Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 18
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७२९१४. (#) हीरविजयसूरि सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११,१६x४३). १.पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणधर वादी मुदा; अंति: कमलविजय पंडित वरो, गाथा-१०. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिकरण श्रीशांति; अंति: कमलविजय० प्रणमुपाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमु नेमिजिन नाथ; अंति: कमलविजय० दीउ सुख माय, गाथा-४. ७२९१५. (+#) सिद्धदंडिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५०-५५). सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: भावनायमिति. ७२९१७. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: नोकारवाली गणावीई. ७२९१९. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१५.५४८, १६४१४). नेमिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हुंछु रे अबला ताहर; अंति: लेइ मुगतिमा वासी, गाथा-५. ७२९२३. (#) कल्याणमंदिर स्तव वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २१४७५-८०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथमानम्य; अंति: गुरुप्रसादात्. ७२९२५. (+) जीवराशि, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४४४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवै राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ७२९२६. लग्नसुबोधीएकोतरी, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालंद्री नगर, प्रले. मु. गुलाबविजय (गुरु पंन्या. भीमविजय); गुपि.पंन्या. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १२४४४). लग्नसुबोधीएकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: श्रीगुरु सारद पाय; अंति: रामचंद० जन के चीज, गाथा-७१. ७२९२७. (#) आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ९, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १२४३२). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आनंदघन पद पकरी री, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया बिन निसदिन झूरु; अंति: आनंदघन पीयूष झरीरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम नरममति और न भावै; अंति: कहा कोउडुंड बजावे, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ठगोरी भगोरी लगोरी: अंति: आनंदघन नाव मरोरी. गाथा-३. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी हुं तेरी हु; अंति: आनंदघन० तरंग बहुरी, गाथा-३. For Private and Personal Use Only

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