Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 555
________________ ૫૩૯ શ્રી નાટક સમયસારના પદો સમ્યકત્વથી સમ્યજ્ઞાન અને આત્મસ્વરૂપની પ્રાપ્તિ (સવૈયા તેવીસા) जो कबहुं यह जीव पदारथ, औसर पाइ मिथ्यात मिटावे। सम्यक धार प्रबाह बहै गुन , ज्ञान उदै मुख ऊरध धावै।। तो अभिअंतर दर्वित भावित, कर्म कलेस प्रवेस न पावै। आतम साधि अध्यातमके पथ , पूरन है परब्रह्म कहावै।।४।। (तश-४-११५) સમ્યગ્દષ્ટિનો મહિમા (સવૈયા તેવીસા) भेदि मिथ्यात सु वेदि महारस, भेद-विज्ञान कला जिन्ह पाई। जो अपनी महिमा अवधारत, त्याग करें उर सौंज पराई।। उद्धत रीति फुरी जिन्हके घट, __ होत निरंतर जोति सवाई। ते मतिमान सुवर्न समान , ___ लगै तिन्हकौं न सुभासुभ काई।।५।। ( श-५-११६) भेशान, सं१२-नि:॥ भने भोक्ष॥२४॥ छ. (मर छ) भेदग्यान संवर-निदान निरदोष है। संवरसौं निरजरा, अनुक्रम मोष है।। भेदग्यान सिवमूल, जगतमहि मानिये। जदपि हेय है तदपि, उपादेय जानिये।।६।। (सश--११७)

Loading...

Page Navigation
1 ... 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572