Book Title: Jinvijay Muni Abhinandan Granth
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jinvijayji Samman Samiti Jaipur

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Page 10
________________ ग्रन्थ की योजना और लेखों की प्राप्ति में श्री दलसुख भाई का मुख्य हाथ रहा है और प्रसन्नता की बात है कि उन्होंने इसका प्रास्ताविक भी लिखा है। संपादन समिति के अन्य सदस्यों में श्री गोपालनारायण जी बहरा का बहमूल्य सहयोग हमें मिला है। उनके अतिरिक्त प्राचीन राजस्थानी के मान्य विद्वान श्री महताबचन्दजी खारैड ने ग्रन्थ के मुद्रण और प्रकाशन के कार्य में बहुत परिश्रम और उत्साह के साथ हाथ बटाया है । आदरणीय श्री अगरचन्द जी नाहटा बराबर तीव्रता के साथ इस कार्य की पूर्ति के लिए तकाजा करते रहे हैं। लेखक बन्धुत्रों ने इस ग्रन्थ के लिए अपने बहुमूल्य लेख प्रदान किये और धीरज के साथ इसके प्रकाशन की प्रतीक्षा करते रहे। इन सब बन्धुओं की कृपा के लिये मैं समिति की ओर से कृतज्ञता प्रकट करता हूं। अत्यन्त खेद की बात है कि श्री वासुदेव शरण जी अग्रवाल और श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार इस बीच दिवंगत हो गये। आदरणीय मनिजी प्रारम्भ से ही अपने अभिनन्दन तथा अभिनन्दन ग्रन्थ दोनों के प्रति अपनी उदासीनता और अनिच्छा अत्यन्त तीव्रता के साथ व्यक्त करते रहे हैं। इसके उपरान्त भी हम लोग इस काम में लगे रहे और उनके व्यक्तित्व तथा उनकी सेवानों के प्रति सम्मान और सराहना के रूप में यह ग्रन्थ उन्हें अपित है। इसमें जो कमियां और दोष रहे हैं उनकी जिम्मेदारी हमारी है, मेरी अपनी है और जो अच्छाइयां हैं वे सब लेखक बन्धुओं, सहयोगियों और प्रेस के मित्रों के कारण है और वे ही इसके लिये बधाई के पात्र हैं। मुझे प्रसन्नता इसी बात की है कि आठ वर्ष पहले जो जिम्मेदारी ली वह पूरी हुई और मुनिजी के अभिनन्दन में जो शतशः कर युगल जुड़े हैं उनमें हमारे साथ भी शामिल हैं। व्यक्ति समाज सेवा का कार्य निस्पृह और नि:स्वार्थ होकर करे, पर समाज उस सेवा को कृतज्ञता के साथ मान्यता दे इसी में व्यक्ति का विकास और समाज की समृद्धि है। जवाहिरलाल जैन सम्पादन समिति किशोर निवास, जयपुर, महावीर जयन्ति, १९७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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