Book Title: Karm Prakruti Part 01
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 12
________________ अंत में परमश्रद्धेय आचार्यप्रवर एवं कार्य को यथाशीघ्र संपन्न करने के लिये यथोचित योग देनेवाले प्रमख विद्वान मुनिश्री सेवन्तमुनिजी म., श्री शांतिमुनिजी म., श्री विजयमुनिजी म., श्री ज्ञानमुनिजी म., श्री वीरेन्द्रमुनिजी म., श्री राममुनिजी म. एवं श्री सुन्दरलाल जी तातेड़ तथा परोक्ष रूप में सहयोग देने वाले अन्य सज्जनों का आभारी है कि उनकी सद्-भावनाओं, कामनाओं से मैं 'कर्मप्रकृति' जैसे महान ग्रंथ के संपादन करने की आकांक्षा को सफल करने में सक्षम हो सका हूँ। साहित्य के मल्यांकन के सही निर्णायक पाठक होते हैं । अतएव उनकी प्रतिक्रिया से ज्ञात हो सकेगा कि वे मेरे श्रम को किस रूप में परखते हैं । मैं तो इतना ही कहने का अधिकारी हूँ कि जिज्ञासु पाठकों की ज्ञानवद्धि में यह ग्रन्थ सहायक होगा और कर्मसिद्धान्त का अध्ययन करने की प्रेरणा मिलेगी। विज्ञेष कि बहना । खजांची मोहल्ला, बीकानेर सं. २०३८, चैत्र कृष्णा ३, दि. १२-३-८२ देवकुमार जैन संपादक - (११)

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