Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shaarin Aradhana Kendra www.kabatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला – ग्रन्थाङ्कः ७३ श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः। ॥ तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेव श्री विजयकपुरसरिगुरुभ्यो नमः । हालारदेशोद्धारक - पूज्याचार्यदेव श्रीविजयामृतसूरिगुरुभ्यो नमः ।।। चतुर्दशपूर्वधर- श्रुतकेवली- श्रीमद्भद्रबाहुस्वामी-विरचितं श्री पर्युषणाकल्पाख्य । ।। श्री कल्पसूत्रम् (बारसा-सूत्रम्) (मूलम्) ।। संपादकः संशोधक च तपोमूर्ति-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयकर्पूरसूरीश्वर-पट्टालड्कार-हालारदेशोद्धारक। 'कविरल-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-पट्टधरः । 'पूज्याचार्यदेव श्री विजयजिनेन्द्र सूरीश्वरः । प्रकाशिका- श्री हर्षपष्पामत जैन ग्रन्थमाला, लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) मूल्य रु. ६० - ०० 曹露露,國國醫歷舜華裔婚,两書面答题曲 For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir अर्हम् पू. आ. श्रीविजयकर्पूरामृतसूरिभ्यो नमः ।। श्रुतकेवलियुगप्रधान - श्रीमद्भद्रबाहुस्वामि - प्रणितं 强層湖画画層四强要舞强麼發強強強图姆圆四强 || श्रीकल्पसूत्रम् ॥ वि0000000000024888888888888 णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मगलं ||१|| For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था ।। तं जहा-हत्थुत्तरहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कते, हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए, हत्थुत्तराहिं जाए, हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिअं पव्वइए, हत्थुत्तराहिं अणंते, अणत्तरे, निव्वाघाए, निरावरणे, कसिणे, पडिपुण्णे, केवलवर-नाणदंसणे समुप्पन्ने, | साइणा परिनिव्वुए भयवं ।। सूत्रं १ ।।। 鄰球球豪華車離独家空密激韓華華聲遼寧海路德常 ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अठुमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स छठी पक्खे णं महाविजय-पुप्फुत्तर-पवर-पुण्डरीआओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवम-ठ्ठिइआओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता, इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विइक्कंताए, सुसमाए समाए विइक्कंताए, सुसमदुस्समाए समाए विइक्कंताए, दुस्समसुसमाए समाए बहु विइक्कंताए सागरोवम-कोडाकोडीए बायालीस-वाससहस्सेहिं ऊणिआए पंचहत्तरीए वासेहिं अद्धनवमेहि अ मासेहिं सेसेहिं इक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुल-समुप्पन्नेहिं 賺賺準準準路環热鐵路幫聯球蘇聯斯洛瑞球迷 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ 發發護發發發發發發發發發發邊幾發發發發發發發發發發發發 कासवगुत्तेहिं, दोहिअ हरिवंस - कुल-समुप्पन्नेहिं गोयमसगुत्तेहिं, तेवीसाए तित्थयरेहिं विइक्कंतेहिं समणे भगवं महावीरे चरमतित्थयरे पुव्वतित्थयर-निद्दिढे माहणकुण्डग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए पुव्वरत्ता - वरत्त-कालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं, जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भताए वक्कंते ।। सू. २ ॥ समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए आवि होत्था, चइस्सामि त्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, चुएमि त्ति जाणइ, जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते, तं रयणिं च णं सा देवाणंदा माहणी | सयणिज्जसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे, उराले, कल्लाणे, सिवे, धन्ने, मंगल्ले सस्सिरीए चउद्दस महासमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ।। सू. ३ ।।। तं जहाः- गय-वसह-सीह-अभिसे य-दाम-ससि-दिणयरं झयं । पउमसर-सागर-विमाण-भवण-रयणुच्चय-सिहि च ॥१|| सू. ४|| तएणं सा देवाणंदा माहणी इमे एयारूवे उराले कल्लाणे सिवे धणे मंगले 踪踪踪踪聯華踪踪踪踪踪踪踪率賺賺賺賺染率激激 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kab .org Acharya Shekalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥२ ॥ 琳瑯率漸瞭鄰鄰鄰鄰鄰激湖激撒撒撒琳琳琳琳琳激瞭瞭激源 कासवगुत्तेहिं, दोहिअ हरिवंस - कुल-समुप्पन्नेहिं गोयमसगुत्तेहिं, तेवीसाए तित्थयरेहिं विइक्कंतेहिं समणे भगवं महावीरे चरमतित्थयरे पुव्वतित्थयर-निद्दिढे माहणकुण्डग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए | पुव्वरत्ता - वरत्त-कालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं, जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए | भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भताए वक्कते ।। सू. २ ॥ समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए आवि होत्था, चइस्सामि त्ति जाणइ, चयमाणे | न जाणइ, चुएमि त्ति जाणइ, जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए। जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते, तं रयणिं च णं सा देवाणंदा माहणी । सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे, उराले, कल्लाणे, सिवे, धन्ने, मंगल्ले सस्सिरीए चउद्दस महासमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ।। सू. ३ ।।। तं जहाः- गय-वसह-सीह-अभिसे य-दाम-ससि-दिणयरं झयं कुंभं । पउमसर-सागर-विमाण-भवण-रयणुच्चय-सिहिं च ।।१।। सू. ४|| तएणं सा देवाणंदा माहणी इमे एयारूवे उराले कल्लाणे सिवे धण्णे मंगले 瞭瞭都想煤激嫩嫩激瞭鄰撤離鄰激都撒激激離球球激激盟 瑞 For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र ॥३ ॥ 222866666.ee सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हठ्ठतु-चित्त-माणंदिआ, पीइमणा, परम-सोमणसिया, हरिस-वस-विसप्पमाण-हिअया, धारा-हय-कर्यब-पुप्फगं पिव समुस्ससिअ-रोमकूवा, सुमिणुग्गहं करेइ । सुमिणुग्गहं करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुठ्ठित्ता अतुरिअ-मचवल-मसंभंताए अविलंबियाए रायहंस-सरिसीए गईए जेणेव उसभदत्ते माहणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसभदत्तं माहणं जएणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावित्ता भद्दासण-वरगया आसत्था वीसत्था सुहासण-वरगया | करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी ॥ सू. ५|| | एवं खलु अहं देवाणु प्पिया ! अज्ज सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे उराले जाव सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं जहाः-गय जाव सिहिं च ॥१|| सू. ६॥ एएसिं णं देवाणुप्पिआ ! उरालाणं जाव चउद्दसण्हं महासुमिणाणं के मण्णे कल्लाणे फलवित्ति-विसेसे भविस्सइ ? तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणंदाए माहणीए अंतिए एअमळू सुच्चा निसम्म हळुतुछ जाव हिअए धाराहय - कयंबपुप्फगं पिव समुस्ससिय - रोमकुवे: e eeeeeeee For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ४ ॥ 路滋激慈麼丞丞洋森率海治激亲垂率辜產潔滋 सुमिणुग्गहं करेइ, करित्ता ईहं अणुपविसइ, इहं अणुपविसित्ता अप्पणो साहाविएणं मइपुव्वएणं || बुद्धिविण्णाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थुग्गहं करेइ, अत्थुग्गहं करित्ता देवाणंद माहणिं एवं वयासी ॥स. ७|| उराला णं तुमे देवाणुप्पिए, सुमिणा दिठ्ठा, कल्लाणा ण सिवा धन्ना | मंगल्ला सस्सिरीआ आरुग्गतुठ्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्ल- कारगा णं तुमे देवाणुप्पिए, सुमिणा दिठ्ठा, तं जहाः- अत्थलाभो देवाणुप्पिए, भोगलाभो देवाणुप्पिए, पुत्तलाभो | देवाणुप्पिए, सुक्खलाभो देवाणुप्पिए, एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए, नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धठ्ठमाणं राइंदिआणं विइक्कंताणं सुकुमाल - पाणिपायं अहीण- पडिपुण्ण -पंचिंदिअ-सरीरं लक्खण-वंजण - गुणोववेअं माणुम्माण - पमाण-पडिपुन्न| सुजाय-सव्वंग-सुंदरंगं ससि-सोमाकारं कंतं पिअदंसणं सुरूवं देवकुमारोवमं दारयं पयाहिसि ।।सू. ८।। सेऽवि अ णं दारए उम्मुक्क-बालभावे विन्नाय-परिणय-मित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते रिउव्वेअ - जउव्वेय-सामवेअ - अथव्वणवेअ - इतिहासपंचमाणं निग्घंटुछठ्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेआणं सारए पारए वारए धारए सडंगवी, सद्वितंत-विसारए संखाणे सिक्खाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे 藥聯席帝滋滋琼琼激謀幕激靠離線渐浓路沿路幕都荣臻 For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र 114 11 www.kobatrth.org अन् बहुपु बंभणसु परिव्वायएसु नएसु सुपरिनिट्ठिए आवि भविस्सइ ।। सू. ९ ।। तं उराला गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिठ्ठा, जाव आरुग्ग-तुट्ठि|दीहाउअ - मंगल-कल्लाण-कारगा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिठ्ठत्ति कट्टु भुज्जो | भुज्जो अणुवूहइ ॥ सू. १०।। तए णं सा देवाणंदा माहणी उसभदत्तस्स माहणस्स अंतिए | एअमठ्ठे सुच्चा निसम्म हठ्ठतुठ्ठ जाव हिअया जाव करयल - परिग्गहिअं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु उसभदत्तं माहणं एवं वयासी ||सू. ११ ।। एवमेअं देवाणुप्पिआ ! तहमेअं देवाणुप्पिआ ! अवितहमेअं देवाणुप्पिआ ! असंदिद्धमेअं देवाणुप्पिआ ! इच्छिअमेअ देवाणुप्पिया ! पडिच्छिअमेअ देवाणुप्पिया ! इच्छिअ-पडिच्छिअमेअं | देवाणुप्पिया ! सच्चे णं एस अठ्ठे से जहेयं तुब्भे वयहत्ति कट्टु, ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता उसभदत्तेणं माहणेणं सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरइ ॥सू. १२|| ते णं काले णं ते णं समए णं, सक्के देविंदे देवराया, वज्जपाणी, पुरंदरे, सयक्कउ, सहस्सक्खे, मघवं, पागसासणे, दाहिणड्ढलोगाहिवई, एरावणवाहणे, सुरिंदे, बत्तीस - विमाण-सयसहस्साहिवई, अरयंबर - वत्थधरे, आलइअ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूळ ॥ ५ ॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र 8000wwwsai -मालमउडे, नव - हेम - चारु - चित्त - चंचल- कुण्डल-विलिहिज्जमाण-गल्ले, महिट्टिए, महज्जुइए, महब्बले महायसे, महाणुभावे, महासुक्खे भासुरबोंदी, | पलंब-वणमालधरे, सोहम्मे कप्पे, सोहम्मवडिसए विमाणे सुहम्माए सभाए, सक्कसि | सीहासणं सि, से गं तत्थ बत्तीसाए विमाणवास-सय-साहस्सीणं, चउरासीए सामाणिअ-साहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्ती-सगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अठ्ठण्डे अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणीआणं सत्तण्हं अणीयाहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं वेमाणिआणं देवाणं देवीण य, आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे, महयाहय-नट्ट-गीअ-वाइअ-तंती-तलताल -तुडिअ-घणमुइंग-पडुपडह-वाइअरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ।।सू. १३।। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे विहरइ । तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे, माहणकुंडग्गामे नयरे, उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए 職崇落潔器 滋滋滋源落落落落滋滋滋瑜幕瑜瑜臨张 For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र || ७|| 強強強強強發發發發發硬發變變變變變變變變發發發 माहणीए जालंधरस - गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्तं पासइ, पासित्ता हठ्ठ -तुठ्ठ - | चित्तमाणंदिए, नंदिए, परमाणंदिए, पीइमणे परम-सोमणस्सिए, हरिसवस - विसप्पमाण |- हिअए, धाराहयकयंब-सुरहिकुसुम-चंचुमाल-इअ -ऊससि अ-रोमकूवे, | विअसिअ-वर-कमलाणण-नयणे, पयलिअ-वर-कडग-तुडिअ-केऊर-मउड-कुंडल| हार-विरायंत-वच्छे, पालम्ब-पलंबमाण-घोलंत-भूसणधरे, ससंभमं तुरिअं चवलं सुरिंदे । सीहासणाओ अब्भुइ, अब्भुठ्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेरुलिअवरिठ्ठ- रिठ्ठ-अंजण-निउणोवचिअ-मिसिमिसिंत-मणिरयण-मण्डिआओ पाउआओ ओमुअइ, ओमुइत्ता एगसाडिअं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता अंजलि-मउलिअग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तठ्ठ-पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साह? तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता | ईसिं पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग-तुडिअ-थंभिआओ भुआओ साहरेइ, साहरित्ता करयल-परिग्गहिअं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी नमुत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयं - संबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं, 遊遊蒸發強發發發發發強強發強強強強強強發發發發發發發發 ॥ ७ For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ||| 2 11 www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरिस-सीहाणं, पुरिसवर पुंडरीआणं, पुरिसवर - गंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं, लोग पज्जोअगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, | सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, * धम्मसारहीणं, धम्मवर चाउरं तचक्कवट्टीणं, दीवो ताणं सरणं गई पइठ्ठा, | अप्पsिहय - वर-नाण- दंसण-धराणं, विअट्ट-च्छउम्माणं, जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं, सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत- मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति - सिद्धिगइ - नामधेयं, ठाणं सम्पत्ताणं, नमो जिणाणं जिअ भयाणं । नमुत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स चरमतित्थयरस्स पुव्वतित्थयर - निद्दिठ्ठस्स जाव सम्पाविउ - कामस्स । वंदामि णं भगवन्तं तत्थगयं इह गए, पासउ मे भगवं तत्थ गए इह गयं त्ति कट्टु, समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने, तए णं तस्स सक्कस्स देविन्दस्स देवरन्नो अयमेयारूवे अब्भत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था || सू. १४ - १५ ।। (चित्र नं. १ ) For Private and Personal Use Only 粥 淄 耀 類 मूळ चित्र नं. १. ॥ ८ ॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir कल्पसूत्र ॥९ ॥ 至空凛凛辜靠賺賺賺席激盘滋滋琳琳琳離浓浓资源部商 __न खलु एयं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्सं, जण्णं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा किवणकुलेसु वा भिक्खायरकुलेसु वा, माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइति वा, आयाइस्संति वा ।।सू१६।। एवं खलु अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा, | उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, इक्खागकुलेसु वा, खत्तियकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु, विसुद्ध-जाइ-कुल-वंसेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा ।।स.१७।। अत्थि पूण एसेऽवि भावे लोगच्छेरय-भुए अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं विइक्ताहिं समुप्पज्जइ, (ग्रन्थाग्रं १००) नामगुत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स, अवेइअस्स, अणिज्जिण्णस्स उदएणं । जन्नं अरिहंता वा, चक्कवट्टी वा बलदेवा वा, वासुदेवा वा अन्तकुलेसु वा, पन्तकुलेसु वा, तुच्छ ० दरिद्द ० भिक्खाग ० किविण ० माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा, | कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा, वक्कमति वा, वक्कमिस्संति वा, नो चेव णं जोणी-जम्मण-निक्खमणेणं निक्खमिंसु वा, निक्खमंति वा, निक्खमिस्संति वा ।।सू.१८।। 迎球琅琅琅率瘋瞭瞭潮體驗激諒球球球球準滋滋滋球 For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ १०॥ 發發發發發發發發幾發變變變變變變發錢錢錢錢錢錢錢錢錢錢 अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहण-कुण्डग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्तन्ते ॥१९॥ तं जीअमेअं तीअ-पच्चुप्पन्न-मणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवरायाणं, अरिहंते भगवंते तहप्पगारेहितो अन्तकुलेहिंतो पन्तकुलेहिंतो तुच्छकुलेहिंतो दरिद्दकुलेहिंतो भिक्खागकुलेहिंतो किविणकुलेहिंतो वा, माहणकुलेहिंतो वा, तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, नायकुलेसु वा | खत्तिअकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइ-कुल-वंसेसु जाव रज्जसिरिं कारेमाणेसु पालेमाणेसु साहरावित्तए । तं सेयं खलु मम वि समणं भगवं | महावीरं चरमतित्थयरं पुव्वतित्थयर-निद्दिळू, माहणकुण्डग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिओ खत्तिअकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरावित्तए, जे वि अ णं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तं वि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए 聯準賺賺賺賺率激瞭带臨臨路臨路 高温瑜激潔瑜 For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।। ११ ।। 器路总运染率瑜轟轟謀求幸运国 兰店市 温浩 साहरावित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता हरिणेगमेसिं अग्गाणी-आहिवइं देवं | सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी ।।सू. २०।। एवं खलु देवाणुप्पिआ ! न एअं भूअं, न एअं भव्वं, न एअं भविस्सं, जन्नं अरिहंता वा, चक्कवट्टी वा, बलदेवा वा, वासुदेवा वा, अन्तकुलेसु वा, पन्तकुलेसु वा, तुच्छकुलेसु वा, दरिद्दकुलेसु वा, भिक्खागकुलेसु वा, किविणकुलेसु वा, माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा आयाइस्संति वा । एवं खलु अरिहंता वा, चक्कवट्टी वा, | बलदेवा वा, वासुदेवा वा, उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, राइन्नकुलेसु वा, नायकुलेसु वा, खत्तिअकुलेसु वा, इक्खागकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा, तहप्पगारेसु | विसुद्ध-जाइ-कुलवंसेसु आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा ||सू. २१।। अत्थि पण एसे वि भावे लोगच्छेरयभए अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं |विइक्कंताहिं समुप्पज्जइ नामगुत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेइअस्स अणिज्जिण्णस्स उदएणं । जन्नं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा, वासुदेवा वा, अंतकुलसु वा, पंतकुलेसु वा, तुच्छकुलेसु वा, दरिद्दकुलेसु वा, भिक्खागकुलेसु वा, किविणकुलेसु वा, 路路滋滋滋滋滋踪踪踪踪踪球瑜賺賺賺賺賺非 For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। १२ ।। www.kobatrth.org माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा । कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा, वक्कमंति वा, वक्कमिसंति वा, नो चेव णं जोणी- जम्मण-निक्खमणेणं निक्खमिंसु वा निक्खमंति वा, निक्खमिस्संति वा ॥ सू. २२|| अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वकते ॥सू. २३|| तं जीअमेअं तीअपच्चुप्पण्ण-मणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवरायाणं अरिहंते भगवंते तहप्पगारेहिंतो अंतकुलेहिंतो पंतकुलेहिंतो तुच्छकुलेहिंतो दरिद्दकुलेहिंतो किविणकुलेहिंतो वणीमगकुलेहिंतो माहणकुलेहिंतो तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, नायकुलेसु वा खत्तिअकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्ध - जाइ - कुल - वंसेसु साहरावित्तए || सू. २४|| तं गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं माहणकुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए | कुच्छिओ खत्तिअकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 嫩 मूळ ।। १२ ।। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। १३ ।। www.kobatrth.org भारियाए तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहराहि । जे वि अणं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तं पि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ता कुच्छि गब्भत्ताए साहराहि, साहरित्ता मम एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि ॥ सू.२५ ।। (चित्र नं. २) तणं से हरिणेगमेसी पायत्ताणिआहिवई देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वृत्ते समाणे हठ्ठ जाव हिअए करयल जाव त्ति कट्टु एवं जं देवो आणवेइ' त्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सक्क्स्स देविंदस्स देवरन्नो अंतिआओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता | वेउव्विअ - समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखिज्जाई जोअणाई दंडं निसिरइ, तं | जहा :- रयणाणं, वयराणं, वेरुलिआणं, लोहिअक्खाणं, मसारगल्लाणं, हंसगब्भाणं, पुलयाणं, सोगंधिआणं, जोईस्साणं, अंजणाणं, अंजणपुलयाणं, जायरूवाणं, सुभगाणं, अंकाणं, फलिहाणं, रिठ्ठाणं, अहाबायरे पुग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदियइ ॥