Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 18
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड- १.१.१८) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol1.118) घउभारण बुदाणावादयामा बदरिमीसिवमा वादमखगराalau गानामाझिाडि श्रीक गठमव्हावार आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानामांदिर । हि मानवामित For Private and Personal Use Only वरती MDSकाम मातरमतारमा सिगात्रावादार पावन Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.१८) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची के आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाक श्तंत वि प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४१ ० वि.सं. २०७१ ० ई. २०१५ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १८ Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūri Smộti Granthasūci - Ratna 18 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१८ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.18 ० संपादक मंडल ० पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा पं. रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्र पढियार पं. अरुण कुमार झा ०संयोजक ० डॉ. हेमन्त कुमार ०संपादन सहयोग ० परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर ० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ० केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १८ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची * वर्ग १ : जैन साहित्य खंड - १८ के आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śri Devarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 18 Blessings & Inspiration Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2015 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 18 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.18 Preserved in Śri Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprata Bhāņņāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir O : Publisher o Vir Samvat 2541, Vikram Samvat 2071, A.D. 2015 O Edition : First 0 प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद Sheth Shri Samvegbhai Lalbhai Parivar, Ahmedabad o Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth o Publisher : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail : gyanmandir @kobatirth.org o Price : Rs. 1500/O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-81-89177-86-7 (Vol.18) O Printer : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad 魯魯魯 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org || अर्हम् नमः ।। * मंगल कामना तीर्थकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सुत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार - भाष्यकार - चूर्णिकार - टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री गजेन्द्र पढियार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत १८वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान- शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का १८वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. i For Private and Personal Use Only पद्मसागर सूरि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के १८वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिलेजुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस १८वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस १८वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. __ श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Moroorroroorkoprolorooroorronorroor कत्थ अम्हारिसा पाणी, दुसमा दोसदूसिआ । हा अणाहा कहं हुंता, न हुंतो जइ जिणागमो ।। (संबोधसित्तरी) स्व. नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - ७-९-१८९६ स्वर्गारोहण - १३-१२-१९७५ स्व. सुलोचनाबेन नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - १३-२-१९०२ स्वर्गारोहण - २४-४-१९७९ per. For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस १८वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें पद्मसुन्दर रचित जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, गुणरत्नसूरि रचित कल्याणमन्दिर स्तोत्र टीका, सिद्धसेन रचित महावीरजिन द्वात्रिंशिका, अज्ञातकर्तृक संवेगशतक आदि अनेक कृतियाँ संशोधन-संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुक्रमणिका मंगलकामना प्रकाशकीय प्राक्कथन अनुक्रमणिका प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण हस्त सूची. परिशिष्ट कृति परिवार अनुसार प्रत- पेटाकृति अनुक्रम संख्या.. १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir O इन परिवारों की कुल ४४४५ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. O सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६२५४ बार आई हैं. iv ...iv V-vi ..vii-viii १-४७० . ४७१-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान / व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सुचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ Viì एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. For Private and Personal Use Only . ४७१-५०८ प्रस्तुत खंड १८ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. o प्रत क्रमांक ७२८७१ से ७७५५० O इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३५३९ प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. • समाविष्ट प्रतों में कुल ४००९ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ५०९-५९६ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (-) (+) . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में- प्रत की महत्ता सूचक इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता कर्त्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित रचना के समीपवर्ती काल में लिखित संशोधित शुद्धप्राय - टिप्पण 'युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. # ............. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#) ****... ग. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. . कृति / प्रत / पेटांक नाम के बीच का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक . . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ सूचक.. कुं... ग्रं. कुल थे. कुल पे. क्रीत. को. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का टीकादि का मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--) ............आदिवाक्य अनुपलब्ध. (S) अप. ......... अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंतिः अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती ) आ. ......................... आचार्य (विद्वान स्वरूप ) आदि.......... आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. . प्रत प्रतिलेखन उपदेशक (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा. .... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. *****.... गडी. गद्य. गा. ...कोष्टक (कृति स्वरूप ) ........... गणि (विद्वान स्वरूप ) गु. गुटका www.kobatirth.org .... गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. .. कुंडली (कृति स्वरूप) . मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. . कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) प्रत को खरीदनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान) .. गद्यबद्ध (कृति प्रकार ) गाथा (कृति परिमाण) , AAAAAAAA - V - . गुजराती (कृति भाषा ) बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गृही. गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल ............. गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) . जैन कृति (कृति परिशिष्ट) . जैन कवि (विद्वान स्वरूप ) ग्रं. जै.. जै.क. जै.............. जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते........... दत्त. दि. བླླ བ འ །ཆ देना पठ. पद्य. पा.... पु. हिं. पू. वि. पूर्व. पृ. पे. नाम. पे. वि. पै.......... प्र. वि. प्रले. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति (कृति परिशिष्ट) . आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. विद्वान ) पु. . जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट ) . देवनागरी (प्रत लिपि) ...पंजाबी (कृति भाषा ) पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप ) प+ग ........... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार ) पठनार्थ जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पाठक (विद्वान स्वरूप) www.kobatirth.org . पुरानी हिंदी (कृति भाषा ) पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) . कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. • पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर ) *****. . प्रतगत पेटाकृति नाम -प्रतगत पेटाकृति विशेष ... पैशाची प्राकृत (कृति भाषा ) प्रत विशेष. . प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर . ) (प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) ( 'सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.) प्र. ले. श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक ( जलात् रक्षेत् .... इत्यादि) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की प्र. सं.......... प्रति संशोधक प्रा. .. प्राकृत (कृति भाषा ) vi प्रे. बौ. म. महा. मा. मा.गु. मु. मु. मृपू. यं. रा. राज्ये.. लिख. ले. स्थल.. वा. रा..... . राजस्थानी (कृति भाषा ) राज्यकाल .... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. प्रत लिखवाने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) . लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) .... . वाचक (विद्वान स्वरूप) विक्र. वी.. वै. व्याप. श. वि................विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष ) विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) - श्रावि. श्रु.. श्वे. ...... सं. सम. सा. प्रतलेखन प्रेरक (प्र. ले. पु. विद्वान) . बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) .मराठी (कृति भाषा ) महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . मागधी प्राकृत (कृति भाषा ) . मारुगुर्जर (कृति भाषा) मुनि (विद्वान स्वरूप ) स्था. हिं......... .मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) . जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यंत्र (कृति स्वरूप) राजा (विद्वान स्वरूप) ......... वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट ) ****... For Private and Personal Use Only . .. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत यथा वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी *****.... श्राव........... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्राविका (विद्वान स्वरूप) . श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान ) जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट ) सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले.. पु., कृति रचना वर्ष ) व्याख्याने पठित विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान ) शक संवत् (वर्ष माहिती प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष) - . संस्कृत (कृति भाषा ) • समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप ) जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) . हिंदी (कृति भाषा ) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० सुकृत के सहभागी ० हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली पालडी मुंबई मुंबई १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई अहमदाबाद | १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद || १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर | देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) मुंबई मुंबई || १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, || १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत वालकेश्वर || १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई | गोरेगाँव मुंबई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया || २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव | २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर मुंबई | २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका | २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद || २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., बावन १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट | जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई मुंबई || २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, ___ "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका मुंबई मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्री कांदिवली जैन श्वे. मू. पू. संघ २. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ ३. श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ४. श्री रांदेर रोड जैन संघ कांदिवली (वे.) मुंबई कोईम्बत्तूर गांधीरोड, पझल, चेन्नई सुरत vii For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ० सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में १ से १८ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार & सन्स नोवी, हाल शिवगंज (राज.) २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव ( राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद कोलकाता १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रूज़ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), यु. एस. ए. १४. डॉ. विनय के. जैन प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), यु.एस.ए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी, मुंबई मेवानगर * सादर समर्पण कल्याणस्वरूप तीर्थकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... - १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार जिनके द्वारा यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. OOO viii For Private and Personal Use Only अहमदाबाद Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ।। कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७२८७१. पंचेंदियसूत्र व श्रुतदेवी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११४४५). १.पे. नाम. पंचेंदियसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पंचिंदिय संवरणो तह; अंति: गुणो गुरू मज्ज, गाथा-२. गुरुस्थापना सूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पद ८ गुरु १० लघु ७०; अंति: गुरु मुझ प्रति हुई. २.पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुलनयना कमल; अंति: श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. श्रुतदेवी स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कमल० तेहनी परि; अंति: सर्वकार्य सिद्धि दिउ. ७२८७२. गौतमपृच्छा कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२४.५४१२, ६x४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) गौतमपृच्छा -टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२८७५. ऊर्ध्वलोके जिनप्रासादबिंब विचार व शास्वतजिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १९४४६). १. पे. नाम. ऊर्ध्वलोकेप्रासादबिंब विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ पहिलि सौधर्मदेव; अंति: ६०० बिंब नमस्करु. २.पे. नाम. शास्वतजिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पय नमी; अंति: हर्ष० सीवसुख सार रे, गाथा-२०. ७२८७६. सिद्धांतमतमतांतर बोल व अठाईसलब्धि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १९४५०). १.पे. नाम. सिद्धांतमतमतांतर बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धांत मतांतर बोल, मा.गु., गद्य, आदि: केतलेक सिद्धांते इम; अंति: एवं एकावतारी सूत्रे, (वि. विभिन्न आगमों से उद्धृत.) २. पे. नाम. २८ लब्धि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जे मुनिना हाथ पगना; अंति: अभव्यनइं पिण हुई. ७२८७७. चंदराजागुणावलीरास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, २३४५८). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवी; अंति: आगल वात रसाल, गाथा-३३. ७२८७९. (#) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७X४७). अक्षरबावनी, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ अक्षर अलख गति धरूं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२८८१. (#) नमस्कारचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,१३४३७). नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिणवर पढम जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७२८८२. (#) आदिजिन, पार्श्वजिन व क्षमासूरि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, ९४२४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भावसागर०पावइ तेह नरा, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-उन्नतपुरअजाहरा, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजाहर पासजिणंद; अंति: भावसागर द्यो भगवती, गाथा-४. ३. पे. नाम. क्षमासूरि स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गणधारक विजय; अंति: माणिभद्र जसवीर, गाथा-१. ७२८८५. (-) विद्वान गोष्ठी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६४३५-३८). विद्वद्रोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभायां; अंति: नैव च कीदृशा स्य, श्लोक-२१. ७२८८८. (+) अष्टापदतीर्थ स्तवन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. चिमन; पठ. मु. दौलतचंद (गुरु मु. चिमन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १६x४६). १. पे. नाम. सिद्ध स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सकलकुशल कमलालय अनुपम; अंति: अविचल सुखनी रेह, गाथा-१६. २. पे. नाम. प्रभु पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. चिमनसागर, रा., पद्य, आदि: जी प्रभुजी महिरधरीने; अंति: उरनी चिमन० सुखकार, गाथा-५. ७२८८९. पर्युषण व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१४४९, ९x१७). १.पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: दोय घडी मन समरस आणीं; अंति: संतोषी गुण गाइंजी, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमादसवि; अंति: तुहि ज सिवसुख दाता, गाथा-४. ७२८९०. (#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयसुद०सुप्रसादोरे, ढाल-५, गाथा-१००, ग्रं. १३५. ७२८९१. भैरव व माणिभद्र अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १२४३०). १. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनाथं ब्रह्मरुद्र; अंति: भैरवं लोकपूज्यंति, श्लोक-१२. २. पे. नाम. माणिभद्र अष्टक, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., पद्य, आदि: यं यं यं यक्षराज; अंति: तस्य सर्व सुखास्पद, श्लोक-११. ७२८९२. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्रावि. साहबाबाई सेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्शण परिसो बावीसमो, अंतिः रायचंद० जोत प्रकास हो, ढाल ५. ७२८९३. (+) महावीरजिन स्तवन व चौवीसजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२७४१२, ११४३६-५०). " १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: निस्तीर्णविस्तीर्णभव, अंति: साम्याज्यमासादयेत् श्लोक-१७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नरनागनरेंद्र, अंति: कमले राजहंससमप्रभाः, श्लोक - ५. ७२८९५. चौरासी जिनभवन आशातना व दसआशातना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०.५, ७X३५). १. पे. नाम. आसातणा सह टबार्थ, पृ. १ अ - १आ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलि१ केलि२ कलि३ कला; अंति: वज्जे जिणिंदाल, " गाथा ४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सलेषमा १ क्रीडीइंनही; अंति: देहरामाहें. २. पे. नाम. जिनभवन १० आसातणा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल १ पांण २ भोवणु, अंति: बच्चे जिण नाह जगाइए १, गाथा - १. जिनभवन १० आशातना गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तंबोलपत्र प्रमुख १; अंति: जगती मांहि वर्जवी. ७२८९७. पट्टावलीविविधगच्छीयकालमान व खरतरगच्छ गाथा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे., (२५x११, १०x२५). १. पे नाम, पट्टावली- विविधगच्छीय कालमान, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पट्टावली - विविधगच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, आदि: महावीर थकी ६०९ वर्षे; अंति: मतनी उत्पत्ति जाणवी, (वि. अंत में गच्छादि से सम्बन्धित एक अतिरिक्त प्राकृत गाथा दी गई है.) २. पे. नाम. खरतरगच्छ गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ७२८९८. आबु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. चमनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x१२, ८x२३). आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि आबु शिखर सोहामणो जिह अंतिः प्रेमचंद० परमानंद, गाथा-३१. ७२८९९ (४) झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, मालेगाम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५४११.५, १४४४०). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. हेमऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति सरणे शीश नमावी, अंति: हेमशिष्य० वृंदारे, ढाल-४, गाथा-४३. ७२९०० जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०३ आश्विन कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पालि, प्रले. पं. हर्षराज ३ For Private and Personal Use Only , पठ. मु. मतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २५x१२, ९४२५). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अह अंतिः श्रीकमलप्रभाक्ष, श्लोक-२४. ७२९०१ (+) अट्ठोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११, १५४४५-५०). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम समी भूमिमांडीइ, अंति: पछइ साहमी वत्सल कीजइ. ७२९०२. (+) माणिभद्रजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६.५४१३ १३x२८). माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामण पाय अंतिः आपो मुज सुख संपदा, गाथा-४३. "" " Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२९०३. (#) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८३, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाल्हणपुर, प्रले.ग. कृष्णविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, २२४४२-४५). मेघकुमार चौढालियो, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना चरण नमी; अंति: जिनहरष० आण्यो माग रे, ढाल-४. ७२९०५. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १८९४, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४४५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवंति सुखं लहंति, गाथा-२०. ७२९०६. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३७). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. २. पे. नाम. संस्तारक विधि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअंगाथा-१४. ३. पे. नाम. गोचरी विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-गोचरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणो० इच्छ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७२९१०. (+#) नेमिजिन स्तवन व महावीरजिन पारणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमले राजे; अंति: रंगविजय वधते रंगे, गाथा-२३. २. पे. नाम. महावीरजिन पारणा, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे करि; अंति: शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. ७२९११. जैनधर्म ऐतिहासिक वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२.५, १७X४०). जैनधर्म ऐतिहासिक वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: आजंबूद्वीप तेहनी; अंति: केवलीजीना वाक्य छे. ७२९१२. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, ९४२२). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुवडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४. ३. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण मात्र है.) ७२९१३. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. चमनसागर (गुरु मु. देवेंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १०४३१). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समयसुंदर कहे०परसिद्ध, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७२९१४. (#) हीरविजयसूरि सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११,१६x४३). १.पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणधर वादी मुदा; अंति: कमलविजय पंडित वरो, गाथा-१०. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिकरण श्रीशांति; अंति: कमलविजय० प्रणमुपाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमु नेमिजिन नाथ; अंति: कमलविजय० दीउ सुख माय, गाथा-४. ७२९१५. (+#) सिद्धदंडिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५०-५५). सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: भावनायमिति. ७२९१७. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: नोकारवाली गणावीई. ७२९१९. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१५.५४८, १६४१४). नेमिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हुंछु रे अबला ताहर; अंति: लेइ मुगतिमा वासी, गाथा-५. ७२९२३. (#) कल्याणमंदिर स्तव वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २१४७५-८०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथमानम्य; अंति: गुरुप्रसादात्. ७२९२५. (+) जीवराशि, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४४४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवै राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ७२९२६. लग्नसुबोधीएकोतरी, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालंद्री नगर, प्रले. मु. गुलाबविजय (गुरु पंन्या. भीमविजय); गुपि.पंन्या. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १२४४४). लग्नसुबोधीएकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: श्रीगुरु सारद पाय; अंति: रामचंद० जन के चीज, गाथा-७१. ७२९२७. (#) आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ९, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १२४३२). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आनंदघन पद पकरी री, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया बिन निसदिन झूरु; अंति: आनंदघन पीयूष झरीरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम नरममति और न भावै; अंति: कहा कोउडुंड बजावे, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ठगोरी भगोरी लगोरी: अंति: आनंदघन नाव मरोरी. गाथा-३. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरी हुं तेरी हु; अंति: आनंदघन० तरंग बहुरी, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी तुं मेरी तुं: अंति: आनंद०मिलि केलि करेरी, गाथा-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग आशा जंजीर की गति; अंति: आनंदघन निरंजन पावे, गाथा-५. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आसा ओरन की कहा कीजे; अंति: आनंदघन० खलक तमासा, गाथा-४. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधूराम राम जग गावे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७२९२८. (+#) ढालसागर, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १३१-१२८(१ से १२६,१२९ से १३०)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-७, ढाल-, गाथा-२५३ अपूर्ण से २९० अपूर्ण तक व ३३४ अपूर्ण से ३४८ अपूर्ण तक है.) । ७२९२९. जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९६०, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. छगनलाल गोकल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १३४२८). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना; अंति: प्र० एवं २८५ नी गत. ७२९३५. (+) अनुयोगचतुष्टय व्याख्या व गर्भस्थजीव शरीरस्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २०४५७-६०). १.पे. नाम. अनुयोगचतुष्टय व्याख्या, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अनुयोगचतुष्टय विचार, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १४वी, आदि: इह प्रवचने चत्वारो; अंति: अनुयोगी तु पृथगधुना, ग्रं. १४०. २. पे. नाम. गर्भस्थजीव शरीरस्वरूप विचार, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: केनक्रमेण शरीरं; अंति: नवमासंघट्ठिओ संतो. ७२९३८. (#) माणिभद्रजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. चंपालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४३६). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसति; अंति: उदय० लाख रीझा लहे, गाथा-२६. ७२९४०. (+#) राडबरमंडन चरमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१५, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सप्तच्छदीनगर, प्रले. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७४४०). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंदह पाय नमी; अंति: देवीदास०संघ मंगल करो, ढाल-५, गाथा-६६. ७२९४१. (+#) स्तवन, स्तुति अष्टकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. हेतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७X४८). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलकमलापति विश्वधणी; अंति: उदय महोच्छव जयमाला, गाथा-९. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंडित पुरषोत्तम; अंति: उदय० करो जय जयवंत, गाथा-४. ३. पे. नाम. शिवाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नगाधीस गोकर्ण; अंति: शिवलोकै महीयते, श्लोक-८. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४. पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: मुद्रेसति सलक्ष्मणा; अंति: तेनामिषं दुर्बलम, श्लोक-८. ७२९४२. (-) तीर्थंकर आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४११, १६४३०). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला श्रीआदीनाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुविधिनाथ तीर्थंकर की आंतरा अपूर्ण तक लिखा है.) ७२९४३. (+#) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४४०-४३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगि मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ७२९४५. चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १०x२४). चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणी चेलणा; अंति: समय० भवतणो पार रे, गाथा-७. ७२९४६. मुहपत्ती पचासबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४६). मुहपत्ति ५०बोल सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीहीरविजयसूरि; अंति: रामविजय जपे निसदीस, गाथा-११. ७२९४७. (+) वरकाणापार्श्व स्तवन व ऐतिहासिक छप्पय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १२४१९). १. पे. नाम. वरकाणाजीस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, म. जिणेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरकाणै नगर; अंति: जिणेंद्र० मंगल दीजै, गाथा-५. २. पे. नाम. ऐतिहासिक छप्पय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कवण कहत दृगपाक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम दोहा लिखा है.) ७२९४९. (+) पासत्थाना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४२-५२). पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जे साधु श्रावक तेडे; अंति: चोरासी चोवीसी कहे छे. ७२९५०. (#) स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-वरकाणा मंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काय रे जीव तुं मनमै; अंति: जिनहर्षपसायै रंगरली, गाथा-९. २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुदर०इग्यारस वडी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: सकलकुशल संपदार्द्धि; अंति: मोदभारं दिशतु, श्लोक-१. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि आवो रेमिलि आवो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७२९५१. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, १२४४९). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव सुखकारी जगत; अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन स्तवन- ५ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२९५२. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. नयविजय; पठ. श्रावि. राजकुअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १जीवा २ पुण्ण; अंति: लहिओ श्रीधम्मसुरिहिं, गाथा-५४. ७२९५३. (+) नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १३४५४). नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. "चौरेंद्री अपर्याप्ता" से "कालथी आदि अंत रहित" तक है.) ७२९५४. रत्नाकरपच्चीसीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, ६४३३). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण लक्ष्मी तणा; अंति: बोधिज रत्न ज मागु छु. ७२९५५. सोलसती व श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२३४११.५, ८४३०). १. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदीनाथ आदेरे जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) । ७२९५६. (#) मौनएकदाशी गणणु, संपूर्ण, वि. १८१८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३४). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: (१)जंबूद्वीपे भर्तक्षेत, (२)श्रीमहायश सर्वज्ञाय; अंति: श्रीअरण्यकनाथाय. ७२९५७. मानपरिहार व ज्ञातासूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३७). १. पे. नाम. मान परिहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मानपरिहार सज्झाय-औपदेशिक, म. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: मेहेलो मेहेलो नी मान; अंति: लबधी० उरे धरज्यो रे, गाथा-५. २.पे. नाम. ज्ञातासूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा छर्छ; अंति: सुजस०नीत भजीए हो लाल, गाथा-५. ७२९५८. विधिपंचविंशति व श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ५४३०). १.पे. नाम. विधिपंचविंशतिका सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघऋषि, सं., पद्य, आदि: यदुकुलांबरचंद्रकनेमि; अंति: मा पठतीह सुनिश्चय, श्लोक-२५. विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: यादवनु कुल ते रूपीया; अंति: निश्चय पामे ज्ञान. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लोभे न रात्रौ न सुखे; अंति: पात्रे न ददातिदानम्, गाथा-१. सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभे करी रात्रे सूखे; अंति: पात्रे दान न दिये. ७२९६०. (+) राजुल व आरतीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३३). १.पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालि पीलि वादली रे; अंति: कांति नमे वारो वार, गाथा-९. २.पे. नाम. आरतीनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहेली आरति अरिहंतदेव; अंति: सिवपुर पंथ सीधावे, गाथा-१०. ७२९६२. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४११.५, १०४३७). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७२९६४. (#) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४१२, १५४३३). साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ७२९६५. नेमनाथ धमार, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १०४३४). नेमिजिन स्तवन-जंबुसरमंडन, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: श्रीजिन नेम; अंति: कहे गणी काह्न उल्लास, गाथा-६. ७२९६६. (#) छ जीव ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(२ से ५)=२, पठ. श्राव. सभेचंद करसनजी शाह; प्रले. श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ; अन्य. सा. केसरबाई महासती (गुरु सा. प्रेमकुवरबाई महासती), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३४). ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पास जिणंदने; अंति: हंसला जी सुगुणनिधान, ढाल-५, गाथा-११२, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ७२९६७. चेलणाराणी चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १५४३०). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकले; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७२९६८. भक्तामर स्तोत्र, गीत व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११, १७४४९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तवन गीत, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. देवविजय, पुहि., पद्य, वि. १७३०, आदि: (-); अंति: देवविजय० सहु साधार, स्तवन-४४, (पू.वि. स्तवन-४३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आठ कर्म गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-आठकर्म, म. शिवसागर, पुहिं., पद्य, आदि: खेलत आतमा रंगभरि हो; अंति: शिवसागर० सुंदर नारि, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. राजसागर, पुहि., पद्य, आदि: समझि न पीउडा जीउडा; अंति: राज० ज्युं सहिला रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. दयाकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अजहं न चेते क्यु न; अंति: दया० दुख जनमरारे, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: मन रे तु कैबरीया समझ; अंति: सूरदास० मुखि लटकायो, गाथा-४. ७२९६९. (#) पार्श्वजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १७४६४). पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व नाम दीधउ; अंति: नाम अहिछत एहवउ दीधु. ७२९७०. (-) बेचरदासगुरुगुण गहुंली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४१०.५, ११४२४). बेचरदास गुरुगुण गहुंली, रा., पद्य, आदि: धन धन आज भाग अमारा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७२९७१. (+) छ आरा वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३६). ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दस कोडाकोड सागरोपमना; अंति: (-), (पू.वि. चोथा आरा वर्णन अपूर्ण तक है.) - For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२९७२. शांतिजिन व पार्श्वजिन कलश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). १.पे. नाम. शांतिजिन कलश, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले.ग. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९८३) जब लग मेरु थीर रहे, (१२५७) मेठाए मोदक भला, पे.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रीजयमंगलाभ; अंति: जंपे शांतिजिन जयकार, ढाल-२, गाथा-४२. २.पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथ कलश, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ अनाथ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ तक है.) ७२९७३. बारव्रत छपा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, ११४३४). १२ व्रत छप्पय, मु. प्रकाशसंघ, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: जीवदया रे नीत पाली; अंति: ते मोक्षना सुख मालशे, गाथा-१३. ७२९७४. (#) अइमुत्ताऋषि व मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४३). १.पे. नाम. अइमुत्ताऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसुग्रीव सोहामणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७२९७६. गोडीजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (१८x११, १३४२७). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जित कहे हरषे सदा, गाथा-२३. ७२९७७. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, १०४३३). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन-२ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७२९७८. (4) पार्श्वनाथ व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१०, २४४२०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. वृद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु पाय प्रणमि; अंति: वृद्धि० पुरो आसोरे, गाथा-१४. २.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकाइ फिर चाल्या; अंति: जिनहरख पयापै हो, गाथा-८. ७२९८१. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. महावजी ऋषि); पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १०४३८). नेमराजिमती सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७९१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: सुंदर गाया सुखकार रे, गाथा-१५. ७२९८२. (#) सुदर्शण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रत्नपुरी, प्रले. मु. भीम (गुरु मु. रतन ऋषि); गुपि.मु. रतन ऋषि; पठ. श्रावि. झवेरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६४१२, १३४३७). सुदर्शनसेठ सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सुंदर नयरी सुगंधीआ; अंति: गणी काहनजी गुण गाय, गाथा-१८. ७२९८३. दीवाली सज्झाय व तीनश्रावक परिवार नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रतन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. दीवालीनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ दीपावलीपर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: पुरवि दिसे हुई, अंति: संवत अठारसे पेताला, गाथा - २०. २. पे. नाम. तीन श्रावक परिवार नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३ श्रावक परिवार नाम- सोम, सोमदत्त, सोमभूति, मा.गु., गद्य, आदि: सावधीनगरी जीतसत्रु अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "कंखीतनगर कुंवाजी द्रोपती" पाठ तक लिखा है.) ७२९८४. गौतमस्वामी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( १७११, १४X११-१७). गौतमस्वामी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु, अंतिः लभते सुतरां क्रमेण श्लोक- ९. ७२९८५. (+) चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २३ ११.५, १४x२६). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय, अंतिः सीवपुरी वरसे हो, गाथा १९. ७२९८६. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२२४१२, १४४३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- घडपण, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: गढपण तुने केने तेडिय; अंति: केसव० गढपण वालू मान, गाथा- ११. २. पे. नाम. आत्मशिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. वा. अमरचंद (बृहत् खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य. माया सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया, अंतिः प्रणमुं तेहना पाय रे, गाथा - १०. ७२९८७. (+) सीखामण व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैये., (२७X११.५, १३X३३). १. पे. नाम. सीखामण सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. परनारी परिहार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि जीव वारु छु मोरा, अंतिः अलगा रहेजो आपो रे, गाथा - १३. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. " मु. भूधर, पुहिं, पद्य, आदि अवधु तरवेकी गत नारी अंतिः भुधर० दया दाने ओधारी, गाथा-६. ७२९८८. जीवरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. मांगरोल, प्रले. मु. कचरादास ऋषि (गुरु मु. देवीचंद, कच्छोलीवालगच्छे द्वितीयशाखायां पूर्णिमापक्ष) पठ. सा. लालुबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४११, १३३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५, (वि. अंत में एक दूहा लिखा है.) ७२९८९. (A) महावीरजिन हालरड्डु, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. देवकण ऋषि, पठ. मु. गागजी (गुरु मु. देवकण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६५११, १३४३४). " महावीरजिन हालर, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे, अंतिः दीपविजय कविराज, गाथा-१७. ७२९९०. कृष्णबलभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. गोंडल, प्रले. नारण संघाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२, ७X३३). बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धारामतिथी क्रसनबलीभद; अंति: मुनि गुण हिअडे धरी, गाथा - १८. ७२९९१. मूर्खशतक, अपूर्ण, वि. १७५३, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३) = ४, ले. स्थल. रूपनगर, जैवे. (१६४१०.५, ११x२३). मूर्खशतक, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: पोते ज हसे ते मूर्ख, गाधा १००, ( पू. वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) ७२९९२. (+#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५- २ (१ से २) = ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११. १३४३२). " १. पे. नाम, नंदीषेणनी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दसरथ० मुगतीपुरी जसे, गाथा-११, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. कर्मपचीसी, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: करजो सदा सुखदाइ रे, गाथा-२७. ३. पे. नाम. जीरणसेठनी सझाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनी माल, गाथा-२९. ७२९९३. जिनस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ३, जैदे., (१२४१०.५, १६४१९). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठदेश दिखाउनै; अंति: ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ पूजाओ; अंति: ज्ञान० कमल दिल लसीया, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जावू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) । ७२९९६. दीपालीकाकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११.५, ४४३८). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अहँत बालबोधानां; अंति: (-). ७२९९९. (+#) स्तवन, स्तुति व काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११x१०, ११४२४). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम, श्लोक-१. २. पे. नाम. गौतमस्वामी काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अब्धिलब्धिकदंबकस्य; अंति: श्रीगौतमस्तान्मुदे, श्लोक-१. ३. पे. नाम. त्रिषष्ठिपुरुष स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनः; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ सं., पद्य, आदि: ऋषभजिनमजितनाथं; अंति: शिवपदमचिरादि सो लभते, श्लोक-४. ५. पे. नाम. सीता रावण संवाद श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: भवित्रीरंभोरु त्रिदश; अंति: विलोपात् पठ पुनः, श्लोक-१. ७३००३. () कक्काबत्तीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३२). १.पे. नाम. कक्का बत्तीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. मु. कपुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीववर्द्धन०मयणा तुमे, गाथा-३३. २. पे. नाम. कक्का बत्तीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कक्काबत्रीसी, मु. महिमा, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुप्रसन्न होयज्यो; अंति: मुनिमहिमा हित जाण, गाथा-४०. २ ). For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००५. (4) पार्श्वनाथ अष्टक- गाडामा अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जद., जालोडी, गाथा-८. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १३ ७३००४. (#) काग विचार, षडदर्शन स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (११x१०.५, ६४१७). १.पे. नाम. कागविचार, पृ. १अ, संपूर्ण. काग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: काग माथे बेसे तो; अंति: बेसे तो पूत्र मरे. २. पे. नाम. षड्दर्शन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. षड्दर्शननाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: यं शैवाः समुपासते; अंति: त्रैलोक्यनाथोहरिः, गाथा-१. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७३००५. (#) पार्श्वनाथ अष्टक-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १८२२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. विवेकविजय पं. (गुरु पं. न्यानविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४१०.५, १५४१५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: दुखनी जाल रोडी, गाथा-८. ७३००८. पद्मावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. जसराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १७X४९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० हुज्यो, गाथा-५१. ७३०१०. (#) पार्श्वनाथ स्तवन-सवीना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. धनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,११४१८). पार्श्वजिन स्तवन-सवीना, मु. दोलतहंस, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमुंसदा; अंति: प्रीत सनेही माराजी, गाथा-६. ७३०१२. (+) देवता १० द्वारविचार व श्वासोश्वास विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४३४). १.पे. नाम. देवता १० द्वार विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ परूपणा २; अंति: लाख जोजनकी झाझेरी. २. पे. नाम. श्वासोश्वास विचार संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अधघड़ी का इक हजार आठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सासउसास वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७३०१३. अनंतवीर्यप्रभु होरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (११४११, १३४१९). अनंतवीर्यजिन होरी, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो जिन भज विलंब; अंति: तरहो होरी के खेली, गाथा-७. ७३०१४. (#) वीरजिन स्तुति- सूत्रकृतांगसूत्र अध्ययन ६, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. गोंडल, प्रले. मु. गुमानचंद; पठ. मु. राघवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में गुजराती मान्यतानुसार- आसो वद दीपावली का उल्लेख मिलता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, १३४३०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७३०१५. पंचज्ञान स्तुति, नेमजिन स्तवन व ऋषभजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, ११४४१). १.पे. नाम. पंचज्ञान स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमतिज्ञाननी तत्व; अंति: सूरि केवलज्ञान उदार, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमिनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ना करीयें रेनेडो; अंति: रंग० रेनेडो न करीइ, गाथा-६. ३. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब रीखव जिणंदचंद: अंति: रंग०० बरबस दें. गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३०१६. (+) उपदेश पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बिकानेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४०). उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: निठ निठ नर भवे लहो; अंति: रतनचंद० दियो उपदेश, गाथा-२५. ७३०१७. (+#) सूर्यदेव सिलोको व चतुर्विंशतिजिनपरिवार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४०). १. पे. नाम. सूर्यदेव सिलोको, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण करुजी; अंति: नही कोइ थारै जी तोलै, गाथा-१७. २. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तवन परिवार, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: संघनै प्रणमुसही, गाथा-६. ७३०१९. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पेज१४४=१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४११, १२४१०). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर पट्टे; अंति: श्रीविजयधर्मसूरि. ७३०२०. मौनएकादशी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). मौनएकादशीपर्व कथा-बालावबोध, म. रंगविजय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रति; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "१५० कल्याणक सुनने के लिये माघ मास के एकादशी दिन" के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७३०२१. (+#) जिनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४११, ८x२४). २० विहरमान अतीत, अनागत, वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी १; अंति: श्रीअजितवीर्य २०. ७३०२२. १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२५४१२, १०४३३). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलोने प्रणमुरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक ७३०२३. उत्तराध्ययनसूत्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२४११.५, १३४३०). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: पहला अध्ययननी ३ गाथा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंडरुद्राचार्य कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७३०२४. (#) खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४१२, १३४२९). खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचारज; अंति: हो करज्यो सहु कोय, ढाल-४. ७३०२५. (#) श्रावकाचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोजतनगर, प्रले.ऋ. न्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, २०४४२). श्रावकाचार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: भगवते धर्म भाखीयो; अंति: आछो जाण संभायोजी, ढाल-२, गाथा-१७३. ७३०२६. (#) चंदनबाला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. शांतिनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३४).. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: सीस कुंवर करजोडी रे, गाथा-१३. ७३०२७. महावीरजिन स्तव व श्लोक, अपूर्ण, वि. १७६५, कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. देवसूरी, प्रले. मु. धर्मराज (गुरु वा. हर्षराज, अंचलगच्छ); गुपि. वा. हर्षराज (गुरु वा. धनराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: (-); अंति: आणा सिर वहस्ये जी, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७३०२८. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १३४४४). आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७३०२९. (+#) देवकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४३६). देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रठनेमी नासै इवा लखण; अंति: देवकी नामै गजसुखमाल, ढाल-१०, गाथा-१०१. ७३०३२. (+) संभवजिन स्तवन, गुरुगुणबारमासा व चेलनासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण त्रिजा जिनतणी; अंति: प्रणमु नित भोर के, गाथा-६. २. पे. नाम. गुरुस्वाध्याय द्वादशमास, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. गुरुगुण बारमासा, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवि मात; अंति: विजयधर्म चिरंजीवो रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वादी वलता थका; अंति: समय सुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. ७३०३५. रथनेमि सज्झाय, कृष्णभक्ति गीत व रामभक्ति पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८१, ?, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. हर्षसागर; पठ. श्राव. विजोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२९). १. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडोनाजी नाजी छेडो; अंति: तव ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा सांवलिया रे; अंति: नरसी॰खोलै मुक्यो सीस, गाथा-४. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, रा., पद्य, आदि: आव छबीला सांमजी थानै; अंति: सामी जीव कीजरी रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. रामभक्ति पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: रामजी राजिकुवार माने; अंति: उपरि संगि रहीयै रे, गाथा-३. ७३०३६. चतुर्थव्रत विधि व आगमआलावो वचतुर्थव्रतउच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). १. पे. नाम. चतुर्थव्रत विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. __शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पच्चक्खाण कराविइ. २. पे. नाम. आगम आलावो, पृ. १आ, संपूर्ण. आगम योगोद्वहन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: नित्थार पारगाहोइ. ३. पे. नाम. चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिवसे; अंति: आठ थोइ करि वांदवा. ७३०३७. पंचकल्याणक तपपारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४४७). पंचकल्याणकपारणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीथापनाचार्यजी के अंति: संघभक्ति करै. ७३०३८. आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १०४२८). For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीये इम जइये रे; अंति: भावे सिवसुख लहीइरे, गाथा-८. ७३०३९. भरतबाहुबली सज्झाय व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ९४३६). १.पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: धर्मनी भवोभव भावना, गाथा-१२. ७३०४०. एकादशीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १३४३५). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: विशालसोम० सजाय भणी, गाथा-१५. ७३०४१. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रावण कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३४). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीज बोधबीज ददातु, श्लोक-११. ७३०४२. आदिनाथजन्माभिषेक कलश, कसुमांजलि श्लोक व महावीरजन्म कलश, संपूर्ण, वि. १६७७, आश्विन, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १७X४२-५०). १. पे. नाम. आदिनाथजन्माभिषेक कलश, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विणयनयरी विणयनयरी; अंति: तुम्ह दिउ वरमुत्ति, गाथा-११. २. पे. नाम. कुसुमांजलि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुसुमांजलि श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारसारसौम्यक; अंति: ए कुसमंजलि ताह, गाथा-८. ३. पे. नाम. महावीरजिनजन्माभिषेक कलश, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयतु वः; अंति: भविआ एहज पूजो देव, श्लोक-१९. ७३०४३. पांत्रीसगुण वाणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.ग. कीर्तिसागर (गुरु मु. लब्धिसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,१५४४५). ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलउ संस्कारवंत १; अंति: परिश्रम न उपजइ. ७३०४४. रोहिणी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १८४४४). रोहिणीतप कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उच्छिट्ठम सुंदरयं; अंति: होवे बोले केवलनाणी. ७३०४६. वीरजिन व सद्गुरु पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४१२, ९x१६). १. पे. नाम. वीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पावापुर पुखरा चालौ; अंति: प्रभूजी से नेहरा, गाथा-४. २.पे. नाम. सदगुरु पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु ने पकडी बांह; अंति: क्षमाकल्याण नही, गाथा-३. ७३०४७. पार्श्वजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२, ५४३०). पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूजाविधि माहे; अंति: वाचक जश कहे देव, गाथा-१७. पार्शजिन स्तवन-शामला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुखकल्याणकारक प्रभु; अंति: कहे छे हे देवाधिदेव. ७३०४८. मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा. " हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुधे; अंति: धरममार्ग मन मै धरी, ढाल-५, गाथा-४१. ७३०५०. (+#) नेमजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४). नेमराजिमती बारमासो, मु. राजरतन, मा.गु., पद्य, आदि: सखी आसाढि उतरिउ नहि; अंति: राजरतन० फलिउ हो लाल, गाथा-१४. ७३०५१. धर्ममंगल सज्झाय, औपदेशिक सज्झाय व नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४४, जैदे., (१७४११.५, १४४१७). १. पे. नाम. धर्ममंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धर्ममंगल छे मोटको; अंति: सगवाइ जासी मीख, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तेरा नही ते सरब; अंति: भेषधारी लरथरियाजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३०५२. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १२४२९). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अति: नंदतु भट्टारकाः, श्लोक-१४. ७३०५३. (+) गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (११४१०.५, १२४१७). गुरुगुण गहुली, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसौ; अंति: लगो भूधर मांगे एह, गाथा-१४. ७३०५५. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५१, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४२८). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. २. पे. नाम. पजुषणपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुधविजय जय जयकारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन सुखडी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: जौ तूठे देव अंबाई, गाथा-४. ७३०५६. स्नात्रादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६७३, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्रले. पं. मेघरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२). १. पे. नाम. कुसुमांजलि श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारसारसौम्यक; अंति: एकुसमंजलि तांह, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिनाथ जन्माभिषेक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विणीयनयरी अरनाभि; अंति: जिम तिम दिउ वरमुत्ति, गाथा-११. ३. पे. नाम. महावीरजिन कलश, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयंतु वः; अंति: भवियां पूजउ एहजि देव, श्लोक-१८. ४. पे. नाम. लूणपाणी विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: उवणेउ मंगलं वो जिणाण; अंति: दुलब्भइ सिद्धिगमनम, गाथा-८. ५. पे. नाम. आरात्रिक विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन आरती, प्रा., पद्य, आदि मरगयमणि घडिअ विसाल, अंति: उच्छलती सलिलधारा, गाथा-३. ६. पे. नाम. मंगलप्रदीप विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मंगल प्रदीप, प्रा., पद्य, आदि: कोसंबिअ संठिअस्सवि, अंति: भाणुव्वपयाहीणं दितो, गाथा-२. ७३०५७. नेमजी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) -२, जै, (१५.५४११.५, ९४१८). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमु पाय, गाथा - १५, संपूर्ण ७३०५९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र १३, जैदे., (१४.५X११.५, ४०X१८). १. पे. नाम. परमेश्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारण जिन स्तवन मा.गु., पद्य, आदि: जै जै परमेश्वर प्रेम, अंति: तुमरो सेवक सरण गहंत, गाथा- ७. " २. पे. नाम. नेमनाथजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: तारण तरण कहावत हो जु, अंतिः आयो सरण तुम्हारो गाथा-५. ३. पे. नाम. वीरगुण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन गुण स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: ए गुण वीर तना; अंति: चिदानंद० जग नो आसी रे, गाथा- ६. ७३०६०, (4) मंगलकरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (५७१२, " ४४X१३). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: विजैभद्र० नहि अवतरै, गाथा - २४. ७३०६१. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १६९८ पौष शुक्ल १४, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, चांगोदर, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (१६४१२, १३४२५-३०)कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७३०६२. (+) चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. ग. खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); गुपि. पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१२४३) जब लग मेरु अडग है, दे., (२३.५४११.५, १०४२८). १. पे. नाम. बीज चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: दुविध धर्म जिणे; अंति: उत्तम होय सुख खाण, गाथा- ७. २. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर, अंति: रंगविजय लहे सार, गाथा-९. ३. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: माहा सुदि आठमनें दिन; अंति: पद्मनी सेवाधी शिववास, गाथा - ७. ४. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. मु. ,खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु, अंति: क्षिमाविजय० करो अवतार, गाथा- ९. ५. पे. नाम, रोहिणी चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंति: मान कहे ० होय भवनो छेद, For Private and Personal Use Only गाथा ६. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दिता, गाथा-४. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३०६३. संझा की आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१६.५४११.५, ११४२२). साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आरती श्रीजिनराज; अंति: दानत० को सुख दीजे, गाथा-८. ७३०६५. (+) नंदिषणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४३०-३३). नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरै; अंति: चतुर चितकरी विनवै, गाथा-६. ७३०६७. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०, १०४२६). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: तुम गरीबन के नीवाज; अंति: रूपचंद० चरण तेरे आए, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भानुचंद, पुहि., पद्य, आदि: बहोत रोज से जस्ते; अंति: भानुचंद० घर आया बे, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तु निरंजन इष्ट हमेरा; अंति: फेर न होवे फेरा रे, गाथा-३. ७३०६८. सिद्धगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, ११४३७). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल; अंति: पद्मविजय परिमाण, गाथा-७. ७३०६९. बाहुबलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. हीराचंद माणेकचंद फडीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे.. (२०.५४१०.५, ११४२२). भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदरगज थकी उतरो, गाथा-७. ७३०७०. सज्झाय, स्तवन व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. हसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १४४२८). १.पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुनि, अंति: लबधी० सद्गति सारो रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति करो जिन शांति; अंति: मेघ लहे सुखमाल, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिकदोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: सिंहालतन विसरि जेवाइ; अंति: वांसे रहसे वयण, गाथा-२. ७३०७१. (#) चोत्रीसअतिशय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४११.५, १३४३६). ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एणे अवसर आव्या सही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-३४ तक लिखा है.) ७३०७२. (#) देवसिराईप्रतिक्रमण सूत्र-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४३५-४७). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: संदिवहु बेल करस्यु. ७३०७४. (+) वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. हेतवर्द्धन (गुरु पं.खेमवर्द्धन); गुपि.पं.खेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२३.५४११.५, १०४२८). २०विहरमानजिन स्तवन, पं. खेमवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर युगंधर; अंति: खेम कहे मुझ तारोरे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३०७५. (#) पार्श्वजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१०.५, १०४२०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ऋषभनी अहनिसि ए अरदास, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अरआ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सहज विलासी सुदरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७३०७६. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, अतः पत्रांक अनुमानित लिया गया है., जैदे., (२३४११, ९४३२). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभु स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से सुविधिनाथ स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७३०७७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. अमृतधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४११.५, १८४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, ४, ले.स्थल. लाखेला, पठ. रामविनय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाल हीयडै; अंति: जिनहरष० हुं बंदालाल, गाथा-७. २.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन अंतरकाल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचोवीसी त्रिकालए: अंति: कल्याण विरच्यो आज ए. गाथा-१६. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय चोवीसे जिन; अंति: श्रीदेवै इम गुण गाया, गाथा-५. ७३०७८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२१४९.५, १०४२४-२७). १. पे. नाम. पद्मावती सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवइ राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३४. २. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला ऋषभ जिणेसरदेव; अंति: देजो सुख संपती, गाथा-७. ३. पे. नाम. चोवीसजिन परिवार स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० तिम तारो, गाथा-५. ७३०८१. पाखंडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४९.५, १३४२९). पाखंडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवैपाखंडी पग मांडे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ७३०८२. महावीरजिन स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ.पं. ज्ञानोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ८x४४-४९). महावीरजिन स्तव-बृहत, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: पढय कयं अभयसृरीहिं. गाथा-२२. महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत हुवउ तपस्वी; अंति: कीधउ श्री अभयदेवसूरि. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३०८३. शांतिजिन पद, नेमिराजुल स्वाध्याय व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(२ से ५)=२, कुल पे. ३, प्रले. ग. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१४.५४११.५, १३४१७). १. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणंदने भेटीये; अंति: गौतमना छो दयाल, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमिराजुल स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी जाओ तो तुमने; अंति: रूपविजय जयकार जो, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा लिखा है.) ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७३०८५. ज्ञानपंचमी स्तुति का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १७४५४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनेमिनाथस्वामी; अंति: अंबिकादेवी कुशल करो. ७३०८६. (+#) पद संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. नेमजिन द्रुपद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, म. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि: नित सेवा मेरे नेमकी; अंति: ध्रमसी०भुवन तसलीम की, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन द्रुपद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. कीर्तिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीजै नित नित पास; अंति: कीरतिसुंदर० रास जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमिजिन द्रपद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, म. कीर्तिसंदर, पुहिं., पद्य, आदि: नित नमीयैरी नित; अंति: कीरति० सुखकंदारी, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुधर्मशिष्य, सं., पद्य, आदि: नृपाश्वसेननंदनं; अंति: सुधर्मशीष० विधायकम्, श्लोक-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्रस्थे जिनचैत्येसौ; अंति: भाव० समहस्तमदापयत्, श्लोक-११. ६. पे. नाम. सुभाषित श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह * पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कज्जल तजैन स्यामता; अंति: नास्ति जागरितै भयं, गाथा-३. ७३०८७. चउवीसतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४-१६४४४-४७). २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमी; अंति: श्रीकुंभ वदइ निसदीस, गाथा-२८. ७३०८९. अकल्पनीयआहारदान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४३३-४१). अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, रा., पद्य, आदि: खुसामदी कर दातारनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखकर पूर्ण कर दिया है.) ७३०९०. अरिहंतजी की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, ८x२९). अरिहंत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजी हो हुं समरु; अंति: मारा आवागमन निवारजो, गाथा-५. ७३०९१. द्रव्य संग्रह अधिकार-३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धर्मगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २२४५८). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: णेमिचंदमुणिणा भणियज, प्रतिपूर्ण. ७३०९४. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२, १३४२५). १.पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, प्र. १अ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ श्रीऍअंति: कुरु देही स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहिमां देवी चक्रे, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सर्वभयोपशमन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं ऋषभाय; अंति: ह्रीं नमः स्वाहा. ७३०९५. सज्झाय, स्तवन व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, कुल पे. ३, जैदे., (१६.५४११, ९-११४२०). १.पे. नाम. नरभव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवो, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जीवा चेतोजी थे; अंति: जीवो जलोसदा लाल, गाथा-६. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. देवब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवब्रह्म न जीरा जी, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: दृग उर जंभ तुटत; अंति: ऐसो नारी तणु नेह, गाथा-३. ७३०९६. स्तोत्र संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५०). १. पे. नाम. ह्रींकार महास्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ह्रींकारस्य किं तत्व; अति: मुक्ति प्रदायकम्, श्लोक-२२. २. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. वादिदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: आर्तनामोदरं कृत्वा; अंति: शीतदाघज्वरा अपि, श्लोक-११, (वि. कलिकुंडदंड यंत्र भी दिया गया है.) ३. पे. नाम. दाहज्वरशांति मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधश्लोक-ज्वर, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७३०९७. (#) श्रावककरणी सज्झाय व बीजतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० नवनिध गेह, गाथा-२०. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अजुआलीडी बीजनी बार; अंति: नंदसूरि० सुप्रसन्न, गाथा-४. ७३०९८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१८x११, १६४१३). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. लोगस्स सूत्र अपूर्ण तक है.) ७३०९९. (+) स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. भीनमाल, प्रले. श्राव. नवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १४४४२). स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकारसार; अंति: संपदा निज पामे तेह. ७३१००. भीषणगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४४, जैदे., (१७.५४११.५, १५४१५). भीषणगुरु सज्झाय, मु. सोभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणभाखी सरधा राख; अंति: सोभ कहे० सिरधारी रे, गाथा-२०. ७३१०१. (+) पंचकर्मदृष्टांत कथा-द्वार २, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १९४५०). पंचकर्मदृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७३१०५. विचारचोसठी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडीः विचारचोसठी, जैदे., (२१४१२, १८४३०). For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: वीरजिनेसर प्रणमी पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, __ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३१०६. सचितअचित सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६४३५). सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) । ७३१०९. (+) प्रश्नोत्तर बोल, गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०३, भाद्रपद कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२३.५४११.५, १२४४०-४४). १.पे. नाम. प्रश्नोत्तर बोल-जैन धार्मिक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पुस्तक लिखो छो तेकि; अंति: पिंडविशुद्धिनि शाखे. २. पे. नाम. गुरुशिष्य पत्रलेखनविधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीमद्वामेय; अंति: प्रतिदलंदेयमिति. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ७३११०. (#) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कूलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११४८, १२४१८). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पंचुबर चउविगई हिम; अंति: परिहरिअव्वा पयत्तेणं, गाथा-७. ७३१११. (#) दस दान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पेज १४२, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (१७४११.५, १३४१५). १० दान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मूलमै नहि समकितनी वण, गाथा-२६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ से लिखा है.) ७३११३. (#) बाईसअभक्ष्य बत्तीसअनंतकाय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. आणंदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १८४५०). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पंचंबरि चउविगई ९ हिम; अंति: रिहारिअव्वाएयत्तेणं. ७३११४. (#) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५०-५५). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२१. ७३११५. (#) गुरुगुण भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५४११.५,१५४३३-३६). १.पे. नाम. शिवजीआचार्य गुरुगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, ऋ. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, आदि: सहिगुरु केरी रे जोउं; अंति: धर्मसंघ० नयरे मझारि, गाथा-९. २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण.. गुरुगुण सज्झाय, ऋ. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरतनागर पाटि बनो; अंति: धर्मसंघ० भास भणंत, गाथा-६. ७३११६. (+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४२४-४२). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, म. सोमजय, अप., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीराउलि राउलि कयनिवा; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ७३११७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-७(१,४ से ९)=३, कुल पे. ४, जैदे., (१६.५४१२, ११४२०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मान कहे शिर नामी ऋषभ, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर चरणनी; अंति: मान० मुझ मन काम्यो, गाथा-७. ३. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संभवजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभल वीनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुंहता मुगति मझार, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७३११९. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, गजसुकुमाल व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१०.५, १९४२९-३२). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थवृद्ध स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ वृद्धस्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ सेजेजी रहि; अंति: ध्रमसी०तिणआतम तार्या, गाथा-१४. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हे सोरठ; अंति: करजोडी रतनो कहै, गाथा-१३. ३.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. माणक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला तो समरूं हो; अंति: माणक० आवागमण निवार, गाथा-१८. ७३१२०. (#) पार्श्वजिन स्तवन व गुरुशिष्य पत्र लेखन विधि, संपूर्ण, वि. १८९७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. हरकचंद; अन्य. चमनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १३४२६-२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुशिष्य पत्रलेखनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३१२१. (+#) गच्छपतिगुरुवंदन विधि- अंचलगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२). गच्छपतिगुरुवंदनविधि-अंचलगच्छीय, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामि ख० इच्छाकारे; अंति: श्रीगुरुभ्यो नमः. ७३१२२. चौदगुणस्थानकगर्भित सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ८x२४). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: (-), ढाल-६, गाथा-३४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३१२३. अष्टमीतिथि स्तुति, महावीरजिन स्तुति व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१२, १३४२४-२८). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम जीवत जनम प्रमाण, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. चुन्नीदास, मा.गु., पद्य, आदि: सबसे भला है एही मन; अंति: दुख दोहगदूरन सही, गाथा-३. ७३१२६. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १६४३४-३८). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी वनीतां भली वीर; अंति: पामे लील विलासोजी, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३१२७. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडक विचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१३४१०.५, १५४२२). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पुरे मनोरथ पासजिनेसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३१२८. (#) चौढालीयो व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेख ने पत्रांक नहीं लिखा है. अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४१२, २५४१७-२०). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुखसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक कको पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक कका पद, रा., पद्य, आदि: ककारे भाई काम करता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टटा तक लिखा है.) ७३१२९. (#) मेघकुमार सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x११.५, २१४१५). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७३१३०. पद, स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, ले.स्थल. पुरी, जैदे., (२४.५४१२, १५४३२-३६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जग तारक श्रीवीरप्रभु; अंति: जीकी अखय सदानित चाया, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज तो हमारे भाग वीर; अंति: चित आनंद बधाए है, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवर शांति; अंति: लहीयै कोडि कल्याण, गाथा-३. ५.पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमौ नेमि; अंति: खिमाकल्याण प्रणाम, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ७. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधारसार; अंति: गुण आपो करि सुखसाय, गाथा-३. ७३१३१. (+) नेमराजिमती पद व गजसिंहराजा सवैया इकतीसा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४३०). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उमट आई साहिबाजी वादल; अंति: भावसुं वंदे वारोवार, गाथा-११. २. पे. नाम. गजसिंहराजा सवैया इकतीसा, पृ. १आ, संपूर्ण.. गजसिंहराजा इकतीसा, मा.गु., पद्य, आदि: राजा गजसिंह राजै जैत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-१ तक ही लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३१३२. (+#) चार मंगल व पगामसज्झायसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ कृष्ण, ११, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. नथमल्ल, पठ. पं. कस्तूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२x११, १९५२८). १. पे. नाम. चार मंगल, पृ. १अ. संपूर्ण ४ मंगल, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंति: धम्मं सरणं पवज्जामि, गाथा - ३. २. पे, नाम, पगामसज्झायसूत्र, पृ. १अ संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिङ; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र - २१. ७३१३३. (d) सीतासतीशील सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे, २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१४.५x११.५, १५४१२). १. पे. नाम. सीतासतीशील सज्झाय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय- शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: झलझलति मिलती घणी रे; अंति: कहे जिनहरख० पाय रे, गाथा. ९. २. पे. नाम. औपदेशिक दुहासंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ७३१३४. (#) पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रतापविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१२, ११४३०-३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मालामालानबाहुर्दधददधः अंतिः वलयवलयश्यामदेहामदेहा, श्लोक-४. ७३१३५. विचार संग्रह, पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) - १, कुल पे. ९, जैवे. (१९.५x११. १५X४०-४३). १. पे. नाम. शत्रुंजय विचारसंग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विविधविचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-६ अपूर्ण से गाथा-८ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: खतरा करणा दूर एक अंतिः ज्ञानउद्योत० अनुसरता, गाथा-४. ३. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: टुक सुनीयो नाथ; अंतिः मेटो भवदुख फेरी, गाथा- ३. , ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ दिखाय; अंति: उदयरतन० सहु धसमसिया, गाथा-७. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, प्र. २अ २आ. संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चालो री सखी जिन दरसण अंतिः भए शिवगामियां, गाथा- ३. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. फतेचंद पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: मने रुडो लागे छैजी, अंति: घ्यावो भगत वडावन हेत, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन कवि, रा., पद्य, आदि: मने रुडो लागे छै जी; अंतिः समकित चाख्यो लेस, गाथा-७. ८. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण, मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराजि जोरी, अंतिः वृद्धि० दीज्यो दीदार, गाथा-३, ९. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयो आज शिखरगिर, अंति: रसतो पायो मुगत पद कौ, गाथा-४. ७३१३७. (१) भक्तामर स्तोत्र व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., ( १७१२.५, १३X२९). For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३१३८. ऋषिमंडल स्तोत्र विधि न्यास यंत्रोद्वार, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उवेरनगर, प्रले. पं. जयवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१२.५, १८४३०). ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: ध्रींकारप्रातसंयुतां, ग्रं. ३८३. ७३१४०. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). १.पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र के प्रारम्भ में "आदीश्वर वीनती समाप्ति" का उल्लेख मिलता है. नवपद स्तवन, मु. जगमाल, मा.गु., पद्य, आदि: जपो जपो रे भविका नव; अति: चित थीमत रे उतारो, गाथा-८. २. पे. नाम. शील पच्चीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. शीयल सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पारसनार; अंति: कांतिवि०एह सज्झाय रे, गाथा-२७. ३. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगियागिरि शिखर; अंति: सकल भवि सुख देई रे, गाथा-८. ७३१४१. (#) पद्मावती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१५, २५४२३). पार्श्वजिन-कलिकुंड पद्मावतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंड तुड; अंति: हेम० पूजो सुखकरणी, गाथा-९. ७३१४२. (+) बोल व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १६४३५). १. पे. नाम. चौरासीलाख जीवयोनि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७ लाख पृथ्वीकाय; अंति: लाख मनुष्य जीवयोनि. २. पे. नाम. मनुष्यादि कुलकोडि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. कुलकोटि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकायनी बारै लाख; अंति: साढासत्ताणु लाख कोडि. ३. पे. नाम. छः आरा बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आरा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो आरो सुसमसुसम; अंति: करीने कालचक्र कहीये, ग्रं. १८०. ४. पे. नाम. नरक विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पहिली रतनप्रभा; अंति: (-), (पू.वि. असंख्याता नारकी का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७३१४४. (+) मृगावतीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४५३). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-६ ___ गाथा-६ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक है.) ७३१४५. स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सूर्यमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८x११.५, १२४२७-३०). १.पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अजीत संभव; अंति: महासुखां की खाण है, गाथा-८. २. पे. नाम. दशानन जन्म दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिण दिन रावण जनमीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-५ तक लिखा है.) ७३१४६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १०-१४४३७-४८). १.पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ www.kobatirth.org प्रा., पद्य, आदि दीवे नंदीसरम्मि, अंतिः सुप्पसन्ना हरं तु गाथा ४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अप., पद्य, वि. १४८६, आदि: संपत्ता समसुक्खपंचमग, अंति: सत्तेसु दिजा सुहं, श्लोक-४. ३. पे नाम, विंशतिविहरमानजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण विहरमान २० जिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः वदे सीमंधरं जुगंधरज, अंतिः यं साहंतु जं चिंतियं, गाथा-४. ७३१४७. शीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१८x११.५, १६x२०). शीतलजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवित पा; अंति: सुखकर सारे वंछित काज, गाथा-५. ७३१४८. (+) उपदेशमाला सह टवार्थ व दृष्टांतकथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-५७ (१ से ५७) = २. पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, ५X३४). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३२९ अपूर्ण से ३४२ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३१४९ (4) चौवीसजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१X११.५, १०X२०-२३). २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्म, आदि: तीरथपति त्रिभुवन सुख, अंतिः शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा-३, ७३१५०. मल्लिनाथ व मुनिसुव्रतजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैये. (२०.५x११, ७४२१) १. पे नाम. मल्लिनाथजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तुं सरीखो प्रभु; अंतिः वसो तुं निजरमा रे, गाथा- ३. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि मुनिसुव्रत महाराज, अंतिः उदय० वोति विकासी रे, गाथा- ३. ७३१५१. (+) नमिजिन स्तुति व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, लिख. श्रावि. हरकोरबाई शेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२०.५x११, ८x२३). " १. पे. नाम नमिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. नमिजिन स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नमि निरंजन नाथ; अंति: उदय० बोधि दाने रे, गाथा-४. २. पे नाम, नेमनाथ स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण नेमराजिमती पद, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बोलि बोलि रे प्रीतम; अंति: स्वामी भवनो कांठो रे, गाथा- ४. ७३१५२. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (१८.५४११.५, १५४१४). सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत, अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा - ६. ७३१५३. (+#) महावीरजिन स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५X११, १३२४). महावीर जिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः वीर सुणो मोरी बीनती अंति (-). (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है, अंतिम कलश अपूर्ण तक है.) ७३१५४. (+) श्रेयांसजिन स्तवन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२०.५X११, ७२१). १. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only श्रेयांसजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति जोतां श्रेयांस; अंति: उदय० अधिक सोह्युं रे, गाथा-३. २. पे नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ. १आ, संपूर्ण, वासुपूज्यजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोओ जोओ रे जोओ जया, अंति: करीने वांहि ग्रही रे, गावा- ३. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३१५५. गौतम कुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे., (२४.५X१०.५, ३५२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंति: (-), (पू. वि. गाथा १९ तक है.) गौतम कुलक-वालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नर अर्थ: अंति: (-). ७३१५७. जिनेश्वर भगवंतनी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२१.५x११.५, १०x२४). नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ७३१५८. (+) वीसस्थानक स्तवन व मुहपतिविचार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ., जैदे., (२०.५X१०.५, १५X३५). १. पे. नाम, बीसस्थानक स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ७३१६०. ज्ञानपांचमनी घोष, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (१७.५४१०.५, ७४१६). "3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमी; अंति: कांति० सुभमति रे लो, गाथा-८. २. पे नाम. मुहपतिविचार स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्तदिट्ठी१; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. ७३१५९. वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १ ले, स्थल, सतारा, प्रले श्राव. लखमीचंद दयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०.५x११, १३४३४). 1 " २० विहरमानजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु, पद्य, आदि: वंछितदायक सुरतरू ए अंतिः विनय० लहिइ मंगल कोडि, गाथा ११. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीर, अंति: विजयलक्ष्मीसूरि पावे, गाथा- ४. ७३१६२. (+) जिनेंद्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२१.५x१०.५, . १५X३८). ', रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य वि. १४वी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्कर प्रार्थये श्लोक-२५७३१६३. (+) साधारणजिन स्तवन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२२x१०.५, १४X३२). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, वीतराग स्तव, सं., पद्य, आदिः श्रीवीतरागसर्वज्ञ, अंतिः मम केवला स्यात्, श्लोक-१३. २. पे नाम, पार्श्वजिन यमकबंध स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंतिः स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक- ९. י' ७३१६७. चरखा सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x१०.५, ११५४३). औपदेशिक सज्झाय- चरखा, मा.गु., पद्य, आदि: गढ सुरत सै गडबा आयो; अंति: सगली नात जीमाइ, गाथा-१२. ७३१६८. (+) वामेयदेव स्तवनरत्न, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. पं. कमलसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., २९ (२५.५X११, १२X४० ). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस अंति: बीजं बोधिवीजं ददातु श्लोक-११. For Private and Personal Use Only ७३१६९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. सरदारपुर, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३७). १. पे. नाम. ऋषभजी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मा.गु, पद्य, आदिः धन्य तु धन्य तु धणीय अंति: गुण ऋषभजी हेत गायो, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभ स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शांमला, मु. उत्तमदास, मा.गु., पद्य, आदि: सार कर सांमला वार; अंति: उत्तम० जाउं बलीहारी, गाथा-५. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे नाम, संखेस्वरजी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन प्रभाति-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आज संखेस्वरा सरण हु; अंति: उदय० करो संभाली, गाथा-५. ७३१७१. ज्ञानपंचवीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५.५४११.५ १३४३४) " ज्ञानपच्चीसी, श्राव. बनारसी, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिरयगजोनि मैं; अंति: नारसी० उदय करन के हेत, गाथा - २५. ७३१७२. ३४ अतिशय नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १२X३४). ३४ अतिशय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अद्भूतरूप अद्भूत अंग, अंति: लाभ एकै समै ३४, अंक-३४. ७३१७४ (+) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x१२, १५X३८). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण. " औपदेशिक पद - जैनधर्म, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: जिन मारग छे सब मारग; अंतिः राम०तीरवो छे तंत सार, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: अब तो चेतन समझीये; अंति: राम० दरियामे पडी, गाथा- ४. ७३१७६. सिद्धचक्र चैत्यवंदन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. सुमतिकुशल गुपि. ग. हर्षकुशल (गुरु मु. हर्षकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, ११x२७). १. पे. नाम. सिद्धचक्रपद स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा. मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः उप्पन्नसन्नाणमहोमवाण: अंतिः सिद्धचकं नमामि गाथा - ६. २. पे नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: एए सुरामे सुहावासयं, गाथा-४. ७३१७७. मंगलीक भास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५x११.५, १०x३३). "" ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेलुं ए मंगल जिनतणु; अंतिः ए भवनिधि तारो ए, गाथा - ६. ७३१७८. पार्श्वनाथ स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२५.५X११, ८x२२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चाल चाल रे कुमर अंतिः प्रभु तुझने नमेरे, गाथा- ३. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. गयी है, वे. (२१.५x११.५, १२-१३४२४-३१). . मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आवि आवि रे माहरा मन, अंति: उदय० संसार सारो रे, गाथा - ५. ७३१७९. (4) शांतिनाथनुं स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल १. पे. नाम. शांतिनाथनुं स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, श्राव. लाधा शाह, मा.गु., पद्य, आदि: शांति करि० शांति, अंति: लाधो० कोड कापो, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी थलवटमंडण, मु. चंदो, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: द्यो दरिसन माहाराज; अंति: चंदो० भेटवा मंगलीकमाल, गाथा १६. ७३१८१. सीमंधरजिन कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २१.५X११.५, १७X३३). सीमंधरजिन कथा, मा.गु., गद्य, आदि बालो मारो श्रीमंधर, अंतिः समोसरणने विषे. ७३१८२. () ढालसागर-ढाल राग परिचय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१X१०, १३X३२). पांडव रास- ढाल राग परिचय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: इण अवसर सीधा थइयै; अंति: परहरज्यो कुवासना, अंक-१५१. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३१८४. आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५X१२, १६४५६). श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: अरिहंत सिद्ध समरू, अंति: बार मिच्छामि दुक्कडं. ७३१८५. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२५x११, ११४३४). ७३१८६. (+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१२, १२४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ७ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३१८८. राचाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४.५x१०, ११४३२). राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: रूडां कहै कवि राचौ, गाथा-३२. ७३१८९. (+) प्रत्याख्यान भाष्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१५ (१ से १५) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६४१०.५, ५X४०). प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., पद्य, आदि (-) अंति (-) (पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण से गाथा ३४ तक है.) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३१९१. नमि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२x११, ९२५). नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुंदरसण राय हो; अंति: समयसुंदर कहै साधुनै, गाथा- ६. ७३१९२. (+#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१.५x१०.५, १६३०). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गीतम तणा, अंतिः नाम लीवा निसतारजी, गाथा - १४. ७३१९३. (*) नवपद वासक्षेपपूजा दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४१०.५, १२४३४). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो, अंति: जसतणी० न अधूरी रे, गाथा - १४. ७३१९४. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र व आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२१.५x११. ३१ १५X४६-५१). १. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. २. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्यने पाव, अंति: (-). (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७३१९९. समयसार नाटक - चयनित गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, १२X३५). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छुटक गाथांक है.) ७३२०३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३४१०.५, १८४६०). १. पे नाम, उपदेसिक सिज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपच्चीशी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: आदि अनादिनो जीवडो; अंति: छोडि आल जंजालरे, गाथा-२४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. हीरालाल ऋषि, रा., पद्य, आदि: चतुर नर धर्म दया सेव; अंति: हीरालाल० अमरापद लेवो, गाथा-४. ७३२०४. (+#) षद्रव्य दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, १०४३८). अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: धर्म जाणे गुण लेस, गाथा-२७. ७३२०५. (+) नमीराय ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४४१०.५, १५४३९-४१). नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरीये; अंति: नमी तणा गुण गीरीमइ, ढाल-७. ७३२०६. प्रमोदमाणिक्य गुरु गीत व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४४). १. पे. नाम. प्रमोदमाणिक्य गुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि मनि धरी; अंति: गुण अति सुख विसाल, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतमा हो जिन; अंति: समय प्रतिमाजीसुं नेह, गाथा-७. ७३२०७.(+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १३४४७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: तारक देव त्रेवीसमो; अंति: दिनदिन कोड कल्याण, गाथा-२२. ७३२०८. स्तुति व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४९, ११४४८). १.पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: माई जौ तूसै अंबाई, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: करो संघ कल्याण, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखक ने ३-३ गाथाओं को १ गाथा गिना है.) ७३२०९. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १७४६५). १. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभि कुलगर चंद नमु; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. २. पे. नाम. पंचपद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक लिखा है., वि. अंत में १ दुहा लिखा है.) ७३२१०. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (१९४१०.५, १०४२७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. देवकलश, मा.गु., पद्य, आदि: भावस्यु नेमिजिण माय; अंति: पछै सासता ते सुख लहै, गाथा-१९. ७३२११. (#) सर्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४६०). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३२१२. धर्मोपदेश व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२०.५४१०.५, १३४३२-३६). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा१ दयार दानं३; अंति: मंगलीक माला संपजे. ७३२१३. मृगापुत्र सज्झाय व जंबूकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१४११,१७४३८). १.पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रावण शुक्ल, १२, सोमवार. मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुगरीनगर सुहावणी; अंति: पोता सीवपुर वासजी, गाथा-१५. २.पे. नाम. जंबुकुमार चौढालिया, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रावण शुक्ल, १३, मंगलवार. जंबूकुमार चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसरा राज; अंति: केवली रीषराया हो लाल, ढाल-४. ७३२१५. आहारअणाहार व निवियातादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०,१५४५२). १. पे. नाम. आहारअणाहार विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ अशन लिखियइ छइ; अंति: लीजइ ते अणाहार हुवइ. २. पे. नाम. निवियाता विगइ विचार, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विगयनिवियातादि विचार, रा., गद्य, आदि: दूधरा ५ निवीयाता पय; अंति: (-), (पू.वि. गुल के ५ निवियाता तक है.) ७३२१६. पद वस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १२४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: समयसु० फल त्याह रे, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे इतनो चाहिये; अंति: आनंदमै अवर न ध्यावु, गाथा-३. ३. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहिब० सुविधि; अंति: रूप० निरंजन मेरा रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहां रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ५. पे. नाम. रिषभदेव पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. भाव, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु रिषभ; अंति: भाव कहै० भव फेरो, गाथा-९. ७३२१७. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२१४९.५, ७४२४). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ नमु सदा; अंति: जो ते लह संपतिकामी, (वि. गाथांक नहीं लिखा ७३२१८. पाक्षिक स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०३, भाद्रपद कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वाली, प्रले.मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि.ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२४४११,१४४४८). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: सजगत्प्रसिद्ध:श्रीवर; अंति: पूरयत० चतुष्कमगमत्. ७३२१९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. कपिल स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. कपिल सज्झाय, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी सोहामणीजी; अंति: ब्रह्म तरसिइ संसारि, गाथा-९. २. पे. नाम. बावीसअभक्ष बत्रीसअनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे सूधी सद्द; अंति: प्राणि ते सविसुख लहे, गाथा-६, (वि. अंतिम गाथांक ५, ६ नहीं लिखा है.) ७३२२१. २० बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३४१२, १६४३६). १.पे. नाम. २० बोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. असमाधि २० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: असमाधिया बादर करतो; अंति: कुमती आहार भोगवेतो२०. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. २० विहरमान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मागु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ३. पे. नाम. २० बोले तिर्थंकरगोत्र बांधे, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजीना जाप करे; अंति: मार्गदीपावतो थको. ७३२२२. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२, १६x४०). १.पे. नाम. २९ पाप सूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २९ पाप शास्त्र, मा.गु., गद्य, आदि: भुमिकपण का शास्त्र१: अंति: अनेरा वशीकरण का २९. २. पे. नाम. २८ अक्षरना उत्कृष्टा मनुष्य, पृ. १अ, संपूर्ण. __उत्कृष्ट मनुष्य संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७ कोडाकोडकोडकोड ९२; अंति: ३७ ५९ ३५४ ३९५० ३३६. ३. पे. नाम. २९ बोल मुर्खरा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मूर्ख के २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: विना भूख खाय सो; अंति: प्रीती करे ते मुर्ख, अंक-२९. ७३२२३. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १५४४८). १. पे. नाम. जीवअजीवभेद विचार-१४ राजलोके, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: चउदराज जिवलोकमांहि११; अंति: (-). २. पे. नाम. मोक्षगमन-१४ स्वप्न विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न बोल-मोक्ष गमन, पुहिं., गद्य, आदि: हाथीयानी घोडानी सींघ; अंति: तिण ज भवै मोक्ष जायै. ७३२२४. धर्मजिन स्तवन वसीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०,११४२३). १.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर मुरती धर्मजिण; अंति: भेटवा गुलाब आणंद, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नाण दिवायर वीतराग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "त्रिगडे प्रभूराजे" पाठ तक लिखा है.) ७३२२५. (#) सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम. मानवभवोत्परे द्रष्टांत स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर रतनपुर जाणिये; अंति: सोमविमलसूरि इम भणे ए, गाथा-८. २.पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती प्रणमू हो चंदा; अंति: दीयासूरी० म्हारा लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-चंदन मंडण, मु. ऋषभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: चलो वंदन जईए वीरजी; अंति: रिभष० तार भवतारजी, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सुनो अविनासि साहिब; अंति: तो पन बांदव तेरा, गाथा-३. ७३२२६. (-#) सज्झाय व मायापच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. दुर्वाच्य. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, १३४२८-३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी क्षमाधर्म पहलि; अंति: उतरो भवपारोजी, गाथा-१३. २.पे. नाम. मायापच्चीसी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. और For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: तु सुण हे दूती माया, अंति: बीकानेर सुख पाया है, गाथा-२५. ७३२२७. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (११४८, १५X३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पापी जीव भेख धरी, अंति: नीनव दीसै धर्म जाता, गाथा-१४. " २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ७३२२८. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, जैदे. (२१.५४१०.५, ११४३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रा., पद्य, आदि: सुगण नर छोड्यो कुमती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ अपूर्ण तक लिखा है.) १. पे नाम. २१ जातिनो पाणी आचारांगे, पृ. १अ, संपूर्ण - २१ प्रकारे प्रामुक पाणी, मा.गु., गद्य, आदि: भींडानो धोवण१ ढोकला, अंतिः आंवलीन घोषण२१. २. पे. नाम. ५ महाव्रत स्वरूप विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१) पांचेमहाव्रत द्रव्य, (२) पहिलेमहाव्रत द्रव्य, अंति: रात्री भोजन न करइ. ७३२२९. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२२x११, १२X४०). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जुगतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमु प्रभु; अंति: संतीसरजी नेह रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: वृथा करम बांधत जीउ, अंति: करो भवभय विस्तारी, गाथा - ३. ३. पे. नाम. वैराग्य गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., पच, आदि: कबहु मइ नीकै नाथ न, अंतिः विन युंही जनम गमायो, गाथा-३, ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: कर हो धरम तुम्हे; अंति: कमलरतन० वाणी हो लाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण साधारण जिन पद, मु. नेमहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: पायो पायोरी तुम्ह दर, अंतिः निधि नेमहरख गुण गायो, गाथा - ३. ७३२३१. जैनधर्मनो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास महावीरजिन पट्टावली सहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. लींबड, प्रले. मु. मणिलाल (गुरु मु. मोहनलाल); गुपि. मु. मोहनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५X११.५, १७५९-६६). जैनधर्म प्राचीनता विषयक साक्षी पाठ, मा.गु. सं., प+ग, आदि व्योलंघुप्रयत्नतर अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रात्रिभोजन विषयक वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७३२३२. युगबाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( १९.५X११.५, १६X३१). युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि: इण जंबूदीपै जाणीयै; अंति: जाणज्यो नितमेव रे, गाथा- १५. ७३२३३. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. साहपुर, प्रले. सा. सुखा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५x१०.५, १२३२). शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य वि. १७४२, आदि: संतजीणेसर संत करो सभ, अंतिः राजे तने कर० संत करो, गाथा - १३. ७३२३४. () वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. बदना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२x१०.५, १३X३२). ३५ ७३२३५. महावीरजिन स्तवन- तप, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामी बुद्धि दीयो; अंतिः केवलीपुहता मुगत मजार, गाथा-१३. (-) नारद चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५X११, १३X२८). नारद चौपाई - द्रौपदी, रा., पद्य, आदि: तीण कालेने तीण समे, अंतिः दीठी आश्चर्य धाय, गाथा - १४. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org ७३२३७. (+) चैत्यवंदन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ११५४०). १. पे. नाम. सिद्धचक्रनो चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि; पहेले दिन अरिहंतनो न अंतिः तणो शिष्य कहे कर जोड, गाथा ६. २. पे नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीगडे बेठा वीरजिन, अंतिः रंगविजय लहो सार, गाथा- ९. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसिद्धचक्र महामंत, अंतिः भणी वंदु बे करजोडि, गाथा-३. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२४.५X११.५, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग, अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा- ३. ५. पे. नाम. सिमंधर चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंतकल्याणकर, अंति: तेषां वर साधुरूपा, श्लोक ५. ६. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, प्रले. मु. रविंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः आठम तप आराधिइ भाव; अंति: संपजे सुभफल पाते, गाथा - १२. ७. पे. नाम महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः वर्धमान जगदीसरु जग, अंति: लहे वीर जिणंद जुहार, गाथा-३. ७३२३८. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२५.५४११, ५४३६)आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा, अंति: (-), (पू. वि. जगचिंतामणी सूत्र गाथा ८ अपूर्ण तक है.) आवश्यक सूत्र- टवार्ध मा.गु, गद्य, आदि: माहाउ नमस्कार अरिहंत, अंतिः (-). 7 ७३२३९, (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ८, प्रले. मु, वल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे , (२४४१२, १७x४९). १. पे नाम, मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक माहामुनि, अंति: पामो सद्गति सारो रे, गाथा १०. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसम रस नाही, गाथा- ६. ३. पे नाम औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीई, अंति: दीजीए देसोटो रे, गाथा - ५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - मायापरिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः समकितनुं मुल जाणीये, अंतिः ए मारग छे शुद्धरे, गाथा- ६. ५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव- लोभपरिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे जो जो ते लक्षण, अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. मोक्ष सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरो सासरो; अंति: मोक्ष सुठाण रे लाल, गाथा-५. ७. पे. नाम. आत्मपद स्वाध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनमांकड, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने, अंति: लावण्यसमे० फल लीजे रे, गाथा- ६. ८. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवेरे; अंति: कांति०भणै ते सुख लहे, ढाल-५. ७३२४०. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. फेदाणी, प्रले. ग. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३४३३-३६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: कांतिवजे० गोडीधवल, गाथा-३७. ७३२४१. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. १, जैदे., (२०४११.५, १०४३५). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: सर्व त्यागी च गर्धभः, श्लोक-१०. ७३२४२. गति आगति के बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१२, २२४६२). गति आगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ बोले नारकी मे ११; अंति: १ सिद्ध एवं १११. ७३२४३. १५ तिथि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४२३). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. छट्ठतिथि स्तुति गाथा-४ अपूर्ण से नवमीतिथि स्तुति गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७३२४४. (#) गुणसागरमुनि सज्झाय, भृगुपुरोहित सज्झाय व सीतासती पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १६४४२). १.पे. नाम. गुणसागरमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुणसागर० करता उगर; अंति: रतन० चीरत सुहावणो ए, गाथा-१८. २. पे. नाम. भृगुपुरोहित सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: देव हुता पूरब भव; अंति: धन लावो सव घेर, गाथा-३६. ३. पे. नाम. सीतासती पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंडित. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेगनाथ माता कन आय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३२४५. (+) साधुवंदना लघु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३९-४५). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नम अनंत चोविसी; अंति: जैमल एही तिरणनौ दाव, गाथा-५४. ७३२४६. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २१४५७-६१). १. पे. नाम. सूर्याभविमान विस्तार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: साढाबारे लाख जोजननौ; अंति: देवलोकनी रचना जाणवी. २.पे. नाम. भवनपतीदेव बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. भवनपतीदेव देह आयु भवनादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भवनपती का चवण ईंद्र; अंति: (-). ७३२४८. (+) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७. २.पे. नाम. सोलसतीसझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ७३२४९. (#) औपदेशिक पद, १४ नियम सज्झाय व सासुवहु सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ५,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. अनुमानित पत्रांक है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ पण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक पद-मृत्यु विषये, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: नव वी मर गे दस वी मर; अंति: कबीर० की कुन विचारी, गाथा-३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: वागांमती जार तेरी; अंति: कबीर० आवागमण निवार, गाथा-४. ३. पे. नाम. १४ नियम सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: पीरती पाणी आगन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. वहु तपस्या सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: बाइ भाइ उपासर चाल्या; अंति: पीवा आज थार पारणा, गाथा-११, (वि. गाथांक अनुमानित है.) ५. पे. नाम. सासु सामायक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: परबात उठ सासुपरकुण; अंति: समाइ सासु ना करनी, गाथा-९. ७३२५०. पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४३४). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाया रे, ढाल-५, गाथा-१६. ७३२५१. (+) आत्मशिक्षा सज्झाय व सनतकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १०४३०). १.पे. नाम. आत्मशिक्षा सिज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागरे सुग्यांनी जीव; अंति: लहिस्यौ सुख खेम, गाथा-१९. २. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विनवै सुनंदा राणी; अंति: विमलकीरति सुखकार रे, गाथा-११. ७३२५२. (+) संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२४११, ११४२८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१०. ७३२५५. पार्श्वजिन पद व प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११, १०४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा जिन; अंति: पार्श्वजिनं सुघनम्, श्लोक-६. २.पे. नाम. प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रश्न-१ संसारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न-४ अपूर्ण तक लिखा है.)। ७३२५६. सप्तव्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११,१२४३९). ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परउपगारी साध सुगुरु; अंति: गुरु सीस रंगे जय कहे, गाथा-९. ७३२५७. तृष्णा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, १२४३०). तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मान मद मच्छर; अंति: सुख विघन विना निरवाण, गाथा-१२. ७३२५८. चौवीसजिनलंछन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, १२४२९). २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आददेव लंछन वृषभ अजित; अंति: शुभने सुख ज होय, गाथा-९. ७३२५९. श्रावकउपमा वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५.५४७, २२४१६). श्रावकउपमा वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ओसवंसे वृद्धशाखाया; अंति: चवदविद्यापरायण. ७३२६२. एकवीस बोल निक्षेपाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२०.५४११, १६४३०-३३). २१ बोल निक्षेपाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले नय सात; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-९ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३२६६. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११, ११४२६). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमी; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ७३२६७. खंधकजीको चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नवासर, प्रले.सा. पेमा (गुरु सा. छोटीजी); गुपि.सा. छोटीजी; अन्य. सा. अमरताजी; सा. सेरुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१०.५, १५४२८-३२). खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमो वीर सासनधणीजी; अंति: करणी हो कीजो सब कोय, ढाल-४. ७३२६८. रहनेमिरो चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नवासर, प्रले. सा. पेमा (गुरु सा. छोटीजी); गुपि. सा. छोटीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०x१०.५, १४४२६-३१). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: रायचंद० थारी आतमा, ढाल-५. ७३२७०. कम्मपयडि गुणना व शत्रुजयतीर्थ नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२१४११, १०४३७-४४). १. पे. नाम. कम्मपयडि गुणना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण... ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी के ५ भेद; अंति: वीर्यांतराय कर्म ५८. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ एकसो आठ नामावली, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ १०८ नामावली, सं., पद्य, आदि: श्री शत्रुजयतीर्थाय; अंति: प्रियंकरतीर्थाय नमः, सूत्र-९९. ७३२७६. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१६४९, १३४३६). आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक ऋषभजिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३२७७. मौनएकादशी दृष्टांतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०, ११४४२). १. पे. नाम. एकादशी दृष्टांत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मौनएकादशी दृष्टांत, मु. क्षमारत्न, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: फलं मोक्षापि जायते, श्लोक-२९, (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पांत्रीस वाणी गुण, पृ. २आ, संपूर्ण. ३५ जिनवाणी गुण, मा.गु., गद्य, आदि: उचलवाणी१ उदारवाणी२; अंति: जीवणउवधाय वाणी३५. ३. पे. नाम. तेर काठिया नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आलस१ मोह२ अविना३; अंति: समदण करमकाचीओ१३. ७३२७८. चैत्रीपूनिमदेववांदि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४८). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्री पुनिमदिने; अंति: जिमाडै जथाशक्ति, देववंदनजोडा-५, (वि. इस प्रत में कर्त्तानाम नहीं लिखा है.) ७३२७९. (+) होलिकाकथा प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९५२, कार्तिक शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १७४४८). होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमपुरष राजा प्रथम; अंति: विनयचंद कहे करजोरी, ढाल-४. ७३२८०. (+#) नेमजीरी बारमासी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. युक्तिसुंदर (गुरु वा. यशोलाभ गणि); पठ. श्राव. सवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४३). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. ७३२८१. उत्पातविचार बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १७७५८). १. पे. नाम. उत्पातविचार बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. सुकाल दुष्काल शकुन विचार, रा., गद्य, आदि: कारण पाखै देहरौ पडै: अंति: रोग क्लेश घणो होई. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. छींकविचार कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. छायापुरुष लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: अंतोमुहुत्तमित्ते; अंति: सद्यो मरणमादिशेत्. ७३२८२. (+) ऋषिमंडल स्तवनाम्नाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४९, ९४३९). ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रां हिँ हू; अंति: दर्शनादेशश्च भवति. ७३२८४. (#) राजुलरहनेमि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०४३०-३४). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: देव० सुख लहैस्यै रे, गाथा-१२. ७३२८६. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्रले. त्रिभोवन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४३८). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो सिणगार; अंति: आराधीइ आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरु वरकल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहेन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकहे चरीत, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: विनयविजय० नमुशीस, गाथा-३. ७३२८७. संवर चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३९-४३). संवर चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू गिरुआ देव सुपास; अंति: सुख पामीइं अजरामरण, गाथा-२५. ७३२८९. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. अजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, ११४२५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुखलाल, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण करस्या हो; अंति: सुखलाल गुण गाय, गाथा-५. ७३२९०. मायाकल्पबीज, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४११, १२४४०). मायाबीज कल्पवार्ता, आ. जिनप्रभसूरि, मा.गु., प+ग., आदि: अजुआलै पखी पूर्णा, अंति: ॐ ह्रीं असिआउसाय नमः. ७३२९१. (+#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रूपाजी शिष्य (गुरु मु. रूपाजी ऋषि); पठ. मु. तुलसीदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन वर्ष वि. १७२३ लिखा है, परन्तु लक्षणादि के आधार से प्रत १९वीं की प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४२९). श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञाननइ विषैइ जे; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडम्. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३२९२. उत्पत्तिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १२४३६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. ७३२९३. यतिपडिक्कमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३४११.५, १०४३५). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नाणंमिदंसणंमिय; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७३२९४. ईग्यारमुंपौषधव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. इल्लोलनगर, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, ११४२८). पौषधव्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ईग्यारमे व्रते; अंति: तिलकविजय आणंदइरे, गाथा-५. ७३२९५. (+#) विचारषत्रिंशिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४७, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सिरोही नगर, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतनाम में विचारषट्त्रिंशिका सह बालावबोध लिखा है, परन्तु प्रत में बालावबोध नहीं है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे तस्; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४३. ७३२९६. (#) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी नेमि जिनेसरू; अंति: काई भजता सही भगवान, गाथा-१५. ७३२९७. (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३३०, दे., (१६४१०.५, १५४२२). नेमिजिन स्तवन, मु. जीवा ऋषि, रा., पद्य, वि. १९२१, आदि: नेम पुजणकुं आई रे; अंति: बीजै श्रावण सुदि आई, गाथा-७. ७३२९८. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९०. ७३३००. (+) नवकार बोध, संपूर्ण, वि. १७७०, भाद्रपद शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वणेडा, प्रले.पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४८). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार; अंति: सागर पण सैसमगेणं. ७३३०२. (+#) बारह भावना संधि, संपूर्ण, वि. १७७०, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वुसीपुर पट्टण, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, १२४४२-४५). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसरजिनवर तणा पद; अंति: जयसोम० शिवसुख थाई, ढाल-१२, गाथा-७२. ७३३०३. (#) अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १८६५, माघ कृष्ण, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०x२८). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उपहार वस्तवांन; अंति: पूजितं वंदे स्वाहा. ७३३०४. (+) आत्मप्रबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (११.५४७, ७X२३). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ तक ७३३०५. (#) जीवरास सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७४२९). For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटै तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पद्मावती राणी; अंति: जीव सुखी० हुवै. ७३३०८. (4) पंचपरमेष्ठिनमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: वल्लभसूरि० नित्त, गाथा-१३. ७३३०९. आराधनासार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १४४४२-४६). अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अरिहंतो महदेवो जावजी; अंति: अप्पसखीयं वोसरामि. ७३३११. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १०४३२). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही शुभ ठाम; अंति: तस न्यायसागर जस थाया, ढाल-२, गाथा-१३. ७३३१२. स्तुति, स्तोत्र व छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १२४३५-३८). १.पे. नाम. शारदा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: भारती किल्विषं मे, श्लोक-१५. २. पे. नाम. जगदंबा छंद, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. सारंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विजया सांभलि वीनती; अंति: भगति भाव इणि परि भणउ, गाथा-२८. ३. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, मु. अचलसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संसार समुद्र; अति: अचलसागरेराय अनाथनाथ, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: नरिंद्र फणिंद्र सुरि; अंति: करज्यो आप समांन, गाथा-१०. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७३३१३. (4) विविध ग्रंथोद्धत औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०,१३४३७). औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: एगया देवलोएसो नरए सो; अंति: खुलतिउ धणो धण मरणं, गाथा-१७. ७३३१६. शिवजीगणि भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १३४३८). १.पे. नाम. शिवजीगणि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: मेरुगुरु मुख संपति; अंति: विनती आवहु करि उपगार, गाथा-६. २.पे. नाम. शिवजीगणि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: गछपति वंदीयइजी; अंति: दुगदास पहुचइ पारि, गाथा-७. ७३३१७. मेघकुमार रास, संपूर्ण, वि. १६७३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, जैदे., (२६४११, ११४३२). मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निसिदीस, ढाल-४, गाथा-४७. ७३३१८. षडावश्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११,१०४३६). छ आवश्यक स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोवीसे जिनवर नमु; अंति: तेह शिव संपद लहे, ढाल-६, गाथा-४३. ७३३२०. पार्श्वजिन स्तवन, गुरुगुण सज्झाय व गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १२४३८-५८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४३ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि; जी प्रभु पासजी पासजी अंतिः रंगविजय० शिवराज रे, गाथा- ६. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर बेठा पाटीए अंति: भणेउ ते वांदु अणगार, गाथा- ७. ३. पे. नाम गुरुगुण गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे मारे देशना दो; अंति: अमीयकुंवर ईण पर भणे, गाथा-८. ७३३२१. दीक्षा व उपस्थापनाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५, १९४५३). १. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: करइ सामाचारी मध्ये. २. पे. नाम. उपस्थापना विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नांदि मांडिने खमा, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७३३२२. शील रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X११, १५X४४). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलौ प्रणाम करौ; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ६० अपूर्ण तक है.) . ७३३२३. बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, जैदे. (२५x११, २१४५९). १. पे. नाम. कुलकोटि विचार, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनी २५ लाख कुलको; अंति: १२ लाख कुलकोडि. २. पे. नाम. श्रावक के २१ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. आवक २१ गुण नाम, मा.गु. गद्य, आदि: पहिलइ बोलइ बोलाइ, अंतिः संधारानी आराधना करवी. ३. पे. नाम. श्रावक के १५ बोल, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण. आवक १५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलइ बोलाइ मधुर वचन, अंतिः रहित धर्म नह० बोलइ ४. पे. नाम. कर्मबंध प्रकार बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. कर्मबंध प्रकार बोल- आगमदृष्टांतयुक्त, मा.गु., गद्य, आदि: भणवा गुणवा आलस करइ, अंति: साधननो टोटो पडइ. ७३३२५. मेघप्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२५x११, ९३०-३३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघप्रबंध, मा.गु., पद्य, आदि गौतम प्रणामकि सारद, अंतिः मेघजीगत जनम विचार, गाथा- ४५. " ७३३२७. (A) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन व वादस्थलाधिकार छंद, संपूर्ण, वि. १९४६, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. मु. प्रेमचंद ऋषि (नागोरीलंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x११, ९३२). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. יי मु. सुजस, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदिः प्रगट चढे मुंरधर, अंतिः महां सींग सुजस कहीवी, गाथा-८. २. पे. नाम. वादस्थलाधिकार छंद, पृ. ९आ-३आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ अधिकारविषये संवेगी यति विवाद सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सानिधे कह, अंति रूडो राख्यो रंग. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्म, आदि (-); अंति: (-) (वि. अंतिम वाक्य मिटाया हुआ है.) ७३३२९. (+#) पार्श्वजिन स्तवन व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: पारस., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५x९.५, १५X४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगर चिंतामणदेव; अंति: हेतखेम० मुख कीय्या, गाथा- १३. २. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. भानु, पुहिं., पद्य, आदि: मीलनो जगजोर कठीन है, अंति: भानु० मीलना जग जोर, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३३३०. नौ भव की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रारम्भ में एक प्रतिलेखक ने कृति अपूर्ण लिखा था, अन्य प्रतिलेखक ने उसे पूर्ण किया है., जैदे., (२५४११.५, २०-२१४३१-३६). नेमराजिमती ९ भव वर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मेह ध्यावाला हो; अंति: प्रभुजी तुम धणीजी. ७३३३१. (+) वर्द्धमानविद्या कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४०-५२). वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., प+ग., वि. १३२२, आदि: श्रीवीर जिनं न; अंति: श्रीसिंहतिलकसूरिमं, श्लोक-७५. ७३३३२. (+#) उतपत की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३४). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोय जीव आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-६८. ७३३३३. (-) मेघकुमार पंचढालिया व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १२४२८). १. पे. नाम. मेघकुमार पंचढालिया, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ___मेघकुमार पंच ढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: मेघकवर धारणी माता; अंति: मझारे रे मुनिसर मेघे, ढाल-५, (वि. कृति में कुल पाँच ढाल हैं परन्तु प्रतिलेखक ने चौढालिया लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण.. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चेतन रे तु गुण; अंति: जनमे मरण सुडरीया, गाथा-५. ७३३३५. अठारपापस्थानक व नवग्रहफल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १५४४५). १. पे. नाम. अठार पापस्थानक, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष, १२, ले.स्थल. सांडेराव नगर, प्रले.पं. नरेंद्रविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-हिस्सा मायामृषावाद पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरमुपापर्नु ठाम; अंति: सुजस अमोले हो लाल, गाथा-१२. २. पे. नाम. नवग्रहफल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, ३, प्रले. मु. सुखसागर (गुरु मु. रविसागर, तपा.सागरशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य. नवग्रह फल, सं., पद्य, आदि: त्रिषष्टो दशमोचै; अंति: नासंचराहुणानत्रसंसयः, श्लोक-१५. ७३३३७. साधुगुण गहुंली व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. साधुगुण गहली, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर विचरीता जी; अंति: जग कोडि कल्याण कि, गाथा-८. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाटडी विलोकुं रे; अंति: ज्ञानविमल कल्याण, गाथा-६. ७३३३८. हीरविजयसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. मतिहंस; पठ. सा. रंभा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३४-३८). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस वचन दिउ सरसती; अंति: विवेकहर्ष सुहकरो, ढाल-२, गाथा-२३. ७३३३९. (+) जिनदास सुगुणी चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४११, १५४६२-६५). जिनदास सुगुणी चरित्र, मु. अमोलकऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६१, आदि: परम ज्योति परमात्मा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३३४०. (#) वंदित्तु सूत्र, संपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदंमि जिणे चौवीसं, गाथा-४३. ७३३४२. (#) नौसम्यक्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३०-३३). ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: एहवू सांभलीनै शिष्य; अंति: स्वरूप विचारवो. ७३३४३. (+) मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४८.५, १२४२८). मेतारजमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मासखमणरो पारणो मुनि; अंति: खम्या करो सब कोई, गाथा-१६. ७३३४४. (+) दर्शनाचार के आठ अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४३३). दर्शनाचार, पुहिं., गद्य, आदि: (१)निसंकीयं निकंखीयं, (२)जिनेश्वर के वचन में; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ८वें अतिचार का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७३३४५. सूक्ष्मविचारसारोद्धार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१२, १३४३०). सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-हिस्सा पुद्गलपरावर्तनकाल विचार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: दव्वे खेत्ते काले; अंति३ भावेहि ४ इयणेउ ५, गाथा-४, (वि. गाथा-१०६ से ११० तक) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-हिस्सा पुद्गलपरावर्तनकाल विचार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यतपुद्गलपरावर्त; अंति: मुक्तिसुख पिण पांमै. ७३३४८. (+#) आयुखांनि विधि सह बालावबोध व वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४२७). १.पे. नाम. आयुखांनि विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आयुविचार श्लोक, सं., पद्य, आदि: लक्षणंलखणंद्रसति; अंति: आयुप्रमाणबुध, श्लोक-१. आयुविचार श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य- मांडलु हीणु; अंति: देखितो तें दाडे मरे. २. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक-८. ७३३४९. पंचांगुलीदेवी छंद व पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, ११४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति-कलिकुंडमंडन, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: वार्द्धित निश्चिता, श्लोक-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मंत्राम्नायगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वप्रभु; अंति: सुजस सुखतल्प रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचागुलीदेवी छंद, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण.. पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति पाए नमि; अंति: संपती नीत विलसंत, गाथा-२६, (वि. अंत में मंत्र पढने, सुनने एवं जाप विधि का उल्लेख किया गया है.) ७३३५१. (+) आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १०-१२४४०). आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. आदिजिन स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंद आनंदमय; अंति: मिलापथ तै संधि छै. For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६ www.kobatirth.org ७३३५३. (+) गुणस्थानक चौपाई व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै, (२५.५४११, १४४३४). १. पे. नाम. ब्रह्मविलासे गुणस्थान एकादशतांई जीव कहि पंथ चढै गिरै, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. " ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई १४ गुणस्थानकगत, आव भगोतीदास लालजी ओसवाल, पुहिं, पद्य, आदि: करम कलंक खपाई के भए, अंति: तेयाते सुख लहि सदीव, दोहा २१. ७३३५६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. स्त्री उत्कृष्टस्थिति आयुष्यबंध विचार सह टीका, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा स्त्री उत्कृष्टस्थिति आयुष्यबंध विचार, वा. श्वामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः केरिसिया णं भंते, अंतिः जहा णाणावरणिज्जं. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (+) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा स्त्री उत्कृष्टस्थिति आयुष्यबंध विचार की टीका, सं., गद्य, आदि: मानुषी सप्तम नारक, अंति सिद्धिमासादयति. ३. पे. नाम. साधु आहार विचार, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. साधुआहार विचार, प्रा. सं., गद्य, आदिः साधवः केषु कुलेषुः अंतिः वत्थाई धारेज्जा. ४. पे नाम. सर्वार्थसिद्धे मोतीनी संख्या, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. २५३ मण मोतीमान बोल - सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, आदि: मोती १ चौसठि मनरौ; अंति: दोय सइ त्रेपन्न छै. ७३३५४. (+) सकलमंडलीक कवित्त व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १३X३६). १. पे. नाम, सकलमंडलीक कवित्त, पृ. १अ २अ संपूर्ण वि. १८७८, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १४. मा.गु., पद्य, आदि बीसकोड वासण, अंतिः तखत संकाये सूरगेणमे, गाथा- ९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि: कृष्णात्प्रार्थय, अंतिः प्रसन्नो हरिः, श्लोक-३. 3 कुगुरु सज्झाच संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२१x११, ७-१२x२०-२४). १. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: निज आचारनै छंडी; अंति: कुतर तणोगनी देखण, गाथा - १९. २. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. प्रमोदरुचि, पुहिं, पद्य, आदि ऐसे कुगुरु मिथ्यात अंतिः प्रमोदरुची पद पावे, गाथा- ६. ७३३५८. सिद्धचक्र स्तुति व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१४१३.५, १५x२१). १. पे नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण आ. हंससूरि, मा.गु, पद्य, आदि: अनुपम गुणआगर सुखसागर, अंति: हंसससूरिंद० उक्ता जी, गाथा ४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. יי मु. लालचंद, पुर्हि, पद्य, आदि मेरो मन वश कर लीनो; अंतिः लालचंद० पूरो बंछित आस, गाथा ६. ७३३५९. मोहनीनी स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x११.५, १३४३३) औपदेशिक सज्झाय, मु. इंद्र, मा.गु., पच, आदि: ममता माया मोहिआ रे अंतिः सकल सुमति तु जोइ रे, गावा- १४. ७३३६०. उगणत्रीसी भावना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५४११, १५X३८). , २९ भावना छंद - वैराग्यप्रेरक, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मनि थिर करी; अंति: ते लहिसिइ भवपार, गाथा- ३१. ७३३६१. पद्मावती आलोअणा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे (२४.५४११, १०३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पदमावती; अंतिः For Private and Personal Use Only समयसुंदर ० छुटे तत्काल, डाल-३, गाथा- ३६. ७३३६२. (+) दशार्णभद्रराजर्षि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १७X३७). Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शारद बुद्धिदाई सेवक, अंति: लालविजय निसदीस, गाथा-१४. ७३३६३. (#) मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४३). माय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत रैद्यो; अंति: परम पद में पामियो, ढाल-५, गाथा-१०. ७३३६४. (+) जैन व्याख्या पद, अरिहंत गुण व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १२४३२-३८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: परम गुरु जैन कहो किउ; अंति: जइनदशा जस ऊंची, गाथा-१०. २.पे. नाम. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वय समणधम्म संजम वेया; अंति: अभिग्गहा चेव करणं तु, गाथा-२. ३. पे. नाम. अरिहंत गुणा, पृ. १आ, संपूर्ण. अरिहंत १२ गुण श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प; अंति: पूजातिसय वचनातिसय. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत१ सिद्ध२ चेइय३; अंति: हीनानि लभते जनः. ७३३६५. आषाढाभूति भास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४४२-४५). आषाढाभूति भास, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: आषाढभूति अणगारनिरे; अंति: न्यान० गंजीइ हो लाल, ढाल-६, गाथा-१६. ७३३६६. चोवीसतीर्थी सज्झाय व बारहदेवलोक नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, ८x२३). १.पे. नाम. चोवीसतीर्थी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-५. २. पे. नाम. बारहदेवलोक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मदेवलोक१ ईसान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तीसरे देलवोकनाम अपूर्ण तक लिखा है.) ७३३६७. पखवाडो सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०, ११४२६). १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एकम कहै | एकलो रे; अंति: गया जमारो हार, गाथा-१६. ७३३६८. (+) पंचमगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सादडी, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ९४२८). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिधारथसुत वंदीइ; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६. ७३३६९. (+) संतनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४५४). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: गुणसूर० सुवसुख पावइ, गाथा-२२. ७३३७०. आंबेलतपनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११.५, १०४३०). नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंति: मोहन सहज स्वभाव, गाथा-९. ७३३७१. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३४१०, १३४३०). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुमता मनि; अंति: शांति० फलस्ये ताहरी, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३३७३. (+#) पार्श्वजिन स्तोत्र व पार्श्वपद्मावती मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जाबालपुर, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु ग. दर्शनविजय); गुपि.ग. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६३६) यादृशं पुस्तके दृष्टा, जैदे., (२५.५४११, १९४५४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जसु सासणदेवि ए; अंति: ते स्तोत्रमेतत, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिअ तसे; अंति: होइ जगि सुखिअं. २.पे. नाम. पार्श्वपद्मावती, बगलामुखी आदि मंत्र संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ सिद्धि महासिद्धि; अंति: चोखानोसाखीओ कीजइ. ७३३७५. च्यारि ध्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १८४३७-४१). ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आरतिध्यान रुद्रध्यान; अंति: सिधाजी की साखे करीनै. ७३३७६. (+) कल्पसूत्रव्याख्यान पीठिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ७४३५). कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: विशाललौचनैर्दृष्टं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठक के गुणवर्णन तक लिखा है.) कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विशाल कहता; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७३३८१. इग्यारसी तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सोजतनगर, प्रले. मु. खूबसागर (तपागच्छ); अन्य. प. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १२४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने रे; अंति: जैनेंद्रसागर० आदरे, ढाल-३, गाथा-२८. ७३३८२. (+) चंदराजानोरास, पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १५४४१). १. पे. नाम. चंदराजानो रास, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) २.पे. नाम. नेमिजिन स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु.रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमवा नेमजिणंदने; अंति: वृद्धिविजय० भासे रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण पारवानो सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नमे तुरीबहुतेज नमे; अंति: भाग पडै पिण नहि नमे, गाथा-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिण रीत बग पावस झरै; अंति: बत्तक जोगी वरस विधान, दोहा-३. ७३३८३. च्यारि आहार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारि आहार तथा; अंति: लीजइते अणाहार हुवइ. ७३३८४. पारसनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. १९६७, वैशाख शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. कालूराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१२, १९४३४-४०). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमूं परमारथ अवचल; अंति: जोरावर रो अंतरजामी, गाथा-५७. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३३८६. नंदमणियार सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. नंदमणियार सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: स्वस्ति श्रीकमला; अंति: रामविजय० वरस्यैरे, ढाल-३. २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वस्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: तेवीसमो जिनपास; अंति: ग्यानसागर० मुझ प्रतै, गाथा-७. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वस्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धि सुगुरु प्रणमी; अंति: ऋषभसागर गुरुपाय, गाथा-१३. ७३३८७. सेत्रावामंडन श्रीजिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७-३९). आदिजिन स्तवन-सेत्रावामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मोहन वेलडी; अति: समयसुंदर सुख भणी, गाथा-१६. ७३३८९. (+) मौन इग्यारस सज्झाय व गोडीपार्श्वस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x२८). १. पे. नाम. मौन इग्यारस स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज महारे एकादसी रे; अंति: उदयरत्न०लीला लहेस्ये, गाथा-७. २.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभव जोतिलता मतवालि; अंति: भाणविजय० दरिसण दिधु, गाथा-१४. ७३३९०. सीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १३४२८). आत्मशिक्षा सज्झाय, क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभवियानां भविया; अंति: ऋषभ० किम रे विसारो, गाथा-१५. ७३३९६. (+) चौरासी आसातना व उपधानतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३६). १. पे. नाम. चौरासी आशातना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिणपास जगत्र; अंति: धरमसी०जयनशासन ते वली, गाथा-१८. २. पे. नाम. उपधानतप स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: समयसुंदर० सुख करो, ढाल-३, गाथा-१८. ७३३९८. (+) धनाजीको तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२५.५४११, १५४४२). धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: पाषडी नगरी भली सरे; अंति: हीरालाल० जी० नामकी, गाथा-१५. ७३४००. हुंडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ., (२४४१२, १२४३०). हुंडी सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ कीधु नेम सांभलो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा अपूर्ण लिखकर ही कृति सम्पूर्ण कर दी For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३४०१. (#) साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४३९). साधु २७ गुण सज्झाय, पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत मुखकमल; अंति: मानविजय० करजोडि, गाथा-७. ७३४०२.(+) युगादिदेवमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४४७). आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रमा ब्रह्मैक तेजोमदि, श्लोक-३८. ७३४०४. (#) लावणी, श्लोक व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४१२, ९४२०). १.पे. नाम. नेमजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: जीणदास सूणौ जीनवर रे, गाथा-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण से लिखा है.) २. पे. नाम. मांगलिकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. ज्वालामालिनी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में गोडी पार्श्वनाथ स्तवन की एक अपूर्ण गाथा लिखी हुई है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. तुलसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७३४०६. (+) साधुक्रिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४५०). साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्राते प्रतिलेखना; अंति: (-), (पू.वि. गोचरी पश्चात् चैत्यवंदन विधि अपूर्ण तक है.) ७३४०७. भरहेसर सज्झाय की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११२-१०९(१ से १०९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४४४). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भरतेश्वर बाहुबली एवं शस्त्रागार अधिकारी के बीच वार्तालाप अपूर्ण से ऋषभदेव द्वारा ब्राह्मी एवं सुंदरी को प्रतिबोधित करने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७३४०८. (+#) ६२ मार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१५(१ से १५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ३३४२८). ___६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७३४०९. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९८-९६(१ से ९१,९३ से ९७)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., "आदिनाथ के जन्म प्रसंग" अपूर्ण से "पुरुष के ७२ एवं स्त्री के ६४ कला का वर्णन" तक एवं "इंद्रभूति तथा अग्निभूति के अणगार वर्णन" अपूर्ण से "हारियायण गोत्रीय दो स्थविर के वर्णन" अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ७३४१०. साधुगुण व दसदोषकाढण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. साधुना गुण सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंत सिद; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ मात्र लिखा है.) विचारसार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना १२ गुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. अंत में पूजा सामग्री का उल्लेख है.) २. पे. नाम. दसदोषकाढण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७३४११. (+#) विद्याचारण, जंघाचारणादि विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, २०४३२). धार्मिकबोलविचार संग्रह-आगमिक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३४१२. औषध संग्रह व नवपद यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (१६४११, ८x१९). १.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. २. पे. नाम. नवपद यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३४१३. देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (१५.५४११, १३४२८). देववंदन विधि, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शक्रस्तव अपूर्ण से जयवीरायसूत्र तक है, वि. जयवीरायसूत्र की प्रारंभिक दो गाथा के बाद ही समापन कर दिया है.) ७३४१४. रत्नचंदगुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिंगोली, प्रले. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११, १२४३८). रत्नचंदगुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: थे सुनो भवी जीवायो; अंति: होवो गणो उपगार हो, गाथा-१३. ७३४१५. (+#) पोसहविधि व वर्षफल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४११, १३४२७-३५). १. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण० इरियाव०; अंति: (१)उपधी पडीलेहु, (२)अवधि आसातना हुइ हुवे. २. पे. नाम. वर्षफल, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३४१७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७४-७३(१ से ७३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२१४११, १०४२९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१९ गाथा-५४ अपूर्ण से गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३४१९. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२४११.५, १०४२७). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभु स्तवन अपूर्ण तक है.) ७३४२०. जिन वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४४, दे., (४३४१७, १९४१९). मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: तीर्थंकर महावीर; अंति: सन उगणीसे अठाइ जी, गाथा-२०. ७३४२१. (+) स्नात्रपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १४४३३). For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्नात्रपूजा संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १४ स्वप्न कथन अपूर्ण से अवधिज्ञान द्वारा जिनजन्म ज्ञान अपूर्ण तक है.) ७३४२२. चित्रसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२०४१२, १३४२६). चित्रसेन चरित्र*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७३४२३. (#) उत्तमकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, १३४३९). उत्तमकुमार रास, मु. धीरशिशु, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-५ दोहा-१ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७३४२४. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (२२.५४११, ३६४२२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-८ अपूर्ण है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया गया है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ७३४२५. जसराजजी व जीतमलजी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. हसतु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११, १४४३२). १.पे. नाम. जसराजजीगुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देशी वधावा कीछे स्ही; अंति: पीच्यासी कै माहे, गाथा-१७. २.पे. नाम. जीतमलजीगुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: ऊंचै कुल आइउ पना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७३४२६. होली चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११, १५४४२). होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरुष राजा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७३४२७. ३२ असज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (१३४११, १३४२१). ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकाबाइ कहता तारो तूट; अंति: दोपहरा ११ आधीराते १२, संपूर्ण. ७३४२८. (-) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जीवाराम; पठ. श्रावि. दोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका प्रायः अशुद्ध है., अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११.५, १५४२८). १.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुकलपख गुरीणी मुख; अंति: केवल पाम्या निर्वाणी, गाथा-१७. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर वंदीये; अंति: उठी करी० आद जिणंदाजी, गाथा-५. ७३४२९. प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२२४११, ११४३८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: हुति इयबुद्विस्समणे, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं __ हैं., भुवनदेवता स्तुति अपूर्ण से है.) ७३४३०. (+#) मांगलिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ७४४०). मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) मांगलिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत तरण तार; अंति: (-). ७३४३१. (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५-११.०,११४४६). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ७३४३२. होलिका प्रबंध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ., (२०.५४११, ११४३९). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: (-); अंति: साधको विद्यते, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "रोपरिमहतीं शीलांचक्रे पुनः प्रवलभाग्ययुक्तं" पाठांश से है.) ७३४३३. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४११, ९४३६). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, रा., पद्य, आदि: मत ताक हो नार बिराणी; अंति: शियल जस उत्तम प्राणी, गाथा-६. ७३४३४. श्रावक मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२.५४११, १३४३७). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो मनोरथ समणोवासग; अंति: इति तीजो मनोरथ. ७३४३६. (#) औपदेशिक पद, फाग व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (१८.५४११, १५४२४). १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: नित रहजोजगीस, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. कनककुशल, पुहिं., पद्य, आदि: आइयौ आइयौ नाटिक नाचे; अंति: इहीज मेवा मांगेलो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समय प्रभु; अंति: दीजिये दरशन बलिहारी, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मन थिर कर नाम जपुं; अंति: मोहन० भव दुख जंजाला, गाथा-५. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. चतूरकुशल,रा., पद्य, आदि: विचरे मत नाम जिणदजि: अंति: लहै रंग पतंग फीको. गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक फाग, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक होली पद, पुहि., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थरकै, गाथा-४. ७. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दरसण कीयो आज शिखरगिर; अंति: रसतो पायो मुगत पद कौ, गाथा-४. ७३४३७. (+) व्याख्यानश्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११, ४४३३). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., "तिथयरागणहारी सुरबइणोणचकी" पाठांश से "न जन्मवृक्षसस्यफलान्यमुनी" तक है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ७३४३८. (#) गाथा संग्रह-कर्मग्रंथविषयक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१,३ से ५)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ५४३४). गाथा संग्रह-कर्मग्रंथ विषयक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक व ३१ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक है.) गाथा संग्रह-कर्मग्रंथ विषयक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३४३९. (+) चौवीसतीर्थंकर वेदिकास्थापना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२४११, १५४३८). २४ तीर्थंकरवेदिकास्थापना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: बलवाकुला वसर्जन करे, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अनंतस्वामी वेदिका स्थापना विधि अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३४४०. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७६२, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. ग. सुगुणकीर्ति (परंपरा मु.खेमकीर्त्ति, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, १६४५२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: सर्वे दोषाद्विमुंचति, श्लोक-७४, ग्रं. १५०. ७३४४१. (#) रहनेमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,११४३९). रथनेमिराजिमती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: काउसगथकीरे नेमी; अंति: समयसुंदर० अणगारे रे, गाथा-११. ७३४४२. शनिश्वर छंद व २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १६४५०). १.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हेम० अलगी टाले आपदा, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: श्रीसयल जिनेसर प्रणम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक लिखा है.) ७३४४३. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२४४११, १२४४०). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन बंदु श्रीवीरजि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७३४४४. बाल पच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १२४३९). बाल पच्चीसी, पुहिं., पद्य, आदि: दुलहो मनुष्य जमारो; अंति: पाप तणीजे बांधे पाल, गाथा-२५. ७३४४५. (2) भानुचंदगुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२३.५४१०.५, १२४३५). भानुचंदगुरुगुण सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: श्रीभाणचंद उवझाय; अंति: भलो भाणचंदजी तेरो, गाथा-७. ७३४४६. वैराग्य पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, दे., (२१४११, ७४१६). वैराग्य पद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: मेरा जनम मरण हरणां, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७३४४७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१८(१,३,६ से २१)=४, दे., (२०.५४११.५, ६४१८). गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण से गाथा-४ अपूर्ण तक, गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-१४ तक, गाथा-२० अपूर्ण से है व गाथा-२२ तक लिखा है.) ७३४४९. नंदीषेणमुनि व राजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, ९x१९). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः रहो रहो रहो रहो; अंति: रूपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. राजुलरथनेमि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसुरे; अंति: पांया बे अवीचल लील, गाथा-५. ७३४५०. (#) स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १०४२९). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सकलकुशलवह्नि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रीयसे पार्श्वनाथ, श्लोक-१. ३. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वदन अमृतनी वाणी; अंति: जिनहर्ष० हिव जागी रे, गाथा- ६. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७३४५१. (#) २४ जिन लांछन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१X११, ११x२६). २४ जिन लंछन नाम, मा.गु, गद्य, आदिः ऋषभदेव स्वामी स्वर्ण अंतिः वर्ण सिंह लांछन, ७३४५२. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (१६.५X११.५, १०X१४). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण है.) ७३४५३. (+) माणिभद्रजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४X११.५, १४X३६). (१८.५X११.५, १४x२७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरपति नती सेवीत सूभ, अंति: माणिभद्र जय जय करण, गाथा - २१. ७३४५४. (१) पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे. १३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., " मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पास प्रभु दल पाया रे, अंति: न्यायसागर० गाया रे, गाथा- ३. २. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वाजत रंग वधाई सहेरमे, अंति: दिन दिन होत सवाई, गाथा - ३. ३. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंद्राप्रभु जिन, अंति: भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा - ३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सांवरीया पासजीने; अंति: आनंदघन० सिर वंदीये, गाथा - ५. ५. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदिः शेत्रुंजानो वासी, अंतिः उतारे माहरा राजंदा, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पासकी पासकी पासकी, अंति: दिजै तुमसी लागी आसकी गाथा ६. ७. पे नाम, सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा, अंति: दास निरंजन तेरा रे, गाथा- ३. ८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि : थारी कुण जोडे छे; अंति: वृद्धि० दीज्यो दीदार, गाथा-४. ९. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरू मन मोह्यो रे, अंतिः कहता नावे पार, गाथा ५. " १०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिनेसर विनती, अंति: वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. ५५ For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ __ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: भावे वंदो रे श्रीगोड; अंति: गावै पद्म लहे भवपार, गाथा-९. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने मारे आत्माराम; अंति: लाभउदय० वधाई रे, गाथा-६. १३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रह समे भावधरी घणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७३४५५. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३८(१ से ३८)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १५४३३). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जगत्सुंदर कथा अपूर्ण से मृगावती कथा अपूर्ण तक ७३४५६. (#) भक्तामर स्तोत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१२४३०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतं शांतिन शांति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ७३४५७. विजयसेनसूरि स्वाध्याय, हितशिक्षा स्वाध्याय व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१५४४५-६२). १. पे. नाम. विजयसेनसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शिवसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअ श्रीजिनथंभण; अंति: दान पूरण सुरतरु, श्लोक-११. २.पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्तम मनोरथ सज्झाय, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन ते दिन क्यारे; अंति: लहेस्ये सिवपुर राज, गाथा-१५. ३. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडीन कीजे रे; अंति: नडीजी सुंदर एहज रीति, गाथा-४. ७३४५८. (#) स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १३४३९). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे; अंति: गुण गावेंतसहीसी रे, गाथा-२३. ७३४५९. (#) सिद्धांतसारोद्धार, नक्षत्रविचारमंडल व शास्वतजिनबिंब प्रासाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १४४३३). १. पे. नाम. सिद्धांतसारोद्धार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूसरा नंदनवन पाँच सौ जोयण का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नक्षत्रमंडल विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष मान, मा.गु., गद्य, आदि: समभूतलथी प्रथ्वीथी; अंति: शनीशचर तारो ९०० जोयण. ३. पे. नाम. शास्वतजिनबिंब प्रासाद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म प्रासाद; अंति: (-), (पू.वि. जिनबिंब का वर्णन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३४६०. (+#) २४ जिननाम, च्यवण, विमान, नगरी, जननी, लंछणादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३९). २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७३४६१. पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. पौषधविधि संक्षिप्त, पृ. २अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: ३ नोकार कहता उभा. २.पे. नाम. राईप्रतिक्रमण संक्षिप्त, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. राईयप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमवा; अंति: (-), (पू.वि. चार खमासणा अपूर्ण तक है.) ७३४६२. भैरवनाथ पद व पार्श्वचंद्रसूरि आरती, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मुन्नालाल भाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११, ९४२१-४०).. १.पे. नाम. पार्श्वचंद्रदादा की आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरि आरती, मु. अबीरचंद, पुहि., पद्य, आदि: शुभ पंच महाव्रत तुम; अंति: अबीरचंद करै गुण वरण, गाथा-८. २. पे. नाम. भैवरनाथस्य पदम्, पृ. १आ, संपूर्ण. भैरवनाथ पद-रतनपुरीमंडन, मु. इंद्रचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: रतनपुरी मंडण भैरूजी; अंति: इंद्रचद्र० मुनिया, गाथा-४. ७३४६३. (#) नेमिनाथराजिमति बारमासो व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११.५, २३४५१). १. पे. नाम. नेमराजिमति बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साहेब सिद्ध जयो है, गाथा-१२, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उमटी विकटा घनघोर घटा; अंति: भयदाइ हमे सखि भाद, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिकसवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: गाजत है गजराज वाजत; अंति: (-). ७३४६४. (#) आषाढभूति व कार्तिकशेठ पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै., (२४४११.५, २५४५३). १.पे. नाम. आषाढभूति चौढालियो, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: (-); अंति: रायचंद पर उपगार हो, ढाल-७, (पू.वि. अंतिम ढाल अपूर्ण है., वि. गाथांक नहीं है.) २.पे. नाम. कार्तिकशेठ पंचढालियो, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध साधु सर्व; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ अपूर्ण तक है.) ७३४६५. (-2) आलोयणा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पत्र १४४ हैं., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खडित है, दे., (२१४११, ३२४२०). आलोयणा विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनारी दीसी प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३९ तक है.) ७३४६६. (#) कर्म सज्झाय व बारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्र १४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४२२, ३४४४०). १. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर: अंति: रिद्धिहरष नहि कोई. गाथा-१८. २.पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय प्रणमी; अंति: किरत० ने कुल उजवालै, गाथा-७. ७३४६७. (-) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४११, १२४२९). नेमराजिमती बारमासा, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजीसुंराजुल विनवे; अंति: लीखमी० मनरी जी आस, गाथा-१४. ७३४६८. पार्श्वजिन स्तोत्र व रूद्राक्षधारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रमय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रमय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो अक्षरजगत गुरु; अंति: देजो सेवक पूरो आस, गाथा-११. २. पे. नाम. रुद्राक्षधारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वार २१ गणीइ पछी ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दातून करने के निर्देश तक लिखा है.) ७३४६९. षडावश्यकसूत्र व संथारापोरसी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, ११४४४). १.पे. नाम. षडावश्यकसूत्र, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. श्रावक के बार व्रत वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १२आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.. पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहिः अंति: (-). (प.वि. गाथा-६ अपर्ण तक है.) ७३४७०. भगवतीसूत्र व ज्ञातासूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, दे., (२०४११, ९४२२). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुगतिपुरीनो राज रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: छठो अंग ते ज्ञातासूत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७३४७१. (+) पार्श्वजिन स्तवन- मनोदा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (१८.५४११.५, २०-२४४८-२०). पार्श्वजिन स्तवन-मनोदा, मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मनोदा पासनो भलो परचो; अंति: मुनि प्रणमै कैसरीचंद, गाथा-१४. ७३४७२. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. मु. जैतरुचि (गुरु पं. मुक्तिरूचि गणि); गुपि.पं. मुक्तिरूचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४१०, १०४२२). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२८, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) ७३४७३. सम्मेतशिखर स्तवन व पंचेंद्रिय सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ७४२२). १.पे. नाम. सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में सिद्धचक्र स्तवन की संपूर्णता का संकेतमात्र है. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तोह नमो तोह नमो समेत; अति: देखत दैही थरहरी, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचेद्री सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाध; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ७३४७४. पंचपरमेष्ठि के १०८ गुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, जैदे., (२१.५४१०.५, १३४३०). For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ५९ ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (-); अंति: दोविपूआ निच्चइस्संति, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., चार अतिशय का वर्णन अपूर्ण से है.) ७३४७५. रुक्मणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, दे., (२३.५X११.५, ४x२७). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-७, (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण से है) ७३४७६ (+) पंचेंद्रिय सज्झाय व महावीरजिन स्तवन- वडनगरमंडन, अपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१)-१, कुल पे. २, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १२X३५ ). १. पे. नाम. पंचेद्रिय सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. ५ इंद्रिय सज्झाय, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति रूपविबुध० शिवसुख रंग, गाथा- १४, ( पू. वि. गाधा १३ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन- वडनगरमंडन, पृ. २आ, संपूर्ण. पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिधारथ सुत वंदिये रे; अंतिः रंगे चिंतउ छाहिं लाल, गाथा- ६. ७३४७७. समकित के ६७ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२४.५x११, १२४३९). सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, आदिः समकितनी चारिसदहण कही; अंति: (-). (पू.वि. बोल- ४३ अपूर्ण तक है.) ७३४७८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-१ (१) -२, कुल पे. ८, जैवे. (२४.५४११.५, १७४४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir וי १. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम लबधविजै गुण गाय, गाथा-९, (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि सुणि बहिनी प्रीउडो अंतिः नारीविण सोभागी रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: धरम म मुकीस विनय; अंतिः बोले ते चिरकाले बंदो, गाथा- ९. ४. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरीनो रे; अंति: मेरुविजय० कोइ तोले हो, ढाल - ३, गाथा - ११. ५. पे नाम, ढंढणमुनि सज्झाय, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिने वंदना हु, अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा- ९. ६. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि म कर हो जीव परतांत अंतिः भावसु ए हितशिख माने, गाथा- ९. ७. पे. नाम. नेमराजिमति सज्झाच, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं, पद्य, आदि: तोरण आयो हे सखि नेम; अंतिः जिनसागर सरगे गइ गाथा- १३. ८. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागीयो हो, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३४७९. (i) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) ४, कुल पे. ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., For Private and Personal Use Only (२४x१०.५, १५X४२). १. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. . धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: सांभलो ए सेवक अरदास गाथा-८, ( पू. वि. गाधा-२ अपूर्ण से है) २. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. . Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन कुल चंदा हो; अंति: शांतिकुशल०पंकज भमरलो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वांदता आपो; अंति: जीवत जनम प्रमाण, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सदन बदन अमृतनो; अंति: दिसा हिवे जागिरे, गाथा-७. ५. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ६.पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ___ मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: कनक० तुम पाय सेवरे, गाथा-९. ७. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण.. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: सुमतिकुसल गुणगाया रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२३. ९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे म्हारे ठाम; अंति: कांति सुख पामे घणो, ढाल-२, गाथा-२३. ७३४८०. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. चैनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०, १२४२४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूरब पुखलावति वियकहि; अंति: ऋष जैमल० भवनी खामी, गाथा-१२. ७३४८१. (#) औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. चेतनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, १७४२७). औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, गच्छा. विजयक्षमासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिभडलि सुनि बापडलि; अंति: पयंपै सुरगत पामै सोइ, गाथा-१९. ७३४८२. सामायिक सझाय व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१६.५४१२, १५४२२). १. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ७३४८३. अवंतिसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. चैनराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०, ११४२४). अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संज्यमथिरे सुख पामि; अंति: हणवा करम कठोर कु, गाथा-८. ७३४८४. (#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, ऋषभजिन स्तवन व सामायिक के ३२ दोष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १८४३४). १.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. सुविधिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव अंतिः सुविधि० सुखरी बगसीस, गाथा १०. ३. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमुं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७३४८५. (+) ब्रह्मचर्य बावनी व आध्यात्मिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५)=१, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३४१०.५, १३४३५) " १४X३०). १. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १. पे. नाम. ब्रह्मचर्यबावनी, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ऊचरई० शिवरमणी वरड़, गाथा-५२, (पू. वि. गाथा ३७ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, आध्यात्मिक गाथा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण, श्लोक संग्रह **, पुहि., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७३४८६. (+) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. दे., (२०.५x१०.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि: समता रस पावै सोई, अंति: जिन जिन कारण करी, गाथा - ५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: संजोग १ विजोग, अंतिः रूप भयां नर आनिये, गाथा- १०. ७३४८७. झांझरीयामुनि चौपाई व चित्रसंभूति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (३) = ३, कुल पे. २, जैदे., (२१.५X१०.५, १५X३५). १. पे. नाम. झांझरीयामुनि चौपाई, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सरस सकोमल सारदा वाणी; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा- ४९ अपूर्ण तक है. ) २. पे. नाम. चित्रसंभूति चौढालियो पृ. ४-४आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा ४ से कलस अपूर्ण "गुणभणइ जिम सुखधाय" तक है.) , ७३४८८. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (१८.५४११, १७४२५). "" सीमंधरजिन स्तवन, मु. सीध ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीमिंदरसांमी दिपता अंति जोड्या दोनुई हाथोजी, गाथा- ७. ७३४८९ (४) संतिकर स्तोत्र व तिजयपहुत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५x११.५, १६X३३). १. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: शांतिकर शांतिजिणं, अति: मुनिसुंदर संपयं परमं गाथा - १४. २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा. पद्म, आदि: तिजयपहृत्तपयासय अङ्क अंति: (-) (पू. वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) " ७३४९०. (K) अरणकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, १५×२९). ६१ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१६४११.५, For Private and Personal Use Only अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या, अंतिः मनवांछित फल सीधो जी, गाथा - १०. ७३४९१. (#) औपदेशिक सज्झाय- कृपण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पत्रांक अनुमानित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२४१२, १०X२०). " औपदेशिक सज्झाय-कृपण, मा.गु., पद्य, आदि: (-) अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) ७३४९२. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२२.५x११, १४४३३). " Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७३४९३. (#) औपदेशिक सवैया व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. केकिद, प्रले. श्रावि. लीछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, २०४४६). १. पे. नाम. अवनित सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीलाडा. अविनीत शिष्य सवैया, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु समझाय संजम दीयो; अंति: मुखने मुगत वावे, गाथा-२३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: कनकने कामिणी परहरो; अंति: कहे जालोर मांहि, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. केकिद. मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी माहें भमता; अंति: साव रमणीने वरसो रे, गाथा-१०. ७३४९४. लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४११.५, १५४३५). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: त्रेवीसमो त्रिभुवन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-९ अपूर्णतक है.) | ७३४९५. औपदेशिक सज्झाय व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, श्राव. कनीराम भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: काया नगररी विध सुणो; अंति: कनीराम आयो भंडारी, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नवलराम, पुहि., पद्य, आदि: नेमजीरी जान बनी भारी; अंति: कीरपा बुधतारी, गाथा-८. ७३४९६. ग्रहशांति व नवग्रह जाप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र २४२, दे., (१७४१०.५, २१४१२). १.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक-१०. २. पे. नाम. नवग्रह जाप, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कस्मिन् रिष्ट ग्रहे; अंति: पीडा उपशांति: स्यात्. ७३४९७. (-2) अनाथीमुनि सज्झाय, औपदेशिक बारमासा व नंदकुंवरजी गहुली आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-१९(१ से १४,१७ से २१)=३, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४११, १७४२४). १. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. मु. गुणसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सेणक रेवाडी संचर्या; अंति: गुणसमरद्री०वी कर जोड, गाथा-२३. २.पे. नाम. औपदेशिक बारमासा, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३२, आदि: चेत मास में चेत नंद; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. नंदकुंवरजी ऋषि गहुँली, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: (-); अंति: धन आजरो दीयारो उगो, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. नंदकुंवरजी गुरुगुण गहुंली, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. मु. जसवंत, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती उकत पदारजो रे; अंति: जसवंत० वारी रे काइ, गाथा-७. ५. पे. नाम. २२ परिषह सज्झाय-गाथा २२ से २५, पृ. २२आ, संपूर्ण. २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुज सबलदासजी भाख, प्रतिपूर्ण. ७३४९८. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७३, आषाढ़ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४११.५, १२४२५). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड सही जिनराज; अंति: होय जावे नरनारी, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३४९९. रहनेमि चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११.५, १८४३५). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धनें आयरी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७३५००. (#) चतुर चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. झमकु (गुरु सा. लाडीजी); गुपि. सा. लाडीजी (गुरु सा. जेठाजी सती); पठ. सा. सेराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४११, २३४२७). सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकीत माहे दीढ रह्या; अंति: रायचंद धन्य नरनार हो, ढाल-४. ७३५०१. चौवीसजिन पच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-७(१ से ७)=४, दे., (२३४१२, १४४२८). २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: (-); अंति: ध्यान महासुख खांण है, सवैया-२५, (पू.वि. सवैया-१ अपूर्ण से है.) ७३५०२. (+#) आषाढाभूति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४११, २३४२८). आषाढाभूति सज्झाय, मु. हंसमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७, दोहा-१ से ढाल-११ गाथा-३ ___तक है.) ७३५०३. (+-) मेतारजमुनि व अयवंतामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२०.५४११.५, २१४३४). १. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, ऋ. मनरुपजी, मा.गु., पद्य, वि. १९१२, आदि: मेतारज वंदु पाप; अंति: मनरूपजी गुण गाया, गाथा-९. २. पे. नाम. अयवंतामुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: पोलासपुरनगरीरो राजा; अंति: गायो हीरालाल हो, गाथा-१५. ७३५०४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२०.५४११, १२४३०). १.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: कवरा साधतणो आचार; अंति: हीरालाल० हीरदे मुजार, गाथा-५. २.पे. नाम. संयमअनुमति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: माता अनुमत दे अणीवार; अंति: हीरालाल० भोग परवार, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-युवावस्था, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: तरंगनी नीर जुजोवे; अंति: हीरालाल के सवनीयो, गाथा-६. ४. पे. नाम. आदिजिन हालडीयो, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: मा मुरादेवी गावेरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७३५०५. कामदेव सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. कामदेव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. केकीध, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. विद्वान रेकवर लिखा है. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र; अंति: कुसालचंदजी प्रकास, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: हा रे जीवा तो नवरजु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है) ७३५०६. वखाण की स्तुति व जिनवाणी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १७४४१). १. पे. नाम. वखाण की स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम तीन नवकार; अंति: वाणी प्रकाश करी. २. पे. नाम. जिनवाणी स्तुति, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनवाणी सवैया, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: वीर हेमाचल से नीकसी; अंति: चंद्रभाण० कही छै, गाथा-७. ७३५०७. (#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १६४३४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: भक्तिलाभे० आशा मनतणी, गाथा-१८. ७३५०८. (+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, १३४४०). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सूर्यमल, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: अहो सर्वगुणी मुनि; अंति: सूर्यमल० श्रीजिनवरनो, गाथा-८. २. पे. नाम. वाराणसीमंडन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. संतोक, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि: जिनजीने वंदो चीत करि; अंति: संतोक कहे सुपसाय जी, गाथा-१४. ७३५०९. (+) जंबूद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४२७). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "२५ जोजन ऊंचा १२५ जोजन ऊंडा" पाठ से "चउतीस वैताढ्य ऊपरै" पाठ तक है.) ७३५११. (#) कवित्त संग्रह व दोसावलीलग्न कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १०४२१). १. पे. नाम. पंचमआरे यतिविचार कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय*, मा.गु., पद्य, आदि: जे केई बालक बापडा; अंति: इसा साधु इण पंचम आरै, सवैया-१. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आज को आज कछक करि; अंति: तहां राज कहै सब कोई, दोहा-१. ३. पे. नाम. दोसावलीलग्न जोवणी, पृ. १आ, संपूर्ण. __ ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३५१२. (+#) दश अच्छेरानो भाव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १४४२९). कल्पसूत्र-दशआश्चर्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उवसग१ गभहरणं२ इथीतिथ; अंति: (-), (पू.वि. चौथा अछेरा अपूर्ण तक है.) ७३५१३. (#) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०, ११४४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७३५१४. (-) आलोयणा आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ६५ आलोयणा आराधना, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (१) अणंत चौवीसी जिणनमुं ( २ ) श्रीजिनेंद्र भगवंत अंतिः सदा निसचे सरनाचार. ७३५१५. (+) स्तुति, स्तोत्र, विधि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्र १x२, संशोधित., दे., ( १६.५X११, ४०४१६-२१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापा धाधानि धाधा; अंतिः पतेरर्हतः पात्वसौ वः, श्रोक-४. २. पे. नाम सरस्वति स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जयत्वं मातुमें भगवत: अंतिः सुखदा देविम्युभगे, श्लोक ८. ३. पे नाम. पारदसिद्धिकरण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः उदंबरार्क वटुदुग्ध; अंति: मंदभाग्योपि सिद्धि, श्लोक-१. ४. पे नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि: ब्रक्षस्मदेह रहली, अंतिः भवता रिपुसैन्यमाशु, श्लोक १. ७३५१६. (+) धन्नाऋषिगुण सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. जयपुर, अन्य. मु. लिखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२२.५x११, २०x३७). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासनसामी अंतरजामी, अंति: विनयचंद गुण गाया, गाथा - २०. " ७३५१७. नवपद नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२३१२, १२४३१). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद, अंति: (-) (पू. वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७३५१८. (#) खामणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७५, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३- १ ( १ ) = २, प्रले. पं. कुंवरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३४११.५, ११४२३). "" खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर सुखसंत, गाथा - ३०, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा दो गाथा गिनकर गाथांक दिया है.) ७३५१९. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८३५, फाल्गुन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १२X३१). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रदक्षिणा ३ देवे; अंति: रूप छै हितशिष्या. ७३५२०. धर्मोपदेश व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४१२, ९४२७). व्याख्यान संग्रह *, प्रा., मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि देवपूजा दया दानं अंतिः (-) (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रथम श्लोक का अर्थ अपूर्णमात्र है. ) ७३५२१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे, ३, जैदे. (२४४१२, १२x२५). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो, अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस, अंतिः तुझें बंछित करजोड, गाथा ९. ३. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो अंति: (१) गुणप्रभु० सीस रसाल, (२) प्रभु सुरवर सीस रसाल, गाथा-७. ७३५२२. (+#) धनाजी रो सतढालियो, संपूर्ण, वि. १९११, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित - टिप्पणयुक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२४४१२, १८x४२). For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धना अणगार चौढालियो, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५९, आदि: नगरी काकंदी अति; अंति: आसकरण० जोय के, ढाल-७. ७३५२३. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ८, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. पं. विवेकविजय; अन्य. ग. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४४२). १.पे. नाम. आदेसर प्रथम जिनराज स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदेसर आद धरमनी; अंति: भक्तिवंतने तारोरे, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हरी आवो हमारी सेरी; अंति: दीपे० दंपति जोडि, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धस्वरूप स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे भव अटवीओ; अंति: आतमरामतणी ऋद्धी रेलो, गाथा-९. ४. पे. नाम. पंथी ज्ञान, पृ. ३आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: सरीर छाया त्रिवणी; अंति: सनी राहु दसमे मृत, गाथा-३. ५.पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. ४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरतन कहे वाणी, गाथा-११. ६.पे. नाम. रासि भेद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मास, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, राशी भेदज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मास चिंतवीइ ते माहे; अंति: बार रासि कहीजे. ७. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अत्यंबु पाना विषमासन; अंति: बालसोनुजे कानजत्रोडे, श्लोक-३. ८.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. भवानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी शांतिजिणंदा; अंति: भवानविजय गुण गाया रे, गाथा-५. ७३५२४. (+) स्तवन व प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वालीनगर, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३७). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: खत्रीकुंडलनगर अवतर्य; अंति: उदयरतन०आवागमन निवारो, गाथा-६. २. पे. नाम. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धरथ राजा गुरपति; अंति: तीर्थंकर अवतर्या, गाथा-७. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., पद्य, आदि: गर्दभ हस्तिशालाया; अंति: घणावध्या सनेहः, श्लोक-१३. ७३५२५. शंखेश्वरपार्श्व व कलिकुंडपार्श्व छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी प्रणमें पास; अंति: कुंअरविजय० गुण गाया, गाथा-११. २. पे. नाम. कलीकुंडपार्श्वजिन छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ७३५२६. (+#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, १६x४२). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २.पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. ध्राणपुर, प्रले. मु. दिलरंजतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडोनाजी३ देवरिया; अंति: ग्यानविमल गुणमाली, गाथा-५. ३. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंति: जस० गुण गाउं रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चला लक्ष्मीश्चला; अंति: धर्मो हि निश्चलम्, श्लोक-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलीयाँ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक कुंडलिया, पिंगल, पुहिं., पद्य, आदि: गोरी मत कर हे गारबो; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ७३५२७. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५-२२(१ से २१,२३)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (१८x१०.५, १३४२९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१७ अपूर्ण से ४३७ अपूर्ण तक व ४५७ अपूर्ण से ४९८ अपूर्ण तक है.) ७३५२८. अन्यत्व संबंध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नविजय (गुरु पं. फतेविजयजी); गुपि.पं. फतेविजयजी (गुरु पं. भाणविजयजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३५). औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहना सगपण केहनी माआ; अंति: तत्व कहे सुखदाइ रे, गाथा-११. ७३५२९. (-) साधु आचार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४७-४५(१ से ४५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४११.५, ९४२८). साधु आचार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ७३५३०. २४ दंडक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४११.५, ९४३१). २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-४ अपूर्ण से ५ अपूर्ण तक है.) ७३५३१. अक्षरबत्तीसी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १५४३५). १.पे. नाम. अक्षर बत्तीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध निवारीयै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) २.पे. नाम. ८४ लाख जीवजोनिनाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवयोनि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ८४००००० सात लाख; अंति: इण प्रमाणे जाणवी. ३. पे. नाम. शृंगाररस सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: चंदविदन माहामृगलोचनी, अंति: मोम कलंक लगावत क्यू, दोहा-१. ७३५३२. (#) मेतारजमुनि सज्झाय व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२, १३४३५). १.पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: साधुतणी रे सझाय, गाथा-१३. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ७३५३३. (-#) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११.५, १८४४०). For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. ज्येष्ठ, मा.गु., पद्य, आदि: चउगत माहे भमैत भमैत; अंति: जेठ कहै सिवसुख केरा, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: रे चेतन पोत तुं पापी; अंति: वनचंद० दुकरत टालतो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ भव रतनचिंतामणी: अंति: पोताछै निरवाणौरे. गाथा-८. ४. पे. नाम. जिनवाणी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जल विण कमल कमल विण; अंति: नही जाणी जिनवाणी, गाथा-४. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निंदक, कबीरदास, मा.गु., पद्य, आदि: नंदक तु मत मैरजे रे; अंति: कबीर० देकर न्ही कुण, गाथा-५. ७३५३४. महावीरजिन कथा व सज्झाय गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२३.५४१२, १९४३६). १.पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. अष्टप्रातिहार्य श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प; अंति: जिनेश्वराणाम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण असुर सुर गरुल; अंति: तेहोइ परित्त संसारि, गाथा-१. ४. पे. नाम. महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इहां कुण जे श्रीसमण; अंति: तिरीने पारगत पामे. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: दया सुखारी वेलडी दया; अंति: थारी चीटी समो भार, गाथा-१४. ७३५३५. चंदनबालासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४११.५, २०४४५). चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि मंडत नीलतन; अंति: अटल उगाणा राखी रेलो, ढाल-१३. ७३५३६. (+) सिद्धनी सज्झाय व पंचमीतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२,१२४२५). १. पे. नाम. सिद्धनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: आठ करम चूरण करी रे; अंति: विजयसेन० दीई आशीष, गाथा-६. २. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरण पसाउरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३५३७. मरुदेवीमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ लिखा है, परंतु अंतिम पत्र है., दे., (२१.५४१२.५, १२४२३). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रगटी अनुभव सारी रे, गाथा-१८, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-६ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिनकर गाथांक दिया है.) ७३५३८. (+#) महावीरजिन छंद व अगियार गणधर स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४११, २१४११). १. पे. नाम. महावीरजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: विवेके० दर्श तेरो, गाथा-१५. २. पे. नाम. ११ गणधर स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ग. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्र उठीने करुं, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ७३५३९. (F) भरतचक्रवर्ती सलोको, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११.५, ११×३२). " भरतचक्रवर्ती सलोको, मा.गु., पद्य, आदि सरस्वतिमाता द्यो मूझ अंति: (-) ७३५४०. सती सज्झाय, जैवंति सज्झाय व मेघमुनि भजन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पे नाम, सती सज्झाव, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सावण विनवउ रे; अंति: गत बाकडी रे लाल, गाथा- ११. २. पे. नाम. जैवंतीसती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) २, कुल पे. ३, वे. (२३१२, १९४३९) " मु. चौथमलजी, मा.गु., पद्य, आदिः कृष्ण पटराणी हुवा, अंतिः चोथमल० रे अणुसार हो, गाथा १२. ३. पे. नाम. मेघमुनि भजन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मा.गु, पद्य, वि. १९३६, आदि: त्यागि वैरागि मेहा, अंतिः श्रावक बहुगुण गावा ओ, गाथा- १६. ७३५४१. (*) अर्जुनमाली ढाल, अपूर्ण, बि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१२) -२, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे.. ( २३X१२, १६X३३). अर्जुनमाली ढाल, मु. जैमल ऋषि, मा.गु, पद्य वि. १८२३, आदि (-) अंतिः जेमल० पुनम सुभ ढाए, ढाल ५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ७३५४२. नेमनाथराजिमति बारमासो व देवगुरु स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) -२, कुल पे २, दे. (२२x११. १७३२). १. पे. नाम. नेमिनाथराजिमति बारमासो, पृ. २अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: लालविनोदीनें गाए, गाथा-२६, ६९ ( पू. वि. गाथा - १० अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. देवगुरु स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. घासीराम, मा.गु., पद्म, आदि देवगुरु पिछाण वंदे, अंतिः घासी० जगजोत समाना, गाथा ५. ७३५४३. (+४) बोल संग्रह व गुरुगुण गहुंली, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ७०-६९ (१ से ६९) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १८x४४). १. पे. नाम बोल संग्रह, पृ. ७० अ-७०आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. बोल संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि (-) अंति: विषे शुभ परिणाम, (पू.वि. सदहणा विचार अपूर्ण से है. ) २. पे नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ७०आ, संपूर्ण मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेर उर वसो; अंति: भुधर मागें एह, गाथा-१४. ७३५४४. (#) जीणपालजीणऋषि चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५ (१ से ५) = ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४२९-३२). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बिदेह म जासी सोख्यो, ढाल -४, गाथा-७३ (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है., ढाल -२, गाथा- २ अपूर्ण से है.) " For Private and Personal Use Only ७३५४५. चतुर्मासकत्रयी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८६२ आषाद अधिकमास शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १६-१३ (१ से १३)=३, ले. स्थल. महिमापुर, प्रले. पं. उद्योतविजय (तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्री सुविधिनाथजिन प्रसादात्., जैवे., (२४.५X१२, १४X३० ). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः सुविशदं व्याख्याभूत, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मात्र होलिका व्याख्यान है.) ७३५४६. (#) द्रुमपुष्पिकाध्ययन, धर्मोपदेश सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र द्रुमपुष्पिकाध्ययन, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख; अंति: हिंसा तणौ परमाण, गाथा-२०. ३.पे. नाम. गोडीजीस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: उदयरत्न० जाल त्रोडी, गाथा-८. ७३५४७. (#) सामायक बत्रीसदोषनीवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. पं. रूपसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १३४३०). सामायिक सज्झाय, म. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमि पाय; अंति: कहे श्रीकमलविजय सीस, गाथा-१३. ७३५४८. स्तवन, सज्झाय व दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२, १७X४६). १.पे. नाम, छन्नूदेवनी ओली जिननामोपरी, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण.. ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनिरवाणी; अंति: वाचक मूला कहे सुखकर, ढाल-८. २. पे. नाम. राजुलभाषित रहनेमिथिरकरण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडो नाजी देवरिया; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: पडसे गढ पाषाण; अंति: जाते दीहे जाजरा, गाथा-१. ७३५४९. तीर्थ चैत्यवंदन, साधारणजिन नमस्कार व २९ भावना छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५-१३४(१ से १३४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, ११४२८). १. पे. नाम. तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १३५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खेमो० पामइ सुख अनंत, (पू.वि. विमलविहार वंदना अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, पृ. १३५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: नाथाय महावीरायतायिने, श्लोक-५. ३. पे. नाम. २९ भावना छंद-वैराग्यप्रेरक, पृ. १३५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मनि थिर करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७३५५०. अरणिकमुनिवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १३४४०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: रूपविजय० फल साधो जी, गाथा-११. ७३५५१. जगडूशा शेठ चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १७४३७). जगडूशा शेठ चौपाई, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: पास जिनेसर पाय नमी; अंति: शिष्य केशर गुण गाय, गाथा-२६. ७३५५२. नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १२४४०). नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. कलश अपूर्ण तक है.) ७३५५३. (+) मुनएकादशी गुणणो व श्रावक २१ गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. सामान्यरूप से अंतिम पत्र में गणित के अंक दिए गएँ हैं., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२४४२). १.पे. नाम. मुन एकादसी गुणणो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरतक्षेत्र; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. २. पे. नाम. इकवीस गुण श्रावकना, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: १विवहार शुद्ध; अंति: हतकारी २१लब्धलक्षण, अंक-२१. ७३५५४. (+) सिद्धाचल स्तवन, नवपद स्तवन व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (१७.५४१०, १४-१७४११-१८). १. पे. नाम. सीधाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा निवाणुं करे; अंति: पद्म कहे भव तरीये, गाथा-१०. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिया चतुर सुजाण नवपद; अंति: नवपद संग पसाय रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गीरवारे गुण तम तणा; अंति: जस० प्राण आधारो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चंदाजी श्रीमंदर; अंति: (-). ७३५५५. औपदेशिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८१९, फाल्गुन शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. समदरडी, प्रले. रायचंद मिथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, १५४३२). औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकल्याणमाला संपजै, (पू.वि. स्वदोषदर्शन अधिकार अपूर्ण से ७३५५६. (+) ऋषिमंडिल स्तोत्रं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १५४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलिख्य; अंति: लभते पदमव्ययं, श्लोक-७०. ७३५५७. पडिकमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, १४४३२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आलोयणासूत्र अपूर्ण से वरकनकसूत्र अपूर्ण तक है.) ७३५५८. (+) चंद्रार्की वृत्ति, चंद्रार्की पंचांग व ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८.५४१२.५, १५४२४). १. पे. नाम. चंद्रार्की वृत्ति, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चंद्रार्की, उपा. मेघविजय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: कृपा० शिशू० शम्मर्णा, (पू.वि. अंतिम दो श्लोक में से प्रथम श्लोक अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चंद्रार्की पंचांग, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. चंद्रार्कीपद्धति-चंद्रार्की पंचांग, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: यथा सूर्य स्पष्टः ११; अंति: सौभाग्य ८।५७. ३. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: अथ चंद्र स्पष्टीकरण; अंति: (-), (पू.वि. तद्राश्यादि ६।१६।३ पाठांश तक है.) ७३५५९. (+) नेमराजिमती स्तवन व प्रसन्नचंद्र ऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४११.५, १२-१५४२३-२७). १. पे. नाम. राजिमती तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अजब झरुखे; अंति: देवविजय जयकारी, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्र ऋषि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: रूप० दीठा ए परतख्य, गाथा- ६. ७३५६०. (+#) पट्टावली व ३२ सूत्र नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी में कल्पसूत्र लिखा है., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१.५४१२, १३४२४). १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाहावीरने पाटे; अंति: दीनकर समान प्रवर्तते. २. पे. नाम, ३२ सूत्र नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण इंडिया मान्य ३२ आगम सूचना नाम, मा.गु., गद्य, आदिः आचारंगजी प्रथम, अंति: आवश्यकसूत्र ३२मुं ७३५६९. नवकारवाली सज्झाय व नानी शांति-मोटी शांति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९६ कार्तिक कृष्ण, २. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. राधणपुर, प्रले. पं. भेमविजय, लिख श्राव. कस्तुरभाण, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२२x१२, १४x२७), १. पे. नाम. नोकरवालीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेज्यो चतुर नर ते अंतिः रूप कहे बुध सारी रे, गाथा-५. २. पे. नाम, नानी शांति मोटी शांतनी सज्झाय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणो रे; अंति: देवचंद० संघ जगीस रे, गाथा-८. ७३५६२. ह्रीँकार विधि व सरस्वती मंत्र प्रयोग, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी सरस्वती, जैवे., ( १९x१२, १०x२४). १. .पे. नाम. ह्रींकार विधि, पृ. १अ संपूर्ण. ह्रीँकारविद्या स्तोत्र-मंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि : आधारकंदोद्भवतंतु; अंति: कामितमेव विद्या, श्लोक ५. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र व जापविधि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रथम पेटांक के अंतिम श्लोक ५ के बाद इस कृति के श्लोक को नं. ६ दिया गया है. आ. हेमसूरि, प्रा.मा.गु. सं., पग, आदि: चंदनचंद्रगुटी० भक्षय, अंति: गुटी बुद्धिः स्यात् (वि. बुद्धिवर्धक गुटिका विधान.) ७३५६४. आचारछत्रीसी, भोलपछत्तीसी व ७ व्यसन सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२१x११, १७X३१-३७). १. पे. नाम. आचारछत्रीसी, पृ. १अ २अ संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु, पद्य, आदि: साधु ते सूत्र भणी: अंतिः रतनचंद० भविवण प्राणी, गाथा- ३७. २. पे. नाम. भोलपछत्तीसी, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: भविका देखो न्याय, अंतिः तिलोक० करवा पर उपगारो, गाथा- ३७. ३. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. मु. हजारीमल, मा.गु., पद्य वि. १९३९, आदि: सत विसन मत सेवो रे, अंतिः हजारीमल० सुख पाय जी, गाथा- ९. ७३५६५. वैराग्य सज्झाय व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४X११, १५X४०). १. पे. नाम, वैराग्योपरि सज्झाय, पृ. ९अ. १ आ. संपूर्ण ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलउ, अंतिः श्रीविजयदेवसूरि, गाथा १५. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुपद सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचर इंद्रि अहि निशि; अंतिः श्रीविजयदेवसूरिजी गाथा- ७. ७३५६६. (+) दृष्टिवाद का संक्षिप्त वर्णन, संपूर्ण, वि. १९९८, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. मु. समर्थमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (२३४१२, १९४३२-५१). दृष्टिवाद विचार, पुहिं., गद्य, आदि सर्व अपेक्षित नयों अंतिः चूलासु भणियं. For Private and Personal Use Only " Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३ (-#) ७३५६७. (*) वायुभूति गणधर सज्झाय व व्यक्त गणधर सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, २. प्र. वि. हुंडी: सजइ., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, १३x२४) १. पे नाम, वायुभूति गणधर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: वायुभूति नित बंदीए, अंतिः चद्रभाण० करम जंजीर, गाथा- ९. २. पे. नाम. व्यक्त गणधर सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: बीगतरषीसर बांदीय हुं, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७३५६८. (+०) चेलणासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी चेलणा, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x१२, १६x३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा माबीरजी बीर; अंतिः दयाचंद० मरणरी खोली, ढाल १३. , ७३५६९. (+) सप्ततिशतजिन स्तोत्र व नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७२-७१(१ से ७१) १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१४×११.५, १३X२१). १. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्रं, पृ. ७२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४ (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. ७२अ-७२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ७३५७०. (+) १२ चक्रवर्तीनो लेखो व २७ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : चक्रबरत., अशुद्ध पाठ- संशोधित., दे., (२२x१२, १७२५-३३). १. पे. नाम. १२ चक्रवर्तीनो लेखो, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. चक्रवर्ती गति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला वांदु श्रीभर्त; अंति: तेइसमारे बीचे हुवा. २. पे. नाम. २७ बोल-अल्पबहुत्व, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले सुक्ष्सम, अंति: जलम घणा ने मरणइ घणा. ७३५७१. सिद्धचक्रयंत्र आराधवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. हीरविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५x१२, १५X३८). नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हे मवणा आशो शुद सातम; अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा " अपूर्ण., सिद्धचक्रजी के सामने देववंदन करने तक लिखा है.) ७३५७२, (+) सोलै सुपना, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५x११.५, १९X५६). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: पाडलीपुर नामै नगर, अंतिः ए जैमलजी करी जोडोरे, गाथा-३८. For Private and Personal Use Only ७३५७३. (+) जीवराशि, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु ', मु. सबलदासजी); गुपि. मु. सबलदासजी पठ. श्राव. किस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. लो. (४२२) भणजो गुणज्यो राखीजो, दे., (२३.५X११.५, १४४३५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हवे राणी पदमावती जीव; अंतिः समै० पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५, ७३५७४. (+) पर्युषणा विधि व देवसीय प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु.मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे (२४.५x११, १६x४४). १. पे. नाम. पर्जुषणा विधि, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व आराधना विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अंति: इच्छा कार्य करी. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. देवसी पडिक्कमणो करवानी विध, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. देवसीयप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: (१)संतिकर० कार्य करीजै, (२)जाइजै इछाकार्य करीजै. ७३५७५. (#) इरियावही सज्झाय वसीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. इरियावही स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. गोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसल दायक अरिहंत; अंति: मेरुविजय० नामेइ शीश, गाथा-१६. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व दिस इसांन कुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथांक नहीं दिया गया है.) ७३५७६. (+) जंबूस्वामी सज्झाय, कर्म सज्झाय व सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १३४२९). १.पे. नाम. जंबुकुंवर सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीयो; अंति: पुहता छे मुगति मझार, गाथा-१६. २. पे. नाम. करम ऊपर सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, प्रले. काणा, प्र.ले.पु. सामान्य. कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: रिद्धहरख० है राजा रे, गाथा-१८. ३. पे. नाम. सीतारी सिज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रिया छोड; अंति: जिनरंग० पग भावै करी, गाथा-११. ७३५७७. श@जयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४२९). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सर तिलो; अंति: राजसमुद्र० लील विलास, गाथा-१०. ७३५७८. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १७९७, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. अमरचंद ऋषि; पठ. दयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १२४३२). नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये; अंति: हरखकिरत० सुख पाबै, गाथा-२३. ७३५७९. कल्याणमंदिर स्तोत्र व जीव गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३६). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जीव गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: असै चिदानंद खेल होरी; अंति: जिनचंद० खेलइ जे होरी, गाथा-५. ७३५८०. (+) तप सज्झाय व पुंडरीककंडरीक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुलपे. २, प्र.वि. हुंडी: पुडरी., संशोधित., दे., (२२.५४११,१४४३७). १. पे. नाम. तप सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, आदि: तप वडो संसार मे जीव; अंति: आसकर्ण० आज मझारो रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. पुंडरिककंडरीक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खेवो पार रे लाला, ढाल-२, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-१० अपूर्ण से लिखा है.) ७३५८२. (-) औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०४११, १८४३०). For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२५... ७३५८३. (+) अनुकंपाधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, ११४३२). अनुकंपा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जीव छोडाव दाम दे जिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ७३५८४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३७). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संभवजिन स्तवन अंतिम गाथा अपूर्ण से पद्मप्रभजिन स्तवन तक है.) ७३५८५. (+-) सीमंधरजिन स्तवन व युगमंधरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२३४१०.५, १८४४२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आसकरण, मा.गु., पद्य, आदि: वासी मे माहादेवदेवक: अंति: आसकर्ण गरभा उवास मै. गाथा-८. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: अहो लाला जुगमिद्रजिन; अंति: सबलदास ना गरबावास रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: हारेकाइ; अंति: कुसाल जिणंदसुरेलो, गाथा-९. ७३५८६. (#) रात्रिभोजन सज्झाय, अजितजिन स्तवन व नेमराजुल बारमासो, अपूर्ण, वि. १८८५, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११-९(१ से ८,१०)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट. हुंडीः रात्रिभोजीनस्वाध्यायसंपूर्ण., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १३४२२). १.पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हेम० ते नरनारी धन रे, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण निध पांमी रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७३५८७. कर्मविपाकछत्तीसी व १६ सती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०.५४११, १४४२७). १.पे. नाम. कर्मविपाकछत्तीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सूत्र ग्याता मै कही; अंति: कुशालचंदगुरू प्रताप, गाथा-३५. २. पे. नाम. सोल सत्यारी सज्झा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सीलसु रंगी भांतिसू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७३५८८. चतुर्विंशतीजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १, प्रले. मु. हेमविजय; पठ. श्रावि. सहजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १६४३४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: मरालायर्यते नमः, श्लोक-२७. ७३५८९. विजे कवर लावणी, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जेपुर, प्र.वि. प्रतिलेखक अस्पष्ट-बालावकसव्या, दे., (२०.५४११, २०४३९). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: मनुष जमारोपायने जे; अंति: रामपुर गुण गाया, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३५९०. (#) वरकाणा पार्श्वजिन स्तवन, नाकोडा पार्श्वजिन स्तवन व दूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रावण शुक्ल, ५, गुरुवार, प्रले. पं. जीवणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काइ जीव मनमै कसकै; अंति: जिनहर्ष० दादो रंगरली, गाथा-९, (वि. आदिवाक्य ___खंडित होने से प्राप्त अंशाधार पर दिया है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घर बेठा निल करो; अंति: सुंदर कहे गुण जोडो, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: लोहा दिठो लागतो कामण; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ७३५९१. (+) कृष्णबलभद्र पूर्वभव, ७ अभव्य, सत्यकी कथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(४ से ५)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४३२-४५). १.पे. नाम. कृष्णजीरा बलभद्रजीरा पूर्वभव, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कृष्णबलभद्र पूर्वभव, मा.गु., गद्य, आदि: पूठिले भवे हत्थिणाउर; अंति: (१)श्रीकृष्णजी जन्म थयो, (२)भव श्रीनेमनाथे कह्या. २.पे. नाम. ७ अभव्य अधिकार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: संगमे १ कालशूरे य २; अंति: एचेलो सातमो अभव्य. ३. पे. नाम. सत्यकी नामे महादेव तेहनी उत्पत्ती, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महादेव उत्पत्ती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पेढाल नाम विद्याधर०; अंति: (-), (पू.वि. रोहिणी व सत्यकी संवाद अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. सीतानो अधिकार, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सीतासती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महाविदेहइ मोख्य जासी, (पू.वि. सीता वैराग्याधिकार से है.) ७३५९२. वृद्धपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, ११४३५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरू पाय; अंति: समय० भाव प्रसंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ७३५९३. शत्रुजय उद्धार रास व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४१२, १०४२५). १.पे. नाम. पृ. १अ, संपूर्ण. __ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धरम पायो दोहीलो; अंति: नवल कहे०भजीये भगवान, गाथा-४. ७३५९५. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १३४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) ७३५९६. (+) पंचतीर्थजिन स्तवन वशीतलजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. ५ तीर्थजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आद जिनेसरु ए; अंति: लावण्य० दोष ज आपदा, गाथा-६. २. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७ शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनवर आगलै हु; अंति: कांतसागर पुरो आसरे, गाथा-५. ७३५९७. गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४११, १५४४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७३५९८. (+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १०x२२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अम कमल जिम धवल; अंति: जिणचंद० फली मने आस, गाथा-८. ७३५९९. (#) आदिजिन स्तवन, अभिनंदनजिन स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ११४२६-३४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मे तो मारे जिनजीने; अंति: बुध कहे सोभा थाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दर्शन जाउ वारी रे; अंति: बुध विनती करंदा, गाथा-७. ७३६००. स्थापनाजी बोल, पच्चक्खाण आगार, १८भार वनसपती व विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १०, दे., (२३४११.५, १२४४०). १.पे. नाम. मनुष्य गतिना भेद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मनुष्य गति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मभूमिना मनुष्य१; अंति: पण काल सरखो जाणवो. २. पे. नाम. १४ राजलोक प्रमाण, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: आडत्रीस क्रोड प्रमाण; अंति: एतले राज मांन थाए. ३. पे. नाम. वनस्पतीनो प्रमाण, पृ. ३आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम क्रौड अडत्रीस; अंति: कवि शुभ०कहे मोटा यति. ४. पे. नाम. देवगती प्रमाण गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. देव कीगतीप्रमाणगाथा, मा.