Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth Author(s): Dalsukh Malvania Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur View full book textPage 7
________________ समिति की ओर से श्रद्वय मुनि जिनविजयजी पुरातत्ववेत्ताओं और प्राच्य-विद्या-प्रेमियों में विश्व-विश्रुत विभूति हैं । मुनिजी ने अनेक शोध-संस्थान, ग्रन्थ-संस्थान, ग्रंथ-भण्डार प्राचीन पुस्तक-माला आदि का संस्थापन, निर्देशन, संयोजन, संचालन किया है। विविध विषयों के बड़े-छोटे नाना ग्रन्थों के परिश्रमपूर्वक गहन-अध्ययन, संपादन और प्रकाशन के द्वारा उन्होंने एक ओर देश-विदेश के विद्वानों को ज्ञान-पिपासा-पति का और दसरी मोर भारतीय-वा को समृद्ध करने व पुराने इतिहास की कड़ियों को जोड़ने का असाधारण काम किया है। अगणित अलभ्य प्राचीन ग्रन्थों को उन्होंने सुरक्षित कर दिया है । राष्ट्रीय-शिक्षण और राष्ट्रीय-जन-जागरण भी उनका कार्य-क्षेत्र रहा है। इस मनीषी का सार्वजनिक-सम्मान व अभिनंदन करने का विचार कुछ वर्षों पूर्व किया गया। इस प्रसंग में अभिनंदन-ग्रन्थ समर्पण के पीछे यह दृष्टि भी रही कि राजस्थान में जन्मी, लेकिन फिर सारे भारत में ख्याति प्राप्त, इस प्रतिभा की जीवन सेवाएं प्रकाश में लाई जायें, इनकी खास कुछ रचनाएं अप्रकाशित रही हों उनको ग्रन्थ में संकलित कर दिया जाय और मुनिजी का निकट-परिचित, स्नेहीजन का जो विशाल समुदाय है उससे उपयुक्त लेख-सामग्री प्राप्त कर इसमें दी जाय । मुनिजी ने इस कार्य के लिये बहुत ही कठिनाई से सहमति दी । इस निमित्त से कहीं भी जानेप्राने से तो उन्होंने स्पष्ट ही इनकार किया। इसलिये चित्तौड़ में ही यह कार्यक्रम प्रायोजित करने का निश्चय किया गया। ग्रन्थ की सामग्री के संचय, संपादन में काफी समय लगा। उससे भी अधिक अप्रत्याशित विलम्ब ग्रथ के मुद्रण, प्रकाशन में हुआ। अर्थ-संग्रह के लिये पूरी शक्ति नहीं लग सकी। इस स्थिति में पत्रं-पुष्पं-फलं तोयं रूप अभिनन्दनग्रन्थ-मात्र समर्पण का ही कार्य-क्रम रखना तय रहा । मुनिजी ने चितौड़ में श्री हरिभद्र सूरि स्मारक व पुरात्व-शोध-केन्द्र और श्री भामाशाह-भवन की स्थापना द्वारा जो महत्व का कार्य किया है और जिसके लिये आर्थिक सहायता में सहयोग वे चाहते रहे उसमें यकिंचित योग देने का यह ही उपाय सोचा गया कि अभिनन्दन-ग्रन्थ की बिक्री से जो राशि प्राये उसका, ग्रथ की छपाई के खर्चे की पूर्ति में लगने वाले अंश के अलावा, शेषांश मुनिजी के परामर्शानुसार स्मारक के काम में ही लगाया जाय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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