Book Title: John Stuart Mil Jivan Charit
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 70
________________ ६६ डाला कि इतना स्पष्टवादी और निस्पृह बनकर यदि सर्वशक्तिमान् ईश्वर भी चाहता तो इंग्लैंडकी पारलियामेंटका मेम्बर न बन सकता ! ___ इस चुनावके समय मत देनेवालोंकी ओरसे जो जो प्रश्न होते थे, उनके वह निर्भय होकर खूब साफ साफ उत्तर देता था । यद्यपि इसके उत्तर लोगोंको रुचिकर नहीं हुए, तो भी उसकी स्पष्टवादिताका उनपर आशातीत प्रभाव पड़ा और इससे उसे बहुत लाभ हुआ। इसका उदाहरण सुनिए; उसने अपने किसी एक निबन्धमें पहले कभी लिखा था कि "यद्यपि झूठ बोलनेमें इंग्लैंडके मजदूरोंको औरोंकी अपेक्षा कुछ अधिक लजा मालूम होती है तथापि वे बहुधा झूठ बोलनेवाले ही होते हैं !" जब वह मजदूरोंकी एक सभामें व्याख्यान दे रहा था, तब किसीने उसके निबन्धका उक्त अंश छपाकर सारे मजदूरोंमें बाँट दिया । उसे पढ़कर किसी मजदूरने पूछा कि क्या आपने अपने किसी निबन्धमें ऐसा लिखा था ? मिलने किसी प्रकारकी टालटूल किये बिना तत्काल ही उत्तर दिया-हाँ मेरा ऐसा ही विश्वास है और उसीको मैंने अपने निबन्धमें लिखा है । यह सुनते ही श्रोताओंने एक साथ अगणित तालियोंका शब्द किया। उस समय उम्मेदवार अकसर यह चाल चला करते थे कि जो बात मत देनेवालोंके अनुकूल न होती थी-उन्हें अप्रसन्न करनेवाली होती थी-उसके विषयमें वे लुढुकता हुआ या दुटप्पा उत्तर देते थे। जब मजदूरोंने देखा कि मिल उस चालका आदमी नहीं है-वह साफ साफ कहनेवाला है तब वे चिढ़नेके बदले उलटा उसके भक्त हो गये । व्याख्यान समाप्त होनेपर उनमेंसे एकने कहा-" हम यह कभी नहीं चाहते हैं कि कोई हमारे दोष न प्रकट करे । हम यथार्थवक्ता मित्र चाहते हैं, खुशमसखरे और चापलूसी

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