Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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६४६७. राणपुरइ रलियामणउ रे लाल... ४७१२. राणी राजुल इण परि वीनवे... ४६२०. राति दिवस सूतां जागतां... ५३३७. रामति अति रलीयामणि... ६८०४. रामा रामा धनं धनं.... ५४४४. रायकुंअरि लीला लहरि लाडली... ५८२६. रासलजी के... ४६६०. रिषभ अजित अभिवंदीयइ... ५३१६. रिषभ अजित संभव सदा... ६४६८. रिषभ की मेरे मन भगति वसीरी...' ६१२९. रिषभ जिणंद दयाल भजो भाई... ६३१५. रिषभ जिणेसर अजित जिणंदा... ४६२९. रिषभ जिणेसर अलवेसर जयउ... ६१३०. रिषभजिणेसर त्रिभुवन दिवाकर... ४१६४. रिषभ जिणेसर भेटिवा रे लाल... ४२१०. रिषभ जिणेसर भेटीयइ रे... ४६११. रिषभ जिणेसर स्वामि... ४२६२. रिषभ जिन निरसन रान विहारी... ४६१२. रिषभ जिन भावई भेंटीयइ... ५३४०. रिषभ प्रमुख चउवीस तिथंकर... ३९२४. रिषभ वृषभ गज... ५००१. रिषभादिक चौवीस नमि... ६८२७. रिषभानन वधमान चंद्रानन जिन... ४६५३. रिषभनाथ सीमंधर स्वामी... ५६०३. रिसह अजिय सम्भव... ३७४२. रिसह जिण सुहकरण... ६८४३. रुक्मिणी नइ परणवा चाल्यउ... ६४९१. रुड़ा पंखीड़ा मुंनइ मेल्ही... ६८००. रुडा रहनेमि म करिस्यउ.... ३८०८. रुन झुन झूम....। ६४८३. रूडा रिषभ जी घर आवउ रे... ७११७. रूडी रे कीधी रूडी... ४९२०. रूढ़ी रे किधी रूढी सद्गुरइ... ५६९८. रूप अनूप मनमोहन मूरति... ३७९७. रूप भलो प्रभुजी को विराजित... ५७११. रे जिव वखत लिख्या सुख होई... ४३१४. रे जीउ आपणपउ अब सोच...
४२५३. रे जीउ काहइ कुं पछातावइ... ५८९७. रे जीउ तनु दुर्जन क्यों पोसो... ३७१४. रे जीउ म करि करि मेरा... ६६२६. रे जीया जिन धर्म कीजइ.... ४२६९. रे जीव काहइ करत गुमान... ३२२७. रे जीव कीधी जेह कमाई... ३१३३. रे जीव चिंता मन धरीयै... ५६८७. रे जीव ध्यान निरंजन ध्यावे... ६६०४. रे जीव वखत लिख्या सुख लहियइ... ६८०८. रे जीव विषय थी मन वालि... ५७५६. रे मन क्युं चित चिन्तत नाही... ४२२४. रे मन झूठां सुं मन राचइ... ५६८८. रे मन तज तूं तात पराई... ... . ५५८०. रे मन मूढ़... ५६८९. रे मन मूढ न कर अहंकार... . ५५३५. रे मन मूढ न करो अहंकार... ४२६७. रे मन मूढ म कहि गृह मेरउ... ४५३३. रे विवेकी प्राणी... ५७८१. रे सामी इसी विध राजता... ६८०३. रोहिणी तप भवि आदरो रे लाल... ६५१९. लख चउरासी जीव खमावइ... ४३५६. लखमणजी वीर जी रो... ७०२६. लगन मेरी नाभिनन्दनजी सों लागी... ५६६८. लगन मेरे... ४३२५. लघु बांधवं जुगबाहु नई रे... ३१८०. लटकालै जिनजी सै लय लागी... ५५९५. लब्धि महोदधि... . ६५८१. ललित वयण गुरु ललित नयण... ६२५५. लांघ्या गिरवर डूंगरा जी... ४६२१. लागइ-जागइ हो विमलाचल... ४०५९. लाधउ त्रिभुवन राज... ४५४९. लाल असाड़ा आवन्दा है... ६६५७. लालण को लयुं री सखि समझाइ... ४२९४. लालण मोरा हो जीवण मोरा हो... ३७२५. लालन मेरा हो क्या तजु... ५६६०. लाल सनेही पिउडौ... . ४१९१. लाहो लीजइ रे लाछिनउ...
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तृतीय परिशिष्ट
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