Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan
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મૂળ ચતુર્થ કર્મગ્રંથ
( १७७) थोवा तिनि अहिआ अणंतगुणा। तस थोव असंखग्गी, भूजलनिलअहिअ वणणंता ॥३८॥ मणवयणकायजोगी, थोवा असंखगुण अणंतगुणा। पुरिसा थोवा इत्थी, संखगुणाणंतगुण कीवा ॥३९॥ माणी कोही माई, लोभी अहिअ मणनाणिणो थोवा । ओही असंखा मइसुअ, अहिअ सम असंख विभंगा ॥४०॥ केवलिणोणंतगुणा, मइसुअअन्नाणिणंतगुण तुल्ला। सुहमा थोवा परिहार, संख अहखाय संखगुणा ॥४१॥ छेय समईय संखा, देस असंखगुणा पंतगुण अजया। थोव असंख दु जता, ओहि नयण केवल अचख्खु ॥ ४२ ॥ पच्छाणुपुचि लेसा, थोवा दो संख णंत दो अहिआ। अभविअर थोव गंता, सासण थोवोवसमसंखा ॥४३॥ मीसा संखा वेअग, असंखगुण खइअ मिच्छ दु अणंता। सन्निअर थोव णंता-णहार थोवेअर असंखा॥४४॥सबजिअठाण मिच्छे,सग सासणि पण अपजसन्निदुगं। सम्मे सन्नी दुविहो, सेसेसुं सन्नि. पज्जत्तो ॥४५॥ मिच्छदुगि अजइ जोगा-हारदुगुणा अपुवपणगे उ। मणवइउरलं सविउवि, मीसि सविउविदुग देसे ॥४६॥ साहारदुग पमत्ते, ते विउवाहारमीसविणु इअरे। कम्मुरलदुगंताइम-मणवयण स. जोगि न अजोगी ॥४७॥ तिअनाण दुर्दसाइम-दुगे

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