Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૫૫૪
કલશામૃત ભાગ-૪ ग्यानकला दूनी होइ दुंददसा सूनी होइ, ऊनी होइ भौ-थिति बनारसी कहतु है।।३९ ।।
( श-3८-१५८)
વિષયવાસનાઓથી વિરક્ત રહેવાનો ઉપદેશ (સવૈયા એકત્રીસા) जौलौं ग्यानको उदोत तौलौं नहि बंध होत,
बरतै मिथ्यात तब नाना बंध होहि है। ऐसौ भेद सुनिकै लग्यौ तू विषै भौगनिसौं,
___ जोगनिसौं उद्दमकी रीति तैं बिछोहि है।। सुनु भैया संत तू कहै मैं समकितवंत,
यहु तौ एकंत भगवंतकौ दिरोहि है। विषैसौं विमुख होहि अनुभौ दसा अरोहि, मोख सुख टोहि तोहि ऐसी मति सोहि है।।४०।।
(सश-४०-१६०)
જ્ઞાની જીવ વિષયોમાં નિરંકુશ રહેતા નથી. (ચોપાઈ) ग्यानकला जिनके घट जागी।
ते जगमांहि सहज वैरागी।। ग्यानी मगन विषैसुख मांही। यह विपरीति संभवै नांही।।४१ ।।
(११-४१-१६१)
જ્ઞાન અને વૈરાગ્ય એક સાથે જ હોય છે. (દોહરો) ग्यान सकति वैराग्य बल , सिव साधैं समकाल। ज्यौं लोचन न्यारे रहैं, निरखें दोउ नाल।। ४२।।
( श-४२-१६२)

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