गु., पद्य, आदि: गती शीघ्र देवतणी; अंति: ए देव गती प्रमाण, गाथा-१. ५. पे. नाम. ४५ लाख योजन प्रमाण ४ वस्तु, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देवलोके नरके प्रथम; अंति: लाख पीस्तालीस समान, गाथा-१. ६. पे. नाम. लाख योजन प्रमाण वस्तु, पृ. ३आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: मेरु जंबुधीप सप्त; अंति: लाख लाख जोजन प्रमाण, गाथा-१. ७. पे. नाम. मनुष्यलोके देव अनागमन कारण, पृ. ३आ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि: चत्तारी सहस्स गाउआई; अंति: लोकाई तेणै दैवा नही, गाथा-१. ८. पे. नाम. अढार भार वनस्पती प्रमाण, पृ. ३आ, संपूर्ण. भारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: छो सरसवे एक जव त्रण; अंति: माननु प्रमाण. ९. पे. नाम. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध सरूपी१ शुद्ध; अंति: वचन गुती०कायगुप्ती१३. १०.पे. नाम. १० पच्चक्खाण के आगार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. प्रा., गद्य, आदि: नोकारशीना२ अनथण सहसा; अंति: बहुः ससित्थेः १०. ७३६०१. श्रेयांसजिन स्तवन व धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, १३४३६). १.पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मुनिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस जिनेसरू; अंति: रे सुखकारी संबंध रे, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमनाथ जिणेसरु; अंति: नमैसागर आह्लाद हो, गाथा-७. ७३६०२. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०x१०, ८x२७). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें किधप मधु; अंति: (-), श्लोक-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३६०३. जिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२१४१२.५,११४२३). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रोम अधिक तनुवान, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मोनि संभवजिनसुं; अंति: दिलमा हे धारो रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक ७३६०४. (+) कर्मप्रकृति कीटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३-८१(१ से ८१)=२, प्र.वि. संशोधित., ., (२४४१०.५, १७X४५). कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जैनो धर्मश्च मंगलम्, अधिकार-७, (पू.वि. प्रारंभ __ के पत्र नहीं हैं., मोहनीय के सर्वोत्तर प्रकृतिबंध का वर्णन अपूर्ण से है.) ७३६०५. (#) गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४११, १५४३२). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. अधिकार-३ की गाथा-८७ __अपूर्ण से अधिकार-४ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७३६०६. आहारना ४२ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, ३४२८-३७). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मे १ उदेसिय २; अंति: पायरासिय कप्पे, गाथा-५, (वि. अंत में घरेलू बर्तनों की सूची का उल्लेख है.) ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधारकर्मी तखतिने लीध; अंति: ते संजोजना जाणवी. ७३६०७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. साधु आचार सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदय० बालक तास जगीस, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करो; अंति: मनवंछित फल लाधे रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनवाणी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिने समरी करी; अंति: सुबुद्धिवि० मंगल थाय, गाथा-८. ४. पे. नाम. तृतीयाध्ययन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम मानव भव दोहिलो; अंति: उदयविजय उवझाय, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. उपा. उदयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: आज जिम कोइक पोषै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७३६०८. अजित व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (१८.५४१०.५, १०x२८). For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी अजित जिणंद; अंति: सफल दीन आजनोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवज्यो रे सखी जिनरा; अंति: पद्मविजय भावेलही रे, गाथा-५. ७३६०९. सविधि देवसीप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, ९४३१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अब्भुट्ठियो सूत्र से पुक्खरवर्दीवड्ढे सूत्र अपूर्ण तक है.) ७३६१०. होली कथा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२०x१०.५, १७४३६). १. पे. नाम. होली कथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम धराधिपति प्रथम; अंति: विनयचंदजी कहे करजोरी, ढाल-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: संता ऐसी दुनिया भोली; अंति: जब कुट माता छाती, गाथा-१७.। ७३६११. (#) वीरशासने प्रमुख घटना व काल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२२४११, ३१४११-३०). महावीरजिनशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: वीरात् २९१ संप्रति; अंति: ११०९ जीरापल्ली तीर्थ. ७३६१२. सिद्धाचल स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. भाईचंद ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११.५, ११४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुरासुर सेवे राया; अंति: कल्याण विमल सुख थाय, गाथा-४. ७३६१३. (+) बाहुबलिमहामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वसुग्राम, प्रले. मु. सुंदरविजय गणि; अन्य. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १३४२९). बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्याने; अंति: तेह समकित सिंधुरा, गाथा-६. ७३६१४. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११.५, १४४३९). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: किंचिद्विचारणा, (पू.वि. अभिषेक कलश संख्या विचार अपूर्ण से ७३६१५. सप्तभंगीस्वरूप सह विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४११, १३४३२). सप्तभंगीस्वरूपगाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिया अत्थि १ सिया; अंति: सव्वभावे सुसम्मया, संपूर्ण. सप्तभंगीस्वरूप गाथा-विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, आदि: सकल पदार्थ आप आपणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. द्रव्यक्षेत्रकाल का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७३६१६. (+) जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४११, १२४३७). जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वायुकुंड एवं सिंधुद्वीप का वर्णन अपूर्ण से लवण समुद्र का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७३६१७. (#) चंदनमलयगिरि वार्ता, संपूर्ण, वि. १७६४, कार्तिक कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. प्राहमाग्राम, प्रले. श्राव. धनराज मथेन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, २३४५३). चंदनमलयागिरिरास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भए सुख सवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-२०१, (वि. आदिवाक्य आंशिकरूप से खंडित है.) For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३६१८. औपदेशिक कवित्त, दोहा व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. फता पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११,११४४७-५२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-२० स्थानक, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाल तब; अंति: हिव जे जे आगल थाय, गाथा-२३. २. पे. नाम. अधमपुरुष लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: तिडको डार्यो साह आवत; अंति: तरणाथी भारथ हुआ, गाथा-१. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३६१९. (+) गौतमस्वामी स्तवन, २४ जिन नाम व शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११, १९४२६-४१). १.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. २४ जिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभनाथजी; अंति: श्रीमहावीरजी, अंक-२४. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ४. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती नाम, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मीजी १ चंदनवाल; अंति: कुर्वंतु वो मंगलं. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-संखेश्वरमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ७३६२०. महावीरजिन पद व गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ९४२१). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मेरे समझे; अंति: रूप० मे त्रिण काल रे, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवो रे सेहियर; अंति: रूप०विलसे श्रीकार रे, गाथा-७. ७३६२१. (#) अढारनातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७४९.५, १७४३२). १८ नातरा सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मागु एक पसावोजी अढार; अंति: ते पावै निरवान, गाथा-५८. ७३६२२. भक्तामरगुप्त गाथा, संपूर्ण, वि. १९४४, भाद्रपद कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सालावस, दे., (२१४११.५, १०४३१). भक्तामर स्तोत्र-काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ आदिनाथमहंतरिहंत; अंति: सुदयामृतधर्मपालान्, श्लोक-४. ७३६२३. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ); पठ. श्राव. कपूरचंद खुशाल शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १०४२०-२३). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीइकमनवंदु स्वामी; अंति: विनवै पूरोमनवंछितणी, गाथा-२५. ७३६२४. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२१.५४१०, १२४३०). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: कर्मरुप अरि जीतवा; अंति: ज्ञानसागर गुण गाय जी, ढाल-५, गाथा-५७. For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३६२६. (#) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१९.५४११.५, १२४२४). अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. ७३६२७. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(२ से ४)=२, जैदे., (२०७११, १४४२९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसाद रे, ढाल-८, गाथा-१००, ग्रं. १३५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ७३६२८. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, दे., (२०.५४११.५, १४४२४). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष गावंदा है, गाथा-२७, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से गाथा-१० अपूर्ण तक व १९ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक नहीं है.) ७३६२९. (#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १४४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ७३६३०. आषाढभूति व चेलणासती चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १२४४५). १.पे. नाम. आषाढभूति चौढालियो, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., वि. १८५६-१८६३, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. श्राव. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: (-); अंति: ते जगमाहे धिन हो, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-७ की गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चेलणासती चौढालियो, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकले ते; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७३६३१. (+) खंधकमुनि चौढालियो व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. वा. गतुजी (गुरु सा. रतुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १७४३६). १. पे. नाम. खंधकमुनि चौढालियो, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: आदि जिणंद आदि दे; अंति: मिच्छामि दुक्कडम मोय, ढाल-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-संयमित वाणी, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-संयमित वाणी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक थोड़ा बोलीजे; अंति: ते सुणजो चितलाइयो जी, गाथा-५. ७३६३२. (+) चौदह गुणस्थानक ७८ द्वार विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४६०). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३६३३. (+) दलाली सज्झाय-धर्मदलाली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४३२). औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: दलाली इस जीवन कीधी; अंति: समझाव आग थारो इकतार, गाथा-३२. ७३६३४. (+) शील रास, अपूर्ण, वि. १९०१, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १६x४६). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: एम विजयदेवसूर के, गाथा-७३, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-६० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३६३५. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-२० (१ से २०) = २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२०४९.५, ९४२३). " ७३६३८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४.५४१०.५, २०३५). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. २१अ- २२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक - ९३, ग्रं. १५०, (पू.वि. श्लोक ७३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य वि. १८१७, आदि: सहस्रफणा प्रभु पासजी अंति: (-), (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक चित कंदु वीर, अंतिः जेत० आसा पुरो हम तणी, गाथा - २८. ७३६४०. (#) पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १७x४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती जीव; अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाधा ३६ अपूर्ण तक है.) ७३६४१. समकित छप्पनी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, दे., (२५X११, ९३६). सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तथा श्रावक है अराध, गाथा - ५६, ( पू. वि. गाथा -५० अपूर्ण से है.) ७३६४२. शीतलजिन, सीमंधरजिन स्तवन व गौतमगणधर स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२, कुल पे. ३, दे., (२४.५X१०.५, १५X३२-३५). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर०जीन मन मोहए, गाथा - १५, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एहबु अंतिः पूर आस्या मनतणी, गाथा - १८. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गोतम प्रणमी, अंति: (-), गाथा-८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३६४३. नववाडि सज्झाय- ब्रह्मव्रतविशे, अपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, ले.स्थल. मलारगढ, प्रले.मु. विनोदसागर (गुरु पं. ललितसागर); गुपि. पं. ललितसागर; अन्य. मु. गुमानसागर (गुरु मु. भाग्यसागर) गुपि, मु. भाग्यसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२४.५४१०५ १२४३४). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, वि. १७२९, आदि (-) अंतिः जिनहरख० जुगती नक्वाडि, दाल-११. गाथा-९७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा- ७४ अपूर्ण से है.) ७३६४४. (+) स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्रले. मु. क्षमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. पत्र १२, संशोधित दे. (२०४७.५, २६४१२). For Private and Personal Use Only १. पे नाम, पार्श्वजिन छंद नाकोडा, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि अपणे घरि बैठा लील; अंति: कह गुण जोडो, गाथा-८. २. पे. नाम. पर्व गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनवरजीनां गुण अंति: उदयरतन दुख टाली रे, गाथा ११. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३६४५. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १६६७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १ ले स्थल स्तंभतीर्थ, प्रले. मु. पचप्रमोद पठ श्रावि कहीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५४११, १३४३२-३६). "" साधुवंदना, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: मन आनंदि संधुआ, डाल-७, गाथा-८८, ( पू. वि. गाथा - ७६ अपूर्ण से है . ) ७३६४६. (७) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x११, १३x४२). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि हां रे प्रभु संभव अंतिः सवि लेखे थशे रे लो, गाथा-५. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. , कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजवसी जोगनी, अंति: मुझ मन मिंदर आवो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेहुडलै भार घणो छे र; अंति: ले कंत धवल गुण हंस, गाथा- ६. ४. पे नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, आदीनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि जिनदेवे नमस्कृतः अंतिः कार्यसिद्धिश्चदायकः, श्लोक ५. " ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी चित आणो हो मत; अंति: भगती बे कर जोड, गाथा - ५. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. भाणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आदिश्वर प्रभु नयणे; अंति: भाण विमल गुण गा रे, गाथा - ५. ७३६४७. पार्श्वजिन स्तवन व पिस्तालिस सूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. जीतहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११, १५X४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पंचासरामंडन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभुजी पास पंचासरा अंतिः खीमावीजे जिन सुख करे, गाथा १४. २. पे नाम, ४५ सूत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ४५ आगम सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अंग इग्यारने बार; अंति: यश कहे ते शिव वरे, गाथा - १३. ७३६४८. नवकार, आदिनाथ व गणपति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. नाडोल, प्रले. मु. बुधविजय पठ. मु. किसनजी साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४११, १४४३८). १. पे. नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्म, आदि: पंचपरमेष्ठि, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. गणपति स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गणेश स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: हेमजा सुतं भजे गाणेश अंति: वांछाफल नरोत्तमं श्लोक ५. ७३६४९. अभयदेवसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२०.५X१२, २३X२०). अभयदेवसूरिजी की स्तुति, मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय आचारज पटधारी; अंति: भणी हित काजै, गाथा - १८. ७३६५० (४) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X३४-३९). पार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कहो तो रमवा जाउं०; अंतिः सेवा पास जिणेसरु, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only ८३ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३६५१. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, प्रले. किसन भोजग; पठ. मु. बुधसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२४७) भग्न प्रीष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., (२४.५४११, ५४३९). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: कल्याण मांगलिक्य हवउ, (पू.वि. श्रीजिनहससूरि की ___पाट परंपरा अपूर्ण तक है.) ७३६५३. (+#) तीर्थमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३५). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सदभक्त्या देवलौक रवि; अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ७३६५५. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-६४(१ से ६४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १५४४७). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-६ ढाल-२५ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२७ की गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७३६५६. (#) बारदेवलोक जिनबिंबसंख्या विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, ९४२६). शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नमस्कार होजो, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., एक सौ अस्सी जिनबिंब की चर्चा अपूर्ण से है.) ७३६५७. निश्चयव्यवहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, जैदे., (२५४१०.५, १३४४४). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणे वीतरागजिन इम कहे, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-३ से है.) ७३६५८. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व देवलोक नामादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७X४९). १. पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कम्मभूमिसूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. १२ देवलोक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मदेवलोक? ईशान; अंति: अच्युतदेवलोक१२. ३. पे. नाम.५ अनुत्तरविमान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विजय १ वैजयंत २ जयंत; अंति: सर्वार्थसिद्ध५. ४. पे. नाम. ९ ग्रैवेयक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुदंसरण१ सुप्रबद्ध२; अंति: पीयंकर८ नंदिकर९. ५. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभरत१ श्रीसगर२; अंति: श्रीब्रह्मदत्त१२. ६. पे. नाम. ९ वासुदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: त्रिपृष्टवासुदेव१; अंति: कृष्णवासुदेव९. ७. पे. नाम. ९ बलदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अचल विजय२ भद्र३; अंति: श्रीराम८ श्रीबलभद्र९. ८. पे. नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी१ पोरसी२; अंति: अभिग्रह९ विगई१०. ९.पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति अतरफ की बची हुई जगह में लिखी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ नाम पिता; अंति: (-), (पू.वि. शांतिजिन वर्णन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३६५९. पद्मिनी बारमासो व गणधरवंदन गहुँली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १३४२८-३७). १.पे. नाम. पद्मिनी बारमासो, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पद्मिनी बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बांधी ही रानी गांठ, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गणधरवंदन गहंली, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे कामनी कहे सुणो; अंति: वीर सासन सिणगार रे, गाथा-८. ७३६६०. (+) १७ भेदी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., दे., (२५४११, ८४३४). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., प्रथम ढाल के गीत की गाथा-३ अपूर्ण से है व द्वितीय ढाल के गीत की गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३६६१. आयुष्यकर्म विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-३६(१ से ३६)=१, जैदे., (२५४११, १४४४७). आयुष्यकर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विन खपायें मरन नहीं, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., आयुष्य कर्म के १०वें बोल से है.) ७३६६२. (#) वीसविहरमान स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४३४). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंति: (-), (पू.वि. जुगमधर स्तवन अपूर्ण तक है.) ७३६६३. अल्पबहुत्व विचार व २८ लब्धि नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडीः दिसद. पत्रांक अकी ओर लिखा हुआ है., दे., (२४४११, १३४४१). १. पे. नाम. अल्पबहुत्व विचार, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेह थक० विशेषाधिक, (पू.वि. तइ थोडा जे पाठांश से है.) २.पे. नाम. २८ लब्धि नाम, प्र. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही नामा लबधि१; अंति: पुलाक नामा लबधि२८. ७३६६४. द्वादशानुप्रेक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. गुणनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३८). १२ भावना गीत, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जब देखै घटमाहि, भावना-१२, (पू.वि. दोहा-१० अपूर्ण से है.) ७३६६७. पार्श्वनाथ अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१२, २३४१५). पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम, श्लोक-९. ७३६६८. प्रतगत कृति बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, ११४७-२०). प्रतगत कृति बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: १ दस दाना की सीझा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., क्रमांक-१५ तक लिखा है.) ७३६६९. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१८(१ से १८)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४५). साधुवंदना चौपाई-चौवीसजिन, ऋ. कुंवरजी, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: (-); अंति: वेगि एणी परि पाइयइ, गाथा-२४६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-८ गाथा-११ अपूर्ण से है.) ७३६७०. (#) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १७X४२). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. ७३६७१. अष्टक वस्तुति, संपूर्ण, वि. १९६५, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. अमृतरंगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१२, २३४२०). For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नेमिजिनाष्टक, पृ. १, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-द्वयक्षरगर्भित, सं., पद्य, आदि: मनोनान् नमोनेन नुन्न; अंति: वध्वा परिभोगयो ग्याः, श्लोक-९. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: भावदाता ददतु सवं वः, श्लोक-१. ७३६७३. आगमिक विविध प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, २३४३६-४२). आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीसमवायांगजीमा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ८वें प्रश्न के उत्तर तक लिखा है.) ७३६७४. (-) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. पंडित. वीरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अशुद्ध एवं अस्पष्ट है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११.५, ११४३३). ___पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुरत ताहरी हो राज; अंति: भक्तिविजय०भणे हायडे, गाथा-७. ७३६७५. (+) आत्मा की आत्मता, ज्ञानादि के पर्याय व जीवोत्पत्ती स्थानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १६x४२). १. पे. नाम. आत्मा की आत्मता, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी१; अंति: मोक्षमार्गः. २. पे. नाम. ज्ञानदर्शनचारित्रनी पर्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानदर्शनचारित्र पर्याय बोल, मा.गु., गद्य, आदि: समकितना पर्याय१२; अंति: ए आदिअनंत पर्याय. ३. पे. नाम. १० सम्यक्त्वरुचि बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: निसर्गरुचि१; अंति: धर्मरुचि१०. ४. पे. नाम. समर्छिमजीव उत्पत्ति स्थान, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ समुर्छिममनुष्योत्पत्ति स्थान, प्रा., गद्य, आदि: उच्चारेसु वा१ पासवणे; अंति: मणुस्सा समुच्छति. ५. पे. नाम. षट्दर्शन देवना गुरुना नाम सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. षड्दर्शन देव गुरु नाम विचार, सं., गद्य, आदि: मिमांस१ बौधर शिव३; अंति: मुखर्दूममल्ला६. षड्दर्शन देव गुरु नाम विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संन्यासी१ बौद्धद०; अंति: गुर ते काजीमल्ला. ७३६७६. (#) सरस्वती छंद- भगवती जयकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, प्रले. मु. माणकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४१०, ११४२३-२६). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: होउसया संघकल्लाणम्, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक नहीं है.) ७३६७७. (#) चैत्यवंदन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०.५, ११४२५). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रुपविजय गुण गाय, चैत्यवंदन-२५, गाथा-७५, (पू.वि. आदिजिन स्तवन अपूर्ण से है.) ७३६७८. (+) शालीभद्र सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४११, १०x२१). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "आठगढ कोसी सावसमीथे वाट" पाठांश से "ते जोवा देवकुमार वडे रो कुंअर अभयकुमार ते" तक है., वि. गाथांक नहीं है.) ७३६७९. (#) औपदेशिक सज्झाय- नारी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १४४४१). औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., पद्य, आदि: बैठी साधु साधवी पास; अंति: संकान ही छै काय कै, गाथा-२२. ७३६८०. (+) नेमकुवर धमाल व आदिजिन हरियाली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१५४३९). For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १. पे. नाम. नेमिनाथ धमाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत पास; अंति: तेजहरख सुख होय, गाथा-१७. २. पे. नाम. आदिजिन हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कहो तुम्ह पंडित कुण; अंति: विनयचंद जयकारी रे, गाथा-७. ७३६८१. मदनकुमार रास-शीलव्रताधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२,१३४३८). मदनकुमार रास-शीलव्रताधिकारे, ग. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: नामें नवनिधी सिद्धि; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३६८२. (#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. स्याहजदानाबाद, प्रले. मु. हर्षसागर; राज्यकालरा. अकबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुमतिनाथ प्रसादात्, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (६०४) जब लग मेरु अडिग है, (१२४८) कडि कुवड बांकी करी, जैदे., (२५४११, १२४३३). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव पशंसियो, ढाल-३, गाथा-२०.. ७३६८३. (+) स्तोत्र व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१x१०.५, ८-११x१६-३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सुरनरासुर नायक पूजित; अंति: सुक्ति विद्या विलासै, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमजिनस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: मोरला बपैया बोले पिय; अंति: भई है वैरागण छिन में, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिद्धाचलजिनपद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव धर धन्य दिन आज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७३६८४. (#) मौनएकादशीपर्व कथा व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. खुमाणचंद्र ऋषि (गुरु मु. रत्नचंद्र ऋषि); गुपि. मु. रत्नचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९-१४४३१-३७). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, प्र. १अ-४अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरजिनं नत्वा; अंति: भगवान प्रतिपालयंति. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धर्यो जब इस; अंति: मुच्च जेसी थतुहः, गाथा-३. ७३६८६. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, दे., (२०x१०,८x१९). ___ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणंतभागोय सिद्धि गओ, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ७३६८७. (+) रात्रिभोजन सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११, १४४३२). १.पे. नाम. रात्रीभोजननी सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुपद प्रणमी आणी; अंति: जस सौभाग्य लहीजइंरे, ढाल-४, गाथा-३५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: आप सदा समझावें मनमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ७३६८९. पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४११, ७४३९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (१)ते मुज मिछामि दुकडं, (२)रहो कट जाए भाग कर्म, ढाल-३, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३६९०. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७२०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वगडी, प्रले. मु. जीवण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १६१, जैदे., (२५.५४११, १४४४८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: तो भाषितम भनंदन्निति. ७३६९३. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, १२४३३). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७३६९४. (+) आहारना दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ५४४०). आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: हेउ सरीरबो छेयणट्ठाए, गाथा-६. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधनइ काजइ छ काय नउ; अंति: एदोष जाणवा साधन. ७३६९५. ऋतुवंती स्त्री दोष व सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १३४२४-२७). १. पे. नाम. रजस्वलास्त्री दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋतुमतिदोष लक्षण-आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)श्रावक घरे सामायक, (२)नहि जिणभवणे गमणं घर; अंति: सिद्धांतविराहगो सोउ, गाथा-३. २.पे. नाम. जन्म मरण सूतक विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखा प्रतीत होता है. सूतक विचार, सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: गहमध्येतु दूषणं, श्लोक-५. ७३६९६. (+) सर्वतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-६ अपूर्ण से है.) ७३६९७. (+) तेतलीपुत्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११, २०४३०). तेतलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: अरिहंत सिधनै आयरिया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७३६९८. (+#) गौतमाष्टक व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १०x४१). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गर्वं मा कुरु; अंति: (-), श्लोक-६. २.पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: यच्छतु वांछितं मे, श्लोक-९. ७३६९९. (+) सीमंधरजिन विनती व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७-५७). १.पे. नाम. सीमंधरजिन वीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. नेमसागर, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: तइं मोरु मन मोहिउरे; अंति: नेमसागर० परमेसर लाल, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखा प्रतीत होता है. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि रेसाहिब माहरा; अंति: केसर०पुरो अम्हारी आस, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३७०१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित.. जैदे., (२२४१०.५, १६४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७३७०३. (+) पौषधादि विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६x४६). पौषध विधि*,संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि अपूर्ण तक ७३७०४. संग्रहणीसूत्र व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ८४३६). १.पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३००, (पू.वि. गाथा-७२ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७३७०५. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११, ९४३४). मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुनिश्रीसारद० सिरनाम, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ७३७०६. जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. भादा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १२४३०). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीयौ; अंति: पुहता छे मुगति मझार, गाथा-१६. ७३७०७. (#) लावणी व प्रभाती संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२,१२४२७). १. पे. नाम. ऋषभजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरीया, मु. मूलचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुनीओ बातां राव सदा; अंति: सबवार कीधी धुलेंवा, गाथा-८. २.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया, गाथा-१५. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद, पुहि., पद्य, आदि: देखो आदिस्वर स्वाम्म; अंति: रतनचिंतामणी पाया हो, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे तो एटलो चाहीये; अंति: आनंदघन० और न ध्याऊं, गाथा-३. ७३७०८. आदिजिन स्तवन व चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेसर जगतस; अंति: इम मुनी कीसन भणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. एक अपूर्ण श्लोक व अपूर्ण बाराखरी भी लिखा हुआ है. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: गाया हे पाटण परसिद्ध, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३७०९. (+) महावीर व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. अमृतलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ११४४६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलाना जाया रे; अंति: बुद्धिसागरने छे तुज, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: माता मारुदेवीना नंद; अंति: तारी टालो भवना फंद, गाथा-८. ७३७१०. गति आगति द्वार विचार- २४ दंडके, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १९४४९). गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पर्याप्ता तिर्यंच; अंति: दसगं दसगं च सेसासु, संपूर्ण. ७३७११. (+) प्रभात स्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२.५, ९४२४). औपदेशिक सज्झाय-प्रभाती, पुहिं., पद्य, आदि: धरम करत संसार सुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७३७१२. (+) पार्श्वनाथ मालामंत्र स्तोत्र व पद्मावती स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४११, २१४४५-५५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ मालामंत्र स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते पार्श्व; अंति: आज्ञापयति स्वाह. २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ तक है.) पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्यं जिनं देवं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ की टीका अपूर्ण तक है.) ७३७१४. (+#) मेघकुमार चौढालिया, अपूर्ण, वि. १७८२, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पंडित. मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४४७). मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कवि कनक भणइ निसिदीस, ढाल-४, गाथा-४८, (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-२७ अपूर्ण से है.) ७३७१५. चौद गुणठाणा व ५ भावना के ५३ उत्तरभेद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १६४२१-३६). १. पे. नाम. चौद गुणठाणा, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ गुणठाणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सर्वस्तोक उपशांत मोह; अंति: ठाणे राधणी अनंतगुणाः. २.पे. नाम. पाँच भावना के ५३ उत्तरभेद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ५ भाव के५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ उपसम भाव भेद २२; अंति: एवं ५३ भावना जाणवा. ७३७१६. (+#) दीपावलीपर्व कल्प वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-६(१,४ से ६,८ से ९)-५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५,१४४३३). दीपावलीपर्व कल्प वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लिखितं सुखना दन हववि, (पू.वि. स्वप्न-५ से है तथा बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७३७१७. राणकपुरतीर्थ स्तवन, पार्श्वनाथ बारमासा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, पठ. श्राव. विजैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १६४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर तुमने; अंति: लालचंद० करि दूरै, गाथा-७. २. पे. नाम. राणपुरतीर्थ वृद्ध स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. राणकपुर वृद्ध स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनधर्म तणौ; अंति: जाटत्र कीधी सुखदाय, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३. पे. नाम. पार्श्वजिन बारमासो, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ___ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण मासै उलस्यो; अंति: जिणहर्ष सदा आणंदरे, गाथा-१३. ७३७१८. (#) भक्तामरभाषा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: आदिपुरूष आदिसजिन आदि; अंति: ते पावे सुख खेत, गाथा-४८. ७३७१९. (+) सौधर्मादि विमान वर्णन सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४४४). बृहत्संग्रहणी-हिस्सा सौधर्मादि विमान वर्णन, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गद्य, वि. ७पू, आदि: सत्तसयसत्तावीसा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-हिस्सा सौधर्मादि विमान वर्णन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहा पहिला सोधर्म; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७३७२०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के चयनित सूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १७४४८). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-चयनितसूत्र कीटीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-३ की टीका से "भवतीत्युक्तमथता" पाठांश तक है.) ७३७२१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६९-१६८(१ से १६८)=१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, १४४५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१७ गाथा-३ से है व गाथा-७ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१७ प्रारंभिक गाथाद्वय की टीका अपूर्ण से है व गाथा-७ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ७३७२२. (#) भोजन छत्रीसी, औपदेशिक निसाणी व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४९, १४४३७). १.पे. नाम. भोजन छत्रीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७९६. भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दयासागर० भोजन छत्तीस, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक निसाणी, पृ. ३आ, संपूर्ण.. गरीबदास, रा., पद्य, आदि: काल चलोगे राइया कछु; अंति: एडा चंगा चित लावो. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३७२३. सिद्धचक्रआराधना विधि, अपूर्ण, वि. १८८८, आषाढ़ शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१-१७(१ से १२,१४,१७ से २०)=४, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. रुपसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ११४३४). नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रमुख कीजै, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक व "लघुशिष्यादि वैयावृत्ति रूप" से "कअनशवे०पसेनमः इत्वरं अनशन" पाठांश तक नहीं) ७३७२४. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-३५(१ से ३५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२००, जैदे., (२४.५४११, ११४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पाठ से कुछेक ही पूर्व का पाठांश है.) ७३७२५. औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६६, श्रावण कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्रले. पं. विनयविजय, पठ. मु. कीरतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२१४१७, १५४३२-३४). For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७३७२६. सीतासती सज्झाय, अरणिकमुनि सज्झाय व शत्रुजय स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १४४४२). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ७३७२९. (#) रावण मंदोदरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, ११४२४). रावणमंदोदरी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक है.) ७३७३०. नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-३२(१ से ३२)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४८). नेमराजिमती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ से ६६ अपूर्ण तक है.) ७३७३१. (#) नवकारमंत्र सज्झाय, सिद्धचक्र व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सुरत, प्रले. पं. मुणेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४११.५, २९४२०). १.पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतना; अंति: नवकरना करविलि वंदि, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराहिइ; अंति: कहे नय कविराज के, गाथा-७. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. ७३७३२. (+) २२ अभक्ष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गोरधन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१२, २८x२२-२५). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रेसुधी; अंति: ते शिवसुख लहइ, गाथा-१०. ७३७३३. पद्मावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. १७१९, पौष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नव्यनगर, प्रले. श्रावि. गोमती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवेराणी पद्मावती; अंति: पापथी टलइ ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ७३७३४. शत्रुजय स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, जैदे., (२१४१०.५, १५४३७). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५५ अपूर्ण से ७९ अपूर्ण तक नहीं है एवं गाथा-१०६ अपूर्ण तक लिखा है.) । ७३७३६. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४१०.५, १३४३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३७३७. चउशरणपयन्ना व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२२४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से ६२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्ण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७३७३८. आनंदघन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १९४६१). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद्मप्रभुजिन स्तवन तक लिखा है.) ७३७३९. (+) दीपावलीपर्व कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. हुंडी: दीवालीकल्प., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ६४३१). दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३७४१. (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६x४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: १३ एग १४ णिक्काय १५, गाथा-४५, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-३४ अपूर्ण से है.) ७३७४२. अमरकुमरसुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १३४३६). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहीयै; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७३७४३. (+#) अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२२४११.५, १४४३५). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से गाथा-६६ अपूर्ण तक है.) ७३७४४. सजझाय, छंद, प्रभाती व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, कुल पे. ७, दे., (२१.५४११.५, १३४२८-३०). १. पे. नाम. विकथा सज्झाय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिक सज्झाय-विकथा, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पभणे भूधर उल्लासे रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१८. ३. पे. नाम. वीरजिनप्रभाती स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद नानडीया; अंति: चरणकमल चित लावेरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रेजीव जिनधर्म; अंति: एछे मुगतिदातार, गाथा-६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे इतनो चाहिये; अंति: आनंदघन० अवर न ध्याउं, गाथा-३. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेरीमाहे रमतो दीठो; अंति: अमचो भाग्य उघडीयो रे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७३७४५. (+) मृगापुत्रचौढालियो वसुदर्शनशेठ सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १३४३७). १. पे. नाम. मृगापुत्र चौढालियो, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मृगापुत्र चौढालिया, मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: प्रेमचंद इम गावै जी, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुदर्शनशेठ सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सारद समरु मनरली सुगु; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ७३७४६. सूत्रकृतांगसूत्र- अध्ययन ११, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १७४५५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७३७४७. (#) नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ११, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४०). १.पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: स्य पापशांतिर्भवेदपि, श्लोक-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणइसु पहु सुपास, गाथा-३, (वि. अंत में मांगलिक श्लोक का उल्लेख किया गया है.) ४. पे. नाम. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: पद्मावती युतायुते. ५. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आचार्यो जिनशासनोन्नत; अंति: कुर्वंतिवो मंगलं. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन नमस्कार-जीरावला, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आधिव्याधिहरो देवो; अंति: नतनाथो नृणां श्रिये, श्लोक-१. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: सेव्यतां शांतिरेष स, श्लोक-५, (वि. गाथा-१ पृष्ठ संख्या-१ पर नीचे से तीसरी पंक्ति में है.) ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमान्नं क्षुधात; अंति: कथं धन्यतमो नगण्यः, श्लोक-५. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक-५. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कनकाचलमिव धीरं; अंति: (-), श्लोक-६, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-१ तक लिखा है.) ७३७४८. (#) पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १३४३६). . For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: आपे खेल खेलंता धुला; अंति: रूपचंदजीत तिहारी है, गाथा-४. २. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. संभवजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चलि; अंति: पकडम गावं आठे चोर, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-काया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आ तन काची माटि का; अंति: रूपचंद० तोरे तारणहार, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-दीवबंदर, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: सचा सांई हो डंका; अंति: दीपे रूपचंद तुम बंदा, गाथा-४. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा-६. ६.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करुं मंदिर क्या; अंति: आ दुनिया में फेरा, गाथा-५, (वि. अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) ७३७५२. (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ से ___ ढाल-७ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७३७५३. इलापुत्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१,४ से ८)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२१.५४९.५, १२४३०). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ से ढाल-५ गाथा-१० अपूर्ण तक व ढाल-११ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-१० तक है.) ७३७५४. गौतमस्वामी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२४.५४११, १३४३२). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: विजयभद्र० इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-४३ से है.) ७३७५५. स्तुति संग्रह व चैत्रीपूजन देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १८४५३). १.पे. नाम. १५ तिथि स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नयविमल०करो नित नित्य, स्तुति-१६, गाथा-६४, (पू.वि. चतुर्दशी स्तुति गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शुक्लपक्षकृष्णपक्षतिथि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.. __ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासयने असासय चैत्यतण; अंति: नय० लीला लच्छी लहंत, गाथा-४. ३. पे. नाम. चैत्रीपूनम देववंदन विधि, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ.ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम प्रतिमा ४ माडी, (२)आदीश्वर ___ अरिहंतदेव; अंति: (-), (पू.वि. "सकल सुरासुर राज किंनर" पाठ तक है.) ७३७५६. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. गुणचंद्र ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ); प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १६x४५). १८ अभिषेक स्नात्र विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्नात्र विधि; अंति: स्नात्र करावे. ७३७५७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११, १३४२३). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ में चैत्यवंदन अपूर्ण से अंतिम दुक्खक्खय के बाद वांदणा अपूर्ण तक है.) ७३७५८. परमाणुंभांगा विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, २५-२८४१५-२३). भगवतीसूत्र-हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप-बालावबोध का परमाणुं भांगा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: देशनेदेश१ देशनेदेशौर; अंति: आश्रीनो प्रश्न छे. ७३७६१. (-#) गजसुकमाल भास व आदिजिन बृहत्स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२.५, १२४३०-३३). १. पे. नाम. गजसुमाल भास, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि भास, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजिनवरनी वाणी हो, गाथा-१५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमीय सयल जिनंद पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ७३७६२. सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., दे., (२२४१०.५, १२४३०). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, (पू.वि. गाथा-११६ अपूर्ण से है.) ७३७६४. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२५४११, १४४३६). १.पे. नाम. सुविधिजिनपूजा स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: प्रीतविमल मन उल्लास, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज हमारे भाग वीर; अंति: चित आनंद बधाए है, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चालो मन मित्त; अंति: दीयां सब कारज सरेगे, गाथा-३. ४. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, प्र. २आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहणीतप भवि आदरोरे; अंति: लाल भुपविजय सिरनाय, गाथा-५. ७३७६५. (+-) गीत चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, ले.स्थल. रणेरबंदर, पठ. श्राव. दुर्लभ सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४१०.५, १०४२६-२८). स्तवनचौवीसी, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दानविजय० उगते सूर, स्तवन-२४, (पू.वि. पार्श्वजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७३७६६. भगवतीसूत्र प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१.५४११.५, २५-२८x१८-२४). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: छमोर्छिम पंचेद्रिय; अंति: (-)... ७३७६७. (+) प्रतिक्रमण पौषधादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १५४५१). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थंडिलभूमि अपूर्ण से पक्खीप्रतिक्रमणविधि अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३७६८. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२३ वैशाख शुक्ल, मध्यम, पृ. ३-१ (१) -२, कुल पे. २, ले. स्थल. आहोर, प्रले. मु. भीमा ऋषि, पठ. मु. धनराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३११, १०X३४). १. पे. नाम. सालिभद्र स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति सेवक जोडीने ईम करे, गाथा-११ (पू. वि. गाथा-७ अपूर्ण है. २. पे. नाम. लहर्या स्वाध्याय, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. राजिमतीसती लैहर्यो, रा., पद्य, आदि: काई भीजै रंगराधोरारै; अंति: काई भव उतरे पार रै, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७३७६९. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२३.५x११.५, २४४१६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति, अंति: आहारी अणाहारी. ७३७७९. (+०) सूरतिबंदिर रानेर मध्ये बिंबसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१४१०.५, १८४४२). " जिनबिंब संख्या स्तवन- सुरत, वा. सुखसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७४ आदि गुरु पय वंदिय चित्त; अंतिः सुखसागर मनोरथ सीप, गाथा-२१. ७३७७२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, दे. (२२४१०.५, १६x४६). " १. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धीविजय० विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- निंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतांत; अंति: जीवडा ए हित सीख माने, गाथा - ९. ३. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ. संपूर्ण. १९५५२). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ, संपूर्ण. 1 मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा- ७. ७३७७३. जिनहर्षसूरि को लिखे पत्र संकलन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५x१४.५, २१-२३X२३-३१). जिनहर्षसूरिजी को लिखे पत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३७७४. (+) साधुवंदना व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ, जैवे. (२२x११, " आव. बनारसीदास, पु,ि पद्य, वि. १७वी, आदि श्रीजिनभाषित भारती अंतिः पावै अविचल मोख, गाथा-२८. " ९७ २. पे. नाम. औपदेशिक भजन, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: पांडे सोच कहांसै आई, अंति: कबीर० हारजुलहा आइ, गाथा-८. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीवा दोहलो माणस भव, अंति: हाथ थकी नवि छुटइ रे, गाथा - ६. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: समझ रे नर समझ चेतन, अंति: वीनवे बनारसीदास रे, गाथा- ७. ७३७७५. (-) स्वाध्याय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्र १x२ अशुद्ध पाठ, वे. (२३४११, २३X१७). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण के बाद बोलने योग्य दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. आराधना सार दुहा संग्रह, मा.गु, पद्य, आदि: अरिहंत अरिहंत समरता अंतिः वडो वरल बुझे सीइ, गाथा- १७. २. पे. नाम. १० यतिधर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतलता वन सींचवा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४ तक लिखा है.) " ७३७७६. (+) कर्मबंध भांगा-यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२०.५X१०.५, २१४३८). कर्मबंध भांगा, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-). ७३७७९. (+) लुंका द्वारा पुछे गये प्रश्नों का उत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४.५४१०५ १७४५५). जिनप्रतिमापूजा चर्चा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागगणधरश्री, अंति: (-), (पू. वि. "तेहनै दोष लागस्यै तेहन कीधो अनु" पाठ तक है.) ७३७८०. (+) स्तवन व राइ संथारा सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, अनुमानित पत्रांक लिखा गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५x११.५, १०x२१-२५). १. पे. नाम. छन्नूजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: सदा जिणचंदसुर ए, ढाल -५, (पू. वि. डाल-४ से है.) २. पे नाम, संधारापोरसीसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, (वि. गाथांक अंकित नहीं है.) ७३७८१. जापमाला व जीवआत्मत भांगा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२३४५.५, ८४४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम, जपमाला विचार, पृ. १अ संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि: सूत्रस्य जपमाला, अंतिः सागरो एवं ५००, गाथा ८. २. पे नाम, जीवादि भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अस्ति आत्मत; अंति: (१) अनित्य स्वभावत, (२) विनय वादीण बत्तीसम्. ७३७८२. ८४ गच्छ नाम व नवग्रह स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. उदयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०.५, १९X३८). १. पे, नाम, ८४ गच्छनाम, पृ. १अ, संपूर्ण, ले, स्थल, नागोरनगर, ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: बृहत्गच्छर ओसवाल २ अंतिः ८४ माडोलागच्छ. २. पे. नाम. नवग्रह स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. अहीपुर. सं., पद्य, आदि अथनुतस्त्रिपुरैकजये; अंतिः तनयस्तनवादिकम् श्लोक-४. " ७३७८३. (+) अभक्ष्य अनंतकाय सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. . जैदे. (२२.५४९.५, ९४३३). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे सूधी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण तक है.) ७३७८६. (+) ८४ लाख जीवयोनिआयुष्यादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५४११, १९५६५). ८४ लाख जीवयोनिआयुष्यादि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३७८७, (+४) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., सुखकारी रे, गाथा-११. २. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. (२२x१०.५, १३x४५). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. बीकानेरस्थित आठ जिनालय चैत्यपरिपाटी स्तवन, मु. जयतसी, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंतिः पुण्यकलस For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडारे सौरठ देश; अंति: जंपइ इणपरि जयतसी, गाथा-१२. ७३७८८. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४११, १५४४१). ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इगे असंजमे इगेलोयै१; अंति: (-), (पू.वि. बोल-६ अपूर्ण तक है.) ७३७८९. (+) मानतुंगमानवती चरित्र, अपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. श्राव. दीपचंदजी (पिता श्राव. कलाजी); गुपि. श्राव. कलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., जैदे., (२४४११, ६४३३). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: मोहन० घरि मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१००३, (पू.वि. मात्र अंतिम ३ गाथाएँ हैं.) ७३७९० (+) दिगंबरमत विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४९.५, १६४५२). १. पे. नाम. दिगंबर मते केवली आहार विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __ केवली आहार विचार-दिगंबरमत, मा.गु., गद्य, आदि: दिगंबरमतै केवली; अंति: नौपुष्ट दीसै ए विचार. २. पे. नाम. दिगंबर मते स्त्रीमुक्ति विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. स्त्रीमुक्ति विचार-दिगंबरमत, सं., गद्य, आदि: दिगंबरा स्त्री जनान; अंति: महा॑ गृहस्थरूपा इति. ७३७९१. प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, दे., (२१४११.५, २८x१८-२१). आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: वलि दीवानो परकास; अंति: (-). ७३७९२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (१६४१०.५, १२४१५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण दीनो रे गोडीपास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ७३७९३. साधुअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. श्री शांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११, ११४२९). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करी तप पोहचाडवो, (पू.वि. अंतिम स्थूल अपूर्ण से तप प्रायश्चित संपूर्ण तक है.) ७३७९४. (+#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १३४३७). स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंतजी ओलगड; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-४, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७३७९५. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-५७(१ से ५४,५६ से ५८)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गर्भपालन व जन्म प्रसंग अपूर्ण है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३७९६. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२५४११, ११४३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) ७३७९७. उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ५४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन; अंति: (-). ७३८०२. वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४११, ११४३७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-४३, संपूर्ण. ७३८०३. चतुःशरणप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, जैदे., (२४४११, ४४३३). तकह.) For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०० गयी है, जैसे., (२३x१०.५, १०x२६). १. पे. नाम. बलदेव सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारण निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है, गाथा ६२ अपूर्ण से है.) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षना सुख पामीर, पू. वि. अंत के पत्र हैं. ७३८०४. (१) बलदेव सज्झाय व औपदेशिक लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल ,י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर सीखर सोहे; अंति: भविक सुख देई रे, गाथा- ८. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: रूपे मरकटा पीता; अंति: (अपठनीय), श्लोक-८. ७३८०६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-५३(१ से ५३) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०.५, ६X३८). , दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम चूलिका प्रथम आलापक अपूर्ण से गाथा ११ अपूर्ण तक है.) दशवेकालिकसूत्र - बार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३८०७. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. दहणोक, प्रले. मु. उग्रचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२.५x११.५, २२x२०) ९. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि; दरसण दीजै पासजी अंतिः अमृतबलभ० हो गोडीजी, " गाथा ५. २. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., पद्य, आदि: नार मनावो है नेमने, अंतिः नगजी भणे० लागुं पाय, गाथा- ९. ३. पे. नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, सुखदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेश्वर, अंति: गायो मुक्तिविहारी जी, गाथा- ७. ७३८०८. पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३ - १२(१ से १२) = १, जैदे., (२४X११, ११X३२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. "सावयाणं आ० . आवियाणं आ०" पाठ से "तिविहेण पडिकंतो" पाठ तक है.) ७३८१०. अमृतवेल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २३x१०.५, ११x२६). " ७३८०९, (+) आवकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इच्छामिठामि सूत्र अपूर्ण सूत्र गाथा-४ अपूर्ण तक है.) अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुवालीइं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) , For Private and Personal Use Only ७३८११. तेतलीपुत्र चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., (२२.५X११, १९३१). " तेतलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल-४, गाथा १९ अपूर्ण से है व ढाल ५, गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३८१२. (A) चक्रेश्वरी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१०.५, १२X४६). चक्रेश्वरी स्तोत्र, मु. चतुरकुशल, मा.गु, पद्य, आदि हुं तो देवीतणा गुण अंतिः चतुरकुशल वर दीजे रे, गाथा- १५. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १०१ ७३८१३. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४५(१ से ४५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ५४४१). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७५ अपूर्ण से ८४ अपूर्ण तक है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३८१४. विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १४४३८). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हीयडो हे जालूयो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सुजातजिन गीत, गाथा-२ तक है.) ७३८१६. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ८४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक है.) ७३८१७. (+) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १२४३२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, _ वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७३८१८. (+#) सुभाषित श्लोक व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१०, १७४५१). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *,सं., पद्य, आदि: तृणं वा रत्नं वा; अंति: दानं च नान्यत्परम्, श्लोक-२२. २.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चम्मच्छिणा विदिट्ठो; अंति: पिवना हविं दुहिं, गाथा-५. ७३८१९. (+#) आत्मपरिबोध स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ११४२३). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-४० अपूर्ण से है.) ७३८२०. स्तुति स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, दे., (२१.५४११.५, १२४३२). १. पे. नाम. गोतम सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजनेसर केरो सीस; अंति: सालनसमै०तूठे समत कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. गोडीजीरो छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धींग गौडी धणी; अंति: उदेरतन भाषे०जाल तोडी, गाथा-८. ३. पे. नाम. पारसनाथजीरो तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: उदेरतन भाषैः आप तुठा, गाथा-७. ४. पे. नाम. च्यार मंगल पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीधारथ भूपती सोहे ए; अंति: उदयरतन भाखे एम, गाथा-२०. ५. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धरम समो संसार में; अंति: (-). ६. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंतीजिनेसर समरु; अंति: गावे श्रीदयासागरसूर, गाथा-१६. ७. पे. नाम. माणभद्रनो छंद, प. ४अ-४आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमांणीभद्र सदा; अंति: सीवकीरत मुनि इम कहे, गाथा-८. ८.पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण मात्र है.) ७३८२१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५,१३४४२). १.पे. नाम. बीजो प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी कपीलानो धणी रे; अंति: प्रति प्रणमं पाय, गाथा-७. २. पे. नाम. चोथो प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडवरधनपुर राजीयो; अंति: चउथो परत्येकबुद्ध हे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसरे, गाथा-१६. ७३८२२. नंदीसूत्र की मांगलिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १०४४४). नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जए भदमिसंघसूयस्स, गाथा-१०. ७३८२३. निरयावलिकासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. “हुंडी: निरया, दे., (२३.५४११.५, ८४३३). पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "नाण तं दाहिणा दिसाए" पाठांश से "तं धम्म कुलठाणं सज्झ" पाठांश तक है.) ७३८२४. गजसुकमाल सज्झाय व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: एवाएवामुनीवर मे सुणा; अंति: खेमासूरी तणो छे आधार, गाथा-५. २.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद्र; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. ७३८२५. नेमिजिन स्तवन व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजीरे पिउजी नाम; अंति: रूपविजय० आस्या फली, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नित्यरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुझमन हीर धरै तुम; अंति: नित्यरंगै० गाया हो, गाथा-९. ७३८२६. (#) दीक्षा विधि, दीक्षा मुहुर्त व जपमाला विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४४४). १.पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रदक्षिणा त्रयं; अंति: गुरु मासुस खित्त जाई. २. पे. नाम. दीक्षा मुहूर्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: दिख्यानक्षत्र केहां; अंति: सोम शुक्रि नदीजीइ. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १०३ ३. पे. नाम. अक्षमालाया: गुणा, पृ. १आ, संपूर्ण. जपमाला विचार, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सूत्रस्य जपमालायां; अंति: (१)निप्फलं होइ गोयमा, (२)षट्कर्माणि समाचरेत्, गाथा-१२. ७३८२७. (+#) पार्श्वजिन स्तवन व धर्मजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. साणथलगाम, प्रले. मु.खेमवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०x१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरत श्रीपासतणी; अंति: विजयसेल०सदा आणंद घणे, गाथा-११. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजिणेसर साहिबा हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७३८२८. कान्हड कठियारानो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से २,४)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३२). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण से दोहा-३ अपूर्ण तक व ढाल-५, गाथा-३ से ढाल-६, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३८२९. चोवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १२४३३). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ महावीर २३ पार्श्व; अंति: कोडी सागरोपमनो आंतरो. ७३८३०. रुकमणि सज्झाय व रहनेमिराजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १२४२५). १.पे. नाम. रुकमणि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१४. २.पे. नाम. रहनेमिराजिमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी हुई प्रतीत होती है. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: हेत० राजुल लह्यो जी, गाथा-११. ७३८३१. (+#) नववाड सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक, अन्तिमवाक्य व पुष्पिका का भाग खंडित है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२३४१०, १२४३७). ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: अरिहंतजी एम बोलइ, ढाल-९, गाथा-५६, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-३९ अपूर्ण से है.) ७३८३२. (+) गांगेयभंग प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जालोर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४११, १५४३६). गांगेयभंग प्रकरण, मु. पद्मविजय, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं गंगेय; अंति: नायव्वो सुहुमदिठिहिं, गाथा-२८. ७३८३३. (#) सूक्ष्मनिगोद व क्षपकश्रेणी गाथा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४९, १६४३४-३८). १.पे. नाम. सूक्ष्मनिगोद विचारगाथा सह वृत्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंखजोयण माणे; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-३. सूक्ष्मनिगोद विचार-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् चतुर्दश रज्व; अंति: निर्मलतरमेव भवति. २.पे. नाम. क्षपकश्रेणी गाथा सह टीका, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क्षपकश्रेणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अणमिच्छमीसम्म अट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षपकश्रेणी गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कुछ अंश नहीं हैं., वि. प्रत खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ७३८३४. (+) १५ तिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १७४३४). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पंचमी स्तुति, गाथा-१ अपूर्ण से त्रयोदशी स्तुति, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७३८३५. (+) नवकार पद व विहरमान स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३३). १.पे. नाम. नवकार पद, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१८, (पू.वि. मात्र कलश का भाग है.) । २. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: देवचंद्र० मुझ आपज्यो, गाथा-७. ७३८३६. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१०, ११४४०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. "जोइमाउदिसा उवाअणुदिसा उवाअणुसंवरइ" पाठ तक है.) ७३८३७. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४४११, १५४५१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ७३८३८. नेमिनाथ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४४४). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. गौतमविजय); गुपि. मु. गौतमविजय (गुरु पं. जिनविजय गणि); पं. जिनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. यशोदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेली हे तोरण आयो; अंति: जसोदेवसूरि कहै सीष, गाथा-९. २.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. गौतमविजय (गुरु पं. जिनविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मारा नेम पीयारा लोय; अंति: रुचिरविमल०फली रे लोल, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिनकर परिमाण लिखा है.) ७३८३९. (#) रात्रिभोजन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १८४३५). रात्रिभोजन परिहार रास, मु. चौथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९७७, आदि: जेनी रातकु नहीं खाता; अंति: चोथमल० वरते मंगलाचार, गाथा-२४. ७३८४०. (+-) नारकी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२१४११, १८४३५). १.पे. नाम. नारकी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नारकी नरकनै विषै; अंति: करे बरस कोडा कोड, गाथा-१२. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ध्रगपडो रे संसार; अंति: मुगतमारग नडो करे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रसना विषये, मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तेरी रसना वस कर; अंति: विनेचंद०धन संता थाने, गाथा-५. ७३८४१. (-) उपवास फल व तप फल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४११, १७४२८). For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १. पे. नाम. उपवास फल, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: एक उपवासे २, पांच; अंति: ५३ हजार १ सो २५ थया. २. पे. नाम. तपस्यानो फल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तपफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: २७ अपवासरो फल; अंति: ९९ हजार नेत्र एक लाख. ७३८४२. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. चोथमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२५९) दीठा जीसरा भाखीया, जैदे., (२५४११, १७४५७). १. पे. नाम. देवलोकनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. देवलोक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाग वण्या चिहु; अंति: सतगुरुनै स्याबास रे, गाथा-११. २. पे. नाम. सतीजयंतीनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जयंतीसती सज्झाय, मु. चौथमलजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: सती जयंती श्रीवीरनै; अंति: बीजै शतक बार हो, गाथा-१७. ३. पे. नाम. गुरुदेशना सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रघुपतिदेशना सज्झाय, मु. चौथमलजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: पुन्य जोगे मोने; अंति: रुघपतनी महिमा जाकी, गाथा-१२. ७३८४३. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९९, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, ११४३६-४३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: सुगर चिंतामण देव सदा; अंति: कीरत० पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ७३८४४. सात व्यसन सज्झाय व अरणिकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १४४३७). १. पे. नाम. सात व्यसन सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीस जयरंग इम कहै, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणकजाम उठीयो; अंति: हर्षकीरत इम भणे ए, गाथा-२३. ७३८४५. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४११, ५४३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ "सत्तमसअंगस्स उवासगदसाणं" तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल ते कुण चोथो; अंति: (-). ७३८४६. जमाली सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४४६). १. पे. नाम. जमाली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सासणनायक श्रीवीरजिण; अंति: चोथमल कीयोरेचोमास, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. यौवनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: पुन्यजोगै नरभव लह्यौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७३८४७. (+#) दर्लभता सज्झाय व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-७(१ से ७)=३, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र में गोल छेद किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३१). १. पे. नाम. दुलहा सज्झाय, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहउ नरभव भवि भवि; अंति: पासचंद० दया प्रतिपाल, गाथा-३४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिनकर परिमाण लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन- बृहत्, पृ. १०आ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (अपठनीय); अंतिः भव भव तोरी सेव, गाथा ३० (वि. कलश नहीं लिखा गया है.) ७३८४८. (+) १७० जिन नाम व वर्ण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११, ४४X१६). १. पे. नाम. १७० जिन नाम, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्री अजितनाथनइ वारि; अंति: कालिं हुइ तेहनां नाम. २. पे. नाम. १७० जिन वर्ण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १६ सामला ३० राता; अंति: ३६ पीला ५० धवला. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३८४९ (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२३४१०.५, २०x४७). १. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. खंधकसाधु सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर पाय नमीजी अंतिः जिम पामो सुख अपार, गाथा-३०. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रथ फेरी जादव चल्यो; अंति: माहरो सावलीओ भरतार, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: व्याहन को खूब आया; अंति: लालवि० मुक्ति कहा है, सवैया-४. ७३८५० (+) व्याख्यान संग्रह व चैत्यवंदन स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२x११, ११-१३X२८-३२). १. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १अ २अ संपूर्ण , अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा. सं., गद्य, आदि उसभस्सय पारणए अंतिः वृद्धिरी करणहार होवो. २. पे. नाम. चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. " सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवली, अंतिः श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हंत भगवंत अशरण, अंति: मंगलमाला संपजै. ३. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ३अ-४अ संपूर्ण रा., गद्य, आदि: (१) होलिका फाल्गुने मासे, (२) लोक छै तिके इण पर्वन, अंति: मंगलीकमाला संपजे. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. सुभाषित लोक *, मा.गु., सं., पद्य, आदि: भुक्त्वा शतपदं; अंति: वामपार्श्वे शयेन्नरः, श्लोक - १. ७३८५३. (४) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ६ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., ( २३४१०.५, ४२४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सामलवरण सदा सुहामणो; अंति: हंस गुणी सुख थाय, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलापुर मंडण साम; अंति: रंग मुनिवर इम भणै रे, गाथा - ९. ३. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण महावीर जिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमी पाय मुनिराज, अंतिः पुण्यसागर० अचलठाण, गाथा - २१. ४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल सिर तिलो अंतिः अविचल लील विलास, गाथा- ११. ५. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. महादेव, मा.गु., पद्य, आदि: प्यादी ही सतरंज की; अंति: तास महादेव वंदे पाया, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७३८५४. जिनकुशलसूरि स्तवन व दादाजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३४९.५, १०x३७). १. पे नाम, जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हांजी कांइ अरज करूं, अंति: कांई पाटोधर प्रतिपाल, गाथा- ६. २. पे नाम, दादाजी स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनलब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण दीजै सेवका समर; अंति: जिनलब्धि० सयल जगीस, गाथा-६. ७३८५५. (+) जैनसिद्धांत सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १४X३७). जैनसिद्धांत सवैया संग्रह, उपा. मेघविजय महोपाध्याय, मा.गु., पद्य, आदि: नाणावरणीय इग दंसणावर अंति: भेद देव भव धारके, गाथा-८. ७३८५७. खरतरगच्छ पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२५-१९२४ (१ से १२४) १, प्र. वि. हंडी पटावली. जैदे. (२५x११. १५X३३). खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनरत्नसूरि की परंपरा से है व जिनचंद्रसूरि की परंपरा तक लिखा है.) " ७३८५८. (+) सर्वाधिकार गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२५४१२, १७४४२). , " सर्वाधिकार गाथासंग्रह, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, प्रा. सं., पद्य, आदि: पढमो चारसमत्तो बीओ; अंति: (-), "" (पू.वि. गाथा-३० तक है.) मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ सद्दहु अंतिः कायनी जयणा करुं. २. पे. नाम. अतिचार आलोचना, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १०७ ७३८५९. (#) मुहपत्ति पडिलेहण बोल व अतिचार आलोचना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १०X३४). १. पे नाम, मुहपत्ती पडिलेहण बोल, पृ. १अ संपूर्ण अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि; आजुणा चौपहुर दिवसमाह अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्, ७३८६३. (१) आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६-४ (१ से २, ४ से ५ ) = २, प्र. वि. 'हुंडी ऋषभ कवित. हुंडी खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२२x११, १९४०). " आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. पद्य वि. १८४०, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -५, दोहा - १ अपूर्ण से ढाल ७ के अंतिम दोहे तक तथा ढाल १० गाथा- ३ अपूर्ण से है व ढाल-१२ गाथा-२ तक लिखा है.) १. पे नाम करण करावण अनुमोदन भांगा, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. चरम अचरम अवक्तव्य भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३८६४. (+) शत्रुंजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १७१८, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) = ४, ले. स्थल. आगरा, प्रले. मु. रंगसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १७x४३). "" शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पच, वि. १६३८ आदि (-) अंतिः नयसुंदरो० दरसण जय करो, ढाल १२, गाथा- १२५, ग्रं. १७०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा - २५ अपूर्ण से है.) ७३८६५. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२३१०.५, १२x२८). पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १४ अपूर्ण से है.) ७३८६६. भांगा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, जैदे. (२३.५४१२, ३१४८). "" For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. परमाणु प्रदेश भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३८६८. (+) गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १२४३२). ___ गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७३८७०. हितशिक्षा षट्विंशिका व औपदेशिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४४०). १. पे. नाम. हितशिक्षा छत्रीशी, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हितशिक्षाषविंशिका, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विश्वेशितुः स्याछभं, (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ये सिद्धांत; अंति: एतादी शाभीषशवं, श्लोक-१. ७३८७१. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ व २४ दंडक २४ द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ५४३९). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चतुविसजणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचउवीस तीर्थंकर; अंति: (-). २. पे. नाम. २४ दंडक २४ द्वार, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३८७२. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२४४११, १८४५७). श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के ५५ श्लोक हैं., वि. श्लोक संख्या क्रमशः नहीं है.) ७३८७४. (#) बोल व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. १४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४८). १. पे. नाम. मुखवस्त्रिका पडिलेहण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: २ कायगुप्ति ३ आदरं, (पू.वि. पाठांश "जीव तो सर्व सरीखा छै जिसो एक जीव एकेंद्री" से है.) २. पे. नाम. पडिलेहण के पचास बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हास्य १ रति २ अरति ३; अंति: २ त्रसकाय ३ पडिहरु. ३. पे. नाम. पाँच शरीर नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. ५शरीर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उदारिकर वैक्रिय२; अंति: तैजस४ कार्मण५. ४. पे. नाम. छः संस्थान भेद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ६ संस्थानभेद विचार, सं., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराच संहनन१; अंति: वामन४ कुब्ज५ कुंडक६. ५. पे. नाम. ४ कषाय नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्रोध १ मान २ माया; अंति: माया ३ लोभ ४. ६. पे. नाम. छः लेश्या नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ६ लेश्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्ण लेश्या १ नील; अंति: शुक्ल लेश्या ६. ७. पे. नाम. पाँच जीव भेद, पृ. २आ, संपूर्ण. ५जीव भेद, मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रिय १ बेंद्रिय; अंति: ४ पंचिंद्रिय ५. ८. पे. नाम. सात समुद्धात नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १०९ ७ समुद्धात नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वेदना समुद्धात १; अंति: केवली समुद्धात ७. ९. पे. नाम. तीन दृष्टि नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ३ दृष्टि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्टि १ सम्यग; अंति: सम्यग्मिथ्यादृष्टि ३. १०. पे. नाम. चार दर्शन नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ४ दर्शन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चक्षुदर्शन १ अचक्षु; अंति: केवलदर्शन ४. ११. पे. नाम. पाँच ज्ञान नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ ज्ञान नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान १ श्रुत; अंति: ज्ञान ४ केवलज्ञान. १२. पे. नाम. पंद्रह योग नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मनवचनकाया के १५ योग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: १५ तेजस कार्मण. १३. पे. नाम. बारह उपयोग नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान१ स्रुतज्ञान; अंति: १२ केवलदर्शन. १४. पे. नाम.६ पर्याप्ति नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आहारपर्याप्ति १ शरीर: अंति: मनःपर्याप्ति ६. ७३८७५. श्रावक के १२ व्रत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३४१०.५, ११४३१). श्रावक १२ व्रतविवरण सज्जाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक है.) ७३८७६. (+#) स्तवन गच्छ व न्यातनाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३०). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदिः (-); अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चौरासी वाणीया जात विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाल१ ओसवाल२; अंति: न्यातरा नाम जाणवा. ३. पे. नाम. चौराशी गच्छ नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.. ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ओसवाल गछ जीराउला गछ; अंति: (अपठनीय). ७३८७८. (+#) छंद, स्तोत्र व कवित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३८-४२). १.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. २.पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. क. सार, पुहिं., पद्य, आदि: कहां सरवण जल भरै कहा; अंति: अंतरजामी आपवस, दोहा-५. ७३८७९. (+) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७३८८०. १४ रत्न नाम, चक्रवर्ती विवरण व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४५२). १.पे. नाम. १४ रत्ननाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न १ हाथ २; अंति: एवं १४ रत्न व्योरो. २. पे. नाम. बारह चक्रवर्ति नाम, देहमान, आयु विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भरत चक्रवर्ति; अंति: सुपूज्यजीने वार हुवो. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: खाजीइं पीजीइंलीजीइं; अंति: किस विध उतरै पार, गाथा-९. ७३८८१. मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १८४४३). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारोजी, गाथा-३४. ७३८८२. (#) सरस्वती अष्टक छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ९-११४३०). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुधविमल करती विबुधवर; अंति: दयासूर० नमेवि जगपति, गाथा-९. ७३८८३. रागमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४११, ९४३४). महावीरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८४, आदि: महावीरजिन वंदो भविक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७३८८४. (#) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ११४३२-३५). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. ७३८८५. शीयल नववाड, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२, १२४२८-३०). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सहगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-३ तक लिखा है.) ७३८८७. (+) नमस्कार बालावबोधव काकशकुन चक्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १४४५३). १.पे. नाम. नवकारमंत्र सह बालावबोध, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पढम हवई मंगल, पद-९, (पू.वि. "एसो पंचनमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो" पाठांश से है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भणी सिद्ध वडा कहीइ. २. पे. नाम. काक शुकन यंत्र, पृ. १५आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७३८८८. (#) थिरपर लेख, पार्श्वजिन छंद व गोडीजीवर्ण दहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. सोइग्राम, प्रले. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १८४५६). १.पे. नाम. थिरपरलेख, पृ. ६अ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिनविनती लेख-थिरप्रद, मु. सायधण, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: वार शुक्र सुविचार, ढाल-४, गाथा-६५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से है., वि. अंत में एक दोहा लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिनछंद-गोडीजी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति येतं सुमति; अंति: एह धवल धिंग गोडि धणी, गाथा-९. ३. पे. नाम. गोडीजीवर्ण दूहा, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पुहिं., पद्य, आदि: गीत जात सुणो सुणो कर; अंति: तुझ सुजस अससेण भण, गाथा-१०. ७३८८९. (+) अजितशांति जिनस्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३४). For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १११ अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक है.) ७३८९०. (+) दशार्णभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४४). दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवीर सधीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक ७३८९१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४११.५, २१४५०). १. पे. नाम. वीरउपसर्गसज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन उपसर्ग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थकुल उपना; अंति: धन धन शासनरा घणी, गाथा-२६. २. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर अनोपमै सुंदर; अंति: रतनचंदजी भण उलासी हो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-११. ७३८९२. सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७३८९३. (+) पद्मावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १२४३०). पद्मावती ढाल-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावति; अति: (-), ढाल-३, गाथा-३६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५१ तक लिखा है., वि. गाथांक ३७ के पश्चात् गाथांक १० से २३ तक लिखा गया है. गाथांक ३६ के पश्चात् प्रतिलेखन पुष्पिका का उल्लेख मिलता है.) ७३८९५. (+) विधवा कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ६x४३). विधवा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पुरिसेण सहवासं सत्ता; अंति: विवजुएसीलरखट्ठा, गाथा-१०. ७३८९६. चार मंगल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, संपूर्ण. ७३८९७. (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२.५, १३४२६). गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.) ७३८९८. (+) जंबूद्वीप हेमवंत पर्वत विस्तार वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११,११४३१-३५). जंबूद्वीप हेमवंत पर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: एकलाख जोयणनो जंबू; अंति: (-), (पू.वि. "पिहलि हाथ सरस कमलनी माला छै" पाठांश तक है.) ७३९०३. सज्झाय संग्रह व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४४५-५०). १.पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आलस पहैलो काठीयो धरम; अंति: महिमाप्रभ०तेह निवारो, गाथा-७. २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-१ सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलीक महिमानेलो जी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३.पे. नाम. व्यंतरज्योतिषवैमानिकदेव वाद्यश्रवण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुणिऊण शंखशब्द; अंति: घंटा वैमाणीया देवा, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३९०५. (+) कथा व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, २०४५७-६०). १.पे. नाम. ललितांगकुमार कथा, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आदरी भला तप जप करो, (पू.वि. अन्त भाग के कथांश है.) २.पे. नाम. दृष्टांत कथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुरनामा नगरने; अंति: (१)देखीने थिरक्यो, (२)काया करीने मुजने नेम. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक पद संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: गंगा चाली हरषसुबोल; अंति: कांकण दीधो काढ, पद-६. ४. पे. नाम. अंजनासुंदरी कथा, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप वैताढ्य; अंति: (-), (पू.वि. राम लक्ष्मण द्वारा वायुदेव की सेवा किये जाने के प्रसंग तक है.) ७३९०८.(+) स्तवन, कवित वगाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १८४३५). १. पे. नाम. सांतिनाथ स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. सारंगपुरनगर, प्रले. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर०शिव सुख पावई, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सामि सीतल नमो; अंति: लब्धि० मुगति दीजई, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह", पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत विना प्रमीष्ठ; अंति: एरति वीण एक रति को, गाथा-१. ४. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नलराजा दवदंती जलमीनः; अंति: धर्मं विना मानुष्यं, श्लोक-२. ५. पे. नाम. प्रतिलेखना विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. ६. पे. नाम. २४ जिन शरीरमान गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: पंच धणुसय पढमो कमेण; अंति: णं शरीरमाणं जिणवराणं, गाथा-२. ७. पे. नाम. २४ जिनभव गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण. २४ जिन भव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वीरस्स सत्तवीसा बार; अंति: पासे तिन्नि सेसाणं, गाथा-१. ८. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह * प्रा., पद्य, आदि: उत्तम सठे सरीरा; अंति: पुण त्थेरकप्पमि, गाथा-५, (वि. अलग-अलग विषय की सभी गाथा होने से गिनकर गाथा दी गयी है.) ७३९१०. ३२ जिनस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, ९४२५). १.पे. नाम. ३२ जिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३२ जिन स्तवन-धातकीखंड द्वितीय महाविदेहक्षेत्र, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसागर इम बोलै, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ३२ जिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३२ जिन स्तवन-पुष्करवरद्वीपार्द्ध प्रथम महाविदेहगत, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिनवर पूजीइं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७३९११. (+) पाक्षिक नमस्कार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित. " " ११x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैदे. (२४४११. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७ के प्रारंभिक शब्द तक है.) ७३९१२. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ९४ - ९२ (१ से ८२,८४ से ९३) = २, पू.वि. बीच-बीच हैं.. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४११-१२.०, ११४४० ). कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु. रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ७३९१३. (#) कथाकोष, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४८ -१४७ (१ से १४७) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. कोई कथाकोष का छुटक पत्र प्रतीत होता है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६४११, १४४३५-४० ). " "" १. पे. नाम. श्रीकंठद्विज कथा पंडितवचने, पृ. १४८अ अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. पे. वि. मात्र अंतिम शब्द व कथा पुष्पिका है. संभवतः कोई कथाकोष की ९२वी कथा है. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: याचितमिति, (पू.वि. मात्र अंतिम शब्द है.) २. पे. नाम. कमलश्रीवसुभूति कथा, पृ. १४८अ १४८ आ, संपूर्ण, पे. वि. कथाक्रम ९३. कमलश्रीवसुभूति कथा - रागविषये, सं., गद्य, आदि: रागो हि यत्करोति न, अंति: भवसंबंधमभिधाय सिद्धः. ३. पे. नाम. युगंधरमहामुनि कथा, पृ. १४८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पे. वि. कथाक्रम ९४. युगंधरसाधु कथा, सं., गद्य, आदि: सर्वथानर्थकरणतत्परो अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभिक पाठांश है.) ७३९१४. (+) नववाडशियल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५X३५). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंति: (-), (पू.वि. वाहि-५ गाथा-४ तक है.) ७३९१८. नेमराजिमती व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५)= १, कुल पे. २, जै, (२३.५x१०.५, १२४३६-३९). १. पे नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिवपद ते लहे हो, गाथा-७, (पू. वि. गाथा - ५ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण अम्हारा लाल हीयड, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३९२१. नमीराजर्षि व अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २३११.५, ११X३५). १. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो अंतिः जी हो पामीजे भवपार, गाथा ८. २. पे. नाम. अनाथीमुनि स्वाध्याय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि; मगधदेश राजग्रही नगरी, अंति: (-), (पू. वि. गावा-९ अपूर्ण तक है.) १९३ ७३९२४. (#) अरजिन व ११ गणधर प्राभातिक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८ -१७ (१ से १७ ) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४×१२, १०X३०). १. पे नाम, अरजिन स्तवन, पृ. ९८अ १८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसा० तुम्ह दीवार, गाधा-१७, (पू. वि. गाथा- ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १० गणधर सज्झाय पार्श्वजिन, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाति ऊठीनै पहिलुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) " For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३९२५. (#) निसाणी संग्रह व दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४४४). १.पे. नाम. गुरूशिष्य कथन निसानी, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: इण संसार समुद्र को; अंति: सुख होइ सुलट्ठा, गाथा-७. २.पे. नाम. वैराग्य निसानी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वैराग्य निशानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: काया माया कारिमी; अंति: परा सुख होइ सटक्की, गाथा-६. ३. पे. नाम. उपदेश निसाणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक निसाणी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: मोह वसै केई मानिवी; अंति: सुणि तत लीजै तोली, गाथा-७. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: मणमाणिक मुंहगा कीया; अंति: जाणिया राज गरीबनिबाज, दोहा-१. ७३९२७. (#) अतीतअनागतवर्तमान चौवीसी जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४४०). ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चउवीसी वंद; अंति: (-), ढाल-५, गाथा-२३. ७३९२८. अवंतीसुकमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११.५, १५४३६-३९). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७३९३२. समकीत बोलविचार व षड्दर्शन यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १८४४५). १. पे. नाम. समकित बोल विचार संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ६७ समकित बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम समकित एक विधि; अंति: कहीय सार एक समकित रे. २. पे. नाम. षट्दर्शन देवगुरुधर्म यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७३९४०. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४४१०, ११४२५-२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७३९४१. जयतिहुअण स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, दे., (२४४१०.५, १२४२६). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि,प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) जयतिहअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अभयदेवसूरि विनवे छे. ७३९४४. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व २२ अभक्ष्य सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पेज १४२., जैदे., (२४४१२,५६४२०-२५). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आहारनिद्राभयमैथुनानि; अंति: देवस्य वरेण तुल्यः, श्लोक-३२. २. पे. नाम. २२ अभक्ष्य सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य पद, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस अभक्ष्य ओला; अंति: ए बावीश जिनमत अखाण, गाथा-१. ७३९४५. माणिभद्रवीर छंद व नंदीषणमुनि सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १९४५०-५६). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरपति सेवित शुभ खाण; अंति: माणिभद्र जय जय करण, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २.पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरीनो वासी; अंति: साधु नै कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-१३. ७३९४८. धन्ना अणगार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४११,१५४३३-३६). धन्ना अणगार सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुतोदीप हो धन्ना; अंति: तिलोकसी०मन में गहगही, गाथा-२२. ७३९४९. (4) पार्श्वजिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदरत्न, पुहि., पद्य, आदि: मैं देखी रे मुरत; अंति: जिने चित लायरी, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: उंचे उंचे गिर परिभु; अंति: रूपचंद पदवीओ पाइ, गाथा-५. ७३९५०. (+#) आगम विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ३,५ से ६)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ४४४१८-२१). आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ७३९५१. (#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७३९५२. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५३-५१(१ से ५१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ६४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "भगवओ तित्थयरस्स जमणं भवणं" पाठ से ___ "भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरस्स मायाए" पाठ तक है.) ७३९५३. (+) स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. शारदादेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: नरपते सिद्ध्यतुसते, श्लोक-८. २. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन नमस्कार-जीरावला, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आधिव्याधिहरो देवो; अंति: नतनाथो नृणां श्रिये, श्लोक-१. ६.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं.,प्रा., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराजगाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३९५४. (#) शीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतनाम पार्श्वनाथ स्तवन दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३२). शीतलजिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलओ सीतल कर मयाजी; अंति: जिणरंग० आस्या फली, गाथा-११. ७३९५५. अग्निशमन मंत्र, अमृतध्वनि व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. ३, दे., (२४.५४११, ५-१०४२५-३२). . For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अग्निशमन मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: ॐ ताबै की ताई हांक; अंति: मंत्र इश्वरो वाचा. २. पे. नाम. अमृतध्वनि, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. धर्मसी, पुहि., गद्य, आदि: रतनपाट प्रतपै रतन; अंति: अमृतध्वनि ध्रमसी सार. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: दूत दयामणौ मूरख; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ७३९५६. (#) पचच्क्खाणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, ८x१९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे चउविहंपि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "पारिठावणि आगारेण" पाठ तक है.) ७३९५८. (#) खंधकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १९४४०). खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-३८ अपूर्ण से ढाल-४ की गाथा-१४ __ अपूर्ण तक है.) ७३९६२. शीलप्रशंसा, दोहा, कवित्त आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२४४११, ४४४२३-२६). १.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: अवगुण बंधइ गंठडी; अंति: सम्यो पाछै याउन चाउ, गाथा-१९. २. पे. नाम. शीलप्रशंसा, पृ. १अ, संपूर्ण. शीलोपदेशमाला-शीलप्रशंसा, प्रा., पद्य, आदि: निम्महि असयलहीलं; अंति: नमो तायापुरसाप्तां, गाथा-९. ३. पे. नाम. पूजा महिमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... जिनभवनगमनारंभफल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मणसाहेइ चउत्थं छट्ठ; अंति: अणंतपुन्नं जिणोधुणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीति पारेवा की भली; अंति: जिम झटकि दिखावे छेह, दोहा-८. ५.पे. नाम. शृंगाररस सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. क. चंद, पुहि., पद्य, आदि: तेरो मुख्य जिसो आली; अंति: चंद कहै०पट खोल हठीली, दोहा-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मन दिया तो सब दिया; अंति: कुछ नही कहै दास कबीर, दोहा-१. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. ____ पुहिं., पद्य, आदि: सज्जन सीसा एक है; अंति: झारीयै करै लंक परजार, दोहा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. __ अमरत्य, पुहि., पद्य, आदि: शोभित तिलक तिहु पुर; अंति: अमरत्य० हाथ लही है, दोहा-२. ७३९६५. साधारणजिन स्तवन, शीतलजिन स्तवन व थंभणपुरपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १०४३०). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनवर आगलै हुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण लिखी है.) ३. पे. नाम, थंभणपुरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूर श्रीपासजिणंद, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्णतक है.) ७३९६६. जंबूस्वामि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२३.५४११.५, १०४२३-२७). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जंबू कयो मान रे जाया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७३९६७. (+#) प्रवचनसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६४३६-४०). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हवइ भव्य जीवनइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., व्यवहानय वर्णन अपूर्ण तक है.) ७३९६८. नयादि सप्तभंगी विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. द्विपाठ., ., (२४४११, १५४४६-५०). नयादि सप्तभंगी विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., विशेष लक्षण से है व भंग-६ तक लिखा है.) ७३९६९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. गीधुआरा, जैदे., (२४.५४११, १४४३६). औपदेशिक सज्झाय, ऋ. साधु, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: मनरैथु जीवनै समझाव; अंति: साधुजी० उलासोरे, गाथा-१८. ७३९७३. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४९.५, १०४३३-३७). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७३९७४. (+) बारमासा व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४४०-४४). १.पे. नाम. नेमीनाथ राजीमती बारहमासीयो, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: लाभोदय०विलासी हो लाल, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दशश्रावक सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमु; अंति: कहै मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. ७३९७५. (+) चैत्रीपूनम की पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, १०४३५). चैत्रीपूनम पूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पवित्र स्थानके; अंति: (-), (पू.वि. "जायं जिणबिंबाइं ताई सवाई वंदामि" पाठ तक है.) ७३९७८. (+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १०४२९). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: न कस्य को बलम्, श्लोक-८५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७९ अपूर्ण से है., वि. श्लोक-७९ में ध्रमसी के नाम का उल्लेख मिलता है.) ७३९७९. (+) अक्षयतृतीया व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, २०४४९-५६). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: (-), (पू.वि. "सोकनडदेसाधिपति इंद्रादि" पाठ तक ७३९८०. शनिश्वरदेवनी चोपई व सरस्वतीजीनो छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, ११-१३४२६-३०). १.पे. नाम. शनीश्वरदेवनी चोपई, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ललितसागर एम भणे, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सरस्वतीजीनो छंद, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: शकलसिद्धिदातारं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक ७३९८१. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४१०.५, १५४४०)... श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चौथे अतिचार अपूर्ण से पांचवें ___ अतिचार अपूर्ण तक है.) ७३९८२. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९८-९७(१ से ९७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४११, ६४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. भगवान महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति का प्रसंग अपूर्ण मात्र है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३९८३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११, ६४३७-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७३९८७. (#) स्तुति, स्तवन, मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्र १४४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ३३४१८). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्ञानादिक गुण संपदा; अंति: रे भावधर्म दातार, गाथा-१०. २. पे. नाम. जिनपूजा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथमथी उत्तम; अंति: बालवा वासती धूप करवो. ३. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलकुशलवल्ली पुष्करा; अंति: जम्मंतर संचियं पावं, श्लोक-१८. ४. पे. नाम. तीर्थमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: तं चित्तमाश्चर्यकारी, श्लोक-९. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: धवलयन् नाकासमापूरयन, श्लोक-१. ६. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण... सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: वृद्ध विजयेतं. ७३९८८. (+) साधारणजिन पद, चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ३४४२). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. खुशालराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा जीवडा लग्या; अंति: खुस्याल०भव पातिक भगा, गाथा-२. २.पे. नाम. विमलगिरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव धरि धन्य दिन आज; अंति: जिनचंद सुरतरु कहायो, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३. पे. नाम. विमलगिरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, श्राव. ऋषभदास, पुहि., पद्य, आदि: विमलगिरि क्यों न भये; अंति: रिसहेसर० अरिज करजोर, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमल्ललूरण; अंति: जिण पास पयच्छउ वंछिय, गाथा-२. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउक्कसाय कहेता च्यार; अंति: अक्षयपदरूप मोक्षपद. ५. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. सप्ततिशतजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: वरकनक शंखविद्रुम; अंति: सर्वामर पूजितं वंदे, श्लोक-१. सप्ततिशतजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एकसो १७० भुवनपती; अंति: पूजित कहता पूज्य. ६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-१. ७३९८९. (#) गौतमस्वामी रास व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, प्रले. मु. रामजी ऋषि; दत्त. मु. सूरचंद ऋषि; गृही. पं. प्रेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४५). १.पे. नाम. गौतमस्वामीनो रास, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजीणेसर चरणकमल; अंति: विजयभद्र० इम ___ भणे ए, गाथा-५६, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ७३९९०. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थस्तुति, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझने; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सुखडी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई जौ तूसै अंबाई, गाथा-४. ७३९९१. (#) कल्पसूत्र टीका-आठमी वाचना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. हुंडी खंडित है. अनुमान से पता चलता है कि आठमी वाचना है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४०). कल्पसूत्र-टीका*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. वज्रनाभ राजा कथा, भव-६ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) ७३९९२. (+) जैनगाथा संग्रह व जुहारगाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३.५४११, ९४२८-३२). १. पे. नाम. गाथासंग्रह सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धिशेष जिनेशिताम, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गया शेष तीर्थंकर. २. पे. नाम. जुहारगाथा सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि व्रत धर्म; अंति: जुहारं जिणवरं भणियम्, श्लोक-५, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण से २ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ७३९९४. २४ जिन विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२४४९.५, ९४२७-३०). २४ जिन विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन माता-पितादि वर्णन अपूर्ण से विहार वर्णन अपूर्ण तक है.) ७३९९५. (+) चउसरण पइण्णय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १०४३१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७३९९६. (#) महावीरजिन स्तवन, ऋषभजिन सतवन व नमस्कारमहामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणंद; अंति: आवागमण नीवारोजी, गाथा-९. ३.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरे विविध पर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७३९९७. ऋषभजिन स्तवन व मगसीया पारसनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२, १२४२७). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: भवि सेवोरे देव ऋषभ; अंति: भविकजन शिवसुख को, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) २.पे. नाम. मगसीया पारसनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, ग. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: रयणचिंतामणि सरीखोजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७३९९९. (#) विचार व कोष्ठक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १८-२४४५०-५५). १.पे. नाम. चौदपूर्व विवरण यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ पूर्व विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: पूर्वना नाम सर्ववत्थ; अंति: १२ कोडि ५६ लाख पद छइ. २. पे. नाम. गंगाविस्तार वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गोसाला नपलि बांधी ते; अंति: होए तेहनी ११७६४९ थाइ. ३. पे. नाम. आत्मा के ८ नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्मा के ८ नाम-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य कषाय जोग उपग; अंति: चारित्र, वीर्य. ४. पे. नाम. महावीरजिन आयुष्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामीना; अंति: भाग देता ७२ बरस थया. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १२१ ५. पे. नाम. जीवोत्पत्तिस्थानविचार कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवोत्पत्तिस्थान विचार, मा.गु., को., आदि: अविरतिना भूमिना त्रस; अंति: त्रस थावरमांहि उपजे. ७४०००. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ९४२९). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४००१. स्तवन संग्रह व गुरुवंदनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जान को लोक तरायो मान; अंति: रामचंद्र गुण गायो के, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंदनी सेवा; अंति: तुज पदसेवा दीजै हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुवंदनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुवंदनसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अड्डाइ जेसु दीवेसु; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि. गुरुवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अढाईद्वीप समुद्र माह; अंति: करी भाव सहित वांदु. ७४००२. औपदेशिक पद वस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, ले.स्थल. लाठी, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, २६४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. कबीरदास, पुहिं., पद्य, आदि: क्या नयनों चमकावे; अंति: कहत कबीर० आसन पावे, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमानी शेठ, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या तमारे आंगणे आव; अंति: जुठ् अमे गाता नथी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-नारीशिक्षा, पुहिं., पद्य, आदि: बहनो जीवन को अच्छा; अंति: घर को दीपाया करो, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. अमर, पुहिं., पद्य, आदि: बिगड़ी हुई तकदीर; अंति: क्यों न छुपोते हो, गाथा-६. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. अमरमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: सत्यधर्म का डंका; अंति: अमर० वीर जिनेश्वर ने, गाथा-१०. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अमर, पुहि., पद्य, आदि: सबको वीरसंदेश सुनाये; अंति: अमर ही लेहराएंगे, गाथा-७. ७४००३. पद वस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. १०, ले.स्थल. लाठी, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२.५, २९४५०-५३). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ ब्रह्मानंद मुनि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: ब्रह्मानंद०जल पार रे, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण... ब्रह्मानंद मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: वाह क्या खेल रचाया; अंति: ब्रह्मानंद० समाया है, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-औपदेशिक, आ. लब्धिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी अरजी उपर प्रभु; अंति: खजाने के पुरो भरो, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-धर्मक्रियापालन, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. गीरधारी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी वेला सवारे भाई; अंति: इम कहे ऋषि गीरधारी, गाथा-६. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: जो ईसने समरे नहीं; अंति: शंकर० थया जक मारवा, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सीकंदर फरमान, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सीकंदर फरमान, मा.गु., पद्य, आदि: मारा मरण वखते बधी; अंति: पुण्यना ने पापना, गाथा-४. ८. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, भोजाभगत, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणीया भजले केनि; अंति: भोजो० ते मुके विसार, गाथा-६. ९. पे. नाम. दानशीलतपभावना पद, पृ. २आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नारी नागण सारकीरे; अंति: काइ सीवपुर मारग चार, गाथा-११. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: भगवान दया के सागर हम; अंति: अमर नाम जगमें सारे, गाथा-७. ७४००४. (-#) व्याख्यानश्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३९). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दीर्घमायुः परं रूप; अंति: (-), (पू.वि. ६ बोल विचार अंतर्गत बोल-३ ___ अपूर्ण तक है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अशरण; अंति: (-). ७४००५. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ११४२२). १.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. एकलंगजी प्रसादात्. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मुने संभवजिनस्यु; अंति: सीस दिलमांधारोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: लगि लगि अँखियाने राह; अंति: उदयरतन हे पूगि आस, गाथा-१०. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तूं मेरा दिल मै० नाम; अंति: देव सकल मे हो जीनजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ७४०१०. (+) ३२ जिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १०४२६-२९). १.पे. नाम. ३२ जिन स्तवन-जंबूद्वीपमहाविदेहक्षेत्रगत, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसागर० मने आणी, गाथा-१०, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-२ से है.) २.पे. नाम. ३२ जिन स्तवन-धातकीखंड प्रथममहाविदेहगत, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: धातकीखंडमां जेह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४०११. (+) नमस्कार महामंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ९४३५). नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा; अंति: रायचंद० तो धर्म करो, गाथा-११. ७४०१२. (+) चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन आगरामंडन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४६). पार्श्वजिन स्तवन-आगरामंडन, मा.गु., पद्य, वि. १६४१, आदि: प्रणमीइ प्रथम परमेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १२३ ७४०१३. (+) पन्नवणासूत्र छूटक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, ले.स्थल. शाजापुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, १६४३८-४२). प्रज्ञापनासूत्र-बोल", संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आहो भगवान सगन्या; अंति: करे ते संख्यातगुणा८, (पूर्ण, पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ७४०१४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, १५४३६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताण; अंति: (-), (पू.वि. पगामसज्झाय पाठ अपूर्ण तक है.) ७४०१५. रत्नगुरु सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १३४३७). रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण मीठडारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक ७४०१७. मुनिपतीराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१०, १२४३५). मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: सकल सुख मंगल करण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४०२०. (+) उत्कृष्टजघन्य स्थिति शरीरमानादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-३८(१ से ३८)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, १४४३६). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: विवरेताणि विवरे क०; अंति: सर्वकर्तव्यता जाणवी, संपूर्ण. ७४०२३. (#) इलाचिपुत्र चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १२४३४). इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुणनीलो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४०२४. (+#) सर्वज्ञस्थापनास्थापकवादस्थल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०-४३). सर्वज्ञस्थापनास्थापकवादस्थल, सं., गद्य, आदि: अविनाभूताल्लिंगाल्लि; अंति: (-), (पू.वि. शब्द नित्यानित्य चर्चा अपूर्ण तक है.) ७४०२५. नउकारनु बालाविबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. श्रावि.सहजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदना सदा सर्वदा हउ, (पू.वि. अंत के पाठ हैं.) ७४०२६. (#) चंद्रायणा चंद्रकुंवर प्रीतिप्रसंग रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४५१). चंद्रायणा चंद्रकुंवर प्रीतिप्रसंग रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ से १०८ अपूर्ण तक है., वि. बीच-बीच में गद्यात्मक वार्ताएँ भी हैं.) ७४०२७. वच्छराज हंसराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४११, २२४४७-५०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ गाथा-८३ अपूर्ण से खंड-४ गाथा-३३ तक है.) ७४०३०. पंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ८x२०-२४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ७४०३१. (+#) दादाजी जिनकुशलसूरि गीत संग्रह व मुंबईस्थित श्रावक नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. दादाजी जिनकुशलसूरि गीत पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विलसै रिद्धि समृद्धि; अंति: साधुकीरति पाठिक भाखइ, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १५. २. पे नाम, जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ-२अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल, अंतिः निधान्न लक्ष्मी मिले, गाथा-३. ३. पे. नाम. खरतर पीपलीयागच्छ श्रावक नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. खरतर पीपलीयागच्छ श्रावक नाम - मुंबईस्थित, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीखरतर पीपलीयागच्छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रावक मोतीचंद अमीचंद तक लिखा है.) ७४०३२. (+) लघुशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल " गयी है, जैवे. (२५x११, १०x३०-३३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति (-) (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा- १५ अपूर्ण तक है.) 3 . ७४०३३. दशाश्रुतस्कंधे नवनिदानगाथा, पौषधविचार व स्तुति, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२५x११, १६x४४-५०). १. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंधसूत्र - नवपापनिदान भोगादि प्रार्थना लक्षण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. महिमरंग, प्र.ले.पु. सामान्य. दशाgतस्कंधसूत्र, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. पौषध विचार सह व्याख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषधभेद विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि पोसहोववासे० आहारपोसह अंति: उववण्णा सोवणए४. पौषधभेद विचार - व्याख्या, सं., गद्य, आदि: द्वाविंशति सहस्यां; अंति: सम्यक्त्व व्याख्या. ३. पे. नाम. अभयदेवसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः आचार्याः प्रति सद्म; अंति: सोस्मास्कमावेद्यतां, श्लोक-१. ७४०३५. पचखाणविधि फल, नवकार काउसग्ग फल व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११, १६X३९). १. पे. नाम. पचखाणविधि फल, पृ. १अ १आ. संपूर्ण प्रज्ञापनासूत्र- पच्चक्खाणविधि फल, संबद्ध, मा.गु.. गद्य, आदिः श्रीमहावीरस्वामी; अंतिः नारकी कर्मखेरु करे. २. पे. नाम. नवकार काउसग्ग फल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः उगणी त्रेसठ हजार छसे, अंति: देवतानो आउषो बांधै. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: अवगुण मेरे बोत है, अंति: बाहे ग्रह्यानी लाज, गाथा-२. ७४०३६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५४११, " ८४५१). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर" संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं० करेमि अंतिः (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "तस्स उत्तरीकरणेणं" पाठ अपूर्ण तक है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांवर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि; (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र इच्छामि पडिकमिङ सूत्र का टवार्थ अपूर्ण रूप से लिखा है.) ७४०३७. ८ कुलवर्णन व १० अछेरा सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) =१, जैदे., ( २४.५X१२, ५X३२). अज्ञात आगम छुटक पत्रे, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक " द्वारा अपूर्ण गाथांक ३१७ अपूर्ण से है व ३१९ अपूर्ण तक लिखा है, वि. संभवतः आचारांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध प्रारंभिक भाग का होना चाहिये.) For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७४०३८. (+) तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८७, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)३, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. श्री पंचासरोजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११,१०४२९). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०, (पू.वि. ढाल-८ की गाथा-१० अपूर्ण से है.) ७४०३९. (#) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०-१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. १४ पूर्वपद संख्या , पृ. १अ, संपूर्ण. १४ पूर्वपद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्पाद पूर्वेपद; अंति: लोकबिंदसोर १२५००००००. २. पे. नाम. १२ कुल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अन्यतरेषु वा तथा; अंति: मानो गृह्णीयादिति. ३. पे. नाम. २२ परिषह उदयहेतुभूत कर्म विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: चिहुंनइ कर्मनइ उदय; अंति: परिसह अलाभपरिसहे. ७४०४०. (#) सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४४३-५०). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. गुरुवाक्य-श्लोक- भाषाबुद्धिविवेकवाक्य.. पाठ अपूर्ण तक है.) ७४०४१. व्याख्यानश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, २२४५२-५५). व्याख्यान संग्रह* प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: दानं सुपात्रे विशद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्ति व्याख्यान अपूर्ण तक है.) ७४०४५. (+) जंबूचरित्र व ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-३५(१ से ३५)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:जंबुचत्र., कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५४११.५, १९४४५). १.पे. नाम. जंबू चरित्र, पृ. ३६अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सुरतराम (गुरु मु. चोथमल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूस्वामी चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: जठै जंबूसरीसा उत्तम; अंति: चौथमल कर्म करनै हामी, गाथा-१२. २. पे. नाम. जंबूढाल, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी ढाल, म. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: साहजीरे घर बेटो; अंति: घर कदे न आवे तोटो. ढाल-१, गाथा-१९. ७४०४८. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३०). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) ७४०५२. (+) रावण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११४२९). रावण हितशिक्षा सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीता हरी रावण घर आणी; अंति: विद्याचंद वखाणी हे, गाथा-१३. ७४०५५. (#) नेमराजुल बारमासो व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोही, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १३४२९). १. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पालै अविहड प्रीत रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. प्रहेलिकाश्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४०५८. नेमजिन स्तवन, श्रेयांसजिन स्तवन व गर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमीए ते नेमजिन राजगढ; अंति: जोए वाट साते वार रे, गाथा-९. २. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समिहित दायक सुरमणि; अंति: वरत्या कोड कल्याण, गाथा-५. ३. पे. नाम. गर्व सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-गर्वपरिहार, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: गर्व न करशोगात्र नो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७४०५९. (+) नवकार फल, अनानुपूर्वि व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १८x१४). १. पे. नाम. नवकार शुभ आयु फल, पृ. १, संपूर्ण. नवकार मंत्र जापविधि फल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. पत्र खंडित होने के कारण पाठांश अवाच्य है.) २.पे. नाम. अनानुपूर्वी, पृ. १, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवकार अनानुपूर्वि फल पद, पृ. १, संपूर्ण. अनानुपूर्वी अंकगणवा विषे छंद, मु. दुर्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनानुपूर्वी गणजो; अंति: (-), गाथा-७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "भवतः ५०० सागर का पाप खपावे" पाठ तक लिखा है.) ७४०६२. (+) लेश्या विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५३-१५२(१ से १५२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३६-३९). लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "पप्पतारूवत्ताएव भुद्दो" से "असंखे द्यगुणाजहभगाकणू" तक है.) ७४०६४. गीत, पद व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११, १५४४५). १.पे. नाम. गजसंघजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसिंह गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगजसंघजीरौचारण; अति: भोगवो करो मोजा, गाथा-६. २. पे. नाम. विरह गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. कृपारामयोगी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सामी किरपा राम; अंति: पाती मानज्यो महंत, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चंपक नहिं जाय काल; अंति: दान० अछै अगला घर कौ, गाथा-४. ५. पे. नाम. प्रास्ताविकदोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ७४०६५. स्तुति व गंहुली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १५४३५-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापण; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. जिनपद्मसूरि विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अभयदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पुज भलाई पधारीया रे; अंति: तौ चढसी वचन प्रमाण, गाथा-११. ३. पे. नाम. जिनपद्मसूरि गंहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ जिनपद्मसूरि गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: आज भला पुंज; अंति: वछरी दीन गुण गाया हो, गाथा-११. ७४०६६. सवैया व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२४४१०.५, १३४३०-३५). १. पे. नाम. आदिजिन सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. म. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: आदही को तिथंकर आदिही: अंति: बोले आदि आदि. गाथा-१. २. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह, पुहि., पद्य, आदि: छोरि षड खंड भारिचौसठ; अंति: धर्मसी० बोले संत संत, सवैया-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जिनके वचन उरधारति; अंति: द्रिग लीला की ललक मे, गाथा-१. ४. पे. नाम. मुनिगुण सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ज्ञान के उजागर सहज; अंति: नमस्कार को है, गाथा-२. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. ज्ञानसंदर, पुहिं., पद्य, आदि: लाल घोडो लाल पाघ लाल; अंति: ज्ञानसुंदर० मै सामरी, पद-२. ६. पे. नाम. दिल्ली वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पृथ्वीनाथसुता भुजि; अंति: सोयमहाभि० ग्रहः. ७. पे. नाम. द्रव्य महत्त्व सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. धनमहत्त्व सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: दाम तै दाल दजाय; अंति: जाकी गांठ रुपीया, गाथा-१. ७४०६७. (#) छंद, स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. ६, प्रले. मु. नेणसी ऋषि शिष्य; पठ. मु. भाणजी (गुरु पं. मेघविजय गणि); अन्य. मु. केशवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३५-३९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसकल सार सुरतरु; अंति: त्रिभुवन तिलो, गाथा-५. २. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, मु. लाला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: लाला० शिवसुख थायो रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. संजती सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १७९१, वैशाख शुक्ल, ७, रविवार, प्रले. मु. नेणसी ऋषि शिष्य; पठ. मु. भाणजी (गुरु पं. मेघविजय गणि); अन्य. मु. केशवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. संजतीनृप सज्झाय, मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: कपीलपुर राजीओ नृप; अंति: वर्धमान मुनि उलास रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. नागीलाभवदेव सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घरे आविया; अंति: समयसुंदर० सुखसार रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण पास नंदन; अंति: पारस गुण मनरली रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सियल जणेसरने हु; अंति: पाचसे अठावीस साध, गाथा-१०, (वि. अंत में किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा अस्पष्ट रूप से दो गाथाएँ लिखी गई हैं.) ७४०६८. श्रीचंद चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: श्रीचंद चौपाई., दे., (२६४११.५, १५४३७). श्रीचंद चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतिलकराय कुंयरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ तक है.) ७४०६९. (#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से ४ तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ७४०७०. श्राद्ध अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५४११, ९४४०). श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से चतुर्थ व्रत अपूर्ण तक है.) ७४०७१. (-#) ४ प्याला विचार थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १५४३४-४०). अनुयोगद्वारसूत्र-बोल संग्रह-४ प्याला विचार, संबद्ध, पुहिं., गद्य, आदि: चार प्याला का नाम; अंति: भरे चोथे को रहण दे. ७४०७२. (+) आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १६४३५). आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चारित्तसंपलयाणं भंते; अंति: नो अग्यांनवादी. ७४०७३. उपधान विधि गर्भित महावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४१२, १०४३३-३६). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: विनय० होयो भवे भवे, गाथा-२४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ७४०७४. कयवन्ना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१३, १८४३०). कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीआदि जिणेसर जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७४०७५. अंतिम आराधना संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४१२,१६४३३). अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. केवलीभाषित दयामूलसमकितधर्म असद्दहणा क्षमा अपूर्ण से चार शरण मे सिद्ध गुण वर्णन अपूर्ण तक है.) ७४०७७. मेघकुमार पंचढालियो व श्रेणिकराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १३४३३-३६). १. पे. नाम. मेघकवर पंचढालिया, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक शुक्ल, ९, ले.स्थल. खजवाणा, प्रले. सा. हसतुजी शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य. मेघकुमार पंच ढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: मेघकवर धारणी माता; अंति: अनमत देवे माता धारणी, ढाल-५. २. पे. नाम. श्रेणिकराजा सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महेंतो श्रेणक राजा; अंति: जोर चलगत करमातणी, गाथा-५. ७४०७८. पार्श्वनाथ छंद-अमीझरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १६४५०). पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात अमीझरो; अंति: निरमल इति पुरो आसए, गाथा-२१. ७४०७९. (+) ६२ मार्गणा बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११, १७४४५). १. पे. नाम. ६२ मार्गणा उदय बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति ७९ पुरुषवेद १; अंति: १ एवं १३ विना १०९. २. पे. नाम. ६२ मार्गणा उदीरणा विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा उदीरणा, मा.गु., गद्य, आदि: तेहनी १२२ उदय छै; अंति: उदीरणा जाणवी. ३. पे. नाम. ६२ मार्गणा सत्ता बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org १२९ ६२ मार्गणा की सत्ता, मा.गु., गद्य, आदि: प्रकृति १४८ तथा १५८; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आहारी अनाहारी के १४८ की सत्ता का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७४०८०. पार्श्वजिनदिशांतरी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५X११, ५X४२). पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदिः सुवचन संपो सारदा मया, अंति: (-), गाधा - ४६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४०८२. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५X११, १९X५७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं., ले. स्थल. नागोर, प्रले. ऋ. सबलदास (गुरु मु. आसकर्ण ऋषि) पठ. श्राव. किसनदास, प्र. ले. पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आसकर्ण० अजब तमासा, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है . ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. अंकावली, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ३१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जैमलजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जैमल० माया कारमी, गाथा- ३३, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २० अपूर्ण से लिखा है.) (२४.५X११, १७३५-४४). १. पे नाम. २४ जिन आंतरा, पृ. ११५अ, संपूर्ण. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पर हुंती तप पामनें; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "धरता एह धरम" पाठांश तक ख है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७४०८४ २४ जिन आंतरा व आदिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११७-११४(१ से ११४) =३, कुल पे. २, जैदे., मा.गु., गद्य, आदि: वीर निर्वाणथी; अंति: आंतरानउ अधिकार कहि. २. पे नाम आदिजिन चरित्र, पृ. ११५अ ११७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि हवें श्रीऋषभदेव बाधे अंति: (-), (पू.वि. केवलज्ञानप्राप्ति प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७४०८६. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१६ (१ से १६) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १५X३४). १. पे नाम. शत्रुंजय स्तुति, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, भाव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: पाय ऋषभदास गुण गाव, गाथा-४, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दंडक गर्भित वीर जिन स्तुति, पृ. १७अ १८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-दंडकगर्भित, सं., पद्य, आदि: जयति जय विभूषितो; अंति: देवता सेवतामर्हतः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १८आ, संपूर्ण. पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि ज्ञात्वा प्रश्नं, अंतिः प्रेमपूर्ण प्रसन्नः, श्लोक-४. ७४०८७. (+) व्याख्यान मांगलिकश्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५४१२, १७४४५-४८). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वनाथ स्तुति से द्वादस पर्षदा तक है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४०८८. पद व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५x१२.५, १७X३०-४२). १. पे. नाम, कैलाशपति पद, पृ. १अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० www.kobatirth.org गंगाधर मिश्र, पुहिं., पद्य, आदि: हे देवन के देवा, अंति: गधाधर० सुनो सुभोमती, गाथा- ३. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: विधिः शांतिविधीयतां, श्लोक-११. ३. पे. नाम, गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति, अंति: लभते नितरां क्रमेण श्लोक-१०. ४. पे. नाम. भज गोविंद स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोविंद स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदिः कृत्वायत्नं परधन हरण; अंति: (-), (पू. वि. श्लोक ८ अपूर्ण तक है.) ७४०८९. (+) षडशीति कर्मग्रंथ - ४, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१२ (१ से १२ ) = १, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., ( २४.५X११, ११x२७). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, गाथा ४२ अपूर्ण से ५५ तक है.) ७४०९० (+) गुरावली व वीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १०५-१०४(१ से १०४) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४.५४११.५, १५X३४-४० ). १. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १०५अ - १०५आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः श्री गौतमस्तान्मुदेः. २. पे नाम, व्याख्यान अनुक्रमणिका पर्युषणपर्व, पृ. १०५आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: वंदामि भदबाहु, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पर्युषण पर्व के दिनों में होने वाले व्याख्यान की अनुक्रमणिका मात्र लिखी गई है.) ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक - १. ७४०९१. (*) पार्श्वनाथ घघरनिसाणी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, १०X३२-३५). पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: ( - ). ( पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७४०९२. (+) जिनकुशलसूरि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X१०, १०X३०). अनुमानित लिखा गया है, दे. (२४.५४१०.५, ११४३३). "" १. पे. नाम संभवजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य वि. १४८१, आदि: रिसहजिणेसर सो जयो, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- १३ तक है.) ७४०९३. पद व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. पत्रांक संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे लाला संभवजिन; अंति: करीये संघ कल्याण रे, गाथा- ८. २. पे. नाम. प्रथमाध्ययन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम औपदेशिक ढाल, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक ढाल - पैसा, मु. जेतसी, रा., पद्य, आदि: श्रीजिनवर गणधर मुनि, अंति: (-) (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) For Private and Personal Use Only ७४०९४. एकादशी माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १७४० भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १ प्रले. पं. हस्तिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १९२, जैवे. (२५x१०.५, २७४५६-६०). Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: (-); अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण से है.) ७४०९५. (+#) पंचपरमेष्ठि स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४६-४९). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति सह व्याख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: अहँ जोग्यो कथं जोग; अंति: पदेन नमस्कारोस्तु. २. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं.,प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४०९६. (+) नवपद, पार्श्वजिन व पर्युषणपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ___ आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: संदिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बलि बलि हुं ध्या; अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ७४०९७. (+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३६). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गुणदायक गोडि सग्रहि, गाथा-२२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-११ अपूर्ण से है.) ७४०९९. (+) सिद्धांत सारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २१४६०). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप विगत ५२६; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नदी विचार तक है.) ७४१००. स्तवन व छत्तीसी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१६(१ से १६)=३, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. आदिनाथ वृद्ध स्तवन, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर० जगीस जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटइं नहि; अंति: समय० धरमतणइ परमाण जी, गाथा-३६. ४. पे. नाम. पुण्यछत्रीसी, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुन्य तणां फल परति; अंति: फल परतक्ष जी, गाथा-३६. ७४१०१. (+) छत्रीसी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: क्षमाछ०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १३४३५). १. पे. नाम. आलोयणाछत्रीसी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० उच्छाहि, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२८ ___ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७४१०२. (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३६). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-५ की गाथा-३ अपूर्ण से स्तवन-९ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४१०३. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन वरात्रिभोजन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुडीवाला भाग खंडित है., दे., (२५४११.५, ११४२९). १. पे. नाम. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपे सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. २.पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमर्नु सार ते; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७४१०४. महावीरजिन स्तवन, शत्रुजयगिरि स्तवन व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). १.पे. नाम. महावीरनुं सत्तावीस भवनुं स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: ग्यान० जिनवर जय करो, ढाल-११, गाथा-८५, (पू.वि. गाथा-७२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शत्रुजयगिरि स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: गिरिराज को परम जस; अंति: ज्ञान० पद पावना रे, गाथा-८, संपूर्ण. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरि मुद्राइ मन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७४१०५. आत्महितशिक्षा सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, दे., (२५४११, ११४२६). १.पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १०-सज्झाय, संबद्ध, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पसरे बहु गुण गेल, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कामिनी कंत चल्यो; अंति: बिना नर कोरी न पायो, गाथा-२. ७४१०६. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, १३४४३). १.पे. नाम. चतुर्थीतिथि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पास नमु; अंति: धन जेणे दीठो रे, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सकल परव पंचमी तप; अंति: उत्तम० वाजा वाजे जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: चरण नमी श्री जिनराज; अंति: उत्तम जग जयकार, गाथा-८. ४. पे. नाम. षष्ठीतिथि स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मा.गु., पद्य, आदि: शिवगामी स्वामी सदा; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ७४१०७. (#) स्तुति, स्तवन व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-११(१ से ११)=४, कुल पे. १०, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५४). १. पे. नाम. मेतार्यरिषि गीत, पृ. १२अ, संपूर्ण. मेतारजमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि राजगृहि आवीयाजी; अंति: समयसुंदर० त्रिकाल, गाथा-७. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रयवाडी चढ्यो; अंति: समयसुंदर० बे करजोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. रहनेमि गीत, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. रथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजमती मनरंग चली; अंति: भगतइ हो समयसुंदर भणइ, गाथा-८. ४. पे. नाम. पररमणी परिहार गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण. आ. जिनगुणप्रभुसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि सम नरभव; अंति: जिनगुण आपण पओ तारइ, गाथा-११. ५. पे. नाम. मेघकुमार चौढालिया, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४, गाथा-४७. ६. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर० जगीस जी, गाथा-३६. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, पृ. १५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करज्यो कोई; अंति: समयसुंदरसुंसार रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. माया गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीव विमास नहीं कुछ; अंति: समयसुंदर० काहुँचेरा, गाथा-३. ९. पे. नाम. मुगति गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. मुक्ति गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: माइ हर कोऊ भेष मुगति; अंति: समयसुंदर० समजावइ, गाथा-३. १०. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमइ पाय मुनिराय जसु; अंति: पुण्यसागर० अचल ठाण, गाथा-२१. ७४१०८. (+) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १०४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७४१०९. (+#) श्रमणसूत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-७(१,३ से ४,६ से ९)-४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३०). १. पे. नाम. समणसूत्त, पृ. २अ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. (पू.वि. अप्पाणं वोसिरामि सूत्र अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७४११०. (+) पुण्यसार कथा, फलमहल्ल दृष्टांत व दत्त कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने हुंडी में गौतमपृच्छा नाम लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५४११,१६x६१). १.पे. नाम. पुन्यसार कथा, पृ. २८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ www.kobatirth.org पुण्यसार कथा, मा.गु.. गद्य, आदि: साकेतपुर नगर, अंतिः देवलोके पहुतो. २. पे. नाम. फलहमल्ल दृष्टांत, पृ. २८अ - २८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उजेणी नगरी जितशत्रु, अंति: मल्लनी दुख पाम . ३. पे. नाम. दत्त कथा, पृ. २८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्षितिप्रतिष्ठ नाम, अंतिः सुविगति पायी. ७४१११. प्रश्नोत्तररत्नमाला प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., (२६X११, १८x४२). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः विमलेन० किं न भूषयति श्लोक-२९, (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक १३ अपूर्ण से है . ) प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कंठगत के विरही हुई, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. ७४११२. (+#) उपदेश इकवीसी व चंदाप्रभुजीनो तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. २, ले. स्थल, नागोरनगर, प्रले. मु. रायचंद ऋषि (गुरु मु. जेमल ऋषि); गुपि, मु. जेमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत- संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६४११.५, १६४३६). १. पे नाम, उपदेशइकवीसी, पृ. ३अ ४अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिकएकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: रायचंद ० उपजै परम आणंद, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा - १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चंदाप्रभुजीनो तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. " चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. पच. वि. १८३९, आदि: चंदपुरी नगरी जाणी, अंतिः रायचंद ० वीसपतवारौ, गाथा- ११. १. पे नाम, नवपदजीनो गुणनो, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद गर, प्रा.मा.गु., गद्य, आदिः ॐ हाँ नमो अरिहंताण, अंति: नमो तवस्स गुण १२. २. पे. नाम. सिद्धचक्र आराधन विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४११३. (+) नवपदजीनो गुणनो व सिद्धचक्र आराधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५x११, ११४३६). नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि : आसोज सुदि ७ तथा; अंति: जूठ न बोले. ७४११४. (+) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२४.५x११, १०X३०). कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., पीठिका अपूर्ण मात्र है.) . ७४११५. महावीरजिन गहुँली व सिद्धचक्र गहुँली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५x१२, १२४३०). १. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मासे नवमे महावीर, अंति: पोहोति निज आवासे, गाथा - ९. २. पे. नाम. सिद्धचक्र गहुंली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे महारे जिनआणा, अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ७४११६. (+) अरणकमुनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२४.५४११, , १६-१९X५२). For Private and Personal Use Only अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ तक है.) ७४११७. श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५X११.५, १०-१३X३६). Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-४, ढाल-६ की गाथा - ९ अपूर्ण से ढाल - ७ की गाथा-४ तक है.) ७४११८. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२५x११.५, १३३०). मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. दुहा - १ अपूर्ण तक है.) 3 ७४११९. जीवअजीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-११ (१ से ११) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७X११.५, १७x४६). ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बार देवलोक नाम अपूर्ण से धर्मास्तिकायादि के स्वरूप अपूर्ण तक है.) ७४१२०. (०) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५x१०.५. १५४५५). जैदे., (२४.५X१०.५, ५८x२२). १. पे. नाम. ५० बोल यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पं., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. २८ लब्धि यंत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः आमोसही लब्धि ते हाथ अंति: २४ तिर्वच मनुष्यनो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. खंड-१ ढाल ४ का दोहा-३ अपूर्ण से ढाल ६ की गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ७४१२१. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०.५, ११x१७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: (-). (पू. वि. प्रारंभिक अंश भगवान महावीर के जन्मकल्याणक में हस्तोत्तरा नक्षत्र के महत्त्व का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७४१२२. (+) ५० बोल व २८ लब्धी यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित.. - ७४१२३. (+) मधुबिंदु दृष्टांत व प्रास्ताविक दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x२९). १. पे. नाम. मधुबिंदु दृष्टांत, पृ. ३अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः मधुबिंदु समान जाणवा, (पू. वि. सार्थवाह के देशांतरगमन प्रसंग अपूर्ण से है.) " २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: सिवायलीयु सुरवरनीय अंतिः खांधे पडी काहाडी, गाथा- १. ७४१२४. पाशाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x११, १३४१९-३१). " पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ सरीर वेदना छे; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. १३५ पाशांक-३२२ तक है.) ७४१२५. छकायना ४४ बोल व षड्द्रव्यपरिमाण विचार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., For Private and Personal Use Only (२४.५X१०.५, १९x१४). १. पे. नाम. ४४ बोल छकायना, पृ. १अ, संपूर्ण. ४४ बोल- छकाय, मा.गु, गद्य, आदि: सूक्ष्म निगोदी अपर्य अंतिः जंबुद्वीप में माव नही. २. पे. नाम. षड्द्रव्यपरिणामविचार कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: षट्द्रव्यकी गाथा. ६ द्रव्यपरिणामविचार कोष्ठक, संबद्ध, प्रा., को., आदि: परणामी १ जीव; अंति: २ पुद्गल ३ काल ५ जीव. ७४१२६. (+४) जंबूद्वीपक्षेत्र मान, पंदर सिद्धभेद व अदार पौषधदोष, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३७-३५ (१ से ३५ ) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३X११, १५X३९). १. पे. नाम. जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, पृ. ३६अ - ३७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सहस्र योजन ऊंडो हुवै, (पू.वि. ईशाणकोण का वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्ध १५ भेद गाथा सह टबार्थ, पृ. ३७आ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिण १ अजिण २ तीत्थ ३; अंति: कणिक्काय १४ काय १५, गाथा-१. १५ सिद्धभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: अनेक सिद्ध. ३. पे. नाम. पोषधना अढार दूषण, पृ. ३७आ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अणपोसातीनो आण्यो; अंति: अंगोपांग जोवा नहीं. ७४१२७. चैत्यवंदन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमजिन युगादिदेव; अंति: (-), (पू.वि. श्रेयांसजिन नमस्कार अपूर्ण तक है.) ७४१२९. (#) सुपननी सज्झाय व द्रुमपुष्पिकाध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२६-२८). १. पे. नाम. सुपन सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कांतिविजय० मात्रेह, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर विमल केवल; ___ अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४१३१. (+) सील रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: सीलरा०, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४८). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से ५७ अपूर्ण तक है.) ७४१३२. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०४३४). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. __आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन स्वस्तिनजाघः, श्लोक-४.. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४१३३. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७४५१). १. पे. नाम. औषधसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. रत्नप्रभा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. गुणफूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंते सारदमाय; अंति: गुणफूलचंद कहो जी, गाथा-१८. ३. पे. नाम. सचितअचित भूमि का सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १३७ प्रासुकपृथ्वी विचार सज्झाय, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति सामणि; अंति: देवचंद कहे सुखकार, गाथा-५. ७४१३५. द्रव्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी: द्रव्यप्रकाश, दे., (२४.५४१३, ११४२८-३८). द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि: अज अनादि अक्षयगुणी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ कवि लघुतावर्णन पद तक है.) ७४१३७. प्रियमेलक चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, दत्त. सा. अमरादे आर्या, सा. कमलादे आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०५, जैदे., (२४४११.५, १३४४३). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: (-); अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२१३, (पू.वि. गाथा-१९९ अपूर्ण से है.) ७४१४०. (4) सीतासती सज्झाय व औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२.५, १५४४६). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जसकीरत, पुहिं., पद्य, वि. १९२१, आदि: (-); अंति: पूरो होय मनवंछत काजा, गाथा-६६, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-गुरुमहिमागर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: वुढाला तेरी अकल की; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ७४१४१. (+) कथाश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४२). कथाश्लोक संग्रह-सम्यक्त्वादिविषये, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७४१४२.(-) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. दुर्वाच्य., जैदे., (२५४११, ६४३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "निंदामि गरहामि" पाठ से "मुक्खाए" पाठ तक है.) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४१४३. (2) आलोचना, प्रायश्चित व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, २०४१४). १.पे. नाम. आलोचना विचार, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: साभिग्रहं च तवम, (पू.वि. ज्ञानातिचार आलोचना अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. द्वादशव्रत प्रायश्चित, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: जघन्य आताशतनायां; अंति: सति संविभाग भंगेउ. ३. पे. नाम. भक्ष्याभक्ष्य विचार श्लोक-भागवतपुराणोद्धत, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: गोरसं माष मध्येतु; अंति: मांसतुल्यं युधिष्ठिर, श्लोक-१. ४. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मुहपत्ती पन्नास अठार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा लिखकर कृति पूर्ण कर दी है.) ७४१४४. ३० बोल दषमकाल व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ५४३१). १.पे. नाम. ३० बोल भगवतीसूत्रे, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३० बोल - दुषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुंड घणा होसी (पू. वि. बोल- १२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, महावीरजिन स्तुति सह टवार्थ, पृ. ४आ- ५आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः स्नातस्या कहता, अंतिः सिद्धं प्रति पामे. ७४१४५. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., । (२५X११, ११४४१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. "वोसिरामि समुसावर चढविहे पन्नत्ते" पाठ से "चित्तमंतंवा अचित्तमंतंवा" पाठ तक है.) ७४१४६. (+) पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५४११.५, , १४X३५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) ७४१४७. (#) दानशीलतपभावना चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी: दानसील., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६११, १३४३८). "" दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति समयसु० सुप्रसादो रे, ढाल -४, गाथा- १०१. ७४१४८. विवाहपटल व चवरीश्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १४४४९-५१). १. पे. नाम. विवाहपटल, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. विवाहपडल- पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: अधिकार कियो हितकारू, गाथा-५५. २. पे. नाम. चवरीश्लोक सह बालावबोध, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चवरी लोक सं., पद्य, आदि सूर्यात्वेद५ तथा अंति (-) (पू.वि, श्लोक-३ तक है.) " चवरी श्लोक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कालपट्ट सूर्यनक्षत्र, अंति: (-). ७४१४९. ऋषिदत्ता चौपाई व प्रास्ताविक श्लोक, अपूर्ण, वि. १६९७, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३, कुल पे. २, ले. स्थल. पालीपुर, प्रले. मु. देवीदास, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. हुंडी ऋषिदत्ता चो०, जैवे. (२४.५x१०.५, १७४५३)१. पे. नाम. ऋषिदत्तासती चोपाई, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ऋषिदत्तासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संपदा सुख अति घणो, गाथा- १२१, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदिः उत्तमि जीवइ मध्यस्थि; अंतिः भव्ये विचारणीयम्, गाथा-२. ७४१५०. (+#) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५४१०.५, २१४५४). " १. पे. नाम. द्विदलविचार प्रत्याख्यान भाष्ये, पृ. १अ संपूर्ण द्विदल विचार प्रत्याख्यान भाष्यगत, प्रा., पद्य, आदि: विदलं जिम ओपत्था अंति: हुति जीवा असंखया, गाथा-२. २. पे. नाम. फासु पाणी विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रासुक पानीविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जाथइ सचित्तयासे, अंति: पहरति गोवरि धरियव्वं, गाथा-२. ३. पे. नाम. पक्वानादि कालमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, मा.गु., पण, आदि वासीसु पनर दिवसो, अंति: तेण पर होइ अचित्तो, For Private and Personal Use Only गाथा ६. ४. पे. नाम. लेश्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. लेश्याविचार श्लोकगाथा संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: रुद्रो दुष्टः सदा, अंति: पलेणत्तं वीयरागेहिं, गाथा- ८. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १३९ ५. पे. नाम. पन्नवणासूत्र पद-१, सूत्र-१६२, आशालिक जीवोत्पत्ति वर्णन, प्र. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६. पे. नाम. पोसहपडिक्कमणाठावण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आठ पहरी पौषध; अंति: मुकीजइ साधुभक्ति. ७.पे. नाम. देशावकासिक दंडक, पृ. १आ, संपूर्ण. देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाण; अंति: गारेणं वोसिरामि. ८. पे. नाम. १० संकेतपच्चक्खाण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: अंगुट्ठ गंठि मुट्ठि; अंति: करेइ परिमाण कडमेयम्, गाथा-१. ७४१५१. (+#) इरियावही, कृष्णलेश्यादि विचारसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४५२). आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., इरियावही विचार से निक्षेप विचार तक है., वि. विभिन्न आगमों से विचार संकलित किए गए हैं.) ७४१५२. नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, जैदे., (२५४१०.५, १२४४५). नवकार रास, मु. दमणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राजकुवर रतनावती, गाथा-२२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ७४१५३. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३३). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुविधिनाथ स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से वासुपूज्य स्तवन गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४१५४. सात नर्क सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १३४३६). ७ नरक सज्झाय, मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) ७४१५५. गोचरी दोष, अभिनंदनजिन स्तवन व तीर्थंकर अंतरो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ६४३५). १. पे. नाम. गोचरीदोष सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मं १ उद्देसिय; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६. ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकरमी जेजतीनि; अंति: मे लइ ते प्रथम दोष. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन उपगारी हो; अंति: आस हमारी हो स्वामी, गाथा-८. ३. पे. नाम. चौवीसजिन आंतरो, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्री आदिनाथने; अंति: २५० वर्षनो आंतरो हुओ. ७४१५६. (+#) जैनगाथासंग्रह व नेमिराजुल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०, ८४४१). १.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: ऐयं बंध ठिईमाण, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-९ से है., वि. गाथांक व्युतिक्रम में है.) जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणि २ मूंद सहेलडी; अंति: प्रणमै श्रीरुधपाय, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४१५९. (+#) नारकी वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४१९). नारकी वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "ताजो अणाना आकाश लइ साते नरग" पाठांश से "लांबी पुहली असंख्याता जोअण सह सप्प" पाठांश तक है.) ७४१६०. (+) आराधनासूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३६-४०). आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-११ अपूर्ण से ६६ अपूर्ण तक है.) ७४१६१. सज्झाय, दूहा, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२४४१०.५, १०४३६). १. पे. नाम. तेर काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी भाई काठीया; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. २.पे. नाम. सात वाररा दूहा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ७वार शृंगार दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: आदीते गुण वेलडी; अंति: वलि वलि हीयडै हेज, गाथा-८. ३. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्यजिन; अंति: इम जीत वदे नीतमेवरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-मानव शरीर, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पाणी के कोट पवन के; अंति: रूपचंद० गुमांन है, गाथा-४. ५. पे. नाम. जिनगुण स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नरंजण यार हो रे तु; अंति: रूपचंद० सम देव न कोय, गाथा-५. ७४१६२. (+) चौवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१२,१०४३१). २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करि कच्छपी धरती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७४१६३. (+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, स्तुति व बाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले.ग. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३७). १. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुमित्र समचित्त; अंति: वली अवधारो हेव, गाथा-१. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनपति विनति; अंति: कांति सेवक सुविवेक, गाथा-४. ३. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामति रमवा हूंगई; अंति: जिनहर्ष०थयो अवतार रे, गाथा-८. ७४१६४. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १३४३०). नेमराजिमती सज्झाय, आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाकें संख पंचायण; अंति: तिलकसूरि० सिरमोर, गाथा-१०. ७४१६५. चार मंगल शरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११,१२४४०). ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: चौथमल वाल गोपाल, गाथा-११. ७४१६६. (+) औपदेशिक सवैया व दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२५). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जौ कुछ चित्त मे दत्त; अंति: इम शृंगार उतार, सवैया-३. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १४१ औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहि., पद्य, आदि: उत्तम फूल गुलाब की; अंति: मुझ कुछ कहा करत, दोहा-४. ७४१६९. (+) नंदराजा पद्मनी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४४९). नंदबहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सबै नयर सिरि सेहरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५० तक है.) ७४१७२. (+) अल्पबहुत्त्व ९८ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, २०४४२-६८). अल्पबहुत्व ९८ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते सिद्ध मिल्या, (प.वि. बोल-४ से है.) ७४१७३. (+) चौवीस जिननाम च्यवन नगरी माता पिता जन्म राशि लांछनादि की सूची, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २१४५८). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७४१७४. (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४४४). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक श्लोक संग्रह-दया दानादि विषये, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: तेस्मातेनायमुद्यम, श्लोक-१६, (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण से है.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-दया दानादि विषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते वातनो उद्यम करवो. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: मोहक्षयादनुभवन्नपि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मोहनीकर्मना क्षय थकी; अंति: (-). ७४१७५. श्रीसारबावनी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, २०४५३). श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ ॐकार अपार पार तसु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ तक है.) ७४१७८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११५-११४(१ से ११४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, ६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन चरित्र का अंतिम पाठ है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४१८१. शालीभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४४४-४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४१८३. सज्झाय, बारमासा व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०, १७X४४). १. पे. नाम. रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: चल पद राजुल लह्यौ जी, गाथा-११. २. पे. नाम. मेतारजमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही मे गोचरी; अंति: घ्रमसी उवज्झाय, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेम राजीमती बारमासो, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखीरी सांभलि हेतूं; अंति: लाभोदय विलासी हो लाल, गाथा-१५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति सुंदर ताहरी रे; अंति: जिनहरष० वधावण वंसधा, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमीजिन बारमासो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसिर मास मोही; अंति: आवयो मिलसुं मनरंग, गाथा-२५. ७४१८४. आध्यात्मिक, औपदेशिक व साधुसंगति पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२, १२४३३). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: अकल कला जग जीवन; अंति: चिदानंद० रीज भले री, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद ज्ञान, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-ज्ञान विषये, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जैलूं तत्त्व न सूज; अंति: चिदानंद० नाहि नडे रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधुसंगति पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ___ मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम परमातम पद पावे; अंति: चिदानंद सकल मिट जावे, गाथा-५. ७४१८५. (+) व्याख्यान श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४२). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत; अंति: (-), (पू.वि. चार बोल के वर्णन तक है.) ७४१८६. इलाचीकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १३४४२). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० ___ की गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-१२ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७४१८८. पार्श्वजिन स्तव, साधारणजिन स्तुति व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, १२४४३). १. पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बलभद्रकृताभोधेरुधृत; अंति: (-), (वि. युक्तिकल्पद्रुम जैसे किसी ग्रंथ की पुत्र कृति का भाग हो ऐसा प्रतीत होता है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-सप्तफणी, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एक दंडानि सप्तस्युः; अंति: मूर्ध्नि सप्तफणः फणी, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अद्याभवत्सफलता नयन; अंति: श्रीपार्श्वनाथो जिनः, गाथा-३. ७४१८९. (#) पंचकल्याणक स्तवन, देवायु विचार व नरक आयु विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३८). १.पे. नाम. पंचकल्याणक मंगल, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रूपचंद० संघह जीयो, ढाल-५, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. देव आयुष्य विवरण, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भाणपनीरो आउखो जगन; अंति: आपसं आधौ जाणिवौ, (वि. कोष्ठक भी दिया गया है.) ३. पे. नाम. नारकीआयुमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रतनपरभा घमा नाम आउखो; अंति: माघवी आ ३३ सागरपम. ७४१९०. चौवीसजिन माता पिता नाम व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org १. पे. नाम. चौवीस जिन मात पिता नाम, पृ. १५अ संपूर्ण. २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सिद्धाचल तीर्थ पद, पृ. १५ आ. संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज आपे चालो सहीयो; अंति: प्रेम घणै चित आणी रे, गाथा- ९. ७४१९१. माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५X११, , १४X३६-४०). प्रबंधचिंतामणि, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, दर्शनाचार अतिचार विचार, पृ. १अ संपूर्ण माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य वि. १६१६, आदि: (-); अंति: (-). ( पू. वि. गाथा - १४३ अपूर्ण से १६८ अपूर्ण तक है.) ७४१९२. () मुंजराजप्रबंध, दर्शनाचार अतिचार विचार व परिहारविशुद्धि विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, २१४७०). "" १. पे. नाम. प्रबंधचिंतामणि सर्ग-१ मुंजराजप्रबंध चयनित श्लोक संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. सं. गद्य, आदिः इदानी परिहारविशुद्ध, अंतिः अयं परिहार ४. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार - द्वार - ६९, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ". , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., गद्य, आदि: सम्यक्त्वधारिणे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अतिचार- ६ तक लिखा है.) ३. पे नाम, परिहारविशुद्धि विचार, पृ. १अ संपूर्ण. 3 1 ७४१९३. (+) गुरुवंदनभाष्यसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११, ५X४२). १४३ गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदनणमह तिविह; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १० अपूर्ण तक है.) गुरुवंदनभाष्य-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथमं फिट्टा, अंति: (-). ७४१९५. (+) जीव ५६३ भेद नाम, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १६X३४). - ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पृथ्वीकाय" से "सर्वार्थसिद्धि" तक है.) ७४१९८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-८ (१ से ४, ६ से ९) = २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५-१२०, ३x४३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-) अंति: (-) (पू.वि. श्लोक - १८ अपूर्ण तक व २२ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक एवं अंतिम श्लोक के कुछेक अंश नहीं हैं.) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ७४१९९ (+) संबोधसप्ततिका सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ५X३९). श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष , जैवे. (२४.५x११, २०x४४). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: रीन होत तहां रे समें; अंति: गंग असे फल पाये है, पद- १. २. पे नाम, प्रास्ताविक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिठं तिलोयगुरु अंतिः (-) (पू. वि. गाथा १० तक है.) संबोधसप्ततिका टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीर कहतां श्रीमहावीर, अंति: (-). ७४२०१ () पद, कुंडलिया व कवित संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, 7 For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४४ www.kobatirth.org रा. मान, पुहिं., पद्य, आदि: सररर वरषित सलिल घरर; अंति: नृप मान कह० फुलिंग भर, पद-२. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि: गोपीने गोपी परण, अंति: पाड मर रीतरा पाटाने, दोहा - ९. ४. पे नाम. अरिहा वाजिंद कवित, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक कवित्त, श्राव. अरिहा वाजिंद, पुहिं., पद्य, आदि: दो दो ही पगजोड मंदर, अंति: न्याव बराबर किजिय, गाथा ६. ५. पे. नाम. साईं दीन कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, पुर्हि, पद्य, आदि केइ सतान तोफाने कर, अंतिः अवधूतन को अवधूतन को, गाथा ४. " ६. पे नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ-२अ संपूर्ण पं. जसवंत, पुहिं., पद्य, आदि: असली की संगत मे चाही अंति: जसुलाल० देन मारिय गाथा - २. " ७. पे. नाम. नवकोटि मारवाडनाम कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. नवकोटी कवित्त, मा.गु, पद्य, आदि मंडोवर सामंत हुवो, अंतिः कोटि वांटि जुजुकीया, गाथा- १. ८. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया संग्रह, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. भजुलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच प्रमेष्ठि सुमरीय, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुंडलिया - ९ तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४२०२. (+#) विविध विषय विचारगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०, २०४४३-५०) " गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: पज्जुसणे चउम्मासो, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १०१ तक लिखा है.) ७४२०३, (+) बैतालीस दोष विवरण स्तवन, संपूर्ण वि. १८४८, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, लाडनूं, प्रले नधु प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x११, ३X३१). गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सासनपति चोवीसमो; अंति: रुघनाथ० अडोत्तरे, गाथा ३६. (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. 19 ७४२०५ (+) मौनएकादशी व सिद्धचक्र स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-६ (२ से ६) = १ कुल पे. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५४११, १४४४०). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानसूरि सुख दीजड़, गाथा-४, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर नर; अंति: ज्ञानवि० मंगलमाला जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र सदा आराहिइ; अंति: ज्ञान० महोदय विस्तरइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ७आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक श्रीसिद्धचक; अंति: एहनो परम आह्लाद, गाथा-१. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ए सिद्धचक्र; अंति: ज्ञान०वधती तेहनी नूर, गाथा - १. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशल अनुबंधि; अंति: ज्ञान० लहिइ तेह विचार, गाथा - १. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशल लीलावती, अंतिः ज्ञानवि० कोडि कल्याण, गाथा- १. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १४५ ८. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ७आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: एह अनुभव धरो मनमाही; अंति: ज्ञानविमल०जनम पवित्र, गाथा-१. ७४२०७. वसुधाराधारिणी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७७८, आश्विन कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्रले.मु. भावसागर (गुरु मु. प्रेमसागर); गुपि. मु. प्रेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल प्रतिलेखक के नाम को मिटाकर दूसरे प्रतिलेखक का नाम लिखा गया है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११, ११४३८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. "प्रभाविताः प्रकाशिता प्रह्वीकृता" पाठ से है.) ७४२१०. (+) सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १६२०, पौष कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, ले.स्थल. जसोल, प्रले. मु. विद्यासागर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ९९७, जैदे., (२६.५४११,१०४५५). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: (-); अंति: कथां सम्यक्त्वकौमुदी, (पू.वि. अन्त के __पाठांश हैं.) ७४२११. यंत्र व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, कुल पे. ७, जैदे., (२४.५४१०.५, ३३-५६४१३-२०). १. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर, चक्रवर्ति, वासुदेव बलदेव, देह-आयुमान कोष्ठक, पृ. २२अ, संपूर्ण. २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ भरत धनुष ५००; अंति: महावीर हाथ ७ वर्ष ७२. २. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकरना पूर्वला भवनाम, पृ. २२अ, संपूर्ण. २४ जिन पूर्वभव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वज्रनाभ विमल विमलवाह; अंति: शंख सुदर्शन नंदन. ३. पे. नाम. २४ जिन प्रव्रज्या शिविका नाम, पृ. २२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुदसणा सुप्रभा; अंति: विशाला चंद्रप्रभा. ४. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती मातापिता नाम, पृ. २२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ समित्रजय समुद्र; अंति: मेरा वथा चुलणी. ५. पे. नाम. षडशीति द्वाषष्टि मार्गणास्थानक यंत्र, पृ. २२आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-६२ मार्गणास्थानक यंत्र, संबद्ध, सं., यं., आदि: जीवस्थानक१४ गुणस्थल; अंति: एकेंद्रियअपर्याप्ति. ६. पे. नाम. षडशीति गुणस्थानक यंत्र, प्र. २२आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-गुणस्थानक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., यं., आदि: गुणस्थानक१४ जीव१४; अंति: मिथ्यात्व गुणस्थानक. ७. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती स्त्रीरत्न नाम, पृ. २२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सुभद्रा भद्रा सुनंदा; अंति: लक्ष्मीवती कुरुमती. ७४२१२. महावीरजिन, पार्श्वजिन स्तवन व पंचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १२४४३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, अन्य. मु. जितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन प्रणमो श्रीवीर; अंति: तेह अमृतपद लहीइ सही, गाथा-६. २. पे. नाम. भाभापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब अरज सुणो; अंति: अमृत० थाउं तुझ संगे, गाथा-६. ३. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवेरे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४२१३. (+) दीवाली ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीलाडा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, १७X४५). दीपावलीपर्व रास, मु. मनोवर, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंतरोगणधर; अंति: मनोवर वंदु नितमेव, गाथा-३९. ७४२१४. नरभव १० दृष्टांत स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, जैदे., (२५४११, १२४३५). नरभव १० दृष्टांत सज्झाय, पं. मतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक ___पत्र है., दृष्टांतस्वाध्याय-५ गाथा-१ अपूर्ण से दृष्टांतस्वाध्याय-९ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४२१७. (+#) एकविंशतिस्थानक प्रकरण, षोढाराधना व जंबूद्वीपप्रमाण पल्यचतुष्क विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१५४४२). १.पे. नाम. एकविंशतिस्थान प्रकरण, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)माहिदे अट्ठ नायव्वा, (२)रिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-३१ चतुर्थ पाद अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. षोढाराधना, पृ. ३अ, संपूर्ण. ६ प्रकार आराधना, सं., पद्य, आदि: भावना क्षामणा कर्म; अंति: भागी पादपोपगमं ततः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र शिष्यहिताटीकागत जंबूद्वीपप्रमाण पल्यचतुष्क त्रिविध संख्येयक विवरण, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७४२१९. (+#) बृहत्संग्रहणी प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४२९-३५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से गाथा-६३ अपूर्ण तक है.) ७४२२०. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, ९४३०-३३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७४२२१. (4) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महाव्रतोच्चारगत "परिग्गहस्स वेरमणे एसवुत्ते" से है व "कीन्ना नीला काउ" पाठ तक लिखा है.) ७४२२२. (+) १८ पापस्थानक सज्झाय व रोगी कालज्ञान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४-१६४३६-४९). १.पे. नाम. १८ पापस्थानकगत प्राणातिपात मृषावाद व मैथुन स्वाध्याय, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रावण शुक्ल, १०, गुरुवार, पे.वि. प्रतिलेखक ने पहले चतुर्थ पापस्थानक लिखा है इसके बाद प्रथम-द्वितीय पापस्थानक सज्झाय लिखा है. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलू का; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. रोगी कालज्ञान विचार, पृ. २८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. मा.गु., गद्य, आदि: जे रोगी पुरुस मांदो; अंति: दिवसे मृत्यु पामे. ७४२२३. (+#) कायस्थिति स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७१०, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, २१४५२). For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org १४७ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय, अंतिः अकावपयसंपयं बेसु गाथा - २४. कास्थिति प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) वर्द्धमानं जिनं, (२) हे जिनेंद्र हे भवभय, अंति: देहि समर्पयेत्यर्थः ७४२२४. साधुवंदना व २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, ११x४५). १. पे नाम, साधुवंदना, पृ. ५अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. " आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल - ७, गाथा- ८८, ( पू. वि. गाथा - ८५ से ८८ तक है.) २. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. , ', " मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिणवर जय जय; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा - १ ही लिखा है.) ७४२२५. पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२५X११, १०X३५-३८). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: (-), (पू. वि. "बिंब प्रतिवास कुंपी धुपधोणा कसतो" पाठ तक है.) ७४२२६. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११२-१०९(१,४ से १११)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५X११, १७X३२). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः श्लोक-३३ (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. मात्र प्रथम व अंतिम काव्य है.) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका - स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. महिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: (-); अंति: (-), " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ७४२२७. सुमतिकुमतिपरिवार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे., (२४.५X११.५, १४X३५-३८). सुमति कुमतिपरिवार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- १ गाथा-५ अपूर्ण से डाल-३ गाधा-४ अपूर्ण तक है.) " " ७४२३०. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व दृष्टांतकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२०(१ से २०) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५X११, २x४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- २ की गाथा - २४ से २८ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शव्यापरीसह दृष्टांतकथा अपूर्ण से खंधकशिष्यवध परीसह कथा तक है.) ७४२३१. शनीवर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५४११, ९४३५-३८). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरापती, अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-१७. ७४२३३. (d) लम प्रदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे. (२४.५x१०.५, ११३६-४०). ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सूर्ये; अंति: र्व सौख्यं जयं वदेत्, श्लोक-२७. ७४२३४. औपदेशिक सज्झाय व नवपद पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. दे. (२४४१२, ११४३२). "" १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अविवहार की रास मे; अंति: यह तातै शिव पहुचंत, गाथा - ९. २. पे. नाम. नवपद पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र पद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंतिः शिवतरु बीज खरो रे, गाथा-३. ७४२३६. (+) जिनकुशलसूरि छंद, हनुमानाष्टक व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे, ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, १३४३८-४२). " For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता सरसती; अंति: विजै सिंघ लीला वरी, गाथा-३१. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. भावराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरि सुख; अंति: भावराज मुनि इम भणइ, गाथा-१४. ३. पे. नाम. हनुमानष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. हनुमानाष्टक, पुहिं.,सं., पद्य, आदि: जय जय बजरंगी जालिम; अंति: सरनै जानं गिरतारं, श्लोक-८. ४. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७४२३७. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३७). १. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिमहन्नौमि; अंति: तेषां काम फलप्रद, श्लोक-८. ३. पे. नाम. शनीभार्या नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिभार्या नाम, सं., पद्य, आदि: ध्वजनी धामनी चैव; अंति: न भवंति कदाचन, श्लोक-२. ४. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, श्लोक-१०. ७४२३८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४५). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ तृषा परिसह दृष्टांतकथा अपूर्ण से अचेल परिसह दृष्टांतकथा अपूर्ण तक है.) ७४२४०. ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२-३५). महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-१ तक है.) ७४२४१. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से २,४ से ७)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:समेसार०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३५). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सवैया-१५ अपूर्ण से मोक्षतत्त्व दोहा-३४ व जिनराज यथार्थ कथन दोहा-७८ से वस्तुस्वरूप कथन पात्रदृष्टांत दोहा-८६ अपूर्ण तक है.) ७४२४२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, ५४३०). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (पू.वि. प्रास्ताविक भाग अपूर्ण तक है.) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा आरा ते; अंति: (-). ७४२४४. (+) स्तुति व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४४८-५२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनसुध वंदो भावै भवि; अंति: ज्यो जिनहर्ष सहाईजी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: जिनहर्ष० सुख लाल रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंदिरमाई सीमंदर की; अंति: कौन सरूप न पाई, गाथा-२. ४. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. आदिवाक्य में आदिनाथ की जगह अरनाथ होना चाहिये. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ जिणेसर दिख्या; अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन-सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: प्रति करुं प्रणाम, गाथा-२, प्र.ले.पु. मध्यम. ७४२४६. आदिनाथ कलश व पार्श्वजिन कल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४३३-३८). १. पे. नाम. आदिनाथ कलश, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., पद्य, आदि: (-); अंति: जिम तिम दिओ वरमुत्ति, ढाल-१६, (पू.वि. अंतिम ढाल गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन जन्माभिषेक कलश, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन कल्याणक स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वाणारसीनयरि निरुपम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७४२४७. उत्तराध्ययनसूत्र लघुवृत्तिगत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १३४३९-४४). उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि: अर्हतः सर्वसिद्धाश्च; अंति: (-), (पू.वि. प्रास्ताविक भाग है.) ७४२४८. (#) बृहत्संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४१-३८(१ से ३८)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:संघयणि. यंत्र-कोष्ठक सहित., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४०-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-तिसहसु० से लहओ दुहावि समओ० पाठ तक है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७४२४९. (#) शनिश्चरछंद, ऋषभदेवजिन स्तवन व अधमसंगत्याग दूहा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. रानेरबंदर, पठ. सा. सखरलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १६x४०-४३). १.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंति: वली एम वखाणीए, गाथा-१६. २. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. वृद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: वृद्धिकुशल० नवल सनेह, गाथा-९. ३. पे. नाम. अधमसंगत्याग दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: हंसा ते सर सेविया जे; अंति: नित नित चलै कलंक, गाथा-१. ७४२५०. ढाल, लावणी व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५४११, १३४४५). १.पे. नाम. ऋषभदतदेवानंदा ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: रिषभदत ने देवानंदा; अंति: रतनचंद० कीयो असी रे, गाथा-७, (वि. २ गाथा को १ गाथा मानकर लिखे जाने की संभावना है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: मुगतगढ जीत लिया वंका; अंति: जिणदास० में कोई संका, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रभुविरह गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सेवगराम, पुहिं., पद्य, आदि: सबद गुर बाण भर; अंति: सेवगराम० सुख पावै, गाथा-७. ४. पे. नाम. रतनमहाराज गुरु गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: सतगुरजीरा गुण कीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४२५१. (#) पार्श्वजिन छंद व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १८४४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनर नाग सह मिली; अंति: पवर सीस पयंपेजेंतसी, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: अइसे नदखिणा घिरी अपर; अंति: (-), दोहा-४, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ७४२५३. औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ८x२०). औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एसो मंगल निलऊ भय; अंति: अपचक्षु नरोयथा, श्लोक-५. ७४२५४. (+) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)-४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४६२). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "अववहारे १५ आवस्सकदसकालि अस्स" से "धर्मशालायांमागम्यते तदा वाच्यते राज्ञचांगी" तक है.) ७४२५६. (#) श्रावकधर्म अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४०). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "प्रतिमा चारित्रीयाना चारित्र जिनवचन" पाठांश से "अनुकंपादान दीधो नही बारमा अतिथि" तक है.) ७४२५८. बाहूबल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १०x४०). बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी मांनो वीनती; अंति: न्यानसागर वंदणा खास, गाथा-९. ७४२५९. लोकनालिद्वात्रिंशिका सटीक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, १२४३६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणाज लोय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, आदि: जिनदर्शनं विना; अंति: (-). ७४२६०. (+#) विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५०). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., ढाल-९ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४२६१. (+) प्रतिक्रमणसूत्र पद, संपदा, अक्षरादि संख्या व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,१६x४२-६२). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: वेयावच्चगरा० वर्ण २२. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १५१ २. पे. नाम. सर्वतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयम्मि उसभो; अति: (अपठनीय), गाथा-१. ३. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी५ दरस्वणीय; अंति: प्रकृत्ति छइ. ४. पे. नाम. ८ प्रभावक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पावयणी१ धम्मकहीर; अंति: पभावगा भणिया, गाथा-१. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जल उखल घरंटी; अंति: (अपठनीय), श्लोक-२. ६. पे. नाम. सूत्र पद संपदादि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छ१ गमर पाण३; अंति: अहिगारे इत्थ पढमंमि. ७. पे. नाम. त्रिकालवर्ति जिन वंदना गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जे अ अईया सिद्धा; अंति: सव्वे तिविहेण वंदामि, गाथा-१. ८. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ गाथा-१९ से २०, पृ. १आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९. पे. नाम. पूर्व १ संख्यामान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: ० अनै छपन्नकोडिहजार; अंति: पूरव हुवै एक उदार, गाथा-१. १०. पे. नाम. जापफल गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चलचित्तेन यः जप्त; अंति: सर्वं निःफलं भवेत्, श्लोक-१. ७४२६६. (#) इक्वीस ठाणा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, पठ. सा. सुगणादे आर्या; लिख. श्रावि. सुजाणदे बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४१). २१ स्थान प्रकरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परिवार मोक्ष गया, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., तीर्थंकरों के लंछण वर्णन अपूर्ण से है.) ७४२६७. (#) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४०). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वंधु श्रीवीर; अंति: नवै देह मनवंछित भणी, गाथा-२८, (वि. अंतिम वाक्य दुर्वाच्य है.) ७४२६९. (+) प्रव्रज्या कुलक व संबोध सत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७४-७०(१ से ७०)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ९४४७-५०). १.पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ.७१अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ); अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभण तीर्थ, पृ. ७१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र एक श्लोक लिखा है.) ३. पे. नाम. संबोध सत्तरी सह टबार्थ, पृ. ७१आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७६. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइं त्रिलोकगुरु; अंति: लहइं ईहां संदेह नही. ७४२७०. (#) पंचमआरा सज्झाय व सारणी, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२६-३०). १. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: पामो सुख श्रीकारो, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सारणी, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७४२७१. तीर्थंकर चक्री आदि देह-आयु मानयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. सारणीयुक्त, जैदे., (२४.५४११, ९x१७-२०). २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४२७२. (+) गुरुनमस्कार व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १८४४०). १.पे. नाम. गुरु नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण प्रशस्ति संग्रह, सं., पद्य, आदि: शरीरमर्थ संप्राप्ति; अंति: साधये गुरुमागति, गाथा-१८. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमल केवल ज्ञान कमला; अंति: पद्मविजय सुहितकर, गाथा-७. ३. पे. नाम. विमलगिरि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., पद्य, आदि: नमः सिद्धक्षेत्राय; अंति: नगजय०भविनां च भूयात्, श्लोक-६. ७४२७३. पूजा व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. नवपद पूजा विधि सहित, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडी पासजी नीति; अंति: (-), ढाल-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) २. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ११ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४२७४. लुंकामतीय प्रश्नबोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४९.५, १६x४२). लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउवाईसूत्रमाहि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., बोल-२८ अपूर्ण तक है.) ७४२७५. २४ जिन विवरण यंत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०-१३.०, १४४४०). १.पे. नाम. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विवरण यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठकयुक्त.) २. पे. नाम. २४ जिन राशि नक्षत्र श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. २४ जिन राशि नक्षत्रादि षड्विध प्रतिमानिरीक्षण श्लोक, सं., पद्य, आदि: नक्षत्र योनिश्च; अंति: प्रतिमा विलोक्यते. ७४२७६. (+) दिसाणुवाइ व क्षेत्राणुवाइ पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २३४५६). १.पे. नाम. दिसाणुवाइ पण्णवणात्रीजो पद, पृ. १, संपूर्ण. दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव समुचइ सर्व थोडा; अंति: पदनो अधिकार जाणवु. २. पे. नाम. क्षेत्रणुवाद २० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, आदि: षेत्र आश्री बोल २०नो; अंति: ते षेत्र असंख्या. ७४२७८. (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१५४४३). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरीए; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७४२७९. (#) पैंतीस बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २७४६५). For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १५३ ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै गति च्यार; अंति: गुण श्रावकना कह्या. ७४२८०. ब्रह्माणी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. मेघविजय गणि; पठ. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. मेघविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३५). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: शांति० फलस्य ताहरी, गाथा-३५. ७४२८१. (#) श्रावक २१ गुण, सासोश्वास मान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३५-३८). १.पे. नाम. श्रावक २१ गुण सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ श्रावक गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणसंजुत्तो; अंति: २१ सावयगुणाण नायव्वा, गाथा-३. २१ श्रावक गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरत्नइ करी; अति: श्रावकना गुण जाणवा. २.पे. नाम. मुहूर्त श्वासोश्वास मान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तीन हजार सातसि; अति: झाझेरा जाणवा. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. ७४२८२. (#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र व पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १२४२६-३०). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमिदंसणंमि; अंति: (-), (पू.वि. जिनभवन __ के प्रति ८४ एवं गुरु के प्रति तीस आशातना वर्णन अपूर्ण तक है.) ७४२८३. (#) गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७४२८४. (+#) राईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह खरतरगच्छीय विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १२४३४). राईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: इच्छामिखमासमणो वंदिउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्वतीर्थ वंदना तक लिखा है.) ७४२८५. साधुपाक्षिक अतिचार व पाक्षिकचौमासीसांवत्सरिक आलापक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:साधुअतिचा, जैदे., (२५४१२, १७४२६). १.पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, ग्रं. पा, (पू.वि. पाठांश ___"संघारीया उत्तरपट्टाटलत्तं" से है.) २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एवंकारे श्रीसाधुतणे; अंति: चोवीस छसहस्र सिज्झाय. ७४२८८. (+#) स्तुति चतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४४५-४८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं ___ हैं., शीतलजिन स्तुति श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ७४२८९. (#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०४३०-३५). For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संभवजिन स्तवन, गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४२९१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, ४४३२-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जि के अमर; अंति: (-). ७४२९२. (#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. सारणीयुक्त, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ५ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४२९३. महावीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०x२८). __ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो विसवास छै; अंति: रूपचंद रस माणे, गाथा-८. ७४२९४. उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १३४४३). उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुलवालुक कथा अपूर्ण से भूतवादी कथा अपूर्ण तक है., वि. मूल गाथाओं का प्रतीक पाठ दिया गया है.) ७४२९५. (+) पार्श्वजिन स्तवन व नेमिराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-२२(१ से २२)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४५-५०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुप्रणमुरे पास; अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-५१. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र ७४२९६. रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५०). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७४२९७. दसपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, २०४४०-४३). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नम: अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ७४३००. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. गुलालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १०४३०). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: होये जय जयकार रे, गाथा-१२. ७४३०२. चौदगुणठाणा स्तवन, ढाल-३ से६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२-१५४३४-३८). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: कहै इम मुनि धरमसी, प्रतिपूर्ण. ७४३०३. (+) सुरपति चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. बालाराम ऋषि (गुरु मु. चौथमल ऋषि, जयमल्लगच्छ); गुपि. मु. चौथमल ऋषि (गुरु मु. नथमल ऋषि, जयमल्लगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संस्कृत में पद्यमय प्रतिलेखन पुष्पिका है., कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., दे., (२५४११.५, ५४६२). For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १५५ सुरपति चौपाई-दानविषये, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: (-); अंति: प्रसादे वरते मंगलमाल, ___ गाथा-१४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-११ से है.) ७४३०४. (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८३-८२(१ से ८२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४१). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१७७ अपूर्ण से १७८ अपूर्ण तक है.) ७४३०७. (#) सप्ततिशतजिन स्तवन व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३९). १. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. प्रारंभ की दो गाथाएँ अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी गई हैं.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ७४३०८. (+#) हितशिक्षा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-६९(१ से ६९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १५४३६). हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "उत्कृष्टा भव सात के आठ" अपूर्ण से "वंद विजयसेनसूरिंद" तक है.) ७४३०९. (+) स्तवनचौबीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३५-३८). स्तवनचौवीसी, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मेरुविजय भणि निसदीसो, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., शीतलजिन स्तवन से है., वि. आरम्भ व अन्त में अन्य प्रतिलेखक के द्वारा अपूर्ण पाठ की पूर्ति की गई है.) ७४३१४. (+) आषाढाभूति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५५). आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ७४३१५. (+#) साधारणजिन स्तवन-कल्याणक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १०४३५). साधारणजिन स्तवन-कल्याणक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'शांति वाधइ' पाठांश से 'पंच कल्याणकइंजगि' पाठांश तक है.) ७४३१६. ब्रह्मव्रत उच्चारण विधि व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, ९-११४३५). १. पे. नाम. ब्रह्मव्रतउच्चारण विधि, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, (पू.वि. "उच्चार्यते ताव एवं बंभव्वयं" पाठ से है.) २. पे. नाम. पांचशक्रस्तव देववंदन विधि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि तसोतरि; अंति: कही जय वीयराय कहै. ७४३२१. (+) जिनभवन आशातना विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ६४३३). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेल १ केलि २ कलि ३; अंति: वेजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्म क्रीडा वेढ; अंति: वरजै देहरामाहइ. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४३२३. मौनएकादशी गणना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. शंभुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४२६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भर्तक्षेत; अंति: आरणनाथाय नमः. ७४३२४. (+) १६ द्वारे २३ पदवी विचार-पन्नवणासूत्रगत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १३४३९). १६द्वारे २३ पदवी विचार-पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: नाम दुवार १ अर्थ; अंति: (-), (पू.वि. शरीरद्वार-१३ अपूर्ण तक व इंद्रीद्वार-९ अपूर्ण से-१९ तक है.) ७४३२५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १५८-१५७(१ से १५७)=१, ले.स्थल. देशणोक, अन्य. श्राव. नेतसीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में श्रावक नेतसीजी की भार्या के उद्यापन महोत्सव पर साधर्मिक भक्ति हेतु प्रत लिखवाए जाने का उल्लेख मिलता है., दे., (२५४१०.५, ६४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन-३६, (पू.वि. अंतिम गाथा __अपूर्ण मात्र है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शाश्वतासुख मोक्षना. ७४३२६. (+#) गौतम कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१०.५, ५४२९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-७ अपूर्ण तक है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा-लोभी विषइ नरा; अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ७४३३१. चौवीसदंडकगर्भित महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, ९४२०-२३). __ महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२३, गाथा-९ अपूर्ण से द्वार-२५, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४३३२. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-२१(१ से १६,१८ से २२)=२, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११.५, १०-१३४२९-३१). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसागर० जग भावनो, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पूजा करता भाविइं रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसागर रंगवो, गाथा-७, (पू.वि. अन्तिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन सेककैं देव; अंति: न्यायसागर० वरे रे लो, गाथा-७. ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुने कोई सुविधि; अंति: न्यायसागर० गाईओरे, गाथा-६. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: शेत्रुजै मोहनजी; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र ७४३३३. पार्श्वजिन स्तुति व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. पंडित. माधवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४५५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापा धाधा निधाधा; अंति: पतेरर्हतः पात्वसौ व, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १५७ २. पे. नाम. औपदेशिक कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: खुनी महबूब अरे अइसा; अंति: राम हा राम जगत रटइगो, दोहा-३. ७४३३४. (-) श्रद्धामंडण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, ९४२१). श्रद्धामंडण, मु. रत्नविजय, पुहिं., प+ग., वि. १९०६, आदि: सर्वज्ञ कुं प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-६ अपूर्ण तक है.) ७४३३५. (+) गजसिंघकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४५५). गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ___ गाथा-७५ अपूर्ण तक है.) ७४३३६. महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग्यान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). महावीरजिन पद, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी प्रभु चंपानगर; अंति: रतनचंदजी० ग्राम मझार, गाथा-१०. ७४३३८. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, १२४२८). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नयर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१५. ७४३३९. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतीदायक सुरनर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) ७४३४१. शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, ११४३३). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालीया तिणे; अंति: सहजसुंदरनी वाण, गाथा-१६. ७४३४३. दीवाली थुई, आत्म स्वाध्याय व राजिमति रहनेमि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११,१०-१३४३३-४९). १.पे. नाम. दीवालीनी थुई, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: द्यो सरसति मुझ वाणी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंति: तोय छोडावनहार, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. राजिमतीरहनेम सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: हितविजय०पावे सास्वता, गाथा-१२. ७४३४४. औपदेशिकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १८४३९-६०). गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: मजं विसयकसाया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३३ तक लिखा है.) ७४३४५. (+) गौतम रासो व सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३९). १. पे. नाम. गौतम रासो, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विनय० साखा वीस्तरोए, ढाल-६, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २२ अपूर्ण तक है.) ७४३४६. (+) अध्यात्मबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, २०x४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर तिहा, अंति: (-), (पू. वि. गाथा१६ अपूर्ण तक है.) ७४३४७. सिद्धाचलपद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, ९X३२). १. पे. नाम. सिद्धाचल पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज आपे चालो सहीयां, अंतिः श्रीजिनचंद्र० आणी रे, गाधा- ९. २. पे. नाम. सिद्धाचल पद, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन- ९९ यात्रागभिंत, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण, अंति: (-) (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७४३५१. (+) दशवैकालिक अध्ययन, अपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३) = ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८४११.५, १२X३०). अग्यार अध्ययननी सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, अध्याय- ११, गाथा-१०७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-६ से है.) " ७४३५३. श्रेणिकराजा चौपाई व मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२६११.५, १४४३९). १. पे. नाम. श्रेणिकराजा चौपाई, पृ. १अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. फतेहसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: फतेहोसुंदर० ढाल के, (पू. वि. दाल ५वीं मात्र है.) २. पे. नाम. मेघकुमार चौपाई, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः परमजोती प्रकाश करी, अंति: (-). (पू.वि. डाल-१ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७४३५४. कल्पसूत्र कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२ ४१(१ से ४१ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी: कल्पकथा पत्र बीजुं., जैदे., (२५X११, १७५५). कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. व्याख्यान ४ का प्रारंभिक स्वप्न विचार लिखा है.) ७४३५५ (+) अंतरिकजिन स्तुति, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१ ) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित संशोधित, जैवे. (२५४१२, १४४३४). १. पे. नाम. अंतरिकजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंगै० थया दुख दंद हो, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुंजयगिरि स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो रे नमो सेतुंज, अंतिः जिनह० मंगल वृद्धिरे, गाथा १३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्रोदय, सं., पद्य, आदि: जय जिन तारक है, अंति: निरुपम कारण हे, गाथा-८. ७४३५६, (+) शील रास, अपूर्ण, वि. १८०५, कार्तिक कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५) = १ ले मनोहरहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X११.५, १५X४२). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु, पद्म, वि. १६३७, आदि (-) अंति एम विजयदेवसुरीस कइ, गाथा- ६८, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा- ६४ अपूर्ण से है.) " ७४३५७, (+०) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४२). For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विमलजिन स्तवन ___ अपूर्ण से कुंथुजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ७४३५८. (#) रहनेमि सज्झाय व प्रास्ताविक दोहे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४२). १.पे. नाम. रहनेमिसज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: नेमराजुल पोती ठेठ रे, गाथा-७. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहे, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. दोहा-५ अपूर्ण तक है.) ७४३५९. (+) १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४४०). १२ भावना सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ से ३८ अपूर्ण तक है.) ७४३६०. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२४.५४१०, १०४३५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दान एहवा मुनिवरू, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है., वि. एक गाथा को दो गाथा गिना गया है.) ७४३६१. कार्तिक सेठ चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १९x४१). __ कार्तिकशेठ चौढालियो, श्राव. उदयभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: श्रीआदिश्वर आदि नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७४३६२. जांभवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, जैदे., (२४४१२, २०४३८). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरसागर०अविचल पाट तो, ढाल-१३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-११ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७४३६३. (+) आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४४२). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभ कुलगुरु कुलनाभ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ७४३६४. (+) ललितांग कुमार दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १९४५२-५५). ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धर्म करिवाने प्रसाद; अंति: (-), (पू.वि. पुरुषप्रधान के द्वारा राजा के समक्ष वृत्तांत सुनाने का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७४३६८. (+#) गणधरवाद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. वि.सं. १६६६ कार्तिक वदि १ सोमवार को तलोद गाँव में सुश्री वलाई जयता शाह के लिये गणिवर्य श्री विनयविजयजी द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि.,संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०x२४).. गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सो सुत त्रिसलादेवी; अंति: सेवक सकलचंद शुभाकर, गाथा-४८. ७४३६९. इरियावहि व धनाशालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९१६, फाल्गुन कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. गंगादास आत्माराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुक्तिफल अनुभवशेरे, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख वाणि रे; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा-२२. ७४३७०. सात नय धर्म, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२७). ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवें साते नयें धर्म; अंति: (-), (पू.वि. "पहिलुं निश्चय ज्ञान अनुभवे पछे व्यवहार करे" प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७४३७२. (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १६३५, फाल्गुन शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. जयतारणनगर, प्रले. पं. विशालरत्न गणि; पठ. श्राव. सोना नेमा शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १५४३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बुद्धबोहिक्क णिक्काय, गाथा-४९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२६ से ७४३७३. (+#) १४ गुणस्थानक के कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४१०.५, १४-१९४४८). १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी५ दर्शना९; अंति: (-), (पू.वि. उपशांतमोह गुणस्थानक भांगा अपूर्ण तक है.) ७४३७७. (#) स्वरोदय ज्ञान, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५२). योगछत्रीशी, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रसन्न सदगुरुजो; अति: (-), (पू.वि. अतिम पत्र नहीं है., गाथा-३२ अपूर्ण तक लिखा __ है., वि. सारिणीयुक्त) ७४३७९. राजसिंह रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ४,६)=२, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३८). