Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[महापुरुष-सूत्र
टीका-विवेकी पुरुप, सज्जन पुरुप-धन, वैभव, पुत्र, पत्नी, परिवार, मकान, मोटर, परिग्रह, यश. कीर्ति, सुख और सन्मान में मी , ममता या आसक्ति नही रखते हैं, यह तो ठीक है, परन्तु अपने शरीर तक में भी ममत्व-भाव, आसक्ति-भाव नही रखते है । ऐसे महापुरुप हमारे लिये आदर्श है ।
(१८) खवति अप्पारण ममोह दंसिणो।
द०, ६, ६८ टीका-मोह रहित यानी अनासक्ति के साथ सांसारिक दशाओ को और विषमता को देखने वाले, तत्त्व और अतत्व पर विचार करने वाले, प्रकृति के मूल रहस्य का चिंतन करने वाले, ऐसे तत्त्व दर्शी अपने पूर्व जन्मो में सचित सभी कर्मो का क्षय इस प्रकार कर देते हैं जैसे कि आग घास का कर देती है।
महप्पसाया इसिणो हवन्ति ।
उ०, १२, ३१ टीका-ऋपिगण और स्व-पर की कल्याण कारी भावना वाले मुनिगण सदा ही प्रसन्न चित्त और निर्लिप्त चित्त वाले होते है। ये महात्मा निन्दा और स्तुति, मान और अपमान, पूजा और तिरस्कार, सभी अनुकूल और प्रतिकूल सयोगो के प्रति समभावशील रहते है। ये हर्प-शोक से अतीत होते है । ये राग द्वेष से रहित होते है ।
(२०) हिरिमं पडिसलोणे सुविणीए ।
उ०, ११, १३, __ टीका- जो लज्जा वाला है, जो मर्यादा पूर्वक जीवन-व्यवहार को चलाने वाला है, जो इन्द्रियो को वश में करने वाला है,जो भोगों