Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 64
________________ (42) री नगरी दूर वारी, संयमरमणी नलि डर धा री, शिववढू बरवानी बे त्यारी ॥ सुण प्रा० ॥ ॥ २ ॥ जेणें निंदा विकथा परिदारी, व्रत नार नस्यो शिरपर नारी, जिन प्राणाखन निज क रधारी ॥ सुण प्रा० ॥ ३ ॥ जेणें कुमति हृदययी करि न्यारी, नली परें सुमति बहु शणगारी, ए वा मुनिजननी जानुं हुं वारी ॥ सुप प्रा० ॥४॥ मोदराय प्रबल सेना मारी, जेणें धर्मराय सेना गरी, जयलक्ष्मी वरी सदु जन प्यारी ॥ ॥ सुप्रा रे, मुनिमुखकमलें भ्रमर परें तुं रहेने ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्री दीवाली स्तवन ॥ ॥ धारणी मनावे रे मेघ कुमारने रे ॥ ए देशी || दीवा लिने दादाडे रे वीरप्रनु पामीया रे, अनुपम पढ़ निरवाण । तेणें दिन देवो रे सहु मिली एकता रे, आव्या पापापुरी ठाण ॥ दी० ॥ १ ॥ तिहां प्रभुवीर रे मोक्ष जावाथ की रे, करयुं पापापुरी नाम ॥ अनुक्रमें आ

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