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१ की ढाल-५ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४३८०. क्षमाछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १०४३०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक ७४३८५. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, जैदे., (२४४१०.५, १०४२९). आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर पहिलो अरिहंत; अंति: सफल भव आपणो गिणी, ढाल-४, गाथा-५३, संपूर्ण. ७४३८६. भक्तामर स्तोत्र पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३९-४६). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: आदिपुरूष आदिसजिन आदि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ७४३८७. (+) शास्वतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४४१). शास्वतजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) ७४३८८. रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १४४३३). ___ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु प्रणमि; अंति: (-). ७४३८९. (+#) सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३-४१). १.पे. नाम. नेमिजिन भाष, पृ. ३अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. नेमराजिमती पद, ग. लालजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राजुल रे नारि भवोदधि, गाथा-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मेरुतुंगसूरि गुरुगुण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ग. लक्ष्मीचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मोरी हे सखी सफल; अंति: लक्ष्मी० लिखिगणि हे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कुशलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुमरवर मोरि मन; अंति: कुशलचंद्र०प्रणमि पाइ, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन मरुदेवीमाता पद, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ____ मा.गु., पद्य, आदि: वीसारि किम वालह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ७४३९०. (+#) चउसरण प्रकीर्णक व व्रत उच्चार अधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४१). १.पे. नाम. चउसरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं नियसुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. व्रत उच्चार अधिकार, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: एएहिं पंचहिं असंवरेह; अंति: सतरविहा संजमो होइ, गाथा-५. ७४३९४. षट्लेश्या लक्षण श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित लिखा गया है., जैदे., (२५४११, ४४२९). लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७४३९५. (+) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ३४२०-२५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७४३९६. (+#) कल्पसूत्र वाचना-५ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १३-१९४४८-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७४३९७. (+) पर्यांताराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३७-४३). पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. अपकाय जीव में से सात लाख जीव योनि की चर्चा अपूर्ण तक है.) ७४४०१. (#) अजितवीर्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४३५). अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीव पुखरवर पश्चिम; अंति: वाचक जस इम बोलेरे, गाथा-७.. ७४४०३. (+) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १२४३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्यंजनाक्षर समाप्ति पाठ से मिथ्याश्रुत-सम्यक् श्रुत अधिकार अपूर्ण तक है.) ७४४०४. (#) भ्रमर सज्झाय व नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ३२४१७). १.पे. नाम. भमरला सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वैराव्यो मुनि; अंति: पुन्यकरा प्राणीया, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजै सुत गुण; अंति: अचलयुगो डोहलो, गाथा-९. ७४४०६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-६०(१ से ६०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७४५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "भगवान महावीर के कालधर्म वर्णन" अपूर्ण से "निर्वाण के पश्चात देव-देवियों के आगमन का वर्णन" अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४४०७. (#) शियलनववाड, नंदीश्वरद्वीप स्तुति व दशपच्चक्खाण नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,१२४४३). १. पे. नाम. सीयल नववाडि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः (-); अंति: हो तेहने जाओ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीपस्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर वरद्वीप संभार; अंति: सनदेवी सानिध्य कीजे, गाथा-४. ३. पे. नाम. दशपच्चक्खाण नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नोकारसी; अंति: नारकीरा दुख छापडे. ७४४११. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १६४५८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४५ की गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-४७ की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४४१४. (+) आगमिक गाथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. एक संस्कृत श्लोक भी लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६४३६). आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अज्ञात ग्रंथ की गाथा-८ अपूर्ण से उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-३६ की गाथा-२६३वीं अपूर्ण तक है.) आगमिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४४१५. आदिजिन व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १२४२५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगनायक जगगुरु; अंति: मुझ द्यो दरसण सुखकंद, गाथा-६. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदननाथ जुहारीजी; अंति: देवचंद०सांमी सोहामणो, गाथा-११, (वि. अंतिम वाक्य का आंशिक भाग खंडित है.) ७४४१६. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, ७४३६). माणिभद्रवीर छंद, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम मात तोने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४४१७. (#) स्वामीविरह पत्र, प्रास्ताविक श्लोक व गुणावलीरानीलिखित श्रीचंद्रराजा पत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ३६४२२). १.पे. नाम. स्वामीविरह पत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. उत्तम, पुहि., पद्य, आदि: सजन कुंचीरी लखु; अंति: उत्तम०बालिम कं चीरी, पद-१. २. पे. नाम. मेघप्रार्थना श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १६३ प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: मुंच मुंच सलिलं दया; अंति: वारिधर किं करिष्यति, श्लोक-१. ३. पे. नाम. गुणावलीरानीलिखित श्रीचंदराजा पत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. बीच का एक टुकड़ा नहीं है. गुणावलीरानीलिखित श्रीचंद्रराजा पत्र, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीसुखसंपदा; अंति: मोहन० उत्तम साथ हो, गाथा-५६, (वि. वस्तुतः गाथा-१६ अपूर्ण से गाथा-३९ अपूर्ण तक के पाठ नहीं है. श्रीचंदराजा से संबंधित दोहा-१ अलग से दिया गया है.) ७४४१८. (+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १०४३७). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४४१९. (#) दानशीलतपभावना कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१४४४०). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिउण वीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ तक है.) ७४४२०. (#) पद, स्तुति, गजल व लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४४४). १.पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मीराबाई, रा., पद्य, आदि: नहि मां थाहरी; अंति: थारी धातीयां हे, गाथा-२. २.पे. नाम. माणिभद्रजीरी गजल, पृ. १अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर गजल, पुहिं., पद्य, आदि: सरसति सारदा ध्याऊंक; अंति: बसी स्तुति केहवोक, गाथा-७. ३. पे. नाम. माणिभद्रजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __माणिभद्रवीर स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: भले मन्नसुं पूजता; अंति: भीर राख एक धीर तुं, गाथा-२. ४. पे. नाम. माणिभद्रजी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर लावणी, चमनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: माणिभद्र को समरण; अंति: मन की इच्छा रंग भणी, गाथा-२. ७४४२२. (+) श्रावकना २१ गुण व अणगारगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १९४४५). १.पे. नाम. श्रावकना २१ गुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २१ श्रावकगुण सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कहीइं मिलसे श्रावक; अंति: समयसुंदर० लाधो जी, गाथा-२१. २. पे. नाम. अणगारगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: मोखसुख निश्चल करा, गाथा-१६. ७४४२३. १२ पर्षदा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ६x२२). १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग देवरेसमोसरण; अंति: प्रथम गढ रत्नरो, (वि. चित्र सहित) ७४४२४. (+) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४६२). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-६ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक है.) ७४४२५. (+#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४०-४५). For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मूलपुनर्वसुस्वाति; अंति: १ नुकार गुणावीइ, (वि. मुहूर्त सूचक आगमिक दो गाथाएँ भी अंत में दी गई हैं.) ७४४२६. (#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ५४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८९ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक ७४४२७. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणंतभागो असिद्धिगओ, गाथा-४८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-६ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गयो ए उत्तर छई, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७४४२८. (+#) दानशीलतपभावना संवाद व वीसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३२). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: भणे० सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विहरमान जिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस विहरमान जिनवरराय; अंति: समयसुंदर० जिनदेवा, गाथा-४, (वि. पत्र में दाहिनी ओर के पाठ मूषकभक्षित हैं.) ७४४२९. (+-) नवनिधान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४२८-३२). प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा नवनिधान, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सव्वेसिं चक्कवट्टीण, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-८ अपूर्ण से है.) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा नवनिधान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: द्विप चक्रवर्ती, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ७४४३०. (+#) आलोचना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पावरखा के बाहर भी लिखा गया है. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १८४४७). __ आलोचना विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बेइन्द्रिय विराधना प्रायश्चित से है.) ७४४३१. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, ११४५४). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: (-), गाथा-२५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४४३२. (#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३३-२३२(१ से २३२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ७४३९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पंचनाणाइं तस्स अलट्ठीयाणं" पाठांश से ___ "इंदियलट्ठया तस्स अट्ठीया" तक है.) ७४४३३. पंचिंदियसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ४४३५). गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.)। गुरुस्थापना सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क. नमस्कार माह; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७४४३५. पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२७-३०). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक लिखा है.) ७४४३७. प्रबंधचिंतामणी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १५४४८). प्रबंधचिंतामणी, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-३ सिद्धराज प्रबंधे धारा द्वारभंग प्रसंग अपूर्ण से रुद्रमहालय प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७४४३९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पठ. मु. उदयचंद शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१९ से है.) ७४४४०. नवकार मंत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १६x४०-४५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: पढम हवई मंगलम, पद-९, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार १२ गुणें सहीत; अंति: वारे ते माटेइ, संपूर्ण.. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि महामंत्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. "अने उचित रसनीउद्दी एक वाणी प्रवर्तेई" पाठांश तक है.) ७४४४२. अणंतकाय सज्झाय व पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १०४२९). १. पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७६०, आश्विन कृष्ण, ३, शुक्रवार. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रे सुधी सरदह; अंति: पामे समयसुंदर इम कहे, गाथा-१०. २.पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७४४४४. (#) पात्यांश योग व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४४३). १.पे. नाम. पात्यांश योग, प्र. १अ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपरमपुरुष जगिपरगड; अंति: रभु हरषकुशल जयकाररे, गाथा-७. ७४४४५. कृष्णभक्ति व नेमराजुल पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२६.५४११, १४४४३). १. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीति नई नित मीठी; अंति: बलिभई हु अंगीठी रे, पद-३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कैसो सास कोवे सास; अंति: तामे धिरज सवास, गाथा-३. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: हरि हमसो करीहो सजनी; अंति: सीखे सबै उलटी रीति, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. जिनवर्धमान, पुहिं., पद्य, आदि: रथ फेरो हो लाल करूं; अंति: नितु काहे विछोरो, गाथा-२. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनवर्धमान, पुहिं., पद्य, आदि: आवो ज्यू आवो नैंकु; अंति: जिनवधमान० इकगौ नेह, गाथा-२. ६. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयनां अटकमां नयनां; अंति: रंगविजय० सिवपुरमांहि, गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, आ. रंगसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: नेमिजी जी हं नव भव; अंति: राजुल नेमीसर की चेरी, गाथा-३. ८. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: मोकुं माई जमुनाय मुझ; अंति: नेहुं न सूरति लहीरी, गाथा-३. ७४४४६. (+#) जिनशतक सह पंजिका टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,१४४३७-४०). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ५ तक है.) जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., गद्य, वि. १०२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रयोजनादि चतुष्टय व्याख्या अपूर्ण से श्लोक-५ की टीका अपूर्ण तक है.) ७४४४७. शील रासो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. हुंडीः सीलरासो, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४०). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: ग्रीन राखउ रहनेम, गाथा-६२, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण से है.) ७४४४८. औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१२, १४४३७-४०). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बीईठ बकछिं कान, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., स्वजन विरह दोहा-८ से है.) ७४४५०. (#) औपदेशिक सवैया व छप्पय, अपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, १२४२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैयासंग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सवैया संग्रह, क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गद० वैबर लें संसार, सवैया-२, (पू.वि. सवैया-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक छप्पय, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कर्म घटै ब्रत तीर्थ; अंति: जिन के गुण गायै, गाथा-१. ७४४५१. (+) योगोद्वहनविधि संग्रह सह यंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, अन्य.ग. जिनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २४४६५-७०). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: त्राणोपघातो न भवति, (पू.वि. पाभाईकालविधि अपूर्ण से योगोद्वहनविधि संग्रह- यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७४४५२. सर्वार्थ सिद्ध विमान चंद्रोदय मुक्ताफल संख्या स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १४४३२-३६). सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वार्थ सिद्धि चंदू; अंति: बोलइ एणी परि वाणी रे, गाथा-११. ७४४५३. (#) आगमिकपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, २३४६३). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "तिरियलोए संखेज्जगुणा" पाठांश से ओघनियुक्ति उपरकरण मानाधिकार अपूर्ण तक है.) ७४४५४. - लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२, १०४२३). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: जिनदास कीरत ए गाई रे, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १६७ २. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सजन समजाओ अपने मनकुं; अंति: आवता नीत उठ दरसन कुं, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेम राजुल लावणी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सती राजुल केती तमकुं; अंति: पद दीजे प्रभु हमकुं, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.. क. ऋषभदास संघवी, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुनियोजी वाता राव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४४५५. (+) कल्पसूत्र वाचना विषय विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ९४३३). कल्पसूत्र-वाचना विषयसूची, रा., गद्य, आदि: प्रथम वाचना; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तेरहवीं वाचना तक है.) ७४४५६. विचाररत्नाकरग्रंथस्य तरंगादि सूचीपत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११, ८४४५). विचाररत्नाकर-बीजक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४४५७. श्लोक संग्रह-जीवाजीवादि विषये, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२.५, ७४३०). श्लोक संग्रह-जीवाजीवादि विषये, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण से गाथा-९३ अपूर्ण तक है., वि. कोई स्वतंत्र ग्रंथ होना भी संभव है. संशोधन अपेक्षित.) ७४४५८. (#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२७-२२५(१ से १०,१२ से २२६)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: भग०सूत्र०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १४४४६-४९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देशक-५ सूत्र-६६ अपूर्ण से उद्देशक-६ सूत्र-७१ अपूर्ण तक व शतक-३१ उद्देशक-४ अपूर्ण से है.) ७४४५९. सकलार्हत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १०४३३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), श्लोक-२६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१३ तक है.) ७४४६०. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १६x४५-४८). श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विंझेणा विना विगया; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५९ अपूर्ण तक है.) ७४४६१. (+) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४२३-५०). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ- २, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ७४४६२. संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १२४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ७४४६३. (+#) कथाप्रदीप, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११, १८४५१-५५). कथाप्रदीप, सं., पद्य, आदि: निरंजनं नित्यमनंतरूप; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३३ अपूर्ण तक है.) ७४४६४. (+) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०४२६-३०). कालिकाचार्य कथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक है.) ७४४६५. () तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-२५(१ से २०,२३ से २७)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३०-३५). For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४९ अपूर्ण से ४९४ अपूर्ण तक व ६४४ अपूर्ण से ६७० अपूर्ण तक है.) ७४४६६. (+) संबोधसत्तरी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, २०४४५-४८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) ७४४६७. शांतिजिन व पार्श्वजिन कलश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३२). १. पे. नाम. शांतिनाथ कलश, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. __ शांतिजिन कलश, प्रा.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयन्नयत्; अंति: दिसउ अनंत सुख ठाणहेव, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन कलश, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अहो भव्या; अंति: चिट्ठइ विणओ भविजणस्स, गाथा-९. ७४४६८. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह लघुटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-८(१ से ८)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४५५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से ४१ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-लघुटीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४४६९. धर्मध्यान लक्षण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६४११.५, १०४३५). धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सेकिंत धम्मेज्झाणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., धर्मध्यान के चौथे आलंबन अपूर्ण तक है.) धर्मध्यान लक्षण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मध्यानना चार भेद; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७४४७०. (#) औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २०४५०). औपदेशिक सवैया संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: है मयंक वैरतिरो हाथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-१२ तक है.) ७४४७१. (+#) सज्झाय संग्रह व पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २१-२६४३५-५२). १.पे. नाम. राजिमतीसती इकवीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: शासननायक समरिये; अंति: चोथमल० पांचम मंगलवार, गाथा-२१. २. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि रहनेमी ध्यान मे; अंति: हो मे मन हुलास, गाथा-१५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कलयुग पद, रंगलाल, पुहिं., पद्य, आदि: हा कांधा काहुल जग; अंति: दोलत ज्याहि टोटा, गाथा-९. ४. पे. नाम. गुरुभगवंत के नाम शिष्य का पत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्रधान गुरुदेवरो नमः" पाठांश तक लिखा है.) ७४४७२. (+) एकादशी स्तुति व पाक्षिक स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३४). १. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विपदः पंचकमिदः, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: .दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १६९ आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ७४४७४. () स्तुति चतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४५०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तुति-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४४७५. (#) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "द्वारमंत्रो द्वार राज्य के विषै" पाठांश तक है.) ७४४८०. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१६(१ से १२,१५ से १८)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १७७४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. धवल द्वारा बलि हेतु राजा के पास लक्षणवंत पुरुष की याचना प्रसंग अपूर्ण से चक्रेश्वरीदेवी की आकाशवाणी प्रसंग अपूर्ण तक व त्रैलोक्यसुंदरी प्रसंग से माता मिलन प्रसंग तक है.) ७४४८२. (+#) स्नात्र पूजा श्लोक व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६x४५). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. १अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. स्नात्र पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: समकित सुजस सवायो रे, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से आरती की गाथा-२ तक नहीं है) २.पे. नाम. जिनभवन १० आशातना नाम, पृ. ४अ, संपूर्ण. जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल १ पांण २ भोयणु; अंति: वजे जिणमंदिरस्संतो, गाथा-१. ३. पे. नाम. चक्रवर्ति नवनिधान सह बालावबोध, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा नवनिधान, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नेसप्पे पंडुयए पिंगल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा है.) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा नवनिधान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां देशनगर पुर; अंति: (-), अपूर्ण, __पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४. पे. नाम. चक्रवर्ति १४ रत्न, पृ. ४आ, संपूर्ण. १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन १ खडगरतन २; अंति: एवं रत्न १४ जाणीवा. ७४४८३. साढापचवीस देश नाम-राजधानी-गाम संख्या , संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेश राजग्रहीनगरी; अंति: धर्ममार्गमीट्यौ छै. ७४४८४. (+) अंतीप, देवभेद, अजीव भेद व ४ ध्यान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३२-३५). १. पे. नाम. ५६ अंतरद्वीप नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६ अंतीप विचार, पुहि., गद्य, आदि: एगरु१ अद्रसर वसेलक३; अंति: उपर पिण जाणना एवं ५६. २. पे. नाम. तिर्यग्नुंभकदेव जात, पृ. १अ, संपूर्ण. १० तीर्यग्नुंभकदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनजवका१ पाणजवकार लेण; अंति: अवअतजवका१०. ३. पे. नाम. लोकांतिक भेद, पृ. १अ, संपूर्ण.. ९लोकांतिकदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुरससाहार आहिचार वनी; अंति: ८ देवरीट्ठीया९ एवं ९. ४. पे. नाम. ५६० अजीव भेद विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अजीव द्रव्य २ प्रकार; अंति: पुद्गल का संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. ४ ध्यान विचार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आर्तध्यानरा ४ लक्षण; अंति: सूत्र०संगत की रुचि४. ७४४८५. स्तुति व खमासमण सूत्रार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. पर्युषणा पर्व स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अतिम पत्र है. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनमहेंद्रसूरिंदाजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. खमासमण सूत्रार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गुरुसुखशाता पृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इच्छामि वांछामि; अंति: मस्तकेन वंदामि. ७४४८६. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, २०४४१). १.पे. नाम. ६ काय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. छकाय सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हुवाने होसे आज छे जी; अंति: श्रावक देसांसाख, गाथा-२९. २. पे. नाम. मनुष्यभवदुर्लभता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभवदुर्लभता, मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नरभव भमता; अंति: भाइ जीवदया प्रतिपालो, गाथा-१५. ७४४८९. महावीरजिन स्तवन व १८ पापस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, २२४४२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: महावीर सासण धणी जिन; अंति: लालचंद० श्रीवीरजिणंद, गाथा-११. २. पे. नाम. १८ पापस्थानक स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु पाव बंदीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४४९२. श्रावक के तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४२). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: ठाणांग मध्ये. ७४४९३. (#) श्रृंगारवैराग्यतरंगिणी व पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ८४३६). १. पे. नाम. श्रृंगारवैराग्यतरंगिणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: निशमेति नाश, श्लोक-४६, (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ७४४९४. अंतरिक्ष पार्श्व जिन छंद, अपूर्ण, वि. १७४३, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, ले.स्थल. अवरंगावाद, प्रले.ग. मोहनसुंदर; पठ. श्रावि. राजकुंवरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४२८). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-५१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३४ अपूर्ण से है.) ७४४९५. समुद्रवाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४३६-४२). समुद्रपाल रास, मु. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: श्रीआदीसर आदि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४४९६. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १०४३६). For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भांमणे, ढाल-१०, गाथा-४०. ७४४९९. (१) साधु स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १६४३७). १.पे. नाम. साधु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुख से ज्यां सुली धन; अंति: हिरदे हेमो सुविचारी, गाथा-१२. २.पे. नाम. साधुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. क. राजोदास, पुहिं., पद्य, आदि: साधु नहीं होता तो; अंति: संगत रा फल पावे, गाथा-२. ७४५००. ४ मंगल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. नीबांज, दे., (२४.५४११.५, २०४४५). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्म आराधीये ए, ढाल-४, गाथा-१०९, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७४५०१. (+#) कानजीकठीयारारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १८४४२). कानडकठियारा प्रबंध, म. जेतसीऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: अरिहंत सिद्ध समरु; अंति: उपना चवन जासी मोखरा. ७४५०२. (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: वडीनवत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, २१४६०). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण्य ३; अंति: (-), (पू.वि. पाप के १८ भेद अपूर्ण तक है.) ७४५०३. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, प्रले. पं. ललितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६x४०). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचकजस इम आखि जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., स्वाध्याय-११ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७४५०५. नोकारवली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, प्र. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३१). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: श्रीअरिहंत पहिले पद; अंति: दुरगदास० छे टंकसाली, गाथा-१५. ७४५०६. (+) गाफल व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १७४३९). १.पे. नाम. कंसकृष्ण विवरण गाफल, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: विनयचंद० मनही आणंदे, ढाल-२७, गाथा-४४. २. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: भवसागर में भटकत भटकत; अंति: भणै सीवरमणी वरसी होक, ढाल-२, गाथा-२८. ७४५०९. दीपावली का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१२, ११४३६-३९). दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सभी पर्यों में २४ जिनवर की पूजा, सुसाधु की सेवा, दया, दान करने के वर्णन "अपूर्ण से है व "सभी पर्यों में दीपालिका पर्व सर्वोत्तम का वर्णन" अपूर्ण तक लिखा है.) ७४५१०. (+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक बीजक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३-६१(१ से ६१)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४५). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, सं., गद्य, वि. १८५३, आदि: (-); अंति: कदा धर्मप्राप्तिः, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., क्रमांक-९९ से है.) For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७२ ७४५११. (+) पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १४X३०-३४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि अंति: (-), (पू.वि. "जोगहीणं सुदिनं" पाठांश तक है.) ७४५१२. (+) सम्यक्त्वसप्ततिका सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-३ (१ से ३) ३. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ६X३२-३५). " सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २८ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक एवं ५० अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक है.) सम्यक्त्वसप्ततिका बार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४५१३. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू., अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-८ (१ से २, ४ से ५, ७ से १०) = ३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ९X२०). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि, लोगस्ससूत्र अपूर्ण से सागरचंदो सूत्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के सूत्र पाठ नहीं हैं.) ७४५१४. ठाणांग सूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २-२ (१) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे., (२५४११, ७X३५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "सववेण विएगे सद्दाइ" पाठ से "असाहूसाहसणा" पाठ तक है.) स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ७४५१५. जिनकुशलसूरि अष्टक व जैन मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैवे., (२५x११.५, ११x२२). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. , मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लक्षम्यादि० श्रेयसे श्लोक - ९, (पू. वि. श्लोक ७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, जैन मंत्र संग्रह सामान्य, पृ. २अ २आ, संपूर्ण जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते, अंति: भगवती हीँ नमः . ७४५१८. (+) श्रावक आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८ - १६ (१ से १६) = २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, २०X५१-५४). आवक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपं अंतिः (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, "आक्षेट भने मृगा दयो मारता भवंति ४ कुभका" पाठांश तक है.) ७४५१९. (+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५x११.५, १५X३२-३७) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-) (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं " " व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा -५ से है व ८ तक लिखा है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., गद्य वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७४५२१. (७) शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे " (२४.५x११, १८x४४). शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाव नमु शिरनामी; अंति: गुणसागर० पावे, गाथा २१, संपूर्ण. ७४५२२. आवक आलोचना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४) -१, जैदे. (२६४१०.५, १५X४६). " आवक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: सहस्त्र सज्झाय उपवास, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "सोलतिगेपाऊणं पणनविडस्सपछत्रं" पाठांश से है . ) For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७४५२४. (+) विचार संग्रह व साधु २७ गुण गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पुराने पत्रांक १३ की जगह ३ को मिटाकर १ दर्शाने का प्रयास किया गया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४४२-४५). १.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: भागते असंख्याता छइ, (पू.वि. देवलोक विचार, निगोद गोला वलोक विचार है., वि. रत्नसंचयादि ग्रंथ का संदर्भ दिया गया है.) २.पे. नाम. साधु २७ गुण गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: छव्वय ६ छक्काय ६; अंति: मरणं उवसग्गसहणंच, गाथा-२. ७४५२५. (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७४५२७. (#) रहनेमिराजिमति व रेवतीश्राविका चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १८४३४). १.पे. नाम. राजीमतीरथनेमि पंचढालियो, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: (-); अंति: रायचंद० थारी आतमा, ____ ढाल-५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. रेवतीश्राविका चौढालियो, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: सिद्धारथ नंदण नमु; अंति: चोथमल० चोढालीयो कीयो, ढाल-४. ७४५२९. (+) विजयकुमरजी रास, अपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ५४३७). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: (-); अंति: रामपुरे गुणगाया, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) ७४५३०. (-) नेमराजिमती बारमासा द्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मानवकृत छिद्रयुक्त., अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १९४३३). १.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चतचुतरभुज होहन चडया; अंति: पालो परत रागुगा हो, गाथा-१३. २.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सखी कह सावणइ दकसा; अंति: नमजी अज न पाछा वलीला, गाथा-११. ७४५३२. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १२४३५-४०). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वाचना-२ अपूर्ण से देववर्णन अपूर्ण तक है., वि. 'श्रीकल्पपुस्तकार्पणोपदेशाय०' एवं 'द्वितीय वाचना संपूर्ण' जैसे दो-तीन वाक्यों से कल्पसूत्र वाचना हो ऐसा लगता है, लेकिन विषयवस्तु से कल्पसूत्र का ही व्याख्यान हो ऐसा प्रतीत नहीं होता है.) ७४५३३. (+) नेमिजिन पंचढालियो व गुरुगुणगँहुली, संपूर्ण, वि. १९२२, चैत्र कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. बलुंदाग्राम, प्रले. श्रावि. लीछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १९४३४). १. पे. नाम. नेमिजिन पंचढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९१०, आदि: श्रीनेमनाथ बावीसमा; अंति: रामचंद० परत्यख राखसी, ढाल-५, गाथा-५०. २. पे. नाम. गुरुगुण गँहुली, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चाल सखी गुरु वांदवा; अंति: आसकरणजी अणगार के, गाथा-९. ७४५३४. (#) गौतमपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३२-४०). For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७४५३५. (#) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३३-३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१ ढाल-३ गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) ७४५३६. (+) शुकराज रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०, १५४४४). शुकराज रास, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ प्रारम्भ से ढाल-१६ की गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४५३८. (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५-४८). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कुंथुनाथ स्तवन-गाथा-२ अपूर्ण से नेमिनाथ स्तवन- गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७४५३९. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११, १२४३०). स्तवनचौवीसी, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. चंद्रप्रभजिन स्तवन-गाथा-७ अपूर्ण से श्रेयांसजिन स्तवन- गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४५४०. (+#) जिनबल विचार व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४४-५६). १. पे. नाम. जिनबल विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलु; अंति: अग्र कुंनेम ते तुं, गाथा-१. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४५४१. (+#) लघुशांति स्तोत्र सटीक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०-५३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से ११ तक है.) लघुशांति-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ७४५४२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१२(१ से १२)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३-४७). उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, दृष्टांत-७ अपूर्ण से अध्ययन-४ गाथा-५ का अनुवाद अपूर्ण तक है.) ७४५४३. कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ८x१६). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण तक की टीका है.) ७४५४४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ८४३८). आदिजिन स्तवन, आ. हीररत्नसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: एसा जिन एशा जिन एशा; अंति: हे करजोडी खरा दिल हे, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १७५ ७४५४९. (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४३५-३८). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवपूजादयादान; अंति: भरणंच सुपात्रंच, श्लोक-२४, (वि. प्रतिलेखक ने समाप्तिसूचक कोई संकेत नहीं दिया है.) ७४५५०. (+) सुलसा कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. उपा. क्षमाकल्याण (गुरु उपा. अमृतधर्म, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कृति के प्रथमादर्श लेखक क्षमाकल्याण द्वारा सं.१८३३ में लिखित प्रत की प्रतिलिपि होने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४५-४८). __ आत्मप्रबोध-चयन सुलसा कथा, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् जंबूद्वीपे; अंति: पद प्राप्तिर्भवेत्. ७४५५१. शील रासो व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: सीलराकडा., दे., (२४.५४११.५, २०४५०). १. पे. नाम. सील राशो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शीयल कडा, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: धर्मना छै तिहां अनेक; अंति: बाइ अकनै कुमार, गाथा-१८. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: अणतेड्यौ घर जाय; अंति: गुणवंत किम जाय गुण, गाथा-३, (वि. अंतिम गाथा में भगवती का संदर्भ दिया गया है.) ७४५५३. (+#) मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १८४४४). मुनिपति चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण तक है.) ७४५५४. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १२४३७-४०). कथा संग्रह**,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. रामचंद्रजी कथा में देव द्वारा रामजी को प्रतिबोधार्थ शुष्कवृक्ष सिंचन प्रसंग से कामनंदि राजा प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७४५५५. (+) नमीरायऋषि सप्तढालियो व दशवैकालिक ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२९(१ से २९)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४५). १.पे. नाम. नमीरायसप्तऋषि सप्तढालियो, पृ. ३०अ-३२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: तेरस तीथरो नाम ए, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. दशवैकालिक सज्झाय, पृ. ३२अ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: (-). (पू.वि. ढाल-५ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४५५६. (+) श्लोक, बोल संग्रह व श्रावक के अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४७).. १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक-नारीशिक्षा, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. २. पे. नाम. चौदराजलोक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना सात राज; अंति: १४मो राज जाणवो. ३. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ११ अंगनाम १ आचारांग; अंति: अनुयोगद्वारसूत्र. ४. पे. नाम. चारबुद्धि, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ बुद्धि ज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि: उतपातकी १ वैनेयकी २; अंति: पारणामिकी ३ कारमणकी. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५.पे. नाम. छ आवश्यक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सामायक १ चोबीसत्थो २; अंति: ४ काउसग्ग ५ पचखांण. ६. पे. नाम. श्रावक के अतिचार, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: नाणंमि दसणंमि चरणंमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आठ अतिचार की चर्चा अपूर्ण तक लिखा है.) ७४५५७. (#) चौद गुणठाणि जीवस्थानक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३-२०४४५). १४ गुणस्थानके जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व गुण; अंति: (-), (पू.वि. १०वें गुणस्थानक जीवभेद अपूर्ण तक है.) ७४५५८. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, २१४४६). २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीमंदरस्वामी वेदेह; अंति: मुझ सीस नमु वारुवारो, गाथा-२५. ७४५६१. शनिश्चर छंद व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १२४३३). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरापति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-१७. २. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ७४५६३. (+) अक्षरबत्तीसी व दहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-७(१ से ३,५ से ८)=४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १८४४६). १. पे. नाम. अक्षरबत्तीसी, पृ. ४अ-४आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाधै विद्या विलास, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गाथा संग्रह* पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: केइ खाणा केइ खरचणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक ३.पे. नाम. औपदेशिक दोहासंग्रह, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बलदां सुधी गाड़ी, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-६ से ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दुहासंग्रह, पृ. ९आ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रास्ताविक दोहे, पुहि.,सं., पद्य, आदि: चंचल चपल चोफला बहु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण तक है., वि. विभिन्न कर्ता की कृतियों का संग्रह है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. क. वृंद, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी हे फीकी लगे विन; अंति: नयणे निंद नमाय, दोहा-७५, (वि. अंत में एक कृति मात्र आरंभ कर छोड़ दिया है.) ७४५६५. (+) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८३-८२(१ से ८२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४ के ढाल-२७ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-२९ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७४५६७. (+) चंद्रकारी टीका, प्रास्ताविक श्लोक, औपदेशिक दोहा व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ४, अन्य. डुगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ७-१२४३६-४८). १.पे. नाम. चंद्रकारी टीका, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ सारस्वत व्याकरण-चंद्रकारी टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: षण्णवति षण्णगर्य, (पू.वि. संधि अधिकार अपूर्ण से २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आभामंडण विजली परबत; अंति: नारांगीरवरांनीर, श्लोक-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: किसुकीजीयै; अंति: (अपठनीय), गाथा-५. ४. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४५७१. सौभाग्यपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४११.५, १३४३०). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदिः (-); अंति: केशव कुशल जयकरो, ___ ढाल-५, गाथा-७५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-४ गाथा-६८ अपूर्ण से है.) ७४५७२. वीरजिन सत्तावीश भव स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५४११.५, १२४२७-३०). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: शुभविजय शिष्य जयकरू, ढाल-६, गाथा-८४, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ७४५७३. उत्तराध्ययनसूत्र सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१२.५, ६x४३-४८). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-९ गाथा-११ अपूर्ण से है व अध्ययन-१० गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४५७५. (#) समेतशिखर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४३०). पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मविजय० चेई रे, गाथा-८, __(पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७४५७६. (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २२४३६-४८). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म की प्रकृति; अंति: (-), (पू.वि. ८३ प्रकृति विचार तक है., वि. कोष्टक में दिया गया है.) ७४५७७. श्रीपालस्य नवपदवर्णन ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-८(१ से ५,८ से १०)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, ९४२७-३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), __(प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७४५७८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७४१, फाल्गुन शुक्ल, २, मंगलवार, जीर्ण, पृ. २५-२३(१ से २३)=२, प्रले. मु. देवसौभाग्य (गुरु ग. कृपासौभाग्य, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, ग. कृपासौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); ___ अंति: कृपा० जगमिं सवायो रे, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३४ की सज्झाय गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७४५७९. अंजणासती रास, अपूर्ण, वि. १८७३, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३९(१ से ३९)=१, जैदे., (२४.५४१२, ११४३१). अंजनासुंदरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भारज्या जगतनी माततो, ढाल-५, गाथा-१८७, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१८४ अपूर्ण से है.) ७४५८०. (#) षडावश्यक सूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०,१७४५२-५५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मात्र नवकारमंत्र है.) For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीसंघस्यत्थतात्, (२)पहिलउ सकल मंगलकनउ; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७४५८२. आदिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. ग. अमरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विक्रम १८वीं के प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (२५.५४११, १०४३०). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भेंट देज्यो तुम्हारी, गाथा-२१, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ७४५८३. (+#) विमलमंत्री सलोको, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४४०-४४). विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूंबे करजोड; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९६ अपूर्ण तक है.) ७४५८४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १३४३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-५ गाथा-५१ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण तक है., वि. एक गाथा को दो गाथा गिना गया है तथा ढाल वगाथाओं की संयुक्त संख्या संभावित है.) ७४५८५. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४४). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र ५वां पद है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उपाध्याय पदे अंग पदसंख्या अपूर्ण से मुनि पद अपूर्ण तक है.) ७४५८८. (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४२६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) ७४५८९. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ९४२७-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., श्लोक-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४५९०. (+#) सिंदूरप्रकर, जिनदत्तसूरि कथा व विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. जिनदत्तसूरि कथा के अक्षर फीके पड़ गए हैं., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१२, ११४३८). १.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. विविधविचार संग्रह ,गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पन्नवणायं योजन; अंति: भवनपतीरोजोजन जाणवा. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अन्यदा गुजराती; अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ७४५९१. शाश्वतजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४३०). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ७४५९२. (-) रिषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, २६४२०-२५). For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १७९ आदिजिन लावणी, म. दीपचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: रीषदेव प्रभु का दरसण; अंति: दीपचंद०भावेजी ऋषभदेव, गाथा-४. ७४५९४. (#) शातिजिन स्तवन व सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पावरखा लेखन पश्चात दिया गया प्रतीत होता है., अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११, ३०x१७-२४). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: मेवी सुरासेनी जगपती, गाथा-९. ७४५९५. (+#) औपपातिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ३,६ से७)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५१-६४). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक व ७ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४६०१. (+#) लेश्या २४ बोल, ४६ अल्पबहुत्व बोल व ३६ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४-१९४५, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २६४४८). १.पे. नाम. लेश्या स्थानक पजवा २४ बोल थोकडा, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९४४, वैशाख कृष्ण, १४, ले.स्थल. लावाला. मा.गु., गद्य, आदि: सरबसु थोडा कापुत; अंति: पजवा असंख्यातगुणा. २.पे. नाम. ४६ लेश्या बोल अल्पबहुत्व थोकडा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९४५, वैशाख कृष्ण, ७ अधिकतिथि, गुरुवार, ले.स्थल. सोजतनगर. प्रज्ञापनासूत्र-४६ लेश्या बोल अल्पबहुत्व थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पनवणाजी पद१७मे उदेसे; अंति: तेजुलेसी संख्यातगुणा. ३. पे. नाम. ३६ बोल अल्पबहुत्व थोकडा, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)सूत्र पनवणाजी, (२)सरवसु थोडा सुखम तेउ; अंति: थोडा सुखम तेउकायरा, (वि. पन्नवणा व जीवाभिगमजी का संदर्भ दिया गया है.) ७४६०२. (+) चोईसी पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १९४५७). २४ जिन पद, श्राव. मगनमलजी कोठारी, मा.गु., पद्य, आदि: करु सेव ऋषभदेव प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. दसवें ___ जिनगुण पद अपूर्ण तक है.) ७४६०५. (+) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७४६०६. (#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद प्रणमी आण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७४६०७. (+) दसत्रिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३३). नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४६०८. रोहीणीतपचैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९४३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, प्रले. मथुर दवे; पठ. केशवजी; अन्य. श्रावि. उजमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ८४३७). रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंति: मान कहे० भवनो छेद, गाथा-६, संपूर्ण. ७४६०९. प्रभु स्तवन व धन्नाअणगार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ११४३६). १. पे. नाम. प्रभु स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सकल० सदा सुख देसइ, गाथा-९, (पू.वि. अन्तिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचनइं वयरागी हो; अंति: श्रीदेव० जय जयकार, गाथा-१२. ७४६१०. (+) श्रावक आराधना व सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४५१). १.पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १९अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७४६११. (+) जंबुदिटुंत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३२-३८).. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-५ के पाठांश "उडिया पुण रवि कलेवरंठिया" से उद्देश-६ "कविनयणं सुझरइ हा ए समम" तक है.) ७४६१२. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से ३९ तक है.) ७४६१४. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. हुंडी: मुणपति चरीत., जैदे., (२५.५४११, १३४५१). मुनिपति चरित्र, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से५१ अपूर्ण तक है.) ७४६१५. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२४-३१). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से ___३२ अपूर्ण तक है.) ७४६१६. (+) पर्युषणपर्व पट्टावली, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३०). खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका वाला भाग नहीं है.) ७४६१७. (+) चोवीसी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: चोइसी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२४.५४११.५, १९४३६). २४ जिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९५२, आदि: कहु धन धन छीब थारीजी; अंति: ग्यानचंद० चडती रती, (वि. गाथा अनियमित है.) ७४६१८. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३०). For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १८१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि; भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-) (पू. वि. श्लोक-३८ अपूर्ण तक है.) ७४६१९. (+) भगवतीसूत्र आलापक संग्रह सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी: भगवत्यालापक, पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ- संशोधित, जै, (२५.५४१०.५, १६४५३). भगवतीसूत्र - आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. मनुष्य समक्रिया विचार सूत्र से रत्नत्रयी आराधना द्वारा भवमुक्ति दर्शक सूत्र तक है.) भगवतीसूत्र आलापक संग्रह का टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४६२० () औदयिकभाव स्वरूप, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १९x२३). औदयिकभाव स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो उदयिक भाव ते; अंति: (-), (पू. वि. कर्म के उदय का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७४६२१. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-३५ (१ से ३५) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी : कथा., जैदे., (२७११.५, ७X३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अतीत, वर्त्तमान व भविष्यकाल के शक्र, देवेन्द्र तथा देवराजों के जीताचार कर्त्तव्य का वर्णन अपूर्ण है.) कल्पसूत्र - टवार्ध", मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). - कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४६२२. कालसप्ततिका सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १ जैवे. (२६.५४१२, ४४२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयज्जाणंदमय, अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा - ६ अपूर्ण तक है.) कालसप्ततिका टवार्थ, पंडित, उदयरुचि, मा.गु., गद्य, आदि देविंद्र नमिउ विद्या अंति: (-) (पू.वि, प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक का टबार्थ लिखा है.) ७४६२३. (+) आदिजिन स्तवन व महावीरजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, १७५९). १. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण - आदिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरत अनंतकंत गुण, अंतिः राजइ पूरवौ सुख संपदा, गाथा - २१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. १आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि निस्तीर्णविस्तीर्णभव, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ९ अपूर्ण तक है.) ७४६२४. (+) इक्षुकार संधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६) १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये., (२५.५४११, १७X३७). इक्षुकारसिद्ध चौपाई. मु. खेम, मा.गु, पद्य, वि. १७४७, आदि: (-) अंति: खेम भणै० कोडि कल्वाण, ढाल-८, (पू. वि. अंत के पत्र हैं., ढाल ६, गाथा ३ अपूर्ण से है.) ७४६२५ (+) जिनगुणसवैया आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ९. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४१२, " १४X३१). १. पे नाम, साधारणजिन सवैया, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: परमपुरुष परमेसर, अंति: ईस जगदीस भगवान है, पद- १. २. पे नाम, आदिजिन सवैया, पृ. १अ संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: प्रथम जिणंदराय सेवा, अंति: गाधि सेवे सुर इंद है, पद- १. ३. पे. नाम. महावीरजिन परिवार सवैयो, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: साधु भला दश च्यार, अंति: धर्म सदा चिरनंदो, गाथा - १. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org ४. पे नाम, शुद्धात्म स्वरूप, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि; चेतनरूप अनूप अमूरति अंति: मिटे घट वास वसेरो, पद-१. " ५. पे. नाम. साधुस्तुति सवैया, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जै. क. बनारसीदास, पुहिं पद्य वि. १७वी आदि ग्यान को उजागर सहिज, अंतिः नमस्कार कर्यो है, गाथा-२. "" ६. पे. नाम. नेमिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जादव जान चढंत दमामै; अंति: सुमति० वात सुनानी, पद- १. ७. पे. नाम, नेमिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: जदुराय चढै वर राजुल; अंति: खेम कहै ० झणणं झणणं, पद- १. ८. पे नाम, आदिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि आदिही की तिथंकर अंतिः जो न बोले आदि आदि, पद- १. " ९. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मसिंह, पुहिं, पद्य, आदि छोरि षट खंड भारि, अंति: (-), (पू. वि. अंत के कुछ अंश नहीं हैं.) ७४६२६. अंतरीखपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ )=१, जैवे. (२५.५४१३ १७४३५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य वि. १५८५, आदि (-); अंति; लावण्य० जिनवचने रहै, गाथा ५४ (पू. वि. अंत के पत्र हैं. गाथा २८ अपूर्ण से है.) " ७४६२७. खापराचोर चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी: चोपई खापरा चोरनी, जैवे (२६.५४११.५, १५४४९). खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -३, गाथा- १ अपूर्ण से ढाल - ६, गाधा- २ अपूर्ण तक है.) ७४६२८. (*) नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५ १४४४६). " 3 ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: गुरूने चरणे नमी समरी, अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है, दाल-६, गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७४६२९. (+*) कल्याणकभूमि यात्रा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पत्रांक अनुमानित, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X११, १५X४५). कल्याणकभूमि यात्रा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. मगध वर्णन अपूर्ण से पालीगंजगिरि तलहटी प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७४६३०. गौडीपार्श्वजिन स्तवन, उवसग्गहर स्तोत्र व आम्नाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ३, दे., (२६X१२, ११X३० ). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः ऋद्धहर्ष कहे करजोडी, गाथा - २०, (पू.वि. गाथा - १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसमाहरं पासं पासं अंतिः तेनाह सूरि भगवंत, For Private and Personal Use Only गाथा - १३. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र आम्नाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५- यंत्र पूजनविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पुस्यनखत्र ने रवीवार; अंति: सर्वकार्य सिद्धी थाय. ७४६३१. पंचमीनो स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी ५ स्तवन. वे. (२६११, १२X३१). Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: (-), __ (पू.वि. ढाल-५, गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) ७४६३२. (+) आनंदघन गीतबहोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, प्र.वि. पत्रांक के भाग नष्ट होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिए गए हैं., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., पद-८ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक व ४२ अपूर्ण से ४९ अपूर्ण तक है.) ७४६३४. स्तवन, लावणी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १७, जैदे., (२६४११.५, २०४५६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: तुम सेती नही बोलु; अंति: सरावक मन आणंदो जी, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु सुरपति सेव करे; अंति: धनमुनि० नितपाय हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे आव्या तुम्ह आश्रे; अंति: गुणसागर० तेहना पाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन देरे जीव; अंति: कहेत जिणतीदासरे, गाथा-११. ५. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उभी ही पिछताय रविरे; अंति: धना जासी मोख दुवार, गाथा-१५. ६.पे. नाम. गजसुकुमाल लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: गजसुकमाल देवकीनंदन; अंति: चोथमल होस करी गाई, गाथा-१९. ७. पे. नाम. नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: यो भव रतनचिंतामणी; अंति: अखेराम० जीव तरीया रे, गाथा-१३. ८. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-२०. ९.पे. नाम. युगबाहुजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि: इण जंबूदीपे जाणीइं; अंति: आवागमन निवार रे, गाथा-१५. १०.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीतल जिनवर देव; अंति: शीश ऋषभ गुण गाया, गाथा-७. ११. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: रायचंद० किरपानाथ, गाथा-१८. १२. पे. नाम. दुरमति सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुरमती दुर खडी रहो; अंति: सुरग नगर सुख देणी, गाथा-६. १३. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मेरा पिया चला गिरवर; अंति: सुख भगती भली वरणी, गाथा-६. १४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा सामी हो; अंति: समयसुंदर जग मन मोह ए, गाथा-१५. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-नीलवर्णी, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपास जिणेसरु; अंति: सीस नमुकरजोड जी, गाथा-५. १६. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नाम जपो मनरंगे; अंति: गोतमजी रा गुण गावो, गाथा-५. १७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: संत दंत कंत सोहे; अंति: जिनलाभ०पायो भवपार रे, गाथा-४. ७४६३६. आदिजिन विवाहलो व नमस्कार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १२४२७). १. पे. नाम. आदिजिन विवाहलो, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. . लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: लक्ष्मीविजय जय जयकरु, गाथा-६७, (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन नमस्कार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वहरमान जिन वीसमा; अंति: लक्ष्मीविजय जयकार, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमिजिन नमस्कार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिणेसर नित नमो; अंति: लक्ष्मी करइ नित सेव, गाथा-२. ७४६३७. जिनप्रतिमा स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५.५४११, ५४३४). जिनप्रतिमा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कुमति फंदीरे, गाथा-१८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ अपूर्ण से है.) जिनप्रतिमा स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कुमतिफंदमां पाडया छे, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७४६४३. (+) श्रावकनी सज्झाय व तीर्थंकरनो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, २०४४०). १.पे. नाम. श्रावकनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: वरधमान शासनधणी गणधर; अंति: मोतीचंद० नरनार जी, गाथा-३९. २. पे. नाम. तीर्थंकरनो तवन, प्र. २अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कमलदल हारज धवला; अंति: तुम पाय सरणा, गाथा-१४. ७४६४५. (+) परनारी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ९४४०). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंतारे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७४६४६. (#) कल्पसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८९-८८(१ से ८८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली के अंतर्गत ऋतुवाटिक गण की शाखाओं की उत्पत्ति अपूर्ण से वशिष्ठगोत्रीय शाखाओं की उत्पत्ति अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४६४८. दशवकालिकनी ढालो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दशविकालनी ढालो., दे., (२५४११.५, २०४३९). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धम्मोमंगलनै मान; अंति: ___ जैतसी०रुच्यौ इण ठाम, अध्याय-१०. ७४६४९. प्रव्रज्या विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१२.५, ९४३७). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "सव्वं सुगाहीअं करेह" पाठ तक है.) ७४६५१. ज्ञानपंचमी सज्झाय व मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३०). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-४ "ग्यान मनुहार ज्यो ढाली रे" पाठ से है.) २.पे. नाम. मोनएकादशी स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७४६५२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, ९x१९). ___ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: पद्मविजय० हित साधे, गाथा-१३. ७४६५३. (+) आर्यवसुधारा स्तोत्र व वसुधारा लघु स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. आर्यवसुधारा स्तोत्र, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. "उदग्यात्तमना प्रमुदित" पाठ से है.) २. पे. नाम. वसुधारा लघुस्तोत्र, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वसुधारा-लघु, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ; अंति: (-), (पू.वि. "अंकुरे मंकुरे प्रभं" पाठ तक है.) ७४६५४. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२७४१२, १३४३९). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चौक-३ गाथा-१ अपूर्ण से चौक-११ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४६५५. (+#) मुष्यभवदुर्लभता दृष्टांत संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, २०४५७). १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता, मा.गु., गद्य, आदि: चुल्लग १ पासग २ धन्न; अंति: (-), (पू.वि. कथा-द्रष्टांत-२२ अपूर्ण तक है.) ७४६५६. प्रतिमास्थापन वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, जैदे., (२६४११, १२४४५). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: (-); अंति: आणा शिर वहिस्येजी, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-१८ से है.) ७४६५७. गौतम पृच्छा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, अन्य. पं.रूपवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ९४२९). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: (-); अंति: मन जे जिन वचने वसु, गाथा-१२०, (पू.वि. गाथा-११५ अपूर्ण से है.) ७४६५८. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: (-), (पू.वि. पगामसज्झायसूत्र का प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) ७४६५९. बीजतिथि स्तुति व जिनप्रतिमा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११. १०४३१). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हुं वांदुबे करजोड, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतमा हो जिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४६६१. योगदृष्टि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-७(१ से७)=१, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२९). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६, (पू.वि. ढाल-८ गाथा-५ अपूर्ण से है.) ७४६६२. पंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४२५). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दूहा-८ अपूर्ण तक है.) ७४६६३. (+) रात्रिभोजन व तेरकाठिया सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४४१). १. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य संयोगै नरभव; अंति: मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. १३ काठीया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: साधु समीपै आवताजी; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. ७४६६४. (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १८४४२). औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तेरो तो सरूप है अरूप; अंति: न रहे राग रूष मइ, __ श्लोक-३९. ७४६६६. (#) ऋषभजिन निंदास्तुति व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. ऋषभजिननिंदा स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तुति-निंदागर्भित, मु. धर्मसि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अरज श्रीध्रमसी तणी, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ७४६६७. (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८x२८). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४६६८. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३१-१३०(१ से १३०)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४१२, ९४३४). सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथांक-६ मात्र है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टीका, आ. मलयगिरिसूरि,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र ७४६६९. (+) होलिकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९०७, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. कल्याणनिधान (गुरु ग. हंशविलास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ले.स्थल बडेउपासरे मध्ये., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ९४२८). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: (-); अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्, (पू.वि. "श्रीमच्श्रीजिनलाभसूरि गणभृत्यु" पाठ से है.) ७४६७०. नेमिराजिमती लावणी, आदिजिन पद व औपदेशिक दुहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. सुमतिचंद्र जती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ३०x१५). For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: सखी सजन पीया नें दगा; अंति: सेवक०मुगति मोहे दीजै, गाथा-३. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, नानु, मा.गु., पद्य, आदि: शरणे आयारी लजा राखजे; अंति: रिषभदेव महाराज रे, पद-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुख मे सजन बहुत है; अंति: विपत कशोटी कीन, गाथा-१. ७४६७२. ६२ मार्गणा व ५६३ जीवभेद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, २७-३७x१४-१७). १.पे. नाम. षडशीतिद्वाषष्ठि मार्गणास्थानक यंत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९२४, ले.स्थल. लखनेउ, पठ.मु. गोकलचंद पनालाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. २.पे. नाम. २४ दंडक ५६३ जीवभेद, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गोरधन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीऋषभ प्रसादात् मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य ५६३ जीवना; अंति: (-). ७४६७३. १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४२९). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी ५ दर्शना; अंति: गोत्रकर्म १ ___ अंतराय ५. ७४६७४. (+) वर्णमाला यंत्र व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १८४३६). १.पे. नाम. वर्णमाला यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: कका किकी कुकू केकै; अंति: (-). २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वंदीयै जी; अंति: अवधारो जिनजी नितमेव, गाथा-७. ७४६७५. भगवतीसूत्र के बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२८(१ से २८)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२.५, १७४४२). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "द्वेष एवं ९६" पाठ से "नारकी १३ गमा" तक है.) ७४६७७. (+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४३८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. गाथा-१८ __ कलश अपूर्ण तक है.) ७४६७८. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आदिजिन सतवन व २४ जिन बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, २२४३८). १.पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लालरे, गाथा-५. ३.पे. नाम. २४ जिन नाम, नगरी, मातापिता, गर्भकाल व जन्मतिथि आदि बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, नगरी, मातापिता, गर्भकाल व जन्मतिथि आदि बोलसंग्रह, मा.गु., को., आदि: अयोध्यापुरी सावथीपुर; अंति: सुद ११ चैत्र सुद १३. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४६७९. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदीसह; अंति: ठिकाणे देवसी भणज्यो. ७४६८०. ६२ मार्गणा गति-आगति यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ४२४३४). ५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नर्क १४ बीजी; अंति: ५६३ सर्वमइ. ७४६८१. (+) औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१५, १०४२७). औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पीत तेल पाठक अरुण; अंति: जव इणसुंरहीयै दूर, (वि. गाथा संख्या क्रमश: नहीं है.) ७४६८३. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सुमतिचंद्र जती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १६४१६). पार्श्वजिन पद-पुरिसादानी, मु. अबीरचंद्र ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: अरज हमारी चित्त धरो; अंति: कहत अबीर एवात, गाथा-५. ७४६८४. (+) ६२ मार्गणाद्वार विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३०x१७). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७४६८५. जीवदया सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १२४४९). औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नरभव भवि भवि; अंति: ज्ञान कला अजुआलै, गाथा-१६. ७४६८६. अक्षयतृतीया स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, २२४६४). अक्षयतृतीया स्तवन, मु. रेखराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि नृपपद धरी वरण; अंति: भव्यनि मन भावै जी, ढाल-९. ७४६८७. (+) नमस्कारमहामंत्र छंद व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरे विविध पर; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-२०. २. पे. नाम. संखेसरा पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवौ पार्श्वसंखेसरौ; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ७४६८८. आदिजिन पद, देसावगावसी पच्चक्खाण व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-कलकत्ता मंडण, आ. लब्धिचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनेसर मूरते मन; अंति: कहै लब्धिचंदसूरी सार, गाथा-७.. २.पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में कठिन शब्दों के अर्थ दिये गए हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिसुतापति कवण वखाण; अंति: पार्श्वचंद्र उच्चरिय, गाथा-७. ७४६८९. सम्यक्त्व सज्झाय व गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२५, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. मिलापचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भागीरथी स्तटै., दे., (२६४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. सम्यक्त्व पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-समकित, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकित विन जीव जगत; अंति: हरखचंद नही अटक्यो, गाथा-७. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १८९ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: करजोडी रतनो भणै, गाथा-१३. ७४६९२. गूढार्थश्लोक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). गूढार्थ श्लोक, सं., पद्य, आदि: अजातचेरे लगडावबोधा; अंति: धीचोदमाचोद हरामजादे, श्लोक-१. गूढार्थ श्लोक-अर्थ, सं., गद्य, आदि: अस्यार्थमेवमग्रंथयन्; अंति: बंधको यस्या सा हरा. ७४६९३. वल्कलचीरी सज्झाय व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५५). १.पे. नाम. वल्कलचीरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिन नमन विधि; अंति: भर्या घर भरइ कनककोडी, गाथा-२७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली वन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७४६९४. (+) मलिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४५). मल्लिजिन चौपाई, मु. जेमल-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: नीमसकार हुवो अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४६९७. नवपद स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, ९४२७). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अबीर, पुहि., पद्य, आदि: नवपद का सुमरण करकै; अंति: कहत अबीर मुगति वरले, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीर, पुहिं., पद्य, आदि: सजन इक वात सुन मेरी; अंति: कहत मुनि बीर सुखशाता, गाथा-५. ७४७०१. शकुन विचार व एक समय उत्तम पुरुष संख्या विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०x११-३९). १. पे. नाम. शकुनविचार संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: राज्यासन मान पामै, (पू.वि. गमन शकुन अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. एक समय उत्तम पुरुषादि संख्या विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठकयुक्त.) ७४७०२. व्याख्यानश्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२५-२६.०४११.५, १५४४६). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक प्रतीकात्मक लिखे गए हैं. "दुग्ध० धर्म०" पाठांश से है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संपदा प्रतै पामस्यै, (पू.वि. धर्म महात्म्य प्रसंग अपूर्ण से है.) ७४७०४. (+) पंचमकर्मग्रंथ यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-४०(१ से ४०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, २२४५६). शतक नव्य कर्मग्रंथ- प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जिको बंध पेहली; अंति: थितिबंध संख्यातगुणो, संपूर्ण. ७४७०५. (+#) उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८वां मात्र है.) For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. जंबुकुमार कथा अपूर्ण से चिलातीपुत्र कथा अपूर्ण तक है.) ७४७०६. (+) स्नात्रविधि व आरात्रिक मंगलप्रदीपकरण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४३). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा सविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्व दिसि वइसी; अंति: एबे गाथा कहीइं. २. पे. नाम. आरात्रिक मंगल प्रदीपकरण विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कुसुमांजलिस्नात्रविधि लवणविधि पानीयविधि आरात्रिक मंगलदीपविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: कलश कलश पानी भरी; अंति: (-), (पू.वि. लूणपाणी विधि अपूर्ण तक है.) ७४७०७. (+) कर्मस्तव यंत्र संग्रह व १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति बंधविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३-२४४१४-६६). १. पे. नाम. कर्मस्तवे १४ गुणस्थानके बंध यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. कर्मस्तवे १४ गुणस्थानके उदय यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. कर्मग्रंथ-२-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कर्मस्तवे १४ गुणस्थानके उदीरणा यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. कर्मस्तवे १४ गुणस्थानके सत्ता यंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ जीवस्थानके नाम कर्मप्रकृति बंधोदय सत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. सामान्य कर्म १२० प्रकृति बंध विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सामान्यै सवि हुं जीव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आहारक तेज सकर्मण तक लिखा है.) ७४७०८. अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, १०४३४). अष्टापदतीर्थस्तवन, ग. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद उपरे जाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७४७०९. श्रावक कर्त्तव्य बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, २१४३७-४०). श्रावक कर्त्तव्य बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल-४ अपूर्ण से पंचेंद्रिय में चार कषाय का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७४७११. (+) ऋषभनाथजी की प्रनालिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३७-४०). आदिजिन वार्ता, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभनाथजी; अंति: सेर कैर० नकी चढाई. ७४७१२. बोल संग्रह व २४ जिन विवरण यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुलपे. ५, जैदे., (२६४११, १५४५७-६०). १.पे. नाम. २३ जीव नाम, पृ. १५अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में २३ पदवी विचार का अंतिम पद अपूर्ण मात्र है. प्रा., गद्य, आदि: जीवेतिवा१पाणेतिवा; अंति: अंतरिक्खेतवा २३. २. पे. नाम. गणधर २४ बोल, पृ. १५अ, संपूर्ण. गणधरलब्धि विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ए २४ बोल जाणैति; अंति: अपवाद अपसर्ग २४. ३. पे. नाम. अतीत २४ जिन नाम, पृ. १५अ, संपूर्ण.. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी १; अंति: स्पंदन २३ संप्रति २४. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १९१ ४. पे. नाम. अनागतचौवीसजिन नाम व जीव नाम, पृ. १५आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाथतीर्थंकर; अंति: बुधनामनो जीव २४. ५. पे. नाम. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विवरण यंत्र, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभ तीर्थंकर तक है.) ७४७१३. नवपद छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). नवपद छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से १९ तक है.) ७४७१४. शत्रुजयउद्धार रास व तीर्थंकरचक्रवर्ती आदि नामसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: नयसुंदर० दरसण जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०, (पू.वि. ढाल-१० गाथा-८० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. तीर्थंकरचक्रवर्ती आदि नामसंग्रह, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तीर्थंकर, चक्रवर्ति व वासुदेवनाम, अवगाहना व आयुष्य, प्रा., प+ग., आदि: चक्किदुगं हरि पणगं; अंति: (-), गाथा-११, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १ ही लिखा है.) । ७४७१५. सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडीः सुक्तावली वर्ग १., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३२). सुक्तावली श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक है.) ७४७१६. (#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११.५, १२४३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७४७१७. पार्श्वजिन स्तवन व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ७-१०४३०-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सोभागी हो साहब; अंति: जेतसी मारे तुहिज देव, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सुण बहिनी ए गिरिनी, (२)आज आपे चालो सहीया; अंति: जिनचंद्र० चित आणी रे, गाथा-९. ७४७१९. अक्षर बत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १८४४५-४८). अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका कछु कारज करो; अंति: मुनि महेश हित जाण्ण, गाथा-३२. ७४७२०. (#) वीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. राघव ऋषि; पठ.मु. रामचंद ऋषि (लोकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १३४५२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तव, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमो नित्य देवाधिदेवं; अंति: मुझ हीयै वसो, गाथा-१०. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक समरु सदा; अंति: महानंद पदवी पामे तेह, गाथा-१३. ७४७२१. मौनएकादशी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. जीतविमल (गुरु मु. विवेकविमल); गुपि.मु. विवेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ९४२६). For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: सुव्रत ऋषभ सझाय भणी, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१२ से है.) ७४७२२. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ९४३४-४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: मानविजय० तुज पाया रे, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-८. ७४७२३. औपदेशिकश्लोक संग्रह व ज्योतिष पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१०. २.पे. नाम. ज्योतिष पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम प्रवीण वार; अंति: रास उपमा कही दीजिये, गाथा-१. ७४७२४. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२६.५४१२,११४३४). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५९, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ७४७२५. (#) इरियावही व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४२९-३४).. १.पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मेघचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नारी रे मी दीठी एक; अंति: एहनी करो घणी सेवरे, गाथा-७. २.पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: आजीआ जोरावर करमि हो; अंति: उदय० भवजल तीर रे, गाथा-७. ७४७२६. आत्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, दे., (२५४१२.५, १२४३२). औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: अति खोटो साची धर्म; अंति: दिन दिन चडत सवाई रे, गाथा-१०, संपूर्ण. ७४७२७. (#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्रले. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, १६४३०). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: तै संसार सारोरे, स्तवन-२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अनंतजिन स्तवन की अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) ७४७२८. (+) श्रीपाल रास सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १११-११०(१ से ११०)=१, प्रले. य. धर्मविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित. प्रत अपूर्ण होने पर भी प्रशस्ति दे दी गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२,५४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-२ ढाल-२ की गाथा-१९ अपूर्ण से है व २३ अपूर्ण तक लिखा है.) श्रीपाल रास-टबार्थ, य. धर्मविलास, मा.गु., गद्य, वि. १९०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रशस्ति है.) ७४७२९. मौनएकादशी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४२४). मौनएकादशी ढाळो, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२ की गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७४७३०. सोलसूपन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) १, जैदे. (२६.५X१२, १४४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ स्वप्न सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: नयविमल० कहइ सारइंजी, ढाल - २, गाथा-२०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल - २, गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ७४७३१. तारादेवी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२६४११.५, १२४३६). १. पे. नाम. तारादेवी सज्झाय - शीलविषये, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वचनसुणा ब्राह्मणतणा; अंति: जी सील पालजो सहु कोइ, गाथा -१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुजी ऋषि, रा., पद्य, आदि आउखो टुटानें सांधो अंतिः सुत्र होजो मुनसार, गाथा ८. ७४७३३. (+) शनिश्चर चौपाई व छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६X११.५, १३X३६). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शनिश्चर चौपाई, पंडित, ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, शनिश्चर छंद, पृ. ३आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति, अंति: (-), (पू.वि. कलश में गाथा - १६ अपूर्ण तक है.) ७४७३४. (+१) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी कल्याणमंदिर, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५X११, ७x४३). " कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्रोक-४४. "" कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीकनउ घर मनोहर; अंति: मोक्ष संपदा प्राम ७४७३५. गजसुकुमालमुनि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२ (२ से ३ ) =४, जैदे. (२५.५४११.५, १३४२८-३३). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि देस सोरठ रे, अंति: (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., गाथा-९ अपूर्ण से गाथा - ४१ अपूर्ण तक एवं गाथा-८७ अपूर्ण के पश्चात नहीं है.) ७४७३६. स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२७४१२, ११४३३) स्नात्रपूजा सविधि, गु., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार, अंति: (-). (पू. वि. "जिनचरणोवर मुकाहर दूरीअ कुसुमंजलि" पाठांश तक है.) " १९३ ७४७३७. नववाड सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) = २, जैदे., ( २६११.५, १०x३१-३४). "" ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: उदयरतन० तेहने भामने, ढाल - १०, गाथा ४३, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. ढाल ७ गाथा २६ अपूर्ण से है.) ७४७३८. परमात्म छत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. नाथू चक्रतराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री पार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२६X१२.५, ११x२७). परमात्म छत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चिदानंद० आतमके उद्वार, गाथा-३६, (पू. वि. गाथा २१ से है.) ७४७३९. आदिश्वरस्वामी विनती अपूर्ण, वि. १८७० श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) -२ प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १३४३३) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पामि सुगुरुं पसाअ रे; अंति: विनय करीने वीनवइ ए, गाथा - ५८, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ७४७४२ (4) ऋषभजिन, अजितजिन व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) =२, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१२.५, ११X३५). १. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आपणारे आणंदघन पद रे, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुंरे; अंति: आनंदघन मत अंब, गाथा-६. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण... पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थनी आसातना नवी; अंति: हारे मंगल शिवमाल, गाथा-८. ७४७४३. आश्रवत्रिभंगी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४३९). आश्रव के ४२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्वेतांबरमतानुसारी, अंति: एवं ८ नास्ति, (वि. कोष्ठक भी दिया गया है.) ७४७४४. (#) कृष्णवासुदेव चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४०). कृष्णवासुदेव चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१०, दोहा-५ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४७४५. पद्मावती आलोयणा, जैनदहा संग्रह व जिनबिंबस्थापन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. श्राव. मानमल वोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १०४३५). १. पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: पापथि छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-४३, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पद है.) २. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३. पे. नाम. जिनबिंबस्थापन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ७४७४७. नवकार छंद व माणिभद्रवीर छंद, अपूर्ण, वि. १८३२, पौष कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. कांतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित० श्रीजिनशासन; अंति: ऋद्धि वंछित लहै, गाथा-१६. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७४७४८. (#) निश्चयव्यवहारविवाद स्तवन, नयबद्ध जीवादि पदार्थ विचार व पुद्गल प्रकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १५४३९). १.पे. नाम. निश्चयव्यवहारविवाद स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: (-); अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल-६, गाथा-४८, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ७ नयबद्ध जीवादि पदार्थ विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: रजुसूत्रनेन मते पेला; अंति: भाव मोक्षपद कहे छै. ३. पे. नाम. पुद्गल त्रण प्रकार, पृ. ९आ, संपूर्ण. पुद्गल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ३ प्रकारे पुदगल; अंति: धोला पण वाधई. ७४७४९. छींक फल व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. छींक फल, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ सं., पद्य, आदि: छींका फलं प्रवक्षामी; अंति: त बहु छींका निरर्थका, श्लोक-६. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज उमाहो अति घणो हो; अंति: हो लाल पुरो मननी आश, गाथा-७. ७४७५१. (#) लावणी संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. ढानला, प्रले. मु. पद्मराज (गुरु मु. गुलाबराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१४२., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २६४१४). १.पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुनज्यो वाता राव सदा; अंति: देख तमासा फजरु मे, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चली चेतन अब उठकर; अंति: जिनदास०जिनमंदिर जइये, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नर सुहामणो; अंति: मोहन० जादवकुल अवतार, गाथा-१०. ७४७५३. देवलोक व नरक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १५४४४). १.पे. नाम. देवलोक विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला देवलोकनो बीजा; अंति: चढतो धवलो वर्ण जाणवौ. २. पे. नाम. नरक विवरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नरक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: किसी किसी नरकै किसा; अंति: ए तीन दृष्टि जाणवी. ७४७५४. (+#) व्याख्यानपीठिका, चैत्यवंदन संग्रह व खरतरगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६x४४). १. पे. नाम. कल्पसूत्रव्याख्यानपीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: सिद्धांत वाचीयइ छइ. २.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदुं जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिखरजीका स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसे दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: शासनाधीश्वर गौतम; अंति: जैवंतौ प्रवत्र्ती. ७४७५५. जिनपूजन दोहा व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. जिनपूजनमहिमा दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनेश्वर जिणे पूजिया; अंति: मालीया सोवन कडला हथ, दोहा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: ए दिन तीनुं त्याग के; अंति: विपत० सो लाखन में एक, दोहा-२४. ७४७५६. (#) आत्मशिक्षा सज्झाय व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे. ३, प्रले. मु. गोविंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३५-३८). १.पे. नाम. आत्मशिख्या सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आत्मशिक्षा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयति मारग आदर्यो; अंति: पासचंद० वचन प्रतिपाल, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. नारीसौंदर्यवर्णन कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माल, पुहिं., पद्य, आदि: वेण भूयंग वदन शशांक; अंति: माल कहइ० अब तेरो कहा, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सोवनदेह रूपगेह काम; अंति: दुत्ताण ने हाणिपूर, गाथा-२. ७४७५७. २४ जिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५४११, १९४२८). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभनाथजी; अंति: वर्षनो आंतरो कह्यो. ७४७५८. (+#) शाश्वताशाश्वतजिन नमस्कार व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३५-३९). १.पे. नाम. शाश्वताअशाश्वताजिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोडी सातने लाख बहोतर; अंति: पद्म०आत्मतत्वे रमीजे, गाथा-१३. २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पाया जी, गाथा-४. ७४७५९. औपदेशिक पद व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., जैदे., (२५.५४१२, १५४२६). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हंस, पुहि., पद्य, आदि: मातपिता अर पुत्र; अंति: हंस० नम्मिय काम किण, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-अविश्वासी मित्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मन में कछ ओर मीठी; अंति: भरोसो नाहि कीजीयै, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद्द, पुहि., पद्य, आदि: पापी माणस होय जिनो; अंति: कविगिद०गयो भव तारणां, पद-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्मा से कुलालकारी; अंति: सोन्याय कीनो है, गाथा-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: कपटी को हेत कहा; अंति: गंग० गणेस पठायौ, पद-२. ७४७६१. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १३४३९-४२). स्तवनचौवीसी, मु. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अजितजिन स्तवन से लिखा है व सुमतिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने अजितजिन स्तवन से लिखना प्रारम्भ किया है.) ७४७६२. ४५ आगम अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १५४३०-३३). ४५ आगम अष्टप्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४७६३. (#) उपदेशसत्तरी व आगम नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का उल्ल्लेखन होने से अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४३१). १.पे. नाम. उपदेससत्तरी, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७२, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथाएँ हैं.) २. पे. नाम. आगम नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. क्रम रहित आगमों के कुछेक नाम है.) For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७४७६४. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १०४२२). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपद्यो सारदा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से गाथा-१८ अपूर्ण तक व गाथा-३७ अपूर्ण से नहीं है.) ७४७६५. ध्वजारोपण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४३८). ध्वजादंडरोपण विधि, मु. देवचंद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भूमि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., ऋजुमति द्वारा ध्वज बाँधने की विधि तक है.) ७४७६६. (+) १४ गुण ठाणा १३ बोल, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३९). १४ गुणस्थानके १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: (-), (पू.वि. आत्माद्वार बोल अपूर्ण तक है.) ७४७६८.(+) द्वादशभावना सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:सवइया., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १६x४५). १२ भावना सवैया, मु. हीरालाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: अनीत असरण संसार ने; अंति: (-), (पू.वि. सवैया-१२ तक ७४७६९. (#) अष्टप्रकारी पूजा व एकादशी स्तुति, अपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. बकारपुर, प्रले. ग. ज्ञानविजय पं; पठ. मु. गजेंद्रविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अष्टापूजा. श्रीपार्श्वजिन प्राशादात्., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ८४३७). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, श्लोक-८, (पू.वि. मात्र अंतिम ढाल है.) २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ७४७७०. (+#) औपदेशिक जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११.५, ११४३०-३३). ___श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९५ से १०९ तक है.) ७४७७१. गौतमाष्टक, सरस्वतीदेवी स्तुति व इरियावली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. नारदपुर, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४८). १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नारदपुरी. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: सरस्वती महाभागे वरदे; अंति: पूजनीया सरस्वती, श्लोक-७. ३. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसल दायक अरिहंत; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा-१६. ७४७७२. कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, २०४३४-३८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मासकल्प व्याख्यान अपूर्ण से नाटकवर्जन दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ७४७७३. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. ज्ञानविजय; अन्य. श्रावि. साहिबकवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १०४२५). For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ७४७७४. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-४५(१ से ४५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३०-३३). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४५ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-४६ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७४७७५. जिनकुशलसूरि आरती, अष्टप्रकारी पूजा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, ४०४२०-२८). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लाभवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: पहली आरती दादाजी की; अंति: गुरु चरण कमल बलिहारी, गाथा-९. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुरनदी जलनिर्मलवारया; अंति: श्रीश्रीजि० अर्घनि०, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७४७७६. (+) नवकारमहिमा गाथा, कीर्तिमुखमंदिर मंत्र व कल्पसूत्रव्याख्यानपीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३०). १.पे. नाम. रत्नसंचय-गाथांक ८ नवकारमहिमा गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. कीर्तिमुखमंदिर मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कल्पसूत्र-व्याख्यानपीठिका, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी पाट तक पाठ है.) ७४७७८. (+#) माणभद्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४३०). माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७४७७९. (#) इलापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३२-४०). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७४७८०. धनगिरीसुनंदा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १३४३८). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४७८१. (+#) सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५४११.५, १४४४३). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक ९.) ७४७८२. भेरूजी स्तुति व स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ९४२२). १. पे. नाम. भेरुजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मा.गु., पद्य, आदि: छकीयो रहियो रेकलाली; अंति: मुगता छगसो सेवग माल, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ७४७८३. (#) कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-८(१ से ३,६ से ८,१० से ११)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३०-३३). कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण से गर्भ क्षेम के उत्सव प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७४७८४. (+) पंचडंडी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:पंचडंडी., संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३७-४०). पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४९०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-४ श्लोक-१५१ (६४ कलागत कला-४४) से श्लोक-१८३ अपूर्ण तक है.) ७४७८६. स्तोत्र, दोहा व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५४११, १०४२७). १.पे. नाम. सरस्वतीमंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सरस्वतीदेवी स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३, (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्वेतपद्मासना देवी; अंति: सर्वविद्यालभंति च, श्लोक-३. ३. पे. नाम. धर्मकार्यप्रेरक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: घडी नलब्भै अग्गली; अंति: करि जांलगि वहै सरीर, दोहा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चत्वारि कालु कर्माणि; अंति: यावंति च दिने दिने, श्लोक-३, (वि. तीसरा श्लोक शांतिनाथ चरित्र से उद्धृत है.) ७४७८७. (+#) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन, औपदेशिक कवित व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२३(१ से २३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४२८). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन सह बालावबोध, पृ. २४अ-२५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१, (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से है.) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मंगलमाला संपजे. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. २५अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: वांचन होय बलराज छले; अंति: वामन सै भई आदसै खोटी, पद-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हस्ति स्थूलतनुः सच; अंति: वटे वररुचेर्यथा, श्लोक-४. ७४७८८. नवकार महामंत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नवकार०., जैदे., (२५.५४१२, १५४४०). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं कैहता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंचम पद बालावबोध तक लिखा है.) ७४७८९. (+#) औपदेशिक कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १११-११०(१ से ११०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, १०४२७). For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-१०१ अपूर्ण से ११२ अपूर्ण तक है., वि. गंग कवि आदि रचित छुटक रचनाएँ हैं.) ७४७९१. माणिभद्रवीर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२.५, १३४३५). माणिभद्रवीर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ७४७९२. (+) कार्तिकशेठ चौढालियो, वंकचूला ढाल व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १९४४४). १. पे. नाम. कार्तिकसेठनो चौढाल्यो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहन्त सिद्ध साधु; अंति: जेमलजी उपीउग राखी, ढाल-५, गाथा-८७. २. पे. नाम. वंकचूलरो चोढाल्यो, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. वंकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वकचूल भाखी कथा जथा; अंति: पाल्याहू सीखेवो पारी, ढाल-६, गाथा-६१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराज परुपायो; अंति: सुध धर्मरीकारे, गाथा-१४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. संयमशंगार सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१. आदि: संवररो सिणगार धर्म: अंति: रायचंद० ण लीनी जी, गाथा-१४. ७४७९३. (+#) खरतरगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९४३, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:पट्टावलिपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, १४४३८). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय०; अंति: (१)जयवंतौ प्रवर्ती, (२)श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४. ७४७९४. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३२). ___ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण से ७६ तक है.) ७४७९५. (+#) भाविनी कमरेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४३). भाविनी कमरेखा चौपाई, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस इग्यारम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-९ अपूर्ण से अज्ञात ढाल दोहा-देशविदेश का राजवी के पूर्वपाठ तक व ढाल-२७ गाथा-११ अपूर्ण से पाठ नहीं है., वि. पत्र-५ पर उल्लिखित ढाल क्रमांक संदिग्ध लगता है.) ७४७९६. (#) जिनस्नात्र महोत्सव ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२४४३). जिनस्नात्र महोत्सव ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: अनिहां रे वीरजिनेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-११ अपूर्ण तक व ढाल-५ गाथा-६ अपूर्ण से पाठ नहीं है.) ७४७९७. वीसस्थानक पूजा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११,१९४५५). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चारित्रपद स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४७९८. रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११, १३४३७-४०). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४७९९. सिद्धगिरीगरबी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १३४२५). For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु, पद्य, वि. १८७७, आदि जे कोई अंबिका० सीध, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) " ७४८०१. (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से २, ४) = २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २६.५X११.५, -१X-१). स्तवनचौवीसी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन- ६ से स्तवन-८ गाथा-४ अपूर्ण तक व स्तवन- १० गाथा - ५ अपूर्ण से स्तवन- १३ गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ७४८०२. (+) बोल व यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-९ (१ से ९) = १५, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६X११.५, २१x४७). १. पे. नाम बोल संग्रह-भगवतीसूत्र, पृ. १०अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र- सर्व बंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). , २. पे. नाम. दक्षिणार्द्ध भरत जीवाकरण, पृ. १०आ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: मंडल खित्तायामो उसूड, अंतिः जीवा एहबी रीतै करवी. ३. पे. नाम. धनुषपुष्टि क्षेत्रकरण विधि, पृ. १० आ, संपूर्ण. प्रा. मा. गु, गद्य, आदि उसुवगो उगुणिए जियवग: अंतिः धनुपृष्टिइ करिवी ४. पे. नाम. श्वेतांबर दिगंबर ८४भेद बोल, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: १केवलीने आहार माने; अंति: (१) ८४ आभरण सहित मोख जाइ, (२) बार देवलोक माने. ५. पे. नाम. देहरानी ८४ आशातना, पृ. १९आ, संपूर्ण जिनभवन ८४ आशातना नाम, मा.गु., गद्य, आदिः १ श्लेषमा नो नाखवो अंतिः ८४ स्नान नो करवी. स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५ १६४४५). "" ६. पे. नाम. समकीत विचार संग्रह, पृ. २४- २४आ, संपूर्ण, पे.वि. २ यंत्र भी दिये हैं. सम्यक्त्व विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व मोहनिकर्म, अंति: (-). ७४८०३. (१) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-७ से स्तवन-१६ की गाथा-४ अपूर्ण तक है., वि. स्तवन ९ व १० नहीं लिखा है.) ७४८०५ (+) पंचमीपर्व व्याख्यान व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५ (१ से ३, ५ से ६) = २, कुल पे, ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१३, १४X३६). २०१ १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, पृ. ४अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सांभलो भो भव्य लोको, (पू.वि. "ण तुझ सत्ताना परनै विषै" पाठ से है.) २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. पच, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ३. पे नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ७अ ७आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२ "भला स्वर्णादिक" पाठ से ढाल ३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७४८०७. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे. (२६.५४११.५, १४४४३-४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८, आदि: कलपवेल कवीयणतणी सरसत; अंति: (-), (पू. वि. ढाल - २, दूहा- ३ अपूर्ण तक है.) ७४८०८. (+) एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६.५x११.५, ९-१२X४०). " Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: (-); अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल- ४, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण से है.) ७४८१२. (+) जन्माभिषेक कलश, लूणपाणी संग्रह व आरती, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२६११.५, १६x४९). १. पे. नाम. ऋषम जन्माभिषेक कलश, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. www.kobatirth.org आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिम तिम दिउ वरमुत्ति, गाथा- १९, (पू.वि. "लाओलि मांडीयै पछै इम कहीइ" पाठ से है.) २. पे नाम, महावीर जन्माभिषेक कलश, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः श्रेयः पल्लवयंतु वः; अंति: मंगलसू० पूजो एहिज देव, लोक-१८. ३. पे. नाम. लूण पाणी विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. लूणपाणी विधि, प्रा., गद्य, आदिः उवणे मंगल पइवो जिणाण; अंति: तुठइ लम्भइ शिवरमणं, गाथा-८. ४. पे. नाम. लूण उतारण, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: लूण उतारो जिनवर अंगे; अंति: करीजइ विवधि परिबंधइ, गाथा - ७. ५. पे नाम, जैन सामान्यकृति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि : मरगय मणि घडिय विशाल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७४८१३. (+) वैद्यवल्लभ, अपूर्ण, वि. १९४०, वैशाख कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२ - २१ (१ से २१) = १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५X११.५, ८X३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: रोहिरसो सुविशेष एव, विलास-८, (पू. वि. विलास-८ श्लोक-२९ से है.) ७४८१५. बोलसंग्रह व श्रेणिकराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जै (२६४१२ २०x३०). १. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: केवलगान० गुरुनै केवल, (पू.वि. बोल-२७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रेणिक राजा रास, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकितमाहे दिढ रह्या अंति: (-), (पू. वि. ढाल -३ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७४८२० (१) जिन आंतरा समय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, ९-१४X१७-३१). २४ जिनआंतरा समय, सं., गद्य, आदि: श्रीआदिजिन निर्वाणात अंतिः कोटिसागर मितः कालः. ७४८२२. (+#) आत्मनिंदा दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अबरख युक्त पत्र है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों 3 की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, २१x४०). ७४८२४. आत्मनिंदा दृष्टांत कथा, प्रा. सं., गद्य, आदि: किं च अत्र धर्मार्थ, अंतिः कृतः भव साहाह्यात्, ७४८२३. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-११ (१ से ११) ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. जैदे. (२५.५४११, १६४३५). "" " जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-५ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक है.) (#) कल्पसूत्र व मंगल विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५१-५० (१ से ५० ) = १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६X१२.५, १०X३३). १. पे, नाम, कल्पसूत्र, पृ. ५१अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. " For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-८९ अपूर्ण से है व ९० ___ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. मंगल विचार, पृ. ५१आ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात भोम ज्यामे आदमी; अंति: (अपठनीय). ७४८२५. तीर्थयात्रा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-११(१ से १०,१२)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२२-२५). तीर्थयात्रा रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक व ४१ अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक है.) ७४८२६. (#) जीवकायाविचार सज्झाय व पद्मावती आलोयणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक ४ के बाद २ लिखा है वस्तुतः पाठ क्रमशः होने से पत्रांक ५ होना चाहिए., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १८४४४). १.पे. नाम. जीवकाया विचार सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारा रे ऊभो रहे; अंति: सीख समयसुंदर इम उचरे, गाथा-२३. २. पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: समयसुंदर० छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ३.पे. नाम. द्वादसमास चंद्रायणा, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासरिरीत के; अंति: आज केहइ रंग रुलिइ, गाथा-१२. ४. पे. नाम. समस्या पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: जिण में फाडि सो में; अंति: परख्या ना परख दीखाया, गाथा-८. ५. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सरसति के भंडार; अंति: सजन तजे न हेज, गाथा-२. ७४८२७. (#) श्रेणिकराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १७X४६). श्रेणिकराजा रास, मु. फतेविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ से ढाल-९ गाथा-१२ अपूर्ण तक ७४८२८. (+#) गोडीजी स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व गच्छपति विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). १. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. वसता, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: मानीज्यो निजदामेव, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, जगरुप, रा., पद्य, आदि: वामासुत म्हानु लागै; अंति: अजब मटक अणीयालो, गाथा-६. ३. पे. नाम. गच्छपति वीनती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनराजसूरि विनती, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा संदेसो जिनजीन; अंति: आहिज वालापणनी टेकरे, ___गाथा-७. ७४८२९. (+) आदिजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १०x२९). आदिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४८३०. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पद-८ तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ७४८३१. (#) सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८९७, चैत्र शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पठ. श्रावि. झरमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: श्रीमंदिरत., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुजशविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साहिब सीमंधर तुझ आगे, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ७४८३३. (+) पुद्गलपरावर्तन विचार, १८ भार वनस्पती विचार व मेरु १० दशा विचार, संपूर्ण, वि. १९३३, फाल्गुन शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. जेमल भुदरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३२). १. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उदारीकसरीर वकरीसरीर; अंति: पुदगल प्राव्रतन थाए. २.पे. नाम. १८ भार वनस्पति मान, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वनस्पतीना भेद ४; अंति: भार वनस्पतीनी जात छे. ३. पे. नाम. मेरु १० दशा विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: मेरुप्रबत १०००००; अंति: सेण नीकळे छे. ७४८३४. (+) गुरुगुण गहुँली व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४०). १. पे. नाम. महासती सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. गुरुगुण गहुंली, सा. चंदुबाई, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: (-); अंति: मुझ मिछाम दोष थाय, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दानदयाधर्म कीजीये; अंति: जिणंदसूचित लागोजी, गाथा-१४. ७४८३५. नवपद आरती, साधारणजिन दूहा व आदिजिन आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, १६४३१). १.पे. नाम. नवपद आरति, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद आरती, मु. उदय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीनवपदजी की आरती; अंति: (१)उदय इच्छा पूरन धन, (२)हरे क्षुधादिक दोष, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन दूहा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: गयण गण कालग करु; अंति: प्रभुगुण लख्या न जाअ, गाथा-१. ३. पे. नाम. पंचजिन आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पेली आरती प्रथम; अंति: मारा प्रभुजीने तोले, गाथा-८. ७४८३६. चूलिका गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१२, १५४५६). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. ७४८३७. (+) दया सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रणसी, प्रले. मु. वनेचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १४४३७-४१). औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थंकर करूं; अंति: पामे अमर विमान, गाथा-२४. ७४८३९. (+) स्तवन वीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६). For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २०५ ३२ जिन स्तवन-धातकीखंड द्वितीय महाविदेहक्षेत्र, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ___ (पू.वि. स्तवन-६ की गाथा-४ अपूर्ण से स्तवन-९ की गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७४८४१. (+) जिनप्रतिमा विवर्ण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. उदयमिंदर, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चरचापत्र., संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ११४३९). जिनप्रतिमा ४ निक्षेपा विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)जत्थय जंजाणिज्जा, (२)जगमांहि जेतला पदार्थ; अंति: विचार संपूर्ण हुओ. ७४८४२. (#) सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरिकलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ७४८४४. (+) प्रवज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. योधृपत्तन, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "श्रीमत्तपागणे श्रीज्ञानविमले प्रवज्या गृह्णादिविधि" पाठ का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.,जैदे., (२५४१२, १४४४१). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: हिण ९ वास १० उसगो ११. ७४८४५. (+#) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६-२(१ से २)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, ११४४४). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ ___ गाथा-अंतिम अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) । ७४८४६. अणसण विधि, श्रावकप्रतिमा विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक नही हैं., जैदे., (२६४१२.५, १८४४३-४७). १.पे. नाम. अणसण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. अणसणप्रत्याख्यान विधि, मा.गु.,प्रा., गद्य, आदि: जो गरढो हुवैतो देव; अंति: साख करवी वोसरामी. २. पे. नाम. ११ प्रतिमा श्रावकनी, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली सामायक प्रतिमा; अंति: श्रावकनी जाणवी. ३. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दसण१ वयर सामाइय३; अंति: वज्जए समण भूएय, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: करिया काय कलेशो नाणे; अंति: दयाविणा विटंबणा तस्स, गाथा-१. ५. पे. नाम. सचित्तअचित्त सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. __ असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीगोयम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१८. ७४८५०. (#) श्रावक पडिमा व चक्रवर्ति ऋद्धि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १९४५५). १. पे. नाम. इग्यारैपडिमा श्रावकनी वहण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेली दर्सन प्रतिमा; अंति: मास ११ ताई तप करै. २.पे. नाम. चक्रवर्ति ऋद्धि विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चक्रवर्तिऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र षट्खंड; अंति: ५० को० पखालीया. ७४८५१. शत्रुजय यात्रा विगत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२५.५४१२, ३३४९-२४). For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ यात्रा विगत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदेसर बसी मोती, अंति: वडोद७५ आसपुर ७६. ७४८५४. (+) पार्श्वचंद्रसूरि स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x१०.५, १४- १९४४९-५३). पाचंद्रसूरि स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (१) गजमुख गुणपति ग्वान, (२) तो समरंता० तपगच्छ, अंति: (-), गाथा ४८, " (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४८ तक लिखा है.) ७४८६०. दीपावलीपर्व कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी: दीवालीक., जैदे., (२६X१२, ६x४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८२, आदिः श्रीवर्द्धमानमांगल्य, अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है, श्लोक ७ अपूर्ण तक है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हंन बालबोधिना; अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ७४८६२. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६४१२, ११४३२). " " पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करि मेरुशिखर, अंति: हरयो विघन हमारा जी, गाथा-४. ७४८६३. मौनएकादशी स्तवन व अष्टमी नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१)=१, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित, दे., ( २६१२, ९x४०). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मौनएकादशी तिथि स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जसविजय जयश्रीवरी, गाधा-६, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. अष्टमी नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुदी आठमने दिने, अंतिः सेव्याथी सीरनामी, गाथा- ७. ७४८६४. (+) मूत्रपरीक्षा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३४). मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-११ तक है.) मूत्रपरीक्षा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथने, अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ७४८६६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, दोहा संग्रह व ७ सहेली संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४११, ७४०). १. पे नाम, पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लोगस्स सूत्र गाथा-६ अपूर्ण से है व जगचिंतामणि सूत्र गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है., वि. संपदा, पद, अक्षर संख्या भी दी गई है.) २. पे. नाम. ज्योतिष पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति प्रथम पेटांक के बीच में खाली जगह में लिख दिया गया है. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम प्रवीण वार सुणु; अंति: पंचम रास उपम कही जीइ, गाथा - १. ३. पे नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति प्रथम पेटांक के बीच में खाली जगह में लिख दिया गया है. पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: लुसै दोलित नहु वधे; अंति: गयो कहा करण गयो खोय, गाथा - १. ४. पे. नाम. सात सहेली का दूहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ७ सहेली संवाद, पुहिं., पद्य, आदि: पहेली सखी उठि बोलीयु; अंति: उडी जाति मंदीर माहि, गाथा-५. ७४८६७. (+) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (३) = ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ५५२६). For Private and Personal Use Only .जे. (२६४१०.५. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१४ से २१ अपूर्ण तक व श्लोक-२३ अपूर्ण के बाद नहीं है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदा प्रते हृदय; अंति: (-), पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ७४८६८. (+४) दसवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १०x३४). "" Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सामान्नपुव्व अध्ययन २ तक है.) ७४८६९. (+) वैराग्य सज्झाय, शत्रुजयतीर्थ स्तवन व दिनप्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १२४३४). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: राजसमुद्र० को संसार, गाथा-५. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: विमलगिर क्यु न भए; अंति: धर्मसी करत अरज करजोड, गाथा-५. ३. पे. नाम. दिनप्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहर दिनमान संगणना कोष्टक, मा.गु., को., आदि: पग १ पग २ पग ३; अंति: प १६ प ० पल ३ छै. ७४८७०. (+) मौनएकादशीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३. ७४८७१. (+) २३० बोल गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२-२२४६१). तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि७ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्वानि कहता; अंति: चौंतीस अतिशय जाणवा. ७४८७२. (+#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६-३(१,३ से ४)=३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११४३५). स्तवनचौवीसी, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अजितजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से संभवजिन स्तवन-गाथा-५ अपूर्ण तक एवं शीतलजिन स्तवन से धर्मजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४८७३. पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७-१२६(१ से १२६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ११४३२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७० गाथा-८१ अपूर्ण से ढाल-७१ गाथा-९७ अपूर्ण तक है., वि. गाथांक संयुक्त दिया गया है.) ७४८७४. (+) ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४३). ढंढणऋषि सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शासन श्रुतदेवी सेवी; अंति: कल्याणसू० करइ प्रणाम, गाथा-१३. ७४८७७. (#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०x२४). सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवत; अंति: सुविधिविजेय सुपसाय, गाथा-११, (वि. अंत में नीचे से ऊपर की ओर एक मन्त्र लिखा हुआ है.) ७४८८१. स्थानांगसूत्र की वृत्ति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ९४३५). स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिनं नाथं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रारंभिक पाठ मात्र है.) स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रुत शब्दना निक्षेप; अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ७४८८४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १३४३६). चतुर्विंशतिजिन स्तवन, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमता नलनी बोहवा; अंति: (-), गाथा-२६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वासुपूज्य स्तवन गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४८८५. (+) तमाकू गीत व गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. तमाकू गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: समकित लखिमी पामी; अंति: श्रीसार० सब सुख थाई, गाथा-१५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुज वीनती; अंति: इम जंपइ जिनराज रे, गाथा-७. ७४८८८. (+) बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११-१६x४५-५०). १.पे. नाम. दसपूर्वि युगप्रधान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. युगप्रधान लक्षण, सं., पद्य, आदिः येषां च देहे न पतंति; अंति: प्रधानं मुनयो वदंति, श्लोक-१. २.पे. नाम. १० पूर्वी युगप्रधान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पूर्वीयुगप्रधान नाम, सं., पद्य, आदि: महागिरि१ सुहस्ती२ च; अंति: दशैते दश पुर्विणः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. जिन भवन १० जघन्य आशातना गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल १ पांण २ भोयणु; अंति: अंवजे जिणनाह जगइए, गाथा-१. जिनभवन १० आशातना गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तंबोल पुंगीफल नागव; अंति: आसातना जघथी दश टालवी. ४. पे. नाम. जिनभवन उत्कृष्ट ८४ आशातना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खेल श्लेष्मा १ केली; अंति: पीवानां भाजन मेहलइं. ५. पे. नाम. जिनभवन मध्यम ४२ आशातना, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: मुत्र१ पुरीष२ पाणी; अंति: एतली ४२ आशातना टालवी. ६. पे. नाम. भक्तिवंत प्राणी ८बोल सह बालावबोध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबोधप्रकरण-भक्तिवंत प्राणी के ८ बोल, हिस्सा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्ति१ बहुमाणो २; अंति: संपुण्णविहिंजुत्तो, गाथा-२. संबोधप्रकरण-भक्तिवंत प्राणी के ८ बोल का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिअंतरंग राग १; अंति: पूर्वक अवधि निषेध. ७. पे. नाम. जिनभवन अवग्रह द्वारविचार, पृ. २आ, संपूर्ण. अवग्रहद्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण प्रकारे अवग्रह; अंति: ए अवग्रह जाणवा. ८.पे. नाम. देहरा उपासरा-गुरु नमस्कार न कारण पापमान, पृ. २आ, संपूर्ण. देवगुरु आशातना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आंबिल भांजि जेतलो; अंति: तो नीविनो दोष थाइ, (वि. निशीथसूत्र से उद्धृत है.) ९. पे. नाम. पंचांग प्रणाम, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में कृति पत्रांक १अ के हासिये में लिखा गया है. पंचांग प्रणिपात गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पणिवाओ पंचगो; अंति: करदुगुत्तमंगंच, गाथा-१, (वि. चैत्यवंदन भाष्य से उद्धृत है.) १०. पे. नाम. चैत्यवंदने सचित-अचित द्रव्य विचार, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति पत्रांक १अ के हासिये में लिखा गया है. पंचप्रकार विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्यवंदनादिकनें; अंति: अंजली प्रणाम करवो. ११. पे. नाम. जिनभवने राजादि ५ त्याग, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनालये राजा द्वारा त्याज्य, मा.गु., गद्य, आदि: षड्ग १ छत्र २ उपानह; अंति: एतले राजचिह्न मुकवा. १२. पे. नाम. जिनभवने दिशा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मूल बिंब भगवंतनें; अंति: तथा हस्ते आपीइं. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७४८८९. बिंबप्रतिमाप्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १६४५०). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उत्तम मुहूर्त; अंति: शुक्र सन्मुखो० जिनाय. ७४८९७. प्रास्ताविक गाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४३८). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१४. प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४८९८. योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-५१(१ से ५१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-४७ से ५६ तक है.) योगशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४८९९. (+) मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पृष्ठ-१आ पर शांत्याचार्य रचित उत्तराध्ययनसूत्र की टीका का संदर्भ देते हुए किल्बिषक की स्थिति दर्शाई गई है., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४३४). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: (१)जबूद्वीप भरते अतीतर, (२)श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ७४९००. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४९०१. पट्टावली खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३७). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दसाणकप्पाणुववहारे, श्लोक-१४, (संपूर्ण, वि. पाटपरंपरा की सूची भी दी गई है.) ७४९०२. (#) लघुशांति व वृद्धशांति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३२-३६). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "रक्षतु वो नित्यं ॐश्रींह्रींघृतिकीर्ति" पाठांश तक है.) ७४९०६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-८०(१ से ८०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ४४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१५ की गाथा-१६ अपूर्ण से अध्ययन-१६ के सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४९०७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६०-१५९(१ से १५९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामाचारी अंतिम भाग अपूर्ण मात्र है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४९०८. कल्याणमंदिर स्तोत्र व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४३०-३६). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ७ अपूर्ण तक लिखा है.) मु. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जगगुरु जुमेदरसामी, अंतिः प्रीत कीवी भेली मे, गाथा- १०. ७४९०९ (+) जीवविचार सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ७X३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवन पड़वं वीरं नमीऊण; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ४५ तक है.) जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: तीन भुवन स्वर्ग, अंति: (-). पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. ७४९१०. नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६९९, श्रावण शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, प्रले. ग. गजकुशल (गुरु पंन्या. दर्शनकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११, ४४४१) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणीगयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४८, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ४३ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एक समय अधिक जाणवुं, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७४९११. योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. त्रिपाठ., दे., (२५.५X११, १३-१७X४५-४८). योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. गाथा ५ से १२ तक है.) योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. शीक्षा योग्य के लक्षण उत्तराध्ययनसूत्र साक्षीपाठ अपूर्ण से अध्ययनार्थ दीक्षा अधिकार अपूर्ण तक है.) ७४९१२. चैत्यवंदनभाष्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी संघासूवृ., जैदे. (२६४११, २०x४५-५०). "" चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. गाथा ३० उत्तरार्ध से ३१ तक है.) चैत्यवंदनभाष्य- संघाचार टीका, आ. धर्मघोषसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. गुणसागर राजा को गुणधरमुनि द्वारा धर्मदेशना में द्वितीयांग सूत्र के पॉडरिए अध्ययन के पंचम पुरिसजात वर्णन अपूर्ण से देववंदन के १२ अधिकार में से ११ वे तक है.) ७४९१३. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(२ से ३ ) = ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११.५, ४X३७). יי जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति (-) (पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ अपूर्ण से १९ तक एवं गाथा- ३१ अपूर्ण से नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिणजगने विषें दीवा; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७४९१४. (+) पद व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १० - ९ (१ से ९) = १, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १५X४०). १. पे नाम, आध्यात्मिक गीत, पृ. १०अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आनंदघन महाराज री, गाथा-४, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कर्म की रीति, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: राम कहो रहिमान कहो; अंति: चेतनमय : राम, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुदल थोडो रे भाईडा; अंति: बाहोडी झालजो रे आय, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २११ ४. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: व्रजनाथ से सुनाथ विण; अंति: कऊं परम लाभानंद पायौ, गाथा-६. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: हरि पतित के ओ धारन; अंति: रीति नांउ की निवहीये, गाथा-७. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निस्पृह देश सोहामणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण है.) ७४९१५. (+) चौरासी आशातना व प्रास्ताविक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. २, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ६x४२). १. पे. नाम. चौरासी आशातना सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: वजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेमा रामतिणां १; अंति: वर्जयेत जिनेंद्रालये. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथासंग्रह सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. गाथा संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७४९१८. ३६३ पाखंडी भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, २१४६८). ३६३ पाखंडी भेद, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जीवाजीवादि नवपदार्थ; अंति: जंचरणगुणट्ठिांसाहू, (वि. सारिणीयुक्त) ७४९२१. पार्श्वजिन स्तोत्र मंत्रसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ९४५८). पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: नमो भगवते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तव-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४९२२. श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, २०४५७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-५५, (पू.वि. इहलोगस्स आसायणाए से है.) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकर वांदउं. ७४९२३. सम्यक्त्व पच्चीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११.५, २२४४८). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: (-), गाथा-२५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मनोवांछितदातार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७४९२४. (+) नलदवदंत कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुडी: नलदवदंत, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १२४२७-३०). नलदमयंती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "अजी तु ए घोड़ा माठा मध्यम छई" पाठांश से "कनई रूपई नलइ जि छई काई न्यानी एम कहिउ" पाठांश तक है.) ७४९२५. (#) प्रत्याख्यान सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए नमुकार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ७४९२६. १२ भावना गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १२ भावना गीत, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भावना-८ अपूर्ण से भावना-९ अपूर्ण तक है.) ७४९२७. दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४२९). For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दृष्टि रागइ विरागीइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४९२८. मौनएकादशी गणनु, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२५.५४१२, १८x२६-३६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: (-); अंति: श्रीआरणनाथाय, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., अतीत के ५ कल्याणक से है.) ७४९३०. स्तवन व सज्झायादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८४०, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७९-७७(१ से ७७)=२, कुलपे. ८, ले.स्थल. बाकरोट, प्रले.पं. प्रीतविजय (पूनमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३८). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ७८अ-७८आ, संपूर्ण, वि. १८४०, भाद्रपद कृष्ण, २, प्रले. पं. प्रीतविजय (पूनमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-८. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीचा साहीब मुझरो; अंति: भव भवना पातक टालो, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ७८आ-७९अ, संपूर्ण. मु. चरणकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: परतष्यपास घणी गोडीनो; अंति: हरषेरा जोड जोडीजी, गाथा-६. ५.पे. नाम. तमाकू सज्झाय, पृ. ७९अ-७९आ, संपूर्ण. तमाकूगीत, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: समकित लखिमी पामी; अंति: श्रीसार० सब सुख थाई, गाथा-१५. ६.पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. ७९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. विसनदास, मा.गु., पद्य, आदि: गिरि गिरनारि जाइ रहै; अंति: तुम पाय लगतीयां हो, गाथा-७. ७. पे. नाम. प्रास्ताविक दुहा, पृ. ७९आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ८.पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. ७९आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ; अंति: समयसुंदर० फल ताह, गाथा-६. ७४९३३. (+) पार्श्वजिन लघु स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २.पे. नाम. पार्श्वपद्मावती मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४९३४. नारचंद्र ज्योतिष सार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी: नारचंद्रसूत्रं, जैदे., (२५४१२, १६४३५-३९). ___ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: पडिवा छठि इग्यारसि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से २३ __ अपूर्ण तक एवं ४८ अपूर्ण के पश्चात् नहीं है.) ७४९३७. (#) व्याख्यानपीठीका, पुद्गलपरावर्तनकालविचार गाथा व चतुर्विंशतिजिनमंगलाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वाराहीनगर, अन्य. पं. माणकविजय (गुरु पं. सुमतिविजय); मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१६x४२). For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org १. पे. नाम. व्याख्यानपीठीका, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: भगवन् त्रैलोक्यतारण; अंतिः करीने तुझे सांभलो. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त्तनकालविचार गाथा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार - हिस्सा पुलपरावर्तनकाल विचार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: दवे खेत्ते काले, अंति: ३ भावेहि ४ इयणेउ ५, गाथा- ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम चतुर्विंशतिजिनमंगलाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र, अंतिः जिनप्रभः मम मंगलम् श्लोक- ९. ७४९३९. महावीरजिन स्तवन- मोहनीयकर्मबंध बोल गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. हुंडी: ते०म० जैदे. (२५.५४११, ९३७). ', "3 महावीर जिन स्तवन- मोहनीयकर्मबंध बोल गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाधा-७ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक है.) ७४९४०. सामायिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ (३) = ३, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५X१२, २३X३८). १. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : समाइनी ढाल मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: दोषण टालेने करो रे; अंति: समाइक राखो प्रेमो जी, २. पे. नाम. चंदनबालानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. चंदनवालासती सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि दधवानुरी पुत्री जाणी; अंति मोह मध्यात तणी जाली, गाथा १५. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, मु. चोधमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिध साधू नमः अंतिः रिष चोथमल इम भाख, गाथा - १३. गाथा - १८. ४. पे. नाम. नेमिराजुल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: राजुल रेहेनेम नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: राजुल इण परि वीनवै, अंति: हो सुद पांच मंगलवार, गाथा. २१. ५. पे. नाम. नेम राजुल सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदिः उग्रसेण की लली नेमजी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १४ अपूर्ण तक है.) ६. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. जेतसी, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंतिः जेतसी० सरखी सुपेम गाथा - ९, ( पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. बाई सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण, ११-१३X२६-४५). १. पे. नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. २१३ मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: बेठे साधसाधनीया रे, अंतिः ए जोंडक हर्षहुलासणी, गाथा-३२. ८. पे नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी राती भोजनरी रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. रतन ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि छठो व्रत रेणीतणोरे, अंतिः रतन हाथ तयार के, गाथा - १०. ७४९४१. साधारणजिन स्तवन महावीरजिन पद व अदार नातरा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, दे., (२५४११.५, For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि देखो रे जिणंदा, अंति: है दीजै सिवपुरवास, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः आज लगी रे प्यारा; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १ तक लिख है. उसके बाद अस्पष्ट, अशुद्ध एवं अपूर्ण वाक्य लिखे गए हैं.) ३. पे. नाम. अढार नातरा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ईसीउं महासती नइ कहीड़, अंतिः वेश्वासुं कड्या. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४९४२. अभयकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, १३४४०). अभयकुमार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८७, आदि: चंदकमल चंदन जिसी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-११ तक है.) ७४९४३. (#) अतीतअनागतादि जिननाम स्तवन, पंचआरा सज्झाय व राचाबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:स्तजिन नाम, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७X४४). १.पे. नाम. अतीत अनागत वर्तमान जिननाम स्तवन, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: सदा जिणचंदसुर ए, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिनहरष० वचन रसाल, गाथा-२४. ३. पे. नाम. राचाबत्तीसी, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७४९४४. (+) पंचपरमेष्ठीगुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४२८-३२). ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. आचार्य के गुण में प्रथम वाडी अपूर्ण से लूखो, चोपडियो हलको भारि आदि का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७४९४५. (+) सीतासती सज्झाय व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११-१६४३७-५०). १. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती गीत, म. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीया छोडी; अंति: जिनरंग० हीयइ धरीजी, गाथा-११. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूरी आभ नाचती जिन; अंति: चिदानंद चित्त धरई, गाथा-८, (वि. पुष्पिकादि नहीं है.) ७४९४६. जिनपद्मसूरि गुरुगुण सज्झाय व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ४४२८). १.पे. नाम. जिनपद्मसूरि गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपद्मसूरि सइ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा . २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७४९४७. पार्श्वजिन स्तवन व ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ज्योतिष संग्रह-,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भाषितं वीर्याद्यौपि, (पू.वि. श्लोक-४६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: क्युं न करे रे; अंति: अविचल सुख करे, गाथा-७. ७४९४८. मेतारजमुनि, श्रावकना बारव्रत व बावीसअभक्ष्य बत्तीसअनंतकाय सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १५४४१). १. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: साधुतणी रे सज्झाय, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. श्रावकना बारव्रत सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रावकना सुणिज्यो; अंति: समयसुंदर नित सांभलो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रेशुद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७४९४९. द्रोपदीसतीरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७४९५०. औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १५४४५). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) ७४९५१. सत्तरभेदी पूजा भावसूचक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४११.५, १२४३४). १७ भेदी पूजा, मु. जीतचंद, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: बाचक कहें जिनचंद, पूजा-१७, गाथा-२८, (पू.वि. पूजा-१२, गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ७४९५२. (#) आदिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२७-३०). आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुणीयो वाता सदा सेव; अंति: ऋषभदासतमासा फजरू मै, गाथा-८. ७४९५३. (#) महावीरजिन स्तवन व पंचमआरा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(२ से ६)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४२४). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा ३ तक है.) २. पे. नाम. पंचमआरा स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ से ५६ अपूर्ण तक है.) ७४९५४. शांतिजिन, चौवीसजिन व आदिजिन आरती, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११,१०४३५). १. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती शांति; अंति: सो नरनारी अमरपद पावै, गाथा-७. २. पे. नाम. चोवीशजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: महाराज की आरती कीजै, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आरती आदि जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. पांचवी आरती अपूर्ण तक है.) ७४९५५. (+) शालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-७, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७४९५६. स्थुलीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १६x४३). स्थूलिभद्र सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-८, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४९५७. (+) चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४४२). चंदनमलयागिरिरास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कलिका-३, गाथा-२६ अपूर्ण से कलिका-५, गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ७४९५८. दशार्णभद्र राजरिषी स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. सांडेराव नगर, पठ.पं. तिलोकविजय; प्रले. पं. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४३४). दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पभणे लालविजय निशदीश, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ७४९५९. गजसुकमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १०४३०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. विजयदानसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीसर जिनवर आवी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के __ पत्र नहीं हैं., गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ७४९६२. पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडल सुणी श्रवण; अंति: खेमकुसल० इण परी कहे, गाथा-१३, (संपूर्ण, वि. समाप्तिसूचक संकेत नहीं है, परन्तु कृति संपूर्ण है.) ७४९६३. झांझरियामुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १३४३१). झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणे सीस नमा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७४९६५. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १४४३९). १.पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चोथो प्रत्येकबुध हे, ढाल-५, (पू.वि. द्वितीय प्रत्येकबुद्ध रास, ___ गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधिदाई सेवक; अंति: पभणे लालविजय निसदीस, गाथा-९. ३. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७४९६६. (+) नंदिषेणमुनि गीत व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३९). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साध्जी न जाई रे; अंति: श्रीजिनराजगमण निवार, गाथा-१०. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रेणी प्रश्नाक्षरा; अंति: (-), श्लोक-१. ७४९६७. जीवकायाऊपरी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४२३). औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तणो मुज ऊपरे; अंति: रंगविजय० दीन दयाल, गाथा-७. ७४९६८. हरिबलचौपाई, अपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २१-१७(१ से ६,१० से २०)=४, ले.स्थल. बीकानेर, जैदे., (२६४१२, १७X४४). हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूरे शंखेसर आसोरे, ढाल-३५, गाथा-८४९, (पू.वि. ढाल-१३, गाथा-१३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) रा For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७४९६९. (+#) वैराग्यशतक टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४५४-५७). वैराग्यशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: तस्मै शांताय तेजसे; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण तक है., वि. मूल श्लोक का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) ७४९७१. (+#) द्वादशव्रत विचार व प्रायश्चित विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६-४२). १. पे. नाम. द्वादशव्रत विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अतिथि संविभाग भंगे, (पू.वि. "पात्रभंगे आचाम्लं" पाठ से है.) २.पे. नाम. प्रायश्चित विचार, पृ. २आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रायश्चित्तमिदं; अंति: (-), (पू.वि. पाठांश- 'बिणा सज्झाय करणे पुरिम० १' तक ७४९७२. कृपण सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. किस्तूर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १८४४३). १.पे. नाम. किरपण की सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कृपण, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: निठ निठ नरभव लह्यो; अंति: आवसी उत्तम करो विचार, गाथा-२४. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनेश मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू श्रीजिनवीर धीर; अंति: जिनेशमुनि० सरण सरणै, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: ए ही मनरामनै पापी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. अयोध्यादि नगर राजा रानी विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अजोध्याना संघराजा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गुणसेन राजा व गुणसुंदरी स्त्री वर्णन अपूर्ण तक लिखा है., वि. संक्षिप्त पाठ दिया गया है.) ७४९७४. श्रावककरणी सज्झाय व औपदेशिकपद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. ३, जैदे., (२५४११,१३४४०). १.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. फकीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मारो मन लाग रह्यो; अंति: फल पावै चंदफकीरी गाय, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनारी परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: परनारी पर बुरी मत; अंति: वातसी कीती आवण देह, पद-२. ७४९७६. सिद्धचक्रजीरी नित्यकृत पूजाध्यानविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १३४३४). सिद्धचक्रयंत्र पूजनविधि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रातः प्रथममेवाथः; अंति: (-), (पू.वि. "उदीच्या श्वेतवस्त्राणि पूजा पूर्वोत्तरामुखी" पाठ तक है.) ७४९७७. शंखेश्वरपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ९४४३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिण; अंति: जिनचंद करमदल जिपतो, गाथा-५. ७४९७८. चैत्यवंदनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १२४२६). For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चैत्यवंदनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर ऋषभनाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४९७९. (+) साधारणजिन स्तवन-वटप्रदनगरवर्णनगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४७-५०). साधारणजिन स्तवन-वटप्रदनगरवर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण से है व ४० अपूर्ण तक लिखा है.) ७४९८०. (#) नेमराजिमती गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ३४४१). नेमराजिमती गीत, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: या गति छारदे; अंति: विनय नमे करजोरी, गाथा-२, (संपूर्ण, वि. प्रारम्भ में चंद्रप्रभजिन स्तवन का मात्र अपूर्ण नाम है.) ७४९८१. (+#) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४४). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२४. ७४९८२. (#) पजुसण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, १२४३२). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण आवीया रे; अंति: हंस नमे करजोडरे, गाथा-११. ७४९८६. (+#) सिद्धार्थ राजा पुत्र महोत्सव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६५-६३(१ से ६३)=२,प्र.वि. अलग-अलग दो प्रकार के पत्रांक दिए गए हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६४३६-४०). सिद्धार्थ राजा पुत्र महोत्सव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पार सुणि जै जैकार, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., महोत्सव में बननेवाले भोज्यपदार्थ का वर्णन अपूर्ण से है.) ७४९८७. (+) कलंकी जन्मपत्री फलकथन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. कोष्ठकयुक्त., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १४४४०). कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा.,रा., गद्य, आदि: मम निव्वाण गोयमा वरस; अंति: वीरवचन प्रमाण छे सही. ७४९८८.(+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. "गंधर्वाश्चलोका भगवतोभाषितम्" पाठ तक है.) ७४९८९. (#) जीवभेदादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,१३४३८). १. पे. नाम. जीव के ५६३ भेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम सात; अंति: भेद ५६३ ए जाणवा. २.पे. नाम. २४ दंडक ५६३ जीवभेद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: सात नरकनो एक दंडक; अंति: दंडके आगति गति जाणवी. ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा जीवभेद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणै; अंति: १५ भेद मनुष्यना लाभै. ४. पे. नाम. कुलकोटि विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकायनी बारै लाख; अंति: कुलकोडि संख्या जाणवी. ५. पे. नाम. १४ गुणठाणे कुलकोडि संख्या, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक कुलकोडि संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै गुणठाणै एक; अंति: लाभै शेष सर्व टली. ६. पे. नाम. १४ गुणठाणे जीवायोनि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १४ गुणस्थानक-जीवायोनि आश्रित, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै गुणठाणै चौरासी; अंति: (-), (पू.वि. "सर्व मिली चौरासी लाख" पाठ तक है.) ७४९९०. (+) जंबूचरित्र व सुभाषितश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: श्रीजंबूचरि., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४४०). १.पे. नाम. जंबुचरित्र, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "इहेव जंबूद्दीवे भारहेवासे" पाठ से "जेणं कारणेणं एसजंबूसंजमंगिहुई" पाठ तक है.) २.पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. चारों ओर हाशिये में लिखा हुआ है. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: आदौ धर्मकुटंबतिचया; अंति: धर्मः सर्व सुखप्रदः, श्लोक-३, संपूर्ण. ७४९९१. (+) धर्मसंग्रहणि प्रश्न, अणंग पंचवाण गाथा व कषादि स्वरूप, अपूर्ण, वि. १९३५, श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ३, ले.स्थल. बंबई, प्रले. मु. केशरीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: धर्मसं० प्रस्न, संशोधित., ., (२६४११.५, १०४४२). १. पे. नाम. धर्मसंग्रहणीप्रश्न सह टीका, पृ. ३७आ, संपूर्ण. धर्मसंग्रहणीप्रश्न, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जइलिंगमप्पमाणं न; अंति: चत्तारि दवेहंपि, (वि. गाथा क्रम अव्यवस्थित है.) धर्मसंग्रहणी प्रश्न-टीका, सं., गद्य, आदि: यदि लिंग द्रव्यलिंगम; अंति: मित्यलं प्रसंगेन. २. पे. नाम. अनंग ५ बाण गाथा, पृ. ३७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दिठी अ१ दिठ पसरो; अंति: असंभावो इसंवाण पणेहो, गाथा-१. ३. पे. नाम. कषादि स्वरूप, पृ. ३७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदिः कषादि स्वरूपं चेट्ठ; अंति: धम्माधम्म सण्णमुवेइ, गाथा-३. ७४९९२. (+#) चैत्यवंदन, स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से७)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ११४३८). १.पे. नाम. मनःपर्यवज्ञान स्तवन, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विपुल मति अनुरूप, गाथा-४, (पूर्ण, पू.वि. आदिवाक्य के प्रारम्भिक कुछ शब्द नहीं हैं.) २. पे. नाम. केवलज्ञानी चैत्यवंदन, पृ. ८अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन चउनाणी थइ; अंति: विजयलक्ष्मी गुण उचरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने प्रगट; अंति: ज्ञान महोदेय गेहरे, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छत्र त्रय चामर तरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७४९९४. पासाकेवली, वर्द्धमानमंत्र व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, ८-१२४२३-३६). १. पे. नाम. पासाकेवली सुकनावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ ए सुकन चिंतवू; अंति: लाभ संदेह नहीं सारा. २. पे. नाम. वर्द्धमान मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: फल मंत्री मुकावीए ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: रवी गुरु मंगल सनी; अंति: लंका जीती राम, गाथा-१. ७४९९५. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १८४५०). For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आरम्भ के कुछ भाग व अन्त के कुछ भाग अन्य प्रतिलेखक ने लिखे हैं.) ७४९९६. (+#) स्थापनाविशेषविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४२५). स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापनाविधि; अंति: तदा राजवश्यं कृत्. स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: थापनानी विधि प्रति; अंति: हुइ तउ राजा वस थाइ. ७४९९७. (+) अष्टमीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२९). अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम दिने आठ मद तजि; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ७४९९९. नियंठा ३६ द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. हुडी: नियंठा., जैदे., (२६४११.५, १८४५०). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १५वेंद्वार अपूर्ण से है व २२वें द्वार तक लिखा है.) ७५०००. (#) उपदेश जिनधर्म उपर दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १८३७, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. मु. सौभाग्यराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३३). जैनधार्मिकदृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामै परभव सुख पामै, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., "आवर्ण योगे देवगुरुनुं दर्शन करी" पाठ से है.) ७५००१. अभिनंदनजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, ६-१०४४०). १. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जिनमुख देख्यां कुमति; अंति: पावत रिद्ध नईय नईरी, गाथा-२. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिनचरणानी; अंति: मोहन अनुभव मागें, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: वाही दिसते उमटि घटाइ; अंति: मल्हारनी केसुरवारे, गाथा-३. ४. पे. नाम. राधाकृष्ण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि: रातडली रमीनै कंता; अंति: नरसी०घणौ थोडी रात रे, गाथा-४. ७५००२. दुषमकाल भाव सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रों की किनारी पर छेद किया हुआ है., दे., (२७४१२, १०४३४). दुषमकाल भाव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक व ५८ अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक है.) ७५००३. (+) जीवभेदविचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३५). १. पे. नाम. जीवभेद विचार, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जघन्यइ १० हजार वरसनु, (पू.वि. "वरसर्नु२ त्रीजी तेउकाय" पाठ से है.) २. पे. नाम. समकित स्वरूप विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: देवतत्व कोहनइ कहीइ; अंति: तेहनइ समकित कहीइ. ३. पे. नाम. जतीना पंचमहाव्रत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वप्राणातिपातविरमण; अंति: राखइ नही खाइ नही. ४. पे. नाम. मिथ्यात्व के २१ भेद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २२१ २१ मिथ्यात्त्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगत; अंति: मुत्तसन्ना २१. ७५००४. (#) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्र.वि. हुंडी: सइयता., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १८४५३). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ७५००५. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १३४३६). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सूखसंपति दायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७५००६. (-) शालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१३(२ से १४)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. दुर्वाच्य., जैदे., (२५.५४१०, १४४४४-४६). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.ग., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ से गाथा ४४४ अपूर्ण तक व गाथा-५०३ से नहीं है.) ७५००७. अकलंकाष्टक स्तोत्र, जैनसाधु लक्षण व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, ११४३१-४७). १.पे. नाम. अकलंकाष्टक स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: मतिः संताडितेतस्ततः, श्लोक-१६. २. पे. नाम. जैन साधु लक्षण-शिवपुराणोक्त, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुडमालिन वस्त्रं च; अंति: नमस्कृत्य हरस्थित, श्लोक-२. ३. पे. नाम. विचार संग्रह-महानिशिथसूत्रे, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सव्वेसिं पावकम्माणं; अंति: (-). ७५००८. (+) गौतम रास, अपूर्ण, वि. १८७१, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, ले.स्थल. राधनपुर, प्र.वि. हुंडी: गौतमस्वामिरा०., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३९). गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: गौतमऋषि आलो सुखवास, गाथा-६६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ७५००९. (+) चारप्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५४). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-१, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५०१०. रोहिणीतप स्तवन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ९-१२४२९-३१). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: जीतमारी मुरत मोहन; अंति: ऋषभदास गुण गेलडी, गाथा-४. ७५०१२. सीमंधरजिनवीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १०४३०). सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुण सीमंधर साहिबाजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ७५०१३. मृगापुत्र व धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. केकींद, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १९४३९). १.पे. नाम. मीरगापुतर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरिवै नगर सुहावणोज; अंति: लीजे नित प्रते नाम, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी सुण वेरागीयो रे; अंति: तुम चेतो चतुर सुजाण, गाथा-१२. ७५०१४. जिनपरिवार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४११.५, ८x२६). २४ जिन परिवार स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानवि०धर्म सनेह रे, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) ७५०१६. पर्युषणनमस्कार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, दे., (२५.५४१२, १४४३३). १. पे. नाम. पजुसण नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. __पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेāजो सिणगार; अंति: आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २.पे. नाम. पजूसण नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहे शुत; अंति: वाणी वनीत्त रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बेनी सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकह चित, गाथा-३. ६.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: वंदू सदा वनित, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामुंसीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोरठदेशे सोहतां; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७५०१८. (+#) संबोध प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ८४४८). संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३२० अपूर्ण से १३५७ अपूर्ण तक संबोध प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५०१९. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२८x१२, ९४३१). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७५०२०. (+) वीरजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १०४३४). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन, आ. उत्तमसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उतम० संघने जयकार ए, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चंदाजी श्रीमिदर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५०२३. (+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १४४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २२३ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मतिज्ञान स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से खमासमण दूहा-१६ अपूर्ण तक है.) ७५०२५. छ आवश्यक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४१). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसइंजिन चीतवीं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ७५०२६. (+) ८४ जीवयोनी क्षमापना व संथारग पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९२६, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १४४३०). १.पे. नाम.८४ जीवयोनी क्षमापना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: दुमीया तेवि खामेमि, अंक-८४, (वि. पाठ-२ से ६६ पत्र-१अपर व ६७ से ८४ तक १आ पर लिखकर पूर्ण किया गया है.) २. पे. नाम. संथारग पचखाण, पृ. १आ, संपूर्ण. संथारा पच्चक्खाण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारम्मि अणते परि; अंति: चरण सरणं ममो, गाथा-१२. ७५०२७. गुर्जरदेश गझल व वटपत्तनगर भास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १६x४५). १.पे. नाम. गुर्जरदेश गझल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुर्जरदेश गजल, मु. न्यानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो दिलरंजन साहिबा; अंति: न्यान० पूरो संघनी आस, गाथा-१७. २. पे. नाम. वटपत्तनयर भास, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वटपद्र नगर भास, पुहि., पद्य, आदि: सेवकने वरदायिनी भगनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७५०२९. कल्पसूत्र व्याख्यान ३ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-६(१ से ६)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०.५, ६x४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. वाचना-३ पूर्णकलश स्वप्न वर्णन __अपूर्ण से त्रिशला माता जागृत हुए प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ७५०३०. (#) वीरजिन २७ भव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४४८). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से ४६ अपूर्णतक है.) ७५०३१. (+) पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३६-३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "तनिंदामि गरिहामि तिविहं तिविहेण" पाठ से "रोएमो फासेमो अणुपालेमो" तक है.) ७५०३२. (#) संसारस्वरूप सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५४११.५, ९४२५). औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरने वीनवें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक-८ के बाद १,२ गाथांक लिखा है) ७५०३३. नवकार स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १७X४०). १. पे. नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो ऊठो भवि; अंति: वरदायक लाधो वदे, गाथा-१८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खेमकलश, मा.गु., पद्य, आदि: महीमंडण शुण श्रवण; अंति: खेमकुसल० इण परी कहे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५०३४. १२ भावना, अपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, ले.स्थल. खंभायत, पठ. श्रावि. अभयकुयर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२,११४३५). १२ भावना, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरस्वामी जयो धर्म; अंति: मुक्ति० प्रेक्षिका, भावना-१२, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से __गाथा-४४ अपूर्ण तक नहीं है.) ७५०३५. समकीत ६७ बोल सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४१२,१२४२६-२८). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७५०३६. (#) जिनकुशलसूरि, जिनचंद्रसूरि आदि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ११४३२-४२). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिस्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसहजिणेसर सो जयो: अंति: वंछित फलमुझ हुवो ए, गाथा-१८. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि लघुस्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ५, शनिवार, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. पं. कमलसुख (परंपरा ग. सत्यमाणिक्य वाचक); गुपि.ग. सत्यमाणिक्य वाचक; पठ. श्राव. हुकमीचंद पटणी चोपडा, प्र.ले.पु. सामान्य. जिनकुशलसूरि पद-लघु, मा.गु., पद्य, आदि: दोलतदाता द्यो सुख; अंति: सेवक० सुधार्या राज, गाथा-३. ३. पे. नाम. दादा जिनचंद्रसूरि स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरिस्तवन, क. रत्ननिधान कवि, पुहिं., पद्य, आदि: कामित कामगवि सुगुरु; अंति: मेरो रत्ननिधान कवि, गाथा-५. ४. पे. नाम. सद्गुरु स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, क. आलम, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल करो भरपूर कुशल; अंति: विनवे श्रीजिनचंदसूरि, पद-२. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, पुहिं., पद्य, आदि: कुशलगुरु का बालका; अंति: पग पग मंगल होत, गाथा-२. ७५०३७. (+) स्तवन, सज्झाय व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२६(१ से २६)=४, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४३१). १. पे. नाम. सेव॒जा स्तवन, पृ. २७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: इंगर टाढा रेडूंगर; अंति: सफल होवा अवतारोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २७अ-२९अ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणु; अंति: हूज्यो तास प्रणाम रे, गाथा-२३. ३. पे. नाम. धना सज्झाय, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: सहजसुंदरनी वाणी, गाथा-१५. ४. पे. नाम. ऋषभदेव चैत्यवंदन, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर नमुं; अंति: सुभ वंछित फल लीध, गाथा-३. ५.पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३०आ, संपूर्ण.. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर आदि; अंति: धणी रुप कहे गुणगेह, गाथा-३. ६.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५०३८. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पालिताणा, जैदे., (२६४१२, १०४३५). सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक सकलचंद दया करो, गाथा-३३, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., अंतिम ढाल की गाथा-५ अपूर्ण से है.) ७५०३९. अढारपापस्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२७४१२, १३४३८). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सज्झाय-२ गाथा-५ अपूर्ण से सज्झाय-१० गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५०४१. दीक्षा ग्रहण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ९४२६). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "इच्छाकारेणसंदिसह सचित्तभि" पाठ तक है.) ७५०४२. (+#) वीर थुई अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ६४५०). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंबू सूधर्मस्वामि; अंति: ते सुशील पणौ पामइ. ७५०४३. (#) गोडीजी छंद व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). १. पे. नाम. गोडीजी छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जित कहे हरषे सदा, गाथा-२३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ७५०४४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५५-५१(१ से २७,२९,३२ से ५४)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२, १५४३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-२ गाथा-७२ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-१२ दोहा-७१ तक है, बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ७५०४५. (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., जैदे., (२७७१३.५, १२४३२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-७ से है व ढाल-२ गाथा-३ तक लिखा है.) ७५०४६. बृहद्शांति व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, पठ.पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४३१). १.पे. नाम. बृहत्शांतिस्मरण स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. अंतिम दो गाथाएँ अपूर्ण मात्र २. पे. नाम. अक्षयनिधितपगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षय; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ७५०४७. (+) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पूजा-१ अपूर्ण से पूजा-३ गाथा-२ व पूजा-५ अपूर्ण से पूजा-७ गाथा-२ तक है.) ७५०४८. (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४४२). स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-२२ गाथा-१ अपूर्ण से कलश गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ७५०४९. २४ दंडक २९ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १४४४४). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अति: (-), (पू.वि. "नारकीने दंडके प्रथम" बोल तक है.) ७५०५०. राजसिंघ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१६(१ से १६)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११.५, १६x४०). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२० गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-२४ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७५०५१. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२, १२४३५). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो सुणो सरसति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१९ तक है.) ७५०५२. (#) ब्रह्मविलास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११.५, १०x४०). ब्रह्मविलास, श्राव. भगोतीदास लालजी ओसवाल, पुहिं., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रथम प्रणमि अरहत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रावक की स्तुति अपूर्ण तक है.) ७५०५३. (+) संग्रहणीसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से १५ तक है.) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५०५४. (+) १८ पाप स्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४५०). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वाचक जस इम भाखेजी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., नौवें पापस्थानक अपूर्ण से है.) ७५०५५. साधारणजिन स्तुति की अवचूरि, शब्दरुपावलि व साधारण संस्कृत प्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १५४४१). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति की अवचूरि, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, वा. मेघविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)मेघोलिखत्वृत्तिं, (२)मेघो० विमलधीहेम्नः, (पू.वि. काव्य-६ की अवचूर्णि अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शब्दरूपावलि, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: कः१ कौर के३; अंति: परतः पुल्लिंगवत्. ३. पे. नाम. व्याकरण अपूर्णव छूटक पन्ने , पृ. ४आ, संपूर्ण. सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७५०५६. (+) चंदनमलयागिरिरास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ३,५,७ से ८)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४-१६४३३-३५). चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से ६५ अपूर्ण तक, १०५ अपूर्ण से १२४ तक व २१७ अपूर्ण से २४३ अपूर्ण तक है.) ७५०५७. नववाडी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७५०५८. साधुनुं मंगल, गुरु स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ४,६)=२, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२, १०४२५). १.पे. नाम. साधु-मंगल, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मंगल स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मविजय कहेइ ए, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुरुस्तुति ७ वार, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु सारद रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. चार मंगलपद, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: भवजलनिधि तरोए, गाथा-६, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण है) ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनमां आवजो रे नाथ; अंति: ज्ञानविमल सुजस जमाव, गाथा-७. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनतारणतीरथवंदो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५०५९. जिनस्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, २३४५७). जिनस्तवन चौवीसी, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनराजनोरे; अंति: (-), (पू.वि. २१वें तीर्थंकर नमिनाथ स्तवन अपूर्ण तक है.) ७५०६०. (+) २२ परिषह व १२ भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र २ एवं ३ पर पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४४३). १. पे. नाम. द्वाविंशति परीषह सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, आदि: खुहा १ पिवासा २ सी ३; अंति: इइबावीसं परीसहा २१, संपूर्ण. २२ परिषह नाम-टीका, सं., गद्य, आदि: क्षुधा वेदनी परिषह; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कृति ___ संपूर्ण है परंतु समाप्तिसूचक चिह्न नहीं दिया गया है.) २.पे. नाम. बार भावना, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अन्यत्व भावना ते छे; अंति: बोध भावना कहीजै. ७५०६१. (+) प्रकीर्णक सह टबार्थ, गुरु उपमा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ५-९४४९-५५). १.पे. नाम. कुसलाणुबंधि झयण सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सा० सपाप जोग तेहनी; अंति: हेतु मोक्षना सुखनउ. २.पे. नाम. गुरु उपमा विचार, प्र. ३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपुजे परमं पुजे; अंति: ३६ गुण विराजमान. ३. पे. नाम. नमिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: द्वारापुर सै खेलण; अंति: ऐसा ध्यान लगाया छै, गाथा-६. ७५०६२. अनुत्तरोववायदशांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५४११, १३४३६-३९). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जहा धम्मकहाणेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (पू.वि. वर्ग-१०, अध्ययन-२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५०६३. नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५,११४२६). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीण द्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ७५०६४. बीजतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१२, १०४३६). बीजतिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम दो ढाल में से प्रथम ढाल गाथा-११ अपूर्ण से अंतिम ढाल गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५०६५. १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१२, १२-१४४३८). १२ भावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५०६६. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२४३३). श्रीपालराजा चरित्र*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७५०६७. (#) गुणावलि लेख, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ११४२९). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७५०७०. बारभावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, ११४३२). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से ४३ तक है.) ७५०७१. (+) विचारसार प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ३-५४३५-३९). विचारसार प्रकरण-हिस्सा गुणस्थानक ५३ भाव, ग. देवचंद्र, प्रा., पद्य, वि. १७९६, आदि: तिगपणचउतिग भावा तिअड; अंति: छगपनरभंगगइविभेएणं. विचारसार प्रकरण-हिस्सा गुणस्थानक ५३ भाव का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मूल भाव पांच छै उपशम; अंति: भांगा गति भेदे जाणवा. विचारसार प्रकरण-हिस्सा गुणस्थानक ५३ भाव का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बालावबोध टबार्थ के साथ-साथ चल रहा है.) ७५०७२. (+) शेर्बुजय कल्पसह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ६x२५). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) शत्रुजयतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५०७३. वेदादिमध्ये जिनधर्म वृत्तांत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२.५, ५-१४४३९-४५). ऋषभादिजिन संदर्भश्लोक-वेदपुराणगत, सं., प+ग., आदि: वेदेषु जिन प्रमाण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शिवपुराण में जिनमत कथा का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७५०७४. त्रिलोकसारविचार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१३(१ से २,४ से १४)=२, प्र.वि. पत्रांक- १५आ पर प्रतिलेखक ने "ऊँचो विख्यात २ मध्ये जंबूद्वीप अनादि १९०" लिखकर छोड़ दिया है., जैदे., (२५.५४१२,१०४३०). For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: धरी मूगते जाय, गाथा-२०५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-६ अपूर्ण तक व अंतिम ढाल की गाथा-४४ अपूर्ण से है.) ७५०७५. गृहस्थधर्म स्वरूप, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४११.५, १३४४०). गृहस्थधर्म स्वरूप, प्रा.,सं., प+ग., आदि: सम्यक्त्वमूलानि पंचा; अंति: (-), (पू.वि. वीतराग देव निरूपण अपूर्ण तक है.) ७५०७६. (#) नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३२). नवकार रास, मु. दमणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तो रास भणु नवकारनो, गाथा-२२, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ७५०७७. (#) रतनपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १७X४८). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-६ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-४ अपूर्ण तक एवं खंड-३ ढाल-१७ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१९ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७५०७९. (+) पुणयकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६x४२). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्त; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम वाक्य अपूर्ण है.) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संपूर्ण परमश्व इंद्र; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७५०८०. (+) विवाहपन्नत्ति स्वप्नाधिकार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडीः सुपनानो विवाहप., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ७X४३). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१६ उद्देश-६ स्वप्नाधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. छद्मस्थ काले वीरजिन दृष्ट १० स्वप्न में से प्रथम स्वप्न फलादेश अपूर्ण से स्त्री-पुरुष द्वारा दृष्ट स्वप्न-७ अपूर्ण तक है.) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१६ उद्देश-६ स्वप्नाधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५०८१. (#) भक्तामर स्तोत्र के अर्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १८४५२). भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. काव्य-१०वें के अर्थ से १३वे का अर्थ अपूर्ण तक है., वि. मूल पाठ प्रतिकात्मकरूप से दिया गया है.) भक्तामर स्तोत्र-कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५०८२. १६ सती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १०४३२). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदीनाथ आदेरे जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७५०८३. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३९). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अरिहंत पूजा अपूर्ण से आचार्य पद पूजा अपूर्ण तक है.) ७५०८४. पुन्यप्रकाश स्तवन व चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६८, माघ कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२,१०४३८-४३). १. पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुन्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) । २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन, मु. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिता १ माता २ पुर; अंति: च्यां केसर अति आणंद, गाथा-१३. ७५०८५. (+) ८४ लाख जीवयोनी विचार, कालचक्र विचार व नरक विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१८(१ से १८)=४, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४९). १.पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि विचार, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चउदलाख मनुष्य, (प.वि. ४ लाख पंचेन्द्रिय तिर्यंच से है.) २. पे. नाम. जीवनी कुलकोडि, पृ. १९अ, संपूर्ण. कुलकोटि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बार लाख कुलकोडि; अंति: साढासतागुंलाख कोडि. ३. पे. नाम. उत्सर्पिणीकालना छ आरा, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण.. ६ आरास्वरूप विवरण*, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु आरु सूसमसूसम; अंति: करीनइ कालचक्र कहीइ. ४. पे. नाम. सात नरक पृथ्वी अधिकार, पृ. १९आ-२२अ, संपूर्ण. नरक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली रत्नप्रभा; अंति: सम्मामिच्छदिट्ठी छइ. ५. पे. नाम. नरकपृथ्वी से अलोक अंतर विचार, पृ. २२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभा पृथिवी थकी; अंति: पृथवी थकी अलोक छइ. ६. पे. नाम. नारकी क्षुधा-तृषा वेदना, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नारकी वेदना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: को एक जग विश्वनइ; अंति: (-), (पू.वि. उष्णवेदना तक है.) ७५०८६. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२.५, ११४३६). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आया रे सेर; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा __ अपूर्ण है.) ७५०८७. जिन स्तुति, त्रण चौवीसी, जिनचैत्यप्रतिमा संख्या व नवकार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४५०). १. पे. नाम. जिनस्तुत्यादि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २. पे. नाम. त्रण चोवीसी जिन नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३चौवीसी नाम, सं., गद्य, आदि: श्रीनिर्वाणजी; अंति: अनंतवीर्यजी २४. ३. पे. नाम. शाश्वतअशास्वतजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वतअशाश्वतजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन चौवीसी बहत्तरी; अंति: कोडि अनंत फल दीठे. ४. पे. नाम. नवकार सह बालावबोध, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पद-३ तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतजी अठार; अंति: (-). ७५०८८. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, ११४२९). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तवन गाथा-७ अपूर्ण से चंद्रप्रभजिन स्तवन गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५०८९. पासा केवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४११, १३४४७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ ए सुकन घणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाशा सं. १४४ तक लिखा है.) ७५०९०. (+#) तत्त्वबावनी, अपूर्ण, वि. १९००, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. झूठा, प्रले.पं. गुलाबविजय; पठ. मु. हुकमविजय; पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, ११४३१). For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामस्यौ इति तत्वं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गुरुदत्त को चारित्र धर्म पालने की प्रेरणा के प्रसंग से है.) ७५०९१. (#) गौतमगणधर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४४४). गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदने वंदीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६२ तक है.) ७५०९२. चौवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१२, १३४३४). २४ जिन स्तवन, आ. विशालसोमसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनेसर वंदीइ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सुमतिजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५०९३. आत्मनिंदा भावना, अपूर्ण, वि. १८८७, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२४४१२, ११४२७). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सो नर सुगुन प्रविण, (पू.वि. चंद्रावत राजा का वर्णन अपूर्ण से है.) ७५०९४. बीसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६). २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनरनो नहि पार रे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., युगमंधरजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५०९५. दीपावलीपर्व देववंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:दीवालीना देव, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३१). १. पे. नाम. दीवालीपर्व देववंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: कहें नय तेह गुणखांण. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मुरति महावीर; अंति: जिनशासनमां जयकार करे, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर वीर; अंति: गुण पुरो वांछित आस, गाथा-४. ४. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७५०९६. मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ७५०९७. स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. सुरत, प्रले. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ६४२७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मनसः सदृशः शांतये मे, श्लोक-९९, (पू.वि. अंतिम स्तुति अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में प्रतिलेखक ने सोमप्रभसूरि को कर्त्ता के रूप में उल्लेख किया है.) ७५०९८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११४३१). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., सामायिक पारने के सूत्र अपूर्ण से है.) ७५१००. (+) १४ गुणस्थान ४१ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १९४४८-५०). १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम लक्खण ठिइ अंतर; अंति: पहले वाले अनंतगुणे. ७५१०१. व्याख्यानश्लोक संग्रह व कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ६४१८-२०). For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. स्थविरावली चरित, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वैशाखमासे १३०० किरणा भवति तक लिखा है.) २. पे, नाम, कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, पृ. ४आ, संपूर्ण, कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, टीका प्रस्तावनागत "श्रीगुरुप्रसादात अर्थः क्रियते तक लिखा है.) ७५१०२ (+) सूक्तमाला अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैदे., (२६X११, ११X३३). (पू.वि. सूक्तमाला मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४ आदि सकलसुकृतवल्लि, अंति: (-), (पू. वि, श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) " ७५१०३. (+) आवकआराधना, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. दे. (२६४१२, १७४३९). श्रावकाराधना, सं., प+ग, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रपंपण; अंति: (-), (पू. वि. १० हजार उत्कृष्ट आयु प्रसंग तक है.) ७५१०५. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. १. पे. नाम. कल्याणमंदिर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक (२६४११, १५X४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे नाम, विमलमंत्रीश्वर रास, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, वि. १५५९, आदि: सरसति दई मति वागु अंति: (-), (पू. वि. गाधा १७ अपूर्ण तक है.) ७५१०६. (+) विविध तप संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., ( २६११, १५-१७५८). विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: अशोकवृक्ष तप १ आसो अंति: (-), (पू. वि. ज्ञानदर्शनचारित्रतप अपूर्ण तक है.) ७५१०७. सुखविपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) १, दे., (२५.५x११.५, १३४५६). יי विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदिः (-); अंतिः सेसं जहा आयारस्स (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-६ अंतर्गत "पियचंदोराया सुभद्दादेवी" पाठ अपूर्ण से है.) ७५१०८. पोसाविध स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गंगाविसन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, ११x२७). पौषध स्वाध्याय, ग. लाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलि समरस आणीयै; अंति: क्षय करमनी कोडी रे, गाथा-१४. ७५११०. (+) सुखविपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X११.५, १७४४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-). ( पू. वि. प्रारंभिक कुछ अंश तक है.) ७५१११. (+) ६२ मार्गणा १०३ बोल यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२६.५x११.५, १४४३४). १०३ जीव भेद विचार- ६२ मार्गणा यंत्र, रा. पं. आदिः १ समय जीवमांही २ नरक, अंति (-) (पू.वि. "निश्वमाही "" " २३ सनातक माही १५ " पाठांश तक लिखा है.) ७५११२. कल्पसूत्र का वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३८-३६ (१ से ३६) = २. पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२६.५X११.५, ९X३० ). For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २३३ कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अछेरा-६ अपूर्ण से चमरेंद्र को उत्पात न करने की चेतावनी प्रसंग तक है.) ७५११३. सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध-१-मार्गाध्ययन-११, संपूर्ण, वि. १९७३, आषाढ़ शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १७४४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७५११४. महावीरजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४११.५, १०४३१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धरणेंद्रा करे सेवना; अंति: धर्मचंद्र०लहे सोयरे, गाथा-५. ७५११७. सझाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. मध्य फुल्लिका में स्वास्तिक, श्री व ह्रीं चित्रांकित है., जैदे., (२६.५४१२, १५४४२). १.पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:धन्ना का सिज्झाय. धन्ना अणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गाया हे मनने गहगही, गाथा-२२, (पू.वि. मात्र अंतिम अपूर्ण २२वीं गाथा है.) २. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो रिष बंदीये; अंति: विद्या० निस्तार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ऋषभदेव स्तवन. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव; अंति: बहु सुख केरि बगसिस, गाथा-१०. ४.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन-१७वी ढाल, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आदिनाथ स्तवन. श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ७५११९. (#) शालीभद्रधन्ना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ३९-४१x१५-२०). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरीने; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीरस्वामी के सामने अभिग्रह एवं शिला पर संथारा करने के प्रसंग तक है.) ७५१२०. (+) सिद्ध स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडीः सिद्ध स्तुति., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, १६४३७). औपपातिकसूत्र-सिद्ध स्तुति गाथा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: कहिं पडिहया सिद्धा; अंति: चिट्ठति सुहं पत्ता, गाथा-२२. ७५१२१. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचौवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: (-). ७५१२३. (+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१३४४१). For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " साधुआवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं; अंतिः (-), (पू. वि. पुक्खरवरदीवडे सूत्र अपूर्ण तक है.) ७५१२४. (+) नवकार मंत्र, अछेरा गाथा व भव्याभव्य जीववर्णन गाथा, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे, ३, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, १३x४७). १. पे नाम. नवकार मंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र, शाखत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं, अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार श्रीअर; अंति: भणी सिद्ध वडा कहियइ. २. पे. नाम. अछेरा गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण २४ जिन १० आश्चर्यवर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदिः उवसगर गब्भहरणंर; अंतिः जिणिंदस्स तित्थमि, गाथा ५. ३. पे. नाम. भव्याभव्य जीववर्णन गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उत्तमनर६३ पंचुत्तर५; अंतिः अभव्वजीवा न पावंति, गाथा-५. ७५१२५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४५ (१ से ४५ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्रले. पं. खुस्बालविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. व्याख्यान का किंचित् पाठांश संस्कृत में भी है., जैवे. (२६.५x११.५, १३x४२-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. महावीरजिन जन्मतिथि- मास समयदर्शक सूत्र से जृंभकदेवों द्वारा धनवृष्टि सूत्र अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा", मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५१२६. (४) कल्पसूत्र - अरिष्टिनेमि चरित्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से २४) २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १७x४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. "तेणं कालेणं तेणं समरणं अरिहा अरिष्टनेमि पंचचित्ते हुत्था" सूत्र अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं तथा "अरिहा अडिनेमि चौपन्नराइंदियाइं० तस्सणं आसोय बहुलस्स" अपूर्ण सूत्र तक लिखा है.) कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि: (-) अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व " प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७५१२७. (#) सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २० - १९ ( १ से १९ ) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १६X३९). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: एम भणे आनंदपूर, ढाल - २१, गाथा-५१७, (पू. वि. डाल १९ गाथा ७९ अपूर्ण से है.) ७५१२८. बलिराजर्षि कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४८ (१ से ४८ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जै... (२६.५११.५, १९४५४). बलिराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बलीराजा द्वारा केवली भगवंत की देशना का श्रवण सं अपूर्ण से चंद्रमौली राजा सन्मुख बलिराजर्षि आगमन कथन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७५१२९. (४) आलोयण विधि, संपूर्ण वि. १७९६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, सीरोही, प्र.पं. दलपतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजीराउला पार्श्वनाथ प्रसादात्. तप, उपवास आदि का यंत्र संलग्न है., अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५X११, १२X४५). आलोयणा विचार-आयु अनुसार, मा.गु., गद्य, आदि: वरस वरस प्रतै पांच; अंति: २८ वरष पछी सज्झाय व०, (वि. आलोयणा कोष्टक भी दिया गया है.) ७५१३०. मृगापुत्रसाधु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. यही कृति पत्र - १ अ पर गाथा - १ से ६ लिखकर छोड़ दिया है तथा पत्र-१आ से पुनः शुरु करके सम्पूर्ण लिखा है., जैदे., (२६.५X११, १०X३८). For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २३५ मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुग्रीव सोहामणो; अंति: खेम० सुध प्रणाम हो, गाथा-१२. ७५१३१. (+) श्रीपालराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. की चार पैसा., संशोधित. कुल ग्रं. श्लोक१६, दे., (२७.५४१३,१०४३८). नवपदमहिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता मया करो; अंति: सती नामे आणंदोरे, गाथा१२. ७५१३२. सुतिक अधिकार व छींक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४१२.५, १३४४०). १.पे. नाम. सुतिक अधिकार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घेरे जनम थाय; अंति: ग्रंथ मै कह्यौ छै. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: छमछरी चउमास पाखी; अंति: द्रुतं द्रावयतु वः. ७५१३३. (+) नमिराजर्षि ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नमीरा., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४२९). नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-११ तक है.) ७५१३४. (+) २४ जिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चईतवंदनप. प्रतिलेखन पुष्पिका में साधु कल्याणविमलजी उपगारर्थे ऐसा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १०४३४). २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर संभव; अंति: धर्मसिंह० करो कल्याण, गाथा-७. ७५१३५. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२८x१२, १४४५१). आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विबुहहियामयदिट्ठि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७५१३६. (+-) पर्युषणपर्व सज्झाय व धार्मिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:सझाय., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x११.५, ११४३०). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मतिहस नमै करजोडिरे, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक धार्मिक श्लोक सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्र पूजा गुरु; अंति: नृजन्मवृक्ष सफलानिम, श्लोक-१. श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा करवी१; अंति: सफल करवो मनने वीषई. ३. पे. नाम. श्रावक षटकर्म श्लोक सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्रावक षट्कर्म श्लोक, सं., पद्य, आदि: देवपूजा गुरुपास्ति; अंति: षट्कर्माणि दिनेदिने, श्लोक-१. श्रावक षट्कर्म श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवपूजा त्रिकाल करवी; अंति: दिनदिन प्रते साचववा. ७५१३७. (+) सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सर्वार्थनी सझाय., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १३४३३). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसोरे, गाथा-१६. ७५१३८.(+) आलोयण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, १०४३६). श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: भोगवे सर्व उपवास १५, (पू.वि. "सुवावड करे उपवास २" आलोयणा पाठ से है.) For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५१३९. (#) आदिजिन स्तवन-आलोयणागर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १२४४८). आदिजिन स्तवन-आलोयणागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से ४३ अपूर्ण तक है.) ७५१४०. सिद्धाचल स्तवन व अष्टप्रकारीपूजाविधि छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२, १२४३६). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुंकरीये; अंति: पद्म कहें भवतरिइ, गाथा-१०. २.पे. नाम. अष्टप्रकारीपुजाविधि छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिनाथनी पूजा; अंति: प्रीतविमल मन उल्लास, गाथा-१३. ७५१४१. (+) पुन्यप्रकाश स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२,१४४३८). १.पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८५९, वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, ले.स्थल. पालनपुर. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२, (पू.वि. मात्र कलश की गाथाएँ हैं.) २.पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय-सोगकाठीयो नवमो सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. झुमखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. १३ काठिया सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. ऐवंतिसुकमाल सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीये; अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा-९. ७५१४२. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १०४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन चरित्र अंतिम निर्वाण प्रसंग अपूर्ण मात्र है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५१४३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२७ ११.५, ४०x२६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साहम; अंति: नरह्यो लाभनो लाछो, गाथा-७. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभुना नाम; अंति: मान० मुको बीजो वाद, गाथा-५. ३.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेश्वर; अंति: पदमविजय० अक्षय अभंग, गाथा-७. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पास; अंति: रंग सदा शिव सुखदानी, गाथा-५. ६.पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुतुज दरिशण; अंति: वरस मान लह्यो एकताने, गाथा-७. ७. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतर्यामी सुणो अलवेस; अंति: जिनहर्ष सागरथी तारो, गाथा-५. ७५१४४. (#) कर्पूरमंजरीचौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४५). कर्पूरमंजरी चौपाई, पं. मतिसार कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण से ९३ अपूर्ण तक है.) ७५१४५. (+#) चंपकवेष्ठि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:चंपक रास., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३८). चंपकश्रेष्ठि रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३६ से ४५७ अपूर्ण तक है.) ७५१४६. (#) स्तवन व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सातिजिणेसर साहिबो; अति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. पंचमहिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गह, पुहिं., पद्य, आदि: पंच वडे संसार पंच; अंति: गद कहे० पंचकनसुंडरै, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. गोपालदास वेगड, पुहि., पद्य, आदि: जिहां नहीं बोहली; अंति: गोपाल राखे कदे तहां, पद-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिहाँ नहीं नाटक नृत; अंति: राखो तो राखजो कृष्णा, पद-४. ७५१४७. जिनप्रतिमा अधिकार सज्झाय व नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२.५, १४४५५). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा अधिकार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) २.पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजी एक राजुल नार; अंति: जिनदास सुणो जिनवर रे, गाथा-५. ७५१४८.(-) कंसकृष्ण विवरण लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२, १४४२६). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: विनयचंद० मनही आणदे, गाथा-४३. ७५१४९. (+#) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १९४७७). कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सागरचंद्रसूरि के प्रसंग से जीव आयुष्यवर्णन प्रसंग तक है.) ७५१५०. (#) चुंदडी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, २१४५७). १. पे. नाम. शीलविषये चुनडी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शील, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मानव क्षेत्र छे भलो; अंति: हीर०पामीजे भव पार रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबीडा तुंधोजे मननु; अंति: सीखडली अमृतवेल रे, गाथा-६. ७५१५१. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवन, जैदे., (२७.५४१२,११४३१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मोरति श्रीपास; अंति: नविनधि आणंद होइ घणि, गाथा-११ ७५१५२. महावीरजिन दससुपन ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: दससुपना बीर देख्या., दे., (२७.५४१२, १८x२५). महावीरजिन ढाल-१० स्वप्नगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद चोबीसमा; अंति: धम्मो मंगल छे मोटको, ढाल-३, गाथा-३६. ७५१५३. (+) नंदिषेणमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रिणी, प्रले. मु. माणेकलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नंदषेण कुम., संशोधित., दे., (२७.५४११, २३४३८). नंदिषेणमुनि चौढालियो, रा., पद्य, आदि: नंदिषेण कुमरनी वारता; अंति: पोहतो मोक्ष मझार, ढाल-४, गाथा-७४. ७५१५४. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, अन्य. मु. सिरदार; आ. जयाचार्य; मु. भारमल ऋषि (स्थानकवासी); आ. जीतमल ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी खंडित है. ज्ञाता अंग जैसा दिखता है. पत्रांक एक ओर १६ एवं दूसरी ओर १३ लिखा है., दे., (२७.५४१२, २८४४४). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जस कीरत पांमै, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., साधु के विविध उद्यम बोल से है.) ७५१५५. (+) ६४ इंद्र ऋद्धि परिवार कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १४४३९). ६४ इंद्र ऋद्धि परिवार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७५१५६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३७, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. कनैयालाल ऋषि; अन्य. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पडिक्कमणौ साधमुनिराजरो., दे., (२७४११.५, २२४७७-८०). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: कामस्स इम कहिणौ, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., अप्पाणं वोसरामि सूत्र अपूर्ण से है.) ७५१५७. (+) यशोभद्र वार्ता, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सिरैमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जसोभद्रनो व., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२, २२४४२). यशोभद्र वार्ता, म. गणपति ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: हो परम गुरु पसाय, ढाल-४, गाथा-७०. ७५१५८. (+#) एलापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: एलापुत्रनो., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, २०४३०-३५). एलापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालेने तिण समे; अंति: धिन एलापुत्र मुनि, ढाल-४. ७५१५९. (+) चोवीसजिन स्तुति व सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४११.५, २३४२७). १.पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. साधु ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचार्य; अंति: साधजी० पांच पद चोवी, गाथा-७. २.पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ___ वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ७५१६०.(+) साढापचवीस आर्यदेश नामादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, २३४३९). १.पे. नाम. साढापचवीस आर्यदेस नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेश १ अंगदेश २; अंतिः वरस० केकइअ० सेवीयान०. २. पे. नाम. अठावीसलब्धि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदिः आमोसही विप्पोसही, अंति: लब्धिधारकाय नमः. ३. पे. नाम. उत्सर्पिणी के जीव तीर्थकर होसी, पृ. १अ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी जिन आगमन गति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेणिकनो० सुपासनो०; अंतिः जी० सइबुद्धिनो ०. ४. पे नाम, अनागत चोवीसी नाम, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, २४ जिन नाम- अनागत, मा.गु., गद्य, आदि पद्यनाथ १ सुरदेवर अंति: २४ भद्रनाथजी. ५. पे. नाम. अनागत चक्रवर्त्ती बलदेवादि बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: सांइ चा० मांइ च० वनो; अंतिः चारत तप निर्मला. . ७५१६१. (+) मृगापुत्रनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९४१ वैशाख शुक्ल १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रलिलेखक नाम हेतु मात्र के. हा लिखा है., संशोधित., दे., (२८x१२, १३x४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणुं; अंतिः सिंहविमल० प्रणाम रे, गाथा-२४. ७५१६२. (+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ७ प्रले. सदाशंकर जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे., (२७.५४१२.५, १५४५२). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीशत्रुंजो सिणगार अंतिः आराधीइ आगमवाणी वनीत, गाथा ३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीदेवाधी अंतिः प्रवचन वाणी विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः कल्पतरुवर कल्पसूत्र, अंतिः उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा- ३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि जिननी बेहन सुदर्शना अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा ३. मु. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २३९ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंतिः सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा- ३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः पर्वराज संवच्छरी दिन, अंति: वीरने चरणे नामु शीश, गाथा - ३. ७५१६३. चार शरणा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२९x११.५, १७४४४). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. शरणा-३ अपूर्ण तक है.) ७५१६४. (+०) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३६, अपूर्ण, वि. १८६२ माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४) = १, प्रले. सा. चंदु आर्याजी (गुरु सा. चमना आर्याजी); गुपि. सा. चमना आर्याजी (गुरु सा. कुसाला आर्याजी); सा. कुसाला आर्याजी (गुरु सा. धना आर्याजी); पठ. सा. सुंदरा आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पोससुद व महाबुद१ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२, २०४७). उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: द्धिय समए ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२२४ अपूर्ण से है.) ७५१६५. विजयशेठशेठाणीरी सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७.५X१०.५, १२X४१). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सिल तणी रे महिमा; अंति: द्रवडे सु भाई, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५१६६. पनरतिथि सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (२८x११.५, १०x२९). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: रंगवीजय चढते रंगे, गाथा-२३. २. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरि स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि गहूंली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहेली सहु मिलि; अंति: वल्लभ० तपगछ राणा, गाथा-६. ३. पे. नाम. जंबूकुमार स्वाध्याय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल नयर सोहामणउ नयरी; अंति: सुंदरी आठ न गंजिओ, गाथा-२१. ७५१६७. (+) गतागति भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १४४३८). २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, आदि: (१)देवा अडनउ असयं चउदस, (२)ए नर परमाधामी; अंति: मोक्षने विषे जाय. ७५१६८.(#) स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२७.५४१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: पूर्वे बाजोट उपरि; अंति: पछै केसरनी पूजा कीजै. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवल भास्करभासन: अंति: मोक्षसोक्षं श्रयंति. ढाल-८, श्लोक-९. ७५१६९. (+) पंचसंग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४२५-४२१(१ से ४२१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. ४२२ के अलावा पत्रांक अनुमानित हैं., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १५४४५). पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८९८ से ९०७ अपूर्ण तक है.) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५१७०. (+) सिद्धगिरिनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: सि० स्त०., संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १४४३८). शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीश्वर अजर अमर; अंति: वेलि सुजसे जयैसरी, गाथा-१०९. ७५१७१. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १५४३८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य मेषे चंद्र; अंति: ते धन्य जाणवो. ७५१७२. (+) २२ परीसह सज्झाय व सीमंधरस्वामि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: २२ परीसारी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४११.५, २२४३१). १. पे. नाम. २२ परिसह सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: (१)अरिहंत सिद्धनै आयरिय, (२)आदेसरजी आदे दे चोवीस; अंति: चोजल गायो रे, ढाल-२२. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगोजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-८ तक है.) ७५१७३. चोवीसीचौपाई, संपूर्ण, वि. १९१९, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सरदार, प्रले. मु. रायचंद ऋषि; अन्य. आ. जीतमल ऋषि; श्राव. भारमल; श्राव. पनालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौवीसी., दे., (२७.५४१०.५, १९४२६). वर्तमान चौवीसी चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १९००, आदि: वंदु बेकर जोडनै जुग; अंति: वदि हुओ अधिक आनंद, ढाल-२४. ७५१७४. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१२, १४४२९). जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org २४१ आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंति (-) (पू.वि. सातवे स्थूल अतिचार तक है.) ७५१७५. (+) सीमंधरस्वामि स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी : स्तवन लख्यं., संशोधित., दे., (२७X१२.५, १५X४६). १. पे. नाम. २४ जिन आंतरा स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारद सुपरे; अंति: रामे० वरो जे जेकार, ढाल-४, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने ढाल -३, गाथा-७ अपूर्ण से ढाल ४, गाथा- ७ अपूर्ण तक नहीं लिखा है, और उसकी जगह सीमंधरजिन स्तवन लिख दिया है. ) २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पु. २आ-३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतडी अवधारो; अंति: अनोपम जिनपदवंदन भास, गाथा - १८. ३. पे. नाम, सिखामण सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे तु सजनी अंति: लक्ष्मीलीला वरस्ये, गाथा- २३. ७५१७६. (+) ५२ बोल चरचासहित, संपूर्ण, वि. १९२२, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. रतलाम, प्रले. मु. वृद्धिचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : बावनबोल चरचासहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७X११.५, १८X३३). ' , ५२ बोल थोकड़ो, रा., गद्य, आदिः आठ आतमा मै कर्मारी; अंति: न्याय एहवु जणाय छै. ७५१७९. गौतमस्वामिनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (३) ४, प्र. वि. हुंडी गी०. जैवे. (२७.५x११.५, ११४३५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १९४१२, आदि: वीरजीणेसर चरणकमल, अंति: विजयभद्र० आनंद करो, गाथा ४६, (पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक नहीं है.) ७५१८०. १७ भेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, जैदे., (२७X११.५, ४-६X३५). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढ - १ गाथा - १ अपूर्ण से है व ढाल -५ गाथा- १ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५१८१. (#) शीलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४ ) = १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२, १७x४४). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६३७, आदि: (-) अंति: (-) (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ६३ अपूर्ण से है तथा गाथा ७० अपूर्ण तक लिखा है.) 7 ७५१८२, (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( २ ) = १ ले स्थल पोकरजी, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सादबनणा., संशोधित., जैदे., ( २८x११.५, २१X५०). साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८०७, आदि (-); अंति: जेमल इ तिरणरो डावो, गाथा १११. (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा-५५ अपूर्ण से है.) ७५१८३. अंतरिक्षप्रभु स्तवन, संपूर्ण वि. १९४१, चैत्र शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हिम्मतराम काशीराम पठ. श्रावि. रतनकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अंतरिक्ष स्तवन., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, वे., (२८.