सू. २६ ।। परिआइत्ता दुच्चपि वेउव्विअ - समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता उत्तर - वेडव्विअं रूवं विउव्वर, विउव्वित्ता ताए उक्किठ्ठाए, तुरिआए, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir 违 मूळ चित्र नं. २ ।। १३ ।। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org कल्पसूत्र ।। १४ ।। * चवलाए, चंडाए, जयणाए, उद्धआए, सिग्घाए, छेआए, दिव्वाए, देवगईए, वीईवयमाणे वीईवयमाणे तिरिअ - मसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झं मज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे भारहे वासे जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव उसभदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी | तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स पणामं करेइ, पणामं करित्ता देवाणंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवणिं दलइ, दलित्ता असुहे पुग्गले अवहरइ, अवहरित्ता सुभे पुग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता 'अणुजाणउ मे भयवं' ि कट्टु समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं करयलसंपुडेणं गिण्हइ, करयलसंपुडेणं गिण्हित्ता जेणेव खत्तिअकुंडग्गामे नयरे जेणेव सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स गिहे जेणेव तिसला खत्तिआणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिसलाए खत्तिआणीए सपरिजणाए ओसोवणि दलइ, दलित्ता असुहे पुग्गले अवहरइ, अवहरित्ता | सुहे पुग्गले पक्खिवइ पक्खिवित्ता समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं तिसलाए खत्तिआणीए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ, जे वि अ णं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तं पि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ता कुच्छिसि भत्ता For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूळ ।। १४ ।। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.birth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र ।। १५ ॥ 琼琳琳離瞭率遠滋滋賺賺賺賺賺強強聯腺激臨球海 साहरइ, साहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए ।सू. २७|| ताए उक्किठ्ठाए, तुरियाए, चवलाए, चंडाए, जयणाए, उधुआए, सिग्घाए, दिव्वाए, देवगइए, |तिरिअ-मसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं जोअण-सयसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं | उप्पयमाणे जेणामेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए, विमाणे, सक्कंसि सीहासणंसि, सक्के देविंदे देवराया, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो | एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ ।।सू. २८॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं | महावीरे जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोअबहुले तस्स णं आसोअबहुलस्स | तेरसीपक्खेणं बासीइ राईदिएहिं विइक्कंतेहिं तेसीइमस्स राइंदिअस्स अंतरा वट्टमाणे | हिआणुकंपएणं देवेणं हरिणेगमेसिणा सक्कवयण-संदिढणं माहणकंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छीओ खंत्तिअकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासव गुत्तस्स भारिआए तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठस-गुत्ताए पुव्वरत्ता-वरत्त-काल-समयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं कुच्छिसि 球嫩嫩嫩撒 獻球球球球嫩嫩嫩嫩球球 球聯淋油撒球范 For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। १६ ।। 遊遊發強強發發發發強強強強強強寶發邊郊遊露露醬强强强强 गब्भत्ताए साहरिए ।सू. २९॥ ते णं काले णं ते णं समएणं समणे भगवं महावीरे तिन्नाणो-वगए आवि होत्था, साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे नो जाणइ, साहरिएमि त्ति जाणइ ।।सू. ३०।। जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छिओ तिसलाए खत्तिआणीए वासिट्ठस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए, तं रयणिं च णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे | एआरूवे उराले जाव चउद्दस-महासुमिणे तिसलाए खत्तिआणीए हडेत्ति पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं जहा-गय वसह जाव सिहं च-गाहा ।।सू. ३१।। जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छिओ तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए, तं रयणिं च णं सा तिसला खत्तिआणी तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अधिभतरओ सचित्त-कम्मे, बाहिरओ दूमिअ-घट्टे मढे, | विचित्त-उल्लोअ-चिल्लिअ-तले मणि-रयणपणासि-अंधियारे, बहुसम-सुविभत्त-भूमिभागे, - पंचवन्न-सरस-सुरहि- मुक्क-पुप्फ- पुंजोवयार-कलिए, कालागुरु- पवर-कुंदुरुक्क – || 瞭瞭率率都难激稳激盪 激激賺染率染帶串聯 For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasagasul yanmandir कल्पसूत्र . मूळ ॥ १७॥ 華華森海盗藏微激賺賺賺激盪盪球球聯部部渐渐郊遊 तुरुक्क-डज्झंत-धूव-मघमघंत-गंधुधुआभिरामे, सुगंध-वरगंधिए, गंधवट्टिभूए, तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगण-वट्टिए, उभओ बिब्बोअणे, उभओ उन्नए, मज्झे | णयगंभीरे, गंगा - पुलिण - बालुआ - उद्दाल - सालिसए, उवचिअ - खोमिअदुगुल्ल - पट्ट-पडिच्छन्ने, सुविरइअ-रयत्ताणे, रत्तंसुअ-संवुडे, सुरम्मे, आइण - गरू अ-बूर-नवणीय-तूल-तुल्ल-फासे, सुगन्ध-वर-कुसुम-चुन्न-सयणोवयार - कलिए, पुव्वरत्ता-वरत्त-काल-समयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे उराले जाव चउद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तं जहाः-गय १ वसह २ सीह ३ अभिसेअ, ४ दाम ५ ससि ६ दिणयरं ७ झयं ८ कुंभं ९ । पउमसर १० सागर ११ | विमाण १२ भवण १२ रयणुच्चय १३ सिहिं च १४ ॥१।।सू. ३२।। तए णं सा तिसला खत्तिआणी तप्पढमयाए, चउदंत-उसिअ-गलिअ-विपुलजलहर-हार-निकर-खीरसागर-ससंककिरण-दग-रय-रयय-महासेल-पंडुरं समागय-मह अर-सुगंध-दाण-वासिअ-कपोलमुलं, देवराय-कंजर-वरप्पमाणं. पिच्छइ, सजल-घण-विपुल-जलहर-गज्जिअ-गंभीर-चारुघोसं, इभं, सुभं, सव्व-लक्खण ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ १८॥ कल्पसूत्र || कयंबिअं वरोरुं १ ॥सू. ३३।। (चिा नं. ३) तओ पुणो धवल-कमलपत्त-पयरा-इरेग-रूवप्पभं, पहा-समुदओवहारेहिं सव्वओ चेव दीवयंतं, अइसिरि-भर-पिल्लणा-विसप्पंतकंत-सोहंत-चारु-ककुहं, तणु- सुद्ध|| सुकुमाल-लोम-निद्धच्छविं, थिरसुबद्ध-मंसलो-वचिअ-लठ्ठ-सुविभत्त-सुंदरंगं, पिच्छइ, | घण-वट्ट- लठ्ठ-उक्किठ्ठ-विसिठ्ठ-तुप्पग्ग-तिक्ख-सिंगं, दंतं, सिवं, समाणसोहंत-सुद्धदंतं, | |वसह, अमिअ-गुण-मंगल-मुहं २ |सू. ३४।। तओ पुणो हारुनिकर-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रयय-महासेल-पंडुरतरं | (ग्रंथानं २००) रमणिज्ज - पिच्छणिज्जं, थिर-लठ्ठ - पउठ्ठ - वट्ट - पीवर - सुसिलिठ्ठ-विसिठ्ठ-तिक्ख-दाढा-विडंबिअ-मुहं, परिकम्मिअ-जच्च-कमल-कोमलपमाण-सोभंत-लठ्ठउठं, रत्तुप्पल-पत्त-मउअ-सुकुमाल-तालु-निल्लालि-अग्गजीहं, | मूसागय-पवर-कणग-ताविअ-आवत्ता-यंत-वट्ट- तडिय - विमल - सरिस-नयणं, विसाल-पीवर-वरोरुं, पडिपन्न-विमल-खंध, मिउ-विसय-सुहम -लक्खण -पसत्थ - विच्छिन्न -केसराडोव- सोहिअं. ऊसिअ-सुनिम्मिअ- सुजाय-अप्फोडिअ-लं 器灣研發醫强强强强强强發强發強強婚獨阀四阀與發發發發 ॥ १८॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र 11 88 11 सोमं, सोमाकारं, लीलायंतं, नह-यलाओ ओवयमाणं, नियग-वयण - मइ-वयंतं, पिच्छइ, सा गाढ - तिक्खग्ग- नहं, सीहं वयण - सिरी-पल्लव-पत्त - चारु - जीहं ३ ||सू. ३५|| - - तओ पुणो पुन्नचंद - वयणा उच्चागय-ठ्ठाण - लठ्ठ - संठिअं, पसत्थरूवं, सुपइठ्ठिअकणगमय - कुम्म - सरिसो- वमाण-चलणं, अच्चुण्णय - पीण - रइअ - मंसल - उवचिअ-तणुतंब निद्ध नहं, कमल पलास - वरंगुलिं सुकुमाल - कर-चरणं कोमल कुरुविंदा-वत्त- वट्टाणु - पुव्व - जंघं, निगूढ - जाणुं, गय - वर - कर - सरिस - पीवरोरुं, चामीकरइअ - मेहला - जुत्त-कंत-विच्छन्न-सोणिचकं, जच्चंजण - भमर - जलय-पयर - उज्जुअ तणुअ आइज्ज - लडह सम - संहिअ सुकुमाल मउअ - रमणिज्जकरयल - माइ अ - रोमराई, नाभि-मंडल - सुंदर - विसाल-पसत्थ-जघणं, पसत्थ-तिवलिअ - मज्झं नाणा- मणि-कणग- रयण-विमल - महा-तवणिज्जा- भरणभूसण- विराइअ-मंगु-वंगिं, हार- विरायंत- कुंदमाल - परिणद्ध-जलजलित-थणजुअलविमल - कलसं, आइअ - पत्तिअ - विभूसिएणं सुभग- जालुज्जलेणं मुत्ता - कला-वणं उरत्थ- दीणार- माल-विरइएणं कंठमणि- सुत्तएण य कुंडल-जुअलुल्लसंत-अंसोवसत्त - www.kobatrth.org - - - For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 锻 起 मूळ ।। १९ ।। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।। २० ॥ 激滋滋球球球球球球球球球賺賺賺賺激盪激激踪踪踪 | सोभंत - सप्प भेणं सोभा गुण- स मु द एणं आ ण ण - कु डुबि एण : कमलामल-विसाल-रमणिज्ज-लोअणि, कमल-पज्जलंत-कर-गहिअ-मुक्क-तोयं, लीलावाय-कय-पक्खएणं सुविसद-कासिण-घण-सह-लंबंत- केस हत्थं, पउमद्दह-कमल-वासिणि, सिरिं, भगवई पिच्छइ. हिमवंत-सेल-सिहरे |दिसा-गइंदोरु-पीवर-कराभि-सिच्चमाणिं ४ ||सू. ३६।। तओ पुणो सरस - कुसुम - मंदार - दाम - रमणिज्ज - भूअं, चंपगासोग| पुन्नाग-नाग-पिअंगु-सिरिस-मुग्गर-मल्लिआ-जाइ-जूहि-अंकोल्ल-कोज्ज- कोरिंटपत्तदमणय - बउल - नवमालिअ-तिलय-वासंतिअ-पउ-मुप्पल-पाडल-कुंदाइ - मुत्त-सहकार-सुरभि-गंधि, अणुवम-मणोहरेणं गंधेणं दस-दिसाओ वि वासयंतं, सव्वोउअ-सुरभि-कुसुम-मल्ल-धवल- विलसंतकंतं -बहवन्न-भत्तिचित्तं, छप्पय - महुअरि-भमरगण-गुमगुमायंत-निलित-गुंजंत-देसभागं, दाम, पिच्छइ नभंगण-तलाओ |ओवयंतं ५ ॥सू. ३७|| ससिं च गोखीर-फेण-दगरय-रयय-कलसपंडुरं, सुहं, हिअय - नयणकतं, 發強強強強會四强强强强强强舞琦露露画图网燈過斑透露 ॥ २० ॥ For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ २१ ॥ 發發發發础路图图醫强强强强强势强盛鄧画画的婚强强强强 पडिपुण्णं, तिमिर - निकर - घण - गुहिर-वितिमिर-करं, पमाण-पक्खंतरायलेह, कुमुअवण-विबोहगं, निसा-सोहगं, सुपरिमठ्ठ-दप्पण-तलोवम, हंस-पडु-वन्नं, जोइसमुह-मंडगं, तमरिपुं, मयण-सरापूरं समुद्द-दग-पूरगं, दुम्मणं जणं दइअ-वज्जिअं पाएहिं सोसयंतं, पुणो सोम-चारु-रूवं, पिच्छइ । सा गगण - मंडल - विसाल - सोम-चंकम्ममाण-तिलयं, रोहिणि-मण-हिअय-वल्लहं, देवी पुन्नचंदं समुल्लसंतं ६ | ||सू. ३८|| तओ पुणो तमपडल - परिप्फुडं चेव ते असा पज्जलंत-रूवं, रत्ता-सोग-पगास-किंसुअ-सुअमुह-गुंजद्ध-राग-सरिसं, कमल-वणालंकरणं, अंकणं | जोइसस्स, अंबरतल-पईवं, हिम-पडल-गलग्गह, गह-गणोरु-नायगं, रत्ति-विणासं, उदयत्थमणेसु मुहुत-सुहदंसणं, दुन्निरिक्ख-रूवं, रति-मुद्धंत-दुप्पयार-प्पमद्दणं, सीअवे ग-महणं, पिच्छइ, मेरुगिरि-स यय-परि अट्टयं, विसालं, सूरं, रस्सी-सहस्स-पयलिअ-दित्तसोहं, ७ ।।सू. ३९।। तओ पुणो जच्च-कणग-लठ्ठि-पइछिअं, समूह -नील-रत्त-पीअ - सुक्किल - 靖幸非法活率串法法激政客感染踪踪激谋幸这部都靠 || २१ ।। For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shekalassagarsun Gyanmandir प्रजासूत्र २२॥ सुकुमालुल्लसिअ -मोरपिच्छ-कय-मुद्धयं, अहिअ-सस्सिरीअं, फालिअ-संखंक-कंददगरय-रयय-कलस-पंडुरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेण रायमाणं भित्तुं गगणतलमंडलं चेव ववसिएणं पिच्छइ, सिव-मउअ-मारुअ-लयाहय-कंपमाणं, अइप्पमाणं, जण-पिच्छणिज्ज-रूवं ८ ॥सू. ४०|| (चित्रा नं. ४) तओ पुणो जच्च-कंचणुज्जलंत-रूवं, निम्मल-जल-पुन्न-मुत्तमं, दिप्पमाण-सोहं, कमल-कलाव-परिरायमाणं, पडिपुन्न-सव्व-मंगल-भेअ-समागम, पवर-रयणपरिरायंत-कमलठ्ठिअं, नयण-भूसणकर, पभासमाणं सव्वओ चेव दीवयंतं, सोमलच्छी-निभेलणं, सव्वपाव-परिवज्जिअं, सुभं, भासुरं, सिरिवरं, सव्वोउअ-सुरभि| कुसुम-आसत्त-मल्लदामं पिच्छइ, सा रयय-पुन्नकलसं ९ ।।सू. ४१।। तओ पुण रवि-किरण-तरुण-बोहिअ-सहस्सपत्त-सुरभि-तर-पिंजर-जलं, जलचर-पहकर-परिहत्थग-मच्छ-परिभुज्जमाण-जल-संचयं, महंतं जलंतमिव कमलकुवलय-उप्पल-तामरस-पुंडरीयोरु-सप्पमाण-सिरि-समुदएणं रमणिज्ज - रूवसोभं, |पमुइअंत-भमरगण-मत्त-महुअरि-गणु-क्करो-लिज्ज-माण-कमलं, (ग्रं. २५०) कायंबग 激激嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩聯带激激激 . B For Prate and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र . ॥ २३ ॥ - बलाहय - चक्क-कलहंस-सारस-गव्विय-सउण-गण-मिहुण- सेविज्जमाण-सलिलं, पउ-मिणि-पत्तो-वलम्ग-जलबिंदु-निचय-चित्तं, पिच्छइ, सा हिअय-नयण-कंतं, पउमसरं नाम सरं, सररूहाभिरामं १० ।।सू. ४२।। तओ पणो चंद-किरण-रासि - सरिस - सिरिवच्छ - सोहं, चउगमण पवड्ढमाण-जल-संचयं, चवल - चंचलु - च्चाय - प्पमाण - कल्लोल - लोलंत - तोयं, पडु-पवणाहय-चलिअ-चवल-पागड-तरंग-रंगत-भंग-खोखुब्भमाण-सोभंतनिम्मल-उक्कड-उम्मी-सहसंबंध-धावमाणा-वनियत्त-भासुर-तराभिरामं, महामगरमच्छ| तिमि-तिर्मिगिलि-निरुद्धतिलि-तिलिया-भिघाय-कप्पूर-फेण-पसरं, महानई-तुरिय - वेग-समागय-भम-गंगावत्त-गुप्पमाणु-च्चलंत-पच्चोनियत - भममाण - लोल-सलिलं, पिच्छइ, खीरोय-सायरं सारय-रयणिकर- सोमवयणा ११ ।।सू.४३|| | तओ पुणो तरुण-सूर-मंडल-समप्पह, दिप्पमाण-सोहं उत्तम-कंचण-महामणिसमूह-पवर-तेय-अठ्ठ-सहस्स-दिप्पंत-नह–प्पईवं, कणग-पयर- लंबमाण-मुत्ता -समुज्जलं, जलंत-दिव्वदाम, ईहामिग-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किंनर 球球球球球激激瞭瞭激燃燃燃激球球球球部部 ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मल 1॥ २४ ॥ 器强强强强强强强遊遊發遊费遊海贤贸四强强强强强 रुरु-सरभ-चमर-संसत्त-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं, गंधव्वो-पवज्जमाणसंपुन्न-घोसं, निच्चं, सजल-घण-विउल-जलहर-गज्जिय-सद्दाणु-नाइणा देवदुंदुहिमहारवेणं सयलमवि जीवलोयं पूरयंतं, कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क| डझंत-धूव-वासंग-उत्तम-मघमघत- गंधुधुआ-भिरामं, निच्चा-लोअं, सेअं सेअप्पभं, सुर-वरा-भिरामं, पिच्छइ सा साओ-वभोगं, विमाण-वर-पुंडरीयं १२ ।।सू. ४४।। तओ पणो पलग-वेरिंद-नील-सासग-कक्केयण-लोहियक्ख- मरगय-मसारगल्लपवाल-फलिह-सोगंधिय-हंसगब्भ-अंजण-चंदप्पह-वर-रयणे हिं महियल-पइठ्ठियं गगन-मंडलंतं पभासयंतं, तुंगं, मेरुगिरि-सन्निगासं, पिच्छइ, सा रयण-निकर-रासिं १३ ||| सू. ४५ ।। | सिहिं च सा विउ-लुज्जल-पिंगल-महु-घय-परिसिच्चमाण-निम- धगधगाइय -जलंत-जालुज्जला-भिरामं तरतम-जोगजुत्तेहिं जाल-पयरेहिं अन्नुन्न-मिव अणुप्पइन्नं, पिच्छइ, सा जालुज्जलणग-अंबरं व कत्थइ पयंतं, अइवेग-चंचलं, सिहिं १४ ।। सू. ४६ ।। 發發發發發發發發發邊幾鐵藝幾張强强强强麼發独资费 For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। २५ ।। www.kobatrth.org इमे एयारिसे सुभे सोमे पियदंसणे सुरूवे सुमिणे दट्ठूण, सयणमज्झे पडिबुद्धा अरविंद - लोयणा हरिस - पुलइअंगी “एए चउदस सुविणे, सव्वा पासेई तित्थयर - माया । जं रयणि वक्कमई, कुच्छिसि महायसो अरहा ||१||” ॥सू. ४७|| Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir तए णं सा तिसला खत्तियाणी इमे एआरूवे उराले चउद्दस महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धा समाणी हठ्ठठ जाव हियया धाराहय - कयंब पुप्फगंपि व समुस्ससिअ - रोमकूवा सुमिणुग्गहं करेइ करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुठ्ठेइ, अब्भुठ्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता, अतुरिय - मचवल-मसंभंताए, अविलंबियाए, रायहंस - सरिसीए गईए, जेणेव सयणिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छीइ, उवागच्छित्ता सिद्धत्थं खत्तियं ताहिं इठ्ठाहिं, कंताहिं, पियाहिं, मणुण्णाहिं, मणामाहिं, क उरालाहिं कल्लाणाहिं, सिवाहिं, धन्नाहिं, मंगल्लाहिं, सस्सिरीयाहिं, हियय-गमणिज्जाहिं, हिअय-पल्हायणिज्जाहिं, मिउ - महुर - मंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी २ पडिबोहेइ॥सू. ४८॥ तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणि - कणग - रयण - भत्ति चित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था For Private and Personal Use Only 嫩 मूळ ।। २५ ।। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र . मूळ ॥ २६ ॥ 寧寧華華職率 सुहासण-वरगया सिद्धत्थं खत्तियं ताहिं इठ्ठाहिं जाव संलवमाणी संलवमाणी एवं वयासी ॥ सू. ४९ ।। एवं खलु अहं सामी ! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि वण्णओ जाव पडिबुद्धा, तं जहा-गय-वसह जाव सिहिं च-गाहा ॥ तं एएसिं सामी ! उरालाणं चउदसण्हं महा-सुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फल-वित्ति-विसेसे भविस्सइ ।। सू. ५० ॥ तए णं से सिद्धत्थे राया तिसलाए खत्तियाणीए अंतिए एयमलु सुच्चा निसम्म हठ्ठ तुट्ठ जाव हियए धाराहय-नीव-सुरहि-कुसुम-चंचु-मालइय-रोमकूवे ते सुमिणे ओगिण्हइ, ते सुमिणे ओगिण्हित्ता, ईहं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अप्पणो साहाविएणं | मइपुव्वएणं बुद्धि-विन्नाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थुग्गहं करेइ, करित्ता तिसलं खत्तियाणिं | | ताहिं इठ्ठाहिं जाव मंगलाहिं मिउ-महर-सस्सिरीयाहिं वग्गहिं संलवमाणे संलवमाणे एवं वयासी ॥ सू. ५१ ॥ उराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिठ्ठा, कल्लाणा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिठ्ठा, एवं सिवा धन्ना मंगल्ला सस्सिरीया आरुग्ग - तुठ्ठि-दीहाउ-कल्लाण- (ग्रं. ३००)- मंगल्ल - कारगाणं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिठ्ठा, तंजहाः – अत्थलाभो देवाणुप्पिए ! भोगलाभो देवाणुप्पिए ! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए ! 球球球球球球球球运或感染 For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ २७ ॥ सुखलाभो देवाणुप्पिए ! रज्जलाभो देवाणुप्पिए ! एवं खलु तुमे देवाणुप्पिए ! नवण्हं | मासाणं बहु-पडिपुन्नाणं अद्धठ्ठमाण-राइंदियाणं विइक्कंताणं, अहं कुलकेडे, अम्हं | कुलदीवं, कुलपव्वयं, कुल-वडिंसयं, कुल-तिलयं, कुल- कित्तिकरं कुल- वित्तिकरं, कुल- दिणयरं, कुल-आधारं, कुल - नंदिकरं, कुल-जसकरं, कुल - पायवं, | कुल-विवद्धण-करं, सुकुमाल-पाणिपायं, अहीण-पडिपुण्ण- पंचिंदिय - सरीरं, लक्खण - वंजण - गुणोववेयं, माणुम्माण - प्पमाण - पडिपुन्न - सुजाय - सव्वंग - सुंदरंगं, ससि-सोमाकारं, कंतं, पियदंसणं, सुरूवं दारयं पयाहिसि ||सू. ५२।। | से वि य णं दारए उम्मक-बालभावे विन्नाय-परिणयमित्ते जव्वणग-मणुप्पत्ते सरे वीरे विकंते वित्थिण्ण-विउल-बल-वाहणे रज्जवई राया भविस्सइ ।। सू. ५३ ।। तं उराला कणं तुमे देवाणु-पिआ ! जाव सुमिणा दिठ्ठा, दुच्चंपि तच्चंपि अणुवूहइ, तए णं सा | तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रन्नो अंतिए एयमढ़ सुच्चा णिसम्म हठ्ठ-तुठ्ठ जाव हियया करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी सू. ५४ ॥ एयमेयं सामी ! तहमेयं सामी ! अवि-तहमेयं सामी ! असंदिद्ध-मेयं 激落語務兹 萨辛辣華靠賺賺賺染流区 尊荣瑜激華 踪踪踪路客运西率率南非滞浩海激※法海逸豪華賺賺賺 ॥ २७॥ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। २८ ।। www.kobatirth.org * सामी ! इच्छिय-मेयं सामी ! पडिच्छियमेयं सामी ! इंच्छिय-पडिच्छिय-मेयं सामी ! सच्चे णं एसमठ्ठे से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कट्टु ते सुमिणे सम्मं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणी नाणा - मणि - कणग-रयण-भक्ति - चित्ताओ भासणाओ अब्भुइ अभुत्ता अतुरिय- मचवल-मसंभंताए | अविलंबियाए रायहंस - सरिसीए गईए जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी । सू. ५५ ॥ मा मे ते उत्तमा पहाणा मंगला सुमिणा दिठ्ठा, अन्नेहिं पाव - सुमिणेहिं पडि - हम्मिस्संति त्ति कट्टु देवय- गुरुजण - संबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगलाहिं धम्मियाहिं लठ्ठाहिं कहाहिं सुमिण - जागरियं जागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ ।। सू. ५६ ।। तए णं | सिद्धत्थे खत्तिए पच्चूस - काल - समयंसि कोडुंबिय - पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी ॥ सू. ५७ ॥ खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवठ्ठाण - सालं | गंधोदग - सित्तं सुइ- संमज्जिओ-वलित्तं सुगंध - वर - पंचवन्न - पुप्फोवयार-कलियं कालागुरु- पवर- कुंदुरुक्क - तुरुक्क डज्झत- धूव मघमघंत – गंधुद्धुया - भिरामं For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir मूळ ।। २८ ।। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ २९ ॥ 禁崇賺賺賺賺賺賺靠車掌串激準索賺崇幸藏浩森潮染率 सुगंध-वर-गंधियं गंधिवट्टि-भूयं करेह, कारवेह, करित्ता कारवित्ता य सिंहासणं रयावेह, | रयावित्ता मम एय-माणत्तियं खिप्पामेव पच्च-प्पिणह ।। सू. ५८ ॥ तए णं ते कोइंबिय-परिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हठ्ठ-तुठ्ठ जाव | हियया करयल जाव कटु एवं सामि त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, | पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिआओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवठ्ठाणसालं गंधोदय-सित्त-सुइं जाव सीहासणं रयाविति, रयावित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। सू. ५९ ।। तए णं | सिद्धत्थे खत्तिए कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोम-लुम्मी-लियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोग-प्पगास-किंसुय-सुयमुह- गुंजद्धराग-बंधुजीवग- पारावय - चलण- नयण-परहुअ-सुरत्त-लोअण-जासुअण- कुसुमरासि -हिंगुलय- निअराइरेग-रेहंत-सरिसे कमलायर-संड-विबोहए उठ्ठियंमि सूरे सहस्स-रस्सिमि दिणयरे 聯球路撒路器幕沿路沿珞瑜路路路路路路路路路路路路 For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मळ ।। ३०॥ तेयसा जलंते तस्स य कर-पहरा-परद्धंमि अंधयारे बालायव-कुंकुमेणं खचियव्वे | जीवलोए सयणिज्जाओ अब्भुढेइ ॥ सू. ६० ॥ सयणिज्जाओ अब्भुठ्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेग-वायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्ल-जुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते, सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंध-वर-तिल्ल-माइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं बिहणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं सर्विदिय-गाय-पल्हाय-णिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे, तिल्ल-चम्मंसि निउणेहिं पडिपुन्न-पाणि-पाय-सुकुमाल-कोमल-तले हिं अब्भंगण-परि-मद्दणुव्वलण-करण-गुण-निम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जिय-परिस्समेहिं पुरिसेहिं अठ्ठि-सुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए सुह-परिक्कमणाए संबाहणाए संबाहिए समाणे, अवगय खेयपरिस्समे अट्टण-सालाओ पडिनिक्खमइ ।। सू. ६१ ।। अट्टणसालाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता स-मुत्तजालाकुला-भिरामे विचित्त-मणि-रयण-कुट्टिम-तले रमणिज्जे न्हाण-मंडवंसि, 來源蒙蒙蒙兹蓝染幸蒙潔滅蟲器激諜靠空 ॥ ३० ॥ For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kaliassagarsun Gyanmandir मूळ कल्पसूत्र नाणा-मणि-रयण-भत्ति-चित्तंसि ण्हाण-पीढंसि सुह-निसण्णे, पुप्फोदएहि अ, || गंधोदएहि अ, उण्होदएहि अ, सहोदएहि अ. सद्धोदएहि अ. कल्लाण-करण-पवर|| ३१ ॥ मज्जण-विहीए मज्जिए । तत्थ कोउअ-सएहिं बहुविहेहिं कलाणग-पवर-मज्जणावसाणे, पम्हलसुकुमाल-गंध-कासाइअ-लूहिअंगे, अहय-सु-महग्घ-दूस-रयण-सुसंवुडे, सरस-सुरभि-गोसीस-चंदणा-णुलित्त-गत्ते, सुइ-माला-वण्णग-विलेवणे, आविद्धमणि-सुवन्ने कप्पिय-हार-द्धहार-ति-सरय-पालब-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकय-सोहे, पिणद्ध-गेविज्जे, अंगुलि-ज्जग-ललिय-कया-भरणे, वर-कडग-तुडिय-थंभिय-भूए, अहिय-रूव-सस्सिरीए, कुंडल-उज्जोइ-आणणे, मउड-दित्त-सिरए हारुत्थय-सुकय - रइय-वच्छे, मुद्दिया-पिंगलंगुलिए, पालंब पलंबमाण-सुकय-पड-उत्तरिज्जे, नाणामणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-निउणो-वचिय-मिसिमिसिंत-विरइय-स-सिलिट्ठ - विसिठ्ठ-लठ्ठ-आविध-वीर-वलए, किं बहुणा ? कप्परुक्खए-विव अलंकिय-विभूसिए नरिंदे, सकोरिंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेय-वर-चामराहिं उधुव्व-माणीहिं मंगल-जय-सद्द-कयालोए अणेग्गण-नायग-दंड-नायग-राईसर 踪踪踪踪稳激激激悲激淋賺賺賺賺賺賺賺賺賺賺華 球郡湖鄰鄰激激嘟嘟嘟嘟賺賺賺賺賺賺賺激聯串聯激草球球 For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ३२ ।। www.kobatrth.org - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय मंति- महामंति - गणग - - दोवारिय अमच्च - चेड पीढमद्द - नगर-निगम - सिठ्ठि - सेणावइ - सत्थवाह - दूय-संधिवाल-सद्धि संपरिवुडे, धवलमहा - मेह - निग्गए इव गह- गण - दिप्पंत - रिक्ख-तारा-गणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे, नरवई नरिंदे नर - वसहे नर सीहे अब्भहिय-रायतेय-लच्छीए दिप्पमाणे मज्जण घराओ डिनिक्ख ॥ सू. ६२ ॥ मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासांसि पुरत्थाभिमुहे निसीअइ ॥ सू. ६३ || निसीहत्ता अप्पणो उत्तर - पुरत्थिमे दिसीभाएअठ्ठ भद्दासणाई सेयवत्थ पच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थय| कय- मंगलो - वयाराइं रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूर- सामंते नाणा - मणि - रयण-मंडियं, अहिअ - पिच्छणिज्जं, महग्घ - वर - पट्ट - णुग्गयं, सण्ह - पट्ट - भत्ति-सय-चित्त- ताणं, ईहा -मिय-उसभ - तुरग - नर-मगर - विहग-वालग - किंनर - रुरु - सरभ - चमर- कजरवणलय - पउमलय-भत्तिचितं अभितरिअं जवणिअं अंछावेइ, अंछावित्ता नाणा - मणि - रयण - भत्तिचित्तं अत्थ-रय - मिउ- मसूर - गोत्थयं सेयवत्थ - पच्चुत्थुयं सुमउयं अंग - सुह-फरिसगं विसिठ्ठ तिसलाए खत्तियाणीए भद्दासणं रयावेइ, रयावित्ता ॥ ३२ ॥ 蹾 For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir - मूळ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ||| ३३ ॥ चित्र नं. ५ 球球球球球球球球球華滋滋溜滋滋聲激激瞭瞭業部 * कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी ॥ सू. ६४ ॥ खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अठंग-महा-निमित्त-सुत्तत्थ-धारए विविह-सत्थ-कुसले सुविण-लक्खण-पाढए सद्दावेह, तए णं ते कोडुबिय-पुरिसा सिद्धत्थेणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हठ्ठतु जाव हियया करयल जाव पडिसुणंति ।। सू. ६५ ।। (चिा नं. ५) पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिआओ पडि-निक्खमंति, पडि-निक्खमित्ता कुंडग्गामं नगरं मझं मज्झेणं जेणेव सुविण-लक्खण-पाढगाणं गेहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुविण-लक्खण-पाढए सद्दावेंति ।। सू. ६६ ।। तएणं ते सुविण- लक्खण-पा ढगा सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कोडुबिअ-पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हठ्ठतुठ्ठ जाव हियया, पहाया कय-बलि-कम्मा, कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता, सुद्ध-पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवराई परिहिआ, अप्पमहग्घा-भरणा-लंकिय-सरीरा, सिद्धत्थय-हरिआलिया -कयमंगल-मुद्धाणा, सएहिं सएहिं गेहेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तिय-कुंडग्गामं नगरं मझं मज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रन्नो भवण-वर-वडिंसग-पडिदुवारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवण-वर-वडिंसगे पडिद्वारे एगओ मिलंति, एगओ मिलित्ता जेणेव बाहिरिया 韓華聯部部諒部瑜鄰鄰華萃燕燕翠路路踪踪踪踪踪藏 ||॥ ३३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ३४ ।। www.kobatrth.org उवठ्ठाण - साला जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव अंजलि कट्टु सिद्धत्थं खत्तियं जएणं विजएणं वद्धाविति ॥ सू. ६७ ।। तएणं ते सुविण -लक्खण- पाढगा सिद्धत्थेणं रन्ना वंदिअ - पूइअ - सकारिअ - सम्माणिआ समाणा पत्तेअं पत्ते पुव्व-न्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ॥ सू. ६८ ॥ तणं सिद्धत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणि जवणि-अंतरियं ठावेइ, ठावित्ता पुप्फ-फल- पडिपुण्ण - हत्थे परेण विणणं ते सुविण - लक्खण- पाढए एवं वयासी । सू. ६९ ॥ एवं खलु देवाणुप्पिआ ! अज्ज तिसला खत्तिआणी तंसि तारिसगंसि जाव सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे उराले चउद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ॥ सू. ७० ।। तं जहा:-गय- वसह जाव सिंहिं च गाहा । तं एएसिं चउद्दसण्हं महा - सुमिणाणं देवाणुप्पिया ! उरालाणं के मन्ने कल्लाणे फल-वित्ति-विसेसे भविस्सइ ? || सू. ७१ ॥ तए णं ते सुमिण - लक्खण - पाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिए एयमठ्ठे सोच्चा निसम्म हठ्ठतुठ्ठ जाव हियया ते सुमिणे सम्मं ओगिण्हंति, ओगहित्ता ह अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अन्नमन्नेण सद्धिं संचालेंति, संचालित्ता तेसिं सुमिणाणं For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir मूळ ।। ३४ ।। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsunl Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ || ३५ ॥ 0000000000000000000000000 |लद्धठ्ठा गहियठ्ठा पुच्छियठा वि-णिच्छियठा, अहिगयठ्ठा सिद्धत्थस्स रण्णो पुरओ सुमिण || - सत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी ॥ सु. ७२ ॥ एवं खल देवाणुप्पिया ! अम्हं सुमिण-सत्थे बायालीसं सुमिणा तीसं महा-सुमिणा, बावत्तरि सव्वसुमिणा दिठ्ठा । तत्थ णं देवाणुप्पिया ! अरहंत-मायरो वा, चक्कवट्टि-मायरो वा, अरहतंसि वा, चक्कहरंसि वा, गभं (ग्रं. ४०० ) वक्क-माणंसि एएसिं तीसाए महा-सुमिणाणं इमे चउद्दस महा-सुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति ॥ सू. ७३ ।। तं जहाः-गय-वसह' गाहा ।। सू. ७४ ।। वासुदेव-मायरो वा वासुदेवंसि गब्भं वक्कमाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महा-सुमिणाणं अन्नयरे सत्त महा-सुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति ।। सू. ७५ ।। बलदेव-मायरो वा बलदेवंसि गब्भं वकमाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महा-सुमिणाणं अन्नयरे चत्तारि महा-सुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति ॥सू. ७६।। मंडलिय-मायरो वा मंडलियंसि गभं | वक्कमाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महा-सुमिणाणं अन्नयरं एगं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति ।। सू. ७७ ।। इमे य णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तिआणीए चउद्दस महा-सुमिणा दिठ्ठा, तं उराला णं देवाणप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिठ्ठा जाव मंगलकारगा णं 離球球球球球巡線索賺賺賺臨臨治进球 3298 || ३५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ || ३६ ॥ 蒙蒙蒙蒙蒙蒙蒙蒙蒙蒙串聯串串滋总踪踪 देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणिए सुमिणा दिठ्ठा, तं जहाः -अत्थ-लाभो देवाणुप्पिया ! भोग-लाभो देवाणुप्पिया ! पुत्त-लाभो देवाणुप्पिया ! सुक्ख-लाभो देवाणुप्पिया ! रज्ज-लाभो देवाणुप्पिया ! एवं खलु देवाणुप्पिया ! तिसला खत्तिआणी नवण्हं मासाणं बहुपडि - पुन्नाणं अद्धठ्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं तुम्हें कुल-केउं, कुल-दीवं, कुल | -पव्वयं कुल-वडिंसयं कुल-तिलयं कुल-कित्तिकरं कुल-वित्तिकरं कुल-दिणयरं, कुलाधारं, कुल-नंदिकर, कुल-जसकरं, कुल-पायवं, कुल-तंतु-संताण-विवद्धण-करं, सुकुमाल-पाणिपायं,अहीण-पडिपुन्न-पंचिंदिय-सरीरं, लक्खण - वंजण- गुणोववेयं, माणुम्माण प्पमाण-पडिपुन्न-सुजाय-सव्वंग-सुंदरंग, ससि-सोमाकारं, कंतं, पियदंसणं, सुरूवं, दारयं पयाहिसि ।।सू. ७८।। से वि य णं दारए उम्मुक्क-बालभावे विण्णाय-परिणय-मित्ते जोव्वणग-मणुप्पत्ते सूरे वीरे विकंते विच्छिन्न-विपुल-बल-वाहणे चाउरंत-चक्कवट्टी रज्जवई | राया भविस्सइ, जिणे वा तेलुक्क-नायगे धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टी |सू. ७९|| तं उराला | णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिठ्ठा, जाव आरुग्ग-तुठ्ठि| दीहाउ-कल्लाण-मंगल्ल-कारगाणं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिठ्ठा ।सू. ८०|| 總礎發發發繼鄉鄉键魏魏錢錢錢錢額 檢磁盘的經驗遊發證谈婚 ॥३६॥ For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kallassagersun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ३७॥ तए णं सिद्धत्थे राया तेर्सि सुविण-लक्खण-पाढगाणं अंतिए एयमढ़ सोच्चा निसम्म हठ्ठतु जाव हियए करयल जाव ते सुविण-लक्खण-पाढए एवं वयासी ॥सू. ८१।। एवमेयं देवाणुप्पिया ! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अ-वितह-मेयं देवाणुप्पिया ! इच्छिय-मेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छिय-मेयं देवाणुप्पिया ! इच्छिय-पडिच्छिय-मेयं देवाणुप्पिया ! सच्चे णं एस-मढे से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कटु ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते सुविण-लक्खण-पाढए विउलेणं असणेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्ला-लंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता विउलं जीविया-रिहं पीइदाणं दलइ, दलइत्ता पडि-विसज्जेइ ।।सू. ८२।। तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठ्ठित्ता जेणेव तिसला खत्तियाणी जवणिअंतरिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिसलं खत्तियाणिं एवं वयासी ॥ सू. ८३ ॥ एवं खलु देवाणुप्पिए ! सुविण-सत्थंसि बायालीसं सुमिणा तीसं महासुमिणा जाव | एग महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति ॥ सू. ८४ ।। इमे अ णं तुमे देवाणुप्पिए ! चउद्दस | महासुमिणा दिठ्ठा, तं उरालाणं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिठ्ठा, जाव जिणे वा तेलुक्क-नायगे धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टी |सू. ८५ ॥ 空速立意空旅染豪賺盡康環串環球速率融等多商 | ॥ ३७॥ For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।। ३८ ॥ 稳稳稳 四珍运 & 平 凉隙店险应运 & 应该总眾滋滋 तए णं सा तिसला खत्तियाणी एयमलु सोच्चा निसम्म हठ्ठतु जाव हयहियया करयल जाव | ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ ।। सू. ८६ | पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणी नाणा -मणि-रयण-भत्ति-चित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठित्ता अतुरिय-मचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंस-सरिसीए गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणं अणुप्पविठ्ठा ।। सू. ८७ || जप्प-भिई च णं समणे भगवं महावीरे तंसि नायकुलंसि साहरिए, तप्पभिई च णं बहवे वेसमण-कुंड-धारिणो तिरिय-जंभगा देवा | सक्क-वयणेणं से जाइं इमाइं पुरा-पोराणाई महा-निहाणाइं भवंति, तं जहा-पहीण-सामियाई, पहीण-सेउयाई, पहीण-गोत्ता-गाराई उच्छिन्न-सामियाई उच्छिन्न-सेउयाई, उच्छिन्न- गुत्ता -गाराई, गामा-गर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा-सम-संबाह-सन्निवेसेसु, सिंघा-डएसु वा, तिएसु वा, चउक्केसु वा, चच्चरेसु वा, चउम्मुहेसु वा, महापहेसु वा, गाम-ठाणेसु वा, नगर-ठाणेसु वा, गाम-निद्धमणेसु वा, नगर-निद्धमणेसु वा, आवणेसुवा, देव-कुलेसु वा, सभासु वा, पवासु वा, आरामेसु वा, उज्जाणेसु वा, वणेसु वा, वण-संडेसु वा, | सुसाण-सुन्नागार-गिरिकंदर-संति-सेलो-वठ्ठाण-भवण-गिहेसु, वा संनिक्खि-त्ताई चिठ्ठति 郑瑞亞 8 亞忘激率靠蟲蟲靠率半至忘章激 賺靠 ॥ ३८ ॥ For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsul Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ३९ ॥ ताई सिद्धत्थ-राय-भवणंसि साहरंति ||सू. ८८|| जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे | नायकुलंसि साहरिए तं रयणिं च णं नायकुलं हिरण्णेणं वड्ढित्था, सुवण्णेणं वड्ढित्था, धणेणं धन्नेणं रज्जेणं रतुणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं जणवएणं जसवाएणं वड्ढित्था, विपुल-धण-कणग- रयण- मणि-मोत्तिय- संख-सिल- प्पवालरत्त-रयण-माईएणं संत-सार- सावइ-ज्जेणं पीइ-सक्कार-समु-दएणं, अईव अईव | अभिवढित्था, तएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापिऊणं अय-मेया-रूवे अब्भत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समु-प्पज्जित्था ।। सू. ८९ ।। जप्पभिई च णं अम्हं | एस दारए कुच्छिसि गब्भ-ताए वक्ते. तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो, सुवण्णेणं वड्ढामो, धणेण धन्नेण जाव संत-सार- सावइज्जेण पीइसक्कारेण अईव अईव अभिवड्ढामो, |तं जया णं अहं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स एयाणु-रूवं गुण्णं गण-निप्फन्नं नामधिज्जं करिस्सामो वड्ढ-माणु त्ति ।। सू. ९० ॥ __ तए णं समणे भगवं महावीरे माउय-अणुकंपणछाए निच्चले निप्पंदे निरयणे अल्लीण-पल्लीण-गुत्ते यावि होत्था ।। सू. ९१ ॥ तए णं तीसे तिसलाए खत्तियाणीए 嫩嫩嫩瞭瞭瞭瞭漸撤撒撒撒賺賺賺賺賺盟球球鄧淑卿 For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ४०॥ 踪踪踪踪踪踪率*賺賺蒙蒙 濛濛濛禁带滋滋滋滋滋瑜 अय-मेया-रूवे जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था । हडे मे से गब्भे, मडे मे से गब्भे, चुए मे से गब्भे, गलिए मे से गब्भे, एस मे गब्भे पुव्वि एयइ, इयाणिं नो एयइ त्ति कटु, ओहय-मण-संकप्पा चिंता-सोग-सागरं संपविठ्ठा, करयल-पल्हत्थ-मुही अट्टज्झाणो-वगया भूमिगय-दिठ्ठिया झियायइ, तं पि य सिद्धत्थ-रायवर-भवण उवरयमुइंग-तंती-तल-ताल-नाडइज्ज-जण- मणुज्जं दीण-विमणं विहरइ ।। सू. ९२ ।। तए णं से समणे भगवं महावीरे माऊए अय-मेया-रूवं अब्भत्थियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पन्नं वियाणित्ता एगदेसेणं एयइ, तए णं सा तिसला खत्तियाणी हठ्ठतु जाव हिअया एवं वयासी ।। सू. ९३ ।। नो खलु मे गब्भे हडे, जाव नो गलिए, एस मे गब्भे पुव्वि नो एयइ, इयाणि एयइ त्ति कटु, हठ्ठतु जाव हियया एवं विहरइ, तए णं समणे भगवं महावीरे गब्भत्थे चेव इमेया-रूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, “नो खलु मे कप्पइ अम्मा-पिऊहिं जीवन्तेहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए” || सू. ९४ || तए णं सा तिसला खत्तियाणी ण्हाया कय-बलि-कम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता जाव सव्वा-लंकार-विभूसिया तं गब्भं नाइ-सीएहिं, नाइ-उण्हेहिं, नाइ-तित्तेहिं, नाइ-कडुएहिं, नाइ-कसाएहिं, नाइ-अंबिलेहिं, नाइ-महुरेहिं, 變變變變變變換錢錢錢錢藝题強酸強強強強強強強發發發發 ॥ ४० For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabat.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir कल्पसूत्र ४१ ।। मूळ चित्र नं. ६ 線路臨安源率瞭瞭革賺靈滋应臺產險部球球 नाइ-निद्धे हिं, नाइ-लुक्खेहिं, नाइ-उल्लेहिं, नाइ-सुक्केहिं, सव्व-त्तुग-भयमाण-सुहेहिं, भोयणा-च्छायण-गंध-मल्लेहिं, ववगय-रोग-सोग-मोह-भय-परिस्समा, सा जं तस्स गब्भस्स हिअं मियं पत्थं गब्भ-पोसणं तं देसे य काले य आहार-माहारेमाणी, विवित्त-मउएहिं सयणा-सणेहिं पइरिक्क-सुहाए मणा-णुकुलाए विहार-भूमीए, पसत्थ-दोहला, संपुण्णदोहला, सम्माणिय-दोहला, अविमाणिय-दोहला, वुच्छिन्न-दोहला, ववणीय-दोहला सुहं सुहेणं आसइ, सयइ, चिठ्ठइ, निसीयइ, तुयट्टइ, विहरइ, सुहं सुहेणं तं गब्भं परिवहइ ।। सू. ९५ ॥ | (चित्रा नं. ६) ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे, जे से गिम्हाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे चित्तसुद्धे तस्स णं चित्तसुद्धस्स तेरसी-दिवसेणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धठ्ठमाणं | राइंदियाणं विइक्कंताणं उच्चठ्ठाण-गएसु गहेसु, पढमे चंदजोगे, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सव्व-सउणेसु, पयाहिणा-णुकूलंसि भूमि-सप्पंसि मारुयंसि पवायंसि, निप्फण्ण-मेइणीयंसि कालंसि, पमुइअ-पक्कीलिएसु जणवएसु, पुव्व-रत्ता-वरत्तकाल-समयंसि हत्थुत्तराहि नक्खत्तेणं चंदेणं जोग-मुवागएणं आरुग्गारुग्गं दारयं पयाया 率非瞭鄰密茲率療藥品潮濕踪球球感激率廊 For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ४२ ॥ 發發發蒸發器强强强强發發發發發發發發發發錢錢錢錢幾錢錢 ।। सू. ९६ ॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जाए सा णं रयणी बहहिं देवेहिं देवीहि य ओवयंतेहिं उप्पयंतेहिं य उप्पिजल-माण-भूया कह-कहग-भूया आवि हुत्था ।। सू. ९७ ।। जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे जाए तं रयणिं च णं बहवे | वेसमण- कुंडधारी-तिरियजंभगा देवा सिद्धत्थ-राय-भवणंसि हिरण्ण-वासं च, सुवण्ण-वासं च, वयर-वासं च, वत्थ-वासं च, आभरण-वासं च, पत्त-वासं च, पुप्फ-वासं च, फल-वासं च, बीय-वासं च, मल्ल-वासं च, गंध-वासं च, चुण्ण-वासं च, वण्ण-वासं च, वसुहार-वासं च वासिंसु ॥ सू. ९८ । (चित्रा नं. ७) तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयर-जम्मणा-भिसेय-महिमाए कयाए समाणीए पच्चूस-काल-समयंसि नगर-गुत्तिए सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी ।। सू. ९९ ।। खिप्पामेव भो देवाणप्पिया ! खत्तिय-कंडग्गामे नगरे चारग-सोहणं करेह, करित्ता माणुम्माण- वद्धणं करेह, करित्ता कुंडपुरं नगरं सब्भितर-बाहिरियं आसिअ-संमज्जिओ-वलित्तं सिंधाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु सित्त-सुइ-सम्मठ्ठ-रत्थंत-रावणवीहियं, मंचाइमंच-कलियं, नाणाविह-राग-भूसिय-ज्झय-पडाग-मंडियं, लाउ-लोइय 強強強強強強強强强强强强强强强發發發發發圈圈强强强强幾 For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ४३ ।। www.kobatrth.org | महियं, गोसीस - सरस -रत्तचंदण - दद्दर - दिन्न - पंचंगुलि-तलं उवचिय-चंदण-कलसं चंदण-घड-सुकय-तोरण- पडिदुवार - देस भागं आसत्तोसत्त- विपुल - वट्ट-वग्घारियमल्लदाम - कलावं, पंचवण्ण - सरस - सुरहि- मुक्क - पुप्फ-पुंजो - वयार - कलियं, कालागुरुपवर-कुंदुरुक्क - तुरुक्क - डज्झत-धूव-मघमघंत-गंधु-या-भिरामं सुगन्ध-वर - गंधियं गंधवट्टि - भूयं नडनट्टग- जल्ल- मल्ल- मुट्ठिय- वेलंबग - पवग-कहग-पाढग-लासगआरक्खग-लंख-मंख - तूणइल्ल - तुंबवीणिय - अणेग - तालायराणु - चरियं करेह, कारवेह, | करित्ता कारवित्ता य जूय - सहस्सं मुसल - सहस्सं च उस्सवेह, उस्सवित्ता मम एय - माणत्तियं * | पच्च - पिह ॥ सू. १०० ॥ 粥 帶 तणं ते कोडुंबिय - पुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हठ्ठठ्ठ जाव हियया करयल जाव पडिसुणित्ता खिप्पामेव कुंडपुरे नगरे चारग - सोहणं जाव उस्सवित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल जाव कट्टु सिद्धत्थस्स खत्तियस्सरणो तमा- णत्तियं पच्चप्पिणंति ।। सू. १०१ ।। तए णं से सिद्धत्थे राया जेणेव अट्टण-साला तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव सव्वो- रोहेणं सव्वपुप्फ- गन्ध-वत्थ-मल्ला Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only 嫩 蹾 मूळ ।। ४३ ।। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ४४ ॥ 發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發幾幾幾幾 |-लंकार-विभूसाए, सव्व-तुडिय-सद्द-निनाएणं, महया इड्ढीए, महया जुइए, महया बलेणं, || मूळ | महया वाहणेणं, महया समुदएणं, महया वर-तुडिय-जमग-समग-प्पवाइएणं, संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरज-मुइंग- दुंदुहि - निग्घोस-नाइयरवेणं उस्सुक्कं, उक्करं, उक्किठें, अदिज्जं, अमिज्जं, अभडप्पवेसं, अदंड- कुदण्डिमं, अधरिमं, गणियावर-नाडइज्ज -कलियं अणेग-तालायरा-णुचरियं, अणुद्धय- मुइंगं, (ग्रन्थाग्रं ५००) अमिलाय-मल्लदामं, पमुइय-पक्कीलिय-सपुर-जणजाणवयं दसदिवसं ठिइवडियं करेति ॥ सू. १०२ ।। तए णं सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइ-वडियाए वट्टमाणीए, सइए अ साहस्सिए अ, सय-साहस्सिए य, जाए य, दाए अ, भाए अ, दलमाणे अ, दवावेमाणे अ, सइए अ, साहस्सिए अ, सय-साहस्सिए अ, लंभे पडिच्छमाणे अ पडिच्छावेमाणे अ एवं वा विहरइ ।। सू. १०३ ।। तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेंति, तइए दिवसे चन्द-सूर-दंसणीयं करेंति, छठे दिवसे धम्म-जागरियं जागरेन्ति इक्कारसमे दिवसे वइक्कते, निव्वत्तिए असुइ- जम्म-कम्म-करणे, संपत्ते बारसाहे दिवसे, विउलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता 非率賺賺賺賺率職臨臨淵臨臨臨激盪瑞聲靠賺離蒂漸非 For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ @985 ॥ ४५ ॥ चित्रा मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं नायए खत्तिए य आमंतेति, आमन्तित्ता तओ पच्छा पहाया कय-बलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्ध-प्पावेसाई मंगल्लाई, पवराइं वत्थाई परिहिया अप्प-महग्घा-भरणा-लंकिय-सरीरा भोयण-वेलाए भोयण-मण्डवंसि सुहासण-वरगया तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि- परिजणेणं नायएहिं खत्तिएहिं सद्धिं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुंजेमाणा परिभाएमाणा एवं वा विहरन्ति ॥ सू. १०४ || जिमिय भुत्तु-त्तरागया वि य णं| समाणा आयंता चोक्खा परम-सुइभुया तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं नायए | खत्तिए य विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्ला-लंकारेणं सक्कारेंति सम्माणेति सक्कारित्ता सम्माणित्ता तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबन्धि-परिजणस्स नायाण य खत्तियाण य पुरओ एवं वयासी ।। सू. १०५ ॥ (चिा नं. ८-९) पुद्वि पि णं देवाणुप्पिया ! अम्हं एयंसि दारगंसि गब्भं वक्तंसि समाणंसि इमे एयारूवे अब्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-जप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्ते तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो, सुवण्णेणं धणेणं धन्नेणं रज्जेणं जाव सावइज्जेणं 發蛋蛋愛蛋蛋發發發發發 ॥४५॥ For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org कल्पसूत्र * पीइ-सक्कारेणं अईव अईव अभिवड्ढामो, सामन्त - रायाणो वसमागया य ।। सू. १०६ ।। तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स इमं एयाणुरूवं गुण्णं गुण - निप्फन्नं नामधिज्जं करिस्सामो वद्धमाणु त्ति । ता अम्हं अज्ज मणोरह - संपत्ती जाया, तं हो णं अम्हे कुमारे वद्धमाणे नामेणं ।। सू. १०७ ॥ समणे भगवं महावीरे कासवगत्ते णं तस्स णं तओ नामधिज्जा एव - माहिज्जंति, तं जहा - अम्मा- पिउ - संतिए वद्धमाणे १, सह- समुइयाए समणे २, अयले भयभेरवाणं, परीसहो- वसग्गाणं, खंतिखमे, पडिमाणं पालए, धीमं अरति - रतिसहे, दविए, वीरिय-संपन्ने देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे ३ ॥ सू. १०८ ॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स पिया कासव-गुत्ते णं तस्स णं तओ नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहाः - सिद्धत्त्थे इ वा, सिज्जंसे इ वा, जससे इ वा । समणस्स भगवओ महावीरस्स माया वासिठ्ठस-गुत्ते णं तीसे तओ नामधिज्जा एव - माहिज्जन्ति, तं जहा - तिसला इ वा, विदेहदिन्ना इवा, पीइकारिणी इ वा । समणस्स भगवओ महावीरस्स पित्तिज्जे सुपासे, जिठ्ठे भाया नंदिवर्द्धणे, भगिणी सुदंसणा, भारिया जसोया कोडिन्ना-गुत्ते णं । समणस्स भगवओ महावीरस्स धूआ कासवगत्ते णं तीसे दो नामधिज्जा एव-माहिज्जंति, तं जहा - अणोज्जा इ वा, ।। ४६ ।। For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र 嫩 मूळ ।। ४६ ।। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥४७ ॥ 举禁聯啟蒙蒙蒂韓率慧萍海漁激感激革踪踪 पियदसणा इ वा । समणस्स भगवओ महावीरस्स नत्तुई कासवगुत्तेणं तीसे णं दो नामधिज्जा एव-माहिज्जति, तं जहा-सेसवई इ वा, जसवई इ वा ।। सू. १०९ ।। समणे भगवं महावीरे दक्खे दक्खपइन्ने पडिरूवे आलीणे भद्दए विणीए नाए नायपुत्ते नायकुल-चन्दे विदेहे विदेह-दिन्ने विदेह-जच्चे विदेह-सूमाले तीसं वासाई विदेहंसि कटु अम्मा-पिऊहिं देवत्त-गएहिं गुरु| महत्तरएहिं अब्भणुण्णाए सम्मत्त-पइन्ने पुणरवि लोयंतिएहिं जीय-कप्पिएहिं देवेहिं ताहिं इठ्ठाहिं | जाव वग्गूहि अणवरयं अभिनन्दमाणा य अभिथुव्वमाणा य एवं वयासी ।। सू. ११० ।। (चित्र नं.१०) जय जय नन्दा ! जय जय भद्दा ! भदं ते जय जय खत्तिय-वर-वसहा ! वुज्झाहि भगवं ! | लोग-णाहा ! सयल-जग-ज्जीव-हियं पवत्तेहि धम्म-तित्थं हिअ-सुह-निस्सेयस-करं सव्वलोए सव्वजीवाणं भविस्सइ त्ति कटु जय-जय-सदं पउंजंति ।। सू. १११ ।। पुवि पि णं | समणस्स भगवओ महावीरस्स माणुस्सगाओ गिहत्थ-धम्माओ अणुत्तरे आहोइए अप्पडिवाई नाणदंसणे हुत्था । तए णं समणे भगवं महावीरे तेणं अणुत्तरेणं आहोइएणं नाण-दसणेणं अप्पणो निक्खमण-कालं आभोएइ, आभोइत्ता चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा धणं, 遊遊發發發發發發發强强强强强强强强幾难强强强强强强强 For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ |४८ ॥ 串串激激華聯聲靠撒藏蒙蒂格瑞恩岛激踪踪踪隐 चिच्चा रज्जं, चिच्चा रठ्, एवं बलं वाहणं कोसं कोठागारं, चिच्चा पुरं, चिच्चा अंतेउरं, चिच्चा | जणवयं, चिच्चा विपुल-धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल- प्पवाल रत्त-रयण-माइअं संत-सार-सावइज्जं, विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता दाणं दायारेहिं परिभाइत्ता दाणं | दाइयाणं परिभाइत्ता ।। सू. ११२ ।। ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिर-बहुले तस्स णं मग्गसिर-बहुलस्स दसमी पक्खे णं पाईण-गामिणाए छायाए पोरिसीए अभि-निव्वट्टाए पमाण-पत्ताए सुव्वए णं दिवसे णं, विजए णं मुहुत्ते णं, चंदप्पभाए सिबियाए सदेव-मणुया-सुराए परिसाए समणुगम्म-माण-मग्गे संखिय-चक्किय-लंगलिय-मुह-मंगलिय-बद्धमाण-पूसमाण-घंटियगणेहिं ताहिं इठ्ठाहिं जाव वग्गूहिं अभि-नंदमाणा अभि-थुव्वमाणा य एवं वयासी ।। सू. ११३ ।। जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! भदं ते खत्तिय-वर-वसहा अभग्गेहिं नाण-दसण-चरित्तेहिं अजियाई जिणाहि इंदियाइं, जियं च पालेहि समण-धम्म, जिय-विग्घो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धि-मज्झे, निहणाहि राग-दोस-मल्ले, तवेणं धिइ-धणिय-बद्ध-कच्छे, मद्दाहि अठ्ठ-कम्म-सत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहण-पडागं च वीर ! तेलुक्क 踪踪踪華豪空豪華海盜盜泰寧 歷幸率举鄰 For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।। ४९ ।। 微微微微激隸革染染率染蒂蒙带隙德源靠靠靠靠離器 | रंग-मज्झे, पावय वितिमिर-मणुत्तरं केवल-वरनाणं, गच्छ य मुक्खं परं पयं जिणवरो-वइलेणं मग्गेणं अकुडिलेणं हंता परीसह-चमुं, जय जय खत्तिय-वर-वसहा ! बहूई दिवसाई, बहूई पक्खाई, बहूई मासाई, बहूई उऊई, बहूई अयणाई, बहूई संवच्छराई, अभीए परीसहो-वसग्गाणं, | खंति-खमे भय-भेरवाणं धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कटु जय-जयसदं पउंजंति ।। सू.११४ ।। तए णं समणे भगवं महावीरे नयण-माला-सहस्से हिं पिच्छिज्जमाणे पिच्छिज्जमाणे, वयण-माला-सहस्सेहिं अभि-थुव्वमाणे अभि-थुव्वमाणे, हियय-माला-सहस्से हिं उन्नंदिज्जमाणे उन्नंदिज्जमाणे, मणोरह-माला-सहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे, कंति-रूव-गुणेहिं पत्थिज्जमाणे पत्थिज्जमाणे, अंगुलि-माला-सहस्सेहिं दाइज्जमाणे दाइज्जमाणे, दाहिण-हत्थेणं बहूणं नर-नारि-सहस्साणं अंजलिमाला- सहस्साइं पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे, भवण-पंति-सहस्साइं सम-इक्कमाणे सम-इक्कमाणे, तंती-तल-ताल-तुडिय -गीय-वाइय-रवेणं महुरेण य मणहरेणं जयजय-सद्दघोस-मीसिएणं मंजु-मंजुणा घोसेण य पडि-बुज्झमाणे पडि-बुज्झमाणे, सव्वि-ड्ढीए, सव्व-जुईए, सव्व-बलेणं, सव्व-वाहणेणं, सव्व-समुदएणं, सव्वा-यरेणं, सव्व-विभूइए, सव्व-विभूसाए, सव्व-संभमेणं, | For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ॥ ५० ॥ www.kobatrth.org सव्व-संगमेणं, सव्व - पगईएहिं सव्व - नाडएहिं, सव्व - तालायरेहिं, सव्वा वरोहेणं सव्वपुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकार - विभूसाए सव्व - तुडिय - सद्द - सन्नि-नाएणं, महया इड्ढीए, महया जुईए, महया बलेणं, महया वाहणेणं, महया समुदएणं, महया वर - तुडिय - जमग- समग-प्पवाइएणं, संख - पणव- पडह - भेरि - झल्लरि - खरमुहि- हुडुक्क - दुंदुहिणिग्घोस-नाइयरवेणं, कुंडपुरं नगरं मज्झं मज्झेणं निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव नाय - खंड -वणे उज्जाणे जेणेव असोग - वर पायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोग - वर - पायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरण-मल्ला-लंकारं ओमुयइ, आमुइत्ता सयमेव पंच- मुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता छठ्ठेणं भत्ते अपाणणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं एगं देवदूस-मादाय, एगे अब | मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए || सू. ११५ ।। (चित्र नं. ११ - १२) समणे भगवं महावीरे संवच्छरं साहियं मासं जाव चीवरधारी होत्था तेण परं अचेलए पाणिपडिग्गहिए समणे भगवं महावीरे साइरेगाई दुवालस - वासाई निच्चं वोसठ्ठकाए, चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा - दिव्वा वा, माणुसा वा, तिरिक्ख - जोणियावा, अ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir 嫩 मूळ चित्र नं. ११-१२ ॥ ५० ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ॥ ६३ ॥ 適 瀲 www.kobatrth.org जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तंजहा - दिव्वा वा माणुस्सा वा, तिरिक्ख - जोणिआ वा, अणुलोमा वा पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। सू. १५७ ।। तए णं से पासे भगवं अणगारे जाए, इरियासमिए जाव अप्पाणं भावेमाणस्स तेसीइं राइंदियाइं विइक्कंताइं, चउरासीइमस्स राइदियस्स अंतरा - वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्त- बहुले, तस्स णं चित्त- बहुलस्स चउत्थी पक्खे णं पुव्वण्ह - काल - समयंसि धायइ - पायवस्स अहे छठ्ठणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं झाणंतरिआए वट्टमाणस्स अनंते अणुत्तरे जाव | केवल - वर - नाण - दंसणे समुप्पन्ने जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ||सू. १५८ ॥ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अठ्ठ गणा, अठ्ठ गणहरा हुत्था, तंजहाः - सुभे य १ अज्जघोसे य २, वसिठ्ठे ३ बंभयारि य ४ । सोमे ५ सिरिहरे ६ चेव, वीरभद्दे ७ जसेवि य ८ ।। सू. १५९ ।। पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स | अज्जदिण्ण- पामुक्खाओ सोलस समण - साहस्सीओ उक्कोसिआ समण - संपया हुत्था ॥सू. १६० । (चित्र नं. १८ - १९ - २० - २१) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूळ चित्र नं. १८ - १९ २०-२१ ॥ ६३ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ६४ ।। 器婆發發發發强强强强强强强强發發發發發發發發發發發發 पासस्स णं अरह ओ पुरिसादाणीयस्स पुप्फचूला-पामुक्खाओ अठ्ठत्तीसं | अज्जिया-साहस्सीओ उक्कोसिआ अज्जिया-संपया हुत्था ।।सू. १६१|| पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुव्वय-पामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सीओ चउसठिं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासगाणं संपया हुत्था ।।सू. १६२|| पासस्स णं अरहओ परिसादाणीयस्स सुनंदा-पामुक्खाणं समणोवासियाणं तिण्णि सय-साहस्सिओ सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासियाणं संपया हुत्था ।। सू. १६३ ।। पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्धठ्ठ-सया चउद्दस-पुव्वीणं अजिणाणं जिण-संकासाणं सव्व-क्खरसन्निवाईणं जाव चउद्दस-पुव्वीणं संपया हुत्था ।।सू. १६४|| पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स चउद्दस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवलनाणीणं, इक्कारस सया वेउव्वियाणं, छस्सया रिउमईणं, दस समणसया सिद्धा, वीसं अज्जिया-सयाई सिद्धाइं, अद्धठ्ठम-सया विउलमईणं, छस्सया वाईणं, बारस सया अणुत्तरो-ववाइयाणं सू. १६५।। पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतगड-भूमी हुत्था, तंजहाः-जुगंत 發發發發發發發發發發發發發遊蒸蛋器强强强强强豪强强强 ॥६४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ६५ ।। www.kobatrth.org गड-भूमी, परियायंत - गड - भूमी य, जाव चउत्थाओ पुरिस - जुगाओ जुगंत-गड-भू तिवास - परिआए अंतमकासी ॥सू. १६६ ।। ते णं काले णं ते णं समए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए तीसं वासाई अगार - वासमज्झे वसित्ता, तेसीइं राइंदिआई छउमत्थ-परिआयं पाउणित्ता, देसूणाई सत्तरि वासाई केवलि - परिआयं पाउणित्ता, पडिपुण्णाई सत्तरि वासाई सामण्ण-परिआयं पाउणित्ता एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता खीणे * वेयणिज्जा - उय - नाम - गुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसम सुसमाए समाए बहु - विइक्कंताए क जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावण सुद्धे, तस्स णं सावण - सुद्धस्स क अठ्ठमीपक्खे णं उप्पि संमेअ - सेल - सिहरंसि अप्प - चउत्तीस - इमे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं पुव्वण्ह काल - समयंसि वग्घारिय-पाणी कालगए विइक्कते जाव सव्व - दुक्खप्पही ||सू. १६७ || पासस्स णं अरहओ ॐ पुरिसादाणीयस्स जाव सव्व- दुक्खप्पहीणस्स दुवालस वास - सयाई विक्कताई, तेरसमस्स य वास - सयस्स अयं तीसइमे संवच्छरे काले गच्छइ ||सू. १६८ ।। २३ ।। इति श्रीपार्श्वनाथचरित्रम् || 嫩 螢 For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूळ ॥ ६५ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shekalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥६६॥ * ते णं काले णं ते णं समए णं अरहा अरिठ्ठनेमी पंच चित्ते हुत्था, तंजहा-चित्ताहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्ते, तहेव उक्खेवो, जाव चित्ताहिं परिनिव्वुए ॥सू. १६९।। ते णं | काले णं ते णं समए णं अरहा अरिठ्ठनेमी जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तिअ-बहुले, तस्स णं कत्तिय-बहुलस्स बारसी-पक्खे णं अपराजिआओ | महा-विमाणाओ बत्तीसं सागरोवम-ठुिइयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोरियपुरे नयरे समुद्दविजयस्स रण्णो भारिआए सिवाए देवीए पुव्वरत्तावरत्त-काल-समयंसि जाव चित्ताहिं जाव गब्भताए वक्ते, सव्वं तहेव सुमिण-दसणदविण-संहरणाइअं इत्थ भाणियव्वं ॥स. १७०|| (चित्रा नं. २२) | ते णं काले णं ते णं समए णं अरहा अरिठ्ठनेमी जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे | पक्खे सावण-सुद्धे, तस्स णं सावण-सुद्धस्स पंचमी पक्खे णं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया ।। जम्म णं समुद्द-विजया-भिलावेणं नेयव्वं जाव तं होउ णं कुमारे अरिठ्ठनेमी नामेणं ।।सू. १७१।। अरहा अरिठ्ठनेमी दक्खे जाव तिण्णि वास-सयाई कुमारे अगार-वासमज्झे 草激瞭瞭啦啦啦啦撒撒撒撒琳琳琳琳琳鄰鄰郡郡 ॥६६॥ For Prate and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ६७॥ वसित्ता णं पुणरवि लोगंतिएहिं जिअ-कप्पिएहिं देवेहिं तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव | दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता ॥सू. १७२।। जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावण-सुद्धस्स छठ्ठी-पक्खे णं पुव्वण्ह-काल-समयंसि उत्तर-कुराए सीयाए सदेव-मणुआ-सुराए परिसाए अणु-गम्ममाण-मग्गे जाव बारवईए नयरीए | मज्झं-मज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, |उवागच्छित्ता असोग-वर-पायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ | पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरण-मल्ला-लंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंच-मुठ्ठियं लोयं | करेइ करित्ता छटेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ता-नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं एगं | देव-दूसमादाय एगेणं पुरिस-सहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।।सू. १७३|| अरहा णं अरिठ्ठनेमी चउपन्नं राइंदियाई निच्चं वोसठ्ठकाए, चियत्त-देहे, तं चेव सव्वं जाव पणपन्नगस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोय-बहुले, तस्स णं आसोय-बहुलस्स पन्नरसी-पक्खे णं दिवसस्स पच्छिमे भागे उज्जित-सेल-सिहरे वेडस-पायवस्स अहे अठ्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं 撒賺賺賺寧路發率激瞭球瞭想 球球球球数这率鄰聲帶 For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ चित्र Cur 賺賺率部隊球球賺賺賺賺賺賺激瞭求聯際牌激 चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥सू. १७४|| (चित्र नं. २३-२४-२५-२६) अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स अठ्ठारस गणा अठ्ठारस गणहरा हुत्था ।।सू. १७५।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स वरदत्त-पामुक्खाओ अठ्ठारस समण-साहस्सीओ उक्कोसिया समण-संपया हुत्था ॥सू. १७६।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स अज्ज-जक्खिणि -पामुक्खाओ चत्तालीसं अज्जिया-साहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया-संपया हुत्था ।। सू. १७७ ।। अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स नंद-पामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउणत्तरं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था ।।सू.१७८।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स महासुव्वया-पामुक्खाणं समणोवासिआणं तिण्णि सय-साहस्सीओ छत्तीसं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासिआणं संपया हुत्था ॥