Book Title: Jainology Parichaya 04
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 43
________________ तृष्णा - तण्हा मृदु - मउ मृत्यु - मच्चु तृण - तण मृत - मय II) ऋ = इ ऋषि - इसि कृपा - किवा कृश - किस गृह - गिह नृप - निव शृगाल - सियाल कृमि - किमि कृपण - किविण दृढ - दिढ मृग - मिग शृंगार - सिंगार हृदय - हियय III) ऋ = उ ऋतु - उउ पितृ - पिउ पृथ्वी - पुढवी वृद्ध - वुड्ड जामातृ - जामाउ मृषा - मुसा भ्रातृ - भाउ मातृ - माउ IV) ऋ = रि ऋषभ - रिसह (उसह) ऋषि - रिसि ऋण - रिण ऋद्धि - रिद्धि स्वाध्याय १) निम्नलिखित स्वर-परिवर्तनों के दो-दो उदाहरण लिखिए । स्वर-परिवर्तन उदाहरण १) 'ऐ' की जगह 'ए' २) 'ऐ' की जगह 'अइ' --- ३) औ' की जगह 'ओ' --- ४) औ' की जगह 'अउ' --- ५) विसर्ग की जगह 'ओ' --- ६) 'ऋ' की जगह 'अ' --- ७) 'ऋ' की जगह 'इ' --- ८) 'ऋ' की जगह 'उ' --- ९) 'ऋ' की जगह 'रि' २) इस पाठ में अंतर्भूत संस्कृत शब्दों के प्राकृत रूप लिखिए । उदा. सैन्य - सेन्न ; पौर - पोर, पउर ; घृत - घय ; ऋषभ - रिसह इ.

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