५x१२, ८X५४). पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्ष, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: अंतरिक्षप्रभु अंतरजा; अंति: जिनचंद्र ० जयकारी रे, गाथा ९. ७५१८४. (#) पर्युषणपदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. बीच के पाठ प्रतिलेखक के द्वारा केन्सल किए गए हैं और वहाँ लिखा गया है "कोट उपरली वाचना नहीं.", अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x११.५, २७X१८). १. पे. नाम. पर्युषण पद, पृ. १अ संपूर्ण. पर्युषण पर्व पद, आव, चुनीलाल, मा.गु, पद्य, आदिः पर्वपजुसण मेला देखो; अंतिः चुनी० आतमरंग मे खेला, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. चुन्नीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जिनंद की मै वारी छवि; अंति: पूरो आस हमारी, पद-४. ३.पे. नाम. विमलजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. चुन्नीदास, पुहिं., पद्य, आदि: नेक वातों के ताई; अंति: अमृतरस वरसाना चाहीये, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. चन्नीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जिनकी जिनको परतीत भई; अंति: दान अभय जिनकर तै, पद-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. चुन्नीदास, पुहिं., पद्य, आदि: रंग ल्यावो बनाय सखी; अंति: चुननी० आज करुं लथपथ, पद-३. ७५१८५. (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति बोल व १२ साधुप्रतिमा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १७X५८). १.पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९२३, पौष शुक्ल, ५, ले.स्थल. पचपाडनगर, प्रले. मु. गोकलचंद्र (गुरु मु. मोतीचंद्र, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: ८ कर्मनी मूल प्रकृति; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वीर्यान्तराय कर्म तक लिखा २. पे. नाम. १२ साधुप्रतिमा विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ११ भेदे उपासक कहता; अंति: पडिमा साधुनी जाणवी. ७५१८६. (+) गासीराममुनि ढाल, संपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वडु, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२७.५४१२, १५४३४). गासीराममुनि ढाल, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: मगरार बीच गाम की; अंति: पद्मावती सहर मझार, गाथा-१४. ७५१८७. (-) नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नही लिखा है., अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, १२४२८-४२). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरण जगत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३, गाथा-२ तक है.) ७५१८८. (+) संवच्छरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १६४२७). संवत्सरी ढाल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: संवच्छरी पडिक्कमीया; अंति: माहै सुध विचार रै, गाथा-२७. ७५१८९. (+) तेरकाठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२, १९४३६). १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर गणधर मुनि; अंति: जीवा तुमै सांभलो, ढाल-७. ७५१९०. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९४६, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. फोजराज; पठ. श्राव. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी-जिनरिषनैज., दे., (२७.५४१२, २२४३७). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत अरिहंत आगे हुवा; अंति: महाविदेह मे जासी मोख, ढाल-४, गाथा-६८. ७५१९१. (#) मोरलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १०४३५). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गांम; अंति: राजविजे रंगे भणे जी, गाथा-१५. ७५१९२. मृगापुत्र सज्झाय व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, १८४४३). १.पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सुरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर सोहामणु; अंति: होज्यो तस प्रणाम रे, गाथा-२०. २.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चंचल नारी चूडो; अंति: वासते गाडलू गयु, गाथा-२. ७५१९३. औपदेशिक सज्झाय व महादेव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५). For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २४३ १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: चोरासी लख जोनमे रे; अंति: मुनिवर करे रे विचार, गाथा-११. २. पे. नाम. महादेव छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: संकर वसै कैलास में; अंति: तेहनै वैकुंठ वासरे, गाथा-१९. ७५१९४. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़ कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीर प्रसादात्., दे., (२८x११, ९४३५). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमीदिन चंद्रप्रभु; अंति: राजरतन० शोभा शारि, गाथा-४. ७५१९५. (+#) नेमराजुल चोक, गीत व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७७, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२.५, १५४४३). १. पे. नाम. रथनेमिचोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: एक दिवस वसे रहेनेमि; अंति: सीसे उत्तम गुण गाया, गाथा-१४. २. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. उत्तमविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल कहे सुन सखीया; अंति: उततम० अतिबल वासरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. नेमराजुल सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सवैया, मु. उत्तमविजय, पुहिं., पद्य, आदि: लाल लाल सब लाल ओरसी; अंति: उत्तम लाल सब अंग है, गाथा-१. ७५१९६. औपदेशिक पद, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६,प्र.वि. हुंडी- उपदे., दे., (२७.५४११, २२४४१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, वि. १९२५, आदि: लखचोरासी में तू भटक; अंति: फागुन वद पख छठ अमाम, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: मुगती बगसे है जीते; अंति: कपाजे सरण आयो छु, गाथा-२. ३. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अनंत भावना भाई; अंति: कर दीधा त्यागी, गाथा-१३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: न्यातीला नेहउलौ; अंति: रहिजौ पाप अढारसूरे, पद-२. ५.पे. नाम. सातव्यसन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वरजो वरजो विसन सातसू; अंति: सुख लहै सासतारे लो, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीव अपूर्व जिनधर्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ तक लिखा है.) ७५१९७. (+) नियंठाविचार सज्झाय व औपदेशिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी अस्पष्ट है., संशोधित., दे., (२७४११.५, २१४३५). १.पे. नाम. नियंठाविचार सज्झाय, ढाल-२० से २१, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नियंठाविचार सज्झाय, मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२० अपूर्ण से है व २१ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मात पिता जुवती सुत; अंति: तो पाप करौ सह कोय, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: च्यार वात है वेर की; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ७५१९८. (+) राम चरित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी-रमाचरित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७७१२, २१४२९). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीमुनिसुव्रत स्वाम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७५१९९. हित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४४१). औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांइ; अंति: महमद० लेखो साहिब साथ, गाथा-९. ७५२००. (+) चितसंभूत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी- चित्तस., संशोधित., दे., (२८x११.५,१५४४०). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: कवियण० शिवपुर लसी हो, गाथा-१९. ७५२०१. पंचतीर्थ चैत्यवंदन व नवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. परमचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९x१२.५, १२४३४). १.पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देवा चरणोनी; अंति: भव देजो तुम पाये सेव, गाथा-५. २. पे. नाम. नमस्कार पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नवपद स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अरीहताणं नमोकारो; अंति: होई पण बोहिलाभम्, गाथा-९. ७५२०२. एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४५, आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. मु. मोहनविजय @; पठ. सा. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९x११.५, ११४४०). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुवृत रुप सझ्याय भणी, गाथा-१५. ७५२०३. (+) ह्रींकार कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, ११४२९). ह्रींकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: मायाबीजबृहत्कल्पात्,; अति: वान्छितं लभेत्, श्लोक-३०. ७५२०४. (+) नलायन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४०(१ से ४०)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२८.५४११, १५४४२). नलायन, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., स्कंध-३ सर्ग-८ श्लोक-४५ अपूर्ण सेस्कंध-३ सर्ग-९ श्लोक-२७ अपूर्णतक एवं स्कंध-३ सर्ग-९ श्लोक-२७ अपूर्ण से स्कंध-४ सर्ग-१ श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) ७५२०५. (+) पच्चीस बोल, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जयपुर, प्रले.ऋ. डालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४११.५, १६x२६). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: यथाख्यातचारित्र. ७५२०६. भगवतीसूत्र बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७.५४१२.५, ५६४३५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सुभजोगांआश्री अणारंभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक-१२, बोल-९ तक लिखा है. शतक-५ का बोल नहीं लिखा गया है. उसके लिये रिक्त स्थान छोड़ दिया गया है.) ७५२०७. (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २१४३५). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २४५ ७५२०८. (+) सुखराजकुंवर चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४३, आषाढ़ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. कनैयालाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२, २४-३६). सुखराजकुंवर चौपाई, मु. हेम, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीआदिजिणेसर आदि; अंति: मनमै धरी हरख अपारए, ढाल-१४. ७५२०९. (+#) बृह्तकल्पनी हुंडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, २८४७४). बृहत्कल्पसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: न कल्पै साध साधवीनै; अंति: (-), (पू.वि. पंचम उद्देशक की __ अनुक्रमणिका-५ अपूर्ण तक है.) ७५२१०. गजसुकमालचौपाई व बलभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४११.५, १८४५९). १. पे. नाम. गजसुकमाल चौपाई, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: घोड़ा सिवपुर लीनी, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से २. पे. नाम. बलभद्र चौपाई, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: छले पाम्यो त्यां; अंति: पालीन जासी मोक्षरे, ढाल-३, गाथा-७८. ७५२११. तीर्थंकर आयुमान, नरक विचारादि, चक्रवर्ती आयुमानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१). १.पे. नाम. तिर्थंकर आयुष्यसंख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथर्नु ८४ लाख; अंति: महावीरनु ७२ वरष-. २. पे. नाम. सात नरक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. नारकीआयुमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलि नरके आउखु; अंति: गइ नरक आउखो जाणवो. ३. पे. नाम. चक्रवर्ती आयुमान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: भरतेश्वरनो ८४ लाख; अंति: ७०० वर्ष. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मे रागः श्रुतौ; अंति: सुध पालै ते सुखी थाय, श्लोक-११. ७५२१२. नेमराजुल बारहमासो वगीत, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. केवलचंद; पठ. श्राव. प्रसन्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नेमिनाथ प्रसादात्, दे., (२६४१३, १२४३१). १. पे. नाम. नेमराजुल बारहमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, म. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: जादव मुझनै सांभरै; अंति: वीनवै अमर विसाल, गाथा-१९. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हेली सांवणीयो आयो हे; अंति: गुण राजिंद गावै है, गाथा-९. ७५२१३. (+) क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३२). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीश जी, गाथा-३६. ७५२१४. (+) गजसुकुमालमुनि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३४). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण तक है.) ७५२१५. (#) पद्मावतीनो संथारो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ९४२८). For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रृतसागर ग्रंथ सूची पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, गाथा-३५. ७५२१६. सौभाग्यपंचमीस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, १४४३७). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७५२१७. (+) जिनबिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x११.५, १२४४५). बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिला मुहर्त भलं; अंति: सघला दिक्पाल संतोषीइ. ७५२१८. (+) पंचमहाव्रत व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४४४). १. पे. नाम. पंचमहाव्रतनी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवेरे; अंति: प्रणमै सीर नामी रे, ढाल-५, (वि. छठे व्रत का भी उल्लेख किया गया है.) २.पे. नाम. नेमराजुल स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल गोखे रहीने; अंति: जइने सीवमा वसीआ, गाथा-११. ७५२१९. (+) महावीरना २७ भव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३८). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भव पश्चिम; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., २७वाँ भव अपूर्ण तक है.) ७५२२०. साधुनिर्वाण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. शिरपुर, प्रले. मु. प्रियंकरविजय (गुरु मु. प्रतापविजय); गुपि. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, १०४४०). साधुकालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्यारे काल करै त्यार; अंति: उंधो जमणी बाजु मुकवो. ७५२२१. दशपचक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पचषाणनु तवनस, जैदे., (२७.५४११.५, ११४२७). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तप फल लही, ढाल-३, गाथा-३३. ७५२२२. नववाडि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, १२४३५). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ७५२२३. (+) अंतिम आराधना, संपूर्ण, वि. १९३९, ?, फाल्गुन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रिणीग्राम, प्रले.ऋ. माणेकलाल (गुरु ऋ. मघराजस्वामी, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमद राजजी स्वामी प्रसादेन, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४११, २४४३९). अंतिम आराधना, मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९३५, आदि: महावीर प्रणमी करी; अंति: जयजश संपति सुखकार, ढाल-१०,गाथा-२२७. ७५२२४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४११.५, १४४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७५२२५. (+) गुणसुंदरशीलमंजरी व चित्रसंभूत रास, अपूर्ण, वि. १९२९, कार्तिक कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:गुणसुंदरसीलमंजरी, संशोधित. कुल ग्रं. १४९, दे., (२६.५४११.५, १७४२२). १. पे. नाम. गुणसुंदरशीलमंजरी रास, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९१४, आदि: (-); अंति: सीलप्रभाव जाण्यो सही, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चित्रसंभूति रास, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २४७ मा.गु., पद्य, आदि: चितसंभूतिनी वार्ता; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७५२२६. (+) बारभावना, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. नंदराम; पठ. श्राव. वीरसंपत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४११.५, २३४६७). १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनंत भावता ते; अंति: धरमरुचि अणगार भावी. ७५२२७. (+) मधुकैटभ पूर्वभव ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १०४४८). मधुकैटभ पूर्वभव ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: राय अयोध्या आवीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७५२२८. (+) चित्रसंभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १७४२७). चित्रसंभूति रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कीजो चित निरमली, ढाल-७, गाथा-१३३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-९ अपूर्ण से है.) ७५२२९. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२८x१२, ११४३७). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७ गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५२३०. (#) नरकदुख रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, २०४४७). नरकदुःख रास, मा.गु., पद्य, आदि: घर रे भार जुता घणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६३ अपूर्ण तक है.) ७५२३१. देशनापद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, जैदे., (२६४१२, ११४२८). १. पे. नाम. देशनापद, पृ. १अ, संपूर्ण. आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ; अंति: ते कल्याण सदा पावे, गाथा-७. २. पे. नाम. देशनापद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन देशना, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी दीये छे देसना; अंति: सीस भणे कल्याण, गाथा-७. ७५२३२. १४ गुणस्थानक भांगा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४३७). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७५२३३. (+) आदिजिन स्तुति व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, १४४५२). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मालामालानबाहुर्दधददध; अंति: वलयवलयश्यामदेहामदेहा, श्लोक-४, (वि. प्रतिलेखकने श्लोक संख्या ८९ से ९२ लिखा है.) ७५२३४. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). इरियाविहीकुलक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन शुद्धिरे इरियावहि; अंति: ज्ञानविमलसूरि कहे, गाथा-७. ७५२३५. (#) चंदनबालासतीरास, अपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. मझेरा, प्रले. दलीचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४३७). चंदनबालासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मन मिच्छामि दोकडोतो, गाथा-१४९, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-३४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५२३६. परदेशीराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक कृष्ण, ३०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, ले.स्थल. कंकीद, प्रले. सा. रतनी (गुरु समणी. लाकाजी आर्या); गुपि.समणी. लाकाजी आर्या (गुरु सा. कशाला आर्या); सा. कशाला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १९४३६). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ज्ञानचद० सीवसुखसार, ढाल-४१, गाथा-५९४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१० अपूर्ण से है.) ७५२३७. (+) बारव्रतनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १८४४२). १२ व्रत ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: अतिथ संविभाग चोत्थो; अंति: सतगुरा दीनी सीखाइजी, गाथा-२७. ७५२३८. सरस्वती छंद व श्लोक व गाथा, संपूर्ण, वि. १८९३, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. भीलडा, पठ. मु. दौलतसौभाग्य (गुरु पंन्या. गुलाबसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४२४). १.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता रस मन; अति: आस फलसी ताहरी, गाथा-३८. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक व गाथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-८.. ७५२३९. कल्याणमंदिर भाषा, अपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. भिलपुरनगर, पठ. मु. दौलतसौभाग्य (गुरु पंन्या. गुलाबसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कारन समकित सुद्ध, गाथा-४५, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-२९ अपूर्ण से है.) ७५२४०. थुलिभद्र सज्झाय व नेमराजिमति गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. भीलडा, प्रले.पं. माणिक्यसौभाग्य गणि (गुरु पं. लावण्यसौभाग्य गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु आदेस लेई करी; अंति: उदय० पालो पीया पाछली, गाथा-९. २.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल लखत गीर चढी पण; अंति: काजो रूडा साधुजी, गाथा-९. ७५२४१. शीखामणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२५, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. पंडित. लक्षमणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १२४३८). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: केवल जन राम हरि रे; अंति: देवनो सुख भारी रे, गाथा-२०. ७५२४२. गुरु सज्झाय व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय (गुरु ग. राजविजय); गुपि.ग. राजविजय (गुरु पं. जिनविजय); पं. जिनविजय (गुरु ग. जयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३०). १.पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जोइनई जोसीडारे पतडो; अंति: ऋद्धिहर्ष वारोवार, गाथा-१०. २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसातमा सामी सुपास; अंति: हो लाल उलट अतिघणो, गाथा-७. ७५२४३. आनंदश्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडीः सझाय., दे., (२७४११, ११४३३). आनंदश्रावक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: स्वामी में अरज करूं; अंति: चवीने जासे मोक्ष, गाथा-९. ७५२४४. जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिणेसरपदकमल; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४९ सपूण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५२४५. (+) आठकर्मनी ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १९४३९). ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रायचद० जिनवचन प्रमाण, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., अंत के तीन ढाल मात्र हैं.) ७५२४६. राजुलपद, नेमिराजिमती पद व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११, ८४३६). १.पे. नाम. राजुल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: राजुल तेरे बिहा में; अंति: कवि हरषचंद भया, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: आछी लगदी मोहो नेम की; अंति: राजा राम चरन सेवै, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: अजल समे मजल जरूर जण; अंति: सीद्ध मिल अचल रहु, गाथा-४. ७५२४७. ऋषभजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२८x१२.५, १६४३५). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मोए कू क्यो न उतारो; अंति: द्यानत० सब सरम अपार, गाथा-३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ब्रह्मदेव, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे दर्शन कू मेतो; अंति: ब्रह्म दया गुण गायो, गाथा-४. ३. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु तुम कहीइंत दीन; अंति: दानत लेहुं निकाल, गाथा-७. ४. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन गाय ले रे मन; अंति: द्यांनत मन वच काय रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद- भव आलोचना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भव आलोचना, जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: अब क्यूं भूल्यो; अंति: मानसिंघ० सुख ललचायो, गाथा-४. ७५२४८. भीमऋषि गुरुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १३४३८). __ भीमऋषि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांति जिणंदना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७५२४९. (+) सुपनांतर सवैया, पार्श्वजिन स्तोत्र व रामकृष्णजी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १८४५६). १.पे. नाम. सुपनांतर सवैया, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुपनांतर गातां, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: माहानंद कल्याणवल्ली; अंति: प्रभु सयल मंगल दायको, गाथा-१२. ३. पे. नाम. रामकृष्ण चौपाई-ढाल५, पृ. ३आ, संपूर्ण. रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७५२५०. अजितजिन व सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४१२.५, १३४३८). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीजा अजित जिणेसर; अंति: शीवरुप लक्ष्मी सिद्ध, गाथा-११. २.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल जइ वसीये; अंति: केवललक्ष्मी नीरसीई, गाथा-५. ७५२५१. गौतमस्वामि सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२८x११.५, १४४४५). १. पे. नाम. गौतमस्वामि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोह्यो एणि माहरो; अंति: प्रेम० जय जयकार रे, गाथा-२३. २. पे. नाम. गोरआली भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं तो प्रणमी करी; अंति: प्रेमसुख दाउरे बाइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. श्रुतसागर गीत, पृ. २अ, संपूर्ण.. मु. प्रेम मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुभमति आपो; अंति: प्रेम प्रभु ऋषिराय, गाथा-६. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: चरण सरण सुखकरण वंदु; अंति: परम प्रेम गाया, गाथा-५. ७५२५२. साधुसाध्वी कल्प ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२, २३४३०). साधुसाध्वी कल्प ढाल, मु. नाथजी, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: पाप अढारे कह्या अति; अंति: नाथ दुवारा सेहर मजार, (वि. प्रतिलेखक ने परिमाण सूचक ढाल व गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ७५२५३. (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक प्रणमीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७५२५४. सिद्धाचलनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x११.५, ९४३८). शत्रुजयतीर्थस्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उमैया मुजने घणीजी हो; अंति: हो एहमां नहि संदेह, गाथा-७. ७५२५५. जीवदया छंद व श्रावककरणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४४३). १. पे. नाम. जीवदया छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाए नमी; अंति: भूधर०वीतराग वाणी लहे, गाथा-११. २. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं ऊठी परभात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५२५६. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०x४६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. "कम्मस्सफलंमेयं" पाठ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवामानंदनंदेव; अति: (-). ७५२५७. मान, माया व लोभ सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४३७). १.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देज्यो देसोटो रे, गाथा-५, (पू.वि. मात्र अंतिम शब्द है.) २. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोज्यो; अंति: लोभ तजे तेहने सदारे, गाथा-७. ७५२५८. उपदेश उपगारे रसाल-प्रतिलेखन पुष्पिका, अपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०५-१०४(१ से १०४)=१, प्रले. मु. मयासागर; पठ. मु. पद्मविजय (गुरु पं. भाग्यविजय गणि, तपगच्छ); गुपि. पं. भाग्यविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सुक्तावली. श्री पद्मप्रभुजीप्रसादेआल्हादेन लखीतेन, प्र.ले.श्लो. (६४४) यादिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, (९८३) जब लग मेरु थीर रहे, जैदे., (२६.५४१२, ६४३५). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २५१ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (वि. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है.) ७५२५९. बार भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १३४४१). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अति: (-), (पू.वि. भावना-९ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७५२६०. (-) दशार्णभद्रनो चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १९४४०). दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: समत सतरसछीइ ताम, ढाल-४, (वि. ढाल-४, गाथा-५ तक है. कर्ता माहिती वाली अंतिम पंक्ति नहीं लिखी है.) ७५२६१. (#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, दूहो व नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुडी. नाममाला., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३५). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्रीआदिनाथ हे, गाथा-१३. २. पे. नाम. जैनदूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-१. ३. पे. नाम. नाममाला, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ७५२६२. आवश्यकसूत्र विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४११.५, २०४४४). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अतिचार गत "हरताल भाठो"पाठ से "इच्छाकारण की पाटी केणी" तक है.) ७५२६३. नेमराजिमती सज्झाय, औपदेशिक दोहा व सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२६४१२, १५४३५). १. पे. नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. ईसरदास, पुहिं., पद्य, आदि: हहा कहत इसरदास जीव; अंति: दीनानाथ कोन बीदमारघो, सवैया-१. २. पे. नाम. औपदेशिकसवैया संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: जो दस बीस पचा भया; अंति: तो भुख कबु न भग्गी, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविकसवैया संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सवैया संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: गइ कता आत बाध जाइ; अंति: जीव यछ बोल बाध. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, मु. देवीदास, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: सुबनत जस जाइ; अंति: देवीदास० जाइ धरमस, गाथा-१. ५.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सुखीया कहे बाइ तु मत; अंति: लेसु बाइ संजमभार तो, गाथा-१८, (वि. गाथांक सीधे ही १७ और १८ दिया गया है.) ६. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: भाडीभीगाडी बादरा; अंति: (-), (पू.वि. कुलाचार दर्शक दोहा तक है.) ७५२६४. संथारा विधि व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. उगरसेण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ३७४१८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क. सामदास, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कपड० हिया किनै वात; अंति: ब्रह्मचर्य० दुष्यणम्, गाथा-८. २. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडकमी; अंति: भवचरिमं पच्चखावइ. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आउ नर कहतोय सावधान; अंति: गोल्यो इण गोली जरा. ७५२६५. पार्श्वनाथजीरो छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ४८x२०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सुमती आपो सुर; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२२. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ भीसमील्लाहि रहीमान; अंति: सर्व उपरे चाले सहि. ७५२६६. ढालसागर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी. ढालसागर, दे., (२७.५४१२, १२४४२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७५२६७. चौमासी देववंदन सविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१७(१ से २,४ से १४,१७ से २०)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४१२, ११४२८). चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम देववंदन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से सम्मेतशिखर देववंदन अपूर्ण तक है. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७५२६८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, ९४३२). शQजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विरजी आया रे विमलाचल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५२६९. (+#) पुरंदरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १६८०, आश्विन कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, ले.स्थल. षोडनगर, प्रले. मु. वीजा ऋषि (गुरु मु. मनोहर ऋषि); गुपि. मु. मनोहर ऋषि (गुरु मु. केश ऋषि); मु. केश ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४१). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: व्रत मालेदेव आणंद, ढाल-१२, गाथा-३७६, (पू.वि. ढाल-१० गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ७५२७०. (+) छमासीतपचितवन विधि, श्रावक विधि व संथारापोरसि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४३३). १. पे. नाम. छमासी तपचिंतन विधि, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. छमासीतपचिंतवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धारी काउसग्ग पारै, (पू.वि. "न करी सकुं इम एकेक दिन ओछो करता" पाठ से है.) २. पे. नाम. श्रावकविधि प्रकाश, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: श्रीजिनचंदरिंद नित; अंति: विधिप्रकाशो निर्मितः. ३. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७५२७१. (#) ज्ञानप्रदीप व नवग्रह स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४३२). १. पे. नाम. ज्ञानप्रदीप, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सर्व सौख्यं जयं जय, श्लोक-३०, (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनगर्भित नवग्रह स्तोत्र, प्र. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्फुटं, श्लोक-११. ७५२७२. उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अति: वच्छयलि रमइ सच्छाए, गाथा-२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ से है.) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामइ सुखीउ थाइ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७५२७३. छप्पनदिक्कुमारि उत्सव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, १२४४०). छप्पनदिक्कुमारि उत्सव, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चइन सूकल दिन तेरसे; अंति: रंगे वलि जे भणि, गाथा-१५. ७५२७४. सुभद्रासती चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. फोजराज; पठ. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी. सती सुभद्रासती., दे., (२७.५४११.५, २२४३७). सुभद्रासती चौढालीयो, रा., पद्य, आदि: साचे मन सील पालीयो; अंति: पथी पामी भवनो पारधि, ढाल-४. ७५२७५. (+) सीतासती व गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२, १५४३५). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीताजी मोटी सती रे; अंति: पुहुता बारमदेवलोक हो, गाथा-११. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीजिण आया मे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा ११ अपूर्ण तक लिख कर पूर्णता सूचक चिह्न लिख दिया है.) ७५२७६. (#) स्नात्र महोत्सव, अपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले.मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२, १३४३१). स्नात्रपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वि. १९वी, आदि: (-); अंति: वीर० घर घर हर्ष वधाई, ढाल-८, (पू.वि. स्वप्न ढाल से है.) ७५२७७. बंधेलगा मुकेलगा-जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४५). बंधेलगामुकेलगा-जीवविचार, मा.गु., गद्य, आदि: उदारीक सरीरना दोइ; अंति: समचैरी परै जावा. ७५२७८. बालचंदबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५०). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: इंद रंग मन आणीइं, गाथा-३३. ७५२७९. (+) अनाथीजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. चुन्नीलाल; पठ. श्राव. भैरूदान सेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (८१०) वासी वीकानेररा, (१२६०) भग्नि टुगी तास घर, दे., (२६.५४११.५, १४४४५-४७). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमराय, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीअरिहंत सिद्ध; अंति: खेम० परोकराजिंद के. गाथा-६६. ७५२८०. (+) योगोद्वहन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४३६). कालमांडलादि योगविधि- साधु, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथ मोटा जोग वहे तेने; अंति: डोरो विगरे पलेववो. ७५२८१. उत्पत्तिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९७, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, लिख. मु. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आपणी; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा-७१. ७५२८२. बारभावना चौपाई व तेरहकाठिया दोहरा, संपूर्ण, वि. १७६८, चैत्र शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. वीरक्षेत्र, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४५). ५५. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. बारहभावना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. १२ भावना गीत, पुहि., पद्य, आदि: ध्रुव वस्तु निश्चल; अंति: जब देखै घटमांहि, भावना-१२. २. पे. नाम. त्रयोदश काठिया, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वट पारै वाटमै करै; अंति: दसा कहीयै तेरह तिन, गाथा-१७. ७५२८३. (+) तेविसपदवीना बोल-पन्नवणासूत्र विसमेपदे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक नही., संशोधित., दे., (२७४१३, १५४३२). प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर चक्रवर्ति; अंति: (-). ७५२८४. पर्यंताराधना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११, १३४४९). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-६९. ७५२८५. (#) अषाढाभूति चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५-३७). आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: वाणी अमृत सारसी आपो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५२८६. (+) गौतमपृच्छा प्रकरण सह विवरण, संपूर्ण, वि. १६३४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. हर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६३. गौतमपृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इह हि पूर्वाचार्य; अंति: गौतमपृच्छा महार्थापि. ७५२८७. अषाढाभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१२.५, २६४५४-५७). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरूं; अंति: मानसागर शुभ वाण रे, ढाल-७. ७५२८८. (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(२ से ३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १२४३१). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दंसणमि; अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से चारित्राचार अपूर्ण तक व ७वें स्थूल अपूर्ण से नहीं है.) ७५२८९. अंगुलमान विचार, अपूर्ण, वि. १९४०, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, दे., (२७४१२, १४-१६४३८-४२). अंगुलमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मंदमतीना धणीने जाणवा; अंति: ३ व्यवहार० थया, (पू.वि. "भगवान महावीरनुं अर्ध आंगुल" पाठ से "पल्ये एक सुष्यम उद्धार" पाठ तक नहीं है.) ७५२९०. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३५). आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदिसर प्रणम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ गाथा-३ तक लिखा है.) ७५२९१. (+) दशार्णभद्र स्वाध्याय व सातव्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १२४३३). १.पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदायक सेवग; अंति: लालविजय निसिदीस, गाथा-९. २.पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नृप कुल; अंति: रतनकुशल० सवि आस, गाथा-१०. ७५२९२. (#) विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ७, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखडित है, जैदे., (२५४११.५, १७४४७). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २५५ १. पे. नाम. पोषधलेवा विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. पौषध विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. सादिम वस्तु, पृ. ४अ, संपूर्ण. __ स्वादिमवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुंठी१ पीपर२ मरि३; अंति: अनेक जातिनी जाणवी. ३. पे. नाम. अणाहारी वस्तु यादी, पृ. ४अ, संपूर्ण. अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिफला३ कडु४; अंति: (-). ४. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: पछे धर्मोपदेस सांभलइ. ५. पे. नाम. नवीन प्रासादथापना विधि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नवीनप्रासादस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: खांड सेर५ अखीयाणु; अंति: विशेष विधि ज्ञेया. ६.पे. नाम. तेर समाचारी नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. १३ समाचारी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ तपागछ २ सांडेरागछ; अंति: १२ ओसवाल १३ मलधारी, अंक-१३. ७. पे. नाम. व्रतोच्चार विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण. १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीफल लेई नांदिने ३; अंति: सम्म अणुसरामि. ७५२९३. (+) अमरकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अमरकुमार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२, २२४३०). अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: महिमा अधिक वखाणी रे, गाथा-५०. ७५२९४. नेमीसंवाद चोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: सीसे अमृत गुण गाया, चोक-२४, (पू.वि. चौक-२१, गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७५२९५. गौतमजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. गौतमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: मेघराजमुनिसुजस करे, गाथा-९. २.पे. नाम. वरकाणां पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: काइ जीव मनमै काइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७५२९६. (+) कुगुरु ओलख, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी कुगुरु ओलख., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१०.५, २५४३९). सुगुरुकुगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दावानल लाघा इधक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-४५ तक लिखा है.) ७५२९७. श्रावक चाबखा व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७४१२, २०४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक चाबखो-श्रावकविषे, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकगुण चाबखो, मु. खोडाजी, मा.गु., पद्य, आदि: एक एक श्रावक छे जग; अंति: खोडाजी० सुख देवा, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक चाबखो-श्रावकविषे, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकोपदेश सज्झाय, म. खोडीदास, रा., पद्य, आदि: फोगट श्रावक नाम; अंति: खोडोजी० केम समझावै, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री परिहार, रा., पद्य, आदि: नर चतुर सुजान परनारी; अंति: दूरगत मे नही पडीये, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पांचमहाव्रत, मा.गु., पद्य, आदि: आदजिनेसर आददे वरधमान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५२९८. (+) नारकीरा दुहारी चोपइ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. नारकीना दुहा., संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २४४४२). नारकी दुहा, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: घरकै भार जुतौ घणौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. गाथा २३ तक लिखा है.) ७५२९९. (+) सासूवहुनौ चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९३७, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी.सासूवहुनौ चोढाल्यो., संशोधित., दे., (२७.५४१२, २४४४०). सासुवहु चौढालिया, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: श्रीअरिहंतदेव तेहनो; अंति: राग द्वेष छोडो ताहि, ढाल-४. ७५३००.(+) सीलनां कडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी: सीलना कडा., संशोधित., दे., (२७.५४१२, २५४३८). शीयल कडा, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: धर्मना छै अनेक; अंति: सिल अखंडत सेवजो, गाथा-१६. ७५३०१. (+) औपदेशिक सज्झाय, जीवकाया संवाद व सिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, २३४६०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कुगुरु परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: चीतौरानौ राजा रेए इण; अंति: उछाले पापी जीवने रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. जीव काया संवाद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: जीव कहे एकाया भोली; अंति: जण दिन लाघो खारौजी, गाथा-६. ३.पे. नाम. शिखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रात न चितामण नरभव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ७५३०२. (+) खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१०.५, २१-२६४५९). खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: खिम्मावंत हुवा घणा; अंति: करणी हो कीजो सहुकोय, ढाल-४. ७५३०३. (+) रत्नचूडनी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ३०४८५). रत्नचूड चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: रत्नचुडरी वारता कहुं; अंति: वीदासर सेहिर मज्झार, ढाल-४. ७५३०४. मानतुंगमानवती रास- ढाल २२-२३, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १८-२०४४९). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-२३ गाथा-२० अपूर्णतक है.) ७५३०५. आठमनु चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नही है., दे., (२६४१२,१२४३७-४०). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटै ज्ञान अनंत, गाथा-९. ७५३०६. (+) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३३-४५). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: आवश्यके दिन ८; अंति: (-). ७५३०७. (+) नयनिक्षेपगर्भित महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १८४४४). महावीरजिन स्तवन, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय वीर जिणेसरदेव; अंति: दयासिंघसीस राम भणै, ___गाथा-३३. ७५३०८. महावीरजिन निसाणी-बामणवाडतीर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३६). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, म. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसती सेवगसती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५३०९. आध्यात्मिक पद व समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२,१६x४३). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: माडी मानै निरपख; अंति: आनंदघन० सगली पालै, गाथा-८. २. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज गई थी समवसरणमा; अंति: देवचंद्र० साचुरे, गाथा-५. ७५३१०. पांच महाव्रत सज्झाय व भगवतीसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्रले. ग. वीरचंद्र मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. पांच महाव्रत सज्झाय-४ से ६, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. मु. वीरचंद्र (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कांतिवि० धन अवतार रे, (प्रतिपूर्ण, वि. छठा महाव्रत सज्झाय भी है.) २.पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७५३११. १७ भेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १४४४४). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ अपूर्ण तक है.) ७५३१२. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४-२१(१ से २१)=३, कुल पे. ५, प्रले. पं. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्, जैदे., (२६-२७.५४१२, १३-१९४३४-३८). १.पे. नाम. आध्यात्म सज्झाय, पृ. २२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, क. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अथिर संसारे भोलास्यु; अंति: नय० अथिरता बहु पेख, गाथा-८. २.पे. नाम. जिनवाणी सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनवचने रे अमृत; अंति: उदय० प्रेमे पाठ रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंखीनो विवाहलो, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर. पंखीडा विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: तीतर बेठो ताडु कें; अति: लापसी जमो नणदीना वीर, गाथा-३०. ४. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ५. पे. नाम. मौनएकादशी सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुव्रत रूप सझाय भणी, गाथा-१५. ७५३१३. (+#) मोहजीतराजारो वखाण, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लाडनू, प्रले. मु. छोग छोटो ऋषि; पठ. मु. नंदराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, १८४५०). मोहजीतराजा पंचढालियो, रा., पद्य, आदि: सुधर्म स्वर्गे सुधर; अंति: ला० सुजाणगढ मझार रे, ढाल-५, गाथा-८६. ७५३१४. (+#) नेमराजिमती सज्झाय व गुरुगुण गंहुली, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.ऋ. केसरीचंद मोतीचंद; पठ. श्रावि. मानकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२४२५). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोड़ीने विनवू, अंति: लावण्य० मोक्ति मोझार, गाथा-२८. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. गुरुगुण गंहुली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: कुंकम पडो चोडाविये; अति: फूलडा तमने गवाय के, गाथा-७. ७५३१५. (#) अषाढाभूति रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १३४३०). आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: गणधर गौतम गुणनीलो; अंति: (-), (पू.वि. अंत __ के पत्र नहीं हैं., ढाल-९ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५३१६. प्रवज्या विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२, १३४३६-४०). दीक्षाविधि*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम त्रण्य वेदी; अंति: अवस्स वेमाणीयो होइ. ७५३१७. जिनकुशलसूरि स्तवन व सुंदर पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १२४३१). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सासण नायक मूगटमणी; अंति: केसरीचंद गुण गावे हो, गाथा-२९. २.पे. नाम. भवितव्यता कवित्त, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: कहां श्रवण जल भरे; अंति: संपति रो सहुको सगो, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने समाप्ति सूचक कोई संकेत नही दिया है.) ७५३१८. ज्ञानपंचमी सज्झाय व रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १३४२९). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले.पं. लक्ष्मीविजय गणि; पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिनेश; अंति: संघ सकल खुखदाय रे, ___ ढाल-५, गाथा-१६. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हा रे मारे वासपूज्य; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. कलश अपूर्ण तक '.) ७५३१९. (-#) कमलावतीराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२, १५४३२). कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: महला मे बेठीजी राणी; अंति: मिच्छामि दुकडम् मोय, गाथा-२७. ७५३२०. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. ५, पठ.मु. मोतीचंद (गुरु पं. माणकविजय); गुपि.पं. माणकविजय (गुरु पं.सुमतिविजय); पं.सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४४५). १.पे. नाम. शंखेश्वपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अतिम पत्र है. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शारदाजी स्तोत्र, पृ. १४अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी; अंति: निशेषजाड्यापहा, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी छंद, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणी; अंति: गोडीजी देजो हेज धरी, गाथा-११. ४. पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १४आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: कुशल लच्छी लील करत, श्लोक-४. ५. पे. नाम. प्रभाति स्तोत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ७५३२१. तीर्थंकर नाम-च्यवन-जन्मादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, २३४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ " २४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार, मा.गु., को. आदिः (-); अंति: (-). ७५३२२. (+) प्रायश्चितप्रदान विधि, संपूर्ण वि. १८१६ माघ कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. उपा. हीरसागर गणि महोपाध्याय; पठ. पं. जशसागर (गुरु उपा. हीरसागर गणि महोपाध्याय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्ष की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १४४४०). १. पे. नाम. ५ समकित स्वरूप विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः उपशम १ क्षयोपशम२; अंति: आरंभी चउदमा लगा हुइ. २. पे. नाम १८ गण राजा नाम देशादि विचार, प्र. १आ, संपूर्ण. "" आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आसातनाई जघन्य, अंति: तेहज पच्चखाण कीजे. ७५३२३. (+) बार भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२७.५X१२, १२४३२-३५). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., भावना-२ गाथा- २३ से भावना-७ गाथा - ६४ अपूर्ण तक है.) ७५३२४. (+) समकित विचार, १८ गण राजा व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (२ से ३ ) = २, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. जैवे. (२७४१२, १८४५०). "" मा.गु., गद्य, आदि: (१) अढार राजा श्रीमहावीर, (२) वाणारसीनगरी हस्तिपाल, अंति: धर्मनंदराजा१८. ३. पे. नाम. चमरेंद्र बलींद्र राजधानी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चमरेंद्रनी राजधानीइ, अंति: १००००० ला.पो. त्थि. ४. पे. नाम. तीर्थंकरना दांननो अधिकार, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, आदि: दिन२ प्रति एककोडिनइ; अंति: ते पोणा बिपोहोर लगी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे नाम. पुण्य प्रकार विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुन्य ते कहीड़ जे अंतिः बाल तपस्वी देवता था. ६. पे. नाम. १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, पृ. ४आ, संपूर्ण. २५९ मा.गु., गद्य, आदि: चक्रवर्तीनो दंडरत्न, अंति: असवारनइ बाधा न ऊपजइ. ७. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. अन्य पृष्ठों में रही पूर्ण - अपूर्ण सभी सामान्य कृतियों का इस पेटांक में समावेश किया गया है. बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. आदिजिन व शांतिजिन के अंतराल में महाविदेह संपदा अपूर्ण तक है व बीच-बीच की कृतियों के पाठांश नहीं हैं.) ७५३२५. (+) जलयात्रा विधि व चौवीसजिन राशि, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. रूपचंद (गुरु पंन्या. रूपकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४२). १. पे. नाम. जलयात्राविधि, पृ. १अ २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जलयात्रानां उपगरण; अंतिः धाय स्थाने समागम्यते. २. पे. नाम. २४ जिन राशि, पृ. २अ संपूर्ण २४ जिन राशि नक्षत्रादि षड्विध प्रतिमानिरीक्षण श्लोक, सं., पद्य, आदि: नक्षत्र योनिश्च: अंति: (-). (#) ७५३२६. नवकार छंद व शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, १४X३३). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशललाभ० लछमी लहै, गाथा-१७. २. पे. नाम शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं, पद्य, आदि सुण सुण शत्रुंजयगिरि, अंतिः श्रीजिनभक्तिमुनिंदा, गाथा - ११. Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५३२८. (+#) साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, ले.स्थल. राधिकापुर, पठ.सा. सुरजसरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४३२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणमि आचरण; अंति: यथाशक्ति तपप्रवेश, (पू.वि. "प्रमुख सिद्धांत भणिउ गुणिउ परावर्तिउ योगो" पाठांश से "पिंडविषईउ आववस्सयसझ्याए पडिलेहण काणभिखु" तक नहीं है.) ७५३२९. सुभाषितछत्रीशी व नवतत्त्व भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४४५). १.पे. नाम. सुभाषित छत्रीशीसह टबार्थ, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण है.) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कही एतलै में जोड़ी. २. पे. नाम. नवतत्त्व भेद, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. नवतत्त्वविचार*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व अजीवतत्व; अंति: ९ भेद कह्या. ७५३३१. दयादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:दयाविचार, दे., (२७.५४१२.५, १३४५६). १. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सर्वको विजयो भवेत्, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम श्लोक लिखा है.) २.पे. नाम. दयादि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कठोडीरो धावण १ चकला; अंति: १९ हरडे २० बहेडा २१, (वि. आचारांगसूत्र से उद्धृत) ३. पे. नाम. असज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उल्कापात पो०१ चिणगार; अंति: २ प्रतिमा २५ पडिलेहण. ४. पे. नाम. ज्ञानप्रकाश, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सूर्ये; अंति: सर्व सौख्य न शसः, श्लोक-३०. ७५३३२. बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:विधिप्रवेश, जैदे., (२८x११.५, १२४३७). जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भलां मुहर्त जोईई; अंति: पूर्वे दिन १० कीजें. ७५३३३. भरहेसर सज्झाय, वीरजिन स्तुति व पक्खिखामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२८.५४१२, १४४४४). १.पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण.. __संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: दढव्वयंतो महावीरो. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ४. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: समत्तं दिवसीयं भणई, आलाप-४. ७५३३४. श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८x१२.५, १५४४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१ ढाल-२ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७५३३५. पंचशक्रस्तव विधि व नवपदजी की यति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १०४३६). For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ पण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १.पे. नाम. पंचशक्रस्तव विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: खमासम ३ देके इच्छा०; अंति: सव्वि तिवीहैण वंदामि. २. पे. नाम. नवपदजी की यति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्रातिहार; अंति: श्रीमदर्हते नमः, श्लोक-१२. ७५३३६. (+) १२ व्रत प्रायश्चित, प्रवचनसारोद्धार व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., दे., (२८x१२.५, १७४४५-४९). १. पे. नाम. द्वादशव्रतप्रायश्चित्त, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. १२ व्रत प्रायश्चित, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: संविभागभंगे उ०१, (पू.वि. 'मक्षोड्डाह उप०१०' पाठांश से २. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार-गाथा १०३९ से १०५२, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. गाथा क्रमांक २१ से ३४ दिया गया है.) ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रभातं मम ऽद्यैव; अंति: भावमुपैति मेरु. ७५३३७. बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:बिंबप्रवेश०, दे., (२८x१२.५, १२४४२-४६). जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरु शुक्रोदयेरुडू; अंति: कार्य सिद्धि थाई. ७५३३८. (+) प्रमोदविजयजी का पत्र-संवच्छरीपर्व तिथि निर्णय, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१२,३०x१७). प्रमोदविजयजी का पत्र-संवच्छरीपर्व तिथि निर्णय, मु. प्रमोदविजय; मु. मोहनविजय; मु. हितविजय, पुहिं., गद्य, आदि: मुकाम श्रीउदयपुर से; अंति: निगा करके लिखणा. ७५३३९. जिन स्तुति स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, कुल पे. ७, दे., (२८x१२.५, १२४४२-४५). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणान गुणिनो नयंति, श्लोक-९, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयश्रियां धाम सुधामध; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: जिनप्रभसूरि० मंगल, श्लोक-९. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: इंद्रोपद्रौ पुनर्नत; अंति: यात्त्वत्पादप्रसादतः, श्लोक-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लिपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: याद्भरि विभुतये, श्लोक-९. ७. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन, क. पार्श्वचंद्र, सं., पद्य, आदि: कल्याणमालामणिसन्निधा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५३४०. (+) गोचरीनां ४२ दोष, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:साधुसाध्वीआहार पाणि, संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १५४५०). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: साधु साध्वीए आहार; अंति: सावधान पणे वर्तवं. ७५३४१. मार्गणा के ६ द्वार यंत्र- कर्मग्रंथ ४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७.५४१२.५, ३१x१६). ६२ मार्गणा ६ द्वार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७५३४२. (4) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४३९). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., फलपूजा अपूर्ण से चंदनपूजा अपूर्ण तक है.) ७५३४३. (+) थावच्चापुत्र चोढालियो व विजयशेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, २६४७२). १. पे. नाम. थावच्चा चोढालियो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. थावच्चापुत्र चोढालियो, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामती नगरी घणी; अंति: कहीरे समझावण नरनार, ढाल-४, गाथा-५४. २. पे. नाम. विजयशेठ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी अधिकार, मा.गु., पद्य, आदि: व्रतामे चोथोव्रत मोट; अंति: संका मूल म आणज्यो ए, ढाल-२, गाथा-३२. ७५३४४. गुणसुंदरसीलमंजरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:गुणसुंदरीसीलमंजरी, जैदे., (२७.५४११.५, १३४४४). गुणसुंदरशीलमंजरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: नाम वसंतपुर नगर तिहा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ७५३४५. (+) गौतमपृच्छा सह व्याख्या व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ मात्र है., वि. प्रत में गाथांक १८ की जगह १ दिया गया है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदिः (-); अंति: (-). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवद्वारा जमदग्नीतापस परिक्षाप्रसंग अपूर्ण से __आनंदश्रावक कथा अपूर्ण तक है.) । ७५३४६. अष्टमी स्तवन व श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३५-३८). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा; अंति: लह्यो आनंद अति घणो, ढाल-२, गाथा-२०. २. पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, पृ. २अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ७५३४७. (#) भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सांतलपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४४२). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदे आदि जिणेसरु रे; अंति: बाहुबली परे मुगते जई, गाथा-३३. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २६३ ७५३४८. (+#) क्षमाछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३६-३९). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६, संपूर्ण. ७५३४९. (+) जैनतीर्थावलीद्वात्रिशिंका स्तोत्र व जिनकुशलसूरि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १७४३८-४२). १. पे. नाम. जैनतीर्थावली द्वात्रिंशिका स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जैनतीर्थावलीद्वात्रिंशिका, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८४८, आदि: तीर्थेश्वर श्रीयुत; अंति: शुद्ध्यै भवतादजस्रं, श्लोक-३२. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनाधीश; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५३५०. बारभावना व तंत्रख्याल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. जेसलमेर, पठ. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. बारभावना, पृ. ७अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. पाटण, पठ. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००, (पू.वि. भावना-११ गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. तंत्र ख्याल, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७५३५१. जैन प्रश्नोत्तरी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १३४४९). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नारकी सक्ती रहित छे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रश्न-२१ अपूर्ण तक है.) ७५३५२. रुकमिणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३०-३४). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१६. ७५३५३. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९५-९४(१ से ९४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सारणीयुक्त, जैदे., (२६४११.५, ४७४११-१७). __ बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (संपूर्ण, वि. कोष्टक में लिखा गया है.) ७५३५४. (+) एलकदृष्टांत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, २२४६०). एलकदृष्टांत सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: साधू सदा सोहामणा; अंति: सांवलता गाम मझारो, ढाल-४. ७५३५५. (+) भगवतीसूत्र बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४१-४०(१ से ४०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ४७x१९-२५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७५३५६. (+#) आयंबिलतपसज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १४४३६). आयंबिलतप सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिचंद्र मुनीसर; अंति: सुख सदैव सुज्ञानी, गाथा-१३. ७५३५७. वीरनिर्वाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३३). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधारज हुतो रे एक; अंति: पाम्या शीवपद सार, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५३५८. सिद्धनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२.५, ११४३७). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: कहे सुख अथाग हो गौतम, गाथा-१६. ७५३५९. वीसस्थानक स्तवन व गुरुगुण गहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १२-१५४४३). १.पे. नाम. वीसस्थानिक स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी कहुं; अंति: जिनपद सुजस जमाव, गाथा-१४. २.पे. नाम. गुरु गुंहली, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुँली, पं. विवेकधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: आज कलपतरु फल्यौ मुझ; अंति: विवेकधर्मसुखकारा रे, गाथा-११. ७५३६०. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, ९४३४). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: सीस कहे कर जोड, गाथा-५. ७५३६१. ज्योतिषचक्र विचार व तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी: तपरी करणरोपांनो., जैदे., (२७.५४१२.५, १८४४६-५०). १.पे. नाम. सूर्यरी किरणांरो यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रमास मे १२००; अंति: जाणवा समुदायक पणै. २. पे. नाम. तपस्यारी विगत, पृ. १आ, संपूर्ण. तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उपवास से लीकर तपु; अंति: च्यार सास्वताजिनवररा. ७५३६२. (#) नेमिराजिमती कागद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२, १०४३३-४७). नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सवसत श्रीरेवगिरे; अंति: जादवराय वार म लावजो, गाथा-१९. ७५३६३. पजुषण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ९४३०). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुन्ये; अंति: निसिदिन करे वधाई जी, गाथा-४. ७५३६४. पेथड रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. वीरु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १६४३९-४२). पेथड रास, मा.गु., पद्य, आदि: विणय वयणि वीनवउं; अंति: संपति मनीला सूडारे, गाथा-५२. ७५३६५. (+) साधुआचार ओलखावणी, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सडायाडी, प्रले. मु. जवानजी ऋषि (गुरु मु. भारमलजी स्वामी); गुपि. मु. भारमलजी स्वामी (गुरु मु. भीखणजी स्वामी); मु. भीखणजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आचारनी छे., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४१२, २३४६२). साधु आचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: श्रीवीर नमु वर्धमान; अंति: सुद बारस न बुधवार, गाथा-६३. ७५३६६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: पडिकमणौ साधु मुनिराजरौ., दे., (२७४११.५, २२४७३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: आवसही इच्छामिणं भंते; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लोगस्ससूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) । ७५३६७. (+-) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १९x४८). १.पे. नाम. छकाय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हुवाने होसी घणा जी; अंति: जब बार करेगी छिन मै, गाथा-२०. २. पे. नाम. मानपरिहार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजैरे मानवी; अंति: आदरोते तो उत्तम जीव, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी री; अंति: पोहोता शिवपुर वास, गाथा-१५. ४. पे. नाम. विमलजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: विमलेसर पूजो देवा; अंति: जिनजीनै भावसुं, गाथा-६. ७५३६८. (#) दशार्णभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: दशार्णभद्र रा., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१०.५, १९४९२). दशार्णभद्र राजर्षि रास, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: वसंतपुर नामे नगर; अंति: भाव समत सतरे छीयालीए, ढाल-६, गाथा-४८. ७५३६९. आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: हरि पतित के उधारना; अंति: रीति नांउ की निवहीये, गाथा-७. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसप्रिह देश सोहामणो; अंति: नही आनंदघन पद भोग हो, गाथा-५. ७५३७०. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: लद्धी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२६४१२, १७४२७-३०). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मन रूपी अरूपी बोल अपूर्ण से कुंथुआ प्रकार बोल अपूर्ण तक है.) ७५३७१. अध्यात्मनी थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३६). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सवारे उठी समायक लीधु; अंति: शिवपद सुख अणुभोगीजी, गाथा-४. ७५३७२. सेत्तुंजानु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: तवन., दे., (२६.५४१२, १०४२६-३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीये मुझ आज; अंति: आदिजिनेसर तुठारे, गाथा-७. ७५३७३. कलियुग सज्झाय व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रावण शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. इलोलनगर, प्रले. मु. फतेविजय; पठ. श्रावि. समरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री आदिजिन प्रसादात्., दे., (२६४१२,१२४३४). १.पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रमोदरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे हलाहल कलजुग; अंति: धर्मध्यान कीजे रे, गाथा-११. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक पद-रंडापा, चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: रामजी मने रंडापो आपो; अंति: रांडा थईने रहीये रे, गाथा-५. ७५३७४. (#) पजुसण स्तुती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १०४२४-२८). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यवंत पोसाले आवो; अंति: सिद्धायिका दुःखहरणी, गाथा-४. ७५३७५. (+) सूतक विचार व रजस्वलास्त्री विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२४४५). १.पे. नाम. सूतक विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जेहनै घरै जन्म थायै; अंति: मरणनो सूतक जाणवो. २.पे. नाम. स्त्रीधर्म विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., पद्य, आदि: जः पुष्पप्रवाह; अंति: सिद्धंत विहराहगेसोइ, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. रजस्वलास्त्री विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ऋतुवंती स्त्रीनो दिन; अंति: अंगपूजा न करे. ७५३७६. औपदेशिक कथा शास्त्रसंदर्भ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३). औपदेशिककथा शास्त्रसंदर्भ संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सारांश कथा-८७ अपूर्ण से ९६ अपूर्ण तक है.) ७५३७७. (+) श्रावक आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४०-४३). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पंचम आश्रव, अठारहवें पापस्थानक तक है.) ७५३७८. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, २०४४५). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सम्यक्त्व ते संबर१; अंति: (-), (पू.वि. मन के १० दोष अपूर्ण तक है.) ७५३७९. (+) जैनश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १५४५५). श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हुतइ जे नर उलवइ; अंति: धीरीइं झोकनाल हुई, श्लोक-४७. ७५३८०. (+) महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रत की दूसरी ओर अनेक कृतियों को अस्पष्ट रूप से प्रारम्भ करके छोड़ दिया गया है तथा हाशिये में कुछ निरर्थक शब्द अस्पष्ट रूप से लिखे गए हैं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १२४२९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नहि मानुरे अवरनि; अंति: राम० भय बंधन छोडि रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-भीलडीयाजी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: दीठो मे दरिसण तेरो; अंति: वारु जिनशासन सिद्ध, गाथा-२. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ७५३८१. (+) महावीरजिन स्तवन व गौतमस्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल किं नणदल चउगति; अंति: खिमा० विस्तरे उद्योत, गाथा-१३. २. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोहम गणधर वंदीइं वीर; अंति: खिमा० उद्योत थाय रे, गाथा-५. ७५३८२. पूजाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १६४४०). पूजाष्टक, श्राव. प्राणलाल सेन, मा.गु., पद्य, आदि: क्षीर नीरसु नीर; अंति: प्राणलाल० अरथ अभंग, गाथा-९. ७५३८३. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२, ११४३५). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पयुसण पुन्यें; अंति: ज्ञानविमल०महोदय कीजे, गाथा-४. ७५३८४. (+) औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडीः सिलोक., संशोधित., दे., (२७४११, २०४५२). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: इल जंगम थावररूप इसा; अंति: रह जाय वासना, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २६७ ७५३८५. औपदेशिक सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. १९३९, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हुकम ऋषि; अन्य. मु. रामचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६४११, २०४५३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: मेरी अदालत प्रभु; अंति: संवत् १९२८ इजी जि, गाथा-२१. २.पे. नाम. औपदेशिकपद-मानवभव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुर देसंतर देस रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) ७५३८६. (+) आतमराजानो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. ध्रांगध्रानगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३६). आत्मराज रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८८, आदिः (-); अंति: तिहां भोगवे भोगकि, गाथा-१०१. (पू.वि. गाथा-८८ से है.) ७५३८७. (+) अतीतवर्तमानअनागत चोवीसी व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७.५४१२, १०४३८). १.पे. नाम. अतीतचोवीसी नाम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीतचौवीसी चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अतीत चोवीसी वंदियें; अंति: ध्यानथी अमृत पद पाउं, गाथा-५. २.पे. नाम. वर्तमानचोवीसी नाम स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वर्तमानचौवीसीजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद चितमां धरो; अंति: गुणीजन चित्तमांधार, गाथा-५. ३. पे. नाम. अनागतचोवीसी नाम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ अनागत चौवीशी स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभातें प्रणमीइं; अंति: किर्ति श्रीकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: शंभव साहिब सेवियइं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७५३८८. पर्युषणपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२७४१२, १२४३६). पर्युषणपर्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ अंतिम गाथा अपूर्ण से ढाल-८ तक है.) ७५३८९ (+) चोविशजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६-३९). २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७५३९०. प्रतिष्ठाकल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: प्रतिष्टाकल्प., जैदे., (२६.५४११.५,१३४४२). प्रतिष्ठाकल्प, मु. उत्तम, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य भक्त्या ऋषभं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सीतलनाथजी प्रतिमाविचार अपूर्ण तक लिखा है.) ७५३९१. (+) आठकर्मस्थिति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, १८४४०). ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ज्ञानावरणी; अंति: पर प्रबंध जाणवा. ७५३९२. (+) भगवतीसूत्र बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. सारणीयुक्त, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४५६-६०). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठक में लिखा गया है.) ७५३९३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह स्थानकवासी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रम०, जैदे., (२५.५४१२, १०४३३). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-), (पू.वि. अतिचार अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५३९४. () स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. अंजारनगर, प्रले. पं. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १९४४५). " स्थूलभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा, अंति: कह्या भणतां मंगलमाल, ढाल - ९, गाथा- ७४. ७५३९५. कान्हडकठियारे की चौपई व नवनिधान विचार, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. रामलाल ऋषि; अन्य. मु. देववरणदासजी ऋषि पठ सा. राधाजी आर्या, सा. सुजानाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी कानजी कठियारा चो०. दे. (२६४१२, १७४५३). १. पे. नाम. कान्हडकठियारा रास, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास - शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमं सदा, अंतिः मानसागर ० दिन वधते रंग, ढाल - ९. २. पे. नाम. नवनिधान विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: निसपिए नेवेस० ग्राम, अंति: निपजावानि बिध छै. ७५३९६. (#) नवपदार्थसंक्षेप विचार, संपूर्ण, वि. १७९७, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६.५x१२, ११४३०). " नवतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुक्तिपद पामवानिइ छि: अंतिः निरंजनपद पामीई. ७५३९७. कायविणजीरो बाद व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८५०, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, जैवे. (२६११, १६x४३). १. पे. नाम. कायाविणजीरो वाद, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. प्रेमानंद भट्ट, मा.गु., पद्य, आदि संत साधुने हुं नमुं अंति: समज मन माहरा रे (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. ४अ संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा - ९. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करस्यो कोई, अंतिः भावसागर० चीमासे रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - मायापरिहार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारमै अंतिः भावसागर० निरवाण हो, गाथा-७. ७५३९८. स्तवन, पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे १५, दे., (२७४१२, ११-१४४४०-४५ ). १. पे नाम, औपदेशिक पद- कुमतिनिवारण, पृ. १अ संपूर्ण. मु. देवीलाल, रा., पद्य, वि. १९६६, आदि: कूल मुरजादा मेटी रे; अंति: देवीलाल० लो भेटी रे, गाथा - ६. २. पे. नाम औपदेशिक कव्वाली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: महेकमां खास मुनीवर, अंति: काम मजीस रेट भारी का, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद - हिंदनी बाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अती अलखामणी आजे, अंतिः कहे सुंकान पुकारी, गाथा - ७. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदिः अस्तिवाजी जोइ राजी; अंति: दुख आही ना दीसे, गाथा- ३. ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. गाथा-४. ७. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि: महावीरस्वामी मोक्ष अंति हो प्रभुजी आप छो, गाथा ५. " ६. पे. नाम औपदेशिक पद परनारीपरिहार, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - परनारी परिहार, कमाल, पुहिं., पद्य, आदि: मदमोह की शराब, अंति: यारी नरक तणो छे दुआर, For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि: जुओ जन बिचारी तजो; अंति: नारी नरकतणो छे द्वार, गाथा- ३. ८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चेताउं वारमवार, अंति: तुं खरची ले ले लार, गाथा-३. ९. पे. नाम. इक्षुकारराजा सज्झाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. मु. देवीलाल, पु.ि, पद्म, आदि: मारी कमलाराणी ऐ थाने अंतिः समे रे गायो सेखेकार, गाथा ५. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदिः लाल त्रसला को प्यारो, अंतिः नाथजी अब तो तारो रे, गाथा- ७. ११. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि: हमारे मन बस रहे, अंति: करजोरी भवजल तीर, गाथा-४. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. सोहनलाल ब्राह्मण, पुहिं., पद्य, आदि: सिमर नर महाबीर भगवान; अंति: सोहन० मांगे मुगती दान, गाथा-७. १३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: दुनिया सुणो जी देकर, अंति: शास्त्र का परमान, गाथा-६. १४. पे. नाम औपदेशिक पद स्वीचरित्र, प्र. ४अ ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " औपदेशिक पद - स्त्री चरित्र, पुहिं. पद्म, आदिः ये त्रीया है बेगम और अंति: है सूरा में सिरदार, गाथा- ३. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. १३X३५). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवीलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ राजानो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ६ तक लिखा है.) ७५३९९. (+) शत्रुंजय स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १० प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२६४१२, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः शत्रुंजयगिरि सोहे; अंतिः ज्ञानवि० प्रभुता घणी गाथा ४. 3 २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिगसी लख पूरव राज; अंति: जिनशासन होयो जयकरु, गाथा-४. ३. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थं स्तुति, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शेत्रुजमंडण रिसह, अंति: शासनदेवी संकट हरे, गाथा-४. ४. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमो भवियां रिसह, अंतिः बोधिबीज भरपूर जी, गाथा ४. ५. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्री पूनम दिन, अंति: सीस कहे सुखकार, गाथा- ४. ६. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: वंदु सदा सेतुंज, अंति: सिवसिद्धि लच्छी, गाथा-४. ७. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव नमुं गुण निर; अंति: दुष्टतणा भय जीपती, गाथा-४. ८. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सवि मिलि कर आवो, अंतिः ध्यानथी नित्य भद्दा, गाथा ४. २६९ For Private and Personal Use Only ९. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिहां ओगणोत्तर; अंति: बोधिबीज जस पावे, गाथा- ४. १०. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सेतुंज साहिब प्रथम, अंतिः आवंती जय जयकार भणती, गाथा ४. Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५४००. (+) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १८६१, आश्विन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मांडलनगर, प्रले. पं. धनविजय (गुरु पं. खुशालविजय गणि); गुपि.पं. खुशालविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी खंडित है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४०-४५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: एवड जिम विस्तरे ए, गाथा-४९. ७५४०१. (+) ध्यान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, १६x४२). ध्यान विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अत्र कायवाड़मनसोस्थै; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थ धर्मध्यान भवस्वरूप का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७५४०२. सामान्यजिन स्तवन व साधुअतीचार गाथार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १०४३२). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अजित, मा.गु., पद्य, आदि: जगपती करजो सहाय मारी; अंति: आदा सत मारो धारी, गाथा-५. २. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा का बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सयणा क० सोवाना संथार; अंति: आत्मगुण मलिन थाय. ७५४०३. (+) छींककाउसग्ग विधि व दसत्रिक स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४२९). १.पे. नाम. छींकनी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाखि पडिकमण मध्ये; अंति: मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. १० त्रिक स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __ तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहि त्रण; अंति: सास्वता सुर संभालोजी, गाथा-४. ७५४०४. (+) श्रावक अतिचार व मुहपत्ति ५० बोल, संपूर्ण, वि. १८९१, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जयनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४४०). १.पे. नाम. श्रावक अतीचार, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक देवसिक आलोचनासूत्र, संबद्ध, पुहिं., गद्य, आदि: आजका च्यारपहरदिन में; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, (वि. श्रावकअतिचार अंतर्गत सातलाख व प्राणातिपातसूत्र है.) २. पे. नाम. मुहपत्ती पडिलेहण ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ सच्चा; अंति: छक्काय जयणा करे. ७५४०५. वीशस्थानकतपविषये स्तवन व शंखेश्वरपार्श्वननाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. वीशस्थानकनुं स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम सरसति आपो; अंति: भणे शुभे मने रे, गाथा-८. २.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सुणो सखी संखेस्वर जइ; अंति: (-), ___ (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५४०६. (+) वीसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७ ११.५, ११४३३). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हियडो हे जालुओ; अंति: (-), (पू.वि. सुबाहुजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५४०७. (#) शालिभद्रजी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १५४३०-३३). शालिभद्रमुनिसज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७५४०८. (+) क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १५४३९). क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: हवे क्रिया तेसु कहि; अंति: (-), (पू.वि. क्रिया के २४वें भेद अपूर्ण तक है.) ७५४०९. (+) मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:एकादशीस्तवनपत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८११.५, १५४४३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल-२ गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ७५४१०. साधुगोचरी ४२ दोष व कल्याणक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ३५४१८). १. पे. नाम. साधु गोचरी के ४२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मी जती निमित्त; अंति: वैरावै ते नलई. २. पे. नाम. कल्याणक विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: च्यवनपरमेष्टि नमः; अंति: मोक्षपारंगताय नम, श्लोक-१. ७५४११. आदिजिन स्तवन व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८-४३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपण सहु; अंति: पल पल वलभ करे प्रणाम, गाथा-७. २. पे. नाम. आध्यात्मिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हो जी ननदि आज छेला; अंति: पडदेशडे रे मोरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अबे मोत न किप्पा राई; अंति: डार्या फुलेला, गाथा-१. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीया वणझारा रे; अंति: प्रीत तोडिवो नवी जाय, गाथा-३. ७५४१२. (#) मेघकुमार चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १७४४७). मेघकुमार चौढालियो, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना रे चरण; अंति: (-), ढाल-४, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५४१३. सिद्धचक्र स्तुति व वीशस्थानकपूजा ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्नं; अंति: प्रेमपूर्णे प्रसन्ना, श्लोक-४. २.पे. नाम. श्रुतपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतपद नमइं भावियां; अंति: सौभाग्यल० सुख वेद, गाथा-७. ७५४१४. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटणनगर, जैदे., (२७.५४११.५, ७-१०४३६-३८). पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षय; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७२ ७५४१५. ४५ आगम नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६.५X१२, १२X३०). ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, आदिः आचारांग सुवगडांग ठाण; अंतिः ओघनिर्युक्तिसूत्र४५. ७५४१६ (+) आरती संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२७.५x११.५, १०x४०). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन आरती, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदि जय जय जिनेसर जगनायक, अंतिः लीला संपद सवि पावे, गाथा - १०. ७५४१७. भक्तामर स्तोत्र - आम्नाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७X१२, १०X३०). भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: भक्तामरप्रणत० १ एकुं; अंतिः २२ कल्पांतकाल. ७५४१८. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११, १०x४३). " १२ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बोले साधु उगणीस लाख, अंति: ते० मा० १००५००४८००. ७५४१९. मौनएकादशीपर्व गणनुं, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२७४१२, १२४४८)मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: महाजस सर्वज्ञाय नमः; अंति: (-), (पू.वि. "अतीत चौवीसी के श्री रत्नेशनाथाय नमः" पाठ तक है.) ७५४२०. शीलविषये स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X४०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशल नित नित जयवरि, ढाल- ३, गाथा-२२, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, ढाल २ गाथा १३ अपूर्ण से है.) " ७५४२१. (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२X३६). बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५४२२. कल्पसूत्र कथा संग्रह - समाचारी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्रकथानकेसमाचारी, दे., (२६.५X१२.५, २१X५०). कल्पसूत्र- कथा संग्रह, सं., प+ग, आदि: (-); अंतिः कर्त्तव्यमिति, प्रतिपूर्ण. " ७५४२३. (+) रुक्मिणीसती सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६११.५, १८४३९). रुक्मिणीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सडक तणो दुख अति घणो अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा ३० अपूर्ण तक लिखा है.) ७५४२४. (+) राजुल इकवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७११, १२४३६). राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८५२, आदि: सासणनायक सिमरीयौ मन; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) " ७५४२५. (+) नागीलारी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. हुंडी : नागला, संशोधित., दे., (२७४११, १४४३५). जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद प्रणमुं हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) ७५४२६. चंदनबाला सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५x११.५, १३४३९). For Private and Personal Use Only चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक है.) ७५४२७. () चार शरणा व स्थूलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. २, प्रले. सा. उमाजी (गुरु सा. लिखमाजी); गुपि. सा. लिखमाजी (गुरु सा. नोजाजी); सा. नोजाजी (गुरु सा. सुखाजी); सा. सुखाजी (गुरु सा. दीपाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६.५x११.५, १७४४५) १. पे. नाम. चार सरणा, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीभगवानजी (पू.वि. शरणा-३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org २७३ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछ दे मात मलार बहु अंतिः लबधि लीडमी घणीजी, गाथा - १५. ७५४२८. (+) मृगांकलेखा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. वे. (२६.५x११, १८४३६). . मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८३८, आदिः आदेसर आद दे चोवीसमा अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७५४२९ (४) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६.५x१०.५, १४४३४-४४). बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पहिलीइ सातइ पोताने, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५४३०. नवकार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१०.५, ११४३५). "" नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे, अंतिः पद्मराज० जास अपार रे, गाथा - ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५४३१. नवकारमहामंत्र के १०८ गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५X११, ९x१८-५१). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: १२ गुण श्रीअरिहंतना; अंति: आठ गुण नवकारमां छे. ७५४३२. पार्श्वनाथ स्तवन व विनय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. ढाबला, प्रले. मु. दयाचंद (गुरु मु. मतिसागर); गुपि. मु. मतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६×११.५, ११x२८). १. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवनं, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामणिसामी सचा शयब, अंति: वानरशी बंदा तेरा, गाथा- ४. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - विनय अध्ययन सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः पवयणदेवी चित धरी जी, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. יי ७५४३३. . (#) पत्रलेखन पद्धति - परमात्मा से उपाध्याय तक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. नागपुर, अन्य. पं. प्रतापचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वरेखा के बाहर लिखा है कि- "इण रीत उपमारा पन्ना नागपुर पं प्रतापचंदजी रे है" अंश थोडा खंडित है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७१२.५, २२x६०). " पत्रलेखन पद्धति, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमदमंदानं अंति: (-), प्रतिपूर्ण ७५४३४. (+) शांतिनाथ स्तवन युगल, अपूर्ण, वि. १९०९ आश्विन शुक्ल, ५. रविवार, मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. २, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले.सा. रायकुंवरी (गुरु सा. पाराजी आर्या); गुपि. सा. पाराजी आर्या (गुरु सा. रामकुंवरबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २६.५x११.५, १५X३९). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि (-); अंति रतनचंद० सवरे भर पामी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा- २ से है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल रा., पद्य, आदि: सोलमा जीनजी शांतिनाथ, अंति: मुक्त्यारो बासोजी, गाथा- २३. ७५४३५. तेरकाठियानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६.५X११, १६x४४). १३ काठिया सज्झाय, मु. रामचंद्र ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु भाखे भवियण, अंति: छंडी धर्म ज थुणे, गाथा - १५. ७५४३६. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६.५४१२, ११४३८) " धन्ना अणगार सज्झाय, मु, मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि ईरे बतिसी कामणि रे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १० तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५४३७. (+) बावीस अभक्ष्य बत्तीस अनंतकाय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १०४२४). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "सातमै भोगोपभोग व्रत पांच अतिचार" का वर्णन अपूर्ण से "माछी, कसाई, तेली, वागरी से व्यवसाय आदि" आदि का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७५४३८. (#) पोसह लेवानी विधि व वीश विहरमान विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४१७-४०). १. पे. नाम. पौषध लेने की विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: मांगी उपध पडिलेहीइं. २.पे. नाम. वीस विहरमान विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन विवरण, मागु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपने विषे; अंति: विहार छे. ७५४३९. (#) पार्श्वजिन लावणी-गोडीजीव विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १६४४५). १. पे. नाम. विधि व यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिषयंत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. विधि भी दी गई है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: आरति कर श्रीपार्श्व; अंति: विस्तार कहे प्रभु का, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जगत भविक कज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ७५४४०. (+) व्यवहारसूत्र बोल जीतमलजीस्वामीकृत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, २१४३०). व्यवहारसूत्र-बोलसंग्रह, संबद्ध, मु. जीतमलजी स्वामि, मा.गु., गद्य, आदि: एक मास नौ दोष सेवी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ बोल-७ तक है.) ७५४४१. (+) साधुवंदणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, २०७३२). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरवत जाण; अंति: श्रीदेवे ते संथुणा, ढाल-१३, गाथा-३७७. ७५४४२. (#) प्रदेशीरायप्रश्न, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३८-४१). केशीगणधर प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तर, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: सकल संपददाइ सदा वामा; अंति: देवमुनि जयकारो रे. ७५४४३. गतागतिनां बोल, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वाकानेर, प्रले. श्राव. जेसंग वर्धजेचंद शेठ; अन्य. श्राव. देवचंद शेठ; मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. वीजाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १३०, जैदे., (२६४११.५, १४४४१-४७). ५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना; अंति: गत पांचसे त्रेसठनी. ७५४४४. रोहीणीतप महिमा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. स्याहीपुरा, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९४३४). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवति सामणीए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ७५४४५. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४११, १०४३४). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०,गाथा-४३. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जैदे. (२५४११ ९४३४). "" www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २७५ ७५४४६. (+) ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १० ६ (१ से ६) =४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित., ', ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -३ गाथा - १४ अपूर्ण से डाल-५ गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ७५४४७. (+) कल्पसूत्र की कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२० (१ से २०) = ४, प्र. वि. प्रत में दिया गया पत्रांक १ से ४ करके पत्रांक अनुमानित दिए गए हैं., संशोधित., दे., (२७X१२, १८X५०). कल्पसूत्र- कथा, मा.गु, गद्य, आदि (-): अंति: (-). (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, नेमिजिन कथा से है व आदिजिन कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७५४४८. (+) ब्रह्मचर्य नववाड ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. दे. (२८x११.५, "" २०X५२-५५). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: श्रीनेमिसर चरण जुग; अंति: मझार समझावणने नरनार, दाल-११. ७५४४९. (+#) अज्झारीमातासरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र शुक्ल, १, जीर्ण, पृ. ४, ले. स्थल आणंदपुर, प्रले. मु. माधोराय ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १०X३५). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: करे अस्या फलसी ताहरी, गाथा-३५. ७५४५०. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. वलभीनगर, प्रले. मु. माणिक्यसागर (गुरु मु. रंगसागर); गुपि, मु. रंगसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२६४१२, १२३६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: एवड जिम विस्तरे ए., गाथा- ४९. ७५४५१. धर्मध्यान के चारभेद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १ वे. (२४४१२.५, ९४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बिपरिणामाणु पेहा ४, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., धर्मध्यान के ४ भेद से है.) " ७५४५२. संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, ७-११X३१-४०). " संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि, अंति: इअ समत्तं मएगहियं, गाथा-१४. ७५४५३. लेश्या विचार, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैवे., (२५४११, ९३३). ६ लेश्या दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: एकदा प्रस्तावे कोपि, अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थ तेजोलेश्या अपूर्ण तक है.) ७५४५४ दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६-५ (१ से ५ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. हुंडी: दशवी०, जैदे. (२४.५x१०.५, १५३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-). (पू. वि. चतुर्थ अध्ययन गाथा - १ अपूर्ण से गाथा - २८ अपूर्ण तक है.) ७५४५५. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५x१२, १२X३३). शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः सुणो शांतिजिणंद, अंतिः इम उदयरतननी वाणी, गाथा- १०. ७५४५६. अंगकरन्यासादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे ४, दे. (२६. ५४१२, १३४३७). 5 १. पे. नाम. अंगकरन्यास विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आत्मरक्षक अंगकरन्यास विधि, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंतिः करतलपृष्टाभ्यां नमः २. पे. नाम. चैत्यप्रतिष्ठाना बलियाकुलानी विगत, पृ. १अ संपूर्ण. चैत्यप्रतिष्ठागत बलिवाकुला विधि सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि सणबीज१ कुलथीर कांगर, अंतिः जच अडद६ सरसव राता ७. ३. पे. नाम. नंद्यावर्त्तपूजन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. नंद्यावर्तपूजा विधि, सं., गद्य, आदि कल्याणवल्लीकंदाय अंतिः कुसुमांजलिप्रक्षेपः. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. द्वारवास्तुपूजा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. चैत्यवास्तुपूजा विधि, सं., गद्य, आदि: वास्तुदेवत्य मंत्र; अंति: शिखरे० क्षिपेत्. ७५४५७. (+) ८ प्रभावनादि विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. रूपनगर, प्र.वि. हुंडी:समगता., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४३०). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहले बोल जण काले जेत; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सम्यक्त्व के बोल-१६ तक लिखा है.) ७५४५८. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १०x२८). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: संखेसरोजी आप तूठा, गाथा-७. ७५४५९. (+) पार्श्वजिन स्तवन व रोहिणीतपस्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवर तणी राजगीता, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. __ पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. ७५४६०. (+) चोसठयोगिनी स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १८४५०-६०). १. पे. नाम. पद्मावती स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२२, (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ६४ योगिणी स्तोत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: दिव्ययोगी महायोगी; अंति: ोपद्रिव्यनाशनी, श्लोक-११. ३. पे. नाम. बाला स्तोत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: ऐं आणंदवल्ली अमृत; अंति: सुखी भवेत्, गाथा-४, (वि. अंत में पूजन सामग्रियों की सूची दी गई है.) ७५४६१. (+) साधु देवसिराइप्रतिक्रमण अतिचार, पोसह व वडीलघुनीति के २४ स्थंडिल, संपूर्ण, वि. १९वी, पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, ११४४०). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमण आलोचना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.म.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. राइप्रतिक्रमण आलोचना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ३. पे. नाम. पोसहदंडकोच्चार विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ४. पे. नाम. बडीनीति लघुनीति की २४ स्थंडिल विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: दूरे उच्चारे पासवणे; अंति: दुरे पासवणे अणहीआसे, (वि. विधि सहित.) ७५४६३. दसपच्चखाण विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: विचार शास्त्र में छै. ७५४६४. (+) पाक्षिकक्षामणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२.५, १५४४०). १. पे. नाम. पाक्षिकादिक्षामणासूत्रसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५४६५. २. पे. नाम. वंदनक अध्ययन सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण आवश्यक सूत्र- हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो बंदि, अंतिः अप्पाणं वोसिरामि, सूत्र ०१. आवश्यक सूत्र- हिस्सा वंदनक अध्ययन की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अथ विधिः भूमिं प्रमा अंति: इति गुरुवंदनविधिः, ३. पे. नाम. सप्तदशसंडाशक विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १७ संडाशा विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि देववंदन गुरुवंदन, अंतिः य त्रिवार वंदनम् (+) www.kobatirth.org יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दसपच्चक्खाण विचार, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४४१०, १३४३५)प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध प्रा. गद्य, आदिः तिहां प्रथम चउदे; अंतिः इत्यादि पूर्ववत्, ७५४६६. सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४४११, १३X३५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ७५४६७. क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X११.५, १०X२८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्म, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपर्याय अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १५ अपूर्ण तक है.) , ७५४६८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे. (२६४१०.५, १५४४५). " पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंतिः वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र - २१. ७५४६९. (+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैदे. (२४.५४१२, १३४३६). २७७ शक्रस्तव अहंन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः प्रपेदे संपदां पदम्. ७५४७० (+४) पच्चक्खाणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, ८-१३X२०-२७). १. पे नाम, प्रत्याक्याणसूत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंतिः आगारेण वोसिरह २. पे. नाम. जगचिंतामणिसूत्र - गाथा १, पृ. २आ, संपूर्ण. जगचिंतामणिसूत्र संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग, आदि: जगचिंतामणी जगनाह, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र १ गाथा तक लिखा है.) ३. पे. नाम. धारणा प्रत्याख्याण, पृ. २आ, संपूर्ण. धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा. रा. गद्य, आदि: (१) प्रथम तीन नवकार गुणज, (२) अरिहंतसक्खियं सिद्ध, अंति: मनरी धारणारो फल हुज.. ४. पे. नाम. दस पच्चक्खाण नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि; (-); अंति: (-). ७५४७२. पुन्य कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ, जैवे. (२४४१०.५, ५x१९-२२). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा- १०. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी १ पोरसी २; अंति: आंबिल ९ उवपास १०. ७५४७१. योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२५X११.५, १५x५०). योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'वली आचांरांगइ' पाठांश से 'सूत्र भण्यां किम राइ' पाठांश तक है.) For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुण्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुनिकुल प्रकीर्ति; अंति: आराधना करी मोक्ष जाइ. ७५४७३. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २३-२१(१ से २१)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०.५, १९४४४). १.पे. नाम. सत्तिरिसययंत्र स्तोत्र, पृ. २२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: निच्च मच्छेह, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: सुहा विगाहान पीडति, गाथा-१०. ३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ४. पे. नाम. कल्याणमंदिर, पृ. २३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ७५४७४. (+) स्थानांगसूत्र चयनीत सूत्र संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, २४४३८). स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: सत्तहिं ठाणेहिं; अंति: मुंडे जाव पव्वइए, (वि. स्थान ७ एवं ६ के चयनित सूत्र है.) स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ठाणांगे ७ ठाणेए भाव, (२)साते स्थानके __करीने; अंति: ६ मास विरह. ७५४७५. बृहत्शांति स्तोत्र व मांगलिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १२४४९). १.पे. नाम. वृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: शिवं भवतु स्वाहा. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: उपसर्गाः क्षयं यांति; अंति: हिययंमिजिणं वहताणं, श्लोक-२. ७५४७६. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. श्रीमहावीर प्रासादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १०४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७. ७५४७७. (+) नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:दोसावहा, संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र- नवग्रहगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडति, गाथा-१०. २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्त पयासीयं; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७५४७८. खरतरगुरू पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १३४५३). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरं धीरं जलध; अंति: (-), (पू.वि. जिनचंद्रसूरि तक की परंपरा है.) ७५४७९. (+) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: ७समरण., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४११,११४२६). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति गाथा-३३ __ अपूर्ण से लघ्वजितशांति गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७५४८०. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नवरसप, जैदे., (२७.५४११.५, १५४४२). For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा; अंति: उदयरत्न शिरनामी रे, ढाल-८, गाथा-७४. ७५४८१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३१). पट्टावली, उपा. धर्मसागर गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ३५ मे पाटे श्रीउद्यो; अंति: कोई तरै का संदेह नहि. ७५४८२. सुदर्शनसेठ चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुदर्शन, जैदे., (२७४१२, १५४४४). सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण प्रणांम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१० तक ७५४८३. नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:नवकार० रा०, दे., (२७.५४१२.५, १२४४०). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीण द्यो; अंति: रास भणुं सर्वसाधुनो, गाथा-२५. ७५४८४. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२९x१२.५, १३४२१). ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. ४७ मार्गणा तक है.) ७५४८५. (+) नानी आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नानीआ०, संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ९x४५). लघु आराधना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तित्थनाथ जिनवर नमुं; अंति: लहे इहवचने नसेह, ढाल-२, गाथा-४१. ७५४८६. कर्म की प्रकृति १४८, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४११, १६४२५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: करमनी प्रकृति १४८; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २४ दंडक तक लिखा है.) ७५४८७. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. दर्शनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२.५, १०४३३). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ अहँ, अंति: श्रीकमल प्रभाख्यः , श्लोक-२५. ७५४८८. गजसुकमाल सझाय, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सझायपत्र, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४३). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: देवचंद० साहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. ७५४८९. स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२८x१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. दीपावली चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीस वरस घर वास; अंति: करो चौवीह सुर मंडाण, गाथा-३. २.पे. नाम. महावीर चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीश वरस केवलि पणे; अंति: पद्म० निजगुण रिद्ध, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीर चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण्यु गौतम निर्वाण; अंति: रणमता पद्म कहे भवपार, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: लहीए नितु कल्याण, गाथा-७. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीज्ञान उज्वल दिवो; अंति: पद्म कहे कल्याण, गाथा-५. ७५४९०. अगडचंद चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८.५४१२.५, १३४३२). अगडचंद चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जे नर औसर अटक ले ते; अंति: का गुरु परगट थयोजी, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५४९१. गणधरवाद व एकादशीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. पं. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५,१०४३२). १.पे. नाम. गणधरवाद स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सेवक सकलचंद शुभाकर, गाथा-४८, (पू.वि. अंतिम गाथा-४८ अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ७५४९२. अरणिकमुनि, मेतारजमुनि व मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-११(१ से ३,६ से १३)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १०४३४). १.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, गाथा-१०. २. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से १९ अपूर्ण तक है.) ७५४९३. नेमराजिमतीनवभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालणपुर, पठ. मु. भाईचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४२९). नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: नेमजी आया रे सहसाबन; अंति: सहेसावन के मेदान, गाथा-१७. ७५४९४. (+#) अक्षरबावनी व कृष्ण गरबो, संपूर्ण, वि. १९०४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. दोलतराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०.५, १७४६०). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार अपार अलख्य; अंति: मान० अक्षर बावनी गाई, गाथा-५७. २.पे. नाम. कृष्ण गरबो, पृ. ३आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति गरबो, क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा मोरा रे सुंदर; अंति: नरसी०महिमा खणकावो रे, ___ गाथा-१३, (वि. अंत में कुछ सामग्रियों की सूची दी गई है.) ७५४९५. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, प्रले. पं. राजविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४२९). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ७५४९६. मोक्षमार्ग वचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, २२४५०). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., काल के स्वरूप वर्णन तक लिखा है.) ७५४९७. (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंति: (-), (पू.वि. सुविधिनाथ स्तवन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २८१ ७५४९८. गोडीपार्श्वजिनवृद्ध स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, आश्विन कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. ममोइ बंदर, प्रले.पं. महिमाअमृत (गुरु मु. हितकमल, खरतरगच्छ-भट्टारक); गुपि. मु. हितकमल (गुरु ग. धर्मधीर, खरतरगच्छ-भट्टारक); ग. धर्मधीर (गुरु आ. जिनकीर्तिरत्नसूरि, खरतरगच्छ-भट्टारक); आ. जिनकीर्तिरत्नसूरि (खरतरगच्छ-भट्टारक), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, ११४३८). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: प्रीतविमल अभिराममतै, ढाल-५, गाथा-५५. ७५४९९. (+) औपदेशिक सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, अन्य. सा. नाथीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११, १३४३२). १. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंताकालनो जीवडो; अंति: ऋषि जेमल कहे एमरे, गाथा-४६. २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जुठा, मा.गु., पद्य, आदि: सुपारस भगवान सुमत; अंति: आनंद देजो सुखसाता रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ चंद्रप्रभजिन पद, मु. जुठा, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुजीने चरणे; अंति: आनंद देजो सुखसातारे, गाथा-४. ७५५००.(+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१६x४८-५०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगवंत भाव प्रशंसीउ, ढाल-३, गाथा-२५. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: सिरिमेरुनंदण उवझाय ए, गाथा-३२. ३. पे. नाम. चार प्रत्येकबुध सज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हु; अंति: पाटण प्रसिद्ध, ढाल-५. ७५५०१. समाधिमरण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ११४३४). समाधि मरण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वस्त्र साधविने; अंति: सांति केवी लोगस केवो. ७५५०२. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२-१५४४०). १.पे. नाम.५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहतना गुण १२ आठ; अंति: वेयण अहिया सणया. २. पे. नाम. ४५ आगमनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. __मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग सुयगडांग ठाण; अंति: गच्छाचार पइन्ना. ७५५०३. पार्श्वजिन व नवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जोगीदास व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रॅ कि धपधुधुम; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५५०४. इरियावहीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४४८). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: वरते एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ७५५०५. शत्रुजयतीर्थ व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४३२-४४). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिन विमलगिरि वरणव; अंति: रिधीने सिद्धि दातार, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: निरख्यो नेमि जिणंदने; अंति: चैत्यवृक्ष तिम जोडी, गाथा-७. ७५५०६. उपधानविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: मुझ देयो भवि भवि, गाथा-२७. ७५५०७. गौतमस्वामीगहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खभनगर, पठ. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२६२) मषीमनः समाधिश्च, जैदे., (२७४११.५, १२४४२). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: वर अतिशय कंचनवाने; अंति: उल्लसे निज आतमराम हो, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर हे के मुनिवर; अंति: मानवी पामे लाभ अपार, गाथा-७. ७५५०८. (+) सिद्धगीरिनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७.५४१२, १२४४३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: जे कोइ सिद्धगिरिराज; अंति: दीप० सुख साजने रेलो, गाथा-१५. ७५५०९. मुक्तिनगर व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२७.५४११, २३४५८). १.पे. नाम. मुक्तिनगर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तनगर सुख मोटका; अंति: अनंतसुख हितकारी, ढाल-१, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिणधर्म ध्यान धरो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा हैं.) ७५५१०. अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४११.५, १०४३३-३६). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, दूहा-१ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने भूल से ढाल-३ को २ लिखा है.) ७५५११. (#) नेमिजिन व मल्लीजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४४२). १.पे. नाम. नेमजीनी जान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सखि आइरेनेम जान बन; अंति: अमृत विमल पद वरिई, गाथा-७. २. पे. नाम. मल्लीनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिनाथ माहाराज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ तक है.) ७५५१२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १३४४२). १. पे. नाम. एकादशी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नेमि जिणेसर गुणनीलो; अंति: शुभ सुरपति गुणगाय, गाथा-१२. २. पे. नाम. प्रभुदर्शनफल चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं श्रीगुरूराज; अंति: प्रभु सेवानी कोड, गाथा-१४. ७५५१३. सिद्धाचल चैत्यवंदन व सीमंधर नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १३४४०). १. पे. नाम. सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल सिद्ध; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-३. २.पे. नाम. सीमंधर नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवरा; अंति: लक्ष्मीसूरि० परमाणंद, गाथा-४. ७५५१४. (+) भीमसेनचद्रावती, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चूरु, प्रले. नंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भीमसेणचंद्रावती., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४११.५, २४४६६). भीमसेनचंद्रावती रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रतिलाभ्यौ मुनिराज; अंति: खबर करावे तास, ढाल-४. ७५५१५. पूजगुणी समरण-भीखनजी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: पूजगुणी समरणरी., दे., (२६.५४११.५, २४४६५). भीखनजी स्मरण, म. सोभो, रा., पद्य, आदि: साध भीखनजीरोसमरण; अंति: भीखनजी रोसमरण कीजे, गाथा-५८. ७५५१६. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १९४५६). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-६ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७५५१७. (#) गोडीपार्श्वजिन छंद व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८५७, माघ शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मुनरा बंदर, प्रले. मु. मेघलाभ (गुरु मु. तेजलाभ); पठ. मु. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छपगए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीनो छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एकल्ल मल्ल अमतुंधणी, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गौडी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणी; अंति: गोडीजी देजो चित्तधरी, गाथा-११. ७५५१८. जिनकशलसूरि कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ८x२७). जिनकुशलसूरि कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: कुसल वडौ संसार कूसल; अंति: नवै निधार लिखमी मीलै, गाथा-२. ७५५१९. सूरप्रभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११.५, ६x२०). सूरप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सूरप्रभु अवधारौ; अंति: जिनराज० परि बौले एह, गाथा-५, संपूर्ण. ७५५२०. (+#) सीमंधरस्वामी स्तवन व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४३७). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीनेमनाथस्वामी प्रसादात्. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन; अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्व स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रयामि तं जिनं सदा; अंति: शुद्धबोधवृद्धिलाभदम्, श्लोक-३. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५५२१. सिद्धचक्र पूजन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: तेरा०वि०. हुंडी खंडित है., जैदे., (२७७१२.५, १५४३६-३९). __सिद्धचक्र पूजन, पुहिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से ५५ अपूर्ण तक है.) ७५५२२. (+) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २०४५४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७५५२३. (#) छिंक विधि, इरियावहि सज्झाय व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३२). १.पे. नाम. छिंकनी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: (१)पाखीपडीकमणु करता, (२)सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: संघमिलिने पूजा भणावे, श्लोक-१. २. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेघचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नारी रे मे दीठी आवती; अंति: एहनी करो घणी सेवरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ करमूक्ति दूहा, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तेरह कोडने लाखजनेओ; अंति: भानुचंदकु बगसा होओ, गाथा-१. ७५५२४. सीमंधरजिन व शत्रुजयतीर्थ पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १३४२८-४२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. केशरीचंद, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: चंदा एक संदेशो अमचो; अंति: जो ओर न कोइ तारे रे, गाथा-६. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केशरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नाभ नरेसर नंदजी रे; अंति: मुनि केसरीचंदोरे, गाथा-३. ७५५२५. गडपण व इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४१२, ९४२४). १. पे. नाम. गडपणानी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गरड पणो किण तेडीयो; अंति: रूपविजे गण गाय रे, गाथा-९. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१०. ७५५२६. रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, ११४२९). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ से ढाल-६ __गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७५५२७. (+) केशीगणधर प्रदेशीराजाचौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, २०४३८). __ केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३७ ___गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-३९ तक है.) ७५५२८. महावीरस्वामीना २७ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. सा. मणीबाई (गुरु सा. देवकुंअर बाई); गुपि.सा. देवकुंअर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: महावीर., दे., (२६४११.५, १६४३६). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: पेहले भवे जंबूद्वीप; अंति: मोक्ष पोता पावापुरीए. ७५५२९. (+) चारशरणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: सरणा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १६x४६). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ___२८५ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: श्रीकेवली संपुरण थयो. ७५५३०. चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रावण कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. श्राव. पुजावधप्रागजी गांधी; पठ. श्रावि. वीरुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चेलणा., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४५). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकले; अंति: भाखे भवियणने हितकार, ढाल-६. ७५५३१. (+) समवसरण विचार कोष्टक-भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १८४३३-४८). __भगवतीसूत्र-शतक३०-समवसरण विचार, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदिः (१)केइविहाणं भंते समोसर, (२)जीवाय लेश पखी दिट्ठी; अंति: (अपठनीय). ७५५३२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. विलाव, प्रले. मु.खुमाणविजय (तपगच्छ); पठ.सा. लक्षश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४२९). १.पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखेमाविजै जिणचंद, गाथा-९. २.पे. नाम. अष्टमीतिथि नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेत्र वदि आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि नमस्कार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बहु; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-८. ७५५३३. भगवतीसूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. प्रेमकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १०४२८-३२). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आवो आवोरे सयण भगवती; अंति: हुसे करी सहुं पभणे, गाथा-२४. ७५५३४. (+) सुमतिसागरसूरि रास व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १२४४०). १. पे. नाम. सुमतिसागरसूरि रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन कृष्ण, १३, ले.स्थल. वनेडानगर, प्रले. मु. वस्तुपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. भोजिग, रा., पद्य, वि. १७५३, आदि: अब म्हारी कड्यांरे; अंति: नित देइ आसीस हो लाल, गाथा-३४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मु. गुणसागर, पुहि., पद्य, आदि: मन की मनमाहि रही; अंति: गुणसागर० पणो रे सही, गाथा-६. ७५५३५. चोवीसतीर्थंकररोलेखो कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९४५, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जसोल, प्रले. मु. सिवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., दे., (२७.५४१२, ११४८६). २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: ७५५३६. (+) पच्चक्खाण भांगा कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १४४३०-५४). प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आंक १ इग्यारैरो १ कर; अंति: (-), (पू.वि. "भांगा २८ नी जाणवी" तक है.) For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५५३७. रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२, १४४४०). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-१५३ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-२०१ अपूर्ण तक है.) ७५५३८. (#) आर्द्रकुमार चौपाई व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१९, माघ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. महेशाणा, प्र.वि. प्र.ले. स्थल "मभेसाणा मध्ये" लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४६). १. पे. नाम. आर्द्रकुमार चौपाई, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: शांतिकरण शांतिसरू; अंति: रेनामे नवनिध थाय रे, ढाल-३, गाथा-२७. २. पे. नाम. शत्रुजयगिरनार स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. गिरनारशQजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: नयविमल सुरगीर धरीया, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ पुजाय; अंति: संघ आवे बहु धसमसीया, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७५५३९. मोतिकपासियासंवाद चौपाई व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२१, कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मिज्झल, प्रले. मु. फतेचंद ऋषि (गुरु मु. जेसिंघजी ऋषि); गुपि. मु. जेसिंघजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४५). १.पे. नाम. मोतीकपासीया संबंध, प्र. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: चतुर नरांचमकार, ढाल-५, गाथा-१०३. २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जंजं समयं जीवो आवस्; अंति: माणस रूवेण सोपसूओ. ७५५४०. गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. उदयापुर, प्र.वि. हुंडी: पट्टावलीपत्र., जैदे., (२६४१२, १७४११-५०). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: अथ श्रीगुरु परिपाटी; अंति: श्रीविजयधर्मसूरि.. ७५५४१. चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४३६). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीनयरी पधारीया; अंति: तुठा वीर दयालो रे, गाथा-५६. ७५५४२. औपदेशिक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२, १४४३४). उपदेशरत्नमाला प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: पहीले बोले कही; अति: उत्कृष्ट बावीस. ७५५४३. (#) पद, स्तवन संग्रह व गोतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरमल होय भजले; अंति: हरख० पार उतारणहार रे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन के पाए लाग; अंति: आनंदघन अरदासरे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: कर समरण पासजिनेसर को; अंति: दिन० नाम लगे नीको, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २८७ आध्यात्मिक होरी, पुहिं., पद्य, आदि: जोगेसर हरि खेलत होरी; अंति: तन मन तार लगीजी डोरी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद-पार्श्वजिन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीओ पासजिनेसर; अंति: करम प्रभु उर जम का, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ६.पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. तीर्थविजय, पुहिं., पद्य, आदि: डारु गुलाल मुठी भरके; अंति: पद दीजे कृपा करके, गाथा-६. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहि., पद्य, आदि: जादव मेरो मन हर लीयो: अंति: चंद कहे मन हरखियो रे. गाथा-३. ८. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक सूणले नाथ अरज; अंति: अनोपम कीरत छव तेरी, गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वस कर लीनो; अंति: लालचंद० वंछत कर काज, गाथा-५, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामदास, पुहि., पद्य, आदि: नयना सफल भए प्रभु; अंति: रामचंद० सीखर को राज, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडी; अंति: वृद्धकुशल० दीदार, गाथा-३. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जन्मोत्सव, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: आज महोत्छव रंगरलीरी; अंति: आस्या सफल फली री, गाथा-५. १३. पे. नाम. गोतमाष्टक, पृ. ३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गोतम; अंति: परगट्यौ परधान, गाथा-८. ७५५४४. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विकानेर, प्रले.मु. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कीयउ जाणपणानउ सार, ढाल-३, गाथा-३६. ७५५४५. जाणपणानां बोल, संपूर्ण, वि. १९६०, माघ शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वेरावर, प्रले. सा. सुंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जाणपणानां बोल., दे., (२७४१०.५, १२४४९). नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व माहि रुपि; अंति: सुत्रमा कह्यु छे. ७५५४६. (+#) सडसठि बोल समकितना ढाल, संपूर्ण, वि. १७७५, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४४६-४९). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ७५५४७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १३४४६). १. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: बडु मन सुध विहरमान; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. अठावीसलब्धि विचार स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकास ए, ढाल-३, गाथा-२५. ३. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरोजग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. ७५५४८. देवचंद्रजीकृत स्तवनचोविसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, १६४५५). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशु प्रीतडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., धर्मजिन स्तवन तक लिखा है.) ७५५४९. श्रीपालराजा रास-चतुर्थखंड, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२, १५४४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-४, ढाल-४, गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७५५५०. पुन्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, ११४२३). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ "मृषावाद हिंसा चोरी" पाठ तक है., वि. ढाल-४ का गाथांक नहीं लिखा है.) ७५५५१. ककावत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. उमेदराम दयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १२४३६). ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करि रे; अंति: सीस जिबमुनि इम भणे, गाथा-३३. ७५५५२. झांजरीयामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. खेरवानयर, अन्य. श्राव. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १६x४२). झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: सांभलता आणदारे, ढाल-४, गाथा-४३. ७५५५३. तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव, उत्तमादिपुरुष लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, १३४४०). उत्तमादिपुरुष लक्षण, ऋषभदत्त ब्राह्मण, मा.गु., गद्य, आदि: लक्षण ते सहिज जन्मना; अति: नीले काले नखे दुष्ट. ७५५५४. (-) स्तुति, स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१२(१ से १२)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, ९४३०). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनारतीर्थस्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि तिर्थ; अंति: जीव सुख संपति वरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: हिग काया अरु कामनी; अंति: स्वारथ को बहवार, गाथा-६. ७५५५५. सीमंधरजिनवीनतीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १०४२७). सीमंधरजिन स्तवन-वीनती, मा.गु., पद्य, आदि: इणइ जंबुद्वीपमै जिन; अंति: आपजो शिवमंदिरनो राज, गाथा-१५. ७५५५६. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.ग. कनकसागर; पठ. श्राव. रतनचंद बोथरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३४). __ आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक ऋषभजिन; अंति: अरज श्रीध्रमसी तणी, गाथा-१६. ७५५५७. (#) मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १७३४, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बादरपुर, प्रले.ग. वीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबुद्वीप भरतक्षेत्र; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ७५५५८. (+) पट्टावली कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४५०). पट्टावली कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरपट्टे; अंति: वराणां प्रोक्ताः. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५५५९. (#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) । ७५५६१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. किनारी खंडित होने के कारण हुंडी खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १२४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६० अपूर्ण तक लिखा है.) ७५५६२. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६०, पौष शुक्ल, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४११.५, १३४३७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३९. ७५५६३. निगोदषट्विंशिका व पुद्गलषट्त्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३८-४२). १.पे. नाम. निगोदषविंशिका, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. पुद्गलषत्रिंशिका, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषट्विंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ज ते अणते जिणाभिहिए, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ७५५६४. दशपच्चक्खाण व देशना भाव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४३८). १. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. २.पे. नाम. देशना भाव, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम व्याख्यान पीठिका दिया. महावीरजिनदेशना भावांश, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनित्यानि शरीराणि; अंति: संपदाश्रेणि सुख पामे. ७५५६५. जंबूद्वीप संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, १२४३४). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं जिणसव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ७५५६६.(+#) दशवैकालिकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ३,५)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४१२, २१४७५-८०). दशवैकालिकसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देशक-२ गाथा-४२ की टीका अपूर्ण से अध्ययन-६ गाथा-५९ की टीका अपूर्ण तक है व अध्ययन-८ गाथा-२९ की टीका अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-९ की टीका अपूर्ण तक है.) ७५५६७. (#) जयतिहयणस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४३७). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियण वरकप्प; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत हुओ त्रीणि जगत; अंति: देवसूरि वीनवइ हर्षिओ. ७५५६८. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ४४४७). For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४बी, आदि: (-); अंति: जयह जहा भ्रमह नइ भिसं, गाथा - ३२, (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से है . ) लोकनालिद्वात्रिंशिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति: एवावचूरिर्विलोक्या. ७५५६९. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२६४११, १२४३२-४०). "" जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुदाओ, गाथा-५१. ७५५७०. षड्दर्शनसमुच्चय सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., पंचपाठ., जैदे. (२६.५x११.५ १५X३०). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः सद्दर्शनं जिनं नत्वा, अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार- ७, लोक- ८७. षड्दर्शन समुच्चय- अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: चिंतनीयः बुद्धिमद्भि ७५५७१ (-) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ जैदे. (२७४१२, १२४४२). " " ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि आद्यताक्षरसंलक्ष्य अंति: लभ्यते पदमव्ययं श्लोक- ९२. ७५५७२, (+) बंदिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १०X३८). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ७५५७३. (+#) सामाचारी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११. १६५२-५६). "" सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदिः आयारमयं वीरं वंदिय, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वार ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५५७४. (+) ह्रीँकारकल्प सह विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अन्त में ह्रीँकारयंत्र दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X१२.५, १२X४०-४३). १. पे. नाम. ह्रीँकार कल्प, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: मायाबीजबृहत्कल्पात्; अंति: वांछितं लभेत् श्लोक-३०. २. पे. नाम. ह्रीँकारकल्प विधि, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: अजूआल पक्षे पूर्णाति अंति: संतापं४ पीते स्तंभ. ७५५७५. (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x१३, १३X२८). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्विसिद्धे; अंतिः वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०. " ७५५७६. अरिहंतसिद्ध स्तुति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२ (१ से २) ३, जैवे. (२७४१०.५, १४४४३). अरिहंतसिद्ध स्तुति, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं होउ, (पू. वि. सिद्धशिला वर्णन अपूर्ण से है.) अरिहंतसिद्ध स्तुति- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ७५५७७. गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६X१२, १२X३५-३९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १३ तक लिखा है.) गौतमपृच्छा- टीका, मु.] मतिवर्द्धन, सं., गद्य वि. १७३८ आदि वीरजिनं प्रणम्यादौ अंति: (-), (अपूर्ण, " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ७५५७८, (+४) सम्यक्त्व स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, ५X३२-३५). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: तुज सम्मत्त सरुवं पर, अंति: होइ समत्त संपत्ती, गाथा - २५, (प्रले. ग. जसविमल, प्र.ले.पु. सामान्य) For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २९१ सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्तवनउ; अंति: सम्यत्वनीप्राप्ति हई, (प्रले. मु. देवविमल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) ७५५७९. (+) ४ ध्यानसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४३३-३७). औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: से किं तं झाणे झाणे; अंति: ज्झाणे सेत्तं झाणे. औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते किसउ ध्यान जे मनन; अंति: ध्यानना भेद० भगवते. ७५५८०. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र व २४ जिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२४३२-३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: लब्धरुची० थाहे सदा, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ तक है.) ७५५८१. जिनप्रतिमा स्थापना निर्णयविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, जैदे., (२६४१०.५, १५४५४). जिनप्रतिमा स्थापना निर्णय विचारसंग्रह, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं०; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-१७१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५५८२. दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, २२४५३). दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: समुचय जीव सर्वथी थोड; अंति: (-), (पू.वि. वैमानिकदेव बोल प्रारंभमात्र तक है.) ७५५८३. (#) सनतकुमारचौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी-सतकु., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९४३३). सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: सुखदायक सासणधणी; अंति: चरण नमु सुखकंद ए, ढाल-४. ७५५८४. वीरजिन स्तवन चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रावण कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.पं. केसरीचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: महावीर०., दे., (२६४१२.५, १६x४३). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपन्यो; अंति: मुनिजन कीज्यो सुध, ढाल-४, गाथा-६३. ७५५८५. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७५५८६. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १७४४२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. ७५५८७. (#) शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३१). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ७५५८८. (+) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १७४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ईरिआओ सुमिणुस्सग्गो; अंति: देवसिअं करिंतिदारं. ७५५८९. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ७५५९०. (+#) पार्श्वजिन स्तुति व खड्गबंध श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिनेंद्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. रामचंद्र, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रियेवोस्तु; अंति: शिशु रामचंद्रः, श्लोक-१५. २.पे. नाम. आदिजिन खड्गबंध श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-खड्गबंध, सं., पद्य, आदि: संसृत्य गाधांबुधि; अंति: त्वां बहुमोहभूमिः, श्लोक-२. ७५५९१. भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, २१४६२-७०). भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणी नगरीइं संवत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भक्तामरस्तोत्र की महिमा की उत्पत्ति वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७५५९२. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १३४३६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. "अन्नत्थ ऊस्ससिएणं सूत्र" अपूर्ण तक है.) ७५५९३. (+) पार्श्वजिनमंत्राधिराज स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ६-१०४२५-४०). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५५९४. प्रत्याख्याकानि, संपूर्ण, वि. १८१६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भीलोडा, प्रले.पं. गंभीरसौभाग्य; पठ. श्राव. मघाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १४४३८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगए नमुक्कारसिय; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ७५५९५. (+) कल्पसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पत्र के पूर्वभाग पर विधिविधान संबंधी मंत्रों की अनुक्रमणिका है., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४२६-३०). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: (-), (पू.वि. मांगलिक श्लोक-१ तक ___ है., वि. श्लोक की टीका व बालावबोध भी संलग्न है.) ७५५९६. तिथिनिर्णय विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२४.५४११.५, १२४३२-३६). तिथिनिर्णय विचार-विभिन्न शास्त्रोद्धत, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तिथिक्षयवृद्धि विचार अपूर्ण से "चाउम्मासियवरेसे पक्खियपंच" साक्षिपाठ अपूर्ण तक है.) ७५५९७. (+#) महावीरजिनद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १५४४४). महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि: स्तोष्ये जिन; अंति: वर्द्धमानो जिनेंद्र, श्लोक-३२. ७५५९८. (+) जिनकुशलगुरुणामष्टकम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., संशोधित.. जैदे., (२३.५४११, १८४५२). जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीसौभाग्यविद्या; अंति: भुयात् सतां श्रेयसे, श्लोक-९. ७५५९९. कल्पसूत्र-गर्भपरावर्तवर्णन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २९३ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गर्भापहार प्रसंग "जालंधरस्स गुत्ताए.."अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: संहणनकाल सुखमतरइं; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७५६००. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३२). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सीद्धारथ राजानो नंदन; अंति: उदयरतन०जय श्रीमहावीर, गाथा-८. ७५६०१. विजयपताकायंत्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. विजयपताकायंत्र सहित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४८). विजययंत्र कल्प, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पुव्विंचिय नेरईए; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५६०२. (+) चैत्यवंदनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नमस्कार पत्र., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितजिन चैत्यवंदन से अरजिन चैत्यवंदन अपूर्ण तक है.) ७५६०३. (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३०). पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-९. ७५६०४. (+#) सजनचित्तवल्लभ ग्रंथ, संपूर्ण, वि. १७२०, पौष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रत्नविजय (गुरु पं. धर्मविजय गणि); गुपि.पं. धर्मविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४३). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्; अंति: संसार विच्छित्तये, श्लोक-२५. ७५६०६. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ४४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ७५६०७. षड्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११, १६४५२). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८६. ७५६०८. सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव.रवजी नारायण; अन्य. मु. कचराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, ५४२७). सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणकुमारेण भंते; अंति: करीसंति सेवं भते. सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सनंतकुमार हे पुज; अंति: कहेछ तेइ मान हीत. ७५६०९. श्रावक व साधु आलोचना विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १६x४३). १.पे. नाम. श्रावक आलोयणा विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथममीर्यापथिकी; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. साधुआलोयणा विधि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., गद्य, आदि: आलोअणा मए दिन्ना; अंति: (-), (पू.वि. "असमर्थस्य तु प्रथमालोचकस्य० स पापानिवर्त्तते" पाठ तक है., वि. आलोचना संकेत संज्ञा भी दी गयी है.) ७५६१०. (+) आधुनिक नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२.५, १४४३३-४३). For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आधुनिक नाममाला, पंन्या. मुक्तिविमल, प्रा.,सं., पद्य, आदि: उसहे भरहे अजिये सगरो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-२ श्लोक-९ तक लिखा है.) ७५६११. आहारदोष, १२ कुलादि नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. शंकरलाल-शिष्य (गुरु मु. चोथमल ऋषि, स्थानकवासी); गुपि.मु. चोथमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मुनिनो आचार., जैदे., (२६.५४१२, ५४४८). १. पे. नाम. गोचरीदोष गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. विविध आगमोक्त आहारदोष गाथा संग्रह. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २; अंति: फरासीयं कपीयं, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. १२ कुल नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: से ज्जायं पुणकुलीय; अंति: सणीजं जाव पडीगहीजा. ३. पे. नाम. २१ धोवनपानी नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सेजे पुण पाणगे जाणेज; अंति: चिवीपाणगंवा २१, गाथा-१. ४. पे. नाम. १३ चातुर्मासवर्यस्थल नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: चीखल१ पाण२ थंडील३; अंति: भिख१२ सज्याय१३. ७५६१२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२८-१२७(१ से १२७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., जैदे., (२६४११, ६४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामाचारी अंतभाग अपूर्ण मात्र है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. चंडप्रद्योतन क्षमापना से कुंभार-शिष्य दृष्टांत प्रसंग तक है.) ७५६१३. (+) भगवतीसूत्र-सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंधादि विविध आलापक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुडी: भगवतीसूत्र., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५१-५५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. विविध शतक व उद्देशों से संकलित. है.) ७५६१४. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४४०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ७५६१५. (+) वीरत्थुतीनामाध्ययन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. वीरत्थुति अध्ययन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणसमणा; अंति: ___ आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: एअंपढह कय अभयसूरीहि, गाथा-२२. ७५६१६. दशवैकालिकसूत्र-धम्मपुफिया अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्र-१आ पर व्याख्यानपीठिका नाम तथा आधी पंक्ति कृति लिखकर छोड़ दिया है., जैदे., (२७४१२, ५४३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७५६१७. (+) पद्मह्रद पद्मसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. यंत्रमय उदाहरण सहित., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ९४३३). For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org 3 पद्मद्रह मान, सं., गद्य, आदिः शतयोजनोच्चे १२ कला, अंतिः सर्वाके १२०५०१२०. ७५६१८. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७१२.५, १२x२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-३ की गाथा १ तक लिखा है.) (२६X११, १४X३८). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्म, आदि: तवरूपमनंतगुणैर्निचित; अंति: जिनेश्वर विश्वपते, श्लोक ५. २. पे. नाम. कुंथुजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जय जय कुंथुजिनोत्तम; अंति: निर्वृति नित्यविशोक, श्लोक-३. .पे. नाम मुनिसुव्रतजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५६१९. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६x११.५, १६X३२-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १६ से १८ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७५६२० (+) वीरथुई अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी : वीर०, संशोधित., जैदे., ( २६.५x१०.५, २१x४५). १. पे. नाम वीरथुईनाम अध्ययन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा, अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: पहस्स वडं सग भुयं, गाथा-३. ७५६२१. (+) स्तुति, चैत्यवंदन व प्रास्ताविक लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदिः उत्तमचेतन धर्मसमृद्ध, अंतिः विरुद्धमिहासाधारणम्, श्लोक-३. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: क्षीरेणात्मगतोदकाय; अंतिः न किंचित् फलम्, श्लोक-२. ५. पे. नाम. नेत्रांजन निर्माण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: चंबेलीफूल १०० तिलफूल, अंति: वासी पाणीसुं अंजनम्. ६. पे. नाम. ८ करण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २९५ कर्मप्रकृति- हिस्सा ८ करण गाधा, प्रा., पद्य, आदि: बंधण १ संकमणु, अंतिः ८ चत्ति करणाई, गाथा- १. ७५६२२. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.. प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६४११, २-४४४८). " साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., पग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि, अंति: (-), (पू.वि. २४ जिननाम वंदनगत शांतिजिन तक है.) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होउ अरिहंतनि, अंति: (-). ७५६२३. (+) साधु अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित, दे., (२७४१३, १०x२९). ७५६२४. उत्तराध्ययनसूत्र - नमिप्रव्रज्याध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हंडी. उत्तराध्ययन, जैवे. (२६.५x११.५, १७४४५). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "उवेखियो हुंति" से "अइमाए आयारविभूस" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ७५६२५. नंदीसूत्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ८४४१). नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अहँस्तनोतु स श्रेय; अंति: विघ्नविघातदक्षाः, श्लोक-८. ७५६२६. शुक्तावली व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ५४४०). १. पे. नाम. शुक्तावली सह टबार्थ, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ग्रंथसहस्रधारणम्, श्लोक-१२७, (पू.वि. श्लोक-१२३ अपूर्ण से है.) सूक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एक हजारनो भणहार थाई. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कुलो सहीणी नगणोपि; अंति: चतुर्थो मुनयो वदंति, श्लोक-४. ७५६२७. सारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१३, १५४४०). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पं. विजयरत्न, सं., पद्य, आदि: श्रीमाता श्रुतदेवता; अंति: विजयरत्न० सुदृष्टितः, श्लोक-१५. ७५६२८. (+) २० स्थानक श्रावककर्त्तव्य व मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४१). १.पे. नाम. २० स्थानक श्रावककर्त्तव्य, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (१)उपदेशसतके तद्वत्ता, (२)अष्टप्राकारिका पूजा; अंति: वज्रनाभ०निर्ममे सुधी, श्लोक-२१. २.पे. नाम. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना विचार, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. पेटांक-१ के बीच में ही यह कृति दी गयी है. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. ७५६२९. सिद्धाचलजी का १०८ नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १५४५२). शत्रुजयतीर्थ १०८ नमस्कार, सं., गद्य, आदि: शासनाधीश्वर० वर्धमान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ५२वें नमस्कार तक लिखा है.) ७५६३०. उपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९९-९८(१ से ९८)=१, ले.स्थल. गुंडलग्राम, प्रले. मु. चतुरचंद ऋषि (गुरु आ. माणिकचंद); गुपि. आ. माणिकचंद; अन्य. मु. मनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में "श्रीनवानगरमध्ये वसा श्री ५ मनजी भीमपांचम उजवी परत पूठो बंधणो वोहराव्यो संवत् १८६६ना कार्तिक शुदि ५ रवौ"., प्र.ले.श्लो. (७९६) भग्नपृष्टी कटीग्रीवा, जैदे., (२६४११.५, ७X४१-४६). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. वस्तुतः मूलपाठवाला भाग नहीं है.) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (-); अंति: संजात इति भद्रं, (पू.वि. मात्र प्रशस्ति का अंश है.) ७५६३१. (+#) मेरुतेरसी कथा, अपूर्ण, वि. १८५२, श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १३४४८). मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मुक्तिसाधनं भवति, (पू.वि. अन्तिम भाग के कथांश हैं.) ७५६३२. (+) ऋषभदेव, वीर व पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २२, दे., (२७४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २९७ पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसीप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ७५६३३. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १२४३५). साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नेत्रानंदकरी भवोदधि; अंति: जिनेश्वराणां, श्लोक-८. ७५६३४. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६९, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. रामलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १०x४९). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीअहंत भगवंत असर; अंति: माला विस्तरतां यातु. ७५६३५. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. आगरा, प्र.वि. हुंडी:दसासूत्र. लिखावट से प्रत १९वी की लगती है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२६.५४११, ३४५८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, (पू.वि. अंत के पाठांश हैं.) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तिम कहुं छु. ७५६३६. (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८.५४१२, १८४३०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: श्रीवीरस्वामिकुं नम; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७५६३७. (+#) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जगराम, प्रले. पं. नरायणदास (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); पठ. श्रावि. पालीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १४४४५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: (१)सूरिः श्रीमानदेवश्च, (२)जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९, (वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के बाद १. उपसर्गाः क्षयं० व २. सर्वमंगलमांगल्यं ये दो श्लोक अनुपूरित रूप से अन्य लेखक द्वारा लिखा गया है.) ७५६३८. मंडल बोल २४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १२४३०). २४ मांडला, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आगाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: पासवणे अहियासे ६. ७५६३९. (+) स्थानांगसूत्र- चतुर्थपंचमस्थान आलापक व पंचशरीर व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. स्थानांगसूत्र-स्थान४ करंडक-आचार्य आलापक व स्थान-५ आचार्यादि आलापक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पंचशरीर व्याख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा कालप्रमाणनिरूपणगत औदारिकादिशरीरपंचक निरूपण की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ___ औदारिकं उदार प्रधान; अंति: अतिसूक्ष्म भवति. ७५६४०. कथा संग्रह अष्टप्रकारी पूजाविषये, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७.५४११, १६४५०). For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कथा संग्रह - ८ प्रकारी पूजायां, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. वस्त्रावलीदाने चंदनश्रेष्ठि कथा अपूर्ण से पुष्पपूजाविषये अर्जुन कथा तक है.) ७५६४१. (+) देवपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-२ (२ से ३ ) = ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६११, १५X४६-५०). देवपूजा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. सं., गद्य वि. १४वी, आदि संपयं जहा संपदार्थ, अंतिः (१) भिराम्नायतः सुगुरोः, (२) प्रदीपं कुर्यात् ग्रं. २६९ (पू. वि. घरपडिमापूयाविहि अपूर्ण से स्नपनविधि अपूर्ण तक है.) ७५६४२. अनागत २४जिन पूर्वभवनाम व साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १८२९, पौष शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-२(२ से ३)=४, कुल पे. २, प्रले. श्राव. प्रभुदास हरखचंद, अन्य सा. डाहीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी साधुवंदना, जैदे. (२६.५x११.५, ११X३१). १. पे. नाम. अनागत २४ जिन पूर्वभवनाम, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. १ से ९ नाम लिखने के बाद पुनः १ से २४ नाम लिखा गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनागतचौवीसी के पूर्वभव नाम, पुहिं, गद्य, आदिः १ श्रेणिक २ सुपार्श, अंतिः २४ स्वातिबुद्ध. २. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: वंदियं ते वीरजिणं, अंति: लहंती ते सअल कढाणं, गाथा- १०७, (पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से गाथा-५० अपूर्ण तक के पाठ नहीं हैं . ) ७५६४३. (+) शत्रुंजयतीर्थकल्प स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित, जैदे. (२६.५४१०.५, ५X३७). शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सुअधम्मकित्तिअं तं अंति: (-) (पू. वि. गाथा ३८ तक है.) शत्रुंजयतीर्थ कल्प- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रुत धर्मसिद्धांत, अंति: (-). ७५६४४. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२५.५X१२, १६३३-३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - ४३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५६४५. (+) भरतचक्रवर्ति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. नूतनपुर, प्रले. मु. गोरधन ऋषि (गुरु मु. नारायण ऋषि); गुपि. मु. नारायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२७४११.५, ७४४६). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तरणं से भरहे राया; अंतिः सव्व दुक्खप्पहीणं. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि तिहवार पछी ते भरतराज, अंति: सर्वदुख क्षय कीधा. ७५६४६. सम्यक्त्वपच्चीसी व १४ गुणस्थानक बोल, पूर्ण, वि. १८३६, माघ कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, कुल पे. २, पठ. श्राव. मनरुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, ६X३४). १. पे. नाम, सम्यक्त स्तवन सह टवार्थ व बालावबोध, पृ. २आ-५आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. , सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-३२, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) सम्यक्त्वपच्चीसी टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंतिः सम्यक्त्वनी प्राप्ति, अपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. १४ गुणस्थानके जीवभेद विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि: पहिले गुणठाणे जीवना, अंति: चौदमां सुधि जाणवा ७५६४७. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९७४ श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल घोल, प्रले. श्राव. केशवजी शवजी कोठारी, सम. सा. राणबाई, अन्य. सा. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ऋषि. पेंसिल से सुधारा गया है. संवत् १९७४ धोल गाँव में साध्वी राणबाई व जीवीबाई के द्वारा चातुर्मास करने का उल्लेख मिलता है., संशोधित., दे., ( २६१२, १२x२५). For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २९९ ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: कल्याणानि च सोश्नुते, श्लोक-९१. ७५६४८. अर्हद्विज्ञप्तिरूप विचारषत्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, ६४३९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: गजसारेण अप्पहिआ. गाथा-३९. ७५६४९. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पत्तननगर, जैदे., (२६.५४११, ११४३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६४. ७५६५०. (+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले.पं. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्र-१अपर कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्रसूरि द्वारा रचित प्रारंभिक श्लोक-९ तक लिखकर छोड़ दिया है तथा पत्र-१आ से जिनसेनाचार्य (दिगंबर) रचित महाशोकध्वजादिशत ४थे शत से लिखना प्रारंभ किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७.५४१२, १४४४१). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रस्तावनामिमाम्, श्लोक-१६६, (वि. वस्तुतः कृति प्रारंभ व मध्यभाग प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण है.) ७५६५१. अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १२४३१). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीज्ञानने विषे अति; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ७५६५२. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:थुईपत्र, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४४३). १.पे. नाम. पजुसणनी स्तुति, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: दिन अधिक वद्धाइ जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरे भेदे जिन पूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सेजो तीरथ सार; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ____ मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल लीलानुं धान; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७५६५३. अल्पबहुत्व विचार व संख्यात असंख्यात विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्रले. पंडित. हर्षलाभ (गुरु उपा. सत्यप्रमोद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २७४८०). १.पे. नाम. अल्पबहत्व विचार-९८ बोल, पृ. ४अ, संपूर्ण. ९८ बोल-जीवअल्पबहत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वजीवभ्योग: जिन; अंति: सघलाइ जीव अधिका. २.पे. नाम. असंख्यात अनंत विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: यथा जंबूद्वीप जेवडा; अंति: इम १८ भेद हुइ. ७५६५४. सोल स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १४४५५). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि वीनवू, अंति: ए गुरु गुण तणा पाय, गाथा-२०. ७५६५५. भास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२७४११.५, १५४३४). १.पे. नाम. विजयमानसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मानविजयसूरिगुरु पद, मु. धीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: भविजन भावि भेटिइं; अंति: धीरविजय० गाय लालरे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. विजयमानसूरिगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मानविजयसूरिगुरु पद, मु. धीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीविजयमानसूरिराया; अंति: पूरयो धीरजगीस रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. विजयऋद्धिसूरिगुरु भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋद्धिविजयसूरिगुरु पद, मु. धीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीविजयऋद्धिसूरीसस; अंति: सेवक धीरलहें बहुमान, गाथा-५. ४. पे. नाम. विजयऋद्धिगुरु भास, पृ. १आ, संपूर्ण. _ ऋद्धिविजयसूरिगुरु भास, मु. धीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: संघसलूणो चतुर; अंति: धीरविजय जय काजइं, गाथा-७. ५. पे. नाम. मेरुनामानि, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीसुदर्शननाथाय; अंति: मालीनाथाय नमः २०००. ७५६५६. (+#) अमरसेनवयरसेन कथा, अपूर्ण, वि. १६०१, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, प्रले. आ. जिनभद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन दिन का अंश फटा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११.५, १८४५६). अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धौ विदेहे तावुभावपि, श्लोक-२४४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ___ श्लोक-१४ अपूर्ण से है.) ७५६५७. (+) आहाकम्म सह टबार्थ व करणसित्तरीगाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में संबोधसप्ततिका की गाथा लिखि गई है., संशोधित., दे., (२७.५४११.५, ४४५०). १. पे. नाम. आहाकम्म सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मं उद्देसीय; अंति: हेउ सरीरबो छेयणट्ठाए, गाथा-६. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधा कर्म जे कहीयै जे; अंति: वोसरावे तिवारे आहार, (वि. अंत में विभिन्न आगमों से संकलित आहार के ४७ दोषों की सूची दी गई है.) २. पे. नाम. ४७ एषणा दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १आधाकर्मि २उद्देशिक; अंति: एवं सर्व मिलि ४७. ३. पे. नाम. करणसित्तरी चरणसित्तरी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. __ चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्मं १०; अंति: अभिगाहो चेव करणंतु, गाथा-२. ७५६५८. आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४११, १८४५८-६०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ उद्देश-६ सूत्र-१०३ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ७५६५९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०-३९(१ से ३९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ७४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१११ अपूर्ण के ११२ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५६६०. महानिशीथसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४११, ४४३०). महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५ सूत्र-२६, प्रा., गद्य, आदि: से भयवं जेण केइ आयरि; अंति: (-), (पू.वि. "कालक्कमेणं असंजयाणं सक्कारकारवेणं" अपूर्ण पाठांश तक है.) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५ सूत्र-२६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते भगवान जे काइ आचा; अंति: (-). ७५६६१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६-७५(१ से ७५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ६x४०). For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ३०१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- २५ गाथा १९ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). , ७५६६२. श्रद्धप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२६.५X११.५, १२४३९). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३० अपूर्ण तक है.) ७५६६३. (+) कलिंगसेना कथा व मदिरावति कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-६ (१ से ६) = २ कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी: कलिंगसेनाकथा., संशोधित. जैवे. (२६.५x११. १५४४०). " "" १. पे. नाम. कलिंगसेना कथा, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि (-); अंतिः महिम्ना गतौ सुरलोकम्, (पू. वि. "ददेतच्चयाममदेवं पाठांश से है.) २. पे. नाम. मदिरावती कथा, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मदिरावती कथा-प्रभावे, सं., गद्य, आदि: बुधैर्विधीयतामेको, अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "भाग्यमेव हेतु मदिरावत्या" तक है.) ७५६६४. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५X११.५, १२x२५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलात्प्रतिष्ठानम, अंतिः (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १८ अपूर्ण है.) " ७५६६५. सम्यक्त्व स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी, पृ. १. ९आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं अंतिः हवेड सम्मत्तसंपत्ति, गाथा २५. - १, कुल पे. २, जैदे., (२७१२, १४४५२). २. पे. नाम. औपदेशिक लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह " पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) श्लोक-४. 1 ७५६६६. तीर्थमाला स्तवन, गुरु स्तुति व जिनपूजा पद संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैये., (२५.५४११.५, (२६x११.५, १४X३६). १. पे. नाम. आत्मार्थी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. १२X३१). १. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आ. विजयतिलकरत्नसूर, मा.गु, पद्य, आदि: अणी भवन में सात कौडि; अंति भाष्यो पापपणासे दूरी, गाथा- ९. २. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि गुरु समकित धारी जी, अति सुगुणां मनमांहें जी, गाथा ८. ३. पे. नाम जिनपूजा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि दरसण श्रीजिनराज को, अंतिः सरणो तुमही को, गाथा- ३. ७५६६७. वीसस्थानकतपादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (२१)=१, कुल पे ३, जै, (२७१२.५, २०४८). १. पे नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. प्रा.मा.गु. सं., प+ग, आदि लो. २४१ नमो अरिहंता, अंतिः आवश्यकरि वांदी जड़. २. पे. नाम. वीसस्थानक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत१ सिद्ध२ पवयण३; अंति: दो तिन्नि सव्वेवा, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीसस्थानकतपउच्चारण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण, २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि ईर्यापथिकी प्रति, अंति: गारेण वोसिरामि ७५६६८. (#) आत्मार्थी स्वाध्यायद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि वा मे वास में वे अंतिः मुगतपुरीमां खेलो, गाथा ७. २. पे. नाम. आत्मार्थी स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: क्या तन माजना बे; अंति: ना कब लगसी वें दरजु, गाथा-६. ७५६६९. संयोगीभांगादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ३४४१०-२३). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५६७०. (+#) तप संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १४४३२). तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वीजा त्रिविहार करवा, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., दीक्षा तपसे है.) ७५६७१. देवसीप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११, १२४३८). देवसीयप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरीयावही तसुतरी; अंति: उपाध्याय सव साधू. ७५६७२. (+) स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १८९५, फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. चंडेसर, प्रले. नेमविमल कोटवाल; पठ. पं. माणिक्यसोम; राज्यकाल आ. उदयसोमसूरि (गुरु आ. आणंदसोमसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १२४३८). स्नात्रपूजा, मु. उत्तमविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: (-); अंति: (१)उतमविजयकृतं स्नात्रं, (२)दीठा धन आज दिहाडे, गाथा-६८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-१३ से है.) ७५६७३. पार्श्वनाथ स्तवन- मांडलपुर मंडण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १२४३७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. मलुकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी मांडलगाम; अंति: सदासुख पावइरे, गाथा-६. ७५६७४. महादंडक स्तोत्र व ९८ बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, १६४७३). १.पे. नाम. महादंडक स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंति: सामिणूत्तर पयंदेसु, गाथा-२०. २. पे. नाम. ९८ बोल यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: गर्भ० मनुष्याः सर्वा; अंति: सर्वजीव विशेषाधिकाः. ७५६७५. (+) निगोद विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १५-१७४५५). १. पे. नाम. निगोदविचार गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. रत्नसंचय-हिस्सा निगोदविचार गाथा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंखजोयण माणे; अंति: विजतहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-४. रत्नसंचय-हिस्सा निगोदविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: अनंता संख्याता जीव. २. पे. नाम. षट्दर्शन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ दर्शन विवरण, सं., पद्य, आदि: बौद्ध१ नैयायिकर; अंति: दर्शना नाम मुन्यहो, श्लोक-७. ३. पे. नाम. चमरेंद्रपरिवार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चमरेंद्रने ५ अग्रमहि; अंति: भोगभोगवतो विचरै. ४. पे. नाम. देवादिचतुर्गति लक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वर्गाच्युतनामिह; अंति: तिर्यग् गतिगत्तरस्य. ५. पे. नाम. श्रोतालक्षण विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १६ बोलना जाण होइ; अंति: चर्मोक्षगंसुखं. ६.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ७५६७६. पन्नवणा स्वाध्याय व हरियाली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ६x४३). १. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्रस्वाध्याय सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ३०३ प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदि कहजो रे पंडित ते अंति: हरी आली मनने जगीसइ, गाथा - १३. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि देखिइ जाणिइ ते चेतना; अंतिः माहिथी काढी छई. २. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांबल भींजे; अंति: (-), (पू. वि. गाथ-३ अपूर्ण तक है.) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि कांबली कहतां काया, अंति: (-). "" ७५६७७. शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ सा. सूरजबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १२x२३). शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि कोइ शेत्रुजा राह, अंति: ज्ञानविमल गुण गावेरे, गाथा-८. ७५६७८. आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, राधनपुर, पठ. सा. रत्नश्री, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२६४११, ८x४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु. पच, वि. १८वी, आदि: अविनाशीनि सेजडीयें; अंतिः रुपचंद० बंधाणी जी रे, " गाथा ६. ,, ७५६७९. पाक्षिक अतिचार व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२७११, १५X४३). १. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार- चारित्राचार तक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि बहेनी प्रभुजी जई, अंति: जेहस्य अविहड रंग, गाथा - ७. ३. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण - मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुम मूरति मोहन वेलडी; अंति: चिदानंद रंगरेलडी जी, गाथा-६. ७५६८०. (+) पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६X१०.५, १६x४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मेरो मन मोहि लियो; अंति: देख्यो पायो परमानंद, गाथा-८. २. पे. नाम विष्णु स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांताकारं भुजगशयनं अंतिः भय हरं सर्वलोकैकनाथ, श्लोक १. ३. पे. नाम. पूर्वादि कालमान विचार, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. पूर्वादिकालमान विचार, रा., गद्य, आदिः ८४ लाख पूर्व आयु; अंति: १ वर्ष है. ४. पे नाम, कामघट संबंध- धर्मप्राप्तिविषये सह अर्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण कामघट संबंध- धर्मप्राप्तिविषये हिस्सा श्लोक-१, सं., प+ग, आदिः उद्वाहे प्रथमो वरः ; अंति: सोस्त्वादिनाथ श्रिये. कामघट संबंध-धर्मप्राप्तिविषये - हिस्सा लोक-१ का अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेवी वाहरै अधिकारै; अंतिः मंगलिकरौ दाता हुवै. ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - प्रथम अध्ययन, पृ. ४आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६. पे. नाम. प्रास्ताविक लोकसंग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ७५६८१. (+) वृद्धशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., (२६X१२, ९-१४X३५-३७). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: (-); अंति: जैनं जयतु शासनम्, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ॐग्रहाचंद्रसूर्यागारक बुधवृहस्पति शुक्रशनैश्चराहुकेतु सहित का वर्णन से है.) For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५६८२. (+) हिंगुल प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, ४४३२). हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., दानप्रक्रम श्लोक-५ से शीलप्रक्रम श्लोक-५ तक है) हिंगुल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ७५६८३. सम्यक्त्व विवरण सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. *पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२७४१३, ३४३४). सम्यक्त्व विवरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अणंतसंसारिओ होइ, (पू.वि. मुहूर्तं कस्यचित् पाठांश से है.) सम्यक्त्व विवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: तो अनंतो संसारी थाइ. ७५६८४. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४५२). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक है., वि. सुभाषिताष्टकादि ग्रंथों के श्लोक हैं.) ७५६८५. (+#) सिद्धाचल स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४३३). शत्रुजयतीर्थस्तव, सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रप्रमुखा नागा; अंति: लप्स्यते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३. ७५६८६. अहिंसादि मतमतांतर चर्चा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१३, १४४३८). अहिंसादिमतमतांतर चर्चा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म दया मै; अंति: ते विचारी जोइज्यो, (वि. विभिन्न आगमों से संकलित) ७५६८७. (+) लब्धि थोकड़ा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १६x४२). भगवतीसूत्र-लब्धि थोकड़ा, संबद्ध, प्रा.,रा., गद्य, आदि: (१)जीवगइ इंद्रीकाय सोहम, (२)पांच ग्यांन तीन; अंति: (-), द्वार-२०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वार-२० अपूर्ण तक लिखा है.) ७५६८८. (+) आश्रवत्रिभंगी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २६x६६). आस्रवत्रिभंगी-यंत्र, पुहिं.,मा.गु.,सं., को., आदि: श्वेतांबर मतानुसारी, अंति: (-), (पू.वि. अनाहारीक रचना गुणठाणा ५ तक है.) ७५६८९. पार्श्वनाथनो विवाहलो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४१२, ८x२५). पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: स्वस्ति श्रीदायक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५६९०. षट्आ रास्वरूप महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, जैदे., (२७४१२, १२४३२). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: सेवक सकलसंघ मंगल करे, ढाल-५, गाथा-६४. ७५६९१. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२६४११.५, १५४४७). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धिचक्कं नमामि, पूजा-९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., आचार्यपद पूजा अपूर्ण से है.) ७५६९२. (+#) श्राद्धपाक्षिकादि अतिचार, अपूर्ण, वि. १८३३, आश्विन कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४०). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. देव, गुरु, धर्म के विषय में अतिचार का वर्णन अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३०५ ७५६९३. शत्रुंजय लघुकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ऋ. मोतीचंद (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, ४X३४). शत्रुंजयतीर्थं लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ अंतिः लहइ सेतुंजजत्तफलं, गाथा २५. शत्रुंजयतीर्थं लघुकल्प- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अईमुत्तय केवलिणा, अंतिः सेतुंज जात्रा फलं. ७५६९४. (+) औपपातिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-७ (१ से ७) = ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जै.., (२६.५x११, ५X३२-४१). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. सूत्र - ६ अपूर्ण से सूत्र - १० अपूर्ण तक है.) ७५६९५. (+) दंडक प्रकरण की स्वोपज्ञ अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२७x९१.५, १३x४१-५०). दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-४० की अवचूरि अपूर्ण तक है.) ७५६९६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८२-८० (१ से ८० ) - २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५X११.५, ५४२८-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., महावीरजिन चरित्रे केवली संख्या अपूर्ण से चरित्र के अंतिम कुछेक वाक्यांश अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ७५६९७. (+) भाव प्रकरण व चौद गुणस्थानक भेद संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. शांतिनाथ प्रसादात् संशोधित., दे., (२६.५X१२, ८-११X३०). १. पे. नाम. भावप्रकरण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरिय नवणो आणंद, अंतिः विजयविमल० पुव्वगंवाओ, गाथा - ३०. २. पे नाम, चौद गुणस्थानक भेद, पृ. ४अ, संपूर्ण, १४ गुणस्थानक भेद, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). , ७५६९८. नलराजादवदंतिराणी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२६.५X११.५, १५X४६). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख अंति: (-). (पू.वि. खंड-२ हाल ८ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७५६९९. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रावण कृष्ण, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. सुदामापुरी, प्रले. मोरारजी भगवान जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ११३२). १. पे. नाम. पैंतीस बोल संसार समुद्रना भासण, पृ. १अ, संपूर्ण. ३५ बोल - संसारसमुद्र के, मा.गु., गद्य, आदिः बोले संसार रूपी समुद; अंति: कुमारनी पेरे जाणवाय. २. पे. नाम. २४ बोल परम कल्याणना, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. २४ बोल- परम कल्याण के, मा.गु., गद्य, आदि: तपस्या करवी ते जीवने, अंति: कुमारनी पेरे जाणवाय. ७५७०० थूलभद्र गीत, संपूर्ण, वि. १७७८, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. विक्रम १७७८ के प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (२६X११, ७X३१). स्थूलभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रियडा मानो बोल, अंति: कहइ प्रणमुं पाया रे, गाथा ६. ७५७०१. पर्युषणपर्व नमस्कार व उपधानतप स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६.५४११.५, १५X३९). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०६ www.kobatirth.org ७५७०३. इलाचीपुत्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५x११.५ १२४२९). " " मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडणी, अंतिः धीर करे गुणगान, गाधा- ७. २. पे नाम, उपधानतप स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर भासे अंतिः धीरने लील करीजे जी, गाथा-४. ७५७०२. (+) प्रदेशीराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x१०.५, १५x४२). प्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हिव राणी मन चिंतवै, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल- १ दोहा-४ तक लिखा है.) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लबदवजे गुण गाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ११. ७५७०४. (+) औपदेशिक लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १४५ संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, ३१X१६). " औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वह्नि गुरु स्त्रियः (पू. वि. प्रारम्भिक श्लोक नहीं हैं., वि. प्रथम टुकड़ा नहीं होने से प्रारम्भिक श्लोक नहीं हैं.) ७५७०५. (+#) स्तंभन पार्श्वनाथ स्तवन व नेमिजिन खांडणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. प् पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, १९४५३). " १. पे. नाम. थांभणा पार्श्वनाथावदात स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मा.गु, पद्य, आदि: वरसह लाख अग्यार, अंतिः चिरकालू चिहिओ भणइ, गाथा-३४. २. पे. नाम. नेमिराजिमती खांडणा, पृ. १आ, संपूर्ण. राजिमती खांडणा- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, आदि आज मुं सुहणडइ सेत्रु, अंति: तेहनइं देवइ ओलगई ए. गाथा - ३०. ७५७०६. (+) संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. कुंवरी बाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी : संथारापोरसी., संशोधित., दे., ( २६.५X११, १३X३४). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः एव समत्तं मए गहियम गाथा - ११. ७५७०७ (+) नमिजिन स्तवन, चारमंगल सज्झाय व वीसस्थानकनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.५, १३४५६). १. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अभिराज, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति दिउ मुझ वाणि; अंति: अभिराज० दया धर्म खरो, २. पे. नाम, चारमंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, (२७११.५, १५X४२). १. पे. नाम, चोऊत्री अतिशय, पृ. १अ संपूर्ण. ४ मंगल सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: मंगलिक पहिलूं कहूं अंति; जेहनि ए पोतीनी चीत्त, गाथा-५. ३. पे. नाम, स्थानकनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, मु. वीरदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी साधुनि रे हईडि; अंति: गुरुनां सुणसइ, For Private and Personal Use Only ,गाथा - २५. गाथा - १२. ७५७०८ (+) चोत्रीस अतिशय व पांत्रीस वाणीगुण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: केश श्मश्रु नख रोम, अंति: एक कोइ ईति न होई. २. पे. नाम पात्रीसवाणीना गुण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. 7 ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु. सं., गद्य, आदि संस्कार सहित वचन बोल, अंति: करता अछन्न वचन कहइ. ७५७०९. चुनरी सज्झाय, द्विरेफ गीत व टकोचीड, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७X११.५, १७X६२). १. पे नाम, चुनरी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३०७ आध्यात्मिक चुनरी-सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: एह अनोपम चुनरी मागे; अंति: माल० मारग ए हाल हो, गाथा-२२. २.पे. नाम. द्विरेफ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली मन; अंति: कहि कवि माल, गाथा-१८. ३. पे. नाम. टकोचीउ, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन दरजीकुंजीव कहि; अंति: प्रीतिविजय कुंभावे, गाथा-७. ७५७१०. (#) महावीरजिन स्तवन व सिद्धाचल स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. गजविमल (गुरु पंन्या. कल्याणविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिद्धारथना हो नंदन; अंति: विनयविजय गुणगाय, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरु मन मोह्युरे; अंति: ज्ञानविमल० नावै पार, गाथा-५. ३.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्यो; अंति: खिमारतन० प्यारा रे, गाथा-५. ७५७११. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६.५४१२, १३४३८). स्तवनचौवीसी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., स्तवन ३ से स्तवन ६ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७५७१२. (+) पर्युषणपर्व नमस्कार व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३५). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो सिणगार; अंति: आराधीइ आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहेन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: विनयविजय० नमुशीस, गाथा-३. ७५७१३. (+) सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३८). सामायिक सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसारद सद्गुरु; अंति: सामायक गुण गाय रे, ढाल-२, गाथा-२२. ७५७१४. (+#) सैत्तुंजागिरि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. प्रतापविजय; लिख. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमल केवल ज्ञान कमला; अंति: पद्मविजय सुहितकर, गाथा-७. ७५७१६. सिद्धशिलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १४४३८). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: शिवपुर नगर सोहामणु, गाथा-१६. ७५७१७. (+) कर्मविपाकफल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३४). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: रीधीहरख० करम माहाराज, गाथा-१८. ७५७१८. पद्मप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ८४३४). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभु तुम सेवना; अंति: मोहन० साचो नेह हो, गाथा-५. ७५७१९. (#) शीलनी ३२ उपमा बोल व १६ उपमा बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १७X४६). १. पे. नाम. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ग्रह ९९ नष्यत्र २८; अंति: शीलव्रत प्रधान मोटौ. २.पे. नाम. शीलव्रत १६ उपमा बोल, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पृष्ठ- १अपर है. मा.गु., गद्य, आदि: सुद्ध मने शील पालता; अंति: देवतादिक दोषे नहीं. ७५७२०. स्वयंप्रभु गीत व ऋषभानन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १०४३८). १.पे. नाम. स्वयंप्रभजिन गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केहनइ छेह न दिंत, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ऋषभानन गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ऋषभाननजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मई तो ते जाण्यो; अंति: साहिब मोह थकी जिनराज, गाथा-६. ७५७२१. पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. अन्त में किसी अन्य कृति का मात्र प्रारम्भिक वाक्य अपूर्ण लिखकर छोड़ दिया है., दे., (२६४११.५, ११४३६). पंचकल्याणक स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जगजीव मिलोगा तेहमै, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., केवलज्ञान स्तवन, गाथा-५ अपूर्ण से है.) ७५७२२. विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४११, ११४३१). बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "छलवादी से वाद न करवो" से "अतिकलेसकंकास करे तो भलीगतिनोत्रोटो पडे सही" तक के पाठ हैं.) ७५७२३. एग्यारसनो स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, जैदे., (२७X१२, १०४३४). १.पे. नाम. एग्यारसनो स्तवन, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५७२४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. चंडावल, प्रले. मु. गौतमविजय (गुरु पं. ज्ञानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री परमेश्वर्जी., जैदे., (२७४११.५, १२४३७). १. पे. नाम. पदमप्रभुजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ३०९ पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पच, आदि धन धन संप्रति साचा, अंतिः कनक० भव भव सेवरे, गाथा - ९. २. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगनायक जगगुरु, अंतिः केसर कहै ० दरसण सुखकंद, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-५. ३. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि पुखलमे वीजेव जयो रे, अंतिः भयभंजण भगवंत, गाथा- ७. ७५७२५, (4) पद्मावती वार्ता, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २८x१२, ९X३३). पद्मावती वार्त्ता, मा.गु., पद्य, आदि: नाम सारदा वरणवु, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ८ अपूर्ण तक है.) ७५७२६. (+) भरतबाहुबली छंद, संपूर्ण, वि. १७३९, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : महबाहुबल छंद., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६४११.५, १४४४४). , "" गुणरत्नाकर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: कोसलदेस अयोध्या सोहइ, अंति: गुणरत्नाकर छंद, गाथा-५७. ७५७२७. (+#) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक - दृष्टांतनाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. जोगीदास भाट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६.५X११.५, १३X३६). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-६३ ध्यान दृष्टांतनाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अनाणं नाणे० एह उपरि, अंतिः संभूतनुं दृष्टांत. ७५७२८. (+) चोवीसजिनना चंद्रावली, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी चंद्रावला. संशोधित, वे. (२६४११.५, १३X३९). , २४ जिन चंद्रावली, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराया कुल केसरी, अंति: ऋषभ० स्वामी पार उतारो, गाथा - २५. ७५७२९. (+) इलाचीकुमार रास, अपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ५-२ (१ से २) =३ ले. स्थल, आखज, प्रले. मु. जयराज ऋषि (गुरु मु. उदयराज ऋषि, लोंकागच्छ); गुपि. मु. उदयराज ऋषि (गुरु आ. त्रिलोकसिंह, लोंकागच्छ); आ. त्रिलोकसिंह (लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ईलाची., संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १६x४३). इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: न्यानसागर ० अजुआलइ छे, ढाल - १६, गाथा- १९५, ग्रं. २५९, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल - २, गाथा - १ अपूर्ण से है.) ७५७३०. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. मु. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १२४२९). १. पे. नाम. जुवटानी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभलि, अंतिः आनंदजी कहे कर जोड रे, गाथा- ११. २. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: मुनी तो विभारे गिर, अंति: उदयचंद० भवजल तीर, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमी स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि, अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. सीताजीरी सज्झाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि जनकसुता हुं नाम अंति: उदयरतन० करे प्रणाम, गाथा-७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: जीव कहे सुण जीभडली, अंति: लावण्य० अब भागी रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धरम मुकीस वनय म; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा-९. ७५७३१. (+) अट्ठाणु द्वार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, प्रले. मु. गोविंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४१४). ९८ बोल-जीवअल्पबहत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: १सर्व थोडा गर्भज मनु; अंति: जीव विशेषे अधिका, (पू.वि. बोल-१३ से ६६ नहीं है.) ७५७३२. (+) स्तंभनपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. लालमाला; अन्य. श्रावि. सामलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३९-४६). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुंरे पास; अंति: जाणी कुसललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. ७५७३३. (+#) जगडुशानी कथा, संपूर्ण, वि. १८१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु पं. जीतविजय); गुपि.पं. जीतविजय (गुरु पं. सत्यविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४४१). जगडूशा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: ते जगडु मधुमतीपुरीनो; अंति: एहवो पुण्यवंत थयो. ७५७३४. (+) आठकर्मभेदविचार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १६४२५-४०). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीयकर्म; अंति: वीर्यांतराय. ७५७३५. चोवीसतीर्थंकर सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मणोद, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: सवैया २४., जैदे., (२६.५४११, १३४४२). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: नयविमल० भणो नरनारी, गाथा-२६. ७५७३६. (+) चैत्यवंदनभाष्य सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३३-३६). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक है.) चैत्यवंदनभाष्य-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५७३७. (+) भगवतीसूत्र शतक-७ उद्देश-१०, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ११४४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., 'बहुतरागं वाउकायं समारभति' पाठ तक है.) ७५७३८. (-) चारगोला ढाल व स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: च्यारगोला., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १७X४०). १.पे. नाम. च्यारगोला ढाल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह पेटांक ३आ पर समाप्त होता है. ४ गोला ढाल, ऋ. गोरधन, मा.गु., पद्य, आदि: आठ कर्म अनादिका; अंति: गोरधन० धर्मनी शाखा, ढाल-८, गाथा-३०. २. पे. नाम. धर्मोमंगल सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह पेटांक पृ. ३आ पर है. धर्ममंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मोमंगल महिमा घणो; अंति: धर्मे मुक्ति जाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह पेटांक पृ.३अपर है. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअभिनंदन हो अरज; अंति: महानंद० हो भयथी राखो, गाथा-५. ४. पे. नाम. बाहुबलीनी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह पेटांक पृ.३अपर है. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजनाते अतिलोभिया; अंति: एवा समयसुंदर गुण गाय, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५७३९. रिपुमर्दनभुनानंद चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. १८३३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १६-१३(१ से १३)=३, प्रले. मु. शंभुराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४५). रिपुमईनभुवनानंद चौपाई-शीलविषये, ग. लब्धिकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गुणतां नितु आणंद, गाथा-७४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "तहा नारीनराणाय" पाठ से है.) ७५७४०. (+) औपदेशिककथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४४). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से ७६ अपूर्ण तक है.) ७५७४१. (+) चोवीसदंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. कामठी, प्रले.पं. परमसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १९४२२-४२). २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीदंडके शरीर३; अंति: व्यंतर ज्यु सर्व. ७५७४२. (+) लावणी व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १०, ले.स्थल. नागोर, प्रले.ऋ. ऋषभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १३४३३-३५). १. पे. नाम. शांतिनाथजी री लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन लावणी, आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: शांतिनाथ महाराज; अंति: अमृत० विघन टले तन का, गाथा-५. २. पे. नाम. धर्मजिणंद पद, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: धर्मजिणंद पद भजले; अंति: अमृतचंद्र० धन सकलै, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सखी री बोधिसुरंग; अंति: अमृत० वसंत सुपारी, गाथा-३. ४. पे. नाम. सुबाहुजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सुबाहु जिणंद पद; अंति: अमृत जैनधरम आराधो, गाथा-३. ५. पे. नाम. श्रेयांसजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: विष्णुनंद आनंद के अंति: अमृत सिरनामीरे, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. अवीर, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर कनकलता सी; अंति: अवीर० मोक्षगामिनी, गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: नेमिजिन देखि दृगन; अंति: अमृत० अहर्निश पाया, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: उमंग भई दरशण की मन; अंति: धन कीरत सुख इण राज, गाथा-३. ९. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., पद्य, आदि: संभव जिनजी से प्रीत; अंति: अमृत० शिवलील मंगी है, गाथा-४. १०. पे. नाम. सातवाररी लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ७ वार लावणी, मु. अवीर, पुहिं., पद्य, आदि: सजन तेरे दिल को; अंति: अवीर० मिथ्यामति तजना, गाथा-८. ७५७४३. ऋषभजिनविनती सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, २४४४६-५०). १. पे. नाम. ऋषभजिनविनति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिनविनति सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: नगरी वनिता श्रीभरत; अंति: वीनती कही मन उजल भाव, गाथा-१६. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., पद्य, वि. १८६८, आदि: गजसुखमाल वसुदेवजीको; अंति: जोधामाई हुस करी गाई, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. राजिमतीसती इकवीसी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक समरीए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७५७४४. पंचपांडव व धन्नासज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२६४१२, १२४४५). १. पे. नाम. पंचपांडव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुरवर ला; अंति: मुझ आवागमण निवार रे, गाथा-२०. २.पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिणि पाय; अंति: तणीजी मागं धरी आणंद, गाथा-१५. ३. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल नमी वीरना; अंति: मेरु नमेवारोवार रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन; अंति: विनये मांगूजी सोय, गाथा-११. ७५७४५. (+#) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६८, आषाढ़ कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले.पं. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोडिपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३०). समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वतीने प्रणमी करी; अंति: रूपसौ० मंगल गाववा, ढाल-५. ७५७४६. अजितजिन स्तवन व सकलार्हत् चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १०x२५). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, ___ आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-३०. ७५७४७. झांझरियामुनि सज्झाय व ऋषभदेवजीरी लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३५). १.पे. नाम. झांझरियामुनिवररी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महिलमां मुनीवर कह्या; अंति: लबधि कहे मनखंत, गाथा-३८. २. पे. नाम. ऋषभजिन लावणी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुणीयो वाता सदासिवजी; अंति: ऋषभदास० फजरा मे, गाथा-८. ७५७४८. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९, माघ कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. माणेकचंद अमावीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १०४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ७५७४९. (#) आदीश्वरजिन विनती, मन सज्झाय व आदिजिन सवैयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: विनती लखी छे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. आदिसरनी विनती, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय जय पढम जणेसर; अंति: मुनि वैरागी ईम भणी, गाथा-४५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनरे भमरला काया; अंति: ज्ञानविजय० कीजइरे, गाथा-३. ३. पे. नाम. अरजिन सवैयो, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: शशधर सम वदन रदनघर; अंति: नमत जपत जन धरम सदयन, गाथा-१. ७५७५०. (+) छ आवश्यकविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १०४३४-३७). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन चिंतवी; अंति: तेह शिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ७५७५१. सत्तरिसय गर्भित तिजयपहुत्त स्तोत्र, पार्श्वजिन पद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ७४५०). १. पे. नाम. सत्तरिसयगर्भित स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सेवियै श्रीपास; अंति: सहु को सुमति समेला, गाथा-३. ३. पे. नाम. हस्तकर्म प्रतिकार औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५७५२. (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, स्तवन व घंटाकर्ण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, मु. सुरचंद्र ऋषि, सं., पद्य, आदि: श्रेयोमयं ही बलमालमा; अंति: कंदः सूरचंद्रर्षिणा, श्लोक-७. ३. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ७५७५४. पजूसण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३१). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पर्युषण गुणनीलो; अंति: शासने पामे जय जयकार, __ गाथा-९. ७५७५५. वीसस्थानक गणणु व शत्रुजयतप गणणु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४७). १.पे. नाम. वीसस्थानक गुणणु, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: ॐही नमोअरिहंताणं; अंति: लो० २५ खा० २५ सा० २५. २. पे. नाम. शत्रुजयतप गणणु, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ तप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: छट्ठ ७ करवा अठम १; अंति: पुंडरीकाय नमः २०००. ७५७५६. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधीए; अंति: पाम्या लीलविलास, गाथा-५. २.पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद गुणवर्णन चैत्यवंदन, मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतना तेम; अंति: वरत्या मंगलमाल, गाथा-५. ७५७५७. विजयलक्ष्मीसूरिविनति व सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरिविनति सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयलक्ष्मीसूरिविनति सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति प्रणमुपाया; अंति: कंचित् मान संपद पाया, गाथा-१४. २. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धपद आराधिइं; अंति: सौभाग्य प्रकाश रे, गाथा-७. ७५७५८. (+) प्रथमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: तवन क्र., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३२). आदिजिन स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पूजवा; अंति: उछले हर्षतरंग हो, गाथा-९. ७५७५९. (+) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३०). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ तक लिखा है.) ७५७६०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १७X५८). १. पे. नाम. औपदेशिक पद-द्विरेफ, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली; अंति: सीख कहि कवि माल रे, गाथा-१८. २. पे. नाम. आध्यात्मिक चुनरी- सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक चुनरी-सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: एह अनोपम चुनरी मागे; अंति: पाईए आतमनां नरसाल हो, गाथा-२२. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन दरजीकुंजीव कहि; अंति: प्रीतिविजय कुंभावे, गाथा-७. ७५७६१. (#) थावच्चासुत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४४२). थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेम समोसर्या; अंति: थावच्चा गुण गाय रे, ढाल-३, गाथा-२१. ७५७६२. षटभाइनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, १४४४१). भाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल शिरोमणि नेमजिणं; अंति: कहें पुन्य भलो लोय, गाथा-११. ७५७६३. नेमनाथनो लेख, संपूर्ण, वि. १७९५, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. दीव, जैदे., (२७४१२, १२४३९). नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवागिरे; अंति: शिष्य रूपविजे उल्हास, गाथा-१९. ७५७६४. प्रतिष्टा, इठोतरीस्नात्र व शांतिस्नात्र के मंत्र कीखातावही, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२.५, १५४३६). मंत्र यादी-प्रतिष्ठा व शांतिस्नात्रादि पूजनविधिमध्ये, मा.गु., गद्य, आदि: जल शुद्धि मंत्र १; अंति: पछवाडे भीते मंत्र. ७५७६५. (+) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३३). १. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमधर परमातमा; अंति: शुभ वांछित फळ लीध, गाथा-९. २. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर समरू आददेव; अंति: कमलविजय० जयजयकार, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३१५ ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बार गुण अरिहंत देव; अंति: नय प्रणमे नितसार, गाथा-३. ४.पे. नाम. बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुविध धर्म आराधवा; अंति: जो कीजे तप मंडाण, गाथा-३. ५.पे. नाम. ज्ञानपंचमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामलवानि सोहमणा; अंति: कहे धन धन जगमां तेह, गाथा-३. ६. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आठ त्रिगुण जिनवरतणी; अंति: ज्ञानविमल भरपुर, गाथा-३. ७. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज ओछव थया मंडाण; अंति: हो प्रणमो बे कर जोडी, गाथा-३. ७५७६६. गौतमएकादसीनी थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ११४३०). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: संघना विघन निवारी, गाथा-४. ७५७६७. हरायल्य भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४११.५, १०४३३). वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे में कौतुक; अंति: शुभवीरने वाल्हडा रे, गाथा-८. ७५७६८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२६, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. लालचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२६४११, १२४४०). १.पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमेष्टी परमातमा; अंति: दीजीये रंगने जगदाधार, गाथा-७. २. पे. नाम. पंचासरा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर श्रीपंचासरो; अंति: परमेश्वर थुण्यो, गाथा-५. ७५७६९. पोरसीपडिलेहन विधि व शत्रुजय गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १२४४५). १. पे. नाम. पोरसीपडिलेहन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: साधु अने श्रावकने २; अंति: परजाई धारेजी. २.पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजानो वासी; अंति: नयविमल० भव पार उतारो, ___ गाथा-६. ७५७७०. पजुसणनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १०४३१). पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे सुणजो ते साजन; अंति: रीधसिध मलीया रे, गाथा-८. ७५७७१. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७७१३, ११४३३). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दर्शनाचार "कीधी मीथ्यात्वीतणी पुजा" से "पारणादीक तणी चिंता कीधी" पाठ तक है.) ७५७७२. (+) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. इस प्रति की कीमत पत्र के साथ १२ पैसा है., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १०४३२). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: ऋषभ जिणंद रंगे नमी; अंति: ए तीरथ जयकारी रे, ढाल-२, गाथा-३०, ग्रं. ४२. ७५७७३. उपधानविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. गिरधर हेमचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १०४३५). For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: देजो मुझने भवोभवे, गाथा-२७. ७५७७४. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४२४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "नामानो जयंतु ते जिनेंद्रा" पाठ तक है.) ७५७७५. (+) वीरजिन स्तवन चौढालीयो व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४५१). १.पे. नाम. महावीरजिन चौढालीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: पूण दीवालीरे दीन ए, ढाल-४, गाथा-६३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चैतमिंदर महि विरषज; अंति: (अपठनीय), गाथा-१५, (वि. किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ७५७७६. चंदनबाला सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १५४३६-४०). __ चंदनबालासती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसिद्धार्थ कुल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७५७७७. (+) स्तवन, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे. ५, प्रले. मु. गंभीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (५३४११.५, ५६४१५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव जगदिसेजी लहि; अंति: जिनचंदनो० भणे जयचंद, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक चौपड, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम असुभ मिल जाट; अंति: रतनसागर कहे सूर रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहि., पद्य, आदि: नीस पलकन लागत मेरि; अंति: मीरा० जनम कि मे चेरि, कडी-४. ४. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: गयो तृण ज्यु तो रहम; अंति: दान मीरा० कर जोर हम, कडी-४. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., पद्य, आदि: अदभुत रूप अनुप खरो; अंति: केसव० भेट्यो सफल दिन, गाथा-८. ७५७७८. (#) गोडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐअक्षर अतुल अकल अपार; अंति: तणो कहे कपूर आनंद कर, गाथा-३४. ७५७७९. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४९). बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथा प्रथम उपरण मेलवा; अति: रक्ष रक्ष स्वाहा. ७५७८०. आलोअण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. ग. धर्मचंद्र पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११४३५). आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: माटी संघटे निविद, (पू.वि. ४६वें बोल से है.) For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३१७ ७५७८१. (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५९-५८ (१ से ५८ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२७.५x१२, ४४३४) " शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण से गाथा-९ अपूर्ण तक है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५७८२. (+) कर्मस्तव बंध यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, ३१x२५)कर्मस्तव बंध यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७५७८३. परमाणु भांगा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६१२, ६x२७). परमाणु भांगा विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७५७८४. नवकार फल दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से २,४) =२, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे., ( २६.५४११.५, ११X३४). नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. "लय जाई पूरउ गुण्यउ पाठ से चोरई राजानइ भंडार" पाठ तक है.) ७५७८५ (+) इक्षुकार संधि, संपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. अकबराबाद, प्र. वि. हुंडी: भृगूप्रोहित की संधि, इक्षुकार संधि., संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२६६) जे जिण धम्मे वाहिरा, जैदे., (२७.५X११.५, २७X७७). इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदिः परम दयाल दयाकर आसा अंति: खेम भणै० कोडि कल्याण, ढाल ४. ७५७८६. (१) २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १५६१). २४ तीर्थकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७५७८७. कर्मप्रकृति यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २६११.५, ४२x२६). कर्मप्रकृति बोल यंत्र, मा.गु., को.. आदि (-); अंति: (-). ७५७८८. चंदनबाला गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२६४१२, १२४४६). " चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कौशांबि ते नगरी; अंति: लब्धीविजय गुण गाय हो, गाथा ३५. ७५७८९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण वि. १८००, पौष शुक्ल २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, नागोर, पठ. श्रावि. पेमांबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५x५०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं, पच, वि. १७वी, आदि परम ज्योति परमातमा; अंतिः समकित शुद्धि, गाथा- ४४. ७५७९० (+) क्षमाछत्रीशी संपूर्ण वि. १८७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, बागलीनगर, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६१२, १३x४०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदर जीव खिमागुण आदर, अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ७५७९१. (+) सुबाहुकुंवरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५x११.५, ९x४०). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम अंतिः विजय गुरु संम आदर्यु, गाथा-१५. ७५७९२. हरीयाली गूढार्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. देवचंद, पठ. सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१२, ४X२७-३७). For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसैं कांबलि भि6; अंति: मुरख कवि देपाल वखाणे, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली क० इंद्री; अंति: देपाल तेने वखाणी. ७५७९३. चैत्यवंदन संग्रह व १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १०, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ११४३२). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो सीणगार; अंति: आगमवाणी विनित, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीदेवाधिदेव; अंति: प्रवचन वाणी विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वीनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा-३. ६.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सारखी वंदु सदा विनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामुंसीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा कल्प पूरव दिने; अंति: सुणे तो पामे पार, गाथा-४. ९. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: पद्म० नीतु कल्याण, गाथा-६. १०.पे. नाम. १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. पेन्सील से आधुनिक लेखन. पुहि., गद्य, आदि: दानांतराय१ लाभांतराय; अंति: १८ द्वेष ए अढारे दोष, अंक-१८. ७५७९४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १०४४०). १.पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. चंद्रप्रभजिन स्तवन-घोघामंडन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: चंद्रप्रभु जिनराजनो; अंति: लहे पद्म ते परमाणंद, गाथा-७. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधो साधो; अंति: पद्मविजय० सुखकारो, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, पं. पद्मविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेश्वर साहिबो; अंति: निज पद पद्मे रखाय हो, गाथा-५. ७५७९५. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वर्द्धमानपुर, प्रले. सोमनाथ नारणजी उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४०). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२६. ७५७९६. अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३३). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३१९ ७५७९७. (+#) रोहीणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३५). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ७५७९८. ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले.ऋ. रुपजी ऋषभजी; पठ. सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); लिख.सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). आदिजिन स्तवन, मु. रुपजी, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: आदिसर जिन वंदिइरे; अंति: रूप० तास जयजयकार ए, गाथा-५१. ७५७९९. (+) उपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १०४३७). औपदेशिक सज्झाय, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: साचइ मनि जिन धर्मस; अंति: इम भणइ श्रीसार रे, गाथा-३३. ७५८००. महावीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२, १२४४१). १.पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक समरूं सदा; अंति: महानंद पदवी पामे तेह, गाथा-१३. २. पे. नाम. वीरस्वामीनु प्रभाती स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___महावीरजिन स्तव, मु. सेवक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमो नित्य देवाधिदेवं; अंति: मुझ हीयै वसो, गाथा-११. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नही मानुरे अवरनी; अंति: अमारा भवभयभावठ भांग, गाथा-७. ७५८०१. (+) लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४३८-४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५७ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५८०२. (#) गुणस्थानक्रमारोह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:गुणस्थानक, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६x४२-४५). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. ७५८०३. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रावण शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. मु. कुशलविजय (तपागच्छ); पठ. श्रावि.सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४४२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरिअंकुणह, गाथा-४०. ७५८०४. (+) कायस्थिति प्रकरण सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६८०, वैशाख शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. क्षमाशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४२८-३५). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: मह्यं सिद्धत्वं देहि. ७५८०५. (+#) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, वैशाख कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. नवाजसराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ६x४६). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशनइ अर्थ; अंति: कीधी रूपसी नामकेन. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५८०६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सेलाउ, प्रले. उपा. भागचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ९४३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ७५८०७. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३०-३५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: धम्मकित्ति० इह भिसं, गाथा-३२, (वि. यंत्र सहित) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदसणेति जिनदर्शन; अंति: एवावचूरिर्विलोक्या. ७५८०८. (#) विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "तविय __णित्ता पुव्वाणुपुव्वि" पाठांश तक है.) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथो आरो तेणि; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एहवो उद्यान हुतो सर्वत्र तिना सुख" पाठांश तक लिखा है.) ७५८०९. (+) विहरमानइकवीसठाणो सह टबार्थादि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ७-१०४३८). १. पे. नाम. विहरमान इकवीसठाणो सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वटुंताणं नाम; अंति: रइयं सम्मत्तलाभाय, गाथा-४०, संपूर्ण. विहरमान २० जिन २१ स्थानक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेजे २० तीर्थंकरना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३५ तक का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: इच्छामोणु सिट्टि, आलाप-४. ७५८१०. (+) विहरमानइकवीसठाणो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ६x४०). विहरमान २० जिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वट्टताणं नाम; अंति: रइयं सम्मत्तलाभाय, गाथा-४०. विहरमान २० जिन २१ स्थानक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तेजे २० तीर्थंकरना; अंति: लाभने अर्थे इम जाणवो. ७५८११. (+#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ७५८१२. (+#) मदनधनदेव कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४४२-४६). मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, आदि: विचार्य करुते कार्य: अंति: क्रमेण सेत्स्यति. ७५८१३. (+#) शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११६. For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५८१४. (१) उपधानादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैये. (२६.५x११.५, १९X५०-५५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपधानादि विधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: प्रथम द्वितीयोपधानयो; अंतिः अज्झयणाइं उद्दिसिजइ. ७५८१५. (-) शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. बराहिणपुर, प्रले. मु. रूपा ऋषि (गुरु मु. देवजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १६x४२-४६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदिः आबालबंभवारि नेमि, अंति: आराहिय लहहवोहिफलं, कथा-४३, गाथा - ११५, (वि. अंत में शील से सबंधित एक दोहा दिया गया है.) ७५८१६. रोहिणी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६.५x१२.५ १२४४२-४५). "" रोहिणी कथा, सं., गद्य, आदि; हे रोहिणी त्वमसि शील, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दृष्टांत के श्लोक ८ " अपूर्ण तक है.) ७५८१७. (+) कल्पसूत्र - त्रिशलाशोकाधिकार का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, १३x४०). कल्पसूत्र - जिनेश्वर गर्भकाल व महावीरजिन जन्मवांचन, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि जेह कारण भणी अभागीया अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गर्भावस्था के लक्षणादि प्रसंग तक है. ) ७५८१८. आगमिक पाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. पत्रांक नहीं है, जैदे. (२६.