Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ अवचूाणिः-यत्र प्रासादे अजिरनुवि परिघ्राम्यतां श्रद्धातुराणां पूजकानां करेण स्फटासु हरितमणिमयी नेत्रवहीं बिंवयोगाधीक्षमाणः साझादनोगीशंकामनवजयनवोपयुः व्यस्तपाणिः लोकः पार्थस्य पूजां विरचयति । वेपथुः कंपः तेन व्यस्ताः पाणयो यस्य सः ॥ १०६ ॥ लावार्थ-जे चैत्यना आंगणामां नमता एवा श्रद्धालु पूजकोना ने त्रोना सर्पनी फणाश्रोमां प्रतिबिंब पमवाना योगयी नीलमणिमय नेत्र रूप वेबने जो साक्षात् सर्पनी शंका यतां ते वसे उत्पन्न थयेला जयने लश्ने जेमने कंपारो थर आवतां हाथ ढीलो थाय ने, एवा लोको श्री पार्श्वनाथ प्रजुनी पूजा गोठीओने हाथे करावे . १०६ विशेषार्थ-ते चैत्यना आंगणामां श्रद्धालु पूजको फरता हता, तेमना नेत्रोनां पार्श्वनाथ प्रतुना मस्तके रहेता सर्पनी फणाओमां प्रतिबिंब जोइ, तेओ 'आ प्रत्यक्ष सर्पो ने ' एम धारी मनमां शंकित थता हता, अने ते

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254