Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
View full book text
________________
वाणिज्य एवं व्यापार
१९७
नाप-तौल एवं मुद्रा
कूव० के उक्त विजयपुरी-मण्डी के वर्णन एवं अन्य सन्दर्भो में नाप-तौल एवं मुद्रा से सम्बन्धित निम्नोक्त विशेष शब्द प्राप्त होते हैं :
अंजलि (१०३.१), कर्ष (१५३.१६), कोटि, सौ कोटि (१५३.१६), कूडत्तं, कूड-तुल, कूड-माणं, कूड-टंक (३९.२), गोणी (१६१.८), एगारसं (१५३.१८), पल, अर्धपल, सौ पल (१५३,१६), पाद (१५३.१६), भार (१५३.१६), मांस, मासा (१६-१७), माण-प्रमाण (५७.२४, २३३.२२), रत्ती (१५३.१६), रुपया (२०.२७, १०५.२), वाराटिका (४३.५), सुवर्ण (१२.११, ५७.३२), आदि । इनकी विशेष पहचान इस प्रकार की जा सकती है।
अंजलि-सागरदत्त को जव मालू रवृक्ष की जड़ में अपार निधि प्राप्त होती है तब वह अंजलिमात्र हो उसमें से लेता है।' एक अंजुली रुपयों की पूजी से ही वह सात करोड कमाने का प्रण करता है (१०५.५)। अंजलि नाम का परिमाण पाणिनि के समय में भी प्रचलित था।२ चरक के अनुसार सोलह कर्ष या तोले की एक अंजलि होती थी, जिसे कुड़व भी कहते थे । गरुडपुराण (३०२.७३) के अनुसार चार पल की एक अंजलि होती थी। कौटिल्य ने चार अंजलि (कुडव) के वरावर एक प्रस्थ माना है। अतएव डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने ढाई छटाँक या १२।। तोले के बरावर (लगभग १३५ ग्राम) एक अंजलि का नाप माना है।
कर्ष-कर्ष एक प्राचीन नाप था। चरक ने इसे लगभग तोले के बरावर माना है। उसके अनुसार ४ कर्ष का एक पल होता था। मनुस्मृति में एक कर्ष (८० रत्ती) के ताबें के कार्षापण को पण कहा है । सम्भवतः उद्द्योतन के समय में कर्ष तौल एवं मुद्रा दोनों के लिए प्रयुक्त होता रहा हो तभी कुव० में कहीं कार्षापण का उल्लेख नहीं मिलता । तत्कालीन अभिलेखों में भी कर्ष के उल्लेख मिलते हैं।
कूडत्त, कूट-तौल, कूटमान एवं कूट-टंक-कुव० में इन शब्दों का प्रयोग गलत दस्तावेज तैयार करना, कम-ज्यादा तौलना, नापना एवं खोटे सिक्के चलाना आदि कार्यों के लिए हुआ है। इससे प्रतीत होता है कि तत्कालीन
१. गेण्हसु य भंड-मोल्लं थोयं चिय अंजली-मेत्तं–कुव० १०५.१. २. अष्टाध्यायी--(५.४, १०२). ३. अर्थशास्त्र, २.१९. ४. अ०-पा०भा०, पृ० २४१. ५. वही, पृ० २४१ पर उद्धृत । ६. कार्षापणस्तु विज्ञ यस्ताम्रिकाः कार्षिकः पणः ।–८.१३६. ७. अर्ली चौहान डायनास्टीज, पृ० ३१७.