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पं जुगलकिशोर मुखार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इस प्रकार जैन दर्शन के गहन सिद्धान्तों को करीब 20-25 एवं मनोरंजक उदाहरणों द्वारा बालकों को समझाने का सहज, सरल, सुगम प्रयत्न "अनेकान्त रस लहरी" बालोपयोगी पुस्तक में किया गया है। निश्चित ही यह पुस्तक प्रत्येक विद्यालय में पढ़ाने हेतु उपलब्ध कराना श्रेयस्कर होगा। पं. जुगलकिशोर मुख्तार जी ने भी यही हार्दिक इच्छा अपने प्राक्कथन में व्यक्त की है।
त्यजति तु यदा मार्ग मोहात्तदा गुरुरंकुशः। जब शिष्य अज्ञान के कारण मार्ग को छोड़ देता है तभी गुरु उसके लिए अंकुश के समान हो जाता है। उसे सन्मार्ग में लगाता है।
-विशाखदत्त (मुद्राराक्षस, ३६) गुरूपदेशश्च नाम पुरुषाणामखिल-मल-प्रक्षालनक्षममबलस्नानम् अनुपजातपलितादि-वैरूप्यमजरं वृद्धत्वं, अनारोपितमेदोदोषं गुरूकरणं, असुवर्णविर चनमगाम्यं कर्णाभरणम् , अतीतज्योतिरालोको, नोद्वेगकरः प्रजागरः। गुरु का उपदेश मनुष्यों के वृद्धत्व के समान हैं किंतु इस वृद्धत्व में केशों का पकना और अंगों की शिथिलता आदि दोष उत्पन्न नहीं होते हैं और शरीर जीर्ण-शीर्ण भी नहीं होता है। यह भारीपन देता है परन्तु मेद-दोष उत्पन्न नहीं करता है। यह कानों का आभूषण है परन्तु सुवर्ण-निर्मित नहीं है और न ग्राम्य है। यह जागरण-स्वरूप है किंतु उद्वेगकर नहीं है।
-बाणभट्ट (कादम्बरी, पूर्वपाग, पृ. ३१७-३१८)
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