सू. १७९।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स चत्तारि सया चउद्दस-पुव्वीणं अजिणाणं जिण-संकासाणं सव्व-क्खर-सन्निवाईणं जाव संपया हुत्था, पन्नरस सया ओहिनाणीणं, पन्नरस सया केवलनाणीणं, पन्नरस सया वेउव्विआणं, दससया विउलमईणं, अठ्ठसया वाईणं, सोलस 嫩嫩嫩球球球球球激部撤離離離離球球 球源源滋滋路 For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥६९ ॥ 賺賺球球瞭望該都弥線瑜離離職潮源源面落源染染淋淋 सया अणुत्तरो-ववाइआणं, पन्नरस समणसया सिद्धा, तीसं अज्जियासयाइं सिद्धाई ||सू.१८०।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स दुविहा अंतगड-भूमि हुत्था, तंजहा - | जुगंत-गड-भूमी य परिया-यंत-गड-भूमी य, जाव अठ्ठमाओ पुरिस-जुगाओ जुगंत | -गड-भूमी, दुवास परिआए अंतम-कासी ॥सू. १८१|| ते णं काले णं ते णं समए णं अरहा अरिठ्ठनेमी तिण्णि वास-सयाई कुमार-वासमज्झे वसित्ता, चउपन्न राइदियाई | छउमत्थ-परिआयं पाउणित्ता, देसूणाई सत्त वास-सयाई केवलि-परिआयं पाउणित्ता, परिपुण्णाई सत्त वास-सयाई सामण्ण-परिआयं पाउणित्ता, एगं वास-सहस्सं सव्वाउअं पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जा-उय-नाम-गुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसम-सुसमाए समाए बहु-विइक्कंताए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अठ्ठमे पक्खे आसाढ-सुद्धे, तस्स णं आसाढ-सुद्धस्स अट्ठमी-पक्खे णं उप्पि उज्जित-सेल-सिहरंसि पंचहिं छत्तीसे हिं अणगार-सएहिं सद्धिं मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं पुव्वरत्ता-वरत्त-काल-समयंसि नेसज्जिए कालगए (ग्रंथाग्रं ८००) जाव सव्व-दुक्ख - प्पहीणे ।।सू. १८२।। अरहओ णं अरिठ्ठनेमिस्स काल-गयस्स जाव सव्व-दुक्खप्पहीणस्स 徽撒球球球球球率源線帶球賺賺賺鄰激激感激 068 ॥६९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ७० ॥ 醬醬资舞舞發霉蛋蛋资强强强强强强强强强强强强强强强强 चउरासीई वास-सहस्साई विइकंताई, पंचासीइमस्स वास-सहस्सस्स नव वास-सयाई विइक्कंताई, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।सू. १८३।। ।।२२।। इति श्रीनेमिनाथ-चरित्रम् ।। (चित्र नं. २७) नमिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स पंच वास-सय-सहस्साइं, चउरासीइं च वास-सहस्साइं नव य वास-सयाई विइक्कताई, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।२१। ।।सू. १८४।। मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्खप्पहीणस्स इक्कारस वास-सय-सहस्साई चउरासीइं च वास-सहस्साई नव वाससयाई विइकंताई, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।। २० ।।सू.१८५।। मल्लिस्स णं अरहओ जाव सव्व-दक्ख-प्पहीणस्स पन्नट्ठ वास-सय-सहस्साई चउरासीई च वास-सहस्साई नव वास-सयाई विइकताई, दसमस्स य वास-सयस्स अय असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।१९।।सू. १८६।। अरस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख -प्पहीणस्स एगे वास-कोडि-सहस्से विइक्कते, सेसं जहा मल्लिस्स, तं च एयं 部滋蒙带潔線路瞭韓賺賺賺賺賺落潔潔潔部 ॥ ७० ॥ For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ७ ॥ | पंचसठ्ठि-लक्खा चउरासीइं च वास-सहस्सा विइक्ता, तंमि समए महावीरो निव्वुओ, तओ परं नव वास-सया विइक्कंता, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ । एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दठ्ठव्वं ॥१८॥सू. १८७|| कुंथुस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे चउभाग-पलिओवमे विइकंते, पंचसर्व्हि च वास-सय-सहस्सा, सेसं जहा मल्लिस्स ||१७||सू. १८८।। संतिस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे चउ-भागूणे पलिओवमे विइकंते पन्नलुि च सेसं जहा मल्लिस्स |१६||सू. १८९|| धम्मस्स णं अरहओ जाव सव्व- दुक्ख-प्पहीणस्स तिण्णि | सागरोवमाइं विइक्ताई, पन्नलुि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥१५।।१९०।। (चित्र नं. २८) __ अणंतस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स सत्त सागरोवमाइं विइकंताई, | पन्नठिं च, सेसं जहा मल्लिस्स ।।१४।।सू. १९१।। विमलस्स णं अरहओ जाव सव्वदुक्ख-प्पहीणस्स सोलस सागरोवमाइं विइकताई, पन्नठिं च, सेसं जहा मल्लिस्स ।।१३।।सू.१९२।। वासुपुज्जस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स छायालीसं सागरोवमाई विइक्ताई पन्नलुि च, सेसं जहा मल्लिस्स ।।१२।।स. १९३।। सिज्जंसस्स णं 發器魏强强强强强强强强强强善强强强强强强强强强强强强 . ॥ ७१ For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kab .org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मल ॥ ७२ ॥ अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे सागरोवमसए विइकते पन्नलुि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥११।।सू.१९४।। सीअलस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगा सागरोवमकोडी तिवास-अद्ध नवम-मासाहिअ-बायालीस-वास-सहस्से हिं ऊणिआ विइकंता, एयंमि समए महावीरो निव्वुओ, तओऽवि य णं परं नव वास-सयाई विइक्ताई, दसमस्स य वास- सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ||१०||सू. १९५।। सविहिस्स णं अरहओ जाव सव्व-दक्ख-प्पहीणस्स दस सागरोवम-कोडिओ विइकंताओ सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-ति-वास-अद्धनवम-मासाहिय-बायालीसवास-सहस्सेहिं ऊणिआ विइक्कंता-इच्चाइ ।।९।।सू.१९६।। चंदप्पहस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगं सागरोवम-कोडि-सयं विइकंतं, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवास-अद्धनवम-मासाहिय-बायालीस-वास-सहस्सेहिं-ऊणग-मिच्चाइ।।८।।सू.१९७|| सुपासस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे सागरोवम-कोडि-सहस्से विइकं ते, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवास-अद्ध नवम 冰激球球球球应取率脚撒撒撒撒撒球球球球 球球 ॥ ७२ ॥ For Prate and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasagasun Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ७३ ॥ 80000000880****80800000000 मासाहिअ-बायालीस-वास-सहस्सेहिं ऊणिआ इच्चाइ ||७||सू. १९८।। पउमप्पहस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स दस सागरोवम-कोडि-सहस्सा विइक्ता, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इमं-तिवास-अद्ध-नवम-मासाहिय-बायालीस-वास-सहस्सेहिं उणग| मिच्चाइ ॥६।।सू. १९९।। सुमइस्स णं अरहओ जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडि-सय-सहस्से विइक्ते, सेसं जहा सीयलस्स, तं च इम-तिवास-अद्ध-नवम - मासाहिय-बायालीस वास-सहस्सेहिं उणग-मिच्चाइ ।। ५ ।।सू. २००।। (चित्र नं. २९) अभिनदंणस्स णं अरह ओ जाव सव्वद् क्खप्पहीणस्स दस | सागरोवम-कोडि-सय-सहस्सा विइक्कंता, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इमं-तिवास अद्धनवम-मासाहिय-बायालीस-वास-सहस्सेहिं उणग-मिच्चाइ ॥४||सू. २०१।। संभवस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स वीसं सागरोवम-कोडि-सय-सहस्सा विइक्ता, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवास-अद्ध-नवम-मासाहिय-बायालीस-वाससहस्सेहिं उणग-मिच्चाइ ||३||सू. २०२|| अजियस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्खप्पहीणस्स पन्नासं सागरोवम-कोडि-सय-सहस्सा विइक्कता, सेसं जहा सीअलस्स, तं 逸豪華療藥瑜瞭瞭激盪激激端琳琳琳潔德洛称球海 For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ७४ ।। www.kobatirth.org च इमं - तिवास - अद्ध- नवम - मासाहिय - बायालीस - वास - सहस्सेहिं उणग - मिच्चाइ ||२||सू. २०३ || इति अन्तराणि ॥ ते णं काले णं ते णं समए णं उसमे णं अरहा कोसलिए चउ-उत्तरासाढे अभीइ - पंचमे होत्था, तंजहा - उत्तरासाढाहिं चुए - चइत्ता गब्भं वकंते जाव अभीइणा परिनिव्वुए |सू. २०४ || ते णं काले णं ते णं समए णं उसमे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे आसाढ - बहुले, तस्स णं आसाढ - बहुलस्स चउत्थी - पक्खे णं सव्वठ्ठ - सिद्धाओ महा-विमाणाओ तित्तीसं सागरोवम-ठ्ठिइआओ अनंतरं चयं, चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इक्खाग - भूमीए नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए पुव्व-रत्ता - वरत्त-काल - समयंसि आहार - वकंतिए जाव गब्भत्ताए वक्ते ॥सू. २०५ । (चित्र नं. ३०-३१-३२-३३) उसमे णं अरहा कोसलिए तिन्नाणोवगए आवि होत्था, तंजहा - इस्सामि त्ति जाणइ जाव सुविणे पासइ, तंजहा:-गय-वसह जाव सिहिं च ॥ गाहा । सव्वं तहेव, नवरं ● पढमं उसभं मुहेणं अनंतं पासइ सेसाओ गयं, नाभि - कुलगरस्स साहेइ, सुविण - पाढगा For Private and Personal Use Only 5 Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir मूळ चित्र नं. ३०-३१ ३२-३३ ।। ७४ ।। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ७५ ॥ 強強強強強強強強強強強靈發發幾资變變變變變變變錢要幾錢 नत्थि, नाभि-कुलगरो सयमेव वागरेइ ।।सू. २०६|| ते णं काले णं ते णं समए णं उसभे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं पढमे मासे, पढमे पक्खे चित्त-बहुले, तस्स णं चित्त-बहुलस्स अट्ठमी-पक्खे णं नवण्हं मासाणं बहु-पडिपुण्णाणं अद्धठ्ठमाणं राइंदियाणं जाव आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया। ।।सू. २०७।। तं चेव सव्वं जाव देवा देवीओ य वसुहार-वासं वासिंसु, सेसं तहेव चारग-सोहणं, माणुम्माण-वद्धणं, उस्सुक्क-माइय-ट्ठिइवडिअ-जूयवज्जं सव्वं भाणिअव्वं ।।सू. २०८।। उसभेणं अरहा कोसलिए कासव-गुत्ते णं, तस्स णं पंच नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा-उसभेइ वा, पढमराया इवा, पढम-भिक्खायरे इ वा, पढम-जिणे इ वा पढम-तित्थयरे इ वा ।।सू. २०९।। उसमेणं अरहा कोसलिए दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए वीसं पुव्व-सय-सहस्साई कुमारवास-मज्झे वसित्ता तेवढ़ि च पुव्व-सय-सहस्साई कुमार-वास-मज्झे वसित्ता तेवठिं च पुव्व-सय-सहस्साइं रज्जवासमज्झे वसमाणे लेहाइआओ गणिय-प्पहाणाओ सउण-रुय-पज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चउसद्धिं महिला-गुणे, सिप्प-सयं च 發發強強強強強強強強強強發遊發發發發發發發發發發發 ॥ ७५ For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ७६ ॥ 婆婆魏遊發發發發發發發發發強強強強強強強強發强强强强 कम्माणं, तिन्निवि पयाहिआए उवदिसइ, उवदिसइत्ता पुत्त-सयं रज्ज-सए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता पुणरवि लोअंतिएहिं जिअ-कप्पिएहिं देवेहिं ताहिं इठ्ठाहिं जाव वग्गूहिं, | सेसं तं चेव सव्वं भाणिअव्वं, जाव दाणं दाइआणं परिभाइत्ता, जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले, तस्स णं चित्त-बहुलस्स अट्ठमी-पक्खे णं दिवसस्स पच्छिमे भागे सुदंसणाए सिबियाए सदेव-मणु-आसुराए परिसाए समणु -गम्म-माण-मग्गे जाव विणीयं रायहाणिं मझं-मज्झेणं णिगच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोग-वर-पायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवर-पायवस्स अहे जाव सयमेव चउ-मुठ्ठिअं लोअं करेइ, करित्ता छठेणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागए णं उग्गाणं भोगाणं राइन्नाणं खत्तियाणं च चउहिं पुरिस-सहस्सेहिं सद्धिं एगं देवदूस-मादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं | पव्वइए ।। सू. २१० ।। उसमे णं अरहा कोसलिए एगं वास-सहस्सं निच्चं वोसठ्ठकाए चियत्त-देहे, जाव अप्पाणं भावेमाणस्स एगं वास-सहस्सं विइकंत, तओ णं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे 發發發源發發發發發發發強強強強強強強难發發發發發發發 For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ॥ ७७ ॥ www.kobatrth.org सत्तमे पक्खे, फग्गुण - बहुले तस्स णं फग्गुण - बहुलस्स इक्कारसी- पक्खे णं पुव्वण्हकाल - समयंसि, पुरिमतालस्स नयरस्स बहिआ, सगड- मुहंसि उज्जाणं सि नग्गोह - वर - पायवस्स अहे, अठ्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं, आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, झाणंतरिआए वट्टमाणस्स अणंते जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ||सू. २११|| उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स चउरासीइ गणा, चउरासीइ गणहरा हुत्था || सू. २१२ ।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स उसभसेण - पामुक्खाणं चउरासीओ समण - साहसीओ उक्कोसिया समण - संपया हुत्था || सू. २१३ || उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बंभिसुंदरि - पामुक्खाणं अज्जियाणं तिण्णि सय - साहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया - संपा सू. २१४ ।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स सिज्जंस - पामुक्खाणं समणोवासगाणं तिण्णि सय - साहस्सीओ पंच सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था || सू. २१५।। णं अरहओ कोसलिअस्स सुभद्दा - पामुक्खाणं समणोवासियाणं पंचसय - साहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था * ॥सू. २१६ ।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स चत्तारि सहस्सा सत्तसया पण्णासा उसभस्स For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir 撥 मूळ ।। ७७ ।। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kabatirth.org कल्पसूत्र मळ ७८॥ चउद्दस-पुव्वीणं अजिणाणं जिण-संकासाणं जाव उक्कोसिया चउद्दस-व्विणं संपया हुत्था ॥सू. २१७।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स नव सहस्सा ओहिनाणीणं उक्कोसिया ओहिनाणी-संपया हुत्था ।।स. २१८|| उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीस सहस्सा केवल-नाणीणं उक्कोसिया केवलनाणि-संपया हुत्था ।।सू.२१९।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीस सहस्सा छच्च सया वेउव्वियाणं उक्कोसिया वेउव्वि-संपया हत्था ॥सू. २२०|| उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बारस सहस्सा छच्च सया | पण्णासा विउल-मईणं अड्ढाइज्जेसु दीवेसु दोसु य समुद्देसु सन्नीणं पंचिंदियाणं पज्जत्त-गाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं पासमाणाणं उक्कोसिआ विउलमइ-संपया हुत्था ॥सू.२२१।। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बारस सहस्सा छच्च सया पण्णासा वाईणं उक्कोसिया वाइ-संपया हुत्था ॥सू. २२२।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीसं अंतेवासिसहस्सा सिद्धा, उसभस्स णं अरह ओ कोसलिअस्स चत्तालीसं अज्जिया-साहस्सीओ सिद्धाओ ॥सू. २२३।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बावीस सहस्सा नव सया अणुत्तरो-ववाइयाणं गइ-कल्लाणाणं जाव भदाणं उक्कोसिया संपया 姆西灣强强强强强强函邊強強強強強強強強強強露贺四獨母 For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kabarth.org कल्पसूत्र ॥ ७९ ॥ 数数这项球球球球球賺賺賺賺球球球球球球球益蒂球球 | हुत्था ॥सू.२२४|| उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स दुविहा अंत-गड-भूमी हुत्था, मूळ तंजहा-जुगंत-गड-भूमी परियायंत-गड-भूमी य, जाव असंखिज्जाओ पुरिसजुगाओ | किा जुगत-गडभूमी, अंतो- मुहुत्त-परियाए अंतमकासी ।।सू. २२५।। (चित्र नं. ३४-३५) ३४-३५ ते णं काले णं ते णं समए णं उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसय-सहस्साई कुमार-वासमज्झे वसित्ता तेवढेि पुव्व-सय-सहस्साइं रज्ज-वासमज्झे वसित्ता तेसीइं पुव्व-सय-सहस्साई अगार-वासमज्झे वसित्ता णं एगं वास-सहस्सं छउमत्थ-परिआयं पाउणित्ता, एगं पुव्व-सय-सहस्सं वास-सहस्सूणं केवलि-परिआयं पाउणित्ता पडिपुण्णं पुव्व-सय-सहस्सं सामण्ण-परियागं पाउणित्ता चउरासीइं पुव्व -सय-सहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जा-उय-नाम-गुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-दुस्समाए समाए बहु-विइक्कंताए तिहिं वासेहिं अद्ध-नवमेहि य मासेहिं सेसे हिं, जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे, माह-बहुले तस्स णं माह-बहुलस्स (ग्रंथानं ९००) तेरसी-पक्खे णं उप्पि अठ्ठावय-सेल-सिहरंसि दसहिं अणगार-सहस्सेहिं सद्धिं चोद्दसमेणं भत्तेणं अपाणएणं अभीइणा नक्खत्तेणं जोग 球球球部賺賺賺賺賺賺賺賺盡頭球球球球球聯 For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥८०॥ |मुवागएणं पुव्वण्हकाल-समयंसि संपलियंक-निसण्णे कालगए जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणे ॥सू. २२६|| उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स जाव सव्व-दुक्खप्पहीणस्स तिण्णि वासा अद्ध-नवमा य मासा विइक्ता, तओवि परं एगा सागरोवम-कोडाकोडी तिवास-अद्ध-नवम-मासाहिय-बायालीस-वास-सहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, एयंमि समए समणे भगवं महावीरे पडिनिव्वुडे, तओवि परं नव-वास-सया विइक्ता, दसमस्स | य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।सू. २२७।। । ॥ इति श्रीऋषभदेव-चरित्रं ॥ प्रथमं च जिनेन्द्र-चरित्राख्यं वाच्यम् ॥१॥ 瞭瞭腺腺腺激心都激撒撒撒球球球球球球球球 蒙 球球率寧源源撒撒撒撒撒賺賺賺賺賺郎球球率球球 For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ८ ॥ अथ स्थविरावली 撒韋踪踪踪踪踪踪踪踪踪瞭瞭瞭瞭瞭瞭瞭慕 舞發發發發發發發發發發發發發發獲發發發發發發發發發發發 ते णं काले णं ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस | गणहरा होत्था ||सू. १|| (चित्र नं. ३६) से केणढेणं भंते ! एवं वच्चइ ? समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा होत्था ? ||सू. २|| समणस्स भगवओ महावीरस्स जिढे इंदभूइ अणगारे गोयमगुत्ते णं पंच समण-सयाई वाएइ, मज्झिमए अग्गिभूई अणगारे गोयमगुत्ते णं पंच | समण-सयाइं वाएइ, कणीयसे अणगारे वाउभूई गोयमगुत्ते णं पंच समण-सयाई वाएइ, M|| || ८६ ।। For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र ॥८२॥ 染率染率球率聯韓球球球球球球球球球球率 थेरे अज्ज वियत्ते भारद्दाए गुत्ते णं पंच समण-सयाई वाएइ, थेरे अज्ज-सुहम्मे अग्गि-वेसायण-गुत्ते णं पंच समण-सयाई वाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिठ्ठ-गुत्ते णं अद्भुठ्ठाई समण-सयाई वाएइ, थेरे मोरिय-पुत्ते कासव-गुत्ते णं अद्धठ्ठाई समण-सयाई वाएइ, थेरे अकंपिए गोयम गुत्ते णं, थेरे अयलभाया हारियायणे गुत्ते णं, ते दुण्णिवि थेरा तिण्णि तिण्णि समण-सयाई वाइंति, थेरे मेयज्जे, थेरे पभासे, एए दुण्णिवि थेरा कोडिन्नागुत्ते णं तिण्णि तिण्णि समण-सयाई वाइंति, से तेणढेणं अज्जो ! एवं |वुच्चइ- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा होत्था ।।सू. २३०|| | सव्वे एते समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारसवि गणहरा दुवालसंगिणो चउद्दसपुव्विणो सम्मत्त-गणि-पिडग-धारगा रायगिहे नगरे मासिएणं' भत्तेणं अपाणएणं कालगया जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणा, थेरे इंदभूई, थेरे अज्जसुहम्मे य सिद्धिं गए महावीरे पच्छा दण्णिवि थेरा परिनिव्वया । जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, एए णं सव्वे अज्ज-सुहम्मस्स अणगारस्स आ-वच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वुच्छिन्ना ॥सू.४|| समणे भगवं महावीरे कासव-गुत्ते णं । समणस्स णं भगवओ For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ चित्र 球球球球球球球率稳稳激瞭萃致癌家都踪踪 महावीरस्स कासव-गुत्तस्स अज्ज-सुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायण-गुत्ते १। थेरस्स णं अज्ज-सुहम्मस्स अग्गिवेसायण-गुत्तस्स अज्ज-जंबू-नामे थेरे अंतेवासी, कासव-गुत्ते णं । थेरस्स णं अज्ज-जंबू-णामस्स कासव-गुत्तस्स अज्ज-प्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणस-गुत्ते ३। थेरस्स णं अज्ज-प्पभवस्स कच्चायणस-गुत्तस्स अज्ज-सिज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणग-पिया वच्छस-गोत्ते ४ थेरस्स णं अज्ज-सिज्जंभवस्स मणग-पिउणो वच्छस-गोत्तस्स अज्ज-जसभद्दे थेरे अंतेवासी | | तुंगि-यायणस-गोत्ते ५ ।।सू. ५।। (चित्र नं. ३७-३८) संखित्त-वायणाए अज्ज-जसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तं जहा-थेरस्स णं अज्ज-जसभद्दस्स तुंगि-यायणस-गुत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्ज-संभूइविजए | माढरस-गुत्ते, थेरे अज्जभद्दबाहू पाईणस-गुत्ते ६। थेरस्स णं अज्ज-संभूइविजयस्स | माढरस-गुत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्ज-थूलभद्दे गोयमस-गुत्ते ७। थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगुत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्ज-महागिरी एलावच्चस|| गुत्ते, थेरे अज्ज-सुहत्थी वासिठ्ठस-गुत्ते ८। थेरस्स णं अज्ज-सुहत्थिस्स वासिठ्ठस ३७-३८ For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ८४ ॥ 