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सामाचारी
कल्पसूत्रे । सशब्दार्थ ॥६७१॥
वर्णनम्
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भावार्थ-मेधावी साधु दिवस के चार भाग कर लेवे और इन चारों ही भागों में वह स्वाध्याय आदि करने रूप उत्तर गुणों का पालन करता रहे ॥११॥ मूलभू-पढम पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायइ ।
तइयाए भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥१२॥ भावार्थ-दिवस के प्रथम प्रहर में, वाचनादिकरूप स्वाध्याय करना, द्वितीय प्रहर में सूत्रार्थ चिन्तन रूप ध्यान करे, तृतीय प्रहर में भिक्षावृत्ति करे और चतुर्थ प्रहर में प्रतिलेखका आदि करे ॥१२॥ मूलम्-आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया।
चित्तासोएसु मासेसु, तिपया हवइ पोरिसि ॥१३॥ भावार्थ-आषाढ मास में द्विपदा पौरूषी होती है। पौष मास में चतुष्पदा पौरुषी
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। ॥६७१॥
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