुरमें एक सुंदर अद्वितीय महल बनवाया। एक बार चित्तोड़के राणाने नागौरके खान पर चढ़ाईकी । पूर्वकी प्रीतिके कारण नागौरीके आमंत्रणसे नाहरखां सहायतार्थ चला । राठौड़ व कछवाहे उसे दिल्लीपतिसे भी अधिक मानते थे राव गांगा, जैतसी, सूजा और पृथ्वीराज श्रादि सब ससैन्य आ मिले । जय नाहरखांने सुना कि नागौरसे १२ कोस पर राणा ठहरा हुआ है और खान नागौरसे निकल कर लडनेको नहीं जाता है, तो वह नागौर में न जा कर तीन कोस और आगे गया । नागौरीखांके बुलाने पर नाहरखांने कहा, "राणा निकट ठहरा हुआ है । तुम कोटकी श्रीटमें क्यों छिपे हो ? मैं अब आगे निकल पाया, लौट नहीं सकता। तुम्हीं आ कर मिलो।" नागौरीखां भी नाहरखांकी धाक सुन कर राणा उलटे पैर चला । नाहरखां भी उसी मार्गसे सबके साथ पीछे-पीछे गया। राणाके पहाड़ोंमें प्रवेश करने पर १. राज्यकाल सं० १५४६ से १५७० २. राज्यकाल सं० १५७० से १६१२ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ क्यामai रासा - भूमिका सेना लौट चली और उसने सारे गाँवोंको लूट लिया । जगमाल पँवारने कहलाया कि राणाने मुझे अजमेर दिया था; उसके सब गाँव तुम लोगोंने लूट लिए। यदि सच्चे राजपूत हो तो प्रहर दो प्रहर के लिए ठहर जाओ। मैं श्राता हूं । यह सुन कर बीकानेर, सूजा श्रमरसर, और थांबेर वाले श्रांबेर चले गए। किन्तु नाहरखाने कहा- तुम बेधड़क श्राश्रो । यह कह कर नाहरखां मकरायेके साल में प्रतीक्षा करने लगा । श्रजमेरका फ़ौजदार जगमाल पंवार राणाकी सेना लेकर आया । दोनों में परस्पर घमासान युद्ध होने लगा । श्रन्तमें पँवार भागा और चौहान नाहरखांकी जीत हुई । नाहरखांके मरने पर उसका पुत्र फदनखां फतहपुरका स्वामी हुआ उसके तीन पुत्र थे- ताजखां, पिरोजखां, दरियाखां । दिल्लीमें जब पठान सलेमसाह वादशाह हुआ तो उसने फदनखांका बड़ा सत्कार किया | मुव्वतखांका पुत्र खिदरखां फदनखांके पास खडा था । बादशाहने फदनखांको बड़ी प्रशंसा की और कहा कि सब ( क्यामखानी ) भाइयोंमें सिरमौर है । हुमायूंने भी बादशाह हो कर फदनको अच्छा श्रादर-मान दिया । दिल्लीपति कबर भी फदनखांसे प्रेम रखता था । बीरबलके पूछने पर बादशाहने कहा कि और तो सब मेरी कृपासे बने हैं, इन्हें करतारने बड़ा बनाया है । राजपूतोंकी जातिमें ३॥ कुल हैंप्रथम चौहान, द्वितीय तँवर और तीसरे पँवार, श्राधेमें शेष सब हैं । वाजित्रोंमें जैसे निसान बड़ा है वैसे ही गोत्रोंमें चौहान वढा है। फदनखांने वादशाह अकबरको अपनी बेटी दी; इससे पारस्परिक प्रेममें विशेष वृद्धि हुई । बादशाहको भोमियोंका ( हिन्दू जमींदारोंका ) विश्वास नहीं था । उसने कहा हिन्दू बदलते देर नहीं लगाते, श्रतः तुम इनकी जमानत दो तो मैं मनसब दूँ । फदनखांने सबकी जमानत दी और बादशाहने उन्हें मनसबदार कर दिया । फदनखांने राय सालको दरबारी बना कर मनसब दिलाया । ataraa लोग इधरके गाँवोंमें श्रा कर चोरी लूट कर जाते थे । यह दीवान फदनखांको बुरा लगा और उसने सेनाके साथ बोदावतों के प्रदेश में प्रवेश किया और छापर द्रौणपुर में बीदावतों को हराकर चोरीको शपथ दिला दी। इसके बाद फदनखांने छापौरी और पूख पर हमला किया; निरबानोंको हरा कर उनके गाँवोंको जला दिया । उसने वहादुरखांकी सहायता करके भुंझणू दिलाया । I फदनखांके पश्चात् उसका बडा पुत्र ताजखां' फतहपुरका स्वामी हुआ । उसके ८ पुत्र थेमहमदखां, महमूद खां, शेरखां जमालखां जलाल खां, मुजफ़्फरखां, हैबतखां और हबीबखां । ताज खां रूपमें अत्यंत सुंदर था, देश-विदेशमें उसका सौंदर्य प्रसिद्ध था । उजियारें (?) के दौलतखा पठानने प्रशंसा सुन कर दीवान ताजखांका चित्र बनवा कर मंगाया और उसे देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ 1 १. राज्यकाल सं० १६०२ से १६०६ | २. राज्यकाल सं० १६०९ से १६२७ । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ रासाका ऐतिहासिक कथा-सार ताजखां अलवरसे सदलवल चढा । उसने सारां और खरकरीको नष्ट किया । लखानगढ़को लूटा । मलिक ताजके यहां लुटमार कर रेवाड़ीका थाना नष्ट कर दिया । दीवान ताजखांके बडे पुत्र मुहम्मदखांके तीन पत्र थे- अलफखां, इब्राहीमखां और सरमस्तखां । मुहम्मदखाने क्योर और वैराटको विजय किया। मांढनके पुत्र पावत राठौर कुंभकरनको उसने रणक्षेत्रसे भगाया। ___ताजखांकी विद्यमानतामें ही मुहम्मदखांकी मृत्यु हो गई । पुत्र वियोगसे पिताको अत्यंत दुःख हुआ परंतु रुदन करनेसे आंसूके सिवा क्या हाथ था सकता था, अतः अपने पौत्र अलफखांके मस्तक पर हाथ रक्खा और उसे शाही दरवारमें ले गया। वादशाह जलालुद्दीनसे (अकबरसे) ताजखांने निवेदन किया कि मेरे घर में यह बड़ा है, इसे आप सम्मान दें। बादशाहने अलफखांको वढा प्यार किया । जव तक ताजखां जीवित रहे, अलफखांको क्षण भरके लिए भी अपनेसे अलग नहीं किया। उसके मरने पर अलफखां उत्तराधिकारी हुआ। बादशाहने उसे टीका दे कर फतहपुरका स्वामी बनाया और उसे हाथी, घोडा सिरोपाव दिए । अलफखांने शाही फरमान ले कर फतहपर भेजा; कछवाहे गोपालके पुत्र स्यामदासके न मानने पर सिकदार शेरखांने उसे निकाल दिया। दीवान अलफखांको फतहपुर मिला और वह नवाब कहलाने लगा। नवाब अलफखांके पांच पत्र थे-दौलतखां,' न्यामतखां, सरीफखां, जरीफ और फकीरखां ।। झमणके स्वामी वहादुरखांके मरने पर उसका बड़ा पुत्र समसखां उत्तराधिकारी हुआ, किंतु दूसरे भाई उसे नहीं मानते थे और उसे सतत दुःख दिया करते थे । अलफखां उसे बादशाहके पास ले गया और वादशाहके द्वारा मनसबका सम्मान दिलाया। यही रीति चलती है कि फतेहपुर वाले जिसे बडा करें वही झूझणूमें बडा होता है। बादशाह अकवरने पहाडमें युद्ध करनेके लिए जगतसिंह और दीवान अलफखांको सेना सहित भेजा। धमेहरीमें जा कर वन लोगोंको पराजित कर उनके गांवोंको नष्ट किया। राजा तिलोकचन्द भयभीत हो कर शरणमें पा गया। दीवानजीने उसे वादशाहके कदमोंमे हाजिर किया। सलीमने जब राणा पर चढ़ाई की तो उसने बादशाह अकबरसे कह कर अलफखांको भी साथ ले लिया। मेवाडमें था कर शाहजादेने विशाल सेनाको विभाजित कर सादड़ीका थाना अलफखांके जिम्मे लगाया । उसने राणा अमरसिहके थाने पर आक्रमण कर दलको मार भगाया और लूटका बहुत-सा माल हाथमें किया । राणा बहुत रुष्ट हुश्रा, परन्तु वह भी सादड़ी श्रानेमें असमर्थ रहा। उंठालेमें समसखां था । उसने भी राणाको खूब छकाया। जब शाहजादेने सुना तो उसने अलफखां और समसखां दोनों चौहान वीरोंकी बडी प्रशंसा की। १. राज्यकाल सं० १६२७ पर यह चितनीय है। पेड़ीके अनुसार इनका जन्म १६२१ मे हुया था। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा-भूमिका यादशाह अकबर के मरने पर शाहजादा सलीम जहाँगीरको उपाधि धारण कर राजगद्दीपर बैठा। उसने दीवान अलफखांका बढा सम्मान किया और उसके नाम फतहपुरका लाल मुहरका पट्टा कर दिया। राय मनोहरने अलफखांको मेवात देशमें भेजा। वहां मेव लोग इनकी बढो सेवा करते और भेटों द्वारा द्रव्यको भी उन्हें अच्छी प्राप्ति हुई। यीकानेरके राजा दलपतसिंहने अगणित सेना एकत्र कर वादशाहके विरुद्ध हो कर लूट-मार शुरू कर दी। वह सरसामें गया और ज्यावदीनको हटा कर उसने शाही खजाना लूट लिया। बादशाहको ज्ञात हुआ तो वह बड़ा क्रुद्ध हुश्रा और शेख कबीर व अलफखांको बीस उमरावोंके साथ विशाल सेना दे कर सरसा भेजा । दलपतसिंह वहांसे अन्यत्र चला गया। एक दिन पानीके लिए परस्पर युन्छ छिट गया। एक ओर २१ उमराव थे और दूसरी ओर अकेला अलफखां । घमासान युद्ध हुया, बहुतसे सुभटोंके मारे जाने पर स्वयं शेख कबीरने चोच-बिचाव किया। उसने दीवान अलफखांकी बढी प्रशंसा की और उन्हें सम्मानित किया। युद्ध बन्द कर दोनों दल परस्पर मिल गए और दलपतिसिंहको जीतनेके लिए भाठू पर चढ़ाई की। वह बीकानेरके बहु तसे सरदारोंके साथ था। शाही सेनाके सामने दलपतिसिंहने लडनेमे असमर्थ हो कर जलालखां द्वारा दीवान थलफखांसे कहलाया कि तुम मेरे बहे भाई हो। शाही सेनाको रोको । हमारे पूर्वज लूणकरन, प्रतापसी, जोधा, मालदेव श्रादिकी प्रीतिका प्रतिपालन करो। अलफखांने तत्काल युद्ध बंद कर प्रेमपूर्वक बादशाहके पास भेज कर दलपतिसिंहको बचा लिया । दिल्लीपतिने शेख कवीरको बुला लिया, उसके स्थान पर मुबारक श्राया। दीवान अलफखां और पठानने मिल कर भिवानी पर चढाई को। वहां जाटू जावलोंने पैर थाम कर युद्ध किया। फिर गढ़ई में जा कर गोली चलाने लगे। दीवानके दलने तुरन्त गढ़ईको तोड़ कर जाटुओंको हरा दिया और गाँवोंको लूट कर ख्याति प्राप्त की। बादशाहने अलफखांको मेवात देश पर चढाई करनेकी आज्ञा दी और हाथी, घोडा, सिरो. पाव देकर मनसब बढ़ाया। दीवानजो ससैन्य मेवात देशकी ओर चले । सर्व-प्रथम सारा विजय कर अलफखाने कारटेमें डेरे किये । वहां भी मेवातियोंको मार कर धनहटा गए । मेव लोगोंने खूब बीरतासे लड़ कर प्राण दिए । इस विजयसे सारे पहाड़मे अलफखांकी धाक जम गई । बादशाहने शाहजादे परवेजके साथ दीवान अलफखांको भी दक्षिण विजय करनेके निमित्त भेजा | बुरहानपुर पहुंचने पर युद्धके लिए सब थाने-बाँटे गये। अलफखांको मलकापुर मिला । शाहजादा एदलाबाद ठहरा और सेनाको उसने आगे भेजा। खानखांना, लोदी खानजहान, अब्दुल्ला जख्मी, कछवाहा मानसिह, राठोर रायसिंह धादिका अगणित दल इस सेनामें था । अब्दुल्लाने खूब वीरतासे लड़ाई की पर आख़िरमें उसके पैर उखड़ गए। वह बुरहानपुर लौट चला, लिखी अलफखांके मलकापुरके सिवाय सब थाने उखड़ गए । सब सरदारोंने दीवानको चिट्ठी लिखी कि सब थाने उखड़ गए, तुम क्यो बैठे हो? जैसा पंच करे वैसा करो, इसमें कौन-सी लाज है ? Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाकाऐतिहासिक कथा- सार २७ अलफखांने उत्तर लिखा कि अपने पूर्वज चौहान हमीर श्रादिको इस तरह लजा कर मैं कैसे श्रा सकता हूं ? दक्षिण के प्रबल दलने उमड कर मलकापुर पर चढ़ाई कर दी, दीवानने घमासान युद्ध करके दक्षिणी दलको भगा दिया । जब शाहजाढेने यह सुना तो अलफखांकी बढ़ी प्रशंसा की और भीलोंके थानेको विजय करनेके लिए मलकापुरसे भेजा । उसने अविलंब जालवापुर श्रादि सारे मैवासको विजय कर भीलोको परास्त कर दिया । फिर फतहपुर श्रा कर वह वापस मैवास चला गया। वहांके लोग अलफखांकी निरन्तर सेवा करने लगे। दीवान स्वयं दक्षिणमे रहते थे, उनका बड़ा पुत्र दौलतखां फतहपुर में रहता था । बादशाहने दीवानका मनसब बढा कर उसे बढा उमराव बनाया । बीदावत सरदार चोरी करता था । उसके न मानने पर फतहपुरसे दौलतखाने चढ़ाई करके उसे परास्त किया और उसके गांवको जला दिया । पटौधी और रसूलपुरके कछवाहे भी चोरी और लूटका धंधा करते थे, व राहगीरोंको मार देते थे । जब बादशाह के दरबारमें इसकी पुकार की गई तो बादशाहने महावतांसे सलाह ली । उसने कहा - कछवाहों को दौलतखां धूलमे मिला देगा । बादशाहने तत्काल फरसान भेज कर दौलतखां को बुलाया । दौलतखां अजमेर में आ कर बादशाह जहांगीरसे मिला । बादशाहने हुक्म दिया - " सूजावत चोर है, उसने सगरसे पटी छीन ली है, यदि तुममें शक्ति हो तो उसे निकाल कर पटी अपनी जागीर में मिला लो ।” दौलतखांने तुरन्त शाही श्राज्ञा स्वीकार की । बादशाहने उसे सिरोपाव दे कर सम्मानित किया और दोनों पटी दीवानके मनसबमें लिख दी ।" दौलतखांने बादशाहसे रुख्सत पा कर कछवाहोसे कहलाया कि हमारी पटी अविलंब छोड दो, श्रन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जायो । कछवाहोंने कहा - "रायसिंह और राणा सगर भी हमें नहीं निकाल सके | उन्होंने भी जागीर छोड दी । तुम कौन उनसे बढ़ कर था गए । खुशरो, तरतीबखां और अंबिया शेख भी हमारे सामने नहीं रुके, तुम किस फेरमें हो।" यह सुन कर दौलतखांने तुरन्त धावा बोल दिया । कछवाहे भाग गए । माधव, नरहर और नरहरखांने दौलतखांके श्री गीदढकी गति पकढी । गिरधरके पुत्र गोकुलने श्रा कर जुहार किया । दौलतखांने नरहरदासको पटीसे निकाल दिया, यह सकुटुम्ब लोहारू जा कर रहने लगा । माधव भादौवासी में रह कर चोरी करने लगा । माधचके विरुद्ध लोगोंकी पुकार होने पर दौलतखांने उसे भादौवासी छोड़ देनेको कहलाया । उसके न मानने पर दौलतखांने माधव पर जो सेखावतोंके दलसे गर्विष्ठ था, श्राक्रमण किया । वह लडनेमें असमर्थ हो भाग गया । दौलतखांने उसका छूटा हुश्रा द्रव्य और सामान उसके पास उदारता पूर्वक भेज दिया । दिल्लीपतिने अलफखांको नरहरकी जागीर दी । उस पर अधिकार करनेके लिए दौलतखांने सदलबल चढ़ाई की । नाहरखांने खूब सेना तैयार की पर श्राखिर चौहानोंसे न लड़ सका और शरण स्वीकार करके दौलतखांके बड़े पुत्र नाहरखांको अपनी बेटी दी । बादशाहके दरबार में अलफखांका बहुत सम्मान था । बादशाहने उदयपुर बारुवाकी जागीर भी इसे इनायत की । गिर Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ क्यामखां रासा-भूमिका धरने अलफखांको जागीर न छोदनेके लिये संदेश भेजा और दौलतखाने लिखा कि यदि सीधे तौरसे नहीं निकलोगे, तो मैं लड कर भगा दूंगा। तब उसने लिखा कि मेरे पैर पाताल में हैं, ऐसा कौन योद्धा है जो मुझे निकाल सके । दौलतखाने तुरन्त ससैन्य चढ़ाई कर दी अलफखां भाग गया और खीरीरमें न रह सकने पर खोहमें मारा-मारा फिरने लगा। दौलतखाने विजय-दुन्दभी बनाते हुए उदयपुरमें प्रवेश किया। उसकी धाक चारों श्रोर जम गई; खंडेला,और रैवासेमें भी खलबली मच गई। श्रलफखांको बादशाहने दक्षिणसे बुला कर तीसरी वार मेवातकी फौजदारी दे कर भेजा। दीवानने दौलतखांको साथ ले कर वांकी, खेरी, चोरटी, मैवास श्रादिको तहस-नहस कर डाला। बहुतसे भोमिए लड मरे । कितनोंने युद्ध बन्द करके अपनी पुत्रियां दी । मेवात फतह करनेके बाद अलफखांको यादशाहने तुरन्त दक्षिण भेज दिया। कांगड़ा पर चढ़ाई करनेके लिए बादशाहने दीवान अलफखांको दक्षिणसे बुलाया और राजा विक्रमाजीतको साथ देकर विदा किया ।राजा सूरजमल नूरपुरमे था, शाही सेनाके साथ युद्धमे भाग गया। राजा विक्रमाजीत और दीवान अलफखाने नूरपुर पर कब्जा कर लिया और वहीं डेरा जमा दिया । दीवान अलफखां नूरपुरमें रहा और राजा विक्रमाजीतने नगरकोट पर चढ़ाई करनेके लिए कूच किया। जब सूरजमलने सुना कि राजा नगरकोट पर गया तो उसने नूरपुर पर सदलबल चढ़ाई कर उसे वापिस लेने की ठानी, परन्तु दीवानजोसे लड़ने में असमर्थ हो कर कुछ भी घात न कर सका। राजा विक्रमाजीत कांगड़े गया। वहां बैरीसे बात कर असफल-सा होकर लौटा और दीवानजीको काहलूर पर चढ़ाई करनेको कहा । तत्काल अलफखाने कृच कर ग्वालियर में डेरा किया तो कहलूरिया दीवानजीके आनेकी बात सुनते ही पेशकश सहित हाजिर हुआ। अलफखांने उसे विक्रमाजीत राजाके पास भेज दिया। राजा जब बढ़-चढ़ कर बात करने लगा तो वादशाहने लिखा कि कांगड़ा जैसे हो अधिकारमें लायो। शाही सेनाने नगरकोटके चारों तरफ घेरा डाल दिया और गढ़ तोड कर अधिकार कर लिया। दूसरोंके वहां रहना अस्वीकार करने पर राजा विक्रमाजीत और दीवान अलफखांने सलाह करके दीवानजीको ही वहां रक्खा । बादशाहने अलफखांका मनसव बढ़ा कर सस्कृत किया। _ वादशाह जहांगीर स्वयं कांगड़ा देखनेके लिए आया। दीवान अलफखांसे मिल कर वह अति प्रसन्न हुआ और उसे सम्मानित कर काश्मीरकी ओर चला गया । जव ठटा वालोंने मिर उठाया तो बादशाहने अलफखांको बुला कर ठटा भेजा । उसने तुरंत वहां जा कर ठटा सर कर लिया। इधर दोवानजीके चले जानेसे कांगड़ेके सब पहाडी एक हो कर मुगल सल्तनतके विरुद्ध हो गए। बादशाहने सादिकखांको ससैन्य भेजा, परन्तु उसके असफल होने पर शाही फरमान द्वारा दीवान अलफखा कांगड़े आया। अलफखांके आते ही सब पहाड़ी उसे जुहार करने पाए। सादिकखां दीवानके प्रभावसे बडा चमत्कृत हुआ । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका ऐतिहासिक कथा-सार २ काबुलके भोमियोके बगावत करने पर शाह जहाँगीर स्वयं लाहौर थाया और उसने काबुल भेजने के लिए कांगडासे अलफखांको बुलाया । इसी समय लख्खी जंगलकी पुकार थाई कि दुढी भौर बहू लोगोंने मुल्क ऊजद कर दिया है । वादशाह सोच रहा था कि लखी जातके भोमियोंको गिरफ़्तार कर लाहौर लानेके लिए किसे भेजा जाय; तब श्रासफखांने दीवान अलफखांको भेजने की राय दीं । बादशाहने दीवानजीको सिरोपाव दे कर ससैन्य लखो जंगलको घर बिदा किया । दीवान अलफनां लाहौरसे चल कर कसूर श्राया । भटी मनसूर डरसे भाग कर बादशाहके पास चला गया। दीवानजीने अखीरकी गढ़ी पर आक्रमण किया । परस्पर घमासान युद्ध हुआ । ३०० मनुष्यों को मार कर शेष सबको बन्दी बना लिया। आखिरको जीत कर दीवानजी डोगरों की तरफ मुड़े । इनका श्रागमन सुन कर ढोगरे पहलेहीसे भाग गए । दीवानजी बटू गए, वहां वाले भी दोवानजीका सामना करने में असमर्थ रहे । फिर दीवानजीने खाई डेरा क्रिया, आसपासके भोमिए सब श्राधीन हो गए। वहांसे चिहुनी, देपालपुर गए । दुढी बहादुरखाने या कर भेंट दी और अधीन हो गया । जो भोमिए ( जागीरदार ) भेंट ले कर थाए थे, सबको झलफखांने बादशाह जहांगीर के पास भेज दिया । बादशाह अत्यंत प्रसन्न हुया । चिहुनी, देपालपुर, महमदौट, भटिंडा, पहन, श्रालमपुर, पिरोजपुर, भटनेर, जमालाबाद, धिग, कबूला, रहमताबाद, रहीमाबाद, श्रादि लखी जंगलके सरदारोंको सर कर लिया । भटी, समेज, जोहिए, दुढी, बटू, नेपाल, विराट, डोगर, ख़रल, अरव और धौला, खेडा आदि सब पर दीवानने विजय दुन्दुभी बजाई | कांगड़ा पहाड़ पर सरदारखां शासक था । उसकी मृत्यु के बाद पहाडी फिर बगावत करने लगे । बादशाहने अलफखांको बुला कर उसे चौथी बार पहाट फ़तह करनेके लिए भेजा। दीवानजीके सदलबल पहुंचने पर पहाडी लोग सम्मुख न आ कर पहाडोंकी थ्रोटमें छिपे रहे । दीवानजीने काहलर, मंडई, सिकदराको अपने अधीन कर लिया। उधर सिकंदर शाहके सिवा कोई भी तुर्क नहीं गया था । चौहान लफखांके जाने पर पहाडी घर-वार छोट कर भागे फिरते थे । उन सबने विचार किया कि दीवान से हम सब एक हो कर लढेंगे । जगतसिह पैठनिया, विसंभर चंव्याल, भौनका चंद्रभान, जसवाल फतू, भोपत, श्रमूल, वूला, सूरजचन्द, ठकर कल्याणा, श्यामचद, जगतमाल, जिया, राय कपूर श्रादिके सारे कटकने एकत्र हो कर नगरौटेमे डेरा किया । क्यामखानी और पहाडियों में परस्पर खूब घमासान युद्ध हुआ । पहले दिन जगतसिह रणक्षेत्र से भाग गया । दीवान अलफांकी विजय हुई । दूसरे दिन फिर पहाडी सेना एकत्र हो रणक्षेत्र में श्राई | दीवानजीने उसे हरा दिया, इसी प्रकार तीसरे दिन भी पहाडी हारे । चौथे दिन और भी बहुतसे भोभिए पहाडी दलमें शामिल हो कर लडे, परन्तु उनकी हार हुई | पाँचवें दिन और छठे दिन भी अफ खांकी जीत और पहाडियोंकी हार हुई | पैठानसे सादकखाने अलफखांको पत्र लिखा कि या तो तुम श्रा कर मिलो या सेना भेजो। अलफखांने देखा कि शत्रुदल उमडा हुआ है। युद्ध से मैं क्यों लौटकर अपने कुलमें कलंक लगाऊँ ? मरना एक दिन है ही । उसने अपने थोड़े दलको रखा कर समस्त शाही सेना रोष पूर्वक सादकखांके पास भेज दी । जब जगतसिंहने सुना कि अलफखांके पास थोडी-सी सेना है तो वह निशान बजाता हुया Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० क्यामख रासा - भूमिका सदल रणक्षेत्र में श्रा पहुँचा। दीवानजीने भी अपने दलकी तीन अनी बनाई । एक ओर रूपचन्द दूसरी ओर वासी डढवाल और मध्य में दीवान स्वयं रहा । पहाड़ियोंने इन्हें चारो तरफ से घेर लिया । घमासान युद्ध हुथा । रूपचंद और वासी हार कर भाग खड़े हुए अलफखां सत्य और साहस के बल पर पैर रोप कर युद्ध करने लगा। * दीवानजीके बड़े-बडे वीर योद्धा इस लढाईमें काम श्राए । एदल और कमाल क्यामखानी और जमाल, मुजाहद, भीखन, बहलोल, लाडू, पिरोजखां, दोला, बू इस कंदर, मांरूफ, सरीफ, ऊदा, परता, चतुरभुज, जगा, मनोहरदास, कौजू, हरदास, दोदराज, मोहत यादिने हजारों पहाडी वीरोंको धराशायी करके अंत में वीरगति प्राप्त की । स्वयं दीवानजी और उनके चतुर नामक हाथीने अपने चौहान वंशका पानी बडी सफलतासे दिखाया । पहाडी लोग तंग आ कर भागने लगे। दीवानने उन्हें खदेड़ते हुए पीछा करके १३०० मनुष्योंको मार डाला । जब पहाडियोंने देखा कि भागनेसे छुटकारा नही होगा, तो सब एकत्र हो कर युद्ध करने लगे । घमासान युद्ध करते हुए दीवान अलफखां शहीद हो गए । वि० सं. १६८६, हि० सन् १०३५ रोजा तारीख के दिन दीवान श्रलफखां वीरगतिको प्राप्त हुए | दीवानजीकी दरगाह बढी चमत्कारी है, बहुतसी करामातें प्रकट हैं । निर्धनको धन और निर्बुद्धिको बुद्धि व मार्गभ्रष्टको मार्ग देनेवाले है । इस प्रकार अलफखा महा पीर प्रगटे । कवि जानने वि० सं. १६९१ में पुराने कचित्तके अनुसार इस ग्रन्थकी रचना की । श्रब दीवान दौलतaint विवरण लिखते हैं - दीवान थलफखांके पीर हो जाने पर उसका पुत्र दौलतखां उत्तराधिकारी हुआ । बादशाह जहाँगीरने उसे मनसब दे कर कांगडेका गढ़ सुपुर्द किया । वह भी कांगडेमें रह कर पहाडी सरदारों द्वारा सेवा कराता हुआ शासन करने लगा । जहाँगीरकी मृत्यु हो जाने पर सब थाने उठ गये और श्रराजकता छा गई, कितु दीवान दौलतखां अपने स्थान पर अविचल रहा । पहाडियोंने मिल कर गढ़के चौतरफ घेरा डाल दिया, तब दीवानके दलने पहाडियोंको मार भगाया और नगरकोटकी रक्षा की । शाहज़हॉने दिल्लीके तख्त पर बैठते ही दौलतखांको मनसब बुढा कर सम्मानित किया । दोवानने १४ वर्ष काँगडेमें रह कर शासन किया; फिर काबुल और पेशावरमे जा कर रहा । सीमाके सब शासक दीवानसे मिल कर चलते थे । दौलतखांके तीन पुत्र थे-ताहरखां, मीरखां, और असदखां । दौलतखांका पुत्र ताहरखां बादशाहसे मिलनेके लिए अकबराबाद गया । बादशाहने प्रसन्नताले उसे मनसब दे कर बडा प्यार किया । जब शाही दरबारमे गजसिंहके पुत्र राठौर अमरसिंहने सुलावतखांको मारा तो बढ़ा घमासान मच गया । बादशाहने हुक्म किया कि राठौड़ोंको मारो, कवि जानने इस युद्धका वर्णन बड़े विस्तारके साथ किया है, और दीवान अलफखाकी वीरताकी बड़ी प्रशंसा की है। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका ऐतिहासिक कथा-सार जिससे भविष्यमें कोई दरबारमें वेअदबी न करे । अमरसिंहके जो सेवक आगरेमें थे वे सबके सब लड मरे, कोई भी न भागा । रावजीका कुटुंब नागौर में था। बहुतसे जोधावत पालमें थे अतः उनके त्रासके कारण नागौर लेनेकी किसीने भी स्वीकृति नहीं दी । आखिर वीर ताहरखाने नागौरके लिए बीड़ा उठाया । बादशाहने नागौरका पट्टा लिख कर दौलतखांको काबुलसे बुलानेके लिए फरमान भेजा और मनसब भी ड्योढा कर दिया। एक दिन बादशाहने ताहरखांसे पूछा- काबुलसे अपने पिताके आने पर नागौर जाओगे या पहले ही जा कर राठौड़ोंको निकालोगे? ताहरखांने कहा "आपका फरमान मस्तक पर है। मैं अभी जाकर नागौर दखल करता हूँ।" बादशाहने नागौर दे कर उसे बड़ा उमराव बनाया और सिरोपाव दे विदा किया । ताहरखांके पुत्र सरदारखांको बादशाहने मनसव दे कर अपने पास रक्खा । ताहरखाने स्वदेश लौट कर वडी भारी सेनाके साथ नागौरकी ओर प्रयाण किया। ___ताहरखांके नागौर आने पर जोधोने गढ खाली कर दिया । ताहरखाने उस पर कब्जा कर लिया और अमरसिंहके स्थान पर जैगढ़में रहने लगा । चार मासके बाद दीवान दौलतखां भी काबुलसे श्रा पहुंचा और पिता-पुत्र दोनों पानंदपूर्वक नागौरमें रहने लगे। ७-८ महीनेके अनन्तर बादशाहने फरमान भेजा कि फरमान पाते ही तुम शीघ्रतासे पेशावर जाओ। शाहजादा वहांसे बलख लेनेके लिए जायेगा, तुम भी उसके साथ जा कर फतह करो । शाही फरमान पाते ही दीवानजीने प्रयाण किया और ताहरखां नागौरमें ही रहा । ८ मास नागौरमें सुख-पूर्वक उसने बिताए । जब ताहरखांने फौजके बलख जानेकी बात सुनी तो उसने बादशाहके पास लाहौर अरज भेजी कि हुक्म हो तो मैं हाजिर होऊ । बादशाहने उसे बलख भेज दिया। छोटे शाहजादेने कटकके साथ बलखको फतह कर लिया। दोनों शाहजादोने दक्षिणी रुस्तमखां और दीवान दौलतखांको इंदवह स्थानमें भेज दिया। शाहजादेके पास बलखमें ताहरखां था । श्रायु पूर्ण हो जानेसे युवावस्थामें हो अचानक उसकी मृत्यु हो गई । नगरमें ताबूत पाने पर हाहाकार मच गया । पिता दौलतखांको बड़ा दुःख हुा । बादशाहने सुन कर दुःख प्रकट किया और सलावतखांको बुला कर दिलासा दिया। बलखसे शाही सेना लौट कर काबुल आई तो वादशाहने कंधार विजय करनेकी आज्ञा दी, और कुमुक भेजी । इधर शाहजहांकी सेना और उधर शाह अब्बासकी सेना परस्पर लढने लगी। जब शाही सेनाके पैर उखड़ते देखे तो रुस्तमखां दक्षिणी और दीवान दौलतखां रणक्षेत्रमे उतर पढे और उन्होंने शत्रुसेनाको परास्त कर दिया । जब शीतकालमें बरफ़ जमने लगी तो शाही सेना कंधार छोड कर काबुल आ गई । जब १ राज्यकाल सं० १६८३ से १७१० इनके नामसे रचित 'टउलितविनोदसारसंग्रह' नामक विशाल वैद्यक-ग्रन्थकी अपूर्ण प्रति अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेरमे उपलब्ध है । इसकी पूरी प्रति अन्वेषणीय है। आपका चित्र फतहपुर परिचयमें प्रकाशित है। २ फवि जानने बड़े ही करुण शब्दोमे विलाप किया है। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ क्यामखां रासा - भूमिका मौसम ठीक हुआ तो फिर सेना कंधार लेने गई पर उसके हाथ न थाने पर वापिस सेनाको काबुल लौटना पड़ा । तीसरी बार बादशाहने फिर सेनाको भेजा। कंधार में घमासान युद्ध होने लगा। दौलतख दीवान भी चढाई के दौरे करता था। इसी बीच उसे ज्वर हो गया और कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई । वि० सं० १७१०, हिजरी में दीवानको मृत्यु हुई। बादशाहने दिलासा दे कर ताहरखांको सिरोपा दे कर स्वदेश बिदा किया । सरदारखां अपने वतन लौट कर सुखपूर्व के राज्य करने लगा । सरदारखां और पूरनखां चिरायु हों । प्रस्तुत रासा यहीं समाप्त होता है। पं. भावरमलजी शमर्कि लेखानुसार, 'शजतुल मुसलमीन' और 'तारीख खानजहानी' ग्रन्थ इसी रासाके अनुसार बने हैं और उपर्युक्त सरदारखांके (१७१०-३७) बाद दोनदारखां (सं. १७३० से ६० ), सरदारखां हि. (१७६०-८६) कामयाबखां ' (१७८६-८८) फतहपुर के नवाब हुए। अंतिम सरदारखांने अपना विरुद्ध 'सवाई क्यामखां' रखा और यही अंतिम नवाब हुया | सीकरके सामन्त राव शिवसिंह सेखावतने उसे पराजित किया धौर सं. १७८८ में स्वयं फतहपुरका स्वामी बना । फतहपुर परिचयसे सरदारखांके परवर्तीय नवाबोंका वृतांत परिशिष्ट में दिया गया है। 8 क्यामखां रासाकी प्रतिका परिचय | हमें प्राप्त प्रतिके अनुसार ग्रन्थका नाम " रासा श्री दीवान श्रलिफखाँका " है । पुरोहित हरिनारायणजी, पं. भावरमलजी व फतहपुर परिचय श्रादिके लेखकोंने इसका नाम " कायमरासा" लिखा है । इसका प्रधान कारण यहीं प्रतीत होता है कि इसमें क्यामखानी नवायका इतिहास है वल लिफखौका ही नहीं । हमें यह प्रति झुमण के जैन उपासरेसे मिली थी। इसकी अन्य प्रति स्व. पुरोहित जीके पास होनेका जानने में श्राया तव पुरोहितजींसे पूछा गया तो आपने उत्तर दिया कि कोई सज्जन मेरे यहाँसे ले गये थे, उन्होंने वापिस लौटानेकी कृपा नहीं की । श्रतः इसका सम्पादन हमारे संग्रहकी एक मात्र प्रतिसे ही किया गया है । प्रति बहुत शुद्ध एवं रचनासमयके आसपास की ही लिखित है । अतः हमें कोई दिक्कत नहीं हुई । 1 प्राप्त प्रति पुस्तकाकारके ७० पत्रों में है । साइज || ८|| है | प्रत्येक पृष्ठमें १६ से १८ पँक्तियां व प्रति पंक्ति अक्षर १८ के लगभग हैं । गणनासे ग्रन्थ परिमाण १३५० श्लोकका होता है । यद्यपि इस प्रतिमें लेखन - सम्वत् नहीं दिया गया है, पर हमारे संग्रहकी दीवान अलफखकी पैड़ी और उसके लेखक एक ही हैं । अतः उसकी पुष्पिका नीचे दे दी जाती है १ फतहपुर - परिचयमें सरदारखाकी विद्यमानतामें कामयाबखाके २ वर्ष राज्य करनेका लिखा है पर यह कुचामण चला गया था। वहीं मरा । अव भी वहां इसके वंशज विद्यमान हैं । झाबरमलजीने वीचमें एक काम और दिया है पर ठीक नहीं है । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका महत्व "संवत् १७१६ मिति कार्तिक वदी २१ शनिवार ता. २३ मा. मुहर्रम सन् १०७० लिखाइत पठनार्थे फतैहचंद लिखतं भीखा" मुंफणसे हमें तीन अन्योंकी प्रतियां मिली थी उनमेंसे बुद्धिसागर ग्रन्थ भी इसीका लिखित है "सम्वत १७१६ मिती आसोज सुदी १४ बार सोमवार ता. ११ मास मुहर्रम सं. १०७० पौथी लिखाइत पठनार्थ फतहचन्द लिखतं मीश्रदेव । श्रीमालशकगोत्र संभवत । श्री हिन्दुस्तानी एकेडेमी संग्रह वाली प्रति भी फतेहचन्दकी है। संभवतः दोनों फतेहचन्द एक हो । फतेहचन्दको जान कविकी रचनानोंसे छोटी उनसे ही प्रेम रहा प्रतीत होता है । एकेडेमीकी प्रतिसे कामलता ग्रन्थका पुष्पिकालेख नीचे दिया जाता है - ___ "सम्बत् १७७८ मिती कातका सुदी र विसपतिवार हसतखत फतेहचन्द ताराचन्दका डीडपानिया पोथी फतेहचन्दकै घरकी । श्री। श्री । क्यामखां रासाका महत्त्व क्यामखां रासा अनेक दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है। साहित्यकी दृष्टिसे यद्यपि उसकी तुलना पृथ्वीराज रासा, संदेश रासा आदिसे नहीं की जा सकती, तथापि यह तो मानना ही पड़ता है कि उसकी शैलीमें एक विशेष प्रवाह है। प्रेमपूर्ण आख्यायिकाओं और प्राकृतिक वर्णनोंसे जान भी इसे सुसज्जित कर सकता था, वह वीर रसका ही नहीं शृंगार रसका भी कवि था, किन्तु उसने सरल श्रोजस्विनी भाषामें ही अपने वंशके इतिहासको प्रस्तुत करना उचित समझा, उसने यथाशक्ति मितभाषिता और सत्यका आश्रय लिया ।' जानने जहां वहां सुन्दर पद्य भी लिखे हैं। जिनमें कुछ यहां प्रस्तुत किये जाते हैं यांकै बानही बने, देखहुँ जियहि विचार । जो बांकी करवार है, तो बांको परवार ॥ यांकसी सूधो मिले, तो नाहिन ठहराइ । ज्यों कमान कवि जान कहि, वानहिं देत चलाइ ॥ कहा भयो कवि जान कहि, वैरी बकीय कुवात । कवके गिर गिर कहात हैं, पै गिर ना गिर जात ॥ १ कहत जान अब वरनिहाँ, अलिफखांनकी जात । पिता जान बदि न कहों, भाखों साची बात ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा भूमिका सूर पीर पर मीन जल, इनको येक सुभाइ । रफि रफि दोऊ मरै, जो पानी प्यादे जाइ । रहे न केहूँ हीन जल, सहे न दोऊ गार । सूर वीर चुनि मीनको, पानी हीसौं प्यार ॥ येक यात कवि जान कहि, बढ्यौ मीनतें सूर । मीन मरे पानी घटे, सूर मरे जल पूर ॥ ताहरखां कीनौ गवन, स्रवन सुने ये यैन । वस्त्र भगौहे है गये, रत रोये जुग नैन । पूनोको पहुंच्यौ नहीं, भग कमोदनि मंद । यह बपरीत लागे बुरी, गह्यो सप्ली चंद ॥ थारीके मुक्का भये, ठरे ठरे ही जाहि । सुरतर ताहरखांन बिनु, केहूं न हग ठहराइ । हिय कमल नाहिन खुलत, मुर्मित पल पल माहि । छवि रवि ताहरखांन जू, डिष्ट परत है नांहि ॥ कहु कैसे के ऊपजे, नैन चकोर अनंद । कहूं डिष्ट परै नहीं, ताहरखां मुखचन्द ।। मीर करि ताहरखांन ज, हितवन हिय हित दीन । नैन बहन हिरदै दहन, मनहि गहन तन छीन ॥ धर्मराज कैसे कहूँ, कौन धर्म यहु आहि । काटत ऐसो कलपतर, कृपा न उपजी काहि ।। सुरज नाव कहाहि है, उलटौ सबै सुभाइ । छुप्यो रहत है स्योसकू, निसको निकसत आई ॥ दिल्लीका यह वर्णन भी पठनीय है अनंत भताहरि भखि गइ, नैकु न आई लाज । येक मरै दूजै धरै, यहै दिल्लीको काज ॥ जात गोत पछत नहीं, जोई पकरत पान । ताहिसौं हिन मिल चलें, पै भखि जार निदान ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रासाका नामनिर्णय एक साहित्यिक व्यक्ति द्वारा लिखे जानेके कारण रासामें सहृदयजनके लिए आनन्दको इस भांति पर्याप्त सामग्री है। किन्तु वास्तवमें उसका महत्व साहित्यिक नहीं, ऐतिहासिक है । साहित्यकी दृष्टिसे अनेक अन्य कृतियाँ कायमरासासे बढ़ी चढ़ी हैं, किन्तु अपने निजी क्षेत्रमें यही प्रमुख वस्तु है। कायमखानियोंका इतना अच्छा और इतना विश्वसनीय वर्णन हमें अन्यत्र नहीं मिलताऔर वह भी इतने रोचक ढंगसे कि पाठकका मन कभी नहीं ऊवता, यही इच्छा बनी रहती है कि वह और पढ़े । वंशके गर्वसे यत्र-तत्र कुछ बातें शायद बिना जाने ही कुछ बढ़ा कर लिखी हों। किन्तु जान कर तो शायद उसने ऐसा न किया होगा । सच्चे भारतीयकी तरह वह कभी यह भूल नहीं पाता कि यह संसार क्षणभंगुर है। प्रोजस्वीसे ओजम्बी वर्णनके पश्चात् जब वह लिख बैठता है जो लौं दौलतखां जिये, साके किये अपार । अंत न कोउ थिर रहै, या झूठे संसार । तो हमें प्रतीत होता है कि यह कोई दरबारी इतिहास लेखक नहीं है, न अबुल्फजल है और न बाबर । सत्य इसे प्रिय है, यह व्यर्थकी अतिशयोकिमें विश्वास नहीं रखता । पुस्तकका ऐतिहासिक सार पूर्व दिया जा चुका है । पुस्तकके अन्तमें दी हुई टिप्पणियों द्वारा हमने रासाके ऐतिहासिक मूल्याङ्कनका भी प्रयत्न किया है। अतः सामान्यरूपसे ही रासाके ऐतिहासिक महत्वका हम यहां निर्देश कर रहे हैं। किवामरासा या क्यामरासा यह पुस्तक आजकल 'कायमरासा' के नामसे अधिकतर विद्वानोंको ज्ञात है। किन्तु इसके मूल नायकका वास्तविक नाम 'किवामखां' होनेके कारण 'किवामरासा' कायमरासासे कहीं अधिक शुद्ध शब्द है । यह शब्द विगह कर 'क्यामराला' बन गया है। इसे शुद्ध कर कायमरासाका रूप देना ठीक नहीं है । 