Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 20
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२०
४२९ ८५३०६. औपदेशिक सज्झाय, सकलजिन स्तवन व गौतमस्वामी गहुँली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल
पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स०उ०त०., जैदे., (२५.५४१३, १२४४०).. १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
औपदेशिक गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दीपविजय० ना मान, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण
से है.) २. पे. नाम. सकलजिन उल्लेख स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवजीवन प्रभु मारा; अंति: जय० अनंतगुणी गुणवंता,
गाथा-११. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ.४आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे कामनी कहे सुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१
अपूर्ण तक लिखा है.) ८५३०८.(#) आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, १६४३१-४०).
आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिमा भागे उप. १०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ४८वें
आलोयणा तक लिखा है.) ८५३०९. नमस्कार महामंत्र छंद व पाँचतीर्थ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५,
११४४१-४६). १. पे. नाम. पंचपद नवकारमंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिनप्रभ० सीस
रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आदीजीणसरु; अंति: भाव भगति करि
आसता, गाथा-८. ८५३१०. ४७ दोष संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ११४३०). ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय; अंति: ४ धूमे ५ कारणेय, गाथा-६,
(वि. लेखनशैली बोल जैसी है.) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: साधु अर्थे करे ते; अंति: विना आहार न लेते,
(वि. लेखनशैली बोल जैसी है.) ८५३११. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, १२४३९).
सुबाहकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: खेत्रमा जासे
मोक्ष, गाथा-१५. ८५३१२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, २१४४०-४६).
८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान स्वामी; अंति: गच्छ ८४ स्थापना छे. ८५३१३. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३५-३८).
विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देवकुरुना सात दिवसना; अंति: लाधे मेरु पर्वत माथे,
(वि. आदिजिन पूर्व ९९ बार शत्रुजय यात्रा का सूक्ष्मावलोकनादि युक्त.) ८५३१४. (#) गतागतिना बोल, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लिंबडी, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गतागत्य., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १८४४५).
५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना; अंति: ५६३नी एक ३४ बोल थिया. ८५३१५. स्तुति व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१३, १३४३२).
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