Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ || ११३ || 球華療藥瑜率賺賺賺賺賺賺賺賺賺準森鄰漁港療滋都撒線 निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहार-भूमि वियार-भूमिं सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए' से य से | पडि-सुणिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमिं वियार-भूमि | सज्झायं करित्तए वा । से य से नो पडि-सुणिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमिं वियार-भूमि सज्झायं करित्तए वा, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए ॥सू. ५२।। वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियाणं हुत्तए, आयाण-मे यं, अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स अणुच्चा-कुइयस्स अणठ्ठा-बंधियस्स अमिया-सणियस्स अणा-तावियस्स अ-समियस्स अभिक्खणं अभिक्खणं अ- पडिलेहणा-सीलस्स अपमज्जणा-सीलस्स तहा तहा संजमे दुरा-राहए भवइ ।। सू.५३ ॥ अणायाण-मेयं अभिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स उच्चा-कुइयस्स 踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪謙踪踪踪踪踪染率革聯部激滋滋 For Private and Personal Use Only

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