'किवामखो' के वंशजोंको भी कायमखानी न कह कर 'किवामखानी' या 'क्यामखानी' कहना अधिक ठीक होगा । हमने कायमरासाके स्थान 'क्यामखांरासा' लिखना उचित समझा है। पुस्तकका रचनाकाल संवत् १६९१ अर्थात् सन् १६२४ है। उस समय बादशाह शाहजहां दिल्लीके सिंहासन पर उपस्थित था । मुगल साम्राज्य अपने वैभवके शिखिर पर पहुंच कर अस्तोन्मुख होनेकी तय्यारी कर रहा था। बलख और कन्धारकी पराजय, जिनका वर्णन रासामें वर्तमान है, उसके प्रथम लक्षण थे । दक्षिणमें मलिक अम्बरके विरुद्ध युद्ध करते हुए जिन कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा था, उनका भी इसमें अच्छा दिग्दर्शन है । रचयिताके पिता अलिफखां, भाई दोलतखां, और भतीजे ताहरखांने इनमें भाग लिया था। अतः इनका वर्णन ठीक होना स्वाभाविक ही था । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा-भूमिका रचयिताके पिता अलिफखांने बड़ी श्रायु प्राप्त की थी, उसने अकवरसे ले कर अन्त तकके अनेक युद्धोंमें भी भाग लिया था। इसलिये उसके जीवनसे मुगल कालीन भारतका हम अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त करते हैं। बादशाह अकबरने उसके नाम फतहपुरका पट्टा लिख दिया; किन्तु उसका अधिकार दिलानेके लिये शिकदार शेरखांको श्यामदास कछवाहेके विरुद्ध बलका प्रयोग करना पड़ा। अकबरके अन्तिम और जहांगीरके समय समयमें जितने उपद्व हुए उनकी अलिफखांके जीवनसे हम खासी सूची तय्यार कर सकते हैं। सलीमकी मेवाड़ पर चढ़ाईके समय अलिफखां सादडीका थानेदार नियुक्त हुा । जब दलपतने जहांगीरके विरुद्ध विद्रोह किया तो शेख कबीरके साथ अलिफखां भी दलपतके विरुद्ध भेजा गया । तुजुके जहांगीरीमें इस विद्रोहका अत्यन्त संक्षिप्त वर्णन है। उसके विशेष वर्णनके लिये हम आपके आभारी रहेंगे। स्वयं दिल्लीके पासके प्रदेश भी अनेक बार उपद्रव करते रहते थे । अलिफखांने जाटुरोको हरा कर भिवानी फतह की । मेवातमें तो उपद्रवोंको शान्त करनेके लिये उसे अनेक बार नियुक्त होना पड़ा । पाटौधि और रसूलपुरको उसके पुत्र दौलतखाने सर किया । दक्षिणमें अनेक सेनापतियोंकी अधीनतामें अलिफखांको मलिक अम्बरकी सेनाओंका सामना करना पडा। चार वार अलिफखांको कांगड़े भेजा गया, और वहीं सन् १४२६में वह विद्रोही पहाडियोंके विरुद्ध लडता हुआ मारा गया। ___अलिफखांसे पूर्वका वर्णन किसी पुराने कवित्त पर आश्रित है । उसका अंतिम भाग जानके समयके निकट होनेके कारण स्वभावतः प्रायः ठीक है। किन्तु प्रारम्भिक.भागमें अनेक भूले हैं, और संभवतः इसका भी यही कारण है कि यह पराना कवित्त भी कायमखांके मरणके अनेक वर्षों वाद लिखा गया था। नामसाम्यके कारण जो भूले हुई हैं उनका विशेष विवरण टिप्पणियों में दिया गया है, पाठक वहीं देखें । चौहानोकी उत्पत्तिको कथा रोचक है । उसकी पृथ्वीराजरासा आदिकी कथासे तुलना ऐतिहासिक दृष्टिसे लाभप्रद सिद्ध हो सकती है। वीर चौहान जाति वत्सगोत्रीय थी। जान वत्स ऋषिसे ही चौहानोंकी उत्पत्ति मानते हैं, चांद, सूरज श्रादिसे उन्हें मिलानेका जानने प्रयत्न नहीं किया। तुगलक, सय्यद, लोदी, सूर और मुगल वंशों पर रासामें पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है, जिसका ऐतिहासिक सावधानी पूर्वक प्रयोग कर सकते हैं। जोधपुर, बीकानेर आदि राज्योंके इतिहास पर भी जानकी लेखनी कुछ नवीन प्रकाश डालती है। अतः इस ऐतिहासिक रासाको प्रकाशित कर राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर प्रशस्य कार्य कर रहा है। हम व्यक्तिगत रूपसे उसके आभारी हैं; उसने हिन्दी भाषाकी एक कविकी रचना पाठकोंके संमुख प्रस्तुत करनेका हमें सुअवसर प्रदान किया है । दशरथ शर्मा Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट नं. १ दीवान दौलतखाँ रचित हिन्दी वैद्यक ग्रन्थ दीवान दौलतखा' द्वारा रचित हिन्दी वैद्यक ग्रन्थका नाम है 'दउलति विनोदसार' । इसकी एक अपूर्ण गुटकाकार प्रति बीकानेरकी अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें विद्यमान है । प्रस्तुत प्रतिमें अन्य कई वैद्यक अन्योंका भी संग्रह है, केवल बीचके पृ० ३६७ से पृ० ३९७ तकमें यह ग्रन्थ लिखा हुआ है। पूर्ण प्रतिकी अनुपलब्धिके कारण इसमें ग्रन्थका कितना अंश कम रह गया है व अन्तमें प्रन्थके रचनाकाल श्रादिका उल्लेख था या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता । उपलब्ध पत्रोमें करीय १५०० पद्य हैं, जिनमें हिन्दीके अतिरिक्त संस्कृतके भी सैकड़ो श्लोक हैं । संभवतः ये किसी अन्य ग्रन्थसे उद्धृत किये गये होंगे। आश्चर्य नहीं कि वे ग्रन्थकारके बनाये हुए भी हों, क्योंकि उनमें किसी ग्रन्थसे उद्धृत किये जानेका उल्लेख देखने में नहीं आया। जैसा कि राजा-महाराजाओंके नामसे रचित बहुतसे अन्योंके सम्बन्धमें देखनेमें आता है, संभव है कि यह ग्रन्थ भी स्वयं दौलतखाँका रचा न हो कर उसके प्राश्रित किसी वैद्यविद्याविशारद कविका रचा हुश्रा हो । पर प्राप्त अंशमें कहीं ऐसा नाम-निर्देश न मिलनेसे दौलतखाँ द्वारा रचित मान लेना ही ठीक जान पड़ता है । ग्रन्थका प्रारंभिक अंश व अधिकारोंके नामादि नीचे दिये जा रहे हैं, जिससे ग्रन्थका महत्व भली भाँति विदित हो जायगा - दउलतिविनोदसारसंग्रह श्रीमंत सच्चिदानंद, चिद्रूपं परमेश्वरम् । निरंजनं निराकारं, तं किंचित्प्रणमाम्यहम् ॥१॥ दोधकादि सद्वृत्तै पाठः पाठानुगे वरे । शास्त्र विरुच्यते रुच्यं, ह (?) ष्ट्वा शास्त्राण्यनेकशः॥२॥ "दउलतिविनोदसारसंग्रह" नाम प्रकृष्ट परमार्थम् । यत्रा से परोपकृत्यै, सम्मते सुमतं कवीन्द्राणां ॥३॥ श्रीमद्वागड मंडलाखिल सिरः प्रोद्यत्प्रभा मंडनः । श्रीमंतोऽलिफखानभूपतिवरः नन्यासुरानन्ददाः ॥ तत्पट्टोदय स्यनुम दिवाकरैः भास्वित्प्रभा भास्करैः । श्रीमद्दउलति खान नाम वसुधाधीशः सुधीशाश्रितः ॥४॥ १ इनका चित्र फतहपुर प्रन्थमें प्रकाशित है। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा - परिशिष्ट धनंतर मुख वैद्य बहु, सिद्ध चिकित्साकार । तन सुद्धि मुणि योग पथ, लहइ संसारह पार ॥२॥ ताथई चिकिछक योगविद्, पछई चिकित्सा सत्थ । मुक्ति होई परमवि निपुण, रहां चाहइ तउ अत्थ ॥६॥ धर्म अर्थ अरु काम कउ, साधन एह शरीर । तसु निरोगता कारएई, उद्यम करइ सुधीर ॥७॥ धुरि निदान विग्यान तसु, ओषधके गुण दोष । तास सुद्ध वैद्यक हुवइ, जानु करइ जु अमोस ॥१२॥ देश काल वय वन्हि सम, श्रोषध प्रकृति विचार । देह सत्व बल व्याधि फुनि, धइ अोषध गुनकारि ॥१३॥ इति श्री दउलति विनोदसार संग्रहे श्री दउलतिखांन नृपति वर विनिर्मित वैद्यगुणाधिकारः । अधिकारोंके अंतमें ज्ञान परम इहु जोगी जानइ, कइ किछु परम वैध बखानइ । ग्रन्थ विसेषि जिहां कछु पाया, भूपति दउलतिखांन दिखाया ॥१॥ x जामाता मधुरइ सीतलेहि, तिउं पित्तह सेवउ मन अनेहि । इहुं काल ज्ञान जानहुं सुजान, भास्य नृप श्री दउलतिखान ॥३॥ षोडश ज्वर लक्षण सहित, श्रोषध कवाथ बखांन । कहा वागड देशाधिपति नृप श्री दउलतिखांन ॥१७॥ इति श्री वागढ देशाधिपति श्री पालिफखांन नंदन श्री दउलतिखान विरचित श्री दउलति विनोद सार संग्रह षोडश ज्वराधिकारः। प्राप्त ४५ अधिकारों के नाम वैद्यगुणाधिकार, परमज्ञानाधिकार, कालज्ञान, मूत्र परीक्षा, नाड़ी परीक्षा, ज्वर चिकित्सा, अतिसार, संग्रहणी, हर्ष, दुनामोनिरूपण, मन्दाग्नि, विसूति, अजीर्ण, कृमिनिदान, पांडु, राजयक्ष्मा, काश, छींकनिदान, स्वरभेद, श्रारोचक, छर्दि, तृष्णा, दाह, उन्माद, वातनिदान, आमवात, शूलनिदान, गुल्म, हृद्रोग, मूत्रकृच्छ, मूत्रघात, अश्मीरी, प्रमेह भेद, उदरामय प्लीहा, शोथ, अंड वृद्धि, गंडमाल, श्लीपद जणानां, विस्फोट, भगंदर, उपदंश, सूक कर, शीत पित्त, आम्लपित्त, विसर्पि तथा भावाँ लुता । (इसके बादका अंश प्राप्त नहीं है)। जैसा कि अपर लिखा गया है, प्रस्तुत प्रन्यकी केवल एक ही अपूर्ण प्रति प्राप्त हुई है। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ दौलतखां रचित हिन्दी वैद्यक ग्रन्थ फतेहपुरादिमें खोजने पर संभव है इसकी अन्य पूर्ण प्रति भी उपलब्ध हो जाय । आशा है, आयुर्वेद एवं हिन्दी साहित्यके प्रेमी सज्जन अन्वेषण कर इस प्रन्यके सम्बन्धमें विशेष प्रकाश डालनेकी कृपा करेंगे। हिन्दी भाषा व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतिका प्रचार दिनों दिन बढ़ रहा है, पर खेद है कि अभी हिन्दी भाषामें इस विषयके अन्य बहुत ही कम प्रकाशित हुए हैं। यह हिन्दी साहित्यके लिए उचित नहीं है। इन अन्योंकी विक्री भी अच्छी हो सकती है, अतः साहित्य सम्मेलन, नागरी प्रचारणी सभा श्रादि संस्थाओं व अन्य प्रकाशकोंको वैद्यक सम्बन्धी ग्रन्यों के प्रकाशनकी ओर शीघ्र ध्यान देना चाहिए। क्यामखानी दीवानोंके समयके शिलालेख संतकवि सुन्दरदासके स्थान पर सं. १६८८ फा. व. ६ बुधवारका लेख लगा हुश्रा है जिसका फोटू सुन्दर अन्यावलीके जीवन चरित्र पृ. १२० में छपा है। दौलतखाँ व ताहिरखाँका उल्लेख इस प्रकार है ढीली पति जहाँ सुत, राजत शाही जहान । दौलतखां नृप फतेहपुर, ता नन्दन ताहिरखान । ताहरोको, राठौर अमरसिहके शाही दरबारमें सलायतोको मार कर स्वयं मर जाने पर सम्राटने नागौरका परगना दे दिया था। वहाँ पहुंच कर ताहरखानने राठौरोंसे नागौर छीन लिया। गढ़के पास मसजिद बनाई गई थी। जिसके हिजरी सन् १०७६ के लेखमें शाहजहां एवं ताहरखा नाम खुदा है। (सुन्दर ग्रन्थावली, जीवन चरित्र पृष्ठ ३७) फतहपुर किलेका जीर्णोद्धार व आश्चर्यजनक वावदीका निर्माण दौलतखाने सं. १६६२१६७१ में किया ऐसा उल्लेख फतहपुर परिचयमें किया है। संभवतः इसके सूचित शिलालेख वहाँ हों। परिशिष्ट नं. २ "मुहणोत नेणसीरी ख्यात" मूलसे क्यामखानीकी उत्पत्ति यहां उद्धृतकी जाती है - “अथ क्यामखान्यारी उत्पति अर फतैपुर जूझएं वसायौ । दरेरा वासी चहुचाण, तिकां ऊपर हंसाररो फोजदार सैद नासर दोड़ियो। तद दरेरो मारियो अर लोक सरव भागो । पछै चालक २ फोजदाररै नजर गुदराया ।ताहरां फोजदार दीठा। हकम कियौ "जु हाथीर महावतनूं सांपो पर दूध पावो - मोटा करो।" ताहरा फौजदार सैद नासर दोन यालकांनं आपरी बीबीनूं सांपिया अर कहो-"जु हम दो लाये हैं सो इनको तुम पालो" ताहरां दोन पालकांन बीषी पालिया। लदका वरस १० तथा १२ रा हुवा ताहरां Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखो रासा-परिशिष्ट हांसीरे सेखनूं सांपिया । तद किवरेक दिन सैद नासर फौत हुवौ । तद सैद नासररा बेटा पर औ दोनू पुतरेला पातसाह लोदी पठाण नाम बहलोल तेरी नजर गुदराया । ताहरां सैद नासररा बेटा पातसाहरी नजर उसढ़ा न पाया पर श्री चहुवाण नजर श्रायो। तेरो नाम क्यामखान हुतो सु इयेनू सैद नासररो मुनसबं हुतो सु दियौ अर जाटरो नाम जैनूं हुतो तेरा जैननदोत कहाया । सो जूझणं फतेपुर माहे केहीक रहै छै । श्रर पातसाह थोड़ो बीजानूं पण दियो । पर क्यामखांनी हंसाररी फोजदारी दोवी । तद इयै दीठो "जु कोइक,रहणनूं ठिकाणो कीजै तो भलो" ताहरां जूझणं श्राछी दीठी!, ताहरां चोधरी तेड़ियो ।, ताहरां कह्यो-"चौधरी ! तुं कहै तो म्हे ठिकाणो रहणनूं करां" ताहरां चोधरी बोलियो-"जु भलो ठोड़ वणावो । ऊ पण म्हारो नाम रहै त्यूं करीज्यौ" ताहरा ,कलो भलों । ताहरां , चोधरीरो नाम जूझो हुतो सु तिकेरै नाम झणं वसायौ । अनै जूझणं माहिली. ही ज धरती काढ़ नै फतैपुर वसायौ । नै भै भोमिया थका रहै । पछै कितरहेके दिन 'अकबर पातसाह मांडण कूपावंत जमणं जागीरमें दी हुती । अर फतेपुर इण जूझणूं माहिली ही ज़ हुती सु फतैपुर गोपालदास सूजावत कछवाहे दी हुती । सु भोमिया थका रैहता । मुकातो देता। सुपछै जहांगीर पावसाहरा चाकर हुवा । सु पैहला तो समसखां जूझणूं चाकर रह्यो । पछै अलमखा रह्यो। ' दूहो - पैहली तो हिंदु हुता, पाछ हुआ तुरक । ता पाछ गोले हुवै, तात वडपण तुक्क ॥१॥ धाये काम न श्रावही, क्यांमखांनि गंदेह । बंदी श्राद-जुगादके, सैद नासर हंदेह ॥२॥ इति क्यांमखान्यारी वात संपूर्ण ॥" . . ___ परिशिष्ट नं०३ क्यामखारासामें सरदारखांके राज्याधिकार प्राप्ति तकका उल्लेख है, अतः परवर्ती इतिवृत्तकी __ पूर्ति फतहपुर परिचयसे की जाती है - - .. ... ... "१ - नवाब सरदारखां (0). . (संवत १७१० से १७३७ तक तदनुसार सन् १६५३ से १६६० तक) नवाव दौलतखां और ताहिरखांके.संवत् १७१०में, प्राणान्त हो जानेके बाद, ताहिरखांके पुत्र सरदारखांको शासनाधिकार मिला।' अपने नामसे उसने "सरदारपुरा" गांव श्राबाद किया। वह शासनस्थ प्रजाकी और अपने राज्यको रक्षा करने में हर समय लगा रहता था। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - . .. AN . नवाब दौलतखां (द्वितीय)" शासनकाल सं० १६८३-१७२० . . , . . . : rane . R फतहपुर का किला (निर्माण संवत् १५०८) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sthat ANY GAR नाव लिफखां का मकबरा 1 नवावी वावडी निर्माण संवत् १६७१ - नवाव अलिफखां के राज्य में Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परवर्ती नवाब ४१ फदनखां नामक एक लड़का नवाब सरदारखांके था, जो असमयमें नवाबकी जिन्दगी में ही मर गया था, इससे नवाब दुःखी रहने लगा ।' रात - दिन दुःख में डूबे रहनेसे उसे राज्य कार्य श्ररुचिकर हो गया था, जिससे उसने संवत् १७३७ तर्क २७ वर्ष ही राज्य करनेके बाद गद्दी छोड़ दी और राज्यका अधिकार अपने छोटे भाई दोनंदारखांके सुपुर्द कर दिया । १०- - नवाब दीनदारखां ( संवत १७३७ से १७६० तक तदनुसार सन् १६८० से १७०३ तक ) संवत १७३७में नवाव सरदारखाने, अपने पुत्रकी मृत्युसे" दुःखित होनेके कारण राज्यासन छोड़ कर अपने भाई दीनदारखांको गद्दी पर बैठाया । वह पहलेके नवाबोंकी तरह बहादुर और बुद्धिमान न था; बल्कि शक्तिहीन और मूर्ख था । ' 1 , अपने नामसे "दीनदारपुरा " नाम रख कर नवाब दीनंदारखाने एक गांव कुंकुं के रास्ते में बसाया । नवावके २ लड़के पैदा हुए जिनका नाम रसीदखां और मुजफ्फरखां रक्खे गये । कम कल होनेसे नवाब दीनदारखां अधिक दिन तक राज-काज न निभा सका, इससे उसके पोते सरदारखांने संवत् १७६० में उससे राज्यभार ग्रहण करके नवावी अपने हाथमें ले ली । ११ - नवाब सरदारखां (२) ( संवत् १७६० से १७८६ तक, तदनुसार सन् १७०३ से १७२९ तक ) नवाब दीनदारखांके राज-काज न संभाल सकनेके कारण उसके पोते सरदारखांको उसके जीते जी ही १७६० में गद्दी सौंप दी गयी । वह भी नवाब दीनदारखांके समान मूर्ख और बलहीन था । ऐयाश भी अव्वल दर्जेका था । उसने एक तेलिनको उसके रूप पर श्रासक्त हो कर रख लिया था, जिसका महल श्राज तक फतहपुर के किलेमें विद्यमान है, जो " तेलिनका महल" ऐसा कहा जाता है । तेलिनसे एक लड़का भी नवाबके हुआ, जिसका नाम महबूब था । 1 7 संवत् १७९२ में नवाब सरदारखांने किसी कारण वश क्रोधावेशमें श्राकर भोजराजजीके वंशज बरवाके केशरीसिंह और सुखसिंहको जानसे मरवा दिया। यह बात जब भोजराजनी वंशज वीरवर शार्दूलसिंहजीने सुनी, तो वे इतने क्रोधित हुए कि सिरसे पैर तक क्रोधाग्निसे तिलमिलाने लगे । उन्होंने तुरन्त ही राव' शिवसिहजी को साथ में ले कर १५० सवारों सहित फतहपुर पर चढ़ाई की। 1 } • • " 134 t *रसीदखाँ - नवाब दीनदारखांका बढा बेटा था । उसने अपने नामसे "रसोदपुरा " बसाया । उसके २ लड़के थे। सरदारखां और मीरखां । सरदारखां नवाब दीनदारखाने अपनी गद्दी पर बैठाया । उसका बड़ा बेटा था, इससे उसे ही Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा - परिशिष्ट फतहपुरकी बोहड़में पहुँच कर शार्दूलसिंहजी और राव शिवसिंहजीने नवावके ऊंटोंके समूहको वहां चरता हुआ पाया। उन्होंने उस समूहको घेरा । नवावने अपने सर्वेसर्वा काजीको वहां भेजा । काजी और शार्दूलसिंहजी वगैरहमें लड़ाई छिड गयी । अन्तमें काजी और ग्यारह कायमखानी उस स्थान पर मारे गये और बाकी सब भाग गये। उसी समयसे शार्दूलसिंहजी और राव शिवसिंहजी कायमखानियोंको नीचा दिखाने और उनकी भूमि उनसे छीन लेनेके लिए प्रयत्नशील हुए। अपने प्रयत्नमें लगे हुए उन्होंने अमएको संवत् १७८६में कायमखानियों से छीन कर, उस पर अपना अधिकार कर लिया। बादमें फतहपुर पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहा, इसके लिए वे उचित अवसरकी बाट जोहने लगे। महबूबको अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहनेके कारण नवाब सरदारखांसे अन्य कायम खानी सरदार मनमुटाव रखने लगे थे। कायमखानी चाहते थे कि अधिकार महबूबको न मिल कर कामयावखांको मिले; पर नवाब यह न चाहता था। उसने तो महबूबको ही उत्तराधिकार देना चाहा; यद्यपि वह कायमखानियोंके कहनेसे कामयावखांको दत्तक -पुत्र बना चुका था। __कायमखानी नवायसे बिलकुल असंतुष्ट हो गये । चूडी और बेसवाके कायमखानियोंने राव शिवसिंहजीके पास जा कर करबद्ध प्रार्थना की कि "श्राप फतेहपुरका अधिकार कामयावखांको दिला दें, आपकी सेवा में हम २५ गांव भेंट स्वरूप दे देंगे और फतेहपुरकी राज्य-व्यवस्था भी आपकी सलाहसे की जावेगी।" ___ कायमखानियोंकी प्रार्थना सुन कर राव शिवसिंहजीने काशलीके कुंवर रामसिंहको बुलवाया रामसिंह और प्रार्थी कायमखानियों को साथ ले कर संवत् १७८६में राव शिवसिंहजीने फतेहपुर पर चढ़ाई की। भयंकर लड़ाई हुई, दोनों तरफके अनेक वीर अाहत हुए और अनेक मारे गये । बादमें नवावने यह जान कर कि कायमखानियोंने ही शेखावतोंको साथ ले कर चढ़ाई की है बहराव शिवसिंहजीके चरणों में आ पडा। राव शिवसिंहजीने नवाबके लिए नौ हजार रुपया वार्षिक निश्चित किया और कामयाबखांको गहो पर बैठा दिया। १२-जवाब कामयाबखां (संवत् १७८६से १७८७ तक तदनुसार सन् १७२९से १७३० तक) नवाब सरदारखां, जो महबूबको राज्याधिकार देना चाहता था, उससे राव शिवसिंहजीने राज्यका अधिकार संवत् १८८६में कामयावखांको दिलवा दिया, जो नवायके छोटे भाई मीरखांका लड़का था और नवाबके द्वारा दत्तक भी स्वीकृत किया जा चुका था। __ नवाब कामयाबखां अपनेसे पूर्वके दो बवायोंकी भांति ही बलबुद्धिसे रहित था। वह राज्यकी व्यवस्था पर ध्यान न दे कर अपने पारामकी तरफ ही विशेष ध्यान देता था । हिताहितकी बातोंकी उसे पहचान न थी। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परवर्ती नवाब ४३ राव शिवसिंहजीने नबाब कामयाबखांको जब गद्दी दिलवाई थी, तब अपने श्वसुर भावसिहजी बीदावतको उन्होंने नवाचका कामदार नियत किया था । नवाब कामयाबखांने गही पानेमें कामयाब हो कर भावसिंहजी और चूड़ी, वेसवाके कायमखानियोंको थोड़े दिनों बाद ही अपने राज्य फतहपुरसे निकाल बाहर किया । राव शिवसिंहजीने यह बात सुनी। उन्होंने इसे एक श्रच्छा मौका समझा । तुरन्त शार्दूलसिंहजीको बुलवाया और उनसे सलाह करके चैत्र-कृष्ण १३ संवत् १७८७को फतहपुर पर दो हजार घुड़सवारोंकी सेना ले कर चढ़ श्राये । समस्त कायमखानी, कुंकुंणूकी तरह फतहपुरको अपने हाथसे जाता देख कर एकत्रित हो नवाबके पक्ष में श्रा डटे । केवल वेसवाके कायमखानी नहीं थाये । शेखावतों और कायमखानियोंमें प्रबल युद्ध हुआ । दोनों तरफके योद्धा प्रवल विक्रमसे लड़े, जिनमें कई घायल हुए और कई मारे गये । चारों तरफ रुधिरसे लथ-पथ रुण्ड और मुण्ड ही नजर आते थे । निदान नवाब सरदारखां घायल हो गया' और नवाब कामयाबखां मैदान छोड़ कर भाग गया। जिसके फलस्वरूप कायमखानियोंकी पराजय हुई। उनसे राज्य छीन कर शेखावतोंने उस पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया । संवत् १७८७की समाप्तिके रोजसे राव शिवसिंहजी फतहपुर के शासक पद पर आरूढ हुए । उपसंहार फतहपुर राज्यके हाथसे चले जानेके बाद कायमखानी हार मान कर चुप न बैठ सके । वे राज्यको फिर हस्तगत करनेके लिए कोशिशें कर रहे थे । उन्होंने दिल्ली जा कर तत्सामयिक मुग़ल बादशाह मुहम्मदशाहके दरबार में शेखावत के विरुद्ध दावा पेश किया, लेकिन शेखावतों ने पहलेसे ही सवाई जयसिंहजी ( द्वितीयको ) जो कि दरबारके मान्य व्यक्ति थे फतहपुर पर अधिकार - स्थापनकी कथा कह सुनाई थी । जिससे उनकी इच्छित बात हो शाही रजिस्टरोंमें दर्ज हो गयी थी, इससे कायमखानियोंके दावे पर ध्यान न दिया गया। फतहपुर पर राव शिवसिंहजीका ही अधिकार रहा । संवत् १८०८में कायमखानियोंने समर्थसिंहजी और चांदसिंहजीकी अनुपस्थितिमें* सिन्धी १ नवाब सरदारखां, श्रहत दशामें ही हिसार ले जाया गया, जहां पर उसका प्राणान्त हो गया । २ नवाब कामयाबखां, भाग कर कुचामण ( मारवाडमें ) चला गया । वहीं अपनी जिन्दगीके दिन पूर्ण होने पर मृत्युको प्राप्त हुआ । उसकी सम्तान श्राज तक कुचामणमें विद्यमान है । * समर्थसिंहजी और चांदसिंहजी, जोधपुरके महाराजा अभयसिंहजीके पुत्र रामसिंहको सहायतार्थं गये हुए जयपुरके महाराजा ईश्वरीसिंहजीके साथ जानेके कारण अनुपस्थित थे । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ क्यामखां रासा परिशिष्ट और बिलोचियों की सेना सहित फतहपुर पर चढ़ाई की और उसे हस्तगत कर लिया। चांदसिंहजीने यह समाचार सुन कर लाड़खानियों और अपने मामोंसे सैनिक सहायता ले कर फतहपुर के लिए प्रस्थान किया । सीकरसे बुधसिंहजी ससैन्य श्रा पहुंचे। फतहपुर पर आक्रमण करके कायम - खानियोंके हाथसे वह छीन लिया गया । तदनन्तर फिर संवत १८३१ में कायमखांनियोंने बादशाह शाहआलम ( द्वितीयसे ) मदद मांगी । उसने पीरूखां बिलोची और मित्रसेन अहीरको सेना देकर शेखावाटी पर भेजा । राव देवीसिंहजी शेखावत सेना सहित जयपुरकी सैन्य सहायता प्राप्त कर मैदानमें श्री गये । लडाई " मांडण" गांवमें हुई । लडाई होते-होते श्रन्तमें पीरूखां धराशायी हुआ और मित्रसेन भाग गया। अपने प्रमुखको भागा देख कर सेना भी पलायित हुई, इस तरह शेखावतोंने विजय पायो । तत्पश्चात् संवत् १८३६ में बादशाह शाह आलम द्वितीयने पुनः एक सेना कायम - खानियोंकी सहायता - स्वरूप शेखावटी पर आक्रमण करनेके लिए भेजी । शेखावतोंके पक्षमें जयपुरपतिकी भेजी हुई एक सेना और ससैन्य अलवर नरेश प्रतापसिंहजी श्राये । दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ । अन्तमें शाही सेनाकी पराजय हुई और उसका सेनापति निराश हो कर दिल्ली चला गया । एक सेना फिर कायमखानियों को सहायतार्थ दे कर संवत् १८३७ में बादशाह शाह श्रालम द्वितीयने शेखावाटी पर भेजी । राव देवीसिंहजी शेखावतोंको एकत्रित कर "खाटू" के मैदानमें आ डटे । युद्ध आरम्भ हो गया । सहस्त्रों मनुष्य दोनों तरफ मारे गये, परन्तु किसी पक्षको विजय नहीं हुई। दोनों तरफके योदा लड़ते-लड़ते बहुत अधिक थक चुके थे, निदान बादशाही सेना दिल्ली लौट गयी और शेखावत अपने स्थानोंको चले गये । (क) नवाबोंकी हैसियत । तहपुर पर नवाबोंने संवत् १७८७ तक २७९ वर्ष राज्य किया । इतने कालमें १२ नवाव गद्दी पर बैठे, जिनमें प्रारम्भके ८ तो शक्तिशाली और सामर्थ्यशाली हुए और बादके ४ कमजोर । नवाब अलिफखां ( फतहपुरका ७ वां नवाब ) सर्वश्रेष्ठ नवाब हुआ । इन नवाबोंकी हैसियत बहुत ऊंची थी । दिल्ली बादशाहोंके यहां भी ये नवाब ही कहलाए । दिल्ली दरवारमें नवाब वाजखां (२), नवाब अलिफखां और नवाब दौलतखां (२) बराबर जाते रहे । श्रपने समसामयिक सम्राटोंकी श्रोरसे इन्होंने अनेक लढाइयां वीरतापूर्वक लड और उनके लिए सम्मान पाया । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवाबोंके बसाये हुए गाँव (ख) नवाबोंका राज्य विस्तार | श्राजकी शेखावाटी नवार्थीके शासन कालमें फतहपुरवाटी और कुंकुंणवाटीके नामसे प्रसिद्ध रही है, बादमें परम प्रतापी राव शेखाजीके नामसे इसका नाम शेखावाटी पढ़ गया । इसका नवाबी शासन कालका भूमि-विस्तार कितना था, इस सम्बन्धमें यथेच्छ जानकारी मुझे नहीं हुई; यद्यपि इस बारेमें मैंने काफी छानवीन भी की; पर जितना, इतिहासोमें इस सम्बन्धका उल्लेख मिलता है, उससे यह तो भली भांति श्रनुमान लगाया जा सकता है कि फतहपुर वाटी और कुंकुंणूवाटोकी भूमि दूर तक विस्तृत थी जोधपुर में सम्मिलित झाटोदकी पट्टीके ५७ गांव और बीकानेर में सम्मिलित फतहपुर पट्टीके १२० गांव # जिनमें रतनगढ और 'चूरू भी हैं, नवाबोंके शासनकाल में फतहपुरवाटीके ही अंतर्गत थे । ० ४५ परिशिष्ट नं० ४ क्यामखानी नवाबोंके बसाये हुए गाँव १. फतहखने फतहपुर बसाया ( रासाके अनुसार सं० १५०८ में ) । २. मुहम्मदखाने जुमा जाटकी सलाहसे कुंझरणू बसाया ( विशेष आबाद किया ) | ३. नवाब जलालखॉंने जलालसर बसाया जो फतहपुरके दक्षिण ३ कोस पर है । इसने पशुपक्षीके लिए १२ कोस घेरेका बीहड़ रखा जो श्राज भी है । ४. नवाव दौलतखाँ (१) ने दौलताबाद गाँव बसाया जो फतहपुरका एक मोहल्ला है । ५. नाहरखाने नाहरसर गाँव बसाये, ये फतहपुरके उत्तर दक्षिणमें ४-४ कोस पर हैं । ६. फदनखाने फदनपुरा गाँव बसाया जो फतहपुरके ३ कोस उत्तरमें है । ७. ताजखाँ (२)ने ताजसर गाँव बसाया जो शहरसे ३ कोस पर है । ८. लिफखाने अलिफसर गाँव बसाया जो फतहपुरसे दक्षिण पूर्व में ५ कोस पर वेषय ग्राम पास है । ९. दौलतखाने दौलतपुरा गाँव बसाया जो वर्तमानमें बीकानेर राज्यमें है । १०. सरदारखाने सरदारपुरा बसाया । ११. दीनदारखाने दीनपुरा झणू के रास्तेमें बसाया । नवाबों के लड़कोंके नामसे भी कई गाँव बसाये गये हैं । 1 * फतहपुर पट्टीके ये गांव राव लूणकरणने नवाब दौलतखां (1) से ले लिये थे । इस बारेमें अधिक जानकारीके लिए इसी पुस्तकके तीसरे खण्ड में "नवाब दौलतखां (1)" शीर्षकके अन्तर्गत देखिए । 1 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ क्यामखां रासा-परिशिष्ट १. ताहिरखाके नामसे ताहिरपुरा । २. रसीदके नामसे रसीदपुरा। फतहपुर किला नवाबोंका स्मारक है ही। अन्य स्मारक इस प्रकार है - १. नवाब फतेहखा () वीर सेनापति बहुगुनाको जालके पेड़के नीचे दफनाया। वहाँ उनकी का श्राज भी है, पासमें कुआ है, जिसको बोहगुणका कुश्रा कहते हैं। २. दौलतखा (की) कब किलेके नीचे दक्षिणमें आज भी हिन्दू मुसलमान दोनोंसे पूजित है। ३. नवाब अलीफखाके दफन स्थान पर दौलतखाने ' मकबरा बनाया जो उल्लेखनीय व दर्शनीय-स्मारक फतेपुरसे पूर्वकी ओर है। ४. सं० १६७१में अलिफखाके समय दौलतखाकी देखरेखमें नागौरके शेख महमूदने बड़ी उल्लेखनीय बावड़ी बनाई जो आश्चर्यजनक व दर्शनीय है। ५. सरदारखा (द्वितीयकी) रखेली तेलनका महल किलेमें आज भी तेलनके महलके नामसे प्रसिद्ध है। ६. जलालखांने बीहड १२ कोसकी रखी जिसमें पशु चरते हैं। परिशिष्ट न० ५ क्यामखानी दीवानोंका वंश-वृक्ष १. दीवान क्यामखाँ (सं० १४४१से ७५) १. ताजखॉ, २ मुहम्मदखां, ३ कुतबखाँ, ४ इखतियारखाँ, ५ मोमनखाँ । २. (सं० १४७४-१५०३) .. फतिहखाँ, २ रूका, ३ फखरदी, ४ मोजन, ५ इकलीमखाँ, ६ पहाड़ा। ३. (१५०३-३१.) 1. जलालाँ , २ हैवतसाह, ३ मुहमदसाह, ४ असदखाँ, ५ हरियासाह, ६ साह मनसूर ७ सेख सबह, ८ बलों, ९ संग्रामसूर, १० हेतम । १ इसका परिचय व चित्र फतहपुर परिचयमें प्रकाशित है। २ इसका परिचय व चित्र फतहपुर परिचयमें प्रकाशित है। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखांनियोंका वंश-वृक्ष ४. (१५३१-४६ ) १. दौलतखाँ, २ अहमदखाँ, ३ नूरखाँ ४ फरीदखाँ, ५ निजामखाँ, ६ पहाडखाँ, ७ लाखाँ दाउदख ९ श्रवन, १० महमदसाह | १. ( १५४६-७० ) ४७ १. नौहरखाँ, २ होबनखाँ, ३ याजिदखाँ । ( १५७०-१६०२ ) ६. १. फदनखाँ, २ बहादरखाँ, ३ दिलावरखाँ । ७. (१६०२-९) १. ताजखा, २ पेराजखाँ, ३ दरियाखाँ । ८. (१६०९-२७ ) १. महम्मदख २ महमूदखाँ, ३ सेरखाँ, ४ जमालख, ५ जलाख, ६ मुजफरखाँ, ७ हैबतखाँ, ८यीय । ६. ( १६२७-८३ ) १. दौलतखाँ, २ न्यामतखाँ ३ सरीफखाँ, ४ जरीफखाँ, ५ फकीरखाँ । १० ( १६८३ - १७१० ) ताहरखाँ, २ मीरखाँ, ३ सदखाँ । १. सरदारखाँ । ११. (सं० १७१०-३७ ) फदनखाँ ( क्यामरासा इसकी विद्यमानता में बना ) यह श्रसमय में स्वर्गवासी हो गया । इससे सरदारखाने अपने भाई दीनदारखाँको राज्याधिकार दे दिया । फतहपुर परिचय ग्रन्थ में वंश वृक्ष दे दिया है; उसमें कुछ नामान्तर व अधिक नाम ये हैं१. क्यामखाँका श्रहमदख नामक एक और पुत्र बतलाया है । मोमनखाँको मोहनखाँ लिखा है । २. दौलतखाँ (१के) पुत्रोंके नामोंमें नं० ७ ६ १० नामोंके बदले १ बहारखाँ, २ एमनखाँ, ३. दरियाखों है । ३. नाहरखाँके पुत्र होवनखका नाम जोवनखाँ लिखा है । ४. दौलतखाँके पुत्र फकीरखॉका नाम फक्रखाँ लिखा है । ५. ताहरखाँके पुत्र मीरखाँका नाम महरखों दिया है । ६. सरदारखाँके बाद उसका भाई दीनदारखाँ दीवान हुआ, राज्यकाल (सं० १७३७ से - ६० ) । Page #58 --------------------------------------------------------------------------  Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा अथवा रामा श्री दीवान अलिककांका ॥ दोहा । सिरजनहार बखानिहौं, जिन सिरज्यौ संसार । खं भू गिर तर जल पवन, नर पस पंछी अपार ॥२॥ येक येक ते जात बहु, कीनी है जग मांहि । अनत गोत कवि जान कहि, गनती आवत नांहि ॥२॥ दोम महंमद उच्चरो, जाकै हितकै काज । कहत जांन करतार यहु, साज्यौ है सब साज ॥३॥ कहत जान अब बरनिहौ, अलिफखानकी जात । पिता जान बढिनां कहौ, भाखौ साची बात ॥४॥ अलिफखानु दीवानको, बहुत बड़ी है गोत । चाहुवांनकी जोटको, और न जगमै होत ॥५॥ अलिफखानकै बंसमें, भये बड़े राजांन । कहत जांन कछु येक हौ, सबको करौ बखान ॥६॥ बात अलिफखांकी कहौ, सब पाछै कहिं जांन । किहि बिधि जीये जगतमैं, कैसे मरे निदान ।।७।। बड़े बड़े साके कीये, अलिफखांन जग मांहि । पातसाहकै कामको, ज्यों पुनि राख्यौ नांहि ॥८॥ नूर महंमदको रच्यो, पहले सिरजनहार । ताहीते कवि जान कहि, भयो सकल संसार ॥९॥ तौ नभ रबि तारे ससि, सुरग नूर तें कीन । रचे फिरसते नरके, करे नबी आधीन ॥१०॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत धर गिरवर सागर रचे, पाछे दानव देव । अंत रचे मानस अलख, कहत न आवहि भेव ॥११॥ जबहि भयौ करतारको, मनुष रचनको चाइ। तब पहले जिनकौ] कीयो, सुनहु कथा चित लाइ ॥१२॥ कहत जांन कवि जानियो, ग्रथनिको मत गांव । माटीत पैदा भयौ, तातें आदम नांव ॥१३।। मांनस भये जहांनमै, ते सगरे कहि जांन । आदम पाछै आदमी, हेंदू मुसलमांन ॥१४॥ येक पिड इन दुहुँनको, नां अन्तर रत चांम । पै करनी नाहिन मिल, ताते न्यारे नाम ॥१५॥ बातें बहु संतत भई, गनती आवत नाहि । आदम बरस सहस लौं, जीयो जगती मांहि ॥१६॥ आदम पैगंबर भयो, प्यार कीयो करतार । पहले बैकुंठ राखक, फिर पठयो संसार ॥१७॥ जिते पुत्र आदम भये, सबमै टीकौ सीस । हूर बरी हूवो नबी, दया करी जगदीस ॥१८॥ नौसै बारह बरस लौ, सीस रहयौ जग मांहि । सेवा करताकी करी, चुख अरसायो नांहि ॥१९॥ भयो सीसकै जान कहि, बडड़ो पुत्र उनूस । निस बासुर करतारकी, सेवा करी अदूस ॥२०॥ नौसै पैसठ बरस लौं, भयो न जगते दूर । याते उपज्यो जगतमै, तरवर तरल खजूर ॥२१॥ भयो जु पुत्र उनूसक, नांव ताहिकी नांन । नौसै बासठ वरस लौ, सुखरसु कीये जहांन ॥२२॥ नीके मंदिर कोट गढ़, उपजै जगती मांहि । सो याहीते जान कहि, पहले जानत नांहि ॥२३॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ३ ताको महलाइल सुत, रूपवंत कहि जांन । वाको देखन आइ है, मिलि मिलि सकल जहांन ॥२४॥ यजद ताहि नंदन भयो, दयो न करता ग्यांन । अपने घरमंहि छांडक, पंथ चलायो आंन ॥२५॥ भयो यजदकै जान कहि, पैगांबर इदरीस । डंकरि कैफिरि यों करै, ये चरित्र जगदीस ॥२६॥ साठ पंच अरु तीन सौ, बरस रहयौ जग मांहि । अजहू जीवै सुरगमैं, मरै प्रलै लौ नांहि ॥२७॥ ताको सुत मसतूस लख, धर्म छाडि जिन दीन । लमक भयो ताको नंदन, बहु पुनि सेवा हीन ॥२८॥ ताकै नूह नबी भयो, नौ सै बरस पचास । धरम पंथ सब जगतमें, नीकै कर्यो प्रकास ॥२६॥ प्रगट बात है नहकी, सब ग्रन्थनिकै मांहि । मै ताते कबि जांन कहि, यामैं अांनी नांहि ॥३०॥ तीन भये सुत नूहकै, सुनि लै तिनको नाम । लघु याफस मधि हांम है, बडड़ी जांनी सांम ॥३१॥ अरबी रूमी सांमकै, पुनि ईराक खुरसांन । अरबी ताई अस अरी, अजदी अरु मसरांन ॥३२॥ अरां अरमन पारसी, भये जु नबी जहांन । सकल सामकै बंसमै, अरु चहुवांन पठांन ॥३३॥ और हांमकै बसमै, येती जात बखांनि । उजबक हिदी बरबरी, हबसी कुवती जांनि ॥३४॥ याफस ते सकलाबके, परतासी यों मांन । फिरग रूस चगता तुरक, चीमां चीन पिछांन ।।३।। साम बड़ो सुत नूहको, धरम पंथ गहि लींन । इमन भयो ताको नंदन, कोइ बात न हीन ॥३६ ।। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत उज भयो घर इरमकै, ताकै भयौ समूद । वै पुनि ज्वाला कालकी, जरि निबरे ज्यो ऊद ॥३७॥ वाके राजा आद हुव, ताके पुत्र अनाद । तातें भयो जुगाद जग, तिहं नंदन ब्रह्माद ॥३८॥ मेर भयो ब्रह्मादकै, अरु मंदिर घर तास । मंदिरकै घर जान कहि, उपज्यौ सुत कैलास ॥३९॥ वाकै भयौ समुद्र सुत, जाके उपज्यौ फेन । ताकै बसिग अतुलि बल, संम न करै बलि बैंन ॥४०॥ बसिगको सुत राह है, है साहसीक मल सूर। दुर्जनकौं ऐसै गहत, राह गहत जिम सूर ॥४१॥ रावन है सुत राहको, धुंधमार सुत ताहि। भयो चक्रवै जगतमै, उपमा दीजै काहि ॥४२॥ परगट सकल जहानमै, करिहौ कहा वखांन । उदै अस्त लौ जान कहि, धुंधमारकी आन ॥४३॥ प्रगट्यो तिहि मारीच सुत, प्राची और प्रतीच।। बदन किरन यों जगमगै, जैसे सूर मिरीच ॥४४॥ वाकै राजा जमदगिन, विधु सुमिर्यो करि चाइ । परसराम तिहं सुत भयो, चार चक्कको राइ ॥४५॥ परसरामके जुद्ध सब, वरने नाहिंन जाहि । जो बरनौं तौ जान कहि, लिखनंहार अर नांहि ।।४६।। परसराम सुत सूर है, ताकै बछ बड़ जोत । चाहुवान है जगतमै, ते सव बछ सगोत ॥४७॥ चाइ भयो सुत बछको, बिधु सुमिर्यो करि चाइ। चाहुवांन तिहि सुत भयो, करता आयो भाइ ॥४८॥ चाहुवांन यातें कह्यो, चहूं कूटमें ांन । सगरै जंबू दीपमै, संम कौ गोत न आन ।।४।। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा]] संभर लयो निकास जिहं, ताकी संम सर कौन । सब ही कोउ खातु है, चाहुवांनको लौन ॥५०॥ संभरकी लौनी धरा, तित उपजे कहि जांन । लौन हि लाज नं मारि है, हैं जित लौ चहुवांन ॥५१॥ ।। सवैया । देवनमे देवराज, गजनिमै गजराज, पंछी पंछराज, ग्रहनिमै तपु भानको । सरितामै ज्यों समंद, बोहिथ नौका निविंद, उडिनमें इंद, पत्रनिमे भोग पानको। गिरिनमै सुमेर, दरगाहनिमें अजमेर, खाननमे मांन, जैसौ कंचनकी खांनको । फूलनि मधि गुलाल, चूनियनि जैसौ लाल, राइनमै तैसो गोत, चक्रवै चौहानको ॥५२॥ ॥दोहा॥ कलप बिछ चहुवान है, जाकै अनगन साख । जो हौ जानौ जान कहि, सु तो सुनाउभाख ॥५३।। ॥ सवैया ॥ क्यामखान देवरे, सीसोदीये भदोरिये, चितोरीये बाघोर मल, खीची निरवान जू । चाहिल मोहिल माहो, दूगर वालेसे जौर, सोनगरै गिल खोर, मांदलेचे मांन जू । गुहिलौत उमंट, साचौरे गोधे राकसिये, - हाले झाले दाहिमै कहि [कवि] जान जू । गूंदल बालोंत हाडे छोकर घंधेरे खैल जू जेती सव साखनिको मूल चहुवांन जू, ॥५४।। ॥ दोहा ॥ बारोरिये धुकारने, चीवे गोवल वाल । हुल तावर डल होर पुनि, चाहुवांनकी डाल ॥५।। पड सूर आसोफ पुनि, पीपारे कहि जांन । गोतम दागी अरु मरिल, सवन मूल चहुवांन ॥५६॥ चाहुवानकै वंसमै, भये • छत्रपति राइ । तिनकी कथान जै कथी, नांब कह्यौ समझाइ ॥५७।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत . राज कीयौ है । दिल्लीमैं, मानिकदे चहुवांन । दोइ बरस षट मास लौं, सतरह दिन कहि जान ॥५॥ पाचं दिल्लीमैं भयो, देवराज चहुवांन । तीन मास द्वै बरस लौं, सत्रह दिन कहि जान ।।५।। पाछै दिल्लीमें भयौ, रावलदे चहुवांन । सात द्योस नौ बरस लौ, राज कीयौ कहि जांन ।।६०॥ पाछै दिल्लीमै भयौ, देवसीह चहुवांन । तीन मास षट बरस लौं, राज कीयौ कहि जान ॥६१॥ येक मास बाईस दिन, दस बरसनि स्योंदेव । राज कीयौ है दिल्लीमें, सब मिलि कीनी सेव ॥६२।। वा पाछै बलदेव है, राखन कुलकी लाज । पंच वरस दिन एक दस, करयौ दिलीमै राज ॥६३।। प्रिथीराज पाछै भयौ, दिल्लिपति चहुवांन । ग्यारह दिन दुने बरस, रही जगतमै ांन ॥६४।। दूब काबिली दिल्लीमें, लई मंगाइ मंगाइ । घरी घरी आवत हरी, चरी तुरंगनि खाइ ॥६५॥ प्रिथीराजकी बरनना, मोपै करी न जाइ । साके गनना हि न सकौ, कहा कही समझाइ ॥६६॥ और बंस चहुवांनकै, राजा भये अपार । बीसल आना जान कहि, हठी हमीर मुछार ॥६७॥ जिती जात रजपूतकी, सगरे हिदसतान । सबमें निहचै जानियो, बड़ी गोत चहुवांन ॥६॥ चाहुवांन सुत मुनि अरु, मुनि मानिक जैपाल । येक भयो जोगी अमर, तीन भये भोवाल ॥६९।। मानिक कुल प्रिथीराज हुव, सोमेसुरको अंस । जिते राठ चहुवांन है, ते अरिमुनिक बंस ॥७०॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] चाहुवांन जब चलि गयो, मुनि वैठ्यो उहि ठौर । रह्यो, केतक दिन. सिरमौर ||७१|| कूचीरहू में मुंनि राइकै जानियो भयो राइ भोपाल । कह कलंग ताकै भयो, सूरा गोत गुवाल ॥ ७२ ॥ घंघरान ताकै भयी, कीनौ कीनौ घांघू गांव । अपनी भुज वर जातमै नीको कीनौ नांव ॥ ७३ ॥ चढ्यौ हेर येक दिन, घंघ राइ कहि जांन । म्रिग छौना टौनां मनौ, देख्यौ चरत उद्यान ॥७४ || चप भई जिय राइकें, पकरौ दै गर चाप । सब दल ठाढ़ौ छाड़िकै गयौ अकेलो आप ॥ ७५ ॥ म्रगसावक तव भजि चल्यो, पार्छ धायो राइ | घंघ [ राइ ] तुरंग पुनि, चले चढ़े रथ वाइ ||७६ || बहुत बार जव ह्वै गई, राजा प्रायो नांहि । तब सेवक सब विकल है, सोधत है वन मांहि ॥७७॥ बन वन सेवक फिरत है, तन मन भेंट न चाहि । चिंता न न भांतकी, अनगन व्यापति ताहि ॥७८॥ सुनहु वात व राइकी, चित प्रति बढ्यौ उमंग । आगे पाछै जात हैं, निकट कुरंग तुरंग ॥७६॥ जात जात कवि जांन कहि, लोह गिरकै पास । छलकै छौनां छपि गयो, भयो नरेस उदास ||८०|| सोधि रह्यो नाहिन लह्यो, तकी ब्रिकी छांहि । नैन सजल उर धकधकी, चिंत बढ़ी चित मांहि ॥५१॥ सर्ल तर्ल तरकाज तित, तातर निर्मल कुंड । तहां अपछर झुंड है, हनंछी ससितुंड ॥ ८२ ॥ चार अछरा चार छबि, करत कुंड असनांन । पांनिको पानिपु चढ़ी, अंगलगे कहि जांन ॥ ८३ ॥ ७ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत ॥ सवैया ॥ करत सनांन, सर रूपकी निधान, बांम अति अभिरांम, असी उपमां बखांनी है । अंगकी क्रमक दमकनि असी लागति है, असित घटामैं दामनीसी चमकानी है। के तो जैसी भांति तंन क्रांतिकी है सोभा देत, ससि प्रतिबिंब देखियत मधि पानी है। मानहुँ अगिंन झाई, जलमांहि प्रगटाई, कै तौ बड़वानल सलिल भभकानी है ।।८४॥ ॥दोहा॥ बसतर छाडे पाल सर, न्हावन पैठी बांम। लीना घंध उचाइकै, पूजे मनसा काम ॥८॥ बसन लेत राजा तक्यौ, परी परी मुरझाइ। सूर छपें ज्यौ नीरमै, कंवल रहै कुमिलाइ ।।६।। द्रिग आंसू उर धकधकी, बकी लगी मुख रांम । बसतर बिना न उडि सकै, रही उघारी बाम ॥८७॥ ॥ सवैया ॥ अंबर देहु हमारे, जात उघारी हहा रे ! खरी हम लाज मरै, दुख पावै महा रै । जीभ थकी बकतें,तुमसौ सुनते,चुख कान तिहारे न हारे। आवैसनांनको दीजिये जानन यामै कहौ तुम पुन कहारे। ठाढ़ी रही जल पोत कीये हम अंबर देहु हमारे हहारे ।।८।। ॥ दोहा॥ तब हि घंघ उनिसौं कह्यौ, सुनि लै सांची बात । येक बरौ जौ चहुंनिमै, तो ढापौ तुम गात ॥८६॥ कहै अपछरा राइसौ, भैसी हुई न होइ। हम तुममै कैसे बने, जात गोत ही दोइ ॥१०॥ तूं मानस हम अपछरा, कैसे बनिहै बात । अबलौं काहू नां तके, येक संग दिन रात ॥१॥ राइ कह्यौ सुनि अपछरा, यह समझो चित मांहि । जब हिं पीति तन ऊपजै, जात गोत सुधि नांहि ॥३२॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] जौ लौ जीउ जगतमै, हां तो है हो नाहि । जौ तुम जिय ती अंग हूं, तुम घट तौ हौं छांहि ।।६३॥ कै तुम लेहु मिलाइ मुहि, उरत फिरौं तुम मांहि । कै तुमको मानस करौं, वसतर दैहों नांहि ॥१४॥ काहेको बिललातु हौ, मया न आवत मोहि । मन बदलै बसतर लय, सो कैसे द्यों तोहि ।।६।। सोच कर्यो चित अपछरा, बसतर नाहिंन देत । जो लौ हममें देखि कै, येक हि ना चुनि लेत ।।१६।। बसतर नाहिन देत है, कीने जतन अनेक । सब जलमे कोलौ रहै, देही याको येक ॥१७॥ तब हि कह्यौ सुनि राइ जू, बसन हमारे देहु । जासौ उरझे नैनं तुम, येक बीन सो लेहु ॥१८॥ सवमे नान्ही बैंसकी, बीन लइ तब राइ । वनमैं जल प्यासै लह्यौ, फूल्यो अंग न माइ ॥६६॥ बोल बचन कर राइन, वसतर दीने प्रांनि । चारौं आइ घंघपै, वनि बनि वानिक वानि ॥१०॥ येक दई तब राइको, रीति भांति करि व्याह । तवहि संग करि लै चल्यो, पूजी चितकी चाहि ॥१०१।। लही सुहारी फल लहत, कहत जांन परबीन । धावत पार्छ हरनक, हरनंछी विध दीन ॥१०२।। तीन जंने सुत अपछरा, कन्ह, चन्द पुनि इंद । येक येकतें सरस हैं, तीनो भये नरिंद ॥१०३॥ चंदवार चंदे करी, इंद करी इंदोर । कन्हर देव सुजान कहि, रहे पिताकी ठौर ।।१०४|| घंघ रान पुनि अपछरा, आनंद कीये अपार । अंत भये बस कालक, यह रीति संसार ॥१०॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० [ कवि जांन कृत छिड़ाई ठौर । अंत कलाही कन्ह, ग्राइ तव राजा अमरा भयो, चाहुवांन सिरमौर ॥ १०६ ॥ बछरा ये चार । अमरा अजरा सिधरा, पुनि कन्हरदेके पुत्र है, प्रगट भये अजराते चाहिल भयो, सिधरा जौर जहांन । बछराते मोहिल भये, अमरेते चहुवांन ॥ १०८ ॥ ग्रमरा सुत जेवर भयो, राज कर्यो जग मांहि । अंत मर्यो या जगतमे अमर अजर को नांहि ॥१०६॥ ताकै गूगा वैरसी, सेस धरह ये चार | राज कर्यो केतक वरस, अंत तज्यो संसार ॥११०॥ संसार ॥१०७॥ गयो अऊत | धरहके पूत ॥ १११ ॥ सोनंद बखान । कीयो अदभूत ॥ ११४ ॥ गूगँकै नानिग भयो, सेस सु कहत जोन भोथर भरह, भये उदराज सुत बैरसी, तिह सुत केसोराइ हैं, विजैराज हरराज जुग, है सतत हरराजकी, पर्वतमें कहि जान ॥ ११३ ॥ विजैराजकै जांन कहि, भयो पदमसी पूत । प्रिथीराज ताकै भयौ, राज लालचंद ताकै भयौ, वाकै अजै जु चंद | याकै सुत गोपाल है, हरनहार दुख दंद ॥ ११५ ॥ तिह सुत उपज्यो जैतसी, समसर करै न कोइ । पुंनपाल ताकै भयो, पुंननिहि सुत होइ ॥ ११६ ॥ मूलराज मल असरथ, दौका सांगा जानि । रातू पातू और महियल, सुत जैत वखानि ॥ ११७ ॥ पुंनपालकी रूप है, तिहुंनपाल या रावन है सुत ताहि । भयौ, लाज जसराज । ताको सुत समरथ सगरें काज ॥ ११२ ॥ गोतकी ताहि ॥ ११ ८ ।। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] तिहुंनपाल सुत ऊपज्यो, मोटेराइ सकाज । निस बासुर सुखसों कीयौ, ददरेवैमे राज ॥ ११६ ॥ ताकै उपज्यी करमचंद, प्रकट भयो सब ठांव । तुरक करची पतिसाहजू, धरयो क्यामखां नांव ॥१२०॥ मोटे राके चार सुत, क्यामखांन भोपाल | और जैनदी सदरदी, हिन्दू रह्यौ जगमाल ॥१२१॥ श्री दीवान क्यामखान पुत्र - ताजखां १, महमदखां २, कुतुबखां ३, इखतियारखां ४, मोमनखां ५ | क्यामखांनको बखांन || चौपाई ॥ करमचंदकी बरनी वाता, कैसे कीनौ तुरक विधाता । कुवर करमचंद खेलत डोलत । अधिक सिरिस्ट वचनमुखबोलत ।। १२२ ।। येक द्यौ सवहु चढ़यो हेरें । भाई वंधव हे बहु नेरें । सावर हरंन रोझ बहु पाये । गहिवेको सवहि ललचाये ॥ १२३ ॥ आप आपको सव उठि धाये । भूलि परे वनमें भरमाये । सबै हेरें के मदमाते । आप आपको डोले होते ॥ १२४ ॥ करमचद इक विरछ निहार्यौ । बैठ्यौ जाइ हुतौ प्रतिहार्यो । घोरा बांधि डारि सकलात । पौढ्यो कुंवर दैन सुख गात ।। १२५ ।। आई नीद गयो तब सोइ । ढरि गइ छांह दुपहरि होइ । फेरोसाह दिली सुलतांन । चारौ चकमै जाकी आन ॥ १२६ ॥ उतरे हे हिसार में आइ । इक दिन चढ़े अहेरै चाइ । आवत आवत उहि ठा आये । कुंवर बिरछतर सोवत पाये ।। १२७ ॥ सकल विरछ छइयां ढरि गई । वा तरवरकी दूरि न भई । पातसाह अचरजकी वात । देखि देखि अति ही भरमात ॥ १२८॥ नासिर सैद बुलायी पास। जो देखी सो कर्यो प्रकास । अचरज रहे सैद पतिसाहि । महापुरुष कोउ यहु ग्राई ॥ १२६ ॥ कह्यौ जगाइ पाइ इह लागे । सूते भाग हमारे जागे । साहस करिकै कुंवर जगायौ । हिदू देख बहुत भरमायौ ॥ १३०॥ ११ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कवि जांन कृत हिंदू मांहि न होइ करामत । इन कैसे कै पाई न्यामत | सैद कह्यौ ऐसी जिय प्रावै । अंत पंथ तुरकनि यहु पावै ॥१३१॥ पूछयौ तव हि कहा तुव जात। रहत कहां साची कहु बात । ददरेवा रहिबेको ठाँव । मोटेराव पिताको नांव ॥ १३२ ॥ बस हमारी है चहुवांन । नाम करमचन्द कहत जहांन । पातसाहनें निकट वुलायौ । बहुत प्यारसौ गरेँ लगायो ॥ १३३ ॥ कयो संग मो चलि चहुवान । दे हो तांकी प्रदर मांन ॥ १३४ ॥ ॥ दोहा ॥ कर्म चंदते फेरिके, धरयो क्यामखां नांम । पातसाह संगहि लये, आयो अपनी ठांम ॥ १३५ ॥ || चौपाई ॥ तब हि सैद नासर यों कह्यौ । तुम मेरे भागन यहु लह्यो । मोकौं देहु जुयाहि पढ़ाउ । तुम लाइक करि तुमपैं लाऊं ॥ १३६॥ पातसाह भाख्यो यहु भाख । पायौ रतन जतन सौ राख । क्यामखांन संग चढ़े हेरे । ते सब गये आपुनै डेरें ।। १३७।। करमचंद घर आयो नाही । रोर परी ददरेवै मांही । येक परेवा सैद पठायो । ये ते मांहि लैन वहु आयो । १३८ || मोटाराजा गयो हिसार । पातसाह कीनौ बहु प्यार । कह्यो करमचद मोको देहु । जो भावै सो बदली लेहु ॥ १३६ ॥ तुरक भयेकी करिहून चिंत। याकी राखो ज्यो सुत मित । याक करिही पंच हजारी। साँचु कहत ही बांह हमारी ॥ १४० ॥ कर तसलीम कह्यो यों राइ । दिलीपति जो करे सु न्याइ । जो सेवा करिहै सो बढ़िहै । सोई फूल महेसुर चढिहै ॥ १४१ ॥ पातसाह दे सरपाव । बिदा करयो डेरेको राव | पातसाह दिल्लीको धायो । क्यामखांनु तब सैद पढ़ायो ॥ १४२ ॥ द्वादस हे मीरांके नंदन | तिनमें क्यामखानु जग बंदन । येक ठौर पढ़न ये जाहिं । भोरे लरिहं प्रापुन मांहि ॥ १४३ ॥ रोवत लरत येक दिन जात । बालक आपुन मांहि रिसात । कुतुव नूरदी नूरजहाँन । हांसीते बैठे हैं ांन ॥ १४४ ॥ १२ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] तक्योक्यामखांजात उदासा तबहिं बुलाय बिठायो पास। पीरसुवचन तव ही उच्चरै । ते बाबा काहे द्रिग भरे ।।१४५।। मारी थाप चवाऊँ लौंन । धनी बावनी मारै कौन। नंबू और गंदीरा अांन । दये नूरदी नूरजहांन ॥१४६।। लये क्यामखां तव मन पाखें । नेवू आदि गंदौरापाछ। कह्यौ रीत यह है इन गोत । खाटे ह फिर मीठे होत ॥१४७।। केतक दिन पढ़ते ही गये । क्यांमखानुं पढ़ि पूरे भये। सैद कह्यौ अव सुनंत करावहु। करहुनमाज दीनमें आवहु ।।१४८।। तब क्यामखान विनती कीन । मेरौ हूं मन चाहत दीन। पै यह चिंत मोहि चित मांहि ।हमसोंसाक करे को नाहीं॥१४६।। नासिर सैद करांमत पूरन । जाको कह्यौ होत है दूरन। यहुचिता जिन चितको देहु । मेरे वचन मांनिकै लेहु ।।१५०।। बड़े बड़े जगु है है राइ । ते तनया देहे करि चाइ । है है जोध मंडोवर राइ । बहु डोला घर देइ पठाइ ॥१५१।। है वहलोल दिली सुलतांन । दैहै तनया निह मांन। मीरांकै मुख निकसै वैन । ते सव भये अन ही मैंन ॥१५२।। तवही दीनमें आयौ खान। निर्मल मोमन मुस्सलमान। जब सब वातिन निर्मल पायो।तब मीरां दिल्ली ले धायो॥१५३।। पातसाह देखत हरसाये । मनसब देकै खानं बढ़ाये । पातसाह मीरांकोप्यार। दिन दिन खांसोबढत अपार ॥१५४।। मीरांजी जव रोगी भये। पातसाह पूछनकौं गये। तवमीराजी असे भाख्यौ । क्यांमखानु मै सुत करिराख्यो।१५।। जौ कवह मेरो ह काल । याकौं दीजहुमनसबमाल । मेरै पूत सपूत न कोई । जिनते सेव तुम्हारी होई ॥१५६।। पातसाह भाख्यो जूनीकै । क्यामखानु है लाइक टीकै। पातसाह उठि डेरै आये । तब मीरां सब पुत्र बुलाये ॥१५७।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कवि जांन कृत कह्यो सुंनहुं तुम सगरे भाई । क्यामखानुंकौ दई बड़ाई । यहु तुममें कीनौ सिरमौर । याकौ समझौ मेरी ठौर ।। १५८ ।। क्यामखानुंसौ ये सिख भाखी । इनकौं बहुत प्यारसौं राखी । सिखदे मीरां कलमां कह्यौ । या कल मैको अमर न रह्यौ ॥ १५६ ॥ मीरां भये जबहि बस काल । लह्यो क्यामखां मनसब माल ॥ १६०॥ ॥ दोहा ॥ पातसाह किरपालु है, दै हय गय सिरपाव । दई बावनी क्यामखां, कर्यो बड़ौ उमराव ॥१६१ ॥ ठटा लेंन जौ ऊपज्यौ, पातसाह क्यामखानुंकी मया करि, चले फौजदार करि क्यामखां, सौपी आपुन दलबल साजिकै, चले देस देस वतिया चली, पातसाह घर नांहि । बिना क्यामखां और को, रह्यो न दिल्ली मांहि ॥ १६४ ॥ १४ अभिलाष । दिलीमै राख ॥ १६२ ॥ दिल्ली ताहि । ठटाकौ साहि ॥ १६३ ॥ क्यामखांन मुगलनिसौं युद्धकरत है || दोहा || मुगल बिलायत ते चले, हिद लैनके चाइ । छलके बलसौ जांन कहि, दिल्ली घेरी आइ ॥ १६५ ॥ सुनत बात यह परजर्यो, क्यामखानु चहुवांन । सौह आये लरनकौं, दै सतसौ नीसान ॥ १६६ ॥ ऊस, कादूर तन थहरान । सुभट सबद सुनि धौं धौं धौं धौसा करें, धौकत पावहु जान ॥ १६७ ॥ ॥ सवैया ॥ बहु सैन बनाइ चढ्यो चहवांन, निसान लये अरिमारनकी । अब जैसे गजिद नरिंद चल्यो, विटपी खल मूर उखारनको । प्रतिही बलवंत करे करता कर, दंतीके दंत उपारनकौं । परिहैदलमें इमं क्यांमलखां, जिम चीतो चलै म्रिगडारनकौ ।। १६८ ।। ॥ दोहा ॥ दिली बिलाइत लरत है, परत महा घमसान | येक वोर जु मुगल, येक वोर चहुवान ॥ १६६ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामरखां रासा] इतहि १ ॥ भुजंगी छंद जुगंम विधि ॥ चढ़े क्यामखानं , लये कर दुधारी । चाहुवांन , उतहि मुगल भारी ।।१७०।। बजे सुर नीसानं , सु जुझ जुझारी। गहै कर कमानं , चलावै ततारी ॥१७१।। लर सुभट जोरै , सूत रने किसोरे । सहें झकझोरे, मुरे नहिं मोरे। फिरे ना वहोरे , करै रज तोरे । हने गैद घोरे , रहे आइ थोरे ॥१७२।। लरे बहु जुझारी, मरे जोध सूरा। अरुन भौम सारी , भयो जुद्ध पूरा। लगे हाथ भारी, गयो छूटि गरूरा। मुगल सैन हारी , चले भाजि भूरा ॥१७३।। लर्यो चाहुवॉन , सुजस जगत सबही । पगनि गज केकानं , गये मुगल दवही । सुन्या सुलतानं , जित्यो खांन जबही। दयो संनमान , वढयौ वहुत तबही ॥१७४।। ॥दोहा॥ मुगल लरे सो मरि परे, उबरे गये जु भाग । खल दादूर हैं बापुरे, क्यामल कारो नाग ।।१७५।। औराकी तुरकी तुरग, लूट्यौ दरव अनेक । सब पठये पतिसाह ढिगु, आप न राख्यो एक ।।१७६।। आनंदित है छत्रपति, दीनों प्रादुर मांन । क्यामखांनको नाम तव, राख्यो खानु-जहांन ॥१७७।। मद गइंद अरबी तुरक, अपतनको सिरपाव । मनसव बहुत बढ़ाइकै, कर्यो बड़ी उमराव ॥१७८।। जौ लौ जीयो जगतमै, फेरोसाह सुलतांन । तो लौ दिन दिन ही बढ्यो, क्यामखांनको मांन ।।१७९॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ [ कवि जांन कृत जबहि भयो बस कालकै, फेरोसाह सुलतान । तब महमद महमूदने, फेरी जगमें श्रान ॥ १८० ॥ इनहू कीनी प्यार बहु, पिता करत ज्यों नित्त । क्यामखांनुं से रख्यौ, जैसे भाई मित्त ॥ १५१ ॥ जब महमद महमूद हू, परे कालके जाल । तव नसीरखां पुत्र उहि, ठौर गही ततकाल ॥ १८२॥ क्यामखांनु चहुवान सों, इनहू कीनौ प्यार । जो कछु किये सु जांन कहि, इनसौं पूछि बिचार || १८३ || रोगी भये निसीरखां, सब फिरि गये सुभाइ । बिन मल्लूखां दूसरी, निकट न कोउ जाइ ॥ १८४॥ मल्लूखां चेरौ हती, पाल्यो फेरौसाहि । बहुरि करचो परधान वहु, सब जगु मांनत ताहि ॥ १८५ ॥ पातसाह जब चलि गये, तबही चली यहु बात । दील्लीकें हित मल्लू नें, मारचौ है करि घात ॥ १८६॥ गोत गैल बुधि होत है, से कुसल कहंत । कुलहीनो मुख लाइये, पूरी पर न अंत ॥ १८७॥ कुलहीनौं सुधरै नही, कीजे पाइक तौ फरजी भये, चलें पाछौ भारी नांहि जिहिं, यों चलिहै पग छोर । जैसे गुडिया पौंछ बिन, उलटि परत सिर जोर ॥ १८६॥ जतन करोर सीसके जोर ॥१८८॥ कोउ पुत्र न हि । पतिसाहीकी चाहि ॥ १६० ॥ जब मरि गयो नसीरखां, मल्लूखांको तब भई, कामदार सब मल्लूसी, राखत है अति नेहु । कह्यो तखत पर बैठके, तुम पतिसाही लेहु ॥ १११ ॥ क्यामखानुं यहु बात सुनि, सबसी की रिसाइ । पातसाह कैतखत पर चेरौ क्यौ न आइ ॥ १६२ ॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखा रासा] साहव उत्तिम कीजिये, जो कुलवंतो होइ । चेरैके चाकर भये, सोभ न पावै कोइ ॥१६३।। लै तारी गढ़ कोटकी, उठि आयो परधान । काइमखां दीवानक, प्रागै राखी अांन ।।१६४।। यहै कह्यौ तब सबनि मिलि, सुनि साहिब दीवान । तुम चलि बैठो तखतपर, फेरहु अपनी प्रांन ।।१६।। पातसाह तुम दिल्लीके, हम सब सेवक आहि । गहर छाड़ि बैठहु तखत, जो पतिसाही चाहि ।।१६६।। भये दिलीमै छत्रपति, बड़े तिहारे सात । तुम तिनके पतिसाह हौ, नांहि नई कछु वात ॥१६७।। क्यामखानुं तब युं कह्यो, सुनिहु बात परधान । मोहि न दिल्ली चाहीये, रचनहारकी पान ।।१९८॥ जिन जानउं मो जीउमै, दिल्ली लैनको हेत। द्वै दिनकै सुख कारनै, को संतत दुख लेत ॥१९६।। जो पाछै पतिसाह द्वै, क्रोध धरै मन मांहि । संतत पहले छत्रपति, जीवत छाड़त नांहि ॥२०॥ परधाननि तव यों कह्यौ, सुनि चकवे चहुवांन । जो तुम दिल्ली लेत ना, देह मल्लू खांन ।।२०१।। अनंत भतारहि भख गई, नैकु न आई लाज । येक मरै दूजे धरै, यह दिल्लीको काज ॥२०२।। जात गोत पूछत नहिं, जोई पकरत पांन । ताहीसौं हिलमिलि चलै, पै भखि जाइ निदान ॥२०३।। ये बतियां कहि उठि गये, मल्लू पास परधांन । पकरि बांहि पतिसाहिक, तखत बिठायो अांन ॥२०४।। बात सुनी यहु क्यामखां, तब ही दै नीसांन । अपनै घरको उठि चल्यौ, चक्रवती चहुवांन ।।२०।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ [कवि जान कृत जबहि क्यामखां चलि गये, मल्लू सुनी यह बात । हय गय दल बल साजिकै, मारन चल्यो रिसात ॥२०६॥ कोस वीसकै बीचसौ, आगै पाछै जांहि । मल्लू दबाइ न सकत है, वै जानत है नांहि ॥२०७।। जबहिं सुन्यौ यो क्यामखां, मल्लू चढ्यौ दल साज। फिरि अहुटौ सन्मुख चल्यौ, ज्यों तीतर पर बाज ॥२०८।। उत मल्लू इत क्यामखां, भये सनमुख आइ । करी घटा घंटा छटा, दुंदुभ गर्ज सुनाइ ॥२०॥ क्यामखां मल्लूखांसुं युद्ध करत है ॥ छंद अर्ध भुजंगी॥ चढ्यौ चाहुवानं, मच्यो घमसानं । छूट नाल गोली, बहै करा चोली ॥२१०॥ चपल बानं, चटकै कमानं । बहै सेल सागं, सु निकसै द्रुवागं ॥२११।। लगे सीस ससपर, परै धर मरै नर । बरै बरंमं भारी, सुजंम धर कटारी ।।२१२॥ हुई मार भार, सु जुझ जुझारं । लरै सुभट मनसौं, मिट्यौ हेत तनसौं ॥२१३॥ सु जोधा बिरच्चे, गये' ह किरच्चे। कहूं सिर कहूं धर, कहूं पग कहूं कर ॥२१४।। लरे बहुत · हस्ती, मरे सहित मस्ती। परे बहु तुरंगं, भयो अधिक जंगं ॥२१॥ परी धाम धूम, भई अरुन भूमं । सुभट घाव धूम, मनौ गैंद घूमं ॥२१६॥ मच्यो जुद्ध भारी, मलू सैन खारी। जित्यो क्यामखानं, सु जानत जहानं ॥२१७।। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] १६ मलूखां परायो, सबै कछु लुटायो। दिली माहि आयो, लै प्रापहि छपायो॥२१८।। ॥ दोहा । फिरै भजोरा भाजतो, · ता पाछै ना जाउं । सत छाडै तिह नाह तौ, मोहि क्यामखा नांउं ॥२१९।। हाथी घोरे दर्व बहु, लूट लयो चहुवांन । पैठ्यो आइ हिसारमै, वजत जैत नीसांन ॥२२०॥ क्यामखानुं बहु बल गह्यो, करै जु इंछ्या प्रांन । मल्लूकौं फिरि लरनको, नांहि रह्यौ अरमांन ।।२२१।। देस देसकी पेसकस, क्यामखानुको आइ । भले पजाये भोमिया, सगरे सेव हि पाइ ॥२२२॥ । सवइया । क्यामखानु चहुवानुं खानुं सुलतानु साधे, राव रानं आन सब भोमिया पजाया है। कमधज कछवाहे वैरिया हुमइ भटी, तूंवर....."गोरी जाटू पाइ लाये है। तावनीस रोवे नारू खोखर चंदेल काल , झाव साहुसेन अकलीमसा भजाये है। साह महमद ममरेजखां इदरीस, मोजदी मूगल खेतते खिसाये हैं ॥२२३।। ......... 'बैठे ही हिसार नीके साथे चक चार है। दूनपुर रिनी भटनेर भादरा गरानी, कोठी बजवारी और डरत पहार है। कालपी येटावो और बीचिकै मेवासी सब, चमकत रहत उजीन और धार है। पूरव पछिम और उतर दछिन साधी , दिल्लीमे मलूके नही खुलत किवाड़ है। क्यामखा चहुवान मोटे रावसुत तप, ....... ॥२२४॥ . . . . . . . . । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ५ [कवि जॉन कृत ॥ दोहा ।। क्यामखाँन घर आपन, मल्लू दिल्ली मांहि । बहुत रोस मन दुहुँनकै, कबहूं भेटत नांहि ॥२२५।। काबिलमें तब रहत है, पातसाह तैमूर । सप्त दीपमें परगट्यो, कहत जांन ज्यों सूर ॥२२६॥ . उत्तर दिछन पूरब पछिम, अगनेई ईसान । नैरित बाइब तिमरकी, अस्ट दिसामै प्रान ॥२२७।। चगता आये जगतमै, कीनौ कर्म इलाह। तबके पतिसाही करे, हैं जाती पतिसाह ॥२२८। रूम साम औराक ली, खुरासान इक धाप । भयो तिमर मन हिंदकौ, इत चलि आये आप ॥२२॥ मलू सुन्यो आयो तिमर, चल्यो लरन दल साज । मुगलनिको देखत डर्यो, छाड़ी रज सत लाज ॥२३०।। तिमर भयो दल धूरिको, आयो तिमर रिसाइ । मलू जहां डिढु करतु है, तिहां तिमर डिढु आइ ॥२३१॥ नांव तिमर तप तिमरहर, लरन सकत है कोइ । लरै सिकंदर जुलिकरन, जो अव जगमै होइ ॥२३२॥ मलूवा वपरौ कौन है, जो सनमुख ठहराइ । जोति गई मिटि तिमर ते, भाज दुर्यो बन जाइ ॥२३३॥ अर्कतूल मला भयो, तिमरल्यंग दल बाइ । पल न सक्यो ठहराइक, डार्यो केहूं उड़ाई ॥२३४॥ जैत भई तब तिमरकी, लूट्यो ढीली माल । आइ बिराज्यो तखतपर, चगता मरद मुछाल ।।२३।। मलुआ पाछे दल दये, आपुन ढीली मांहि । ढिली मंडलमै नैकु हौ, रहन दयो वहु नांहि ।।२३६।। तिमरलंगकै जीवमै, उपजी काबुल चाहि । खिदरखांनूंकौ सौपक, दिली चले पतिसाहि ॥२३७॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] खिदरखां दिल्ली रहत, मरद मुंछार पठान । मानस सहस पचास ढिडु, सवही येक समान || २३८ || तिमरलंग जब उठि गये, मलू सुनी यहु बात । खिदरखांनुकौ नां बदै, फूल्यौ अंग न मात ||२३|| तब दल बल बहु साजिकै, दिल्ली घेरी आइ । खिदरखांनु ठटु कटक करि, लर्यो सनमुख जाइ ॥ २४० ॥ जूझि गये सूरा सुभट, भार पर्यो जब आइ । मलू भाजि नाहिन सक्यो, मरचो परचो भुमि जाइ ।। २४१ || जीते हैं दल तिमरके, मार्यो मल्लूखांन । खिदरखांनु फूल्यो फिरे, करिहै गर्ब गुमान ॥ २४२ ॥ जवहि मलूकी वोरते, भयो नचित पठांन । बस कीने सब भोमिया, बदत न काहू न || २४३ || सुलताननिकौ नां बदै, क्यामखांनु चहुवांन । बात सुनी जहु खिदरखां, बाढी अधिक रिसान || २४४ || खिदरखांन फुरमांन दिय, मोजदीन मार बांधिकै काढिदै, क्यामखांनु अगवांन । चहुवांन ॥ २४५ ॥ क्यामखां मोजदी जुध करत है || दोहा || रुहतक झज्झर जनम भुमि, मोजदीन गवांन । फौजदार लाहोरकौ, है दल वल अनग्यांन ॥ २४६ ॥ उन कहि पठयो क्यामखां, छाडहु कोट हिसार । जो तुम गहर लगाइ हौ, हमहि न लागे वार ॥ २४७ ॥ पातसाहको नां बदहि, सेवा करन न जाहि । बिनही दीनी बावनी, कहियो किहिं बल खाहि ॥ २४८ || तबहि क्यामखां यों लिख्यो, सुनि ग्रगवान गिवार । को काहूकौ देतु है, दैनहार करतार ॥ २४९॥ २१ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ [ कवि जांन कृत दिली दई जिन खिदरखां, तिन मो दयो हिसार। सौ कौन जु लइ सकै, जो दीनी करतार ॥ २५० ॥ जो चढ़ि आवै खिदरखां, तौ ना तजौं हिसार । जौ हिसार अव छाँड हौं, हांसी हुवै सैसार ॥२५१॥ कुतब हमारी मदत है निहच जियमें जान । जो अपनी चाहे भलो, जिन श्रावहि अगवान ॥ २५२ ॥ रोस भयो चिठी पढ़त, दयो तबही नीसांन । महा प्रबल दल साजकै, चढ़ि जु चल्यो अगवांन ॥ २५३ ॥ सुनत बात यहु क्यामखाँ, करयो लरनको साज । जुझ बिना सूझत नहीं, जिहं भाजनकी लाज ।। २५४ ॥ आवत आवत मोजदी, नेरेँ उतरचौ आइ । चिठी लिखकै बहुरि इक, मानस काहे लरिकै सुलताननिकै कटकसौं, भाजत कैसी मेरे कटक अनंत है, मारि डारिहौं याते फिरिफिरि कहतु हौं, दया आइ है क्यामखानु तब यों लिख्यो, सुनि अगवान गिवार । तेरी डिठि है कटकपर, मेरि डिठि करतार ॥ २५८ ॥ चिता नैकु न कीजिये, जो रिप होंहि अनेक | मारन ज्यावंनहार है, सुतौ जांन कहि ढीठ बसीठन फेर तू, अबहि मिलावहु डीठ | ह्वै है जाके ईठ बिधु, ताकी रहै पटीठ ॥ २६० ॥ मोजदीन उतते चढ्यो, इतते काइमखांन । चाहुवांन अगवान मिलि, भलौ कर्णौ घमसान || २६१॥ जैसी सावनकी घटा, मिली सैन द्वै आइ । अंधकार ही ह्वै गयो, धूरि रही जगु छाइ ॥ २६२ ॥ क्यामखाँ, मरिहै वेही काज । तोहि । । मोहि ॥ २५७॥ येक ॥ २५६ ॥ दयो पठाइ ।। २५५।। लाज ॥ २५६ ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] ॥ नाराइच छंद ॥ ही । ही । पाव ही । चावही || २६३ || सार मार चढ़े मूछार सूरवां, बजंत सार लरंत जोध जोधसों, ररंत मार भई सुरंग भोम है, कटंत हाथ सुभट्ट सीस टूटिहै, मिटै न चित्त कटें परै उठे लरै मरे बिना बदै न घाव चोटकौ, छतीस प्रवधै नहीं रहे । सहै । जबै कटंत है । है ॥ २६४ ॥ परैं हथ्यार हाथतै, भुजा तबै सुभट्ट सूरिवां, करै परे करी तुखार है, लरे गने गने न जात है, अपार ते अपार है खरे महेस जुग्गनि, अनंद चैनमे हस । गिरिज्भ ग्रसमानते, सु देखि देखिकं धंसे ॥ २६५ ॥ हथ्यार देत मरे जुझार है । 1 ॥ दोहा ॥ जबहि कटक दहुं औरके, मरे परे घमसांन । तब दलमेंते निकसिकै, चलि आयो अगवांन ॥ २६६ ॥ क्यांम क्यांमखां ही करत, अरु डारत केकांन । इतते निकस्यो क्यामखां, चक्रवती चहुवांन ॥ २६७॥ बरछी बाही मौजदी, हन्यो क्यामखां बांन । ये राखे करतार नै पर्यो भोंम अगवांन ॥ २६८ || काइमखा चहुवांननै लये मौजदी मारि । दुलहु बिन न जनेत ह्वै, भाज चले दल हारि ।। २६ ।। सब दल लूट्यो क्यामखां, जीते करी तुखार | दले दमामे जैतके, उपज्यौ चैन अपार ॥२७०॥ सुनी बात यहु खिदरखां, काटि काटि कर खाइ । मेरे दल बल जिन हनें तास लरिही जाइ ॥ २७१ || रैन दिना चिता करै, किहि बिधि लरियें जाइ । क्यामखानुकी धाकतै, चलत बहुत अरसाइ || २७२॥ २३ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ [कवि जान कृत जबहि सुन्यो यो क्यामखां, बहुत पठान रिसाइ । तब मन मांहि बिचारिक, कीनौ यह उपाइ ॥२७३।। हुतौ बिलाइत खिजरखां, लकब वोझरीवाल । तासौं कछु पहिचान ही, यहु टेरयो ततकाल ॥२७४।। यो लिखि पठयो क्यामखां, तूं उठि बैगौ आव । मैं तोको दीनी दिली, जो लेबैको चाव ॥२७५।। खिजरखानुं पाती पढ़त, सिर ऊपर धरि लीन । उतते दल करि चढ़ि चल्यो, गहर कछु नां कीन ॥२७६।। लिख पठयों यों खिजरखां, खां जू गहर निवार । चढ़ि आवौ ज्यों मिलि चलें, दिली लैंनके प्यार ॥२७७॥ पाती बाचत क्यामखां, चढ्यो बजे नीसांन । खिजरखांन सेती मिले, आनंदनि मुलतांन ॥२७८।। खिजरखान पाइन पर्यो, अंक भर्यो चहुवांन । यहै कह्यो तब कौन दे, तुम बिन दिल्ली आन ॥२७९।। क्यामखानु असे कह्यो, दिली दई करतार । हो तेरौ संगी भयो, तू अब गहर निवार ॥२८०॥ तबही चढ़े मुलतान ते, मतौ कर्यो मन मांहि । राठोरनिको साधिकै, तब दिल्लीपर जाहिं ।।२८१॥ सबही मेवासै मलत, आइ लगे नागौर । तामै चौंडा बसत हौ, राइनकौं सिरमोर ॥२८२॥ आइ दबायो कोटमै, असी कीनी दौरि । चौंडा चढ़ि नाहिन सक्यो, मूवी निकसिकै पौरि ॥२८३।। चौडा लीनो मारिक, भाज चल्यो सब संग । वहुत खदेरे ना लरे, सके कटाइ न अंग ॥२८४॥ कमधज कर बरछी लये, भज्जै इहं उनिहारं। सांग सिंगसे देखिये, मनहुं चले म्रिग डार ॥२८५।। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] क्यामखां खिदरखां पठाणसू जुध करत ॥ दोहा ।। अप वसि करि नागोरको, चलो दिल्लीकी वोर । खिजरखांनु पुनि क्यामखां, दल बल साजे जोर ।।२८६।। यह कहनावत कहत है, तवते सकल जहांनु । दील्ली थोरे कागुरे, वहु दल लायो खानु ।।२८७।। सुनी बात यहु खिदरखां, आयो काइमखांनु । खिजरखांनुकौ संग लै, देत बहुत नीसांन ।।२८८।। चढ्यौ खिदरखां दिल्लीते, दल वल साजि अपार । इत उतके कवि जान कहि, जूज्झन लगे जुझार ॥२८६।। ॥ नाराइच छन्द ॥ चढ़े जुझार मारके, बदै न घाव सारके । लरे कट हटै नही, मरै परै जही तही ।।२६०।। करी करी लरे मरे , तुरी तुरी किते परे । सुभट्ट ठट्ट खेतमें, सु घूमि है अचेतमैं ॥२६१।। मुवो सर्ब साथ ही, रह्यो न प्रान हाथ ही । चल्यो पठान भज्जिकै, दयो न जीव लज्जिकै ॥२६२।। ॥ दोहा ॥ जीते काइमखांनजू, भाज्यो खिदर पठांन । खिज रखांनुकी वाहि गहि, तखत बिठायो आन ॥२९३।। सबही बात समत्थ है, क्यामखानु चहुवान । जाकै सिरपर कर धरै, सो दिली सुलतॉन ॥२६४॥ खिजरखान पतिसाह हुव, करै दिलीमै राज । चिता कछु नाहिन रही, पूरै सव मन काज ।।२६५।। खिजरखांनुको रैन दिन, सुखही मांहि विहात । क्यामखानु अरु पाप विच, तीसर नाहिं समात ॥२१६॥ पाछै मूरिख खिजरखां, यह समुझि जिय मांहि । क्यामखानुं बलवंतु है, पतियारौ कछु नांहि ।।२६७।। चाहं ताकी काढि है, राखै जानै जाहि । महावली उमराव है, रहन न देही याहि ।।२६८।। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत राजा अरु परधान पुनि, जबहिं हौहि सम दोइ। पहलै हनै सु हनत है, पाछै कछु न होइ ॥२६६।। यह मनमै समझी नही, दिली दई करि प्यार । कोउ विरवा लाइक, डारत नांहि उखार ॥