蒙幕踪踪踪踪踪踪踪踪踪滋滋滋滋滋滋滋激綜 गुत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा सुठ्ठिय-सुप्पडिबुद्धा कोडिय-काकंदगा वग्घावच्चस-गुत्ता ९। थेराणं सुठ्ठिय-सुप्पडिबुद्धाणं कोडिय-काकंदगाणं वग्घावच्चस-गत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्ज-इंददिन्ने कोसिय-गुत्ते १०। थेरस्स णं अज्ज-इंददिन्नस्स कोसिय-गुत्तस्य अंतेवासी थेरे अज्ज-दिन्ने गोयमस-गुत्ते ११॥ थेरस्स णं अज्ज-दिन्नस्स गोयमसगत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्ज-सीहगिरी जाइसरे कोसियस-गुत्ते १२। थेरस्स णं अज्ज-सीहगिरिस्स जाइस्सरस्स कोसियस-गुत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्ज-वइरे गोयमसगुत्ते १३। थेरस्स णं अज्ज-वइरस्स गोयमस-गुत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्ज-वइरसेणे उक्कोसिय-गुत्ते १४। थेरस्स णं अज्ज-वइरसेणस्स उक्कोसिअ-गुत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले १, थेरे अज्ज-पोमिले २, थेरे अज्ज-जयंते ३, थेरे अज्ज-तावसे |४, १५। थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया १, थेराओ अज्ज-पोमिलाओ | अज्ज-पोमिला साहा निग्गया २, थेराओ अज्ज-जयंताओ अज्ज-जयंती साहा निग्गया ३, थेराओ अज्ज-तावसाओ अज्ज-तावसी साहा निग्गया ४ इति ॥सू. ६॥ | (चित्र नं ३९) 發發發發發發發發發發婚變強器幾錢强發發發發發發發發發發 For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ 球盘资源盛療游踪踪踪滋滋滋滋滋琼海琼海激激激 वित्थर-वायणाए पुण अज्ज-जसभद्दाओ पुरओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा-थेरस्स णं अज्ज-जसभद्दस्स तुंगियायणस-गुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा-थेरे अज्ज-भद्दबाहू पाईणस-गुत्ते, थेरे अज्ज-संभूअ-विजए माढरस-गुत्ते ६ ॥सू. ७|| थेरस्स णं अज्ज-भद्दबाहुस्स पाईणस-गुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे गोदासे १ थेरे अग्गिदत्ते २ थेरे जण्णदत्ते ३ थेरे सोमदत्ते ४ कासव-गुत्ते णं १। थेरेहिंतो गोदासेहिंतो कासव-गुत्तेहिंतो इत्थ णं गोदास-गणं नामं गणे निग्गए, तस्स णं | इमाओ चत्तारि साहाओ एव-माहिज्जंति, तं जहा-तामलित्तिया १ कोडिवरिसिया २ पंडुवद्धणिया ३ दासी-खब्बडिया ४, २ । थेरस्स णं अज्ज-संभूइविजयस्स माढरस-गुत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा-नंदण-भद्दु १ वनंदण-भद्दे २ तह तीसभद्द ३ जस-भद्दे ४ । थेरे य सुमणभद्दे ५ मणिभद्दे ६ पुण्णभद्दे ७ य ||१|| थेरे अ थूलभद्दे ८ उज्जुमई ९ जंबु-नामाधिज्जे १० य । थेरे अ दीहभद्दे ११ थेरे तह पंडुभद्दे १२ य ॥२॥ ३। थेरस्स णं अज्ज-संभूइविजयस्स मा For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ॥ ८६ ॥ www.kobatrth.org ढरस -गुत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिण्णाओ जहाः - जक्खा १ य जक्खदिण्णा २ भूया ३ तह चेव भूय - दिण्णा य ४ । सेणा ५ | वेणा ६ रेणा ७ भइणीओ थूलभद्दस्स ॥१॥४७॥सू. ८|| थेरस्स णं अज्ज - थूलभद्दस्स गोयमस-गुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा-थेरे | अज्ज - महागिरी एलावच्चस - गुत्ते १ थेरे अज्ज - सुहत्थी वासिठ्ठस-गुत्ते २,१ । थेरस्स णं अज्ज - महागिरिस्स एलावच्चस - गुत्तस्स इमे अठ्ठ थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा - थेरे उत्तरे १, थेरे बलिस्सहे २, थेरे धणड्ढे ३, थेरे सिरिभद्दे ४, थेरे कोडिन्ने ५, थेरे नागे ६, थेरे नाग - मित्ते ७, थेरे छलूए रोहगुत्ते कोसिय-गुत्ते णं ८, २। ● थेरेहिंत्तो णं छलूएहिंतो रोहगुत्तेहिंतो कोसिय- गुत्तेहिंतो तत्थ णं तेरासीया निग्गया ३ । थेरेहिंतो णं उत्तर - बलिस्सहेहिंतो तत्थ णं उत्तर - बलिस्सहे नामं गणे निग्गए, तस्स णं * इमाओ चत्तारि साहाओ एव - माहिज्जंति, तं जहा - कोसंबिया १, सोइत्तिया २, कोडंबाणी ३, चंदनागरी ४, ४||८|| सू. ९ || थेरस्स णं अज्ज - सुहत्थिस्स वासिठ्ठस-गुत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा - थेरे अ अज्ज - रोहणे १ For Private and Personal Use Only सड Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूळ ॥ ८६ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र 带踪踪踪踪踪踪踪激踪踪踪踪踪踪聲踪幕踪踪踪踪 जसभद्दे २ मेहगणी य कामिड्ढी ४। सुठ्ठिय ५ सुप्पडिबुद्धे ६ रक्खिय ७ तह रोहगुत्ते ८ अ ||१|| इसिगुत्ते ९ सिरिगुत्ते १०, गणी य बंभे ११ गणी य तह सोमे १२ । दस दो अ गणहरा खलु, एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२।। १। थेरेहिंतो णं अज्ज-रोहणेहिंतो णं कासव-गत्तेहिंतो णं तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए, तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ |निग्गयाओ छच्च कुलाइं एव-माहिज्जंति २। से किं तं साहाओ ? साहाओ एव| माहिज्जंति, तं जहा-उदंबरिज्जिया १, मासपूरिआ २, मइपत्तिया ३, पुण्णपत्तिया ४ से तं साहाओ ३। से किं तं कुलाइं? कुलाइं एव माहिज्जंति, तं जहाः-पढमं च नागभूयं १, बिअं पुण सोम-भूइयं २ होइ । अह उल्लगच्छं तइअं ३, चउत्थयं हत्थलिज्जं ४ तु |१पंचमगं नंदिज्जं ५, छठं पुण पारिहासयं ६ होइ । उद्देह-गणस्सेए, छच्च कुला हुंति नायव्वा ।।२।।४। थेरहितो णं सिरि-गुत्तेहिंतो हारियस-गुत्तेहिंतो इत्थ णं चारण-गणे नाम गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, सत्त य कुलाइं एव-माहिज्जंति, ५। से किं तं साहाओ ? साहाओ एव-माहिज्जंति, तं जहा-हारिअ-मालागारी १, संकासीआ ॥२ गवेधुया ३, वज्ज-नागरी ४, से तं साहाओ ६ । से किं तं कुलाई ? कुलाई 賺賺賺賺蔡琳黎草率率球鄰染率靠瞭非非腺激瞭激盘 For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kab .org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ८८॥ 总踪踪踪踪賺賺賺賺賺賺賺激鄰踪踪踪踪激瞭滋球 एव-माहिज्जंति, तं जहाः-पढमित्थ वत्थलिज्जं १, बीयं पुण पीइधम्मिअं होइ २ ।। तइअं पुण हालिज्जं ३, चउत्थयं पुस-मित्तिज्जं ४ ॥१॥ पंचमगं मालिज्जं ५, छठे पुण अज्ज-वेडयं ६ होइ । सत्तमगं कण्हसहं ७, सत्त कुला चारण-गणस्स ॥२।। ७। थेरेहिंतो णं भद्दजसेहिंतो भारद्दायस-गुत्तेहिंतो इत्थ णं उडुवाडिय-गणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, तिण्णि कुलाई एव-माहिज्जंति ८। से किं तं साहाओ ? साहाओ एव-माहिज्जति, तं जहा-चंपिज्जिया १ भद्दिज्जिया २ काकंदिया ३ मेहलिज्जिया | ४ से तं साहाओ ९ । से किं तं कुलाई ? कुलाइं एव-माहिज्जंति, तंजहा-भद्द-जसियं १ तह भद्द-गत्तियं २ तइअंच होइ जसभई ३। एयाइं उडवाडिय-गणस्स तिण्णेव य कुलाई ॥१।। १०। थेरेहिंतो णं कामिड्ढीहिंतो कोडालस-गुत्तेहिंतो इत्थ णं | वेसवाडिय-गणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, चत्तारि कुलाई | एव-माहिज्जति ११॥ से किं तं साहाओ ? साहाओ एव-माहिज्जंति, तं जहा-सावत्थिया १ रज्जपालिआ २ अंतरिज्जिया ३ खेमलिज्जिया ४ से तं साहाओ १२। से किं तं कलाई ? कलाई एव-माहिज्जति, तं जहा-गणियं १ मेहिअं २ कामडिढयं ३ च तह 球車車嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩賺賺賺賺賺鄰鄰鄰郡踪 For Prate and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ८९ ॥ 鄉總部缺錢跑跑遊路發發發發發發發發發 遊锁 磁锁 磁级的设想 होइ इंदपुरगं ४ च । एयाई वेसवाडिय-गणस्स चत्तारि उ कुलाई ॥१।। १३। थेरेहिंतो णं इसिगुत्तेहिंतो कार्कदिएहिंतो वासिठ्ठस-गुत्तेहिंतो इत्थ णं माणवगणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, तिण्णि य कुलाइं एव-माहिज्जंति १४| से किं तं साहाओ ? साहाओ एव-माहिज्जंति, तंजहा-कास-वज्जिया १ गोय-मिज्जिया २ वासिठ्ठिया ३ सोरठ्ठिया ४, से तं साहाओ १५ । से किं तं कुलाइं ? कुलाई एव-माहिज्जंति, तं जहा-इसिगुत्ति इत्थ पढमं १ बीयं इसि-दत्तिअं मुणेयव्वं २ तइयं | |च अभि-जयंतं ३ तिण्णि कुला माणव-गणस्स ॥१।। १६।।९।। सू. १०।। | थेरेहिंतो सुठ्ठिय-सुप्पडिबुद्धेहिंतो कोडिय-काकंदएहिंतो वग्घावच्चस-गुत्तेहिंतो इत्थ ॥णं कोडिय-गणे नामं गणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, चत्तारि कुलाई च एव-माहिज्जति ११ से किं तं साहाओ ? साहाओ एव-माहिज्जंति, तं जहा-उच्चनागरी १ विज्जाहरी य २ वइरी य ३ मज्झिमिल्ला ४ य । कोडिय-गणस्स | एया, हवंति चत्तारि साहाओ ॥१॥ से तं साहाओ २ । से किं तं कुलाई ? कुलाई एव-माहिज्जंति, तं जहा-पढमित्थ बंभलिज्जं १ बिइयं नामेण वत्थलिज्ज तु । तइयं 撥撥幾幾幾錢幾發發發發發發發發發發發發發發發發發發發幾 For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ . ९०॥ पुण वाणिज्जं ३ चउत्थयं पण्ह-वाहणयं ४ ॥११॥३। थेराणं सुठ्ठिय-सुप्पडिबुद्धाणं | कोडिय-काकंदगाणं वग्घावच्चस-गुत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा-थेरे अज्ज-इंददिन्ने १ थेरे पियग्गंथे २ थेरे विज्जाहर-गोवाले कासव-गुत्ते णं ३ थेरे इसिदिन्ने ४ थेरे अरिह-दत्ते ५, ४ । थेरेहिंतो णं पियग्गंथेहितो इत्थ णं मज्झिमा साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं विज्जाहर-गोवालेहितो कासव-गु इत्थ णं विज्जाहरी साहा निग्गया, ५ ॥ १० ॥ सू. ११ ।। थेरस्स णं अज्ज-इंददिन्नस्स | कासव-गुत्तस्स अज्जदिन्ने अंतेवासी गोयमस-गुत्ते ११ ।।सू. १२॥ थेरस्स णं अज्ज-दिन्नस्स गोयमस-गुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा-थेरे अज्ज-संतिसेणिए माढरस-गुत्ते १ थेरे अज्ज-सीहगिरी जाइस्सरे कोसिय-गत्ते २, ९ । थेरेहिंतो णं अज्ज-संतिसेणिएहिंतो माढरस-गुत्तेहिंतो इत्थ णं उच्च-नागरी साहा निग्गया २ ॥ १२ ॥ सू. १३।। (२४०) || थेरस्स णं अज्ज-संतिसेणियस्स माढरस- गुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तंजहा (ग्रंथाग्रं १०००) थेरे अज्ज-सेणिए १ थेरे अज्ज-तावसे २ थेरे 应激激激撤離撒賺賺賺賺賺鄰嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩 球球球球球球球 For Prate and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kab .org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र a ॥ ९१ ।। 踪踪踪踪踪这滋獄鄰鄰球球球球球球海迦海郡弥弥 अज्ज-कुबेरे ३ थेरे अज्ज-इसिपालिए ४, १ थेरेहिंतो णं अज्ज-सेणिएहिंतो इत्थ णं अज्जसेणिया साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अज्ज-तावसेहिंतो इत्थ णं अज्ज-तावसी साहा | निग्गया. थेरेहिंतो णं अज्ज-कबेरेहिंतो इत्थ णं अज्ज-कबेरी साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं | अज्ज-इसिपालिएहिंतो इत्थ णं अज्ज-इसिवालिया साहा निग्गया २ । थेरस्स णं अज्ज-सीहगिरिस्स जाइस्सरस्स कोसिय-गुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा-थेरे धणगिरी थेरे अज्जवइरे थेरे अज्जसमिए थेरे अरिहदिन्ने ३ ॥ थेरेहिंतो णं अज्ज-समिएहिंतो गोयमस-गुत्तेहितो इत्थ णं बंभदीविया साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अज्ज-वयरेहिंतो गोयमस-गुत्तेहिंतो इत्थ णं अज्जवइरी साहा |निग्गया ४। १३ ।।सू. १४।। थेरस्स णं अज्ज-वइरस्स गोयमस-गुत्तस्स इमे तिण्णि थेरा | अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया हुत्था, तं जहा-थेरे अज्ज-वइरसेणे थेरे अज्ज-पउमे | थेरे अज्ज-रहे १४ ।।सू. १५।। । थेरेहिंतो णं अज्ज-वइरसेणिएहिंतो इत्थ णं अज्ज-नाइली साहा निग्गया, थेरेहितो णं अज्ज-पउमेहिंतो इत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया, थेरेहिंतो णं अज्ज-रहेहिंतो 惊险腺球腺球賺賺賺賺賺賺瞭鄰郡撒撒激賺賺賺賺賺盟盟 For Prate and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ९२॥ 語治滋滋源線率染率漆轟轟靠療藥瑜海部郡都靠靠染 इत्थ णं अज्ज-जयंती साहा निग्गया १५ ॥सू. १६|| थेरस्स णं अज्ज-रहस्स |वच्छस-गुत्तस्स अज्ज-पूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसिय-गुत्ते १६ ॥सू. १७॥ थेरस्स णं, अज्ज-पूसगिरिस्स कोसिय-गुत्तस्स अज्ज-फग्गुमित्ते थेरे अंतेवासी गोयमस-गुत्ते १७ || ।।सू. १८।। थेरस्स णं अज्ज-फग्गुमित्तस्स गोयमस-गुत्तस्स अज्ज-धणगिरी थेरे | अंतेवासी वासिट्ठस-गुत्ते १८ ।।स. १९।। थेरस्स णं अज्ज-धणगिरिस्स वासिठुसगुत्तस्स अज्ज-सिवभूई थेरे अंतेवासी कुच्छस-गुत्ते ।।१९।।सू. २०।। थेरस्स णं अज्ज-सिवभूइस्स कुच्छस-गुत्तस्स अज्जभद्दे थेरे अंतेवासी कासव-गुत्ते २० ॥सू. २१|| थेरस्स णं अज्ज-भद्दस्स कासव-गुत्तस्स अज्ज-नक्खत्ते थेरे अंतेवासी कासव-गुत्ते २१ ।।सू. २२।। थेरस्स णं अज्ज-नक्खत्तस्स कासव-गुत्तस्स अज्ज-रक्खे थेरे अंतेवासी, कासव-गुत्ते २२ |सू. २३|| थेरस्स णं अज्ज-रक्खस्स कासव-गुत्तस्स अज्ज-नागे थेरे अंतेवासी गोअमस-गुत्ते २३ ॥सू. २४|| थेरस्स णं अज्ज-नागस्स गोयमस-गुत्तस्स अज्ज-जेहिले थेरे अंतेवासी वासिठ्ठस-गुत्ते २४ ।।सू. २५।। थेरस्स णं अज्ज-जेहिलस्स वासिठ्ठस-गुत्तस्स अज्ज-विण्हू थेरे अंतेवासी माढरस-गुत्ते २५ ।।सू. २६॥ थेरस्स णं 婆婆誤魏巍巍發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發發 | ।। ९२॥ For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org कल्पसूत्र ।। ९३ ।। | अज्ज - विहुस्स माढरस - गुत्तस्स अज्जकालए थेरे अंतेवासी गोयमस - गुत्ते २६ ॥सू. |२७|| थेरस्स णं अज्ज - कालियस्स गोयमस-गुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी गोयमसक गुत्ता- - थेरे अज्ज - संपलिए १ थेरे अज्ज - भद्दे २, २७ || सू. २८|| एएसि णं दुहं वि | थेराणं गोयमस-गुत्ताणं अज्ज - वुड्ढे थेरे अंतेवासी गोयमस - गुत्ते २८ ॥ सू. २९|| रस्स णं अज्ज - वुड्ढस्स गोयमस - गुत्तस्स अज्ज - संघपालिए थेरे अंतेवासी गोयमस - गुत्ते २९ ॥सू. ३०|| थेरस्स णं अज्ज - संघपालिअस्स गोयमस-गुत्तस्स अज्ज - हत्थी थेरे अंतेवासी कासव - गुत्ते ३० ॥सू. ३१|| थेरस्स णं अज्ज - हत्थिस्स कासव - गुत्तस्स अज्जधम्मे थेरे ● अंतेवासी सावयगुत्ते ३१ ||सू. ३२|| थेरस्स णं अज्जधम्मस्स सावयगुत्तस्स अज्ज सीहे थेरे अंतेवासी कासव - गुत्ते ३२ ॥ सू. ३३|| ( २५० ) थेरस्स णं अज्ज -सीहस्स कासवगुत्तस्स अज्ज - धम्मे थेरे अंतेवासी कासव - गुत्ते ३३ ॥सू. ३४|| थेरस्स णं अज्ज - धम्मस्स कासव - गुत्तस्स अज्ज - संडिले थेरे अंतेवासी ३४ ॥सू. ३५|| Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only 违 蹾 嫩 वंदामि 'फग्गुमित्तं' च, गोयमं ३७ धणगिरिं च वासिठ्ठे १८ । कुच्छं 'सिवभूई 'पिय १९ कोसिय दुज्जत - कण्हे य ॥१॥ ते वंदिऊण सिरसा, 'भद्द' वंदामि कासवसगुत्तं २० । 数 मूळ ॥ ९३ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ९४ ॥ 滋激踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪蒙蒙 'नक्खं' कासवगुत्तं, २१ रक्खं' पि य कासवं २२ वंदे ॥२।। वंदामि 'अज्जनागं' २३ च, गोयमं 'जेहिलं' च वासिठं २४ । विण्डं' माढरगुत्तं, २५ कालग'मवि गोयम २६ वंदे ||३|| गोयम-गुत्त-कुमारं 'संपलियं' २७ तहय ‘भद्दयं वंदे । थेरं च 'अज्जवुड्ढे २८ | गोयमगुत्तं नमसामि ।।४॥ तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्त-चरित्त-नाणसंपन्नं । थेरं च 'संघवालिय' गोयम-गुत्तं पणिवयामि २९ ।।५।। वंदामि 'अज्जहत्थि' च, कासवं | खंति-सागरं धीरं । गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेव सुद्धस्स ३० ॥६॥ वंदामि | अज्जधम्म' च, सुव्वयं सील-लद्धिसंपन्नं । जस्स निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ - ३१ ॥७॥ हत्थि' कासव-गुत्तं, धम्मं सिव-साहगं पणिवयामि । 'सीह कासव-गुत्तं, ३२ 'धम्म' पि य कासवं ३३ वंदे ||८|| तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्त-चरित्त-नाणसंपन्नं । थेरं च ‘अज्जजंबुं', गोयमगुत्तं नमसामि ३४ ॥९।। मिउ-मद्दव-संपन्नं, उवउत्तं नाण-दसण-चरित्ते । थेरं च नंदियं' पि य, कासव-गुत्तं पणिवयामि ३५ ।।१०।। तत्तो य थिरचरित्तं, उत्तम-सम्मत्त-सत्त-संजुत्तं । 'देवड्ढि-गणि-खमासमणं', माढर-गुत्तं नमसामि ३६ ||११|| तत्तो अणुओग-धरं, धीरं मइ-सागरं महासत्तं । थिरगुत्त-खमासमणं, 臨海線斑療瞭瞭瞭瞭瞭瞭瞭瞭瞭瞭踪踪踪踪踪踪獄 For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ 激难难忘返球球球球球球球球球球球球球球球球球 वच्छसगुत्तं पणिवयामि ३७ ॥१२॥ तत्तो य नाण-दंसण-चरित्त-तव-सुठ्ठियं गुण- महंतं । थेरं कुमार-धम्म', वंदामि गणिं गुणो-ववेयं ३८ ।।१३।। सुत्तत्थ-रयण-भरिए, खम-दम-मद्दव-गुणेहिं संपन्ने । देविड्ढि-खमासमणे, कासव-गुत्ते पणिवयामि ३९ ।।१४|| ॥ इति स्थविराली नामकं द्वितीयं वाच्यम् ।।२।। ।। अथ सामाचारी ॥ ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे वासाणं स-वीसइ-राए मासे विइक्ते वासावासं पज्जोसवेइ ॥सू. १|| से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? समणे भगवं | महावीरे वासाणं सवीसइ-राए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसवेइ ? जओ णं पाएणं अगारीणं अगाराई कडियाई उ-कंपियाई छन्नाई लित्ताई गुत्ताइं घठाई मठाई सं-पधमियाई खाओदगाइं खाय-निद्धमणाई अप्पणो अठ्ठाए कडाइं परिभुत्ताई परि-णामियाइं भवंति, से तेणठेणं एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे वासाणं 踪踪踪踪踪踪臨臨臨淵源戏踪踪踪踪球球球球 For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र | मूळ ॥ ९६ ॥ 發發發發發發發發發發發發發誉资盈盈很强發發發發 स-वीसइ-राए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेइ ।।सू. २।। । जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं स-वीसइ-राए मासे विइक्ते वासावासं पज्जोसवेइ, तहा णं गणहरावि वासाणं सवीसइ-राए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसविति ॥स. ३|| जहा णं गणहरा वासाणं सवीसइ-राए जाव पज्जोसविंति, तहा णं गणहर-सीसावि वासाणं जाव पज्जोसविति ॥सू. ४|| जहा णं गणहर-सीसा वासाणं जाव पज्जोसविति, तहा णं थेरावि वासाणं जाव पज्जोसर्विति ॥सू. ५|| जहा णं थेरा |वासाणं जाव पज्जोसर्विति, तहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, एएवि अ णं वासाणं जाव पज्जोसविति ॥सू. ६|| जहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा वासाणं सवीसइ-राए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसर्विति, तहा णं अम्हंपि आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव पज्जोसर्विति ||सू. ७|| जहा णं अम्हं आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव पज्जोसविति, तहा णं अम्हेवि वासाणं सवीसइ-राए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेमो, अंतरावि य से कप्पइ, नो से कप्पइ तं रयणि उवायणा-वित्तए ।।सू. ८ ॥ (२६०) 琳琳 球球球球球率聯神聯撒撒賺賺賺賺賺賺咖咖咖激瞭瞭車車 For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मळ ९७॥ 踪踪总感滋滋滋滋滋滋滋滋線逸郡郡球踪踪踪踪踪 वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं ओग्गहं ओगिण्हित्ता णं चिठ्ठिउं अहा-लंदमवि ओग्गहे ॥सू. ९॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडि-नियत्तए ।सू. १०।। जत्थ नई निच्चोयगा निच्च-संदणा, नो से कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खा-यरियाए गंतुं पडि-नियत्तए ॥सू. ११ एरावई कुणालाए, जत्थ चक्किया सिया, एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा-एवं चक्किया एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खा-यरियाए गंतुं पडि-नियत्तए ।सू. १२॥ एवं च नो चक्किया, एवं से नो कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं |जोयणं भिक्खा-यरियाए गंतुं पडिणियत्तए ।सू. १३।। वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त-पुव्वं भवइ-दावे भंते ! एवं से कप्पइ दावित्तए, नो से कप्पइ पडि-गाहित्तए ॥सू. १४|| वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त-पुव्वं भवइ-पडिगाहेहि भंते ! एवं से कप्पइ पडि-गाहित्तए, नो से कप्पइ दावित्तए ॥सू. १५|| वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त 球球球球球球球球球球球率準準準鄰鄉鄰都想都激激 For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र ९/ ॥ | 独級磁磁磁磁磁發發發發發發發發發發發發姆姆姆姆姆 पुव्वं, भवइ-दावे भंते ! पडि-गाहे हि भंते ! एवं से कप्पइ दावित्तएवि पडि-गाहित्तएवि ॥सू. १६|| वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाणं वा | निग्गंथीण वा हठ्ठाणं तुठ्ठाणं आरोग्गाणं बलिय-सरीराणं इमाओ नव रस-विगइओ अभिक्खणं अभिक्खणं आहारित्तए, तं जहा-खीरं १, दहिं २, नवणीयं ३, सप्पि ४, तिल्लं |५, गुडं ६, महुं ७, मज्जं ८, मंसं ९ ||सू. १७|| वासावासं पज्जो-सवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त-पुव्वं भवइ, अठ्ठो भंते !