५X११, २०४६२-६६). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा. सं., प+ग, आदि: (-): अंति: (-), संपूर्ण, ७५८१९. (+) अजितजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६४१२, ९४३२). अजितजिन छंद, जै. क. बनारसीदास पुडिं, पद्य वि. १७वी, आदि गोयमगणहरपय नमो सुमरि अंतिः (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) "" ७५८२० (१) दीक्षा विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १४४४४). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदिः प्रदक्षिणात्रयं अंतिः करइ तओ साहूणं वंदइ ७५८२१. (+#) पार्श्वजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६X११.५, १६X३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट अंतिः मानविजय तुज पाया रे, गाथा-५. २. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. ३२९ मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समता सुंदरी रे आणो; अंति: चारित्र गुणखाणी रे, गाथा-५. ३. पे नाम, बावीस अभक्ष्य सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य सज्झाय, मु. कुंबरविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंद प्रणमी करि, अंति: (-), गाथा- ६५, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५८२२. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७११.५, २१-२४X५०). आवश्यक सूत्र- श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, आदि इच्छामि पडिकमीड, अंतिः नमोत्थूण २ कहणा. ७५८२३. उत्तराध्ययनसूत्र की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १५१०, मध्यम, पृ. ७८-७७ (१ से ७७) = १, ले. स्थल. मंडपनगर, प्र. मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य (गुरु आ सोमसुंदरसूरि तपगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ७५००, जैदे., (२६४११. २४४६३-७०). For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः दधीवत्वात्तसस्येति, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, "स्वरूपार्थस्य द्वितीयेन मिथ्यादर्शन" पाठांश से है.) Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५८२४. षडावश्यकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, जैदे., (२६४१२, १०४२७-३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पाठांश "माई मुखमग्गसंसगा विग्घभूआइं दुग्गाइनिबंधणाइं" से है.) ७५८२५. भरहेसर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९११, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, ९४२८). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडुहो तिहु अणे सयले, गाथा-१३, संपूर्ण. ७५८२६. (+) सुधर्मगच्छ परीक्षा चउपई व प्रमुख ऐतिहासिक संवतवार घटनाक्रम, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१,३,५ से ८)=३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी खंडित है., संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४५०). १.पे. नाम. सुधर्मगच्छपरीक्षा चउपई, पृ. २अ-४-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. गच्छाचार चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अपमतिनी संगति तिजउ, गाथा-१७२, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से ५२ अपूर्ण तक व ८१ से १०२ अपूर्ण तक एवं १७० अपूर्ण से है., वि. चौपाई के साथ-साथ संबंधित शास्त्रपाठ भी दिये गए हैं.) २. पे. नाम. प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर केवलात् १४; अंति: वीरात् २०८५ वर्षे. ७५८२७. (+) साधुदेवसिराई अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२६-२९). १. पे. नाम. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू.,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामिदुकक्डं. २.पे. नाम. साधुरात्रिप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा आओट्टणकी परि; अंति: मिच्छा मि दुक्कडं. ७५८२८. ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ११४२७). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिविधिश्रुतां, श्लोक-१०. ७५८२९. (+) समवसरण स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पठ.ग. धीरविजय (गुरु ग. आणंदविजय); गुपि.ग. आणंदविजय; अन्य. ग. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४३-४७). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४, संपूर्ण. समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कंचनेत्यलं प्रसंगेन, (अपूर्ण, पू.वि. पाठांश "पयडिय समत्त भावो गाहा सव्वउत्ति" से है.) ७५८३०. (+#) गोचरीदोष व मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३६). १.पे. नाम. गोचरीदोष, पृ. १अ, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मं उद्देसीयं; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-५. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिन उपदेशी मोन; अति: करा शांति ते सुरवरा, गाथा-४, (वि. बाद में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पंचेंद्रिय जीव उत्पत्ति के विषय संबंधी लिखना प्रारंभ कर अपूर्ण छोड़ दिया गया है.) ७५८३१. (+) दया छत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. हुंडी: दयाछ०, संशोधित., दे., (२७.५४११.५, ११४२९). दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १९०५, आदि: (-); अंति: कृपाथी सफल फलि मन आश, गाथा-३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५८३२. दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १४४४७). सुभाषित दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मनुषो जन्म दुर्लभ हे; अंति: ज्ञानी अनंत लोचनां, गाथा-३७. ७५८३३. आगमिक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ११४३५-३८). आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: धर्म काधिकारने विषे. ७५८३४. ईर्यापथिकि कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ६४५०). इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: पमाणमेयं सुए भणिय, गाथा-१०. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहीना मिच्छामि; अंति: शास्त्रे कह्यो छे. ७५८३५. अनाथीमुनि कूलक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११,१३४४८-५२). अनाथीमुनि कुलक, अप., पद्य, वि. १४वी, आदि: पणमवि सामी वीर जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ७५८३६. सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, २०४४५). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एतावीयारं भवसागरस्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४१ तक है.) ७५८३७. (+#) मनुष्यजन्म १० दृष्टांतकाव्य व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४५). १.पे. नाम. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)चुल्लग पासग धन्ने, (२)विप्रः प्रार्थिवान्; अंति: भूयस्नामाप्नोतिनो, श्लोक-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथाश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: स्वर्णकार कृतरीति; अंति: (अपठनीय), श्लोक-१२. ७५८३८. (+) दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: दीक्षाविधि., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १८४५०-५३). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: (१)तपयाहिण९ वास९ उसगो१०, (२)राइभोयणाओ वेरमणं. ७५८३९. पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४५०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नोकार सहियं पच्चखामि; अंति: गारेणं वोसिरामि. ७५८४०. (#) कल्पसूत्र की पीठिका व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, २०४७२). १.पे. नाम. कल्पसूत्र-पीठिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: सूत्रमर्थस्तथाचांत; अंति: कल्पसिद्धांतो वाचनीय. २.पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयरत्नसूरि. ७५८४१. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१०.५, १४-१७४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अति: (-), अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५८४३. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४०-४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७५८४४. (+) नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४०-४३). For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन पूर्वभव धनदत्त धनदेव जन्मोत्सव प्रसंग अपूर्ण से पूर्वभव समाप्ति तक है.) ७५८४५. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:प्रज्ञप्र०, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-४०). प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: नाम्ना खलुशोधितं च, श्लोक-३७. ७५८४६. धर्मध्यानभेद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मोरबी, प्रले.ऋ. गोपालजी; पठ. मु. कचराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धर्मध्यान, जैदे., (२६४११.५, १३४३२-३५). १. पे. नाम. धर्मध्यान भेद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेझांणे धम्मेझांण; अंति: चोथो भेद कह्यौ. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास; अंति: नवनिध सदा आनंद धरे, गाथा-११. ७५८४७. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १६४५६). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. स्वप्नफल श्लोक-३३ अपूर्ण तक है.) ७५८४८. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). ___ वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है. गाथा-१३ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक है., वि. पत्र ३आ एवं ४अ दोनों पर लिखा गया है.) ७५८४९. (+#) स्थानांगसूत्र चयनीत सूत्र संग्रह सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-३(२ से ४)=२, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., पंचपाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,१६x४८-५४). स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: तओ इंदा पन्नत्ता तं; अंति: विसकुंभे विसपिहाणे, (पू.वि. आयंत-परंतकार चतुर्भंगी अपूर्ण से जागरियं जागरित्ता पाठांश अपूर्ण तक का पाठांश नहीं है.) स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह का टिप्पण, सं., गद्य, आदि: पत्राण्युपगच्छतीति; अंति: पूर्णो ज्ञानादिभिः. ७५८५०. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४२७). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), (पू.वि. जगचिंतामणिसूत्र गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७५८५१. महावीरपंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. छबील वीरचंदजी व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ५४४७). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: (-); अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२६ तक नहीं है.) ७५८५३. जिनवाणी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४४२). औपदेशिक पद, मु. पुनमचंद, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: धन जिनशासन जिनवाणी; अंति: विन भक्ति करु अति, गाथा-७. ७५८५४. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १०४२८-३२). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पाक्षी० सकला० स्नातस; अंति: मोटीसां० सांतिकर. ७५८५६. बंधेलगा मुकेलगा-जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मांड, प्रले. मु. मयाशिखर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, २१४४२). बंधेलगा मुकेलगा-जीवविचार, मा.गु., गद्य, आदि: उदारीक सरीरना दोइ; अंति: नारकीनी माफक छे. ७५८५७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. २, दे., (२७४१२.५, १२४३६-३९). १.पे. नाम. आदेश्वर भगवाननु चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः धुर प्रणमु श्रीआदि, अंतिः केवली वंदु वे कर जोड़, गाथा - ९. २. पे. नाम. वीसविहरमाननु चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. जीव, मा.गु., पद्म, आदि: सीमंधर युगमंधर प्रभु अंतिः वंदता जीव लहे भवपार, गाथा-६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५८५८. (+) सप्तनय विषयक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२७४१२, १८४४८). नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: नेगम ते स्यु कहीयजे अंति (-) (पू. वि. "एम नेगमनय कडे पाठ तक है.) ७५८५९. (#) आत्मसाधन सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, १२४२९-३५ ). "" १. पे. नाम. आत्मसाधन स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन जब तुं ग्यान, अंतिः सेवक० सुख संपति बाधइ, गाथा ८. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथादपरो; अंति: साहू देहस्स धारणा, श्लोक-२. ७५८६०. बाहुबली सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ५, दे. (२६.५x१२, १०x३८-४२). " १. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: दयानंद० तोरि बलिहारी, गाथा- ७. ३. पे, नाम, सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: सरस्वत्ये नमः . ४. पे नाम शारदा स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदिः या कुंदेंदुतुषारहार, अंति: निश्शेषजाड्यापहा श्लोक १. ५. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्म, आदिः सर्वे यक्षांबिकाचा अंतिः द्रुतं द्रावयंतु नः श्लोक-१. ७५८६१. (१) पंचमीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६४११.५, ११X३०). ३२५ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी, अंतिः केवल लक्ष्मी निधान, गाधा- ९. ७५८६२. (A) शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११, १०x४५). उ., पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: ॐ लोँगा लाँगा लउँग; अंति: (-). २. पे नाम, चतुर्थव्रतउच्चराववानी विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: राजगृहीय नयरीए वणजार, अंतिः विमानै संचर्याए, गाथा-२२. ७५८६३. (१) वखाणनी मांडणी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी वखाण मांडनी, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १७३३-३६). व्याख्यान मांडणी, मा.गु. सं., पग, आदि प्रथम नवकार कहीई, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७५८६४. चतुर्थव्रतउच्चराववानी विधि व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७१२, ९-१४X३१). १. पे नाम, मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह पृ. १अ संपूर्ण " ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रमा पोहचतो जोइ, अंतिः शक्ति साहमीवछल करे. " For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५८६५. (#) आदिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ३३४२१-२६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, २. __आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: धुलेवामंडण श्रीऋषभ; अंति: नृत्य केर महा मटके, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. रघुनंद, मा.गु., पद्य, आदि: तोरन आवी रथ पाछो रे; अंति: पडि पटोले भातडलि, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: तारीइवो महाराज मोसे; अंति: रंग के सुधारोजी काज, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमराजिमती वसंत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी गीत, ग. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: यावन देया होरी रे; अंति: रंग जुग जुग जोरी, गाथा-७. ७५८६६. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३३-३६). महावीरजिन स्तवन-स्वप्नगर्भित, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: सासननायक समये समये; अंति: रायचंद० उल्लास हो, गाथा-१४. ७५८६७. १४ गुणस्थानक ३८० भाव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. प्रत में भाव की जगह भावना शब्द का प्रयोग किया गया है., दे., (२६४११.५, १३४३४). १४ गुणस्थानक ३८० भाव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुणठाणु १ लु उदयीक; अंति: भावना ३६ कुल ३८०. ७५८६८. जिनवाणी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ११४४२-४५). औपदेशिक पद, मु. पुनमचंद, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: धन जिनसासन धन जिनवाण; अंति: विनय भक्ति करु अति, गाथा-७. ७५८६९. (#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६४११.५, १२४२७). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, रा., गद्य, आदि: पैहलै सुपनै कल्पवृष; अंति: अकालव्रषा घणी होसी. ७५८७०. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १७, दे., (२६.५४१२, १०x२९-३२). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पयुषण पुन्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ७५८७१. (+) खरतरगच्छीय गोत्र, ३२ अनंतकाय गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१२, २१४५४). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित ३६ राजकुल सवालाख श्रावक खरतर तेहनागोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित गोत्र सूची, आ. जिनदत्तसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरायभणसाली मंत्रि; अंति: खुथडाणतला गोत्र मिले. २.पे. नाम. ३२ अनंतकाय गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सव्वाइ कंदजाई सूरण; अंति: जत्तेणं, गाथा-५. ३. पे. नाम. ३२ अनंतकाय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कंदजात१ सूरणकंदर; अंति: आलू३१ पिंडालू३२. ७५८७२. (#) नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: विहावल्यो., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२,१७४४२-४५). नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७५८७३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १३४३२-३५). For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३२७ १. पे. नाम. औवदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पदम० जिम वाडी न लागे, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अविचल सग हमारी काया; अंति: आनंद होए धीर, गाथा-६. ७५८७४. आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, ८x२७-३०). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आधु राम राम जग गावै; अंति: रमता आनंद भौंरा, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: औधूक्यौ मांगू गुन; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ७५८७५. आंचलिकगच्छमत परंपरा, पट्टावली व ३२ प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १६४५७-६०). १.पे. नाम. अंचलमत विचार, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ग्रहणं अनुजानंति, (पू.वि. "ते १०५ सामायिकंघटिका" पाठ से है.) २. पे. नाम. आंचलिकमत परंपरा, पृ. ५अ, संपूर्ण.. पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआर्यरक्षितसूरि१; अंति: श्रीजयकीर्तिसूरि१३. ३. पे. नाम. आंचलिकमत ३२ प्रश्ननाम, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अंचलगच्छमत ३२ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: १तुम्हे कूण सिद्धांत; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-२६ अपूर्ण तक है.) ७५८७६. प्रभाति पद व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लसकर, प्रले. य. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१०, ३३४१६). १. पे. नाम. प्रभाति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन प्रभाति, आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल श्रीवीरजिणेश; अंति: कांतिसूरि गुण गावै, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तुं तो धरम म मुकीस; अंति: ते चिरकाले नंदोरे, गाथा-७. ७५८७७. शालिभद्र सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १६४४१). १.पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: सहजसुंदरनी वाण, गाथा-१९. २. पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: काहां अंधे कुंआरसी; अंति: (-), (वि. छूटक दोहा संग्रह.) ७५८७८. (+-) शीलोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२, १४४३५-४०). शीलोपदेश सज्झाय, क. जैत, पुहि., पद्य, आदि: अरिहंत देव धर्म पाउं; अंति: विनवै सीलसै संकट टले, गाथा-२५. ७५८७९. (+) विविधबोल संग्रह-भगवतीसूत्रे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी: भगवतीजी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १६४३८-४२). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५८८०.(+) संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १०४२९-३३). संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., पद्य, आदि: सकला० स्नातस्या०; अंति: सांतिकर स्तवन. For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५८८१. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, १०४३५). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कल्प-३ अपूर्ण से कल्प-५ अपूर्ण तक है.) ७५८८२. सज्झाय, छंद व जिनपूजाविधि स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. धारापूरी, प्र.वि. श्री चंद्रप्रभुजी प्रसादात्., दे., (२७.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. विसथानकनो छंद, पृ. ३अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरणे करी; अंति: श्रीसंघ आराधो निसदिस, गाथा-७. २.पे. नाम. पंचपरमेष्टीनवकार छंद, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठी नवकार छंद, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो प्रणमु श्रीजिन; अंति: उदय कवि पभणे निसदिस, गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनपूजाविधि स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण समरी माय; अंति: ऋषभदास० तेह नर तरे, गाथा-१३. ७५८८३. (+) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १३४४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ७५८८४. (#) साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. तेजसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २६४७३). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: जैमल एही तिरणनो दाव, गाथा-५४. ७५८८५. (#) अष्टापद चैत्यवंदन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२६, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५.५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. अष्टापद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंदनो धाम; अंति: पामें पद जगदीस, गाथा-१, (वि. तीनों गाथा का १ही गाथांक लिखा है.) २.पे. नाम. गुणयुक्ताभिधानगर्भित आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-गुणयुक्ताभिधानगर्भित, मु. सुलच्छ, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर तुम खरा; अंति: प्रणमै शिष्य सुलच्छ, गाथा-७. ७५८८६. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३६-४०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. ७५८८७. बासट्टि बोल बोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. वगडी, प्रले. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १८४४५). १४ गुणस्थानके ६२ बोल, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: लाभेस्तोक जाणवा६२, (प.वि. "लाभइ ते किम वचनयोग?" पाठ से है.) ७५८८८. चतुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १८४३७-४०). चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतः परया भक्त्या; अंति: (-), (पू.वि. "जिम इण चिहु पंडित" पाठ तक है.) ७५८८९. दंडक बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२, १८४३५). For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३२९ २४ दंडक बोल संग्रह ,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "हवे वायकानुं दंडक" से "अवगाहणानो" पाठ तक में बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ७५८९०. (+-) प्रतिक्रमणविधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२, २१४५६). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामाइक विधि; अंति: वांदो इम कही उठावै. २. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपमै सोहै भरत; अंति: जिनचंद्र मुनिंद्र, गाथा-४. ३. पे. नाम. देशावगासिक पच्चक्खाण, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: देसावगासियं उवभोग: अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. ४. पे. नाम. विविध श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ** पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आयुर्वित्तश्चकर्मश्च; अंति: (-), (वि. बीच में पार्श्वनाथ चैत्यवंदन-"श्रीसेढितटी" की १ गाथा लिखी है.) ७५८९१. मानतुंगमानवती प्रबंध चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुडी: मानवती., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४४). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, दोहा-१ से ढाल-४ गाथा-१ अपूर्ण तक व ढाल-७ गाथा-१२ अपूर्ण से नहीं है.) ७५८९२. (+) सीमंधरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. केसर (गुरु मु. जीव); गुपि. मु. जीव (गुरु पंन्या. जिनविजय); पंन्या. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६.५४१२, २४३०-३६). सीमंधरजिन स्तवन-तकारबद्ध अरजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारे दीजिईरे; अंति: साखि केसर द्यो लेखी, गाथा-७. सीमंधरजिन स्तवन-तकारबद्ध अरजी-टबार्थ, मु. केसर, मा.गु., गद्य, आदि: प्यारे नाम वाह्नेश्व; अंति: केसर० महारी अरदास छे. ७५८९३. (#) जैन बदरी, संपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. रत्नगढ, प्रले. पं. हर्षचंद तपशी (जिनचंद्रसूरिशाखा गच्छ); राज्यकालरा. सूरतसिंह; पठ. पं. ग्यानचंद (गुरु पं. भीवराज); गुपि.पं. भीवराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३२-३५). गोमटस्वामी आदि यात्रा वर्णन, पुहिं., गद्य, वि. १८२१, आदि: पानीपंथ सुभ अनेक औपम; अंति: प्रवर्त्तमान करज्यो. ७५८९४. (+) कर्मप्रकृति कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १२-१७४२६). कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह , मा.गु., को., आदि: पृथ्वीकाये बंध स्थान; अंति: (-), (पू.वि. "अविरतौ बंधोदय सत्ता" पाठ तक है.) ७५८९५. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७४१२.५, १३४३३-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., साधुसामाचारी सूत्र २५ वासावासं से है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ७५८९६. पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्रावि. हर्षा हांसलदे; अन्य.सा. अभयसुंदरी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४९). For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदबंदिय पवार, अंतिः बोहिंतु सोहिंतुह, गाथा - १०३. ७५८९७. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२, १३३६). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. ७५८९८. (#) शत्रुंजय रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५- २ (३ से ४ ) = ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, १३x४० ). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः समयसुंदर ० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा - १२१, ( पू. वि. गाथा- ४५ अपूर्ण से १११ अपूर्ण तक नहीं है.) ७५८९९ (४) शिलप्रभावे सुदर्शन श्रेष्टी केवली सज्झाय, संपूर्ण वि. १८४७ भाद्रपद कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. अंजारनगर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६. ५४१२, १७४४३-४६). सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, पद्य, आदि: संजमधीर सुगुरुपय, अंति: उदय हुइ सुजस सवाय रे, ढाल-६, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ६८. ७५९०० (+) शत्रुंजय रास, संपूर्ण, वि. १७९६, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. पूंजा ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १६x५३). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पर नमी, अंतिः समवसुंदर ० आणंद थाय, ढाल ६. ७५९०१. श्रावकविधि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६४१०.५, १५४५९). " श्रावक विधि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी वीर जिणेसर, अंति: लावण्य कहइ लीला तर, गाथा - २२. ७५९०२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २-१ (१) १, कुल पे, ३, दे. (२६४११, १३४३१). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक विमलना रामनो, गाथा-५, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी वामाजीना जाया, अंति: रामविजय भणे रे लो, गाधा- १०. ३. पे, नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन-सत्यपुरमंडण, मा.गु., पद्य, आदि: पुर साचोरे जास्युंजी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७५९०३. पिस्तालीस आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ये. (२६४१२.५, १२४३२) ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे ए; अंति: शिवलक्ष्मी घेर आणो, गाथा - १३. ७५९०४. रोहिणी स्तवन व नवकार छंद, अपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे. २, ले. स्थल. लुणीका तथा गुढा, प्र. मु. मोतीविजय ड श्राव, नवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५x१२, १५X३३). १. पे नाम, रोहणी स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण " रोहिणीतप स्तवन, सु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन वासुपूज्यजी, अंतिः दीपविजय० गुण गाईबा, गाथा-८. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ५आ, संपूर्ण. 7 मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदिः सुखकारण भविवण समरो अंतिः सूरवरसीस रसाल, गाथा- ७. ७५९०५. आठमनुं चैत्यवंदन व सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२७४१२.५, १४X३२). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि नमस्कार, पृ. १ अ - १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेत्र वदि आठम दिनें; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा - १४. For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३१ ति. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २. पे. नाम. सर्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमुं; अंति: महोदय पद दातार, गाथा-३. ७५९०६. (+#) पर्वतिथिनिर्णय पूर्वाचार्यप्रणित सामाचारीगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८०, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सुरत, प्रले. पंन्या. लाभविजय गणि; उप. आ. वीरसूरि (तपागच्छ); अन्य. श्राव. रवचंदमूलचंद वहोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वावनगरे वहोरा रवचंद मूलचंद के पास रही महावीरजिन प्रसाद श्रीराजनगर अहमदावाद नगरे मुनि रामविजयजी द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १७४५३). पर्वतिथिनिर्णय पूर्वाचार्यप्रणित सामाचारी गाथा संग्रह, मु. देववाचक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: आसाढकत्तियफग्गुणमासे; अंति: (१)लिहीया जसविजयेण, (२)षष्टतपो निर्णीत. ७५९०७. पीठिका श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९७१, आश्विन कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मंडार, प्रले.मु. शिवराज (गुरु मु. उदेराज); गुपि.मु. उदेराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुडी:पीठीका पत्र, दे., (२६.५४१२.५, १२४४१). ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भव भयहरण तरणतारण; अंति: मंगलमाला प्रवर्तते. ७५९०८. (#) आदिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १२४२६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इख्यागवंस का उपना; अंति: मुड मुडि लागुंपाय, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. वैराग्य सज्झाय, श्राव. रामजीलाल, पुहि., पद्य, आदि: भव्य प्राणी मनुष; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७५९०९. नवकार छंद व पार्श्वजिन गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवनप०, दे., (२७४११, ९४३०). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे ए प्रभु चाहीए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७५९१०. सीमंधरस्वामी स्तुति व चउविशतीर्थंकर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३४). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझने; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. २. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर छंद, पंन्या. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेला प्रणमु श्रीऋषभ; अंति: पभणे मणिविजय निजदीस, गाथा-९. ७५९११. शत्रुजय स्तवन व कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४४२). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अतिम पत्र है. मु. राजेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करोहो अरजकरेराजिंद, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण है.) २. पे. नाम. सचियामाता स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सत्यकामाता स्तोत्र, मु. देवतिलक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: किंतु समुद्रसंचरी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन पद, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: भेट्या नाभकुमार; अंति: रतनसुंदर० -जय जयकार, गाथा-७. ७५९१२. स्तवन, स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११, ११-१५४५५). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिनचंद० रिप जीवत्तौ, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __पुहि., पद्य, आदि: क्या तारीप करु मेरा; अंति: मुगत दीये सुखकारि, दोहा-४. ३. पे. नाम. आठ मद स्वरूप, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ मद स्वरूप, प्रा., पद्य, आदि: मज्जा भोगेतिसिया; अंति: लोभेणयहुति सप्पोय, गाथा-८. ४. पे. नाम. प्रणमोष्टांग विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टांगप्रणिपात विचार, प्रा., गद्य, आदि: उरसा १ सिरसा २; अंति: पुलाइ लद्दीसंपुसो. ५. पे. नाम. षडावश्यकसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: करेमि भंते इत्यता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश "प्रत्याख्यानावश्यकं षष्टं ६ वृद्धसंप्रदायपन्नं" तक लिखा है.) ७५९१३. रोहिणी स्तवन व वासुपूज्य चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले.पं. रूपचंद्र; गुपि. सा. केसरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ९४३१). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिविजय जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव वंदित वासुपूज्य; अंति: सुणी परमानंदी थाय, गाथा-३. ७५९१४. (+) शांतिनाथ विनती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४६). शांतिजिन स्तवन, मु. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: संति जिणेसर सेवीयइ; अंति: भगतनइ सेव करइ सूरचंद, गाथा-१५. ७५९१५. पर्युषण स्तुति व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. हेमविमल; पठ. वा. दोली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४४०). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्यें; अंति: सुजस महोदय कीजइ, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधो; अंति: सीवसुख दइ भरपुर जी, गाथा-४. ७५९१६. माणिभद्रक्षेत्रपालरो छंद, संपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चीलाडा, प्रले. ग. मानकुशल; पठ. मु. भागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४६०). ___ माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरस्वति; अंति: लाख लक्षरी झाल हे, गाथा-२६. ७५९१७. (+#) इलाकुमार चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रूपगढनगर, प्र.वि. हुंडी:इला०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२७४११, १७४३५). इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण मिलो; अंति: केवलज्ञान वसेषइ, ढाल-४. ७५९१८. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २३४१७). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अधोलोक विसेषाहिया. ७५९१९. जीवअजीव भेद व १४ गुणठाणा नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १५४३३). १. पे. नाम. जीव अजीव भेद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीवना दोय भेद २ एक; अंति: आवच्चकाय विविध वर्ण. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३३३ २.पे. नाम. चौद गुणठाणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ मिथ्यात्व अनंतोकाल; अंति: अजोगी पक्षस्वाक्षर. ७५९२१. देवनारकभुवनपति आदि शरीरमानादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२, १५४४३). विचार संग्रह *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७५९२२. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १०४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से २६ तक है., _ वि. यंत्र सहित) ७५९२३. (+) प्रज्ञापनासूत्र बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, ३१४५४). प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पन्नवणा, भगवतीसूत्र का मूल साक्षी पाठ भी दिया गया है. अल्पबहुत्व, साढे पच्चीश आर्यदेश आदि बोल.) ७५९२४. नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व, दे., (२६४१२, १२४३०). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे विवेकी समदृष्टी; अंति: (-), ग्रं. २००, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थावर जीव का प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ७५९२५. नेमराजिमति सज्झाय-७ वार गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. दयाशंकर हरजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में लिखा है कि- आठवारसंपूर्ण., दे., (२६.५४१०.५, ९४४०). नेमराजिमति सज्झाय-७ वार गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने वीनवु; अंति: तेनो मुगतपूरीमा वास, गाथा-१८. ७५९२६. षड्शीतिद्वादशष्टिमार्गणा स्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, ३५४१६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक.. ७५९२७. (+) ध्यान विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२,१५४४२). ४ ध्यान सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आरत ध्यान ते च्यारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७५९२८. पांचइंद्रिय सज्झाय, पंचमीतप स्तुति व पार्श्वजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: जिनहर्ष० सुख सासता, गाथा-६. २. पे. नाम. पंचमीतप सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तुमे आदरो; अंति: मान० मुनीराय भविक जन, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (१)विराजे वंगला में, (२)चुवा चुवा चंदन अवर; अंति: रूपचंद० आवागमननी वार, गाथा-५. ७५९२९. बालचंदबत्तीसी पद व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १४-१६४३४-५०). १. पे. नाम. बालचंदबत्तीसी, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: कहे अरीहत देवरे, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-लोभ परिहार, मु. गौतम, पुहिं., पद्य, आदि: मन की तृष्णा न मिटे; अंति: अलग ए गउतम गुण इखई, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: देयं भोजधनं धनं; अंति: (-), गाथा-२. ७५९३०. आठदोष प्रतिपक्ष आठगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १३४३७). ६८ गुणदोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: क्षुद्रो लोभ रति; अंति: सहज स्वभावनी सिद्दि, गाथा-१५. ७५९३१. चौपाई, सज्झाय व शारदाष्टकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). १. पे. नाम. यंत्रफल चौपाई, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउविसइ पाय प्रणम; अंति: पूजे ते परमारथ लहे, गाथा-१६. २. पे. नाम. सम्यक्त्व सुखड़ी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१२. ४. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ७५९३२. (+) मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुडी: मृगावती, संशोधित., दे., (२६४१०, १४४४२). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-२ तक है.) ७५९३३. अष्टोत्तरीपूजा श्लोक व विसर्जन मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १०४३१). बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमोर्हत्सिद्धाचार्यो; अंति: त्वंक्षिम परमेश्वर. ७५९३४. बारमासायुगल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. सुमतिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४२). १.पे. नाम. राजेमती द्वादशमास, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: ए अजुआली रातडी रे आस; अंति: आणंद बारे मास, गाथा-१३. २.पे. नाम. नेमराजिमति बारहमासा- गाथा ४५ से ५५, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. किसी बड़ी कृति का भाग प्रतीत होता नेमराजिमति बारहमासा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाली प्रीत अभंग, प्रतिपूर्ण. ७५९३५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३२). महावीरजिन स्तवन, पं. नरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाल सरसती; अंति: नरविजय० गाय रे लाल, गाथा-१६. ७५९३६. बंधउदीरणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ३४४१४). बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७५९३७. (+) नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१०.५, ९x४५). नेमिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अविचल सुख पदवरीइ, गाथा-१२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७५९३८. (+) पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ८x२५). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व पर्व मांहि पर्व, अंति: जिनमहेंद्रसूरिंदाजी, गाथा-४. ७५९३९. (+) आत्मा के आठ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ८x२८). आत्मा के ८ नाम-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यात्मा १ कषाय; अंति: गुणठाणा लगे पांमीई, (वि. यंत्र सहित) For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७५९४०. (+) उपदेश सज्झाय व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७X१२.५, ११X३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पूरा रे, अंतिः समयसुदर० उछारे बोल, गाथा-६. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः आज सफल दिन मुज तणो ए; अंतिः कुशलहर्ष० सवि फलीए, गाथा- ११. ७५९४९. मुनिमालिका व गिरनार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे. (२५.५x१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मुनिमालिका स्तवन ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि रिषभ प्रमुख जिन पाव; अंतिः सदा कल्याण कल्याण, गाथा - ३६. २. पे. नाम. गिरनार स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: (-); अंति: प्रेम घणो जिनचंद, गाथा-१३, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ४ अपूर्ण से लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५९४२. (+) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७.५x१३, ११४३५). साधुपाक्षिक अतिचार .मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, 1 "" ७५९४३. (+) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : अतिचार, संशोधित., दे., (२७X१३, ११x२८). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय, अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडम्, (२) नहिं नित्थारपारगाहोह, ७५९४४. साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी: अतिचार, दे., (२७१२, ११x२९). साधुपाक्षिक अतिचार ओ. मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय, अंति: (१) मिच्छामि दुक्कडम्, (२) नहिं नित्धारपारगाहोह, ७५९४५. बंकचूल रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२६.५x१०, १४४३५). ३३५ " वंकचूल रास, मा.गु., पद्य, आदिः आदि जिनवर २२ पमुहु, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ८१ अपूर्ण है.) ७५९४६. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२.५, ३६X६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु, को, आदि देवगति मनुष्यगति; अंतिः (-). ७५९४७. (+) संयोगीभांगा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२, ८x१०). संयोगी भांगा गाथा यंत्र, मा.गु., को. आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सप्तम संयोगा तक लिखा है.) ७५९४८. (+) गुणस्थानकगर्भित शांतिजिन स्तवन व वैष्णवगुणवर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले. स्थल, वढवाण, प्रले. पं. माणिक्य, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६४१२, २०४४५). " १. पे नाम. शांतिनाथ गुणस्थानक स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- गुणस्थानकगर्भित, मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल करण सदा अंतिः आधार छे जगदीसो रे, ढाल-८, गाथा - ९४. २. पे. नाम. वैष्णवगुणवर्णन स्तवन, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि सांभलो स्वामि श्रीरघः अंतिः गतिपुरी पद लहसि तेह " ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह *, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). गाथा-२. ७५९४९. (+) जिनकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X११.५, १२x२७-३४). For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिनकल्याणक स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: निज गुरु पय प्रणमी; अंति: वृद्धि सुख थाय रे, ढाल-६. ७५९५०. अषाढाभूति चौपाई व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५७, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. मढाहड,मांडवाडा, प्रले. मु. गजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २१४६१). १. पे. नाम. आषाढाभूति चौपाई, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यानसागर कल्याणोरे. ढाल-१६. गाथा-२१८,ग्रं. ३५१. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विनवे राणी राजिमति; अंति: होज्यो सफल पूरो आस, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदीस उनह्यो; अंति: प्रतपो जगि जाण रे, गाथा-८. ७५९५१. (+) महावीरजिन जीवन प्रसंग, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४४७). महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरजिन के ___ निशाल भेजे जाने के वर्णन अपूर्ण से गच्छ-परंपरा वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७५९५२. जैन पाखंडीवीसी व तीरथवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४११.५, १६x४३). १.पे. नाम. जैन पाखंडीवीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जैनपाखंडी वीसी, मा.गु., पद्य, आदि: महिसाणि पजूसण माहि; अंति: मुघाजणानि सुघारल्या, गाथा-२६ २.पे. नाम. तीरथवीसी, पृ. २आ, संपूर्ण. तीर्थमहिमा श्लोक, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: क्षमा दया सति संजम; अंति: मांडण० घरि खरचो कोडि, गाथा-९. ७५९५३. एकादशी स्तवन, आदिजिन स्तवन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२८x१३, १५४४०). १. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: गणि जिनविजय सिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आपणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालो रे बीजा; अंति: जाणजो आनंदघन मत अलंब, गाथा-६. ७५९५४. (+) नेमनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८४, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सकल सिद्ध प्रणमेव; अंति: पाठक जनने सुखकरु, ढाल-६, गाथा-४२. ७५९५५. (-) कालवादिकमतविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १५४३५). विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: कालोसहावनियई पुवकय; अंति: पांच कारण मानवा. ७५९५६. उपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: तवन., दे., (२६४११.५, १०४३६). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरें; अंति: मुझ देज्यो भवोभवे, गाथा-२७. ७५९५७. (+) अध्यात्मगीता, अपूर्ण, वि. १८३१, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. भावनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३३७ अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-११ अपूर्ण से है.) ७५९५८. स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. मु. सौजन्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १७-१९४३७-६२). १. पे. नाम. शृंगारशतक, पृ. १अ, संपूर्ण. भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-९४ अपूर्ण से ९५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडारे; अंति: पद्मकुमार०सुख लीजीये, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वालमेह बप्पीहडा; अंति: सुपासने वंदे हो राज, गाथा-७. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम श्लोक मात्र अपूर्ण लिखा है.) ज्योतिष श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५. पे. नाम. पंचेंद्रिय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामअंध गजराज अगाज; अंति: लहो सुख शाश्वता, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूरतरु मूरति मोहन; अंति: जिनहरष मन मे ध्यान, गाथा-५. ७५९५९. समोसरणविचार स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. आ. आनंदसोमसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: समोसरण स्तवन पत्र., जैदे., (२६.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. समवसरणविचार स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणा आसण चलइए सुर; अंति: सेवो ए जिन चित्तधारी, ढाल-५. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: वह्नि गुरु स्त्रियः, श्लोक-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. चोत्रीसअतिशय वर्णन, पृ. २आ, संपूर्ण.. ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: सहजाति सयंधते केहा; अंति: अशोकवृक्ष छाया करे. ७५९६०. विजेदसमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७ ११.५, १६x४८). विजयदसमी स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सिद्धि प्रणमी; अंति: विजेदसमी सुखकरु, ढाल-११, गाथा-५५. ७५९६१. (+) वीसस्थानकतप आराधनाविधि, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कंचनगिर, प्रले. ग. नरेंद्रविजय; पठ. पं. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४४०). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं पद; अंति: लोगस्स २० नो काउस्सग. ७५९६२. (+) दशवैकालिकसूत्र-द्रुमपुष्पिका अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्राव. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४१५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७५९६३. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "राईभोयणे समयखित्तेसु कालओणं" पाठ से गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५९६४. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: वंदित्तु., दे., (२६४११, ९४२८). ___ वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ७५९६५. कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १३४३४). ___ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ७५९६६. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: कल्पसूत्र., जैदे., (२७४१२, १३४४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवानंदा के द्वारा देखे गए स्वप्नों को सुनकर ऋषभदत्त ब्राह्मण के हर्षित होने के वर्णन तक लिखा है.) ७५९६७. (+) नमस्कार स्तव सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२६.५४११.५, २१४६९). नमस्कार महामंत्र स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) नमस्कार महामंत्र स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: जिनं विश्वत्रयी; अंति: (-). ७५९६८. (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: जीवाासूत्र., संशोधित., जैदे., (२६.५४११,११४३०-३४). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१४, "उक्कोसेण वि अंगुल असंखेव्वइभागं" पाठ से "ताई __भंते किं उगाढाई आहारंति" तक है.) ७५९६९ (+#) भगवतीसूत्र-प्रथमशतक प्रथमोद्देश सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४१२, ३-१४४४०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी लिपिनइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७५९७०. (+) वंकचूलनो वखांण, संपूर्ण, वि. १९५६, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: वंकचूलरोव०., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४४६). वंकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वंकचूल भाखी कथा यथा; अंति: ढाला किवि सुविशालै, ढाल-६, गाथा-६१. ७५९७१. (+) संवेगीगुण वर्णन व ढूंढक रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४४४). १. पे. नाम. संवेगीगुण वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध संवेगी कीरिया; अंति: लाजे नही वलि टाल, ___ गाथा-२१. २. पे. नाम. ढूंढक रास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ढुंढिया कौ बैदो, रा., पद्य, आदि: मर्दोरा भी बैहदा बेह; अंति: वैसे राते खावे रोटा, गाथा-२२. ७५९७२. आषाढभूतिना ढालियां, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १४४३७). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिइ; अंति: भावप्रभसूरि जगीसरे, ढाल-५, गाथा-३७. ७५९७३. (+) ज्ञानपंचमी चैत्यवंदनादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ९४३१). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन.प. १अ-१आ. संपर्ण. मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारि; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाह. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३३९ २.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: उत्तरदिशि अनुत्तरथी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-९, ___ (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) । ४. पे. नाम. इगायारस स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माधव उज्वल एकादशी; अंति: जिन० सुभक्ति अलंकरी, गाथा-४, (पू.वि.) ७५९७४. अष्टमीनु तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४११.५, १२४२५-३५). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमूंसदा; अंति: बुद्धिलावण्य० सार रे, ढाल-४, गाथा-२४. ७५९७५. (+#) स्वाध्याय पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२४३४-४०). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: जस० मति नवी काची रे, गाथा-४१. ७५९७६. (+#) दानशीलतपभाव चोपई, अपूर्ण, वि. १८८३, आश्विन कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ६-४(२ से ५)=२, ले.स्थल. पालनपुर, पठ.सा. रलियातश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दाासीताभाढा. श्रीपासजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४५२) धर्मसखाई जेने होवे, जैदे., (२६.५४१०, १०४३७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: समय० सुप्रसादो रे, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-४, गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ७५९७७. (#) महावीरस्वामि स्तवन व नेमजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२४५१). १.पे. नाम. महावीरस्वामि स्तवन, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: (-); अंति: रामविजय० अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार असार सरूप; अंति: भवसायर तरे, गाथा-५. ७५९७८. पंचमीतिथिथोयादि पर्वस्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१२(१ से १२)=२, कुल पे. ५, जैदे., (२७४१२, १०४३४). १.पे. नाम. पंचमीतिथि थोय, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सा अमह सया पसत्था, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. बीजनी थोय, पृ. १३आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. ज्ञानगर्भित पंचमस्तुति, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५९७९. (+#) चौवीसजिनआंतरा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १२४३२). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदना सुपरे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७५९८०. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. जेठमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १३४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवूजी; अंति: वाचक समयसुंदर इम भणे, गाथा-३२. ७५९८१. (#) आदिजिन परिचय, २४ जिन अंतरा व गौतमाष्टक छंद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४४४२). १.पे. नाम. आदिजिन मिताक्षरी परिचय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरषभदेवजी पहैला; अंति: (१)आऊखै मुगत पहुंता, (२)वठै मुगतगांमी रहै छै. २. पे. नाम. आरा कौ प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, आदि: पहैलौ आरौ सुखमासुखमी; अंति: अनंता जीव भमे छै. ३. पे. नाम. २४ जिन आंतरा, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: पहैला श्रीरिषभनाथजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुमतिजिन तक लिखा है.) ४. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष; अंति: लावण्य० संपति कोड, गाथा-९. ७५९८२. (#) चेलणा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. ढाल, रागादि नाम के लिए खाली जगह., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११.५, १३४३७). चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३, गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७५९८३. (-) कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १३४३१). कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहि., पद्य, आदि: सूत्रगीना नाम कही; अंति: कुसालचंद०कहे गरपरताप, गाथा-३५. ७५९८४. श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६-२७.५४१२.५, १०४२३). सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि का श्रीपालराजा रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: स्वस्ति श्रीदायक; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७५९८५. शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२.५, १३४४४). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ की __ गाथा-४५ अपूर्ण से ढाल-६ की गाथा-११ अपूर्ण तक है.) । ७५९८७. मार्गणाद्वारविवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२, २९x१९). १०३ जीव भेद विचार-६२ मार्गणा यंत्र, रा., यं., आदि: १नरकगति २ चिर्यंचगति; अंति: अनंतगुणा ४ अनंतगुणा. ७५९८८. (+) जिनकुशलसूरिजी स्तवन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. दोलतराम (गुरु मु. हीरानंद, खरतरगच्छ क्षेमकीर्तिशाखा); गुपि.मु. हीरानंद (खरतरगच्छ क्षेमकीर्तिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ११४३५). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरस्वती; अंति: विजैसिंघ लीला वरी, गाथा-३०. ७५९८९. चारशरणा गीत, संपूर्ण, वि. १८७३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मलसीसर, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १२४३४). For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ११४३४). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंतिः कल्याण मंगलकारोजी, ढाल ३, गाथा-३६. ७५९९०. पचीसक्रियाभेद बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, ले. स्थल. साईपूरा, प्र. वि. हुंडी : क्रिया०., दे., (२७X१२, १८x४६). क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: क्रिया कहीजड़, (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., मिध्यादृष्टि क्रिया से है.) ७५९९१. सीमंधरस्वामि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. हुंडी स्तवनपत्र, जैवे. (२६.५४११.५, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधर युगसामिया अंतिः वातविदेहथी आण्णी, गाथा- १३. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रभुनाथजी, अंति: माहाविदेह अपारि, गाथा- १३. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर सामिया जग; अंति: चंद्रनाथ० लाहो लीजे, गाथा - १३. ४. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मानसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: पंडित सोही जांणिए; अंति: मानसिंह० दिलताला, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पढा सो पंडित नहीं; अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है . ) " ७५९९२. (#) नेमनाथना सलोको, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी יי ३४१ है, दे., (२६x१२, १४x२७-३०). नेमिजिन सलोको, सुरशशि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता हूं तुम; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १८ अपूर्ण तक है.) ७५९९३. थुई संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे. (२६४१२, १०X३०). १. पे. नाम. बीजरी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा. पद्म, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंतिः देही मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमीरी बुई. पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच, अंति: सिद्धायका त्रायका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीरी थूई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं, अंति: जीवित जन्म प्रमाण, गाथा ४. ४. पे. नाम. अग्यारस थुई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तुति - समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्म, आदि: ट्रें ट्रें कि धप मप अंतिः दिसतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७५९९४. (+) वंकचूल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३-१ ( १ ) -२, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४१०.५-११.५, १५४५१). वकचूल चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: स सयल संघनी पूजई आस, गाथा- ९४, (पू. वि. गाथा - ३९ अपूर्ण से है.) ७५९९५, (+०) माणिभद्रछंद कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ४, प्रले. ऋ. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६.५x१२, १०४४० ). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद - मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपती सेवत सुभखाणी, अंति: माणिभद्र जब जय करण, गाथा - २१. २. पे. नाम. ब्रह्मारी आयुर्बल कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. ब्रह्मा आयुर्बल कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मारी अवसतवरष अंतिः लेखो कीवो भसुमे, दोहा-१. Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पूर्व१संख्यामान गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सतरलाख कोड वरस छपन; अंति: पुरब संख्या जोड, गाथा-१. ४. पे. नाम. चौदपूर्व नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उत्पाद१ अग्रेणीय२; अंति: लोकबिंदुसार पूर्व १४. ७५९९६. (+) अट्ठाईना ढालो, संपूर्ण, वि. १९५९, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. श्राव. जूठाभाई धनजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: अठाई० ढाल०., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १५४५३). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: स्याद्वाद शुद्धोदधि; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ___ ढाल-९, गाथा-५४. ७५९९७. पर्युषणस्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२७.५४१२.५, १५४५५). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: ज्ञानविमल०महोदय लीजे, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार, गाथा-९. ३. पे. नाम. गुणस्थानक स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलुं मिथ्यात्व; अंति: इम मेघविजय वरदाइ जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीरजिण; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि पावे, गाथा-४. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमांहे आसार; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. ७५९९८. भवनद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११, २०४५३). नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वदिशि असंख्याता; अंति: ३१ गुणे करी सहित छे. ७५९९९. अढारदिस सवैया आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१२, १५४२३). १. पे. नाम. अढारदिस सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १८ दिस सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम सदगुरा; अंति: दीस मे इण वीद वीचरे, गाथा-१९. २. पे. नाम. नारीपद सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: लंछण धाम चले गज कट; अंति: कहे सती पाप निवारीयो, दोहा-२. ३. पे. नाम. छतीसवर्ण नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ३६ वर्ण नाम, पुहि., गद्य, आदि: सीसगर१ दरजी२ तंबोली३; अंति: गरधीवर३५ चमार३६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: क्रम कटै व्रत तीर्थ; अंति: ग्यानवंत छारे है, दोहा-५. ७६०००. साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७७१३, ११४३२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ७६००१. चौमासी देववंदन सविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१६(१,३ से १७)=३, जैदे., (२७४१२.५, ११४२७). चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ऋषभदेव चैत्यवंदन से स्तवन गाथा २ अपूर्ण तक व शाश्वताअशाश्वता स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से सिद्धाचल स्तवन गाथा १ अपूर्ण तक है. बीच के कुछ पाठांश नहीं है.) ७६००२. वीरजिनव स्तवन-आराधानानाम पुण्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९४६, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, ले.स्थल. अहमदाबाद, दे., (२७४१२, १०४२८-३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२, (पू.वि. ढाल-४, गाथा-७ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३४३ ७६००३. दसमीरो स्तवन वदूहो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६४१२, ८x२६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-दसमीरो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजी दशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर जगतिलौए; अंति: समयरंग इण परि बोले, ढाल-५, गाथा-२३. २. पे. नाम. नेमिजिन दूहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: सब रस को रस नेम हे; अंति: ता घर कुसल न खेम, श्लोक-१. ७६००४. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४३६-३९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि वटप्रदमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जइ जुगरू देवाधिदेवा; अंति: गुणसायर०नावू संसारि, गाथा-४२. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जणेसर प्रणमु; अंति: बोधवीज साची जिन सेव, गाथा-२७. ७६००५. (+) सभाशृंगार, पच्चक्खाणादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १९४६५). १. पे. नाम. सभाशृंगार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: केलि कदंब नाग नारंग; अंति: दीवाली१५ पूनिम१६. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. कान्ह, पुहिं., पद्य, आदि: धन जुधनो नगार तजी; अंति: पर्व४ आंगुली वखानीये, सवैया-६. ३. पे. नाम. औपदेशिकगाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जत्थ जल तत्थ वण; अंति: सव्व मरणाओ बीहति, गाथा-२. ४. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नोकारसीना बे आगार; अंति: वीहारना ४४ ए ४४ आगार. ५. पे. नाम. ६७ समकितना भेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: परमार्थ जाणवानो; अंति: ६७ भेद समकितना जाणवा. ६. पे. नाम. ६ स्थानक विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व६ स्थानकबोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: छ विह जयणाना धर्म; अंति: चारित्र छ ए ६थानक. ७६००६. (#) थूलभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८५०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. फतुजी आर्या (गुरु सा. हेमेजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नोरसो., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १४४३६-३९). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या, ढाल-९. ७६००७. (#) नेमनाथजीरी वेल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४३५-३८). नेमिजिन वेल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात सुमत समपसुत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से ६८ अपूर्ण तक व ९३ अपूर्ण से नहीं है.) ७६००८. (#) करमपचीसी, संपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. माघरोल, प्रले. पं. रामचंद्र; पठ. श्रावि. झवेरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १२४३१). कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिर्थंकर; अंति: करम मारा जारे फाणी, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६००९. (+) बारव्रतरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: १२ व्रत ढाल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, २०४३९). श्रावक बारहव्रत, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: पांच अणुव्रत परवडा; अंति: ओषध भेखद दीयै तेमजी, ढाल-११. ७६०१०. लावणी, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, दे., (२७४१२, १७४३७-४०). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-ज्ञानगीता, मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: पढो तुम सभी ग्यान; अंति: जीनोने करम रीपूजीता, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: मुनी यु कहे करणी कर; अंति: देवीलाल जपले जीनवर, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: दूनीया के वीच ज्यो; अंति: तुरत होयगा नीसताराजी, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन पारणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदनाथ प्रभु संजम; अंति: सुख श्रीकार वीलसताजी, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: दूनीया सुनोजी देके; अंति: सास्त्र का प्रमान, गाथा-६. ६. पे. नाम. कपिलऋषि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. खुबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वंदूनीत कंपील ऋषी; अंति: खुबचंद० आत्म समजाया, गाथा-७. ७६०११. भरतबाहुबली सझाय, संपूर्ण, वि. १९०९, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम पत्र आधुनिक लिपि मे लिखा हुआ है. हुंडी: बाहुबल सझाय., दे., (२७.५४१२, १४४२९). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय जय श्रीवरे, ढाल-४. ७६०१२. (+) सप्ततिशतजिननामग्रहण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जावालिपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४५०-५५). सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति भगवति; अंति: सेवा श्रीजिनवरतणी, गाथा-६१. ७६०१३. पंचबोलगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १७४३८-४१). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदीइ; अंति: विनय कहे आणंद ए, ढाल-६. ७६०१४. (#) गंगातेलीनो अधिकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालियाद, प्रले. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १०४२८-३२). गंगातेली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कोईक ब्राह्मण प्रति; अंति: देई गरे पोहचता कीधा. ७६०१५. ज्ञानपंचमी आराधानाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १३४३२). १.पे. नाम. ग्यानपंचमीलेण की विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिली पवित्र जगामै; अंति: पांच जाप करणा. २. पे. नाम. पांचम पारण विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतप उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तप पूरो हुवा पांचमै; अंति: पूजा गुरूपूजा करै. ७६०१६. मृगापुत्रनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२७.५४१२, १४४४३-४६). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: तारी कोमल काय रे माय, गाथा-२५. (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३४५ ७६०१७, (+) ४९ भांगा आवकना, संपूर्ण वि. १९९८, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्रले श्राव. झवेरचंद नानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२७१२.५, ११-१४X३०-३५ ). भगवतीसूत्र- श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४१, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि आंक११ भांगा९ सेरी ८१: अंति: मणसा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वयसा कायसा१. ७६०१८. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६११.५, १३x४६). १. पे नाम, पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मान० पुरो देवी सधाइजी, गाथा-४, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. सिद्धचक्रनी थोय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, १. सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेहले पद जपीइ अरीहंत; अंति: कांतिविजय गु गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदिः संखेश्वर पासजी पूजी ; अंति: नयविमलना० पूरती, गाथा-४. ४. पे. नाम, शत्रुंजयगिरनारतीर्थं स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तिरथ; अंति: भवीक जीवनां संकट हरे, गाथा-४. ७६०१९. (+) जीवदया छंद व प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे (२६X११, १२-१५X३८-५३). १. पे. नाम. जीवदया छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, वि. १८७३, पौष कृष्ण, ४, ले. स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय गणि); गुप. पं. मुक्तिविजय गणि (गुरु पं. हंसविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. भूधर, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिनवाणी पाए नमी अंतिः भूधर० वीतराग वाणी लहे, गाथा ११. - २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले. पं. दीपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि: पाणाहार नोकारसीयं अंति: असित्वेण वा वोसिरै " ७६०२० (+) सुमतिजिन स्तवन व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२६४१२, १६३५-३८). "" १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा प्रभुजीस्युं; अंति: मोहन कहे० जिनव एह, गाथा- ७. २. पे. नाम औपदेशिक कवित संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण कवित संग्रह, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि : आगरे कीसुं प्यारे; अंतिः रूपनगर उदेपुर जान हे, सवैया- १. ३. पे. नाम. ग्रहण विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. पग, आदि आदितवारे ग्रहण होइ, अंतिः आसो वरस सुगात. ४. पे. नाम, औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: मुनि बीन गंगा के रहत; अंति: नेह कीयो न कीयो, गाथा- ४. ७६०२१. (*) पार्श्वजिनस्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १ कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६४११.५, १८४४२). १. पे. नाम, जीवविचारगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण. पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. वि. १७८१, माघ शु. २, ले. स्थल. अहम्मन्नगर. , जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु पद्य वि. १७१२, आदि (-); अंतिः विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-९, (पू.वि. ढाल-८ गाथा - १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १४ राजलोकक्षेत्र वर्णन, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपमा यूगल; अंति: (-). ७६०२२. विजयसेठविजयादेवी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७ ११.५, १३४३७-४२). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७६०२३. मार्गणाद्वार ६२ कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, ३९x१३). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: (-). ७६०२४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, १७२३२-३६). आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो जि अरिहंत आदिनाथ; अंति: रायचंद०आपणे चित्त हो, गाथा-२१. ७६०२५. सुमतिजिन, सीमंधरजिन स्तवन व असज्झायनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५, १४४४०-४३). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुमतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीतना डंका वाजें रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काति मगसिर; अंति: पय प्रभु कीजे सेव, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ७६०२६. जीवविचार प्रकरण स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. हेजकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १२४३७-४०). जीवविचार स्तवन, उपा. इंद्रसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते पामें भवपार रे, गाथा-५८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७६०२७. ऋषभ स्तवन व नवकार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२७४११.५, १३४५२-५६). १.पे. नाम. ऋषभ समतामुखलता स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सेवक सकलचंद __ कृपा करी, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नोकार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समरि जीव एक नवकार; अंति: आपणा कर्म आठे विछोडी, गाथा-६. ७६०२८. शत्रुजयादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२७४११.५, १४४५३). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, पृ. ४अ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेज रलीआमणो; अंति: मागुमनने उल्लासे, गाथा-५. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दउद्र हरिदीपे जोता; अंति: समर्थ तुहिज देवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उजलगिरि अमे जायसु ए; अंति: नंदसूरि सेवक उद्धरुए, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरत त्रेवीसमो; अंति: सेवक उद्धरु ए, गाथा-५. ५. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- सांचोरमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि साचोर पूरवरि जगत्र, अंति: नंदसूरि शिव सुखदायक, गाथा-५. ७६०२९. (*) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-१ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२७१२, १५X३०-३३). " ज्ञानपंचमी पर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. मतिज्ञान काउसण अपूर्ण से खमासमण दूहा- २२ अपूर्ण तक है.) ७६०३०. पंचमेरु पूजा विधान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ११२ १११(१ से १११) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जै... (२७.५X१२.५, १७X३३-३६). ३४७ पंचमेरु पूजा विधान, जै. क. टेकचंद, पुहिं, पद्य, आदि (-) अंति (-) (पू.वि. पंचममेरू की पूजा "भवन सुनिति पाठ से चंदन पूजा अपूर्ण तक है.) ७६०३१. पंचतीर्थ स्तुति, आदिजिन स्तुति व जीराउलापार्श्वनाथ वीनती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५X११, १५४४-४८). ९. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. २. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १अ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय, अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. जिराउला पार्श्वनाथ विनती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउलापास कृपानिधान, अंति: इस्युं श्रीमलधारसूरि गाथा- ११. ७६०३२. समयसार नाटकरा सवईआ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, दे., ( २६.५x१२.५, १२X४०). समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै. क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., "सिधी रिधी" पाठ तक है., वि. गाथांक नहीं लिखा गया है.) ७६०३३. गजसुकमाल सज्झाय व गूढार्थदोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ऋ. झवेरचंद; पठ. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. द्विपाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १३X३७-४०). १. पे. नाम. गजसूकमालमूनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि जिनवर वांदता में अंतिः नथमल० आगागमण निवार, गाथा ५. २. पे नाम, गूढार्थदोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विघन विडारन भय हरण; अंति: माथे विष्टानु कुंडू, गाथा-४. ७६०३४. तेरा व्याख्यान अधिकार - कल्पसूत्र की वाचनारी याद, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७X१२, १३X३०). कल्पसूत्र वाचनाविषयसूची, रा. गद्य, आदि: इण कल्पसूत्र, अंतिः सामाचारी कहवी. " ७६०३५. (#) सिद्धचक्र स्तुति, पाक्षिक स्तुति व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४१३ १४४३५-३८). " १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्म, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर, अंतिः सानिध करज्यो मावजी, गाथा ४. २. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति स्नातस्या, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण मु. लावण्यसमय*, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: हो तुमे ज्ञाणधारा, गाथा-४. ७६०३६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैदे. (२६.५x१२.५, १२४३५-३८). " For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रमोदविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: श्रीसुमति जिनेसर; अंति: प्रमोदविजय गुण गाय, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रमोदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर अलवेसर; अंति: प्रमोद० विनति रे लो, गाथा-५. ३. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६०३७. छ अठ्ठाईनु स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२७४१२, १२४४०). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्यादवाद सुद्धो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६०३८. (+#) धनदधनवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४३०-३५). धनदधनवती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक है.) ७६०३९. आचारांगादि आगमों के मूल-टीकादि के ग्रंथाग्र यादी व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११.५, १९४२७-३०). १. पे. नाम. आगमादि ग्रंथों व उनकी सूत्रवृत्ति आदि के ग्रंथपरिमाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीनंदिसूत्र ७००; अंति: १७०० टिप्पनक १२००६. २. पे. नाम. १८ भार वनस्पति मान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ३८ कोडि १८ लाख; अति: (-). ३. पे. नाम. जैनधर्म महात्म्य श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. __प्रा.,सं., पद्य, आदि: एक्कमिविजंमिपए; अंति: वचोनुराग वशतः, श्लोक-३. ४. पे. नाम. जीव आयुमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: आयु अबाधायां चतुर्भ; अंति: अनुतर विमाने देवता. ७६०४०. (#) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १५४४४). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझार दुवारक; अंति: लहीये इणरा नामथी जी, गाथा-४३. ७६०४१. (+) कल्पसूत्र का प्रकीर्णक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १४४४८-५२). कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना**, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. माता के आहार का उसके बालक के ऊपर प्रभाव से १४ पूर्व पाठ लेखन साही प्रमाण तक है.) ७६०४२. विजयविजयासेठानी सज्झाय व मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४११, २०४४६-४९). १. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सिल तणी रे महिमां; अंति: भादवड सुणो सुभाइ, गाथा-२०. २. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जंबूदीप जहा भरतखेत्र; अंति: राइचंद०आ छे सर अजमेर, गाथा-१४. ७६०४३. तीर्थावली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १५४३६-४०). पार्श्वजिन स्तवन-विविधतीर्थ मंडण, मु. लखमण, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि समरी माय; अंति: लखमण० सिवसुख अनंत, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६०४४. चारमिथ्यादृष्टिअज्ञानभेद गाथा व बत्तीससामायिक दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. अंदाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४१६-६२). १. पे. नाम. ४ मिथ्यादृष्टि अज्ञान भेद गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नो जाणइ नो आयरइ नो; अंति: पक्खिसुयई अढेइ, गाथा-५, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम. ३२ सामायिक दोष-भगवतीमध्ये, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: जोगं वटउ अथवा पालठी; अंति: वर्जित सामाइक करइ. ७६०४५. (+#) चतुर्थव्रतारोपण व प्रतिक्रमणादि संक्षिप्तविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, २१४४०-४४). १.पे. नाम. चतुर्थव्रतारोपण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नालिकेर हाथि; अंति: पछे पच्चखाण करावे. २.पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रणादि विधि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवहि पडिकमी; अंति: सामायवय जुत्तो कहे. ७६०४६. (+) चौदगुणठाणा अठावीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, अन्य. पं. भाग्यविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); गुपि.पं. अमृतविजय गणि (गुरु ग. चंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४३). १४ गुणस्थानक २८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लक्षण; अंति: अधिका वनस्पति आसरि, द्वार-२८. ७६०४७. (+) चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पत्रांक नही है, संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १८४७०). भगवतीसूत्र-चारित्र के५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६०४८. नवपदना खमासणा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पठ. श्राव. तलकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३३). नवपद खमासमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: त्रिकाल वंदना, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पद-३ से है.) ७६०४९. (#) ऋषभदेव विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८०५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पीलवाई ग्राम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १३४३६-४०). आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धर्म जिणि उधों; अंति: कविता नर ऋषभदासो, गाथा-६६. ७६०५०. (+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हमीरमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १२४३५-३९). मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: माणुस्स खेत्तजाई कुल; अंति: १० दुर्लभ जाननाजी. ७६०५१. २३ पदवी यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४२७). प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार यंत्र, मा.गु., यं., आदि: तिर्थंकर चक्रवर्ति; अंति: सर्वविरति केवलि. ७६०५२. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११, १२४४२-४५). विविधविचार संग्रह ग..प्रा..मा.ग..सं.. गद्य, आदि: वरणकं वर्ग करे: अंति: इति भागाकार विधि. ७६०५३. शत्रुजय चैत्यवंदन व चैत्रीपुनम स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, २३४१६). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धक्षेत्र; अंति: जिनवर कर प्रणाम, गाथा-३. २. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सुंदर; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-४. ७६०५४. पुण्यपाप कुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १५४४६-५०). For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिण सहस्स वास; अंति: (-). (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) पुण्यपाप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सो वरसना छत्तिस हजार; अंति: (-). ७६०५५. वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १७५४, श्रावण कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, ले.स्थल. षेत्रग्रांम, जैदे., (२६४१२, ८x४४). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सिरिसंघ सुखविजय लाहो, ढाल-६१, गाथा-४५६, (पू.वि. ढाल-६० गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७६०५६. नववाड सज्झाय व जैनधार्मिकश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, २०४४५). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: धारी हो जुगती नववाडि, ढाल-११, गाथा-९७, (पू.वि. ढाल-११ की गाथा-८१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७६०५७. अषाढाभूति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:अषाडभूतसझाय, जैदे., (२६.५४१२, १५४४०). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७६०५८. रूपसी ऋषि गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३०). रूपसी ऋषि गुरुगुण गीत, ऋ. प्रेमजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति शुभमति आपो; अंति: दीपइ सुखसनने सुरतरु, ढाल-२. ७६०५९. संथाराविधि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:संथानी सज्झाए, जैदे., (२७४११.५, १३४४०-४५). संथाराविधि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेश्वर पाइ; अंति: भवसागर दुस्तर तरो, गाथा-१४. ७६०६०. बीजतिथि स्तुति व औपदेशिक लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १२४३५). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण मात्र लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: गइ सब तेरी शील समता; अंति: जीव जिनराज विना भमता, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: लाभ नहीं लिया जिनंद; अंति: जिनदास०अनभवे पद भायो, गाथा-४. ७६०६१. पार्श्वनाथ स्तवन व सोलसती स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक-१आ पर किसी अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक अंश लिखकर छोड़ दिया गया है., जैदे., (२६.५४११, १७X४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संपत श्रीपार्श्व; अंति: विजयसील० आणंद घणे, गाथा-११. २. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुक्त वो मंगलं, श्लोक-१. ७६०६२. औपदेशिक सज्झाय व अरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ८४४७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३५१ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंतारे सिख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) २.पे. नाम. अरजिन स्तवन, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: अति आनंदे रे अरजिन; अंति: जसराज रिद्धि जयकार, गाथा-७. ७६०६३. श्रावक एकवीसगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमृतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४२८-३२). श्रावक २१ गुण सज्झाय, मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो सज्जन गुणवंत; अंति: अमृतविमल पद सार, गाथा-१६. ७६०६४. (+) गजसुकमाल भासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५,१४४२५). १. पे. नाम. गजसुकुमाल भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामती नयरी समोसर; अंति: मुझनइ संजम दीउ, गाथा-५. २. पे. नाम. इलाचीकुमार गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गोख बेठोरे श्रेष्ठ; अंति: लींबो हरख धारई रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. वरसिंघऋषि भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु साधु सचंगा; अंति: सेवक हिति बंदा, गाथा-५. ४. पे. नाम. मुनिवंदन भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आउ वंदन महामुनि राया; अंति: सकलसंघ जयकारा रे, गाथा-५. ७६०६५. वरसिंघआचार्य व जसवंतगुरु भास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४११, १४४३०). १.पे. नाम. वरसिंघआचार्य भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रुप, मा.गु., पद्य, आदि: रुपजीवजी अति हि वैरा; अंति: रूपमुनि०मुनिकेरा राय, गाथा-११. २.पे. नाम. जसवंतगुरु भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केशव-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सासण महावीर; अंति: गुण गाय उतरवा भव पार, गाथा-५. ७६०६६.(+) महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६४३६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर महावीर ए; अंति: संपत्ति जिननामथी ए, गाथा-१३. २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: विलसै खेमकल्याणो, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र सह टिप्पण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित, म. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: क१ख २ ग ३ घ ४ च ५; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. वर्ण-३१ तक है.) ७६०६७. (+) साधुगुण सज्झाय, औपदेशिक पद व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४३६). १.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचेइंद्री रे अहनिस; अंति: विनवै विजयदेवसूरोजी, गाथा-१२. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्नान करो उपसमरसपूर; अंति: निश्चे सिद्धरमणी वरे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बूझो रे आया एह ज; अंति: ते शिवपुर पाम्या, गाथा-८. ७६०६८. शंखेश्वरपार्श्व स्तवन, सिद्धाचल स्तवन व गौडीपार्श्वस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १७X४२). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहजानंद शितल सुख भोग; अंति: तो घर तेडतां दोय धरी, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल जइ वसीये; अंति: केवललक्ष्मी फरसीइं, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी मोरवाडमंडन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: गोडि प्रभू आया रे; अंति: सीवलक्ष्मी गुण गेह, गाथा-५. ७६०६९. ५६३ जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ९-१७४११-१८). ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६०७०. बारमास पगला व कोडाकोड कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १५४१७). १. पे. नाम. बारमास पगला, पृ. १अ, संपूर्ण. पौरीसी आदि छाया ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रे पगला ९ पोर; अंति: पुठई मूल मसलेहा. २. पे. नाम. कोडाकोड कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १एक रदशं ३शतं ४सहस्; अंति: २९ कोडा कोड कोडा कोड. ७६०७१. बारव्रत भांगा व नष्टोद्दिष्ट विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, २१४४२-४६). १.पे. नाम. बारव्रत विषेमनवचनकायानां भांगा, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ व्रत भांगा, मा.गु., को., आदि: प्रा१ मृ२ अ३ मिथु४; अंति: ३६२७९७०५६ २१७६७८२३३६. २. पे. नाम. देवकुलिका नष्टोद्दिष्टविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. नष्टोदिष्ट विधि, सं., प+ग., आदि: तत्र पूर्व येषा; अंति: रूपाणिवाच्यानि. ७६०७२. १४ गुणस्थानक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ९-१४४१३-३३). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: मिथ्यात्व सास्वादन; अति: (-). ७६०७३. चोविसदंडके चोविस द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १२x२५). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६०७४. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ११४३६). गुरुगुण गहुंली, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मया करी रे; अंति: पथी रे जीतने मंगलमाल, गाथा-९. ७६०७५. अनंतकायदूषण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१६, पौष शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. त्रिभुवन; लिख. मु. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४३०). अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: भावसागर आनंदारे, गाथा-१२. ७६०७६. इरियावही हरियाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. जडीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १०४३०). इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारी मे दीठी इक आवती; अंति: एहनी करज्यो सेवरे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३५३ ७६०७७. (+#) २४ दंडक २९ द्वार विवरण व प्रज्ञापणासूत्र, अपूर्ण, वि. १७३०, वैशाख कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. सीहाणी, प्रले. मु. प्रागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुडी: दंडक प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाने की कोशिश की गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. २४ दंडक २९ द्वार विचार, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गुणा अधिका कहिवा, (पू.वि. नवमा देवलोक वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: ववगयजरामरणभये सिद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७६०७८. १२ व्रतटीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १५४४८). १२ व्रत टीप, सं., गद्य, आदि: कीर्तस्फूर्तिमियर्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवस्वरूप तक लिखा है.) ७६०७९. (+) छ द्रव्यस्वरूप व बावीस अभक्ष्यनाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४४०). १.पे. नाम. छ द्रव्यस्वरूप, पृ. १५अ, संपूर्ण. षड्द्रव्य स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: छ द्रव्यने विषै; अंति: माहि मिलि न जाय. २.पे. नाम. २२ अभक्ष्य नाम, पृ. १५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ हर्या सूका उंबर फल; अंति: जिनमत ए बावीस अखांन. ७६०८०. चतुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चोमासारो वखाण, जैदे., (२६४१२, १२४३२). चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., बीस मण के परिमाण की चर्चा अपूर्ण तक है.) ७६०८१. विहरमानजिन गीत, अपूर्ण, वि. १७००, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्रले. पंन्या. उदयसंघ (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X११.५, ९४३४). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विहरमान जिन वीस, स्तवन-२०, (पू.वि. अजितवीर्य स्तवन से है.) ७६०८२. औपदेशिक दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, १०४३२-३५). औपदेशिक दुहा, मा.गु., पद्य, आदि: वस्तुविचार ध्यावते; अंति: (-), गाथा-२०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-२० तक लिखा है.) ७६०८३. (-) होलिकापर्व ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. माधवाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:होली, अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४३०). होलिकापर्व ढाल, म. रामकिसन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: एसा खेलोजी होली एसी; अंति: पूनम सनेसूवार एसा, गाथा-२५. ७६०८४. भरतबाहुबलीजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १०x४०). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: तव भरतेसर वीनवे रे; अंति: रामविजय जयश्री वरे, गाथा-१२. ७६०८५. पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२,७४१७). पार्श्वजिन स्तुति, मु. समरथ, मा.गु., पद्य, आदि: हिवडा चाले उतावलो; अंति: जण भव जीवैराख समरथ. ७६०८६. (#) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. भोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३३-३६). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन सुख द्यो सारदा; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४६. ७६०८७. महावीरजिन २७ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, ९४३६-४०). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: पेहले भवे जंबूद्वीप; अंति: सतावीसमो बव जाणवो. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६०८८. (+) सुक्तमाला व अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. १८२५, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १२-८(१ से ८)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, पठ.पं. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४३२). १.पे. नाम. सुक्तमाला, पृ. ९अ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८२५, आश्विन कृष्ण, ७, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. पं. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: इक दिन आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७६०८९. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व गौतमस्वामि भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. खंभात, पठ.मु. विनयचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४२९). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणवर रिसह; अंति: कीरति गति सुख सार, गाथा-२५. २. पे. नाम. गौतमस्वामि भास, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी भास, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर श्रीवर्धमान; अंति: राज मुनि इम सुजस कहे, गाथा-९. ७६०९०. २४ दंडक ३० द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१०.५, १२४३५-४०). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पूर्व कोडि तेहनइ १०० वर्ष" पाठांश तक लिखा है.) ७६०९१. उपदेश छत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८१६, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. जीवणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १५४५०). उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरूप जामै प्रभु; अंति: जिनह० मोनुं दिजीउं, गाथा-३६. ७६०९२. विचार चोसठी, संपूर्ण, वि. १८२६, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वढवाण, प्रले.पं. कनकरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७११, १२४४५). विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: वीरजिणेसर प्रणमी पाय; अंति: भणे नंदसूरि, गाथा-६४. ७६०९३. नवतत्त्वभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३१). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण चेतन; अंति: निश्चल जाणवो. ७६०९४. सम्यक्त्व सार की चर्चा, संपूर्ण, वि. १९०५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. छपरोली, प्रले. मु. सौभाग्यचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नही हैं., दे., (२६४११, ५४४२१). सम्यक्त्वसार चर्चा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिणमार्ग में कह्यौ; अंति: मिथ्यात्व बंधइ. ७६०९५. (#) सीता आलोयणा, संपूर्ण, वि. १८५८, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, प्रले.ऋ. अमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १५४३७-४०). सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सती न सीता सारिखी; अंति: शाश्वता केवलकुशल कहत, ढाल-६, गाथा-९४. ७६०९६. (#) विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-४९(१ से ४९)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२,१०४३०-३५). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पुद्गलगुण अपूर्ण से अंतर्मुहूर्तप्रमाण अपूर्ण तक है., वि. षड्द्रव्यादि विषयक आगमोक्त विविध बोल संग्रह.) ७६०९७. (#) पोषदशमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३५-३९). For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ पोषदशमी स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु परमेश्वर पासना; अंति: गजेंद्रलीला पावसे, ढाल-६, (वि. कृति के पूर्व एवं पश्चात् में व्रत संबंधित विधि भी दी गई है.) ७६०९८. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२८-३१). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजीणेसर चरणकमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-६६. ७६०९९. (+) छासठपटणी पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६x४०). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामि; अंति: विजयदयासूरि चिरंजीवी. ७६१००. (#) नवतत्त्व विवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-११(१ से ८,१० से १२)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४४-४८). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., छठे तत्त्व अपूर्ण से नवें तत्त्व अपूर्ण तक का बालावबोध है.) ७६१०१. (#) चक्रेश्वरी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१ लिखा है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१२.५, १२४४३). शारदामाता छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शांतिकुशल सर्व ताहरी, गाथा-३६, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ७६१०२. पीसतालीस आगम सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४१२.५, १४४३५). ४५ आगम सज्झाय, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंग-६, अपूर्ण से अंग-९ अपूर्ण तक के सज्झाय हैं.) ७६१०३. (#) ओली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, ११४३२). नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंति: (अपठनीय), गाथा-९, (वि. हानिकारक स्याही के कारण अन्तिमवाक्य अपठनीय है.) ७६१०४. (+) विजयधर्मसूरिस्तुत्यष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १४४४३). विजयधर्मसूरि स्तुत्यष्टक, मु. गुणविजय-शिष्य, सं., पद्य, आदि: प्रशममकरंदहृद्य; अंति: गुणादि० गुणांस्तनोतु, श्लोक-९. ७६१०५. आदिजिनहोरी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१२.५, १३४४२). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो होरीषभ; अंति: कहे जिनचंद० जिनवर को, गाथा-५. २.पे. नाम. धर्मजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मै जाय मची; अंति: सुधक्षमा कहै कर जोरी, पद-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-१,७ व ८ लिखकर कृति संपूर्ण कर दी है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक मन; अंति: जिनहर्ष० जिनवर पे, पद-३. ४. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दरसण कीयौ आज सीखरगीर; अंति: पायो मुगति पद कौ, गाथा-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु भज विलंब न कर; अंति: जिनचंद० निस्तर रे हो, पद-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी के दरबार चलो; अंति: मोहे वंछित पूरणहार, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो प्रक्षेप गाथाएँ लिखी हैं व कर्ता का नाम अस्पष्ट है.) ७६१०६. युगप्रधानसवैया अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२,१५४४२). युगप्रधानअष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गयण थकी जिण कुलह; अंति: दइत आशीष असी, गाथा-९. ७६१०७. (+) सोलस्वप्नसज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३६). १.पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धन धन ते नर नारि, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी गौतम गणधार; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा-१५. ३. पे. नाम. रात्रीभोजनत्याग सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वासो वसे जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६१०८. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, २१४६२). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: लबधिविजय निसदीसो रे, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अरहन्नकमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अरणिकमुनिसज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धिन धिन जननी बे बाल; अंति: लबधि० गुण आगम सुणी, गाथा-१८. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लीला लखमी घणी जी, गाथा-१७. ४. पे. नाम. झांझरियाऋषि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महिलमां मुनिवर कहुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७६१०९. अजापुत्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे.. (२७४१२, १५४४१). अजापुत्र चौपाई, मु. सुमतिप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९, गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-१०, गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७६११०. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७७१३, १२४३९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७६१११. जती आलोयण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. हीगोलदी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १३४२९). साधु आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अजाणता करता नइ ए; अति: मायामोसपि मुत्तुणं. ७६११२. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४४०). For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु, पद्य, आदिः सदा आदि जिणेश्वर अंतिः रषि० वीर स्वामी, गाथा- १६. ७६११३. (+) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र व सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, २०५६). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रतनसिंह, मा.गु., पद्य, आदिः छपनकोड चडै जादुवंसा, अंतिः रतनसिंह० के नजीक राज, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक पार्श्व; अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा - ३२. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धुरा उच्चरणं, अंतिः वदइ हेम इम वीनती, गाथा- १६. ७६११४. पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५X१०.५, १९x४६). १. पे. नाम आदिजिन होरी, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जिनतुलसी, मा.गु, पद्य, आदि नामकुमार खेलन चले रे, अंतिः जिनतुलसी० हो होरी, गाथा- १८. २. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: कमलासन महावीर विराजे; अंतिः द्यानित० सुख पावैरी, गाथा- ६. ४. पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावि. आवि. साहु, मा.गु, पद्य, आदि आज सुदिन भलो उगीयो अंतिः साउ० आवागमन निवार, गाथा- ९. ५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान गुलाब चारित्र; अंति: सरण आयो आवागमण निवार, गाथा- ८. ७६११५. (+) षट्लेश्यालक्षणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. नोला, मु. हेमा ऋषि; पठ. मु, काहानजी ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४११, १३३९). " १. पे नाम, पट्लेश्या लक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा. सं., पद्य, आदि अतिरुद्र सदाक्रोधी, अंतिः तं भणिउं जिणवरदाणम्, श्लोक ७. २. पे. नाम. पंचवीस भावना, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २५ भावना विवरण - महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: ईर्यासमितिनइ विषइ, अंति: विषि रागद्वेष न करई. ३. पे. नाम. आगमिकपाठ संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण ३५७ प्रा.सं., प+ग, आदि कम्हाणं भंते लवणसमुद, अंतिः चेवणं एकोदकं करेति. ४. पे. नाम. देवविमानविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. देवलोक विमानविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: देवे दीवे एगे दो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ७६११६. नंदी भास व वासक्षेप भास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६.५x११.५, ११४२७). 1 " १. पे. नाम. नंदी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. योगापधानादि की गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: वेशाख सुदि एकादसी, अंति: जगतगुरु राजे छे, गाथा- ३. २. पे. नाम. वासक्षेप भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: झमकार रे मादल वाजे, अंति: जस विस्तरे परिमल साथ, गाथा- ३. ७६११७. (A) अनुक्रमरागकरण विधि व राशिवर्ण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, ९३०). १. पे. नाम. अनुक्रमरागकरण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only शास्त्रिय संगीत राग गान समय-प्रहरबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासजिणंदके, अंति: चतुर्थ जाम जैकार, गाथा- ९. २. पे. नाम. राशिवर्ण कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं., पग, आदि: (-); अंति: (-). Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५८ ७६११८. (+) नमस्कारमहामंत्र सज्झाय व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x११, १८x४८). १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ, जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १२वी, आदिः किं कप्पतरु रे अयाण, अंतिः सेवा देयो नित्य, गाथा - १३. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि: (१) रूप मनोहर जगदानंद, (२) देखो रे भाई आज रिषभ अंतिः साधुकीरत गुणगावे, " गाथा ५. ७६११९, (+४) आगमिकपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४-१३ (१ से १३) = १. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १६x४०). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा. सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., " अधिकार १४ से है व जिन स्नानाधिकार अपूर्ण तक लिखा है., वि. अधिकारबद्ध निरूपण.) ७६१२०. (+) आदीश्वरविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. चिमनसागर; अन्य. पं. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२४४१२.५, १६४५३). , आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पामी सुगुरु पसाय अंतिः वनय करीने विनवयुं ए, गाथा-५८. ७६१२१. (+) औपदेशिकपद व यंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४११, ८X३५). १. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साधु भाई अब हम कीनी, अंति: मुगत महानिधि पाए, गाथा ६. २. पे. नाम. बालकजन्मनक्षत्र गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु. सं., पद्म, आदि आर्द्रा आदिसरूपेणा; अंतिः विशाषा तूय लोहकम्, श्लोक १. ३. पे. नाम. विश्वा यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे नाम, महादशा यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) ज्योतिष यंत्र, मा.गु. यं., आदि: (-); अंति: (-). ७६१२२. | सातव्यसन व ब्रह्मचर्योपरि सिज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ११X३५). १. पे नाम, सातविसननिवारण सिज्झाय, पृ. ४अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७ व्यसन सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे भ्रमसी सुखकार, गाथा-८, ( पू. वि. गाथा-६ पूर्ण है.) २. पे. नाम ब्रह्मचयपरि सिज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलेखित जे पूतली; अंति: कहै जिनहरष प्रबंध, गाथा-८. ७६१२३. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) = १, प्रले. मु. दुर्गा ऋषि, पठ. श्रावि. बीराबाई सहीर, लिख. मु. म ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा है, पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६११.५, ९४३५). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास० अणंदइ संथुया, ढाल-७, गाथा - ९२, (पू. वि. गाथा - ८७ अपूर्ण से है . ) ७६१२४. (+) आलोयण आराधना व संतानप्राप्ति औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११.५, १५X४६). १. पे. नाम. आलोयण आराधना, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ आलोयणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एगेंदियाणं जं कं हवि; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. २.पे. नाम. संतानप्राप्ति औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६१२५. (#) साधु आचार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३९). साधु आचार सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जेमलजी०मंगल तीसरो जी, गाथा-४५, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२२ अपूर्ण से है., वि. अंतवाक्यवाला भाग आंशिक मूषकभक्षित है.) ७६१२६. (+) भाषासमिति व सुखदेवजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १६४३९). १.पे. नाम. भाषासमिति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सत विहार भाष्या भलि; अंति: निरवद्य भाषा बोलजै, गाथा-१९. २. पे. नाम. सुखदेवजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सुखदेव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरग थकी चव अवतर्यो; अंति: देवजीरो कीधो इधकार, गाथा-२६. ७६१२७. (#) नवकारमंत्र सज्झाय व वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११, १२४३०). १.पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा; अंति: तो इम भाखे ०धरम करो. गाथा-१३. २.पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधर जुगमंदिर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७६१२८. (+) समकित विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १९४४३). समकित विचार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम समकित इकविधि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., समकित के पाँच दूषण अपूर्ण तक है.) ७६१२९. (+#) धन्नाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३२). धन्नाअणगार सज्झाय, क. मेघसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति सामिणी; अंति: रणमुंबेकर जोडी रे, गाथा-२५. ७६१३०. (+) जगचिंतामणिसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४३७). जगचिंतामणिसूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामीगणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: सासय बिंबाई पणमामि, गाथा-७. जगचिंतामणिसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत केहेवा छे; अंति: वांदु छु अहरनीस. ७६१३१. (+) जलजात्रा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४४३८). जलयात्रा गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जलजात्रा जुगते करोए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-६ तक लिखा है.) ७६१३२. (+) छ आरा वर्णन व त्रेसठशलाकापरुष मातापितादि नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४३९). १.पे. नाम. छ आरा मान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६ आरामान, मा.गु., गद्य, आदि: वीस कोडाकोडि सागरोपम; अंति: चौवीसमा महावीर हुआ. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० www.kobatirth.org २. पे. नाम. त्रेसठशलाकापरुष मातापितादि नाम, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. अंत में ओगणसाठिजीवनी विगत मात्र कृतिनाम लिखकर छोड़ दिया है. ६३ शलाकापुरुष मातापितादि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: हवे त्रेसठशिलाकानी, अंति: (-), (पू. वि. ९ प्रतिवासुदेव के नाम तक है.) ७६१३३. (+) फुलडा सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पालिताणा, प्र. वि. आदिनाथ प्रासादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७१२, ४४४३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची फूलडा सज्झाय, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: बई रे मे कौतिक दीठ; अंतिः सखि विण सुखे सुखिओ, गाथा-२२. फूलडा सज्झायटवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरना निर्वाण अंतिः थयो इति भाव जाणवो. ७६१३४. सीतासती गीत, वाजिंत्रनाम व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२६.५४११.५. १५X३८). १. पे नाम, सीतासती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: कह्यो रे मानो माहरां; अंति: कवियण० गुरु पार उतारो, गाथा- ९. २. पे. नाम, वाजंत्र नाम, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: ताल मृदंग रंग चंग, अंति: मधुर मधुर सुर वंसरि, गाथा- ६. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: तरसत अंखियाने हुइ; अंतिः साची सति राजेमतीया, गाथा-९. ७६१३५ (+) आदिनाथ स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४१२, १०४३५). " १. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि; अंति: वीरं गिरिसारधीरं, श्लोक-४. २. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने वीरजिन स्तुति नाम लिखा है. आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद, अंति: गोखीरतुसारवन्ना, गाथा-४. ७६१३६. (+#) चंद्रप्रभु स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १७-१९X५३-७७). १. पे, नाम, चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदिः नव रो नगीनो माहरो अंतिः कहे आसकरण हितकार हो, गाथा - २२. २. पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी हुं ब्राह्मण, अंतिः कनककीरति मन भायो, गावा- ३. ३. पे. नाम, परमादपरित्याग गीत पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक पद- निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निंदडली वइरण होइ रही, अंति: मुनि कनकनिधान कि, गाथा-८. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दुहासंग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रास्ताविक दोहा संग्रह * पुहिं., मा.गु. रा. पच, आदि: नैन अटके ना रहे नैन, अंतिः (-) (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) 7 जै... ७६१३७. अष्टयोगदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, भावनगर, प्र. वि. श्री आदिश्वर प्रशादात्.. (२६.५X११.५, १४X३५). For Private and Personal Use Only ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक ज वयणे जी, डाल-८, गाथा-७६. Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६१३८. (-) वैराग्य सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे.८, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १३४३९). १. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शिव, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परणमी करी रे; अंति: काइ धारो चित्त मझार, गाथा-२३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन प्रणमीये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: मुखको० जालो दियो रे; अंति: रह्यो रे न जाय, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दरस तिहारा रे; अंति: रूपचंद० दरस तिहारा, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: किस हुति विलमाया रे; अंति: रेसुग्यानी दुल्ला, गाथा-६. ६.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: छिन छिन कर प्रभु; अंति: साहिब लुट गया डेरा, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रथ वालो हो राज; अंति: मोहन पिडत रूपनो, गाथा-८. ८. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंग सुरंगी अंगीया; अंति: नमुकापरहेडा पास, गाथा-७. ७६१३९. पच्चीसबोलनो थोकड़ो व चारसंज्ञादि छूटाबोल, संपूर्ण, वि. १९३७, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. लाधाजी रणछोड खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ११४४८). १. पे. नाम. पच्चीसबोलनो थोकड़ो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले बोले गति चार; अंति: संपराय४ यथाख्यात५. २. पे. नाम. चारसंज्ञादि छुटा बोल, पृ. ४आ, संपूर्ण. __बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संज्ञाचार तेमा आहार; अंति: वीर्य पंडीतवीर्य३. ७६१४०. (#) अक्षरबत्रीसी व उपदेशबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२८x१२, १७४५०). १. पे. नाम. अक्षरबत्रीसी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: ॐकार आराधियै जामै; अंति: सुपतश्रवण भर लीधो, गाथा-३४. २. पे. नाम. उपदेशबत्तीसी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तुं; अंति: राज कहे० सुणीजै जी, गाथा-३२. ७६१४१. (+) एलाचीकुमारनु छढालियु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. वीरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १६४५०). इलाचीकुमार छढालियु, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: मात मया कर सरस्वती; अंति: मालमुनि गुण गाय, ढाल-६. ७६१४२. (+) गत्यागति बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: गतागती., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १५४३२-३७). ५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरकनी गति१ त्रिजंचनी; अंति: नापर्याप्ता एटले २५९. ७६१४३. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४,प्र.वि. ढाल, रागादि नाम लिखने हेतु खाली जगह छोड़े गए हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १२४२५-२९). C For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरीय सरसति दामिनी; अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-४, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७६१४४. (#) मंगलनो चोढालियो, संपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सवाइजपुर, प्रले. सा. लाछा (गुरु सा. लछमा आर्या); गुपि.सा. लछमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ४ मंगलढाल., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १७४२८). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जे नमु; अंति: जायके ध्रम आराधीये ए, ढाल-४, गाथा-११०. ७६१४५. जुठातपसीनो सलोको, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. टंकारा, प्रले. मु. कुंवरजी ऋषि; लिख. श्रावि. झवेरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अन्त में प्रतिलेखक ने "उघाडे मोढे वांचे तेने रात्रिभोजननु पाप छे." लिखा है., दे., (२७४११.५, १२-१६४३७-४२). जुठातपसी सज्झाय, श्राव. वसतो शाह, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम समरु वितराग; अंति: देवलोक मोक्षमा जाय, गाथा-८७. ७६१४६. भगवद्वाण्युपरि रोहणीयाचोर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४७). कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: द्वेषेपिबोधकवचश्रवणं; अंति: निवहा अजरामरा स्युः, श्लोक-७६. ७६१४७. श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:४९भांगा., जैदे., (२६४११.५, १४४२२-५०). भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आंक ११मो तेना भांगा; अंति: (-), (पू.वि. "सेरी१४४ मध्येथी सेरी १ रोकी तेहनी विगत" पाठ तक है.) ७६१४८. उपस्थापना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४७). उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नांदी मांडी; अंति: (-), (पू.वि. "धनश्रेष्ठी राजगृह नगरे" पाठ तक है.) ७६१४९. अभिधानचिंतामणि नाममाला कांड-१, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४३२-४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७६१५०. चैत्यवंदन विधि व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१२, १३४३८). १.पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि.,सं., गद्य, आदि: प्रथम अपने स्थानकसू; अंति: सरद्धा साहू कहणां. २. पे. नाम. १०० बोल विनैसहितनां, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. विनयादि १०० बोल, पुहिं., गद्य, आदि: जीवदायमे रचियै१; अंति: सुख अधिका जाणीजै. ३. पे. नाम. षड्द्रव्यविचार चर्चा ११ द्वार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: परिणाम१ जीवर मुत्ती३; अंति: देसगत इग्यारमा द्वार. ४. पे. नाम. विविधजैन प्रश्नोत्तर, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. - जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नवकारना पहला पदना; अंति: असंख्यातमा भाग. ७६१५१. दयाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, ६४३८). दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरणकमल गुरूदेव के अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ७६१५२. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी: प्रस्ताविक., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४२). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विविध विषयों की अलग-अलग श्लोकसंख्या दी गई हैं, श्लोक-९ अपूर्ण से २१ तक, श्लोक-१ से १२ तक व श्लोक-१ से श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६१५३. (+) नवकारतपविधि स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे, (२७१२.५, १६४५० ). नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिन गणधर मुनिदेव, अंतिः सुमुख होय सासती, गाथा - १३. ७६१५४. मनवचनकायानां भांगाओनुं कोष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२६५११, ५x२९). मनवचनकाया के भांगा, मा.गु., को., आदि: मन वचन काया अंति: (-) (पू.वि. करु नहि कराववु अनुमोदवु तक है.) ७६१५५. पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६११, १०X३७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: वत्तियागारेणं वो सिर. ७६१५६. शांतिजिन, आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५X१२, १४X३८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. (+) मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशांति नमु सदा, अंति: सहेज प्रभु जइकार रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. . मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनऋषभ नमी जइ रे; अंति: मेघ० लीलविलासो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि; पास पास नित नाम जपता; अंतिः सीझे सर्वे कामो जी, गाथा-३. ७६१५७. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जीड़े.. (२७.५X११.५, १९x४७). १. पे नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, प्रले जेराज, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्म, आदि सुणि सुणि सखी मोरी अंति कहइ ज्ञानवजे उलासे, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एकमना वह सांभलो कह अंतिः फली जय पंडित वाणी, गाथा-८. ३. पे. नाम. गौतमस्वामीविलाप सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कबीर, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: पांडे कुण कुमति तुम, अंति: नहि तो डुबोगे भाई, गाथा- ४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुम आपोपि वीर गुसांई, अंति: सकल सूखाकर गोयमसामी, गाथा-५. ४. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. केसव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर जिनजी करु, अंतिः केसव करे कोडि कल्याण, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रम अव्यवस्थित लिखा है.) ५. पे नाम. २४ जिनआयु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बंदी वीरजणेसर राय, अंति: सिवपुरी मुझ देयो वास, गाथा- ७ ७६१५८. औपदेशिक पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ४, जैदे. (२७४१२, १७६१). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: पाषाण प्रभबि पांचिंद, अंति: कबीर० तिहां कसी सगाई, गाथा - ५. ३. पे. नाम. परदेशी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ३६३ For Private and Personal Use Only औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जीयाबे ते समकित्व, अंतिः सेवो देव दयाला बे, गाथा - ५. ४. पे नाम वीरजिन गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन, अंतिः विस्तार बहुतेरा, गाथा - १०. ७६१५९. वर्णगंधरसस्पर्श आलावा १७६ बोल कोष्टक, संपूर्ण, वि. १८८२ भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, जयनगर, जैदे., (२७X१२.५, ५६X१९). भगवतीसूत्र- शतक-१२ उद्देश-५ आलापक- वर्णगंधरसस्पर्श १७६बोल यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: अह ते पाणायवाय मुसा, अंति: १७५ काल १७६ अलोक. Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६१६०. शठ के ८ भेद गाथा व पंचमिथ्यात्वविचार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३३). १.पे. नाम. शठ के ८ भेद गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शठ के ८ भेद गाथा, सं., पद्य, आदि: शूद्रो१ लोभरति२; अंति: निःफलारंभ साधकः, श्लोक-१. शठ के ८ भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: शूद्र ते तुच्छ ते; अंति: मार्गानुसारि गुण आवे. २. पे. नाम. पंचमिथ्यात्वविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अभीगहिय१ मणभिगहियार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नियमुछ जियवहो तक लिखा है.) ७६१६१. (+) सज्झाय, पच्चक्खाण व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. श्री गोडीपार्श्वनाथ प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३४). १.पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले.पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाथा-९. २.पे. नाम. गर्भस्तंभन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक १अपर हाशिया में लिखी हुई है. तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, अ.भा.,उ.,गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. निविविगई प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: विगइयं निविगीयं पच्च; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पुर्णानगर दक्षिणदेश, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति १आ पर प्रारंभ करके उसी ओर हाशिया में पूर्ण किया है. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी लक्ष हीणा च; अंति: सद्य साधु समागमः, श्लोक-७, (वि. श्लोक तथा दूहा अंक १-१ दिया गया है.) ७६१६२. पार्श्वजिनअष्टक स्तोत्र विधि सहित, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३९). पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "दिहाडी ७ वार गुणी जइ" पाठ तक है.) ७६१६३. सिद्धचक्रनी थोय, सिद्धाचल स्तुति व आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५, १३४२९). १. पे. नाम. सिद्धचक्रनी थोय, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जगीस विनयविजय इम दिस, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुजयगिरि; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक ७६१६४. प्रायश्चितप्रदान विधि व सर्वजीव आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १८४५१). १.पे. नाम. प्रायश्चित्तप्रदान विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आसातनाई जघन्य; अंति: तेहज पच्चखाण कीजे. २.पे. नाम. सर्वजीवना आउखा, पृ. १आ, संपूर्ण. विविध जीवों के आयुप्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: गृधपंखी आउखु वर्ष १२; अंति: गौडासावज वर्ष२०. ७६१६५. (+) ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, २०४५). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७६१६६. (+) धर्मास्तिकायादि भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२, १३X२४). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., को., आदि: धर्मास्तिकाय अधर्म, अंति: सर्व अजीवना ५६०. ७६१६७. (#) संजयानो अधिकार व योगउपयोग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. थांदला, प्रले. मु. निहाल (गुरु मु. दोलतराम); राज्येमु दोलतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२७४११.५, ६३४३१)१. पे. नाम संजयानो अधिकार, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १८३१, पौष शुक्ल ९, मंगलवार, भगवतीसूत्र - चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (अपठनीय); अंति: (-). २. पे नाम, सर्वजीव में जोग उपयोग, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७६१६८. नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६४१२, १०x३७). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदिः परमातम पूरणकला पूरण; अंति: हो प्रभु नाणदिणंद, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पास जीण, अंतिः मोतीयन थाल बधाउंगी, गाथा-५. ७६१६९. (+) जिनप्रासाद बिंबसंख्यादि स्थान कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. . (२६.५x१२, १९२६). शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को, आदि: (-); अंति: (-). ७६१७०. (+) पंचेंद्रिय विषय, चौदस्थान मनुष्योत्पत्ति विचार व तीर्थंकर गोत्रसंख्या, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४७). १. पे. नाम. ५ इंद्रिय विषय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य स्पर्शेद्री१; अंति: एकेंद्रि जिह्वा. २. पे. नाम. १४ स्थान समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु., गद्य, आदि; मलनि विषइ‍ मूत्र, अंति: मुहर्त आउखु जाणवु "" ३६५ ३. पे. नाम. महावीरजिन काल में उपार्जित तीर्थंकर गोत्र संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन काल में तीर्थंकर गोत्र उपार्जकों के नाम, मा.गु., गद्य, आदिः श्रेणिकराजा पद्मनाभ१; अंति: ९ रेवतीनो सामाधिनमय. ७६१७१. रोहिणीतप स्वाध्याय, नवग्रह घात व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक अपठनीय-संदिग्ध है.. जैवे. (२६.५x११.५, ११४३५). " १. पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद, अंतिः विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाया- ९. २. पे. नाम. नवग्रह घात, पृ. १आ, संपूर्ण. नवग्रह यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम ज्योतिष लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संक्रांत नाडि मुनि, अंति: कथीतं मुनिद्रैः, श्लोक - १. " ७६१७२. (+) सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x१२.५ ११५३८). सुमतिजिन स्तवन- मातर, सा. जडावश्रीजी, मा.गु., पद्य, वि. १९९८ आदि साचा देव सोहामणा रे; अंति: जडाव० जिनवरना गुणगाय, गाथा - ९. ७६१७३. नेमिनाथजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५X१२, १०x४३). Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सखी आई रे नेम जान; अंति: अमृतविमल पद वरीए, गाथा-७. ७६१७४. (+) निसाल गरÜ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १०४३४). महावीरजिन स्तवन-निशालगमन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सखी त्रिभूवन जिन; अंति: सेवक तूझ चरणे नमे ए, गाथा-१९. ७६१७५. पार्श्वजिन स्तवन, नमिराजर्षि सज्झाय व सिद्धगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११, १६x४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपास जिणंद दरस; अंति: भोज० कल्याणनी कोडी, गाथा-११. २. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मथुरानगरीनो; अंति: जी हो पामीजे भवपार, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धपद सज्झाय, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिद्धनइ करूं; अंति: मुहने सिद्धजीनुं शरण, गाथा-१७. ७६१७६. पार्श्वजिनप्रभाव स्तवन, संपूर्ण, वि. १६३५, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धीणोज, अन्य. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). पार्श्वजिनप्रभाव स्तवन, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वामोदर सरोवर जिनहस; अंति: कयं हवइ सुह जुत्तं, गाथा-२१. ७६१७७. मृतसाधुपरिष्ठापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, ११४५१). साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्नान कराववू; अंति: पछे श्लोक कहेवो. ७६१७८. व्याख्यान पीठिका व सुभाषितश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१०.५, १६x४२). १.पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: समुद्र असंख्याता छइ. २. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देयं भोज धनं घन; अंति: त्वं गौरवर्णांकितः, श्लोक-२. ७६१७९. चोवीसतीर्थंकरकल्याणक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु.खीमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि, लुकागच्छ); गुपि. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुकागच्छ); मु. राजपाल ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुंकागच्छ); मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुकागच्छ); मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११.५, १८४४५). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेव आषाढवदि४; अंति: कार्तिकवदि ३० मुक्ति. ७६१८०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२, ११४३१). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पारस जिनवर सुखकरु; अंति: जय पद चाहे चाहे, गाथा-७. १. (#) ग्यानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग.खांतिविजय (गुरु मु. दयाविजय पंडित); गुपि. मु. दयाविजय पंडित (गुरु ग. हरखविजय पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, १३४३५). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरि जग जोनिमइ; अंति: उदय करण को हेतु, गाथा-२२. ७६१८२. पार्श्वजिन स्तवन व धम्मोमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १२४४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन प्रभु पासजी; अंति: पुरजो मननी आशजी, गाथा-६. २. पे. नाम. धम्मोमंगलनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३६७ दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगल महिमा; अंति: धर्म नामे जय जयकार, गाथा-६. ७६१८३. षड्दर्शन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, जैदे., (२७.५४१२, १६४५०). षड्दर्शन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "हवे षटदरीसण जाणवाने काजे" पाठ से "उत्पत्तिनी विभास सही" पाठ तक लिखा है.) ७६१८४. (+#) सस्यक्त्वदृढ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, २७५२४). कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपंकज प्रणमीने; अंति: त्याहा आवे हा सार, गाथा-२०. ७६१८५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४११.५, १०x४१). पार्श्वजिन पारj,ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामा देवी झुलाव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ७६१८६. (+) सम्यक्त्वपच्चीसी का गाथार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: समकित पचीसी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १९४५८). सम्यक्त्वपच्चीसी-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह० जह कहेता जे रीते; अंति: रोयग४ तहमीस५ सेसाणं६, (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया है.) ७६१८७. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल-३. ७६१८८. कर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. अनोपचंद; पठ.सा. केसरश्रीजी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ७X१९). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: रिद्धिहरष नहि कोई, गाथा-१६. ७६१८९. (+) गौतमकुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(१ से ३)=४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मात्र प्रथम गाथा है.) गौतम कुलक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रथम श्लोक के बालावबोध अपूर्ण से हासाप्रहासा प्रसंग तक है.) ७६१९०. उपदेशसप्तति, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जेठमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ११४२७). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा-७१. ७६१९१. (+) नेमिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १७२४, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सिणधरी, प्रले. ग. सुगुणकीर्ति; पठ. मु. सुखचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४६). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पुण्यरतन नेमिजिणंदकि, गाथा-६५. ७६१९२. जिनप्रति पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. मोतीचंद (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थान खडाखोटडीने अपासरे श्रीतपागच्छ. श्री पंचासराजी प्रसादात., दे., (२५.५४११.५,११-१३४३०). २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: थुणिआ श्रीजिनराया रे, ढाल-७, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६१९३. नवतत्त्व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. कृष्णदास (गुरु मु. चोथमलजी); गुपि.मु. चोथमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुडी: नवतत्व., जैदे., (२५.५४११, १४४३१). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरो चेतन लखण पुन; अंति: २ दर्शन ३ चारित्र. ७६१९४. (+) नेमबहुत्तरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. गुंडल, प्रले. जोसीराम; पठ. सा. अदीबाई; दत्त. श्रावि. जसोदा; गृही. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३७). नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंति: तस घर होवे जेजेकार, गाथा-७४. ७६१९५. नवकारमंत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १६७३, फाल्गुन शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. देवचंद वसा; पठ. माधव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत "आर्या भावी कूकाइ हीराइ" ऐसे नाम लिखा है, जो अशुद्धप्राय प्रतीत होता है., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४२८). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५. नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमस्कार हवो; अंति: माहारो नमस्कार हो. ७६१९६. (+#) बार भावना, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ११४४०). १२ भावना, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलीय भावना भविज्यो; अंति: सांभली करु सफल संसार, ढाल-१२. ७६१९७. (+) रोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). रोहिणीतप रास, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुखकजवासिनी; अंति: रास प्रसिद्धोजी, ढाल-८. ७६१९८. रत्नाकरपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९६९, पौष शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. राधिकापूर, प्रले. श्राव. उत्तमचंद रायचंद; पठ. सा. मंगल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १०४२३-४२). रत्नाकरपच्चीसी स्तवन, मु. गंभीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लक्ष्मी शिवकल्याणनी; अंति: गंभीर करजुग शिर धरी, ढाल-४. ७६१९९. (+) समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४४०-४३). समवसरण स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: प्रणमी गुरु चरणांबुज; अंति: समकित बुध निर्मल करे, ढाल-४. ७६२००. उपदेशसित्तरी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ५-२(१,४)=३, प्रले. कुबेरदास रणछोडदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ११४३९). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७१, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक व ५० अपूर्ण से ७० अपूर्ण तक नहीं है.) ७६२०१. ऋषभसमता स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४११.५, ११४३२-३६). आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विबुहहियामयदिट्ठि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७६२०२. कुरगडुमुनि सज्झाय व चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १५-२३४४४-५६). १. पे. नाम. कुरगडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उपसम आणोजी उपसम आणो; अंति: धन्यविजय गुण गाया रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमता नलनी बोहवा; अंति: थूण्या चोवीसे जिनवरा, गाथा-२६. ७६२०३. पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १५४४३). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. १९वी पाट अपूर्ण तक है.) ७६२०४. (#) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४११.५, १०४३४). For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३६९ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेसर साहिबा; अंति: लो सदहयो हित दायरे, गाथा-९. ७६२०५. शालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२, १५४३५-३८). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: प्रथम गोवालिया तणे; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२४ तक है.) ७६२०६. स्त्रीचरित्र चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, २०४४०-४३). स्त्रीचरित्र चौढालिया, श्राव. हीराचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: लख चोरासी मै भटकर; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७६२०७. (+) मोतीकपासीया संबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १७४६०-६३). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५२ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१०४ अपूर्ण तक है.) ७६२०८.(+) अमृतध्वनि व सोरठ व्यवहार सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. दोनो कृतियों का गाथानुक्रम क्रमशः दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४४४). १.पे. नाम. अमृतध्वनि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. महासंग कवि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: परखडड डीगमीग डंड, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सोरठ व्यवहार सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: जुबेडेया सादडेया; अंति: को मन कोडी लाप है, सवैया-३. ७६२०९. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. नवानगर, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५६). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: धन धन एह मुझ गुरु, ढाल-१०, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ७६२१०. मुनिगुण स्वाध्याय व विजयप्रभसूरि गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४४३). १.पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन वस्य; अंति: करुं विनय मांगे सोय, गाथा-१२. २. पे. नाम. विजयप्रभसूरिश्वर गुणवर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. "चक्रवर्त्तनेदेस साधुवा जाते त्तेर अष्टम करवा पडे पिण शांति कुंथु अरनाथने अष्टम एके नहीं" उक्त पंक्ति प्रतिलेखन पुष्पिका के अंतर्गत मिलती है. विजयप्रभसूरिगणस्तुति गीति, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीविजयदेवसूरीशपट्ट; अंति: विघ्नापहः __शत्रुजेता, श्लोक-७. ७६२११. चौदस्थानिक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२.५, १२x२९). १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गुरुना प्रणमी; अंति: सुणे तस लील विलास, गाथा-१३. ७६२१२. विजयहीरसूरि सवैया व प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ९४३३). १.पे. नाम. विजयहीरसूरि सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. क. सोम, पुहिं., पद्य, आदि: सभे मृगनयणी चले गुरु; अंति: सोम० करे सब पेटनटा, सवैया-१. २.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: जोगीय सिध कलंदर तापस; अंति: (-), (पू.वि. कवित्त-१० अपूर्ण तक है.) ७६२१३. स्वार्थ पंचवीशी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४११, १६x२१-४६). For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि (-) अंति: सहर भाहणपुर कमाई, गाथा-२६, (पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. गाथा १६ अपूर्ण से है.) " (७६२१४. (४) पनरतिथि सज्झाय व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. कोटा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १८३९-४२). १. पे. नाम. १५ तिथि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १७५१, ले. स्थल. कोटानगर. मा.गु., पद्य, आदि: एक कहै तु एकलो रे; अंति: पाया पखवाडो बीतो, गाथा- १७. २. पे नाम, नेमराजमति सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. राजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि वे कर जोडी जी वीनवु अंति: (-). (पू.वि. गाथा- १३ अपूर्ण तक है.) ७६२१५. (+#) नागिलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १२X४३). भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घरे आवीआ; अंति: समयसुंदर ० श्रीकार रे, गाथा- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६२१६. सरस्वती देवी छंद, अपूर्ण, वि. १७८२-१७८६ फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १ ले. स्थल. पत्तन, प्र. ग. केसरवर्धन मुनि प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १५X४३). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः शांतिकु० फलसिं ताहरि, गाथा- ३५, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा - १३ अपूर्ण से है.) ७६२१७. महावीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जेठा दामोदर दोशी; पठ. सा. कमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७१२.५, १७३०). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिणेसर जगधणी; अंति: नहि एह मनोरथ पास, गाथा-१६. ७६२१९. चौवीस तीर्थंकर नाम, राशि, नक्षत्र, शरीरप्रमाणादि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६११, १०७०). २४ तीर्थंकर के नाम - गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादि सहित, मा.गु. सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६२२०. अष्टमीदिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२७४१२, ९x४०). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसह सार, गाथा- ४. ७६२२१. श्रेणिक चेलणा गुहली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७४१२, १२४३२). " महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे गुणशिल, अंति: लक्ष्मीसूरि गुणठाण, गाथा-५. ७६२२२. (+) अठाईदिन भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., ( २६.५X१२, १०X३२). अठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति ध्याउं मन अंति: ज्ञानविमल० हो राज, गाथा- १२. ७६२२३. पजुसण थोय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, " १०x२८-३२). יי पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यवंत पोसाले आवो; अंति: सीधाम्माहा दुख हरणी, गाथा ४. ७६२२४. साधुप्रायश्चित विधि, पार्श्वजिन स्तुति व शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१५ (१ से १५) = १, कुल पे. ३, दे., (२७X११, १२X५०-५३). १. पे. नाम. साधुप्रायश्चित विधि, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नवकारवाली अशातनाकरणे, (पू. वि. प्रारम्भिक पाठ नहीं है.) २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहसफणो प्रभु सदा; अंति: संपत सदा होत सहायनं, गाथा-४. ३. पे. नाम. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, पृ. १६अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३७१ आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७६२२५. शीतलजिन स्तवन, नेमराजिमती सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिनवर सेविये; अंति: नान तणा गया दुखरे, गाथा-९. २.पे. नाम. नेमराजिमति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: वालाजी रे नेमजिणेसर; अंति: लाधो०अविचल थई हो लाल, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर अंतरजामी; अंति: चतुरहरष०बंदै पाया हे, गाथा-९. ७६२२६. हेमदंडक गाथा व जीवभेदादि भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. जीवभेदादि भांगा, पृ. १अ, संपूर्ण. हेमदंडक, प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५. २. पे. नाम. हैमदंडक यंत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. हेमदंडक-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६२२७. आत्मप्रबोध सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२-१००(१ से १००)=२, प्रले. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में लिखित कुछेक कडी अस्पष्ट है., दे., (२६.५४१२.५, १०४३६). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदिः (-); अंति: ग्रंथवरात्मबोधः, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५१ से है.) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य, वि. १८३३, आदिः (-); अंति: शुद्ध: स्वपरबोधकृते, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१५० की टीका अपूर्ण से है.) ७६२२८. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, __ श्लोक-४४. ७६२२९. (-) औपदेशिक पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १८, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११, १८४४९-५२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद-काया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: कहो काया रूप देख गरव; अंति: जिन० सनतकुमार की, गाथा-१. २. पे. नाम. शीलमहिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. बनारसी, पुहिं., पद्य, आदि: कुशील प्रभाव से सब; अंति: बनारसी० चितलाय के, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकर, पुहि., पद्य, आदि: करत परपंच जीहां पंचन; अंति: शंकर कहे० पापोबाई को, सवैया-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद- माया परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-माया परिहार, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: माया काहे करे मुझ; अंति: जिनहर्षअविकार ज्यु, गाथा-४. ५. पे. नाम. क्रोध परिहार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७२ www.kobatirth.org जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध छोर मेरे; अंति: कहे जीनहरष न कीजिये, गाथा-४. ६. पे. नाम. कर्मक्षय पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: मारतंड उदै जैसे तम; अंति: जैनधर्म पाए से, गाथा-४. ७. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. मु. बनारसी, पुहिं., पद्य, आदि: कादो जी हाथोडो होय, अंति: बनारसी० अकारथ खोवे, गाथा- ६. " ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-शील, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - शीयलव्रत, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: मेघमाल असराल कालज्यु, अंतिः नेह जीनदास न करता, गाथा-४. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम औपदेशिक पद कुशीख परिहार, पृ. २अ संपूर्ण औपदेशिक पद-कुशिष्य परिहार, मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदिः चीयो कहे वा नराभणी: अंतिः खूबचंद० दीजे नाय रे, गाथा- ४. १०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कीगसु वादोनुं मीत; अंति: खूबचद० तुल चूक रे, गाथा-२. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. खूबचंद, पुहिं, पद्य, आदि फौजा री ते संगण तौ; अंतिः खूबचंद० है परभात है, गाथा-२. . १२. पे. नाम. औपदेशिक पद-धर्माचरण, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा - ११. १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुजद मिथ्या आत केसा अंतिः खूबचंद० सुख पावो हे. १३. पे. नाम औपदेशिक पद-भौतिकमुख परिहार, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-भौतिक सुख परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: सीख सीख कोड कंचनकु; अंति: बिना व जी, गाथा - ६. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - चोरी परिहार, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्म, आदि: चंपा के चोरीकुं करण अंतिः हीराललाल० पुरोधुर है, गाथा-२. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कर्म की चाल, क. सुंदर, पुहिं, पद्य, आदि कंथ चाल्या प्रदेस अंतिः केसो ख्याल है, मु. खेमराज ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान जाये ध्यान जाय; अंति: खेम० काडे गही तांण रे, गाथा- ११. १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. बालचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: सातमो खंड चल्यो तय; अंति: बालचंद० मम करो रीस रे, गाथा- ११. १८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: हंस गति गमनी युं देह; अंति: गद० लोभी युं काया कसे, गाथा- ९. ७६२३०. (#) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. वीराई आर्या, सा. रुपाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी स्तवन अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२७४१२, १५४३२-३५). नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिन पाय नमी, अंतिः धनविजय सव सुख करू, डाल-४, गाथा - ५२. For Private and Personal Use Only ७६.२३१. अढाईद्वीपरो] स्तवन, संपूर्ण वि. १९४५, चैत्र कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. भभूतराम हिमतराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५५११.५, ८x४२). २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमांन, अंति: नेहर धर्मसी नमै, ढाल - ३, गाथा - २६. Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६२३२. (१) सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु पं. जगरूपकुशल); गुपि. पं. जगरूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०,११४३२). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणि; अंति: शांति सिद्ध ताहरी, गाथा-३५. ७६२३३. (+) उपधान तथा मालारोपण विधि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १६४३७-४०). १.पे. नाम. उपधान विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १५२१, कार्तिक कृष्ण, २, ले.स्थल. चिराग ग्राम. उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम द्वितीयोपधान; अंति: सर्वोपि पूर्ववदेव. २. पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुंहपत्ति वंदना २; अंति: ब्रह्मचर्यं च पाल्य. ७६२३४. अंतरीक छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्र.वि. हुंडी:अंतरीक छंद, जैदे., (२७४१२, १३४३०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: धन ते जिनवचने रमे, गाथा-५५. ७६२३५. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ३, जैदे., (२६४११.५, १८४४०-४५). __ आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथमं गृहस्थानां; अंति: आलोयण तप फर दीजे. ७६२३६. (+) चौद गुणस्थानक विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. सारिणीयुक्त, संशोधित., दे., (२७४११.५, १०४३२-३५). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६२३७. (+#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. ७६२३८. (+#) दंडकषत्रिंशिका सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४५२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ. गाथा-३९. दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमी करी चउवीस तीर्थ; अंति: अपनै आत्महित काजइ. ७६२३९. (+) संबोहसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११, १२४४३-४७). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७९. ७६२४०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११(१ से ११)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. विषय व पत्रांक से कहा जा सकता है कि पूरा कल्पसूत्र न लिखकर सामाचारी लिखना ही अपेक्षित हो., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०x४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामाचारी के बीच का पाठांश है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-कथा संग्रह, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ४ कषायपिंड कथा में मायापिंड कथा अपूर्ण तक है.) ७६२४१. (+#) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका का संक्षेप सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी खंडित है. हुंडी: (बृह)द्गच्छीय श्री..सूरि कृत स्याद्वादरत्नाकरतर्क लघु टीका मध्यात्., पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, २३४६७-७०). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका का संक्षेप का टिप्पण, सं., गद्य, आदि: समस्तसस्तशास्त्रार्थ; अंति: तस सदानंद देवसूरिः. For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका का संक्षेप, सं., गद्य, आदि: सिद्धयेवर्द्धमानः; अंति: मित्येव० मीहाजायते. ७६२४२. जीवोत्पति, संपूर्ण, वि. १८५५, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. काशीजी (वाराणसी, जैदे., (२७४११.५, १३४३५). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोवो जीव आपणी; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७०. ७६२४३. संबोधसत्तरी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १५४४३-५०). १. पे. नाम. संबोधसत्तरि दोहरा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमपुरुष पद मन धरी; अंति: भावना पामीए परमानंद, गाथा-९७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पंडित. श्रवण, मा.गु., पद्य, आदि: एक बिरखि मिं दीठ मझ; अंति: श्रवण० इही बीचारि, गाथा-४. ७६२४४. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४११, १०४२३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवू जी; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., कलश अपूर्ण तक है.) ७६२४५. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन-चिंतामणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, फाल्गुन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले.मु.ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ५४२६-३०). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-बालावबोध, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा पार्श्वनाथाय; अंति: मणी दीर्घ पिण छै. ७६२४६. षड्दर्शन समुच्चय व औपदेशिकश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. नारायण; पठ. आ. शांतिसागरसूरि (मलधारपुनमिया विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११, १५४४७-५०). १. पे. नाम. षडदर्शनसमुच्चय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: एसदर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८६. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ७६२४७. (+#) दसप्रत्याख्यानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४२५-३०). १.पे. नाम. दसपच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं बोसिरामि. २. पे. नाम. पौषध लेवानी विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह: अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. पोषध पाडवानी विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: सेसो संसारफल हेउ. ७६२४८. (+) दसप्रत्याख्यान व मुंहपत्ति के पचास बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४२५). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मयवितीया गारेण वोसरे. २. पे. नाम. मुंहपत्ति के ५० बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमोहनीय१; अंति: २ त्रसकाय ३ पडिहरु. ७६२४९. (१) सूत्रकृतांगसूत्र- वीरथुई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२६४११.५, १०X३८). www.kobatirth.org ७६२५१. ७६२५०. (+) अजितशांति स्तवन व ४२ भाषाभेद गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैये. (२६x१२. १७४५०-५५). " १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजि अजिअ सव्वभयं संत अंतिः जिणवयणे आवरं कुणह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ४०. २. पे. नाम. भाषा ४२, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र ४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि जणवय सम्मय ठवणा नामे, अंतिः वायड अव्बोबडा चेब, (+) गाथा-५. प्रज्ञापनासूत्र सह बालावबोध व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, दे., (२६.५X११.५, १५X२४-६०). प्रज्ञापनासूत्र चयनित सूत्र, प्रा., गद्य, आदि अजीवपजवाणं भंते कह, अंति: असत्यामोसार, प्रज्ञापनासूत्र चयनित - चयनित सूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अवगाहना ते आकास; अंतिः सं० अनं०. ७६२५४. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा, अंति: हिवड़ आगमिसंति तिबेमि, गाथा २९. ३७५ प्रज्ञापनासूत्र- चयनित सूत्र का यंत्र, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ७६२५३. जीवजीऋषि संधारा, वरसिंघऋषि संधारा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे, ३, प्रले. सा. रुपाई; पठ. सा. लीला (गुरु सा. रुपाई), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १६X३०-३४). १. पे. नाम. जीवजीऋषि संथारा, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. (+) जीवजीऋषि संथारा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सूरति मझारि दोसी; अंति: एक गुण न वीसरइ जी, गाथा- ३६. २. पे. नाम. वरसिंघऋषि संथारा, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. वरसिंघऋषि संथारा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल गुणे संविगी, अंति: जपता सुख संपद ते लहि, गाथा-२६. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु, पद्य, आदि: वाडी राव करे करजोडी अंतिः वीर न सक्या वारी जी, गाथा - १५. वासुपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, १०x२६-३०). वासुपूज्यजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर जगपती, अंति: मोहण मुगति सुख माणणो, गाथा-३७. ७६२५५. पोसहसामायिक विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद शुक्ल ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२६.५X१२.५, १६३५-३८). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी, अंति: (-), (पू.वि. पौषध लेने की विधि के साथ पौषध सामायिक विधि तक है.) For Private and Personal Use Only . ७६२५६. (+) अजितजिन स्तवन, औपदेशिक पद व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, १६x४०). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. , कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीजा अजित जिणंदजी रे, अंति: कांति नमे करजोड रे, गाथा- ७. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद-आत्माविषयक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम हित नाह किनारे; अंति: मिंदर कलस नगीना रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर सेवो हो भविका; अंति: मन वचन कहे सार, गाथा-११. ७६२५८. (+) महावीरजिन स्तवन व औषधसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजनगरे डेला, प्रले. मु. रंगविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक-१ अके ऊपरी भाग में यह पाठांश लिखा है. "संवत् ना कार्तिक वदि ५नी रात्रिने परोडीई तारा घणा पड्या छे भूमि ऊपरे अनें शषेश्वरजीनी प्रतिमा डोली छे तेहनो स्यो प्रकार थास्ये पृथ्वीमा" संभवतया प्रत राजनगर (अहमदाबाद) के डेला उपाश्रय में लिखी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणंद रे; अंति: श्रीमहावीरजी रे, गाथा-१७. २.पे. नाम. वालानु औषध, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-१ अके हासिये में यह कृति लिखा है. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउमासी पारणुं आवे; अंति: शुभवीर वचनरस गावेरे, गाथा-८. ७६२५९. (+#) पर्युषणनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. छबील पुस्कर्णाब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १०४३०). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जीन आगममें चोपरवी; अंति: भावरतन सुखकारी, गाथा-४. ७६२६०. आत्मशिखामण भावना, संपूर्ण, वि. १८७३, पौष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बासु, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु मु. नवलविजय); गुपि. मु. नवलविजय; लिख. श्राव. फूलचंद मंछाराम मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चंद्रप्रभु प्रसादात्, प्र.ले.श्लो. (१२७०) श्रीअरिहताइ नवपय, (१२७१) अरे मनअपाषेचकर, जैदे., (२६४१२.५, १४४४०-४३). आत्मशिक्षा भावना, मा.गु., गद्य, आदि: अहो आतमानुप्रमादमा; अंति: एहवी भावना नित करवी. ७६२६२. (+) चंद्रगुप्त चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १७X४६). चंद्रगुप्तराजा चौढालिया, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: विमल बोध उद्योतकर; अंति: लहीये लील विलास हो, ढाल-४. ७६२६३. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो व तंत्र मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १६४३८-५२). १. पे. नाम. जिनपालजिनरक्षा चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: पाप अठारै जिन कह्या; अंति: महाविदेह जासी मोख्य, ढाल-४, गाथा-६४. २. पे. नाम. तंत्र-मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७६२६४. संख्याता असंख्याता भेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४११, २२४५०). असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अहो स्वामि संख्या; अति: तिर्थंकरा कह्या छे. ७६२६५. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १२-१५४२८-३३). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंति: सेव करतां सुख लह्यो, गाथा-४१. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३७७ ७६२६६. आत्महेतु बारमहिना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. दयाशंकर हरजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१०.५, ९४३२-३६). औपदेशिक सज्झाय-द्वादश मास, श्राव. आनंददास, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: कारतग मासे कामी नर; अंति: दास मारा वाहाला जी, गाथा-१४. ७६२६७. (+) भगवतीसूत्र-बंधशतक-समवसरणद्वार गाथा सह टबार्थ व २४ दंडक ४७ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, २०४५६). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस्स २ पखिय; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, प्रले. श्राव. साणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जी० समचइ जीव ल० लेस; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीमइ बोल ३५ पावइ; अंति: परे जाणवा समोश्रण४, संपूर्ण. ७६२६८. (+) रत्नकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४४०-४३). रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतन गुरु गुण मीठडा; अंति: दसमी ढाल उदार रतन, गाथा-४६. ७६२६९. (#) सुपन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४३६-४०). स्वप्नफल चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: पहिलूंमान जोई करी; अंति: संघकुल इणी परि कहि, गाथा-४२. ७६२७०. सुगुरुपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: सुगुरुपचीश, दे., (२७४१२.५, ९४३०). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एणे; अति: शातिहर्ष उछरंगजी, गाथा-२५. ७६२७१. (#) पार्श्वजिन स्तवन व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: परमेष्टि प्रणमी करी; अंति: तेजपाल० पास जिणेसरु, गाथा-३६. २.पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देविसारम, श्लोक-४. ७६२७२. मयणरेहानी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, २३४४५-४८).. मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: आदि धरम धोरी प्रथम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-६ गाथा-२ तक लिखा है.) ७६२७३. कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३-१(१)=२, दे., (२६.५४१२, १३४३६-४०). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ब्राह्मण और धरणेंद्र की वार्ता अपूर्ण से शिवकुमार कथा के आरंभ तक लिखा है.) ७६२७४. औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५२-५५). औपदेशिक सज्झाय-चतुरविचार, रा., पद्य, आदि: साधने श्रावक रत्नारी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) ७६२७५. गुरुविहार विनती गंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १०४३६). गुरुविहारविनती गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाये; अंति: धार म करो आप विहार, गाथा-१४. ७६२७६. द्रोपदी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १९४३६-३९). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति,मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७६२७७. (+) नियंठा अल्प बहुत्व बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २६x७४). For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संजयानियंठा के बोल, प्रा.,मा.गु., को., आदि: पन्नवणा १ बेये २; अंति: (-). ७६२७८. (+) जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १७४४६-४९). जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप १ लक्षयोजन; अंति: जाणिवा समुद्रमाहि. ७६२७९. (+) पार्श्वजिन पद, शांतिजिन आरती व सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३४३८-४२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद-अवंतीपुर मंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी हो पास दरसण; अंति: आसा प्रभु मन तणी, गाथा-३. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: सेवक० अमर पद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: युगल्याम धर्म; अंति: कांतिसागर० पूरो मुदा, गाथा-११. ७६२८०. मौनएकादशी गणना, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वणवाण, प्रले. मु. वीरवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४४२). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरते अतीत२; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ७६२८१. (#) अंतिम आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१५४४०). अंतिम आराधना, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ८४लक्ष जीव क्षमापना से पूजनोपकरण घर पर लाने संबंधी क्षमापना तक है.) ७६२८२. (#) रेवतीश्राविका व अरिहंतशरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. गजमुख, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन वीर समोसर्या; अंति: गजमुख जिन गुण गाय, गाथा-२८. २. पे. नाम. अरिहंतसरण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. अरिहंतशरण सज्झाय, मु. गजमुख, मा.गु., पद्य, आदि: सरण करीजई श्रीजिन; अंति: रेशरण करो निसदीस रे, गाथा-९. ७६२८३. मूर्तिपूजाविषयक २१ प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १५४३८). प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: समकित तो सरदहण रूप; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रश्नोत्तर-१८ तक है.) ७६२८४. (#) महावीरजिन २७ भव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १५४४०-४५). महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेले भवे जंबूदीव; अंति: भव भगवंतना पूरण छे. ७६२८५. सज्झाय वस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, जैदे., (२६.५४११.५, १७२३२-३६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर इम उपदिसै आगै; अंति: इम पभणै रूपचंद रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. चार सरणा सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा होजो; अंति: समयसुंदर० कारो जी, अध्याय-४, गाथा-१२. ३. पे. नाम. ८४ लाख जीव से क्षमापणा, पृ. २अ, संपूर्ण. जीव खामणा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: लाख चौरासी जीव खामीय; अंति: समयसुंदर० प्रभावोजी, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. अठारह पापस्थानक परिहार गीत, पृ. २अ संपूर्ण. " १८ पापस्थानकपरिहार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं. पद्म, आदि: पाप अठारह जीव परिहरु, अंतिः जिनधरम मरमो एहो जी, गाथा ३. ५. पे. नाम. मनोरथ गीत, प्र. २अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: धन धन ते दिन मुझ कदि, अंति: पांमीस भवनौ पारो जी, गाथा - ३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि मरोटमंडण, मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि चिंतामणि स्वामीजी अंतिः भव भव देव्यै तुम सेव गाथा - ११. ७. पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, नेमिजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिणेसर बंदिये, अंतिः दीलत० मनवंछित पूरी, गाथा- ३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: दीनदयाल कृपा कर पारस, अंति: दोलत० नवे निध पाई, गाथा - १. ७६२८६. (१) पार्श्वजिन स्तवन व नेमिराजीमति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १०.५, १०-१४x२१-३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्म, आदिः श्रीसुगुरु चिंतामणि अंतिः प्रभु पारसमुखे कीये, गाथा- १५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: मोह तणा दल मोडी रथ; अंतिः नाथ सदा गुण गावे रे, गाथा- १०. ७६२८७, (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, अन्य सा तेजवाई आर्या (गुरु सा. लीला आर्या); गुपि. सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२६.५x१०.५, १३४२८). सीमंधरजिन स्तवन, ग. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनवर देव, अंति: गुणलाभ० त्रिभोवन धणी, (वि. गाथा क्रमांक नहीं है.) ३७९ ७६२८८. (+) चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्न, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, १५X३०). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर, अंतिः जेमलजी करी छे जोडो, गाथा ४०. ७६२८९, (+) गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे (२५x११, २३x४६-५०). गणधरवाद, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१) अस्मिन् भरतक्षेत्रे, (२) हिवइ एहवइ अवसरि अपाप अंतिः ११ गणधर दीख्वा लीघा. ७६२९०. समकितना ६७ बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : सम्यक्त्व, जैदे., ( २६ X११, २१x४२-४५). सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चारतो सरदणा तीनलंग; अंति: कर जे नर चतुरक जे. ७६२९१. भक्तामर का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. हुंडी भक्तामर जैदे. (२६४११.५, १७४४८). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं, पद्य, आदि आदिपुरुष आदिसजिन आदि, अंतिः ते पावही शिवखेत, गाथा- ४९. ७६२९२. (+) आलोयण विधि, धारणा प्रत्याख्यानसूत्र व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:आलोयणा, संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १४X३६). १. पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आलोयणा आराधना, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: एगेंदियाणं जं कं हवि, अंति: अप्पाणं वोसिरामि. २. पे नाम, धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,रा., गद्य, आदि: अरिहंतसक्खियं सिद्ध; अंति: (-). ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: क्खपहस्स वडे सगभूयं, गाथा-३. ७६२९३. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. तला, प्र.वि. हुडी:पद्मावती, दे., (२७४१२, १३४३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवेई राणी पदमावती; अंति: कीयो जाणपणानो सार, ढाल-३, गाथा-४६. ७६२९४. चूडलो रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, ११४४०). चूडलो रास, मा.गु., पद्य, आदि: गणपति गुणनिधि लागुणी; अंति: नित नित पहिरजो चूडलो, गाथा-१३. ७६२९५. समकित के सडसठ बोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९६९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, ले.स्थल. खेमत, प्रले.पं. राजेंद्रसोम; पठ. मु. शांतिलाल (गुरु मु. राजेंद्रसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, १४४४०-४३). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-३४ अपूर्ण तक नहीं है.) ७६२९६. चौद गुणस्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. सारणीयुक्त, दे., (२६.५४१२, २७४१८). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अति: (-). ७६२९७. उत्कृष्ट-जघन्य बंधयंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. सारणीयुक्त, जैदे., (२६४११.५, १९४४०-५८). नारकी उत्कृष्ट जघन्य शरीरमान व आयुष्यप्रमाण, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (संपूर्ण, वि. कोष्ठक) ७६२९८. (#) मैथुन व क्रोधपरिहार भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. मैथुनपरिहार भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक भास-मैथुन परिहार, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु सुरमणि सूरग; अंति: तेहनि जिनमारग सांधइ, गाथा-१६. २.पे. नाम. क्रोध भास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. क्रोध परिहार सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: आगम वचन विचारो रूडा; अंति: ब्रह्म सफल संसार रे, गाथा-१५. ७६२९९. माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:मणिभद्रछंद, जैदे., (२७४१२, १६x४२-४५). माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी पाय; अति: शातिसूरि० सुख संपदा, गाथा-४१. ७६३००. (#) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(२ से ४)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३७-४०). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ से ढाल-७ तक एवं ढाल-८ गाथा-७ अपूर्ण के पश्चात की गाथाएँ नहीं हैं.) ७६३०१. (#) भगवतीसूत्र की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३५). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेम; अंति: विनयविजय उवज्झायरे, गाथा-२१. ७६३०२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३१). सीमंधरजिन स्तवन, मु. वसंत, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनराज; अंति: आणंद मुझ आपज्यो, गाथा-८. ७६३०३. महावीरजिन गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४३५). महावीरजिन गहुँली, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: बेनि राजग्रहि उद्यान; अंति: उदय जाणज्यो रे लोल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३८१ ७६३०४. सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७.५४१२, १२४३६). सुभाषित श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक ७६३०५. (+) ऋषभजिन बारमासो व दहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२,१६x४३). १.पे. नाम. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. यह कृति १ असे १ आ पर पूर्ण होती है., वि. पांच सुमति, गुरु-शिष्यादि दूहा संग्रह.) २. पे. नाम. आदिजिन बारहमासा, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमु; अंति: दीजो देव तणा देवारे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सीलवर्णन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक पद-शीयलव्रत, पुहिं., पद्य, आदि: पंथे धायबो बगेस जोड; अंति: जीते सो तो दूसरो परम, गाथा-४. ४. पे. नाम. अज्ञात व्याकरण, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक १ आ पर बिच में लिखी है. जैन व्याकरण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६३०६. (+#) चंदनमलयागिरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ११४२९). चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६३०७. (#) सरस्वति छंद व सरस्वति मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १०४३३). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: जाउं तोरी बलीहारी, गाथा-७. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, सं., गद्य, आदि: अह्रींक्लीं ऐं, अंति: सरस्वत्यै नमः. ७६३०८. ४७ गोचरीदोष सज्झाय व दुहा-श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. दहा-श्लोकसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पांचसेने सो गुणा करत; अंति: अगीयारसेने चालीस थाय. २. पे. नाम. चोरासीलाख जीवयोनी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवायोनि मूकबधिर का छप्पा, मु. सुरगंग, मा.गु., पद्य, आदि: लाख चोरासी जीवा जोनी; अंति: सुरससी कहे करजोड, गाथा-२. ३.पे. नाम. ४८ दोष गोचरी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ४७ गोचरीदोष सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १९१३, आदि: दोष आहारना सांभलोरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७६३१०. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२७.५४१२, १४४४६). साधारणजिन स्तवन-जीवभवभ्रमण गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल साहिब विनती एक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७६३११. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, ९-११४४६). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक मुगतिदायक; अंति: माणिक्य० सिवसुखवरं, गाथा - १३. ७६३१२. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ५. प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६.५४१२, ११x२३-३२). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. करण, पुहिं., पद्य, आदि अरी मेरी अखीयन हरख, अंतिः करण० मिल है सिद्धनगरी गावा- ३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पु., पद्य, आदि: इन में तुल तिलाधन, अंति: लहै निरबाणी तुम, गाथा - २. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पायो दरसण जिणराजरो अंति: भरोसो एक गरीबनवाजरो, गाथा-३. " ४. पे. नाम. दानशीलतपभावना पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रे मन मांन सीखावन, अंति: इन विन पार न लेरी रे, गाथा- ३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद - अथिर काया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., ई., पद्य, आदि: काय अथिर थिर नाय; अंति: मिल है ढील न काय, गाथा - ३. ७६३१३. (+०) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, १२४३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन- आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि जिन जीम जाणो रे ते, अंति: गुणसागर आनंद रली, गाथा - २४. ७६३१४. (+#) चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, ११x४३). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथांक नहीं लिखा है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो सिद्ध, अंतिः जिनजी करु प्रणाम. २. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथांक नहीं लिखा है. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सेजै श्रीआदिदेव, अंति: रिषभ कहे० मननी आस. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन दूहा, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथांक नहीं लिखा है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर विहरमान; अंति: नमु साधु सदा निसदीस.. ४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण मु. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सेतुंजे मारग चालता, अंतिः केसर कहे पूजो आदिदेव गाथा- ७. ५. पे. नाम. १२ देवलोक नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म देवलोक १ ईशान, अंति: अच्युतदेवलोक १२. ७६३१५. (+) जैनगाथा संग्रह व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२७४११, १०x३९). १. पे. नाम. दिवसप्रति अनशन गाथा व पंचेंद्रियसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. १ आ. संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- कलकत्तामंडन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: किलकत्तैपुर दीठा रे; अंतिः शांतिरतन जग रे, गाथा- ७. ७६३१६. सीमंधरजिन स्तवन व गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७१२, १२३९). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर सांभलो रे, अंतिः मुनि माणिक वाधड़ नूर, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३८३ २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सखी साहेली सवी मली; अंति: जिम हुय मंगलमालो जी, गाथा-११. ७६३१७. (+) १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १२४३७). १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "११ उपशांत" तक है.) ७६३१८. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन व उपधानतपस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १७४४५). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: गुणनिधि गवडीपुर; अंति: प्रभुनी बलिहारी रे, गाथा-११. २. पे. नाम. उपधानतप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीरजी धर्म; अंति: समय० त्रिभुवन तिलौ, ढाल-३. ७६३२०. (+) औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४३४). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगुरु उपदेस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७६३२१. २४ जिन कल्याणकतिथिदिन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६.५४११, ३३४१८). २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. शांतिनाथ ज्ञान कल्याणक से है.) ७६३२२. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ लिखा है परंतु वास्तव में प्रथम कृति अपूर्ण है., संशोधित., दे., (२७४१२, १७४१९). १. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. __ बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. आठ बोल पापना, पृ. २अ, संपूर्ण. ८ बोल पाप परिवार विषयक, रा., गद्य, आदि: पापरो बाप लोभ पापरी; अंति: पापनो मूल क्रोध. ३. पे. नाम. आठ बोल धर्मना, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ बोल धर्मपरिवार, मा.गु., गद्य, आदि: धरमरो बाप जाण पणो; अंति: धरमरो मूल खीमा. ७६३२३. १८ हजार शीलांगरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, ६४१७-३०). १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जेनोकरंति ६००० जेनो; अंति: बंभंच जइ धम्मा, गाथा-२, (वि. यंत्र भी दिया है.) ७६३२४. (+) आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७X११.५, १०x४०). १. पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर अरिहंतजी ओलगडी; अंति: तणो सुख लहइं सुख खास, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन विनती रे; अंति: दीजइ जिनराजजीरे लोल, गाथा-८. ७६३२५. नवकार रास व अजितजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ९४३६). १. पे. नाम. नवकार रास, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमिने दो मुझ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अजितनाथ लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ अजितजिन लावणी, मु. केशवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजितनाथ महाराज; अंति: केशव० दुःख तुं हरजी, गाथा-३. ७६३२६. अजीवनां ५६० भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२७.५४१३, २५४१७). ५६० अजीव भेद यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७६३२७. (+) पार्श्वजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.१.प्र.वि. संशोधित..जैदे.. (२६.५४११.५.८-११४३१-३२). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंति: सामि नाम शंखेश्वरो, गाथा-९. ७६३२८. पजूसणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१३, ९-१२४३५). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरस्वती; अंति: जगवल्लभ गुण गाय सदा, गाथा-१६. ७६३२९. (+) पंचमी स्तवन वदादाजीरी आरति, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ९४३१). १.पे. नाम. पंचमी लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमीतप तुमे करो; अंति: समयसुंदर० भेद रे, गाथा-५. २.पे. नाम. दादाजीरी आरती, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: पहिली आरती दादाजी; अंति: गुरु चरण कमल बलिहारी, गाथा-९. ७६३३०. कुंडलीया व नाणागाम का रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१०.५, १२४४०). १.पे. नाम. नाणानगर कुंडलीयो, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. महेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाणानगरथी नीकली; अंति: मेद्रवीजेजी जाणता, (वि. संग्रहात्मक गाथा-८.) २. पे. नाम. नाणागाम का रास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: नांणा गाममे वाणीया; अंति: दोलत०धरज्यो प्यार रे, ढाल-१, गाथा-१४. ७६३३१. (+) मणिभद्रजी छंद, पुन्य सज्झाय व कुंडलीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४११, १२४३६-४२). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, बुधवार, ले.स्थल. नाणानगर, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); गुपि.मु. लालरुचि (गुरु पं. दलपतिरुचि); पठ. मु. माणेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीवीरप्रभु प्रसादे. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: वाणी वीणा पाणी वरदा; अंति: गावे पामे मंगलमाल, गाथा-२४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, रविवार, ले.स्थल. नाणानगर, अन्य. पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: समयसुंदर० कोटानुकोटी, गाथा-५. ३. पे. नाम. वल्लभविजय शिष्य परंपरा कुंडलीयो, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: गजेंद्रजी के पाट ए; अति: मोहन करत वीसाल, गाथा-५. ७६३३२. अष्टप्रकारीपूजा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११, १०४२३). अष्टप्रकारीपूजा स्तवन, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: गंगोदक शीतल विधि वास; अंति: जिणदास० शिवसुख होय, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३८५ ७६३३३. अनागतचोविस चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४३४). २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: कहे ज्ञानविमलसूरीस, गाथा-१५. ७६३३५. हीरविजयसूरि के १२ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ३३४२०). हीरविजयसूरि के १२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: संवत १६४६ सोल छइताला; अंति: तथा संघनो ठबको होइ. ७६३३६. (#) खेताणुवाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: खेताणुवाइ., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३६). क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, आदि: खेताणुवाएणं सव्वत्थो; अंति: (-), (पू.वि. "त्रण लोक फरसे" पाठ तक है.) ७६३३७. (#) चंद्रराजा गुणावलीराणी लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२.५, १२४३७). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवी; अंति: सह फलस्ये आसरे, गाथा-७४. ७६३३८. (+) मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: मृगापुत्र सझाय., संशोधित., दे., (२७४११, २०४४५). मृगापुत्र सज्झाय, ग. नरेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: सुग्रीवनगर सोहामणु; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. ढाल-१० गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७६३३९. हीरविजयसूरिनूं चउमासु वाहाण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १३४३३-३८). हीरविजयसूरि चौमासु वाहाण, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर मनि धरु; अंति: हंसराज गुण गावइ रे, गाथा-५८. ७६३४०. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२७४११.५, १३४४२). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर समरु सदा मुगत; अंति: दुक्कडं तास वखाण, गाथा-९१. ७६३४१. बारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४१२.५, १४४४६). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत अढार; अंति: सति शक्ति पालवा. ७६३४२. मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. करमसी रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १२४२७). मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्थापनाजी पडीलेही; अंति: प्र० १ नो० अवधि०. ७६३४३. (+) नवपदार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, ९४३७). नवतत्त्व प्रकरण-पदार्थ विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)मुक्ति पद पामवानि, (२)जीव अजीव पुन्य पाप; अंति: निरंजन पद पामीइ. ७६३४४. आदेसरविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रावण कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. दयाशंकर हरजीवन जोशी; पठ. श्रावि. हरखबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ९४२९-३२). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जअपढम जीणेसर अती; अंति: मुनि वैरागी ईम भणी, गाथा-४५. ७६३४५. (+) गौतमस्वामी छंद, स्तवन व आरती संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. कोटा, प्रले. श्राव. ऋषभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ७-९४२४-२८). १.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरो शीश; अंति: गौतम तुठै संपति __ कोड, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. प्रभाती स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.. मु. कान, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर शासणसार; अंति: जीवदया प्रतीपाल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. ५ परमेष्ठी आरती, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंति: परम पद भजी सुख लीजे, गाथा-९. ४. पे. नाम. प्रभाती आरती, प्र. ४अ-४आ, संपूर्ण. शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जे जे आरति शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ७६३४६. (#) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६४५१). बोल संग्रह- जीवाभिगमसूत्रे, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६३४८. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, १७४२७). १. पे. नाम. चोविसतीर्थंकर पंचकल्याणक तिथि, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, आदि: आषाढ वदि पक्ष ४; अंति: सुपार्श्वनाथ दिक्षा. २.पे. नाम. जिनकल्याणक जापमंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिनकल्याणक तपविधि, रा.,सं., गद्य, आदि: च्यवने परमेष्ठिने नम; अंति: पारंगताय नमः. ३. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती ९ वासुदेव ९ बलदेव कालमान विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भरत चक्री रिषभदेवनै; अंति: पारस०कै विचमै होवा२१. ७६३४९. (+) भृगुपुरोहित चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४४०). भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: देव हुंता पूरव भवे; अंति: लीया सुख लहे सासतो, ढाल-५. ७६३५०. (#) दशार्णभद्रराजर्षिचतुष्पदी व कुमतसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १५४३९-४२). १. पे. नाम. दसारणभद्रराजरिष चतुपदी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीरजिणेसर वंदिने; अंति: सुख दोलत दीह, ढाल-६. २. पे. नाम. कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. श्राव. लधो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपंकज प्रणमीने; अंति: पामी यु चिरकाल नंदो, गाथा-२५. १. (+#) मयणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सायपुरा, प्रले. मु. सवजी ऋषि (गुरु मु. भीखनजी ऋषि); गुपि.मु. भीखनजी ऋषि (गुरु मु. रायचंद ऋषि); मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, २४४३५). मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: श्रीवर्धमान जिणवर; अंति: विद बीज सुक्रवार लाल, ढाल-८. ७६३५२. भृगुपुरोहित चौपाई वनंदमणियार चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. फोजराज; पठ. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, २२४४१). १. पे. नाम. भृगुपुरोहितनो वखाण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भृगुपुरोहितचौपाई, रा., पद्य, आदि: भृगु प्रोहितनी वारता; अति: पोहता मोख मझार, ढाल-७. २. पे. नाम. नंदमणियाररो चोढालीयो, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. नंदमणियार चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: ज्ञातारा तेरमा अध्यय; अंति: नंदणरो इधकार ए, ढाल-४. ७६३५३. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६४११.५, ११४३१). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३८७ ७६३५४. कुंडलिया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्रले. मु. अखेचंद; पठ. मु. सोमचंद, राज्यकालरा. सुंदरजी जीवजी खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कुंडलियापत्र., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११.५, १३४२७-३०). १. पे. नाम. संगतप्रभाव कुंडलिया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हंस गये सारस गहे गहे; अंति: हंसा रे बभन घर जाय, गाथा-१. २. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. क. कान, पुहिं., पद्य, आदि: कोडि मीले न भाग विन; अंति: कान० प्रथीराज चवाण, गाथा-३. ३. पे. नाम. हिंदु मुस्लिम उपदेश कुंडलिया, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक कुंडलिया-हिंदुमुस्लिमबोधगर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: हिंदु कहे सो हम बडे; अंति: कुण मुसलमान कुण हंडु, गाथा-१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन कुंडलिया, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पाशजिणंद पति जीइ गुन; अंति: तान तरफ तन बालम तवन, गाथा-१. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक कुंडलिया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पास राम रूपइयारो वहे; अंति: निरवर आथतणो अहंकार, गाथा-२. ६.पे. नाम. आध्यात्मिक कुंडलिया, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गिरधर, पुहि., पद्य, आदि: हंसा उतरेवो नही जिहा; अंति: गिरधरराय०बहि के हरना, गाथा-२. ७. पे. नाम. पालनपुर नगर कुंडलिया, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पालणपुरि का सेरी को; अंति: शरखा न पालणपुरि का, गाथा-१. ८.पे. नाम. प्रास्ताविक कुंडलिया संग्रह, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चंत्या थे चतुवीन घटे; अंति: रंगन बेरबेर संघ कु, गाथा-४. ७६३५६. विजयशेठ विजयाशेठाणीनी लावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, जैदे., (२६४११, ११४३३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेव नमु; अंति: भरजोवन के माजी, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) ७६३५७. मांडला-ज्योतिषचक्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: मांडला., दे., (२७४१०.५, १३४४७). जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदीपमा बे चंद्रमा; अंति: (-), (पू.वि. "चोथे मांडले २ नखत्र" पाठ तक ७६३५८. (+) अष्टप्रकारी पूजा व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३५). १.पे. नाम. शांतिस्नातनी विधि, प्र. १अ-३अ, संपूर्ण. अष्टप्रकारी पूजा-शांतिस्नात्र विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: ॐहीश्रीं अह; अंति: (१)श्रीजिनेश्वराय नमः, (२)सव्वेतिविहेण वंदामि. २. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जिनवर पूजीयै; अंति: (-), (पू.वि. सिद्धपद पूजा तक है.) ७६३५९. पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ९, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. वीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-होरी, मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: होरी मची जिनद्वार; अंति: भूप लहे सुखडार, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्य, पुहि., पद्य, आदि: सरधारू जिके द्वार; अंति: लावन्य० गुण अभ्यास, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रत्नसागर० बोले जयकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. शांतिजिन फाग, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मी, पुहिं., पद्य, आदि: (१)हरल कि हेम कि लता हो, (२)फाग खेलत है फूलबाग; अंति: मन भाए शांति भगवंत, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमराजिमती धमाल-वसंत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती धमाल, मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल सहिने विनवे हो; अंति: भणे मुनि लाल धमाल, गाथा-८. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक फाग, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कांआं नगरी निरूपम; अंति: साहिब साधु समान, गाथा-५. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. चेतनराम, पुहिं., पद्य, आदि: चातुरि कहा बोलु गुनन; अंति: सीवसूख कि हे निसानि, गाथा-७. ८. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सत पांच सखी मलि टोलि; अंति: सुमतिसागर० गाय ललना, गाथा-७. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी के दरबार चालो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ७६३६०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. रिया, प्रले. मु. जसा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १५४३५). १.पे. नाम. रोहिणीतपस्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४. २. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: विमल जिनेश्वर देव; अंति: श्रीविमलनाथ वखाणीय, गाथा-१६. ३. पे. नाम. मोनइग्यारस स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बइठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ७६३६१. (+) साधुपाक्षिक अतिचार व आहार विचार, संपूर्ण, वि. १९७९, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. नारायण नत्थुजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४३२-४०). १.पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. आहारदोष विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कालाकरंत पेहली पोरसी; अंति: ओछो वापरवो अधीक नही. ७६३६२. इग्यारस भौनव्रत स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लह्यो मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ७६३६३. (+) नोकारनोरास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०४३२). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामनि द्यो; अंति: रास भणुं सर्व साधुनो, गाथा-२५. ७६३६४. (+#) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४५). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख गुण गावैरे, ढाल-१३. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३८९ ७६३६६. (+) लुंकागच्छगुजराती हुंडी बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पंचपदरा, प्रले. मु. वरधीचंद्र ऋषि (लुकागच्छ); दत्त. डालू नवल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: हूंडी लूकारी., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १७४२५). ६९ हंडी बोल-लुंकागच्छ, रा., गद्य, आदि: गया कालरा केवलग्यानी; अंति: बोल साधने कहणा नही. ७६३६७. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, २०४९३). १.पे. नाम. १२५ बोलनो लेखो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. २४ दंडक बोल संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६३६८. (+) पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२४२९). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ७६३६९. (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. चक्रवर्ती वासुदेव नामादि विवरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., आदि: त्रिप्रष्ट द्विप्रष्; अंति: (-). २. पे. नाम. ९ नारद देहमानआयुष्य विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ भीम वर्ष लाख ८४; अंति: मुख वर्ष १००० ध०१०. ७६३७०. (+) संवेगशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४४७).. संवेगशतक, अप., पद्य, आदि: इह लोइयमिकजे जीवो; अंति: समायरेह लभई सिद्धिं, गाथा-१००. ७६३७१. (#) नियंठा विचार-भगवतीसूत्रगत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३८x२३). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पण्णवणा बेय रागे कये; अंति: कुसिल संख्यातगुणा, द्वार-३६. ७६३७२. भक्तामर का ऋद्धिमंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४११.५, १२४४५). भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐह्रीं अर्हताणं णमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___ द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१७ तक लिखा है.) । ७६३७३. (+) दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १६x४३-४८). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पय नमी; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-१०१. ७६३७४. (+) एलाचीपुत्र चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ९४३०). इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुणनीलो; अंति: नामे जय जयकार हो, ढाल-४. ७६३७५. (-) नेमिनाथ छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, २०४४६). नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: (१)स्मृता श्रीशारदाय, (२)सारद सार दया कर देवी; __ अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-२ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७६३७६. बासठिया बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १६४४८). १.पे. नाम. आठ आत्मानो बासठियो, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ आत्मा ६२ बोल, पुहिं., को., आदि: १ द्रव्य आत्मा में; अंति: ८ विर्यआत्मा में. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. आठ आत्मानो बासठियो, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ कर्म ६२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ज्ञानावरणिकर्ममे; अंति: ८ अंतरायकर्ममे. ३. पे. नाम. १५ जोगनो बासठियो, पृ. १आ, संपूर्ण. १५ योग६२ मार्गणा विचार, पुहिं., को., आदि: १सत मनयोग में २ असत; अंति: १५ कार्मण कायजोग में. ७६३७७. (+) गुरुगुण गीत, चारित्र सज्झाय व भिक्षुस्वामी सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४१, भाद्रपद शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि; अन्य. मु. भारमल्ल ऋषि; मु. जयजश (गुरु मु. भारमल्ल ऋषि); मु. मघराजजी; मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सभी कृतियों को क्रमशः ढाल में ले लिया गया है. लेकिन कृतियाँ सभी अलग-अलग है. हुंडी: जय आचार्य कृत ढाला मघवा आचार्य कृत आदि. सभी कृतियाँ तेरापंथ की लगती है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., ., (२७४११.५, २३४३८). १.पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: श्रीजयगणपति सिवपद; अंति: गावत महागुणकारी, गाथा-१७. २.पे. नाम. चारित्र पालन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: चारत निर्मल पालीजै; अंति: जय० संपति सवायौ जी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. विनय पालन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९१३, आदि: प्रथम विनयगुण विमल; अंति: जयजश० तोल वधावेरे. ४. पे. नाम. विनीत अविनीत शिष्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९२५, आदि: आचार्यने आगलै शिष्य; अंति: जयजश० सदा दिल मे धरौ, गाथा-११. ५. पे. नाम. भिक्षुस्वामीगुण सज्झाय- तेरापंथी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: पंचम आरै परगट्या; अंति: गुण गाया हो, गाथा-६. ६.पे. नाम. विनीत अविनीत शिष्य सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाइ शिष्य होय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ७६३७८. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १९४३२). १.पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणेसर गौतम; अंति: मुगत रमण वेगी वरो, गाथा-६. २. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: छठो व्रत रयणी तणौए; अंति: पामे सुख पद निरवाणी, गाथा-१३. ७६३७९. (#) अष्ट प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४४०). ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: (१)भावमहं स्तुवे, (२)यजामहे स्वाहा, श्लोक-९. ७६३८०. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १०४२६). गुरुगुण गहुंली, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूजयणाथी चाले; अंति: विवेक० लागे प्यारे, गाथा-७. ७६३८१. औपदेशिक व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लवजी ऋषि; पठ. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११,११४४२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण बेठा; अंति: पुरा रे मानव सांभलो, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुतो अरूने परु म; अंति: महानंद पद मूदाजी, गाथा-११. ७६३८२. खेटसिद्धिग्रहा, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जगत्तारणी, प्रले. मु. भवानीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १७X४४). For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ३९९ खेटसिद्धि शुद्धिकरण उपाय, मु. महिमाउदय, पुहिं., पद्य वि. १७३१, आदि: चिदानंद चित मै धरी, अंति: महिम० सांगाजी के हेत, गाथा-४५. 3 ७६३८४. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X१२.५, ९४३६). सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुण चंदाजी श्रीमंदर, अंतिः पद्मविजय० मन अतिनूरो, गाथा- ७. ७६३८५. (+४) पर्यंताराधना का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X४२). पर्यंताराधना-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पाप करी अहोरात्रि, अंति: नवकार स्मरते रहिवउ. ७६३८६. नियंठाविचार सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६- २५ (१ से २५) = १, कुल पे. २, दे., (२७X११, १७३३). १. पे. नाम. नियंठाविचार सज्झाय २०वीं डाल पृ. २६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नियंठाविचार सज्झाय, मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. ढाल -१ से १९ नहीं है.) २. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: श्रीसीमंधरसामजी महा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ७६३८७, (४) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १३x४१). १. पे. नाम, गजसुकमाल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: मकनमोहन० भवनो पार रे, ढाल-२, (पू.वि. ढाल-२ गाथा- २३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: जोने तुं पाटण जेवा, अंति: दिठा दलपतरामें रे, गाथा - १२. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. क. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि चेतोतो चेतावुं तु अंतिः (-), (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है. ) ७६३८९. सिद्धाचलजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६१२, १२X४१). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेत्रुंजा; अंति: जिनहरख० परमानंद रे, गाथा - २०. ७६३९०. स्तुति व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६×१२, १२X३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि वरसं वरसं वरसं वरसं अंतिः शिवसुंदर सौख्यभर श्लोक-७ २. पे. नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तुति - संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि, अंतिः वीरं गिरिसारधीरं, लोक-४. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि भावानयाणेगनरिंदविंद अंतिः गोखीरतुसारवन्ना, गाथा-४. ४. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जीवविजय, पुहिं., पद्य, आदि: आप स्वभाव मां रे; अंति: जिन वरे सिवनारी, गाथा- ७. ७६३९१. चंदनबाला सज्झाय व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, दे. (२६४१२, १२X४२). For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडिरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: निशं दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७६३९२. भरतबाहुबलिनी सज्झाय व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, ११४३६). १. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अतिलोभिओ; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. २. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिजिन वृंदइंद; अंति: मोहन० भवोभव हुं धरु, गाथा-७. ७६३९३. चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, १२४४१). १. पे. नाम. २४जिन लंछन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदिदेव लंछन वृषभ; अंति: शुभने सुख होज्यो, गाथा-९. २. पे. नाम. ओलीनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण.. उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. ७६३९४. (+) अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ११४३४). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ठमजिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ७६३९५. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४३३). स्तवनचौवीसी, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-४ गाथा-७ अपूर्ण से स्तवन-७ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६३९६. जीवदया छंद व गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३६). १.पे. नाम. जीवदया छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाये नमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१, गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जग उपगारी रे वीर; अंति: अमृतवाणी रंगसुंरे, गाथा-८. ७६३९७. ज्वालामालीनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ११४४३). ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सर्वांगं चालय २" पाठ तक लिखा है.) ७६३९८. (+) से@जय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ११४३३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. ७६३९९. (+) कुलकोटि, प्रज्ञापनासूत्र टीका व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १६x४८). १.पे. नाम. कुलकोटि संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३९३ कुलकोडिमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कुलकोडिसयसहस्सा; अंति: (१)कुलकोडीणं मुणेअव्वा, (२)१९७५०००००००००००, गाथा-४. २.पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्रवृत्ति-पद १, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-टीका*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ कृष्णवर्ण २ स्वेत; अंति: ७ तपमद ८ श्रुतमद, (वि. ६४ इन्द्र, आर्यदेश आदि विविध बोल संग्रह.) ७६४००. जसवंत गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, २९४२०). जसवंत गुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: बुद्धिवंता बुद्धि; अंति: मोटा रे महिमा महमंत, ढाल-२, गाथा-२५. ७६४०१. ज्ञानपंचमी सज्झाय युगल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १२४३४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-२०. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना प्रणमुं; अंति: वाचक देवनी पुरो जगीस, गाथा-५. ७६४०३. कुगुरु स्वाध्याय व मूर्खलक्षण श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वडगाँव, प्रले. मु. पुनमचंद शिष्य (गुरु मु. पुनमचंद, तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कुगुरु स्वाध्याय, दे., (२७.५४१२, ९४२५). १. पे. नाम. कुगुरुपचीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: भणे तेजपाल सुखदाय, गाथा-२५. २. पे. नाम. भोजराजा श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अखाजति गच्छति हसंत; अंति: भोज भवंती मुर्खाः, श्लोक-१. ७६४०४. सीमंधर, युगमंधर व शिखरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६.५४११.५, १०४२९). १. पे. नाम. सिमंधर विहरमान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी श्रीमंधर; अंति: वाधे मुज मुख अतिनूरो, गाथा-७. २. पे. नाम. जुगमंदिर बहरमान स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दधिसुत विनतडी; अंति: पंडितजिनविजय गायो, गाथा-८. ३. पे. नाम. शिखरजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो जाउं रे सिखर; अंति: पभणे श्रीजिनचंदरे, गाथा-७. ७६४०५. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पाक्षिक, दे., (२६.५४१२, १६४५३). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ७६४०६. (#) अष्टमीतिथि स्तवन व मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४२८). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पावै घणो, ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. मृगापुत्र गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहावणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६४०७. (+) सिद्धाचलनो मोटो संघनी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, संशोधित., दे., (२७४१२, २०४२०). शत्रुजयतीर्थसंघयात्रा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: मुहर्त लेवू ते; अंति: अनुक्रमें सिद्धि वरे. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६४०८. चौदगुणठाणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, १५४११). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: मिथ्यात्व सास्वादन; अंति: क्षयोपसम सजोगी अयोगी. ७६४०९. बालचंदबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. सदारंग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, २०४५४-५७). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: (१)सुख कहे अरीहतदेवरे, (२)इंद रंग मन आणीइं, गाथा-३३. ७६४१०. सप्तव्यसन निषेध व नशानिदान औषधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, ११४३०-३२). १.पे. नाम. सप्तव्यसन निषेध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जुठ वचन ते करमनि; अंति: कर्म ७ ए सात वसन, गाथा-७. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अतिम पत्र नहीं है. औषध संग्रह ,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पाँचवें क्रम के औषध अपूर्ण तक है.) ७६४११. नारी सज्झाय व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४०). १.पे. नाम. नारी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मूरख के भावै नहीं; अंति: आगे इच्छा थारी रे, गाथा-२३. २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहिबा; अंति: चोथमम० एकीधी अरदास, गाथा-७. ७६४१२. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र-जीराउला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२-१४४४५). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीराउलि राउलि कयनिवा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ तक है.) ७६४१३. (+) पुद्गलपरावर्तन विचार, अपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. अमीविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,११-१३४३५-३८). पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कार्मणन अनंतगुणा, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., बादर के ४ प्रकार अपूर्ण से है., वि. विभिन्न आगमों से उद्धृत.) ७६४१४. (+) गौतम रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १२४३०-४२). गौतमस्वामी रास, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: गुण गाउगोतम तणा; अंति: जैमलजी० चोमासाजी, गाथा-१२. ७६४१५. (+) कहरानाम की चाली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ९४३२). आध्यात्मिकज्ञान प्रश्नपहेली, पुहि., पद्य, आदि: कुमति सुमति दोउ; अंति: भई यहै सौतघर छाहि, गाथा-११. ७६४१६. (+) सिद्धचक्र नमस्कार व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४२५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सेवो सदा; अंति: नामथी नयविजय जयकार, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो भविअण सिद्धचक्र; अंति: लहे जिम श्रीपालकुमार, गाथा-१. ७६४१७. चौवीस आंतराना बोल, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:आतरा, दे., (२६४१२, १२४३०). For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३९५ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीआदिनाथ; अंति: (-), (पू.वि. २४वें तीर्थंकर महावीर आंतरा अपूर्ण तक ७६४१८. (+) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:घुघरनीसाणी, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१२, १६४३७-४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गावंदा है, गाथा-२७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७६४१९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चोवीसीस्तवन, जैदे., (२६.५४१०.५, १३-१५४४२-४६). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: उदयरत्न० सारो रे, स्तवन-२४. ७६४२०. अठाणुंबोल, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४१२,११४३२). ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भव्युत्क्रांत; अति: (-), (पू.वि. ९१वें बोल तक है.) ७६४२१. (+) बासठ मार्गणा यंत्र व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ९४२८). १.पे. नाम. बासठ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. २. पे. नाम. बासठ बोल गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण.. ६२ बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गइ इंदिए काए जोए वेए; अंति: भवसम्मे सन्नि आहारे, गाथा-१. ३. पे. नाम. भव्य अभव्य सिद्धविचार गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह* प्रा., पद्य, आदि: वोहमनंता जीवा उवर; अंति: जाई चवीया चउथाओ, गाथा-१. ७६४२२. (+) १२ तपभेद विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कायक्लेश तपभेद अपूर्ण से संलीनता तप विवरण अपूर्ण तक है., वि. उदाहरणार्थ साक्षिपाठ सहित.) ७६४२३. धन्नाअणगार ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: ज्ञानसागर गुण गाय जी, ढाल-५, गाथा-५९, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से ढाल-२ गाथा-८ व ढाल-४ गाथा-२६ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-४६ अपूर्ण तक नहीं है.) ७६४२४. (+) अष्टकर्मप्रकृतिरो थोकड़ो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:१५८ कर्मप्रक, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४११.५, २५४३२). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते किसा; अंति: विषै उद्यम करणो. ७६४२५. सीयलनोचोढालियो, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नवलपुर, प्रले. मु. वीरचंद तेजसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सियलनोचो, दे., (२७.५४१३, ११४३२). शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन आगमे रे; अंति: जीवन० गुण गावेरे, ढाल-४, गाथा-२०. ७६४२६. (+) आषाढभूति पंचढालियो व अरणीकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आषाढभूत, संशोधित., दे., (२७७१२, २४४३३). १.पे. नाम. आषाढाभूति पंचढालिया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्सण परिसो बाविसमो; अंति: निर्वाण हो भवियण, ढाल-५. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचारी जोगी जती; अंति: करे हो सार्या आतमकाज, गाथा-१८. ७६४२७. (+#) रामचरित्ररी ढाल व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:रामचरित्ररीढाला, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, १९४३२). १.पे. नाम. रामचरित्ररी ढाल, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. रामचरित्र ढाल, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कोई नर गावे मुंदडी, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानशीलतपभावनागर्भित, मु. जेतसी, रा., पद्य, आदि: भाव देवलागो मोदणी; अंति: जीतसी० पल खासी मार, गाथा-९. ७६४२८. सीमंधरस्वामीने पत्र, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कालावड, प्रले. गोपालजी खत्री; पठ. सा. साकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १६x४५). सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्तिश्री महाविदेह; अंति: की युविध नोबत बाजै, पत्र-२. ७६४२९. अठाणुंबोल अल्पबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:अठाणुबोल, जैदे., (२७.५४१२, १२४३३). ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले बोले सर्वथी; अंति: (-), (पू.वि. ७९वाँ बोल अपूर्ण तक है.) ७६४३०. (+) सरस्वतीदेवी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ११४२९). सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राक् त्वं देवि जग; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-९. ७६४३१. साधुवंदणा व औपदेशिक कोरडा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री; अन्य.सा. वखतबाई (गुरु सा.शाकरबाई); गुपि.सा.शाकरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साधवंदणा, दे., (२५.५४११.५, १७X४८). १. पे. नाम. साधुवंदणा, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: (-); अंति: में एकह्यो अधिकार, गाथा-१०८, (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कोरडो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक कोरडा, म. हरिसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: खोयो खोयो रे मूढमती; अंति: अरध प्रजाणो संसार, गाथा-२०. ७६४३२. महावीरस्वामिनो पारणो, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रावण शुक्ल, ८ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:महावीरस्वामी, दे., (२६.५४१२, १०-१३४३६). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-२८. ७६४३३. प्रभाती व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, २०४४६). १. पे. नाम. शांतिजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंणों तमें प्राणीया; अंति: सुक्रत्यनो लाडो लीजे. गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेरी मांहि रमतो दीठो; अंति: (-), गाथा-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. घनमूल व वर्गमूल सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्गमूल व घनमूल सवैया, पुहि., पद्य, आदि: आदि तै विषम समलीक तै; अंति: निज सिखछु सिखाइयै, गाथा-२. ७६४३४. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, २०४४६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेणवा वोसरइ. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ३९७ ७६४३५. (+) नवकारनोरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नवकारनोरास, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४५३). नवकार रास, मु. दमणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनी द्यो; अंति: रास भणू सर्वसाधूनो, गाथा-२४. ७६४३६. सगपणव्यवहारपचीसी, कलियुगवर्णन सज्झाय तथा वीशविहरमान स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १४४२७). १.पे. नाम. स्वार्थपचीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: (-); अंति: सहर भानपुरम गाइस, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कलियुगवर्णन सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. सा. पुपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: जिन चरणकमल नमुंगणधर; अंति: बोलक वाय हो साधुजी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. वीशविहरमानजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. आसकरण, रा., पद्य, वि. १८३५, आदि: श्रीमंदर युगमंदरो; अंति: वीनवं एक अरदासो जी, गाथा-१२. ७६४३७. सिख्यामणनी सज्झाय तथा आलोयणा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आलोयणा, दे., (२६.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. सिख्यामणनी सझयाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थान अढारे पुरो; अंति: केहे एम जाणोरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. आलोयणानी ढाल, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदिसर प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-९ तक है.) ७६४३८. मलयसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, दे., (२६.५४११.५, १२४३५). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-५ गाथा-१७ अपूर्ण से है व ढाल-७ गाथा-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७६४३९. (+) लब्धि थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लसकर ग्राम, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लब्धिथोकडो, संशोधित., दे., (२६४१२, १८४५१). लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ गइ२ इंदिय३ काय४; अंति: नाणना पजवा अनंतगुणा, (वि. सारिणीयुक्त) ७६४४०. (+-) पुण्यपाप व नवकार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पुण्यतणा, अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. पुण्यपाप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: चारु गत से भटकता; अंति: तणा फल मावा रेजाणो, ढाल-२. २.पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गोपाल, मा.गु., पद्य, आदि: भवजल तारणो जय नवकारो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा-११ अपूर्ण है.) ७६४४१. माणिभद्रजीरो छंद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत वचन द्यौ सरसिति; अंति: लाख लाखरी मांजा लहे, गाथा-२६. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७६४४२. (+) श्रावकरी करणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२. ७६४४३. भगवतीसूत्र के बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२, ४५-५०x१७-२५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सतक १ उद्दे. ५ जगण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीवों के नाम अपूर्णतक लिखा है.) ७६४४४. (#) महावीरजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६x४३). __ महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिनवर नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६४४५. (+) सिद्धचक्रनवपद स्तवन व त्रिपदीगाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा-११. २. पे. नाम. त्रिपदीगाथा सह व्याख्या, पृ. २आ, संपूर्ण.. त्रिपदीगाथा, प्रा., पद्य, आदि: उपन्नेइवा विगमेइ वा; अंति: धुवेवा, गाथा-३. त्रिपदीगाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: उत्पत्तिश्चतुर्धा; अंति: निग्धस्य ध्रुवत्वम्. ७६४४६. (+#) होरी, पद, स्तवन व गहुंली संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ११, ले.स्थल. पाटण, प्रले.पं. गुलाबसागर (गुरु पं. कल्याणसागर गणि); पठ. मु. रूपचंद (गुरु पं. गुलाबसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४३९). १.पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. भाणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: पावत शिवकमला गोरी, गाथा-४, (पू.वि. अन्तिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आयो मास वसंत सरस जब; अंति: सीववासी भए भगवान, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान रंग खेलिइ होरी; अंति: मोह की होरी जराई, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. कांति, मा.गु., पद्य, आदिः सखिरी कोप्यो कमठ; अति: कांति नमें चरनन, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु के आगे गुमान; अंति: पसाई पामें भवि आणंद, गाथा-६. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सलूने साहेब आवेंगे; अंति: लीलें आणंदघन माहि, गाथा-४. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुछि लें आलि खबर नही; अंति: लिले आणंदघन तान, गाथा-४. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्युं खेले रंग होरी; अंति: ज्ञानसागर०अविचल जोरि, गाथा-४. ९. