Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
View full book text
________________
SARSO
नयी थतुं, कारण के ते दुःखोयी पोताने पण मुक्त थयेलो माने छे. ॥ ११ ॥ दुक्खाणखाणीखलुरागदेसा,तेहुँतिचित्तंमिचलाचलंमिः | | अज्झप्पजोगेण चएइचित्तं, चलत्तमालाणिअकुञ्जरुव१२३
अर्थ:-खरेखर रागद्वेष ए दुःखोनी खाणो छे. तेनी उत्पत्ति चित्तनी चलायमान अवस्थामा थाय छे. जेम स्थंभे बांधेलो हाथी (जवा भाववाना) चपळपणानो त्याग करेछे; तेम अध्यात्म योगथी चित्त चपलतानो त्याग करे ॥१२॥
RRORAKARSAREERSIRBIRBER
एसो मित्तममित्तं एसो सग्गो तहेव नरओ अ%; । एसो राया रंको अप्पा तुट्ठो अतुठ्ठो वा ॥१३॥
___अर्थ:-आत्मा तुष्टमान थयो तो मित्र छ, स्वर्ग छे, अने राजा पण छे, अने जो अनुष्टमान थयो तो शत्रुछे, 21 नरक छे, तेमज रंक पण छे. आम आत्मानी उत्तम या अधम स्थितियीज उत्तम या अधम परिणाम आवे छे. ॥ १३ ॥ लद्धा सुरनररिद्धि विसया वि सया निसेविआणेण; पुण संतोसेण विणा किं कत्थ वि निबुई जाया॥१४॥
अर्थः-आ जीवे देवोनी अने मनुष्योनी ऋद्धि पण मेळवी, अने सदा विषयो पण वारंवार सेव्या, तथापि संतोष | विना कोइ पण ठेकाणे जरा पण जीवने शांति यह नहि. ॥ १४ ॥
जीव! सयं चिअ निम्मिअ-तणुधणरमणीकुटुंबनेहेणं;

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112