Book Title: Kaudesh se Kundkund
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ 23 कोडश से कुन्द कुन्द मैं तुम्हें यह जिनशासन सौंपता हूँ। इसकी गरिमा रखना तथा संघस्थ शिष्यों) सामोसमाज में रक्षा करना तूटारा कर्तव्य है। आचार्य भगवंत की आज्ञा शिरोधार्य S AL और आचार्य जिनचंद्र ४४(चवालीस)वधीय पदम मुनि का चतुर्विध संघ की उपस्थिति में संघ का भार आचार्य पद सौंप कर समाधि हेतु प्रस्थान कर गये। आचार्य बनने के बाद उनका यशचारों दिशाओं में फैलने लगा । कौण्डकुंदेपुर जन्म-स्थान कम होने से पद्मनंदी 'कुंदकुंद' नाम में प्रसिद्ध हुए। (एक दिन पल्लववंश के राजार (शिवस्कन्ध सपरिवार उनके) दर्शनाथ आने हैं। अच्छा हुआ,राजाके आग्रह। से कुंदकुंद एक दिन और ठहर, जायेंगे। HEALTS कुंदकुंद से प्रभावित हेकर राजा शिव स्कन्ध भी मुनिवेषधारण कर संप्प के पीछे है। लिये।। अरे । यह क्या ? मुनिसंघ को रोकने वाला ही स्वयं मुनि हमें भी राजाकेर हा गया,तब संप का कोन राकेगा। श्रेष्ठ निर्णय का अनुकरण करना चाहिए AP

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32