Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas Author(s): Chandanmal Nagori Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal View full book textPage 3
________________ प्रन्यकर्त्ताने सर्व हक्क स्वाधीन रक्खे हैं। क्रोधस्तवया यदि विभो ! प्रथम निरस्तो, ध्वस्तास्तदा बत कथं किल कर्मचौराः १ ॥ प्लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके, नीलद्रुमाणि विपिनानि न कि हिमानि ॥ भावार्थ-हे भगवान् ! क्रोध का तो आपने पहले ही नाश कर दिया था इस लिये आश्चर्य होता है कि कर्मरूपी चोरों कोशत्रुओं को क्रोध विना कैसे जलाये ? जैसे ठंडा हिम (दाह) हरे वृक्षों को शीतलता से जला देता है इसी तरह बिना क्रोध किये जलाने में शीतलता भी काम देती है। अर्थात् शांति से काम लिया जाय तो वह भी मंजील पर पहुंचता है। . इति वचनात. मुद्रक :शेठ देवचंद दामजी आनंद प्रेस-भावनगर. SomeomamePage Navigation
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