Book Title: Jainendra Kahani 10
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 156
________________ १५८ जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग कर सका। __ शर्मा जी ने शायद मेरी हालत देख ली हो, उन्होने मुझे गले से लगाया फिर अलग करते हुए कधे पर थपथपाकर कहा-"हम जैसे भटके लोगो की चिन्ता न करना । जवान हो, और अपने सेवा के कामों मे दत्त-चित्त होकर बढते रहना और यशस्वी होना।" -इसी से कहता हू, मैं चक्कर मे हू, बडे चक्कर मे हु और कप्ट ये है कि चक्कर सदाचार मे से बन गया है । जुलाई '६५

Loading...

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179