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुँली, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि शुभ ठाण; अंति: अमृतपद चित चाहती जी, गाथा-११. १०. पे. नाम. आगममहिमा गुंहली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आगममहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आगम अमृत पीजीये बहु; अंति: केवल ऋद्धि विसाल रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. आगमगुण स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकेली निकेतन; अंति: लहिइं मंगलमाल रसाल, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६४४७. (#) महापरिठवण विधि, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, ८४३१-३३). महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्नानपूर्वक नवो वेष; अंति: वडि सांत कहेंवी. ७६४४८. (+) ज्ञानपंचमीवृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजिनालये चातुर्मासकृत, संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति __ भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ७६४४९. (+#) चोवीस तीर्थंकर आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:जिनआंतरौ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १५४४०). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभदेवजी महाराज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शीतलजिन आंतरा तक लिखा है.) ७६४५०. (+) दर्शनसप्तभंगी व गुणस्थानक भांगा, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. लखनउ, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ); अन्य. श्राव. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेव प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १८x१६-५०). १.पे. नाम. सप्तभंगी स्वरूप, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: आदस्ति १ अन्नास्ति २; अंति: युगपदभिषातुशक्तेश्च, (वि. सारिणीयुक्त) २.पे. नाम. गुणस्थानक आरोह अवरोह विचार गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउदुरिक्क दुप्पण पंच; अंति: भिय तिय दोणि गच्छंति, गाथा-१. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउ कहतांच्यार पैडा; अंति: चवदमाथी मोक्ष जावै. ३.पे. नाम. बंधकद्वारे जीवाश्रित गुणस्थानक समयविद्यमानता गाथा सह व्याख्या, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छा अविरय देसा; अंति: नाणाजीवेसु नवि होति. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश; अंति: गाथा व्याख्यानम्. ७६४५१. (+) त्रयोदशकाठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १३४३९). १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: जेवट पारै वाटमै करै; अंति: कहियै तेरह तीन, गाथा-१७. ७६४५२. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४११.५, १६x४९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७६४५३. पट्टावली-नागपुरीय तपागच्छ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १५४३९). पट्टावली-नागपुरीय तपागच्छ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. जयशेखरसूरि से नेमिचंद्रसूरि तक की परंपरा है.) ७६४५४. (#) नवपद स्तवन, रोहिणी स्तुति, सिद्धचक्र स्तुति व श्रावकप्रतिमा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१३४३८). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कहै० नवपदनो आधार रे, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०० www.kobatirth.org २. पे नाम, रोहिणीतप स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज, अंति: देवि लब्धीरूचि जयकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि; वीरजिनेश्वर अति अल; अंतिः सानिध करजो मायो जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. श्रावकप्रतिमा सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सातमै अंगे भाखीओ जी अंतिः (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७६४५५. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पू. १, प्रले. सा. प्रसनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मेगकुंवरनीसजा, दे. (२६४१०.५, १५X४०). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी, अंति: पामै भवपार स्वामीजी, गाथा-२२. ७६४५६. १५ तिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पू. १, प्रले. सा. प्रसनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६x११.५, १५X३३). ७६४५७. ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६x१२.५, १२x४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ तिथि सज्झाय, ऋ. करमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: प्रथम जिनेसर जगगुरु; अंति: कर्मचंद ० चतुर नर चेतो, गाथा-२६. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिनेश; अंति: लक्ष्मी० सुखदाया रे, ढाल -५, गाथा - १६. ७६४५८. विंशतिस्थानकनामगर्भित नमस्कार व विंशतिस्थानककायोत्सर्गगर्भित नमस्कार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. जैवे. (२७४१२.५, १३४२८). १. पे, नाम, २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. न्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि पहेले पद अरिहंत नमुं अंतिः नमतां होय सुख खाणी, गाथा-५. २. पे नाम, विंशतिस्थानक कायोत्सर्गगर्भित नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, २० स्थानकतप चैत्यवंदन- कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि चोवीस १ पनर २; अंति: नमी निज कारज साधे, गाथा-५. ७६४५९. असज्झायविचार सज्झाय, औपदेशिक सज्झाय व आदिजिन प्रभाती, संपूर्ण, वि. १७१३, चैत्र कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३ ले स्थल, बेलाकुलबंदर, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. जै (२६.५४११.५, १८४५२). १. पे. नाम. असज्झायविचार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. " "" असज्झाय विचार सज्झाव, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बंदिह वीर जिणेसर राव, अंतिः गति रमणि हेलासुं वरो, गाथा - २४. १७X६४). १. पे नाम, नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: पडिवा पद्मणिसु नेमिकुम, अंति: जड भक्किजन पामउ पारु, गाथा- १५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्म, आदि: असो रे अपूरव मले; अंतिः तेह नरसुं नितिवास जी, गाथा- ९. ३. पे. नाम. आदिजिन प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. " आदिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरवदिसि जिन तणी अंति: नंदसूरि० हरख वधामणा, गाथा ६. ७६४६०. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., (२७X११.५, १०X३०). महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम दीपे दीपता रे; अंति: मोटा श्रीमहावीर केवा, गाथा- ७. ७६४६१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी सज्झाय, जैदे. (२६.५४११.५, १४४२९). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समकितधारी पर उपगारी, अंति: अपुरव कोई मिले मुझने, गाथा - १०. ७६४६२. नेमिजिन सज्झाय व श्रावकक्रिया कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६.५X११.५, For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४०१ २. पे. नाम. श्रावकक्रिया कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तित्थंकर चउवीस जिण; अंति: ए सिद्धिसुख पामीजइ, गाथा-११. ७६४६३. थावच्चामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१०.५, १४४४४). थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: जिन नेम समोसर्या रे; अंति: रे श्रीसंघनइ जयकार, गाथा-२३. ७६४६४. आगमछत्रीसी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १९४६३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: साचे मन जिन धर्म; अंति: इम कहि श्रीसार रे, गाथा-३३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: जल वण सरोवर हेल्य; अंति: दान तुछ डाहिम घणी. ७६४६५. चौदगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., (२६.५४११, १५४४४). १४ गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन सवे करुं प्रणाम; अंति: जीवऋषि देज्यो परमत्थ, गाथा-१५. ७६४६६. (#) विचारचोसठी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:श्रावक६४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, २०४७१). विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: वीरजिणेसर प्रणमी पाय; अंति: भणे नंदसूरि, गाथा-६१. ७६४६७. सीमंधरस्वामीविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८. ७६४६८. (+) केशवगुरु भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उंना, प्रले. मु. भिक्खु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२७.५४१२, ११४४२). केशवगुरु भास, मु. भिक्खु, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन वरदायनी मनि; अंति: भिक्खू गुण गाय रे, गाथा-९. ७६४६९. चौदस्वप्न सज्झाय, दशस्वप्न सज्झाय व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १७५४-१७५९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. ३, पठ. मु. जेमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुडी:सिझायपत्र, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४३). १.पे. नाम. चौदस्वप्न सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ स्वप्न सज्झाय, ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल जिननाम चित धरीने; अंति: तेजसिंघ गुण गाया हो. २.पे. नाम. दश स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७५४. महावीरजिन सज्झाय-१० स्वप्नगर्भित, ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: शासणपति चोविसमो वीर; अंति: तेजसी० कीधी सज्झाय, गाथा-१३. ३. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७५९, पौष कृष्ण, १०, शुक्रवार, ले.स्थल. चाणोद. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम काइ फिर चाल्या; अंति: जिनहर्ष पयंपे हो के, गाथा-८. ७६४७०. नारीसंगपरित्याग व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:नारीनीस., दे., (२५४१०, १४४२८). १.पे. नाम. नारीसंगपरित्याग सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारी परित्याग, महेश्वरदास, मा.गु., पद्य, आदि: नारीनो संग वेद पुराण; अंति: महेश्वर हृदये राखे, गाथा-४०. २.पे. नाम. औपदेशिक शिखामण सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु चरणे कमल नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६४७१. (+) ज्ञानपचीसी, विमलजिन स्तवन व सिद्ध स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१५(१ से १४,१६)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालवड, प्रले. जादवजी प्रागजी खत्री; अन्य. सा. कस्तूरबाई महासती (गुरु सा. गंगाबाई महासती); गुपि. सा. गंगाबाई महासती (गुरु सा. कसलीबाई माहासती); सा. कसलीबाई माहासती (गुरु सा. माणकबाई महासती); सा. माणकबाई महासती, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:विमलनाथनुं तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२, १७४३६). १.पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, १३. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: बनारसी० करणको हेत, गाथा-२५. २. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, १५. मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १६५०, आदि: (-); अंति: सेहेज प्रभु जयकार ए, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. त्रण तत्त्व सज्झाय, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७६४७२. कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२६(१ से २६)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१२.५, १२४३६). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२७ गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-२९ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७६४७३. पांच संठाणाना भेद व भांगा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., दे., (२७४१२, २४-२६४४८-६८). १.पे. नाम. पांच संठाणानो भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. ५संस्थानभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उजप्रदेसी १; अंति: अनंत प्रदेशी जाणवो. २.पे. नाम. पंद्रह योग पर बासठिया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. गुजराती लिपि का प्रयोग किया गया है. १५ योग ६२ मार्गणा विचार, पुहिं., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६४७४. (#) सुमतिजिन स्तवन-चौदगुणस्थानक विचार गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३४-४०). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ७६४७५. पुन्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पुन्यप्रकास, जैदे., (२६४११.५, १३४४०). महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-४ ___ अपूर्ण से कलश अपूर्ण तक है.) ७६४७६. मौनएकादशीगणj, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सेवाडेनगर, प्रले. पं.रूपविजय गणि; पठ. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री महावीर प्रसादात्., दे., (२६.५४११.५,११४३२). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ७६४७७. नवकार छंद व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३७). १. पे. नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: कामितसंपय करणं तिम; अंति: कवि ध्रमसी उवझाय कहि, गाथा-११. २.पे. नाम. नवकार पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पं. मनरूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेष्टि युग; अंति: काच ग्रहे कुण गमार, गाथा-४. ७६४७९. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. भदलपुर, पठ. य. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती, अंति: कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ७६४८०. अभिधानचिंतामणि नाममाला का बीजक, अपूर्ण, वि. १५१२, माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, जैदे., (२५.५४११, २४४६०). अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य, आदि: नाममाला पीठिका जिनेश; अंति: चत् शनैः नतो नमः, (पू.वि. कांड-३ से कांड-४ के क्रमांक-३ तक नहीं है.) ७६४८१. (+) लधी-अल्पबहुत्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, प्रले. मीठो जेरामाणी त्रेवाडी; पठ. श्रावि. वेणीबाई; अन्य.सा. कडवीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३४). अल्पबहत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ४ मोहनी न बांधीये, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मनुष्य तिर्यंच के मन का पुद्गल उसके वर्ण, गंध रस स्पर्श का वर्णन अपूर्ण से है.) ७६४८२. २५ बोल थोकडा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४११.५, १५४३३). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आर्तध्यान तक लिखा है.) ७६४८३. दशार्णभद्र सज्झाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, २०४५४). १. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: भयभंजण भगवंत दुख; अंति: वीकानइर नगर बडे, गाथा-५६. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुध पीवानि डोबुलीधु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ७६४८४. तेरकाठिया व बलभद्रकृष्ण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३९). १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: सेवकनइ तारइ संसार, गाथा-१६. २. पे. नाम. बलभद्रकृष्ण सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका नगरीथी नीसर; अंति: मुगति तणां सुख लहेसे, गाथा-२३. ७६४८५. निसाल गरगुंव संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ११४३१). १. पे. नाम. निसालगरj, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिन आणंदो; अंति: सेवक तूझ चरणे नमे ए, गाथा-१९. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. गांगा, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जीनवर रुपे रुडा; अंति: गंग० एणी परे उचरे रे, गाथा-११. ७६४८६. (#) भावनासंधिप्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४६१). भावनासंधिप्रकरण, आ. जयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पणमवि गुणसायर भुवण; अंति: सुणहु अन्न विधरओ मणि, गाथा-६२. ७६४८७. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. प्रेमविजय (लघुसालागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४३५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ७६४८८. (+) नमस्कार सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्रले. मु. धर्मसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १८४६०). For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मंगलीक पहिलू ए सार; अंति: ते मानव भव सायर तरई, गाथा-५. २. पे. नाम. चेडगरायपुत्री सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चेटकराय पुत्री सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: विसालानयरिनी हो; अंति: विदेहे सिझंति, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुख कारण भवीयां समरउ; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-७. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन सोलमा; अंति: हरष० संघ जयजयकार ए, गाथा-२९. ५. पे. नाम. गर्भवास सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गर्भावास सज्झाय, संघो, मा.गु., पद्य, आदि: माता उदरि वसो दस मास; अंति: मुगति तणां फल लहीइं, गाथा-१६. ६. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण रेवती; अंति: आणंद हरख अपार रे, गाथा-१०. ७. पे. नाम. मन धोबी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शासन सरोवर रे सबल; अंति: सहजसुंद०मननुलुगडु, गाथा-६. ७६४८९. बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:बुद्धिरास, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४०). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं देवी अंबाई; अंति: ते घरि टले क्लेश तो, गाथा-६२. ७६४९०. (#) बहुश्रुतनां उदाहरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२४४०). उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ११ बहुश्रुतपूजा दृष्टांत गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जहा संखं मि० स्वगुण; अंति: रत्न तेणि करी सहित. ७६४९१. अष्टमंगल स्थापना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५). अष्टमंगल स्थापना, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जिनबिंबाग्रतो; अंति: (१)आगल पटक मुंकवा, (२)यावच्चंद्रायमादय. ७६४९२. (+) दसश्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.ऋ. नांदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४३१). १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिण चुवीसी करुं; अंति: कोरंटगछि पभणइ ननसूरि, गाथा-३५. ७६४९३. (#) नवतत्त्व चौपाई, प्रश्नपृच्छा व जीव आयुमान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वनीचौपाई, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, ३३४६५). १.पे. नाम. नवतत्त्व स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहंतना पायि; अंति: वरसंग० चीत्तमां धरी, गाथा-१३५. २. पे. नाम. प्रश्नपृच्छा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरजी सुत्र आखे; अंति: घणा ति किण न्याय छे. ३. पे. नाम. जीव आयुमान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनो आयुखो १२०; अंति: सूअरनो ५० गेंडानो २०. ७६४९५. (#) साधुपाक्षिक अतिचार, अभव्यनाम व दीप नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. दसाडा, प्र.वि. श्री शांतिप्रशादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४०५ २.पे. नाम. अभव्यजीव गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संगम य१ कालसूरयर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा ३. पे. नाम. दीपनमस्कार श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शुभं भवतु कल्याणं; अंति: दीपज्योति नमोस्तु ते, श्लोक-१. ७६४९६. (+) सुमतिजिन स्तवन-पंचप्रतिक्रमणविधिगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४६०). सुमतिजिन स्तवन-प्रतिक्रमणविधिगर्भित, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९०, आदि: सुमति कर सुमति जिन; अंति: कीधु हरख भर सुजगीस ए, ढाल-६, गाथा-२९. ७६४९७. ५६० अजीव ५६३ जीवभेद विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा लिखित पत्रांक २ को १ एवं १ को २ ज्ञेय है., जैदे., (२५.५४१०, १३-१५४४५). जीव अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ राते में ५ रस; अंति: २० ए ५६३ थया. ७६४९८. (+) जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८३, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सरीयारी, प्रले.ऋ. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रस्तुत संवत् (१८८३) से प्राचीनता दर्शाने हेतु सं १८४३ बाद में लिखा गया है., संशोधित..जैदे.. (२६.५४१२.५, १०x२९). औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, क्र. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनी वाणी रे; अंति: भवीजिनने हितकारी रे, गाथा-२०. ७६४९९. (+) रत्नप्रभापृथ्वी विचार व अधिकमासवृद्धि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १३४४२). १. पे. नाम. रत्नप्रभा विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रत्नप्रभापृथ्वी विचार, रा., गद्य, आदि: एक लाख असी हजाररो; अंति: प्रमाणरो विवरण कह्यौ. २.पे. नाम. अधिकमासवृद्धि विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: चंद्रमा का मंडला १५; अंति: वरस मैं मास एक वधै. ७६५००. मंडलीसप्तक तप, संपूर्ण, वि. १६१२, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. विवेककीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १७४५७). मंडलीसप्तक तप, सं., गद्य, आदि: साधु साध्वीनां नंदि; अंति: काराप्यंते. ७६५०१. (+) औपदेशिकपदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. छंदादि के लिए जगह खाली छोड़ा गया है., संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २२४६०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: ग्यान ध्यान संजम; अंति: दीठा जिनवर न्याई रे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुगर की सीख हीये; अंति: जिनदास० जिन चरणारे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुमतिकुमति लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तू कुमत कलेसण नार; अंति: जिनदास खोटी मे खेडे, गाथा-४. ७६५०२. अंतरानुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२७४१२, १२४३६). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: (-); अंति: राम० वर्यो जयकार, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७६५०३. (#) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११.५, १२४३०-३५). For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-११ अपूर्ण से १३ तक है.) ७६५०४. गीत, सज्झाय, स्तवन व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१२, १२४३२-३६). १. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादा जीणकुसल सूरंद; अंति: जिनरंगदादाजीनी होडि, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) २.पे. नाम. कुसलगुरु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल गुरु देख के अंति: लालचंद केसर अब दीजै, गाथा-३. ३. पे. नाम. जगवल्लभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जगवल्लभ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: गोठीडा बार ऊघाड पण; अंति: उदयरतन० छै देशमाहे, गाथा-७. ४. पे. नाम. जैनयंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७६५०५. (+) ५ संवाद ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:पांच संवाद०., संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३२-३६). ५ संवाद ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वभाववादी ढाल से कर्मवादी ढाल की गाथा-१ अपूर्ण तक ७६५०६. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १७९१, श्रावण कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. चाणमा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४३९-४५). १.पे. नाम. विजयशेठविजयादे सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुसल नितु अवतरिं, ढाल-४, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नंदीषेणमुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धणि परिहरी; अंति: लबधिविजय निसदीसो रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. अज्ञात गच्छाधिपति सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मारी अरज सुणीजे हो; अंति: हो दोलित अति घणी, गाथा-७. ७६५०७. सिचियायदेवी व ओसियामाता छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, ८x२८). १.पे. नाम. सिचीयायदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अंति: हेम कहै सिचियाय तणा, गाथा-५. २.पे. नाम. ओसियामाता छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७६५०८. (+) नवकारवाली सज्झाय व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२०-३०). १. पे. नाम. नोकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो पंडित ते कुंण; अंति: रूप कहे बुध सारी रे, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अनभ्यासे विषं; अंति: वृद्धस्य तरुणी विषम, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४०७ ७६५०९. (+) ऋषभजिन स्तवन व सेव॒जा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, २१४४७). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिनेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारो रे, गाथा-११. २.पे. नाम. सेर्बुजा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो अति घणो; अंति: प्रेम घणो जिणचंदरे, गाथा-७. ७६५१०. भरतचक्रवर्ती चौपाई व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १०४३६). १. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती चौपाई, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि: (-); अंति: कवि नंदलाल गुण गाय, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आयो एकलोइ कोइ जाशी; अंति: सोही शिव पामे रेजी, गाथा-७. ३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: त्यागी वैरागी मेहा; अति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७६५११. पंचमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९२८, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कल्याणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १३४२८). पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरण पसाउलि रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय रे, गाथा-६. ७६५१२. (+) जगजीवन गच्छपतिगुण भासद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४४२). १.पे. नाम. जगजीवन गच्छपतिगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भागचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: सरसति पद पंकज नमी; अंति: भागचंद० भास हो लाल, गाथा-१३. २. पे. नाम. जगजीवन गच्छपतिगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: केसरलंकीरा साहिबा हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७६५१३. गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७X१२.५, १२४३७). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. ७६५१४. १० समाचारी, २५ महाव्रत भावना व २४ कामदेव नामादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. पन्ना पतला व मुलायम है., दे., (२६४११, २४४४३-४६). १. पे. नाम. ९ नारद नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ भीमनारद रमहाभीम; अंति: नरमुखनारद ९ कचूलनारद. २. पे. नाम. ११ रुद्र नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: १ भीमीवलीन २ जितसतुन; अंति: प्रतीलीन ११ सतिलीन. ३. पे. नाम. २४ कामदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.., गद्य, आदि: १ बहुवलजी २ अमृतजी; अंति: २४ जंबूस्वाम. ४. पे. नाम. २४ पीर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ खाजापीर २ कडाडापीर; अंति: २३ हवातहज २४ रतनवी. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ ५. पे. नाम, मुसलमानी, पृ. १अ संपूर्ण www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि: १ जीमी २ आव अंति: ५ सवजी ६ कुलजी ६. पे. नाम. २४ अवतार नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ मीना अवतार २ बाहरा अंति: २४ सनकादिक अवतार, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. १४ थानका जीव, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ स्थान समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः १ उच्चारेसु वा अंतिः सर्व अशुच ठकांणे. ८. पे. नाम. माहाव्रत २५ भावना, पृ. १अ, संपूर्ण. २५ भावना विवरण- महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: १ इर्यासुमति; अंति: भूडा मिलीया खीजै नही. ९. पे. नाम. १० समाचारी साधु की, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु समाचारी, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः आवस्सिया निसीहिया, अंति: उवसंपया दस. १०. पे नाम, ३२ असज्झाय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १० आकासनी १ उलकापात, अंति: राति बे घडी टालणी. " ७६५१५. (+) १७० जिन नाम, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६४१२, ३२x१६-१९). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भद्रनाथ १०. ७६५१६. रखमणिराणीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. जेतपुर, प्रले. श्राव. पुजावधप्रागजी गांधी; अन्य. सा. कुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५X१२, १२x२५-२९). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजरुषी रंग भणेजी, गाथा - १५. ७६५१७. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६४११.५, ८३२). " शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे पातिकडा; अंति: बांहि ग्रहिने रे, गाथा - ८. ७६५१८. महावीरजिन २७ भव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७X१२, २०x४०-४३). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: पहीले भवे जंबूद्वीप, अंति: तेहनी कुखे अवतर्या. ७६५१९. कषायनुं चोढालिङ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २६१२, १६४३६-३९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- क्रोधपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां अंतिः उदेरतन० संवर नाही, गाथा- ६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देशवटो रे, गाथा - ५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - मायापरिहार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः समकितना फल जाणजो जी; अंतिः उदयरतन० छे सुद्ध हो, गाथा ६. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय लोभपरिहार, पू. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तमे लखण जोजो लोभना; अंति: उदयरतन० वांदू सदा रे, गाथा-६. ७६५२०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अमरेलि, प्रले. खीमजी देसाई, अन्य. सा. केसरबाई महासती (गुरु सा. प्रेमकुवरबाई महासती), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X११.५, ९X२७-३०). महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपक चंद, अंति: रायचंद ० प्रभुजी पीहर गाथा- ११. ७६५२१. (+०) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६११.५ १७४४९). शांतिजिन स्तवन, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, बि. १६६०, आदि: शारदमात मया करो ए अंतिः दयाकुशल अब मो निवाजउ, गाथा - ३२. ७६५२२. वासुदेववलदेव व च्यार मंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, वे. (२६४१२, १२-१६X३१-४०). For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४०९ १.पे. नाम. वासुदेव बलदेव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मणिलाल, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य खसी उदे आव्या; अंति: मणिलाल० प्राणी चोपथी, गाथा-९. २. पे. नाम. च्यार मंगल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल सज्झाय, मु. तिरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देजो ते मंगल चार आज; अंति: त्रेवीसमो जिनराय, गाथा-१२. ७६५२३. तीर्थंकर जन्मोत्सव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: जनम., जैदे., (२६.५४११, १५४५०-५४). साधारणजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: अधोलोकनी आठ दिसा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सपरिवारसहित जन्माभिषेक करे" पाठ तक लिखा है.) ७६५२४. दंडक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: दंडक पत्र., जैदे., (२७४१२, १४४३६-४०). दंडक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: गणधर गौतम स्वामिजी; अंति: इम कहे ऋषभदास रे, गाथा-१८. ७६५२५. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५४, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १५४४३-४६). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-स्त्रीचरित्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भाइयो जेनि भारजा; अंति: कोई गरव न करसो लगार, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-मूर्खनारी परिहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भोजाभगत, मा.गु., पद्य, आदि: मुरखे नारक भारजा आणी; अंति: नार कूतरी केवाणी, दोहा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधनिवारण, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: कोई पर क्रोध न करशो; अंति: दलपत० वात अध्यापि, गाथा-४. ४. पे. नाम. अट्टाणंबोल मध्ये त्रण बोल अशाश्वता, पृ. १आ, संपूर्ण. ३ अशाश्वता बोल-अट्ठाणुबोल मध्ये, मा.गु., गद्य, आदि: एक चौवीसमो बोल; अंति: सत्ताणु बोल असास्वतो. ७६५२६. (+) ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: ढंढणकुमर., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २२४४८). ढंढणऋषि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: तिण कालै ने तिण समै; अंति: हो तुलन आवे लिगार, ढाल-३. ७६५२७. (+) साधुवंदणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७.५४११, १८४५८). साधुवंदना, मु. भिक्षु ऋषि, रा., पद्य, आदि: जीणमारग मे धुरसुं; अंति: भिक्षु ऋषि अणगार, ढाल-२, गाथा-३९. ७६५२८. (+) श्रद्धारी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: सरधारी ढाल., संशोधित., दे., (२७४१०.५, २०४५५). श्रद्धा ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चतुरनर कहै तेरे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३१ तक है.) ७६५२९. (+) शीतलजिन स्तवन व आत्मपरिवार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०x२४). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजयानंद सोहावे, गाथा-५. २.पे. नाम. आत्मपरिवार स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अविन्यासीनी सेजडीई; अंति: रूपचंदे० बंधाणी जी, गाथा-५. ७६५३०. बलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दोघट, पठ. श्राव. बिहारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६४३६). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बलभद्रमुनि सज्झाव, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: मासखमणने पारणे तपसी, अंतिः चोधमल० वयराग में, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १४. ७६५३१. शील रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६.५x११.५, १४४३९). 3 शीयन रास, मा.गु., पद्य, आदि: अरहंतदेव मे ध्याउ, अंति: वीनवे सौलसंकट सभ टले, गाथा-२४. ७६५३२. औपदेशिक पद व छींकविचार गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६११.५, १४X३०). १. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि सत्य धरम बिना कोई अंतिः करम का फल पामेगा, गाथा १०. २. पे. नाम. छींकविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि उत्तर छीक माहाबलवती; अंति: (-), दोहा-१. (#) ७६५३३. . | सज्झाय व लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ५. प्र. वि. हुंडी उपदेस. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११, २३४५६). १. पे. नाम. समकीत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. समकित पालन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणौ आचार न जाणै; अंतिः समकित इण विध आइ रे, गाथा- १८. २. पे नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सखरो धर्म छै साचो; अंति: भाइ कभी न रहत है काइ, गाथा- ७. ३. पे. नाम. २३ पदवी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गुणधर गौतम सामजी समर; अंति: आणजो घटसु रागो जी, गाथा- १८. ४. पे. नाम. नेमिराजिमती लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो वालम बन में गयो, अंति: जिनदास भय मायो री, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिराजिमती लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ भगवंत वनवासा; अंति: दरदी के दीदार देखु, गाथा-७. ७६५३४. (४) नवपद स्तवना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) - ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१२.५, १०x३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७३८, आदि (-) अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४, ढाल ११ की गाथा- ७ अपूर्ण से है व गाथ-४६ तक लिखा है.) ७६५३५. (४) मंगलकलश फाग, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१ (२) ४, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मंगलकलश., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११, १३X५०-५५). मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु, पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवीय सामिणी ए अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ की गाथा - २४ अपूर्ण से ढाल ६ की गाथा - ५२ अपूर्ण तक व ढाल - १३ की गाथा- ३१ अपूर्ण सेठ नहीं है.) , ७६५३६. विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. जैदे. (२६४१२, ११४३२-३६). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजय जयो रे; अंति: (-), (पू. वि. वज्रधरस्वामी स्तवन, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७६५३७. (#) रत्नचूडव्यवहारीनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, जी., (२७४११, १८४३५-४० ). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीशोभा, अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७, गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७६५३८. दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे. (२७४१२ ३७-४०X१२-२६). For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४११ दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दिसि गति इंदिय काए; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २६ द्वार तक लिखा है.) ७६५३९. पद्मावती आराधना व जीवआयुष्य विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ८x२६). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ४अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-६९, (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २. पे. नाम. विविध जीव आयुष्य विचार, पृ. ७आ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: १२० वरस मनुष्यरो आऊष; अंति: (अपठनीय), (वि. अस्पष्ट ___ अक्षर के कारण अन्तिम वाक्य अवाच्य है.) ७६५४०. स्थूलिभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १४४२८). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-९, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६५४१. आषाढामुनिनुं चोढालिओ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: आषाढानी ढाल., जैदे., (२६४१०.५, १५४३२). आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: वाणी अमृत सारसी आपो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७६५४२. (+) चतुःशरण प्रकीर्णकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: चउसरण., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५-४८). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. __अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंतकल्याणकर; अंति: तेषां वर साधुरूपा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. अरजिन सवैयो, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: शशधर सम वदन रदनघर; अंति: नम जपत जन भवभय हरन, गाथा-१. ७६५४३. कर्मप्रकृति विचार व महावीरजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १३४४२). १. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावरणीय; अंति: भंडारी सरीखो जाणवो. २. पे. नाम. महावीरप्रभु चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंद विलास पस; अंति: ज्ञानविमल० तसु धन्य, गाथा-१५. ७६५४४. ऋषभदेव चरित्र, संपूर्ण, वि. १७४४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. दीपा ऋषि (गुरु मु. विरधा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ऋषभचरित्र पत्र., जैदे., (२५.५४११, १५४५१-५६). आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: हवई श्रीऋषभदेव वाधइ; अंति: देव उत्सव करिउ. ७६५४५. विजयकुंवरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४११.५, २६-३०x२०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: मनुष जमारोपायने जे; अंति: भरजोवन के मानी, गाथा-२१. ७६५४६. (#) १४ राजलोकादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, २५४५०). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली नरके१ पहिलो; अंति: ए दस० वेयावच जाणवी. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१२ www.kobatirth.org ७६५४७. (१) जंबुद्वीप विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., १४४४७-५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२७X११, जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो, अंति: अचुए सत्त लोगत्ति. ७६५४८. (+) विवाहलो व जिनचौवीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे, २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १७X३४). १. पे. नाम. नेमनाथ राजमती व्याहलो, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती विवाहलो, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: गोइम गणधर पै नमो; अंति: इस भव को लाहो लीजइ, ढाल-८, गाथा ८२. २. पे. नाम. जिन चौबीसी, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: जिनजी पहिले श्रीआदि, अंतिः पढइ सुणे नरनामेजी, गाथा-१८. ७६५४९. (#) व्यवहारशुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विद्याकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. २१२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १६४५५-५८) "" व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६९६, आदि: शांतिनाथ सोलन: अंतिः सीझई वंचित काज, ढाल - ९, गाथा - १६१. ७६५५० (+) जामोती चौपाई, संपूर्ण वि. १८८९, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हंडी जामोतीजी, संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, २०४६६-७०). जांबवती चौपाई, मु. सुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहली ढाल वधावणी, अंति: बलैहारी वीठला, ढाल १३. ७६५५१. अणहारदुविहार व वयरिस्वामि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. शिवपुरीनगर, प्रले. पं. थिरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६ ११, १६x४१). १. पे. नाम. अणहारदुविहारविचार स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमु सरस्वती, अंति: दिन दीपइ तपगच्छ नाह गाथा - १५. २. पे. नाम. वयरिस्वामि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि गणधर दश पूरवधर सुंदर, अंतिः विजयप्रभु वंदो हो, For Private and Personal Use Only गाथा - १३. ७६५५२. धर्मनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. इडरगढ, प्रले. मु. माणेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १०X३० ). धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्म, आदि हां रे मारे धरमजिणंद, अंतिः न रहेवारीया रे लो, गाथा-७. ७६५५४. अर्हन्कमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६११, १७४५६). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: धिन धिन जननी वे लाल, अंतिः लबधि० गुण आगम सुणी, गाथा- १८. ७६५५५. छंद, बारमासो व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. हुंडी बारमांसा, जैदे. (२६५११, १७X३६-४०). १. पे. नाम, नेमिजिन छंद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि किया एकी उठ चले की अंति: मेरी खबर ना पाई, गाथा - ११. २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सावण आया ए सखी के; अंति: वरत्या जयजयकार, गाथा- १३. ३. पे. नाम. निंदावारक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदा परिहार, मा.गु, पद्य, आदि: तीर्थंकर देवने कहोजी अंतिः कमंत मरीओ रे गोकाण्ण, गाथा - १५. Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४१३ ७६५५६. (१) तपपद सज्झाव व वैराग्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३X३३). १. पे. नाम. तपपद सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तप वडो रे संसार में; अंति: चैत्री पुनमजीरा रे, गाथा- १४. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.ले.पु. मध्यम. मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया जीवडी कारमी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) ७६५५७. (#) दुहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६४१२, १४४३६-४० ). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १४, संपूर्ण. ७६५५८. स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११, १२X३२-३६). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ कृष्ण, ९. आदिजिन चैत्यवंदन- चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अरिहंत नमो भगवंत अंति: ज्ञानविमल सूरीश नमो, गाथा-८. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति रस पीजो रे नर; अंति: शाश्वता सुख श्रीकार, गाथा-५. ७६५५९. (+) छंद, दुहा व चौवीसजिन नाम, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x१२, १४४३२-३६). "" १. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८३०, वैशाख शुक्ल, ११, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. सुमतिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पाय लागी करूं; अंति: सामी सदा सुख देस्ये, गाथा - १०. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि; ग्यान घटै नरमूढ की अंति (-), पद- ४ (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. चौवीसजिन नाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम वर्त्तमान, मा.गु., गद्य, आदि: रिषभजी अजितजी संभवजी अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अनंतजिन नाम तक लिखा है.) ७६५६०. (१) महावीरजिनजन्म महोत्सव, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६११, १६X५०-५४). महावीरजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: अच्चेना अविदेशे, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीर जन्मोत्सव में इंद्र के आगमन का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७६५६२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी: सज्झाइ, जैदे., ( २६.५X११.५, १४X४०-४३). १. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथांक नहीं है. संघ, मा.गु., पद्य, आदि: माता उदरि वस्यो दसमा; अंति: तो मुगति तणा फल लीजे, गाथा- १६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर पंथडु आगमु; अंति: भाईओ सांभलजो सहु साथ, गाथा-७. ३. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्म, आदि: गुण सपूरण एक अरिहंत अंतिः करेसि निंदा पारकी गाथा ४. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अहिरण जाण; अंतिः कीर्तिसूरि भणे ए. ७६५६३. अरणकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७४१२.५, १२x२७-३०). गाथा - २४. ७६५६४. (+४) गौतमपृच्छा भास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी गीतमप्रीछा भास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एगौतमस्वामि प्रछा; अंति: रमे ते मुक्ति मझारि, गाथा- ३५. ७६५६५ (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पठ. मु खीमजी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१२, ९X३७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संपति श्रीपासतणी; अंति: निधि सिद्धि आणंद घणे, गाथा - ११. " ७६५६६. (+) बलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. राघव ऋषि (गुरु मु. गोलक ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी. बलदेवभास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६११.५, १३४३१). बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका जलंतर निसर, अंति: तेह पामे मोक्ष दुआरी, गाथा - २२. ७६५६७. पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. अमीपाल नाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १३X३६). पांडव सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पांडव परिसणो महाज्यो; अंति : त्रुटि दिओ वासो रे, गाथा-१८. ७६५६८. बईरस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६.५४११.५, १४X३७-४०). वज्रस्वामी सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर पाय अंतिः सेवक गुण गाय रे, गाथा - २१. ७६५६९ (४) सज्झाय संग्रह व तेजसिंघजी ने लखेल पत्र, संपूर्ण, वि. १७६१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु.वेलजी ऋषि, लुकागच्छ वृद्धपक्ष); गुपि. मु. वेलजी ऋषि (लुंकागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११.५, १२ २०X३२-६०). १. पे नाम, वल्लभजी का ऋषि नांनजी के नाम पत्र, पृ. १अ संपूर्ण वि. १७६१, मार्गशीर्ष शु. ९, ले. स्थल, खीरपुर, वल्लभजी व केशवजी का नानजी ऋषि के नाम पत्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्तिश्री आदिजिन; अंतिः पूज्यजी ऋषिजी. २. पे. नाम. निंदात्याग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय- निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: नंदा म करसो कोइ, अंति समयसुंदर सुखकार रे, गाथा - ५. ३. पे. नाम. नागश्री सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७६१, पौष कृष्ण, १३. ले. स्थल. नीकावानगर (२७X११.५, २१X५७-६०). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: जंबुदिप बखाण्णीये जी अंतिः जासे मुगति मझारि रे, गाथा- ११. ७६५७० शांतिनाथ स्तवन व उपदेश सज्झाच, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: शांतिनाथस्तवन, जैवे., . मु. श्रीमल्ल - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: प्रणमीय पासजिन सिवसु; अंति: कीधुं शोभतो रविवार ए, ढाल -३. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जैदे., (२६X११.५, २२x६७-७०). १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: चंदन मलिया गरि तणुं, अंति: लावण्य०लही मोटम साणी, गाथा-८. ७६५७१. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्रले. मु. धर्मसिंह ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि; शांतिजिन सोलमा, अंति: हरष० संघ जयजयकार ए. गाथा २९. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. विजयचारित्र, मा.गु., पद्य, आदि: राजलि० वीनवि रि सखी; अंति: दोउ मिल्या शिवराज, गाथा ९. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का और हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४१५ ३. पे. नाम. थूलिभद्र बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. कोशास्थूलिभद्र बारमासो, पं. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चकवीप्रति कोसा भण; अंति: चतुरविजय इम भाखिरे, गाथा-१८. ४. पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ कहे सांभल रे; अंति: हैयामांहि बुझोरे, गाथा-१०. ७६५७२. (+) महावीरजिन हमचडी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, २०४५७-६०). महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदन कुं तिसला; अंति: चरम जिणेसर वीरोरे, ढाल-३, गाथा-६७, संपूर्ण. ७६५७३. (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मंगल ऋषि; पठ. मु. वणायगऋषि (गुरु मु. मंगल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमिनाथनूस्तवन, संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १९४४९). नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सकल सिद्ध प्रणमेव; अंति: पाठक जनने सुखकर, ढाल-६, गाथा-४२. ७६५७४. तेजसिंहगुरु भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. हीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १७४६०). तेजसिंहगुरु भास, मु. राजमल्ल, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: प्रथम जिणेसर प्रणमी; अंति: राजमल अधिकार रे, गाथा-२९. ७६५७५. (#) मौनएकादशीपर्व स्तवन व आदिजिन होरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४३५-३८). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-३४, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: होरी खेलियै नर बहुर; अंति: वारी भवभव पातिक जाय, गाथा-५. ७६५७६. विचार व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७७, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. छायापुर, प्रले. मु. भाग्यसोम (गुरु आ. आणंदसोमसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निगोदनो विचार, जैदे., (२७.५४११, १३४५२). १. पे. नाम. कृष्णराज विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ कृष्ण, १२, ले.स्थल. छायापुर, प्रले. मु. भाग्यसोम (गुरु आ. आणदसोमसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य. सूक्ष्मनिगोद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे चौदराजलोकने विषे; अंति: सव्वाविय किणइराद्रउ. २. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन छंद, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७६५७७. मोतीकपासीया संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:मोतीकपा०, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४५-४८). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: चतुर नरांचमकार, ढाल-५, गाथा-१०३. ७६५७८. (+) पार्श्वजिन गजल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १२४३०-३३). पार्श्वजिन गझल-पल्लविया, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: ससीवदनी वरदायनी सुमत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६५७९. चैत्यवंदन चोविसी व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (२)=२, कुल पे. २, ले. स्थल. खेरवा, प्र. मु. हर्षसागर, पठ. श्रावि. रतु, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२.५, १३३६-४०). १. पे. नाम. चौवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ- ३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. . २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिनवर पडम जिनवर, अंति: वह सुविहाण तुह वीर, अध्याय- २४, (पू.वि. सुविधिनाथ चैत्यवंदन अपूर्ण से सुव्रतस्वामी चैत्यवंदन अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाल हो; अंति: जस० सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. ७६५८०. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-२ (१,४)-३, जैदे. (२६४१०.५, १९३४४७). " हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल- १ गाथा-७ अपूर्ण से दाल-३ तक एवं दाल-५ गाथा १ अपूर्ण से ढाल ८ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७६५८१. (+) विचार संग्रह का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी: हुंडीपत्र १. हुंडीपत्र २. हुंडीपत्र ३, संशोधित, जैदे. (२६४११, १३४३४). , विचार संग्रह - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीरंगुरञ्चवदित्वा अंति: (-), (पू. वि. योगस्थान- ४ अपूर्ण तक है.) ७६५८२. (+#) अष्टप्रकारी पूजा, रिषभजिन स्तवन व नमस्कारमंत्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (२) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १२x२८-३२). १. पे नाम, अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु.,सं., प+ग., आदिः ॐ विधीयगत्य; अंति: (-), (पू.वि. दीपपूजा अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. रिषभजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दीपसौभाग्य कहरी, गाथा - १५, ( पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. पंचप्रमेसटिनमसकार स्तवनं पृ. ३अ-३ आ. संपूर्ण. ', नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंति: जिन० सुरिवरसीस रसाल, गाथा ६. ७६५८३. चौदनियम विचार सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२६४११, १३४५० ). . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: १ सचित्त, २ दव्व; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा - १. १४ आवक नियम गाथा - बालावबोध, रा., गद्य, आदि: श्रावकै जावज्जीव, अंति: सामान्यकरणा है. ७६५८४. (+) मौनएकादशी गणणु व पोसह विधि, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. मोहनचंद (गुरु मु. आसकरण, खरतरगच्छ); गुपि. मु. आसकरण (गुरु मु. बुधमलजी, खरतरगच्छ); मु. बुधमलजी (गुरु उपा. भीमचंद, खरतरगच्छ); उपा. भीमचंद (खरतरगच्छ); राज्ये आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्राव. सुखदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १०x३२). १. पे नाम, मौनएकादशी गणणु, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: आदिकचारित्राय नमः. २. पे. नाम. पौषह विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पौषविधिसंग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम झीयावहियं अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ३ नवकार गिनकर १ लोगस्स कहने की विधि अपूर्ण तक लिखा है.) ७६५८५ (+) दुषमकालादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित दे. (२७४११, १३X२७-३२). १. पे. नाम. दुषमकाल विचार संग्रह, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- १अ पर एकविंशतिस्थान प्रकरण की गाथा - १ आधी लिखकर छोड़ दी गयी है. Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ मा.गु., गद्य, आदि: चोथै आरै उतरतै; अंति: सिद्धांतनी थापना हुई. २. पे. नाम. ४ निक्षेप विचार, प्र. ३आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: १द्रिवनखेपो कोई साध: अंति: ४ नखेपा कह्या छै. ३. पे. नाम. १पूर्वमान विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. पूर्ववर्षमान विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चोरासी लाख वरसनै; अंति: एक पूरब अंक हुवै. ४. पे. नाम. जोधपुर दिनमान संक्रांत सारणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह*,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७६५८६. (#) सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:श्राव०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०४२५). १.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहरख दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. २. पे. नाम. राणपुर आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरोरलीयामणौ रे; अंति: रणीयामणोरे लोल, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहो रे अग्यानी जीव; अंति: इतनांकौ सेज मीटावो, गाथा-३. ७६५८७. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पार्श्वनाथतवन, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १४४३१). पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९६, आदि: वाहन सारिंग चडी करी; अंति: रच्यो सहि गुरु ___ आदिसि, ढाल-६, गाथा-६४. ७६५८८. थूलिभद्र एकवीसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. वीराई आर्या; अन्य. सा. रूपाई आर्या (गुरु सा. वीराई आर्या); सा. लीलाबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:थूलभद्र, जैदे., (२७४११.५, १४४४०-४५). स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आविउ आविउरे जलहर; अंति: बोलिइ अंग निर्मल थाई, गाथा-४२.. ७६५८९. (+) नववाडि रास वसातवार पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४३०). १.पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदहि आदिजिनेसर नमु; अंति: वृद्धि रे मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-५६. २. पे. नाम. सातवार पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ७ वार पद, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: सिहि गुरुवादो तम्हे; अंति: केशव गुरुजीना गुणगाय, गाथा-७. ७६५९०. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, ८x२४). शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. ७६५९१. (#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४४९). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (पू.वि. मल्लिनाथजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) . For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७६५९२. (#) पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. ग. मुक्तिविजय (गुरु ग. रत्नविजय); गुपि. ग. रत्नविजय (गुरु ग. अमृतविजय); ग. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४५०). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु: अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ७६५९३. (#) स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले.ग. प्रेमविजय (गुरु ग. विनयविजय); गुपि.ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४७). १.पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: उदयरत्न शिरनामी रे, ढाल-९, गाथा-७४. २.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुनि; अंति: संतोष साह गुण गाय जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: पामीरे प्रतिबोध; अंति: मनोरथ सघला फल्या रे, गाथा-९. ७६५९४. प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४४९). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: देश कलिंगइ नगरी चंपा; अंति: उलटइ गुणगाइ आनंदपूरि, गाथा-१६. ७६५९५. (#) धन्नाजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. दूरा; सा. उमा; लिख. मु. नारायण (गुरु ग. महिमासुंदर); पठ.सा. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४३८). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: श्रीसुखदायक संपदा; अंति: श्रीसंघ सवि जयकारोरे, ढाल-४. ७६५९६. दशपच्चक्खाणवृद्ध स्तवन व धरणेंद्र पद्मावती मंत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रावण कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. आ. जिनरामचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथ प्रशादात्., दे., (२६४१२.५, १०४२८). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद तपविधि भणै, ढाल-३, गाथा-३३. २.पे. नाम. धरणेंद्र पद्मावती मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्री; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-९. ७६५९७. (#) पंचमीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४२७-३०). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: भगति __भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ७६५९८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२५, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. भुपतिविजय (गुरु ग. प्रतापविजय); गुपि.ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४४). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ७६५९९. (#) कल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. जतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३१). २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीशने; अंति: थुणिआ श्रीजिनराया रे, ढाल-७, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६६००. शीलना कडा, संपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल आग्रा, प्रले. मु. सूरजमल (गुरु मु. नंदरामजी); गुपि. मु. नंदरामजी (गुरु मु. रिषभचंदजी ); मु. रिषभचंदजी (गुरु मु. गेंदालालजी); मु. गेंदालालजी (गुरु मु. ज्ञानसागरजी); मु. ज्ञानसागरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५x१२, १३४३७). शीयल कडा, मा.गु., रा., पद्य, आदि: धर्मरा छे जी अनेक पर; अंतिः सीयल अखंडीत सेवजो, गाथा-१६. ७६६०५. ओपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२९x१०.५, ६x४४). औपदेशिक सवैया, मु. बनारसी, पुहिं., पद्य, आदि: दीन दरबेस करत मर; अंति: बणारसी० चीत लाय के, गाथा- ३१. ७६६०६. (+) लग्नशुद्धि, ज्योतिष व पूर्वादिमान गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६.५X११, १५X३७). १. पे नाम. लमशुद्धि - चयनित गाथासंग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि: तणुछायाएपयाइं सणिससि, अंति: कुणसु धयारोहण पमुहं, गाथा-२२. २. पे. नाम. पूर्वादि मान गाथासंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि द्वात्रिंशसहस्राणि अंति: (१) वासाणं उसभजिणमाणं, (२) अंकतः ५९२७०४ शून्य१५, गाथा-५, (वि. चारयुगमानदर्शक प्रथम श्लोक वैदिक होना संभव है.) ३. पे. नाम. गणित प्रनादि लोकसंग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: अर्द्धत्र्यंशद्वादश, अंतिः संख्या० भ्रमरा ६० श्लोक-३. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: इह भवति सप्तरक्तः अंतिः स करग्रहं कुरुते श्लोक ७. ५. पे. नाम. गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. सं., प+ग, आदि: संख्यांकस्रजेत्पृष्ट; अंति: एवमज्ञेपिज्ञेयं. ७६६२१. (+) शिखामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. साणंद, प्रले. पं. रंग, लिख. श्राव. डुंगरजी बोघा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५११, १९४५५). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि सांभलज्यो सजन नरनारि, अंति: जगात वडो वीवहार, गावा- ३६. ७६६२२. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. झोटाणा, प्रले. मु. त्रभोवनलाल; पठ. मु. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., प्र. ले. श्लो. (१२५४) शोधी लेज्यो सुगुण नर, दे., (२६.५x११.५, १०x२४). महावीरजिन स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: नंदन नंदन त्रीसलारा; अंति: सीवसुखदीजीयेंजी, गाथा-६. ७६६२७. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन व अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. राजेंद्रविजय, पठ. ग. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६११.५, १४४३८). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण " पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणी, अंति: गोडीजिन देजो हितधरी, गाथा - १०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. वनीतराज, मा.गु, पद्य, आदि सुख संपत दाई सुजस अंतिः विनतराज गाया जगधणी, गाथा - ९. ७६६२८. (+) सतीसीता स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १३x४०). सीतासती सज्झाय, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ नरवर राजीयो; अंति: मतिसागर० तणो हुं दास, १४४४४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. ४१९ गाथा - १७. ७६६३०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, . For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: रीषभदास गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: पुरवे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. दीपोच्छरी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: दिओसति वर वाणी, गाथा-४. ७६६३२. ज्वरनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२.५, ११४२९). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल; अंति: सारमंत्र जपीये सदा, गाथा-१८. ७६६३८. अमरसिंघ श्लोको व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४३२). १.पे. नाम. अमरसींघ श्लोको, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, ले.स्थल. घटीयाली, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण तुज पायेज; अंति: राठोड सदा सुख राखी. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. ३.पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुरीयारुं जै बाव पर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७६६३९. (+#) विवाहपडल भाषा, संपूर्ण, वि. १८५९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पंथेडी, प्रले. पं. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २५४८०). विवाहपडल भाषा, मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: ए करदन करिवर वदन कदन; अंति: गौतमे कीध रचना सरस, गाथा-९४. ७६६४०. (+) जिनबिंबप्रवेशादि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७४४७). जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिलो मुहूर्त भलु; अंति: सघला दिकपाल संतोषीयै. ७६६४३. योगचिंतामणि विषयानुक्रमणिका, चंद्रोदय रस व विजया पाकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७-९५(१ से ९३,९५ से ९६)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:योगचंताम प., जैदे., (२६४११.५, १९४२७). १.पे. नाम. योगचिंतामणि की विषयानुक्रमणिका, पृ. ९४अ-९७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. योगचिंतामणि-बीजक, सं., गद्य, आदि: १ सौभाग्यसुंठी पाक; अंति: ९३ जिह्वा परिक्षा, (पू.वि. अनुक्रम-३४ से ८३ नहीं है.) २. पे. नाम. चंद्रोदयरस निर्माण विधि, पृ. ९७अ, संपूर्ण. औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. विजया पाक, गुंजादि प्रमाण श्लोक, मुस्तादि लेप व लसणादि गोलीनिर्माण विधि संग्रह, पृ. ९७आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६६४५. (+) राशीहोडाचक्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १५४३८). १.पे. नाम. राशीहोडाचक्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चुचे चो ला असनी; अंति: ज थ दे दो चा ची मीन. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु चिंतामणदेव; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४२१ श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: क्षिती मंडल मूकटं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम श्लोक अपूर्ण मात्र लिखा है.) ७६६४७. (+) गृहनवीनबिंब प्रवेशविधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. लावण्यविजय गणि (गुरु पं. गंगविजय); उप.पं. गंगविजय (गुरु उपा. शुभविजय); अन्य. मु. रूपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३३). जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: भला मुहूर्त जोई; अंति: पूठइ दिन १० कीजइ. ७६६४९. वर्षप्रबोध का भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १९४५०). ___ वर्षप्रबोध-भाषानुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: मार्गशीर्ष शुक्र; अंति: एकदिन रातवर्ष. ७६६५१. अबजदी प्रश्न, अपूर्ण, वि. १९०६, माघ कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. रीणी, प्रले. पं. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १४४४४). अबयदीशुकनावली-अनुवाद, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: तेरा काम सवरैगा सही, (पू.वि. "संतोष होइगा जैसे पुत्र जायै" पाठ से है.) ७६६५२. (+) सालिभद्रधन्ना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४४६). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: सहजसुंदरनी वाणी, गाथा-१९. ७६६५४. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. भाव विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ध्रुवांक संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. १५८ प्रकृति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीनौ बंध१०; अंति: सु० गुण१२ सूधी होइ. ७६६५७. (#) देशावगासीलेवापारवानी विधि व एकासणा का पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. देशावगासीलेवापारवानी विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-देशावगासिक विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारमु पडिपोषधव्रत; अंति: नोकार गणीने उठवु. २.पे. नाम. एकासणा का पच्चक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: एकासणं पचखामी दुविहं; अंति: गारेणं वोसिरामि, (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र एकासणा का पच्चक्खाण लिखा है.) ७६६६०. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. रतनजी ऋषि; अन्य. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आशानंदजी मारवाडि पासेथी लख्यु छे. प्रतिलेखन स्थल अवाच्य., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरख बदन सुख पायौ; अंति: हर्ष० देव नहि ध्यायो, गाथा-४. २. पे. नाम. आत्मप्रबोध स्तवना प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: क्यारे अज्ञानि जीवकु; अंति: कहे वाको सहज मिटावे, गाथा-३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गीरूया रे गुण तुम्ह; अंति: जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. ७६६६२. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, ८४३३). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण सर्व सजाई; अंति: उदयवाचक कहे एम जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पजुसणपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुन्ये; अंति: दिन दिन करजो वधाइ जी. गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवी देयादंबा, श्लोक-१. ७६६६३. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ३१४४०-४५). १. पे. नाम. आत्मानी आत्मता, पृ. १अ, संपूर्ण. आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यातप्रदेशी अनंत; अंति: असहाइ४ सक्तियता५. २. पे. नाम. महावीरजिन के बाद की राजावली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: राजा श्रेणिक तत्पट्ट; अंति: गुजरदेशे यवनागत. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह* पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६६६४. ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा सह विवरण व युगप्रमाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०४३६). १. पे. नाम. ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा सह विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिणामविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परणामी १ जीव २ मुत्त; अंति: सब गदमिय रहीय पवेसो, गाथा-१. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिणामविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ अजीवर धर्म३; अंति: जीव असंख्यात प्रदेशी. २. पे. नाम. युग प्रमाण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ युगप्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कृत युग प्रमाण सतर; अंति: चारलाख छत्रीस हजार. ७६६७१. नवपद सज्झाय व २८ लब्धीनाम, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, दे., (२७.५४१२.५, १०४३५). १. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा-१०. २.पे. नाम. अठावीसलब्धि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही विप्पोसही; अंति: पुलाकलब्धि २८. ७६६७२. पखी खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. त्रिभोवनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पालवीयाजी प्रसादात., जैदे., (२६.५४१२.५, ९४२६). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ७६६७४. (+) ऋषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले.पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पालवीयाजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३१). आदिजिन लावणी, मु. नाथुराम, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभदेव तुम बडा देव; अंति: मागे केवल मुगतीकु, गाथा-१३. ७६६७७. गीत, दोहा व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२७४११.५, १७४४६-५६). १. पे. नाम. लोकमेला गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: झिरमिर झिरमिर हो सिल; अंति: सिला मारु कर लीया, गाथा-२०, (वि. गाथानुक्रम का उल्लेख न होने से गिनकर दिया गया है.) २.पे. नाम. चीरहरणप्रसंग दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिण हर की चोरी करी; अंति: रची रहे अधोमुख झूल, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४२३ ३. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रवण वेद संभलण साद; अंति: जका कीध गोली जरा, गाथा-२. ४. पे. नाम. तीर्थंकरबल वर्णन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, आदि: बार पुरुष मानस बल एक; अंति: धर्मसिंघ०माहि जाणिइ, गाथा-४. ५. पे. नाम. स्त्रीचरित्र पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिया चरित्र दशलाख; अंति: गद० चरित्र एता करे, गाथा-१. ७६६८४. (+#) जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. १७-१३(१ से १३)=४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १७४४४). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भवंति भवता सदा, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., सातवीं स्त्री की कथा अपूर्ण से है.) ७६६८५. पंचमीदिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव. सरूपचंद खेमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १४४४०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: (-); अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७६६८७. (+) मयणरेहाचौपाई, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वाचनेर, प्रले. सा. मगनी (गुरु सा. कंवरीजी); गुपि.सा. कंवरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १८४४१). मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा मांस दारू तणी; अंति: परनारी त्यागीजै, गाथा-१६४. ७६६८९. (+) गर्गरषीश्वरकृत शकुनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक के बारे में लिखा है कि- 'लिापाको'., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४४२). पाशाकेवली-भाषा संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: सिद्धि पामीस सही सही. ७६६९१. (+) ६४ बोल-तीर्थंकरो के नाम-लंछन-वर्ण-गणधरादि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ८४७६). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार, मा.गु., को., आदि: ऋषभ अजीत संभव; अंति: (-). ७६६९६. (+) लीलावती भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११,१५४५०). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-४ नवराशी पाठ तक है.) ७६७०१. (#) दुषमकाल विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १५४३७). दुषमकाल विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पाठांश है.) ७६७०३. (#) ८ दयामाता उपमा, ७ कर्मबंध व चतुर्गति आगत जीवलक्षण बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ़ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुलपे. ३, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नही हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०४३३). १. पे. नाम. दयामाता ८ उपमा बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १बीहताने सरणानो आधा; अति: जीवने दयामातानौ आधार. २. पे. नाम. ७ कर्मबंध बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. कर्मबंध के ७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सात बोलै जीव वीकणा; अंति: समगत सुंडी गावतौ थकौ. ३. पे. नाम. चारगति जीव २१ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पैलै बोलै नरकगतरौ; अंति: ४ धरमी तपसी हुवै. ७६७०५. साठीघटिका, अडसठितीर्थ व साढापचीस आर्यदेशनामादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १५४३६-४२). For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२४ www.kobatirth.org १. पे. नाम साठि घटिका नाम, पृ. १अ संपूर्ण. ६० घटिका नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पुंडरीक१ सुभद्रा२; अंति: इंद्राणी वेदनकन्या६०. २. पे. नाम. अडशठि तीर्थना नाम, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ६८ तीर्थ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: गंगा १ जमुना २ प्रआग, अंतिः प्रतीची६७ मातापिता६८. ३. पे. नाम. साढापचीस आर्यदेश नगरसंख्या विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेश राजगृही नगरी; अंति: (-), (पू.वि. मालवदेश वर्णन अपूर्ण तक है.) गाथा - ७०. ७६७०७. सकलान्त्रमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२७४१३, ११४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " ७६७०६. अंगुलसत्तरी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. कल्याणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२८.५x१२.५, १८४४०-४३). अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदिः उसभसमगमणमुसभं जिणमणि अंतिः रइअभिणं सपरगुणहेडं, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: भावतोहं नमामि श्लोक-३३. ७६७०८. पर्युषणपर्वनिर्णय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२६.५x१२.५, १४४३७) पर्युषण पर्वनिर्णय विचार, प्रा., सं., गद्य, आदि: ननु सवीसईराएमासेवइ, अंति: ग्रंथेष्वेमेवास्ति. ७६७०९. (+) नारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नारी. रायकवरी की किए जाने का उल्लेख मिलता है., संशोधित., दे., (२७.५X११.५, १३x४०-४५). तर से औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख रमीये नही चतुर, अंति: आगै इछा थारी रे, गाथा-२३. ७६७१०. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, १२ तुर्यनाद नाम व सिद्धचक्र चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जी., (२७४१२.५, १२४४२). १. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषित संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: देवाधीना जगत्सर्वे; अंति: सुकृता तेन हारितं, श्लोक - ५. २. पे. नाम. नंदीघोषादिद्वादशविध तुर्यनाद नाम, पृ. १अ संपूर्ण. १२ तुर्यनंदा नाम गाथा, प्रा. पंच, आदि भंभा मुकुंद मद्दल अंतिः संखो पणबोअ बारसमो, गाथा-१. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. अप, पद्य, आदि जो धुरि सिरि अरिहंत अंतिः अम्हं मणवंछिय दिउ, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्न पाणे; अंति: वितहायरणे अइयारो, गाथा - १. ५. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: वतियागारेणं वोसीरे. ७६७११. (*) सतिया की सज्झाव व गुरुगुणवर्णन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. २-१ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६४११.५ १२४३९). १. पे. नाम. सतिया की सिझाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्मतणी जागइ रत्ती, गाथा - ४१, (पू.वि. गाथा - ३४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुरुगुणवर्णन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गुरुगुणवर्णन जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८८५, आदि: सतगुरु वोपारी बोपारी, अंतिः भगवान०जब कीधी परकासो, गाथा- १६. " For Private and Personal Use Only ७६७१२. (+) आषाढभूति चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२, " १३x४१). Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पूण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४२५ आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: श्रीसंघकुं सुखकारी, गाथा-६४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-३, गाथा-४८ अपूर्ण से है.) ७६७१४. (+#) प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, ब्रह्मदत्तचक्री आदि आयुष्य वर्णन व नेमराजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११,१६४४०). १.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सीख्यो चाहै पेमरस; अंति: दान लीयो नलीयो, गाथा-१०, (वि. कबीर आदि रचित छुटक दोहा, पद, कवित्तादि संग्रह.) २. पे. नाम. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ति आयुष्यादि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, रा., गद्य, आदि: ब्रह्मदत्त; अंति: नारकी मै ते जाणवौ जी. ३. पे. नाम. धन्नाअणगार विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार श्वासोश्वास प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: धन्नौ अणगार नवमास; अंति: धन्नाअणगारनी परै सही. ४. पे. नाम. नेमराजिमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. जयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेलि तोरण आयो हे; अंति: नेम मनावौ हे नाहलौ, गाथा-९. ७६७१५. जीवदया सज्झाय व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, २६४१३). १.पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: गोअम गणहर पाय पणमेवि; अंति: जिण सासणनो सुधो धर्म, गाथा-१३. २.पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गछनायकजी महोलि पधारी; अंति: चंद्रविजय० मंगलमाल, गाथा-५. ७६७१६. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. खेतुजी आर्या शिष्या (गुरु सा. खेतुजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, २०७३५). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरष कहंदा है, गाथा-१११, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को चार गाथा लिखा है.) ७६७१९. द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११-११.५, १६४३७). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७६७२०. (#) भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३९). भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलाराणी कहै मेरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ७६७२५. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मोडासा, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२७४१२, १०४३८). सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिबा हुँ; अंति: रामविजय०मुज चीत्त हो, गाथा-८. ७६७४९. (#) जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, संपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्राव. कपूरचंद साहा; प्रले. श्राव. पद्मा साहा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४४१). जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., गद्य, आदि: बिंब प्रवेश विध जिण; अंति: सघला दिकपाल संतोषीई. ७६७५०. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: अतिचार., जैदे., (२५४१२, २३४५७). For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७६७५१. (+#) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पत्रांख खंडित होने से अनुमानित दिये हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ११४३४). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-३ गाथा-४ अपूर्ण से स्तवन-११ तक है.) ७६७५२. (+#) ककाबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, अन्य. संभु किसन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, १३४५०). ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लिख्या अंक जे निरमया, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) ७६७५३. (+) १७ भेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ११४३९). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-८ गाथा-८ तक ७६७५४. (+) अध्यात्मबत्तीसी व कर्म छत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४४१). १.पे. नाम. अध्यात्म बत्तसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुध वचन सदगुरु कहें; अंति: तत्त लहि पावौ भवपार, गाथा-३२. २.पे. नाम. कर्म छत्रीसी, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मछत्तीसी, पुहिं., पद्य, आदि: परम निरंजन परमगुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ७६७५५. (+) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४५०). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर समरीने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) । ७६७५७. आंकनी गणतरी, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रभातकाल में लिखे जाने का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२६.५४१२, ४४४२७). ७३ संख्यामान अंक गिनती-भगवती सूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: १ एकं १२ दह; अंति: (१)७३ दश माहासिद्धि, (२)भगवती० चाल्यो छै. ७६७५९. सिद्धचक्र स्तवन व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारदमाय प्रणमि; अंति: सीस केशर गुणगाय, गाथा-८. २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर करमी; अंति: पाम्या भवजल तीर रे, गाथा-७. ७६७६०. गहुली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १०४३०). १. पे. नाम. गुरुगुण गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: आवो जईइ गुरू वांदवा; अंति: दोलत० धार हो लाल, गाथा-९. २.पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरिगुरु गहुंली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनेंद्रविजयसूरिगुरु गहंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहसम गणधर प्रणमीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७६७६१. (+#) धरणोरगेंद्र स्तोत्र व वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३५). १. पे. नाम. धरणोरगेंद्र स्तोत्र-माहामंत्रमय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्र सुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३७. २. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गाहाजुअलेण जिणं; अंति: दिसउखयं सयल दुरिआणं, गाथा-४. ७६७६२. दीपावलीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७६७६४. कर्मविपाक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४११.५, १२४३४). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., यं., आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: (-), (पू.वि. मतिज्ञान के २८ भेद अपूर्ण तक है.) ७६७६५. (+) १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४३८). १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप विचार चतुर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७६७६६. (+) औषधमंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १३४४३). औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आधाशीशी, खांसी आदि औषध व मंत्र.) ७६७६७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४३९). १.पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी० सवि सुख लहइ, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जैनधार्मिक गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: थोवा कपूर दुमा रयण; अंति: सुधमगांपरुव गाथोवा, (वि. १ गाथा.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला; अंति: कहे० चढत सवाई रे, गाथा-११. ७६७७०. (+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नसोम; पठ. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रस्ताविक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३८). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बंसरी ज सुनी नंदा; अंति: राम हे रत्नचिंतामणि, श्लोक-१५, (वि. श्लोक गिनती करके दिया है.)। ७६७७१. गणिततिलक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४४७). गणिततिलक, श्रीपति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण से ४७ तक है.) गणिततिलक-वृत्ति, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६७७५. (+) जैन व्याकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३१). जैन व्याकरण, सं., पद्य, आदि: अवस् अग्रे मंडली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'नः सक् छते नश्चापदां० देवास्तौति' तक लिखा है.) ७६७८२. (+) हेमदंडक बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १७४३६). For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हेमदंडक-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार संखा २७ से हैं.) ७६७९९. (#) समवसरण व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५४१२.५, ८X४२). १. पे. नाम. समवसरणजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-समवसरण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन वंदीये; अंति: जस० जिनपदसेवा खांति, गाथा-१७. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २आ, पूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिबो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ७६८०२. (+#) मायाबीज स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४५-४८). मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: सवर्णपार्श्व लयमध्य; अंति: पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१६. ७६८०३. (#) हैमविभ्रमसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ८x२३). हैमविभ्रमसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: (१)ममामी मिले अनोक्ताः, (२)तंत्रविभ्रमः कारिणः, संपूर्ण. ७६८१०. (#) कवच व छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. चीतल, प्रले. कृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१८४३६-४०). १.पे. नाम. रुद्रयामल कवच, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८२३, पौष कृष्ण, ४, ले.स्थल. चीतल. रूद्रयामल-कालिकावैरिहरणकवच, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: त्वां नमाम्यहम्, श्लोक-२८, (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण है. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वदन सुखकारसार; अंति: नयप्रमोद०मनवंछित सकल, गाथा-११. ७६८१३. (+#) सामुद्रिकशास्त्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २२४५८-६२). सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)आदिदेव प्रणम्यादौ, (२)पुरुष स्त्रीनो लक्षण; अंति: सर्वसौख्य ऊपजावइ. ७६८१८. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४२७). सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: निःशेष जाड्यापहा, श्लोक-१०. ७६८२४. अष्टादशपुराणादि नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११, १६४२६-३०). १.पे. नाम. चौदपूर्व नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.. १४ पूर्वनाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्पाद पूर्व १ अग्र; अंति: विशालु लोकबिंदुसार. २.पे. नाम. चौदह विद्या नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: शिक्षा कल्प व्याकरण; अंति: विद्याएताश्चतुर्दशः. ३. पे. नाम. अठारहपुराण नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ पुराण नाम, सं., गद्य, आदि: भागवतपुराण भविष्य; अंति: गरुडपुराण शिवपुराण. ४. पे. नाम. अठारह स्मृति नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ स्मृति नाम, सं., गद्य, आदि: मानवी स्मृति आत्री; अंति: शामातमी वैशष्टि. ५. पे. नाम. अष्टादश व्याकरण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रव्याकरण पाणिनि; अंति: सिद्धहैमव्याकरण. ६. पे. नाम. अष्टौमहाव्याकरणानि, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ महाव्याकरण नाम, सं., पद्य, आदि: ब्रह्ममैशानमैंद्रव; अंति: पाणिनीयमथाष्टमं, श्लोक-१. ७. पे. नाम. बत्तीस लक्षण- पुरुष, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण नाम-पुरुष, सं., गद्य, आदि: कमंडल कलश० सूप चापिक; अंति: इभि वृषभ सिंह चामर. ७६८२८. पार्श्वजिन व पंचकल्याणक स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १०४३४-३७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ऋद्धि वैदोषाम्, श्लोक-५, (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवतं अजिय; अंति: गणसहिया पंचकल्लाणएसु, गाथा-४. ७६८३२. (#) शारदा अष्टक व धर्मगीता, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३२-३६). १. पे. नाम. शारदा अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: समधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक-९. २. पे. नाम. धर्मगीता, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: सूर्यपुत्रोवाच भृत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ तक है.) ७६८४१. (#) छंद व विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. चुरु, प्रले. पं. भावविजय मुनि (गुरु पं. सत्यराज गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३२-३५). १.पे. नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, प्रले.पं. भावविजय मुनि (गुरु पं. सत्यराज गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमलगुण ईश; अंति: अचलकीर्ति० अविचल धाम, गाथा-४२. २. पे. नाम. शनिदेव छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८६५, पौष शुक्ल, १३, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: हेम० तुंशनैश्वर, गाथा-१८. ७६८४३. (#) बुद्धिरास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:बुद्धिरास, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४२). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं देवी अंबाई; अंति: टलइ सयल किलेस तो, गाथा-५३. ७६८४८. (+#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४५४). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३७ से है व श्लोक-४८ तक लिखा है.) ७६८४९. (+) स्थूलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा पत्रानुक्रम नहीं लिखे जाने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित., दे., (२६.५४११, ५४१५). स्थूलिभद्र सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण से है व गाथा-८ तक लिखा है.) ७६८५५. (+) एषणा समिति व जंघाचारण विधि, संपूर्ण, वि. १९००, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्र.वि. *अबरखयुक्त पाठ., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १५-१७४३७-४७). १. पे. नाम. एषणा समिति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, आदि: तथाहारपाणीयान्वेषणे; अंति: सा एषणा समिति. २.पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक-२०, उद्देश-९ जंघाचारण विधि, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७६८५६. (+) वागर्थसंबंध स्थापना, संपूर्ण, वि. १६५४, मध्यम, पृ. २, पठ. पं. रत्नहर्षगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४५). वागर्थसंबंधस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, आदि: अनुदिनमखर्वसर्वान; अंति: तन्निराकरण प्रयासेन. ७६८५७. (+) कारक विवरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२४५०). कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., पद्य, आदि: कारकाणि कर्ता कर्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. कारिका-६३ अपूर्ण तक है.) कारक विवरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., गद्य, आदि: स्वस्तंत्र प्रधान; अंति: कचटतयशनित कुमतः, संपूर्ण. ७६८६०. (#) शनिश्चर छंद व दानाधिकार, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रावण कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२४४०). १.पे. नाम. शनीसरजीनो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरापति; अंति: सुप्रसन्न सनीसर सदा, गाथा-१७. २.पे. नाम. दानाधिकार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः यथा तीर्थंकर दिन: अंति: पिण बिघडी लागै. ७६८७१. (+#) सिद्धसरस्वती स्तोत्र व सरस्वतीद्वादश नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११, ११४२२). १.पे. नाम. सिद्धसरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम, श्लोक-१३. २. पे. नाम. सरस्वतीद्वादस नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: प्रसीद परमेश्वरी, श्लोक-४. ७६८८०. (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३१). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से श्लोक-५१ अपूर्ण तक है., वि. श्लोक-४१ से श्लोकांक का स्थान खाली छोड़ा गया है, अतः गिनकर श्लोक दर्शाया गया है.) ७६८९२. (+) समासपरिचय श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. “हुडी: समासविवरणं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४४४२). समासपरिचय श्लोक, आ. हेमसूरि, सं., पद्य, आदि: द्वंद्वश्चकारैः; अंति: कथितो हेमसूरिभिः. समासपरिचय श्लोक-बालावबोध, आ. हेमसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: केवल विशेष अथवा; अंति: (-). ७६८९७. मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १७४४५). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: पुंसां कलिर्भेरूदैसे. ७६८९८. शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ५, जैदे., (२७४१२, ११४२७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org ४३१ १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदिः (-) अंति: प्रेमराज० सदा पदमावती, गाथा-६, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) " ३. पे नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि रामो हेममृगं न अंतिः बुद्ध्या परिक्षीयते श्लोक-१. ४. पे. नाम. चोवीसजिन अष्टक, पृ. ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पच, आदि: अविचल थानक पहुता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है . ) ५. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा मति आपड़, अंति: इम पभणे उसागरसूर, गाथा-८. " ७६९०१. कृष्णराजी विचार, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६.५x११, ९३९). कृष्णराजी विचार, सं., गद्य, आदिः लोकांतिक देवाः क. अंतिः योजन सहसैरलोक ७६९०६. विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६० ५९ (१ से ५९) = १ जैये. (२६४१०.५, १६४५७). विविधविचार संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि (-) अंतिः पाद्वेति निर्णय:, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शुभाशुभफल, श्लोक-१३ अपूर्ण से है.) , ७६९०८. खरतरगच्छ व्यवस्थापत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ले. स्थल, बीकानेर, जैये., (२६X११.५, १६x४३). יי खरतरगच्छ व्यवस्थापत्र, गच्छा. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् १७१८ वर्षे, अंति: (-), (पू.वि. "तिएगांमनोगणोगियानो प्रकारे" पाठ तक है.) ७६९०९. १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२५x११, , २०X५७). १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्वगु० आहारक; अंति: क्षय करी मुक्ति जाइ, संपूर्ण. ७६९१६. (+) सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६४१०.५, १९५९). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. पुरुषलक्षण गाथा-७ अपूर्ण से स्त्रीलक्षण गाथा ७ अपूर्ण तक है.. वि. गावांक व्युत्क्रम में है.) ७६९२७ (+) सिद्धदंडिका सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १८४९ वैशाख अधिकमास शुक्ल, १. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, वडनगर, प्रले. श्राव. जीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७१२.५, १५x४९). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका अंतिः दंडिकाः स्वयं ज्ञेया. For Private and Personal Use Only ७६९४३. (+) वाक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. हुंडी : वाक्यप्रकाशपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १३x४१). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं अंति: (-) (पू.वि. श्लोक-१२३ अपूर्ण तक है.) ७६९५५. कल्पसूत्र व्याख्यान कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६X११, १५X४५). कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. महावीरजिन भव-३ अपूर्ण है) ७६९५६. (4) दसकल्पवृक्ष अधिकारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे, ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, ११-१३४३७). १. पे, नाम, दसकल्पवृक्ष अधिकार, पृ. १अ संपूर्ण Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० कल्पवृक्ष भेद, मा.गु., गद्य, आदि: मातंगनामि कल्पवृक्ष; अंति: मनोवांछित परवै. २.पे. नाम. गुडवशी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पैला गुड रावणा भवणो; अंति: कडाइ करणी पछे दैणो. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद्र० सुरतरु की, गाथा-७. ७६९५८. (+) मकसूदाबादजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५.५४११, १३४३५). साधारणजिन स्तवन-मकसूदावादमंडन, पं. शांति, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: जिणंदपद दरशण दुरगति; अंति: शांति त्रई अजवाली, गाथा-८. ७६९६१. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम अंश है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७६९६२. (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ९४३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "दरिद्रोह भगवान" पाठ तक ७६९६३. कथादृष्टांत बीजक व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, ३९४२१). १. पे. नाम. कथादृष्टांत बीजक, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आहारकरे तेहवो नीहार; अंति: गतः तेनाशुसा मारिता. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अन्येन चिंतितं कार्य; अंति: न किंचिअथेण सयणेण, श्लोक-११. ७६९६५. (#) लुंकाबत्रीसी व विजयसेनसूरीश्वर श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्र खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, २१४५२). १. पे. नाम. लुंकाबत्रीसी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एहवुमत लुंकाना होई, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विजयसेनसूरीश्वर श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. विजयसेनसूरि श्लोक, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि धु मुझ; अंति: शांतिकुशल० बोलइ, गाथा-११. ७६९६९. (+#) माता सोग व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १८४४४). त्रिशलामाता गर्भचिंताविलाप व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: ए भवतव्यता एहवी माता; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. मात्र अंत के पाठांश नहीं है.) ७६९७०. (+) पुराणहुंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१०.५, १५४४४). पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मूलकं ____ मंदिरोपमम्" पाठ तक है., वि. श्लोक संख्या में व्युतक्रम है.) ७६९७१. (#) आत्म सज्झाय व वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०४३०). १.पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ औपदेशिक सज्झाय-जीव, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कीर्ति० जिनकुं ध्याय, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काइ जी थाहरा मनम; अंति: जिनहर्षसूरि० रंगरली, गाथा-९. ७६९७६. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४५५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अति निर्मला विशाला; अंति: दूरतः परिवर्जयेत्, श्लोक-१४. ७६९८५. (+) वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. कुशलाणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *हुंडी: वाक्यप्रकाश., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५-४७). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविद; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१३०. ७६९९२. (+) अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४४०). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवतीत; अंति: विद्ध्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११. सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि: अनिडिति स्वरांतो धात; अंति: एकः जाताः पंचदशः. ७६९९३. जैन चक्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)=४, प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित है., जैदे., (२६४११, २०४५३). जैन शुकनावली चक्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: दशार्णभद्रराजा, (पू.वि. प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है.) ७६९९८. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ६४३६). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४६ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीय महः; अंति: (-). ७७००६. (+) स्वोपज्ञलिंगानुशासन विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. समयसुंदर (गुरु उपा. कल्याणराज); गुपि. उपा. कल्याणराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में गाथांक-विषयांकन दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १५४५८). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्, प्रकरण-८, श्लोक-१३९. ७७००८. (+) लघुक्षेत्र समाससूत्र, संपूर्ण, वि. १५५५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रसं.ग. पद्मवल्लभ (खरतरगछ); पठ.सा. कर्मसिद्धि (गुरु सा. कपूरमंजरी महासती); लिख.सा. कपूरमंजरी महासती (गुरु ग. विमलसेन); गुपि.ग. विमलसेन; पठ. उपा. रंगनिधान गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. उपाध्याय पुण्यवल्लभ के लिए संशोधित., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १३४३७-४०). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: तारागण कोडि कोडीणं, अध्याय-५, गाथा-१०८. ७७००९. (+#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३०-३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. श्रेयांशजिन स्तुति श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७०१०. (#) पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, भाद्रपद कृष्ण, १०, जीर्ण, पृ. ४, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. गच्छाधिपति दयानंद (खरतगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११.५, ९४२८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (अपठनीय). ७७०१२. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २५४५०). १. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: देवता माहे सारो सिरे; अंति: चवने मुगत सीधावैजी, गाथा-२३. २.पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गोतम सामी पुछा करै; अंति: ते पामै सुख अथाग हो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. तपसज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, आदि: तप वडो संसार मे जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ तक है.) ७७०१४. (+) पार्श्वजिन स्तव व सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ११४४६-५०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंति: शमयतु समग्रं भवभयम, श्लोक-८. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९. ७७०१८. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १८४४८). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती, अंति: (-), (पू.वि. "चिंतितं राज सन्मानं" पाठ तक है.) ७७०२०. जिनचतुर्विंशतियमकाष्टक स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १०४३०). २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलम्, श्लोक-९. ७७०२६. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. वालजी; पठ. मु. रतनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नही है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३२-३५). १.पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, मु. भुदर, मा.गु., पद्य, आदि: को वालि लायो नेमने; अंति: भुदर० गुण हे गंभीर, गाथा-६. २.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: चोवीशेजिन सासनराया; अंति: सब जिन सरखे, गाथा-१०. ७७०२७. मेघकुमार भास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४११,७४३५). मेघकुमार भास, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कवीयण०अवीचल सुख पाईए, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से है.) ७७०२९. (+#) सिंहकुमार रत्नवती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४३६). सिंहकुमार रत्नवती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. रत्नवती सिंहकुमार लग्न प्रसंग अपूर्ण से मृगांकराजा दीक्षा प्रसंग तक है.) ७७०३१. (+) जिर्णशेठ स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७५१, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मनजी ऋषि (गुरु मु. पांचाजी ऋषि); गुपि.मु. पांचाजी ऋषि (गुरु मु. रुपाजी ऋषि); मु. रुपाजी ऋषि; पठ.सा. प्रेमबाई आर्या (गुरु सा. रामबाई आर्या); गुपि.सा. रामबाई आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १६४४२). For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४३५ महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-३१. ७७०३३. (#) प्रास्ताविक कवित्तपदसवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २०४६२-६६). १.पे. नाम. दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: अढार सहस्स गजराज; अंति: धर्मसिंघ० लागो तदा, गाथा-३. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त सवैयादि संग्रह, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. सभी स्वतंत्र कृतियों का गाथानुक्रम क्रमशः है. औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: गंगा केरु नीर छोरकर; अंति: कहो ना इस कारण कवण, गाथा-८४. ३. पे. नाम. वस्तुपाल तेजपाल सुकृत कवित्त, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचसहस प्रासाद जैन; अंति: वस्तुपाल महीमंडले, गाथा-२. ४. पे. नाम. प्रहेलिका पदकवित्तादि संग्रह-समस्यागर्भित, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., पद्य, आदि: अंग बनाइ सुगंध लगाइ; अंति: विध मुख से कग उडाणा, गाथा-७. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक प्रहेलिका पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. मतिचंद पंडित, पुहिं., पद्य, आदि: आदीसर पहिला नमुं; अंति: मतिचंद पंडित इम भणै, गाथा-१. ७७०३४. शीयलनववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १७४५०). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. नवमी वाडी गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७७०३५. भीखनजीसामीनी ढाल व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, १३४४५). १.पे. नाम. भीखणजीसामीनी ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. भीखणजी की ढाल, रा., पद्य, आदि: साधू आये सामा जायो; अंति: विस्वाविसंग मूनिस्वर, गाथा-८. २.पे. नाम. केशिगौतम गहंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशीगौतम गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: केशिकूमार समणवारू; अंति: सिरोमण नीत्यवदु गाथा, गाथा-११. ३. पे. नाम. भिखूरिषि के पंचमपट्टधर गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: भिखूरिष रे पंचमपट; अंति: निरख्या चित उमाणे, गाथा-६. ७७०३७. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १३४२७-४२). __वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: क्षेमाय सुखाय. ७७०३८. (+) पुराणहुंडी, सरस्वती स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १४४३७). १.पे. नाम. जैनसिद्धांत संदर्भ श्लोक संग्रह-पुराणवेदादि उद्धृत, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: कुंभी पाकेन पच्यते, श्लोक-१०७. २.पे. नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: ब्रह्मरूपा सरस्वती, श्लोक-५. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अद्यापिनोजगतिहर; अंति: समूलं च विनस्तिते, श्लोक-५. ७७०५१. रावणरी ऋधि, संपूर्ण, वि. १९२०, पौष कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. उपा. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रीधरावण, दे., (२७४१३, १२४२९). रावण ऋधि, मु. जिनहर्ष*, रा., गद्य, आदि: रावणरो आउखो तीसहजार; अंति: सोकालति कोई भंजीयो. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७०५२. (#) अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्रले. मु.रूपचंद ऋषि (गुरु मु. मोहनजी ऋषि); गुपि. मु. मोहनजी ऋषि; पठ. मु. अखेचंद; अन्य. मु. पितांबर; मु. हीराचंद महात्मा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:केशवबावणी, कुल ग्रं. ३, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४०-४५). अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदिः (-); अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण से है.) ७७०५३. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२,१५४३७-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. कालवेला तक है.) ७७०५८. मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:मुरगांवती, जैदे., (२७४११.५, १३४३५-३९). मृगावतीसती चौपाई*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक है.) ७७०६०. मुहपत्तिना ४० बोल, संपूर्ण, वि. १८६८, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साणंदनगर, प्रले. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४३०). मुहपत्ति के ४० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थ दृष्टि; अंति: त्रसनिजयणा करुं ३. ७७०६३. अठाईदिन भाष व पर्युषणपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १३४३६). १. पे. नाम. अठाईदिन भास, पृ. १आ, संपूर्ण. __अठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति ध्याउं मन; अंति: ज्ञानविमल० हो राज, गाथा-१२. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पर्युषणपपर्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यनी पोषणा पर्व; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा मात्र है.) ७७०६४. डोहलानो अधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८४-८३(१ से ८३)=१, प्र.वि. पावरेखा बाहर लिखा गया है किकल्पसूत्र द्वितीय पार्नु छ., जैदे., (२७४११.५, १२४४०). त्रिशलामाता दोहला विचार, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशला राणी तेजे; अंति: ते ते पूरा कीधा, संपूर्ण. ७७०६६. (+) नेमिजिन श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४४२). नेमिजिन श्लोको, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: वाणी वरसति सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ७७०६८. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीई; अंति: सहुए देजो देशवटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मूल जाणीइं; अंति: उदयरतन० सुद्ध रे, गाथा-६. ७७०६९. बृहत्स्नात्रविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२.५, ११-१४४३६). बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पुष्पपूजा श्लोक से लिखा है व गहली स्थापन विधि अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४३७ ७७०७१. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १५४४०). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: (-), (पू.वि. नौवें लोभ पापस्थानक गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७७०७२. विवाहपडल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:विवाहपडल, जैदे., (२६४१२, १७X४६). विवाहपडल, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरुवाणी समर; अंति: लिखी ज्योतिस तणौ मरम, गाथा-३७. ७७०७३. (+#) जीवदया सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४२९). १.पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ७७०७७. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. नवलविजय गणि (तपागच्छ); पठ. श्रावि. चतुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४३३-३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: गुण गाया जी, ढाल-५, ___ गाथा-४२, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७७०७९. पाणीपंथ पत्र व प्रभाती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२,१३४४०). १.पे. नाम. पाणीपंथ कागद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ पाणी पंथ पत्र, मु. पद्मसेन, पुहि., गद्य, वि. १८२५, आदि: पाणी पंथ थकी भाई पदम; अंति: गोपानै जनाय नम कहीउ. २. पे. नाम. बंबेथावरकाय के भेद व गोत्र नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. प्रभाती गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरियाजी, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहन मनरंजन प्यारा; अंति: चतुरानंद पद पावे रे, गाथा-३. ७७०८०. (+) लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७X५०). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७७०८१. अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालिनगर, प्रले. ग. हितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १२४२६). अभिनंदनजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्हे जोज्यो जोज्यो; अंति: पामे शिवपुर सद्म, गाथा-९. ७७०८७. बारव्रतनी टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४२). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत अढार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तुरियानी जात, कारेलानी जात, कालेगडानी जात आदि वर्णन अपूर्ण तक है.) ७७०८८. (#) देवलोक विचार संग्रह व पल्लवीयापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४२८). १.पे. नाम. देवलोकविचार संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुंसोधर्म; अंति: जिनबिंब जाणवाजी. २. पे. नाम. पल्हविहारपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्हवियामंडन, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपल्लवियाजिनपास; अंति: मुझ० तुमपय सेवा रे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org ७७०९०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२५.५x११, १४४३४). १. पे. नाम. दादाजी तवण, पृ. १अ संपूर्ण, पे. वि. आदिवाक्य वाला उपरी भाग खंडित है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादैजी दीठां दोलत; अंति: जिनरंग० पुजो मनरली, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरवारनी सोहली; अंति: आनंदघन राज पावे, गाथा- ७. ३. पे नाम, पारसनाथजीरो छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः परतापूरण प्रणमीयै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ७७०९८. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१२, १७X३४). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: (-), (पू.वि. पाशांक - ४४४ के फल तक है.) ७७०९९. (d) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे., (२५X११, १८-२५X३२-७६). सूत्र - २१. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ, अंति: वंदामि जिणे चउवीस, पगामसज्झायसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछु छु हे भगवन्; अंति: अकप्पं परित्यामि. ७७१०१. मंत्र-तंत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैये. (२६४११.५. १३४४६). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि महा अंति: (-). "" ७७१०४. (#) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. भूधरदास गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२५x१२, १०x२६). मी एकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि; जगपति नायक नेमिजिणंद, अंति जिनविजय जयसिर वरी, डाल- ४, गाथा ४२. ७७१०६. (+) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६.५x११.५, १०x३०-३३). स्थूलभद्रमुनि सज्झाव, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु, पद्य, आदि: लाछल वे मात मल्हार, अंतिः लीला लखमी घणी जी, . . , गाथा - १७. ७७१०८. (#) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११X३०). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुधि विमल करणी, अंति: जाणी राजराणी सरस्वति, गाथा- ९. ७७१९१३. (+) कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ६ प्र. वि. प्रतिलेखक द्वारा गाथानुक्रम क्रमशः दिया गया है. कचित स्वतंत्र क्रम भी है., संशोधित, जैवे. (२५४११.५, १५४५०). १. पे. नाम. दिल्लीपति प्रशस्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: महाराजधिराज अजित को; अंति: हमारी आसीस इसी है, पद- ३. २. पे नाम, रावण प्रति सीतावचन कवित्त शीलगर्भित, पृ. १अ संपूर्ण. रावण प्रति सीतावचन कवित्त-शीलगभिंत, मु. हीरकुशल कवि, पुहिं, पद्य, आदि भणै सीत सुनो दसकंधर, अंति हीरकुशल० कुलमंडन की, गाथा - २. ३. पे. नाम. हनुमंतवचन कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि कहो तो उडि गरवर चहुँ, अंतिः दखण थकी उत्तर धरु, पद- १. ४. पे. नाम, रामसैन्यमान कवित्त, पृ. १अ १आ, संपूर्ण क. जगमाल, पुहिं., पद्य, आदि: रावण उप परि रामकटक; अंति: जगमाल० एक बैठा एता, गाथा - २. ५. पे. नाम, औपदेशिक शील कवित्त-रावण, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४३९ पुहिं., पद्य, आदि: जैरै असी कोडि गजबंध; अंति: एक रती विण एक रती को, गाथा-२. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-शीलमहिमागर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: एह संसार असार पदारथ; अंति: धर्मसिंघजी कहा है, सवैया-४. ७७११९. (#) गणधरवाद स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३३). गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) ७७१२०. गर्भवेली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२५४११, १७X४२). गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: सदा मुझजिणवर एक कोड, गाथा-११३, (पू.वि. गाथा-७४ अपूर्ण से है.) ७७१२१. चित्रसंभूति व रास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १८४४०). १. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: ते सिवपद वरसी हो, गाथा-२२. २.पे. नाम. चार मंगल, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीशीजिन नमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ७७१३२. (+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. जसविजय (पुनमगच्छ); अन्य. पं. मानविजय; पठ. मुली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पल्लवीहारप्रभू प्रसादात्, परभातेश्री., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७४४०). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोले रे, स्तवन-२०, (पू.वि. स्तवन-१९ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७७१४०. पाशाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). पाशाकेवली-भाषा , संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शुकनांक-२३१ का फलादेश अपूर्ण से है व शुकनांक३३३ का फलादेश अपूर्ण तक लिखा है.) ७७१४२. (+) विवाह पडल व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर, प्रले.पं. जैतसी (भावहर्षसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२४३५). १. पे. नाम. विवाह पडल, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु वाणी समर; अंति: साम्य इणविध लहीजै, गाथा-३८. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जन्मलग्नं वर्ष लग्ने; अति: (-), श्लोक-४. ७७१४८. चोवीसतिर्थंकर नाम, लंछन, वर्ण व मातापितादि कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११, ९४३०). २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७७१५२. औपदेशिक बावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १७४५०-५५). औपदेशिक बावनी, मु. हेमराज, पुहि., पद्य, आदि: ॐकार हितकार सार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.) ७७१५३. (#) सज्झाय व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६-१९४४१-४४). १. पे. नाम. सचित्तअचित्त सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रासुकपृथ्वी विचार सज्झाय, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरस्वती सामण; अंति: देवचंद कहे सुखकार. गाथा-५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० प्रा. मा. गु., सं., पद्य, आदि: प्रीत कीरसो बाउरे, अंतिः संगेन आरूढा गजमस्तके, गाथा- १०. "" www.kobatirth.org " ३. पे. नाम. छत्रबंध कवित्व, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्रसहित. रामसिंहराजा कवित-छत्रबंध, सं., प+ग, आदि: एकोपि गणिताबाला; अंति: रामसिंहनृप छत्रधर. ४. पे नाम औपदेशिकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सोघालीसाघरि कोडबाडि; अंति: परिहरी नवला उपर भाव, लोक-१३. ७७१५४., (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है. जैवे. (२५४११. १४४४१). , १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद, अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा- ६. २. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल गढमंडणो कांइ, अंति: जयकार हो, गाथा- ७. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सिद्धगिरि ध्याउ, अंति: ज्ञानविमल० गुण गावे, गाथा ८. ४. पे. नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण . मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, आदि : आवो तुम्हे वीतराग, अंति: ( अपठनीय), (वि. किनारी खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ७७१५५. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५X१२, १२x२८). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि (-) अंति: (-). (पू.वि. डाल-७ गाधा-१ से ढाल-८ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७७१५६. महावीरजिन स्तवन व पच्चक्खाणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, पठ. मु. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, ( २६४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः ऋषभ० नी लाज हो, गाथा-११ (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. २अ संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उगे अवत्तठं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "उपवास चउबिहार" पाठ तक लिखा है.) ७७१५७. २४ दंडक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१-२० (१ से २०) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६X११.५, ९X३२). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार- २७ अपूर्ण से द्वार - २९ अपूर्ण तक है.) ७७१५८, (+) पद्मद्रह वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, "" २०४५२). For Private and Personal Use Only पद्मद्रह वर्णन, मा.गु., गद्य, आदिः पद्मदहनो १ हजार जोजन, अंति: (-), (पू.वि. २ जोजन लांबी पहुली २ कोस जाडी" पाठ तक है.) ७७१५९, () स्थूलभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x११.५, ९४२४-२७). स्थूलभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु. पच, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा अंति: (-), (पू. .वि. ढाल -३, गाथा- ७ अपूर्ण तक है.) Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४४१ ७७१६२. (#) सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्रले. पं. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३६-४०). १.पे. नाम. कर्त्तापच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ कृष्ण, ५, शनिवार, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. कर्ता पच्चीसी, जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: कर्मन को कर्ता नहीं; अंति: लिखे सोपावे भवपार, गाथा-२६. २. पे. नाम. चरमसुर पद, पृ. १आ, संपूर्ण. चमरेंद्र पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: चमरसुर ढारे हे; अंति: आमंदब्रवन बलिहारि, गाथा-२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. आनंद, पुहि., पद्य, आदि: अचरीज नाही हमारे दिल; अंति: आनंद० तिहारे भजन में, गाथा-२. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: घड्याचा वस्त्राचापरी; अंति: वरकलघडित्या मदझडे, श्लोक-१. ५. पे. नाम. धन्नाकाकंदी स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण वीनवू; अंति: समयसुंदर० साधुनो सरण, गाथा-१४. ६. पे. नाम. आंबिलतप स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी श्रुतदेवी सारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा-११. ७. पे. नाम. सगपण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहना रे सगपण केहनी; अंति: तत्वविजय सुखदाई रे, गाथा-११. ८. पे. नाम. मुहपति सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मुहपत्ति सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमी; अति: हंसभुवनसूरि राज, गाथा-१०. ७७१६३. (+) कल्याणमंदिर व चतुर्विंशतिजिनाष्टक, अपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६x४७). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनाष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजीनेंद्र; अंति: पून्य तमा मम मंगलम, श्लोक-९. ७७१६४. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १०४३६). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: घडी धन आजकी आई सरे; अंति: नवल आनंद हुं पायो, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विजय, पुहिं., पद्य, आदि: चलौ गिरनारकुंजईए; अंति: विजै० के जाल निरवेरौ, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रामकृष्ण, पुहिं., पद्य, आदि: महबूब तेरा तुझमे तु; अंति: रामकृष्ण० वात तो एही, गाथा-४. ७७१६५. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११.५, ११४२८). महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: आरज देसमां आरजदेस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७७१६७. औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, १५-१८४४५-५७). For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वडपणनि विचारी जोयो; अंति: बगलानी परिछेतोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. जोवन- गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लक्ष्मीदास, मा.गु., पद्य, आदि: वाहारे एणइ जोवनीए; अंति: लखमीदास० भव पाररे. गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-युवावस्था, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: जोवनीयु आव्युरे; अंति: पहोता वंछित लब्धि, गाथा-७. ४. पे. नाम. कुटुंब-सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाकुटुंब, मा.गु., पद्य, आदि: कर्वा न मानइ रे; अंति: लीधो संजम भार, गाथा-९. ५. पे. नाम. त्रिदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पात्रेरइ विष्णु फूले; अंति: ते तरसइ संसारा हो, गाथा-८. ७७१६९. श्रीपाल रास-खंड-४ ढाल-५ अजितसेन मुनि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७७१७२. (+) पार्श्वजिन स्तवन व जिनकुशलसूरि छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४-१९४४२-६२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: रीस पुराणी सिलगांणी, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७७१७३. हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १८४४७-५०). हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७७ अपूर्ण से गाथा-५२० अपूर्ण तक है.) ७७१७४. संखेश्वरजीरो छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, जैदे., (२६.५४११.५, १२x२५). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: लब्धिरुचए प्रसन्नः, ___गाथा-३२, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-७ अपूर्ण से है.) ७७१७५. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-३६(१ से ३६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, ९४३७-४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ मात्र है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से गाथा-४७ अपूर्ण तक बालावबोध है.) ७७१७६. साधु आचारविचार संग्रह-आगमसंदर्भयुत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. पं. राजेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, ४थी पंक्ति में किसी कारण से छिद्र किया गया है., जैदे., (२६४११.५, १४४४०). विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: रागल वरज्या छै८१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "जती थईनई गृहस्थरे आसरे चारित्र पाले तो गृहस्थ सरिखो कहिवो" विचार से है., वि. संदर्भ आगमोल्लेख सहित.) ७७१७७. ५ महाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२६.५४१२, १२४३६-३९). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: प्रणमै सीरनामीरे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७१८०. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११, गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१२, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७७१८२. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२ के बालावबोध अपूर्ण गाथा-५७ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ७७१८३. पंचतीर्थस्तवन व कुंडलीया कवित्त, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: प्रभाती स्त०, जैदे., (२५.५४११.५, ९४२५-२८). १. पे. नाम. ५ तीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तवन, मु. लाभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आद जिणैसरुए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) २. पे. नाम. कुंडलीया कवित, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कुंडलीया कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: ओहिज सरवर हे सखी; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-३ तक है.) ७७१८४. ५ कारण छ ढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सीधारथसुत वंदीयै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७७१८५. (#) दशपच्चक्खाण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२७४११.५, १४४४३-४६). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७७१८६. दुसोठण, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रावण कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. चकारडा, जैदे., (२५४११.५, १३४३१). सिद्धार्थराजा भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, आदिः हिवइ ते सिद्धार्थराज; अंति: परमसुख कल्याण श्रेयः. ७७१९३. (+) सदासिव राड, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सबराज ऋषि (लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३२). आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सदाशिव राव आयो कपटकर; अंति: रोड० सम अवरन को नही, गाथा-४४. ७७१९६. विवाहपडल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १५४३३). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वांदी करी; अंति: अभयकुशल०सुख पामै सदा, गाथा-६१. ७७२०१. (+) संतिकर स्तोत्र व तंत्रमंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुलपे. ३, प्र.वि. हुंडी:वेऊकल्पनोप, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १९४३९). १. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वाभ्युदयहेतुरिति, (पू.वि. "दाचिकोप्पे तन्मंत्रात्कथमपि ज्ञात्वा" पाठांश से है.) २.पे. नाम. तंत्र मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. वेऊकल्प, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७२०२. (+) स्तवन, स्तोत्र व मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३५-३८). १.पे. नाम. समेतशिखरवासिनी कुरुकुल्लादेवी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कुरुकुल्लादेवी स्तवन-सम्मेतशिखर, आ. वादिदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: केवलज्ञानलक्ष्मीः , श्लोक-९, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है., वि. अंत में कुरुकुल्लादेवी मंत्र व जापविधि भी दिया गया है.) २. पे. नाम. कुरुकुल्लादेवी मंत्रसाधन विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: सरस्वती श्रीमच्चितें; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ७७२०३. (+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. मंत्र साधन विधि सहित., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४३६). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ से ३८ तक है.) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ से गाथा-३८ के बालावबोध अपूर्ण तक है) ७७२०५. (+) बृहत्क्षेत्रसमास व बृहत्संग्रहणीसह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-२२(२ से १२,१४ से २४)=३, कुल पे. २. प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ६४४४-४७). १. पे. नाम. बृहत्क्षेत्रसमास सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होवउ केहनइं; अंति: (-). २. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, पृ. १३अ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९६ अपूर्ण से १०८ अपूर्ण तक व २०४ अपूर्ण से २१७ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७७२०६. श्रावकाचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १६x४८). श्रावकाचार, आ. देवनंदी, सं., पद्य, वि. ५वी, आदि: श्रीमज्जिनेंद्रचंद्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) ७७२०७. पाखिसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११,१४४४०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "एगो वा परिसागो वा सूत्ते वा गागरमाणे" तक पाठ है.) ७७२०८. उपदेशसप्ततिका सह बीजक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-६८(१ से ६८)=१, प्र.वि. हुंडी: उपदेशस., जैदे., (२६४११, १७X४८). उपदेशसप्ततिका, ग. सोमधर्म, सं., पद्य, वि. १५०३, आदि: (-); अंति: स्तात्सताम्, अधिकार-५, ग्रं. २७००, (अपूर्ण, पू.वि. अंतिम श्लोक अपूर्ण मात्र है.) उपदेशसप्ततिका-बीजक, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनातिशयरूपमंगल; अंति: श्राद्धद्वये कथा, संपूर्ण. ७७२०९. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, १२४२७-३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से ९२ अपूर्ण तक है.) ७७२१०. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक नही है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १४४२७). For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गर्भ हरण प्रसंग अपूर्ण से है व गर्भसंक्रमण दिन दर्शक प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ७७२१५. (#) प्रायश्चितविधान गाथा संग्रह व मंत्रादि प्रयोग, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १६४३०-४८). १.पे. नाम. प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: गुरुदाणं तत्तियं चेव, (पू.वि. त्रिमासिक लघु प्रायश्चिताधिकार अपूर्ण से है.) प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वृत्तिमध्ये छइ. २.पे. नाम. मंत्रादि प्रयोग, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लडकालडकी बेसारीजे; अंति: (-), (पू.वि. विधि अपूर्ण तक है.) ७७२२०. (+#) संयोगी भांगा गाथासंग्रह सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १९४५२-५५). संयोगी भांगा गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: गणियम्मि तिन्निलोगा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ तक है.) संयोगी भांगा गाथासंग्रह-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: तत्र तावत्संयोगि भंग; अंति: (-). ७७२२२. विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४१२, ८४३०-३३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ के सूत्र-३७ मध्यभाग अपूर्णमात्र है.) ७७२२३. (+) अंतिम आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडीः सामाचार०. *पस्तुत पन्ने में रहा विषय व हुंडी विचारणीय. संशोधन अपेक्षित. "छेद किया गया है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३६-३९). अंतिम आराधना विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ससेणा५ खित्त६ पाठांश से भवचरिमं पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ७७२२४. (#) आगमिक गाथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३६-३९). आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा-२९ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक है.) आगमिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ७७२२५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७३-७२(१ से ७२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ८४३२-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतरावली अपूर्ण से आदिजिन चरित्र अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७७२२६. (#) दशवैकालिकसूत्र अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशवैकालिकावचूरि, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१३४३७-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) दशवकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहिंसा संयमस्तपः; अंति: (-). ७७२२८. शांतिकविधि व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ९-१३४४४-५०). १.पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अमृतफलदायी मंत्र-यंत्र विधि सहित, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अमृते अमृतो; अंति: ॐ एऊं ह्रीं स्वाहा. २. पे. नाम. शांतिकमहापूजन विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम शुभदिने; अंति: (-), (पू.वि. क्षेत्रदेवता, चैत्यदेवता, देशदेवता आदि की स्थापना विधि अपूर्ण तक है.) ७७२३०. (#) नंदीषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १०४२७). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्णतक है.) ७७२३२. मौनएकादशीव्रत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १७२३२-३६). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "नरचंद्र राजा का वर्णन" अपूर्ण से "मौन एकादशी के उद्यापन पर जयघोषसूरि को वंदन करने के लिये राजा का आगमन" वर्णन अपूर्ण तक है.) ७७२३३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. श्रावि. रमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:त्रिणिचउवीसी स्तवनं, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ९४३५). १. पे. नाम. त्रिणिचउवीसी स्तवनं, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. साधारणजिन स्तवन-शाश्वत अतीत अनागत वर्तमान विहरमान, मु. कमलचंद, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: नमवि सिरि रिसह; अंति: कमलवंद गणधर भणइए, गाथा-१७. २.पे. नाम. वीतरागजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदा भेटिए भावस्यु; अंति: सदानंद तुम सेव, गाथा-५. ७७२३४. (+) योगशास्त्र-प्रकाश ४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ९)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूचक चिह्न., जैदे., (२७४११.५, १४४५५). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-६७ अपूर्ण से है.) ७७२४१. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., दे., (२५४१०.५, ९४२९). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: इसानकुणे वीहार करै. ७७२४५. (4) पंच्याख्यान वार्त्तिक का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १४४४८-५२). पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणदेश तिहां महिल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश "जठे तठे हितरी वात न कहणी" तक लिखा है.) ७७२४६. (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ९४३१-३४). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-१ तक ७७२४९. (#) शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४२२-३७). पाशाकेवली-भाषा*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम थानिक; अंति: हुवे धर्म पूछीजे, संपूर्ण. ७७२५०. (#) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४२८-३२). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: खरचे मंगलीक थाश्ये. ७७२५१. निरयावलिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १२४३६). For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ www.kobatirth.org कल्पिकासूत्र, प्रा. गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ सूत्र- १ अपूर्ण तक है.) " " - कल्पिकासूत्र बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). , ७७२५२. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: ऋषि., जैदे., (२४.५X११.५, १०X२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंति: (-), (पू.वि. लोक- ७२ अपूर्ण तक है.) ७७२५४. (+) अंक संख्या, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. राजसोम, पठ श्रावि सज्जी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अंक संशोधित. जैवे. (२६४११, १०-१३४१५-२२). मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंक, मा.गु. सं., गद्य, आदि: इक्वं१ दाहं१० सय १००; अंति: २९ कोडा कोड कोडा कोड. ७७२५५. (4) भगवतीसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६१९-६१८ (१ से ६१८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १०X३६). भगवतीसूत्र टवार्थ से, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). - *, भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक १८, उद्देश-६ के सूत्र ७४० अपूर्ण से " ७४१ अपूर्ण तक है.) ४४७ ७७२५६. () चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १३-१२ (१ से १२) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी: च० मास०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११.५, १२X३१). आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि (-): अंति (-) (पू. वि. अष्टविध प्रतिक्रमण प्रकारगाथा अपूर्ण से प्रासाददृष्टांत कथा प्रारंभिक अंश तक है.) ७७२५७. वंदितुसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. दे., (२५.५४११.५, " ५X३५). वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३० अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक है.) , ७७२५८ (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. जैवे. (२६४११.५, ५X३७). "" "" सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ७७२६१. (+) शीयल पच्चीसी व नवकारमंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, पठ. सा. वलाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४११.५, ९४३१-३४). १. पे नाम, शीयलपच्चीसी, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शीलपच्चीसी, मु. कृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीले कारज सारेजी, गाथा - २५, (पू. वि. गाथा - २० अपूर्ण से है.) २. पे नाम, साधु प्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, पृ. २आ, संपूर्ण संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिखूत; अंति: हुज्यो भवप्रते, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., त्रिकाल जिन वंदना तक लिखा है.) ७७२६३_(+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२५.५x११, १७४४१). " आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि, "अहवा खामेमि तस्सेव" पाठ से "पचक्खाण प्रायश्चित स्थूल" अपूर्ण तक है.) " ७७२६५. सरस्वती छंद व प्रास्ताविकदूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे २, जैदे. (२५x११.५, १४४४५). १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन समता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविकदुहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. बि. अंत के पत्र नहीं हैं. Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आस पीआरीजे करे; अति: (-), (पू.वि. अंतिम कुछ अंश नहीं हैं., वि. छूटक गाथाओ का संग्रह है.) ७७२६७. (+#) जयतिहुअणस्तोत्र वषोडशवचन भेद, संपूर्ण, वि. १६२८, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. विनयविलास (गुरु ग. लक्ष्मीविनय, खरतरगच्छ); गुपि.ग. लक्ष्मीविनय (खरतरगच्छ); राज्यकाल आ. जिनभद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथ प्रसादात., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६.५४११, १८४४६). १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: त्रिलोकश्लाधितः, गाथा-३०. २.पे. नाम. षोडशवचन भेद, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सोलसराय सहस्सा सव्व; अंति: सदेव सहसा वदति. ७७२६८. (#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४४९). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४ की मात्र १२ वीं ढाल है.) ७७२६९. सारदा स्तोत्र व भडली विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११-१४४२८-३७). १.पे. नाम. सारदा छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आंणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. भडली विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मकर शनीश्वर कर्क; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक है.) ७७२७०. (#) हैमलिंगानुशासन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. १७५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४४९). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिगानाम्, प्रकरण-८, श्लोक-१३९. ७७२७१. दानषविंका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १८४४८). दानषत्रिंशिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: दातुरिधस्य; अंति: बुधोयोमुत्रसोथास्यते, श्लोक-३३. ७७२७२. (#) सोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १६७६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. हडाद्रानगर, प्रले. मु. नयविजय (गुरु उपा. लाभविजय गणि', तपागच्छ); गुपि. उपा. लाभविजय गणि* (गुरु उपा. कल्याणविजय गणि', तपागच्छ); उपा. कल्याणविजय गणि* (गुरु आ. हीरसूरि*, तपागच्छ); राज्यकाल आ. विजयतिलकसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि*, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४४३). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. ७७२७४. दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१२, १४४३०). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अभयदान विषये ५ राणी व चोर कथा अपूर्ण मात्र ७७२७५. (+) अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,१६४३९). अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७२७७. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ११४३७). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धरमो जस पिता क्षिमा; अंति: पापतरु फलमिद्रसम्, श्लोक-९. ७७२७९. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ११४२७). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ७७२८०. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८२, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. व्यालपुर, पठ. श्राव. जसरूप; अन्य. मु. हमीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम स्तुति लिखी हुई है.) ७७२८१. कर्मविपाक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, जैदे., (२४.५४११,११४३४). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से गाथा-४८ तक नहीं है.) ७७२८५. चतुर्विंशतिपरमेष्टी स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०४२७). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिपरमेष्टी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नरनागनरेंद्र; अंति: कमले राजहंससमप्रभाः, श्लोक-५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐकार बिंदु संयुक्तं; अंति: ॐकाराय नमो नमः, श्लोक-१. ७७२८७. (+#) मौनएकादशी कथा व २४जिन संक्षेपआंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. खुस्यालविजय; अन्य. पं. दर्शनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १७४४१). १.पे. नाम. मौनएकादशी कथा, प्र. १अ-३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: केचिद्दिवं जग्मुः. २. पे. नाम. संक्षेप अंतरा-२४ जिन, पृ. ३आ, संपूर्ण... २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ श्रीमहावीर २३; अंति: २४ श्रीमहावीर हवा. ७७२८९. (+) साधुआवश्यकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७७२९०. (+) जीवदया छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक ३२ भी लिखा हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२-१५४३३-३७). जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाए नमी; अंति: भूधर०वीतराग वाणी लहे, गाथा-११. ७७२९६. (#) धर्मबावनी व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १६४६१-६५). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया-कुलवंत नारी, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, आदि: सुकुलिणी सुंदरी मीठ; अंति: धर्मसी० पामी गेहनी, गाथा-१. ७७२९८. सिद्धांतचंद्रिका सह सुबोधिनी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: सि० च० वृ०., जैदे., (२५.५४१२, १४४३८). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मत; अंति: (-), (पू.वि. प्रकरण-१ "आद्यन्ताभ्याम्" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), (पू.वि. "प्रत्याहारांतर्भावात्" पाठ तक है.) ७७३००. (+) चमत्कारचिंतामणी का भाषानुवाद व लावणी, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. रिद्धिहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम, चमत्कारचिंतामणी भाषानुवाद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, श्रीसार कवि, मा.गु., गद्य, आदि: युं विचार ज्योतिषको; अंति: सारबुद्धी अनुसार. २. पे. नाम. पार्श्वजिन-आदिजिन लावणी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, पुहिं., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीजिनराज महाराज; अंति: चंद्रभाण० सीरपर धारे, गाथा-६. ७७३०१. पंचांगुलीमंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १७X४२). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीछूमंत्र से पंचागुली मंत्र-यंत्राम्नाय अपूर्ण तक है.) ७७३११. (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १६४५२). __पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. ७७३१७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-१, श्लोक-७५ अपूर्ण तक है.) ७७३२४. (+) श्रावकएकवीसगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५.५४१२,१०४२६). श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहियै मिलसै रे; अंति: समयसुंदर तिण लाधो जी, गाथा-२१. ७७३२६. (+) अनुबंधफल की अवचूरि व शब्दसाधन प्रयोग, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१०.५, १४४४६). १. पे. नाम. अनुबंधफल की अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. अनुबंधफल-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अकार उच्चारणार्थः; अंति: कणीयसौ होनास्ति. २. पे. नाम. शब्दसाधन प्रयोग, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. व्याकरण", सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अन्यतमस्मिन्निति; अंति: लोपार्थमादेशकरणम्. ७७३२८. (+) आर्यवसुधारा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. "मज्जाहाराः जाताहाराः जीविताहाराः" पाठ तक ७७३३१. (+#) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १४४४६). नलदमयंतीरास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंपारसनाथना; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७७३३४. (+#) सवासौ सीख, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १४४४२). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसतगुरु उपदेस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ७७३३७. (+#) नेमिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४५१ नेमिजिन छंद, सु. हेमचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वंदेहं विमलदेवं अंति: (-), (पू. वि. अधिकार १, गाथा- ९ अपूर्ण तक है.) ७७३३८. (४) अक्षरबत्रीशी संपूर्ण, वि. १८६४, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. दावडनगर, प्रले. मु. ज्ञानसागर (गुरु मु. पुन्यसागार); गुपि. मु. पुन्यसागार, पठ. श्रावि. मानकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, ११-१३X२५-२८). अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करी कर; अंति: मुनि हेम हित जांण, יי गाथा-३३. (७७३३९. (+४) श्रीपालमयणा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी चउपई, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११, १८३८). " श्रीपालमयणा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ६७ अपूर्ण से ३११ तक है.) ७७३४२. (+) चोबोल प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७९१, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. नेमविजय, गुभा. मु. मोहणविजय (गुरु मु. विवेकविजय); गुपि. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. लो. (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे, (४७२) पोथीउ प्रति पेह, (४७३) जां ससिहर जां चंद्रमा, जैदे., (२६X११.५, १७X३२). चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सभापुर विक्रमराय, अंति: जिनहरख० उजेणी आवीयो, गाधा- २१. ७७३४३. (४) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह व प्रेमपत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक- २ व ३ अनुमानित दिए गए हैं. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२५.५x१०.५, ११४२५). १. पे नाम. शेतुजैनो स्तवन, पृ. १आ २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सुख उपना दुख गयै री, अंति: वारी पांचैई आंगलीयाह, गाथा-१३ (वि. गाथांक अनुमानित दिये गए है. कुछेक औपदेशिक दोहे भी साथ-साथ लिख दिए गए हैं.) " २. पे नाम. प्रेमिका का प्रेमपत्र- चित्रगढ़ से, पृ. २अ २आ, संपूर्ण रा., गद्य, आदि: सजीली लजीली फबीली; अंति: मन ही की मन माहि. 1 ७७३४४. महावीरस्वामीनुं तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५.५X१०.५, ८x२५)महावीरजिन सज्झाय- गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदिः आधार नेह तोरे एक वीर, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-१० त है.) ७७३४७. अंगस्फुरण व पल्ली विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११, ११-१४४५२). १. पे नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदिः माथै फुरके पुहवीराज, अंतिः हीररतन० जिसी गुरु भणी, गाथा-२१. २. पे. नाम. पल्लीपतन विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., गद्य, आदि: वार उघाडतां गिलोई, अंति: पड़ी संतानवृद्धि. ७७३४९. (*) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४७-४४ (१ से ४०, ४२ से ४४, ४६) -३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, ११x२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-) अंति (-) (पू. वि. पार्श्वजिन चरित्र दीक्षा प्रसंग सूचक सूत्र अपूर्ण मात्र है.) कल्पसूत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. पार्श्वजिन पूर्वभव ४ अपूर्ण से दीक्षा प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है. ) ७७३५७. चंद्रप्रज्ञप्ति सुर्यप्रज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५. ५X१२, ११x२४). चंद्रसूर्य बोलसंग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: सुर्यनी ध्यावना पदम, अंतिः पारसनाथजीनी करवी. ७७३६०. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X३२). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गुण० सेवीयइजी करुणा, अंतिः पापतमहर दिनमणी, गाथा ४०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पाटण पंचासरउरे दीठा; अंति: आपइ परमानंद, गाथा-७. ३.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जिनवर चोवीसमा; अंति: कहे जिनहर्ष० परमानंद, गाथा-१९. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडण, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: श्रीविमलाचलमंडण रिषभ; अंति: जिनहरख० माहरी परमाण, गाथा-१३. ५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमल्लि जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७७३६१. (#) दशवैकालिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४२७-३०). दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुपद पंकज नमी जी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७७३६३. (#) गुहली व स्तवन संग्रहादि, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. ५, ले.स्थल. नीसापोल, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३५). १.पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन गहुंली, मु. मणिउद्योत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते कां करो परिहार रे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहंली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनिद्रा परीहरोरे; अंति: मणीउदोत मंगलमालो लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्रीसीतेरसोजिन नमस्कार, पृ. ५आ, संपूर्ण. १७० जिन स्तवन, मु. उद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सोल जिनेसर सामला; अंति: उद्योत भव निस्तार, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: नारी नरने विनवें; अंति: मणीउद्योत० मंगलमाल, गाथा-१५. ५.पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: पास० प्रभु रिषवदेव; अंति: मणीउद्योत० मंगलमाल, गाथा-३. ७७३६५. (#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३०-३३). जिनगीतचौवीसी, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १५८१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., संभवजिनगीत गाथा-३ अपूर्ण से नमिजिनगीत गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७७३६६. (#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद प्रणमी आण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७७३६७. सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२,११४३२). सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणकुमारेणं भंते; अंति: (-), (पू.वि. "जाव सव्वे सत्ता ण हंतव्वा जाव णो उ" पाठांश तक है.) ७७३६८. (+) मिथ्यादुष्कृत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३०). इरियावही मिथ्यादृष्कृत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देवनाभेद १९८; अंति: एतला पिणि थाय. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७३६९. कल्पसूत्र की टीका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, ६४३२). कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १० कल्प नाम अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७३७०. (#) औपदेशिक कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३०-३५). औपदेशिक कवित्त संग्रह", पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (संपूर्ण, वि. अमरसिंह, तुलसीदास आदि विद्वानों की लघुकविताओं का संग्रह.) ७७३७१. (#) सोलसूपन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०x२३). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवउं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७७३७३. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ के श्लोक-८ अपूर्ण से श्लोक-२२ तक है.) । ७७३७६. (#) द्वात्रिशदनंतकायद्वाविंशत्यभक्षपत्रं सह व्याख्या व औषधसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७७१, भाद्रपद कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४११.५, २-१४४४१). १.पे. नाम. द्वात्रिंशदनंतकायद्वाविशत्यभक्षपत्र सह व्याख्या, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वज्झहवज्झाणिबावीस, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण मात्र है.) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वर्जनीयानि वस्तूनि. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण... औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७३७९. (#) युगबाहु स्तुति व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४४८). १.पे. नाम. श्लोकसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. युगबाहजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: तीर्थकर करणेभद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम श्लोक अपूर्ण मात्र लिखा है.) २. पे. नाम. सामान्यजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जयति दलितपापः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) ७७३८२. (+#) आगमिकपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१५(१ से १५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५१). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आचारांगसूत्र श्रुत०२, अध्ययन-१ उद्देश-१ साक्षिपाठ अपूर्ण से लुंकामतखंडन पाठांश अपूर्ण तक है.) ७७३८३. (+) प्रज्ञापनासूत्र-पद-२१ सूत्र-५२३ से ५२४ पंचविध शरीरवर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-५२४ अपूर्ण तक है.) ७७३९१. सामान्यजिन स्तुति व मेघमाला विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १७४४०-४५). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छत्र त्रय चामर तरु; अंति: लक्ष्मी० ज्ञान उदार, गाथा-१. २५). For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. मेघमाला विचार सह बालावबोध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मेघमाला विचार, आ. विजयप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कार्तिकेमार्गशीर्ष; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ तक है.) मेघमाला विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक सुदि २ जे; अंति: (-), (वि. प्रतिशत की परिभाषा में वर्षाज्ञान का विचार पहले दे दिया गया है.) ७७३९३. ४७ एषणादोष विचार, अपूर्ण, वि. १८१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १६७-१६६(१ से १६६)=१, जैदे., (२५४११, १३४५७). ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ग्रहणैषणा दोष से है व दायकदोष-७ तक लिखा है.) ७७४०१. (#) नवस्मरण-भयहरण स्तोत्र चतुर्थ स्मरण व अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अजितशांति की गाथा-४ तक है.) ७७४०३. (+) अंबाई छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२,१४४२४). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेहजसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ७७४०४. आचारदिनकर-उदय-३४ शांत्यधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १५४५२). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सामान्य शांतिक फलकथन अपूर्ण से अभुक्तमूलनक्षत्रजात दोषशांतिविधान अपूर्ण तक है.) ७७४०५. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, १६x४७). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणे पंचविहे पन्नत्त; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय महाव्रत संबंधी अतिचार अपूर्ण तक है.) ७७४०६.(+) कर्मविपाक प्रथम कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पाठांतरगाथा संकेत हेतु गाथा के प्रारंभ में "पाठांतर" शब्द लाल स्याही में लिखा गया है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४३३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ७७४०७. नेमराजिमती नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२x२७). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजेकुलचंदलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७४०८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र व अब्भुट्टिओसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२४२६). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह ,संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, (पू.वि. "पोषधव्रतनइं विषइ जे अतिचार लागो होइ" पाठ से है.) २. पे. नाम. अब्भुट्ठिओसूत्र, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अब्भुट्टिओसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (-), (पृ.वि. "अभिंतरदेव० इच्छं" पाठ तक है.) ७७४१०. (+) रत्नाकरपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. मलूकचंद्र ऋषि (गुरु पं. वीरचंद्र पंडित); गुपि.पं. वीरचंद्र पंडित; पठ. मु. नवनिधिविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय); गुपि. ग. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने यह प्रत नागपुर में वाजौली ग्राम स्थित मुनि श्री नवनिधिविजय के लिये लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १४४४२). For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रेया मंगलके; अंति: रत्नाकर प्रार्थये, श्लोक-२५. ७७४११. योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १९४६१). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-२ तक है.) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सिद्धाद्भुत, (२)अत्र महावीरायेति; अंति: (-). ७७४१३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १२४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण से सूत्र-१५ अपूर्ण तक है.) ७७४१४. (+#) स्थानांगसूत्र-चतुर्थस्थानक प्रथमोद्देश चतुर्विध पुरुषादिभेद सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. चतुर्विध मेघवर्णन सूत्र तक है.) ७७४१५. शत्रुजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२.५, ११४३४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७७४१६. पार्श्वनाथ स्तोत्रवृत्ति का भावार्थ व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४४५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्रवृत्ति भावार्थ, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति का भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वलोक कथनकारी होइ, (पू.वि. अंतिम कुछेक गाथाओं के मंत्रसंकेत पाठ से है.) २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.. औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७७४१७. (+#) सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १९४६८). सुभाषित संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आत्मानदी संयमतोय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५९ तक लिखा है.) ७७४१८. (+) जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण से है व गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) । ७७४२०. () औपदेशिक सज्झाय व नेमिराजीमति रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, १२-१८४७२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. नेमराजिमति रास, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७७४२१. आचारदिनकर-उदय ३६, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, दे., (२६४११.५,११४५१). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. पितृविवहारबलि अपूर्ण से ७७४२२. (#) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १७७४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीरस्वामी का गुणशैलवन में समवसरण प्रसंग से सुरसुंदरी व मदनसुंदरी जन्म प्रसंग तक है.) ७७४२३. सिंदूर प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७८१, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३९(१ से ३९)=१, जैदे., (२६४११.५, ११४३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-९९ अपूर्ण से है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः (-); अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. ७७४२४. साधारणजिन व वासुपूज्यजिन जन्मकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १०४३२). १. पे. नाम. साधारणजिन कल्याणक स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देवो पुण्यनिधान; अंति: नरभव सुरि कामीइं ए, गाथा-७. २.पे. नाम. वासुपूज्यजिन जन्मोत्सव ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा-३ के बाद गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है. पूर्णतासूचक शब्द या चिह्न न होने से प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण होने की संभावना है. मा.गु., पद्य, आदि: जिनजननी जिननइ अतिभगत; अंति: करि सुरिठामि पहुंति, गाथा-७. ७७४२५. (#) बोल, गहुंली आदि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४५). १. पे. नाम. सम्यक्त्वपालन अष्टभंगी बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणइन आदरइ न पालइ; अंति: भावितात्मा अणगार. २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरी मनोहार; अंति: तिहां बहु छाजे तो, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुणस्थानके आयुक्षय गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मीसे खीण सजोगी न; अंति: सह परभवगा न सेसट्ठा, गाथा-१. ४. पे. नाम. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवनमां तिरथसार; अंति: भवीक जीवनां संकट हरे, गाथा-४. ७७४२६. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, २०४४२). १.पे. नाम. जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १वडीनितमां लघुनीतमा; अंति: सर्व अशुचिथानके. २. पे. नाम. पन्नवणानो अल्पबहुत्व ९८ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ सव्वत्थोवा गर्भज; अंति: अधिक ९८ सरब जीव अधिक. ३. पे. नाम. साधुनी १२ प्रतिमाविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सामाइ सत्तंगा पढमा, (२)ते प्रतिमानु वहणहार; अंति: उपना खमे १२ एतले. ७७४२७. (#) काउसग्गदोष गाथा व एकादशीतिथि महोत्सवसामग्री सूची, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ४४३४). १. पे. नाम. १९ कायोत्सर्गदोष गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: घोडग१ लयर खंभाइ३ माल; अंति: समणीण सबहू सड्ढीणं, गाथा-२, संपूर्ण. १९ कायोत्सर्गदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अश्वदोष१ घोटिकनी परइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. एकादशीतिथि महोत्सवसामग्री सूची, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ११प्रासाद ११ प्रतिमा; अंति: एटला वाना५ तथा २५. For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७४२८. (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार व १४ गुणस्थानक बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:विचारपत्र. प्रतिलेखक ने प्रारंभ में "श्रीविजयदेवसूरिगुरुभ्यो नमः" लिखकर लेखनारंभ किया है, टिप्पणयुक्त पाठ-संधि सूचक चिह्न-संशोधित, जैदे., ( २६ १०.५, १५x५५). १. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: मिथ्यात्वाविरतिकषाय, अंति: १५८ प्रकृतयः स्युः. २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि: मिच्छे१ सासणर मीसे३; अंतिः सयोगि१३ अयोगि१४. "" ७७४२९. पंचमआरा सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. केशवलाल रामचंद्र दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५५११.५, १२X३८). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: भाख्या वेण रसाल, गाथा- १८, (वि. कर्ता जिनहर्ष की जगह हर्षविजय का उल्लेख है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७४३०. सवैया पद व शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०, १५X३५). १. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पात्र नहीं हैं. औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, आदि: आछी फूल खंडके अखंड, अंति: (-), (पू.वि. सवैया-३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १, गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७७४३१. (+४) साधुगुण व दशवैकालिक अध्ययन- १ सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. मूलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. लिखावट से ले.सं. २०वी की प्रत प्रतीत होती है, परन्तु प्रतिलेखन पुष्पिका में लेखन संवत् १७८६ उल्लिखित होने से यह प्रत इस वर्ष मे लिखी प्रत की प्रतिलिपि होने की संभावना है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x११.५, ११-१३x४२-५६). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: भाषित सुख करुणाकरा, गाथा-१७. २. पे. नाम. दशवेकालिकसूत्र प्रथम अध्ययन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु, पद्य वि. १७१७, आदिः धरम मंगल महिमा निलो अंतिः जैतसी धरमै जैजैकार, प्रतिपूर्ण ७७४३२. जीवकाया गीत व वाणिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६X११.५, १३-१६४३३-३८). १. पे. नाम. जीवकाया गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: विणजारा रे वालंभ सुण; अंति: आपण जीवसुं युं कही, गाथा- ७. २. पे. नाम. जीवकाया गीत, प्र. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदिः सुण बहीनी प्रीउडो अंतिः राजसमुद्र० सोभागी रे, ७७४३३. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५, १२-१४४३४-३७). १. पे. नाम. ३ मिध्यात्वभांगा विचार, पृ. १अ संपूर्ण. ४५७ गाथा-७. ३. पे नाम, वाणियानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (१) निगम जेहनी गम नही, (२) वाणीया वणज करे छेरे, अंतिः विशुद्धवि० कमाइ साधे, गाथा- १०. मा.गु., गद्य, आदि: मिध्यात्वने विषे अंतिः मिथ्यात्वे जाणवा २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक कालमान व अंतर्गुण विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे चौदगुणठाणानो; अंति: भावथी आंतरं नथी. ७७४३४. (+) बासठमार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६४२४). ६२ मार्गणाद्वारविचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ देवगति २ अपजत्त सन; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२९ तक है.) ७७४३५. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, ११४३५). शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७७४३६. (#) सज्जनसंदेस, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २१x६०). सज्जनसंदेस, श्राव. जीवराज, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीजिनपय; अंति: (१)जीवराज०मुछाले महाराण, (२)के दील भरी कागद देह, गाथा-६२. ७७४३७. (#) बारखडी व नमस्कार मंत्रादि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५-२१४१८). १.पे. नाम. बाराक्षरी, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: कुखु गुघुडु. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. ३. पे. नाम. तपागच्छनायक गुर्वावली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतपा० सोमसुंदरसूर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रीरत्नशेखरसूरि तक लिखा ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ७७४३८. (+) महावीरजीरो चोढालियो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४५). महावीरजिन चौढालियो, मु. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: महावीर प्रणमुंसदा; अंति: उदैसिंघल्लीला विलास ए, ढाल-४, गाथा-३४. ७७४३९. (+) पंचतीर्थ वीनती, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १०४३७). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदिजिणेसरु ए; अंति: मुनि लावण्यसमय भणइ ए, गाथा-६. ७७४४०. रोहीणीतप स्तवन व आलोयण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १८४४४). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आलोयण सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. आलोयणा सज्झाय, मु. ताराचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा हिवैय विमासी; अंति: करजोडी वंदै ताराचंद, गाथा-११. ७७४४१. (+) वीरजिन पांचकिल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव. रतनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ११४४०). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सिवकरण वंद; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ७७४४२. (+) शत्रुजय रास, मुनिमालिकादि स्तुतिस्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४४-४७). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: चारित्रसिंघ० कल्याण, गाथा-३५. ३. पे. नाम. अध्यात्मगुणनिरूपण शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने अलगी रहेन; अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-५. ४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वस्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जगजीवन बंधुरे; अंति: चरणनी सेवा दीजे रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. जिनपूजा स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___ ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: इम पूजा भगतै करौ आतम; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक हियाली, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: डालै बैठी सूडली तस; अंति: जिनहर्ष० मत छै रूडी, गाथा-४. ७७४४३. (+) नवपद स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणि हो के कहे; अंति: कांति बहु सुख पाया, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: महिमा जेणे जाणीयो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो रे भवी भावे; अंति: कांतिसागर निशदीश, गाथा-५. ५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां श्रीसिधचक्र; अंति: ज्ञानविनोद० हो लाल, गाथा-७. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधीइ; अंति: ज्ञान० प्रसिध लाल रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: आराहो प्राणी साची नव; अंति: ज्ञान० द्यो नित मेवा, गाथा-५. ८. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहि., पद्य, आदि: गौतम पूछत श्रीजिनभाष; अंति: ज्ञान० करो भगवान की, गाथा-७. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सांभलो; अंति: विनोद० भव आधार कें, गाथा-५. ७७४४४. (#) नेमीश्वरराजीमती द्वादशमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष, १०, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संध्या के समय प्रतिलेखन कार्य पूर्ण होने का उल्लेख है. पुष्पिका में प्रतिलेखक ने "मेनिहिडकेन" लिखा है जो संदिग्ध नाम लगता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६-४०). नेमराजिमती बारमासा, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: समरीइ सारदा नाम साचु; अंति: नेमिविजय० पूरण उमाह, गाथा-५७. For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४६० ७७४४५. (#) साधुनित्य क्रियादि प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, ले. स्थल. बांता, प्रले. ग. हुकमहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीलीलविलासजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३६). १. पे. नाम. पौषधग्रहणादि सर्वक्रिया विधि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० इच्छाम; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. पचखाण पारवा विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही ४ नो० प्रगट; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. पडिलेहण विधि, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी, अंतिः पर्छ काजो काहीजे. ४. पे. नाम. पोहसोसामाइक पारवा विधि, पृ. २आ-३-अ, संपूर्ण. पौषध विधि से संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि प्रथम इरियावहि पडकमी, अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५. पे. नाम. देवसीपखीचोमासीसंवच्छरी पडीकमणो, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि प्रथम इरिवावही पडि, अंतिः कहीजे पछे लोग कहीजे. ७७४४६. (+) कायस्थिति विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. कस्तुर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे.. (२५.५x११.५, १३४३९). कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) कायथिति जीव गय इंद्र, (२) जीव सदा काल सासतो छे; अंति चर्म अधर्म औतरो नथी. ७७४४७. (+) सहसफणा मंडोवरा पार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक कृष्ण १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. लछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, ११X३०-३५). पार्श्वजिन छंद-सहस्रफणा - मंडोवरनगरमंडन, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसरसति सान्निध अंतिः सुमतिरंग० पद पावे इला, गाधा-५५. ७७४४८. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४०). , गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिष्टनेमि नामै हुआ; अंतिः काना० कानाजि जिवोजी, ढाल १०, ७७४४९ (+) जीवगत्यादि १०४ द्वार विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. सा. लिछमी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : १००बोलरो., संशोधित. जैटे. (२५.५४११.५. १७४४५). १०४ द्वार विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई इंदिय काए जोए; अंति: ३अग्यान टल्या लेसा ६. ७७४५० (+) आलोयणाविधि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२४.५४११, १३४३७). " ', आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः १ वरस नानि आलोयण; अंति: पंचकलाणु तप दीज इ. ७७४५१. पुण्यपालगुणसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.. हुंड राश., जैदे., (२५.५X११.५, १७३२). पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. ढाल १, गाथा-७ अपूर्ण से ढाल - २ तक है.) ७७४५२. कुंथुनाथ व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X१२, ७-१३४३२). .पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंघुजिन मनडो किमही अंतिः आनंदघन कर जाण्यो हो, गाथा- ९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर प्रणमिए अंति लालचंद० अतहि आणंदरे, गाथा ६. ७७४५३ (१) मानछत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६X१२.५, १५X३४). मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजै रे मानवी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४६१ ७७४५४. कर्मरी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, २४४१४). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव गणधर; अंति: ऋद्धि० करममहाराजा रे, गाथा-१७. ७७४५५. (+) अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: अष्टमी थो., संशोधित., दे., (२५४१२, १३४३०). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी दिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ७७४५६. (+) सामायिकविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १४४३१). सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वसती तथा उपगरण; अंति: पछै सिद्धाय मुख करै. ७७४५७. आदिजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १५४७-१५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गच्छा. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: जगगुरु ऋषभ जिणेसर; अंति: जिनसौभाग्य हो दयाल, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गच्छा. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: आज भलो दिन उग्यो; अंति: जात्रा करी जयकारी रे, गाथा-५. ७७४५८. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४१७-३५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: अहिंसा परमोधर्मस्तथा; अंति: प्रलब्धं दशलक्षणानि, श्लोक-१२. ७७४५९. (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १०x२०-३५). नवपद स्तवन, मु. पूनिमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: नवपद शुद्ध निरंजन; अंति: आनंद मंगल सारा रे, गाथा-९. ७७४६०. (+) महावीरजिन आयुष्य विचार, वर्षतिथिगणित विचार व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १६४५५). १.पे. नाम. महावीरजिन आयुष्यवर्ष गणितविचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन आयुष्य विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ भगवतः आयु वर्ष ७२; अंति: पूरा सिद्धांतमते थया. २. पे. नाम. वर्षतिथिज्ञान गणित विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: गत वर्ष ११ गुणा कीजै; अंति: शेष तु वर्षलग्नम्. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र १अके प्रारंभ में २ श्लोक, पत्र १आ के मध्य में व अंत में इस तरह छुटक श्लोक दिये गये हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदि: न रम्य ना रम्यं भवति; अंति: (-), श्लोक-१२. ७७४६१. (+) तीर्थंकर बलवर्णन पद व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३४). १. पे. नाम. तीर्थंकर बलवर्णन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वाय वालु विशालो; अंति: अग्र को तेम जेतु, गाथा-१. २. पे. नाम. औपदेशिक सुभाषित संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह* पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जो गाजते दीहडे गिर; अंति: मागवा दमडी दे दानीम, __श्लोक-१९, (वि. छुटक गाथा, कवित्त, श्लोकादि संग्रह.) ७७४६२. (+) आदिजिन स्तवन स्तुति व धातुरूपावलि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ९x४०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: देस मेवाड धुलेवो; अंति: तुं सिरदारजी मोनू, गाथा-१५. २. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: प्रथमं ऋषभं प्रोक्तं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. धातुरूपावलि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: रौति रवति रुतः; अंति: रविष्याव: रविष्यामः. ७७४६३. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: पडिकमणसूत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३८). आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. "भवियहभीमभवत्थु भयवणंताणं" पाठ तक है.)। ७७४६४. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९९, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ८४३८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सव्वभंते पाणाइवायं पच्चक्खामि" पाठ तक लिखा है.) ७७४६५. (+#) सिध्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४२७). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अवसर पांमीने रे; अंति: मुगतितणा फल लहसे, गाथा-५. ७७४६६. नेमिनाथ व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसवचन द्यो सरसति; अंति: कमल नमइं सिरनामी रे, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वाणी आपो सरसति; अंति: कमल० सेवा पामीरे, गाथा-८. ७७४६७. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, २१४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सासणनायक दीयो उपदेश; अंति: किम करोजी धर्म थे, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हे दुरमतडी वेरण थइनी; अंति: इवडो दोस देवो छे माट, ढाल-२, गाथा-१४. ७७४६८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-४९(१ से ४९)=१, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., अध्ययन-२२ की गाथा-२० अपूर्ण से गाथा-३२ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० केटबार्थ अपूर्ण से है व गाथा-२८ केटबार्थ तक लिखा है.) ७७४६९. (-#) शांतिनाथ तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३३). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: मनवंचत शिवसुख पावे, गाथा-२१. ७७४७०. (+) निन्हवकुल एकवीसा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६x४७). निह्नवविचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे नायक वीर; अंति: निरमल आदरी भवजल तिरउ, गाथा-२१. ७७४७१. अष्टकर्म की १५८ प्रकृतिविचार व नौनारद नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४५०). १. पे. नाम. अष्टकर्म की १५८ प्रकृतिविचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणीकर्म; अंति: थको अंतरायकर्म बांधे. २. पे. नाम. नौनारद नाम, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. बाई ओर हाशिये में लिखा है. ९ नारद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भीम१ महाभीम२ रुद्र३; अंति: नरकमुख८ अधोमुख९. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७४७२. (+) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३५-३७). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. अनुभव अधिकार, गाथा-१६ तक है.) ७७४७४. (+) वैराग्य सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १०-१४४२४-३५). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कायारेवाडी कारमी; अंति: करिज्यो ढगवाली, गाथा-८. २.पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वचन चित्तधारी; अंति: अमरसी० होय नव सिद्ध, गाथा-१९. ३. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणौ अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पायौरे, गाथा-७, (वि. अंतिम गाथा पत्रांक-१अपर लिखा है.) ७७४७५. (+) पुरुष शिखामण व ज्ञानपदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, अन्य. मु. मनोहरकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १८४४६). १.पे. नाम. पुरुष सीखामण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. परनारीपरिहार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण; अंति: दयाधरम दिल मे धारो, गाथा-२८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल, रा., पद्य, आदि: ग्यान विना जीवकु; अंति: नाही एह देसना देव, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. नंदलाल, रा., पद्य, वि. १८५७, आदि: तुम चेतो रे भवप्राणी; अंति: नंदलाल रे सुखदायक, गाथा-१६. ४. पे. नाम. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मनुष जमारो पायने करण; अंति: ऋष लालचंद इम गाइ, ढाल-४, गाथा-१६. ७७४७६. ४९ भांगा विधिसहित अम्नायगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, पौष शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५.५४११.५, ४३४३०). भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आंक ११ कै भांगा तेहन; अंति: वर्तमान० आगामिककालै. ७७४७७. (+) गजसुकमाल सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४४४). १.पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामति जाणीइ; अंति: समयसुंदर तस ध्यान, गाथा-५. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: छुटे छूटे नरकना बास, गाथा-५. ३. पे. नाम. राजिमतीरथनेमि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसुरे; अंति: समयसुंदर० अविचल लील, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निद्या म करज्यो कोई; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरनो वासी; अंति: मेरुविजय०कोइ तोले हो, ढाल-३, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. ७७४७८. तेतीसको थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, ३६x२१). ३३ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय मनुष्य थकी; अंति: देता अशातना लागै. ७७४७९. (+) आश्रवसंवर व अष्टकर्मविवरण चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले.सा. उदाजी महासती; पठ. मु. गुलाबचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १९४२५-२८). आश्रवसंवर अष्टकर्मविवरण चौपाई-औपदेशिक, रा., पद्य, आदि: मिच्छत अविरति प्रमाद; अंति: सासता सिद्ध हो जावे, गाथा-७८. ७७४८०. (#) पुन्यप्रकास स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १४४४१-४४). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम अधिकार लिखा है.) ७७४८१. (+) शांतिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २३४६६). शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: संतनाथ जिन सोलमा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८, गाथा-६ तक है.) ७७४८२. नियंठाबोल विचार, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६४११, १९४६२). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पणवण नाणपुलाए१ दर्शण; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-३५ तक है.) ७७४८३. ढुंढक पचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १०४३६). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा-२५. ७७४८४. कुगुरुपच्चीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, १०४३७). __ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: भणे तेजपाल सुखदाय, गाथा-२५. ७७४८५. कल्याणमंदिर स्तोत्र व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १७६३, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. अनंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिरस्तोत्र भाषा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम योति परमातमा परम; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: त्वत्कीर्ति; अंति: भयान्मेकादशी तिथि, श्लोक-१. ७७४८६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, ११४३४). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: तस विघन दरे हरे, गाथा-४. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: कारिज सिध हमारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पास स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करुय; अति: केरी संघ आस्या पूरणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर; अंति: सानिध करज्यौ माया जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ४६५ ७७४८७. (+) गौतमस्वामी छंद व सज्झायदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. रामनाथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नव०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: कुशल लच्छिलील करत, गाथा-११. २. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गौतमने; अंति: मुगति हेला युतिरो, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन पारणा स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेहने नमे मुनी माल, गाथा-३१. ७७४८८. रोहिणीतपस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. अमृतहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: रोहिण तवन., जैदे., (२५४१०, १४४३५). वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतप गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: पणमीय परमाणंदूए; अंति: पूजस्यइ मननीरली, गाथा-२४. ७७४८९. (+) पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफली सहु आस, गाथा-९. २.पे. नाम. पंचमीलघु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि लघुस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुमे करोरे; अंति: पाम पांचम भेदरे. गाथा-५. ३. पे. नाम. सप्तढालीयो पार्श्वनाथजीरो, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सप्तढालीयो, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: पास प्रगट गोडी धणी; अति: जिनसागर० फली सहु आस, ढाल-७, गाथा-७. ४. पे. नाम. जिनकूशलसूरि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: राज० वारोवार रे लाला, गाथा-९. ५. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी हई है. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनदत्त; अंति: सुद्ध चरण त्रिकाल रे, गाथा-९. ७७४९०. चंद्रायणा व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३३). १.पे. नाम. चंद्रायणा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बाजींद, पुहिं., पद्य, आदि: हाथ जपे जपमाल कतरणी; अंति: बाजेद० मता है चोर का, गाथा-१४. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयसुत नेम; अंति: गुण मानु काई तजोरे, गाथा-६. ७७४९१. सिद्धनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२.५, ९४२३). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतमसामी पूछा; अंति: नय कहे सुख अथाग हो, गाथा-१६. ७७४९२. (+) पौषध विधि व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: पोसहविध., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४३४). १.पे. नाम. पोषह लेवापरवा विध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: मिच्छामि दक्कडम. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. चेनविजय, पुहि., पद्य, आदि: कोण नींद सुतो मन; अंति: चैनवि०सतगुरु का चेरा, गाथा-४. ७७४९३. (+) प्रभंजनासती सज्झाय व नलदमयंती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,१५४४२). १.पे. नाम. प्रभंजनासती सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: मंगल लील सदाई रे, ढाल-३, गाथा-४९. २. पे. नाम. नलदमयंति भावना गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. दमयंतीसती भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हो सायर सुत सुहामणा; अंति: समयसु० वडो रे संसार, गाथा-१२. ७७४९४. (-) वीसस्थानकतपस्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३६). १. पे. नाम. २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: विसनाथक तप सैवीयै; अंति: केसरी० स्तवना मनहरु, गाथा-२१. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जाय कहौनी मुझ बाल; अंति: केसरीचंद न राखै लाज, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लौद्रवपुरमंडन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलौद्रवपुरनाथ हो; अंति: केसरीचंद की आस जी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिपुरमंडन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मनहर मरुधर देसमे; अंति: कहै मुनि केसरीचंद, गाथा-५. ५. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर वंदियै; अंति: केसरी०अविचल पुरवउ आस, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. ___मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मुख तेरौ पूनिम; अंति: शिवसुंदर० सुखकंदा, गाथा-७. ७७४९५. (#) प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, २०४३५). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नवकारना पहला पदना; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नोत्तर ३८ अपूर्ण तक है.) ७७४९६. (+) स्याद्वादगर्भित श्रीवीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८). महावीरजिन स्तवन-स्याद्वादगर्भित, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलामात सुजात जयो; अंति: पुण्यमहो प्रवचनसारजी, ढाल-३, गाथा-२७. ७७४९७. (+) नेम धमाल व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४४२). १. पे. नाम. नेम धमाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... नेमिजिन होरी, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: खेलइ नेम मुरारि मास; अंति: साधु कीरत्ति रची री, गाथा-१५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरो मन मोहियो रे; अंति: मुज्या सिव सुख थाय, गाथा-१६. ७७४९८. (+) धनाजी सातढालियो, संपूर्ण, वि. १९५६, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. निबडी, प्रले.सा. चनणा (गुरु सा. हसतु); गुपि.सा. हसतु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १३-२२४४१-५२). धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नवमा अंग तीजा वर्गमा; अंति: सूत्रमाहे जोयके, ढाल-७. ७७४९९. (+) नियंठा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, २७४६५). नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा१ वेयर रागे३; अंति: नियंठानो यंत्र जाणवो. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ ७७५००. (+) भास, गहुंली, गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६x४९). १. पे. नाम. उदयसागरसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: एहवा आचारजने वंदिइजो; अंति: जो मीठाचंद गुण गायजो, गाथा-१५. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने हो चरणे; अंति: मीठाचंद्र०आगम वाण रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर वंदिई रे; अंति: जिनशासन जयकार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जीणंदस्यु; अंति: मीठाचंद० गुण गावो रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजी हो तु प्रभु; अंति: मीठाचंद०पुरो मननी आस, गाथा-७. ६. पे. नाम. चंद्रप्रभु गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिनगीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हो माहराज अरज सुणोने; अंति: सीवरमणी सुख द्योने, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: समरथ जगमांसाचो तु; अंति: मीठाचंद० सीव सुखकार, गाथा-७. ७७५०२. (+) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८८९, फाल्गुन शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. आहुणीयास, प्रले. मु. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४३). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: पूजस्यै विखवाद न करै. ७७५०४. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२३.५४११, १५४५१). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम अहो प्रीछक; अंति: (-). ७७५०६. (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ७७५०७. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-८०, (पू.वि. श्लोक-६० अपूर्ण से है.) ७७५०८. (+) पौष्टिक पुजाविधान-आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४५). आचारदिनकर-हिस्सा पौष्टिकविधानमहापूजनविधि, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: अथ पौष्टिक पूजाविधी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुसुमांजली-१० श्लोक-५ अपूर्ण तक लिखा हैं.) ७७५०९. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३२ से है और श्लोक-३७ तक लिखा है.) ७७५१०. (+) कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२४.५४१२, १३४३७). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पंचकल्याणिक संक्षेपे वखाण्या" पाठ तक लिखा है.) ७७५११. (+) चंद्रमासूरज विचार व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४१). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. सूर्यचंद्र अंतर विचार, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एक जोजनना ६१ भाग करी; अंति: काले मांडल फरी रहे. २. पे. नाम. १० कल्पवृक्ष नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक ११अके हाशिया में लिखी गई है. १० कल्पवृक्ष भेद, मा.गु., गद्य, आदि: पतंग१ भीगंगर तुडीयंग; अंति: सीहगारा९ अणीगणीया१०. ३. पे. नाम. पाप संज्ञा विचार, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक ११अके हाशिया में लिखी गई है. पाप परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंत सते विराधे एक; अंति: एक पंचींद्रीनो पाप. ७७५१३. उत्तराध्ययनसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३-१०८(१ से १०८)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२, ११४३९). उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र अध्ययन १० की टीका है.) ७७५१६. (+) प्रास्ताविक दूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४०). प्रास्ताविक कवित संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "हंस जाणे खीर से सो नर मुरख जाण" तक पाठ है., वि. संग्रहीत गाथा.) ७७५१७. सास्वतदेवलोक जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मुंडेता, जैदे., (२६.५४११.५, २१४६१). वैमानिकजिन स्तवन, मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: सुखदाई रे रिसह जिणंद; अंति: नेमविजय जयकरो, ढाल-३. ७७५१९. (+) ठाणांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४३(१ से ४३)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ठाण-४ उद्देसो-२ पर्वत वर्णन अपूर्ण से ठाण-४ उद्देसो-३ रात्रि वर्णन अपूर्ण तक है.)। ७७५२०. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-९(१ से ९)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५,११४२७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति गाथा-२८ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र श्लोक-२१ अपूर्ण तक है.) ७७५२३. समुर्छिमजीवादि उत्पत्तिस्थान बोल, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १४४४०). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "वगुली जालोया" से "शुक सहश्रार" पाठ तक है.) ७७५२४. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७४-७३(१ से ७३)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मात्र अंतिम सूत्र है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. ७७५२६. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,१०४२७). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७७५२८. दशवैकालिकसूत्र व चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९०९-१९३८, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, दे., (२५४१२, १६४३५). १. पे. नाम. दशवैकालिक सूत्र, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, (पू.वि. मात्र अंतिम सूत्र अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८ २.पे. नाम. होली चौढालिया, पृ. १९अ, संपूर्ण, वि. १९०९, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखित है. होली कथा, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनयचंदजी कहे करजोरी, ढाल-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ से लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक चौढालिया, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखित है. १९आसे लिखना प्रारंभ कर१९अपर पूर्ण किया है. औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: पुन जोगे नरभव लियो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) ७७५३२. (+) विजयहीरसूरि सज्झाय व विवाहपटल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. विजयहीरसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेकरजोडी जी विनवु; अंति: होज्यो मुझ आणंद, गाथा-११. २. पे. नाम. विवाहपटल, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ७७५३३. (+) चतुर्विंशतिजिन विज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रावण कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. तैलपुर, प्रले.पं. युक्तचंद्र; पठ. श्राव. नेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४०). २४ जिन स्तव, मु. शांति कवि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य परंपरया; अंति: कैवल्यलक्ष्मीकरा, श्लोक-१४. ७७५३४. (+) साधारणजिन स्तोत्र सहटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पठ. जीवणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४११.५, ४-८४३५). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावंजयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि: भावे भावोक्तौ तृतीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-२ की टीका अपूर्ण तक है.) ७७५३६. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. "इतिविधी तिथ विचारः" पाठ तक है., वि. श्लोकांक नहीं लिखा है.) ७७५३८. यंत्र व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२, २०-३५४१०-५०). १.पे. नाम. औदारिकादि५शरीर व तिर्यग्बादरवायुआहारक यंत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. औदारिक यंत्र से है.) २. पे. नाम. ८ कर्म विवरण, पृ. २अ, संपूर्ण. ८ कर्मविवरण विचार, सं., गद्य, आदि: तत्र बद्ध्यते अष्ट; अंति: च प्रागेवोक्तम्. ३. पे. नाम. आचारांगादि ११ अंग पदश्लोकअक्षरादिमान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ११ अंग परिमाण, मा.गु., गद्य, आदि: पढम आयारंग अठारसपय; अंति: सांचो समकीती जाणवो. ४. पे. नाम. १ पूर्व वर्षमासपक्षदिनमहर्तादि विचार, प्र. २आ, संपूर्ण. पूर्ववर्षमान विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूर्व १ना वर्ष; अंति: एतला आलावा जाणवा. ७७५३९. (#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४१). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. सिद्धाणं बुद्धाणं की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: आठ मास दिण बारह० एह; अंति: कहति दिसाप्रमाण, गाथा- ११. ७७५४२. (+) तपचिंतवण विधि व पचक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ७७५४०. ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५x१०, ११x६०). . " (२६.५x११.५, १३४४७). १. पे नाम, छमासी तपचिंतवण विधि, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव कौशांबीनगरीइ, अंतिः घरी काउसग पारीइ. २. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: असित्थेण वा वोसिरामि, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. आयंबिल, एकासा, बेयासणा का पचक्खाण है.) ७७५४५ (+४) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५x११, ११४३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. वर्ग १ अपूर्ण से वर्ग-३ अपूर्ण तक है.) ७७५४६. अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५X१२, २-५X४५). יי सिद्धांतरत्निका व्याकरण - अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवतीत; अंति विद्ध्यनिट्स्वरान् श्लोक-११. सिद्धांतरलिका व्याकरण - अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि वृड् संभक्तौ क्रयाद, अंतिः संचनेतीदादिकः उभयपदी ७७५४९. मूत्रपरीक्षा व नाडीपरीक्षा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७९८ आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. ग. अनोपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२५४११, ७४३९). १. पे. नाम. मूत्र परीक्षा सह टबार्थ, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: ज्ञेयो विचक्षणो, श्लोक-२३. मूत्रपरीक्षा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंत लक्ष्मी० केवल; अंति: व्यत्तिक दोष जाणवो. २. पे नाम, नाडी परीक्षा सह टवार्थ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण नाडी परीक्षा, सं., पद्य, आदि: सुप्ता च सरला दीर्घा, अंतिः च चिकित्स्यके, श्लोक १५. नाडी परीक्षा - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूति जाणी जड़ पाधरी, अंति: इणइ प्रकारे जाणवो. ७७५५०. भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१५ (१ से १५) = ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे., (२५x११.५, ४X३१). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. श्लोक - ९८ अपूर्ण से ११८ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टवार्ध * मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). *, For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ३ चौवीसी नाम, सं., गद्य, श्वे., (केवलज्ञानी १ निर्वाण), ७५०८७-२ ४ मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ७३१३२-१(+#) ४ मिथ्यादृष्टि अज्ञान भेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (नो जाणइ नो आयरइ नो), ७६०४४-१ ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ७६०३१-१ ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ७४९४४(+$), ७३४७४($) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ७४०९५-१(+#), ७५९०७ (२) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अहँ जोग्यो कथं जोग), ७४०९५-१(+#) (२) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भव भयहरण तरणतारण), ७५९०७ ५ समकित स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो उपशम समकित), ७५३२४-१(+) ६ दर्शन विवरण, सं., श्लो. ७, पद्य, जै., वै., बौ., (बौद्धं नैयायिकंर), ७५६७५-२(+) ६ प्रकार आराधना, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (भावना क्षामणा कम), ७४२१७-२(+#) ६ लेश्या दृष्टांत, सं., गद्य, मूपू., (जंबूवृक्ष निरीक्ष्य), ७५४५३($) ६ संस्थानभेद विचार, सं., गद्य, श्वे., (वज्रऋषभनाराच संहनन१), ७३८७४-४(#) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, सं., गद्य, श्वे., (मिथ्यात्वाविरतिकषाय),७७४२८-१(+) ८ कर्मविवरण विचार, सं., गद्य, श्वे., (तत्र बद्ध्यते अष्ट), ७७५३८-२ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ७४७६९-१(#S), ७५१६८ ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवलभासनभास्कर), ७६३७९(१) ८ प्रभावक गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पावयणी१ धम्मकही२), ७४२६१-४(+#) ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (अशोकवृक्षसुरपुष्फ), ७३५३४-२ ८ मद स्वरूप, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (मज्जा भोगेतिसिया), ७५९१२-३ ८ महाव्याकरण नाम, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (ब्रह्ममैशानमैंद्रव),७६८२४-६ १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, मूपू., (नमोक्कारसी अन्नत्थणा),७३६००-१० १० पूर्वीयुगप्रधान नाम, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (महागिरि१ सुहस्ती२ च), ७४८८८-२(+) १० संकेतपच्चक्खाण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अंगुट्ठ गठि मुट्ठि), ७४१५०-८(+#) १२ कुल नाम, प्रा., गद्य, श्वे., (फासुय जीव पडिगाहेत्त),७५६११-२ १२ कुल विचार, सं., गद्य, श्वे., (अन्यतरेषु वा तथा), ७४०३९-२(#) १२ चक्रवर्ती स्त्रीरत्न नाम, सं., गद्य, श्वे., (सुभद्रा भद्रा सुनंदा), ७४२११-७ १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप्., (अणसण उमोयरिया), ७६४२२(+$) १२ तुर्यनंदा नाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (भभी१ मुकुंदर मद्दल३),७६७१०-२ १२ भावना, मा.गु.,सं., भा. १२, पद्य, श्वे., (श्रीवीरस्वामी जयो), ७५०३४(६) १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बारव्रतना पोसह वहि), ७५२९२-७(#) १२ व्रत टीप, सं., गद्य, म्पू., (कीर्तस्फूर्तिमियति), ७६०७८(६) १२ व्रत प्रायश्चित, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), ७५३३६-१(+$) १३ चातुर्मासवर्व्यस्थल नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (चीखल१ पाण२ थंडील३),७५६११-४ १४ गुणठाणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्त तुटइहि तुरिय),७३७१५-१ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १४ गुणठाणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्त तुटइहि तुरिय), ७३७१५-१ १४ गुणस्थानक बोल, प्रा., गद्य, श्वे., (मिच्छे१ सासण२ मीसे३), ७७४२८-२(+) १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ श्रीउत्पादपूर्व), ७५९९५-४(+#) १४ समुर्छिममनुष्योत्पत्ति स्थान, प्रा., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा१ पासवणे), ७३६७५-४(+) १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ७६१७०-२(+), ७६५१४-७ १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जिण १ अजिण २ तीत्थ ३),७४१२६-२(+#) (२) १५ सिद्धभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध १),७४१२६-२(+#) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ७३६१९-४(+), ७३९५३-२(+), ७५३२०-५, ७६०६१-२ १७ भेदी पूजा, मु. जीतचंद, मा.गु.,सं., पूजा. १७, गा. २८, प+ग., मूपू., (जिनतनु निर सुगंधसु), ७४९५१(६) १८ पुराण नाम, सं., गद्य, वै., (ब्राह्मं पद्म वैष्णव),७६८२४-३ १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (३८ अडत्रीस कोडि ११), ७४८३३-२(+), ७६०३९-२ १८ स्मृति नाम, सं., गद्य, वै., (मानवी स्मृति आत्री), ७६८२४-४ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (जे नो कति मणसा निज), ७६३२३ १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (घोडग१ लयर खंभाइ३ माल), ७७४२७-१(#) (२) १९ कायोत्सर्गदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अश्वदोष१ घोटिकनी परइ), ७७४२७-१(#$) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ७५९६१(+) २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि पडिकम),७५६६७-३ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ७५६६७-२ २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहताण २०००),७५७५५-१ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (१ नमो अरिहंताणं २०००),७५६६७-१ २० स्थानक श्रावककर्त्तव्य, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (तत्रैकमर्हतामहत्), ७५६२८-१(+) २१ धोवनपानी नाम, प्रा., गा. १, पद्य, स्पू., (उसेइमं वा १ संसेइम),७५६११-३ २१ मिथ्यात्त्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ७५००३-४(+) २१ श्रावक गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ७४२८१-१(१) (२) २१ श्रावक गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (धर्मनै जोग्य ते),७४२८१-१(#) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ७४२१७-१(+#$) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचुबर चउविगई हिम), ७३११०(#), ७७३७६-१(#S) (२) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक-व्याख्या , सं., गद्य, मूपू., (वट १ पिप्पल २ उंबर ३), ७७३७६-१(#S) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच उंबर वड१ पीपल२), ७५४३७(+$), ७३११३(#) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), ७५०६०-१(+) (२) २२ परिषह नाम-टीका, सं., गद्य, मूपू., (क्षुधा वेदनी परिषह), ७५०६०-१(+) २३ जीव नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (जीवेति वा पाणेति वा), ७४७१२-१ २४ जिन १० आश्चर्यवर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्ग१ गब्भहरणं२), ७५१२४-२(+) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कार्तिकसुदि १ सुविधि), ७६१७९ २४ जिनआंतरा समय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीआदिजिन निर्वाणात), ७४८२०(#) २४ जिनकल्याणक तपविधि, रा.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसंभवनाथसर्वज्ञाय), ७६३४८-२(+) २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मूपू., (--),७६३२१(5) २४ जिन चैत्यवंदन, सं.,प्रा., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्णं गजराजगाम), ७३९५३-६(+$) २४ जिन भव गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (तेरस भव रीसह अठसय), ७३९०८-७(+) For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४७३ २४ जिन राशि नक्षत्रादि षड्विध प्रतिमानिरीक्षण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, पू., (नक्षत्र योनिश्च), ७५३२५-२(+), ७४२७५-२ २४ जिन शरीरमान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंच धणुसय पढमो कमेण), ७३९०८-६(+) २४ जिन स्तव, मु. शांति कवि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परंपरया), ७७५३३(+) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयाजितवासुपूज्य), ७४४७२-३(+$) २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (प्रथमं ऋषभं प्रोक्तं), ७७४६२-२(+$) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सुरकिन्नरनागनरेंद्र),७२८९३-२(+),७७२८५-१ २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ७७१६३-२(+), ७५३३९-३, ७७०२०, ७४९३७-३(#) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि),७५५८०-२(+$) २४ तीर्थंकर के नाम-गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादिसहित, मा.गु.,सं., को., मूपू., (--), ७६२१९ २४ तीर्थंकरवेदिकास्थापना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), ७३४३९(+$) २४ मांडला, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (६ हाथ १प्र०१ आगाढे),७५६३८ २४ मांडला, प्रा., गद्य, मूपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ७५४६१-४(+) ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव्वाउ कंदजाई सूरण), ७५८७१-२(+) ३२ लक्षण नाम-पुरुष, सं., गद्य, (कमंडल कलश० सूप चापिक), ७६८२४-७ ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ७५७०८-२(+), ७३०४३ ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३६, गद्य, मूपू., (एगविहे असंयमे एगे), ७३७८८(६) ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १देसिअ २), ७५८३०-१(+#), ७३६०६, ७४१५५-१, ७५६११-१ (२) ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), ७३६०६, ७४१५५-१, ७५६११-१(६) ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, मूपू., (अत्र प्रथमायां), ७६८५५-१(+), ७७३९३($) ६२ बोल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (गइ इंदिए काए जोए वेए), ७६४२१-२(+) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ७५४६०-२(+) ८४ जीवयोनी क्षमापना, प्रा.,मा.गु., अंक. ८४, प+ग., मूपू., (संसारमि० पुढवीकाई), ७५०२६-१(+) ३६३ पाखंडी भेद, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (जीवाजीवादि नवपदार्थ), ७४९१८ अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ७६७०६ अंचलमत विचार, सं., गद्य, मूपू., (--), ७५८७५-१(६) अंतिम आराधना, सं., गद्य, मूपू., (--), ७६२८१(#$) अंतिम आराधना विधि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (--), ७७२२३(+$) अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही), ७३३०९,७४०७५ (5) अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकलं), ७५००७-१ अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ७३९७९(+$) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ७३८५०-१(+) अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ७६२५०-१(+), ७५८०३, ७५७४६-१(5) (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ७३८७६-१(+#$), ७५५००-२(+), ७३६२६(#), ७५११७-५(5) अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ७३८८९(+$) अज्ञात आगम छुटक पन्ने, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), ७४०३७($) अणसणप्रत्याख्यान विधि, मा.गु.,प्रा., गद्य, मूपू., (जे मे हुज पमाउ), ७४८४६-१ अनंग ५ बाणगाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (दिठी अ१ दिठ पसरो), ७४९९१-२(+) अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु.रूपसिंह, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अनंतकल्याणकर), ७३२३७-५(+), ७६५४२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ अनाथीमुनि कुलक, अप., गा. ३६, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (पणमिअ सामिअ वीर जिणि), ७५८३५ ($) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग. म्पू. तेणं कालेणं० नवमस्स), ७७५४५ (88), ७४२४२(३) ७५०६२(३) " (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ७४२४२($) अनुयोगचतुष्टय विचार, आ. जिनप्रभसूरि, सं., प्र. १४० वि. १४बी, गद्य, मूपू. (इह प्रवचने चत्वारो), ७२९३५-१(+) अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविहं), प्रतहीन. (२) अनुयोगद्वारसूत्र - शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, भूपू (प्रणिपत्व जिनवरेंद्र), ७४२१७-३+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा कालप्रमाणनिरूपणगत औदारिकादिशरीरपंचक निरूपण, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. सू. २४, प+ग., मूपू., (कइणं भंते सरीरगा), प्रतहीन. (३) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा कालप्रमाणनिरूपणगत औदारिकादिशरीरपंचक निरूपण की अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (उदारं तीर्थकर गणधरा), ७५६३९-२(+) ', (२) अनुयोगद्वारसूत्र - बोल संग्रह - ४ प्याला विचार, संबद्ध, पुहिं, गद्य, मूपू. (चार प्याला का नाम), ७४०७१ (च) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), ७४२२६(+३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्वाद्वादमंजरी वृत्ति, आ. महिषेणसूरि, सं. श. १२१४, गद्य, मूपू (यस्य ज्ञानमनतवस्तु), ७४२२६ (+) अबयदीशुकनावली, सं., प्रक. ४, गद्य, मूपू., (संसारपासनाशार्थं), प्रतहीन. (२) अवयदीशुकनावली - अनुवाद, पुहिं, गद्य, मूपू., (--), ७६६५१(३) अभुट्टिओ सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू. (इच्छाकारेण संदिसह), ७७४०८-२(३) अभयदेवसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( आचार्याः प्रति सद्य), ७४०३३-३ अभव्यजीव गाधा, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू, (संगम पर कालसूरय२), ७६४९५-२(45) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ७७३१७(+$), ७७३७३ (+), ७६१४९, ७५२६१-३(#$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला- बीजक, सं., गद्य, भूपू ( नाममाला पीठिका जिनेश), ७६४८० (३) अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., श्लो. २४४, पद्य, मूपू., (--), ७५६५६ (+#$) अमृतफलदायी मंत्र-यंत्र विधि सहित, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, श्वे. (ॐ नमो अमृते अमृतो), ७७२२८-१ अरिहंत १२ गुण श्लोक, मा.गु. सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ सुर), ७३३६४-३(+) अरिहंतसिद्ध स्तुति, प्रा., प+ग, भूपू (--), ७५५७६ (६) (२) अरिहंतसिद्ध स्तुति बालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू., (--), ७५५७६ (३) अवग्रहद्वार विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिण प्रकारे अवग्रह), ७४८८८-७(+) अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (ॐ विधि विधि धीयगत्य), ७६५८२-१(+#$) अष्टप्रकारी पूजा- शांतिस्नात्र विधि, प्रा., सं., प+ग, मूपू., (ॐ ह्रीँश्रीँ अहीं, ७६३५८-१ (+) अष्टमंगल स्थापना, मा.गु. सं., प+ग, मृपू, (जिनचिंवाग्रतो), ७६४९१ अष्टांग प्रणिपात विचार, प्रा. गद्य, भूपू (उरसा १ सिरसा २), ७५९९२-४ "" अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू. (ते माहिली शांतिकविध), ७२९०१ (+), ७३३०३(०) आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., श्वे. (सर्वथी थोडा चरित), ७३१०९-१(+), ७४०७२(+), ७३६७३(३) आगम योगोहन आलापक, प्रा., गद्य, खे, (अहन्नं भंते तुम्हाण), ७३०३६-२ आगमादि ग्रंथों व उनकी सूत्रवृत्ति आदि के ग्रंथपरिमाण, प्रा., सं., गद्य, मूपू., ( एगारस अंगाई बार), ७६०३९-१ For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ७४४१४(+६), ७५५३९-२,७७२२४(#$) (२) आगमिक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी वैक्रीय शरीर),७४४१४(+$),७७२२४(#$) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), ७६११५-३(+), ७६११९(+#s), ७७३८२(+#$), ७५८१८, ७४४५३(#$) आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), ७३९५०(+#$), ७४१५१(+#), ७५८३३ आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), ७७४०४(६), ७७४२१(६) (२) आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभदिने), ७७२२८ २) (२) आचारदिनकर-हिस्सा पौष्टिकविधानमहापूजनविधि, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., मूपू., (अथ पौष्टिक पूजाविधी), ७७५०८(+$) आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ७३८३६($), ७५६५८($) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्म), ७५६५८(६) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा.७१, वि. ११वी, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), प्रतहीन. (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-६३ ध्यान दृष्टांतनाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनाणं नाणे० एह उपरि), ७५७२७(+#) आत्मनिंदा दृष्टांत कथा, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (किं च अत्र धर्मार्थि), ७४८२२(+#) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., म्पू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध),७३३०४(+s),७६२२७(६) (२) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., वि. १८३३, गद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ७६२२७($) (२) आत्मप्रबोध-चयन सुलसा कथा, सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् जंबूद्वीपे), ७४५५०(+) आत्मरक्षक अंगकरन्यास विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण), ७५४५६-१ आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., ढा. १६ काव्य, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकार), ७४२४६-१($) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (विणयनयरी विणयनयरी), ७४८१२-१(+$), ७३०४२-१, ७३०५६ आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (वंदे देवाधिदेवं तं), ७३७४७-१(#) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (महिम्नः पारं ते परम), ७३४०२(+) आदिजिन स्तवन-समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (विबुहहियामयदिट्ठि), ७५१३५(६), ७६०२७-१(६), ७६२०१(६) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (आनंदानम्रकम्रत्रिदश), ७५२३३-१(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), ७३७४७-७(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), ७६०३१-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू, (सुवर्णवर्णं गजराज), ७३९८८-६(+), ७३४५०-१(#) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ७४१३२-२(+) आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भावानयाणेगनरिंदविंद), ७६१३५-२(+), ७६३९०-३ आदिजिन स्तुति-खड्गबंध, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (संसृत्य गाधांबुधि), ७५५९०-२(+#) आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ७५६३२-१(+) आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथं नतनाकि), ७६१३५-१(+), ७६३९०-२ आदिजिन स्तोत्र, मु. अचलसागर, मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (संसारस्वरूपं महाकाल), ७३३१२-३ आदिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जिनदेवे नमस्कृतः), ७३६४८-२ आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ७५३३९-४ आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहाकम्मु १ देसिय २), ७३६९४(+), ७५६५७-१(+) For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (यतिने काजे रांधीने), ७३६९४(+),७५६५७-१(+) आधुनिक नाममाला, पंन्या. मुक्तिविमल, प्रा.,सं., स. २, पद्य, मूपू., (उसहे भरहे अजिये सगरो), ७५६१०(+$) आयुविचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (लक्षणलखणंद्रसति), ७३३४८-१(+#) (२) आयुविचार श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, (सूर्य- मांडलु हीणु), ७३३४८-१(+#) आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानाचार पोथी पाटी), ७४१४३-१(#$) आलोचना विचार, सं., गद्य, मूपू., (--), ७४४३०(+#$) आलोयणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (एगेंदियाणं जं कहवी), ७६१२४-१(+), ७६२९२-१(+), ७३५१४.) आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गृहसथी अविरत), ७६२३५ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), ७४५८०(#$), ७३२३८($) (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अ० इत्यादि एहनो), ७४५८०(#$) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमो० नमस्कार होवउ),७३२३८(६) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ७५४६४-२(+) (३) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन की अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (अथ विधिः भूमिं प्रमा), ७५४६४-२(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ७३८५०-२(+), ७४७८७-१(+#$), ७५६३४, ७३४५०-२(#) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, पुहिं., गद्य, मूपू., (स श्रीपार्श्वदेवः), ७५६३४ । (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत अशरण), ७३८५०-२(+) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ७४७८७-१(+#$) (२) ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसई जिन चीतवीं), ७५७५०(+), ७५०२५(5) (२) १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ७६५८३ (३) १४ श्रावक नियम गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, मप., (श्रावके जीवजी पांच),७६५८३ (२) १७ संडाशा विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (देववंदन गुरुवंदन), ७५४६४-३(+) (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ७३८५९-२(#) (२) आवश्यकसूत्र-गोचरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (विहत्यागतः सपात्र एव), ७२९०६-३(+#) (२) आवश्यकसूत्र-देशावगासिक विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरारंभ रहीइं जिम), ७६६५७-१(#) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ७७४४५-३(#) (२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहताणं० तिखुत), ७५८२२(+#) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७३४६९-१(६) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा.१८, पद्य, मूपू., (इरियावही पडिक्कमशु), ७४३६९-१(5) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल कुशलदायक अरिहंत), ७४७७१-३, ७३५७५-१(#) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (गुरु सन्मुख रही विनय), ७५५०४ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ७५९७८-१(६) (२) गुरुसुखशाता पृच्छा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो), प्रतहीन. (३) गुरुसुखशाता पृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इच्छामि वांछामि),७४४८५-२ (२) गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिंदिय संवरणो तह), ७२८७१-१, ७४४३३($) (३) गुरुस्थापना सूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद ८ गुरु १० लघु ७०), ७२८७१-१ (३) गुरुस्थापना सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंखि नासिका मुख कान), ७४४३३($) For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४७७ (२) जगचिंतामणिसूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा.७, प+ग., मूपू., (जगचिंतामणी जगनाह), ७५४७०-२(+#s), ७६१३०(+) (३) जगचिंतामणिसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत केहेवा छे), ७६१३०(+) (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दोय गाथारो नम),७४३१६-२ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ७३६०९($) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७३०७२(#) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पढम), ७३६५८ १(+#$) (२) देवसीयप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरीयावही तसुतरी), ७३५७४-२(+#), ७५६७१ (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाण),७४१५०-७(+#),७४६८८-२,७६७१०-५ (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इरियावहि०), ७६०४५-२(+#) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ७४८६६-१(+$), ७५८५०(#$), ७७५३९(#), ७३५५७(६) (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), ७६२४७-३(+#), ७५३३३-२ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ७५४६१-३(+), ७६२४७-२(+#) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ७५३४६-२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ७४२८५-२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (मुहपत्तिवंदणय), ७७४४५-५(#) (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ७५८६०-५, ७५५२३-१(#) (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ७५४०३-१(+), ७५१३२-२ (२) पौषधभेद विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (सोयं पोसहो आहाराइभेए), ७४०३३-२ (३) पौषधभेद विचार-व्याख्या, सं., गद्य, म्पू., (द्वाविंशति सहस्यां), ७४०३३-२ (२) पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू, (इरियावहि पडिकमिई), ७३४१५-१(+#), ७३७०३(+$), ७५२९२-१(#), ७७४४५ ४(2) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ७७४९२-१(+), ७३४६१-१ (२) पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (रात्रि पिछली घडी २),७४१५०-६(+#) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ७६२५५(5) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासमण देइने इरिया),७६५८४-२(+s) (२) प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ७५८९०-१(+-) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्कं), ७३७६७(+$), ७५५८८(+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७३४२९($) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७३०९८(+s), ७३७५७(+$), ७४५१३(+#s), ७५०९८(+$), ७७४६३(#$), ७५२६२(७), ७५५९२($) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ७४०३६(+$) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेवजीकुं), ७४०३६ (+$) (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिट्ठी), ७३१५८-२(+), ७३९०८-५(+), ७५६२८-२(+) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ७५४६५(+), ७५४७०-१(+#), ७६०१९-२(+), ७६१६१-३(+), ७६२४७-१(+#), ७६२४८-१(+), ७७५४२-३(+), ७५४६३, ७५५६४-१, ७५५९४, ७५८३९, ७६१५५, ७६४३४, ७३९५६(#$), ७४४९३-२(#), ७४९२५(#), ७६६५७-२(#), ७७०१०(#), ७७१५६-२($) For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ७५४०४-२(+), ७६२४८-२(+), ७३८७४ २(#) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ७५३३३-१, ७५८२५, ७७२७९ (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग.शुभशील, सं., अधि. २, वि. १५०९, गद्य, मूपू., (युगादौ व्यवहाराध्वा), ७३४०७($) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (इच्छामिखमासमणो वंदिउ), ७४२८४(+#$) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे),७५५७२(+#), ७७२८०-१(+),७३८०२,७५८०६,७३३४०(#), ७४२८२-१(#$), ७५५७५ (#), ७५८४८(#$), ७५६६२(६), ७५९६४(६), ७७२५७($) (२) विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदल), ७३१०९-३(+), ७५३३३-३ (२) श्रावक देवसिक आलोचनासूत्र, संबद्ध, पुहिं., गद्य, मूपू., (७ लाख प्रिथवीकाय ७), ७५४०४-१(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण पंचिं), ७३८०९(+$), ७५८२४(६), ७५९१२-५($) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिह० सव्वसाहूण), ७७४०८-१($) (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), ७५६९२(+#$), ७७२६३(+$), ७६७५०, ७५६७९-१, ७४२८२-२(#$), ७५२८८(#s), ७३७९३($), ७५१७४(६) (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*,संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ७४५५६-६(+$), ७५६५१, ७४२५६(#S), ७३९८१(६), ७४२२५ (६) (२) श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदल विपुलनयना कमल), ७२८७१-२ (३) श्रुतदेवी स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कमल० तेहनी परि), ७२८७१-२ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीर), ७२९१२-१(+8), ७५९७८ २, ७६२७१-२(#) (२) सप्ततिशतजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वरकनक शंखविद्रुम), ७३९८८-५(+) (३) सप्ततिशतजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकसो १७० भुवनपती), ७३९८८-५(+) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ७५६२२(+#$) (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हिवे), ७५६२२(+#$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ७४०१४(६) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ७५४६४-१(+), ७५८०९-२(+), ७५३३३-४, ७६६७२ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ७२९०६-१(+#), ७३१३२-२(+#), ७४५११(+#$), ७४६५८(+), ७६२३७(+#), ७७२८९(+), ७३२९३, ७५४६८, ७७०९९(#), ७३८०८(5), ७४९२२($) (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वांछुङ), ७४९२२(5) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ७७०९९(#) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., म्पू., (तित्थंकरे य तित्थे), ७५०३१(+s), ७५९६३(+$), ७४२२१(#), ७४१४५(६), ७७२०७(s), ७७४६४(६), ७४१४२५-६) । (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ७४१४२(-६) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्न पाणे), ७६७१०-४ (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सयणा क० सोवाना संथार), ७५४०२-२ (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ७५४६१-१(+), ७५८२७-१(+) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ (३) साधुपाक्षिक अतिचार थे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि० ), ७५३२८ (+०३), ७५६२३ (७), ७५८९७(+), ७५९४२(+), ७५९४३(+), ७६३६१-१(+), ७५९४४, ७६०००, ७६४०५, ७३८८४(१) ७६४९५-१(१), ७४२८५१ ($), ७५७७१ ($), ७७४०५ ($) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ७५४६१-२(+), ७५८२७-२(+) (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., पग, मूपू. स्था. नमो अरिहंताणं० तिखूत), ७७२६१-२ (०३), ७५१५६ (३), ७५३६६(8) कर सुमति जिन), ७६४९६(+) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, मूपु. ( श्रीपार्श्वसुखमागार), ७७२५६ (४३) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं), ७४१०९-१(+#$) (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा. गा. २, पद्य, मूपू (चउकसावपडिमलुल्लूरण), ७३९८८-४ (+) (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यारि जे कषायरूप जे), ७३९८८-४(+) " (२) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह खरतरगच्छीय, संबद्ध प्रा.सं., प+ग. म्पू. (णमो अरिहंताणं). ७५१२३ (+) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), ७५३९३($) (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु, गद्य, भूपू (प्रथम वस्त्र उतारी), ७७४५६(+) (२) सुमतिजिन स्तवन- प्रतिक्रमणविधिगर्भित, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., डा. ६, गा. २०, वि. १६९०, पद्य, मूपू (सुमति १ י आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा. अ. ३ गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि. (पणमिव सुरिंदपूजिय), प्रतहीन. 1 , (२) आस्रवत्रिभंगी - यंत्र, पुहिं., मा.गु., सं., को., दि., (विशेष शब्द का अर्थ), ७५६८८ (+$) इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ७५८३४ (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), ७५८३४ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग, मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ७३४१७(+#$), ७३७०१(+), ७३७२१(+$), ७३९८३(+$), ७४२३० (+#$), ७४९०६ (+$), ७५५६१ (+$), ७५६०६ (+#$), ७५६६१ (+), ७३७९७ ($), ७४३२५($), ७५६२४(३), ७५८४९) ७७४६८(३) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (संजोगा० संयोगान), ७३४१७+०६), ७५८२३(७) , (२) उत्तराध्ययनसूत्र - टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ७३७२१ (+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं. ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), प्रतहीन. " (३) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका की कथा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (४) उत्तराध्ययनसूत्र- सुखबोधा टीका की कथा का अनुवाद, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, सं., गद्य, मृपू. (अर्हतः सर्वसिद्धाच), , ७४५४२(०६), ७४२४७/३), ७४२९४(३) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं. ग्रं. १५३०० वि. १८५ गद्य, मूपू., (अर्हतो ज्ञानभाजः), ७७५१३(३) 1 ४७९ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ७३९८३ (+४) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ७४२३० (+#$), ७४९०६ (+$), ७५६०६ (+#$), ७५६६१(+$), ७७४६८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), ७३७९७($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा० ), ७४३२५ ($) For Private and Personal Use Only (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह" मा.गु., कथा. ४. गद्य, भूपू (एक आचार्यनई एक चेलो), ७४२३० (+), ७३०२३(३) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, सं., पद्य, मूपू., (एकस्य आचार्यस्य), ७४२३८(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १९ बहुश्रुतपूजा दृष्टांत गाथा, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पग, मूपू. (जहा संखमि परं निहिय), प्रतहीन. Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ११ बहुश्रुतपूजा दृष्टांत गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जहा संखं मि० स्वगुण), ७६४९०(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., गा. २७३, पद्य, स्पू., (जीवाजीवविभत्तिं सुणे), ७५१६४(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १०-सज्झाय, संबद्ध, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (-), ७४१०५-१(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीर विमल केवल धणीजी), ७४१२९-२(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), ७५४३२-२,७५५१६($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, ग. कृपासौभाग्य, मा.गु., सज्झा. ३६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (सोहम कहे जंबूसूणो), ७४५७८(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४५७३($) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, म्पू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद),७३१४८(+$),७४७०५(+#$),७७५२६ (+$), ७३५२७(६),७५६३०(5) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), ७५६३०(5) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ७३१४८(+$) (२) उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिन), ७४७०५(+#$) (२) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), ७३१४८(+$) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ),७५२७२($) (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चउवीसमु), ७५२७२($) उपदेशसप्ततिका, ग. सोमधर्म, सं., अधि. ५, वि. १५०३, पद्य, मूपू., (श्रीसोमसुंदरगुरूज्जव), ७७२०८($) (२) उपदेशसप्ततिका-बीजक, सं., गद्य, म्पू., (श्रीजिनातिशयरूपमंगल), ७७२०८ उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम द्वितीयोपध्यान), ७६२३३-१(+) उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (महूरत प्रथम दिवसे), ७६२३३-२(+) उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलइ नउकारनइ उपधानइ), ७५८१४(#) उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदि मांडिने खमा), ७३३२१-२, ७६१४८($) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नाम नयरी), ७३८४५(5) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ७३८४५($) । उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं० ॐ),७४६३०-२ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), प्रतहीन. (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-यंत्र पूजनविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुस्यनखत्र ने रवीवार),७४६३०-३ ऋतुमतिदोष लक्षण-आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नहि जिणभवणे गमणं घर), ७३६९५-१ ऋषभादिजिन संदर्भश्लोक-वेदपुराणगत, सं., प+ग., मूपू., वै., (नाभिस्तु जिन), ७५०७३($) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ७३२९८(+#), ७३४४०(+#), ७३५५६(+), ७३६३५-१(+S), ७५६४७(+), ७७५०७(+$), ७७२५२($), ७५५७१(-) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रां हिँ ह), ७३२८२(+) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., ग्रं. ३८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश),७३१३८ औपदेशिककथा शास्त्रसंदर्भ संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (--), ७५३७६($) औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंजं समयं जीवो), ७६००५-३(+), ७३३१३(#) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४८१ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ७४५६७-३(+), ७४८६६-३(+), ७५३८४(+), ७३५३४-५, ७३८८०-३, ७३९६२-१, ७४८४६-४, ७३५९०-३(#$), ७४२४९-३(#), ७४६६६-२(#), ७६५५७(#), ७४४४८($), ७३५८२(-) औपदेशिक पद, क. सामदास, मा.गु.,सं., गा.८, पद्य, श्वे., (कपड० हिया किनै वात), ७५२६४-१ औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (क्रोध मान यथा लोभ), ७३५२६-४(+#), ७६५०८-२(+) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरु), ७५७०४(+), ७५९५९-२($) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मी गजवाज), ७३५२३-७(+), ७५८३७-२(+#), ७३९४४-१ औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ७४५४०-२(+#), ७४६६४(+), ७७४६१-२(+), ७४२५३, ७४७२२-२, ७४७८६-४, ७५२११-४, ७५६६५-२, ७६२४६-२, ७३८०४-२(#), ७४२८१-३(#), ७७१५३-४(#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले),७४७२३-१ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ७४५४९(+), ७६९६३-२ औपदेशिक श्लोक संग्रह-दया दानादि विषये, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (--), ७४१७४-१(+$) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-दया दानादि विषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४१७४-१(+$) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेण० चंपा०), ७४५९५(+#s), ७५६९४(+$) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ७४५९५(+#$) (२) औपपातिकसूत्र-सिद्ध स्तुति गाथा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (कहिं पडिहया सिद्धा), ७५१२०(+) (२) औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (से किं तं झाणे झाणे), ७५५७९(+) (३) औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते किसउ ध्यान जे मनन), ७५५७९(+) औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ७६७६६(+), ७७४१६-२ औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ७४५६७-४(+), ७५६२१-५(+), ७६६६३-३(+), ७७२०१-३(+), ७६६४३-३ औषधश्लोक-ज्वर, सं., श्लो. २, पद्य, (--), ७३०९६-३ औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, (अथ दाडमाष्टकाम छे), ७६६४३-२ कथाप्रदीप, सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (निरंजनं नित्यमनंतरूप), ७४४६३(+#$) कथाश्लोक संग्रह-सम्यक्त्वादिविषये, सं., श्लो. ६७, पद्य, श्वे., (त्वं स्मरसि निज), ७४१४१(+$) कथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), ७५७४०(+$), ७४५५४($) कथा संग्रह-८ प्रकारी पूजायां, सं., पद्य, मपू., (--),७५६४०($) कमलश्रीवसुभूति कथा-रागविषये, सं., गद्य, मूपू., (रागो हि यत्करोति न), ७३९१३-२(2) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, म्पू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), प्रतहीन. (२) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., श्लो. ७६, पद्य, मूपू., (द्वेषेपि बोधकवच),७६१४६ कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. ११२, पद्य, जै., (नमिऊण सुयहराणं वोच्छ), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह*, मा.गु., को., मूपू., (पहिली २० रौ उदै ते), ७५८९४(+$) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., अधि.७, गा. ४७५, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धत्थसुयं), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., अधि. ७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य कर्मद्रुम), ७३६०४(+$) (२) कर्मप्रकृति-हिस्सा ८ करण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (बंधण १ संकमणु), ७५६२१-६(+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ७४२६१-८+#), ७५६३६(+$), ७७४०६(+$), ७५९६५($), ७७२८१(६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (श्रीवीरस्वामिकुं नम), ७५६३६(+$) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., यं., मूपू., (श्रीवीरजिन प्रते), ७६७६४(६) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ७४४६१(+$) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (बंध प्रकृतिओ छे), ७४७०७-१(+) कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा.,रा., गद्य, मूपू., (मम निव्वाणं गोयमा), ७४९८७(+) कलिंगसेना कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभूत्कलिंगसेनाया), ७५६६३-१(+$) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ७३७२४(+$), ७३७९५(+#$), ७४१२१(+$), ७४३९६(+#s), ७४४०६(+5), ७४९०७(+5), ७५६५९(+5), ७५६९६(+#$), ७६२४०(+5), ७७२१०(+६), ७७२२५(+$),७७३४९(+$),७३४०९(#$), ७४६४६(#$),७४८२४-१(#$), ७५१२६(#$),७५१४२(#$),७६९६१(#$), ७३९५२(६), ७३९८२(६), ७४१७८(६), ७४६२१(६), ७५०२९(5), ७५१२५(६), ७५५९९(5), ७५६१२(६), ७५८९५(६), ७५९६६(६), ७७४१३(), ७७५२४(5) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), ७४५४३(s), ७५१०१-२(s), ७५८९५(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ७४११४(+$) (२) कल्पसूत्र-टीका*.सं., गद्य, म्पू., (प्रणम्य प्रणताशेष),७७३४९(+$), ७३९९१(#5), ७४७८३(#$). ७७३६९(5) (३) कल्पसूत्र-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७७३६९($) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध", मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), ७३७९५(+#$), ७३९१२(+$), ७४३९६(+#$), ७५५९५(+$), ७५१२६ (#$), ७५१४२(#s), ७६९६१(#$),७५११२($), ७५५९९(), ७५८८१(६), ७७५२४(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), ७३७९५(+#$), ७४४०६(+$), ७४९०७(+$, ७५६५९(+६), ७५६९६(+#$),७६२४०(+$),७७२२५(+),७३४०९(#$),७४६४६(#$),७४१७८(६),७४६२१(६),७५०२९(),७५१२५($), ७५६१२६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज),७३९८२($) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेव), ७४४०६(+$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७४०९०-२(+६), ७५१७१(+), ७४३५४(६), ७४६२१(६), ७४७७२(5), ७५१२५(5), ७५६१२(७), ७६२७३(७), ७६९५५($) (२) कल्पसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एजंबूद्वीप भरतखंडनै), ७५४४७(+$) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह, सं., प+ग., मूपू., (--), ७६२४०(+$), ७५४२२ (२) कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना*, संबद्ध, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७६०४१(+$) (२) कल्पसूत्र-जिनेश्वर गर्भकाल व महावीरजिन जन्मवांचन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवस्वामी नवमास ९), ७५८१७(+$) (२) कल्पसूत्र-दशआश्चर्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उवसग्ग गब्भहरणं इत्थ), ७३५१२(+#$) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७४७५४-१(+#), ७४७७६-३(+$), ७७५१०(+$) (२) कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीकल्पः सहकार एष), ७३३७६(+S), ७५८४०-१(#) (३) कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकल्पसूत्र आम्र), ७३३७६(+$) (२) त्रिशलामाता दोहला विचार, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (हिवै त्रिसला मातानै), ७७०६४ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*,सं., गद्य, मपू., (कल्याणापुरिम इह),७४२५४(+$) (२) कल्पसूत्र-वाचना विषयसूची, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम वाचना),७४४५५(+$), ७६०३४ कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), ७७२५१(६) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नम), ७७२५१($) कल्याणक विधि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (च्यवनपरमेष्टि नमः), ७५४१०-२ For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं. लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू (कल्याणमंदिरमुदार), ७३०६१(+), ७३१८५(५), ७४१७४-२(+४), ७४१९८(+४), ७४४३९(+४), ७४७३४(१०), ७५१०५-१(१), ७६२२८(+४), ७३५९५ (ड), ७५५८५१), ७५८४३(७), ७३५७९-१(३), ७३८३७) ७४९०८-१(३), ७५४७३-४ डा (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू. (सर्वशं जिनमानम्य), ७२९२३(*) www.kobatirth.org (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ७४१७४-२ (०४), ७४१९८ (६), ७४७३४(१) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ७५७८९(+), ७७१६३-१(+$), ७७४८५-१, ७५२३९ ($) कषादि स्वरूप, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (कषादि स्वरूपं चेट्ठ), ७४९९१-३(+) कामघट संबंध- धर्मप्राप्तिविषये, सं., श्लो. ५३ पग, श्वे. (उद्वाहे प्रथमो वरः ), प्रतहीन. (२) कामघट संबंध- धर्मप्राप्तिविषये हिस्सा श्लोक-१. सं., प+ग थे. (उद्वाहे प्रथमो वरः ), ७५६८०-४(०) " (३) कामघट संबंध- धर्मप्राप्तिविषये-हिस्सा श्लोक-१ का अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेवी वाहरै अधिकारै), ७५६८०-४(+) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ७४२२३(+), ७५८०४(+) (२) ) कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), ७५८०४(+) (२) कार्यस्थिति प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (वर्द्धमानं जिन), ७४२२३ (+) कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (कायथिति जीव गय इंद्र), ७७४४६ (+) कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं. का. ७२, पद्य, मूपू., (कारकाणि कर्ता कर्म), ७६८५७ (+) י (२) कारक विवरण- स्वोपज्ञ अवचूरि, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तंत्र प्रधान), ७६८५७ (+) कालभैरवाष्टक - काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ७२८९१-२ (अथ मोटा जोग वहे तेने), ७५२८०१०) (+) (देविंदणयं विजानंद), ७४६२२ (६) कालमांडलादि योगविधि- साधु, प्रा. मा. गु, गद्य, भूपू कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ७४, पद्य, भूपू " " " (२) कालसप्ततिका-टबार्थ, पंडित. उदयरुचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (देविंद्र नमिउ विद्या), ७४६२२($) कालिकाचार्य कथा, प्रा. गा. १२०, पद्य, भूपू (हवपडिणीवपयावो), ७४४६४+६) " कुंथुजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू (जय जय कुंथुजिनोत्तम), ७५६२१-२(+) , कुरुकुलादेवी स्तवन- सम्मेतशिखर, आ. वादिदेवसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (प्रणवहृदि यदीयं नाम), ७७२०२-१ (+६) कुलको डिमान गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (एगा कोडाकोडी सनाणवज), ७६३९९-१(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुसुमांजलि श्लोक, प्रा., सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारसारसौम्यक), ७३०४२-२, ७३०५६-१ कुसुमांजलिस्नात्रविधि लवणविधि पानीयविधि आरात्रिक मंगलदीपविधि, प्रा. मा.गु. गद्य, म्पू., (कलश कलश पानी भरी), ७४७०६-२ (+) कृष्णराजी विचार, सं., गद्य, श्वे., (लोकांतिक देवाः क्व), ७६९०१ क्षपकश्रेणी गाथा, प्रा., पद्य, मूपू (अणमिच्छमीसम्म अट्ठ), ७३८३३-२ (०३) (२) क्षपकश्रेणी गाथा - टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ७३८३३-२(#$) खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, मूपू. ( श्रीगीतमस्वामी), ७४६१६ (०), ७३८५७ (३) गच्छपतिगुरुवंदनविधि- अंचलगच्छीय, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (इच्छामि ख० इच्छाकारे), ७३१२१(+०) गणधरवाद, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (अस्मिन् भरतक्षेत्रे), ७६२८९(+) " - गणिततिलक, श्रीपति, सं., श्लो. १२५, पद्य, वै., (रूपोज्झितं रूपयुतं), ७६७७१ ($) (२) गणिततिलक वृत्ति, आ. सिंहतिलकसूरि, सं. गद्य, जै. वै., (साह्राददेवतावंद्य), ७६७७१ (३) गणित प्रश्नादि श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (अर्द्धत्र्यंशद्वादश), ७६६०६-३(+) गणेश स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (हेमजा सुतं भजे गाणेश), ७३६४८-३ गति आगति द्वार विचार- २४ दंडके, प्रा., मा.गु, गद्य थे. (नारकीदंड २ गति), ७३७१० 3 " For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गर्भस्थजीव शरीरस्वरूप विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (केनक्रमेण शरीर), ७२९३५-२(+) गांगेयभंग प्रकरण, मु. पद्मविजय, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं गंगेय), ७३८३२(+) गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., (कज्जल विजल गुंद),७४०६४-२,७३७२२-३(#),७६४८३-२(5) गाथा संग्रह*,प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ),७३९०८-८(+),७४२०२(+#$), ७४९१५-२(+),७६४२१-३(+),७२८९७-२, ७३३१२-५, ७६७६७-२, ७४३४४($) (२) गाथा संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ७४९१५-२(+) गाथा संग्रह-कर्मग्रंथ विषयक, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ७३४३८(#$) (२) गाथा संग्रह-कर्मग्रंथविषयक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--),७३४३८(#$) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (चउदुरिक्क दुप्पण पंच), ७६४५०-२(+) (२) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउ कहतांच्यार पैडा),७६४५०-२(+) गुणस्थानके आयुक्षय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मीसे खीण सजोगी न), ७७४२५-३(#) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोह),७५८०२(#) गुरुगुण प्रशस्ति संग्रह, सं., श्लो. १८, पद्य, वै., (शरीरमर्थ संप्राप्ति), ७४२७२-१(+) गरुभगवंत के नाम शिष्य का पत्र, सं., गद्य, मप., (स्वस्ति श्रीपार्श्व),७४४७१-४(+#$) गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, सं., प+ग., मूपू., (संख्यांकस्रजेत्पृष्ट), ७६६०६-५(+) गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (गुरुवंदनणमह तिविह), ७४१९३(+$) (२) गुरुवंदनभाष्य-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (तत्र प्रथमं फिट्टा), ७४१९३(+$) गुरुवंदनसूत्र, प्रा., पद्य, श्वे., (अड्डाइ जेसु दीवेसु), ७४००१-३ (२) गुरुवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अढाईद्वीप समुद्र माह),७४००१-३ गुरुशिष्य पत्रलेखनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीमद्वामेय), ७३१०९-२(+), ७३१२०-२(#) गूढार्थ श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (अजातचेरे लगडावबोधा), ७४६९२ (२) गूढार्थ श्लोक-अर्थ, सं., गद्य, श्वे., (अस्यार्थमेवमग्रंथयन्), ७४६९२ गृहस्थधर्म स्वरूप, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सम्यक्त्वमूलानि पंचा), ७५०७५ (६) गोविंद स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. १४, पद्य, वै., (भज गोविंद भज गोविंद),७४०८८-४($) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ७३८६८(+$), ७४३२६(+#$), ७५८८३(+),७६१८९(+$), ७२९०५, ७४२८३(#$), ७३१५५(६) (२) गौतम कुलक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा० लोभी नरा), ७६१८९(+$), ७३१५५(5) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ७४३२६(+#$) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह),७५२५६(+$), ७५२८६(+),७५३४५(+$),७२८७२($). ७३५९७(६), ७५५७७($) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ७५५७७(5) (२) गौतमपृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह हि पूर्वाचार्य), ७५२८६(+) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ७५३४५(+$) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकइं गामि धनसार इसिइ), ७५२५६(+$) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ७२८७२($) (२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह , मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), ७५३४५(+$) गौतमस्वामी अष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिं वसु), ७२९८४ गौतमस्वामी काव्य, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (अब्धिलब्धिकदंबकस्य), ७२९९९-२(+#) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ७३६९८-२(+#), ७४०८८-३, ७४७७१-१ For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४८५ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ७३४९६-१, ७४०८८-२, ७५८२८, ७४२३७ ४(#), ७५२७१-२(#) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ७५७५२-३(+) चंद्रार्की, उपा. मेघविजय, सं., प+ग., मूपू., (--), ७३५५८-१(+$) चंद्रार्कीपद्धति, दिनकर गणक, सं., श्लो. ३७, पद्य, (सूर्यं चंद्रं सद्गुर), प्रतहीन. (२) चंद्रार्कीपद्धति-चंद्रार्की पंचांग, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., वै., (यथा सूर्य स्पष्ट: ११),७३५५८-२(+) चक्रवर्तिऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (छ खंड भरतक्षेत्र),७४८५०-२(#) चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ च ह्रीं श्री ह्रीं), ७३०९४-१ चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ७३१८६(+$), ७३०९४-२ चतु:शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ७३९९५(+$), ७४३९०-१(+#$), ७५०६१-१(+), ७६५४२-१(+), ७५६४९, ७३७३७-१(६), ७३८०३(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावद्य योग विरति ते), ७४३९०-१(+#$) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ७५०६१-१(+), ७३८०३($) चतुर्विंशतिजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिनमजितनाथ), ७२९९९-४(+#) चमत्कारचिंतामणि, नारायण भट्ट, सं., गद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, श्रीसार कवि, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (यु विचार ज्योतिषको),७७३००-१(+) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (एवय समणधम्म १० संजम), ७३३६४-२(+), ७५६५७-३(+) चवरी श्लोक, सं., पद्य, वै., (सूर्यात् वेद ४ तथा), ७४१४८-२($) (२) चवरी श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (कालपट्ट सूर्यनक्षत्र), ७४१४८-२($) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), ७३५४५(5) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), ७३६५१(६) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ७६०८०(६) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ७५७३६(+$), ७४९१२(5) (२) चैत्यवंदनभाष्य-संघाचार टीका, आ. धर्मघोषसूरि , सं., गद्य, मूपू., (देवेंद्रवृदस्तुतपाद), ७४९१२(5) (२) चैत्यवंदनभाष्य-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (हं वांदिवा योग्य), ७५७३६(+$) चैत्यवंदन विधि, पुहि.,सं., गद्य, मूपू., (मंदिर के अग्रद्वार), ७६१५०-१ चैत्यवास्तुपूजा विधि, सं., गद्य, पू., (वास्तुदेवत्य मंत्र), ७५४५६-४ छायापुरुष लक्षण, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (अंतोमुत्तमित्ते), ७३२८१-३ छींक फल, सं., श्लो. ६, पद्य, (छींका फलं प्रवक्षामी), ७४७४९-१ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ७४६११(+$), ७४८२३(+$), ७४९९०-१(+$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ७६६८४(+#$) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहताणं० तेणं), प्रतहीन. (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं से भरहे राया), ७५६४५(+) (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहवार पछी ते भरतराज),७५६४५(+) जपमाला विचार, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सूत्रस्य जपमाला), ७३७८१-१, ७३८२६-३(#) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयण वरकप्प), ७७२६७-१(+#), ७७४१८(+$), ७५५६७(#), ७३९४१(६) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभयदेवसूरि नवांगीवृत), ७३९४१(६) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतो वर्ति), ७५५६७(#) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनाधीश), ७५३ मा.गु., पगध, मूपू., (3 ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण),७५३२५-१(+) जापफल गाथा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलचित्तेन यः जप्त), ७४२६१-१०(+#) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीधरालक्ष्मीसौभाग), ७५५९८(+), ७४५१५-१(६) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., गा. ९, प+ग., मूपू., (सुरनदी जलनिर्मल धारय), ७४७७५-२ जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (श्रीमजिनाधीश), ७५३४९-२(+$) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह),७२९००,७५४८७ जिनप्रतिमा ४ निक्षेपा विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (जत्थय जंजाणिज्जा), ७४८४१(+) जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ७५३३२, ७५३३७ जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलो मुहूर्त भलु), ७६६४०(+) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ७४८८९ जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तंबोल पाण भोयण वाहण), ७४४८२-२(+#), ७४८८८-३(+), ७२८९५-२ (२) जिनभवन १० आशातना गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तंबोल पुंगीफल नागव), ७४८८८-३(+) (२) जिनभवन १० आशातना गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पान सोपारी अजमो प्रम), ७२८९५-२ जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), ७४३२१(+), ७४९१५-१(+), ७२८९५-१ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मां१ क्रीडां),७४३२१(+),७२८९५-१ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा क्रीडा हासा), ७४९१५-१(+) जिनभवनगमनारंभफल गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणसाहेइ चउत्थं छ8), ७३९६२-३ जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), ७४४४६(+#$) (२) जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., ग्रं. १५५०, वि. १०२५, गद्य, मूपू., (निष्क्रांतौ कृत पंचम), ७४४४६(+#$) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., श्लो. १६६, पद्य, दि., (प्रसिद्धाष्टसहस्रेद), ७५६५०(+) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअहँतो भगवंत), ७५०८७-१ जीव आयुमान विचार, सं., गद्य, मूपू., (समाषष्टिर्द्विघ्ना), ७६०३९-४ जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (वली नीत ने विषे उपजे), ७७४२६-१ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, पू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ७४१०८(+$), ७४९००(+#s), ७४९०९(+#$), ७४९१३(+#$), ७५८११(+#), ७५५६९, ७३६२९(#$), ७५५५९(#$) । (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), ७४९००(+#$), ७४९०९(+#$), ७४९१३(+#$) जीवादि भांगा, सं., गद्य, मूपू., (अस्ति आत्मत), ७३७८१-२ जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ७४३०४(+६), ७५९६८(+$) जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ७३९९२-१(+$), ७४१५६-१(+#s), ७५९४८-३(+), ७६३१५-१(+), ७३९०३-३ (२) जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनधर्म जीवानइ), ७३९९२-१(+$), ७४१५६-१(+#$) जैनतीर्थावलीद्वात्रिंशिका, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३२, वि. १८४८, पद्य, मूपू., (तीर्थेश्वर श्रीयुत), ७५३४९-१(+) जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ७३३२७-३(#), ७४८२६-५(२), ७५२६१-२(#) जैनधर्म प्राचीनता विषयक साक्षी पाठ, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (बोपदेव नामनो), ७३२३१(६) जैनधर्म महात्म्य श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (एक्कमिविजंमिपए), ७६०३९-३ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ७६१५०-४, ७७४९५(#$), ७३२५५-२(६), ७३७६६(5), ७५३५१(६) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताण), ७३३७३-२(+#), ७४७७६-२(+), ७७२०१-२(+), ७७२०२ २(+),७३०९४-३,७४५१५-२,७७२१५-२(#$) । जैन व्याकरण, सं., पद्य, श्वे., (अवस् अग्रे मंडली), ७६३०५-४(+), ७६७७५ (+$) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ जैन शुकनावली चक्र, सं., गद्य, मूपू. (--), ७६९९३ (४) " जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, वे. ( त्रीणि स्थानानि), ७४८१२-५ (+४), ७६३०८-१, ७६९६३-१, ७४७६३-२००१, ७४९७२(5) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अध्य. १९, ग्रं. ५५००, पग, मूपू., (तेणं काले० चंपाए), प्रतहीन. (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (ज्ञाताधर्मकथा छठु), ७२९५७-२ ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, श्वे., ( तिहां प्रथम खमा० इरि), ७६०१५-१ + ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., ( श्रीनेमिनाथस्वामी), ७३०८५ ज्ञानपंचमी स्तुति, अप श्लो. ४, वि. १४८६, पद्य, भूपू (संपत्ता समसुक्खपंचमग), ७३१४६-२ www.kobatirth.org (पंचानंतक सुप्रपंच), ७५९९३-२ श्रीनेमिः पंचरूप), ७५९७८-४ י' ज्ञानप्रदीप, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (चरे लग्ने चरे सूर्ये), ७५३३१-४, ७४२३३ (#), ७५२७१-१(#$) ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. प+ग. जे. वै. (-), ७३५५८-३(+३), ७६०२०-३(+), ७७४६०-२(+), ७३४१०-२, ७६११७-२(०) ज्योतिषयंत्र, सं., पद्य, (--), ७५४३९-१(#) ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु. सं., को. (--), ७३५११-३(४) " ज्योतिष श्लोक, मा.गु., सं., पद्य, वै., (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), ७६१२१-२(+), ७६१७१-३, ७५९५८-४($) (२) ज्योतिष लोक- टीका, सं., गद्य, वै., (--), ७५९५८-४) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ध्रुवघटी पुटपंक्ति), ७४९६६-२ (+) ज्योतिष लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, भूपू (अच्चिबुहविहप्पिसणि), ७७५४० ज्योतिष लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, जै.? (जन्मलमं वर्ष लगे), ७७१४२-२(*) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (मेषे च मीने त्रियुगा), ७६६०६-४(+) ज्योतिष संग्रह, सं., पद्य, (इछेदु र्भप्रवेशे), ७४९४७- १(३) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ७७०५३ (+$), ७७५३६ (+$), ७४७९४ ($), ७४९३४($), " ७५३३१-१(३) + ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, भूपू (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ७३४०४-३ (०) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ७६३९७($) तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, अ.भा., उ. गु., सं. हिं. प+ग. (--), ७६१६१-२(+) " " तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ७३९९२-२(+), ७४८७१(+) (२) तत्त्वविचार लोकसंग्रह - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वानि कहतां), ७४८७१(+) (२) तत्त्वविचार लोकसंग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूषू., (--), ७३९९२-२(+७) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, भूपू. दि. (सम्यग्दर्शनशुद्ध), प्रतहीन. (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- चयनितसूत्र, सं., गद्य, मूपू., दि., (--), प्रतहीन. " (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - चयनितसूत्र की टीका, सं., गद्य, मूपु., दि., (--), ७३७२० (5) तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ७५६७०(+#$) तपविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (नांदल मांडीजे), ७५३६१-२ , तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा. गा. १४, पद्य, मूपू. (तिजयपहुत्तपवासय अट्ठ), ७३५६९-१ (+5), ७५४७७-२(+), ७५७५१-१, ७३४८९ २(#S), ७४३०७-१(#) ४८७ יי तिथिनिर्णय विचार- विभिन्न शाखोद्भुत, सं., पग. वे (एतच्छ्रुतं मया विप्र), ७५५९६(क) तीर्थंकर, चक्रवर्ति व वासुदेवनाम, अवगाहना व आयुष्य, प्रा. गा. ११, प+ग. म्पू, (दो चक्की हरपणगं पणग), ७४७१४-२ (४) " For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १६५३(+#), ७३६९६(+5), ७४५९१, ७३९८७-४(#), ७५५८७(4) तीर्थोद्रालिक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १२३३, ग्रं. १५६५, पद्य, मूपू., (जयइ ससिपायनिम्मलतिहु), ७४४६५(#$) त्रिकालवर्ति जिन वंदना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जे अअईया सिद्धा), ७४२६१-७(+#) त्रिपदीगाथा, प्रा., पद. ३, पद्य, मूपू., (उपन्नेइवा विगमेइ वा), ७६४४५-२(+) (२) त्रिपदीगाथा-व्याख्या, सं., गद्य, स्पू., (उत्पत्तिश्चतुर्धा), ७६४४५-२(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ७३९११(+$), ७४३४५-२(+$), ७३५८८, ७५७४६-२, ७६७०७, ७३९८७-३(#), ७४८४२(#$), ७४४५९($), ७५४६६($), ७५६६४($) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नाभेयादि जिनः), ७२९९९-३(+#) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीस जिणे), ७३२९५(+#), ७३८७१-१(+$), ७५१२१(+$), ७६२३८(+#), ७५५६२,७५६४८ (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामेय), ७५६९५(+$) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ७३८७१-१(+$), ७५१२१(+$), ७६२३८(+#) दक्षिणार्द्ध भरत जीवाकरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (मंडल खित्तायामो उसूउ),७४८०२-२(+) दर्शनाचार अतिचार विचार, सं., गद्य, स्पू., (सम्यक्त्वधारिणे),७४१९२-२(#$) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ७३८०६(+$), ७४८६८(+#$), ७५६१८(+$), ७५६८०-५(+), ७५९६३(+), ७५६१६, ७३५४६-१(#), ७७२२६(#$), ७५४५४(६), ७७५२८ १८) (२) दशवकालिकसूत्र-टीका*,सं., गद्य, मूपू., (--), ७५५६६(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुत्कृष्ट), ७७२२६(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ७३८०६(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल महिमा),७६१८२-२ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ.१०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), ७३९०३-२ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ७४५५५ २(+$), ७७४३१-३(+#),७४६४८,७४८३६, ७४०९३-२,७३५१३(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (समरीय सरसति दामिनी), ७६१४३($) (२) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नमवा नेमि जिणंदने), ७३३८२ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताण० हवइ), ७५६३५(+$), ७४०३३-१ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), ७५६३५(+$) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ७४४१९(#$) दानषट्विंशिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लो. ३६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (दातुरिधस्य), ७७२७१ दिल्ली वर्णन, सं., गद्य, वै., (पृथ्वीनाथसुता भुजि), ७४०६६-६ दीक्षा मुहूर्त, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (दिक्षामुहुर्त मघा), ७३८२६-२(#) दीक्षाविधि*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (दीक्षा देन्हार पूरवे), ७५३१६ For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४८९ दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ७२९१७(+), ७३३२१-१, ७३५१९, ७७२४१, ७३८२६-१(#), ७५८२० (#),७४६४९() दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मूलपुनर्वसुस्वाति), ७४४२५(+#) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रो), ७४८४४(+), ७५८३८(+), ७५२९२-४(#), ७५०४१(६) दीपनमस्कार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (शुभं भवतु कल्याणं), ७६४९५-३(#) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ७२९९६($), ७४८६०() (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. १२००, वि. १७६३, गद्य, म्पू., (अहँत बालबोधानां), ७२९९६(5) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (अष्ट माहाप्रातिहार्य), ७४८६०($) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गा. १३७, प+ग., मूपू., (उप्पायविगमधुवमयमसेस), ७३७३९(+$) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उप्पन्नेवा सर्व वस्त), ७३७३९(+$) (२) दीपावलीपर्व कल्प वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७३७१६(+#$) दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,प्रा., गद्य, म्पू., (जाते वीरजिनस्य निवृत),७४५०९($) दहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, वै., (अनमिलनी बहुतई मिलई), ७३६१८-३, ७४९३०-७, ७६०३३-२, ७३१३३-२(#), ७३१४५-२(६), ७६६३८-३($), ७७२६५-२($) दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), ७३४५५(#$), ७७२७४($) देवपूजा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., ग्रं. २६९, वि. १४वी, गद्य, मूपू., (संपयं जहा संपदाय), ७५६४१(+$) देवलोक विमानविचार गाथा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवद्दीवे एगो दो नाग), ७६११५-४(+$) देवादिचतुर्गति आगत जीवलक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (देवता माहेथि आव्याना), ७५६७५-४(+),७६७०३-३(#) देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., पद्य, मूपू., (देसावगासियं उवभोग), ७५८९०-३(+-) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ७३०९१ द्वादशव्रत प्रायश्चित, सं., गद्य, श्वे., (जघन्य आताशतनायां), ७४१४३-२(#) द्विदल विचार-प्रत्याख्यान भाष्यगत, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (विदलं जिम ओपत्था),७४१५०-१(+#) धनुषपुष्टि क्षेत्रकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उसुवगो छगुणिए जियवग), ७४८०२-३(+) धर्मगीता, सं., पद्य, वै., (सूर्यपुत्रोवाच भृत),७६८३२-२(#$) धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), ७५८४६-१, ७४४६९(5) (२) धर्मध्यान लक्षण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आणावीज कहेता वीतराग), ७४४६९($) धर्मसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३९६, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयराग), प्रतहीन. (२) धर्मसंग्रहणी प्रश्न, हिस्सा, प्रा., पद्य, मूपू., (जइलिंगमप्पमाणं न), ७४९९१-१(+) (३) धर्मसंग्रहणी प्रश्न-टीका, सं., गद्य, मूपू., (यदि लिंग द्रव्यलिंगम), ७४९९१-१(+) धातुरूपावलि, सं., गद्य, वै., (रौति रवति रुतः), ७७४६२-३(+) धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा.,रा., गद्य, श्वे., (अरिहंतसक्खियं सिद्ध), ७५४७०-३(+#), ७६२९२-२(+) धार्मिकबोलविचार संग्रह-आगमिक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ वंदित्तुनी ७ गाथा), ७३४११(+#) ध्यान विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अत्र कायवाड़मनसोस्थै), ७५४०१(+$) ध्रुवांक संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, (--),७६६५४-१ ध्वजादंडरोपण विधि, मु. देवचंद, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम भूमि), ७४७६५(६) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ७४४०३(+$) (२) नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ७३८२२ (२) नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अर्हस्तनोतु स श्रेय), ७५६२५ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९० www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ नंद्यावर्त्तपूजा विधि, सं., गद्य, मूपू., (परमेष्टि मुद्रां), ७५४५६-३ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा. पद. ९, पद्य, मूपु णमो अरिहंताणं), ७३८८७-१(+), ७५१२४-१(+), ७५३८०-३(+), ७३५३४-१, ७४४४०, ७६१९५, ७७४३७-२(०) ७४५८५(३) ७४८३०) ७५०८७-४(5) 7 (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (अरिहंतन माहरउ), ७५१२४-१(+) (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू, (बारसगुण अरिहंता), ७३३०० (+), ७३८८७-१(+४), ७५४३१, ७४०२५(5), ७४४४० (5) ७४५८५(5), ७४७८८(5), ७४८३०(5), ७५०८७-४६) (२) नमस्कार महामंत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमस्कार अरिहंतनइ काज), ७४४४० (२) नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो क० नमस्कार हूवो), ७६१९५ नमस्कार महामंत्र स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. गा. ३३, पद्य, भूपू (परमिडि नमुक्कार), ७५९६७(+) ', (२) नमस्कार महामंत्र स्तव स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि सं. वि. १४९७, गद्य, भूपू (जिनं विश्वत्रयी), ७५९६७(+5) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा., मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामितसंपय करणं तिम), ७६४७७-१ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू. (नमिऊण पणय सुरगण), ७३५६९-२(***) नलायन, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., स्कं. १०, पद्य, मूपू., ( जयति जयति देवः केवलज), ७५२०४(+$) नवग्रह जाप, मा.गु. सं., पद्य, थे. ( कस्मिन् रिष्ट ग्रहे). ७३४९६-२ , " नवग्रह फल, सं., श्लो. १५, पद्य, (त्रिषष्टो दशमोच), ७३३३५-२ नवग्रह स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (अधनुतस्त्रिपुरकजये), ७३७८२-२ , नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ७३७४१ (+$), ७४४२७(+#$), ७४५८८(+$), ७७५०६(+$), ७२९५२, ७४३७२(#$), ७४५२५ (#$), ७५६१९(#$), ७३७३६($), ७३७३७-२($), ७३७९६($) (२) नवतत्त्व प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ७५६१९(३) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. २००, गद्य, मूपू., (हवे विवेकि सम्यग् ), ७६१००(# ), ७५९२४($) (२) नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (जीव कहतां च्यार), ७४४२७(+माड) (२) नवतत्त्व प्रकरण पदार्थ विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू., (जीव अजीव पुन्य पाप), ७६३४३ (*) " (२) नवतत्त्व प्रकरण- बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. ( जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ७४५०२(+६), ७६१९३ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व मांहि रुपि), ७५५४५ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, म्पू, (जीवाजीवापुन्नं पावा), ७३६८६ (६), ७४९१०(१), ७७१७५ (४) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त्वना नाम), ७७१७५ ($) (२) नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीवीरजिनं नत्वा), ७४९१०(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण - हिस्सा ६ द्रव्यपरिणामविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), ७६६६४-१ (३) नवतत्त्व प्रकरण- हिस्सा ६ द्रव्यपरिणामविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (षटद्रव्य मध्ये जीव१), ७६६६४-१ (३) ६ द्रव्यपरिणामविचार कोष्ठक, संबद्ध, प्रा., को. भूपू (परणामी १ जीव), ७४१२५-२ नवपद गरणुं, प्रा., मा.गु., गद्य, वे., ( ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण), ७४११३-१(+#) नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु. सं., पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंत), ७३४१२-२ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ७५०८३ ($), ७५६९१($) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सं., गा. १४, पद्य, म्पू, (अरिहंत पद ध्यातो), ७३१९३ (+) " नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., स्मर. ९ प+ग, मूपू, नमो अरिहंताणं० हवइ), ७७४०१(३) ७७५२० (45) नवीनप्रासादस्थापना विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, म्पू., (छत्तत्तवउत्तारं भालक), ७५२९२-५(क) नष्टोदिष्ट विधि, सं., प+ग, मूपू., (तत्र पूर्व येषां), ७६०७१-२ नाडी परीक्षा, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (सुप्ता च सरला दीर्घा), ७७५४९-२ יי (२) नाडी परीक्षा-टवार्थ, मा.गु., गद्य थे. (सूति जाणी जइ पाधरी), ७७५४९-२ For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४९१ नेमिजिन चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ७५८४४(+$) नेमिजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (इंद्रोपंद्रौ पुनर्नत), ७५३३९-५ नेमिजिन स्तुति-द्वयक्षरगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (मानेनानूनमानेन नुन्न), ७३६७१-१ नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (परमान्नं क्षुधात), ७३७४७-९(#) पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयं संभवं तं अजिय), ७६८२८-२ पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि, सं., श्लो. २५५०, वि. १४९०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य जगदानंद दायक), ७४७८४(+$) पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ७२९९९-१(+#), ७३९५३-३(+), ७३४०४-२(#) पंचमिथ्यात्वविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (अभिगाह अनाभिगो),७६१६०-२($) पंचशक्रस्तव विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासम ३ देके इच्छा०), ७५३३५-१ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), ७५१६९(+S) (२) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १८८५०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मद्रुमदाहदाव),७५१६९(+$) (२) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, मूपू., (मिच्छा अविरय देसा), ७६४५०-३(+) (३) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश), ७६४५०-३(+) पंचांग प्रणिपात गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पणिवाओ पंचंगो), ७४८८८-९(+) पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे.?, (कुश्रितं कुप्रनष्टं), प्रतहीन. (२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, श्वे.?, (दक्षिणदेश तिहां महिल), ७७२४५(#$) पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार),७६००५-४(+) पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० इरिया० पडिक्कमी), ७३३८२-३(+), ७७४४५-२(#) पट्टावली कथा, सं., गद्य, श्वे., (श्रीवीरपट्टे), ७५५५८(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रामवासी वसु), ७४०९०-१(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७४७९३(+#), ७३०५२, ७४९०१, ७५४७८($) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ७५५४० पट्टावली-विविधगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (देवसूरि गछे पंडित), ७२८९७-१ पत्रलेखन पद्धति, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमदमंदान), ७५४३३(#) पद्मद्रह मान, सं., गद्य, मूपू., (पद्मद्रह कमलवासनी), ७५६१७(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ७३७१२-२(+$), ७५६०३(+#) (२) पद्मावतीदेवी अष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., ग्रं. ५००, गद्य, म्पू., (प्रणिपत्यं जिनं देवं), ७३७१२-२(+$) पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ७५४६०-१(+$), ७७३११(+#), ७३११४(#), ७३४७२(६) परिहारविशुद्धि विचार, सं., गद्य, मूपू., (इदानीं परिहारविशुद्ध), ७४१९२-३(१) पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ७५२८४ (२) पर्यंताराधना-बालावबोध*मा.गु., गद्य, मपू., (नमीनइ नमस्करीनई),७६३८५(+#) पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (प्रथम इरियावही), ७४३९७(+$) पर्युषणपर्वनिर्णय विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ननु सवीसईराएमासेवइ), ७६७०८ पर्वतिथिनिर्णय पूर्वाचार्यप्रणित सामाचारी गाथा संग्रह, मु. देववाचक, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (आसाढकत्तियफग्गुणमासे), ७५९०६(+#) पल्लीपतन विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (बार उघाड पडतां गिलोई),७७३४७-२ For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्या प्रतिमस्य),७२९१२-३(+$), ७३२१८,७४१४४-२,७३९९० २(#$),७६०३५-२(#) (२) पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (स श्रीवर्द्धमानो), ७३२१८ (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), ७४१४४-२ पारदसिद्धिकरण विधि, सं., श्लो. १, पद्य, (उदंबरार्क वटुदुग्ध), ७३५१५-३(+) पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, म्पू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ७६१६२() पार्श्वजिन कलश, प्रा.,सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (अहो भव्या), ७४४६७-२ पार्श्वजिन-कलिकुंड पद्मावतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु.,सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीकलिकुंडं तुड), ७३१४१(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रयामि तं जिनं सदा),७५५२०-२(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ७३६१९-५(+), ७४९३३-१(+), ७३९८९-२(2) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरस), ७५७५२-१(+), ७५७५९(+S), ७६३९०-१ पार्श्वजिन नमस्कार-जीरावला, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आधिव्याधिहरो देवो), ७३९५३-५(+), ७३७४७-६(#) पार्श्वजिनप्रभाव स्तवन, वा. सकलचंद्र, प्रा.,मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वामोदर सरोवर जिनहस), ७६१७६ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ७५५९३(+$) पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते पार्श्व), ७३७१२-१(+) पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री), ७६५९६-२ (२) पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (कुंकुमगोरोचनकर्पूर), ७४९२१(5) पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (नमामि श्रीपार्श्व), ७७०१४-१(+), ७३५२५-२($) पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. वादिदेवसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (आर्तनामोदरं कृत्वा), ७३०९६-२ पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (स्फुरदेवनागेंद्र), ७६३९३-३ पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ७४१८८-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद्रोदय, सं., गा.८, पद्य, मूपू., (जय जिन तारक हे),७४३५५-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., गा. ४४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जीराउलि राउलि कयनिवा), ७३११६(+$), ७६४१२(+$) पार्श्वजिन स्तवन-मंत्राम्नायगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु.,सं., गा. ७, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वप्रभु), ७३३४९-२ पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, मु. सुरचंद्र ऋषि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रेयोमयं ही बलमालमा), ७५७५२-२(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे),७३९५३-४(+),७४२६९-२(+$) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), ७७२०३(+$) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), प्रतहीन. (३) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति का भावार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ७७४१६-१(६) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७७२०३(+$) पार्श्वजिन स्तुति, मु. रामचंद्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रियेवोस्तु), ७५५९०-१(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मालामालानबाहुर्दधददध), ७५२३३-२(+), ७३१३४(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. सुधर्मशिष्य, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (नृपाश्वसेननंदन),७३०८६-४(+#) पार्श्वजिन स्तुति, स., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (या या धाधानिधा), ७४३३३-१ पार्श्वजिन स्तुति-कलिकुंडमंडन, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो पार्श्वनाथाय),७३३४९-१ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ७४४७२-२(+), ७३६०२(६) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ७४१३२-४(+$), ७६८२८-१(६) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४९३ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ७४०६५-१ पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल),७५६३२-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-सप्तफणी, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (एक दंडानि सप्तस्युः), ७४१८८-२ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ७४०९६-२(+), ७४१३२-३(+), ७५५०३-१, ७५९९३-४, ७६३९१-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. ३७, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि ए), ७३३७३-१(+#) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिअ तसे), ७३३७३-१(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्र सुरपति), ७६७६१-१(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ७३७४७-१०(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ७३७४७-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ७३२५५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सुरनरासुर नायक पूजित), ७३६८३-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ७३१६८(+), ७६२४५(+#), ७३१९४-१,७३०४१(#) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि-बालावबोध, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, म्पू., (नत्वा पार्श्वनाथाय), ७६२४५(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लिपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मान), ७५३३९-६ पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ७५४७७ १(+), ७५४७३-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ७३१६३-२(+), ७३६६७ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ७५५८०-१(+$), ७६११३-१(+), ७७१७४($) पार्श्वधरणेद्रपद्मावती मंत्र, सं., गद्य, म्पू., (ॐ ह्रीं श्रीं), ७३७४७-४(2) पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ७६८८०(+$), ७७०१८($) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ७६६८९(+), ७७५०२(+), ७४९९४-१, ७७५०४, ७७२४९(#), ७७२५०(#), ७४१२४(६), ७४९९५(६), ७५०८९($), ७७०९८६), ७७१४०(5) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार),७५८९६ पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (संपुन्न इंदिअत्त), ७५०७९(+), ७५४७२ (२) पुण्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुनिकुल प्रकीर्ति), ७५४७२ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ७५०७९(+) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ७६०५४(5) (२) पुण्यपाप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोए वरीसे छत्रीस), ७६०५४(६) पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ७६९७०(+$), ७७०३८-१(+) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), ७३८२३($) पूर्ववर्षमान विचार, मा.गु.,सं., गा. १, प+ग., मूपू., (दशसून्यसमायुक्तै रस), ७६५८५-३(+), ७७५३८-४ पूर्वादिमान गाथासंग्रह, प्रा.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (द्वात्रिंशसहस्राणि), ७६६०६-२(+) पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ७५४३८-१(#) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ७४१५०-५(+#), ७६०७७-२(+#$),७७३८३(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ७६३९९-३(+) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रज्ञापनासूत्र - ४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ७६२५०-२ (+) (२) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा खी उत्कृष्टस्थिति आयुष्यबंध विचार, वा. श्वामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू., (केरिसिया णं भंते), ७३३५३ ३(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा स्त्री उत्कृष्टस्थिति आयुष्यबंध विचार की टीका, सं., गद्य, म्पू, (मानुषी सप्तम नारक), ७३३५३-२(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र - चयनित सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (अजीवपज्जवाणं भंते कइ), ७६२५१(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र - चयनित सूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अवगाहना ते आकास), ७६२५१(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र - चयनित सूत्र का यंत्र, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७६२५१(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र- २३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, भूपू (तीर्थंकर चक्रवर्ति), ७५२८३ (*) " (३) प्रज्ञापनासूत्र- २३ पदवी विचार यंत्र, मा.गु., पं., म्पू. (तिर्थंकर चक्रवर्त्ति) ७६०५१ " (२) प्रज्ञापनासूत्र- ४६ लेश्या बोल अल्पबहुत्व थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (पनवणाजी पद१७ मे उदेसे), ७४६०१२(+#) (२) प्रज्ञापनासूत्र - अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ सव्वत्थोवा गर्भज), ७७४२६-२ (२) प्रज्ञापनासूत्र - पच्चक्खाणविधि फल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. श्रीमहावीरस्वामी), ७४०३५-१ (२) प्रज्ञापनासूत्र- बोल", संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्षलोक मध्ये), ७४०१३(+), ७५९२३(+), ७६३९९-३(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), ७५६७६-१ (३) प्रज्ञापनासूत्र - सज्झाय का टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू.. (कह्यो देखीय जाणीवइ), ७५६७६-१ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ७५८०५ (+#), ७५८४५, ७५३२९-१($) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका टवार्थ में, मा.गु., गद्य, वे. (प्रज्ञा क० बुद्धि), ७५८०५ (१४), ७५३२९-१(5) " प्रतिष्ठाकल्प, मु. उत्तम, मा.गु. सं., पग, मृपू, (प्रणम्य भक्त्या ऋषभ), ७५३९० (5) प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (मनई न करूं वचने न), ७५५३६ (+$) " प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (भावि अईयं कोडि अहियं), ७३१८९ (+$) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ अनागत पच्चक्खा), ७३१८९(+$) प्रबंधचिंतामणि, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., अ. ५ ग्रं. ३१५०, वि. १५वी, गद्य म्पू, (श्री नामभिभूर्जिन), ७४१९२- १) प्रबंधचिंतामणी, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., ग्रं. ३५२८, गद्य, मूपू., ( श्रीनाभिभूर्जितः पात), ७४४३७($) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८. सू. ३७९, वि. १९५२-१२२६ प+ग. मृपू (रागद्वेषविजेतारं), प्रतहीन. (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं. परि. ८, गद्य, मूपू., (नमः " " " परमविज्ञानदर्शना), प्रतहीन. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं. परि. ८ नं. ५६८०, वि. १३वी प+ग, भूपू (सिद्धये वर्द्धमान), प्रतहीन. (४) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार - स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका का संक्षेप, सं., गद्य, म्पू, (सिद्धयेवर्द्धमानः ), ७६२४१(+#) (५) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार - स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका का संक्षेप का टिप्पण, सं., गद्य, भूपू (समस्तसस्तशास्त्रार्थ), ७६२४१+४) ७ प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि प्रा. द्वा. २७६ गा. १५९९ ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू (नमिऊण जुगाईजिणं), ७५३३६३) ७४१९२४मण (२) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा नवनिधान, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नेसप्पे पंडुयए पिंगल), ७४४२९ (+$), ७४४८२.३(+०३) (३) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा नवनिधान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां देशनगर पुर), ७४४८२-३ (+#$) (३) प्रवचनसारोद्धार - हिस्सा नवनिधान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४४२९(+$) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४९५ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), ७४२६९-१(+$) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ७३४२४(६) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७३४२४($) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ७४१११($) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनवरेंद्र नागनरामर), ७४१११(६) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), प्रतहीन. (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, सं., वि. १८५३, गद्य, मूपू., (--),७४५१०(+$) प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अखंडिअचारित्तो वय), ७७२१५-१(#$) (२) प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७७२१५-१(5) (२) प्रायश्चितविधान गाथासंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७७२१५-१(#$) प्रासुक पानीविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (जाथइ सचित्तयासे), ७४१५०-२(+#) प्रास्ताविकगाथा संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ७३५३४-३ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ७३८१८-२(+#), ७६८४८(+#$), ७४८९७, ७५१९२-२, ७७१५३-२(#) (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच महाव्रत अने), ७४८९७ प्रास्ताविक दोहे, पुहि.,सं., गा. ७५, पद्य, (चंचल चपल चोफला बहु),७४५६३-४(+$) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलति तारा विचलंति), ७२९९९-५(+#), ७३८७०-२, ७७१६२-४(#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (देयं भोजधनं धनं), ७५९२९-३,७४४१७-२(#) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु देवदेवाय), ७२९४१-४(+#), ७३५१५-४(+), ७७४८५-२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे.?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ७६१५२(+$), ७६७७०(+), ७७२७७ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११०, पद्य, श्वे., (कोटंच बूटं च पतलून), ७३९७८(+#$), ७४७८७-३(+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै.?, (दाता दरीद्री कृपणो), ७३३५४-२(+), ७३५२४-३(+), ७५६८०-६(+), ७७४६०-३(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माजन्मकुले शरीर),७५२३८-२,७६४४१-२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., (श्रिष्टे संगः श्रुते),७५६२१-४(+),७५६२६-२ बाराक्षरी, सं., गद्य, (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ), ७७४३७-१(#) बाला स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (ऐं आणंदवल्ली अमृत), ७५४६०-३(+) बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलुं मूहूर्त), ७५२१७(+) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन), ७५९९३-१ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, म्पू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), प्रतहीन. (२) बृहत्कल्पसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (न कल्पै साध साधवीनै), ७५२०९(+#$) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, म्पू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ७७२०५-१(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजल जलहर), ७७००८(+) (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने जे भगवंत सजल), ७७२०५-१(+$) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ७५६१४(+), ७५६८१(+$), ७५७७४(+$), ७५४७५-१, ७५५८६, ७४९०२-२(#$), ७५०४६-१(६) बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्हत्सिद्धाचार्यो), ७५७७९, ७५९३३, ७७०६९($) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ७४२१९(+#s), ७५०५३(+$), ७५९२२(+$), ७७२०५-२(+$), ७४२४८(#$), ७४२९२(#s), ७४४२६(#s), ७३७०४-१(६), ७४४६२(), ७७२०९(5) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, मूपू., (नत्वा प्रणम्य), ७५०५३(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ७४२४८(#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ७७२०५-२(+$), ७४२९२(#$) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), प्रतहीन. (२) बृहत्संग्रहणी-हिस्सा सौधर्मादि विमान वर्णन, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., वि. ७पू, गद्य, मूपू., (सत्तसयसत्तावीसा), ७३७१९(+$) (३) बृहत्संग्रहणी-हिस्सा सौधर्मादि विमान वर्णन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (तिहां पहिलांसोधर्म), ७३७१९(+$) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (बृहस्पतिमहन्नौमि), ७४२३७-२(#) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ७३५४३-१(+#$), ७३६१४(+s), ७५१६०-५(+), ७५३२४-७(+$), ७५३७०(+$), ७५३७८(+$), ७५४५७(+$), ७६३२२-१(+$), ७५३५३, ७५६६९, ७५९१८, ७६१३९-२, ७५४२१(#), ७६०९६ (#$), ७४८१५-१(६), ७५७२२(६), ७७५२३(६) बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ),७७०७९-२,७५४२९(#$), ७५१५४($) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ७६०४५-१(+#), ७३०३६-३, ७५८६४-२, ७४३१६ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ७३४३१(+#$), ७४२९१(+$), ७४४६८(+#$), ७४५८९(+$), ७४६१८(+5), ७७५०९(+$), ७५४७३-३, ७३१३७-१(#), ७३४५६-१(#s), ७३८१६(#$), ७४६१२(#$), ७३९४०(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-लघुटीका, सं., गद्य, म्पू., (श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत),७४४६८(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीनई विषई), ७५५९१(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (भक्तिवंत जे देवता), ७४२९१(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, मूपू., दि., (आदिपुरूष आदिसजिन आदि), ७६२९१, ७३७१८(#), ७४३८६(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. देवविजय, पुहि., स्त. ४४, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (भक्त अमरगण प्रणत), ७२९६८-१($) (२) भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५०८१(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीमालवदेशमाहि), ७५०८१(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (भक्तामरेति प्रथम), ७५४१७ (२) भक्तामर स्तोत्र-काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ आदिनाथामर सेवित), ७३६२२ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), ७६३७२($) । भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताण सव्व), ७५६१३(+), ७५७३७(+$), ७५९६९(+#), ७६८५५-३(+), ७४४३२(#s), ७४४५८(#$), ७७२५५(#$) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), ७५५६३ (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (वुच्छं अप्पाबहुओ, ७५५६३-२($) (२) भगवतीसूत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, म्पू., (ब्राह्मी लिपिनइ), ७५९६९(+#) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ७७२५५(#$) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४९७ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., सू. ८, गद्य, मूपू., (पंचहेऊ प० तं० हेऊ न), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्ररूप्या भगवंते ते), प्रतहीन. (४) भगवतीसूत्र-हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप-बालावबोध का परमाणुंभांगा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देशनेदेश१ देशनेदेशौर), ७३७५८ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१६ उद्देश-६ स्वप्नाधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ७५०८०(+$) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१६ उद्देश-६ स्वप्नाधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५०८०(+$) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेस्स २ पखिय), ७६२६७(+) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जी. जीव प्रति उद्देश), ७६२६७+) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाय लेस पखी दिठी), ७६२६७(+) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.+मा.गु.)नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ७७४८२, ७६३७१(#), ७४९९९($) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.+मा.गु.) सर्व बंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उदारिक सरीर केणे), ७४८०२-१(+) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ७४६१९(+$) (३) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह का टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ७४६१९(+$) (२) भगवतीसूत्र-चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (पनवणा १ वेद २ रागे ३), ७६०४७(+), ७६१६७ १(#) (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ७५३५५(+),७५३९२(+), ७५८७९(+s), ७४६७५(६), ७५२०६($), ७६४४३($) (२) भगवतीसूत्र-लब्धि थोकड़ा, संबद्ध, प्रा.,रा., द्वा. २०, गद्य, मूपू., (जीवगइ इंद्रीकाय सोहम), ७५६८७(+$) (२) भगवतीसूत्र-शतक-१२ उद्देश-५ आलापक-वर्णगंधरसस्पर्श १७६बोल यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (अह ते पाणायवाय मुसा),७६१५९ (२) भगवतीसूत्र-शतक३०-समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), ७५५३१(+) (२) भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र भगवती सतक ८मे), ७६०१७(+), ७७४७६, ७६१४७(६) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आवो आवो रे सयण भगवती), ७५५३३ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेम), ७६३०१(#), ७५३१०-२(5) भव्याभव्य जीववर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उत्तमनर६३ पंचुत्तर५), ७५१२४-३(+) भावनासंधिप्रकरण, आ. जयदेवसूरि, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (पणमवि गुणसायर भुवण), ७६४८६(#) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ७५६९७-१(+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), ७६९९८(+$), ७७५५०६६) (२) भुवनदीपक-टबार्थ*मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), ७६९९८(+$), ७७५५०(5) भैरवाष्टक, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (श्रीनाथं ब्रह्मरुद्र), ७२८९१-१ भोजराजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (येषां न विद्या न),७६४०३-२ मंगल प्रदीप, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू., (कोसंबिअसंठिअस्सय), ७३०५६-६ मंडलीसप्तक तप, सं., गद्य, मूपू., (साधु साध्वीनां नंदि), ७६५०० मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐहींश्री अहँत), ७६८९७, ७७१०१ For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ७४२३६-४(+#), ७५२६५-२, ७५३५०-२, ७५८६४-१,७६२६३-२,७६९५६-२(#), ७७३०१६) मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., बौ., (ॐ नमः काली नै), ७४९३३-२(+) मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, मूपू., (विचार्य कुरुते कार्य), ७५८१२(+#) मदिरावती कथा-प्रभावे, सं., गद्य, मूपू., (बुधैर्विधीयतामेको), ७५६६३-२(+$) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ७५८३७-१(+#) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), प्रतहीन. (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), ७६०५०(+) मनुष्यलोके देव अनागमन कारण, अप., गा. १, पद्य, मूपू., (चत्तारी सहस्स गाउआइ), ७३६००-७ मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (२ एकं ॥ रदसं १०।३), ७७२५४(+), ७६०७०-२ महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ),७५६७४-१ महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), प्रतहीन. (२) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५ सूत्र-२६, प्रा., गद्य, मूपू., (से भयवंजेण केइ आयरि), ७५६६०($) (३) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन-५ सूत्र-२६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते भगवान जे कांइ आचा), ७५६६०($) महावीरजिन आयुष्य विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (एक वर्षमें सवाइग्यार), ७७४६०-१(+), ७३९९९-४(#) महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रेयः पल्लवयतु वः), ७४८१२-२(+), ७३०४२-३, ७३०५६ महावीरजिनदेशना भावांश, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अनित्यानि शरीराणि), ७५५६४-२ महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (स्तोष्ये जिन), ७५५९७(+#) महावीरजिनशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरात् २९१), ७३६११(#) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (निस्तीर्णविस्तीर्णभव), ७२८९३-१(+), ७४६२३-२(+$) महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (गाहाजुयलेण जिणं मय), ७६७६१-२(+#) महावीरजिन स्तव, मु. सेवक, मा.गु.,सं., गा.१०, पद्य, मूपू., (नमो नित्य देवाधिदेव),७५८००-२,७४७२०-१(#) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव धीर), ७३७४७-११(#$) । महावीरजिन स्तवन, क. पार्श्वचंद्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (कल्याणमालामणिसन्निधा), ७५३३९-७($) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ७५६१५-२(+), ७३०८२ (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ७३०८२ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ७५६२०-२(+), ७६२९२-३(+), ७३२०९-२($) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पापा धाधानि धाधा), ७३५१५-१(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ७४०९०-३(+), ७६६६२-४(+) महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ७५६३२-२(+) महावीरजिन स्तुति-दंडकगर्भित, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (जयति जय विभूषितो), ७४०८६-२(१) महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित, मु.रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ७६०६६-३(+) (२) महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित-टिप्पण, मा.गु., गद्य, स्था., (क १ ख २ ग ३ घ ४ च ५), ७६०६६-३(+$) मांगलिक श्लोक, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्त), ७५३२०-४, ७७२८५-२, ७३८२०-८(5) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्य), ७५४७५-२ मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), ७३४३०(+#$), ७३७४७-५(#) (२) मांगलिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अरिहंत भगवंत तरण तार), ७३४३०(+#$) मायाबीज स्तुति, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (ॐनमः सवर्णपार्श्व), ७६८०२(+#) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ४९९ मुनिपति चरित्र, प्रा., गा. १२५८, पद्य, मूपू., (मणिवइ रायरिसी विय जल),७४६१४($) मुनिसुव्रतजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (उत्तमचेतन धर्मसमृद्ध), ७५६२१-३(+) मुहपत्तिपडिलेहणगाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुहपत्ती पन्नास अठार), ७४१४३-४(#$) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिना),७४८६४(+$) (२) मूत्रपरीक्षा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथने), ७४८६४(+$) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., (श्रीमत्पार्धाभिध),७७५४९-१ (२) मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीपार्श्वनाथ), ७७५४९-१ मेघमाला विचार, आ. विजयप्रभसूरि, सं., पद्य, मूपू., (युगादिप्रभं जिन), ७७३९१-२($) (२) मेघमाला विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक सुदि २ जे), ७७३९१-२($) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भारती), ७५६३१(+#$) मौनएकादशी दृष्टांत, मु. क्षमारत्न, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (--),७३२७७-१(६) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), ७४०९४(६) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), प्रतहीन. (२) मौनएकादशीपर्व कथा-बालावबोध, मु. रंगविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन प्रति),७३०२०($) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ७७२८७-१(+#), ७३६८४-१(#), ७७२३२(5) मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ७३५५३-१(+), ७४८९९(+), ७६५८४-१(+), ७६२८०, ७५५५७(#), ७४९२८(६), ७५४१९(६) मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजससर्वज्ञाय), ७४३२३,७६४७६,७२९५६(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ७४४७२-१(+$), ७४७६९-२(#) युगंधरसाधु कथा, सं., गद्य, मूपू, (सर्वथानर्थकरणतत्परो), ७३९१३-३(#$) युगप्रधान लक्षण, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (येषां च देहे न पतंति), ७४८८८-१(+) युगबाहुजिन स्तुति, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (तीर्थकरं करणेभद), ७७३७९-१(#$) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), प्रतहीन. (२) योगचिंतामणि-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (१ सौभाग्यसुंठी पाक),७६६४३-१(६) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ७७२३४(+$), ७४८९८(६), ७७४११(६) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मपू., (अत्र महावीरायेति),७७४११(६) (२) योगशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४८९८(६) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मूपू., (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ७५३०६(+) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीआवश्यक सुअखंधो), ७४४५१(+$) (२) योगोद्वहनविधि संग्रह-(प्रा.मा.गु.सं.) यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., यं., मूपू., (--), ७४४५१(+$) रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जा पुप्फपवाहं जाणिउण), ७५३७५-२(+) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ७४७७६-१(+) (२) रत्नसंचय-हिस्सा निगोदविचार गाथा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (लोए असंखजोयण माणे), ७५६७५-१(+) (३) रत्नसंचय-हिस्सा निगोदविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी०),७५६७५-१(+) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ७३१६२(+), ७७४१०(+), ७२९५४, ७३२११(२) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ७२९५४ राईयप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमवा), ७३४६१-२(5) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ रामसिंहराजा कवित-छत्रबंध, सं., प+ग., (एकोपि गणिताबाला), ७७१५३-३(#) रूद्रयामल, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) रूद्रयामल-कालिकावैरिहरणकवच, हिस्सा, सं., श्लो. २८, पद्य, वै., (कैलास शिखरारूढं शंकर), ७६८१०-१(#$) रोहिणी कथा, सं., गद्य, मूपू., (दृष्टादृष्टफलं शीलली), ७५८१६($) रोहिणीतप कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (उच्छिट्ठम सुंदरयं), ७३०४४ लग्नशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (अविहतसव्वाएसं नमिङ), प्रतहीन. (२) लग्नशुद्धि-चयनित गाथासंग्रह, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (तणुछायाएपयाई सणिससि), ७६६०६-१(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, पू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय), ७४५१९(+#$), ७५८०१(+$), ७४२२०($), ७५४६७($) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अ.६, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अर्हमिति ब्रह्मपद), ७४५१९(+#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं० ग्रंथनोकरणहार), ७७१८२(+$) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशात), ७३८७९(+#), ७४०३२(+#$), ७४१०९-२(+#$), ७४५४१(+#$), ७५६३७(+#), ७३९७३, ७५५८९, ७३४५६-२(#S), ७४३०७-२(#s), ७४९०२-१(#$), ७५४७६ (#) (२) लघुशांति-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (--), ७४५४१(+#$) । लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ७५५६५ ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रिवर्गसंसाधनमंतरेण), ७४३६४(+$) लीलावती, भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ.१६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., (सोभित सिंदूर पुर), ७६६९६(+#$) लूणपाणी विधि, प्रा., गा.८, गद्य, मूपू., (उवणेउ मंगलं वो जिणाण),७४८१२-३(+),७३०५६-४ लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा.,सं., गा. १३, पद्य, मूपू., (मूलं साहपसाहा गुच्छ),७४०६२(+$) लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ७६११५-१(+), ७४३९४(६) लेश्याविचार श्लोकगाथा संग्रह, प्रा.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (रुद्रो दुष्टः सदा), ७४१५०-४(+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ७४६१५(+5), ७५५६८(+S), ७५८०७(+), ७४२५९(६) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, मूपू., (जिणदसणं गाथा जिन), ७४२५९($) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणदसणेति० जिनदर्शन), ७५५६८(+$), ७५८०७(+) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ७३३४८-२(+#), ७६६४५-३(+), ७३६४८-१($) वर्द्धमान मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं),७४९९४-२ वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ९६, वि. १३२२, प+ग., मूपू., (श्रीवीरं जिनं नत्वा),७३३३१(+) वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., अ. १३, श्लो. ३५००, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थनाथवृषभ), प्रतहीन. (२) वर्षप्रबोध-भाषानुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मार्गशीर्ष शुक्र), ७६६४९ वर्षफल, सं., पद्य, वै., (लग्नधिपे लग्नगते), ७३४१५-२(+#) वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), ७४६५३-२(+$) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ७३६९०(+), ७४६५३-१(+$), ७४९८८(+$), ७६९६२(+s), ७७३२८(+$), ७७०३७, ७४४७५ (#$), ७४२०७(5) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविद), ७६९४३(+$), ७६९८५(+) वागर्थसंबंधस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, श्वे., वै., (अनुदिनमखर्वसर्वान), ७६८५६(+) विचाररत्नाकर, उपा. कीर्तिविजय, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (स जयति जिनवीरः क्षीप), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ (२) विचाररत्नाकर - बीजक, सं., गद्य, मूपू., (--), ७४४५६ विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू (समरवीर राजा महावीरनउ), ७४५२४-१(+), ७५००७-३, ७७१७६(४), ७५९५५% विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा., अधि. २, गा. ३२०, वि. १७९६, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं गुणठाणे), प्रतहीन. "" (२) विचारसार प्रकरण- हिस्सा गुणस्थानक ५३ भाव. ग. देवचंद्र, प्रा. वि. १७९६, पद्य, मूपू (तिगपणचउतिग भावा तिअड), ७५०७१(+) (३) विचारसार प्रकरण- हिस्सा गुणस्थानक ५३ भाव का बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (-), ७५०७१(*) (३) विचारसार प्रकरण- हिस्सा गुणस्थानक ५३ भाव का टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (मूल भाव पांच छै उपशम), ७५०७१ (+) विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, भूपू (बारस गुण अरिहंत सिद), ७३४१०-१(5) (२) विचारसार प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना १२ गुण), ७३४१०-१($) विजयधर्मसूरि स्तुत्यष्टक, मु. गुणविजय-शिष्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (प्रशममकरंदडद्यं), ७६१०४(+) विजयप्रभसूरिगुणस्तुति गीति, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू (श्रीविजयदेवसूरीशपट्ट), ७६२१०-२ विजययंत्र कल्प, प्रा.सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (पुव्वं चियने रइए), ७५६०१ ($) विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (येषां न विद्या न तपो), ७२८८५ (-) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधवा कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, भूपू (पुरिसेण सहवासं सत्ता), ७३८९५(१) विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (यदुकुलांबरचंद्रक नेम), ७२९५८-१ (२) विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (यादवनुं कुल ते रूपी), ७२९५८-१ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य म्पू. (तेणं कालेणं तेणं), ७५११० (+४), ७५८०८(१६), ७५१०७) ७७२२२(४) (२) विपाकसूत्र - टवार्थ, मा.गु. गद्य, मूपु. ( अथ विपाकश्रुत किसउ), ७५८०८ (# ) " " विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जंभाराति पुरोहिते), ७७५३२-२ (+३) (२) विवाहपडल - पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ७४१४८-१, ७७१९६ विविधविचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (अयंसां भंते जीवे), ७३१३५-१($) विविधविचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, भूपू (जईया होही पुच्छा), ७४५९०-१(+), ७५६७५-६(+), ७६०५२ ', विविधविचार संग्रह, प्रा., सं., पद्य, मूपू., (तस जीवाणविधाउ तेह), ७६९०६ ($) विष्णु स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वे. (शांताकारं भुजगशयनं), ७५६८०-२(+) विहरमान २० जिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (संपइ वट्टंताणं नाम), ७५८०९-१(+), ७५८१०१०) (२) विहरमान २० जिन २१ स्थानक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेजे २० तीर्थंकरना), ७५८०९ - १(+$), ७५८१० (+) विहरमान २० जिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वंदे सीमंधर जुगंधरज), ७३१४६-३ वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, भूपू (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ७३१६३-१ (+) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ७४४२४ (+$) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं. विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू (सरस्वती हृदि), ७४८१३(३), ७४८६७(+६) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), ७४८६७(+$) वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. ११६, पद्य, वै., (चूडोत्तंसितचंद्रचार), प्रतहीन. "" (२) वैराग्यशतक टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं. वि. १५३५, गद्य, म्पू, वै., (तस्मै शांताय तेजसे), ७४९६९+७) " " " व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासिय), प्रतहीन. (२) व्यवहारसूत्र - बोलसंग्रह, संबद्ध, मु. जीतमलजी स्वामि, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मास नी दोष सेवी), ७५४४० (+) व्याकरण, सं., प्रा., मा.गु. प+ग. वै., (रंते भव: दंत्य: देत), ७७३२६-२(१) " व्याकरण अपूर्ण व छूटक पत्रे, सं. प्रा. मा.गु. प+ग. (--), ७५०५५-३ "3 For Private and Personal Use Only ५०१ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ व्याख्यान मांडणी, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम नवकार कहीइ), ७५८६३(#$) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ७३४३७(+$), ७४०८७(+$), ७४१८५(+$), ७४७०२(5), ७५१०१-१(s), ७४००४(-#$) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवो एक धर्मोपदेश), ७४०८७(+9), ७४७०२($), ७४००४(-#$) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७३४३७(+$) व्याख्यान संग्रह * प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दान), ७३२१२, ७३५२०($), ७४०४१(६), ७४५३२($) व्रत उच्चार अधिकार, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (एएहिं पंचहिं असंवरेह), ७४३९०-२(+#) शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ७५४६९(+) शठ के ८ भेद गाथा, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (शूद्रो१ लोभरति२), ७६१६०-१ (२) शठ के ८ भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (शूद्र ते तुच्छ ते), ७६१६०-१ शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ७५७८१(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानई भव्य), ७५७८१(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (४७ ध्रुवबंधनी प्रकृत), ७४७०४(+) शत्रुजयतीर्थ १०८ नमस्कार, सं., गद्य, मूपू., (शासनाधीश्वर० वर्धमान), ७५६२९($) शत्रुजयतीर्थ १०८ नामावली, सं., सू. १०८, पद्य, मूपू., (श्री शत्रुजय गिरि न), ७३२७०-२ शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअधम्मकित्तिअंत), ७५०७२(+$), ७५६४३(+$) (२) शत्रुजयतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रुतं कहीइ सिद्धांत), ७५०७२(+$), ७५६४३(+$) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नमः सिद्धक्षेत्राय), ७४२७२-३(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ७५३८०-४(+$), ७७४३७-४(#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ७५६९३ (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइ), ७५६९३ शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, म्पू., (धरणेंद्रप्रमुखा नागा),७५६८५(+#) शनिभार्या नाम, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ध्वजनी धामनी चैव), ७४२३७-३(#) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा),७४२३७-१(३),७४५६१-२(5) शब्दरूपावलि, सं., गद्य, वै., (कः१ कौर के३), ७५०५५-२ शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., ढा. २, गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीजयमंगलाभ), ७२९७२-१ शांतिजिन कलश, प्रा.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रेयः पल्लवयन्नयत्), ७४४६७-१ शांतिजिन स्तवन, पं. पद्मविजय, प्रा.,मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांतिजिनेश्वर साहिबो), ७५७९४-३ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (किं कल्पद्रुमसेवया), ७३७४७-८(#) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शांतये शांतिकामाय), ७३७४७-२(#) शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, स्पू., (दीवे नंदीसरम्मि), ७३१४६-१ शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभुवना), ७६२२४-३(5) शिवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (नगाधीस गोकर्ण), ७२९४१-३(+#) शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अहं भंते तुम्हाण),७३०३६-१ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारि नेमि), ७५८१३(+#), ७४०६९(#s), ७५८१५(-) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी बालक), ७४०६९(#$) (२) शीलोपदेशमाला-शीलप्रशंसा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (निम्महि असयलहील), ७३९६२-२ शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (धर्मारामदवाग्निधूम), ७४४९३-१(#$) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., श्रो. १००, पद्य, वै. शंभुस्वयंभुहरयो हरिण), ७५९५८-१(ख) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दंसण वय सामाई पोसह), ७४८४६-३ श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), ७४५१८ (+$), ७४६१०.१(०३), ७५३७७(+३) श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (प्रथमं मुहूर्तं), ७३१८४, ७४५२२ ($) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., वि. १८३८, गद्य, मृपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ७५२७०-२(+) श्रावक षट्कर्म श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (देवपूजा गुरुपास्ति), ७५१३६-३ (+) (२) आवक षट्कर्म लोक-टबार्थ, मा.गु, गद्य, मृपू. (हिवे श्रावकना षट्), ७५१३६-३(+) श्रावकाचार, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०३, वि. ५वी, पद्य, दि., (श्रीमज्जिनेंद्रचंद्र), ७७२०६ ($) श्रावकाराधना, सं., प+ग, श्वे. (श्रीसर्वज्ञं प्रपंपण), ७५१०३(+#$) " - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीकंठद्विज कथा पंडितवचने, सं., गद्य, भूपू (--), ७३९१३-१(३) श्रीपाल चरित्र, ग. शुभविजय पंडित, सं., वि. १७७४, गद्य, मूपू., (ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र), ७४४८० (+$), ७७४२२(#$) लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ७६७१०-१, ७३००४-३(०) श्लोक संग्रह *, पुहि., प्रा., मा.गु., सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ७३३६४-४ (+), ७३४८५-२(+), ७३६९८-१(+#), ७४२६१-५ (+), ७४५६७-२(+), ७५३३६-३(+), ७५३७९(+), ७५८९०-४(+), ७६१६१-४०), ७६६४५-४(+३), ७७०३८-३(५), ७४१८८-१, ७४७४५-२, ७५००७-२, ७६१७८-२, ७६५३२-२, ७४०५५-२१०१, ७५८५९-२००१, ७४४६०(5), ७४७७५-३(३) श्लोक संग्रह -, सं., श्लो. १००, पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ७५१३६-२ (+), ७४१४३-३(#) (२) श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (जिनेंद्रपूजा करवी१), ७५१३६-२(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ७३०२७-२, ७३८७२($) लोक संग्रह, प्रा. सं., श्लो. १०, पद्य, (-), ७४५५६-१(+), ७३७०४-२ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-गुणस्थानक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., पं. भूपू (देवगति २४१९९६) ७४२११-६ "" श्लोक संग्रह -, सं., प्रा., पद्य, (--), ७४०९५-२(+#) श्लोक संग्रह जीवाजीवादि विषये, प्रा. सं., पद्य, मृपू., (--), ७४४५७(5) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ७३९०८-४(+), ७४७७० (+#$), ७३७२५, ७६००३-२, ७६९७६ ७७४५८, ७२९५०-३००, ७६०५६-२(३) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी - १४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ७४०८९ (+$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ६२ मार्गणास्थानक यंत्र, संबद्ध, सं., पं., म्पू, (जीवस्थानक १४ गुणस्थल), ७४२११-५ - " षड्दर्शन देव गुरु नाम विचार, सं., गद्य, जै., वै., (मिमांस१ बौध२ शिव३), ७३६७५-५ (+) (२) षड्दर्शन देव गुरु नाम विचार-टबार्थ, मा.गु, गद्य, जे. वै., (संन्यासी बीद्धव०), ७३६७५-५ (+) " षड्दर्शननाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, जै., वै., (यं शैवाः समुपासते), ७३००४-२(#) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), ७५५७०, ७५६०७, ७६२४६-१ (२) षड्दर्शन समुच्चय- अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), ७५५७० षोडशवचन भेद, सं., गद्य, श्वे., (सोलसराय सहस्सा सव्व), ७७२६७-२ (+#) संजयानियंठा के बोल, प्रा., मा.गु., को. थे. (पन्नवणा १ बेये २), ७६२७७ (*) " ५०३ संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं), ७३४८९-१(#), ७४२७३-२($) (२) संतिकरं स्तोत्र - आम्नाय संबद्ध, सं., गद्य, मृपू. (एतत्स्तोत्रं त्रिकाल), ७७२०१-१(+४) संधारा पच्चक्खाण, प्रा. सं., गा. १२, पद्य, भूपू (संसारम्मि अणते परि), ७५०२६-२(+) संधारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, म्पू, (निसीहि निसीहि निसीहि), ७२९०६-२(+१), ७३२५२(+), ७३७८०-२(+), ७५२७०३(+5), ७५७०६(+), ७५४५२, ७३४६९-२(६) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवकार तीन भणी),७५२६४-२ संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), ७५०१८(+#$) (२) संबोध प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५०१८(+#$) (२) संबोध प्रकरण-भक्तिवंत प्राणी के ८ बोल, हिस्सा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (भत्ति१ बहुमाणो २),७४८८८ (३) संबोध प्रकरण-भक्तिवंत प्राणी के ८ बोल का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिअंतरंग राग १), ७४८८८-६(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), ७४१९९(+$), ७४२६९-३(+), ७४३९५(+$), ७४४६६(+$), ७६२३९(+) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ७४१९९(+$), ७४२६९-३(+), ७४३९५(+$) संयोगी भांगा गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, मप., (गणियम्मि तिन्निलोगा),७७२२०(+#$) (२) संयोगी भांगा गाथासंग्रह-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (तत्र तावत्संयोगिभग), ७७२२०(+#$) (२) संयोगी भांगा गाथा- यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--),७५९४७(+$) संवेगशतक, अप., गा. १००, पद्य, मूपू., (इह लोइयमिकजे जीवो), ७६३७०(+) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त), ७५६०४(+#) सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--),७५४७३-१(क) सत्यकामाता स्तोत्र, मु. देवतिलक, प्रा.,सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (किंतु समुद्रसंचरी), ७५९११-२(5) सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध, प्रा., गद्य, श्वे., (सणकुमारेणं भंते),७५६०८,७७३६७(६) (२) सनत्कुमारदेवेंद्र प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सनंतकुमार हे पुज), ७५६०८ सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, स्पू., (सिद्धपएहिं महत्थ),७३८१३(+$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), ७३८१३(+$) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, पू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ७४६६८(+$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ४०००, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मांशतमः), ७४६६८(+$) सप्तभंगी स्वरूप, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धिः स्याद्वादादि), ७६४५०-१(+) सप्तभंगीस्वरूप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिया अत्थि १ सिया),७३६१५ (२) सप्तभंगीस्वरूप गाथा-विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल पदार्थ आप आपणे), ७३६१५($) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहताण० हवइ), ७५४७९(+$) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलशटीका का विवेचन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ७३८१७(+$),७४२४१(+#$),७७४७२(+$), ७३१९९(s), ७६०३२(६) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ७५८२९(+) (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरं समवसरणस्थ), ७५८२९(+$) समासपरिचय श्लोक, आ. हेमसूरि, सं., पद्य, मूपू., (द्वंद्वश्चकारैः),७६८९२(+) (२) समासपरिचय श्लोक-बालावबोध, आ. हेमसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवल विशेष अथवा), ७६८९२(+) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्व के६७ बोलभेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसद्दहणा० जीवजीवदि), ७६२९० For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५०५ सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ७४२१०(+$), ७४०४०(#s) सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (जह सम्मत्तसरूव), ७५५७८(+#), ७५६६५-१,७४९२३(७), ७५६४६-१(६) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोवांछितदातारं), ७४९२३($) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथा जिम समकित्वनु), ७५६४६-१($) (२) सम्यक्त्व पच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम सम्यक्तवनउ), ७५५७८(+#), ७५६४६-१(६) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह० जह कहेता जे रीते), ७६१८६(+) सम्यक्त्व विवरण, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व लाभ), ७५६८३($) (२) सम्यक्त्व विवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५६८३($) सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), ७४५१२(+#$) (२) सम्यक्त्व सप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (सम्यक निर्मलाईनइ), ७४५१२(+#$) सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्राग्वाग्देवि जग), ७६४३०(+) सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), ७३६७६(#$), ७३९८०-२($) सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी), ७६३०७-२(#) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., (ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद), ७५८६०-३, ७३९८७-६(2) सरस्वतीदेवी मंत्र वजापविधि, आ. हेमसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (ॐनमो भगवओ अरिहओ भगवइ),७३५६२-२ सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ७६८१८ सरस्वतीदेवी स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ७३८७८-२(+#), ७६८७१-१(+#), ७४७८६-१(६) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो.८, पद्य, वै., (प्रथम भारती नाम), ७३९५३-१(+), ७६८७१-२(+#), ७७०३८-२(+) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (या कुंदेंदुतुषारहार),७५८६०-४ सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ७४७७१-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जलधिनंदनचंदनचंद्रमा), ७३२४१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पं. विजयरत्न, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (श्रीमाता श्रुतदेवता), ७५६२७ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (नमोस्तु शारदादेवी), ७५३२०-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ७७०१४-२(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, स्पू., (श्वेतपद्मासना देवी),७४७८६-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, श्वे., (सरस्वती श्रीमच्चिते), ७७२०२-३(+$) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (धिषणा धीमतिर्मेधा), ७३३१२-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ७६८३२-१(#) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत),७७२९८(5) (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), ७७२९८() (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मान), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण-चंद्रकारी टीका, सं., गद्य, मूपू., वै., (--), ७४५६७-१(+$) सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (जयत्वं मातुर्मे भगवत), ७३५१५-२(+) सर्वज्ञस्थापनास्थापकवादस्थल, सं., गद्य, मपू., (अविनाभूताल्लिंगाल्लि), ७४०२४(+#$) सर्वतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू., (अट्ठावयम्मि उसभो), ७४२६१-२(+#) सर्वाधिकार गाथासंग्रह, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, प्रा.,सं., गा. ३३९, पद्य, मूपू., (पढमो बारसमत्तो बीओ), ७३८५८(+$) ०७८५-१ For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ साधारणजिन आरती, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू., (मरगयमणि घटिअविसाल),७३०५६-५ साधारणजिन नमस्कार, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्रातिहार), ७५३३५-२ साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणपादपाराम), ७३५४९-२ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ७७५३४(+) (२) साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, म्पू., (भावे भावोक्तौ तृतीया),७७५३४(+$) साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयश्रियां धाम सुधामध), ७५३३९-२ साधारणजिन स्तवन-शाश्वत अतीत अनागत वर्तमान विहरमान, मु. कमलचंद, अप.,मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (नमवि सिरि रिसह), ७७२३३-१(+) साधारणजिन स्तुति, आ. भावदेवसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (तत्रस्थे जिनचैत्येसौ), ७३०८६-५(+#) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ७३६७१-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरल कमल गवल मुक्ता), ७४१३२-१(+$) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ७३९८७-५(2) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (तवरूपमनंतगुणैर्निचित), ७५६२१-१(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ७५६३३ साधारणजिन स्तुति, सं., का. ९, पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, वा. मेघविजय, सं., गद्य, मूपू., (--), ७५०५५-१(६) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ७४१८८-४, ७७३४३-१(#) साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (जयति दलितपापः),७७३७९-२(#$) साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (सर्वज्ञ सर्वहित), ७५३३९-१(६) साधु २७ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (छव्वय ६ छक्काय ६), ७४५२४-२(+) साधु आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अजाणता करता नइ ए), ७६१११ साधुआलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (आलोअणा मए दिन्ना), ७५६०९-२($) साधुआहार विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (साधवः केषु कुलेषु), ७३३५३-३(+) साधुकालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्यारे साधुकाल करे), ७५२२० साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (एक्रिया संप्रदाय), ७३४०६(+$), ७७४४५-१(#) साधुवंदना, प्रा., गा. १०७, पद्य, श्वे., (वंदियं ते वीरजिणं),७५६४२-२($) साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही१ नसहीर आपुछणा३), ७६५१४-९ सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., द्वा. २१, ग्रं. ११७६, गद्य, मूपू., (आयारमयं वीरं वंदिय), ७५५७३(+#$) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ७६९१६(+#$), ७५८४७(5) (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिदेव प्रते प्रथम), ७६८१३(+#) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ७४५९०-३(+#$), ७५६४४(+$), ७७२५८(+$), ७७४२३() (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ७७४२३(६) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ७३१७६-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., गा. ३, पद्य, मूपू., (जो धुरि सिरि अरिहत), ७६७१०-३ सिद्धचक्रयंत्र पूजनविधि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम स्नात्रीया ९), ७४९७६(६) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञात्वा प्रश्नं), ७५४१३-१,७४०८६-३(#) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ७३१७६-२ सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ७६९२७(+) (२) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो), ७२९१५(+#) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५०७ (२) सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., मूपू., (अनुलोम सिद्धिदंडिका), ७६९२७(+) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धिः स्याद), प्रतहीन. (२) अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (उच्चारणेस्ति वर्णा), प्रतहीन. (३) अनुबंधफल-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वद व्यक्तायां वाचि), ७७३२६-१(+) सिद्धांतरत्निका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्गुरुपदाम्भोज), प्रतहीन. (२) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (अनिट् स्वरांतो भवतीत), ७६९९२(+), ७७५४६ (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, मूपू., (वृङ्संभक्तौ याद), ७६९९२(+), ७७५४६ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), प्रतहीन. (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा नवपदी), प्रतहीन. (३) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि का श्रीपालराजा रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ४७, गा. १५३५, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), ७५९८४($) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. नेमसागर, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तें मोरू मन मोहीओ), ७३६९९-१(+) सुक्तावली श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ७४७१५(६) सुभाषित दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मनुषो जन्म दुर्लभ हे), ७५८३२ सुभाषित श्लोक*, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुन), ७३८५०-४(+) सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), ७६८९८-३ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ७३०८६-६(+#), ७४७८१(+#S), ७५६८४(+s), ७२९५८-२, ७५८३६($), ७६३०४($) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस्त कुसल), ७२९५८-२ सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., श्लो. ४५, पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ७३८१८-१(+#), ७४९९०-२(+) सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.७७, पद्य, श्वे., (अन्ना सत्थे पेमं पाव),७५९३१-३ सुभाषित संग्रह, प्रा.,सं., गा. ७३, पद्य, मूपू., (नवि ते पारिवज्ज), ७७४१७(+#$) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग.४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद),७५१०२(+#$),७६०८८ १(+$),७५२५८($) सूक्तावली, सं., श्लो. १२९, पद्य, श्वे., (--), ७५६२६-१(६) । (२) सूक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ७५६२६-१(६) सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मप्., (लोए असंखजोयण माणे), ७३८३३-१(2) (२) सूक्ष्मनिगोद विचार-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् चतुर्दश रज्व), ७३८३३-१(#) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (सयलंतरारि वीरं वंदिय), प्रतहीन. (२) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-हिस्सा पुद्गलपरावर्तनकाल विचार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (दव्वे खेत्ते काले), ७३३४५, ७४९३७-२(#) (३) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-हिस्सा पुद्गलपरावर्तनकाल विचार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यतपुद्गलपरावत), ७३३४५ सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ७३६९५-२ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), ७३७४६, ७५११३, ७३०१४) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ७५०४२(+#), ७५६१५-१(+), ७५६२०-१(+), ७६२४९(#), ७३८९२(६) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण),७५०४२(+#) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सूत्र पद संपदादि विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (इच्छ१ गम२ पाण३), ७४२६१-६(+#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), ७४४७४(#$) स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ९९, पद्य, मूपू., (जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे), ७५०९७($) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ७४२८८(+#$), ७७००९(+#$), ७७२७२(#), ७४७८२-२(s) । स्त्रीमुक्ति विचार-दिगंबरमत, सं., गद्य, दि., (दिगंबरा स्त्री जनान्), ७३७९०-२(+) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ७५६३९-१(+), ७७४१४(+#s), ७७५१९(+६), ७४५१४($) (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिनं नाथ), ७४८८१(६) (२) स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनं नाथ), ७४८८१($) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ७४५१४(६) (२) स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्तहिं ठाणेहिं), ७५४७४(+), ७५८४९(+#$) (३) स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह का टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (पत्राण्युपगच्छतीति), ७५८४९(+#$) (३) स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणांगे ७ ठाणेए भाव), ७५४७४(+) स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., मपू., (स्थापनाविधि),७४९९६(+#) (२) स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (थापनानो विधि ते प्रत), ७४९९६(+#) स्नात्रपूजा, मु. उत्तमविजय, प्रा.,मा.गु., गा. ६८, वि. १८९१, पद्य, म्पू., (--), ७५६७२(+$) स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकारसार), ७३०९९(+) स्नात्रपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., ढा. ८, वि. १९वी, प+ग., मूपू., (सरसशांतिसुधारससागर), ७५२७६(#$) स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), ७३४२१(+$) स्नात्रपूजा सविधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ७४७०६-१(+), ७४७३६(5) हनुमानाष्टक, पुहिं.,सं., गा. ८, पद्य, वै., (जय जय बजरंगी जालिम), ७४२३६-३(+#) हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., श्लो. १८०, पद्य, म्पू., (श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य),७५६८२(+$) (२) हिंगुल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५६८२(+$) हितशिक्षाषट्विंशिका, सं., पद्य, श्वे., (--), ७३८७०-१(६) हेमदंडक, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), ७६२२६-१ (२) हेमदंडक-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (--), ७६७८२(+$), ७६२२६-२ हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक.८, श्लो. १३९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (पुल्लिंगं कटणथपभमयर), ७७००६(+), ७७२७०(#) हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस्ति वादीना), प्रतहीन. (२) हैमविभ्रमसूत्र-टीका, सं., गद्य, पू., (प्रणम्य परमं ज्योति), ७६८०३(१) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ७४६६९(+$), ७३४३२($) ह्रींकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (मायाबीजबृहत्कल्पात्,), ७५२०३(+), ७५५७४-१(+) ह्रींकार महास्तोत्र, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (हींकारस्य किं तत्व), ७३०९६-१ ह्रींकारविद्या स्तोत्र-मंत्रगर्भित, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आधारकंदोद्भवतंतु), ७३५६२-१ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ अशाश्वता बोल-अट्ठाणुबोल मध्ये, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक चौवीसमो बोल),७६५२५-४ ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (परम पुरुष परमेश्वर), ७६४७१-३(+$) ३ दृष्टि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यादृष्टि १ सम्यग), ७३८७४-९(#) ३ मिथ्यात्वभांगा विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (मिथ्यात्वने विषे),७७४३३-१ ३ श्रावक परिवार नाम-सोम,सोमदत्त, सोमभूति, मा.गु., गद्य, श्वे., (सावथीनगरी जीतसत्रु),७२९८३-२($) ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हविंच्यार प्रकारना), ७३२१५-१, ७३३८३ ४ कषाय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्रोध १मान २ माया), ७३८७४-५(२) ४ गोला ढाल, ऋ. गोरधन, मा.गु., ढा. ८, गा. ३०, पद्य, मूपू., (आठ कर्म अनादिका), ७५७३८-१(-) ४ दर्शन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्षुदर्शन १ अचक्षु), ७३८७४-१०(#) ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ७४४८४-५(+), ७३३७५, ७५४५१(६) ४ ध्यान सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (आरत ध्यान ते च्यारे), ७५९२७(+$) ४ निक्षेप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पिस्तालीस आगमने साखे),७६५८५-२(+) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो),७५००९(+$) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. ९८, पद्य, मूपू., (देश कलिंगइ नगरी चंपा), ७६५९४ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिहुं दिसथी च्यारे), ७२९१३, ७३७०८-२ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ७५५००-३(+), ७४९६५-१($) ४ बुद्धि ज्ञान, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वाभाविकि उत्पातिकि), ७४५५६-४(+) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ७३८२०-४, ७३८९६ ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेलु ए मंगल जिनतणु),७३१७७,७५०५८-३() ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), ७६१४४(#), ७४५००(६), ७७१२१-२($) ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीनें समरीजै हौ), ७४१६५ ४ मंगल सज्झाय, मु. तिरूपचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, स्था., (देजो ते मंगल चार आज),७६५२२-२ ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मंगलिक पहिलो कहुं एह), ७५७०७-२(+), ७६४८८-१(+) ४ युगप्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (कृत युग प्रमाण सतर), ७६६६४-२ ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृथा करम बांधत जीउ), ७३२२९-२ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ७६२८५-२ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ७५५२९(+), ७५१६३(६), ७५४२७-१(-६) ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (वर्धमान शासनधणी गणधर), ७४६४३-१(+) ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विजय १ वैजयंत २ जयंत), ७३६५८-३(+#) ५ इंद्रिय विषय, मा.गु., गद्य, म्पू., (जघन्यतो अंगलुनो),७६१७०-१(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज),७३४७३-२,७५९२८-१,७५९५८-५ ५ इंद्रिय सज्झाय, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ७३४७६-१(+#$) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ७३३६८(+), ७६०१३, ७६५९८, ७४७२४($), ७७१८४(६) । ५ जीव भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्रिय १ बेंद्रिय), ७३८७४-७(#) ५ ज्ञान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान १ श्रुत), ७३८७४-११(#) ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ७५७६५-२(+) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लाभ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदऐ आदऐ आदजिनेस्वरुऐ), ७७१८३-१(६) । ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ७३५९६-१(+), ७७४३९(+) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना रूप), ७५५०२-१(+) ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ७६३४५-३(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ७५७४४-१ ५ भाव के ५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ उपसम भाव भेद २२), ७३७१५-२ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ७३२३९-८(+), ७५२१८-१(+), ७५३१०-१, ७४२१२-३($), ७७१७७(६) । ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ७३५६५-१ ५महाव्रत स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वप्राणातिपातविरमण), ७५००३-३(+),७३२२८-२ ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), ७५६५५-५ ५ शरीर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उदारिक१ वैक्रिय२), ७३८७४-३(१) ५ संवाद ढाल, मा.गु., पद्य, श्वे., (--),७६५०५(+$) ५संस्थानभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सस्थान ५ प्रकारना),७६४७३-१ ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), ७५९९६(+), ७६०३७(5) ६ आरा बोल, मा.गु., ग्रं. १८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड सागरोपमना), ७३१४२-३(+) ६ आरा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (दसकोडा कोडी सागरोपम), ७२९७१(+$) ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), ७६१३२-१(+), ७५९८१-२(#) ६ आरास्वरूप विवरण", मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भरतादि दश), ७५०८५-३(+) ६ जीव पंचढालियो, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, पद्य, मूपू., (प्रणमि पास जिणंदने), ७२९६६(#$) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., को., म्पू., (धर्मास्तिकाय अधर्म), ७६१६६(+) ६ पर्याप्ति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारपर्याप्ति १शरीर), ७३८७४-१४(#) ६ भाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीयल शिरोमणि नेमजिणं), ७५७६२ ६ लेश्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्ण लेश्या १ नील), ७३८७४-६(#) ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगारमर्दकाचार्य),७३५९१-२(+) ७ नयबद्ध जीवादि पदार्थ विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रजुसूत्रनेन मते पेला), ७४७४८-२(2) ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू, (घणे माने करावसु सत्त), ७४३७०($) ७ नरक सज्झाय, मु. देव, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४१५४(६) ७ वार पद, मु. केशव, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सिहि गुरुवादो तम्हे), ७६५८९-२(+) ७ वार लावणी, मु. अवीर, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (सजन तेरे दिल को), ७५७४२-१०(+) ७ वार शृंगार दोहा, मा.गु., गा. ८, पद्य, (आदीतइ गुण वेलडी), ७४१६१-२ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, श्वे., (मनुष जमारो पायक करणी), ७७४७५-४(+) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ७३२५६, ७३८४४-१(5) ७ व्यसन सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सात व्यसननो रे संग),७६१२२-१(+$) ७ व्यसन सज्झाय, मु. हजारीमल, मा.गु., गा. ९, वि. १९३९, पद्य, श्वे., (सत विसन मत सेवो रे), ७३५६४-३ ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जुठ वचन ते करमनि), ७६४१०-१ ७ व्यसन सज्झाय, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (वरजो वरजो विसन सातसू),७५१९६-५ ७ समुद्धात नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वेदना समुद्धात १), ७३८७४-८(१) ७ सहेली संवाद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (पहिली सखी उठि बोलीयु), ७४८६६-४(+) ८ आत्मा ६२ बोल, पुहि., को., मूपू., (१ द्रव्य आत्मा में),७६३७६-१ For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ८ कर्म१५८ प्रकृति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (८ कर्मनी मूल प्रकृति),७५१८५-१(+) ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ७४२६१-३(+#), ७४५७६(+$), ७६४२४(+), ७३२७०-१, ७६५४३-१, ७६६५४-२, ७७४७१-१, ७५४८६($) । ८ कर्म६२ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पढम नाणावरण बीय),७६३७६-२ ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७५२४५(+$) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीयकर्म), ७५७३४(+) ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), ७५३९१(+) ८ बोल धर्मपरिवार, मा.गु., गद्य, श्वे., (धरम को पिता श्रीवित),७६३२२-३(+) ८ बोल पाप परिवार विषयक, रा., गद्य, श्वे., (पाप को बाप लोभ छे),७६३२२-२(+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ७६१३७, ७४६६१(६) ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भद्दे १ सुभद्दे२ सुज), ७३६५८-४(+#) ९ नारद देहमानआयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ भीम धनु ८० वर्ष), ७६३६९-२(#) ९ नारद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ भीम २ माभीम ३ रुद्), ७६५१४-१, ७७४७१-२ ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अचल१ विजय२ भद्र३),७३६५८-७(+#) ९ लोकांतिकदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुरससाहा१ आहिचार वनी), ७४४८४-३(+) ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, म्पू., (श्रीगुरुने चरणे नमी),७३९१४(+$), ७४६२८(+$), ७४४९६, ७५२२२, ७५४४५, ७४४०७-१(#$), ७३८८५(६), ७४७३७(), ७५०५७($), ७७०३४($) ९ वाड सज्झाय, क. धर्महस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमु), ७३८३१(+#$), ७६५८९-१(+) ९ वाड सज्झाय, मु. लाला ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ७४०६७-२(#) ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपृष्ठि१ द्विपृ०), ७३६५८-६(+#) ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवू सांभलीनै शिष्य), ७३३४२(#) १० कल्पवृक्ष भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मत्तंगकल्पवृक्ष मद), ७७५११-२(+), ७६९५६-१(#) १० गणधर सज्झाय-पार्श्वजिन, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रभाति ऊठीनै पहिलु), ७३९२४-२(#$) १० तीर्यग्नुंभकदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनजवका१ पाणजवकार लेण), ७४४८४-२(+) १० दान सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (--), ७३१११(#$) १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता, मा.गु., गद्य, मूपू., (चुल्लग १ पासग २ धन्न), ७४६५५(+#$) १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ७३६५८-८(+#), ७५४७०-४(+#), ७४४०७-३(#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमु), ७४२९७, ७५२२१,७६५९६-१,७७१८५(#$) १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (सुकृतलता वन सींचवा), ७३७७५-२( S) १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिण चुवीसी करूं), ७६४९२(+) १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं), ७३९७४-२(+) १० सम्यक्त्वरुचि बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (निसर्गरुचि१), ७३६७५-३(+) ११ अंग परिमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम आयारंग अठारसपय), ७७५३८-३ ११ गणधर स्तुति, ग. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्र उठीने करूं),७३५३८-२(+#$) ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई-१४ गुणस्थानकगत, श्राव. भगोतीदास लालजी ओसवाल, पुहिं., दोहा. २१, पद्य, दि., (करम कलंक खपाई कै भए), ७३३५३-१(+) ११ रुद्र नाम, मा.गु., पद्य, वै., (१ भीमीवलीन २ जितसतुन), ७६५१४-२ For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१२ १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान१ स्रुतज्ञान), ७३८७४-१३(#) १२ चक्रवर्ती ९ वासुदेव ९ बलदेव कालमान विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (भरत चक्री रिषभदेवने), ७६३४८-३(+) १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, श्वे. ( प्रथम भरत चक्रवर्ति), ७३८८०-२, ७५२११-३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ יי १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., ( प्रथम भर्थजी १ सगर२), ७३६५८-५(+#) १२ चक्रवर्ती मातापिता नाम, मा.गु, गद्य, थे., (ऋषभ समित्रजय समुद्र), ७४२११-४ १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., ( पहिलो सौधर्मइ देवलोक ), ७३६५८-२ (+#), ७६३१४-५ (+#), ७३३६६-२($) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग देवरे समोसरण), ७४४२३ १२ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहल बोल समकंतले२ नर), ७५४१८(+) १२ भावना, मु. विद्याधर, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (पहिलीय भावना भविज्यो), ७६१९६ (+#) १२ भावना गीत, पुहिं. भा. १२, पद्य, श्वे. (ध्रुव वस्तु निश्चल), ७५२८२-१, ७३६६४(४), ७४९२६ (३) "" १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली अनित भावना ते), ७५०६०-२ (+), ७५२२६(+) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), ७३३०२(+#) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ७५३२३(+६), ७५०७०(३), ७५२५९(३), ७५३५०-१(३) १२ भावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७५०६५($) १२ भावना सज्झाय, पुहिं., पद्य, भूपू (-), ७४३५९(१६) १२ भावना सवैया, मु, हीरालाल ऋषि, पुहिं, पद्य, वे (अनीत असरण संसार ने), ७४७६८ (+४) " " १२ व्रत छप्पय, मु. प्रकाशसंघ, मा.गु., गा. १३, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (जीवदया रे नीत पाली), ७२९७३ १२ व्रत टीप, मा.गु, गद्य, भूपू (प्रथम सम्यक्त्व देव), ७६३४१, ७७०८७(६) १ १२ व्रत ढाल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अतिथ संविभाग चोत्थो), ७५२३७(+) १२ व्रत भांगा, मा.गु., को. मूपू. (प्रा१ २ अ३ मिथु४), ७६०७१-१ मृ२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ व्रत सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु, गा. १४, पद्य, भूपू (गौतम गणधर पाय प्रणमी), ७३४६६.२(# ) १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रावकना व्रत सुणिज), ७४९४८-२ , १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलि प्रतिमा १ मास), ७५१८५-२(+), ७७४२६-३ १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), ७६४५१(+), ७५२८२-२ १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस १ मोह २ बने ३), ७३२७७-३ १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं गौतम), ७६१०७-२(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया), ७४६६३-२ (+), ७४१६१-१ १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आलस पेलो काठियो धर्म), ७३९०३-१ १३ काठिया सज्झाय, मु. रामचंद्र ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. (सदगुरु भाखे भवियण), ७५४३५ " १३ काठिया सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. १३, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (पासजिनेश्वर पाय नमि), ७५१४१-२(+) १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू (गोयम गणहर प्रणमी पाय), ७६४८४-१ १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., डा. ७, पद्य, थे. (श्रीजिनवर गणधर मुनि), ७५१८९(१) 1 १३ समाचारी नाम, मा.गु., अंक. १३, गद्य, मूपू., (१ तपागछ २ सांडेरागछ), ७५२९२-६(#) १४ गुण सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन सवेनइ करु प्रणाम), ७६४६५ १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, मा.गु. गद्य, मूपू (मिध्यात्वगु० आहारक), ७४७०७-५ (+३), ७६९०९ १४ गुणस्थानक २८ द्वार, मा.गु. द्वा. २८, गद्य, भूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ७६०४६(*) १४ गुणस्थानक ३८० भाव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणठाणु १ लु उदयीक), ७५८६७ १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), ७५१०० (+) १४ गुणस्थानक कुलकोडि संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै गुणठाणै एक), ७४९८९-५(#) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ १४ गुणस्थानक - जीवायोनि आश्रित, मा.गु, गद्य, भूपू (पहिलै गुणठाणे चौरासी), ७४९८९.६ (३) "" १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ७५९१९-२ १४ गुणस्थानक भेद, मा.गु. को.. मृप. (-), ७५६९७-२(*) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, वे., (बंधप्रकृतयस्तासां ), ७७४३३-२ (२) १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को. मूपू (मिथ्यात्व सास्वादन), ७३६३२(+), ७६२३६ (+), ७५२३२, ७६०७२, " ७६२९६, ७६४०८ १४ गुणस्थानके १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (नामद्वार लक्षणद्वार), ७४७६६ (+४) १४ गुणस्थानके ६२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५८८७($) १४ गुणस्थानके ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७६३१७(+$) १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु. गद्य, म्पू (उधि बंध १२० प्रकृति), ७४३७३ (+१३) " १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), ७४६७३ १४ गुणस्थानके जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलें गुणठाण), ७५६४६-२, ७४५५७ (#$), ७४९८९-३(#) १४ जीवस्थानके नाम कर्मप्रकृति बंधोदय सत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु. यं., म्पू, (--), ७४७०७-४९) १४ नियम सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (पीरती पाणी आगन), ७३२४९-३(S) १४ पूर्वनाम, मा.गु, गद्य, मूपु. ( उत्पाद पूर्व १ अग्र) ७६८२४-१ " १४ पूर्वपद नाम, मा.गु., गद्य, वे. (उत्पाद पूर्वे पद), ७४०३९-१(१) " १४ पूर्व विवरण यंत्र, मा.गु., को. वे., (पूर्वना नाम सर्ववत्थ), ७३९९९-१(#) १४ रत्न नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (खड्गरत्न चर्मरत्न), ७३८८०-१ १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, म्पू, (चक्र छत्र दंड ए तीन), ७४४८२-४(०१), ७५३२४-६(+) १४ राजलोकक्षेत्र वर्णन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमां यूगल), ७६०२१-२ (+$) १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (साते नरगे सात राज), ७४५५६-२(+) १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई देवता सोधर्मदेव), ७३६००-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१३ १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, वै., (शिक्षा कल्प व्याकरण), ७६८२४-२ १४ समूर्च्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाच, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपु. ( गीतम गणधर प्रणमी पाय), ७६२११ १४ स्वप्न बोल- मोक्ष गमन, पुहिं., गद्य, श्वे., (हाथी की घोड़े), ७३२२३-२ , १४ स्वप्न सज्झाय, ग. तेजसिंघ, मा.गु., वि. १७४८, पद्य, श्वे., (सकल जिननाम चित धरीने), ७६४६९-१ १५ तिथि सज्झाय, ऋ. करमचंद, मा.गु., गा. २६, वि. १८८१, पद्य, श्वे. (प्रथम जिनेसर जगगुरु), ७६४५६ "" १५ तिथि सज्झाब, मा.गु. गा. १७, पद्य, मूपू. (एकम कहे तू एकलो रे), ७३३६७, ७६२१४-१०) १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू (एक मिध्यात असंयम), ७३८३४(+), ७३२४३(३), ७३७५५-१(३) १५ योग ६२ मार्गणा विचार, पुहिं., को. मृपू. (१ सत मनयोग में २ असत), ७६३७६-३, ७६४७३-२ " १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित अमरसुंदर, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूपू.. (जिन चढविसड़ पाय प्रणम), ७५९३१-१ १६ द्वारे २३ पदवी विचार- पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू. ( नाम दुवार १ अर्थ), ७४३२४(+६) १६ सती सज्झाय, वा उदयरत्न, मा.गु., गा. १७. वि. १८वी, पद्य, म्पू. (आदिनाथ आदि जिनवर) ७३२४८-२०), ७५१५९-२(०), ७२९५५-१, ७५०८३(३) ', १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), ७३५८७-२ ($), ७६८९८-२($) १६ स्वप्न सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., ढा. २ गा. २१, पद्य, मूपू. (श्रीगुरुपद प्रणमी), ७४७३० (६) For Private and Personal Use Only १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवुं), ७५६५४, ७७३७१ (#$) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु. दा. १७, पद्य, मूपू (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ७३६६० (+३), ७६७५३(+३), ७५१८० (5), ', " ७५३११(३) Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१४ १८ अभिषेक स्नात्र विधि, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम स्नात्र विधि), ७३७५६ १८ गण राजा नाम देशादि विचार, मा.गु. गद्य, मूपू (अदार राजा श्रीमहावीर), ७५३२४-२(+) , १८ दिस सवैया, पुहिं. गा. १९, पद्य, वे. (प्रथम सदगुरा), ७५९९९-१ १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहिं., अंक. १८, गद्य, मृपू., (अरिहंत प्रभु १८ दोष), ७५७९३-१० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (मथुरा नगरी मे कुबेर), ७४९४१-३ ', १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुं पास), ७३०२२($) १८ नातरा सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, मा.गु., गा. ५८, पद्य, मूपू., (मागु एक पसावोजी अढार), ७३६२१(#) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, भूपू (पापस्थानक पहिलुं कहि), ७४२२२-१), ७५०५४०९), ७४५०३(5), ७५०३९(5), ७७०७१(5) (२) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय- हिस्सा मायामृषावाद पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, पच, भूपू (सत्तरमुं पापनुं ठाम), ७३३३५-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., डा. १८, प्र. ३५०, पद्य, ओ., (सुंदर रूप विचार चतुर), ७६७६५ (+३) १८ पापस्थानकपरिहार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पाप अठारह जीव परिहरु), ७६२८५-४ १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पापस्थान अढारे पुरो), ७६४३७-१ , १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पाव बंदीय), ७४४८९-२($) १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बोले पोसानी रातने), ७४१२६-३(+#) १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम कोडि अडतीस), ७३६००-३ १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ऐंद्रव्याकर्ण २ पाण), ७६८२४-५ २० विहरमान अतीत, अनागत, वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी १), ७३०२१(+#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. जीव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (सीमंधर युगमंधर प्रभु), ७५८५७-२ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५. वि. १८६८, पद्य, भूपू (श्रीसीमंधरस्वामि), ७४५५८ २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (सीमंधर १ युगमंधर), ७३६१९-३(+), ७३२२१-२ २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपने विषे), ७५४३८-२ (#) ', २० विहरमानजिन स्तवन, मु. आसकरण, रा. गा. १२, वि. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. केसव, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे १८३५, पद्य, स्था. (श्रीमंदर युगमंदरो), ७६४३६-२ "" (श्रीजिनवर जिनजी करु), ७६१५७-४(+) २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर बाहु), ७६१२७-२(#$) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. खेमवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर युगंधर), ७३०७४(+) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण), ७५५४७-१, ७६२३१ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू (वंछितदायक सुरतरू ए), ७३१५९ २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बीस विहरमान जिनवरराय), ७४४२८-२(१०) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, म्पू, (सुरनरनो नहि पार रे), ७५०९४(5) २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमुं), ७६४५८-१ २० स्थानकतप चैत्यवंदन - कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर), ७६४५८-२ २० स्थानकतप वृद्धस्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीए), ७७४९४-१ ( ) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (श्रीजिनचरणे करी), ७५८८२-१ २० स्थानकतप सज्झाय, मु. वीरदास ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वाणी साधुनि रे हईडि), ७५७०७-३(+) २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (सरसत हां रे मारे), ७३१५८-१(०), ७५४०५-१ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (सुअदेवी समरी कहु), ७५३५९-१ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ७४७९७($) २१ प्रकारे प्रासुकपाणी, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाघरा धोयण १पीठा),७३२२८-१ २१ बोल निक्षेपाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहले बोल सातनय),७३२६२($) २१ श्रावकगुण सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (क्यारे मिलसे रे), ७४४२२-१(+) २१ स्थान प्रकरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४२६६(45) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ७३७३२(+), ७३७८३(+%), ७६७६७-१(६) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (जिनसासन रे सुधी सरदह), ७४४४२-१ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रेशुद्ध), ७३२१९-२, ७४९४८-३($) २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वडोलीया पीप पीपर), ७६०७९-२(+) २२ अभक्ष्य पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (बावीस अभक्ष्य ओला), ७३९४४-२ २२ अभक्ष्य सज्झाय, मु. कुंयरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ६५, पद्य, मूपू., (पास जिणंद प्रणमी करि), ७५८२१-३(+#$) २२ परिषह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चार कर्म ने उदै २२),७४०३९-३(#) २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (साधुजी रो मारग कठन), ७३४९७-५(-2) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ७५१७२-१(+) २३ पदवी सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (गुणधर गौतम सामजी समर), ७६५३३-३(#) २४ अवतार नाम, मा.गु., गद्य, वै., (मीन १ वाराह २ कमठ ३), ७६५१४-६ २४ कामदेव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बहुवलजी २ अमृतजी), ७६५१४-३ २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., श्वे., (ऋषभ१ भरत धनुष ५००), ७४२११-१, ७६३६९-१(#) २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनचउवीस त्रिकाल ए), ७३०७७-२ २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अविचल थानक पहुता), ७६८९८-४($) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ७६४४९(+#$), ७७२८७-२(+#), ७३८२९, ७४०८४-१, ७४१५५-३, ७६४१७, ७५९८१-३(#$), ७२९४२५-६) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभनाथजी), ७४७५७ २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ७५१७५-१(+$), ७५९७९(+#$), ७६५०२(६) २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभदेव आउखू), ७५२११-१ २४ जिनआयु स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंदीइ वीरजणेसर राय), ७६१५७-५(+) २४ जिन आरती, पुहिं., गा. ६, पद्य, म्पू., (रेषभ अजत संभव), ७४९५४-२ २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आदिनाथजी आसाड),७६३४८-१(+) २४ जिनकल्याणक स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (निज गुरु पय प्रणमी), ७५९४९(+) २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमी जिन चोवीशने),७६१९२, ७६५९९(#) २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमु), ७३०८७ २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती आपे सरस वचन), ७४१०३-१ २४ जिन गीत, मु. आनंद, मा.गु., स्त. २४, वि. १५८१, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ७७३६५(#$) २४ जिन चंद्रावली, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (नाभिराया कुल केसरी),७५७२८(+) २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., अ. २४चैत्यवंदन, पद्य, मूपू., (पढम जिनवर पढम जिनवर), ७६५७९-१(६) २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ७६३३३ For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन चौपाई, मा.गु., ढा. २४, गा. ६८, वि. १९००, पद्य, स्था., (वंदु बेकर जोडनै जुग), ७५१७३ २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार, मा.गु., को., मूपू., (चवणविमान नयरि जिण), ७४१७३(+), ७६३६७-१(+), ७६६९१(+$), ७५३२१ २४ जिन नाम, नगरी, मातापिता, गर्भकाल व जन्मतिथि आदि बोलसंग्रह, मा.गु., को., मूपू., (अयोध्यापुरी सावथीपुर), ७४६७८-३ २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी), ७४७१२-३ २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ७५१६०-४(+),७४७१२-४ २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ७३४६०(+#) २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ७६५५९-३(+$) २४ जिन पद, श्राव. मगनमलजी कोठारी, मा.गु., पद्य, मूपू., (करु सेव ऋषभदेव प्रथम), ७४६०२(+$) २४ जिन परिवार स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (--), ७५०१४(६) २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), ७३०१७-२(+#), ७३०७८-३, ७३३६६-१ २४ जिन पूर्वभव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (वज्रनाभ विमल विमलवाह),७४२११-२ २४ जिन प्रव्रज्या शिविका नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (सुदसणा सुप्रभा), ७४२११-३ २४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमीय चोवीसे जिन), ७३०७७-३ २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ७७१४८, ७४७१२-५($) २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रिषभदेव उतराषाढा धन), ७४२७५-१ २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आदिदेव लंछन वृषभ), ७३२५८, ७६३९३-१ २४ जिन लंछन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभ वृषभ लांछन१), ७३४५१(#) २४ जिन विवरण, मा.गु., गद्य, म्पू., (विमान आगत तीर्थंकर),७३९९४($) २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., सवै.२५, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सुरतरु जिन समरु सदा), ७३५०१(5) २४ जिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुमति सदा मति आपइ),७६८९८-५ २४ जिन स्तवन, मु. केसरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पिता १ माता २ पुर), ७५०८४-२ । २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव), ७६०६६-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १९५२, पद्य, श्वे., (कहु धन धन छीब थारीजी), ७४६१७(+) २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रह समे भाव धरी),७३४३६-१(#$),७३४५४-१३(#$) २४ जिन स्तवन, मु. राजविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सुमता नलने बोहवा), ७४८८४(+$), ७६२०२-२ २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ अजीत संभव), ७३१४५-१ २४ जिन स्तवन, आ. विशालसोमसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (आदि जिनेसर वंदीइ), ७५०९२($) २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (करि कच्छपी धरती), ७४१६२(+$) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १८, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (जिनजी पहिले श्रीआदि),७६५४८-२(+#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पहिला ऋषभ जिणेसरदेव), ७३०७८-२ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सकल कमलदल हारज धवला), ७४६४३-२(+) २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर संभव), ७५१३४(+) २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ७३४७९ ५(#), ७६००४-२(#), ७३४४२-२($) २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), ७३१४९(#) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ७५७३५ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), ७५३८९(+$) २४ जिन स्तुति, मु. साधु ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध आचार्य), ७५१५९-१(+) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, श्वे., (जय जय जिणवर जय जय), ७४२२४-२(६) २४ तीर्थकर छंद, पंन्या. मणिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पेला प्रणमु श्रीऋषभ), ७५९१०-२ २४ तीर्थंकर नाम, मा.गु., अंक. २४, गद्य, मूपू., (श्रीरिषभनाथजी), ७३६१९-२(+) २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ को आउखो), ७३६५८-९(+#$), ७४२७१ २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण, मा.गु., को., मूपू., (--), ७४१९०-१, ७५५३५, ७५७८६(#) २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीमाहे शरीर ३), ७५७४१(+) २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (दंडक २४ नामानि शरीर), ७३८७१-२(+) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ७६०७७-१(+#$), ७५०४९(5) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडकलेश्या ठित्ति),७६०९०($), ७७१५७($) २४ दंडक ५६३ जीवभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्य ५६३ जीवना), ७४६७२-२, ७४९८९-२(#) २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, मूपू., (सप्त नरके समुचे गति), ७५१६७(+) २४ दंडक बोल संग्रह ,मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ७६३६७-२(+), ७३५३०(s), ७५८८९($) २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७६०७३ २४ पीर नाम, मा.गु., गद्य, (इमाम अलीअकबर), ७६५१४-४ २४ बोल- परम कल्याण के, मा.गु., गद्य, मूपू., (तपस्या करवी ते जीवने),७५६९९-२(+) २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति), ७५२०५(+),७६१३९-१,७६४८२(5) २५ भावना विवरण-महाव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमित), ७६११५-२(+), ७६५१४-८ २७ बोल-अल्पबहुत्व, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेले बोले सुक्ष्सम),७३५७०-२(+-) २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (आमोसही नामा लबधि१),७३६६३-२ २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), ७५१६०-२(+), ७६६७१-२ २८ लब्धि यंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (आमोसही लब्धि ते हाथ), ७४१२२-२(+) २८ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे मुनिना हाथ पगना), ७२८७६-२ २९ पाप शास्त्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुमिकपण का शास्त्र१),७३२२२-१ २९ भावना छंद-वैराग्यप्रेरक, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अविचल पद मन थिर करी), ७३३६०, ७३५४९-३($) ३० बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नगर ते गामसरखां थशे), ७४१४४-१(६) ३२ अनंतकाय नाम, मा.गु., पद्य, मूपू., (सर्वकंदजाति सूरणकंद), ७५८७१-३(+) ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (उकाबाइ कहता तारो तूट), ७३४२७, ७५३३१-३, ७६५१४-१० ३२ जिन स्तवन-जंबूद्वीप महाविदेहक्षेत्रगत, मु.न्यायसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), ७४०१०-१(+) ३२ जिन स्तवन-धातकीखंड द्वितीय महाविदेहक्षेत्र, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (--), ७४८३९(+$), ७३९१०-१(६) ३२ जिन स्तवन-धातकीखंड प्रथममहाविदेहगत, मा.गु., पद्य, मूपू., (धातकीखंडमांजेह), ७४०१०-२(+$) ३२ जिन स्तवन-पुष्करवरद्वीपार्द्ध प्रथम महाविदेहगत, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (रे जीव जिनवर पूजीई), ७३९१०-२() ३२ सामायिक दोष-भगवतीमध्ये, मा.गु., को., मूपू., (जोगं वटउ अथवा पालठी), ७६०४४-२ ३३ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात्त भये इहलोक भय),७७४७८ ३४ अतिशय नाम, मा.गु., अंक. ३४, गद्य, मूपू., (अद्भूतरूप अद्भूत अंग), ७३१७२ ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ७५७०८-१(+),७५९५९-३ ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (एणे अवसर आव्या सही), ७३०७१(#$) ३५ जिनवाणी गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (केलवणि घणी सक्त्वरी), ७३२७७-२ ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार),७४२७९(#) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१८ ३५ बोल - संसारसमुद्र के, मा.गु., गद्य, मूपू., (बोले संसार रूपी समुद), ७५६९९-१(+) ३६ बोल अल्पबहुत्व थोकडा, मा.गु., गद्य, थे., (सूत्र पनवणाजी), ७४६०१-३(+) ३६ वर्ण नाम, पुहिं., गद्य, श्वे. (सीसगर१ दरजी २ तंबोली३), ७५९९९-३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ४४ बोल- छकाय, मा.गु., गद्य, श्वे. (सूक्ष्म निगोदी अपर्य), ७४१२५-१ " ४५ आगम अष्टप्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ७४७६२($) ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांग२), ७४५५६-३ (+), ७५५०२-२(+), ७५४१५ ४५ आगम सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंग इप्यारने बार), ७३६४७-२ ४५ आगम सज्झाय, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७६१०२(s) ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदो रे ए), ७५९०३ ४५ लाख योजन प्रमाण ४ वस्तु, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (देवलोके नरके प्रथम), ७३६००-५ ४७ एषणा दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोलस उग्गमदोसा सोलस), ७५६५७-२(+) ४७ गोचरीदोष सज्झाय, मा.गु., गा. २० वि. १९१३, पद्य, मूपू., (दोश अहारना सांभलो रे), ७६३०८-३(३) ५० बोल यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), ७४१२२-१(+) ५२ बोल थोकड़ो, रा., गद्य, श्वे., (आठ आतमा मै कर्मारी), ७५१७६ (+) ५६ अंतर्द्वीप विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., ( एगरु१ अद्रस२ वसेलक३), ७४४८४-१ (+) ६० घटिका नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुंडरीक१ सुभद्रा२), ७६७०५-१ ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७५४८४($) ६२ मार्गणा ६ द्वार, मा.गु., को., मूपू., (मनुष्यगति नरकगति), ७५३४१ ६२ मार्गणा उदीरणा, मा.गु., गद्य, मृपू., (तेहनी १२२ उदय छे), ७४०७९-२(+) " ६२ मार्गणा की सत्ता, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रकृति२४८ तथा १५८), ७४०७९-३ (+8) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ७४०७९-१(+), ७७४३४(+$) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. मृपू., (देवगति मनुष्यगति), ७३४०८ (+४) ७४६८४(+), ७५९४६(+), ७६४२१-१(+), ७३७६९, " ७४६७२-१, ७५९२६, ७६०२३ ६३ शलाकापुरुष मातापितादि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (हवे त्रेसठशिलाकानी), ७६१३२-२(+) ६४ इंद्र ऋद्धि परिवार, मा.गु., को. भूपू (--), ७५१५५(क) " + ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु. गा. ४१, पद्य, स्था., (नाम पर्णे ज्ञानी कधीय), ७६७११-१(०३) ६७ समकित बोल, मा.गु.. गद्य, म्पू., (परमार्थ जाणवानो), ७३९३२-१ ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ७६००५-५०) ६८ गुणदोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. १५, पद्य, मूपू (क्षुद्रो लोभ रति), ७५९३० + ६८ तीर्थ नाम, मा.गु. गद्य, वै.. (गंगा १ जमुना २ प्रआग), ७६७०५-२ ६९ हुंडी बोल- लुंकागच्छ, रा., गद्य, श्वे., (गया कालरा केवलग्यानी), ७६३६६ (+) ७३ संख्यामान अंक गिनती- भगवती सूत्रगत, मा.गु., गद्य, श्वे. (१ एकं १ २ दह), ७६७५७ ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा नाखवो १ राम), ७४८८८-४(+) ८४ आशातना स्तवन, उपा धर्मसिंह, मा.गु. गा. १८, पद्य, भूपू (जय जय जिण पास जगडा ), ७३३९६- १(ख) " "" ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ७३८७६-३ (+), ७३७८२-१ ८४ लाख जीवयोनिआयुष्यादि विचार, मा.गु., को. म्पू., (--), ७३७८६ (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ लाख जीवयोनि नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (८४००००० सात लाख), ७३५३१-२ , ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बावन लाख साधारण एकिं), ७३१४२-१ (+), ७५०८५-१ (+$) ८४ लाख जीवायोनि मूकबधिर का छप्पा, मु. सुरगंग, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (लक्षचोरासी जोनिमें), ७६३०८-२ ८४ वणिगजाति नाम, मा.गु., गद्य, वे., (श्रीमाल ओसवाल२), ७३८७६ -२ (+#) For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ७३७८०-१(+-$), ७३९२७#),७४९४३-१(#$) ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (केवलनाणी श्रीनिरवाणी), ७३५४८-१ ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमंते सव्व जीवा), ७५७३१(+$), ७५६५३-१, ७६४२०, ७६४२९(5) ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ७५६७४-२ १०३ जीव भेद विचार-६२ मार्गणा यंत्र, रा., यं., मूपू., (एक प्राण को घणी वाटे), ७५१११(+$), ७५९८७ १०४ द्वार विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव गई इंदिय काए जोए), ७७४४९(+) १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र), ७३८४८-१(+), ७६५१५(+$) १७० जिन वर्ण, मा.गु., गद्य, मूपू., (१६ सामला ३० राता), ७३८४८-२(+) १७० जिन स्तवन, मु. उद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोल जिनेसर सांमला), ७७३६३-३(#) २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक मोती ६४ मननु), ७३३५३-४(+) ५६० अजीव भेद यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), ७६३२६ ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय खंध), ७४४८४-४(+), ७४११९() ५६३ जीवभेद६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता),७६१४२(+),७४६८०,७५४४३ ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७६०६९ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), ७४१९५(+$), ७२९२९ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी सात नरकना), ७४९८९-१(2) अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (माथै फुरके पुहवीराज), ७७३४७-१ अंगुलमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोगद्वारमध्ये), ७५२८९($) अंचलगच्छमत ३२ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (१तुम्हे कूण सिद्धांत), ७५८७५-३($) अंजनासुंदरी कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप वैताढ्य), ७३९०५-४(+$) अंजनासुंदरीरास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ७४५७९($) अंतिम आराधना, मु. जयजश, मा.गु., ढा. १०, गा. २२७, वि. १९३५, पद्य, मूपू., (महावीर प्रणमी करी), ७५२२३(+) अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ७२९७४-१(#) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १४, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (एवंतामुनिवर नाव तराइ), ७३५०३-२(+-) अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (खुसामदी कर दाताररी), ७३०८९() अक्षयतृतीया स्तवन, मु. रेखराज, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (आदि नृपपद धरी वरण),७४६८६ अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२५, पद्य, श्वे., (कका कछु कारज करो), ७४७१९ अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ३५, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (कका ते किरिया करो),७७३३८(#) अक्षरबत्रीसी, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ३४, वि. १८००, पद्य, मूपू., (ॐकार आराधियै जामै), ७६१४०-१(#) अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, म्पू., (ॐकार सदा सुख देत), ७७०५२(#$) अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), ७७२७५(+$), ७७२९६-१(#) अक्षरबावनी, मु. मान, पुहि., गा. ५७, पद्य, श्वे., (ॐकार अपार अलख्य), ७५४९४-१(+#) अक्षरबावनी, मा.गु., पद्य, मूपू., (ॐ अक्षर अलख गति धरूं), ७२८७९(#$) । अगडचंद चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (जे नर औसर अटक ले ते), ७५४९० अग्निशमन मंत्र, पुहिं., गद्य, वै., (ॐ ताबै की ताई हांक),७३९५५-१ अजापुत्र चौपाई, मु. सुमतिप्रभ, मा.गु., ढा. ४८, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (परमज्योति त्रिभुवनपत), ७६१०९($) अजितजिन छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, दि., (गोयमगणहरपय नमो सुमरि), ७५८१९(+$) अजितजिन लावणी, मु. केशवलाल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीअजितनाथ महाराज), ७६३२५-२ अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुंरे), ७५९५३-३, ७४७४२-२(#) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बीजा अजित जिणंदजी रे), ७६२५६-१(+) अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा.१०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुण संपदा), ७३९८७-१(#) अजितजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी अजित जिणंद), ७३६०८-१ अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर चरणनी), ७३११७-२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलग अजित जिणंदनी), ७३५८६-२(#$) अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ७६७९९-२(#), ७३६०३-१(६) अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ७४६३४-११ अजितजिन स्तवन, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बीजा अजित जिणेसर), ७५२५०-१ अजितजिन स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमै सोहै भरत), ७५८९०-२(+-) अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीव पुष्करवर पश्चिम), ७४४०१(#) अज्ञात गच्छाधिपति सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारी अरज सुणीजे हो), ७६५०६-३(+) अठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति ध्याउं मन),७६२२२(+),७७०६३-१ अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (हलदेर १ बेहडा २ आबला), ७५२९२-३(#) अतीतचौवीसी चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अतीतचोवीसी वंदीए आतम), ७५३८७-१(+) अधमपुरुष लक्षण, क. गद्द, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., (तरणो डार्या साह जिण),७३६१८-२ अधिकमासवृद्धि विचार, रा., गद्य, श्वे., (चंद्रमा का मंडला १५),७६४९९-२(+) अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ७५९५७(+$) अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मायडी मुने निरपख), ७५३०९-१ अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), ७३२०४(+#),७६७५४-१(+) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ७४३४६(+$), ७५२७८, ७६४०९, ७५९२९-१(६) अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अनंतकायना दोष अनंता), ७६०७५ अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ७७०९०-२ अनंतजिन स्तवन, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलगडी चित आणो हो मत), ७३६४६-४(#) अनंतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो तुमे वीतराग हमार), ७७१५४-४(+#) अनंतवीर्यजिन होरी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुं तो जिन भज विलंब), ७३०१३ अनागत चौवीशी स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुप्रभात प्रणमीए), ७५३८७-३(+) अनागतचौवीसी के पूर्वभव नाम, पुहिं., गद्य, श्वे., (१ श्रेणिक २ सुपार्श), ७५६४२-१ अनागत चौवीसी जिन आगमन गति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेणिकरो जीव पेहली), ७५१६०-३(+) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मगध देस राजग्रही), ७३९२१-२($) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमराय, मा.गु., गा. ६६, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ७५२७९(+) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. गुणसमुद्र, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सेणक रेवाडी संचर्या), ७३४९७-१(-2) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ७४१०७-२(#) अनानुपूर्वी, मा.गु., को., मूपू., (--), ७४०५९-२(+) अनानुपूर्वी अंक गणवा विषे छंद, मु. दुर्लभविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अनानुपूर्वी गणजो), ७४०५९-३(+$) अनुकंपा चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (जीव छोडाव दाम दे जिन), ७३५८३(+$) अभयकुमार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १०१०, वि. १६८७, पद्य, मूपू., (वद कमल चंदन जसी मही), ७४९४२(६) अभयदेवसूरिजी की स्तुति, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (जयजय आचारज पटधारी), ७३६४९ अभिनंदनजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (जिनमुख देख्यांकुमति), ७५००१-१ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. देवचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अभिनंदननाथ जुहारीजी), ७४४१५-२ For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ अभिनंदनजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुम्हे जोज्यो जोज्यो), ७७०८१ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. बुधविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मे तो मारे जिनजीने), ७३५९९-२(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीअभिनंदन हो अरज), ७५७३८-३८) अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण), ७५१४३-६ अभिनंदनजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अभिनंदन उपगारी हो), ७४१५५-२ अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी भली), ७५२९३(+) अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (सरसति सामण तुज पायेज), ७६६३८-१ अमृतध्वनि, मु. धर्मसी, पुहि., गद्य, मूपू., (रतनपाट प्रतपैरतन),७३९५५-२ अमृतध्वनि, मु. महासंग कवि, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (--), ७६२०८-१(+$) अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ७३८१०($) अरजिन सवैयो, पुहि., गा. १, पद्य, पू., (शशधर सम वदन रदनघर),७६५४२-३(+),७५७४९-३(#) अरजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अति आनंदे रे अरजिन), ७६०६२-२ अरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (--), ७३९२४-१(#$) अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीअरजिन भवजलनो), ७३५२६-३(+#) अरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (पूजा करता भाविइं रे), ७४३३२-२(+$) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनj), ७४११६(+$) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), ७६५६३ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ७३५५०, ७३८९१-३, ७४९३०-२, ७५४९२-१, ७३४९०(#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (धन धन जननी रेलाल), ७६१०८-२(+), ७६५५४ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या),७३७२६-२ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (एक दिन अरणीक जाण), ७६४२६-२(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (एक दिन अरणकजाम उठीयो), ७३८४४-२ अरिहंतशरण सज्झाय, मु. गजमुख, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरण करीजई श्रीजिन), ७६२८२-२(#) अरिहंत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंतजी रेहुरे), ७३०९० अर्जुनमाली ढाल, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा.७, वि. १८२३, पद्य, स्था., (राजगरी नगरी हुती), ७३५४१(-#$) अल्पबहुत्व ९८ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सर्वथकी थोडा), ७४१७२(+$) अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरव थोडा अवधदसणी ते), ७६४८१(+$), ७३६६३-१(६) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ७३७४३(+#$), ७४४१८(+$), ७६०८८-२(+$), ७६३६४(+#), ७३९२८($) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छे साचो), ७३४८३ अविनीत शिष्य सवैया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (गुरु समझाय संजम दीयो), ७३४९३-१(#) अष्टप्रकारीपूजा स्तवन, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (गंगोदक शीतल विधि वास), ७६३३२ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ७५३०५, ७५५३२-२, ७५९०५-१ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आठ त्रिगुण जिनवरतणी), ७५७६५-६(+) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ७३०६२-३(+), ७४८६३-२ अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिई भाव), ७३२३७-६(+) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (अष्ट करम चूरण करी रे), ७३५३६-१(+) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ७४९९७(+$) For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ७५७९६, ७३४७९-९(#), ७६४०६-१(०) , अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु. दा. २ गा. २०, वि. १७१८, पद्य, म्पू. (जय हंसासणी शारदा), ७५३४६-१ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., डा. २ गा. १३, पद्य, मूपू. श्रीराजगृही शुभ ठाम), ७३३११ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्वसौभाग्य, मा.गु, डा. ४, गा. २४. वि. १८३९, पद्य, भूपू (पंचतिरथ प्रणमुं सदा), ७५९७४, ७५५१० ($) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, चोवीसे जिनवर प्रणमु), ७३१२३-१, ७५९९३-३ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ७६६६२-१ (+) अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ७६३९४ (+), ७७४५५ (+), ७५१९४, ७६२२० अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु. गा. ४, पद्य, म्पू, (अष्टमी अष्ट परमाद), ७७४८६-१ अष्टापदतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (प्रथम जिवनो धाम), ७५८८५- शक अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू, (सकलकुशल कमलालय अनुपम), ७२८८८-१(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद रंगे नमी), ७५७७२ (+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापद उपरे जाणी), ७४७०८ ($) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, मनडो अष्टापद मोह्यो), ७४६७८-१, ७६६३८-२ असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, मृपू. (यथोक्त भेद स्पष्ट), ७५६५३-२, ७६२६४ असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, म्पू., (वंदिइ वीर जिणेसर राय), ७६४५९-१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइं), ७३२६६ असज्झाच सज्झाय, मु. हीर, पुहिं. गा. १५, पद्य, मूपू. (श्रावण काती मिगसिर), ७६०२५-२ " असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, भूपू (प्रणमुं श्रीगौतम), ७४८४६-५ " " असमाधि २० बोल, मा.गु., कडी. २०, गद्य, मूपू., (उतावलो चालें तो), ७३२२१-१ अहिंसादि मतमतांतर चर्चा विचार, मा.गु., गद्य, मृपू (श्रीजिनधर्म दया मै), ७५६८६ आगमगुण स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मंगलकेली निकेतनं), ७६४४६-११ (+#) आगममहिमा सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आगम अमृत पीजीये बहु), ७६४४६-१० (+#) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), ७३९६७(+#$), ७५४९६($) आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ७५२३१-१ आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु, गद्य, म्पू, (लोक आश्री प्रस्तते), ७३७९१ आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु गा. ३७, पद्य, वे (गुर समज मेको नहीं), ७३५६४-१ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मृपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ७५०९३(३) आत्मराज रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १०१, वि. १५८८, पद्य, मूपू., (सिरिसरसति सरसति आपु), ७५३८६ (+$) आत्मशिक्षा भावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो आतमानुं प्रमादमा), ७६२६० आत्मशिक्षा सज्झाय क. ऋषभदास, मा.गु. गा. १५, पद्य, मृपू., ( अनुभवियानां भवियां), ७३३९० " . आत्मशिक्षा सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (समता सुंदरी रे आणो), ७५८२१-२००) आत्मशिक्षा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीयति मारग आदर्यो), ७४७५६-१(#) आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु, गा. १०, पद्य, भूपू (प्रभु पाय लागी करूं), ७६५५९-१(०), ७४६०९-१(5) " आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंख्यातप्रदेशी अनंत), ७३६७५-१ (+), ७६६६३-१(+) आत्मा के ८ नाम - भगवतीसूत्र, मा.गु.. गद्य, म्पू, (द्रव्यात्मा १ कषाय), ७५९३९(+), ७३९९९-३(१) आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती आदिजिणंदा), ७४९५४-३(३) आदिजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (अरिहंतजी हो तु प्रभु), ७७५००-५ (१) आदिजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( प्रथम जीणंदस्युं), ७७५००-४(+) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची १.१.१८ आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (हवें श्रीऋषभदेव वाधे), ७६५४४, ७४०८४-२($) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव),७३२०८-२ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास० प्रभु रिषवदेव), ७७३६३-५(#) आदिजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर नमु), ७५०३७-४(+) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), ७५०३७-५(+) आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत), ७६५५८-१ आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ७३८६३(#s) आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव.रोड गीरासिंह कवि, पुहि., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सदाशिवराव आव्यो), ७७१९३(+) आदिजिन पद, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीतमारी मुरत मोहन), ७५०१०-२ आदिजिन पद, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (देखो आदिस्वर स्वाम्म), ७३७०७-३(#) आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (विसरे मत नाम प्रभूजी),७३४३६-५(#) आदिजिन पद, मु. चिमनसागर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जी प्रभुजी महिरधरीने),७२८८८-२(+) आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नित ध्यावो रे रिषभ), ७६१०५-१ आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (मोए कू क्यो न उतारो), ७५२४७-१ आदिजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (घडी धन आजकी मेरी), ७७१६४-१(+) आदिजिन पद, मु. भाणविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिश्वर प्रभु नयणे), ७३६४६-५(#) आदिजिन पद, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (साहिब रीखव जिणंदचंद), ७३०१५-३ आदिजिन पद, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ६, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (भेट्या रे नाभीकुमार), ७५९११-३ आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ७६११८-२(+) आदिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू, (ऋषभ जिणेसर वंदीये),७३४२८-२(-) आदिजिन पद-केसरियाजी, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनमोहन मनरंजन प्यारा), ७७०७९-३ आदिजिन पारणा, मु. आनंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीआदनाथ प्रभु संजम), ७६०१०-४ आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (मा मोरादेवी गावे रे), ७३५०४-४($) आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणंद प्रणमु), ७६३०५-२(+) आदिजिन बृहत्स्तवन-शजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ७३७६१-२(-#$) आदिजिन मरुदेवीमाता पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (वीसारि किम वालहु), ७४३८९-४(+#$) आदिजिन मिताक्षरी परिचय, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीरषभदेवजी पहैला),७५९८१-१(#) आदिजिन लावणी, मु. दीपचंद, पुहि., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव प्रभु का दरसण), ७४५९२(-) आदिजिन लावणी, मु. नाथुराम, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (ऋषभदेव तुम बडा देव),७६६७४(+) आदिजिन लावणी-केसरीया, मु. मूलचंद्र, पुहि., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सुणीये बातो रांव), ७३७०७-१(#) आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सुनीओ बात सदासीवजी), ७५७४७ २,७४७५१-१(#), ७४९५२(#), ७४४५४-४६-६) आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, नानु, मा.गु., पद. ६, पद्य, श्वे., (सरणै आयां की लज्जा), ७४६७०-२ आदिजिन वार्ता, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीरिषभनाथजी),७४७११(+) आदिजिनविनति सज्झाय, मा.गु., गा. १६, वि. १८४८, पद्य, मूपू., (नगरी वनिता श्रीभरत), ७५७४३-१ आदिजिनविनती लेख-थिरप्रद, मु. सायधण, मा.गु., ढा. ४, गा. ६५, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुख संपत), ७३८८८ १(#s) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर वंदु पाय), ७५२९०(s), ७६४३७-२(5) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू., (सुण जिनवर शेजा),७६३८९ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ७६३४४, ७५७४९-१(#) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७९, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ७६१२०(+), ७४७३९ आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधों), ७६०४९(#) आदिजिन विवाहलो, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (प्रभु दरीसण की प्यास), ७४६३६-१(5) आदिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४८२९(+$) । आदिजिन सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (आदही को तिथंकर आदिही), ७४०६६-१ आदिजिन सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (आदिही कौ तिथंकर), ७४६२५-८(+) आदिजिन सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणंदराय सेवा), ७४६२५-२(+) आदिजिन-सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय त्रिभुवन आदि), ७४२४४-५(+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ७३३५१(+), ७५९५३-२, ७३५९९ १(#),७४७४२-१(#) (२) आदिजिन स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चिदानंद आनंदमय),७३३५१(+) आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अईयो अइयो नाटक नाचें), ७३४३६-२(#) आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ७३७०८-१ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ७४४१५-१, ७५७२४-२ आदिजिन स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पूजवा), ७५७५८(+) आदिजिन स्तवन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जे आव्या तुम्ह आश्रे), ७४६३४-३ आदिजिन स्तवन, मु. जयचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आदिदेव जगदिसेजी लहि), ७५७७७-१(+) आदिजिन स्तवन, गच्छा. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १९४४, पद्य, मूपू., (जगगुरु ऋषभ जिणेसर), ७७४५७-१ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (श्रीनाभिकुलगुर), ७४३६३(+), ७३२०९-१ आदिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीआदेसर आद धरमनी), ७३५२३-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिनंद आज),७६५८२-२(+#$) आदिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु सुरपति सेव करे),७४६३४-२ आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननायक ऋषभजिन), ७५५५६, ७३२७६($) आदिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (पुरवदिसि जिन तणी), ७६४५९-३ आदिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ७४३३२-३(+$) आदिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर), ७५१४३-४ आदिजिन स्तवन, मु. भाव, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (दरसण द्यो प्रभु रिषभ), ७३२१६-५ आदिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (माता मारुदेवीना नंद), ७३७०९-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), ७३११७-१(६) आदिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनऋषभ नमी जइ रे), ७६१५६-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ७५००१-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ७३५३२-२(#) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), ७४६७८-२, ७६५७९-२, ७३०८३-३() आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्याजको लोक तरायो ऋष), ७४००१-१ आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (हो जि अरिहंत आदिनाथ), ७६०२४ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ " आदिजिन स्तवन, मु. रुपजी, मा.गु., गा. ५१, वि. १७०४, पद्य, श्वे. (आदिसर जिन वंदिइ रे), ७५७९८ आदिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर त्रिभुवन), ७६५०९-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ७३४५४-१०(#) आदिजिन स्तवन, मु. वृद्धिकुशल, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (सरसति मात मया करी), ७४२४९-२(१) आदिजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवि सेवो रे देव), ७३९९७-१ आदिजिन स्तवन, सुखदेव, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिनेश्वर), ७३८०७-३(#) आदिजिन स्तवन, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आदीसर अरिहंतजी ओलगडी), ७६३२४-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन जगवंदन देव), ७५११७-३, ७३४८४-२ (#) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्म, मूपू (जगदानंदन विनती रे), ७६३२४-२ (+) . आदिजिन स्तवन, आ. हीररत्नसूरि, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू., (एसा जिन एशा जिन एशा), ७४५४४ " आदिजिन स्तवन, पुहिं. गा. १३, पद्य, मूपू., (अंस बंस का उपना सामी), ७५९०८-१(७) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुम सेती नही बोलु), ७४६३४-१ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू (श्रीआदिनाथ नमु सदा), ७३२१७ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (श्रीरिषभ जिणंद), ७३९९६-२(१) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (--), ७४५८२(६) "" आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित वा पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू (जगपसरत अनंतकंत गुण), ७४६२३-१(+) आदिजिन स्तवन- २४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., डा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., ( आदीसर हो सोवनकाय), ७३०२८ (8) आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ३, गा. २६ वि. १७२६, पद्य, मूपू (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ७५५४७-२ आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मूपू., ( आबु शिखर सोहामणो जिह), ७२८९८ आदिजिन स्तवन- आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मृपू., (जिन जीम जाणे होते), ७६३१३(४) आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत), ७४३८५ आदिजिन स्तवन- आलोयणागर्भित, मा.गु., पद्य, भूपू (--), ७५१३९(०४) ५ आदिजिन स्तवन-कलकत्ता मंडण, आ. लब्धिचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनेसर मूरते मन), ७४६८८-१ आदिजिन स्तवन- गुणयुक्ताभिधानगर्भित, मु. सुलच्छ, पुहिं. गा. ७, पद्य, वे (प्रथम जिणेसर तुम खरा), ७५८८५-२शक " " आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (देस मेवाड धुलेवो), ७७४६२-१(०) आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धन्य तु धन्य तु धणीय), ७३१६९-१ आदिजिन स्तवन- धुलेवामंडन, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू (धुलेवामंडण श्रीऋषभ), ७५८६५-१(७) आदिजिन स्तवन- नारदपुरीमंडन, मु. बल्लभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सहु), ७५४११-१ आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, मु शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७९५, पद्य, भूपू (राणपुर नमौ हियो रे), ७७४९७-२(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ७६५८६ ', शा ५२५ आदिजिन स्तवन- रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अदभुत रूप अनुप खरो), ७५७७७-५ (+) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडण, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचलमंडण रिषभ), ७७३६०४(+#) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमलाचल गढमंडणो), ७७१५४-२(+#) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, मूपू., (शेत्रुजै मोहनजी), ७४३३२-६(+$) आदिजिन स्तवन- शांमला, मु. उत्तमदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सार कर सांमला बार), ७३१६९-२ For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन-सेत्रावामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (मूरति मोहन वेलडी), ७३३८७ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ७६६३०-१, ७६१६३-३($) आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर राया जास), ७३०६२-६(+) आदिजिन स्तुति, मु. लावण्यसमय', मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), ७६०३५-३(2) आदिजिन स्तुति, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनवंछित पूरण आदि),७२८८९-२ आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उन्नतपुरमंडण जगतधणी), ७२८८२-१(#$) आदिजिन स्तुति-निंदागर्भित, मु. धर्मसि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (--), ७४६६६-१(#$) आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ७३१९४-२($) आदिजिन हरियाली, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कहो तुम्ह पंडित कुण), ७३६८०-२(+) आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (होरी खेलियै नर बहुर), ७६५७५-२(#) आदिजिन होरी, मु. जिनतुलसी, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (नाभकुमार खेलन चले रे), ७६११४-१ आध्यात्मिक कुंडलिया, क. गिरधर, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (हंसा उतरेवो नही जिहा), ७६३५४-६ आध्यात्मिक कुंडलिया, पुहि., गा. २, पद्य, वै., (पास राम रूपइयारो वहे), ७६३५४-५ आध्यात्मिक गीत, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (व्रजनाथ से सुनाथ विण), ७४९१४-४(+) आध्यात्मिक चुनरी-सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (एह अनोपम चुनरी मागे), ७५७०९-१, ७५७६०-२ आध्यात्मिकज्ञान प्रश्नपहेली, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (कुमति सुमति दोउ), ७६४१५(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू क्या मागुंगुनह), ७५८७४-२($) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधूराम राम जग गावे), ७५८७४-१, ७२९२७-९(#$) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आस्या औरन की कहा),७२९२७-८(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चेतन चतुर चोगान लरी), ७२९२७-१(#S) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ठगोरी भगोरी लगोरी),७२९२७-४(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तेरी हुं तेरी हु), ७२९२७-५(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नीस दिस सोहामणो निर), ७४९१४-६(+$), ७५३६९-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम नरममति और न भावै), ७२९२७-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पीया विना निस दिन), ७२९२७-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माला पूछीयै आली खबर),७६४४६-७(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (मुदल थोडोरे भाईडा),७४९१४-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरी तुं मेरी तु), ७२९२७-६(2) । आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सलौणे साहिब आगे), ७६४४६-६(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधु संगति बिनु कैसे), ७४९१४-१(+$) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (हरि पतित के ओ धारन), ७४९१४-५(+), ७५३६९-१ आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (तेरी काया में गुलजार), ७३२४९-२(2) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अकल कला जग जीवन),७४१८४-१ आध्यात्मिक पद, श्राव. चुन्नीदास, पुहि., पद. ५, पद्य, श्वे., (जिनकी जिनको परतीत भई), ७५१८४-४(#) आध्यात्मिक पद, श्राव. जिनबगस, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजलू समै मजलू जरूर), ७५२४६-३ आध्यात्मिक पद, क. दलपतराम, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे.?, (चेत तो चेतावू तुं), ७६३८७-३(#$) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ७४३४३-२ आध्यात्मिक पद, ब्रह्मानंद मुनि, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (वाह क्या खेल रचाया), ७४००३-२ आध्यात्मिक पद, ब्रह्मानंद मुनि, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (--), ७४००३-१(६) आध्यात्मिक पद, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीये), ७६५२९-२(+), ७५६७८ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (अस्तिवाजी जोइराजी),७५३९८-४ आध्यात्मिक फाग, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (कांआं नगरी निरूपम), ७६३५९-६ आध्यात्मिक लावणी, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रीया वणझारा रे),७५४११-४ आध्यात्मिक लावणी, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (हो जी ननदि आज छेला), ७५४११-२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मन दरजीकुंजीव कहि), ७५७०९-३, ७५७६०-३ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लक्ष्मीदास, मा.गु.,गा. ६, पद्य, श्वे., (वाह्यारे एणि जोवनीय),७७१६७-२ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सासरीये इम जइये रे), ७३०३८ आध्यात्मिक सवैया, ईसरदास, पुहि., सवै. १, पद्य, वै., (कहां जाणुं दीनानाथ), ७५२६३-१ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा.६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ७५७९२,७५६७६-२(६) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली क० इद्री), ७५७९२ (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली कहता इंद्री), ७५६७६-२(६) आध्यात्मिक होरी, मु. चेतनराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (चातुरि कहा बोलुगुनन), ७६३५९-७ आध्यात्मिक होरी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु भज विलंब न कर), ७६१०५-५ आध्यात्मिक होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (असै चिदानंद खेल होरी), ७३५७९-२ आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्युं खेले रंग होरी), ७६४४६-८(+#) आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञान रंग खेलिइ होरी), ७६४४६-३(+#) आध्यात्मिक होरी, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यानी जिउ अनुभौ), ७६४४६-१(+#$) आध्यात्मिक होरी, पुहिं., पद्य, श्वे., (जोगेसर हरि खेलत होरी), ७५५४३-४(#) आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ७८, पद्य, मूपू., (क्या सोवेउठि जाग), ७४६३२(+$) आनंदश्रावक सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हाथ जोडी आणंद कहे),७५२४३ आयंबिलतप सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीमुनिचंद्र मुनिसर), ७५३५६(+#) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ७७१६२-६(#) आयुष्यकर्म विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांचमु आउखां कर्म), ७३६६१(६) आराधना सार दहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (अरिहंत अरिहंत समरता), ७३७७५-१(-) आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४०६, वि. १५९२, पद्य, मूपू., (जिनवर चरण युगल पणमेस),७४१६०(+$) आर्द्रकुमार चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (संतिकरण संतीसरु), ७५५३८-१(#) आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ७५१६०-१(+) । आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ७४१०१-१(+$) आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान आसातनाई जघन्य),७५३२२(+#),७६१६४-१,७५७८०(६) आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भीन मास कहतां लूखो), ७४९७१-२(+#$) आलोयणा विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुपनारी दीसी प्राणी), ७३४६५(-#$) आलोयणा विचार-आयु अनुसार, मा.गु., गद्य, श्वे., (वरस वरस प्रतै पांच), ७५१२९(#) आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ वरस नानि आलोयण), ७७४५०(+) आलोयणा सज्झाय, मु. ताराचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जीवडा हिवैय विमासी), ७७४४०-२ आश्रव के ४२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे आश्रवना वीर), ७४७४३ आश्रवसंवर अष्टकर्मविवरण चौपाई-औपदेशिक, रा., गा. ७८, पद्य, श्वे., (मिच्छत अविरति प्रमाद), ७७४७९(+) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), ७५९५०-१ आषाढाभूति भास, मु. ज्ञान, मा.गु., ढा. ६, गा. १६, पद्य, मूपू., (आषाढभूति अणगारनि रे), ७३३६५ For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ७४३१४(+$), ७६७१२(+६) आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३०, पद्य, स्था., (वाणी अमृत सारसी आपो), ७५२८५ (#$), ७६५४११६) www.kobatirth.org आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं), ७५२८७ आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ७६४२६-१(+), ७२८९२, ७३४६४.१(१३) ७३६३०.१(३), ७६०५७(5) " आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु, डा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ७५९७२ आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (गणधर गौतम गुणनीलो), ७५३१५ (#$) आषाढाभूति सज्झाय, मु. हंसमुनि, मा.गु, पद्य, भूपू (--), ७३५०२ (45) י' आहारदोष विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (ते आहार केहवो पोते), ७६३६१-२(+) इक्षुकारराजा सज्झाय, मु. देवीलाल, पुहिं. गा. ५, पद्य, स्था. (मारी कमलाराणी ऐ थान), ७५३९८-९ " इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), ७४६२४(+$), ७५७८५ (+) इरियावही मिथ्यादुष्कृत विचार, मा.गु., गद्य, मृपू, (प्रथम देवनाभेद १९८), ७७३६८(+) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नारी रे मी दीठी एक), ७४७२५-१ (#), ७५५२३-२(#) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र - शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), ७६०७६ इरियाविहीकुलक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. १४, पद्य, म्पू., (मन शुद्धिरे इरियावहि), ७५२३४ इलाचीकुमार गीत, मु. लीवो ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, ओ., (गोपी बइठो रे पुत्र), ७६०६४-२(+) इलाचीकुमार चौडालिया, मा.गु., डा. ४, पद्य, वे. (प्रथम गुणधर गुणनीलो), ७६३७४(+), ७४०२३ (०३) . इलाचीकुमार चौपाई -भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ७५७२९ (+$), ७४७७९ (#$), ७३७५३($), ७४१८६ ($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इलाचीकुमार छढालियं, मु. माल, मा.गु, ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था. (मात मया करो सरस्वती), ७६१४१(क) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ७५१४१-३ (+), ७५५२५-२, ७५७०३, , ७३४७८-१(३) इलाचीपुत्र चौडालीयो, मु. भूपति, मा.गु., डा. ४, पद्य, भूपू., (प्रथम गणधर गुण नीलोर), ७५९१७(+) उत्कृष्ट मनुष्य संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एलोनत्रि शत्यंकतः ), ७३२२२-२ उत्तमकुमार रास, मु. धीरशिशु, मा.गु., पद्य, भूपू (--), ७३४२३/०६) " उत्तम मनोरथ सज्झाय, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (धन धन ते दिन क्यारे), ७३४५७-२ उत्तमादिपुरुष लक्षण, ऋषभदत्त ब्राह्मण, मा.गु., गद्य, वे (लक्षण ते सहिन जन्मना), ७५५५३ יי उदयसागरसूरि भास, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( एहवा आचारजने वंदिइजो), ७७५००-१(+) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ७६०९१ उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ७६६२१(+) उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (निठ निठ नर भवे लहो), ७३०१६ (+) उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने तें), ७६१४०-२(#) उपदेशरत्नमाला प्रश्नोत्तर, मा.गु, गद्य, वे. (पहीले बोले कही), ७५५४२ उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ७३३९६-२(+), ७६३१८-२(+) उपधानतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (वीर जिनेसर भाखे भविन), ७५७०१-२ "3 उपवास फल, मा.गु., गद्य, श्वे. (एक उपवासे १ उपवास), ७३८४१-१) ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सलौधर्म देवलोके जिन), ७२८७५-१ ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आ जगतमां समस्त), ७५३७५-३(+) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ऋद्धिविजयसूरिगुरु पद, मु. धीरविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीविजयऋद्धिसूरीसस), ७५६५५-३ ऋद्धिविजयसूरिगुरु भास, मु. धीरविजय, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (संघसलूणो चतुर), ७५६५५-४ ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (रिषभदत ने देवानंदा), ७४२५०-१ ऋषभाननजिनगीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (मइंतो ते जाण्यो),७५७२०-२ ऋषिदत्तासती रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--),७४१४९-१(६) एक समय उत्तम पुरुषादि संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४७०१-२ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), ७३०६२-४(+), ७५९७३-३(+$), ७५५३२-३ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज ओच्छव थया मुज),७५७६५-७(+) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर गुणनीलो), ७५५१२-१ एकादशीतिथि महोत्सवसामग्री सूची, मा.गु., गद्य, श्वे., (११प्रासाद ११ प्रतिमा), ७७४२७-२(#) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल),७३३८९-१(+), ७५७२३-२($) एकादशीतिथि स्तुति, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (माधव उज्वल एकादशी), ७५९७३-४(+) एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ७३०४०, ७५२०२, ७५३१२-५, ७४७२१(६) एलकदृष्टांत सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५६, वि. १८७२, पद्य, श्वे., (साधू सदा सोहामणा), ७५३५४(+) एलापुत्र सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५१, पद्य, मूपू., (तिण कालेने तिण समे), ७५१५८(+#) ऐतिहासिक छप्पय, मा.गु., पद्य, (कवण कहत दृगपाक), ७२९४७-२(+$) ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण), ७६५०७-२($) औदयिकभाव स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो उदयिक भाव ते), ७४६२०(#$) औपदेशिकएकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२०, पद्य, स्था., (श्रीजिनवर दीजीई सिरी), ७४११२-१(+#$) औपदेशिक कका पद, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (ककारे भाई काम करता), ७३१२८-२(#$) औपदेशिक कवित्त, अमरत्य, पुहिं., दोहा. २, पद्य, वै., (शोभित तिलक तिहुं पुर), ७३९६२-८ औपदेशिक कवित्त, श्राव. अरिहा वाजिंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (दो दो ही पगजोड मंदर), ७४२०१-४(#) औपदेशिक कवित्त, क. गंग, पुहिं., पद. २, पद्य, श्वे., (कपटी को हेत कहां), ७४७५९-५ औपदेशिक कवित्त, गोपालदास वेगड, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (जिहां नहीं बोहली), ७५१४६-३(#) औपदेशिक कवित्त, पं. जसवंत, पुहिं., गा.२, पद्य, श्वे., (असली की संगत मे चाही), ७४२०१-६(#) औपदेशिक कवित्त, मु. राज, पुहि., दोहा. १, पद्य, श्वे., (आज को आज कछुक करि), ७३५११-२(#) औपदेशिक कवित्त, क. सार, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., (कहां सरवण जल भरै कहा), ७३८७८-३(+#) औपदेशिक कवित्त, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (केइ सतान तोफाने कर), ७४२०१-५(#) औपदेशिक कवित्त, पुहि., गा. ४, पद्य, जै.?, (मुनि बीन गंगा के रहत),७६०२०-४(+-#) औपदेशिक कवित्त-२० स्थानक, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (हां रेलाल तब), ७३६१८-१ औपदेशिक कवित्त संग्रह, क. गंग, पुहि., दोहा. ३, पद्य, (खुनी महबूब अरे अइसा), ७४३३३-२ औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, मूपू., (कीमत करन बाचजो सब), ७३९०८-३(+), ७४७८९(+#$), ७३४८२-२, ७७३७० (#) औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (ग्यान घटै नरमूढ की), ७४७८७-२(+#), ७६५५९-२(+$), ७५१४६-४(4) औपदेशिक कव्वाली, पुहि., गा. ७, पद्य, स्था., (महेकमां खास मुनीवर), ७५३९८-२ औपदेशिक कुंडलिया, पिंगल, पुहि., पद्य, वै., (गोरी मत कर हे गारबो), ७३५२६-५(+#$) औपदेशिक कुंडलिया, मा.गु., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (प्रीति पारेवा की भली), ७३९६२-४ औपदेशिक कुंडलिया संग्रह, क. कान, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (कोडि मीले न भाग विन), ७६३५४-२ For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक कुंडलिया संग्रह, मु. भजुलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (पंच प्रमेष्ठि सुमरीय), ७४२०१-८(#s) औपदेशिक कुंडलिया-हिंदुमुस्लिमबोधगर्भित, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (हिंदु कहे सो हम बडे), ७६३५४-३ औपदेशिक कोरडा, मु. हरिसिंह, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (खोयो खोयो रे मूढमती), ७६४३१-२ औपदेशिक गाथा संग्रह*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), ७४५६३-२(+$), ७४६८१(+), ७३७४४-७, ७४९४६ २, ७३१३७-२(#), ७३८५३-६(#) । औपदेशिक गीत-आठकर्म, मु. शिवसागर, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (खेलत आतमा रंगभरि हो), ७२९६८-२ औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (दुलहे नरभव भमता दुलभ), ७३८४७-१(+#), ७४६८५ औपदेशिक छप्पय, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (कर्म घटै ब्रत तीर्थ), ७४४५०-२(#) औपदेशिक ढाल-पैसा, मु. जेतसी, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर गणधर मुनि), ७४०९३-३($) औपदेशिक दहा, पुहिं., दोहा.८, पद्य, श्वे., (प्यावैथा जब पीया नही), ७३८२०-५ औपदेशिक दुहा, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (वस्तुविचार ध्यावते), ७६०८२($) औपदेशिक दुहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (सुख मे सजन बहुत है), ७४६७०-३ औपदेशिक दोहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (समय समझे के कीजीऐ), ७३०७०-३, ७३०९५-३ औपदेशिक दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., (सिद्ध कसिवै कुंकाल), ७३३८२-५(+) औपदेशिक दोहा-गुरुमहिमागर्भित, पुहिं., पद्य, श्वे., (वुढाला तेरी अकल की), ७४१४०-२(#$) औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहि., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ७४१६६-२(+), ७४७५५-२, ७५८७७-२, ७३९२५ ४(#), ७४२५१-२(#$) औपदेशिक दोहे, क. वृंद, पुहि., दोहा. ७५, पद्य, वै., (नीकी हे फीकी लगे विन), ७४५६३-५(+) औपदेशिक निसाणी, गरीबदास, रा., पद्य, जै., वै., (यातो माया ब्रह्म की), ७३७२२-२(#) औपदेशिक निसाणी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (मोह वसै केई मानिवी),७३९२५-३(#) औपदेशिक पद, मु. अमर, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (बिगड़ी हुई तकदीर), ७४००२-४ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जग आशा जंजीर की गति), ७२९२७-७(#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हे जिन के पाय लाग रे), ७५५४३-२(#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., (इस दुनिया मे झूठ), ७३९६२-६ औपदेशिक पद, कबीरदास, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (क्या नयनों चमकावे), ७४००२-१ औपदेशिक पद, कबीर, पुहि.,मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (पांडे कुण कुमति तुम), ७६१५८-१ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ५, पद्य, जै.?, (पाषाण प्रभबि पांचिंद), ७६१५८-२ औपदेशिक पद, मु. कमलरत्न, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कर हो धरम तुम्हे), ७३२२९-४ औपदेशिक पद, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (कीगसु वादोनुं मीत), ७६२२९-१०(-) औपदेशिक पद, क. गंग, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (रीन होत तहां रेसमें), ७४२०१-१(#) औपदेशिक पद, क. गद, मा.गु., पद्य, श्वे., (जल वण सरोवर हेल्य), ७६४६४-२ औपदेशिक पद, क. गद्द, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (पापी माणस होय जिनो), ७४७५९-३ औपदेशिक पद, श्राव. चुन्नीदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सबसे भला है एही मन), ७३१२३-३ औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोण नींद सुतो मन), ७७४९२-२(+) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कबहू में नीकै नाथ), ७३२२९-३ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीव), ७३२१६-४, ७६५८६-३(#) औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (काहारे अज्ञानी जीववु), ७६६६०-२(#) औपदेशिक पद, श्राव. ज्येष्ठ, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चिहंगतमांहि भ्रमता), ७३५३३-१(-2) औपदेशिक पद, तुलसीदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (लीच्यो टबरोरामरस को), ७३४०४-४(#) औपदेशिक पद, मु. दयाकुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजहुंन चेते क्युन), ७२९६८-४ For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ औपदेशिक पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (दूनीया के वीच ज्यो), ७६०१०-३ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैनधर्म पायो दोहिलो), ७३५९३-२ औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे), ७५९५८-२ औपदेशिक पद, मु. पुनमचंद, रा., गा. ७, वि. १९६२, पद्य, श्वे., (धन जिनशासन जिनवाणी),७५८५३, ७५८६८ औपदेशिक पद, क. बनारसीदास, पुहिं., गा.७, पद्य, दि., (समझरेनर समझचेतन), ७३७७४-४(+-) औपदेशिक पद, मु. महादेव, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (प्यादी ही सतरंज की), ७३८५३-५(#) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (परम गुरु जैन कहो), ७३३६४-१(+) औपदेशिक पद, मु. राजसागर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समझिन पीउडा जीउडा), ७२९६८-३ औपदेशिक पद, मु. राम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अब तो चेतन समझीये), ७३१७४-२(+) औपदेशिक पद, रामकृष्ण, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (महबूब तेरा तुझ मै), ७७१६४-३(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (आपे खेल खेलंदा), ७३७४८-१(#) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम गरीबन के नीवाज), ७३०६७-१ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (पाणी के कोट पवन के), ७४१६१-४ औपदेशिक पद, मु. विनयचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे चेतन पोते तुं), ७३५३३-२८-#) औपदेशिक पद, मु. वीर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सजन इक वात सुन मेरी), ७४६९७-२ औपदेशिक पद, शंकर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जो ईसने समरे नहीं), ७४००३-६ औपदेशिक पद, पंडित. श्रवण, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (एक बिरखि मिं दीठ मझ), ७६२४३-२ औपदेशिक पद, सूरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (मनरेतु कैबरीया समझ), ७२९६८-५ औपदेशिक पद, मु. हंस, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मातपिता अर पुत्र), ७४७५९-१ औपदेशिक पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जल विण कमल कमल विण), ७३५३३-४(-2) औपदेशिक पद, मु. हीरालाल ऋषि, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (चतुर नर धर्म दया सेव), ७३२०३-२ औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (आउ नर कहतोय सावधान), ७५२६४-३ औपदेशिक पद, रा., पद्य, श्वे., (ए ही मनरामनै पापी), ७४९७२-३($) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (किस हुति विलमाया रे), ७६१३८-५(-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (चंपक नहिं जाय काल),७४०६४-४ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (चेतन चेताउंवारमवार), ७५३९८-८ औपदेशिक पद, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुंग्यान), ७५८५९-१(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे.?, (जीयाबे ते समकित्व), ७६१५८-३ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (जीवडा दोहलो माणस भव), ७३७७४-३(+-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जुओ जन बिचारी तजो), ७५३९८-७ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (ध्यान धर्यो जब इस), ७३६८४-२(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (नमे तुरी बहु ते गन), ७३३८२-४(+) औपदेशिक पद, मा.गु., पद. २, पद्य, श्वे., (न्यातीला नेहउलौ), ७५१९६-४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा.१८, पद्य, श्वे., (बाजीद पातिस्याह की), ७४१०५-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (ब्रह्मा से कुलालकारी), ७४७५९-४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मात पिता जुवती सुत), ७५१९७-२(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (मुगती बगसे है जीते), ७५१९६-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, वि. १९२५, पद्य, श्वे., (लखचोरासी में तू भटक), ७५१९६-१ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वडपणनि विचारी जोयो), ७७१६७-१ औपदेशिक पद, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, वै., (सज्जन सीसा एक है), ७३९६२-७ For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (सत्य धरम विना कोइ), ७६५३२-१ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), ७६१२१-१(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्नान करो उपसमरसपूर), ७६०६७-२(+) औपदेशिक पद-अथिर काया, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (काय अथिर थिर नाय), ७६३१२-५(+) औपदेशिक पद-अभिमानी शेठ, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आव्या तमारे आंगणे आव), ७४००२-२ औपदेशिक पद-अविश्वासी मित्र, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (मन में कछु ओर मीठी), ७४७५९-२ औपदेशिक पद-आत्माविषयक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आतम हित नाह किनारे),७६२५६-२(+) औपदेशिक पद-कर्म कीरीति, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (राम कहो रहिमान कहो),७४९१४-२(+) औपदेशिक पद-काया, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आ तन काची मीटी का), ७३७४८-३(#) औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (काहे काया रूप देखी), ७६२२९-१) औपदेशिक पद-कुमतिनिवारण, मु. देवीलाल, रा., गा. ६, वि. १९६६, पद्य, स्था., (कूल मुरजादा मेटी रे), ७५३९८-१ औपदेशिक पद-कुशिष्य परिहार, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (बीयो कहे या नराभणी), ७६२२९-९(-) औपदेशिक पद-जैनधर्म, मु. राम, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिन मारग छे सब मारग), ७३१७४-१(+) औपदेशिक पद-ज्ञान विषये, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जौलौ अनुभव ज्ञान), ७४१८४-२ औपदेशिक पद-धर्माचरण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुजद मिथ्या आत केसा), ७६२२९-१२(-) औपदेशिक पद-नारीशिक्षा, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (बहनो जीवन को अच्छा), ७४००२-३ औपदेशिक पद-निंदक, कबीरदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (नंदक तु मत मै रजे रे), ७३५३३-५(-2) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ७६१३६-३(+#) औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मवर्धन, पुहि., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आछी फूल खंडके अखंड), ७७४३०-१(६) औपदेशिक पद-परनारी परिहार, कमाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मदमोह की शराब), ७५३९८-६ औपदेशिक पद-परनारी परिहार, पुहिं., पद. २, पद्य, श्वे., (परनारी पर बुरी मत), ७४९७४-३ औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ७६३३१-२(+) औपदेशिक पद-भव आलोचना, जै.क. मानसिंह, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब क्यूं भूल्यो), ७५२४७-५ औपदेशिकपद-मानवभव, मा.गु., पद्य, श्वे., (दुर देसंतर देस रे), ७५३८५-२(६) । औपदेशिक पद-माया परिहार, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (माया काहे करे मुझ), ७६२२९-४(-) औपदेशिक पद-मूर्खनारी परिहार, भोजाभगत, मा.गु., दोहा. ५, पद्य, वै., (मूर्ख नारी कुभारजा), ७६५२५-२ औपदेशिक पद-मृत्यु विषये, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (नव वी मर गे दस वी मर), ७३२४९-१(२) औपदेशिक पद-युवावस्था, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (तरंगनी नीर जुजोवे), ७३५०४-३ औपदेशिक पद-रसना विषये, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तेरी रसना वस कर), ७३८४०-३(+-) औपदेशिक पद-लोभ परिहार, मु. गौतम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मन की तृष्णा न मिटे), ७५९२९-२ औपदेशिक पद-वैराग्य, भोजाभगत, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (प्राणीया भजले केनि), ७४००३-८ औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आप सदा समझावें मनमा), ७३६८७-२(+$) औपदेशिक पद-शीयलव्रत, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेघमाल असराल कालज्यु), ७६२२९-८(-) औपदेशिक पद-शीयलव्रत, पुहि.,गा. ४, पद्य, श्वे., (पंथे धायबो बगेस जोड), ७६३०५-३(+) औपदेशिक पद-संयमित वाणी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रावक थोड़ा बोलीजे), ७३६३१-२(+) औपदेशिक पद-समकित, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समकित विन जीव जगत), ७४६८९-१ औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (डाले बेठी सुडलि तस), ७७४४२-६(+) औपदेशिक पद-सीकंदर फरमान, मा.गु., गा. ४, पद्य, (मारा मरण वखते बधी), ७४००३-७ औपदेशिक पद-स्त्री चरित्र, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (ये त्रीया है बेगम और), ७५३९८-१४ औपदेशिक पद-हिंदनी बाला, मा.गु., गा.७, पद्य, स्था., (अती अलखामणी आजे), ७५३९८-३ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ औपदेशिक बारमासा, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. १४, वि. १९३२, पद्य, स्था., (चेत मास में चेत चिता),७३४९७-२(-2) औपदेशिक बावनी, मु. हेमराज, पुहि., गा. ५१, पद्य, श्वे., (ॐकार हितकार सार), ७७१५२(६) औपदेशिक भजन, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ८, पद्य, वै., (पांडे सोच कहांसै आई), ७३७७४-२(+-) औपदेशिक भास-मैथुन परिहार, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सुगुरु सुरमणि सूरंग), ७६२९८-१(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (गइ सब तेरी शील समता), ७६०६०-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ग्यान ध्यान संजम), ७६५०१-१(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (चल चेतन अब उठकर अपने), ७४७५१-२(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम भजो निरंजन नाम), ७४४५४-१(-६) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (लाभ नहि लियो जिणंद), ७६०६०-३ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुगुरु की सिख हइये), ७६५०१-२(+) औपदेशिक लावणी, मु. देवीलाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मुनी यु कहे करणी कर), ७६०१०-२ औपदेशिक लावणी, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (अबे मोत न किप्पा राई), ७५४११-३ औपदेशिक लावणी-ज्ञानगीता, मु. देवीलाल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (पढो तुम सभी ग्यान), ७६०१०-१ औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० णमो), ७३५५५(६) औपदेशिक शील कवित्त-रावण, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जैरै असी कोडि गजबंध),७७११३-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. इंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (ममता माया मोहिआरे), ७३३५९ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (या मे वास में बे), ७५६६८-१(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर जिनवचने रे अमृत), ७५३१२-२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज जिम कोइक पोषै), ७३६०७-५(६) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रथम मानव भव दोहिलो), ७३६०७-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. खूबचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (फौजारी ते संगण तौ), ७६२२९-११(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जाग रे सुग्यानी जीव), ७३२५१-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. खेमराज ऋषि, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (ज्ञान जाये ध्यान जाय), ७६२२९-१६(-) औपदेशिक सज्झाय, क. गद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (हंस गति गमनी यु देह),७६२२९-१८(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. गुणसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन की मनमाहि रही), ७५५३४-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, स्था., (अनंताकालनो जीवडो), ७५४९९-१(+) औपदेशिक सज्झाय, दलपतराम, मा.गु., गा. १२, पद्य, वै.?, (जोने तुं पाटण जेवा), ७६३८७-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. देवीलाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, स्था., (दुनिया सुणो जी देकर), ७५३९८-१३, ७६०१०-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. पासचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (चैतमिंदर महि विरषज), ७५७७५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. बनारसी, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (कादो जी हाथोडो होय), ७६२२९-७०) औपदेशिक सज्झाय, मु. बालचंद्र, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (सातमो खंड चल्यो तय), ७६२२९-१७(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. भूधर, पुहिं., गा.६, पद्य, श्वे., (अबधु तरवेकी गत नारी), ७२९८७-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सोवन सिंघासण बेठा), ७६३८१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा.१८, पद्य, मूपू., (वाडी फूली अति भली), ७५७०९-२, ७५७६०-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), ७५९७५(+#), ७४९५०($) औपदेशिक सज्झाय, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रीतम तणो मुज ऊपरिं), ७४९६७ औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (विणजारा रे वालंभ सुण), ७७४३२-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुण चेतन रे तु गुण), ७३३३३-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २०, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (पुन्य जोगे नरभव),७७५२८-३($) औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिणवर इम उपदिसै आगै), ७६२८५-१ For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरणे कमल नमी),७६४७०-२($) औपदेशिक सज्झाय, मु. लक्ष्मी, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सांभल रे तु सजनी), ७५१७५-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चंदन मलिया गरि तणु), ७६५७०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीव कहे सुणी जीवड), ७५७३०-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय),७५७३०-६(+), ७३४७८-३, ७५८७६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ७३०६०(#), ७४४३१(5) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्या करुं मंदिर क्या), ७३७४८-६(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (साचे मन जिन धर्म), ७५७९९(+),७६४६४-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ७५९४०-१(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ७५१५०-२(2) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (विणजारा रे ऊभो रहे), ७४८२६-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुंधोजे मननु), ७६४८८-७(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुजी ऋषि, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखो टुटाने साधो),७४७३१-२ औपदेशिक सज्झाय, ऋ. साधु, मा.गु., गा. १८, वि. १८६६, पद्य, श्वे., (मन रैथुजीवनै समझाव), ७३९६९ औपदेशिक सज्झाय, मु.सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसतिने समरी करी),७३६०७-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अविचल सग हमारी काया),७५८७३-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (अविवहार की रास मे), ७४२३४-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (असो रे अपूरव मले), ७६४५९-२, ७६४६१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आयो एकलोइ कोइ जाशी), ७६५१०-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (कनकने कामिणी परहरो), ७३४९३-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (केवल जन राम हरि रे),७५२४१ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (क्या तन माजना बे), ७५६६८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., ढा. २, पद्य, मूपू., (चारु गत में भटकता),७६४४०-१(+-) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (चोरासी लख जोनमे रे),७५१९३-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, श्वे., (च्यार वात है वेर की),७५१९७-३(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिन धर्मध्यान धरो), ७५५०९-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (जीव अपूर्व जिनधर्म),७५१९६-६($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (ज्ञान गुलाब चारित्र), ७६११४-५ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (तेरा नही ते सरब), ७३०५१-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (ध्रगपडो रे संसार), ७३८४०-२(+-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (पर हुंती तप पामने), ७४०८२-४(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बूझोरे आया एह ज), ७६०६७-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारग वहि उतावलो उडि), ७६५६२-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. २१, वि. १९२८, पद्य, मूपू., (मेरी अदालत प्रभु), ७५३८५-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (रात न चितामण नरभव), ७५३०१-३(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (रे पापी जीव भेख धरी), ७३२२७-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (लख चोरासी माहें भमता),७३४९३-३(2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज परुपायो), ७४७९२-३(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, म्पू., (संजोग १ विजोग),७३४८६-२(+) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५३५ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. १७, पद्य, मूपू., (संता ऐसी दुनिया भोली), ७३६१०-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (सासणनायक दीयो उपदेश), ७७४६७-१ औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (सुगण नर छोड्यो कुमती), ७३२२७-२(5) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७५००४(#$) औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, मु. दौलत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अति खोटो साची धर्म), ७४७२६ औपदेशिक सज्झाय-कर्म की चाल, क. सुंदर, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (कंथ चाल्या प्रदेस), ७६२२९-१५(-) औपदेशिक सज्झाय-कायाकुटुंब, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (कान मानइ रे), ७७१६७-४ औपदेशिक सज्झाय-कुगुरु परिहार, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (चीतौरानौ राजा रेए इण), ७५३०१-१(+) औपदेशिक सज्झाय-कृपण, मु. उत्तम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (निठ निठ नरभव लह्यो), ७४९७२-१ औपदेशिक सज्झाय-कृपण, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७३४९१(#$) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ७३२३९-२(+), ७७०६८ १(+),७६५१९-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, दलपतराम, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (कोई पर क्रोध न करशो), ७६५२५-३ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला),७५३९७-२ औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (खिमा धर्म पहिलो कह्य), ७३२२६-१(-#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ७३३३२(+#), ७३८१९(+#$), ७३२९२, ७५२८१, ७६१९०, ७६२४२, ७४७६३-१(#$), ७७४२०-१(#$), ७६२००($) औपदेशिक सज्झाय-गर्वपरिहार, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (गर्व न करशोरे गोत्र), ७४०५८-३($) औपदेशिक सज्झाय-घडपण, मु. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (गढपण तुने केने तेडिय), ७२९८६-१ औपदेशिक सज्झाय-चतुरविचार, रा., गा. ६६, पद्य, श्वे., (साध सावग रतनारी माला), ७६२७४(६) औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गढ सुरतसुंकबाडी आयौ),७३१६७ औपदेशिक सज्झाय-चोरी परिहार, मु. हीरालाल, पुहि., गा. २, पद्य, स्था., (चंपा के चोरीकुं करण), ७६२२९-१४(-) औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, गच्छा. विजयक्षमासूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जीभडली सुंण बापडली), ७३४८१(#) औपदेशिक सज्झाय-जीव, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन युंजीवनै समझाय), ७६९७१-१(#$) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, श्राव. कनीराम भंडारी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (काया नगररी विध सुणो), ७३४९५-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, ऋ. रत्न, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवरनी वाणी रे), ७६४९८(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. २९, पद्य, म्पू., (सकल तीर्थंकर करूं),७४८३७(+) । औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (बापडला रे जीवडला), ७६७६७-३ औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान, मु. नंदलाल, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान विना जीवकु), ७७४७५-२(+) औपदेशिक सज्झाय-दानशीलतपभावनागर्भित, मु. जेतसी, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (भाव देवलागो मोदणी),७६४२७-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो),७७४६७-२ औपदेशिक सज्झाय-द्वादश मास, श्राव. आनंददास, मा.गु., गा. १४, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (कारतग मासे कामी नर), ७६२६६ औपदेशिक सज्झाय-धर्मक्रियापालन, मु. गीरधारी ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (उठी वेला सवारे भाई), ७४००३-५ औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (दलाली इस जीवन कीधी), ७३६३३(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (बैठी साधु साधवी पास), ७३६७९(#) औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ७६७०९(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी परित्याग, महेश्वरदास, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे.?, (नारीनो संग वेद पुराण), ७६४७०-१ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (निंदा म करजो कोईनी), ७७४७७ ४(+),७४१०७-७(#),७६५६९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ७३४७८-६, ७३७७२-२ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-निंदा परिहार, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर देवने कहोजी), ७६५५५-३ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ७४८६९-१(+), ७५५५४-३(-) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंतारे सिख),७४६४५(+$),७६०६२ १(६) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. नंदलाल, रा., गा. १६, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (तुम चेतो रे भवप्राणी), ७७४७५-३(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, रा., गा. ६, पद्य, मपू., (मत ताक हो नार बिराणी), ७३४३३(-) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, श्वे., (हारे जीवा तो नवरजु), ७३५०५-२(5) औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री परिहार, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (नर चतुर सुजान परनारी), ७५२९७-३ औपदेशिक सज्झाय-पांचमहाव्रत, मा.गु., पद्य, श्वे., (आदजिनेसर आददे वरधमान), ७५२९७-४(६) औपदेशिक सज्झाय-प्रभाती, पुहिं., पद्य, मूपू., (धरम करत संसार सुख), ७३७११(+$) औपदेशिक सज्झाय-भौतिक सुख परिहार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीख सीख कोड कंचनकु), ७६२२९-१३(२) औपदेशिक सज्झाय-मन, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मन रे भमरला काया), ७५७४९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-मनमांकड, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन मांकडलो आण न माने), ७३२३९-७(+) औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभवदुर्लभता, मु. पासचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (दुलहो नरभव भमता), ७४४८६-२ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव मान न कीजीए), ७३२३९-३(+), ७७०६८-२(+), ७६५१९-२,७५२५७-१(६) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), ७५३९७-३ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेहेलो मेहेलो नी मान), ७२९५७-१ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ७३२३९-४(+), ७७०६८ ३(+), ७५२५७-२, ७६५१९-३ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (माया मूल संसारनो), ७५३९७-४ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा कांई), ७५१९९ औपदेशिक सज्झाय-युवावस्था, मु. लब्धि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (जोवनीयुं आव्युरे), ७७१६७-३ औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ७३२३९-५(+), ७५२५७-३, ७६५१९-४ औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वाडी राव करे करजोडी), ७६२५३-३ औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणीओ वणज करे छे रे), ७७४३२-३ औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेठ भणे सांभल वाणोतर), ७६५७१-४ औपदेशिक सज्झाय-विकथा, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ७३७४४-१(६) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (--), ७४०८२-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ७३४७८-२, ७७४३२-२ औपदेशिक सज्झाय-शील, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मानव क्षेत्र छे भलो), ७५१५०-१(#) औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, क. नयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अथिर संसारैरे जीवडा),७५३१२-१ औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (केहनांसगपण केहनी),७३५२८,७७१६२-७(#) औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवीरने वीनवें), ७४१२९-१(#$), ७५०३२(#$) औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही हो सांभल), ७५७३०-१(+) औपदेशिक सज्झाय-स्त्रीचरित्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (भाइयो जेनि भारजा), ७६५२५-१ औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण संपूर्ण एक अरिह), ७६५६२-३ औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नगर रतनपुर जाणीइं), ७३२२५-१(#) औपदेशिक सवैया, मु. कान्ह, पुहिं., सवै. ६, पद्य, श्वे., (धन जुधनो नगार तजी), ७६००५-२(+) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५३७ औपदेशिक सवैया, मु. देवीदास, मा.