Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-
१ ४ ८१ १८०५-१(5)
(२) रत्नसंचय-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण क०) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ.
८५१६ अमरप्रभसूरि, सं., १-४प्रकाश, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) २४१७-१(+), ९००२(4), ५६२०, ७८२
८४८२(+), ९०३३(+), ९०६१), ५१४५-१(+), ७८२४६+६), ५३०९ (२) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लोक २५, पद्य, मूपू., __ कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू.. (परिग्रहारम) (श्रेयः श्र) ७७७(+), ४६३०(+), ६००९-१(+), ६००९-२), ५३८३
७८६७+). ५०५९(), ९४८-५, १४२७-१, ५०२१-२, ६२४२-४, (३) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, ६२६३, ६२६९-४, ६४९२, ६४२०-३७), ६०९६-९९६)
गणि मानसागर, सं., सूत्र १०६विव., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (२) रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर, सं., वि. १७९५, गद्य, (प्रणम्य पर) ५३८३
मूपू., (नमस्कृत्य) ७७७(4) योगसार, मु. योगीन्द्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि.,
(३) रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, गणि पुण्यविजय, मागु., वि. (णिम्मलझाणप) ९२२६
१७७९, गद्य, मूपू., (श्रीरत्नाक) ६००९-२(4) (२) योगसार-टबार्थ, मागु., गद्य, दि., (निर्मल ध्य) ९२२६ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याण) योगोद्वहन विधि, सं., प+ग, मूपू., (मनोवाक्काय) ६८७६(७)
४६३०२), ७८६७+), ५०२१-२, ६२६३ योगोद्वहन विधि, सं., ग्रं.६११, गद्य, मूपू., (आवश्यकं यो) ४०८९ । (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मु. कुंवरविजय, मागु., वि. १७१४, योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पसत्थे खित) २५७), ___गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ६००९-१(+) ५५६१(६)
(२) रत्नाकरपच्चीसी-योगचिन्तामणि टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., योगोद्वहन विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (--) ११३२६७)
(श्रेयः कहत) ५०५९(१) योगोद्वहनविधि यन्त्रसङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (आवश्यकाद्य) रत्नाङ्गद कथानक, सं., गद्य, मूपू., (-) ६४८१७) ३९८९-१५, ७३८४, ७३९३(७)
रत्नावलीव्रत कथा, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि., (प्रणम्य) ६००२योगोद्वहनविधि यन्त्र सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (वसतिपूर्वक) ३९८९-२(+)
रत्नावलीव्रत विधान, सं., श्लोक ५५, पद्य, दि., (वर्द्धमानस) योनिस्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू.,
६००२-५(+) (देविन्दनयं) ६०४४-६(+)
रागत्रिक रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (जे काम्म) ७५३९रक्षा विधान, सं., गद्य, दि., (अवन्तीदेशे) ६००२-३९(+)
१९ रघुवंश, कालिदास, सं., सर्ग १९, पद्य, (वागर्थाविव) ४६५६), राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सूत्र १७५, ग्रं.२१००, गद्य, मूपू., (नमो ४७५४
अरिहंत) ८३६), ८६५(५), १३७५(+), ४०७५(+), ४३१९(+), (२) रघुवंश-शिशुबोधिनी टीका, गणि गुणरत्न, सं., सर्ग १९, ४९०५८+), ८४४७(+), ९११२(+), २७३३(+), ९११९(+), ४८९४(+), ग्रं.२०००, वि. १६६७, गद्य, स्पू., (पार्वती च) ५२५५(+)
२९७७+), २०५२+#), ७०९९(45), ४०६७+5), ६५१४+६). १३०, (२) रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसूरि, सं., वि. ६३८६, ८३७७, ६३१७(5) १६वी, गद्य, मूपू.. (यस्य भृङ्ग) ५१८६६)
(२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.३७००, (२) रघुवंश-सुबोधिका टीका, गणि श्रीविजय, सं., ग्रं.८०००, गद्य, | गद्य, मूपू., (प्रणमत वीर) ८४४७), ८४१४(+), ११६(+), मूपू., (अहं कालिदा) ४६५(45)
६५१४६), ३६६८, ११७(45) (२) रघुवंश-टिप्पण, गणि क्षेमहंस, सं., गद्य, मूपू., (अहं
(३) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका का विषमपद टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.. कविकाल) ४७५४
(वक्तव्यता) २०५२(+#) रत्नत्रयतप कथा, सं., श्लोक ३०, पद्य, दि., (महावीरं जि) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण', मागु., गद्य, मूपू., (-) ४९०५), ६००२-५१(+)
१३७५), ९११२(4) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मूपू.. (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (तिणि कालि) (नमिऊण जिणव) २४१७-१(+), ८४८२(+), ९०३३(+), ९०६१), ४३१९(+), २७३३(+), ४०६७(45), ६३१७) ५१४५-१(+), ७३०८(45), ७८२४+६), ५३०९, ८५१६, ८३०९(5) | (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.३२८१, गद्य, मूपू., (नत्वा
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