Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
विभिन्न तीर्थ स्थान - कुवलयमाला में भ्रातृवध करने वाले चंडसोम को गाँव के पंडित सलाह देते हैं कि तुम अपने घर का समस्त धन-धान्य, वस्त्र, शयनासन, बर्तन, पशु आदि सामान ब्राह्मणों को देकर इसी हालत में शीश मुड़ा कर, भिक्षापात्र हाथ में लेकर, भिक्षा माँगते हुए गङ्गाद्वार, हेमन्त, ललित, भद्रेश्वर, वीरभद्र, सोमेश्वर, प्रभास, पुष्कर आदि तीर्थों में नहाते हुए भ्रमण करो तो तुम्हारा पाप नष्ट हो जायेगा । १
इन तीर्थ स्थानों की पहिचान डा० दशरथ शर्मा ने अपने ग्रन्थ 'राजस्थान थ्रू द एजेज' में की है । इनके सम्बन्ध में विशेष विवरण इस प्रकार है ।
गंगाद्वार - गंगाद्वार वह स्थान है, जहाँ गंगा का पवित्र पानी सपाट मैदान में पहुँचता है | सम्भवतः गंगाद्वार उस समय आधुनिक हरिद्वार को कहा जाता रहा होगा । वायुपुराण (३०.९४, ९६ ) एवं मत्स्यपुराण (२२.१० ) में भी गङ्गाद्वार तीर्थ का उल्लेख है ।
ललित - ललित सम्भवतः स्कन्दपुराण में उल्लिखित ललितेश्वर है, जो प्रयाग में स्थित था तथा जिसकी तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि थी । महाभारत के वनपर्व (८४.३४) में भी 'ललितक' नामक तीर्थ का उल्लेख हुआ है ।
भद्रेश्वर - मत्स्य एवं कूर्मपुराण में ( २.४१, ४) भद्रेश्वर का उल्लेख हुआ है । स्कन्दपुराण में कहा गया है कि काली (?) पर स्थित ज्योतिलिंग ही भद्रेश्वर है । किन्तु इसकी वास्तविक स्थिति ज्ञात नहीं हो सकी है । प्रो० काणे भद्रेश्वर नामक दो तीर्थों का उल्लेख करते हैं । एक नर्मदा के उत्तर में तथा दूसरा वाराणसी में । ३ सम्भवतः कुवलयमाला में उल्लिखित भद्रेश्वर वाराणसी में स्थित था ।
वीरभद्र - इसका भौगोलिक स्थान क्या था, इस सम्बन्ध में उद्द्योतन ने कोई संकेत नहीं दिया है। शिव के गण के रूप में बीरभद्र प्रसिद्ध था । सम्भवतः उसके किसी स्थान को तीर्थ मान लिया गया होगा ।
सोमेश्वर - शैव सम्प्रदाय से सम्बन्धित किसी धार्मिक स्थान का नाम सोमेश्वर रहा होगा । क्योंकि सोमेश्वर नाम का एक आश्रम भी ज्ञात होता है । * सोमनाथ से यह अवश्य भिन्न था। मत्स्यपुराण (१३.४३, २२.२० ) एवं कूर्मपुराण (२.३५,२०) में सोमेश्वर तीर्थ का केवल उल्लेख मात्र है ।
१. सयलं
घर - सव्वस्सं घण घण्ण-वत्थ- पत्त-सयणासण- डंड-भंड-दुपय- चउप्पयाइयं बंभणाणं दाऊण, इमाइ च घेत्तुं - भिक्खं भमंतो कयसीस तुंड-मुंडणो करंकाहत्थो गंगा-दुवार-हेमंत-ललिय-भद्देस्सर - वीरभद्द - सोमेसर -पहास पुक्ख राइसु तित्थेसु पिंडयं पक्खालयंतो परिभमसु, जेण ते पावं सुज्झइ ति । - कुव० ४८.२३-२५. २. श० - रा०ए०, पृ० ४०३.
३. काणे, हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग ४, पृ० ७३८.
४.
पाठक, वी० एस० शैवकल्ट इन नार्दन इण्डिया, पृ० १३, वाराणसी, १९६०.