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44 Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugveer" Personality and Achievements सामना करना पड़ा। पर ये वीर थे, और विरोधों को उदात्त भाव से सहते हुए अपनी गंभीर शोध करते रहे, जिसे अनेक विद्वानों ने आगे बढ़ाया। यही नहीं, उन्हें बाबू छोटेलाल जी कलकत्ता जैसे प्रेरक अर्थ-सहयोगी तथा अनेक शोध-सहयोगी विद्वान् डॉ. दरवारी लाल कोठिया पं. परमानंद शास्त्री भी मिले। उन्होंने जैन विद्याशोधकों की एक पीढ़ी ही तैयार की।
सरसावा में जन्मे मुख्तार सा. का कार्यक्षेत्र, सरसावा, सहारनपुर तथा दिल्ली रहा। प्रारंभ में उनका पारिवारिक जीवन सुखद रहा, पर 40 वर्ष की अवस्था में उनकी पत्नी के देहांत तथा 1920 में एक शारीरिक व्याधि के कारण उन्हें भयंकर आघात लगा, पर उन्होंने अपनी साहित्य सेवा की गति कम नहीं की। उन्होंने 1896 से लेख लिखना प्रारम्भ किया था और अपने अंतिम समय तक, 1968 तक वे उस काम में लगे रहे। लगभग सात दशक की यह साहित्य-सेवा आज जैन शोध एवं साहित्य की पुनीत धरोहर है।
श्री मुख्तार सा. ने शोध के अतिरिक्त भी, अनेक ऐसे कार्य किये, जिनसे उन्हें 'धर्मद्रोही' तक की उपाधि को झेलना पड़ा। आपकी लेखन विधा का प्रारंभ तो 19 वर्ष की अवस्था से ही हो गया था, पर 29 वर्ष की अवस्था तक वह परिपक्व हो गई एवं अपना चमत्कार दिखाने लगी। आपने 'जैन गजट' एवं 'जैन हितैशी' के संपादन के समय सामाजिक प्रतिष्ठा पाई एवं संपादकीय प्रतिष्ठा पाई। आपने 37 वर्ष की अवस्था में सूरजभान वकील के साथ अपनी मुख्तारी छोडी और स्वयं को समाज एवं साहित्य-सेवा में एवं धार्मिक आचार-विचारों के आलोडन से आपकी विचारधारा क्रांतिकारी बनी, लेकिन सशक्त एवं प्रामाणिक रहा, कवित्व मुखर रहा जिससे अंध-विश्वास और अंध मान्यतायें दूर भागने लगीं। इसीलिए आपकी गति भी ब्र. शीतल प्रसाद जी के समान हुई। 1929 में आपने दिल्ली में 'समंतभद्राश्रम' की स्थापना की एवं शोधपत्रिका 'अनेकांत' का प्रकाशन प्रारंभ किया। उसके संपादन एवं स्वलिखित सामग्री से विद्वत् समाज में आपकी काफी प्रतिष्ठा हुई। समन्तभद्राश्रम का वर्तमान रुप 'वीर सेवा मंदिर' आपकी निष्ठा, प्रतिष्ठा एवं उत्कंठा का जीवन प्रतीक है जो आपके अवसान के बाद टिमटिमा-भर रहा है। उसे पुनर्जीवन देना जैन समाज का परम कर्तव्य है।