Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(४०) अनुक्रमें मंगलकारा ॥ गजवर तपन सिंह ने देवी, दाम शशी रवि सारा रे ॥ मन ॥२॥ ध्वज कुंन पद्मसरोवर सागर, देवविमान उदा रा॥ रत्नसमूह वन्दिनी ज्वाला,राणी कहे सुण वादाला रे॥म ॥३॥ शुं फल दोशे कहो मुझ स्वामी, तव कहे राय विचारा॥राज्यपती राजा तव नंदन, होशे जिन मनोहारा रे॥म न॥४॥ चैतर शुदि तेरशने दिवसें, जन्म ढुवो सुखकारा ॥ नारकने पण आणंद ते दिन, हंसादिक जयकारा रे॥ मन ॥५॥ इति॥
॥सिहाचलस्तवनं लिख्यते॥ ॥विमलाचल नगनाथने, चित्त धरीयें। हारे चित्त धरिये रे, चित्त चित्त धरियें॥हारे चि त धरिये तो शिववध वरिये, हारे तरी नव पाथ ॥ विमला ॥ए आंकणी॥ चौद महान दी शोनती तिण गम, हारे तेमां शेजूंजी अ ति अनिराम,हारे दारी गंगा फिरे अन्य गम,

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