गु.,रा., गा. १४२, पद्य, श्वे., (सदहि के करम अघ लहि), ७५२६३-४ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), ७६३२०(+$), ७७३३४(+#$) औपदेशिक सवैया, मु. बनारसी, पुहि., गा. ३१, पद्य, श्वे., (दीन दरबेस करत मर), ७६६०५ औपदेशिक सवैया, शंकर, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (करत परपंच जीहां पंचन), ७६२२९-३०) औपदेशिक सवैया, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (क्रम कटै व्रत तीर्थ), ७५९९९-४ औपदेशिक सवैया, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (जीन कुं हुवा कपखान), ७३९५५-३($) औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. ३, पद्य, श्वे., (जौ कुछ चित्त मे दत्त), ७४१६६-१(+) औपदेशिक सवैया-कुलवंत नारी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (सुकुलिणी सुंदरी मीठ), ७७२९६-२(#) औपदेशिक सवैया-शीलमहिमागर्भित, मु. धर्मसिंघ, पुहि., सवै. ४, पद्य, श्वे., (एह संसार असार पदारथ), ७७११३-६(+) औपदेशिक सवैया संग्रह, क. गद, मा.गु., सवै. २, पद्य, श्वे., (--), ७४४५०-१(#$) औपदेशिक सवैया संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., सवै. २५, पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ७३४६३-३(#), ७४४७० (#$), ७७०३३-२(#) औपदेशिक सवैया संग्रह*, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (हां रे राजा वीर भार), ७५२६३-२ औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ७५३७१ औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरणे रे), ७३५६१-२ औपदेशिक होरी, श्राव. चुन्नीदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (रंग ल्यावो बनाय सखी),७५१८४-५(#) औपदेशिक होरी, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद. ३, पद्य, पू., (होरी खेलो रे भविक मन), ७६१०५-३ औपदेशिक होली पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी खेलो रे भविक), ७३४३६-६(#) औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, वै., (--), ७४१३३-१(+), ७६१२४-२(+), ७६२५८-२(+), ७३४१२-१, ७५७५१-३, ७७३७६-२(#), ७६४१०-२(६) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ७४५०६-१(+), ७५१४८(-) ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी),७५५५१,७३००३-१(#) ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), ७६७५२(+#$) ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (कका क्रोध निवारीय), ७४५६३-१(+), ७३५३१-१(६) कक्काबत्रीसी, मु. महिमा, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुप्रसन्न होयज्यो),७३००३-२(#) कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकदा समयनिं विषई), ७३९०५-२(+) कपिलऋषि सज्झाय, मु. खुबचंद, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (वंदू नीत कंपील ऋषी),७६०१०-६ कपिल सज्झाय, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (चंपानयरी सोहामणीजी), ७३२१९-१ कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ७५३१९(-2) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ७६४७२(5) कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर ध्याउ), ७४०७४(६) करण करावण अनुमोदन भांगा, मा.गु., को., श्वे., (--), ७३८६६-१ कर्ता पच्चीसी, जै.क. भैया, पुहिं., गा. २५, वि. १७५१, पद्य, दि., (कर्मन को कर्ता नहीं), ७७१६२-१(2) कर्पूरमंजरी चौपाई, पं. मतिसार कवि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (--), ७५१४४(#$) कर्मक्षय पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मारतंड उदै जैसे तम),७६२२९-६(-) कर्मग्रंथ-२-यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--),७४७०७-२(+) कर्मछत्तीसी, पुहि., गा. ३७, पद्य, श्वे., (परम निरंजन परमगुरु), ७६७५४-२(+$) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ७४१००-३ कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), ७३५७६-२(+),७६००८(#) For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कर्मप्रकृति बोल यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७५७८७ कर्मबंध के ७ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात बोलै जीव वीकणा), ७६७०३-२(#) कर्मबंध प्रकार बोल- आगमदृष्टांतयुक्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (भणवा गुणवा आलस करइ),७३३२३-४ कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७३७७६(+$) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर),७२९९२-२(+#), ७५७१७(+-), ७६१८८, ७७४५४, ७३४६६-१(#) कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहिं., गा. ३५, पद्य, श्वे., (सुत्र गीनाण मे कह्यो), ७३५८७-१, ७५९८३(-) कर्मस्तव बंध यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७५७८२(+) कलयुग पद, रंगलाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (हाकाधिका कुलजग आयो), ७४४७१-३(+#) कलियुग सज्झाय, मु. प्रमोदरूचि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हारे हलाहल कलजुग), ७५३७३-१ कल्याणकभूमि यात्रा स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४६२९(+#$) कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, श्वे., (आसराज पोरवार तणै कर), ७६०२०-२(+-#) काक शुकन यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ७३८८७-२(+) काग विचार, मा.गु., गद्य, वै., (काग माथे बेसे तो), ७३००४-१(१) कानडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., वि. १८७४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध समरु), ७४५०१(+#) कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), ७५३९५-१, ७३८२८($) कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (एक दिन इंद्रे), ७३५०५-१ कायाविणजीरो वाद, प्रेमानंद भट्ट, मा.गु., पद्य, वै., (संत साधुने हुँनमुं), ७५३९७-१ कार्तिकशेठ चौढालियो, श्राव. उदयभाण, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर आदि नम्), ७४३६१(5) कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), ७४७९२-१(+), ७३४६४ २(#S) कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर्वइ स्थविरा), ७५१४९(+#$) कुंडलीया कवित्त, मा.गु., गा. ७, पद्य, (औहिज सरवर हे सखी), ७७१८३-२($) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ७७४५२-१ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), ७६४०३-१, ७७४८४ कुगुरु सज्झाय, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऐसे कुगुरु मिथ्यात), ७३३५६-२(+) कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (शुद्ध संवेगी कीरिया), ७५९७१-१(+) कुगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (निज आचारनै छंडी), ७३३५६-१(+) कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनपंकज प्रणमीने), ७६१८४(+#), ७६३५०-२(#) कुरगडुमुनि सज्झाय, मु. धन्यविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (उपसम आणोजी उपसम आणो), ७६२०२-१ कुलकोटि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीनी २५ लाख कुलको), ७३१४२-२(+), ७५०८५-२(+), ७३३२३-१, ७४९८९-४(#) कृपारामयोगी गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (सांमी किरपा राम), ७४०६४-३ कृष्णबलभद्र पूर्वभव, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूठिले भवे हत्थिणाउर), ७३५९१-१(+) कृष्णभक्ति गरबो, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा.१३, पद्य, वै., (मोरा मोरा रेसुंदर),७५४९४-२(+#) कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, रा., गा. ३, पद्य, वै., (आव छबीला सांमजी थान), ७३०३५-३ कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (वाल्हा सांवलिया रे), ७३०३५-२ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., कडी. ४, पद्य, वै., (गयो तृण ज्यु तो रहम), ७५७७७-४(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा., गा. २, पद्य, वै., (नहि मानूं थाहरी), ७४४२०-१(#) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं, कडी ४, पद्य, वै., (नीस पलकन लागत मेरि), ७५७७७-३(+) कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं. पद. ३, पद्य, वै. (प्रीति नई नित मीठी), ७४४४५-१ कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (मोकुं माई जमुनाय मुझ), ७४४४५-८ कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (हरि हमसो करीहो सजनी), ७४४४५-३ कृष्णवासुदेव चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४७४४(#$) केवलज्ञानी चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चउनाणी थइ), ७४९९२-२ (+#) केवली आहार विचार-दिगंबरमत, मा.गु., गद्य, दि., (दिगंबरमतै केवली), ७३७९०-१(+) केशवगुरु भास, मु. भिक्खु, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., ( सरस वचन वरदायनी मनि), ७६४६८ (+) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ७५५२७(+$), ७५२३६ (३) केशीगणधर प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तर, मु. देवमुनि, मा.गु., वि. १७२१, पद्य, मू., (सकल संपदवाह सदा वामा), ७५४४ सन केशीगौतम गहुली, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (केशिकूमार समणवारू), ७७०३५-२ कैलाशपति पद, गंगाधर मिश्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (हे देवन के देव), ७४०८८-१ कोशास्थूलिभद्र बारमासो, पं. चतुरविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुडा प्रति कोसा भणि), ७६५७१-३ क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु, गद्य, चे, (क्रिया दोय प्रकारनी), ७५४०८ (०६), ७५९९० (5) क्रोधपरिहार पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्रोध छोर मेरे), ७६२२९-५) क्रोध परिहार सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., ( आगम अरथ विचारो रे), ७६२९८-२(#) खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, म्पू, (), ७३९५८(४६) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ७४१०१-२(+$), ७५२१३(+), ७५३४८(+#), ७५७९०(+), ७४१००-२, ७५८८६ ७६४८७, ७४१०७-६(१), ७४३८० (३) क्षमासूरि स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय जय गणधारक विजय), ७२८८२-३(#) क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, श्वे., (खेताणुवाएणं सव्वत्थो), ७६३३६(#$) खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा. डा. ४. वि. १८९१, पद्य, स्था. (नमुं वीर सासनधणीजी), ७३६३१-१(*), ७३२६७ "" " खंधकमुनि चौडालियो, मा.गु., डा. ४, पद्य, खे, (अरिहंत सिध आचारज नमु), ७५३०२(+), ७३०२४(०) " खंधकसाधु सज्झाय, रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर पाय नमुजी), ७३८४९-१(+) खरतरगच्छ व्यवस्थापत्र, गच्छा. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गद्य, भूपू (संवत् १७१८ वर्षे), ७६९०८ (३) खरतर पीपलीयागच्छ आवक नाम मुंबईस्थित, मा.गु., गद्य, मूषू.. (श्रीखरतर पीपलीयागच्छ), ७४०३१-३ (+४७) " खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरिए नित), ७४६२७($) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु.. गा. १६, पद्य, भूपू (प्रथम नमुं अरिहंतने) ७३५१८(०६) खेटसिद्धि शुद्धिकरण उपाय, मु. महिमाउदव, पुहिं, गा. ४५, वि. १७३१, पद्य, मूपू (चिदानंद चित मै धरी), ७६३८२ खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, मृपू. (क्षेत्र आश्री २० बोल), ७४२७६-२(+) गंगाली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, वे., (कोई एक ब्राह्मण), ७६०१४ (०) गंगाविस्तार वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (गोसाला नपलि बांधी ते), ७३९९९-२(#) गच्छाचार चौपाई, मा.गु., गा. १७३, पद्य, मूपू., (--), ७५८२६-१(+$) गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु खं. ४, गा. ४३४, वि. १५५६, पद्य, म्पू. ( पासजिणेसर पाय नमी), ७४३३५ (०६) गजसिंह गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू, (श्रीगजसंघजी री चारण), ७४०६४-१ गजसिंहराजा इकतीसा, मा.गु., सवै. ३१, पद्य, (राजा गजसिंह राजै जैत), ७३१३१-२(+$) गजसुकुमाल भास, मु. लींबो, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (द्वारामती नयरी समोसर), ७६०६४-१ (+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु. गा. २२, पद्य, भूपू (--), ७५२१०-१(३) गजसुकुमालमुनि भास, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. (-), ७३७६१-१(०) For Private and Personal Use Only ५३९ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, भूपू (देस सोरठ द्वारापुरी), ७५२१४(+5), ७४७३५ (5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनवर आवता मे सुणा), ७३८२४-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मृपू. श्रीनेमिसर जिनवर), ७४३६० (३) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ७५४८८ वे (जिनवर आवंता मे सुण्य), ७६०३३-१ " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., ढा. २ गा. ४३, वि. १६६२, पद्य, मूपू. (एक घर घोडा हाथीयाजी), ७६३८७ (१(5) " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (श्रीजिन आया हो सोरठ), ७३११९-२, ७४६८९-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. विजयदानसूरि, मा.गु, गा. ३४, पद्य, मूपू. (नेमीसर जिनवर आवी), ७४९५९ (६) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू (नयरी द्वारामती जाणिय), ७७४७७-१ (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, पद्य, श्वे., (अरिष्टनेमि नामै हुआ), ७७४४८ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., गा. २१, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (गजसुकमाल देवकीनंदन), ७५७४३-२ , ७६०४०(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाव, रा., पद्य, वे. (श्रीजिण आया मे), ७५२७५-२शच्छा "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजसुकुमाल लावणी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (गजसुकमाल देवकीनंदन), ७४६३४-६ गणधरलब्धि विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढ० तीन पद तीर्थंकर), ७४७१२-२ गणधर वंदन गहुली, आ. दीपविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपु., (जी रे कामनी कहे सुणो), ७३६५९-२ गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (सो सुत त्रिसलादेवी), ७४३६८(+#), ७७११९(#$), ७५४९१-१($) गति आगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीनी गति ४० ते), ७३२४२ गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी वर आलि मझ), ७७१२०($) गर्भावास सज्झाय, संघो, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (माता उदरि वस्यो दस), ७६४८८-५(+), ७६५६२-१ गासीराममुनि ढाल, मा.गु.. गा. १४. वि. १९०३, पद्य, श्वे. (मगरार बीच गाम की), ७५९८६ (०) ! गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ७२९९३-१, ७५५३८-२०१ गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मृपू (शशिकरनिकर समुज्वल), ७३६०५ (०४) गुणरत्नाकर छंद, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (कोसलदेस अयोध्या सोहइ), ७५७२६ (+) + गुणसागरमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., ( गुणसागर मुनिराय करता), ७३२४४-१(#) गुणसुंदरशीलमंजरी रास, मु. जयजश, मा.गु, ढा. ६, गा. १४९, वि. १९९४, पद्य, वे. (--), ७५२२५-१(+) गुणसुंदरशीलमंजरी रास, मा.गु., पद्य, भूपू., (नाम वसंतपुर नगर तिहा), ७५३४४(5) गुणस्थानक स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पहेलुं मिथ्यात्व), ७५९९७-३ יי गुणावलीरानीलिखित श्रीचंद्रराजा पत्र, मु, मोहन, मा.गु., गा. ५६, पद्य, भूपू (स्वस्तिश्रीसुखसंपदा), ७४४१७-३(१) गुरु उपमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपुजे परमं पुजे), ७५०६१-२ (+) गुरुगुण गेहुली, मु. आसकरण, मा.गु.. गा. ९. वि. १८५४, पद्य, स्था., (चाल सखी गुरु वांदवा), ७४५३३-२(५) गुरुगुण गहुली, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे मारे देशना दो), ७३३२०-३ गुरुगुण गहुली, सा. चंदुबाई, मा.गु., गा. ३९, वि. १८५०, पद्य, स्था., (चरणकमल सद्गुरु तणा), ७४८३४-१(+) गुरुगुण गहुली, मु. जीतविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे., (सरसति मया करी रे ), ७६०७४ गुरुगुण गहुली, मु. दोलत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( आवो जईइ गुरू वांदवा), ७६७६०-१ गुरुगुण गहुली, मु. भूधर, पुहिं. गा. १३, पद्य, थे. (ते गुरु मेरे उर बसे), ७३०५३(+), ७३५४३.२(+) " गुरुगुण गहुली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोहनिद्रा परीहरो रे), ७७३६३-२ (#) गुरुगुण गहुली, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (श्रीगुरुने हो चरणे), ७७५००-२ (+) गुरुगुण गहुली, पं. विवेकधर्म, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (आज कलपतरु फल्यौ मुझ), ७५३५९-२ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ " गुरुगुण गहुली, मु. विवेक, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (श्रीगुरूजयणाथी चाले), ७६३८० गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (कुंकम पडो चोडाविये), ७५३१४-३(+) गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सखी साहेली सवी मली), ७६३१६-२ गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. १७, वि. १९३८, पद्य, श्वे. (श्रीजयगणपति सिवपद), ७६३७७-१ (+) www.kobatirth.org יי ., गुरुगुण बारमासा, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु. गा. १३, पद्य, भूपू (श्रीश्रुतदेवि मात), ७३०३२-२(+) गुरुगुण भास, मु. दुर्गदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (गछपति वंदीयइजी), ७३३१६-२ गुरुगुण भास, मु. दुर्गदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे., (मेरुगुरु मुख संपति), ७३३१६-१ गुरुगुण भास, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आवो आवो रे सेहियर), ७३६२०-२ गुरुगुणवर्णन जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., गा. १५, वि. १८८५, पद्य, श्वे. (सतगुर हे सोदाग भारी), ७६७११-२(#) गुरुगुण सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( जोइनई जोसीडा रे पतडो), ७५२४२-१ गुरुगुण सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गछनायकजी महोलि पधारी), ७६७१५-२ गुरुगुण सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८५४, पद्य, श्वे. (अरिहंत सिध साधू नमु), ७४९४०-३ गुरुगुण सज्झाय, ऋ. धर्मसंघ, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे. (श्रीरतनागर पाटि बनो), ७३११५-२(#) गुरुगुण सज्झाव, ऋ. धर्मसंघ, मा.गु., गा. ९. पद्य, थे. (सहिगुरु केरी रे जोड), ७३११५ ११०१ " " गुरुगुण सज्झाय, मु, मोहनसागर, मा.गु.. गा. ७, पद्य, म्पू, (मुनिवर बेठा पाटीवेजी), ७३३२०-२ गुरुगुण स्तुति, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (गुरु समकित धारी जी), ७५६६६-२ गुरुविहारविनती गहूंली, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पाये), ७६२७५ गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., ( इण संसार समुद्र को), ७३९२५-१(#) गुरुस्तुति ७ वार, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीगुरु सारव रे), ७५०५८-२(४) गुर्जरदेश गजल, मु. न्यानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अहो दिलरंजन साहिबा, ७५०२७-१ गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, भूपू (उद्गम दोष श्रावकथी), ७५३४०(+), ७५४१०-१ गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा. ३६, वि. १८०८, पद्य, श्वे., (शासनपति चौवीसमो), ७४२०३ (+) गोस्वामी आदि यात्रा वर्णन, पुहिं. वि. १८२१, गद्य, श्वे. (पानीपंथ सुभ अनेक औपम), ७५८९३(४) गोरआली भास, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, से.१ (पहिलुं तो प्रणमी करी), ७५२५१-२ गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू (वीरजिणंदने वंदीने), ७५०९१ (७) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir זי गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु. गा. १२९. वि. १५४५, पद्य, मूपू (सकल मनोरथ पूरवे), ७४५३४(AS), ७४६५७(६) " गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा ), ७६५६४(+#) गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू., (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ७५५४३-१३(१), ७३६४२-३(३) " יי गौतमस्वामी गहुँली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (राजग्रहि शुभ ठाण), ७६४४६ ९(+४) गौतमस्वामी गली, मु. खिमाविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (सोहम गणधर वंदीइं वीर), ७५३८१-२ (+) ', गौतमस्वामी गहुली, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर वंदिई रे), ७७५००-३(+) गौतमस्वामी गली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु, (मुनिवर हे के मुनिवर), ७५५०७-२ गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वर अतिशय कंचनवाने), ७५५०७-१ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ७३६१९-१(+), ७६३४५-१(+), ७७४८७-१ (+), ७३५२१-२, ७३८२०-१, ७६५१३, ७५९८१-४११ गौतमस्वामी भास, मु. सुजस, मा.गु., गा. ९, पद्य, जै., (जिणवर श्रीवर्द्धमान), ७६०८९-२(+#) गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु, गा. ६७, पच, म्पू, (वीर जिणेसर चरण कमला), ७३४४७(६) गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमल), ७३८९७(#$) गौतमस्वामी रास, मु. जैमल ऋषि, रा. गा. १८. वि. १८२४, पद्य, स्था. (गुण गाय गोतम तणा), ७६४१४(१) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था. (गुण गाउ गौतम तणा), ७३१९२(१) ५४१ For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल),७४३४५-१(+$), ७३७५४(६), ७४०४८($) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ७५४००(+), ७५४५०, ७६०९८, ७३९८९-१(#$), ७५१७९($) । गौतमस्वामी रास, श्राव.शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दायक सरसती), ७५००८(+$) गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ७४६६७(#$), ७३४९२($) गौतमस्वामीविलाप सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम्ह आपो मइ वीर), ७६१५७-३(+) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (मन मोह्यो एणि माहरो), ७५२५१-१ गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान), ७५२९५-१ गौतमस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो मनरंगे), ७४६३४-१६ घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (घडपण तुंकां आवियो), ७५५२५-१ चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (कांसांबिते नगरी पधार), ७५७८८ चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (प्रणमि मंडत नीलतन), ७३५३५ चंदनबालासतीरास, मा.गु., गा. १४९, पद्य, म्पू., (--),७५२३५(#$) चंदनबालासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (कोसंबीनगरी पधारिया), ७५५४१ चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला),७६३९१-१,७३०२६(2) चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (दधवानुरी पुत्री जाणी), ७४९४०-२ चंदनबालासती सज्झाय, रा., ढा. २, पद्य, श्वे., (श्रीसिद्धार्थ कुल), ७५७७६() चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७५४२६($) चंदनमलयागिरि चौपाई, क. केसर, मा.गु., ढा. ११, गा. २६५, वि. १७७६, पद्य, म्पू., (प्रथम जिनेसर पाय),७६३०६(+#$) चंदनमलयागिरिरास, मु. भद्रसेन, पुहि., अ.५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम),७५०५६(+$),७३६१७(#) चंदनमलयागिरि रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४९५७(+$) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, रा., गद्य, मूपू., (पैहलै सुपनै कल्पवृष), ७५८६९(१) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ७३५७२(+#), ७६२८८(+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीनवउं), ७६१०७-१(+$) चंद्रगुप्तराजा चौढालिया, मु. गुणचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (विमल बोध उद्योतकर), ७६२६२(+) चंद्रप्रभजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (हो माहराज अरज सुणोने), ७७५००-६(+) चंद्रप्रभजिन पद, मु. जुठा, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चंद्रप्रभुजीने चरणे),७५४९९-३(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ७३८२४-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (नथ रो नगीनो माहरो), ७६१३६-१(+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), ७३४५४-३(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (चंदपुरी नगरी जाणी), ७४११२-२(+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन-घोघामंडन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु जिनराजनो), ७५७९४-१ चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवी), ७२८७७, ७५०६७(#$), ७६३३७(2) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ७३३८२ १(+$),७४५६५(+$) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीई), ७५२५३(#s), ७७२६८(#$), ७३६५५(६) चंद्रसूर्य बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुर्यनी ध्यावना पदम),७७३५७ चंद्रायणा, बाजींद, पुहि., गा. १४, पद्य, वै., (हाथ जपे जपमाल कतरणी), ७७४९०-१ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५४३ चंद्रायणा चंद्रकुंवर प्रीतिप्रसंग रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७४०२६ (#$) चंपकश्रेष्ठि रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ५७५, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (श्रीवीरं शारदां नत्व), ७५१४५(+#$) चक्केश्वरी स्तोत्र, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (हुं तो देवीतणा गुण), ७३८१२(#) चक्रवर्ती गति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला वांदु श्रीभत), ७३५७०-१(+-) चतुर्थीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीशंखेश्वर पास नमु), ७४१०६-१ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (रिसह जिणवर रिसह), ७६०८९-१(+#) चमरेंद्र पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (चमरसुर ढारे हे), ७७१६२-२(2) चमरेंद्रपरिवार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चमरेंद्रने ५ अग्रमहि), ७५६७५-३(+) चमरेंद्र बलींद्र राजधानी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चमरेंद्रनी राजधानीइ), ७५३२४-३(+) चरम अचरम अवक्तव्य भांगा, मा.गु., को., श्वे., (--), ७३८६६-२ चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हतः परया भक्त्या), ७५८८८($) चारित्र पालन सज्झाय, मु. जयजश, मा.गु., गा. १५, वि. १९१७, पद्य, श्वे., (चारत निर्मल पालीजै), ७६३७७-२(+) चित्रसंभूति चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमु सरसति सामणी), ७३४८७-२(६) । चित्रसंभूति रास, मा.गु., ढा. ७, गा. १३८, पद्य, मूपू., (चितसंभूतिनी वार्ता),७५२२५-२(+$), ७५२२८(+$) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ७२९८५(+), ७५२००(+), ७७१२१-१ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. २, गा. २८, पद्य, मूपू., (भवसागर में भटकत भटकत), ७४५०६-२(+) चित्रसेन चरित्र*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७३४२२($) चीरहरणप्रसंग दोहा, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (जिण हर की चोरी करी),७६६७७-२ चूडलो रास, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (गणपति गुणनिधि लागुणी), ७६२९४ चेटकराय पुत्री सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (विसालानयरिनी हो), ७६४८८-२(+) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ७५५३०, ७२९६७(), ७३६३०-२($) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), ७३५६८(+#), ७५९८२(#$) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ७३०३२-३(+), ७३९७४-३(+), ७२९४५ चैत्यप्रतिष्ठागत बलिबाकुला विधि सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (सणबीज१ कुलथी२ कांग३), ७५४५६-२ चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादिदेव), ७४१२७($) चैत्यवंदनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४जोड, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर ऋषभदेव), ७४९७८($) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ७५६०२(+$), ७३६७७(#$) चैत्रीपूनम पूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ आखा चंदनादिक), ७३९७५ (+$) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ७३७५५-३($) चैत्रीपर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), ७३२७८ चैत्रीपर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल सुंदर), ७६०५३-२ चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सभापुरि विक्रमराय), ७७३४२(+) चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ७५७७७-२(+) चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४२५, पद्य, म्पू., (प्रथम ईरियावहि पछे), ७५२६७(६), ७६००१(६) छ आवश्यक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ सामाइक २ चउविस्तो), ७४५५६-५(+) छ आवश्यक स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर नमु), ७३३१८ छकाय सज्झाय, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (हुवाने होसे आज छे जी), ७५३६७-१(+-), ७४४८६-१ छप्पनदिक्कुमारि उत्सव, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चइत्र सूकल दिन तेरसे), ७५२७३ छमासीतपचिंतवन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (रे जीव महावीर भगवंत),७५२७०-१(+$),७७५४२-१(+) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जंबूकुमार चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर विहरता राज), ७३२१३-२ जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), ७३६१६(+$), ७४१२६-१(+#$). ७६३५७($) जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), ७६२७८(+) जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ७३५०९(+$), ७६५४७(#) जंबूद्वीप हेमवंत पर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकलाख जोयणनो जंबू), ७३८९८(+$) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (पहिली ढाल सोहामणी), ७४३६२($) जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ७५४२५(+$) जंबूस्वामी चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (हवे चोथा आरा ने विषे), ७४०४५-१(+) जंबूस्वामी ढाल, मु. चोथमल, मा.गु., ढा. १, गा. १९, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (साहजी रे घर बेटो), ७४०४५-२(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सयल नयर सोहामणउ नयरी), ७५१६६-३ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (जंबू कयो मान रे जाया), ७३९६६($) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरजिणेसरपदकमल), ७५२४४(६) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ७३५७६-१(+), ७३७०६ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सियल जणेसरने हुँ), ७४०६७-६(#) जगजीवन गच्छपतिगुण भास, मु. भागचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८००, पद्य, श्वे., (सरसति पद पंकज नमी), ७६५१२-१(+) जगजीवन गच्छपतिगुण भास, मा.गु., पद्य, श्वे., (केसरलंकीरा साहिबा हो), ७६५१२-२(+$) जगडूशा कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते जगडु मधुपुरिनो), ७५७३३(+#) जगडूशा शेठ चौपाई, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा. २६, वि. १७०६, पद्य, पू., (पास जिनेसर पाय नमी), ७३५५१ जगदंबा छंद, सारंग कवि, मा.गु., गा. २८, पद्य, वै., (विजया सांभलि वीनती),७३३१२-२ जमाली सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सासणनायक श्रीविर), ७३८४६-१ जयंतीसती सज्झाय, मु. चौथमलजी ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (सती जयंती श्रीवीरनै), ७३८४२-२(+) जलयात्रा गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (जलजात्रा जुगते करो ए),७६१३१(+$) जसराजजीगुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (देशी वधावा कीछे स्ही), ७३४२५-१ जसवंत गुरुगुण गीत, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १९०८, पद्य, श्वे., (बुद्धिवंता बुद्धि), ७६४०० जसवंतगुरु भास, मु. केशव-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर सासण महावीर),७६०६५-२ जांबवती चौपाई, मु. सुरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, म्पू., (पहली ढाल वधावणी), ७६५५०(+#) जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जय सद्गुरु आरती), ७६३२९-२(+), ७४७७५-१ जिनकुशलसूरि कवित्त, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (कुसल वडौ संसार कूसल), ७५५१८ जिनकुशलसूरि गीत, क. आलम, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (कुशल करो भरपूर कुशल), ७५०३६-४(#) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (दादैजी दीठां दोलत), ७६५०४-१, ७७०९०-१ जिनकुशलसूरि गीत, मु. राजेंद्रविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ७५९११-१(६) जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विलसे रिद्धि समृद्धि), ७४०३१-१(+#) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ७४०३१-२(+#) जिनकुशलसूरि छंद, मु. कविराज, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वदनकमल वाणी विमल), ७७१७२-२(+$) जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरि सुख), ७४२३६-२(+#) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखता), ७६५०४-२ जिनकुशलसूरि पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (कुशलगुरु का बालका),७५०३६-५(१) जिनकुशलसूरि पद-लघु, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दोलतदाता द्यो सुख), ७५०३६-२(#) जिनकुशलसूरिस्तवन, मु. कुसल कवि, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हांजी काइ अरज करूं), ७३८५४-१ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. केसरीचंद कवि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सासण नायक मूगटमणी), ७५३१७-१ For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनकुशल), ७७४८९-४(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), ७४२३६-१(+#), ७५९८८(+) जिनकुशलसूरिस्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., गा. १९, वि. १४८१, पद्य, मूपू., (रिसहजिणेसर सो जयो), ७४०९२(+$), ७५०३६-१(#) जिनचंद्रसूरि स्तवन, क. रत्ननिधान कवि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कामित कामगवि सुगुरु), ७५०३६-३(#) जिनदत्तसूरि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्यदा गुजराती), ७४५९०-२(+#) जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनदत्त), ७७४८९-५(+) जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित गोत्र सूची, आ. जिनदत्तसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (राय भमसाली गोत्रबद्ध), ७५८७१-१(+) जिनदास सुगुणी चरित्र, मु. अमोलकऋषि, मा.गु., खं. ४, वि. १९६१, पद्य, स्था., (परम ज्योति परमात्मा), ७३३३९(+$) जिनपद्मसूरि गहुंली, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज भला पुंज), ७४०६५-३ जिनपद्मसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनपद्मसूरि सइ), ७४९४६-१(६) जिनपद्मसूरि विनती, मु. अभयदेव, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पुज भलाई पधारीया रे), ७४०६५-२ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७३, पद्य, स्था., (अनंतचौवीसी आगे हुइ), ७३५४४(-#$) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ७५१९० जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६४, पद्य, श्वे., (पाप अठारै जिन कह्या), ७६२६३-१ जिनपूजनमहिमा दोहा, मा.गु., दोहा. २, पद्य, मूपू., (जिनेश्वर जिणे पूजिया), ७४७५५-१ जिनपूजा पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसण श्रीजिनराज को), ७५६६६-३ जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामण समरी माय),७५८८२-३ जिनपूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथमथी उत्तम), ७३९८७-२(#) जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथनी पूजा), ७५१४०-२, ७३७६४-१(६) जिनपूजा स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (इम पूजा भगतै करौ आतम), ७७४४२-५(+) जिनप्रतिमा अधिकार सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ७५१४७-१($) जिनप्रतिमापूजा चर्चा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., प्रश्न. १३, गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताण), ७३७७९(+$) जिनप्रतिमा स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (--), ७४६३७($) (२) जिनप्रतिमा स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४६३७(5) जिनप्रतिमा स्थापना निर्णय विचारसंग्रह, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्यं०), ७५५८१(६) जिनबल विचार, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोलु), ७४५४०-१(+#) जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें पूर्वोक्त शुभ), ७६६४७(+) जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (बिंब प्रवेश विध जिण), ७६७४९(#) जिनबिंब संख्या स्तवन-सुरत, वा. सुखसागर, मा.गु., गा. २१, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (गुरु पय वंदिय चित्त), ७३७७१(+#) जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ७४७४५-३ जिनभवन ८४ आशातना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्म न नांखे १), ७४८०२-५(+) जिनभवन मध्यम ४२ आशातना, मा.गु., गद्य, मूपू., (मुत्र१ पुरीष२ पाणी), ७४८८८-५(+) जिनभवने दिशा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल बिंब भगवंतने), ७४८८८-१२(+) जिनराजसूरि विनती, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंथीडा संदेसो जिनजीन), ७४८२८-३(+#) जिनवाणी सवैया, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (वीर हेमाचल से नीकसी), ७३५०६-२ जिनस्तवन चौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनराज लो रे), ७५०५९($) जिनस्नात्र महोत्सव ढाल, मा.गु., पद्य, मूपू., (अनिहारे वीरजिनेसर), ७४७९६(#$) जिनहर्षसूरिजी को लिखे पत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७३७७३ जिनालये राजा द्वारा त्याज्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (षड्ग १ छत्र २ उपानह),७४८८८-११(+) For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनेंद्रविजयसूरिगुरुगहंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रहसम गणधर प्रणमीये),७६७६०-२(6) जिनेंद्रसूरि गहूंली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो सहेली सहु मिलि), ७५१६६-२ जीतमलजीगुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (ऊंचै कुल आइउ पना), ७३४२५-२(क) जीव अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना दोय भेद २ एक), ७५९१९-१, ७६४९७ जीवअजीवभेद विचार-१४ राजलोके, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउदराज जिवलोकमांहि११), ७३२२३-१ जीव काया संवाद सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जीव कहे एकाया भोली), ७५३०१-२(+) जीव खामणा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लाख चौरासी जीव खामीय),७६२८५-३ जीवजीऋषि संथारा सज्झाय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सूरति मझारि दोसी),७६२५३-१ जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी पाए नमी), ७६०१९-१(+), ७७२९०(+), ७५२५५-१,७६३९६-१(६) जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय पणमेवि), ७६७१५-१ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवरा २ भेद एक मुक्त), ७५००३-१(+$) जीवविचार स्तवन, उपा. इंद्रसौभाग्य, मा.गु., गा. ५८, पद्य, मूपू., (--), ७६०२६(६) जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), ७६०२१ १(+$) जीवोत्पत्तिस्थान विचार, मा.गु., को., श्वे., (अविरतिना भूमिना त्रस), ७३९९९-५ (१) जुठातपसी सज्झाय, श्राव. वसतो शाह, मा.गु., गा. ९०, वि. १८३६, पद्य, स्था., (प्रथम समरु वितराग), ७६१४५ जैनधर्म ऐतिहासिक वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (आ जंबूद्वीप तेहनी), ७२९११ जैनधार्मिकदृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५०००(#$) जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (समदीसरी किणन कहीजे), ७६४९३-२(#) जैनपाखंडी वीसी, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (महिसाणि पजूसण माहि), ७५९५२-१ जैनयंत्र संग्रह (कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), ७३२८१-२, ७३९३२-२, ७६५०४-४, ७४२७०-२(#), ७७५३८-१(६) जैनसिद्धांत सवैया संग्रह, उपा. मेघविजय महोपाध्याय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणावरणीय इग दसणावर), ७३८५५(+) जैवंतीसती सज्झाय, मु. चौथमलजी, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (कृष्ण पटराणी हुवा), ७३५४०-२ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (छठो अंग ते ज्ञातासूत), ७३४७०-२($) ज्ञानदर्शनचारित्र पर्याय बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकितना पर्याय१२), ७३६७५-२(+) ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्यामल वान सोहामणा), ७५७६५-५(+) ज्ञानपंचमीतप उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (बिंब ५ पुस्तक ५ झलमल),७६०१५-२ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगला धर्म निवारिओ), ७५९७३-१(+),७५५३२-१ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (त्रिगडे बेठा वीर),७३०६२-२(+),७३२३७-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., चैत्यव. ५, गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ७५८६१(#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ७५०२३(+%), ७६०२९(+$) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगुरु पाय), ७४९८१(+#), ७५५००-१(+),७६४४८(+), ७३५९२,७३४७९-८(), ७३६८२(#), ७६५९७(2) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमु), ७६४०१-२ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ७४८०५-२(+६), ७३२५०, ७५३१८-१, ७६४०१-१, ७६४५७, ७४६५१-१(5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, म्पू., (प्रणमी पास जिणेसर), ७२९४३(+#), ७६३६८(+$), ७३९५१(#S) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५४७ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ७२९६२(5), ७६६८५(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. देवकलश, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भावस्यु नेमिजिण माय), ७३२१० ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने प्रगट), ७४९९२-३(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ७६३२९-१(+), ७४०३० ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थंकर वीर), ७३१६०, ७५९९७-४ ज्ञानपच्चीशी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३५, पद्य, स्था., (आदि अनादिनो जीवडो), ७३२०३-१ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ७६४७१-१(+), ७६१८१(#) ज्ञानपच्चीसी, श्राव. बनारसी, पुहि., गा. २५, पद्य, दि.?, (सुरनर तिरयगजोनि मैं), ७३१७१ ज्योतिष पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पंचम प्रवीण वार), ७४८६६-२(+), ७४७२३-२ ज्योतिष मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहाथिकुं प्रथम सात), ७३४५९-२(१) ज्योतिष यंत्र, मा.गु., यं., (--), ७६१२१-४(+) ज्योतिषयंत्र संग्रह, मा.गु., को., (--), ७६१२१-३(+) ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (चंद्रमानौ आउखो), ७५३६१-१,७४८२४-२(#) ज्योतिष श्लोक, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (मे वरदाझिजलहरे काढे),७४९९४-३ ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.गु., को., वै., (--), ७६५८५-४(+), ७४४४४-१(#) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ७६६३२ झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ७५५५२, ७४९६३(१) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलिमांहि मुनिवरु), ७६१०८-४(+$), ७५७४७-१ झांझरियामुनि सज्झाय, मु.शांतिकुशल, मा.गु., गा. ७८, वि. १६७७, पद्य, मूपू, (सरस सकोमल सारदा वाणी), ७३४८७-१(5) झांझरियामुनि सज्झाय, मु. हेमऋषि शिष्य, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति सरणे शीश नमावी), ७२८९९(#) ढंढणऋषि सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शासन श्रुतदेवी सेवी), ७४८७४(+) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ७३४७८-५ ढंढणऋषि सज्झाय, रा., ढा. ३, पद्य, मपू., (तिण कालेने तिण समें), ७६५२६(+) ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ७६१६५(+) । ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ७७४८३ ढूंढिया कौ बैदो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (मर्दोरा भी बैहदा बेह),७५९७१-२(+) ढुंढिया मान्य ३२ आगम सूत्रना नाम, मा.गु., गद्य, स्था., (अंग ११ उपांग १२ नंदि), ७३५६०-२(+#) तपपद सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप वडो रे संसार में), ७६५५६-१(#) तपफल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवती शास्त्रोक्तं), ७३८४१-२(२) तप सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप बडो रे संसार मे), ७३५८०-१(+), ७७०१२-३(#$) तपागच्छनायक गुर्वावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीतपा० सोमसुंदरसूर), ७७४३७-३(#$) तमाकू गीत, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समकित लक्ष्मी पामी), ७४८८५-१(+), ७४९३०-५ तारादेवी सज्झाय-शीलविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वचन सुन्या वीरामन), ७४७३१-१ तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतजी गुणगीराम), ७३२२१-३ तीर्थंकरबल वर्णन पद, मु. धर्मसंघ, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (बार पूरष बलमान सबल१), ७६६७७-४ तीर्थंकर बलवर्णन पद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वाय वालु विशालो), ७७४६१-१(+) तीर्थ चैत्यवंदन, मु.खेम, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीसेजेजे सहरसाम), ७३५४९-१(६) तीर्थमहिमा श्लोक, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (क्षमा दया सति संजम), ७५९५२-२ For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ तीर्थमाला स्तवन, आ. विजयतिलकरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अणी भवन मैं सात कौडि),७५६६६-१ तीर्थयात्रा रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४८२५(६) । तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निसिहि त्रण), ७५४०३-२(+) तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), ७३२५७ तेजसिंहगुरु भास, मु. राजमल्ल, मा.गु., गा. २९, वि. १७२३, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणेसर प्रणमी), ७६५७४ तेतलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १६३, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिधनै आयरिया), ७३६९७(+$), ७३८११(६) त्रिदेव स्तुति, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., (पात्रेरइ विष्णु फूले), ७७१६७-५ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ७३५२४-२(+) त्रिशलामाता गर्भचिंताविलाप व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए भवतव्यता एहवी माता), ७६९६९(+#) त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), ७५०७४(5) थावच्चापुत्र चोढालियो, मु. जीवविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५४, पद्य, मूपू., (द्वारामती नगरी घणी), ७५३४३-१(+) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम समोसा), ७५७६१(#) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. देव, मा.गु., गा. २३, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (जिन नेम समोसर्या रे), ७६४६३ दंडक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १८, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम स्वामिजी),७६५२४ दत्त कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षितिप्रतिष्ठ नाम), ७४११०-३(+) दमयंतीसती भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हो सायर सुत सुहामणा), ७७४९३-२(+) दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहि., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (चरणकमल गुरूदेव के), ७५८३१(+$), ७६१५१(६) दयादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कठोडीरो धावण १ चकला), ७५३३१-२ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ७७०७३-१(+#$) दयामाता ८ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बीहताने सरणानो आधा), ७६७०३-१(#) दर्शनाचार, पुहि., गद्य, मूपू., (निसंकीयं निकंखीय), ७३३४४(+$) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., अ.११ सज्झाय, गा. १०८, पद्य, मूपू., (गुरुपद पंकज नमी जी),७४३५१(+$), ७७३६१(#$) दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन कवित्त, मु. धर्मसिंघ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अढार सहस्स गजराज), ७७०३३-१(#) दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ७५२६००) दशार्णभद्र राजर्षि रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (वसंतपुर नामे नगर), ७५३६८(#) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा. ५६, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (भयभंजण भगवंत दुख), ७६४८३-१ दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. केशव, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवीर सधीर),७३८९०(+$) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदिने), ७६३५०-१(#) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ७३३६२(+), ७५२९१-१(+), ७४९६५-२,७४९५८($) दादाजी स्तवन, मु. जिनलब्धि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दरसण दीजै सेवका समर), ७३८५४-२ दानशीलतपभावना पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे मनमांन सीखावने), ७६३१२-४(+) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय),७३२१६-१, ७३७४४-४,७४९३०-८ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा.१०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ७४४२८-१(+#$), ७५५२२(+$), ७५९७६(+#$), ७६३७३(+), ७२८९०(#), ७३१२८-१(#$), ७४१४७(#), ७४७१६(#S), ७३६२७() दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), ७४६३४-४ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ " दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. (नारी नागण सारकी रे ), ७४००३-९ दानशीलतपभावना सज्झाब, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति मात मया करो), ७३६०७-२ दानाधिकार, मा.गु., गद्य, मृपू., (यथा तीर्थकर दिन), ७६८६० २ (४) दिल्लीपति प्रशस्ति पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (महाराजधिराज अजित को), ७७११३-१(+) दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (दिसि गति इंदिय काए). ७४२७६-१(+), ७६५३८, ७५५८२(३) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (त्रीस वरस घर वास), ७५४८९-१ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ७५०९५-१ दीपावलीपर्व रास, मु. मनोवर, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (भजन करो भगवंतरो गणधर), ७४२१३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरजीनां गुण), ७३६४४-२(+) दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ७५०९५-४($) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २० वि. १८४५, पद्य, स्था.. (पूरव दिसे हुई), ७२९८३-१ " दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ७६६३०-३, ७४३४३-१४) दुरमति सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, थे. (दुरमती दुर खडी रहो. ७४६३४-१२ "" दुषमकाल भाव सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७५००२(३) दुषमकाल विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( भगवंत कहै छे हे गौतम), ७६५८५-१(+), ७६७०१(#$) दूमराय - प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे), ७३८२१-१ दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपु. ( दृष्टि राग विरागीइ), ७४९२७ (३) दृष्टिवाद विचार, पुहिं., गद्य, श्वे., (सर्व अपेक्षित नयों), ७३५६६ (+) देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, खे, (१ उडूनामा पटल ६४५१६१), ७४१८९-२(१) देव की गतीप्रमाण गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गती शीघ्र देवतणी), ७३६००-४ देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १०, गा. १०१, पद्य, मूपू., (रथनेमि नामे हूवा), ७३०२९(+#) देवगुरु आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंबिल भांजि जेतलो), ७४८८८-८(क) देवगुरु स्तुति, मु. घासीराम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (देवगुरु पिछाण वंदे), ७३५४२-२ देवता १० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नाम अरथर आगत३), ७३०१२-१(+) देवलोक विचार संग्रह, मा.गु.. गद्य, वे. (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), ७४७५३-१, ७७०८८-१(४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवलोक सज्झाय, मा.गु गा. ११, पद्य, श्वे. (वागवण्या चिहुँ), ७३८४२-१ (+) " देववंदन विधि, मा.गु, प+ग, भूपू (जयजय नाभिनरिंद नंद), ७३४१३(३) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ७६१५८-४ दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ७४३५८-२(१६) " दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पुहिं., मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ७६३०५-१(+), ७४७८६-३ द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं., द्वा. ३, गा. २६८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (अज अनादि अक्षयगुणी), ७४१३५($) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., डा. ३९ गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपु. ( पुरिसादाणी पासजिण), ७४९४९(३), " ७६२७६ (६), ७६७९९(३) द्वादसमास चंद्रायणा, मा.गु., गा. १२, पद्य, जे. ? (श्रावणमासरि रीत के), ७४८२६-३००) धनदधनवती चौपाई, मा.गु., पद्य, म्पू. (--), ७६०३८(+३) धनमहत्त्व सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, (दाम तै दाल दजाय), ७४०६६-७ "" धना अणगार चौडालियो, मु. आसकर्ण ऋषि, रा. डा. ७. वि. १८५९, पद्य, वे (नगरी काकंदी हो अति), ७३५२२(+) धन्नाअणगार श्वासोश्वास प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., ( धन्ना अनगारना दिक्षा), ७६७१४-३(+#) धन्ना अणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु गा. १९, पद्य, भूपू (वीर वचन चित्तधारी), ७७४७४-२(+) धन्ना अणगार सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुणवाणी वैरागीयोजी ए), ७५०१३-२ For Private and Personal Use Only ५४९ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ५, गा. ५९, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (कर्मरुप अरि जीतवा), ७३६२४, ७६४२३($) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ७४३६९-२ धन्ना अणगार सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (जंबुतोदीप हो धन्ना), ७३९४८ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (श्रीसुखदायक संपदा), ७६५९५(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वीर बत्तिसी कामनि रे), ७५४३६(5) धन्नाअणगार सज्झाय, क. मेघसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सामिणी), ७६१२९(+#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चरणकमल नमी वीरना), ७५७४४-३ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ७३५१६(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ७४३००, ७४६०९-२, ७३४७८-८($) धन्ना अणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीनवू), ७७१६२-५(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (उभी ही पिछताय रवि रे), ७४६३४-५ धन्ना अणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ७५११७-१(६) धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा.७, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (पुजजी पधारीया नगरी), ७७४९८(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ७५११७-२ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १६, वि. १९३२, पद्य, स्था., (कनक ने कामनी जुग में), ७३३९८(+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ७५७३०-२(+), ७६७५९-२, ७४७२५-२(#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. भाव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणि पाय),७५७४४-२ धर्मजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एक सूणले नाथ अरज),७५५४३-८(#) धर्मजिन स्तवन, आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्मजिणंद पद भजले), ७५७४२-२(+) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ७३४७९-१(#$) धर्मजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन मुज तणो ए), ७५९४०-२(+) धर्मजिन स्तवन, मु. गुलाब, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुंदर मुरती धर्मजिण), ७३२२४-१ धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ७७१५४-१(+#), ७६५५२ धर्मजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (धरमनाथ जिणेसरु), ७३६०१-२ धर्मजिन स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धर्मजिणेसर साहिबा हो), ७३८२७-२(+#$) धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ७६१०५-२(5) धर्ममंगल सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल छे मोटको), ७३०५१-१ धर्ममंगल सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धर्मोमंगल महिमा घणो), ७५७३८-२(-) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ७३८९१-२ धर्मोपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (धरम करत संसार सुख), ७३५४६-२(2) ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर पाय वंदे), ७५४४६(+s) नंदकुंवरजी ऋषि गहुंली, मा.गु., गा. ९, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (--), ७३४९७-३(-#$) नंदकुंवरजी गुरुगुण गहुंली, मु. जसवंत, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सरसती उकत पदारजोरे), ७३४९७-४(-2) नंदबहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७३, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सबै नयर सिरि सेहरो), ७४१६९(+$) नंदमणियार चौढालियो, रा., ढा. ४, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (ग्यातारा तेरमां अधेन), ७६३५२-२ नंदमणियार सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीकमला), ७३३८६-१ नंदिषणमुनि चौढालियो, रा., ढा. ४, गा. ७४, पद्य, श्वे., (नंदिषेणक कवररी वारता), ७५१५३(+) नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ७७२३०(#s) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५५१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), ७३०६५(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइएरे परघर),७४९६६-१(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नंदिषेण नयर मझार), ७२९९२-१(+#$) नंदिषणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ७७४७७-५(+), ७३४७८-४, ७३९४५-२ नंदिषणमुनि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), ७३४४९-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पंचसयां धणि परिहरी), ७६१०८-१(+$), ७६५०६-२(+) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नंदीसर वरद्वीप नीहाल), ७४४०७-२(#) नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ७२८८१(#S) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ७३८३५-१(+$), ७४६८७-१(+),७३७४४-२,७४७४७-१,७३९९६-३(#$), ७५३२६-१(2) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ७६४८८-३(+), ७६५८२ ३(+#), ७५९०४-२, ७५९०९-१, ७३०५१-३($) । नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (भोर भयो ऊठो भवि), ७५०३३-१ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ७६११८-१(+), ७३३०८(#) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिने दो मुझ), ७६३६३(+), ७५४८३, ७५७९५, ७५०६३(), ७६३२५-१(६) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., गा. १४, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (अरिहंत पहले पद जानी), ७४५०५ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु.प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो),७३५२१-३ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (समर रेजीव नवकार नित),७६०२७-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर एकोण), ७६५०८-१(+), ७३५६१-१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), ७३७३१-१ (#) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. प्रेमराज, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (जिन गणधर मुनिदेव), ७६१५३(+) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा),७४०११(+), ७६१२७-१(#) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ७५४३० नमिजिन पद, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (द्वारापुर सै खेलण),७५०६१-३(+) नमिजिन स्तवन, मु. अभिराज, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (सरसति दिउ मुझ वाणि), ७५७०७-१(+) नमिजिन स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नमि निरंजन नाथ), ७३१५१-१(+) नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ७३२०५(+), ७४५५५-१(+$), ७५१३३(+$) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ७३९२१-१, ७६१७५-२ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयर सुंदरसण राय हो), ७३१९१ नयादि सप्तभंगी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७३९६८(६) नरकदुःख रास, मा.गु., गा. २७२, पद्य, मूपू., (घर रे भार जुता घणा), ७५२३०(#$) नरकपृथ्वी से अलोक अंतर विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रत्नप्रभा पृथिवी थकी),७५०८५-५(+) नरक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली नरग एक लाख), ७३१४२-४(+$), ७५०८५-४(+), ७४७५३-२ नरभव १० दृष्टांत सज्झाय, पं. मतिहंस, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (--), ७४२१४($) नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, मु. अभयराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचिंतामणी), ७४६३४-७, ७३५३३-३(-2) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नरभव सज्झाय, जीवो, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (जीव जीवा चेतो जी थे), ७३०९५-१ नलदमयंती कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ७४९२४(+$) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ७५६९८(६) नलदमयंती रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुंपारसनाथना), ७७३३१(+#$) नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ७३१५७ नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवकार इक्क अक्खर पाव), ७५७८४(5) नवकार काउसग्ग फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (उगणी त्रेसठ हजार छसे), ७४०३५-२ नवकार पद, पं. मनरूपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच परमेष्टि युग), ७६४७७-२ नवकार मंत्र जापविधि फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगुष्ट मोक्ष जाणिवु), ७४०५९-१(+) नवकार रास, मु. दमणसागर, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सरसति सामनी द्यो), ७६४३५(+), ७५०७६(#$), ७४१५२(5) नवकार सज्झाय, गोपाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (भवजल तारणो जय नवकारो), ७६४४०-२(+-) नवकोटी कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., वै., (मंडोवर सामंत हुओ १), ७४२०१-७(#) नवग्रह यंत्र, मा.गु., को., (--), ७६१७१-२ नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ७६०९३ नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., (पास जिनेसर प्रणमी), ७६४९३-१(#) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (५६३ भेद जीवना ते),७२९५३(+$) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ७५३२९-२, ७५३९६(#) नवनिधान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (निसपिए नेवेस० ग्राम), ७५३९५-२ नवपद आरती, मु. उदय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीनवपदजी की आरती), ७४८३५-१ नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ७४११३-२(+#), ७३५७१(६), ७३७२३($) नवपद खमासमण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७६०४८(६) नवपद गुणवर्णन चैत्यवंदन, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना तेम), ७५७५६-२ नवपद छंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४७१३(६) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ७३५१७($) नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी पासजी नीति),७५०४७(+$), ७४२७३-१(६) नवपद पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (जीवडा जिनवर पूजीय),७६३५८-२(+$) नवपदमहिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती माता मया करो),७५१३१(+) नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण परि भवियण नवपद), ७६४५४-१(#$) नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गुरु नमतां गुण उपजे), ७३३७०, ७६१०३(#) नवपद स्तवन, मु. अबीर, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (नवपद का सुमरण करकै), ७४६९७-१ नवपद स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवो रे भवी भावे), ७७४४३-४(+) । नवपद स्तवन, मु. जगमाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जपो जपो रे भवीकारे), ७३१४०-१ नवपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधीए), ७३७३१-२(2) नवपद स्तवन, मु. पूनिमचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (नवपद शुद्ध निरंजन), ७७४५९(+) नवपद स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (नवपद के गुण गाय रे), ७३५५४-२(+) नवपद स्तुति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरीहताणं नमोकारो), ७५२०१-२ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ७३६४३(६), ७६०५६-१(६), ७५१८७(-5) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (नववाड सही जिनराज), ७३४९८ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५५३ नववाड सज्झाय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८४१, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर चरण जुग), ७५४४८(+) नागश्री सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (जंबुदिप वखाण्णीये जी), ७६५६९-३(#) नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ७४०६७-४(#) नाणागाम का रास, मु. दोलत, मा.गु., ढा. १, गा. १४, पद्य, श्वे., (नांणा गाममे वाणीया), ७६३३०-२ नाणानगर कुंडलीयो, मु. महेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, श्वे., (नाणानगरथी नीकली),७६३३०-१ नारकीआयुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रतनप्रभा जघन्य १००००), ७५२११-२, ७४१८९-३(#) नारकी उत्कृष्ट जघन्य शरीरमान व आयुष्यप्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७६२९७ नारकी दुहा, पुहिं.,रा., पद्य, श्वे., (घरकै भार जुतौ घणौ), ७५२९८(+$) नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नरक ७ ना भवन सासता), ७५९९८ नारकी वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४१५९(+#$) नारकी वेदना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (को एक जग विश्वनइ), ७५०८५-६(+$) नारकी सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नारकी नरकनै विषै), ७३८४०-१(+-) नारद चौपाई-द्रौपदी, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तीण कालेने तीण समे), ७३२३५(-) नारीपद सवैया, पुहि., दोहा. २, पद्य, श्वे., (लंछण धाम चले गज कट), ७५९९९-२ नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ७६१२२-२(+) नारी सज्झाय, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (मूरख के भावै नहीं), ७६४११-१ नारीसौंदर्यवर्णन कवित्त, मु. माल, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (वेण भूयंग वदन शशांक), ७४७५६-२(#) नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ७७४९९(+) नियंठाविचार सज्झाय, मु. जयजश, मा.गु., वि. १९१५, पद्य, स्था., (दशबोल समासर धीया), ७५१९७-१(+$), ७६३८६-१(६) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ७३६५७($) निह्नवविचार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे नायक वीर), ७७४७०(+) नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुंडपुर वर्धन राजीयो), ७३८२१-२ नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ७४६५४(s), ७५२९४($) नेमराजिमति बारहमासा, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (--), ७५९३४-२ नेमराजिमति सज्झाय-७ वार गर्भित, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने वीनवु), ७५९२५ नेमराजिमती ९ भव वर्णन सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (मेह ध्यावाला हो),७३३३० नेमराजिमती खांडणा-शत्रुजयतीर्थमंडन, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आज मुंसुहणडइ सेत्रु), ७५७०५-२(+#) नेमराजिमती गीत, मु. उत्तमविजय, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुन सखीया), ७५१९५-२(+#) नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), ७३४७८-७ नेमराजिमती गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (हरी आवो हमारी सेरी), ७३५२३-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तरसत अंखियाने हुंइ), ७६१३४-३ नेमराजिमती गीत, मु. विनय, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (या गति छार दे गुनगोर), ७४९८०(#) नेमराजिमती गीत, मु. विसनदास, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गिरि गिरनारि जाइ रहै), ७४९३०-६ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एकमना थइ सांभलो कहू), ७६१५७-२(+) नेमराजिमती धमाल, मु. लाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (राजुल सहिने विनवे हो), ७६३५९-५ नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.१७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (नेमजी आव्या रे सहसाव), ७५४९३ नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ७७४०७($) नेमराजिमती पद, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बोल बोल रे प्रीतम), ७३१५१-२(+) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो),७५५४३-७(#) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ राजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय राजुल नारि), ७४४५४-२ (-) नेमराजिमती पद, मु. जिनवर्धमान, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (आवो ज्यू आवो नैंकु), ७४४४५-५ राजिमती पद, मु. जिनवर्धमान, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (रथ फेरो हो लाल करूं), ७४४४५-४ नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानसुंदर, पुहिं. पद २, पद्य, भूपू. (लाल घोडो लाल पाघ लाल), ७४०६६-५ नेमराजिमती पद, मु. माणेकविजय, मा.गु.. गा. ११, पद्य, म्पू. (उमट आई साहिबाजी वादल), ७३१३१-१(+) नेमराजिमती पद, आ. रंगसागरसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमिजी जी हुं नव भव), ७४४४५-७ नेमराजिमती पद, रघुनंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, ओ., (तोरन आवी रथ पाछो रे), ७५८६५-२(१ राजिमती पद, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ७५९०२-१($) नेमराजिमती पद, ग. लालजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (-), ७४३८९-१(+०) नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू (राजुल तेरे बिहा मैं), ७५२४६-१ नेमराजिमती पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपु. ( आछी लग दिलोदिल भर), ७५२४६-२ नेमराजिमती पद, पुहिं. दोहा. ४, पद्य, मूपु. ( क्या तारीफ करु मेरा), ७५९१२-२ नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (मुखको० जालो दियो रे), ७६१३८-३() नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोरला बपैया बोले पिय), ७३६८३-२(+) " राजिमती फाग, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत पास), ७३६८०-१(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. नेमविजय, मा.गु, गा. ५७, वि. १७५४, पद्य, मूपू (समरीइ सारदा नाम साचु), ७७४४४) , י मराजिमती बारमासा, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मृपू, (नेमजीसुं राजुल विनवे), ७३४६७ (-१) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. २५, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (मागसिर मास मोही), ७४१८३-५ नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू यादव मुझनें सांभर, ७५२१२-१ " मराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू नेमराजिमती बारमासो, मु. जसराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु, गा. १३, पद्य, भूपू नेमराजिमती बारमासो, मु. राजरतन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं. गा. २६, पद्य, मूपू नेमराजिमती बारमासो, मु, हर्षकीर्ति, पुर्हि गा. २६, पद्य, मूपु (हो सामी क्युं आये), ७३५७८ (सांवण मासे स्वाम), ७३२८० (+), ७३५८६-३(०६) (घनघोर घटा घन की उनई), ७३४६३-१ (४) (राणी राजुल इण परि) ७४०५५-१शक (सखी आसाढि उतरिउ नहि), ७३०५०(+#) (विनवे उग्रसेन की), ७३५४२-१(३) "" " " नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( चतचुतरभुज होहन चडया), ७४५३०-१२-१ नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सखी कह सावणइ दकसा), ७४५३० -२ (-) नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सावण आया ए सखी के), ७६५५५-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पत्र पणमी करी), ७४२९५-२ (+४), ७६१९१(+), ७७४२०-२ (०३) नेमराजिमती रास, मा.गु., पद्य, भूपू (--), ७३७३०(४) "3 नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (फिकर अब लगी मेरा), ७४४५४-३(-) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो वालम बन में गयो), ७६५३३-४(#) राजिमती लावणी, मु. सेवक, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सखी सजन पीया नें दगा), ७४६७०-१ नेमराजिमती लावणी, पुहिं. गा. ७, पद्य, श्वे. (नेमनाथ भगवंत वनवासा), ७६५३३-५(१) " " राजिमती लावणी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरा पिया चाल्या), ७४६३४-१३ राजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीरवंतगिर) ७५७६३, ७५३६२(१) नेमराजिमती विवाहलो, मु. जिनदास, मा.गु., डा. ८ गा. ८२, पद्य, मृपू. (गोयम गणहर पय नमो), ७६५४८- १(१०) नेमराजिमती विवाहलो, मा.गु., पद्य, भूपू (श्रीजिनचरण प्रणमी), ७५८७२(45) " नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे. (व्याहनेकुं आया सिरसे), ७३८४९-३(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राजुल गोखे रहीने), ७५२१८-२ (०) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५५५ नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (राजुल इण परि वीनवै), ७४९४०-४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम काइ फिर चाल्या), ७६४६९-३, ७२९७८-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, आ. तिलकसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नाकें संख पंचायण), ७४१६४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान ववी), ७३४९५-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (त्रुतो अरुनेपरूप), ७६३८१-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. माणक, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पहिली तो समरूं हो), ७३११९-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., गा. १५, वि. १७९१, पद्य, मूपू., (राणी राजील कर जोडी), ७२९८१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ७४१८३-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नेमजी जाओ तो तुमने), ७३०८३-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ७३८२५-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वेला आवजो हो लाल जिन), ७६२२५-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीने वीन), ७५३१४-१(+#),७६२१४-२(#$) नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, मूपू., (उग्रसेण की लली नेमजी), ७४९४०-५(5) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (रथ फेरी जादव चल्यो), ७३८४९-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुखीया कहे बाइ तु मत), ७५२६३-५ नेमराजिमती सवैया, मु. उत्तमविजय, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (लाल लाल सब लाल ओरसी), ७५१९५-३(+#) नेमराजिमती सवैया, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (उमटी विकटा घनघोर घटा), ७३४६३-२(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सांवलीया घरि आवकि), ७३९१८-१(६) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ७३५५९-१(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नार मनावो है नेमने),७३८०७-२(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. मतिहस, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल बेठी उंची गोखड),७५२४०-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (का रथ वाळो हो राज), ७६१३८-७(-) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नर सुहामणो), ७४७५१-३(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया),७४००५-४(#$) नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुणि २ मूंद सहेलडी), ७४१५६-२(+#) नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ७२९१०-१(+#), ७५१६६-१, ७३६९३(६) नेमराजिमती होरी गीत, ग. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आवन देरे आहोरी चंद), ७५८६५-४(#) नेमिजिन गीत, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (हेली श्रावणीयो आयो), ७५२१२-२ नेमिजिन गीत, मु. विजयचारित्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजलि० वीनवि रि सखी), ७६५७१-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमूनेम), ७३१३०-५ नेमिजिन छंद, मु. हेमचंद्र, मा.गु., अधि. ३, गा. १९१, पद्य, मपू., (वंदेहं विमलं वंदे), ७७३३७(+#$) नेमिजिन छंद, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (किया एकी उठ चले की), ७६५५५-१ नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (सात पाच सखियन की),७६३५९-८ नेमिजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर नित नमो), ७४६३६-३ नेमिजिन पंचढालियो, पं. रामचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. ५०, वि. १९१०, पद्य, मपू., (श्रीनेमनाथ बावीसमा),७४५३३-१(+) नेमिजिन पद, मु. अवीर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुंदर कनकलता सी), ७५७४२-६(+) नेमिजिन पद, मु. कीर्तिसुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (नित नमीयै री नित), ७३०८६-३(+#) नेमिजिन पद, मु. कुशलचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमकुमरवर मोरि मन), ७४३८९-३(+#) नेमिजिन पद, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जाय कहौनी मुझ बाल), ७७४९४-२(-) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमजिणेसर वंदिय), ७६२८५-७ नेमिजिन पद, मु. धर्मसीह, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नित सेवा मेरे नेमकी), ७३०८६-१(+#) नेमिजिन पद, मु. रतनसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (छपनकोड चढे जादुवंसा),७६११४-२ नेमिजिन पद, मु. विजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (चलौ गिरनारकुं जईए), ७७१६४-२(+) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तारण तरण कहावत हो जु), ७३०५९-२ नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलि हे तूं), ७३९७४-१(+$), ७४१८३-३ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पारधीयानी ए अजुआलि), ७५९३४-१ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (प्रणमी नेमि जिनेसरू),७३२९६(#) नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु.,खं. २, वि. १५४६, पद्य, म्पू., (स्मृत्वा श्रीशारदौ), ७६३७५ (-१) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ७५१४७-२, ७३४०४-१(#$) नेमिजिन वेल, मा.गु., पद्य, मूपू., (सारद मात सुमत समपसुत), ७६००७(#$) नेमिजिन श्लोको, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., गा. ७२, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (वाणी वरसति सरसति), ७७०६६(+$) नेमिजिन सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए संसार असार सरूप), ७५९७७-२(#) नेमिजिन सज्झाय, श्रावि. साहु, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आज सुदिन भलो उगीयो), ७६११४-४ नेमिजिन सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पडिवा पभणिसु नेमिकुम), ७६४६२-१ नेमिजिन सलोको, सुरशशि, मा.गु., गा. ८२, पद्य, मूपू., (सरसती माता हूं तुम), ७५९९२(#$) नेमिजिन सवैया, मु. खेम, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (जदुराय चढे वर राजुल), ७४६२५-७(+) नेमिजिन सवैया, मु. सुमतिविजय, पुहि., पद. १, पद्य, मूपू., (जादव जान चढंत दमामै), ७४६२५-६(+) नेमिजिन स्तवन, आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमिजिन देखि दृगन), ७५७४२-७(+) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सखी आई रे नेम जान), ७६१७३, ७५५११-१(#) नेमिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुंछु रे अबला ताहर), ७२९१९ नेमिजिन स्तवन, ग. कमलविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसवचन द्यो सरसति), ७७४६६-१ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ७२९६०-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (परमातम पूरणकला पूरण), ७६१६८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा. ७, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसर साहिबा), ७६४११-२ नेमिजिन स्तवन, आ. जयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सहेलि तोरण आयो हे), ७६७१४-४(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (सुअदेवी सानिद्ध करी),७५९४१-२(5) नेमिजिन स्तवन, मु. जीवा ऋषि, रा., गा. ७, वि. १९२१, पद्य, श्वे., (नेम पुजणकुं आई रे), ७३२९७(+) नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सखी मोरी),७६१५७-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मोह तणा दल मोडी रथ),७६२८६-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाये नमी), ७६२३०(#) नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (उज्जलगिरी अमहे जाइ), ७६०२८-३ नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुझ मन हेज धरै तुम), ७३८२५-२ नेमिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ७५९३७(+$) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निरख्यो नेमि जिणंदने), ७५५०५-२ नेमिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गिरिसुतापति कवण वखाण), ७४६८८-३ नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., ढा. ६, गा. ४२, वि. १६८२, पद्य, श्वे., (सकल सिद्ध प्रणमेव), ७५९५४(+), ७६५७३(+) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ७३०५७, ७४३३८ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन कवि, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (मने रुडो लागे छै जी), ७३१३५-७ नेमिजिन स्तवन, मु. यशोदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहेली हे तोरण आयो), ७३८३८-१ For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५५७ नेमिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ना करीये रे नेडो), ७३०१५-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मारा नेम पीयारा), ७३८३८-२ नेमिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (विनवे राणी राजिमति), ७५९५०-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयसुत नेम), ७७४९०-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजै सुत गुण), ७४४०४-२(#) नेमिजिन स्तवन-जंबुसरमंडन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा.६, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम), ७२९६५ नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी),७४६०७(+$), ७३५५२(६) नेमिजिन स्तवन-सातवार गर्भित, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नमीए नेमजीणंद गढ), ७४०५८-१ नेमिजिन स्तुति, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बावीसमु नेमिजिन नाथ), ७२९१४-३(#) नेमिजिन होरी, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (खेलइ नेम मुरारि मास), ७७४९७-१(+) नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., गा. ७४, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर पाय), ७६१९४(+) नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (नैगम संग्रह व्यवहार), ७५८५८(+$) पंखीडा विवाहलो, मा.गु., गा. ३०, पद्य, (तीतर बेठो ताडु करे), ७५३१२-३ पंचकर्मदृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीमह घीणाउर नगरनो), ७३१०१(+) पंचकल्याणकपारणा विधि, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीथापनाचार्यजी के),७३०३७ पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), ७४१८९-१(#$) पंचकल्याणक स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., स्त. ५, गा. २५, पद्य, मूपू., (मूरत श्रीवासुपूज्यनी), ७५७२१(६) पंचजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहली आरती प्रथम), ७४८३५-३ पंचज्ञान स्तुति, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमतिज्ञाननी तत्व), ७३०१५-१ पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा.५, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (आज देव अरिहंत नमु), ७६३१४-२(+#) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवा चरणोनी), ७५२०१-१ पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिली आरती अरिहंत), ७२९६०-२(+) पंचपरमेष्ठी नवकार छंद, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलां प्रणमुं जिनवर), ७५८८२-२ पंचप्रकार विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चैत्यवंदनादिकनें), ७४८८८-१०(+) पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ७७४२९, ७४९४३-२(#) पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन चरणकमल नमी), ७६४३६-२ पंचमआरा सज्झाय, रा., गा. १३, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध साधु), ७४२७०-१(2) पंचमआरा स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (--),७४९५३-२(#$) पंचमआरे यतिविचार कवित्त, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (जे केई बालक बापडा), ७३५११-१(#) पंचमहिमा पद, क. गद्द, पुहिं., पद. १, पद्य, जै.?, (पंच वडे संसार पंच), ७५१४६-२(#) पंचमीतप सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमी तप तुमे आदरो), ७५९२८-२ पंचमीतिथि लघुस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पांचमतप तुम करोप्रा), ७७४८९-२(+) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कातिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ७३५३६-२(+$), ७३७७२-३, ७५३१२-४, ७६५११ पंचमीतिथि स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चरण नमी श्री जिनराज),७४१०६-३ पंचमीतिथि स्तुति, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल परव पंचमी तप), ७४१०६-२ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उत्तर दिशथी अनूत्तर), ७५९७३-२(+$) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ७४८६२ पंचमेरु पूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहि., पूजा. ५, पद्य, दि., (वानी पूजौ देवां केरी), ७६०३०(६) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (भगवति भारति पाए नमि), ७३३४९-३ पंथी ज्ञान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सरीर छाया त्रिवणी), ७३५२३-४(+) पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, मा.गु., गा. १, प+ग., श्वे., (वासीसु पनर दिवसो), ७४१५०-३(+#) पट्टावली, उपा. धर्मसागर गणि, मा.गु., गद्य, म्पू., (३५ मे पाटे श्रीउद्यो),७५४८१ पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (महावीर देव चोवीसमो), ७६०९९(+) पट्टावली*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), ७३५६०-१(+#) पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिणइ कलिकाल तणइ योगइ),७५८७५-२ पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत),७४७५४-४(+#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान), ७३०१९(#), ७५८४०-२(#), ७६२०३($) पट्टावली-नागपुरीय तपागच्छ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७६४५३(क) पद्मद्रह वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (पद्मदहनो १ हजार जोजन), ७७१५८(+$) । पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभुना नाम), ७५१४३-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु तुम सेवना), ७५७१८ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ७५७२४-१, ७३४७९ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ७२९२५(+), ७३५७३(+), ७४१४६(+$), ७२९८८, ७३००८, ७३०७८-१, ७३३६१, ७३७३३, ७५९८९, ७६२९३, ७६४७९, ७३३०५(#), ७३६४० (#$), ७४८२६-२(#), ७५२१५(#), ७५५४४(#), ७३६८९(६), ७४४३५(६), ७४४४२-२($), ७४७४५-१(६), ७६५३९-१($) (२) पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे पद्मावती राणी), ७३३०५(#) पद्मावती ढाल-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ७३८९३(+$) पद्मावती वार्ता, मा.गु., पद्य, श्वे., (नाम सारदा वरण), ७५७२५(#$) पद्मिनी बारमासा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (--), ७३६५९-१(६) परनारी परिहार सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नयनां अटकमां नयनां), ७४४४५-६ परनारी परिहार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ७२९८७-१(+) परनारीपरिहार सज्झाय, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (सुण मेरा चुत्र सुजाण), ७७४७५-१(+) परमाणु प्रदेश भेद, मा.गु., को., जै., (--), ७३८६६-३ । परमाणु भांगा विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ७५७८३ परमात्म छत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (परमदेव परमातमा परम), ७४७३८(5) पररमणी परिहार गीत, आ. जिनगुणप्रभुसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चिंतामणि सम नरभव), ७४१०७-४(#) पर्युषणपपर्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. १६, गा. २५४, पद्य, मूपू., (पुण्यनी पोषणा पर्व),७७०६३-२($) पर्युषणपर्व आराधना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ७३५७४-१(+#) । पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नव चोमासी तप कर्या), ७५४८९-४, ७५७९३-९ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वडाकल्प पूर्व दिने), ७५७९३-८ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ७५१६२-७(+), ७५७१२-७(+), ७३२८६ ७,७५०१६-७,७५७९३-७ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ७५१६२-३(+), ७५७१२-३(+), ७३२८६ ३, ७५०१६-३, ७५७९३-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), ७५१६२-५(+),७५७१२-५(+), ७३२८६ ५,७५०१६-५,७५७९३-५ For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), ७५१६२-६(+), ७५७१२-६(+), ७३२८६ ६,७५०१६-६, ७५७९३-६ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ७५१६२-२(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ७५७१२-२(+), ७३२८६-२, ७५०१६-२, ७५७९३-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार),७५१६२-१(+),७५७१२-१(+),७३२८६-१, ७५०१६-१,७५७९३-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), ७५१६२-४(+), ७५७१२-४(+), ७३२८६ ४, ७५०१६-४, ७५७९३-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ७५७५४, ७५९९७-२ पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडणो), ७५७०१-१ पर्युषणपर्व पद, श्राव. चुनीलाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (पर्वपजुसण मेला देखो), ७५१८४-१(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमु सरस्वती), ७६३२८ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ७५१३६-१(+-६), ७४९८२(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--),७५३८८(क) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ७५७७० पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये),७६६६२-३(+),७५३६३ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण सर्व सजाई), ७६६६२-२(+) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सर्व पर्व मांहि पर्व), ७५९३८(+), ७४४८५-१(६) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या),७४०९६-३(+) पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुण्यनुं पोषण पापर्नु), ७५६५२-१(#$) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमा अषाड), ७५९९७-५ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्य), ७५३८३,७५८७०, ७५९१५-१, ७५९९७-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप्., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ७३०५५-२(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन आगम चौ परवी गाई), ७६२५९(+#) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्यवंत पोशाळे आवे), ७६२२३, ७५३७४(2) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ७६६३०-२, ७५६५२-२(१), ७६०१८-१(#$) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्थे), ७६५९३-२(2) पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दोय घडी मन समरस आणी), ७२८८९-१ पहाडा, मा.गु., गद्य, (एक कां एकउ बिइका),७४०८२-२(+$) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ७२९२८(+#s), ७४८७३($), ७५२६६(६) (२) पांडव रास- ढाल राग परिचय, संबद्ध, मा.गु., अंक. १५१, पद्य, मूपू., (इण अवसर सीधा थइयै), ७३१८२८) पांडव सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (पांडव परिसणो महाज्यो), ७६५६७ पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ७४६७९, ७५८५४ पाखंडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अवै पाखंडी पग मांडे), ७३०८१(६) पाणी पंथ पत्र, मु. पद्मसेन, पुहिं., वि. १८२५, गद्य, मूपू., (पाणी पंथ थकी भाई पदम), ७७०७९-१ पाप परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (छिन वे जीव हणोजि तो), ७७५११-३(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २७, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (श्रीजिन सरस्वती संत), ७४८४५(+#$) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वचंद्रसूरि आरती, मु. अबीरचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (शुभ पंच महाव्रत तुम), ७३४६२-१ पार्श्वचंद्रसूरि स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (गजमुख गुणपति ग्यान), ७४८५४(+$) पार्श्वजिन-आदिजिन लावणी, मु. चंद्रभाण, पुहिं., गा. ६, वि. १८५२, पद्य, म्पू., (श्रीजिनराज महाराज), ७७३००-२(+) पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती करुं श्रीपाश), ७५४३९-२(#) पार्श्वजिन कलश, आ.ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ अनाथ),७२९७२-२(६) पार्श्वजिन कल्याणक स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (वाणारसीनयरि निरुपम), ७४२४६-२($) पार्श्वजिन कुंडलिया, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (पाशजिणंद पति जीइ गुन), ७६३५४-४ पार्श्वजिन गझल-पल्लविया, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७३, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (ससीवदनी वरदायनी सुमत), ७६५७८(+$) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइ), ७३२१६-२, ७३७४४-५, ७३७०७-४(#), ७५९०९-२($) पार्श्वजिन गीत, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सूरति सुंदर ताहरी रे), ७४१८३-४ पार्श्वजिन गीत, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समरथ जगमां साचो तुं), ७७५००-७(+) पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ दीधा),७२९६९(१) । पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरसादाणीय पासनाह), ७३१३०-६ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ७६३२७(+) पार्श्वजिन छंद, मु. जैतसी, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुरनर नाग सहु मिली), ७४२५१-१(2) पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र), ७३३१२-४ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ७४४९४($) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ७६२३४, ७४६२६($) पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात अमीझरो), ७४०७८ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (--), ७४०९७(+#$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ७३८२०-२, ७३००५(#), ७३५४६-३(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कपूरविजय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दुहग्ग दूख करें दहवट), ७५७७८(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ७५२६५-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जय जय गोडि पास धणी), ७६६२७-१(+), ७५३२०-३, ७५५१७-२(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. वनीतराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सुख संपत दाई सुजस), ७६६२७-२(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (गोडी गिरुउ गाजलो धवल),७५५१७-१(#$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सरसति द्यो मुझ), ७३८८८-२(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपोशारदा मया), ७६०८६(१), ७४०८०($), ७४७६४(६), ७६४५२(), ७६५७६-२(६) पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ७३६४४ १(+), ७३५९०-२(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वदन सुखकारसार), ७६८१०-२(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ७३२४८-१(+), ७४६८७-२(+), ७३५२१ १,७३८२०-३,७५४५८,७५३२०-१(६) पार्श्वजिन छंद-सहस्रफणा-मंडोवरनगरमंडन, मु. सुमतिरंग, मा.गु., गा. ५५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति सान्निध), ७७४४७(+) पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ७३९६५-३($) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५६१ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ७६४१८(+), ७६७१६, ७४०९१ ($), ७३६२८($), ७४३३९(s), ७५००५ (६) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा.८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), ७५३४२(#$), ७६३००(#$), ७४६६२(5) पार्श्वजिन पद, मु. आनंद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (अचरीज नाही हमारे दिल), ७७१६२-३(#) पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सांवरीया पासजीने),७३४५४-४(#) पार्श्वजिन पद, मु. आनंदरत्न, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मे देखीरे मुरत पारसक), ७३९४९-१(#) पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चाल चाल चाल रे कुअर), ७३१७८-१ पार्श्वजिन पद, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखिरी कोप्यो कमठ), ७६४४६-४(+#) पार्श्वजिन पद, मु. कीर्तिसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमीजै नित नित पास), ७३०८६-२(+#) पार्श्वजिन पद, मु. तीर्थविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (डारु गुलाल मुठी भरके), ७५५४३-६(#) पार्श्वजिन पद, मु. दिन, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (कर समरण पासजिनेसर को),७५५४३-३(#) पार्श्वजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (दीनदयाल कृपा कर पारस), ७६२८५-८ पार्श्वजिन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास प्रभु जिनराया ओ), ७३४५४-१(#) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (उंचे उंचे गिर परिभु), ७३९४९-२(#) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ७३३५८-२, ७५५४३-९(#) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ७३१३५-८, ७३४५४-८(#), ७५५४३-११(#) पार्श्वजिन पद, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मुख तेरौ पूनिम), ७७४९४-६(-) पार्श्वजिन पद, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामलवरण सदा सुहामणो), ७३८५३-१(#) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास पास नित नाम जपता), ७६१५६-३ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रात समय प्रभु), ७३४३६-३(१) । पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (साहिब सेवियै श्रीपास), ७५७५१-२ पार्श्वजिन पद-अवंतीपुर मंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पासजी हो पास दरसण), ७६२७९-१(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ७५०४३-२(#S) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विराजे वंगला में), ७५९२८-३ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (वारी जाउंरे चिंतामण), ७३४५४-६(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ७५४३२-१ पार्श्वजिन पद-दीवबंदर, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सचा साई हो डंका), ७३७४८-४(#) पार्श्वजिन पद-पुरिसादानी, मु. अबीरचंद्र ऋषि, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (अरज हमारी चित्त धरो), ७४६८३ पार्श्वजिन पद-भीलडीयाजी, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (दीठो मे दरिसण तेरो), ७५३८०-२(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ), ७५५३८-३(#) पार्श्वजिन पारj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (माता वामा देवी झुलाव), ७६१८५(६) पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ७३४५०-३(१), ७३४७९-४(#) पार्श्वजिन प्रभाति-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज संखेस्वरा सरण हु), ७३१६९-३ पार्श्वजिन फाग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मन थिर कर नाम जपु), ७३४३६-४(#) पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ७३७१७-३ पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजी दशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर जगतिलोए), ७६००३-१ पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मपू., (जगत भविक जिन पास), ७५४३९-३(#$) पार्श्वजिन लावणी-मगसी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुगतगढ जीत लिया वंका), ७४२५०-२ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन विवाहलो, मु.रंगविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), ७५६८९(5) पार्श्वजिन सप्तढालीयो, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ७, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (पास प्रगट गोडी धणी), ७७४८९-३(+) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., वै., (प्रणमुपरमातम अविचल), ७३३८४ पार्श्वजिन सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १, वि. १७वी, पद्य, दि., (जिनके वचन उरधारति), ७४०६६-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वादल दहदीस उनह्या), ७५९५०-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २२, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (तारक देव त्रेवीसमो), ७३२०७(+) पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनजी पुरूषोत्तम), ७३०७५-१(#$) पार्श्वजिन स्तवन, ग. कमलविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरस वाणी आपो सरसति), ७७४६६-२ पार्श्वजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (वंछित पूरण पास नंदन), ७४०६७-५(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा.१५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ७३३२९-१(+#), ७३८४३(+), ७६६४५-२(+), ७६२८६ १(#), ७३८६५(६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ७६९५६-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पाटण पंचासरउरे दीठा),७७३६०-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वयण अम्हारा लाल हीयड), ७३०७७-१,७३९१८-२(5) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (सुरत मुरत मोहनगारि), ७५९५८-६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगण सोभागी साहब), ७४७१७-१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु के आगे गुमान), ७६४४६-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा.७, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (तेवीसमो जिनपास), ७३३८६-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६४, वि. १५९६, पद्य, मूपू., (वाहन सारिग चडी करी), ७६५८७(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (परमेष्टि प्रणमी करी),७६२७१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धरणेद्रा करे सेवना), ७५११४-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आयो मास वसंत सरस जब), ७६४४६-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामानंदन सेककैं देव), ७४३३२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुरत ताहरी हो राज),७३६७४(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपासजिणंद), ७६१७५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मलुकचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी मांडल गाम), ७५६७३ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी प्रगट), ७५८२१-१(+#), ७४७२२-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु जगजीवन जगबंधु), ७७४४२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ७३६०३-३($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (तारी हो जिनराज),७५८६५-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीरावलापुर मंडण साम), ७३८५३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पासजी के दरबार चालो), ७६१०५-६, ७६३५९-९(5) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पासजी वामाजीना जाया), ७५९०२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर प्रणमिए), ७७४५२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर तुमने), ७३७१७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामानंदन वंदीयै जी), ७४६७४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लावण्य, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरधारू जिके द्वार), ७६३५९-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (क्युं न करे रे), ७४९४७-२ For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५६३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास),७३८२७-१(+#),७६५६५(+), ७५१५१, ७६०६१-१ पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेरी मांहि रमतो दीठो), ७६४३३-२(5) पार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरसागर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (कहो तो रमवा जाउं०), ७३६५०(#) पार्श्वजिन स्तवन, ग. वृद्धिकुशल, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सदगुरु पाय प्रणमि), ७२९७८-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अश्वसेन कुल चंद्रमा), ७३४७९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीपरमपुरुष जगिपरगड), ७४४४४-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भज ले), ७५५४३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मेरो मन मोहि लियो), ७५६८०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दानदयाधर्म कीजीये), ७४८३४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पारस जिनवर सुखकरु),७६१८० पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा. ३१, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीपासकुमार), ७७१७२-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बहेनी प्रभुजी जई), ७५६७९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेरीमाहे रमतो दीठो), ७३७४४-६ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ७३१२७($) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (अंतरिक्षप्रभु अंतरजा), ७५१८३ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग.रंगकलश वाचक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंतरीक पासजी महिर), ७४३५५-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे रे अक्षय), ७५०४६-२,७५४१४ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ७५४९८ पार्श्वजिन स्तवन-आगरामंडन, मा.गु., वि. १६४१, पद्य, म्पू., (प्रणमीइ प्रथम परमेसर), ७४०१२(+$) पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग सुरंगी अंगीयां),७६१३८-८(-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरसण दीजै पासजी), ७३८०७-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ७३१३५-४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जस नामे नवनिध ऋद्धि), ७४६३०-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ७३२४० पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर अंतरजामी), ७६२२५-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. चरणकुमार, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (परतष्यपास घणी गोडीनो), ७४९३०-४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ७३५९८(+), ७७४८९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ७४८८५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा.११, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (गुणनिधि गवडीपुर), ७६३१८-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), ७४६७७(+), ७२९७६, ७५०४३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (भावे वंदोरे श्रीगोड), ७३४५४-११(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (अनुभव जोतिलता मतवालि),७३३८९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गोडीचा साहीब मुझरो), ७४९३०-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (जोर बन्यो जोर बन्यो), ७४८२८-१(+#$) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ७६२६५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वामानंदन वांदता आपो), ७३४७९-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुखलाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरसण करस्या हो), ७३२८९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पुहिं., गा.१०, पद्य, मूपू., (गीत जात सुणो सुणो कर), ७३८८८-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (दरसण दीनो रे गोडीपास), ७३७९२(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी थलवटमंडण, मु. चंदो, मा.गु., गा. १६, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (द्यो दरिसन माहाराज), ७३१७९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी मोरवाडमंडन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (गोडि प्रभू आया रे), ७६०६८-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धि सुगुरु प्रणमी), ७३३८६-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि मरोटमंडण, मु. दौलत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चिंतामणि स्वामीजी), ७६२८५-६ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि वटप्रदमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जय जय गुरु देवाधिदेव), ७६००४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-जगवल्लभ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पण छे पूज्यानु रे), ७६५०४-३ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ७३२०६-२, ७४६५९-२($) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जीराउलापास कृपानिधान), ७६०३१-३ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंद कल्याणवल्ली), ७५२४९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु.खेमकलश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (महिमंडल श्रुणि श्रवण), ७४९६२, ७५०३३-२ पार्श्वजिन स्तवन-नीलवर्णी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमुपास जिणेसरु), ७४६३४-१५ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरामंडन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी पास पंचासरा), ७३६४७-१ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरामंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुखकर श्रीपंचासरो), ७५७६८-२ पार्श्वजिन स्तवन-पल्हवियामंडन, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीपल्लवियाजिनपास), ७७०८८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजाओ), ७२९९३-२ पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठोरे मारा आतमराम), ७३४५४-१२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ७७०९०-३($) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिपुरमंडन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनहर मरुधर देसमे),७७४९४-४(-) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहिब अरज सुणो), ७४२१२-२ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ७५१४३-१ पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, ग. शांतिविजय, मा.गु., वि. १९०९, पद्य, मूपू., (रयणचिंतामणि सरीखोजी),७३९९७-२($) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मनमोहन प्रभु पासजी), ७६१८२-१ पार्श्वजिन स्तवन-मनोदा, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मनोदा पासनो भलो परचो), ७३४७१(+) पार्श्वजिन स्तवन-लौद्रवपुरमंडन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीलौद्रवपुरनाथ हो), ७७४९४-३(-) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. जिणेंद्रविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणै नगर),७२९४७-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुंमन), ७२९५०-१(#), ७३५९०-१(#), ७६९७१-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मा.गु., पद्य, मूपू., (कांइ जीव मनमै काइ), ७५२९५-२($) पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. संतोक, मा.गु., गा. १४, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (जिनजीने वंदो चीत करि), ७३५०८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-विविधतीर्थ मंडण, मु. लखमण, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सरसति सामणि समरी माय), ७६०४३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (लगि लगि अँखियाने राह), ७४००५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), ७४६०५(+$), ७५४५९-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पास जीण), ७६१६८-२ For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, जगरुप, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (वामासुत म्हानै लागै), ७४८२८-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (श्रीशंखेश्वर पास), ७५१४३-५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( सहजानंदी शीतल सुख), ७६०६८-१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ७४९३०-१ ($) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु, गा. ११, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू. (१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प्रह उठी प्रणमे), ७३५२५-१ श्रीशंखेश्वर पासजिन), ७४९७७ ७५९१२-१, ७३१२० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ७३०७८-४, ७५१४३-७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. १२८, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर समरीने), ७६७५५ (+$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिनें रहिनें रहिनें), ७७४४२-३ (+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी प्रभु पासजी पासजी), ७३३२०-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पार्श्व), ७३०३९-२ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेधरतीर्थ, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (सकल मुरत श्रीपास), ७५८४६-२ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सुणो सखि संखेश्वर जह), ७५४०५-२(४) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणिरे साहिब माहरा), ७३६९९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- शामला, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. १७. वि. १८वी, पद्य, भूपू (पूजाविधि मांहे), ७३०४७ 3 , (२) पार्श्वजिन स्तवन- शामला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवंतनी पुजा करत), ७३०४७ पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ७५५४७-३ पार्श्वजिन स्तवन- सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु. ( समेतशिखर जिन बंदीये), ७४५७५ (98) पार्श्वजिन स्तवन- सवीना, मु. दोलतहंस, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रणमुं सदा), ७३०१०(#) पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९. वि. १८१७, पद्य, भूपू (सहसफणा प्रभु पासजी), ७३६३५-२(+३) , ܕ܂ ५६५ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुं रे पास), ७४२९५-१(+), ७५७३२(+) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत जेवीसमो), ७६०२८-४ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (वरसह लाख अग्यार), ७५७०५-१(+#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सहसफणो प्रभु सदा), ७६२२४-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी पूजीए), ७६०१८-३(३) पार्श्वजिन स्तुति, मु. समरथ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (हिवडा चाले उतावलो), ७६०८५ " पार्श्वजिन स्तुति - उन्नतपुरअजाहरा, मु. भावसागर, मा.गु.. गा. ४, पद्म, मूपु (श्रीअजाहर पासजिणंद), ७२८८२-२ (क पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू.. (जय पास देवा करूँ), ७७४८६-३ पार्श्वजिन स्तोत्र मंत्रमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (ओंकार अक्षर जगत्गुरु), ७३४६८-१ , पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीसकल सार सुरतरु), ७४०६७-१( पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ७६३५९-३ पालनपुर नगर कुंडलिया, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., ( पालणपुरि का सेरी को), ७६३५४-७ पासत्या के बोल, मा.गु, गद्य, मूपु. ( आधाकर्मीपिढ फलग भोग), ७२९४९ (+) पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु, डा. २ गा. ३५, पद्य, श्वे. (कुंडरीक रीद्ध तज), ७३५८०-२+६) " For Private and Personal Use Only पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), ७४१००-४ पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ३६, गा. ७७५. वि. १७६३, पद्य, मृपू. (सकलसिद्धि दायक सदा), ७७४५१(5) पुण्य प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( पुन्य ते कहीइ जे), ७५३२४-५ (+) " Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ७५१४१-१(+$), ७७४८०(#$),७५०८४-१(६),७५५५०(5), ७६००२($),७६११०(),७७१५५(5) पुण्यसार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (साकेतपुर नगर), ७४११०-१(+) पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), ७६४१३(+$) पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम १ गुण २ तिसंख ३),७४८३३-१(+) पुद्गल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुद्गलनो विचार), ७४७४८-३(#) पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), ७५२६९(+#$) पूजाष्टक, श्राव. प्राणलाल सेन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्षीर नीरसु नीर),७५३८२ पूर्व १ संख्यामान गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (० अनै छपन्नकोडिहजार), ७४२६१-९(+#) पूर्व १ संख्यामान गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सीतरलाख करोड वरस छपन), ७५९९५-३(+#) पूर्वादिकालमान विचार, रा., गद्य, मूपू., (८४ लाख पूर्व आयु), ७५६८०-३(+) पेथड रास, मा.गु., गा.५२, पद्य, मूपू., (विणय वयणि वीनवउं), ७५३६४ । पोरसीपडिलेहन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इच्छाकारेण०), ७५७६९-१ पोषदशमी स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु परमेश्वर पासना), ७६०९७(#) पौरीसी आदि छाया ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चैत्रे पगला ९ पोर), ७६०७०-१ पौषधव्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ईग्यारमे व्रते), ७३२९४ पौषध स्वाध्याय, ग. लाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलि समरस आणीय), ७५१०८ प्रतगत कृति बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ दस दाना की सीझा), ७३६६८($) प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ७४२६१-१(+#) प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकित तो सरदहण रूप), ७६२८३($) प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमी सरसति), ७६५५१-१ प्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (हिव राणी मन चिंतवै), ७५७०२(+$) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ७७४९३-१(+) प्रभाती स्तवन, मु. कान, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर शासणसार), ७६३४५-२(+) प्रभुदर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगुरूराज), ७५५१२-२ प्रभुविरह गीत, सेवगराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (सबद गुर बाण भर), ७४२५०-३ प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव थकी),७५८२६-२(+) प्रमोदमाणिक्य गुरुगीत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि मनि धरी),७३२०६-१ प्रमोदविजयजी का पत्र-संवच्छरीपर्व तिथि निर्णय, मु. प्रमोदविजय; मु. मोहनविजय; मु. हितविजय, पुहि., गद्य, मूपू., (मुकाम ___श्रीउदयपुर से), ७५३३८(+) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुंतुमारा पाय), ७३५५९-२(+) प्रहर दिनमान संगणना कोष्टक, मा.गु., को., जै., वै., (पग १ पग २ पग ३), ७४८६९-३(+) प्रहेलिका पदकवित्तादि संग्रह-समस्यागर्भित, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (अंग बनाइ सुगंध लगाइ), ७७०३३-४(#) प्रासुकपृथ्वी विचार सज्झाय, मु. देवचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरसति सामिणी), ७४१३३-३(+), ७७१५३-१(#) प्रास्ताविक कवित संग्रह, पुहिं., पद. ११, पद्य, श्वे., (माता पिता जुवती सुत), ७७५१६(+$) प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहि., गा. २५, पद्य, (प्रीतिकाज छंडिजै), ७६७१४-१(+#), ७६६७७-३, ७४७५६-३(#), ७६२१२-२(5) प्रास्ताविक कुंडलिया संग्रह, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (चंत्या थेचतुवीन घटे), ७६३५४-८ प्रास्ताविक दोहा, मा.गु., पद्य, (साहीब साज संदेसीया), ७४१२३-२(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा.७, पद्य, वै., (एक गोरी दुजी सामलि), ७३५४८-३ For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५६७ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., (पडिवन्नइ माछा भला), ७४०३५-३, ७४०६४-५ प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., (बुरी प्रीत भमर की), ७४५६३-३(+$), ७६१३६-४(+#$), ७४१४९-२, ७४५५१-२, ७४२०१-३(#), ७५२६३-६($) प्रास्ताविक पद, तानसेन, पुहि., गा. ३, पद्य, (वाही दिसते उमटि घटाइ), ७५००१-३ प्रास्ताविक पद, रा. मान, पुहिं., पद. २, पद्य, वै., (सररर वरषित सलिल घरर), ७४२०१-२(#) प्रास्ताविक पद-रंडापा, चिदानंद, मा.गु., गा.५, पद्य, वै.?, (रामजी मने रंडापो आपो),७५३७३-२ प्रास्ताविक पद संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (सखी आज वदन कमलाय कहो), ७३९०५-३(+) प्रास्ताविक प्रहेलिका पद, मु. मतिचंद पंडित, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिला नमु), ७७०३३-५(#) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ७४१३७() प्रेमिका का प्रेमपत्र-चित्रगढ से, रा., गद्य, (सजीली लजीली फबीली), ७७३४३-२(#) फलहमल्ल दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरी जितशत्रु), ७४११०-२(+) फूलडा सज्झाय, पुहिं.,रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ७६१३३(+) (२) फूलडा सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरना निर्वाण), ७६१३३(+) बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., मूपू., (--), ७४७०७-३(+), ७५९३६ बंधेलगा मुकेलगा-जीवविचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उदारीक सरीरना दोइ), ७५२७७, ७५८५६ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ७३१४०-३, ७३८०४-१(#) बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (द्वारकानगरथी नीसर्या), ७६५६६(+), ७६४८४-२ बलभद्र चौपाई, मा.गु., ढा. ३, गा. ७८, पद्य, मूपू., (छले पाम्यो त्यां), ७५२१०-२ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ७६५३० बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (द्वारामतिथी), ७२९९० बलिराजर्षि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५१२८($) । बाई सज्झाय, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३२, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (बेठे साधसाधवीया रे), ७४९४०-७ बाल पच्चीसी, पुहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., (दुलहो मनुष्य जमारो), ७३४४४ बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (रमत रमिवा मैं गईथी), ७४१६३-३(+) बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), ७४२५८ बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), ७३६१३(+) बीकानेरस्थित आठ जिनालय-चैत्यपरिपाटी स्तवन, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (--), ७३७८७-१(+#) बीजतिथि चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुविध धर्म आराधवा), ७५७६५-४(+) बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (दुविध धर्म जिणे), ७३०६२-१(+) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ७३७७२-१ बीजतिथि सज्झाय, मा.गु., वि. १८८७, पद्य, मूपू., (--), ७५०६४($) बीजतिथि स्तति, आ.नंदसरि, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (अजुआलीडी बीजनी बार), ७३०९७-२(# बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज),७५९७८-३,७३९९०-१(#), ७६०६०-१(६), ७५५५४-१(-) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ७६४८९, ७६८४३(#) बेचरदास गुरुगुण गहुंली, रा., पद्य, श्वे., (धन धन आज भाग अमारा), ७२९७०(-६) बोल संग्रह-जीवाभिगमसूत्रे, मा.ग., गद्य, श्वे., (--), ७६३४६(#) ब्रह्मचर्यबावनी, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (सरसति अमृत वसति मुखि), ७३४८५-१(+$) For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, रा., गद्य, म्पू., (ब्रह्मदत्त),७६७१४-२(+#) ब्रह्मविलास, श्राव. भगोतीदास लालजी ओसवाल, पुहिं., वि. १७५५, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमि अरहत), ७५०५२(#S) ब्रह्मा आयुर्बल कवित्त, मा.गु., दोहा. १, पद्य, वै., (ब्रह्मारी अवसतवरष), ७५९९५-२(+#) भगवतीसूत्र सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचम अंगे भगवती जाणि), ७३४७०-१(६) भडली विचार, मा.गु., पद्य, (मकर शनीश्वर कर्क), ७७२६९-२($) भमरला सज्झाय, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (वैराव्यो मुनि), ७४४०४-१(#) भरतचक्रवर्ती चौपाई, क. नंदलाल, मा.गु., गा. १८, वि. १८९७, पद्य, श्वे., (नगर आजु दाने विषे), ७६५१०-१(5) भरतचक्रवर्ती सलोको, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरस्वतिमाता द्यो मूझ), ७३५३९(#$) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (अनंत भावना भाई), ७५१९६-३ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (तव भरतेश्वर वीनवे), ७६०८४ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ७६०११ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदे आदि जिणेसरु रे), ७५३४७(#) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू, (राजतणा अति लोभीया), ७७४७४-३(+), ७७४७७-६(+), ७३०३९-१, ७३०६९, ७५८६०-१, ७६३९२-१, ७५७३८-४(८) भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ७५०९०(+#$) भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), ७६२१५(+#) भवनपतीदेव देह आयु भवनादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवनपती देवतानउ), ७३२४६-२(+) भवितव्यता कवित्त, मु. सुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कहां श्रवण जल भरे), ७५३१७-२ भानुचंदगुरुगुण सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीभाणचंद उवझाय), ७३४४५(#) भारमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (षट सरसवे एक जव थाय), ७३६००-८ भाविनी कमरेखा चौपाई, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीश्रेयांस इग्यारम), ७४७९५(+#$) भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (सत्य विवहार भाषा), ७६१२६-१(+) भिक्षुस्वामीगुण सज्झाय-तेरापंथी, मा.गु., गा. ६, वि. १८९१, पद्य, ते., (पंचम आरै परगट्या), ७६३७७-५(+) भिखूरिषि के पंचमपट्टधर गहुंली, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (भिखूरिष रे पंचमपट), ७७०३५-३ भीखणजी की ढाल, रा., गा.८, पद्य, ते.?, (साधू आये सामा जायो), ७७०३५-१ भीखनजी स्मरण, मु. सोभो, रा., गा. ५८, पद्य, श्वे., (साध भीखनजी रो समरण), ७५५१५ भीमऋषि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीशांति जिणंदना), ७५२४८(5) भीमसेनचंद्रावती रास, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रतिलाभ्यौ मुनिराज), ७५५१४(+) भीषणगुरु सज्झाय, मु. सोभ, मा.गु., गा. २०, पद्य, ते.?, (श्रीजिणभाखी सरधा राख), ७३१०० भृगपुरोहित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६०, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलै), ७६३४९(+) भृगुपुरोहितचौपाई, रा., ढा. ७, पद्य, श्वे., (भृगु प्रोहितनी वारता), ७६३५२-१ भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (देव हुता पूरब भव), ७३२४४-२(#) भेरुजी स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छकीयो रहियो रे कलाली), ७४७८२-१ भैरवनाथ पद-रतनपुरीमंडन, मु. इंद्रचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै.?, (रतनपुरी मंडण भैरूजी), ७३४६२-२ भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (त्रिशला राणी कहै), ७३७२२-१(#$), ७६७२० (#$) भोलपछत्तीसी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. ३७, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (भविका देखोन्याय),७३५६४-२ मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सासणदेवीय सामिणी ए), ७६५३५(#$) मंगल स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रणमीय शासन देवता), ७५०५८-१(5) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ मंत्र यादी प्रतिष्ठा व शांतिस्नात्रादि पूजनविधि मध्ये, मा.गु., गद्य, मूपू (जल शुद्धि मंत्र १), ७५७६४ " मदनकुमार रास- शीलव्रताधिकारे, ग. चतुरसागर, मा.गु., ढा. २१, ग्रं. ३६०, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (नामें नवनिधी सिद्धि), ७३६८१(३) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आपै धनन्नी), ७६६८७(+) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., ढा. ८, वि. १८५५, पद्य, वे., (श्रीवर्धमान जिणवर), ७६३५१(+#) मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु, डा. ६, वि. १८७०, पद्य, स्था., (आदि धरम घोरी प्रथम), ७६२७२(६) मधुकैटभ पूर्वभव ढाल, मा.गु., डा. ३. गा. ४९, पद्य, वे (राय अयोध्या आवीयो), ७५२२७/*३) मधुबिंदु दृष्टांत, मा.गु., गद्य, भूपू (--), ७४१२३-१ (०३) "" मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., ढा. ५, गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ७३३६३(#) मनः पर्यवज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू (मनः पर्यव भेदथी संयम), ७४९९२-१ (+) मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( नमो रे नमो मनक), ७३२३९-१(+), ७३०७०-१ मनवचनकाया के १५ योग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ७३८७४-१२(#) मनवचनकाया के भांगा, मा.गु., को., श्वे. (मन वचन काया), ७६१५४(३) , י मनुष्य गति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्मभूमिना मनुष्य १ ), ७३६००-१ मनोरथ गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, गा. ३, पद्य, मृपू., (धन धन ते दिन मुझ कवि), ७६२८५-द मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू. (एक दिन मरुदेवी आइ), ७३५३७ (5) , . मल्लिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मल्लिजिन वृंदइंद), ७६३९२-२ मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मृपू., ( महिनाथ माहाराज), ७५५११-२७) महादेव उत्पत्ती कथा, मा.गु, गद्य, म्पू, (पेढाल नाम विद्याधर०), ७३५९१-३ (५६) महादेव छंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, वै., (शंकर वसे कैलासमा), ७५१९३-२ महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नानपूर्वक नवो वेष), ७६४४७ (#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५०, पद्य, स्था., (जंबुदीपै हो भरत), ७६०४२-२ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, स्था. ( नगरी वनीतां भली वीर), ७३१२६ मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ७६४३८($) मल्लिजिन चौपाई, मु. जेमल-शिष्य, मा.गु., ढा. १९, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (नमस्कार अरिहंतनै), ७४६९४(+$) मल्लिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुज सरीखो प्रभु तुंज), ७३१५०-१ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु, ढा. ५, गा. ४१ वि. १७५६, पद्य, भूपू (नवपद समरी मन शुद्धे), ७३०४८ मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमल्लि जिणेसर), ७७३६०-५(+#$) महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहीले भवे जंबुधीप), ७५२१९(+), ७५५२८, ७६०८७, ७६५१८ महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (प्रथम भवि पश्चिम माह), ७६२८४० महावीरजिन उपसर्ग सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ कुल उपना), ७३८९१-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, श्वे., (इहां कुण जे श्रीसमण), ७३५३४-४ महावीरजिन काल में तीर्थंकर गोत्र उपार्जकों के नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेणिकराजा पद्मनाभ१), ७६१७०-३*) महावीरजिन के बाद की राजावली, मा.गु., गद्य, मृपू., (राजा श्रेणिक तत्पट्ट), ७६६६३-२(+) महावीरजिन गहुली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जग उपकारी रे वीर), ७६३९६-२ महावीरजिन गहुली, मु. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बेनि राजग्रहि उद्यान), ७६३०३ महावीरजिन गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मासे नवमे महावीर), ७४११५-१ महावीरजिन गहुली, मु. मणिउद्योत शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (सजनि मेरी गुणसिल वन), ७७३६३-१ (०३) महावीर जिन गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजग्रही नवरी मनोहार), ७७४२५-२(क " For Private and Personal Use Only ५६९ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन गीत, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीरजी हूं बांभण धन), ७६१३६-२(+#) महावीरजिन गुण स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ए गुण वीर तना), ७३०५९-३ महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जगदाधार सार सिव), ७३१३०-७ महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंद विलास भास), ७६५४३-२ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (त्रीश वरस केवलि पणे),७५४८९-२ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुणी निर्वाण गौतमगुर), ७५४८९-३ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वर्धमान जगदीसरु जग), ७३२३७-७(+) महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ७५७७५-१(+), ७५५८४ महावीरजिन चौढालियो, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (महावीर प्रणमुसदा), ७७४३८(+) महावीरजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइ भगवंत नइ चउसठि), ७६५६०(#$) महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५९५१(+$) महावीरजिन ढाल-१० स्वप्नगर्भित, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद चोबीसमा), ७५१५२ महावीरजिन देशना, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीरजी दीये छे देसना), ७५२३१-२ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ७५३०८(5) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज हमारे भाग वीर), ७३१३०-२, ७३७६४-२ महावीरजिन पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हमारे मन बस रहे), ७५३९८-११ महावीरजिन पद, मु. जिनेश मुनि, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (वंदू श्रीजिनवीर धीर), ७४९७२-२ महावीरजिन पद, मु.द्यानत, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (कमलासन महावीर विराजे),७६११४-३ महावीरजिन पद, मु. नयसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वाजत रंग वधाई नगरमां), ७३४५४-२(#) महावीरजिन पद, मु. फकीरचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो मन लागी रह्यो), ७४९७४-२ महावीरजिन पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (हाजी प्रभु चंपानगर),७४३३६ महावीरजिन पद, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मनमोहन मेरे समझे),७३६२०-१ महावीरजिन पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (आज लगी रे प्यारा), ७४९४१-२(5) महावीरजिन पद, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (महावीरस्वामी मोक्ष),७५३९८-५ महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पावापुरी मुकरा), ७३०४६-१ महावीरजिन पद-होरी, मु.रूप, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (होरी मची जिनद्वार), ७६३५९-१ महावीरजिन परिवार सवैयो, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (साधु भला दश च्यार), ७४६२५-३(+) महावीरजिन प्रभाति, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चरण कमल श्रीवीरजिणेश), ७५८७६-१ महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद नानडीया), ७३७४४-३ महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी आया रे गुणशैल), ७६२२१ महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ७३१५३(+#), ७३९९६-१(#$), ७४०००() महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनवर नमु), ७६४४४(#$) महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीगौतमस्वामी री), ७५३६७-३(+-) महावीरजिन सज्झाय-१० स्वप्नगर्भित, ग. तेजसिंघ, मा.गु., गा. १३, वि. १७४७, पद्य, श्वे., (शासणपति चोविसमो वीर), ७६४६९ महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आधारज हुतो रे एक), ७५३५७, ७७३४४(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. अमरमुनि, पुहि., गा. १०, पद्य, स्था., (सत्यधर्म का डंका), ७४००२-५ For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५७१ महावीरजिन स्तवन, मु. अमर, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सबको वीरसंदेश सुनाये), ७४००२-६ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. अमीविजय , मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिणंद रे), ७६२५८-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन प्रणमो श्रीवीर), ७४२१२-१ महावीरजिन स्तवन, आ. उत्तमसागरसूरि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (--), ७५०२०-१(+$) । महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आव आवरे मारा मनडामा), ७३१७८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (खत्रीकुंडलनगर अवतर्य), ७३५२४-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), ७५६०० महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर साहिब मेरा), ७७१५६-१(5) महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सदा आदि जिणेश्वर), ७६११२(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (नणदल किं नणदल चउगति),७५३८१-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सूरी आभ नाचती जिन), ७४९४५-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जग तारक श्रीवीरप्रभु), ७३१३०-१ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुणि जिनवर चोवीसमा),७७३६०-३(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. जेतसी, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ७४९४०-६($) । महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनमुख देखण जावू), ७२९९३-३($) महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वाटडी विलोकुं रे), ७३३३७-२ महावीरजिन स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नंदन नंदन त्रीसलारा), ७६६२२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. देवीलाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (लाल त्रसला को प्यारो), ७५३९८-१० महावीरजिन स्तवन, मु. देवीलाल, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ राजानो), ७५३९८-१५($) महावीरजिन स्तवन, पं. नरविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (हारे लाल सरसती), ७५९३५ महावीरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ३६, वि. १७८४, पद्य, मूपू., (महावीरजिन वंदो भविक), ७३८८३($) महावीरजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ज्ञान उज्वल दिवा), ७५४८९-५ महावीरजिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमी पाय मुनिराज), ७३८५३-३(#), ७४१०७-१०(#) महावीरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरण सरण सुखकरण वंदु), ७५२५१-४ महावीरजिन स्तवन, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (त्रिशलाना जाया रे),७३७०९-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. बुधविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (दर्शन जाउ वारी रे), ७३५९९-३(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ७३५५४-३(+), ७६६६० ३) महावीरजिन स्तवन, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ७५११४-१, ७५१४३-३ महावीरजिन स्तवन, उपा. रामविजय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जय जय वीर जिणेसरदेव), ७५३०७(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नारे प्रभु नहीं), ७५३८०-१(+), ७५८००-३ महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल दीपक), ७६५२० महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ते दिननो विसवास छे), ७४२९३ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम दीपे दीपता रे),७६४६० महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद सासण धणी), ७४४८९-१ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा.८, गा. ७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस), ७६४७५(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सिद्धारथना रे नंदन), ७५७१०-१(#) महावीरजिन स्तवन, सोहनलाल ब्राह्मण, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., वै., (सिमर नर महाबीर भगवान), ७५३९८-१२ For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर जगधणी), ७६२१७ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शासननायक समरु सदा),७५८००-१,७४७२०-२(#) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर महावीर ए),७६०६६-१(+) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ७३११७-४(६) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीइकमनवंदु स्वामी), ७३६२३ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ७३६३८, ७४२६७(#), ७३४४३() महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८९, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरसति भगवती), ७४३३१(६) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., ढा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (पूरण प्रेमे प्रणमीइ), ७५०३०(#$), ७४१०४-१(६) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. शुभविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८४, पद्य, मूपू., (विमल कमल दल लोयणा),७४५७२(5) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति),७६२०९(६) महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ७७४४१(+), ७५९७७-१(#$), ७६५९२(#), ७५८५१(६) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ७५५०६, ७५७७३, ७५९५६, ७४०७३($) महावीरजिन स्तवन-चंदन मंडण, मु. ऋषभविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चलो वंदन जईए वीरजी), ७३२२५-३(#) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ७२९४०(+#), ७५६९०, ७४९५३-१(#$) महावीरजिन स्तवन-जन्मोत्सव, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज महोछव रंगरलीरी), ७५५४३-१२(#) महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रादिक भावथी),७४२४०($) महावीरजिन स्तवन-तप, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ७३२३४(-) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपम), ७६७६२(5) महावीरजिन स्तवन-निशालगमन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सखी त्रिभूवन जिन),७६१७४(+) महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जिण आणंदा), ७६४८५-१ महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण),७२९९२-३(+#),७७०३१(+), ७७४८७-३(+), ७६४३२ महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे),७२९१०-२(+#),७६२५८ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ७३६७०(#) महावीरजिन स्तवन-मोहनीयकर्मबंध बोल गर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४९३९($) महावीरजिन स्तवन-वडनगरमंडन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सिधार्थसुत वंदिय), ७३४७६-२(+#) महावीरजिन स्तवन-सत्यपुरमंडण, मा.गु., पद्य, मूपू., (पुर साचोरे जास्युंजी), ७५९०२-३(६) महावीरजिन स्तवन-समवसरण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वंदीये),७६७९९-१(#) महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (आरज देसमां आरजदेस),७७१६५(5) महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साचुंरि परवर्या जगत), ७६०२८-५ For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ महावीर जिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खा. ६ गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ७३०२७-१(s), ७४६५६ ($) महावीरजिन स्तवन- स्याद्वादगर्भित, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., ढा. ३, गा. २७, पद्य, मूपू., (त्रिशलामात सुजात जयो), ७७४९६ (+) महावीरजिन स्तवन- स्वप्नगर्भित, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४. वि. १८३१, पद्य, स्था., (सासननायक समये समये), ७५८६६ (#) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (मुरति मनमोहन कंचन), ७३१२३-२ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), ७५०९५-३ महावीर जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ७५०९५-२ महावीरजिन स्तोत्र - प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमां), ७३५३८-१(+#) ५७३ महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (नंदनकुं त्रिशला), ७६५७२(+) महावीरजिन हालडुं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ७२९८९ (४) मांडलीयाजोगप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्थापनाजी पडीलेही), ७६३४२ माणिभद्रवीर गजल, पुहिं. गा. ७, पद्य, मृपू., (सरसति सारदा ध्याऊंक), ७४४२०- २(१) " माणिभद्रवीर छंद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २४, वि. १९५५, पद्य, मूपू., (वाणी वीणा पाणी वरदा), ७६३३१-१(+) माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ७५९१६, ७६४४१-१, ७२९३८(#) माणिभद्रवीर छंद, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम मात तोने), ७४४१६ ($) माणिभद्रवीर छंद, मु, लालकुशल, मा.गु. गा. १९, पद्य, मूपू (सरसति भगवती भारती), ७४७७८(+०३), ७४७४७-२ (६) ', माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय), ७२९०२ (+), ७६२९९ माणिभद्रवीर छंद, मु.शिवकीर्ति, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपु. ( श्रीमाणिभद्र सदा), ७३८२०-७ माणिभद्रवीर छंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४७९१($) माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू.. (सूरपति सेवित शुभ खाण), ७३४५३), ७५९९५ १(+), ७३९४५-१ माणिभद्रवीर लावणी, चमनचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., ( माणिभद्र को समरण), ७४४२०-४१०) माणिभद्रवीर स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भले मन्नसुं पूजता), ७४४२०-३(#) माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू. (देवि सरसति देवि), ७४१९१(३) मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं माता सरसती), ७५८९१($) मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ७३७८९ (+5), ७७१८० (+5), ७४११८ (३), ७४४११(5), ७४७७४($), ७५३०४($) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), ७७४५३ (#$) मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ७५३६७-२(+) मानविजयसूरिगुरु पद, मु. धीरविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू, (भविजन भावि भेटिई), ७५६५५-१ मानविजयसूरिगुरु पद, मु. धीरविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीविजयमानसूरिराया), ७५६५५-२ माया गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीव विमास नहीं कुछ), ७४१०७-८(#) मायापच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (तु सुण हे दूती माया), ७३२२६-२(#) मायाबीज कल्पवार्ता, आ. जिनप्रभसूरि, मा.गु., प+ग. मूपू., (अजुआले पखी पूर्णा), ७३२९० माया सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ७२९८६-२ मास, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, राशी भेदज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, (मास चिंतवीई ते माहे), ७३५२३-६ (*) मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं., गा. २०, वि. १९२८, पद्य, श्वे., (तीर्थंकर महावीर), ७३४२० मुक्ति गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (माइ हर कोऊ भेष मुगति), ७४१०७-९(१) For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मुक्तिनगर सज्झाय, मा.गु., ढा. १, गा. ६, पद्य, श्वे., (मुक्तनगर सुख मोटका), ७५५०९-१ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (निलाडै कृष्णलेश्या १), ७३८७४-१(#$) मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वे मुनि मेरे मन वस्य),७५७४४-४, ७६२१०-१ मुनिपति चरित्र, मा.गु., पद्य, म्पू., (नमिऊण वद्धमाणं कह),७४५५३(+#$) मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), ७४०१७(5) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय),७७४४२-२(+),७५९४१-१ मुनिवंदन भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आउ वंदन महामुनि राया),७६०६४-४(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत महाराज), ७३१५०-२ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमेष्टी परमातमा),७५७६८-१ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी आया रे सेर), ७५०८६ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. सूर्यमल, मा.गु., गा. ८, वि. १९१७, पद्य, श्वे., (अहो सर्वगुणी मुनि), ७३५०८-१(+) मुसलमानी, मा.गु., पद्य, (१ जीमी २आव),७६५१४-५ मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ साचो सद्द), ७३८५९-१(#) मुहपत्ति ५०बोल सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीहीरविजयसूरि), ७२९४६ मुहपत्ति के ४० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्रार्थ दृष्टि), ७७०६० मुहपत्ति सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरना प्रणमी), ७७१६२-८(#) मुहर्त श्वासोश्वास मान, मा.गु., गद्य, (तीन हजार सातसि), ७४२८१-२(2) मूर्ख के २९ बोल, मा.गु., अंक. २९, गद्य, मूपू., वै., बौ., (विना भूख खाय सो), ७३२२२-३ मूर्खशतक, मा.गु., गा. १००, पद्य, श्वे., (धारानगरीइ भोज राजा), ७२९९१(क) मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), ७५४२८(+$) मृगापुत्र चौढालिया, मु. प्रेमचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंतकू), ७३७४५-१(+$) मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरसुग्रीव सोहामणो),७२९७४-२(#$) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ७५१३० मृगापुत्र सज्झाय, ग. नरेंद्रविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. १४२, वि. १९२१, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनगर सोहामणु), ७६३३८(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ७५०३७-२(+), ७५१६१(+), ७६४०६-२(#$), ७५४९२-३(s), ७६०१६ (६) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सुरचंद्र, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (सुग्रीव नयर सोहामणु), ७५१९२-१ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. ९१, पद्य, श्वे., (महावीर समरु सदा मुगत), ७६३४० मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणु),७३२१३-१,७५०१३-१ मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति सामिणी), ७३१४४(+s), ७५९३२(+$) मृगावतीसती चौपाई*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७७०५८($) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ७३७१४(+#$), ७३३१७, ७४१०७ मेघकुमार चौढालियो, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनो रे चरण), ७२९०३(#), ७५४१२(#$) मेघकुमार पंच ढालिया, मा.गु., ढा.५, पद्य, मूपू., (मेघकवर धारणी माता),७४०७७-१,७३३३३-१(-) मेघकुमार भास, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (--), ७७०२७(5) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ७६४५५, ७३१२९(#S) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावेरे मेघ), ७७४७७-२(+) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चारित्र लइ चित्त), ७३७०५ (६) मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (त्यागि वैरागि मेहा), ७३५४०-३, ७६५१०-३($) मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (परमजोती प्रकाश करी),७४३५३-२($) मेघप्रबंध, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (गौतम प्रणामकि सारद), ७३३२५ मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), ७३८८१ मेतारजमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर राजगृह आवीयोजी), ७४१०७-१(#) मेतारजमुनि सज्झाय, रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (मासखमणरो पारणो मुनि), ७३३४३(+) मेतारजमुनि स्वाध्याय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजगृही मे गोचरी), ७४१८३-२ मेतार्यमुनि सज्झाय, ऋ. मनरुपजी, मा.गु., गा. ९, वि. १९१२, पद्य, श्वे., (मेतारज वंदु पाप), ७३५०३-१(+-) मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ७३५३२-१(), ७४९४८-१($), ७४९६५ ३),७५४९२-२($) मेरु १० दशा विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (मेरुप्रबत १०००००), ७४८३३-३(+) मेरुतुंगसूरि गुरुगुण सज्झाय, ग. लक्ष्मीचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सखी मोरी हे सखी सफल), ७४३८९-२(+#) मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ७३२३९-६(+) मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ७६२०७(+$), ७५५३९ १,७६५७७ मोहजीतराजा पंचढालियो, रा., ढा. ५, गा. ८६, पद्य, मूपू., (सुधर्म स्वर्गे सुधर), ७५३१३(+#) मौनएकादशी ढाळो, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी समोसर), ७४७२९(5) मौनएकादशी तिथि स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुख्खर पश्चिम ऐरावते), ७४८६३-१(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसय), ७४८०५-३(+$), ७५४०९(+$), ७६१८७, ७६३६२,७६५७५-१(#$), ७४६५१-२(६), ७५७२३-१(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ७४८०८(+S), ७५४९१-२, ७५४९५, ७५७४८, ७५९५३-१, ७७१०४(#), ७५०९६(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने), ७३३८१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (विश्वनायक मुक्तिदायक), ७६३११ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ७७०७७(5) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत),७४८७०(+), ७४७७३, ७६३६०-३, ७२९५०-२(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ७२९१२-२(+), ७५९७८-५(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), ७४२४४-४(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ७४२०५-१(+#$) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ७५७६६ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ७५८३०-२(+#) यशोभद्र वार्ता, मु. गणपति ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा.७०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध साधु),७५१५७(+) युगप्रधानअष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गयण थकी जिण कुलह), ७६१०६ युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण जंबुदीवइ जाणीय), ७३२३२, ७४६३४-९ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दधिसुत विनतडी),७६४०४-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (जगत गुरु जुगमंदर), ७४९०८-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (अहो लाला जुगमिद्रजिन), ७३५८५-२(+-) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ योगछत्रीशी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सुप्रसन्न सदगुरुजो), ७४३७७(#$) योगापधानादि कीगहुंली, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वेशाख सुदि एकादसी),७६११६-१ योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४९११(६) योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७५४७१(६) (२) योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७५४७१(5) (२) योगोपधानयुक्त ज्ञानार्जन योग्यता सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७४९११(६) यौवनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (पुन जोग नर भव लहो), ७३८४६-२(६) रघुपतिदेशना सज्झाय, मु. चौथमलजी ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (पुन्य जोगे मोने), ७३८४२-३(+) रतनमहाराज गुरु गीत, पुहि., पद्य, श्वे., (सतगुरजीरा गुण कीया), ७४२५०-४($) रतनसीगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., ढा. १०, गा. ४५, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण मीठडा रे), ७४०१५(६) रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे),७६२६८(+) रत्नचंदगुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, स्था., (थे सुनो भवी जीवायो), ७३४१४ रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), ७६५३७(#$) रत्नचूड चौपाई, मा.गु., ढा. ४, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (रत्नचुडरी वारता कहु), ७५३०३(+) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), ७५०७७(#$) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमुं), ७४७९८(), ७५५३७(१) रत्नप्रभापृथ्वी विचार, रा., गद्य, श्वे., (एक लाख असी हजाररो), ७६४९९-१(+) रत्नप्रभा सज्झाय, श्राव. गुणफूलचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रणमुंते सारदमाय), ७४१३३-२(+) रत्नाकरपच्चीसी स्तवन, मु. गंभीरविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (लक्ष्मी शिवकल्याणनी), ७६१९८ रथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काल अनंतानंत राजमती), ७४१०७-३(#) रथनेमिचोक, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसें रहेनेमी), ७५१९५-१(+#) रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल चाली रंगसुरे),७७४७७-३(+), ७३४४९-२ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ७३२६८,७४५२७ १(#s),७३४९९(६) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छेडो नाजी नाजी छेडो), ७३५२६-२(+#), ७३०३५-१, ७३५४८-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ७३२८४(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. भगवानदास, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (मुनि रहनेमी ध्यान मे), ७४४७१-२(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ७५७३०-३(+), ७४३५८-१(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (काउसगथकीरे नेमी), ७३४४१(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ७४३४३-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., गा.११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ७३८३०-२ राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जाग रे सोवे), ७३१८८, ७४९४३-३(#$) राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), ७४३७९(३), ७५०५०(६) राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ७४४७१-१(+#), ७५४२४(+$), ७५७४३-३($) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ राजिमतीसती लैहयों, रा., गा. ३७, पद्य, श्वे., (काइ भीजै काइ भीजै), ७३७६८-२ राजिमतीसती सज्झाय, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसत सामण हो चंदावदन), ७३२२५-२(#) राजिमतीसती सज्झाय, मु. भुदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (को वालि लायो नेमने), ७७०२६-१(#) राणकपुर वृद्ध स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म तणौ), ७३७१७-२ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममां सारज कहिइ), ७४१०३-२($) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी),७४६६३-१(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद प्रणमी), ७४३८८() रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसे जी), ७३५८६-१(#$) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी),७६१०७-३(+$) रात्रिभोजन परिहार रास, मु. चौथमल ऋषि, पुहि., गा. २४, वि. १९७७, पद्य, श्वे., (जेनी रातकु नहीं खाता), ७३८३९(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., (गुरुपद प्रणमी आणी), ७३६८७-१(+), ७४६०६(#$),७७३६६(#$) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. रतन ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (छट्ठो वरत रात्री), ७४९४०-८ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (छठो व्रत रयणी तणौए),७६३७८-२(+) राधाकृष्ण पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (रातडली रमीनै कंता),७५००१-४ रामकृष्ण चौपाई, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., खं. ६ ढाल ६८, गा. १२५१, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (जगत आदिकर जगतगुरु आद), ७५२४९-३(+) रामचरित्र ढाल, रा., ढा. ८, पद्य, वै., (--), ७६४२७-१(+#$) रामभक्ति पद, रा., गा. ३, पद्य, वै., (रामजी राजिकुवार माने), ७३०३५-४ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ७५१९८(+$) । रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सिद्धबुद्धदायक सलहीय), ७७२४६(+$) रामसैन्यमान कवित्त, क. जगमाल, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (रावण उप परि रामकटक), ७७११३-४(+) रावण ऋधि, मु. जिनहर्ष *, रा., गद्य, श्वे., (रावणरो आउखो तीसहजार), ७७०५१ रावण प्रति सीतावचन कवित्त-शीलगर्भित, मु. हीरकुशल कवि, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (भणै सीत सुनो दसकंधर), ७७११३-२(+) रावणमंदोदरी सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७३७२९(#$) रावण हितशिक्षा सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सीता हरी रावण घर आणी), ७४०५२(+) राशीहोडाचक्र, मा.गु., पद्य, जै., (चुचे चो ला असनी), ७६६४५-१(+) रिपुमईनभुवनानंद चौपाई-शीलविषये, ग. लब्धिकल्लोल, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (--), ७५७३९(5) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ७३८३०-१, ७५३५२, ७६५१६, ७५१९१(#), ७३४७५ (६), ७६०३६-३($) रुक्मिणीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सउकि तणो दुख अति घणो), ७५४२३(+$) रुद्राक्षधारण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (वार २१ गणीइ पछी ते), ७३४६८-२($) रूपसी ऋषि गुरुगुण गीत, ऋ. प्रेमजी, मा.गु., ढा. २, पद्य, मूपू., (सरसति शुभमति आपो), ७६०५८ रेवतीश्राविका चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ नंदण नमु), ७४५२७-२(#) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. गजमुख, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रीजिन वीर समोसा), ७६२८२-१(#) रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (सोवन संघासन रेवती), ७६४८८-६(+) रोगी कालज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, वै., (जे रोगी पुरुस मांदो), ७४२२२-२(+) रोहिणीतपचैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रोहिणी तप आराधीए),७३०६२-५(+),७४६०८ For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रोहिणीतपरास, उपा. उदयविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुखकजवासिनी), ७६१९७(+) रोहिणीतपसज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणंद), ७६१६१-१(+),७६१७१-१ रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एक दिन वासुपूज्यजी), ७५९०४-१ रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ७५३१८-२, ७५५२६($) रोहिणीतप स्तवन, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रोहणीतप भवि आदरोरे), ७३७६४-४ रोहिणीतपस्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ७५७९७(+#), ७५०१० १,७५४४४,७६३६०-१,७४२९६(६),७७४४०-१(६) । रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नक्षत्र रोहिणी जे), ७५४५९-२(+) रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ७५९१३-१, ७६४५४-२(#) लग्नसुबोधीएकोत्तरी, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७१, वि. १८०८, पद्य, मूपू., (गुरु सारद पाय नमी), ७२९२६ लघु आराधना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. ४१, पद्य, मूपू., (तित्थनाथ जिनवर नमु), ७५४८५(+) लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच ज्ञानना भेद),७६४३९(+) ललितांगकुमार कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ७३९०५-१(+$) लाख योजन प्रमाण वस्तु, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मेरु जंबुधीप सप्त), ७३६००-६ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), ७३४९४() लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), ७७०८०(+$) लुकाबत्रीसी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (--), ७६९६५-१(#$) लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीउवाईमाहि अंबडनी), ७४२७४($) लूण उतारण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (लूण उतारो जिनवर अंगे),७४८१२-४(+) लेश्या स्थानक पजवा २४ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरबसुं थोडा कापुत),७४६०१-१(+#) लोकमेला गीत, मा.गु., गा. २०, पद्य, वै., (झिरमिर झिरमिर हो सिल),७६६७७-१ वंकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ६१, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (वंकचूल भाखी कथा जथा), ७४७९२-२(+), ७५९७०(+) वंकचूल चौपाई, मा.गु., गा. ९४, पद्य, मूपू., (--), ७५९९४(+$) वंकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर आदि जिनवर), ७५९४५($) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), ७३८३५-२(+) वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखी रे में कौतुंक), ७५७६७ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ७४७८०($) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गणधर दश पूरवधर सुंदर), ७६५५१-२ वज्रस्वामी सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर पाय), ७६५६८ वटपद्र नगर भास, पुहि., पद्य, श्वे., (सेवकने वरदायिनी भगनी), ७५०२७-२($) वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी),७५८७३-१($) वरसिंघआचार्य भास, मु.रुप, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (रुपजीवजी अति हि वैरा), ७६०६५-१ वरसिंघऋषि भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु साधुसचंगा), ७६०६४-३(+) वरसिंघऋषि संथारा सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सकल गुणे संविगी), ७६२५३-२ वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), ७५३२४-४(+) वर्गमूल व घनमूल सवैया, पुहि., गा. २, पद्य, (आदि तै विषम समलीक तै), ७६४३३-३ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु), ७४६७४-१(+) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ वर्तमानचौवीसीजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चिदानंद चितमा धरजो),७५३८७-२(+) वल्कलचीरी सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन नमन विधि), ७४६९३-१ वल्लभजी व केशवजी का नानजी ऋषि के नाम पत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री आदिजिन), ७६५६९-१(2) वल्लभविजय शिष्य परंपरा कुंडलीयो, मु. मोहन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गजेंद्रजी के पाट ए),७६३३१-३(+) वस्तुपाल तेजपाल सुकृत कवित्त, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचसहस प्रासाद जैन), ७७०३३-३(#) वहु तपस्या सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (बाइ भाइ उपासर चाल्या), ७३२४९-४(#) वाजिंत्र नाम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (ताल मृदंग रंग चंग), ७६१३४-२ वायुभूति गणधर सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (वायुभूति नित वंदीए), ७३५६७-१(-2) वासक्षेप भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (झमकारो रे मादल वाजै),७६११६-२ वासुदेव बलदेव सज्झाय, मु. मणिलाल, मा.गु., गा. ९, पद्य, स्था., (पुण्य खसी उदे आव्या), ७६५२२-१ वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वासव वंदित वासुपूज्य), ७५९१३-२ वासुपूज्यजिन जन्मोत्सव ढाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनजननी जिनने अतिभगत), ७७४२४-२ वासुपूज्यजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जाओ जाओ जयानंद जोतां), ७३१५४-२(+) वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ६१, गा. ४५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव जिनो), ७६०५५(६) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ७४१६१-३ वासुपूज्यजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर जगपती), ७६२५४(+) वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतप गर्भित, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमिय परमाणदए), ७७४८८ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ७४२६०(+#$) विगयनिवियातादि विचार, रा., गद्य, स्पू., (दूध दहीर घृत३ तेल४), ७३२१५-२($) विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ६०, वि. १५४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर प्रणमी पाय), ७६०९२, ७६४६६(१), ७३१०५(६) विचार संग्रह*मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे), ७४०२०(+),७५९२१,७६५४६(#) (२) विचार संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं गुरुश्च वंदित्व), ७६५८१(+$) विजयदसमी स्तवन, मा.गु., ढा. ११, गा. ५५, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि प्रणमी), ७५९६० विजयलक्ष्मीसूरिविनति सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति प्रणमुपाया), ७५७५७-१ विजयसेठविजयासेठाणी अधिकार, मा.गु., ढा. २, गा. ३१, पद्य, श्वे., (व्रतामे चोथोव्रत मोट), ७५३४३-२(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ७६५०६-१(+$) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (सिल तणी रे महिमा), ७५१६५, ७६०४२-१ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), ७३४२८-१(-) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, स्था., (प्रथम नमु श्रीअरिहंत), ७४५२९(+६), ७६३५६(१) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ७३५८९, ७६५४५ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, म्पू., (प्रह उठी रे पंच), ७५४२०(६), ७६०२२(६) विजयसेनसूरि श्लोक, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि धु मुझ), ७६९६५-२(#) विजयसेनसूरि स्वाध्याय, मु. शिवसागर शिष्य, मा.गु., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमीअ श्रीजिनथंभण),७३४५७-१ विजयहीरसूरि सवैया, क. सोम, पुहि., सवै. १, पद्य, भूपू., (सवे मृगनैन चले गुरु), ७६२१२-१ विनय पालन सज्झाय, मु. जयजश, मा.गु., गा. १४, वि. १९१३, पद्य, श्वे., (प्रथम विनयगुण विमल), ७६३७७-३(+) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ विनयादि १०० बोल, पुहिं., गद्य, मूपू., (जीवदायमे रचियै१), ७६१५०-२ विनीत अविनीत शिष्य सज्झाय, मु. जयजश, मा.गु., गा. ११, वि. १९२५, पद्य, श्वे., (आचार्यने आगलै शिष्य), ७६३७७-४(+) विनीत अविनीत शिष्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, वे (सुखदाइ शिष्य होय), ७६३७७-६(४) विमलजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमलेसर पूजो देवा), ७५३६७-४(+) , "" विमलजिन पद, श्राव, चुन्नीदास, पुहिं, गा. ५, पद्य, श्वे. (नेक बातां के तांई), ७५१८४- ३(क) विमलजिन स्तवन, मु. मेघराज, मा.गु., गा. २४, वि. १६५०, पद्य, वे. (--), ७६४७१-२(+६) विमलजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५. वि. १७७७, पद्य, मूपू (विमल जिनेश्वर देव), ७६३६०-२ विमलमंत्रीश्वर रास, मा.गु. वि. १५५९, पद्य, वे (सरसति दई मति वागु), ७५१०५-२(+३) "" विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू., (सरसति समरूं बे करजोड), ७४५८३(+#$) विवाहपडल, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे. वै., (श्रीसदगुरु वाणी सरसत), ७७०७२ विवाहपडल भाषा, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ९४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (ए करदन करिवर वदन कदन), विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सदगुरु वाणी समरि), ७७१४२-१ (+) विविध जीव आयुष्य विचार, मा.गु, गद्य, मूपू (१२० हाथीनो आयु १२०) ७६५३९-२, ७६४९३-३(१) विविध जीवों के आयुप्रमाण, मा.गु, गद्य, भूपू (मनुक्ष १२० वर्ष हंस), ७६१६४-२ विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को. म्पू., (अशोकवृक्ष तप १ आसो), ७५१०६ (+) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ७६८४१-१(#) विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ७५४०६ (+$), ७३८१४($), ७६०८१(६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुक्खलवई विजये जयो), ७६७५१ (+#$), ७६५०३ (#$) विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ७७१३२ (+$), ७३६६२ (०३), ७६५३६ (६) वैमानिकजिन स्तवन, मु. नेमीविजय, मा.गु., ढा. ३, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (सुखदावीरे सरसह जिणंद), ७७५१७ वैराग्य निशानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (काया माया कारमी दिन), ७३९२५-२(#) ७६६३९(+#) वैराग्य पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ७३४४६ (६) वैराग्य सज्झाय, मु. जीवविजय, पुहिं. गा. ७, पद्य, मुपू. (आप स्वभाव मां रे), ७६३९०-४ वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू., (काया रे वाडी कारमी), ७७४७४-१(+), ७६५५६-२(४४) वैराग्य सज्झाय, श्राव. रामजीलाल, पुहिं., पद्य, मूपू., ( भव्य प्राणी मनुष), ७५९०८-२(#$) वैराग्य सज्झाय, शिव मा.गु., गा. २३, पद्य, वे. (परमातम प्रणमी करी), ७६१३८-१६) 3 " For Private and Personal Use Only वैराग्य सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (सखरो धर्म छै साचो), ७६५३३-२ (#) वैष्णवगुणवर्णन स्तवन, मा.गु., गा. ३५, पद्य, वै., (सांभलो स्वामि श्रीरघ) ७५९४८-२(०) व्यक्त गणधर सज्झाय, मा.गु., पद्य, वे., (व्यक्त ऋषीश्वर वांदी), ७३५६७-२(18) व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), ७६५४९ (#) व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, म्पू, (अशरणशरण भवभयहरण), ७६१७८-१, ७४९३७-१(०) व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० अज्ञा), ७३५०६-१ शकुनविचार संग्रह, मा.गु. गद्य, वे., (वार उघाड तांगि लोई), ७४७०१-१६) शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (त्रिभुवनमांहे तिरथ) ७६०१८-४१, ७७४२५-४(4), ७५५५४-२८-१ " ', शत्रुंजयतीर्थ १०८ खमासमण दहा, मु. कल्याणसागरसूरि - शिष्य, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू (श्रीआदिसर अजर अमर ), ७५१७०(+) Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५८१ शत्रंजयतीर्थ अधिकारविषये-संवेगी यति विवाद सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति माता सानिधै कह), ७३३२७-२(#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ७३७५२(+$), ७३८६४(+$), ७३५९३-१(६), ७३७३४(६), ७४७१४-१(६), ७७४१५(६) शत्रुजयतीर्थ करमूक्ति दूहा, उपा. भानुचंद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (तेरह कोडने लाखजनेओ), ७५५२३-३(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), ७३१३०-३ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला),७४२७२-२(+), ७५७१४(+#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध), ७५५१३-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ७५८५७-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ७६३१४-१(+#),७६०५३-१ शत्रुजयतीर्थ तप विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (छट्ठ ७ करवा अठम १), ७५७५५-२ शत्रुजयतीर्थ पद, मु. केशरीचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाभ नरेसर नंदजी रे), ७५५२४-२ शत्रुजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमलगिर क्युं न भए), ७४८६९-२(+) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ७४०३८(+$), ७५०१९) शत्रुजयतीर्थ यात्रा विगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदेसर बसी१ मोती), ७४८५१ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ७५९००(+), ७७४४२-१(+६), ७५८९८(#$), ७५९८५(६) शत्रुजयतीर्थ वृद्धस्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (तीरथ सेजेजेजी रहि), ७३११९-१ शत्रुजयतीर्थसंघयात्रा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (मुहूर्त लेवू ते), ७६४०७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिन विमलगिरि वरणव), ७५५०५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आंखडीयेरे में आज),७५३७२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (डुगर पोहलोरे डुंगर), ७५०३७-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ७५२६१-१(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, श्राव. ऋषभदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कयुन भये हम मोर), ७३९८८-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शेजूंजानो वासी), ७३४५४-५(१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. केसरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेजै मारग चालता), ७६३१४-४(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ७५७१०-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ७६५०९-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीया), ७४१९०-२, ७४३४७-१, ७४७१७-२, ७३४५२(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भाव धर धन्य दिन आज), ७३६८३-३(+s), ७३९८८-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण शत्रुजयगिरि), ७५३२६-२(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ७६५९०, ७७४३५(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १९४४, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उग्यो), ७७४५७-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नमो रे नमो सेजेज),७४३५५-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंथीडारे सौरठ देश), ७३७८७-२(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुगरीयानी झिणी), ७५७६९-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कोइ सिद्धगिरि राज भे), ७५६७७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (गिरिराज का परम जस), ७४१०४-२ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बापडला रे पातिकडा), ७६५१७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरु मन मोह्युरे), ७३४५४-९(३), ७५७१०-२(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो),७७१५४-३(+#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ७५५०८(+), ७४७९९($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ७३५५४-१(+), ७५१४०-१ श@जयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ७६३९८(+), ७३०६८, ७५२६८(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार माह), ७३७२६-३($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नारी नरने विनवें), ७७३६३-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ७३५२६-१(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विमलाचल सिर तिलो),७३५७७,७३८५३-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उमैया मुजने घणीजी हो), ७५२५४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (विमलाचल जइ वसीये),७५२५०-२,७६०६८-२ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसोरठदेशे सोहता), ७५०१६-८($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सुजस, मा.गु., गा.८, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (प्रगट चढे मुंरधर), ७३३२७-१(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ७३७०७-२(#), ७४३४७-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेव॒जा रलीआमणो),७६०२८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आशातनावर्जन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तीरथनी आशातना नवि), ७४७४२-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ७३८४७-२(+#), ७५९८०, ७४१००-१(६), ७६२४४($) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ७६१६३-२, ७४०८६-१(#$), ७५६५२-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), ७३६१२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नमुंगुण निर), ७५३९९-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चैत्री पूनम दिन), ७५३९९-५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जीहां ओगणेतेर कोडाको), ७५३९९-९(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रेसठलख पूरव राज), ७५३९९-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमो भवियां रिसह), ७५३९९-४(+) श@जयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वंदु सदा सेत्तुंज), ७५३९९-६(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुजयगिरि सोहे), ७५३९९-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शत्रुजय साहेब प्रथम), ७५३९९-१०(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण),७५३९९-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सवि मली करी आवो), ७५३९९-८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ७७४८६-२, ७३९९०-३(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल लीला मुनि), ७५६५२-४(#$) शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ७४७३३-१(+$), ७३९८० शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (अहि नर असुर सुरपति), ७४७३३-२(+), ७४२३१, ७४५६१-१,७६८४१-२(#), ७६८६०-१(#), ७३४४२-१(६) । शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ७४२४९-१(#) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ७६२७९-२(+), ७६३४५-४(+) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ ५८३ शांतिजिन आरती, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति तुमारी तोरा), ७४९५४-१ शांतिजिन चैत्यवंदन. उपा. क्षमाकल्याण, मा.ग..गा. ३. पद्य, मप.. (सोलमा जिनवर शांतिनाथ), ७३१३०-४ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ७३३६९(+), ७३९०८ १(+$), ७४५२१(२), ७६८९८-१(६), ७७४६९(-2) । शांतिजिन पद, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर वंदिय), ७७४९४-५(-) शांतिजिन प्रभाती, मु. गंग कवि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सुणों तमें प्राणीया), ७६४३३-१ शांतिजिन लावणी, आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ महाराज), ७५७४२-१(+) शांतिजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (छोरि षड खंड भारिचौसठ), ७४६२५-९(+$), ७४०६६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ७३५२३-५(+), ७७०७३-२(+#$), ७५४५५ शांतिजिन स्तवन, मु.खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, म्पू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ७३२३३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (शांति जिणंदने भेटीये), ७३०८३-१ शांतिजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम मूरति मोहन वेलडी), ७५६७९-३ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ७४००५-३(#) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संत दंत कंत सोहे), ७४६३४-१७ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (गुण सेवीयइजी करुणा), ७७३६०-१(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. जुगतिरंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमु प्रभु), ७३२२९-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), ७६१३८-२(-$) शांतिजिन स्तवन, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. ३२, वि. १६६०, पद्य, मूपू., (शारदमात मया करोए), ७६५२१(+#) शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर प्रणमु), ७३८२०-६, ७३४५०-४(#S) शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दउद्र हरिदीपे जोता), ७६०२८-२ शांतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर अलवेसर), ७६०३६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. भवानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी शांतिजिणंदा), ७३५२३-८(+) शांतिजिन स्तवन, वा. मेघविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (शांति करो जिन सांतजी), ७३०७०-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशांति नमु सदा), ७६१५६-१ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिजिन एक मुज विनत), ७४५९४-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ७५१४६-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग),७३७३१-३(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ७३७४८-५(#) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तुं), ७५४३४-१(+$) शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मी, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (फाग खेलत है फूलबाग), ७६३५९-४ शांतिजिन स्तवन, श्राव. लाधा शाह, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (शांति करि० शांति), ७३१७९-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, मपू., (मिलि आवोरे मिलि आवो), ७२९५०-४(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. श्रीमल्ल-शिष्य, मा.गु., ढा. ३, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (प्रणमीय पासजिन सिवसु),७६५७०-१ शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (सोलमा जीनजी शांतिनाथ), ७५४३४-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. सूरचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (संति जिणेसर सेवीयइ), ७५९१४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु.,गा. २९, पद्य, मूपू., (शांतिजिन सोलमा),७६४८८-४(+),७६५७१-१ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (त्रिभुवनतारणतीरथवंदो), ७५०५८-५($) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (शांतिजिणंदनी सेवा), ७४००१-२ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (शांति जिनेसर साहिबा), ७६२०४(2) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू (शांतिनाथ जिन सोलमा ), ७७४८१ (+) शांतिजिन स्तवन- कलकत्तामंडन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( कलकत्तैपुर दीठा रे), ७६३१५-२ (+) शांतिजिन स्तवन- गुणस्थानकगभिंत, मु. शिवरत्न, मा.गु. डा. ८, गा. ९४, पद्य, मूपू. (सकल मंगल करण सवा), ७५९४८-१(०) शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., अरचित जग ७४७४८- १(०६) (शांतिजिणेसर 19 शांतिजिन स्तुति, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( सांतिकरण श्रीशांति), ७२९१४-२(१) शारदामाता छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सकल वचन समता मन आणी), ७६१०१ (#$) शारदाष्टक, जै. क. बनारसीदास पुहिं. गा. १०. वि. १७वी, पद्य, दि., ( नमो केवल रुप भगवान), ७५९३१-४(३) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरियै ), ७४२७८ (+$), ७४९५५ (+$), ७५०४५ (+), ७४१८१ ($), ७७४३०-२ ($), ७५००६ (-$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीनें), ७५११९(#$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( प्रथम गोवाल तणे भवे), ७५०३७-३(+), ७६६५२ (+), ७४३४१, ७५८७७-१, ७५४०७/०३) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालिया तणे), ७६२०५($) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (-), ७३७६८-१(३) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (राजगृहीय नयरीए वणजार), ७५८६२(#) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, म्पू. (--), ७३६७८(+४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाश्वत अशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मृपू., (कोडी सातने लाख बहोतर), ७४७५८-१६०) शाश्वतअशाश्वतजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीनचौवीसी बहोत्तरी), ७५०८७-३ शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पय नमि), ७२८७५-२ शाश्वत जनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ७३४५९-३(#$) शाश्वत जनविवसंख्या विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (पहिले त्रि छेलो किं), ७३६५६ (०३) יי शाश्वतजिन स्तुति, पन्या, पद्मविजय, मा.गु., गा. ४. वि. १९वी पद्य, मूपू (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ७४७५८-२ (०) शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ७६१६९(+) शाखिय संगीत राग गान समय-प्रहरबद्ध, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पासजिणंदके), ७६११७-१(a) शास्वतजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४३८७(+$) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ७७०१२-२०१ शीतलजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु. गा. ६, पद्य, भूपू (श्रीसतल जीनदेव नीरजा), ७४६३४-१० , शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रामानंदन पाप निकंदन), ७३६४६-३(#) शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिनवर आगलै हु), ७३५९६-२ (+), ७३९६५-२($) शीतलजिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सांभलओ सीतल कर मयाजी), ७३९५४(#) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ७६५२९-१(+) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ७३४७९-७(१) शीतलजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपु (सकल सुरासुर सेवित पा), ७३१४७ ७ शीतलजिन स्तवन, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (शीतलजिनवर सेविये), ७६२२५-१ + शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ७४६३४-१४, ७३६४२-१($) शीतलजिन स्तवन- उदयपुरमंडन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, नमो सामि सीतल नमो), ७३९०८-२(१) शीयल कडा, मा.गु., रा., गा. १६, पद्य, श्वे., ( धर्मनां छे अनेक प्रक), ७५३०० (+), ७४५५१-१, ७६६०० शील रास, मा.गु., गा. २४, पद्य, वे, (अरहंतदेव मे ध्याउ), ७६५३१ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (चोविसे जिन आगमे रे),७६४२५ शीयल सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेसर पासना), ७३१४०-२ शीलपच्चीसी, मु. कृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (--), ७७२६१-१(+$) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ७३६३४(+$), ७४१३१(+$), ७४३५६(+$), ७५१८१(#S), ७३३२२(७), ७४४४७($) शीलमहिमा पद, मु. बनारसी, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (कुशील प्रभाव से सब), ७६२२९-२(-) शीलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली सुद्धमन सील),७५७१९-२(#) शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली उपमा ग्रह), ७५७१९-१(#) शीलोपदेश सज्झाय, क. जैत, पुहि., गा. २५, पद्य, मूपू., (अरिहंत देव धर्म पाउं),७५८७८(+-) शुकराज रास, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४५३६(+$) शुक्लपक्षकृष्णपक्षतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासयने असासय चैत्यतण), ७३७५५-२ शुद्धात्म स्वरूप, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (चेतनरूप अरूप अमूरति), ७४६२५-४(+) शृंगाररस सवैया, क. चंद, पुहि., दोहा. १, पद्य, (तेरो मुख्य जिसो आली), ७३९६२-५ शृंगाररस सवैया, मोहन, पुहि., दोहा. १, पद्य, (चंदविदन माहामृगलोचनी), ७३५३१-३ श्रद्धा ढाल, मा.गु., पद्य, श्वे., (चेत चतुरनर कहै तेरे), ७६५२८(+$) । श्रद्धामंडण, मु. रत्नविजय, पुहि., प्रश्न. ११, वि. १९०६, प+ग., मूपू., (सर्वज्ञ कुं प्रणमु), ७४३३४(-$) श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), ७४८५०-१(#) श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रतिमा मास १),७४८४६-२ श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू, (प्राणातिपात अतिचार), ७४९७१-१(+#$) श्रावक १२ व्रतविवरण सज्जाय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीदेवगुरुधर्मना), ७३८७५ (5) श्रावक १५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलइ बोलइ मधुर वचन), ७३३२३-३ श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म रत्ने व्यवहारे), ७३३२३-२ श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ७३५५३-२(+) श्रावक २१ गुण सज्झाय, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सांभलजो सज्जन गुणवंत), ७६०६३ श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ७३४३४, ७४४९२ श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकने सकल पातक), ७५१३८(+$) । श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावहि पडकमी),७५६०९-१ श्रावकउपमा वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (ओसवसे वृद्धशाखायां),७३२५९ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ७६४४२(+), ७४९७४-१, ७३०९७-१(#), ७६५८६-१(#), ७२९५५-२(६), ७५२५५-२($) श्रावक कर्त्तव्य बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७४७०९(5) श्रावकक्रिया कुलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तित्थंकर चउवीस जिण), ७६४६२-२ श्रावकगुण चाबखो, मु.खोडाजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (एक एक श्रावक छे जग), ७५२९७-१ श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ७७३२४(+) श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीज्ञाननइ विषैइ), ७३२९१(+#), ७४०७०(5) श्रावकप्रतिमा सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सातमै अंगे भाखीओ जी), ७६४५४-४(#$) श्रावक बारहव्रत, मा.गु., ढा. ११, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (पांच अणुव्रत परवरया),७६००९(+) श्रावक विधि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), ७५९०१ श्रावकाचार सज्झाय, रा., ढा. २, गा. १७३, पद्य, मूपू., (भगवंते धर्म भाखीयो), ७३०२५(#) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्रावकोपदेश सज्झाय, मु. खोडीदास, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (फोगट सरावग नाम धरावे), ७५२९७-२ श्रीचंद चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीतिलकराय कुंयरी), ७४०६८(६) श्रीपालमयणा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७७३३९(+#$) श्रीपालराजा चरित्र *,मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७५०६६(+$) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल कवियण तणी),७४७२८(+६), ७७१६९,७६५३४(#$),७४११७६),७४५७७(६),७४५८४(६),७४८०७($), ७५०४४(६), ७५२२४(६), ७५३३४(६), ७५५४९(5) । (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, य. धर्मविलास, मा.गु., वि. १९०७, गद्य, मूपू., (--), ७४७२८(+$) श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), ७५११७-४ श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., गा. ५६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (ॐ ॐकार अपार पार न), ७४१७५(६) श्रुतपद स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुतपद नमिया भावे), ७५४१३-२ श्रुतसागर गीत, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सरसति सुभमति आपो), ७५२५१-३ श्रेणिकराजा चौपाई, मु. फतेहसुंदर, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४३५३-१(६) श्रेणिकराजा रास, मु. फतेविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४८२७(#$) श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (महेंतो श्रेणक राजा), ७४०७७-२ श्रेयांसजिन पद, आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (विष्णुनंद आनंद के),७५७४२-५ (+) श्रेयांसजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सूरति जोतां श्रेयांस), ७३१५४-१(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समिहित दायक सुरमणि), ७४०५८-२ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. मुनिसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिनेसरू), ७३६०१-१ श्रोतालक्षण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१६ बोलना जाण होइ), ७५६७५-५(+) श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सासउसास थाय एक मुहुर), ७३०१२-२(+$) श्वेतांबर दिगंबर ८४भेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१केवलीने आहार माने), ७४८०२-४(+) षड्दर्शन विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नांमबौध १ नैयायिक २), ७६१८३($) षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिणाम जीवमुत्तं सपए),७६१५०-३ षड्द्रव्य स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहीलों जीवद्रव्य), ७६०७९-१(+) षष्ठीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (शिवगामी स्वामी सदा), ७४१०६-४($) संगतप्रभाव कुंडलिया, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (हंस गये सारस गहे गहे), ७६३५४-१ संजतीनृप सज्झाय, मु. वर्द्धमान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कपीलपुर राजीओ नृप), ७४०६७-३(#) संथाराविधि सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेश्वर पाइ), ७६०५९ संबोधसत्तरि दोहरा, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. ९७, पद्य, मूपू., (परमपुरुष पद मन धरी), ७६२४३-१ संभवजिन पद, आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (संभव जिनजी से प्रीत), ७५७४२-९(+) संभवजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वांके गढ फोज चलि), ७३७४८-२(#) संभवजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (भवियण त्रिजा जिनतणी), ७३०३२-१(+) संभवजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज उमाहो अति घणो हो), ७४७४९-२ संभवजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (हारे प्रभु संभव), ७३६४६-१(#) संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर वीनती), ७४०९३-१ संभवजिन स्तवन, मु. गांगा, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (संभव जीनवर रुपे रुडा), ७६४८५-२ संभवजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवज्यो रे सखी जिनरा), ७३६०८-२ संभवजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो विनति), ७३११७-३($) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्यु), ७३६०३-२, ७४००५-१(#) संभवजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (शंभव साहिब सेवियई), ७५३८७-४(+$) संयमअनुमति सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (माता अनुमत दे अणीवार), ७३५०४-२ संयमशृंगार सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (संवररो सिणगार धर्म), ७४७९२-४(+) संवत्सरी ढाल, मा.गु., गा. २७, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (संवच्छरी पडिक्कमीया), ७५१८८(+) संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकला० स्नातस्या०), ७५८८०(+) संवर चौपाई, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदू गिरुआ देव सुपास), ७३२८७ । संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने), ७६३७८-१(+), ७७४८७-२(+) सकलमंडलीक कवित्त, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीसकोड वासण), ७३३५४-१(+) सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २९, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ७६२१३($), ७६४३६-१(६) सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ७३१०६(६) सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी),७६५०७-१ सज्जनसंदेस, श्राव. जीवराज, मा.गु., गा. ६१, पद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीजिनपय), ७७४३६(#) सती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसत सामण सहीयां), ७३५४०-१ सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (समरी सरसति भगवति), ७६०१२(+) सदगुरु पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सदगुरु ने पकडी बांह), ७३०४६-२ सनतकुमार सज्झाय, मु. जैमलजी ऋषि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (--), ७४०८२-३(+$) सनतकुमार सज्झाय, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (विनवै सुनंदा राणी), ७३२५१-२(+) सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुखदायक सासणधणी तिभु), ७५५८३(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ७४६३४-८, ७३४८४-१(#) सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुल), ७५२९१-२(+) सभाशृंगार, मा.गु., गद्य, श्वे., (केलि कदंब नाग नारंग), ७६००५-१(+) समकित पालन सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (देवतणौ आचार न जाणै), ७६५३३-१(#) समकित विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (हिवै समकितना ६), ७६१२८(+$) समकित स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (हिवइ समकित पांच ती), ७५००३-२(+) समता सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (समता रस पावै सोई), ७३४८६-१(+) समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (देवतणा आसण चलइए सुर), ७५७४५(+#), ७५९५९-१ समवसरण स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी गुरु चरणांबुज), ७६१९९(+) समवसरण स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आज गइती हुं समवसरणमा), ७५३०९-२ समस्या पद, पुहिं., गा.८, पद्य, जै.?, (जिण में फाडि सो में), ७४८२६-४(#) समाधिमरण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र साधविने),७५५०१ समुद्रपाल रास, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर आदि), ७४४९५(5) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूरव दिसे दीपतो), ७४७५४-३(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कीयौ आज सीखरगीर), ७३१३५-९,७६१०५-४, ७३४३६-७),७५५४३ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १०, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (तोह नमो तोह नमो समेत), ७३४७३-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. कांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (युगल्याम धर्म), ७६२७९-३(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हुं तो जाउं रे सिखर), ७६४०४-३ सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकितनी चारिसदहण कही), ७३४७७(5) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ७५५४६(+#), ७५०३५ ($), ७६२९५(६) सम्यक्त्व ६ स्थानकबोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (छ विह जयणाना धर्म), ७६००५-६(+) सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणइन आदरइन पालइ),७७४२५-१(#) सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (समकीत माहे दीढ रह्या),७३५००(#),७४८१५-२($) सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (इम समकित मन थिर करो), ७३६४१(६) सम्यक्त्व विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म मैन संसै शुभ),७४८०२-६(+) सम्यक्त्वसार चर्चा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिणमार्ग में कह्यौ), ७६०९४ सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), ७५९३१-२ सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ७५८६०-२,७६३०७-१(#) सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ७३८८२(#),७४५९४-२(#), ७७१०८(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ७३३७१, ७४२८०, ७५२३८-१, ७६२३२(#), ७६२१६($), ७७२६९-१(६) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ७७४०३(+$) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरण), ७३८७८-१(+#), ७६११३-२(+) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), ७५४४९(+#), ७७२६५ सर्वजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमु), ७५९०५-२ सर्वजीव में जोग उपयोग, मा.गु., यं., मूपू., (--), ७६१६७-२(#) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ७५१३७(+), ७३८२१-३ सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (इण सवारथ सिधरे चंद्र), ७७०१२-१(#) सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरवारथ सिद्ध चंद्रुइ), ७४४५२ सवैया संग्रह, पुहि., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख),७५२६३-३ साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही बे), ७६७०५-३($) साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ७४४८३ साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (आरती श्रीजिनराज), ७३०६३ साधारणजिन आरती, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जय जय जिनेसर जगनायक),७५४१६(+) साधारणजिन कल्याणक स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (देवो पुण्यनिधान), ७७४२४-१ साधारणजिन गीत, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ७३०६७-३ साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव), ७५७६५-३(+) साधारणजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू., (अत्रांतरे प्रथम छपन), ७६५२३($) साधारणजिन दहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (गयणं गण कालग करु), ७४८३५-२ साधारणजिन पद, आ. अमृतचंदसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सखी री बोधिसुरंग), ७५७४२-३(+) साधारणजिन पद, मु. करण, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (अरी मेरी अखीयन हरख), ७६३१२-१(+) साधारणजिन पद, मु.खुशालराय, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (मेरा जीवडा लग्या), ७३९८८-१(+) साधारणजिन पद, श्राव. चुन्नीदास, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (जिनंद की मै वारी छवि),७५१८४-२(#) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (रे मन गाय ले रे मन), ७५२४७-४ साधारणजिन पद, मु. नेमहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पायो पायोरी तुम्ह दर), ७३२२९-५ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ , साधारणजिन पद, मु. फतेचंद पंडित, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (मने रुडो लागे छैजी), ७३१३५-६ साधारणजिन पद, आ. ब्रह्मदेव, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तेरे दर्शन कूं मे तो), ७५२४७-२ साधारणजिन पद, मु. भानुचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (बहोत रोज से जस्ते), ७३०६७-२ साधारणजिन पद, मु. भानु, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू (मीलनो जगजोर कठीन है), ७३३२९-२ (+४) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालो री सखी प्रभु), ७३१३५-५ साधारण जिन पद, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मृपू., ( उमंग भई दरशण की मन), ७५७४२-८(+) साधारणजिन पद, मु. रामदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नयना सफल भए प्रभु), ७५५४३-१०(#) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (देख्या दरसण तिहारा), ७६१३८-४) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे अब), ७४१६१-५ साधारणजिन पद, पुहिं. गा. २, पद्य, श्वे. (इन में तुल तिलाधन), ७६३१२-२(+) साधारणजिन पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू (कैसो सास कोवे सास), ७४४४५-२ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चालो मन मित्त), ७३७६४-३ साधारणजिन पद, पुहिं. गा. ५, पद्य, श्वे. (छिन छिन कर प्रभु), ७६१३८-६) " " " "" साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (टुक सुनीयो नाथ), ७३१३५-३ साधारणजिन पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, मृपू., (पायो दरसण जिणराजरो), ७६३१२-३(+) साधारणजिन पद पु,ि गा. ३, पद्य, वे (सुनो अविनासि साहिब), ७३२२५-४०) साधारणजिन सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (परमपुरुष परमेसर), ७४६२५-१(+) साधारणजिन स्तवन, मु. अजित, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगपती करजो सहाय मारी), ७५४०२-१ साधारणजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (भगवान दया के सागर हम ), ७४००३ -१० साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानज्योत, पुहिं, गा. ६, पद्य, मूपु. ( खतरा दूर करणा दूर), ७३१३५-२ " साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनमां आवजो रे नाथ), ७५०५८-४ साधारणजिन स्तवन, मु. देवब्रह्म, मा.गु, गा. ८, पद्य, वे (--), ७३०९५-२(३) साधारणजिन स्तवन, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (प्रभु तुम कहीइंत दीन), ७५२४७-३ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति रस पीजो रे नर), ७६५५८-२ साधारणजिन स्तवन, मु. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सदा भेटिए भावस्युं), ७७२३३-२ (+) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जै जै परमेश्वर प्रेम), ७३०५९-१ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (देखो रे जिणंदा), ७४९४१-१ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली वन), ७४६९३-२(s) साधारणजिन स्तवन - औपदेशिक, आ. लब्धिसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरी अरजी उपर प्रभु), ७४००३-४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन स्तवन- कल्याणक, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४३१५ (+#$) साधारणजिन स्तवन- जीवभवभ्रमण गर्भित, मा.गु., पद्य, श्वे., (सांभल साहिब विनती एक), ७६३१० ($) साधारणजिन स्तवन- मकसूदावादमंडन, पं. शांति, मा.गु., गा. ८, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (दरशण दुरगति टाली), ७६९५८(+) साधारणजिन स्तवन- वटप्रदनगरवर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४९७९ (+$) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ७३०५५-३ (+), ७७२८०-२(+), ७३२०८ १, ७३९९०-५(#), ७३९६५- १($) साधारण जिन स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (छत्र अब चामर तरु), ७४९९२-४ **३), ७७३९१-१ त्रय साधु २७ गुण सज्झाय, पंडित मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू, (श्रीअरिहंत मुखकमल), ७३४०१ (१) साधु आचार सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, भूपू (सुपति गुपति सुधीधरो), ७३६०७-१(5) साधु आचार सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४५, पद्य, खे, (--), ७६१२५ () For Private and Personal Use Only ५८९ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९० साधु आचार सज्झाय, मा.गु., गा. ६३, वि. १८६३, पद्य, भूपू (श्रीवीर नमु वर्धमान), ७५३६५ (+) साधु आचार सज्झाय, रा., पद्य, थे., (), ७३५२९ (६) " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुगुण गहुली, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर विचरता जी), ७३३३७-१ साधुगुण पद, क. राजोदास, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (साधु नहीं होता तो ), ७४४९९-२(#) साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु. गा. १५, पद्य, वे. (सकल देव जिनवर अरिहंत), ७४४२२-२५), ७७४३१.१(०४) " " साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचेइंद्री रे अहनिस), ७६०६७-१ (+) साधुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., ( कवरा साधतणो आचार), ७३५०४-१ साधुपद सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु.. गा. १२, पद्य, भूपू (पंचोई इंद्रीजि अहो), ७३५६५-२ साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, भूपू (ज्ञानना अतिचार कह), ७६२२४-१(३) "" ', साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., डा. ७. गा. ८८, पद्य, मृपू. (रिसहजिण पमुह चउवीस), ७६१२३ (+३), ७३६४५ (३), ७४२२४(१(३) 7 साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), ७३७७४-१(+) साधुवंदना, मु. भिक्षु ऋषि, रा. डा. २ गा. ३९, पद्य, थे. (जिणमार्ग में धूरसुं), ७६५२७(+) साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), ७५४४१(+) " साधुवंदना चौपाई चौवीसजिन, ऋ. कुंवरजी, मा.गु., गा. २४६, वि. १६२४, पद्य, स्था. (त्रिभुवनमाहि तिलक), ७३६६९(+३) साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था. ( नमुं अनंत चोवीसी), ७५१८२(+४), ७२९६४(१६), ७६४३१-१ ($) साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु. गा. ५९. वि. १८०७, पद्य, श्वे. (नमुं अनंत चोविसी), ७३२४५ (+), ७५८८४(क) साधुसंगति पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतम परमातम पद पावे), ७४१८४-३ साधुसाध्वी कल्प ढाल, मु. नाथजी, मा.गु., वि. १८४२, पद्य, श्वे., (पाप अढारे कह्या अति), ७५२५२ साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु. गद्य, मूपू., (प्रथम स्नान कराव), ७६१७७ साधु स्तवन, पुर्हि, गा. १२, पद्य, भूपू (सुख से ज्यां सुली धन), ७४४९९-१(०) " साधुस्तुति सवैया, जै.. बनारसीदास पुटिं पद. २. वि. १७वी, पद्य, दि. (ग्यान्न को उजागर), ७४६२५-५(+), ७४०६६-४ " " सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जिनवरना प्रणमुं पाय), ७३४८४-३(#$) सामायिक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु.. गा. १८, पद्य, श्वे. (दोषण टालेने करो रे), ७४९४०-१ ', सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय - शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ७३४८२ -१, ७३५४७(#) " सामायिक सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनसारद सद्गुरु), ७५७१३(+) सासुवहु चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४८, पद्य, श्वे. (श्रीअरिहंतदेव तेहनो), ७५२९९ (+) सासु सामायक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (परबात उठ सासु परकुण), ७३२४९-५(#) सिंहकुमार रत्नवती रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७७०२९(+४४) सिद्धचक्र गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे महारे जिनआणा), ७४११५-२($) " सिद्धचक्र चैत्यवंदन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (केवलकमलापति विश्वधणी) ७२९४१-१ (+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदायक श्रीसिद्धचक), ७४२०५-४(+#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधीए), ७५७५६-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र), ७३२३७-३(+) " सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (पहेले दिन अरिहंतनुं), ७३२३७-१(ख) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ७५३६० सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ७३१५२ सिद्धचक्र नमस्कार, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (एह अनुभव धरो मनमाही), ७४२०५-८(+#) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ (नवपदनो ए सिद्धचक्र), ७४२०५-५ (०) , सिद्धचक्र नमस्कार, मु. ज्ञानविमल, मा.गु. गा. १, पच, भूपू सिद्धचक्र नमस्कार, मु, ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू " (सकल कुशल अनुबंधि), ७४२०५-६ (+०) "" सिद्धचक्र नमस्कार, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशल लीलावती), ७४२०५-७ (+) सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. नयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सेवो सदा), ७६४१६-१(+) सिद्धचक्र पद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू (नवपद ध्यान धरो रे), ७४२३४-२ "3 सिद्धचक्र पूजन, पुहिं., प+ग. दि. ? (--), ७५५२१(४) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ७७४४३-२(+), ७६३९३-२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६६७१-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ७६७५९-१ " सिद्धचक्र स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु गा. ५, पद्य, म्पू, (अवसर पांमीने रे), ७७४६५ (०४) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणि हो के कहे), ७७४४३-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ७७४४३-३(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आराहो प्राणी साची नव), ७७४४३-७(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (गौतम पूछत श्रीजिनभाष), ७७४४३-८(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सांभलो), ७७४४३-९(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भवियां श्रीसिधचक्र), ७७४४३-५(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ७७४४३-६(+) सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (श्रीजयति तीरथपति), ७६४४५-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ७४६५२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ७४८७७(#) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (सुखकर सेवो हो भविका), ७६२५६-३(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. अमृत, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (श्रीसिद्धचक्र आराधो), ७५९१५-२ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ७३०५५-१(+) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंडित पुरषोत्तम), ७२९४१-२(+#) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, भूपू (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ७६०१८-२० सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू (निरुपम सुखदायक), ७४०९६-१(०३), ७५५०३-२ , (सकल सुरासुर नर), ७४२०५-२(+०) (सिद्धचक्र सदा आराधीइ), ७४२०५-३ (+४) सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अति अलवेसर), ७७४८६-४, ७६०३५-१(#), ७६४५४-३ (#) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. नयविजय, मा.गु. गा. १, पद्य, मूपू., (सेवो भविअण सिद्धचक्र), ७६४१६-२(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधो साधो), ७५७९४-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू (सिद्धचक्र सेवो), ७६१६३-१(३) " सिद्धचक्र स्तुति, आ. हंससूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( अनुपम गुणआगर सुखसागर), ७३३५८-१ सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या पद्मविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ७६३५३ सिद्धपद सज्झाय, मु. अभयराज, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धनइ करुं), ७६१७५-३ , सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ७५३५८, ७५७१६, ७७४९१ सिद्धपद स्तवन, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (श्रीसिद्धपद आराधि), ७५७५७-२ सिद्धस्वरूप स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे भव अटवीओ), ७३५२३-३(+) सिद्धांत मतांतर बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (केतक सिद्धांते इम), ७२८७६-१ For Private and Personal Use Only ५९१ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ७४०९९(+9), ७३४५९-१(#$) सिद्धार्थ राजा पुत्र महोत्सव, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७४९८६(+#$) । सिद्धार्थराजा भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवे मांड्यो उत्तंग),७७१८६ सीतासती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजोध्या नगरीने विषे),७३५९१-४(+$) सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ६, गा. ९३, पद्य, मूपू., (सती न सीता सारिखी), ७६०९५(#) सीतासती गीत, मु. कवियण, मा.गु., गा. ९, पद्य, जै., (कह्यो मानो माहरां),७६१३४-१ सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ७३५७६-३(+), ७४९४५-१(+) सीतासती पद, पंडित. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, वै., (मेगनाथ माता कन आय), ७३२४४-३(#$) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ७५७३०-४(+) सीतासती सज्झाय, मु. जसकीरत, पुहि., गा.६६, वि. १९२१, पद्य, पू., (--),७४१४०-१(#$) सीतासती सज्झाय, मु. मतिसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (दशरथ नरवर राजीयो), ७६६२८(+) सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (सीताजी मोटी सती रे),७५२७५-१(+) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ७३७२६-१, ७३१३३-१(#) सीमंधरजिन कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (वालो मारो श्रीमंधर), ७३१८१ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जिणवर विहरमाण), ७४७५४-२(+#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमु), ७५०३७-६(+$) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीमंधर की सरस सलूणी), ७४२४४-३(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सीमधर परमातमा शिव),७५७६५-१(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवरा), ७५५१३-२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ७३२३७-४(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (शत्रुमित्र समचित्त), ७४१६३-१(+) सीमंधरजिन दूहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीशी जिन नमु), ७६३१४-३(+#) सीमंधरजिन नमस्कार, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वहरमान जिन वीसमा),७४६३६-२ सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), ७६४२८ सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुण सीमंधर साहिबाजी),७५०१२(१) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ७४६१०-२(+$), ७३६४२-२, ७६४६७, ७३५०७(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ७३७६२(5) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ७५१७५-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु., गा. ८, पद्य, स्था., (वासी मे माहादेवदेवक), ७३५८५-१(+-) सीमंधरजिन स्तवन, मु.कुसालचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (हारेकाइ),७३५८५-३(+-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. केशरीचंद, पुहि.,मा.गु., गा.६, पद्य, श्वे., (चंदा एक संदेशो अमचो),७५५२४-१ सीमंधरजिन स्तवन, ग. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनवर देव), ७६२८७(+-#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर सामिया जग), ७५९९१-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रभुनाथजी), ७५९९१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सीमंधर युगसामिया), ७५९९१-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन), ७५५२०-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीसीमंधर साहिबा),७४२४४-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (पुखलावती विजय पूर्व), ७३४८०(2) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (तारी मुद्राए मन मोह्), ७४१०४-३($) सीमंधरजिन स्तवन, ग. तेजसिंघ, मा.गु., गा.१०, वि. १७४८, पद्य, श्वे., (चोवीसजिन शासनराया), ७७०२६-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ७४३३२-१(+$) सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ७३५५४-४(+$), ७५०२०-२(+$), ७६३८४(+), ७६४०४-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर सांभलो रे),७६३१६-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. मानसिंह, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंडित सोही जाणिए),७५९९१-४ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ७४००३-३, ७५७२४ ३,७६०२५-३ सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर साहिबा हु), ७६७२५(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. वसंत, मा.गु., गा.८, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनराज), ७६३०२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ७५०५१(६) सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सकल गुणराशि जिनराज),७५०३८($) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सीध ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीसीमधरस्वामी दीप), ७३४८८ सीमंधरजिन स्तवन, मु.सुजशविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (धन्य ते मुनिवरा रे),७४८३१(#$) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उगोजी), ७५१७२-२(+$) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (पढा सो पंडित नहीं), ७५९९१-५($) सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पूरव पुष्कलावती हो), ७४६५९-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., वि. १८९४, पद्य, श्वे., (श्रीसीमधरसामजी महा), ७६३८६-२($) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सहज विलासी सुदरुं), ७३०७५-२(#$) सीमंधरजिन स्तवन-तकारबद्ध अरजी, मु. केसर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारे दीजिईरे), ७५८९२(+) (२) सीमंधरजिन स्तवन-तकारबद्ध अरजी-टबार्थ, मु. केसर, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्यारे नाम वाह्नेश्व), ७५८९२(+) सीमंधरजिन स्तवन-वीनती, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (इणइ जंबुद्वीपमै जिन), ७५५५५ सीमंधरजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनपति विनति), ७४१६३-२(+) सीमंधरजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनसुध वंदो भावै भवि), ७४२४४-१(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु.शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुझनै), ७५९१०-१, ७३९९०-४(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (पूरव दिशि इशान कुण), ७३५७५-२(#$) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (नाण दिवायर वीतराग),७३२२४-२($) सुकाल दुष्काल शुकुन विचार, रा., गद्य, मूपू., (कारण पाखै देहरौ पडै), ७३२८१-१ सुखदेव सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., वै., (स्वर्ग थकी अवतों), ७६१२६-२(+) सुखराजकुंवर चौपाई, मु. हेम, मा.गु., ढा. १४, वि. १८७६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिजिणेसर आदि), ७५२०८(+) सुगुरुकुगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (दावानल लाघा इधक), ७५२९६(+$) सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ७६२७० सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. ब्रह्म ऋषि, मा.गु., ढा. ३७, गा. ८३९, पद्य, श्वे., (श्रीजिणचरण प्रणीमइ), ७५४८२($) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सारद समरु मनरली सुगु), ७३७४५-२(+$) सुदर्शनसेठ सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. १८, वि. १७५६, पद्य, श्वे., (सुंदर नयरी सुगंधीआ),७२९८२(#) सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, पद्य, मूपू., (संयमीधीर सुगुरुपय), ७५८९९(#) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ सुपांतर सवैया, मु. नंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, खे, (श्रीसिद्धारथ कुल), ७५२४९-१(०४) सुपार्श्वजिन पद, मु. जुठा, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुपारस भगवान सुमत), ७५४९९-२(+) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हा मेह बबीयडा), ७५९५८-३ सुपार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सातमा सामि सुपास के), ७५२४२-२ सुबाहुजिन पद, आ. अमृतचंदसूरि, पुहिं., गा. सुभद्रासती चौढालीयो, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., सुमतिकुमतिपरिवार सज्झाय, मा.गु, पद्य, वे सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं, गा. सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहुकुमार एम), ७५७९१(+) ३, पद्य, मूपू., (सुबाहु जिणंद पद), ७५७४२-४(+) (साचे मन सील पालीयो), ७५२७४ (--), ७४२२७/३) "" ४, पद्य, भूपू (हां रे तुं कुमति), ७६५०१-३(*) " सुमतिजिन गीत- समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज हुं गइती रे समवसर), ७६०२५-१(४) सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू, (निरखत बदन सुख पायो), ७६६६०- १(५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुमतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (श्रीसुमति जिनेसर), ७६०३६-१ सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू. (सुमतिजिणंद सुमति), ७४३०२, ७६४७४(१६), ७३१२२(६) י सुमतिजिन स्तवन- उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी, ७६०२०-१(+-#) सुमतिजिन स्तवन- मातर, सा. जडावश्रीजी, मा.गु., गा. ९, वि. १९१८, पद्य, मूपू., (साचा देव सोहामणा रे), ७६१७२(+) सुमतिसागरसूरि रास, भोजिग, रा. गा. ३४, वि. १७५३, पद्य, म्पू, (अब म्हारी कड्यां रे), ७५५३४-१(+) " सुरपति चौपाई - दानविषये, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., डा. ९, वि. १९७७, पद्य, स्था., (--), ७४३०३(+६) सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ७५२०७(+$), ७३७४२(३) सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., डा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, म्पू., ( आदि धरमने करवा ए भौम), ७५१२७(AS) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ३, पद्य, मृपू. (मुजरा साहिब मेरा रे), ७३२१६-३, ७३४५४-७(१) सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी अजबशी योगनी मु), ७३६४६ -२ (#) सुविधिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुने कोई सुविधि), ७४३३२-५ (+) सूक्ष्मनिगोद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदराजलोकने विषें), ७६५७६-१ सूतक विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (पुत्र जन्म्यां १०), ७५१३२-१ " सूतक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( जेहने गृह मध्ये जन्म), ७५३७५-१(+) सूरप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सूरप्रभु अवधारौ), ७५५१९ सूर्यचंद्र अंतर विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (मध्य मांडलाने विषई), ७७५११-१(+) सूर्य सलोको, मा.गु., गा. १७, पद्य, थे. (सरसति सामणि करोने), ७३०१७-१(२) सूर्याभविमान विस्तार, मा.गु., गद्य, मूपु. ( साहाबारे लाख जोजननी), ७३२४६-१(+) सोरठ व्यवहार सवैया, पुहिं, सबै ३, पद्य, वै., (जुंबेडेवा सादडेवा), ७६२०८-२०१ सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपु. ( भव्यरासाद्यते लक्ष), ७४८०५-१९०६) " सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., डा. ५. गा. ७५. ग्रं. ११० वि. १७५८, पद्य, भूपू (श्रीगुरु चरणे नमी), ७४५७१($), ७४६३१ ($), ७५२१६ ($) स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ७३७३८ (5) स्तवनचीवीसी, मु. उदवरत्न, मा.गु. स्त. २४ वि. १८वी, पद्य, मूपू (मरुदेवीनो नंद माहरो ), ७६४१९, ७४७२७(१), ७३०७६(४) " स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), ७५४९७ (+), ७४२८९(#$) स्तवनचीवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदिकरण अरिहंतजी ओलगड), ७३७९४(+), ७५०४८ (+$) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१८ स्तवनचौवीसी, मु. दानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (-), ७३७६५ (+) स्तवनचीवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु. स्त. २४ वि. १७७६, पद्य, मूपू (ऋषभ जिनिंदसु प्रीतडी), ७५५४८ (5) 3 स्तवनचौवीसी, मु. भाण, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (--), ७४७६१($) स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ७४१०२(+३), ७४५३८+६) १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनचीवीसी, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, मूपू (-), ७४३०९ (+३) "" स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., ( प्रथम तीर्थंकर सेवना), ७३५८४ ($) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., अ. २४ स्तवन, गा. ८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), ७४८०३(०३) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू. (ऋषभदेव सुखकारी जगत), ७२९५१) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ७४३५७ (+#$), ७४१५३(०३), ७६५९१(०३), ७२९७७ (३), ७३४१९(३) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ७४५३९(३), ७५०८८($) स्तवनचौवीसी, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, म्पू. (-), ७६३९५ (०३) स्तवन चौवीसी, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु स्त. २४, पद्य, भूपू (श्रुतदेवी समरी करी), ७४८७२ (+०३) " स्तवनचीवीसी - १४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नितु बंदिये), ७४८०१ (+०६), ७५७११(5) स्त्रीचरित्र चौडालिया, श्राव. हीराचंद, रा. डा. ४, वि. १८३६, पद्य, मूपू. (लख चोरासी मे भटकर), ७६२०६ (३) . स्त्रीचरित्र पद, क. गढ़, मा.गु., गा. १, पद्य, जे. 2. (त्रिया चरित्र दशलाख), ७६६७७-५ स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु, गद्य, मूपू.. (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), ७३६००-९ स्थूलभद्र एकवीसो, मु, लावण्यसमय, मा.गु. गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू (आव्यो आव्यो रे जलहर), ७६५८८ स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू. (सुखसंपति दायक सवा), ७५४८०, ७५३९४(०), ७६००६(१), ७६५९३-१४), ७७१५९(०३), ७६५४०(३) स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रियुडा मानो बोल), ७५७०० स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (कोस्या कामिनि कहे), ७३४५८(#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू, लाछल दे मात मल्हार), ७६१०८-३(+), ७७१०६(+), ७५४२७-२८) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ७३४५७-३ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (प्रीवा गुरु आदेस लही), ७५२४०-१ " स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (पामी रे प्रतिबोध), ७६५९३-३(#) स्थूलभद्र सज्झाय, उपा, उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, गा. ६७, वि. १७५९, पद्य, मूपू (सुख संपति दायक सदा), ७४९५६ (३) स्थूलभद्र सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७६८४९(+$) स्नात्र पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू (पूर्व दिसे तथा उत्तर) ७४४८२-११+४६) स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग. मूपू (पूर्वे बाजोट उपरि ७५१६८-१(०) ५९५ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ७५२२९($) स्वप्नफल चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, मूपू., (पहिलो मन जोड़ करि.), ७६२६९ (०) स्वयंप्रभजिन गीत, मु, जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (-), ७५७२०-१ (६) स्वादिमवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुंठी १ पीपर२ मरि३), ७५२९२-२ (#) स्वामीविरह पत्र, मु. उत्तम, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे. (सजन कुं चीरी लखुं), ७४४१७-१(#) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), ७४१२०(#$), ७४५३५ (#S), ७४०२७(६), ७६५८०(5) हनुमंतवचन कवित्त, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (कहो तो उडि गरवर चढुं), ७७११३-३(+) हरिबल रास, मु. जीतविजय, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८४९, पद्य, मूपू., (सुखदाई समरूं सदा), ७४९६८९६), ७७१७३($) हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., वि. १६८२, पद्य, मूपू., (कासमीर मुखमंडणी भगवत), ७४३०८(+#$) हीरविजयसूरि के १२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत १६४६ सोल छइताला), ७६३३५ हीरविजयसूरि चौमासुवाहाण, मु. हंसराज, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर मनि धरु), ७६३३९ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गोयम गणधर वादी मुदा),७२९१४-१(#) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीन), ७७५३२-१(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., ढा. २, गा. २२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउ सरसती), ७३३३८ हुंडी सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (नेम कहे सेठ सांभलो), ७३४०० होलिकापर्व ढाल, मु. रामकिसन शिष्य, मा.गु., गा. २५, वि. १८६६, पद्य, श्वे., (असी खेलोजी होली असी), ७६०८३(-) होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), ७३२७९(+), ७३४२६(5) होलिकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ७३८५०-३(+) होली कथा, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (पुरुष राजा प्रथमा), ७३६१०-१, ७७५२८-२(5) ह्रींकारकल्प विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अयोध्या के राजा दशरथ), ७५५७४-२(+) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAMERamhaninancir SELEARBAGAga Aatappassantara Taliliyardhyeos yamaon बाइबरमाका रsmaratषधिताल Carsamiti प परिसिजोशEिRan NAAMRArmaa न आराधना lemoमसरुदिया menganton NOURसीमानकायnMaaumasinoaahOE अ मेबाsmaaymANamreaant महावीर केन्द्र को कोबा. nasonicbe12 ) Serving Jin Shasan अमृतं Januaire atinindrantsDirp तु विद्या 156209 gyanmandir@kobatirth.org विश्व M Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-86-7 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only