Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 20
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२०
४५१ म. विनयचंद, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: विनयचंद वंदत चरना, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-११ से है.) ७. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण.
मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अजीत संभव; अंति: महासुखां की खाण है, गाथा-८. ८. पे. नाम. भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम समरूं श्रीरीषभ; अंति:
वंदना भरतने होय ए, गाथा-२६. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ.१०अ-१०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल,
गाथा-३१. १०. पे. नाम. १६ जिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: श्रीरीषभ अजित संभव; अंति: कीया भवसागर तीरना, गाथा-१२. ११. पे. नाम. ८ जिन स्तवन-वर्ण प्रभातियं, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पौ उठी परभात ज समरूं; अंति: सफल फली मुज आस रे, गाथा-१०. १२. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: (-),
___(पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५४७९ (+) लिपि, भाषा व कला नाम, अपूर्ण, वि. १९०९, ?, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. रुपनगर,
प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वर्ष हेतु प्रतिलेखक ने १९ब९ लिखा है., संशोधित., दे., (२५४१२, १६४२७-३२). १. पे. नाम. १८ लिपि नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: (१)बली भगवंतइ ब्राह्मीन, (२)हंसलिपि१ भूतलिपि२; अंति: मूलदेवी लिपि१८. २.पे. नाम. १८ देशनी भाषा नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण.
१८ भाषा नाम, मा.गु., गद्य, आदि: लाटी१ चोटी२ माहली३; अंति: मालवी१७ महाजोधी१८. ३. पे. नाम. ७२ कला नाम, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: लिखत१ पठत२ गणित३; अंति: सर्पदमन७१ नावाबंलि७२. ४. पे. नाम. ६४ कला नाम, पृ.१०आ, संपूर्ण.
६४ कला नाम-स्त्री, मा.गु., गद्य, आदि: नृत्१ उचित्य२ चित्र३; अंति: प्रश्नपहेली६४. ८५४८० (+) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४४१).
अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतलडी बंधाणी रे; अंति: मोहन कहे मनरंग जो, गाथा-५. ८५४८१. स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१२.५, १३४३५). स्तुतिचौवीसी, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विमलजिन स्तुति, गाथा-५ अपूर्ण से
नेमिजिन स्तुति, गाथा-५ तक है.) ८५४८२. पार्श्वजिन थाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३०).
पार्श्वजिन थाल, म. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामादे बोलावे; अंति: थावे गीता गाय सदाय, गाथा-९. ८५४८३. अष्टमी, सिद्धचक्र व चैत्रीपूनमनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १२४३२).
१. पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
___ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिनचंद्र प्रभु; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.
ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सुंदर; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-४.
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