३००।। येक द्योंस तो क्यामखां, ठाढ़े हुते सुभाइ । खिजरखांनु दीनौं धका, परो नदीमें जाइ ॥३०१।। निकसि गयो ज्यों परत ही, खरो रह्यौ इक पांन । संतत कर रहि है खरी, इक खांडै अरु दांन ॥३०२।। मतौ कर्यो हौ खिजरखां, सो जानत हौ खांन । मैं पतिसाहनिसौं लरे, होत धर्मकी हानि ॥३०३।। जीयो बरस पचांनुवै, क्यामखानुं चहुवांन । बड़े २ साके करै, गनत न आवै ग्यांन ॥३०४।। साके क्यामलखांनके, सागर अपरंपार । जो मोको आवत हुते, ते मैं करे बिचार ॥३०॥ क्यामखांनकी बातकौ, कर्यो नही बिस्तार । भाखै है मै सुलप अति, अपनी मति अनुसार ॥३०६।। हतौ हजीरौ दिल्लीमैं, कीनौ काइमखानुं । लै उत राख्यो छत्रपति, देके आदर मांनु ॥३०७।। श्री दीवान ताजखांके पुत्र । १ फतिहखां, २ रुका, ३ फखरदी, ४ मोजन, ५ इकलीमखां, ६ पहाड़ा। फतिहखांन मोजन रुका, फखरद्दी इकलीम । और पहारा है छठौ, ताजंन सुत बलभीम ॥३०८।। ताजखांको बखान पांच पुत्र है क्यामखां, सुनि पिताकी बात। विषधर कैसे जान कहि, निस बासुर बल खात ॥३०६।। ताजखानु महमदखां, कुतवखांन इखतार । मौनुखांनु पाचौ सुभट, अरिदल भजनहार ॥३१०॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] खिजरखांन पै ना गये, रह्यो वुलाइ बुलाइ । वैठे रहे हिसारमै, कर्यो जूहार न जाइ ॥३१॥ जवहि भयो बस कालके, खिजरखांनु पतिसाह । तबहिं मुबारक साहको, दीनौ राज इलाह ।।३१२।। खिजरखांक बंसमै, नाहिन सुनिये कोइ । किर्तघनीको जानिये, कवहु भलौ न होइ ॥३१३।। मुवो मुवारक तव भयो, जगमहमद फरीद । पतिसाही करि मरि गयो, जवही काल रसीद ॥३१४।। ताकी नंद अलावदी, दीनौ राज इलाह । भयो अमानतखाँ बहुरि, पूत मुवारक शाह ।।३१५।। ता पाछै बहलोल हुव, दिली महि सुलतान । लोदी अपनी भुजन वलु, साध्यौ हिदस्तान ॥३१६।। ढोसी ऊपर अखन है, दिली साहि बहलोल । वदै न नंदन क्यामखां, परे दहुनमै बोल ॥३१७।। पातिसाहि पैराकके, तुरग मंगाये याहि । इत निकसे तब अखन नं, नौ चुनि लीने चाहि ॥३१८॥ बात सुनी वहलोलन, कहि पठयो रिस मांहि । मेरौ मारग देखीयौ, जौ असु पठयो नांहि ।।३१६।। अखन लिख्यो वहलोलसों, मेरै घोरे लाख । पै मै तेरे लये है सो, जुद्धकी अभिलाप ॥३२०॥ मोको इतही पाइये, जब जानहि तव आव। ढोसी चले न हो चलौ, गिरको गह्यो सुभाव ।।३२१।। पातसाह अति पर्जर्यो, सुनि अक्खनके बोल । पै कछु बल नाहिन चल्यो, बैठि रह्यो बहलोल ।।३२२।। वावंन वर अक्खन करी, पात पात मेवात । मेवाती भाजत फिरै, ज्यों रवि आगै रात ॥३२३।। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कवि जान कृत जौलौं जीयो जगतमैं, बध्यो नहीं पतिसाहि। वहै करयो इखतारखां, जोई जियकी चाहि ॥३२४॥ जित गिरवर तितही करी, अखन कोटकी मांड । रहत भोमिया निकट जे, सबे देत ते डांड ॥३२॥ प्रांबरे बीतें बरष, देत दुवादस लाख । आठ अमरसरके भरत, कबितु देतु हैं साख ॥३२६।। है चौथो सुत कुतुबखां, बस्यो बारुवै जाइ। कोऊ बरनां कर सकै, परे भोमिया पाइ ॥३२७।। बस्यो बगरमैं मौनखां, गयो नगरसौ होइ । आस पासके सब नये, बलु कर सके न कोइ ॥३२८।। मौनां क्यामलखांन सुत, कूरमरिप चहुवांन । जाकै दलकी दहलते, कूतल पर्यो भगांन ॥३२६।। ताजखानु सबमैं तिलक, दूजो महमदखांन । दोउ अति नीके भये, सूरबीर चहुवांन ॥३३०॥ ताजखाँन महमदखा, दोउ रहे हिसार । ठौर पिता राखी भलै, हौ दहुवनमैं प्यार ।।३३१॥ दिल्लीपतिसौ ना मिलैं, रिस राखै सिरमौर । ताक्यो खां पेरोजखां, तबहि गये नागौर ॥३३२॥ नागोरीखां उठि मिल्यो, बहुतै प्रादुर दीन । हो ना बदौ दिलेसकै, भये येकतै तीन ॥३३३॥ हांते कबहू होत नां, रहै रैन दिन संग । रानै ऊपर चढ़नकै, करि है मते उमंग ।।३३४।। दल बल करि खां चढ़ि चल्यो, आगै मोकल रांन । कटकनिके ठटु ठानिक, आयो दे नीसांन ॥३३५।। दल बल जोताई मिले, दह वोरिके आइ । उत मोकल पेरोज इत, जुरे जुद्धके चाइ ॥३३६।। . Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] २8 कमधज कूरम भोमिया, बहु पिरोजकै संग । रांनैहूकै बहुत दल, लरत न राखै अंग ॥३३७।। नागोरी बाटी अंनी, फूल्यो करत कलोल । गोल हिरोल चंदोल पुनि, जरं गोल बरं गोल ॥३३८॥ ताजखानु महमदखां, खरे तमाचै दोइ । देखौं तुम केसी करौ, जैसी तुमते होइ ।।३३९।। ताजखां महमदखां आगै रांना भाग्यो ॥दोहा॥ चढे कटक दहु अोरते, मिले बजत निसांन । घमडंत है मानो घटा, गर्जत है मरवांन ।।३४०।। पहलै तौ गोली चली, और छुटी हथनाल । जिनकी लागी ते परे, ज्यो निकले ततकाल ॥३४१।। बॉन चले दहुवोरके, बहुत रहे गड़ि देह। घाइल औसै लागि हैं, है मांनी येसेह ।।३४२।। घोरे बाहे खांनपर, रानै अधिक रिसाइ । धका सहार न सक्यो, छ टि गये तब पाइ ॥३४३।। भाजि चल्यो पेरोजखॉ, ताकी है नागौर । पाछै आवै लूटतौं, मोकलसी सिरमौर ॥३४४।। चार कोस लौ गैल करि, लैने जो नीसाँन । रान चल्यौ चीतोरकौ, चितुमै करत गुमॉन ॥३४५।। ताजखानुं महमदखां, ठाढ़े वाही खोज । रहे तमाचै ही खरे, भाजि गयो पेरोज ॥३४६।। नागौरीकौं भाजतै, नैक न लागी बार । झांकत ही भइया रहे, कहा करै करतार ॥३४७।। सोच रहे दोउ खरे, रानौ निकस्यो आइ । ज्यौ चीतौ नगको तक, परे रोसमे धाइ ।।३४८।। लरि बिचर्यो सीसौदियो, जब हि पर्यो घमसांन । दे अपने पेरोजके, नेजे पुनि नीसांन ॥३४६।। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत पाछे गये पहार लौ, बहुत बढ़ी कर लूट । जुगल बाजकै हाथते, गयो चिरीसौं छुट ॥३५०॥ उत ते ये दोऊ फिरै, जैत दमांमे देत । रानांकी रज लूट ली, गज हय दर्ब समेत ॥३५१।। अब आये नागौरमें, नेजो पुनि नीसांन । लुटवाये पेरोजखां, ते पठये चहुवांन ॥३५२॥ बहुत चप्यो पेरोजखां, मुख ना सकै दिखाइ। बात चले जब जुद्धकी, सुनि सुनि अधिक लजाइ ॥३५३।। और इतपर जस जुरे, ताजन महमदखांन । काक भये पेरोजके, पढ़िहै सकल जहांन ॥३५४॥ स्वांम भगे सेवक लरे, ते रजवंत विचार । जर उखरे तरु ठाहरै, तैसौ यहु अधकार ॥३५५।। चोरी डिठ पेरोजखां, जव ये दोउ जाहिं । अयौ ग्वैयोही रहैं, हंसि बोलत है नांहि ॥३५६॥ जो आपुन कापुरस ह्व, सुभट न भावै ताहि । जैसौ कोऊ आप है, करै सु तैसे चाहि ॥३५७।। चोरी डिठ पेरोजखां, रोस भरे चहुवांन । अनरसमै ही ऊठि चले, ताजन महमदखांन ॥३५८।। बंबु दमामेकी सुनी, रिस उपजी चित खांन । अपनै दलसौं यों कह्यौ, इनको देहु न जान ।।३५९।। नागोरी पेरोजखां, दल बल साजि अपार । आइ दबाये लरनकौं, फिरे जुगल जूझार ॥३६०।। जुद्ध मच्यौ नारद नच्यो, भाज बच्यो नहि सूर । चितसौं जूझे जोध तिन, हितसौ ले गई हूर ॥३६१॥ परे खेतमैं ताजखां, जबहि होइ घनघाइ । निकसे महमदखांनु तब, नाहि सके ठहराइ॥३६२॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] ठौर ॥ ३६४ ॥ उठाइ | पठाइ ।। ३६५ ।। नागौर । कबहू नागौरीखां जीतिकै, बहुरि गयो रहे खेतही मैं परे, ताजखानु घाइल फिरहिं उठावते, उत आये परे हुते बेसुध भये, ताजखांनु देखत ही रनधीर तव, लैके जबहिं घाव नीके भये, दये हिसार बड़ो कर्यो करतारने, ताजखानुं चहुवान । इक जूझे पुनि ऊबरे, प्रगट्यौ सुजस जहांन ॥ ३६६॥ महा सुभट ताजन भयो, लयो सुजस सैसार । भले पजाये भोमिया, करबर ग्ररु करवार || ३६७॥ ताजनकी तरवारको डर उपज्यो भै माने पेरोजखां, खुलत न हने खेतरी खरकरी, बौहानों करि पाटन रेवासौ मिले, कछवाहे निरबांन पुनि, इनपे लीनी पेसकस, जानत सब संसार ।। ५७० ।। ।। सर्वैया ।। क्यामखानुनंदन अरिकंदन ताजंन डर डरपन नागौर । हने खेतरी और खरकरौ बौहांनी पाटन इक दौर । रेवासौ दलमल्यो ते गबर गढ़ नांवेर खुलत ना पौर । तूंवर पवार देवरे कूरम सांचे चहुवांन सिरमौर || ३७१ || ॥ दोहा ॥ जबहि भये वस कालके, ताजखानु चहुवांन । राखे तबहि हिसारमै क्यामखांन प्रस्थान || ३७२ || महमदखांन जब मरि गये, राख्यो हांसी मांहि । भाई और हिसारमै ताजखानु जब चलि गये, बैठौ कोट हिसारमै बस कीनी तूंवर और पंवार । 3 कोऊ राख्यो नांहि ॥ ३७३ ॥ फतिहखानुं सिरमौर । भलै पिताकी ठौर ।। ३७४ || . नागौर । सिरमौर || ३६३ || राठौर । जा गये पौर ।। ३६८ ।। बैर । आंबेर || ३६६ || ३१ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत श्रीफतिहखांके पुत्र १ जलालखां, २ हैबतसाह, ३ महमसाह, ४असदखां, ५दरियासाह, ६ साहमनसूर, ७ सेख सलह, ८ बलों, ६ संग्रामसूर, १० हेतम । खां जलाल हेतम बलो, सलह साह मनसूर । दरिया हैबत असद महमद, जुद्ध सूर संपूर ॥३७५॥ अथ फतिहखांको बखान फतन भयो अतहीं प्रबल, नम्यो न काहू सीस । काहूको मानत नहीं, येक बिनां जगदीस ॥३७६॥ नीव दई षटकोटकी, येक द्योस कहि जांन । नगर फतिहपुर आपनौं, कर्यो फतन असथांन ॥३७७॥ नयो बसायो फतिहपुर, हौ सरवर उद्यान । नांव आपनै फतेहखां, कर्यो- बड़ो असथांन ।।३७८॥ पंदरहसै जु अठौतरै, बस्यो फतहपुर बास । सुद पांचै तिथ ही तबहिं, और चैतको मास ॥३७६।। संन सत्तावन पाठस, जगमै कर्यो प्रकास । माह सफर दिन बीसवै, बस्यो फतहपुर बास ॥३८०॥ कोट चिन्यो नीकै नखित, सुथिर कर्यो करतार । आस पासके भोमियां, आवहि करन जुहार ।।३८१॥ पल्हू सहेवा भादरा, पुनि भारंग अस्थांन । और बाइलै कोट ये, कीये फतन चहुवांन ॥३८२॥ पातसाहकी चोखसौ, रहि ना सके हिसार । कर्यो फतिहपुर फतिहखां, इतहि आइ तिह बार ॥३८३।। प्रथम रनाउमै रहे, जो लौं चिनियो कोट । पाछै ये फतिहपुर, लये साथ दल कोट ॥३८४॥ पातसाह वहलोल चित, उपजी रिनथंभ चाहि । मिल्यो न मोसौ आइक, हंदू कोधौं आहि ॥३८॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ढल वल सजि लोदी चल्यो, रिनथंभौरको लैंन । धूर बिनां डिठ नां परै, येक भये दिन रैन ॥३८६।। सुनी फतिहखां बात यहु, दल बल साजि अपार । मारगमै वहलोलको, कीनो जाइ जुहार ॥३८७।। लोदी देखत फतनको, बहुत बड़ाई दीन । क्यांमखांनकै नांवते, अंक वारनि भर लीन ॥३८॥ नाव सुनत ही यों कह्यो, तब लोदी पतिसाह । फतिहखानकै मिलत ही, दीनी फतह अलाह ।।३८६।। परधाननिसौ यों कह्यो, बार बार सुलतांन । कंचनको मानस तक्यौ, फतिहखानु चहुवांन ॥३०॥ रिनथंभोरहू मैं सुन्यों, आवत है बहलोल । तब मांडौको छत्रपति, उनहू लीनौ बोल ॥३९१।। ताको नांव हिसामदी, मांडौको. सुलतांन । रिनथंभोरकी भीरको, आयौ दै नीसांन ॥३६२।। जव इतते लोदी गयौ, दल बल लये अपार । गढई भयौ हिसामदी, नाहि सक्यौ करि रार ॥३६३।। फतननै हिसामदी मांडौको पातलाह मारयो येक द्यौस बहलोलन, फत्तन लयौ बुलाइ । प्यार कियौ आदर दियौ, बात कही बिरदाइ ।।३६४॥ दादै तेरै क्यामखां, कैसे कीने काम । फतिह करौ रिनथंभको, फतिह तिहारै नाम ॥३६५।। फतिहखानुं ह्रकै बिदा, चले लगे गढ़ जाइ । आगै साह हिसामदी, लर्यो सनमुख आइ ॥३९६॥ खोलि पौरि हिसामदी, देख्यौ थोरी संग । आपुन बहु दलवल लह्ये, आये लरन उमंग ॥३६७।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ [कवि जान कृत ॥ अर्धभुजंगी छंद ॥ इतहि चहुवानं, उतहि सुल्लतानं । चले नाल बानं, . पर्यो घमसानं ॥३६८।। बहै सांग भारी, गडै तन कटारी, लगै चोट कारी, मरै बहु जुझारी ॥३६६॥ परे राव रानं, पर्यो सुल्लितानं । जित्यौ फतिहखान, भयो जस जहानं ।।४००।। ॥दोहा॥ दुहूं वोर सूरा कटे, बहुत परयो घमसांन । बादै हन्यौ हिसामदी, जैत भई दीवांन ॥४०१॥ काट्यो सीस हिसामदी,पठयो ढिग पतिसाह । हर्षवंत छत्रपति भयो, देख्यौ नीकै चाहि ॥४०२॥ । फतिह करयो रिनथंभ तन, पैठौ गढ़मै जाइ । पातसाह बहलोलने, पाछे देख्यौ आइ ॥४०३॥ गढ़ लै दिल्लीकौं चल्यो, लोदी साह पठान । फतिहखानु चहुवानकौ, दीनौ मनसब मान ॥४०४ जैत पत्र लै फतिहखां, आयौ अपने देस । थर हर कंपै भौमिया, जबते कर्यो प्रवेस ॥४०५।। नारनोलते अखनकी, आई यहै पुकार । मेवाती सबही मिले, माड्यौ चाहै रार ॥४०६।। कै तुम . आवहु आपही, के दल देहु पठाइ । भय्यनको यहु काम है, संकट होंहि सहाइ ।।४०७॥ नारनोलको फतिहखां, दलबल दये पठाइ । अंखिन खिल्यो अति देखक, फुल्यो अंग न माइ ॥४०८।। मेवाती उतते चले, लागे ढोसी आइ । इतते चढ़ि इखतारखा, सनमुख लीने आइ ॥४०६।। मार परी दहुं वोरते, जूझि गये जूझार । मेवाती दल निवल है, हारि चले तजि रार ॥४१०॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] AS बादा पहुंच्यौ चिमनको, दुंदुभ लयो छिड़ाइ । जैत भई सब जग सुनी, .अंखन न अंग समाइ ॥४११ फतिहखानुं दल फतिह कर, आये लै नीसांन । सदा फतिहपुरमे बजै, रससौं सुजस जहांन ।।४१२।। फतिहखानुंके दल प्रवल, भये येकते येक । कौन कौनकौ जांवल्यौ, सौहे सुभट अनेक ॥४१३।। कांधिल रिनमलराइको, दयो खेत विचराइ । सीस कटे वहु गुन लर्यो, बहु गुन दये दिखाइ ॥४१४।। सारौ सांगै रानकौ, अजा सांखलौ नांव । फतिहखांनकै कटकनै, मारि गिरायो ठांव ॥४१५।। तिहं समये चीतौरहौ, आपुन फतंन मुछार । स्वामि बिना सेवक लरे, सुजस भयो सँसार ॥४१६।। जेते हैं दल फतनके, राठोरनसौं रार। जो आपन है सापुरस, तिहं सेवक जूझार ॥४१७।। तैसी ही बुधि उपजत, बैठत तैसे पास । जांन कहै यामै नहीं, अंत आदिकी रास ॥४१८॥ फतननै मुसकीखां किररांनी मारयो किररांनी हो जातको, मुसकीखां तिहिं नाम । आयो फत्तनसों लरन, खोवन अपनी मांम ।।४१९।। इतने फतिहखां चढ्यो, दलबल साजि अपार । सरसमै मिलि दुहुनन, सरस मचाई रार ।।४२०॥ त्रिभंगीछंद। उतहि पठान, इत चहुवानं, गज केकानंजोधजुरे । गोली बहु छुटै, करपग टुट्टै, मस्तक फुटै नांहि मुरे ।।४२१।। लगे तन बानं, निकसै प्रानं, जूझै ज्वानं थकि न रहै । बरछी अनियारी, तेग दुधारी, काट भारी सूर सह ॥४२२॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ [कवि जान कृत ॥दोहा॥ बहुत भयो जुध ना मिटै, तव बादै असू डरि। नारि काटि करवारसौ मुसकी दीनी डारि ।।४२३।। जैतपत्र लै फतिहखां, आये अपनी ठौर । बहुरि करी अांबेर पर, चाहुवांन दै दौर ॥४२४।। लूटि लई आंबेर सव, गये भोमियां भाजि । नीकी बिधिसौ लरि मुये, हौ जिनके मुह लाज ॥४२५।। आयो फतन फतिह कर, फूल्यो अंग न माइ । बहुरि भिवानी पर चल्यो, नीकी सैन वनाइ ॥४२६।। . जाइ भिवानी घेर ली, दल-बल अमित अपार । आगै जाटू जावले, भले लरे जूझार ॥४२७।। फतनने भिवानी मारी बंधकी करी धवल छंद।। उत जाटू चहुवान है, भयो जुद्ध पर्यो घमसांन है। . उडि धूरि गई असमांन है, कहूं दिष्ट न आवत भांन है ।।४२८।। चलै गोली बानं अपार ही, बहै जमधर अरु करवार ही। बरछी द्वै जा हिंदु सार ही, परे जाटू होइ सु मार ही ॥४२६॥ ॥दोहा॥ फतिह फतिहखां की भई, जाटू हारे अंत । लूटि भिवांनी बंधकी, आने पकर अनंत ॥४३०॥ नीके मारे जोध दल, फतिहखानुं चहुवांन । असौ कौन जु लरि सकै, कहौ भोमिया आंन ॥४३१।। जोधैक जियमे परि, करौ, फतनसौ सुक्ख । नातौ करिहौ ज्यौ मिटै, दुहू वोरको दुक्ख ॥४३२।। जोधै पठियो नारियर, फतन लीनौ नाहि । कांधिल बहु गुनहन्यौ हौ, रिस राखत मन मांहि ॥४३३।। महमदखां सुत समंसखां, तबहि जूझनू नांहि । उतहि नारियल लै गये, उनहू कीनी माहि ॥४३४॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामा रासा] बहुरि समसखां जो कह्यो, उत व्याहनको जाइ । जौ न रहौ करवार संग, डोला देहु पठाइ ॥४३५॥ यह वात वै करि गये, डोला दयो पठाइ । मीराजी जो कह्यौ हौ, मिल्यौ समै वहु आइ ॥४३६।। पातसाह बहलोलने, फत्तन लयो बुलाइ । निस दिन राखे निकट ही, छिन छिन प्यार जनाइ ।।४३७।। येक द्योंस बहलोलन, औसैं कह्यौ बिचार । हम तुम नातो चाहिए, बढे प्यारमें प्यार ॥४३८॥ अदल वदलको साक है, इछ्या पूजै प्रान । हम लोदी हैं जातके, जो तुम हो चहुवांन ॥४३९।। तवही कहयो जो फतननें, बदले साक न होइ । मेरे तो नाही सुता, अब अनव्याही कोइ ॥४४०॥ पातसाह मान्यौ बुरौ, फतन चढ्यौ रिसाइ । बहुरौ दिल्ली नां गयौ, बैठ्यौ अपने प्राइ ॥४४१॥ समसखांनुं चहुवानसौ, कहि पठयो पतिसाह । अदल वदल नातौ करै, जूहै जीवमें चाहि ॥४४२॥ सुनी बात यहु समसखां, बहुत बधाई कीन । उहि तनया अपसुत बरी, वहन आपनी दीन ॥४४३।। फत्तन जीयो जबहि लौ, नाहिंन बद्यो पठांन । सीस न नायो दिल्लीको, जानत सकल जहांन ॥४४४।। ॥सवैया ।। ताजंन अंस बिध्वंस धरा सबहि भूमिया भुज पानि पजाये। मारि लयो सुलतान हिसामदी, जाटू भिवानीके धूरि मिलाये। चिमनको हंन लीनौ नीसांन, भजाये है कांधिल जादौखिसाये। लूटि अांबेर लयो रिनथंभ, जहानमे फत्तनको जस छायो॥४४५।। श्री दीवान जलालखाँ के पुत्र १ दौलतखां, २ अहमद खा, ३ नूरखां, ४ फरीदखा, ५ निजामखां, Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ [ कवि जांन कृत ६ पहाड़खां, ७ लाडखां, ८ दाऊदखां, ९ अबन, १० महमदसाह | दौलतखां, अहमद अबंन, लाड फरीद निजाम । महमद नूर पहारखां, खां दाऊद समांम ॥ ४४६ ॥ जलाल खांको बखान जलाल । जबहिं भये बस कालके, फतिहखांनु सिरमौर । तब जसवंत जलालखां, भये पिताकी ठौर ||४४७ ॥ कोट करयो हो फतिहखां, तापर कीनौ और । कीनी खांन जलालने, बडड़ी बाँकी पौर ||४४८ || दिल्लीकै पतिसाहकौं, बदैनखांनु नागौरीको दुख दये, लूटि लूटि लै माल || ४४६ ॥ नागोरीखां रिस भयो, दल कीने अनग्यांन । बीरौ फेर्यो सभामें, लयो मुगल चौपांन ॥ ४५० ॥ कटरा थल जागीर ही, इत दल साजे आइ सुनियत बात जलालखां, बैठ्यो सेन वनाइ ।।। ४५१ ।। जलाल खां चौपानखां आगे जीत्यो " मुगल उतते आयो रोसमै, लरन चौप चौपान | इतते दोर्यो अतुलि बल, खां जलाल चहुवांन ॥ ४५२ || येक वार छाडे भले, ताते मुगलनि बांन । किते येक घाइल भये, मानस अरु केकांन ॥ ४५३ ॥ सके न बान चलाइकै, गये जांन तक्यो चौपानखां, मनहु बाज चिरिया गही, छाडि दयो चौपानखां, दयो नितंबनु दाग | हाथी घोड़े दर्ब रजु, लाज गयो सव त्याग ॥४५६ || जबहि जलौ सब संगसौं, लई येक वर बाग । मुगलवा भाग ॥ ४५४।। पुंहच्या खांनु जलाल । पकर लयो ततकाल ॥ ४५५ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ क्यामखां रासा] तव घर आयो जीतिक, देत जैत नीसांन । खां जलालकी सर करै, को है असौ अनि ।।४५७।। जलालखाने छापौरी आंबैर फतिह की ॥दोहा॥ छापौरी ऊपर चढ्यो, फिर चकवै चौहान । उतके अनगंन भोमिया, मारि कर्यो घमसांन ॥४५८।। बहुरि गये प्रांबर पर, मारि मिलाई धूर । पै भुमिया नीके लरे, मरे लाज संपूर ॥४५६।। हाथीखान जलाल को, भुमियनि घेर्यो नि । दलमै काहू ना लख्यो, तक्यो आप दीवांन ॥४६०।। लोग लगे है लूटकौ, काहूको सुधि नांहि । अपनी भुज बर खां जलो, आइ पर्यो उन मांहि ॥४६१।। करी लये वै जात है, पुंहचे जल्लोखांन । छाडि गये ज्यों लै भजे, असे लाये बांन ।।४६२।। तब घर आये जीतिक, खां जलाल चहुवांन । सूरत्तनको जगतमै, सब को करत बखांन ।।४६३।। समसखांनु जब मरि गयौ, फतिहखानु तिह ठौर । व्याह्यौ हो बहलोलकै, बदत न काहू और ॥४६४॥ भाई और बिमात है, तिनही न बांटौ देत । जो कछु उपज जूंझनू, सबै आपही लेत ॥४६५।। तब जोधापै चलि गयो, नांव मुबारकसाह । नांनां जू उपर करहु, ज्यों हम होइ निबाह ।।४६६।। तब जोधन यों कह्यो, मोते कछ न होइ । मामू तेरे निकट है, बीका बीदा दोइ ॥४६७।। तबहि मुबारकसाह उठि, आयो मामू पास । वैहू भीर न कर सके, तब उठि चल्यो निरास ।।४६८।। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कवि जान कृत . उतते आयो फतिहपुर, ताक्यो खांनु जलाल । बहुत प्यारसेती मिल्यौ, भर लीनो अंकमाल ।।४६९।। कहयो मुबारक साहनै, हौं आयो तुम ताक । जोधै बीकै हौ फिर्यो, गनै न कोऊ साक ॥४७०॥ सबै डरै बहलोलते, ऊपर करै न कोइ। काम हमारो जल्लोजू, तुमते है तो होइ ।।४७१।। जलो कह्यौ बहलोलते, डर्यो न मेरो बाप । अब जो हौ वाते डरौ, खोर लगाऊं आप ॥४७२॥ खां जलाल तब कटक करि, गये जूझनू मांहि। फतिहखांनुके दल भगे, जूझ सक्यो को नाहि ॥४७३॥ तबहि मुबारकसाहको, दयो जूझनू राज । फतिहखानु उत मरि गयो, पूजे सब मन काज ॥४७४।। फतिहखानु जब मरि गयो, सुत समस सिरमौर । महमदखां टीकौ कर्यो, गई मुबारक ठौर ।।४७५।। रह्यो लुहागर जाइक, खांनु जलाल जुधार। नागौरीकी देत दुख, पकरें वोट पहार ॥४७६।। सूनो फतिहपुर सुन्यो, चित बीदा ललचाइ । जानत काहू भांतिकै, गढ़मै पैठौ जाइ ॥४७७॥ बीदा दल बल जोरिक, नरहर उतर्यो जाइ । खानुं दिलावरसौं मिल्यो, बात कही समझाइ ।।४७८॥ नांहि फतिहपुरमैं कोउ, तुम चलि मोकी देहु । देउं रुपया दस सहस, अरु इक तनया लेहु ॥४७६॥ सुनियह बात पठांन कै, भाई है मन मांहि । देइ दमामो उठि चल्यो, गहर लगाई नांहि ॥४८०।। आवत आवत गोवरै, उतरे दोउ आइ । भलो महूरत ना लहै, पैठे गढ़मै जाइ ॥४८१॥ . Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ४१ मानस दोर्यो नगरकौं, गयो लुहागर मांहि । यह कहै दीवानजू, फिर गढ़ पावो नांहि ।।४८२।। वीदा आया कटक करि, खांनु दिलावर संग । असौ कौन जु करि सके, तुम बिन उनसौं जंग ॥४८३॥ जल्लोको वेटो बड़ौ, दौलतखां तिह नाम । बात सुनत ही चढ़ि चल्यो, अचवन नीर हरांम ॥४८४।। आइ रही थोरी निसा, तव गढ़ पैठ्यो आन । दौलतखां जल्लो नंदन, देत जैत नीसांन ।।४८५।। तब वीदा विड़रन लगे, लाग्यो डरुन पठांन । दहदह हल खलभल भई, आये दौलतखांन ॥४८६।। आप आपको भजि गये, कमधज और पठान । वास परे ज्यों वाधकी, भग्गे गऊ उद्यांन ॥४८७॥ पाछते आयौ उतहि, खां जलाल चहुवांन । जैत भई है पुत्रकी, बहु मुख उपज्यो प्रांन ।।४८८। ॥सवैया ।। खां जलाल, मरद मुंछाल, चौपानको घान मैदानमे कीनौ । छार करी है, छपोलिय जरिक, मरिहिक जु लुहागर लीनौ। गंज अंवेर, भये सब बरिय, टाक संमसखा कै रह्यो हीनौ। जूझनू पानि, विठायो भुजा गहि, टीको मुवारकसाहको दीनौ ।।४८९।। श्री दीवान दौलतखांके पुत्र १ नाहरखां, २ होंबनखां, ३ वाजीदखां । · ॥दोहा।। नाहरखां बाजीदखा, होवनखां जुझार । दौलतखां नदन नरिंद, तीनौ मरद मुछार ॥४६०॥ 11.दोहा ॥ दौलतखां नदन खांको बखा जवहिं भये बस कालकै, खां जलाल सिरमौर । तव दौलतखां जांन कहि, वैठे उनकी ठौर ।।४६१।। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ दौलतखांसी खेत चढि, लरै सु भै मान भरमै फिरं, दुर्जन सौ [ कवि जांन कृत कौन । भौन ॥ ४९२ ॥ छांडै झांकनकी प्रांन । धाक बैरी आये नाक सव, घर प्राक ढाक छपते फिर, हाक बिरद बहत इन बात के, दौलतखां ना भाजौ जो आइ हैं, लरन सात सुलतान ॥ ४६४ ॥ और करी ही आन यहु, नाहिन लेउ अकोर । जैसी कौड़ीको गनौ, तैसी लाख करोर ||४६५|| और कहत हे बात यहु, जौ बिन पावै कोइ । कौड़ी हाथ न लाइ हो, अरब खरब जो होइ ||४६६ || आवै जिती अंगुस्ट तर, सीवन दार्बन देउ । और पराई भूमिकैं रंचक दाबंन लेउ ॥४६७ दौलतखां ही कछू, रचनहारकी जोत । बचन जु मुखते उच्चरत, सोई निहचै होत ॥४६८ ॥ बीका ढोसी गयो हो, उतते प्रायो भाजि । ...... रंन चित चोख घरि चल्यो उतहि दल साजि ||४६६ ॥ पाटोधे डेरा भयो, तब पठये परधांन । , गुमांन ॥ ५०० ॥ श्राइ । चहुवांन ॥ ४९३ ॥ दीवांन । करिकै बहुत लूनकरन चिट्ठी लिखी, दौला चीठी देखिते, बैगी मोपे भुगत जलालकौ पूत । चीठीमै मूत ||५०२ || जौ अपनी चाहें भलौ, तौ कछु बाचत ही प्रति पर्जर्यो, खां कह्यौ कांम लै भाड़कौ, या परधांननिकै देखते, मूत्यौ चीठी माहि । जरि बरिकै क्वैला भये, बोल सके कछु नांहि ॥ ५०३ || बांधी अंचर बसीठके, बारू रेत मंगाई । लूनैकै सिर रेत है, जो नां लरिहँ आई ||५०४|| पठाइ ॥ ५०१ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] लूनेंसेती यी कह्यो, जो तूं चढ्यौ तुपार | आई जो ग्रयो नहीं, तो रासिन्भ ग्रसवार ||५०५|| परधांननिको धके दे, काढ़े वाही वार । कह्यो बसीठ न मारिये, नांतर डारत मार ||५०६ ।। जबहि गये परधांन उठि, सोच भयो पुर मांहि । तब दौलतखां यों कह्यौ, वाके धर सिर नांहि ||५०७ ॥ लूनकरनकें ढिग गये, फीकै मुख परधांन । सकल बचन परगट करे, कहे जु दौलतखांन ||५०८ || लूनकरन सुनि रिस भर्यो, तब यह कर्यो विचार | आवत याकी मारिहै, पहले ढोसी मार ||५०६ ॥ उतते चढ़ि ढोसी गयो, दलबल लये अपार | यागे रहत पठांन है, लरे जुझार ॥५.१० ।। तुरक मान कीनी मदत, जॉनत सकल जहांन । हेंदू मारे खेत घर, भली पर्यो घमसांन ॥ ५.११ ॥ लूनकरन मार्यो उतहि, लूटि लयो सब साथ । नीके तुरक सांन कवि जांन कहि, भले लगाये हाथ ||५१२ || पहले होते जो कह्यो, दौलतग्वां दीवान | सोई निवर्यो होइकै, अचल बचन चहुवान ।। ५.१३ || दौलतखां वांकी वली, नां को गंज ताहि । डांकी वाजे जैतकी, सांकी मानहि साहि ॥ ११४ ॥ बांक वांर्क हो बने, देखहुं जियहि विचार | जो बांकी करवार है, तो वाकी बार्कसां सूची मिले, तौ नाहिन ठहराइ । ज्यों कमान कवि जांन कहि, वानहि देत चन्ना ॥१६६॥ सुलतान वावरसुं दौलतखां मिल्यो परवार ।।५१५।। वावर काचिन्नते चल्यो, ढोली देसन चाहि । भैम्य कलंदरको कर्यो येक बाघ नंग ताहि ॥११७॥ ४३ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ दौलतलाइ मंगाइक, ज्या बाघ हमारा प्रा [कवि जान कृत आवत आवत फतिहपुर, इक दिन निकस्यौ आइ। मिलि दीवांनसौ यों कह्यौ, येफ मंगावहु गाइ ॥५१८॥ भूखौ है दिन तीनको, बाघ हमारौ आज । दीजै गाइ मंगाइक, ज्यौ पूरै मन काज ॥५१६॥ दौलतखां दीवाननें, दीनी गाइ मंगाइ। देखौ मेरे देखतै, बछुवा कैसे खाई ॥५२०॥ मारनको बछुआ उठ्यौ, निकट तकी जब गाइ। हाक दई दीवांनन, सिघ सक्यौ नहिं जाइ ॥५२१॥ बाघ चलै उठि गाइक, फिर हटकै दीवांन । उहि ठौर ठाढ़ौ रहे, गऊ न पावै खांन ॥५२२॥ तब बाबरनै यौ कह्यौ, खां देखह जु गाइ । जौ तुम यासौं यों करी, तो..."रि जाइ ॥५२३॥ डिस्ट करेरी सापुरस, सिंघ न सके सहार। मद कुजरको सूकि है, सुनिकै सुभट हकार ॥५२४॥ बाबर जब इतते गयो, देख्यो अलवर जाइ । हसनखांनकै कटककै, देखि रह्यो भरमाइ ॥५२५।। उतते ढीलीको गयौ, तक्यों सिकंदर साह । पाछै काबिलको गयो, सकल हिद अवगाह ॥५२६॥ पूछन आये लोग सब, ढिली मंडलकी बात । तब बाबरनैं यों कह्यौ, तकी तीनही जात ॥५२७।। तीन पुरष असे तके, सगरे हिदसतान । तिनकी सम को जगतमै, डिस्ट न आवै आन ॥५२८॥ येक सिकंदर आपही, ढीलीको पतिसाह । पुनि मेवाती हसनखां, जाकै कटक अथाह ॥५२६॥ तीजौ दौलतखा तक्यौ, नगर फतिहपुर आइ । जाके डरते वाघहूं, मार सक्यो ना गाइ ॥५३०॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामाखां रासा] दौलतखां चहुवानकै, कीजै कहा बखांन । दीनदार दातार है, पुनि जूझार दीवांन ॥५३१।। दौलतखाने गौर निरबांन मारे लूट चले नागौरके, गांव गोरि निरबांन । दौलतखां यह बात सुनि, चढ्यौ बजे निसांन ॥५३२॥ मारगमे घेरे सकल, गौर और निरवांन । मच्यौ जुद्ध नारद नच्यौ, पर्यो बहुत घमसांन ॥५३३॥ जीते अंत दीवानजू, दुर्जन मारे कूट । दौलतखां चहुवाननै, लूट लइ सब लूट ॥५३४॥ चढ्यौ अहेरै येक दिन, दौलतखां दीवांन । वाज कुही बहरी जुरे, बासे संग अनग्यांन ।।५३५।। बहरी छाडी कुंजको, गई निकट आकास । डिष्ट कहूं आवै नही, उठि आये तजि आस ॥५३६।। जात जात बहरी गई, उतरी जाइ हिसार । उतहि बुलावत बाजकू ठाढे मीर सिकार ॥५३७।। सौपी लै सिकदारकौं, राखी करिके प्यार । दौलतखां यह बात सुनि, लई हिसार कतार ॥५३८।। दौलतखां आगै मुहबतखां साराखांनी भाग्यो हौ सिंकदार हिसारको, नांव मुहबतखांन । साराखांनी सैन सजि, आयौ लरन पठान ॥५३६॥ दौलतखा यह बात सुनि, नासौ उतरे जाइ । उतते वहु उतते चढ़े, मिली सैन द्वै आइ ।।५४०॥ महबतखांन दूरत, देख्यौ दौलतखांन । मुख फीकौ उर धकधकी, बिचलन लागे प्रांन ।।५४१।। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत सूधी कही पठांननें, अपनै दलसौं बात । दौलतखां चहुवानसौ, मौ लर्यो न जात ।।५४२।। यौं कहि मिटि के उठ चल्यौ, छूट गयौ है धीर । निकसि गयौ ज्यौ बाटमै, तन उपजी भै पीर ॥५४३।। देत दमामें जेतके, • पायौ दौलतखांन । कोट सुभट संमडिष्टहीं, मारत है चहुवांन ।।५४४॥ खां सहाबसौं खेत चढ़ि, नीको कर्यो बचाव । जो को नातौ पालिहै, सो ना ताकत दाव ॥५४५।। आपहि मारत आपही, सु कर्माहिसो जात । गोत घाव जो कीजीये, मनहु करी अपघात ॥५४६।। डारी येक डुराइये, डोरि हिडारि अनेक । जे उपजे रज येकते, है तिनकी रज येकं ॥५४७।। जो रज खोवै गोतकी, लजत नांहि ज्यो मांहि । के वाहूमें रज नहीं, के उहि रजको नांहि ॥५४८।। दुख पावत दुख गोतक, है सु तिलक कुल अन । फलिका पाइ पिरातु है, नींद न आवत नैन ॥५४६॥ दौलतखांके सुभ वचन, सुनहु सबै दै चित्त । तीन बात दीवांनज, कहत रहत यो नित्त ॥५५०॥ करता जानहु येक करि, जिन मन आनहु दोइ । सब रचना आपै रची, संगी लयो न कोइ ॥५५१।। धीरज देहु न छाडिक, डरहु न बिन करतार । कहा भयो दुर्जन भये, जौ4 लाख हजार ॥५५२॥ कहा भयो कवि जान कहि, बैरी बकी कुबात । कबके गिर गिर कहत हैं, पै गिरना गिरजात ।।५५३।। और कहत दीवांन जू, समझह बात बिबेक । न्याइ समै दुर्जन सजन, दोऊ जानहु येक ।।५५४।। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ४७ भयो सिकंदर छत्रपति, मर्यो जबहिं बहलोल । दौलतखां नाहिंन बदै, भुजबर कर किलोल ॥५५५।। ॥सवैया।। दौलतखा चहुवान अपनै भुजनि पानि होइ मतिवारी हाथी अरि चीर मारी है। देखें गज सैन तब रंचक बदै न कछ सूकै मद गज बाघ होइकै विदारी है । सिंघकौं तकेते पल कल सारदूल होइ सारदूल देखकै भुजनि बर मारि है । नदन जलालखांको बाज होइ ततकाल धावै खल दल जब तीतुर निहारि है ॥५५६।। -दौलतखां चहुवांन मलिक नागोरी मान तिमरके दलवल भीलि भात भंजे हैं। महबतखान साराखांनी हू भजाइ दीनौ गौर निरवान मारे गढ़ कोट गंजे है। अरिनं नारि बंन बंन......... पानीयो न पावै अंग मंजनन मंजे है । तनमै न भूषन न बसन भूखी डोलत मुख न तंबोर द्विग अंजन न अंजे है ॥५५७।। ॥दोहा॥ भयो मुबारक साहकै, बड़ो खांन कमाल । ताको दीनी झूझनू, और सबै बित माल ॥५५८।। दूजौ पुत्र सहाबखां, ताकी नौहां दीन । जीयौ तौलौ उत रह्यो, भईयाको आधीन ॥५५६।। दोउ भइया जब मुये, गोनें छाड़ि जहांन । पूत रहे इंन दुहुनके, तिनको करौ वखांन ॥५६०।। बेटा खांन कमालको, भीखनखां तिह नांव । राज अझनमै करै, वाकै बस पुर गांव ।।५६।। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ [कवि जान कृत बेटा खांन सहाबकौ, महबतखां तिह नाम । भीखनखांसू चोख चित, पै नित करत सलाम ॥५६२॥ भीखनखांहून लख्यौ, कपट महोबतखांन । तबते डिस्ट न जोरिहै, मनमें बढ़ी रिसांन ॥५६३।। तब नौहांकों, छाडिक, चल्यौ महोबतखान । आइ फतिहपुरमै रह्यो, राख्यौ दौलतखांन ॥५६४॥ महबतखां बेटी दई, फदनखांनको चाहि । ज्यों लै दैहै झूझनू, दैन जोड़ाये आहि ।।५६५।। केतक दिन सेवा करी, बहुरि बीनती कीन । मोकौं भीखनखांनने, देस निकारी दीन ॥५६६ दौलतखां तब यों कह्यो, नौंहां तेरी आहि । देखें कौन निकारिहै, तूं उत बेगौ जाहि ॥५६७।। जो भीखनखां ना रहै, मानस देहि पठाइ । वाकों नीकी भांतसों, राखौगौ समझाइ ॥ ५६८।। नौंहां बैठ्यौ जाइक, जबहि महबतखांन । भीखनखा यह बात सुनि, दल साजे अनग्यांन ॥५६९।। महबतखां तब सुनत ही, मानस दयो पठाइ । नाहरखां इतते चढ्यौ, पुंहच्यौ, बेगो जाइ ॥५७०॥ इतते महबतखां चढ्यौ, उतते भीखमखांन । आभूसरकै ताल पर, भलौ पर्यो घमसांन ॥५७१॥ नाहरखांकौं देखिकै, भीखनखां थहराइ । जैसें नाहरके तकें, बिझुकै भज्जै गाइ ॥५७२॥ भीखनखां तब भजि गयो, जीत्यो नाहरखांन । महबतखांको झंझनू, लै बैठाओ अांन ॥५७३॥ नाहरखां जुध जीतिक, आये बजत नीसांन । गरै लगायो प्यारसौं, दौलतखां दीवांन ।।५७४।। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ क्यामखां रासा] जोली दौलतखां जिये, साके किये अपार । अंत न कोउ थिर रहै, या झूठ संसार ।।५७५।। दीवान नाहरखांके पुत्र १ फदनखां, २ वहादरखां, ३ दिलावरखां । ॥ दोहा ॥ बड़ी फदनखां जानियो, और वहादरखांन । पुनहि दिलावरखांन है, जानि लेहु कहि जांन।।५७६।। नाहरखांको वखान . ॥ दोहा ।। जवहि भये बस कालके, दौलतखां सिरमौर । तव नाहरखां जांन कहि, भयौ पिताकी ठौर ।।५७७॥ करता दीनी लच्छिमी, निसदिन करत कलोल। पातुर चातुर रूप वर, बहुत लई है मोल ॥५७८।। नचे अखारौ रैन दिन, छिन छिन कौतिग होइ । राज मांन दीवान ये, रागलीन है दोइ ।।५७६।। मरद मुछार जुझार है, उठ्यो लहे बहु वंक । भी मानत है भोमिया, करै सिंवारी संक ॥५८०॥ वीकावतनै सोचि के, दूरि करि चित चोख । लूनकरन बेटी दई, उपज्यो अति संतोख ।।५८१।। पहलै वोल कियो हुती, जीवत लूनकरन । दई वजीरनि व्याहि के, आये चरन सरन ॥५८२।। जवहि सिकंदर मरि गयो, भयो बिराहिम साह । वाकी हनि दिल्ली लई, वावर दई इलाह ॥५८३।। भयो हमाउं पातसाह, वावर पाछै जान । सेरसाह पाछै भयो, समये नाहरखांन ॥५८४॥ सेरसाह आदुर दयौ, नाहरखांनु निहार । मामूं कहि बाते कहत, और करत बहु प्यार ॥५८५॥ सेरसाह असे कह्यौ, नगर आपुनै जाहु । कर्यो फतिहपुर पेसकस, घर बैठे तुम खाहु ॥५८६।। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { ૦ [ कवि जांन कृत चोवा नाहरखानकै, निकसत उत्तिम श्राहि । बास मगन ह्वै रीझिकें, मांग लयो पतिसाहि ॥ ५८७॥ महलको सबता ॥ दोहा ॥ अपने मनकी वैसौ जगमै पंद्रह से जु तिरानुंवै, महल रच्यो दीवांन । भादौ सुदि आठे हुती, सोमवार कहि जांन ॥ ५८६ ।। उकत सौ, महल चिनायो येक । और नां, घन दीवॉन बिवेक ||५८८|| नाहरखांनै जगमाल पंवार भजायो नागौरी खां पर चढ्यो, राना दल बल साज । इनहू सुनि मांडे चरन, ही आगेकी लाज ॥ ५६० ॥ कूरम कमधज सकल ही, मांनत खांकी आन | दिल्लीकों जानत नहीं, बदत न मुगल पठान ॥५६१ ॥ आये गांगा जैतसी, सूजा पिर्थी राज । करि साज || ५६२|| और भोमिया निकटके, सब आये नागोरी चिट्ठी लिखी, टेरे रानैको प्रवन सुन्यौ, नीकी सैन बनाइ कै, निकट गये नागौरर्क, उतहि जाइ से सुन्यौ, नागोरी गढ़ मांहि । रानौ बाहर कोस पर, निकसि लरत है नांहि ॥ ५६५॥ रिस उपजी चहुवान चित, नां पैठ्यौ नागौर । तीन कोस आगे गयो, सुभटनिकौ सिरमौर ॥ ५६६ ॥ खां सुनि पाई बात यहु, मानस दयो पठाइ । चले अकेले तुम कहां, हमपे उतरौ आइ ॥ ५६७॥ नाहरखां तव यों कह्यौ, रानौ उतर्यो पास । वोट गही तुम कोटकी, नाहिन लेत निकास ॥ ५६८ ॥ नाहरखांन । चढ्यो तंत चक्रवती चहुवांन । देत जैत नीसांन || ५६४|| दीवांन ॥ ५९३ ॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] हो पाछै आवत नहीं, आगे उतर्यो जाइ । जो मिलबेकी हौस है, इतहि मिलहु तुम आइ ।।५६६।। नागौरी खां सुनत ही, चढ्यौ बजे नीसांन । आयो नाहरखांनपै, मिलि सुख उपज्यो प्रान ॥६००। तब रानों यह बात सुनि, निसही गयो पराइ। हाक धाक सुनि सुभटकी, काइर क्यों ठहराइ ।।६०१।। खाँ उठि दौर्यो खोजहीं, जित जित निकस्यो रांन । आगै पाछै जात है, जैसे रैन बिहान ॥६०२॥ राना बर्यो पहाड़ में, फिरी सैन नागौर । गांव लये सब लूटि के, बंची न कोऊ ठौर ॥६०३।। आवत है ये उमंगसौं, लूट चले चित चाइ। तब जगमाल पंवारनै, मांनस दयो पठाइ ॥६०४॥ करत जाहु रजपूत मुहि, जो तुम मैं रज होइ । पहुँचौ जौ ठाढ़े रहौ, पहर येक के दोइ ॥६०।। रानैनै अजमेर मुहि, सौपी ही कर प्यार । देस लूंटि के तुम चले, करत जाहु इक रार ॥६०६।। किनही मुख लायो नही, तव उठि चल्यो वसीठ । काहूको नाही वदै, गार देत मुख ढीठ ॥६०७।। नाहरखां यहु वात सुनि, नाहिन सक्यो सहार । मानस तबही पंवार को, अपतन लयो हंकार ॥६०८।। हरयें हरये भाइयहु, भाषहु जाइ पँवार । हो नाहरखां वागरी, जाउं न विना जुहार ।।६०६॥ नाहरखां ठाढे रहे, और गये सब छाडि । नां राखी पहिचान कछु, ना रजवटकी आडि ।।६१०॥ नागोरी नगरी तकी, वीके बीकानेर । सुजै ताक्यौ अमरसर, प्रांवर प्रांवेर ॥६११।। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ [ कवि जांन कृत मारग नाहरखाँ निहचल रह्यौ, धरि अपनै मनि धीर । क्यों न होइ जिह बंसमै, पिरथी रा . हमीर ॥ ६१२॥ तकै पंवारको, मकरानैकै ताल । ताही मै बहु दल लये, आयो डिठ जगमाल ॥ ६१३॥ फौजदार अजमेरको हो जगमाल पंवार । लये, हय नर अमित अपार ॥ ६१४ || 1 अनी बनी सैन जूभार । वरिपा बान अपार ।। ६१५ ।। रानैकै दल बल दहूं वोर बांटी छूटत है गोली घनी, ॥ गैनन्दछन् || उमडे कटक दहुं वोरके, घमंडे मनौ घनस्याम | हथियार चमकत देखीये, ज्यों बीजुरी अभिराम ॥६१६ ॥ इंद जैसे गज्जिहै, त्यों बज्जिहै नीसांन । बुंद नाई बरसिहै, बरिखा लग्गी बहु बांन ॥ ६१७॥ छेद करिहै अंगमं, चलि है छछोहे बांन । कटिहै कटि मुंड कर जित लागि है किरपांन ॥ ६१८ || चहुवांन पंवार मिलिकै, कर्यो है घमसांन । सुभट सुभटनि लरि मरे हैं, पर्यो कीचक धान ।। ६१६ ॥ खेल जुद्धकै खेले भले, जोव रची धमाल | लरत नांहिन मिटे रंचक, कटे चले नारे खार रत भयो, लाल सगरो ताल । अंत जीत्यो खांन नाहर, भाजियो जगमाल ||६२१॥ ना दीन । आगे ही धस लीन || ६२२॥ मरद मुंछाल ||६२० ॥ , ॥ दोहा ॥ नाहरखांने खेत चढ़ि पूठ कहूं नंदने, आगे दौलतखांके ॥ सवैया ॥ दौलतखां नंदन जग बंदन नाहरखां नाहर है मानौ । चढ़े तुरंग कुरंग होहिं अरि गउवनकी ज्यों परत भगाँनी । मकरानै जगमाल भजायौ हाक धाक भै मानत रानौ । जाकी भुजा प्यारकर पकरी महबतखां ज्यों पार लगानौ ॥ ६२३॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] श्री दीवांन फदनखांके पुत्र १ ताजखाँ, २ पेरोजखाँ, ३ दरियाखां। ॥दोहा॥ ताजखांनु पेरोजखां, तीजौ दरियाखाँन । फदनखांनुके नंद है, पर्गट सकल जहांन ॥६२४॥ अथ फदनखांकौ बखांन । ॥दोहा॥ जबहिं भये बस कालके, नाहरखां सिरमौर । तबहि फदन खां जांन कहि, बैठे उनकी ठौर ॥६२५।। फदन खांन दीवानकै, ग्यान दयौ करतार । सम लुकमॉन हकीमकी, देत सकल संसार ।।६२६।। दिल्ली मांह सलेम साह, भयो जवहि पतिसाहि। कीनी बहुत पठांनन, फदन खांनकी चाहि ॥६२७।। महबतखां सुत खिदरखां, फदन खांनके पास । ठाढ़ौ हौ पतिसाहन, असे कर्यो प्रकास ।।६२८।। फदन खांन तूं आव इत, वहन तिहारी ठौर । कहा भयौ भइया भये, तूं सबमै सिरमौर ॥६२६।। वहुर हुमायों आइ के, भयो दिल्ली सुलतांन । फदन खांनुको टेरकै, दीनौ प्रादुर मान ॥६३०।। जव अकवर दिल्ली भयो, साहिनकी मनसाह । फदन खांन दीवांनसौ, कीनौ हेत निबाह ।।६३१।। अमित प्यार निसदिन करत, अकवर साह सुजांन । फदन खांनु चहुवांनको, जगुमै बाढ्यौ मान ॥६३२।। करी बीनती बीरबल, देखि छत्रपति प्यार । इत्ती मया तुम करत हौ, या पर कौन विचार ॥६३३।। पातसाह तब यों कह्यौ, सुनि वर वीर बिचार । और बड़े मेरे किये, ये कीने करतार ।।६३४॥ साढ़े तीन कुली कहै, रजपूतनकी जात । तोहि कहौ समुझाइ के, सुनि लै तिनकी वात ।।६३।। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ [कवि जान कृत चाहुवाँन तुंवर दुतीय, तीजौ आहि पंवार । आधेमें सगरे कुली, साढ़े तीन बिचार ।।६३६।। जैसे, सब बाजित्रमैं, है बड़डौ नीसांन । तैसै सब ही जातमै, बडो गोत चहुवांन ।।६३७।। फदन खानु सौं यों कह्यो, छत्रपति अकबर साहि । हमसौं तुम नातौ करहु, पूजै मनकी चाहि ।।६३८।। अकबरकौं बेटी दई, फदन खानुं चहुवांन । बढ्यौ प्यार बहु प्यारमै, अति सुख उपज्ये प्रांन ।।६३९।। पातसाहको नां परै, भुमियनको पतियार । हेंदू गुमरह होत हैं, फिरत न लावै बार ॥६४०।। तौ हौं मनसब देउ तुम, जो तुम देहु जमांन । तब सबके जामिन भये, फदन खानुं चहुवांन ॥६४१॥ राइसालकी बांहि गहि, फदन खानुं सुलतांन । दरबारी करवाइ के, द्यायो मनसव मांन ॥६४२॥ फदन खानै बीदावत भगायो ॥दोहा॥ बीदावत नाहिंन रहत, चोरी करि करि जांहि । फदन खांन दीवानने, रोस धर्यो जिय मांहि ॥६४३॥ बदत न बीकानेरको, फदन खांनु दीवांन । दल कर बीदाहद गये, देत निडर नीसांन ॥६४४॥ पहुंचे छापर दूंनपुर, बीदे गये पराइ। लर न सके दीवांनसौ, छूटे सबके पाइ ॥६४५।। बीदाहदहि विध्वंस के, आये है दीवांन । वीदावत बन्यों चले, करि चोरीकी आन ॥६४६।। फदन खाने छापौली वा पूष मारी ॥दोहा॥ निरबाननि ऊपर चढ़े, करि के कोप दीवांन । लये सुभट पखरैत बहु, देत जैत नीसांन ॥६४७।। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ५ निरबांननि पर जांन कहि, वहुत परी है मारि । छापौरी अरु पूंख पुनि, जारि वारि की छारि ॥६४८।। फदन खानसौ लरि सके, असौ कौन जूझार । नाहरखांक नंदकौ, मानत सब संसार ॥६४६।। ॥सवैया॥ नाहरखाँनु नरिंद नराधिप नंदन फदनखांनु सिर मौर। करि दल गयोदून पुर छापर, ना ठहराइ सके राठौर। छापौरी अरु पुंख रौष कै धूरि मिलाई यैक्कै दोर । भये सहाइ बहादरखांके ले के दई झुंझनू ठौर ॥६५०॥ ___ श्री दीवांन ताजखांके पुत्र १ महमदखा, २ महमूदखां, ३ सेरखां, ४ जमालखां, ५ जललखां, ६ मुजफरखां, ७ हैबतखां, ८ हबीबखां । ॥दोहा॥ महमदखां महमूदखां, सेरखांनु दीदार। खांन जमाल जलालखां, मुजफरखां जूझार ॥६५॥ हैवतखां जु हबीबखां, अष्ट ताजखां नंद । ये लागत हैं चंदसे, और सिंवारी मंद ॥६५२।। ताजखांको बखान ॥दोहा॥ जबहि भये बस कालके, फदन खानुं सिरमौर । तबहि ताजखां जॉन कहि, बैठे उनकी ठौर ।।६५३।। ताजखानकै रूपकी, परी जगतमें गैर । बिन पूछयौ ही जानिये, आहि बंस सिरमौर.॥६५४॥ उजियारे दौलत खां, सुन्यो रूप दीवांन । तब चितराइ मगांइ कै, रीझ्यो देखि पठांन ॥६५५।। ताजखांकी फतिह ॥दोहा॥ अलवर ते दल कर चढ़ें, ताजखानुं चहुवांन । मारी सारां खरकरी, पुनि गढ़ येदल खान ॥६५६।। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [कवि जान कृत मलिक ताजको लूंटि के, ताजखानुं चहुवांन । थांनी रैबारी हन्यौ, जानत सकल जहांन ।।६५७।। ॥सवैया।। अलवर ते दलबल कर धायो तरवार ताजखानु चहुंवांन । मारी सारां और खरकरी-लूटि लयो गढ येदलखांनु । मलिक ताजकौं भंजि गंजिकै राइमलहिं हरखे दीवांनु । बिचरायौ रैवारी थांनी प्रगट्यौ है जसु सकल जहांनु।।६५८।। ॥दोहा॥ ताजखांन को बड़ौ सुत, महमदखांनु चहुवान। ग्यानवंत दाता सुभट, सम को नांही आन ॥६५६।। अरथ दुर्यो ततछिन लहत, चातुर ग्यान अपार । इंछया पूरत सकल की, महमदखां दातार ॥६६०॥ श्री दीवांन महमदखांके पुत्र १ अलिफखां, २ इबराहिमखां, ३ सरमसतखां । । ॥दोहा॥ अलिफखांनु कुल तिलक है, पुनि इबराहिमखांन । तीजी खां सरमसत है, जानि लेहु कहि जान ॥६६१।। महमदखांकी फतिह ॥दोहा॥ महमदखां साधे भलै, क्यारौ पुनि बैराठ । करवर कैंबर जांन कहि, जेर करी है राठ ॥६६२॥ कुभकरन मांडन नंदन, कूपावत राठौर । दीनौ खेत खिसाइ कै, महमदखां सिरमौर ॥६६३॥ ॥ सवैया॥ ताजखांनु सुत तिलक सुभट मैं महमदखांनु मरद मुछार । क्यारौ अरु बैराठ तेग बर साधे अरि लागे पग हार। कुंभकरन मांडनको नंदन खैत खिसाय दयो जूझार । दीनदार सरदार छबीलो भोज करन सम बुद्धि दातार ।।६६४॥ ॥दोहा॥ भर तरुनापै मरि गये, महमद खां चहुवांन । पूत पितापहले मरै, यातें कठिन न आँन ॥६६५।। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] अति दुखि पायो ताज खां, पै कछ नांहि बसाइ । रुदन करै असुवां विना, कछू हाथ नहि पाइ ॥६६६।। पाछै रह्यौ सपूत अति, अलिफ खॉनु चहुवान । पोतैक सिर कर धरयो, ताजखानुं दीवांन ।।६६७।। पातसाह 4 ले गये, पोतको दीवांन । मेरे घरमै यहु बड़ौ, याको दीजै मांन ॥६६८।। कीनी प्यार जलालदी, सुनी ताजखां बात । होनहार बिरवा तक्यो, चिकनें चिकने पात ॥६६॥ जोलौ जीये ताजखां, रखे अलिफखां संग । पल न्यारे नाहिंन करै, है मानौ अरधंग ।।६७०॥ श्री नवाब अलिफखांके पुत्र १ दौलतखां, २ न्यामत खां, ३ सरीफखां, ४ जरीफखां, ५ फकीरखां। ॥दोहा॥ बडडी दौलत खाँनु है, दूजी न्यामत खांन । खांन सरीफ जरीफ खां, पुनि फकीर खां जान ॥६७१।। नबाव अलिफखांन वखांन ॥दोहा॥ जवहि भये बस कालके, ताजखाँनु सिरमौर । अलिफखानु दीवांन तव, बैठे उनकी ठौर ॥६७२।। टीकै दयो जलाल दी, गज घोड़ा सरपाव । नगर फतिहपुर पुनि दयो, छत्रपति आयो भाव ।।६७३।। पातसाह कीनी मया, बाढ्यौ मनसब मांन । दयो फतिहपुर छत्रपति, लिखि अपनो फुरमांन ॥६७४॥ अलिफ खांनु दीवानक, आनंद बढ्यो प्रांन । पठय दयो फुरमांन घर, अलिफखानु ततकाल । स्यामदास मान नहीं, कूरम सुत गोपाल ॥६७।। हुतौ फतिहपुरमै तबही, सेरखांनु सिकदार। कूरम दये निकारि कै, जीत्यौ राइ मुछार ॥६७६।। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत नंद बहादुर खांनको, समसखांनु सिरमौर । पिता मुवी तव झंझनू , बैठ्यौ उनकी ठौर ।।६७७।। भइया और बदै नही, निस बासुर दुख देत । अलिफ खांन दरगह गये, संग आपुनै लेत,॥६७८।। समसखांनकी बांहि गहि, अलिफखांन दीवांन । लै मिलयौ पतिसाहको, द्यायो मनसब मान ।।६७९।। अबलौं यों आई चली, असौ करम इलाहि । वहै झूझनू है बड़ौ, करै फतिहपुर जाहि ॥६८०॥ अकबर झुक्यौ पहारसौं, बहुत भयो चितभंग । जगतसिंघ पठयो उतहि, अलिफखानु दै संग ॥६८१॥ पैठे जाइ पहारमैं, जगतसिंघकै साथ । द्रुवननिकौं दोवान जू, नीके लाये हाथ ॥६८२॥ मारी जाइ धमेहरी, और तिहारा गांव । बासो बिचरयो खेत चढ़ि, भलौ भयो जगु नांव ।।६८३।। राजा आप तिलोकचंद, डरत मिल्यौ है आइ । संग लाइ के ले गये, पातसाहकै पाइ ॥६८४॥ रानै ऊपर जब चढ़े, रिस धर साह सलेम । अलिफखानुं पतिसाहि पै, मांगि लये करि पेम ॥६८५॥ बाटे थाने जाइ उत, साहि सलेम विचार । थानौं दीनो सादरी, अलिफखांन सरदार ।।६८६।। दीवाननै रानैंको थानौ मारयो ॥दोहा॥ रानैको थानौ तक्यौ, अलिफखानुं सिरमौर । चक्रवती चहुवाननै, उत को कीनी दौर ॥६८७।। परी लराई अति भली, चली बात संसार । रानैक दल अलिफखां, मारे अमित अपार ॥६८८॥ तबहि चिनायो चौंतरा, अरि सिर काटि अपार । लूंट बहुत ही कर चढ़ी, सुजस भयो संसार ॥६८६।। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्याम्खा रासा] ५६ तब रानौ यह वात सुनि, काटि काटि कर खाइ । 4 अमरा दीवानक, थानै सक्यौ न आइ ॥६६०।। ऊंटौले हौ समसखां, उत पायौ कर साथ । रानैको चहुवांनने, भले लगाये हाथ ॥६९१|| महजादै यह वात सुनि, कीनौ प्यार अपार । कह्यौ अलिफखां समसखां, जुगल बड़े जूझार ।।६६२।। जवहि भये वस कालके, अकवर साह जलाल । वैठ्यौ तवही तखत पर, साह सलेम मूंछाल ॥६६३।। जवते बैठे तखत पर, जहांगीर · हुव नाम। ' निस दिन आठी जाममै, देव ही सूं काम ॥६६४।। अलिफखांन दीवानसौ, वहुतै किरपा कीन । नगर · फतिहपुर प्यार कर, लाल मुहर करि दीन ॥६९५।। राइ मनोहर अलिफखां, पठय दये मेवात । मेव सेव लागे करन, भेट देहि दिन रात ॥६६६।। दलपत ऊपर बिदा भये ॥दोहा॥ दलपत वीकानेरीये, कटक करे अनग्यांन । बदत नही पतिसाहको, लूटत फिरत जहांन ॥६६७।। दलै भजायो ज्याव दी, कर दल सरसै जाइ । बित लूट्यौ पतिसाहको, फूल्यौ अंग न माइ ।।६९८॥ वात सुनत पतिसाहक, रिस न समाई अंग । पठये सैख कवीर पुनि, अलिफखांनु जुग संग ॥ ६६६।। वीस और उमराव सग, चले लरनकै चाइ । दलपति रहि नाही सक्यौ, सरसे उतरे आइ ।।७००। । सरसै मांहि लराई भई उमरावनिसौं ॥ दोहा । पानी ऊपर आपम, मच्यौयेक । दिन जुद्ध । अपने अपने कटक लै, प्राय सवै विरुद्ध ॥७०१।। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत येक भये उमराव सव, आपुनमै करि ांन । 'येक वोर इकईस है, येक वोर दीवांन ॥७०२॥ छटे गोली नाल वहु, फूटं हय गय मुंड। कूट कर करवार लै, टूट सुभटनि झुंड ॥७०३।। गज सेती गज लरत है, बजत सारसौ सार । सुभट सुभट लट पट भये, करत मार ही मार ॥७०४॥ इत उत कै मूये सुभट, साहस सत सधीर । बीच परे तब आइ के, आपुन सैख कबीर ॥७०५॥ कीनी सैख कबीरन, मनोहार दीवांन । पहले हाथ लगाइ अति, पाइ लगाये आंन ॥७०६।। येक लरचो इकईस सौं, करता रखी पटीठ । सबको भंजत अलिफखां, सैख न होत बसीठ ॥७०७॥ अलिफखांन उमराव. सब, करे तेग वरजेर । मालामै मनके बहुत, पै पूजत ना मेर ॥७०८॥ बहुरी येक मतो कियो, सबननि मिलि दीवांन । दलपति पर दल कर चढ़े, बजत जैत नीसांन ॥७०६।। भाठमै दलपति हुतौ, संग बहुत सरदार । उमंडे दल पतिसाहके, ज्यों घन घटा अपार ॥७१०॥ गोल चंदोल भये जब कोउ, जरंगोल वरंगोल । अलिफखानु दीवान तब, अपुन भयो हिरोल ॥७११॥ जबहि आइ सनमुख भये, अलिफखांनु सिरमौर । सही न हौंल हिरोलकी, भाजि चल्यो राठौर ॥७१२॥ दलनि दबायो जाइ के, तब दलपत बिललाइ । खांन जलाल मुछालसौं, पठयो यहै कहाइ ॥७१३॥ तुम मेरे भइया बड़े, और कहूं ही काहि । अलिफ खांन जू सौं कहौ, थांभै दल पतिसाहि ॥७१४॥ . Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] लूनकरन परतापसी, राजा जोधा माल । उनको नातौ देखि कै, होहुँ अवहि प्रतिपाल ।।७१५।। इन पांचों दीनी सुता, सु तो इहिं दिन काज । तुम विन असौ कौन है, जिहि भुमियांकी लाज ॥७१६।। तव दल थांभे अलिफखां, दलपति भयो उवार । फिर पठयो पतिसाह पैं, कीनी प्यार अपार ।।७१७|| टेरयो सेख कवीर जव, दिल्लीके सुलतांन । आयो वाकी ठौर तव, इतहि मुबाराखांन ।।७१८|| . भिवांनी फतह की । ॥ दोहा।। तव दीवांन पठान मिलि, चले भिवानी कोप । आगे जाटू जावले, रहे भलें पग रोप ।।७१६।। लागे गढ़ई जाइ कै, गोली चली अपार । को आगै पग नां धरै, डरपैक असवार ।।७२०॥ तव उमड़े दीवांन दल, डारी गढई तोरि । . जो जाटू सनमुख भयो, मारयो मीड मरोरि ॥७२॥ दंत तिनौलेकै भजे, जाटू तजिकै ठांव । सुजसु भयो दीवांनको, लूटि लयो सब गांव ॥७२२।। मेवातकी फौजदारी पाई बोलि लयो पतिसाहन, अलिफखानु सिरमौर । कह्यौ अवहिं मेवात पर, करहु येक तुम दौर ।।७२३।। दै हय गज सरपाव अरु, मन सव बहुत बढ़ाइ। विदा किये मेवातकों, चाहुवांन चित चाइ ॥७२४॥ आवत हीसारां प्रथम, मारि मिलाई छार । जे भाजे तेई बचे, मरे करी जिन रार ||७२५।। कारहंडै डेरे कीये, फिरू सारां की मार । मेव मिले उत आइ के, असी मानी हार ॥७२६।। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ [कवि जान कृत पेस करी घोरी तुपक, बसे तलहटी प्राइ। इनहि साधि तबघन हटौ, नीकै मारयौ जाइ ॥७२७॥ उतहू मेव भले लरे, मरे परे है टूक । उपजी रौर पहारमैं, धार धारमें कूक ।।७२८॥ सगरै जंबू दीपमै, पुहंची है यह बात । अलिफखांन नीकी करी, पात पात मेवात ॥७२९।। दच्छिनकौं बिदा भये बिदा कीये पतिसाहन, दच्छिनकी दीवांन । सहिजादै परवेज संग, दलको आइ न ग्यांन ॥७३०॥ पुंहचे जब बुरहानपुर, थाने बांटे सर्ब । तब मलिकापुर अलिफखां, लीनों रजवट गर्ब ॥७३१॥ सहिजादे चढ़ि आपहू, गये येदलाबाद । आगेको पठये कटक, चले लये मनबाद ॥७३२।। खांननि खां आपुन चढ़े, लोदी खांन जहान । अबदुल्लह जखमी चढ़े, और चढ़े बहु खांन ॥७३३॥ मानसिंघ कूरम चढ़े, राइसिंघ राठौर । काको काको नांव ल्यौ, चढ़े बहुत सिरमौर ॥७३४॥ अबर आयौ साजि दल, गनती आवै नांहि । ' जैसे बादर देखियें, अनगन अंबर मांहि ॥७३५।। येकल राईकी भली, अवदुल्लह सिरमौर । अंत चरन पै छुटि गये, ठाहर सके न ठौर ॥७३६।। अबदुल्लहके बिचरत, विचर भई दल मांहि । आये सब बुरहानपुर, कहूं रह्यो को नॉहि ॥७३७॥ थांने सबही उठि गये, रह्यौ नहीं को ठोरं। मलिकापुर बैठे रहे, अलिफखांनु सिरमौर ।।७३८।। सव मीतनि चिठी लिखी, तुम रहिहों किहि काज। पंच करै सो कीजिये, यामै कैसी लाज ॥७३६।। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] उतर लिख्यो दीवान जू, तुम पीरत मो पीर ।' पै हौं कैसे आइ हौ, लागै लाज हमीर ॥७४०॥ दच्छिनके दल अति प्रबल, चलि आये चहुंवोर । दिस दिस धुखासे धसे, दुंदभ घंनकी घोर ॥७४१।। मलिकापुर घेरौ कीयौ, दच्छिनके दल ांन । दहूं वोर छूटन लगे, गोली गोला बांन ।।७४२।। दहूं दलते गोली चलै, जांन सु यह सुभाइ । मरन संदेस देत है, जुगल वोरते आइ ॥७४३।। मलिकापुर लै ना सके, करि बहुत ही रार । दछनी दल दीवानके, आगे भाजे हार ॥७४४।। बात सुनी परवेजनें, रहे न थाने आंन । मलिकापुर लरिकै रख्यौ, अलिफखानुं चहुवांन ॥७४५।। सहजादै तब यों कह्यो, अलिफखानुं चहुवांन । अटलखांन है साचलौ, असौ सुभट न ांन ।।७४६।। दीवांन नै थांने साथै ॥दोहा॥ भीलनको थानौं कठन, लेत न को उमराइ। मलिकापुरते अलिफखां, तब उत दयो. पठाइ ॥७४७।। ढील नैकु लाई नही, भील हने तब जाइ। परी पपीलक बापरी, तरै पीलकै पाइ ॥७४८।। बहुर जालवापुर गये, साधे सब मैवास । सगरै जगमै पर्गटी, सुजस फूलकी बास ।।७४६।। उतते कीनी जाइ कै, फतिह फतिहपुर गांव । अलफखांन दीवांनको, भयो जगतमै नांव ॥७५०।। ना छाड़े मेवासकौ, यह अलिफखां टेव । आइ मिले स्यो गांवके, लागै करनै सेव ॥७५१।। अलिफखानुं चहुवान पर, आयो छत्रपति भाव । मनसब बहुत बढ़ाइ के, करयौ बड़ी उमराव ॥७५२॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ [कषि जान छत 'दच्छिनमै दीवान ज, घरहौ दौलत खांन । सीवारी सब दल मले, अपने ही भुज पांन.॥७५३।। बीदावत चोरी करै, बरज्यो मानत नांहि । दौलतखां दल कर चढ्यौ, रोस धरयो मन मांहि ॥७५४।। बीदावत लरि नां सके, भाजे बदन दुराइ । गांव फूक बहुरे मियां, जैत नीसांन बजाइ ॥७५५।। पाटौधै जु रसूलपुर, कूरम बसत अपार । मग मारत चोरी करत, दरगह भई पुकार ॥७५६।। कह्यौ महोबत खांनसूं, तब अझै पतिसाहि । कूरम धूर मिलाइ है, असौ कोऊ आहि ।।७५७।। कह्यौ महोबत खांन तब, असों दौलत खांन । सुनत छत्रपति मया करि, टेरे लिख फुरमांन ॥७५८।। मिले जाइ अजमेरमैं, दूलह दौलत खांन । जहांगीर बहु प्यार करि, दीनौ प्रादुर मांन ॥७५६।। पातसाह असे कह्यौ, सूजावत है चोर । छीन लई है सगर पैं, पटी आपनै जोर ॥७६०॥ पटी लेहु जागीरमैं, उनको देहु निकार । जो तुम ते यों होत नां, उतर देहु बिचार ॥७६१।। दौलतखां तसलीम करि, असे कियौ बिचार । लरहिं तौ काटौं सीस उन, ना तर देऊं निकार ॥७६२॥ दयो तुरी सरपाव तब, जहांगीर परबीन । जुगल पटी दीवांनकै, मनसबमैं लिख दीन ।।७६३॥ बिदा होइ पतिसाहते, आये दौलत खांन । अपनी रज भुज बल मंगन, गनत न काहू ांन ॥७६४॥ कछवाहनिसौ यों कह्यौ, दौलतखां चहुवांन । पटी हमारी छाड़ि के, जाहू कहूं तुम ांन ।।७६५॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] म मुनि का परी, लरिवंकी सांमी करहु, जो तुम छाडि न जात । = बातिनमें मोच के, करि निवरौ इक बात ॥७६६।। कछवाहनि तब यो कही, अंसी कीन मुछार । जो इन पटिइन मांहि ते, हमको दैत निकार ॥७६७॥ राइसिंघ रानी सगर, सके न हमकी काढ़ । छाड़ि दई जागीर ही, तुम नहीं उनते बाढ़ ॥७६८।। खुसरों वीतरवीत वां, और अविया सेग्व । नाधि हर्म नाही सके, तुम भूले का देख |७६६।। दालतवा ये बान मुनि, दल करि चढयो रिसाइ । भाजि गये कूरम सकल, सके नाहि ठहराइ ॥७७०॥ दंदभ सुनि कूरम गये, आप आपकी नासि । गऊंबनम मानी परी, पचाननकी बास ॥७७१।। माधो नरहर कुटब ले, भाजे ज्यो म्रिगडार । नाहरखा अमै गयो, जैसै जात सियार ॥७७२।। गोकल गिरधरकं नंदन, कीनी आइ जुहार । दौलतग्वा की दिप्ट को, द्रुवनं न सके संहार ।।७७३।। पटिइनमै ते कोप करि, काढ़यो नरहर दास । कुटव सहित तव जाइक, कीयो लुहारू वास ।।७७४।। भादीवासीमै रह्यौ, माधौ करि मनुहार । निस बासुर चोरी करै, सगर हुई. पुकार ॥७७५।। दौलतखा चहुवांन तब, मानस दयो पठाइ । भादीवासी छाडि दै, के ही मारो आइ ।।७७६।। तव माधोने यों कह्यौ, ही मारयो नां जात । पातसाहको नां वदी, नांहि सुनी तुम बात ॥७७७।। दौलतखा यह वात सुनि, साजे कटक अपार । तवल निसान बजाइकै, चढ़यौ न लाई वार ।।७७८।। ज्यो नि Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ [ कवि जांने कृत आगे माधो दल कीयो, लै सैंखावत • सर्व । अनगंन कटक निहार कै, बहुत बढ़यौ मन गर्व ॥ ७७६ ॥ दौलतखां चहुवांन जब, नेरै लाग्यो आइ । तब माधो लर नां सक्यौ, डरकें गयौ पराइ ॥ ७८० ॥ बित बसई सब तजि गयो, जब दल पहुंचे आइ । लूटी नांहि दयाल ह्वै, दी चहुवांन पठाइ ॥ ७८१ ॥ जुद्ध करे ताकी हनै, दूलहु दौलतखांन | भाजेकौ मारे नही, यहै बांनि नरहर पाई अलिफखां, दीनी आप तबहिं चढ़यौ दल साजि कै, दौलतखांमु नरहर नाहर दल सजे, लरि नां सके नाहरखांकौ दी सुता, गहे चरन चहुवांन ॥ ७८४ ॥ अलिफ खांन दीवांनकी, बहुत बढ़ी परतीति । दयो उदैपुर बारुवो, पातसाह करि पीति ॥ ७८५ ॥ गिरधर अलखांसु लिख्यो, उनको दखल न देह । जो वै आवै लरनको, तौ सनमुख ह्वै लेह ||७८६ ॥ दौलतखां से लिख्यो, अलखां जाहि पराइ । आपुनते निकसै नही, तौ हौ काढ़ी प्राइ ॥७८७॥ अलखां तब से लिख्यौ, मेरे पाइ पतार | सौ जोधा कौन है, सकै जु मोहि निकार ॥ ७८८ ॥ दौलतखां यह बात सुनि, कर दल चढ़चौ रिसाइ । सनमुख ह्वै नाहिन सक्यौ, ग्रलखां गयो पराइ ॥७८॥ अलखां भाजत फिरत है, बचन गये सब भूल । पवन लगे ज्यों जान कहि, उड़त अर्कको तूल ॥७६० 1 रहि न सक्यो खीरोरमें, दौलतखां दुदभ' बजत, चहुवांन ॥७८२ ॥ दिलेस । नरेस || ७८३ || निदान | दुर्यो खोह में जाइ । वरे उदैपर आइ ॥७६१ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sto क्यामखां रासा] परी खडेलै खल भली, रैवासमै रोर। दौलत खां चहुवांन की, हाक धाक सब ठौर ॥७६२।। तीजी वार मेवातकी फौजदारी पाई ॥ दोहा ॥ दछिनते दीवान जू, टेर लये पतिसाहु । कह्यौ अवहि मेवातकू, वहुरौ साधन जाहु ।।७६३।। फौजदार मेवात के, तीजे भये दीवांन । भले पजाये भोमिया, संग ही दौलतखांन ।।७६४।। वाकी खेरी चोरटी, अति गाढ़ा मैवास । तिनको दौलतखानने, करचो कोपकै नास १७६५।। लरे बहुत ही भोमिया, मरे होइ घन घाइ। वध कर पानी तिन सुता, डारे धूर मिलाइ ॥७६६।। फिर पठये दीवांन जू, दच्छिन को छत्रपत्ति । दछिन दछिना मांगि है, भये हीन वल अत्ति ।।७६७।। कांगरैकौं विदा कीने . . ॥दोहा॥ सार पर्यो जब कांगरै, फिर टेरे दीवांन । राजा बिक्रमजीतकै , संग 'दये दै मांन ।।७९८॥ सूरज मल हौ नूरपुर, पाये दल पतिसाह । अनी जोरि ताकी बनी, बनी न मनकी चाह ।।७६६।। मूरजमल लरि नां सक्यौ, भाजि बचायौ प्रांन । आइ बिराजे नूरपुर, राजा पुनि दीवांन ।।८००। सूरज मल दल साहकै, घरते दयौ भजाइ । खोद मुवी बिल चौखरां, लीनी नाग छिड़ाइ ।।८०१।। ॥ सवैया । भाजि गयौ तजि मदिर को गिरकंदर अंदर आपुदुरायो । छाड़ि के बाग बगीचा वनै बहु थोहरकै बिरवै मनु लायौ ।। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत सूरजमल फिरै बनमै मनको विधु ठांव के ठांव पुरायो । खोद मुवौ बिल चोखर ज्यौ छत्रपत्तिभवंगम कोप छिड़ायो ।।८०२॥ अनगंन दल आयो साहि जहांगीर जू के बाटे हू न आवै गढ़ कांगुरै के कांगुरे । डर भयो घर घर थर हरो गिरवर भाजि न सके पहारी कीने भव पांगुरे । चंब कीनं छटै वोट ढाहे वैसे कोट कोट उडि है तू नाल चोट पविहि न गागरे । कहै कबि जान सुनि सूरजमल अजांन बैग आइ पाइँ गह दांन जिय मांगुरे ॥८०३।। ॥ दोहा ॥ सूरजमलकौं खेद कै, बहुरै दल पतिसाहि । जीति फिरे जीतन चले, नगर कोटकी चाहि ॥८०४।। अलिफखांन दीवानकू, दयो नूरपुर थान। सूरजमल को बहुत डर, रहि न सके को पान ।।८०५।। नगर कोट राजा गयो, सूरजमल सुनि बात। आयो दल बल साजि कै, पै कछु बनी न घात ।।८०६॥ साहसीक मल अलिफखा, जाके निहचल पाइ। लरि न सक्यौ दीवांनसू, सूरज सनमुख आइ ।।८०७|| सूरज नांव कहाइ है, उलटौ सबै सुभाइ । छप्यौ रहत है द्योसकू, निसको निकसत अाइ ॥८०८|| जाइ कांगरै विक्रमां, करी अरिनसौ बात। करि आयो भुस लीपनो, नांही बनी कछु घात ।।८०६।। आइ नूरपुर बिक्रमां, यह कह्यौ दीवांन । काहलूर ऊपर चढ़ौ, हौ रहिहाँ इह थांन ।।८१०॥ उतते चढ़े दीवांन जू, जस नीसांन बजाइ । तबहिं तुड करि ग्वारियर, डेरे दीनै आइ ॥११॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] बात सुनी कहलूरिये, आवतु है दीवांन । प्राइ मिल्यौ दै पेसकस, दमका गज केकान ।।८१२॥ पठय दयो कहलूरिया, राजा ढिगु दीवांन । देख विकरमांजीत तब, लाग्यो करन वखांन ।।८१३।। जहांगीर मानी नही, विक्रम करी जु बात । यह लिख्यो तुम कांगुरो, लीजहु जिह तिह घात ।।८१४।। नगरकोट घेरौ पर्यो, बहुरि लगे दल साहि। टूट्यौ गढ़ छत्रपत्तिकै, पूजी मनकी चाहि ।।८१५॥ राजा विक्रमजीतनै, हेर्दू तुरक बुलाइ । सगरै दलसौं जान कहि, बात कही समझाइ ।।१६।। कर आयो है कांगरी, राखहु करि के गाढ़। जोया गढ ऊपर चढ़े, बढ़े मान ह वाढ़ ॥८१७।। तब हिंदुवन मिलि यों कह्यौ, बिदाम कैकौ देहु । के तुम गढ़ मैं रहनकौं, नांव न हमसौ लेहु ।।८१८॥ राजा विक्रमजीतने, तक्यो वोर दीवांन । हौ रहिहौं के तुम रहौ, रहि न सकत को आंन ।।८१६॥ डिष्ट करी करतार पर, रहे उतहि दीवांन । पातसाह हरखे सुनत, बढ़यो मन सब मांन ॥२०॥ छत्रपतिकै चित्तमै भई, गढ़ देखन की चाहि । हित सौं आये कांगरे, जहांगीर पतिसाहि ॥२१॥ जहांगीर दीवांनको, पठयो यहै लिखाइ। तुम जिनसौं है आइहौ, हम देखेंगे आइ ।।२२।। पातसाह गढ पर चढे, लगे पाइ दीवांन । दिलीपतिनै दिल सहित, दीनी प्रादुर मांन ॥२३॥ नौछावर पतिसाह पर, कीनी बहुत दीवांन । जहांगीर अति प्यार कर, दीनौ गज केकांन ।।८२४॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत पातसाह उतते उतरि, चले वोर कसमीर । अलिफखांन राखें उतहि, साहस सत्त सधीर ।।२।। सोर भये फिर ठटामै, तब टेर्यो दीवांन । उतहिं पठायो छत्रपति, दै बहु प्रादुर मान ।।८२६॥ ठटा जाइ साध्यो भलै, अलिफखांन दीवान । हरख वंत सुन के भयो, जहांगीर सुलतान ॥८२७॥ सोर पर्यो फिर कांगरै, सुन्यो दिली सुलतांन । तब दल बल बहु संग दै, पठयो सादक खांन ।।८२८। भये पहारी येक सब, भले लगाये हाथ । आगै पांव न धर सक, सादक खांको साथ ॥२९॥ बात सुनत पतसाहन, पठय दयो फुरमान । तबहि ठटातै कागरै, फिर आये दीवांन ॥८३०॥ आये जबहि दीवांन जू, कपे हार पहार । मिलके सकल पहारिये, आये करन जुहार ।।८३१॥ सादिक खा देखत रह्यौ, आवत ही दीवांन । मिले पहारी आइ कै, धन रजवट चहुवांन ।।८३२।। काबिलके भुमिया फिरे, परी बहुत ही रौर । तब आपुन पतिसाह चलि, आये है लाहौर ॥८३३॥ टेर लये है अलिफखां, काविल पठवन काज । चक्रवती चहुवान तब, आयो दल बल साज ।।८३४।। लक्खी जंगलकी तबहि, आई बहुत पुकार । भटी ढुढ़ी डोगर बटू, कीनौ मुलक उजार ॥८३५।। बादसाह सोचत यहै, को पठऊ उह ठौर । लक्खी जगलके भोमिया, गहि आने लाहौर ॥८३६।। आसिफखा तव यो कह्यौ, असो और न कोइ । अलिफखान चहुवांनतै, यह मुहिम सर होइ ।।८३७॥ विदा कीये तब अलिफखा, दे घोरा सरपाव । चाहुवान दल साजकै, चले जैतकै चाव ॥३८॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा लखी जंगलको बिदा भयो अलिफखानुं चहुवांन जब, उतरे आइ कसूर । डरत भाजि पतिसाह पै, गयो भटी मनसूर ।।८३९॥ गढ़ी तकी अरि वरनकी, चढ़ि आये दीवांन । वैहूं आगै तें लरे, भलौ पर्यो घमसांन ।।८४०।। करवर बर अरवर हनै, कढे तीन सै मुंड । कोऊ निकसन नां लह्यो, बंध परि अरि अँड ॥८४१।। अरवर छार मिलाइ के, डोगर तके दीवांन । आप आपकौं भजि गये, आवत सुनि चहुवांन ।।८४२।। उतते फिर ताके बटू, सके सहारि न हाक । असौ कौन जु सहि सके, अलिफ खांनकी धाक ॥८४३।। उततें चढ़ि दीवांन जू, खाई डेरौ कीन । आइ मिले भुमिया सकल, होइ दीन आधीन ।।८४४॥ फिर चिहुंनी · देपालपुर, आये है दीवांन । पाक पटन ज्यारत करी, पूजी इछया प्रांन ।।८४५।। आइ मिल्यौ आधीन है, टुढ़ी बहादर खांन । भेट दई दीवांनकौं,' पायो आदुर मान ॥२४६।। जंगल साध्यो अलफखा, मिले भोमिया आंन । लाग्यौ करन बखांन सुनि, जहांगीर सुलतान ।।८४७॥ मिले भोमियां भेट दे, सोल के दीवान । पठय दई. पतिसाहकों, सुजस भयो चहुवांन ।।८४८।। चिहुंनी अरु देपालपुर, महमदौट सु नाम । और तिहारौ बिठंडी, पट्टन भरिहैं दाम ।।८४६।। आलमपुर पेरोजपुर, भेट दई भटनेर । मिले जलालावादके, दले दीवांनके हेर ॥५०॥ धिग कबूला रहमता, वाद रहीमाबाद । लक्खी जंगल दल मल्यो, मिले छाड के बाद ॥८५.१॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ [कवि जान कृत भटी समेज़े जाइये, टुढी बटू नैपाल । बैरियाह डोगर खरल, अरवर सब बेहाल ||८५२॥ धोला खेरा, भेज़ि दल, मारि मिलायै धूरि । डारी भलै उखारि कै, सब दुर्जनकी मूरि ॥८५३।। ही पहार सरदार खां, जबहि भयो बस काल । तबहि पहारी फिर गये, उपज्यो बहुरि जंजार ।।८५४॥ श्री दीवांनजी कांगरै आये चौथी बार ॥ दोहा ।। जहांगीर पतिसाहन, लये अलफखां टेर । हुकम कर्यो तुम जाइ के, करहु पहारहिं जेर ॥८५५।। अलफखांन तसलीम करि, चल्यौ राइ जूझारः । गहर न लाई पंथमै, पैठ्यौ आइ पहार ।।८५६।। भाजे फिरै पहारीये, सनमुख आवत नाहि । छपते डोलहिं वोट लै, ज्यों सूरज तें छाहि.॥८५७।। काहलूर लै के लये, मडई और सुखेत । लीनौ बहुरि सिकंदरौ, अलफ़खान जस हेत.।।८५८।। उतहि तुरक को नां गयो, बिना सिकंदर साह । कै उत पहुंचे अल फखाँ, साहस सत्त अगाह ।।८५६।। भाजे फिरहि पहारिये, छटि गये घर बार। सार धार नां सहि सके, डोले धार पहार ॥८६०॥ तवहि पहारी येक है, कीनौ यहै विचार। लरहि जाइ दीवानसौ, सब मिल. एक बार ॥८६॥ जगत सिघ पैठाँनिया, अरु विसंभर चंव्याल । चद्रभान गढ़ भौनकौ, पुनि फतू जसवाल ॥८६२।। भोपत और अमूल पुनि, बूला सूरजचद । ठकर कल्यानां स्यामचंद, सबै जुद्ध केकद ॥८६३। जगतमाल अलिया चढे, आयो राइ कपूर । कौन कौन कौ नांव ल्यौं, मव ही भये हजूर ।।८६४॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] नगरोटे डेरे तलवार कै || दोहा || अलिफ खांन इतते चढ़े, उतते कटक पहार । लूमि भूमि आई मनौं, भादों घटा अपार ||८६६ ॥ भुजंगी छंद कीये, जगतै दल बल साज । गोरवै, है चहुवांन सकाज ।।८६५|| पहली लराई इतही क्यामखांनी, उतही सब पहारी । बनी सैन गज की, घटा पर बूद गोली, भयौ जुद्ध मनो कौध कौधा, बरच्छी मेहकारी | भारी | दुधारी ||८६७|| रै जोध जोधा, भई लगै वान बानं, वजै थकै नांहि मारत, हनै मिटे तब पहारी, भजे परे टूक मार सार बार हार टूकं, मरे सूर ह्वै किरच्चे, बिरचे सुभट नां, भजे ह्वै चीरं मार । सारं । वारं । हारं ॥ ८६८ || बीर । सधीरं । अधीरं । गज पहारी सु ती रंच रंचक, करे ॥ सवईया || डनके । सतके रजके गज सैन बदै न झुकै न रुके रहै खां अलिफ बिरचि किरची कीये पै पहारी नहीं पग छांडनके । भये रंचक टूट गये उडि पौन रहे नजरावंन गांडनके | लह्यो ईसं न सीस न मास सियारहु ये न हडाहल हांडनके || ८७०। चीरं ॥ ८६६|| ७३ ॥ दोहा ॥ जगतसिघ सब संग सौ, भाजि गयो तजि लाज । जैत भई दीवांनकी, पूजे मनसा काज || ८७१॥ दूर्ज दिन दल साजि कै, लगे पहारी आइ । जबहि पर्यो घमसांन घन, बहुरौ गयो पराइ ॥ ८७२ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृतः तीजै दिन आये बहुरि, दल बल साज अपार । जैत भई दीवांनकी, गये पहारी हार ॥८७३॥ बहुरी आये भोमियां, चौथे दिन दल साज । मार परी तब मरि परे, उबरे गये जु भाजि ॥८७४॥ फिर आये दिन पाचवें, जूझ करनकै चाइ। मिटे पहारी खेत ते, अंत होइ घन घाइ ।।८७५।। बहुर छठे दिन आइ के, नीकी बाही रार। हाथ लगाये अलफ खां, अंत चले वै हार ॥८७६।। सादक खां पैठांन हौ, चीठी दई पठाइ। के दल मोपै पठइयो, के तुम मिलियो आइ ॥८७७॥ रोस होइ दीवांननै, तब दल दयो पठाइ । दुर्जन उतो सांम है, हौं क्यौ छांडौ पाइ ।।८७८।। चित नही रंन मरन की, सुजस रहै संसार । जो जिय गयौ तौ जान दे, रज राखे करतार ॥८७६। सुनी बात यहु जगतसिघ, दल थोरे दीवांन । ठटु कटकनिके साजकै, चढ्यौ देत नीसांन ॥८८०॥ खरे भये दीवांन चढि, तलवारैके खेत-। संपूरन रज लाज के, साहस सत्त समेत ॥८८१॥ अनी तीन कीनी तबहि, अलिफखांन भोपाल । येक वोरको रूपचंद, इक बासो डढवाल ॥८८२॥ बीच भये दीवांन जू, चित लरिबेको चाइ। रज अपनी नां जान दे, जौ जिय जाइत जाइ ॥८८३॥ घरो कर्यो पहारीयों, कटत अपार अनंत । आडौ आये घूमते, मद बहते मैमत ।।८८४॥ जुध भयो अतिहि प्रवल, परयो महा घमसांन । कोरी पांडौसे लरे, के कीचकको घांन ।।८८।। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्योमखाँ रासा] रूपचंद वासो भगे, जबहिं परयो बहु भार। सत साहससौ अलिफखां, खरे रहे जूभार ।।८८६॥ जुद्ध सरकी धार पर, दई लिखे द्वै आँक । जो जूझै तिहिं सिर कटै, जो भाजै तिहि नांक ॥८८७॥ अंक वि दीसे जुद्ध समै, जानहू सेवक स्वांम । जे आगे ते दस गुने, पाछे के नहिं काम ॥८८८।। पांनिपु अपनी राखि है, सूरा यह सुभाइ । जिय तन हान न गनत है, जो रज नांही जाइ ॥८८६॥ सूरबीर अरु मीन जल, इनको येक सुभाइ । तरफि तरफि दोऊ मरै, जो पानी घटि जाइ ।।८६०।। रहै न केहू हीन जल, सहे न दोऊ गार । सूरवीर पुनि मीनको, पानी ही सौ प्यार ।।८६१॥ येक बात.कवि जान कहि,, बढ्यौ मीन तें सूर । मीन मरै पानी घटे, सूर मरै जल पूर ।।८६२॥ रूप रूपचंदको गयौ, भाज्यो है बेहाल । सत नास्यो वासो नस्यो, डाढ़ी विन डढ़वाल ॥८६३॥ भार परयो दीवांन पर, जूझत अचल जूझार । येक वोर चहुवांन है, इक दिस सकल पहार ।।८६४॥ ॥सवईया॥ उतहिं पहारी इत संभरी नरेस धायौ उधम मचायौ जुध सुमिर इलाह जू ।. परी बहु मार करवार भई आर रतनारे रतनारे चले गहर अथाह जू । वाल तरु नाई बिध तीनों पनपाइ सिध आद अंत नीकौ करयौ करता निवाह जू ॥ कहा चली ढाढी भाट चारन कलावत की .. साहस 'अलिफखां सराह्यो पतिसाह ज ॥८६॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ [कवि जान कृत ॥ दोहा ॥ हय गय नर कटि कटि पर, टूटत हैं हथियार । फिर फूटै गुरजे लगें, छूटत है रतिधार ।।८६६|| ॥सवईया॥ लरत अलिफखांनु परत है घमसांन दे दै वहु दांन सिव कीनौ है निहाल जू । भसम हसम धूरि रत सत सिध मूरि आवधि त्रिसूल लहे खपर है ढाल जू ।। बोलत है घाव सू सुभाव डमरू को जैन पायो सरभाव भयौ चाव गज खाल जू । निरत करत हरखत हर हेर हार सुंडनके व्याल और मुंडनिकी माल ज्यू ॥८६७॥ साह जू के काज कुल लाजको अलिफखांन गाढ़े पाइ कीने है पहारसे पहारमै । बाने बहु बाने लगे सूरिवां सुहाने असै जैसे फुलवारी फूल रही है बहारमै । कीचकको घांन घमसान परयो दहूं वोर घाइल धुकत मतवारेसे अहारमै । धाई गज सैन आई अन ही नबाब पर मार विचराई भाजो सिंधकी दहार में ॥८६८॥ मांतो गजराज आयो कितौ परबत धायौ झरना बहायौ मद सैन घहरानी है। रूंख ज्यौ उखारत तुण नर डारत निहार रूपचंद वासो भाजवेकी ठानी है ।। भये सनमुख आनि नवाव अलिफखांन कुंजर भजानो माथै बरछी लगानी है। गैवर घटा सो वग पंत सो लगत दत तामें सार धार मानी बीज चमकानी है ॥८६९l Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्यामखां रासा] ७७ FFER ॥ पेडी॥ आवै हाथी घूमते, घूमै मतवारे । जैसी साबनकी घटा, वै तैसे कारे । कै परबतसे देखिये, वै भारे भारे । ज्यों धन गरजै भादुवै, त्यों गरज चिघारै ॥६००॥ हाथी ठाड़े ही रहे, वे थर थर करि है। जैते पाव उचाइ है, आगे ना परि है। घाव लगे बहु अंगमे, तिनतें रत ढरि हैं। गिरवर तें कवि जान कहि, झरनासे झरि है ॥६०१॥ ॥ दोहा ॥ करी कहा पशु बापुरे, सहैं जु डिष्ट करूर । सूर देखि गज यों चले, ज्यों निस देखे सूर ॥९०२॥ ।। सवइया ।। जुध मच्यौ विरच्यौ चहुवांन सजोव गयौ उड़ि सागनि लागै । राते भये रत सौ सत सौ असौ कौन लरयौ है कसूभल बाग । खां महमदको नंद अलिफखा मेर करे पग केहूं न भागै । जोधा भये है जितने वसुधा पर कांन गह्यौ है दीवांनके आगै ॥६०३।। सेन अनंत झुकंत पहारी लरंत कहंत न असो बियौ है। मारत डारतपारथ जो अलिफखां कोधन हाथ हियौ है। स्रोनि समुद्र न घुटनि टुटत जुगिन जुथ अघाड पियौ है । मुडनि भार गई झुकि नार मनोहर हार जुहार कियो है ॥६०४॥ ॥ दोहा । मुड माल हर पहरि है, जानत कौन सुभाइ। सुभटनिके सिर देखि कै, गरै लेत है लाइ ॥६०५॥ मुड बिना तन धर परे, तरफत है इहं भाइ । मानों पगिया गिर गई, करिहै सैख समाइ ॥९०६।। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत खुले देख द्रिग सुभटके, डरपैं गिर्भ सियार। बिकट लगै लैबै निकट, जो मरि गये मुछार ॥६०७॥ रुहिर जुगिनी भछि गई, स्यार मांस अरु चांम । हाड न कोऊ लेत है, असत कहावत नाम ॥६०८।। घाव जु बोले सुभटके, कहत मार ही मार । जीभ थकी तब अंगही, लाग्यौ करन पुकार ।।६०९।। साहिमखानी को लरयौ, अलिफखांनकै संग । धार मुरी हथियारकी, पै नहिं मोरयौ अंग ॥१०॥ ॥ सवईया ॥ हैदल गैदल पैदल जोर के,पाये अनंत अपार पहारी। नाचत है हरखे हरि जुगिन छुटत नाल बदूक सुतारी । भीरपरी बिचले तब भीरक सांहिमखा समसेर सभारी। काहू को मुड कटी कटि काहू की ही मिसरी पै लगी आईखारी ॥११॥ ॥ दोहा । सूर सुभट दीवांनके, बहुते आये काम । केते येक गनाइ है, लै लै उनको नाम ॥१२॥ येदल अरिके दल हनत, पुनि भाईया कमाल। द्वै काइम नीके लरे, नाथा और जमाल।।६१३॥ करे मुजाहद मेर पग, भीखन पुन बहलोल । लाडू अरु पेरोज खां, राख्यौ अपनी तोल ॥१४॥ द्वै खानू दौला अबू, इसकंदर रज रास । अरु मारू उसरीफ पुनि, कीनौ नांव प्रगास ॥१५॥ ऊदा परता चतुरभुज, जगा मनोहरदास । पुनि को जू हरदास ये, परे येक ही पास ॥१६॥ द्रोंद राज मोहन जुगल, मुये येक ही ठौर । कौन २ को नांव ल्यौं, कटे बहुत ही और ॥१७॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ७६. जे जूझे दीवांन संग, अमर भये संसार । जों जिहाजमै पैठ के, सागर कीजत पार ॥६१८॥ मार मार ही उचरै, अलिफखांन चहुवांन । जोर पर्यो करवार कर, अरि मारे दीवांन ॥१९॥ हाथी येक दीवांनको, नांव चतुर गज ताहि । खलनि उखारत बिच्छ ज्यों, औरापति सम आहि ॥२०॥ कछु हाथी हाथी हने, कछु हने दीवांन । जोधा पाइन तर मथे, भलौ भयौ घमसांन ॥२२॥ ॥सवईया ॥ धायौ है मातो गयंद अधीर है काहू नही तब धीर धरी है। खानु अलिफ खरे इतही गज आइ दबाये नहिं ढील करी है। बाही भलैं करवार चरन को सावन ताबर की ज्यों निकरी है। टटके पांव करी यों गिर्यो मनौ फूटिके खंभ चौखंडी परी है ।।९२२॥ ॥ दोहा ॥ जबहि जुद्ध भारी भय, बिरचे कटक पहार । तब दिवांन पाछै परे, बहुत गिराये मार ॥६२३।। तेरहसै मानस हने, पर्यो बहुत घमसांन । इनहूंके बहुतै मरे, गनत न आवै ग्यांन ॥९२४॥ देख्यो जबही पहारी यों, भाजे छाडत नांहि । येक मतौ करिकै फिरे, आइ मिले तब मांहि ॥१२॥ बहुर लड़ाइ फिर परी, जूझे जोध अपार । भये सही दीवांन जू, सुजस रह्यो संसार ॥९२६॥ खेत मांहि जो मरि पड़े, है ताहीको खेत । जाके पाइ न छूटि है, जैत दई तिहं देत ॥२७॥ जिय जान्यो जान्यो मरन, अलिफखांन चहुवांन । भैसी विध ना मर सकै, कोऊ राजा रांन ।।९२८॥ ॥ सवईया ॥ प्रबल सबल सत लाज सौ अलिफखां जूझत · झुकंत अकुलात नहीं दलतें । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० [ कवि जॉन कृत जुद्ध को समुद्र है सहादत के नग भर्यो बूडकले पावे जो न डरै काल जलतें । महमद खांन अंग जीते नित जोरि जंग आरन अभंग बडौ साकौ कीयो चलतें । बड़े बड़े राजा राव रानां उमराव भूप औसी भांति मरिबेको मुये हाथ मलतें ॥ ९२९ ॥ बासोहद कीनी बस चबे दीनी पेसकस जस भयो जीत्यो है नगरकोट भौनकों । काहलूर जैतवा मंडई सुखेत मां बिकट पहार पैठे मारग न पौनको । भाजे भाजे फिरत पहारी हार येक भये कोरनिसौ लरै सौ साहस है कौनको । गए अमरापुर अलिफखां अमर भये संभरी नरेशने चढायो लौन लौंनकी ॥ ९३०॥ ॥ दोहा ॥ जो लौ जीये जगत मैं, अलिफ खांन सिरमौर | गढ़ मनसब लेते रहे, आज और कल और ॥ ३१ ॥ ॥ सवईया ॥ दोइ बार दछिन मे वाती तीन बार मली कछवाह तीन बार खेत ते खिसाये है । साधी है मेवार दोइ बार श्री ठटा हूं साध्यो मार २ कै भिवानी भोम भोमिया मिलाये है । कांगरौ पजायो करवर भखाये है । अलिफखांन बर चार बार जंगल लखी के मारि डंड खरे ईसरस भये सरसै गजे उमराव दलपति हूं भजाये हैं ||३२|| ॥ दोहा ॥ सोरहसै जु तियासिया, सन सहस पैतीस । अलिफ खानुं बैकुठ गये, रोजै अठ्ठाईस ||३३|| Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] करामात परगट भई, ज्यारत करत जहांन । दरगाहको देखत ही करामात दीवांनकी, गिरवर पर बादुर रहै, ज्यों ॥ सवईया ॥ पूजत इछ्या प्रांन ॥ ९३४ ॥ है हाजिरा रोजै पर होत दुख दूर देखे नूर दरगाहको निरधन पावै बितु निरसुत पावै सुत औसी अद्भुत बात करम इलाहकौ । निरबुधि पात्रै बुधि वेसुधको होत सुधि मारग लहत जु भुलानो आवै राहकौ । अलिफखां चहुवांन लोभ नही कीनौ प्रांन पायो फल राख्यौ स्वांमधर्म पतिसाहको । न्यामत संपूर है जहूर हाजिरा हजूर होत दुख दूर देखे नूर दरगाहकौ ॥९३६॥ ह्वै सुख लीजिये नाम सकारे । व्याध असाध ते होत समाध मिटै अपराध अगाध जै न्यारे । चित कछु चितमै न रहे ? हजूर । नूर ||३५|| उमहै कलप ब्रिछ की डारेँ । खांन अलिफ करामात पूरन चूरन है है सब रोस विकारें । देखिये ना चुखहूं दुख को मुख ह्वै सुख लीजिये नाम सकारे ॥ ९३७ ॥ प्रांनकी इंछ दीवांन पुजाँ । न्यामत और करामत पूरन होहिं सुखी जे दुखी तकि आवे । पीर महा परगट्यौ पुहमी । ८१ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जॉन कृत परपीर पिराये की पीर पिरावै । खान अलिफ समुद्र अथाह है जो मनसा सोई धावत पावै । कान गहै तेई मान लहै जगु प्रान की इच्छा दिवान पुजावै ॥६३८।। ॥ दोहा । सोरह से इक्यानुवै, ग्रन्थ कर्यो इहु जान । कवित पुरातन मै सुन्यौ, तिह बिध कर्यो बखांन ।।६३६॥ दौलतखा दीवांनको, अब हो करौ बखांन । तेग त्याग निकलंक है, जानत सकल जहांन ।।६४०॥ श्री दीवांन दौलतखांके पुत्र १ ताहरखां, २ मीरखां, ६ पासफखा । ताहरखां कुल को तिलक, रचि कीनौ करतार । मीर खांन पुनि असद खांन, भइया ताहि विचार ॥९४१।। दौलतखांको बखान ॥ दोहा ॥ जबहिं भये बस काल के, अलिफखांन दीवांन । बैठे उनकी ठौर तब, दूलह दौलत खांन ।।९४२॥ जहांगीर पतिसाह 'जू, दे के मनसब मान । सौप्यौ है गढ़ कांगरौ, दोलत खां चहुवान ।।९४३॥ पातसाह असौ कह्यौ, तुम बिन औसौ कौन । जाते निहचल रहत है, नगर कोट अरु भौन ॥९४४॥ आइ बिराजे कांगर, दौलतखां चहुवान । भुमियनको भै उपज्यो, संके राजा रान ॥६४५।। बासी सकलं पहारके, जेर करे चहुवांन । डंड भरै सेवा करै, थहरै ज्यौं तर पांन ॥६४६।। जहांगीर कीनौ गवन, तब उपजी जग रौर। सब थानै उठि उठि गये, रह्यौ न कोऊ ठौर ॥९४७॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ८३ दौलतखां दीवांन तब, कीने गाढ़े पाइ। दुर्जन दलतें ना डुरे, रहे अचल ठहराइ ॥९४८॥ सवै पहारी येक है, घेरो कीनौ आइ । मेद चरन दीवांनके, डुरहि न लागे बाइ ।।९४९।। अपनै दलसौ यों कह्यौ, दौलतखां दीवांन । निकसि लरहु मारहु मरहु, करहु महा घमसांन ।।९५०॥ तव दल सवल दीवानके, निकसे लरन रिसाइ । नीकी जुध मचाइ के, घेरौ दयौ छिड़ाइ ॥१५॥ मरे पहारी जे लरे, उबरि गये जो भाजि । वहुरे दल दीवांनके, लै उनकी रज लाज ॥६५२।। साहिजहा बैठे तबहि, तखत दिलीके प्राइ। वात सुनी दीवांनकी, भले रह्यो ठहराइ ॥६५३॥ और न कोऊ ठाहर्यो, तजि तजि आये थांन । नगर कोट राख्यो भलै, दौलतखां चहुवांन ॥९५४॥ मनसव बढ़यो छत्रपति, दै के प्रादुर मांन । जग सगरे नामी भये, दौलतखां चहुवांन ॥६५॥ रहे चतुरदस बरस उत, साध्यो भलै पहार । पाछै कावलको चले, चाहुवांन मुछार ॥९५६।। काविल और पिसौरमै, रहे भली ही भांति । सीवाली सब मिल चले, सहि न सके मुखक्रांति ।।९५७।। बेटा दौलत खांनको, ताहरखांन सपूत । जुध खर्ग दामिन दमक, दानझरी पुरहूत ।।६५८।। साहिजहांसी मिलनको, गये अकबराबाद । प्यार कियो मनसब दीये, अति वाढ्यो अह्लाद ।।६५९॥ अमरसिघ गजसिंहको, हन्यो- सलाबत खांन । छत्रपतिकै दरबारमे, उपजि पर्यो घमसांन |९६०।। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत साहिजहां फरमान दिय, मारि लेहु राठौर । जैसी बेअदबी बहुर, ज्यों न करै को और ॥६६१।। तबहि गुरजबरदार सब, चहुंधा लगे अपार । गुरजनि सौं ढाह्यो बुरज, गिरत लगी बहुबार ॥९६२॥ जे सेवक अमरेसके, हुते आगरै मांहि । ते सुनिक सब लरि मुये, कोऊ भाज्यो नांहि ।।९६३।। राव कुटंब नागोर हौ, जोधावत बहु पास । को नां लै नागौरको, भैसी उनकी त्रास ॥९६४॥ नटे बहुत उमराव तब, ताहरखां सिरमौर । आगै है असे कह्यो, मै पाऊं नागौर ॥९६५।। का मजाल जोधानकी, उतहि सके ठहराइ । हुकम रावरौ है बली, पलमें देऊं उडाइ ।।९६६॥ सुनि आनंद्यो छत्रपति, लिख दीनौ नागौर । ताहरखां पतिसाहके, जियमै राखी ठौर ।।९६७।। पातसाह फुरमान लिख, टेरै दौलत खांन । मनसब हूं डेढ़ौ कर्यो, और बढ्यो बहु मांन ॥९६८।। काबलमे दीवांन है, चल्यौ जात फुरमान । ताही मै यौ छत्रपति, पूछे ताहर खांन ।।६६९।। पिता तिहारौ आइ है, तब जैहै नागौर । कै तूं पहले जाइ कै, काढहिंगौ राठौर ॥९७०॥ इन्हन कह्यो फुरमांन हौ, बांधौ अपने सीस । अबहि जाइ जोधानिकौ, काढौ बिसवा बीस ॥९७१॥ हर्षवंत हौ छत्रपति, दयौ आनि सिरपाव । आदुर दै नागौर दै, कियो बड़ौ उमराव ॥९७२॥ इनको सुत सरदारखां, सग हुतौ दुतिरास । मनसब देकै छत्रपति, राख्यो अपने पास ॥९७३।। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ८५ उतते ताहरखां चले, वतन आपने आइ । कच कियौ नागौरकों, अनगन कटक बनाइ ॥९७४।। जात जात नागौरकै, निकट लगे जब जाइ । जोधावत गढ़ छाड के, निकसे तबहि पराइ ॥९७५।। ॥सवईया॥ मिटे उमराव राव साहिजहां जू के आगे तहां लायौ बीरानं करी है बात थोरी सी। हाथौ दयौ पोरकै पै माथौ दै सके न जोधा गरद दबाये भाज गये खेल होरी सी । चहुरंग चमू बानि नागवर लीनौ आनि भये है खिसाने जे कहत बात भोरी सी। ताहरखां कीरति अकीरति बिपछनकी जगमै रहेगी गग जमुनाकी जोरी सी ॥९७६।। पाखर संजोव गज जूहमे धुकार धौसा सघन घटामै मानौ घन घहरतु है । प्रबल सबल दल साजि चढे ताहरखा खुरनि तुखारनि सौ जगु थहरतु है । धूरि उडि नभ छायौ सूरज न डिठ आयौ तिमर जनायौ अरि हीयौ हहरतु है। पवन घन जानि को डुरावत समूह सैन सागर समांन है सु जानौ लहरतु है ॥९७७॥ मूछनि ताव सुभावहि देत बरा बरा जानि के प्रान डरै जू । जौ करवार निकार निहारत तौ द्रिगवाल सबै थहरे जू । होत पलान तुरंग कुरंग है भाजै विपछ न धीर धरै जू । ताहरखाकी धाक दसौ दिस सेल चढे जगु अ लरै जू ॥६७८।। हिम्मतके बर मोह्यो छत्रपति साहिजहा मुख तेरी ये बाते । जोध न कोऊ बिरोध सकै तुहि जानत तू सब जुध की घात । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत ताहरखां तुव तेगकी त्यागकी फैली कीरति दीपनि सातै । दानके वीज धरा रसना कविनीके वये जसके बिखाते ॥९७९।। दुरजनसाल मरद मुछाल है ताहरखॉ तरवारको रावत । कूरम धूरमे डारे मिलाइ के सिघ हुते तेऊ गाइ कहावत । वंक रह्यौ नही बीकनिमै अरु पाइ लगे तजि बाद बिद्रावत । दौलतखानकों नंद नरिद, अनंद भयौ अति देसमें आवत ॥९८०॥ ॥ दोहा ॥ जैगढ़में डेरौ कीयौ, अमरसिघके धाम । हिमतकै बर जगतमे, कीनौ अपनौ नाम ॥९८१॥ सुखमे मास चतुरं गये, आये दौलतखान । पूत पिता दोऊ मिले, अति सुख उपज्यो प्रान ।।९८२॥ जुगल रहत नागौरमे, वाढ्यौ हर्ष हुलास । मुंछारनकी मानि है, सीवारी सब त्रास ॥९८३॥ सात आठ ही मास लौ, रहे उतहि दीवांन । पुनि आयो पतिसाहकी, जैसी बिध फुरमांन ॥९८४|| बांचत ही फुरमांनकै, ना रहियों नागौर । अब तुम गहर निवार के, वेगे जाहु पिसौर ॥९८५॥ उतते सहिजादौ चलै, बलख लैनके चाइ । तब तुम उनके संग है, फतिह कीजियहु जाइ ॥९८६॥ तब दीवांन उतको चले, मियां रहे नागौर । आठ मास बैठे रहे, सुखसौ वाही ठौर ॥९८७॥ फौज चलाई बलखकू, सुनी मिया नागौर । छत्रपतिको पठई अरज, जै पुहची लाहौर ॥९८८॥ तामै असै लिख्यौ हौ, सुनिये सहनसाह । मोहूको जो हुकम है, तो आऊं दरगाह ॥६८६॥ येउ तबहि बुलाइ के, दीने वलख पठाइ । लघु साहिजादै कटक लै, फतिह करी है जाइ ॥६६०॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा ] दीवांन । इद पठये सहजादै जुगल, पुहचे है सतरज लये, नीकी विध थान रहे, मलि इक रुसतमखां दखिनी, दौलतखां दीवान ॥ ९९२ ॥ सहिजादै के पास । खोहकै थान || १|| उजबकको मांन । गई अनयास || ६६३ || रुसतमखां ताहरखां है बलखमे, मीच निगोड़ी पापनी, आइ सुनिये कान | कीयो पयान || ६६४ || तन जु प्रसेद । कैसे कहियै जीभ सौ, कैसे तरवर ताहरखान जू, जगते ताहरखांको मर्न सुनि, आयौ रोम रोम रोवन लगे, ताहरखा कीनौ गवन, बस्त भगौहे ह्वै गये, तरुनापै ही उठि गयो, ब्रिधपनको पहुच्यौ नही, पूनोको पहुंच्यो नही भाग जियको उपज्यौ खेद ||५|| स्रवन सुने ये बैन । रत रोये जुग नैन ॥ ९६६ ॥ दै तरवर बैराग । बाव भाग ।। ६९७|| लोगके कमोदनि मंद । नाहि ॥ १००० ॥ यह बपरीत लागै बुरी, गह्यो सप्तमी चंद ॥ १६८ ॥ थारी के मुक्ता भये, ढरे ढरे ही जाहि । सुरतर ताहरखांन बिनु, केहूं न द्रिग ठहराइ ||६|| हियो कमल नाहि न खुलत, मुर्भित पल पल माहि । छवि रवि ताहरखांन जू, डिष्ट परत है कहु कैसे के ऊपजै, नैन चकोर कहु वा डिष्ट पर नही, ताहरखां मरि करि ताहरखांन जू, हितुवन यह नैन बहन हिरदै दहन, मनहि गहन प्यारे ताहर खांन बिन, क्यों करि है उन डाइन बैरन बलख, लयो करेजा काढ़ || १००३ || अनंद । मुख चंद ।। १००१ ॥ दत दीन । तन छीन ॥ १००२ ॥ मन गाढ़ । εἰ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [कवि जान कत धर्मराज कैसे कहूं, कौन धर्म यहु आहि । काटत असौ कलपतर, कृपा न उपजी काहि ॥१००४॥ मन भावन बिन तप्ततन, बढ़ी सु मेटै कोइ । असुवनि छाती छिरकिये, पै नां सीरी होइ ॥१००५।। ताहरखां बिनु चित्तकौ, चिता भई असंख । चन्द्रक्राति मन भाति नित, चुयो करत है अंध ॥१००६॥ सज्जन द्रुजन येक सम, करे सु भली न कीन। जीवत हित बनि सुख दयौ, मरि अनहित बन दीन ॥१००७॥ सज्जन द्रिग अरहट घरी, भरि २ ढरिरे जाहिं । दुर्जन विहसत फिरत है, दसन अधर रस मांहि ॥१००८।। ताहरखां या देसमैं, येक बार फिर आव । सज्जन द्रुजन को अबहि, है परखनको दाव ॥१००६॥ मरि कर आयो देसमै, घर २ उपज्यौ सोग । औसी बिधक मिलनमै, क्यों सुख पावें लोग ॥१०१०॥ दुर्जन सौ नाहिन झुके, कीया न सज्जन प्यार । काहू तन चित यो नही, रचक नैन उधार ॥१०११॥ देखत ही ताबूतको, रोर परी पुर मांहि । कौन नींद सूते मियां, तौऊ जागे नांहि ॥१०१२॥ येक बार जियकी कथा, सुनी न प्यारे आइ। मनकी मनही मै रही, बिधु सौ कछु न बसाइ ॥१०१३।। सीत पवन लू घाम घन, सहै रहै दुख मांहि । जांनहि जिन सिरतें गई, कल्प ब्रिछकी छांहि ॥१०१४॥ ॥सवैया ॥ काल कौ तौ नाम कालकूटते कटुक लागै ताहरखां सौ कलपतर जिन दाह्यौ है। रतननिको समुद्र पल मै सुखाय डार्यो मिटत न काहू भांति करता जु चाह्यौ है। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] ह भर तरुनांपै ही कुबरतें कुवेर लूंट्यौ सोने को सुमेर काहू करि कोप ढाह्यौ है। रोम रोम दीनो दुख दया न करी है चुख डाइन बलखतौ करेजा हाथ बाह्यौ है ॥१०१५॥ ॥दोहा।। मरन पूतको सुन पिता, कैसे धीर धरंत । रोवनहार हि रोईये, यहु दुख आहि अनंत ॥१०१६।। बात सुनी दीवान जू, अति दुख उपज्यो गात । करता करहि सु सीस पर, कछु बर नाहिं बसात ॥१०१७॥ पातसाह यह बात सुनि, काहू अग्या दीन । खां सरदार वुलाइक, बहुत दिलासा कीन ।।१०१८।। फिरी मुहिम बलाखकी, काबुल आई सैन । वहुर पठाई फौज तब, गढ़ खंधारको लैन ॥१०१६॥ जैगढ़को घेरौ कीयौ, पै बर नांहि बसाइ । और फौज गढ़की कुमक, दीनी साही पठाइ ॥१०२०।। इत दल साहिजहांनके, उत दल साहि अबास । आपुनमै लागे लरन, पुहची धूरि अकास ॥१०२१॥ तबहि फौज लागी डिगन, तव रुस्तम दीवांन । जै सनमुख लरन, बैरनि पर्यो भगांन ॥१०२२।। ॥सवईया ॥ साहिजहां करि क्रोध खंधारके लीबेको प्रापुनी फौज पठाई । जुद्ध मच्यौ है नच्यो तहां नारद आगै फौज अबासकी आई। दछिनी दछिन वोर भयो है दीवान अनी तव लीनी है बाई। दौलतखां दलनाइक साहिकी सैन भलै लरिकै बिचराई ॥१०२३।। ॥दोहा॥ भाजी फौज अबासकी, जीते दल पतसाह। लरे सु मरे परे उहां, भांजि बचे गुमराह ।।१०२४।। जब तुसार मौसिम भये, सके न दल ठहराइ । घेरो तजि खंधारको, काबुल बैठे आइ ॥१०२। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत जबहि गयौ मिटि जगततें, जांमैको हंगाम। तबहि पठये बहुर दल, जाइ करहु संग्राम ॥१०२६॥ बहुर जाइ घेरौ कीयौ, पै ना आयौ हाथ । तजि खंधार काबल तबहि, आयौ सिगरौ साथ ॥१०२७॥ तीजै बहुर हुकम भयौ, तब फिर लागे जाइ। ना कछु छत्रपतिसौ चले, गढ़सौ कछु न बसाइ ॥१०२८॥ जुझां होत है रैन दिन, छूटत गोली नाल । जाकै लागत जात है, तिहं जिय गोली नाल ॥१०२६॥ ' दौलतखां दीवान जू, चढ़ि चढ़ि दोरै पाप । बिचकर कछुकी कछु भई, चढ़ी कालकी ताप ॥१०३०॥ केतक दिनमे मरि गये, यहै जगतको भाव । कालतें काहू न बचे, रानों होइ कि राव ॥१०३१॥ ॥सवईया॥ जा दिनते चाहुवांन कलजुग प्रगटान्यों ता दिनते येते भूप ज्याइ कीने नये हैं। दत्तिको करन मति भौज सति हरचंद परदुख काटिबेकौ विक्रम ही भये हैं। हठको हमीर देव छाड़ी नहीं हठ टेव प्रथीराज बलको सुजस जगु छये है। दौलतखां जीवत हे राजा षट इनकै मरत इनके मरत आज वैउ मरि गये है ॥१०३२॥ ॥ कवित्त ॥ प्रथम गंजि राठौर बहुरि भंजे कछवाहे । जहांगीरसौं बचन कहे ते भले निबाहे। बहुरि कांगरौ साध बलख खंधार सिधारे । कटक साहि अबास खेत चढ़ि बहुत संघारे । श्रीदौलतखां दीवांन तौ सप्तदीप नामी हुवौ । अस मरद मुछारको, कैसे के कहिये मुवौ ॥१०३३॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा] दौलतखाँ दीवांन जबहि बैकुंठ सिधायौ । सुख दाइक विन वहुत लोगन दुख पायौ । अबहि कहौ वह बरस छाड़ि दीनौ जगु जामै । चार भेद समुझियो गुप्त प्रगट है जामै ॥१०३४।। संन सहस पचास पुनि तेरह लैहु प्रमान जी। ११० १७५ ६६ ५२ ६१५ ४५ = १०६३० संवत सत्रह सै जु दस गवन कर्यो दीवांन जी ___५. २३७ ८४ ... = १७१० यह करबित तुरकी लिखहु, बहुरहि दसके काढ़। संन संवत तू देख लै, अावै घाट न बाढ़ ॥१०३५॥ जब यह खबर दीवानकी, पुहची जाइ नरेस । तबहि खांन सरदारको, दीनौ इनको देस ॥१०३६।। देस' दयो सरपाव दै, बहुत दलासा कीन । पुनि दयाल द्वै छत्रपति, विदा वतनकू दीन ॥१०३७॥ तब घर आये वतन लै, खा सरदार मुछार । हितुवन मन आनंद भयो, द्रुजन भये विकार ॥१०३८।। सीवारी सब थरहरे, जैसी उपजी त्रास । घर घरनी सब छाडिक, जाइ गह्यौ वनवास ।।१०३६।। दल सुनि खां सरदारके, द्रुवननि परी दहल । घटा देख फोरयों घटा, तुरियो टोडरमल ॥१०४०।। तरवर ताहरखांन तन, साहस सत सपूत । सरदारां सरदार है, रजपूतां रजपूत ॥१०४१।। ॥सवईया॥ दान खग निकलंक राख्यो न दरिद्र रक सुभट असंक जसु प्रगट मुछारको । गुनीजन दै आसीस सत्रनि काटै सीस बच्यो जिन भाजि मग लीनो दधपारको । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ [कवि जान कुन कुलको तिलक सब मुलकको सुख देत अजर अमर रही थंभ परवारको । करतकरम करि कीनो है अनूप भूप जग पर जागै कर खांन सरदारको ॥१०४२॥ रूप उजागर बागरको पति लागत है .दिन ही दिन नीकौ । जो लौ है ससि सूरज धू नभ है जगमै जल गंग नदीको । तोलौ करि करतार क्रपाल है , काइम क्यामल खांनको टीको। नैनको तारो है प्रांनको प्यारौ है खां सरदार अधार है जीको ।।१०४३।। चाहत हैं मीन जल मिले ही परत कल चाहत चकोर चंद चकई बिहानको । चाहत मयूर घन चाहत बसेत बन चाहै मनोरथ मन कंवल ज्यों भांनको । अंध चाहै नैन चाहै पग गैन गुम चाहै बोलौ बैन घट चाहै प्रानको । जैसे येती बातनको येती बात चाहत है तैसे मेरे नैन चाहे सरदार खांनको ।।१०४४।। पूत पिताको देखिक, बाढ़त है अनुराव । फदनखां सरदारखां, कोट वरषकी आव ॥१०४५।। ॥ इति रासा सम्पूर्णम् ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट श्री अलिफखांकी पैडी लिखते पहलै अल्लहु सुमिरिये । जिन्ह सुभट उपाया। वोल जिलांवण कारण। रक्खै नही काया । माणसदै सारै नही । सोकर सुभाया। सोई जित्तै जान कहि । जिस वोड़ खुदाया ॥१॥ नांव महंमद लीजिये । सुभटां सिरदार । पंथ दिखाल्या दीनदा । सगलै संसार ॥ जिन्हां कलमा अक्खिया। ते लगों पार । दिल विच जिन रखी दगा । ते सटे मार ॥२॥ जहांगीर अकबर हंदा। दिली सुलिताणां । चार चक नव खड विच। फिरवाई आणां ।। सत्तॉ दीपॉ ऊपरे । तपियो ज्यौ भाए। तिन थिर थप्या अलिफखा । टिका चौहाणां ।।३।। दादै ने. क्यामखां । केही गल किती। केती धरती मार कर । तेगा बल लिती ।। मलूखाँसू खेत चढ़ि । जुध बाजी जिती । खिदरखानकी बांहि गहि । दिली ले दिती ॥४॥ [टि]क्का क्यामलखानदा । खानां सिरताज । वड्डा होई जु गोत विच । तिस वड़ी लाज ।। भुमियां फिरे पहाड़दे। सज्जहु दल साज । मांरण मरंण भिडंनदा । रजपुत्तां काज ॥५॥ बासो पहली होत तै । कर जुध्ध भगाया। पछे सूरजमल्ल भी । तें खेत खिसाया । इब जगते ऊपर चढ़ी। उन सीस उठाया। तुम्ह बिण येहा कौण है । जिस लोभ न काया ॥६॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ [क्यामखां रासा--परिशिष्ट साके तेंडे बड़ बड़े। नां जांहि गिणाये । बिदा कीया तूं जंहानो। ते भै पजाये ॥ राण जेहे भूपति । तै खेत खिसाये । चारौ चकदे भूमियां । गहि आण मिलाये ॥७॥ नगरकोटदे भूमियां । है नितदे आकी। लुट्टे सगले परगने । छड्डी नही बाकी । फौजदार सिकदारदी। कुह रही न नांकी। तहां पठाया अलिफखां । दे गज भैराकी ॥८॥ पातसाह बड़ मोलदा। सरपाव पिन्हाया । बीडा दिता प्यार कर। खां पैर लगाया ।। बिछा होइ तसलीम कर । डेरैनौ आया। तद ही डेरैथै चढ्या । चुख नां ठहराया ।।६।। हिक धापही अलिफखां । परबत पर धाया। गहर न किता पंथ विच। बहला चलि आया । तद थरराये भूमियां । यदि यों सुणि पाया। जगतैसू चगता खिझ्झया। चहुवाण पठाया ॥१०॥ खां चड़िया नगारची । नीसांण बजावै । जेही भादौदी घटा । घणहर घररावै ॥ अझ करणनौ अलिफखां । आनदसू धावै । जाणौ नौसहु चौपनाल । ब्याहंणनौ आवै ॥११॥ पैठा आइ पहाड़मै । दमामे बज्जे। सोर होवा सैसार विच । परबत मिलि गज्जे ॥ नाहर देखे गउ ज्यौ। राजे हंभ भज्जे। जीव बँचाया रज तजी। अपजस नाँ लज्जे ॥१२॥ अग्गे अग्गे भूमियाँ । पछै दीवाणं । मिरग डार ज्यौ भज्जदे । हंढे उदयाण । निद्द भूख त्रिसनां मिटी। छुट्टी सुखबाणं । गिरवर गिरवर पंछ ज्यो। वै लेहं उडाणं ॥१३॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलिफखांकी पैडी] नर नारी मिल सेज पर । नां करहि किलोल । अंखी कजल ना रह्या। मुह नाँहि तंबोल ॥ पत्रांहदे कपड़ कीये। फटि बसंन अमोल । कदही दरपण हथ्थ लै। नां तकहि कपोल ॥१४॥ भगे फिरै पहाड़िये । भारी दुख पावै । पैर थके परबत चढ़त । संगती बिललावै ।। अन्न पकावणनों नहीं। तरु छाल पकावै । दल देखे दीवानदे । छडि आप भगावै ॥१५॥ मौपै ठाण धमेहड़ी । मारी असराल । जंबूदा जंबू हुवा। चूहा चंब्याल । नगरकोट अपबस कीया। असु चढ़ि ततकाल । मडई और सुखेत ले। कड्डी रिप खाल ॥१६॥ कीता नगर सिकंदरा। बहु साह सिकंदर । तहां अलिफखां जाइ । करि ढाह अ"। भगे फिरै पहाड़ियै । ज्यों गिर गिरकंदर । रुक्खां उपर कुददे। हंढे ज्यौं बंदर ॥१७॥ हंभ पहाड़ी हिक होइ। यह गल विचारी । खां जीवत छड्डे नहीं । हम निजर निहारी । उड़ि न सके फट्ट नही । धर काठी भारी । करै लड़ाई बागले। हम येकै बारी ॥१८॥ जगता चढया पठाणियां । बिसभर चंव्याल । सीबैदा अभू चढ्या । फतू जसवाल ।। चड़या सुखेतड़ स्यांमदा । चद सूरज मडाल । भोपत बिलूदा चड़या। ठक्कर चिड़ियाल ॥१९॥ अनरुध चड़िया राजपुर। और टलू कपूर । चड्या कल्याण कूलूदा । चंदा कहलूर । अरु बूला कुटलहरिया । आइ हुवा हजूर । चंद्रभाण तत्ता चढ्या । ज्यौ उगै सूर ॥२०॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [क्यामखां रासा-परिशिष्ट ..."डच दल सज्जिकैं। चड़िया पठियाड़। खणिहाड़ चभी छड़िक। पाया खडिहाड़ ॥ मन महेस भूटतदे । ढूढंदे..."राड़ । किसदा किसदा नांव ल्यों। हम जुड्या पहाड़ ॥२१॥ मिलकर सकल पहाडिये। दल सजे अपार । गिणत न लेखा आंवदा। उमड़ा संसार ॥ चड़ कर आये खांन पर । नां लग्गी बार । आंगै हाथी घूमदे । करदे हाकार ॥२२॥ तब यह गल दीवांणजी। येही सुणि पाई। अगणित फौज पहाड़दी। मुझ उप्पर आई। अलिफखांन नीसांन दे। तद सैण बंणाई । जस लालचदे लालची । मिलि करै लड़ाई ॥२३॥ अलिफखां फुरमाईया । ल्यावहु केकाण । तद उठि दौड़या सांहणी। दौला सहनांण ॥ अणौ निल्ला नचदा । देख्या विच ठाण । चौर फुलांया पुछदा । पाये अहन"" ।।२४।। कीया खरहरा साहणी । असु अग दिपाया। प्राण्यां नीर बिवाहदा। केकाण न्हवाया। पांणी सट्टया पुछ कर । रूमाल फिराया। आद लगाम बणाइकै । सिरजोट पिन्हाया ॥२५॥ बांध गलतंणी मखमली। खौगीर धराया। जीन कीया साखत सजी। ले तग तणाया । जेबंध अगवद कसि । पाखर पखराया। दुमची और रकेब कढि । हभ साज बणाया । सिरी धरी सिर वाग रखि। बंधण खुलवाया। सिध ऊपर पाखर पड़ी । ताजी पीडाया। इंद उचीस्रव छड्डिकै । देखएनों आया ॥२६।। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलिफखांकी पैडी] नीला आया नच्चदा। ज्यों मोर कलाइर । ऊप्पर पखर फरसरै। लहरी रैणांइर ।। चाबक लगे उच्छलै । विण छेड़या साइर । गज्जां हंदी सैण बिच । नां होवै काइर ॥२७॥ ..."वैठा अलिफखां । जिन सभ जग जित्ता। चंगा नीर समोइ कर । खां गुस्सल कित्ता ।। अच्छे कपड़े पेन्ह कर । रज प्याला पित्ता। राग जिरह तन सज्जिकै । खोल सिर पर दित्ता । सगले आवध बधिक। हथ बरछा लित्ता ।। बैरी डिठां दौड़ाई । ज्यों मिरगां चित्ता ॥२८॥ दिता पाव रकेब बिच । सुमिऱ्या चित सांई। चड़िया खां केकाण पर। हम सैण वणाई ।। अणियां रखी बंडिक । दिस दखिण बाई । अग्गै घुमै चतुर गज । औरापति नांई ॥२६॥ कोतल अग्गै खाँनदै । चलै उछलंदे । धुर औराक अरब्बदे । चंगे दीसंदे ।। लगै भारी सोहणें । आवें हीसंदे । जेही मूरत कामदी। मनणों मोहदे ॥३०॥ सुनै जेही कंध हैं। वै जरदे पीले । रूपैदे मंदिर जिहे । वै निकुरे नीले ।। मंकल चांदणी रैणसे। अवलक छबीले । पंख लगें चावक लगै। विण छेड़े ढीले ॥३१॥ पोते क्यामलखांनदे । हभही मरदाने । दूनौ पखौ निरमलै। दादक अरु नानें। विरद बहै रजवट्टदा । राखंदे वांने । दिलीदै पतिसाहदै । दिल अंदर मानें ॥३२॥ पिरथीराज हमीरसे । है जिनदै पच्छ । जुद्ध समै फुले फिरै। भिड़दे मन अच्छे । जेही मूत कंध है. वै नि Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [क्यामखां रासा-परिशिष्ट पेन्ह संजोवा खोल धर। जोगी गत कच्छे । खाती हो रिप बिछनों। तच्छे ही तच्छै ॥३३॥ ताजनदे पोते तिलक। सुभटां सिरताज । स्वांम धरमनौं पालदे। इंनदा इह काज । खेत छड्डिकै लूंणनौं। लावै नां लाज । बैरी दिट्ठां दौड़दें । ज्यों तित्तर बाज ॥३४॥ कूरम कमधज देवड़े । आये चौहाणं । चाहिल मोहिल सांखुले। अरु मुगल पठाणं ।। कुली छतीसौ बंणि रही। कुई केकाणं । गज अगै करि भिड़ननौ। चड़िया दीवाणं ॥३५॥ रजपूतांसू......."कहै । आप दीवांणं । जग विच जोइ जनमिया । सो मरै निदाणं ।। मरण वड़ा सोई वड़ा। सिख रखौ कांणं । सत साहससूं जो मरै । जीतब तिह जाणं ॥३६॥ निल्ले पीले उज्जले । वैबोर कुमैत । अबरस मुसकी मंगसी। खिंग हरियल औत ।। हुये संजोईल सूरिवां। घोड़े पखरैत । खुरी करांव चौपनाल । रावत बिरदैत ।।