Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 420
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार विवस्वता तीक्ष्णतरांशुमालिनां सपङ्कतोयात्सरसोऽभितापितः । 1/18 सूर्य की किरणों से तपे हुए मेंढक, गँदले जल वाले पोखर से बाहर निकलकर । 7. सविता [सू + तृच् ] सूर्य, शिव, इंद्र। 885 ताग्निकल्पैः सवितुर्गभस्तिभिः कलापिनः क्लान्तशरीरचेतसः । 1/16 हवन की अग्नि के समान जलते हुए सूर्य की किरणों से जिन मोरों के शरीर और मन दोनों सुस्त पड़ गए हैं। अभिमतरतवेषं नन्दयन्त्यस्तरुण्यः सवितुरुदयकाले भूषयन्त्याननानि । 5/15 अपने मनचाहे संभोग के वेश पर खिलखिलाती हुई स्त्रियाँ सूर्योदय के समय अपने मुँह सजा रही हैं। 8. सूर्य - [ सरति आकाशे सूर्य:, यद्वा सुवति कर्मणि लोकं प्रेरयति सृ + क्यप्, नि०] सूरज, रवि । प्रचण्डसूर्यः स्पृहणीयचन्द्रमाः सदावगाहक्षतवारिसंचयः । 1/1 सूर्य की किरणें कड़ी हो गई हैं, और चंद्रमा बड़ा सुहावना लगता है, कोई चाहे तो दिन-रात गहरे जल में स्नान कर सकता है। असह्यवातोद्धतरेणुमण्डला प्रचण्डसूर्यातपतापिता मही । 1/10 आँधी के झोंकों से उठी हुई धूल के बवंडरों वाली और सूर्य की कड़ी धूप की लपटों से तपी हुई धरती । स्त्रस्तांसदेशलुलिताकुलकेशपाशा निद्रां प्रयाति मृदुसूर्यकराभितप्ता ।4/15 उसके कंधे झूल गए हैं, उसके बाल इधर-उधर बिखर गए हैं, और वह प्रात: काल के सूर्य की कोमल किरणों की धूप खाती हुई सो गई है। स्तन 1. कुच [ कुच् + क] स्तन, उरोज, चूची। - दधति वरकुचाग्ररुन्नतैर्हारयष्टिं For Private And Personal Use Only प्रतनुसितदुकूलान्यायतैः श्रोणिबिम्बै: 12/26 अपने बड़े-बड़े गोल-गोल उठे हुए सुंदर स्तनों पर मोती की मालाएँ पहनती हैं

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