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कोडश से कुन्द कुन्द मैं तुम्हें यह जिनशासन सौंपता हूँ। इसकी गरिमा रखना तथा संघस्थ शिष्यों)
सामोसमाज में रक्षा करना तूटारा कर्तव्य है। आचार्य भगवंत की आज्ञा शिरोधार्य
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और आचार्य जिनचंद्र ४४(चवालीस)वधीय पदम मुनि का चतुर्विध संघ की उपस्थिति में संघ का भार
आचार्य पद सौंप कर समाधि हेतु प्रस्थान कर गये। आचार्य बनने के बाद उनका यशचारों दिशाओं में फैलने लगा । कौण्डकुंदेपुर जन्म-स्थान
कम होने से पद्मनंदी 'कुंदकुंद' नाम में प्रसिद्ध हुए।
(एक दिन पल्लववंश के राजार (शिवस्कन्ध सपरिवार उनके)
दर्शनाथ आने हैं।
अच्छा हुआ,राजाके आग्रह। से कुंदकुंद एक दिन और ठहर, जायेंगे।
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कुंदकुंद से प्रभावित हेकर राजा शिव स्कन्ध भी मुनिवेषधारण कर संप्प के पीछे है। लिये।।
अरे । यह क्या ? मुनिसंघ को रोकने वाला ही स्वयं मुनि हमें भी राजाकेर
हा गया,तब संप का कोन राकेगा। श्रेष्ठ निर्णय का अनुकरण करना
चाहिए
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