३७॥ करनायों घर रावदी। बजै सहनाइ । मारूं सींधू सुभट सुंणि । नां अंग समाइ॥ सत प्याले मते हुये । रज छाक छकाइ । दोड़े परदल विच पड़े। सुधि गई हिराइ ॥३८॥ जुद्ध रागदी सुरति सुंणि । होवा चित चाइ । भुजां फरकै भिडणनों । यह सूर सुभाइ । फुल्ले सुभट सजोव विच । तन नांहि समाइ । कदली दल ज्यों कापुरुस। डरि डरि थरराइ ॥३६॥ चड़े कटक दहुं वोड़थै । रिस धरि मंन धाये । हुवा अंधेरा धूल उड़ि। नभ सूर छपाये ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलिफखांकी पैडी] बिण बोले को ना लखै । आपणे पराये । जेही दरियादी लहर। दूनौ दल आये ॥४०॥ धरण धसमसी खुंद खुर। गिरवर थरराये । कमठ कलमल्या कसमस्या । धौले सुख पाये ।। सेस सांस रूंध्या हीया । अंग अंग भै छाये । करन अहेड़ा जिददा। दूनो दल धाये ॥४१॥ जांए संजोइ लहै घटा। गरजत नीसांण । गोली वोलेसे पड़े। अरु बूंदै बांण । चंद्रबांण निस बिच बगे। बिजली चमकारं । अंधी ल्याई मेहनौ । दल धूलन जाणं ॥४२।। असु हीसै मैमंत गज। मद बहै हंकार । मार मार ही सूरिवां । मुंह बैण उचारे । दुद मच्या बिरचै कटक । मारैही मारै। दिनकू दिन को नां कहै । हम रैण बिचारै ॥४३॥ चटके तीर चलावदै । कर सुभट कमाणं । अटकै विचही आवदै । बाणैसू बाण ॥ सटके मिसरी म्यानथै । बाहै करपाण । लटकै सिर वै नस लगै। नालक दूजाणं ॥४४॥ दुह दल अग्गै गज बणें। उमँड़े घए काले । गुंज गरज बगपंतसे । है दंत उजाले । मद बरसणि अंकस असणि । घूमंणि मतवाले । मंदिर जेहे गज बण । अरु सुड पनाले ॥४५॥ हाथीसू हाथी लडै । मद वहत अपार । मिली जांण काली घटा। वरसंदी जल धार । बाव चली है जोरदी। कवि कीया विचार । तर तमालदे ज्यौ मिले । तेही उणिहार ॥४६।। हाथी देखे आंवदे। सुख सुभट अपार । घटा देख ज़्यों होइ सुख । संजोगिण नार ।। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - क्यामखां रासा–परिशिष्ट काइर कंपै थरहरै । अखी अंधियार । इनकू गज येहे लगे। निसदी उणिहार ॥४७॥ देखि तुरंग कुरंगसे । कुजर पये धाइ। भज्जि चले असु चमकिकै । गज पहुंचे प्राइ । कहत जान कवि जाणियों। यह हुवा सुभाइ । पिच्छै हो काली घटा । अग्गै हो बाइ ॥४८॥ तट सुभटा कर ताजणां । सनमुख असु आणै । घाव लगाये रोस विच । जेहे मन मांणे ॥ अग्गे हथी भग्गदे । असु गैल लगाणे । जेहे बदल बावथै । वै फिरै भगाणे ॥४६।। साथी अल्लिफखांदे । हथी मद बहंदे । गुरज मोगरी नां बर्दै । गड़ सांगै सहदे ।। अंधियारी हल धूलदे । राखें नां रहंदे । चरखी बांण न मांणदे । हंढे रिप गहंदे ॥५०॥ लाई भारी जांण कर । हो सूर करूर । गज तन बरछी गड गई। बैठी भरपूर । कीये महावत बहुत बल । न होंदी दूर । परबत ऊपर देखिये । जाणूं पड़े खिजूर ॥५१॥ रोस होइ करि सूरिवै । गज मारे भारी। बाद बाद बाही भलै । समसेर दुधारी ॥ लीक कसौटी देखियें। कबि उक्ति विचारी। कै मिलि बैठी मोटियार । सिदूर सँवारी ॥५२॥ जोधा क्रोध बिरोधसौ । गज सौहै धाये। हथियारौ हाथी हणें। हथ चंगे लाये ॥ सुंड कटी करवार लगि। ये भेद वताये। नाग जांण डिग रूंखथै । धरती पर आये ॥५३॥ सुभट अमिट गजसू लहै। चित्त हंदै चाइ । कट्टि सटि है क्रोध विच। किरमांणी धाइ। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलिफखांकी पैडी ] सुंड मुंड भू टुट पये । यह हुवा सुभाइ । गिरवरथे उखली खिजूर । लग्गे जणुं बाइ ॥ ५४ ॥ घोड़े हसती सैण विच | सोहणि उछलंदे | 1 नचंदे ॥ कि आई काली घटा । जाणू मोर टूटि टूटि फल सागदे । गज अग गडदे | तारे काली रैणमे । तेहे चमकंदे ||५|| मिटहि न विच । वे सूरवां । सुभटांदें लपेटे ।। ५६ ।। मंनै सार । निकली हाथी दोड़े रोस सौह आया पकड़ फिराये जे लहे । गहि सुड आई वधूले जान कहि । जाए ति कुहक वांण गज लगिकै । छुट्टै चिणंगार । तिसदी उपमां देख कर। जांन कीया बिचार ॥ हथ्थी पख्खर जल उठी । येही उणिहार । परबत पर भाही लगी। घाहु जल्या अपार ।। ५७ ।। मद बहंदे रहदे नही । नां गोली केती लगिकै । गोले भनां पेट गज । कबि कीया ज्यो कंदरा पहाड़ विच | तेही सुड कटो जाएणू गिरै । मदिरथै पड़े महावत सथ्थ ही | घावांदे बांदर जानूं धर पये । टूटे तर डाले । के ज्यौं आवै परबतथे । दुलदे मतवाले ॥ ५६ ॥ हाथी दौड़े क्रोधसूं । बंधा जद खोला । दल कप्या ज्यों तर कंपै । लगि पवन झकोला || पीलवान उड़ि धर पड़े । लग्या तन गोला । चिड़ी पड़े भू रूंखथै । ज्यों लग्गि गिलोला || ६०|| पीलवान पग डिंग गये । लग्गे सर भाल । धरती पड़देही मुये । आइ दब्बे काल मेटे । बेटे ॥ समेटे । दुसार ॥ विचार | उशिंहार || ५८ || नाले । घाले ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ [ क्यामखां रासा --- परिशिष्ट' छुट्टे जग दल विच फिरनि । तिन्ह येहा हाल । भैही पसर उछेर कर । जाणू सूते ग्वाल ॥ ६१ ॥ गोली निकली अंग गज । चलणी दीसें घाव दुसार यों । ज्यो नभ पड़े रुख धर पवनथें । कबि कै जाणू मन्दिर ढह गये । हसती मारण कोह कर । जे हाथी धरती पर पये । तिन्हंदी येहे लग्गे जांन कहि । काले पड़छाही सी देखिये । कै सुती तीन पाव कुजर कटे । तरवारी डिग हथ्थी भू पर पया । मगरादं हिक्क पाव उप्पर खड़ा । सुशि येहा तल तर जड़ उप्पर हुई । उखल्या लगि मद वहंदे रहंदे नही । दौड़े दंती दती आप विच । होवै चौ धोले धोले दंत मुह । जेही बगपंती । घंटा घए विच बीजली । जाणूं चमकती ॥६५॥ दंती ॥ उणिहारे । विच तारे ॥ वेद बिचारे । बरषादे मारे ॥ ६२ ॥ सुभट सुजात । सुणि बात ॥ गज गात । रात ॥६३॥ धाव | दाव ॥ भाव । बाव ॥ ६४॥ | लगै मैमंती | हाथी आया खान पर । चीर दंसार । खांजी आग्गै तमक कर । सुंड पई कटि देखियें । पइया नाग पहाड़थै । कबि बाही तरवार ॥ येही उणिहार | किया विचार ||६६ || और गज आया खान पर । गति परबत जेही । बहदा देही ॥ पैठी केही । भरणैदी उणिहार ही । मद बरछी मारी खांनजी । सुड बंबई विच नागए बड़ी । वह आगें परे न बाव हलावै रूखनौ । त्यों येही ॥६७॥ धर सके । दती मैमत । गज थररत ॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलिफखांकी पैडी] वरछी सुंड झकोल कर । काढ़ी इह भंत । सर्प सपनों देखिये । निगलत उगलंत ॥६॥ खांदे चक्कर सूरिये । बहुले गज मारे । हार गई भुज मारदै । चित नाही हारे ।। बरछी पोये पीलवांन । कबि भेद बिचारे । जाए कांपा लाइकें । तर पछ उतारे ॥६६॥ लोहूदे नाले चले । नदियां सीपी। गोला लग हाथी पये । धरती कंपाएी । उछली बुदै रगतदी । तिसक्या नीसागी । जाणुं कराड़ा टुट्टिकै । पइया विच पांगी ॥७०॥ बजे झुझाऊँ दुहु दल । नीसांए गमकै । तीर चक्र छएके करै । अरु सांग धमकै । सुंकारे गोली करें । तरवार झमकै । जाणुं काली घटा विच । वै वीज चमकै ॥७१।। हथ्थी हथ्थी जुद्ध करै। और लड़े महावत । पाइकसूं पाइक भिड़े। रावतसू रावत ।। सुभटसू निपट निसंक होइ । मारणनों धावत । काइर कोट जतन करै । जिद वोट बंचावत ॥७२॥ भले भिडै भिड़ आपमें । कुदै कर छालै । वोट होइ कर चोटनो। बै नांही टालै ।। सागी मारे धर पये। तरफै कर डाले । लहरी लैदे देखिये। खाये अहि कालै ॥७३॥ लगे ताजणौं कोह कर । असु करी जगद । हस्तीदै मस्तक चढ्या । चित्त बीच आनद ।। नाल रह्या गड़ि सीस गज । सुणि उकति निरद । जाणूं निकल्या दूजनों । दुतियादा चंद ॥७४॥ सुभट सुभट लड़ रत रंगे। कर खेल धमाल । सभनांदै गल बिच होवै । है कपड़े लाल । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ [ क्यामखां रासा - परिशिष्ट छाल ॥ ७५ ॥ झुंड । ठणकार । उछलंदे असवार यों । लगि गोली नाल | बंदर लेदें देखिये । उलटी कर भिड़दे भार आप बिच । सुभटाँदे हाथ पांव कटि कटि पवें । अरु फुट्टै टूटि गई करवार भी । हथी रहे चंगे न्हाये सूरिवां । धारांदे बरछी बाही सूरिवे । जेही विच चोट लगी रत उछलें । विच सिप्पर सिप्पर बरछी पोइली । तिसक्या जाणूं किरछित नालियां । भीगंदे लोहसू लोहा मिलै । सुणियै झाल सहारै लोहदी । सापुरस गज्जै जोधा क्रोध बिच । अरु कुंभ फुटि सिर टुट्टिदे । छुट्टै फड़फड़ाह सिर सुभटदे । वै तनथै मार मार बिण और कुछ । नां बैण विचारे । तड़फड़ाहि वर धरणि पर । सिर बिण बेचारे । डगमगाहि घाइल चरण | मदुवै उणिहारे ॥७६॥ लोहू नदी सुरस्सती । जमना गज मारे । गंगा जेहे दंद मुह । करतार सॅवारे | तिरवेणी संगम होवा । जांन भेद बिचारे । सुभट परे रत पड़े सूरिवां खेत बिच । अरु सुंड लगी मुँह सुभटदै । सुणि उकत प्रगास ॥ झुझार ॥ सार | धार ॥ ७८ ॥ न्यारे । न्हांवदे | जाणू रत न्हांवदे । जाणू पूजारे ||८०|| कुंजर पास । पीवणदी प्यास । जाणू सुत्ते देख कर । निकल्या सर्प पहाड़थे । पीवंदा अंदादे गज सुंडांदे धगे कीये । हौर मणके मेर कर । माला कीनी मुंड ॥ टुंड | कुंड ॥ ७६ ॥ जांणी । णी ॥ नीसाँणी । बज्जै रत पांणी ॥७७॥ स्वास ||८१|| सीस । ईस || Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिफखांकी पैंडी ] करै कपरदी रत डिहॅू । सुमिरण जगदीस । । अति हरिखिदा जांन कहि । दे सुभट असीस ॥ ८२ ॥ मुडहदी माला करी । पुजे सिव काज | फुल्या आज || विराज । गलै लग्गि सुभटां मिल्या । मन सूरांदे लोइण खुले । प्रति । गिरभं दौड़े अंख पर । ज्यौ दल रहे बै बाज || ८३ || बोलें । डोलें ॥ पड़े सूरिवां खेत बिच । घाव भकभक पास न आवें गिदड़े । वै भगदे ........वेख मुंछां हलदी | जद पवन कोलें । गिरभ अखंदा त्योर तकि । मुंह नांही खोलै ॥ ८४ ॥ धूल पई उड़ नैण विच । डिठ त्योर छिपाये । निडर होइ द्रिग सूरदे । तद गिरीं खाये ॥ अंख बाझ तन सुभटदे । दिट्ठां रहसाये । तद सियाल डिठ बंधकै । खांणेनौ आये ॥ ८५ ॥ अत किलकंदी चौंपनाल । जुग्गिन उठि धाई । घांण पया जित सुभटदा । तित प्यासी आई | खप्पर भर छांणहि रगत । दिल विच हरखाई । रैणी जांण कसूंमुदी । कसूंमुदी । रंगरेज चढ़ाई ||८६|| कवारी ॥८७॥ हाथी कटि धरती पये । घाइल होइ जिद निकाल्या सूरखें । सांगोदी जूगिणं गज उतरें चढें । जेही टिब्वै चड़ि चडि कुद्ददी । ज्यों कन्या रिण विच वस जुगणी | मिलि करी धमाल । पिचकारी गज सुंड कर । छिड़कै रत वाल || लाल हुये रंग हभांदे । रग रगत गुलाल । मुंड कुड विच न्हाइ कर । वै हुई पीवे प्याले खोपरी । मिलि जुगिणी मद लोहूथै हढ़िहैं । हंभ मतवाली ॥ निहाल ||८|| बाली । भारी । मारी ॥ उणिहारी । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [क्यामखां रासा-परिशिष्ट गजक कलेजेदी करी। अंखा विच लाली। अंदा विच गिरझॉ फंधी। ज्यों पंखी जाली ।।८।। मुंड किथांहूँ कटि पये। धड़ सिरथें न्यारे । रज सहदा प्याला पीया। डर मरंण निवारे । राह केत अंबित लिया। वै मरहि न मारे । अमर हुये मरि सूरिवां । ग्रहदी उणिहारे ॥१०॥ दिती अंदै गिरझनौ। होर अंख कराल । लोहू दित्ता जुगणी । होर सिभ कपाल ।। हड्ड सुधर तीनों दये। चंम मास सियाल । हम तन दित्ता वंडि कर । जस लंया मुछाल ।।६१। साहिमखां सिरदार है। जिस वड्डा तोल । सही भतीजा खांनदा । जग रख्या बोल ॥ येदल नाथा भाइया। कम्माल अमोल । काइम दोइ जमालखां । रिए करहि कलोल ॥ तुग्गू हंदे मुजाहदा । भीषन बहलोल । लाडू अरु पेरोजखां । पइया हिक कोल । खानूं अबू सरीफ भी। रगिया रग चोल । । अरु मारूफ सिकदरै। सहिया झकझोल ॥ खानें खासा खांनदा। भिड़िया दै ढोल । उदा परता चतुरभुज । राणां खग खोल ।। कोजू हरदा मनोहर । जग्गा घमरोल । दोदराज मोहन जुगल । तेगां तन छोल ।। किसदा किसदा नांव ल्यौं। झूझे हम टोल । यों खधी तलवार मुंह । ज्यों खांहि तबोल । खां उपर हम सथ्थनै। जीव सट्या बोल ॥१२॥ सुभट मुये दुंह वोड़दे । आवै नां गिणांए । हय गय नर मिलकै पया। कीचक धमसाए । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलिफखांकी पैडी] पातसाहदै कंमनों । झूझे दीवांए । हूर भिसत विच ले गई। बैठाइ विवाए ॥१३॥ अलिफखांदी जोडनों। उमराव न आए। जहाँगीर पतिसाह भी। यों किया वखाए । जीवंदे वहु गढ़ लीये । जाएंत जहांए । मुये भिसत ली जाइ कर। धन धन दीवांग ॥१४॥ येहा जुध संसार विच । किनहीं न मचाया । दुहूं वोड़दे सूरिवां । हिक जीव तन पाया । विरचे जोधा आप विच । किरचेकी काया । जगत विसंभर भगि कर। जिद आप वंचाया ।।६।। स्वांम धरम पाल्या भलै। चिकवै चौहॉए । पातसाहदै कमनौ । दित्ता जीव दांग ।। जारत पावै खानदी। चलि सकल जहांए। करामात परगट हुई। सिझे...''दीवांए ।।१६।। नाव घिएदे अलिफखां । दुख दलद भग्गै । मनदी मनसा पुज्जवै । भाग सुत्ता जग्गै ।। पावै धन सुत लखमी। जोई दिल मग्गै । हम कुह पावै भोर उठि। जो पैरा लग्गै ।।९७॥ सुभट सुरणै गल हथ्थियार । तौ रथ्थी लीजै । जेही कीती अलिफखांनु। जेतेही कीजै । पांगी हथियारा हंदा। अंबित ज्यों पीजै ।। कड़ही नांव मरै नही । जै देही छीजै ।।६।। ढाढ़ी पठ पजावदी। बोली पहिच (चानी ?) वह तौ सुध पावै नही । जे करू बढ़ (वढानी ?) भाषादी चिता नही। गल सची ज(जानी ?) उकत विसेख जु कहि गये । सोई परव' (बानी ?) 18. Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ क्यामखां रासा - परिशिष्ट जनमें दीवांए । सोलहस कईसमें । कीये ऊजले क्यामखां । चकवै चौहांए || परवांए । संवत हुवा तियासिया । लेखै बैकुंठ पहुंचे अलिफखां । छड्ड दीया जहांए ॥ १०० ॥ ॥ इति श्री दीवान लिफखांकी पैड़ी संपूर्ण ॥ सम (मा) प्ता । अथ संवत् १७१६ मिती कातिक बदी ११ सनीसरवार । तारीख २३ मा० मुहरंम सन् १०७० लिखाइतं पठनार्थ फतेहचंद लिखंत भीखा ॥ १०८ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासाके टिप्पण पृष्ठ १, पद्यांक ९. नूर महम्मदको रच्यो...... ___ अन्यकर्ताने, मुसलमान होनेके कारण, जगतकी सृष्टिको मुसलमानी परम्पराका .. किया है। पृष्ठ ४, पद्यांक ३८. वाकै राजा माद हुव...... इस पद्यसे जॉनने हिन्दू परम्पराको मुसलमानी परम्परासे जोडनेका प्रयास किया है इसके अनुसार श्रादमसे अनेक पीढ़ियोंके बाद आदि, अनादि, पुणादि, ब्रह्मादि, मेरु, मंदर कैलास, समुद्र, वशिक, राहु, रावण और धुंधुमार हुए । धुंधुमार चक्रवर्ती राजा था। शायद यह कहनेको आवश्यकता नहीं कि यह कल्पित वंशावली पुराणसम्मत नहीं है। पृष्ठ ४, पद्यांक ४४. प्रगट्यो तिहिं मारीच सुत...... सम्राट् धुंधुमारको मरीचि ऋपिका पिता बताना शायद चौहानकि भाटोंकी कल्पना रह होगी। मरीचि तो केवल ऋपि मात्र थे । पृष्ठ ४, पद्यांक ४५. वाकै राजा जमदगिन...... मरीचिका जमदग्नि, जगदग्निका परशुराम, परशुरामका शूर, शूरका वत्स, वत्सका चाइ और चाइका चन्द्रमाके स्मरणसे उत्पन्न चाहुवान - यह नवीन चौहान-परम्परा किसी अंशमें कल्पित होती हुई भी महत्वपूर्ण है। सभी चौहान अपनेको वत्स गोत्री मानते हैं; किन्तु सभी अपनेको वसको संतान मानने के लिये तैयार नहीं हैं। क्योंकि वत्स गुह-गोत्र भी हो सकता है। क्यामखांरासामें स्पष्टतः इन्हें ऋपि वरस की संतान माना गया है, और यही संभवतः ठीक है । क्योंकि अनेक प्राचीन प्रमाणों द्वारा इस कथनकी पुष्टि की जा सकती है । बिजोल्याके शिलालेख (सं. १२२६) में स्पष्ट लिखा है कि प्रथम चौहान राजा अहिच्छत्र पुरका वत्स-गोत्री 'विप्र' अर्थात् ब्राह्मण था। संवाके संवत् १३१९ और अचलगढ़ (श्राबू) के संवत् १३७७ के शिलालेखोमें भी चौहानोंका वत्स ऋपिसे सम्बन्ध, प्रायः इतना ही स्पष्ट है । केवल पृथ्वीराज-रालाके आधार पर उन्हें अग्निवंशी मानना इतिहास-विरुद्ध है। वस्तुतः आरम्भमें चौहान ब्राह्मण थे; धर्मको रक्षाके लिए क्षत्रियोचित कार्य संभालनेके कारण, बादमें उनकी गणना क्षत्रियोंमें की गई । प्राचीन कालमे इसी तरह ब्राह्मणोंसे अनेक क्षत्रिय-बंशोका और क्षत्रियोंसे अनेक ब्राह्मण-वंशोंका प्रवर्तन हुआ है। पृष्ठ ५, पद्यांक ५०. संभर लयो निकास जिहं...... पथ्वीराज-विजय एवं विजोल्याके शिलालेखमें वासुदेव चौहानको सांभरका उत्पादक माना गया है। शायद उसका यह मतलब हो कि इसी राजाने सर्व प्रथम शाकम्भरी क्षेत्रको मीलका रूप देकर नमक निकालना आरंभ किया हो। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत पृष्ठ ५, पद्यांक ५४. क्यामखांन देवरे सीसोदिये..... चौहानोंकी शाखाओंकी यह सूचि महत्त्वपूर्ण है; किन्तु इनमेंसे कुछ अपने आपको अब । चौहान नहीं मानते । विषय गवेषणीय है। नैणसीके अनुसार चौहानोंकी निम्नांकित शाखाएँ थीं सोनगरा, खीची, देवड़ा, राकसिया, गीला, डेडरीया, बगसरिया, हाडा, चीया, चाहिल, सेलोत्त, बेहल, बोडा, बोलत, गोलासण, नहरवण, बैस, निर्वाण, सेंपटा, ढीमडिया, हुरडा, म्हालण और वंकट । कर्नल टॉडके अनुसार २४ शाखाएँ ये थीं चौहान, हाडा, खीची, सोनगरा, देवडा, पबिया, सांचोरा, गोहेलवाल, मदोरिया, निरवाण, मालण, पुरबिया, सूरा, मादडेचा, संकरेचा, भूरेचा, बालेचा, तरसेरा, चाचेरा, निकुंभ, रोसिया, चांदू, भांवर, बंकट । पष्ठ ६, पद्यांक ५८. राज किया है दिल्ली में मानक दे चहवांन...... दिल्लीमे मानिकदे श्रादि चौहानोंका शासन राजभाटों और कवियाको कल्पना मात्र है। विग्रहराज चतुर्थसे पूर्व दिल्लीमें चौहानोंके राज्यके लिये कोई प्रमाण नहीं दिया जा सकता। क्यामखां रासाकी वंशावली और घटनावलीका यह भाग अधिकांशमें कल्पित है। पष्ठ ७, पद्यांश ८२ से. घंघका अप्सरासे सम्बन्ध और उससे क्यामखांके पूर्वजोकी उत्पत्ति...... ऐसी कल्पित कथायें अन्य ऐतिहासिक व्यक्तियोंके विषयमें भी प्रचलित हैं। पृष्ठ १०. पद्यांक ११०, ताके गंगा वैरसी...... क्या यही ददरेवेका वीर चौहान है ? हम एक पोटीके लिये लगभग चौबीस वर्ष रखे तो गूंगा महमूद गजनवीके समकालीन बैठता है। पृष्ठ ११, पद्यांक ११६. तिहुंनपाल सुत ऊपज्यो मोटेराई सकाज...... - ददरेवेमे चौहानोंका राज्य पर्याप्त प्राचीन समयसे है । ढाक्टर टैसीटोरी द्वारा संपादित संवत् १२७० के शिलालेखमें मंडलेश्वर गोपालके पुत्र राणा जयतसिंहका उल्लेख है। (एशियाटिक सोसाइटी बंगालका मुखपत्र, पु० १६, पृ० २५५) पृष्ठ ११, पद्यांक १२७. उतरे हे हिसारमें श्राइ...... इस पर पृष्ठ ११४ की क्यामखांकी मृत्यु पर की टिप्पणी देखें ।। पृष्ठ १४, पद्यांक १६३. फौजदार करि क्यामंखा, सौंपी दिल्ली ताहि । __ यापुन दलबल साजिकै, चले ठटार्को साहि ॥ फिरोजसाह तुगलकने सन् १३६२ में ९०,००० मैनिक लेकर उटा पर अाक्रमण किया। सिंधियर्याने तुगलक सुल्तानका इतनी वीरतासे सामना किया कि उसे टटाका घेरा उठा कर Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] १११ कुछ समयके लिए गुजरात लौटना पड़ा। सेनाके बहुतसे आदमी भूख, प्यास और बीमारीसे रास्तेम मर गये। दिल्लीमें भी बहुत दिनसे कोई समाचार न पहुँचनेके कारण घबराहट फैल गई। केवल प्रधान मन्त्री मलिक मकवूलकी सावधानी से स्थिति संभली रही। बादशाहकी अनुपस्थितिमें दिल्लीका कार्यभार इसीके हाथमें था। चौहानवंशी क्यामखांकी तरह मकबूल भी किसी समय हिन्दू था। किन्तु उसकी जाति राजपूत नहीं, ब्राहाण थी और वह शुरूमें तेलिंगानेका रहने वाला था। उसको मुसलमान बनानेका श्रेय भी फिरोज तुगलकको नहीं, मुहम्मद बिन तुगलकको है। मकवूलकी मृत्यु सन् १३७२-७३ में हुई। क्यामखां उससे कहीं अधिक समय तक जीवित रहा । उसकी मृत्यु सन् १४१९ में हुई । (देखें, शम्से सिराज अफीफकी तारीख फिरोज शाही) पृष्ठ १५, पद्यांक १७७. क्यामखानको नाम तब, राख्यो खांनु-जहान...... रामाके कथनानुसार क्यामखांने मुगलोंको हराया । इससे प्रसन्न होकर सुल्तान फिरोजशाहने उसे 'खान जहाँ' की उपाधि दी। किन्तु यह कथन भी अशुद्ध है। फिरोज़शाहके समय मुगलोंसे युद्ध प्रायः बन्द ही रहा। वास्तवमें क्यामखानी क्यामखां तो जीवनके अन्त तक क्यामखां ही रहा। खां जहांकी उपाधि तो उस मकवूलको मिली, जिसका हम उपरोक्त टिप्पणमें निर्देश कर चुके हैं। मकबूल (खां जहां) की मृत्युके उपरान्त फिरोज़शाहने उसके पुत्रको खां जहांकी उपाधि दी। रासाके रचयिताने यह भूल क्यों की इसका हमने अन्यत्र विशद रूपसे विचार किया है। यहाँ इतना ही कहना प्रर्याप्त होगा कि मकबूलको भी खां जहां बननेसे पूर्व किवांम-उलमुल्ककी पदवी मिल चुकी थी। अतः एक किवामके कार्योंको अनेक सदियोंके बाद दूसरे प्रायः तत्सामयिक ही अन्य क्रिवामके समझ लेना कोई बड़ी बात न थी । (देखें, ईलियट और डाउसन, ३, ३६०)। पृष्ठ १६, पद्यांक १८०. जबहि भयो बस कालकै फेरोसाह सुतलान । तव महमद महमूदनँ, फेरि जगुमें श्रान ॥ वास्तवमें फिरोज़शाहके उत्तराधिकारियोंकी परम्परा निम्नलिखित थी१. गियासुद्दीन तुग़लक द्वितीय सन् १३८८ २. अबूबक तुग़लक १३८९ ३. मुहम्मद तुग़लक ४. अलाउद्दीन सिकन्दर तुग़लक १३९४ ५. नासिरुद्दीन महमूद तुग़लक १३९४ ९. नसरत तुगलक १३९६ (५ का प्रतिपक्षी) ७. महमूद तुगलक १४०१ (पुनः स्थापित) १३९० Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ [ कवि जान कृत रासाके रचयिताने केवल मुहम्मद और महमूदके नाम दिये हैं। संभव है कि क्यामखांका मुख्य कार्यकाल १३८८ से १४१३ का यही अशांतिका समय रहा हो। पृष्ठ १६, पद्यांक १८२. तब नसीरखां पुत्र उहि, और गही ततकाल ।...... नसीरखांसे मतलब संभवतः नासिरुद्दीन महमूदसे है। इसके लिये हमारा मल्लूखां पर टिप्पण देखें । यह कुछ समय तक दिल्लीका नाममात्र सुल्तान था। पृष्ठ १६, पद्यांक १८५. मल्लूखां चेरौ हतो...... मल्लखां दीपालपुरके सूबेदार सारंगखांका भाई और सुल्तान महमूद तुगलकके समयका प्रभावशाली सरदार था। अपने प्रतिद्वन्दी सादतखांसे विद्वेषके कारण जय सुल्तान महमूद वयाना जाता हुआ ग्वालियर पहुँचा तो मल्लखांने एक षडयंत्रकी रचना की । भेद खुलने पर मल्लखांके अनेक साथी मारे गये; किन्तु स्वयं मल्लूखां वच निकला। दिल्ली पहुंच कर उसने मुकर्रबखां नामके अन्य प्रभावशाली सरदारके यहाँ आश्रय ग्रहण किया और उसकी सहायतासे केवल क्षमा ही नहीं, इकवालखांकी पदवी भी सुल्तानसे प्राप्त की। सादतखां भी मौन न रहा। कई अमीरोंको अपने पक्षमें कर फिरोजशाहके एक पुत्रको उसने नसरतशाहके नामसे गहीनशीन किया। जून सन् १३९८ में, मल्लूखां नसरतशाहसे जा मिला और कुरान पर शपथ खाकर उसे दिल्ली ले आया । दो दिनके वाद मल्लूखांने नसरतशाह पर धोखेसे हमला किया और उसे पहले फिरोजाबाद और फिर पानीपतकी तरफ भगा दिया। अपने शरणदाता मुकर्रबखांको भी इसी तरह उसने धोखा दिया, और उसे मार कर महमूद तुगलकके नाम पर, कुछ समय तक राज्य-शासन अपने अधिकारमें रखा। इसी साल तिमूरने भारत पर आक्रमण किया । मल्लूखांको हराना उसके लिये बांये हाथका खेल था। सुल्तान महमूदने गुजरातमें शरण ली । मल्लखां बरान (बुलन्दशहर) भाग गया। वहां भी उसने किसी अंशमें अपना आधिपत्य जमाया, और अपने कुछ प्रतिद्वन्दियोंको धोखेसे मारा । सन् १४०५ में दिल्ली लौट कर मल्लूखांने सुल्तान महमूदको वापिस बुलाया और उसे एक महलमे कैद कर उसके नामसे राज्य किया । एक साल बाद सुल्तान महमूदने कन्नौजमें अपना डेरा जमाया। सन् १४०४ में मल्लखांने सय्यद खिज्रखां पर चढ़ाई की और पाकपट्टनके निकट युद्धमे मारा गया। उसके जीवनकी उपर्यक्त घटनाओंसे स्पष्ट है कि मल्लूखां वास्तव में पक्का ईमान था। किन्तु रासाकारने यह यात माननेमें भूल की है कि उसने नासिर महमूद शाहका वध किया था। उसने केवल जहाँ तक संभव हुआ उसे कैद रखा। यह यहुत संभव है कि मल्लूखांकी येईमानीसे रुष्ट होकर सन् १४०१ में क्यामखांने उसका विरोध क्रिया हो । (मल्लयांके विशेप विवरणके लिये देखें, तारीख मुयारकशाही, इलियट एण्ड दाउसन, खंड ४, पृष्ठ ३२-४०)। पृष्ठ १९, पद्यांक २२२-२४. तक का वर्णन...... रासाने इस पृष्ठके वर्णनमें क्यामखांको प्रायः उत्तर भारतका सन्नाट बना दिया है। यह वर्णन स्पष्टतः अतिशयोक्ति-पूर्ण है। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] ११३ पृष्ठ २०, पद्यांक २३७. खिदरखानेकौं सौंपकै, दिली चले पतिसाह...... तिमूरने खिज्रखांको दिल्लीका राज सौंपा या नहीं इस विषयमें इतिहासकारोंमें मतभेद है। उस समयके इतिहास तारीख मुबारकशाहीमें केवल इतना लिखा है कि कुछ दिन बाद खिनखां जो तिमरसे डर कर मेवातके पहादॉमें भाग गया था, वहादुर नाहिए, मुबारकखां और जिरकखांके साथ तिमूरसे मिला । तिमूरने खिन्नसांके सिवाय सवको कैद कर लिया। तिमूरने खिज्रखांको मुल्तान और देपालपुरकी जागीर दी और उसे वहाँ भेज दिया। (इलियट और डाउसन, खंड ४, पृष्ठ ३५-३६)। पृष्ठ २१, पयांक २४१.-- रासाका यह कथन ठीक नहीं है कि तिमूरके चले जाने पर खिनखांने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मल्लखां दिल्लीको वापस लेनेके प्रयत्नमें मारा गया। वास्तविक घटनाके लिये मल्लखां पर टिप्पण देखें। पृष्ठ २१, पद्यांक २४२ से. रासाकारने एक नवीन खिदरखांकी असत्य कल्पना की है। एकको उसने दिल्ली में तिमरका अधिकारी बनाया है और दूसरेको मुल्तानका सूवेदार माना है। वास्तवमै मुल्तानके सूबेदारका ही नाम खिज्रखा था और कुछ इतिहासकारोंके मतानुसार तिमूरने हिन्दुस्तानमें अपना - प्रतिनिधि नियुक्त किया था। रासाने गल्तीसे दौलतखांको खिज्रखां पठानका नाम दिया है। सय्यद खिन्नखांका प्रतिद्वन्दी और क्यामखाँका शत्रु था । उसीसे खिज्रखाने दिल्ली छीनी। (इलियट और डाउसन, ४, ४५)। पृष्ठ २४, पद्यांक २८२-८३. खिज्रखांने भाटियो, क्यामखानियों, सांखलो श्रादिकी सहायतासे राठौड वीर चूंडा पर चढ़ाई की । जय खिज्रखां मरोट पहुंचा तो भाटी राजकुमार चाचाने उसका अच्छा स्वागत किया। जांगलले देवराज सांखलेने मुसलमानोंको सहायता दी। नागोरके दुर्गका द्वार स्वयं चंदाने खोल दिया और वोरतापूर्वक युद्ध करता हुआ धराशायी हुअा। (देखें, छंद राउ जइससी)। पृष्ठ २५, पद्यांक २८६ से, क्यामखांका मुल्तानके खिजरखांको सहायता देना...... ___ मल्लखांकी मृत्युके बाद दौलतखांके हाथमें राजकार्यकी बागडोर श्राई । महमद नाममात्रके लिये सुल्तान बना रहा। सन् १४०७में खिज्रखांने दौलतखां पर आक्रमण किया। दौलतखांके सय साथी खिज्रखांसे जा मिले । इनमें क्यामखां भी रहा होगा। खिनखाने विजयी होने पर हिसारका जिला (सिक्क)क्यामखांको सौंप दिया। दिसम्बर १४०७ में सुल्तान महमदने हिसार पर आक्रमण किया और क्यामखांने उससे संधि कर अपने पुत्रको सुस्तानके पास भेज दिया। रासाने इसी आक्रमणको हिसार पर खिद्रखां पठानका अाक्रमण मान लेनेकी भूल की है। विजय भी दूसरे पक्षकी हुई; क्यामखांकी नहीं। सन् १४१२ में सुल्तान महमूदकी मृत्यु Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ११४ है कि हो गयी और दिल्ली अमीरोंने दौलतखांको गद्दी पर बैठाया। रासाने फिर भूलसे यह मान लिया मोरोंने खिद्रखां पठानको गद्दी पर बैठाया । खिद्रखां पठानके स्थान पर दौलतखां करने पर, रासाकी बातें प्रायशः ठीक और उक्तिसंगत बैठ जाती हैं । रासामें लिखा है कि खिदरखां पठान ( वास्तवमे संभवतः दौलतखां ) के हिसार पर श्राक्रमणसे क्रुद्ध होकर क्यामखां मुल्तान पहुँचा और वहांके सूवेदार खिजरखांको दिल्ली पर चढा लाया । शायद यह कथन ठीक ही है । कमसे कम यह तो निश्चित है कि क्यामखांने खिज्रखांका पक्ष लिया था । सन् १४११ मे उसने खिज्रखांसे हिसारकी शिकदारी प्राप्त की थी । सन् १४१४ के मई मासमे जब खिनवां ने दिल्ली पर कब्जा किया तो उसने दौलतखांको किवामखां (क्यामखां) को सौंप कर हिसारके किलेमें कैद कर दिया । (देखें, इलियट और डाउसन, ४,४२-४५) । I [ कवि जांन पृष्ठ २६, पद्यांक ३०१. येक द्योंस तो क्यामखां, ठाढे ते सुभाइ । खिजरखानु दीनो धका, परो नदीमें जाइ ॥ कृत ख़िज्रखांके हाथ क्यामखाकी मृत्युका तारीख - मुबारकशाहीमें निम्नलिखित वर्णन है“सन् १४१९ - खिज्रखां बढ़ाऊंकी तरफ बढ़ा और कस्बा पटियालीके पास उसने गंगाको पार किया । जव (बढ़ाऊंके अमीर) महाबतखाने यह सुना तो उसका हृदय बक्से रह गया, और उसने घेरा सहनेकी तैयारी की । खिज्रखां ६ महीने तक घेरा ढाले रहा । जब वह दुर्गं को हस्तगत करने वाला हो था, उसे मालूम हुआ कि दिवंगत सुल्तान महमूदके कुछ अमीरोंने उसके विरुद्ध षड़यन्त्रकी रचना की है... इनके अन्तर्गत किवाम (क्याम) र्खा इख्यारखां थे । ज्योंही खिज्रखांको यह मालूम हुआ उसने वेरा उठा लिया, और दिल्लीकी तरफ कूच किया । रास्तेम गंगाके किनारे २० जुमादल अव्वल, ८२२ हिज्री सन्के दिन किवामखां (क्यामखां ) इख्यारसां और सुलतान महमूदके दूसरे अफसरोंको पकड़ कर उसने राज्य-द्रोहके अपराधमें मरवा डाला और फिर स्वयं दिल्ली वापस गया । ( तारीख मुवारकशाही, पृष्ठ ५१, इलियट एण्ढ डाउसन, भाग ४) । रासाके वर्णनानुसार क्यामखां निरपराध था । केवल सन्देह और व्यर्थके भयके वशीभूत होकर खिज्रखांने उसे मार डाला । पृष्ठ २६, पद्यांक ३०४. जीयो वरस पचानुंवै क्यामखानु चहुवांन ।...... क्यामखांनुका ९५ वर्षकी आयुमें मरना कई कारणोंसे असंगतपूर्ण प्रतीत होता है-(१) पड्यन्त्रका नेतृत्व ही नहीं, सेनामें खिज्रखांके साथमें रहना भी, सिद्ध करता है कि क्यामखां उस समय अतिवृन्द न रहा होगा । ९५ वर्षका बुढ्ढा सेनाके साथ जानेका क्या साहस करेगा ? (२) रासाके अनुसार फिरोज़शाह करमचंद (क्यामखां) को उस समय पकड ले गया जब वह हिसार आया। हिसारकी स्थापना सन् १३५१ के बादकी है । करमचंद उस समय नादान बालक था । मृत्युके समय ९५ वर्षकी आयु माननेसे वह फ़िरोज़शाहके राज्यके प्रारंभमे भी सत्ताइस या अट्ठाइस सालका होता । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] (३) क्यामखांका कार्यकाल विशेषतः फ़िरोज़शाहकी मृत्युके बाद है। रासा वाली आयु मानने पर हमें यह भी मानना होगा कि क्यामखांके मुख्य युद्ध आदि उसके ६४ वर्पके हो जानेके याद हुए। (४) रासाके अनुसार क्यामखांका पुत्र ताजखां बहलोलखां लोदीके राज्यमें वर्तमान था। बहलोल सन् १४५१ में गही पर बैठा। ताजखांको उस समय ६० सालका माने तो उसका जन्म सन् १३९१ में होना चाहिये । रासा द्वारा दी गई क्यामखांकी आयु स्वीकृत करने पर हमें यह मानना पड़ेगा कि क्यामखांके सब से बड़े पुत्रका जन्म उस समय हुआ जब क्यामखां ६७ वर्षका हो चुका था। पृष्ठ २७, पद्यांक ३११. खिजरखानुपै ना गये, रह्यो बुलाइ बुलाइ । बैठे रहे हिसारमैं कर्यो जूहार न जाइ ॥ रासाके इस कथनके अनुसार कायमखांके पुत्रोंने हिसारको अपने अधिकारमें रखा; किन्तु तारीख मुवारकशाहीसे स्पष्ट है कि अपनी मृत्युसे कुछ पूर्व खिन्नखांने हांसी और हिसार मलिक रजव नादिरको दिये थे। खिज्रखांके पुत्र मुबारकशाहने हिसार अपने सम्बन्धी मलिक-उशशक मलिक बदाको सौंप दिया। पृष्ठ २७, पद्यांक ३५३-१५. रासाने सादः वंशकी सूची इस प्रकार दी है(१) खिज्रखा (२) मुबारक (३) मुहम्मद फरीद (१) अलाउद्दीन (५) अमानतखां इनमें तीसरे सुल्तानका नाम अशुद्ध है । वास्तवमें यह नाम न मुहम्मद था, और न फरीद ही । ठीक नाम मुहम्मद शाह विन फरीदशाह है। रासाने पिता और पुत्रके नाम मिला दिये हैं। फरीदशाह सुल्तान मुबारकशाहका पुत्र था। अमानतखांके राज्यका वर्णन हमे मुस्लिम इतिहासमें नहीं मिलता। अलाउद्दीनके समयमें ही दिल्लीका राज्य सय्यदोंके हाथसे निकल गया। केवल 'यदाऊका जिला ले कर उसने दिल्लीकी बागडोर अपने सामन्त बहलोलशाहके हाथमें सौंप दी। पृष्ठ २७, पद्याङ्क ३१७. ढोसी ऊपर अखन है...... अखन शायद इख्त्यारखांका नाम है । (देखिये, अग्रिम ३१८ वां पद्य)। पृष्ठ २८, पयांक ३३१. ताजखांनुं महमदखां, दोउ रहे हिसार । ठौर पिता राखी भले......॥ रासाके इस पद्यमें फिर क्यामखानियों के हिसार पर अधिकारका वर्णन किया गया है। