Book Title: Jain Tattva Darshan Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 36
________________ _जैन तत्त्व दर्शन 3. दीक्षा की महत्ता ___एक दरिद्र पुत्र ने दीक्षा ली। उसको गांव के लोग चिड़ाने लगे कि पैसा नहीं था, इसलिए दीक्षा ली। उससे सहन नहीं हुआ। उसने गुरु से कहा यहाँ से विहार करो, तब अभयकुमार ने गुरु को विहार करने से मना किया और लोगों को त्याग का महत्व बताने के लिए गांव में ढंढेरा बजवाया कि यहाँ पर रत्नों के तीन ढेर लगाये गये हैं, जो व्यक्ति अग्नि, स्त्री (पुरुष) एवं कच्चे पानी का त्याग करेगा उसे ये ढेर भेंट दिये जायेंगे। कई लोगों की भीड़ लगी पर कोई एक भी वस्तु का त्याग करके संसार में रहने के लिए तैयार नहीं हुआ। अभयकुमार ने कहा इस बालक ने इन तीनों का त्याग किया है। इसे यह रत्न दिये जाते हैं। लेकिन बालक साधु ने कहा कि मुझे नहीं चाहिए। तब लोगों को दीक्षा का महत्व पता चला कि इसने कितना महान कार्य किया है तो सब उसे पूजने लगे। जो त्याग करता है उसे सब पूजते हैं। उन्हें सब सामने से मूल्यवान वस्तु वहोराते हैं। भिखारी के पास भी कुछ भी धन नहीं है। वह भी भीख मांगता है। लेकिन उसको कोई नहीं देता। उसका मूल्य नहीं है, क्यों ? क्योंकि उसने त्याग नहीं किया, वह हर समय लेने के लिए तैयार है। 4. शासन प्रभावक आचार्य 1. श्री भद्रबाहु स्वामीजी 2. श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी 3. श्री मानदेवसूरिजी 4. श्री मानतुंगसूरिजी 5. श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण 6. श्री हरिभद्रसूरिजी 7. श्री अभयदेवसूरिजी 8. श्री हेमचन्द्रसूरिजी 9. श्री हीरसूरिजी 10. श्री उपाध्याय यशोविजयजी

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