| गिलाणस्स ? से य वएज्जा अठ्ठो, से अ पुच्छियव्वो-केवइएणं अठ्ठो ? से य वएज्जा-एवइएणं अठ्ठो गिलाणस्स, जं से पमाणं वयइ से य पमाणओ पित्तव्वे, से य | विन्नविज्जा, से य विन्नवेमाणे लभिज्जा, से य पमाण-पत्ते होउ अलाहि-इय वत्तव्वं, सिआ, से किमाहु ? भंते ! एवइएणं अठ्ठो गिलाणस्स, सिया णं एवं वयंतं परो वइज्जा-पडिगाहेह अज्जो ! पच्छा तुमं भोक्खसि वा पाहिसि वा, एवं से कप्पइ पडि-गाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाण-नीसाए पडि-गाहित्तए सू. १८ (२७०)।। वासावासं पज्जो-सविआणं अत्थि णं थेराणं तह-प्पगाराई कलाई कडाइं पत्तियाई 賺賺賺賺賺賺賺賺賺賺賺賺率瞭瞭踪踪踪踪踪踪踪華華 For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ९९ ।। 越弦瞭瞭瞭瞭瞭瞭球率聯賺賺賺賺賺賺賺賺踪踪踪踪豫亞源強 थिज्जाई वेसा-सियाई सम्मयाई बहुमयाइं अणुमयाइं भवंति, तत्थ से नो कप्पइ अदक्खु, वइत्तए-अत्थि ते आउसो ! इमं वा इमं वा, से किमाहु ? भंते !, सड्ढी गिही गिण्हइ वा, तेणियंपि कुज्जा ||सू. १९|| वासावासं पज्जोसवियस्स निच्च-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगं गोयर-कालं गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नन्नत्था-यरियवेयावच्चेण वा एवं उवज्झाय-वे यावच्चेण वा, तवस्सि-वे यावच्चेण वा, गिलाण-वेयावच्चेण वा, खुड्डएण वा खुड्डियाए वा अव्वंजण-जायएण वा ॥सू. २०।। |वासावासं पज्जोसवियस्स चउत्थ-भत्तियस्स भिक्खुस्स अयं एवइए विसेसे-जं से पाओ निक्खम्म पुव्वामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संपमज्जिय से य संथरिज्जा, कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तढेणं पज्जोसवितए-से य नो संथरिज्जा, एवं से कप्पइ दुच्चंपि गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. २१|| 球球球球球球球球非率非瞭離華隸輩球球 球球率率球球球球球 For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।। १०० ॥ 微微微微微微發發發礎發發發發發發發發發级独總效础婚姻 वासावासं पज्जो-सवियस्स छठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति दो गोयर-काला गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा ॥सू. २२।। वासावासं पज्जोसवियस्स अट्ठम-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोअर-काला गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. २३।। वासावासं पज्जोसवियस्स विगिठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वेवि गोअर-काला गाहावइ-कुलं | भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।।सू. २४।। ___ वासावासं पज्जोसवियस्स निच्च-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वाइं पाणगाई | पडि-गाहित्तए । वासावासं पज्जोसवियस्स चउत्थ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडि-गाहित्तए । तं जहा-उस्सेइम, संसेइम, चाउलोदगं १। वासावासं पज्जोसवियस्स छठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडि-गाहित्तए, तं जहा तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा २ । वासावासं पज्जोसवियस्स अठ्ठम-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडि-गाहित्तए, तंजहा-आयामे वा, सोवीरे वा, सुद्धवियडे वा ३। वासावासं पज्जोसवियस्स विगिठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे 踪踪踪踪隸踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪率準率瞭瞭瞭鄰 ।। १०० ॥ For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org कल्पसूत्र ॥ १०१ ॥ उसिण - वियडे पडि - गाहित्तए से वि य णं असित्थे नोवि य णं ससित्थे ४। वासावासं * पज्जोसवियस्स भत्त- पडि - याइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिण - वियडे | पडि - गाहित्तए, सेवि य णं असित्थे नो चेव णं ससित्थे सेवि य णं परिपूए नो चेव णं अपरिपूए सेवि य णं परिमिए नो चेव णं अपरिमिए, सेवि अ णं बहु - संपन्ने नो चेव णं अबहु- संपन्ने ॥ सू. २५॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मूळ वासावासं पज्जोसविअस्स संखा - दत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडि - गाहित्तए पंच पाणगस्स अहवा चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स, अहवा पंच-भोअणस्स चत्तारि पाणगस्स १। तत्थ णं एगा दत्ती लोणा - सायण मित्तमवि पडि - गाहिआ सिआ, कप्पर से तद्दिवसं तेणेव भत्तठ्ठणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दुच्चपि गाहावइ - कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा २ ॥सू. २६ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव उवस्सयाओ सत्त - घरंतरं संखडि संनियट्ट - चारिस्स एत्तए, एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेणं सत्त- घरंतरं संखडिं संनियट्ट चारिस्स एत्तए, एगे पुण एवमाहसु ॥ १०१ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kaliassaga suyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ १०२॥ 逐該空空茲茲班卒瞭染率染球瞭難瞭瞭孤疼疼疼还应率应 -नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परंपरेणं संखडिं सन्नियट्ट-चारिस्स एत्तए ॥सू. २७|| वासावासं पज्जोसवियस्स नो कप्पइ पाणि-पडिग्गहियस्स भिक्खुस्स कणगफुसिय-मित्तमवि वुट्ठि-कायंसि निवयमाणंसि जाव गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. २८ (२८०) || वासावासं पज्जोसवियस्स पाणि-पडिग्गहियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ अगिहंसि पिंडवायं पडि-गाहित्ता पज्जोसवित्तए, पज्जोसवेमाणस्स सहसा वुठ्ठिकाए निवइज्जा देसं भुच्चा देस-मादाय से | पाणिणा पाणिं परि-पिहित्ता उरंसि वा णं निलिज्जा कक्खंसि वा णं समा-हडिज्जा, अहा-छन्नाणि वा लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्ख-मूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से तत्थ पाणिसि दगे वा दगरए वा दग-फुसिआ वा णो परि-यावज्जई ॥सू. २९।। वासावासं पज्जोसवियस्स पाणि-पडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणग-फुसियमित्तंपि निवडेइ, नो से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ सू. ३०॥ वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गह-धारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्घारिय-वुठ्ठिकायंसि गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा| 球球球球球球直率率难瞭鄰鄰带盘辞瞭座座率率廊密密 ॥१०२॥ For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ १०३ ॥ 治療踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪賺賺賺賺賺率激激 पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्प-वुठ्ठिकायंसि संत-रुत्तरंसि गाहावइ-कुलं भत्ताए वा. पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. ३१|| (ग्रं. ११००) वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंत्थस्स निग्गंथीए वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडिआए अणु -प्पविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियड-गिहंसि वा, अहे रुक्ख-मूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥सू. ३२|| तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते | भिलिंग-सूवे, कप्पड़ से चाउलोदणे पडिगा-हित्तए, नो से कप्पइ भिलिंग-सूवे ।। पडिगाहित्तए ॥सू. ३३।। तत्थ से पुव्वा-गमणेणं पुव्वा-उत्ते भिलिंग-सूवे पच्छा-उत्ते चाउलो-दणे, कप्पड़ से भिलिंग-सूवे पडि-गाहित्तए, नो से कप्पड़ चाउलो-दणे पडि-गाहित्तए |सू. ३४॥ तत्थ से पुव्वा-गमणेणं दोवि पुव्वा-उत्ताई | कप्पंति से दोवि पडि-गाहित्तए । तत्थ से पुव्वा-गमणेणं दोवि पच्छात्ताई, एवं नो से कप्पंति दोवि पडि-गाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वा-गमणेणं पुव्वा-उत्ते से कप्पइ |पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वा-गमणेणं पच्छाउत्ते, नो से कप्पई पडि-गाहित्तए 球鄰球球球球球球球球球灘球鄰球球球球球華率率率率率非 ॥ १०३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ||१०४ || www.kobatrth.org ॥सू. ३५ ॥ वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइ-कुलं | पिंडवाय-पडियाए अणु - पविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियड - गिहंसि वा अहे रुक्खमूलसि वा उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ पुव्व-गहिएणं भत्त-पाणेणं वेलं उवायणा - वित्तए, कप्पर से पुव्वामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संलिहिय संपमज्जिय संपमज्जिय एगाययं भंडगं कट्टु सावसेसे सूरे जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ तं रयणि तत्थेव उवायणा- वित्तर || सू. ३६|| वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु - पविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पर से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा उवागच्छित्तए ॥सू. ३७|| तत्थ नो से कप्पर एगस्स निग्गंथस्स एगाए य निग्गंथीए एगओ चिठ्ठित्तए १, तत्थ नो कप्पर एगस्स निग्गंथस्स दुण्हं निग्गंथीणं एगओ चिठ्ठित्तए २, तत्थ नो कप्पर दुण्हं निग्गंथाणं एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिठ्ठित्तए ३, तत्थ नो कप्पइ दुण्हं निग्गंथाणं दुण्हं निग्गंथीण य एगयओ चिठ्ठित्तए ४, अत्थि य For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 嫩 数 मूळ ।। १०४ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। १०५ ।। www.kobatrth.org इत्थ केइ पंचमे खुड्डए वा खुड्डिया इ वा, अन्नेसिं वा संलोए स- पडि - दुवारे एवं हं कप्पइ एगयओ चिट्ठित्तए ॥सू. ३८ (२९० ) ॥ (चित्र नं. ४0 ) Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मूळ चित्र नं. ६४० वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु - पविठ्ठस्स निगिज्झिए निगिज्झिए वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पर से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पर एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिठ्ठित्तए, एवं चउभंगी । अत्थि णं इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरिया वा अन्नेसिं वा संलोए सपडि - दुवारे, एवं से कप्पर एगयओ चिठ्ठित्तए । एवं व निग्गंथीए अगारिस्स य भाणियव्वं ॥ सू. ३९|| वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अपरिण्णएणं अपरिण्णयस्स अट्ठाए असणं वा पाणं वा |खाइमं वा साइमं वा जाव पडि - गाहित्तए ॥सू. ४०|| से किमाहु भंते ! इच्छा परो अपरिण्णए भुंजिज्जा, इच्छा परो न भुंजिज्जा ।। सू. ४१|| वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा उद-उल्लेण वा स-सिणिद्वेण वा कारणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं आहारित्तए ||सू. ४२|| से किमाहु भंते ! सत्त ॥ १०५ ॥ वा Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ १०६॥ 瞭瞭瞭瞭臨路臨海稳稳稳滋滋滋踪踪踪踪踪踪踪踪 सिणेहा-ययणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणी १, पाणि-लेहा २, नहा ३, नह-सिहा ४, भमुहा ५, अहरुठ्ठा ६, उत्तरोठ्ठा ७। अह पुण एवं जाणिज्जा-विगओदगे मे काए छिन्न-सिणेहे, एवं से कप्पइ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए सू. ४३।। वासावासं पज्जोसवियाणं इह खल निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाई अठ्ठ सुहमाई, जाइं छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं २ जाणियव्वाइं | पासिअव्वाइं पडिलेहि-यव्वाइं भवंति, तंजहा-पाण-सुहुमं १ पणग-सुहुमं २, बीअ-सुहुमं ३, हरिय-सुहुमं ४, पुप्फ-सुहुमं ५, अंड-सुहुमं ६, लेण-सुहुमं ७, सिणेह-सुहुमं ८ ॥सू. ४४।। से किं तं पाण-सुहुमे ? पाण-सुहमे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-किण्हे १, नीले २, लोहिए ३, हालिद्दे ४, सुकिल्ले ५ । अत्थि कुंथु अणुद्धरी नामं जा छिया अ-चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो चक्खु-फासं हव्व-मागच्छइ, जा अदिया चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चक्खु-फासं हव्व-मागच्छइ, जाव छउमत्थेणं निग्गंथेणं वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वा पासियव्वा पडि-लेहियव्वा हवइ, से तं पाण-सहमे १ । से किं तं 球球球球球球球球球球瞭瞭瞭郑琼滋滋激踪踪染蒙率驗 For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassaga suyanmandir कल्पसूत्र ॥ १०६॥ 廊華藥瑜賺賺賺賺賺賺賺賺瞭率瞭強海海蓝 सिणेहा-ययणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणी १, पाणि-लेहा २, नहा ३, नह-सिहा ४, भमुहा | ५, अहरुठ्ठा ६, उत्तरोठा ७। अह पुण एवं जाणिज्जा-विगओदगे मे काए | छिन्न-सिणेहे, एवं से कप्पइ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए ||सू. ४३।। वासावासं पज्जोसवियाणं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाई अठ्ठ सुहमाइं, जाइं छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं २ जाणियव्वाई पासिअव्वाइं पडिलेहि-यव्वाइं भवंति, तंजहा-पाण-सुहुमं १ पणग-सुहुमं २, बीअ-सुहुमं |३, हरिय-सुहुमं ४, पुप्फ-सुहुमं ५, अंड-सुहुमं ६, लेण-सुहुमं ७, सिणेह-सुहुमं ८ ।।सू. ४४।। से किं तं पाण-सुहुमे ? पाण-सुहुमे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-किण्हे १, नीले २, लोहिए ३, हालिद्दे ४, सुकिल्ले ५ । अत्थि कुंथु अणुद्धरी नामं जा ठ्ठिया अ-चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो चक्खु-फासं हव्व-मागच्छइ, जा अट्ठिया चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चक्खु-फासं हव्व-मागच्छइ, जाव छउमत्थेणं निग्गंथेणं वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वा पासियव्वा पडि-लेहियव्वा हवइ, से तं पाण-सुहुमे १ । से किं तं 率率源源源激激激激獄賺賺賺賺賺賺球球球球球球球 ॥ १०६॥ For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ॥ १०७ ॥ 邀 www.kobatrth.org पणग- सुहुमे ? पणग- सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - किण्हे, सुकिल्ले । अत्थि पणग - सुहुमे नीले, लोहिए, हालिद्दे, तद्दव्व- समाण - वण्णे नामं पण्णते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाव पडि - लेहिअव्वे भवइ, से तं पणग - सुहुमे २ || 蹾 किं तं बीअ - सुहुमे ? बीय - सुहुमे पंचविहे पण्णते, तंजहा - किण्हे जाव सुकिल्ले । अ 嫩 बीअ - सुहुमे कणिया- समाण - वण्णए नामं पन्नत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए * वा जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं बीअ - सुहुमे ३। से किं तं हरिय - सुहुमे ? हरिय - सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - किण्हे जाव सुकिल्ले । अस्थि हरिय - सुहुमे पुढवी |- समाण - वण्णए नामं पण्णत्ते, जे निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं * जाणियव्वे पासियव्वे पडि - लेहियव्वे भवइ, से तं हरिअ - सुहुमे ४ । से किं तं पुप्फ - सुहुमे ? पुप्फ- सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - किहे जाव सुकिल्ले । अत्थि पुप्फ - सुहुमे रुक्ख - समाणवण्णे नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेणं वा निग्गंथीए वा जाणियव्वे जाव पडि - लेहियव्वे भवइ, से तं पुप्फ- सुहुमे ५ । से किं तं अंड * सुहुमे ? अंड-सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - उद्दं - संडे, उक्कलि-यंडे, पिपीलि-अंडे, For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूळ ॥१०७॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।।१०८॥ 發發發發發發發發發發發發發接發發發發發發發發發發 | हलिअंडे हल्लो-हलि-अंडे, जे निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं अंड-सुहमे ६ । से किं तं लेण-सुहमे ? लेण-सुहमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-उत्तिंग-लेणे, भिंगु-लेणे, उज्जुए, ताल-मूलए, संबुक्का-वट्टे नामं पंचमे, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाणियव्वे जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं लेण-सुहुमे ७ । से किं तं सिणेह-सुहुमे ? सिणेह-सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, | तंजहा-उस्सा, हिमए, महिया, करए हर-तणुए । जे छउमत्थेणं निग्गंथेणं वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं सिणेह-सहमे ८ ।।सू.४५॥ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवित्तिं वा गणिं वा गणहरं वा गणा-वच्छेअयं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छिउं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं |गणा-वच्छेअयं, जं वा पुरओ काउं विहरइ- 'इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भ 部隸撤離撒踪举靠球球球球球球球球球球球球盘数 For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ १०९ ॥ 滋滋溜滋溜滋臨稳治療滋滋滋盈盈总郡踪踪踪踪踪染整 णुण्णाए समाणे गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, ते | य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा | पवि-सित्तए वा, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा । से किमाहू भंते ! आयरिया पच्चवायं| जाणंति ।।सू. ४६।। एवं विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा अन्नं वा जंकिंचि पओअणं, एवं गामा-णुगामं दूइज्जित्तए ।सू. ४७|| वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अण्णयरिं विगई आहारित्तए, नो से कप्पइ से अणा-पुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणा-वच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, ‘इच्छामि णं भत्ते ! तुब्भेहिं अब्भ-णुण्णाए समाणे अन्नयरिं | | विगई आहारित्तए, तं एवइयं वा एवइ-खुत्तो वा', ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ | अण्णयरिं विगई आहारित्तए, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ अण्णयरिं विगई आहारित्तए, से किमाहु भंते ! आयरिया पच्चवायं जाणंति ।।सू. ४८॥ वासावासं 鐵器盘激盪踪踪踪踪踪盘激盪盘总踪踪踪踪踪踪球球激 For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ १० ॥ 蒙蒙蒙蒙兹發 衣蕴滋踪踪踪踪踪踪蘇 蔡兹兹球球球激球球 पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए, नो से कप्पइ से अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा | पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणा-वच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भ-गुण्णाए समाणे अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए,' तं एवइयं वा एवइ- खुत्तो वा, ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए, ते य से नो | || वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ अण्णयरिं तेइच्छियं आउट्टित्तए । से किमाहु भत्ते ! ? आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥सू. ४९।। वासावासं पज्जो-सविए भिक्खू इच्छिज्जा अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि | गणहरं गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ काउं विहरइ,- 'इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अण्णयरं ओरालं कल्लाणं 踪踪踪踪豪華幸染率染率染踪踪踪踪踪踪踪蒙蒙 For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.koba .org Acharya Shet Kalastagarsun Gyarmandie कल्पसत्र ।। १११ ॥ 賺賺賺 球球球球球激撒激鄰聯球球球球球球速激激躁激 सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए,' तं एवइयं वा एवइ-खुत्तो वा, ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्म उव-संपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । से किमाहु भंते ! ?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥सू. ५०|| वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-जूसणा-जूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए वा, उच्चारं वा पासवणं वा परिठ्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्म-जागरियं वा जागरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणा-वच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, –'इच्छामि णं भंते ! 瞭瞭鄰腺激球球球球踪踪踪踪踪踪踪瞭瞭瞭激撒琳琳 For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrtm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ११२ ॥ 幾發邊幾邊幾幾幾幾魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 幾錢 तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-जूसणा-जूसिए भत्तपाण-पडि-याइक्खिए पाओवगए कालं अणव-कंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए वा, उच्चारं वा | पासवणं वा परिठ्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्मजागरियं वा जागरित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो वा, ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ, ते य से नो वियरिज्जा, नो से कप्पइ, से किमाह भंते' !?