Book Title: Jina Khoja Tin Paiya
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 74
________________ जिन खोजा तिन पाइयाँ आदरणीय पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल के नाम प्राप्त पत्र गौहाटी से सद्धर्मप्रेमी श्री जयचन्दलालजी पाटनी लिखते हैं कि - मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज के सान्निध्य में एवं श्रीमती प्रतिभा पाटिल महामहिम राज्यपाल राजस्थान के करकमलों द्वारा आपको सन् 2005 का आचार्य अमृतचन्द्र पुरस्कार प्राप्त हुआ। सचमुच आप सरल, सात्विक एवं जिनवाणी माता के प्रचार में निरन्तर व्यस्त रहने वाले निःस्वार्थ भाव से साहित्य सेवी विद्वानों में विरल हैं। आप सही रूप में जिनवाणी माँ की सरल-सुबोध शैली में गहन से गहन विषयों को प्रतिपादित करके जिज्ञासु भव्यजनों को सुबोध देने में सक्षम हैं। आपकी छवि को देखकर ही आपके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ती है। आप चिरायु होकर इसी तरह लंबे समय तक जिनवाणी की संवर्धना में सहयोगी बने रहें - यही शुभ कामना एवं मंगल भावना है। पुनश्चः आपने 1 लाख रुपयों का पारितोषिक प्राप्त कर उसमें अपनी तरफ से 51 हजार रुपये मिलाकर साहित्य प्रकाशन का न्यास बनाने की घोषणा करके सच्चे धार्मिक होने का जो प्रमाण पत्र दिया है, उससे मेरी श्रद्धा द्विगुणित हो गई है। यह अति श्लाघनीय कार्य है। जिन खोजा तिनि पाईयाँ आगम-रत्नाकर में प्रतिदिन जो गोते खूब लगायेगा। अध्यात्म का अवलम्बन ले जो गहरे गोते खायेगा। यथाशीघ्र तल तक जाकर वह अनमोल रतन ले आयेगा। रत्नत्रय की निधियाँ पाकर वह अनुपम आनंद पायेगा। समकित का अनमोल रतन उसके अनुभव में आयेगा। ज्ञान-रतन की ज्योति से वह अज्ञान अंधेर भगायेगा। निज स्वरूप में स्थिर हो वह भवसागर तर जायेगा। मोक्षमहल में जाकर के वह कृत्य-कृत्य हो जायेगा। आपका स्नेही जयचन्द लाल पाटनी 14, महावीर भवन, ए.टी. रोड, गौहाटी 'जिन खोजा तिनि पाईयाँ यह विश्वास हमारा है। आध्यात्मिक रत्नों को पाने का ये ही यह मात्र सहारा है। ॥ॐ नमः॥ - रतनचन्द भारिल्ल (76)

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