Book Title: Jinavarasya Nayachakram
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ १७२ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् (११) प्रश्न :- अध्यात्म के नयों में द्रव्याथिक, पर्यायाथिक तथा नैगमादि नयो की चर्चा नहीं है, किन्तु पागम मे निश्चय-व्यवहार के साथसाथ उक्त नयों की भी चर्चा है । इसका क्या कारण है ? उत्तर :- आगम और अध्यात्म शैली में मूलभूत अन्तर ग्रह है कि अध्यात्म शैली की विषयवस्तु आत्मा, आत्मा की विकारी-अविकारी पर्यायें और आत्मा से परवस्तुओं के संबंधमात्र है। प्रागमशैली की विषयवस्तु छहों प्रकार के समस्त द्रव्य उनकी पर्याये और उनके परस्पर के संबंध आदि स्थितियाँ हैं। इसी बात को सूत्ररूप में कहे तो इसप्रकार कह सकते है कि - "पागम का प्रतिपाद्य सन्मात्र वस्तु है और अध्यात्म का प्रतिपाद्य चिन्मात्र वस्तु है।" अपने प्रतिपाद्य को स्पष्ट करने के लिए अध्यात्म को मात्र तीन बातों का स्पष्टीकरण अपेक्षित है। (१) अभेद अखण्ड चिन्मात्र वस्तु (२) चिन्मात्र वस्तु का अंतरग वभव एव उपाधियाँ (३) चिन्मात्र वस्तु का पर से संबंध और उनकी अभूतार्थता । चिन्मात्र वस्तु के उक्त दष्टिकोणों मे प्रतिपादन के लिए अध्यात्म शेलो ने निश्चय-व्यवहारनयों तक ही अपने को मीमित रखा और उक्त तीनों बिन्दुओं के स्पष्टीकरण के लिए उसने क्रमशः निश्चय नय, सद्भूतव्यवहारनय और असद्भूतव्यवहाग्नय का उपयोग किया है। आगम शैली को अपनी विषयवस्तु के स्पष्टीकरण के लिए अनेक प्रकार के अनेकों नय स्वीकार करने पड़े, क्योकि उसका क्षेत्र असीमित है। उसकी सीमा में छहो द्रव्य, उनके गुण और पर्याय मात्र नहीं है, अपितु उससे आगे उनके परस्पर सयोग-वियोग, मानसिक संकल्प, लौकिक उपचार, निक्षेपों-सबंधी व्यवहार आदि सबकुछ भी समाहित है। यही कारण है कि उसे निश्चय-व्यवहार के अतिरिक्त, द्रव्यों को ग्रहण करनेवाला द्रव्याथिकनय, पर्यायों को ग्रहण करनेबाला पर्यायाथिकनय, संकल्पो को ग्रहण करनेवाला नैगमनय, विभिन्न द्रव्यों का संग्रह करनेवाला संग्रहनय, संगृहीत द्रव्यों मे भेद करनेवाला व्यवहारनय, एक समय की पर्याय को ग्रहण करनेवाला ऋजुसूत्रनय, शब्दों के प्रयोगों का ग्राहक शब्दनय, रूढ़ियों का ग्राहक समभिरूढनय, एवं तात्कालिक क्रियाकलापों को ग्रहण करनेवाला एवंभूतनय स्वीकार करना पड़ा। इनके अतिरिक्त उपनय भी है। इन सबके भेद-प्रभेदों का बहुत विस्तार है। इन सब की

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191