Book Title: Jina Khoja Tin Paiya
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 9
________________ १४ जिन खोजा तिन पाइयाँ आगे मेहमान का मूल्य ही क्या ? मित्र और मेहमान की आपस में कोई तुलना ही नहीं है, एक पूर्व है तो दूसरा पश्चिम । मित्र के साथ कोई दुराबछिपाव नहीं होता, दिलों की दूरी नहीं होती, दोनों की देह दो होती है और दिल एक । मेहमान के साथ होता है औपचारिकताओं का पूरा पुलिन्दा, उसके सामने घर की कोई कमजोरी जाहिर नहीं की जा सकती, उसके आतिथ्यसत्कार में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, मेहमान के कारण मन-मस्तिष्क पर ऐसा बोझ बना रहता है कि भले ही तुम्हें उधार ही क्यों न लेना पड़े, पर मेहमान का स्वागत-सत्कार तो भरपूर होना ही चाहिए। जबकि मित्र के साथ ऐसी कोई चिन्ता नहीं रहती । मेहमान भले प्यासा बैठा रहेगा, पर पानी माँगकर नहीं पियेगा और मित्र चौके में जाकर अपने हाथ से भी चाय बनाकर पी लेगा। मित्र कभी किसी बात का बुरा नहीं मानता और मेहमान यदि बात बात में बुरा न माने तो वह मेहमान कैसा? नाराज होना और मनवाना तो मेहमान का जन्म सिद्ध अधिकार है। ( १८ ) चिन्ता हो या चिन्तन नींद तो दोनों में ही नहीं आती, पर चिन्ता से चिन्तन श्रेष्ठ है । चिन्ता एक मानसिक विकृति का नाम है और चिन्तन है विशुद्ध तत्त्व विचार | चिन्ता अशान्ति और आकुलता की जननी है और चिन्तन है निराकुलता और शान्ति का स्रोत । चिन्तायें चेतन को जलाती हैं। और चिन्तन राग-द्वेषको, मन के विकारों को। चिन्ताओं के घेरे में आत्मा अनुपलब्ध रह जाता है और चिन्तन से होती है आत्मतत्त्व की उपलब्धि । अतः विवेकीजन चिन्ताओं की राह छोड़कर चिन्तन की राह ही पकड़ते हैं, तत्त्व चिन्तन ही सदैव आदरणीय है, अनुकरणीय है । चिन्ता और चिन्तन का तो परस्पर साँप और नेवले की तरह जन्मजात वैर-विरोध है । (९) संस्कार से १५ चिन्ताओं की परेशानी से बचने के लिए व्यक्ति अचेत हो जाना चाहता है, नींद की गोलियाँ खाकर सो जाना चाहता है। ( १९ ) दुनिया में आज भी गुणों का ही आदर है, धन-वैभव का नहीं। भले ही तुम धनी हो, पर तुम्हारे धन से दुनिया को क्या लेना-देना है। घोड़े की पूँछ लम्बी होती है तो उससे वह अपनी ही मक्खी तो भगा सकता है, सवार को उसकी लम्बी पूँछ से क्या लाभ? ( २० ) जो चन्द्रमा पर थूकने की कोशिश करता है, सारा थूक लौटकर उसके मुँह पर ही गिरता है न? चन्द्रमा का उससे क्या बिगड़ता है ? कुछ भी नहीं । ( २१ ) भावुकतावश भीष्म प्रतिज्ञायें कर लेना एक बात है और उन्हें आजीवन निभाना दूसरी बात; अतः प्रतिज्ञा लेने के पहले दूरदृष्टि से विचार कर लेना चाहिए । ( २२ ) कोई माता-पिता यदि अपने आँगन में कुँआ खुदवाता है तो इसलिए नहीं कि उसकी सन्तान उसमें डूब मरे, बल्कि इसलिए कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी सबको सदैव शीतल जल उपलब्ध रहे। ( २३ ) गुलाब में फूल भी होते हैं और काँटे भी; पर हमें उससे केवल फूल ग्रहण करना है, काँटे नहीं । काँटों से तो उल्टा बचना है; क्योंकि ऐसा गुलाब का कोई पौधा नहीं, जिसमें फूल ही फूल हों, काँटे न हों। अतः सबको फूलों और काँटों की पहचान अवश्य होनी चाहिए, ताकि काटों से बच सकें। ( २४ ) जैसे माँस पर गिद्ध मँडराते हैं, वैसे ही महिलाओं पर चारों ओर ये

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