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' कवि जान कृत किंतु जैसा ऊपर निर्देश किया जा चुका है, कुछ समयके लिये तो हिसार अवश्य क्यामखानियोके हाथसे निकल गया था, और इसी कारण सम्भवतः ताजखां और महमूदखांको कुछ समय तक नागोरीखां (फिरोजा) के यहाँ आश्रय ग्रहण करना पड़ा। पृष्ठ २९, पद्यांक ३४० से. राणा मोकलसे नागोरके खां और क्यामखानी भाइयोंका युद्ध...... रासाने मेवाड़के स्वामी राणा मोकल और नागोरीखांका अच्छा वर्णन दिया है । राणाकी विजय इतिहास द्वारा समर्थित है । क्यामखानियोंकी राणा पर विजय संभवतः कल्पित है। सम्वत् १४८५ (सन् १४२९) के शृङ्गी ऋषिके शिलालेखमें इस युद्धका प्रथम उल्लेख है। क्यामखानी भाई सन् १४१९ में किवामखां (क्यामखां) की मृत्युके बाद ही हिसार छोड कर नागोर पहुँचे होंगे। वास्तवमें उन्होंने यदि इस युद्ध में भाग लिया हो तो हम युद्धको सन् १४१९ और १४२९ के बीचमें रख सकते हैं। शिलालेखमें राणा मोकलके दो प्रतिपक्षियोंका वर्णन है-एक फिरोजखांका और दूसरा महमद का । फिरोजखां नागोरका स्वामी था। क्या यह संभव नहीं कि महम्मद उसका मित्र एवं अनुगामी क्यामखानी महमूद हो ? पृष्ठ २९, पद्याङ्क ३४१. पहलै तौ गोली चली, और छटी हथनाल ।...... ___गोलियोंका भारतमें प्रयोग शायद मुगलकालसे आरंभ हुआ। यह उससे पूर्वको बात है। पृष्ठ ३१, पद्यांक ३६५. रासाके अनुसार नागोरीखांसे सर्वथा हारने पर ताजखां वापिस हिसार पहुँच गया। यह बात सर्वथा असंभव नहीं है। क्योंकि सय्यद वंशके परतर सुल्तान बहुत निर्बल थे। किन्तु यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण है कि केवल नागोरका खां ही उससे न डरता था; निरवाण, चौहान, तंवर, कच्चाहे एवं अनेक अन्य जमींदार भी उसे कर देते थे और उसने खेतड़ी, खरकरा, रेवासा, वौहाना, पाटन, गवरगढ़ आदिको लूट लिया था। पृष्ठ ३१, पद्यांक ३७४. ताजखांन जब चलि गये, फतिहखानुं सिरमौर । बैठौ कोट हिसारमैं, भलै पिताकी और । . फतहखांके राज्यका हिसारमे आरम्भ होना भी संभव है। किन्तु यह अवश्य ध्यानमें रहे कि फतहपुरकी स्थापनासे पूर्व बहलोल लोदीने इस पर अधिकार कर लिया था। सय्यद सुस्तान अलाउद्दीनके समय लोदी सरहिन्द, स...सन्नाम, हिसार और पानीपतके स्वामी थे। (वारीखे खांजहां लोदी, खंड ५)। पृष्ठ ३२, पद्यांक ३७९-८०. सम्बत् १५०८ में फतहपुरकी स्थापना हुई। उस समय चैत्र शुक्लकी पंचमी थी। हिनी सम्वत्की यही तिथि सन् ८५७ तारीख २० सफ़रके रूपमें दी हुई है। इन दो तिथियोंमसे हमें एकको अशुद्ध मानना होगा । सन् सत्तावन आठसेके स्थान पर सन् पचावन आठसे होने पर यह अन्तर दूर हो सकता है। इसी सालमें वहलोल भी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] पृष्ठ ३२, पद्यांक ३८२-८३. पल्हू, सहेबा, भादरा, भारंग आदि फतहपुरसे बहुत दूर नहीं है। संभव है कि यहाँ क्यामखानियोंने अपना आधिपत्य स्थापित किया हो। पातसाहकी चोखसौं रहि ना सके हिसार ।.... पातसाहसे मतलव बहलोलसे है। किन्तु जैसा ऊपर बताया जा चुका है बादशाह होनेसे पूर्व ही बहलोलने हिसार ले लिया था। पृष्ठ ३३, पद्यांक ३८६-८७.-बहलोलका रणथंभोर पर आक्रमण और फतहखांका जुहार करना... तबकाते अकबरीके अनुसार बहलोलने सन् ८८६ हिज्री अर्थात् सन् १४८२ ई० में रणथंभोर पर आक्रमण किया । फतहखांने सचमुच इसमे भाग लिया हो तो इससे कायमखानियों के इतिहासमें निश्चित तिथि मिलती है। हम इसके आधार पर कह सकते हैं कि फतहखांने सन् १४५१ से कमसे कम सन् १४८२ ई. तक राज्य किया। पष्ठ ३३, पद्यांक ३६३. मांडूका सुल्तान हिसामदीन...... मांडू मालवा राज्यकी राजधानी था। वहाँ हिसामुद्दीन नामका कोई सुल्तान न था। बहलोलके समय खल्जी महमूद प्रथम मालवेकी गद्दी पर वर्तमान था। वहलोलका इस सुल्तानसे दिल्ली सुल्तान मुहम्मदके समय सन् १४४१ में सामना हुआ। महमूद जब दिल्लीके सुल्तानसे सन्धि कर वापिस जा रहा था, बहलोलने उस पर आक्रमण किया और किसी अंशमें विजय प्राप्त की। हिसामखां नामके एक व्यक्तिका नाम भी इस समय सुननेमें आता है। वह दिल्लीका वजीर और सुल्तान मुहम्मदका परम हितैषी था। बहलोलने मुहम्मदकी सहायता इस शर्त पर की कि हासिमखां कत्ल कर दिया जायगा । (तारीखे खां जहां लोदी, इलियट और डाउसन, खंड ५, पृष्ट ७२)। पृष्ठ ३४, पद्याङ्क ४०६. नारनोलते अखनकी, आई यहै पुकार ।...... अखन इख्तयारखांका ही नाम है । देखो पृष्ठ २७ और इस वर्णनका पद्य ३१८ । पृष्ठ ३५, पयाङ्क ४१४. फतहखांका कांधलको हराना और प्रजाको मारना...... हार शायद क्यामखानियोंकी हुई न कि बीकानेरके संस्थापक वीका के चाचा कांधलकी । इस युद्धमें बहुगुनके मारे जानेसे फतहखां बहुत नाराज हुआ । (दखिये, पृष्ट ११९ पर का टिप्पण)। अजा सांखला शायद सांगाका साला रहा हो। ख्यातोंके अनुसार सांगाने २८ विवाह किये थे। इनमें संभवतः एक सांखली रानी भी रही हो। पृष्ठ ३५, पद्याङ्क ४१६. मुस्कीखां किरांनाका वध...... रासाने युद्धस्थलका नाम सरसा दिया है । इतिहासमे मुश्कीखां किरानीका नाम अप्राप्य है। किन्तु जौनपुरके सुल्तान मुहम्मदने सन् १४५२में दिल्ली पर आक्रमणकी इच्छाले Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि जान कृत सरसेमें अवश्य मुकाम किया था, वहां बहलोलके पक्षसे फतहखांका उससे युद्ध करना असम्भव नहीं है । परन्तु क्यामखानियोंने सन् १४८२ में ही लोदियोसे मेल किया हो (देखो, पृष्ठ ११७ का टिप्पण) तो ऐसा अनुमान अवश्य असंगत होगा। पृष्ठ ३६, पद्याङ्क ५२४. फतहखांका आमेर और भिवानी पर आक्रमण...... इस वर्णनमें कितनी सत्यता है और कितनी अतिशयोक्ति, यह कहना कठिन है । पृष्ठ ३६, पद्याङ्क ४३३. कांधिल बहु गुन हन्यौ हो, रिस राखत मन मांहि ।...... रासाके पिछले वर्णनमें कांधल की पराजयका वर्णन है, (देखें, पृष्ठ ११७ का टिप्पण) परन्तु इस पंकिसे प्रतीत होता है कि उसने क्यामखांनियोंको हराया था। पृष्ठ ३७, पद्याङ्क ४३६. झुंझनूके शम्सखांका जोधाकी पुत्रीसे विवाह...... ___ यह कथन असत्य प्रतीत होता है। जोधपुर राज्यके संस्थापक और महाराणा कुम्भासे लोहा लेने वाला जोधा क्यामखानियांसे न कमजोर था और न दवा हुश्रा जो उन्हें अपनी पुत्रीका डोला भेजता। पृष्ठ ३७, पद्याङ्क ४४५. चिमनको ईन लीनो नीसांन...... चिमन न जाने कौन था। रासाने इससे पूर्व फतहखांकी जीवन-घटनाओंका वर्णन करते इए इसका नाम नहीं दिया है। इस श्लाघापूर्ण सवैयेमें जादो (संभवतः भाटियों) को भी फतहखांके परास्त शत्रुओंमें सम्मिलित कर दिया गया है। जान कवि ही तो ठहरा, अत्युक्तिका उसे अधिकार है। पृष्ठ ३८, पद्यात ४४६. दिल्लीके पतिसाहकों, वदै न खानु जलाल...... यह अतिशयोक्ति प्रतीत होती है। किन्तु मनुके बारेमें सुल्तान यहलोल और जमालखांमें वैमनस्य असंभव प्रतीत नहीं होता । (देखो, पृष्ठ ३९) पृष्ठ ३९, पथाङ्क ४५८-४५९. छापौरी और आमेर पर हमले...... श्राम्येर फतहपुरसे काफी दूर है। शायद उस राज्यके किसी भूभाग पर आक्रमण किया गया हो। पृष्ठ ३९, पद्यात ४६६-६७. बीका और बीदाका भानजा मुवारकशाह..... बीदा बीकानेर राज्यके संस्थापक बीकाका छोटा भाई और द्रोणपुर, छापर आदिका स्वामी था । मुबारकशाहसे इन भाइयोंके सम्बन्धके विपयमें पृष्ठ ११९ का दूसरा टिप्पण देखें। पृष्ठ १०, पद्याङ्क ४७७-७८. बीदाका फतहपुर पर अाक्रमण..... बीकानेरकी ख्यातोंमें यीदाके इस आक्रमणका वर्णन नहीं मिलता। 'छन्द राठ जइवसीरट' में अवश्य यह लिखा है कि बीकाने फतहपुर और मनूको अधीन किया और उन्हें वांहका सहारा दे कर कायम रखा (द ४६)। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] ११६ पृष्ठ ४०, पद्याङ्क ४७८ से. चौदाका सहायक दिलावरखा...... इसका उल्लेख "छंद राउ जइतसीरउ" में भी है। यह नाहह और नरहडका स्वामी था । बीकानेर राज्यके संस्थापक वीर बीकाने उसे इस प्रदेशसे निकाल दिया (छंद ४५) पृष्ठ ४२, पद्याङ्क ४९९. वीका ढ़ोसी गयो हो उतते आयो भाजि...... बोकाकी अनेक विजयोंका सूजा नगरजोतरचित, 'छंद राउ जइतसीरउ' में वर्णन है। इसने दिल्ली तक धावा किया था (छंद ४६)। यह संभव है कि ढोसीके आसपास उसे विशेष सफलता न मिली हो। पृष्ठ ४३, पद्याङ्क ५१० से. लूणकरणका ढोसी पर आक्रमण..... बीकानेरके इतिहाससे सभी को ज्ञात है कि ढोसी पर आक्रमण बीकाके पुत्र लूणकरणके जीवनकी अंतिम घटना थी। 'छंद राउ जइतसीरउ के अनुसार क्यामखानियोंने लणकरणकी अधीनताम अपनी फौज भेजी थी (छंद ८०)। यह वर्णन ठीक हो तो हमें मानना पड़ेगा कि बीदावतोंकी तरह लडाईके समय इन्होंने राव जैतसीका साथ छोड़ दिया था। __ क्यामखानियों और राठौड़ोंका वैर काफी पुराना था । रासासे हमें ज्ञात है कि राव बीकाके चाचा रावत थे। कांधलने इन्हें खूब दःख दिया था और उनकी बहुतसी पैतृक भूमि पर उसने अधिकार कर लिया। रावके विषयमें यह प्रसिद्ध है कि उसने फतहपुरके बहुतसे गाँव जीत लिये (देखिये, दयालदासकी ख्यात; 'सादूळ प्राच्य ग्रन्थमाला', पृष्ठ २०) । स्वयं रासाने दौलतखांकी बढ़ाई करते समय केवल इतना ही लिखा है कि न उसने दूसरोंकी भूमि दवाई और न दूसरोंको अपनी भूमि दबाने दी (पृष्ठ ४२, पद्म ४६७)। एक गाँवकी जीतको एक प्रान्तको जीत लिखने वाला कवि जब अपने एक पूर्वजकी स्तुतिमें केवल इतना कहनेको विवश हो तो यह सिद्ध है कि दौलतखां निर्वल शासक था और उसके समय कायमखानियोंको संभवतः अपने राज्यका कुछ भाग छोड़ना पड़ा। पृष्ठ ४३, पद्याङ्क ५११. तुरक मान कीनी मदत, जॉनत सकल जहांन...... ढोसीके स्वामी पठान अवश्य थे, किन्तु यह बताना कठिन है कि उनके सहायक तुर्कमान किस स्थानके अधिकारी थे। पृष्ट ४४, पद्याङ्क ५१८. बाबरका दौलतखांसे मिलना..... यह मनगढंत कथा है। हाँ, इससे इतना अवश्य प्रतीत होता है कि क्यामखानी गोवधके विरोधी थे; वे सर्वथा अपने हिन्दू संस्कारोंको न छोड़ सके थे । पष्ठ ४४, पद्याङ्क ५२५. अलवर में हसनखां...... हसनखां मेवाती अपने समयका प्रसिद्ध वीर पुरुष था। गुजरातके प्रसिद्ध एवं प्रतापशाली सुल्तान बहादुरशाहको इसने भरण दी थी। वावरके प्रबल विरोधियोमें यह एक था और इसका प्रभाव इतना अधिक था कि बाबरने इसे विद्रोहियोंकी जड़ लिखा है। (तुजके Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० [कवि जान कृत बाबरी, इलियट और डाउसन, खंड ५, पृष्ठ २६३)। खानवाके युद्ध में इसने राणा सांगाका साथ दिया था। लगभग चौदहवीं शताब्दोके आरम्भसे उसके पूर्वज मेवातमें राज्य करते आये थे, और उन्होंने अंशतः ही दिल्लीके सुल्तानोंका प्रभुत्व स्वीकार किया था। बाबरने दिल्लीकी विजयके कुछ समय बाद मेवात पर आक्रमण किया । हसमखांने कुछ विरोधके बाद अधीनता स्वीकार की। बाबरने अलवरका दुर्ग और तिजारा अपने अफसरोको सौंप और अलवरका खजाना हुमायूको दिया, किन्तु हसनखांको भी उसने नाराज न किया। मेवातके बदले बाबरने कई लाखकी एक अन्य जागीर उसे दी । (वही, पृष्ठ २७३-४)। पृष्ठ ४५, पद्याङ्क ५३२. निरवान.... यह चौहानोंकी प्रसिद्ध शाखा है। इस समय नागौरका खां मुहम्मद प्रतापी था। शायद क्यामखानी उसकी तरफसे लडे हों। पृष्ठ ४५, पद्याङ्क ५३६. मुहब्बत साराखानी...... इतिहाससे इसका कुछ पता नहीं चलता। शेरशाहके सामन्तोंमे अनेक सरवानी थे। शायद उनमेसे किसीसे मतलब हो । पृष्ठ ४७, पद्याङ्क ५७३. ममनू...... मंझनूमें क्यामखानियोंकी एक शाखा राज्य करती थी। रासामें इसका बार बार जिक्र है। उसकी वंशावली इस प्रकार है : क्यामखां मुहम्मदखां - - मुबारक फतहखां गम्सखां कमालखां साहवरखा मुहम्मदखां भीखनखां महावतखां खिदरखां पृष्ठ ४८, पद्यांक ५८१. नाहरसांसे बीकानेरके राव लणकरणकी बेटीका विवाह...... रासाने लिखा है कि अपने जीते ही लूणकरणने अपनी बेटी नाहरसांग्से विधाहनेका वचन दिया था। जो राजपूत क्यामसानियोंसे कर मांगता और शायद लेता भी था, वह उन्हें बेटी देनेका वचन दे, यह संभव प्रतीन नहीं होता। पृष्ठ ४९, पद्यांक ५८८. नाहरखांका महल चिनवाना...... इसका सम्बत् १५९३ भादया सुदी अष्टमी है । यह क्यामन्यानी इतिहासको पुनः एक Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] १२१ निश्चित तिथि है। इससे लगभग चार साल बाद शेरशाह दिल्लीका बादशाह हुभा। रासाके भनुसार नाहरखांने उसकी अच्छी सेवा की । पृष्ठ ५०, पद्यांक ५९०. नागोरी खां और राना...... . रासामे राना और नागोरीबां इन दोनोंके नाम नहीं हैं। इसलिए यह घटना संदिग्ध है। इस समयके आसपास हजखांका अजमेर और नागोर दोनो पर अधिकार था, और उसे उदयपुरके महाराणा उदयसिंहसे युद्ध भी करना पड़ा था। किन्तु इस घटना का समय सन १५५७ ई. होनेके कारण गांगा और जैतसी आदि कई राजा और सरदार जिनके नाम रासाने गिनाये हैं, वास्तवमें उसमे वर्तमान नहीं हो सकते । उनका देहान्त इससे पूर्व ही हो चुका था। पृष्ठ ५४, पद्यांक ६४२. फदनग्यांन......! मुगल मनसबदारोम इसका नाम नहीं मिलता। अकबरको इसने किस सालमे वेटी दी यह भी मालूम नही होता। किन्तु घटना रामाकी रचनाले अविक दूर नही है, अतः इसकी सत्यतामें सन्देह करनेकी आवश्यकता नहीं। अनेक सामन्ती और राजाओंको वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी तरफ करना अकबरको नीतिका एक अंग था। पृष्ठ ५४, पद्यांक ६४२. रायसाल की बांही......। ___ यह जातिका शेखावत था। इसके दादा रायमलके यहाँ शेरगाहके पिता हसनखां सूरने । कुछ दिन नौकरी की थी। रायसाल अकवरी दरवारमें जनानखाने पर तैनात था। इसकी जहाँगीरके समय दक्षिणमें मृत्यु हुई। अच्छा वीर पुरुप था । तबकाते अकबरीके अनुसार इसका मनसय २००० था। फदनखांसे यह कहीं अधिक प्रभावशाली रहा होगा। इसलिये रासाका यह कथन कि फदनखांकी जमानत पर बादशाहने रायसालको नौकर रखा था, संगत प्रतीत नहीं होता। पृष्ठ ५४, पद्यांक ६४३. बीदावत......। ये राव बीकाके भाई बीदाके वंशज थे। पृष्ठ ५७, पद्यांक ६७४. ताजखांका अलवरसे रेवाडी पर आक्रमण......! अकबरके राज्यमें ३४३ सालमें शेखावतोंने मेवातसे रेवाढी तक गडवड़ की । ३५ सालमे अकबरने शाहकुलीको उसे दबानेके लिए भेजा । संभव है ताजखां उस समय सेनाके साथ रहा हो। पृष्ठ ८२. पद्यांक ६६५, दयो फतिहपुर छत्रपति लिखि अपनौ फरमान......। अग्रिम पंक्तियोंसे प्रतीत होता है कि फतेहपुर कुछ समयके लिए क्यामखानियोंके हाथसे जाता रहा था। पृष्ठ ५८, पद्यांक ६८१. अलिफखांका पहाड पर आक्रमण......। कछवाहा जगतसिहकी अधीनतामें यह अकबरके ४२वें राजवर्ष अर्थात् सन् १५९३ ई. में Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ [कवि जान कृत हुआ। राजा बसु, तिलोकचन्द आदिने अकवरकी अधीनता स्वीकार की। (देखें, अकवरनामा, तृतीय खंड, पृ. १०८१ और १११३)। पृष्ठ ५८, पद्यांक ६८५. सलीमका राणा पर आक्रमण......। सलीमका राणा पर यह आक्रमण सन् १५९९ ई. मे हुआ । राजा मानसिंह, शाहकुली आदि अनेक सेनापति उसके साथ गये। इस समय अलिफखांका पहली बार अकबरनामेमे वर्णन मिलता है। उसमें लिखा है:-"जब शाहजादा सलीम राणाको दंड देने के लिए भेजा गया, तब अपनी आरामपसन्दगी, मद्यप्रियता और बुरी संगतीके कारण कई दिन तक अजरोरमे ठहर कर वह उदयपुरकी ओर चला । राणाने दूसरी तरफसे निकल कर मालपुरा तथा अन्य उपजाऊ · इलाकोंको लूट लिया। इस पर शाहजादेने माधोसिंहको सेनाके साथ उधर भेजा । राणा पहाडोमें लौट गया और लौटते हुए उसने रातके समय शाही फौज पर हमला किया। राजकुली, लालबेग, मुवारिकबेग और आलिफखां टिके रहे, जिससे राणा लौट गया।" (अकबरनामेका अंग्रेजी अनुवाद; खंड ३, पृ. १११५)। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९१. ऊँटाले हो समसखां, उत आयो कर साथ...... डाक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझाने वीरविनोदके आधार पर लिखा है कि सलोमने मेवाड़में प्रवेश कर मांडल, मोही, मदारिया, कोसीथल, बागोर, ऊँटाला आदि स्थानों में थाने विठला दिये । ऊँटालेके गढ़में उसने बढे सैन्यके साथ क्यामखानी शम्सखांको नियत किया ।। ऊँटालेका युद्ध मेवाडके इतिहासमे विशेष प्रसिद्धि रखता है। चूंडावत और शक्तावत दोनों ही हरावलमें रहना चाहते थे। राणा अमरसिहने आज्ञा दी कि हरावल उसीकी रहेगी जो दर्गमें प्रवेश पहले करेगा। शक्तावत बल्लने किस प्रकार अपने शरीरको भालोंसे छिदवा कर हाथियों द्वारा दरवाजा तुडवाया और चूंदावत किस प्रकार सीढ़ियों द्वारा किले पर चढे यह पठनीय कथा है । जैतसिंह चुंडावत घायल हो कर नीचे गिर पड़ा। गिरते ही उसने अपने साथियोंको आज्ञा दी कि वे उसका सिर काट कर किलेमे फेंक दें। इस प्रकार चूंडावत ही सर्व प्रथम किले में पहुंच पाये, और हरावल उन्हींकी रही। राजप्रशस्ति महाकाव्यमें लिखा है कि--दिल्लीपतिका मृत्यवर क्यामखां इस युद्धमे मारा गया । क्यामनांसे आपाततः क्यामखानी शम्सका अर्थ लिया जा सकता है। किन्तु शम्सखो युद्धमे मारा नहीं गया। संभवतः काव्यका क्यामखां शुजातखांका पोता क्यामखां हो, जिसे तरबियतखांकी उपाधि मिली थी, और जो अकबरके राज्यके पांचवे वर्षमें अलवरका फौजदार बनाया गया। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९६. राइ मनोहर...... राय मनोहर लूणकरण शेखावतका पुत्र था । अकयरके समय मेवाड़, गुजरात आदिके युद्धाम इसने अच्छी ख्याति प्राप्त की थी। जहांगीरके राज्यके दूसरे वर्षमें, यह १५०० जात ६०० Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामखां रासा; टिप्पण] १२३ सवारका मनसवदार नियुक्त किया गया। इसके नौ वर्ष बाद दक्षिणमें उसकी मृत्यु हुई। राय मनोहर फारसीका अच्छा कवि था। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९७. दलपत बीकानेरीये......। यह राजा रायसिंहके बाद बीकानेरकी गद्दी पर बैठा । सन् १६१२ ई. में जहांगीरने उससे अप्रसन्न हो कर सूरसिंहको बीकानेरकी गही दी । दलपतसिंहने हिसारके आसपास विद्रोहका झंडा खड़ा किया। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९८. ज्यावदी......। संभवतः जहांगीरके मनसवदार जियाउद्दीन काजवानीसे मतलब है। नहांगीरने उसे एक हजारी मनसबदार बनाया और तबेलेके हिसाब-किताब पर नियुक्त किया । (देखें, तुजुके जहांगीरी, . अंग्रेजी अनुवाद, पृ. २५)। दयालदासने अपनी ख्यातमें इसका नाम जावदीन दिया है (पृ.१४४-६)। पृष्ठ ५९, पद्यांक ६९९. शेख कबीर......। . यह शेख सलीम चिश्तीका वंशज था। इसकी दूसरी उपाधियां शुजातखां और रुस्तमे । जमा थीं। यह मऊका रहने वाला था । जहांगीरने गही पर बैठनेके समय इसे १००० का मनसबदार बनाया। बंगालमें उसने बड़ी वहादुरीसे बादशाही सेवा की। इसकी वीरताके कारण ही बादशाहने उसे रुस्तमे जमाकी उपाधि दी थी। पृष्ठ ६१, पद्यांक ७१७. फिर पठयो पतिसाह पैं......। __तुजुके जहांगीरीमें दलपतको पकड़ कर भेजनेका श्रेय खोश्तके फौजदार हाशिमको दिया गया है । पृष्ठ ६२, पद्यांक ७३०. दक्षिणमें अलिफखां......। यह वास्तवमें दक्षिण पर खांजहांके आक्रमणके समयका वर्णन है। मलिक अम्बर (अग्रिम टिप्पण देखें) के अहमदनगर राज्यमें अत्यन्त प्रबल हो जाने पर जहांगीरने १६०८ में अब्दुरहीम खानखानाको उसके विरुद्ध भेजा। खानखाना असफल रहा। अहमदनगरका दुर्ग भी भगलोंके हाथसे निकल गया। नाम मात्रके लिये इससे कुछ पूर्व जहांगीर शाहजादे परवेजको दक्षिणका सिपहसालार नियुक्त कर चुका था। उसकी मददके लिये खांजहां लोदीकी अध्यक्षताम बादशाहाने एक बहुत बढी फौज भेजी जिसमें अलिफखां भी सम्मिलित था। सन् १६११ में यह निश्चय हुआ कि अब्दुल्ला गुजरातसे नासिक और त्र्यम्बककी तरफ बढ़े, और वरार एवं खानदेशसे खांजहां, मानसिंह आदि उसे सहायता प्रदान करें। किन्तु अब्दुल्लाने बिना परवाह किये एकदम हमला बोल दिया। दौलताबाद पहुँचते पहुँचते उसकी बहुत सी फौज क्षीण हो गई। बाकी फौजका बहुत सा अंश वागलाना पहुंचनेसे पूर्व नष्ट हो गया। अब्दुल्लाको हारते देख कर बाकी शाही फौजें भी पीछेकी तरफ लौट पडी । रासा कारने ठीक ही लिखा है : Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ [कवि जान कृत अब्दुल्लहके विचरते, विचर भई दल मांहि । आये सब रहानपुर, कहूँ रह्यो को नांहि ॥ पृष्ठ ६२, पद्यांक ७३५, अंवर आयौ साजि दल, गनती आवै नाहि....... अंबरका अर्थ यहां मलिक अंबर है। ऐसे राजनीतिज्ञ दक्षिणने कम ही उत्पन्न किये हैं। शासन-प्रबन्ध एवं सैन्य-संचालन इन दोनोमे यह निपुण था। खानखाना, खाने जहां आदिको परास्त करना इसी वीर हब्सीका कार्य था। अहमदनगरके राजाकी इसने अच्छी सेवा की । सन् १६२६ मे इसकी मृत्यु हुई । इसके विस्तृत वर्णनके लिये जहांगीरका कोई इतिहास देखें। पृष्ठ ६२, पद्यांक ७३३. अब्दुल्लह...... । ___अब्दुल्ला जहाँगीरका प्रसिद्ध सेनापति था। मेवाड़में इसने अनेक विजय प्राप्त की। इससे प्रसन्न हो कर जहाँगीरने इसे फिरोज जंगको उपाधि दी । मेवाड़से यह गुजरात भेजा गया। पृष्ट ६४, पद्यांक ७६०. सगरपै......। सगर महाराणा अमरसिंह प्रथमका चाचा था। शाहजादे परवेजको मेवाड़ पर भेजते समय वादशाह जहांगीरने इसे मेवाडके राणाकी उपाधि दी और मुगलों द्वारा अधिकृत मेवाड़का अधिकांश प्रदेश इसे दे दिया । मेवाडसे संधि होने पर जहाँगीरने इससे राणाकी उपाधि ले कर रावतकी उपाधि दी। सन् १६१७ ई० मे इसका देहान्त हुआ ।। पृष्ट ६५, पद्यांक ७६९. खुसरो वीतर वीतखां...... पदयांक ८०० के टिप्पणका अन्तिम भाग देखें । यह इसका सामान्य उदाहरण है कि जहाँगीरके राज्यमं दिल्लीके निकट भी गडबड थी। पृष्ट ६७, पद्यांक ७९८. राजा विक्रमजीतकै......। यह राजकुमार खुर्रमका अत्यन्त विश्वासपात्र था। सन् १६१८ में जहाँगीरकी आज्ञासे सोरठके जामको इसने दिल्लीके अधीन किया । सन् १६१९ में शाहजादे शाहजहांकी तरफसे यह कांगड़े पर भेजा गया । इसीके साथ अलिफखां भी रहा होगा । दक्षिणम अम्बरके विन्द शाहजहाँकी। सफलताका पर्याप्त श्रेय विक्रमजीतको है । शाहजहाँ के विद्रोही होने पर विक्रमजीतने मागरेको लूटा दिल्लीके निकट विलोचपुर नामके स्थान पर शाहजहांके पक्षमें शाही सेनाके विरद्ध युन्द करता हुभा यह मारा गया । इसका असली नाम सुन्दर था । पृष्ठ ६७, पद्यांक ८००. सूरजमल......। यह मऊ नूरपुरके राजा वसुका पुत्र था। सन् १६९५ में जब मुर्तजाखांने कांगदा लेनेका प्रयत्न किया तो यह भी शाही फौजदारोमं था। शाही विफलतामें सूरजमलका पइयन्त्र भी शायद कुछ कारण रहा हो। इसके विरद शिकायतें होने पर भी यादशाहने इसे क्षमा कर दिया । दक्षिण में शाहजादा शाहजहांको इसने अच्छी सेवा की । मुर्तजाकी मृत्युके बाद इसे शाही सेनाका मुख्य सेना Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यामखां गमा; टिप्पणा] १२५ पनि बना कर बादशा जाहांगीरने कांगके विन्ट भेजा, किन्तु भाई-बन्धुओंमे लहना इसे अभीष्ट न मा । यहाँ विद्रोह कर इसने पाली राजाओंका एक प्रबल संघ तयार किया। मम्पद मफी यहाँको इमन युभमें हराया और शादी परगने लूटे, मिन्नु विक्रमजीतके सामने इसका १४ यश न चला। इसकी राजधानी मा नूरपुर पर विक्रमजीतने अधिकार कर लिया। रापास प्रतीत होना अलिपको इस स्थान पर विक्रमजीगने शाही मेनाके कुछ भागके साथ रमा। इसके कुछ दिन बाद मूगजमल योमार पर मर गया । जहाँगीरने इसके स्थान पर उसके भाई जगतसिहको नियुक्त किया और उसमे १००० जान, ५०० मयारसी मनमयदारी दी। (कुछ विशेष वर्णनके लिये अपशिष्ट टिप्पण देग्में)। पृष्ठ ६९, पयांक ८४. जहांगीर मानी नही, थिग्रम करीज यान......। म पंपिये प्रतीत होना कि विक्रमाजीत मर्वप्रथम साम द्वारा कार्य सिद्ध करनेका प्रयत्न विया करता था ! पृष्ठ ६९. पाक, ८१५. दृट्यो गद..... । गदको विजयका समय नवम्बर १६ मन, १६२० है । पृष्ठ ७०, पांक ८२७. ठटा....... या भी पहाटी दुर्ग है । मिन्धका ठटा नहीं । पृष्ट ५२, पद्यांक ८५४. मरदारग्नां .....। मरदारयां पचास वर्षका हो कर १९ मुहरंम मन ५०३५, तदनुसार सं० १६८२ आश्विन मही १३-१४ को सस्तोंकी यौमार्ग मर गया । बादशाहने यह सुन कर पंजायफ पहाड़ोकी फौजदारी भलिफांको दी जो टपके मददगारी में से था । (जहांगीरनामा) पष्ट ७२, पद्यांक ८५५. पहादी नेतामाके स्थानानिके लिये हम पुस्तक परिशिष्ट रूपमें प्रकाशित अलिफखांकी पही दे। पृष्ट ७३, पांक ८६५. नगरोट टेरे कीये जगते दल बल साज...... जगतसिह राजा बमुका दूसरा पुत्र था। (पद्य ८०० वाला उपर का टिप्पण देखो) जब शाहजहांने विद्रोह किया तो उसका कृपापात्र होनेके कारण जगतमिहने पहाटॉमें पहुँच कर उपद्रव किया। (ग्लैटबिन, जहांगीर, पृष्ठ १४३)। पृष्ठ ७४, पद्यांक ८७७. मादकखां पैठान हो, चीटी दई पठाय......। मादिकरयां पंजायका सूबेदार बनाया जा कर जगतसिंहके विरुद्ध भेजा गया। इस कार्यमें उमे विशेष सफलता न मिली । जहाँगीरकी मृत्युके बाद आसफखांने इसे शाहजहांकी तरफ कर Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ [ कवि जांन कृत लिया । (तुजुके जहांगोरो अंग्रेजी, अनुवाद, खंड २, पृ. २५९, इकबाल नामा, पृष्ठ २०३) । पृष्ठ ८०, पद्यांक ९३३. अलिफखांका मृत्यु सम्वत्.. सं० १६८३ जहांगीरके राज्यका अंतिम वर्ष था । अलिफखांकी पेंडीके अनुसार इसका जन्म संवत् १६२१ था । इसलिये ६२ वर्षकी अवस्था में रण- प्रांगण में इस वीरने अपने प्राण दिये । पृष्ठ ८२, पर्याक ९३९. ग्रन्थका रचनाकाल..... संवत् १६९१ रासा के मुख्यांशका रचनाकाल है । इसके बादका भाग इसकी अनुपूर्ति मात्र है। पृष्ठ ८२, पद्मांक ९३९. कवित पुरातन मैं सुन्यौ, तिह विध कर्य वखान......। क्या इन शब्दों से यह अर्थ लिया जाय कि अलिफखांके मृत्युके कुछ ही समय बाद, किसी अन्य कविने इस विषय पर कोई कवित्त लिखा और जांनने उसे अपनी रचनाका आधार बनाया । अधिक संभव तो यह प्रतीत होता है कि केवल रासाके आदि भागके लिये कविने उसका आश्रय लिया है । अन्य बातें उसके प्रायः समसामयिक थीं । ..... पृष्ठ ८३, पर्यांक ९६०. अमरसिंह राठौर का आगरेमें काम आना......। मुसलमानी इतिहासकारोंने इस विषय पर जो कुछ लिखा है उसका सारांश निम्नलिखित है - अमरसिंह दरवारसे कुछ दिनोंसे अनुपस्थित रहा था। जब वह जुलाई २६, १६४४ ई० सन्के दिन वापस आया तो मीरबख़्शी सलावतखां उसे दाराके स्थान पर बादशाहसे मिलनेके लिये ले गया । अमरसिंह बांई तरफ खडा था और बादशाह शामकी नमाज के बाद कुछ हुक्म लिखा रहा था । सलावतखां मुल्ला करामतसे कुछ बातचीत करने लगा । अमरसिंहको संदेह हुआ कि सलावतखां उसकी शिकायत कर रहा है। अचानक ही अमरसिंहका खंजर सलावतखां पर पड़ा और सलावतकी इह लीला समाप्त हो गई । खलीलुल्लाखां और भजुनने एक दम अमरसिंह पर हमला किया, और शीघ्र ही कुछ और मनसबदार और गुर्जवदार उनसे आ मिले । अमरसिंह मारा गया । अमरसिंहके साथियोंने अर्जुनसे इसका बदला लेनेका प्रयत्न किया और इसी मुदारिफ मुलकचंद आदि मारे गये । अन्ततः सय्यदखां जहां और सिंहके आदमियों पर आक्रमण किया और उन्हें मार डाला । झगडे में मीर तुजुकखां मीरखां, रशीदखां अन्सारी आदिने अमर इसी घटनाका अतिरंजित रूप अनेक राजपूती स्यातोंमें मिलता है । सबसे विश्वस्त वर्णनकी दो जैन कृतियां हैं जिन्हें श्री अगरचंद नाहटाने 'भारतीय विद्या' खंड २ में प्रकाशित किया था । इनके अनुसार वास्तविक घटनाका रूप यह था : यीकानेर और नागोरके वीचमे कुछ सरहदो झगड़ा पैदा हो गया था । इसीके बाद अमरसिंह शाहजादा दाराशुकोहकी हवेलीमें बादशाहमे मिलने गया । बादशाह गुसलखाने में था । सलावतखां अमरसिंहका कुछ वाद विवाद हो गया और अमरसिंह कह बैठे "अच्छा खयर Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यामरखां रासा; टिप्पण] १२७ पडेगी।" सरहदी अगड़ेमें सलाबतखांने ताना देते हुए कहा, "क्या खबर पड़ेगी ? बीकानेर तो खबर पड़ी । क्या रावजी गंवारी करते हो ?" इतना सुनते ही अमरसिंहने कटारी चलाई । वह सलावतखांक पेटमे घुस गई। शाहजहांने अमरसिंहको पहले तो घर जानेका हुक्म दिया, किन्तु दाराशिकोहके कहने पर मनसबदारोंसे कहा, "देखो, न जाने पाये । अमरसिंहको मार लो।" गौड विट्ठलदासके लड़के अर्जुनने धोखेसे वार कर अमरसिंहको गिराया और गुर्जवदारोंने आ कर अमरसिंहका काम तमाम किया । जब लाश बाहर भेजी गई तो गोकुलदास, मीरखां और हरनाथ भाटीने वख्सी मूलकचंदको मार डाला। गोकुलदास और हरदास अमरसिंहके दस अन्य नौकरों सहित यहीं लड़ कर काम आये । प्रातःकाल होते ही राठौड वूल, राठौड भावसिंह, गिरधर व्यास आदिने अमरसिहकी रानियोंको सती किया और फिर अर्जनसे बदला लेनेका विचार किया। बादशाहने उनके विरुद्ध खजिहां सैयदको भेजा । बल राठौड़ आदि अमरसिंहके ६४ आदमी वीरतासे लड़ते हुए काम आये । संवत् १७०१ श्रावण शुक्ला द्वितीयकी तीन या चार घड़ी बीतने पर अमरसिंहने सलावतखांको कल किया और स्वयं मारा गया। लाशके बाहर आते ही उसी समय उनके १२ साथियोंने भी लड़कर वीर गति प्राप्त की। बलू राठौढका सैयद खांजहांसे युद्ध श्रावण सुदी ३ के तीसरे पहर हुआ। पृष्ठ ८७. पद्यांक ९९३, ताहिरखां हैं वलखमैं साहिजादै के पास......। शाहजादा मुरादने सन् १६४६ ई. जुलाई सातके दिन बल्खमे प्रवेश किया। पृष्ठ ८७, पढ्यांक ९९१. इंद खोहकै......। इसका असली नाम अन्दरूखद है । इस स्थान पर मुगल सेनाने अस्त्राखानी नजमुहम्मदको परास्त किया। पृष्ठ ८९ पद्यांक १०१९, फिरी मुहिम बलखकी...... औरंगजेबने सन् १६४७ अक्तूबर ३ के दिन वल्ख से प्रयाण किया। पृष्ठ ८९, पद्यांक १०१९. बहुर पठाई फौज तव, गढ़ खंधारको लैन......। ईरानके बादशाह अव्वास द्वितीयने फरवरी १६४६ में मुगलोंसे कंधार जीत लिया। शाहजहांने औरंगजेबको कंधार जीतनेकी आज्ञा दी । शाहमीरकी लडाईमें, जिसका संभवतः रासामें वर्णन है, मुगल सेनापति रुस्तमखां विजयी हुआ । सितम्बर ३, १६४९ के दिन औरंगजेबने दुर्गका पहला घेरा उठाया। पृष्ठ ८९, पद्यांक १०२३. कंधार पर दूसरा आक्रमण......। यह सन् १६५२ में फिर औरंगजेबकी अध्यक्षतामें हुमा । पृष्ठ ९०, पयांक १०२६. कंधार पर तीसरा आक्रमण......। • तीसरा आक्रमण सन् १६५३ मे दाराकी अध्यक्षतामे हुआ। पृष्ठ ६०, पद्यांक १०३०. दौलतखांकी मृत्यु......। संवत् १७१० अर्थात् सन् १६५२ मे हुई । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ [कवि जान कृत अवशिष्ट टिप्पण विक्रमाजीत द्वारा कांगड़ाकी विजय सुरजमल पर विक्रमाजीतके आक्रमण और कांगड़ाकी विजयका शाहजहांके मुन्शी जलाला तिया द्वारा रचित शश फतह कांगड़ामें अच्छा वर्णन है । इससे पहाड़ी प्रान्तके भूगोल और तत्सामयिक राजनैतिक परिस्थिति पर पाठकोंको कुछ अधिक प्रकाश मिलेगा। अतः इसका सार यहाँ प्रस्तुत करते हैं : ___ बादशाहने सूरजमलके विद्रोहके विषयमें सुनते ही उसे दबाने के लिये शाहजहांको नियुक्त किया और उसे कांगड़ा जीतनेकी भी आज्ञा दी। सूरजमलने पंजाबके कई परगनोंमें लूटमार मचा रखी थी। शाहजहांने विक्रमाजीतको सेनाका नायक बनाया, और वादशाह जहांगीरके १२ वर्षके शहीरयार महीनेमें (१ शाबान, हिनी सन १०२७) उसे गुजरातसे एक बड़ी फौजके साथ रवाना किया। सूरजमल यह सुनते ही पठानकोटकी तरफ भागा और मऊके दुर्गमें जा कर ठहरा । मऊ चारों तरफसे पहड़ों और जंगलोंसे घिरा हुआ है, देशके बहुत विशाल और मजबूत दुर्गोमें उसकी गिनती है। राजा विक्रमाजीतने शीघ्र दुर्गको घेर लिया। सूरजमलने सामना किया, किन्तु पराजित हुआ। उसके ७०० व्यक्ति, मर्द और औरत मारे गये। स्वयं सूरजमल राजवसुके बनाये हुए नूरपुर नामके किले में कुछ साथियों सहित भाग गया। विक्रमाजीतने यहाँ उसका पीछा किया, और सूरजमलने चम्बाके राज्यमें घुस कर तारागढ़के किलेमें आश्रय लिया। चार दिनके घेरेके बाद विक्रमाजीतने यह किला भी हस्तगत किया। यहां उसकी फौजके बहुतसे आदमी मारे गये। सूरजमल फिर भागा और उसने चम्बाके राजाके यहाँ शरण ग्रहण की। विक्रमाजीतने तारागढकी विजयके बाद हारा, पहाडी, ठठा, पकरोटा, सूर और जावालीके किले जीते । इसी बीचमे सूरजमलके भाई माधोसिंहने कुछ उपद्रव किया। विक्रमाजीतने नूरपुर और कांगडेके वीचके कोटिला दुर्गमें उसका मुकाबला किया। भयंकर रक्त-पातके बाद शाही सेना किला जीतनेमें समर्थ हुई। कुछ ही दिनोंमें विक्रमाजीतने सब पहाडी प्रदेश पर अधिकार कर लिया। शत्रुके थाने उठा कर उसने शाही थाने बिठाये और गाही नौकरीको अनेक जागीरें दी। सूरजमलका चम्बाके राजाके दुर्गमें देहान्त हो गया । चम्बाके राजाने उसकी तमाम सम्पत्ति, जिसमें चौदह बड़े हाथी और २०० अरबी और तुर्की घोड़े शामिल थे, विक्रमाजीतको सौंप कर बादशाहसे क्षमा प्राप्त की। इसके बाद विक्रमाजीतने कांगड़े पर घेरा ढाला । श्रन्त गाही सिपाहियोंने एक जगह दुर्गकी दीवार तोड डाली । भयंकर लड़ाई हुई । शाही तोपखानेने शत्रुको भून डाला । शत्रु भाग निकले। राजा विक्रमाजीतने कांगड़ेमें घुसकर विश्वस्त अफसरोंको नियुक्त किया और जिन शूरोंन इस युद्धमें वीरता दिखाई थी उनके मनसब बढाये । इससे पूर्व कांगड़े पर कोई विजय प्राप्त न कर सका था । (इलियट और डाटसन, भाग ६, पृष्ठ ५१८-५३१)। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- _