Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ व्यवहारनय : कुछ प्रश्नोत्तर ] [ १३३ असद्भूतव्यवहारनय का क्षेत्र बहुत बड़ा है, क्योंकि उसका विषय विभिन्न द्रव्यों के बीच विभिन्न सम्बन्धों के आधार पर एकत्व का उपचार करना है। एक तो द्रव्य ही अनन्तानन्त हैं, और उनमें जिन सम्बन्धों के आधार पर एकत्व या कर्तृत्वादि का उपचार किया जाता है, वे सम्बन्ध भी अनेक प्रकार के होते हैं । यही कारण है कि इसका विषय असीमित है। जब विश्व के अनन्तानन्त द्रव्यों में से किन्हीं दो या दो से भी अधिक द्रव्यों के बीच होनेवाले सम्बन्धों के बारे में विचार करते हैं, तो अनेक प्रश्न खड़े हो जाते हैं। जैसे कि वे द्रव्य एक ही जाति के हैं या भिन्न-भिन्न जाति के ? तथा जो सम्बन्ध स्थापित किया जाता है, वह निकटवर्ती (संश्लेषसहित) है या दूरवर्ती (संश्लेषरहित) ? ज्ञाता-ज्ञेय है या स्व-स्वामी ? आदि अनेक विकल्प खड़े हो जाते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर इन उपचारों को पहले तो नौ भागों में विभाजित किया गया है, जिनका उल्लेख पहले किया जा चुका है। वे नौ विभाग द्रव्य, गुण और पर्याय के आधार पर किये गये हैं। सजाति, विजाति और उभय के भेद से द्रव्यों का वर्गीकरण भी तीनप्रकार से किया जाता है। इन सजाति, विजाति और उभय द्रव्यों में विभिन्न सम्बन्धों के आधार पर उक्त नौ प्रकार का उपचार करना ही असद्भूतव्यवहारनय का विषय है। यद्यपि उपचार शब्द का प्रयोग सद्भूतव्यवहारनय के साथ भी है। जैसे- एक द्रव्य में भेदोपचार करना सद्भूतव्यवहारनय का कार्य है और भिन्न-भिन्न द्रव्यों में अभेदोपचार करना अमद्भूतव्यवहारनय का कार्य है। इसी के आधार पर सद्भूतव्यवहारनय के उपचरितसद्भूतव्यवहारनय और अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय - ऐसे भेद भी किये जाते हैं, तथापि वास्तविक उपचार तो असद्भूतव्यवहारनय में ही होता है, क्योंकि द्रव्य में गुरणभेदादि-भेद उपचरित नहीं, वास्तविक हैं। __ सद्भूतव्यवहारनय के अनुपचरित और उपचरित भेदों के स्थान पर जो शुद्ध और अशुद्ध नाम प्राप्त होते हैं, उनसे सद्भूतव्यवहारनय को उपचरित कहने में संभावित संकोच स्पष्ट हो जाता है। अतः मुख्यरूप से भेदव्यवहार को सद्भूतव्यवहार और उपचरितव्यवहार को असद्भूतव्यवहार कहना ही श्रेयस्कर है। जैसा कि कहा भी गया है :

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191