Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
(८) उच्चाटन
जिन ध्वनियों की वैज्ञानिक संरचना के घर्षण द्वारा किसी का मन अस्थिर उल्लास रहित एवं निरुत्साहित होकर पथभ्रष्ट या स्थानभ्रष्ट हो जाय, अर्थात् जिन मन्त्रों के प्रयोग से मनुष्य, पशु, पक्षी असे इज्जत और मान-सम्मान को खो देवे उन ध्वनियों के वैज्ञानिकों के सन्निवेश को उच्चाटन मन्त्र कहते हैं ।
हो,
जैन मन्त्रशास्त्रों की परम्परा और स्वरूप २८१
मन्त्र
-उच्चाटन में फट रंजिका यन्त्र
विधि - श्मशान से लिए हुए कपड़े पर नीम और आक के रस में क्रोध में भरकर लिखे। उस यन्त्र को श्मशान में फेंक दें। जब तक
यह यन्त्र वहाँ पर रहता है तब तक शत्रु आकाश में कौवे के समान पृथ्वी पर घूमता रहता है ।"
१. पं० चन्द्रशेखर शास्त्री, भैरव पद्मावती ०३३
२. चिन्तारणि पृ० १६
३. मन्त्रशास्त्र, पृ०२१
Jain Education International
अचान
ट्
For Private & Personal Use Only
अनितायै स्वाह
दर्ग्यू
देवदत्त
स्वाह
तन्त्र — शत्रु का डावा पग की धूलि, मनाण धूलि, सात उड़द, सात सरस्यु, पाँच राई, टं १ तेल काले लुगड़े बांधिये शत्रु का पर उपर नाखिने शत्रु उच्चाटनं ॥ १ ॥ *
72
(4) मारण
जिन ध्वनियों की वैज्ञानिक संरचना के घर्षण द्वारा साधक आततायियों को प्राणदण्ड दे सके अर्थात् जिन ध्वनियों के घर्षण द्वारा अन्य जीवों की मृत्यु हो जाय, उन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश को मारण मन्त्र कहते हैं ।
मन्त्र — ॐ काली महाकाली त्रिपुरा भैरवदारिता अमुकस्य जीवितं संहर मम सुखं कुरु कुरु स्वाहा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन मन्त्रशास्त्र की एक विशाल परम्परा है जिसका मानव के ऐहिक और भौतिक कल्याण की दृष्टि से बहुत महत्व है वह केवल कल्पना ही नहीं है किन्तु आयुर्वेद के चिकित्साशास्त्रों से भी प्रमाणित है कि मन्त्र तन्त्र से अनेक प्रकार की अधि-व्याधि से मुक्ति दिलाकर मानव के जीवन को प्रशस्त किया जा सकता है । आज के इस विज्ञान के युग में आधुनिकता के परिवेश में लोग इस महत्वपूर्ण परम्परा को केवल अन्धविश्वास बताकर इसकी उपेक्षा करते हैं । किन्तु यदि इस विद्या का वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन किया जाय और तथ्यों का विश्लेषण किया जाय तो निश्चय ही यह मानव-कल्याण के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है ।
अपराजि
www.jainelibrary.org.