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥सू. ५१।। वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा अण्णयरिं वा उवहिं आयवित्तए वा पयावित्तए वा, नो से कप्पइ एगं वा अणेगं अपडिण्णवित्ता गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहार-भूमि वा वियारभूमि वा सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए । अत्थि य इत्थ केइ अभि-समण्णागए अहा-सण्णिहिए एगे वा अणेगे वा, कप्पइ से एवं वइत्तए'इमं ता अज्जो ! तुम मुहुत्तगं जाणेहि जाव ताव अहं गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा 球球球球球球球瞭瞭瞭瞭豪華豪華辜率球瞭弦速杂部落都激隸 वा For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ || ११३ || 球華療藥瑜率賺賺賺賺賺賺賺賺賺準森鄰漁港療滋都撒線 निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहार-भूमि वियार-भूमिं सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए' से य से | पडि-सुणिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमिं वियार-भूमि | सज्झायं करित्तए वा । से य से नो पडि-सुणिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमिं वियार-भूमि सज्झायं करित्तए वा, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए ॥सू. ५२।। वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियाणं हुत्तए, आयाण-मे यं, अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स अणुच्चा-कुइयस्स अणठ्ठा-बंधियस्स अमिया-सणियस्स अणा-तावियस्स अ-समियस्स अभिक्खणं अभिक्खणं अ- पडिलेहणा-सीलस्स अपमज्जणा-सीलस्स तहा तहा संजमे दुरा-राहए भवइ ।। सू.५३ ॥ अणायाण-मेयं अभिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स उच्चा-कुइयस्स 踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪謙踪踪踪踪踪染率革聯部激滋滋 For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ ११३॥ 率瞭瞭瞭瞭瞭瞭瞭準準準準激綜球球球球球球带 निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया || विहार-भूमिं वियार-भूमिं सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए' से य से पडि-सुणिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमि वियार-भूमि सज्झायं करित्तए वा । से य से नो पडि-सुणिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइम आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमि वियार-भूमि सज्झायं करित्तए वा, काउस्सग्गं |वा ठाणं वा ठाइत्तए ।।सू. ५२।। वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा| निग्गंथीण वा अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियाणं हत्तए, आयाण-मेयं, अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स अणुच्चा-कूइयस्स अणठा-बंधियस्स अमिया-सणियस्स अणा-तावियस्स अ-समियस्स अभिक्खणं अभिक्खणं अ- पडिलेहणा-सीलस्स अपमज्जणा-सीलस्स तहा तहा संजमे दुरा-राहए भवइ ||| स.५३ ।। अणायाण-मेयं अभिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स उच्चा-कुइयस्स 媒撒謀賺賺賺華幸染毒肆串謀淋滋滋潔器都带蒂肆球 For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ११४॥ 賺鄰鄰球染弦空弦在海盜器滋察总部空态辜華豪華瞭準驗 अठ्ठा-बंधियस्स मिया-सणियस्स आया-वियस्स समियस्स अभिक्खणं अभिक्खणं पडिलेहणा-सीलस्स पमज्जणा-सीलस्स तहा तहा संजमे सु-आराहए भवइ ।।सू. ५४।। वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ | उच्चार-पासवण-भूमीओ पडि-लेहित्तए, न तहा हेमंत-गिम्हासु जहा णं वासासु, से किमाहु भंते ! वासासु णं ओसण्णं पाणा य तणा य बीया य पणगा य हरियाणि य| भवंति ॥सू. ५५॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ मत्तगाई | गिणिहत्तए, तंजहा-उच्चार-मत्तए, पासवण-मत्तए, खेल-मत्तए ||सू. ५६।। वासावासं |पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जोसवणाओ गोलोम|प्पमाण-मित्तेवि केसे तं रयणि उवायणा-वित्तए। अज्जेणं खुर-मुंडेण वा लुक्क-सिरएण वा होइयव्वं सिया । पक्खिया आरोवणा, मासिए खुर-मुंडे, अद्धमासिए कत्तरि-मुंडे, छम्मासिए लोए, संवच्छरिए वा थेरकप्पे ॥ सू. ५७ ।। वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वइत्तए, जे णं 踪踪踪踪弦弦專班路線踪踪踪踪踪球率弦弦 弦慈益激躁 ॥ ११४॥ For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ११५ ।। www.kobatrth.org निग्गंथो वा निग्गंथी वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वयइ, से णं अकप्पेणं “अज्जो ! वयसीत्ति” वत्तव्वे-सिया, जे णं निग्गंथो वा निग्गंथी वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वयइ, से णं निज्जूहियव्वे सिया ॥सू. ५८॥ वासावासं पज्जोसवियाणं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अज्जेव कक्खडे कडुए विग्गहे समुप्पज्जित्था से हे राइणियं खामिज्जा, राइणिएवि सेहं खामिज्जा (ग्रं. १२००) खमियव्वं खमावियव्वं | उवसमियव्वं उवसमावियव्वं सुमइ - संपुच्छणा - बहुलेणं होयव्वं । जो उवसमइ तस्स अत्थि आराहणा, जो न उवसमइ तस्स नत्थि आराहणा, तम्हा अप्पणा चेव उव-समियव्वं, से किमाहु भंते ! उवसम - सारं खु सामण्णं ॥ सू. ५९ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ उवस्सया गिण्हित्तए, तं जहा - वेउव्विया पडिलेहा साइज्जिया पमज्जणा ।। सू. ६० ।। वासावासं पज्जोसवियाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कप्पर अण्णयरिं दिसिं वा अणुदिसिं वा अवगिज्झिय भत्तपाणं गवेत्तिए । से किमाहु भंते ! उस्सण्णं समणा भगवंतो वासासु तव - संपउत्ता भवंति, तवस्सी दुब्बले किलंते मुच्छिज्जा वा पवडिज्ज वा, तमेव दिसं वा, अणुदिसं 4 For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir मूळ ॐ ।। ११५ ।। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मळ || ११६ ॥ 發發發發發發發發發發發發發强强强强强强强强强發發號 वा समणा भगवंतो पडिजागरंति ॥सू. ६१।। वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा गिलाण-हेउं जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडि-नियत्तए, अंतरावि से कप्पइ वत्थए, नो से कप्पइ तं रंयणिं तत्थेव उवायणावित्तए ॥ सू. ६२ ।। । इच्चेयं संवच्छरिअं थेरकप्पं अहा-सुत्तं अहा-कप्पं अहा-मग्गं अहातच्चं सम्म काएण फासित्ता पालित्ता सोभित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणु-पालित्ता अत्थे-गइआ समणा निग्गंथा तेणेव भव-ग्गहणेणं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वाइंति सव्व-दुक्खाणमंतं करिति, अत्थेगइया दुच्चेणं भव-ग्गहणेणं सिझंति जाव | सव्व-दुक्खाण-मंतं करिंति, अत्थेगइया तच्चेणं भव-ग्गहणेणं जाव अंतं करिति, | सत्तठ्ठ-भव-ग्गहणाइं नाइक्कमंति ।।सू. ६३॥ ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुण-सिलए | चेइए, बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं || हूणं देवीणं मज्झगए चेव एवमा-इक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ, पज्जोसवणा-कप्पो नाम अज्झयणं सअट्ठ सहेउअं सकारणं ससुत्तं सअत्थं सउभयं 激踪踪踪踪牵豪華瞭染率染率染黎黎苏苏豪華泰藥華藥 嘉 ||| ११६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kaliassaga suyanmandir मूळ ॥ ११७ ॥ कल्पसूत्र || सवागरणं भुज्जो भुज्जो उवदंसेइ त्ति बेमि ॥ सू. ६४ || इति सामाचारीनामकं तृतीयं वाच्यम् ॥ ३ ॥ इति पज्जोसवणाकप्पं नाम दसासुअखंधस्स अट्ठम-मज्झयणं समत्तं ॥ (ग्रंथाग्रं १२१५) ।। श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामिविरचितं श्रीमद्दशाश्रुतस्कन्धान्तर्गतं श्री कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) समाप्तम् ॥ 应率辜辜辜辜濂賺賺賺賺賺滋滋球球球球球球兹海 球球空球控浓部都踪踪踪踪踪踪踪球球球球球 | || श्री तपागच्छ-गगनाङ्गण-दिनमणि-पन्न्यासप्रवर-श्री बुद्धिविजय-गणिवर-पादाम्बुज-भृत्रायमान-पन्यास-श्रीमदाणंदविजय-गणिवरचरणचन्द्रचकोर-मुनिप्रवर-श्री हर्षविजय-मुनीन्द्राभिघ्र-सरसिरुह-मानस-राजहंस-तपोमूर्ति-जैनाचार्य-श्रीमद्विजय कर्पूर-सूरीश्वर-पट्टधरशासनप्रतिवादीभकण्ठीरव-हालारदेशोद्धारक-कविरत्नाचार्यदेव-श्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-चचच्चरणचञ्चरीक प्राचीनसाहित्योद्धारकाचार्य-देवश्री विजय-जिनेन्द्र सूरीश्वर-संशोधित-सम्पादितं-श्रीमत्कल्पसूत्रं समाप्तम् ॥ ११७ For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir 强强鐵發發發發發發發發發發發發语资醫療器遊發强强强强强 श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला - ग्रन्थाङ्कः ७३ श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः। ॥ तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेवश्री विजयकर्पूरसूरिगुरुभ्यो नमः। हालारदेशोद्धारक - पूज्याचार्यदेव श्रीविजयामृतसूरिगुरुभ्यो नमः ।। चतुर्दशपूर्वधर-श्रुतकेवली-श्रीमद्भद्रबाहुस्वामी-विरचितं श्री पर्युषणाकल्पाख्यं ।। श्री कल्पसूत्रम् (बारसा-सूत्रम्) (मूलम्) ।। संपादकः संशोधकश्च-तपोमूर्ति-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयकर्पूरसूरीश्वर-पट्टालङ्कार-हालारदेशोद्धारक कविरत्न-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-पट्टधरः पूज्याचार्यदेव श्री विजयजिनेन्द्र सूरीश्वरः प्रकाशिका- श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) मूल्यं रु.६०-०० 靈發發殘幾幾錢錢錢與發強強強強強發發發發發發發發發發 For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ वीर सं. २५१९ 發發發發強強強強強強強強強強強盛起發發發發發發發發發 (१) प्रकाशिका श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, (लाखाबावल) C/0. श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर. विक्रम सं. २०४९ सन् १९९३ मूल्य: रु.XAREER ६०-०० -: प्राप्तिस्थान :श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला: .c/o.श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर । महेता मगनलाल चत्रभूज : . शाक मारकीट सामे, जामनगर सेवंतिलाल वी. जैन: - २०, महाजन गली, मुंबई-२ सरस्वती पुस्तक भंडार : . हाथीखाना रतनपोळ, अमदावाद सोमचंद डी. शाह : - जीवन निवास सामे, पालीताणा प्रकाशकुमार अमृतलाल दोशी : - वीतराग १०-१३, जयराज प्लोट, राजकोट मुद्रक : गेलेक्सी प्रिन्टर्स, ढेबर चोक, राजकोट. कोम्प्युटर टाइप सेटीग : अपल टाईपोलोजी, अस.टी. बस स्टेशन पाछळ, राजकोट. 國發迎發強強強強碰發發發發發發發發發發發發發發發發 (३) For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ ३ ॥ 8 瀲 B 淄 徵 撥 宿 宿 www.kobatrth.org संपादकीय निवेदन निष्कारणबंधु विश्ववत्सल चरमशासनपति श्रमण भगवान महावीरदेवे भव्यजीवोना हितने माटे स्थापेल शासन आजे विद्यमान छे अने विषम कालमा पण भव्य जीवोने माटे सर्वज्ञ परमात्मानुं ए शासन परम आलंबन रूप छे. तीर्थंकरदेवोनी अविद्यमानतामां ते ओश्रीनी वाणी शासननां प्राण स्वरूप होय छे. श्री तीर्थंकरदेवोओ अर्थथी प्ररूपेल अने गणधरदेवोओ सूत्रथी गूंथेल जिनवाणी हितकांक्षी पुन्यात्माओ माटे अमृत तुल्य छे. विद्यमान आगम श्रुतज्ञानमां मुख्यतया ४५ आगम गणाय छे. ते उपरांत पण ८४ आगमनी गणतरीने हिसाबे बीजु पण केटलूंक आगम रूपी श्रुतज्ञान विद्यमान छे. आगम सूत्री उपर निर्युक्तिओ, भाष्यो, चूर्णिओ अने टीकाओ रचायेल छे. अने ओथी सूत्र सहित आगमनी से पंचांगी जैन शासनमां मान्य छे तेना आधारे वर्तमान ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार रूप व्यवहार प्रवर्ते छे. सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्र रूप मुक्ति मार्ग प्रवर्तमान छे. पंचांगीनो वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा अने धर्मकथा रूप पंचलक्षण स्वाध्याय जेटलो जोरदार तेटली श्री संघमां सम्यग्ज्ञाननी शुद्धि जोरदार, तेनाथी ज्ञानाचार उज्वल, उज्वल ज्ञानाचारथी दर्शनाचार उज्वल, उज्वल दर्शनाचारथी चारित्राचार उज्वल, उज्वल चारित्राचारथी तपाचार उज्वल अने से चारे उज्वल आचारथी वीर्याचार उज्वल, वीर्याचारनी उज्वलताथी जैनशासन उज्वल, ए उज्वल जैन शासन सदा जयवंत वर्ते छे. आम शासननो आधार कहो के पायो कहो, मूल कहो के प्राण कहो, अ श्री जिनवाणी छे अने ते जिनवाणी ४५ मूल आगम सहित पंचांगी स्वरूप छे. पंचांगीने अनुसरता प्रकरण ग्रन्थो यावत् स्तवन सज्झाय के नाना निबंध के वाक्य स्वरूप छे. उपशम विवेक संवर अत्रिपदी स्वरूप जिनवाणीथी घोर पापी चिलातीपुत्र पतनना मार्गथी नीकली प्रगतिमार्गना मुसाफर बनी गया हता. ४५ मूल आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिवरो छे, साध्वीजी महाराजो श्री आवश्यक सूत्र आदि मूल For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 攤 海 徵 選 在 淄 粗 螢 遨 遊 || 3 || Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ ४ ॥ 蒙蒙蒙蒙蒙蒙激賺賺賺賺賺賺語治療带岛总裁路諒琳琳 सूत्रोना तेमज उत्तराध्ययन, श्रीआचारांग सूत्रना योगवहन करवा पूर्वक अधिकारी छे. श्रावक श्राविकाओ उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवैकालिकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यतना श्रुतना अधिकारी छे. आम आगमश्र |तना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निर्मल बनावे छे अने योग्यता मुजब वाचना, धर्मकथा द्वारा जिणवाणीनुं पान करावी साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे. ४५ आगमसूत्रो ६ विभागोमा वहेंचायेल छे. (१) अंगसूत्रो ११ (२) उपांगसूत्रो १२ (३) पयन्नासूत्रो-१० (४) छेदसूत्रो-६ (५) मलसूत्रो-४ (६) चूलिकासूत्रो-२, आ सूत्रोनु स्वाध्याय आदि अध्ययन वधे ते माटे उपयोगी बने ते रीते ४५ मूल सूत्रो श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्रीसंघमां सळंग मुद्रित अनुकूलता थाय ते माटे शक्य प्रयत्न संशोधन करीने प्रगट करवामां आव्या छे. आ श्री कल्पसूत्रना कर्त्ता चौदपूर्वधर श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामीजी छे. आ सूत्रना संपादनमा श्री लीबडी जैन भंडार, श्री खंभात शांतिनाथजी ताडपत्रीय ज्ञानभंडारनी हस्त प्रतो तेमज जैन आत्मानंद सभा, श्री देवचंद लालभाइ पुस्तकोद्धारक फंड, पं. मफतलाल झवेरचंद, श्रावक भीमसिंह माणेक प्रकाशित सूत्रो तथा टीकाओनो। उपयोग कर्यो छे. टीकाओमा प. उ. श्री विनय विजयजी गणिवर कृत सुबोधिका प. उ. श्री धर्मसागरजी म. कृत किरणावली, पू. उ. श्री लक्ष्मीवल्लभ गणिकृत कल्पद्रुमकलिका पं. श्री संघविजयजी गणिकृत प्रदिपिका, पं. श्री जयसोमगणीकृत दीपिका आदिनो उपयोग कर्यो छे. टीकाओ आदिमा रहेला पाठांतरो मेलवीने मूलपाठ जोडे कौशमां आपेला छे. श्री श्रमण संघमां आगमो कंठस्थ करवामां, स्वाध्याय करवामां, विस्तृत टीकाओना वांचन पछी मूलसूत्रोनुं पुनरावर्तन करवामां, मूल सूत्रोना आ संयुक्त संपादनथी घणी अनूकुलता रहेशे. अने एथी होशे होशे उत्साही मुनि भगवंतो सत्रो कंठस्थ करीने। आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. २, ५, के १०, २० सूत्र कंठस्थ करनारा पुरतो प्रयत्न करे तो लगभग एक | 發發發發發發發發發發蒸發殘殘錢强强强强篮發發發發 For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kaliassagarsur Gyanmandir ॥५ ॥ लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमां थइ शकशे. 'ज्ञानधनाः साधवः' 'शास्त्रचक्षुषः | साधवः ए विधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनु श्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थता श्रीसंघने माटे श्री शासनने माटे घणी उज्वलता फेलाशे अने ए आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादनमा अविरत उत्साह | प्रवर्तमान छे. आगम पंचांगी आदि साहित्य प्रकाशित थाय छे. आ बारसा सूत्र प्रथम २०३२ मा मूल प्रगट थयेल पाछळ्थी चित्रो छपायेला. चित्र सहित प्रकाशित पण थाय छे. समास छटा पाडीने सरलताथी वांची शकाय तेम कर्य छे. चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे. ओ ज्वलंत | जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने योग्यता अने अधिकार मुजब अजवालनारो बने, जिनवाणीनी उपासना भक्तिमा भावना पूर्वक रस लइ रह्यो छु ते भावोल्लास टकी रहे अने सौ श्रुत आराधनामा उजमाल बनीओ एज मारा अंतरनी शुभ अभिलाषा छे. 築夢夢魏盈盈盈做级發與發發發發發怨無强强做级發發發發 0000000000888888888888888 वीर सं. २५१९ वि. सं. २०४९ महा वद १० मंगलवार ता. १६-२-९३ जैन उपाश्रय, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर हालारदेशोद्धारक कविरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराजानो चरणसेवक जिनेन्द्रसूरि ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir सादर समर्पण 發與強強強強強競逐發發發發發發發發發發發發發發 महान तपोनिधि दादा पू. पंन्यास श्री मणिविजयजी गणिवरना शिष्यरत्न पूज्यपाद शासनशिरोमणि पंन्यास श्री बद्धिविजयजी (बटेरायजी) गणिवरना शिष्यरत्न विद्वान चारित्ररत्न पंन्यास श्री आणंदविजयजी गणिवरना शिष्यरत्न-बालब्रह्मचारी निस्पृहीशिरोरत्न मुनिमंडलाग्रेसर पूज्य मुनिराजश्री हर्षविजयजी महाराजाना शिष्यरत्न महानतपोनिधि पूज्य आचार्यदेव श्री विजय कपूरसूरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर - पूज्यपाद प्रशान्तमूर्ति प्रकृष्टवक्ताः प्रवचनप्रभावक हालारदेशोद्धारक कविरत्न पू. आचार्यदेव श्री विजयामृतसूरीश्वरजी महाराजा जेओश्रीए श्री महावीर परमात्माना कल्याणकारी शासननो भव्यजीवोना हितने माटे प्रचार करतां अनेक पुन्यात्माओने अरिहंतशासनना रागी बनावी | मुक्तिमार्गना पथिक बनाव्या छे. ते साथे मने पण अज्ञान अने मिथ्यात्वना घेरा वमळ्मांथी खेंची, संसार पारावार पार पमाडवा भव्य यानपात्र सम संयमधर्ममा स्थापन कर्यो अने मारी संयमसाधनानी सफलता माटे अने सम्यग्ज्ञानादिना विकास माटे सतत हितचिंता सेवी छे. तेओश्रीना ए महान उपकारोनी स्मृतिमा यत्किचित् कृतज्ञता रूपे तेओश्रीने श्री कल्पसूत्र सादर वंदना साथे समर्पण करी कृत्कृत्यता अनुभवू छु. गुरुचरणचथचरिक जिनेन्द्रसूरि. |趣藝遊發發發發發發邊幾錢錢錢錢錢錢錢錢錢幾幾變變變變 For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ ७॥ प्रकाशकीय निवेदन 踪踪激举廊準激率稳稳都激激鄰賺賺賺賺崇牌 अमारी ग्रन्थमाला तरफथी प्राचीन साहित्य तेमज आगम साहित्यना विषयमा संशोधन प्रकाशन थाय छे तेमां ४५ आगम मूळ तथा अनेक प्राचीन साहित्य प्रकाशित थयुं छे. आगम पंचांगी चालु छे. जेमां सारा प्रमाणमा प्रयत्नो चालु छे. आ बारसा सूत्र मूल मोटा टाइपमा वि. स. २०३२ मां प्रगट थयुं हतुं. ते हवे सचित्र प्रकाशित थयुं तेमां पण पूर्वे करता वधु सरलता रहे तेथी वधु समास छूटा कर्या छे. चित्रोना नंबर सूत्र साथे छाप्या छे जेथी वांचकने तथा चित्रदर्शन माटे सरलता रहे. आ सूत्रनुं संशोधन फरी प्रतो मेलवीने हालारदेशोद्धारक पू.आ. श्री विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर साहित्योद्धारक पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे संशोधन संपादन कर्यु छे. अधिकार मुजब आ महान | सूत्रनो सदुपयोग थाय एज मंगल भावना । 率蒙蒙蒂療治海洛琼盘激盪靠靠靠靠踪踪踪踪路器滋踪幕 मंगलवार ता. १६-२-९३ शाक मारकेट सामे, जामनगर. महेता मगनलाल चत्रभुज व्यव. श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ॥८॥ ॥१॥ प्रथमं वाच्यम् ॥ श्रीमहावीरजिनेन्द्रचरित्रम् २ श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रचरित्रम् ३ श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रचरित्रम् ४ अन्तराणि ५ श्रीऋषभदेवजिनेन्द्रचरित्रम् चित्र नं. पेज नं. चित्र नं. अनुक्रमणिका ॥ २॥ द्वितीयं वाच्यम् ॥ ६ स्थविरावली ॥ ३ ॥ तृतीयं वाच्यम् ॥ ७ सामाचारी | चित्रक्रम | पेज नं. चित्र नं. पेज नं. चित्र नं. पेज नं. 四强强强强强强强强强强藥強強強強強強強強強殖面增强 ७४ For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Ardhana Kendra www.kobatorg Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir Beex श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला - लाखाबावळ / अमारा चित्र प्रकाशनो ना नाम मूल्य र XXXXXXRARY x नारकी चित्रावली (गुजराती) नारकी चित्रावली (हिन्दी) नारकी चित्रावली (अंग्रेजी) सत्कर्म नित्रावली (गजराती) सन्कर्म चित्रावली (हिन्दी) गत्कर्म चित्रावली (अंग्रेजी) कल्पसूत्र सचित्र (बालबोध) कल्पसूत्र सचित्र (गुजराती) कल्पसूत्र मूल (बालबोध) कल्पसूत्र मूल (गुजराती) आ श्री रामचन्द्र सू. म. जीवन दर्शन (चित्रमय) श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन विभाग-१ विभाग-- सामायिक सूत्र सचित्र (गुजराती) सामायिक सूत्र सचित्र (अंग्रेजी) C/o.श्रुतज्ञानभवन 45 दिग्विजय प्लोट, जामनगर / 60 100 XNXXHARRAIX DXXXXX For Private and Personal Use Only